मेरे फ्लैट वाली इमारत के सामने पुलिस की एक जीप खड़ी थी जिसमें दो पुलसिये सवार थे । उन्होंने मुझ जीप के पीछे कार पार्क करते देखा । मैं कार में से उतरकर उसे ताला-वाला लगाकर इमारत के फाटक पर पहुंचा । फाटक खोलकर मैं भीतर दाखिल होने ही वाला था कि मेरे कानों में एक आदेश पड़ा - “ठहरो !”
मैं ठिठका, घूमा ।
मैंने देखा, वे दोनों पुलसिये जीप में से उतर आये थे ओर मेरी तरफ बढ़ रहे थे । उनमें से एक ए एस आई था और दूसरा हवलदार ।
“सुधीर कोहली !” - ए एस आई बोला - “तुम्हारा नाम सुधीर कोहली है ?”
“है ।” - मैं बोला - “फिर ?”
“तुम्हें हमारे साथ चलना है ।”
“कहां ?”
“नारायणा ।”
“वहां क्या है ?”
“वहां एक आदमी पुलिस की हिरासत में है जो कहता है कि वो तुम्हारा आदमी है ।”
“मेरा आदमी ?”
“हां । तुम प्राइवेट डिटेक्टिव हो ?”
“हां ।”
“वो कहता है, वो तुम्हारे लिए काम कर रहा था ।”
“क्या काम कर रहा था ?”
“बॉडीगार्ड का काम कर रहा था वो ।”
“कर रहा था ? अब नहीं कर रहा है ?”
“नहीं, अब नहीं कर रहा ।”
“क्यों ?”
“एक तो इसलिए क्योंकि वो पुलिस की हिरासत में है और दूसरे इसलिए कि अब उस काम की जरूरत नहीं रही ।”
“जरूरत नहीं रही !” - चिन्तित तो मैं पहले ही हो उठा था, अब तो मेरा कण्ठ सूखने लगा - “क्यों जरूरत नहीं रही ?”
“क्योंकि जिस लड़की का वो बॉडीगार्ड बना हुआ था वो मर चुकी है ।”
“मर चुकी है ? लेकिन अभी कुछ घण्टे पहले तो मैं उसे सही-सलामत छोड़कर आया था !”
“उसे मरे दो घण्टे हो चुके हैं ।”
मुझे कमला ओबराय का ख्याल आया । कहीं मेरे जाने के बाद उसी ने तो जूही का काम तमाम नहीं कर दिया था !
“देखो ।” - मैं बोला - “तुम उस लड़की की बात कर रहे हो न जिसका नाम जूही चावला है, जो फैशन मॉडल है और जो नारायना विहार के सत्तर नम्बर बंगले में रहती है ?”
“हां । उसी की बात कर रहे हैं हम ।”
“और जो आदमी हिरासत में है और अपने-आपको मेरा आदमी बताता है, उसका नाम हरीश पाण्डे है ?”
“हां ।”
“जूही की मौत के वक्त पाण्डे कहां था ?”
“असल में पता नहीं कहां था, लेकिन जो कुछ वो अपनी जुबान से कह रहा है, वो यह है कि वो उसके बंगले के बाहर बैठा था ।”
“कोई गिरफ्तार हुआ ?”
“गिरफ्तार ! काहे के लिए ?”
“जूही के कत्ल के लिए और काहे के लिए ?”
“यह किसने कहा कि उसका कत्ल हुआ है ?”
“और क्या वो जुकाम से मर गई ?”
“उसने आत्महत्या की है ।”
“आत्महत्या !”
“हां । खुदकुशी ! सुसाइड !”
“वो किसलिए ?”
“कुछ बताकर नहीं मरी वो ।”
“अपने पीछे कोई सुइसाइड नोट नहीं छोड़ा उसने ?”
“नहीं छोड़ा । अब जुबानदराजी बन्द करो और चलने की तैयारी करो ।”
“मैं ऐसे नहीं चल सकता ।”
“तो कैसे चल सकते हो ?”
“पहले मुझे ऊपर अपने फ्लैट में जाकर कपड़े बदलने दो और हुलिया सुधारने दो ।”
“तुम्हारे हुलिए को क्या हुआ है ? ऐसी गत कैसे बनी तुम्हारी ?”
“मैं रोड़ी कूटने वाले इंजन से टकरा गया था ।”
“जाओ, जो करना है, करके आओ । पांच मिनट में नीचे आ जाना ।”
“अच्छा ।”
“पांच मिनट में नीचे न आये तो मैं ऊपर आ जाऊंगा ।”
“अच्छा-अच्छा ।”
मैं अपने फ्लैट में पहुंचा ।
वहां अपने दो कमरों में अस्त-व्यस्त तो मुझे कोई चीज न दिखाई दी लेकिन फिर भी मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि मेरी गैर मौजूदगी में वहां किसी के पांव पड़े थे ।
मैं टॉयलेट में पहुंचा ।
यह देखकर मैंने चैन की सांस ली कि वहां पानी की टंकी में लैजर बुक सही-सलामत मौजूद थी ।
लैजर बुक के दर्शन कर चुकने के बाद कहीं मुझे अपनी जेब का ख्याल आया ।
मैंने जल्दी से अपने कोट की भीतरी जेब टटोली ।
मेरी मुकम्मल कमाई गायब थी ।
और किसी जेब में नोटों के होने की सम्भावना नहीं थी लेकिन फिर भी मैंने सारी जेबें टटोलीं ।
बाईस हजार के नोट कहीं से बरामद न हुए ।
और अब पुलिस के झमेले की वजह से मैं उसकी वसूली के लिए पंजाबी बाग वापिस भी नहीं जा सकता था ।
फिर मैंने यही सोचकर अपने-आपको तसल्ली दी कि अभी लैजर बुक मेरे पास थी जो कि बाईस हजार से कहीं ज्यादा नोटों में बदल सकती थी ।
सबसे पहले मैंने अपने खून के रंगे कपड़े उतारे । फिर मैंने गरम पानी में डिटौल डालकर और उनमें रुई डुबो-डुबोकर अपने सूजे थोबड़े की मरम्मत आरम्भ की ।
उसके बाद मैंने कपड़े तब्दील किए ।
अन्त में मैंने रायल सैल्यूट की बोतल निकाली और एक मिनट में उसके बड़े बड़े दो पैग हलक से नीचे उतारे ।
तभी ए एस आई वहां पहुंचा ।
मैंने बोतल उसे आफर की लेकिन उसने हिचकिचाते हुए इनकार में सिर हिला दिया ।
“मैंने तुम्हें पांच मिनट में नीचे आने के लिए कहा था ।” - वह कठोर स्वर में बोला ।
“बस, आ ही रहा था ।”
“अब हिलो ।”
“बस, सिर्फ एक मिनट और ।”
“अब क्या है ?”
“जो है वो अभी सामने आता है ।”
मैंने अपनी मैटल की चपटी फ्लास्क निकाली, जिसमें कि आधी बोतल व्हिस्की आ जाती थी । उस फ्लास्क को मैंने व्हिस्की से भर लिया और उसे अपनी पतलून की पिछली जेब में डाल लिया ।
“चलो ।” - मैं बोला ।
उसके साथ मैं नीचे आया ।
मुझे नीचे बरामदे में अपना मकान-मालिक खड़ा दिखाई दिया ।
“क्या बात है ?” - मेरे साथ एक पुलिसिये को देखकर वह बोला । बाहर खड़ी जीप पहले ही उसके नोटिस में आ चुकी थी ।
“कुछ नहीं, ओक साहब ।” - मैं बोला - “कोई खास बात नहीं ।”
“तुम बड़ी जल्दी लौट आए ?”
“जल्दी ! मतलब?”
“जैसे तुमने अपने कपड़े मंगवाए थे, उससे तो नहीं लगता था कि तुम आज ही वापिस आ जाओगे ।”
“मैंने अपने कपड़े मंगवाये थे ?”
“हां । ले नहीं गया था वह आदमी तुम्हारे कुछ कपड़े ?”
“कौन आदमी ?”
“जो यहां आया था ?”
“किस्सा क्या है, ओक साहब ?”
“भई चन्द घंटे पहले यहां एक आदमी आया था । मैं इत्तफाक से तब तक यहीं खड़ा था । उसने मुझसे पूछा था कि तुम्हारा फ्लैट कौन-सा था । मैंने कहा था कि तुम घर पर नहीं थे । वह बोला कि उसे मालूम था और यह कि दरअसल तुम्हीं ने उसे यहां अपने कुछ कपड़े ले आने के लिए भेजा था ।”
“यानी कि वह मेरे फ्लैट में गया था ?”
“गया ही होगा । मैं कोई आधा घंटा यहां ठहरा रहा था । मेरे सामने तो वह नीचे उतरा नहीं था ।”
“उसने मेरे फ्लैट का ताला खोला था ?”
“खोला ही होगा ।”
“आप उस आदमी का हुलिया बयान कर सकते है ?”
उसने किया ।
वह सरासर जान पी एलैग्जैण्डर का हुलिया था ।
“वह यहां पहुंचा कैसे था ?”
“एक शोफर ड्रिवन शानदार विलायती कार पर ।”
“बाहर एक विलायती कार खड़ी है, जरा देखिये, वह वो ही तो नहीं ?”
उसने बाहर खड़ी इम्पाला को फौरन पहचान लिया ।
तो मेरा शक गलत नहीं था कि मेरे पीछे कोई मेरे फ्लैट में घुसा था ।
इसीलिए एलैग्जैण्डर राजेंद्र प्लेस से हमारे साथ पंजाबी बाग नहीं आया था । अपने चमचों के साथ मुझे पंजाबी बाग रवाना करके वह पहले मेरे फ्लैट पर पहुंचा था ।
लैजर की तलाश में जो कि उसे नहीं मिली थी ।
“अब चलो ।” - ए एस आई उतावले स्वर में बोला ।
मैं उसके साथ जाकर जीप में सवार हो गया ।
हवलदार ने फौरन जीप वहां से भगा दी ।
“क्या हुआ ?” - रास्ते में मैंने पूछा - “कैसे आत्महत्या की लड़की ने ?”
“उसने अपने-आपको किचन में बंद कर लिया और कुकिंग गैस का सिलेण्डर खोल दिया ।”
“गैस से मरी है वो ?”
“हां । ओपन एण्ड शट केस है आत्महत्या का ।”
“लेकिन क्यों की उसने आत्महत्या ?”
“दिल जो टूट गया था बेचारी का ।”
“दिल कैसे टूट गया था ?”
“भई, वो अमरजीत ओबराय से मुहब्बत करती थी । वो मर गया तो उसके गम में लड़की ने आत्महत्या कर ली । ऐसा आम होता है ।”
“लेकिन इस बार भी ऐसा ही हुआ है, यह मुबारक ख्याल किसका है ? तुम्हारा ?”
“नहीं । सब-इंस्पेक्टर यादव का ।”
“बाई दि वे, तुम्हारा क्या नाम है ?”
“मेरा नाम रावत है । भूपसिंह रावत ।”
“यादव इस वक्त कहां है ?”
“वहीं है । मौकायवारदात पर ।”
“जूही चावला के बंगले पर ? नारायणा ?”
“हां ।”
“मुझे क्यों तलब किया है उसने ?”
“तुम्हारे आदमी की वजह से ।”
“और मेरा आदमी क्यों गिरफ्तार है ?”
“गिरफ्तार किसने कहा है ?”
“तो और क्या है ?”
“मैंने कहा है, वो पुलिस की हिरासत में है ।”
“हिरासत में भी क्यों है ?”
“क्योंकि उसने लाश बरामद की थी ।”
“लाश बरामद करने से क्या कोई....”
“छोड़ो, यार” - रावत बोला - “ऐसे सवाल यादव साहब से करना । खामखाह मेरे कान मत खाओ । मैं पहले ही बहुत खपा बैठा हूं ।”
मैं खामोश हो गया ।
मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और जीप के नारायणा पहुंचने की प्रतीक्षा करने लगा ।
यह बात मेरे गले से नहीं उतर रही थी कि जूही ने आत्महत्या की थी । हकीकतन जरूर उसका कत्ल हुआ था । वह ओबराय के हत्यारे को जानती थी और हत्यारा इस हकीकत से वाकिफ था । जूही चावला का मुंह सदा के लिए बंद कर देने की नीयत से ही उसने उसका काम तमाम किया था ।
और यह काम कमला ओबराय का हो सकता था ।
जिस वक्त जीप जूही के बंगले पर पहुंची, उस वक्त ठीक साढ़े ग्यारह बजे थे । बंगले की तकरीबन सारी बत्तियां जल रही थीं । वहां पुलिस की एक गाड़ी और मौजूद थी ।
रावत मुझे लेकर यूं बंगले में दाखिल हुआ, जैसे वह कोई इनाम के काबिल काम करके लौटा था ।
यादव अपने दल-बल के साथ मुझे ड्राइंगरूम मे मिला ।
वहां मनहूस सूरत बनाए पाण्डे भी मौजूद था ।
“बधाई ।” - मुझे देखते ही यादव व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“किस बात की ?” - मैं सकपकाया ।
“इतनी शानदार बॉडीगार्ड सर्विस की । बहुत खूब गार्ड दिया तुम्हारे क्लायंट की बॉडी को तुम्हारे आदमी ने !”
“जूही ने आत्महत्या की है ?”
“हां । गैस से ।”
“फिर मेरा आदमी इसमें क्या कर सकता था ? बॉडीगार्ड क्लायंट के दुश्मन से उसकी जान की हिफाजत के लिए होता है । जब कोई खुद अपना दुश्मन बन जाए और खुद अपनी जान लेने पर उतारू हो जाए, तो इसमें बॉडीगार्ड क्या कर सकता है ? बॉडीगार्ड क्लायंट के साथ नहीं सो सकता । वह उसके साथ टॉयलेट में नहीं जा सकता था ।”
“मरने वाली तुम्हारी क्लायंट थी ?”
“हां ?”
“क्या सबूत है ?”
“क्या मतलब ?” - मैं अचकचाया ।
“इस बात का क्या सबूत है कि तुमने इस आदमी को” - उसने पाण्डे की तरफ इशारा किया - “जूही के कहने पर यहां तैनात किया था ? मुमकिन है जूही की निगरानी तुम किसी और की खातिर करवा रहे होवो ।”
“कोई और कौन ?”
“जैसे कमला ओबराय ।”
“नॉनसैंस ।”
“तुम साबित कर सकते हो कि जूही ने तुमसे बॉडीगार्ड की मांग की थी ? अपने क्लायंट से तुम कोई एग्रीमेण्ट तो करते होगे ?”
“करता हूं, लेकिन जुबानी ।”
“फीस ! फीस तो लेते होगे ?”
“लेता हूं ।”
“जूही से भी ली होगी ?”
“ली थी ।”
“दिखाओ ?” - उसने मेरी तरफ हाथ फैलाया ।
“क्या ?”
“फीस का चैक जो तुम्हें जुही ने दिया था ।”
“उसने मुझे नकद रकम दी थी ।”
“उसकी रसीद तो तुमने उसे दी होगी ?”
“नहीं दी ।”
“यह कैसे धन्धा चलाते ही तुम ! तुम पर तो इंकमटैक्स का केस बन सकता है ।”
“भाई साहब, रसीद बुक मैं कोई जेब में थोड़े ही लिए फिरता हूं ! आज शाम ही तो मैं उससे मिला था । कल सुबह ऑफिस पहुंचता तो वहां से रसीद भिजवा देता ।”
“मार कहां से खाई ?”
“कहीं से नहीं ।”
“थोबड़ा तो उधड़ा पड़ा है तुम्हारा ?”
“बाथरूम में पांव फिसल गया था । मुंह के बल गिरा था मैं ।”
“यह झूठ बोल रहा है ।” - रावत बोला - “इसकी फ्लैट में दाखिल होने से पहले ही बुरी हालत थी । जब यह अपने फ्लैट के सामने पहुंचा था, तब इसके कपड़े खून से रंगे हुए थे और चेहरा लहूलुहान था ।”
यादव ने गौर से मेरी ओर देखा ।
मैंने लापरवाही से सिगरेट का एक कश लगाया ।
“और यह” - रावत फिर बोला - “एक इन्तहाई शानदार इम्पाला कार पर वहां पहुंचा था । मुझे तो इसकी इम्पाला कार की औकात नहीं लगती ।”
“तुम्हारी अपनी खटारा फियेट कहा गई ?” - यादव ने पूछा ।
“मरम्मत के लिए गई है ।” - मैं बोला ।
“उसकी मरम्मत अभी मुमकिन है ?”
“अभी है ।”
“इम्पाला किसकी है ?”
“एक दोस्त की ।”
“दोस्त का नाम बोलो ।”
मैं खामोश रहा ।
“अरे यह कोई छुपने वाली बात है ! कार अभी भी तुम्हारे घर के आगे खड़ी होगी । मैं उसके रजिस्ट्रेशन से मालूम कर लूंगा ।”
“कार का नम्बर मुझे याद है ।” - रावत बोला - “डी आई बी 9494 ।”
“और उसका रंग सफेद था ?” - यादव बोला ।
“हां ।”
“भीतर की अपहोलस्ट्री वगैरह भी सफेद ?”
“हां ।”
“वो एलैग्जैण्डर की कार है ।” - यादव ने फिर मुझे घूरा - “तुम्हारे हत्थे एलैग्जैण्डर की कार कैसे चढ़ गई ?”
मैंने उत्तर न दिया ।
“जरूर तुम्हारी यह दुर्गति भी उसी की वजह से हुई है ।”
मैं परे देखने लगा । मैंने जेब से फ्लास्क निकालकर विस्की का एक घूंट भरा ।
“यह क्या है ?” - यादव बोला ।
“हैल्थ टानिक ।”
उसने मुझे घूरकर देखा ।
“विस्की । रायल सैल्यूट । खींचोगे ?”
“शटअप !”
मैंने फ्लास्क वापिस जेब में रख ली ।
“अब साफ-साफ बोलो ।” - यादव बोला - “क्या माजरा है ?”
“पहले तुम बताओ, क्या माजरा है !” - मैं बोला - “क्या किस्सा है जूही की आत्महत्या का ? क्यों कर ली उसने आत्महत्या ? कैसे कर ली ? कब कर ली ? लाश कहां है ?”
“इतने सवाल एक साथ ?”
“बारी-बारी पूछूं ?”
“नहीं । ऐसे ही ठीक है । और इनके जवाब कोई सीक्रेट नहीं है ।”
“दैट्स वैरी गुड ।”
“आत्महत्या, जाहिर है कि, उसने अपने आशिक अमरजीत ओबराय की मौत से गमजदा होकर की । ऐसा उसने किचन की गैस इस्तेमाल करके किया । आत्महत्या का वक्त हमारा डॉक्टर कोई शाम आठ बजे का फिक्स करके गया है और लाश यहां से उठवा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी गई है ।”
“यहां एक नौकरानी भी तो थी । वो उस वक्त कहां थी ?”
“वो सात बजे यहां से चली गई थी । वह करीब एक गांव में रहती है । मेरी उससे बात हो चुकी है ।”
“वह यहां नहीं रहती ?”
“यहीं रहती है लेकिन बुधवार और शनिवार शाम को सात बजे घर चली जाती है और फिर सुबह आठ बजे आती है ।”
“रावत कहता है कि लाश पाण्डे ने बरामद की थी ?”
“हां । और इसी ने पुलिस को लाश की खबर भी की थी । तुम्हें तो पता नहीं ये क्या कहानी सुनायेगा लेकिन हमें इसने यही कहा है कि यह साढ़े सात बजे यहां पहुंचा था । इसने इमारत को अंधेरे में डूबी पाया था और जब इसने कॉलबैल बजाई थी तो भीतर से कोई जवाब नहीं मिला था । इसने समझा था कि जूही कहीं चली गई थी । यह बाहर ही बैठकर उसका इंतजार करने लगा था । फिर दस बजे तक भी जूही यहां न लौटी तो इसने बंगले का मुआयना करने का फैसला किया था । वह पिछवाडे में पहुंचा था । वहां एक रोशनदान की झिर्री में से निकलती गैस की तीखी गन्ध इसे मिली थी । इसने रोशनदान पर चढ़कर उसके शीशे में से भीतर झांका था तो इसने किचन को गैस से भरा पाया था । तब इसने पुलिस को फोन किया था ।”
“आई सी !”
“हमें तो इसने यही कहानी सुनाई है । तुम्हें शायद कुछ और कहे ?”
“यही हकीकत है ।” - पाण्डे बोला ।
“अब तुम अपनी कहानी सुनाओ ।” - यादव बोला ।
“मेरी कहानी बहुत मामूली है ।” - मैं बोला - “पांच बजे जूही के ही बुलावे पर मैं यहां आया था । जूही मुझे बतौर बॉडीगार्ड एंगेज करना चाहती थी । मेरे पास वक्त नहीं था इसलिए मैंने उसे समझा दिया कि यह काम मेरा एक आदमी कर सकता था । उसे यह इंतजाम मंजूर था इसलिये मैंने यह काम पाण्डे को सौंपा था ।”
“तुम कब तक यहां थे ?”
“तकरीबन साढे छ: बजे तक ।”
“तब लड़की यहां अकेली थी ?”
“नहीं । उसकी नौकरानी थी ।”
“मैंने नौकरानी के बारे में नहीं पूछा । कोई और था यहां पर ?”
मैं हिचकिचाया ।
उसकी आंखें सलाखों की तरह मेरे चेहरे पर गड़ी रहीं ।
“तब यहां” - मैं कठिन स्वर में बोला - “कमला ओबराय थी ।”
“वह पहले से यहां मौजूद थी ?”
“नहीं । मेरे सामने आई थी । मेरी रवानगी से थोड़ी ही देर पहले ।”
“क्यों आई थी ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“तुम्हें जरूर मालूम है । जब मुझे मालूम है तो तुम्हें क्यों नहीं मालूम ?”
“मालूम है तो पूछ क्यों रहे हो ?”
“मैं तुम्हारी जुबानी सुनना चाहता हूं । वह वसीयत की वजह से यहां आई थी ?”
“तुम्हें वसीयत के बारे में मालूम हो चुका है ?”
“हां । आज मैं बलराज सोनी से मिला था ।”
“उसी ने बताया होगा कि उससे मिलने मैं भी आया था ?”
“हां । अब कबूल करो कि बीवी माशूका से लड़ने आई थी कि मरने वाला माशूका को बीवी से ज्यादा दौलत का वारिस क्यों बना गया ?”
“वजह यही थी लेकिन जब मैं यहां से विदा हुआ था तब तक बीवी का कहरभरा मूड रुख्सत हो चुका था और वो दोनों बड़े प्रेमभाव से यहां बैठी थीं ।”
“उन दोनों में और प्रेमभाव ! मैंने तो नहीं सुना कि किसी औरत का अपनी सौतन से कभी कोई प्रेमभाव स्थापित हुआ हो !”
“वो पुराने जमाने की बातें हैं । आजकल तो इस मामले में मर्द निरा उल्लू का पट्ठा साबित होता है । वे मर्द को ताक में रख देती हैं और खुद बहनें बन जाती हैं ।”
“तुमने उन दोनों को अपना क्लायंट कैसे बना लिया ? उनमें से किसी को एतराज नहीं हुआ था ?”
“अभी नहीं हुआ था । जब होता तो जाहिर है कि एक पार्टी मेरा पत्ता काट देती ।”
“जूही की मौत से तो मिसेज ओबराय को बड़ा फायदा हुआ !”
मैं खामोश रहा । उसके इसी नतीजे से तो मुझे दहशत हो रही थी ।
“ओबराय की वसीयत के मुताबिक जूही चावला के पहले मर जाने की सूरत में उसकी मुकम्मल जायदाद की मालकिन उसकी बेवा थी ।”
“तुम्हारी इस बात से तो ऐसा लगता है जैसे तुम्हें शक है कि मिसेज ओबराय ने जूही का कत्ल किया है । साथ ही तुम कह रहे हो कि लड़की आत्महत्या करके मरी है ।”
“पहली बात मेरी अक्ल कहती है । दूसरी हालात कहते हैं ।”
“जरा हालात का नजारा मैं भी कर सकता हूं ? आखिर मरने वाली मेरी क्लायंट थी ।”
“आओ ।”
पिछवाड़े के बरामदे के रास्ते यादव मुझे विशाल किचन में लाया । उसमें दो दरवाजे थे, एक जो बरामदे में खुलता था, जिससे कि मैं अभी दाखिल हुआ था और जो टूटा पड़ा था । दूसरा दरवाजा भीतर कहीं खुलता था और उस वक्त भी मजबूती से बन्द था । वहां माहौल में गैस की गन्ध अभी भी बसी हुई थी ।”
“दोनों दरवाजे बन्द थे ?” - मैंने पूछा ।
“हां । खिड़कियां और रोशनदान भी ।”
“चाबी कहां थी ? मरने वाली की जेब में ?”
“नहीं । भीतरी दरवाजे के भीतर से बन्द ताले में । अभी भी वहीं है ।”
“मुझे दिखाई दे रही है । मैंने सोचा, शायद चाबी बाद में पुलिस ने वहां लगाई हो ।”
“हमने नहीं लगाई । चाबी शुरू से वहीं थी । दोनों दरवाजे भीतर से बन्द थे । बरामदे वाला दरवाजा तोड़कर हम भीतर घुस पाये थे ।”
“टूटे दरवाजे की चाबी कहां है ?”
“उसकी कोई चाबी नहीं । वो एक ही चाबी दोनों दरवाजों में लगती है । मैंने चैक किया है ।”
“लाश कहां थी ?”
“फर्श पर गैस के सिलेण्डर के पहलू में ।”
“लाश पर किसी प्रकार की चोट या जोर-जबरदस्ती का निशान नहीं ?”
“नहीं ।”
“कोई सुसाइड नोट ?”
“नहीं मिला ।”
“यादव साहब, जो बात मैं कहने जा रहा हूं, वो कहनी तो नहीं चाहिए क्योंकि वो मेरे बाकी बचे क्लायंट के कमला ओबराय के - खिलाफ जाती है लेकिन फिर भी कह रहा हूं । यहां स्टेज जरूर बड़ी नफासत से आत्महत्या की सेट की गई है लेकिन यह आत्महत्या का केस नहीं हो सकता ।”
“क्यों ?”
“पहली बात तो यह कि केस को आत्महत्या बताने लायक यहां है क्या ? यही न कि किचन के दोनों दरवाजे बन्द थे और आप लोगों को एक दरवाजा तोड़कर भीतर दाखिल होना पड़ा था ?”
“हां ।”
“लेकिन ये दोनों ताले बिल्ट-इन-लॉक हैं यानी कि पल्ले की लकड़ी के भीतर फिट हैं और चाबी के छेद आर-पार इस प्रकार बने हुए हैं कि अन्दर या बाहर दोनों ही तरफ से चाबी तालों में डाली जा सकती है और ताला खोला और बन्द किया जा सकता है ।”
“लेकिन चाबी भीतर की तरफ मिली थी ।”
“एक चाबी भीतर की तरफ मिली थी । ऐसे दो तालों की तो चार चाबियां होंगी । बाकी तीन कहां हैं ?”
“क्या पता कहां हैं ?”
“मेरा मतलब है कोई और चाबी किसी और के पास भी हो सकती है । मसलन हत्यारे के पास । वह जूही को अचेत करके गैस के पास छोड़ सकता है और एक चाबी भीतर ताले में छोड़कर दूसरे दरवाजे का ताला बाहर से लगाकर खिसक सकता है ।”
“हूं ।”
“दूसरे, अपनी जान के लिए फिक्रमंद होकर अपनी जान की रक्षा के लिए बॉडीगार्ड का इन्तजाम कर चुकने के बाद उसके आनन-फानन ही आत्महत्या कर लेने की कोई तुक नहीं बैठती । ओबराय की मौत से अगर वह इतनी गमजदा थी कि उसकी जीने की चाह खत्म हो गई थी तो उसने अपने लिए बॉडीगार्ड की जरूरत क्यों महसूस की ? और फिर बॉडीगार्ड की जरूरत बताते वक्त उसने साफ-साफ यह अन्देशा जाहिर किया था कि उसे डर था कि उसका भी कत्ल हो सकता था ।”
“अच्छा !”
“हां । मुझे लगा था कि शायद वह ओबराय साहब के कातिल को जानती थी । और कातिल भी यह जानता था कि जूही उसकी हकीकत से वाकिफ थी । इसीलिए जूही को खतरा था कि उसका मुंह बन्द करने के लिए उसका कत्ल हो सकता था । “
“ऐसा लड़की ने कहा था ?”
“कहा नहीं था लेकिन मुझे उसकी बातों से लगा था ।”
“तुम्हें उसको पुलिस के पास जाने की राय देनी चाहिए थी ।”
“मैंने दी थी । लेकिन वह इस बात के लिए तैयार नहीं हुई थी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वो हद से ज्यादा डरी हुई थी । जरूर वो समझती थी कि अगर वो ऐसा कोई कदम उठायेगी तो हत्यारा न करता भी उसका कत्ल करेगा ।”
“और ऐसा करने के लिए तुम्हारे सामने ही हत्यारा यहां पहुंच गया था ।”
“तुम्हारा इशारा मिसेज ओबराय की तरफ है ?”
“और किसकी तरफ होगा ?”
मैं खामोश रहा ।
कमला ओबराय की निर्दोषिता के मामले में पूरी तरह से आश्वस्त तो मैं कभी भी नहीं था लेकिन अब तो रहा-सहा आश्वासन भी हवा होता जा रहा था ।
“तुम यहां से साढ़े छः बजे गए थे ?” - वह बोला ।
“हां । बताया तो था ।”
“यहां से कहां गए थे ?”
“करोल बाग । पाण्डे को यहां भिजवाने के लिए ।”
“फिर ?”
“ये सवालत तुम मेरे पिटे हुए थोबड़े की दास्तान जानने के लिए कर रहे हो ?”
“यही समझ लो ।”
“करोलबाग से मैं सीधा अपनी एक फ्रैंड के घर गया था । मेरी उस फ्रैंड का हसबैंड रात को घर नहीं आने वाला था लेकिन साला न सिर्फ आ गया, बड़ी नाजुक घड़ी में आ गया । कमीने ने मार-मारकर भुस भर दिया मेरे में । अब आगे से सबक ले लिया है मैंने की शादीशुदा औरत से यारी नहीं करूंगा, खास तौर से ऐसी औरत से जिसका हसबैंड इतना वादाशिकन हो कि रात को घर नहीं आऊंगा कहकर भी घर लौट जाता हो ।”
“बक चुके ?”
“हां ।”
“पूरी तरह से बक चुके ?”
“हां ।”
“तो अब संजीदगी से हकीकत बताओ ।”
मैंने असहाय भाव से कंधे झटकाये ।
“तुम बहुत उपद्रवी आदमी हो । कल दिन में पहले तुमने ओबराय के आदमियों से हाथापाई की...”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“फिर” - मेरी बात की ओर ध्यान दिये बिना वह कहता रहा - “कल रात को तुमने ओबराय के घर में चौधरी को पीटा । इस लिहाज से तुम्हारी भी बारी आनी ही थी जो कि आज आ गई । तुम्हारी यह गत एलैग्जैण्डर के हाथों बनी है । और यह बात मैं तुमसे पूछ नहीं रहा हूं, तुम्हें बता रहा हूं ।”
“तुम समझते हो एलैग्जैण्डर ने मुझे इसलिए पिटवाया है क्योंकि मैंने उसके आदमी को पीटा था ?”
“क्योंकि तुम्हारे पास ऐसी कोई चीज है जिसे हासिल करने के लिए एलैग्जैण्डर मरा जा रहा है ।”
“कैसे जाना ?”
“चौधरी की वजह से जाना । उसकी ओबराय की स्टडी में मौजूदगी की वजह से जाना । एलैग्जैण्डर के उसको आनन-फानन छुड़ा ले जाने की वजह से जाना । तुम्हारे उधड़े हुए थोबड़े पर लटके साइन बोर्ड से पढकर जाना । और एलैग्जैण्डर की कार की तुम्हारे पास मौजूदगी से जाना । थोड़े हैं जानकारी के इतने जरिये ?”
“नहीं । काफी हैं । काफी से ज्यादा हैं ।”
“अब मेरे सब्र का और इम्तहान लिए बिना बताओ कि हकीकत क्या है ?”
“सुनो । एलैग्जैण्डर को यह वहम हो गया लगता है कि जिस चीज की उसे तलाश है, वो मेरे पास है । पर वह चीज क्या है, यह न मुझे मालूम है, न वो बताता है । वह बस यही रट लगाये रहा था कि उसकी जो चीज मेरे पास है वह मैं उसे वापिस करूं । उसने उस चीज के बदले में मुझे दस हजार रुपए भी ऑफर किये थे लेकिन जिस चीज के अस्तित्व तक की मुझे खबर नहीं, वो मैं उसे कहां से पैदा करके देता ? यही बात बड़ी संजीदगी से उसे समझाने के लिए आज मैं उससे मिला था लेकिन उसे मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ ।
पहले जो चीज वो मुझसे दरख्वास्त करके मांग रहा था, फिर जिसकी वो मुझे कीमत अदा करने को तैयार था, उसी को तब उसने जबरन हासिल करने की कोशिश की । उसी जबरदस्ती का नतीजा वो मार-पीट निकला जिसने कि मेरा थोबड़ा सुजा दिया ।”
“हकीकतन ऐसी कोई चीज तुम्हारे पास नहीं है ?” - वह संदिग्ध स्वर में बोला ।
“आनेस्ट, नहीं है ! होती तो मैं क्या पागल हूं कि उसके बदले में हासिल होने वाले दस हजार रुपये भी छोड़ता और उसकी वजह से इतनी मार भी खाता ?”
“शायद वह ज्यादा कीमती चीज है और तुम उसकी दस हजार से ज्यादा कीमत चाहते हो !”
“इतनी मार खाने के बाद भी ?”
“मार तुमने कोई खास नहीं खाई है । तुम्हारी कोई हड्डी नहीं टूटी है, कोई पसली नहीं चटकी है, कोई गहरा जख्म नहीं लगा है । मोटे माल के लालच में इतनी मार तुम खा सकते हो । अब अपनी अपेक्षित मोटी कीमत में जरूर तुम इस मार की कीमत भी जोड़ लोगे ।”
“तुम तो यार....”
“मैं तुम्हारी जात पहचानता हूं, प्राइवेट डिटेक्टिव साहब ! पैसे की खातिर तुम बहुत कुछ कर सकते हो ।”
“तौबा !”
“अब बताओ वो चीज क्या है ?”
“मुझे नहीं पता ।”
“तुम्हारे पास एलैग्जैण्डर की कोई चीज नहीं ?”
“न ।”
“जिस चीज की तलाश में कल चौधरी ओबराय की स्टडी में घुसा था, वह तुम्हारे हाथ नहीं लग गई हुई ?”
“नहीं ।”
“ऐसा अगर हुआ होगा तो बात चौधरी को भी मालूम होगी और मिसेज ओबराय को भी ।”
“तुम ऐसा सोचते हो फिर भी तुमने चौधरी को अपने चंगुल से निकल जाने दिया ।”
“लेकिन मिसेज ओबराय अभी मेरी पहुंच से परे नहीं है ।”
मैंने सशंक भाव से उसकी तरफ देखा । किस फिराक में था वह पुलिसिया ?
“चलो ।” - वह बोला ।
“कहां ?” - मैं हड़बड़ाया ।
“गोल्फ लिंक । ओबराय की कोठी पर । मिसेज ओबराय से बात करने ।”
“इस वक्त ?”
“हां । इस वक्त ।”
“वह सो चुकी होगी ।”
“जाग जाएगी ।”
“सुबह चलें तो...”
“नहीं । अभी चलो । सुबह तक तो तुम उसे हजार तरह की पट्टी पढ़ा लोगे ।”
“अच्छी बात है ।”
हथियार डाल देने के अलावा और कोई चारा था जो नहीं ।
***
हम गोल्फ लिंक पहुंचे ।
कमला ओबराय से हमारी मुलाकात हुई । वह हमें ड्राइंग रूम में ले आई ।
मैंने देखा कि उसकी सूरत से ऐसा नहीं लगता था जैसे वह सोते से उठी हो ।
“मैं आपसे चन्द सवाल पूछना चाहता हूं ।” - यादव बोला ।
“इस वक्त ?” - कमला बोली ।
“हां । कोई ऐतराज ?”
“नहीं । कोई ऐतराज नहीं । पूछिये क्या पूछना चाहते हैं आप ?”
जो पहला सवाल यादव ने कमला से किया, वह उसने कमला की नहीं, मेरी सूरत पर निगाह जमाये हुए किया ।
“कल रात जब चौधरी नाम का चोर यहां पकड़ा गया था, तब सुधीर ने आपके पति की स्टडी की तलाशी ली थी ?”
“जी हां, ली थी ।” - कमला बोली ।
“क्यों ली थी ?”
“यह अंदाजा लगाने के लिए कि चोर यहां से क्या चुराने आया हो सकता था ।”
“कोई अंदाजा लगा ?”
“नहीं । यहां का कीमती समान तो सही-सलामत मौजूद था ।”
“उसे गैरकीमती समान की तलाश भी हो सकती थी !”
“यहां से कोई चीज गायब नहीं थी ।”
“होती तो चौधरी के पास से बरामद होती ।” - मैं बोला ।
“शटअप !” - वह बड़े हिंसक भाव से गुर्राया ।
मैंने फौरन होंठ बंद कर लिए ।
“यहां से सुधीर ने कोई चीज उठाई हो !” - अपलक मेरी तरफ देखते हुये यादव ने सवाल किया ।
“कौन सी चीज ?” - कमला बोली ।
“कोई भी चीज । कीमती या मामूली ।”
“इसने तो कुछ नहीं उठाया था स्टडी में से ।”
“शायद आपकी जानकारी के बिना इसने वहां से कोई चीज पार कर दी हो ?”
“नहीं । स्टडी में हर वक्त मैं इसके साथ थी ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
तब कहीं जाकर यादव ने मुझ पर से निगाह हटाई और में भी जान में जान आई ।
“आपको” - यादव ने नया सवाल किया “वसीयत कि खबर तो लग चुकी होगी ?”
“जी हां ।” - कमला गंभीरता से बोली - “लग चुकी है ।”
“छक्के तो छूट गये होंगे आपके यह जानकार कि आपके पति ने अपनी जायदाद के आपसे कहीं ज्यादा बड़े हिस्से का वारिस एक गैर औरत को - जूही चावला को - बना दिया था ।”
“छक्के छूटने वाली बात ही थी यह । छक्के क्या छूट गए थे, मेरा तो भेजा हिल गया था । लेकिन अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता ।”
“क्यों फर्क नहीं पड़ता ?”
“क्योंकि वसीयत की जो गड़बड़ मेरे पति कर गए हैं, वो अब ठीक हो जाएगी ।”
“कैसे ठीक हो जाएगी ?”
“मेरी जूही चावला से बात हुई है । उसकी मेरे पति की वसीयत में कोई दिलचस्पी नहीं । उसने स्वेच्छा से ऐसा इंतजाम कर देने का वादा किया है कि सारी जायदाद मुझे ही मिले ।”
“अच्छा ! ऐसा उसने खुद कहा है ?”
“जी हां ।”
“वह आपके पति कि करोड़ों कि संपत्ति कि वारिस बनने कि ख्वाहिशमंद नहीं ?”
“नहीं ।”
“कमाल है !”
“हैरान होने कि जगह अगर आपने यहां आने की असली वजह बतायें तो इससे हम सबको सुविधा होगी ।”
“असली वजह ?”
“जी हां । इतनी अक्ल तो मुझमें भी है कि ये जो नन्ही-मुन्नी बातें आप पूछ रहे हैं, यही तो आपके यहां आगमन की असली वजह हो नहीं सकतीं ।”
“बहुत समझदार हैं आप । वाकई असली वजह यह नहीं ।”
“तो फिर असली वजह क्या है ?”
“जूही चावला मर गई है ।”
“मर गयी है ?” - उसके नेत्र फैल गए - “कैसे मर गयी है ?”
“उसने आत्महत्या कर ली है ।”
“जूही ने ?”
“जी हां ।”
“मैं नहीं मानती ।”
“क्यों ? क्यों नहीं मानतीं आप ?”
“क्योंकि यह नामुमकिन है । एक तो वह आत्महत्या करने वाली किस्म की लड़की ही नहीं थी । बहुत प्यार था उसे जिंदगी से । दूसरे, अभी शाम ही को तो उसने सुधीर के माध्यम से अपने लिए एक बॉडीगार्ड का इंतजाम किया था । ऐसे में यूं आनन-फानन वो अत्महत्या कैसे कर सकती थी ?”
“मुमकिन है, वो आपके पति की मौत से आपकी उम्मीद से ज्यादा गमजदा रही ही !”
“गमजदा वो थी लेकिन इतनी गमजदा नहीं थी कि अत्महत्या कर लेती ।”
“अगर ऐसी बात है तो आपके ख्याल से कत्ल किसने किया होगा उसका ?”
“मैंने कब कहा कि उसका कत्ल हुआ होगा ?”
“आपने नहीं कहा । लेकिन अगर आप कहतीं तो आप किसे कातिल करार देतीं ?”
“मैं इस बारे में क्या कह सकती हूँ ?”
“कोशिश तो कीजिये ।”
“नहीं । यूं अटकलें लगाना नाजायज बात होगी ।”
“आज शाम आप जूही के बंगले पर गई थीं ?”
“हां ।”
“वहां सुधीर भी था ? पहले से मौजूद था वो वहां ?”
“हां ।”
“यह आपके सामने वहां से रुखसत हुआ था ?”
“हां ।”
“कितने बजे ?”
“फिर आपने पीछे क्या किया ?”
“मैं जूही से बातें करती रही ।”
“किस बाबत ?”
“वसीयत की ही बाबत । तभी तो उसने कहा था कि उसकी वसीयत में कोई दिलचस्पी नहीं थी । पहले हम दोनों में माहौल बड़ा तल्ख था । लेकिन वसीयत नाम की कबाब की हड्डी जब यूं बीच में से निकल गई तो हम दोनों में बहुत शांति और मित्रता के संबंध स्थापित हो गए थे ।”
“आप वहां कब तक ठहरी थीं ?”
“सुधीर के जाने के कोई पंद्रह-बीस मिनट बाद तक ठहरी थी मैं वहां ।”
“यानी कि सात से पहले आप वहां से विदा हो चुकी थीं ?”
“काफी पहले । शायद पौने सात ही ।”
“फिर कहां गईं आप ?”
“कहीं भी नहीं । वापिस घर लौट आई । यहां ।”
“इस बात का क्या सबूत है कि जूही ने ऐसा कहा था कि उसकी आपक्से पति की दौलत में कोई दिलचस्पी नहीं थी ?”
“ऐसा तो उसने मेरे सामने भी कहा था ।” - मैं बोला ।
“सुधीर ठीक कह रहा है ? - उसने पूछा ।
“हां ।” - कमला बोली ।
फिर उसने बड़े कर्तज्ञ भाव से मेरी तरफ देखा ।
“ऐसा जुबानी जमा-खर्च कोर्ट-कचहरी में तो काम नहीं आता ।”
“कोर्ट-कचहरी में इस जुबानी जमा-खर्च की अब जरूरत नहीं है, जनाब” - मैं बोला - “वसीयत में तो यह साफ लिखा है कि अगर जूही चावला की मौत हो जाये तो सारी जायदाद की मालिक वैसे ही हतप्राण की विधवा बन जाएगी ।”
“मुझे मालूम है” - वह शुष्क स्वर में बोला - “वसीयत में क्या लिखा है !”
“मैं खामोश हो गया ।
यादव कुछ क्षण सोचता रहा और फिर एकाएक उठ खड़ा हुआ ।
“मैं जा रहा हूं” - वह बोला - “लेकिन जाने से पहले आपको एक आप ही के फायदे की बात कहकर जाना चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“आप अभी शक से बरी नहीं है और अभी इस आदमी की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ नहीं है । आपके किसी काम आने की जगह, हो सकता है, यह शख्स अपने साथ आपको भी चौड़े में ले डूबे । दूसरे, यह खयाल भी अपने जेहन से निकाल दीजिये कि इसके पास कोई जादू का डंडा है जो हर किसी को हर दुश्वारी से निजात दिला सकता है । यह बहुत खुराफाती आदमी है । यह अपने क्लायंट को भी धोखा दे सकता है ।”
“तुम” - मैं आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “मेरी तौहीन कर रहे हो ।”
“हंह !”
“तुम मेरा धंधा बिगाड़ रहे हो ।”
उसने मेरी तरफ पीठ फेर ली और आगे बढ़ा ।
“तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो ?” - मैं बोला ।
यादव ठिठका, घूमा, उसने प्रश्नसूचक भाव से मेरी तरफ देखा ।
“यह शराफत है तुम पुलिस वालों की ?” - मैं बोला - “मुझे घर से लाये थे, घर छोडकर जाओ ।”
पहले मुझे लगा कि वह कोई सख्त बात कहने जा रहा था लेकिन वह फिर धीरे से बोला - “चलो ।”
उसने फिर मेरी तरफ से पीठ फेर ली ।
कमला ऐन मेरे कान के पास मूंह ले जाकर फुसफुसाई - “वापिस आना । अभी ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
मैं यादव के साथ हो लिया ।
हम दोनों जीप में सवार हुए ।
कार ग्रेटर कैलाश से विपरीत दिशा की ओर चल निकली ।
“मेरा घर इधर थोड़े ही है !” - मैंने विरोध किया ।
“चुप बैठो ।” - यादव घुड़ककर बोला ।
“लेकिन...”
“सुना नहीं ?”
मैं खामोश हो गया ।
उसने एंबेसडर होटल के टैक्सी स्टैंड पर ले जाकर जीप रोकी ।
“उतरो ।” - वह बोला ।
“यहां ? - मैं हड़बड़ाया ।
हां । यहां से घर के लिए टैक्सी कर लो ।”
“भाड़ा कौन देगा ?”
“पेसेंजर देगा और कौन देगा !”
“यह धांधली है ।”
“हैं ।” - वह दर्शनिकतापूर्ण स्वर में बोला - “है ।”
मैं जीप से उतर गया ।
तुरंत जीप यह जा, वह जा ।
मैं पैदल ही वापिस लौटा ।
यादव कमला को क्यों ढील दे रहा था, यह बात मेरी समझ से बाहर थी । वह मूर्ख नहीं था जो इतना भी न समझता होता कि किचन का दरवाजा बाहर से भी बंद किस जा सकता था, बार-बार आत्महत्या का राग तो वह मुझे परखने के लिए अलाप रहा था । और घटनास्थल पर घटना के समय के आसपास कमला की मौजूदगी साबित हो चुकी थी । इसी प्रकार अपने पति के कत्ल के लिए भी साधन, अवसर और उद्देश्य तीनों कमला को उपलब्ध थे । यह बात दिलचस्पी और रहस्य से खाली नहीं थी कि यादव फिर भी उसे गिरफ्तार नहीं कर रहा था ।
कमला मुझे साइड डोर पर मिली ।
“क्या बात थी ?” - मैंने उत्सुक भाव से पूछा - “वापिस क्यों बुलाया ?”
“तुमसे बात करनी है ।” - वह बोली - “आओ ।”
“बात सुबह नहीं हो सकती थी ?” - मैं उसके साथ भीतर दाखिल होता हुआ बोला ।
“आओ तो ।”
हम ड्राइंगरूम में पहुंचे । लेकिन वह वहां रुकने के स्थान पर भीतर स्टडी की तरफ बढ़ी । मैंने प्रतिवाद करना चाहा लेकिन उसे रुकती न पाकर खामोशी से उसके पीछे चलता रहा ।
स्टडी में दाखिल होते ही मैं ठिठका ।
भीतर वकील बलराज सोनी बैठा था ।
उसके सामने जानीवाकर ब्लैक लेबल की एक खुली बोतल थी जिसमें से लगता था कि वह कई पैग पी चुका था । ताजा जाम उसके हाथ में था ।
“आओ ।” - वह बोला - “आओ ।”
“आप यहां !” - मैं बोला - “इस वक्त !”
“हां । कोई ऐतराज ?”
“ऐतराज मुझे क्यों होने लगा ? ऐतराज होगा तो घर की मालकिन को होगा ।”
“वकील साहब” - कमला जल्दी से बोली - “यहां मेरे से बिजनेस की बात करने आए हैं ।”
“बिजनेस की बात करें, सोशल बात करें, कुछ भी बात करें, मुझे क्या ?”
“आओ, बैठो ।” – वकील बोला ।
मैं उसके सामने बैठ गया ।
कमला ने मेरे लिए जाम तैयार किया । उसने अपने लिए भी जाम तैयार किया ।
“आप” – मैं ओला – “पहले से ही यहां मौजूद थे या मेरे लौटकर आने के दौरान पधारे हैं ?”
उसने उत्तर न दिया । उसने अपना गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ ।
“एंजॉय यूअरसैल्फ, माई फ्रैंड !” – वह बोला – “आई एम लीविंग ।”
तुरंत वह बाहर की तरफ बढ़ा ।
“मैं अभी आई” – कमला बोली और उसके साथ हो ली ।
मैं पीछे अकेला रह गया । मैंने अपने ताबूत की एक कील को आग लगाई और अपना गिलास खाली करके नया पैग तैयार कर लिया ।
बढ़िया विस्की थी । क्यों छोड़ता भला मैं ? वैसे भी वो कहते हैं न कि मालेमुफ्त दिलेबेरहम ।
कोई पांच मिनट बाद वह वापिस लौटी ।
मैंने देखा कि उसने अपने बाल खोल लिए थे और साड़ी कि जगह एक बड़ी झीनी, बड़ी सैक्सी, ताजी विधवा के लिए बहुत अशोभनीय, नाइटी पहन ली थी । उसकी पारखी निगाहों ने मुझे कुर्सी पर बैठे देखा, जिस पर कि एक ही शख्स बैठ सकता था । मेरे करीब आकार दूसरी कुर्सी पर बैठने कि जगह वह थोड़ा परे दीवार के साथ लगे दीवान पर जा बैठी ।
“इधर आओ ।” - वह बोली ।
गिलास उठाये मैं उसके करीब पहुंचा । मैं दीवान पर बैठ गया । वह मुझसे सटकर बैठ गयी । उसके नौजवान जिस्म से उठती सोंधी-सोंधी खुशबू से मुझ पर मदहोशी तारी होने लगी ।
“इससे पहले कि मुझे नशा हो जाये” - मैं बोला - “और मेरी अक्ल की दुक्की पीट जाये, मैं तुमसे एक सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“क्या ?” - वह मादक स्वर में बोली ।
“सवाल आसान है लेकिन जवाब शायद मुश्किल हो और तुम्हें देना पसंद न हो ।”
“मुझे देना पसंद है ।”
“सवाल जाने बिना ही ?”
“सवाल जानती हूं मैं ।”
मैं हड़बड़ाया ।
“वो जुदा सवाल है ।” - मैं बोला - “जो सवाल इस वक्त मेरे जेहन में है, वो जुदा है ।”
“वो क्या सवाल है ?”
“सच-सच जवाब देने का वादा करती हो ?”
“हां ।”
“मेरे से सच बोलने से तुम्हारे पर कोई आंच नहीं आएगी । मैं हर हालत में तुम्हारा तरफदार हूं ।”
“दैट्स गुड । आई एम ग्लैड । अब सवाल बोलो ।”
“तुमने अपने पति का कत्ल किया है ?”
“नहीं ।” - वो निस्संकोच बोली ।
“और जूही का ?”
“उसका भी नहीं ।”
“तुम उसे जीवित उसके बंगले पर छोड़कर आई थीं ?”
“हां । जीवित और सही-सलामत । एकदम चौकस ।”
मैं खामोश रहा ।
“और क्या पूछना चाहते हो ?” - वह बोली ।
“कुछ नहीं ।”
“तुम्हें मुझ पर विश्वास है ?”
“हां ।”
“तुम मानते हो मैं बेगुनाह हूं ?”
“तुम कहती हो तो मानता हूं ।”
“ओह, सुधीर, तुम कितने अच्छे हो !”
वह मेरे से लिपट गई । उसने मेरे गले में बांहें डालकर मुझे अपनी तरफ घसीटा । उसने मेरे होठों पर अपने गुलाबी होंठ रख दिये ।
विस्की का गिलास अभी भी मेरे हाथ में था ।
उसने मेरा निचला होंठ इतनी जोर से काटा कि उसमें से खून छलक आया ।
मैंने जोर से सिसकारी भरी ।
“यह तुम्हारी सजा है ।” - वह इठलाई ।
“किस बात की ?”
“मुझे थामने की जगह अभी भी विस्की का गिलास थामे रहने की ।”
मैंने गिलास करीब पड़ी मेज पर रख दिया ।
फिर मैं बाज की तरह उस पर झपटा ।
उसने एतराज न किया ।
पुरुष के साथ सहवास में जोर-जबर्दस्ती और धींगामुश्ती शायद वो पसंद करती थी ।
मेरे हाथ उसके जिस्म की विभिन्न गोलाइयों पर फिरने लगे ।
हम दोनों की ही सांसें भरी होने लगीं।
जब मैंने उसकी नाइटी खोलने की कोशिश की तो वह एतराज करने लगी ।
“क्या हुआ ?” - मैं हैरानी से बोला ।
“यहां नहीं ।” वह मेरे एक कान की लौ अपने तीखे दांतों से चुभलाती हुई बोली ।
“तो कहां ?” – मैं तनिक हांफता हुआ बोला ।
“बैडरूम में ।”
“वो कहां है ?”
“ऊपर ।”
“चलो ।”
“लेकर चलो ।”
“उसके साथ लिपटे-लिपटे ही पहले मैंने हाथ बढ़ाकर अपना विस्की का गिलास उठाया और उसे खाली किया, फिर मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसके निर्देश पर चलता हुआ उसे पहली मंजिल पर स्थित एक बैडरूम में ले आया ।
वह गुलाबी दीवारों वाला, साटन की गुलाबी चादरों से और सिल्क के गुलाबी पर्दों से सुसज्जित बैडरूम था ।
मैंने उसे पलंग पर डाल दिया ।
फिर मैं अपने जूते, कोट और टाई अपने जिस्म से जैसे नोचकर अलग किए ।
उसी क्षण उसने हाथ बढ़ाकर मुझे पलंग पर घसीट लिया ।
मैं उसके पहलू में जाकर गिरा।
फिर एकाएक कमरा जैसे लट्टू बन गया जो पहले धीरे-धीरे और फिर तेजी से घूमने लगा । मुझे एक की दो कमला दिखाई देने लगीं।
फिर चार ।
फिर आठ ।
फिर मेरी आंखों के सामने दीवाली के अनार फूटने लगे ।
सितारे ही सितारे । लाल, नीले पीले और हरे ।
फिर एकाएक लट्टू घूमना बंद हो गया और घुप्प अंधेरा छा गया ।
जब मुझे होश आया तो मैंने उगते सूरज की रोशनी खिड़की के पर्दे में से छन-छानकर भीतर आती पाई ।
मैं हड़बड़ाकर उठा ।
मैंने अपनी कलाई-घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
साढ़े छ बज चुके थे ।
मेरा सिर मुझे मन भर के पत्थर की तरह भारी लगा ।
मैंने अपने इर्द-गिर्द निगाह डाली ।
कमला दीन-दुनिया से बेखबर मेरे पहलू में सोई पड़ी थी ।
मैं हैरान होने लगा ।
रात से दिन कैसे हो गया ?
जितनी विस्की मैंने कल पी थी, उससे तिगुनी-चौगुनी विस्की तो मैंने हजारों बार पी थी यानी कि नशे की वजह से तो ऐसा हुआ हो नहीं सकता था । ऊपर से मेरा सिर भी अजीब तरह से था । वह भारीपन हैंगओवर वाला तो नहीं था ।
तो फिर ?
मेरी अक्ल ने यही गवाही दी कि मैं पिछली रात किसी षड्यंत्र का शिकार हुआ था । जरूर मेरी विस्की में बेहोशी की दवा मिलाई गई थी ।
किसने किया होगा ऐसा ?
मेरी निगाह अपने-आप ही सोई पड़ी कमला की तरफ उठ गई ।
इसने ऐसा क्यों किया ?
जवाब मेरे पास नहीं था ।
उन हालात में उसे उठाकर जवाब हासिल करने का मैं ख्वाहिशमंद नहीं था । मैंने फर्श पर गिरे पड़े अपने कपड़े समेटे और उनके साथ टॉयलेट में दाखिल हो गया ।
खान मार्केट में एक टी-स्टाल था जो कि खुला था । मैं उसमें जा बैठा । अब मेरी तबीयत पहले से बेहतर थी लेकिन सिर का भारीपन अभी भी बरकरार था । उसी की वजह से मुझे चाय की भारी तलब लग रही थी ।
टी-स्टाल में आठ-दस आदमी मौजूद थे ।
छोकरा मुझे चाय दे गया । मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और चाय की चुस्कीयां लेने लगा । सिगरेट मुझे इतना कसैला लगा कि मैंने उसे एक ही कश लगाकर फेंक दिया । अलबत्ता चाय मुझे राहत पहुंचा रही थी ।
तभी एक वर्दीधारी हवलदार ने स्टाल में कदम रखा ।
वह मालिक के काउंटर के पास ही एक कुर्सी घसीटकर बैठ गया । जिस रफ्तार से उसके हाथ में चाय का गिलास पहुंचा, उससे मुझे लगा कि वह मालिक का परिचित था ।
“दारोगा साहब ।” - एकाएक मालिक बोला - “यह क्या हो रहा है दिल्ली शहर में तुम्हारे राज में ?”
“अब क्या हुआ ?” – हवलदार हड्बड़ाया ।
“अखबार नहीं देखा आपने आज का ?”
“नहीं । क्या है उसमें ?”
“वही है जो रोज होता है । साल में तीन सौ पैंसठ दिन होता है । फिर एक कत्ल की खबर छपी है ।”
“अब कौन मर गया ?”
“आपने जान पी एलैगजैण्डर का नाम सुना है ?”
“उसका नाम किसने नहीं सुना ?”
“उसी का कोई आदमी बताया जाता है मरने वाला ।”
“कौन सा आदमी ?” - मैं बोले बिना न रह सका - “नाम नहीं छपा ?”
दोनों ने घूरकर मेरी तरफ देखा ।
“छपा है ।” - मालिक बोला - “रामप्रताप चौधरी नाम का आदमी है कोई ।”
“अखबार है तुम्हारे पास ?”
“इस वक्त नहीं है । कोई ले गया है । मंगाऊं ?”
“नहीं । जरूरत नहीं ।”
फिर वह खुद ही बताने लगा कि चौधरी के कत्ल की बाबत अखबार में क्या छपा था ।
“किसी ने चाकू उतार दिया पट्ठे के दिल में ।” - मालिक बोला - “ग्रेटर कैलाश के एक फ्लैट में उसकी लाश पाई गई है । कहते हैं वह फ्लैट सुधीर कोहली नाम के जिस आदमी का है, वह कोई प्राइवेट डिटेक्टिव है और उसका परसों रात छतरपुर में हुए अमरजीत ओबराय के कत्ल से भी कोई रिश्ता है । ऊपर से मजे की बात यह है कि जूही चावला नाम की एक लड़की का वो बॉडीगार्ड बना हुआ था लेकिन काम उसका भी हो गया । दारोगा साहब, कहते हैं यह लड़की ओबराय की माशूका थी ।”
“होगी ।” - हवलदार लापरवाही से बोला ।
“पेपर के मुताबिक अब पुलिस सुधीर कोहली को तलाश कर रही है और वो पट्ठा कहीं नहीं मिल रहा । जरूर सारे कत्ल उसी ने किए होंगे और अब चौधरी के इस तीसरे कत्ल के बाद अपने-आपको फंसता पाकर फूट गया होगा कहीं ।”
“कानून से भला कोई बच सकता है ।” - हवलदार दार्शनिकतापूर्ण स्वर में बोला - “कानून के हाथ लंबे होते हैं । आज नहीं तो कल पकड़ा जाएगा वह सुधीर कोहली का बच्चा ।”
मैं कुछ न बोला । मैं सिर झुकाये चाय की चुस्कियां लेता रहा ।
मैंने चाय खत्म की और उठकर बाहर की तरफ बढ़ा ।
तभी एक छोकरा मालिक का अखबार लेकर वापिस लौटा ।
“यह देखो, दारोगा साहब ।” - मालिक अखबार खोलकर हवलदार को दिखाने लगा - “यह रही खबर ।”
मैंने काउंटर पर चाय की अठन्नी रखी ।
मैंने स्टाल से बाहर एक ही कदम निकाला था कि एकाएक एक मजबूत हाथ मेरे कंधे पर पड़ा ।
मैं घूमा ।
हवलदार मुझे थामे था और हैरानी भरी निगाहों से मुझे देख रहा था ।
“खबरदार !” - वह चेतावनी भरे स्वर में बोला ।
“किस बात से ?”
“भागने की कोशिश न करना । तुम गिरफ्तार हो ।”
“वो किसलिए ?”
“तुम सुधीर कोहली हो ।”
“कैसे जाना ?”
उसने काउंटर पर खुले पड़े अखबार की तरफ इशारा किया ।
अखबार के मुखपृष्ठ पर मेरी तस्वीर छपी हुई थी ।
0 Comments