शाम चार बजे अल्बर्टो वापस लौटा । उसने आकर विमल को बताया कि अल्फांसो अभी भी अचेत था, लेकिन उसकी देख-भाल जो सम्भव थी, की जा रही थी ।
“मैं उस हरामजादे एल्बुर्क्क का खून पी जाऊंगा ।” - वह कहर भरे स्वर में बोला ।
“तुम्हें पक्का विश्वास है कि इस घटना के पीछे उसी का हाथ है ?” - विमल ने पूछा ।
“अल्फांसो पर आक्रमण करने में और किसी की कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती ।”
“पहले अल्फांसो साहब को होश आने दो । शायद वही कुछ बतायें ।”
अल्बर्टो कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“जॉर्ज कहां है ?” - विमल ने पूछा ।
“जॉर्ज !” - अल्बर्टो बोला ।
“हां ।”
“होगा कहीं । क्यों ?”
“कल वे कार खुद चला रहे थे न । इसलिए पूछा था ।”
“यह अल्फांसो की मर्जी पर निर्भर करता है । कभी-कभी ड्राइवर उपलब्ध होने पर भी वह कार खुद चलाना पसन्द करता है ।”
कल तो ड्राइवर साथ होता तो कबाब में हड्डी ही साबित होता - विमल ने मन-ही-मन सोचा ।
प्रत्यक्षतः वह बोला - “तुमने कार की हालत देखी ?”
“हां । आक्रमणकारी ने पहली गोली टायर में मारी थी । टायर बर्स्ट होने के बाद जब गाड़ी रुक गई तो उसने अल्फांसो को भून डाला था ।”
“लेकिन कार की खिड़कियों के शीशे तो बुलेटप्रूफ थे ।”
“नहीं थे । किसने पता नहीं कब कार के बुलेटप्रूफ शीशे निकलवाकर उनकी जगह मामूली शीशे लगा दिये थे ।”
“किसने ?”
“क्या मालूम किसने ?”
“जॉर्ज इस वक्त कहां होगा ?”
“अपने क्वार्टर में होगा । इमारत के कम्पाउंड में ही एक कोने में उन नौकरों को क्वार्टर मिले हुए हैं, जिनकी चौबीस घंटों में कभी भी जरूरत पड़ सकती है ।”
“आओ जरा उससे बात करें । शायद उसे शीशों के बारे में कुछ मालूम हो ।”
“उसे यहीं बुला लेते हैं ।”
“चलो वहीं चलते हैं ।”
वे दोनों मुख्य इमारत से निकले और क्वार्टरों की तरफ बढे ।
जॉर्ज उस वक्त अपने क्वार्टर पर ही मौजूद था । उन्हें वहां आया देखकर वह सकपकाया । उसने दोनों का अभिवादन किया ।
“दरवाजा बन्द कर दो ।” - विमल ने आदेश दिया ।
अल्बर्टो ने हैरानी से उसका मुंह देखा । लेकिन उसके स्वर में कुछ ऐसा अधिकार का पुट था कि उसने फौरन दरवाजा बन्द कर दिया ।
जॉर्ज एकाएक विचलित दिखाई देने लगा ।
विमल एकाएक कदम नाप कर चलता हुआ जॉर्ज के एकदम सामने आ खड़ा हुआ ।
“हैलो, जॉर्ज ।” - वह शुष्क स्वर में बोला ।
“हैलो, सर !” - जॉर्ज बोला ।
विमल ने अपना चश्मा उतारकर अपने कोट की ऊपरी जेब में रख लिया । वह कुछ क्षण जॉर्ज की आंखों में झांकता रहा । जॉर्ज उससे निगाहें मिलाने की ताव न ला सका । वह निगाहें चुराने लगा ।
विमल का शक और पक्का हो गया ।
अल्बर्टो बड़ी गौर से सारा दृश्य देख रहा था ।
एकाएक विमल ने अपना बायां हाथ बढाकर उसका गिरहेबान पकड़ लिया और अपने दायें हाथ का एक भरपूर झापड़ उसके चेहरे पर रसीद किया । उसका वह एक्शन इतना अप्रत्याशित था कि झापड़ खाकर जब जॉर्ज का सिर फिरकनी की तरह घूमा तो उसे मालूम हुआ कि क्या हुआ था । विमल ने उसे सम्भलने का मौका नहीं दिया । उसने एक शक्तिशाली घूंसा उसके पेट में जमाया । जॉर्ज दोहरा हो गया । उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े । विमल ने अपने दोनों हाथों की उंगलियां एक-दूसरे में फंसाकर उसका सामूहिक प्रहार उसकी गरदन के पृष्ठ भाग पर किया । जॉर्ज मुंह के बल जमीन पर गिरा । विमल ने जूते की भरपूर ठोकर उसकी पसलियों में जमाई । उसके मुंह से एक हाय की आवाज निकली और वह पीछे को उलट गया ।
“साहब, मेरा कसूर क्या है ?” - वह आर्तनाद करता हुआ बोला ।
“उठकर खड़े हो जाओ ।” - विमल कर्कश स्वर में बोला ।
जॉर्ज कांपता कराहता उठा ।
“अल्फांसो साहब से गद्दारी करने के कितने पैसे मिले थे तुम्हें ?” - विमल ने पूछा ।
“साहब यह आप क्या कह रहे हैं ? मैं और अल्फांसो साहब से गद्दारी करूंगा ? मैं उनका सबसे विश्वासपात्र नौकर हूं ।”
“इसीलिए तो वे धोखा खा गये । तुम्हारी ही गद्दारी की वजह से दो बार उन पर आक्रमण हुआ । पहली बार तुम्हारी गद्दारी का फल इसलिए सामने नहीं आया था, क्योंकि दुश्मनों को तो मालूम था ही नहीं, तुम्हें भी नहीं मालूम था कि अल्फांसो साहब की कार के शीशे बुलेटप्रूफ हैं वर्ना पहली बार जब तुमने बैटरी की खराबी का बहाना बनाकर पूर्व निर्धारित स्थान पर कार रोकी थी तो तभी अल्फांसो साहब का काम तमाम हो गया होता ।”
“आप मुझ पर जुल्म कर रहे हैं । बैटरी में वाकई कोई नुक्स था ।”
“फिर जब अल्फांसो साहब के आदेश पर तुम कार की सर्विस करवाने के लिए गये तो तुमने उसके बुलेटप्रूफ शीशे निकालकर उनके स्थान पर मामूली शीशे या तो खुद लगा दिये या सर्विस स्टेशन से लगवा दिये । इस प्रकार अल्फांसो साहब अपने एक विश्वासपात्र कर्मचारी की दगाबाजी का शिकार हो गये ।”
“साहब” - अल्बर्टो की तरफ घूमकर बिलखता हुआ बोला - “आप ही इन्हें समझाइये । यह तो सरासर अन्याय है । आप तो मुझे खूब जानते हैं । आप ही बताइये, क्या मैं ऐसी घिनौनी हरकत कर सकता हूं ?”
अल्बर्टो ने असमंजसपूर्ण निगाहों से विमल की तरफ देखा । उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव थे ।
“यह ऐसी घिनौनी हरकत कर चुका है ।” - विमल नफरतभरे स्वर में बोला - “पहली बार अल्फांसो साहब पर जिस आदमी ने आक्रमण किया था, बाद में जब वह भाग निकलने की कोशिश कर रहा था तो अल्फांसो साहब ने उस पर गोली चलाई थी । वह आदमी धराशायी हो गया था । अल्फांसो साहब ने तुम्हें उसके पीछे यह देखने के लिए भेजा था कि वह मर गया था या जिन्दा था । तुमने आकर कहा कि वह आदमी मर गया था और उसकी जेब में ऐसा कुछ नहीं निकला था जिससे यह मालूम हो सके कि वह कौन था । लेकिन हकीकत में उस आदमी को गोली लगी ही नहीं थी । न पीठ में न टांग में । वह आदमी बहुत चालाक था वह जानता था कि इस बार ऐन मौके पर लड़खड़ा जाने की वजह से अल्फांसो साहब की गोली उसे नहीं लग पाई थी, लेकिन दूसरी बार उनका निशाना नहीं चूकने वाला था । इसलिए वह जमीन पर ढेर हो गया था और उसने यह बहाना किया था कि गोली उसे लग गई है । अल्फांसो साहब ने भी यही समझा था, इसलिए उन्होंने उस पर दोबारा गोली नहीं चलाई थी ।”
“यह झूठ है । वह आदमी गोली का शिकार हो कर सचमुच मर गया था ।” - जॉर्ज विक्षिप्तों की तरह चिल्लाया ।
“तुम झूठ बक रहे हो ।” - विमल चिल्लाया - “हरामजादे कमीने ! कल रात भी उस आदमी ने अल्फांसो साहब पर आक्रमण किया था । मैंने खुद उसे गोलियां चला चुकने के बाद गली में भागते देखा था ।”
अब अल्बर्टो भी चौंका ।
“क्या यह सच है ?” - वह बोला ।
“इसकी सूरत देखो” - विमल बोला - “क्या इसके चेहरे पर नहीं लिखा कि मैंने जो कुछ कहा है सच कहा है ?”
जॉर्ज के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं ।
“और इसे बड़ा भरोसा था कि कोई इसकी तरफ उंगली नहीं उठा पायेगा । इसीलिए यह बड़े इत्मीनान से अपने क्वार्टर में बैठा है । अगर इसे अपने फंस जाने का जरा भी अन्देशा होता तो यह कब का यहां से भाग गया होता ।”
“जॉर्ज !” - अल्बर्टो ने धीरे से पूछा - “इस गद्दारी की एवज में तुम्हें कितना पैसा मिला था ?”
जॉर्ज ने उत्तर नहीं दिया ।
“यह मुझे कोई खास चालाक आदमी नहीं लगता । इसके कमरे की तलाशी लो । मुझे विश्वास है अपनी गद्दारी की उजरत इसने यहीं कहीं छुपाई हुई होगी ।” - विमल बोला ।
“जरूरत नहीं ।” - अल्बर्टो बोला - “मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास है । जॉर्ज कौन था वह आदमी, जिसके हाथों तुमने अपना ईमान बेचा था ?”
जॉर्ज चुप रहा । वह थर-थर कांप रहा था । अब वह अपने बेगुनाह होने की दुहाई भी नहीं दे रहा था ।
“देखो । तुम्हारी मौत निश्चित है । तुम्हारी जानबख्शी किसी भी सूरत में नहीं की जा सकती । इसलिए क्यों नहीं मरने से पहले एक तो अच्छा काम करके जाते हो । बताओ तुम्हें किसने खरीदा था ?”
“मुझे माफ कर दीजिये, अल्बर्टो साहब ।” - वह गिड़गिड़ाता हुआ बोला - “मैं लालच में आ गया था । मुझे माफ कर दीजिये ।”
“तुम्हें तो खुदा भी माफ नहीं कर सकता ।”
“मैं आप के पांव पड़ता हूं । मैं आप से रहम की भीख मांगता हूं ।”
“कितनी रकम हासिल हुई थी तुम्हें ?”
“बीस हजार रुपये ।”
“अल्फांसो साहब की जिन्दगी और उनकी मेहरबानियों की कीमत तुमने बीस हजार रुपया लगाई ।”
“मैं अपना विवेक खो बैठा था, साहब मैं पागल हो गया था । मुझ पर रहम खाइये । मुझे माफ कर दीजिये ।”
“वह आदमी कौन था ?”
“उसने अपना नाम... मिरांडा बताया था ।”
“वह था कौन ?”
“मैं नहीं जानता ।”
“तुमने पूछा नहीं था या उसने बताया नहीं ?”
“मैंने पूछा नहीं ।”
“शाबाश ! जरूरत भी क्या थी ?”
जॉर्ज चुप रहा ।
“उसका एल्बुर्क्क से कोई सम्बन्ध था ?”
“मुझे नहीं मालूम ?”
“उसके सन्दर्भ में कभी एल्बुर्क्क का जिक्र आया था ?”
“नहीं ।”
“उसने तुम्हें बीस हजार रुपये दिये और बदले में क्या करने के लिए कहा ?”
“बीस नहीं । दस । मुझे केवल एक निर्धारित स्थान पर कार रोक देनी थी और यह बहाना करना था कि इंजन में कोई खराबी आ गई थी ।”
“उसे अल्फांसो साहब की गोली नहीं लगी थी ?”
“जी नहीं ।”
“तुमने झूठ बोलकर उसकी जान बचाई । उसकी एवज में उसने तुम्हें और इनाम नहीं दिया ?”
जॉर्ज चुप रहा ।
“उस वक्त तो इसने उसकी नहीं, बल्कि अपनी जान बचाई थी” - विमल बोला - “अगर वह आदमी अल्फांसो साहब के हाथ जिन्दा आ जाता तो फिर इसकी पोल खुलने का खतरा पैदा हो जाता ।”
“बाकी के दस हजार रुपये तुम्हें कल कार के शीशे बदलने की एवज में मिले ?” - अल्बर्टो फिर जॉर्ज से सम्बोधित हुआ ।
“जी नहीं ।” - जॉर्ज सिर झुकाये बोला - “सर्विस स्टेशन से कार को वापस लाते समय उसके कहने पर मैंने आधे घंटे के लिए कार उसके हवाले कर दी थी, लेकिन मुझे यह नहीं मालूम था कि उसने कार के बुलेटप्रूफ शीशे निकालकर मामूली शीशे लगा दिए थे ।”
“तुमने समझा था कि वह कार को उसकी बॉडी चमकाने के लिए ले गया था ?” - अल्बर्टो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
जॉर्ज ने उत्तर नहीं दिया ।
“कुछ और बताना चाहते हो ?”
जॉर्ज ने इन्कार में सिर हिलाया ।
अल्बर्टो ने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाली और बर्फ जैसे सर्द स्वर में बोला - “खुदा को याद कर लो दोस्त ।”
जॉर्ज ने चौंककर सिर उठाया । अपनी तरफ तनी रिवॉल्वर देखकर उसके नेत्र आंतक से फट पड़े ।
“नहीं ।” - वह पागलों की तरह चिल्लाया - “नहीं ।”
रिवॉल्वर ने दो बार आग उगली ।
पहली गोली जॉर्ज की नाक पर आंखों से जरा नीचे लगी जिसकी वजह से उसका चेहरा एक मांस का नोचा-खसोटा लोथड़ा लगने लगा ।
दूसरी गोली ने उसके माथे में एकदम बीचों-बीच सुराख बना दिया ।
वह धड़ाम से नीचे गिरा ।
फर्श छूने से पहले उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे ।
“चलो ।” - अल्बर्टो बोला ।
“लाश का क्या होगा ?” - विमल ने पूछा ।
“अंधेरा होने के बाद अरब सागर में फिंकवा दी जायेगी ।”
अल्बर्टो यूं बोला जैसे किसी मरे हुए चूहे को कूड़े के ड्रम में फेंकने की बात कर रहा हो ।
दोनों क्वार्टर से बाहर निकल गए ।
***
रात साढ़े ग्यारह बजे विमल एक टैक्सी पर सवार होकर अस्पताल पहुंचा ।
अल्बर्टो के अस्पताल से क्लब लौट आने के बाद वह वहां आया था । अल्बर्टो के कथनानुसार अल्फांसो को अभी भी होश नहीं आया था ।
अल्बर्टो की रिवॉल्वर अभी भी उसके पास थी । उसने रिवॉल्वर के बारे में अल्बर्टो को बता दिया था । अल्बर्टो ने कोई एतराज नहीं किया था । विमल के मांगने पर उसने उसे रिवॉल्वर की गोलियां भी दे दी थी ।
जिस वक्त विमल अस्पताल पहुंचा, उस वक्त अस्पताल के गिर्द एकदम सन्नाटा था । वहां उसे पुलिस का कोई भी आदमी दिखाई न दिया जिन्होंने अल्फांसो की हिफाजत के लिए अस्पताल के इर्द-गिर्द घेरा डाला हुआ था ।
विमल ने पूरे अस्पताल का एक घेरा काटा ।
उसे अल्बर्टो का एक भी आदमी कहीं दिखाई न दिया ।
वह चिन्तित हो उठा ।
वह अस्पताल में दाखिल हुआ और चौथी मंजिल पर पहुंचा ।
चौथी मंजिल के जिस गलियारे के एक कमरे में अल्फांसो पड़ा था उस गलियारे में भी अल्बर्टो ने एक सशस्त्र आदमी तैनात किया था लेकिन उस वक्त वह भी दिखाई नहीं दे रहा था ।
“दाता !” - वह होंठों में बुदबुदाया - “क्या माजरा था ?”
वह नर्सों के ड्यूटी रूम में पहुंचा ।
वहां एक नर्स बैठी थी ।
“अल्फांसो साहब की तबीयत कैसी है ?” - उसने नर्स से पूछा ।
“अभी उन्हें होश नहीं आया है ।” - नर्स बोली ।
“उनके कमरे के बाहर उनका एक आदमी बैठा था, वह कहां गया ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“तुमने देखा था उसे ?”
“थोड़ी देर पहले तक तो देखा था । फिर एकाएक पता नहीं कहां गया ।”
“हूं ।”
वह कमरे से बाहर निकला और लम्बे डग भरता हुआ अल्फांसो के कमरे के सामने पहुंचा । उसने धीरे से द्वार को धक्का देकर खोला और भीतर झांका ।
अल्फांसो एक ऊंचे पलंग पर चित्त पड़ा था । उसका शरीर गरदन तक एक कम्बल से ढका हुआ था । उसके सिर पर पट्टियां बंधी हुई थीं । चेहरा राख की तरह सफेद था लेकिन सांस नियमित रूप से चलती मालूम हो रही थी । पलंग की बगल में एक स्टैण्ड पर ग्लूकोज की बोतल उल्टी लटकी हुई थी और उसमें से ग्लूकोज की एक-एक बूंद निकलकर रबड़ की एक लम्बी पतली ट्यूब में से होती हुई उसकी बांह तक पहुंच रही थी और एक धमनी में लगी एक सुई के सहारे उसके शरीर में दाखिल हो रही थी । वैसी एक अन्य ट्यूब उसकी नाक में दाखिल होती दिखाई दे रही थी । उसके माध्यम से उसे ऑक्सीजन सप्लाई की जा रही थी । पलंग के पास ही एक हाथ ठेली जाने वाली ट्रॉली पर ऑक्सीजन का लम्बा, वजनी सिलंडर टंगा हुआ था ।
विमल कुछ क्षण सोचता रहा । फिर उसने दरवाजा धीरे से बंद कर दिया और गलियारे के सिरे पर लगे पब्लिक टेलीफोन की तरफ लपका । उसने क्लब में अल्बर्टो को फोन किया । थोड़ी देर की प्रतीक्षा के बाद सम्बन्ध स्थापित हो गया ।
“मैं विम... कैलाश बोल रहा हूं ।” - विमल बोला ।
“कैलाश !” - अल्बर्टो का सशंक स्वर सुनाई दिया - “अस्पताल से बोल रहे हो न ।”
“हां ।”
“खैरियत तो है न ?”
“फिलहाल खैरियत है लेकिन यहां पर तैनात तुम्हारे आदमी कहां हैं ?”
“वहीं होंगे ।”
“तुमने उन्हें वापिस तो नहीं बुला लिया ?”
“नहीं तो ।”
“यहां तो कोई भी नहीं है ।”
“यह कैसे हो सकता है !”
“मैंने सारे अस्पताल का चक्कर काट लिया है । मुझे एक भी आदमी दिखाई नहीं दे रहा । चौथी मंजिल पर अल्फांसो साहब के कमरे के आगे जो आदमी बैठा दिखाई देना चाहिये था, वह भी गायब है । मुझे तो कुछ दाल में काला दिखाई दे रहा है ।”
“सान्ता मारिया !” - अल्बर्टो दहशतनाक स्वर में बोला - “कैलाश, तुम अल्फांसो साहब के कमरे में पहुंच जाओ और दरवाजा भीतर से बंद कर लो । मैं आदमी लेकर वहां पहुंच रहा हूं ।”
“ओके ।” - वह बोला । उसने रिसीवर वापिस हुक पर टांग दिया और वापिस अल्फांसो के कमरे की तरफ लपका । वह कमरे में दाखिल हुआ । उसने कमरे के द्वार भिड़ाये तो उसे मालूम हुआ कि द्वार को भीतर से बंद करने का कोई साधन नहीं था । द्वार के किसी पल्ले में कोई चिटखनी या कुन्डी नहीं लगी दिखाई दे रही थी । उसने अपनी रिवॉल्वर को टटोला ।
लेकिन जितने भयंकर खतरे की उसे आशंका थी, उसके लिहाज से रिवॉल्वर एक नितान्त अप्रयाप्त शस्त्र था ।
उसने फिर से दरवाजा खोला और गलियारे में निकल आया । वह लगभग भागता हुआ नर्स के कमरे में पहुंचा ।
“नर्स !” - वह जल्दी से बोला - “अल्फांसो साहब का कमरा बदलना है फौरन ।”
“लेकिन क्यों !” - नर्स हड़बड़ा कर बोली ।
“वजह बताने का वक्त नहीं है, फौरन इन्तजाम करो ।”
“लेकिन...”
“बहस मत करो ।” - विमल दांत पीसकर बोला ।
“ओके -ओके ।” - नर्स फिर हड़बड़ाई और टेलीफोन की तरफ हाथ बढाती हुई बोली - “मैं सुपरिटेण्डेण्ट साहब से बात करती हूं ।”
“नैवर माइण्ड सुपरिटेण्डेण्ट साहब ।” - विमल गुर्राया - “पहले मैं जो कह रहा हूं करो । बाद में जिससे मर्जी बात करना ।”
“लेकिन कमरा बदलने की कोई वजह तो हो । क्या वह कमरा आरामदेय नहीं है ? क्या वह...”
विमल ने उसकी बांह पकड़ी और एक झटके से उसे कुर्सी से उठा कर उसके पैरों पर खड़ा कर दिया ।
“यह चबर-चबर बन्द करो । अगर अपनी खैरियत चाहती हो तो जैसा मैं कह रहा हूं वैसा करो ।”
नर्स भयभीत दिखाई देने लगी ।
“लेकिन उनको अपने स्थान से हिलाना खतरनाक साबित हो सकता है ।” - वह मरे स्वर में बोली - “अभी वे खतरे से बाहर नहीं हैं ।”
विमल ने कहरभरी निगाहों से उसकी तरफ देखा ।
“अच्छा, अच्छा !” - वो बोली - “लेकिन मुझे सुपरिटेण्डेण्ट को फिर भी फोन करना होगा । उन्हें दूसरे कमरे में पहुंचाने के लिये आदमियों की जरूरत होगी ।”
“कोई जरूरत नहीं । बाहर एक ऑर्डरली बैठा है । तुम उसे बुलाओ और मेरे साथ चलो ।”
नर्स तीव्र अनिच्छा का प्रदर्शन करती हुई बहर निकली । उसने आवाज देकर ऑर्डरली को बुला लिया । वे तीनों अल्फांसो के कमरे की तरफ बढे ।
विमल लपककर कमरे में सबसे पहले दाखिल हो गया । वह खिड़की के पास पहुंचा । वह खिड़की मुख्य सड़क की तरफ खुली थी । उसने नीचे झांका ।
एक बड़ी सी स्टेशन वैगन सड़क पर आकर रुकी । उसमें से छः सात आदमी बाहर निकले और अस्पताल की तरफ बढे ।
सबसे आगे वही आदमी था जो दो बार अल्फांसो पर आक्रमण कर चुका था और जॉर्ज के कथनानुसार जिसका नाम मिरांडा था । तब तक ऑर्डरली और नर्स कमरे में दाखिल हो चुके थे । विमल फिर कमरे से निकलकर गलियारे में आया । वहां कमरे से थोड़ी ही परे गलियारे में एक वैसा स्ट्रेचर पड़ा था जो चार पहियों पर लुढकाया जाता था । वह लपककर उसके पास पहुंचा और उसे ठेलता हुआ अल्फांसो के कमरे में ले आया । कमरे में उसने उस स्ट्रेचर को एकदम अल्फांसो के पलंग के साथ लगा दिया । फिर उसने आगे बढकर अल्फांसो के अचेत शरीर को सावधानी से अपनी बांहों में उठाया और उसे स्ट्रेचर पर लिटा दिया ।
“नर्स” - उसने आदेश दिया - “तुम ग्लूकोज की बोतल और ट्यूबें सम्भालो । ऑर्डरली, तुम ऑक्सीजन का सिलेंडर सम्भालो ।” - विमल के स्वर में एसा अधिकार का पुट था कि दोनों ने तुरन्त आज्ञा का पालन किया ।
“चलो ।” - विमल बोला ।
“इन्हें ऐसे यहां से ले जाने से पेशंट की जान जा सकती है ।” - नर्स बड़बड़ाई ।
विमल उसे कैसे बताता कि ऐसे तो कोई उम्मीद थी, अल्फांसो के वहीं पड़े रहने में उसकी जान को ज्यादा खतरा था । विमल स्ट्रेचर को धकेलता हुआ कमरे से बाहर ले चला ।
बड़ी ही अटपटी स्थिति में चलते हुए वे तीनों गलियारे में आ गये । कभी ऑर्डरली पीछे रह जाता तो ऑक्सीजन की ट्यूब खिंच जाती थी । कभी नर्स आगे निकल जाती थी तो ग्लूकोज की ट्यूब खिंच जाती थी ।
“खाली कमरा किधर है ?” - विमल ने पूछा ।
“दूसरे गलियारे में ।” - नर्स बोली - “मोड़ काटते ही दूसरा ।”
वे तीनों उस कमरे तक पहुंचे ।
विमल ने स्ट्रेचर को वहां बिछे पलंग के साथ लगाया और फिर अचेत अल्फांसो को स्ट्रेचर से उठाकर पलंग पर लिटा दिया । नर्स ने ग्लूकोज और ऑक्सीजन को व्यवस्थित कर दिया और फिर अल्फांसो की नब्ज देखी । वह अल्फांसो से परे हटी तो विमल ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“गनीमत है ।” - नर्स बोली ।
विमल की जेब में सौ-सौ के नोट मौजूद थे । उसने दोनों नोट निकाले और एक-एक नोट नर्स और ऑर्डरली को दे दिया । वे दोनों हैरानी से उसका मुंह देखने लगे ।
“मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं ।” - विमल बोला - “थोड़ा सहयोग और दो । अल्फांसो साहब जब ठीक हो जायेंगे तो तुम्हें खुश कर देंगे ।”
दोनों ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“कुछ ही क्षणों में कुछ लोग यहां पहुंचेंगे । अल्फांसो साहब को अपने कमरे में न पाकर वे तुम लोगों से उनके बारे में पूछेंगे । तुम लोगों ने यही जवाब देना है कि तुम दोनों अभी ड्यूटी पर आये हो । तुम लोगों को इस बारे में कुछ नहीं मालूम कि उस कमरे में से पेशंट कहां गया । ओके !”
दोनों ने सहमति में सिर हिलाया ।
“चलो ।”
वे बाहर निकल आये । विमल ने दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया । फिर वे तीनों लम्बे डग भरते हुए नर्स के कमरे की तरफ बढ़े ।
लिफ्ट का इंडीकेटर बता रहा था कि लिफ्ट ऊपर आ रही थी । विमल के संकेत पर ऑर्डरली अपने स्टूल पर जा बैठा । नर्स अपने कमरे में आकर अपनी सीट पर बैठ गई ।
विमल ने पहले सीढ़ियों के रास्ते वहां से खिसक जाने का इरादा किया, लेकिन फिर कमरे में एक डॉक्टरों द्वारा पहना जाने वाला कोट देखकर उसका इरादा बदल गया । उसने उस कोट को हैंगर से उतारा और पहन लिया । वह कोट घुटनों तक लम्बा था । उसकी एक जेब में एक स्टेथोस्कोप मौजूद था । विमल ने वह स्टेथोस्कोप जेब से निकाल कर गले में लटका लिया ।
तभी लिफट का दरवाजा खुला और उसमें से दो आदमियों के साथ मिरांडा बाहर निकला ।
वे तीनों लम्बे डग भरते हुए उस कमरे की तरफ बढ गये जिसमें अभी थोड़ी देर पहले अल्फांसो पड़ा था ।
मिरांडा के संकेत पर एक आदमी ने दरवाजा खोला । वे लोग भीतर दाखिल हुए लेकिन तुरन्त बाहर निकल आये । कुछ क्षण वे अनिश्चित से दरवाजे के सामने खड़े रहे । फिर वे दृढ कदमों से ड्यूटी रूम की तरफ बढे ।
विमल ने उधर से निगाह हटा ली और मेज पर पड़ी एक फाइल उठाकर उसके पन्ने टटोलने लगा ।
उन तीनों में से एक आदमी बाहर ही रह गया । वह गलियारे के उस कोने में मौजूद एक खिड़की के पास जा खड़ा हुआ और बाहर झांकने लगा ।
मिरांडा और उसका दूसरा साथी भीतर दाखिल हुए ।
“नर्स !” - मिरांडा ने पूछा - “चार सौ तेरह नम्बर वाला पेशंट कहां गया ?”
नर्स ने सिर उठाया । उसने एक उड़ती निगाह प्रश्नकर्ता पर डाली और बड़ी मासूमियत से बोली - “वहीं होगा ।”
“वहां तो वह नहीं है ।”
“फिर तो मुझे पता नहीं । मैं तो अभी ड्यूटी पर आई हूं ।”
“डॉक्टर साहब” - मिरांडा विमल से सम्बोधित हुआ - “कुछ आपको मालूम हो !”
“सॉरी !” - विमल गम्भीर स्वर में बोला - “मैं भी अभी ड्यूटी पर आया हूं ।”
“तुम्हें कुछ मालूम है इस बारे में ?” - मिरांडा ऑर्डरली से सम्बोधित हुआ - “अब तुम भी यह मत कह देना कि तुम अभी ड्युटी पर आए हो ।”
“मैं तो आडरली हूं, साहब” - वह विनीत स्वर में बोला - “मैं पेशंट लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता ।”
“देखिए” - विमल गम्भीर स्वर में बोला - “अगर आपने कुछ पूछना है तो नीचे रिसेप्शन पर जाकर पूछिये ।”
“वह पेशंट मुश्किल से आधा घंटा पहले उस कमरे में था” - मिरांडा क्रोधित स्वर में बोला - “एकाएक कहां पहुंचा दिया उसे ?”
“वह आपका रिश्तेदार था ?”
“हां, वह बहुत खस्ता हालत में था । वह न कहीं ले जाये जाने के काबिल था और न कहीं खुद जाने के काबिल । एकाएक कहां गायब हो गया, वह ?”
“हमें नहीं मालूम ।”
“तो मालूम करो । क्या इन्तजाम है तुम्हारा !”
“अच्छा । मालूम करते हैं ।” - विमल बोला - “ऑर्डरली । जरा नीचे जाकर पता करके आओ चार सौ तेरह नम्बर का पेशंट कहां गया ।”
“अच्छा साहब ।” - ऑर्डरली बोला ।
“ठहरो !” - मिरांडा गुर्राया - “चुपचाप बैठे रहो ।” - एकाएक उसने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली और उसे नर्स और विमल दोनों की तरफ लहराता हुआ बोला - “दस सैकेंड में बको कि वह पेशंट कहां शिफ्ट किया गया है वर्ना मैं तुम दोनों को शूट कर दूंगा ।”
रिवॉल्वर पर निगाह पड़ते ही नर्स के छक्के छूट गए । विमल को अपने सारे किये धरे पर पानी फिरता दिखाई देने लगा । नर्स बहुत डरपोक थी । वह अब भी अपनी जुबान बंद रखेगी । उससे यह आशा करना बेकार था ।
ऑर्डरली भी बुरी तरह भयभीत हो गया था ।
तभी नीचे से गोली चलने की आवाज आई ।
मिरांडा हड़बड़ाया । तभी वह आदमी जो खिड़की के पास खड़ा था, एकाएक बोल पड़ा - “बॉस, दूसरी पार्टी आ गई ।”
नीचे लगातार गोलियां चलने लगीं । अस्पताल का शान्त वातावरण गोलियों की आवाज से गूंज गया ।
मिरांडा एकदम घूमा और वहां से भागा । लिफ्ट अभी भी उसी फ्लोर पर खड़ी थी । वे तीनों उसकी तरफ लपके ।
विमल अपनी पतलून की जेब से रिवॉल्वर निकालने की कोशिश करने लगा । लेकिन ऊपर घुटनों तक लम्बा कोट पहने होने की वजह से रिवॉल्वर तक उसका हाथ नहीं पहुंच रहा था । अन्त में जब‍ तक रिवॉल्वर निकलकर हाथ में आई, वे लोग लिफ्ट में दाखिल हो चुके थे और लिफ्ट का दरवाजा लगभग बंद हो चुका था । जब तक विमल का रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा हुआ, तब तक लिफ्ट के दोनों पल्ले मिल चुके थे ।
विमल के भी हाथ में रिवॉल्वर देखकर नर्स की घिग्घी वंध गई । विमल सीढियों की तरफ लपका ।
तीन-तीन सीढियां एक साथ फांदता हुआ वह नीचे भागा ।
रास्ते में उसने डॉक्टरों वाला सफेद कोट अपने जिस्म से नोंचकर उतारा और उसे सीढियों में ही फेंक दिया ।
वह लिफ्ट के वहां पहुंचने से पहले ग्राउंड फ्लोर पर पहुंच गया । नीचे हाहाकार मचा हुआ था । बाहर सड़क पर अभी भी गोलियां चल रही थीं । विमल उलझन में पड़ गया । लिफ्ट को तो कब का पहुंच जाना चाहिए था ।
तभी उसका ध्यान इंडीकेशन के पैनल की ओर गया । वहां एक अंक में स्थाई रूप से बत्ती जल रही थी ।
विमल भागता हुआ पहली मंजिल पर पहुंचा ।
लिफ्ट वहां खड़ी थी और उसका दरवाजा खुला था ।
यह कहना कठिन था कि मिरांडा और उसके साथी किसी और रास्ते से वहां से भाग गए थे या वे उसी मंजिल पर कहीं छुपे हुए थे । वह एक बहुत बड़ा अस्पताल था । एक-एक फ्लोर पर कम-से-कम चालीस-चालीस कमरे थे । वे लोग उस फ्लोर पर कहीं भी हो सकते थे और अकेले उन्हें तलाश करने की कोशिश करना कोई समझदारी का काम नहीं था ।
वह फिर ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचा ।
तब तक फायरिंग बंद हो चुकी थी ।
अस्पताल का उस वक्त ड्यूटी पर मौजूद लगभग सारा स्टॉफ लॉबी में इकट्ठा हो चुका था ।
विमल ने रिवॉल्वर जेब में रख ली और उनके बीच में से रास्ता बनाता हुआ मुख्य द्वार पर पहुंचा ।
तभी अल्बर्टो भागता हुआ कम्पाउंड में दाखिल हुआ । विमल को देखकर वह उसके पास पहुंचा ।
“खैरियत ?” - उसने हांफते हुए पूछा ।
“हां ।” - विमल बोला - “अल्फांसो साहब बाल-बाल बचे हैं । तीन आदमी ऊपर भी पहुंच गये थे लेकिन वे पहली मंजिल पर कहीं गायब हो गये थे । उनमें मिरांडा भी था ।”
“बास्टर्ड ।” - अल्बर्टो के मुंह से निकाला ।
“मिरांडा के बाहर रह गये आदमियों का क्या हुआ ?”
“सब भाग गये साले । एक दो को गोलियां भी लगी हैं लेकिन पीछे कोई नहीं रहा है ।”
विमल ने चैन की सांस ली ।
“क्या हुआ था ?” - अल्बर्टो ने पूछा ।
विमल ने जल्दी-जल्दी उसे सारी बात सुना दी ।
“यह कमरा बदल देने वाली बात बहुत मार्के की थी ।” - अल्बर्टो प्रशंसात्मक स्वर में बोला - “दोस्त, मैं तुम्हारी बहादुरी और दूरदर्शिता की दाद देता हूं । आज तुमने तीसरी बार अल्फांसो साहब की जान बचाई है । क्या मैं, क्या अल्फांसो साहब तुम्हारे इस अहसान को कोई नहीं भूल सकता ।”
“तुम तो शर्मिन्दा कर रहे हो ।”
“बाकी बातें फिर होंगी । यह मेरी कार की चाबी है” - अल्बर्टो उसे एक चाबियों का गुच्छा थमाता हुआा बोला - “तुम फौरन क्लब चले जाओ ।”
“नहीं” - विमल ने जिद की - “मैं यहीं ठहरूंगा ।”
“कहना मानो । पुलिस यहां बस पहुंचने ही वाली होगी । तुम्हारा यहां मौजूद रहना तुम्हारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है ।”
“अच्छा ।” - विमल अनिच्छापूर्ण स्वर में बोला ।
वह वहां से आगे बढा ।
अल्बर्टो की कही यह बात सारे रास्ते हथौड़े की तरह विमल के दिमाग में बजती रही । क्या इसका कोई खास मतलब था ?
‘वाहे गुरु सच्चे पातशाह’ - वह होंठों में बुदबुदाया - ‘तू मेरा राखा सबनी थाहीं ।’
***
अगली सुबह अल्फांसो को होश आ गया ।
दोपहर तक डॉक्टरों ने उसे खतरे से बाहर घोषित कर दिया । शाम तक अल्बर्टो बड़ी सावधानी के साथ उसे क्लब में ले आया । क्लब की दूसरी मंजिल के एक बैडरूम को ही हस्पताल के कमरे की शक्ल दे दी गई । एक डॉक्टर और दो नर्सें वहां स्थायी रूप से उसकी परिचर्या के लिए तैनात कर दी गई । पिछली रात की घटना के बाद अल्बर्टो को उसका अस्पताल में रहना कतई सुरक्षित नहीं लग रहा था ।
बाद में अल्बर्टो ने बताया कि पिछली रात अस्पताल के इर्द-गिर्द चौकसी के लिए तैनात उसके दस आदमियों को आवारागर्दी के इलजाम में पुलिस पकड़कर ले गई थी और अगली सुबह उन्हें छोड़ दिया गया था । प्रत्यक्ष था कि पुलिस का कोई अधिकारी दुश्मनों से मिला हुआ था । उसी ने दुश्मनों के कहने पर घटनास्थल से उन लोगों को हटाने की नीयत से उन्हें उस बहाने से गिरफ्तार कर लिया था ताकि जब दुश्मन के आदमी वहां पहुंचें तो उन्हें मैदान साफ मिले ।
जो आदमी अल्फांसो के कमरे के सामने तैनात था । उसे भी किसी बहाने से अस्पातल से बाहर बुलवा लिया गया था और अन्य आदमियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था ।
मिरांडा और उसके दोनों साथी जो पहली मंजिल से कहीं गायब हो गए थे, अस्पताल में नहीं मिले थे । लगता था कि वे किसी प्रकार वहां से पिछवाड़े में कूद गए थे और भाग खड़े हुए थे । अल्फांसो ने क्लब में आते ही सबसे पहला आदेश यह दिया कि सोल्मर नाइट क्लब किसी भी सूरत में बन्द नहीं होनी चाहिए । सोल्मर क्लब में वीरानी अल्फांसो की सबसे बड़ी हार थी । परिणामस्वरूप शाम तक ग्राउन्ड फ्लोर के बार में रौनक दिखाई देने लगी और रात तक फर्स्ट फ्लोर के जुआघर में ।
अल्फांसो को अपने ड्राइवर की गद्दारी की दास्तान सुनकर भारी अफसोस हुआ । शाम को जुआघर में गहमागहमी शुरु होने से पहले विमल को अल्फांसो का बुलावा आया ।
विमल दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
अल्फांसो के बैडरूम में उस वक्त केवल अल्बर्टो मौजूद था, वहां कोई नर्स या डॉक्टर मौजूद नहीं था ।
“आओ ।” - अल्फांसो क्षीण स्वर में बोला ।
विमल आगे बढा और पलंग के समीप जा खड़ा हुआ ।
“बैठो ।”
अल्बर्टो ने एक कुर्सी आगे सरका दी । विमल उस पर बैठ गया । वातावरण में एक अजीब-सी गम्भीरता का अहसास था ।
“परसों रात तुम मेरे पीछे क्यों आए थे ?” - अल्फांसो ने सहज स्वर में पूछा ।
“सुन्दरी पर संदेह की वजह से ।” - विमल ने भी सहज स्वर में उत्तर दिया ।
“तुमने अल्बर्टो से बात की होती ।”
“मुझे भय था कि वह मुझे गलत समझेगा और आपके पीछे जाना गैरजरूरी समझकर मुझे रोक लेगा ।”
“तुम्हें उस औरत के बारे में याद आया कि वह तुम्हें क्यों जानी-पहचानी लग रही थी !”
“जी नहीं । दिमाग पर बहुत जोर देने के बावजूद कुछ याद नहीं आया । लेकिन उस औरत के व्यक्तित्व में ऐसी कोई बात है जरूर जिससे मुझे लगता है कि मेरा इससे पहले वास्ता पड़ चुका है और जो मुझे संदेह में डाल रही है ।”
“एक बात ने मुझे भी संदेह में डाला था लेकिन मैंने उसे मामूली बात समझकर नजरअन्दाज कर दिया था ।”
विमल ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“मैंने सुन्दरी के कॉटेज में एक मेज पर हवाई जहाज का एक रिटर्न टिकट पड़ा देखा था ।” - अल्फांसो ने बताया - “वह टिकट बम्बई से गोवा और गोवा से बम्बई का था । लौटने की कोई निर्धारित तारीख उस पर अभी नहीं लिखी हुई थी और उस पर सुन्दरी तारापोरवाला का नाम भी लिखा हुआ था । इस बात से मेरा माथा ठनका था क्योंकि मुझे तो उसने बताया था कि वह कोचीन से आई थी ।”
“शायद वह कोचीन से पहले बम्बई गई हो और फिर यहां आई हो ?” - अल्बर्टो बोला ।
“शायद ।” - अल्फांसो बोला - “तुम लोगों का क्या ख्याल है ? परसों की घटना में उस औरत का कोई हाथ हो सकता है ?”
“कुछ कहना मुश्किल है ।” - अल्बर्टो बोला ।
“जुए में जीती तो वह वाकई थी । उसका अकेले जाने से डरना भी स्वाभाविक था ।” - विमल बोला ।
“मैं उसकी और खोज-खबर लगवाऊंगा ।” - अल्फांसो बोला - “कोचीन में भी और बम्बई में भी ।”
विमल चुप रहा ।
“दोस्त” - अल्फांसो बोला - “मैं तुम्हारा दिल से शुक्रगुजार हूं । तुम्हारी, सिर्फ तुम्हारी वजह से मैं आज जिन्दा हूं ।”
“शर्मिन्दा मत कीजिये, अल्फांसो साहब” - विमल बोला - “मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया और अगर कुछ किया तो आप पर अहसान करने की खातिर नहीं किया । जो कुछ भी मैंने किया था, हालात ने अपने-आप मेरे से करवाया था । उल्टे आपका मुझ पर अहसान है । आप बड़े खतरनाक लोगों के भयंकर विरोध के बावजूद मुझे पनाह दिये हुए हैं । आपकी छत्रछाया न हासिल होने पर मैं शायद चौबीस घंटे भी जिंदा न रह पाता ।”
“मैंने तुम पर एक मामूली और वक्ती मेहरबानी की है लेकिन तुमने मुझ पर जिंदगी-भर का अहसान किया है । यह अहसान के बदले अहसान वाली बात नहीं । ऐसा कहकर मैं तुम्हारी बहादुरी और हौसलामन्दी की बानगी कम नहीं कर सकता ।”
विमल चुप रहा ।
“वैसे तुम्हारे जैसे आदमी से इतनी बहादुरी और हौसलामन्दी तो सदा ही अपेक्षित होती है ।”
“जी !” - विमल चौंका ।
अल्फांसो के रक्तहीन होंठों पर एक क्षीण-सी मुस्कराहट उभरी ।
“मैंने तुम्हें पहली ही बार में पहचान लिया था, सरदार साहब ।” - वह मैत्रीपूर्ण स्वर में बोला - “तुम्हारे कारनामों पर मैंने हमेशा ही भारी दिलचस्पी की निगाह रखी है । बम्बई से लेडी शान्ता गोकुलदास का कत्ल करके उसका बेशकीमती हीरों का हार लेकर भागने से लेकर अमृतसर के भारत बैंक के डाके की ताजातरीन घटना तक मैं तुम्हारे हर कारनामे से वाकिफ हूं ।”
विमल चुप रहा । वह‍ लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करता-करता तंग आ चुका था कि उसने कोई कारनामा नहीं किया था । उसने जब भी जो कुछ किया था या तो हालात की मजबूरी में किया था और या किन्हीं निहित स्वार्थ वाले लोगों के दबाव में आकर किया था ।
“इतने पैसे का क्या करते हो तुम ?” - अल्फांसो बोला - “जितने बड़े-बड़े हाथ तुमने मारे हैं, उनसे हासिल तुम्हारा हिस्सा पचास-साठ लाख तक तो पहुंच ही गया होगा । क्या करते हो इतनी दौलत का ?”
विमल चुप रहा ।
“और कहां रखते हो इतना माल ? तुम्हारे सूटकेस में तो केवल पचास हजार रुपये थे ।”
“तो आप मेरा सूटकेस टटोल चुके हैं ?”
“अल्बर्टो ने टटोला था । इन मामलों में यह बड़ा खुराफाती आदमी है । कहता था कि जिस आदमी को हम इस हद तक शरण दे रहे हैं, उसके बारे में हमें सब कुछ मालूम होना चाहिए । तुम्हारे सूटकेस में मौजूद पचास-पचास के नोटों की दस नई गड्डियां देखकर इसके तो छक्के छूट गए थे । यह तुम्हें वाकई ही कोई नौकरी का जरूरतमन्द आदमी समझ बैठा था । तब इसे यह नहीं मालूम था कि तुम्हारे पास इतनी दौलत है कि तुम ये क्लब ही खरीद सकते हो ।”
“आपको मेरे बारे में भारी गलतफहमी है । यह कोई मुनासिब वक्त नहीं लेकिन जब आप एकदम अच्छे हो जायेंगे तो मैं आपको अपनी बदकिस्मती की दास्तान सुनाऊंगा ।” - विमल बोला । उसने यह बात इतनी संजीदगी से कही थी कि दोनों उसका मुंह देखने लगे ।
“लेकिन अल्फांसो साहब, फिर भी मैं आपकी तारीफ करता हूं कि आप लोगों ने मुझे इस बात की हवा नहीं लगने दी कि आप मुझे एक इश्तिहारी मुजरिम के रूप में पहचान चुके हैं ।”
“यह बात मैं आज भी तुम पर जाहिर नहीं करता बशर्ते कि इसमें मेर स्वार्थ न छुपा होता ।”
“स्वार्थ ?”
“हां । देखो, मेरा इस नगर में बहुत दबदबा बना हुआ है । मेरा स्वतन्त्र अस्तित्व मेरे सबसे बड़े प्रतिद्वन्दी एल्बुर्क्क की आंखों में बहुत खटकता है लेकिन वह मुझसे खौफ भी खाता है । वह कभी नहीं चाहता कि मेरी उससे भिड़न्त हो लेकिन नारंग के दबाव में आकर वह ऐसा कर सकता है । नारंग को तुम्हारी जिंदगी में अपनी मौत दिखाई देती होगी । इसलिए हो सकता है वह एल्बुर्क्क पर मुझसे भिड़ जाने के लिये दबाव डाले । अपने ड्राइवर की गद्दारी की वजह से मेरे इस प्रकार घायल हो जाने से मेरी साख और दबदबे को बड़ा बट्टा लगा है । शेर को घायल जानकर तो कुत्ते भी उस पर आकर भौंकने लगते हैं । इस नाजुक घड़ी में अगर मैंने अपने दबदबे को बरकरार न रखा तो मैं खत्म हो जाऊंगा । देख लेना, आने वाले चौबीस घंटों में जरूर ऐसा कोई गुल खिलेगा जो एक तरह से यह परखने की कोशिश होगी कि मेरे में अभी भी कोई दमखम है या मेरी हालत मुर्दों जैसी हो गई है । इस नाजुक घड़ी में मुझे कोई मददगार दिखाई दे रहा है तो वह तुम हो । अल्बर्टो बड़ा पराक्रमी है लेकिन जरा गुस्सैल और नासमझ भी है । अभी ही इसको एल्बुर्क्क पर चढ दौड़ने से रोके रखना कोई आसान काम नहीं । मुझ पर आक्रमण के पीछे मुमकिन है, एल्बुर्क्क का ही हाथ हो लेकिन हम दावे के साथ यह बात नहीं कह सकते लेकिन इसका बस चले तो यह अभी जाकर उसका कत्ल कर आए और शायद खुद भी खामखाह मारा जाए । ऐसी नाजुक घड़ी में अगर मुझे कहीं से किसी मदद की उम्मीद हो रही है तो वह तुमसे है । मैं चाहता हूं कि मेरे अपने पैरों पर खड़े हो सकने तक तुम अल्बर्टो के साथ मिलकर काम करो और दुश्मनों के दांत खट्टे करो ।”
“मुझे आपकी कोई भी सेवा करने से इन्कार नहीं है, अल्फांसो साहब, लेकिन आप मुझसे जो उम्मीदें लगाए बैठे हैं, वे शायद मैं पूरी न कर सकूं । यह बात नहीं है कि जो कुछ आप ने कहा है मैं करना नहीं चाहता लेकिन आप मुझे गलत समझ रहे हैं । आपकी उम्मीदों पर पूरा उतरने लायक योग्यता मुझमें नहीं है । काश ऐसी योग्यता होती लेकिन मुझे अफसोस है कि नहीं है ।”
“यह बात कहकर तुम हमें ऐसा, शालीनतापूर्ण संकेत तो नहीं दे रहे कि तुम हमारे किसी बखेड़े में पड़ना नहीं चाहते ?”
“यह बात नहीं है, अल्फांसो साहब । मैं तो यह अर्ज कर रहा था कि...”
“ओके । मैं समझ गया । तुम यहां से जाना चाहते हो । यह अच्छा ही होगा । क्योंकि अब हम लोग तुम्हारी हिफाजत नहीं कर सकेंगे ।”
“आप फिर मुझे गलत समझे । ऐसे वक्त में यहां से खिसक जाने का मेरा हरगिज भी कोई इरादा नहीं है । मैं यहीं रहूंगा और हर उस मुश्किल का जो पेश आयेगी डटकर मुकाबला करूंगा । मैं भगोड़ा नहीं लेकिन सूरमा भी नहीं । मैं तो केवल यह अर्ज करना चाहता था कि आप मुझसे ऐसी कोई उम्मीद न लगाएं जो बाद में जब आपको पूरी न होती दिखाई दे तो आपको मायूसी हो ।”
अल्फांसो कुछ क्षण विचित्र भाव से उसका मुंह देखता रहा अन्त में वह बोला - “तुम मेरी समझ से बाहर हो । बहरहाल मुझे यह जानकर खुशी हुई कि तुम हमें छोड़कर नहीं जा रहे हो ।”
तभी टेलीफोन की घंटी बजी ।
अल्बर्टो ने हाथ बढ़ाकर टेलीफोन उठा लिया ।
“अल्बर्टो” - वह बोला । उसने एक क्षण सुना और फिर बोला - “बात कराओ ।” - कुछ क्षण बाद वह फिर बोला - “हल्लो टोनी, क्या खबर है ?” - उसके बाद अल्बर्टो काफी देर तक सुनता रहा और फिर बोला - “ठीक है । धन्यवाद । जब भी क्लब में आओ, बारटेन्डर सैम से सौ रुपये ले जाना ।”
उसने रिसीवर रख दिया और बोला - “टोनी था ।” - फिर उसने विमल को बताया - “टोनी इयर्स एल्बुर्क्क के खेमे में हमारा भेदिया है ।” - वह फिर अल्फांसो की तरफ घूमा - “टोनी ने खबर दी है कि एल्बुर्क्क को नारंग का अल्टीमेटम मिल गया है । नारंग ने उसे कहा है कि अगर एक हफ्ते के अंदर-अंदर उसने कैलाश को पकड़कर उसके हवाले नहीं किया तो वह खुद गोवा पहुंच जायेगा और फिर सब से पहले उसी का पत्ता साफ करेगा ।”
“एल्बुर्क्क ने क्या जवाब दिया है ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“उसने नारंग को आश्वासन दिया है कि वह निर्धारित समय से बहुत पहले कैलाश को उसके हुजूर में पेश कर देगा ।”
“इसका मतलब यह हुआ कि अपनी गद्दी बचाने की खातिर अब एल्बुर्क्क खुलेआम मेरे खिलाफ जंग का एलान कर देगा । अब वह कैलाश पर हाथ डालने की हर मुमकिन तरकीब इस्तेमाल करेगा । अब हमें उसकी किसी भी चालाकी से सावधान रहना होगा ।”
“आप चिंता मत कीजिये” - अल्बर्टो आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला - “अगर वह पूरी फौज लेकर ही क्लब पर चढ़ दौड़े तो दूसरी बात है, वैसे मैं उसकी दाल नहीं गलने दूंगा ।”
“वैरी गुड ।” - अल्फांसो बोला । फिर उसने धीरे से आंखें मूंद लीं ।
अल्बर्टो और विमल वहां से विदा हो गए ।
***
रात के ग्यारह बजे थे ।
जुआघर हमेशा की तरह बड़े सुचारू रूप से चल रहा था । विमल हमेशा की तरह कैशियर के पिंजरे में बैठा था । केवल अल्फांसो की जगह आज पहली मंजिल पर अल्बर्टो दिखाई दे रहा था । नीचे के बार का इंचार्ज आज बारटेन्डर सैम था । विमल को आज सुन्दरी के वहां आगमन की बड़ी उम्मीद थी लेकिन अभी तक वह वहां आई नहीं थी और अब उसे उसके आने की उम्मीद भी नहीं लग रही थी ।
तभी ऊपर सैम का फोन आया । अल्बर्टो ने फोन सुना और फिर बोला - “उसे थोड़ी देर अटकाये रखो । मैं उसे लेने के लिए खुद नीचे आता हूं ।”
उसने फोन रख दिया ।
“क्या बात है ?” - विमल ने पूछा ।
“इंस्पेक्टर सोनवलकर आया है ।” - अल्बर्टो चिंतित भाव में बोला - “ऊपर आना चाहता है ।”
“क्यों ?”
“वह सैम को बता नहीं रहा । मुझे तो कुछ दाल में काला लगता है ।”
“वजह ?”
“यह वही इंस्पेक्टर है जिसने कल अस्पताल के आगे हमारे दस आदमियों को आवारागर्दी के इलजाम में गिरफ्तार करके हवालात में बन्द कर दिया था ।”
“यानी कि वह एल्बुर्क्क का पिट्ठू है ।”
“पिट्ठू तो हमारा भी है । वह दोनों तरफ से रिश्वत खाता है, लेकिन उसकी कल की हरकत से लगता है कि वह आजकल एल्बुर्क्क की तरफ ज्यादा झुक रहा है । उसका इस वक्त यहां आना बेमानी नहीं हो सकता । मेरा दिल गवाही दे रहा है कि वह तुम्हारे चक्कर में यहां आया है ।”
“कहीं वह जुआघर के चक्कर में तो नहीं आया ?”
“नहीं । अगर जुआघर में छापा मारने जैसी कोई बात होती तो वह अकेला न आता । साथ में दस-बीस आदमी और लाता ।”
विमल चुप रहा ।
तभी एक वेटर वहां से गुजरा । वह एक नवयुवक था और उसके चेहरे पर उस प्रकार की फ्रेंचकट दाढ़ी-मूंछ थी जैसी विमल ने हाल ही में कटवाई थी ।
“ऐ सुनो !” - अल्बर्टो ने उसे आवाज दी ।
वेटर पास आया ।
“क्या नाम है तुम्हारा ?”
“प्रभाकर जोशी, साहब ।” - वेटर बोला ।
“पढ़े लिखे हो ?”
“मैट्रिक पास हूं साहब ।” - वह गर्व से बोला ।
“गुड, कैलाश साहब के साथ क्लॉक रूम में चले जाओ । तुम थोड़ी देर के लिए अपनी वर्दी इन्हें दे दो, इनका सूट पहन लो और आकर इनकी जगह कैशियर की सीट सम्भालो । जल्दी करो ।”
वेटर सयाना था । उसने एक क्षण भी नष्ट नहीं किया । वह तुरन्त क्लॉक रूम की तरफ बढ़ गया । विमल उसके पीछे लपका । तीन मिनट बाद जब अल्बर्टो इन्स्पेक्टर सोनवलकर के साथ वहां लौटा तो उसने प्रभाकर जोशी को कैशियर के पिंजरे में बैठे बड़ी तन्मयता से नोट गिनते पाया । विमल वेटर की यूनीफॉर्म पहने एक मेज पर ड्रिंक सर्व कर रहा था ।
“मुझे अफसोस है अल्बर्टो” - इन्स्पेक्टर कह रहा था - “मैं तुम्हारे कैशियर को गिरफ्तार करने आया हूं ।”
और वह दृढ़ कदमों से कैशियर के पिंजरे की ओर बढ़ा ।
“किस इलजाम में ?” - अल्बर्टो ने उसके पीछे लपकते हुए पूछा ।
“चोरी के इलजाम में ।”
“किसकी चोरी की है उसने ?”
“अपने होटल में ठहरे एक अन्य आदमी की । होटल में ठहरे एक स्वीडिश नागरिक ने थाने में रिपोर्ट लिखाई है कि परसों रात कैलाश मल्होत्रा ने उसकी गैरहाजिरी में उसके कमरे में घुसकर उसका कुछ नकद रुपया और कीमती सामान चुरा लिया है ।”
“तुम्हारे पास कैलाश मल्होत्रा की गिरफ्तारी का वारन्ट है ?”
“वारन्ट की जरूरत नहीं । मैं इसे कवेश्चनिंग के लिए पुलिस स्टेशन ले जाने आया हूं । मिस्टर” - वह कैशियर के पिंजरे में मौजूद प्रभाकर जोशी से बोला - “बहर निकलो और मेरे साथ चलो ।”
“मैं निकलूं !” - प्रभाकर जोशी हैरानी का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “इन्स्पेक्टर साहब, मैंने क्या किया है ?”
“अभी तुमने सुना नहीं तुमने क्या किया है ?” - इंस्पेक्टर डपटकर बोला - “ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करो, मिस्टर कैलाश मल्होत्रा !”
“साहब !” - प्रभाकर जोशी अल्बर्टो से सम्बोधित हुआ - “यह मैं कैलाश मल्होत्रा कब से बन गया ? मेरी मां ने तो मेरा नाम प्रभाकर जोशी रखा था ।”
“क्या मतलब ?” - इंस्पेक्टर चौंका ।
“यह कैलाश मल्होत्रा नहीं है” - अल्बर्टो बोला - “इसका नाम प्रभाकर जोशी है ।”
“किसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो ? मुझे अच्छी तरह मालूम है कैलाश मल्होत्रा तुम्हारे यहां कैशियर की नौकरी करता है और इसका हुलिया कैलाश मल्होत्रा से मिलता है ।”
“मिलता होगा” - अल्बर्टो लापरवाही से बोला - “लेकिन यह आदमी कैलाश मल्होत्रा नहीं । यह हमारा बरसों पुराना कर्मचारी प्रभाकर जोशी है ।”
“मुझे घिसने की कोशिश मत करो” - इन्स्पेक्टर झुंझला कर बोला ।
“सुनो” - वह प्रभाकर जोशी से बोला - “तुम सिद्ध कर सकते हो कि तुम कैलाश मल्होत्रा नहीं हो ?”
“कर सकता हूं ।” - प्रभाकर जोशी बड़े इत्मीनान से बोला - “यहां इस वक्त मौजूद तीन-चौथाई आदमी मुझे जानते हैं । उनमें से कुछ को आप भी जरूर जानते होंगे । जाकर जिससे मर्जी पूछ लीजिए ।”
इन्स्पेक्टर सन्दिग्ध भाव से उसका मुंह देखने लगा । फिर वह दृढ कदमों से आगे बढ़ा । वह जुए में रत लोगों के पास पहुंचा । उसने कैशियर के पिंजरे की तरफ संकेत करके एक-दो से कुछ पूछा । थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उसके चेहरे पर निराशा के भाव थे लेकिन साथ ही क्रोध से आग बबूला भी हो रहा था ।
“ओके” - बोला - “यह प्रभाकर जोशी है लेकिन यह कैशियर कब से बन गया ! लोग इसे यहां के वेटर के रूप में जानते हैं ।”
“अपने किसी वेटर को कैशियर बनाने के लिए क्या तुम्हारे से इजाजत लेनी होती है ?” - अल्बर्टो उपहासपूर्ण स्वर में बोला ।
“मजाक मत करो । कैलाश मल्होत्रा कहां है ?”
“वह आज नहीं आया । इसलिए प्रभाकर जोशी को कैशियर का काम सौंपना पड़ा ।”
“क्यों नहीं आया ?”
“मुझे क्या मालूम क्यों नहीं आया । जब आयेगा तो पूछूंगा । जो जवाब मिलेगा तुम्हें चिट्ठी में लिखकर भेज दूंगा ।”
“अल्बर्टो, ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत करो । मैं अल्फांसो साहब का लिहाज कर रहा हूं वर्ना...”
“वर्ना क्या करोगे ?” - अब एकाएक अल्बर्टो भी क्रोधित हो उठा ।
इन्स्पेक्टर तिलमिलाया । वह कुछ क्षण खा जाने वाली निगाहों से अल्बर्टो को घूरता रहा और फिर बोला - “मुझे शक है कि तुमने कैलाश मल्होत्रा को क्लब में कहीं छुपाकर रखा हुआ है ।”
“तुम्हें ऐसा कोई शक जाहिर करने से कौन रोक सकता है ?”
“कहां छुपा रखा है उसे तुमने ?”
“तुम्हारी अक्ल मारी गई है । क्या तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा है ? वह आज नहीं आया ।”
“वह अपने होटल में भी नहीं है, यहां भी नहीं है । तो कहां गया ?”
“मुझे क्या मालूम कहां गया । हम क्या अपने कर्मचारियों की पूंछ से बंधे फिरते हैं ?”
“मुझे अल्फांसो साहब से मिलवाओ ।”
“वह इस वक्त तुमसे नहीं मिल सकते ।”
“कैलाश मल्होत्रा को जरूर तुम लोगों ने ऊपर की मंजिल पर छुपाया हुआ है ।”
“हो सकता है लेकिन वहां झांकने के लिए कोर्ट से वारन्ट लाना पड़ेगा । मैंने तुम्हें यहां तक आने दिया, यही तुम्हारे पर मेहरबानी की है ।”
“ऐसी की तैसी । मुझे यूं आंखें दिखाओगे तो मैं इस गैरकानूनी जुआघर की ईंट से ईंट बजा दूंगा ।”
अल्बर्टो एकाएक गुस्से से आग बबूला हो उठा । उसने हाथ बढ़ाकर इन्स्पेक्टर का गिरहबान पकड़ लिया और कहरभरे स्वर में बोला - “अब तुम अपनी मर्जी से यहां से दफा होवोगे या मैं तुम्हें खिड़की में से नीचे फिकवाऊं ।”
“गिरहबान छोड़ो ।” - इन्स्पेक्टर कठिन स्वर में बोला ।
अल्बर्टो ने गिरहबान छोड़ दिया ।
“तुमने एक ऑन ड्यूटी पुलिस अधिकारी पर हाथ डाला है ।” - वह क्रोधित स्वर में बोला - “मैं तुम्हें जेल भिजवाकर छोड़ूंगा ।”
“जो होता हो कर लेना ।”
इन्स्पेक्टर गहरी-गहरी सांस लेने लगा ।
“यहां से सीधे एल्बुर्क्क के पास जाओगे” - अल्बर्टो धीरे से बोला - “या उसे फोन पर ही सूचित कर दोगे कि तुम कैलाश मल्होत्रा को उसके लिए पकड़ लाने में नाकामयाब रहे हो ?”
“क्या मतलब ?” - वह अचकचाया ।
“बेटा, मैं तुम्हारी जात पहचानता हूं । तुम यहां इस इरादे से आये थे कि चोरी के इलजाम के बहाने कैलाश मल्होत्रा को यहां से गिरफ्तार करके ले जाओगे और उसे एल्बुर्क्क को सौंप दोगे । बाद में मालूम होगा कि कैलाश मल्होत्रा के खिलाफ न कोई चोरी की रिपोर्ट लिखाई गई थी और न ही उसको पकड़कर लाने का कोई आदेश जारी हुआ था । तुम्हारा यहां अकेला आना ही इस बात का सबूत है कि यह सेवा तुम एल्बुर्क्क के लिये कर रहे हो । इस बार एल्बुर्क्क ने तुम्हें बड़ा मोटा नजराना पेश किया होगा ।”
इन्स्पेक्टर बगलें झांकने लगा ।
“जो रिश्वत हम तुम्हें पेश करते हैं अगर वह तुम्हें कम लगने लगी थी तो वैसे ही कह देते, हम तुम्हारे नजराने की रकम बढ़ा देते ! एलबुर्क्क के लिए हमसे ऐसी दगाबाजी करने की क्या जरूरत थी ?”
“देखो, मुझसे ज्यादा बहस मत करो ।” - वह उखड़े स्वर में बोला - “तुम कैलाश मल्होत्रा को मेरे हवाले करते हो या नहीं ?”
“नहीं ।”
इन्स्पेक्टर कुछ क्षण उसे घूरता रहा और फिर असहाय भाव से बोला - “तुम पछताओगे । तुम्हारी यह खामखाह की जिद इस नगर में गैंगवार शुरु करवा देगी ।”
“यह सीख जाकर एल्बुर्क्क को भी दो । उसे समझाओ कि वह हम से न उलझे । और उसे यह भी कह देना कि अगर उसने तुम्हारे जैसा कोई आदमी फिर यहां भेजा तो वह आएगा यहां खुद चलके लेकिन वापिस स्ट्रेचर पर लदकर जायेगा ।”
“तुम पछताओगे ।”
“यह बात अभी कितनी बार और कहोगे ?”
“अच्छी बात है । मैं जाता हूं लेकिन तुम लोग भी अपने कफन-दफन का इन्तजाम कर छोड़ना ।”
“ऐसे किसी इन्तजाम की तुम्हें ज्यादा जरूरत है । क्योंकि बहुत जल्दी ही तुम्हारी रिश्वतखोरी की और तुम्हारे अपने रुतबे के बेजा इस्तेमाल की रिपोर्ट तुम्हारे उच्चाधिकारियों तक पहुंचा दी जाएगी । और कहने की जरूरत नहीं कि दोबारा यहां अपना नजराना मांगने आने की तकलीफ मत करना ।”
इन्स्पेक्टर के चेहरे ने कई रंग बदले । फिर वह भुनभुनाता हुआ वहां से आगे बढ़ गया ।
“रुको ।” - अल्बर्टो उसके पीछे लपका - “’रास्ता भूल जाओगे । मैं बाहर तक छोड़कर आता हूं ।”
दोनों आगे-पीछे लिफ्ट की तरफ बढ़ गए ।
***
अल्फांसो ने बड़ी गम्भीरता से सारी घटना को सुना ।
“अब जुआघर नहीं चल सकता ।” - अन्त में वह बोला - “पुलिस की प्रोटेक्शन के बिना ऐसे काम हो ही नहीं सकते । देख लेना इन्स्पेक्टर सोनवलकर अपने अपमान का बदला रेड करवा कर लेगा । इसलिए अब हमारी भलाई जुआघर फौरन बंद कर देने में ही है । अल्बर्टो, जुआघर में मौजूद लोगों को समझा-बुझाकर यहां से विदा कर दो । और पहली मंजिल को फौरन एकदम खाली करवा दो । वहां ताश का एक पत्ता तक बरामद नहीं होना चाहिये । ग्राउन्ड फ्लोर पर लिफ्ट पर जो विशेष दरवाजा लगा हुआ है, उसे भी हटवा दो और उसके स्थान पर साधारण दरवाजा लगवा दो ।”
“यानी कि सोल्मर नाइट क्लब सदा के लिए बन्द ?” - अल्बर्टो बोला ।
“नहीं । सदा के लिए नहीं । अस्थायी रूप से और ग्राउंड फ्लोर का बार तो हम चला ही सकते हैं । उसमें तो कोई गैरकानूनी बात नहीं है । लेकिन जुआघर का तो फिलहाल अस्तित्व ही समाप्त कर देना होगा ।”
“ओके । मैं अभी सब इंतजाम करवाता हूं ।”
“लेकिन अल्फांसो साहब” - विमल बोला - “रेड का मतलब है यहां ढेरों पुलिस आएगी और इमारत का चप्पा-चप्पा टटोलेगी । फिर क्या मैं पुलिस की आंखों से छुपा रह सकूंगा ?”
“रह सकोगे ।” - अल्फांसो पूरे इत्मीनान के साथ बोला - “यह इमारत किसी अजायबघर से कम नहीं । इस मंजिल पर इसमें एक विशेष रूप से बनवाया गया गुप्त कमरा है जिसकी खबर पुलिस को सारी इमारत जड़ से उखाड़ देने पर ही लग सकती है । रेड के दौरान तुम्हें वहां छुपाया जा सकता है ।”
“आई सी ।”
“वैसे रेड अगर होगी तो कल ही होगी । मुझे उम्मीद नहीं कि इंस्पेक्टर सोनवलकर आज ही सर्च वारन्ट हासिल कर सके ।”
***
लेकिन अल्फांसो का ख्याल गलत निकला ।
रेड उसी रोज हुई ।
रात को एक बजे के करीब पुलिस के बीस सिपाहियों के साथ इंस्पेक्टर सोनवलकर आ धमका । वह मैजिस्ट्रेट का साइन किया हुआ सर्च वारन्ट भी साथ लाया था । पता नहीं कैसे वह इतने थोड़े समय में सर्च वारन्ट हासिल करने में कामयाब हो गया था ।
पन्द्रह पुलसियों को उसने इमारत को घेर लेने का आदेश दिया और पांच को साथ लेकर इमारत में दाखिल हुआ ।
“इस क्लब के मालिक को बुलाओ ।” - वह बारटेन्डर सैम से यूं बोला जैसे जिंदगी में पहली बार उसे उस क्लब की जानकारी हुई हो ।
“मालिक यहां आने की स्थिति में नहीं हैं साहब ।” - सैम बनावटी विनयशीलता दिखाता हुआ बोला - “हुक्म हो तो मैनेजर साहब को बुला लाऊं ?”
“ठीक है । मैनेजर को ही बुलाओ ।”
सैम ने अल्बर्टो को फोन किया ।
दो मिनट बाद अल्बर्टो वहां पहंच गया ।
“आइए-आइए इंस्पेक्टर साहब” - अल्बर्टो स्वागतपूर्ण स्वर में बोला - “बड़ी जल्दी लौटे ।”
“मैं सर्च वारन्ट लेकर आया हूं ।” - इंस्पेक्टर जेब से एक कागज निकालकर उसके सामने फड़फड़ाता हुआ बोला - “हमें विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि यहां अनाधिकृत रूप से जुआघर चलाया जा रहा है । मैं इस इमारत की पूरी तलाशी लेना चाहता हूं ।”
“पहले यह सर्च वारन्ट मुझे दिखाओ ।” - अल्बर्टो बोला । उसने इंस्पेक्टर के हाथ से सर्च वारन्ट ले लिया और बड़ी गौर उसका मुआयना करने लगा ।
सर्च वारन्ट एकदम सही था । उसको जारी करवाने में इंस्पेक्टर ने इन्तहाई फुर्ती दिखाई थी ।
“ठीक है” - अल्बर्टो उसे वारन्ट लौटाता हुआ प्रत्यक्षत: मायूस स्वर में बोला - “ले लो तलाशी । कहां से शुरु करना चाहते हो ?”
“पहली मंजिल से ।” - इंस्पेक्टर कड़ककर बोला ।
“यानी बीच में से । न एकदम नीचे से न एकदम ऊपर से ।”
“बको मत ।”
“जो हुक्म । तशरीफ लाइए ।”
इंस्पेक्टर सोनवलकर लिफ्ट के सामने पहुंचा तो उसका माथा ठनका । उसका न केवल दरवाजा बदला जा चुका था बल्कि अब साफ मालूम होता था कि लिफ्ट कहां थी । और तो और ऊपर एक छोटा-सा बोर्ड भी लगा हुआ था जिस पर लिफ्ट लिखा हुआ था ।
इंस्पेक्टर अपने पांच आदमियों के साथ पहली मंजिल पर पहुंचा । पहली मंजिल के हॉल में जहां पहले रौलेट और ताश की मेजें लगी होती थीं अब वहां ग्राउंड फ्लोर के बार जैसी सफेद मेजपोशों और गुलदस्तों और चार-चार चमड़ा मढ़ी कुर्सियों से सजी मेजें दिखाई दे रही थीं । कैशियर का पिंजरा वहां से गायब था ।
“यह क्या है ?” - इंस्पेक्टर सोनवलकर के मुंह से निकला ।
“यह हमारा अतिरिक्त डाइनिंग रूम है ।” - अल्बर्टो ने बड़े इत्मीनान से बताया - “कभी नीचे बार में बहुत भीड़ हो जाती है तो इसे खोलना पड़ता है । लेकिन आम तौर पर ऐसी नौबत नहीं आती ।”
इंस्पेक्टर खून का घूंट पीकर रह गया । फिर उसने अपने पांच साथियों के साथ उस फ्लोर की बड़ी बारीकी से तलाशी ली, दीवारें तक खटखटाकर देखीं लेकिन कुछ हाथ न लगा ।
“ऊपर चलो ।” - उसने हुक्म दनदनाया ।
“ऊपर किस लिए” - अल्बर्टो तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोला - “तुम खूब जानते हो ऊपर मेरे और अल्फांसो साहब के रहने के कमरे हैं ।”
“मैं कुछ नहीं जानता ।” - इंस्पेक्टर गर्ज कर बोला - “मेरे पास इस सारी इमारत की तलाशी का वारन्ट है और मैं सारी ही इमारत की तलाशी लूंगा ।”
“तुम तलाशी से क्या हासिल होने की उम्मीद कर रहे हो ?”
“जुए का सामान । जैसे रौलेट की मेजें, ताश, नोटों की जगह इस्तेमाल होने वाले टोकन, वगैरह-वगैरह...”
“और यह सामान तुम्हें ऊपर हमारे रहने के कमरों में मिलेगा ?”
“कहीं भी मिल सकता है ।”
“तुम्हें तलाश इस सामान की नहीं, किसी और चीज की है ।”
“मुमकिन है । कई बार ऐसा हो जाता है कि एक चीज की तलाश के दौरान कोई दूसरी चीज ऐसी मिल जाती है जो पहली चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है ।”
“ओके । चलो ऊपर भी ।”
वे ऊपर पहुंचे ।
इंस्पेक्टर सोनवलकर ने वहां की भी बेहद बारीकी से तलाशी ली । तलाशी के दौरान वह उस कमरे में भी गया जहां अल्फांसो लेटा हुआ था ।
“आओ इंस्पेक्टर” - अल्फांसो सहज स्वर में बोला - “कैसे आए !”
“मैं इस इमारत की तलाशी का वारन्ट लेकर आया हूं ।” - वह रुखाई से बोला लेकिन उसने अल्फांसो से निगाह न मिलाई ।
“ठीक है । अपनी ड्यूटी बजाओ ।”
वहां से भी उनके हाथ कुछ न लगा । अल्फांसो का कथित गुप्त कमरा वाकई बड़ा गुप्त था । सोनवलकर के दीवारें तक ठकठका देने के बावजूद उसे उसकी खबर नहीं लगी ।
उसने ग्राउंड फ्लोर और बैसमैन्ट के दो बड़े-बड़े कमरों की भी तलाशी ली लेकिन नतीजा सिफर ही निकला ।
जिस समय अपने आदमियों के साथ बुरी तरह भुनभुनाता हुआ, इंस्पेक्टर सोनवलकर क्लब से विदा हुआ, उस वक्त तीन बज चुके थे ।
पौने चार बजे अल्बर्टो हाथ में फोन उठाए अल्फांसो के पास पहुंचा ।
“एल्बुर्क्क का फोन है” - उसने बताया - “आपसे बात करना चाहता है ।”
अल्फांसो ने रिसीवर ले लिया ।
“अल्फांसो !” - एल्बुर्क्क इतनी जोर से बोल रहा था कि आवाज टेलीफोन से बाहर निकलकर सारे कमरे में सुनाई दे रही थी - “तुम्हें क्या कभी अक्ल नहीं आएगी !”
“लगता है रेड के नतीजे की खबर तुम तक पहुंच गई है !” - अल्फांसो शान्ति से बोला ।
“इसे तो अभी शुरुआत ही समझो ।” - वह बोला - “अल्फांसो जब तक तुम उस छोकरे को मेरे हवाले नहीं कर दोगे, तब तक तुम जब-जब जुआघर फिर से खोलने की कोशिश करोगे, तब-तब रेड होगी । अगर तुम अक्ल इस्तेमाल नहीं करोगे तो तुम अपना जुए का धन्धा बन्द ही समझो ।”
“क्या फर्क पड़ता है ! मेरा गुजारा ग्राउंड फ्लोर के बार की कमाई से भी चल जाएगा । एल्बुर्क्क हौंसला रखो, जुआघर बन्द हो जाने से मैं भूखा नहीं मर जाऊंगा ।”
“यानी तुम उस छोकरे को मेरे हवाले नहीं करोगे ?”
“हरगिज नहीं ।”
“अच्छी बात है । तो फिर मैं तुम्हारा बार का धन्धा भी बन्द करवाता हूं ।”
और दूसरी ओर से भड़ाक से रिसीवर पटके जाने की आवाज आई ।
अल्फांसो ने भी रिसीवर रख दिया ।
“उसकी आखिरी बात का क्या मतलब हुआ ?” - विमल ने पूछा - “वह बार का धन्धा कैसे बन्द करवा सकता है ?”
“शायद अब वह एक्साइज विभाग की रेड करवाने का इरादा रखता हो ।” - अल्फांसो सोचता हुआ बोला ।
विमल कुछ क्षण चुप रहा और फिर तनिक झिझकता हुआ बोला - “अल्फांसो साहब, आप से एक बात पूछूं ?”
“पूछो ।” - अल्फांसो बोला ।
“आप यह जुआघर क्यों चलाते हैं ? यह आपकी कमाई का जरिया हो, ऐसा तो मुझे नहीं लगता ।”
“यह मेरी कमाई का जरिया नहीं है । कमाई की मुझे कोई समस्या भी नहीं है । कमाई की खातिर तो मुझे बार भी चलाने की जरूरत नहीं है । जुआघर तो मैं इसलिए चलाता हूं क्योंकि मैं खुद जुए का शौकीन हूं और मुझे आज तक कभी यह ख्याल नहीं आता कि मैं कोई ऐसा काम कर रहा हूं जो कि मुझे नहीं करना चाहिए ।”
“आप एक सरासर गैरकानूनी धन्धा चला रहे हैं जो कभी भी आपको भारी बखेड़े में फंसा सकता है ।”
“जैसे आज ही फंसाने वाला था ।”
“आप यह फसादी धन्धा स्थायी रूप से क्यों नहीं छोड़ देते !”
अल्फांसो एक क्षण चुप रहा और फिर सहज स्वर में बोला - “मैं सोचूंगा इस बारे में ।”
अल्बर्टो ने यूं हैरानी से अल्फांसो की तरफ देखा जैसे उसे उससे ऐसे किसी उत्तर की कतई उम्मीद न रही हो ।
***
अगले दिन रात को दस बजे टोनी का फोन आया ।
तब अल्फांसो की समझ में आया कि पिछली रात टेलीफोन पर कही एल्बुर्क्क की आखिरी बात का क्या मतलब था ।
फोन अल्बर्टो ने सुना ।
“थैंक्यू अल्बर्टो साहब” - टोनी कह रहा था - “मैं सैम से सौ रुपया ले गया था ।”
“गुड” - अल्बर्टो बोला - “और क्या खबर है ?”
“एल्बुर्क्क ने अल्फांसो साहब के खिलाफ खुलेआम जंग का एलान कर दिया है ।”
“यह कोई खबर नहीं । यह बहुत पुरानी हो चुकी है ।”
“लेकिन आपको यह मालूम नहीं होगा कि हमले की शुरुआत कहां से होगी ।”
“हमला !”
“जी हां । आज रात आपकी क्लब पर बम फेंका जाएगा ।”
“किस वक्त ? रात को किस वक्त ?”
“दो बजे के बाद किसी समय । वह आप के धन्धे को नुकसान पहुंचाना चाहता है, निर्दोष ग्राहकों को नहीं ।”
“और ?”
“बस ।”
“थैंक्यू टोनी । तुमने एक सौ का पत्ता और कमा लिया ।”
“थैंक्यू बॉस ।”
अल्बर्टो ने फोन रख दिया ।
“टोनी का फोन था” - उसने घोषणा की - “आज रात क्लब बन्द होने के समय के बाद क्लब पर बम पड़ने वाला है ।”
विमल के नेत्र फैल गए ।
“आई सी ।” - अल्फांसो के मुंह से केवल इतना ही निकला ।
“अब पानी सिर से ऊंचा होता जा रहा है ।” - अल्बर्टो बोला - “अब सबसे पहले उसी का काम तमाम करना होगा ।”
“कौन करेगा ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“मैं करूंगा ।” - अल्बर्टो बोला ।
“कैसे ?”
“मैं अभी माडंवी होटल जाता हूं ।”
“तुम उसके पास भी नहीं फटक पाओगे । या तो वह अब तक अन्डरग्राउंड हो चुका होगा और या अब वह दर्जनों दादों से घिरा बैठा होगा । इसलिए तुम्हारा उसके पास फटकने की कोशिश भी करना तुम्हारे लिए खतरनाक होगा ।”
“तो फिर क्या करूं ? क्लब पर बम पड़ते देखता रहूं ?”
“यह जगह कोई ताश का घर नहीं है जो फूंक मारने से ढेर हो जाएगी । एकाध बम से इसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला और फिर याद नहीं एल्बुर्क्क ने क्या कहा था ? उसने कहा था कि वह मेरा बार का धन्धा बन्द करवा देगा । इसका मतलब है कि बम ग्राउंड फ्लोर पर फेंका जाएगा, बार को क्षति पहुंचाने के लिए ।”
“टोनी भी कह रहा था एल्बुर्क्क हमारे धन्धे को नुकसान पहुंचाना चाहता था, निर्दोष ग्राहकों को नहीं ।” - अल्बर्टो याद करता हुआ बोला ।
“देयर यू आर ।”
“तो क्या हम केवल तमाशा ही देखेंगे । उसके इरादों की खिलाफत में कुछ नहीं करेंगे ?”
“जरूर करेंगे ।”
“क्या ?”
अल्फांसो सोचने लगा ।
विमल ने खंखार कर दोनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और बोला - “मेरे ख्याल से हमें हमला होने देना चाहिए ।”
“क्यों ?” - अल्बर्टो हैरानी से बोला ।
“क्योंकि अगर हमने उसका यह हमला विफल कर दिया तो वह दोबारा हमला करेगा । वह बाज तो आएगा नहीं । जब तक नारंग की धमकी की तलवार उसके सिर पर लटक रही है, वह बाज आ ही नहीं सकता । उलटे इस बार हमले की पूर्व सूचना है जो कि अगली बार शायद न हो । नुकसान तो हमारा होना ही है । इसलिए क्यों न हम इस नुकसान में से कोई फायदा सोचें ?”
“जैसे ?”
“जैसे क्यों न हम उसी की चाल से उसको मात देने की कोशिश करें ।”
“किस प्रकार ? तुम्हारे दिमाग में कोई योजना है ?”
“है ।” - विमल बोला और उसने अपनी योजना बताई ।
“योजना तो अच्छी है ।” - अल्फांसो प्रभावित स्वर में बोला - “लेकिन काम खतरे का है ?”
“मौजूदा हंगामे में मुझे तो कोई भी ऐसा काम नहीं दिखाई दे रहा जो खतरे से रहित हो ।” - विमल बोला ।
“तुम इसे अंजाम दे सकोगे ?”
“हां !”
“अल्बर्टो” - अल्फांसो ने पूछा - “ठीक है ?”
“ठीक है ।” - अल्बर्टो बोला ।
“ओके । इन ।”
“क्यों न आज बार जरा जल्दी बंद करवा दें” - अल्बर्टो ने राय दी - “और उसका कीमती सामान हमला होने से पहले ही वहां से हटा दें, ताकि हमारा कम से कम नुकसान हो ।”
विमल ने अल्फांसो की तरफ देखा ।
“नहीं” - अल्फांसो क्षीण स्वर में बोला - “इस हादसे के बाद पुलिस घटनास्थल पर जरूर पहुंचेगी और उससे यह बात छुपी नहीं रहेगी कि हमने नुकसान बचाने के लिए इस प्रकार की कोई सावधानी बरती है । यानी कि हमें हमले की पूर्व सूचना थी । फिर हमसे यह जरूर पूछा जाएगा कि हमें आक्रमण की खबर थी तो हमने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं की ? और जरूरी नहीं कि सवाल पूछने इन्स्पेक्टर सोनवलकर ही आए । तफ्तीश के लिए कोई उसका उच्चाधिकारी भी आ सकता है जो कि जरूरी नहीं कि सोनवलकर जैसा ही भ्रष्ट अधिकारी हो ।”
अन्त में यही फैसला हुआ कि नीचे कोई हेरफेर न की जाए । जो हाता है, होने दिया जाए । बार के अग्रभाग में बड़ी-बड़ी खिड़कियां थीं । यह बात प्रत्यक्ष थी कि अगर बार में बम फेंका जा सकता था तो उन्हीं खिड़कियों में से उसी के रास्ते फेंका जा सकता था ।
दो बजे बार बन्द होने के बाद भी कम-से-कम एक घंटे तक भीतर कर्मचारियों की गतिविधि चलती थी लेकिन उस रोज अल्बर्टो के निर्देश पर सैम ने सबकी बार बन्द होने के लगभग फौरन बाद ही छुट्टी कर दी थी ताकि उन लोगों में से कोई बम का शिकार न हो जाए ।
बार बंद होने के बाद विमल और अल्बर्टो, पिछवाड़े के रास्ते से क्लब से बाहर निकले और जाकर दो कारों में सवार हो गए । वे एक-दूसरे से विपरीत दिशा में कार चलाते हुए आगे बढ़े और इमारत का घेरा काटकर क्लब के अग्रभाग में पहुंचे । पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार विमल ने अपनी कार क्लब वाले ब्लॉक के एक सिरे पर खड़ी कर दी और अल्बर्टो ने दूसरे सिरे पर ! वे प्रतीक्षा करने लगे ।
जब भी उस सड़क पर कोई गाड़ी दाखिल होती थी वे नीचे झुककर डैशबोर्ड की ओट ले लेते थे ताकि देखने वाले को कार खाली लगे । रात के उस समय सड़क सुनसान थी और कभी-कभार ही कोई कार वहां प्रकट होती थी ।
कोई तीन बजे विमल के पीछे से एक कार आगे आई । विमल ने रियर व्यू मिरर में उस कार को मोड़ काटकर उस सड़क पर दाखिल होते देख लिया था इसलिए वह पहले ही नीचे को झुक गया था ।
वह कार आगे बढ़ी । फिर उसके ब्रेक लगने की आवाज विमल के कानों तक पहुंची । उसने सावधानी से सिर उठाकर देखा । यह कार क्लब के सामने रुक गई थी । फिर कार का क्लब की ओर का एक दरवाजा खुला । अगले ही क्षण शीशा टूटने की आवाज वातावरण में गूंजी और फिर कार पूरी रफ्तार से वहां से भागी ।
इमारत के भीतर से विस्फोट की आवाज आने से पहले ही वह कार सड़क पर बहुत आगे निकल गई थी ।
क्योंकि उन्हें मालूम नहीं था कि आक्रमणकारी किधर से आने वाला था इसलिए उन्होंने सड़क के दोनों ही कोने कवर कर लिए थे ताकि आक्रमणकारी जिस दिशा में भागे उसका सहूलियत से पीछा किया जा सके ।
आक्रमणकारी ने अपनी कार कुछ ही फासले तक तूफानी रफ्तार से भगाई और फिर उसे साधारण रफ्तार पर ले आया । शायद उसे इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि कोई उसका पीछा भी कर सकता था और यह बात उसे अभी भी इसलिए नहीं मालूम हुई थी क्योंकि विमल और अल्बर्टो दोनों ही अपनी कार हैडलाइट्स बुझाकर चला रहे थे ।
वे तीनों कारें नगर की कई विभिन्न सड़कों पर एक दूसरे के पीछे भागती रहीं । फिर अगली कार की रफ्तार कम हुई और वह एक स्थान पर रुकी ।
विमल अपनी कार आगे बढ़ा ले गया ।
अगली कार में से दो आदमी बाहर निकले और पास ही खड़ी एक अन्य कार की तरफ बढे । प्रत्यक्षत: जो कार उन्होंने पीछे छोड़ी थी वह चोरी की थी और वह उस कार को वहां खड़ी छोड़कर अपनी कार पर सवार हो रहे थे । विमल ने अपनी कार को उनकी कार से थोड़ा आगे ले जाकर खड़ा कर दिया ।
उन दोनों को तब भी कोई सन्देह नहीं हुआ । उन्होंने एक उड़ती निगाह विमल की कार पर डाली और आगे बढ़ते रहे । विमल कार से बाहर निकला ।
तभी अल्बर्टो की कार वहां पहुंची ।
एक क्षण के लिए उन दोनों का ध्यान अल्बर्टो की कार की ओर गया । उसके बाद जब उन्होंने दोबारा विमल की कार की दिशा में देखा तो एक रिवॉल्वर की नाल को अपनी ओर झांकती हुये पाया ।
दोनों हड़बड़ाए ।
तभी हाथ में रिवॉल्वर लिए अल्बर्टो भी वहां पहुंच गया ।
विमल ने देखा, एक जो कि ठिगना-सा था, उसके हाथ में एक झोला था ।
“इस झोले में बम है ?” - विमल ने कठोर स्वर में पूछा ।
ठिगने ने अपने होठों पर जुबान फेरी और फिर स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“मुंडी मत हिलाओ ।” - विमल डपटकर बोला - “जुबान हिलाओ ।”
“जी हां, जी हां ।” - वह भयभीत भाव से बोला ।
“क्या, जी हां ?”
“इस झोले में बम हैं ।”
“कितने ?”
“पांच ।”
“यह कार तुम्हारी है ?” - विमल ने उस कार की ओर संकेत किया जिसमें वे दोनों सवार होने जा रहे थे ।
“जी हां ।” - उत्तर मिला ।
“झोला कार की पिछली सीट पर डाल दो ।”
तुरन्त आज्ञा का पालन हुआ ।
“दोनों कार की छत पर अपने-अपने हाथ टिकाकर और सिर झुकाकर खड़े हो जाओ ।”
दोनों ने ऐसा ही किया ।
विमल ने अल्बर्टो को संकेत किया । अल्बर्टो ने आगे बढ़कर दोनों की तलाशी ली और दो रिवाल्वरें बरामद कीं ।
“दोनों कार की अगली सीट पर सवार हो जाओ ।” - विमल ने आदेश दिया । उनके आगे सवार होते ही विमल और अल्बर्टो पिछली सीट पर सवार हो गए ।
“इनका यहीं काम कर दें” - अल्बर्टो ने पूछा - “या इन्हें जुआरी नदी के किनारे तक ले चलें ताकि इनकी लाशों को ठिकाने लगाने में सहूलियत रहे ?”
दोनों आदमी एकाएक जैसे सांस लेना भूल गये ।
“इस बारे में क्यों न इनकी भी राय ले ली जाये ?” - विमल बोला - “शायद ये मरना न चाहते हों ?”
“ठीक है ! पूछकर देखो ! ये मरना चाहते हैं या नहीं यह इस बात से जाहिर हो जाएगा कि ये कौन-सा राग अलापते हैं ।”
“ठीक है ।” - विमल बोला - “क्यों दोस्तों, मरना चाहते हो ?”
“न - नहीं ।” - दोनों एक साथ बोले ।
“तुम एल्बुर्क्क के आदमी हो ?”
“नहीं ।” - ठिगना बोला ।
“तो ?”
“हम बम्बई से आये हैं ।”
“ओह । तो नारंग के आदमी हो !”
“जी हां ।”
“सोल्मर नाइट क्लब पर बम तुमने नारंग के कहने पर फेंका है !”
“जी नहीं ।”
“मतलब ?”
“दरअसल नारंग साहब ने हमें एल्बुर्क्क की मदद के लिए भेजा है । हमें निर्देश था कि जो एल्बुर्क्क कहे वही हम करें । यह काम हमने एल्बुर्क्क के कहने पर किया ।”
“आई सी ।”
कुछ क्षण चुप्पी रही ।
“ओके” - विमल बोला - “अब मैं तुम्हें वह तरकीब बताता हूं जिससे तुम वापिस बम्बई जीवित पहुंच सकते हो । पहुंचना चाहते हो ?”
“जी हां । जी हां ।”
“तरकीब बस इतनी ही है कि आने वाले एक घण्टे तक तुम्हें जो कुछ कहा जाएगा, करना होगा । उसके बाद हम तुम्हें गोवा से कूच कर जाने के लिये आजाद कर देंगे । ओके ?”
“हमें क्या करना होगा ?”
“अभी मालूम हो जायेगा ।” - विमल अल्बर्टो की तरफ घूमा - “मैंने सुना है यहां गोवा में एल्बुर्क्क के तीन नाइट क्लब हैं ?”
“हां ।” - अल्बर्टो बोला ।
“तुम्हें मालूम हैं वे कहां-कहां हैं ?”
“हां ।”
“इन्हें उनमें से एक जो सबसे नजदीक है, उसका पता बताओ ।”
“एवन्यू गास्पर दियास का रास्ता जानते हो ?” - अल्बर्टो ने पूछा ।
“जी हां !” - ठिगना बोला ।
“चलो ।”
ठिगना ड्राइविंग व्हील के पीछे बैठा । उसने तुरन्त कार आगे बढ़ा दी ।
कार एवेन्यू गास्पर दिवास पहुंची । अल्बर्टो के संकेत पर ठिगने ने कार को सिल्वर क्लब के सामने रोका । वह एल्बुर्क्क की तीन क्लबों में से एक थी । उस वक्त सड़क एकदम खाली थी और क्लब भी कब की बन्द हो चुकी थी । विमल कार से निकला । उसने क्लब के शीशे की विशाल खिड़की में से भीतर झांककर तसल्ली कर ली कि भीतर कोई नहीं था । वह वापिस कार के पास लौटा । वह कार की पिछली सीट पर आ बैठा । उसने बमों वाला झोला उठाया और उसमें से एक बम निकाल कर ठिगने की ओर बढ़ा दिया । ठिगने ने हिचकिचाते हुए बम थाम लिया ।
“क्या करना है ?” - विमल ने कठोर स्वर में पूछा ।
ठिगना चुप रहा । उसने थूक निगली । उसकी आंखों में व्याकुलता का भाव उभरा ।
“बम फेंकने में तुमने उसी काबलियत का यहां प्रदर्शन करना है जो तुम पहले सोल्मर क्लब में करके आये हो ।” - विमल ने रिवॉल्वर फिर निकालकर हाथ में ले ली - “कार से बाहर निकलो और क्लब में बम फेंक कर आओ । लेकिन अगर मुझे तुम्हारी कारस्तानी या तुम्हारी निशानेबाजी पसन्द न आई तो मैं तुम्हारा भेजा उड़ा दूंगा । समझ गये ?”
“हां ।” - वह भर्राये स्वर में बोला ।
“चलो ।”
वह बाहर निकल गया और भारी कदमों से क्लब की तरफ बढ़ा ।
“तुम ।” - विमल उसके साथी से बोला - “ड्राइविंग सीट पर बैठ जाओ और गाड़ी को चालू करके गियर में डालकर रखो ।”
तुरन्त आज्ञा का पालन हुआ ।
ठिगने ने क्लब की शीशे की खिड़की के सामने जाकर बम में से पिन खींचा और बम को पूरी शक्ति से खिड़की पर फेंक कर मारा और फिर उल्टे पांव वापिस कार की तरफ लपका ।
शीशे टूटने की आवाज वातावरण में गूंजी ।
ठिगने के कार में सवार होते ही उसके साथी ने कार को आगे भगा दिया । कार इतनी रफ्तार से वहां से भागी कि उसके सड़क के मोड़ पर पहुंच जाने के बाद कहीं उनके कानों में बम के फटने की आवाज पड़ी ।
“शाबाश !” - विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला - “तुम्हारी एक बटा तीन जान तो बच गई ।”
ठिगने ने होठों पर जुबान फेरी । उसका चेहरा पसीने से नहाया हुआ था और वह बेहद परेशान लग रहा था ।
“अब गोल्डन क्लब चलो ।” - अल्बर्टो ने आदेश दिया ।
कार सुनसान सड़कों पर दौड़ती रही ।
पन्द्रह मिनट बाद गोल्डन क्लब में भी बम फटा ।
उसके दस मिनट बाद वास्को डि गामा क्लब का भी वैसा ही अंजाम हुआ । अन्त में वे वहीं पहुंच गए जहां से उन्होंने इस अभियान की शुरुआत की थी ।
“जब एल्बुर्क्क को तुम्हारी इन हरकतों का पता लगेगा तो तुम्हारे ख्याल से उस पर क्या प्रतिक्रिया होगी ?” - विमल ने सहज भाव से पूछा ।
“बहुत बुरी । बहुत खतरनाक ।” - ठिगना बोला ।
“और नारंग पर ?”
“वह हमारा खून पी जाएगा” - ठिगना कम्पित स्वर में बोला - “हमारे टुकड़े-टुकड़े करवा समुद्र में फिकवा देगा ।”
“च-च-च । ऐसी हालत में तुम अब क्या करोगे ?”
“कहीं फरार हो जाने के अलावा हमारे पास और चारा ही क्या है ? हम बम्बई से विपरीत दिशा में ज्यादा से ज्यादा दूर भाग निकलने की कोशिश करेंगे ।”
विमल और अल्बर्टो कार से बाहर निकल आए ।
“फूट जाओ ।” - विमल बोला ।
“लेकिन एक बात याद रखना” - अल्बर्टो क्रूर स्वर में बोला - “अगर कल सुबह तक तुम मुझे गोवा में दिखाई दिए तो मैं तुम्हारी एल्बुर्क्क या नारंग से कहीं ज्यादा बुरी गत बनाऊंगा ।”
दोनों ने सहमति में सिर हिलाया ।
“फूटो ।”
कार तोप से छूटे गोले की तरह वहां से भागी ।
विमल और अल्बर्टो अपनी-अपनी कार पर सवार हुए और सोल्मर क्लब की तरफ लौटे ।
वहां से ही उन्हें मालूम हो गया कि क्लब में पुलिस पहुंची हुई थी । क्लब के सामने पुलिस की कई गाड़ियां खड़ी दिखाई दे रही थीं । अल्बर्टो के संकेत पर विमल ने कार रोकी । अल्बर्टो अपनी कार से निकलकर उसके पास पहुंचा ।
“विमल” - वह बोला - “इस वक्त तुम्हारा क्लब के पास भी फटकना मुनासिब नहीं । तुम फिलहाल यहां से फूट जाओ । थोड़ी देर में तफ्तीश कर चुकने के बाद पुलिस यहां से चली जाएगी । तब तुम वापिस लौट आना ।”
“और तुम ?” - विमल ने पूछा ।
“मेरा तो फौरन वहां पहुंचना जरूरी है । क्या पता पुलिस वाले अल्फांसो को किस हद तक परेशान कर रहे हों ।”
“ओके ।” - विमल ने वापिस अपनी कार को यू टर्न दिया और उसे बीच की तरफ भगा दिया ।