तारिक मोहम्मद अपने घर पहुंचा। जुम्मन चारपाई पर बंधा पड़ा था । उसके मुंह में कपड़ा ठूंस कर मुंह पर कपड़ा भी बांधा हुआ था कि कहीं मुंह में घुसा कपड़ा निकाल कर चिल्लाने न लगे। उसे आया पाकर वो जोरों से हिला । तारिक मोहम्मद ने उसके मुंह से कपड़ा हटाया और हाथ-पांवो के बंधन खोलने लगा। मुंह आजाद होते ही वो हंफता हुआ कह उठा ।

"डेढ़ लाख दे दिया इंस्पेक्टर साहब को ?"

"दे दिया ।"

"तुम भी अजीब आदमी हो। मुझे बांध कर जाने की क्या जरूरत थी ।" जुम्म्मन ने कहा।

तारिक मोहम्मद ने उसके हाथ-पांव खोल दिए ।

तुमने मुझे बहुत तकलीफ दी। तीन-चार घंटों से मुझे बांधे ।

"वो लड़की कहां रहती है, जिसने थाने में आकर कहा था कि मैंने ही उससे बलात्कार किया हैं।"

"तुम्हें क्या ?"

तारिक मोहम्मद ने रिवॉल्वर निकालकर, नाल उसकी तरफ कर दी। चेहरा शांत था ।

"कहां रहती है वो ?"

"तुम पुलिस से पंगा ले रहे हो। इंस्पेक्टर साहब को तुमने रिवॉल्वर के बारे में बताया ?"

"नहीं ।" तारिक मोहम्मद मुस्कुराया ।

"अगर उन्हें रिवॉल्वर के बारे में पता चल गया तो इस बार सच्चा मुकदमा तुम पर चला देंगे।"

"वो लड़की कहां रहती है ?"

"नहीं बताऊंगा।"

"मैं तुम्हें फिर बांध दूंगा और तब तक बांधे रखूंगा । जब तक तुम्हारी जान न निकल जाए ।"

"उससे पहले इंस्पेक्टर साहब मुझे ढूंढते हुए यहां आ जाएंगे और तुम्हारा...।"

"इस लड़की का पता बताओ वरना मैं तुम्हें फिर से बांधने जा रहा हूं ।" इस बार तारिक मोहम्मद के दांत भिंच गए ।

"बाद में इंस्पेक्टर साहब को इस बात का जवाब देना। उखड़े स्वर में कहने के बाद उसने एक पता बता दिया ।

"अगर पता गलत निकला तो मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा।"

"तुम पागल हो जो पुलिस वाले को धमकी...।"

"चलो। मैं तुम्हें छोड़ आऊं।"

"जरूरत नहीं । मैं खुद...।"

"तुम्हारे इंस्पेक्टर ने ही मुझे कहा था कि तुम्हें लेकर एक खास जगह आ जाऊं। वहां इंस्पेक्टर साहब मिलेंगे ।"

"कौन-सी जगह ?"

"मेरे साथ चलो और देखो, इंस्पेक्टर साहब ने तुम्हें कहां बुलाया है।" तारिक मोहम्मद का स्वर कठोर था ।

■■■

ये किसी इलाके का सूखा जंगल था। यहां किसी का आना-जाना नहीं होता था। जगह-जगह बरसात का पानी भरा हुआ था और कीचड़ के अलावा मच्छर-मक्खियां ढेर की तरह वहां भिनभिना रही थी ।

"ये तुम मुझे कहां ले आए ?"

"इंस्पेक्टर साहब से ही पूछना । उन्होंने कहा कि तुम्हें यहां भेज दूं ।" तारिक मोहम्मद आसपास देखता कह उठा ।

"वो भला ऐसी जगह क्यों आएंगे ?"

"तुम्हें इंस्पेक्टर साहब से मिलना है न ?" तारिक मोहम्मद ने मुस्कुरा कर उसे देखा ।

"हां ।"

"वो भी तुम्हारे बिना उदास हो रहे होंगे।" तारिक मोहम्मद का स्वर कड़वा हो गया। आंखों में खतरनाक भाव भरे और रिवॉल्वर निकाल कर उसकी तरफ कर दी--- "मैं तुम्हें इंस्पेक्टर साहब के पास भेज रहा हूं।"

"क्या ?" जुम्मन बुरी तरह चौंका--- "तुमने इंस्पेक्टर साहब को मार दिया ।"

"धांय-धांय दो गोलियों की वहां आवाज उभरी और दोनों गोलियां जुम्मन को जा लगी। उनके शरीर को झटका लगा और वो पीछे को कीचड़ जैसे पानी में जा गिरा। तारिक मोहम्मद दांत भींचे उसे देख रहा था ।

पानी में गिरा जुम्मन हौले-हौले तड़प रहा था। तारिक मोहम्मद दो कदम आगे बढ़ा और उसके सिर का निशाना लेकर गोली चला दी ।

■■■

दोपहर के तीन बज रहे थे । सूर्य सिर पर चढ़ा आग उगल रहा था। पसीने और गर्मी के मारे बुरा हाल था। आज अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा गर्मी थी ।

गर्म हवा वक्ती तौर पर राहत दे देती थी, परंतु आज तो हवा भी नहीं चल रही थी। सड़क जैसे आग उगल रही थी। ऐसी बुरी दोपहरी में बहुत कम लोग सड़कों पर जा रहे थे। कम गाड़ियां ही सड़कों पर नजर आ रही थी।

तारिक मोहम्मद पैदल ही धूप वाले फुटपाथ पर चल जा रहा था। गर्मी-पसीने से बुरा हाल था हाथ में पकड़े रुमाल से रह-रह कर अपना चेहरा साफ कर रहा था ।

सुबह वाले कपड़े ही उसके शरीर पर थे । उसका चेहरा सपाट था लेकिन आंखों से वहशी खूंखार का आभास रह-रहकर हो जाता था। काफी लंबा चलने के बाद एक तंग गली के किनारे रुका। यहां पुरानी, ऊंची इमारतें बनी हुई थी, जिसकी गलियां मात्र छः फुट चौड़ी थी। इतनी गर्मी में इक्का-दुक्का इंसान ही आ जा रहे थे ।

तारिक मोहम्मद गली में प्रवेश कर गया ।

पन्द्रह मिनट होने के पश्चात वो एक मकान के बंद दरवाजे पर ठिठका। ये पुराना मकान था। सौ वर्ष से ज्यादा पुराना लग रहा था। लकड़ी का दरवाजा भी टूट कर गिरने को तैयार था ।

तारिक मोहम्मद ने दरवाजा थपथपाया ।

"अब्बा घर पर नहीं है ।" उसी पल भीतर से युवती की आवाज आई। तारिक मोहम्मद ने पहचाना कि ये उसी युवती की आवाज है, जिसने कल शाम थाने में आकर कहा था कि उसने, उससे बलात्कार किया है। जो उसे फांसी पर चढ़ाने को कह रही थी ।

तारिक मोहम्मद ने पुनः दरवाजा थपथपाया। भीतर से आहटें उभरी फिर दरवाजा खोला गया। सामने वो ही युवती खड़ी थी।

तारिक मोहम्मद को अपने घर के दरवाजे पर पाकर वो घबरा उठी। उसने दरवाजा बंद करना चाहा। तारिक मोहम्मद ने अपना जूता फंसा कर दरवाजा बंद होने से रोका फिर दरवाजे को धकेल कर भीतर प्रवेश कर गया । युवती सहम कर दो कदम पीछे हो गई थी। वो डर चुकी थी।

"तुम-तुम यहां क्यों...।"

"घर में कौन है ?" तारिक मोहम्मद ने कठोर स्वर में पूछा ।

"क...कोई नहीं। चले जाओ, वरना मैं शोर...।"

"खामोश।"  तारिक मोहम्मद ने दांत भींच कर कहा और दरवाजा बंद करते हुए रिवॉल्वर निकाल ली।

रिवॉल्वर देखकर उसका चेहरा सफेद पड़ गया।

"आवाज न निकालना, वरना गोली मार दूंगा ।" तारिक मोहम्मद ने गुर्रा कर कहा और रिवॉल्वर जेब में रख ली।

युवती की हालत भय से बुरी हो गई थी ।

तारिक मोहम्मद ने पास पड़ी कुर्सी खींची और उस पर बैठता बोला ।

"कपड़े उतारो ।"

"न...नहीं, मैं...।"

"कपड़े उतारो। तुम्हें बलात्कार का बहुत शौक है न ।" तारिक मोहम्मद ने खा जाने वाले स्वर में कहां--- "कल शाम तुमने थाने में मुझ पर बलात्कार का इल्जाम लगाया, जबकि मैंने तुम्हें कभी देखा भी नहीं...।"

"व...वो इंस्पेक्टर एक बार ऐसा कहने के मुझे पांच सौ रुपए देता था ।"

"कितनी बार तुमने थाने जाकर ऐसा कहा ?"

"बहुत बार ।" वो घबराई-सी कह उठी--- "हर दूसरे-तीसरे दिन इंस्पेक्टर मुझे बुला लेता था ।"

"पांच सौ रुपए के लिए तुम किसी को भी फंसा देती ।"

युवती घबराई-सी खड़ी रही ।

"पानी ला।" तारिक मोहम्मद के चेहरे पर जहान-भर की कठोरता थी ।

वो तुरंत पानी ले आई ।

तारिक मोहम्मद ने पानी पिया और गिलास एक तरफ रखते कह उठा ।

"अब वो इंस्पेक्टर तुम्हें कभी नहीं बुलाएगा। मैंने उसे मार दिया है।"

युवती के चेहरे का रंग फक्क पड़ गया ।

"तेरे कारण मैं बड़ी मुसीबत में फंसा। और भी जाने कितने फंसे होंगे। आने वाले वक्त में और फंसेंगे । क्योंकि ये सिलसिला रुकेगा नहीं । इंस्पेक्टर मर गया तो थाने में दूसरे पुलिस वाले ये खेल जारी रखेंगे ।" तारिक मोहम्मद उठा और युवती की तरफ बढ़ा।

युवती भय से लड़खड़ा कर पीछे हुई ।

"घबराओ मत ।" तारिक मोहम्मद गुर्राया--- "मैं तुम्हें उसी इंस्पेक्टर के पास भेज रहा हूं। मुझ पर हाथ डालकर तुममें से किसी ने भी अच्छा नहीं किया।"  कहने के साथ ही उसके पास जाकर ठिठका और फुर्ती से दोनों हाथों में युवती का सिर थामा और खास अंदाज में झटका दिया ।

'कड़ाक' युवती की गर्दन की हड्डी टूट गई ।

तारिक मोहम्मद ने उसके सिर से हाथ हटाए तो 'धड़ाम' से वो नीचे जा गिरी ।

■■■

रात के नौ बजे थे। तारिक मोहम्मद खाना बनाकर, खाकर हटा था। कभी-कभी अपनी जिंदगी के बारे में सोचता कि कितनी अजीब हो गई है उसकी जिंदगी। एकदम अकेला। कोई बात करने वाला नहीं। कभी उसका घर था उसका परिवार था। पत्नी थी, दो बेटियां थी, बेटा था परंतु अब कुछ भी नहीं रहा। मशीनी अंदाज में जिंदगी बिता रहा था। दिन भर ड्राई फ्रूट की दलाली और रात को आना, खाना खाकर सो जाना। ये एक बोरियत-भरी जिंदगी थी। बेमतलब की जिंदगी थी।

इस वक्त खाना खाने के बाद कुर्सी पर बैठा था। सामने रखा टी.वी. चला रखा था। टी.वी. में फसलें उगाने के बारे में बताया जा रहा था और वो बहुत ध्यान से फसलें उगाने की बातों को सुन रहा था और करता भी क्या । वक्त ही वक्त था उसके पास और बातें करने वाला कोई भी नहीं था। कभी-कभी अपनी जिंदगी के उन डेढ़ सालों के बारे में सोचने लगता, जब वो उस आदमी के साथ चला गया था और फौजी ट्रेनिंग ली थी। वहां उसका दिल ऐसा लगा कि वक्त का पता ही नहीं चला ।

तभी दरवाजा थपथपाया गया। उसकी विचार धारा टूटी। दरवाजे को देखा। फिर उठकर आगे बढ़ा और दरवाजा खोला।

सामने मुनीम खान खड़ा था।

तारिक मोहम्मद उसे देखता रह गया।

"कैसे हो दोस्त ?" मुनीम खान मुस्कुरा कर बोला ।

"सच में ये तुम ही हो मुनीम खान ?" तारिक मोहम्मद के होंठों से निकला ।

"मैं ही हूं, मुनीम खान । तुमसे मिलने आया हूं ।" मुनीम खान ने हंसकर कहा ।

"आओ। भीतर आओ ।" तारिक मोहम्मद पीछे हटता हुआ बोला ।

मुनीम खान भीतर आया । तारिक मोहम्मद ने दरवाजा बंद किया और पलट कर बोला ।

"बैठो मुनीम खान ।"

"मुझे से मेहमानों जैसी बर्ताव मत करो। मैं तुम्हारा दोस्त हूं ।" मुनीम खान कुर्सी पर बैठ गया ।

"मैं भी तुम्हें दोस्त ही मानता हूं । चाय तो लोगे न ?"

"फिर तुम मुझे मेहमान समझ कर चाय के लिए पूछ रहे हो। दोस्तों को जब चाय की जरूरत होती है, वो खुद ही कह देते हैं।"

तारिक मोहम्मद चारपाई पर जा बैठा ।

"तुम्हें यहां देख कर कुछ अजीब-सा लग रहा है। क्या मेरी खैरियत पूछने आए हो ?"

"हामिद अली का बुलावा लेकर आया हूं।" मुनीम खान ने मुस्कुरा कर कहा ।

तारिक मोहम्मद फौरन चारपाई से खड़ा हो गया ।

"क्या हुआ दोस्त ?" मुनीम खान मुस्कुराया ।

"मेरे लायक काम आ गया ?" तारिक मोहम्मद मुस्कुरा पड़ा।

"हामिद अली ने एक काम तैयार किया है। अगर तुम काम करके लौट आए तो पचास लाख रुपया मिलेगा तुम्हें ।"

"उस पचास लाख से मैं अपना ड्राई फ्रूट का काम जमा सकूंगा।" तारीक मोहम्मद ने मुनीम खान को देखा--- "कब चलना है ?"

"परसो तो तुम दाऊद खेल में हामिद अली के ठिकाने पर पहुंच जाना है।"

"हामिद अली वहां मुझसे मिलेगा ?"

"मिलेगा ।"

"काम पर कब रवाना होना है मैंने ?"

"कुछ तैयारियों के बाद, पन्द्रह दिन लग सकते हैं।" मुनीम खान उठ खड़ा हुआ--- "परसों दाऊद खेल पहुंच जाना।"

■■■

पाकिस्तान का शहर-कोहाट ।

सरफराज हलीम की उम्र बीस साल थी और उसकी वैल्डिंग की दुकान थी। जब से उसने होश संभाला अब्बा को वैल्डिंग करते और हथौड़ी मारते देखा था। बचपन से वो भी अब्बा के काम में हाथ बंटाता रहता था। जब पन्द्रह वर्ष का हुआ तो अब्बा एक्सीडेंट में चल बसे। परिवार में वो उसकी छोटी बहन और मां रह गई। छोटी-सी उम्र में उसके कंधे पर काम का बोझ आ गया और अब्बा से जो भी सीखा था उसी से वैल्डिंग का काम करने लगा ।परंतु उस छोटी उम्र में काम संभालने की काबलियत उसमें नहीं थी, ऐसे में धंधा चौपट हो गया। मां की सलाह पर वैल्डिंग का एक कारीगर रख लिया गया। इस प्रकार धंधा संभला। वो ही कारीगर घर चलाने लगा। धीरे-धीरे कारीगर रात को घर पर ही रहने लगा। अम्मी को कोई एतराज न देखकर सरफराज हलीम भी खामोश रहा। साल भर बीता कि उस कारीगर को अम्मी के साथ हंसी-मजाक करते देखा। वो बच्चा नहीं था। सब समझता था, परंतु अम्मी को खुश देखकर, उसने इस बारे में अम्मी से कभी बात नहीं की। लेकिन एक फायदा उसे ये हुआ कि दुकान के संभल जाने से, उसे घूमने-फिरने का वक्त मिलने लगा। पैसे भी मिलने लगे।

सरफराज हलीम का एक दोस्त बन गया अरशद ।

अरशद भी उसकी तरह साधारण परिवार का था। उसके पिता दुपट्टे रंगने का काम करते थे। जैसे-तैसे घर का खर्चा चल जाता था । अरशद घर-घर जाकर वॉशिंग पाउडर और साबुन बेचता था। दिन के सौ-पचास भी कमा लेता था। उसे जब भी वक्त मिलता सरफराज हलीम के पास आ जाता। दोनों एक साथ घूमते बातें करते। अपने दिल की बात एक-दूसरे को बताते। सरफराज हलीम ने, अरशद को बता दिया था कि उसके यहां जो वैल्डिंग का कारीगर काम करता है, अम्मी उसे घर में ही रखती है। इन सब बातों के परे एक बात थी कि दम-खम  न होते हुए भी बड़ा काम करने की सोचता रहता था। वैल्डिंग जैसे काम में उसकी दिलचस्पी नहीं थी। वो अट्ठारह का हो गया था और अम्मी कई बार कह चुकी थी कि काम पर बैठाकर, लेकिन इस काम से उसका दिल उचाट हो गया था। वो तो बहुत पैसे कमा कर बड़ा आदमी बनना चाहता था। ये बात उसने कई बार अरशद से कही।

अरशद ने ये बात आगे किसी से कही या नहीं कहीं, ये तो पता नही परंतु सरफराज हलीम के विचार किसी के कानों तक तो पहुंचे ही। क्योंकि उस दिन शाम को वो बाजार में घूम रहा था कि एक आदमी उससे मिला उसने उसे बड़ा आदमी बनने का वादा किया । कहा कि उसे फौज की ट्रेनिंग दी जाएगी। सीखने में डेढ़ साल का वक्त लगेगा। उसके बाद उसे एक काम करने को दिया जाएगा। काम पूरा होते होने पर उसे पचास लाख दिया जाएगा।

सरफराज हलीम खुशी के साथ इस काम के लिए तैयार हो गया तो उससे वादा लिया गया कि वो ये बात किसी को बताएगा नहीं। उसी शाम जब सरफराज हलीम घर पहुंचा तो छोटी बहन ने बताया कि अम्मी और वैल्डिंग कारीगर कल निकाह कर रहे हैं । सरफराज हलीम को इस पर कोई एतराज नहीं था बल्कि उसे तो बेहतर लगा कि घर संभालने वाला कोई बड़ा होगा और निश्चिंत होकर डेढ़ वर्ष की फौजी ट्रेनिंग ले सकेगा। उसी रात उसने अम्मी को बता दिया कि इस्लामाबाद जाकर कोई काम करना चाहता है । अम्मी ने उसे बहुत रोका कि खाली हाथ इस्लामाबाद जाकर क्या करेगा भला। परंतु वो अपनी जिद पर अड़ा रहा। अगले दिन अम्मी और कारीगर का सादगी-भरे ढंग से निकाह हो गया। सरफराज हलीम ने अरशद को बता दिया था कि वो डेढ़ साल के लिए इस्लामाबाद जा रहा है। सच बात उसने अरशद से नहीं कही थी फौजी ट्रेनिंग लेने पाक कब्जे वाले कश्मीर में जा रहा है।

कुछ दिन बाद सरफराज हलीम घर से चला गया ।

■■■

डेढ़ साल के बाद, पूरे बीस वर्ष का होकर सरफराज हलीम घर वापस लौटा। अब तो उसके रंग-ढंग ही बदले हुए थे । सीना तान कर चलता था । अकड़ कर बात करता था । हाव-भाव फौजियों के अंदाज़ में थे। चेहरा निखर आया था और अब पूरा जवान लगने लगा था। अम्मी उसे देखकर बहुत खुश हुई। सरफराज ने बताया कि इस्लामाबाद में अच्छी नौकरी करता है और इन दिनों की छुट्टी लंबी भी हो सकती है और छोटी भी। बुलावा आया तो कभी भी उसे जाना पड़ सकता है। अम्मी, नए अब्बा के साथ खुश थी। अब्बा ने वैल्डिंग का काम बहुत अच्छी तरह संभाल रखा था। अम्मी ने सरफराज को बताया कि छोटी बहन सलमा का निकाह तय कर दिया है। लड़का अच्छा कमाता है। सलमा अठारह की हो गई थी। सरफराज को अच्छा लगा ये सुनकर। कम-से-कम नए अब्बा को घर की तो चिंता थी। अब्बा उसे कभी बुरा नहीं लगा था। आखिर उसने दुकान और घर को संभाल रखा था। सरफराज अली अरशद से मिला। अरशद भी बड़ा हो गया था। परंतु वो ही सैल्समैनी का काम करता था। सरफराज को आया पाकर बहुत खुश हुआ। दोनों गले मिले। खुशी में अरशद उस दिन काम पर नहीं गया और दोनों दिन-भर घूमते रहे । सरफराज उसे इस्लामाबाद की झूठी खबरें बताता रहा कि डेढ़ वर्ष उसने एक ठेकेदार के यहां काम किया। उसे अच्छी तनख्वाह देता था। अब तो वो पूरा काम सीख गया है। वो ठेकेदार थोड़े वक्त के लिए सऊदी अरब गया तो इन दिनों को छुट्टी मानकर वो यहां आ गया । जब भी ठेकेदार सऊदी अरब से वापस आएगा, उसे बुला लेगा। यूं ही बातें मारता रहा सरफराज । अरशद ने महसूस कर लिया था कि पहले के सरफराज में और अब के सरफराज में बहुत फर्क है। पहले वो धीमे स्वर में बातें करता था परंतु अब उसकी आवाज में दम था । रौब से बात करता था। सरफराज हलीम और अरशद का मिलना फिर शुरू हो गया ।

घर पर अम्मी पूछती कि डेढ़ साल की कमाई कहां है तो कह देता इस्लामाबाद के बैंक में रखी है। जल्दी में ला नहीं पाया अब जाएगा तो ले आएगा। पर अम्मी बोलती, उसे तू ही रख, तेरे काम आएगी । तेरे अब्बा वैल्डिंग के काम में बहुत कमा रहे हैं। सलमा के निकाह के लिए भी पैसा इकट्ठा करके रख लिया है। सरफराज हलीम की जिंदगी के दिन फिर से कोहाट शहर में बीतने लगे। पहले उसकी आंखों में मासूमियत भरी होती थी। परंतु अब आंखें किसी चीते की तरह काम करती थी। पैनी निगाहों से वो एक-एक चीज को देखता देखा करता था। किसी से बात करता तो उसकी आंखों में झांक कर बात करता था। आवाज में दम होता था।

इसी तरह सरफराज हलीम को वापस लौटे चार महीने हो गए थे ।

एक दिन अरशद मिला तो उसका उदास, चिंता-भरा चेहरा देखकर सरफराज ने पूछा ।

"क्या बात है। तेरा रंग क्यों उड़ा हुआ है ।"

"सरफराज।" अरशद बोला--- "घर की बात है।"

"बता तो। किसी ने कुछ कह दिया क्या ?" मैं तेरा यार हूं   तेरे लिए तो जान भी दे दूंगा ।" सरफराज हलीम छाती ठोक कर बोला ।

अरशद चुप रहा ।

"यार पे भरोसा नहीं अरशद जो तू बता नहीं रहा ।" सरफराज ने नाराजगी से कहा।

"ये बात नहीं । दरअसल बात ही कुछ ऐसी है कि...।"

"तू बोल तो । सरफराज तेरे लिए जान तक लड़ा देगा। तेरे को दिल से यार माना है ।"

"पांच लाख रुपया चाहिए ।"

"क्या ?" दो पल के लिए सरफराज हड़बड़ा उठा--- "पांच लाख रुपया ?"

"हां। बहन की शादी करनी है। वो जवान हो गई है। घर पर पैसा नहीं है । रोटी चल जाती है, इतना ही बहुत है अब शादी के लिए पैसा कहां से आए ? अब्बा के पास इकट्ठा करके मुश्किल से लाख रुपया है। इतने में तो शादी होने से रही । कम-से-कम भी पांच लाख रुपया चाहिए। दो-ढाई लाख का सामान आएगा। बाकी का खाने-पीने में लग जाएगा ।"

सरफराज हलीम गंभीर स्वर में कह उठा।

"मेरे पास होता तो तेरे को अभी दे...।"

"पता है मुझे । पांच लाख रुपया किसके पास रखा है। इतनी बड़ी रकम है ये ।" अरशद टूटे स्वर में बोला ।

"कितना अफसोस हो रहा है कि मैं अपने यार की परेशानी में काम नहीं आ पा रहा।" सरफराज दुखी स्वर में कह उठा ।

अरशद चला गया । परंतु सरफराज हलीम परेशान रहा। सोचता रहा कि कैसे अरशद की बहन की शादी के लिए पांच लाख का इंतजाम करे। रात भी ठीक से सो नहीं पाया। करवटें बदलता रहा ।

तीसरे दिन वो अरशद से मिला ।

"पैसे का कुछ इंतजाम हुआ अरशद ?" सरफराज ने पूछा ।

"कहां से होगा ।" अरशद ने गहरी सांस ली ।

"तू पांच लाख के इंतजाम के लिए क्या करने का हौसला रखता है ?"

"पांच लाख पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं । पैसा न होने की वजह से घर में परेशानी छाई हुई है । कोई किसी से बात नहीं करता। बहन के निकाह की चिंता सबके सिरों पर सवार...।"

"पांच लाख का इंतजाम करने के लिए मैं तेरा पूरा साथ दूंगा। तेरे को ऐसी कोई जगह पता है जहां पांच लाख पड़ा हो ।"

अरशद ने चौंककर सरफराज को देखा ।

सरफराज की आंखों में खतरनाक चमक लहरा रही थी ।

"तुम-तुम...।" अरशद आगे कुछ न कह सका ।

"यार के लिए तो जान भी हाजिर है प्यारे । अब तेरे लिए तो पांच लाख का इंतजाम करना ही होगा ।" सरफराज हलीम ने मुस्कुराकर उसके कंधे पर हाथ रखा--- "तू तैयार है तब तो तभी बात बनेगी ।"

"मैं तैयार हूं ।" अरशद दृढ़ स्वर में कह उठा ।"

"तो ऐसी कोई जगह बता, जहां लाख पड़े मिल जाए। सोचते हैं कि वो कैसे उड़ाने हैं ।" सरफराज बोला ।

"स...सोचकर बताऊंगा ।" अरशद सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा--- "कल बताऊंगा ।"

■■■

सरफराज हलीम और अरशद अली अगले दिन मिले ।

"कोई जगह पता कि ?" सरफराज ने पूछा ।

"एक जगह तो है, पर वहां खतरा...।"

"खतरे की परवाह मत कर । यार के लिए तो जान भी हाजिर है। कौन-सी जगह है ?"

"सकीना बाजार में फजलु ज्वैल्स है रात ग्यारह बजे वो दुकान बंद करता है। रात-भर वहां पहरेदार नहीं रहता। बाजार का चौकीदार जरूर है। पर वो आधी रात के बाद सो जाता है । वहां से सोने के जेवरात उड़ा कर, उसे कहीं बेच कर, कैश रूपया हासिल कर सकते हैं ।"

"ठीक है। हम दोनों मिलकर ये काम करेंगे ।" सरफराज बोला--- "आज रात मैं उस बंद दुकान को देखूंगा ।"

■■■

रात एक बजे सरफराज हलीम और अरशद सकीना बाजार में मौजूद थे। रात के इस वक्त वहां पूरी तरह शांति छाई हुई थी। दूर कहीं चौकीदार के डंडा पीटने की आवाज आ रही थी बाजार के फुटपाथों पर इक्का-दुक्का लोग कपड़ा ओढ़े सोए हुए थे। फजलू ज्वैल्स का गिरा हुआ शटर बंद था और बाहर बल्ब जल रहा था । वहां आसपास कोई नहीं सोया हुआ था ।

बल्ब की मध्यम रोशनी में सरफराज ने शटर चैक किया । वहां लगे ताले देखें । पांच मिनट वहां रहने के बाद, वहां से चल पड़े।

"ये काम नहीं हो सकेगा ।" अरशद परेशान-सा कह उठा ।

"क्यों ?"

"शटर बहुत मजबूत है और दोनों तरफ मोटे ताले लगे हैं। ये हमारे बस का काम नहीं है ।"

"मैं ये काम कर लूंगा ।"

"क्या कहता है । वो मोटे ताले...।"

"ताले को तोड़ना जानता हूं ।"

"ताले तोड़ना जानता है ।" कैसे ?"

"डेढ़ साल इस्लामाबाद में ठेकेदार के नीचे काम किया है। वहां पर ताले तोड़ने सिखाए जाते हैं । ताकि काम के दौरान कभी चाबी खो जाए तो काम रोकना न पड़े । फौरन ताला तोड़कर काम आगे बढ़ाया जा सके ।" सरफराज में शांत स्वर में कहा ।

"इतने मोटे काले तू कैसे तोड़ेगा ?"

"सरिया फंसाकर ।"

"शोर तो होगा ।"

"थोड़ा-सा होगा ।"

"रात के वक्त वो थोड़ा-सा शोर, बहुत ज्यादा बन जाएगा ।" अरशद ने व्याकुल स्वर में कहा ।

"सोचने दे मुझे। मैं सब ठीक कर दूंगा। हम कल रात काम करेंगे। तेरी बहन की शादी के लिए पैसे का इंतजाम हो जाएगा ।"

"मुझे डर लग रहा है ।"

"मेरे होते हुए तू डर मत । मैं बड़ी-से-बड़ी मुसीबतें चुटकियों में हल कर सकता हूं।"

■■■

उसके बाद सरफराज हलीम और अरशद अली शाम को मिले। सरफराज के हाथों में दो-दो फुट के चार मोटे सरिये थे और वैल्डिंग की दुकान से लोहे का भारी हथोड़ा भी थैले में डालकर ले आया था ।

अरशद घबराया हुआ था ।

"यार मुझे डर लग रहा है।" अरशद बोला ।

"डरेगा तो काम कैसे होगा?" सरफराज ने उसे देखा--- "तूने अपनी बहन का ब्याह करना है कि नहीं ?"

"करना है ।"

"तो हिम्मत से काम ले। मैं तेरे लिए ही ये काम कर रहा हूं। मुझे तो पैसे नहीं चाहिए। कहे तो ये काम नहीं करते ।"

"मुझे पांच लाख चाहिए। बहन की शादी के लिए। ये काम करना है ।"

"तो अपनी हिम्मत बढ़ा के रख। तभी काम हो पाएगा ।"

सरफराज और अरशद इधर-उधर घूमते वक्त बिता रहे। खाना भी रात का उन्होंने एक होटल में ही खाया था। उसके बाद पार्क में आ बैठे। रात के बारह के पार वक्त हुआ तो दोनों सकीना बाजार आ पहुंचे। फजलू ज्वैलर्स के बंद शटर के सामने लेट गए। सरफराज उसे बता चुका था कि कैसे-कैसे काम करना है। इस वक्त देखने पर ये ही लग रहा था कि वो कोई मजदूर है और जो वहां नींद ले रहे हैं। एक घंटा वो लेट रहे। सामने सड़क पर से चौकीदार डंडा बजाते हुए जा चुका था। सवा एक का वक्त हो रहा था हर तरफ शांति थी। फिर दोनों उठे। सरफराज ने एक सरिया लेकर ताले के भीतर फंसाया और ताकत लगाकर उसे टेढ़ा किया। अब सरिया ताले में अटक गया था। उस दौरान अरशद हर तरफ सावधानी से नजर रख रहा था। फिर सरफराज ने इसी तरह दूसरे ताले में सरिया फंसाकर टेढ़ा किया। सारा काम खामोशी से हो रहा था ।

"हथौड़ा दे ।" सरफराज बोला ।

अरशद ने तुरंत थैले से हथौड़ा निकालकर उसे थमाया। वो घबराया हुआ था। सरफराज ने हथौड़ा थामा और एक तरफ के ताले में फंसे सरिये पर दे मारा। आवाज उभरी। ताला से छिटककर लटक गया ।

इसी प्रकार दूसरा ताला भी तोड़ा गया ।

फिर वे फुर्ती से सरिये हथौड़ा समेटकर शटर के सामने लेट गए। उन्हें डर था कि शोर उभरने पर कोई पा सकता है। परंतु आधा घंटा बीतने पर कोई इधर न आया। सब ठीक रहा ।

"अरशद ।" सरफराज फुसफुसाया--- "सब ठीक है।"

"हूं।" अरशद की जान निकली हुई थी ।

"तू घबरा तो नहीं रहा ?"

"नहीं ।" अरशद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

दोनों की निगाह हर तरफ घूम रही थी ।

"काम शुरू करें ?" सरफराज बोला--- "तू शटर के उस तरफ का कुंडा हटा, मैं इस तरफ का उठाता हूं ।"

दोनों जल्दी से उठे । शटर के कुंडे खिसकाए गए ।

"चल शटर उठाते हैं ।" सरफराज धीमे स्वर में उठा--- "जरा-जरा करके शटर उठाना है कि आवाज न उभरे। थोड़ा-सा ही शटर उठाना है कि मैं भीतर घुस सकूं । तू बाहर रहना । मैं तेरे को जेवरात पकड़ाता रहूंगा।"

"ठीक है ।"

"कोई खतरा आए तो मुझे बता देना। शटर पर हाथ मार देना।"

अरशद ने सिर हिला दिया ।

दोनों जरा-जरा करके शटर उठाने लगे ।

शटर भारी था। परंतु उसे धीरे-धीरे ऊपर खिसकाया जा रहा था।

ये सब करते हुए सरफराज हलीम को जरा भी डर नहीं लग रहा था ।

जबकि अरशद के हाथ-पांव कांप रहे थे ।

एक फुट के करीब बे-आवाज से शटर ऊपर उठा दिया गया ।

"बस। ठीक है। मैं सरककर भीतर जा रहा हूं। तू बाहर का ध्यान रखना।"

उसके बाद सरफराज सरककर भीतर प्रवेश कर गया ।

शटर छोड़ा तो वो थोड़ा-सा नीचे आ गया। परंतु इतनी जगह बाकी थी कि भीतर से जेवरात बाहर दिए जा सकें। दो-तीन मिनट बाद दुकान के भीतर की लाइट जलती महसूस की। अरशद की टांगें कांप रही थी। वो घबराया-सा खड़ा इधर-उधर देख रहा था। दो मिनट बाद ही भीतर से सरफराज ने जेवरात से भरा एक लिफाफा बाहर सरकाया ।

अरशद ने फौरन लिफाफा थाम लिया ।

"लिफाफे में बहुत से जेवराज भरे हैं।" सरफराज की धीमी आवाज कानों में पड़ी--- "अभी ऐसा एक और लिफाफा देता हूं, भीतर बहुत माल है।"

अरशद घबरा चुका था कि उसका दिल कर रहा था, यहां से भाग ले। परंतु वो वहीं खड़ा रहा। जल्दी ही सरफराज भीतर से एक और लिफाफा, शटर के नीचे धकेलता बोला ।

"अरशद ये पकड़ ।"

अरशद ने कांपते हाथों से लिफाफा थामा और सिर झुकाकर, शटर के पास मुंह ले जाकर बोला ।

"बहुत हो गया। आ जा।"

"एक और लिफाफा भर लूं । सिर्फ एक मिनट ।"

अरशद ने दोनों लिफाफे थामे घबराए अंदाज में इधर-उधर देखा।

अगले ही पल उसका दिल उछल कर मुंह की तरफ आने को हुआ ।

पीछे दस कदमों के फासले पर चौकीदार डंडा थामे खड़ा, उसे घूर रहा था ।

अरशद की टांगों में जोरदार कंपन हुआ। और तो उसे कुछ सूझा नहीं। उसने जल्दी से शटर पर हाथ मारा और भाग खड़ा हुआ। चौकीदार उसके पीछे भागने को हुआ कि शटर के नीचे से किसी को, खिसककर बाहर आते देखा तो, फौरन रुक गया। तब तक अंधेरे में खो चुका था। सरफराज शटर से बाहर आते हुए थोड़ा फंस गया। शटर नीचे थे।

"थोड़ा-सा शटर उठा।" सरफराज बोला।

चौकीदार ने शटर उठाया । सरफराज बाहर निकला तो चौकीदार ने उसकी कमीज का कॉलर पकड़ लिया।

सरफराज ने सिर उठा कर देखा तो सामने चौकीदार को पाया। अरशद कहीं नहीं था ।

"चोरी करता है।" चौकीदार उसकी कमीज का कॉलर पकड़कर झिझोड़ता कह उठा ।

"वो कहां गया ?" सरफराज बिना डरे बोला--- "मेरा साथी ?"

"मुझे देखते ही वो भाग गया। लेकिन बच कर कहां जाएगा। तू तो पकड़ा गया।" चौकीदार का इरादा उसे छोड़ने का नहीं था।

"बात मत बढ़ा।" सरफराज जेब से मुट्ठी-भर जेवरात निकालता है उठा--- "ये तू रख ले ।"

"मुझे चोर समझता है। मैं चौकीदार हूं, रखवाला हूं , चोर नहीं । बीस सालों से इस बाजार में नौकरी कर रहा...।"

"तेरी ईमानदारी पर सरकार तेरे को इनाम नहीं देने वाली। ये रख ले। तेरी मौज हो जाएगी ।"

"चल थाने।" चौकीदार ने उसका कॉलर पकड़कर खींचा ।

"मान जा और जेवरात ले ले।"  सरफराज बोला ।

"थाने में तुझे पता चलेगा।" उसका सरफराज का कॉलर पकड़ उसे खींचने की चेष्टा की।

तभी सरफराज फुर्ती से नीचे झुका और वहां पड़ा भारी हथौड़ा ऊपर उठाया और 'ठक' से उसके सिर पर दे मारा ।

उस भारी हथोड़े एक वार भी ज्यादा था । वो तो वैल्डिंग में इस्तेमाल होता था। चौकीदार का सिर खुल गया। वो उसी पल नीचे जा गिरा। सरफराज के दांत भिंचे हुए थे। उसने जेवरात जेब मे डाले। नीचे रखे सरियों को थैले में, फिर हथौड़े को थैले में डाला और थैला थामे तेजी से वहां से आगे बढ़ता चला गया। हर तरफ रात की खामोशी छाई हुई थी ।

■■■

अगले दिन सरफराज हलीम बारह बजे उठा। वो भी तब जब अरशद उसके घर आया। सरफराज ने खून से सना हथौड़ा साफ करके रात को ही वैल्डिंग की दुकान में रख दिया था। सरिये भी रख दिए थे। अरशद बहुत बेचैन दिख रहा था ।

"तू घबरा क्यों रहा है ?" सरफराज ने धीमे स्वर में पूछा ।

"मैं अभी सकीना बाजार गया था। वहां पता चला कि रात को दुकान पर चोरी करने वालों ने, चौकीदार को मार दिया। तूने मारा ?"

"हां ।"

"ये क्या कर दिया तूने ?" अरशद के चेहरे का रंग फक्क था--- "खून कर दिया ।"

"वो मुझे पकड़कर थाने ले जाने वाला था। उसने मुझे पकड़ लिया था ।" सरफराज शांत स्वर में कह उठा ।

"लेकिन...।"

"तू घबरा मत । सब ठीक है। तूने अपने घर में तो कुछ नहीं बताया ?" सरफराज ने पूछा।

"मैंने कुछ नहीं बताया। वो जेवरात लाया हूं। कहीं बेचकर, पैसा घर में दूंगा।" अरशद ने हाथ में थामे थैली की तरफ इशारा किया--- "ये बहुत ज्यादा है । इससे तो दस लाख इकठ्ठा हो जाएगा। बढ़िया शादी हो जाएगी।"

"जल्दी मत कर जेवरात बेचने की ।" सरफराज ने कहा--- "जब मामला ठंडा हो जाए तो तब बेचेंगे। इसे तू मेरे पास रख दे ।"

अरशद ने थैला सरफराज को दे दिया ।

सरफराज ने वो थैला अपनी ल अलमारी में रख कर, ताला लगा दिया ।

"हम पकड़े तो नहीं जाएंगे। पुलिस को...।"

"अगर तूने किसी को कुछ नहीं बताया तो नहीं पकड़े जाएंगे ।" सरफराज बोला ।

"मैंने किसी को कुछ नहीं बताया ।" अरशद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- "पर तूने खून कर...।"

"चुप रह। कोई सुन लेगा। बाहर चल कर बातें करेंगे। मैं नहा-धो लूं ।"

उसके बाद सरफराज नहा-धोकर तैयार हुआ। अम्मी ने पंराठे बनाए। दोनों ने खाए।

फिर सरफराज वैल्डिंग की दुकान में गया । अब्बा वहां काम कर रहे थे। अब दुकान पर एक और लड़का भी काम करने लगा था।

उसकी निगाहों से छिपकर सरफराज ने हथौड़ी उठाकर कपड़ों में छिपा ली फिर घर के कमरे में आकर, अरशद के साथ बाहर निकल गया ।

■■■

सरफराज हलीम और अरशद एक ऐसे पार्क में पहुंचे जो काफी बड़ा था और अधिकतम सुनसान ही रहता था। यहां तक वे बस द्वारा आए थे । पार्क में कृत्रिम झील भी थी पानी की । छुट्टी वाले दिन इस पार्क में भीड़ होती थी। परंतु अन्य दिनों में पार्क लगभग खाली-सा रहता था। रास्ते में अरशद रात की ही बात करता आया था। वो चिंता में पड़ा हुआ था। सरफराज की निगाहें पूरे पार्क को टटोल रही थी । कहीं-कहीं कोई बैठा दिख जाता था। वरना आसपास खाली जैसा था । दोपहर के तीन बज रहे थे।

दोनों एक सुनसान जगह पर पेड़ों की ओट में बैठ गए।

"मैंने तो सोचा भी नहीं था कि तू इस तरह चौकीदार की जान ले लेगा ।" अरशद कह उठा।

सरफराज की निगाह छत के चेहरे पर जा  टिकी। चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे थे ।

"तू मेरा यार नहीं,  गद्दार है गद्दार यार है तू ।" सरफराज हलीम दांत भींचकर कर कह उठा।

अरशद ने फौरन उसे देखकर कहा ।

"ये तू क्या कह रहा है सरफराज ?"

"रात चौकीदार वहां पहुंचा और तू मुझे छोड़ कर भाग गया ।" सरफराज की आंखों में मौत के भाव थे ।

"मैं घबरा गया था। मैं उस वक्त मुझे कुछ सुझा नहीं। बाद में मुझे अफसोस हुआ कि मैं वहां से भाग आया ।"

"मैं तेरी बहन की शादी के लिए, यार का फर्ज निभा रहा था। तेरे लिए कर रहा था और सब कुछ और तू वहां से भाग आया। गद्दार यार है तू। मैंने तेरे लिए इतना बड़ा खतरा उठाया और तूने मौके पर अपना कमीनापन दिखा दिया ।"

"मैं सच में घबरा गया ।"

"तब तेरे मन में मेरा ख्याल नहीं आया। कि बाहर चौकीदार है और मैं भीतर हूं ।"

"उस वक्त तो मुझे ये ही डर था कि चौकीदार मुझे पकड़ न ले । और कुछ भी न सूझा मुझे।"

सरफराज के चेहरे पर कहर के भाव उभरे ।

"मानता है न तू, तूने उस वक्त मेरे साथ गद्दारी की, जब तेरे को मेरा साथ देना था। तू भाग आया वहां से। क्योंकि वहां चौकीदार पहुंच गया था। जबकि मैं तेरी बहन की शादी के लिए पैसों का इंतजाम कर रहा...।"

"नाराज मत हो, मैं...।"

"मैं पकड़ा जाता तो ? चौकीदार ही मुझे मार देता तो ?" सरफराज की आंखों में शोले थे--- "मुझे चौकीदार को मारना पड़ा। जबकि इस काम में मेरा साथ देने के लिए तेरे को वहां मौजूद होना चाहिए था ।"

"तू ठीक कहता है ।" अरशद ने गहरी सांस ली--- "पर चौकीदार को देखते ही मेरे हाथ-पांव फूल गए थे। मैंने तब भागकर तेरे साथ गलत किया । रात भर मुझे तुम्हारी ही चिंता रही चौकीदार ने तेरे साथ क्या किया होगा। कहीं तू पकड़ा तो नहीं गया ।"

"चिंता थी तेरे को ?" सरफराज की आवाज में मौत की ठंडक आ गई ।

"बहुत ।"

सरफराज ने कपड़ों में छिपा रखी छोटी हथौड़ी निकाल ली ।

"ये क्या--- तू हथौड़ी साथ क्यों लाया ?" अरशद के होंठों से निकला ।

"गद्दार यार को सबक सिखाने के लिए ।" सरफराज का स्वर बेहद ठंडा था ।

"क्या मतलब ?"

उसी वक्त सरफराज का हाथ घूमा और हथौड़ी उसकी कनपटी पर पड़ी। अरशद का सिर घूम गया । वो उसी पल जमीन पर लोटता चला गया । सरफराज के होंठों से गुर्राहट निकली और उस पर दूसरा वार किया। दूसरे वार ने अरशद की सांसों की डोर को तोड़ दी थी ।

■■■

महीने बाद सरफराज हलीम ने उन जेवरातों को दूसरे शहर जा कर बेच दिया। नौ लाख रुपए उसे मिले। वो पैसे उसने अम्मी को ये कह कर दे दिए कि ये उसकी इस्लामाबाद वाली कमाई है। कोई इस्लामाबाद से आ रहा था तो उससे पैसे मंगवा लिया। महीने-भर के बाद ही सलमा का निकाह हो गया था। सरफराज ने निकाह में बढ़-चढ़कर सारे काम संभाले ।

उसके बाद सरफराज हलीम फुर्सत में आ गया था और वक्त बिताने की खातिर दुकान पर बैठने लगा ।

एक दिन अम्मी उससे पूछा।

"अरशद नहीं आया निकाह में । तू भी अब उससे मिलने नहीं जाता। क्या बात है ?"

"वो नहीं रहा । एक्सीडेंट हो गया है उसका ।"

"ओह । तूने बताया नहीं ।" अम्मी के होंठों से निकला ।

"बुरी खबर थी। इसलिए नहीं बताया ।" सरफराज ने शांत स्वर में कहा--- "जनाजे में गया था उसके ।"

कुछ दिन बीते कि मुनीम खान उसके पास आ पहुंचा ।

तब सरफराज बाजार जा रहा था । वो रास्ते में मिला ।

"तुम्हें देख कर बहुत खुशी हुई मुनीम खान ।" सरफराज हलीम मुस्कुरा कर बोला ।

"हम सात महीनों के बाद मिल रहे हैं सरफराज ।" मुनीम खान बोला--- "तू तो वैसा ही दिखता है ।"

"यहां, मेरे पास आए हो ?"

"हां। तुम्हारे पास ही आया हूं । हामिद अली ने बुलाया है तुझे ।" मुनीम खान ने कहा ।

"सच ?" सरफराज हलीम की आंखों में चमक आ गई ।

"काम है। करेगा न ?"

"क्यों नहीं करूंगा। मुझे पैसा कमाना है। तुमने कहा था कि काम के बदले मुझे पचास लाख मिलेगा।"

"जरूर मिलेगा । जब तुम काम पूरा करके लौट आओगे तो पचास लाख दिया जाएगा तुम्हें। हामिद अली का कहना है कि तुम बहुत काम के हो। जो भी काम तुम्हें दिया जाएगा, उसे हर हाल में पूरा करके लौटेंगे ।" मुनीम खान ने मुस्कुरा कर कहा।

"मैं हर काम पूरा करूंगा मुनीम खान ।"

"कल तुमने दाऊद खेल में, हामिद अली के ठिकाने पर पहुंचना है। हामिद अली तुम्हारे आने का इंतजार करेगा।"

"मैं कल वहां पहुंच जाऊंगा ।" सरफराज सलीम के चेहरे पर जोश-भरी मुस्कान नाच रही थी ।

मुनीम खान चला गया ।

सरफराज हलीम घर पहुंचा और अम्मी से कहा कि ठेकेदार सऊदी अरब से वापस लौट आया है। अब उसे आगे का काम करने के लिए इस्लामाबाद जाना होगा और कल सुबह ही वो घर से चला जाएगा ।

■■■

पाकिस्तान का शहर-दाऊद खेल ।

हामिद अली का ठिकाना । कई एकड़ में फैली वो जगह थी। और यहां-वहां करके कई इमारतें बनी हुई थी। कोई एक मंजिला इमारत थी तो कोई दो मंजिला। वहां के हालात किसी छावनी  जैसे दिखते थे । इमारतों पर हथियारबंद आदमी मौजूद रहते और हर तरफ नजर रखते। जगह-जगह भी हथियारबंद आदमी मौजूद थे। सबके शरीरों पर पठानी कमीज-पायजामा मौजूद थे। बड़ी जगह में इधर से उधर जाने में गाड़ियों का इस्तेमाल होता रहता था। हामिद अली मशहूर संगठन का नेता था। ऐसे में पुलिस की हिम्मत नहीं थी उसके ठिकाने की तरफ देखने की भी। सरकार के लोगों के बीच हामिद अली का बैठना-उठाना था। वो कब अपने ठिकाने पर आता और कब जाता था ये ठिकाने के लोगों को भी पता नहीं चलता था। उसके साथी हामिद अली को छलावा मानते थे जो कभी भी, कहीं भी पहुंच जाता और अचानक गायब हो जाता। हामिद अली की उसके आदमी बहुत इज्जत करते थे। एक इशारे पर सब कुछ करने को तैयार रहते थे । हामिद अली के ठिकाने पर क्या होता है, ये बाहरी लोगों को नहीं पता चल पाता था। हामिद अली का ठिकाना दाऊद खेल में ही नहीं और कई जगहों पर थे। परंतु दाऊद खेल का ठिकाना, कुछ खास ही माना जाता था। मुनीम खान दाउद खेल के सारे काम देखता था और हामिद अली का खासमखास था। हामिद अली की गैर-मौजूदगी भी मुनीम खान के हुक्म को पूरी तरह माना जाता था। मुनीम खान को भी बहुत कम लोग देख पाते थे। बीते दो दिनों में अब्दुल रज्जाक, जलालुद्दीन, आमिर रजा खान, मोहम्मद डार, गुलाम कादिर भट्ट, तारिक मोहम्मद और सरफराज इस ठिकाने पर पहुंचे थे। इन सात लोगों को अलग-अलग कमरों में रखा गया था और एक को दूसरे से मिलने नहीं दिया गया था। वैसे भी ये सातों लोग एक-दूसरे को नहीं जानते-पहचानते थे। ऐसे में सामने भी पड़ जाएं तो कोई फर्क नहीं पड़ता था। मुनीम खान बारी-बारी सब से मिला और एक-एक आदमी उनकी देखरेख पर तैनात कर दिया गया कि इनकी हर तरह की जरूरत को पूरा किया जाए। पहले दिन ये सब इसी तरह रहे । उन्हें बता दिया गया था कि बात कल होगी। अगले दिन नाश्ते के बाद उन्हें एक-एक काला नकाब दिया गया और बताया गया कि मीटिंग के दौरान उन सबको चेहरे पर नकाब पहन कर आना होगा। ऐसा क्यों किया जा रहा है इसकी वजह मीटिंग में ही बताई जाएगी। सुबह साढ़े दस बजे वे सब काले नकाब पहने एक हॉल नुमा कमरे में लाए गए थे। उन्हें उनकी देख-रेख करने वाले ही वहां छोड़ कर चले गए थे । नकाब में आंखों वाली जगह पर पतला कपड़ा लगा था और उन्हें देखने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी। कमरे में कई कुर्सियां पड़ी थी और मुनीम खान वहां पर चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मौजूद था। हॉल के दरवाजे बंद करने के बाद मुनीम खान बोला।

"आप सब लोग कुर्सियों पर बैठ सकते हैं ।"

वे सब बैठ गए । परंतु एक-दूसरे को देख रहे थे।

मुनीम खान उनके सामने कमर पर हाथ बांधे टहलता हुआ बोला।

"आप सात लोग हैं और सातों जांबाज है । मौत से खेलने वाले लोग हैं । मैं आप सब का स्वागत करता हूं ।"

"जनाब हामिद अली साहब दिखाई नहीं दे रहे?" ये आवाज जलालुद्दीन की थी ।

"तय प्रोग्राम के मुताबिक हामिद अली साहब ने ही आपकी क्लास लेनी थी परंतु वो कही पर व्यस्त हो गए हैं और अभी यहां नहीं पहुंच पाने की आप सब से माफी माफी मांगी है। आशा है कि दो-तीन दिन में वो यहां पहुंच जाएंगे परंतु उनके न होने की वजह से आपका काम नहीं रुकेगा । मैं मुनीम खान आप लोगों की सेवा में हाजिर हूं ।"  क्षण भर ठिठककर मुनीम खान पुनः बोला--- "आप लोग पाकिस्तान के साथ अलग-अलग शहरों से चुने ऐसे लोग हैं, जिन्हें डेढ़ साल की फौजी ट्रेनिंग दी गई है और अब ऐसा कोई काम नहीं, जो आप न कर सकते हो । ये ट्रेनिंग हर किसी को नहीं दी जाती । उन खास लोगों को ही ट्रेनिंग देते हैं, जो हमें कुछ कर गुजरने के काबिल लगते हैं। हम साधारण लोगों को जांबाज बनाते हैं। उन्हें देश की सेवा का मौका देते हैं। आपमें से ऐसे कई हैं जो देश के काम आने के लिए तड़प रहे हैं । कुछ कर-गुजरने की तमन्ना रखते हैं।"

चेहरे पर नकाब ओढ़े हर कोई खामोश था।

"आप लोगों को हैरानी हो रही होगी कि चेहरे पर नकाब क्यों डाले गए ?" मुनीम खान बोला।

"हां ।"

"ये उसी मिशन का हिस्सा है, जिसे हम शुरू करने जा रहे हैं।" मुनीम खान ने कहा--- "अभी आप लोगों की पहचान हो जाना ठीक नहीं। जबकि आप सातों ने एक ही मिशन पर काम करना है।"

"मिशन क्या है मुनीम खान ।" ये तारिक मोहम्मद की आवाज थी--- "मैं जानने को उत्सुक हूं।"

"जरूर। मिशन भी बताऊंगा । परंतु पहले मैं ये बताना चाहता हूं कि आप सब को हिन्दुस्तान जाकर काम करना है ।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है।"

"हम हिन्दुस्तान की जड़े हिला देंगे।"

"एक-एक हिन्दुस्तानी को चुन कर मारूंगा। एक-एक को...।"

"हमारे पाकिस्तान को हिन्दुस्तान ने बर्बाद कर रखा है। अब हम हिन्दुस्तान को बर्बाद करेंगे।"

"आप सब के जज्बातों की मैं कद्र करता हूं।"  मुनीम खान मुस्कुरा कर बोला--- "हिन्दुस्तान को सबक सिखाने के लिए ही आप जैसे जांबाजों को तैयार किया है। परंतु इसमें मुख्य बात ये है कि ये मौत का मिशन है। कोई जिंदा लौट सकता है। कोई नहीं भी लौट सकता, ऐसे में मैं कहना चाहूंगा कि जिसे देश की खातिर मरने से डर लगता हो, वो अभी इस मिशन से बाहर निकल सकता है ।"

परंतु कोई न उठा ।

"मैं एक बार फिर कहता हूं जिसे मिशन को पूरा करते समय अपने को जिंदा रखने की भी चाहा है, वो काम छोड़ दे। उठ खड़ा हो । उसे कोई और काम दिया जाएगा। अभी मौका है आपके पास, इस मिशन से बाहर आने का ।"

कोई न उठा।

मुनीम खान की निगाह हर एक पर जा रही थी ।

सन्नाटा-सा उभर आया था वहां।

"जो इस मिशन पर जाने को तैयार है, जो मरने से न डरता हो, वो हाथ उठाए ।" मुनीम खान ने कहा।

तुरंत सातों ने हाथ उठा दिए ।

मुनीम खान मुस्कुरा पड़ा।

"हाथ नीचे कर लीजिए । मैं जानता हूं आप लोग जांबाज हैं। जांबाज वो होता है जिसे मौत की परवाह न हो। सिर्फ अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान रखे कि उसे अपना मिशन पूरा करना है। बेशक जान ही क्यों न चली जाए। हामिद अली साहब को आप लोगों पर पूरा भरोसा है कि आप लोगों को जो काम भी दिया जाएगा। वो पूरा करके ही रहेंगे। तभी तो हामिद अली साहब ने आपका चुनाव किया। हामिद अली साहब को जांबाजों को पहचानना आता है। जैसे जौहरी हीरे की परख रखता है उसी तरह हामिद अली साहब, अपने लोगों को परखना जानते हैं । खैर, आप में से कोई बीस की उम्र का है तो कोई चालीस या पैंतालीस का । हर उम्र के लोगों को चुनकर आप लोगों का ग्रुप बनाया गया है ताकि हिन्दुस्तान में आप लोग जब एक ही जगह पर इकठ्ठे हो तो वहां के लोग आप लोगों पर कोई शक न कर सकें।

"मिशन के बारे में बताओ मुनीम खान ।" ये आवाज सरफराज हलीम की थी--- "हिन्दुस्तान जाकर हमें क्या करना होगा।"

"ये भी बताया जाएगा, परंतु ये बात आपको हामिद अली साहब ही बताएंगे।"

"वो तो दो-तीन दिन बाद आएंगे। तब तक क्या करेंगे ?"

"तैयारी ।" मुनीम खान मुस्कुरा कर बोला--- "मिशन की तैयारी करनी है, हमें हिन्दुओं के देश जाकर कत्ल करना है तो तुम लोगों को हिन्दू लगना चाहिए। ताकि वहां जाकर उन लोगों से मिल जाओ । उन जैसे लगो। बातचीत, व्यवहार उन जैसा ही हो। बात करने के ढंग से ऐसा न लगे कि तुम लोग पाकिस्तानी हो। उनके रीति-रिवाज सीखने हैं। उनकी भाषा को जानना है । ये सब बातें तुम लोगों को सिखाई जाएंगी। ज्यादा वक्त नहीं है हमारे पास। इसलिए जल्दी सीखना और मन से सीखना। तुम लोगों को एकदम फिट करके हिन्दुस्तान भेजा जाएगा।"

"ये बातें हमें सिखाएगा कौन ?" मोहम्मद डार की आवाज थी ये।

"जनाब मुफ्ती इसरार खान साहब आप सबको इस बात की ट्रेनिंग देंगे। इसरार साहब हिन्दुस्तान के हैं। वहीं रहते हैं। इनका परिवार भी वहीं रहता है। परंतु काम हमारे लिए करते हैं। ये हिन्दुस्तान के बारे में उतना ही जानते हैं, जितना कि वहां का हिन्दूस्तानी जानता है । वो कुछ ही देर में यहां आने वाले हैं । मुनीम खान के चेहरे पर गंभीरता दिखने लगी--- "ये याद रखना दोस्तों की हिन्दुस्तान शुरू से ही पाकिस्तान को तंग करता रहा है। कभी किसी तरह तो कभी किसी तरह। हिन्दुस्तान हमारा दुश्मन है। हर हिन्दुस्तानी हमारा दुश्मन है। हिन्दुस्तान में रह रहे हमारे भाई, हिन्दुओ का जुल्म सहते हैं। हमारे कश्मीर पर कब्जा कर रखा है और वहां भी जुल्म ढाए जा रहे हैं हमारे भाइयों पर...।"

"हम हिन्दुस्तान जाकर इन सब बातों का बदला लेंगे।" गुलाम कादिर कह उठा ।

"इसलिए तो तुम सब को हिन्दुस्तान भेजा जा रहा है । ये हामिद अली का व्यक्तिगत काम नहीं है। पाकिस्तान सरकार का काम है। देश का काम है । हामिद अली साहब देश के लिए काम करते हैं । पाकिस्तान की सरकार जब कोई काम करने को कहती है तो हामिद अली साहब ही उस काम को पूरा करते हैं। हर बार की तरह इस बार भी ये ही हो रहा है।"

"ये काम देश का है ?"

"हां। तुम लोग हामिद अली के लिए नहीं, बल्कि अपने देश के लिए काम कर रहे हो। सैनिक हो पाकिस्तान के। इसलिए हर हाल में तुम लोगों को सफल होना है। जो ठीक से काम को अंजाम देकर वापस लौट आएगा उसे पाकिस्तान सरकार हमारे द्वारा पचास लाख रुपया नगद देगी। तुम लोगों को बहुत ही जिम्मेवारी वाला काम सौंपा जा रहा है । काम को हर हाल में पूरा करना है जांबाजो, बेशक जान ही क्यों न चली जाए। उस सूरत में तुम्हारे घर वालों को पचास पचास लाख रुपया दिया जाएगा और तुम लोगों का नाम सुनहरी अक्षरों में लिखा जाएगा। अखबारों में तुम लोगों की तस्वीरें छपेगी कि ये वो जांबाज, जिन्होंने हमारे देश और अपने भाइयों की रक्षा की। ये हैं वो लोग, जिन जैसा हर पाकिस्तान को बनना चाहिए । भविष्य का इतिहास तुम लोगों के नाम पर टिकेगा। ऐसा काम कर दिखाना है हिन्दुस्तान में।"

"हम ऐसा ही करेंगे ।"

"हिन्दुस्तान की ईंट से ईंट बजा देंगे।"

"मैं हिन्दुस्तान में हर हिन्दुस्तानी को कुत्ते की मौत मारूंगा। हिन्दुस्तान को तबाह कर दूंगा मैं ।"

"यही जोश चाहिए तुम लोगों में। तुम लोग जांबाज हो। कोई काम तुम लोगों के लिए मुश्किल नहीं और...।"

तभी दरवाजा खुला और सामान्य कद-काठी के, पतले से दिखने वाले व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया। शरीर पर कुर्ता-पायजामा सिर पर टोपी थी। चेहरे पर दाढ़ी थी। उसे देखते ही मुनीम खान कह उठा।

"आइए मुफ्ती इसरार साहब। आप ही का इंतजार हो रहा था ।"

उस व्यक्ति ने दरवाजा बंद किया और पास आ गया उम्र उसकी पचास साल थी ।

"ये मुफ्ती इसरार साहब है और मुंबई में रहते हैं । वहां पर हमारे कई छोटे-छोटे काम करते रहते हैं। पुराना संबंध है हमारा, इनके साथ और आप लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए इन्हें खासतौर से मुंबई से बुलाया गया है। हिन्दू बनने की ट्रेनिंग हम भी दे सकते थे परंतु हम नहीं चाहते थे कि हमसे कोई भूल हो और मिशन खतरे में पड़ जाए।"

मुफ्ती इसरार ने शांत निगाहों से सबको देखा ।

"इसरार साहब ।" मुनीम खान बोला--- "अब आप संभालिए इन्हें ।"

"मेरे बच्चों। दोस्तों, तुम सब लोगों को तैयार करना एक जिम्मेवारी वाला काम है। जो कि मैं पूरा करूंगा। दर्जी आ रहा है, वो तुम सब का नाप लेगा। ताकि हिन्दूस्तानियों की तरह के तुम्हारे कपड़े सिलाए जा सके। उन कपड़ों को तुम लोग पहनो और आदत डालो। असहज महसूस न करो। तुम लोगों का पूरा हुलिया बदलना होगा। बोलचाल हिन्दू रीति-रिवाज हर चीज सीखनी है, तुम सबको । ऐसी बातें सीखने के बाद जब हिन्दुस्तान पहुंच जाओगे तो कोई आसानी से तुम पर शक नहीं कर सकेगा।"

"मुंबई पुलिस बहुत तेज है। सुना है ।"

"कुछ भी तेज नहीं है।" मुफ्ती इसरार ने मुस्कुरा कर कहा--- "पुलिस खबरों पर चलती है। जैसी खबर मिली वैसी कार्यवाही कर ली । परंतु तुम लोगों के पहुंचने की खबर किसी को नहीं मिलेगी। क्योंकि ये मिशन बहुत गुप्त है। फिर जब हिन्दुस्तान पहुंचोगे तो तुम लोगों के पास हिन्दुस्तानी ड्राइविंग लाइसेंस होगा। हिन्दुस्तान के आयकर विभाग का कार्ड होगा। उन पर तुम लोगों का बदला हुआ हिन्दुस्तानी नाम होगा।"

"इस तरह हम वहां बचे रहेंगे ?"

"पूरी तरह ।" मुफ्ती इसरार ने कहा--- "वहां तुम लोग खुद को अकेला क्यों समझते हो। हमारे लोग होंगे जो तुम लोगों का स्वागत करेंगे। तुम्हें राह दिखाएंगे। तुम लोगों की हर संभव सहायता की जाएगी कि दिया मिशन पूरा कर सको।" मुफ्ती इसरार ने कहा--- "हामिद अली साहब अपने लोगों का पूरा ध्यान रखते हैं । सब कुछ समझा दिया जाएगा ।" फिर वो पलटकर मुनीम खान से बोला--- "इन्हें मिशन के बारे में बता दिया ?"

"इस बारे में तो जनाब हामिद अली साहब ही बता बात करेंगे ।" मुनीम खान ने कहा ।

"ठीक है।" मुफ्ती इसरार उन सब पर नजर मार कर बोला-"दोपहर के खाने के बाद हम मुलाकात करेंगे। तब मेरा काम शुरू होगा। तब तक आप लोग अपने-अपने कमरे में जाइए। दोपहर के खाने के बाद सबको यहीं पर आ जाना है।"

वो सब एक-एक करके बाहर निकल गए ।

उनके जाने के बाद मुफ्ती इसरार ने मुनीम खान से कहा ।

"मुनीम । तुमने तो मुझे भी नहीं बताया कि मिशन क्या है ?"

"सच बात तो ये है कि हामिद अली साहब इस मिशन में बहुत सावधानी बरत रहे हैं। यहां तक कि इन लोगों को भी मिशन तब बताया जाएगा, जब ये लोग सुरक्षित ढंग से मुंबई पहुंच जाएंगे। ऐसे में वहां अगर कोई पकड़ा जाता है तो उसे मशीन की जानकारी नहीं होगी। और वो कुछ भी नहीं बता सकेगा । इस तरह हमारे मिशन के सामने कोई खतरा नहीं आएगा ।" मुनीम खान ने गंभीर स्वर में कहा ।

"ओह ।" मुफ्ती इसरार ने सिर हिलाया--- "समझ गया ।"

"तुम इन्हें हिन्दू बनने की पूरी ट्रेनिंग दो। खासतौर से किसी काम के लिए तुम्हें हिन्दुस्तान से बुलाया गया है ।"

"मैं अपने काम को बहुत बढ़िया ढंग से अंजाम दूंगा ।" मुफ्ती इसरार ने कहा ।

■■■

लंच के बाद वे सब इकट्ठे हुए उसी हॉल में और मुफ्ती उन्हें हिन्दुओं के रीति-रिवाज के बारे में बताने लगा । छोटी-से-छोटी हर जरूरी बात उन्हें बताता, समझाता रहा। वो भी सवाल पर सवाल पूछे जा रहे थे । आज का दिन इसी तरह बीता । मुफ्ती इसरार ने उन्हें हिन्दुस्तान में कैसे बोलते हैं, किन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, वो भी बताया ।

"आप लोगों को अपनी जुबान सही करनी है । आप सब के लहजे में हमारी भाषा की झलक है। इसे हटाना होगा। इसके लिए हिन्दी बोलने के अभ्यास की जरूरत है। कल से हम हिन्दी में बातचीत अभ्यास करेंगे।"

सातों के चेहरे नकाबों के पीछे छिपे हुए थे ।

"हमें मुंबई कैसे पहुंचाया जाएगा ?" अब्दुल रज्जाक ने पूछा ।

"इस बात का जवाब तो मुनीम खान ही देगा ।" मुफ्ती इसरार ने कहा--- "मेरा काम तो आप लोगों को हिन्दुओं के तौर पर तैयार करना है।"

मुफ्ती इसरार ने उन्हें जरूरत की हर बात बताई।

शाम आठ बजे उन्हें छुट्टी दे दी गई । वे सब अपने-अपने कमरों में चले गए । मुफ्ती इसरार घंटा-भर बाकी लोगों से मिलता रहा। इधर-उधर की बातें करता रहा। उसके बाद पहली मंजिल पर स्थित अपने कमरे में गया और हाथ-मुंह धोकर कुर्सी पर बैठ गया। चेहरे पर सामान्य से भाव थे । करीब दस बजे उसका खाना आ गया।

खाना खाने के बाद मुफ्ती इसरार के बाहर खुले में टहलने निकल गया। वहां हथियारबंद लोग सतर्कता से इधर-उधर मौजूद दिखाई दे रहे थे। मध्यम-सी लाइट भी वहां जल रही थी। टहलते-टहलते मुफ्ती इसरार कई कदम आगे निकल गया । वहां भी गनमैन दिखे, जो कि यहां-वहां बिखरे दिखे। कोई-कोई मुफ्ती इसरार को सलाम भी कर देता था। मुफ्ती इसरार ने कुत्ते की जेब से मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।

फौरन ही दूसरी तरफ बेल गई फिर उसके कानों में आवाज पड़ी ।

"हैलो ।"

"मार्शल ।" मुफ्ती इसरार ने धीमे स्वर में कहा---"मैं मुफ्ती इसरार...।"

"कहो मुफ्ती ।" दूसरी तरफ से मार्शल की आवाज आई । (मार्शल के बारे में विस्तार से जानने के लिए राजा पॉकेट बुक्स से अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'डैथ वारंट एवं 'शिकारी' अवश्य पढ़ें । )

"मैं पाकिस्तान में हूं ।" फुसफुसाते स्वर में कह रहा था मुफ्ती इसरार--- "हामिद अली के ठिकाने पर । यहां पर मुझे सात लोगों को हिन्दू के तौर पर तैयार करने को कहा गया है। इन सातों को फौजी ट्रेनिंग दी गई है और हमले के लिए जल्दी ही मुंबई भेजा जाने वाला है।"

"कब भेजा जाएगा ?"

"अभी कह नहीं सकता। किसी मिशन के तहत इन्हें भेजा जा रहा है । मेरे ख्याल में इन्हें रवाना करने में पन्द्रह-बीस दिन का वक्त लगेगा ।"

"मुंबई कहां भेजा जा रहा है ?"

"नहीं मालूम ।"

"मुंबई के इनके कांटेक्ट बताओ ।"

"नहीं जानता । पता लगने पर खबर करूंगा ।"

"इनके नाम क्या है ?"

"तारिक मोहम्मद, गुलाम कादिर भट्ट, मोहम्मद डार, आमिर रजा खान, जलालुद्दीन, सरफराज हलीम और अब्दुल रज्जाक । परंतु मुंबई में ये हिन्दुओं वाले नाम से पहुंचेंगे और इनके पास मुंबई का ड्राइविंग लाइसेंस और पैन कार्ड होगा।"

"ड्राइविंग लाइसेंस पैन कार्ड इन्हें कौन तैयार करके देगा ?" उधर से मार्शल ने पूछा ।"

"मैं तैयार करूंगा । तस्वीरों में ये ठीक हिन्दुओं की तरह लगेंगे और वैसे ही बात करेंगे ।"

"मुझे इनकी तस्वीर चाहिए मुफ्ती ।"

"अभी की तस्वीरों से कोई फायदा नहीं होगा । क्योंकि जब हिन्दुस्तान पहुंचेंगे तो इनके चेहरे बदले होंगे। इंतजार करो । इनके दूसरे हुलिए की तस्वीरें भेजूंगा । मैंने ही इनका हुलिया बदलना है ।" मुफ्ती इसरार ने धीमे स्वर में फोन पर कहा ।

"मुझे इनके बारे में छोटी-बड़ी, हर जानकारी चाहिए ।"

"जल्दी दूंगा ।"

"इनका प्लान क्या है । कब आ रहे हैं ये । यहां किनसे मिलेंगे । सब कुछ मुझे जानना है ।"

"जो जानकारी मुझे मिल पाएगी, वो तुम्हें  देता रहूंगा । अब बंद करता हूं ।" कहने के साथ ही मुफ्ती इसरार ने मोबाइल बंद करके जेब में रखा और लापरवाही भरे ढंग से वहां टहलने लगा।

■■■

ग्यारह दिन बाद मुंबई में मार्शल की सरकारी गुप्तचर जासूसी एजेंसी ।

मार्शल इस वक्त अपने ऑफिसनुमा कमरे में मौजूद था। चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी। कुर्सी पर बैठे, उसकी निगाह कमरे यूं ही घूम रही थी। मुफ्ती इसरार रोज रात को फोन आ रहा था और हर रोज ही वो काम की कोई न कोई बात बता रहा था। काम की दो बातें बाकी बची थी जाने को कि वो सात पाकिस्तानी किस रास्ते से मुंबई पहुंचेंगे और हिन्दूओं के रूप के लिए उनके चेहरों की तस्वीरें आनी बाकी थी। इसके अलावा लगभग हर बात मार्शल जान चुका था परंतु उनके प्लान के बारे में मुफ्ती इसरार अभी तक नहीं बता सका था। उसने ये जरूर बता दिया था कि अगले छः दिनों में उन्हें मुंबई के लिए रवाना कर दिया जाएगा।

पाकिस्तान की जमीन से एक बार फिर साजिश रची जा रही थी।

परंतु इस बार बेहतर बात ये थी कि खबर पहले ही मिल गई थी। परंतु वो आधी-अधूरी खबर थी। मुफ्ती इसरार का कहना था कि उन सातों को उसने इस तरह तैयार कर दिया है कि वो पूरी तरह हिन्दू लगे और उनके बातचीत का लहजा भी हिन्दुओं जैसा ही हो चुका है। मुंबई के बारे में उन्हें भरपूर जानकारी दे दी गई है। यानी कि मुफ्ती इसरार उधर भी अपना काम कर रहा था और इधर भी। तभी इंटरकॉम का वजर बजने लगा । मार्शल की सोचें टूटी। उठकर उसने इंटरकॉम का रिसीवर उठाया।

"हैलो ।"

"मार्शल कोई नई खबर मुफ्ती इसरार की तरफ से ।" दूसरी तरफ से सतनाम की आवाज आई।

"और तो खबर नहीं । फोन नहीं आया। मार्शल ने कहा ।

"वो सातों लोग एक बार फिर मुंबई पर हमला करने की तैयारी में...।"

"उन सातों को भूल जाओ। ये हमला हामिद अली करवा रहा है। वो सातों पाकिस्तान के ऐसे नागरिक हैं, जो कि हामिद अली के झांसे में आ गए।"

"ये हमला हमें रोकना होगा।"

"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। मुफ्ती की तरफ से मिलने वाली खबरों पर ही ये मामला निर्भर है। मुफ्ती सालों से हमारे लिए काम कर रहा है, परंतु उसके बारे में हम ही जानते हैं। वो गुप्त एजेंट है हमारा और चार सालों से हामिद अली के संपर्क में आया और हमारी हां के बाद ही उसने हामिद अली के लिए काम करना शुरू किया कि उसके भीतर की खबरें हमें मिलेंगी। अब तक तो मुफ्ती हमें हामिद अली की छोटी-छोटी बातें बताता रहा था परंतु काम की बात तो अब बतानी शुरू की है। अभी खबर अधूरी है ।" मार्शल ने कहा।

"ये खतरनाक मामला है कि हामिद अली सात लड़कों को मुंबई भेज रहा है और हमारे पास उनके प्लान की पूरी जानकारी भी नहीं है।"

मार्शल ने रिसीवर रख दिया ।

तभी टेबल पर रखा मार्शल का मोबाइल बजने लगा ।

"हैलो ।" मार्शल ने फौरन मोबाइल उठाकर बात की ।

"मार्शल मैं...।" मुफ्ती इसरार की धीमी आवाज कानों में पड़ी ।

"नई खबर दो ।"

"दो खबरें हैं । एक तो ये की उन सातों लड़कों को चीन के रास्ते और नेपाल से उन्हें हिन्दुस्तान में प्रवेश कराया जाएगा। वो सातों एक-दूसरे का चेहरा भी नहीं जानते। हामिद अली सावधानी बरत रहा है कि अगर मुंबई में कोई पकड़ा गया तो वो दूसरे के बारे में न बता सके। ठीक तरह मुंबई पहुंचने के बाद ही वे एक-दूसरे से मिल सकेंगे।"

"मुंबई में वो कहां पहुंचेंगे ?"

"नहीं पता अभी ।"

"कोई तो होगा जो हामिद अली की तरफ से उन्हें रिसीव करेगा।" मार्शल ने कहा ।

"हां। कोई तो है । परंतु उसके बारे में नहीं जान पाया। शायद आगे पता चल सके ।" उधर से इसरार की आवाज आई ।

"तुम्हें ये बात हर हाल में जाननी है मुफ्ती...।"

"मेरी कोशिश जारी है। अब दूसरी बात सुनो मार्शल। तुम तीन बार हामिद अली के लोगों को मुंबई में पकड़ चुके हो । दो बार तो मैंने ही खबर दी थी । ऐसे में हामिद अली ने उन सातों लड़कों को तुम्हारे एजेंटों की तस्वीरें दिखाई हैं, तुम्हारी तस्वीर भी दिखाई है कि इन लोगों ने उन्हें सतर्क रहना है।"

"कितने एजेंटों की तस्वीरें दिखाई गई है ?" मार्शल की आंखें सिकुड़ी।

"बीस से ऊपर थी वो तस्वीरें ।"

"ओह ।"

"बाकी खबर मिलने पर फोन करूंगा ।"

"तुमने अभी तक उन सातों की तस्वीरें नहीं भेजी ।" मार्शल ने कहा।

"मैं उनकी तस्वीरें मोबाइल फोन के कैमरे में ले चुका हूं परंतु अभी तक हामिद अली के ठिकाने पर से बाहर निकलने का मौका नहीं मिल रहा कि किसी साइबर कैफे जाकर तुम्हारी ई-मेल आईडी पर तस्वीरों को भेज सकूं। अभी लड़कों को मैं सिखा रहा हूं ऐसे में मेरा ठिकाने से बाहर जाना अटपटा लगेगा। मौका मिलते ही मैं सातों की तस्वीर भेजूंगा ।" उधर से मुफ्ती इसरार ने फोन बंद कर दिया।

मार्शल ने मोबाइल बंद किया फिर इंटरकॉम पर सतनाम से बात की।

"मुफ्ती ने बताया कि सातों लड़के पहले चीन भेजे जाएंगे फिर नेपाल के रास्ते हमारे देश में प्रवेश करेंगे।"

"तो इस बार समुद्र के रास्ते मुंबई नहीं पहुंच रहे ?"

"नहीं । पानी के रास्ते चौकसी बढ़ गई है । इस बार वे दुसरे रास्ते का इस्तेमाल कर रहे हैं ।"

"उनके मिशन का पता चला ?"

"अभी नहीं ।" मार्शल बोला ।

"मुंबई में उनका ठिकाना या उन्हें कौन रिसीव करने वाला...।"

"इस बारे में मुफ्ती ने जानकारी नहीं दी । लेकिन मुफ्ती का कहना है कि हामिद अली ने उन सब लड़कों को मेरी और मेरे एजेंटों की तस्वीर दिखा कर हम लोगों से सावधान रहने को कहा है। उन्हें बीस से ज्यादा तस्वीरें दिखाई गई ।"

"ये तो गलत हो गया । हमारे एजेंट इस मामले पर काम कैसे कर पाएंगे। वो पहचाने जाएंगे मार्शल ।" सतनाम की आवाज आई ।

"ये चिंता मुझे भी है। ऐसा करके हामिद अली ने हमारे हाथ बांध दिए हैं । हमें कोई और रास्ता इस्तेमाल करना होगा ।"

"कैसा रास्ता ?"

"इस काम में हम पहले की तरह देवराज चौहान और जगमोहन का इस्तेमाल करेंगे।"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान ?"

"हां । इसके अलावा हमारे पास कोई और रास्ता नहीं । देवराज चौहान हमारा देखा-भाला है । किसी को तलाश करने में वक्त लग जाएगा ।"

"वो तैयार होगा ये काम करने के लिए ?"

"उसे तैयार करना पड़ेगा । वरना मुंबई एक बार फिर दहल सकती है ।" मार्शल ने गंभीर स्वर में कहा ।

"लेकिन हम देवराज चौहान को क्या बताएंगे। हमारे पास तो पूरी जानकारी भी नहीं ।" सतनाम की आवाज कानों में पड़ी ।

"जितनी जानकारी है, उसी से काम चला चलाया जाएगा । मुफ्ती के कैमरे में उन सातों की तस्वीर है । वो कभी भी ई-मेल द्वारा उन्हें भेज सकता है। वो लोग पाकिस्तान से चीन, फिर नेपाल के रास्ते हिन्दुस्तान में प्रवेश करेंगे। उन्हें मुंबई पहुंचना है। वो सब अकेले-अकेले होंगे । मेरे ख्याल में हमारे पास काम शुरू करने के लिए काफी जानकारी है। हो सकता है मौके पर मुफ्ती हमें और जानकारी दे। तुम पता करो कि देवराज चौहान कहां है ।"

"ठीक है ।" कहने के साथ ही उनकी बातचीत खत्म हो गई।

मार्शल ने रिसीवर रख दिया सोचें चेहरे पर नाच रही थी।

■■■

अगले दिन सुबह के दस बज रहे थे । मार्शल अपने ऑफिस में किसी तस्वीरों वाली फाइल को देखने में व्यस्त था कि इंटरकॉम का वजर बज उठा। मार्शल ने बात की। दूसरी तरफ सतनाम था ।

"मार्शल । देवराज चौहान का तो अभी पता नहीं चला, परंतु जगमोहन नजर में आ गया है उस से काम चलेगा ?"

"चलेगा । वो दोनों एक ही है ।" जगमोहन से बात की जा सकती है ।" मार्शल बोला--- "वो कहां है ?"

"मलाड के एक रैस्टोरेंट में किसी आदमी से अभी-अभी मिला है। उठा कर मंगवा ले उसे ?"

"ये गलत होगा। उस पर अब कौन नजर रख रहा है ?"

'सतीश लाम्बा ।"

"तुम लाम्बा से कहो कि वो जगमोहन के पीछे रहे हो फोन पर मुझे खबर देता रहे । मैं अभी वहां के लिए चल रहा हूं ।" कहने के साथ ही मार्शल ने रिसीवर रखा और फाइल बंद करते हुए उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।

■■■

मलाड के उसी रैस्टोरेंट में जगमोहन मौजूद था, साथ में महेश जाधव नाम का, पैंतालीस वर्ष का आदमी बैठा था। सोहनलाल की मार्फत महेश जाधव जगमोहन से मिल पाया था । जगमोहन ने उसे आज पहली बार ही देखा था । परंतु इस वक्त वे धीमे शब्दों में बहस कर रहे थे ।

"तुम एक बार देवराज चौहान से मेरी बात करा दो ।" महेश जाधव ने नाराजगी-भरे स्वर में कहा ।

"देवराज चौहान इसमें क्या करेगा ।" जगमोहन बोला--- "जो मैंने कहा है, देवराज चौहान भी वो ही कहेगा। इस तरह के सौदे मैं ही तय करता हूं । देवराज चौहान को सिर खपाने की आदत नहीं है। जो मैं कर दूं, देवराज चौहान वो ही मानता है ।"

"लेकिन तुम्हारी बात जंच नही रही मुझे ।"

"तुम पर लालच सवार है कि सब कुछ मैं ही खा लूं । ऐसे कैसे काम चलेगा ।"

"लालच तो तुम कर रहे हो ।"

"मैं ?"

"और नहीं तो क्या ? योजना मेरी । टारगेट जगह मेरी । सब कुछ मैंने सोचा और तुम मुझे तीसरा हिस्सा दे रहे...।"

"इसमें हम तीन लोग काम करेंगे तीन ही हिस्से होंगे न ?"

"तीन कहां तुम और देवराज चौहान एक ही हो । एक हिस्सा तुम लोगों का, एक मेरा...।"

"यहीं पर तो तू लालच कर रहा है। तेरे को किसने कह दिया कि मैं और देवराज चौहान हिस्सा बांटने में एक ही है। हम एक ही थाली में खाते हैं एक साथ काम करते हैं । एक साथ रहते हैं पर हिस्सा हम दोनों का अलग-अलग होता है। माल को हम ईमानदारी से बांटते हैं। और तेरे को सोहनलाल ने मेरे पास भेजा है । सोहनलाल का भी कुछ हिस्सा बनता है कि नहीं। उसे भी तो कुछ देना ही पड़ेगा। वो मैं ही दूंगा । ये तो अच्छी बात है कि सोहनलाल साथ में नही बैठा, नहीं तो चार हिस्से करने पड़ते ।"

महेश जाधव, जगमोहन को घूरने लगा ।

"ऐसे मत घूर। मुझे आदत नहीं है ऐसी नजरों की । एक बार फिर बता सारा मामला ?"

"बताया तो है ।"

"फिर बता दे । तेरा क्या घिसता है । मैं इस वक्त इसी काम के बारे में सोच रहा हूं ।" जगमोहन ने कहा ।

"एक बैंक वैन में करोड़ नगद रखा होगा । वो कब कहां से चलेगी । मैं बता दूंगा । परसों होगा ये सब कुछ । वो आर्म्स प्रूफ वैन है उसे रास्ते में रोका नहीं जा सकता। ड्राइवर की मर्जी के बिना खोला नहीं जा सकता। परंतु मैं तुझे बता दूंगा कि वो कहां पर रुकेगी और उसके दरवाजे भी खुल जायेंगे। बस, तुमने देवराज चौहान के साथ वहां पहुंचना है नोट लादकर निकल जाना है ।"

"तेरा क्या मतलब ये आसान काम है ।"

"आसान नहीं है तो और क्या है ।"

"बहुत खतरे हैं इस काम में । खतरे तेरे को नजर नहीं आ रहे । जब हम नोटों को दूसरी गाड़ी में लाद रहे हों तो वहां पुलिस की गाड़ी आ पहुंचे। या ड्राइवर या गार्ड गोली चला दे । या फिर...।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा ।"

"क्यों नहीं होगा ?"

"वैन का ड्राइवर भी इसमें शामिल है। वो ही वैन रोकेगा और बटन दबाकर दरवाजे खोलेगा ।"

"वो ड्राइवर तेरा क्या लगता है ?"

"क्या कुछ भी लगे। तुझे क्या ?"

"ये सारी योजना उस ड्राइवर की ही है न ?"

"ये ही समझ ले ।" महेश जाधव ने बेचैनी से पहलू बदला।

"एक सलाह मुफ्त में दूं ।"

"क्या ?"

"मुफ्त में सलाह दे रहा हूं । उस ड्राइवर से जाकर कह दे कि ऐसा किया तो पकड़ा जाएगा। एक रुपये का स्वाद भी चख नहीं सकेगा। पुलिस ने सीधा उसे पकड़ना है। वो मुंह खोलेगा और पुलिस तेरे को भी पकड़ लेगी।"

"मेरे को ।" वो सकपकाया ।

"पक्का तेरे को । ये घटिया योजना है । घटिया ड्रामा है। मैं ऐसा काम कभी नहीं करता कि जिसमें पहले से ही पता हो कि इसका अंजाम बुरा होने वाला है । जब पुलिस पकड़ेगी तो मेरा और देवराज चौहान का नाम भी आ जाएगा । हमारी भी इज्जत है । ऐसे घटिया प्लान पर हम काम नहीं करेंगे ।"

"अभी तो तुम तैयार थे ।"

"तैयार नहीं था, सोच रहा था तुमसे बातें करते हुए ।" जगमोहन ने सिर हिलाया--- "मैं ये काम नहीं करूंगा ।"

"ये तो बहुत आसान काम...।"

"मैं ऐसे काम नहीं करता कि बाद में पुलिस मेरे साथियों को पकड़ ले। इसमें हमारी बदनामी है। हम काम ऐसे करते हैं कि किसी को हवा भी नहीं लगती। मैं सोहनलाल के कान खींचूंगा कि घटिया प्लान के साथ उसने किसी को मेरे पास क्यों भेजा।"

"अजीब आदमी हो तुम ।"

"मेरी सलाह पर चल और समझ जा । ड्राइवर को भी समझा दे कि ये काम न करे। बेहतर है कि तालाब में छलांग लगा दे ।"

"ठीक है। तुम मुझे तीसरा हिस्सा दे देना। मुझे मंजूर...।"

"पर मुझे नहीं मंजूर। जिस काम का अंजाम पहले ही पता हो । उसे करना मूर्खता है ।" जगमोहन उठते हुए बोला--- "यहां का बिल दे...।"

"सुनो तो। तुम भागे जा रहे...।"

"टाइम नहीं है फालतू बातों का । तेरे को मेरा जवाब मिल गया। अगर मरना ही है तो किसी और को पकड़ ले ।" जगमोहन टेबल से बाहर निकला और पलट कर बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ गया कि तभी सामने कोई आ गया ।

जगमोहन ठिठका। उसे देखा। अगले पल उसकी आंखें सिकुड़ गई ।

सामने मार्शल खड़ा था। होंठों पर मुस्कान छाई हुई थी ।

"तुम ?" जगमोहन के होंठों से निकला ।

"तुमसे दोबारा मिलकर खुशी हुई ।" मार्शल ने कहा--- "हम बैठ कर बात करते हैं ।"

"तुम्हें देखकर मुझे जरा भी खुशी नहीं हुई।" जगमोहन ने कहा और उसकी बगल से निकल कर आगे बढ़ता चला गया।

मार्शल पलट कर तेज कदम उठाता, उसके साथ चलता कह उठा ।

"हमें कोई नाराजगी तो नहीं थी ।"

"मुझे तुम्हारी सूरत पसंद नहीं है ।"

"ऐसा क्या कर दिया मैंने ।"

अब तक जगमोहन और मार्शल रेस्टोरेंट से बाहर आ गए थे। जगमोहन खड़ा हुआ था। वो पार्किंग में खड़ी कार की तरह बढ़ा।

"तुम तो औरतों की तरह नाराज हो रहे हो ।" मार्शल बोला--- "मैं तो दोस्त के नाते तुमसे बात कर रहा हूं ।"

"तुम किसी के दोस्त नहीं हो सकते, मेरे तो बिल्कुल नहीं ।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा ।

"ऐसा क्या कर दिया मैंने ?"

"तुम्हारा काम करके पिछली बार मुझे बहुत बुरा अनुभव हुआ था ।"

"तुम तो बहादुर हो। तुम ने प्रधानमंत्री की हत्या होने से बचा ली थी। तुमने कमाल कर दिया था ।"

कार के पास पहुंचकर जगमोहन ने ठिठककर मार्शल को देखा।

मार्शल के चेहरे पर मुस्कान थी ।

"ये कहकर तुम मुझे हवा दे रहे...।"

"मत भूलो कि मेरा काम करते हुए ही तुम फ्रोजा से मिले थे । ब्रिटिश जासूस फ्रोजा। भूल गए क्या ?"

"उसे मैं कभी नहीं भूल सकता । "जगमोहन ने गहरी सांस ली--- "हम शादी करने वाले थे अगर जिंदा रहती तो ।"

"उसका मुझे अफसोस है ।" मार्शल बोला ।

"अब तुम्हें क्या है ।"

"क्या मतलब ?"

"अब तो हम इत्तफाक से मिले हैं । तुम मेरे पीछे क्यों पड़ गए हो ।" जगमोहन ने घूरा।

"हम जैसे लोगों का सामने पड़ना। कभी इत्तेफाक नहीं होता जगमोहन ।" मार्शल ने शांत स्वर में कहा ।

जगमोहन ने मार्शल की आंखों में देखा ।

"क्या फिर कोई काम है ?" जगमोहन के होंठ भिंच गए ।

"हां ।"

"मुझे तुम्हारा काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।" जगमोहन का स्वर सख्त हो गया ।

"देवराज चौहान कहां मिलेगा ?"

"उसे भी तुम्हारे काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।" जगमोहन ने उसी स्वर में कहा ।

"एक बार देवराज चौहान से पूछ तो लो ।"

"जरूरत नहीं। तुमने हमें बहुत मुसीबत में फंसा दिया था।  देवराज चौहान माइक के हाथों मरते-मरते बचा। कितने दिन वो उसकी कैद में रहा और मैंने भी कम परेशानियां नहीं देखी थी। तुमने मुझे और देवराज चौहान को एक ही मामले पर काम करते हुए अलग-अलग रखा और हमें बताया भी नहीं। तुम कमीने इंसान हो। हमें कैद करके जबरदस्ती पकड़कर, ब्लैकमेल करके हमसे काम लिया। बदले में फूटी कौड़ी भी नहीं दी। तुम तो सच में गोली मारने के लायक हो ( इन सब बातों को जानने के लिए राजा पॉकेट बुक्स से पूर्व प्रकाशित अनिल मोहन के दो उपन्यास 'डेथ वारंट' और 'शिकारी' अवश्य पढ़ें । मार्शल, देवराज चौहान और जगमोहन के सब मामले इन दो उपन्यासों में विस्तार पूर्वक दर्ज है । )

"फिर तो तुम्हें चाहिए कि मुझे फौरन गोली मार दो ।" मार्शल हंसा।

"तुम जैसे घटिया इंसान को गोली मारकर मैं अपनी रिवॉल्वर का नाम बदनाम नहीं करना चाहता।"

मार्शल ने मुस्कुराकर जगमोहन के कंधे पर हाथ रखा।

"तुम्हें किस बात की नाराजगी है मुझसे? कि मैंने तुम दोनों का अपरहण करके, दोनों को धोखे में रखते हुए अपना काम लिया या काम का मैंने कोई पैसा नहीं दिया। जो भी बात हो। अब तक हल्की पड़ जानी चाहिए। वक्त बीत चुका है इस मामले को। अब मैं तुमसे जो भी काम लूंगा उसकी पूरी कीमत दूंगा। पहले की तरह मुफ्त में काम नहीं...।"

"पैसा एडवांस होगा ?" जगमोहन ने पूछा ।

"पूरी तय रकम एडवांस में दूंगा ।" मार्शल ने फौरन कहा ।

"पहले क्यों नहीं दी थी ?"

"तब हालात दूसरे थे। मैं तुम दोनों को ठीक से जानता भी नहीं था कि तुम लोग काम के हो भी या नहीं...।"

"और अब हम इतने काम के लगे कि तुम दोबारा आ गए ।" जगमोहन ने व्यंग से बोला ।

"इसमें गलत क्या है ।"

"लेकिन मैं तुम्हारे  लिए काम नहीं करना चाहता ।" जगमोहन ने कहा और ड्राइविंग डोर खोलकर भीतर जा बैठा ।

मार्शल ने तुरंत दूसरी तरफ का दरवाजा खोला और जगमोहन के बगल में जा बैठा।

जगमोहन ने मार्शल को खा जाने वाली निगाहों से देखा ।

प्रभाकर ने मुझे बताया कि तुम बहुत ही काबिल इंसान...।"

"प्रभाकर तुम्हारा एजेंट है । वो हर गलत खबर तुम्हें देगा ।" जगमोहन ने कहा ।

"तो ये गलत खबर है कि तुम काबिल हो ।"

"गलत खबर है ।"

"ठीक है ।" मार्शल मुस्कुराया--- "अब तो मैं तुम्हें पूरी रकम एडवांस में दूंगा फिर क्यों मना कर रहे हो ?"

"कितनी रकम ?"

"जो तय होगी। काम सुनकर जो भी मुनासिब रकम कहोगे, मिल जाएगी ।"

"लेकिन मुझे तुम्हारे लिए काम करना ही नहीं है । मेरी कार से निकल जाओ ।" जगमोहन बोला ।

"मार्शल शांत बैठा रहा ।

"उतरो कार से ।"

"पुलिस को तुम्हारी तलाश है। तुम्हारी और देवराज चौहान की तलाश ।"

"तो ?"

"मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर सकता हूं ।"

"ये है तुम्हारी औकात। काम नहीं बना तो उंगली टेढ़ी करने लगे।"

"मार्शल ने जगमोहन को कठोर निगाहों से देखने के बाद कहा ।

"तुम जिस तरह मुझसे बात कर रहे हो, इस तरह कोई हिम्मत नहीं करता, मुझसे बात करने की ।"

"मैं तुम्हें पहचान चुका हूं कि असल में तुम क्या हो ।"

"मैंने जो भी किया या तुम लोगों से करवाया था, वो सब देश की खातिर था। उसमें मेरा व्यक्तिगत फायदा...।"

"बेहतर होगा कि तुम जो करना चाहते हो, किसी और से करा लो ।"

"लेकिन मुझे तो तुम्हारी और देवराज चौहान की जरूरत है । नए लोगों को ढूंढने के लिए मेरे पास वक्त नहीं है ।"

"और अगर मैंने तुम्हारी बात न मानी तो तुम मुझे पुलिस के हाथों में दे दोगे ।"

"कुछ भी हो सकता है ।" मार्शल ने शांत स्वर में कहा ।

जगमोहन ने कार स्टार्ट की और बैठ कर के मुख्य सड़क पर ले आया ।

"मैं रास्ते में पड़ने वाले किसी भी पुलिस स्टेशन के सामने का रोक दूंगा । तुम पुलिस को बुला लेना । मुझे गिरफ्तार करा देना।"

मार्शल मुस्कुराया ।

"तुम तो सच में नाराज हो मुझसे ।"

"तुम हो ही ऐसे ।"

"तुम्हें गलतफहमी हो गई है । मैं ऐसा नहीं हूं । इस बार मैं जो काम लूंगा, उसका तुम्हें भरपूर पैसा दूंगा। उसमें थोड़ी-बहुत कीमत पिछले काम की भी लगा लेना। मैं मान जाऊंगा ।"

जगमोहन ने मार्शल के चेहरे पर निगाह मारी ।

"क्या देख रहे हो ?"

"लगता है फंसे पड़े हो अब किसी काम को लेकर। तभी पिछले काम की कीमत...।"

"मार्शल कभी नहीं फंसता। कभी भी इस गलतफहमी में मत रहना कि मार्शल मजबूर हो गया। मेरे लम्बे हाथों को तुम बेहतर ढंग से जानते हो। मैं इस वक्त तुम से दोस्तों की तरह बात कर रहा हूं । क्योंकि तुम मेरे काम के हो। देवराज चौहान मेरे काम का है और मेरे पास एक ऐसा काम आ गया है कि तुम दोनों ही उसमें फिट बैठते हो। मैंने ये काम हर हाल में तुम लोगों से लेना...।"

"तुम्हारे अपने एजेंट भी तो हैं। वो....।"

"परेशानी ये है कि मेरे एजेंट दुश्मनों की नजर में हैं। वो मैदान में आते ही पहचान लिए जाएंगे ।"

"इसलिए तुम हमारा इस्तेमाल करना चाहते हो ?"

मार्शल ने सहमति से सिर हिलाया ।

"काम में खतरा कितना है ?"

"पूरा। मार्शल का कोई भी काम मौत के खतरे के बराबर होता है ।" मार्शल ने गंभीर स्वर में कहा ।

जगमोहन गहरी सांस लेकर बोला ।

"सोचने वाली बात है। बैठ कर बात करते हैं। ठंडे के साथ कुछ स्नैक्स भी लेंगे ।"

"जहां चाहो, वही चलो ।"

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा। कार दौड़ाता रहा ।

दस मिनट के बाद जगमोहन एक रेस्टोरेंट के बाहर कार रोकी और बोला ।

"उतरो । मैं कार पार्क कर लूं ।"

मार्शल कार से बाहर निकला ।

मौका पाते ही जगमोहन ने तेजी से दौड़ा दी।

ये देखकर मार्शल के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसे तुरंत मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाया ।

"लाम्बा ।" बात होते ही मार्शल ने कहा--- "जगमोहन के पीछे रहो ।"

■■■

जगमोहन सात बजे ही बंगले पर आ पहुंचा था। कोई काम नहीं था। गर्मी से छुटकारा पाने के लिए नहा-धोकर नाइट सूट पहना और कॉफी पी। इतने में ही शाम हो गई तो आज घर पर ही खाना बनाकर वक्त बिताने की सोच कर किचन में चला गया और खाना बनाने में लग गया ।

रात आठ बजे तक खाना बनाकर किचन से फारिग हो चुका था। उसके बाद उसने देवराज चौहान को फोन किया कि वो कहां है तो देवराज चौहान ने कहा कि घंटे तक वो आ जाएगा । देवराज चौहान के आने के इंतजार में वो मार्शल के बारे में सोचने लगा। वो बखूबी जानता था कि मार्शल सरकारी मशीनरी का कितना पॉवरफुल व्यक्ति है। उसकी सरकारी जासूसी संस्था कितनी खतरनाक है और दुनिया के हर कोने में उसकी एजेंट फैले हैं। चंद महीने पहले मार्शल की जासूसी दुनिया में घुसकर उसका काम किया था उसे और देवराज चौहान को हर कदम पर मौत का सामना करना पड़ा था। यूं  जगमोहन को मार्शल से सिर्फ एक ही नाराजगी थी कि उसने उसका और देवराज चौहान का अपहरण कराकर अलग-अलग जगह उन्हें  कैद रखा और चालबाजियां इस्तेमाल करके उन्हें अपने काम के लिए तैयार किया था। (ये बात विस्तार से जानने के लिए पढ़ें 'डेथ वारंट') ।

इतना सब कुछ होने के बाद भी, काम करने कि उन्हें कोई कीमत नहीं दी थी यही वजह थी कि जगमोहन मार्शल से उखड़ा हुआ था। उसे देखते ही वो सारी बातें याद आ गई थी।

देवराज चौहान जब बंगले पर पहुंचा तो रात के दस बज रहे थे।

"तुम कब गए थे ?" जगमोहन ने पूछा ।

"दोपहर एक बजे। छोटा-सा काम याद आ गया था ।" देवराज चौहान ने बैठते हुए कहा ।

"आज मुझे मार्शल मिला ।" जगमोहन ने बताया ।

देवराज चौहान की निगाह जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी ।

"क्या हुआ ?" जगमोहन के होंठों से निकला ।

"तुम उसी मार्शल की बात कर रहे हो, जब प्रधानमंत्री की हत्या...।"

"हां। वो ही एक मार्शल है, जिसे हम जानते हैं ।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा--- "वो मुझे किसी काम के लिए कह रहा...।"

जगमोहन ने सारी बात देवराज चौहान को बताई ।

जगमोहन ने सारी बात पूरी होते ही देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान नाच उठी ।

"तो तुम समझते हो कि इस प्रकार तुमने मार्शल से पीछा छुड़ा लिया ।" देवराज चौहान बोला ।

"क्यों नहीं ।"

"शायद तुम मार्शल को भूल रहे हो कि वो क्या चीज...।"

"याद है मुझे कि वो क्या है ।"

"मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम उसे छोड़ कर भाग तो आए पर तब से उसकी नजरों में हो और अब मैं भी मार्शल की निगाहों में आ चुका हूं। उसके आदमी बाहर मौजूद रहकर, यहां निगाह रख रहे होंगे ।"

जगमोहन कसमसा उठा ।

देवराज चौहान उसे ठीक कहता लगा । मार्शल से पीछा छुड़ाना सच में आसान काम नहीं था । ठगा-सा बैठा जगमोहन देवराज चौहान को देखता रह गया । उसके चेहरे के भाव देखकर देवराज चौहान हौले-से हंसा पड़ा ।

"अब ?" जगमोहन के होंठों से निकला ।

"मेरे ख्याल में मार्शल अब मेरे से बात करेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"वो कह रहा था कि जो काम है, उसमें उसके एजेंट काम नहीं कर सकते । वो दुश्मनों पहचाने जा चुके हैं । इसलिए हमारी जरूरत...।"

"तुम्हें जानना चाहिए था कि आखिर क्या काम कराना चाहता है।" देवराज चौहान ने कहा ।

"उस कमीने का चेहरा देखते ही मेरा दिमाग खराब...।"

"वो कमीना नहीं है ।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कश लेकर बोला--- "वो अपने व्यक्तिगत मतलब की खातिर कुछ नहीं करता। वो अपनी ड्यूटी पूरी करता है। देश की बेहतरी के लिए काम करता है। पहले भी उसने हमसे जो काम लिया, वो देश की बेहतरी के लिए लिया था। तुम्हें उससे इतना नाराज नहीं होना चाहिए ।"

"उसने हमसे मुफ्त में काम लिया और हमें तगड़े धोखे में रखकर, हमें इस्तेमाल किया ।

"वो इस बात को मानता है तभी तो उसने तुमसे कहा कि पिछले काम के कुछ पैसे इस नए काम में जोड़ लेगा।"

"लेकिन हम उसके लिए काम करे ही क्यों ?" जगमोहन बोला ।

"ये फैसला तो काम सुनने के बाद ही होगा। कोई खास बात ही होगी जो वो तुमसे मिला, किसी मामूली है छोटी बात के लिए वो हमारे पास आने से रहा। हमें उसके लिए काम करना है या नहीं, ये हम मार्शल की बात सुनने के बाद ही तय कर पाएंगे ।"

"क्या पता वो हम से मिले ही नहीं ।" जगमोहन बोला।।

"वो हमें जरूर मिलेगा। मार्शल ने बहुत सोच-समझकर ही इधर का रुख किया होगा।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

■■■

अगले दिन देवराज चौहान और जगमोहन बंगले पर ही रहे । बाहर का कोई काम नहीं था ।

इस दौरान फोन जरूर आए थे । जगमोहन को हर आहट पर मार्शल के आने का, उसके एजेंटों के आने का एहसास होता रहा। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ ।

शाम को सोहनलाल आया ।

"महेश जाधव से बात हुई ?" सोहनलाल ने जगमोहन से पूछा ।

"हां । वो बेवकूफ लोग हैं । बहुत घटिया योजना लेकर मेरे पास आया था ।" जगमोहन ने कहा ।

"दोपहर में वो मुझसे मिला था। तुम्हारी शिकायत कर रहा था कि सब काम आसान है, परंतु तुम मान नहीं रहे।"

"वो फंस जाएंगे अगर ऐसा कुछ किया तो ।" जगमोहन ने सोहनलाल को देखा--- "तुम्हें मालूम है कि वो क्या चाहता है ।"

"आज बताया उसने ।"

"तो तुम्हें लगा नहीं कि वो फौरन बाद में पुलिस के कब्जे में होंगे।"

"मैंने उसी योजना सुनने के बाद समझाया उसे। मुझे भी ऐसा लगा था। लेकिन उस पर तो सत्तर करोड़ सवार है, वो...।"

"मरेगा।" जगमोहन मुंह बिचकाकर कह उठा--- "ऐसा काम हम तो करने से रहे कि करने के बाद, हमारे साथ काम करने वाले पुलिस के हाथ लग जाएं। इसमें बदनामी हमारी होगी कि योजना बहुत घटिया थी। इस तरह हम काम नहीं करते ।"

"महेश जाधव मानने वाला नहीं। वो ये काम करके रहेगा ।" सोहनलाल बोला ।

"वो जो भी करे, हमें उससे मतलब नहीं ।"

देवराज चौहान भी वहां आ पहुंचा ।

तीनों रात तक बातें करते रहे। फिर सोहनलाल चला गया ।

जगमोहन बाहर से खाना लाया। दोनों ने बैठकर खाया ।

"मेरे ख्याल में मार्शल का एजेंडा मेरे पीछे नहीं आया होगा, जब मैं उसे छोड़कर भागा।" जगमोहन ने कहा ।

"ये तुम इसलिए कह रहे हो कि आज मार्शल ने हमसे संपर्क स्थापित नहीं किया ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"हां ।"

"इस तरह तुम मार्शल की हकीकत को नकार रहे हो ।"

"क्या मतलब ?"

"वो कभी भी कहीं पर अकेला नहीं जाएगा। उसके दुश्मन बहुत हैं। वो जहां भी होगा अपने एजेंटों के घेरे में होगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "और वो तुम्हें रेस्टोरेंट में मिला जहां तुम महेश जाधव से बात कर रहे थे। स्पष्ट था कि उसके एजेंट तुम पर नजर रख रहे थे। तभी तो मार्शल तुम्हारे पास आ पहुंचा। उसने तुमसे बात की और तुम उसे धोखा देकर भाग निकले । पर हम इस वक्त उसकी नजरों में हैं ।"

"मुझे तुम्हारा दावा झूठ होता लग रहा है। क्योंकि आज का दिन बीत गया। उसने हमसे संपर्क नहीं किया ।"

"वो कहीं व्यस्त होगा । उसके एजेंट जरूर बाहर होंगे । मैं उसकी कार्यशैली को बहुत अच्छी तरह जान चुका हूं ।"

"दिन में मैं दो चक्कर बाहर के लगा आया हूं। मुझे तो कोई निगरानी करता नहीं लगा ।"

"तुम मार्शल के लम्बे हाथों को क्यों भूलते हो ?"

"भूला नहीं हूं। परंतु सोचता हूं कि हमारी जगह उसे कोई और मिल गया होगा, जिससे काम ले सके ।"

"ये संभव है ।" देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया ।

"ऐसा ही हुआ हो तो अच्छी बात है ।" जगमोहन ने गहरी सांस ली--- "हमें उसका काम नहीं करना है। उसके काम में बहुत ज्यादा खतरा होता है ।"

देवराज चौहान मुस्कुरा कर रह गया ।

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