अजय मदन मोहन सेठी की कोठी के सम्मुख टैक्सी से उतरा।
ड्राइवर को भाड़ा चुकाते समय गेट पर निगाहें पड़ते ही उसकी खोपड़ी घूम कर रह गई।
गेट से एक काली एम्बेसेडर और पुलिस जीप आगे–पीछे तेजी से बाहर निकलीं और बायीं ओर मुड़ने के बाद सड़क पर सीधी दौड़ गई। एम्बेसेडर को पुलिस जीप का ड्राइवर चला रहा था। जीप में ड्राइविंग सीट पर बैठे रविशंकर की बगल में मदन मोहन सेठी बैठा हुआ था। वह सिकुड़नों भरा सूट पहने था और उसके हाथों में हथकड़ियां लगी हुई थीं।
–"बकाया पैसे लीजिए, बाबू जी।" टैक्सी ड्राइवर ने कहा।
विचार शून्य सा खड़ा जीप की दिशा में ताकता अजय तनिक चौंका।
–"दस मिनट इंतजार करो।" उसने कहा और कोठी की ओर दौड़ गया।
ड्राइंग रूम में दाखिल होते ही अजय ठिठक कर रुक गया।
मदन मोहन की पत्नी मुक्ता सेठी टेलीफोन का रिसीवर थामे खड़ी थी। उसके सुन्दर चेहरे पर बेहद परेशानी भरे भाव थे और आंखों से आंसू बह रहे थे। पास ही उसकी अधेड़ आया हैरान सी खड़ी थी।
मुक्ता माउथ पीस में कांपती आवाज में कह रही थी "...और अभी–अभी मदन को पुलिस पकड़ कर ले गई है, दिलीप भैया। जैसे भी हो मदन को इस मुसीबत से निकालो।" फिर दूसरी ओर से कुछ सुनने के बाद बोली–"ठीक है।" और फिर संबंध विच्छेद करके अजय को देखते ही फूट–फूट कर रो पड़ी।
अजय ने उसे दिलासा देकर चुप कराने के बाद बिस्तर पर बैठते हुए पूछा–"केसवानी को फोन किया था?"
–"हां।" मुक्ता ने कहा।
अजय जानता था दिलीप केसवानी और मदन मोहन एक दूसरे के घनिष्ठ मित्र है। दिलीप मुक्ता को अपनी बहन मानता है और मुक्ता हर साल रक्षाबंधन पर उसे राखी बांधती है।
–"पुलिस मदन को क्यों पकड़कर ले गई है?" उसने पूछा।
–"काशीनाथ जी की हत्या करने के आरोप में।" मुक्ता बड़ी मुश्किल से कह सकी।
अजय बुरी तरह चौंका।
–"तुम्हें कैसे पता चला कि काशीनाथ की हत्या कर दी गई है?"
–"उसी पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया था।"
अजय जानता था, रविशंकर कुशल एवं जिम्मेदार पुलिस अफसर है। जरूर कोई बहुत ही तगड़ी और ठोस वजह रही होगी वरना उसने मदन मोहन को गिरफ्तार नहीं करना था।
–"उस इंस्पैक्टर ने मदन मोहन पर यह आरोप कैसे लगा दिया?" उसने पूछा।
–"मैं शुरू से ही सब बताती हूं।" मुक्ता ने कहना आरम्भ किया–"रात करीब दस बजे मदन के लिए एक फोन काल आई थी। काल अटेंड करने के बाद उसने कहा एक व्यापारी ने उसे कछ जवाहरात दिखाने के लिए बुलाया है। बिजनेस का भूत किस कदर उस पर हर वक्त रहता है, यह तुम भी अच्छी तरह हो। उसने कपड़े बदले, अपना रिवाल्वर जेब में डाला और दो घंटे तक लौट आने के लिए कहकर कार लेकर चला गया।"
–"रिवाल्वर?" अजय ने चौंककर पूछा–"उसकी क्या जरूरत थी?"
–"छह–सात महीने पहले रात में एक बार कुछ बदमाशों ने उसे इस उम्मीद में घेर लिया था कि उसके पास नगद रकम या जवाहरात होंगे।" मुक्ता ने कहा–"भाग्यवश मदन उनसे बचकर भाग आया। तब से वह रात में कहीं भी आते–जाते वक्त अपने साथ एहतियातन रिवाल्वर रखने लगा है।"
अजय को भी याद आ गया मदन मोहन के साथ ऐसी वारदात हो चुकी थी।
–"आगे बताइए।" वह बोला।
–"मदन के जाने के बाद मैं करीब तीन घंटे तक इंतजार करती रही फिर मुझे नींद आ गई।" मुक्ता ने कहा–"सुबह लगभग पांच बजे मेरी आंखें खुलीं। मदन को तब तक भी वापस लौटा न पाकर मुझे चिन्ता घेरने लगी।"
–"क्या पहले भी ऐसा हुआ है कि मदन दो घंटे के लिए कहकर गया और घंटों तक वापस नहीं लौटा?" अजय ने उसे टोककर पूछा।
–"हां, बिजनेस के सिलसिले में मदन अक्सर बेवक्त आता–जाता रहा है। और दस–दस घंटे बाद वापस लौटा है। लेकिन ऐसी स्थिति में वह जहां भी होता था हमेशा मुझे फोन द्वारा सूचित कर देता था।"
–"पिछली रात उसने जाने के बाद फोन नहीं किया?"
–"नहीं।"
–"हो सकता है आपके सो जाने के बाद उसने फोन किया हो।"
–"फोन की एक्सटेंशन लाइन बैडरूम में भी है और मैं बहुत ही हल्की नींद में सोती हूँ। अगर वह फोन करता तो मैंने जरूर जाग जाना था।" मुक्ता ने कहा। फिर अचानक जैसे कुछ याद आ गया हो, इस अंदाज में आया से बोली, –"शान्ति कॉफी बना लाओ।"
आया बाहर चली गई।
–"खैर, सुबह जागने के बाद मैं कुछ देर बेचैनी से करवटें बदलती रही फिर मैंने मदन के बिजनेस फ्रैंड्स को, जिन्हें मैं जानती हूँ...एक–एक करके फोन किया।"
–"वन मिनट –" अजय ने पुनः टोका, "मदन ने आपको बताया नहीं था उसने किस व्यापारी के पास जाना था?"
–"नहीं, बिजनेस संबंधी कोई बात वह मुझे कभी नहीं बताता।" मुक्ता जवाब देने के बाद बोली, "मदन का कोई दोस्त उसके बारे में नहीं बता सका। अन्त में करीब साढे पाँच बजे बाहर अपनी कार रुकने की आवाज सुनाई दी। मैं फौरन बाहर भागी और प्रवेश द्वार खोल दिया। फिर पोर्च की लाइट में मदन पर निगाह पड़ते ही मैं बुरी तरह घबरा गई। बड़ी ही खस्ता हालत थी उसकी। सूट सिकुड़नों से भरा। बाल बिखरे हुए। चेहरे पर बेहद परेशानी और बौखलाहट साफ नजर आ रही थी। पलकें बोझिल। कपड़ों और मुंह से शराब की बू आ रही थी। उसे सहारा देकर बैडरूम में लाते वक्त मैंने नोट किया, उसकी चाल ऐसी थी मानो वह नींद में चल रहा है। वह बिस्तर पर बैठ गया अपना सर हाथों में थाम लिया। मेरे पूछने पर उसने जो बताया वो और भी अजीब था–" उसने गहरी सांस लेने के बाद कहा, –"उसका कहना है उसकी कार की पिछली सीट के नीचे पहले से ही कोई छुपा हुआ था। ज्योंहि कार सुनसान रिंग रोड पर पहुंची उसकी गरदन पर पीछे से कोई कठोर चीज गड़ाकर कार रोककर इंजन बंद करने की चेतावनी दी गई। उसके अनुमानानुसार गरदन में गड़ने वाली कठोर चीज पिस्तौल या रिवाल्वर थी। इसलिए उसे कार रोककर इंजन बन्द कर देना पड़ा। फिर इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, मीठी तेज गंध वाला एक गीला रूमाल उसके मुंह और नाक पर रखकर दबा दिया गया। उसने प्रतिरोध करना चाहा, मगर गरदन पर कठोर चीज का दबाव बढ़ाते हुए पुनः चेतावनी दे दी गई। फलस्वरूप वह अपने बचाव में कुछ नहीं कर सका। फिर धीरे–धीरे उसकी चेतना लुप्त होने लगी और आखिर में वह पूरी तरह बेहोश हो गया। दोबारा जब उसे होश आया तो उसने स्वयं को छाती के बल स्टियरिंग पर पड़ा पाया। कार का इंजन बन्द था और वो ठीक उसी स्थान पर खड़ी थी जहां उसने रोकी थी। उसे अपने सर में बहुत ही भारीपन महसूस हो रहा था। उसने अपनी रिस्ट वाच पर निगाह डाली, उस वक्त पांच बजकर बीस मिनट हुए थे। उसने पीछे की ओर देखा तो कार में या आसपास उसे कोई नजर नहीं आया। उसने अपनी जेबें टटोलीं। बाकी सब चीजें तो उसे जेबों में मौजूद मिलीं मगर रिवाल्वर गायब थी। वह इतना ही समझ सका कि करीब सवा सात घंटे कार में बेहोश पड़ा रहा था लेकिन अपने मुंह और कपड़ों से आती शराब की बू की वजह उसकी समझ में नहीं आ सकी। उसका कहना है जो गीला रूमाल उसे जबरन सुंघाया गया था वो निश्चित रूप से क्लोरोफार्म में भीगा हुआ था मगर यह मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि महज उस रूमाल की वजह से ही वह इतनी देर बेहोश रहा था। उसे पूरा यकीन है कि बेहोशी की हालत में उसे बेहोशी की नींद सुला देने वाला कोई इंजैक्शन भी लगाया गया था।"
–"होश में आने के बाद उसने क्या किया?"
–"सीधा घर आ गया। वह चाहता था किइत्मीनान से सोचने समझने के बाद पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट लिखवायेगा। मगर इतना मौका उसे नहीं मिल सका। मुश्किल से पच्चीस मिनट बाद ही पुलिस यहां आ गई। मदन के साथ–साथ मेरी भी समझ में यह बिल्कुल नहीं आ रहा है उसके साथ यह सब किसने और क्यों किया? उसके पीछे–पीछे पुलिस यहां कैसे आ पहुँची और उसे काशीनाथ जी की हत्या के आरोप में क्यों गिरफ्तार कर लिया गया?"
–"बाकी बातों का जवाब तो पुलिस इंस्पैक्टर से मिल सकता है लेकिन सबसे ज्यादा अहम सवाल यह है मदन के साथ यह सब किसने किया। बाई दि वे क्या काशीनाथ और मदन में कोई अनबन थी?"
–"बिल्कुल नहीं। मेरी तरह आप भी अच्छी तरह जानते हैं काशीनाथ जी एक नेक इंसान थे और मदन को अपना सगा छोटा भाई मानते थे। खुद मदन को भी उनसे बेहद प्यार था।
–"आपकी जानकारी में मदन का कोई दुश्मन है?"
–"नहीं।"
–"क्या काशीनाथ का कोई दुश्मन था?"
–"काशीनाथ जी का कोई दुश्मन होगा, कम से कम मैं तो इस बात पर यकीन नहीं कर सकती।"
–"खैर पुलिस इंस्पैक्टर ने मदन से और तुमसे क्या पूछताछ की थी?"
तभी आया एक ट्रे में दो कप कॉफी ले आई।
अजय ने एक कप उठा लिया। मुक्ता के संकेत पर ट्रे सहित दूसरा कप बैड साइड टेबिल पर रखकर आया बाहर चली गई।
–"उसने आते ही सबसे पहला सवाल यह किया रात दो बजे मदन कहां था। जवाब में मदन ने सारी कहानी सुना दी। फिर इंस्पैक्टर ने पूछा, क्या बाहर खडी काली कार मदन की ही है। फिर मदन द्वारा हाँ कहते ही इंस्पैक्टर उससे कार की चाबियां लेकर बाहर चला गया। थोड़ी ही देर बाद वापस आने पर उसने बताया रात करीब दो बजे काशीनाथ जी की हत्या कर दी गई और उनकी हत्या के अपराध के संदेह में वह मदन को गिरफ्तार करने आया है। मुझे और मदन को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। हम दोनों ने काशीनाथ जी से अपने व्यापारिक और पारिवारिक घनिष्ठ संबंधों की दुहाई दी। मगर इंस्पैक्टर ने एक नहीं सुनी। उसने मदन को हथकड़ियां डालीं और उसे जबरन अपने साथ ले गया।
–"लेकिन वह मदन की कार क्यों साथ ले गया?"
–"पता नहीं।"
–"इंस्पैक्टर ने मदन से पूछा था वह किस व्यापारी से मिलने जा रहा था?"
–"हां, तभी मुझे भी पता चला मदन को करोड़ीमल जौहरी ने फोन किया था और वह उसी से मिलने जाने के लिए घर से निकला था।"
अजय को चौंक जाना पड़ा। करोड़ीमल ने ही तो पिछली शाम काशीनाथ को कलैक्शन बेचा था। फिर वह रात में बेवक्त काशीनाथ के पार्टनर को बुलाकर जवाहरात क्यों दिखाना चाहता था।
–"क्या मदन पहले भी कभी बिजनेस के सिलसिले में करोड़ी मल के पास बेवक्त जाता रहा है?"
–"पता नहीं। मैंने कहा न बिजनेस के बारे में वह मुझे कभी कुछ नहीं बताता।"
–"फोन आने के कितनी देर बाद मदन घर से गया था?" अजय ने कुछ सोचते हुए पूछा।
–"कोई दस मिनट बाद।"
–"उस वक्त उसकी कार कहाँ खड़ी थी? पोर्च में या गैराज में?"
–"पोर्च में।"
–"क्यों? क्या मदन का पहले ही से कहीं जाने का प्रोग्राम था?"
–"नहीं। तीन–चार दिन से कार की बैटरी कुछ डाउन है इसलिए सुबह को उसे स्टार्ट करने में दिक्कत होती है और जोर लगाना पड़ता है। गैराज में खड़ी करने पर धक्का लगाने में और ज्यादा परेशानी होती है इसलिए मदन तीन–चार रोज से रात में भी उसे पोर्च में ही छोड़ देता है।"
–"घर से जाते वक्त मदन काली फैल्ट हैट भी पहने था?"
–"हाँ। जब वह वापस आया तो हैट सीट पर ही पडी छोड़ आया था।"
–"जब वह घर से निकला उस वक्त पिए हुआ था?"
–"नहीं। कल मंगलवार था और मंगलवार को वह न तो व्हिस्की पीता है और न मीट, एग वगैरा खाता है। अलबत्ता कार के ग्लोव कम्पार्टमेंट में व्हिस्की हमेशा रखता है।"
मदन की इन आदतों की अजय को भी जानकारी थी। मदन की गिरफ्तारी की वजह भी अब काफी हद तक उसकी समझ में आ गई थी।
–"केसवानी ने आपसे फोन पर क्या कहा था?" उसने कॉफी खत्म करते हुए पूछा।
–"यही कि वह किसी ऊँचे वकील को साथ लेकर पुलिस हैडक्वार्टर्स जाएगा और मामले का पता लगाकर मदन को रिहा कराएगा या उसकी जमानत करा देगा।"
अजय खड़ा हो गया। वह जानता था रविशंकर न तो मदन को रिहा करेगा और न ही उसकी जमानत होने देगा। लेकिन मुक्ता के सामने उसने ऐसा कुछ न कहना ही मुनासिब समझा।
–"ठीक है, मैं भी जाकर देखता हूँ क्या कुछ किया जा सकता है–" वह बोला–"आप इस बारे में और कुछ बताना चाहती हैं?"
मुक्ता की आँखें पुनः भर आईं।
–"मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं मदन किसी गहरी साजिश का शिकार हुआ है।" वह कम्पित स्वर में बोली–"वह बिल्कुल बेगुनाह है। काशीनाथ जी जैसे नेक इन्सान की हत्या करने वाला जरूर कोई शैतान होना चाहिए।"
अजय खामोशी से सर झुकाए बैडरूम से निकला। कोठी से बाहर आकर प्रतीक्षारत टैक्सी में सवार हुआ और पुलिस हैडक्वार्टर्स की ओर रवाना हो गया।
* * * * * *
अजय रविशंकर के आफिस पहुंचा।
आफिस के बाहर ही दिलीप केसवानी व्याकुलता पूर्वक चहलकदमी कर रहा था। उसके चेहरे पर चिंता की गहरी छाप साफ नजर आ रही थी। वह सामान्य कद और इकहरे जिस्म का स्वस्थ सुन्दर युवक था। बत्तीस वर्ष की कम उम्र में ही उसकी गिनती आयकर सम्बन्धी मामलों के सफलतम वकीलों में होने लगी थी। खुशमिजाज और रईसी ठाठ–बाट से रहने वाले दिलीप को अपने पेशे के अलावा सिर्फ दो ही चीजों से लगाव था–घुड़दौड़ में मोटे दांव लगाना और खूबसूरत जवान लड़कियों से दोस्ती करना।
–"हलो, दिलीप।" अजय ने उसका ध्यान आकर्षित किया।
–"ओह, हलो, अजय।" दिलीप बोला–"तुम सुबह–सुबह यहां कैसे?"
–"जिस लिए तुम यहां आए हो?"
'मैं तो मदन –" दिलीप ने कहा. फिर अपनी बात पूरी किए बगैर संदेहपूर्वक उसे घूरते हुए पूछा–"तुम्हें कैसे पता चला मैं यहां किसलिए आया हूँ?"
–"मैं मदन की पत्नी मुक्ता से मिलकर आ रहा हूं।"
–"क्यों? तुम उसके पास क्या करने गए थे?"
जवाब में अजय ने संक्षेप में काशीनाथ की हत्या के बारे में बता दिया।
दिलीप ने विचारपूर्वक उसे घूरा।
–"घटनास्थल की जांच के वक्त तुम इंस्पैक्टर के साथ थे।" उसने पूछा–"क्या उसे वहां ऐसा कोई क्लू मिला था जिससे मदन पर हत्या करने का शक किया जा सके?"
–"नहीं।"
–"तो फिर उसने हत्या के आरोप में मदन को कैसे पकड़ लिया?"
–"यह तो रविशंकर ही बता सकता है। वह आफिस में नहीं है?
–"नहीं।"
–"कब तक आएगा?"
–"पता नहीं।"
–"मुक्ता ने बताया था तुम किसी अच्छे क्रिमिनल लायर को लेकर आने वाले थे।" अजय ने कहा–"लेकिन तुम तो अकेले ही आए हो।"
–"मैंने मजूमदार को फोन कर दिया है।" दिलीप बोला–"वह आने ही वाला होगा।"
मजूमदार विराट नगर के चोटी के फौजदारी के वकीलों में से एक था। लेकिन अजय को उम्मीद नहीं थी वह भी मदन मोहन की जमानत करा सकेगा।
–"इंस्पैक्टर रविशंकर तुम्हारा दोस्त है।" दिलीप ने कहा–"क्या वह तुम्हारी सिफारिश मान लेगा?"
–"किस मामले में?"
–"मदन की जमानत कराने में।"
–"नहीं, अपने फर्ज के सामने वह भगवान की भी नहीं सुनेगा। मुक्ता ने जो बताया है उसकी बिनाह पर मैं कह सकता। हूं रविशंकर ने किसी बड़े ही ठोस आधार पर मदन को गिरफ्तार किया है।"
–"क्या मतलब?" यानी मदन की जमानत नहीं हो सकेगी?"
–"ऐसा ही लगता है।"
–"कैसी बातें करते हो, अजय।" दिलीप तीव्र स्वर में बोला–"तुम अच्छी तरह जानते हो काशीनाथ जी और मदन के सम्बन्ध पार्टनरों से ज्यादा दो सगे भाइयों जैसे रहे हैं। मदन कैसा आदमी है यह भी तुम्हें मालूम है। क्या वह किसी की हत्या कर सकता है?"
–"तुम्हारे विचार से काशीनाथ की हत्या किसने की हो सकती है?" अजय ने उसके सवाल का जवाब न देकर पूछा।
–"हत्यारा चाहे जो भी हो मगर मदन हरगिज नहीं हो सकता–" दिलीप ने दृढ़ स्वर में कहा –"यह ठीक है, रंजना के तलाक लेने के बाद काशीनाथ जी से मेरी रिश्तेदारी खत्म हो गई थी। लेकिन हम दोनों के व्यक्तिगत सम्बन्धों में कोई फर्क नहीं आया। हम दोनों एक–दूसरे को बेहद पसन्द करते थे। उनकी मौत का मुझे भी बहुत दुख है। लेकिन मदन की गिरफ्तारी ने मेरी बुद्धि कुंठित कर दी है। वह बेचारा बिल्कुल बेगुनाह है। मेरे विचार में काशीनाथ जी की हत्या उनके किसी बिजनेस राइवल ने की है।"
–"ऐसे किसी बिजनेस राइवल को तुम जानते हो?"
–"नहीं, लेकिन धंधे में उनकी अनोखी सूझबूझ के कारण उनका सारा बिजनेस सर्कल उनसे ईर्ष्या करता था।"
इससे पहले कि अजय कुछ कहता सांवले रंग, ऊंचे कद और भारी बदन वाला एक अधेड़ आदमी उनके पास आ खड़ा हुआ। उसकी आंखों पर सुनहरी प्रेम की ऐनक थी और एक हाथ में ब्रीफकेस झूल रहा था। वकीलों जैसे लिबास वाला वह आदमी कृष्णकांत मजूमदार था।
अजय उससे न सिर्फ परिचित था बल्कि उसकी काबलियत और सूझबूझ के कारण उसका फैन भी था।...
'हलो' की औपचारिकता के बाद अजय ने काशीनाथ की हत्या और मदन के साथ हुई घटना सम्बन्धी प्रत्येक बात की जानकारी उसे दे दी।
–"घटनास्थल पर जांच के दौरान इंस्पैक्टर को किसने फोन किया था?" मजूमदार ने पूछा।
–"पता नहीं।" अजय ने जवाब दिया।
–"इंस्पैक्टर है कहां?
–"कहीं गया है।"
'मैं समझता हूं वह करोड़ीमल के पास इस बात की तसदीक करने गया होगा क्या पिछली रात करोड़ीमल ने मदन को फोन करके जवाहरात दिखाने के लिए बुलाया था।" मजूमदार ने मत व्यक्त किया–"और मदन के साथ हुई घटना को मद्दे नजर रखते हुए मेरा विचार है या तो करोड़ीमल ने उसे फोन किया ही नहीं था और अगर किया था तो वह इंस्पैक्टर के सामने साफ मुकर जाएगा।"
–"आप बता सकते हैं मदन को अचानक किस आधार पर गिरफ्तार कर लिया?" दिलीप ने जानना चाहा।
–"लगता है, इंस्पैक्टर को मदन के खिलाफ कोई तगड़ा | सरकमस्टांशियल एवीडेंस मिल गया है।"
तभी रविशंकर अपने दो मातहतों सहित आ पहुंचा। उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी।
अजय और दिलीप को सरासर नजर अन्दाज करते हुए उसने तनिक व्यंग्यपूर्वक पूछा–"कहिए, मजूमदार साहब। आपने इस वक्त कैसे तकलीफ की?"
मजूमदार मुस्कराया।
–"यहीं पूछोगे?" आफिस में आने के लिए नहीं कहोगे?"
–"ओह, सॉरी। आइए।"
–"हम दोनों भी आ सकते हैं इंस्पैक्टर साहब?" अजय ने पूछा।
–"जरूर।" रविशंकर ने कहा–"आप दोनों भी आइए।"
सब आफिस में दाखिल हो गए।
रविशंकर अपने डेस्क के पीछे जा बैठा और शेष तीनों उसके सामने विजिटर्स के लिए पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए।
–"मैं जानना चाहता हूं।" मजूमदार ने सीधा सवाल किया–"मदन मोहन सेठी को आपने किसलिए गिरफ्तार किया है?"
–"काशीनाथ जावेरी के घर में पिछली रात चोरी करने और काशीनाथ की हत्या करने के अपराध में।" रविशंकर ने ठोस स्वर में जवाब दिया।
–"हत्या करने के अपराध में?" मजूमदार ने पूछा–"या हत्या का अपराध करने के संदेह में?"
–"उसे गिरफ्तार तो संदेह में ही किया था। लेकिन अब लगभग साबित हो चुका है काशीनाथ की हत्या मदन मोहन सेठी ने ही की थी।"
अजय और दिलीप को चौंक जाना पड़ा।
–"यह आप किस आधार पर कह रहे हैं?" मजूमदार ने पूर्ववत् सहज स्वर में पूछा।
–"मौका ए वारदात से हत्यारे को भागते हुए जिन लोगों ने देखा था वे हत्यारे का चेहरा तो नहीं देख सके मगर उसका बाकी जो हुलिया बताया गया है वो मदन मोहन पर पूरी तरह फिट बैठता है। मसलन–औसत कद–बुत, काला सूट, काली फैल्ट हैट, काले जूते, काले दस्ताने और काला स्कार्फ।"
–"लेकिन यह तो आम हुलिया है। इसी शहर में ही हजारों आदमियों का हो सकता है।"
–"बेशक हो सकता है।" रविशंकर ने कहा–"लेकिन यह नहीं हो सकता कि उन हजारों आदमियों के पास काली एम्बेसेडर कारे भी हों और अगर हों भी तो उन सभी कारों की डिग्गी के ढक्कन में राइफल की गोली लगने का ताजा सुराख भी हो।"
–"मदन मोहन की कार की डिग्गी के ढक्कन में ऐसा सुराख है?"
–"सुराख ही नहीं, डिग्गी के अन्दर से जो चली हुई गोली बरामद हुई है वो राइफल की ही है. और उसी बोर की है जिस बोर की राइफल ब्रिगेडियर रंजीत सिंह दुग्गल के पास है। मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूँ बैलास्टिक एक्सपर्ट की जांच द्वारा भी निश्चित रूप से यही साबित होगा कि गोली ब्रिगेडियर की राइफल से ही चलाई गई थी।
–"कोई और ऐवीडेंस?"
–"मदन मोहन ने खुद कबूल किया है और उसकी पत्नी मुक्ता ने भी बताया है पिछली रात फोन काल सुनने के बाद घर से जाते वक्त वह अपनी बत्तीस कैलीबर की स्मिथ एंड वेसन लोडेड रिवाल्वर साथ लेकर गया था।" रविशंकर ने कहा–"मृतक काशीनाथ की छाती में बने सुराखों से जाहिर है कि उसे बत्तीस बोर की रिवाल्वर या पिस्तौल द्वारा ही शूट किया गया था। और आज सुबह मदन मोहन की गिरफ्तारी से पहले उसकी कार के ग्लोव कंपार्टमेंट से काले स्कार्फ, काले दस्तानों और सौ रुपए के नोटों की दो गड्डियों के अलावा जो चीज बरामद हुई वो उसकी अपनी रिवाल्वर ही थी। उस रिवाल्वर में दो गोलियां कम थीं और बारूद की गंध भी आ रही थी। मुझे यकीन है पोस्टमार्टम के दौरान काशीनाथ की लाश से दो गोलियां बरामद होंगी क्योंकि वे गोलियां उसके जिस्म से बाहर नहीं निकली थीं। उन गोलियों और मदन मोहन की रिवाल्वर की जांच द्वारा बैलास्टिक एक्सपर्ट यही नतीजा निकालेगा कि काशीनाथ को उसी रिवाल्वर से शूट किया गया था।"
–"रिवाल्वर पर मदन की उंगलियों के निशान भी पाए गए हैं?" मजूमदार ने बड़े ही सहज ढंग से पूछा।
रविशंकर मुस्कराया। उसके चेहरे पर साफ लिखा था वह मजूमदार के इस प्रश्न का वास्तविक आशय समझ गया था।
–"नहीं।" उसने जवाब दिया।
–"फिर किसकी उंगलियों के निशान मिले हैं?"
–"किसी के भी नहीं। रिवाल्वर को दस्ताने पहन कर इस्तेमाल किया गया था।" रविशंकर ने कहा–"साथ ही नोटों की उन गड्डियों की अपने पास मौजूदगी की कोई वजह भी मदन नहीं बता सका।"
–"लेकिन वे सब सरकमस्टांशियल एवीडेंसेज हैं। इनसे यह तो पूरी तरह साबित नहीं होता कि हत्यारा यानी काले लिबास वाला नकाबपोश मदन मोहन ही था।"
–"काशीनाथ की हत्या करीब दो बजे की गई थी। उस वक्त की कोई एलीबी मदन मोहन के पास नहीं है।" रविशंकर ने कहा–"उसने रात में करोड़ीमल के यहां जाते वक्त खुद को रिवाल्वर या पिस्तौल के दम पर क्लोरोफार्म द्वारा बेहोश किए जाने की कहानी सुनाई है वो बिल्कुल मनगढ़ंत और बेबुनियाद है।"
–"यह आप कैसे कह सकते हैं?"
–"वह एक भी ऐसा सबूत पेश नहीं कर सका जिसके आधार पर इस कहानी को सच माना जा सके। मसलन, उस आदमी का जरा–सा भी हुलिया नहीं बता पाया जो बकौल उसके कार की पिछली सीट के नीचे छुपा रहा था और जिसने जबरन कार रुकवाकर उसे बेहोश किया। दूसरे, उसके बयान के मुताबिक उसे रात करीब साढ़े दस बजे रिज रोड पर कार में बेहोश किया गया था। सुबह होश में आने के बाद उसने खुद को कार में और कार को उसी स्थान पर खड़ी पाया। फिर वह सीधा अपने घर चला गया। उसकी पत्नी का कहना है वह सुबह करीब साढ़े पांच बजे पहुंचा था। इसका मतलब रात साढ़े दस बजे के बाद से सुबह सवा पांच बजे तक उसकी कार रिज रोड पर ही खड़ी रही थी। उस इलाके में रात ग्यारह बजे से सुबह चार बजे तक दो पैट्रोल कारें बराबर गश्त करती रहती हैं। लेकिन उनमें से किसी गश्ती कार को उस दौरान वहां कोई कार खड़ी नहीं मिली।
–"लेकिन यह तो सच है करोड़ीमल ने उसे फोन करके जवाहरात दिखाने के लिए बुलाया था?"
–"नहीं।" रविशंकर ने जवाब दिया–"करोड़ीमल ने मदन मोहन को न तो फोन किया था और न ही कभी उसकी मदन मोहन से जाती तौर पर कोई डीलिंग हुई है। अलबत्ता वह मदन मोहन को बतौर काशीनाथ का पार्टनर जानता अच्छी तरह है।"
–"करोड़ीमल झूठ भी बोल सकता है।"
–"झूठ करोड़ीमल ने नहीं मदन मोहन ने बोला है। करोडीमल पिछली रात नौ बजे से साढ़े ग्यारह बजे तक फोन के पास फटका भी नहीं था। उस बीच वह अपने परिवार और अचानक आ गए कुछ रिश्तेदारों के साथ टी० वी० पर वीडियो फिल्म देखता रहा था। सब लोगों ने इस बात की पुष्टि की है वह बराबर उन सबके बीच मौजूद रहा था।"
–"लेकिन यह तो सच है मदन मोहन को किसी ने फोन किया था?"
– –"मैं नहीं मानता बाकी कहानी की तरह फोन की बात भी मनगढ़ंत है।"
–"मगर मदन मोहन की पत्नी ने इस बात की पुष्टि की है।"
–"उसकी पत्नी का कहना है, मदन मोहन ने ही उसे बताया था करोडीमल ने फोन करके बुलाया है। उसने न तो फोन की घंटी बजती सुनी थी और न ही रिसीवर उठाकर सुनने के बाद अपने पति को दिया। जब वह कमरे में पहुंची मदन मोहन रिसीवर थामे माउथपीस में बोल रहा था। मैं समझता हूं उसने अपनी पत्नी को दिखाने के लिए महज नाटक किया था ताकि वह फोन आने वाली बात की पुष्टि कर सके।"
–"बाई दी वे, मदन मोहन के पास हत्या का मोटिव क्या था?"
–"कनकपुर कलैक्शन नामक जवाहरात का एक कलैक्शन चुराना जिसे काशीनाथ ने पिछली शाम ही करोड़ीमल से चौबीस लाख रुपए में खरीदा था। खुद करोड़ीमल ने भी कलैक्शन बेचने की बात कबूल की है। काशीनाथ का पार्टनर होने के नाते मदन मोहन को भी इस बात की जानकारी जरूर रही होगी। वह यह भी जानता होगा कि कलैक्शन रात भर काशीनाथ के सेफ में रहेगा। इसलिए उसने मौके का फायदा उठाने का फैसला कर लिया। बाकायदा योजना बना कर चोरी करने चला गया। अचानक काशीनाथ जाग गया और उसके सर पर जा चढ़ा। तब काशीनाथ द्वारा पहचाने या पकड़े जाने से बचने के लिए मदन मोहन ने उसे शूट कर दिया और कलैक्शन लेकर भाग आया।"
–"क्या कलैक्शन भी मदन मोहन के पास से बरामद हुआ है?"
–"नहीं। दो बजे से साढ़े पांच बजे के बीच में उसने आसानी से उसे ठिकाने लगा दिया होगा।" रविशंकर ने कहा–"मैं आपको यह भी बता देना चाहता हूं, मदन मोहन ने कबूल किया है वह अक्सर काशीनाथ के घर जाता रहता है और सेफ के काम्बीनेशन की जानकारी भी उसे है।
–"और सेफ की चाबी?"
–"जाहिर है, मदन मोहन जरूर जानता होगा काशीनाथ सेफ की चाबी कहां रखता था। घर के दरवाजों की दूसरी चाबियों तक भी उसकी पहुंच जरूर रही होगी।"
–"जिस कलैक्शन की बात आप कर रहे हैं, इंस्पैक्टर साहब, वो उस वक्त सेफ में ही मौजूद था इसका क्या सबूत है?"
–"काशीनाथ ने अजय को बताया था कलैक्शन करीब चौबीस घंटे उसके अधिकार में रहेगा फिर उसका ग्राहक आकर उसे ले जाएगा। जब अजय को इस बात की जानकारी थी तो जाहिर है पार्टनर होने के नाते मदन मोहन भी यह जरूर जानता होगा।
–"अब मैं आखिरी बात जानना चाहता हूँ।" मजूमदार ने पूछा–"क्या मदन मोहन की जमानत होने देने में आप अड़ंगा डालेंगे?"
–"वकील साहब, आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं मदन मोहन के खिलाफ कितना सॉलिड केस है। मैं कल उसे अदालत में पेश करके एक हफ्ते का रिमांड लूंगा। इस हालत में उसकी जमानत नहीं हो सकेगी। फिर भी आप चाहें तो शौक से कोशिश कर सकते है।"
–"आपकी साफ बात मुझे पसंद आई, इंस्पैक्टर।" मजूमदार ने कहा और खड़ा हो गया–"क्या मैं मदन मोहन से मिल सकता हूँ?"
–"नहीं।" रविशंकर ने साफ इंकार कर दिया।
मजूमदार और दिलीप केसवानी चले गए।
रविशंकर ने अजय की ओर देखा।
–"अब आप कहिए, रिपोर्टर साहब।"
अजय ने गहरी सांस ली।
–"मानना पड़ेगा सरकमस्टांशियल एवीडेंसेज के दम पर तुमने सचमुच मजबूत केस बनाया है। लेकिन मैं नहीं मानता काशीनाथ की हत्या मदन ने की थी।"
रविशंकर ने भौहें चढाईं।
–"क्यों?"
–"इसलिए कि मदन मोहन एक निहायत शरीफ और ईमानदार आदमी है। काशीनाथ और उसके संबंधों को देखते हुए मुझे यकीन नहीं आता वह काशीनाथ की हत्या के बारे में सोच भी सकता था।"
–"चौबीस लाख के कलैक्शन की खातिर भी नहीं?"
–"नहीं। वह न तो लालची है और न ही दगाबाज। इससे भी बडी बात है उसकी माली हालत मजबूत है।"
–"यह कोई दलील नहीं है।"
–"मैं दलील नहीं दे रहा। मैंने अपना विचार बताया है। मुझे मदन मोहन की बेगुनाही पर पूरा यकीन है।"
–"क्यों?"
–"क्योंकि मुझे उसकी कहानी पर यकीन है। मैं समझता हूँ उसे बड़े योजनाबद्ध तरीके से इस मामले में इस बुरी तरह फंसाया गया है कि वह निकल ही न सके।"
रविशंकर मुस्कुराया।
–"किसने फंसाया?"
–"हत्यारे ने।"
–"और हत्यारा कौन है?"
–"कलैक्शन का ग्राहक। क्या करोड़ीमल या मदन मोहन ने बताया है ग्राहक कौन था?"
–"नहीं। उन्होंने इस बात की जानकारी होने से साफ इंकार कर दिया।"
–"क्या तुम्हें करोड़ीमल की इस बात का पूरा यकीन है उसने मदन मोहन को फोन नहीं किया था?"
–"हां, मैं तसदीक कर चुका हूं। और भी जांच करूंगा।"
–"क्या तुम्हें मदन मोहन की कहानी वाकई मनगढ़ंत लगती है?"
–"हां, क्योंकि उसकी कहानी को सच साबित करने वाला मामूली सा भी सबूत मुझे नहीं मिला है। अगर तुम कोई सॉलिड प्रूफ ला सकते हो तो मैं वादा करता हूं उस पर गौर जरूर करूंगा।"
–"क्या मदन मोहन से मिलवा सकते हो?"
–"नहीं। मैं अपने मजबूत केस का सत्यानाश कराना नहीं चाहता।"
–"एक बेगुनाह को फाँसी के फंदे पर लटकवाना चाहते हो?"
–"तथ्यों और सबूतों के आधार पर उसे बेगुनाह करार नहीं दिया जा सकता।"
–"लेकिन उसके खिलाफ जो सबूत हैं उन्हें फ्रेम भी तो किया जा सकता है।"
–"तुम साबित कर दो वे सब फ्रेम्ड हैं।"
अजय ने जवाब नहीं दिया।
चन्द क्षण सोचने के बाद, उसने पूछा–"काशीनाथ के घर में जो फोन काल आई थी वो किसकी थी?"
–"मदन मोहन की पत्नी मुक्ता सेठी की।"
अजय चकराया।
–"क्या कहा था उसने?"
–"उसने मुझे काशीनाथ समझते हुए बताया मदन मोहन रात दस बजे के बाद बिजनेस के सिलसिले में कहीं गया था और वापस नहीं लौटा। वह जानना चाहती थी क्या काशीनाथ को पता है उसका पति कहां गया है। मैंने इंकार कर दिया।"
–"इसी वजह से तुम्हें उस पर शक हो गया?"
–"हां, और जब मैं उसकी कोठी पहुंचा तो वहां पहले से ही काली एम्बेसेडर खड़ी थी। जीप की हैड लाइट्स की रोशनी कार की डिग्गी के ढक्कन पर पड़ी तो वहां बना सुराख भी अनायास ही मुझे नजर आ गया। सुराख की जांच करने पर मेरा शक मजबूत हो गया। फिर कार की तलाशी लेने और मदन मोहन की कहानी सुनने पर मुझे यकीन ही हो गया।"
–"रवि, अगर तुम एक मिनट के लिए मदन मोहन की कहानी पर भी यकीन कर लो तो तुम्हें यह भी नजर आ जाएगा कि उस बेचारे को वाकई फ्रेम किया गया है।"
–"उसकी कहानी पर यकीन करने की कोई वजह मेरे सामने नहीं है।" रविशंकर ने खीज कर कहा–"मैं तथ्यों और सबूतों के आधार पर राय कायम किया करता हूं। किसी के शराफत और नेकचलनी के रिकार्ड पर नहीं और फिर मेरी समझ में तो यह भी नहीं आता कोई क्यों मदन मोहन को फ्रेम करना चाहता है।"
–"तुम अच्छी तरह जानते हो किसी को फ्रेम करने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है पुलिस का सारा ध्यान फ्रेम किए गए व्यक्ति पर ही केन्द्रित हो जाए और असली अपराधी खुद को साफ बचा जाए।" कहकर अजय ने पूछा–"क्या तुम्हें मदन मोहन की कहानी निहायत लचर नजर नहीं आती?"
–"आती है।"
–"अगर उसने वाकई काशीनाथ की हत्या की होती तो क्या अपने लिए कोई इतनी दमदार कहानी नहीं गढ़नी थी जिससे उसे एलीबी मिल सके?"
–"इन तर्कों से कोई फायदा नहीं होगा, अजय। अगर तुम उसे बेगुनाह मानते हो तो एक हफ्ते के अन्दर ऐसा ठोस सबूत ले आओं जो उसे बेगुनाह साबित कर दे।"
अजय खड़ा हो गया।
–"उस कलैक्शन का पता लगाने के बारे में क्या सोचा है तुमने?"
–"तुम उसकी तस्वीरें भिजवा देना। उसके बारे में पहले मदन मोहन से पूछताछ करूंगा फिर अपने ढंग से पता लगाऊंगा।"
अजय ने चुपचाप अपना हैल्मेट उठाया और बाहर निकल गया।
* * * * * *
0 Comments