अविनाश के निवास स्थान का पता जानना आसान था । टेलीफोन डायरेक्ट्री में उसका नाम था । सुनील उसके निवास स्थान पर पहुंचा ।
“आओ” - अविनाश उसे देखकर सरासर नकली खुशी जाहिर करता हुआ बोला - “कैसे आये ?”
“इधर से गुजर रहा था, सोचा, मिलता जाऊं ।”
“हां, हां, क्यों नहीं ? थैंक्यू वैरी मच ।”
“और एक आपसे छोटी-सी मदद की भी उम्मीद थी ।”
“क्या मदद कर सकता हूं मैं ?”
“गिरधारी लाल के बारे में कुछ बताइये ।”
“कौन गिरधारी लाल ?”
“सिग्मा एक्सपोर्ट्स वाला गिरधारी लाल । आप तो उसे अच्छी तरह जानते होंगे । आज आप मैजेस्टिक सर्कल पर स्थित उसके फ्लैट पर उससे मिलने भी गये थे ।”
अविनाश के चेहरे ने फौरन रंग बदला ।
“तुम्हें कैसे मालूम ?” - वह सुनील को घूरता हुआ बोला ।
“मैं भी गिरधारी लाल से मिलने गया था । मैंने आपको उसके फ्लैट में घुसते देखा था ।”
“ओह !” - अविनाश बोला - “गिरधारी लाल ने मुझे फोन किया था लेकिन बात नहीं हो सकी थी । बाद में मुझे मैसेज मिला था । मुझे कोई काम तो था नहीं इसलिए उससे मैं मिलने चला गया था ।”
“किस सिलसिले में ?” - सुनील ने सरल स्वर से पूछा ।
अविनाश एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मैंने आप को बताया ही है कि मैं जायसवाल इन्डस्ट्रीज में शिपिंग इंचार्ज था । गिरधारी लाल का मेरे से बहुत काम निकलता था । उसका काम मैं हमेशा पहले करवाया करता था । उसका काम अटक रहा था इसीलिए उसने फोन किया था लेकिन उसे मालूम नहीं था कि मैं जायसवाल इन्डस्ट्रीज की नौकरी से निकाला जा चुका हूं । उसे यह जानकर बहुत मायूसी हुई थी ।”
“मुझे सिग्मा एक्सपोर्ट्स का धन्धा समझ में नहीं आया ।”
“उसमें न समझ में आने वाली कोई बात ही नहीं है । सिग्मा एक्सपोर्ट्स यूं समझ लो कि जायसवाल इन्डस्ट्रीज के विदेश में बिकने वाले माल के सोल एजेन्ट हैं । माल जायसवाल इन्डस्ट्रीज का होता है, सुपरविजन जायसवाल इन्डस्ट्रीज का होता है यहां तक कि शिपिंग इंचार्ज होने के नाते माल की पैकिंग भी मैं कराता था । सिर्फ बिजनेस सिग्मा एक्सपोर्ट्स हैंडल करता था ।”
“और सेठ हुकुमचन्द जायसवाल सिग्मा एक्सपोर्ट्स के भी पार्टनर थे ?”
“हां ।”
“तो फिर गिरधारी लाल की क्या जरूरत रह गई । वह काहे का पार्टनर था ।”
“गिरधारी लाल की सबसे बड़ी जरूरत तो यही थी कि आरम्भ में जायसवाल इण्डस्ट्रीज का माल विदेशों में बिकवाने के सारे साधन उसी ने जुटाए थे ।”
“अगर ऐसा था तो गिरधारी लाल मोटी तनखाह पर सिग्मा एक्सपोर्ट्स का मैनेजर नियुक्त किया जा सकता था । उसे पार्टनर बनाने की क्या तुक हुई ।”
“भाई कोई इनकम टैक्स की बचत का भी किस्सा था जिसकी वजह से गिरधारी लाल को फर्म का पार्टनर दिखाना ज्यादा फायदे का मामला था । आखिर बड़े सेठजी कोई पागल तो थे नहीं । उन्होंने कुछ सोच समझकर ही गिरधारी लाल को फर्म का पार्टनर बनाया होगा ।”
“वैसे गिरधारी लाल शरीफ आदमी है ?”
“किस मामले में ?”
“मैंने सुना है एक्सपोर्ट के माल में लोग बहुत गड़बड़ी कर लेते हैं । लोग सब-स्टैण्डर्ड चीज भेज देते हैं या फिर मैन्यूफैक्चरर की गुडविल का फायदा उठाकर उन्हीं पेटियां में ऐसा माल भेज देते हैं जिसका एक्सपोर्ट के आर्डर से कोई वास्ता नहीं होता ।”
“नामुमकिन । माल की पैकिंग मेरी सुपरविजन में होती थी साहब । गिरधारी लाल चाहकर भी ऐसी कोई गड़बड़ नहीं कर सकता था ।”
“यानी कि यह एक्सपोर्ट का एकदम पाक साफ धन्धा था ?”
“बिल्कुल ।”
“एक बात और बताइये ।”
“क्या ?”
सुनील जानबूझकर कई क्षण चुप रहा और फिर बोला - “सरिता से आपका अब भी कोई रिश्ता है ?”
“क्या मतलब ?”
“मेरे सुनने में आया है कि दो साल पहले आप में और सरिता में गहरे प्रेम-सम्बन्ध थे ।”
अविनाश हत्थे से उखड़ गया ।
“देखो मिस्टर” - वह भरसक अपने स्वर को सन्तुलित रखता हुआ बोला - “सरिता एक विवाहित स्त्री है और उसका पति समाज का एक बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति है । उसके चरित्र पर कीचड़ उछालने की कोशिश करना तुम्हारे लिए बहुत महंगा साबित हो सकता है ।”
“मैं किसी के चरित्र पर कीचड़ थोड़े ही उछाल रहा हूं मैं तो केवल आपसे बात कर रहा हूं ।”
“इस विषय पर मुझसे भी बात मत करो । गड़े मुर्दे उखाड़ने से कोई फायदा नहीं होता, केवल दुर्गन्ध ही फैलती है ।”
“जैसी आपकी मर्जी । अगर मेरे मुंह से कोई अप्रिय बात निकल गई हो तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूं ।”
अविनाश चुप रहा ।
“मुझे इजाजत दीजिये ।” - सुनील उठता हुआ बोला ।
अविनाश ने यूं उससे हाथ मिलाया जैसे वह कोई बहुत ही नागवार गुजरने वाला काम कर रहा हो ।
***
बीच रोड पर सिग्मा एक्सपोर्ट्स का एक छोटा-सा गोदाम था ।
रात के नौ बजे थे जब सुनील बीच रोड पर पहुंचा ।
गोदाम के सामने अन्धेरा था । गोदाम के निशाल प्रवेश द्वार का शटर उठा हुआ था । गोदाम के भीतर भी कोई बत्ती नहीं जल रही थी ।
दरवाजे के साथ लगी एक कार खड़ी थी । दो आदमी उसकी डिकी में गोदाम में से ला लाकर पेटियां रख रहे थे ।
कार के हुड के साथ टेक लगाये गिरधारी लाल का सैक्रेटरी कुमार खड़ा था ।
सुनील दूर ही ठिठक गया ।
दोनों आदमियों ने डिकी बन्द कर दी और वे कार की पिछली सीट पर बैठ गये । कुमार ड्राइविंग सीट पर आ बैठा । कार स्टार्ट हुई, आगे बढी और मोड़ काट कर दृष्टि से ओझल हो गई ।
गोदाम में से एक आदमी बाहर निकाला । उसने शटर को तीन चौथाई नीचे गिरा दिया और बाहर पटड़ी पर बैठकर बीड़ी पीने लगा ।
सुनील कुछ क्षण चुपचाप खड़ा रहा और फिर अपने जूतों से ज्यादा से ज्यादा शोर करता हुआ आगे बढा ।
बीड़ी पीता आदमी उसकी ओर देखने लगा ।
सुनील सीधा उसके समाने जा खड़ा हुआ - “तुम चौकीदार हो ?”
“हां, जी ।” - वह आदमी हड़बड़ाकर बोला ।
“कोई कुमार साहब तुम्हें सड़क के मोड़ पर बुला रहे हैं ।”
“क्यों ?”
“गाड़ी ठण्डी हो गई है । धक्का लगाना पड़ेगा । जल्दी जाओ ।”
और सुनील बिना दोबारा उसकी ओर देखे आगे बढ गया ।
चौकीदार ने बीड़ी फेंक दी । उसने शटर को एकदम नीचे तक गिरा दिया और तेज कदमों से सड़क के मोड़ की ओर बढ चला ।
सुनील तुरन्त पलटा । वह लपक कर गोदाम के सामने पहुंचा और शटर के साथ जमीन पर लेट गया । उसने चुपचाप शटर को लगभग एक फुट ऊपर सरकाया और फिर लेटे लेटे ही शटर के नीचे से भीतर सरक गया । उसने शटर को दोबारा जमीन के साथ मिला दिया ।
एक क्षण के लिए उसने जेब से निकाल कर अपना सिगरेट लाइटर जलाया । गोदाम में लगी सैंकड़ों पेटिंयों से अलग दरवाजे के आगे सात आठ पेटियां पड़ी थीं । एक कोने में सुनील को एक बड़ा सा सुआ दिखाई दिया ।
सुनील ने सुआ उठा लिया और लाइटर बुझा दिया ।
तब तक बाहर चौकीदार लौट आया था और बड़बड़ाता हुआ सुनील को गन्दी गन्दी गालियां दे रहा था ।
एक पेटी की दो तख्तियों के बीच में सुनील से सुआ धकेल दिया । भीतर सुआ किसी सख्त चीज से टकराया । सुनील ने सुआ और आगे धकेला । सुआ मूठ तक पेटी में घुस गया ।
उसने सुआ वापिस खींचा । एक विचित्र सी गन्ध उसके नथुनों से टकराई । सुनील सुआ अपने नाक के पास ले आया और फिर हैरानी से उसके नेत्र फैल गये ।
वह अफीम की गन्ध थी ।
सुनील ने सुए को सामने की दीवार की ओर खींच मारा । साथ ही उसने दो तीन बार अपना पांव जमीन पर पटका और फिर शटर की बगल में दीवार के साथ चिपक कर खड़ा हो गया ।
शटर तुरन्त ऊपर उठा । चौकीदार भीतर प्रविष्ट हुआ । उसके हाथ शटर की दूसरी ओर की दीवार पर कुछ टटोलने लगे ।
सुनील निशब्द गोदाम से बाहर निकल आया ।
उसी क्षण भीतर गोदाम में बत्ती जल उठी ।
सुनील गोदाम से थोड़ी दूर पड़े एक कूड़े के ड्राम के पीछे छुप गया ।
थोड़ी देर बाद गोदाम की बत्ती बुझ गई । चौकीदार बाहर निकला । उसने शटर गिराया और फिर शटर के साथ पीठ लगाकर बैठ गया ।
पुलिस को फोन करने का फायदा नहीं था । पेटियां वहां से हटाई जा रही थीं । जब तक वारन्ट वगैरह हासिल करने के बाद पुलिस वहां पहुंचती, तब तक वहां कुछ भी बाकी नहीं रहना था ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद कार वापिस लौटी ।
चौकीदार ने फुर्ती से गोदाम का शटर उठा दिया ।
पहले वाले दो आदमी और कुमार कार से बाहर निकले ।
डिकी में पेटियां फिर भरी जाने लगीं ।
सुनील ड्रम के पीछे से निकला और चुपचाप उस ओर बढ गया जिधर उसने मोटर साइकिल खड़ी की थी ।
लगभग पांच मिनट बाद कार स्टार्ट हुई और तेजी से आगे बढ गई ।
सुनील ने फुर्ती से मोटर साइकिल को किक मारी । साढे सात हार्स पावर का इन्जन जोर से गर्जा । मोटर साइकिल एक झटके के साथ आगे बढी ।
सुनील कार में और अपनी मोटर साइकिल में बहुत फासला रख कर कार का पीछा करता रहा ।
कार नगर की घनी आबादी वाले इलाकों में गुजरने लगी । हर्नबी रोड के भारी मोटर ट्रैफिक में सुनील का कार पर निगाह रख पाना मुश्किल हो गया । वह तीन चार गाड़ियों को ओवर-टेक करके अपनी मोटर साइकिल कार के ज्यादा करीब ले आया ।
कार हर्नबी रोड के चौराहे पर पहुंच रही थी ।
कार चौराहे से पार हुई ।
उसी क्षण ट्रैफिक लाइट हरी से लाल हो गई ।
सुनील के आगे की गाड़ियां रुक गई । सुनील को मजबूरन रुकना पड़ा ।
जब तक बत्ती दुबारा लाल से हरी हुई तब तक कुमार की कार पता नहीं कहां गायब हो गई थी ।
सुनील वापिस बीच रोड पर सिग्मा एक्सपोर्ट्स के गोदाम पर पहुंचा ।
गोदाम पर ताला पड़ चुका था और अब चौकीदार भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था ।
निराश सुनील वापिस लौट पड़ा ।
एक पब्लिक टैलीफोन से उसने गिरधारी लाल के फ्लैट पर फोन किया । कितनी ही देर घन्टी बजती रही लेकिन कोई जबाब नहीं मिला ।
उसने रिसीवर हुक पर टांग दिया ।
वह पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
संयोगवश प्रभूदयाल हैडक्वार्टर में मौजूद था ।
“प्रभू” - सुनील धम्म से एक कुर्सी पर बैठता हुआ बोला - “तुम्हें हमेशा मुझे से शिकायत रहती है कि मैं पुलिस को सहयोग नहीं देता । आज मैं पुलिस को सहयोग देने की खातिर ही यहां आया हूं । मैं तुम्हें एक बड़ी सनसनीखेज बात बताने आया हूं ।”
“मुझे सनसनीखेज बात बताने में भी जरूर तुम्हारा कोई स्वार्थ होगा वर्ना मुझे तो तुम घड़ी देखकर टाइम न बताओ ।”
“अब दिल तोड़ने की बात मत करो ।”
“कौन सा तोप का गोला लाये हो ?”
“पहले एक वादा करो ।”
“क्या ?”
“कि जानकारी हासिल हो जाने के बाद तुम मुझे दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर अलग नहीं करोगे ।”
“आल राइट” - प्रभूदयाल अच्छे मूड मे मालूम होता था - “किया वादा ।”
“कल रात नौ बजे सिग्मा एक्सपोर्ट्स का पार्टनर गिरधारी लाल माला जायसवाल की कोठी पर उससे मिलने गया था ।” - सुनील बोला ।
प्रभूदयाल एकदम तन कर कुर्सी पर बैठ गया । उसके नेत्र फैल गये ।
“क्या ?” - वह हैरानी से बोला ।
सुनील ने सुबह अपने और गिरधारी लाल के बीच में हुआ सारा वार्तालाप दोहरा दिया ।
“तुमने यह बात पुलिस से छुपाकर क्यों रखी ?” - सारी बात सुन चुकने के बाद प्रभूदयाल हत्थे से उखड़ गया । वह मेज पर घूंसा मार कर चिल्लाया - “तुमने यह बात हमें पहले क्यों नहीं बताई ?”
“मौका नहीं लगा” - सुनील साफ झूठ बोलता हुआ बोला - “मैंने तीन चार बार फोन किया था लेकिन हर बार मुझे यही जवाब मिला कि तुम हैडक्वार्टर पर नहीं हो ।”
“तुम मेरे लिए मैसेज छोड़ सकते थे । मै खुद तुम्हें तलाश कर लेता ।”
“यह मेरी गलती थी” - सुनील ने बड़ी शराफत से स्वीकार किया - “यह बात मुझे सूझी नहीं । आई एम सॉरी, प्रभू ।”
“कोई और बात जो तुम्हें बाद में याद आने वाली हो ?”
“वही बताने जा रहा हूं ।” - सुनील बोला - “गिरधारी लाल सिग्मा एक्सपोर्ट्स की गुडविल के दम पर अफीम की स्मगलिंग कर रहा है ।”
“क्या !”
सुनील ने उसे गोदाम वाली घटना सुनाई और बोला - “प्रभू, अब क्या तुम्हें गिरीश से बड़ा सस्पैक्ट गिरधारी लाल नहीं लगता ? शायद माला को किसी तरह पता लग गया हो कि गिरधारी लाल जायसवाल इन्डट्रीज के माल की पेटियों मे अफीम छुपा कर विदेश भेजता था । वह माला को अपनी जुबान बन्द रखने के लिए अनुरोध करने के लिए वहां गया हो लेकिन माला सारे सिलसिले की सूचना पुलिस को देने के लिए तुली हुई हो और माला की जुबान सदा के लिए बन्द रखने के लिए गिरधारी लाल ने उसका खून कर दिया हो ।”
प्रभूदयाल ने तुरन्त कुर्सी छोड़ दी । खूंटी पर से उतार कर उसने अपनी टोपी सिर पर लगाई और बोला - “आओ मेरे साथ ।”
“कहां ?”
“गिरधारी लाल के यहां । तुम्हें मालूम है न कहां रहता है ?”
“मालूम है ।”
प्रभूदयाल की जीप पर वे मैजेस्टिक सर्कल की ओर रवाना हो गए ।”
“एक और मजेदार बात मालूम हुई है मुझे ।” - रास्ते में सुनील बोला ।
“तुम यह अपनी किश्तों में बात करने वाली आदत छोड़ोगे नहीं ?” - प्रभूदयाल नाराजगी भरे स्वर से बोला ।
“यह आखिरी बात है ।”
“अब कह भी चुको ।”
“दो साल पहले अविनाश और माला की छोटी बहन की मुहब्बत के चर्चे बहुत मशहूर थे ।”
प्रभूदयाल कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “मैंने अविनाश के बारे में पूछताछ करवाई थी लेकिन यह बात मुझे तो किसी ने नहीं बताई थी ।”
“इत्तफाक की बात है । अविनाश के बारे में कोई खास बात मालूम हुई ?”
“खास कुछ नहीं । सिर्फ यह मालूम हुआ है कि वह बहुत गुस्सैल स्वभाव का आदमी है । बहुत जल्दी ताव खा जाता है । मामूली-सी बात पर सिर फुटौवल पर उतर आता है । जायसवाल इन्डस्ट्रीज में किसी न किसी के साथ उसकी तू-तू मैं-मैं होती ही रहती थी ।”
प्रभूदयाल ने जीप को मैजेस्टिक सर्कल पर ले जाकर खड़ा कर दिया ।
सुनील उसे गिरधारी लाल के फ्लैट के सामने ले आया ।
प्रभूदयाल ने घण्टी बजाई ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
प्रभूदयाल ने जोर से दरवाजा भड़भड़ाया ।
दरवाजा भीतर की ओर खुल गया ।
प्रभूदयाल ने भीतर झांका ।
भीतर रोशनी शी । ड्राइंग रूम के फर्श पर गिरधारी लाल की लाश पड़ी थी । किसी ने उसका भेजा उड़ा दिया था ।
***
गिरधारी लाल की हत्या एक 32 कैलिबर के रिवाल्वर से निकली गोली से हुई थी । मौत तुरन्त हो गई थी और प्रभूदयाल को घटनास्थल से हत्यारे की ओर संकेत करने वाला कोई सूत्र नहीं मिला था ।
प्रभूदयाल ने कुमार को घेरा था लेकिन वह कुमार से कुछ भी कुबुलवा पाने मे कामयाब नहीं हो सका था । उसने सिग्मा एक्सपोर्ट्स के गोदामों की तलाशी ली थी और सैकड़ों पेटियां खुलवा कर देखी थीं । कहीं अफीम का नामोनिशान भी नहीं था । कुमार ने इस बात से साफ-साफ इनकार किया था कि उसने अफीम की पेटियां वहां से उठवा कर कहीं और पहुंचा दी थीं । उसके कथनानुसार वह शाम को तो उस गोदाम के पास फटका भी नहीं था । चौकीदार ने भी यही बयान दिया था कि कुमार साहब उस शाम को वहां नहीं आये थे और उस शाम को माल गोदाम से कोई माल नहीं निकाला गया था ।
लाचार प्रभूदयाल ने कुमार को हैडक्वार्टर से चला जाने दिया ।
“तुम्हें एक नेक राय दे रहा हूं, रिपोर्टर साहब ।” - प्रभूदयाल गम्भीर स्वर से बोला ।
“क्या ?”
“कहीं गुम हो जाओ ।”
“क्यों ?”
“अब खुदा के घर पहुंचने की तुम्हारी बारी है ।”
सुनील चुप रहा ।
“गिरधारी लाल की हत्या साफ जाहिर करती है कि किसी ने उसका मुंह बन्द करने के लिए ही उसका खून किया है । शायद गिरधारी लाल ने बुधवार रात को साढे दस बजे माला जायसवाल की कोठी से निकलते समय हत्यारे को भीतर जाते देखा था । बाद में शायद उसने हत्यारे को ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी और हत्यारे ने उसका काम तमाम कर दिया था । तुम्हारी गिरधारी लाल से बात हो चुकी है । हत्यारा यह बात जरूर जानता होगा कि गिरधारी लाल हत्या की रात को माला से मिला था, यह बात पुलिस नहीं जानती लेकिन तुम जानते थे । हत्यारा सोच सकता है कि शायद गिरधारी लाल ने उसके बारे में तुम्हें कुछ बताया हो इसलिए अगला नम्बर अब तुम्हारा ही है । मेरी राय मानो और सारा किस्सा ठण्डा हो जाने तक नहीं खिसक जाओ ।”
“मैं सोचूंगा ।” - सुनील बोला ।
“यानी कि तुम मेरी राय पर अमल नहीं करोगे ।”
“मैं सोचूंगा ।”
सुनील ने प्रभूदयाल से हाथ मिलाया और वहां से विदा हो गया ।
***
लैटर बाक्स में एक चिट्ठी पड़ी थी ।
सुनील ने चिट्ठी निकाल ली । चिट्ठी पर उसका नाम और पता टाइप किया हुआ था । लिफाफे पर डाक टिकट नहीं लगी हुई थी । प्रत्यक्षत: चिट्ठी डाक से नहीं आई थी । कोई खुद ही उसे लैटर बाक्स में डाल गया था ।
सुनील लिफाफा खोलता हुआ अपने फ्लैट की ओर जाने वाली सीढियों की ओर बढा ।
लिफाफे पर लिखी चिट्ठी पर निगाह पड़ते ही वह सीढियों पर ही धमक कर खड़ा हो गया । चिट्ठी में लिखा था:
खुल गया ! खुल गया ! ! खुल गया ! ! !
फ्री श्मशान घाट
अब आपको मरने के बाद इस बात की चिन्ता करने की जरूरत नहीं कि आपका क्रिया-कर्म कैसे होगा ?
हमारे शमशान घाट की अनोखी आफर:
फ्री लकड़ियां !
फ्री कफन !
फ्री आहुति !
हमारी सेवाओं से आज ही लाभ उठाइए । और जल्दी से जल्दी जिंदगी से किनारा कीजिए ।
काजी दुबला बाहर के अन्देशे जैसी नीयत वाले अखबार के रिपोर्टरों के लिए एडवांस बुकिंग की विशेष सुविधा ।
सुनील ने चिट्ठी लपेट कर जेब में रख ली । ऐसी क्लासिकल धमकी उसे आज तक नहीं मिली थी । केवल हत्यारा सुनील की आदत नहीं जानता था । धमकी से डरकर केस से किनारा कर लेने के स्थान पर वह केस की तह तक पहुंचने के लिए और भी दृढ प्रतिज्ञ हो गया था ।
सुनील के फ्लैट में प्रविष्ट होने से पहले ही बैडरूम में टेलीफोन की घन्टी बज रही थी ।
सुनील लपक कर टेलीफोन के पास पहुंचा । उसने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोला - “हल्लो ।”
“मिस्टर सुनील !” - दूसरी ओर से कोई उतावले स्वर से बोली ।
“बोल रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम सरिता है । सरिता जायसवाल । माला की छोटी बहन । मैं तुम से मिलना चाहती हूं ।”
“किसलिए ?”
“यह मैं मुलाकात होने पर ही बताऊंगी ।”
“बेहतर । मैं कल आपकी कोठी पर हाजिर हो जाऊंगा ।”
“कल नहीं । आज ही । अभी । और मेरी कोठी पर नहीं ।”
“तो फिर कहां ?”
“अभी ग्यारह बजे हैं । तुम साढे ग्यारह बजे तक राजनगर सैन्ट्रल स्टेशन पर टेलीफोन बूथों के पास पहुंच जाओ ।”
“मैं पहुंच जाऊंगा लेकिन किस्सा क्या है ?”
“साढे ग्यारह बजे । राजनगर सैन्ट्रल स्टेशन पर । टेलीफोन पर बूथों के पास । जरूर पहुंच जाना, मिस्टर सुनील ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और उल्टे पांव फ्लैट से बाहर निकल गया ।
ग्यारह पच्चीस पर वह राजनगर सैन्ट्रल स्टेशन पर निर्दिष्ट स्थान पर पहुंच गया । वह टेलीफोन बूथों के सामने एकदम खाली पड़े एक बैंच पर बैठ गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
बारह बज गए ।
सरिता नहीं आई ।
सुनील का सिगरेटों का पैकेट खतम हो गया ।
सरिता नहीं आई ।
क्रोध से उफनता हुआ सुनील अपने स्थान से उठा और टेलीफोन बूथ में घुस गया । उसने डायरेक्ट्री में शान्ति स्वरूप के घर का नम्बर देखा और वह नम्बर डायल कर दिया । दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह अपने स्वर को भरसक सन्तुलित करता हुआ बोला - “सरिता मेम साहब से बात कराओ ।”
“इस वक्त !” - दूसरी ओर से कोई उपेक्षापूर्ण स्वर से बोला ।
“हां, इस वक्त” - सुनील कठोर स्वर से बोला - “मैं पुलिस हैडक्वार्टर से बोल रहा हूं ।”
दूसरी ओर चुप्पी छा गई । दो मिनट बाद उसे फोन पर सरिता की आवाज सुनाई दी ।
“मैं सुनील बोल रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“बोलिए ।”
“राजनगर सैन्ट्रल स्टेशन अपने स्थान से हिला भी नहीं है । वह अभी भी वहीं है ।”
“क्या मतलब ?”
“मेम साहब, आप तो यहां साढे ग्यारह बजे तक तशरीफ लाने वाली थीं । अब तो साढे बारह बज गए हैं ।”
“साढे ग्यारह बजे राजनगर सैन्ट्रल स्टेशन पर आने वाली थी ?” - सरिता का हैरानी भरा स्वर सुनाई दिया - “क्यों ?”
“मुझसे मिलने ?”
“आप होश में तो हैं, मिस्टर सुनील । आधी रात को आप मुझे नींद से जगाकर ऊटपटांग बातें सुना रहे हैं ।”
“आपने मुझे फोन नहीं किया था ? आपने मुझे साढे ग्यारह बजे राजनगर सैन्ट्रल स्टेशन पर मिलने के लिए नहीं कहा था ?”
“मैं भला ऐसी कोई बात आपसे क्यों कहती ?”
एक क्षण सुनील के मुंह से बोल नहीं फूटा । उसे निस्सन्देह सरिता ने फोन किया था । सरिता की आवाज पहचानने में उससे भूल नहीं हुई थी ।
“मेरे साथ यह घिस्सा नहीं चलेगा, मैडम” - सुनील दांत भींचकर बोला - “आप मुझे बेवकूफ बनाना चाहती हैं । आप...”
“गुड नाइट मिस्टर सुनील ।”
दूसरी ओर से रिसीवर क्रेडिल पर पटके जाने की आवाज आई ।
सुनील ने रिसीवर हुक पर टांग दिया । वह बूथ से बाहर निकल आया । एक बार तो उसका जी चाहा कि वह सीधा सरिता की कोठी पर पहुंच जाये लेकिन फिर उसने यह विचार अपने दिमाग से निकाल दिया । इतनी रात गए सरिता उससे मिलने के लिए हरगिज तैयार नहीं होती ।
वह यूथ क्लब पहुंचा ।
रमी की महफिल जमी हुई थी ।
“आओ प्यारयो” - रमाकान्त उसे देखकर बोला - “इतनी रात गए तो तुम आज तक यूथ क्लब में नहीं आए कभी ।”
सुनील एक कुर्सी घसीट कर उस पर ढेर हो गया ।
“वेटर !” - वह उच्च स्वर में बोला ।
वेटर तत्काल हाजिर हुआ ।
“ब्रांडी । डबल पैग । फौरन ।”
“यस सर” - वेटर तत्पर स्वर से बोला - “राइट अवे सर ।”
“साला अंग्रेज” - सुनील होंठों में बुदबुदाया - “मैं उसे अनपढ समझ कर हिन्दोस्तानी में बोल रहा हूं और वह जवाब में अंग्रेजी झाड़ रहा है ।”
“इन्टर पास है ।” - रमाकांत बोला ।
सुनील ने रमाकांत का चार मीनार का पैकेट उठाया और उसमें से निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया । सुनील ने सिगरेट के दो कश लगाये । उसने बुरा सा मुंह बनाया और सिगरेट को ऐश ट्रे में झोंक दिया ।
“माले मुफ्त, दिले बेरहम ।” - रमाकांत धीरे से बोला ।
“क्या कहा ?” - सुनील आंखें निकालकर बोला ।
“कुछ नहीं । कहीं से पिट कर आये हो क्या ?”
“हां ।”
“यानी कि वाकई ?”
“अरे कहा ना हां ।”
वेटर सुनील के सामने ब्रांडी का गिलास रख गया ।
“मेरे भी बांटो ।” - वह गेम खतम होने पर सुनील बोला ।
“अब मेरा घाटा पूरा हो जाएगा ।” - एक अन्य खिलाड़ी रमाकांत से बोला ।
“कैसे ?”
“अखबारची गुस्से में है । जरूर हारेगा ।”
सुनील कुछ नहीं बोला ।
दो बजे तक वह रमी खेलता रहा । तब तक उसका गुस्सा शान्त हो गया था । ब्रांडी ने तो उसका मूड सुधारा ही था साथ ही इस बात से भी फर्क पड़ा था कि वह केवल पांच रुपये हारा था जबकि उसे कम से कम सौ रुपये हारने का अन्देशा था ।
सुनील यूथ क्लब से निकल आया । वह मोटर साइकिल पर बैंक स्ट्रीट पहुंचा । सारे रास्ते वह एक ही बात सोचता आया था । कहीं सरिता की आवाज पहचानने में वाकई उससे गलती तो नहीं हुई थी ।
उसी सन्दर्भ में उसे एक बात याद आई ।
माला की कोठी में उसने उस रोज का पूरा अखबार बैडरूम में देखा था । बाद में जब प्रभूदयाल बैडरूम में अखबार देखने गया था तो वहां अखबार के बीच के ही चार सफे मौजूद थे । बाहर के चार सफे वहां नहीं थे । उस दौर में बैडरूम में केवल सरिता ही गई थी । कहीं आधा अखबार गायब हो जाने से उसका सम्बन्ध तो नहीं था । और कहीं इसी सिलसिले में तो उसने सुनील को फोन नहीं किया था ।
लेकिन वह तो कहती थी कि उसने फोन किया ही नहीं ।
जरूर झूठ बोल रही थी वह ।
और अखबार में ऐसा विशेष महत्वपूर्ण क्या था ?
नम्बर तीन बैंक स्ट्रीट के सामने उसने अपनी मोटर साइकिल रोकी । मोटर साइकिल को ताला लगाकर वह दूसरी मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट के सामने पहुंचा । उसने जेब से चाबी निकाली ।
उसका चाबी वाला हाथ ताले से दूर ही ठिठक गया ।
दरवाजा खुला था ।
सुनील ने होंठों पर जुबान फिराई ।
क्या वह स्टेशन पर पहुंचने की जल्दी में ताला खुला ही छोड़ गया था ।
सुनील ने चाबी जेब में डाली और धीरे से द्वार को धक्का दिया । वह सावधानी से भीतर प्रविष्ट हुआ । भीतर अन्धेरा था ।
दरवाजे की बगल में से एक साया उस पर कूद पड़ा । सुनील लड़खड़ा कर पीछे हट गया । साया छलांग मारकर बाहर की ओर भागा । सुनील साये पर झपटा । उसके हाथ में साये की टांग आ गई । साया मुंह के बल चौखट के पास गिरा । सुनील ने टांग छोड़ दी और उसे पीछे से जकड़ने की कोशिश की । साये ने बड़ी फुर्ती से करवट बदली और उठकर खड़ा हो गया । सुनील भी उठा ।
एक जोर का घूंसा सुनील के जबड़े से टकराया । सुनील की आंखों के सामने अन्धेरा आ गया । दूसरा घूंसा सुनील के पेट में पड़ा और वह दोहरा हो गया ।
साया बाहर की ओर लपका ।
सुनील ने फिर हवा में हाथ मारे ।
इस बार साये के कोट की एक जेब पर उसका हाथ पड़ा । कपड़ा फटने की आवाज आई और कोट की जेब उखड़ कर सुनील के हाथ में आ गई ।
साया घूमा । उसने उछलकर एक दुलत्ती सुनील की छाती पर जमाई । सुनील फिर जमीन चाट गया । उसका सिर भड़ाक से दीवार के साथ टकराया । उसकी आंखों के सामने सितारे नाच गए ।
साया कूदकर फ्लैट से बाहर निकल गया और अगले ही क्षण वह यह जा वह जा ।
जब तक सुनील अपने आपको सम्भाल पाया तब तक साया वहां से गायब हो चुका था । सुनील तीन तीन सीढियां फांदता नीचे गली में पहुंचा ।
गली सुनसान पड़ी थी ।
भारी कदमों से वह वापस लौट आया ।
उसने फ्लैट में आकर ड्राइंग रूम की बत्ती जलाई ।
उसके मुंह से एक सिसकारी निकल गई ।
ड्राइंग रूम के एक सोफे पर सरिता की लाश पड़ी थी । गोली सीधी दिल से आरपार हो गई थी ।
***
बाकी की सारी रात प्रभूदयाल ने उसे पलक नहीं झपकने दी । लाश की बरामदी के बाद की रुटीन पूरी हो जाने के बाद वह सुनील को पुलिस हैडक्वार्टर ले आया ।
तब तक सुबह के सात बज चुके थे ।
“तुम तो पेटी में बन्द करके दिसावर में भेजे जाने लायक आदमी हो ।” - प्रभूदयाल असहाय भाव से बोला ।
“मेरी क्या गलती है इसमें ?” - अनिद्रा और थकावट की वजह से सुनील के स्वर में चिड़चिड़ापन आ गया था ।
“हां साहब, आपकी क्या गलती है । गलती तो मुझ बदनसीब की है जो न सिर्फ पुलिस में भरती होने की हिमाकत कर बैठा बल्कि उस शहर में इन्स्पेक्टर नियुक्त हुआ जहां आप जैसी चीज जलवाफरोज हो रही थी ।”
“ऐसी जली कटी सुनाने का क्या फायदा ? मेरी टांग खींचने से क्या केस हल हो जाएगा ।”
“तुम्हें अच्छी तरह याद है कि बाहर निकलते समय तुमने अपने फ्लैट में ताला लगाया था ?”
“हां ।”
“तो फिर सरिता फ्लैट के भीतर कैसे पहुंची ?”
“शायद हत्यारा वहां पहले पहुंचा हो और उसने ताला खोला हो ।”
“जो साया फ्लैट में तुम पर कूदा था, तुमने उसकी सूरत देखी ?”
“नहीं । बहुत अंधेरा था ।”
“तुम्हारे पास यह जानने का कोई साधन नहीं कि वह कौन था ?”
“नहीं ।”
“वह हत्यारा था ?”
“शायद हो ।”
“तुमने लाश को छुआ था ?”
“नहीं ।”
“तुम लाश के पास गए थे ?”
“नहीं ।”
“तो फिर तुम्हारे कोट के कालर पर खून कहां से आया ?”
“ओ इन्स्पेक्टर साहब, मुझे कितनी बार दोहराना पड़ेगा कि मेरी उस साये से तगड़ी हाथापाई हुई थी । उसी की नाक वाक से कहीं से खून निकला होगा और मेरे कन्धे पर लग गया होगा ।”
“बशर्ते कि ऐसा कोई साया तुम्हारी कल्पना की उपज न हो ?”
“वाह क्या बात कही है । यानी कि मैंने खुद अपनी पिटाई करायी ।”
“मुझे तो तुम्हारी पिटाई हुई दिखाई नहीं देती ।”
“अच्छी बात है और वह साए के कोट की जेब जो कटकर मेरे हाथ में आ गई थी ।”
“मुमकिन है वह तुम्हारा अपना ही कोट हो और साए की बात को कलर देने के लिए तुमने वहां सबूत तैयार कर लिया हो ।”
“अगर ऐसा है तो कटी जेब वाला कोट कहां गया ? तुमने तो मेरे सारे फ्लैट की तलाशी ली थी ।”
“तुमने कोट कहीं पहले ही इधर उधर कर दिया होगा । पुलिस तो घटनास्थल पर बहुत देर बाद पहुंची थी ।”
“तुम इन बातों से क्या नतीजा निकालना चाहते हो ?” - सुनील हारकर झल्लाये स्वर से बोला - “कि सरिता का खून मैंने किया है ।”
“तुम सरिता से आखिरी बार कब मिले थे ?” - प्रभूदयाल यूं बोला जैसे उसने सुनील की बात सुनी ही न हो ।
“माला की हत्या की रात को माला के फ्लैट पर मैं उससे पहली और आखिरी बार मिला था ।”
“यानी कि बुधवार की रात के बाद से तुम्हारी सरिता से दुबारा मुलाकात नहीं हुई ?”
“नहीं ।”
“श्योर ?”
“श्योर ।”
प्रभूदयाल ने अपनी बगल में खड़े सब इन्स्पेक्टर को संकेत किया ।
सब-इन्स्पेक्टर कमरे से बाहर निकल गया । थोड़ी देर बाद जब वह वापिस लौटा तो उसके साथ शान्ति स्वरूप था । शान्ति स्वरूप के चेहरे से गहरी मनहूसियत बरस रही थी और वह एक बेहद टूटा हुआ इनसान लग रहा था । अपनी पत्नी की मौत से उसे सख्त सदमा पहुंचा मालूम होता था ।
“तशरीफ रखिए, साहब ।” - प्रभूदयाल नम्र स्वर से बोला ।
शान्ति स्वरूप यन्त्रचलित सा सुनील की बगल में एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“मैं असुविधा के लिए माफी चाहता हूं, शान्तिस्वरूप जी ।” - प्रभूदयाल विनम्र स्वर से बोला - “लेकिन मैं आपका कम से कम समय लूंगा ।”
शान्ति स्वरूप चुप रहा ।
“आप इस आदमी को जानते हैं ?” - प्रभूदयाल का इशारा सुनील की ओर था ।
शान्ति स्वरूप ने एक उड़ती निगाह सुनील पर डाली और फिर धीमे स्वर से बोला - “यह सुनील है । इसके फ्लैट पर मेरी बीवी की लाश पाई गई थी ।”
“हाल ही में आपकी बीवी में और इसमें कोई बातचीत हुई थी ?”
“हुई थी । पिछली रात को ग्यारह बजे । फोन पर ।”
“आपको कैसे मालूम हुआ ?”
“मेरी कोठी के हाल में जो टेलीफोन है उसी का पैरेलल कनैक्शन बैडरूम में भी है । मैंने कहीं टेलीफोन करने के लिए बैडरूम का फोन उठाया तो मेरे कानों में सरिता और सुनील की आवाज पड़ी । प्रत्यक्षत: मेरी बीवी हाल के टेलीफोन से पहले ही इस आदमी से बात कर रही थी । थोड़ा सा ही वार्तालाप मेरे कानों में पड़ा था क्योंकि मैंने रिसीवर रख दिया था ।”
“क्या वार्तालाप सुना था आपने ?”
“मेरी बीवी सुनील से मुलाकात का समय तय कर रही थी ।”
“मुलाकात की जगह का जिक्र नहीं आया ?”
“आया होगा । मैंने सुना नहीं ।”
“आपकी बीवी सुनील से क्यों मिलना चाहती थी ?”
“मुझे नहीं मालूम । मैं अपनी बीवी के निजी मामले में कभी दखल नहीं देता ।”
“पिछली रात को जब आपकी बीवी सुनील के फ्लैट को रवाना हुई थी, उस वक्त आप कहां थे ?”
“अपने बैडरूम में सोया पड़ा था । मैं नींद की गोलियां खाने का आदी हूं । मुझे मालूम नहीं हो पाया था कि वह कब वहां से गई थी ।”
“आखिरी बार आपने अपनी बीवी को कब और कहां देखा ?”
“लगभग तीन बजे रात को । सुनील के फ्लैट पर ।”
“बहुत मेहरबानी साहब” - प्रभूदयाल पटाक्षेप करता हुआ बोला - “सहयोग के लिये बहुत बहुत धन्यवाद । हम आपको दुबारा तकलीफ नहीं देंगे ।”
शान्ति स्वरूप उठा और बिना किसी ओर देखे या एक शब्द बोले कमरे से बाहर निकल गया ।
“शान्ति स्वरूप ने क्या कहा, तुमने सुना ?” - प्रभूदयाल सुनील से बोला ।
“सुना ।” - सुनील बोला ।
“अब भी तुम यही कहते हो कि बुधवार रात के बाद से तुमने सरिता को जीवित कभी नहीं देखा ।”
“हां ।”
“क्या हां ?”
“मैं अब भी यही कहता हूं कि मैंने बुधवार रात के बाद सरिता को जीवित नहीं देखा ।”
“तो तुम यह कहना चाहते हो कि शान्ति स्वरूप झूठ बोल रहा है ?”
“नहीं वह सच बोल रहा है । मैं भी सच बोल रहा हूं । सरिता ने मुझे कल रात फोन जरूर किया था । उससे रात साढे ग्यारह बजे राजनगर सैन्ट्रल स्टेशन पर मुलाकात का समय भी तय हुआ था लेकिन वह आई नहीं थी ।”
“क्यों नहीं आई ?”
“मुझे क्या मालूम ?”
“तुमने जानने की कोशिश भी नहीं की ?”
“की थी । रात साढे बारह बजे मैंने उसकी कोठी पर उसे फोन किया था । वह तो इसी बात से मुकर गई कि उसने मुझे साढे ग्यारह बजे फोन करके मेरे साथ कोई मुलाकात का समय तय किया था ।”
“लेकिन फिर भी वह इतनी रात गये तुम्हारे फ्लैट पर आई ।”
“हां ।”
“कमाल है ।”
“कमाल तो है ही ।”
“तुम ने यह टेलीफोन वाली बात हमें पहले क्यों नहीं बताई ?”
“क्योंकि इसका मुझे कोई महत्व दिखाई नहीं दे रहा था । मेरी सरिता से मुलाकात हुई थी, न मुझे यह मालूम था कि वह मुझसे क्यों मिलना चाहती थी और सौ बातों की एक बात यह कि वह कहती थी कि उसने मुझे फोन ही नहीं किया ।”
“तुम्हारा क्या ख्याल है, सरिता मुकर गई थी या उसने वाकई तुम्हें फोन नहीं किया था ।”
“वह मुकर गई थी । मैंने उसकी आवाज साफ पहचानी थी और बाद में उसका मेरे फ्लैट पर आना भी यही सिद्ध करता है ।”
“क्यों मुकर गई वह ?”
“भगवान जाने ।”
“और वह तुम से मिलना क्यों चाहती थी ?”
“भगवान जाने ।”
“सब कुछ भगवान ही जाने । कुछ तुम भी तो जानो ।”
सुनील चुप रहा ।
“कोई अनुमान लगाओ । तुम्हारे तो अनुमान भी बड़े करामाती होते हैं ।”
“मैं जानता हूं यह बात तुमने मुझे घिसने के लिए कही है लेकिन फिर भी मेरा ख्याल है कि सरिता की फोन काल का उस आधे अखबार से जरूर कोई रिश्ता था जो बुधवार रात को माला के फ्लैट से गायब हो गया था ।”
“तुम उस आधे अखबार को बहुत महत्व दे रहे हो ।”
“देखने में वह बात मामूली लगती है लेकिन वह अखबार बहुत गैरमामूली ढंग से गायब हुआ था ।”
प्रभूदयाल कई क्षण चुप रहा । फिर उसने अपनी मेज की दराज में हाथ डाला और एक कई बार तह किया हुआ अखबार निकाल कर सुनील के सामने रख दिया ।
“यह” - वह बोला - “हमें सरिता के पर्स में से मिला है ।”
सुनील ने अखबार खोला । वह ‘ब्लास्ट’ के वही बाहरी चार पेज थे जो बुधवार रात को माला के फ्लैट से गायब हो गये थे । अखबार के मुख पृष्ठ पर एक रेल दुर्घटना का सचित्र विवरण छपा हुआ था और उसके आखिरी सफे पर क्रासवर्ड पहेली छपी हुई थी । क्रासवर्ड पहेली के आसपास अंग्रेजी के कई शब्द लिखे हुए थे और हाशिये पर कई बार अविनाश का नाम लिखा हुआ था ।
“अखबार पर जो कुछ लिखा हुआ है” - प्रभूदयाल बोला - “अविनाश के हस्तलेख में लिखा हुआ है । हमने चैक किया है ।”
“प्रभू” - सुनील उलझन पूर्ण स्वर से बोला - “यह तो वीरवार का अखबार है ।”
“पागल हुए हो” - प्रभूदयाल बोला - “माला की हत्या बुधवार रात को हुई थी । यह अखबार माला के बैडरूम से बुधवार रात को गायब हुआ था । यह वीरवार का अखबार कैसे हो सकता है । वीरवार का अखबार वहां बुधवार को कैसे आ जायेगा ।”
“तारीख देखो, तारीख । जिस रेल दुर्घटना का विवरण इसमें छपा है वह बुधवार दोपहर के बाद हुई थी । बुधवार के अखबार में भला यह खबर कैसे छपी हो सकती है ।”
प्रभूदयाल ने अखबार ले लिया और बड़ी गौर से उसे देखने लगा ।
“क्या किस्सा है यह ?” - वह उलझनपूर्ण स्वर से बड़बड़ाया ।
उसी क्षण फोन की घन्टा बज उठी ।
प्रभूदयाल ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोला - “हल्लो !”
दूसरी ओर से जरूर कोई शुभ सूचना प्रसारित की गई थी । प्रभूदयाल के नेत्र चमक उठे । उसकी बाछें खिल गई ।
“वैरी गुड” - वह संतोषपूर्ण स्वर से बोला - “उसे फौरन यहां लाओ ।”
प्रभूदयाल ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।
“गिरीश गिरफ्तार हो गया है” - प्रभूदयाल बोला - “वह अपनी प्रेमिका कल्पना के घर गया था । मेरा एक आदमी पहले से ही कल्पना की निगरानी कर रहा था ।”
“इससे क्या होता है ? उसके गिरफ्तार हो जाने से यह थोड़े ही सिद्ध होता हैं कि वह हत्यारा है ।”
“पूरी बात तो सुनो, बेटा । वह एक नीले रंग का सूट पहने हुए है जिसकी ऊपरली जेब गायब है । जो फटी हुई जेब तुमने हमारे सामने पेश की है वह भी नीले रंग की है । साफ जाहिर है कि जिस साये से अपने फ्लैट पर तुम्हारी हाथापाई हुई थी, वह गिरीश था । उसी ने सरिता का भी खून किया है ।”
सुनील बेहद खामोश हो गया ।
तो क्या वह गिरीश को बेगुनाह समझ कर गलती कर रहा था ।
अब उसे एक ही चिन्ता थी कि कहीं गिरीश के वहां पहुंचने से पहले प्रभूदयाल उसे वहां से चलता न कर दे ।
लेकिन प्रभूदयाल ने वैसा नहीं किया । शायद उसे अभी सुनील की जरूरत थी ।
गिरीश वहां लाया गया । वह फटे हाल था और उसका चेहरा सूजा हुआ था । उसके हाथों से हथकड़ियां पड़ी हुई थी ।
“बैठ जाओ ।” - प्रभूदयाल गम्भीर स्वर से बोला ।
गिरीश शान्ति स्वरूप द्वारा खाली की गई कुर्सी पर बैठ गया । एक क्षण के लिए उसकी सुनील से निगाह मिली । वह तुरन्त फर्श की ओर देखने लगा ।
“देखो मिस्टर” - प्रभूदयाल बोला - “तुमसे जो पूछा जाए उसका सच-सच जवाब दो । झूठ बोलोगे तो मारे जाओगे । सच बोलोगे तो तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हो पायेगा ।”
गिरीश ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“तुम वीरवार को सुनील के साथ यहां आने वाले थे । तुम भाग क्यों खड़े हुए थे ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“मैं डर गया था” - गिरीश बोला - “मैं हवालात में बन्द किए जाने के नाम पर घबरा गया था ।”
“लेकिन भाग खड़ा होना तो कोई अकलमन्दी का काम नहीं था ?”
“मुझे बाद में अपनी गलती महसूस हुई थी । इसीलिए पिछली रात को मैं सुनील के फ्लैट पर गया था ।”
“तुम्हें पुलिस के पास आना चाहिए था ।”
“मुझे डर था कि आप लोग मुझे मारें पीटेंगे । सुनील के पास जाने का मेरा यही मतलब था कि वह किसी प्रकार पुलिस की थर्ड डिग्री से मेरी रक्षा कर ले । मैं बहुत मामूली आदमी हूं, साहब मेरे इतने साधन नहीं हैं कि मैं पुलिस को अपने साथ कोई ज्यादती करने से रोक सकता । सुनील मुझे भला आदमी लगा था । मुझे उम्मीद थी कि इस मामले में वह मेरी मदद करने को तैयार हो जाएगा । मैंने पुलिस ब्रूटिलिटी के बहुत किस्से सुने हैं, साहब । मुझे डर था कि पुलिस वाले मेरी बहुत बुरी गत बनाएंगे ।”
“तुम्हारा डर बेबुनियाद है ।”
गिरीश चुप रहा ।
“आगे बोलो ।”
“पिछली रात को मैं सुनील के फ्लैट पर गया । मैंने घन्टी बजाई । भीतर से कोई जवाब नहीं मिला । फिर मैंने देखा कि दरवाजा खुला था । मैंने फ्लैट में कदम रख दिया । भीतर वह औरत मरी पड़ी थी । मैं घबरा गया । मुझे लगा कि अगर मैं वहां देख लिया गया तो उस हत्या का इलजाम भी मेरे सिर पर आ जायेगा । मैं वापिस जाने के लिए मुड़ा ही था कि मुझे किसी के सीढियां चढने की आवाज आई । मैंने बत्ती बुझा दी और प्रतीक्षा करने लगा । मैंने सोचा बाहर गलियारे में शान्ति हो जाएगी तो मैं चुपचाप खिसक जाऊंगा । लेकिन वह सुनील ही था जो अपने फ्लैट में लौट रहा था । मैं बौखलाया हुआ तो था ही । मैंने उसके बत्ती जलाने से पहले उसे धक्का देकर वहां से निकल भागना चाहा । उसी चक्कर में हाथापाई हो गई । मैं वहां से भाग निकलने में तो कामयाब हो गया लेकिन मेरे कोट की जेब सुनील के हाथ में ही रह गई । बाद में कितनी ही देर तो मैं जाकर रेलवे स्टेशन पर बैठा रहा । मैं बेहद डरा हुआ था । मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था । मुझे किसी के सहारे की सख्त जरूरत थी । मैं डरता-डरता कल्पना के घर पहुंचा और वहां गिरफ्तार हो गया ।”
“तुम यह कहना चाहते हो कि तुमने सरिता की हत्या नहीं की ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“कौन सरिता ?”
“वही औरत जो सुनील के फ्लैट में मरी पाई गई थी ?”
“इन्स्पेक्टर साहब, मेरा विश्वास कीजिए । मैं परमात्मा की कसम खाकर कहता हूं मैंने कोई हत्या नहीं की ।”
“यानी कि तुम माला की हत्या से भी इनकार करते हो ?”
“मैंने माला की हत्या नहीं की साहब ।”
“और गिरधारी लाल की ?”
“नहीं । नहीं । नहीं ! मैं किसी गिरधारी लाल को जानता तक नहीं ।”
प्रभूदयाल ने एक गहरी सांस ली । वह कई क्षण गिरीश को घूरता रहा और फिर कर्कश स्वर से बोला - “हवलदार, इसे लाक अप में बन्द कर दो । शायद थोड़ी देर जेल की हवा खाने के बाद इसे होश आ जाए ।”
हवलदार ने गिरीश को गिरहबान से पकड़ कर कुर्सी से उठा दिया ।
गिरीश ने कातर निगाहों से सुनील की ओर देखा ।
सुनील का दिल भर आया ।
“घबराओ नहीं दोस्त” - सुनील सांत्वनापूर्ण स्वर से बोला - “आज दोपहर से पहले तुम आजाद हो जाओगे ।”
“हां, हां” - प्रभूदयाल विषैले स्वर से बोला - “इसके बाप की हकूमत है, न ?”
सिपाही गिरीश को लगभग धकेलता हुआ कमरे से बाहर ले गया ।
“मेरे बाप की हकूमत नहीं है” - सुनील बोला - “लेकिन इस दुनिया में जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए सच से बड़ा हथियार कोई नहीं है ।”
“तुम्हारा ख्याल है कि यह लड़का बेगुनाह है ?”
“यह मेरा ख्याल नहीं, मेरा विश्वास है कि गिरीश बेगुनाह है ।”
“इलहाम हुआ है तुम्हें ।”
“छोड़ो । तुम्हें मुझसे कुछ और पूछना है ?”
“फिलहाल नहीं । तुम जा सकते हो ।”
सुनील प्रभूदयाल के कमरे से बाहर निकल आया ।
***
सुनील ‘ब्लास्ट’ के आफिस में पहुंचा ।
न्यूज एडीटर राय अभी आया नहीं था ।
सुनील ने उसके घर पर फोन किया । मालूम हुआ कि वह घर से चल चुका था । सुनील राय के केबिन में ही बैठकर प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग बीस मिनट बाद राय वहां पहुंच गया । राय ने पहले घड़ी देखी, फिर सुनील की जरूरत से ज्यादा गम्भीर सूरत देखी, और फिर बोला - “खबर कब आई ?”
“कैसी खबर ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“कितने दिन की छुट्टी लोगे ?”
“अरे, कौन ले रहा है छुट्टी ।”
“क्रिया के तो बाद ही आओगे ?”
“अबे क्या बक रहा है बंगाली ।”
“तो क्या मेरा ख्याल गलत है !” - राय अपना चश्मा ठीक करता हुआ बोला ।
“कैसा ख्याल ?”
“मैंने तो सुबह सवेरे तुम्हें यूं उल्लू-सा नक्शा ताने देखा तो मैंने समझा कि तुम्हारी मां मर गई है ।”
“हीं हीं हीं । सवेरे-सवेरे ही मजाक । चुपचाप बैठो और मेरी बात सुनो ।”
“सुनाओ ।” - राय अपनी कुर्सी पर बैठ गया ।
“तुम जायसवाल इन्डस्ट्रीज के भूतपूर्व शिपिंग इन्चार्ज अविनाश कुमार को जानते हो ?”
“जानता हूं । मेरा दोस्त है वो ।”
“हाल ही में तुम उससे कब मिले थे ?”
“ठहरो, याद करने दो” - राय कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “परसों रात को ?”
“यानी कि बुधवार रात को ?”
“हां ।”
“कहां मुलाकात हुई थी ?”
“यहीं । वह यहीं आया था ।”
“यहां से कितने बजे गया था वह ?”
“लगभग साढे दस बजे ।”
“यहां से कहां गया था वह ?”
“मालूम नहीं ।”
“ओके थैंक्यू ।”
“किस्सा क्या है ?”
“बाद में बताऊंगा ।”
सुनील राय के कमरे से निकल आया ।
सुनील यूथ क्लब पहुंचा ।
रमाकांत घोड़े बेचकर सोया पड़ा था ।
सुनील ने चुपचाप उसके तकिए के नीचे हाथ डालकर उसका चाबियों का गुच्छा निकाल लिया । उसे मालूम था रमाकान्त अपनी रिवाल्वर कहां रखता था । उसने मेज का दराज खोलकर रिवाल्वर निकाल ली । उसने चैम्बर में गोलियां चैक की और रिवाल्वर को अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस लिया । उसने ऊपर से कोट के बटन बन्द कर लिए । चाबियां उसने वापिस रमाकान्त के तकिये के नीचे रख दीं ।
वह यूथ क्लब से बाहर निकला, मोटर साइकिल पर सवार हुआ और लिंक रोड पर पहुंच गया ।
लिंक रोड पर शान्ति स्वरूप की कोठी तलाश करने में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई ।
उसने काल बैल बजाई ।
एक नौकर ने दरवाजा खोला । वह उसे एक विशाल ड्राइंग रूम में छोड़ गया । सुनील ने अपने पीछे धीरे से दरवाजा बन्द कर लिया ।
शान्ति स्वरूप एक आराम कुर्सी पर पड़ा हुआ था । उसके नेत्र बन्द थे और चेहरे पर गम की घटायें छाई हुई थीं । बड़ी मेहनत से उसने आंखें खोलीं और सुनील की ओर देखा ।
सुनील एकदम उसके सामने जा खड़ा हुआ । उसके कठोर नेत्र शान्ति स्वरूप के चेहरे पर टिक गए ।
शान्ति स्वरूप उससे निगाहें मिलाने की ताब न ला सका । उसके नेत्र झुक गए ।
सुनील के लिए उजड़े हुए इनसान के लिए कोई हमदर्दी नहीं थी । अपनी बीवी की मौत के लिए सरासर जिम्मेदार वह खुद था ।
“आप जानते हैं, मैं यहां क्यों आया हूं ?” - सुनील धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर से बोला ।
“हां ।” - शान्ति स्वरूप यूं बोला जैसे उसकी आवाज किसी गहरे कुएं में से आ रही हो ।
“लालच और सत्ता के मद ने आपको अन्धा कर दिया था । आप इस हद तक अपने स्वार्थ के हाथों बिक गए थे कि एक बेगुनाह आदमी को हत्या के इलजाम में फंसते देखकर भी आपने जुबान नहीं खोली और हत्यारा कौन है यह जानते हुए भी उसे पकड़वाने की दिशा में आपने पुलिस की कोई मदद नहीं की । आपके सामने इनसान की जिन्दगी का महत्व नहीं था, अपनी बीवी की जिन्दगी का भी नहीं । आपके सामने तो केवल एक ही ध्येय था कि लाला जगतराम के हाथ में जायसवाल इन्डस्ट्रीज का कन्ट्रोल न जा सके चाहे इसके लिए आपको कितनी भी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े ।”
शान्ति स्वरूप ने सिर नहीं उठाया ।
“सरिता बुधवार की रात को ही जान गई थी कि माला का हत्यारा कौन है” - सुनील फिर बोला - “उसने माला के बैडरूम में पड़ा ‘ब्लास्ट’ का वह अंक पड़ा देखा था जिसका बाहर का हिस्सा बाद में गायब हो गया था । लेकिन आपने अपने स्वार्थ की खातिर उसको अपनी जुबान बन्द रखने के लिए मजबूर किया लेकिन वह अपनी अन्तरात्मा की आवाज को आपके निजी स्वार्थ की खातिर ज्यादा देर तक दबाए न रख सकी । कल रात यही बात बताने के लिए उसने मुझे फोन किया लेकिन संयोगवश मेरा और उसका वार्तालाप आपने सुन लिया । आपने फिर उसे अपनी भलाई की दुहाई देकर चुप करा दिया । वक्ती तौर पर सरिता की अन्तरात्मा की आवाज दब गई और उसने मुझसे झूठ बोल दिया कि उसने मुझे फोन किया ही नहीं था । हत्यारे को उसकी मौत की सजा न मिले शायद यह बात वह बर्दाश्त कर सकती थी लेकिन कोई बेगुनाह आदमी गुनहगार समझा जाए, यह उसे गवारा नहीं था । इसीलिए आधी रात के बाद आपके सो जाने के बाद वह मेरे फ्लैट पर पहुंची लेकिन मुझसे बात हो पाने से पहले ही वह जान से हाथ धो बैठी । हत्यारा पहले से ही मेरे फ्लैट में उसका इन्तजार कर रहा था । आपने अपनी बीवी को खुद मौत के मुंह में धकेला है, शान्ति स्वरूप जी ।”
शान्ति स्वरूप ने सिर उठाया । आंसुओं की दो बून्दें उसके गालों पर लुढक पड़ीं ।
“अब आंसू बहाने से क्या फायदा है, साहब” - सुनील बोला - “मैंने बहुत तरह के आदमी देखे हैं लेकिन आप जैसा अपने स्वार्थ में अन्धा हो चुका आदमी मैंने आज तक नहीं देखा । आज सुबह पुलिस हैडक्वार्टर में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के सामने भी आपने जुबान नहीं खोली । आपकी बीवी की हत्या की तफ्तीश हो रही थी, आप जानते थे कि हत्यारा कौन है लेकिन फिर भी आप चुप रहे । किस लिए ? सिर्फ प्रभुत्व के झूठे अभिमान को बरकरार रखने के लिए ?”
शान्ति स्वरूप का सिर फिर उसकी छाती पर झुक गया ।
“और आपने यह कभी सोचा है कि हत्यारे का राज जानने की वजह से आपकी जिन्दगी को भी खतरा है । वह आपको जीवित कैसे छोड़ सकता है । जो आदमी तीन हत्यायें पहले ही कर चुका हो वह क्या एक खून और करने से हिचकेगा । और फिर हत्यारा तो...”
सुनील एकाएक चुप हो गया । उसकी निगाहें द्वार पर टिकी हुई थी । द्वार का हैंडल नि:शब्द धीरे-धीरे घूम रहा था ।
“वह आ रहा है ।” - सुनील फुसफुसाया और लपक कर एक अन्य दरवाजे पर पड़े भारी परदे के पीछे जा छुपा । उसने परदे की एक झिरी में आंख लगा दी ।
दरवाजा खुला और एक आदमी ने भीतर कदम रखा । उसके हाथ में एक 32 कैलिबर की रिवाल्वर थी ।
वह अविनाश था ।
“हल्लो, प्रैसीडेंट साहब !” - अविनाश स्थिर स्वर से बोला - “आ गया हूं मैं ।”
शान्ति स्वरूप ने थूक निगली । उसके विस्फारित नेत्र रिवाल्वर की नाल पर टिक गए ।
“तुम्हें मालूम था, शान्ति स्वरूप” - अविनाश बोला - “कि मैं जरूर आऊंगा । तुम्हें शुरू से मालूम था कि माला की हत्या मैंने की है । मेरी अक्ल खराब हो गई थी जो मैं अपना अखबार माला के फ्लैट में भूल आया था । वह अकेला अखबार ही मुझे फंसवा देने के लिए काफी था । उसी की वजह से मुझे सरिता की हत्या करनी पड़ी ।”
सुनील ने रिवाल्वर निकाल कर अपने हाथ में ले ली ।
“उस अखबार की वजह से” - अविनाश कह रहा था - “बुधवार रात के बाद से जब तक मैंने सरिता की हत्या नहीं कर दी, मैं पलकें झपकाने का हौसला नहीं कर सका । मुझे समझ नहीं आ रही थी कि तुम्हारी खातिर सरिता अपनी जबान बन्द रखेगी या नहीं । मैंने एक बार उसे फोन भी किया लेकिन मेरी आवाज पहचानते ही उसने तुरन्त फोन बन्द कर दिया । मैं समझ गया कि सरिता का अखबार की बात को सदा छुपाये रखने का कोई इरादा नहीं था । मैं समझ गया कि वह देर सवेर जरूर अपनी जुबान खोलेगी । इसीलिए मैंने हर वक्त सरिता की निगरानी आरम्भ कर दी । टेलीफोन एक्सचेंज में लगे अपने एक दोस्त की मदद से मैंने तुम्हारे टेलीफोन की लाइन टेप करवा दी । कल रात सरिता ने सुनील को फोन किया तो वार्तालाप मैंने भी सुना । मैं स्टेशन पर सरिता के आगमन का इन्तजार करता रहा लेकिन सरिता वहां नहीं आई । मैं वहां पहुंचा । आधी रात के बाद मैंने सरिता को कोठी के बाहर निकलते देखा । मैंने उसे टैक्सी में बैठकर टैक्सी ड्राइवर को बैंक स्ट्रीट चलने के लिए कहते हुए भी सुना । मुझे पहले से ही मालूम था कि बैंक स्ट्रीट में सुनील रहता था । मैं सरिता से पहले सुनील के फ्लैट पर पहुंच गया । मैं सुनील के फ्लैट का ताला खोलकर भीतर बैठ गया । सरिता वहां आई और मैंने बड़ी सहूलियत से उसका खून कर दिया । मेरा राज जानने वालों में गिरधारी लाल भी था । बुधवार रात को जब मैं माला की कोठी से विदा हो रहा था तब उसने मुझे माला की कोठी में कदम रखते देखा था । बाद में इसी दम पर उसने मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी । मजबूरन मुझे उसकी जुबान सदा के लिए बन्द करनी पड़ी । शांति स्वरूप, अब सिर्फ तुम ही एक आदमी बाकी रह गए हो जो यह जानता है कि हत्यारा मैं हूं । मैं पहले ही तीन खून कर चुका हूं । एक खून और से क्या फर्क पड़ेगा मुझे । तब मेरी सुरक्षा की गारन्टी हो जाएगी ।”
“गारन्टी तब भी नहीं होगी, अविनाश” - सुनील बोला और परदे के पीछे से बाहर निकल आया - “रिवाल्वर फेंक दो ।”
अविनाश को जैसे सांप सूंघ गया । गरदन घुमाकर उसने सुनील की ओर देखा । सुनील और उसके हाथ में थमी रिवाल्वर पर निगाह पड़ते ही हैरानी से उसका मुंह खुल गया । रिवाल्वर पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गयी । रिवाल्वर उसकी उंगलियों से फिसलकर जमीन पर आ गिरी ।
“शान्ति स्वरूप की हत्या करने के बाद भी तुम्हारी सुरक्षा की गारण्टी नहीं थी क्योंकि तुम हत्यारे हो यह हकीकत मैं भी जानता था ।”
“कैसे ?” - अविनाश कठिन स्वर में बोला ।
“उसी अखबार की वजह से जिसका जिक्र अभी तुम शांति स्वरूप से कर रहे थे । अखबार माला के बैडरूम में पड़ा था । वह वीरवार का अखबार था लेकिन उस रोज अभी बुधवार ही था । क्रास वर्ड पहेली वाले पृष्ठ पर तुम्हारा हैंडराइटिंग था । सरिता ने वह अखबार देखा था और वह तभी समझ गई थी कि सात बजे माला की कोठी से चले जाने के बाद भी तुम दुबारा वहां लौटे थे और तभी वह अखबार तुम भूल से वहीं छोड़ आए थे । तुम हमारे न्यूज एडीटर राय के दोस्त हो । मैंने राय से बात की थी । उसने मुझे बताया है कि बुधवार रात को तुम ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में आये थे । ‘ब्लास्ट’ का रेल से दूर दराज शहरों में जाने वाला डाक एडीशन रात के नौ बजे ही छप जाता है । राय के दफ्तर में तुमने वह अखबार पड़ा देखा होगा और क्रास वर्ड पहेली में अपनी भारी दिलचस्पी होने के कारण तुम वह अखबार वहां से उठा लाए होगे । सरिता ने तुरन्त अखबार पर तुम्हारा हैंडराइटिंग पहचान लिया था और उसने अखबार छुपा लिया था ।”
“क्यों ?” - अविनाश बोला ।
“इसका बेहतर जवाब तो शायद शांति स्वरूप दे सकें ।” - सुनील बोला ।
“सरिता भावनाओं में बह गई थी” - शांति स्वरूप कठिन स्वर में बोला - “अविनाश उसका पुराना प्रेमी था । उसे लगा कि उस अखबार की वजह से वह फांसी पर चढ जाएगा । इसलिए उसने अखबार के बाहरी सफे अपने पर्स में छुपा लिए थे । थोड़ी देर बाद जब उसने स्वयं को सम्भाला था तो उसे महसूस हुआ था कि अविनाश उसका प्रेमी ही नहीं उसकी बहन का हत्यारा भी था । तभी उसने इसकी रक्षा करने का इरादा बदल दिया । तब तक मैं वहां पहुंच गया । सरिता ने मुझे सारी बात बताई । तब मैंने उसे इस बात के लिए मजबूर किया कि वह अखबार वाली बात किसी को न बताए । इसलिए नहीं क्यों कि मुझे इस आदमी से कोई हमदर्दी है बल्कि इसलिए कि... कि...”
“माला की हत्या के इलजाम में गिरीश फांसी पर चढ जाए ।” - सुनील ने वाक्य पूरा किया - “और आपको फायदा हो जाए । आपको किसी प्रकार मालूम हो चुका था कि माला गिरीश से शादी कर चुकी थी और आप यह भी जानते थे कि लाला जगतराम जायसवाल इन्डस्ट्रीज का कन्ट्रोल अपने हाथ में लेने के लिए जी-जान से कोशिश कर रहे थे । माला उन्हें अपने शेयर बेचने के लिए तैयार हो गई थी लेकिन ऐसी नौबत आने से पहले ही उसकी हत्या हो गई । अब उन शेयरों का वारिस गिरीश बन गया था और आप जानते थे कि लाला जगतराम के लिए गिरीश को शेयर बेचने के लिए तैयार कर लेना मामूली काम था । आपके पास तो वैसे भी इतना सरमाया नहीं होगा कि आप गिरीश के तीस प्रतिशत शेयर खरीद पाते । आप के पास तो अपने-आपको प्रेसीडेन्ट बनाये रखने का यही तरीका था कि माला के शेयर विरासित में सरिता को मिल जाएं और यह तभी हो सकता था जब कि गिरीश माला की हत्या के इलजाम में फांसी पर चढ जाता । नतीजा यह हुआ कि अपने स्वार्थ की खातिर आपने अपनी बीवी को जुबान बन्द रखने के लिए मजबूर किया और बेचारे गिरीश को पुलिस की निगाहों में गुनहगार बना रहने दिया ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“और वीरवार सुबह” - सुनील अविनाश से सम्बोधित हुआ - “गिरधारी लाल के फ्लैट पर उससे हुई अपनी मुलाकात की वजह के बारे में भी तुमने मुझसे झूठ बोला था । तुम कहते थे कि गिरधारी लाल तुमसे इसीलिए मिला था क्योंकि उसका एक्सपोर्ट का काम अटक रहा था और जायसवाल इण्डस्ट्रीज का शिपिंग इंचार्ज होने के नाते तुम उसका काम निकलवा सकते थे । तुम्हारे कथनानुसार गिरधारी लाल को यह मालूम नहीं था कि तुम जायसवाल इन्डस्ट्रीज की नौकरी से निकाले जा चुके हो लेकिन गिरधारी लाल बुधवार रात को माला से मिला था और दोनों की सिग्मा एक्सपोर्ट्स के धन्धे के विषय में ही एक घण्टे से ज्यादा बात हुई थी । उस दौर में उसे यह बात जरूर मालूम हो चुकी होगी कि तुम नौकरी से निकाले जा चुके हो । गिरधारी लाल के फ्लैट पर तुम्हारी मौजूदगी की कोई और ही वजह थी, अविनाश ।”
“और कौन-सी वजह ?”
“अफीम । तुम सिग्मा एक्सपोर्ट्स की आड़ में अफीम की स्मगलिंग का धन्धा कर रहे थे । गिरधारी लाल दौलत के लालच में तुम्हारी मदद कर रहा था । जायसवाल की इन्डस्ट्रीज का शिपिंग इंचार्ज होने की वजह से एक्सपोर्ट के माल की पेटियों में अफीम पैक करवाना तुम्हारे लिए बड़ी सहूलियत का काम था और जायसवाल इन्डस्ट्रीज की गुडविल की वजह से तुम्हारी पेटियों की ज्यादा चैकिंग भी नहीं होती थी । कस्टम वाले जायसवाल इन्डस्ट्रीज में ही माल को सील करने आते थे और वहां तुम्हें अपना काम अपनी सुपरविजन में निकलवा लेने की सहूलियत रहती थी । फिर तुम्हारे स्मगलिंग के धन्धे को पहला झटका तब लगा जब तुम नौकरी से निकाल दिये गए । दूसरा झटका तुम्हें तब लगा जब माला ने सिग्मा एक्सपोर्ट्स से हाथ खींच लेने का फैसला कर लिया । तीसरा झटका तुम्हें तब लगा जब गिरधारी लाल माला के पास पहुंच गया । वह माला से यह अपील करने गया था कि माला सिग्मा एक्सपोर्ट्स से अपना हाथ न खींचे । तभी शायद गिरधारी लाल ने माला को तुम्हारे अफीम के धन्धे के बारे में बता दिया ।”
“तुम्हें क्या मालूम ?”
“मेरा अनुमान है ।”
“और क्यों बता दिया ?”
“यह तुम बताओ ।”
“वह हरामजादा गिरधारी लाल” - अविनाश विषैले स्वर से बोला - “एक नम्बर का दोगला आदमी था । माला ने उसे बताया था कि वह सिग्मा एक्सपोर्ट्स से अपना हाथ खींचकर मुझे एक नई कम्पनी खोलकर देना चाहती थी और जायसवाल इन्डस्ट्रीज का एक्सपोर्ट्स का सारा काम नई कम्पनी को दिलाना चाहती थी । आखिर मैं माला का होने वाला पति था और उस वक्त बेकार था । माला का मेरे लिए ऐसा कुछ सोचना स्वाभाविक था । गिरधारी लाल ने माला की नजरों में गिराने के लिए और अपना गुडविल पैदा करने के लिए माला को बता दिया कि मैं तो जायसवाल इन्डस्ट्रीज के एक्सपोर्ट्स के माल की आड़ में अफीम की स्मगलिंग का धन्धा करता हूं । अगर एक्सपोर्ट्स का सारा काम सीधे मेरे हाथ में आ गया तो मुझे स्मगलिंग में और सहूलियत हो जायेगी । यह बात पता लगते ही माला को आग लग गई । उसने मुझे तुरन्त फोन करके वहां बुलाया । उसने गिरधारी लाल को विदा कर दिया लेकिन गिरधारी लाल यह देखने के लिए क्या होता है, कोठी के बाहर छुपा रहा । मैं वहां पहुंचा । माला ने मुझे आड़े हाथों लिया । उसने मुझे बेहद जलील किया और यह भी कह दिया कि अब मैं उससे कोई वास्ता न रखूं और शादी के बारे में तो सोचूं भी नहीं । साथ ही उसने यह भी धमकी दे दी कि वह तुरन्त सारे किस्से की सूचना पुलिस को दे देगी । मेरे होश उड़ गये । मैंने माला को खूब मनाने की कोशिश की लेकिन वह तो मेरी बात तक सुनने को तैयार नहीं थी और उल्टे मुझे फौरन कोठी से दफा हो जाने के लिए कह रही थी । मुझे गुस्सा आ गया । मैंने उसे पकड़ लिया । उसने स्वयं को मेरी पकड़ से छुड़ा लिया और चिल्लाती हुई बाहर भागी । मैंने फूलदान उठाकर उसके सिर पर दे मारा और उसका काम तमाम हो गया ।”
“गिरधारी लाल यह सब देख रहा था ?”
“देख तो नहीं रहा था लेकिन उसने चीख-पुकार और उठा पटक की आवाजें जरूर सुनी थीं । उस वक्त शायद उसे नहीं सूझा था कि माला की हत्या हो गई है लेकिन सुबह जब उसने अखबार में खबर पढी सो वह सारी बात समझ गया । उसने फोन पर मुझे बुला भेजा । उसने कहा कि मैं सिग्मा एक्सपोर्ट्स के गोदाम में से अफीम की पेटियां फौरन उठवा लूं और साथ ही उसकी जुबान बन्द रखने के लिए उसे एक मोटी रकम दूं । मैंने तभी गिरधारी लाल की भी हत्या करने का फैसला कर लिया । पहला मौका हाथ आते ही मैंने उसका काम तमाम कर दिया ।”
“मैंने कुमार को गोदाम में से अफीम की पेटियां शिफ्ट करते देखा था ।”
“पेटियां कहां गई ?”
“मेरे फ्लैट पर हैं । माला सिग्मा एक्सपोर्ट्स की पार्टनर थी । उसकी मौत के बाद गोदाम का माल चैक होने की नौबत आ सकती थी । इसलिए अफीम की, पेटियों से फौरन पीछा छुड़ाना चाहता था । रात होते ही उसने पेटियां मेरे फ्लैट पर पहुंचानी आरम्भ कर दीं । वह कहता था कि अगर मैं पेटियां नहीं लूंगा तो वह उन्हें मेरे फ्लैट के दरवाजे के आगे रख जायेगा, सड़क पर फेंक जायेगा लेकिन अपने अधिकार में नहीं रखेगा ।”
“माला की हत्या के बाद तुमने सरिता को फोन क्यों किया और उसे माला के फ्लैट पर जाने के लिए क्यों कहा ?”
“मुझे माला की बातचीत से पता लगा था कि गिरीश दो-ढाई घन्टे के लिये ही वहां से गया था और वह जल्द ही वहां लौट कर आने वाला था । मैं चाहता था कि सरिता जब कोठी पर पहुंचे तो उसे माला की लाश के पास गिरीश मिले ।”
“ताकि वह हत्या के झूठे इलजाम में ऐसा फंसे कि बच न पाये ।”
“हां ।”
सुनील चुप रहा ।
“एक बात मेरी समझ में भी नहीं आ रही ।”
“क्या ?”
“सरिता ने तुम्हें फोन क्यों किया ? पुलिस को फोन क्यों नहीं किया जो कि ज्यादा युक्तिसंगत था ?”
“सीधी सी बात है” - सुनील बोला - “उसने वह अखबार छुपाया था जो कि हत्यारे को पकड़वाने के लिए सबसे बड़ा सूत्र था । हत्या का वह सबूत छुपा कर उसने अपराध किया था । उसका ख्याल था कि शायद कोई ऐसी तरकीब सुझा सकूं जिससे वह सूत्र भी पुलिस के हाथों पड़ जाये और उस पर आंच भी न आये ।”
“ऐसा हो सकता था ?”
“क्यों नहीं हो सकता था ? सब से आसान तरीका तो यही था कि वह अखबार को बैडरूम में कहीं, फिर छुपा आती । मैं इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल को कुरेदता कि उसने कोठी की ठीक से तलाशी नहीं ली, अखबार के महत्व पर बेहद जोर देता और कुछ ऐसा माहौल पैदा कर देता कि प्रभूदयाल को बैडरूम की तलाशी दुबारा लेने की जरूरत महसूस होने लगती ।”
“तुम्हारा क्या ख्याल है, सिर्फ उस अखबार के दम पर पुलिस मुझे माला का हत्यारा साबित कर सकती है ? उस अखबार से तो सिर्फ यह साबित किया जा सकता है कि मैं दुबारा माला की कोठी पर गया था । मैं यह कह सकता हूं कि तब माला जिन्दा थी या मरी पड़ी थी और इस डर से मैं चुपचाप वहां से खिसक आया था कि कहीं उसके खून का इलजाम मुझ पर न आ जाये ।”
“सिर्फ माला की हत्या की बात होती तो शायद तुम्हारी बात बन जाती लेकिन तुम यह क्यों भूलते हो कि तुमने गिरधारी लाल और सरिता का भी खून किया है और शायद इसी रिवाल्वर से किया है जो इस वक्त तुम्हारे पैरों के पास पड़ी है । पुलिस बड़ी आसानी से यह चैक कर सकती है कि गिरधारी लाल और सरिता का काम तमाम करने वाली गोलियां इसी रिवाल्वर से चलाई गई थीं या नहीं और तुम्हारे खिलाफ सबसे बड़ा गवाह तो मैं ही हूं । जो यहां मौजूद न होता तो तुमने शान्ति स्वरूप की भी हत्या कर दी होती ।”
“मुझे क्या सजा मिलेगी ?”
“यह भी कोई पूछने की बात है । तुम्हें फांसी पर लटका दिया जायेगा ।”
“और अगर मैं जमीन पर पड़ी अपनी रिवाल्वर उठाने की कोशिश करूं तो तुम क्या करोगे ?”
“मुझे विश्वास है तुम ऐसी मूर्खता नहीं करोगे ।”
अविनाश के चेहरे पर एक उदास मुस्कराहट उभरी । उसके चेहरे पर हारे हुए जुआरी जैसे भाव थे । वह अपनी रिवाल्वर उठाने के लिए नीचे झुका ।
“रुक जाओ ।” - सुनील चिल्लाया ।
सुनील की चेतावनी का उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ । उसके हाथ रिवाल्वर की मूठ पर रुक गये ।
“रिवाल्वर से हाथ हटाओ वर्ना शूट कर दूंगा ।”
अविनाश ने जैसे सुना ही नहीं । उसने रिवाल्वर उठा ली ।
सुनील ने उसके घुटने का निशाना बनाकर फायर किया ।
अविनाश के मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली । वह फर्श पर लोट गया लेकिन रिवाल्वर उसके हाथ से नहीं निकली । उसका रिवाल्वर वाला हाथ ऊपर उठा । पहले सुनील को लगा कि वह उस पर फायर करना चाहता है लेकिन तभी उसने रिवाल्वर का रुख अपनी कनपटी की ओर कर लिया ।
“ओह नो !” - सुनील के मुंह से निकला और वह अविनाश की ओर झपटा ।
अविनाश ने रिवाल्वर की नाल कनपटी से लगाकर घोड़ा दबा दिया ।
अगले ही क्षण अपने ही खून से लथपथ उसकी लाश फर्श पर पड़ी थी ।
भड़ाक से ड्राइंग रूम का दरवाजा खुला और हड़बड़ाये हुए कई नौकर भीतर घुस आए ।
शान्ति स्वरूप हक्का-बक्का सा अविनाश की लाश को देख रहा था ।
ड्राइंग रूम में टेलीफोन था । सुनील ने पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया । प्रभूदयाल के लाइन पर आते ही वह बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“अब क्या हो गया है ?” - प्रभूदयाल का आशंकित स्वर सुनाई दिया ।
“एक खून और ।” - सुनील बोला ।
***
गिरीश को पुलिस ने उसी दिन छोड़ दिया ।
बाद में गिरीश ने सुनील के सामने स्वीकार किया कि उसने यह झूठ बोला था कि वह बुधवार रात को माला की हत्या की खबर कोठी के बाहर खड़े लोगों से सुन कर ही लौट आया था । वास्तव में वह पुलिस के पहुंचने से काफी पहले वहां पहुंचा था और बड़े स्वभाविक ढंग से कोठी में प्रविष्ट हुआ था । वहां उसने माला की लाश देखी थी और वह फूलदान को उठाने की नादानी भी कर बैठा था जिस की वजह से उसकी उंगलियों के निशान फूलदान पर मिले थे ।
माला की विरासत के मामले में गिरीश और मेजर कश्यप के बीच काफी बखेड़ा खड़ा होने की सम्भावना थी लेकिन सुनील और लाला जगतराम के वकील मजूमदार के हस्तक्षेप की वजह से मेजर कश्यप और गिरीश में यह समझौता हो गया था कि मेजर कश्यप अपने आपको माला का पति और वारिस सिद्ध करने की कोशिश नहीं करेगा । लेकिन गिरीश को सारी जायदाद मिल जाने के बाद वह दौलत का आधा भाग मेजर कश्यप को देगा ।
गिरीश ने जायसवाल इन्डस्ट्रीज के विरासत में मिले सारे शेयर लाला जगतराम को बेच दिये । मजूमदार ने अपना वादा निभाया और वह खुशी-खुशी सुनील को एक लाख रुपया दे गया ।
अविनाश के फ्लैट से जो अफीम की पेटियां बरामद हुई उन पर पुलिस ने कब्जा कर लिया ।
कृतज्ञताज्ञापन के तौर पर गिरीश ने भी सुनील को एक माटी रकम देनी चाही जिसे लेने से सुनील ने सरासर इनकार कर दिया ।
अगले सप्ताह बाद गिरीश और कल्पना का विवाह हो गया । विवाह के समारोह में सुनील ‘चीफ गैस्ट’ था ।
मजूमदार से मिले एक लाख रुपये में से पचास हजार रुपये सुनील ने रमाकांत को दे दिये । खुशी के आवेग में रमाकांत को हार्ट अटैक होता होता बचा । कितने ही दिन तो उसे यही विश्वास नहीं हुआ कि जो रुपया सुनील ने उसे दिया है वह अगले रोज उससे वापिस नहीं मांग लेगा ।
रमाकांत के कथनानुसार वह उसकी जिन्दगी का पहला मौका था जबकि खुदा ने वाकई छप्पर फाड़कर उसके लिए ‘नगदऊ’ भेजा था ।
समाप्त
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