फ्रैंक जब वापिस लौटा तब तक अन्धेरा होने लगा था ।
सुनील दीवान पर लेटा हुआ सिगरेट पी रहा था ।
फ्रैंक को देखकर वह बैठ गया ।
फ्रैंक उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“काम बना ?” - सुनील ने आशापूर्ण स्वर से पूछा ।
“पक्का तो कुछ पता नहीं लगा लेकिन इतना मैं जरूर कह सकता हूं कि मार्शल के राजनगर में ही होने की बड़ी तगड़ी सम्भावना दिखाई देती है ।”
“कैसे ?”
“आप ने मार्शल के सन्दर्भ में कभी कमला नाम की किसी लड़की का नाम सुना है !”
“हां, सुना है कमला मार्शल की सहयोगिनी थी ।”
“केवल सहयोगिनी ही नहीं, दोनों, का जीना मरना ही एक दूसरे के साथ था । कमला के बिना मार्शल की और मार्शल के बिना कमला की कल्पना ही नहीं की जा सकती । कमला बुरे से बुरे काम में मार्शल की सहयोगिनी रही है । मार्शल की लम्बी जेल यात्रा के बाबजूद आज भी उनका यह रिश्ता नहीं टूटा है ।”
“फिर ?”
“कमला राजनगर में मौजूद है और अगर कमला राजनगर में है तो फिर मार्शल भी कमला से दूर नहीं होगा ।”
“कमला कहां है ?”
“कमला राबर्ट स्ट्रीट की एक इमारत में रहती है । उसने अपना नाम बदल कर रेखा अग्रवाल रख लिया है और वह राबर्ट स्ट्रीट में बड़े धरेलू ढंग से गुमनाम सी रह रही है ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर उठ खड़ा हुआ ।
“तुम भी मेरे साथ चलो ।” - वह बोला ।
“कहां ?” - फ्रैंक बोला ।
“राबर्ट स्ट्रीट ।”
“आप कमला से मिलेंगे ?”
“हां ।”
“कमला बहुत खतरनाक औरत है मास्टर । अगर उसे सन्देह हो गया कि आप मार्शल को सूंघते हुए उसके घर आये हैं तो वह आपका खून करने से भी नहीं हिचकेगी ।”
“फ्रैंक ।” - सुनील छाती फुलाकर बोला - “मैं क्या तुम्हें कम खतरनाक दिखाई देता हूं ।”
सुनील के कहने का ढंग ऐसा था कि फ्रैंक के होठों पर बरबस मुस्कराहट दौड़ गई ।
“चलो !” - सुनील बोला ।
“चलिए ।” फ्रैंक बोला ।
दोनों द्वार की ओर बढे । द्वार के समीप पहुंच कर फ्रैंक ठिठका । फिर वह वापिस कोने में रखी एक मेज के समीप पहुंचा । उसने चाबी निकालकर मेज की दराज खोली और उसमें से एक छोटी सी रिवाल्वर निकालकर जेब में रख ली ।
“यह तोपखाना साथ क्यों ले जा रहे हो ?” - रिवाल्वर देखकर सुनील बोला ।
“कमला और मार्शल का मामला है, मास्टर !” - फ्रैंक बोला - “जरूरत पड़ सकती है ।”
सुनील चुप रहा ।
दोनों रेस्टोरेन्ट से बाहर आ गए ।
सुनील अपनी मोटर साईकिल के समीप पहुंचा । उसने मोटर साईकिल स्टार्ट की और फ्रैंक को पीछे बैठने का संकेत किया ।
फिर मोटर साईकिल भीड़ भरी तंग सड़क पर आगे बढ गई ।
राबर्ट स्ट्रीट पहुंचकर सुनील ने पूछा - “कौन-सी इमारत है ?”
“अभी आगे है ।” - फ्रैंक बोला ।
“मोटर साइकिल यहीं छोड़ देते हैं ।” - सुनील बोला और उसने मोटर साइकिल को फुटपाथ पर चढा फिर एक ओर खड़ा कर दिया ।
दोनों मोटर साईकिल से उतर पड़े और सड़क पर आगे बढे ।
एक स्थान पर फ्रैंक रुक गया और सड़क की दूसरी ओर की एक इमारत की ओर संकेत करता हुआ बोला - “वह इमारत है । इसकी दूसरी मंजिल पर कमला उर्फ रेखा अग्रवाल का फ्लैट है ।”
सुनील चुप रहा ।
“फ्रैंक !” - थोड़ी देर बाद सुनील बोला - “तुम यहीं ठहरो । मैं भीतर जाता हूं । अगर पन्द्रह मिनट में मैं वापिस न लौटूं तो तुम भी भीतर घुस आना ।”
फ्रैंक ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“सुनील आगे बढा । उसने सड़क पार की और फ्रैंक द्वारा निर्देशित इमारत में प्रविष्ट हो गया । सीढियों के रास्ते वह दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
एक द्वार पर रेखा अग्रवाल के नाम की छोटी सी नेम प्लेट लगी हुई थी । सुनील ने द्वार के आसपास दृष्टि दौड़ाई । उसे कहीं कालबैल दिखाई नहीं दी । फिर उसने द्वार खटखटा दिया ।
तत्काल भीतर से किसी के द्वार की ओर बढते हुए कदमों की आवाज आई और फिर द्वार खुला । सुनील को द्वार पर एक सादी सी साड़ी पहने हुए एक लगभग पैंतीस साल की खूबसूरत औरत दिखाई दी ।
“फरमाइये ?” - वह औरत सहज स्वर से बोली ।
सुनील ने एक सतर्क दृष्टि अपने बायें दायें डाली और फिर गरदन को एकदम आगे निकाल कर फुसफुसाया - “मार्शल है ?”
औरत के चेहरे पर तत्काल संदेह के भाव उभर आये ।
“मार्शल ?” - वह बोली - “कौन मार्शल ? यहां कोई मार्शल नहीं रहता । शायद तुम किसी गलत घर में आ गये हो ।”
“अच्छा ।” - सुनील तनिक निराश स्वर से बोला - “क्या तुम कमला नहीं हो ?”
“यहां कोई कमला नहीं रहती । क्या तुम नेमप्लेट पर लिखा रेखा अग्रवाल का नाम नहीं पढ सकते कमला किसी और फ्लैट में रहती होगी ।”
और उसने द्वार बन्द करने का उपक्रम किया ।
सुनील ने हाथ बढाकर उसे ऐसा करने से रोका और फिर धीमे स्वर से बोला - “देखो, मैं कमला को पहचानता नहीं हूं । मुझे कमला का यही पता बताया गया था और मेरे ख्याल से तुम ही कमला हो । मैं तुम्हारे लिए अजनबी हूं इसलिए तुम मेरे सामने अपनी वास्तविकता स्वीकार नहीं कर रही हो । मैं यहां सिर्फ पीटर मौस को सावधान करने आया था । पुलिस को उसकी जानकारी हो गई है । पुलिस को मालूम हो गया है कि वह मरा नहीं है । और अब पुलिस शंकर रोड के डाके के मामले में बुरी तरह उसकी तलाश कर रही है ।”
उस औरत के चेहरे का रंग उड़ गया । वह मुंह बाये सुनील की ओर देखती रही ।
“मैं जाता हूं फिर ?” - सुनील बोला और वापिस जाने के लिए घूमा ।
“ठहरो !” - वह तीव्र स्वर से बोली ।
सुनील ठिठक गया ।
“भीतर आओ !” - वह द्वार से एक ओर हटती हुई बोली ।
सुनील कुछ क्षण हिचकिचाने का अभिनय करता रहा । और फिर अनिश्चित सा भीतर प्रविष्ट हो गया । उस औरत ने द्वार बन्द करके भीतर से चिटकनी लगा दी ।
“बैठो !” - वह बोली ।
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“अब बताओ क्या किस्सा है ?” - वह उसके सामने एक स्टूल पर बैठती हुई बोली ।
“पहले तुम बताओ कि तुम कमला ही हो न ?” - सुनील बोला ।
“हां !” - वह स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिलाती हुई बोली - “तुम बताओ बात क्या है ?”
“बात मैंने तुम्हें पहले ही बता दी है । मार्शल की जानकारी पुलिस को हो गई है । मैं यहां उसे सावधान करने आया था ।”
“तुम कौन हो ? और तुम्हारा मार्शल से क्या वास्ता है ?”
“अपने बारे में मैं इससे अधिक और कुछ नहीं बताना चाहता कि शंकर रोड के डाके में मैं भी मार्शल के साथ था ।”
“क्यों नहीं बताना चाहते ?”
“क्योंकि इसी में मुझे अपनी भलाई दिखाई देती है । जो गलती मार्शल ने की है, वह मैं नहीं करना चाहता । मार्शल हर किसी को अपने बारे में बताता फिरता था जिसका नतीजा यह हुआ है कि उसकी खबर पुलिस तक पहुंच गई है । मेरा तो यही नियम है मैडम, अपने बारे में अपनी जुबान तभी खोलो जब इसके बिना गुजर न होती हो । आई बात समझ में ?”
“नहीं ।” - कमला बोली ।
सुनील चुप रहा ।
“मार्शल की खबर पुलिस को कैसे हो गई है ?”
“उस पार्सल की वजह से जो आज सुबह राधेमोहन को भेजा गया था । पुलिस को उस पार्सल पर मार्शल की उंगलियों के निशान मिले थे ।”
कमला के नेत्र फैल गए ।
“मैडम !” - सुनील मन ही मन कमला की परेशानी का आनन्द लेता हुआ बोला - “उस पार्सल को राधेमोहन तक पहुंचाने के लिए मेरे को भी कहा गया था लेकिन मैंने सरासर इन्कार कर दिया था । मैं आदतन बखेड़े वाले काम करना पसन्द नहीं करता हूं । वैसे भी मेरे उस्ताद ने मुझे यही सिखाया है कि जिस जगह तुमने एक अपराध किया है, वहां भूलकर भी दुबारा कदम मत रखो ।”
सुनील कमला पर अपने शब्दों का प्रभाव देखने के लिए रुका और फिर बोला - “और फिर मैं तो बुनियादी तौर पर इस हक में नहीं था कि राधेमोहन को मक्खन लगाया जाए । उसको उसके कागजात लौटाना तो उसकी जुबान बन्द रखवाने के लिए रिश्वत हो गई । मेरी राय में तो उसके साथ भी बन्सीलाल जैसे तरीके से पेश आना चाहिए था ।”
कमला चुप रही । सुनील को उसके चेहरे से यूं लगा जैसे वह अपनी गलती महसूस कर रही हो ।
“मैं यहां मार्शल को केवल यह बताने आया था ।” - सुनील बोला - “कि वह सावधान हो जाये और मेरे को अपने से अलग समझे ।”
“पीठ दिखा रहे हो ।”
“यही समझ लो मैडम, मैं उम्र में छोटा जरूर हूं लेकिन अपना भला बुरा समझने की अक्ल मुझ में बहुत तगड़ी है । अगर किसी मकान की छत गिरने वाली हो तो उसको सहारा लगाकर रोकने के स्थान पर मैं छत गिरने से पहले मकान से निकल भागने में अपना ज्यादा हित समझता हूं ।”
“अच्छा एक बात बताओ ।” - कमला धीरे से बोली ।
“दो पूछो ।”
“क्या उस पार्सल पर पीटर की उंगलियों के निशानों की वजह से ही पुलिस उसके पीछे है या कोई और भी बात है ?”
सुनील हिचकिचाया ।
“कोई और भी बात है ? बताओ न ?” - कमला आग्रहपूर्ण स्वर से बोली ।
“मैडम !” - सुनील यूं बोला जैसे बहुत बड़े रहस्य का पर्दाफाश करने वाला हो - “इतनी समझ तो तुम भी रखती होगी कि पार्सल पर मिले उंगलियों के निशानों से पुलिस केवल इस नतीजे पर पहुंच सकती है कि पीटर मौस उर्फ मार्शल मरा नहीं जिन्दा है और शायद - पक्का नहीं - शंकर रोड के डाके में उसका हाथ है । लेकिन उंगलियों के निशानों में पुलिस को मार्शल का पता नहीं मालूम हो सकता । उसके लिए तो किसी ऐसे जीते जागते इन्सान की जरूरत है जो मार्शल से गद्दारी करे ।”
बात कमला की समझ में आ गई । उसके चेहरे पर दहशत के भाव दिखाई देने लगे
“मार्शल अब इतना बड़ा दादा तो रहा नहीं जितना आज से दस साल पहले था । वह स्थिति तो रही नहीं कि लोग केवल उसके नाम से ही खौफ खा जाएं । और फिर उसने नये-नये लोग भरती कर लिए जिनके चिड़ियां जैसे दिल हैं जिन्होंने जेबें काटने या छोटी मोटी चोरी चकारी के अलावा, कोई बड़ा काम नहीं किया । अब अगर ऐसे लोग डाके और डाके के दौरान में हुई हत्याओं की सारी जिम्मेदारी मार्शल पर थोप कर, खुद अपनी जान पर आंच न आने देने की फिराक में पड़ जायें तो इसमें गलती तो मार्शल की ही है ।”
“मुझे विश्वास नहीं होता कि कोई पीटर के साथ गद्दारी कर सकता है ।”
सुनील यूं हंसा जैसे कमला ने कोई बेहद बचकानी बात कर दी हो ।
“मैडम !” - वह बोला - “अपनी जान सबको प्यारी होती है । मेरी राय में तो अब मार्शल के लिए उचित यही है कि पुलिस के हत्थे चढने से पहले ही किसी सुरक्षित स्थान पर खिसक जाए इसी में उसकी भलाई है । तुम मार्शल को फौरन खतरे की सूचना दे दो ।”
“कोई जरूरत नहीं है ।” - कमला बोली - “वह अब भी जहां है सुरक्षित है ।”
सुनील को मार्शल का पता हासिल होने का मौका हाथ से जाता दिखाई देने लगा लेकिन फौरन ही उसने नई चाल चली ।
“तुम्हारा ख्याल गलत है । मार्शल अब जहां है, वहां सुरक्षित नहीं है क्योंकि अगर मंगतराम...”
और सुनील ने यूं जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया जैसे अनजाने में ही उसके मुंह से कोई ऐसी बात निकली जा रही हो जो उसे जुबान पर भी नहीं लानी चाहिए थी ।
कमला के चेहरे पर इतनी तेजी से भाव परिवर्तन हुआ कि एक क्षण के लिए सुनील भी बौखला गया । कमला के होंठ भिंच गये और उसकी निगाहों से कहर बरसने लगा । उसकी सांसें तेज हो गई और सीना तेजी से उठने गिरने लगा । उसने मजबूती से सुनील की बांह पकड़ ली और फिर फुंफकार जैसे स्वर से बोली - “यह बदमाशी मंगतराम की है । क्या मंगतराम ने मार्शल को धोखा दिया है ? क्या मंगतराम पुलिस का मुखबिर बनने की कोशिश कर रहा है ?”
मंगतराम के नाम के जिक्र मात्र ने ही बड़ा अप्रत्याशित परिणाम पैदा कर दिया था ।
“मैंने मंगतराम के बारे में कुछ नहीं कहा है ।” - सुनील अपनी बांह से उसका हाथ हटाता हुआ बोला - “तुम मेरे मुंह में से शब्द ठूंसने की कोशिश मत करो । तुम मुझे फंसाने की कोशिश मत करो ।”
“लेकिन मैं समझ गई हूं तुम क्या कहते-कहते चुप हो गए थे ।”
“मैंने कुछ नहीं कहा ।”
“तुम मंगतराम से डरते हो ?”
“हां ! मैं तो मार्शल से भी डरता हूं । मैं तुमसे भी डरता हूं । मैं सबसे डरता हूं । और मेरे मुंह से केवल मंगतराम का नाम भर सुन लेने से कोई उल्टे सीधे नतीजे मत निकालो ।”
“मैं कोई उल्टा सीधा नतीजा नहीं निकाल रही हूं लड़के । तुम्हारी जानकारी के लिए मेरे अतिरिक्त केवल मंगतराम ही ऐसा आदमी है जो यह जानता है कि मार्शल कहां छुपा हुआ है । अगर मंगतराम ने कोई गड़बड़ की है तो समझ लो कि उसकी मौत आ गई है और अगर खामखाह मंगतराम पर इलजाम लगाया है तो समझ लो कि तुम कुछ ही घड़ियों के मेहमान हो ।”
“लेकिन मैंने तो कुछ कहा ही नहीं मैडम ।” - सुनील तनिक भयभीत स्वर से बोला ।
“तुमने कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया है ।” - कमला कर्कश स्वर से बोली - “और अब मुझे यह भी समझ में आ रहा है कि मार्शल के छुपने के गुप्त स्थान पर भी मंगतराम उसके साथ क्यों चिपका हुआ है । वह शायद पुलिस वालों की खातिर मार्शल की निगरानी कर रहा है ताकि मार्शल नई जगह न खिसक जाए ।”
कमला कुछ क्षण तेजी से सांस लेती रही और फिर जहर भरे स्वर से बोली - “मैं जरा एक बार मंगतराम तक पहुच लूं और फिर अगर वह यह न चाहने लगे कि उसकी मां ने उसे कभी पैदा ही न किया होता तो मेरा नाम बदल देना ।”
“तुम जो मर्जी करना, मैं तो चला ।” - सुनील उठता हुआ बोला ।
“तुम कहीं नहीं जा सकते ।” - कमला गरजकर बोली - “तुम मेरे साथ चलोगे । इतना हंगामा मचाकर तुम इतनी आसानी से अपनी जान छुड़ाकर नहीं भाग सकते । अभी मुझे यह जानना है कि तुम सच भी बोल रहे हो या नहीं ?”
“तुम मुझे कैसे रोक लोगी ?”
“तुम जरा दरवाजे की ओर कदम बढाकर देखो ।” - कमला शांति से बोली । उसके स्वर में ऐसे विश्वास का तीव्र पुट था कि सुनील की द्वार की ओर कदम बढाने की हिम्मत नहीं हुई । वह फिर उस कुर्सी पर ढेर हो गया जिस पर से वह उठा था ।
कमला ने आगे बढकर फ्लैट के मुख्य द्वार को भीतर से ताला लगा दिया । और फिर वह बगल के कमरे में प्रविष्ट हो गई ।
सुनील ने सिगरेट सुलगा लिया ।
पांच मिनट बाद कमला बगल के कमरे से बाहर निकली । उसने कपड़े बदल लिए थे और चेहरे का रंग रोगन भी सुधार लिया था ।
“चलो !” - वह सुनील से बोली ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
दोनों फ्लैट से बाहर निकले । कमला ने फ्लैट को बाहर से ताला लगाया और फिर वे दोनों सीढियां उतरकर नीचे आ गए ।
“स्ट्रीट के मोड़ तक चलते हैं ।” - कमला बोली - “वहां से टैक्सी मिल जाएगी ।”
“ओके ।” - सुनील बोला ।
वे लोग इमारत से बाहर निकलकर एक ओर को चलने लगे ।
फ्रैंक सड़क के दूसरी ओर एक बिजली के खम्बे के साथ लगा खड़ा था । एक क्षण के लिए सुनील की निगाहें उसकी निगाहों से टकराईं । सुनील ने उसे अपने पीछे आने का संकेत किया ।
कमला के हाथ में एक बड़ा सा पर्स था । उसने उस पर्स को खोला और एक बड़े-बड़े शीशों वाला धूप का चश्मा बाहर निकाला और उसे अपनी आंखों पर चढा लिया ।
पर्स बन्द होने से पहले सुनील की निगाह पर्स के भीतर पड़ी एक खिलौने जैसी खूबसूरत रिवाल्वर पर पड़ चुकी थी ।
सुनील ने एक गुप्त दृष्टि अपने पीछे डाली ।
फ्रैंक दूसरे फुटपाथ पर अपने और उनके बीच में एक निश्चित फासला रखे लापरवाही से उसी दिशा में चला आ रहा था ।
राबर्ट स्ट्रीट के मोड़ पर टैक्सी स्टैंड था ।
सुनील और कमला जाकर एक टैक्सी में बैठ गए ।
“मारिस रोड ।” - कमला ने ड्राइवर को बताया ।
टैक्सी आगे बढ गई ।
कुछ क्षण बाद सुनील ने एक गुप्त निगाह फिर पीछे सड़क पर डाली । उसने फ्रैंक को एक अन्य टैक्सी में बैठते देखा । फिर अगले ही क्षण फ्रैंक की टैक्सी उनकी टैक्सी के पीछे लग गई ।
“मारिस रोड कहां है ?” - एकाएक सुनील ने पूछा ।
“तुम्हें नहीं मालूम ?” - कमला बोली ।
“नहीं ।”
“तुम क्या राजनगर के रहने वाले नहीं हो ?”
“राजनगर का ही रहने वाला हूं लेकिन फिर भी मैंने कभी मारिस रोड का नाम नहीं सुना ।”
“अभी जब वहां पहुंचेंगे तो देख लेना मारिस रोड कहां है ।”
सुनील चुप हो गया ।
“वहां पहुंचने पर मंगतराम से मुझे बात करने देना ।” - कमला बोली - “अगर तुमने बीच में टांग अड़ाने की कोशिश की या मंगतराम को किसी प्रकार का संकेत देने की कोशिश की तो मैं तुम्हारी एक-एक हड्डी अलग कर दूंगी ।”
“मैं चुप रहूंगा ।” - सुनील ने वादा किया ।
टैक्सी नगर की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रही ।
अन्त में टैक्सी नगर के उस भाग में पहुंच गई जो बहुत कम बसा हुआ था जहां अधिकतर प्लाट खाली थे और रास्तों पर पर्याप्त प्रकाश नहीं था ।
एक स्थान पर कमला ने ड्राइवर को टैक्सी रोकने का संकेत किया ।
टैक्सी रुकी । दोनों टैक्सी से बाहर निकल आए । सुनील ने टैक्सी का बिल चुकाने का उपक्रम नहीं किया । कमला ने एक विभिन्न दृष्टि सुनील पर डाली और फिर टैक्सी वाले को मीटर के पैसे दे दिए ।
“आओ ।” - कमला बोली और एक ओर चल दी ।
सुनील लापरवाही से अपनी जेबों में हाथ ठूंसे उसके साथ चलने लगा ।
कमला एक अन्धेरे रास्ते पर आगे बढ रही थी ।
“हम कहां जा रहे हैं ?” - कुछ क्षण चलते रहने के बाद सुनील ने पूछा ।
“हमने जाना तो इसी इमारत में है ।” - कमला बगल की एक इमारत की ओर संकेत करती हुई बोली - “लेकिन सामने से घुसने के स्थान पर हम पिछवाड़े के छोटे दरवाजे से भीतर घुसेंगे ।”
“मार्शल और मंगतराम इस इमारत में हैं ?”
“हां !”
“कोई गोदाम मालूम होता है यह ।”
“गोदाम ही है ।”
सुनील कुछ कदम और कमला के साथ चला । फिर एकाएक उसने कमला के हाथ से उसका पर्स झपट लिया ।
कमला के मुंह से एक सिसकारी निकली वह एक बार लड़खड़ाई और फिर स्वयं को नियन्त्रित करके सुनील पर झपटी ।
पर्स सुनील के हाथ से निकलकर धम्म से जमीन पर जा गिरा ।
कमला पर्स उठाने के लिए झुकी ।
सुनील ने उसको बालों से पकड़ लिया और उसे खींचकर सीधा कर दिया । पीड़ा से कमला के मुंह से चीख निकल गई । वह सुनील की पकड़ में बुरी तरह छटपटाने लगी । सुनील ने उसे घसीट कर पर्स से थोड़ा दूर कर दिया ।
उसी क्षण कमला के दोनों हाथ सुनील के चेहरे पर पड़े और फिर उन हाथों के लम्बे तेज नाखून सुनील के गालों से ले कर गरदन तक खाल में खाई सी खोदते हुए गुजर गए ।
सुनील के मुंह से कराह निकल गई । उसने कमला के बाल छोड़ दिए और मजबूती से उसके दोनों हाथ पकड़ लिए । कमला पूरी शक्ति से अपने हाथ छुड़ाने का प्रयत्न करने लगी । फिर एकाएक उसका दायां पांव हवा में लहराया और उसकी मजबूत नोंकदार सैंडिल की भरपूर ठोकर सुनील के दाएं घुटने के समीप पड़ी ।
सुनील पीड़ा से बिलबिला उठा । वह क्रोधित हो उठा । उसने कमला के दोनों हाथ छोड़ दिए । फिर उसका दायां हाथ पूरी शक्ति से हवा में घूमा और फिर उस हाथ का भरपूर झापड़ कमला के चेहरे से टकराया ।
कमला भरभरा कर मुंह के बल जमीन पर जा गिरी ।
सुनील ने जमीन से बैग उठाया, बैग में से रिवाल्वर निकाली और फिर बैग को बन्द करके कमला के जमीन पर पड़े शरीर पर उछाल दिया ।
उसने रिवाल्वर का चैम्बर खोलकर देखा । चैम्बर गोलियों से भरा हुआ था ।
“चुपचाप उठकर खड़ी हो जाओ ।” - सुनील विष भरे स्वर से बोला - “वर्ना भेजा उड़ा दूंगा ।”
कमला गालियां देती हुई उठ खड़ी हुई और अपनी सांस को व्यवस्थित करने की कोशिश करने लगी ।
“कौन हो तुम ?” - वह हांफती हुई बोली ।
सुनील ने रिवाल्वर उसकी पसलियों से सटा दी और शांत स्वर में बोला - “सवाल मत करो । चुपचाप मेरे साथ चली चलो । अगर तुमने कोई शरारत करने की कोशिश की या राह चलते किसी आदमी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की तो शूट कर दूंगा ।”
उत्तर में कमला ने जोर से उसके मुंह पर थूका ।
“मुझे औरत पर हाथ उठाते शर्म आती है लेकिन...” - सुनील बोला - “तुम मजबूर कर रही हो ।”
और उसने अपने बाएं हाथ के घूंसे का भरपूर प्रहार कमला की कनपटी पर किया । कमला पीछे को लड़खड़ाई लेकिन सुनील ने उसकी बांह पकड़कर उसे गिरने से रोक लिया फिर उसने उसी हाथ का एक थप्पड़ भड़ाक से उसके चेहरे पर जमाया ।
कमला के नेत्रों में आंसू छलक आए ।
सुनील ने उसकी साड़ी के पल्लू से अपना मुंह पोंछा और फिर अपना रिवाल्वर वाला हाथ उसकी बांह में पिरो दिया । रिवाल्वर कमला के पेट से जा सटी ।
“चलें ?” - सुनील ने नम्र स्वर से पूछा ।
कमला ने उत्तर नहीं दिया । वह लड़खड़ाती हुई उसके साथ चल दी ।
सुनील गली से निकलकर सड़क पर आ गया ।
मोड़ पर एक टैक्सी खड़ी थी । उसके समीप आते ही टैक्सी का पिछला द्वार खुला और उसमें से फ्रैंक बाहर निकल आया ।
फ्रैंक ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
सुनील ने अपनी टाई उतारी और उसे फ्रैंक को देता हुआ बोला - “इसके हाथ बांध दो वर्ना यह अपने नाखूनों से फिर मेरे चेहरे पर दुनिया का नक्शा खींचने की कोशिश करेगी ।”
फ्रैंक टाई लेकर आगे बढा ।
कमला ने विरोध करना चाहा ।
सुनील ने रिवाल्वर सीधी कनपटी से सटा दी ।
कमला ने हाथ-पांव ढीले छोड़ दिए ।
फ्रैंक ने बड़ी मजबूती से उसके हाथ बांध दिए ।
“टैक्सी वाला कोई बखेड़ा तो नहीं करेगा ?” - सुनील ने फ्रैंक से पूछा ।
“घबराइए नहीं ।” - फ्रैंक बोला - “टैक्सी वाला मेरा जानकार है ।”
“वैरी गुड ।” - सुनील बोला । उसने कमला को टैक्सी की ओर धकेला । तीनों टैक्सी की पिछली सीट पर बैठ गए । कमला सुनील और फ्रैंक के बीच में थी । फ्रैंक ने संकेत किया । टैक्सी आगे बढ गई ।
“किधर चलूं ?” - टैक्सी वाले ने पूछा । फ्रैंक ने प्रश्न सूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“फिलहाल तो नगर के भीतर की ओर चलो ।” - सुनील बोला - “और रास्ते में कहीं पब्लिक टेलीफोन दिखाई दे तो रोकना ।”
“वह तो मारिस रोड के मोड़ के पैट्रोल पम्प पर ही है ।”
ड्राईवर बोला ।
“तो वहीं रोको ।”
ड्राईवर ने टैक्सी को पैट्रोल पम्प पर ला रोका ।
“इसे सम्भालो फ्रैंक ।” - सुनील बोला ।
फ्रैंक ने जेब से अपनी रिवाल्वर निकाल ली ।
सुनील टैक्सी से बाहर निकला और जाकर पब्लिक टेलीफोन बूथ सें घुस गया ।
उसने पुलिस हैडक्वार्टर टेलीफोन किया ।
रामसिंह वहां नहीं था ।
उसने रामसिंह को उसकी कोठी पर और दो तीन अन्य स्थानों पर ट्राई किया ।
रामसिंह कहीं नहीं था ।
फिर उसने यूथ क्लब टेलीफोन किया ।
क्लब में रमाकांत भी मौजूद नहीं था ।
लेकिन पूछने पर उसे बताया गया कि जौहरी क्लब में था ।
“जौहरी को बुलाओ ।” - सुनील बोला ।
कुछ क्षण बाद ही जौहरी लाइन पर आ गया ।
“क्या हो रहा है प्यारेलाल ?” - सुनील बोला ।
“कुछ भी नहीं ।” - जौहरी ने उत्तर दिया - “बैठा हूं । रमाकांत का इन्तजार कर रहा हूं ।”
“जौहरी, रमाकांत को छोड़ो और एक काम करो ।”
“क्या ?”
“फौरन मारिस रोड पर पहुंच जाओ । मारिस रोड के चौराहे के समीप दाईं ओर एक अन्धेरा सा रास्ता है जिस पर लगभग दो सौ कदम आगे एक बहुत बड़ा गोदाम है । गोदाम की पहचान यह है कि उसकी गली की ओर वाली दीवार पर फिल्मों के कम से कम पचास पोस्टर लगे हुए हैं । गोदाम तलाश कर लोगे ?”
“कर लूंगा ।”
“मारिस रोड जानते हो कहां है ?”
“जानता हूं ।”
“वैरी गुड ।” - सुनील बोला - “उस गोदाम के भीतर मंगतराम और मार्शल नाम के दो आदमी मौजूद हैं । तुमने उनकी निगरानी करनी है ।”
“मैं उन्हें पहचानूंगा कैसे ?”
सुनील ने दोनों का हुलिया जितनी अच्छी तरह वह बयान कर सकता था कर दिया ।
“अगर वह इमारत से बाहर निकलें तो मुझे उनका पीछा करना है ?”
“हां ।”
“दोनों में से ज्यारा महत्वपूर्ण कौन है ?”
“क्या मतलब ?”
“मेरा मतलब है, अगर वह गोदाम से बाहर आकर दो विभिन्न रास्तों पर चल दें तो मुझे किसके पीछे लगना चाहिए ।
“मार्शल के ।”
“ओके ।”
“कितनी देर में पहुंच जाओगे ?”
“पन्द्रह मिनट में ।”
“ठीक है ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर हुक पर टांग दिया ।
वह वापिस आकर फिर टैक्सी में आ बैठा ।
“अपने यहां चलो ।” - सुनील फ्रैंक से बोला ।
फ्रैंक ने ड्राइवर को अपने रेस्टोरेन्ट का पता बता दिया ।
टैक्सी रेस्टोरेन्ट के समीप जाकर रुकी ।
“कोई शरारत मत करना ।” - सुनील ने कमला को चेतावनी दी ।
कमला चुप रही ।
सुनील ने उसके साड़ी के पल्ले से ही उसके बन्धे हुए हाथ ढक दिये और उसे टैक्सी से बाहर निक्लने का संकेत किया ।
सुनील ने टैक्सी वाले को रुपये दिये और फिर तीनों बाहर निकल आये ।
वे रेस्टोरेन्ट में प्रविष्ट हो गए ।
कमला उन दोनों के बीच में चल रही थी ।
रेस्टोरेन्ट ग्राहकों से भरा हुआ था । कुछ लोगों ने एक सरसरी सी निगाह उनकी ओर डाली और फिर अपने आप में मग्न हो गए ।
वे लोग फ्रैंक के पिछवाड़े के कमरे आ गए । सुनील ने कमला को एक कुर्सी पर धकेल दिया और स्वयं उसके सामने दीवान पर ढेर होता हुआ फ्रैंक से बोला - “दरवाजा भीतर से बन्द कर दो ।”
फ्रैंक द्वार की ओर बढ़ा । उसने द्वार बन्द करने के लिए हाथ बढाया ही था कि दूसरी ओर से किसी ने जोर से द्वार को धक्का किया । द्वार का पल्ला भड़ाक से फ्रैंक के मुंह से टकराया और फिर इससे पहले कि वह सम्भल पाता कोई भीतर प्रविष्ट हुआ । आगन्तुक ने पांव की ठोकर से द्वार को बन्द कर दिया । अपने हाथ में थमी रिवाल्वर से उसने फ्रैंक और सुनील को कवर कर लिया और फिर धीमे स्वर से बोला - “कोई अपनी जगह से नहीं हिले ।”
सुनील दीवान के पास से उठकर खड़ा हो गया । वह आगन्तुक को पहचानता था ।
आंखों में दहशत और हाथ में रिवाल्वर लिए उसके सामने खड़ा लम्बा तगड़ा लड़का जानी था । जानी जिससे वह हर्नबी रोड पर जोजफ के बार में मिल चुका था ।
जानी को देखकर कमला के चेहरे पर रौनक आ गई । उसके मुंह से एक हर्षध्वनि निकली और वह उठकर खड़ी हो गई ।
“वैल डन जानी ब्वाय वैल डन ।” - वह हर्षित स्वर से बोली ।
जानी मुस्कराया । उसने सावधानी से द्वार की भीतर से चिटकनी चढा दी और फिर द्वार के साथ पीठ लगाकर खड़ा हो गया । उसका रिवाल्वर वाला हाथ एकदम स्थिर था ।
“तुम यहां कैसे पहुंच गए ?” - कमला ने पूछा ।
“मुझे उस्ताद ने मारिस रोड पर गोदाम में बुलाया था ।” - जानी बोला - “वहां पहुंचा तो मैंने तुम्हें इन लोगों के साथ टैक्सी में बैठते देखा । तुम्हारे बन्धे हुए हाथ अपनी कहानी खुद कह रहे थे । मैं तुम्हारा पीछा करता हुआ यहां पहुंच गया । पहले जब ये लोग पैट्रोल पम्प पर रुके थे तो मेरा ख्याल तुम्हें वहां छुड़वा लेने का था लेकिन वहां खतरा बहुत ज्यादा था । वहां ये लोग भी सावधान थे और फिर एक आदमी एकदम तुम्हारे साथ बैठा हुआ था । वह तुम्हें बड़ी आसानी से अपना शिकार बना सकता था ।”
“तुमने बहुत अच्छा किया ।” - कमला ऐसे स्वर से बोली जैसे जानी को मक्खन लगा रही हो - “तुम बहुत समझदार हो । आज तुमने बहुत शानदार काम किया है और भारी अक्लमन्दी का परिचय दिया है ।”
जानी का चेहरा दमक उठा ।
“अब एक काम और करो, जानी ।” - कमला बोली - “इन दोनों को शूट कर दो ।”
“वाह, वाह । क्या अक्लमन्दी की बार कही है ।” - सुनील बोला - “गोली चलाओगे तो कम से कम पांच सौ आदमी गोली की आवाज सुनेंगे । बाहर रेस्टोरेन्ट में ही कम से कम चालीस आदमी मौजूद है । हमें शूट करने के बाद क्या तुम इतने आदमियों में से निकल पाने में सफल हो पाओगे ? और फिर अभी तुमने कमला के हाथ भी खोलने हैं ।”
जानी हिचकिचाया ।
“ये लोग तुम्हें बलि का बकरा बना रहे हैं, जानी ।” - सुनील फिर बोला - “हर वह काम जो ये लोग खुद नहीं कर सकते, तुम्हें करने को कहते हैं । अपराधी होना एक खतरनाक काम है लेकिन अपराधी होने के साथ-साथ अक्ल से खाली होना तो बेहद खतरनाक काम है । जानी, तुम मूर्ख हो जो इनकी बातों में आकर खून करते फिरते हो । तुम नहीं जानते कि तुम कितनी तेजी से फांसी के फन्दे की ओर बढ रहे हो ।”
“जानी ।” - कमला चिल्लाकर बोली - “तुम इनकी बातें मत सुनो । तुम मेरे हाथ खोलो, मैं खुद इन्हें शूट करती हूं ।”
जानी दो कदम कमला की ओर बढा और फिर ठिठक गया । उसने एक सर्तक दृष्टि फ्रैंक और सुनील पर डाली । उसे लगा कि कमला के हाथ खोलने के दौरान में वह दोनों को अपनी रिवाल्वर से कवर करके नहीं रख सकता और वैसे भी एक हाथ से कमला के बन्धन खोल पाना जटिल काम था ।
वह फिर पीछे हटा और फिर द्वार के साथ पीठ सटाकर खड़ा हो गया ।
“तुम” - वह रिवाल्वर की नाल से सुनील की ओर सकेत करता हुआ बोला - “मैडम के हाथ खोले ।”
सुनील आगे बढा ।
कमला ने अपने बन्धे हुए हाथ उसके सामने कर दिये । उसके चेहरे पर एक क्रूर मुस्कराहट थी ।
सुनील एक दो क्षण बड़ी संजीदगी से उसके बन्धन खोलने का प्रयत्न करता रहा था । फिर एकाएक बिजली की फुर्ती से उसने कमला की दोनों बांहें पकड़कर इस प्रकार घुमा दिया कि कमला का शरीर उसके सामने आ गया । साथ ही उसने अपनी जेब से कमला वाली रिवाल्वर निकाली और अपना हाथ कमला की दांई बांह के नीचे से निकालकर उसने जानी पर फायर कर दिया ।
रिवाल्वर जानी के हाथ से निकल गई और भड़ाक से बगल की दीवार के साथ टकराई ।
जानी चीते की तरह सुनील पर झपटा । वह इतना क्रोधित था कि उसे यह सोचने की भी फुरसत नहीं थी कि रिवाल्वर अब भी सुनील के हाथ में थी और वह दूसरी गोली उसके दिल में से गुजार सकता था ।
लेकिन सुनील को दोबारा गोली चलाने की जरूरत नहीं पड़ी और न ही जानी सुनील तक पहुंच पाया ।
फ्रैंक ने भागते हुए जानी की राह में अपना बायां पांव बढा दिया । जानी फ्रैंक के पांव से उलझा और धड़ाम से जमीन पर आ गिरा । फ्रैंक ने उसे कालर से पकड़ा और एक झटके से उठाकर खड़ा कर दिया । जानी ने अपने दायें हाथ का घूंसा फ्रैंक पर चलाया लेकिन फ्रैंक ने बड़े इत्मीनान से नीचे झुककर वार बचा लिया, फिर फ्रैंक के दायें हाथ का नपा तुला घूंसा जानी के पेट में पड़ा । जानी बिलबिला गया, उसके नेत्र उबल पड़े और वह अपना पेट पकड़ कर बैठ गया ।
फ्रैंक का पांव चला और अगले ही क्षण जानी फर्श पर लोटता दिखाई दे रहा था ।
सुनील ने कमला को छोड़ दिया और उसे सामने की ओर धक्का दिया । कमला डगमगाकर जानी के ऊपर जा गिरी ।
“अब ?” - फ्रैंक बोला ।
“अब एक रस्सी लाओ और इन दोनों को इकट्ठा बांध दो ।” - सुनील बोला ।
फ्रैंक ने ऐसा ही किया । सुनील रिवाल्वर लिए उनके सिर पर खड़ा रहा और फ्रैंक उन दोनों की पीठ एक दूसरे से सटाकर उनके हाथ पांव बांधने लगा । जानी ने उछल-कूद मचाने की कोशिश की लेकिन फ्रैंक के एक भरपूर घूंसे ने ही उसे शान्त कर दिया ।
फ्रैंक ने दोनों को एक साथ बांधा और उठ खड़ा हुआ ।
“मैं पुलिस हैडक्वार्टर जा रहा हूं ।” - सुनील बोला - “तब तक तुम इन दोनों की निगरानी करना ।”
“ओके ।” - फ्रैंक बोला । उसने जानी के हाथ से निकली हुई रिवाल्वर भी फर्श से उठा ली ।
सुनील ने कमला वाली रिवाल्वर अपनी जेब में रखी और कमरे से बाहर निकल आया ।
***
रामसिंह पुलिस हैडक्वार्टर में नहीं था ।
सुनील ने पुलिस इन्सपैक्टर प्रभूदयाल को भी तलाश करने की कोशिश की लेकिन वह भी नहीं मिला ।
रामसिंह के आफिस में एक कान्सटेबल ने रामसिंह के तीन चार विभिन्न स्थानों पर होने की सम्भावना प्रकट की ।
सुनील एक टैक्सी लेकर सबसे पहले राबर्ट स्ट्रीट पहुंचा । वहां से उसने अपनी मोटर साईकिल उठाई और फिर रामसिंह की तलाश में जुट गया ।
चौथे स्थान से उसे मालूम हुआ कि रामसिंह वहां से जा चुका है । वह या वापिस अपनी कोठी पर गया है और या फिर पुलिस हैडक्वार्टर गया है ।
सुनील ने दोनों स्थानों पर फोन किया ।
रामसिंह न अपनी कोठी पर पहुंचा था और न पुलिस हैडक्वार्टर ।
शायद वह अभी रास्ते में ही था ।
सुनील कुछ क्षण अनिश्चित सा मोटर साइकिल पर बैठा रहा । फिर उसने मोटर साइकिल का रुख वापिस पुलिस हैडक्वार्टर की ओर कर दिया ।
रामसिंह पुलिस हैडक्वार्टर पर मौजूद था ।
“सारे शहर में तुम्हें तलाश करता फिर रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“वजह ?” - रामसिंह ने पूछा । उसने अपनी जेब से सिगार निकाला और उसका किनारा कुतरने लगा ।
सुनील ने उसे वजह कह सुनाई ।
सारी बात सुनकर रामसिंह ने सिगार वापिस अपनी जेब में रख लिया । उसने जोर से मेज पर पड़ी घंटी बजाई ।
एक सिपाही भीतर प्रविष्ट हुआ ।
“फौरन इन्सपेक्टर कालरा को बुलाओ ।” - रामसिंह ने आदेश दिया ।
अगले ही मिनट इन्सपेक्टर कालरा रामसिंह के सामने खड़ा था ।
“इन्स्पेक्टर को मारिस रोड के गोदाम का पता समझाओ ।” - रामसिंह सुनील से बोला ।
सुनील ने ऐसा ही किया ।
“तुम अपने साथ-साथ आठ हथियारबन्द सिपाही ले जाओ ।” - रामसिंह ने इन्सपेक्टर को आदेश दिया - “और जाकर उस गोदाम को घेर लो । गोदाम के भीतर तुम्हें जो भी आदमी मिले उसे गिरफ्तार कर लो । रिकार्ड में से पीटर मौस उर्फ मार्शल की तस्वीर देखते जाओ । मार्शल के गोदाम में होने की सम्भावना है । वह या उसका कोई साथी वहां से बचकर न निकलने पाये । समझ गये ।”
“यस सर ।” - इन्सपेक्टर बड़ी तत्परता से बोला ।
“हरी अप दैन । गैट गोईंग ।”
इन्सपेक्टर कालरा सैल्यूट मारकर फौरन बाहर निकल गया ।
रामसिंह भी उठ खड़ा हुआ ।
“चलो ।” - वह सुनील से बोला ।
दोनों बाहर आ गये ।
रामसिंह ने जीप निकलवाई और एक सब-इन्स्पेक्टर और दो सिपाहियों को साथ ले लिया ।
“जीप में बैठो ।” - रामसिंह सुनील से बोला ।
“लेकिन मैं मोटर साइकिल पर आया हूं ।” - सुनील बोला ।
“मोटर साइकिल यहीं छोड़ दो ।”
सुनील जीप में बैठ गया ।
“ड्राइवर को फ्रैंक के काफी बार का पता बता दो ।” - रामसिंह बोला ।
सुनील ने आदेश का पालन किया ।
जीप एक झटके से आगे बढ गई ।
रामसिंह ने अपनी जेब से फिर सिगार निकाला । कुछ क्षण वह उसे अपने दांए हाथ के अंगूठे और पहली उंगली के बीच में घुमाता रहा । फिर उसने एक गहरी सांस ली और सिगार को वापिस अपनी जेब में रख लिया ।
दस मिनट बाद जीप फ्रैंक के काफी बार के सामने आ खड़ी हुई ।
वे सभी जीप से उतरे ।
लोग सम्मानपूर्ण ढंग से रास्ता देते चले गए ।
सब लोग रेस्टोरेन्ट में प्रविष्ट हुए । पुलिस के सिपाही रेस्टोरेन्ट के भीतर काउन्टर के समीप रुक गए सुनील रामसिंह और सब-इन्सपेक्टर आगे बढे ।
रेस्टोरेन्ट में एकदम सन्नाटा छा गया था । लोग अपनी बातें, अपना काम भूलकर उन लोगों की ओर देख रहे थे ।
पिछवाड़े में जाकर सुनील ने वह द्वार खटखटाया जिसमें वह फ्रैंक और कमला को छोड़कर गया था ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
“फ्रैंक ।” - सुनील ने आवाज दी और द्वार को धक्का दिया ।
द्वार खुला था ।
तीनों सावधानी से कमरे में प्रविष्टि हो गए ।
कमरे में कमला और जानी नहीं थे । जिस रस्सी से फ्रैंक ने उनके हाथ पांव बांधे थे वह तीन चार टुकड़ों में कटी हुई फर्श पर पड़ी थी । रस्सियों के पास ही औंधे मुंह फ्रैंक पड़ा था । उसके सिर में से खून बह-बहकर फर्श पर इकट्ठा हो रहा था ।
फ्रैंक !” - सुनील कातर स्वर से बोला और फ्रैंक की ओर लपका ।
“फ्रैंक के कन्धे के पास एक चाकू धंसा हुआ था । उसका सिर बुरी तरह फटा हुआ था, ऐसा मालूम होता था जैसे किसी भारी चीज से उसके सिर पर कई प्रहार किए गए थे ।
सुनील ने उसके दिल पर हाथ रखा ।
सुनील को और कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी । रामसिंह ने सब इन्सपेक्टर को संकेत किया । सब-इन्सपेक्टर फौरन बाहर की ओर भागा ।
सुनील ने बाहर आकर रेस्टोरेन्ट के वेटरों में पूछताछ की ।
किसी ने भी कमला या जानी को बाहर निकलते नहीं देखा था ।
पांच मिनट बाद ऐम्बुलेंस आ गई । दो वर्दीधारी आर्डरली भी स्ट्रेचर लेकर भीतर प्रविष्ट हुए । उन्होंने फ्रैंक को सावधानी से उठाकर स्ट्रेचर पर लिटाया और बड़ी फुर्ती से उसे ले चले ।
सुनील भी स्ट्रेचर के साथ बढा लेकिन रामसिंह ने उसे रोक लिया ।
“मैं फ्रैंक के साथ जाना चाहता हूं ।” - सुनील भर्राए स्वर से बोला ।
“हां.. हां क्यों नहीं ।” - रामसिंह बोला - “जीप पर चलते हैं न ।”
सुनील चुप हो गया ।
वे लोग बाहर निकले और जीप पर सवार हो गए ।
जीप एम्बुलेंस के पीछे चल दी ।
एम्बुलेंस हस्पताल पहुंची ।
फ्रैंक को फौरन आपरेशन थियेटर में ले जाया गया । रामसिंह और सुनील बाहर बरामदे में प्रतीक्षा करते रहे । रामसिंह ने अपना सिगार निकाला । फिर उसकी निगाह बरामदे की एक दीवार पर लगी नो स्मोकिंग की तख्ती पर पड़ी । उसने बुरा सा मुंह बनाया और सिगार वारिस जेब में रख लिया ।
सुनील लपककर उसके समीप पहुंचा ।
“घबराइए नहीं ।” उससे कुछ पूछने से पहले ही डाक्टर बोल पड़ा - “पेशेन्ट की जान को किसी प्रकार का खतरा नहीं है ।”
सुनील ने शांति से गहरी सांस ली ।
“थैंक्यू डाक्टर ।” - वह बोला - “थैंक्यू वैरी मच ।”
डाक्टर मुस्कराया और बरामदे में एक ओर बढ गया ।
“आओ ।” - रामसिंह सुनील से बोला ।
“कहां ?” - सुनील ने पूछा ।
“मारिस रोड ।”
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर रामसिंह के साथ हो लिया ।
वे लोग जीप में सवार हुए और मारिस रोड पहुंच गए ।
गली के मोड़ पर एक सिपाही खड़ा था । रामसिंह को देखकर उसने ठोक कर सलाम किया ।
“इन्सपेक्टर साहब कहां हैं ?” - रामसिंह ने पूछा
“गोदाम में हैं साहब ।”
जीप आगे बढ गई ।
“यह गोदाम है ।” - सुनील गोदाम की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
ड्राईवर ने जीप रोक दी ।
गोदाम के सामने दो सिपाही खड़े थे ।
“इन्सपेक्टर साहब कहां हैं ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“भीतर गोदाम में हैं, साहब ।” - एक सिपाही ने तत्परता से उत्तर दिया ।
“बुलाकर लाओ ।”
वह सिपाही फौरन गोदाम के मुख्य द्वार की ओर दौड़ गया ।
सुनील सोच रहा था - जौहरी कहां होगा ?
उसी क्षण सिपाहियों के एक दल के साध इन्सपेक्टर कालरा गोदाम से बाहर निकला ।
रामसिंह ने प्रश्नसूचक नेत्रों से इन्सपेक्टर की ओर देखा ।
“गोदाम खाली है ।” - इन्सपेक्टर ने उत्तर दिया - “लेकिन भीतर के कमरे को देखर ऐसा आभास जरूर मिला है कि थोड़ी ही देर पहले कुछ लोग वहां मौजूद थे ।”
“मतलब यह कि पुलिस पहुंचने से पहले ही पंछी उड़ गया है ।”
“ऐसा मालूम होता है, साहब ।”
“यह गोदाम किसका है ?”
“मालिक का अभी तक पता नहीं लग पाया है, साहब । वैसे आसपास से पूछने से मालूम हुआ है कि गोदाम किसी काम नहीं आ रहा है । यह कई महीनों से खाली पड़ा है । मालिक सुना है किसी दूसरे शहर में रहता है । भीतर से गोदाम धूल मिट्टी से अटा हुआ है । हालत देखकर यही मालूम होता है कि गोदाम मुद्दत से खाली पड़ा है । लेकिन पिछवाड़े के छोटे दरवाजे से लेकर भीतर के कमरे तक धूल में कई लोगों के पैरों के निशान मिले हैं, जो ताजे हैं । लगता है उस भीतरी कमरे में कुछ लोग रह रहे थे ।”
“वे जरूर मार्शल और मंगतराम होंगे ।” - सुनील बोला - “रामसिंह । कमला और जानी फ्रैंक के रेस्टेरेन्ट से स्वतन्त्र हो जाने के बाद सीधे यहीं आये होंगे और पुलिस के यहां पहुंच जाने से पहले ही मार्शल और मंगतराम को यहां से निकाल कर ले गए होंगे ।”
“ऐसा ही हुआ मालूम होता है ।” - रामसिंह बोला - “इन्सपेक्टर तुम भीतर के कमरे में से उंगलियों के निशान उठवाने की कोशिश करो । इससे हमें मंगतराम नाम के आदमी के बारे में तो जानकारी होगी ही, साथ ही हमें यह भी मालूम हो जायेगा कि इन दोनों के साथ यहां कोई और लोग भी थे ।”
“राइट सर ।” - इन्सपेक्टर बोला ।
“और तुम...”
“मैं एक मिनट में आया ।” - सुनील बीच में बोला पड़ा ।
“कहां जा रहे हो ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“अभी आता हूं ।” - सुनील बोला और एक ओर बढ गया ।
अगले दस मिनटों में वह गोदाम के चारों ओर घूम गया । उसने हर उस स्थान को देखा जहां जौहरी के होने की सम्भावना हो सकती थी ।
जौहरी कहीं नहीं था ।
सुनील वापिस लौट आया ।
रामसिंह गली के मोड़ पर जीप में उसकी प्रतीक्षा कर रहा था ।
रामसिंह ने सिगार सुलगा लिया था और अब उसे अपने विशिष्ट ढंग से अपने दायें हाथ के अंगूठे और पहली उंगली के बीच में नचा रहा था ।
सुनील जीप में सवार हो गया ।
रामसिंह ने ड्राइवर को संकेत किया । जीप चल पड़ी ।
“कहां चले गए थे ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“किसी को तलाश कर रहा था ।” - सुनील बोला ।
“किसे ?”
सुनील ने रामसिंह को जौहरी के बारे में बता ।
“वह पुलिस के आगमन से पहले से गोदाम की निगरानी कर रहा था ?” - रामसिंह बोला ।
“हां ।”
“फिर तो मुझे आसार अच्छे नहीं दिखाई देते । सम्भव है वह कमला और जानी की निगाहों में आ गया हो और फिर उन्होंने उसका भी वही हाल कर दिया हो जो उन्होंने फ्रैंक का किया है ।”
“फ्रैंक तो बच गया है ।”
“हां शायद जौहरी का उससे भी बुरा हाल हुआ हो ।”
“मुझे जौहरी की बेहद चिन्ता हो गई है ।”
“इस इलाके के थाने पर चलो ।” - एकाएक रामसिंह ड्राइवर से बोला ।
“अच्छा साहब ।” - ड्राइवर बोला ।
थाने पर सुनील ने जौहरी का हुलिया बताया और रामसिंह ने उसकी तलाश के लिए आदेश जारी कर दिए ।
“हैडक्वार्टर पहुंचकर मैं पुलिस पैट्रोल को भी सचेत करता हूं ।” - रामसिंह बोला ।
सुनील चुप रहा ।
वे वापिस जीप में आ बैठे ।
जीप पुलिस हैडक्वार्टर पहुंच गई ।
सुनील ने रामसिंह से विदा ली । फिर उसने अपनी मोटर साइकिल सम्भाली और पुलिस हैडक्वार्टर से बाहर निकल आया ।
अगले ही क्षण वह नम्बर तीन, बैंक स्ट्रीट में स्थित अपने फ्लैट की ओर उठा जा रहा था ।
***
भीतर फ्लैट में टेलीफोन की घन्टी बज रही थी ।
सुनील ने बुरा सा मुंह बनाया, फ्लैट का ताला खोला और भीतर प्रविष्ट हो गया । वह बैडरूम की ओर बढा, जिधर कि टेलीफोन रखे थे ।
अभी वह बैडरूम में प्रविष्ट ही हुआ था कि एकाएक घंटी बजनी बन्द हो गई ।
सुनील ने घूरकर टेलीफोन की ओर देखा और फिर पलंग पर ढेर हो गया ।
उसने धीरे से अपने चेहरे पर हाथ फिराया । कमला के नाखूनों से उसके चेहरे पर पड़ी खरोंचों पर खून की पपड़ियां जम गई थीं और उसका चेहरा उन स्थानों से सूज गया था ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और उसके लम्ब-लम्बे कश लेने लगा ।
बार-बार उसके दिमाग में जौहरी की सूरत घूम जाती थी ।
एकाएक उसे यूथ क्लब फोन करने का ख्याल आया ।
वह करवट बदलकर टेलीफोन मेज के समीप पहुंचा । उसने रिसीवर उठाया और फिर यूथ क्लब का नम्बर डायल कर दिया ।
“यूथ क्लब, गुड ईवनिंग ।” - दूसरी ओर से आपरेटर का मधुर स्वर सुनाई दिया ।
“रमाकांत है ?” - सुनील ने पूछा ।
“जस्ट ए मूमेन्ट ।” - आपरेटर बोली ।
थोड़ी देर बाद उसे रमाकांत का स्वर सुनाई दिया - “हल्लो रमाकांत ।”
“रमाकांत ।” - सुनील बोला - “सुनील बोल रहा हूं ।”
“सुनील !” - रमाकांत उत्तेजित स्वर से बोला - “कहां हो तुम ?”
“क्या आफत आ गई है ? तुम इतने उत्तेजित क्यों हो रहे हो ?”
“भई, तुम्हें जौहरी तलाश कर रहा है । तीन बार उसका फोन आ चुका है । कहां भेज दिया है तुमने उसे ? और तुम एक जगह टिककर क्यों नहीं बैठते हो ?”
“आखिरी बार जौहरी का फोन कब आया था ?” - सुनील ने उतावले स्वर से पूछा ।
“अभी कोई दस मिनट पहले ।”
“अब उसका दुबारा फोन आये तो उसे कह देना, मैं अपने फ्लैट में मौजूद हूं ।”
“लेकिन वह तो तुम्हारे फ्लैट पर भी रिंग करता रहा है ।”
“मैं अपने फ्लैट में अभी आया हूं, मेरे बाप ।”
और सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
उसके मन से एक भारी बोझ उतर गया था । अगर जौहरी ने दस मिनट पहले यूथ क्लब फोन किया था तो वह निश्चय ही सही सलामत था ।
उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी बजी ।
सुनील ने झपट कर रिसीवर उठाकर कान से लगाया और तीव्र स्वर से बोला - “हल्लो, जौहरी ?”
“कैसे जाना ?” - दूसरी ओर से जौहरी का हैरानी भरा स्वर सुनाई दिया - “मैंने तो अभी एक शब्द भी नहीं बोला ।”
“मैं बड़ी बेताबी से तुम्हारे फोन का इन्तजार कर रहा था प्यारे । अभी मैंने रमाकांत से बात की थी तो मालूम हुआ था कि तुम मुझे पूछ रहे थे ।”
“मैं तो हर ऐसी जगह आपके लिए फोन कर रहा था जहां आपके होने की सम्भावना हो सकती थी ।”
“तुम बोल कहां से रहे हो ?”
“सुभाष नगर से ।”
“सुभाष नगर ! वहां कैसे पहुंच गए ?”
सुभाष नगर राजनगर से एकदम बाहर बसे हुए एक थोड़ी सी आबादी वाले मध्यम वर्गीय इलाके का नाम था ।
“डिटेल फिर बताऊंगा ।” - जौहरी बोला - “फिलहाल इतना जान लीजिए कि आपने मुझे जिन लोगों की निगरानी के लिए तैनात किया था, वे यहीं हैं । अब आगे मुझे क्या करना है ?”
“तुम सुभाष नगर में कहां हो ?”
“सुभाष नगर में आकर आप किसी से डाक्टर चेतन स्वरूप का घर पूछ लीजिएगा । मैं आपको उन्हीं के घर से टेलीफोन कर रहा हूं ।”
“डाक्टर चेतन स्वरूप का नाम ले लेने भर से ही उनके घर का पता लग जायेगा ?”
“जरूर लग जायेगा । सुभाष नगर का बच्चा-बच्चा उन्हें जानता है ।”
“और तुम उन्हें कैसे जानते हो ?”
“मैं उन्हें नहीं जानता ।”
“मैं फौरन वहां पहुंच रहा हूं ।”
“ओ के ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर डायल किया ।
रामसिंह वहां नहीं था ।
उसने रामसिंह की कोठी का नम्बर डायल किया ।
रामसिंह कोठी में मौजूद था ।
“रामसिंह !” - सुनील बोला - “मार्शल और उसके साथियों का पता चल गया है ।”
“कहां है वे ?” - रामसिंह का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया ।
“सुभाष नगर में । तुम कुछ सशस्त्र सिपाही लेकर जितनी जल्दी हो सके सुभाष नगर पहुंच जाओ । वहां डाक्टर चेतन स्वरूप का घर पूछ लेना । मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा ।”
“केवल नाम बताने से डाक्टर चेतन स्वरूप के घर का पता लग जायेगा ?”
“लग जायेगा । और भगवान के लिए तुम वहां पर चुपचाप आना ।”
“ओके ।”
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटका और उछलकर खड़ा हो गया । वह तेजी से फ्लैट से बाहर निकला । उसने फ्लैट को ताला लगाया और फिर दो सीढियां एक साथ फांदता हुआ नीचे भागा ।
वह अपनी मोटर साइकिल के समीप पहुंचा । उसने मोटर साइकिल को जोर से किक मारी, एक बार एक्सीलेटर घुमाया साढे सात हार्स पावर के शक्तिशाली इंजन की गर्ज सारी बैंक स्ट्रीक में गूंज गई ।
वह मोटर साइकिल पर सवार हुआ । एक झटके से उसने मोटर साइकिल को स्टेन्ड से उतारा और फिर उसे गियर में डाल दिया ।
मोटर साइकिल बन्दूक से छूटी गोली की तरह बैंक स्ट्रीट में भाग निकली ।
पन्द्रह मिनट में वह सुभाष नगर पहुंच गया ।
डाक्टर चेतन स्वरूप को वाकई वहां हर कोई जानता था, पहले ही आदमी ने उसे डाक्टर चेतन स्वरूप के घर का पता बता दिया ।
एक लम्बी पतली और अन्धेरी गली में डाक्टर चेतन स्वरूप का घर था । गली में बिजली के खम्बे कई लगे हुए थे लेकिन किसी पर भी बल्ब नहीं जल रहा था ।
सुनील ने मोटर साइकिल को सड़क पर ही खड़ा कर दिया और फिर पैदल ही गली में बढा ।
उसे बताया गया था कि गली की दाईं ओर की मकान की कतार में चौथा मकान डाक्टर चेतन स्वरूप का था ।
सुनील ने उस मकान के सामने पहुंचकर धीरे से द्वार को खटखटाया ।
द्वार तत्काल खुल गया । द्वार खोलने वाला जौहरी था । उसने सुनील को भीतर आने का संकेत किया और एक ओर हट गया ।
सुनील भीतर प्रविष्ट हो गया ।
जौहरी ने द्वार बन्द कर लिया । फिर वह उसे एक खाली कमरे में ले आया ।
“वे लोग कहां हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“सामने के मकान में ।”
“कितने आदमी हैं ?”
“कम से कम पांच । ज्यादा भी हो सकते हैं ।”
“कौन-कौन हैं ?”
“दो तो वही हैं जिनका आपने मुझे हुलिया बताया था, जिनकी मैं मारिस रोड के गोदाम में निगरानी कर रहा था ।”
“मार्शल और मंगतराम !”
“हां ।”
“एक लगभग पैंतीस साल की खूबसूरत सी औरत है ।”
“कमला !”
“एक लगभग बीस साल का घुंघराले बालों वाला बेहद लम्बा, दुबला पतला लड़का है ।”
“जानी !”
“और एक बड़ी-बड़ी मूछों वाला पहलवान सा लगने वाला आदमी है ।”
वह आदमी सुनील के लिए नया था ।
“इतने आदमी तो मैंने बाहर से आते देखे थे । मकान में पहले से कितने आदमी मौजूद थे, कोई था भी या नहीं, इसकी मुझे जानकारी नहीं है ।”
“तुम यहां कैसे पहुंच गए ?”
“मैं तो आपके आदेशानुसार मारिस रोड के गोदाम की निगरानी कर रहा था । फिर गली में एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से वह पैंतीस साल की औरत और घुंघराले बालों वाला लड़का निकला जिनका जिक्र अभी मैंने किया था । वे दोनों पिछवाड़े के छोटे दरवाजे के रास्ते गोदाम के भीतर प्रविष्ट हो गए । मैं लपककर टैक्सी के ड्राइवर के पास पहुंचा । पहले तो वह मुझे कुछ भी बताने पर राजी नहीं हुआ लेकिन जब मैंने उसे एक दस का नोट दिया तो उसने बताया कि उसने दो सवारियां, रौनक बाजार से उठाई थी, उसे बताया गया था कि दो और सवारियां मारिस रोड से लेनी थी और उसके बाद उन्हें कहां जाना था, यह टैक्सी वाले को अभी बताया नहीं गया था ।”
रौनक बाजार में फ्रैंक का काफी बार था । प्रत्यक्ष था कि फ्रैंक को घायल करके कमला और जानी वहां से भागे थे और सीधे मारिस रोड पहुंचे थे ।
“और दो सवारियों की बात सुनते ही मैं समझ गया कि मार्शल और मंगतराम भी वहां से खिसकने वाले थे । मैं गली में से निकला और भागकर सड़क पर पहुंचा । कहीं सवारी का नामोनिशान नहीं था । मारिस रोड दूर-दूर तक उजाड़ पड़ी थी ।”
“तुम मारिस रोड कैसे पहुंचे थे ?­”
“मैं तो टैक्सी पर गया था ।”
“खैर, फिर ?”
“फिर यह कि उन लोगों का पीछा करने का कोई साधन मुझे दिखाई नहीं दे रहा था । मैं लपककर वापिस टैक्सी ड्राइवर के पास पहुंचा । मैंने उसे बताया कि उसकी सवारियां पुलिस के भागे हुए अपराधी हैं और उससे सहायता की प्रार्थना की । मैं चाहता था कि वह मुझे टैक्सी की डिक्की में घुस जाने दे । फिर जहां टैक्सी जाती वहां मैं जाता लेकिन टैक्सी ड्राइवर माना नहीं । वह बोला कि अगर वे लोग मेरे कथनानुसार वाकई अपराधी हैं और अगर उन्हें मालूम हो गया कि टैक्सी की डिक्की में कोई छुपा हुआ है तो वे दोनों को कत्ल कर देंगे । अन्त में पचास रुपये के लालच में मैं उसे इस बात के लिए तैयार कर पाया कि वह सवारियों को उनकी मन्जिल पर छोड़कर वापिस मारिस रोड आ जाए और फिर मुझे भी वहीं ले जाए । ड्राइवर इसके लिए मान गया । फिर वह अपनी सवारियों को लेकर रवाना हो गया । आधे घन्टे बाद वह वापिस लौटा और मुझे अपने साथ ले गया । वह सवारियों को सामने के मकान में छोड़कर गया था ।”
“लेकिन तुम्हें यह कैसे मालूम है कि मार्शल वगैरह अभी भी इस मकान में मौजूद हैं ?”
“मैंने खुद देखा था ।”
“कैसे ?”
“यहां पहुंचते ही सबसे पहले मेरे दिमाग में भी यही ख्याल आया था कि कहीं जितने समय में टैक्सी वाला मुझे लेने के लिए वापिस मारिस रोड गया उतने समय में कहीं वे लोग वहां से खिसक तो नहीं गए । बगल के मकान की दीवार के साथ-साथ एक गन्दे पानी का परनाला है । उस परनाले के सहारे मैं बगल के मकान की छत पर पहुंच गया था । वहां से मैं सामने मकान के छत पर कूद गया था । छत से मैं खिड़कियों और दरवाजों के ऊपर बने प्रोजेक्शन पर उत्तर आया था । वहां से नीचे लटककर मैं मकान के भीतर झांक सकता था । वे लोग भीतर मौजूद थे ।”
“वह बड़ी-बड़ी मूंछों वाला पहलवान सा आदमी भी टैक्सी पर मार्शल वगैरह के साथ आया था ?”
“नहीं, वह अकेला आया था । वह एक पुरानी सी फोर्ड पर आया था जो इस समय गली के दूसरे मोड़ के समीप खड़ी हुई है ।”
“और फिर ?”
“फिर मैंने स्थिति की सूचना आपको देनी चाही । इस घर में मुझे टेलीफोन की तारें जाती दिखाई दे रही थीं और सारी गली में कोई टेलीफोन कनैक्शन नहीं दिखाई दे रहा था । मैं इस मकान से ज्यादा दूर जाना भी नहीं चाहता था । इस मकान पर मैंने डाक्टर चेतन स्वरूप के नाम की तख्ती लगी हुई देखी । मैंने सोचा अगर डाक्टर है तो भला आदमी ही होगा । डाक्टर भला तो क्या बेहद भला आदमी निकला । वह कम से कम साठ साल का वृद्ध है, यहां अकेला रहता है । वह फौरन मेरी मदद करने के लिए तैयार हो गया । यहीं से मैं आपको विभिन्न स्थानों पर हर दस मिनट बाद टेलीफोन करता रहा और साथ ही सामने मकान की निगरानी भी करता रहा ।”
“वे लोग भीतर ही हैं न ?”
“बिल्कुल हैं ।”
सुनील चुप हो गया ।
“अब आपका क्या इरादा है ?”
“मैं पुलिस के आगमन मी प्रतीक्षा कर रहा हूं ।”
पुलिस के नाम पर जौहरी ने कोई हैरानी जाहिर नहीं की ।
उसी क्षण किसी ने धीरे से द्वार खटखटाया ।
जौहरी ने सावधानी से द्वार खोला ।
बाहर रामसिंह खड़ा था ।
सुनील और जौहरी मकान से बाहर निकल आये । जौहरी ने अपने पीछे द्वार भिड़का दिया ।
सूनील ने रामसिंह की बांह पकड़ी और उसको एक ओर ले गया ।
“वे लोग कहां हैं ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“सामने मकान में ।” - सुनील डाक्टर के सामने वाले मकान की ओर संकेत करता हुआ बोला - “तुम्हारे आदमी कहां हैं ?”
“गली के मोड़ पर हैं ।”
“कितने ?”
“आठ सशस्त्र सिपाही हैं । और बुलाये जा सकते हैं । भीतर कितने आदमी हैं ?”
“कम से कम पांच, ज्यादा भी हो सकते हैं ।”
“इस मकान के पिछवाड़े की ओर कोई रास्ता है ?” - रामसिंह ने पूछा ।
सुनील ने प्रश्नसूचक नेत्रों से जौहरी को देखा ।
“नहीं ।” - जौहरी जल्दी से बोला - “पिछली कतार के एक मकान की पीठ इस मकान से जुड़ी हुई है । दोनों मकानों के पिछले कम्पाउन्ड एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।”
“मतलब यह कि इस मकान से पिछले मकान में आसानी से कूदा जा सकता है और फिर वहां से पिछली गली में से निकल भागा जा सकता है ?”
“हां ।”
“मैं अभी इसका इन्तजाम करता हूं ।”
और रामसिंह लम्बे डग भरता हुआ गली के मोड़ की ओर चल दिया ।
सुनील और जौहरी उस मकान से हटकर खड़े हो गए ।
उसी क्षण मकान के भीतर से एक फायर की आवाज आई ।
फिर भड़ाक से मकान का मुख्य द्वार खुला । भीतर से हाथ में एक सूटकेस सम्भाले हुए एक आदमी बाहर निकला और सुनील से विपरीत दिशा में भागा ।
कुछ क्षण बाद एक साथ दो फायर हुए ।
मकान के भीतर से किसी की हृदय विदारक चीख सुनाई दी ।
फिर एक औरत मकान से बाहर निकली । उसके हाथ में रिवाल्वर थी ।
अन्धकार में भी सुनील उसे फौरन पहचान गया ।
वह कमला थी ।
उसने बिजली की फुर्ती से द्वार बन्द किया और बाहर से चिटखनी चढा दी । फिर वह जान छोड़कर सूटकेस वाले के पीछे भागी ।
सब कुछ पलक झपकते ही हो गया ।
कुछ क्षण सुनील अपलक सा सारा दृश्य देखता रहा । फिर उसने फुर्ती से अपनी जेब से वह रिवाल्वर निकाली जो उसने कमला के बैग में से निकाली थी और फिर कमला और सूटकेस वाले के पीछे भागा ।
उसी क्षण कहीं से एक साथ दो फायर हुए ।
सुनील ठिठक गया ।
उसने सूटकेस वाले को भरभरा कर जमीन पर गिरते हुए देखा । सूटकेस उसके हाथ से निकल कर दूर जा गिरा ।
एक फायर फिर हुआ ।
सुनील ने देखा, एक आदमी मकान की छत पर खड़ा फायर कर रहा था ।
कमला ने घूमकर इमारत की ओर फायर किया ।
वातावरण में एक चीख गूंजी और फिर इमारत की छत पर खड़े आदमी का भारी शरीर धम्म से यूं गली में आ गिरा जैसे पेड़ से पका हुआ फल टपका हो ।
खुले वातावरण में चली गोलियों की आवाज शायद पुलिस के कानों तक भी पहुंच गई थीं । रामसिंह अपने साथियों के साथ उस ओर भागा चला आ रहा था । पुलिस वालों के भारी बूटों की आवाज से सड़क गूंज गई ।
कमला सूटकेस वाले के शरीर पर झुक गई ।
फिर वह फौरन अपने पैरों पर उठकर खड़ी हो गई और वापस उस मकान की ओर भागी ।
सुनील की बगल से वह बगोले की तरह गुजर गई ।
पुलिस के समीप पहुंचने से पहले ही वह द्वार खोलकर वापस मकान में प्रविष्ट हो गई ।
मकान के भीतर से फिर लगातार गोलियां चलने की आवाज आने लगी ।
सुनील ने एक दृष्टि छत से गली में गिरे आदमी पर डाली, वह बड़ी-बड़ी मूछों वाला पहलवान सा लगने वाला आदमी था जो जौहरी के कथनानुसार उस मकान तक एक पुरानी फोर्ड गाड़ी में अकेला आया था ।
उसी क्षण रामसिंह अपने साथियों के साथ उस मकान के समीप पहुंचा ।
कुछ सिपाही बाहर खड़े रहे । रामसिंह बाकी सिपाहियों के साथ भीतर प्रविष्ट हो गया ।
सुनील एकदम सूटकेस वाले आदमी की ओर भागा ।
समीप पहुंचकर उसने देखा, वह पीटर मौस उर्फ मार्शल था । वह मर चुका था । गोलियों ने उसका भेजा ही उड़ा दिया था ।
सुनील ने दूर मकान की ओर दृष्टि दौड़ाई । इमारत के मुख्यदार के पास सिपाही खड़े थे । किसी का ध्यान सुनील की दिशा में नहीं था ।
सुनील ने धीरे से मार्शल से थोड़ी दूर पड़े सूटकेस को उठा लिया और फिर दबे पांव सामने की ओर भागा ।
गली के दूसरे सिरे पर पुरानी फोर्ड गाड़ी खड़ी थी ।
सुनील उसकी ओट में होकर जमीन पर बैठ गया ।
उसने सूटकेस का कैच दबाया । सूटकेस फौरन खुल गया ।
सुनील ने अपनी जेब से लाइटर निकाला और उसकी रोशनी में सूटकेस के भीतर के सामान का निरीक्षण करने लगा ।
सूटकेस सौ-सौ के नोटों से भरा पड़ा था । नोटों के ऊपर कुछ जेवर भी पड़े थे ।
सुनील ने नोटों को एक ओर धकेलकर सूटकेस के तले में झांका । नीचे कुछ खाकी रंग के मोटे लिफाफे थे, एक टेपरिकार्डर का स्पूल था और कुछ खुले कागज थे ।
सुनील ने एक लिफाफा खोला । भीतर एक वृद्ध और एक जवान लड़की की बेहद गन्दी तस्वीरें थीं । उन तस्वीरों में वृद्ध अपनी बेटी से भी छोटी आयु की एक लड़की के साथ बेहद शैतानी हरकतें कर रहे थे । बाकी तस्वीरें देखने की सुनील की हिम्मत नहीं हुई ।
वृद्ध की सूरत जानी पहचानी थी ।
वे बिना विभाग के मन्त्री अयोध्या प्रसाद थे जिन्होंने आत्महत्या कर ली थी ।
सुनील ने एक अन्य लिफाफा खोला । उसमें अंग्रेजी में हाथ से लिखे हुए तीन चार फुलस्केप कागज थे । लाइटर के प्रकाश में सुनील ने उसे सरसरी तौर से पढना आरम्भ किया । पूरा कागज पढने की उसे जरूरत नहीं पड़ी । वह एक वक्तव्य था जो किसी आदमी को अपनी बीवी की हत्या के इल्जाम में फांसी पर लटकवा सकता था । सुनील ने आखिरी पृष्ठ के नीचे के भाग पर दृष्टिपात किया ।
हस्ताक्षर डाक्टर राजाराम के थे ।
डाक्टर राजाराम का नाम सुनील ने सुना था - वे गृह मन्त्रालय में अन्डर सैक्रेट्री ।
बाकी के कागजों का देखने की सुनील ने तकलीफ नहीं की । उसे अनुभव हो गया था कि वह कितने बड़े गन्दगी के ढेर का कुरेद रहा था । वही वे कागजात थे जिनके दम पर राधेमोहन नगर के बेहद प्रतिष्ठित लोगों को ब्लैकमेल कर रहा था ।
फिर सुनील ने बड़ी शान्ति से एक-एक करके उन तमाम कागजों को नष्ट करना आरम्भ कर दिया ।
अन्त में उसने टेपरिकार्डर का स्पूल उठाया ।
राधेमोहन के शब्द उसके कानों में गूंज गए - “मेरे ब्लैकमेलिंग के शिकारों में हाईकोट के एक जज हैं जिन्होंने दो लाख रुपये रिश्वत लेकर एक खूनी को रिहा कर दिया था । सौदे के वार्तालाप का टेप रिकार्ड मेरी सेफ में था ।”
सुनील ने स्पूल पर से टेप उतारा और उसमें आग लगा दी ।
फिर उसने सूटकेस का एक-एक कोना अच्छी तरह टटोलकर देखा ।
भीतर नोटों की गड्डियों और कुछ जेवरों के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गया था ।
उसने लाइटर बुझाकर जेब में रख लिया । सूटकेस को दोबारा बन्द किया और फिर उसे उठाकर वापिस चल दिया ।
गली में मेला लगा हुआ था । लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए थे । पुलिस भीड़ को मकान से दूर-दूर रखने की कोशिश कर रही थी ।
मकान के द्वार के समीप सुनील को रामसिंह दिखाई दिया ।
सुनील भीड़ में से रास्ता बनाता हुआ उसकी ओर बढा । रामसिंह के समीप पहुंच पाने से पहले ही एक सिपाही ने सुनील को वापिस भीड़ में धकेल दिया ।
“पीछे रहो ।” - साथ ही वह जोर से चिल्लाया ।
“मैं सुपर साहब का दोस्त हूं ।” - सुनील बोला - “मुझे उनके पास जाने दो ।”
सिपाही ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं । उसने सुनील को बड़ी बेरहमी से पीछे धकेला और चिल्लाकर बोला - “पीछे हटो ।”
सौभाग्यवश उसी क्षण रामसिंह की दृष्टि सुनील पर पड़ गई ।
वह लम्बे डग भरता हुआ समीप पहुंचा । उसने सिपाही को एक ओर धकेला, सुनील को बांह से पकड़ा और उसे लगभग घसीटता हुआ भीड़ से अलग एक ओर ले गया ।
सुनील उसके साथ खिंचता चला गया ।
“तुम कहां मर गए थे ?” - रामसिंह रुष्ट स्वर से बोला ।
“एक आदमी मार्शल की लाश के पास से यह सूटकेस उठाकर भाग निकला था । मैं उसके पीछे भागा था ।”
रामसिंह ने घूरकर सुनील की ओर देखा और संदिग्ध स्वर से बोला - “कौन था वह ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“अब कहां है वह ?”
“वह तो भाग गया ?” - सुनील मासूम स्वर से बोला ।
“भाग गया ?”
“हां । मुझे अपने पीछे आता देखकर उसने सूटकेस सड़क पर फेंक दिया और भाग निकला । मैंने सोचा अगर मैं उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागा तो पीछे से फिर कोई सूटकेस उठाकर ले जाएगा इसीलिए मैंने आदमी को भाग जाने दिया और सूटकेस लेकर वापिस आ गया ।”
“कहानी सुना रहे हो ?”
“नहीं सुपर साहब, एकदम सच कह रहा हूं । सबूत के तौर पर यह सूटकेस पेश कर रहा हूं ।”
“वाह-वाह ।” - रामसिंह मुंह बिगाड़कर बोला - “यह तो ऐसा सबूत है जैसे कोई यह कहे कि मैंने कल जंगल में एक बरगद के पेड़ के समीप खड़े एक शेर का शिकार किया था । विश्वास न हो तो आइए मैं आपको जंगल में बरगद का वह पेड़ दिखाऊं जिसके समीप वह शेर खड़ा था । तुम भी मुझे मरा हुआ शेर दिखाने के स्थान पर बरगद का पेड़ दिखा रहे हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“यह सूटकेस मार्शल के हाथ में था ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“हां ।” - सुनील ने उत्तर दिया - “जब उसे गोली लगी थी तो सूटकेस उसके हाथ से छिटककर दूर जा गिरा था ।”
“इसमें क्या है ?”
“मालूम नहीं ।”
“तुमने इसे खोलकर नहीं देखा ?”
“नहीं ।”
“और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी बात का विश्वास कर लूं ?”
“हां ।”
“क्या हां ?”
“यह कि तुम मेरी बात का विश्वास कर लो ।”
“जबकि हकीकत कुछ और ही है ।”
सुनील चुप रहा ।
रामसिंह कुछ क्षण सुनील को घूरता रहा लेकिन सुनील ने सिर नहीं उठाया । फिर रामसिंह ने सूटकेस खोला । सूटकेस के भीतर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र फैल गए ।
“यह क्या है ?” - रामसिंह के मुंह से निकला ।
“जाहिर है ।” - सुनील शांति से बोला - “इसमें डाकुओं द्वारा राधेमोहन की सेफ से चुराया हुआ लूट का माल है ।”
“इतना सारा ?”
“हां ।”
“यह तो दस पन्द्रह लाख का माल मालूम होता है । राधेमोहन ने तो डाके की रिपोर्ट में मुश्किल से एक डेढ लाख के माल का जिक्र किया था ।”
“यह ब्लैकमेलिंग से कमाया हुआ काला धन है, सुपर साहब ।”
“इसमें वे कागजात हैं जिनके दम पर राधेमोहन ब्लैकमेलिंग का धन्धा चला रहा था ?”
“मुझे क्या मालूम ? मैंने सूटकेस खोलकर थोड़े ही देखा है ।”
रामसिंह ने एक गहरी सांस ली और फिर सूटकेस टटोलने लगा । अन्त में उसने सूटकेस बन्द कर दिया और बोला - “इसमें वे कागजात नहीं हैं ।”
“सम्भव है वे कागजात इस मकान में कहीं छुपाये गए हैं ?”
“मुझे उम्मीद नहीं ।”
उसी क्षण गली एम्बूलेंस के सायरन की आवाज से गूंज उठी । अगले ही क्षण दो एम्बूलेंस गाड़ियां इमारत के सामने आ रुकीं ।
रामसिंह आगे बढा ।
सुनील भी उसके हाथ ही चिपका रहा ।
गली में जमीन पर सफेद चादरों से ढकी हुई दो लाशें पड़ी थीं । एम्बुलेंस में से कुछ आर्डरली निकले उन्होंने बारी-बारी उन लाशों को स्ट्रेचर पर डाला और फिर एम्बुलेंस में लाद दिया ।
फिर वे लोग पुलिस के निर्देश पर मकान में प्रविष्ट हो गए ।
थोड़ी देर बाद दो आर्डरली एक स्ट्रेचर उठाए बाहर निकले ।
स्ट्रेचर पर पड़ा हुआ आदमी मंगतराम था । गोलियों ने उसके चेहरे का पूरा का पूरा हिस्सा उड़ा दिया था ।
फिर जानी की लाश निकाली गई ।
फिर एक और आदमी की लाश जिसे सुनील ने पहले कभी नहीं देखा था ।
और अन्त में कमला ।
उसका भेजा उड़ गया था ।
एम्बूलेंस गाड़ियां फौरन वहां से रवाना हो गई ।
तमाशा खतम हो गया समझकर भीड़ धीरे-धीरे हटने लगी ।
“इतना भयंकर कत्लेआम कैसे हो गया ?” - सुनील धीरे से बोला ।
“सब कमला नाम की उस औरत ने किया है जिसे हम मार्शल की सहयोगिनी के रूप में पहचानते हैं ।” - रामसिंह बोला - “मार्शल को गोली लगते ही वह पागल हो गई थी । ज्यों ही उसने यह देखा कि मार्शल मर गया है, वह दोनों हाथों में रिवाल्वर लिए विक्षिप्त सी वापिस इमारत में घुस गई और इससे पहले कि कोई सम्भल पाता उसने भीतर मौजूद बाकी सारे आदमियों को बड़ी बेरहमी से अपनी गोलियों का निशाना बना दिया । हम लोग भी कमला के लगभग फौरन बाद ही मकान में घुस गए थे लेकिन फिर भी हम कमला को इतनी नृशंसता से अपने साथियों को मौत के घाट उतारने से रोक नहीं सके ।”
“कमला पुलिस की गोली से मरी ?”
“नहीं । उसने आत्महत्या कर ली । जब सबका काम तमाम हो गया तो उसने रिवाल्वर को अपनी कनपटी से लगाया और फायर कर दिया । सुनील ऐसी भयंकर प्रेम करने वाली औरत मैंने अपनी जिन्दगी में नहीं देखी । मार्शल के मरने की देर थी और फिर जैसे उसके लिए जिन्दगी का कोई अर्थ ही नहीं रहा । वह विक्षिप्तों की तरह मार्शल को सड़क पर मरा छोड़कर मकान की ओर भाग रही थी और मार्शल का नाम ले रही थी । वह मंगतराम और उसके साथियों पर गोलियां बरसा रही थी और मार्शल का नाम ले रही थी । वह मर रही थी और मार्शल का नाम ले रही थी । आखिरी क्षण में भी उसके मुंह से यही शब्द निकले थे - तुझे मारने वाला कोई जीवित नहीं है, पीटर ।”
“वास्तव में हुआ क्या था ?”
“मंगतराम की तत्काल मृत्यु नहीं हुई थी ।” - रामसिंह ने बताया - “उसके बयान से मालूम हुआ कि पहले तो कमला मंगतरात पर इल्जाम लगाती रही कि वह गद्दारी कर रहा है । वह पुलिस का मुखबिर बनकर मार्शल और अन्य आदमियों को भी फंसवाना चाहता है । वह बखेड़ा निपटा तो रुपये के बंटवारे पर झगड़ा हो गया । माहौल तो पहले ही बिगड़ा हुआ था । तैश में आकर जानी नाम के छोकरे ने रिवाल्वर निकाल ली और वह मार्शल को धमकाने लगा । फिर अवसर मिलते ही कमला ने जानी पर गोली चला दी । जानी के हाथ से रिवाल्वर निकल गई । कमला के दोनों हाथों में रिवाल्वरें थीं । उसने रिवाल्वरों से सबको कवर कर लिया और कहा कि अब वह किसी को भी एक नया पैसा नहीं देगी । फिर मार्शल ने सूटकेस उठाया और मकान से बाहर भाग गया । उसके बाद कमला भी भागी और मकान का दरवाजा बाहर से बन्द कर गई । लेकिन वह मूंछों वाला पहलवान सा आदमी ज्यादा ही फुर्तीला और निडर निकला । वह मकान की छत पर चढ गया और उसने वहां से सूटकेस लेकर भागते हुए मार्शल पर गोली चला दी । तत्काल ही वह खुद भी कमला की गोली का शिकार हो गया । मार्शल मर गया और कमला का जैसे दिमाग हिल गया । और फिर उसने मार्शल की मौत के बदले में एक-एक को कत्ल कर दिया और खुद भी मर गई ।”
“तुमने मंगतराम से यह नहीं पूछा कि धर्मपुरे में बन्सीलाल की हत्या किसने की थी ?”
“पूछा था । बन्सीलाल को कमला ने मारा था । उसके बाद जानी भी बन्सीलाल के मकान पर गया था लेकिन वह बंसीलाल की लाश देखकर उल्टे पांव सीढियां उतर आया था ।”
“बन्सीलाल की हत्या की नौबत क्यों आई ?”
“मंगतराम के कथनानुसार क्योंकि राधेमोहन ने उसकी शक्ल देख ली थी इसीलिए वह बाकी लोगों के लिए भी खतरे का साधन बन गया था । लेकिन उसकी हत्या का बड़ा कारण वह था कि वह खुद बेहद भयभीत हो गया था ।”
“फिर ?”
“बन्सीलाल इतना बौखलाया हुआ था कि कमला को भय था कि कहीं वह अपनी जान बचाने की खातिर खुद ही पुलिस तक न पहुंच जाये । इसीलिए कमला ने उसका हमेशा के लिए मुंह बन्द कर दिया था ।”
“मैं कमला और जानी को फ्रैंक के रेस्टोरेन्ट में बड़ी मजबूती से बंधा छोड़कर आया था । फ्रैंक रिवाल्वर लेकर उनके सिर पर बैठा हुआ था । फिर भी वे दोनों वहां से निकलकर भागने में सफल कैसे हो गए ?”
“इस विषय में तो तुम्हारा फ्रैंक ही कुछ बता सकता है ।”
सुनील चुप हो गया ।
गली में से भीड़ खत्म हो गई थी । केवल दो तीन लड़के अभी भी मकान से थोड़ी दूर खड़े थे ।
“तुम तो अभी यहां ठहरोगे ?” - सुनील बोला ।
“हां । काफी देर ।” - रामसिंह बोला ।
“फिर मैं चला ।” - सुनील बोला । उसने रामसिंह से हाथ मिलाया और लम्बे डग भरता हुआ उस ओर चल दिया जिधर उसने अपनी मोटर साइकिल खड़ी की थी ।
वह मोटर साइकिल पर सवार हुआ और ब्लास्ट के दफ्तर की ओर उड़ चला ।
दफ्तर पहुंचकर वह सीधा न्यूज एडीटर राय के कमरे में प्रविष्ट हो गया ।
“पेपर प्रेस में जाने में अभी कितनी देर है ?” - उसने न्यूज एडीटर राय से पूछा ।
राय ने घड़ी देखी और बोला - “लगभग दो घन्टे ।”
“फ्रन्ट पेज पर जगह खाली रखना, मैं अभी बहुत भयंकर न्यूज ला रहा हूं ।” - और इससे पहले कि राय दुबारा कुछ कह पाता सुनील कमरे से बाहर निकल आया ।
वह अपने केबिन में पहुंचा ।
उसने डायरेक्ट्री में उस हस्पताल का नम्बर देखा जिसमें फ्रैंक को ले जाया गया था ।
नम्बर मिलते ही उसने टेलीफोन अपनी ओर खींच लिया और वह नम्बर डायल कर दिया ।
दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोला - “फ्रैंक डगलस नाम के पेशेन्ट के बारे में जानना चाहता हूं जिसे आज शाम को पुलिस के साथ बेहद घायल अवस्था में रौनक बाजार से लाया गया था ।”
“एक मिनट होल्ड कीजिए ।” - उत्तर मिला ।
“हल्लो ।” - थोड़ी देर बाद एक नई आवाज सुनाई दी - “फ्रैंक डगलस के बारे में क्या जानना चाहते हैं आप ?”
“अब उसकी तबीयत कैसी है ?”
“एकदम ठीक है । वह किसी भी प्रकार के खतरे से बाहर है और इस समय बड़े आराम से सोया हुआ है ।”
“थैंक्यू वैरी मच ।” - सुनील बोला और उसने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
फिर उसने चटर्जी के घर का नम्बर डायल किया ।
कितनी ही देर तक घन्टी बजती रही ।
सुनील धैर्य से रिसीवर कान से लगाए बैठा रहा ।
अन्त में उसे चटर्जी का अलसाया हुआ स्वर सुनाई दिया - “हल्लो...”
“दादा” - सुनील बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“यस सुनील ।”
“मैंने इतनी रात गए आपको यह बताने के लिए जगाया है कि आप अपने कलायन्टों अर्थात समाज के उन कथित आधार स्तम्भों को जिन्हें राधेमोहन ब्लैकमेल कर रहा था, सूचित कर दीजिए कि उनकी जान सांसत से निकल गई है । अब उनमें से किसी को कैबिनेट मिनिस्टर अयोध्या प्रसाद सिन्हा की तरह आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है ।”
“क्यों ?” - चटर्जी ने पूछा ।
“मैंने वे तमाम सबूत नष्ट कर दिए हैं जिनके दम पर राधेमोहन उनका खून चूस रहा था । साथ ही उन्हें यह भी कह दीजिए कि अगर उनमें मानवता और शराफत का जरा भी अंश बाकी है तो वे कम से कम अब तो अपने कुकुर्मों से तौबा कर लें । दादा जो कुछ मैंने ब्लैकमेलिंग के उन कागजों में देखा था उससे तो मेरा जी चाहा था कि मैं वह सब नष्ट करने के स्थान पर ले जाकर अपने अखबार में छाप दूं लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सका ।”
“क्यों ?”
“आपकी वजह से और उन लोगों की वजह से जो केवल उन महानुभावों के संसर्ग में होने की वजह से गेहूं के साथ घुन की तरह पिस जकाते ।”
“सुनील...” - चटर्जी का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया - “तुम ने वाकई वे कागजात नष्ट कर दिए हैं ?”
“हां अपने हाथों से ।”
“वे मिले कहां तुम्हें ?”
“बाकी कहानी फिर कभी सुनाऊंगा । मैंने फौरन आपको यह सूचना इसलिए दी है ताकि आप अपने क्लायन्टों को सूचित कर दें । कहीं कोई और भी आत्महत्या का विचार न कर रहा हो ।”
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
फिर वह रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया ।
***
अगले दिन ।
सुनील फ्रैंक से मिला । वहां उसको मालूम हुआ वास्तव में कमला और जानी फ्रैंक के रेस्टोरेन्ट से मुक्त कैसे हो गए थे ।
जानी ने अपनी आस्तीन में एक चाकू छुपाया हुआ था जिसकी सहायता से उसने धीर-धीरे बिना फ्रैंक की जानकारी में आये अपने हाथ के बन्धन काट लिए थे । फिर उसने वही चाकू फ्रैंक पर खींच मारा था जो फ्रैंक के कन्धे में घुस गया था । फ्रैंक के हाथ से रिवाल्वर निकल गई थी जिसे जानी ने अपने अधिकार में कर लिया था ।
फिर उसने पांव के भी बन्धन खोल लिए थे । एक बार मुक्त होते ही रिवाल्वर के दस्ते से उसने फ्रैंक की खोपड़ी पर इतने प्रहार किए थे कि फ्रैंक की खोपड़ी का कचूमर निकल गया था । फ्रैंक की जगह कोई दूसरा आदमी होता तो वह हरगिज भी जीवित नहीं रह पाता ।
इसके बाद सुनील चटर्जी से मिला ।
चटर्जी ने अपने क्लायन्टों की ओर से सुनील को एक लाख रुपया दिया जो उसने बिना किसी प्रतिवाद के तत्काल ले लिया । उसकी निगाहों में उन ढके-छुपे अपराधियों का माल छोड़ना कोई अक्लमन्दी का काम नहीं था ।
चटर्जी ने अपने क्लायन्टों के नाम फिर भी नहीं बताए और और न ही सुनील ने इस विषय में उन्हें और कुरेदा ।
उस एक लाख रुपए में से सुनील ने जबरदस्ती पचास हजार फ्रैंक को दिए ।
पुलिस ने राधेमोहन पर ब्लैकमेलर होने के आधार पर केस नहीं चलाया लेकिन डाकुओं से बरामद हुआ उसका माल भी पुलिस ने उसे वापस नहीं किया । वह माल सरकारी खजाने में जमा हो गया । रामसिंह ने उसे स्पष्ट शब्दों में धमका दिया था कि अगर वह उस माल पर अपना अधिकार जताने का प्रयत्न करेगा तो वह जरूर जेल जाएगा।
राधेमोहन गैस निकले गुब्बारे की तरह पिचक गया था ।
समाप्त