बीच रोड पर ही स्थ‍ित सन्तोष कुमार की कोठी रामचन्द्र की कोठी से दुगनी विशाल और भव्य थी ।
कोठी के मम्पाउन्ड के फाटक पर एक गोरखा खड़ा था । सुनील ने बिना उसकी ओर ध्यान दिये मोटर साइकिल को कम्पाउन्ड में मोड़ दिया और उसे सीधे ले जाकर कोठी के सामने की ढकी हुई पोर्टिको में खड़ा कर दिया । इन्जन बन्द करने से पहले उसने दो तीन बार एक्सीलेटर को घुमाया । साढे सात हार्स पावर के इन्जन के घन गर्जन से सारी कोठी गूंज गई ।
कोठी में कहीं एक कुत्ता भोंकने लगा ।
सुनील ने इन्जन बन्द किया ।
वह मोटर साइकिल से उतर कर मुख्य द्वार पर पहुंचा और जोर-जोर से कालबैल दबाने लगा ।
पहले मोटर साइकिल द्वारा ही वह काफी शोर मचा चुका था । द्वार तत्काल खुल गया ।
द्वार खोलने वाला एक लगभग पच्चीस साल का युवक था ।
“सन्तोष कुमार आपका नाम है ?” - सुनील अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
सुनील के बोलने के ढंग का लड़के पर तत्काल असर पड़ा । वह एकदम हड़बड़ाकर बोला - “नहीं, मैं उनका छोटा भाई हूं ।”
“सन्तोष कुमार को बुलाइये ।”
“भाई साहब तो स्टूडियो गये हैं ।”
“कहां ?”
“माड्रन में ! लेकिन आप कौन हैं ?”
“मैं सी आई डी क्राइम ब्रांच से आया हूं” - और सुनील ने अपनी जेब से ‘ब्लास्ट’ का आईडेन्टिटी कार्ड निकाला और उसे खोलकर एक क्षण के लिये लड़के की आंखों के सामने कर दिया । लड़के को कार्ड पर लगी सुनील की तस्वीर की एक झलक के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया । लेकिन उस पर सुनील के उस एक्शन का प्रत्याशित प्रभाव पड़ा । वह बड़े सम्मानपूर्ण नेत्रों से सुनील को देखने लगा ।
“दरअसल हमें सोम प्रकाश की तलाश है” - सुनील बोला - “हमें मालूम है कि वह इसी कोठी में रहता है ।”
“जी हां सोम प्रकाश भाई साहब का सैक्रेट्री है और यहीं रहता है ।”
“वह कहां है ?”
“वह तो मुझे कल से दिखाई नहीं दिया है ।”
“मैं यहां पर सोम प्रकाश का कमरा देखने आया था ।”
“वह तो मैं आपको दिखा देता हूं ।” - लड़का उत्साहपूर्ण स्वर में बोला ।
“वैरी गुड ।” - सुनील बोला ।
“आइये !” - लड़का दरवाजे से एक और हटता हुआ बोला ।
सुनील भीतर प्रविष्ट हो गया ।
वह एक विशाल हाल था जिसकी दाईं ओर से ऊपर को सीढियां गई थी । ऊपर बाल्कनी में एक वृद्धा खड़ी थी ।
“क्या बात है राकेश ?” - वृद्धा ने पूछा ।
“कुछ नहीं मम्मीं” - लड़का उच्च स्वर में बोला - “ये पुलिस के आदमी हैं । सोम प्रकाश का कमरा देखने आये हैं । ...आइये साहब ।”
हाल के आगे एक पतला सा गलियारा था जिसकी दाईं ओर एक द्वार दिखाई दे रहा था । लड़के ने वह द्वार खोल दिया और सुनील को संकेत किया ।
सुनील भीतर प्रविष्ट हो गया ।
वे बारह गुणा बारह के दो कमरे थे । बाहर‍ का कमरा ऑफिस के ढंग से सजाया हुआ था और पिछला कमरा बैडरूम था । बाहरी कमरे की विशाल मेज पर टेलीफोन और टाईपराइटर पड़ा था ।
सुनील कुर्सी पर बैठ गया । टाईपराइटर उसने अपनी ओर खींच लिया । उसने रोलर में कागज चढाया । उसने जेब से सन्तोष कुमार को चेतावली वाला पत्र निकाला और उसे टाईप करने लगा ।
सारा पत्र टाईप कर चुकने के बाद उसने रोलर में से कागज खींच लिया और फिर दोंनों पत्रों से अक्षरों को मिलाकर देखने लगा ।
सारे अक्षर हुबहू एक दूसरे से मिलते थे ।
विशेष रूप से सुनील ने ‘बी’ और ‘एफ’ को कई बार देखा । उस टाईपराइटर पर टाईप की हुई चिट्ठी में सब जगह बी का निचला भाग टूटा हुआ था और एफ की अलाइनमैंट बिगड़ी हुई थी । ‘एफ’ बाकी अक्षरों के मुकाबले में जरा ऊंचा उठा हुआ था ।
सन्तोष कुमार को चेतावनी वाला पत्र निश्चय ही उसी टाईपराइटर पर टाईप किया गया था जो उस समय सुनील के सामने पड़ा था ।
“यह टाईप राइटर सोम प्रकाश का है ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
“जी हां ।” - लड़का बोला ।
“इसे सोम प्रकाश के अलावा और कौन इस्तेमाल करता है ?”
“कोई भी नहीं । सोम प्रकाश के अतिरिक्त यहां और किसी को टाईप आती ही नहीं । केवल मैं कभी कभार एक उंगली से शब्द तलाश करके चिट्ठी टाईप कर लेता हूं ।”
“और दूसरा कोई ऐसा भी नहीं करता ?”
“जी नहीं ।”
“कोठी में और कोई टाईप राइटर भी है ?”
“जी नहीं ।”
सुनील कुछ देर उस कमरे में और बैडरूम में कोई सूत्र तलाश करने का प्रयत्न करता रहा लेकिन न उसे कुछ मिला और न उसे कुछ मिलने की आशा थी ।
“ओके ।” - अन्त में वह बोला - “मैं जाता हूं । सन्तोष कुमार की मौजूदगी में मैं फिर आऊंगा ।”
“बहुत अच्छा ।” - लड़का बोला ।
वह सुनील को बाहर तक छोड़ गया ।
सुनील मोटर साईकिल पर आ बैठा और एक्सीलेटर का भरपूर शोर मचाता हुआ कोठी से बाहर निकल गया ।
उसने मोटर साईकिल चेथम रोड की ओर दौड़ा दी ।
रास्ते में एक स्थान पर ट्रैफिक सिग्नल की लाल बत्ती के सामने उसे मोटर साईकिल रोकनी पड़ी ।
फुटपाथ पर खड़ा एक लड़का गला फाड़कर चिल्ला रहा था -
पुलिस को फिल्म डायरेक्टर कामता नाथ के हत्यारे का पता लग गया ।
सन्तोष कुमार का सैक्रेट्री फरार !
सुनील ने मोटर साईकिल को सड़क से मोड़कर फुटपाथ पर चढा दिया । उसने अखबार वाले लड़के को पांच पैसे देकर एक अखबार खरीदा ।
वह ‘ब्लास्ट’ का ईवनिंग एडीशन था ।
सुनील अखबार पढने लगा । अखबार में वही बातें छपी थीं जो उसे अर्जुन ने बताई थीं ।
समाचार के विवरण के साथ सोम प्रकाश की तस्वीर छपी थी और साथ में पुलिस की अपील छपी थी कि सोम प्रकाश के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी रखने वाले को तत्काल पुलिस हैडक्वार्टर सूचना भेजनी चाहिये ।
सुनील ने अखबार को मोड़कर जेब में रख लिया और मेाटर साईकिल आगे बढा दी ।
भवानी लाज के सामने उसने अपनी मोटर साईकिल रोकी ।
मोटर साईकिल से उतरकर वह इमारत में प्रविष्ट हुआ और आराधना के फ्लैट के सामने जा पहुंचा ।
उसने फ्लैट की घण्टी बजाई ।
थोड़ी देर बाद द्वार खुला और उसे द्वार पर आराधना दिखाई दी । इस बार वह स्लैक्स के स्थान पर शलवार कमीज पहने हुए थी और बड़ी सजी संवरी और खूबसूरत लग रही थी ।
“गुड ईवनिंग मैडम ।” - सुनील आदरपूर्ण ढंग से सिर नवा कर बोला ।
“कौन हो तुम ?” - आराधना बोली ।
“कमाल है” - सुनील बोला - “आप इतनी जल्दी भूल गई मुझे ? कल की पार्टी में मैं आपका हमप्याला था । आपने मुझे राजकुमार, पैसेन्जर ट्रेन, सुनील दत्त, खाली सुनील वगैरह कई नामों से पुकारा था । कोई तो नाम याद आ रहा होगा आपको । और नहीं तो कम से कम उस इन्सान की सूरत में तो मुझे याद कीजिये जिसने आपको यह बुरी खबर सुनाई थी कि वास्तव में संतोष कुमार मरा नहीं था ।”
“ठीक है । मैं पहचान गई तुम्हें । अब क्या चाहते हो ?” - आराधना रुक्ष स्वर में बोली ।
“मैं पहले भी आपको एक बुरी खबर सुनाने आया था और दुर्भाग्य से अब भी एक बुरी खबर सुनाने आया हूं ।”
“अब क्या बुरी खबर लाये हो ?” - आराधना संशक स्वर में बोली ।
“यहीं आपके फ्लैट से बाहर खड़ा-खड़ा बताऊं ?”
“क्या हर्ज है ?”
“आपका मिजाज बहुत जल्दी करवट बदलता है । कल तो आप मुझे जबरदस्ती फ्लैट में घसीट रही थीं ।”
“बकवास मत करो” - आराधना रुक्ष स्वर से बोली - “कुछ कहना है तो कहो, वर्ना फूटो यहां से ।”
“ओके मैडम, मैं यहीं से अपना रिकार्ड चालू करता हूं” - सुनील गहरी सांस लेकर बोला - “मैं आपको यह सूचित करने आया था कि कामता नाथ की हत्या के अपराध में पुलिस आपके भाई को तलाश कर रही है ।”
“तुम... तुम किसकी बात कर रहे हो ?”
“मैं सोम प्रकाश की बात कर रहा हूं ।”
एक क्षण को सुनील को यूं अनुभव हुआ जैसे आराधना को धचका सा लगा हो लेकिन फिर वह तत्काल सम्भल गई ।
“सोम प्रकाश !” - आराधना मुंह बिगाड़ कर बोली - “कौन सोम प्रकाश ?”
आखिर अभिनेत्री है न - सुनील मन ही मन बड़बड़ाया । फिर वह प्रत्यक्ष में बोला - “हैरानी है मैडम । आप अपने सगे भाई को नहीं जानती ?”
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है” - आराधना झुंझला कर बोली - “मैं किसी सोम प्रकाश को नहीं जानती ।”
“मेम साहब” - सुनील क्रूर स्वर में बोला - “जब सोमप्रकाश कामता नाथ की हत्या के अपराध में फांसी पर लटक जायेगा तब भी आप यहीं कहेंगी कि आप उसे नहीं जानती ?”
आराधना के नेत्रों से व्यग्रता टपकने लगी ।
“आप सोम प्रकाश के बारे में मेरे सामने झूठ बोल सकते है लेकिन पुलिस के सामने आप झूठ नहीं बोल पायेंगी ।” - सुनील बोला ।
“पुलिस !” - आराधना के मुंह से निकाला ।
“जी हां, अब केवल पुलिस को ही नहीं, सारी दुनिया को मालूम है कि सोम प्रकाश आपका सगा भाई है । यह अखबार देखिये ।”
और सुनील ने जेब से ‘ब्लास्ट’ का ईवनिंग एडीशन निकाल कर उसे आराधना के सामने कर दिया ।
आराधना ने धीरे से उसके हाथ में से अखबार ले लिया और फिर व्यग्र नेत्रों से उसे पढने लगी ।
अन्त में जब उसने अखबार को बन्द किया तो उसका चेहरा पीला पड़ चुका था ।
“तुम क्या चाहते हो ?” - वह कम्पित स्वर में बोली ।
“सबसे पहले तो मैं भीतर आना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
आराधना ने रास्ता छोड़ दिया ।
सुनील भीतर जाकर सोफे पर बैठ गया और आराधना से बोला - “तशरीफ रखिये ।”
आराधना उसके सामने बैठ गई ।
“सोम प्रकाश आपका सगा भाई है ?” - सुनील ने पूछा ।
आराधना ने स्वीकूतिसूचक ढंग से सिर हिल दिया ।
“फिल्म उद्योग जैसे अफवाहों के गर्म बाजार में यह बात आज तक छुपी कैसे रही ?”
“सोम प्रकाश चाहता था कि मेरा और उसका सम्बन्ध प्रकट न होने पाये ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि फिल्म उद्योग में आकर लोगों का खून सफेद हो जाता है । लोगों का निजी स्वार्थ इतना प्रबल हो जाता है कि खून का रिश्ता एक बेमानी चीज मालूम होने लगता है ।”
“क्या मतलब ?”
“हम लोग विशालगढ के रहने वाले हैं । फिल्म उद्योग की चमक-दमक से आकर्षित होकर राजनगर पहले मैं आई थी । मेरा भाई सोम प्रकाश यहां तब आया था जब सन्तोष कुमार मुझे इन्कलाब में से निकाल चुका था । पता नहीं किस प्रकार वह सन्तोष कुमार की निगाहों में चढ गया और उसका सैक्रेट्री बन गया । तभी वह एक दिन मेरे पास आया था और उसने मुझसे प्रार्थना की थी कि यह बात किसी पर प्रकट न होने दू कि वह मेरा भाई है क्योंकि अगर सन्तोष कुमार को इस बात की जानकारी हो जाती तो वह फौरन उसे नौकरी से निकाल देता ।”
“ओह !”
“मिस्टर सुनील, यह बात गौर करने वाली है कि सोम प्रकाश को अपनी बहन के मान सम्मान से ज्यादा वह रुपया प्यारा था जो सन्तोष कुमार का चमचा बने रहने से वेतन के रूप में उसे प्राप्त होता था ।”
“लेकिन आप द्वारा कही हुई बातें तो पुलिस द्वारा बनाये हुए खाके में फिट नहीं बैठ रहीं । पुलिस की थ्योरी तो यह है कि सोम प्रकाश ने सन्तोष कुमार का खून करने की कोशिश ही आपकी वजह से की है । पुलिस का तो ख्याल है कि सोम प्रकाश ने जो कुछ किया है, आपकी तौहीन का बदला लेने के लिये ही किया है ।”
“आपको यह बात बड़ी हास्यास्पद नहीं लगती, मिस्टर सुनील” - आराधना के चेहरे पर एक कटु मुस्कराहट फैल गई - “कि अपनी बहन की तौहीन का बदला लेने का ख्याल सोम प्रकाश के दिमाग में चार साल बाद आया । जो आदमी बात ताजी होने पर तो मेरे पास यह प्रार्थना लेकर आया था कि में किसी को पता न लगने दूं कि वह मेरा सगा भाई था, वह आदमी क्या चार साल बाद एक ऐसे इनसान की हत्या करने का विचार भी कर सकता है जो उसका अन्नदाता हो और जिसके वह पिछले चार साल से तलवे चाट रहा हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“और आपकी सूचनार्थ पिछले दो साल से मेरी और मेरे सगे भाई सोम प्रकाश की एक बार भी मुलाकात नहीं हुई है और उसके पिछले दो सालों में भी वह मुझसे मुश्किल से पांच या छ: बार मिला था और वह भी हर बार मुझे यह याद दिलाने के लिये कि मैं उसके और अपने रिश्ते की बात कभी जुबान पर न लाऊं ।”
“आपकी बात काफी तर्कसंगत है” - सुनील प्रभावित स्वर में बोला - “इस बात की वाकेई सम्भावना नहीं दिखाई देती कि सोम प्रकाश ने आपकी वजह से सन्तोष कुमार की हत्या के प्रयत्न किये हों । लेकिन सम्भावना इस बात की भी तो है कि पहले कुछ अरसे में उन दोनों में ही कोई ऐसा बखेड़ा हो गया हो कि सोम प्रकाश ने सन्तोष कुमार की हत्या करने की ठान ली हो ।”
“आपके ख्याल से क्या बखेड़ा हो सकता है ?”
“मैं कुछ नहीं कह सकता । दरअसल फिल्मी लोगों के मिजाज की कुछ विशेष जानकारी नहीं है ।”
“फिल्मी लोग किसी दूसरी मिट्टी के तो नहीं बने होते ।”
“सम्भव है सोम प्रकाश में किसी वजह से जलन की भावना पैदा हो गई हो, किसी वजह से उसे सन्तोष कुमार से भारी घृणा हो गई हो सन्तोष कुमार ने उसकी कोई ऐसी दुर्गति कर दी हो कि उसका खून खौल उठा हो ।”
“खून होगा तो खौलेगा न” - आराधना व्यंगयपूर्ण स्वर में बोली - “आप सोम प्रकाश जैसे बड़े फिल्म स्टारों के चमचों के विषय में कुछ जानते नहीं हैं, इसीलिये आप ऐसी बात कर रहे हैं । भाई साहब, अगर सन्तोष कुमार सोम प्रकाश को सौ आदमियो के बीच में दस जूते भी जमा दे तो जानते हो सोम प्रकाश क्या कहेगा ?”
सुनील ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“सोम प्रकाश कहेगा - ब्रेवो सन्तोष कुमार । यू डिड ए वन्डरफुल थिंग । यू हैव डन समथिंग दैट हैज नैवर बिन डन बाई ऐसी अदर मैटिनी आइडॉल ।”
सुनील को होठों पर एक क्षीण सी मुस्कराहट उभरी जो तत्काल लुप्त हो गई ।
“आपकी बातों से तो यह बात एकदम असम्भव मालूम होती है कि सोम प्रकाश ने सन्तोष कुमार की हत्या की हो ।”
“करैक्ट ।”
“लेकिन उसके खिलाफ सुबूत बहुत हैं । कुछ सुबूत पुलिस को मालूम हैं और कुछ शीघ्र ही मालूम हो जायेंगे । जैसे पुलिस को मालूम है कि वह बम बनाना जानता है और सन्तोष कुमार की कार में रखा गया बम हाथ का बनाया हुआ था, जैसे वह तुम्हारा भाई है और सबसे बड़ी बात यह है कि वह फरार है । जो तथ्य पुलिस को नहीं मालूम हैं, उनमें से एक है इस बात कि पूरी सम्भावना है कि सन्तोष कुमार को लिखा चेतावनी वाला पत्र सोम प्रकाश का टाईप किया हुआ था और ‘फिल्म संसार’ नाम के अखबार को सन्तोष कुमार की हत्या के प्रयत्नों का विवरण भी उसी ने भेजे थे ।”
“लेकिन पुलिस के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है कि सोम प्रकाश के पास सन्तोष कुमार की हत्या का उद्देश्य क्या था । और दूसरे पुलिस के पास मौजूद सारे के सारे तथ्य भी निर्विवाद रूप से यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं कि हत्यारा सोम प्रकाश है ।”
“मैं आपकी बात स्वीकार करता हूं । लेकिन एक बात ऐसी है जिसकी वजह से सोम प्रकाश निर्दोष होते हुये भी कभी भी पुलिस की सहानुभूति का हकदार नहीं बनने पायेगा ।”
“कौन सी बात ?”
“कि वह फरार है । अगर वह निर्दोष है तो सामने क्यों नहीं आता ।”
आराधना एकाएक बेहद गम्भीर हो गई ।
“आराधना जी” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “अगर आप मुझे गलत न समझे तो मैं एक बात कहूं ।”
“कहिये ।” - आराधना कठिन स्वर में बोली ।
“देखिये, आपके भाई का आपके प्रति रवैया कितना भी गन्दा क्यों नहीं था, उसका खून सफेद हो गया है या नीला, वह स्वार्थी है या भावहीन, ये तामम बातें इस तथ्य को नहीं झुठला सकतीं कि वह आपका भाई है । अगर आप समझती हैं कि वह निर्दोष है तो क्या आपका यह कर्तव्य नहीं हो जाता कि उसकी निर्दोषिता को प्रमाणित करने की दिशा में आप कुछ करें ।”
“मैं क्या कर सकती हूं ?”
“अगर सोम प्रकाश स्वयं को पुलिस के सामने प्रकट कर दे तो कई भ्रांतियां दूर हो सकती हैं । आप यह सोचने की कोशिश कीजिये कि सोम प्रकाश कहां छुपा हो सकता है ? आखिर वह आपका भाई है । पिछले चार साल से चाहे वह आपके सम्पर्क में नहीं है लेकिन और लोगों के मुकाबले में आप फिर भी उसके बारे में ज्यादा जानती होंगी । आप सोचिये वह कहां छुपा हो सकता है । सम्भव हो तो गुप्त रूप से अपने फिल्मी दुनिया के दायरे में उसके बारे में पूछताछ कीजिये । शायद आपको किसी मतलब की बात की जानकारी हो जाये ।”
आराधना कई क्षण चुप रही और फिर बोली - “मैं कोशिश करूंगी । मैं पूरी कोशिश करूंगा । सोम प्रकाश के कुछ घनिष्ट मित्र मेरे भी जानकार हैं । मैं उनसे पूछताछ करूंगी ।”
“जरूर ! लेकिन सावधान रहियेगा । कहीं ऐसा न हो कि वे सोम प्रकाश को सूचना दे दें ।”
“मैं सावधान रहूंगी ।”
“अगर उसका पता चल गया तो मैं उससे बात कर लूंगा । आप भी साथ चलियेगा । अगर वह निर्दोष हुआ तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं उसकी पूरी मदद करूंगा । अगर वह ब्लास्ट के माध्यम से पुलिस को समर्पण कर देगा तो पुलिस उसके साथ की ज्यादती नहीं कर पायेगी ।”
“ओके ।” - आराधना उठती हुई बोली ।
सुनील भी उठ खड़ा हुआ ।
“मैं आपसे कहां सम्पर्क स्थापित कर सकती हूं ?”
सुनील ने अपना एक विजिटिंग कार्ड उसे दे दिया जिस पर उसके फ्लैट का टेलीफोन नम्बर भी लिखा था ।
“आप मेरे फ्लैट के नम्बर पर रिंग कर दीजियेगा ।” - सुनील बोला ।
आराधना ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील ने उसका अभिवादन किया और फ्लैट से बाहर निकल आया ।
***
मिनर्वा स्टूडियो वाली सड़क के मोड़ पर ही सुनील ने मोटर साईकिल रोक दी ।
पैट्रोल पम्प के पब्लिक टेलीफोन बूथ से उसने मिनर्वा स्टूडियो में उत्तमचन्दानी सेठ को फोन किया ।
“मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूं सेठ जी” - सुनील टेलीफोन में बोला - “मैं सड़क के मोड़ पर पैट्रोल पम्प के पास खड़ा हूं । आप यहां तशरीफ ले आइये ।”
“तुम यहां आ जाओ” - सेठ तनिक उत्तेजित स्वर में बोला - “मैं भी तुमसे बात करना चाहता हूं । मैंने तुम्हारे दफ्तर फोन भी किया था ।”
“मुझे आपके पास आने में कोई एतराज नहीं है । मैं सीधा आपके पास यह सोचकर नहीं आया था कि शायद आप यह पसन्द न करें कि मेरा सन्तोष कुमार से सामना हो ।”
उत्तमचन्दानी सेठ ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“हल्लो ।” - कुछ क्षण चुप रहने के बाद सुनील बोला ।
“मैं फौरन आ रहा हूं ।” - सेठ बोला ।
“ओके ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर को हुक पर टांग दिया ।
वह फुटपाथ पर आ खड़ा हुआ और उत्तमचन्दानी सेठ की प्रतीक्षा करने लगा । वह सोच रहा था - सेठ उससे क्या बात करना चाहता था ।
थोड़ी ही देर बाद उत्तमचन्दानी सेठ की इम्पाला गाड़ी फुटपाथ पर सुनील के सामने रुकी । गाड़ी को वर्दीधारी ड्राईवर चला रहा था ।
सेठ ने खिड़की में से सिर निकाल कर सुनील को संकेत किया ।
सुनील मोटर साईकिल को फुटपाथ पर खड़ी छोड़कर आगे बढा और कार का पिछला दरवाजा खोलकर सेठ को बगल में बैठ गया ।
“तुम थोड़ी देर सैर करो ।” - सेठ ड्राईवर से बोला ।
ड्राईवर फौरन कार से उतर गया और फुटपाथ पर आगे बढ गया ।
जब तक ड्राईवर दृष्टि से ओझल नहीं हो गया सेठ चुप रहा ।
“आप मुझ से क्या बात करना चाहते थे ?” - सुनील बोला ।
“वह चिट्ठी कहां है ?” - उत्तमचन्दानी सेठ बोला ।
“कौन सी चिट्ठी ?”
“भई वही चेतावनी वाली चिट्ठी जो सन्तोष कुमार के नाम सोम प्रकाश ने लिखी थी ।”
“सोम प्रकाश ने ?” - सुनील आश्चर्य का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।
“और क्या ? सोम प्रकाश ही तो संतोष कुमार की हत्या करने का प्रयत्न कर रहा था ।
“आपको इस बात पर विश्वास है ?”
सेठ सुनील का प्रश्न टाल गया । उसने अपना पहले वाला प्रश्न फिर दोहराया - “वह चिट्ठी कहां है ?”
“मेरे पास है ।”
“लाओ ।”
सुनील ने अपने सूट की जेबें टटोलने का अभिनय किया और फिर खेदपूर्ण स्वर से बोला - “सॉरी सेठ जी, वह चिट्ठी तो मैं अपने दूसरे सूट में भूल आया ।”
सेठ ने संदिग्ध नेत्रों से उसकी ओर देखा और फिर बोला - “जरा अच्छी तरह देखो । शायद जेब में हो ।
“नहीं है । सॉरी अगेन ।”
सेठ के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे वह खुद सुनील की तलाशी लेने की इच्छा रखता हो ।
“आप उस चिट्ठी के लिये इतने परेशान क्यों हो रहे हैं ?” - सुनील बोला - “कल वह चिट्ठी मैं आपको दे जाऊंगा ।”
“भई, वह चिट्ठी सन्तोष कुमार की है । वह उसे वापिस मांग रहा है ।”
“क्यों ?”
“सन्तोष कुमार वह चिट्ठी पुलिस को सौंपना चाहता है । वह कहता है शायद पुलिस वह चिट्ठी सोम प्रकाश के खिलाफ सबूत के तौर पर इस्तेमाल करना चाहे । सोम प्रकाश सन्तोष कुमार के साथ ही रहता था । सन्तोष कुमार की कोठी पर उसका टाइपराइटर पड़ा है । सन्तोष कुमार कहता है कि शायद पुलिस यह साबित कर सके कि वह चिट्ठी उसी टाइपराइटर पर टाईप की गई है ।”
“शायद क्या, वह चिट्ठी निश्चय ही उसी टाईपराइटर पर टाइप की गई है । और जिस आदमी ने वह चिट्ठी टाईप की है, उसी ने ही सन्तोष कुमार की हत्या के दो प्रयत्नों का विवरण फिल्म ससार के दफ्तर को भेजा है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“सेठ जी आपको पूरा विश्वास है कि सन्तोष कुमार की हत्या का प्रयत्न सोम प्रकाश ही कर रहा था ?”
“मेरे विश्वास से क्या होता है ? पुलिस का भी यही विश्वास है ।”
“मैं आपकी निजी राय पूछ रहा हूं ।”
सेठ कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “सोम प्रकाश मुझे ऐसा आदमी लगता नहीं था । लेकिन भाई, इन्सान के मन में कौन झांक सकता है । आजकल लोग ऊपर से देवता लगते हैं और भीतर से शैतान निकलते हैं । ...वैसे भी जबसे मुझे यह पता लगा है कि वह आराधना का भाई है, तब से तो मुझे पूरा विश्वास हो गया है कि यह काम सोम प्रकाश का ही है ।”
“आप यह कहना चाहते हैं कि अपनी बहन का बदला लेने के लिये सोम प्रकाश सन्तोष कुमार की हत्या करना चाहता था ।”
“हां ।”
“चार साल बाद ?”
सेठ चुप रहा ।
“आखिर चार साल बाद ही सोम प्रकाश की बासी कढी में उबाल क्यों आया ? चार साल के अरसे में तो अरसे में तो आदमी बड़े से बड़ा अपमान भूल जाता है । सोम प्रकाश का सन्तोष कुमार की हत्या का प्रयत्न तब युक्तिसंगत लगता जब उसने उन्हीं दिनों ऐसा कुछ किया होता ।”
“मुझे यह सब नहीं मालूम ।”
“और शायद आपको यह भी मालूम नहीं कि सोम प्रकाश को अपनी बहन में रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं है । सन्तोष कुमार द्वारा आराधना के साथ की गई ज्यादतियों पर उसका खून खोलना तो बहुत दूर की बात थी, उल्टा वह तो आराधना से यह प्रार्थना करने गया था कि वह इस बात को राज ही रखे कि वे दोनों भाई बहन हैं । क्योंकि अगर सन्तोष कुमार को उनका रिश्ता मालूम हो जाता तो शायद वह सोम प्रकाश को नौकरी से निकाल देता । आप के ख्याल में ऐसा स्वार्थी भाई क्या अपनी बहन की खातिर किसी का खून कर सकता है ?”
“यह बात तुम्हें किसने बताई है ?”
“खुद आराधना ने ।”
“सम्भव है वह झूठ बोल रही हो । सम्भव है उसी ने अपने भाई को सन्तोष कुमार का खून कर देने के लिये उकसाया हो ।”
“चार साल बाद ?”
“सम्भव है कि सोम प्रकाश को उकसाती तो वह शुरु दिन से ही रही हो लेकिन सोम प्रकाश तैयार अभी हुआ हो ।”
“मुझे आराधना झूठ बोलती नहीं लगी थी ।”
“तो फिर कोई और वजह होगी । सोम प्रकाश का सन्तोष कुमार से कोई निजी द्वेष होगा । बहरहाल इस बात में मुझे कोई सन्देह नहीं है कि यह काम सोम प्रकाश का ही है ।”
“सोम प्रकाश के बारे में आपके विचार बड़ी तेजी से बदलते हैं, सेठ जी” - सुनील बोला - “कल आप बड़ी दृढता से कह रहे थे कि सोम प्रकाश पर सन्देह करना बेकार है । आप ही ने कहा था कि वह बरसों से सन्तोष कुमार का सैक्रेट्री था और किसी ने कभी उनमे किसी प्रकार की कहा-सुनी या मतभेद होता नहीं सुना था ।”
“कल तक मुझे सोम प्रकाश के बारे में कई बातों की जानकारी नहीं थी । जैसे मुझे यह मालूम नहीं था कि वह आराधना का भाई था । मुझे यह मालूम नहीं था कि वह गवर्नमैंट की बम बनाने वाली फैक्ट्री में काम कर चुका था और फिर उसकी दोषी सिद्ध करने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि वह फरार है ।”
“आप केवल उन्हीं बातों पर विचार कर रहे हैं जो संयोगवश सोम प्रकाश को दोषी सिद्ध करती हैं । आप उन बातों का जिक्र नहीं कर रहे हैं जिनसे सोम प्रकाश के निर्दोष होने की तगड़ी सम्भावना दिखाई देती है ।”
“जैसे ?”
जैसे खुद आप ही ने मुझे बताया था कि जिस दिन रिवाल्वर में असली गोलियां डालने वाली गड़बड़ हुई थी, उस दिन सोम प्रकाश स्टूडियो में नहीं था ।”
“यह काम उसने किसी स्टूडियो कर्मचारी से या किसी एक्स्ट्रा वगैरह से उसे रुपये का लालच देकर करवा लिया होगा ।”
“चलिये मान लिया । अब जरा जहर वाली बात पर आइये । जहर वाली सैंडविच खाने के बाद सन्तोष कुमार ने पेट दर्द की शिकायत की थी तो आपके अपने शब्दों में उस स्थिति में जिस आदमी ने भारी तत्परता का परिचय दिया था और जो आदमी सबसे अक्लमन्द साबित हुआ था, वह सोम प्रकाश था । उसी के दिमाग में सबसे पहले यह ख्याल आया था कि सन्तोष कुमार की हालत चाय या सैंडविच की वजह से ही बिगड़ी थी । उसी ने फौरन सन्तोष कुमार को साबुन का घोल पिला कर उल्टियां करवाई थीं और सन्तोष कुमार की जान बचाई थी । सेठ जी, आप खुद ही सोचिये, ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है कि सोम प्रकाश पहले खुद ही सैंडविच में जहर मिलाकर सन्तोष कुमार की हत्या का प्रयत्न करे और फिर ऐन मौके पर उसे मरने से बचा भी ले ?”
उत्तमचन्दानी सेठ को जवाब नहीं सूझा ।
“सेठ जी, मुझ से लिखवा लीजिये कि सोम प्रकाश सन्तोष कुमार की हत्या के लिये प्रयत्नशील नहीं था ।”
“तो फिर वह फरार क्यों है ?” - सेठ ने प्रश्न किया ।
“यही बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही ।” - सुनील गहरी सांस लेकर बोला ।
“सुनील” - एकाएक सेठ बेहद चिन्तित स्वर में बोला - “इसका मतलब तो यह हुआ कि अगर सोम प्रकाश सन्तोश कुमार की हत्या का प्रयत्न नहीं कर रहा था तो फिर सन्तोष कुमार की हत्या अब भी हो सकती है ।”
“बिल्कुल हो सकती है ।”
“और मेरा एक करोड़ रुपया अब भी डूब सकता है ।”
“बिल्कुल डूब सकता है ।”
“हे भगवान” - सेठ अपना माथा पकड़ता हुआ बोला - “और मैं तुमसे यह कहने आया था कि अब तुम सारे सिलसिले से अपना हाथ खींच लो, वर्ना सन्तोष कुमार नाराज हो जायेगा ।”
“सेठ जी” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “मैं पहले भी कह चुका हूं कि अब मैं आपके या किसी और के कह देने भर से इस केस से हाथ नहीं खींच सकता । मुझे इस बात का पता लगाना ही है कि कामता नाथ की हत्या किसकी वजह से हुई है । मुझे सन्तोष कुमार में दिलचस्पी नहीं । मेरी ओर से वह अभी मर जाये । मुझे आप में या आपके डूबते हुए एक करोड़ रुपये में भी इसीलिये दिलचस्पी थी क्योंकि कामता नाथ की आप में दिलचस्पी थी । अब मैं जो कुछ कर रहा हूं, अपनी मर्जी से कर रहा हूं और इस भावना के अन्तर्गत कर रहा हूं कि कामता नाय के हत्यारे को सजा मिलनी ही चाहिये । इसी सन्दर्भ में मैं एक बात और कह देना चाहता हूं । अगर आपको मेरी ओर से कामता नाथ की बीवी को बारह हजार रुपये देने का अफसोस हो रहा हो तो वह रुपया मैं आपको अभी लौटा देने के लिये तैयार हूं ।”
“नहीं, नहीं बाबा” - सेठ हड़बड़ा कर बोला - “मेरा यह मतलब नहीं था । यह नतीजा कहां से निकाल लिया तुमने ?”
“मुझे आपकी बातों से लगा था ।”
“तुम्हारा ख्याल गलत है ।”
सुनील चुप रहा ।
“देखो भाई, काम तुम किसी भी वजह से करो, अगर तुम अपने काम में सफल हो गये तो मेरा मतलब तो अपने आप ही हल हो जायेगा । आखिर हत्यारा कामता नाथ की हत्या तो नहीं करना चाहता था । कामता नाथ तो सन्तोष कुमार की कार में सन्तोष कुमार से पहले बैठने की वजह से मारा गया । अगर तुम कामता नाथ के हत्यारे को पकड़वाने में सफल हो जाओगे तो सन्तोष कुमार का जीवन तो अपने आप ही सुरक्षित हो जायेगा ।”
“सन्तोष कुमार ने आप से सोम प्रकाश के बारे में कोई बात की है ?” - सुनील ने पूछा ।
“कैसी बात ?”
“यही कि क्या उसकी राय में सोम प्रकाश उसकी हत्या का प्रयत्न कर सकता है ?”
“भई देखो, अब तुम्हारी बातें सुनकर तो ऐसा लगने लगा है कि सोम प्रकाश ऐसा नहीं कर सकता लेकिन जब सन्तोष कुमार से इस विषय में बात हुई थी, तब तो हमें पूरा विश्वास था कि हत्यारा सोम प्रकाश ही था । और फिर सन्तोष कुमार ने एक बात और भी कही थी ।”
“क्या ?”
“कल सन्तोष कुमार कार को खुद ड्राईव करता हुआ स्टूडियो के कम्पाउन्ड में लाया था और उसके बाद कार जब तक स्टूडियो में खड़ी रही थी, वह फाटक पर खड़े गोरखे की निगरानी में रही थी । वैसे भी कम्पाउन्ड में इतनी चहल-पहल थी कि अगर किसी ने कम्पाउन्ड में खड़ी सन्तोष कुमार की कार के साथ छेड़खानी की होती तो वह आदमी किसी न किसी की निगाह में जरूर आ गया होता । वैसे भी वह गाड़ी इतनी विशिष्ट है कि कम्पाउन्ड में खड़ी बाकी गाडियों से अलग ही दिखाई देती है और हर किसी की दृष्टि अनायास ही उस पर पड़ती रहती है ।”
“आप कहना क्या चाहते हैं ?”
“मैं यह कहना चाहता हूं कि गाड़ी के स्टूडियो में पहुंच जाने के बाद उसमें बम फिट कर पाना असम्भव था और उससे पहले उसमें बम फिट होने का सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“आप ठीक कह रहे हैं । इस बात की ओर मेरा ध्यान नहीं गया था । फिर कार में बम कब फिट किया गया होगा ?”
“सन्तोष कुमार कहता है कि बम फटने से लगभग एक घन्टा पहले सोम प्रकाश उससे कार मांग कर ले गया था । गोरखा भी कहता है कि उसने सोम प्रकाश को सन्तोष कुमार की लाल गाड़ी ‘दुल्हन’ स्टूडियो से बाहर ड्राइव करके ले जाते देखा था । सोम प्रकाश पन्द्रह मिनट बाद कार वापिस ले आया था । उसके बाद कार को कामता नाथ ने ही हाथ लगाया था । इस बात से तुम क्या नतीजा निकालते हो ?”
“इससे तो यही मालूम होता है कि सोम प्रकाश ही कार की किसी एकान्त स्थान में ले जाकर उसमें बम फिट कर लाया था । कार की वापिस स्टूडियो के कम्पाउन्ड में लाकर खड़ी करने के बाद उसने बम की तारों का कनैक्शन इग्नीशन से कर दिया होगा ।”
“करैक्ट । इस बात से साफ जाहिर होता है कि सारी गड़बड़ सोम प्रकाश की ही की हुई है लेकिन साथ ही इन तथ्यों को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि सन्तोष कुमार को जहर से मरने से सोम प्रकाश ने ही बचाया था और जिस दिन रिवाल्वर की गोलियां बदलने वाली घटना हुई थी उस दिन सोम प्रकाश स्टूडियो में नहीं था ।”
“अजीब गोरखधन्धा है” - सुनील उलझनपूर्ण स्वर में बोला - “सेठ जी, यह गुत्थी तो तभी सुलझ सकती है, जब सोम प्रकाश खुद अपने कृत्यों की सफाई दे और उसके लिये सोम प्रकाश को तलाश करना बहुत जरूरी है ।”
सेठ चुप रहा ।
“आपकी राय में सोम प्रकाश कहां हो सकता है ?” - सुनील ने पूछा ।
“मैं इस बारे में कुछ कह नहीं सकता ।”
“देखिये, मैं तो बाहरी आदमी हूं । मैं फिल्मी लोगों की जिन्दगी के बारे में कुछ नहीं जानता लेकिन सोम प्रकाश आपके ट्रेड का आदमी है । अगर आप सोम प्रकाश के दायरे के लोगों से जानकारी हासिल करने का प्रयत्न करें तो आप शायद यह जानने में कामयाब हो जायें कि सोम प्रकाश कहां छुपा हो सकता है ।”
“मैं कोशिश करूंगा ।”
“जरूर कीजिये और अगर आप कोई नतीजा हासिल कर सकें तो मुझे फौरन सूचना दीजियेगा ।”
“ओके ।”
“मैं चला ।” - सुनील बोला और कार का दरवाजा खोलकर नीचे उतर आया ।
सेठ ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला और फिर तत्काल ही अपना विचार बदल दिया । वह गम्भीर मुद्रा बनाये सुनील को अपनी मोटर साइकिल की ओर बढता हुआ देखता रहा ।
***
वह एक छः मंजिली इमारत थी । कामता नाथ का फ्लैट दूसरी मंजिल पर था । फ्लैट के प्रवेश द्वार की चौखट के पास काल बैल का पुश बटन लगा था जिसके नीचे एक प्लास्टिक के अक्षरों वाली छोटी सी नेम प्लेट लगी हुई थी जिस पर केवल कामता नाथ का नाम लिखा हुआ था ।
सुनील ने धीरे काल बैल का पुश दबाया ।
तत्काल ही भीतर से किसी के द्वार की ओर बढते कदमों की चाप सुनाई दी । फिर द्वार खुला और द्वार पर सुनील को सफेद परिधान पहने एक लगभग तीस साल की महिला दिखाई दी । उसकी आंखें सूजी हुई थीं और लाल थीं और चेहरे पर शोक के बादल मंडरा रहे थे ।
वह कामता नाथ की पत्नी थी ।
सुनील ने दोनों हाथ जोड़ दिये ।
उत्तर में उसने भी हाथ जोड़े और प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“मेरा नाम सुनील है” - सुनील धीरे से बोला - “कामता नाथ मेरा मित्र था । शायद आपने मुझे पहचाना नहीं ।”
“भीतर आइये ।” - वह एक ओर हटती हुई बोली ।
सुनील फ्लैट में प्रविष्ट हुआ ।
उसी क्षण पीछे के कमरे से किसी बच्चे के रोने की आवाज आई । वह बिना कुछ बोले पिछले कमरे में प्रविष्ट हो गई ।
सुनील कुर्सी पर बैठ गया ।
कुछ क्षण बच्चा रोता रहा, फिर उसके हुमकने का स्वर सुनाई दिया और फिर शान्ति छा गई ।
लगभग पांच मिनट बाद वह वापिस लौटी । वह सुनील के सामने बैठ गई और फिर धीरे से बोली - “सबसे छोटा लड़का केवल डेढ साल का है । वह बहुत रोता है ।”
सुनील अपने नेत्रों में गहरी सम्वेदना का भाव लिये चुपचाप बैठा रहा ।
“मैं आपको पहचानती हूं” - वह बोली - “वे आपका अक्सर जिक्र किया करते थे ।”
सुनील ने एक बार सिर उठाकर उसकी और देखा और फिर नीचे देखने लगा । उसे कुछ कहने के लिये उचित शब्द नहीं सूझ रहे थे ।
“मैं भी आप से बात करना चाहती थी ।” - वह बोली ।
सुनील ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“मैं वह बारह हजार रुपया स्वीकार नहीं कर सकती जो उत्तमचन्दानी सेठ के माध्यम से आप ने मेरे पास भेजा है ।”
“इस विषय में हम फिर कभी बात करेंगे” - सुनील जल्दी से बोला - “सच पूछिये तो वह रुपया मेरा है ही नहीं ।”
“लेकिन...”
“वह एक तरह से कामता नाथ का ही रुपया था । मैं आप को यह सब किसी अन्य अवसर पर समझाऊंगा । इस समय मैं बड़े महत्वपूर्ण काम से आपके पास आया हूं ।”
“कौन सा महत्वपूर्ण काम ?”
“मैं कुछ मामलों में कामता नाथ के बारे में आपका दृष्टिकोण जानना चाहता हूं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि उससे कामता नाथ के हत्यारे को गिरफ्तार करवाने में सहायता मिल सकती है ।”
“लेकिन मुझे उम्मीद नहीं कि मेरे पति के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने से आपको कोई लाभ पहुंचेगा । मेरे पति तो खामखाह ही मारे गये हैं । आपको सन्तोष कुमार से पूछताछ करनी चाहिये क्योंकि वास्ताव में तो उसकी हत्या का प्रयत्न किया गया था ।”
“लेकिन फिर भी कुछ ऐसी बातें हैं - ऐसी अप्रिय बातें है - जिनका सम्बन्ध कामता नाथ से ही है ।”
“ऐसी कौन सी बातें हैं ?”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर कठिन स्वर में बोला - “आपको यह सुनकर कैसा लगेगा कि कामता नाथ के किसी अन्य लड़की से अवैध सम्बन्ध थे ?”
“मुझे बहुत बुरा लगेगा” - वह दृढ स्वर में बोली - “मुझे इसलिये बहुत बुरा लगेगा क्योंकि यह बात असम्भव है । अगर कोई आदमी मेरे पति पर ऐसा आक्षेप लगायेगा तो वह एक बड़ी नीच और गिरी हुई हरकत करेगा । मिस्टर सुनील, शायद आपको मालूम नहीं है कि मेरे पति अपवाद के रूप में जिक्र किये जाने वाले फिल्म उद्योग के उन गिने चुने दो तीन व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने अपना स्थिति का अनुचित लाभ उठाकर फिल्म उद्योग की चमक दमक से चौंधाई हुई किसी अभिनेत्री बनने की इच्छुक लड़की से कोई अनुचित व्यवहार करने की कभी कल्पना भी नहीं की । मेरे पति तो ऐसे लोगों को भारी घृणा की दृष्टि से देखते थे जो फिल्म उद्योग में नई आने वाली लड़कियों को बेहूदी सीख दिया करते थे कि फिल्म उद्योग में सफलता का रास्ता हमेशा किसी सफल व्यक्ति के बैडरूम से ही होकर गुजरता है । आप ही सोचिये ऐसे चरित्र का इन्सान क्या किसी लड़की से अवैध सम्बन्ध रख सकता है ?”
“मेरी निगाह में नहीं रख सकता । लेकिन कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जिनके आधार पर न केवल कामता नाथ का एक जवान लड़की से अवैध सम्बन्ध होने का चर्चा होने वाला है बल्कि सम्भव है कि उस पर उस लड़की की हत्या का इलजाम भी लगाया जाये ।”
“कहीं आप वीणा माथुर का तो जिक्र नहीं कर रहे हैं जो कुछ दिन पहले रायल होटल के एक कमरे में मरी पाई गई थी ?”
“आप उसे जानती हैं ?”
“मैं उसे नहीं जानती लेकिन मैं उससे सम्बन्धित ऐसी बहुत सी बातें जानती हूं जो मैंने अपने पति के मुंह से सुनी थी ।”
“आपको अपने पति और वीणा माथुर के सम्बन्ध के बारे में सब कुछ मालूम है ?”
“जी हां । मुझे वह सब कुछ मालूम है जो मेरे पति को मालूम था । मिस्टर सुनील मेरे पति ने मुझसे कभी कोई बात नहीं छुपाई थी ।”
“फिर तो आपको यह भी मालूम होगा कि जब तक वीणा माथुर उस होटल में रही तब तक कामता नाथ उससे होटल में अक्सर मिलने जाता रहा था । दो बार उसने वीणा माथुर का होटल का बिल भी चुकाया था और जिस रोज वीणा माथुर मरी थी, उस रोज वीणा माथुर से होटल में मिलने वाला आखिरी आदमी कामता नाथ था और यह कि वीणा माथुर गर्भवती थी ।
उसने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और बोली - “मुझे सब मालूम है ।”
सुनील ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और फिर बोला - “कामता नाथ का वीणा माथुर से क्या सम्बन्ध था ?”
“यह एक लम्बी कहानी है ।” - वह गहरी सांस लेकर बोली ।
“मैं उसे सुनना चाहूंगा ।”
“लेकिन उसका मेरे पति की मौत से क्या सम्बन्ध है ?”
“सम्बन्ध हो सकता है ।”
“तो सुनिये” - वह बोली । वह कुछ क्षण चुप रही जैसे सोच रही हो कि कहानी कहां से शुरू करे । अन्त में वह धीरे से बोली - “पिछले एक महीने में मेरे पति ने खामखाह अपने आपको एक भारी झमेले में फंसा लिया था । और उसी की वजह से संतोष कुमार में और मेरे पति में बुरी तरह से ठन गई थी । एक बार तो मेरे पति ने मुझे यह भी बताया था कि सन्तोष कुमार ने उन्हें गुण्डों से कत्ल करवा देने की धमकी दी थी ।”
“इस झगड़े की जानकारी फिल्म उद्योग में तो किसी को भी नहीं है ।”
“जानकारी हो भी नहीं सकती थी । मेरे पति यह बात अपनी शराफत की वजह से किसी को नहीं बताते थे और सन्तोष कुमार यह बात अपनी बदमाशी की वजह से किसी को नहीं बताता था ।”
“बात क्या थी ?”
“बात वीणा माथुर की थी । लगभग छः महीने पहले ‘इन्कलाब’ का सारा यूनिट शूटिंग के लिये तारकपुर गया था । वहां संतोष कुमार ने वीणा माथुर को अपने जाल में फंसा लिया था । उसने वीणा माथुर को अभिनेत्री बना देने का लालच दिया था या वैसे ही उससे इश्क जताकर उसे फंसाया यह बात मुझे नहीं मालूम लेकिन जितने दिन सन्तोष कुमार वहां रहा उतने दिन वीणा माथुर ने वही किया जो सन्तोष कुमार ने उसे करने के लिये कहा ।”
“उन दोनों के सम्बन्ध की जानाकारी यूनिट के और किन लोगों को थी ?”
“किसी को भी नहीं । यहां तक कि सन्तोष कुमार के सैक्रेट्री सोम प्रकाश को भी नहीं । और मेरे पति को भी इस बात की जानकारी संयोगवश ही हो गई थी ।”
“लेकिन यह कैसे सम्भव है कि तारकपुर जैसी छोटी सी जगह में संतोष कुमार का किसी स्थानीय लड़की से सम्पर्क रहा हो और किसी को इस बात की खबर न हुई हो ।”
“सन्तोष कुमार किसी लड़की के चक्कर में है, यह बात तो लोगों को मालूम थी और इस लिये मालूम थी क्योंकि सन्तोष कुमार हमेशा ही किसी न किसी लड़की के चक्कर में होता है लेकिन किसी को यह मालूम नहीं था कि वह लड़की वीणा माथुर थी । बाद में छः महीने बाद जब वह रायल होटल में मरी पाई गई, तब तो किसी को यह सूझने का सवाल ही नहीं पैदा होता था । केवल मेरे पति को यह बात शुरू से ही मालूम थी लेकिन उनका दखल देने का सवाल ही नहीं पैदा होता था क्योंकि उसकी निगाहों में जो बेहद अनैतिक हरकत थी वह सन्तोष कुमार की सांस लेने जैसी रूटीन थी ।”
“फिर कामता नाथ इस झमेले में कैसे पड़ा ?”
“इन्कलाब की तारकपुर में शूटिंग खतम होने के बाद यूनिट वापिस राजनगर लौट आया । साथ ही सन्तोष कुमार अपनी जिन्दगी में आई सैकड़ों लड़कियों की तरह वीणा माथुर को भूल गया । लेकिन वीणा माथुर सारे सिलसिले को इस लिये नहीं भूल पाई क्योंकि बाद में एक भारी ट्रेजेडी हो गई । वीणा माथुर गर्भवती हो गई । घबरा कर वह घर से भाग निकली और राजनगर आ गई । यहां आकर उसने संतोष कुमार से मिलने की कोशिश की लेकिन मिलना तो दूर किसी ने उस सन्तोष कुमार के समीप भी नहीं फटकने दिया । वह बेचारी सन्तोष कुमार से सम्पर्क स्थापित करने की खातिर जगह-जगह धक्के खाती रही । उसी दौरान उसका सामना मेरे पति से हो गया । मेरे पति ने उसे फौरन पहचान लिया और फिर जब उन्होंने उसकी मुसीबत की कहानी सुनी तो उनका दिल पिघल गया और अपने दिल में वीणा माथुर के लिये उभरी भावनाओं के ज्वार में उन्होंने एक बहुत बड़ा फैसला कर डाला । उन्होंने संतोष कुमार से टक्कर लेने के लिये कमर कस ली । उन्होंने सन्तोष कुमार को किसी भी प्रकार इस बात के लिये मजबूर कर देने का फैसला कर लिया कि वह वीणा माथुर से शादी कर ले ।”
वह एक क्षण रुकी और फिर बोली - “मेरे पति ने संतोष कुमार से बात की तो सन्तोष कुमार ने बात को हंस कर उड़ा दिया । लेकिन मेरे पति इतनी आसानी से सन्तोष कुमार का पीछा छोड़ने वाले नहीं थे । उन्होंने सन्तोष कुमार को धमकी दी कि अगर उसने वीणा माथुर से तुरन्त शादी नहीं की तो वे उसकी पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे और उनकी निजी गवाही की वजह से सन्तोष कुमार कभी इस हकीकत को झुठला नहीं सकेगा कि वीणा माथुर के पेट में उसका बच्चा था और उसने वीणा माथुर से शादी का वादा करके उसे खराब किया था । सन्तोष कुमार आग बबूला हो गया । लेकिन वह मेरे पति को जानता था और इसीलिये यह भी जानता था कि वह कोरी धमकी नहीं थी । पहले उसने मेरे पति को गुण्डों से पिटवाने और उसकी हत्या करवा देने की धमकी दी लेकिन जब मेरे पति पर उस की धमकियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो उसे गम्भीर होना पड़ा । उसने मेरे पति से एक सप्ताह की मोहलत मांगी ।”
“कामता नाथ एक सप्ताह उसके फैसले की प्रतीक्षा करने के लिये तैयार हो गया ?”
“हां और उतने समय तक उन्होंने वीणा माथुर को अपने संरक्षण में रखा । उन्होंने वीणा माथुर के होटल के बिल भी अदा किये और परिस्थितियों से लड़ने के लिये उन्होंने उसमें हिम्मत भी पैदा की ।”
“सन्तोष कुमार एक सप्ताह की मोहलत क्यों चाहता था ?”
“क्योंकि वह पहले से ही किसी और लड़की से अपनी शादी की घोषणा कर चुका था । वह माधुरी नाम की अपने से आयु में बीस साल छोटी एक नई अभिनेत्री से शादी करने वाला था । सन्तोष कुमार और माधुरी की मंगनी का समाचार अखबार में भी छप चुका था । सन्तोष कुमार के कथानानुसार उसे माधुरी से अपनी मंगनी तोड़ने के लिये एक सप्ताह की मोहलत चाहिये थी ।”
“एक सप्ताह के बाद क्या हुआ ?”
“कुछ होने की नौबत ही नहीं आई । उससे पहले ही वीणा माथुर की हिम्मत जवाब दे गई । अपनी वर्तमान स्थिति से वह इस हद तक घबरा गई कि उसने नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या कर ली । वीणा माथुर के मर जाने से कहानी खत्म हो गई ।”
“फिर ?”
“फिर कहानी खतम ।”
सुनील चुप रहा । कई क्षण बाद वह बोला - “अगर जरूरत पड़ने पर आपके इस बयान को हम अखबार में छाप दें तो आप को कोई एतराज तो नहीं होगा ?”
“इसे छापने की जरूरत पड़ सकती है ?”
“जी हां ! रायल होटल के रिसैप्शन क्लर्क देवाराम के बयान की वजह से कामता नाथ और वीणा माथुर के सम्बन्ध को बड़ा गलत रूप दिये जाने की कोशिश की जा सकती है । कल तक शायद उनका सम्बन्ध आपके सामने इस रूप में आये कि वीणा माथुर की बरबादी का जिम्मेदार कामता नाथ था ।”
“लेकिन यह झूठ है ।” - वह उत्तेजित स्वर में बोली ।
“इसीलिये तो मैं आपसे आपके बयान को जरूरत पड़ने पर प्रकाशित करने की इजाजत मांग रहा हूं ।”
“मेरी ओर से आपके पूरी इजाजत है ।”
“थैंक्यू” - सुनील बोला - “कामता नाथ की गाड़ी ठीक हो गई ?”
“नहीं ! गाड़ी अभी वर्कशाप में है ।”
“खराबी क्या थी ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“गाड़ी कौन से वर्कशाप में है ?”
“हमारी वाली सड़क के मोड़ पर ही है - चौंपले मोटर वर्कशाप ।”
“अच्छा जी” - सुनील उठता हुआ बोला - “अब मुझे इजाजत दीजिये । कभी मेरी सहायता की जरूरत पड़े तो मुझे निसंकोच कहियेगा । यह मेरा कार्ड रख लीजिये ।”
उसने कार्ड ले लिया और फिर व्यग्र स्वर में बोली - “और वह बारह हजार रुपये...”
“उस विषय में मैं आपसे फिर आकर बात करूंगा । नमस्कार ।”
उसने यन्त्रचलित ढंग से हाथ जोड़ दिये ।
सुनील लम्बे डग भरता हुआ फ्लैट से बाहर निकल आया ।
चौंपले मोटर वर्कशाप तलाश करने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई । उसने फौरमैन को तलाश किया और बोला - “मैं कामता नाथ का भाई हूं । गाड़ी ठीक हो गई है ?”
फौरमैन ने उसे सिर से पांव तक देखा और फिर खेदपूर्ण स्वर में बोला - “कामता नाथ साहब की मौत का बहुत अफसोस हुआ, साहब । राजा आदमी थे । मेरे सबसे अच्छे ग्राहकों में से थे । और क्या फिल्म बनाते थे, साहब । मैं तो उनकी हर फिल्म देखता था...”
सुनील धीरज से फौरमैन का एल पी सुनता रहा । अन्त में जब वह चुप न हुआ तो सुनील ने फिर अपना प्रश्न दोहराया ।
“जी हां, ठीक हो गई है ।” - फौरमैन बोला ।
“क्या खराबी थी ?”
“खराबी कुछ भी नहीं थी, साहब । बस यूं कह लीजिये कि कामता नाथ की गाड़ी इस इलाके के हरामी बच्चों की हरामजादगियों की शिकार हो गई थी । किसी बुरे वक्त की औलाद ने गाड़ी के दाईं ओर के पहियों में ये.. लम्बी, लम्बी कीलें घोंप दी थीं” - उसने हाथ के संकेत से कीलों की लम्बाई को अपनी बांह से भी ज्यादा लम्बी साबित करते हुए कहा - “पंच्चर थे । ठीक कर दिये ।”
“थैंक्यू !” - सुनील बोला और वापिस जाने के लिये घूमा ।
“गाड़ी नहीं ले जायेंगे ?” - फौरमैन बोला ।
“कल ले जाऊंगा ।” - सुनील बोला और वर्कशाप से बाहर निकल आया ।
एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से उसने आराधना के फ्लैट पर टेलीफोन किया ।
“सुनील बोल रहा हूं” - वह बोला - “कुछ पता लगा ?”
“सुनील” - दूसरी ओर से आराधना का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया - “मैं भी तुम्हें टेलीफोन करने ही वाली थी । तुम फौरन यहां आ जाओ ।”
“कुछ पता लगा ?”
“बाबा, कहा न फौरन यहां आ जाओ ।”
“अच्छी बात है । आता हूं ।”
उसने रिसीवर हुक पर टांगा और बूथ से बाहर निकल आया । वह अपनी मोटर साईकिल पर सवार हुआ और चेथम रोड की ओर उड़ चला ।
***
“सोम प्रकाश झेरी में हो सकता है ।” - आराधना उत्तेजित स्वर में बोली ।
झेरी राजनगर से सत्तर मील दूर एक पिकनिक स्पाट था । वहां एक बड़ी खूबसूरत झील थी जिसके आसपास रईस लोगों ने अपने काटेज बनवाये हुये थे । झेरी में बोटिंग क्लब थी और बाहर से आने वाले लोगों के लिये एक शानदार होटल था ।
“झेरी में ?” - सुनील बोला - “कहां ?”
“वहां सोम प्रकाश के एक दोस्त का काटेज है । वह दोस्त एक साल के लिये विदेश चला गया है और जाती बार अपने झेरी में स्थित काटेज की चाबी सोम प्रकाश को दे गया है । अगर सोम प्रकाश राजनगर के आसपास कहीं है तो वह उस काटेज में हो सकता है । आजकल सीजन न होने की वजह से झेरी का इलाका वीरान पड़ा रहता है । सोम प्रकाश को छुपने के लिये उससे बेहतर जगह नहीं सूझ सकती विशेष रूप से जब कि सोम प्रकाश एक-आध बहुत ही गहरे दोस्त को छोड़कर किसी को यह मालूम भी नहीं है कि उस काटेज की चाबी सोम प्रकाश के पास है ।”
“तुम्हें इस बारे में कैसे मालूम हुआ ?”
“क्लब में सोम प्रकाश का जिक्र चल रहा था । वहीं कोई साहब कह रहे थे कि सोम प्रकाश बड़ा कमीना आदमी है । उसके पास घोरपड़े साहब के झेरी वाले काटेज की चाबी है । मैं अपनी गर्ल फ्रैंड को वहां ले जाना चाहता था । मैंने सोम प्रकाश से चाबी मांगी और साले ने चाबी देने से साफ इन्कार कर दिया ।”
“आई सी ! लेकिन झेरी में तो दर्जनों काटेज हैं । पता कैसे लगेगा कि घोरपड़े साहब का काटेज कौन सा है ?”
“वह मैंने पता लगा लिया है । मुझे मालूम है, काटेज कहां है ।”
“तुमने यह चैक करने की कोशिश की है कि सोम प्रकाश वहां है या नहीं ?”
“कैसे करती ? झेरी यहां से सत्तर मिल दूर है ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “चलो ।”
“कहां ?”
“झेरी ! देखते हैं, सोम प्रकाश वहां है या नहीं ।”
“मेरा जाना जरूरी है ?”
“हां ! सोम प्रकाश तुम्हारा भाई है । भागे फिरे के स्थान पर पुलिस के सामने आकर स्थिति का स्पष्टीकरण देने के मामले में वह मेरे मुकाबले में तुम्हारी बात ज्यादा मानेगा ।”
“और अगर सोम प्रकाश वहां न हुआ तो ?”
“न हुआ तो किसी नई जगह के बारे में सोचेंगे ।”
“अब नौ बजे हैं” - आराधना बोली - “ग्यारह बजे से पहले हम झेरी नहीं पहुंच पायेंगे । अगर सुबह चलें तो कैसा रहे ?”
“नहीं ! अभी चलना ठीक रहेगा ।”
“और जायेंगे कैसे ?”
“मेरे पास मोटर साईकिल है ?”
“ओके ।” - आराधना बोली और उठ खड़ी हुई ।
दोनों फ्लैट से बाहर निकल आये ।
नीचे आकर सुनील ने मोटर साईकिल सम्भाली । आराधना पीछे बैठ गई । सुनील ने मोटर साईकिल को गियर में डाला और एक्सीलेटर घुमा दिया ।
साढे सात हार्स पावर की शक्तिशाली मोटर साईकिल तोप से छुटे गोले की तरह सड़क पर भाग निकाली ।
डेढ घण्टे में सुनील झेरी के इलाके में पहुंच गया ।
“किधर ?” - सुनील ने पूछा ।
आराधना उसे रास्ता बताने लगी ।
“वह सामने वाले पेड़ों के झुरमुट में बना काटेज है ।” - आराधना बोली ।
सुनील ने मोटर साईकिल वहीं एक ओर करके रोक दी ।
“क्या हुआ ?” - आराधना बोली ।
“आगे काटेज तक पैदल चलते हैं” - सुनील बोला - “अगर सोम प्रकाश उस काटेज में है तो मुझे भय है कि कहीं मोटर साईकिल की आवाज सुनकर वह भाग न निकले ।”
दोनों मोटर साईकिल से उतर पड़े । वे पेड़ों के झुरमुट की ओर बढे । दूर से काटेज में एकदम अन्धेरा लग रहा था । समीप आने पर उन्होंने देखा कि काटेज की खिड़कियों और दरवाजों पर मोटे परदे पड़े हुए थे । जिनकी वजह से भीतर प्रकाश होने पर भी प्रकाश दूर से दिखाई नहीं दे सकता था ।
एक कमरे में उन्हें प्रकाश का आभास मिला ।
सुनील ने काटेज के समीप पहुंचकर मुख्य द्वार को देखा । द्वार पर बाहर से ताला नहीं लगा हुआ था ।
“भीतर कोई है ।” - सुनील बोला ।
आराधना चुपचाप उसकी बगल में खड़ी रही ।
“घन्टी बजाओ ।” - सुनील द्वार से एक ओर हटता हुआ बोला ।
“मैं !” - आराधना बोली ।
“हां ! तुम ।”
अराधना ने झिझकते हुए घण्टी के पुश पर उंगली रख दी ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
सुनील के संकेत पर आराधना ने फिर घंटी बजाई ।
नतीजा कुछ नहीं निकला ।
“आवाज दो ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“सोम प्रकाश ‌!” - आराधना उच्च स्वर में बोली - “सोम !”
द्वार तत्काल खुला और द्वार में सोम प्रकाश का चेहरा दिखाई दिया । वह शायद द्वार के दूसरी ओर ही खड़ा था ।
“तुम !” - वह आराधना को देख कर रुक्ष स्वर में बोला - “तुम यहां क्या कर रही हो ?”
“मैं भी हूं, भाई साहब ।” - सुनील बोला और साइड से निकल कर आराधना की बगल में आ खड़ा हुआ ।
“तुम !” - सोम प्रकाश बोला और फिर बिजली की तेजी से उसका हाथ अपने कोट की जेब की ओर बढा । अगले ही क्षण सुनील की छाती पर रिवाल्वर तनी हुई थी ।
“सोम !” - आराधना आंतकित स्वर से चिल्लाई ।
“अच्छा हुआ पुलिस से पहले यहां पर मैं आया हूं” - सुनील शांत स्वर में बोला - “अगर रिवाल्वर निकालने जैसे हरकत तुमने मेरी जगह पुलिस के साथ की होती तो अभी तक तुम्हारे शरीर में झरोखे ही झरोखे दिखाई दे रहे होते ।”
“सोम !” - सोम प्रकाश के जुबान खोलने से पहले आराधना बोल पड़ी - “रिवाल्वर जेब में रख लो । सुनील तुम्हारा दुश्मन नहीं है । यह तुम्हारे ही हित के लिये यहां आया है ।”
“यह मेरा क्या हित कर सकता है ?” - सोम प्रकाश रूखे स्वर में बोला ।
“मैं तुम्हें पुलिस के कोप का भाजन होने से बचा सकता हूं ।”
“मैं भला पुलिस के कोप का भाजन क्यों बनूंगा ? मैंने पुलिस का क्या बिगाड़ा है ?”
“तुमने आज का अखबार देखा है ?”
सोम प्रकाश ने हिचकिचाते हुए नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील ने अपनी जेब की ओर हाथ बढाया ।
“खबरदार ।” - सोम प्रकाश चेतावनीभरे स्वर से बोला ।
“घबराओ नहीं” - सुनील मुस्कराकर बोला - “मेरे पास रिवाल्वर नहीं है । मैं जेब से अखबार निकाल रहा हूं ।”
“अखबार में मेरे बारे में क्या है ?”
“अखबार में पुलिस द्वारा तुम्हें फरार घोषित किया गया है और लोगों से अपील की गई है कि अगर किसी को कामता नाथ के हत्यारे सोम प्रकाश के बारे में कोई जानकारी हो तो वह फौरन पुलिस को सूचित करे ।”
“कामता नाथ का हत्यारा मैं !” - सोम प्रकाश अचकचा कर बोला - “क्या बक रहे हो ?”
“पुलिस की निगाहों में तुम्हीं कामता नाथ के हत्यारे हो । तुम्हारी जानकारी के लिये हर किसी को मालूम हो चुका है कि तुम आराधना के भाई हो और यह भी कि तुम विशालगढ की गोला बारूद बनाने वाले आर्डीनेन्स फैक्ट्री में काम कर चुके हो । और इसलिये तुम बम बनाने के बारे में पूरी जानकारी रखते हो । और कामता नाथ की कार में जो बम रख गया था, वह हैण्डमेड था । तुम्हारे खिलाफ सबसे बड़ा सबूत यह है कि तुम फरार हो । तुम्हारी गिरफ्तारी के वारन्ट निकले हुए हैं, मिस्टर ।”
सोम प्रकाश ने आगे बढकर सुनील की जेबें थपथपाई ओर जब उसे विश्वास हो गया कि सुनील के पास कोई हथियार नहीं था तो वह बोला - “भीतर आओ ।”
सुनील और आराधना भीतर प्रविष्ट हो गये । सोम प्रकाश उन्हें एक भीतरी कमरे में ले आया । उसके संकेत पर वे दोनों एक सोफे पर बैठ गये ।
“अखबार दिखाओ ।” - सोम प्रकाश बोला ।
सुनील ने जेब से ब्लास्ट का ईवनिंग एडीशन निकालकर उसकी ओर बढा दिया ।
सोम प्रकाश ने अखबार ले लिया । वह उनसे दूर एक कुर्सी पर बैठ गया और बड़ी व्यग्रता से अखबार पढने लगा । ज्यों-ज्यों वह अखबार पढता गया उसका चेहरा गम्भीर होता गया । अन्त में उसने अखबार जमीन पर फेंक दिया और बड़े ही चिन्तित स्वर में बड़बड़ाया - “इतना बखेड़ा हो गया और सन्तोष कुमार ने मुझे कुछ भी नहीं बताया ।”
“यानी कि सन्तोष कुमार को मालूम था कि तुम यहां हो ?” - सुनील बोला ।
सोम प्रकाश ने उत्तर नहीं दिया ।
“अखबार में तो तुम्हारे विरुद्ध केवल वही बात छपी है जो पुलिस को मालूम है । एक दो बातें ऐसी भी हैं जो अभी केवल मुझे मालूम हैं ।”
“तुम्हें क्या मालूम है ?” - सोम प्रकाश तीव्र स्वर में बोला ।
“मुझे यह मालूम है कि सन्तोष कुमार को आरम्भ में भेजा गया चेतावनीभरा पत्र तुमने टाइप किया था । और ‘फिल्म संसार’ को संतोष कुमार की हत्या के दो प्रयत्नों की रिपोर्ट भी तुमने भेजी थी । मैंने सन्तोष कुमार की कोठी पर पड़ा तुम्हारा टाइप राइटर चैक किया था । पहली चिट्ठी और दोनों रिपोर्ट तुम्हारे टाइप राइटर पर टाइप की गई थी ।
“लेकिन मैंने कामता नाथ की हत्या नहीं की ।”
“कामता नाथ तो सन्तोष कुमार के धोखे में मारा गया था” - आराधना बोला - “तुम सन्तोष कुमार की बात करो ।”
“लेकिन वह इलजाम भी सरासर झूठा है” - सोम प्रकाश जोर से बोला - “मैं तो ख्वाब में भी सन्तोष कुमार की हत्या करने के बारे में नहीं सोच सकता था । दरअसल...”
“मुझे मालूम है” - सुनील बोला - “अगर तुम सन्तोष कुमार की हत्या करना चाहते होते तो उसे जहर खाकर मर जाने देते । उसे साबुन का घोल पिलाकर उसकी जान बचाने की कोशिश नहीं करते ।”
“पुलिस को यह कैसे मालूम हुआ कि आराधना मेरी बहन है ?” - सोम प्रकाश ने पूछा ।
“किसी ने पुलिस को हैडक्वार्टर को एक गुमनाम टेलीफोन काल करके यह बताया था ।”
“और पुलिस को यह कैसे मालूम हुआ कि मैं गोला बारूद बनाने वाली फैक्ट्री में काम कर चुका हूं ।”
“यह मुझे नहीं मालूम ।”
“और पुलिस को संदेह है कि सन्तोष कुमार की हत्या का प्रयत्न मैं कर रहा था ।”
“संदेह क्या, पुलिस को पूरा विश्वास है ।”
सोम प्रकाश कई क्षण चुप रहा । फिर उसने एक गहरी सांस ली और बोला - “मिस्टर, मेरी सूरत अच्छी तरह देख लो आज के बाद तुम यह दावा कर सकते हो कि दुनिया का सबसे बड़ा गधा तुमने अपनी आंखों से देखा है ।”
“क्या मतलब ?”
“मेरे से बड़ा अक्ल का दुश्मन तुम्हें सारी दुनिया में नहीं मिल सकता ।”
“तुम अपने आपको इतने बड़े-बड़े टाइटल किस सन्दर्भ में दे रहे हो ? किस्सा क्या है ?”
“किस्सा शुरु से सुनो” - सोम प्रकाश गम्भीरता से बोला - “सबसे पहली बात यह है कि सन्तोष कुमार की हत्या करने की कोशिश कोई भी नहीं कर रहा है ।”
“क्या ?” - सुनील और आराधना लगभग एक साथ बोल पड़े ।
“है न मजेदार बात ?”
“लेकिन” - सुनील हैरानी से बोला - “लेकिन फिर यह सब...”
“हे भगवान !” - एकाएक आराधना उसकी बात काटकर बोली - “कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि यह सब एक पब्लिसिटी स्टण्ट था ?”
“करैक्ट” - सोम प्रकाश बोला - “तुम क्योंकि खुद फिल्म लाइन से सम्बन्धित हो इसलिये यह बात सुनील से जल्दी समझ गई हो । सन्तोष कुमार की हत्या का प्रयत्न एक कम्पलीट होक्स था, पब्लिसिटी स्टण्ट था । सन्तोष कुमार का नाम एक बार फिर बच्चे बच्चे की जुबान पर चढाने का तरीका था ।”
“कमाल है !” - सुनील मन्त्र मुग्ध सा बोला ।
“कमाल तो है ही । सन्तोष कुमार की निगाहों में उसकी पतन के गर्त में गिरती हुई ख्याति को बचाने का यही एक तरीका था । सन्तोष कुमार के नाम से जुड़कर कोई बहुत बड़ा हंगामा हो, ढेर सारा शोर मचे, भारी पब्लिसिटी हो और संतोष कुमार की ओर सारे फिल्म उद्योग का और हर फिल्म दर्शक का ध्यान आकर्षित हो । पहले उसने माधुरी नाम की अपने से बीस साल छोटी लड़की से शादी की घोषणा की थी लेकिन उसका कोई वांछित परिणाम नहीं निकला था । फिर सन्तोष कुमार के खुराफाती दिमाग ने यह स्कीम सोची ।”
“कि यह प्रकट किया जाये कि उसकी हत्या का प्रयत्न किया जा सकता है ?” - सुनील बोला ।
“हां । सन्तोष कुमार को ऐसी पब्लिसिटी की बहुत जरूरत थी । तरक्की के साथ समस्या यह होती है कि आदमी जितना ज्यादा ऊंचा उठ जाता है, उतने ही ज्यादा फासले से वह नीचे गिरता है । सन्तोष कुमार के पतन की वजह वह खुद तो था ही । फिल्म निर्माताओं में वह इतना बदमिजाज आदमी मशहूर हो चुका है कि इच्छा होते हुए भी कई लोग उसे अपनी फिल्म में नहीं लेते । रही सही कसर तब पूरी हो गई जब उसकी ऊपर नीचे तीन चार फिल्में पिट गईं । निर्माताओं के ज्ञान चक्षु खुल गये । उन्हें पहली बार दिखाई दिया कि महान कलाकार सन्तोष कुमार की फिल्म भी पिट सकती हैं । निर्माताओं की उसमें दिलचस्पी और घट गई । हालत यह हो गई कि सन्तोष कुमार के पास केवल उत्तमचन्दानी की फिल्म इन्कलाब रह गई । और उसमें भी उसका काम लगभग समाप्त हो चुका था । कोई नई आफर उसके पास पहुंची नहीं । उसे लगा कि इन्कलाब के खत्म होने तक उसने कोई नया कान्ट्रेक्ट नहीं किया तो इतना बड़ा स्टार होने के बाद भी वह एक ऐसा अभिनेता बन कर रहा जायेगा । जिसके पास एक भी फिल्म नहीं । अखबारों में उसका नाम छपना बन्द हो गया था । निर्माताओं को उसका ध्यान ही नहीं आता था । यहां तक कि फिल्म उद्योग से सम्बन्धित बड़े लोग उससे बहुत कम मिलते जुलते थे । इस स्थिति को सम्भालने का उसे एक ही तरीका सूझा और वह यह था कि एक जोर का धमाका हो और सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो जाये । अखबारों की बैनर हैडलाइन्स में उसका नाम आ जाये और वह एक बार वह फिर सबकी चर्चा का विषय बन जाये । फिर झुण्ड के झुण्ड में लोग उससे मिलने जुलने आयें । लोगों का ध्यान पूरी तरह उसकी ओर आये । जब इतना हंगामा मचता तो स्वभाविक था किसी न किसी को उस पब्लिसिटी के दौरान में उसे फिल्म में लेना भी सूझता ।”
सोम प्रकाश एक क्षण रुका और फिर बोला - “इस सिलसिले में उसने मुझे अपना राजदार बनाया । सबसे पहले उसने मुझसे अपने नाम एक धमकी भरी चिट्ठी टाइप कराई । वह चिट्ठी उसने खुद अपने उस सूट की जेब में रखी थी जो उसने इन्कलाब की शूटिंग में पहना था । उचित अवसर आने पर उसे पढकर वह खूब लाल पीला हुआ । लेकिन बाद में उसने उससे बड़ी घटना के लिये भूमिका बनाने की खातिर यही कहा कि शायद किसी ने उसके साथ मजाक किया है । इसलिये सारी बात को वहीं ड्राप कर दिया गया । अगली बार रिवाल्वर की गोलियां रखी जाने वाली घटना हो गई ।”
“रिवाल्वर में असली गोलियां सन्तोष कुमार ने ही डाली थी ?” - सुनील ने पूछा ।
“बिल्कुल । उसके लिये वह बड़ा सहूलियत का काम था । कामता नाथ ने शूटिंग में इस्तेमाल होने वाली वह रिवाल्वर रामचन्द्र को दी थी । रामचन्द्र ने रिवाल्वर को ले जाकर ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया था । सन्तोष कुमार के लिये रिवाल्वर में दो असली गोलियां डाल लेना बड़ा आसान काम था । बाद में उसने बड़े स्वाभाविक ढंग से रामचन्द्र की दिशा में रिवाल्वर की नाल करके गोली चला दी थी । उसके बाद की घटना तुम उत्तमचन्दानी सेठ से सुन ही चुके हो । लोगों ने यही समझा कि सन्तोष कुमार अनजाने में ही रामचन्द्र के हाथों मारा जाने से बाल बाल बच गया था । फिर सन्तोष कुमार ने मुझ से कहा कि मैं उस घटना की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके फिल्म संसार को भेज दूं ।”
“पुलिस को सूचना क्योंकि नहीं दी गई ? अगर पुलिस को सूचना दी जाती तो वह बात सारे अखबारों में छप सकती थी । जबकि तुम्हारे तरीके से पहली बार में केवल ‘फिल्म संसार’ में ही वह घटना छपी ।”
“उसकी वजह यह थी कि सन्तोष कुमार उस मामले में पुलिस का तत्काल दखल नहीं चाहता था । उसे भय था कि कहीं पुलिस भांप न जाये कि सब कुछ एक फ्राड था ।”
“लेकिन पुलिस बाद में अखबार में घटना का विवरण पढ कर भी तो आ सकती थी जैसे कि जहर वाली घटना के बाद आ गई थी ।”
“बात पुरानी हो चुकने के बाद पुलिस के आने से सन्तोष कुमार चिन्तित नहीं था । वह तो चाहता था कि पुलिस तत्काल न आये । मामला गर्म होने पर उसे भय था कि कहीं पुलिस के हाथ में कोई ऐसा सूत्र न लग जाये जिससे सन्तोष कुमार की पोल खुल जाये । जहर वाले मामले में पुलिस अगले दिन आई थी और वह भी तब जब जहर वाली सैंडविच फैंकी जा चुकी थी और साबुन खा घोल पीने से सन्तोष कुमार के पेट से निकली गन्दगी साफ करवाई जा चुकी थी ।”
“सैंडविच में जहर किसने मिलाया था ?”
“मैंने । लेकिन उस सैंडविच में नहीं जिसका एक भाग सन्तोष कुमार ने खाया था । उस सैंडविच में जहर नहीं था । सैंडविच खाने के बाद तबीयत खराब होने का सन्तोष कुमार ने अभिनय किया था और बड़ा शानदार अभिनय किया था । मैंने उसे जल्दी से साबुन का घोल पिलाया था । सन्तोष कुमार उलटियां करने लगा था । हर कोई बुरी तरह बौखला गया था । उसी भाग दौड़ में मैंने सन्तोष कुमार की खाई हुई सैंडविच उठाकर जेब में रख ली थी और उसके स्थान पर एक वैसी ही थोड़ी सी खाई सैंडविच रख दी थी जिसमें कि मैं पहले ही जहर डाल कर लाया था । इस घटना का विवरण भी मैंने पहले की तरह फिल्म संसार में भेज दिया था और, भाई साहब, इन दो घटनाओं ने फिल्म संसार में तहलका मचा दिया था । वाकई सन्तोष कुमार को आशातीत पब्लिसिटी मिली थी । उसका पब्लिसिटी स्टन्ट पूरी तरह कामयाब रहा था । तब मैंने सन्तोष कुमार को राय भी दी थी कि इतना ही काफी था । उसका मतलब हो हल हो ही चुका था । और पुलिस का ध्यान भी उस ओर आकर्षित हो चुका है । अब अगर कोई नई घटना घटती तो गड़बड़ हो सकती थी और अगर कोई गड़बड़ ही जाती तो सारे किये कराये पर पानी फिर जाता था लेकिन सन्तोष कुमार मेरी बात नहीं माना । माना इसलिये नहीं क्योंकि वह पहले ही कार में बम वाली घटना की रूपरेखा तैयार कर चुका था । उसने कहा कि कार में बम वाली घटना आखिरी होगी ।”
सोम प्रकाश एक क्षण के लिये रुका और फिर बोला - “मैंने बम बनाया और सन्तोष कुमार की उस लाल रंग की विदेशी कार में फिट कर दिया जिसे वह दुल्हन के नाम से पुकारता था । वह एक कमजोर सा बम था । इग्नीशन आन करने से बम फटना था और केवल इतना ही होना था कि एक जोर का धमाका होता और कार का बोनट उधड़ जाता । इससे अधिक नुकसान की सम्भावना ही नहीं थी और कार के भीतर ड्राइविंग सीट पर बैठे सन्तोष कुमार का तो कुछ बिगड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता था ।”
“मतलब यह कि वह दुर्घटना भी सन्तोष कुमार के साथ होनी प्लान की गई थी ?”
“बिल्कुल ।”
“फिर कामता नाथ बीच में कहां से टपक पड़ा ?”
“यह बात बाद में मैंने सन्तोष कुमार से पूछी थी । वह बोला कि वह इस विचार से थोड़ा भयभीत होने लगा था । कि उसके इग्नीशन आन करने से ही बम फट पड़ेगा । उसी क्षण कामता नाथ ने थोड़ी देर के लिये उससे गाड़ी मांग ली तो उसे एक ज्यादा सहूलियत वाला तरीका दिखाई दे गया । उसने सोचा कि अगर उसकी गाड़ी में कामता नाथ की मौजूदगी में भी बम फटता है तो भी तो लोग यह समझेंगे कि वह उसकी हत्या का प्रयत्न था । इसलिये उसने कार की चाबी कामता नाथ को दे दी । फिर कामता नाथ के इग्नीशन आन करने की देर थी कि कामता नाथ और कार दोनों के परखच्चे उड़ गये ।”
“लेकिन यह कैसे सम्भव हुआ ? तुम तो कहते थे कि बम इतना कमजोर ता कि वह केवल एक जोर का धमाका कर सकता था और कार का बोनट उधेड़ सकता था ?”
“बिल्कुल यही बात थी । उस समय तो मैं भी बेहद हैरान हुथा था कि उस मामूली से बम से इतना भयानक विस्फोट कैसे हो गया । इतनी भारी क्षति कैसे हो गई । मजाक-मजाक में कामता नाथ की मौत हो जाने के तो विचार मात्र से ही मैं आतंकित हो उठा था । मैंने सन्तोष कुमार से बात की तो वह मुझ पर चढ दौड़ा । वह मुझ पर इलजाम लगाने लगा कि मुझे बम की शक्ति का ठीक से अन्दाजा नहीं लगा पाया था । लापरवाही से मैंने एक शक्तिशाली बम बना डाला था और मेरी ही गलती से कामता नाथ की मौत हो गई थी । उसके कथनानुसार अगर आखिरी क्षण में कामता नाथ ने कार न मांग ली होती तो वह खुद मर गया होता । उस समय क्योंकि मैं उस भयंकर घटना से बहुत आंतकित हो उठा था और क्योंकि मेरे मन में चोर था इसलिये मैं बहुत भयभीय हो उठा । इसीलिये जब सन्तोष कुमार ने मुझे कहा कि मेरी भलाई इसी में थी कि में भाग जाऊं तो मैं बिना कुछ सोचे समझे भाग निकला ।”
“सन्तोष कुमार को तुम्हारे भाग निकलने से तुम्हारी क्या भलाई दिखाई दी थी ?”
“वह कहता था कि भय और आंतक की वजह से मेरा अपने मस्तिष्क पर कन्ट्रोल नहीं रहा था । अगर पुलिस ने रुटीन में भी मुझसे सवाल पूछने आरम्भ कर दिये तो मैं शायद पुलिस से डर कर ही बहुत सी बातें उगल डालूंगा । सन्तोष कुमार कहता था कि अगर मैं एक दो दिन पुलिस की निगाहों से दूर रहूंगा तो किसी को मेरा ख्याल भी नहीं आयेगा । उस समय मेरे भय और आंतक से जड़ हुए मस्तिष्क को यह बात इतनी अपील की थी कि मैं तत्काल वहां से खिसक गया था और यहां आकर रहने लगा था । यह तो मुझे अब पता लगा है कि पुलिस ने मेरे खिलाफ ढेर सारे सबूत एकत्रित कर लिये हैं, पुलिस मुझे हत्यारा समझ रही है और मेरे खिलाफ गिरफ्तारी के वारन्ट निकले हुए हैं । अब मुझे महसूस हो रहा है कि मैंने उस समय सन्तोष कुमार के कहने में आकर कितनी भारी मूर्खता की थी । मुझे भागना नहीं चाहिये था । मेरे एकाएक गायब हो जाने से पुलिस ने मुझे अपराधी समझा और मैं पुलिस की निगाहों में मर्डर सस्पैक्ट नम्बर वन बन गया और सच पूछो तो अब तो मुझे सन्तोष कुमार पर भी सन्देह होने लगा है । मेरे दिमाग में कई शंकायें पनप रही हैं ।”
“क्या ?”
“जब से कामता नाथ मरा है । तभी से मैं इस बात को सैंकड़ों बार सोच चुका हूं कि मेरे द्वारा कार में फिट किये मामूली से बम से इतना भयानक विस्फोट कैसे हो गया । कुल मिलाकर मैं इसी नतीजे पर पहुंचा थी कि जरूर मेरे से ही कोई लापरवाही हो गई थी । मैं जिसे एक मामूली बम समझ रहा था, वह मेरी लापरवाही से एक शक्तिशाली बम बन गया था लेकिन अब मुझे लगता है कि बम के मामले में जरूर सन्तोष कुमार ने कोई शरारत की थी ।”
“कैसी शरारत ?”
“मैंने उसे बताया था कि नाइट्रो-ग्लिसरीन एक भारी विस्फोटक पदार्थ था । मेरे कार में बम फिट कर चुकने के बाद जरूर उसने बम में और नाइट्रो ग्लिसरीन मिलाई होगा ।”
“लेकिन फाटक पर खड़े गोरखे ने किसी को सन्तोष कुमार की कार के पास आते नहीं देखा था ।”
“किसी को नहीं देखा होगा । लेकिन खुद सन्तोष कुमार का अपनी कार के पास जाना उसे इतना स्वाभाविक लगा होगा कि उसने उसको नोटिस में ही नहीं दिया होगा । आखिर गोरखा सन्तोष कुमार द्वारा ही कार में बम लगाये जाने की अपेक्षा तो नहीं कर सकता न ।”
“तुम ठीक कह रहे हो ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर गम्भीर स्वर में बोला - “सोम प्रकाश, अगर तुम इसी लाइन पर थोड़ा और सोचो तो तुम्हें महसूस होगा कि सन्तोष कुमार ने बाकायदा एक नपी तुली स्कीम बनाकर कामता नाथ की हत्या की है और अपनी स्कीम में तुम्हें एक मददगार की तरह नहीं मोहरे की तरह इस्तेमाल किया है । उसके दिमाग में आरम्भ से ही यह विचार था कि कामता नाथ की मौत के बाद वह तुम्हें ही पुलिस की निगाहों में सबसे सन्दिग्ध व्यक्ति बना देगा । इसीलिये उसने तुम्हें फरार हो जाने की राय दी और तुम मूर्खों की तरह भाग निकले ।”
“मैं डर गया था ।”
“वजह कुछ भी थी । बहरहाल फरार हो कर तुमने खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी है । तुम्हारे फरार हो जाने के बाद उसने उत्तमचन्दानी सेठ के दिमाग में यह बात बिठाई थी कार में बम फिट करने का मौका केवल तुम्हें ही हासिल था क्योंकि उसके कथनानुसार दुर्घटना से कुछ देर पहले तुमने कार मांगी थी और उसे ड्राइव करते हुए स्टूडियो से बाहर ले गये थे । उसके कथानुसार तुमने कार में बम फिट करने की नीयत से ही उससे कार मांगी थी ।”
“तुम ठीक कह रहे हो” - सोम प्रकाश बोला - “अब मुझे भी विश्वास होता जा रहा है कि सन्तोष कुमार ने ही जानबूझ कर कामता नाथ की हत्या की है और साथ ही उस इलजाम मे वह मुझे फंसाना चाहता है । इसका एक सबूत यह भी है कि सन्तोष कुमार को मालूम है कि मैं यहां रह रहा हूं लेकिन फिर भी उसने मुझे यह नहीं बताया कि मेरे वारन्ट निकले हुये हैं । मुझे तो लगता है कि पुलिस को गुमनाम टेलीफोन करके मेरे और आराधना के रिश्ते के बारे में बताने वाला आदमी भी सन्तोष कुमार ही था और सम्भव है यह भी उसी ने पुलिस को बताया हो कि मैं विशालगढ में बम बनाने वाली आर्डीनेन्स फैक्ट्री में काम करता था ।”
“सन्तोष कुमार को ये बातें कैसे मालूम हुई होंगी ?”
“पहली बात के बारे में तो मुझे खुद हैरानी है लेकिन दूसरी बात तो उसे मैंने ही बताई थीं । तभी तो उसने मुझे बम बनाने के लिये कहा था । एक और भी सन्देहास्पद बात उसने मुझे कही थी । लेकिन मैं तब उसे समझ नहीं पाया ।”
“क्या ?”
“दुर्घटना के बाद सन्तोष कुमार ने मुझ से कहा था कि अगर कोई पूछे तो में यही कहूं कि कामता नाथ ने ही सन्तोष कुमार से कार मांगी थी और मेरे सामने मांगी थी । जब कि वास्तव में सम्भव है कि सन्तोष कुमार ने जबरदस्ती कामता नाथ पर अपनी कार थोपी हो ताकि वह कार में बैठे, इग्नीशन आन करे और उसके परखचे उड़ जायें ।”
“कामता नाथ की अपनी फियेट गाड़ी भी बिगड़ी नहीं थी बल्कि जानबूझ कर बिगाड़ी गई थी । किसी ने लम्बे लम्बे कील घुसा कर कार के दो पहिये पंचर कर दिये थे ।”
“जरूर यह काम सन्तोष कुमार ने ही किया होगा । कामता नाथ अपनी कार न होने पर ही तो किसी से कार मांगेगा । सन्तोष कुमार की शानदार विदेशी गाड़ी को ड्राइव करने का लालच हर किसी को आ सकता है । सन्तोष कुमार ने बड़ी दयानतदारी से कहा होगा कि कामता नाथ उसकी कार ले जाये और कामता नाथ झट मान गया होगा ।”
“एक बात आप लोग नहीं सोच रहे हैं ।” - एकाएक आराधना बोली ।
“कौन सी बात ?” - सुनील बोला ।
“आखिर सन्तोष कुमार ने कामता नाथ की हत्या क्यों की ? उस हत्या के पीछे की उद्देश्य भी तो होना चाहिये ।”
“पांच मिनट पहले तक तो सन्तोष कुमार के पास कामता नाथ की हत्या का बड़ा तगड़ा उद्देश्य था ।”
“क्या ?”
सुनील ने उन्हें वीणा माथुर वाली घटना कह सुनाई ।
“कामता नाथ सन्तोष कुमार को वीणा माथुर से शादी करने के लिये मजबूर कर सकता था” - सुनील बोला - “अगर आज वीणा माथुर जीवित होती तो यह कहा जा सकता था कि शायद संतोष कुमार ने कामता नाथ की हत्या वीणा माथुर से पीछा छुड़ाने के लिये ही करा हो क्योंकि कामता नाथ संतोष कुमार को उस बखेड़े से फंसा सकता था । लेकिन अकेली वीणा माथुर कुछ नहीं कर सकती थी । समझ में यह नहीं आता कि वीणा माथुर के मर जाने के बाद सन्तोष कुमार ने कामता नाथ की हत्या क्यों की ?”
“क्योंकि मैं उससे नफरत करता था ।”
सुनील एकदम चिहुंका । वह वाक्य सोम प्रकाश या आराधना में से किसी के मुंह से नहीं निकला था आवाज दरवाजे की ओर आई थी । उसकी गरदन यन्त्रचलित सी दरवाजे की ओर घूम गई ।
दरवाजे पर सन्तोष कुमार खड़ा था । उसके हाथ में एक रिवाल्वर थी जो उन तीनों को कवर किये हुये थी ।
सोम प्रकाश मुंह बाये कभी सन्तोष कुमार की ओर, और कभी उसके हाथ में थमी रिवाल्वर की ओर देख रहा था । उसकी गोद में उसकी अपनी रिवाल्वर अब भी पड़ी थी लेकिन रिवाल्वर की ओर हाथ तक बढाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी ।
“मैं कामता नाथ से घृणा करता था । दुनिया का वह अकेला आदमी था जिसने मेरे मन में हार का अहसास पैदा किया था । मेरे विरोध में वीणा माथुर की हिमायत करके उसने वाकेई मुझे मुसीबत में डाल दिया था । इसलिये जब मुझे कामता नाथ की हत्या करने का अवसर दिखाई दिया तो मैं उसे दूसरी दुनिया में भेजने का लोभ सवरण नहीं कर सका ।”
“तुम कब से यहां हो ?” - सुनील के मुंह से निकला ।
“मैं तुम्हारे आने के लगभग दो मिनट बाद ही भीतर आ गया था और तभी से तुम्हारी बाते सुन रहा हूं ।”
“तुमने सब कुछ सुना है ?”
“सुनने लायक सब कुछ सुना है । तुम वाकेई अक्लमन्द आदमी हो । मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं । मिस्टर, अगर तुम दखल नहीं देते तो मैं सोम प्रकाश को पूरी तरह मूर्ख बनाने में सफल हो चुका था । एक आध दिन बाद मैं पुलिस को एक और गुमनाम टेलीफोन काल करके यह बता देता कि सोम प्रकाश कहां छुपा हुआ था और फिर यह कामता नाथ की हत्या के अपराध में धर लिया जाता । यह इस बात से कभी इनकार नहीं कर पाता कि कार में बम इसने फिट किया था और यह हमेशा यही समझता कि इसी से बम की विस्फोटक शक्ति का अनुमान लगाने में गलती हो गई है ।”
“मैं इतना मूर्ख नहीं हूं ।”
“उसके विपरीत तुम इतने ही मूर्ख हो । सिर्फ सुनील से दो बातें कर चुकने के बाद तुम वक्ती तौर पर अपने आपको होशियार समझने लगे हो ।”
“मैं सारी दुनिया को बता देता कि वह सब तुम्हारा सोचा हुआ एक पब्लिसिटी स्टण्ट था ।”
“तुम्हारी बात पर कोई विश्वास नहीं करता । तुम कहते वह पब्लिसिटी स्टण्ट था और मैं कहता कि वह पब्लिसिटी स्टण्ट नहीं था । तुम्हारे मुकाबले में मेरी ही बात मानी जाती । और अगर पुलिस यह मान भी लेती कि वह पब्लिसिटी स्टण्ट था तो भी तुम कामता नाथ की मौत की जिम्मेदारी से हरगिज नहीं बच सकते थे । बम तुमने ही बनाया था और उसे कार में तुमने फिट किया था ।”
“लेकिन वह बम इतना शक्तिशाली नहीं था । कि कामता नाथ के और कार के परखचे उड़ा देता ।”
“कौन जानता है वह बम कितना शक्तिशाली था” - वह दार्शनिक भाव से बोला - “फिर भी तुम घबराओ नहीं । पुलिस तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी ।”
सोम प्रकाश के चेहरे पर छुटकारे के भाव प्रकट हुए ।
“क्योंकि मैं तुम्हें अभी यहीं गोली मार देने वाला हूं” - सन्तोष कुमार आगे बोला - “मुझे अफसोस है कि तुम्हारी वजह से तुम्हारे साथ तुम्हारी बहन और यह रिपोर्टर भी मारा जा रहा है ।”
सोम प्रकाश आतंकित दिखाई देने लगा ।
“तुम मेरी हत्या करोगे ?” - सोम प्रकाश आंतक और अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।
सन्तोष कुमार के होठों पर एक क्रूर मुस्कराहट आई और उसकी उंगलियां रिवाल्वर के ट्रीगर पर कस गई ।
एकाएक सोम प्रकाश ने सन्तोष कुमार के पीछे द्वार की ओर देखा और फिर जोर से चिल्लाया - “पकड़ लो ।”
सन्तोष कुमार बौखला गया । उसने घूम कर पीछे देखा । उतने समय में सोम प्रकाश ने अपने गोद में से अपनी रिवाल्वर उठाली और फौरन सन्तोष कुमार पर फायर झोंक दिया । लेकिन निशाना चूक गया । गोली सन्तोष कुमार के समीप से सनसनाती हुई गुजरी और पिछली दीवार से जा टकराई ।
सन्तोष कुमार ने फायर किया ।
गोली सोम प्रकाश के कन्धे से टकराई, उसके हाथ से रिवाल्वर निकल गई और वह उलट कर उसी कुर्सी पर जा गिरा जिस पर से वह एक क्षण पहले उठा था । गिर पड़ने की वजह से ही वह सन्तोष कुमार की रिवाल्वर से निकली दूसरी गोली का शिकार होने से बच गया । गोली उसके सिर पर से गुजर गई ।
फिर एकाएक एक और फायर हुआ ।
सन्तोश कुमार के हाथ से रिवाल्वर निकल गई और वह अपनी रिवाल्वर वाली बांह पकड़ कर वही बैठ गया । उसकी बांह में से खून बहने लगा था और पीड़ा से उसके नेत्र मिच गये थे ।
सुनील ने द्वार की ओर देखा ।
द्वार पर एक सब-इन्सपेक्टर खड़ा था । उसके हाथ में एक रिवाल्वर थमी थी जिसकी नाल से धुंआ निकल रहा था ।
सब इन्सपेक्टर की बगल में सादे कपड़े पहने एक आदमी खड़ा था और उसके पीछे, पुलिस के तीन सिपाही थे ।
सुनील ने छुटकारे की गहन सांस ली ।
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पुलिस के साथ जो सादे कपड़े पहने हुए आदमी था, वह खुफिया विभाग का एक जासूस था ।
“हम लोग पहले से ही सन्तोष कुमार के पीछे लगे हुए थे” - बाद में उसने बताया - “कामता नाथ वीणा माथुर की मौत से पहले ही पुलिस से सम्पर्क स्थापित कर चुका था और सारी स्थिति बयान कर चुका था लेकिन उस समय तक क्योंकि पुलिस को किसी ने किसी प्रकार की की रिपोर्ट नहीं लिखाई थी, इस लिये पुलिस कुछ कर नहीं सकती थी । वीणा माथुर की हत्या की गई थी लेकिन पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया था कि वीणा माथुर नींद की गोलियां खाकर मरी थी । फिर भी हमने सन्तोष कुमार को एकदम संदेह से मुक्त नहीं किया गया था । वह बड़ा आदमी था इसलिये उस पर हमारी सीधे हाथ डालने की हिम्मत तो हुई नहीं लेकिन हम इस आशा से गुप्त रूप से उसकी निगरानी करते रहे कि शायद कोई सूत्र हमारे हाथ लग जाये । कामता नाथ की हत्या के समय हमें फिर सन्तोष कुमार पर सन्देह हुआ था । हालांकि सोम प्रकाश के खिलाफ ज्यादा प्रमाण थे लेकिन फिर भी हमने संतोष कुमार की ओर से हाथ नहीं खींचा था । और उसी सावधानी का यह प्रमाण था कि मैं सन्तोष कुमार का पीछा करता हुआ झेरी के इस काटेज तक आया था । मैंने सन्तोष कुमार को रिवाल्वर हाथ में थामकर भीतर घुसते देखा । मैं सशस्त्र नहीं था । इसलिये मैं फौरन स्थानीय पुलिस स्टेशन की ओर भागा । वहां से मैं सब-इन्सपेक्टर और सिपाहियों को साथ लेकर वापिस लौटा और भगवान का शुक्र है कि मैं समय पर ही वापिस लौटने में सफल हो गया वर्ना तीन आदमियों की जान खामखाह चली जाती ।”
संतोष कुमार ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया । उसने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सोम प्रकाश द्वारा बनाकर कार में लगाये बम में नाइट्रो-ग्लिसरीन का अनुपात बढाकर बम को बेहद शक्तिशाली बना दिया था । उसी ने पुलिस को फोन करके बताया था । कि सोम प्रकाश आराधना का सगा भाई था और यह कि सोम प्रकाश पहले विशालगढ की बम बनाने वाली आर्डीनेंस फैक्ट्री में काम करता था । और उसी ने वीणा माथुर को नींद की गोलियां खिलाई थी ।
वह वीणा माथुर को नींद की गोलियां खिलाने में सफल कैसे हो गया ?
वह गुप्त रूप से रायल होटल में वीणा माथुर से मिला था फिर उसने वीणा माथुर से वादा किया था कि वह उससे शादी कर लेगा लेकिन वीणा माथुर को पांच महीने का गर्भ था । सन्तोष कुमार ने उसे कहा कि अगर शादी के चार महीने बाद ही उसके बच्चा हो गया तो दोनों की भारी बदनामी होगी । इस समस्या का हल सन्तोष कुमार ने यह निकाला कि इस बार वह गर्भपात हो जाने दे । उसने कहा कि वह अपने एक डाक्टर मित्र से कुछ ऐसी गोलियां लाया है जिससे बिना किसी तकलीफ वीणा माथुर उस मुसीबत से छुटकारा पा जायेगी । वीणा माथुर सन्तोष कुमार के झांसे में आ गई और उसने संतोष कुमार की दी वे गोलियां खा लीं । वे गोलियां नींद की थी और उन्ही की वजह से उसकी मृत्यु हो गई ।
सन्तोष कुमार पर बड़े लम्बे अरसे तक मुकद्दमा चला । उसका वकील अपनी योग्यता से यह सिद्ध करने में सफल हो गया कि जब सन्तोष कुमार किसी गलत परिस्थिति में बुरी तरह फंस जाता था तो वह मानसिक रूप से इतना परेशान हो जाता था, इतनी भारी टैन्शन का शिकार हो जाता था कि वह अस्थाई रूप से पागल हो जाता है । वीणा माथुर और कामता नाथ की हत्यायें और सोम प्रकाश, आराधना और सुनील की हत्या का प्रयत्न उसके अस्थाई पागलपन का ही नतीजा थीं । सन्तोष कुमार के हक में दूसरा अच्छा प्वायन्ट यह था । कि उसने बड़ी ही शराफत से अपना अपराध स्वीकार कर लिया था ।
लाखों रुपया फूंकने के बाद अपने सुयोग्य वकील के प्रयत्नों के फलस्वरूप वह फांसी की सजा पाने से बच गया उसे आजीवन कारावास की सजा हुई ।
उस सारे सिलसिले में उसने एक अच्छा काम और किया ।
उत्तमचन्दानी सेठ की स्पेशल अपील पर चार बार सन्तोष कुमार को पुलिस के संरक्षण में मिनर्वा स्टूडियो में लाया गया और सन्तोष कुमार ने बिना किसी विरोध के ‘इन्कलाब’ में ने अपना काम पूरा कर दिया । संतोष कुमार के इन्कार कर देने पर उत्तमचन्दानी की अपील बेकार हो जाती । उसे जबरदस्ती ‘इन्कलाब’ में काम करने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता था ।
उसी दौरान उत्तमचन्दानी सेठ ने अपनी अगली फिल्म की घोषणा की । उसमें उसने फिल्म उद्योग के टाप स्टार के साथ आराधना को हीरोइन लिया । आराधना को उस तथ्य की कभी जानकारी नहीं हो सकी कि उसे फिर से स्तर की फिल्मों में ब्रेक दिलवाने वाला आदमी सुनील था ।
कामता नाथ उसे फिल्म उद्योग से सम्बन्धित अपने इकलौते मित्र के रूप में हमेशा याद रहा ।
समाप्त