सूरजप्रकाश राजपाल!
सामान्य कद-काठी का, पचपन वर्षीय चुस्त, फुर्तीला, सफल बिजनेसमैन उसकी काबिलियत का लोहा, हर नजदीकी इंसान मानता था। बचपन से ही वह तेज दिमाग का था, एक ही ख्वाहिश रही थी कि वह बड़ा आदमी बने । दौलतमंद बने।
वह बना।
जो चाहा, वैसा ही हुआ। लेकिन कुछ ऐसा भी हुआ, जो उसने नहीं सोचा था। हालात ऐसे बन गए थे कि बरसों पहले उसे अपने पार्टनर को जान से मारना पड़ा था और उस हत्या के सबूत जाने कैसे बख्तावर सिंह के हाथ लग गए थे और मजबूरी में वह बख्तावर सिंह की कठपुतली बन गया था।
“झा।” नाश्ता करने के बाद राजपाल और रास बिहारी झा, कॉफी के घूंट ले रहे थे। राजपाल के चेहरे पर गुस्सा और सुलगन उभरी पड़ी थी –“हम बचपन के दोस्त हैं। इस मुसीबत में तुझे, मेरे काम –।”
“अब तेरे लिए मैं अपना गला तो नहीं कटवा सकता।” झा ने उखड़े स्वर में कहा –“दोस्ती का मतलब यह तो नहीं कि, मैं कुएं में छलांग लगा दूं –।”
राजपाल ने बेचैनी से पहलू बदला। आंखों में छाया क्रोध बढ़ गया।
“मुसीबत में भी, तू मेरे काम नहीं आना चाहता।”
“तुम मुसीबत में नहीं हो। बल्कि आफत है तुम पर। मुझे क्या मालूम तुम पाकिस्तान के लिए जासूसी करते फिर रहे हो।” झा ने हाथ उठाकर कहा –“देख राजपाल। गलत धंधे मैं भी करता हूं। हर तरह की तस्करी करता हूं। मेरा अपना संगठन है। नेपाल में मेरा तगड़ा रैकेट है। यहां तक तो फिर भी सब चलता है, लेकिन दूसरे देश के लिए जासूसी करने को मैं गलत मानता हूं।”
“यह काम मैं खुशी से नहीं कर रहा था।” राजपाल ने झुंझलाकर कहा –“बख्तावर सिंह ने मुझे मजबूर कर रखा था। अगर मैं उसकी बात न मानता तो वह मेरे द्वारा की गई हत्या के सबूत पुलिस के हवाले कर देता और मेरी सारी जिंदगी जेल में बीतती। और –।”
“जिंदगी जेल में बीतना अच्छा था या जो अब हुआ, वह अच्छा था।” झा ने कड़वे स्वर में कहा।
“अगर मुझे मालूम होता कि इस बात का अंत मेरी बरबादी और मेरी बेटी की हत्या पर होना है तो मैं खुशी-खुशी सारी जिंदगी जेल में बिता देता । लेकिन झा, आने वाले वक्त का किसे पता होता है।” राजपाल के होंठों से गुर्राहट निकली –“मैं नहीं जानता था कि बरसों तक, बख्तावर सिंह की बातों को मानने के बाद, देश से गद्दारी करने के बाद, मेरे एक इनकार पर बख्तावर सिंह सब कुछ खत्म कर देगा।”
दोनों में कुछ पलों तक खामोशी रही।
“मैं इस मामले में तेरी कोई मदद नहीं कर सकता। तूने बताया कि पुलिस तेरी तलाश में है।”
“हां। दिल्ली में मैंने पुलिस वालों को कई बार अपने आसपास महसूस किया है। शायद उन्हें मुझ पर किसी तरह का शक हो गया है।” राजपाल बरबाद हुए स्वर में कह उठा।
“पुलिस को मालूम हो गया कि तू मेरे पास –।”
“मैं तेरी थोड़ी-सी सहायता लेने आया हूं –।” राजपाल की आवाज में खतरनाक भाव आ गए –“बख्तावर सिंह ने मुझे सबक सिखाने के लिए मेरी बेटी अनिता की हत्या कर दी। बहुत गलत हुआ। मैं बख्तावर सिंह को जिन्दा नहीं छोडूंगा। बेशक इसके लिए मुझे पाकिस्तान ही क्यों न जाना पड़े। अपनी बेटी की मौत का बदला –।”
“मेरे से तू क्या चाहता है?” झा ने उसकी बात काटी।
“बख्तावर सिंह अभी नेपाल गया है।”
“नेपाल?”
“हां। नेपाल में वह एक-दो दिन रुकेगा। और झा, सालों से तेरे संबंध नेपाल से हैं। तस्करी का सारा सामान नेपाल से आता है और तूने अभी कहा कि नेपाल में तेरा पूरा रैकेट है।”
झा ने हाथ बढ़ाकर, टेबल पर पड़ी प्लेट में रखा पान, उठाया और मुँह में डाला
“तो तू चाहता है कि नेपाल में मेरी ताकत के दम पर बख्तावर सिंह को साफ कर सके।”
“हाँ।”
“नेपाल में तो बख्तावर सिंह के पास खासी ताकत होगी।” झा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“लेकिन मैं, बख्तावर सिंह को खत्म करके रहूंगा।” राजपाल गुर्राया।
झा के चेहरे पर गंभीरता के भाव थे।
“ठीक है।” झा ने राजपाल की आंखों में झांका –“तेरे लिए इतना तो मैं कर सकता हूं, क्योंकि यह नेपाल की बात है। हिन्दुस्तान की नहीं। नेपाल में मौजूद, मेरे आदमियों का इस्तेमाल कर ले। तेरी बेटी की मौत का मुझे भी बहुत दुख है।”
राजपाल की आंखों में तीव्र चमक उभरी।
“थैंक्यू झा। मैं यही चाहता था।” राजपाल की आवाज खुशी से कांपी –“अब मैं यहां नहीं रुकूँगा। मैं फौरन नेपाल जाऊंगा। मुझे बता नेपाल में तेरे आदमी, कहां होंगे?”
“न्यू रोड पर रंजना सिनेमा है।” झा ने गंभीर स्वर में –“नेपाल पहुंचकर, दिन के ठीक एक बजे रंजना सिनेमा पर, आधा घंटा इन्तजार करना। मेरे आदमी तुम्हारे पास पहुंच जाएंगे। पहचान लेंगे। पहले दिन काम न बने तो, दूसरे दिन रंजना सिनेमा पर पहुंचना। समझे –।”
“समझ गया। मैं अभी नेपाल के लिए रवाना हो जाता हूं।” राजपाल उठता हुआ बोला।
“नेपाल में बख्तावर सिंह कहां मिलेगा?” झा ने प्रश्नभरी निगाहों से उसे देखा।
“नेपाल में उसके दो-तीन ठिकाने तो मालूम हैं।” राजपाल क्रूरता भरे स्वर में कह उठा –“वहां न मिला तो, वहां से मालूम हो जाएगा कि वह हरामजादा कहां है।”
“ठीक है। तुम –।”
तभी दरवाजे की तरफ आहट हुई।
दोनों की निगाहें घूमी।
आगे गनमैन था और पीछे गन के साथ मोना चौधरी। दोनों ने भीतर प्रवेश किया।
☐☐☐
सूरजप्रकाश राजपाल और झा की नजरें मिली। फिर पुनः उन दोनों पर। खासतौर से मोना चौधरी और उसके हाथ में पकड़ी गन पर।
“कौन हो तुम?” झा के होंठों से सख्त स्वर निकला और खड़ा हो गया।
“तुम्हारा क्या नाम है?” मोना चौधरी ने शब्द चबाए।
“मेरे घर में तुम, मुझे पूछ रही हो कि मैं कौन हूं।” झा का स्वर कठोर हो गया।
मोना चौधरी ने गन का रुख, झा की तरफ कर दिया।
झा ने दांतों से होंठ काटते हुए, मोना चौधरी को देखा।
“मरना चाहते हो?” मोना चौधरी के चेहरे पर खतरनाक भाव उभरे।
“झा-झा कहते हैं मुझे –।” वह जल्दी से बोला।
“वो तो मैं तभी समझ गई थी जब तुमने इस घर को अपना घर कहा।” भिंचे स्वर में कहते हुए मोना चौधरी ने राजपाल पर निगाह मारी –“यह कौन है?”
“मेरा दोस्त है।” झा ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा –“दिल्ली से आया है।”
“नाम क्या है?”
“सूरजप्रकाश –।”
“राजपाल –।” मोना चौधरी ने आगे कहा।
झा की आंखें सिकुड़ी।
राजपाल चौंका।
“हां –।” झा के होंठों से निकला।
मोना चौधरी की निगाह राजपाल पर जा टिकी।
“मेरा भी यही ख्याल था। यह राजपाल ही होगा।”
“क्या मतलब?”
“मैं तुम्हारे पीछे ही दिल्ली से पटना तक आई हूं और –।”
मोना चौधरी अपने शब्द पूरे न कर सकी। पास खड़े गनमैन ने मौका पाकर गन पर झपट्टा मारा। दो पल के लिए मोना चौधरी उसके प्रति असावधान हो गई थी। यही वजह रही कि मोना चौधरी चूक गई थी। गन उसके हाथ से निकल गई। गनमैन, गन लिए, नीचे जा गिरा।
दो पल के लिए मोना चौधरी की समझ में कुछ नहीं आया। फिर उसने गनमैन को गन के साथ, अपनी तरफ पलटते पाया तो, मोना चौधरी ने दाँत भींचकर, उस पर,छलांग लगा दी। दोनों फर्श पर गुत्थम-गुत्था होकर लुढ़कते चले गए। मोना चौधरी उससे हर हाल में गन छीनने की चेष्टा कर रही थी और गनमैन ने जैसे पक्का इरादा कर लिया था, वह अपने हाथ से गन नहीं जाने देगा।
झा और राजपाल की निगाहें मिली। दोनों के दांत भिंचे हुए थे।
झा दबे पांव राजपाल के करीब पहुंचा।
“झा।” राजपाल और झा की निगाहें मोना चौधरी और गनमैन की छीना-झपटी पर थी –“यह बख्तावर सिंह की भेजी है। मेरे को खत्म करने –।”
“तू भाग जा। नेपाल।”
“लेकिन तू –।”
“मेरी बात छोड़।”
“तेरे को याद है कि वहां तूने, रंजना सिनेमा पर –।”
“सब याद है।”
राजपाल पलटा और बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ दौड़ा।
मोना चौधरी ने भागते देखा। गन को छीनने के लिए पूरा जोर लगाया। लेकिन सफल नहीं हो सकी। राजपाल बाहर निकल चुका था।
झा आराम से उन दोनों की छीना-झपटी देख रहा था। उसके जेब में रिवॉल्वर थी। परंतु उसे निकालना ठीक नहीं था। गोली चलाना ठीक नहीं था। क्योंकि गोली उसके आदमी को लग सकती थी। झा खामोशी से देखता रहा।
दो-ढाई मिनट की खींचातानी के पश्चात गन मोना चौधरी के हाथ आई तो गन थामे वह उछलकर खड़ी हुई और जूते की जोरदार ठोकर, गनमैन की कमर पर मारी।
गनमैन चीखकर फर्श पर लुढ़कता चला गया।
मोना चौधरी ने गन का रुख झा की तरफ किया।
झा सतर्क सा हुआ। उसके होंठ भिंच गए।
तभी उनके कानों में कार स्टार्ट होने की आवाज पड़ी। फिर उसके जाने की।
मोना चौधरी की आंखों में दरिंदगी उभरी।
“तो भगा दिया राजपाल को।” मोना चौधरी शब्दों का चबाकर गुर्राई।
“मैं कौन होता हूं भगाने वाला?” झा ने मोना चौधरी को घूरते हुए कहा –“उसने खुद को खतरे में पाया और भाग गया।”
मोना चौधरी उसे घूरती रही। इस बार गनमैन के प्रति वह सतर्क थी। वह पेट थामे बुरे हाल नीचे पड़ा था। ठोकर की तगड़ी चोट पेट में लगी थी।
“तुम कौन हो?” झा ने सतर्क स्वर में पूछा।
“राजपाल कहां मिलेगा?” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर पूछा।
“मैं नहीं जानता।”
“मरना चाहते हो?” मोना चौधरी का स्वर वहशी हो उठा।
“मुझे मारकर राजपाल का पता तुम्हें मालूम हो सकता है तो बेशक मुझे मार दो।” झा ने तीखे स्वर में कहा –“तुम दिल्ली से, राजपाल के पीछे क्यों आई हो?”
मोना चौधरी के दांत भिंचे रहे।
“उसे शूट करना चाहती हो?”
“नहीं।”
“झूठ मत बोलो। तुम्हें बख्तावर सिंह ने भेजा है, राजपाल को मारने के लिए –।”
“मुझे बख्तावर सिंह ने नहीं भेजा –।”
“मतलब कि तुम बख्तावर सिंह को जानती हो?”
“हां। अच्छी तरह जानती हूं।”
“इस पर भी तुम कहती हो कि बख्तावर सिंह ने तुम्हें नहीं भेजा।”
“नहीं भेजा। मेरा बख्तावर सिंह से कोई वास्ता नहीं। मैं राजपाल की जान लेने नहीं आई।”
“तो फिर क्या चाहती हो, राजपाल से?”
“बात करनी थी। कुछ मालूम करना था।”
“सच कह रही हो?” झा की निगाह, एकटक मोना चौधरी पर थी।
“हां।”
“तो गन वापस उसे दो। गन हाथ में लेकर बात नहीं की जाती।”
मोना चौधरी ने बिना किसी हिचक के गन, नीचे पड़े व्यक्ति की तरफ फेंक दी।
झा ने अपने गनमैन को देखा।
“गन लो और दफा हो जाओ यहां से।” झा ने गनमैन से खतरनाक स्वर में कहा –“यह मैं तुमसे बाद में मालूम करूंगा कि तुम्हारे बदन पर पड़ी कमीज, उतरी कैसे। उसके बटन कैसे खुले?”
पेट पर हाथ रखे गनमैन उठा और दो कदम दूर पड़ी गन उठाई फिर मोना चौधरी पर निगाह मारकर, चेहरे पर पीड़ा समेटे बाहर निकल गया।
मोना चौधरी और झा की नजरें मिली।
“रिवॉल्वर भी निकाल कर फेंक दो।” झा बोला।
“नहीं है।” मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़कर कहा।
“मैं तुम्हारी तलाशी लूं तो, कोई एतराज?”
“नहीं।”
झा सावधानी से आगे बढ़ा और उसने मोना चौधरी के कपड़ों की तलाशी ली। उसके पास में कोई हथियार न पाकर, झा ने गहरी सांस ली और पीछे हट गया।
मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
“तुम्हारे पास गन भी, मेरे आदमी की थी। मतलब कि तुम यहां पर कोई हथियार लेकर नहीं आई। यानी की तुम्हारी नीयत राजपाल को खत्म करने की नहीं है। यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं।” झा ने शांत स्वर में कहा –“तुम उसकी दुश्मन नहीं हो।”
मोना चौधरी खामोश रही।
“राजपाल से तुम्हें क्या काम है। मुझे बता सकती हो।” झा ने पुनः कहा।
“नहीं।”
“अच्छी बात है।'” एकाएक झा मुस्कराया –“राजपाल नेपाल गया है।
“नेपाल –।” मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़े।
“हां। राजपाल से जरूरी काम है तो, नेपाल जाओ। ढूंढ़ना। मिले तो बात कर लेना।”
“नेपाल में कहां गया है?”
“काठमांडू।”
“और तुम जानते हो कि वह काठमांडू में कहां मिलेगा?” मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका।
“नहीं।”
“झूठ मत बोलो। तुम जानते हो।” मोना चौधरी की आवाज कठोर हो गई।
“मैं–।” झा मुस्कराया –“जो जानता था। बता दिया इसलिए बताया कि तुम राजपाल की जान लेने के फेर में नहीं हो। और किसी भी बात का जवाब इसलिए नहीं मिल सकता, क्योंकि मैं नहीं जानता वह काठमांडू में कहां गया है। कोई और सेवा हो तो कहो।”
“झा काठमांडू क्या करने गया है?”
“यह भी नहीं मालूम। वह बताने जा रहा था कि तुम आ गई।” झा, मोना चौधरी को इस बारे में नहीं बताना चाहता था कि राजपाल काठमांडू क्यों गया है और कहां मिलेगा? और इस बात का उसे पूरा भरोसा था कि यह लड़की अगर राजपाल की तलाश में काठमांडू पहुंची तो, राजपाल का मिल पाना संभव नहीं होगा। इसलिए उसने बताने में हर्ज नहीं समझा था।
मोना चौधरी ने कश लिया। वह झा को देखे जा रही थी।
“तुम बहुत खूबसूरत हो।” झा ने मीठे स्वर में कहा।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े।
“क्या नाम है तुम्हारा।”
“अभी–।” मोना चौधरी ने उसे घूरा –“मेरी मां ने, मेरा नाम नहीं रखा। जब नामकरण होगा तो, तुम्हें अवश्य बुलावा भेजूंगी। पहुंचना जरूर –।”
“खूब।” झा हंसा –“मेरा नामकरण तो मेरे पैदा होने से भी, पहले हो गया था।”
“कहां पैदा हुए थे?” मोना चौधरी की आवाज में व्यंग्य उभरा।
“पटना में।”
“दिल्ली में पैदा होते तो, नामकरण का ढंग ही दूसरा होता। चूक ही गए –।”
“वहां क्या होता है?”
“छोड़ो। अब तुम्हारी उम्र नहीं बची जानने की –।” कहने के साथ ही मोना चौधरी पलटी और बाहर निकल गई।
“साली किसी बम से कम नहीं है, यह खूबसूरत शह। और खतरनाक भी बहुत लगती है।” गहरी सांस लेकर बड़बड़ा उठा –“लेकिन राजपाल को नहीं ढूंढ़ पाएगी। कोई बात नहीं। काठमांडू तो घूम ही लेगी।”
☐☐☐
मोना चौधरी उसी दीवार को फलांग कर, बंगले से बाहर आई। महाजन कुछ दूरी पर पेड़ की छांव के नीचे खड़ा था। वह फौरन उसके पास पहुंचा।
“क्या हुआ? राजपाल मिला?”
दोनों उस गली में आगे बढ़ने लगे।
“मिला भी और नहीं भी –?”
“क्या मतलब?”
“उससे बात नहीं हो सकी और भाग गया। शायद उसे लगा मैं उसकी जान लेना चाहती हूं –।”
“ओह! उसका हाथ से निकल जाना बहुत बुरा हुआ।” महाजन का स्वर व्याकुल हो उठा –“हमारी कठिनाई आसान हो जाती। वह बता सकता था कि बख्तावर सिंह नेपाल में कहां मिलेगा?”
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली। चेहरे पर सोच के भाव थे।
“राजपाल कहां गया होगा?”
“नेपाल –।”
“कैसे पता?”
“झा से बात हुई। झा और मेरे में कोई उखड़ी बात तो नहीं हुई। लेकिन उसके हाव-भाव से यही लगा कि वह खेला-खाया इंसान है मेरे हाथ में गन देखकर भी नहीं घबराया।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा –“झा ने बताया कि वह नेपाल–काठमाण्डू गया।”
“काठमाण्डू कहां?”
“नहीं बताया झा ने। बोला मालूम नहीं। लेकिन मुझे मालूम था वह जानता है।”
“गर्दन क्यों नहीं पकड़ी साले की?”
“ऐसा करना ठीक नहीं था। वहां पर दो ऐसे आदमी मौजूद थे जिनके पास गनें थी और मुझे इस बात का भी पूरा विश्वास है कि मुझ से बात करते हुए, उस वक्त उसकी जेब में रिवॉल्वर थी।” मोना चौधरी ने कहा –“और मेरे पास कुछ भी नहीं था।”
“समझा –।”
“मौका पाते ही राजपाल को, झा ने ही वहां से भगाया।”
“साले को फिर घेरें?”
“नहीं। अब वह सावधान हो गया होगा। यह तो उसने जरूर सोचा होगा कि राजपाल की वजह से उस पर, मेरे जैसी ही, कोई मुसीबत आ सकती है।” मोना चौधरी ने चलते-चलते सिगरेट सुलगाई –“अब पटना में रुकना बेकार है। हमें नेपाल के लिए निकल चलना चाहिए।”
“लेकिन हमें यह तो मालूम नहीं कि राजपाल काठमांडू में कहां मिलेगा।” महाजन उखड़ी आवाज में कह उठा –“और न ही बख्तावर सिंह का पता है।”
“काठमांडू कोई ज्यादा बड़ी जगह नहीं है। दोनों में से कोई तो नजर आएगा।”
“बेबी। एक रात मेरी लॉकअप में बीती। दूसरी रात भी नहीं सो पाया।” महाजन ने मुंह बनाकर कहा –“अब मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है कि भागदौड़ कर सकूँ।”
“तुम आराम कर लेना।”
“आराम कहां मिलेगा। प्लेन ने जल्दी ही नेपाल पहुंचा देना है और वहां तुम दौड़ाओगी। मैं –।”
“हम कार पर नेपाल चलेंगे।” मोना चौधरी मुस्कराई –“तुम पीछे वाली सीट पर लंबी नींद लेना।”
“कार पर –कार से तो पहुंचने में वक्त लगेगा।”
“इतना वक्त हमारे पास है।” मोना चौधरी मुस्कराई –“राजपाल किसी भी हालत में प्लेन द्वारा नेपाल नहीं जाएगा। क्योंकि वह जानता है कि कोई उसके पीछे है और प्लेन पर सफर करने से वह नजर में आ जाएगा।”
“समझा। तो वह कार पर नेपाल जायेगा?”
“जाएगा नहीं। झा के बंगले से निकलते ही नेपाल के लिए चल पड़ा है। बीच में कहीं रुकने का तो मतलब ही नहीं। और अब हमें भी नेपाल के लिए निकलना है।”
गली से बाहर आते ही दोनों ठिठके।
“बेबी, मैं अभी आया।” कहने के साथ ही महाजन एक तरफ बढ़ गया।
पांच मिनट में ही वापस आया।
“कहां गए थे?”
“बोतल लेने।” महाजन ने पैंट में फंसी बोतल को थपथपाया –“लेकिन बेबी, हम चलेंगे कैसे?”
“कार से।”
“और कार?”
“कहीं से उठानी पड़ेगी।” मोना चौधरी ने सड़क पर दौड़ती कारों पर नजर मारते हुए कहा।
“ठीक है बेबी तुम कार का इंतजाम करो। मैं रास्ते के लिए खाना पैक करा कर लाता हूँ। आधे घंटे के बाद हम यहीं मिलेंगे। सुबह से कुछ भी पेट में नहीं गया।”
☐☐☐
कार पूरी रफ्तार के साथ दौड़ रही थी। दरवाजे की खिड़कियों के, शीशे बंद कर रखे थे, जिससे कि बाहर उड़ती धूल, कार में न आ पा रही थी। महाजन ने खाने के साथ आधी से ज्यादा बोतल पी और उसके बाद थका-टूटा, पीछे वाली सीट पर, नींद में जा डूबा था। पटना से चलने में उन्हें कुछ देर हो गई थी। मोना चौधरी को कार ड्राइव करते चार घंटे होने को आ रहे थे। अब हाइवे की सुनसानी कम होती महसूस हो रही थी। कुछ देर से कच्चे-पक्के मकानों का सिलसिला चालू हो गया था। मोना चौधरी समझ गई कि कार हाजीपुर की सीमा में प्रवेश कर चुकी है।
कुछ देर बाद बड़ा चौराहा आया।
मोना चौधरी ने कार को बाईं तरफ मोड़ दिया। कार की स्पीड कम हो चुकी थी। यह भीड़-भाड़ वाला इलाका था। सड़क के दोनों तरफ दुकानें और वाहनों की भीड़ थी। लोग पैदल भी आ-जा रहे थे। कहीं रिक्शा-ठेला तो कहीं मजदूर सिर पर सामान उठाए जा रहे थे।
मोना चौधरी कार को करीब दस मिनट इसी तरह आगे बढ़ाती रही। यह सड़क सीधी छपरा जा रही थी। आगे आने वाले बड़े मोड़ से, मोना चौधरी ने कार को मुजफ्फरपुर की तरफ मोड़ लिया। करीब पांच मिनट बाद आबादी पीछे छूट गई और कार पुनः पहले वाली गति से दौड़ने लगी।
मोना चौधरी ने बगल में सीट पर पड़े पैक खाने पर निगाह मारी। कार ड्राइव करने में इस कदर व्यस्त रही थी कि खाने का वक्त नहीं मिला था। पास पड़ी मिनरल वाटर की बोतल खोली और सूख रहे गले में कुछ घूंट उतारकर, बोतल बंद करके वापस रख दिया।
मिनरल वॉटर गर्म होकर तप-सा रहा था। लेकिन गला गीला करने के लिहाज से बुरा नहीं था। सड़क के दोनों तरफ पेड़ थे। और कार में बैठे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे पेड़ों की वह कतारें पीछे की तरफ दौड़ रही हों। हाइवे पर वाहनों को ओवर टेक करने की होड़ लगी हुई थी।
☐☐☐
रात का अंधेरा फैल चुका था।
हाइवे पर लाइटें न होने के कारण, कार को बहुत सावधानी से ड्राइव करना पड़ रहा था। सामने से आते वाहनों की हेडलाइटों की वजह से आंखें चौंधिया जाती।
ऐसा लगता जैसे दो पलों के लिए आंखों ने काम करना बंद कर दिया हो।
रात के करीब नौ बजे मोना चौधरी को दूर, लाइटों का जाल दिखा। ज्यों-ज्यों कार आगे बढ़ती जा रही थी। रोशनियां बड़ी होती जा रही थी।
मुजफ्फरपुर आ गया था।
कार की स्पीड कम होने और ब्रेकरों पर कार उछलने के कारण से महाजन की आंख खुली तो, वह उठ बैठा और आंखें मलता हुआ बोला –“गुड मार्निंग बेबी।”
“मॉर्निंग या इवनिंग –।” मोना चौधरी मुस्कराई।
“मॉर्निंग।” महाजन भी मुस्कराया –“जब आंख खुली तभी सवेरा। यह रात-दिन तो ऊपर वाले ने बनाए हैं। वक्त के आगे बढ़ने का एहसास कराने के लिए –।”
“बहुत बढ़िया बातें कर रहे हो।” मोना चौधरी हंसी।
“नींद पूरी हो गई है, इसलिए। कहां पहुंचे हम?” महाजन ने पूछा।
“मुजफ्फरपुर –।”
“ओह।” तभी महाजन की निगाह अगली सीट पर पड़े पैक खाने पर पड़ी –“तुमने कुछ खाया नहीं।”
“वक्त नहीं मिला।”
“ओ.के.। यह मत लेना। ठण्डा हो चुका है। मुजफ्फरपुर में कहीं रुककर खा लेना। उसके बाद तुम आराम करना। कार मैं ड्राइव करूंगा।” कहने के पश्चात महाजन ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
कार मुजफ्फरपुर में प्रवेश कर चुकी थी। लोगों की चहल-पहल स्पष्ट नजर आने लगी थी।
☐☐☐
राजपाल पागलों की तरह कार को दौड़ाए जा रहा था। घंटों की ड्राइव के दौरान वह सिर्फ दो बार चाय पीने के लिए रुका था। कार की रफ्तार ऐसी रही थी कि अगर कहीं एक्सीडेंट हो जाता तो कार के चिथड़े-चिथड़े उड़ जाते। राजपाल का नामोनिशान न रहता।
लेकिन अभी तक सब कुछ ठीक-ठाक था।
वह तो इसी में राहत महसूस कर रहा था कि झा के बंगले से बच निकला है। वरना बख्तावर सिंह की भेजी उस हत्यारिन ने उसे खत्म कर ही देना था।
तब रात के साढ़े बारह बज रहे थे जब उसकी कार ने सुमौली में प्रवेश किया। उसे लगा काफी रास्ता तय कर आया है। सुमौली छोटी सी जगह थी। ऊपर से रात का वक्त, सुमौली में लगभग सुनसानी छाई हुई थी। वहां के थोड़े से हिस्से में ही स्ट्रीट लाइटें जगमग कर रही थीं। किसी-किसी दुकान के बाहर, लगा बल्ब रोशन था या फिर दो-चार मकानों में ही रोशनी नजर आई थी।
राजपाल ने कार की रफ्तार काफी कम कर ली थी। सुमौली की सुनसान सड़कों पर वह दाएं-बाएं देखता आगे बढ़ रहा था। राजपाल के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी। दांत भिंचे हुए थे। ऊपर से लंबी ड्राइव की थकान। परंतु वह जानता था कि रुकना उसके लिए ठीक नहीं था। नेपाल में वह ज्यादा सुरक्षित था।
एकाएक उसका पांव ब्रेक पर दबा।
कार तीव्र झटके से साथ रुकी।
राजपाल इंजन बंद करके कार से नीचे उतरा और तेजी से सामने दिखाई दे रहे एस.टी.डी. बूथ की तरफ बढ़ा जो खुला हुआ था और शीशे के भीतर कोई बैठा नजर आ रहा था।
राजपाल शीशे का दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया।
भीतर बैठे व्यक्ति ने उसे देखा।
“पटना बात करनी है।” राजपाल ने कहा।
“कीजिए।” उसने फोन की तरफ इशारा किया।
“प्राइवेट बात है। तुम बाहर निकलो।” राजपाल ने हाथ के इशारे से उसे उठने का इशारा किया।
“क्या?” वह व्यक्ति अचकचाया।
राजपाल ने पर्स निकाला और उसे पांच सौ का नोट थमाकर बोला।
“ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। समझा करो।”
उसने पांच सौ का नोट पकड़ा और उठा। मुस्कराकर उसने राजपाल को देखा फिर बाहर निकल कर खड़ा हो गया। राजपाल के चेहरे पर तसल्ली के भाव उभरे और फिर पटना फोन मिलाकर झा से बात की। उसकी आवाज पहचानते ही, झा का स्वर कानों में पड़ा।
“कहां से बोल रहे हो?”
“सुमौली से –।” राजपाल ने जल्दी से कहा –“मेरे जाने के बाद क्या हुआ?”
झा ने कम शब्दों में उसे सब कुछ बताया। फिर उसने कहा।
“युवती तुम्हारी जान के पीछे नहीं है राजपाल –।”
“पागल हो गए हो तुम।” राजपाल ने गुस्से से भरे स्वर में कहा –“अब तुममें अच्छे बुरे को समझने की समझ नहीं रही। वह तुम्हें क्यों कहेगी कि उसे बख्तावर सिंह ने, मुझे मारने को भेजा है।”
“तुम्हें मारने के लिए बख्तावर सिंह, किसी युवती को ही भेजेगा? वह तो गुण्डे बदमाशों की टोली को भेजेगा।”
“तुम बख्तावर सिंह को नहीं जानते झा। वह कब क्या कर दे। कुछ नहीं कहा जा सकता।” राजपाल ने दांत भींचकर कहा –“वह बहुत ही खतरनाक इंसान है।”
झा की तरफ से आवाज नहीं आई।
“मेरे इंकार करते ही उसने मेरी बेटी की जान ले ली। किस बुरी तरह उसे मारा। हरामजादों ने पहले उससे बलात्कार किया। फिर गला घोंटकर मारा। कितनी तकलीफ हुई होगी, मेरी बच्ची को।” राजपाल के होंठों से गुर्राहट निकली –“और वह हरामी जानता है कि मैं उसको नहीं छोडूंगा। इससे पहले कि मैं उस तक पहुंचूं, वह मुझे खत्म कर देना चाहता है।”
“लेकिन वह युवती तुम्हारी दुश्मन नहीं थी –।” झा की आवाज आई।
“बेवकूफ। वह मेरी दुश्मन ही थी।” राजपाल पागलों की तरह बोला –“इससे बड़ा तुम्हें और क्या सबूत चाहिए कि वह तुम्हारे ही आदमी की गन छीनकर, हमारे सामने आ पहुंची थी।”
“राजपाल ठण्डे दिमाग से सोच। बख्तावर सिंह को अपने दिमाग से निकालकर सोच। दिल्ली में ऐसा कोई और है जिसे तेरी जान जरूरत हो। जिसे तेरे पीछे आना पड़ा हो।”
“नहीं। ऐसा कोई नहीं –।” राजपाल ने सख्त स्वर में की कहा –“तो तूने उसे बताया कि मैं काठमांडू जा रहा हूं।”
“हां। इसमें तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं। वह तुम्हें ढूंढ़ नहीं पाएगी।”
“ढूंढने की बात नहीं है। वह काठमांडू आकर बख्तावर सिंह को बता देगी कि मैं उसकी तलाश में काठमांडू आ पहुंचा हूं। इससे बख्तावर सिंह सतर्क हो जाएगा और मेरे लिए खतरा बन जाएगा।”
“ऐसा तो तब होगा, अगर उसे बख्तावर सिंह ने भेजा हो।”
“ठीक है। तू मत मान मेरी बात। अब वह प्लेन द्वारा काठमांडू पहुंचेगी या मेरी तरह सड़क के रास्ते से और मैं इस बात का रिस्क नहीं लेना चाहता कि वह बख्तावर सिंह को मेरे बारे में सतर्क करे।”
“क्या मतलब?”
“अगर वह सड़क के रास्ते काठमांडू आ रही है तो उसे संभाला जा सकता है।” राजपाल गुर्राया।
“कैसे?”
“तेरे आदमी रक्सौल में हर वक्त मौजूद रहते हैं। तूने बताया था।”
“हां। नेपाल से आने वाले माल को वही रिसीव करते हैं। फिर पटना पहुंचाने का इंतजाम करते हैं।”
“लेकिन तुम क्यों पूछ रहे हो।” झा की आवाज उसके कानों में पड़ी।
“अपने आदमियों का पता बता। रक्सौल पहुंचकर उन लोगों से मिल सकूं। मेरे पहुंचने से पहले तेरा फोन भी उनको पहुंच जाए कि वह मेरी बात माने।”
झा के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
“तो तू उसका रास्ता रोकने की कोशिश करेगा। अगर वह सड़क के रास्ते आ रही होगी –।”
“हां। मैं उसे खत्म करने की कोशिश करूंगा। रक्सौल में मौजूद अपने आदमियों का पता बता।”
“तेरी मर्जी।” कहने के साथ ही झा ने अपने आदमियों का पता बताया।
“वह अकेली है या, उसके साथ भी कोई है।”
“मैं नहीं जानता।”
“ठीक है। मैं सब संभाल लूंगा। तुम याद रखना कि तुम्हारे आदमी काठमांडू में मुझे रंजना सिनेमा पर मिलेंगे।”
“हां। इस बारे में काठमांडू खबर कर दी गई है।”
“अब काठमांडू से तुम्हें फोन करूंगा।” कहने के साथ ही राजपाल ने रिसीवर रख दिया और पलटकर बाहर निकला। बाहर मौजूद बूथ वाले को दो सौ रुपए और दिए और फिर कार में बैठते हुए कार को तूफानी रफ्तार से दौड़ा दिया। दांत भिंचे हुए थे। चेहरा गुस्से से भरा हुआ था।
कार ने एक बार फिर तूफानी रफ्तार पकड़ ली थी।
☐☐☐
आधी रात के ऊपर का वक्त हो चुका था। जब उन्होंने मोतीहारी में प्रवेश किया। छोटा सा शहर मोतीहारी, सोया पड़ा था। कहीं-कहीं रोशन लाइट या बड़ा चौराहा ही उस जगह के शहर होने का अहसास दिला रहा था या फिर कोई लंबी सड़क जिसके दोनों तरफ दुकानें थी।
पीछे वाली सीट पर सोई, मोना चौधरी उठ बैठी।
“बेबी। हम मोतीहारी पार करने जा रहे हैं।” महाजन बोला।
“कितना वक्त हुआ है।”
“करीब एक बज रहा है।”
“सुबह तक रक्सौल पहुंच जाएंगे।”
“शायद सुबह से पहले ही –।”
मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
“पेट्रोल खत्म हो गया है।” महाजन बोला।
“पटना से चलते वक्त टैंक फुल तो कराया था।”
“मैं कार के नहीं, अपने पेट्रोल की बात कर रहा हूं।” महाजन ने गहरी सांस ली।
मोना चौधरी मुस्कराई।
“इस वक्त तो तुम्हें व्हिस्की मिलने से रही –।”
“मिल सकती है –।”
“कहां से?”
“कहीं-न-कहीं व्हिस्की की दुकान तो होगी ही। बेशक बंद हो।” महाजन मुस्कराया –“लेकिन दिक्कत तो यहां आ रही है कि हमारे पास रुकने का वक्त नहीं है।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
कार तेजी से दौड़ती रही थी।
“राजपाल अगर सड़क के रास्ते से नेपाल जा रहा है,हमें रास्ते में मिलना चाहिए।”
“सड़क के रास्ते जा रहा है तो, हमसे काफी आगे होगा, पटना से निकलने में हमें वक्त लग गया था।”
“मतलब कि राजपाल से, काठमांडू में ही मुलाकात होगी।”
“हां। अगर हमने उसे ढूंढ़ लिया तो –।” मोना चौधरी मुस्कराई।
“ढूंढ लेंगे।” महाजन की आवाज में विश्वास के भाव थे।
☐☐☐
कार ने पागलों की सी रफ्तार से रक्सौल पार किया और तेजी से आगे दौड़ती चली गई। अब रक्सौल पहुंचना था। जो कि रक्सौल से सिर्फ आठ किलोमीटर के फासले पर था। जहां भारत नेपाल सीमा थी।
जहां से नेपाल जाने के लिए ‘बस’ मिलती थी। कारें-ट्रक चुंगी पर रुकते थे। उसके बाद लंबा रास्ता, लंबी सड़क, नेपाल तक थी।
दस-बारह मिनट में ही राजपाल की कार रक्सौल में प्रवेश कर गई।
दिन निकलने में अभी वक्त था। राजपाल ने कलाई में बंधी घड़ी में वक्त देखा। सुबह के चार बज रहे थे। रक्सौल पहुंचते ही, राजपाल के सिर पर चढ़ा तनाव कुछ कम हो गया था। रक्सौल में प्रवेश करने के कुछ देर बाद, एक चौकीदार नजर आया तो, राजपाल ने उसके पास कार रोकी।
“सुनो। गांधी मार्ग कहां पड़ेगा?” राजपाल ने पूछा।
“इधर मुड़ जाओ।” उसकी आवाज में नींद भरी हुई थी –“जहां यह सड़क खत्म होती है। वहां चौराहा पड़ेगा। उसी चौराहे की एक सड़क गांधी मार्ग है। वहां चौकीदार खड़ा होगा। उससे पूछ लेना। और उसे बोल देना मेरी तरफ से कि लाडो की शादी तेरे साथ हो सकती है, अगर पच्चीस हजार रुपया उसके बाप को और पांच हजार मुझे दो। मैं सारा मामला फिट करा दूंगा। बोल देना उसे।”
राजपाल ने कार आगे बढ़ा दी।
“उल्लू का पट्ठा –।” राजपाल बड़बड़ा उठा।
पांच मिनट में ही वह चौकीदार के बताए चौराहे पर जा पहुंचा।
चौकीदार तो वहां नजर नहीं आया। लेकिन एक सफेद रंग की वैन, स्ट्रीट लाइट की मध्यम रोशनी में खड़ी नजर आई। दो-तीन लोग वैन के पास खड़े सिगरेट पी रहे थे।
राजपाल के होंठ सिकुड़े। कार की स्पीड कम हो ही चुकी थी। फिर उनके पास राजपाल ने कार रोकी और इंजन बंद करके नीचे उतरकर उनके पास पहुंचा।
उनकी निगाह भी, राजपाल पर टिक चुकी थी।
तीन-चार कदम उठाने के दौरान ही राजपाल ने महसूस कर लिया था कि वैन के पास खड़े तीन आदमियों के अलावा दो भीतर भी हैं। जो कि बोतल खोले बैठे थे।
उनकी निगाह राजपाल पर जा टिकी। राजपाल भी उन्हें देख रहा था।
तभी उनमें से एक आगे बढ़ा और राजपाल वाली कार ध्यान से देखने के बाद बोला।
“यह कार तो झा साहब की है।”
यह सुनकर दूसरे ने राजपाल से पूछा।
“आपका नाम?”
“राजपाल कहते हैं मुझे –।” राजपाल ने गहरी निगाहों से उन्हें देखा –“झा का फोन मिला तुम लोगों को?”
“हां। तभी हम यहां मौजूद हैं। आपके इंतजार में।”
“मुझे झा ने बताया था कि उसके आदमियों से मैं यहां मिल सकता हूं –।”
तभी वैन के भीतर पी रहे, एक ने उखड़े स्वर में कहा।
“पूछ बात क्या है। रात खराब कर दी। कल का दिन भी खराब जाएगा।”
“झा साहब ने हमें कहा है कि आपकी हर बात मानें। क्या चाहते हैं आप?” दूसरे ने पूछा।
राजपाल ने सिगरेट सुलगाई और बोला।
“भीतर जो बैठे हैं। उनकी बोतल से तगड़ा पैग बना कर दो।”
“कुछ दूरी पर हमारा ठिकाना है।” जवाब में उस व्यक्ति ने कहा –“वहां पर चलते–।”
“इतना वक्त नहीं है।”
उसके बाद राजपाल से कुछ नहीं पूछा गया।
उसे व्हिस्की का गिलास तैयार करके थमा दिया।
“यह व्हिस्की पीने तो नहीं आया।” वैन के भीतर से नशेड़ी स्वर आया –“बोल दे इसे । फ्रांस की व्हिस्की है। नेपाल से खासतौर से हमारे लिए आती है। मजे ले-लेकर पिए।”
राजपाल ने इन शब्दों पर ध्यान नहीं दिया और दो बड़े घूंट मारकर, सामने खड़े आदमी को देखा और कश लेकर शांत स्वर में कहा –“एक खूबसूरत लड़की। पटना से मेरे पीछे आ रही है वह –।”
“लड़की –खूबसूरत।” वैन के भीतर बैठे नशेड़ी ने दरवाजा खोला और गर्दन बाहर निकालकर बोला –“कहां है लड़की।”
राजपाल अपनी बात कहता रहा।
“नब्बे परसेंट यह बात पक्की है कि वह मेरे पीछे आ रही है। देखने में जितनी खूबसूरत हसीन है। मेरे ख्याल में उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है।”
राजपाल को रुकते पाकर वह बोला।
“काम बोलो।”
“वह मेरे पीछे नेपाल जा रही है। और मैं उसे जिन्दा नहीं देखना चाहता।”
“मतलब कि उसे खत्म करना है।”
“हां –।”
“रहम दया की कोई गुंजाइश है उस पर?”
“नहीं।” राजपाल के दांत भिंच गए –“उसे बुरी से बुरी मौत दो।”
वैन में मौजूद नशेड़ी ने गर्दन बाहर निकालकर दांत फाड़े।
“पहले हम उससे हनीमून मनाएंगे। उसके बाद ‘फिश’ करेंगे। समझा क्या?”
राजपाल ने गिलास एक ही सांस में खत्म किया और मुंह बनाकर बोला।
“जो मन में आए करो। लेकिन वह नेपाल तक मेरे पीछे न आए। और जिन्दा न बचे।”
“ठीक है।” वैन में मौजूद दूसरे नशेड़ी ने कहा –“काम हो जाएगा। एक लाख लगेगा।”
“चुप कर।” दूसरे ने डांटा –“झा साहब ने भेजा है।”
“कोई बात नहीं।” वह नशे से भरी हंसी हंसा –“झा साहब से वसूल लेंगे।”
“मिस्टर राजपाल।” दूसरे व्यक्ति ने कहा...“आप जाइए। काम हो जाएगा। उस लड़की की पहचान की खातिर, उसका हुलिया बता दीजिए कि वह देखने में कैसी लगती है?”
राजपाल ने मोना चौधरी का हुलिया बताया।
“वह अकेली है या साथ में कोई है?”
“इस बात की मुझे पक्की खबर नहीं।”
“कोई बात नहीं।” दूसरा बोला –“उसका हुलिया ही बहुत है। निपटा देंगे उसे।”
“मैं जाऊं?”
“हां।”
“लेकिन तुम लोग कैसे?”
“हमारा काम, हमारे लिए ही रहने दीजिए। आप जाइए।”
राजपाल ने सिर हिलाकर खाली गिलास उसे थमाया और पलटकर अपनी कार की तरफ बढ़ गया। देखते ही देखते वह कार में बैठा। और कार आगे बढ़ गई।
☐☐☐
राजपाल के चले जाने के बाद सब बदमाश वैन में जा बैठे।
“कैसे पकड़ना है उस छोकरी को?” एक बोला।
“वह पटना से आ रही है तो सुमौली के बाद रक्सौल की तरफ आएगी।” नशेड़ी खाली हो रही बोतल ठकठकाकर कह उठा–“रक्सौल से कुछ पहले ही पुलिस चौकी बना लेनी चाहिए। अब उसे क्या पता कि चौकी अभी बनी है या हमेशा ही यहां होती है।”
“गुड! आइडिया अच्छा है।” दूसरे ने बेदर्दी से उसका कंधा ठोंका।
“मल्लू।” तीसरा कह उठा –“वैन आगे बढ़ा। ठिकाने से वर्दियां और दो-चार कुर्सियां ले लेते हैं। बिजली की तार भी ले लेना। खम्बे पर डालकर बल्ब जला लेंगे।”
मल्लू ने वैन आगे बढ़ा दी।
☐☐☐
सुमौली और रक्सौल के रास्ते में आनन-फानन पुलिस बैरियर बन चुका था।
रक्सौल की सीमा शुरू होने से दो किलोमीटर पहले, हाइवे पर यह बैरियर बनाया गया था।
वह छ:थे।
कोई सब-इंस्पेक्टर की वर्दी में था तो कोई हवलदार और कांस्टेबल की वर्दी में। सब-इंस्पेक्टर और हवलदार की कमर में होलस्टर बंधे हुए थे। कांस्टेबल बने तीनों को राइफलें थी।
ऊपर जा रही बिजली की तार में तार फंसाकर, बल्ब रोशन कर रखा था।
मल्लू सब-इंस्पेक्टर बना था जो कि कुर्सी पर बैठा, सामने पड़ी लकड़ी की टेबल पर दोनों पांव रखे, इधर-उधर देख रहा था। वह दोनों नशेड़ी, जो वैन में बैठे बोतल खत्म करने पर लगे थे। हवलदार बने हुए थे। और बाकी के तीनों कांस्टेबल।
सड़क पर बड़े-बड़े ड्रम खड़े कर रखे थे कि जो भी वाहन आए। उसे रुकना ही पड़े। पिछले आधे घंटे में एक ट्रक और दो मैटाडोर निकले थे। उनसे खामख्वाह अडंगा डालकर किसी से दो सौ और किसी से तीन सौ झाड़ लिए थे।
“साली यह वर्दी भी कमाल की है।” नशेड़ी ने हराकर दूसरे के कंधे पर हाथ मारा –“मांगने पर कोई पचास का नोट हाथ पर न रखे। और वर्दी देखते ही खुद-ब-खुद ही नोट बाहर जा जाते हैं। तभी वो साला हवलदार जो दारू की बोतल के लिए कभी हमारे आगे-पीछे घूमा करता था। अब मूंछे ऊपर करके कार पर घूमता है। अब सामने आया तो साले की मूंछे उखाड़ दूंगा।”
“सुना है उसने दूसरी शादी कर ली है।”
“ऊपर से मोटा माल आ रहा है। घटिया इंसान है साला तीसरी भी कर ले तो क्या बड़ी बात है।”
दिन का उजाला फैलना शुरू हो गया था।
बल्ब की रोशनी हर पल मध्यम होती जा रही थी।
सब-इंस्पेक्टर मल्लू ऊंचे स्वर में कह उठा।
“वो लड़की तो आई नहीं। दिन निकल रहा है। असली पुलिस आ गई तो भागने का भी रास्ता नहीं मिलेगा।”
“बैठा रह। आने वाला अब, कब आता है। क्या मालूम। वर्दी पहनी है तो खतरा उठाना ही पड़ेगा।”
तभी सुमौली से आती कार की हेडलाइट नजर जाने लगी।
मल्लू ने भी उस तरफ देखा और बोला।
“कार आ रही है।”
“कोई बात नहीं। इससे पांच सौ झाड़ेंगे।”
“बेवकूफी वाली बात मत करो।”
“क्या मतलब?”
“दो-चार हजार के चक्कर में मत पड़ो। सिर्फ अपने काम की तरफ ध्यान दो। यहां से निकलने वाले ने आगे जाकर, पुलिस को बोल दिया कि यहां खड़े पुलिस वालों ने उनसे जबरदस्ती पैसे झाड़े हैं तो, पुलिस ने आकर हमारी गर्दनें पकड़ लेनी हैं।” मल्लू ने तीखे स्वर में कहा।
“यह हमेशा डराने वाली बातें करेगा। कभी भी दीदा-दिलेरी से नहीं बोलता।”
“इसका बाप भी यकीनन ऐसा ही होगा।” दूसरा नशेड़ी मुंह बनाकर कह उठा।
“तूने इसके बाप को देखा है?”
“नहीं –।”
“तो फिर तेरे को कैसे पता कि इसका बाप है।”
“बाप तो होगा ही –। कोई तो होगा।”
“जरूरी है क्या –बिन बाप का भी हो सकता है।”
“तुम्हारा मतलब कि पहुंचे हुए संन्यासी ने फूंकनी मारी और यह पैदा हो गया।”
तब तक कार काफी पास आ चुकी थी।
दोनों सड़क पर रखे ड्रमों के पास जाकर खड़े हो गए।
वो तीन कांस्टेबल भी सड़क के किनारे आ गए।
मल्लू वैसे ही बैठा, कार को देखने लगा।
☐☐☐
“बेबी।” महाजन कार को धीमा करते हुए बोला –“आगे पुलिस चेकिंग है।”
मोना चौधरी पीछे वाली सीट पर अधलेटी थी। वह सीधी हुई। सामने देखा।
“ऐसी सुनसान सड़क पर बैरियर का क्या काम?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“रक्सौल की सीमा में लगभग हम पहुंच ही चुके हैं। इस शहर के बाद हिन्दुस्तान की सीमा खत्म होने लगती है और नेपाल की सीधी सड़क पहुंचती है। सीमा का शहर होने की वजह से यहां शायद सख्ती हो।”
“लाइसेंस दिखा देना। कार के कागजात तो हैं नहीं। चोरी की कार –।”
“कार के कागजात डैशबोर्ड में हैं।” सामने देखता महाजन कह उठा।
ड्रमों के पास पहुंचकर महाजन ने कार रोक दी।
फौरन दो पुलिस वाले पास पहुंचे।
“बे-वक्त यह चैकिंग कैसी?” महाजन ने मुस्करा कर पूछा।
“आजकल चोर-उचक्के बहुत घूम रहे हैं।” नशेड़ी ने मुंह बनाकर कहा –“सोचा दो-चार को पकड़कर बंद कर लें। सवारी कहां से आ रही है।”
“पटना से –।”
“रास्ते में एक्सीडेंट तो नहीं हुआ?”
“नहीं। क्या होना चाहिए था।” महाजन ने गहरी सांस ली।
“बच गए। नहीं तो इस रूट पर, बहुत एक्सीडेंट होते हैं। लाइसेंस है या यूं ही गाड़ी चला रहे हो?”
“है।” महाजन ने जेब से लाइसेंस निकाला और खिड़की से हाथ बाहर निकालकर उसे दिया।
दिन की फैलती रोशनी में उसने लाइसेंस देखा।
“यह तो दिल्ली का बना हुआ है।”
“यहां दिल्ली का लाइसेंस नहीं चलता क्या?” महाजन ने व्यंग्य से कहा।
“चलता क्या, दौड़ता है गाड़ी के कागज दिखा।”
महाजन ने डैशबोर्ड से कागजों की फाइल निकाल कर उसे दी। वह फाइल और लाइसेंस थामे मल्लू के पास पहुंचा। जो कुर्सी पर उसी अंदाज में बैठा था।
“लगता है, लड़की नहीं मिलने वाली, वह –।” उसने फाइल और लाइसेंस उसे थमाते हुए कहा।
“उस कार में कोई और भी है।” मल्लू बोला।
“और?”
“हां। यहां से नजर आ रहा है। पीछे वाली सीट पर कोई है। कम से कम कार तो देख लिया करो।”
दोनों पुनः कार के पास जा पहुंचे।
“साहब तुम्हें बुला रहे हैं।”
महाजन ने सिर हिलाया और दरवाजा खोलकर बाहर आ गया।
“कार में कोई और है?” कहते हुए उसने भीतर झांका तो पीछे वाली सीट पर मोना चौधरी बैठी नजर आई।
मोना चौधरी से निगाह टकराते ही वह पल भर के लिए सकपकाया। उसे ध्यान से देखा कई पलों तक उसे देखता रहा। फिर दांत फाड़े।
“हैलो मैडम।”
“हैलो।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।
वह कार के पास से हटा और अपने नशेड़ी साथी के पास पहुंचा।
“अबे सुन।”
“हां।”
“कार में वही बैठी है। जिसकी हमें तलाश है।”
“कमाल है। वह भीतर बैठी है। उसका हुलिया तूने देखा नहीं और तेरे को मालूम हो गया कि हम उसकी तलाश में ही खड़े हैं। आजकल तेरे को चढ़ने लगी है।” दूसरे ने व्यंग्य से कहा।
“उसका पूरा हुलिया देखने की जरूरत नहीं पड़ी।” उसने दबे स्वर में कहा –“राजपाल ने हुलिया बताते हुए उसके कपड़ों के बारे में बताया था और इस वक्त भी उसके बदन पर वही कपड़े हैं।”
“गलती तो नहीं कर रहा। कहीं वह कोई और हो और तू –।”
“मैं ठीक कह रहा हूं। अब इन पर काबू पाने की सोच। इनके पास हथियार भी हो सकते हैं। ऐसा न हो कि हम इन्हें पकड़ें और ये हमें भूनकर रख दें।”
“हम इन्हें पकड़े क्यों? खत्म करने को कहा है राजपाल ने और सेकेंडों में इन्हें खत्म –।”
“दिमाग खराब हो गया है तेरा।” दूसरे ने उखड़े स्वर में कहा।
“क्यों ऐसा क्या कह दिया मैंने?”
“तूने उसे देखा है जो कार में है।”
“नहीं।”
“तभी तो ऐसा कह रहा है। देखा होता तो उसे खत्म करने की सोचता ही नहीं।” कहते हुए उसने कान की लौ मसली –“वह तो सामने बिठाने की चीज है। पूजा करने की चीज है। उसकी तो सेवा करनी चाहिए।”
“ऐसा?”
“डबल ऐसा।”
“तेरी बात ने तो मेरा ईमान दो बार हिला दिया है। तो सावधानी से उस पर झपट्टा मार लेते हैं।”
मल्लू की छिपी निगाह कार के भीतर थी। उसने लाइसेंस और कार के पेपर्स देखे। फिर निगाहें उठाकर, पास खड़े महाजन को देखकर बोला।
“तुम दिल्ली के हो। लाइसेंस दिल्ली का है और कार का रजिस्ट्रेशन पटना का है।”
“तो क्या हो गया?”
“कार चोरी की है।” मल्लू गंभीर स्वर में बोला।
“कैसी बात कर रहे हो। मैं तुम्हें चोर दिखता हूं।”
“नहीं दिखते, तभी तो पूछ रहा हूं। वरना अब तक बंद कर दिया होता। अंदर कर दिया होता।”
“यह बात तो है।” महाजन ने होंठ सिकोड़कर गर्दन हिलाई।
“कार किसकी है?”
“मेरे दोस्त की है। पटना में रहता है वह।”
“कहां जा रहे हो?”
“नेपाल।”
“कार में और कौन है?” मल्लू ने कार की तरफ नजर उठाई।
“मेरी दोस्त है।”
“दोस्त –और नेपाल जा रहे हो।”
तभी दोनों नशेड़ी पास पहुंचे।
मल्लू ने उन्हें देखा।
“कार की तलाशी ले लें, इंस्पेक्टर साहब।” नशेड़ी ने कहा।
“हूं। लो। मुझे शक है कि कार में स्मगलिंग का माल ले जाया जा रहा है।” मल्लू खड़े होते हुए बोला।
“स्मगलिंग का माल।” महाजन ने गहरी सांस ली –“एक शरीफ आदमी को क्यों लानत भेज रहे हो।”
“अभी मालूम हो जाएगा।” मल्लू उठ खड़ा हुआ। उसने कांस्टेबलों को भी इशारा किया।
सब महाजन को साथ लिए कार की तरफ बढ़े। पास पहुंचे।
यह सब देखकर मोना चौधरी बाहर निकलने को हुई कि नशेड़ी बोला।
“आप भीतर ही रहिए मैडम। दो मिनट लगेंगे। कार को चेक करना है।”
मोना चौधरी भीतर ही ठिठक गई। दोनों तरफ के दरवाजे खुले और नशेड़ी भीतर प्रवेश कर मोना चौधरी की बगल में बैठ गए। व्हिस्की की स्मैल कार में फैल गई।
“यह क्या कर रहे हो?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
नशेड़ी हंसकर बोला।
“कार की तलाशी लेनी है मैडम। यह काम हम खुले में नहीं करते। तलाशी का काम तसल्ली से करते हैं।”
मोना चौधरी को फौरन गड़बड़ का एहसास हुआ।
ठीक तभी महाजन को जबरदस्ती कार में धकेला गया। वह बचाव में कुछ भी नहीं कर सका। वह सब हथियारबंद थे। मल्लू ने स्टेयरिंग सीट संभाल ली थी। महाजन के साथ दो और सटकर बैठ गए थे।
एक बाहर ही खड़ा था।
“तू वैन लेकर पीछे आ जा।” मल्लू ने बाहर वाले से कहा।
दूसरे ही पल उसने तेजी से कार को आगे बढ़ा दिया।
मोना चौधरी और महाजन हक्के-बक्के थे। दो पल में ही यह सब हुआ।
“कौन हो तुम लोग?”
“जाहिर है।” बगल में बैठा नशेड़ी हंसा –“पुलिस वाले नहीं हैं।”
“हमारे साथ यह सब क्या कर रहे हो?”
“तुम लोग नेपाल जा रहे हो और नेपाल सरकार ने हमें यहां तैनात कर रखा है कि खामख्वाह लोग नेपाल में पहुंचकर भीड़ न लगाएं। इसलिए तुम लोगों को रोक लिया।”
“तुम –।” मोना चौधरी ने कहना चाहा।
“खामोश रहो। बातें बाद में करेंगे।”
“बेबी।” तीन आदमियों में फंसा महाजन कह उठा –“रक्सौल की हवा में नमी कुछ ज्यादा ही है।”
मोना चौधरी के दांत भिंच चुके थे। आंखों में वहशी चमक आ ठहरी थी। इतना तो वह समझ ही चुकी थी कि वह किन्हीं गलत हाथों में फंस चुके हैं।
☐☐☐
वह इमारत मुख्य शहर से जरा हटकर बनी हुई थी। देखने पर महसूस हो जाता था कि इमारत पचास-साठ बरस पुरानी होगी। उसके अधिकतर दरवाजे उखड़े हुए थे। दीवारों में प्लास्टर उखड़ा पड़ा था। लॉन में कांटेदार और जंगली पेड़-पौधे नजर आ रहे थे।
एक ही निगाह में महसूस हो जाता था कि यहां कोई रहता नहीं है।
वह लोग महाजन और मोना चौधरी को लेकर वहीं पहुंचे। कार उन्होंने मुख्य द्वार के सामने ही ले जाकर रोकी। जिसका दरवाजा ही नहीं, चौखट भी गायब थी।
कार रुकते ही वह सब धड़ाधड़ उतरे। गनों का रुख उनकी तरफ हो गया।
“बाहर निकलो।”
दोनों बाहर निकले।
“भीतर चलो।”
महाजन ने होंठ सिकोड़कर हर तरफ निगाह मारी।
“बंगला तो बहुत खूबसूरत है।” महाजन ने व्यंग्य से कहा –“कितने का खरीदा?”
“मुफ्त का है।” मल्लू मुंह फाड़कर हंसा – “तेरे को प्रजेंट कर दें क्या?”
“नहीं भाई। मैं झोंपड़ी में रहनेवाला गरीब बंदा हूं।” महाजन ने तीखे स्वर में कहा –“इतने बड़े बंगले का क्या करूंगा। चोर भीतर घुस आया तो ढूंढना भी मुश्किल हो जाएगा।”
मोना चौधरी सर्द निगाहों से उन सबको बारी-बारी देख रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह कौन लोग हैं और उनसे क्या चाहते हैं।
“चलो।”
उन दोनों को धकेलते हुए, वह लोग उन्हें भीतर ले गए। भीतर का नजारा बाहर से बिल्कुल जुदा था। वहां बैठने के लिए साफ-सुथरी कुर्सियां मौजूद थी। कहीं भी धूल-गर्द नहीं थी। हर तरफ सफाई हुई पड़ी थी।
वहीं टी.वी., फ्रिज था।
जरूरत की हर चीज वहां मौजूद थी।
स्पष्ट था कि यह उनका स्थाई निवास था।
“अब रात खराब हुई का गम नहीं।” नशेड़ी ने हाथ बढ़ाकर मोना चौधरी का गाल मसला और ठहाका मारकर कुर्सी पर बैठता हुआ बोला –“अब तो इस हूर परी के आगोश में तगड़ी नींद आएगी।”
मोना चौधरी की आंखों में सुर्खी उभरी।
वह लोग गनें एक तरफ रखकर कुर्सियों पर बैठने लगे थे।
“तेरे पास कोई हथियार है?” मल्लू पास पहुंचकर बोला।
“नहीं।” मोना चौधरी के सख्ती से चिपके होंठ खुले।
“तलाशी दे।” कहने के साथ ही मल्लू तलाशी लेने लगा। मोना चौधरी खामोश-सी खड़ी रही। तलाशी लेने वाले हाथ उसके हर अंग को छूने की कोशिश कर रहे थे।
“इतनी देर में मैं दस की तलाशी ले लूं।” एक ने कड़वे स्वर में कहा।
“चुप रह।” दूसरा हंसकर बोला –“अपना मल्लू अच्छी तरह तलाशी ले रहा है।” मल्लू पीछे हटा और महाजन की तलाशी लेने लगा।
कुछ पलों के बाद मल्लू पीछे हटता हुआ कह उठा।
“इनके पास तो कोई हथियार नहीं है। राजपाल तो इन्हें खतरनाक बता रहा था।” राजपाल का जिक्र आते ही मोना चौधरी और महाजन की आंखें मिली।
“हमें क्या?” नशेड़ी दांत फाड़कर हंसा –“हमारे लिए तो राशन-पानी का इंतजाम हो गया।”
एकाएक मोना चौधरी जानलेवा अंदाज में मुस्कराई।
“हाय।” दूसरे नशेड़ी ने छाती पर हाथ रखा –“मुस्कराती है तो, कलेजा निकाल लेती है।”
“जब लड़ाई करेगी तो जान ही निकाल लेगी।”
“मेरी तो अभी निकली जा रही है।”
“कुछ तो शर्म करो।” महाजन ने बुरा-सा मुंह बनाया –“मैं पास में खड़ा हूं।”
“तो तुम लोग राजपाल के आदमी हो।” मोना चौधरी दिलकश स्वर में कह उठी।
“नहीं।” मल्लू ने मोना चौधरी को सिर से पांव तक देखा –“हम झा साहब के आदमी हैं। राजपाल ने हमें बताया कि तुम उनके पीछे आ रही हो और तुम्हें खत्म करना है।”
“समझी।” मोना चौधरी की निगाह उन पर फिरने लगी।
“लेकिन हम भले आदमी हैं।” नशेड़ी कुर्सी से उठता हुआ बोला –“हमने तुम्हें मारा नहीं। तुम्हारी जिंदगी के दिन बढ़ा दिए हैं। अब तुम हमारे साथ रहकर ऐश करोगी।” इसके साथ ही वह मोना चौधरी के करीब पहुंचा और उसके कंधे पर हाथ रखा –“चल, तेरे को बोत बढ़िया बेडरूम दिखाता हूं। बहुत बेडरूम देखे होंगे। लेकिन ऐसा नहीं देखा होगा। उसके गद्दे नेपाल से मंगवाये हैं। फ्रांस के असली गद्दे हैं।”
मोना चौधरी दिल खोलकर मुस्कराई।
“मैं उनके बिना ही फ्रांस के गद्दों से भी बढ़िया आराम दे सकती हूँ।”
“वाह-वाह।” नशेड़ी अपनी छाती पर हाथ मारकर कह उठा-“क्या हाजिरजवाबी है। एक ही लाइन में फ्रांस के गद्दों को फेल कर दिया। चल, तेरा बिना गद्दों का नाच देखता हूं।”
“राजपाल ने मेरे को खत्म करने को कहा था।” मोना चौधरी कह उठी।
“हां।” नशेड़ी सांस लेकर बोला –“बहुत गलत बंदा है वह राजपाल। तेरे जैसी खूबसूरत चीजों की हस्ती को मिटाया नहीं जाता। लेकिन उस बेवकूफ को कौन समझाए –।”
महाजन की निगाह दो कदम दूर मौजूद गन पर टिक चुकी थी। जो कुर्सी के सहारे खड़ी थी। इस वक्त सबका ध्यान मोना चौधरी की तरफ था।
“बेडरूम में ले जाने की क्या जरूरत है।” दूसरा नशेड़ी बोला –“यही निपट लें। देखकर भी मजा ले लेंगे।”
तभी मल्लू तीखे स्वर में कह उठा।
“जो करना है जल्दी करो। हमें और भी कई काम निपटाने हैं।”
“जल्दी ही कर रहा हूं।” कहने के साथ ही नशेड़ी ने मोना चौधरी की कलाई पकड़ी और एक तरफ खींचने लगा।
“वापसी में देर मत लगाना। कहीं सोच सोचकर ही मेरा हाल बुरा न हो जाए।” दूसरा नशेड़ी हंसा।
तभी महाजन ने दो कदम दूर मौजूद गन पर झपट्टा मारा। गन उसके हाथों में आ फंसी और उसी पल संभलते हुए उसने गन का मुंह उस पर खोल दिया, जो उसकी हरकत को देखते ही अपनी गन का रुख उसकी तरफ करने जा रहा था।
गन का शोर उभरा और उस व्यक्ति की चीखें।
खून के छींटे आसपास फैल गए।
“खबरदार।” महाजन दांत भींचे गन का मुंह सबकी तरफ घुमाता हुआ गुर्राया –“किसी ने जरा भी हरकत करने की कोशिश की। कोई हिलने की भी कोशिश न करे।”
सब हक्के-बक्के रह गए।
आंखें फाड़े अपने साथी की लाश को देखे जा रहे थे। उनके चेहरों पर गुस्सा भी था और बेबसी भी कि गन के सामने वह कुछ कर पाने की हालत में नहीं थे।
मोना चौधरी के होंठों पर क्रूरता-भरी मुस्कान नाच उठी।
“चलता है क्या?” मोना चौधरी ने पास खड़े नशेड़ी को आंख मारी।
“कहां –?” उसके होंठों से निकला।
“फ्रांस के गद्दों पर –।”
“व...वहां क्या करेंगे?” बदले हालातों को देखकर वह हड़बड़ाया हुआ था।
“खाएंगे, पिएंगे। मौज करेंगे और क्या?” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।
नशेड़ी सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।
महाजन ने गन का रुख मल्लू की तरफ किया।
“बोल। फिर से बोल। हमें क्यों पकड़ा। क्यों तुम –।”
“झा साहब ने कहा था कि हम राजपाल की बात माने। नेपाल जाता राजपाल हमें मिला और बोला कि पीछे एक लड़की आ रही है। हुलिया बताया कि हम उसे खत्म कर दें।” मल्लू ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर, महाजन के हाथ में थमी गन को देखा।
“हूं। और तुम लोगों ने हुलिए के दम पर इस लड़की को पहचान लिया।” महाजन का इशारा मोना चौधरी की तरफ था। उसकी आवाज में खतरनाक भाव भरे पड़े थे।
मल्लू ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
तभी पास खड़े नशेड़ी ने मोना चौधरी पर झपट्टा मारकर, उसे कब्जे में लेना चाहा। मोना चौधरी ने फुर्ती के साथ एक हाथ से उसके सिर के बाल पकड़े और खास ढंग से अपना हाथ उसकी गर्दन पर मारा।
‘कड़ाक’ वातावरण में हड्डी टूटने की आवाज आई और इसके साथ ही उसका शरीर निर्जीव हो गया। मोना चौधरी ने सिर के बाल छोड़े तो वह नीचे जा गिरा।
दो, सिर्फ दो पल के लिए मोना चौधरी का ध्यान उस तरफ गया और इसका फायदा उठाया मल्लू ने। मौत को सामने पाकर उसने जान बचाने की खातिर महाजन पर छलांग लगा दी।
महाजन चूक गया।
मल्लू वेग के साथ महाजन से टकराया।
महाजन संभल न सका और गन उसके हाथ से निकल गई। मल्लू, महाजन को लिए नीचे जा गिरा और दोनों एक दूसरे को खाने-खत्म करने की कोशिश करने लगे।
बाकी के दो बदमाशों को जैसे होश आया। उन्होंने वहां मौजूद गनों को उठाना चाहा कि मोना चौधरी ने दांत भींचकर उन पर छलांग लगाई और इससे पहले कि वह गन उठा पाते –।
मोना चौधरी उनसे टकराई और उन्हें लिए नीचे जा गिरी। लेकिन एक के हाथ में गन आ ही गई थी। उसने गन की नाल मोना चौधरी की तरफ करनी चाही कि मोना चौधरी ने उसके गन वाले हाथ को टेढ़ा किया तो नाल का रुख गन थामे व्यक्ति की तरफ हो गया। उसी पल मोना चौधरी ने उसके हाथ पर जोरदार घूंसा मारा तो उंगली का दबाव बढ़ने से ट्रिगर दब गया।
जोरदार धमाका हुआ और उस व्यक्ति की छाती के हिस्से में बड़ा-सा छेद हो गया। वह जोरों से तड़पा और शांत पड़ता चला गया। तभी दूसरा मोना चौधरी पर गिरा और उसे साथ लिए फर्श पर लुढ़कता चला गया। दूसरे ही पल उसका हाथ मोना चौधरी की गर्दन पर जा टिका।
“मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा। हरामजादी, तेरी वजह से मेरे साथी –।”
दांत भींचकर मोना चौधरी ने अपने दोनों हाथ उसके कंधे पर रखे और टांग मोड़कर घुटने का जोरदार वार उसके पेट पर किया।
वह चीखकर, फर्श पर गिरता चला गया।
दांत भींचे मोना चौधरी ने करवट ली। पास पड़ी गन उठाई और उसका रुख उसकी तरफ करके, गन का मुंह खोल दिया। दो पलों में ही उसका शरीर छलनी-छलनी हो गया।
मोना चौधरी की निगाह महाजन की तरफ उठी। महाजन अपने शिकार से फुर्सत पा चुका था। महाजन ने मल्लू का गला दबाकर फुर्सत पा ली थी। मोना चौधरी ने गन फेंकी और उठ खड़ी हुई। मिनटों में वहां पांच लाशें बिखरी नजर आ रही थी।
“वह –।” महाजन दांत भींचे कह उठा –“वह छठा नहीं आया जो वैन में पीछे आ रहा था।”
“निकलें।”
महाजन की खतरनाक निगाह वहां मौजूद लाशों पर गई।
“हमारे पास हथियार नहीं है।” महाजन कठोर स्वर में बोला –“कोई गन लें –।”
“नहीं।” मोना चौधरी ने टोका –“नेपाल तक हमारे पास कोई हथियार नहीं होना चाहिए। रास्ते में कई पुलिस पोस्ट पड़ती हैं। चैकिंग में हमारे पास से हथियार बरामद हुआ तो गड़बड़ हो सकती है। नेपाल पहुंचकर कहीं से हथियार का इंतजाम कर लेंगे।”
महाजन ने सिर हिलाया। दोनों बाहर की तरफ बढ़े। बाहर निकलते ही सामने खड़ी कार की तरफ बढ़े कि तभी वैन ने भीतर प्रवेश किया और पास आकर रुकी।
मोना चौधरी और महाजन की नजरें मिली।
वह वैन से उतरकर अजीब से स्वर में कह उठा।
“तुम लोग यहां –इतनी जल्दी निपट गए।”
“हां।” महाजन ने कड़वे स्वर में कहा –“तुम कहां रह गए थे?”
“व्हिस्की की बोतलों का इंतजाम करके लाया हूं। सोचा जश्न में कोई कमी न रह जाए।”
“एक बोतल इधर दे।”
“लेकिन।”
“जल्दी दे।”
“तुम लोग कहां जा रहे हो?”
“अपने रास्ते।” महाजन ने बोतल की सील तोड़ते हुए कहा –“तुम बोतलें लेकर भीतर जाओ और मजे से जश्न मनाओ। पूरे-पूरे मजे लो।”
“मजे –।” उसकी निगाह मोना चौधरी की तरफ उठी –“लेकिन –इसका मतलब अंदर और सामान भी है।”
“बहुत सामान है। ऐश कर बेटे।” कहकर महाजन बोतल से घूंट लेता कार की तरफ बढ़ा।
मोना चौधरी भीतर बैठकर कार स्टार्ट कर चुकी थी। महाजन के बैठते ही कार आगे बढ़ी और देखते ही देखते उस ताजमहली बंगले से बाहर आकर सड़क पर दौड़ने लगी।
महाजन ने होंठों से बोतल लगाकर घूंट भरा।
“बेबी।” महाजन बोतल बंद करके एक तरफ रखता हुआ बोला –“मामला खतरनाक होने लगा है।”
“बख्तावर सिंह से वास्ता रखती बात खतरनाक ही होती है।”
मोना चौधरी ने होंठ भींचकर कहा –“हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि राजपाल सालों बख्तावर सिंह के लिए काम करता रहा है। वह कोई सीधा आदमी नहीं है। हमें रोकने की यह कोशिश उसके लिए मामूली है।”
“बहुत जल्दी इंतजाम कर लिया, हमारा रास्ता रोकने का –।”
“राजपाल को झा के आदमियों की मदद मिल गई।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा –“लेकिन राजपाल भारी गलती में है कि हम उसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। यही सोचकर उसने खासतौर से मुझे खत्म करने की कोशिश की, क्योंकि अभी तक वह नहीं जानता कि तुम भी मेरे साथ हो।”
“अब खबर मिल जाएगी उसे। छठा जिंदा छोड़ आए हैं हम।”
इस समय उनकी कार भरे बाजार में से गुजर रही थी। तभी मोना चौधरी ने फोन बूथ के सामने कार रोकी और इंजन बंद करके उतरते हुए बोली –“अभी आई।”
“कहां।”
“झा को उसके आदमियों के बारे में खबर दे आऊं।” मोना चौधरी का स्वर कड़वा था।
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