बारह बजे के बाद सुनील ने ब्लास्ट के आफिस से रमाकांत को फोन किया ।
“बलराज सेठी के बारे में कई दिलचस्प बातें मालूम हुई हैं ।” - रमाकांत ने बताया ।
“क्या ?” - सुनील ने उत्सक स्वर से पूछा ।
“बलराज सेठी का मेजेस्टिक सर्कल पर स्थित नेशनल बैंक बिल्डिंग में दफ्तर है जिसका नाम है टेलेन्ट प्रोमोशन कारपोरेशन ।”
“यह टेलेन्ट प्रमोशन कारपोरेशन क्या बला है ?”
“लोगों को ठगने का कानूनी धन्धा है । फिल्म स्टार बनने के शौकीन नौजवान लड़के लड़कियां बलराज सेठी की टेलेन्ट प्रमोशन कारपोरेशन में जाते हैं । बलराज सेठी एक निश्चित फीस पर उनका स्क्रीन टैस्ट लेता है, उनकी आवाज टैस्ट करता है और फिर यह फैसला सुनाता है कि प्रत्याशी फिल्म स्टार बन सकता है या नहीं ।”
“और जो प्रत्याशी फिल्म स्टार बनने का टेलेन्ट रखता है ?”
“उसके लिए बलराज सेठी फिल्म निर्माताओं से बात करता है लेकिन वह किसी को फिल्म स्टार बनवा देने की गारन्टी नहीं करता लेकिन क्योंकि प्रत्याशी को आशा लगी ही रहती है इसलिए वह फीस के अलावा भी बलराज सेठी को उसकी खातिर फिल्मी हस्तियों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए पैसा देता है ।”
“बलराज सेठी के प्रयत्नों से कभी कोई फिल्म स्टार बना है ?”
“स्टार कोई नहीं बना लेकिन एक दो लड़कियों को उसने फिल्मों में छोटे-छोटे रोल दिलाए हैं और फिर टांय टांय फिस्स ।”
“आई सी ।”
“मैंने पता लगाया है कि बलराज सेठी के अधिकतर क्लायन्ट लड़कियां हैं और वह बड़े होटलों और नाइट क्लबों के कैब्रे डान्स करने वाली लड़कियों से अनुबन्ध कराता है ।”
“उसका यह धन्धा तो भारी गन्दगी की ओर संकेत करता है ।”
“बिल्कुल करता है । जैसे किसी बड़े होटल में ठहरे सेठ जी को बिस्तर गर्म करने के लिए लड़की चाहिए तो होटल का मैनेजर टेलेन्ट प्रमोशन कारपोरेशन में बलराज सेठी से बात करेगा और लड़की हाजिर हो जाएगी । यह बात मैंने अपनी ओर से कही है क्योंकि सारे सिलसिले में ऐसी सम्भावनाएं दिखाई देती हैं । मेरे पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन ऐसे किसी सिलसिले की तगड़ी सम्भावना एक और बात से भी दिखाई देती है ।”
“कौन सी बात ?”
“आज से पांच साल पहले एक बार बलराज सेठी चकला चलाने के अपराध में गिरफ्तार हुआ था । पुलिस ने उस पर चार्ज लगाया था कि वह जवान लड़कियों को वेश्यावृत्ति के लिए प्रोत्साहन देता है लेकिन अदालत में उसके खिलाफ पुलिस द्वारा लगाया चार्ज सिद्ध नहीं हो सका था । और वह बरी हो गया था । उसी आधार पर मैंने यह नतीजा निकाला है कि शायद टेलेन्ट प्रमोशन कारपोरेशन धोखे की पट्टी ही हो और बलराज सेठी अभी भी अपना पुराना धन्धा ही चला रहा हो ।”
“भटनागर से उसका क्या सम्बन्ध है ?”
“प्रत्यक्षतः तो दोनों में दोस्ती ही है लेकिन धन्धे के भी एक सम्बन्ध की सम्भावना मुझे दिखाई देती है ।”
“क्या ?”
“भटनागर बड़े-बड़े उद्योगपतियों के लिए बड़ी-बड़ी पार्टियों और कान्फ्रेंसों का इन्तजाम करता है । ऐसी पार्टियों में रईस लोगों के मनोरंजन के लिये जवान लड़कियों की बड़ी गुंजायश होती है । उदाहरण के लिए मान लो सारे उत्तर भारत के लोहे के व्यापारियों की एक कान्फ्रेंस राजनगर में होती है । सारे उत्तर भारत के लोहे का व्यापार करने वाले सेठ राजनगर में इकट्ठे होते हैं । भटनागर की जीना टूरिस्ट एजेन्सी उनकी रिहायश और उनकी कांफ्रेंसों का इन्तजाम करती है । अपनी बूढी सेठानियों से दूर इन बूढे रईसों को अगर जवान लड़कियों पर झपटने का मौका मिले तो वे यह मौका छोड़ेंगे नहीं । भटनागर और बलराज सेठी का सम्बन्ध और उनके धन्धे का नक्शा मुझे यह नतीजा निकालने पर मजबूर करता है कि भटनागर द्वारा आयोजित पार्टियों और कांफ्रेंसों के बाद जो एंटरटेनमैंट का प्रोग्राम होता होगा उसमें बलराज सेठी द्वारा भेजी हुई लड़कियां जरूर हिस्सा लेती होंगी । क्या ख्याल है ?”
“हो सकता है ।” - सुनील बोला... फिर तो यह भी हो सकता है कि मीरा भी बलराज सेठी के चंगुल में फंस गई हो और ऐसे ही किसी बखेड़े की शिकार हो कर गर्भवती हो गई हो ।”
“बिल्कुल हो सकता है । मीरा गांव की सीधी साधी लड़की है जो शहर की चमक दमक से बेहद प्रभावित है । ऐसी लड़की को उत्तेजना भरी तेज रफ्तार जिन्दगी और अच्छी कमाई का लालच देकर कालगर्ल के धन्धे में बड़ी आसानी से उतारा जा सकता है । यह भी सम्भव है कि सहेली कामिनी पहले से ही यह धन्धा करती हो । उसी ने मीरा को भी इस धन्धे में डाला हो ।”
“पुलिस को बलराज सेठी के मौजूदा धन्धे की कोई खबर है ?”
“जरूर होगी । लेकिन पुलिस उसके खिलाफ कुछ सिद्ध तो नहीं कर सकती । प्रोस्टीच्यूशन (वेश्यावृति) का धन्धा ही ऐसा है जिस में कुछ सिद्ध करने में पुलिस को दांतों पसीने आ जाते हैं । शहादत के बिना केस मजबूत नहीं होता और ऐसे धन्धे में शहादत कौन देगा । कौन अदालत में आकर कहेगा कि उसने बलराज सेठी की सप्लाई की हुई लड़की के साथ धन्धा किया है ? और लड़कियां जरूर ये काम अपनी मर्जी से करती होंगी । दस में से आठ तो डान्सर ऐसी होंगी जिन्हें अगर होटल या क्लब में दो तीन घन्टे नग्न या अर्धनग्न नृत्य करने के दो सौ रुपये मिलते हैं और अगर उतने ही समय के लिये किसी सेठ का बिस्तर गर्म करने के लिये दो हजार रुपये मिलते हैं तो उसे दो हजार रुपये कमाने में एतराज नहीं होगा ।”
“एतराज हो भी सकता है ।”
“हो सकता है । मान लिया । लेकिन एतराज करने वाली लड़कियों में बलराज सेठी दिलचस्पी ही क्यों लेगा ?”
“तुम ठीक कह रहे हो ।” - सुनील ने स्वीकार किया ।
“अब तुम क्या करोगे ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“मैं बलराज सेठी से मिलने जा रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“क्या फायदा होगा ?”
“पता नहीं । फिलहाल तेल की धार देखो । दयाल की निगरानी हो रही है ?”
“हां, गोपाल कर रहा है ।”
“ओके । थैंक्यू ।”
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
***
मैजेस्टिक सर्कल पर स्थित नेशनल बैंक की इमारत की तीसरी मंजिल पर टेलेन्ट प्रमोशन कारपोरेशन का दफ्तर था ।
सुनील ने अपना विजिटिंग कार्ड दफ्तर के चपरासी के हाथ में रखा और बोला - “मुझे बलराज से मिलना है । फौरन ।”
चपरासी कार्ड लेकर भीतर चला गया ।
एक मिनट बाद वह सुनील को बलराज सेठी के प्राइवेट आफिस में ले गया ।
“तुम ।” - बलराज सेठी उस पर निगाह पड़ते ही बोला ।
“हां हां, मैं ।” - सुनील एक कुर्सी पर ढेर होते हुए बोला - “इस में हैरान की कौन सी बात है ! पिछली रात को मिसेज मुकन्दलाल की कृपा से हम हैल में मिल चुके हैं ।”
बलराज सेठी ने एक निगाह फिर अपने सामने पड़े सुनील के विजिटिंग कार्ड पर डाली और फिर अनिच्छा पूर्ण स्वर में बोला - “कैसे आये ?”
“जी मीरा से दुबारा मिलना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“मीरा ! कौन मीरा ?”
“तुम मीरा को नहीं जानते ?”
“शायद जानता होऊंगा । शायद न जानता होऊं । अपने मौजूदा धन्धे की वजह से मैं सैंकड़ों लड़कियों को जानता हूं । मैं सब के नाम कैसे याद रख सकता हूं ।”
“मीरा के बारे में तो तुम्हें जानकारी होनी चाहिये ।”
“क्यों ? क्या विशेषता है उसमें ?”
“तुम्हें नहीं मालूम ?”
“पहेलियां मत बुझाओ !” - बलराज सेठी झुंझलाकर बोला - “देखो, मैं बहुत व्यस्त आदमी हूं । मेरे पास बरबाद करने के लिए वक्त नहीं है ।”
“बरबाद करने के लिए मेरे पास भी वक्त नहीं है ।” - सुनील बोला - “मुझे भटनागर ने यहां भेजा है । वह कहता है कि मीरा के बारे में मैं तुमसे पूछूं ।”
“भटनागर कौन ?”
“एस के भटनागर । जीना टूरिस्ट एजेन्सी का मैनेजर । अभी कल रात ही तुम जहन्नुम (हैल) में उससे मिले हो ।”
बलराज सेठी के नेत्र सिकुड़ गए । उसने कठोर नेत्रों से सुनील की ओर देखा और बोला - “मुझे समझ नहीं आ रहा तुम क्या चाहते हो ?”
“कौन सी जुबान समझते हो, सेठी साहब !” - सुनील भी कठोर स्वर में बोला - “मैं आपसे मीरा के बारे में पूछ रहा हूं । मैं भटनागर के पास गया था । पहले तो उसने भी तुम्हारी तरह इनकार कर दिया था कि वह किसी मीरा को नहीं जानता । लेकिन जब मैंने उसकी थोड़ी सी ‘खातिर’ की तो उसने कहा था कि मीरा के बारे में तुम मुझे बताओगे ।”
“तुमने भटनागर की ‘खातिर’ की थी ?”
“हां ।”
“यह कब की बात है ?”
“आज सुबह की ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो ।”
“भटनागर से पूछ लो ।”
बलराज सेठी ने टेलीफोन का रिसीवर उठा लिया और क्रेडिल के समीप बजर दबा दिया । वह कुछ क्षण प्रतीक्षा करता रहा और फिर बोला - “भटनागर का नम्बर मिलाओ ।”
उसने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और बोला - “अभी पता लगा जाएगा कि भटनागर ने तुम्हें मेरे पास भेजा है या नहीं ।”
“नहीं लगेगा ।” - सुनील शान्ति से बोला ।
“देखते हैं ।”
उसी क्षण टेलीफोन का बजर बजा । बलराज सेठी ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया । दूसरी ओर से बोलने वाला इतनी जोर से बोल रहा था कि आवाज सुनील को भी सुनाई दे रही थी - “साहब, मैंने भटनागर साहब का नम्बर मिलाया तो जवाब पुलिस ने दिया । भटनागर साहब का मर्डर हो गया है ।”
“क्या ?” - बलराज सेठी चिल्लाकर बोला ।
“मैं ठीक कह रही हूं साहब । पुलिस ने मुझे यही बताया है ।”
“तुमने उन्हें बताया था कि तुम कहां से बोल रही हो ?”
“हां । इन्सपेक्टर ने पूछा था । मैंने उसे बताया था कि मैं टेलेंट प्रोमोशन कारपोरेशन से बोल रहा हूं और सेठी साहब भटनागर साहब से बात करना चाहते थे ।”
बलराज सेठी ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
“तुम्हें पहले ही मालूम था कि भटनागर मर चुका है ।” - बलराज सेठी सुनील को घूरता हुआ बोला ।
सुनील मुस्कराया ।
“भटनागर कैसे मरा ?”
“मुझे तो ख्याल था तुम्हें मालूम होगा ।”
“मुझे कैसे मालूम होगा ?”
“अब बहानेबाजी छोड़ो । पुलिस को तुम्हारे धन्धे की खूब जानकारी है । भटनागर की मौत के बाद अब पुलिस वाले तुम पर चढ दौड़ेंगे ।”
“मुझ पर क्यों चढेंगे वे ?”
“तुम्हारे धन्धे की वजह से ।”
“क्या खराबी है मेरे धन्धे में ?”
“जैसे तुम्हें मालूम नहीं । तुमने टेलेन्ट प्रमोशन कारपोरेशन की ओट में चकला चला रखा है । भटनागर जिन लोगों की पार्टियों का इन्तजाम करता था तुम उन लोगों के मनोरंजन के लिए उन्हें लड़िकयां सप्लाई करते थे ।”
“बकवास !” - बलराज सेठी मुंह बिगाड़कर बोला - “मेरे धंधे में कोई गैरकानूनी बात नहीं है और पुलिस इसे जानती है । मेरी वजह से कितने ही नौजवान लड़के-लड़कियों को फिल्मों में काम मिला है, कइयों को मैंने रेडियो स्टेशन और टेलीविजन में रोल दिलाये हैं । पुलिस मुझे जब चाहे चैक कर सकती है । उसे मेरे धंधे में कोई आपत्तिजनक बात दिखाई नहीं देगी ।”
“और जब मीरा यह कहेगी कि तुमने ही उसे वेश्यावृत्ति के लिये उकसाया है और तुम्हारी ही वजह से वह मुसीबत में फंसी है तो ?”
“कौन मीरा ? कैसी मीरा ? मैं किसी मीरा को नहीं जानता और तुम शायद कोई ब्लैकमेलर हो जो मीरा नाम की किसी लड़की की मुसीबत का जिम्मेदार मुझे ठहराकर मुझे ब्लैकमेल करना चाहते हो । अब इससे पहले कि पुलिस को फोन करूं तुम यहां से खिसक जाओ ।”
सुनील अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और बोला - “पुलिस को फोन करने की हिम्मत तो तुम्हारा बाप भी नहीं कर सकता लेकिन फिर भी मैं जा रहा हूं । लेकिन जाती बार मैं तुम्हें एक नेक राय देना चाहता हूं । जल्दी-से-जल्दी यह शहर छोड़कर भाग जाओ वनां तुम्हारी ऐसी-की-तैसी हो जायेगी ।”
“कौन करेगा ऐसी-की-तैसी ? पुलिस ?”
“मैं ।” - सुनील अपने दांये हाथ की पहली उंगली से अपनी छाती ठोकता हुआ बोला - “सुनील कुमार चक्रवर्ती, स्पेशल कारस्पाण्डेण्ट ब्लास्ट ।”
और सुनील एक झटके से उसके आफिस का द्वार खोलकर बाहर निकल गया ।
बाहरी आफिस में एक छोटे-से डैस्क के पीछे भटनागर की सैक्रेटरी बैठी थी ।
“तुम खूबसूरत लड़की हो !” - सुनील उससे बोला - “तुम्हारे साहब ने कभी तुम्हें फिल्म स्टार बनाने की कोशिश नहीं की ?”
“मुझे फिल्म स्टार बनने में दिलचस्पी नहीं है ।” - लड़की बोली ।
“या शायद तुम्हें मालूम है कि तुम्हारा साहब लोगों को फिल्म स्टार बनाने का झांसा देकर क्या बना देता है ।”
लड़की ने उत्तर नहीं दिया ।
“मैडम !” - सुनील बोला - “जल्दी ही तुम्हारी यहां से छुट्टी होने वाली है ।”
“क्यों ?” - लड़की हड़बड़ाकर बोली ।
“क्योंकि यह दुकान बन्द होने वाली है । इसलिए अभी से नई नौकरी तलाश करना आरम्भ कर दो । यह श्री-श्री एक सौ आठ श्री स्वामी सुनीलानन्द ब्लास्टाचार्य की भविष्यवाणी है जो कभी झूठी नहीं हो सकती ।”
और सुनील लम्बे डग भरता हुआ आफिस से बाहर निकल गया ।
लड़की मुंह बाये उसको जाता देखती रह ।
***
सुनील इम्पीरियल होटल पहुंचा ।
रिसैप्शन पर वही युवक मौजुद था जिससे पिछली रात को सुनील ने बात की थी ।
“मैं कमरा नम्बर 402 में ठहरी मिस मीरा से मिलना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“वे तो कल रात ही होटल छोड़ गई थीं ।” - रिसेप्शनिस्ट बोला ।
“क्या ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“जी हां । मुझे याद है आप कल रात भी उनसे मिलने आये थे । आपके यहां से जाने के आधे घण्टे बाद ही उन्होंने होटल छोड़ दिया था ।”
“अब कहां गई हैं वे ?”
“मुझे मालूम नहीं ।”
“देखो !” - सुनील तनिक प्रार्थनापूर्ण स्वर से बोला - “मेरा मिस मीरा से तत्काल मिलना बहुत जरूरी है । तुम्हें याद है कल रात मैंने तुमसे मीरा के साथ आये युवक के बारे में पूछा था जिसके बारे में तुमने मुझे बताया था कि वह जीना टूरिस्ट एजेन्सी के मैनेजर मिस्टर भटनागर से सम्बन्धित है ?”
“जी हां याद है ।”
“उस युवक को मिस मीरा का नया पता जरूर मालूम होगा । अगर वह मुझे मिल जाये तो...”
“वह युवक तो इस वक्त इसी होटल में मौजूद है ।”
“अच्छा !” - सुनील की आंखों में नई चमक आ गई - “क्या कर रहा है वह यहां ?”
“रात को होने वाली पार्टी का इन्तजाम कर रहा है । वह सुबह से ही यहीं है । मैं उसे सूचित करूं कि आप उससे मिलना चाहते हैं ?”
“नहीं !” - सुनील जल्दी से बोला - “तुम मुझे बताओ कि वह कहां है । मैं खुद उसके पास चला जाऊंगा ।”
“वह दूसरी मंजिल के हाल में होगा ।”
“थैंक्यू वैरी मच !”
“मोस्ट वैलकम सर !” - रिसैप्शनिस्ट सिर नवाकर बोला ।
लिफ्ट के सहारे सुनील दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
वह युवक हाल में मौजूद था । हाल में तीन-चार वेटर उसके निर्देशानुसार सजावट कर रहे थे । सुनील ने देखा हाल के बीचों-बीच एक ऊंचा प्लेटफार्म था, जिसके इर्द-गिर्द मेज लगाई जा रही थीं ।
सुनील युवक के पीछे जा खड़ा हुआ लेकिन युवक को उसकी खबर नहीं लगी ।
“वह प्लेटफार्म किस लिए ?” - सुनील धीरे से बोला ।
युवक ने घूमकर पीछे देखा । सुनील पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र झेंप गये ।
“मिस्टर सुनील ! आप यहां ?” - वह हैरानी से बोला ।
“क्यों ? क्या मेरे आने की कोई कानूनी मनाही है ?” - सुनील उसे घूरता हुआ बोला ।
“न... नहीं । म... मेरा मतलब है - कैसे तशरीफ लाये ?”
“मैं तुमसे ही बात करने आया हूं ।”
“आपको कैसे मालूम हुआ, मैं यहां हूं ?”
“मेरे पास अलादीन का चिराग है ।”
“आप मुझसे क्या बात करना चाहते हैं ?”
“यहीं बताऊं ?”
“क्या हर्ज है ?”
“वह लड़की कहां है ?”
“कौन सी लड़की ?”
“मीरा । मुझे मालूम हुआ है कि मेरी उससे मुलाकात के आधे घण्टे बाद ही वह होटल छोड़ गयी थी । लगता है उसे इस होटल में मुलाकात करवाने के लिए ही रखा गया था । वह यहां रह नहीं रही थी ।”
“अब आप मीरा से क्या चाहते हैं ?”
“मैं उससे दुबारा मिलना चाहता हूं ।”
“वह शहर छोड़ गई है ।”
“कोई बात नहीं । वह जहां भी गई है, मुझे वहां ले चलो ।”
“यह असम्भव है । मैं बहुत व्यस्त हूं और मुझे आपकी मीरा से दुबारा मिलने की जरूरत दिखाई नहीं देती ।”
“तुम्हारा क्या नाम है ?”
“मेरे नाम से आपको क्या लेना देना है ?”
“एक बात तो बताओ” - सुनील बड़े प्यार से बोला - “जेल जाना चाहते हो ?”
“जी !” - युवक चिहुंककर बोला ।
“ड्रामा मत करो और गौर से मेरी बात सुनो । कल रात तुमने अपने रईस मित्र की वजह से मीरा के गर्भवती हो जाने की कहानी सुनाकर मुझे बेवकूफ बना लिया था लेकिन आज मैं बहुत सी बातें जान गया हूं ।”
“क्या जान गये हैं आप ?”
“जैसे मैं यह जान गया हूं कि जैसी पार्टी का तुम आज इन्तजाम कर रहे हो, मीरा ऐसी ही किसी पार्टी में आये किसी धन्ना सेठ की हवस का शिकार बनी थी और वह किन्हीं सुरक्षित हाथों में नहीं है । और तुम्हारे साहब भाटनागर द्वारा आयोजित इन पार्टियों का राज मुझ पर खुल चुका है । मैं जानता हूं ऐसी पार्टियों में क्या होता है और टेलेन्ट प्रोमोशन कारपोरेशन के बलराज सेठी का इन पार्टियों से क्या सम्बन्ध है । और तुम्हारी जानकारी के लिए तुम्हारा साहब मर चुका है और बलराज सेठी भी शीघ्र ही पुलिस के हाथों में पहुंचने वाला है ।”
“कौन मर चुका है ?” - युवक तीव्र स्वर में बोला ।
“तुम्हारा साहब । एस के भटनागर ।”
युवक के चेहरे का रंग उड़ गया ।
“यह - यह असम्भव है ।” - वह हकलाता हुआ बोला ।
“मैं ठीक कह रहा हूं । आज सुबह किसी ने उसकी हत्या कर दी है । विश्वास न हो तो उसके आफिस में फोन करके पूछ लो ।”
हाल के एक कोने में फोन रखा था । युवक उसकी ओर बढा । कुछ देर वह फोन से उलझा रहा । जब वह वापस लौटा तो उसका चेहरा राख की तरह सफेद था ।
“आप मुझसे क्या चाहते हैं ?” - युवक कम्पित स्वर में बोला । अपने सर से भटनागर की छत्रछाया उठ जाने की खबर लगते ही वह घबरा गया था ।
“सबसे पहले मुझे अपना नाम बताओ ।” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम अशोक है ।”
“मीरा का क्या किस्सा है ?”
“मुझे विशेष कुछ नहीं मालूम । मुझे तो भटनागर साहब ने कहा था कि मैं आपके फ्लैट पर जाऊं और आपको 402 नम्बर में ठहरी मीरा से मिलवा दूं । आपके कल रात उससे मिल चुकने के बाद मैं उसे फ्लैट पर छोड़ आया था ।”
“कहां ?”
“मेहता रोड की चौबीस नम्बर इमारत में । ग्राउन्ड फ्लोर का दायां फ्लैट उसका है ।”
“मीरा की वर्तमान दशा के लिए कौन जिम्मेदार है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“क्या वास्तव में उसके लिए कुछ किया जा रहा है ?”
“मुझे यह भी नहीं मालूम लेकिन उम्मीद है भटनागर साहब जरूर कुछ न कुछ कर रहे होंगे ।”
“वे तो अब लद गये ।”
युवक चुप रहा ।
“आल राइट” - सुनील बोला - “तुमने मुझे मीरा का पता बताया है इसके बदले में मैं तुम्हें एक नेक राय देता हूं । यह सब ताम-झाम छोड़कर गायब हो जाओ वर्ना मुसीबत में फस जाओगे ।”
अशोक को बेहद चिन्तित दशा में छोड़कर सुनील वहां से विदा हो गया ।
नीचे लाबी में आकर उसने यूथ क्लब फोन किया ।
“कोई नया समाचार ?” - उसने रमाकांत से पूछा ।
“धर्मपुरे में कनकटे दयाल के निवास स्थान पर हंगामा हो गया है ।” - रमाकांत का तनिक उत्तेजित स्वर सुनाई दिया ।
“क्या हुआ ?”
“किसी गुमनाम आदमी ने पुलिस को फोन किया था कि चमनलाल और भटनागर की हत्याओं से कनकटे दयाल का सम्बन्ध हो सकता है । पुलिस ने जाकर दयाल का मकान घेर लिया । दयाल को पुलिस के आगमन की खबर हो गई । बजाय यह जानने के कि पुलिस उससे चाहती क्या है उसने वहां से भाग निकलने की ठान ली और उसने पुलिस पर फायर करना आरम्भ कर दिया । पुलिस दयाल वहां से भाग निकलने में सफल हो गया । मेरा आदमी गोपाल जो कि दयाल की निगरानी कर रहा था, उस हंगामे में दयाल का पीछा करने में सफल नहीं हो सका ।”
“और कुछ ?”
“और यहां तुम्हारा एक फोन आया था । जानते हो किसने फोन किया था ?”
“किसने ?”
“बलराज सेठी ने । उसने पहले ‘ब्लास्ट’ में फोन किया था रेणु ने उसे यहां का नम्बर दे दिया था कि शायद तुम यहां होगे ।”
“वह चाहता क्या था ?”
“मालूम नहीं । उसने एक टेलीफोन नम्बर दिया है । उसने कहा था कि तुम इस नम्बर पर रिंग करो लो ।” - रमाकांत ने उसे एक टेलीफोन नम्बर बताया ।
“मैं अभी फोन करता हूं ।”
सुनील ने सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया । उसने रमाकांत का दिया नम्बर डायल किया और प्रतीक्षा करने लगा ।
“कौन है ?” - कुछ क्षण बाद दूसरी ओर से उसे बलराज सेठी का स्वर सुनाई दिया ।
“सुनील बोल रहा हूं” - सुनील बोला - “कैसे याद फरमाया था ?”
“सुनील” - दूसरी ओर से बलराज सेठी का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया - “क्या तुम मेरे साथ एक सौदा करना चाहते हो ?”
“कैसा सौदा ?”
“अगर तुम एक मामले में मेरी मदद करो तो मैं तुम्हें यह बता सकता हूं कि चमनलाल और भटनागर की हत्या किसने की है ।”
“किसने की है ?”
“मैं तुम्हें फोन पर कुछ नहीं बता सकता । तुम यहां आ जाओ ।”
“तुम मुझसे किस मदद की अपेक्षा कर रहे हो ?”
“यह भी मैं तुम्हें यहीं बताऊंगा ।”
“मुझे कहां आना होगा ?”
“महात्मा गांधी रोड । बारह नम्बर इमारत टाप फ्लोर । कितनी देर में पहुंचोगे ?”
“एक घण्टे में ।”
“इतनी देर क्यों ?”
“मुझे एक काम और है ।”
“लेकिन...”
“मैं एक घन्टे से पहले नहीं आ सकता ।”
“ओके । ओके । मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा ।
सुनील ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया और बूथ से बाहर निकल आया ।
***
चौबीस मेहता रोड पर एक दो मंजिली इमारत थी । सुनील ने ग्राउन्ड फ्लोर पर दायीं ओर वाले फ्लैट की काल बैल बजाई ।
कुछ क्षण बाद द्वार खुला । द्वार पर उसे मीरा दिखाई दी । मीरा एक कांजीवरम की नाभि प्रदर्शनी साड़ी पहने हुए थी और सुन्दरता और यौवन की साक्षात प्रतिमा मालूम हो रही थी ।
“तुम !” - सुनील पर निगाह पड़ते ही वह बोली ।
“पता नहीं क्या बात है” - सुनील उदास स्वर से बोला - “आज जो मेरी सूरत देखता है चौंक जाता है । क्या मैं इतना बदसूरत हूं ?”
“कैसे आए ?”
“तुम्हीं से मिलने आया हूं ।”
“लेकिन मेरे पास और कहने के लिए कुछ नहीं है ।” - और उसने द्वार बन्द करने का उपक्रम किया ।
सुनील ने तत्काल अपना पांव बन्द होते हुए द्वार के बीच में फंसा दिया और मुस्कराकर बोला - “मैं इतनी आसानी से टलने वाला नहीं हूं जानेमन ।”
“क्या चाहते हो ?”
“सबसे पहले मैं भीतर आना चाहता हूं । रास्ते से हटो ।”
बड़ी अनिच्छा से वह एक ओर हो गई । सुनील भीतर भविष्य हुआ । उसने पांव की ठोकर मारकर द्वार को भीतर से बन्द कर दिया ।
वह उसे ड्राइंगरूम में ले आई ।
“बड़ी शानदार जगह पर रहती हो ।” - सुनील एक सोफे पर ढेर होता हुआ बोला ।
उसने उत्तर नहीं दिया । वह उसके सामने एक सोफे पर बैठ गई ।
“तुम्हारी तो चौबीस घन्टे से भी कम समय में काया पलट हो गयी है ।” - सुनील उसे सिर से पांव तक निहारत हुआ बोला - “कल तो तुम रंगत में बेहद पीली और बीमार लग रही थीं और तुम्हारा पेट यहां तक” - सुनील ने अपने पेट के आगे दोनों हाथ फैलाए - “निकला हुआ था । और आज तुम यौवन और स्वास्थ्य की साक्षात प्रतिमा मालूम हो रही हो और पेट तुम्हारा ऐसा चपटा और सुडौल लग रहा है जैसे किसी शिल्पकार ने पत्थर में से तराश कर बनाया हो ।”
“मतलब की बात करो ।” - वह रूखे स्वर में बोली ।
“यह भी मतलब की बात है मैडम” - सुनील तनिक कठोर स्वर में बोला - “जो मैं इस वक्त देख रहा हूं वह झूठ है या जो मैंने कल इम्पीरियल होटल में देखा था, वह झूठ था ?”
“तुम्हें यहां का पता कैसे मालूम हुआ ?” - उसने पूछा ।
“बलराज सेठी ने बताया है ।”
“असम्भव ।”
“कभी-कभी असम्भव बातें भी सम्भव हो जाती हैं । जैसे एक ही रात में तुम तन्दुरुस्त हो गई हो और तुम्हारा गर्भ गायब हो गया है ।”
“तुम चाहते क्या हो ?”
“मैं चाहता हूं कि तुम बिना कुछ छुपाए हकीकत बयान कर दो ।”
उसने बोलने का उपक्रम नहीं किया ।
“कहो तो तुम्हारा रिकार्ड चालू होने से पहले एक-दो तथ्य मैं बयान करूं ?”
उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“तुम मीरा नहीं हो” - सुनील ने बम-सा छोड़ा - “कामिनी हो ।”
उसने बोलने का उपक्रम नहीं किया ।
वह यूं चिहुंकी जैसे किसी ने उसे बिजली का तार छुआ दिया हो । वह हक्की-बक्की-सी सुनील का मुंह देखने लगी ।
सुनील ने अपनी जेब से कामिनी और मीरा की वह तस्वीर निकाली जो हीरासिंह ने उसे दी थी ।
“यह तस्वीर मीरा के बाप हीरासिंह ने मुझे दी थी” - सुनील बोला - “तस्वीर पांच साल पुरानी है । तब से अब तक तुम्हारी सूरत में जमीन-आसमान का अन्तर आ गया है लेकिन इन्सान के कानों और आंखों की बनावट में वक्त गुजरने के बावजूद भी भारी अन्तर नहीं आता । और एक दूसरा सबूत भी है जो सिद्ध कर सकता है कि तुम मीरा नहीं, कामिनी हो ।”
सुनील अपने स्थान से उठा और दृढ कदमों से उसकी ओर बढता हुआ बोला - “हीरासिंह के कथनानुसार मीरा के पेट पर अपन्डेसाइटिस के आपरेएशन का निशान था । मैं तुम्हारा पेट देखूंगा । अगर उस पर आपरेशन का निशान हुआ तो मैं मान लूंगा कि तुम मीरा हो ।”
“नहीं, नहीं ।” - वह आतंकित स्वर में चिल्लाई ।
सुनील उसके पास आकर ठिठक गया ।
“तो तुम मानती हो कि तुम कामिनी हो ?” - वह बोला ।
उसने सहमति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील उसके समीप बैठ गया और फिर नम्र स्वर में बोला - “शुरू हो जाओ ।”
उसने मुंह खोला लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले ।
“मीरा कहां है ?” - सुनील ने पूछा ।
“वह... वह... वह मर चुकी है ।” - वह बोल पड़ी ।
“कैसे ?”
“दुर्घटनावश ।”
“वह तो हुआ लेकिन यह दुर्घटना हुई कैसे ?”
“वह एक आदमी था ।”
“पहेलियां मत बुझाओ । मुझे शुरू से बताओ कि किस्सा क्या है और तुम्हारा इस सारे बखेड़े से क्या वास्ता है ?”
“मेरा नाम कामिनी है” - वह यूं बोली जैसे कोई कहानी पढ रही हो - “मैं बलरामपुर से राजनगर अभिनेत्री बनने के शौक में आई थी । यहां फिल्मी स्टूडियोज के चक्कर काटते हुए मैं चमनलाल नाम के एक आदमी से टकरा गई जिसने मुझे बताया कि टेलेन्ट प्रमोशन कारपोरेशन का डायरेक्टर बलराज सेठी फिल्म स्टार बनने में मेरी मदद कर सकता है । चमनलाल के माध्यम से मैं बलराज सेठी के सम्पर्क में आई । मैं फिल्म स्टार तो नहीं बन सकी लेकिन उसकी कृपा से मैं एक हाई क्लास कैब्रे डान्सर और कालगर्ल बन गई । धीरे-धीरे मैं इस जिन्दगी की इतनी आदी बन गई कि मुझे इसमें कोई हर्ज वाली बात दिखाई देनी बन्द हो गई । इस धन्धे में भी फिल्म स्टारों जैसी चमक-दमक और रखरखाव मुमकिन था और ढेर सारा पैसा भी मिलता था । ऊपर से चमनलाल, एस के भटनागर और बलराज सेठी जैसे लोगों की सरपरस्ती का साया था इसलिए कोई खतरा भी नहीं था । सारा सिलसिला बड़े नपे तुले ढंग से चलता था । भटनागर इम्पीरियल में पार्टियों और कांफ्रेसों का आयोजन करता था । बलराज सेठी वहां आये सेठ लोगों के मनोरंजन के लिए लड़कियां सप्लाई करता था और चमनलाल बलराज सेठी तक ऐसी लड़कियां पहुंचाता था जो इस ऊंचे दर्जे के काल गर्ल के धन्धे के लिए तैयार हो सकती थीं । सब कुछ ठीकठाक चल रहा था । मैं अपने जीवन से सन्तुष्ट थी । बलरामपुर में मेरा बाप यह समझता था कि मैं फिल्मों में काम करती हूं और वह मेरा यहां से भेजा हुआ रुपया खाकर प्रसन्न होता था कि उसकी बेटी उसे अपनी मेहनत की कमाई भेज रही है ।”
“फिर ?”
“फिर मीरा यहां आ गई । मेरी तरह उसे भी बाहर की चमक दमक यहां खींच लाई थी । वह राजनगर में मेरे पास रहने लगी ।”
“तुमने उसे बताया कि वास्तव में तुम क्या हो ?”
“मुझे बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी । धीरे-धीरे उसे सब कुछ मालूम हो गया । मैं एक दो बार नाइट क्लबों में उसे अपने साथ भी ले गई थी ताकि उसे मालूम हो जाये कि ऊपर से चमकदार लगने वाला कैब्रे डान्सर और काल गर्ल का धन्धा भीतर से कितना घिनौना था । मीरा पर इन तमाम बातों का प्रत्याशित प्रभाव पड़ा और मुझे आशा थी कि कुछ दिनों बाद वह खुद ही गांव वापिस लौट जाने की बात करने लगेगी । लेकिन उसकी नौबत ही नहीं आई । उससे पहले ही वह दूसरी दूनिया में पहुंच गई ।”
“क्या हुआ ?”
“इम्पीरियल में एक शीशे के व्यापारियों की कान्फ्रेंस थी जिस में सेठ लोगों के लिये कई अन्य लड़कियों के साथ मैं भी गई । उस रोज चमनलाल ने मीरा को पता नहीं क्या पट्टी पढाई कि वह भी उसके साथ यहां चली आई । चमनलाल मीरा को वहां लाया है यह बात मुझे तभी मालूम हुई जब कान्फ्रेस के बाद हाल के दरवाजे बन्द कर दिये गये और वहां रागरंग का प्रोग्राम आरम्भ हुआ । वहां मीरा को कुछ कह पाने का वक्त नहीं था क्योंकि प्रत्यक्षतः वह अपनी मर्जी से वहां आई थी । उस कॉन्फ्रेंस में जमना ग्लास इन्डस्ट्री का मालिक सेठ जमनादास भी मौजूद था । चमनलाल ने मीरा का परिचय जमनादास से करवाया था और खुद वहां से खिसक गया था । मैं स्वयं उस वक्त एक सेठ के साथ व्यस्त थी । मनोरंजन के उस प्रोग्राम की स्टार अट्रेक्शन भटनागर की सैकेट्री सिल्विया थी जिसका स्ट्रिप टीज डान्स का प्रोग्राम था । सिल्विया के नग्न नृत्य के दौरान सेठ जमनादास और मीरा हाल से कहीं गायब हो गये । मैं मीरा के बारे में चिन्तित थी लेकिन उस स्थिति में मैं कुछ कर नहीं सकती थी । दरअसल मीरा को वहां आना ही नहीं चाहिये था ।”
“खैर फिर ?”
“फिर बाद में जो कुछ हुआ उसकी खबर मुझे दूसरों के मुंह से लगी । जमनादास मीरा को होटल की आठवीं मंजिल के एक कमरे में ले आया । वहां उसने मीरा को अपने अधिकार में करने की कोशिश की लेकिन मीरा सेठ की इच्छापूर्ति के लिये तैयार नहीं हुई । सेठ ने जबरदस्ती करनी चाही । उसी छीना-झपटी में मीरा आठवीं मंजिल पर स्थित उस कमरे की खिड़की से नीचे आ गिरी ।”
“यानी कि सेठ जमनादास ने मीरा की हत्या की थी ?”
“हत्या नहीं । वह सिर्फ दुर्घटना थी ।”
“तुम्हारी निगाह में वह दुर्घटना है लेकिन पुलिस की निगाह में वह हत्या ही है । विशेष रूप से जब कि उस कथित दुर्घटना की सूचना पुलिस को नहीं दी गयी थी ।”
“लेकिन...”
“छोड़ो । फिर क्या हुआ ?”
“दुर्घटना की खबर बलराज सेठी को लगी । सेठ जमनादास की दौलत और अपने आदमियों और होटल के मैनेजर की मदद से उसने ऐसा इन्तजाम कर दिया कि हत्या की किसी को कानों कान खबर न हो । लाश उसने नीचे से उठवाकर गायब करवा दी और सेठ जमनादास को उसने मेरे हवाले कर दिया ।”
“क्यों ?”
“वह भारी सदमे की हालत में था । उस पर विक्षिप्तता का दौरा सा आता था और वह प्रलाप करने लगता था । बलराज सेठी का बीच रोड पर एक बंगला है । मैं सेठ को वहां ले गई । मेरा काम था कि सेठ की तब तक हर प्रकार की दिलजोई करना जब तक कि वह होश में न आ जाये । बलराज सेठी वहां रोज आता था और सेठ की हालत देखकर चला जाता था पांच छ: दिन बाद जब सेठ की हालत सुधर गई तो बलराज सेठी उसे वहां से ले गया । लेकिन वास्तव में वह सेठ के बारे में बहुत चिन्तित था । उसे भय थाकि सेठ पर विक्षिप्तता का दौरा फिर न पड़ जाये और वह किसी को बात न दे कि मीरा उसकी वजह से इम्पीरियल की आठवीं मंजिल से गिर गई थी। साथ ही उसे इस बात की भी चिन्ता थी कि मीरा के रिश्तेदार उसके बारे में पूछताछ आरम्भ न कर दें । उसका हल चमनलाल ने निकाला । उसने बताया कि उन दिनों मिसेज मुकन्दलाल एक सैक्रेट्री की तलाश में थी । तय हुआ कि चमनलाल मेरी सिफारिश करे और मैं मीरा के नाम से नौकरी करूं । चमनलाल की सिफारिश पर मिसेज मुकन्दलाल ने मुझे रख लिया । मैं कुछ दिन मीरा के नाम से वहां नौकरी करती रही और फिर एक दिन चुपचाप वहां से खिसक गई । अब यह सिद्ध करना कठिन था कि मीरा कभी इम्पीरियल की आठवीं मंजिल से गिर कर मरी थी क्योंकि तफ्तीश से मालूम होता कि उसके बाद तो काफी अरसा मीरा सेठ मुकन्दलाल के यहां नौकरी करती रही थी । मीरा के रिश्तेदारों के कहने पर अगर पुलिस तफ्तीश करती तो भी उन्हें यही मालूम होता कि मीरा एकाएक मिसेज मुकन्दलाल की नौकरी छोड़कर कहीं चली गई । वह दूसरी दुनिया में पहुंच चुकी थी इसका किसी को ख्याल भी नहीं आता । यह बलराज सेठी का दुर्भाग्य था कि मीरा का बाप पुलिस में जाने के स्थान पर तुम्हारे पास पहुंच गया ।”
“गया तो वह पुलिस में ही था लेकिन पुलिस वालों ने उसकी सुनी नहीं थी ।”
“कल बलराज सेठी और भटनागर मेरे पास आये । उन्होंने मुझे बताया कि तुम मीरा की बड़ी बुरी तरह तलाश कर रहे थे । वे लोग तुम्हारे बारे में जानते थे । उन्हें चिन्ता थी कि कहीं तुम गड़े मुर्दे खोद न निकालो । तुम्हें मीरा की तलाश से हटाने के लिए उन्होंने किसी रईस आदमी की गलती से मीरा गर्भवती होने की कहानी तुम तक पहुंचाई और मैंने अपने पेट पर कपड़े वगैरह लपेट कर अपने को गर्भवती बनाया और अपनी बीमारों जैसी सूरत बना कर इम्पीरियल के 402 नम्बर कमरे में तुम से मिली ।”
“तुम ने अच्छा मूर्ख बनाया मुझे ।”
“लेकिन मुर्ख बने कहां तुम ? तुम तो जान गये कि मैं मीरा नहीं कामिनी हूं । अगर बलराज सेठी को यह मालूम होता कि तुम्हारे पास मेरी और कामिनी की तसवीर है और हीरा सिंह ने तुम्हें मीरा के पेट पर अपैन्डेसाईटिस के आपरेशन के निशान के बारे में भी बताया है तो शायद वह कोई और तरकीब सोचता ।”
“यानी कि मतलब यह हुआ कि तुम ने अपनी सहेली के हत्यारों की अच्छी खासी मदद की ।”
“मैं क्या कर सकती थी ? अगर मैं उनकी मदद नहीं करती तो वह मेरी भी तो हत्या करवा सकते थे ।”
“तुम्हें मालूम है कि चमनलाल और भटनागर की हत्या हो गई है ?”
“भटनागर की भी ?” - वह हैरानी से बोली ।
“हां । बिल्कुल वैसे ही जैसे चमनलाल की हत्या हुई थी ।”
“कब ?”
“आज सुबह । तुम्हें मालूम है इन दोनों की हत्या किसने की है या करवाई है ?”
“मुझे इस बारे में कुछ नहीं मालूम ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर उठ खड़ा हुआ ।
“मैं तुम से फिर मिलूंगा ।” - वह बोला ।
“मिलना बेशक लेकिन यह मत समझना कि जो बातें मैंने तुम्हें बताई हैं वे मैं किसी और के सामने भी दोहराऊंगी । मैं हर बात से साफ मुकर जाऊंगी ।इस बात से भी कि मैं इम्पीरियल में तुमसे मिली थी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैं किसी बखेड़े में नहीं फंसना चाहती ।”
“देखेंगे” - सुनील बोला - “फिलहाल नमस्ते ।”
वह कामिनी के फ्लैट से झटके से बाहर निकल आया ।
***
महात्मा गांधी रोड की बारह नम्बर इमारत के सामने सुनील ने अपनी मोटर साइकिल रोकी ।
वह टाप फ्लोर पर पहुंचा ।
टाप फ्लोर पर एक ही फ्लैट था । सुनील ने द्वार खटखटाया ।
एक ठिगने से आदमी ने दरवजा खोला । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील बोला - “मैं बलराज सेठी से मिलने आया हूं ।”
ठिगने ने उसे भीतर आने का संकेत किया । सुनील कमरे में प्रविष्ट हुआ । ठिगने ने फ्लैट का द्वार भीतर से बन्द कर दिया । वह सुनील को पिछवाड़े में स्थित एक बन्द दरवाजे के सामने ले आया ।
“भीतर ।” - ठिगना बोला ।
सुनील भीतर प्रविष्ट हो गया ।
वह एक डाइनिंग रूम था । डाइनिंग टेबल के सिरे की एक कुर्सी पर बलराज सेठी बैठा था । उसके हाथ में एक रिवाल्वर थी । सुनील सकपका गया ।
“आओ, आओ” - बलराज सेठी बोला - “रिवाल्वर तुम्हारे लिये नहीं है ।”
सुनील डाइनिंग टेबल के बलराज सेठी से विपरीत सिरे पर रखी एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“रिवाल्वर से किस का स्वागत करने वाले हो ?” - सुनील ने पूछा ।
बलराज सेठी ने रिवाल्वर अपने सामने मेज पर रख ली और धीरे से बोला - “कोई आने वाला है ।”
“कौन ?”
बलराज सेठी ने उत्तर नहीं दिया ।
“तुम मुझे यह बताने वाले थे कि चमनलाल और भटनागर की हत्या किसने की है ?”
बलराज सेठी ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“और इस जानकारी के बदले में तुम मुझसे क्या चाहते हो ?”
“वह भी बताऊंगा” - बलराज सेठी बोला - “पहले हत्याओं के बारे में सुनो ।”
“चमनलाल की हत्या भटनागर ने की थी ।”
“क्या ?”
“मैं ठीक कह रहा हूं । मीरा के बारे में तफ्तीश करते हुए जब तुम चमनलाल से मिले तो वह घबरा गया । उसे लगा कि तुम इस हकीकत को जरूर खोज निकालोगे कि मीरा मर चुकी है ।”
“तुम स्वीकार करते हो कि तुम लोगों की वजह से मीरा की जान गई थी ?”
“सुनते जाओ । बीच में मत बोलो ।”
“अच्छी बात है ।”
“चमनलाल डरपोक आदमी था । जब से मीरा मरी थी वह बहुत घबराया हुआ रहने लगा था । जब उसने तुम्हें मीरा की तलाश के पीछे हाथ धोकर पड़े देखा तो वह बहुत घबरा गया और उसने राजनगर छोड़कर कहीं और खिसक जाने का फैसला कर लिया । द्वारकादास के जरिये भटनागर के पास यह सन्देश पहुंचाया और उससे मोटी रकम की मांग की । भटनागर ने सारे सिलसिले को बिल्कुल गम्भीरता से नहीं लिया । उसने चमनलाल को कहलवा दिया कि वह अपने होश ठिकाने में रखे और उसे शहर से भागने की जरूरत नहीं है । लेकिन तभी तुम भटनागर के पास भी पहुंच गये । और भटनागर को कहा कि मामला गम्भीर है । मीरा की मौत का राज खुल जाने से कई लोग मुसीबत में पड़ सकते थे और उन लोगों में सब से डरपोक और कमजोर आदमी चमनलाल था । पुलिस का या तुम्हारा ही जरा भी दबाव पड़ने से चमनलाल सब कुछ बक देने के लिये तैयार हो सकता था । इसलिये भटनागर चमनलाल के निवास स्थान मार कर उसकी हत्या कर दी ।”
“और उसके बाद वैसा ही एक सुआ उसने अपने दिल में घोंप कर आत्म हत्या कर ली ?” - सुनील उपहासपूर्ण स्वर से बोला ।
“बात को मजाक में मत लो ।” - बलराज सेठी स्थिर स्वर में बोला - “मैं जो कह रहा हूं सच कह रहा हूं ।”
“तो फिर भटनागर को किसने मारा ?”
“कनकटे दयाल ने ।”
“किसने ?”
“कनकटे दयाल ने । वह राजनगर का एक मशहूर दादा है जो मेरे लिए काम करता है ।”
“वह मुझे मालूम है, लेकिन उसने भटनागर की हत्या क्यों की ?”
“क्योंकि उस हरामजादे की अक्ल खराब हो गई थी । उसने समझा था कि अगर वह भटनागर का खून कर देगा तो मैं खुश हो जाऊंगा ।”
“मैं समझा नहीं ।”
“पिछले कुछ दिनों से कई बातों में भटनागर से मेरी तकरार चल रही थी । रोज तू तू मैं मैं हो जाती थी । कल जब भटनागर ने मुझे बताया कि उसने सदा के लिये चमनलाल का मुंह बन्द कर दिया है तो मैं गुस्से से पागल हो गया । एक तो मैं खून खराबा पसन्द नहीं करता दूसरे मेरी निगाह में चमनलाल की हत्या किये बिना ऐसा इन्तजाम किया जा सकता था कि चमनलाल मीरा के मामले में किसी के सामने अपनी जुबान न खोले । गुस्से में मैंने भटनागर को खूब बुरा भला कहा और झोंक में मैंने यह भी कह दिया अगर वह अपने होश ठिकाने नहीं रखेगा तो वह भी चमनलाल के पास पहुंचा दिया जायेगा । दयाल उस समय वहां मौजूद था और ये सारी बातें सुन रहा था । उस गधे ने यह समझा कि मैं भटनागर की मौत चाहता हूं और अगर वह भटनागर की हत्या कर देगा तो मैं बहुत खुश हो जाऊंगा और उसका अपने पर भारी अहसान मानूंगा ।”
“और उसने भटनागर की हत्या कर दी ।”
“बिल्कुल और हत्या भी उसने बर्फ काटने वाले सुये से ही की ताकि पुलिस यह समझे कि चमनलाल और भटनागर की हत्यायें एक ही आदमी ने की हैं ।”
“फिर ?”
“भटनागर की हत्या करने के बाद हवा पर चलता हुआ मुझे वह समाचार सुनाने आया । उसने समझा था कि भटनागर की मौत का समाचार सुनते ही मैं खुशी से फूला नहीं समाऊंगा और दयाल को छाती से लगा लूंगा । लेकिन वास्तव में उसकी करतूत सुनकर मैं गुस्से से पागल हो गया । मैंने उसे हजार-हजार गालियां दीं और उसे धक्के मारकर यहां से निकाल दिया । आज पुलिस ने दयाल के धर्मपुरे वाले निवास स्थान पर छापा मारा लेकिन वह पुलिस के हाथ में नहीं आया और वहां से भाग निकलने में सफल हो गया । उसने मुझे फोन किया और क्रोध से उबलते हुए मुझ पर इलजाम लगाया कि पुलिस को उसके घर का पता मैंने बताया है और मैंने पुलिस को यह भी बता दिया हे कि भटनागर की हत्या कनकटे दयाल ने की है । मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ । फिर मैंने उसे यहां बुलाया ।”
“आई सी ।” - सुनील अर्थपूर्ण नेत्रों से रिवाल्वर की ओर देखता हुआ बोला - “तो तुम उसी के स्वागत में यहां बैठे हो ।”
बलराज सेठी ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया और बोला - “तो तुम उसी के स्वागत में यहां बैठे हो ।”
बलराज सेठी ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया और बोला - “वह भी राजनगर से फरार होने की फिकर में है और उसने मुझसे मदद के तौर पर पचास हजार रुपये की मांग की है ।”
“लेकिन जब वह रुपये लेने यहां आयेगा तो तुम उसे शूट कर दोगे !”
“नहीं ।” - बलराज सेठी रिवाल्वर की मूठ पर अपनी उंगलियां फिराता हुआ नर्वस स्वर में बोला - “अगर वह यहां आकर कोई फसाद खड़ा करने की कोशिश नहीं करेगा और वह दस बीस हजार रुपये में मान जायेगा तो मैं उसकी मदद अवश्य करूंगा । लेकिन अगर उसकी नीयत मुझे शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने की दिखाई दी तो मैं उसके लिये तैयार हूं ।”
“मैं इस तसवीर में कहां फिट होता हूं ?”
“तुम यहां मेरी शहादत के तौर पर मौजूद हो । अगर कनकटा दयाल यहां मेरी गोली का शिकार हो गया तो तुम इस बात की पुष्टि करोगे कि वह मुझे मारने आया था लेकिन अपनी जान बचाने की खातिर मैंने उसे शूट कर दिया था ।”
“मैं ऐसा क्यों कहूंगा ?”
“तुम ऐसा क्यों नहीं कहोगे । क्या तुम हकीकत बयान करने के स्थान पर पुलिस से झूठ बोलोगे । मैंने पहले ही कहा है कि वह रिवाल्वर तभी प्रयोग में आयेगी जब दयाल मुझे शारीरिक रूप से कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा ।”
“दयाल आयेगा सही ?”
“बस आने ही वाला है ।”
“भटनागर की मौत के बाद उसकी सेक्रैट्री सिल्विया कहां गायब हो गयी है ?”
“भटनागर की मौत के बाद नहीं, चमनलाल की मौत के बद कहो अर्थात भटनागर की मौत से पहले । तीन दिन पहले तो सिल्विया चमनलाल के साथ उसके फ्लैट में रहती थी । सिल्विया के कथनानुसार चमनलाल ने उससे शादी करने का वादा किया था लेकिन बाद में मुकर गया था । इस बात पर दोनों में जमकर लड़ाई हुई थी और सिल्विया चमनलाल का फ्लैट छोड़ कर चली गई थी । तफ्तीश में पुलिस को यह बात मालूम ही हो जानी थी कि सिल्विया और चमनलाल तीन दिन पहले तक इकट्ठे रहते थे और अलग होने से पहले उन दोनों मे खूब लड़ाई हुई थी । सिल्विया को भय था कि कहीं चमनलाल की हत्या का सन्देह पुलिस उस पर न करने लगे ।”
“आई सी ।”
बलराज सेठी चुप रहा ।
“और मीरा की हत्या के बारे में तुमने क्या कहना है ?” - सुनील बोला ।
“कौन मीरा ?” - बलराज सेठी नेत्र फैलाकर बोला - “कैसी मीरा ? मैं किसी मीरा को नहीं जानता ।”
“मैं अभी कामिनी से मिलकर आ रहा हूं ।” - सुनील अर्थपूर्ण स्वर से बोला ।
“क्या !” - बलराज सेठी चौंका ।
“अब यह मत कहना कि तुम कामिनी को भी नहीं जानते । मीरा तो दूसरी दुनिया से यह कहने के लिये नहीं आ सकती कि तुम उसे जानते थे लेकिन कामिनी इसी दुनिया में है ।”
“कामिनी कहां रहती है ?”
“मेहता रोड की चौबीस नम्बर इमारत में । ग्राउंड फ्लोर दायां फ्लैट । अब विश्वास हो गया कि वाकई उससे मिलकर आ रहा हूं ।”
बलराज सेठी चिन्तित दिखाई देने लगा ।
“तुम और क्या जानते हो ?”
“मैं यह जानता हूं कि मीरा इम्पीरियल होटल की आठवीं मंजिल से गिरकर मरी थी । उसकी मौत का मुख्य कारण जमना ग्लास इन्डस्ट्रीज का मालिक सेठ जमनादास था लेकिन तुमने या तुम्हारे साथियों ने या तुम सबने मीरा की लाश को ठिकाने लगाया था । मैं यह भी जानता हूं कि जिस कथित गर्भवती मीरा से मुझे इम्पीरियल होटल में मिलाया था वह वास्तव में कामिनी थी । मैं भी जानता हूं कि...”
“सेठी साहब !”
सुनील के मुंह से आवाज निकलनी बन्द हो गई ।
बलराज सेठी ने चिहुंक कर उस ओर देखा जिधर से आवाज आई थी ।
डाइनिंग रूम की इकलौती खिड़की की चौखट पर कनकटा दयाल उकड़ू बैठा हुआ था । उसके हाथ में एक तोप जैसी रिवाल्वर थी । दयाल पर निगाह पड़ते ही बलराज सेठी की आंखें फट पड़ी । बिजली की फुर्ती से उसने अपने सामने पड़ी रिवाल्वर को दबोचा लेकिन अभी वह अपना रिवाल्वर वाला हाथ सीधा भी न कर पाया था कि दयाल के हाथ में थमे रिवाल्वर ने दो बार आग उगली । रिवाल्वर की गोलियों की आवाज से कमरा गूंज गया । बलराज सेठी के मुंह से हृदय-विदारक चीख निकली । गोली ने उसे फिरकनी की तरह कुर्सी पर घुमा दिया और फिर वह उलट कर जमीन पर जा गिरा । बलराज सेठी की छाती में दो बड़े-बड़े झरोखे दिखाई दे रहे थे ।
उसी क्षण भड़ाक से डाइनिंग रूम का दरवाजा खुला और हाथ में रिवाल्वर लिए वह ठिगना भीतर प्रविष्ट हुआ जो सुनील को बलराज सेठी के पास छोड़कर गया था । ठिगने की निगाह खिड़की की चौखट पर हाथ में उगले रिवाल्वर लिये बैठे दयाल पर पड़ी और उसने तत्काल फायर किया । गोली दयाल के कंधे में लगी ।
गोली की चोट से चौखट पर बैठे दयाल का बैलेंस बिगड़ गया । वह एकाएक पीछे को उलट गया । उसके हाथ किसी सहारे के लिए हवा में फैले लेकिन चौखट उसके हाथ में नहीं आई । फिर दयाल खिड़की से गायब हो गया और वातावरण में धीमी पड़ती एक चीख गूंज गई ।
सुनील लपककर खिड़की के पास पहुंचा । उसने बाहर झांका ।
दयाल का शरीर भड़ाक से गली की पथरीली जमीन टकराया और उसके परखचे उड़ गये ।
नीचे हंगामा मच गया ।
सुनील वापस घूमा ।
ठिगना बलराज सेठी पर झुका हुआ था ।
“खत्म ?” - सुनील ने पूछा ।
ठिगना उठ खड़ा हुआ । उसने सहमति सूचक ढंग से सिर हिला दिया । रिवाल्वर अभी भी उसके हाथ में थी और उसकी नाल से हल्का-हल्का धुआं उठ रहा था ।
“पुलिस को फोन करो ।” - सुनील तीव्र स्वर में बोला ।
“पुलिस ?” - ठिगना चौंका ।
“घबराओ नहीं । मैं तुम्हारी शहादत हूं । तुमने कनकटे पर गोली चलाई थी जब वह बलराज सेठी को मार चुका था और मुझे मारने वाला था ।”
ठिगना हिचकिचाया ।
“और यहां से जाने के बारे में सोच रहे हो तो यह ख्याल छोड़ दो । यहां ठहरने पर भी तुम्हारा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है । नीचे भीड़ी इकट्ठी हो चुकी है । हो सकता है जब तक तुम इस ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचो, पुलिस पहले ही यहां पहुंच चुकी हो ।”
“मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं ।” - ठिगना बोला और उस कमरे से निकल गया ।
सुनील ने शान्ति की सांस ली । उसे भय था कि कहीं ठिगना वहां से फरार होने के चक्कर में उसे भी शूट न कर जाये ताकि उसके पीछे उसके बारे में पुलिस को बताने वाला कोई बाकी न रह जाये ।
***
रात को आठ बजे सुनील को पुलिस हैडक्वार्टर से छुट्टी हुई । प्रभूदयाल की सुनील को इतनी आसानी से छोड़ने की नीयत नहीं थी, लेकिन सुनील ने इतनी शराफत और ईमानदारी से शुरू से आखिर तक सारी कहानी कह सुनाई थी कि उसे छोड़ने के सिवाय कोई और चारा भी नहीं था । प्रभूदयाल की धमकी सुनील को याद थी । इसलिए सुनील को भी अपना कल्याण इसी बात में दिखाई दे रहा था कि वह पुलिस से कुछ न छिपाये । पुलिस को पूरा सहयोग देने के और प्रभूदयाल की लगातार हां में हां मिलाने के बावजूद भी पूरे पांच घण्टे सुनील को पुलिस हैडक्वार्टर में एड़ियां रगड़नी पड़ी थीं ।
किसी हद तक प्रभूदयाल भी सन्तुष्ट था । चौबीस घण्टों में ही उसने हत्याओं के एक पेचीदे सिलसिले पर से परदा उठा दिया था । नगर में बड़े ही संगठित रूप से चलने वाला काल गर्ल का धन्धा तितर-बितर हो गया था और नगर के सम्मान और प्रतिष्ठा के आधार-स्तम्भ जमना ग्लास इण्डस्ट्रीज के मालिक सेठ जमनादास मीरा नाम की एक लड़की की हत्या के अपराध में गिरफ्तार कर लिये गये थे ।
प्रभूदयाल सन्तुष्ट था । इसलिये उसने सुनील को कड़ी चेतावनी देकर और दूसरे के फटे में टांग न अड़ाने की राय देकर छोड़ दिया ।
सुनील पुलिस हैडक्वार्टर से निकलकर सीधा मेहता रोड पर स्थित कामिनी के फ्लैट पर पहुंचा ।
कामिनी ने द्वार खोला । सुनील पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र चमक उठे । उसने सुनील का हाथ पकड़कर उसे भीतर खींच लिया ।
“वैलकम !” - वह बोली - “वैलकम सर !”
सुनील भौचक्का-सा कामिनी का प्रसन्नता और सन्तोष से चमकता हुआ चेहरा देखता रहा ।
कामिनी ने फ्लैट का द्वार बन्द किया और उसे ड्राईंग रूम में ले आई ।
ड्राईंग रूम के कोने में रखा रेडियो ग्राम उस समय पॉप संगीत प्रसारित कर रहा था । दोपहर में जो शीशे की मेज सोफा सैट के बीच में पड़ी थी, वह अब एक ओर सरका दी गई थी और अब उस पर एक गोल्ड स्मगलर की बोतल, कुछ सोडे की बोतलें, एक बर्फ की ट्रे और एक विस्की से आधा भरा हुआ गिलास रखा था । सोफा सैट के बीच की जगह खाली थी ।
कामिनी ने सुनील के गले में बांहे डाल दीं और पाप संगीत की धुन पर नाचने लगी ।
सुनील बौखला गया ।
कुछ क्षण बाद कामिनी ने सुनील को छोड़ दिया और किचन में से एक और गिलास ले आई ।
“विस्की पीते हो न ?” - उसने पूछा ।
“अगर नहीं भी पीता हूं” - सुनील बोला - “तो तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की के हाथ से जरूर पीऊंगा ।”
“वैरी गुड !” - कामिनी बोली । उसने अपना गिलास खाली किया और दोनों गिलासों में फिर से शराब, सोडा और बर्फ डाली । उसने एक गिलास सुनील को थमाया और दूसरा खुद उठा लिया ।
“चियर्स !” - सुनील उसके गिलास से अपना गिलास टकराता हुआ बोला ।
कामिनी ने अपना गिलास ऊंचा उठाया और बोली - “आओ हम शराब पियें और भगवान से प्रार्थना करें कि चमनलाल एस के भटनागर, बलराज सेठी और कनकटे दयाल जैसे कुत्ते के पिल्लों की आत्मायें जहन्नुम की आग में झुलसें !”
सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
कामिनी ने एक ही सांस में अपना गिलास खाली कर दिया । उसने गिलास को सोफे पर फेंक दिया और स्वयं सोफों के बीच बिछे कालीन पर ढेर हो गई । उसने सुनील का हाथ पकड़ कर उसे भी कालीन पर खींच लिया ।
“मैं तुम्हें यही बताने आया था कि बलराज सेठी मर चुका है !” - सुनील बोला - “लेकिन तुम्हें तो पहले से ही मालूम है ।”
“मिस्टर !” - कामिनी बोली - “मैंने ही तो उसकी मौत का सामान किया है और मुझे ही मालूम नहीं होगा कि वह मर चुका है !”
सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
कामिनी मुस्कराई ।
“बलराज सेठी वगैरह की मौत से तुम बहुत खुश हो !” - सुनील ने पूछा ।
“बहुत ज्यादा !” - कामिनी बोली - “खास तौर पर इसलिये क्योंकि मैंने उन लोगों की मौत का इन्तजाम करने के लिये बहुत मेहनत की है, बहुत खतरा उठाया है ।”
“तुमने उनकी मौत का इन्तजाम किया था ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि उन चार शैतानों की वजह से मेरी नन्ही मुन्नी भोली-भाली बहन की जान गई थी ।”
“तुम्हारी बहन !”
“मीरा मेरी सगी बहन थी मिस्टर सुनील !” - कामिनी भर्राये स्वर में बोली ।
“लेकिन मीरा की हत्या तो सेठ जमनादास ने की थी !”
“जमनादास एक कुत्ता था जो शराब के नशे मे धुत था, जिसे मालूम नहीं था कि वह क्या कर रहा है । उसकी वजह से मीरा इम्पीरियल की आठवीं मंजिल से गिरी थी । उसकी निगाह में मीरा और लड़कियों जैसी ही एक काल गर्ल थी । और वह ऐसा इसलिये सोचता था क्योंकि उसे ऐसा कहा गया था । लेकिन मीरा की मौत के असली जिम्मेदार वे लोग थे जिन्होंने मीरा को धोखा देकर सेठ जमनादास तक पहुंचाया । मीरा की मौत का सबसे बड़ा जिम्मेदार वह हरामजादा चमनलाल था जो उसे बहका फुसलाकर ले गया और जाकर इम्पीरियल होटल में सेठ जमनादास के हवाले कर आया ।”
कामिनी का गला भर आया ।
“मीरा की लाश का क्या हुआ ?”
“मेरी फूल सी बहन की लाश को एक ताबूत जैसी लकड़ी की बहुत बड़ी पेटी में रखा गया और फिर पेटी को गीले सीमेन्ट से भरकर पेटी बन्द कर दी गई । उसके बाद उस पेटी को समुद्र में फेंक दिया गया था । आज इतने दिनों बाद इस अजनबी शहर में यह सिद्ध करना कठिन काम है कि मीरा का अस्तित्व भी कभी था ।”
कामिनी एक क्षण रुकी और बोली - “मिस्टर सुनील जिस दिन मेरी बहन मरी, उसी दिन मैंने कसम खाई कि मैं उसकी मौत के जिम्मेदार एक एक आदमी से बदला लूंगी । सबसे पहले मैंने अपने गुस्से पर काबू किया और फिर बड़ी शान्ति से उन कमीने लोगों को दूसरी दुनिया में पहुंचाने की स्कीम बनाई । बड़े सब्र के साथ मैं मुनासिब वक्त की प्रतीक्षा करने लगी । उस दौरान मुझे जो कुछ करने के लिए कहा गया, मैंने किया । मैंने मीरा के नाम से मिसेज मुकन्दलाल की नौकरी की । मीरा बन कर मैं इम्पीरियल होटल में तुमसे मिली । उन लोगों की हर बात मानना मेरे लिए इसलिए जरूरी था क्योंकि मैं बिना उन लोगों का विश्वास प्राप्त किए उनकी मौत का इन्तजाम नहीं कर सकती थी ।”
“लेकिन यह सारा हंगामा तो इसलिए हुआ कि क्योंकि मीरा को तलाश करता हुआ हीरासिंह बलरामपुर से आया और संयोगवश मुझसे टकरा गया । अगर मैं मीरा के बारे में पूछताछ न शुरू करता तो...”
सुनील एकाएक चुप हो गया ।
कामिनी बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से मुस्करा रही थी ।
“हीरासिंह !” - सुनील के मुंह से निकला - “कहीं वह भी तो...”
कामिनी की मुस्कारहट और फैल गई ।
सुनील अपने स्थान से उठा । कोने में एक टेलीफोन रखा था । सुनील टेलीफोन के पास पहुंचा । उसने यूथ क्लब का नंबर डायल कर दिया ।
रमाकांत से सम्पर्क स्थापित होते ही वह बोला - “रमाकांत मैं सुनील बोल रहा हूं । क्या वह बूढा हीरासिंह बलरामपुर के लिए गाड़ी पर चढ गया है ?”
“कहां चढ गया है !” - रमाकान्त की आवाज सुनाई दी - “बूढा तो क्लब से गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गया है ।”
“कहां ?”
“क्या मालूम ? आपरेटर कहती है, लगभग साढे छ: बजे उसका टेलीफोन आया था । कोई लड़की बोल रही थी । हीरासिंह ने फोन सुना और वापिस अपने क्वार्टर में चला आया था । उसके बाद वह कब वहां से गायब हो गया, किसी को पता ही नहीं चला ।”
सुनील ने धीरे से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया । उसने घूमकर कामिनी की ओर देखा ।
कामिनी ने जोर का अट्टहास किया ।
“वह आदमी कौन था ?” - सुनील फिर आकर कामिनी के पास बैठता हुआ बोला ।
“जो कोई भी था ।” - कामिनी हंसती हुई बोली - “मेरा और कामिनी का बाप नहीं था । और न ही वह बलरामपुर से आया था । और न वह तुम्हारे पास आने से पहले पुलिस के पास गया था । हमारा बाप कब का मर चुका है । उस बुजुर्गवार को मीरा के बाप का अभिनय करने के लिए मैंने तैयार किया था । दो सौ रुपये में । मैंने ही उसे तुम्हारे पास बलरामपुर से आए मीरा के बदनसीब बाप की कहानी लेकर भेजा था । मुझे खुशी है कि वह अपने अभिनय में पूर्णतया कामयाब रहा था । और उस पर कतई सन्देह नहीं हुआ था ।”
“लेकिन मान लो मैं हीरासिंह की कहानी से प्रभावित न होता और मैं उसकी खातिर मीरा की तलाश करना न स्वीकार करता तो ?”
“कैसे नहीं करते ? मीरा की तलाश में गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए मैंने बहुत सोच समझकर तुम्हें चुना था । तुम्हारे पास हीरासिंह को भेजने से पहले मैं तुम्हारे स्वभाव के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर चुकी थी । मुझे पूरा विश्वास था कि परदेस से आये एक गरीब बूढे की मुसीबत की कहानी सुनकर तुम उसकी मदद के लिए जरूर तैयार हो जाओगे ।”
“लेकिन मान लो मैं इन्कार कर देता ?”
“तो फिर मैं कोई और तरकीब सोचती लेकिन वास्तव में तुमने इन्कार किया नहीं । मेरी तरकीब का यह महत्वपूर्ण अंग था कि कोई मीरा के बारे में पूछताछ करनी आरम्भ कर दे । और वह आदमी ऐसा हो जो पूछताछ के दौरान में आसानी से लोगों का पीछा छोड़ने वाला न हो ।”
“और ऐसा आदमी तुमने मुझे चुना ?”
“करेक्ट ।”
“फिर ?”
“तुमने तफ्तीश आरम्भ की । मिसेज मुकन्दलाल से तुम्हें चमनलाल की जानकारी हुई । तुम्हारे आगमन से चमनलाल घबरा गया । उसी दौरान में मैंने चमनलाल को अच्छी तरह भड़का दिया था कि बलराज सेठी और भटनागर उस पर कतई विश्वास नहीं करते । और उससे भारी खतरा महसूस करते हैं । तुम मीरा के बारे में पूछताछ करते हुए उसके पास पहुंचे तो वह बेहद डर गया । द्वारकादास के माध्यम से उसने भटनागर के पास वह सन्देश भिजवाया कि वह फौरन राजनगर से कूच कर जाना चाहता है इसीलिए उसे एक मोटी रकम की जरूरत है । उसी समय मैंने भटनागर को फोन किया और उसे बताया कि मैंने चमनलाल को यह कहते सुना था कि अगर भटनागर उसे एक मोटी रकम नहीं देगा तो वह मीरा की मौत की सारी कहानी तुम्हें बता देगा और यह कि बदले में तुमने उसे ‘ब्लास्ट’ से एक मोटी रकम दिलवाने का वादा किया है । भटनागर आग-बबूला हो गया तभी मीरा के बारे में सवाल पूछने तुम उस तक पहुंच गए । भटनागर का पारा और भी चढ गया । उसने समझा कि चमनलाल ने ही तुम्हें उसके बारे में बताया है । भटनागर ने इस बारे में बलराज सेठी से बात करने की कोशिश की लेकिन वह उसे मिला नहीं । गुस्से से भरा भटनागर चमनलाल के फ्लैट पर पहुंचा । भटनागर साथ में रिवाल्वर लेकर गया था । चमनलाल को लगा था कि भटनागर उसकी हत्या करने आया है । वह भयभीत तो था ही । एक बर्फ काटने वाला सुआ उसके हाथ में आ गया । उसने वह सुआ लेकर भटनागर पर हमला कर दिया लेकिन भटनागर ने चमनलाल को अपने अधिकार में कर लिया और उसी सुए से उसका काम तमाम कर दिया ।”
“यह भी तो सम्भव था कि चमनलाल ही भटनागर का काम तमाम कर देता ।”
“बिल्कुल सम्भव था लेकिन मुझे उससे क्या फर्क पड़ता था । मेरे तो दोनों ही दुश्मन थे और मैं दोनों को ही मृत देखना चाहती थी। मेरी बला से कोई मर जाता ।”
“आई सी ।”
“फिर भटनागर ने बलराज सेठी को बताया कि उसने चमनलाल की हत्या कर दी है । भटनागर की पीठ ठोकने के स्थान पर बलराज सेठी ने उसे खूब बुरा-भला कहा । गुस्से में उसने यह भी कहा कि अगर वह अपने होश ठिकाने नहीं रखेगा तो उसे भी चमनलाल के पास भेज दिया जाएगा । बलराज सेठी की बात कनकटे दयाल ने भी सुनी । दयाल ने समझा कि बलराज सेठी भटनागर की मौत चाहता है और अगर वह भटनागर की हत्या कर देगा तो बास बहुत खुश हो जाएगा । इसलिए अगले दिन सुबह भटनागर के दफ्तर में दयाल भटनागर की छाती में बर्फ काटने वाला सुआ घोंप आया । वैसे भटनागर की हत्या के लिए दयाल का इरादा पक्का करने में कुछ हाथ तुम्हारा भी था ।”
“मेरा हाथ !”
“हां ।”
“मेरा क्या हाथ था इसमें ?”
“कल रात को तुम द्वारकादास के माडर्न बार और रेस्टोरेन्ट में गए थे और चमनलाल से अपना रिश्ता जोड़कर तुमने बार में पूछताछ करने की कोशिश की थी । द्वारकादास को तुम पर सन्देह हो गया था । उसने तुम्हें अधिकार में कर लिया था और बलराज सेठी को तुम्हारे बारे में फोन कर दिया था । बलराज सेठी ने तुम्हारी खबर लेने दयाल को भेजा । दयाल अपने एक अन्य साथी के साथ वहां पहुंचा लेकिन तुम वहां से पहले ही निकल आए थे । हालांकि तुम्हारे निकल भागने में दयाल का कोई कसूर नहीं था । लेकिन फिर भी जब आधी रात को बलराज सेठी को फोन करके उसने उसे तुम्हारे भाग निकलने की सूचना दी तो बलराज सेठी ने दयाल को फिर ढेर सारी गालियां दीं । बलराज सेठी उस समय नशे में था और आधी रात को उसे डिस्टर्ब किया गया था इसलिए जो उसके सामने पड़ा वह उसी पर फट पड़ा । दयाल ने देखा कि बास का मूड अभी भी बूरी तरह उखड़ा हुआ है । उसने भटनागर को ही इसकी वजह माना । उस कम अक्ल आदमी ने फैसला कर लिया कि अगर वह भटनागर का खून कर दे तो बास जरूर खुश हो जाएगा और वह बास का भारी विश्वासपात्र आदमी बन जाएगा । परिणाम स्वरूप भटनागर की छुट्टी हो गई । इस प्रकार मेरी बहन की मौत के जिैम्मेदार चार आदमियों में से दो परलोक सिधार गए ।”
“फिर ?”
“फिर पता नहीं किसने कनकटे दयाल के बारे में पुलिस को फोन कर दिया । दयाल किसी तरह वहां से बचकर भाग निकला । पहले जब दयाल ने बलराज सेठी को यह बताया था कि वह भटनागर की हत्या कर आया है तो बलराज सेठी ने से हजार हजार गालियां दी थीं और उसे धक्के मारकर निकाल दिया था । दयाल ने यही समझा कि बलराज सेठी ने पुलिस को उसके बारे में सूचना दी है । बलराज सेठी ने दयाल को अपने फ्लैट पर बुलाया लेकिन उसको चिन्ता थी कि कहीं गुस्से में दयाल खून खराबे पर न उतर आए । इसलिए वह ऐसी किसी स्थिति के लिए तैयार होकर बैठा हुआ था । उसके अपने पास भी रिवाल्वर थी और उसने बाडीगार्ड के तौर पर ठिगने को भी वहीं बुलाया हुआ था । मैं महात्मा गांधी रोड पर पहुंची और दयाल के वहां आने की प्रतीक्षा करने लगी । दयाल वहां आया । मैंने बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से उसे बताया कि बलराज सेठी के फ्लैट में कदम रखते ही वह शूट कर दिया जाएगा । बलराज सेठी ने ठिगने को विशेष रूप से इसीलिए वहां बुलाया हुआ है । ठिगने का जिक्र आते ही दयाल को विश्वास हो गया कि बलराज सेठी ने वाकई मार डालने के लिए वहां बुलाया है । मैं उसे पाइप के रास्ते बलराज सेठी के फ्लैट की ओर चढता छोड़कर वापस लौट आई । उसके बाद जो कुछ बलराज सेठी के फ्लैट पर हुआ, उसके बारे में तुम मुझसे ज्यादा जानते हो ।”
“बलराज सेठी और कनकटा दयाल दोनों ही अपनी जान से हाथ धो बैठे ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“करैक्ट ।” - कामिनी मुस्कराती हुई बोली ।
“सच पूछा जाए तो उन लोगों ने एक दूसरे को नहीं मारा बल्कि तुमने चार हत्याएं की हैं । कोई ऐसा तरीका होना चाहिए जिससे इन चार हत्याओं की सजा तुम्हें मिल सके ।”
“है ऐसा कोई तरीका तुम्हारे दिमाग में ?”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
समाप्त
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