मैं अपने कमरे में बैठा हुआ इतिहास की किताब पढ़ रहा था। कमरे में टेबल लैंप जल रहा था जिसकी रोशनी सिर्फ मेरी किताब पर पड़ रही थी। सारे कमरे में किताबें फैली पड़ी थी, जिस में इतिहास, राजनीति विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी आदि सभी विषयों की किताबें थी। साथ में नोट्स भी फैले हुए थे।

मैं पढ़ तो रहा था, पर मेरा ध्यान कहीं और था। निधि का चेहरा उसका ये कहना बड़ी ही मासूमियत से की प्लीज राघव और वंश का कहना आप ही चले जाएँ भईया। निधि के उस दिन के व्यवहार से मैं तड़प रहा था। लाख कोशिश के बाद भी मैं अपना ध्यान किताब में नहीं लगा पा रहा था। मैंने अपने मन को समझाया- दिमाग ठीक कर ले, वरना कॉलेज तो क्या पास तक नहीं हो पाएगा। 

निधि के उस दिन के बर्ताव को एक महीना हो गया था, पर फिर भी निधि मेरे दिमाग से नहीं निकल पा रही थी। मैंने उससे बात करना छोड़ दिया था। नहीं-नहीं, असलियत में उसने ही मुझे कॉल नहीं किया और न ही मिलने की कोशिश की। हालाँकि उस दौरान मैं उसे दो बार कॉल कर चुका था। पर उसने मेरे कॉल कट कर दिए थे। 

मैं निधि को बहुत प्यार करता था। लेकिन वंश की तरफ ऐसे उसके इस तरह झुक जाने से मेरा दिल टूट गया था। इसलिए वो मुझे रह-रहकर याद आ रही थी। 

पढ़ते-सोचते देर रात हो गई तो मैंने टेबल लैंप बंद कर दिया और रसोई में चाय बनाने चल दिया। जैसे ही मैंने चाय का बर्तन गैस पर चढ़ाया और गैस चालू की तो देखा सिलेंडर खाली पड़ा था। सोचा कि चाय हीटर पर बना लेता हूँ, फिर याद आया कि एक भरा सिलेंडर रखा तो है ही। मैंने सिलेंडर को निकाला और चूल्से से उसे लगाकर गैस चालू की तभी मम्मी खटपट की आवाज से अपने कमरे से बाहर आ गई और कहा, “इतनी रात को चाय बना रहे हो? नींद नहीं आएगी।”

“सिर्फ आधा कप बनाऊँगा।” 

मम्मी वहाँ से कमरे में चली गई। अभी रात के दो बजे थे। चाय पीकर मैं अपने बिस्तर पर लेट गया। घंटे भर तक नींद नहीं आई। रात तीन बजे के करीब थोड़ी नींद आई, तब मैं सो पाया। 

सुबह उठा तो महसूस किया कि फिर से मुझे निधि कि यादों ने घेर लिया। मैं सुबह-सुबह ही उदास हो गया। जैसे-तैसे तैयार होकर मैं स्कूल के लिए निकला। महरौली की चढ़ाई और ढ़लान से होते हुए मैं स्कूल पहुँचा। तब उस सरकारी स्कूल में प्रार्थना नहीं होती थी, सीधे कक्षा लगती थी। सबसे पहले राजनीतिक विज्ञान की कक्षा थी। जिस अध्याय को टीचर पढ़ा रहा था, वो मुझे बोरिंग लगा और मैं निधि के खयालों में खोया रहा। अभी पंद्रह मिनट ही हुए थे सोचते हुए कि‍ तभी मेरे सर पर चॉक आकर लगा। मैंने देखा कि टीचर ने मुझे चॉक मारा और जोर से चिल्लाया। 

“ऐ देवदास! कहाँ खोए हो? पढ़ाई पर ध्यान दो।” 

मैंने हाँ में सिर हिला दिया। पंद्रह मिनट बाद लड़कों से होमवर्क माँगा गया। मैंने भी जैसे-तैसे किया होमवर्क टीचर को दिखाया। 

मैंने देव से कहा, “चल स्कूल से आज बंक मारकर कुतुब मीनार चलते हैं।” ठीक है यार मेरा भी मन पढ़ाई का नहीं है आज बंक मार ही लेते हैं, सोनू भी तैयार हो गया। हम कुतुब मीनार को निकल लिए। हमने बस स्टैंड से बस पकड़ी जिसका अगला स्टॉप ही कुतुब मीनार था। हम कुतुब मीनार के कैंपस में घास के मैदान पर बैठ गए। हम तीनों में अभी बात नहीं हो रही थी। कुछ देर की चुप्पी के बाद सोनू ने कहा, “देखो उस फॉरेनर को, जो सिगरेट पी रही है। उसके सिगरेट पीने पर धुआँ नहीं निकल रहा है।” 

मैंने कहा, “ऐसा नहीं हो सकता है।”

“मैं सच कह रहा हूँ, उसके कश का धुआँ नहीं निकल रहा है।” फिर हम उसके कश लेने तक उसे देखते रहे। लेकिन उसके मुँह से तो धुआँ निकलता दिख रहा था। सोनू हँसने लगा। ये एक मजाक था। देव ने उसको एक घूँसा पीठ पर मारा। मैंने भी उसे एक चपत लगाई। बातचीत में देव पढ़ाई की बातें करने लगा कि‍ परीक्षा में क्या आएगा और क्या नहीं।

मैंने कहा, “बात करने के लिए सिर्फ पढ़ाई रह गई है और बातें नहीं हो सकती है?” 

“हाँ तो फिर तेरी निधि की बातें करें क्या?” सोनू ने कहा। पर इस बारे में मैं गम्भीर था। 

“पर पढ़ाई की बातें करके भी क्या फायदा है यहाँ, इससे हमें क्या मिलेगा? हम रात-दिन पढ़कर कॉलेज में दाखि‍ला ले लेंगे, फिर क्या होगा? हम एक दिन बी.ए. कर लेंगे, फिर हम जैसे-तैसे एक सरकारी नौकरी पा लेंगे। बस एक दिन कलर्क बन जाएँगे, उसके बाद तीस-चालीस हजार की पगार, जो महीने की एक तारीख को मिलेगी और बीस-पच्चीस तारीख आते-आते लगभग सारा पैसा खत्म हो जाएगा।” मैंने कहा।

“तो क्या करें हम और कर भी क्या सकते हैं?” देव ने कहा। 

“कर क्यों नहीं सकते? हम कोई बिजनेस कर सकते हैं।” 

“जैसे निधि के पापा करते हैं बाजार में शोरूम खोलकर?” यह कहकर सोनू हँसा। सुन कर मुझे चिढ़ हुई।

तब देव ने कहा, “क्या पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए है? हम पढ़कर भी कोई बिजनेस कर सकते हैं।”

“पर बिजनेस के लिए दिमाग चाहिए और अब हम जितना पढ़ चुके हैं, वो काफी है।” मैंने कहा।

इसी तरह की बातें करते हुए और पढ़ाई से लेकर बिजनेस की बातें सोचते हुए घूमकर हम घर आ गए।

अगले दिन मैं स्कूल के लिए निकला तो जरूर लेकिन स्कूल के गेट पर ही ठिठक गया। ऐसा लग रहा था कि दो महीने से जबरदस्ती का काम रह गया था स्कूल जाना। मैं कुछ पढ़ तो पाता नहीं था। बस रोज जाता था और निधि को भूल पाने की कोशिश करता था। मगर वो था कि उसे भूल ही नहीं पा रहा था।

इस चक्कर में मैं अपने दोस्तों से भी कट गया था। स्कूल जाने पर भी मैं अक्सर निधि के बारे में ही सोचता रहता था। घर-परिवार से तो कब से दूर हो गया था।

मैं स्कूल गेट से वापस मुड़कर सुरेश हलवाई के पास गया और खौलते तेल में तल रहे समोसों का इंतजार करने लगा। एक बड़ी-सी कड़ाही में तल रहे समोसे जैसे ही बाहर निकले, ग्राहक टूट पड़े। मैंने दस का नोट आगे कर दिया। मुझे देखकर सुरेश हलवाई को अचरज हुआ, क्योंकि ये मेरे स्कूल जाने का वक्त था। लेकिन उसने कुछ पूछः बिना समोसे दे दिए। मैं धीरे-धीरे दोनों समोसे खा गया। 

मैं फिर खारी बावड़ी के लिए चल दिया। रास्ते भर यही सोचता रहा कि अब जो हो जाए मैं निधि को भुला दूँगा। खारी बावड़ी का असली नाम तो राजो की बावरी है पर महरौली में ये खारी बावड़ी के नाम से जानी जाती है जिसे पंद्रहवीं सदी में पानी को स्टोर करने के लिए बनाया गया था उस समय इसे धर्मशाला के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता था जहा पर दिल्ली में आए व्यापारी ठहरते थे। ये महरौली में एक सुंदर खण्डहर है जिस में अक्सर शूटिंग होती रहती है। यह महरौली के बस स्टैंड के पास तीन मंजिला खण्डहर है और सामने एक पानी का हौद नुमा गड्ढा है जिसके तीनों तरफ तीन मंजि‍ला खण्डहर है। उस गड्ढे में उतरने के लिए सीढ़ि‍याँ हैं, पर अब वहाँ पानी नहीं था। गड्ढे के तीनों तरफ कमरे बने थे। वहीं पर सकरी सी सीढ़िया है मैं उन सीढ़ि‍यों से ऊपर चला गया। ये खण्डहर एक हॉन्टिंग जगह भी है, मैंने सुना था। यहाँ अक्सर लाशें भी मिलती रहती है पर मैं इन सबसे डरता नहीं था। मैं ऊपर जाकर मुंडेर पर बैठ गया। मैंने देखा एक बाबाजी भी वहीं बैठे थे। वो गाँजा पी रहे थे। मैंने इस बारे में ध्यान नहीं दिया।

मैं वहाँ बैठा निधि की बेवफाई के बारे में सोचता रहा कि तभी वो बाबा मेरे पास आ गए। मैं एकांत चाहता था इसीलिए जैसे ही बाबा मेरे पास आए, मैं वहाँ से चल दिया।

बाबा जी देखने से ही कुछ अलग ही लग रहे थे वे हट्ठे-कट्ठे छः फीट के होंगे उनका चेहरा गोरा और गोल था हाथ में कई चाँदी और सोने की अगुठियाँ थी वस्त्र में उन्होने भगवा धोती-कुर्ता पहना था। 

तभी बाबा ने आवाज लगाई-राघव... राघव!

मैं स्तब्ध रह गया और सोचने लगा कि वो मुझे कैसे जानते थे! बाबा ने फिर से आवाज लगाई। मैं उनके पास गया और बैठ गया। मैंने जरा भी कोशिश नहीं की जानने की कि वो मुझे कैसे जानते थे। बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और कहा, “तो प्यार का मामला है।” मैं फिर भी कुछ नहीं बोला तो बाबा ने अपनी गाँजे की चिलम आगे कर दी। मैंने बिना सोचे-समझे उसे पीना शुरू कर दिया। मैंने जैसे ही पहला कश लिया, मैं खासने लगा। बाबा ने मेरी पीठ पर हाथ रखा और चिलम वापस लेने लगे पर मैंने मना कर दिया और मैं दम-पे-दम मारने लगा। मैंने कोई पाँच कश तेजी से लिए और वहीं लेट गया। मुझे गाँजे का नशा हो गया और मैं किसी और दुनिया में पहुँच गया। 

नशे के कारण मेरी आँखें अधखुली हो गईं। मुझे अब होश नहीं था। आँख बंद होते ही सबसे पहले मुझे निधि का वो तीन साल पुराना चेहरा दिखा, जब हमारी पहली बार बात हुई थी। वो लाल साइकिल चला रही थी। उसने लाल सर्कट पहनी थी उस का चेहरा उस समय बड़ा ही आकर्षक दिख रहा था नाक लम्बा बड़ी-2 आँखें बिल्कुल गोरा रंग बालों की उसने चोटी बना रखी थी पर बालों की एक लट खुली छोड़ रखी थी वो अपनी ऊम्र से जयादा ही मैच्योर लग रही थी पैरों में उसने जूते पहने थे। उसे दिल्ली में आए कुछ महीने हुए थे। वो गली में साइकिल चला रही थी और मैं उसे निहार रहा था। मैं उससे कभी आँख मिलाता था तो कभी शर्म से दूर चला जाता था। मेरे साथ देव था। उसने कई चक्कर हमारे पास लगाए। थोड़ी देर में वो रुक गई और हमारी तरफ देखने लगी। पर ना देव की हिम्मत उससे बात करने की हो रही थी ना मेरी। तभी निधि ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “क्या तुम मेरे घर से मेरी माँ को बुला सकते हो? मेरी स्कर्ट साइकिल की चेन में फँस गई है।” 

मैंने कहा, “अगर आप साइकिल की चेन को उलटी दिशा में घुमाओगी तो स्कर्ट निकल जाएगी।” इतना कहकर मैं और देव आगे निकल गए।

देव ने कहा, “मुझे बाजार से कुछ सामान लाना है, मैं अभी जाता हूँ।” 

उसके वहाँ से जाते ही निधि साइकिल से मेरे पास आई। मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।मेरे पास आकर निधि ने कहा, “आपका क्या नाम है?”

मैंने कहा, “राघव छाबड़ा। और आपका नाम निधि गुप्ता है न?” 

“हाँ मेरा नाम निधि है, किसने बताया?” 

“सोनू ने बताया है।” वो थोड़ा सा हँसी और अपने घर के तरफ चली गई। पहली ही बार में वो मेरे मन में घर कर गई थी बातें तो हमारे बीच साधारण हुई थी पर इसमें प्यार छलकता था। 

हम दोनों में इससे ज्यादा बात नहीं हुई। मैं अपने घर चला गया और वो अपने। सारी रात मैं उसके बारे में सोचता रहा था कि‍ वो कितनी सुंदर है उसकी वो लाल चेक की स्कर्ट उसका लाल टॉप। उसकी आँखों की चमक मुझे सारी रात जगाती रही थी। 

बाबा ने मेरी आँख पर पानी की छींटे मारे तब मैं होश में आया। बाबा ने कहा, “पहली बार भोले का परसाद लिया है।” 

मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा। मैं चुपचाप उठा और वहाँ से घर जाने लगा। बाबा ने कहा, “लड़की बहुत सुंदर थी तुम्हारे सपने में।” 

मुझे समझ में नहीं आया कि बाबा को कैसे मालूम हुआ मेरे सपने के बारे में! फिर भी मैंने बाबा से बात नहीं की और घर को निकल गया। 

उस चमत्कारी बाबा के बारे में मैं रात भर सोचता रहा कि‍ कैसे उन्होंने मेरे सपने को पढ़ लिया था। साथ में मेरा नाम भी पता चल गया था और ये भी कि मैं निधि के बारे में किस सोच में डूबा हुआ था।

अब मेरे प्यार की तड़प दोगुनी हो गई थी। मुझे निधि का बचपन का चेहरा याद आ रहा था। उसकी कितनी सुंदर मुस्कान थी। यह सोचते हुए मैं डर गया कि वो मुझे भूल गई थी।मेरा क्या होगा? कैसे कटेगी मेरी जिंदगी? सोचते-सोचते मैं कब सो गया, मुझे पता ही नहीं चला।

सुबह मम्मी ने मुझे एक कप चाय के साथ उठाया। और स्कूल के लिए तैयार होने को कहा। मैं भी तैयार होकर स्कूल चल दिया। जाते समय मम्मी ने दस का नोट दिया। लेकिन मैं फिर से स्कूल नहीं जा सका। मैं वहीं खारी बावड़ी चला गया। मैं वहाँ पहुँचकर सीधा खण्डहर के ऊपर सीढ़ि‍यों से चढ़ गया और ऊपर जाकर वहीं बैठ गया।

तभी देखा कि बाबाजी गाँजा पी रहे थे। मुझे देखकर वो मुस्कुराए। मैंने भी उन्हें स्माइल दी। बाबा जी मेरे पास आए और कहा, “सब माया है।” 

मैं कुछ नहीं बोला तो उन्होंने चिलम मेरे हाथ में दे दी। मैंने कुछ दम गाँजे के मारे और कल की तरह ही सब सुन्न हो गया। मैं बाबा के घुटने पर सर रखकर लेट गया। बाबा ने फिर से कहा, “सब माया है।” 

मैंने बाबाजी से कहा, “बाबाजी ये माया क्या होती है?” 

बाबा ने कहा, “ये दुनिया का जो मेला है, इसे ही माया कहा जाता है।”

“बाबा, क्या मुझे निधि मिलेगी?” 

“माया है, पर मिलेगी ठोकर खाकर।”

“पर बाबा, वो किसी और से प्यार करने लगी है।”

“हाँ पर सच्चे प्यार में नहीं, माया में पड़ी है, माया में।” बाबा के कहने भर से की निधि मुझे मिल जाएगी मेरे दिल को आराम मिला। 

“बाबा, मैं कॉलेज मेजा पाऊँगा।” 

“मैं भगवान नहीं हूँ।” वो शायद सही कह रहे थे कोई भी बाबा सब कुछ नहीं बता सकते हैं पर अपने ज्ञान से ही थोड़ा बहुत जानते जरूर हैं कि भविष्य क्या है। पर बाबाजी मुझे पहुँचे हुए ज्ञानी लगते थे।

“तो क्या नहीं पहुँच पाऊँगा?” 

“सब माया है माया।” ये कहते हुए बाबा लगातार गाँजे मेलगे रहे। 

मैंने भी बाबा से चिलम ली और खींचने लगा। तब तक खींचता रहा जब तक कल की तरह बेहोश नहीं हो गया। मैं खण्डहर की छत पर लेट गया। फिर से निधि मेरे सपने में दिखी। मैं कहीं जा रहा था। मैंने पहली बार निधि को देखा।

याद आया कि मैं मंदिर में दीवाली की पूजा के लिए गया था। निधि भी अपने परिवार के साथ चल रही थी। उसने काली स्कर्ट के साथ टॉप भी काला पहना था। वो मुझे देख रही थी मुस्कुराते हुए। मैं भी उसे शरमाते हुए देख रहा था।मेरे दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी। हालाँकि वो मुझे देखते हुए बिलकुल भी शरमा नहीं रही थी।

मेरी जिंदगी में ये पहली बार हो रहा था कि‍ कोई लड़की मुझे ऐसे देख रही थी। उसे देखकर अपने आप में जो खुशी मुझे हो रही थी, वैसी खुशी कभी नहीं हुई थी।

हम मंदिर में पहुँचे, जहाँ मैंने शिव की मूर्ति से कहा, “भगवान! ये समय ऐसे ही चलता रहे।” 

मुझे तब पहली बार प्यार का अनुभव हुआ था। शिव पर मैंने जल और दूध चढ़ाया। पीछे देखा तो निधि पूजा के इंतजार में खड़ी थी। मैंने उसे तब पहली बार पास से देखा। वो बड़ी ही सुंदर दिख रही थी। इसलिए मेरी उससे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मेरी पूजा खत्म हुई तो मैं मंदिर के गेट पर खड़ा हो गया और उसके आने का इंतजार करने लगा। गेट पर उसे देखकर मैं घर की तरफ चल दिया। निधि भी मेरे पीछे-पीछे चल रही थी। मैं उसे पलट-पलट कर देख रहा था पर डरते हुए। ऐसा अनुभव मुझे पहली बार हो रहा था। कई बार तो मैं सोचता रहा कि‍ वो या उसके परिवार का कोई आदमी ये ना कह दे कि‍ मैं क्यों पलटकर देख रहा हूँ। 

मैं अब अपने घर के पास था। मैं भगवान से मना रहा था कि हे भगवान, रास्ता और लंबा होना चाहिए था। मैंने उसे एक बार फिर देखा और घर में घुस गया। उस दिन मुझे रात भर नींद नहीं आई। सोचता रहा कि क्या यही प्यार है जो मुझे उससे पहली ही नजर में हो गया था। मैंने भगवान से मनाया कि भगवान, वो मुझे फिर से दिख जाए।

तभी अचानक मेरी नींद खुल गई। सामने बाबा थे। मैं झटपट उठ गया और रोने लगा, “क्या वो मुझे भूल गई?” 

“सब माया है माया।” बाबा ने कहा।

मैंने आँखें पोंछी और घर के लिए चल दिया। बाबा मेरे जाने तक कहते रहे, “माया है बेटा, माया है।” 

मुझे लगा कि बाबा नशे में हैं इसलिए उनका दिमाग खराब हो गया है। घर आने तक सपनों ने मेरे दिमाग में आग लगा रखी थी। मैं अभी निधि के पास जाना चाहता था पर ना जा सका। मेरी तड़प इतनी थी कि‍ मैं बयान नहीं कर सकता था। बाबा का कहना कि माया है माया मेरी समझ से बाहर था। मैं पढ़ाई करने बैठा भी तो मेरा दिमाग कहीं और था। मैं अपनी कॉपी में बस ‘निधि’ ही लिखता रहा।

शाम को मैं घर की छत पर गया, पर वहाँ सब कुछ खाली था। मजबूरी में मैं नीचे उतर आया। 

गाँजे की वजह से मैंने बहुत खाना खाया, पर पेट नहीं भर रहा था तो सोचा मम्मी को पता न चल जाए कि कुछ गड़बड़ है, इसीलिए खाना छोड़ दिया। 

तभी अमित आया और कहा, “तुम स्कूल नहीं जाते हो?” 

“तुम्हें इससे मतलब!” मैं थोड़ा सहम गया कि उसे कैसे पता चला की मैं स्कूल की जगह कहीं और दो दिन से जा रहा हूँ।

“वो मैं इसीलिए पूछ रहा था क्योंकि रास्ते में देव मिला था, वो कह रहा था कि तुम बीमार पड़े हो क्या जो स्कूल नहीं जा रहे।” सुन कर मेरे होश उड़ गए मैंने बात को सँभालने के लिए कहा “वो मजाक कर रहा होगा। वो मुझे स्कूल में मिला था। 

अच्छा ठीक है, अब यहाँ लाइट मत जलाना, मैं सो रहा हूँ कुछ देर के लिए।” मैं कंबल ओढ़कर उस में रोने लगा।

कुछ देर बाद अमित ने कहा, “चाय पीनी है?” मैंने कंबल से ही ना में सर हिला दिया और रोते हुए ही सो गया। जब उठा तो रात के दो बज रहे थे। भूख लग गई थी। किचेन में गया और फ्रीज में रखा खाना गर्म करके खाकर मैं फिर सो गया। 

अगले दिन मुझे स्कूल के रास्ते में देव मिला। देव ने कहा, “क्या तुम दो दिन से बीमार हो जो स्कूल नहीं आए थे?” 

मैंने उसे जवाब नहीं दिया तो उसने फिर से पूछा, “दो दिन स्कूल क्यों नहीं आए थे?”

“हाँ मैं कहीं चला गया था इसीलिए नहीं आया था।” 

“पर तेरा भाई तो कह रहा कि था तू घर पर ही था।” देव इसी तरह से जब मैं कोई गलती करता था मुझे समझाता था पर वो बात बचपन की थी इस नए तरह के राघव को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था की कोई इतना अन्दर तक मेरे अन्दर मेरी जिन्दगी में घुसे।

“हाँ मैं शाम को घर आ जाता था।” 

“तू झूठ बोल रहा है। सच बता कहाँ गया था?” 

मैंने देव को कुछ नहीं बताया तो उसका भाषण शुरू हो गया, “पढ़ना नहीं है जो आवारा हो गए हो?” 

मैंने खींझते हुए कहा, “पढ़ाई के अलावा कुछ काम नहीं रह गया है क्या जिंदगी में?” 

बात करते-करते हम स्कूल के गेट पर पहुँच चुके थे। मैं फिर से गेट से आगे नहीं बढ़ा तो उसने पूछा, “क्या स्कूल नहीं आना है?” 

“नहीं मैं कल से स्कूल आ जाऊँगा।” 

“पर आज क्यों नहीं?” 

“मुझे कुछ दिन शांति चाहिए।” मैं उससे ये नहीं कह सकता था मेरी निजी जिन्दगी में ना घुसे। वो मेरा बचपन का दोस्त जो था।

“पर तुम जाओगे कहाँ?” 

“खारी बावड़ी।”

“जानते नहीं वो डरावनी जगह है?” सुन कर लगा की वो अभी भी ऐसे डरता है खारी बावड़ी के नाम से की कोई बच्चा हो जिसे उस की मम्मी डराती हो। 

“जानता हूँ, पर आज नहीं आ पाऊँगा। घर पे कुछ नहीं बताना, कल से पक्का आ जाऊँगा।” 

“पर ऐसा क्या है वहाँ?” 

“वो मैं कल बता दूँगा। मुझे कुछ सवालों के जवाब तलाशने हैं। अच्छा अब चलता हूँ।” 

“सँभल कर, कहीं फँस मत जाना। लोग अच्छे नहीं हैं।” 

मैंने देव की नहीं सुनी और वहाँ से खारी बावड़ी के खण्डहर में चला गया। जैसे ही मैं वहाँ ऊपर गया तो बाबा को खोजने लगा। वो मुझे कहीं नहीं दिखे। थककर मैं वहीं बैठ गया। कोई पाँच मिनट बाद बाबा एक पेड़ से नीचे उतरे। पेड़ की डाल छत से भिड़ी थी। वो गाँजा पी रहे थे। मैंने उनसे चिलम लेनी चाही तो उन्होंने मना किया, “ये मुफत में नहीं मिलती।” 

मैंने चुपचाप अपने हाथ खींच लिए। मुझे गाँजे की तलब हो रही थी। मैं एक तरफ छत पर घूमने लगा। फिर कुछ देर में बाबा मेरे पास आए, “सब माया है।” बाबा ने ये जुमला कहते हुए चिलम मेरी तरफ कर दी। मैंने कुछ कश चिलम से मारकर चिलम बाबा को वापस दे दी और बाबा से कहा, “आप इतने ज्ञानी कहाँ से बने?”

मेरी इस बात पर बाबा हँसे, “अपने गुरुजी से। जैसे तुम्हारे स्कूल के गुरु जी हैं।”

“बाबा, कोई टोना-टोटका करके मुझे निधि से मिला दो।” 

“नहीं ऐसा कुछ नहीं हो सकता।” 

“क्या निधि मुझे मिलेगी ही नहीं?” 

“सब माया है, वो अभी माया में है।” मैं परेशान था बाबा इतने ज्ञानी होते हुए भी मेरे लिए कुछ नहीं कर रहे थे। सोचते हुए मैंने पूछा 

“वो कब निकलेगी इस मायाजाल से?” 

“खुदा जाने।”सोचने लगा वे शायद मेरे लिए कुछ नहीं कर सकते पर बाबा के इतने ज्ञानी होने का क्या फायदा जब वे मेरे छोटे से काम को ना कर पाए 

“क्या बाबा आप मुसलमान हैं?” 

“मैं इनसान हूँ।”

“तो क्या वो वंश के चक्कर में फँसी रहेगी?” 

“वंश अहंकारी माया और वासना में पड़ा है। जब वो सब जान लेगी तब तुम्हें मिल जाएगी।” 

“बाबा, वो दो दिन या महीने में आएगी?” 

मेरे इस सवाल पर बाबा हँसे और चिलम मुझे देते हुए बोले, “सब माया है।” 

मैंने चिलम वापस बाबा को दी और वहाँ से चलने लगा। तब बाबा ने पीछे से कहा, “बेटा कुछ पैसे हैं तुम्हारे पास? वैष्णो देवी जा रहा हूँ।” बाबा के पास इतने पैसे भी नहीं है की वे वैष्णो देवी जा सके इतने पहुँचे हुए हैं फिर भी। ऐसे ज्ञान का क्या फायदा।

“इतने पैसे नहीं हैं मेरे पास। बस बीस रुपये हैं।” 

बाबा हँसे, “वही दे दो।” 

मैंने दस के दो नोट बाबा को दे दिए।

“बेटा, कभी अहंकारी वासना माया में नहीं पड़ना, नहीं तो तुझे नहीं मिलेगी निधि।”

मैंने कहा, “जो आज्ञा बाबाजी। पर बाबाजी वैष्णो देवी क्यों जा रहे हो?” 

“तेरी निधि को तुझे मिलाने के लिए माता से मन्नत माँगूँगा।” सुन कर मुझे बड़ी खुशी हुई की कोई मेरी तकलीफ को समझता है।

“पर बाबाजी आप तो बहुत पहुँचे हुए हो, आप भी माता से माँगोगे?” 

“हाँ, माया में तेरे लिए पड़ गया हूँ।” इतना कहकर बाबा ठहाका मारकर हँसे तो उनके बालों की लट खुल गई। उनके बाल जमीन तक लंबे थे। 

“बेटा, बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं।” ये कहते हुए बाबा ने हाथ की चिलम फेंक दी। चिलम टूटकर दो टुकड़े हो गई। “अब ना पीऊँगा तुझे।” ये कहते हुए वहाँ से निकल गए, “जय माता वैष्णो देवी!” 

मैंने कहा, “बाबा, माया में पड़ गए हो।” 

ये सुनकर बाबाजी हँसे और आगे बढ़ गए। मैं भी अपने स्कूल के लिए निकल गया। बाबाजी की बातों से मुझ में अजब-सा आत्मविश्वास आ गया था। मैं स्कूल में पहुँचा तो पहला पीरियड निकल चुका था और सर क्लास लेकर जा रहे थे। मैं एक दूसरी क्लास में छिप गया कि कहीं मुझे इस समय आता देखकर सर कुछ पूछ ना लें। अगला पीरियड इतिहास का था। 

मैं झट से कक्षा में घुस गया सर के जाते ही। सब मुझे हैरानी से देखने लगे। देव ने कहा, मिल गया सवालों का जवाब भूतिया खण्डहर में। मैंने हाँ में सर हिला दिया।

इतिहास के टीचर भी कुछ देर में आ गए और पढ़ाने लगे। मैं तेजी से नोट्स लिखता रहा। 

क्लास खत्म हुई तो हम बाहर समोसे खाने चले गए। देव ने कई बार पूछा, “क्या करने गया था भूतिया खंडहर में?” 

लेकिन मैंने कोई ठीक से जवाब नहीं दिया देव और सोनू को। तो दोनों समझ गए कि‍ कोई खास बात है जवाब नहीं मिलने वाला है। 

स्कूल खत्म होने पर मैंने सोनू से उसके नोट्स माँगे सभी विषयों के, घर आकर मैंने खाना खाया। मैं आज खुश था। मैं जानता था निधि मुझे दोबारा मिल जाएगी। क्योंकि बाबाजी ने कहा था जानता था बाबा पहुँची हुई चीज है शाम को मेरे ट्यूटर से मैं दो महीने बाद ठीक से मन लगा कर पढ़ा था अब मुझे ऊपर जाकर निधि को देखने का मन नहीं हुआ।

रात को भी मैंने सोनू के नोट्स को भी ध्यान से पढ़ा और रात को दो बजे सोया। अमित को भी मेरी खुशी का पता था। सोते हुए अमित ने मुझे रात को चार बजे उठा दिया।

मैंने भी उसे बाबाजी के बारे में सब बताना पड़ा। पर अमित फिर भी मुझे कहता रहा कि इन बाबाओं की आधी बात सच तो आधी बात झूठ ही रहती है। मैंने कहा, “ठीक है, और मुझे कुछ देर सोने दे, नहीं तो स्कूल में सोना पड़ेगा।”

अगले दिन मैं जब स्कूल से घर आया तो मुझे काफी टाइम बाद निधि दिखी। वो भी मुझे दूर से ही देखती रही। लगा कि‍ वो मुझे बाबाजी की ही वजह से दिखी है। वो वंश की हार्ली डेविडसन से उतरी थी। मैं भी अपना भाव बढ़ाते हुए अपने घर की तरफ चल दिया।

घर पहुँचा तो अमित ने मेरे खण्डहर मेजाकर गाँजा पीने की सारी कहानी मम्मी को बता दी। मम्मी ने मुझे कई थप्पड़ के बाद अपनी हद में रहने की सलाह दी। पर मैं फिर भी खुश था। अमित मेरे लगातार थप्पड़ पड़ने से मुझसे दूर भाग रहा था। उसे लगा कि ‍मेरे थप्पड़ पड़ने से मैं उससे बदला लूँगा। 

मैंने ये सोचकर कि‍ एक भाई ने अपना फर्ज निभा दिया है, उसे कुछ नहीं कहा। कुछ घंटे बाद में ऊपर चला गया। 

निधि भी बहुत जिद्दी थी। बात बंद होते ही उसने छत पर भी आना छोड़ दिया था। मैं एक घंटा छत पर बैठा रहा उसका इंतजार करते हुए। जब वो मुझे नहीं दिखी तो मैं नीचे आ गया। बाबाजी पर मेरा पूरा विश्वास था जैसे किसी को भगवान पर हो जाता है। मुझे लगा महीने दो महीने में निधि मुझे आकर सॉरी जरूर कहेगी। 

मेरा मन अब पढ़ने मेज्यादा लगने लगा था। हालाँकि मैंने तो जाने कहाँ तक के प्लान बना लिए थे कि‍ एक दिन जब मेरी पढ़ाई पूरी होगी तो मैं निधि से ही शादी करूँगा। मैं रात को खाना खाते हुए यह सोच रहा था। मम्मी ने रोटी देते हुए कहा, “एक और?” पर मैंने मना किया। मम्मी ने कहा, “कल-परसों तो दो लोगों का खाना खाया था आज क्या हुआ?” 

मैंने कहा, “सब माया है।” इतना सुनकर मम्मी ने बेलन मारते हुए कहा, “बड़ा ढीठ है।” 

मैं हँसने लगा। मम्मी नहीं जानती थी कि मैं अब जवान हो गया था। बेलन की मार तो बच्चों की बात है। इसलिए मैं देर तक हँसता रहा।