विकास ने अपनी इतनी लंबी दिलजली कुछ इस विचित्र ढंग से उछल-उछलकर
और विशेष लहजे में सुनाई कि टुम्बकटू को बड़ा आनंद आया। उसे क्या पता था कि सामने खड़ा
हुआ यह तेरह वर्षीय शैतान शातिरों के शातिर अलफांसे का चेला है। जहां एक ओर विकास टुम्बकटू
को विजय जैसी हरकतों में उलझा रहा था, वहीं उस शैतान के नन्हे-से मस्तिष्क में अपने
गुरु अलफांसे के
द्वारा सिखाए गए अनेकों दांवों में से एक दांव कुलबुला रहा
था, अत: टुम्बकटू को विकास ने इस लंबी दिलजली के साथ-साथ अपनी विचित्र हरकतों में उलझाकर
रेशम की डोरी में एक ऐसा खौफनाक फंदा बना लिया था, जिसकी चपेट में आया व्यक्ति उसके
गुरु अलफांसे के कथनानुसार पानी नहीं मांगता। इस दिलजली के मध्य वह खतरनाक शैतान रेशम
की डोरी को फंदे की शक्ल दे चुका था।
"बहुत खूब विकास!" टुम्बकटू प्रशंसा के स्वर में
बोला-- "बहुत खूब-----वास्तव में तुमने अपने झकझकिए अंकल को भी मात कर दिया।"
."अरे...!" विकास अचानक टुम्बकटू के पीछे देखकर
उछल पड़ा-----"झकझकिए अंकल, आप यहां कैसे?"
और वास्तव में यह पल टुम्बकटू और विकास की फुर्ती का भयानक
फल था।
एक ओर छलावा था तो दूसरी ओर शैतान। दोनों ही शातिर -----
मौत को भी कंपकंपा देने वाले!
टुम्बकटू अगर भयानक छलावा था तो विकास खौफनाक शैतान!
दोनों ने ही अपने-अपने कार्य भयानक तेजी और दक्षता के साथ
किए थे। दोनों में से कोई भी कम न था। टुम्बकटू अगर मौत था तो विकास यमराज! सब कुछ
पलक झपकते ही हो गया। सिर्फ इतनी देर में दृश्य परिवर्तित हो गया ----- जितनी देर में
एक बार पलक झपकती है। दृश्य में जो परिवर्तन आया-----वह इतना आश्चर्यजनक था कि विश्वास
नहीं आता था।
हुआ यूं कि जैसे ही विकास टुम्बकटू के पीछे देखकर ऐसे चीखा,
मानो पीछे विजय हो। वैसे ही वह भयानक छलावा इतनी तेजी के साथ पीछे घूमा कि नजर भी न
आया, किंतु पीछे रिक्त स्थान देखकर उसके मस्तिष्क में खतरे की घंटियां घनघनाई और
वह पहले से भी कहीं अधिक फुर्ती के साथ विकास की और घूमा
परंतु!
परंतु तब तक शातिरों के शातिर अलफांसे का यह तेरह वर्षीय
खतरनाक चेला अपना जौहर दिखा चुका था। उसने पहले ही सब कुछ सोच-समझकर उसके पीछे देखकर
वाक्य कहा था। जैसे ही टुम्बकटू दूसरी ओर घूमा, इधर इस भयानक शैतान ने अपनी रेशम की
डोरी का वह फंदा इस प्रकार फेंका कि फंदा एक वृक्ष की लंबी डाल के ऊपर से होता हुआ...
तब तक टुम्बकटू पीछे भी न देखकर पलट पड़ा था.... बस उसी पल उस खतरनाक छलावे की पतली
शुतुरमुर्गी गरदन में इस खौफनाक शैतान द्वारा फेंका गया फंदा जा गिरा।
इससे पूर्व कि टुम्बकटू स्वयं को संभाल सके-----विकास ने
अपनी पूर्ण भयानकता और फुर्ती का परिचय दिया।
ज्यों ही फंदा टुम्बकटू की गरदन में जाकर फंसा, त्यों ही
विकास ने न सिर्फ अपने हाथ में मौजूद रेशम की डोरी के दूसरे सिरे को तीव्र झटका दिया,
बल्कि वह डोरी को संभालकर विपरीत दिशा में दौड़ लिया।
परिणामस्वरूप टुम्बकटू के जिस्म को एक तीव्र झटका लगा, सब
कुछ क्योंकि अत्यधिक तेजी के साथ हुआ था, इसलिए वह कुछ समझ न सका और रेशम की मजबूत
डोरी ने सिर्फ उसके गले को जकड़ लिया, बल्कि उसका जिस्म डोरी के साथ ही एक झटके के
साथ ऊपर वृक्ष की डाल की ओर बढ़ा।
पलक झपकते ही दृश्य में जो परिवर्तन आया ----वह इस प्रकार
था ।
टुम्बकटू हवा में लटका हुआ था। रेशम की डोरी का वह फंदा उसके
गले में पड़ा था और डोरी वृक्ष के डाल से होती हुई विकास के हाथ में थी।
टुम्बकटू ने अपने हाथ डोरी की ओर बढ़ाए
- इससे पूर्व कि वह डोरी को तोड़ता, उस खतरनाक शैतान ने एक
अन्य भयानक हरकत कर दिखाई।
टुम्बकटू का हल्का-फुल्का-सा जिस्म फिर तने की ओर उठा, उसने
फिर डोरी की तरफ हाथ बढ़ाए, किंतु उससे पूर्व ही एक अन्य तीव्र झटका लगा और वह फिर
धड़ाम से जंगल की धरती पर जा गिरा।
विकास ने उसे फिर खींचा और फिर पटक दिया ! फिर खींचा और फिर
पटक दिया। क्रम तब तक चलता रहा, जब तक कि स्वयं विकास न थक गया। कुछ देर बाद विकास
तो सिर्फ थका ही, टुम्बकटू की तो हड्डियों का दिवाला निकल गया था।
फिर एक बार विकास ने टुम्बकटू को इतने नीचे लटकाया कि छोड़कर
फुर्ती के साथ उसने टुम्बकटू के दोनों हाथों को भी डोरी की लपेट में ले लिया, इस बीच
टुम्बकटू विकास के सिर पर चपत मारना चाहता था, परंतु ऐसा लगता था, जैसे इस भयानक शैतान
पर इस समय खून सवार था।
कई स्थानों पर चोट लगने के कारण टुम्बकटू छलावे जैसी फुर्ती
न दिखा सका था, जबकि तेरह वर्षीय शैतान अपनी पूर्ण शैतानियत पर था। तभी तो टुम्बकटू
का चपत खाली गया, क्योंकि विकास नीचे बैठ गया। अब विकास ने टुम्बकटू के दोनों हाथ भी
डोरी से बांध दिए थे। बांधने के बाद वह उछलकर शरारत के साथ बोला।
"प्यारे लंबू अंकल... यह डोरी कार वाले ने शायद सामान
बांधने के लिए डिक्की में रख रखी थी, लेकिन इसका क्या किया जाए कि यह आपकी मौत बन गई!"
टुम्बकटू को विकास ने रेशम की डोरी में कुछ इस प्रकार कस
दिया था कि वह इस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था। परंतु फिर भी टुम्बकटू के होंठों
पर वही चिरस्थायी मुस्कान थी। वह संयत स्वर में बोला।
-----"प्यारे विकास बेटे... चांद पर मैं अपराधी जगत
का बादशाह कहलाता हूं और यह भी दावे से कह सकता हूं कि धरती का कोई भी मानव मेरे चैलेंज
को पराजित नहीं कर सकता, किंतु तुम्हें देखकर ऐसा लगता है कि तुम पहले ऐसे व्यक्ति
हो, जो धरती का नाम ऊंचा कर सकते हो। आज तक टुम्बकटू को इस प्रकार कोई बेबस नहीं कर
सका है।"
. ----- " मैंने आपकी यह स्थिति सिर्फ एक दिलजली सुनाने
के लिए की है।" विकास के मस्तिष्क का शरारती कीड़ा कुलबुला रहा था।
सुनकर टुम्बकटू मुस्कराया और बोला।
-----"वास्तव में तुम आदमी हो विकास... मैं उसे ही आदमी
समझता हूं जो भयानक हो, खतरनाक हो, मस्तिष्क रखता हो और साथ ही प्रत्येक स्थिति में
स्वयं को संयत रखकर हंसता रहे और हसाता रहे। सच मानना, तुम पहले ऐसे व्यक्ति हो, जिसने
मुझे इस बात के लिए संतुष्ट किया कि वास्तव में धरती पर टुम्बकटू से टकराने के लिए
कम-से-कम एक हस्ती तो है ही।"
ऐसा लगता था, जैसे टुम्बकटू को अपनी स्थिति का कोई विशेष
क्षोभ न हो।
."लंबू अंकल, आप तो भाषण देने लगे।" विकास ने कहा।
-----"अब तुम मुझे लेकर कैसे जाओगे?" टुम्बकटू
मुस्कराकर बोला ।
-"यही तो सोच रहा हूं लंबू अंकल!" विकास सोचता
हुआ बोला----- "अगर मैंने तुम्हें यहां से उतारा तो तुम्हारा एक ही चपत मुझे खुदागंज
की सैर करा देगा, अब यही सोच रहा हूं कि आपको झकझकिए अंकल के पास कैसे ले जाया जाए?"
." ये तुम्हारा सोचने का विषय है।'' टुम्बकटू मुस्कराकर
बोला।
." वो तो मैं सोच ही रहा हूं।" विकास वास्तव में
सोचता हुआ बोला।
." अच्छा मेरी जेब से एक सिगरेट निकालकर मेरे होंठों
से तो लगा दो।" टुम्बकटू विकास ही ओर देखता हुआ बोला।
"छी...अंकल!" विकास बुरा-सा मुंह बनाकर बोला।
-" आपको हमारे सामने सिगरेट का नाम लेते शर्म नहीं आती?"
"बहुत चालाक हो!"
'जी हां... मेरे गुरु ने कहा था कि कैद में आए दुश्मन की
कभी कोई इच्छा पूरी मत करना।"
"कौन है तुम्हारा गुरु?"
." अलफांसे दी ग्रेट "
"कहां है?"
----- "उनका न घर है ना ठिकाना, दैत्य की भांति कहीं
भी प्रकट हो जाते हैं।"
-"खैर, उससे भी कहीं अवश्य मुलाकात होगी।"
"होगी क्यों नहीं!" विकास ने कहा और अत्यंत मजबूती
के साथ उसने टुम्बकटू को इस प्रकार बांधा कि किसी भी स्थिति में वह खुल नहीं सकता था।
टुम्बकटू को डोरी से बांधकर उसने डाल पर लटका दिया और बोला ।
."अच्छा लंबू अंकल... अब आपकी यात्रा का सामान जुटाता
हूं।"
कहकर विकास उधर ही लौटने लगा, जिधर से वे आए थे, परंतु जाता-जाता
वह बोला ----- "देखो अंकल! यही लटके रहना, वरना मैं आपको कभी भी दिलजली नहीं सुनाऊंगा।"
-"तुम्हारी दिलजली बड़ी महंगी पड़ी बेटे !'' टुम्बकटू
वहीं लटका-लटका मुस्कराकर बोला, किंतु विकास जा चुका था।
टुम्बकटू पेड़ पर लटका तेरह वर्षीय उस शैतान…..यानी विकास
के विषय में सोचता रहा.. .उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि विकास का अगला कदम क्या होगा?
टुम्बकटू की प्रत्येक हरकत विजय के लिए आश्चर्य बनती जा रही
थी। उसकी कोठी पर उससे जो बातें हुई थीं ----- वे एकदम नवीन और आश्चर्यजनक थीं। उसकी
समझ में नहीं आ रहा था कि चांद के इस अपराधी को किस प्रकार वश में करे। टुम्बकटू वास्तव
में छलावा था। पता नहीं कौन-से पल वह कहां हो? और अंत में वह जिस ढंग से नाली के माध्यम
से कमरे से बाहर निकल गया था, वह एकदम अविश्वसनीय था। किंतु विजय को इसलिए विश्वास
करना पड़ रहा था, क्योंकि यह सब उसी के सामने हुआ था।
***
उसने टुम्बकटू के विषय में बहुत सोचा। ब्लैक ब्वॉय से भी
उस पर विचार-विमर्श किया - किंतु समझ में नहीं आया कि इस विचित्र नमूने का किया क्या
जाए?
जब टुम्बकटू उसकी कोठी से गायब हुआ और जब वह और रघुनाथ उसे
खोजने का प्रयास कर रहे थे तो उन्हें झाड़ियों में पड़ी एक साइकिल मिली थी, जिसे रघुनाथ
तुरंत पहचान गया था कि वह विकास की साइकिल है।
रघुनाथ के मुंह से यह वाक्य निकला था और विजय के मस्तिष्क
में खतरे की घंटियां घनघनाने लगी थी। उसे विश्वास हो गया कि यह शैतान लड़का इस केस
में भी कूद पड़ा है। वह विकास की शैतानियत और बुद्धि से भली-भांति परिचित था, किंतु
फिर भी विकास था तो एक बालक ही। उसे पूर्ण विश्वास था कि विकास टुम्बकटू के चक्कर में
पड़ चुका है और यही बात विजय के मस्तिष्क में एक कांटे की भांति चुभ रही थी। उसे भय
था कि कहीं विकास किसी परेशानी में न फंस जाए। किंतु उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि
इस खतरनाक लड़के को कहां खोजा जाए?
इन्हीं परेशानियों में उलझा वह अपनी कार में बैठा निरुद्देश्य
राजनगर के चक्कर लगा रहा था। जब वह बोर हो गया तो उसने अपना रुख आशा की कोठी की ओर
कर दिया। अब वह अपना कुछ मनोरजंन करना चाहता था।
जब वह आशा के पास उसके फ्लैट पर पहुंचा तो वह आराम से बिस्तर
पर पड़ी एक जासूसी उपन्यास पढ़ रही थी । विजय अपने ही ढंग से बिना किसी सूचना के अंदर
प्रविष्ट होता हुआ चीखा!
"हैलो, आशा डार्लिंग!'
आशा एकदम चौंक पड़ी। वह अस्त-व्यस्त-सी अपने बिस्तर पर लेटी
थी। अचानक विजय का बेहूदा वाक्य सुनकर वह एकदम खड़ी हो गई। उपन्यास बिस्तर पर ही पड़ा
रह गया और वह स्वयं संभलकर बोली ।
-"विजय, तुम्हें तमीज कब आएगी?"
"जब खरीदकर लाएंगे।" विजय आराम से बिस्तर पर बैठता
हुआ बोला ।
."किसी के कमरे में प्रविष्ट होने से पूर्व उसकी इजाजत
ले लेनी चाहिए।" आशा प्रत्युत्तर में तुनककर बोली ।
जबकि वास्तविकता ये थी कि विजय को यहां देखकर उसे अपार हर्ष
की अनुभूति हुई थी क्योंकि वह दिल ही दिल में विजय से प्यार करती थी !
"हाए!" विजय निहायत ही बदतमीजी के साथ एक हाथ अपनी
छाती पर मारकर बोला--"यानी कि हमें अपनी मिस गोगियापाशा के कमरे में आने के लिए
इजाजत लेनी होगी।"
"अच्छा, बोर मत करो।" आशा बोली---- "लाओ,
वह उपन्यास मुझे दो।"
."अरे मिस..." और विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा
था कि एकाएक बुरी तरह चौंक पड़ा। उसके गले में लटके
लॉकिट की सुई रह-रहकर उसके गले में चुभ रही थी। वह इसका मतलब
साफ जानता था कि कोई उससे संबंध स्थापित करना चाहता है ----- किंतु उसकी समझ में नहीं
आया कि इस समय कौन हो सकता है? परंतु उसने लॉकेट ट्रांसमीटर ऑन किया और बोला-----"हैलो..
.हैलो ।"
"आलू... आलू... अंकल... आलू।" दूसरी ओर से विकास
बोला।
. "कौन विकास!'' विजय चौंकता हुआ बोला-----"अबे
मियां दिलजले, ये आलू... आलू क्या कर रहे हो ? शब्द हैलो होता है। "
-----''मैं बोई कैरिया था अंकल, ओवर।" दूसरी ओर से विकास
शरारत के साथ बोला।
"अबे, तुम कहां हो? ओवर ।" विजय ने प्रश्न किया
। आशा गंभीर थी ।
"अभी कुछ ही समय बाद आप एक ऐसा तमाशा देखेंगे अंकल,
जिससे सारा विश्व चकित रह जाएगा। ओवर।" विकास ने कहा।
"अबे, कैसा तमाशा?"
." आप स्वयं देख लेना।" दूसरी ओर से विकास ने कहा
और संबंध-विच्छेद कर दिया। विजय लॉकेट हाथ में लिए काठ के उल्लू की भांति खड़ा रह गया।
उसकी समझ में नहीं आ रहा कि विकास क्या लड़का है? इस समय वह कहां है? और कुछ ही देर
बाद वह क्या खेल दिखाना चाहता है ?
न जाने क्यों बार-बार विकास उसके मस्तिष्क में एक प्रश्न
बनकर रह जाता था। अभी वह विकास के विषय में सोच ही रहा था
कि वह अपने स्थान से इस प्रकार उछल पड़ा, मानो अचानक पलंग गर्म हो गया हो ! भयानक खतरे
का आभास होने लगा!
चौंककर आश्चर्य के साथ उसने आशा को देखा तो पाया कि आशा के
नेत्रों में भी महान आश्चर्य झांक रहा था। वह भी शायद उसी बात को महसूस कर रही थी-----
जिसे वह स्वयं
कमरे में मधुर संगीत की लहरें गूंज रही थीं। ऐसा मधुर संगीत
कि उन्हें लगा जैसे वे मदहोश होते जा रहे हैं। दोनों पहले तो एक-दूसरे की ओर देखते
रहे तथा फिर अचानक आशा चौंककर बोली ." विजय... यह तो मर्डरलैंड का संगीत है।"
---- "लगता है, हमारी मम्मी यहां आने वाली हैं।"
अभी विजय ने इतना ही कहा था कि दोनों की दृष्टियां एक ही
स्थान पर स्थिर हो गई। वह कमरे की एक खिड़की थी, जो बंद थी ----- किंतु उसकी दरारों
से एक अजीब-सा नीले और सुनहरे रंग का संयुक्त धुआं संगीत की लहरों के साथ निरंतर कमरे
में प्रविष्ट होता जा रहा था। दोनों आंखें फाड़े उसे देख रहे थे।
संगीत की लहरों के साथ वह अजीब-सा धुआं निरंतर कमरे में प्रविष्ट
होता रहा और धीमे-धीमे वह एकत्रित होता गया और उसने एक मानव आकृति का रूप ले लिया।
एकाएक वहां शहद से भी मधुर आवाज गूंजी।
"हैलो मिस्टर विजय!'
."अरे.. मम्मी!'' विजय खुश होता हुआ बोला- ---
"तुम तो दरारों में आ गई।"
आशा जान गई कि धुएं की यह आकृति प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड यानी
जैक्सन के अतिरिक्त कोई नहीं है । वह चुपचाप बैठी रही।
धुएं की वह मानव आकृति आराम से सामने के सोफे पर बैठ गई और
फिर विजय और आशा के देखते ही देखते वह -
अजीब-सा धुंआ विलुप्त होने लगा और उसके स्थान पर वहां सौंदर्य
को भी लजा देने वाली सुंदरी, और साथ ही मौत को भी कंपकंपा देने वाली प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड
यानी जैक्सन बैठी थी। उसके गुलाबी अधरों पर बड़ी मोहक मुस्कान थी। उसके प्यारे-प्यारे
नेत्रों में एक विशेष खिंचाव था। पतली सुराहीदार गरदन इतनी गोरी व कोमल कि अगर वह शराब
का एक घूंट भी पिए तो उसके सामने बैठा व्यक्ति कंठ के बाहर से ही देख ले कि शराब का
रंग कैसा है ?
-----"क्या देख रहे हो विजय ? " अचानक जैक्सन की
मधुर आवाज ने विजय और आशा की तंद्रा भंग की।
"देख रहा हूं मम्मी, कि अब तुम्हारे क्या इरादे हो सकते
हैं?''
----"किस विषय पर?"
"अचानक यहां आने का मतलब?"
"टुम्बकटू नामक अपराधी का चैलेंज । "
-----''मम्मी!'' विजय बोला- "उस साले को छलावा कहते
हैं। लगता है, वह तुम्हारी नाक की नकेल बन जाएगा।"
-"मिस्टर विजय!" जैसन गंभीर स्वर में बोली--~--''हमारी
भी प्रतिज्ञा है कि टुम्बकटू के जीवित रहते हुए ही हम वह माइक्रोफिल्म प्राप्त करेंगे।"
उसके बाद।
थोड़ी देर तक जैक्सन टुम्बकटू के विषय में विजय से बात करती
रही और फिर अचानक धुएं में परिवर्तित होने लगी, तभी विजय 'मम्मी-मम्मी' चीखा, परंतु
जैक्सन यह कहकर कमरे से गायब हो गई कि शीघ्र ही फिर मुलाकात होगी।
जैक्सन के जाने के पश्चात कुछ देर तक विजय आशा से बातें करता
रहा और फिर उठकर चल दिया। इस समय वह कार में बैठा रघुनाथ की कोठी की ओर जा रहा था उसकी
समझ में नहीं आ रहा था कि विकास आखिर बोल कहां से रहा था? वह क्या खेल दिखाना चाहता
है? और उसका अभिप्राय: क्या है?
जैक्सन को देखकर उसे अधिक आश्चर्य नहीं हुआ था। क्योंकि केस
की स्थिति पहले ही बता रही थी कि सिंगही और जैक्सन दोनों ही टुम्बकटू के चैलेंज को
स्वीकार करते हुए उसके पीछे लगेंगे। फिलहाल उसे सिंगही की प्रतीक्षा और थी।
वैसे विजय उस समय की कल्पना कर रहा था, जब सिंगही और जैक्सन
का टकराव होगा। वह निर्णय न कर सका कि उनमें से कौन अधिक खतरनाक है? वह विचारों में
खोया हुआ था और कार की गति अति तीव्र थी।
"कार अधिक तेज मत चलाया करो भतीजे!" एकाएक विजय
इस प्रकार उछला, मानो उसकी कार एक धमाके के साथ उड़ गई हो। हाथ कांपने के कारण कार
डगमगा गई। अगर विजय संभाल न लेता तो निश्चित रूप से कोई भयानक दुर्घटना हो गई होती।
वह इस आवाज को लाखों में पहचान सकता था। यह आवाज शत-प्रतिशत संसार के भयानकतम अपराधी
सिंगही के अतिरिक्त किसी की न थी। इस प्रकार अचानक सिंगही की आवाज सुनकर उसका चौंक
पड़ना स्वाभाविक था।
-----"संभलकर भतीजे!" सिंगही का भयानक भर्राया
हुआ लहजा कार के इंजन की ध्वनि को चीरता हुआ गूंजा।
अब तक विजय स्वयं को संभाल चुका था। अत: कार की गति अपेक्षाकृत
धीमी करके उसने सामने लगे शीशे में पिछली सीट पर बैठे सिंगही के भयानक चेहरे को देखा-----सिंगही
का चेहरा अत्यंत ही खौफनाक और भयानक था। उसे देखकर ऐसा लगता, जैसे कोई मुर्दा कब्र
फाड़कर अचानक जीवित हो उठा हो । एक जीता-जागता कंकाल! हल्दी की भांति पीला रंग। गड्ढे
में धंसी छोटी और चमकीली आखें, पिचके हुए गाल और सफेद दाढ़ी !
विजय ने देखा कि उस भयानक मुर्दे के खौफनाक होंठों पर विचित्र
- सी जहरीली मुस्कान थी। विजय कार को एक नोड पर मोड़ता हुआ बोला।
-"चचा, हो ना पूरे वनस्पति।"
"क्यों?" उसकी आवाज अजीब-सा डरावनापन लिए थी।
"तुम यहां-कहां अलादीन के चिराग की तरह प्रकट हो गए?"
"तुम्हारा प्यार खींच लाया।"
"मेरा प्यार या टुम्बकदू का चैलेंज?"
-"जैसा भी तुम समझो। "
उसके बाद! सिंगही ने भी विजय से टुम्बकटू के विषय में अनेक
जानकारियां एकत्रित कीं, विजय ने यह भी बताया कि जैक्सन भी इसी सिलसिले में उससे मिल
चुकी है। यूं विजय उसे बातें बता तो अवश्य रहा था, किंतु उसके मस्तिष्क में प्रत्येक
क्षण यही बात चकरा रही थी कि वह इस समय सिंगही पर हाथ कैसे डाले, परंतु उसे कोई उपयुक्त
उपाय न सूझ रहा था, वैसे उसने कार का रुख कोतवाली की ओर कर दिया था। तभी सिंगही बोला।
- ''मैं इस नमूने को जिंदा ही गिरफ्तार करूंगा भतीजे!"
"ये नमूना बहुत खतरनाक है चचा!" विजय उसे उलझाने
का प्रयास करता हुआ बोला।
-'" उससे ज्यादा तो तुम खतरनाक हो बेटे ! " सिंगही
बोला।
***
“क्यों चचा?"
"बेवकूफ इतने हो कि सिंगही को कोतवाली ले जाना चाहते
हो।"
अभी विजय कुछ और बोलना ही चाहता था कि सिंगही बोला -
" अच्छा भतीजे, अब मैं चलता हूं।"
— उसके बाद विजय 'चचा चचा... अबे झबके' इत्यादि शब्द कहता
ही रहा, जबकि उसके देखते ही देखते सिंगही शीशे में से गायब हो गया। उसने गरदन घुमाकर
पीछे देखा, किंतु सीट वास्तव में खाली थी। एक बार को तो उसका मस्तिष्क भी चकराकर रह
गया। उसकी समझ में नहीं आया कि अचानक सिंगही कहां गायब हो गया। परंतु जानता था कि इस
बात को सोचने में दिमाग खपाने के अतिरिक्त दूसरा कोई लाभ न होगा। अत: उसने सिर को झटका
दिया और कार का रुख अब अपनी कोठी की ओर कर दिया।
उसका मस्तिष्क विचारों में उलझा हुआ था।
तब, जबकि उसने कार अपनी कोठी के लॉन में रोकी, दरवाजा खोलकर
वह बाहर आया, परंतु उसी पल वह आश्चर्य से उछल पड़ा।
कार का पिछला दरवाजा एक झटके के साथ खुला और इससे पूर्व कि
विजय कुछ समझ सके, अचानक उसके जबड़े पर? एक अत्यंत शक्तिशाली घूंसा पड़ा ।
घूंसा इतना शक्तिशाली था कि वह स्वयं को संभाल न सका और धड़ाम
से फर्श पर गिरा। तभी उसके कानों से सिंगही का स्वर टकराया !
---"फिलहाल विदा भतीजे... फिर मिलेंगे।"
अपना जबड़ा सहलाता हुआ विजय उठा परंतु उसे आसपास कहीं भी
सिंगही नजर नहीं आया। वह जान गया कि सिंगही कार से उतरा न था, बल्कि वहीं बैठा-बैठा
अदृश्य हो गया था और जबकि कार रुक गई, वह जाता-जाता उसके जबड़े को अपनी शक्ति का परिचय
दे गया था।
उसके आसपास कहीं भी सिंगही नजर नहीं आया ।
अचानक उसी पल वह चौंका!
बरबस ही उसकी निगाहें आकाश की ओर उठ गई और
अगले ही पल आकाश का दृश्य देखते ही विजय की आंखें हैरत से
फैल गई! उसकी आंखों का आश्चर्य क्षण-प्रतिक्षणं बढ़ता ही जा रहा था। दिमाग मानो हवा
में चकरा रहा था। वह उस दृश्य पर विश्वास नहीं करना चाहता था, किंतु प्रत्यक्ष को प्रमाण
की आवश्यकता नहीं थी !
ये आपकी इच्छा है कि आप तेरह वर्षीय इस शैतान की इन हरकतों
को उसकी कमजोरी कहें अथवा विशेषता! ये खौफनाक और खूबसूरत शैतान उस नमूने सरीखे, चांद
के भयानक छलावे को गठरी बनाकर पेड़ से लटकाकर चल दिया तो उसके नन्हे-से शैतानी मस्तिष्क
में शैतानी कीड़े ने कुलबुलाना शुरू कर दिया।
अत: चलते-ही-चलते उसने गले में लटके लॉकेट रूपी ट्रांसमीटर
पर अपने झकझकिए अंकल से संबंध स्थापित करके कुछ इस प्रकार के शब्द कह डाले कि उधर विजय
बौखला जाए और इधर इस शरारती ने अपनी बातों में एक रहस्य छोड़ते हुए कहा। गुनीमत ये
थी कि उसने विजय को दिलजली सुनाने के लिए नहीं कहा, वरना विजय के मस्तिष्क में रखे
एक बम का धमाका हो जाता और फिर लॉकेट रूपी छोटा-सा ट्रांसमीटर हवा से बातें करता ।
खैर शीघ्र ही विकास उस कार तक आ गया, जिसे टुम्बकटू चुराकर
लाया था और विकास ने डिक्की में बैठकर उसका पीछा किया था ।
विकास कार की ड्राइविंग सीट पर ठीक किसी ऐसे रईसजादे के आंख
के तारे की भांति जम गया, जिसके पिता ने वह कार उसी के लिए खड़ी की हो। उसने बड़े आराम
से कार बैक की और अगले ही पल कार वापस शहर की दिशा में फर्राटे भर रही थी।
विकास के नन्हे- से मस्तिष्क में इस समय एक बड़ी खौफनाक योजना
कुलबुला रही थी। वह टुम्बकटू को गिरफ्तार करके इस प्रकार से ले जाना चाहता था कि आज
तक कोई किसी को गिरफ्तार करके न ले गया हो। दूसरे टुम्बकटू किसी भी स्थिति में फरार
न हो सके, तीसरे उसका यह ढंग राजनगर की सीमाओं के पार समूचे विश्व में आश्चर्य बन जाए।
उसके मस्तिष्क में जनमी योजना काफी भयानक थी, किंतु उससे
कहीं अधिक भयानक था यह तेरह वर्षीय खतरनाक शैतान!
कार सड़क पर फर्राटे भर रही थी।
कार सीधी पहली और अंतिम बार हवाई अड्डे के बाहर रुकी। अभी
वह बाहर निकलना ही चाहता था कि बुरी तरह से वह चौंक पड़ा।
एक खासी भीड़ शोर मचाती हुई सीधी उसी की ओर दौड़ीचली आ रही
थी। लोगों का यह जत्था अधिक दूरी पर भी नहीं था। पहले तो उसकी समझ में नहीं आया कि
यह सब क्या है, परंतु उस समय विकास जैसा शैतान भी बुरी तरह बौखला गया, जब उसके मस्तिष्क
में यह आया कि यह कार चोरी की है।
किंतु इस बौखलाहट में उसने यह भी सोच लिया कि अगर अब वह यहां
एक पल भी ठहरा तो ये भीड़ निश्चित रूप से उसे पानी का वह बताशा बना देगी, जो किसी खोमचे
वाले की दुकान से सड़क पर गिर गया हो। अत: वह अपनी पूर्ण सतर्कता के साथ कार से निकला
और उसने एयरपोर्ट के अंदर की ओर जंप लगा दी।
शोर मचाती हुई भीड़ उसके पीछे थी ।
परंतु भीड़ में कोई भी ऐसा व्यक्ति न था, जिसे इस खतरनाक
शैतान की भांति गुणवान कहा जाए। हवा में किसी शैतान की भांति ही जंप लगाता हुआ विकास
भीड़ के आगे-आगे दौड़ता रहा।
एयरपोर्ट पर हंगामा-सा मच गया।
जो सुनता, वह विकास को पकड़ने दौड़ता, परंतु यह खौफनाक लड़का
पूर्णतया अपनी शैतानी पर उतर आया था। अत: प्रत्येक को मात देता हुआ वह दौड़ता जा रहा
था।
जब वह प्लेटफार्म में हवाई पट्टियों की ओर लपका तो पुलिस
अधिकारीगण भी उसकी ओर लपके, किंतु वह किसी खौफनाक जिन्न की भांति खुले मैदान में हवाई
पट्टियों पर दौड़ने लगा।
लोगों की भीड़ में पुलिस अधिकारी भी मिल गए थे और यह बात
भीड़ के अधिकांश व्यक्तियों को मालूम थी कि यह किशोर कोई बहुत खतरनाक चोर है।
विकास को लगा कि वह इस भीड़ के पंजे से बच नहीं पाएगा, किंतु
फिर भी वह निरंतर अपने प्रयास में प्रयत्नशील रहा। भागता-भागता वह हवाई पट्टियों पर
नजर मार रहा था, किंतु उसकी दृष्टि में ऐसा विमान नजर न आया जो तत्काल चल सके।
अचानक उसने देखा कि उससे थोड़ी ही दूरी पर एक
हेलीकॉप्टर लैंड कर रहा था। उसे देखकर विकास की आखों में
चमक उभर आई और फिर पलक झपकते ही विकास का रुख उस हेलीकॉप्टर की ओर हो गया।
इस शैतान को हेलीकॉप्टर तक पहुंचने में अधिक समय लगने की
आवश्यकता थी ही नहीं। अतः शीघ्र ही वह वहां पहुंच गया।
भीड़ उसके पीछे थी ।
हेलीकॉप्टर में मात्र एक चालक था, जिसने एयरपोर्ट पर होता
हुआ ये हंगामा देख लिया था और विकास के पीछे भागती भीड़ को मी।
'चोर... चोर' की आवाजों से उसके मस्तिष्क में यही आया कि
लड़का किसी की जेब इत्यादि काटकर भागा है, अत: उसने बात को उतना महत्व न देते हुए हेलीकॉप्टर
को लैंड कर दिया।
उसके विचार से लड़का उसी तरफ दौड़ता आ रहा था, अत: वह उसे
पकड़ लेगा।
परंतु वह बेचारा क्या जानता था कि जिसे वह साधारण लड़का समझ
रहा है, वह खौफनाक शैतान है। ऐसा शैतान, जिसने टुम्बकटू जैसे व्यक्ति की गठरी बना दी।
बेखौफ दौड़ता हुआ वह हेलीकॉप्टर के निकट आया।
इंजन अभी चालू ही था, चालक उसे बंद करना चाहता ही था कि!
खौफनाक शैतान भयानक जिन्न की भांति हवा में लहराया और उसी
पल पायलट भी हवा में लहराने हेतु विवश हो गया। क्योंकि अभी वह इंजन बंद करने जा ही
रहा था कि उस खौफनाक शैतान की फ्लाइंग किक उसके सीने पर पड़ी, जिसे वह साधारण लड़का
समझ रहा था।
परिणामस्वरूप वह आश्चर्य करता हुआ हवा में लहराया और धड़ाम
से हेलीकॉप्टर के बाहर दूसरी ओर हवाई पट्टी पर गिरा।
चालक ने तो स्वप्न में भी कल्पना न की थी कि कोई इतना छोटा
लड़का इतना अधिक खतरनाक भी हो सकता है, और उसकी उसी भूल का परिणाम ये था कि वह इस समय
फर्श पर पड़ा कराह रहा था।
पीछे से आती भीड़ और अधिकारियों ने यह अद्भुत कमाल देखा तो
हतप्रभ-से रह गए। उसकी गति में तीव्रता आ गई, परंतु उन्होंने एक अन्य करिश्मा देखा
।
विकास पर मानो पूर्णतया शैतान सवार था। एक ही फ्लाइंग किक
का परिणाम ये था कि चालक फर्श चाटने में व्यस्त था। अगले ही पल विकास हेलीकॉप्टर की
चालक सीट पर जम गया।
अगले ही पल हेलीकॉप्टर वायु में उड़ रहा था।
अधिकारियों ने जब यह कमाल देखा तो हतप्रभ-से रह गए।
उनका विचार तो ये था कि तेरह-चौदह वर्ष का यह किशोर क्या
हेलीकॉप्टर चलाना जानता होगा! उन बेचारों को क्या मालूम था वह लड़का नहीं शैतान है
और गुरुओं के गुरु अलफांसे दी ग्रेट का चेला है, जिसने इसे प्रत्येक कार्य में दक्ष
कर दिया है ।
विकास ने हेलीकॉप्टर को हवा में उठते हुए ही देखा कि उसके
इस करिश्मे को देखकर लोगों के हलक सूख गए और वे उसके हेलीकॉप्टर के साथ ऊपर जा रहे
थे। अधिकारी लोग एक पल के लिए तो इस अनहोने दृश्य को देखकर बौखला गए, परंतु अगले ही
पल कई के हाथों में एक साथ रिवॉल्वर चमक उठे। विकास इस समय तक काफी ऊपर उठ चुका था,
परंतु अभी रिवॉल्विंग रेंज से बाहर न था, अत: जमकर बैठ गया।
-----'धायं…..धायं!'
अधिकारियों के रिवॉल्वर गरजे ।
परतु चालक सीट पर उपस्थित था खौफनाक शैतान विकास! उसने उसी
पल हेलीकॉप्टर को विशेष झुकाइयां दीं और गोलियों को बेकार करता हुआ हवा में ऊपर उठता
चला गया। उसकी गति भी अपेक्षाकृत तीव हो गई थी।
इधर प्रतिपल विकास की हरकतें देखकर अधिकारियों का आश्चर्य
बढ़ता ही जा रहा था। उन्होंने एक-दो गोलियां और चलाई, परंतु हेलीकॉप्टर की चालक सीट
पर उपस्थित उस शैतान ने उन्हें भी बिना कोई विशेष करिश्मा दिखाए शहीद होने पर विवश
कर दिया।
कुछ ही देर बाद वह रिवॉल्विंग रेंज से बाहर था ।
विकास ने जब नीचे झांककर देखा तो उन्हें मुंडी उठाए हेलीकॉप्टर
की ओर इस प्रकार देखते पाया, जैसे जुए में हारा खिलाड़ी उन नोटों को देख रहा हो जो
कुछ ही देर पहले उसकी जेब में थे और अब जीतने वाले खिलाड़ी की शोभा बने जा रहे थे।
ज्यों-ज्यों हेलीकॉप्टर ऊपर उठता जा रहा था, त्यों-त्यों
विकास को हारे हुए वे खिलाड़ी छोटे होते दिखाई पड़ रहे थे।
***
विकास के प्यारे-प्यारे गुलाबी अधरों पर मुस्कान उभर आई।
उसने अब उधर से ध्यान हटाकर हेलीकॉप्टर का रुख उस ओर किया, जिधर वह टुम्बकटू को पेड़
पर लटका आया था। वह जानता था कि फिलहाल तो राजनगर एयरपोर्ट पर कोई विमान अथवा हेलीकॉप्टर
चलने की स्थिति में न था। इसलिए कोई उसका पीछा न कर सका, परंतु वह जानता था कि वह कितना
संगीन जुर्म करके फरार हो रहा है। अत: कुछ ही देर पश्चात समूचे भारत में कोलाहल मच
जाएगा, परंतु तब तक विकास अपना लक्ष्य पूरा कर लेना चाहता था।
अत: उसने हेलीकॉप्टर की गति तीव्र कर दी। वह दक्षता के साथ
हेलीकॉप्टर संचालन कर रहा था। आखिर चेला किसका था? परंतु इससे भी अधिक आश्चर्य की बात
तो यह थी कि जहां उसके प्यारे चेहरे पर घबराहट, बौखलाहट और चिंता के चिह्न होने चाहिए
थे, वहां वह बिल्कुल विपरीत मन-ही-मन एक दिलजली गुनगुना रहा था। अखिर संगत में किसकी
रहता था? विकास पर विजय और अलफांसे का संयुक्त प्रभाव था।
कठिनता से विकास को उस स्थान तक पहुंचने में दस मिनट लगे
होंगे-----इन दस मिनटों में ही उसने वृक्षों से बचाते हुए हेलीकॉप्टर जंगल में उस पेड़
के काफी निकट उतारा जहां उसने टुम्बकटू को गठरी बनाकर रखा था।
उसे यह देखकर संतोष हुआ कि टुम्बकटू सुरक्षित यथास्थान पेड़
पर लटका हुआ है। परंतु यह भी देखा कि उसे हेलीकॉप्टर के साथ देखकर टुम्बकटू की आंखों
में आश्चर्य उभर आया है। वहीं बंधा हुआ वह विकास से बोला ।
." ये खटारा कहां से उठा लाए बेटे ?"
-"एक नाले में पड़ा था अंकल ! " विकास हेलीकॉप्टर
का इंजन बंद करके उसी ओर बढ़ता हुआ बोला-----''मैंने सोचा,
आपकी यात्रा के लिए अच्छा रहेगा।"
."मैं एक चपत में इसका इंजन बेकार कर सकता हूं बेटे!''
दुम्बकटू मुस्कराकर बोला ।
"मैं इतना अवसर ही कहां दूंगा लंबू अंकल!" विकास
उसके समीप के ही एक वृक्ष पर चढ़ता हुआ बोला।
टुम्बकटू उसकी इन अजीब हरकतों को देख रहा था, परंतु उसकी
समझ में नहीं आ रहा था कि यह नन्हा-सा लड़का वास्तव में लड़का है अथवा कोई फरिश्ता
?
पता नहीं अब उसके नन्हे-से दिमाग में कौन-सी योजना कुलबुला
रही थी ?
पता नहीं क्या करने जा रहा था विकास ?
उसकी इन विचित्र हरकतों का अभिप्राय क्या था?
टुम्बकटू जैसा व्यक्ति भी विकास के दिमाग तक न पहुंच सका।
अत: बोला।
"ये क्या कर रहे हो?"
." आपकी यात्रा की तैयारी ।" विकास मुस्कराता हुआ
वृक्ष से एक लंबी, सीधी और किसी लाठी की भांति मजबूत लकड़ी तोड़ता हुआ बोला।
'आखिर तुम करना क्या चाहते हो?'' टुम्बकटू वास्तव
में विकास की अजीब-अजीब हरकतों पर उलझ गया था । उसे ऐसा लग
रहा था कि ये लड़का आवश्यकता से कुछ अधिक ही खतरनाक है।
"अभी अपनी ही आंखों से देख लेना अंकल!" विकास ने
कहते हुए एक लकड़ी और तोड़ ली! उसके बाद वे दोनों इसी प्रकार बात करते रहे और विकास
अपना कार्य निरंतर तेजी के साथ करता रहा, क्योंकि वह जानता था कि या तो उसकी खोज जारी
हो गई होगी अथवा जारी होने जा रही होगी।
शीघ्र ही वह लकड़ियां लेकर वृक्ष से नीचे उतर आया, उसने उन
पर से पत्ते साफ किए। अब वे ठीक किसी लठिया की भांति ही लग रही थी। वह शरारत के साथ
टुम्बकटू की ओर देखता हुआ व्यंग्यात्मक लहजे में बोला----- " अब इस समय तुम्हारा
मौका है बेटे ।" टुम्बकटू मुस्कराता हुआ बोला-----"जब अंकल का मौका आएगा
तो तुम्हें तिगनी का नाच नचा देंगे।''
-----"ख्वाब देखना छोड़ दो अंकल!" विकास ने भी
उसी प्रकार जवाब दिया-----"अब तो आप दस लाख की बिल्डिंग में हलाल का खाएंगे।'
"देखना ये है कि तुम लोग मुझे गिरफ्तार करके कितने दिन
रख सकते हो?'' टुम्बकटू के लहजे में एक सख्त चैलेंज छुपा हुआ था ।
"वह भी देखा जाएगा अंकल!" विकास अपना कामं जारी
रखता हुआ बोला।
सर्वप्रथम विकास ने अत्यधिक सतर्कता के साथ टुम्बकटू की गठरी
खोली, परंतु उसके हाथ नहीं खोले, क्योंकि टुम्बकटू के चपत का मतलब वह भली प्रकार से
जानता था। अत: उसने उसके हाथ-पैर उसी प्रकार बंधे रहने दिए और फिर उसने एक आश्चर्यचकित
कर देने वाला ड्रामा किया।
उसने एक सीधी और लंबी लकड़ी ली और उसका एक सिरा टुम्बकटू
की दाई कलाई और उसके टैक्नीकलर कोट की बांह के बीच के खाली स्थान में ठूंस दिया। ठीक
इस तरह, जैसे कोट की उस बांह में टुम्बकटू की कलाई के रहते हुए एक अन्य कलाई आ जाए।
लठियानुमा यह लकड़ी कोट की बांह के भीतर टुम्बकटू की कलाई को छीलती हुई उसके कंधे तक
पहुंच गई। विकास ने उसे कोट के भीतर ही भीतर टुम्बकटू की पीठ की तरफ से लेते हुए उसकी
बाई बांह के कंधे से के लेकर बाई कलाई पर से होते हुए कलाई के पंजे तक निकाल दी।
अब स्थिति ये थी कि उस सीधी और मजबूत लकड़ी का एक सिरा दाई
बांह से झांक रहा था और एक सिरा बाई बांह से । अन्यथा समूची लकड़ी उसके कोट के नीचे
दबी थी और टुम्बकटू की दोनों बाहें 180 डिग्री, यानी दो समकोणों पर बिल्कुल सीधी हालत
में थीं। और अब उस शैतान ने उसके हाथों की उंगलियां एक-एक करके डोरी से लकड़ी में बांध
दी।
टुम्बकटू उसकी प्रत्येक हरकत आश्चर्य के साथ देख रहा था।
उसे मानना पड़ा कि लड़का खतरनाक शैतान है।
वास्तव में वह अभी तक धरती पर प्रभावित हुआ तो सिर्फ विकास
से । वास्तव में वह स्वयं विकास की इस बुद्धिमत्तापूर्ण हरकत पर आश्चर्यचकित था। विकास
ने वह तरीका अपनाया था कि वास्तव में अब वह अपने हाथों को लेशमात्र हरकत भी नहीं दे
सकता था। अलबत्ता वह विकास की ओर देखकर थोड़ा मुस्कराया और प्रशंसनीय स्वर में बोला---
"मानते है बेटे, कि तुम दिमाग नाम की एक प्रशंसनीय वस्तु रखते हो।"
"सब आपकी देन है अंकल!" विकास मुस्कराता हुआ बोला
और साथ ही उसने एक अन्य लकड़ी पैंट के पेटी वाले स्थान से घुसाकर दाएं पैर के साथ बाहर
निकालकर लकड़ी का ऊपरी सिरा डोरी से कसकर पैंट की पेटी के साथ बांध दिया। कुछ ऐसी ही
स्थिति उसने एक अन्य लकड़ी से उसके बाएं पैर की कर दी। अब स्थिति ये थी कि टुम्बकटू
स्वेच्छा से पैर भी नहीं मोड़ सकता था। उसके पैर भी लकड़ी की भांति ही, लकड़ी और पैंट
की पकड़ में रह गए। अत: टुम्बकटू अब स्वेच्छा से कोई हरकत नहीं कर सकता था।
.--" कहो अंकल, क्या हाल है?" विकास मुस्कराता
हुआ व्यंग्यात्मक लहजे में बोला ।
. "अच्छा ढंग है।'' टुम्बकटू मुस्कराकर प्रशंसनीय स्वर
में बोला।
'आगे जो करने जा रहा हूं वह इससे भी अधिक अच्छा
ढंग होगा।" प्रत्युत्तर में विकास ने भी मुस्कराते हुए
कहा और आराम से हेलीकॉप्टर की ओर चल दिया। टुम्बकटू वहीं किसी पुतले की भांति खड़ा
रहने के लिए विवश था। वास्तव में वह स्वेच्छा से गरदन के अतिरिक्त अपने जिस्म का अन्य
कोई अंग न हिला सकता था।
कुछ ही देर में उसने देखा कि विकास हेलीकॉप्टर की रस्सी और
डंडों वाली सीढ़ी खींचे ला रहा है ।
टुम्बकटू की समझ में नहीं आया कि विकास की इस हरकत का क्या
मतलब है?
वह विकास को घूरता हुआ बोला।
"अब क्या बेवकूफी करने जा रहे हो ?"
-"देखो अंकल, अगर मेरी बात को बेवकूफी कहा तो हम तुम्हें
यहीं इसी हालत में छोड़कर चले जाएंगे। जंगल में किसी शेर इत्यादि का पेट भर जाएगा।"
"हड्डियों से किसी का पेट नहीं भरा करता है बेटे!"
प्रत्युत्तर में टुम्बकटू भी व्यंग्यात्मक लहजे में बोला-----" और फिर वह फिल्म
तुम कहां से लोगे, जो मेरी जांघ में है?"
- "यही तो विवशता है अंकल, जो आपको ले जाना पड़ रहा
है।'' विकास बोला और फिर टुम्बकटू के जिस्म को डोरियों से कस-कसकर हेलीकॉप्टर की सीढ़ी
के साथ, सबसे निचले सिरे पर बांधने लगा। वह उस इस प्रकार बांध रहा था कि उसका जिस्म
तराजू के पलड़े की भांति धरती के साथ 180 डिग्री का कोण बनाए ।
विकास की यह हरकत देखकर टुम्बकटू के मस्तिष्क में यह आ गया
कि विकास करना क्या चाहता है ?
और यह मस्तिष्क में आते ही टुम्बकटू जैसा व्यक्ति भी कांप
गया। भय की झुरझुरी उसके जिस्म में दौड़ती चली गई।
***
इस बार उसके मस्तिष्क में यह बात बैठ गई कि यह लड़का न होकर
कोई खौफनाक प्रेत है अथवा कोई खूंखार शैतान!
वास्तव में इतनी खौफनाक हरकत मानव तो कर नहीं सकता।
टुम्बकटू भी कांपकर रह गया।
वह अवाक्-सा मुस्कराते हुए उस सुंदर लड़के को देखने लगा।
उसे देखकर विश्वास नहीं हो सकता था कि इतना खूबसूरत लड़का इतना खतरनाक भी हो सकता है।
वास्तव में टुम्बकटू की निगाहों में विकास इतना खूंखार, इतना
खतरनाक था कि मौत भी उसके पास आते-आते ही मृत्यु के भय से थर्रा उठे। कोई क्या जान
सकता था कि विकास के इस खूबसूरत चेहरे के पीछे कितना खौफनाक मस्तिष्क छिपा हुआ है!
इतना भयानक कि सोचकर भी कंपकंपी आने लगे। इतना खौफनाक कि छलावा भी कांप गया।
विकास ने टुम्बकटू को पूर्णतया सीढ़ी के निचले सिरे में बांधकर
कहा।
-----"ठीक रहेगा ना अंकल... अब मैं हेलीकॉप्टर चलाऊंगा
और आप आराम से इस सीढ़ी के साथ-साथ मेरे पास रहेंगे और मुझ पर कोई मुसीबत आएगी तो आप
मेरी सहायता करेंगे-----क्यों अंकल करोगे ना?''
"तुम तो खुद मुसीबत हो प्यारे शैतान!'' टुम्बकटू मुस्कराकर
प्रशंसनीय स्वर में बोला ---- "तुम पर भला मुसीबत को आकर मरना है । "
"ये तो आप अंतरिक्ष में चढ़ाने वाली बात कर रहे हैं अंकल!"
मुस्कराता हुआ विकास बोला और हेलीकॉप्टर की ओर चल दिया।
टुम्बकटू आश्चर्य के साथ धरती के सर्वोत्तम और विचित्र अजूबे
को देखता रह गया।
हेलीकॉप्टर के निकट पहुंचकर विकास ने टुम्बकटू की ओर देखकर
आंख मार दी। परिणामस्वरूप टुम्बकटू मुस्कराकर रह गया, परंतु विकास शरारत के साथ बोला।
-----"क्यों अंकल, यात्रा अच्छी रहेगी ना?"
प्रत्युत्तर में टुम्बकटू भी उसी प्रकार मुस्कराकर बोला-----"अच्छी
रहेगी।"
"ओके।" विकास ने दुबारा आंख मारकर कहा-----"वहां
पहुंचकर मैं आपको मिट्टी के तेल से तली हुई एक सुंदर दिलजली सुनाऊंगा।" कहने के
साथ हेलीकॉप्टर की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
उसने हेलीकॉप्टर स्टार्ट किया।
अगले ही पल हेलीकॉप्टर वायु में उड़ने लगा। साथ ही वह सीढ़ी
भी उठती चली गई और उस सीढ़ी के साथ उठता चला गया, उसमें बंधा हुआ टुम्बकटू का बेबस
जिस्म ।
टुम्बकटू सीढ़ी के सबसे निचले सिरे पर डोरियों द्वारा ठीक
किसी तराजू के पलड़े की भांति लटका हुआ था। टुम्बकटू विकास की हेलीकॉप्टर ड्राइविंग
पर दंग रह गया। विकास बड़ी सफाई से न सिर्फ हेलीकॉप्टर को वृक्षों से बचाता हुआ ले
गया, बल्कि उसनें नीचे लटकी सीढ़ी को भी किसी वृक्ष इत्यादि से स्पर्श न होने दिया।
कुछ ही देर पश्चात हेलीकॉप्टर खुले वायुमंडल में था। सीढ़ी
में नीचे लटका हुआ टुम्बकटू बड़ा अजीब-सा दृश्य लग रहा था। उसका रुख राजनगर की ओर था।
रैना के हृदय में एक मां का दिल धड़क रहा था। कौन नहीं जानता
कि पुत्र के लिए मां का हृदय कितना कमजोर होता है?
अगर वह यह सुन ले कि पुत्र की उंगली में हल्की-सी सुई चुभ
गई तो मां का दिल ऐसे तड़पता है, जैसे उसके दिल में बर्छियां चल गई हों। और रैना !
रघुनाथ की पत्नी! विकास की जननी !
जब रघुनाथ ने उसे कोतवाली से फोन करके बताया कि विकास की
साइकिल विजय की कोठी के पिछवाड़े पाई गई है और वह स्वयं गायब है तो रैना के दिल पर
मानो भयानक विस्फोट हुआ ----- वह तड़प उठी-----मचल उठी। उसके हृदय में एक पीड़ा-सी
उठी। मां का ममता से भरा हृदय तड़प उठा। नेत्रों में अश्कों ने आना चाहा। उसके हृदय
में एक साथ अनगिनत प्रश्न उभरे-----कहां गया मेरा लाल ?
कहां गायब हो गया उसके हृदय का टुकड़ा ?
कहां चला गया उसके जीवन का वारिस ? वह तड़प उठी । काम तो
तब कुछ करती, जब उसका हृदय करता । परेशान-सी होकर पहले वह कोठी के द्वार पर जा खड़ी
हुई । शीध ही अंदर आई, बेचैनी से इधर-उधर टहलती रही-----एकाध बार फोन किया तो कोतवाली
से रघुनाथ ने कहा कि अभी कोई पता नहीं लगा है... घबराने की बात नहीं है... खोज जारी
है। परंतु रैना कैसे न घबराए, उसके जिगर का टुकड़ा पता नहीं कहां ठोकरें खा रहा होगा?
कहां होगा विकास ?
अंत में जब उससे नहीं रहा गया तो साड़ी बदलकर टैक्सी के माध्यम
से कोतवाली पहुंच गई।
रैना ने वहां जाते ही देखा, ठाकुर साहब रघुनाथ पर बिगड़ रहे
थे। उसे देखते ही दोनों चौके!
रघुनाथ उसकी ओर बढ़ता हुआ बोला।
--"तुम!"
परंतु अभी कुछ कह भी नहीं पाया था कि ठाकुर साहब बोले ।
-----"अरे बेटी, तुम यहां क्यों आ गई?"
रैना ने लपककर उनके पैर छुए और ठाकुर साहब ने आशीर्वाद दिया।
पैर छूकर रैना ठाकुर साहब से बोली-----"कुछ पता चला पिताजी?"
'अरे!'' ठाकुर साहब मुस्कराने का अभिनय करते हुए रैना की
पीठ पर प्यार से हाथ रखकर बोले-"तुम घबराती क्यों हो? अभी मिल जाएगा।"
अभी ठाकुर साहब ने अपने शब्द पूरे भी नहीं किए थे कि सभी
चौक पड़े।
गगन से उभरती गड़गड़ाहट ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित
कर लिया।
कोई भी ऐसा व्यक्ति न था, जिसकी निगाहें बरबस ही आकाश की
ओर न उठी हों तथा जिसने निगाहें उधर उठाई, उन सभी में दृश्य देखते ही हैरत के भाव उभर
आए।
ठाकुर साहब, रघुनाथ तथा रैना भी आश्चर्य के साथ उस दृश्य
को देखते रह गए। कितना खौफनाक था वह दृश्य ! कितना आश्चर्यजनक, कितना हैरतअंगेज !
वायु में एक हेलीकॉप्टर तैर रहा था और उसकी सीढ़ी नीचे लटकी
हुई थी। सीढ़ी में कोई इंसान ठीक किसी तराजू के पलड़े की भांति लटका हुआ था।
***
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