जुनूनी अपराध

मैं मिस रिप्ली-बीन और लोबो से होटल रॉयल के बियर बाग में मिला था। चारों ओर मालती, लार्कसपूर और गर्मियों में उगने वाले अन्य फूल लगे थे। एक अधेड़ वेटर हमारे लिए कॉफ़ी ले आया। रॉयल के लगभग सभी वेटर अधेड़ थे, जिन्होंने युवावस्था में होटल में काम आरंभ किया था और वे अब कहीं और नौकरी करने के लिए अयोग्य हो चुके थे।

मैं और लोबो कॉफ़ी पी रहे थे। मिस रिप्ली-बीन उस होटल की मेहमान कम, और निवासी अधिक थीं और उसी होटल के पुराने हिस्से में अपने तिब्बती शिकारी कुत्ते फ़्लफ़ के साथ रहती थीं, जो इस समय थोड़ी दूरी पर बलूत के पेड़ पर बैठे एक बंदर को देखकर भौंक रहा था।

मिस रिप्ली-बीन अपनी पुदीना शराब पी रही थीं। वह उस शराब को ख़ुद बनाती थीं, जिसे बनाने की गुप्त विधि सबको पता थी। कोई उनसे पूछता कि उसमें क्या डलता है तो वह कहतीं, ‘पिघले हुए पन्ने,’ मानो उनके पास मूल्यवान मणियों का भंडार था जबकि सब जानते थे कि उनकी पुदीना शराब में पिपरमेंट का स्वाद था, जिसमें थोड़ा रंग और थोड़ी चीनी पड़ती थी। हालाँकि, वह अपनी तीसरी अँगुली में पन्ने की एक अँगूठी पहनती थीं और लोग कहते थे कि उनकी किसी नौसेना के कमांडर से सगाई हुई थी, परंतु उसका जहाज़ युद्ध के समय तोप से उड़ा दिया गया था और उसी कमांडर की याद में मिस रिप्ली-बीन ने अविवाहित रहने का निश्चय किया था।

वह अपने निजी जीवन के विषय में अधिक बात नहीं करती थीं। उन्हें दूसरों के जीवन में अधिक दिलचस्पी थी।

वेटर के चले जाने के बाद, मिस रिप्ली-बीन ने पुदीना शराब की चुस्की ली और कॉन्वेंट स्कूल को जाने वाली सड़क की ओर देखने लगीं। वहाँ कुछ नन महिलाएँ स्कूल में होने वाले जश्न की तैयारी में लगी थीं।

‘आंटी मे, आपने कभी नन बनने के विषय में सोचा?’ लोबो ने एक अच्छे ईसाई की तरह पूछा।

‘नहीं,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘मुझ में अनुशासन की कमी है। तुमने कभी मुझे सुबह पाँच बजे जगते नहीं देखा होगा।’

‘आपकी प्रवृत्ति कुछ कामुक है,’ मैंने कहा। ‘ननों, भिक्षुओं और पादरियों को अपनी असली प्रवृत्ति को शायद दबाना पड़ता है।’

‘आपको ऐसा लगता होगा। परंतु कभी-कभार कामुक वृत्तियाँ भी संयम से बाहर हो जाती हैं। आख़िरकार, पादरी भी इंसान होते हैं। कभी-कभी वचन टूट भी जाता है, क्योंकि आत्मा, भीतर की वासना के सामने हार जाती है।’

‘क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानती हैं?’

‘हाँ। यह बहुत पहले की बात है। बेचारे पादरी विन्सेंट। आप उस समय यहाँ नहीं रहते थे न?’

‘नहीं। और तुम, लोबो?’

‘नहीं, लेकिन यह नाम परिचित लगता है। कोई बदनामी वाली बात हुई थी?’

‘वह सब और उससे भी अधिक,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा, ‘और हम लोग इस बात की प्रतीक्षा करते रहे कि कोई आश्चर्यजनक बात सामने आएगी।’

‘पादरी विन्सेंट अच्छे इंसान थे,’ वह बोलीं। उनकी यह बात सुनकर हमें आनंद नहीं आया, तो फिर कुछ पल रुककर उन्होंने कहा, ‘जो सबको बड़ी मुसीबत में डाल देते थे।’ हम सबको फिर से उनकी बात में मज़ा आने लगा।

‘मैं यहाँ इस शानदार वातावरण में आने से पहले,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा, ‘देहरादून वाली पुरानी ब्रिडल सड़क पर फ़ोस्टरगंज नाम के एक शांतिप्रिय गाँव में अपनी आंटी के साथ रहती थी। बाज़ार से नीचे, छोटे-से रास्ते पर एक मदरसा था, जहाँ इतालवी या आयरिश पादरी पढ़ने, आराम करने या फिर सेवा के इरादे से आते थे। उनमें से कुछ स्थायी तौर पर वहाँ रहते थे। पादरी विन्सेंट उनमें से एक थे। उनकी आयु साठ वर्ष से अधिक थी और वे मोटे एवं मिलनसार व्यक्ति थे।’

‘वह कभी-कभी घूमने निकलते थे - उन दिनों सब लोग घूमने जाते थे - और कई बार वह हमारे दरवाज़े के सामने साँस लेने के लिए रुक जाते थे। वह स्वभाव से मिलनसार होने के कारण, हमारा हाल-चाल पूछ लिया करते थे। हम कभी-कभार उन्हें चाय या नींबू पानी के लिए बुला लेते और वह भी मना नहीं करते थे। शहर तक का रास्ता लंबा था।’

‘उनके साथ लगभग हमेशा एक लड़का होता था, जो मदरसे में काम करने वाले एक नौकर का लड़का था। वयस्क लोगों ने धर्म-परिवर्तित कर लिया था और छोटी आयु वाले लोग, जीवन की अच्छी चीज़ों का - वे जब भी उन्हें मिल जाती थीं - आनंद लेते थे।’

‘अलग-अलग मौक़ों पर पादरी विन्सेंट के साथ अलग-अलग लड़के होते थे, जो उनका सामान से भरा थैला या छतरी अथवा डाक-घर से लिया कोई पार्सल हाथ में लेकर चलते थे। इटली में रहने वाले पादरी के रिश्तेदार उनके लिए मैकेरोनी और बिस्कुट, मिठाई आदि के पार्सल भेजते रहते थे। पादरी मैकेरोनी अपने लिए रखकर, बाक़ी मिठाई इलाक़े के बच्चों में बाँट देते थे।’

‘सैमी नाम का एक पतला सोलह साल का लड़का उन्हें सबसे अधिक पसंद था। वही उनके साथ हमेशा घूमने जाता था। सैमी ज़्यादा बोलता नहीं था। उसे अंग्रेज़ी बहुत कम आती थी और उसकी बातचीत मेरी आंटी से ‘नमस्कार मैडम’ तथा मुझसे ‘नमस्कार मिस’ तक सीमित थी। सैमी बरामदे की सीढ़ियों में बैठकर मेरी आंटी द्वारा पाली स्यामी बिल्ली से खेलता रहता था और इस बीच पादरी विन्सेंट, हमारे साथ चाय पीते हुए मौसम से लेकर दुनिया-भर की राजनीति पर चर्चा कर लेते थे। वे कभी धर्म की बातें नहीं करते थे। मेरी आंटी, अंग्रेज़ी चर्च की सदस्य थीं और उन्हें कैथोलिक मत की ज़्यादा परवाह नहीं थी, किंतु पादरी से उनकी अच्छी बनती थी। मेरी आंटी, उम्र में पादरी से बड़ी थीं। मैं उस समय केवल तीस वर्ष की थी।’

‘कोई भी देख सकता था कि पादरी को वह लड़का बहुत पसंद था। परंतु, वह तो सबको पसंद करते थे। वह घर से जाते समय, मेरे सिर पर थपकी देकर मुझे आशीर्वाद देते थे।’

‘उनका आना-जाना एक साल तक जारी रहा। इस बीच, वह लड़का पहले से ज़्यादा लंबा और आकर्षक हो गया। पादरी विन्सेंट भी पहले से ज़्यादा मोटे और मिलनसार हो गए थे। इसके बाद लोग बातें बनाने लगे कि पादरी, लड़के को पैसे और उपहार देकर बिगाड़ रहा है तथा लड़के का परिवार, पादरी से धन ऐंठकर स्थिति का लाभ उठा रहा है। यह बात जबकि ग़लत थी, क्योंकि पादरी के पास वेतन और थोड़ी बचत के पैसों के अतिरिक्त कुछ नहीं था। सैमी के दोस्त और रिश्तेदार मौक़ा मिलते ही उससे पैसे ऐंठ लेते थे। किसी ग़रीब लड़के के आस-पास, जिसे अचानक बहुत-से पैसे मिल जाएँ, मधुमक्खियाँ का भिनकना निश्चित था।’

‘सैमी हमेशा विनीत एवं शिष्टतापूर्ण ढंग से रहता था, हालाँकि उसके कुछ साथी अवश्य असभ्य थे। वे हमसे दूर रहते थे और कभी हमारे दरवाज़े के भीतर नहीं घुसे, उन्होंने हमारे साथ किसी तरह का दुर्व्यवहार नहीं किया यद्यपि, वे आपस में ज़रूर कुछ छेड़छाड़ और गाली-गलौज करते थे। परंतु वे हमेशा वहीं मँडराते रहते थे। उनकी कुटिलता, पादरी के दोस्ताना परिहास और सैमी की शांत प्रतिष्ठा के बीच, यूँ ही चलती रही।’

‘धीरे-धीरे पादरी द्वारा दिए जाने वाले उपहार और धन की मात्रा बढ़ती गई तथा उसी के साथ लड़के की आसक्ति भी बढ़ती गई। सैमी कभी-कभी पादरी के घर रात में रुक जाता था क्योंकि ऐसा बताया गया था कि पादरी को रात के समय, शरीर में ऐंठन तथा कमर दर्द परेशान करती थी। साठ वर्ष के बाद अकेले रहना बड़ा मुश्किल हो जाता है। बाद में, व्यक्ति स्थिति को सँभालना सीख जाता है।’

मिस रिप्ली-बीन अपने गिलास में ‘पिघले हुए पन्नों’ को ध्यान से देखने लगीं।

कुछ देर रुककर याद करने के बाद, उन्होंने फिर बोलना आरंभ किया: ‘निस्संदेह बहुत-सी बातें बनने लगी थीं। फ़ोस्टरगंज में कोई बात रहस्य नहीं रहती थी, सबको सबकुछ पता था। लोग कहने लगे कि पादरी के साथ रहने वाला लड़का दरअसल, उनका प्रेमी है। लड़के के परिवार और उसके मित्रों को इस संबंध से कोई आपत्ति नहीं थी किंतु सेमिनरी में पादरी के साथी और अन्य वरिष्ठ लोग इस संबंध से ख़ुश नहीं थे। वे स्थिति को समझते थे और उन्हें अपने निजी अनुभव से यह पता था कि ब्रह्मचारी रहना सरल नहीं होता किंतु इसकी अनदेखी करना संभव नहीं था।’

‘पादरी विन्सेंट को चेतावनी दी गई: लड़के को अपने से दूर रखना होगा। उन्होंने कुछ समय इसका पालन भी किया क्योंकि वह अपने लिए कोई मुसीबत नहीं चाहते थे। परंतु एक दिन उनके किसी सहयोगी ने उन्हें सूचना दी कि सैमी को पैसे की आवश्यकता है, तो पादरी ने उसे बीस-बीस रुपए के कुछ नोट दे दिए। वे सब सैमी के दोस्तों में बँट गए।’

‘पादरी विन्सेंट सब तरफ़ से घिर चुके थे। उनके ऊपर अपने साथी पादरियों का दबाव था; लड़के के परिवार के लोगों और मित्रों का दबाव था; फ़ोस्टरगंज के नैतिकतावादियों का दबाव था। बेचारा सैमी भी दबाव में था। उसके पास पैसा आना बंद या बहुत कम हो गया था। उसके दोस्तों को भी पैसों की कमी खल रही थी। ख़ाली जेब वाला सैमी अब उनका हीरो नहीं रहा।’

‘मदरसे के एक अच्छे व्यक्ति ने जब पादरी विन्सेंट को यह सुझाव दिया कि उन्हें लोगों द्वारा कही जा रही बातों के रुक जाने तक शहर के दूसरे छोर पर कॉन्वेंट हिल में चले जाना चाहिए तो, पादरी विन्सेंट ने वह सुझाव सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्हें भी इस किस्से से राहत चाहिए थी। वह सुझाव कम और आदेश अधिक था। चूँकि कॉन्वेंट परिसर में युवा लड़कों को आने की अनुमति नहीं थी, तो पादरी विन्सेंट का वनवास पूर्ण, या कहें, लगभग पूर्ण हो गया…

‘हमें सचमुच पादरी की याद आती थी। मुझे और मेरी आंटी को उनसे मिलने की, मौसम से लेकर राजनीति और हर बात पर उनके नेक विचारों को सुनने की आदत-सी हो गई थी। यहाँ तक कि हमें सैमी की मौन उपस्थिति भी याद आती थी। वह कितने साल का था? हमने जब उसे आख़िरी बार देखा तो वह सिर्फ़ सत्रह वर्ष का था। लंबा, पतला और बढ़ती उम्र का लड़का। उसमें छल-कपट वाली कोई बात नहीं थी। वह बहुत सीधा-सादा था, मुझे लगता है, यही बात उस दुखद घटना का हिस्सा थी।’

‘ख़ैर, पादरी विन्सेंट का घर कॉन्वेंट इमारत के नए हिस्से में स्थित था। उनका कमरा काफ़ी बड़ा था और वह एक अन्य निवासी-पादरी के कमरे से थोड़ी दूरी पर था। मुझे उसका नाम याद नहीं, लेकिन वह दक्षिण भारतीय था और उसे वहाँ रहते ज़्यादा समय नहीं हुआ था।’

‘पादरी विन्सेंट कभी-कभी बाज़ार तक पैदल जाते थे और हो सकता है, उन्हें उस दौरान सैमी मिला हो। यदि ऐसा हुआ भी होगा, तो वह सिर्फ़ संयोग था। उन दिनों टेलीफ़ोन बहुत कम होते थे तथा कॉन्वेंट के दफ़्तर में भी सिर्फ़ एक फ़ोन था। संपर्क के लिए पत्र अथवा हाथ से लिखे नोट ही चलते थे। सैमी को अंग्रेज़ी बहुत कम आती थी, और पादरी को हिंदी सिर्फ़ बोलनी आती थी, लेकिन उनके लिए हिंदी में लिखना मुश्किल था।’

‘सैमी को पैसों की ज़रूरत थी। उसके दोस्तों के पास भी धन की कमी हो गई थी। उसके माता-पिता को शायद किसी बड़ी आयु के व्यक्ति के साथ सैमी की मित्रता पसंद नहीं आती होगी, लेकिन घर में कुछ पैसे आने की शर्त पर उन्होंने इस दोस्ती को मंजूरी दे दी थी। ग़रीबी की स्थिति में नैतिकता उपेक्षित हो जाती है। सैमी को अपने लिए पैसों की विशेष आवश्यकता नहीं थी, किंतु उसे अपने दोस्तों पर ख़र्च करना अच्छा लगता था, और उन्हें भी सैमी की उदारता की आदत पड़ गई थी।’

‘जाओ और पादरी से मिलो,’ वे सैमी को कहते थे। ‘वह तुम्हें कुछ दे देंगे। उन्हें तुम्हारे लिए बुरा लगता होगा।’

‘वह मुझे भीतर नहीं जाने देते। मुझे वहाँ न जाने के लिए कहा गया है,’ सैमी विरोध करते हुए कहता था।

‘तो फिर रात में जाओ। तुम पिछले दरवाज़े से चुपचाप घुस जाना और हम लोग बाहर प्रतीक्षा करेंगे। तुम अंदर जाकर पादरी से मिल लेना। उनके साथ अच्छा व्यवहार करना। अपने साथ यह चाकू रख लो। केवल अपनी सुरक्षा के लिए!’

‘सैमी ने कभी कोई हथियार नहीं पकड़ा था और अब अचानक उसके पास आठ इंच की धार वाला खटकेदार चाकू था।’

‘उन्होंने इस काम के लिए अँधेरी, बादल-भरी अमावस्या की रात चुनी। वर्षा के कारण पड़ी धुँध में सड़क की लाइट का प्रकाश मंद पड़ गया था। सैमी को पादरी विन्सेंट के कमरे की स्थिति के बारे में बता दिया गया था। सैमी वहाँ गया तो पादरी के कमरे का दरवाज़ा खुला था। वह कभी उसे बंद नहीं करते थे। शीघ्र ही सैमी सोते हुए पादरी के पास खड़ा था।’

‘पादरीजी, पादरीजी,’ वह फुसफुसाया।

पादरी की नींद खुल गई और उन्होंने सैमी को फटकार लगाई। ‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो, लड़के? तुम मुसीबत में पड़ जाओगे।’

‘पादरीजी, मुझे पैसों की ज़रूरत है।’

‘यह पैसे माँगने का समय नहीं है। आधी रात में। यहाँ मेरे पास कुछ नहीं है।’

‘पादरीजी, आपके पास हमेशा कुछ होता है।’

‘वे दोनों बहस करते रहे, और बात बढ़ती गई। सैमी की आवाज़ तेज़ होने लगी। उसे निकलने की जल्दी थी क्योंकि उसके दोस्त बाहर प्रतीक्षा कर रहे थे। पादरी विन्सेंट लगातार उसे वहाँ से जाने के लिए कहते रहे। “आप मेरे दोस्त नहीं हो!” सैमी चिल्लाया और उसने पादरी विन्सेंट की छाती में अपना चाकू उतार दिया। वह उन पर लगातार वार करता गया - छाती में, पेट में, हाथों और गर्दन पर - आठ या नौ बार, और पादरी दर्द से चिल्लाते रहे।’

‘पास के कमरे में सो रहे दूसरे पादरी ने शोरगुल सुना तो वह उठकर पादरी विन्सेंट के कमरे की ओर भागे। उसी समय निरंकुश और उद्विग्न हालत में सैमी, पादरी विन्सेंट के कमरे से बाहर निकला और अँधेरे में निकल भागा।’

‘पादरी विन्सेंट मरने वाले थे। उनके साथी ने उन्हें अंतिम प्रसाद दिया तो वह मरने से पहले केवल इतना ही बोल सके कि उस लड़के की कोई ग़लती नहीं है!’

मिस रिप्ली-बीन इतना कहकर रुक गईं। वह उस घटना को याद करके भावुक हो गई थीं। आख़िर, वह उस लड़के और पादरी दोनों को जानती थीं। उन्होंने गिलास में बची हुई पुदीना शराब समाप्त की और फिर कॉन्वेंट हिल की दिशा से ननों के समूह को नीचे उतरता हुआ देखने लगीं।

‘बहुत पुरानी बात है,’ उन्होंने कहा। ‘अब सब भूल गई हूँ।’

‘लेकिन उसके बाद क्या हुआ?’ मैंने पूछा। ‘सैमी का क्या हुआ? क्या वह पकड़ा गया?’

‘नहीं, वह पकड़ा नहीं गया।’

‘उसके दोस्तों ने उसका भेद नहीं खोला?’

‘नहीं, उन्होंने कुछ नहीं किया। उसने जब उन्हें बताया कि उससे क्या अपराध हो गया है, तो वे सब भाग गए।’

‘और सैमी?’

‘सैमी अपने घर चला गया। उसने चाकू फेंक दिया और अपने ख़ून से लथपथ कपड़े छिपा दिए। उसने अपने माता-पिता से कुछ नहीं कहा। अगले दिन वह पादरी की अंत्येष्टि में भी शामिल हो गया।’

‘वह पादरी विन्सेंट की अंत्येष्टि में गया था?’

‘हाँ। मैं भी अपनी आंटी के साथ वहाँ थी। हमें तो पता भी नहीं था कि पादरी को किसने मारा था। पुलिस लोगों से पूछताछ कर रही थी किंतु उन्हें अधिक जानकारी नहीं मिली। उन्हें सिर्फ़ संदेह था किंतु किसी तरह का कोई प्रमाण नहीं मिला। सैमी के लिए पादरी की अंत्येष्टि में मौजूद रहना बिलकुल स्वाभाविक था। वह पादरी विन्सेंट का अत्यंत क़रीबी था। यदि वह अंत्येष्टि में नहीं जाता, तो अजीब लगता। क्या उसकी अंतरात्मा उसे पादरी की क़ब्र तक लाई थी? वह ग्लानि थी, हताशा थी, या दुविधा? क्या वह आत्म-ग्लानि से परेशान था?’

‘वह हमारे सामने क़ब्र के पास खड़ा था। उसने हमें तुरंत पहचान लिया और हमें देखकर मुस्कराया। हमें भी उसे देखकर अच्छा लग रहा था। वह हमारा भी दोस्त था, सच्चा दोस्त। प्रार्थना गाई जाने लगी। वह बहुत भावनात्मक थी।

मेरे साथ रहो, शाम ढलने को है,

अँधेरा गहरा रहा है; हे प्रभु मेरे साथ रहो।

जब सहयोगी हार जाएँ और कोई राहत न हो,

तो हे निर्बलों के सहायक, मेरे साथ रहो।’

‘ताबूत को जैसे ही धरती में उतारा गया, सैमी दौड़ता हुआ हमारे पास आया। वह आंटी का हाथ पकड़कर रोने लगा: “मैंने पादरीजी को मारा है, मैंने इन्हें मारा है! मुझे माफ़ कर दो, माफ़ कर दो…”

‘वह ऐसे कर रहा था मानो हम पादरी के रिश्तेदार थे और केवल हम ही उसे क्षमा कर सकते थे। आख़िर, वह अभी बच्चा ही था और उसने उस व्यक्ति की हत्या की थी, जो कि उससे प्यार करता था।’

‘उसके बाद सैमी का क्या हुआ?’ मैंने कुछ देर बाद पूछा।

‘सैमी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उसके ऊपर मुक़दमा चला, किंतु उसकी आयु, जो उस समय केवल सत्रह वर्ष थी, और इस तथ्य को देखते हुए कि वह “राह से भटक गया था,” जैसा कि वकील ने उसकी सफ़ाई में कहा, उसे कुछ महीनों के लिए सुधार-गृह भेज दिया गया। उसके बाद उसे फिर से, इस बेपरवाह संसार में खुला छोड़ दिया गया।’

‘वह बच गया। उसे अपना ख़र्च भी निकालना था तो उसने अनेक तरह के कार्य किए। उसने मजदूरी की, दुकान में काम किया, टैक्सी चलाई लेकिन वह लौटकर अपने पुराने ठिकानों पर नहीं गया। वह वापस फ़ोस्टरगंज कभी नहीं गया।’

‘काफ़ी देर हो गई है। देखो, सूरज भी ढल रहा है। मुझे ऐसे में हमेशा ये पंक्तियाँ याद आती हैं:

रात की हज़ार आँखें होती हैं

और दिन की सिर्फ़ एक,

फिर भी सूर्यास्त के साथ

इस चमकते संसार की रोशनी बुझ जाती है।’

वेटर कप और प्लेटें लेने आ गया था। वह आदरपूर्वक मिस रिप्ली-बीन के पास खड़ा होकर बोला, ‘आंटी मे, आशा है आपका स्वास्थ्य अच्छा है।’

मिस रिप्ली-बीन ने स्नेहपूर्वक उसकी ओर देखा और उसके हाथ पर थपकी देते हुए बोलीं, ‘मेरी तबियत बिलकुल ठीक है, शुक्रिया सैमी!’