विकास ने यह महसूस कर लिया था कि अजगर ने उसे दाएं से बाएं लपेट रखा है। विकास ने तेजी से बाएं से दाएं दलदल में चार-पांच करवटें लेकर स्वयं को उससे मुक्त कर लिया । उधर... गौरव और अजगर का भयानक युद्ध जारी था। चारों ओर से बेखबर गौरव बुरी तरह अजगर से भिड़ा हुआ था। अजगर रह-रहकर अपनी भयानक जीभ बाहर निकाल रहा जंगल में रहने वाला ही कोई इन्सान अजगर से यह था। भयानक युद्ध कर सकता था। उधर विकास दलदल में फंस गया था । प्रतिपल दलदल उसे अपने गर्भ में समेटती जा रही थी। उसी समय रैना ने अपनी शर्म त्याग साड़ी उतारकर उसका एक किनारा विकास की ओर फेंका। "
विकास बेटे... " रैना चीखी— "इसे पकड़ लो ।
–“झपटकर विकास ने साड़ी का पल्ला पकड़ लिया । साड़ी का दूसरा किनारा पकड़े रैना दलदल के किनारे पर खड़ी थी । ब्लैक ब्वॉय, रघुनाथ, ठाकुर निर्भयसिंह भी उसके समीप ही थे। जैसे ही विकास ने साड़ी का पल्ला दूसरी ओर से पकड़ा, सब मिलकर साड़ी बाहर खींचने लगे।
उधर बेचारा गौरव... अकेला गौरव |
अजगर के साथ युद्ध में वह अपनी जान की बाजी लगाए हुए था। उसका कोई सहायक नहीं था। उसकी किसी को परवाह नहीं थी । कैसा स्वार्थी है ये संसार। सब अपने को बचाते हैं... दूसरा, जिसने उनके बेटे को बचाया, मौत के मुंह पर खड़ा है। उसकी किसी को चिन्ता नहीं है । सब अपने को बचाने में लगे हैं। गौरव अजगर से लड़ रहा है।
दो ही पल में विकास को दलदल से बाहर खींच लिया गया । रैना दीवानी- सी हो गई । झपटकर उसने विकास को गले से लगा लिया ।
लेकिन — विकास !
अजीब लड़का था— एक झटके के साथ उसने रैना को दूर फेंक दिया। साथ ही खूनी स्वर में चीखा — "मुझे सीने से लगाने से पहले ये तो सोचो कि तुम्हारे बेटे को बचाने वाला स्वयं मर रहा है। उसे क्यों नहीं बचाते ? गौरव... गौरव...!"
जोर से चीखता हुआ विकास दलदल के उस किनारे की ओर भागा ।
“विकास !” अजगर से लड़ते हुए गौरव की आवाज वातावरण में गूंज उठी – “अभी अजगर मरा नहीं है, मेरे दोस्त । लो, अजगर को पीछे से पकड़कर बाहर खींचो।" कहने के साथ ही गौरव ने एक तेज झटका दिया। एक झटके के साथ अजगर की पूंछ वाला भाग विकास के समीप आकर गिरा। अभी अजगर अपना जिस्म वापस दलदल में खींचना ही चाहता था कि झपटकर विकास ने अपनी दोनों हथेलियों के बीच उसे थाम लिया। अजगर अपने जिस्म को काफी तोड़-मरोड़ रहा था । किन्तु विकास पर इस समय खून हावी हो चुका था। अजगर को पकड़े वह दलदल से विपरीत दिशा में भागता ही चला गया |
अजगर का फन थामे गौरव-पलक झपकते ही दलदल से बाहर आया।
बाहर आते ही गौरव ने अपने हाथों में दबा फन तेजी से कीचड़युक्त धरती पर रगड़ दिया। अजगर के कण्ठ से डकार निकली, इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उसी स्थान पर गौरव की फेंकी हुई तलवार भी पड़ी थी। विकास ने झपटकर तलवार उठाई और अगले ही पल अजगर का फन कटकर दलदल में जा गिरा, उसके बाकी जिस्म को घुमाकर गौरव ने दलदल में फेंक दिया। फेंकते ही गौरव तेजी से विकास की ओर पलटा । विकास के हाथ में अजगर के खून से सनी नंगी तलवार थी ।
दोनों की सांस बुरी तरह फूली हुई थी ।
-“अभी हमारा फैसला नहीं हुआ है।" अपनी उखड़ी हुई सांस पर काबू पाता हुआ गौरव बोला ।
— "मैं यही जानना चाहता था कि तुममें फैसला करने की शक्ति शेष रह गई है या नहीं।" कहते हुए विकास ने अपनी तलवार एक तरफ उछाल दी। उसका वाक्य समाप्त होते ही गौरव उस पर गोरिल्ले की तरह झपटा। विकास और गौरव पुनः भिड़ गए।
एक बार फिर उनमें दिल की धड़कनें बन्द कर देने वाला युद्ध छिड़ गया ।
गौरव महसूस कर रहा था — दुनिया में उससे इतनी देर तक युद्ध करने वाला है, तो — विकास ।
विकास अनुभव कर रहा था... अभी तक वह जिससे भी टकराया है, उनमें सबसे खतरनाक है, गौरव ।
देखने वालों की धड़कनें तीस मिनट के लिए बन्द हो गईं, तीस मिनट बाद गौरव और विकास विपरीत दिशाओं में गिरे। दोनों थककर बुरी तरह चूर हो गए थे। शराबियों की भांति झूमते हुए उठे... दोनों की अवस्था एक जैसी थी ।
—“मैं मान गया तुम्हें । "
“कमाल हो गया । "
दोनों ने एकसाथ यह वाक्य कहा। दोनों के मुंह से एक-एक अक्षर साथ-साथ निकला था।
दोनों झूमते हुए एक-दूसरे की ओर बढ़े । और... तब, जबकि वे एक-
दूसरे से मात्र दो कदम दूर रह गए । एक कदम विकास ने बढ़ाया— दूसरा गौरव ने । दोनों एकदम एक-दूसरे के गले से लिपट गए। पांचों दर्शक उन्हें देखते ही रह गए। बहादुरों की कद्र करने वाले ये दोनों बहादुर एक-दूसरे से इस प्रकार लिपटे हुए थे, मानो दोनों वर्षों से बिछुड़े गहरे दोस्त हों।
सभी चमत्कृत से उन दोनों को देख रहे थे ।
अचानक... किसी अज्ञात दिशा से आकर एक बम विकास और गौरव के समीप गिरा, और फट गया । बम फटने की आवाज कोई विशेष नहीं थी। वास्तविकता तो ये थी कि वह आवाज बम की थी ही नहीं... ठीक ऐसी आवाज थी, जैसे किसी ने एक बल्ब वहां फेंका हो । मात्र बल्ब फटने जितनी आवाज ही उस बम ने की थी। अभी उनमें से कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि फटाफट पांच-सात बम वहां आकर गिरे।
उनमें से तीव्र वेग के साथ गाढ़ा धुआं निकला।
यह धुआं अश्रुगैस के प्रभाव जैसा था। केवल आंखों में पानी लाने का प्रभाव उसमें था । पलक झपकते ही वातावरण धुएं से भर गया ।
विकास और गौरव को जैसे एकदम विजय का ख्याल आया... वे अनुमान से उसी ओर झपटे, जिधर विजय पड़ा था, किन्तु दोनों उस समय आश्चर्यचकित रह गए, जब उन्होंने विजय को अपने स्थान से गायब पाया ।
"इसका मतलब उमादत्त के आदमी यहां भी पहुंच गए।" गौरव की ये बुदबुदाहट विकास के कानों में पड़ी ।
***
गुलशन नामक नकाबपोश के हाथ में बन्दर रूपी वह खिलौना देखते ही वे तीनों बुरी तरह कांपने लगे थे। तीनों के चेहरों पर मौत का भय नजर आ रहा था। मूक दर्शक की भांति अलफांसे यह सब कुछ देख रहा था और साथ ही यह समझने की चेष्टा भी कर रहा था कि अचानक ही वह किस विचित्र परिस्थिति और किन अजीब लोगों के बीच फंस गया है। अभी तक जो कुछ भी हो रहा था, वह अलफांसे जैसे व्यक्ति की बुद्धि से बाहर की बात थी, किन्तु इतना वह समझ चुका था कि इस टापू पर कोई बहुत ही खतरनाक... रोमांचक... और खूनी खेल खेला जा रहा है। पहले यहां बांड इत्यादि का होना... दूसरे उसका नाम सुनते ही... सुनने वालों में अजीब-सी हलचल... । उसका नाम सुनते ही... दोस्ती का दुश्मनी हो जाना। दुश्मनी भी यहां तक कि एक-दूसरे की जान तक लेने से न चूकें । उसी समय इस नकाबपोश का आगमन... बन्दर से उन तीनों का इतना भयभीत होना ।
अलफांसे को तेजी से घटित हर घटना बड़ी अजीब-सी लग रही थी।
नकाबपोश ने बन्दर अपने बटुए में डाला और उसमें से एक पुड़िया निकालकर बोला – "सूंघो इसे । "
उस समय अलफांसे चकित रह गया, जब एक ने सूंघी और वह बेहोश होकर धरती पर गिर गया... उसके बावजूद भी दूसरे ने सूंघने में किसी प्रकार का विरोध नहीं किया... तीनों सूंघकर बेहोश हो गए। नकाबपोश ने पुड़िया जेब में डाली ।
-"मेरे साथ आओ।"
- "तुम्हारे बाप का नौकर नहीं हूं मैं । " अलफांसे बड़े आराम के साथ बोला— “पहले मुझे बताओ कि ये चक्कर क्या है—–—तुम कौन हो ?"
– “मिस्टर अलफांसे ।" वह बोला – “आप व्यर्थ ही अशिष्ट शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। यही बात अगर आप सभ्यता के साथ मुझसे पूछते तो मैं आपको जवाब दे देता, मुझे आपसे इस प्रकार के अभद्र व्यवहार की आशा नहीं थी। "
–“अबे तो फिर क्या सोचकर बड़े आराम से कह दिया कि मेरे साथ चलो ?'' अलफांसे बोला – “मैं कोई इनमें से तो हूं नहीं कि तुम्हारे पास बन्दर का यह खिलौना देखकर डर जाऊं अथवा तुम्हारी पुड़िया का चूर्ण सूंघ लूं !”
-“मैंने कब कहा कि आप उनमें से हैं। " उसने सभ्यतापूर्ण ढंग से कहा – “आप मेरा परिचय जानना चाहते हैं, लीजिए । " कहते हुए उसने बिना किसी हिचक के अपना नकाब उतार लिया। अलफांसे के सामने एक सुन्दर और मजबूत युवक खड़ा था। युवक मुस्कराकर बोला — "सूरत से आप मुझे नहीं पहचानेंगे... वैसे मेरा नाम बागीसिंह है।"
– “ अभी तो तुमने अपना नाम गुलशन बताया था।” अलफांसे ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा ।
–" उन लोगों के सामने मुझे अपना नाम यही बताना चाहिए –“सम्भव है कि तुम मुझे भी अपना नाम गलत बता रहे हो?
" था।" अलफांसे ने कहा ।
–“आपको मैं अपना नाम गलत बताने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं करता।” युवक अर्थात बागीसिंह बोला – “आप यकीन कीजिए, मेरा नाम बागीसिंह ही है और मैं आपका दुश्मन नहीं दोस्त हूं।"
"मेरे दुश्मन और दोस्त यहां क्यों पैदा हो गए ?” अलफांसे ने पूछा – “मैं तो यहां पहले कभी नहीं आया !”
– “आप नहीं जानते, लेकिन यकीन कीजिए, यहां के पूर्व सम्राट का लड़का आपका सबसे बड़ा दुश्मन है । "
-“कारण क्या है ? "
—“आप विश्वास कीजिए कि मैं आपको सबकुछ बता दूंगा।" बागी बोला – “मुझसे आपको किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। हम चन्द लोग यहां के सम्राट से लड़ रहे हैं... कहानी बहुत लम्बी है... आराम से आपको सबकुछ बताऊंगा। यहां इस समय खतरा है, कृपा करके आप हमारे साथ आइए...आप सबकुछ जान जाएंगे।"
"अच्छा -"आपको विश्वास नहीं आएगा कि यह भी एक लम्बी कहानी है।" बागी ने कहा – "इस समय केवल इतना बता सकता हूं कि य आपको बेहद खतरा है। आपको देखते ही वह आपको अपने हाथ से कत्ल कर देगा...उसने आपको अपने हाथ से कत्ल करने की कसम ली है और पूरे विश्व में आपकी खोज हो रही हैं। "
ये बन्दर का क्या रहस्य है ?
अलफांसे को यह विश्वास हो गया था कि यहां कोई बहुत गहरा षड्यंत्र पनप रहा है। इस षड्यंत्र की तह तक पहुंचने का उसने निश्चय भी कर लिया था। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो ये थी कि वहां पनपने वाले षड्यंत्र में उसे अपना व्यक्तिगत मामला भी नजर आया था। इसलिए, उसने मामले की तह तक पहुंचने का दृढ निश्चय भी कर लिया था। इस थोड़े से समय में ही उसने ये भी जान लिया था कि यहाँ के लोग बेहद चालाक भी हैं। उसे और दुश्मनों का पता नहीं था, अतः उसने सोच-समझकर एक-एक कदम उठाने का निश्चय कर लिया था।
- "लेकिन उसने मुझे अपने हाथों से कत्ल करने की कसम क्यों खाई हैं ?” अलफांसे गुराया। 7
-"मैं आपको सब प्रश्नों का...।" बागीसिंह ने कहना चाहा।
—"मिस्टर बागी।" अलफांसे उसकी बात को बीच में ही काटकर गुर्राया— "जो बताना है, यहीं...इसी समय बताओ...बिना तुम्हारे विषय में विस्तृत रूप से जाने मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा... साथ ही तुम्हें भी नहीं जाने दूंगा।" अलफांसे मार-पीट का पूरा निश्चय कर चुका था।
-“यहां खतरा...!"
-“अलफांसे खतरों से डरता नहीं है।" वह गुराया-"या तो
सीधे ढंग से बोलो, वर्ना मुझे दूसरे ढंग भी आते हैं। " "वाकई आप बहुत जिद्दी हैं मिस्टर अलफांसे।" बागीसिंह ने कहा – “अगर आपकी यही शर्त है तो संक्षेप में सुनिए-जहां तक मेरी जानकारी है, आपकी मां भारतीय थी और पिता अंग्रेज। आपकी मां का नाम प्रभा था और पिता का नाम जेम्स। ये उस समय की बात है, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। उस समय यहां का राजा देव था... उसका पूरा नाम देवसिंह है। यहां का सम्राट बेहद विलासी था...मुझे कहते हुए भी शर्म आती है....कि वह आपकी मां प्रभा पर अपनी वासनामयी दृष्टि रखता था। उधर आपकी मां... आपके पिता से प्रेम करती थी। यह देवसिंह का दावा था जिस लड़की पर उसकी दृष्टि पड़ जाती है... वह एक बार उसके बिस्तर की शोभा अवश्य बनती है, किन्तु आपकी मां पहली लड़की थी, जिसने सम्राट देवसिंह के दावे को झूठा किया और आपके पिता जेम्स से शादी कर ली। - "देवसिंह की दृष्टि में यह उसकी शान में बहुत बड़ी गुस्ताखी थी। शहनशाह के होते हुए एक साधारण आदमी उस वस्तु को ले जाए, जिसे स्वयं शहनशाह पसन्द कर चुका है, यह देवसिंह को गवारा न हो सका और उसने आपके पिता की हत्या के लिए एक गहरे षड्यंत्र की रचना की। लेकिन इन्सान के करने से होता क्या है—होता तो वही है जो ईश्वर पहले से हमारे भाग्य में लिख चुका है—पासे कुछ इस तरह उलटे कि आपके पिता को उस षड्यंत्र का पता लग गया और उन्होंने अपनी बुद्धि से देवसिंह द्वारा बिछाए गए जाल को अपनी बौद्धिक शक्ति से तोड़ दिया, किन्तु आपके पिता भी यह समझ चुके थे कि सम्राट देवसिंह सरलता से उनका पीछा नहीं छोड़ेगा । अतः उन्होंने निश्चय कर लिया कि सांप का फन जहर उगलने से पहले ही कुचल देना चाहिए । देवसिंह ने यहां का शासन राजा देवेन्द्रसिंह को परास्त करके प्राप्त किया था। देवेन्द्रसिंह यहां का शासन प्राप्त करने के लिए पुनः गुप्त ढंग से अपनी शक्ति जुटा रहा था । वास्तविकता ये थी कि देवसिंह एक साधारण चित्रकार था और उसने बहुत बड़े षड्यंत्र के साथ देवेन्द्रसिंह को परास्त कर यहां का शासन प्राप्त कर लिया था । देवेन्द्रसिंह के माथे पर यह भी कलंक था कि एक साधारण व्यक्ति ने उनसे राज्य छीन लिया। अपनी शक्ति जुटाकर वे देवसिंह से अपना शासन मुक्त करके अपने मस्तक पर लगे कलंक को धोना चाहते थे। उधर आपके पिता देवसिंह का फन कुचलने हेतु कटिबद्ध हो चुके थे। इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि आपके पिता की बौद्धिक शक्ति आश्चर्यजनक थी। उन्होंने तुरन्त अवसर का लाभ उठाया और देवेन्द्रसिंह से जा मिले... जो देवेन्द्रसिंह अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करने हेतु शक्ति जुटा रहा था... उसे आपके पिता ने एक गहरी योजना बताई और शासन पुनः देवेन्द्रसिंह के हाथ आ लगा । आपके पिता ने देवेन्द्रसिंह से यही कहा था कि विजय की स्थिति में तुम सम्राट बन जाओगे। लेकिन देवसिंह को मैं अपने हाथों से मौत के घाट उतारूंगा। वही हुआ भी... देवसिंह को आपके पिता ने स्वयं अपनी कटार का शिकार बनाया, किन्तु उनका एक राज ज्योतिषी, जो ऐयारी के फन में भी माहिर था... देवसिंह के लड़के गौरवसिंह और वन्दना को लेकर फरार हो गया। आपके पिता अथवा देवेन्द्रसिंह में से किसी ने भी इस बात की कोई विशेष चिन्ता नहीं की... आपके पिता अपने दुश्मनों को परास्त करके आपकी मां के साथ यहां से चले गए, देवेन्द्रसिंह ने अपना शासन सम्भाल लिया... वक्त गुजरा, देवसिंह समाप्त हो ही चुका था... अतः प्रत्येक चिन्ता से मुक्त शासन चलता रहा। वक्त ने देवेन्द्रसिंह को बुढ़ापे से मिलाया। उनका इकलौता पुत्र दलीपसिंह बड़ा हुआ और देवेन्द्रसिंह की मृत्यु के बाद परम्परागत सम्राट की गद्दी पर वह बैठा ।
उधर... देवसिंह के राज ज्योतिषी ने गौरव और वन्दना को पालकर बड़ा कर दिया। उसने उन दोनों भाई-बहनों को ऐयारी के फन में भी माहिर कर दिया और उन्हें उनके दुश्मनों के विषय में भी बताता रहा । राज ज्योतिषी ने अपने ज्योतिष के हिसाब से बताया कि जेम्स गारनर अथवा आपके माता-पिता के केवल एक सन्तान आप यानी अलफांसे पैदा हुई है। उसने गौरव और वन्दना को ये भी बताया कि आप यानी अलफांसे अपने युग का सबसे बड़ा जांबाज और अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी के रूप में विश्व विख्यात है। अथवा यूं कहिए कि उसने ज्योतिषी के हिसाब से सारी विशेषताएं जो आपके अन्दर हैं, गौरव और वन्दना को बता दीं। "
-" लेकिन तुम्हें ये सब सूचनाएं कैसे मिलीं ?" अलफांसे ने —कहानी की सच्चाई जानने हेतु उसे घूरते हुए पूछा। - – "हमारा अपना एक अलग ढंग होता है मिस्टर अलफांसे।" बागीसिंह ने बताया — “जो दल गौरव, ज्योतिषी और वन्दना ने तैयार किया है, उसमें हमारा एक ऐयार भी है, वही हमें सूचनाएं देता है। उसने यह समाचार भी भेजा कि गौरवसिंह ने अपने पिता की कसम ली है कि जब तक वह अपने पिता के हत्यारे के बेटे अलफांसे को अपने हाथ से कत्ल नहीं कर देगा, वह चैन से नहीं बैठेगा। दूसरी तरफ उसने... दलीपसिंह से यह राज्य वापस लेने की कसम ली है। एक तरफ वह किसी प्रकार दलीपसिंह से अपना शासन छीनने के लिए कटिबद्ध है — दूसरी तरफ वह आपकी खोज पूरे विश्व में कर रहा है... उसने आपके ऊपर पूरा एक खजाना इनाम रखा है- - उसने घोषणा की हैं कि जो भी अलफांसे यानी आपका पता उसे देगा अथवा आपको जीवित अवस्था में पकड़कर उसके पास ले जाएगा उसे खजाना इनाम दिया जाएगा। वे चार सैनिक, जिनके बीच आप फंसे थे, वास्तव में गौरवसिंह के ही थे और आपका नाम सुनते ही वे चारों आपको गिरफ्तार करना चाहते थे।”
—" लेकिन वे तो एक-दूसरे के ही दुश्मन बन गए ?"
-"खजाने के लालच में।" बागीसिंह ने बताया— "इनमें से हर एक के दिमाग में आया कि वह अकेला ही इनाम का खजाना हड़प ले और इस चक्कर में वे एक-दूसरे के ही दुश्मन बन गए ।'
- " उसी समय तुम इनके बीच दाल-भात में मूसंरचंद की तरह प्रकट हो गए।” अलफांसे ने गहरी दृष्टि से बागीसिंह को घूरते हुए कहा – “एक तो बेचारा पहले ही शहीद हो चुका था...बाकी तीनों की हवा तुमने बन्दर दिखाकर खराब कर दी । "
“आप कहना क्या चाहते हैं ? "
-"यह कि अब तुम स्वयं अकेले ही वह खजाना हड़पना चाहते हो। "
—“ये आप क्या कह रहे हैं ?" बागीसिंह एकदम इस प्रकार बोला, जैसे उसके इन शब्दों से उसे अनर्थ हो जाने का भय हो – “यह बात तो मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता... आप विश्वास कीजिए, मैं खजाने के चक्कर में अपना जमीर नहीं बेचूंगा।"
– “क्यों ऐसी तुम्हारी मुझसे क्या दोस्ती है ?" ' —" आपसे तो नहीं लेकिन हां... मैं राजा दलीपसिंह के खास ऐयारों में से एक अवश्य हूं और इस नाते मैं गौरवसिंह का शत्रु हूं...दलीपसिंह का आदेश है कि अलफांसे यानी आपको किसी भी हालत में गौरव अथवा उसके ऐयारों के हाथ न लगने दिया जाए... उन्होंने हमारे अर्थात् राज्य के सभी ऐयारों के बीच यह घोषणा की है कि जो ऐयार आपको सुरक्षित उनके समक्ष ले जाएगा, उसे वे ऐयार मण्डली का सरगना बना देंगे और इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूंगा कि यह काम मेरे ही द्वारा हो रहा है। मिस्टर अलफांसे, कृपया आप मेरी विनती स्वीकार कर लीजिए कि यहां से चलिए, अगर आप कहेंगे कि आपको राजा दलीपसिंह के सामने ले जाने से पहले शेष जो रह गया है, वह भी बता दूं तो फिलहाल आप यहां से मेरे घर चलिए, मैं सबकुछ वहां स्पष्ट बता दूंगा —–— उसके बाद कल सुबह आपको दरबार में पेश कर दिया जाएगा। ""
अलफांसे ने घूरकर उसे देखा—कदाचित् वह बागीसिंह के चेहरे पर उपस्थित भावों का अध्ययन करके यह पता लगाने की चेष्टा कर रहा था कि यह व्यक्ति सच्चा है अथवा उसे किसी गहरे जाल में फंसा रहा है । किन्तु अलफांसे को उसका चेहरा एकदम भावरहित लगा। अलफांसे ने सोचा— तमाशा घुसकर ही देखा जाए तो ही समझ में आ सकता है, अगर वह बाहर से सबकुछ समझने का प्रयास करेगा तो मस्तिष्क उलझता ही चला जाएगा — अतः उसने खतरा उठाने का पूरा निश्चय कर लिया — वह प्रभावशाली स्वर में बोला—
– “चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूं, लेकिन इस बात का ख्याल रखना कि मेरा नाम अलफांसे है। अगर तुम मेरे बारे में इतना सबकुछ जानते हो तो निश्चय ही यह भी जानते होंगे कि मैं किस टाइप का व्यक्ति
“आप निश्चिन्त रहें—मैं हर कदम पर आपका दोस्त हूं।"
मेरे प्रेरक पाठको, अब हम आपसे विनती करते हैं कि एक क्षण अपने मस्तिष्क को आराम दे लें। इसके बाद अपने दिमाग के सभी खिड़की और दरवाजे खोलकर जरा ध्यान से इस दृश्य को पढ़ें, क्योंकि यह दृश्य आपके दिल में बड़ी विचित्र - सी हलचल पैदा करने वाला है। आप एक विचित्र से रहस्य में उलझने जा रहे हैं। आइए हमारे साथ आगे बढ़कर वह दृश्य देखिए, जिसे बागीसिंह और अलफांसे नहीं देख पाए हैं। वो देखिए – उस दाईं ओर की दीवार की आड़ में अन्धकार का साम्राज्य है। इस तरह आप कुछ भी नहीं देख पाएंगे, तनिक ध्यान से देखिए, दीवार की आड़ में एक इन्सान खड़ा है। यह भी बता देने में हम किसी प्रकार की हानि नहीं समझते कि यह व्यक्ति वही है, जिसे पहले गौरव और वन्दना के गुरु के रूप में देख चुके हैं। बूढ़ा जिस्म – सफेद दाढ़ी और सफेद बाल पतले हडियल जिस्म पर गेरुवे कपड़े और दाढ़ी का अन्तिम सिरा उनकी नाभि को स्पर्श कर रहा है। कदाचित हमारे पाठकों को याद आ गया होगा कि यह बूढ़ा व्यक्ति गौरव और वन्दना का वही गुरु है, जिसने उन दोनों से कहा था—गौरव बेटे, तुम दोनों का रहस्य तुम्हारे अलावा केवल मैं जानता हूं... इत्यादि ।
ये बूढ़ा गुरु काफी देर से बागीसिंह और अलफांसे की बातें सुन रहा है।
किन्तु कुछ बोलता नहीं — — चुपचाप — जैसे मूकदर्शक हो ।
बागीसिंह कमरे में जलती हुई मशाल उठाकर आगे-आगे चलता है । अलफांसे उससे एक कदम पीछे उसके साथ है। खुद को छुपाए हुए बूढ़ा गुरु उनका पीछा कर रहा है। वे हवेली से बाहर आ जाते हैं। वर्षा थम चुकी है, किन्तु वायु तूफान का रूप धारण करके जंगल के वृक्ष इत्यादि को परेशान कर रही है। वे दोनों तेज हवा को चीरते हुए बढ़ते चले जा रहे हैं। बागीसिंह के हाथ में दबी मशाल उनका मार्गदर्शन कर रही है। साथ ही वह बूढ़े गुरु के लिए पीछा करने में सहायक भी है।
इसी प्रकार वे लोग दो कोस के लगभग मार्ग तय कर लेते हैं ।
इसके पश्चात वे एक उजाड़ से किन्तु छोटे मन्दिर के सामने पहुंच जाते हैं। मन्दिर के चारों ओर टूटी-फूटी-सी दीवार खड़ी है। दीवार के अन्दर कोई पांच हाथ लम्बा और चार हाथ चौड़ा दालान है— दालान के बीचोबीच एक छोटा-सा कुआं है। उससे आगे जाकर वह कमरा है, जिसमें अन्दर शंकर भगवान की काफी बड़ी, किन्तु टूटी-फूटी-सी पत्थर - की मूर्ति है। बूढ़े गुरु के लिए यह मन्दिर नया नहीं है, अतः मन्दिर की भौगोलिक स्थिति से वह पहले ही पूरी तरह परिचित है । वह बागीसिंह और अलफांसे को मन्दिर के दालान में प्रविष्ट होते देखता है।
— 'बागीसिंह अलफांसे को मन्दिर में क्यों ले जा रहा है ?' बूढ़ा गुरु इस अंधेरे में खड़ा स्वयं ही बुदबुदा उठता है
— 'इस मन्दिर में तो कोई आता-जाता भी नहीं है। वर्षों से मन्दिर पूरी तरह वीरान पड़ा हुआ कुछ देर तक बूढ़ा गुरु अपने स्थान पर खड़ा उन्हें देखता रहता है । सोचता है कि मन्दिर इतना छोटा है कि अगर वह उनके पीछे मन्दिर में गया और उसने उनकी बातें सुनने का लालच किया तो वे दोनों उसे देख सकते हैं। उसने यही मुनासिब समझा कि यहीं खड़े होकर वह उनके बाहर निकलने की प्रतीक्षा करे। अपने इसी विचार के अधीन होकर वह अपने समीप के ही वृक्ष पर चढ़ गया ।
बूढ़ा गुरु उनके साथ मन्दिर में नहीं गया तो छोड़ो उसे । आओ... हम चलते हैं... छुपकर हम बागीसिंह और अलफांसे की कार्यवाही देखते हैं ।
वे दोनों दालान पार कर लेते हैं। अहाते में पहुंचकर एकाएक बागीसिंह मशाल बुझा देता है ।
उनके आसपास का वातावरण अन्धकार में डूब जाता है। -"मशाल क्यों बुझा दी ?” अलफांसे एकदम सतर्क स्वर में बोला ।
– “आप घबराइए नहीं, मुझ पर भरोसा कीजिए । " बागीसिंह का स्वर उसके कानों से टकराया— “हम ऐयार हैं और हमें हर तरह की सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसा हो सकता है कि गौरवसिंह खुद अथवा उसका कोई साथी हमारे पीछे हो और वह हमारे घर तक पहुंचने का रास्ता भी देख ले – बस, इसी कारण से मैंने अंधेरा कर दिया है। अब कृपा करके अपने जूते उतार दीजिए, क्योंकि ये कीचड़ में सने हैं... दुश्मन इनके निशान देखता हुआ हम तक पहुंच सकता है। पैरों को अच्छी तरह साफ करके हम आगे बढ़ेंगे।"
अलफांसे ने निर्विरोध ऐसा ही किया ।
दोनों ने अपने जूते उतारकर दालान में फेंक दिए। पैर अच्छी तरह से साफ कर लिए और बागीसिंह अलफांसे का हाथ पकड़कर उस भवन में घुस गया, जिसमें शंकर भगवान की मूर्ति थी... भवन काफी छोटा था... ठीक बीच में शंकर की मूर्ति... भवन की छत से लेकर नीचे आदमी की ऊंचाई से थोड़े ऊपर तक कई घण्टे लटक रहे थे... | पूरे भवन में अंधकार था। बागीसिंह ने भवन का द्वार अन्दर से बन्द किया और बटुए से एक मोमबत्ती निकालकर जला ली। मोमबत्ती के मद्धिम से प्रकाश में अलफांसे ने भवन की स्थिति देखी... जगह-जगह धूल जमी हुई थी । मोमबत्ती अलफांसे के हाथ में
- " कृपया इसे पकड़िए । " बागीसिंह ।
पकड़ाते हुए बोला ' "कहां से रास्ता है ?" कहने के साथ ही अलफांसे ने पूरे भवन का निरीक्षण करते हुए मोमबत्ती पकड़ – “देखते रहिए । " कहते हुए बागीसिंह ने छत से नीचे की ओर जंजीर में लटका एक घण्टा पकड़ लिया। इसके बाद... चमत्कृत-सा अलफांसे उसे देखता रहा और जंजीर के सहारे चढ़ता बागीसिंह भवन की गुम्बदनुमा छत पर पहुंच गया। उस समय अलफांसे जैसे व्यक्ति की आंखें भी आश्चर्य से फैल गईं, जब उसने देखा... बागीसिंह ने गुम्बदनुमा छत में लगा बहुत छोटा-सा पेंच तरकीब से घुमाया।
और इस क्रिया के परिणामस्वरूप प्रतिक्रिया ।
बहुत से गुप्त रास्ते और तहखाने देखने वाला अलफांसे भी चकरा गया। बागीसिंह के पेंच घुमाते ही भवन के फर्श के नीचे से हंसी की आवाज उभरी, मानो किसी जाम पड़ी हुई मशीन के पुर्जे एकाएक हरकत में आ गए हों ।
अलफांसे ने चौंककर देखा ।
*****
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