जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी।
पहले की तरह देवराज चौहान उसकी बगल में बैठा था और हरीश खुदे पीछे वाली सीट पर ।
देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे पर दरिन्दगी नाच रही थी। आंखों में सुर्खी थी।
“अब मोना चौधरी की बारी है।" जगमोहन दांत भींचकर बोला ।
“वो कहां रहती है?” देवराज चौहान गुर्राया ।
“ये नहीं मालूम।”
“महाजन या पारसनाथ को पता होगा। दोनों में से किसी के पास चलो।” देवराज चौहान पूर्ववत् स्वर में बोला ।
“महाजन का घर इसी तरफ पड़ता है, वहां चलते हैं।" जगमोहन की आंखों की सुर्खी बढ़ गई थी।
पीछे बैठा हरीश खुदे कुछ कहने लगा कि उसका मोबाइल बजने लगा ।
"हैलो।” खुदे ने मोबाइल निकालकर बात की।
“अब क्या पोजीशन है तुम्हारी ?” टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी।
"पोजीशन?" खुदे अजीब से स्वर में कह उठा।
"मैंने तो मटर-पनीर बना भी लिए और दो परांठों के साथ खा भी लिए। बहुत बढ़िया बने हैं। बस थोड़ी-सी मिर्च ज्यादा पड़ गई है। उसकी कोई बात नहीं, तुम्हें प्यार-प्यार से खिला दूंगी। अपने हाथों से खिलाऊंगी तुम्हें। आज सुबह जो तुम्हारी ठुकाई हुई, वो मुझसे देखी नहीं गई। तरस बहुत आया तुम पर, तभी मटर-पनीर बनाये तुम्हारे लिए।”
"मेरे लिए?" खुदे चिढ़कर बोला।
“कसम से, तुम्हारे लिए ही तो... ।”
“और तुमने दो परांठों के साथ खा भी लिए, जबकि मैंने कुछ भी नहीं खाया।”
“झूठ मत बोलो, बाहर से कुछ तो खाया ही होगा। क्या खाया भठूरे या डोसा...?"
“अब जाकर मेरी ठुकाई होनी रुकी है।"
“चिन्ता मत करो। मटर-पनीर खाकर सब भूल जाओगे। थोड़ी देर पहले बिल्ला आया था।”
“बिल्ला ?"
“वो ही, सड़ा-सा तुम्हारा दोस्त कह रहा था तुमने उसके दो हजार रुपये देने हैं। रुपये लेने आया था। कमीने की तिरछी नज़र मुझ पर रहती है। जानता है क्या बोला मेरे को ?”
"क्या?"
“बोला कभी फुर्सत में मेरे साथ चलो भाभी, फाइव स्टार में खाना खिलाऊंगा।"
"ऐसा बोला?” खुदे गुस्से से भर उठा।
“मेरे से क्या पूछते हो, उसी सड़े हुए से पूछ लेना। मैंने भी कह दिया कि रोज-रोज फाइव स्टार का खाना नहीं खाया जाता। अभी कल ही हम ओबराय से खाकर आये हैं।"
“साले को मैं अब दो हजार नहीं दूंगा।"
“वो तुम जानो। ये बताओ कि कब आ रहे हो? शाम होती जा रही है। पांच बज रहे हैं।"
“सारा काम निपट गया है अब घर ही आना है। एक-दो घण्टे तक आ जाऊंगा।” खुदे ने कहा।
“सब्जी लेते आना। वैसे मटर-पनीर कल का दिन भी चल जायेगा।"
हरीश खुदे ने फोन काट दिया और देवराज चौहान से बोला---
"तुम लोगों का काम निपट गया। साठी हाथ भी आ गया और मारा भी गया। मुझे यहीं उतार दो। मैंने अपने बचने का रास्ता ढूंढना है। हो सकता है साठी के आदमी मुझे ढूंढने पर लगे हों। साठी ने अपने आदमियों को बता दिया हो सकता है कि मैंने इस काम में तुम दोनों का साथ दिया। वो मुझे नहीं छोड़ने वाले। हो सकता है मुझे ये शहर छोड़कर जाना पड़े। मैं बड़ी मुसीबत में फंस गया हूँ। अपने को बचाना है मैंने।”
"साठी मर गया। अब तू क्यों डरता है।” देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला ।
“अब अफगानिस्तान से साठी का भाई आ जायेगा। वो तो अपने भाई से भी खतरनाक है। अपने भाई की मौत का बदला गिन-गिनकर लेगा। पहले दोनों भाई एक साथ अण्डरवर्ल्ड का काम देखते थे फिर छोटे भाई देवेन साठी ने ड्रग्स के कारण अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बना लिया। तुम दोनों तो बड़े शिकारी हो। निपट लोगे या निपटा दिए जाओगे। पर मैंने तो अपने बारे में सोचना है कि...।"
तभी खुदे का फोन बज उठा।
“हैलो ।” खुदे ने बात की।
“एक बात तो पूछनी भूल ही गई।" उधर से टुन्नी की आवाज आई--- "वो डण्डे का क्या हुआ जो... ।”
“निकल गया।”
“शुक्र है, लेकिन चढ़ता कैसे...?”
"डण्डा निकल गया, अब उसकी जगह लठ चढ़ गया है।"
"लठ... ?"
“वो डण्डे से मोटा होता है और जब चढ़ता है तो बन्दे के होश गुम हो...।"
"चढ़ता कहां पर है, ये तो बता दो... ।”
“वापस आकर बताऊंगा।” खुदे ने मुंह बनाकर कहा।
“जल्दी आओ। परांठे उतारने शुरू कर दूं क्या?”
“आने पर उतारना।” खुदे ने कहकर फोन बन्द कर दिया--- "इन औरतों को कुछ भी नहीं पता कि लठ कहां... ।”
“खुदे...।” जगमोहन ने शब्दों को चबाकर कहा--- “तेरे को ज्यादा पैसा कमाना है ना?"
“हां।” खुदे जल्दी से बोला ।
“हमारे साथ डकैती करेगा?”
"डकैती ?” हरीश खुदे हड़बड़ाकर सम्भला--- “क... कब ?"
"जल्दी ही। बहुत पैसा मिलेगा उस डकैती में। करोड़ों मिलेगा। लेकिन उससे पहले एक छोटा-सा काम निपटाना है, तू हमारे साथ रह, वो काम पूरा करके, डकैती करेंगे।"
“ठीक है।” खुदे के चेहरे पर खुशी से भरी चमक दौड़ पड़ी--- "तो कौन-सा काम पूरा करना है?"
“मोना चौधरी को साठी की तरह ही खत्म करना है।"
“मोना चौधरी कौन...वो-वो इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी तो नहीं ?” खुदे के होंठों से निकला।
“वो ही हरामजादी। उसे ही मारना है अब... ।”
खुदे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। वो अभी कार से उतर जाना चाहता था। परन्तु डकैती के लालच ने उसे कार में ही रोके रखा। परन्तु कह उठा---
“अब मोना चौधरी के बारे में तो मुझे कुछ मालूम नहीं कि तुम लोगों को मेरा कोई फायदा हो।"
“तू बस साथ रह।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली--- "बाकी हम देख लेंगे।"
■■■
शाम के छः बज रहे थे। नीलू महाजन बाहर जाने को तैयार हो चुका था। तभी राधा कॉफी बना लाई। अपना कप भी साथ लाई थी और एक कप महाजन को थमाकर बोली---
"आराम से बैठकर कॉफी पिओ... ।”
ना चाहते हुए भी महाजन को कॉफी पीनी पड़ी।
“मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं।” राधा बोली।
“क्या?"
“अब तुम बीवी वाले हो। तुमने मेरे साथ शादी की है। कल को बच्चे भी हो जायेंगे। परिवार बड़ा होगा। अब तो आदतें सुधार लो।"
“क्या हो गया मेरी आदतों को?” महाजन मुस्करा पड़ा।
“तुम्हारा आधी-आधी रात को लौटना या फिर कई-कई दिन बिना बताये घर से गायब रहना, ये शरीफ लोगों के लक्षण नहीं हैं। अब तक तो तुम्हें समझदार बन जाना चाहिये था। लेकिन तुम्हें तो किसी बात की परवाह ही नहीं है।"
“मैं हमेशा वक्त पर घर आता हूं। कभी-कभी कोई काम ऐसा पड़ जाता है कि... ।”
"वो काम दिन में किया करो। रातों को या कई-कई दिन गायब रहकर... ।"
तभी कॉलबेल बज उठी।
"किसी ने आना था क्या?" राधा कप रखकर उठते हुए बोली।
"नहीं।" महाजन ने कॉफी का घूंट भरा।
राधा उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
दरवाजा खोला तो सामने देवराज चौहान पीछे जगमोहन को खड़े देखा तो उसके होंठों से निकला---
"तुम?" राधा को महाजन पूर्वजन्म से लाया था इस नाते वो देवराज और जगमोहन को जानती थी।
"महाजन कहां है?" देवराज चौहान सख्त स्वर में कह उठा।
“भीतर है, लेकिन तुम... ।”
देवराज चौहान ने राधा के कन्धे पर हाथ रखकर उसे पीछे किया और भीतर प्रवेश कर गया।
जगमोहन उसके पीछे था।
राधा अचकचाई-सी वहीं खड़ी रह गई।
जबकि भीतर बैठा महाजन, देवराज चौहान और जगमोहन को आया पाकर बुरी तरह चौंका था। दोनों की सुर्ख आंखें, चेहरे पर कठोरता ने उसे बेहद सतर्क कर दिया था। कॉफी का प्याला रखे वो खड़ा हो गया।
“तुम दोनों... मेरे यहां ?" महाजन के होंठों से निकला।
देवराज चौहान दांत भींचे आगे बढ़ा और महाजन को कमीज से पकड़ लिया।
“मोना चौधरी का पता बता।"
“क्या?" महाजन का सिर घूम गया--- "बेबी का पता...?"
"वो किधर रहती है ?"
"ऐसा क्या कर दिया बेबी ने जो इस तरह... ।”
“साले जो पूछा है, वो बता ।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "नहीं तो अभी मरेगा।"
दरवाजे पर खड़ी राधा ये सुनते ही, हाथ हिलाते आगे बढ़ी।
“जाओ जाओ, मर गये मारने वाले। मेरे नीलू को हाथ भी लगाया तो...।"
तभी जगमोहन का हाथ घूमा और राधा की कनपटी पर पड़ा।
राधा के होंठों से कराह निकली और वो फर्श पर गिरती चली गई।
"राधा...!" महाजन तेजी से राधा की तरफ बढ़ा।
परन्तु उसकी कमीज थामे देवराज चौहान ने उसे हिलने ना दिया।
"यहीं खड़े रहो।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।
फर्श पर पड़ी राधा बेहोश हो चुकी थी।
महाजन के चेहरे पर गुस्सा नाच उठा।
"मेरी कमीज छोड़ो।”
“मोना चौधरी के बारे में बता...।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा ।
"पहले मेरी कमीज...।"
तभी देवराज चौहान ने कमीज छोड़ी और जोरदार घूंसा महाजन के चेहरे पर मारा।
महाजन के होंठों से कराह निकली और पीछे पड़ी कुर्सी से टकराकर गिरते-गिरते बचा और सम्भलकर खा जाने वाली निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान की सुर्ख-आंखों में खतरनाक भाव लहरा रहे थे।
देवराज चौहान के चेहरे के भावों को देखकर महाजन पहले ही मन-ही-मन परेशान था। ऊपर से राधा का बेहोश हो जाना और देवराज चौहान का उसे घूंसा मारना, उसे क्रोध दिलाने के लिऐ काफी था। एकाएक महाजन देवराज चौहान पर झपट पड़ा। एक साथ दो-तीन घूंसे उसके पेट में लगा दिए।
देवराज चौहान पेट पकड़कर कराहा।
ये देखकर जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली और महाजन पर छलांग लगा दी।
दोनों फर्श पर लुढ़कते चले गये।
तब तक देवराज चौहान सम्भलकर आगे बढ़ा और जगमोहन के साथ मुकाबला कर रहे महाजन पर ठोकरें बरसा दीं। महाजन तड़प उठा। उसके हाथ में देवराज चौहान का पांव आया तो उसे खींच दिया।
देवराज चौहान नीचे जा गिरा।
तभी महाजन के पास पड़े जगमोहन ने ताबड़-तोड़ घूंसों की बरसात महाजन पर कर दी।
महाजन चीख उठा।
तब तक देवराज चौहान खड़ा हो गया था और आगे बढ़कर नीचे गिरे महाजन की छाती पर अपने जूते वाला पैर रख दिया। उन दोनों के सामने महाजन की ज्यादा ना चल पाई।
महाजन घूंसों की पीड़ा को सहता, देवराज चौहान को देखने लगा।
देवराज चौहान की आंखें लाल सुर्ख-सी धधक रही थीं।
जगमोहन उठ खड़ा हुआ था।
“मोना चौधरी कहां रहती है?" गुर्रा उठा देवराज चौहान ।
"ऐसा क्या हो गया जो तुम इस तरह बेबी को पूछ रहे... ।”
“मोना चौधरी का पता बता।" देवराज चौहान ने दांत भींचे।
तभी जगमोहन ने नीचे पड़े महाजन के कूल्हे पर ठोकर मारते कहा---
“कुत्ते की औलाद बता मोना चौधरी कहां मिलेगी ?"
महाजन छटपटा उठा।
“कुछ बताओगे भी बात क्या है। मुझ पर हाथ उठाने का मतलब क्या है जो...।"
देवराज चौहान ने उसकी छाती से पांव हटाया और दांत भींचे नीचे झुककर महाजन को कमीज से पकड़कर उठाया और जोरदार घूंसा जड़ा चेहरे पर।
महाजन लड़खड़ा गया। होठों से कराह निकली। वो गुस्से से भर उठा।
"तेरे मुंह से अब ये निकले कि मोना चौधरी कहां मिलेगी।” देवराज चौहान वहशी स्वर में कह उठा ।
एकाएक महाजन को मामले की गम्भीरता का एहसास हुआ।
कोई बात तो है जो देवराज चौहान इस तरह मोना चौधरी की तलाश करता फिर रहा है। मोना चौधरी का कोई झगड़ा देवराज चौहान से हुआ होता तो बात जरूर उसके कानों तक पहुंचती ।
“वो पारसनाथ के रेस्टोरेंट में पहुंचने वाली है।” महाजन ने कहा ।
“अभी?” देवराज चौहान गुर्राया ।
“हां, मैं वहां जा ही रहा था कि तुम लोग आ गये... ।”
“इसे भी साथ ले चलो।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "अगर ये झूठ बोल रहा है तो वहां इसे गोली मार देंगे।”
महाजन ने जगमोहन को देखा।
“चल...।” देवराज चौहान गुर्राया ।
"एक मिनट रुको। राधा को उठाकर बेड पर लिटा दूँ...।"
"वो अपने आप उठ जायेगी, तू चल।" जगमोहन ने महाजन की बांह पकड़कर बाहर की तरफ धकेला।
■■■
जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी। इस बार खुदे जगमोहन की बगल में बैठा था और पीछे वाली सीट पर देवराज चौहान, महाजन के साथ बैठा था। महाजन बेचैन था, बार-बार देवराज चौहान को देख रहा था जिसकी आंखें सुर्ख थीं और चेहरे पर चट्टान-सी कठोरता उभरी पड़ी थी।
"बेबी ने क्या कर डाला है तुम्हारा?" महाजन ने देवराज चौहान से पूछा।
"उस हरामजादी को खत्म करना है।” देवराज चौहान गुर्राया ।
“क्या?" महाजन चिहुंककर देवराज चौहान को देखने लगा--- “क्या कहा तुमने?"
“उसे बुरी मौत मारना है।” ड्राइव करता जगमोहन दांत भींचे बोला।
“ल...लेकिन क्यों, क्या किया है बेबी ने?" महाजन का मुंह खुला रह गया था।
देवराज चौहान के दांत भिंचे रहे।
“बताओ तो ऐसा क्या कर डाला बेबी ने जो तुम लोग उसकी जान ले लेना.....?"
"याद नहीं आ रहा क्या किया है।” देवराज चौहान ने पूर्ववतः स्वर में कहा।
“क्या?" महाजन की आंखें सिकुड़ीं--- “तुम्हें याद नहीं आ रहा कि बेबी को क्यों मारना चाहते हो?"
खुदे ने गर्दन घुमाकर पीछे देवराज चौहान को देखा।
“हां, अभी याद नहीं आ रहा कि... ।”
“लेकिन ये कैसे हो सकता है कि तुम्हें याद ना आये कि...।"
“चुपचाप बैठा रह... ।” देवराज चौहान ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा।
“तुम-तुम पागलों वाली बात कर रहे हो कि तुम्हें याद नहीं आ रहा कि क्यों बेबी को मारना...।"
देवराज चौहान ने उसी पल महाजन के सिर के बाल पकड़ लिए।
महाजन कराहा।
"चुप रह वरना...।" कहकर देवराज चौहान ने उसके सिर के बाल छोड़े।
"मैं चुप नहीं रहूंगा।" महाजन बोला--- "मैं...।"
तभी देवराज चौहान का हाथ घूमा।
महाजन सतर्क था। उसने फौरन देवराज चौहान की कलाई थाम ली।
देवराज चौहान ने गुर्राकर महाजन को देखा।
"तुम मेरे साथ ठीक से पेश नहीं आ रहे देवराज चौहान! मुझ पर हाथ उठाना तुम्हें महंगा पड़ सकता है।"
“महंगा...।" देवराज चौहान गुर्राया और महाजन पर झपट पड़ा।
महाजन भी गुस्से में देवराज चौहान से लिपट गया।
कार में इतनी जगह नहीं थी कि वे लड़ सकें।
"ये क्या कर रहे हो।” खुदे जल्दी से कह उठा--- “चलती कार में झगड़ा क्यों कर रहे हो?" इसके साथ ही खुदे किसी प्रकार आगे से पीछे आया और दोनों को अलग करके उनके बीच आ बैठा ।
देवराज चौहान का चेहरा धधक रहा था।
महाजन भी क्रोध में आ चुका था।
"तुम बताओ जगमोहन, क्यों बेबी की जान के पीछे हो ?” महाजन ने पूछा।
“मुझे याद नहीं ।" जगमोहन दांत पीसकर बोला--- “लेकिन ये याद है कि उसे खत्म कर देना है।"
"ये कैसे हो सकता है कि याद ना हो कि क्यों बेबी को... ।"
“तूने सुना नहीं कि याद नहीं।"
“पागल हो चुके हो तुम दोनों।" महाजन गुस्से से झल्लाकर बोला--- "कहते हो बेबी की जान लेनी है, परन्तु ये भूल रहे हो कि क्यों जान लेनी है। ऐसा भी कभी होता है क्या? मुझे बताओ, बात क्या है।"
कोई जवाब नहीं मिला।
कार तेजी से दौड़ रही थी।
"देवराज चौहान तुम बेबी से कब मिले?”
“नहीं मिला।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
"मैंने पूछा है आखिरी बार कब मिले?"
“जब पूर्वजन्म में गये थे। उसके बाद नहीं मिला।" ये जानने के लिए पढ़ें (1) नागमणि, (2) नरबलि, (3) नागिन ।
"उस बात को तो कई महीने हो गये। तब से बेबी से नहीं मिले?"
"नहीं।"
"तो फिर बेबी के पीछे क्यों हो? क्या उसने तुम लोगों का कोई काम खराब किया है?"
"पता नहीं ।" देवराज चौहान गुर्राया ।
महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव थे। वो खुदे से बोला ।
"तुम कौन हो?"
"हरीश खुदे...।"
"इनके साथ क्यों हो?"
“मोना चौधरी को खत्म करने के बाद ये डकैती करेंगे, मैं इनके साथ काम करूंगा और करोड़ों कमा लूंगा।"
"मेरा मतलब है कि तुम इस बारे में क्या जानते हो कि ये बेबी को क्यों मारना चाहते हैं?"
“ये मुझे नहीं पता।”
"कुछ भी नहीं पता ?"
“नहीं।” खुदे ने इन्कार में सिर हिलाया--- "इससे पहले सुबह से ही पूरबनाथ साठी के पीछे थे दोनों। उसका किस्सा घण्टा भर पहले ही खत्म किया और अब... ।”
“पूरबनाथ साठी?" महाजन चौंका--- “वो अण्डरवर्ल्ड डॉन... ?"
“वो ही।" खुदे ने सिर हिलाया।
"वो मर गया?"
"घण्टा भर पहले ही मारा है उसे और अब मोना चौधरी की तलाश में लग गये। मैं सुबह से ही इनके साथ हूं। भाग-दौड़ कर रहा हूं। कुछ भी खाया नहीं, भूख लग रही...।”
“सा...साठी को क्यों मारा?" महाजन के होठों से निकला।
"मरने से पहले साठी ने भी ये ही पूछा था कि उसे क्यों मारा जा रहा है, तब भी इन्होंने ये ही कहा था कि ये बात इन्हें याद नहीं आ रही कि उसे क्यों मार रहे हैं, परन्तु मारना है उसे।"
महाजन ने बेचैनी से पहलू बदला ।
"ये सब क्या हो रहा है, मुझे भी तो कुछ पता चले।" महाजन होंठ भींचकर बोला।
"जब मुझे नहीं पता चला तो तुम्हें कैसे पता चलेगा।" खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा--- “परन्तु साठी को जिस तरह घेरकर मारा इन्होंने, उस पर तो मुझे अभी तक विश्वास नहीं आ रहा। "
आधे घण्टे बाद जगमोहन ने पारसनाथ के रेस्टोरेंट की पार्किंग में कार रोक दी।
महाजन परेशान था, गम्भीर था ।
"बाहर निकल।” इंजन बन्द करते जगमोहन बोला फिर खुदे से कहा--- “तू कार में ही रहना।"
खुदे ने सिर हिला दिया।
देवराज चौहान, जगमोहन और महाजन कार से निकले और रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गये।
“अब मोना चौधरी नहीं बचने वाली।” खुदे बड़बड़ा उठा।
उसी पल खुदे का फोन बज उठा।
“हैलो।” खुदे ने फौरन बात की।
"तुम पहुंचे नहीं घर ?" टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी ।
“मेरी जान को बहुत बेसब्री से इन्तज़ार है मेरा।” खुदे मुस्करा पड़ा।
"होगा क्यों नहीं, मैंने मटर-पनीर जो बना रखा है। कितनी देर में पहुंच रहे हो ?”
“तुम ही तो सुबह कह रही थी कि घर में ना बैठा करूं, बाहर जाया करूं और अब...।"
“तब की बात और थी। तब मैंने मटर-पनीर नहीं बनाया था। रास्ते में हो क्या ?"
“नहीं। मैं किसी काम में व्यस्त हूं।"
“देवराज चौहान के साथ ?"
"हां...।”
“वो तो तुम्हारी ठुकाई कर रहा है, तुमने ही तो बताया था फिर उसके साथ... ।”
“वो ठुकाई नहीं थी। प्यार-मोहब्बत की बातें थीं।” खुदे ने गहरी सांस ली।
"तो क्या तुम मर्दों से भी प्यार-मोहब्बत करते...।”
“वो वाला प्यार-मोहब्बत नहीं, ये मर्दों वाला प्यार-मोहब्बत होता है।"
"ठुकाई करना।"
"कुछ भी कह ले।"
"देवराज चौहान ने तुम्हें सुबह जो घर पर ठोका था, वो भी प्यार-मोहब्बत था क्या?"
"छोड़ा कर, एक ही बात को मत पकड़ लिया कर...।"
“कब तक घर पहुंचोगे ?”
“अभी कुछ पता नहीं, ये काम थोड़ा लम्बा भी खिंच सकता है।"
“नोट-वोट मिलेंगे या...।"
“किस्मत ने साथ दिया तो हमारा आगे का वक्त बहुत बढ़िया रहेगा।"
"तुम तो ऐसे ही कहते रहते हो। वो जो लठ चढ़ा था उसका क्या हुआ ?"
"वो तो चढ़ा हुआ है।"
“पर चढ़ता कहां है लठ?"
“बोला तो घर आकर बताऊंगा, एक बात तो बता टुन्नी ?"
“क्या?"
“बिल्ला दोबारा आया था?"
“दोबारा ? नहीं तो, पर तुमने क्यों पूछा?"
“उससे मत पूछ लेना लठ कहां चढ़ता है।"
"क्यों?"
"हर बात में क्यों मत कहा कर। जो कहूं वो सुनाकर। उससे पूछा तो गड़बड़ भी हो सकती है।"
"कैसी गड़बड़ ?”
“वो तेरे को बतायेगा कि लठ कैसे चढ़ता है और बताते-बताते ही...।” खुदे ने गहरी सांस ली।
“चुप क्यों हो गये? क्या होगा बताते-बताते...?”
"तेरे को घर आकर समझाऊंगा। बिल्ला जब आये तो घर का दरवाजा भी मत खोलना।"
“खोलना तो पड़ेगा। मैंने उसे घीया, तोरी, टिण्डे लाने को कह दिया था। वो सब्जी लेकर आयेगा ।"
“उसे क्यों कहा, वो तो मैं ले आता। मटर-पनीर मत खिलाना उसे ।”
“वो तो तुम्हारे लिए रखे हैं। उसे क्यों खिलाऊंगी? रात तक आ जाओगे ना?”
"अभी पता नहीं, तू बाद में फोन करना। लठ के बारे में बिल्ला से मत पूछना।" कहकर खुदे ने फोन बन्द कर दिया।
■■■
शाम के साढ़े छः बजे थे, इसलिय रेस्टोरेंट में ग्राहकों की भीड़ जैसी कोई बात नहीं थी। दो-तीन ग्राहक ही वहां खाना खा रहे थे। एक आदमी कॉफी के लिए बैठा था। यूनीफार्म में वेटर चुस्त से घूम रहे थे। रेस्टोरेंट में हर तरफ सजावट नजर आ रही थी। पारसनाथ रेस्टोरेंट के हॉल में था। आज रात हॉल को कुछ लोगों ने पार्टी के लिए बुक किया था। सात बजे उन लोगों ने आना शुरू कर देना था। रेस्टोरेंट का स्टॉफ हॉल की सजावट करने में व्यस्त था जो कि लगभग पूरी हो चुकी थी। पारसनाथ ये चैक कर रहा था कि कोई कमी ना रह जाये।
तभी डिसूजा ने हॉल में प्रवेश किया और पास आकर बोला---
"महाजन साहब आये हैं।"
“हूं। आता हूं...।” पारसनाथ ने सिर हिलाया।
"उनके साथ देवराज चौहान और जगमोहन भी है।” डिसूजा ने कहा।
पारसनाथ ने आंखें सिकोड़कर डिसूजा को देखा।
"देवराज चौहान और जगमोहन ?"
“हां। परन्तु दोनों गुस्से में लग रहे हैं। चेहरे कठोर हैं। आंखें लाल हैं। मुझे तो कोई पंगा हुआ लगता है। महाजन साहब भी ज्यादा खुश नजर नहीं आ रहे थे उनके साथ। कोई बात तो है ही।"
“चलो।" पारसनाथ फौरन पलटा और हॉल के बाहर की तरफ बढ़ गया।
डिसूजा के साथ पारसनाथ जब बाहर निकला तो रिसैप्शन की तरफ महाजन, देवराज चौहान और जगमोहन खड़े दिखे। वो उन्हीं की तरफ बढ़ गये।
पास पहुंचते ही पारसनाथ ने मुस्कराकर देवराज चौहान और जगमोहन से कहा---
“तुम दोनों को यहां देखकर अच्छा लगा।” जबकि उनकी लाल आंखें और कठोर चेहरे देखकर वो सतर्क हो गया था।
“मोना चौधरी कहां है?" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में महाजन से पूछा।
"बेबी अभी तक यहां पहुंची कि नहीं?" महाजन ने पारसनाथ को देखा।
पारसनाथ सतर्क हो गया था। गड़बड़ का एहसास हो गया था उसे।
मोना चौधरी ने आज यहां नहीं आना था।
“मोना चौधरी भी आ जायेगी।" पारसनाथ ने चेहरे पर मुस्कान रखी--- “तब तक हम उधर बैठते हैं।"
"हमें बैठना नहीं है। मोना चौधरी चाहिये।” जगमोहन दांत भींचे कह उठा।
"बहुत गुस्से में लग रहे हो।" पारसनाथ बोला--- “मोना चौधरी आती ही होगी। डिसूजा... ।”
“जी...।" डिसूजा फौरन बोला।
“इन्हें छत पर बने कमरों में ले जाओ। मोना चौधरी आये तो उसे इनके पास भेज देना। मैं कुछ देर बाद वहां आता हूं। इनके खाने-पीने का पूरा ख्याल रखना।" पारसनाथ कहने के बाद महाजन से बोला--- “बात क्या है?"
"ये बेबी की हत्या करना चाहते हैं।"
“क्या?" पारसनाथ हैरान-सा रह गया।
“मेरे साथ झगड़ा करके ये जबर्दस्ती मुझे यहां तक लाये हैं। बेबी का पता पूछ रहे...।”
“वो हमारे हाथों बुरी मौत मरेगी।" देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
“कुछ देर पहले ये पूरबनाथ साठी को मारकर आये हैं।" महाजन गम्भीर स्वर में कह रहा था--- "पूछने पर ये कहते हैं कि इन्हें पता नहीं बेबी को क्यों मार रहे हैं। भूल गये हैं कि क्यों मार... ।"
"बातों में वक्त बरबाद मत करो।" जगमोहन गुर्राया--- “मोना चौधरी को जल्दी बुलाओ।"
पारसनाथ ने किसी तरह खुद को सम्भाला।
“मोना चौधरी रास्ते में हैं, आ रही है।” पारसनाथ ने कहा— “मैं भी आपके पास आ रहा हूं। डिसूजा इन्हें ऊपर ले जाओ। महाजन तुम इनके साथ ही रहो। मेरे ख्याल में कोई गलतफहमी पैदा हो...।"
"हमें कोई गलतफहमी नहीं है पारसनाथ!” देवराज चौहान की आंखें सुलग उठीं--- “उस कुतिया को मैंने बुरी मौत मारना है। अगर मोना चौधरी सामने नहीं आई तो हम तुम दोनों को खत्म...।"
"वो आ रही है। डिसूजा, इन्हें छत के कमरों में ले जाओ।"
डिसूजा उन्हें वहां से ले गया।
उनके जाते ही पारसनाथ ने मोना चौधरी को फोन किया। बात हो गई।
"देवराज चौहान से तुम्हारी क्या बात हुई मोना चौधरी ?" पारसनाथ ने सपाट गम्भीर स्वर में पूछा।
"देवराज चौहान से।" मोना चौधरी की उधर से आती आवाज कानों में पड़ी--- "कोई बात नहीं। क्यों, क्या हुआ?"
"महाजन अभी-अभी देवराज चौहान और जगमोहन के साथ यहां पहुंचा। दोनों बहुत गुस्से में हैं और तुम्हें खत्म करने को कह रहे हैं। महाजन के साथ शायद उन्होंने मार-पीट की है।"
मोना चौधरी ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया।
"मुझे वो अपने इरादे के पक्के लग रहे हैं मोना चौधरी! कोई बात तो... ।"
"कोई बात नहीं है पारसनाथ! मेरी देवराज चौहान से तब मुलाकात हुई थी, जब हम पूर्वजन्म में गये थे।"
“उसके बाद नहीं मिले वो?" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।
"नहीं।"
“तुमने अनजाने में ऐसा कुछ कर दिया हो, जिससे देवराज चौहान ऐसी स्थिति में आ गया है।"
“नहीं। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।"
"तो क्या देवराज चौहान और जगमोहन पागल हो गये हैं?"
"मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती।"
“कुछ तो हुआ ही है। महाजन, दोनों को ये कहकर यहां लाया है कि तुम यहां आने वाली हो। वो दोनों बेसब्री से तुम्हें बार-बार पूछ रहे हैं। तुम्हें खत्म करने को कह रहे हैं।"
"मैं आऊं क्या?"
"मैं तुम्हें यहां आने की सलाह नहीं दूंगा। वो दोनों खतरनाक मूड में हैं।" पारसनाथ के होंठ भिंच गये।
"तुमने उनसे पूछा नहीं कि वो मुझे क्यों मारना चाहते हैं?" मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।
"अभी बात करने का मौका नहीं मिला। मैंने उन्हें महाजन के साथ छत वाले कमरों में भेज दिया है कि अगर किसी तरह की आवाजें भी उठें तो रेस्टोरेंट तक ना पहुंच सकें। क्या तुम्हें पूरा विश्वास है कि उनसे तुम्हारी कोई बात नहीं हुई?"
“पूरा विश्वास है। तुम उनसे पूछो कि वो मेरी जान क्यों लेना चाहते हैं?"
“उनसे बात करने के बाद, तुम्हें फोन करूंगा। परन्तु तुम इधर आने की सोचना भी मत। इस वक्त तुम सामने आ गई तो बात बढ़ सकती है।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा--- “कुछ तो हुआ ही है मोना चौधरी !”
■■■
“तुमने कहा था कि मोना चौधरी यहां पर है।” देवराज चौहान गुस्से से बोला--- “लेकिन वो... ।”
डिसूजा उन्हें लेकर छत पर बने कमरों में आ पहुंचा था। जिस कमरे में उन्हें लाया गया वहां सोफे लगे थे। ए०सी० लगा था। डिसूजा ने ए०सी० ऑन किया तो देवराज चौहान कह उठा था।
"मैंने ये नहीं कहा था कि बेबी यहां पर होगी।" महाजन भी उखड़ गया— “मैंने कहा था वो यहां आने वाली है और तुम अपना लहजा सुधारो। मैं तुम्हारा नौकर नहीं हूं जो तुम इस तरह बात कर रहे...।"
“तेरी तो...।” जगमोहन एकाएक गुर्राकर महाजन पर झपट पड़ा।
महाजन से वो आ टकराया परन्तु महाजन ने उसे जोरों से धक्का दिया।
जगमोहन पीछे होता सोफे पर जा गिरा।
ये सब देखकर डिसूजा ठगा-सा खड़ा रह गया था।
उसी पल देवराज चौहान का हाथ घूमा और महाजन से जा टकराया।
महाजन जोरों से लड़खड़ाया।
“ये क्या कर रहे हो तुम लोग?” डिसूजा एकाएक तेज स्वर में कह उठा ।
देवराज चौहान डिसूजा की तरफ घूमा और उसका घूंसा डिसूजा के चेहरे पर जा लगा। डिसूजा पीछे दरवाजे से जा टकराया, फिर सम्भलकर क्रोध से भरा देवराज चौहान पर झपटने ही वाला था कि महाजन कह उठा---
"अपने को सम्भालो डिसूजा कुछ मत करो।”
डिसूजा दांत भींचकर ठिठक गया।
तब तक जगमोहन खड़ा हो चुका था और तेजी से महाजन पर झपटा।
"मुंह से बात करो बेवकूफ।" महाजन ने हाथ आगे करके उसे रोका--- "वरना इसका अन्जाम बुरा भी हो सकता है।"
देवराज चौहान ने जगमोहन की बांह पकड़कर पीछे किया और दांत भींचकर बोला---
“मोना चौधरी कहां है ?"
“थोड़ा इन्तजार करो। अभी आ जायेगी।" महाजन ने शब्दों को चबाकर कहा।
"जरूर आयेगी ?"
"हां।" महाजन ने कहा और सोफे पर बैठ गया। चेहरे पर गुस्सा टिका था।
डिसूजा उसी पल वहां से चला गया था।
देवराज चौहान और जगमाहन भी बैठ गये। चेहरे गुस्से से भरे थे। आंखें लाल थीं।
कुछ पलों की खामोशी के बाद महाजन बोला---
"तो तुम दोनों ने पूरबनाथ साठी जैसे डॉन को मार दिया।"
दोनों की निगाह महाजन पर थी।
"साठी को क्यों मारा? क्या बात हुई थी ?" महाजन ने पूछा।
"तेरे को जानने की जरूरत नहीं।” देवराज चौहान गुर्राया ।
“तुम लोगों के साथ जो है, खुदे, उसने कहा कि उसे मारने की वजह भी तुम लोगों को याद नहीं थी। बस उसे मार दिया।"
"तुम्हें इससे क्या ।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा।
"मैं तो सिर्फ ये पूछना चाहता हूं कि साठी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो...।"
“तुम्हें इससे क्या ?" जगमोहन गुर्रा उठा--- "इन बातों से तुम्हारा कोई मतलब नहीं... ।”
"बेबी से तो मतलब है।" महाजन तीखे स्वर में कह उठा।
"तो?"
"बेबी की जान क्यों लेना...?"
तभी पारसनाथ ने भीतर प्रवेश किया और ठिठककर सबको देखा।
"डिसूजा बता रहा था कि यहां झगड़ा हो रहा है।" पारसनाथ बोला।
"इनका दिमाग खराब हुआ पड़ा है।" महाजन ने कड़वे स्वर में कहा--- "ये दोनों गली के गुण्डे की तरह का व्यवहार कर रहे हैं। बात कम करते हैं और हाथ ज्यादा उठा रहे है। बात-बात पर भड़क उठते हैं।"
पारसनाथ ने गहरी नज़रों से देवराज चौहान और जगमोहन को देखा फिर आगे बढ़कर सोफा चेयर पर बैठ गया और पैकिट निकालकर देवराज चौहान की तरफ बढ़ाते हुए कहा---
"लो...।"
“नहीं। मुझे मोना चौधरी चाहिये।” देवराज चौहान गुर्रा उठा।
"वो आ रही है। रास्ते में है। मैंने उससे फोन पर बात की है।" पारसनाथ ने शान्त स्वर में कहा और सिगरेट सुलगा ली--- “मेरे बात करने पर वो कहती है कि देवराज चौहान और जगमोहन से उसका कोई झगड़ा नहीं हुआ।"
“तो ?” देवराज चौहान का चेहरा सुलग रहा था।
"जबकि तुम लोग उसकी हत्या करने के लिए उसे...।"
“वो कहां है, मैं उसे खत्म कर देना चाहता हूं।” देवराज चौहान गुस्से से कांपते कह उठा ।
"ये ही तो मैं पूछ रहा हूं कि उसे क्यों मारना चाहते हो। उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है देवराज चौहान ?” पारसनाथ गम्भीर और सख्त स्वर में कह उठा--- “मुझे बताओ क्या बात है। क्यों तुम मोना चौधरी के पीछे पड़े हो?"
"इनका जवाब है कि कारण इन्हें नहीं पता।" महाजन दांत भींचकर बोला--- “भूल गये हैं ये कि बेबी को क्यों मार देना चाहते हैं ।"
“ये सच है?" पारसनाथ ने देवराज चौहान को देखा।
“हां।” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा--- “मुझे याद नहीं आ रहा कि मैं क्यों मोना चौधरी को मारना चाहता हूं। शायद भूल...!”
"बहुत हो गया देवराज चौहान!" पारसनाथ सख्त स्वर में कह उठा--- “अब तक हम तुम्हारी ही बात सुनते आ रहे थे, लेकिन ये सब ज्यादा देर नहीं चलेगा। तुम्हें बताना पड़ेगा कि मामला क्या है। नहीं तो...।"
तभी देवराज चौहान दांत पीसते हुए पारसनाथ पर झपट पड़ा।
"मुझे मोना चौधरी का पता बताओ, वरना मैं तुम सबको खत्म कर दूंगा।"
दोनों टकराये और उलझते चले गये।
फिर देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकाली और पारसनाथ के पेट से टिका दी।
पारसनाथ ठिठककर रह गया। उसके चेहरे पर कठोरता थी।
ये देखकर महाजन हक्का-बक्का रह गया। वो महसूस कर रहा था कि देवराज चौहान और जगमोहन का जो व्यवहार है, उस वजह से कभी भी बात बढ़ सकती है और अब देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकाल ली थी।
"तुम जानते हो देवराज चौहान कि तुम ये क्या कर रहे हो।" पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा।
“जो मैं पूछ रहा हूं उसका जवाब दो।” देवराज चौहान गुर्राया--- “मोना चौधरी यहां नहीं आने वाली। मैंने ठीक कहा ना, तुम लोग मुझे उलझा रहे हो यहां। अब मैं तुम्हें शूट करने जा रहा...।"
उसी पल महाजन ने फुर्ती से रिवाल्वर निकाली और जगमोहन पर झपट पड़ा।
जगमोहन कुछ पलों के लिए महाजन की तरफ से असावधान हो गया था।
“हिलना मत।" महाजन ने उसके सिर से रिवाल्वर लगा दी।
जगमोहन गुर्राकर रह गया।
देवराज चौहान ने उधर नजर मारी फिर खतरनाक स्वर में बोला---
“जगमोहन को छोड़ दो, वरना मैं पारसनाथ को शूट कर दूंगा।"
“तुम पारसनाथ को छोड़ दो।” महाजन ने दृढ़ स्वर में कहा--- "नहीं तो मैं जगमोहन को मार दूंगा।”
देवराज चौहान ने दांत पीसे ।
महाजन जड़ता से खड़ा रहा।
“मुझे मोना चौधरी का पता बता दो, तब मैं यहां से चला जाऊंगा।” देवराज चौहान गुर्राया ।
“तुमने कैसे सोच लिया कि हम तुम्हारी ये बात पूरी कर देंगे।' महाजन ने कड़वे स्वर में कहा--- "बेबी का पता-ठिकाना तो तुम्हें मरते दम तक नहीं बतायेंगे। वैसे मुझे हैरानी है तुम्हारी हालत पर कि तुम...।"
तभी दरवाजे पर एकाएक डिसूजा दिखा और उसने देवराज चौहान पर छलांग लगा दी। डिसूजा अकेला नहीं था, उसी पल दरवाजे पर एक-के-बाद एक तीन आदमियों ने प्रवेश किया और वो देवराज चौहान और जगमोहन पर झपट पड़े। चन्द पलों के लिए लगा जैसे कमरे में तूफान-सा आ गया हो।
देवराज चौहान के हाथों से रिवाल्वर निकल गई। दो आदमियों ने उसे जकड़ लिया था। उधर डिसूजा ने एक अन्य आदमी के साथ जगमोहन को गिरफ्त में ले लिया।
“कमीनों, कुत्तों।" जगमोहन दहाड़ उठा--- “मैं तुम सबको खत्म कर दूंगा।"
देवराज चौहान अपने को आजाद कराने की पूरी चेष्टा कर रहा था, परन्तु सफल ना हो सका।
“महाजन साहब!" जगमोहन को थामे डिसूजा बोला--- “मेरी जेब में डोरी है वो निकालिये। इन दोनों को बांध देते हैं।"
उसके बाद देवराज चौहान और जगमोहन को बांधा जाने लगा।
पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी। उसने सिगरेट सुलगा ली।
देवराज चौहान और जगमोहन के मुंह से गुर्राहटें निकल रही थीं। वो अपने को आजाद कराने की चेष्टा में तड़प रहे थे। परन्तु उनकी टांगों को बांध दिया गया था। हाथ पीछे करके बांध दिए गये थे। रेशम की पतली और मजबूत डोरी थी, जिसे कि तोड़ पाना भी सम्भव नहीं था।
"हरामजादों ।” देवराज चौहान तड़पकर कह उठा--- “तुम सब मरोगे, तुम...।"
“बेबी से मिलना है ना तुम्हें। अभी उसे बुला देते हैं।” महाजन कड़वे स्वर में बोला--- “तुम दोनों को इस हाल में देखकर वो हैरान जरूर होगी।” कहने के साथ ही महाजन ने मोबाइल निकाला।
“मोना चौधरी को अभी फोन मत करो।" पारसनाथ गम्भीर स्वर में बोला।
"क्यों?" महाजन ने पारसनाथ को देखा।
"मुझे इनसे बातें कर लेने दो।” पारसनाथ ने कश लिया।
जगमोहन और देवराज चौहान कमरे के फर्श पर बंधे पड़े थे और बंधनों को खोलने की चेष्टा कर रहे थे। परन्तु कोई फायदा नहीं हो रहा था। बंधन खुलने वाले नहीं थे।
“तुम लोग जाओ।" पारसनाथ ने डिसूजा और बाकी तीनों से कहा।
वो चारों वहां से चले गये।
पारसनाथ ने कुर्सी खींची और देवराज चौहान, जगमोहन के पास जा बैठा।
दोनों सुर्ख आंखों से पारसनाथ को देख रहे थे।
"इनसे बात करने का कोई फायदा नहीं। इनका दिमाग खराब हो चुका है।" महाजन कह उठा।
"इनका व्यवहार कैसा लगता है महाजन?”
"गुण्डों जैसा, जैसे पूरे मुम्बई का सबसे बड़ा गुण्डा ये ही हो।" महाजन ने दांत भींचकर कहा।
"मैंने इनको इस तरह का व्यवहार करते कभी नहीं देखा।" पारसनाथ गम्भीर था।
देवराज चौहान गुर्राकर कह उठा---
"तुम दोनों भी अब मरोगे। हमारे हाथ-पांव बांधने का मतलब जानते हो, हम...तुम्हें...।"
“तुम मोना चौधरी को मार देने को कह रहे हो ।” पारसनाथ बोला--- “इसका मतलब जानते हो?"
“हां... ।” दांत भींचे देवराज चौहान ने ।
“क्या... हां?"
“वो हमारे हाथों बुरी मौत मरेगी। मैं उसे छोड़ने वाला नहीं।" देवराज चौहान ने दांत किटकिटाकर कहा।
“उसके बाद हम तुम्हें छोड़ेंगे क्या ?"
“तुम दोनों को भी मार देंगे हम।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।
“सबसे बड़े गुण्डे बन गये हो मुम्बई में।” महाजन जहरीले अन्दाज में मुस्करा पड़ा।
“तुम चुप रहो।" पारसनाथ ने महाजन से कहा--- “मुझे बात करने दो।"
महाजन खामोश रहा।
"देवराज चौहान!" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा--- “हम अभी भी बातचीत से मामला सुलझा सकते हैं। ये तभी हो सकता है जब तुम ये बात बता दो कि मोना चौधरी को क्यों मारना चाहते हो?"
"तू भी नहीं बचेगा पारसनाथ... !” देवराज चौहान गुर्रा उठा।
“बताओ। मोना चौधरी को क्यों मारना...।"
“एक बार हमारे हाथ खुल जायें।" जगमोहन दांत पीस उठा--- "फिर मैं तुम दोनों को कुत्ते की मौत मारूंगा।"
"तेरे को बोला पारसनाथ !” महाजन व्यंग से बोला--- "ये अब मुम्बई के सबसे बड़े गुण्डे बन गये हैं।”
पारसनाथ ने कश लिया। नज़रें देवराज चौहान और जगमोहन पर थीं।
“हमसे झगड़ा मोल लेना सस्ता सौदा नहीं है।” पारसनाथ ने शान्त स्वर में कहा--- “ये तुम दोनों अच्छी तरह जानते हो कि ऐसा झगड़ा किसी को भी मौत के अन्जाम तक पहुंचा सकता है। दूसरी स्थिति में तुम लोग अब तक अपने अन्जाम तक पहुंच चुके होते, परन्तु इस बारे में बदले हालातों को समझने की चेष्टा कर रहा हूं देवराज चौहान! पहले दो बार मोना चौधरी को ही तुम पर गुस्सा आया, वो तुम्हारे पीछे पड़ी, परन्तु ऐसी हरकत अब तुमने पहली बार की...।”
देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
“ये हमें धमकी दे रहा है हरामजादा!" जगमोहन गुर्रा उठा।
"तू मेरे हाथों बहुत बुरी मौत मरेगा पारसनाथ !” देवराज चौहान बंधनों में जकड़ा तड़पकर बोला।
“तुम इस वक्त मेरे काबू में हो। मैं तुम्हें आसानी से मार सकता हूँ।" पारसनाथ का स्वर गम्भीर था।
“मार...मार के दिखा।” देवराज चौहान ने दांत किटकिटाये।
“जब तक तुम दोनों बंधनों में हो, मैं ऐसा नहीं करूंगा। मुझे लगता है कि तुम लोग भारी गलती कर रहे हो। गलतफहमी हो गई है तुम्हें जो मोना चौधरी के पीछे पड़ गये। मोना चौधरी का यकीन के साथ कहना है कि तुम्हारे साथ उसका कोई पंगा नहीं हुआ। कोई बात नहीं हुई। ऐसे में उसे उलझन है कि तुम क्यों उसके... ।”
“वो हरामजादी है कहां?” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
"सुना, सबसे बड़े गुण्डे का लहजा...।" महाजन जहरीले अन्दाज में कह उठा।
जगमोहन की सुर्ख आंखें महाजन की तरफ उठीं। बोला---
"मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूंगा महाजन...!"
“पता है मुझे कि तुम बेबी को भी मार दोगे। मुझे और पारसनाथ को भी मार दोगे। सबसे बड़े गुण्डे हो तुम।" महाजन का स्वर कठोर हो गया--- “तुम इस वक्त अपने को नहीं देख रहे कि तुम कैसे बात कर रहे हो। मैंने हमेशा तुम्हें शान्त और समझदारी का व्यवहार करते देखा है, परन्तु आज तो तुमने हद ही कर दी। जगमोहन ने राधा पर हाथ उठाकर उसे बेहोश कर दिया। गुण्डों की तरह मुझे मारने लगे। तुमने तो हैरान कर दिया मुझे देवराज चौहान!"
"कुत्ता साला।" देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
पारसनाथ के चेहरे पर गम्भीरता थी। वो बोला---
“गालियां देनी बन्द कर दो देवराज चौहान! मैं फिर शुरू से बात शुरू करता हूं, तुम क्यों मोना चौधरी की जान लेना चाहते हो?"
"वो कुतिया...।"
"गाली नहीं ।" पारसनाथ शान्त था--- “मोना चौधरी को क्यों मारना चाहते हो?"
“मुझे याद नहीं आ रहा, पर उसे खत्म कर देना है मैंने... ।”
"ये तो कोई बात नहीं कि तुम्हें याद नहीं कि तुम मोना चौधरी को क्यों मारना चाहते हो। जगमोहन भी तुम्हारी तरह भूल गया कि तुम लोग मोना चौधरी के पीछे क्यों पड़े...।”
“मुझे याद नहीं।” देवराज चौहान के होठों से गुर्राहटें निकली--- “लेकिन मोना चौधरी को मारकर ही रहूंगा। वो हरामजादी मेरे हाथों से नहीं बचने वाली। ऐसी बुरी मौत दूंगा उसे कि...।"
“तुम दोनों भी नहीं बचोगे।" जगमोहन दांत पीस उठा।
पारसनाथ ने कश लेकर सिगरेट नीचे फेंकी और जूते से मसलकर उठ खड़ा हुआ। चेहरे पर सोच और गम्भीरता थी। नजरें बार-बार देवराज चौहान और जगमोहन पर जा रही थीं।
“मैं चाहता था कि मामला सुलझ जाये, परन्तु तुम लोग ऐसा चाहते ही नहीं कि...।"
“एक बार हमें खोल के देख, हम सारे मामले अभी सुलझा देते हैं।" जगमोहन तड़पकर बोला।
पारसनाथ ने पलटकर महाजन को देखा।
"कर ली सबसे बड़े गुण्डे से बात?" महाजन व्यंग से कह उठा।
“इन्हें बंधा रहने दो।” पारसनाथ दरवाजे की तरफ बढ़ते कह उठा--- "हम नीचे चलते हैं।"
“लेकिन... ।” महाजन ने कुछ कहना चाहा।
“आओ तो...।"
दोनों कमरे से बाहर निकले।
देवराज चौहान और जगमोहन उन्हें चिल्ला-चिल्लाकर गालियां देने लगे ।
पारसनाथ ने बाहर का दरवाजा बन्द कर दिया। भीतर से अभी भी उनकी आवाजें आ रही थीं।
पारसनाथ सीढ़ियों की तरफ बढ़ते कह उठा---
"ये देवराज चौहान और जगमोहन नहीं हैं।"
“क्या मतलब?" महाजन चौंका।
"ये वो देवराज चौहान और जगमोहन नहीं हैं, जिन्हें हम जानते हैं। ये बदले हुए हैं। तुम ठीक कह रहे हो कि ये गुण्डों की तरह व्यवहार कर रहे हैं, जैसे सबसे बड़े गुण्डे हों। दोनों शान्त और अपने काम से मतलब रखने वाले हैं, परन्तु आज का व्यवहार मेरी समझ से बाहर है। पूछने पर जवाब देते हैं कि उन्हें याद नहीं वो क्यों मोना चौधरी को मारना चाहते हैं। कितनी अजीब बात है। मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि ये देवराज चौहान और जगमोहन हैं।"
"लेकिन हैं तो...।"
"हां, हैं तो...।" पारसनाथ नीचे पहली मंजिल पर पहुंचा।
"भाभी कहां हैं?" महाजन ने पूछा।
"मेरी बहन के यहां गई है सितारा। कल या परसों आयेगी।”
दोनों कुर्सियों पर जा बैठे।
"इनकी आंखों को देखा है।" महाजन ने कहा--- “लाल हो रही हैं, जैसे दुनिया भर का क्रोध इनकी आंखों में आ गया हो। बात करनी जैसे भूल गये हैं। इन हालातों में ये बेबी के पीछे हैं तो बात जरूर है कुछ... ।"
“तुम्हारा मतलब कि मोना चौधरी ने कुछ किया हो सकता है, जिसका वास्ता देवराज चौहान से हो।"
“हां...।"
"परन्तु मोना चौधरी ऐसा कुछ होने से इन्कार करती है।"
"शायद बेबी उस बारे में भूल गई होगी।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा।
पारसनाथ के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
"क्या तुम्हें नहीं लगता कि बात कुछ तो है।”
“मोना चौधरी से बात करके देखता हूं।” पारसनाथ ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
तभी डिसूजा ने भीतर प्रवेश करते पूछा---
"वो दोनों किस हालत में हैं सर?"
"बंधे पड़े हैं।” पारसनाथ ने कहा--- “एक आदमी को दरवाजे के बाहर लगा दो।"
डिसूजा चला गया।
पारसनाथ ने फोन कान से लगाया। बेल गई और मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।
“कहो... ।"
“मोना चौधरी !” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा--- “देवराज चौहान और जगमोहन ऊपर के कमरे में हैं। उनके हाथ-पांव बांधे हुए हैं, वो बेकाबू हो रहे थे। देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकाल ली थी।"
"तो बात यहां तक आ पहुंची।”
“यहां से भी ज्यादा बात है। वो बहुत गुस्से में है और अपने इरादे से पीछे हटने वाले नहीं। वो ठीक से बात भी नहीं कर रहे और एक ही बात कहे जा रहे हैं कि तुम्हें खत्म करना है। हम उन दोनों को किसी भी स्थिति में हल्के में नहीं ले सकते। मेरे ख्याल में तुमसे अनजाने में ऐसा कुछ हो गया है, जिससे देवराज चौहान तुम्हारे पीछे पड़ा ।"
“मुझसे ऐसा कुछ नहीं हुआ।" मोना चौधरी का स्वर कानों में पड़ा ।
“बिना वजह तो वो गुस्से में पागल होने वाला नहीं... ।”
“वजह क्या बताते हैं?” उधर से मोना चौधरी ने पूछा।
“उनका जवाब है कि उन्हें याद नहीं वो क्यों तुम्हें मारना चाहते हैं।” पारसनाथ ने बताया।
“ये क्या बात हुई?"
"तुम ठीक कहती हो कि ये कोई बात नहीं हुई। मुझे तो लगता है कि कोई खास ही बात है, जो वो छिपा रहे हैं। जो भी हो इस वक्त वो हमारे काबू में हैं, कहो तो उन्हें खत्म कर दें। इस वक्त ये काम बहुत आसान है।"
मोना चौधरी की आवाज नहीं आई।
पारसनाथ भी खामोश रहा।
“मैं वहां आ रही हूं पारसनाथ! एक बार मैं देवराज चौहान से बात करना चाहूंगी।" इसके साथ ही फोन बन्द हो गया।
पारसनाथ ने मोबाइल कान से नीचे करते, महाजन से गम्भीर स्वर में कहा--
“मोना चौधरी यहां आ रही है।"
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन के होंठों से रह-रहकर गुर्राहटें निकल रही थीं। उनके चेहरे वहशी जानवर की तरह हो रहे थे। आंखों में लाली बढ़ गई थी।
"कत्तों ने हमें बांध दिया।" देवराज चौहान बंधनों से आजाद होने के लिए तड़प रहा था।
"ये भी मरेंगे हमारे हाथों से...।" जगमोहन एक तरफ सरकता गुर्रा उठा--- “बहुत बुरी मौत मरेंगे।” वो खिसकता-खिसकता सोफे के कोने में पहुंचा और कोने वाले हिस्से से पीछे बंधी कलाइयों के बंधन रगड़ने लगा।
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा फिर गुर्राया---
"हो जायेगा ?"
"होगा कैसे नहीं ।" जगमोहन ने दांत भींचे--- “आजाद तो होना ही है।"
“साले, कुत्ते । धोखे से हमें फांस दिया।” देवराज चौहान मौत भरे स्वर में कह उठा।
"हमने गलती की।" जगमोहन अभी तक बंधी कलाइयों की रस्सी को सोफे के कोने से रगड़े जा रहा था--- “मोना चौधरी को मारने आये हैं तो उसके सांपों पर हमें भरोसा नहीं करना चाहिये था।"
"एक बार हम बंधनों से आजाद हो जायें फिर इन्हें नहीं छोड़ूंगा। साठी की तरह ही मोना चौधरी को मारूंगा। नहीं, साठी तो आसान मौत मर गया, मोना चौधरी को बुरी मौत मारूंगा, बहुत बुरी...।"
जगमोहन तेजी से अपने काम में लगा रहा।
आधे घण्टे बाद जाकर जगमोहन को सफलता मिली। लगातार रगड़े जाने की वजह से वो नाईलोन की मजबूत डोरियां कट गई थीं। जगमोहन ने अपनी कलाइयां आजाद कीं। जूतों से छोटा चाकू निकाला और पिण्डलियों के बंधन भी काटे और फिर देवराज चौहान के बंधनों को काटकर उसे भी आजाद कर दिया।
देवराज चौहान फुर्ती से उठ खड़ा हुआ।
दोनों की लाल सुर्ख आंखें मिलीं।
देवराज चौहान तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ा तो जगमोहन ने उसे रोका।
"बाहर कोई हो सकता है।” आवाज में गुर्राहट थी।
"तो?"
“आहिस्ता से सावधानी से।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा और दबे पांव दरवाजे की तरफ बढ़ा। दरवाजा खोलने की चेष्टा की तो दरवाजा बन्द था। वो दरवाजा ऐसा था कि बाहर नहीं देखा जा सकता था।
एकाएक जगमोहन फर्श पर लेट गया। दरवाज़े के नीचे की झिर्री से उसने बाहर देखने की चेष्टा की और वो सफल भी रहा। मामूली-सी झिर्री थी और उसमें से बाहर किसी के जूते नज़र आ रहे थे। कभी-कभी वो जूते टहलने लगते थे। जगमोहन उठ खड़ा हुआ। चेहरे पर दरिन्दगी थी।
देवराज चौहान ने कठोर चेहरे से उसे देखा ।
"बाहर एक आदमी है और दरवाजा भी बाहर से बन्द है।" जगमोहन ने फुंफकारने वाले स्वर में कहा--- “यहां से निकल जाना आसान नहीं है। जब तक हम दरवाजा तोड़ेंगे तब तक बाहर पारसनाथ के दस आदमी आ पहुंचेंगे।"
"हरामजादा...।” देवराज चौहान दांत किटकिटा उठा।
"हमें कोई रास्ता निकालना होगा यहां से निकलने का। इस कमरे में कोई खिड़की भी नहीं है। ए०सी० रूम है ये।" जगमोहन कमरे में नज़रें दौड़ा रहा था--- "लेकिन हमें यहां से हर हाल में निकलना है। ये कैसे होगा।"
देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली और जेब से फोन निकाल लिया।
"किसे?" जगमोहन ने देखा तो पूछा।
"खुदे को। वो बाहर कार में है।" देवराज चौहान दांत भींचकर खुदे का नम्बर मिलाता बोला--- “वो कोशिश करे तो मामला सम्भल जायेगा। हरामजादी मोना चौधरी क्या सोचती है कि वो इस तरह बच जायेगी। महाजन और पारसनाथ को नहीं छोड़ेंगे हम। सबको मार देंगे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन कान से लगा लिया।
“धीरे बात करना।” जगमोहन गुर्राया ।
दूसरी तरफ बेल गई फिर खुदे की आवाज कानों में पड़ी।
"हैलो...।"
"खुदे...।" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राती आवाज निकली।
"ओह, देवराज चौहान भाई ! बहुत देर लगा दी आने में, मैं तो कार में ही...।"
“मेरी बात सुन ...।” देवराज चौहान ने दांत भींचे।
"ह... हां... ।"
“हम रेस्टोरेंट की छत पर बने कमरे में बन्द हैं। बाहर एक आदमी है। दरवाजा बाहर से बन्द है।" देवराज चौहान दरिन्दगी भरे स्वर में कह रहा था--- "बात यहीं तक होती तो हम ही सम्भाल लेते, परन्तु रेस्टोरेंट में ऐसे कई लोग हैं, जो दरवाजा तोड़ने तक वहां आ जायेंगे। हमें तुम्हारी जरूरत है।”
"तुम्हारा मतलब है कि मैं रेस्टोरेंट में आऊं, ऊपर छत पर पहुंचकर तुम लोगों को बाहर निकालूं।"
"हां। पर ये काम आसान नहीं है। रेस्टोरेंट वालों से बचकर ये काम करना होगा ।"
"समझ गया। मैं अभी आता हूं।"
"वो भी रेस्टोरेंट में होगा, जिसे हम लाये थे। उसकी निगाहों से भी बचना।"
“ठीक है। पर मुझे बताओ कि ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियां किस तरफ हैं।" उधर से खुदे की आवाज आई।
दांत भींचकर देवराज चौहान, खुदे को रास्ता समझाने लगा।
“सबको मार देंगे हम।” जगमोहन गुर्राहट भरे स्वर में बड़बड़ा उठा।
■■■
हरीश खुदे ने रेस्टोरेंट में प्रवेश किया। पहले की अपेक्षा अब थोड़ी चहल-पहल पैदा हो गई। हॉल में जो पार्टी थी, वहां भी लोग आने शुरू हो गये थे। रेस्टोरेंट में भी कुछ लोग नजर आने लगे थे। सात से ऊपर का वक्त हो चुका था। बाहर की रोशनी अब अन्धेरे की तरफ बढ़ने लगी थी।
खुदे आगे बढ़ा और रिसेप्शन डैस्क पर जा पहुंचा। जहां नई उम्र का युवक रेस्टोरेंट की वर्दी में खड़ा था। युवक की निगाह करीब आते खुदे पर जा टिकी थी।
"यस सर?" युवक उसके करीब आने पर फौरन बोला।
"बाथरूम किस तरफ है?"
"उधर सर !” उसने हाथ से एक तरफ इशारा किया--- "वहां से दायें मुड़ जायें।"
"थैंक्यू...।” खुदे मुस्कराया और उस तरफ बढ़ गया। उसकी चाल सामान्य थी। नजरें घूम रही थीं। सिर्फ एक ही डर था कि महाजन से उसका सामना ना हो जाये। जबकि पारसनाथ नीचे ही था और वो पारसनाथ के दो कदमों के फासले से निकला था। आगे जाकर बाथरूम जाने के लिए उसे दायें मुड़ना था परन्तु वो दायें नहीं मुड़ा और सीधा निकल गया।
आगे किचन था।
परन्तु किचन आने से पहले ही दाईं तरफ ऊपर जाने को सीढ़ियां थीं। खुदे दबे पांव सीढ़ियां चढ़ता चला गया। सबसे बढ़िया बात तो ये रही कि सीढ़ियां चढ़ते उसे किसी ने देखा नहीं था। उस वक्त वहां होटल का कोई स्टॉफ नहीं था, जबकि सीढ़ियां के पास ही 'नो एण्ट्री' का बोर्ड लगा था।
खुदे सीढ़ियां चढ़ता पहली मंजिल पर पहुंचा। वहां से घूमकर सीढ़ियां और ऊपर जा रही थीं और ठीक सामने दूसरी मंजिल पर प्रवेश करने का रास्ता था, दरवाज़ा था। परन्तु इस वक्त वो दरवाजा बन्द था।
खुदे फौरन ऊपर की सीढ़ियां चढ़ने लगा। उसे पता था कि उसे छत पर जाना है। अब वो पूरी कोशिश कर रहा था कि आहट ना उभरे। क्योंकि देवराज चौहान ने उसे बताया था कि ऊपर पहरे पर एक आदमी है।
खुदे छत पर निकल आया।
सामने ही एक आदमी खड़ा दिखा। उसके पास ही कमरे का दरवाजा बन्द था ।
पहरा दे रहे आदमी ने खुदे को देखा कि खुदे कह उठा---
"सब ठीक है ?"
"क्या ठीक है?" उस आदमी की आंखें सिकुड़ी--- "तुम कौन हो ?"
"कमाल।" खुदे मुस्कराकर उसकी तरफ बढ़ा--- "तुम मुझे भूल गये क्या जो...।"
"तुम ऊपर कैसे आ...।"
तब तक पास पहुंच चुके खुदे ने जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा। उसे ऐसी आशा नहीं थी कि ऐसा कुछ हो सकता है। वो छोटी-सी चीख के साथ पीछे हुआ, परन्तु खुदे ने उसे सम्भलने का मौका नहीं दिया। खुदे का दूसरा वार ठोकर के रूप में उसके पेट पर पड़ा। तो वो पीछे दरवाजे से जा टकराया।
खुदे ने दो-तीन घूंसे उसके पेट पर मारे और हाथ बढ़ाकर दरवाजे की कुण्डी खोल दी।
वो आदमी खुदे पर झपटा और उसे लिए नीचे गिरता चला गया। वो ठीक खुदे के ऊपर गिरा था। खुदे के होंठों से कराह निकली और उसी पल उसे अपने ऊपर से हटा दिया। वो करीब में ही लुढ़क गया फिर फुर्ती से पलटा कि खुदे ने उसके सिर के बाल पकड़कर सिर छत से मारा। वो चीखा। दोबारा-तिबारा ऐसा किया तो वो बेहोश होकर वहीं लुढ़क गया। ये सब कुछ मिनट भर में हो गया था।
तब तक देवराज चौहान और जगमोहन कमरे से बाहर आ चुके थे।
खुदे उठ खड़ा हुआ।
"मैंने ठीक किया ना?” खुदे मुस्कराकर बोला।
"चुप कर साले ।" जगमोहन गुर्राया--- "यहां से जा और कार स्टार्ट करके रख... ।”
खुदे ने सिर हिलाया और वहां से चला गया।
देवराज चौहान और जगमोहन की सुर्ख नज़रें मिलीं। एकाएक देवराज चौहान पलटा और वापस कमरे में चला गया। जगमोहन दरवाजे पर पहुंचकर भीतर झांकने लगा। देवराज चौहान को कमरे में कुछ तलाश करते देखा।
“क्या ढूंढ रहे हो, जल्दी निकलो यहां से।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।
तभी देवराज चौहान को सोफे के पीछे से रिवाल्वर उठाते देखा।
“अब चलो।” देवराज चौहान गुर्राया--- “पारसनाथ और महाजन को भी...।"
"अभी उन कुत्तों को रहने दो।" जगमोहन ने दांत भींचे--- "इन्हें तो हम कभी भी खत्म कर सकते हैं। ये बचने वाले नहीं। पहले हमें मोना चौधरी को खत्म करना है। अभी कुछ मत करना। चुपचाप यहां से निकल चलो। यहां से हमें मोना चौधरी के बारे में पता नहीं चलेगा कि कहां मिलेगी वो। ये बात कहीं और से पता करनी पड़ेगी।”
देवराज चौहान ने रिवाल्वर जेब में डाली और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।
उसके पीछे आता जगमोहन कठोर स्वर में बोला---
"वो हरामजादे हमें रोकने की चेष्टा कर सकते... ।”
"ऐसा हुआ तो मैं सबको शूट कर दूंगा।” सीढ़ियां उतरता देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
वे सीढ़ियाँ उतरते चले गये।
नीचे पहुंचे जहां रेस्टोरेंट था।
वहां अब काफी भीड़ थी। लोग आ-जा रहे थे। थोड़ा शोर उठ रहा था। तेज रोशनियां वहां पर रोशन थीं। बहुत अच्छा माहौल था। हॉल के भीतर की तरफ से म्यूजिक बजता बाहर आ रहा था और रेस्टोरेंट में भी मध्यम-सी संगीत लहरी बज रही थी। सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था।
परन्तु देवराज चौहान और जगमोहन के दिमाग जल रहे थे। वे बिना रुके बाहर की तरफ बढ़ते चले गये। रिसेप्शन की खुली जगह पर पारसनाथ दो लोगों से बात कर रहा था। उसकी पीठ थी बाहरी दरवाज़े की तरफ। इस वजह से वो इन दोनों को नहीं देख पाया था और पीठ होने की वजह से देवराज चौहान, जगमोहन भी उसे नहीं देख पाये थे।
देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकलते चले गये।
पार्किंग में खड़ी कार के पास पहुंचे। हरीश खुदे कार को स्टार्ट किए ड्राइविंग सीट पर था।
“आ गये तुम लोग।" खुदे बोला।
दोनों कार में बैठे। जगमोहन आगे देवराज चौहान पीछे। खुदे ने कार आगे बढ़ा दी।
देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
“कोशिश करने पर भी हम मोना चौधरी तक पहुंचने में सफल नहीं हो सके।"
"हमारी कोशिश ही गलत थी।" जगमोहन होंठ भींचकर बोला--- "हमें पहले ही पता होना चाहिये कि महाजन और पारसनाथ से हमें उस कमीनी मोना चौधरी का पता नहीं मिलेगा। वो दोनों तो उस कुतिया के भगत हैं।"
"लेकिन हमें जल्दी से मोना चौधरी का पता जानना है।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
"अगर मुझे मोना चौधरी का पता मालूम होता तो जरूर बताता।" खुदे कह उठा।
"चुप कर साले।" जगमोहन का हाथ घूमा और खुदे के गाल पर रगड़ खाता घूम गया।
"ऐसा मत किया करो। हाथ क्यों घुमाते हो। मैं तो डकैती के लालच में, पैसा कमाने के चक्कर में तुम लोगों के साथ हूँ। अब तुम लोगों का साथी बनने जा रहा हूं।” खुदे ने मुंह बनाकर कहा।
इस बार हाथ नहीं घूमा जगमोहन का।
“हम किससे पता करें जगमोहन कि मोना चौधरी कहां रहती...।"
"एक मिनट-एक मिनट । मेरी बात सुनो।” हरीश खुदे फौरन कह उठा--- “एक बन्दा है जो शायद कुछ बता सके।"
“कौन?”
“रहमान अहमद। वो अण्डरवर्ल्ड की खबरें रखता है। साठी के काम के लिए मैं उसके पास कई बार जाता था। ऐसे लोगों की खबरें वो जरूर रखता है, जिससे उसे कमाई हो सके। वो नोट लेकर....।"
"नोट हम देंगे।" जगमोहन ने दांत पीसकर कहा--- “तू वहां चल, कहां रहता है वो ?”
“अब तो आठ बज रहे हैं अन्धेरा हो गया है। पीना भी शुरू कर दिया होगा उसने। चूना भट्टी के फ्लैट में रहता है।”
“चूना भट्टी चल।”
■■■
सिर्फ पांच मिनट का फर्क पड़ा था देवराज चौहान और जगमोहन के जाने और मोना चौधरी के आने में।
मोना चौधरी ने पार्किंग में कार रोकी और बाहर निकलकर रेस्टोरेंट के दरवाजे की तरफ बढ़ गई। चेहरे पर हल्का मेकअप था। जीन्स की पैंट और कॉटन की स्कीवी पहन रखी थी। एकदम ऑल इन वन की तरह चमक रही थी। उसके खूबसूरत चेहरे पर नजरें टिके तो हटे नहीं, परन्तु उसके खूबसूरत चेहरे पर इस वक्त गम्भीरता थी। उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो खतरनाक इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी है। इस वक्त तो वो दिलफेंक युवती की तरह लग रही थी।
मोना चौधरी ने रेस्टोरेंट में प्रवेश किया, साथ ही उसकी नज़रें घूमीं।
फौरन ही पारसनाथ दिखा, जो कि अभी भी दो लोगों से बात करने में व्यस्त था।
मोना चौधरी ने मोबाइल निकाला और उसका नम्बर मिलाते आगे बढ़ गई। वो बाथरूम में उसी रास्ते की तरफ जा रही थी जहां ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां मौजूद थीं।
"हैलो।" पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।
"मैं आ गई हूं। ऊपर जा रही हूं। महाजन कहां है?" मोना चौधरी ने कहा ।
“पहली मंजिल पर। मैं भी आ रहा हूं।" उधर से पारसनाथ की आवाज आई।
मोना चौधरी ने मोबाइल जेब में डाला और सीढ़ियां चढ़ती पहली मंजिल पर पहुंची और सामने का दरवाजा खोला, जो कि खुलता चला गया। सामने ड्राइंगरूम था और महाजन टांगें पसारे सोफे पर बैठा था।
“आओ बेबी...!” महाजन गम्भीर स्वर में बोला।
"देवराज चौहान कहां है?" मोना चौधरी ने पूछा।
“छत वाले कमरे में। जगमोहन भी है।" महाजन ने सिर हिलाया--- “दोनों को इतना गुस्से में मैंने कभी नहीं देखा। तुम्हें देखकर वो और भी भड़क जायेंगे। पागल हुए पड़े हैं वो।"
तभी कदमों की आहट गूंजी और पारसनाथ भीतर आया।
“अब भी वो ये ही कह रहे हैं कि उन्हें नहीं मालूम, वो मुझे क्यों मारना चाहते हैं।"
“हां। तुम्हें फोन करने के बाद उनसे हम नहीं मिले।" पारसनाथ ने कहा--- “वहां मेरा एक आदमी पहरे पर है।"
"ऐसा क्यों कर रहा है देवराज चौहान ?”
“ये जवाब तो तुम ही दे सकती हो बेबी कि वो ऐसा क्यों कर रहा है।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा--- “हो सकता है तुम्हें याद नहीं आ रहा हो कि तुमने देवराज चौहान के खिलाफ कुछ किया हो और...।"
"मैंने कुछ नहीं किया।" मोना चौधरी ने दृढ़ स्वर में कहा।
"तुम्हारा मतलब कि देवराज चौहान और जगमोहन बिना वजह तुम्हारे पीछे हैं।"
"हां, वो बिना वजह मेरे पीछे हैं।" मोना चौधरी ने पक्की आवाज में कहा।
"तो फिर देवराज चौहान से मिल लो।" महाजन उठ खड़ा हुआ।
“मोना चौधरी !” पारसनाथ गम्भीर स्वर में बोला--- “तुम्हारे मन में देवराज चौहान के लिए कुछ गुस्सा जाने क्यों रहता है। शायद ये पूर्वजन्म का असर है। परन्तु देवराज चौहान ने कभी भी तुम पर हाथ डालना नहीं चाहा। इसलिए उसकी आज की हालत देखकर मैं बहुत ज्यादा उलझन में हूं। तुम्हें लेकर उसका व्यवहार गुण्डे की तरह हो रहा है।"
"गुण्डे की तरह?"
“हाँ, जैसे वो सबसे बड़ा गुण्डा बन गया हो। मुझे वो, पहले वाला देवराज चौहान नहीं लगता।"
“मैं उससे मिलूंगी।" मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा--- “पता तो चले कि बात क्या है।"
वो तीनों सीढ़ियां तय करके छत पर पहुंचे।
वहां का नजारा देखते ही वो चौंक पड़े।
वो आदमी अभी तक नीचे बेहोश पड़ा था और कमरे का दरवाजा खुला था।
महाजन फौरन दरवाज़े की तरफ दौड़ा।
पारसनाथ अपने आदमी को चैक करने लगा।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ गई थीं।
“वो दोनों कमरे में नहीं हैं भाग गये।" महाजन तेजी से कमरे से बाहर निकलता कह उठा।
“उनका यहां से भाग जाना गलत हुआ।” पारसनाथ के चेहरे पर सख्ती थी ।
वे पहली मंजिल पर, पारसनाथ के घर के ड्राइंगरूम में बैठे थे। पारसनाथ के आदमी को होश आ चुका था और उसने बताया कि एक आदमी छत पर आ पहुंचा और उसने दरवाजा खोला, उसी ने उसे बेहोश किया। डिसूजा अपने आदमियों के साथ रेस्टोरेंट के आस-पास की जगह छान आया था, परन्तु देवराज चौहान और जगमोहन नहीं मिले।
"गलती मेरी थी।" महाजन बोला--- "मुझे खुदे नाम के उस आदमी का ध्यान रखना चाहिये था जो बाहर कार में ही मौजूद था। उसे फोन करके बुलाया होगा देवराज चौहान ने। अपने बंधन खोल लिए होंगे और...।”
"उन दोनों के सिर पर खून सवार है, शाम को उन्होंने पूरबनाथ साठी को मारा फिर...।"
"साठी...?" मोना चौधरी चौंकी--- “पूरबनाथ साठी को देवराज चौहान ने मारा ?”
“हां।” पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा--- “तुम चौंकी क्यों?"
“किसने कहा कि साठी को देवराज चौहान ने मारा ?" मोना चौधरी ने पूछा।
"देवराज चौहान ने ही बताया।"
“साढ़े चार बजे मैंने साठी के मारे जाने की खबर सुनी थी। परन्तु ये नहीं पता था कि देवराज चौहान ने उसे क्यों मारा? इस बारे में देवराज चौहान ने बताया कि क्यों मारा उसे?"
“शायद उन दोनों ने ये ही कहा था कि उन्हें याद नहीं साठी को क्यों मारा? मारना था, इसलिए मार दिया। उसके बाद वे सीधा महाजन के पास पहुंचे और तुम्हें मारने को कहने लगे। तुम्हारे पास वो कब पहुंचे ?”
“सवा पांच, साढ़े पांच...।" महाजन ने कहा।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ गई।
“क्या साठी से तुम्हारा कोई कनैक्शन था मोना चौधरी ?" पारसनाथ ने पूछा।
“थोड़ा-सा वास्ता हुआ था, परन्तु पन्द्रह दिन पहले वो काम खत्म हो गया ।” मोना चौधरी ने कहा--- “उस बात से तो देवराज चौहान का वास्ता दूर-दूर तक नहीं था। वो तो...।"
"तुम साठी के अपने कनैक्शन के बारे में बताओ।" महाजन ने कहा ।
“किसी पार्टी ने मुझे काम दिया था कि दुबई से एक बन्दे को उठाकर हिन्दुस्तान लाना है। पार्टी को उसकी जरूरत इतनी ज्यादा थी कि वो मुझे पचास करोड़ देने को तैयार था। इसके लिए मैंने विलास डोगरा और साठी से बात की कि उन दोनों में से कौन ये काम आसानी से कर सकता है। इसके लिए मैं दो-दो बार दोनों से मिली और अन्त में चालीस करोड़ में साठी से सौदा कर लिया।"
"विलास डोगरा से नहीं?"
“नहीं। नौवें दिन साठी ने मुम्बई में ही वो बन्दा मेरे हवाले कर दिया और मैंने उसे पार्टी को सौंप दिया।”
“विलास डोगरा को पता था कि इस बारे में तुम साठी से भी बात कर रही हो?" महाजन बोला।
“हां। विलास डोगरा और साठी दोनों ही जानते थे कि मैं दोनों में से एक को काम दूंगी।"
"जब तुमने ये काम साठी को दिया तो विलास डोगरा को जरूर बुरा लगा होगा।" महाजन ने कहा।
"इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है। काम हाथ में आते भी हैं और निकल भी जाते हैं। ये तो सामान्य सी बात है। मेरे ख्याल में तो विलास डोगरा अब तक इस बात को भूल भी चुका होगा।"
महाजन ने कुछ नहीं कहा।
“इस बात का देवराज चौहान से कोई कनैक्शन लगता है क्या ?" पारसनाथ ने पूछा।
"कह नहीं सकता।" महाजन ने सोच भरे स्वर में कहा--- "देवराज चौहान का साठी को मारना। उसके बाद बिना सांस लिए बेबी की तलाश में दौड़ पड़ना। कहीं विलास डोगरा ने ही देवराज चौहान को इन दोनों की सुपारी दी हो कि...।"
“नहीं, ये बात गले से नीचे नहीं आती।” पारसनाथ ने कहा।
"देवराज चौहान इस तरह के काम नहीं करता।" मोना चौधरी बोली--- “कम-से-कम मुझे तो इस खातिर नहीं मारेगा कि उसे कोई पैसे दे रहा है। विलास डोगरा को इस मामले से निकाल दो।"
“लेकिन मोना चौधरी, देवराज चौहान का कौन-सा कनैक्शन तुमसे जुड़ गया है जो वो तुम्हारे पीछे...।"
“ये ही तो समझने की चेष्टा कर रही हूं।" मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली--- "मुझे खत्म करने के लिए, मुझे ढूंढना, ये देवराज चौहान के लिए बड़ी बात है, जिसकी वजह भी खास होनी चाहिये।"
"इस बारे में अब क्या किया जाये बेबी ?"
"कुछ नहीं करना है। तुम लोग सावधान रहो। वो तुम दोनों पर भी...।"
"इस वक्त तो बात तुम्हारी है बेबी!" महाजन चिन्तित स्वर में बोला--- "अभी तक उसे तुम्हारा ठिकाना नहीं मालूम, परन्तु वो पता कर सकता है कि तुम कहां रहती हो। देवराज चौहान के लिए ये बात जानना कठिन नहीं है।"
"मैं सतर्क रहूंगी।"
"बेहतर होगा कि तुम अपने घर पर ना रहकर कहीं और रहो।" पारसनाथ ने कहा।
मोना चौधरी बिना कुछ कहे उठ खड़ी हुई।
"मैं तुम्हारे लिए कहीं और रहने का इन्तजाम कर देता हूँ ।" पारसनाथ बोला।
"मैं देवराज चौहान से कभी नहीं डरी, जो आज डर...।"
"बात डरने की नहीं है बेबी! वो पागल हुआ पड़ा है, तुमने उसे देखा नहीं, वो...।"
“वो मेरे सामने आया तो मरेगा।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा और बाहर निकल गई।
महाजन और पारसनाथ की नजरें मिलीं।
“नई मुसीबत खड़ी होने वाली है महाजन !” पारसनाथ कह उठा ।
■■■
हरीश खुदे ने उस फ्लैट की बेल बजाई तो फौरन ही दरवाजा खुला। दरवाजे पर पचास बरस का रहमान अहमद खड़ा था। क्लीन शेव्ड था और लुंगी-बनियान पहने था।
"कैसे हो रहमान भाई?" खुदे मुस्कराकर बोला।
“तुम।" रहमान अहमद पीछे हटता हुआ बोला--- “तुमने तो साठी के लिए काम करना छोड़ दिया है।"
“तुम्हें खबर नहीं मिली?” खुदे भीतर आता बोला ।
“क्या?"
“शाम को किसी ने साठी साहब को मार दिया।”
"ओह!" रहमान अहमद ने दरवाजा बन्द किया--- "बुरी खबर है, किसने मारा?"
"मालूम नहीं। तुम तो खबरें बेचते हो और तुम्हें नहीं खबर कि साठी साहब नहीं रहे।"
"खबर लग नहीं सकी। कुछ दिन से बीमार चल रहा हूँ। लीवर खराब हो गया है।"
“शराब पीकर।” खुदे बैठता हुआ बोला।
"और क्या...।" रहमान मुस्कराया और बैठ गया।
"डॉक्टरों को खर्चा देने आया था अगर तुम लेना चाहो तो।" खुदे ने कहा।
रहमान अहमद ने खुदे की आंखों को देखा।
"क्या खबर चाहिये?"
“इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी का ठिकाना जानना है।"
"ये तो खतरनाक बात है।" रहमान अहमद गम्भीर हो गया।
हरीश खुदे उसे देखता रहा।
"तेरे को खबर चाहिये ?"
"किसी को चाहिये। उसने मुझे पैसे देकर भेजा है। वो तेरे बारे में नहीं जानता। बात मुझ तक ही रहेगी।"
"कौन है वो ?"
"जैसे तेरा नाम उसे नहीं बताऊंगा, वैसे ही उसका नाम तेरे को नहीं बताऊंगा। पैसा ले, ख़बर दे। बात खत्म ।"
रहमान अहमद ने पहलू बदला ।
हरीश खुदे की गम्भीर निगाह, रहमान अहमद पर थी।
"मालूम है ठिकाना ?"
“मेरा नाम नहीं आयेगा बीच में?"
"कभी नहीं।”
"एक लाख लूंगा।" रहमान अहमद बोला।
"ये ज्यादा है।"
“मोना चौधरी का ठिकाना जानने के लिए एक लाख बहुत कम है खुदे....!”
खुदे ने जेब से पचास हजार की गड्डी निकालकर दिखाई।
“ये ही है। पचास हजार। बताता है तो ठीक है, नहीं तो मैं जाता हूं। पार्टी इससे ज्यादा नहीं देगी।”
“पार्टी से बात कर। उसे मोना चौधरी का पता चाहिये तो, पैसा जरूर बढ़ायेगी।”
"नहीं मिलेगा इससे ज्यादा।" खुदे उठता हुआ बोला--- "मैंने तो सोचा था बात बन जायेगी।”
"बैठ जा।" रहमान अहमद खड़ा हो गया। उसके हाथ से पचास हजार की गड्डी ली और भीतर के कमरे में चला गया।
खुदे खड़ा ही रहा।
दो मिनट बाद रहमान अहमद वापस आया। हाथ में छोटा-सा कागज दबा था।
"ये ले।" उसने खुदे को कागज थमाया--- "एड्रेस याद कर ले और कागज फाड़ दे ।”
खुदे ने उसी वक्त एड्रेस को पढ़ा और कागज उसे थमाता कह उठा---
“तू ही फाड़ देना। फिर आऊंगा रहमान ।” कहकर दरवाज़े की तरफ बढ़ा।
"साठी को किसने मारा? कुछ तो सुना होगा ?” पीछे से रहमान अहमद ने पूछा।
“नहीं सुना।" खुदे ने कहा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।
■■■
दूसरा दिन
रात 12:20 बजे ।
मोना चौधरी अपने फ्लैट में मौजूद थी। पन्द्रह मिनट पहले ही वो फ्लैट पर पहुंची थी। किसी पहचान वाली औरत के यहां उसका डिनर था। इस वक्त फ्लैट पर पहुंचकर उसने कॉफी बनाई और घूंट लेती कुर्सी पर आ बैठी। उसकी सोचें देवराज चौहान की तरफ मुड़ गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि देवराज चौहान उसकी जान के पीछे क्यों पड़ गया है। उसकी तरफ से तो कोई गड़बड़ नहीं हुई थी।
कॉफी का आधा प्याला ही खत्म हुआ था कि मोबाइल बजने लगा। उसने जेब से फोन निकाला और स्क्रीन पर आया नम्बर देखा। वो महाजन का फोन था।
“बोल...।" मोना चौधरी ने कॉलिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया।
“तुम्हारी खैरियत जाननी थी।" उधर से महाजन ने कहा।
"मेरी चिन्ता मत करो।" मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा।
"चिन्ता तो है बेबी! क्योंकि सामने देवराज चौहान है।" महाजन की आवाज कानों में पड़ रही थी--- "मैने पूरबनाथ साठी की मौत के बारे में पता किया। देवराज चौहान ने उसे बुरी तरह घेर लिया था। साठी का परिवार है। पत्नी और बेटा जिसे वो चाहता था। देवराज चौहान ने उसके परिवार को बंधक बना लिया था। ऐसे में साठी की मजबूरी बन गई कि उसे देवराज चौहान के सामने जाना पड़ा। उसके आदमी ने बताया कि साठी को यकीन था कि वो देवराज चौहान को समझा लेगा, परन्तु देवराज चौहान ने उसे शूट कर दिया। शाम साढ़े चार बजे के करीब की बात है।"
"क्यों मारा उसे?"
"साठी के आदमी का कहना है कि पूछने पर देवराज चौहान ने कहा कि वो भूल गया है कि साठी को क्यों मारना है। जगमोहन ने भी ऐसा ही कहा। अब ऐसी ही बात देवराज चौहान और जगमोहन तुम्हारे लिए कह रहे हैं। खतरनाक हालात पैदा होते जा रहे हैं। तुम्हें सतर्क रहना चाहिये। मुझे तो लगता है कि देवराज चौहान अभी भी तुम्हारी तलाश करता फिर रहा होगा।"
“वो अगर मेरे तक आ पहुंचा तो मैं उसे सम्भाल लूंगी।" मोना चौधरी का स्वर शान्त था।
"कहो तो मैं आ जाऊं?”
“जरूरत नहीं महाजन! तुम अपनी नींद लो। मैं ठीक हूं।" कहकर मोना चौधरी ने फोन बन्द कर दिया।
■■■
तारा अपार्टमेंट नाम की सोसायटी थी, जहां मोना चौधरी का फ्लैट था।
दस बजे से ही देवराज चौहान और जगमोहन की कार सोसायटी के ठीक सामने, सड़क पार खड़ी थी। दोनों के चेहरे धधक रहे थे। आंखें लाल थीं। वो कुछ वक्त बिता रहे थे कि लोगों की चहल-पहल खत्म हो जाये। रात का माहौल ठीक से उभर आये। इस वक्त रात के बारह बजे थे। नया दिन शुरू गया था। हरीश खुदे पीछे वाली सीट पर बैठा था। सुबह से खाया कुछ नहीं था और उसकी हिम्मत भी ना हो रही थी कि इन दोनों से कह सके कि उसे भूख लगी है।
जगमोहन की निगाह अपार्टमेंट के मुख्य गेट पर थी और आने वाली कारों पर उसकी नजरें टिकी थीं। इस वक्त बाहर जाने वाली कार तो इक्का-दुक्का ही थीं, परन्तु आने वाली कारों की संख्या ज्यादा थी।
"क्या ख्याल है?" जगमोहन गुर्राया--- "वो हरामजादी भीतर ही होगी।"
"नहीं हुई तो हम उसके लौटने का इन्तजार करेंगे।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।
“महाजन, पारसनाथ से वो जान गई होगी कि हम उसे ढूंढते फिर रहे हैं।"
"हमारे हाथों से वो बचने वाली नहीं।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
"जल्दी मरेगी साली।"
तभी हरीश खुदे का मोबाइल बज उठा।
"हैलो।" खुदे ने बात की।
"आ जाओ ना। मेर दिल नहीं लग रहा।" टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी।
"दिल नहीं लग रहा?" खुदे ने गहरी सांस ली।
“नहीं। तुम पास जो नहीं हो।"
“बिल्ला तो नहीं आया?"
"शाम को सब्जी लेकर आया था। आज तो शेव कर रखी थी। अच्छे कपड़े पहन रखे थे।”
“तुझ पर लाइन मार रहा होगा।” खुदे ने कड़वे स्वर में कहा।
"मैं सब समझती हूं तुम फिक्र मत करो।"
“फिक्र तो करनी पड़ती है। बिल्ले को सीधा करना पड़ेगा।"
“छोड़ो भी। जब मैं ही उसे भाव नहीं दूंगी तो, चार चक्कर लगाकर खुद ही सीधा हो जायेगा।" उधर से टुन्नी ने कहा--- "जब उसे पता चला कि तुम घर पर नहीं हो तो कहने लगा, फाइव स्टार में डिनर करने चलते हैं।"
“कमीना।” खुदे ने पहलू बदला--- “तो तूने क्या जवाब दिया?"
"वो ही जो सुबह दिया था। मैंने कहा कि कल ही फाइव स्टार होटल में डिनर किया था, मेरा तो पेट खराब हो जाता है फाइव स्टार होटल में खाकर। तो बोला किसी और रेस्टोरेंट में चले चलते हैं।"
"मैं आकर बताऊंगा कमीने को।"
"तुम क्यों उसके पीछे पड़ रहे हो। मैं ही उसे सम्भाल लूंगी। अब आ रहे हो, मुझे नींद नहीं आ रही।"
"अभी नहीं आ सकता ।"
"ऐसा क्या काम पड़ गया जो...।"
“देवराज चौहान और जगमोहन के साथ हूं।"
“वो तुम्हारी ठुकाई तो नहीं कर रहे...?"
“ऐसी बात याद मत दिलाया कर।"
“ठीक है, ठीक है। मैं तो सोच रही थी कि तुम आकर मटर-पनीर के साथ परांठे खाओगे। तुम तो आये नहीं, मैंने रात को भी दोबारा मटर पनीर खा लिए। तुम हो कि बाहर से खाते फिर रहे हो।"
खुदे ने गहरी सांस ली।
“ज्यादा खा लिया क्या?” टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी।
“पूछ मत।” खुदे ने अपने खाली पेट पर हाथ फेरा--- "सच बताऊं तो तुझे भरोसा नहीं होगा।"
“लगता है तगड़े पकवान खाये हैं।" उधर से टुन्नी ने शरारती स्वर में कहा--- “देवराज चौहान ने तुम्हें तबीयत से खाना खिलाया है, ऐसे में मेरे मटर-पनीर कहां याद आने लगे।"
"चुप कर, अब और दिल मत जला मटर-पनीर की बात करके। अब बिल्ला आये तो दरवाजा मत खोलना।"
“रात को थोड़े ना दरवाजा खोलूंगी।"
"दिन में भी मत खोलना ।"
“अच्छा नहीं खोलती।” टुन्नी ने उधर से कहा--- "ये बताओ कब आ रहे हो?"
“अभी नहीं पता। कुछ काम है। वो खत्म हो गया तो रात को ही आ जाऊंगा।"
"आ जाना।"
“कोशिश... ।”
तभी जगमोहन का गुर्राया स्वर गूंजा---
“वो रही मोना चौधरी ! अभी-अभी जो कार भीतर गई है, उसे मोना चौधरी चला रही थी। मैंने पहचाना उसे।”
खुदे ने तुरन्त फोन बन्द कर दिया।
देवराज चौहान के होठों से गुर्राहट निकली। उसने जल्दी से दरवाजा खोला।
"ठहरो।" जगमोहन ने देवराज चौहान की कलाई पकड़ ली--- "अभी रुको।"
"क्यों?" देवराज चौहान के दांत भिंच गये।
"उसे अपने फ्लैट में जाने दो। तब वो निश्चिंत होगी कि वो सुरक्षित है।" जगमोहन ने दरिन्दगी से कहा--- “दस-पन्द्रह मिनट अभी हमें यहीं रुके रहना है। उसे उसके फ्लैट में बुरी मौत देंगे।" जगमोहन ने कलाई छोड़ दी।
"तब तक वो फ्लैट का दरवाजा बन्द कर लेगी।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
“वो मामूली बात है।" जगमोहन ने क्रूरता भरे स्वर में कहा--- "वो खुल जायेगा।"
देवराज चौहान बैठा रह गया।
पीछे बैठा खुदे कह उठा---
"इसका मतलब एक-आध घण्टे में काम खत्म हो जायेगा।""
"हां।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर पीछे बैठे खुदे को देखा।
"किसी और को भी खत्म करना है या मोना चौधरी के बाद बस?"
“मोना चौधरी आखिरी शिकार है ।"
“शुक्र है।” खुदे मुस्कराकर बोला--- “उसके बाद हम डकैती करेंगे, परन्तु कहां...?”
तभी देवराज चौहान का हाथ घूमा।
खुदे के गाल पर जा लगा।
हरीश खुदे तड़पकर पीछे हो गया। गुस्से से बोला---
"इसमें मारने की क्या बात... ।"
“जुबान बन्द रख।” देवराज चौहान गुर्रा उठा--- “अभी कोई भी फालतू बात मत कर।”
खुदे फिर कुछ नहीं बोला।
पन्द्रह मिनट खामोशी से बीत गये फिर देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा---
“चलो।"
जगमोहन ने भी दरवाजा खोला। बाहर निकला। खुदे से कहा---
"हमारी वापसी तक तू कार में ही रहेगा।"
"इस बार भी अगर फंस गये तो मुझे फोन कर देना। मैं आकर सब सम्भाल लूंगा।" खुदे ने कहा।
देवराज चौहान और जगमोहन की आंखें लाल सुर्ख थीं। चेहरों पर दरिन्दगी मचल रही थी। वो सड़क पार करते आगे बढ़े और अपार्टमेंट के गेट की तरफ बढ़ते चले गये।
देवराज चौहान ने पहली मंजिल पर स्थित पन्द्रह नम्बर फ्लैट का दरवाज़ा हैण्डिल दबाकर खोलना चाहा, परन्तु हैण्डिल पूरा ना दबा। भीतर से बन्द था। देवराज चौहान ठिठककर रह गया।
दहकती निगाहों से जगमोहन को देखा।
“बन्द है।” धीमे स्वर में गुर्राया ।
"मैं बेल बजाता... ।”
"नहीं।" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा--- “दरवाजे पर आई मैजिक लगा है। वो भीतर से हमें देख लेगी।"
जगमोहन ने होंठ भींचे दरवाजे पर लगी आई मैजिक को देखा ।
"हमें फ्लैट की खिड़कियां चैक करनी होंगी। शायद कोई खुली हो...।"
तब तक जगमोहन की निगाह ठीक सामने वाले फ्लैट पर टिक चुकी थीं। थोड़ा-सा दरवाजा खोले नन्दराम थोड़ी-सी मुण्डी बाहर निकाले उन्हें ही देख रहा था। नज़रें मिलते ही नन्दराम ने दांत फाड़े।
जगमोहन तेजी से नन्दराम की तरफ बढ़ गया ।
“बोल सांई ।” नन्दराम उसके पास पहुंचने पर मुस्कुराया--- "वो दरवाजा नहीं खोल रही क्या?"
“तुम जानते हो ?” जगमोहन ने कठोर स्वर में पूछा।
“बोत बढ़िया तरहो वड़ी। मोनना डार्लिंग है आपुन की।" नन्दराम ने दांत फाड़े।
“तू दरवाजा खुलवा ?”
“क्यों नी ?" नन्दराम ने कहा--- “वो अभ्भी-अभी आई है पन्द्रह मिनट पहले। अब नींद मारेगी नी।"
रात के इस वक्त वहां कोई और नज़र नहीं आ रहा था।
जगमोहन ने नन्दराम के सिर के बाल पकड़े और रिवाल्वर निकालकर गुर्राया।
"बाहर निकल...।"
"ये क्या करता है साईं। मेरे सिर के बाल छोड़। दो-चार है नी, वो भी गायब हो जायेंगे।”
"बाहर निकल... ।” जगमोहन ने नन्दराम के माथे पर रिवाल्वर की नाल लगा दी।
नन्दराम फौरन दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला। वो परेशान हो गया था।
“ये क्या...।"
“चुप साले।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा--- “मोना चौधरी का दरवाजा खुलवा।”
"ये तो लफड़ा है वड़ी। हाथ में रिवाल्वर, आधी रात का वक्त और... ।”
"गोली मारूं तेरे को ?”
"नेई साईं, मेरी जान क्यों लेता है।"
"तो दरवाजा खुलवा मोना चौधरी का। दरवाजा नहीं खुला तो गोली मार दूंगा।”
नन्दराम बेबस दिखा।
जगमोहन ने उसके सिर के बाल छोड़े और कलाई पकड़कर खींचता, मोना चौधरी के फ्लैट के दरवाज़े के पास ले गया उसे । इशारे से दरवाजा खुलवाने को कहा और खुद दो कदम दूर हो गया कि मोना चौधरी आई मैजिक से देखे तो उसे सिर्फ वो ही नज़र आये। देवराज चौहान भी एक तरफ हट गया था।
नन्दराम ने लाचार नज़रों से बारी-बारी दोनों को देखा।
“जल्दी कर ।" जगमोहन रिवाल्वर वाला हाथ हिलाकर गुर्राया ।
नन्दराम ने डोर के पास लगी बेल दबा दी ।
भीतर बजती बेल की आवाज बाहर तक आई।
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