एक बज गया था....फ़ैयाज़ इमरान को उसकी कोठी के क़रीब उतार कर चला गया। पाईं बाग़ का दरवाज़ा बन्द हो चुका था। इमरान फाटक हिलाने लगा...ऊँघते हुए चौकीदार ने हाँक लगायी।

‘प्यारे चौकीदार...मैं हूँ तुम्हारा ख़ादिम अली इमरान एम.एस.सी., पी-एच.डी. लन्दन।’

‘कौन, छोटे सरकार।’ चौकीदार फाटक के क़रीब आ कर बोला, ‘हुज़ूर, मुश्किल है।’

‘दुनिया का हर बड़ा आदमी कह गया है कि वह मुश्किल ही नहीं जो आसान हो जाये।’

‘बड़े सरकार का हुक्म है कि फाटक न खोला जाये....अब बताइए।’

‘बड़े सरकार तक कन्फ़्यूशियस का पैग़ाम पहुँचा दो।’

‘जी सरकार!’ चौकीदार बौखला कर बोला।

‘उनसे कह दो कन्फ़्यूशियस ने कहा है कि अँधेरी रात में भटकने वाले ईमानदारों के लिए अपने दरवाज़े खोल दो।’

‘मगर बड़े सरकार ने कहा है...’

‘हा...बड़े सरकार...उन्हें चीन में पैदा होना था। ख़ैर, तुम उन तक कन्फ़्यूशियस का यह पैग़ाम ज़रूर पहुँचा देना।’

‘मैं क्या बताऊँ।’ चौकीदार काँपती हुई आवाज़ में बोला। ‘अब आप कहाँ जायेंगे?’

‘फ़क़ीर यह सुहानी रात किसी क़ब्रिस्तान में बसर करेगा।’

‘मैं आपके लिए क्या करूँ?’

‘दुआए मग़फ़िरत...अच्छा टाटा!’ इमरान चल पड़ा...।

और फिर आधे घण्टे बाद वह टिप टॉप नाइट क्लब में दाख़िल हो रहा था, लेकिन दरवाज़े में क़दम रखते ही इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के एक डिप्टी डायरेक्टर से मुठभेड़ हो गयी जो उसके बाप का क्लासफ़ेलो भी रह चुका था।

‘ओहो! साहबज़ादे, तो तुम अब इधर भी दिखाई देने लगे हो?’

‘जी हाँ! अक्सर फ़्लाश खेलने के लिए चला आता हूँ।’ इमरान ने सिर झुका कर बड़ी आज्ञाकारिता से कहा।

‘फ़्लाश! तो क्या अब फ़्लाश भी?’

‘जी हाँ! कभी-कभी नशे में दिल चाहता है।’

‘ओह...तो शराब भी पीने लगे हो।’

‘वह क्या अर्ज़ करूँ...क़सम ले लीजिए जो कभी तन्हा पी हो। अक्सर शराबी तवाइफ़ें भी मिल जाती हैं जो पिलाये बग़ैर मानतीं नहीं...!’

‘लाहौल विला क़ूवत...तो तुम आजकल रहमान साहब का नाम उछाल रहे हो।’

‘अब आप ही फ़रमाइए!’ इमरान मायूसी से बोला। ‘जब कोई शरीफ़ लड़की न मिले तो क्या किया जाये...वैसे क़सम ले लीजिए। जब कोई मिल जाती है तो मैं तवाइफ़ों पर लानत भेज कर ख़ुदा का शुक्र अदा करता हूँ।’

‘शायद रहमान साहब को इसकी ख़बर नहीं...ख़ैर...’

‘अगर उनसे मुलाक़ात हो तो कन्फ़्यूशियस का यह कलाम दुहरा दीजिएगा कि जब किसी ईमानदार को अपनी ही छत के नीचे पनाह नहीं मिलती तो वह अँधेरी गलियों में भौंकने वाले कुत्तों से दोस्ती कर लेता है।’

डिप्टी डायरेक्टर उसे घूरता हुआ बाहर चला गया।

इमरान ने सीटी बजाने वाले अन्दाज़ में होंट सिकोड़ कर हॉल का जायज़ा लिया...उसकी नज़रें एक मेज़ पर रुक गयीं। जहाँ एक ख़ूबसूरत औरत अपने सामने पोर्ट की बोतल रखे, सिगरेट पी रही थी। गिलास आधे से ज़्यादा ख़ाली था।

इमरान उसके क़रीब पहुँच कर रुक गया।

‘क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ, लेडी जहाँगीर!’ वह ज़रा झुक कर बोला।

‘ओह तुम,’ लेडी जहाँगीर अपनी दाहिनी भौं उठा कर बोली, ‘नहीं...हरगिज़ नहीं।’

‘कोई बात नहीं!’ इमरान मासूमियत से मुस्कुरा कर बोला ‘कन्फ़्यूशियस ने कहा था....!’

‘मुझे कन्फ़्यूशियस से कोई दिलचस्पी नहीं...’ वह झुँझला कर बोली।

‘तो डी० एच० लॉरेंस का एक जुमला सुन लीजिए।’

‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती...तुम यहाँ से हट जाओ।’ लेडी जहाँगीर गिलास उठाती हुई बोली।

‘ओह, इसका ख़याल कीजिए कि आप मेरी मँगेतर भी रह चुकी हैं...’

‘शट अप।’

‘आपकी म़र्जी! मैं तो सिर्फ़ आपको यह बताना चाहता था कि आज सुबह ही से मौसम बहुत ख़ुशगवार था।’

वह मुस्कुरा पड़ी।

‘बैठ जाओ!’ उसने कहा और एक ही साँस में गिलास ख़ाली कर गयी।

वह थोड़ी देर अपनी नशीली आँखें इमरान के चेहरे पर जमाये रही, फिर सिगरेट का एक लम्बा कश ले कर आगे झुकती हुई आहिस्ता से बोली—

‘मैं अब भी तुम्हारी हूँ।’

‘मगर...सर जहाँगीर!’ इमरान मायूसी से बोला।

‘दफ़्न करो उसे।’

‘हाँय...तो क्या मर गये!’ इमरान घबरा कर खड़ा हो गया।

लेडी जहाँगीर हँस पड़ी।

‘तुम्हारी हिमाक़तें बड़ी प्यारी होती हैं।’ वह अपनी बायीं आँख दबा कर बोली और इमरान ने शर्मा कर सर झुका लिया।

‘क्या पियोगे!’ लेडी जहाँगीर ने थोड़ी देर बाद पूछा।

‘दही की लस्सी।’

‘दही की लस्सी...ही...ही...ही...ही...शायद तुम नशे में हो!’

‘ठहरिए!’ इमरान बौखला कर बोला। ‘मैं एक बजे के बाद सिर्फ़ कॉफ़ी पीता हूँ...छ: बजे शाम से बारह बजे रात तक रम पीता हूँ।’

‘रम!’ लेडी जहाँगीर मुँह सिकोड़ कर बोली। ‘तुम अपने टेस्ट के आदमी नहीं मालूम होते, रम तो सिर्फ़ गँवार पीते हैं।’

‘नशे में यह भूल जाता हूँ कि मैं गँवार नहीं हूँ।’

‘तुम आजकल क्या कर रहे हो?’

‘सब्र!’ इमरान ने लम्बी साँस ले कर कहा।

‘तुम ज़िन्दगी के किसी हिस्से में भी संजीदा नहीं हो सकते।’ लेडी जहाँगीर मुस्कुरा कर बोली।

‘ओह आप भी यही समझती हैं।’ इमरान की आवाज़ बेहद दर्दनाक हो गयी।

‘आख़िर मुझ में कौन-से कीड़े पड़े हुए थे कि तुमने शादी से इनकार कर दिया था।’ लेडी जहाँगीर ने कहा।

‘मैंने कब इनकार किया था।’ इमरान रोनी सूरत बना कर बोला। ‘मैंने तो आपके वालिद साहब को सिर्फ़ दो-तीन शेर सुनाये थे...मुझे क्या मालूम था कि उन्हें शेरो-शायरी से दिलचस्पी नहीं, वरना मैं नस्त्र में गुफ़्तगू करता।’

‘वालिद साहब की राय है कि तुम परले सिरे के अहमक़ और बदतमीज़ हो।’ लेडी जहाँगीर ने कहा।

‘और चूँकि सर जहाँगीर उनके हमउम्र हैं...लिहाज़ा....’

‘शप अप।’ लेडी जहाँगीर भन्ना कर बोली।

‘बहरहाल मैं यूँही तड़प-तड़प कर मर जाऊँगा।’ इमरान की आवाज़ फिर दर्दनाक हो गयी।

लेडी जहाँगीर ग़ौर से उसका चेहरा देख रही थी।

‘क्या वाक़ई तुम्हें अफ़सोस है?’ उसने आहिस्ता से पूछा।

‘यह तुम पूछ रही हो?...और वह भी इस तरह जैसे तुम्हें मेरे बयान पर शक हो।’ इमरान की आँखों में न सिर्फ़ आँसू छलक आये, बल्कि बहने भी लगे।

‘अरे...नो माई डियर...इमरान डार्लिंग, क्या कर रहे हो तुम!’ लेडी जहाँगीर ने उसकी तरफ़ अपना रूमाल बढ़ा दिया।

‘मैं इसी ग़म में मर जाऊँगा!’ वह आँसू ख़ुश्क करता हुआ बोला।

‘नहीं। तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए।’ लेडी जहाँगीर ने कहा। ‘और मैं...मैं तो हमेशा तुम्हारी ही रहूँगी।’ वह दूसरा गिलास भर रही थी।

‘सब यही कहते हैं...कई जगह से रिश्ते भी आ चुके हैं...कई दिन हुए जस्टिस फ़ारूक़ की लड़की का रिश्ता आया था...घर वालों ने इनकार कर दिया। लेकिन मुझे वह रिश्ता कुछ-कुछ पसन्द है।’

‘पसन्द है।’ लेडी जहाँगीर हैरत से बोली। ‘तुमने उनकी लड़की को देखा है।’

‘हाँ!...वही न, जो रीटा हेवर्थ स्टाइल के बाल बनाती है और आम तौर से काला चश्मा लगाये रहती है।’

‘जानते हो वह काला चश्मा क्यों लगाती है!’ लेडी जहाँगीर ने पूछा।

‘नहीं!...लेकिन अच्छी लगती है।’

लेडी जहाँगीर ने क़हक़हा लगाया।

‘वह इसलिए काला चश्मा लगाती है कि उसकी एक आँख ग़ायब है।’

‘हाँय...’ इमरान उछल पड़ा।

‘और शायद इसी वजह से तुम्हारे घरवालों ने यह रिश्ता मंज़ूर नहीं किया।’

‘तुम उसे जानती हो?’ इमरान ने पूछा!

‘अच्छी तरह से! और आजकल मैं उसे बहुत ख़ूबसूरत आदमी के साथ देखती हूँ। शायद वह भी तुम्हारी ही तरह अहमक़ होेगा।’

‘कौन है वह, मैं उसकी गर्दन तोड़ दूँगा।’ इमरान बिफर कर बोला। फिर अचानक चौंक कर ख़ुद ही बड़बड़ाने लगा, ‘लाहौल विला क़ूवत...भला मुझसे क्या मतलब!’

‘बड़ी हैरत-अंगेज़ बात है कि एक इन्तहाई ख़ूबसूरत नौजवान कानी लड़की से शादी करे।’

‘वाक़ई वह दुनिया का आठवाँ अजूबा होगा।’ इमरान ने कहा। ‘क्या मैं उसे जानता हूँ?’

‘पता नहीं! कम-से-कम मैं तो नहीं जानती। और जिसे मैं नहीं जानती, वह इस शहर के किसी आला ख़ानदान का आदमी नहीं हो सकता।’

‘कब से देख रही हो उसे?’

‘यही कोई पन्द्रह-बीस दिन से।’

‘क्या वे यहाँ भी आते हैं।’

‘नहीं...मैंने उन्हें कैफ़े कामीनो में अक्सर देखा है।’

‘मिर्ज़ा ग़ालिब ने ठीक ही कहा है—

नाला सरमाया यक आलम-ओ-आलम क़फे-ख़ाक

आसमाँ बैज़ा-ए-क़ुमरी नज़र आता है मुझे।’

‘मतलब क्या हुआ?’ लेडी जहाँगीर ने पूछा।

‘पता नहीं!’ इमरान ने बड़ी मासूमियत से कहा और ख़यालों में डूब कर मेज़ पर तबला बजाने लगा।

‘सुबह तक बारिश ज़रूर होगी।’ लेडी जहाँगीर अँगड़ाई ले कर बोली।

‘सर जहाँगीर आजकल नज़र नहीं आते।’ इमरान ने कहा।

‘एक माह के लिए बाहर गये हुए हैं।’

‘गुड,’ इमरान मुस्कुरा कर बोला।

‘क्यों?’ लेडी जहाँगीर उसे अथपूर्ण नज़रों से देखने लगी।

‘कुछ नहीं। कन्फ़्यूशियस ने कहा है...’

‘मत बोर करो।’ लेडी जहाँगीर चिढ़ कर बोली।

‘वैसे ही...बाई दी वे...क्या तुम्हारा रात भर का प्रोग्राम है?’

‘नहीं, ऐसा तो नहीं...क्यों?’

‘मैं कहीं तन्हाई में बैठ कर रोना चाहता हूँ।’

‘तुम बिलकुल गधे हो, बल्कि गधे से भी बदतर।’

‘मैं भी यही महसूस करता हूँ...क्या तुम मुझे अपनी छत के नीचे रोने का मौक़ा दोगी? कन्फ़्यूशियस ने कहा है...’

‘इमरान...प्लीज़...शट अप...’

‘लेडी जहाँगीर मैं एक लँडूरे मुर्ग़ की तरह उदास हूँ।’

‘चलो उठो! लेकिन अपने कन्फ़्यूशियस को यहीं छोड़ चलो। बोरियत मुझसे बर्दाश्त नहीं होती।’

तक़रीबन आध घण्टे बाद इमरान लेडी जहाँगीर की ख़्वाबगाह में खड़ा उसे आँखें फाड़-फाड़ कर देख रहा था! लेडी जहाँगीर के जिस्म पर सिर्फ़ नाइट गाउन था। वह अँगड़ाई ले कर मुस्कुराने लगी।

‘क्या सोच रहे हो?’ उसने भर्रायी हुई आवाज़ में पूछा।

‘मैं सोच रहा था कि आख़िर किसी तिकोन के तीनों कोणों का जोड़ नब्बे डिग्री के दो कोणों के बराबर क्यों होता है।’

‘फिर बकवास शुरू कर दी तुमने।’ लेडी जहाँगीर की नशीली आँखों में झल्लाहट नज़र आने लगी।

‘माई डियर लेडी जहाँगीर! अगर मैं यह साबित कर दूँ कि नब्बे डिग्री को कोण कोई चीज़ ही नहीं है तो दुनिया का बहुत बड़ा आदमी हो सकता हूँ।’

‘जहन्नुम में जा सकते हो!’ लेडी जहाँगीर बुरा-सा मुँह बना कर बड़बड़ायी।

‘जहन्नुम? क्या तुम्हें जहन्नुम पर य़कीन है?’

‘इमरान, मैं तुझे धक्के दे कर निकाल दूँगी।’

‘लेडी जहाँगीर! मुझे नींद आ रही है।’

‘सर जहाँगीर के बेड रूम में उनका स्लीपिंग सूट होगा...पहन लो।’

‘शुक्रिया!...ख़्वाबगाह किधर है।’

‘सामने वाला कमरा!’ लेडी जहाँगीर ने कहा और बेचैनी से टहलने लगी।

इमरान ने सर जहाँगीर की ख़्वाबगाह में घुस कर अन्दर से दरवाज़ा बन्द कर लिया। लेडी जहाँगीर टहलती रही! दस मिनट गुज़र गये! आख़िर वह झुँझला कर सर जहाँगीर की ख़्वाबगाह के दरवाज़े पर आयी। धक्का दिया, लेकिन अन्दर से चटख़नी चढ़ा दी गयी थी।

‘क्या करने लगे इमरान?’ उसने दरवाज़ा थपथपाना शुरू कर दिया, लेकिन जवाब नदारद। फिर उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे इमरान ख़र्राटे भर रहा हो। उसने दरवाज़े से कान लगा दिये। सच में ख़र्राटों ही की आवाज़ थी।

फिर दूसरे लम्हे वह एक कुर्सी पर खड़ी हो कर दरवाज़े के ऊपरी शीशे से कमरे के अन्दर झाँक रही थी। उसने देखा कि इमरान कपड़े और जूते पहने हुए सर जहाँगीर के पलँग पर पड़ा ख़र्राटे ले रहा है और उसने बिजली भी नहीं बुझायी थी। वह अपने होंटों को दायरे की शक्ल में सिकोड़े इमरान को किसी भूखी बिल्ली की तरह घूर रही थी। फिर उसने हाथ मार कर दरवाज़े का एक शीशा तोड़ दिया। नौकर शायद सर्वेंट क्वार्टर में सोये हुए थे, वरना शीशे के छनाके उनमें से एक-आध को ज़रूर जगा देते। यह और बात है कि इमरान की नींद पर उनका ज़र्रा बराबर भी असर नहीं पड़ा।

लेडी जहाँगीर ने अन्दर हाथ डाल कर चटख़नी नीचे गिरा दी! नशे में तो थी ही! जिस्म का पूरा ज़ोर दरवाज़े पर दे रखा था! चटख़नी गिरते ही दोनों पट खुल गये और वह कुर्सी समेत ख़्वाबगाह में जा गिरी...

इमरान ने उनींदी आवाज़ में कराह कर करवट बदली और बड़बड़ाने लगा...‘हाँ-हाँ संथेलिक गैस की बू कुछ मीठी-मीठी-सी होती है...’

पता नहीं वह जाग रहा था या ख़्वाब में बड़बड़ाया था।

लेडी जहाँगीर फ़र्श पर बैठी अपनी पेशानी पर हाथ फेर कर बिसूर रही थी। दो-तीन मिनट बाद वह उठी और इमरान पर टूट पड़ी।

‘सुअर, कमीने...यह तुम्हारे बाप का घर है?...उठो... निकलो यहाँ से।’ वह उसे बुरी तरह झिंझोड़ रही थी। इमरान बौखला कर उठ बैठा।

‘हाँय! क्या सब भाग गये...’

‘दूर हो जाओ यहाँ से।’ लेडी जहाँगीर ने उसका कॉलर पकड़ कर झटका मारा।

‘हाँ, हाँ...सब ठीक है!’ इमरान अपना गरेबान छुड़ा कर फिर लेट गया।

इस बार लेडी जहाँगीर ने उसे बालों से पकड़ कर उठाया।

‘हाँय...क्या अभी नहीं गया?’ इमरान झल्ला कर उठ बैठा। सामने ही आदमक़द आईना रखा हुआ था।

‘ओह, तो आप हैं!’ वह आईने में अपना अक्स देख कर बोला। फिर इस तरह मुक्का बना कर उठा जैसे उस पर हमला करेगा। वह इस तरह आहिस्ता-आहिस्ता आईने की तरफ़ बढ़ रहा था जैसे किसी दुश्मन से मुक़ाबला करने के लिए फ़ूँक-फ़ूँक कर क़दम रख रहा हो। फिर अचानक सामने से हट कर एक किनारे पर चलने लगा। आईने के क़रीब पहुँच कर दीवार से लग कर खड़ा हो गया। लेडी जहाँगीर की तरफ़ देख कर इस तरह होंटों पर उँगली रख ली जैसे वह आईने के क़रीब नहीं, बल्कि किसी दरवाज़े से लगा खड़ा हो और इस बात का इन्तज़ार कर रहा हो कि जैसे ही दुश्मन दरवाज़े में क़दम रखेगा वह उस पर हमला कर बैठेगा। लेडी जहाँगीर हैरत से आँखें फाड़े उसकी यह हरकत देख रही थी। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कहती इमरान ने पैंतरा बदल कर आईने पर एक घूँसा रसीद कर ही दिया। हाथ में जो चोट लगी तो ऐसा मालूम हुआ जैसे वह यकायक होश में आ गया हो।

‘लाहौल विला क़ूवत।’ वह आँखें मल कर बोला और खिसियानी हँसी हँसने लगा!

और फिर लेडी जहाँगीर को भी हँसी आ गयी...लेकिन वह जल्दी ही संजीदा हो गयी।

‘तुम यहाँ क्यों आये थे?’

‘ओह! मैं शायद भूल गया...शायद उदास था....लेडी जहाँगीर, तुम बहुत अच्छी हो! मैं रोना चाहता हूँ।’

‘अपने बाप की क़ब्र पर रोना...निकल जाओ यहाँ से!’

‘लेडी जहाँगीर...कन्फ़्यूशियस....!’

‘शप अप!’ लेडी जहाँगीर इतने ज़ोर से चीख़ी कि उसकी आवाज़ भर्रा गयी।

‘बहुत बेहतर!’ इमरान आज्ञाकारिता के अन्दाज़ में सिर हिला कर बोला! गोया लेडी जहाँगीर ने बहुत संजीदगी और नर्मी से उसे कोई नसीहत की थी।

‘यहाँ से चले जाओ!’

‘बहुत अच्छा।’ इमरान ने कहा और इस कमरे से लेडी जहाँगीर की ख़्वाबगाह में चला आया।

वह उसकी मसहरी पर बैठने ही जा रहा था कि लेडी जहाँगीर तूफ़ान की तरह उसके सिर पर पहुँच गयी।

‘अब मजबूरन मुझे नौकरों को जगाना पड़ेगा?’ उसने कहा।

‘ओहो तुम कहाँ तकलीफ़ करोगी। मैं जगाये देता हूँ। कोई ख़ास काम है?’

‘इमरान, मैं तुम्हें मार डालूँगी?’ लेडी जहाँगीर दाँत पीस कर बोली।

‘मगर किसी से इसका ज़िक्र मत करना...वरना पुलिस...ख़ैर, मैं मरने के लिए तैयार हूँ? अगर छुरी तेज़ न हो तो तेज़ कर दूँ! रिवॉल्वर से मारने का इरादा है तो मैं उसकी राय न दूँगा! सन्नाटे में आवाज़ दूर तक फैलती है। अलबत्ता ज़हर ठीक रहेगा।’

‘इमरान, ख़ुदा के लिए!’ लेडी जहाँगीर बेबसी से बोली।

‘ख़ुदा, क्या मैं इसके ग़ुलामों के लिए भी अपनी जान कुरबान कर सकता हूँ...जो मिज़ाजे यार में आये।’

‘तुम चाहते क्या हो?’ लेडी जहाँगीर ने पूछा।

‘दो चीज़ों में से एक...’

‘क्या?’

‘मौत या सिर्फ़ दो घण्टे की नींद!’

‘क्या तुम गधे हो?’

‘मुझसे पूछतीं तो मैं पहले ही बता देता कि बिलकुल गधा हूँ।’

‘जहन्नुम में जाओ,’ लेडी जहाँगीर और न जाने क्या बकती हुई सर जहाँगीर की ख़्वाबगाह में चली गयी। इमरान ने उठ कर अन्दर से दरवाज़ा बन्द किया। जूते उतारे और कपड़ों समेत बिस्तर में घुस गया।

***