ठाकुर हरनाम सिंह की कार को सुनील ने अमर कालोनी में माइकल के क्वार्टर से एक फर्लांग दूर ही छोड़ दिया । वह कलेजा थामे पैदल चलता हुआ माइकल के क्वार्टर के सामने पहुंचा । यह देखकर उसकी जान में जान आई कि घटना स्थान को जैसे वह छोड़ कर गया था, वहां सब कुछ वैसा ही था । उसने मेन स्विच आन करके क्वार्टर की बत्तियां जला दीं ।
उसने पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया और फिर वापिस आकर क्वार्टर के बरामदे की सीढियों पर बैठ गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और पुलिस की प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग छ: सात मिनट बाद पुलिस के दल बल के साथ जो इन्सपैक्टर घटना स्थल पर पहुंचा, वह प्रभूदयाल था ।
“ओह नो !” - सुनील को देखते ही वह हताश स्वर से बोला - “नॉट यू... नॉट यू अगेन ।”
सुनील चुप रहा ।
प्रभूदयाल इमारत के भीतर घुस गया ।
थोड़ी देर बाद वह वापिस लौटा । वह सुनील के सामने आ खड़ा हुआ ।
“शुरू हो जाओ ।” - वह बोला ।
सुनील ने बड़े विस्तार से पहले से ही तैयार अपनी कहानी सुना दी ।
कहानी सुन चुकने के बाद प्रभूदयाल ने उस पर सवालों की झड़ी लगा दी ।
सुनील बड़े धैर्य से उसके सारे प्रश्नों के उत्तर देता रहा ।
अन्त में प्रभूदयाल के आदेश पर सुनील को हिरासत में ले लिया गया ।
रात के एक बजे तक सुनील वहीं बरामदे में सिपाहियों से घिरा बैठा रहा ।
पुलिस की कार्यवाही चलती रही ।
एक बजे के बाद सुनील को एक जीप में बिठा कर पुलिस हैडक्वार्टर ले जाया गया ।
वहां प्रभूदयाल ने नये सिरे से फिर तमाम वे ही बातें पूछनी आरम्भ कर दीं जो वह पहले ही तीन, चार बार पूछ चुका था ।
“मुझे अपनी दास्तान अभी कितनी बार कहनी पड़ेगी, इन्स्पेक्टर साहब ?” - सुनील ने बड़ी शराफत से पूछा ।
“गिनती मत गिनो ।” - प्रभूदयाल कठोर स्वर में बोला - “तुम अपनी दास्तान तब तक कहते रहो । जब तक मुझे विश्वास न हो जाए कि तुम्हारी दास्तान, दास्तान नहीं हकीकत है ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और चुप हो गया ।
सुबह पांच बजे तक सुनील कम से कम दस बार एक सिरे से दूसरे सिरे तक सारी दास्तान दोहरा चुका था । पांच बजे प्रभूदयाल के संकेत पर सुनील को ले जाकर हैडक्वार्टर के लाकअप में बन्द कर दिया गया । लाकअप की अन्धेरी कोठरी में सुनील जाते ही लेट गया और वहां मौजूद गन्दे कम्बलों में लिपटकर घोड़े बेचकर सो गया ।
एक सिपाही के टहोक कर जगाने से उसकी नींद खुली । उसने एक जोर की जम्हाई ली और उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया । उसने घड़ी देखी, ग्यारह बजने को थे । वह छ: घन्टे सो लिया था लेकिन ऐसा लगता था जैसे उसकी पलक ही न झपकी हो ।
“चलो ।” - सिपाही रौबदार स्वर से बोला ।
“कहां ?”
“इन्स्पेक्टर साहब के कमरे में ।”
लाकअप से निकलकर सुनील सिपाही के साथ हो लिया । वह मन ही मन ठाकुर हरनामसिंह के बारे में सोच रहा था । उसके पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि ठाकुर हरनामसिंह उसके लिए कुछ कर रहा था या नहीं ।
सिपाही उसे इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के कमरे में छोड़ गया ।
प्रभूदयाल का मूड बदला हुआ था । सुनील को देखकर वह भट्टी पर चढे पानी की तरह खौलने नहीं लगा । उसने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“बैठो ।” - प्रभूदयाल बोला ।
सुनील अपने उलझे बालों और बढी हुई दाढी पर हाथ फेरता हुआ वहां बैठ गया ।
“पिछली रात की घटना के बारे में तुम्हें और कुछ कहना है ?” - उसने पूछा ।
“अभी क्या कोई कसर रह गई है ?” - सुनील बोला ।
“मैंने सोचा कुछ घन्टे एकांत में गुजर लेने से शायद तुम्हारे विचारों में कुछ परिवर्तन आ गया हो ।”
सुनील खामोश रहा ।
प्रभूदयाल कुछ क्षण उसके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा और फिर बोला - “आलराइट । यू आर फ्री ।”
सुनील आश्चर्य का प्रदर्शन करता हुआ अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और बोला - “थैंक्यू... थैंक्यू मच दरोगा जी ।”
“हैरानी तो यूं जाहिर कर रहे हो जैसे तुम्हें मालूम ही नहीं कि तुम कैसे आजाद हो गए हो ।”
“कैसे आजाद हो गया हूं ? वाह साहब मालूम क्यों नहीं है ? तुम्हें विश्वास हो गया है कि मैंने जो कहा है सच कहा है इसलिए तुम मुझे छोड़ रहे हो ।”
“ऐसी की तैसी तुम्हारी । जो कहानी तुमने मुझे सुनाई थी, उसके दम पर मैं तुम्हें अगली दस सदियों तक नहीं छोड़ने वाला था ।”
सुनील चुप रहा ।
“सुनील तुम बड़े अक्लमंद बनते हो लेकिन मेरी बात लिख लो, एक दिन तुम्हारी अक्लमन्दी ही तुम्हें ले डूबेगी । बड़े लोगों की यारी का तुम वक्ती तौर पर फायदा उठा सकते हो लेकिन अन्त में जानते हो क्या होगा ? अपना स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद तुम्हारे हिमायती बड़े लोग तो हाथ जोड़कर अलग हो जाएंगे और तुम्हारी ऐसी तैसी हो जाएगी ।”
“तुम किन बड़े लोगों की बात कर रहे हो ?”
“मैं ठाकुर हरनामसिंह की बात कर रहा हूं । ठाकुर का गृह मन्त्रालय में कोई अण्डर-सैक्रेट्री दोस्त है । ठाकुर के कहने पर अण्डर-सैक्रेट्री तुम्हारे मामले में टांग अड़ा रहा है । परिणामस्वरूप मुझे ऊपर से आदेश मिला है कि जब तक मेरे पास तुम्हारे खिलाफ कोई शत प्रतिशत ठोस सबूत न हो, मैं तुम्हें हाथ न लगाऊं ।”
“और मेरे खिलाफ तुम्हारे पास कोई ठोस सबूत नहीं है ?”
“अगर होता तो मैं किसी अण्डर-सैक्रेट्री के तो क्या खुद होम मिनिस्टर के टांग अड़ाने पर भी तुम्हें नहीं छोड़ता ।”
“मुझे मजबूरी में छोड़ रहे हो ?”
“हां लेकिन केवल वक्ती तौर पर अपनी कुशलता का सन्देश देते रहना ।”
“ओके ।” - सुनील बोला - “नमस्ते इन्स्पेक्टर साहब ।”
“और जाती बार एक बात और सुनते जाओ ।” - प्रभूदयाल बोला ।
सुनील ठिठक गया ।
“तुम्हारे बारे में ऊपर से आदेश जा जाने के कारण मेरे हाथ बन्ध गए हैं इसलिए मुझे तुमको छोड़ना पड़ रहा है वर्ना असली बात मैं तुम्हारे हलक में हाथ डालकर निकलवा लेता ।”
“असली बात ?”
“हां, असली बात । तुम क्या हम पुलिस वालों को अहमक समझते हो ! तुम्हारे ख्याल से मुझे मालूम नहीं है कि हरनामसिंह पैलेस में माइकल ने चोरी नहीं की बल्कि ठाकुर हरनामसिंह के परिवार के किसी सदस्य ने स्वेच्छा से हीरों के जेवर माइकल को सौंपे हैं और इस सारे सिलसिले में माइकल का नहीं, ठाकुर के परिवार के किसी सदस्य का हित छुपा हुआ है । अगर मेरे हाथ न बन्धे होते तो यही बात मैं तुम्हारे मुंह से कुबुलवाता । गृह-मन्त्रालय के अण्डर-सैक्रेट्री ने अपनी टांग ने अड़ाई होती तो मैं तुम्हें अच्छी तरह देख लेता ।”
“तुम मुझे अब भी अच्छी तरह देख सकते हो ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि तुम भूल जाओ कि कोई मुझे पुलिस थर्ड डिग्री से बचाने की कोशिश कर रहा है । मैं किसी की हिमायत नहीं मांगता । मैं हकीकत अक्षरक्ष: तुम्हारे सामने दोहरा देता हूं । लेकिन तुम वादा करो कि उसके बाद तुम भी किसी के दबाव में आए बिना वह करोगे जो एक नि:स्वार्थ, ईमानदार और कर्तव्यपरायण पुलिस अधिकारी को करना शोभा देता है ।”
“क्या ?”
“तुम समझते हो कि ठाकुर हरनामसिंह के परिवार का ही कोई आदमी माइकल से सम्बन्धित है अर्थात चोरी माइकल ने की नहीं बल्कि ठाकुर के परिवार के किसी आदमी ने खुद जेवर माइकल को सौंपे हैं और बात खुल जाने के बाद यह जाहिर करने की कोशिश की है कि वह सीधा साधा चोरी का काम था । मैं तुम्हारे सामने यह स्वीकार करता हूं कि ठाकुर के परिवार का कोई सदस्य इन्श्योरेन्स कम्पनी को धोखा देने के लिए माइकल से मिलकर सारी गड़बड़ करवा रहा है । अब तुम एक कर्तव्यपरायण पुलिस अधिकारी की तरह ठाकुर के परिवार के सारे सदस्यों को पुलिस हैडक्वार्टर क्वेश्चनिंग के लिए पकड़ मंगवाओ । ठाकुर को, उसके बाद रवि को, उसकी बेटी सरिता और उसकी बीवी सूसन को । और फिर उनसे वास्तविकता कुबुलवाने के लिए उन पर बारी-बारी वे तरीके इस्तेमाल करो जो तुम अपराध कुबुलवाने के लिए साधारण अपराधियों पर इस्तेमाल करते हो । मेरा दावा है कि एक घन्टे में हकीकत तुम्हारे सामने होगी ।”
प्रभूदयाल का चेहरा कानों तक लाल हो गया । एक क्षण को सुनील को यूं लगा जैसे वह ज्वालामुखी की तरह फट पड़ेगा लेकिन फिर वह धीरे-धीरे शान्त हो गया । वह कुछ देर तक नकारात्मक ढंग से सिर हिलाता रहा और फिर धीरे से बोला - “मैं ऐसा नहीं कर सकता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैं बीवी बच्चों वाला हूं और अभी मैंने कई साल पुलिस की नौकरी करनी है ।”
“तो फिर नमस्ते !” - सुनील बोला और लम्बे डग भरता हुआ प्रभूदयाल के कमरे से बाहर निकल गया ।
पुलिस हैडक्वार्टर से सुनील ने एक आटो रिक्शा पकड़ी और लिटन रोड पर हरनामसिंह पैलेस पहुंच गया ।
उसकी मोटर साइकिल हरनाम सिंह पैलेस के सामने अर्धवृत्ताकार ड्राइव वे में वहीं खड़ी थी जहां वह उसे पिछली रात को छोड़कर गया था । वह मोटर साइकिल पर सवार हुआ और शंकर रोड पहुंचा ।
शंकर रोड पर उसे रवि को तलाश करने में कोई दिक्कत नहीं हुई । वहां से उसे मालूम हुआ कि रवि अपनी कैमिकल बनाने वाले कारखाने में गया हुआ है ।
सुनील कारखाने पहुंचा ।
रवि वहां मौजूद था ।
सुनील ने अपना कार्ड भीतर भिजवाया ।
थोड़ी देर बाद एक वर्दीधारी चपरासी सुनील को रवि के हालीवुड की फिल्मों के सैटों जैसे भव्य दफ्तर में छोड़ गया । काली लकड़ी की एक विशाल मेज के सामने रवि बैठा था । उसने विचित्र नेत्रों से सिर से पैर तक सुनील को देखा ।
“अगर तुम मेरा हुलिया देख रहे हो तो तुम्हारी जानकारी के लिए मैं सीधा पुलिस हैडक्वार्टर के लाकअप से निकलकर आ रहा हूं ।”
“बैठो ।” - रवि बोला । उसका स्वर अपेक्षाकृत नम्र था ।
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“कैसे आये ?” - रवि ने पूछा ।
“मार्क रिचर्डसन के बारे में कुछ सुनने के लिए आया हूं । पिछली रात को तुम उसके बारे में कुछ कहना चाहते थे लेकिन हिचकिचा रहे थे । पिछली रात मुझे समय नहीं था । अब मुझे बहुत समय है और वैसे भी अभी तक तुमने फैसला कर ही लिया होगा कि तुम मार्क रिचर्डसन के बारे में मुझे कुछ बताना चाहते हो या नहीं ।”
“मार्क रिचर्डसन का इस केस से क्या सम्बन्ध है ?”
“इस बारे में अभी मैं निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता ।”
“तुम केवल सुनना ही चाहते हो । कहना कुछ नहीं चाहते ।”
“जब कोई कहने लायक बात होगी तो जरूर कहूंगा ।”
रवि कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “मैं तुम्हें मार्क रिचर्डसन के बारे में विशेष कुछ नहीं बता सकता ।”
“जितना बता सकते हो, उतना ही बताओ ।”
“मैंने संयोगवश ही एक बार मार्क रिचर्डसन का नाम सुना था ।”
“किस सन्दर्भ में ?”
“हरनाम सिंह पैलेस में नीचे मेन हॉल में एक टेलीफोन है जिसका पैरेलल कनैक्शन ऊपर पहली मंजिल के एक कमरे में भी है । उस दिन मैंने टेलीफोन करने के लिए मेन हॉल के टेलीफोन का रिसीवर उठाकर कान से लगाया तो डायल टोन के स्थान पर मेरे कान में एक आदमी की आवाज पड़ी । आदमी कह रहा था - हैल्लो डार्लिंग, आशा है कि तुम मार्क रिचर्डसन को भूली नहीं होगी ! - मैंने तत्काल रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया था । ऊपर के टेलीफोन पर पहले से ही बात हो रही थी ।”
“बात कौन कर रहा था ?”
“रिसीवर रखते-रखते मुझे किसी स्त्री स्वर का आभास मिला था । उस टेलीफोन को अक्सर सरिता और सूसन ही इस्तेमाल करती हैं और उस समय सरिता नीचे के एक कमरे में थी ।”
“अर्थात मार्क रिचर्डसन सूसन से बात कर रहा था ।”
रवि चुप रहा । लगता था जैसे वह मार्क रिचर्डसन के संदर्भ में सूसन का नाम लेने से झिझक रहा हो ।
“यह कब की बात है ?” - सुनील ने पूछा ।
“लगभग चार महीने हो गए हैं ।”
“अर्थात जेवरों की गड़बड़ आरम्भ होने से एक महीने पहले की बात है यह ?”
रवि चुप रहा
“और ?”
रवि फिर हिचकिचाया ।
“उसके बाद भी कभी तुमने मार्क रिचर्डसन का जिक्र सुना था ?”
रवि ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“कब ?”
“उस टेलीफोन काल वाली घटना से लगभग एक सप्ताह बाद की बात है । मैं सरिता से मिलने हरनामसिंह पैलेस गया था । आदमी इमारत की पोर्टिको में मंडरा रहा था । मैंने उससे उसके बारे में पूछा तो वह हड़बड़ा कर बोला कि वह सूसन से मिलना चाहता था । मैंने उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम मार्क रिचर्डसन बताया ।”
“फिर ?” - सुनील आशान्वित स्वर से बोला ।
“मैंने सोचा वह सूसन का कोई जानकर या रिश्तेदार होगा । मैंने उसे बैठने को कहा और नौकर द्वारा सूसन के पास सूचना भिजवा दी ।”
“तुम्हारे कथनानुसार मार्क रिचर्डसन ने टेलीफोन पर सूसन को डार्लिंग कहा था ?”
“उससे क्या होता है ? ऐंग्लो-इन्डियन वर्ग में तो मां, बहन या बेटी किसी को भी डार्लिंग कह देते हैं ।”
“वह सूसन का क्या लगता था ?”
“मैंने पूछा नहीं ?”
“उस रोज सूसन मार्क रिचर्डसन से मिली थी ?”
“मुझे नहीं मालूम । क्योंकि मैं बाद में वहां रुका नहीं था । मैं पैलेस के भीतर चला गया था ।”
“उसके बाद कभी मार्क रिचर्डसन वहां आया था ?”
“शायद आया हो । शायद न आया हो । मुझे कैसे मालूम हो सकता है ? मैं हरनामसिंह पैलेस पर हर समय थोड़े ही मौजूद रहता हूं, मैं तो कभी कभार वहां जाता हूं उस रोज संयोगवश वह आदमी मुझे वहां दिखाई दे गया था ।”
“तुम मार्क रिचर्डसन का हुलिया बयान कर सकते हो ?”
रवि कुछ क्षण चुप रहा यूं जैसे वह मार्क रिचर्डसन का हुलिया याद करने की कोशिश कर रहा था । थोड़ी देर बाद वह बोला - “वह सूरत शक्ल से ऐंग्लो इन्डियन लगता था । कद में मेरे जितना लम्बा था । काले रंग का सूट पहने हुए था और सिर पर काली फैल्ट लगाए हुए था । रंग गोरा था । नाक नक्श तीखे थे और उसकी दाईं आंख के नीचे एक चोट का निशान था ।”
सुनील को उस काली फैल्ट वाले की याद आ गई जिसको उसने प्रिंस होटल में गजाधर के कमरे के बाहर बातें सुनते पाया था और जिसका बाद में उसने पीछा करने की कोशिश की थी । वह फैल्ट वाला निश्चय ही मार्क रिचर्डसन था । फिर उसे माइकल की बात याद आई । माइकल ने कहा था कि उस रोज मार्क रिचर्डसन और गफूर उसकी निगरानी कर रहे थे । अगर काली फैल्ट वाला आदमी मार्क रिचर्डसन था तो वह दूसरा दुबला-पतला आदमी जो रौनक बाजार में तब उससे आ टकराया था जब वह मार्क रिचर्डसन का पीछा कर रहा, जरूर गफूर था । उसी की वजह से उस रोज मार्क रिचर्डसन उसके हाथों से निकल गया था । फिर माइकल के कथनानुसार मार्क रिचर्डसन रिवाल्वर नहीं रखता था । रिवाल्वर के नाम से ही उसके प्राण निकलने लगते थे । इसका मतलब था कि प्रिंस होटल में गजाधर को गफूर ने गोली मारी थी । पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार कम से कम दो आदमी गजाधर के कमरे में घुसे थे । वे दो आदमी मार्क रिचर्डसन और गफूर ही हो सकते थे और उन्हीं दोनों में से कोई गजाधर की रिवाल्वर से निकली गोली का शिकार हुआ था ।
“क्या सोच रहे हो ?” - रवि ने पूछा ।
“तुम्हारी सूसन के बारे में क्या राय है ?” - सुनील ने पूछा
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि कैसी औरत है वह ?”
“सूसन बहुत भली औरत है ।” - रवि निश्चयात्मक स्वर से बोला ।
“उसके अपने कथनानुसार वह बम्बई के थ्री स्टार नाइट क्लब में आने वाले रईस लोगों का मनोरंजन करने वाली कैब्रे डांसर थी ।”
“इससे क्या होता है, कई बार मजबूरी में लोगों को बहुत अजीब कार्य करने पड़ जाते हैं । कैब्रे डांसर होना किसी के चरित्र पर लांछन नहीं माना जा सकता । कैब्रे डांसर भी सच्चरित्र युवती हो सकती है । सूसन एक सभ्रान्त ऐंग्लो इन्डियन परिवार की बड़ी सम्मानित महिला है ।”
“तुम सूसन से बहुत प्रभावित मालूम होते हो ।”
“सूसन है ही बहुत भली औरत ।”
“मैं सूसन के बारे में ठाकुर साहब के सन्दर्भ से सोच रहा था ।”
“क्या मतलब ?”
“ठाकुर साहब बड़े खानदानी आदमी हैं और साधारण लोगों के मुकाबले में वह स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं । सरिता की शादी वह तुमसे इसलिए नहीं करना चाहते थे क्योंकि तुम्हारे पास पैसा नहीं था और समाज में प्रतिष्ठा नहीं थी । फिर भी उन्होंने सूसन जैसी एक कैब्रे डांसर से शादी कैसे कर ली ? मैं सूसन की बात नहीं करता । सूसन अपवाद हो सकती है लेकिन साधानणतया कैब्रे डांसर बड़ी आसानी से हासिल हो जाने वाली चीज समझी जाती है ।”
“वास्तव में ठाकुर साहब ने क्या सोच कर सूसन से शादी की यह तो मुझे मालूम नहीं ।” - रवि विचारपूर्ण स्वर में बोला - “लेकिन सम्भव है कि सूसन के प्रेम में वे पहले जकड़े गए हों और यह उन्हें बाद में मालूम हुआ हो कि यह एक कैब्रे डांसर है । सूसन शायद वाकई एक सम्भ्रान्त ऐंग्लो इन्डियन परिवार की सम्मानित महिला हो और किसी भारी मजबूरी की खातिर ही कैब्रे डांसर बन गई हो । तब तक शायद ठाकुर साहब सूसन के इश्क में इतना आगे बढ आये हों कि उन्हें तब पीछे हट जाना असम्भव दिखाई देने लगा हो । ठाकुर साहब और सूसन की शादी किन्हीं हालात में हुई हो, इतना निश्चित है कि ठाकुर साहब को अपने कृत्य पर कभी एक क्षण के लिए भी पछताना नहीं पड़ा ।”
रवि एक क्षण रुका और फिर बोला - “और जहां तक मेरे और सरिता के सम्बन्ध का सवाल है । उसमें मुझे यही कहना है कि हमारे समाज में साधारणतया स्त्री का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता । समाज में साधारणतया वह उसी मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की हकदार बनती है जिसका हकदार उसका पति होता है । पहले मैं बहुत मामूली आदमी था । उस समय अगर ठाकुर साहब मेरी सरिता से शादी कर देते तो सरिता भी मेरे जैसी मामूली औरत बन जाती जो कि ठाकुर साहब को हरगिज पसन्द नहीं आता । लेकिन ठाकुर साहब समाज में बहुत भारी प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति हैं । अगर किसी मामूली औरत से शादी करते हैं तो उसका रुतबा अपने आप ठाकुर साहब जितना ऊंचा हो जाता है । और फिर ठाकुर साहब तजुर्बेकार आदमी हैं । उनमें सरिता के मुकाबले में किसी भले और बुरे आदमी की तमीज करने की ज्यादा काबलियत है ।”
“तुम ठीक कह रहे हो ।” - सुनील बोला ।
रवि चुप रहा ।
“रात को जब मैंने सब लोगों के सामने मार्क रिचर्डसन के बारे में प्रश्न किया था । तो नाम सुनकर सरिता चौंकी तो थी लेकिन उसने स्वीकार नहीं किया था कि वह मार्क रिचर्डसन को जानती है ।” - सुनील बोला ।
“चौंका तो मैं भी था ।”
“लेकिन तुम तो मार्क रिचर्डसन के बारे में जो कुछ जानते थे तुमने अब बता दिया है ।”
“करैक्ट, इसी प्रकार सम्भव है जब तुम इस विषय में सूसन से बात करोगे तो वह भी जो वह जानती है, बता देगी ।”
“तुम मुझे मार्क रिचर्डसन के बारे में सूसन से बात करने की राय देते हो ?”
“हर्ज क्या है ?”
“ठीक है मैं सूसन से बात करूंगा ।”
“कब ?”
“अभी जाता हूं ।”
“मार्क रिचर्डसन के बारे में जो कुछ मैंने तुम्हें बताया है । उसके सामने इसका जिक्र मत करना ।”
“नहीं करूंगा ।”
“थैंक्यू ।”
“अब एक आखिरी बात और बताओ ।”
“पूछो ।”
“तुम्हारी राय में जेवरों के हीरों की गड़बड़ में सूसन का हाथ हो सकता है ?”
रवि हिचकिचाया ।
“और इस बात का जवाब यह सोचकर देना कि सूसन मार्क रिचर्डसन को जानती है और मार्क रिचर्डसन किसी न किसी रूप में माइकल से जरूर सम्बन्धित था ।”
“सूसन एक बहुत अच्छी औरत है ।” - रवि कठिन स्वर से बोला ।
“तुम्हारी हिचकिचाहट जाहिर करती है कि सूसन के प्रति तुम्हारा विश्वास डगमगा रहा है वर्ना तुम साफ-साफ उत्तर देते कि तुम सूसन से ऐसी किसी बात की अपेक्षा नहीं करते ।”
रवि चुप रहा ।
“मैं चला ।” - सुनील बोला ।
रवि ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील बाहर निकल आया ।
वह अपनी मोटर साईकिल पर सवार हुआ और दोबारा हरनामसिंह पैलेस की ओर चल दिया ।
वह बड़ी गम्भीरता से सूसन के बारे में सोच रहा था ।
***
सुनील हरनामसिंह पैलेस पहुंचा ।
सूसन वहां नहीं थी, पैलेस के एक वर्दीधारी गार्ड ने बताया कि वह थोड़ी ही देर पहले क्लब की ओर रवाना हुई थी ।
सुनील फिर मोटर साईकिल पर सवार हुआ और क्लब की ओर चल दिया ।
उसने मोटर साईकिल को कम्पाउन्ड में खड़ा किया और क्लब में प्रविष्ट हो गया ।
सूसन उसे वहां कहीं दिखाई नहीं दी लेकिन मेन हाल में वह ठाकुर हरनामसिंह से टकरा गया ।
ठाकुर ने उसे हाथ के संकेत से अपने पास बुलाया ।
“कैसे आए ?” - सुनील के समीप आ जाने पर ठाकुर ने पूछा ।
“अपने एक दोस्त को देखने आया था, ठाकुर साहब ।” - सुनील बोला । वह ठाकुर को नहीं बताना चाहता था कि वह सूसन को तलाश करता हुआ यहां आया था । सूसन के प्रति अपने सन्देह के बारे में अभी वह ठाकुर को कुछ नहीं बताना चाहता था ।
“मिला ?”
“कौन ?”
“तुम्हारा दोस्त ?”
“ओह वह, नहीं ।”
“पुलिस ने ज्यादा तंग तो नहीं किया तुम्हें ?”
“जितना वे लोग कर सकते थे, उतना उन्होंने किया ही है । फिर भी आपकी मेहरबानी से मैं आजाद घूम रहा हूं ।”
उसी क्षण एक वर्दीधारी वेटर ठाकुर के समीप पहुंचा और बड़े आदरपूर्ण स्वर से बोला - “साहब, मेम साहब बाहर गाड़ी में आपका इन्तजार कर रही हैं ।”
“अच्छा !” - ठाकुर बोला और फौरन उठ खड़ा हुआ । फिर वह सुनील की ओर देखकर बोला - “सूसन आई है । आज हम पिक्चर देखने जा रहे हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
“कोई नई बात जानकारी में आए तो मुझे जरूर सूचना देना ।”
“जी हां जरूर ।”
ठाकुर बाहर की ओर चल दिया ।
सुनील भी उसके पीछे-पीछे हो लिया ।
क्लब के कम्पाऊन्ड के बाहर सड़क पर फुटपाथ के किनारे के साथ लगी विशाल शेवरलेट गाड़ी की ड्राईविंग सीट पर उसे सूसन बैठी दिखाई दी । ठाकुर को देखकर उसने हाथ हिलाया । ठाकुर कार की ओर बढ गया ।
एकाएक संयोगवश ही सुनील की दृष्टि सड़क से पार खड़ी एक काले रंग की फोर्ड कार पर पड़ गयी । कार का इन्जन चालू था और उसका मुंह सूसन की शेवरलेट से विपरीत दिशा की ओर था । कार की ड्राईविंग सीट पर बैठे आदमी का चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था । फिर काली फोर्ड में से एक हाथ बाहर निकला और सुनील के नेत्र फैल गए ।
ढलते हुए सूरज की किरणें सीधी उस हाथ में थमी रिवाल्वर की नाल पर पड़ रही थीं ।
ठाकुर शेवरलेट के फ्रन्ट से घूमकर उसके दूसरे द्वार की ओर बढ रहा था ।
“ठाकुर साहब !” - एकाएक सुनील गला फाड़कर चिल्लाया - “बचिये ।”
सुनील की आंतक भरी आवाज सुनकर ठाकुर जरा सा घूमा । उसी क्षण एक फायर हुआ । सुनील ने ठाकुर के शरीर को कार के समीप गिरते देखा । वातावरण में सूसन की तीव्र चीख गूंज उठी ।
उसी क्षण काली फोर्ड के ड्राईवर ने कार को गियर में डाला और कार तोप से छूटे गोले की तरह सड़क पर भाग निकली ।
सुनील झपट कर अपनी मोटर साईकिल के पास पहुंचा ।
उसने फुर्ती से मोटर साईकिल स्टार्ट की, वह लपक कर उस पर सवार हुआ । वह मोटर साईकिल को तेजी से मोड़कर बाहर सड़क पर लाया और फिर उसने उसे काली फोर्ड के पीछे दौड़ा दिया ।
उसे पीछे घूमकर देखने की सुध नहीं थी ।
काली फोर्ड चौराहे पर पहुंचकर दांई ओर घूम गई । सुनील ने भी चौराहे का सिग्नल लाल होने के पहले अपनी मोटर साईकिल उसी दिशा में मोड़ दी ।
उस सड़क पर बहुत ट्रैफिक था । अपने भरपूर प्रयत्नों के बावजूद भी सुनील अपनी मोटर साईकिल को काली फोर्ड के इतने समीप नहीं ला पा रहा था कि वह उसका नम्बर देख सके ।
फिर एकाएक काली फोर्ड ट्रैफिक की कतार से निकलकर चौराहे से पहले ही बांई ओर एक सड़क पर घूम गई । सुनील उस समय ट्रैफिक की कतार की दांई ओर था और अन्य गाड़ियों को ओवरटेक करके काली फार्ड के समीप आने का प्रयत्न कर रहा था । वह तत्काल मोटर साईकिल को ट्रैफिक की कतार से निकाल कर बांई ओर नहीं ला सका ।
काली फोर्ड के बांई सड़क पर मुड़ने के लगभग एक मिनट बाद सुनील अपनी मोटर साईकिल को उस सड़क पर मोड़ने में सफल हो सका ।
काली फोर्ड उस सड़क पर उसे कहीं दिखायी नहीं दी ।
उसके बाद सुनील ने उस इलाके की खूब खाक छानी लेकिन काली फोर्ड के उसे दुबारा दर्शन नहीं हुए ।
निराश होकर सुनील वापिस क्लब की ओर लौट पड़ा ।
क्लब पहुंचकर उसे मालूम हुआ कि ठाकुर साहब को बुरी तरह घायल अवस्था में विक्टोरिया हस्पताल ले जाया गया था ।
सुनील विक्टोरिया हस्पताल पहुंचा ।
वहां आपरेशन थियेटर के बाहर से वेटिंग हाल लोगों का जमघट लगा हुआ था । भीड़ में सूसन, सरिता और रवि भी मौजूद थे । भीड़ से थोड़ा हटकर अपने दो सिपाहियों के साथ इन्सपेक्टर प्रभूदयाल खड़ा था । प्रभूदयाल ने बड़े उदासीन भाव से सुनील की ओर देखा और फिर आपरेशन थियेटर की ओर दृष्टि फिरा ली ।
पूछने पर सुनील को मालूम हुआ कि गोली ठाकुर की गर्दन में कन्धे के समीप कहीं लगी थी और वह बड़ी शोचनीय अवस्था में हस्पताल लाया गया था ।
आधे घंटे के बाद एक डाक्टर आपरेशन थियेटर से बाहर निकला ।
सब लोग उसकी ओर लपके ।
“ठाकुर साहब ठीक हैं ।” - डाक्टर बोला - “उनकी जान को कोई खतरा नहीं है । मैंने गोली निकाल दी है ।”
“क्या मैं उनसे मिल सकती हूं ?” - सूसन व्यग्र स्वर से बोली ।
“अभी नहीं ।” - डाक्टर बोला - “अभी वे बेहोश हैं । जब वे होश में आ जायेंगे तो आप लोगों को सूचित कर दिया जाएगा ।”
“डाक्टर !” - प्रभूदयाल आगे बढकर बोला - “मैं पुलिस इन्सपेक्टर प्रभूदयाल हूं । जो गोली आपने ठाकुर साहब के शरीर में से निकाली है, वह आप मुझे सौंप दीजिए ।”
“ओ श्योर !” - डाक्टर बोला और वापिस आपरेशन थियेटर में घुस गया ।
दो मिनट बाद वह वापिस लौटा और उसने एक लिफाफा प्रभूदयाल के हाथ में सौंप दिया ।
प्रभूदयाल ने लिफाफे में रखी गोली देखी । फिर उसने लिफाफे को पूर्ववत् बन्द कर दिया । उसने लिफाफा एक सिपाही को सौंप दिया और बोला - “इसे सावधानी से पुलिस लैबोरेट्री में ले जाओ ।”
सिपाही फौरन वहां से रवाना हो गया ।
बेहोशी की हालत में ठाकुर को आपरेशन थियेटर से एक वातानुकूलित कमरे में ट्रांसफर कर दिया गया ।
लोग वेटिंग रूम में प्रतीक्षा करते रहे ।
ठाकुर के बारे में डाक्टर की रिपोर्ट सुन चुकने के बाद ठाकुर के अधिकतर क्लब के मित्र वहां से विदा हो गये । भीड़ छट चुकने के बाद प्रभूदयाल रवि, सरिता और सूसन वगैरह के समीप पहुंचा और बिना किसी व्यक्ति विशेष को सम्बोधित किए बोला - “आप लोगों की निगाह में ठाकुर साहब का ऐसा कौन सा दुश्मन हो सकता है जो यूं सरेआम उनकी हत्या करने पर उतारू हो गया हो ?”
किसी ने उत्तर नहीं दिया ।
अन्त में रवि यूं बोला जैसे वह परिवार का प्रतिनिधित्व कर रहा हो - “क्या मालूम इन्सपेक्टर साहब ? हमारी निगाह में तो ठाकुर साहब का कोई दुश्मन नहीं था ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
प्रभूदयाल ने एक गहरी सांस ली । वातावरण तफ्तीश आगे बढाई जाने के काबिल नहीं था । वह सुनील की ओर घूमा और अपेक्षाकृत कठोर स्वर से बोला - “इस घटना से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है ?”
“इन्सपेक्टर साहब ।” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “लगता है, तुम्हारा मक्खन में लिपटा हुआ स्वर केवल रईस लोगों से बात करने के लिए ही सुरक्षित है ।”
“मेरे सवाल का जवाब दो ।”
“मैंने हत्यारे को ठाकुर साहब पर गोली चलाते देखा था और फिर फौरन उसका पीछा किया था । लेकिन हत्यारे को शायद मेरी जानकारी हो गई थी और वह मुझे डाज देने में सफल हो गया था ।”
“तुमने हत्यारे की सूरत देखी ?”
“नहीं ।”
“कार का नम्बर ?”
“नहीं देख पाया । मैं तुम्हें केवल इतना बता सकता हूं कि वह एक काले रंग की पुरानी फार्ड गाड़ी थी ।”
“बस ?”
“बस !”
प्रभूदयाल चुप हो गया ।
लगभग आधे घन्टे बाद एक अन्य डाक्टर ठाकुर के कमरे से निकला और बोला - “ठाकुर साहब अब बिल्कुल खतरे से बाहर हैं । वे होश में आ गए हैं और वे...”
“क्या मैं उनसे मिल सकती हूं ?” - सूसन व्यग्र स्वर में बोली ।
“हम उनसे अभी मिल सकते हैं, डाक्टर ?” - रवि और सरिता लगभग एक साथ बोले ।
“मैं उनका बयान लेना चाहता हूं ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“आप लोगों में से सुनील किसका नाम है ?” - डाक्टर बोला ।
“मेरा ।” - सुनील आगे बढकर बोला ।
“ठाकुर साहब आपसे बात करना चाहते हैं । आप मेरे साथ आइए ।”
सुनील फौरन डाक्टर के साथ हो लिया ।
“लेकिन...” - सूसन ने कुछ कहना चाहा लेकिन वह चुप हो गई ।
प्रभूदयाल ने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा लेकिन मुंह से कुछ न बोला ।
सुनील को ठाकुर हरनामसिंह के पास छोड़कर डाक्टर वहां से विदा हो गया ।
बिस्तर पर सीधे लेटे ठाकुर ने धीरे से अपना सिर घुमाया और फिर धीरे से बोला - “सुनील ।”
“फरमाइए ठाकुर साहब ।”
“मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं । तुम्हारी ही वजह से आज मेरी जान बच गई । अगर मैं तुम्हारी चेतावनी भरी आवाज सुनकर घूम न गया होता तो गोली मेरी खोपड़ी की तोड़ती हुई गुजर जाती ।”
“आपकी राय में आप पर गोली चलाने वाला कौन हो सकता है ?”
“पता नहीं कौन था वह ? मेरी तो किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं है कि कोई यूं सरेआम मेरी हत्या करने पर उतारू हो जाए ।”
“हत्याएं केवल दुश्मनी की वजह से ही तो नहीं की जातीं ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“क्या मतलब ?”
“अगर भगवान ने करे आज आपकी मृत्यु हो जाती तो सबसे ज्यादा लाभ किसे पहुंचता ?”
“तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“मैं यह कहना चाहता हूं ठाकुर साहब, कि एक पैसे वाले आदमी की हत्या के पीछे दौलत भी बहुत बड़ा उद्देश्य होती है ।”
“दौलत... हे भगवान !”
सुनील चुप रहा ।
“लेकिन यह सम्भव नहीं है । मेरी हत्या के प्रयत्न के पीछे यह उद्देश्य नहीं हो सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“क्योंकि मेरी वसीयत के अनुसार मेरी मृत्यु के बाद मेरी दौलत की मालिक सूसन बनने वाली है और सूसन भला दौलत के लिए मेरी हत्या क्यों करवाना चाहेगी ? मेरे पास जो कुछ है, वह अभी भी सूसन का ही है ।”
“आपकी वसीयत के अनुसार क्या आपकी बेटी को कुछ नहीं मिलने वाला है ?”
“मिलने वाला है लेकिन एकमुश्त नहीं । मैंने ऐसा इन्तजाम किया था कि मेरी मृत्यु के बाद एक निश्चित रकम हर महीने उसको मिल जाया करे ।”
“ऐसा क्यों किया आपने ?”
“क्योंकि यह वसीयत मैंने उन दिनों तैयार करवाई थी जब रवि की कोई हैसियत नहीं थी और सरिता उस पर बुरी तरह रीझी हुई थी । उन दिनों रवि मुझे सरिता के प्रति आज जैसा ईमानदार आदमी नहीं लगता था । अपनी पिछली वसीयत में मैंने अपनी आधी दौलत सरिता के नाम की थी । मुझे भय था कि मेरी अक्समात मृत्यु हो जाने के बाद कहीं रवि सरिता से सारी दौलत न हथिया न ले ।”
“सरिता को मालूम था कि आपने वसीयत बदल दी है ?”
“नहीं ।”
“उसे पिछली वसीयत के बारे में मालूम था ?”
“नहीं ।”
“आपकी पत्नी को ?”
“सूसन को तो किसी भी वसीयत के बारे में जानकारी नहीं थी ।”
“सरिता और सूसन यदि चाहें तो क्या वे आपकी वसीयत के बारे में जानकारी हासिल कर सकती हैं ?”
“कर सकती हैं ।”
“आसानी से ?”
“हां ।”
“आपको सूसन पर पूरा भरोसा है ?”
“सूसन पर शक करना बेकार है बेटे ! मुझे सूसन पर अपनी जान से ज्यादा भरोसा है । मुझे नहीं लगता कि मेरी हत्या के प्रयत्न के पीछे उद्देश्य मेरी दौलत हो । जरूर किसी और ही वजह से कोई मेरी हत्या करना चाहता था ।”
“शायद ।”
“मैंने तुम्हारा धन्यवाद करने के लिए तुम्हें बुलाया था । आज मैं तुम्हारी वजह से जिन्दा हूं ।”
“आप ऐसा समझते हैं तो यह आपकी महानता है ठाकुर साहब, वर्ना मैंने आपके लिए धन्यवाद हासिल करने योग्य कुछ भी नहीं किया ।”
ठाकुर साहब के होठों पर स्निग्ध मुस्कराहट आई और फिर उसने नेत्र बन्द कर लिए ।
सुनील चुपचाप बाहर निकल आया ।
वह दोबारा वेटिंग रूम में पहुंचा ।
सूसन वहां नहीं थी ।
सुनील रवि के समीप पहुंचा । उसने धीरे से पूछा - “सूसन कहां है ?”
“बाहर गई हैं ।” - रवि बोला - “कह रही थीं यहां के वातावरण में उनका दिल घबराने लगा है । ठाकुर साहब...”
सुनील उसकी बात सुनने के लिए रुका नहीं । वह बाहर निकल आया ।
सूसन उसे कहीं दिखाई नहीं दी ।
हस्पताल के सामने लान में एक आदमी खड़ा था । उस आदमी को सुनील ने क्लब में भी देखा था और भीतर वेटिंग रूम में ठाकुर साहब की वजह से आए हुए लोगों की भीड़ में भी देखा था ।
सुनील उस आदमी के समीप पहुंचा और बोला - “आपने मिसेज हरनामसिंह को देखा है ?”
“सूसन घर गई है ।” - वह आदमी बोला - “बेचारी बड़ी परेशान थीं । शायद ठाकुर हरनामसिंह को घायलावस्था में पड़ा देख कर उसे बहुत सदमा पहुंचा है ।”
“लेकिन सूसन ने तो ठाकुर साहब को नहीं देखा !” - सुनील बोला ।
“जी !” - वह आदमी चौंककर बोला ।
“उसे यहां से गए कितनी देर हुई है ?”
“लगभग पांच मिनट ।”
सुनील फौरन आगे बढ गया । पार्किंग से उसने अपनी मोटर साइकिल निकाली और सीधा हरनामसिंह पैलेस पहुंचा ।
उसने पैलेस के वर्दीधारी गार्ड के सामने मोटर साइकिल रोकी ।
“सूसन मेम साहब आई हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“थोड़ी देर पहले आई थीं लेकिन फिर वापिस चली गयीं ।” - गार्ड बोला । उसके स्वर में भारी व्यग्रता की झलक थी ।
“वापिस चली गईं ! कहां ?”
“मालूम नहीं साहब ।”
“कैसे गईं ?”
“शेवरलेट गाड़ी पर ।”
“ड्राइव वे खुद कर रही थीं ?”
“जी हां ।”
“वे अपने साथ कोई सामान वगैरह ले गई हैं ? कोई ट्रंक या सूटकेस...”
“जी नहीं ।” - गार्ड परेशान स्वर से बोला - “सामान नहीं ले कर गई लेकिन...”
“लेकिन क्या ?”
गार्ड चुप रहा ।
“बोलो ।”
गार्ड एक क्षण चुप रहा और फिर एकदम फट पड़ा - “वे मेरी रिवाल्वर मांगकर ले गई हैं ।”
“रिवाल्वर ?” - सुनील चौंका ।
“जी हां ।”
“भरी हुई ?”
“जी हां ।”
“तुमने क्यों दी ?”
“मैं नौकर आदमी हूं, साहब !” - गार्ड तनिक भयभीत स्वर में बोला - “मैं घर की मालकिन को कैसे इन्कार कर सकता था ।”
“तुमने पूछा नहीं, वे रिवाल्वर का क्या करेंगी ?”
“मैं तो पूछता ही रह गया साहब लेकिन उन्होंने जवाब ही नहीं दिया । रिवाल्वर उनके हाथ में आने की दर थी कि उन्होंने गाड़ी को गियर में डाला और फिर यह जा वह जा ।”
“टेलीफोन कहां है ?”
“टेलीफोन पैलेस में नीचे मेनहॉल में है । एक टेलीफोन यहां गेट पर भी है ।”
गार्ड ने गेट के समीप बने वाच केबिन की ओर संकेत कर दिया ।
सुनील केबिन में घुस गया ।
डायरेक्ट्री में विक्टोरिया हस्पताल का नम्बर देखकर उसने वह नम्बर डायल कर दिया ।
सम्बन्ध स्थापित होते ही उसने दूसरी ओर से उत्तर देने वाले को रवि के बारे में बताया । सुनील को लाइन होल्ड करने के लिए कहा गया । सुनील व्यग्रता से रिसीवर कान से लगाए खड़ा रहा ।
लगभग दो मिनट के बाद उसके कानों में रवि का स्वर पड़ा ।
“रवि !” - सुनील जल्दी से बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं । मैं इस वक्त हरनामसिंह पैलेस में हूं ? तुम फौरन यहां आ जाओ ।”
“क्यों ?”
“वजह बताने का समय नहीं है लेकिन तुम मुझ पर भरोसा रखो । रवि, बाई गाड, अगर तुमने फौरन सहयोग नहीं दिया तो बहुत भारी गड़बड़ हो जाएगी ।”
“लेकिन ठाकुर साहब...”
“एकदम ठीक हैं । यह भावुकता दिखाने का समय नहीं है । उन्हें एक क्षण के लिए भूल जाओ । और जिस काम के लिए मैं तुम्हें बुला रहा हूं, उसमें भी ठाकुर साहब का ही हित है ।”
“लेकिन...”
“ओह माई गाड !” - सुनील असहाय भाव से बोला - “वाई डोंट यू अण्डरस्टैण्ड, मैन । देखो अगर तुम मेरी बात नहीं मानना चाहते हो तो मेरी सरिता से बात करवा दो ।”
“मैं आ रहा हूं ।”
एकाएक रवि बोला ।
“थैंक गाड.. एण्ड कम लाइक ए शाट ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर को क्रेडिल पर पटक दिया ।
वह कोठी से बाहर निकल आया ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और वहीं खड़ा होकर रवि की प्रतीक्षा करने लगा ।
***
“क्या हो गया ?” - रवि ने आते ही प्रश्न किया ।
सुनील ने उसकी बांह पकड़ी और उसे पैलेस के भीतर की ओर ले चला ।
“सूसन अस्पताल से सीधी यहां आई थी ।” - सुनील रास्ते में बोला - “यहां वह एक दो मिनट ही रुकी और फिर उल्टे पांव वापिस चली गई । जाती बार वह गार्ड से भरी हुई रिवाल्वर मांग कर ले गई है ।”
“रिवाल्वर !”
रवि के नेत्र फैल गए ।
“हां । सूसन का एक-एक एक्शन जाहिर करता है कि वह किसी का खून करने के लिए उतारू है ।”
“खून, किस का ?”
“मुझे मार्क रिचर्डसन के अतिरिक्त कोई दूसरा नाम नहीं सूझ रहा है ।”
“मार्क रिचिर्डसन ! मार्क रिचर्डसन क्यों ?”
“शायद सूसन का ख्याल है कि ठाकुर साहब पर मार्क रिचर्डसन ने गोली चलाई थी ।”
“लेकिन सूसन का ख्याल गलत भी हो सकता है ।”
“हो सकता है । इसीलिए तो उसे मार्क रिचर्डसन की हत्या करने से रोकना और भी जरूरी है ।”
रवि चुप रहा । वह बेहद चिन्तित दिखाई दे रहा था ।
“वैसे सम्भावना इस बात की भी है कि शायद सूसन को गोली चलाने वाले की सूरत दिखाई दे गयी हो और उसे निश्चित रूप से ही मालूम हो कि गोली चलाने वाला मार्क रिचर्डसन ही था ।”
“तुमने मुझे यहां क्यों बुलाया है ?”
“अगर तुम सहायता करो तो सूसन को हत्या करने से रोका जा सकता है ।”
“मैं क्या सहायता करूं ?”
“सूसन के निजी कमरे की एक-एक चीज टटोल डालो । उसके निजी कागजात, उसकी चिट्ठी-पत्री, उसकी डायरी वगैरह, हर चीज देखो । शायद कहीं उसने मार्क रिचर्डसन का पता लिखा हुआ हो ।”
“लेकिन सूसन अपने कमरे का ताला लगाकर जाती है ।”
“ताला तोड़ डालो । यह शालीनता दिखाने का समय नहीं है ।”
“ओके ।”
रवि दृढ स्वर में बोला ।
रवि उसे पहली मंजिल के एक कमरे के सामने ले आया ।
कमरे का ताला तोड़ने की जरूरत नहीं पड़ी । दरवाजे पर लगा स्प्रिंग लॉक सुनील के चाबियों के गुच्छे की एक चाबी से खुल गया ।
दोनों कमरे में प्रविष्ट हुए ।
उन्होंने फौरन कमरे की एक-एक चीज टटोलनी आरम्भ कर दी ।
कहीं उन्हें मार्क रिचर्डसन का नाम नहीं दिखाई दिया ।
सूसन की राइटिंग टेबल के दराज का ताला तोड़ा गया । भीतर कई चिट्ठियां और दूसरे कागजात थे लेकिन मार्क रिचर्डसन का नाम किसी पर नहीं था ।
दराज में एक छोटी सी डायरी थी । डायरी में कई लोगों के नाम और टेलीफोन नम्बर खिखे हुए थे ।
सुनील ने एक-एक करके वे नाम पढने आरम्भ कर दिए । मार्क रिचर्डसन का नाम वहां भी नहीं था लेकिन उस डायरी में एक टेलीफोन नम्बर लिखा हुआ था जिसके साथ कोई नाम नहीं था ।
सुनील ने वह नम्बर नोट कर लिया ।
रवि ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“काम नहीं बना !” - सुनील बोला - “मैं जा रहा हूं । तुम पुलिस को फोन कर दो कि सूसन भरी हुई रिवाल्वर लेकर कहीं चली गई और जाते समय वह इतनी उत्तेजित थी कि तुम्हें भय है कि वह कहीं किसी का खून न कर डाले या स्वयं आत्महत्या न कर ले । पुलिस को शेवरलेट गाड़ी का रंग और नम्बर वगैरह बता देना । शायद गाड़ी की सहायता से वे सूसन को तलाश करने में सफल हो जायें ।”
रवि ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
फाटक के समीप आकर सुनील फिर वाच केबिन में घुस गया ।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और यूथ क्लब का नम्बर डायल कर दिया । सम्पर्क स्थापित होते ही उसके कहने पर आपरेटर ने फौरन उसे रमाकांत से कनैक्ट कर दिया ।
“रमाकान्त ।” - सुनील बोला - “एक छोटा सा काम बता रहा हूं जो फौरन होना चाहिए और भगवान के लिए किसी प्रकार की बहस या हुज्जत मत करना ।”
“जल्दी क्या है ?” - रमाकान्त का गम्भीर स्वर सुनाई दिया ।
“किसी की जिन्दगी मौत का सवाल है ।”
“बोलो ।”
“एक टेलीफोन नम्बर नोट कर लो । तुम्हें फौरन यह पता लगाना है कि यह टेलीफोन कहां का है और किसके नाम है ?”
“नम्बर बोलो ।”
सुनील ने उसे नम्बर बता दिया ।
“मैं पता लगाता हूं ।”
“जल्दी ।”
“टेलीफोन एक्सचेंज में जो मेरा कान्टैक्ट है । अगर वह वहीं हुआ तो काम पांच मिनट में हो जाएगा । वर्ना नहीं तो पता नहीं कितना देर लगे ।”
“ओके, तुम मुझे इस टेलीफोन नम्बर पर रिंग कर देना ।” - और सुनील ने उसे वाच केबिन के ऊपर लिखा नम्बर बता दिया ।
सुनील ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
ठीक सात मिनट बाद टेलीफोन की घन्टी बजी ।
सुनील ने झपटकर रिसीवर उठा लिया ।
“सुनील ।” - उसके कानों में रमाकान्त का स्वर पड़ा ।
“हां ।”
“वह टेलीफोन चौदह, बीच लेन पर लगा हुआ है ।”
“टेलीफोन किसके नाम है ?”
“डाक्टर शंकरलाल के नाम ।”
“डाक्टर शंकरलाल ?”
“हां, क्यों ?”
“कुछ नहीं, थैंक्यू ।”
और सुनील ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
मार्क रिचर्डसन का पता मालूम हो पाने की आखिरी आस भी समाप्त हो गई ।
सूसन की डायरी में लिखा नम्बर जो कि सुनील सोच रहा था मार्क रिचर्डसन का होगा । किसी डाक्टर शंकरलाल का था ।
लेकिन एक आशंका फिर भी सुनील के मन को कचोट रही थी ।
अगर वह टेलीफोन किसी डाक्टर का ही था तो सूसन ने बाकी नम्बरों की तरह इस नम्बर के साथ डाक्टर का नाम क्यों नहीं लिखा था ?
उसने चौदह बीच लेन का एक चक्कर लगाने का फैसला कर लिया ।
उसने मोटर साईकिल सम्भाली और बीच लेन की ओर उड़ चला ।
बीच लेन समुद्र के समीप एक सुनसान सा इलाका था । बीच लेन पर दोनों ओर छोटे-छोटे एकमंजिले काटेज थे ।
सुनील ने अपनी मोटर साइकिल बीच लेन के मोड़ पर खड़ी कर दी और फिर पैदल ही आगे बढा ।
चौदह नम्बर काटेज के सामने वह विशाल शेवरलेट गाड़ी खड़ी थी जिस पर सुनील ने सूसन को क्लब आते देखा था ।
सुनील का दिल धड़कने लगा ।
वह सावधानी से आगे बढा । काटेज के आसपास मालती की झाड़ियों की बाड़ लगी हुई थी । सामने एक छोटा सा लकड़ी का फाटक था । सुनील ने निशब्द उसे खोला और दबे पांव भीतर प्रविष्ट हो गया ।
साइड के एक कमरे की खिड़की में प्रकाश का आभास मिल रहा था । सुनील सावधानी से उस खिड़की की ओर बढा । खिड़की के समीप पहुंचकर उसने सावधानी से सिर उठाकर भीतर झांका ।
भीतर सूसन बड़ी बेचैनी से चहलकदमी कर रही थी ! उसने ट्वीड का भारी कोट पहना हुआ था और उसका दांया हाथ कोट की दांयी जेब में था ।
सुनील तत्काल खिड़की से हट गया ।
वह काटेज की फ्रन्ट में पहुंचा ।
बरामदे में जाकर उसने कालबेल बजा दी ।
द्वार तत्काल खुला, दरवाजे पर सूसन खड़ी थी । उसके हाथ में रिवाल्वर थी और उसकी नाल सुनील की छाती पर तनी हुई थी ।
“तुम !”
सूसन के मुंह से निकला ।
“मार्क रिचर्डसन साहब घर में हैं ?” - सुनील यूं बोला जैसे न तो उसने सूसन को पहचाना हो और न उसके हाथ में थमी रिवाल्वर देखी हो ।
“तुम यहां मार्क रिचर्डसन से मिलने आये हो ?” - सूसन के मुंह से निकला ।
“जी हां ।”
“तुम उसे जानते हो ?”
“मेरा ख्याल है कि मैं उसे जानता हूं, आप यहां कैसे ?”
सूसन ने उत्तर नहीं दिया । उसका रिवाल्वर वाला हाथ नीचे झुक गया ।
“आप मार्क रिचर्डसन को जानती हैं ?”
सूसन ने उत्तर नहीं दिया ।
“आप मार्क रिचर्डसन के घर में बैठी हैं तो यह कैसे हो सकता है कि आप उसे जानती न हों ?”
“मैंने कब कहा है कि यह मार्क रिचर्डसन का घर है ?”
“हर बात कहने की जरूरत नहीं होती । आपके हाथ में थमी रिवाल्वर ही कई सवालों का जवाब है ।”
“मिस्टर, अच्छा यही होगा कि तुम यहां से चले जाओ । मार्क रिचर्डसन से तुम फिर कभी मिलना ।”
“आपके मार्क रिचर्डसन से मिल चुकने के बाद मुझे आशा नहीं कि कोई उससे फिर कभी मिल सकेगा ।”
सूसन चुप रही, उसके होंठ भिंच गए ।
“ठाकुर साहब के साथ जो घटना घटी है, उसकी वजह से आप बेहद उत्तेजित हो उठी हैं और उत्तेजना में आदमी अपने विवेक से काम नहीं ले पाता । आप यह रिवाल्वर मुझे दे दीजिए ।”
“नहीं ।” - सूसन दृढ स्वर में बोली ।
“आपने मार्क रिचर्डसन को ठाकुर साहब पर गोली चलाते देखा था ?”
सूसन कुछ क्षण चुप रही, जैसे वह उत्तर देने से हिचकिचा रही हो । फिर उसने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“फिर आपने यह कैसे सोच लिया कि मार्क रिचर्डसन ठाकुर साहब की हत्या करने की कोशिश कर रहा था ?”
“क्योंकि उसके अतिरिक्त किसी और को ठाकुर की हत्या से कोई फायदा पहुंचने वाला नहीं है । वही...”
सूसन एकाएक चुप हो गई ।
“तुम चले जाओ यहां से ।” - वह कठोर स्वर में बोली ।
“मैं ऐसे नहीं जाऊंगा, मैडम !” - सुनील जबरदस्ती कमरे में घुसता हुआ बोला - “मैं बहुत देर से आपसे बात करने की फिराक में हूं । जब तक आप मेरे कुछ सवालों का जवाब नहीं दे लेंगी, मैं यहां से नहीं जाऊंगा ।”
“मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊंगी ।”
सुनील ने द्वार को भीतर से बन्द कर दिया और बोला - “आल राइट आप मुझे कुछ मत बताइये । मैं आपको बताता हूं । आप केवल हां या न में जवाब दे दीजिए ।”
सूसन चुप रही ।
“मार्क रिचर्डसन आपका क्या लगता है ?”
सूसन ने उत्तर नहीं दिया । वह बेहद परेशान दिखाई दे रही थी ।
“वह आपको ब्लैकमेल कर रहा है ?”
सूसन चुप रही ।
“यूं चुप रहने से काम नहीं चलेगा, मैडम । आपके हस्पताल में ठाकुर साहब से बिना मिले रिवाल्वर लेकर यहां भागी चली आने से मेरे बहुत से संदेहों की पुष्टि हो गयी है । आपके इस एक्शन से मैं एक आधी बात छोड़ कर सारी कहानी भांप गया हूं ।”
“तुम वाकई मार्क रिचर्डसन को जानते हो ?”
“नहीं !”
“तुम यहां मार्क रिचर्डसन से मिलने आए हो ?”
“नहीं !”
“तुम्हें मालूम था वह यहां रहता है ?”
“नहीं ।”
“पिछली रात को तुम हम लोगों से मार्क रिचर्डसन के बारे में पूछ रहे थे ?”
“हां लेकिन तब मैंने मार्क रिचर्डसन का केवल नाम ही सुना था । मुझे यह मालूम नहीं था कि वह कौन है और कहां रहता है ?”
“तुम्हें अब मालूम है ?”
“क्या ?”
“कि वह कौन है ?”
“केवल इतना मालूम है कि वह किसी न किसी रूप में आप से जरूर सम्बन्धित है ।”
“तुम यहां कैसे पहुंचे ?”
“मुझे आशा थी कि आप यहां आई होंगी ।”
“लेकिन तुम्हें यहां का पता कैसे मालूम हुआ ?”
सुनील ने उसे बता दिया ।
“तुमने मेरा कमरा खोला ?”
“मैंने नहीं । रवि ने ।”
“तुम बहुत होशियार आदमी हो । मगर तुम यहां क्यों आए ?”
“मैं आपको मार्क रिचर्डसन की हत्या करने से रोकना चाहता हूं ।”
“तुम नहीं रोक सकते ।”
“हत्या बहुत जघन्य अपराध है । आप फांसी पर लटक जायेंगी ।”
“मुझे अपनी चिन्ता नहीं । मैंने अपना इन्तजाम भी सोच लिया है ।”
“क्या ?”
सूसन चुप रही ।
“आत्महत्या ?”
सूसन चुप रही ।
“आप स्वीकार करती हैं कि आप यहां मार्क रिचर्डसन की हत्या करने आई हैं ?”
“तुम कह रहे थे कि तुम सारी कहानी भांप गए हो । तुम क्या भांप गए हो ?”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर बोला - “संक्षेप में मैं यह भांप गया हूं कि मार्क रिचर्डसन आपके जीवन की कोई ऐसी बात जानता है जिसको आप प्रकट नहीं होने देना चाहती । परिणामस्वरूप वह आपको ब्लैकमेल कर रहा है । आपके सामने मार्क रिचर्डसन का मुंह बन्द करने के लिए उसे धन देने की समस्या थी । आप रुपया ठाकुर साहब से मांगना नहीं चाहती थी क्योंकि अगर आप उनसे लगातार बड़ी-बड़ी रकमें मांगती रहती और उनको खर्चे की कोई संतोषजनक वजह नहीं बताती तो ठाकुर साहब संदिग्ध हो उठते । परिणामस्वरूप आपको दस लाख रुपए की रकम के लिए इन्श्योर करवाये हुए जेवरों का ख्याल आया । आपने मार्क रिचर्डसन को एक-एक करके हीरों के जेवर सौंपने आरम्भ कर दिए । मार्क रिचर्डसन जेवरों को आगे माइकल को सौंप देता था । माइकल क्योंकि उस धन्धे में था इसलिए वह ज्यादा सहूलियत से असली हीरों की जगह नकली हीरे लगवा सकता था और इस बात को ध्यान रख सकता था कि काम संतोषजनक हो और किसी को किसी प्रकार के फ्राड का संदेह भी न हो । मार्क रिचर्डसन अगर यह काम माइकल की सहायता के बिना खुद करवाता तो शायद ठगा जाता । बहरहाल दस लाख रुपए की कीमत के जेवरों के हीरे मार्क रिचर्डसन की जेब में पहुंच गए जिन्हें वह माइकल की सहायता से पूरी कीमत पर बिकवा सकता था या शायद वह उनमें से कुछ हीरे पहले ही बिकवा भी चुका हो लेकिन फिर एक गड़बड़ हो गई । सरिता अपना नैकलेस खो बैठी । वह नैकलेस हीरों की हेरफेर की आखिरी आइटम थी । सरिता को जब मैं घर लौटाकर आया था तभी आपको नैकलेस गुम हो जाने की जानकारी हो गयी होगी । आप घबरा गई कि उस नैकलेस की वजह से कहीं पोल न खुल जाये । आपने फोरन मार्क रिचर्डसन को फोन किया और उसे यह भी बताया कि सरिता को घर लेकर मैं आया था । परिणामस्वरूप मार्क रिचर्डसन के साथी माइकल और बिहारी मेरे फ्लैट में मुझ पर चढ दौड़े । लेकिन नैकलेस मेरे पास नहीं था । मुझे नैकलेस की जानकारी तक नहीं थी ।”
सुनील एक क्षण रुका और फिर बोला - “इस सन्दर्भ में मैं एक बात कहना भूल गया । उस नकली हीरों वाले नैकलेस का एकाएक गुम हो जाना इसलिए भी खतरनाक था क्योंकि आप लोगों ने उस गड़बड़ को कवर करने के लिए जरूर कोई शानदार स्कीम बनाई हुई होगी ।”
“कैसी स्कीम ?”
“जैसे अगर यह जाहिर किया जाता कि हरनामसिंह पैलेस में चोरी हो गई और चोर दस लाख रुपये के असली हीरों के जेवर लेकर भाग गये तो जेवरों की कीमत बड़ी आसानी से बीमा कम्पनी से वसूल की जा सकती थी । इस प्रकार यह कभी भी मालूम नहीं हो पाता कि वास्तव में ‘चोरी गये’ जेवर नकली हीरों के थे । मार्क रिचर्डसन और उनके साथी पेशेवर अपराधी थे । वे आपकी सहायता से बड़ी आसानी से ऐसी स्टेज सैट कर सकते थे कि तफ्तीश करने पर पुलिस को ऐसा लगे कि वाकई हरनामसिंह पैलेस में चोरी हुई थी जबकि वास्तव में आपने सारे जेवर उठाकर चुपचाप मार्क रिचर्डसन को सौंप देने थे । मार्क रिचर्डसन माइकल की सहायता से उन जेवरों के नकली हीरे निकालकर समुद्र में फेंक देता और जेवरों को पिघला कर निकला सोना माइकल बाजार में बड़ी आसानी बेच देता ।”
“तुम बहुत समझदार आदमी हो ।” - सूसन बोली - “तुम्हारा अनुमान एकदम सही है लेकिन सारी गड़बड़ इसलिए नहीं हुई क्योंकि सरिता ने ऐन मौके पर नैकलेस खो दिया । सारी गड़बड़ इसलिए हुई क्योंकि बीच में कहीं से तुम टपक पड़े ।”
सुनील मुस्कराया ।
“तुम्हें मुझ पर शक कैसे हुआ ?” - सूसन ने पूछा ।
“हर बात आप ही की ओर संकेत करती थी मैडम ।” - सुनील बोला - “जब मैं सरिता को नशे की हालत में हरनामसिंह पैलेस छोड़ने गया था तो सरिता को आपने ही सम्भाला था । आपने ही उसके कपड़े वगैरह उतारकर उसे पलंग पर पहुंचाया था । दूसरी औरत क्या पहने हुए है इस मामले में पुरुषों के मुकाबले में औरतों की निगाह ज्यादा तेज होती है । अतः आप ही को सबसे पहले यह बात मालूम हुई होगी कि सरिता जो नैकलेस पहन कर गई थी, लौटने पर वह उसके गले में नहीं था । आप ही ने सरिता को राय दी थी कि वह नैकलेस की चोरी की रिपोर्ट पुलिस को न करे और न ही इस विषय में ठाकुर साहब को कुछ बताये । आपने ही सरिता को मेरे पास आने की राय दी थी । और फिर सरिता ने भी यह कहा था कि नैकलेस गुम हो जाने की जानकारी घर में आपके अतिरिक्त किसी को नहीं थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि हरनामसिंह पैलेस में मार्क रिचर्डसन को केवल आप जानती थी । रवि ने मार्क रिचर्डसन को आपको टेलीफोन पर डार्लिंग कहते हुए सुना था और उसने यह भी कहा था कि आप उसे भूली नहीं होंगी । इससे साफ जाहिर होता है कि मार्क रिचर्डसन से आपकी बड़ी गहरी और बड़ी पुरानी जानकारी है । इसीलिए कल रात को जब मैंने हरनामसिंह पैलेस में सब लोगों के सामने मार्क रिचर्डसन के बारे में पूछा था तो आप बुरी तरह चौंकी थीं क्योंकि आपकी निगाह में मार्क रिचर्डसन के बारे में कोई भी नहीं जानता था । माइकल ने कहा था कि सारे बखेड़े में सबसे ज्यादा लाभ मार्क रिचर्डसन का था । मार्क रिचर्डसन और उसके साथी गफूर में से ही किसी ने प्रिंस होटल के मैनेजर गजाधर की हत्या की थी और हत्या करने की नौबत इसलिए आई थी क्योंकि वे गजाधर के कमरे में नैकलेस तलाश कर रहे थे और ऊपर से गजाधर आ गया था । और अन्त में जब आप रिवाल्वर हाथ में लेकर मार्क रिचर्डसन के घर में बैठी उसका इन्तजार कर रही हैं ताकि उसके आते ही आप उसे शूट कर दें । क्या आपको ये सारी बातें रहस्य के एक ही धागे से बन्धी नहीं मालूम होती ।”
“तुम ठीक कह रहे हो ।” - सूसन धीरे से बोली ।
“इस सारे सिलसिले में केवल एक बात है जो मुझे नहीं मालूम ।” - सुनील बोला ।
“कौन सी बात ?”
“मार्क रिचर्डसन कौन है ?”
सूसन ने उत्तर नहीं दिया ।
“वैसे मेरा अनुमान है कि मार्क रिचर्डसन आपका कोई उस जमाने का प्रेमी है जब आप बम्बई की थ्री स्टार नाइट क्लब में कैब्रे किया करती थीं । शायद उसके पास आपके खिलाफ कुछ ऐसे सुबूत हैं जो आपके और ठाकुर साहब के सम्बन्धों को बहुत ज्यादा बिगाड़ सकते हैं ।”
सूसन कुछ क्षण चुप रही और यूं बोली जैसे किसी की मृत्यु की घोषणा कर रही हो - “मार्क रिचर्डसन मेरा पति है ।”
“जी !” - सुनील बुरी तरह चौंका ।
“मार्क रिचर्डसन मेरा पति है ।” - सूसन बोली - “अगर वह अपनी जुबान खोल दे तो मुझे ठाकुर साहब के सामने तो बुरी तरह जलील होना ही पड़ेगा । साथ ही बिगेमी [एक समय में दो शादियों] के इल्जाम में मुझे शायद जेल की हवा खानी पड़े ।”
“लेकिन... लेकिन यह सम्भव कैसे हुआ ? आपने एक पति के होते हुए दूसरे आदमी से शादी कैसे कर ली ? और फिर आप तो कहती थीं कि आपने शादी से पहले ठाकुर साहब को अपने बारे में सब कुछ बता दिया था ।”
“मुझे धोखा दिया गया था । मैं मार्क रिचर्डसन के बहुत बड़े फ्राड की शिकार हो गई थी ।”
“क्या हुआ था ?”
“बम्बई की थ्री स्टार नाइट क्लब में जहां मैं कैब्रे नृत्य करती थी, वहां किसी को मालूम नहीं था कि मैं विवाहित हूं । यहां तक कि क्लब के मैनेजर ने भी मुझे एक कमसिन अविवाहित युवती समझकर मुझ से कान्ट्रेक्ट किया था । पेशे के तौर पर मेरा भी हित इसी में था कि किसी को मालूम न हो कि मैं विवाहिता हूं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि कैब्रे डांस देखने आने वाले लोग अधिकतर वे होते हैं जो एक कैब्रे डांसर की कल्पना एक बेहद सैक्सी, मर्दों के संसर्ग को लालायित और बड़ी आसानी से हासिल हो जाने वाली लड़की के रूप में करते हैं । उनकी निगाह में हर कैब्रे डांसर एक ढकी छुपी और अपने शरीर के लिए नार्मल से ऊंची कीमत हासिल करने वाली वेश्या होती है । जब ऐसे लोगों को यह मालूम होता है कि जिस कैब्रे डांसर का नृत्य वे देख रहे हैं वह स्थायी रूप से किसी ऐसे व्यक्ति की सम्पत्ति बनी हुई है जो कभी भी किसी भी हद तक उसका भोग कर सकता है तो उसकी रसिक भावनाओं को बड़ी ठेस पहुंचती है और फिर वे लोग उस कैब्रे डांसर की परफारमेंस में आनन्द नहीं ले पाते । उन्हें वह कैब्रे डांसर ऐसी जायदाद मालूम होती है जिस पर किसी और आदमी के स्थायी स्वामित्व का बोर्ड लगा हुआ हो । ऐसी कैब्रे डांसर दर्शकों का मनोरंजन नहीं कर पाती और फिर कैब्रे डांसर के रूप में उसका कोई कैरियर नहीं रह जाता । यही वजह थी कि मैंने कभी किसी को खबर नहीं होने दी थी कि मैं विवाहित हूं और मार्क रिचर्डसन भी इस मामले में शतप्रतिशत सावधानी बरतता था ।”
“आप वह कुछ नहीं करती थीं जिसकी एक कैब्रे डांसर से अपेक्षा की जाती है ?”
“पेशा ?”
सुनील चुप रहा ।
“बाई जीसस नहीं !” - सूसन अपने गले में लटके क्रास को छूती हुई बोली - “मैं कैब्रे डान्सर थी लेकिन वेश्या नहीं थी । लोग हर कैब्रे डांसर को हाई प्राइस्ड वेश्या समझते हैं लेकिन मैं ऐसी नहीं थी ।”
“अक्सर कैब्रे डान्सर ऐसी ही होती हैं ।”
“होती हैं लेकिन मैं ऐसी नहीं थी ।” - सूसन दृढ स्वर से बोली ।
“आप निभा लेती थीं ?”
“निभा लेती थी । मिस्टर, मैंने कैब्रे डांसिंग को एक पेशे के तौर पर ग्रहण किया था । वेश्यावृत्ति के लिए ऊंची क्लायन्टेल हासिल करने के लिए आड़ के रूप में नहीं । और यह मेरा दुर्भाग्य था कि मेरी शादी मार्क रिचर्डसन नाम के एक ऐसे निकम्मे आदमी से हुई जो खुद हाथ पांव हिलाकर अपना पेट नहीं भर सकता था । कैब्रे डांसिंग मेरा शौक नहीं मेरी मजबूरी थी, गृहस्थी की गाड़ी को आगे बढाने के लिए रुपया नाम के जिस ईन्धन की जरूरत होती है, उसको हासिल करने का साधन था ।”
“खैर, फिर ?”
“फिर मेरी मुलाकात ठाकुर हरनामसिंह से हुई । ठाकुर साहब मुझ पर आसक्त हो गए और उन्होंने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया । मैंने इन्कार कर दिया । उनसे शादी कर पाने का सवाल ही पैदा नहीं होता था क्योंकि मैं पहले ही विवाहित थी । मैं यह बात उन्हें इसलिए नहीं बताना चाहती थी क्योंकि पब्लिसिटी का खतरा था । ठाकुर साहब मेरा इन्कार सुनकर चुप तो हो गये लेकिन वे मुझे अपने मन से नहीं निकाल पाए । वे मुझे एक सभ्रांत ऐंग्लो इन्डियन परिवार की एक सच्चरित्र लेकिन गरीब लड़की समझते थे और मेरे इन्कार की वजह यह समझते थे कि शायद मैं एक प्रौढ व्यक्ति से विवाह करने को तैयार नहीं हूं ।”
“फिर ?”
“फिर एक अप्रतयाशित घटना हो गई ।”
“क्या हुआ ?”
“मेरे पति की मृत्यु हो गई ।”
“क्या ?” - सुनील फिर चौंका - “यानी कि... यानी कि मार्क रिचर्डसन मर गया ।”
“हां ?”
“लेकिन... लेकिन... मार्क रिचर्डसन तो जिन्दा है ! क्या यह कोई बहूरूपिया है ?”
“नहीं यह वही मार्क रिचर्डसन है जो मेरा पति था और जिसको मैंने अपनी आंखों के सामने मरता और दफनाया जाता देखा था ।”
“लेकिन यह कैसे सम्भव है ?”
“यही तो वह फ्राड है जिसका मैं शिकार हो गई थी । यही तो धोखा है जिसका मैं जिक्र कर रही थी ।”
“क्या हुआ था ?”
“उन दिनों मार्क रिचर्डसन ने कोलाबा में एक मकान तलाश किया था । तुम्हें यह बात सुनने में बड़ी जलील लगेगी लेकिन यह हकीकत है कि उस नए मकान में मार्क रिचर्डसन पास-पड़ोस में मुझे अपनी बहन बताया करता था । मार्क रिचर्डसन दिल का मरीज था । हमें उस मकान में आये हुए तीन दिन ही हुए थे कि उसे दिल का दौरा पड़ गया । उसका एक दोस्त डाक्टर को बुलाकर लाया । डाक्टर आया । उसने बताया कि मार्क रिचर्डसन मर गया था । मार्क रिचर्डसन के दोस्त ने ही उसके तीन चार अन्य दोस्तों को बुलाया । उन्होंने मार्क रिचर्डसन को ताबूत में बन्द किया और रात को ही उसे कब्रिस्तान ले गये । मैं कब्रिस्तान में साथ गई थी और मेरे सामने ही मार्क रिचर्डसन को दफनाया गया था ।”
“फिर ?”
“मार्क रिचर्डसन के साथ मुझे कोई ऐसा लगाव तो था नहीं कि मैं उसकी मौत के बाद उसके गम में पागल हो जाती । कुछ दिनों बाद मैं उसे भूल गई । फिर ठाकुर साहब ने एक बार फिर मेरे सामने शादी का जिक्र किया । मुझे उस समय ठाकुर साहब का प्रस्ताव स्वीकार कर लेने में कोई हर्ज दिखाई नहीं दिया । ठाकुर साहब की सहायता से मैं कैब्रे डांसिंग के गन्दे धन्धे से निकल सकती थी और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकती थी । शादी से पहले मैंने ठाकुर साहब को अपने बारे में सब कुछ बता दिया । और यह मेरी भारी मूर्खता थी कि मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि मेरी पहले शादी हो चुकी थी । मुझे विश्वास है कि अगर ठाकुर को मैं मार्क रिचर्डसन के बारे में बता देती तो वे मुझे अस्वीकार नहीं कर देते । लेकिन उस समय मुझे वह छोटा सा झूठ बोलने में कोई हर्ज दिखाई नहीं दिया था । उस समय तो मैं सोचती थी कि जो मर गया है वह खुद तो अपने बारे में कुछ कहने आयेगा नहीं और जो दो चार लोग मुझे मार्क रिचर्डसन की जानते थे वे हमें भाई बहन समझते थे । उस समय मुझे यह थोड़े ही मालूम था कि मुर्दा जिन्दा हो उठेगा और मेरी जिन्दगी में इतना बड़ा तूफान पैदा कर देगा ।”
“फिर ?”
“फिर एक दिन हरनामसिंह पैलेस में मेरे टेलीफोन की घन्टी बजी । मैंने रिसीवर उठाया और दूसरी ओर की आवाज मेरे कानों में पड़ते ही मेरे प्राण सूख गये ।”
“दूसरी ओर से मार्क रिचर्डसन बोल रहा था ?”
“हां... मैंने वह आवाज फौरन पहचान ली थी लेकिन फिर भी मुझे विश्वास नहीं हुआ कि मार्क रिचर्डसन जिन्दा हो सकता था । मैंने इसे किसी की शरारत समझी और फोन बन्द कर दिया । अगले कुछ दिन मैंने बड़ी टैन्शन में गुजारे । मैं समझती थी कि उस आदमी का फोन फिर आएगा लेकिन फोन नहीं आया ! धीरे-धीरे मुझे विश्वास हो गया कि कोई मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहा था लेकिन अपनी चाल चलती न देखकर चुप हो गया था । लेकिन मेरा यह विश्वास अधिक दिन नहीं टिक सका । टेलीफोन वाली घटना के एक सप्ताह बाद मार्क रिचर्डसन सीधा हरनामसिंह पैलेस में ही आ धमका ! एक बार तो उसे जीता जागता अपने सामने देखकर मेरे प्राण ही निकल गये ।”
“फिर ?”
“मैंने उसे बड़ी मुश्किल से वहां से टाला । उसने मुझे यहां का पता दिया और मुझसे कहा कि अगर मैं अगले दिन उससे यहां मिलने नहीं आई तो वह दुबारा हरनामसिंह पैलेस पहुंच जाएगा और इस बार वहां आने के लिए ऐसा समय चुनेगा जब ठाकुर साहब भी पैलेस में मौजूद हों ।”
“आप यहां आईं ?”
“बिल्कुल आयी । सिर के बल चलकर आयी । कैसे न आती ?”
“फिर क्या हुआ ?”
“उसने मुझे चटखारे ले लेकर बताया कि कैसे मैं उसकी चालाकी का शिकार बन गई थी । उसके कथनानुसार उसे यह बात मालूम थी कि ठाकुर हरनामसिंह मुझ पर रीझ गये हैं और उन्होंने मुझे प्रपोज भी किया है । उसे यह भी मालूम था कि अगर वह न होता तो मैं फौरन ठाकुर साहब का प्रस्ताव स्वीकार कर लेती जैसा कि मैंने वास्तव में किया भी । फिर उसने अपने कुछ मित्रों की सहायता से मेरा रास्ता साफ कर देने के लिए अपनी मौत का नाटक रचा । उसने बड़े चटखारे ले लेकर बताया कि कैसे उसके एक मित्र ने डाक्टर का रूप धर कर मुझे मृत घोषित किया था और कैसे जब उसे ताबूत में लिटाया गया था तो ताबूत में एक आक्सीजन का सिलेण्डर और गैस मास्क भी रख दिया गया था । कैसे कब्र खुद चुकने के बाद आखिरी क्षण पर भी मुझे उसकी ताबूत में पड़ी ‘लाश’ की सूरत दिखाई गई थी । फिर ताबूत का मुंह बन्द कर दिया गया था । ताबूत के बन्द होते ही उसने अपने चेहरे पर गैस मास्क चढा लिया था । फिर ताबूत को मेरे सामने कब्र में दफना दिया गया था और मेरे वहां से विदा होते ही कब्र को दोबारा खोदकर ताबूत बाहर निकाल लिया गया था । फिर उसने कुछ महीने इन्तजार किया था और फिर मेरा खून निचोड़ने के लिए राजनगर पहुंच गया था ।”
“इन्तजार क्यों ?”
“ताकि ठाकुर हरनामसिंह के हाउसहोल्ड में मेरे पांव मजबूत हो जायें और मैं इस स्थिति में पहुंच जाऊं कि अगर मुझे ब्लैकमेल किया जाए तो उसे कुछ हासिल हो सके ।”
“आई सी ।”
“फिर मार्क रिचर्डसन मुझ पर चढ दौड़ा । अब स्थिति यह है कि मैं दो पतियों से विधिवत ब्याही हुई पत्नी हूं और मेरा पहला पति मुझे ब्लैकमेल कर रहा है । अगर मैं ब्लैकमेलर के सामने न झुकती तो सीधी जेल जाती । मार्क रिचर्डसन की और मेरी कोर्ट में शादी हुई थी, यहां पहली बार आने पर जो पहली चीज उसने मुझे दिखाई वह हमारी शादी का सर्टिफिकेट था । उस शादी के सार्टिफिकेट की एक फोटोस्टेट कापी मार्क रिचर्डसन हर समय अपने पास में रखता था । मुझसे मुलाकात होते ही बड़े व्यंग्यपूर्ण ढंग से सबसे पहले मुझे वह फोटोस्टेट कापी दिखाया करता था और फिर बात करता था ।”
“फिर क्या हुआ ?”
“उसने मुझसे रुपया मांगा । मैंने कहा कि मेरे पास रुपया नहीं है और अगर मैंने ठाकुर साहब से रुपया मांगा तो वे संदिग्ध हो उठेंगे । वह बोला कि यह उसका सिर दर्द नहीं है । मैं कैसे भी हो उसके लिए रुपया हासिल करूं । मैंने उससे एक सप्ताह का समय मांगा । उतने समय में मैंने इस सम्भावना पर भी विचार किया कि अगर मार्क रिचर्डसन अपनी जुबान खोल दे तो क्या मैं यह सिद्ध कर सकूंगी मुझे धोखा दिया गया है । इस सन्दर्भ में मैंने एक चक्कर बम्बई का लगाया । मैं अपने कोलाबा वाले पुराने मकान में गई । वहां मुझे साक्षात अपने सामने खड़ी देखकर किसी को ढंग से मेरी याद नहीं आई, मार्क रिचर्डसन को तो कोई क्या याद रख पाता और वैसे भी उस मकान में मैं मार्क रिचर्डसन के साथ केवल तीन दिन तो रही थी । शायद यह भी मार्क रिचर्डासन की स्कीम का एक अंग था और तीन दिनों में उसने शायद इस बात की भी सावधानी बरती थी कि लोगों को उसका आकार ही दिखाई दे, ढंग से उसकी सूरत दिखाई न दे ।”
“लेकिन कोई तो होगा जिसे मार्क रिचर्डसन की याद होगी ?”
“मुझे कोई नहीं मिला । मैंने उसके मित्रों को भी तलाश करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सकी । केवल एक आदमी था जिसे मार्क रिचर्डसन की थोड़ी सी याद थी लेकिन मार्क रिचर्डसन वहां भी अपनी करामात दिखा गया था । वह मार्क रिचर्डसन को जार्ज मिलीसैंट के नाम से जानता था और उसे मेरा भाई समझता था ।”
“कब्रिस्तान में मार्क रिचर्डसन के दफनाए जाने रिकार्ड होगा ?”
“मैं कब्रिस्तान भी गई थी । कब्रिस्तान के खाते में ऐसा कोई रिकार्ड नहीं था कि मार्क रिचर्डसन नाम का कोई आदमी कभी वहां दफनाया गया था । मिस्टर, मुझे एक बड़ी सावधानी से तैयार की गई स्कीम के अनुसार धोखा दिया गया था ।”
“फिर आपने क्या किया ?”
“मैं निराश होकर वापिस लौट आई । मैं दोबारा मार्क रिचर्डसन से मिली । मैंने उसे बताया कि मैं रुपए का इन्तजाम नहीं कर सकती । फिर उसी ने मुझे सुझाया कि रुपये का इन्तजाम कैसे हो सकता है ? उस समय मैं उन्हीं जेवरों में से हीरों का ब्रेसलैट पहने हुए थी जिनका कि दस लाख रुपये का बीमा हुआ है । उसी ने मुझे यह सुझाव दिया कि वह ब्रेसलैट मैं उसे सौंप दूं । वह उसके असली हीरे निकलवाकर अपने पास रख लेगा और उसमें नकली हीरे जड़वाकर ब्रेसलैट उसे वापिस कर देगा । नकल इतनी शानदार होगी कि किसी को कानों कान खबर नहीं होगी । मेरे पास उसकी बात स्वीकार कर लेने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था । मैंने उसे ब्रेसलैट दे दिया । चार दिन बाद उसने मुझे ब्रेसलैट वापिस कर दिया । नकल वाकई बहुत शानदार थी । खुद मुझे नहीं मालूम हो सका था कि वे असली नहीं थे ।”
“और मिस्टर” - सूसन गहरी सांस लेकर बोली - “एक बार यह सिलसिला आरम्भ होने की देर थी कि फिर यह तभी खत्म हुआ जब दस लाख रुपये के जेवरों का आखिरी जेवर भी मार्क रिचर्डसन के पास हो आया । मैं मूर्ख थी जो यह समझ बैठी थी कि पहली बार के बाद ही मैं मार्क रिचर्डसन से मुक्ति प्राप्त कर लूंगी । लेकिन... लेकिन वह तो मुझसे जोंक की तरह चिपका रहा ।”
“फिर ?”
“बाकी कहानी तुम अपनी जुबान से कह ही चुके हो । जब उन हीरों की गड़बड़ की स्कीम का आखिरी चरण कार्यरूप में परिणित करना रह गया था तो सरिता अपना नैकलेस खो आई । तुम्हारा चोरी वाला अनुमान भी बिल्कुल ठीक था, स्कीम का आखिरी चरण यही था कि यह प्रकट किया जाएगा हरनामसिंह पैलेस में चोरी हो गई और चोर सारे जेवर लेकर भाग गए । फिर ठाकुर साहब जेवरों की कीमत को इन्श्योरेंस से क्लेम कर सकते थे ।”
“हूं ।”
“मिस्टर... मैंने मार्क रिचर्डसन की सारी ज्यादतियां सहन कर ली थीं । लेकिन ठाकुर साहब पर गोली चलाकर उसने खुद अपनी मौत को निमन्त्रण दिया है । अब मैं उसे छोड़ूंगी नहीं ।”
“मार्क रिचर्डसन को ठाकुर साहब की हत्या करने से क्या लाभ पहुंचने वाला था ?”
“मैं ठाकुर साहब की मौत के बाद उसकी आधी सम्पत्ति की स्वामिनी बनने वाली थी, ठाकुर साहब के न रहने पर मैं स्वतन्त्र रूप से पैसे वाली औरत बन जाती । फिर मार्क रिचर्डसन का मुझको ब्लैकमेल करके मुझसे रुपया हासिल करना और भी आसान हो जाता । मिस्टर उसके यह जाहिर करते ही कि वह मेरा पहला पति है, मैं न केवल ठाकुर साहब की सम्पत्ति से बेदखल हो जाती बल्कि बिगेमी और फ्राड के इल्जाम में गिरफ्तार होकर जेल भी जाती । पहला पति जिन्दा होने के कारण मेरी ठाकुर साहब से शादी नाजायज समझी जाती और जब मैं ठाकुर साहब की पत्नी ही न रहती तो भला मैं उनकी सम्पत्ति की अधिकारणी कैसे बन पाती ।”
“लेकिन आपको ब्लैकमेल करके आपसे लगभग दस लाख रुपए के हीरे हासिल कर चुकने के बाद भला मार्क रिचर्डसन ने ठाकुर साहब की हत्या करने का खतरा क्यों उठाया ? अगर वह पकड़ा जाता तो सीधा फांसी के तख्ते पर पहुंचता । उसने इतना रिस्क क्यों लिया । दस लाख रुपया बहुत बड़ी रकम होती है और मार्क रिचर्डसन जैसे आदमी के लिए तो वह बहुत बड़ी रकम है । इतना रुपया आसानी से हासिल कर चुकने के बाद किसी का खून करने का खतरा उठाना युक्तिसंगत नहीं लगता ।”
“यह बात तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम मार्क रिचर्डसन को जानते नहीं । वह बेहद लालची आदमी है और ज्यों-ज्यों धन हासिल होता जा रहा था, उसका लालच बढता ही जा रहा था । किसी मामूली आदमी को ज्यादा धन-दौलत हासिल हो जाए तो भी उसका दिमाग खराब हो जाता है ।”
“शायद । या कोई और बात हो ।”
“और बात क्या हो सकती है ?”
“आप यहां कैसे पहुंची ?”
“क्या मतलब ?”
“मेरा मतलब है कि क्या आपके पास इस काटेज की चाबी है ?”
“चाबी मेरे पास नहीं है लेकिन मुझे मालूम है कि चाबी कहां होती है । पिछले कम्पाउन्ड में एक गुलाब के फूलों का गमला है, एक डुप्लीकेट चाबी उसमें होती है । मुझे चाबी के बारे में खुद मार्क रिचर्डसन ने बताया था ताकि मैं उसकी अनुपस्थिति में आऊं तो मैं काटेज का दरवाजा खोलकर भीतर बैठ सकूं ।”
“टेलीफोन डायरेक्ट्री के अनुसार तो यहां कोई डाक्टर शंकरलाल रहते हैं ।”
“डाक्टर शंकरलाल अब यहां नहीं रहते । पहले रहते थे । मार्क रिचर्डसन ने उन्हीं से यह काटेज किराये पर लिया है । उसी के अनुरोध पर डाक्टर शंकरलाल ने यहां का टेलीफोन कटवाया नहीं था । किराये के साथ टेलीफोन का बिल भी मार्क रिचर्डसन देता है ।”
“आप मार्क रिचर्डसन की हत्या खुद क्यों करना चाहती हैं ? आप पुलिस को अपना सन्देह व्यक्त क्यों नहीं करतीं कि शायद ठाकुर साहब की हत्या का प्रयत्न मार्क रिचर्डसन ने किया है ।”
“लेकिन मैं मार्क रिचर्डसन को खुद अपने हाथों से शूट करना चाहती हूं । इसी से मुझे सन्तुष्टि मिलेगी और यही तरीका है जिससे ठाकुर साहब को वास्तविकता का आभास तक नहीं मिलेगा । पुलिस को रिपोर्ट करने से तो सारी पोल ही खुल जाएगी ।”
“आपने सोचा है कि मार्क रिचर्डसन की मौत के बाद आपका अन्जाम क्या होगा ?”
“सोच लिया है ।”
“आप आत्महत्या करेंगी ?”
सूसन चुप रही ।
“मैं आपको ऐसा नहीं करने दूंगा ।”
“तुम मुझे कैसे रोकोगे ?”
“यह रिवाल्वर मुझे सौंप दीजिए ।”
सूसन के होंठों पर एक उदास मुस्कराहट छा गई ।
“मैं अभी जाकर ठाकुर साहब को और पुलिस को सूचना देता हूं ।” - और सुनील ने उठने का उपक्रम किया ।
“तुम अपने स्थान से हिलोगे भी नहीं ।” - सूसन बर्फ जैसे ठंडे स्वर में बोली । उसके हाथ में थमी रिवाल्वर की नाल दोबारा सुनील की ओर तन गई ।
सुनील के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई । सूसन उसे कुछ भी कर गुजरने के लिए पूर्णतया दृढप्रतिज्ञ लगी ।
“शायद मार्क रिचर्डसन ने ठाकुर का खून न किया हो ।” - थोड़ी देर में सुनील बोला - “ऐसी सूरत में एक निर्दोष आदमी आपके हाथों मारा जाएगा ।”
“मार्क रिचर्डसन निर्दोष आदमी है, यह वहम अपने मन से निकाल दो ।” - सूसन बोली - “मार्क रिचर्डसन को तुम नहीं जानते उसे मैं जानती हूं ।”
“मैंने माइकल को कहते सुना था कि मार्क रिचर्डसन रिवाल्वर नहीं रखता । रिवाल्वर के नाम से ही उसका दम निकलने लगता है ।”
“वक्त-वक्त की बात है ।” - सूसन दार्शनिकतापूर्ण स्वर में बोली - “मानव स्वभाव बड़ा परिवर्तनशील होता है ।”
“मैडम, क्या कोई ऐसा तरीका हो सकता है कि आप जो करना चाहती हैं, उसे करने से मैं आपको रोक सकूं ?”
सूसन ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“अगर मार्क रिचर्डसन न आया तो ?”
“वह जरूर आएगा ।” - सूसन दृढ स्वर से बोली - “यह उसका घर है ।”
“वह आपकी बाहर खड़ी शेवरलेट गाड़ी को पहचानता है ?”
सूसन ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“आपकी शेवरलेट गाड़ी बाहर ठीक काटेज के सामने खड़ी है । अगर ठाकुर साहब पर मार्क रिचर्डसन ने गोली चलाई है तो क्या वह आपकी गाड़ी अपने काटेज के सामने खड़ी देखकर संदिग्ध नहीं हो उठेगा ।”
“हो उठे, फिर क्या है ?”
“फिर यह है कि या तो वह इस प्रकार के खतरे से” - सुनील उसके हाथ में थमे रिवाल्वर की ओर संकेत करता हुआ बोला - “सावधान होकर भीतर घुसेगा और या फिर भीतर घुसेगा ही नहीं और सम्भव यह भी है कि वह यहां आया भी हो और चुपचाप खिसक गया हो ।”
सूसन के चेहरे पर चिन्ता के लक्षण दिखाई देने लगे ।
“मैं आपकी गाड़ी को कहीं और खड़ी कर आता हूं ।” - और सुनील ने दोबारा उठने का प्रयत्न किया ।
“नो ।” - सूसन कठोर स्वर में बोली - “डोंट मूव ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया ।
“आपने तो मुझे गिरफ्तार कर लिया ।” - वह बोला ।
सूसन चुप रही ।
“जब मैं यहां आया था तब तो आप मुझे यहां से खिसक जाने की राय दे रही थीं ।”
“तब दे रही थी, अब नहीं दे रही हूं ।”
“सुनिए, और नहीं तो कम से कम बत्ती तो बुझा दीजिए ।”
सूसन हिचकिचाई और फिर बोली - “तुम कोई शरारत मत करना वर्ना खामखाह जान से हाथ धो बैठोगे ।”
“नहीं करूंगा ।” - सुनील शराफत से बोला ।
सूसन ने बिजली का स्विच ऑफ कर दिया और वापिस अपने स्थान पर आ बैठी । शीशे लगी खिड़कियों में से बाहर की पोल लाइट का मद्धिम सा प्रकाश कमरे में पहुंच रहा था । सूसन एक बिल्ली जैसी सावधानी से सुनील पर दृष्टि जमाए हुए थी ।
लगभग आधा घन्टा यूं ही गुजर गया ।
फिर एकाएक बाहर से लकड़ी का फाटक हटाये जाने की आवाज आई ।
सूसन एकदम तन कर बैठ गई, रिवाल्वर के ट्रिगर पर उसकी उंगलियां कस गयीं ।
बाहर किसी के कदमों के आहट सुनाई दी । कोई बरामदे में आकर रुका । ताले में चाबी घूमने की आवाज सुनाई दी और फिर द्वार खुल गया ।
सुनील का दिल जोरों से धड़कने लगा ।
एक आकृति ने भीतर कदम रखा ।
उसी क्षण सूसन ने अपना खाली हाथ बढा कर बिजली का स्विच ऑन कर दिया ।
कमरे में द्वार के समीप खड़ी आकृति एकदम चिहुंकी और फिर तेजी से उसका हाथ कोट की जेब की ओर बढा ।
“खबरदार !” - सूसन गर्ज कर बोली ।
सुनील ने देखा, द्वार के समीप वही दुबला-पतला आदमी खड़ा था जो तब रौनक बाजार में उससे आ टकराया था जब वह मार्क रिचर्डसन का पीछा करने की कोशिश कर रहा था ।
“कौन हो तुम ?” - सूसन ने डपट कर पूछा ।
दुबले-पतले आदमी ने उत्तर नहीं दिया । उसके चेहरे पर आश्चर्य और उलझन के भाव प्रकट हो रहे थे ।
“यह मार्क रिचर्डसन का साथी है । मेरे हिसाब से इसका नाम गफूर होना चाहिए ।” - सुनील बोला - “तुम्हारा नाम गफूर है ?”
उस आदमी ने उत्तर नहीं दिया ।
“तुम मुझे पहचानते हो ?” - सुनील बोला - “रौनक बाजार में तुम्हारी वजह से मार्क रिचर्डसन मेरे हाथ से निकल गया था ।”
“मार्क रिचर्डसन कहां है ?” - सूसन ने प्रश्न किया ।
“मुझे नहीं मालूम ।” - वह आदमी कठिन स्वर में बोला ।
“झूठ मत बोलो ।”
“बाई गाड, मुझे नहीं मालूम ।”
“मैडम !” - एकाएक सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “मार्क रिचर्डसन या तो मर चुका है या फिर बुरी तरह घायल अवस्था में कहीं पड़ा है ।”
“क्या मतलब ?” - सूसन चौंक कर बोली ।
“परसों दोपहर के बाद किसी समय मार्क रिचर्डसन और यह आदमी प्रिंस होटल में मैनेजर गजाधर के कमरे में घुसे थे । वहां इसने या मार्क रिचर्डसन ने गजाधर को शूट कर दिया था । मरने से पहले गजाधर ने भी अपनी रिवाल्वर से एक फायर किया था और गोली इन दोनों में से किसी एक को लगी थी । अब क्योंकि यह आदमी अच्छा खासा तन्दुरुस्त सामने खड़ा दिखाई दे रहा है इसलिए साफ जाहिर है कि गोली का शिकार मार्क रिचर्डसन हुआ था । यह आदमी मार्क रिचर्डसन को बुरी तरह घायलावस्था में प्रिंस होटल से निकाल कर लाया था । ज्यादा सम्भावना इसी बात की है कि मार्क रिचर्डसन मर चुका है क्योंकि माइकल के कथनानुसार परसों शाम से ही ये दोनों गायब थे और फिर मार्क...”
“मार्क रिचर्डसन तुम्हारे पीछे खड़ा है ।” - वह आदमी भावहीन स्वर में बोला ।
सुनील और सूसन दोनों ने एकदम चिहुंक कर पीछे देखा ।
उसी क्षण उस आदमी ने बिजली की फुर्ती से अपने आपको फर्श पर गिरा दिया । अगले ही क्षण उसके हाथ में एक रिवाल्वर दिखाई दे रही थी ।
“सूसन !” - सुनील जोर से चिल्लाया, उसने मेज पर पड़ी भारी ऐश ट्रे को पूरी शक्ति से उस आदमी पर खींच मारा ।
उसी क्षण उस आदमी ने रिवाल्वर का ट्रिगर दबाया ।
ऐश ट्रे उसके माथे से जाकर टकराई और उसी वजह से उसका निशाना चूक गया । सूसन बाल-बाल बची ।
तब तक सूसन सम्भल चुकी थी । उसकी रिवाल्वर ने आग उगली । एक शोला सा लपका । उस आदमी के गले से एक हृदय विदारक चीख निकली और वह फर्श पर ढेर हो गया ।
सूसन पागलों की तरह सुनील पर झपटी । अपने लम्बे नाखूनों से उसने सुनील का मुंह नोच लिया फिर वह सुनील के रिवाल्वर वाले हाथ से लिपट गई ।
बड़ी कठिनाई से सुनील ने उत्तेजित सूसन पर काबू पाया और उसे बाथरूम में बन्द कर दिया । फिर वह गफूर की ओर बढा ।
वह अभी मरा नहीं था ।
सुनील टेलीफोन की ओर झपटा । वह तेजी से पुलिस हैडक्वार्टर के नम्बर डायल करने लगा ।
***
उस आदमी का नाम वाकई गफूर था ।
बड़ी शोचनीय दशा में उसे हस्पताल ले जाया गया जहां वह दो घन्टे के बाद मर गया ।
मरने से पहले उसने जो बयान दिया, वह संक्षेप में इस प्रकार था ।
प्रिंस होटल में गजाधर की हत्या गफूर ने ही की थी । जब वह और मार्क रिचर्डसन नैकलेस के लिए गजाधर के कमरे की तलाशी ले रहे थे तो ऊपर से गजाधर आ गया था । गजाधर ने रिवाल्वर निकाल ली थी इसलिए मजबूरन गफूर को उस पर गोली चलानी पड़ी थी लेकिन मरने से पहले गजाधर भी अपनी रिवाल्वर से एक फायर करने में सफल हो गया था ।
गफूर किस नैकलेस का जिक्र कर रहा था, इसका उत्तर पुलिस को नहीं मिल सका । पुलिस द्वारा क्रास क्वेश्चन किए जाने से पहले ही उसने दम तोड़ दिया था ।
गजाधर की रिवाल्वर से निकली गोली मार्क रिचर्डसन के पेट में लगी थी और उसकी आंतें उबल पड़ी थीं । बड़ी मुश्किल से गफूर उसे प्रिंस होटल से निकालकर उसके चौदह बीच रोड वाले काटेज पर ले जाने में सफल हुआ था । वहां इससे पहले कि गफूर उसके लिए किसी प्रकार की डाक्टर सहायता का इन्तजाम कर पाता, मार्क रिचर्डसन ने दम तोड़ दिया था ।
मार्क रिचर्डसन के बाद गफूर ने काटेज की भरपूर तलाशी ली । वह जानता था मार्क रिचर्डसन सूसन को ब्लैकमेल कर रहा था । उसे उन हीरों के बदले में हासिल हुए रुपयों की तलाश थी जो उसने सूसन के माध्यम से हासिल किए थे लेकिन उसको काटेज में कुछ भी नहीं मिला । गफूर को इस बात से बड़ी निराशा हुई ।
मार्क रिचर्डसन के समान की तलाशी में उसे एक चीज मिली जिसके दम पर उसे लगा कि वह सूसन से दौलत हासिल कर सकता था । वह सूसन और मार्क रिचर्डसन की शादी का सर्टिफिकेट था । गफूर जानता था कि मार्क रिचर्डसन पहले ही सूसन के पास जो कुछ था वह हथिया चुका था । अब गफूर को सूसन से रुपया तभी मिल सकता था जब कि सूसन के पास रुपया हो । इसका उसे एक ही तरीका दिखाई दिया ।
उसने ठाकुर हरनामसिंह को शूट करना चाहा । उसका मतलब था कि ठाकुर हरनामसिंह के मर जाने के बाद उसकी कम से कम आधी जायदाद की मालकिन सूसन जरूर बनेगी और जब जायदाद पर सूसन अपना अधिकार प्राप्त कर लेगी तो वह मार्क रिचर्डसन और सूसन की शादी का सर्टिफिकेट लेकर सूसन के पास पहुंच जाएगा । वह सरकारी सर्टिफिकेट किसी भी समय सूसन की ठाकुर हरनामसिंह से हुई शादी को अवैध घोषित कर सकता था ।
सौभाग्यवश ठाकुर हरनामसिंह गफूर की गोली का शिकार होकर भी मरे नहीं । सूसन ने समझा कि ठाकुर साहब की हत्या करने की कोशिश मार्क रिचर्डसन ने की थी । सो वह रिवाल्वर लेकर मार्क रिचर्डसन पर चढ दौड़ी । लेकिन मार्क रिचर्डसन के स्थान पर वहां गफूर पहुंच गया । गफूर ने मरते समय खुद स्वीकार किया कि पहले उसने सूसन पर गोली चलाई थी । मगर सुनील की ऐश ट्रे उसकी खोपड़ी से आ टकराने की वजह से उसका निशाना चूक गया वर्ना सूसन का काम तमाम हो जाता ।
सुनील के बयान से यही सिद्ध होता था कि सूसन ने आत्मरक्षा के लिए गफूर पर गोली चलाई थी । ठाकुर साहब की दशा देखकर वह पागल हो गई थी और वह मार्क रिचर्डसन की हत्या करने के इरादे से उसके निवास स्थान पर पहुंची थी लेकिन गफूर से उसकी कोई दुश्मनी नहीं थी ।
गफूर के बयान के आधार पर चौदह बीच लेन वाले काटेज के पिछले कम्पाउन्ड की एक स्थान पर खोदा गया तो वहां से मार्क रिचर्डसन की लाश बरामद हुई । गजाधर की रिवाल्वर से निकली गोली तब भी उसके शरीर में मौजूद थी । उस गोली को पुलिस लैबोरेटरी में भेजा गया । एक्सपर्ट की रिपोर्ट से यह सिद्ध हुआ कि गोली गजाधर की रिवाल्वर से ही फायर की गई थी ।
पुलिस एक्सपर्ट की रिपोर्ट के अनुसार गजाधर और ठाकुर हरनामसिंह 45 कैलिबर की एक ही रिवाल्वर से निकली गोलियों के शिकार हुए थे । यह बात गफूर के बयान की पुष्टि करती थी ।
पुलिस डिपार्टमेंट सुनील पर पहाड़ की तरह टूट पड़ा । उसके कई झूठ पकड़े गये लेकिन ठाकुर हरनामसिंह के दखल की वजह से पुलिस उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकी । उसको बड़ी सख्त वार्निंग देकर छोड़ दिया गया ।
पुलिस की तफ्तीश से यह भी प्रकट हुआ कि मार्क रिचर्डसन ने नैशनल बैंक की मैजेस्टिक सर्कल ब्रांच से एक सेफ डिपाजिट वॉल्ट किराए पर ले रखा था । जब उस वॉल्ट को खोला गया तो उसमें पांच लाख रुपया नकद और कुछ हीरे निकले । वे सारा माल ठाकुर हरनामसिंह को सौंप दिया गया ताकि ठाकुर हरनामसिंह इन्श्योरेंस कम्पनी में किया अपना क्लेम वापिस ले लें ।
इतने हंगामे के बाद सूसन के पहले पति मार्क रिचर्डसन के अस्तित्व की बात ठाकुर हरनामसिंह से छुपी नहीं रही । उस सन्दर्भ में ठाकुर साहब को विश्वास था कि सूसन वाकई फ्राड और फिर ब्लैकमेलिंग का शिकार हो गई थी । उन्हें सूसन से शिकायत थी तो इस बात की कि सूसन ने उनसे यह बात छुपाई क्यों कि कोई उसे ब्लैकमेल कर रहा है ।
ठाकुर हरनामसिंह ने सुनील को उसकी सेवाओं के बदले में दस हजार रुपए देने चाहे ।
“पचास हजार !” - सुनील बोला ।
“क्या पचास हजार ?” - ठाकुर बोला ।
“पचास हजार रुपए ।”
“क्या मतलब ?”
“आप मुझे पचास हजार रुपए दीजिए ।”
“क्यों ?”
“आप मुझे पचास हजार रुपए दीजिए । आप मेरी सेवाओं की कम कीमत लगा रहे हैं । मैं बदमाशों के हाथ मरता-मरता बचा हूं । क्या मेरी जान की कीमत पचास हजार रुपये भी नहीं है ।”
“लेकिन तुम मरे नहीं हो ।”
“इसलिए तो मैं आपसे पचास हजार रुपए मांग रहा हूं । मर जाता तो क्या मेरा भूत आपसे पचास हजार रुपए मांगने आता ।”
“मैंने तुम्हें पुलिस के प्रकोप से बचाया है ।”
“उसमें आपका अपना स्वार्थ भी निहित था । आप सिर्फ मेरी खातिर तो अपनी उंगली भी नहीं हिलाते ।”
“तुम मुझे ब्लैकमेल करना चाहते हो ?”
“जी हां ।” - सुनील बर्फ जैसे ठण्डे स्वर में बोला ।
“बड़े कमीने आदमी हो ।”
सुनील ने उसकी बातों का विरोध नहीं किया ।
“मैं तो तुम्हें बड़ा भला आदमी समझता था ।”
सुनील चुप रहा ।
ठाकुर अंगारों पर लोट गया । लेकिन सुनील की मांग पूरी करने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं था । उसने मन ही मन सुनील को हजार-हजार गालियां देते हुए उसे पचास हजार रुपए दे दिए ।
सुनील ने वे पचास हजार रुपये कांजीलाल सुनार की विधवा को दे दिये । कांजीलाल सुनार जो कि माइकल और बिहारी के हाथों खामखाह ही मारा गया था ।
सारे मामले में अफसोस रहा तो केवल बन्दर को । उसके कथनानुसार इस इतनी ऐन्टीफ्लोजिस्टीन लड़की का एकदम शत-प्रतिशत हाथ में आकर निकल जाना भारी अपशकुन की निशानी था । इससे बन्दर जो इश्क भविष्य में लड़ाने वाला था, उनमें भी गड़बड़ हो सकती थी ।
समाप्त
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