बेल बजाते ही मोना चौधरी के कानों में राधा का गुस्से से भरा स्वर पड़ा।

“नीलू! तू सीधा हो जा। सुबह जाकर इस तरह आधी-आधी रात को घर लौटना, कोई शरीफ आदमियों का काम नहीं है। काम-धंधा तू क्या करता है। पता नहीं। सारा वक्त तू कहां बिताता है, उसका कोई हिसाब नहीं तेरे पास। खाना घर पर बना रहता है और पेट बाहर से भर आता....।” इसके साथ ही दरवाजा खुला।

सामने मोना चौधरी को खड़ा पाकर हड़बड़ा सी उठी। मोना चौधरी मेकअप उतार चुकी थी।

मोना चौधरी के चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी।

“मोना चौधरी।” राधा के होंठों से निकला।

“कैसी हो राधा?” मोना चौधरी ने भीतर प्रवेश किया।

“अच्छी हूं।” कहते हुए राधा ने दरवाजा बंद किया। वो अभी तक सकपकाई हुई थी।

“मैंने तो पूछना था कि महाजन ने तुम्हें कैसे रखा हुआ है? तंग तो नहीं करता?” मोना चौधरी के होंठों के बीच मुस्कराहट दबी थी- “लेकिन दरवाजा खोलने से पहले तुमने, मुझे महाजन समझकर जो कहा, उससे तो लगता है तुमने महाजन की गर्दन पकड़ रखी है।”

राधा के चेहरे पर शर्म से भरी मुस्कान उभरी।

“फिर भी कोई शिकायत हो तो मुझे बताना।”

राधा ने सहमति से सिर हिला दिया।

“सुबह का गया महाजन अभी तक नहीं लौटा?” मोना चौधरी ने पूछा।

“लौटने की बात तो दूर नीलू ने फोन तक नहीं किया। क्या उसके मन में दिन भर से ये भी नहीं आया कि राधा उसके इन्तजार में आंखें बिछाये बैठी है।” राधा शिकायती स्वर में कह उठी- “कई बार ऐसा ही करता है। और तो और कभी तो रात को भी नहीं लौटता। पूछने पर कहता है कि काम था। भला ऐसा क्या काम जो रात को भी होता है। मैं तो कहती हूं, छोड़ दे ऐसे काम को जो राधा को, तेरे से दूर रखे। लेकिन मेरी बात सुनता कहां है। मैं तो जैसे ही बोलती रहती हूं। मेरी तो वो परवाह ही नहीं करता।”

मोना चौधरी कुर्सी पर बैठी और कह उठी।

“वो मेरे ही किसी काम में व्यस्त है।”

“तुम्हारे काम में-ओह मेरे को तो पता ही नहीं था।” राधा जल्दी से बोली- “तुम्हारा काम तो उसे सबसे पहले करना चाहिये। आने दो नीलू को। मैं पूछूंगी कि अभी तक मोना चौधरी का काम क्यूँ पूरा नहीं किया।”

मोना चौधरी मुस्कराई। फिर बोली।

“घर में कोई आये तो उससे बातें ही शुरू नहीं कर देते। पहले चाय-पानी पूछते हैं।”

“हां-हां। क्यों नहीं। बोलो क्या पिओगी। चाय-पानी- कॉफी-लिम्का, जो भी....।”

“खाना खिलाओ और अपने कपड़े दो। जिन्हें पहनकर मैं नींद ले सकूँ।”

“तुम यहीं रहोगी रात को?”

“ये तो बहुत अच्छी बात है। खाना बना पड़ा है। नीलू के लिए बनाया था। वैसे तो वो खाकर ही आता है। आज बिना खाये आयेगा तो भूखे पेट ही सोना पड़ेगा। मैं तुम्हारे लिए खाना लाती हूं मोना चौधरी।” कहने के साथ ही राधा कमरे से बाहर निकल गई।

शम्बूझा के कबीले की राधा और अब की राधा में जमीन-आसमान का फर्क आ गया था। राधा के बारे में जानने के लिए पढ़ें, मोना चौधरी सीरिज़ का अनिल मोहन का रवि पॉकेट बुक्स में पूर्वप्रकाशित उपन्यास “खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे”।

मोना चौधरी उठी और फोन के पास पहुंचकर पारसनाथ का नम्बर मिलाने लगी। बात हुई।

“महाजन का फोन आया?” मोना चौधरी ने पूछा।

“नहीं।” पारसनाथ का सपाट स्वर कानों में पड़ा।

“मतलब कि बीस-बाईस घंटों से उसकी कोई खबर नहीं।” मोना चौधरी सोच भरे स्वर में कह उठी- “जबकि उसे हर हाल में अपनी खबर देने के लिए, कहीं भी एक फोन अवश्य करना चाहिये था।”

“महाजन, विक्रम दहिया के मामले में दखल दे रहा है मोना चौधरी।” पारसनाथ का सपाट स्वर कानों में पड़ा- “वो कहीं फंस गया भी हो सकता है।”

“इसमें कोई शक नहीं कि...”

“महाजन के घर फोन करो। शायद राधा को उसने फोन...”

“मैं महाजन के घर से ही बात कर रही हूं। उसका कोई फोन नहीं आया।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा।

कुछ क्षण उनके बीच चुप्पी रही।

“धारा होटल जाने का कोई फायदा हुआ?”

मोना चौधरी ने बताया कि वहां क्या हुआ।

“इसका मतलब सतीश ठाकुर ने जो भी बात जानी, वो निगाह क्लब से वास्ता रखती है। वो बातें जानने के बाद सीधा धारा होटल के जुआघर आया और वहां भी नहीं ठहरा।”

“हां।” मोना चौधरी बोली- “और जब वो धारा होटल से बाहर निकला, उसकी जान लेने वाले उसके पीछे लग गये। जाहिर है कि धारा होटल और निगाह क्लब का आपस में कोई सम्बन्ध है।”

“इन बातों से तो यही साबित होता है।” पारसनाथ का स्वर कानों में पड़ा- “वरना परेरा के आदमी, सतीश ठाकुर या तुम्हारी जान के पीछे क्यों लगते। ललित परेरा या सावरकर में आपसी सहयोग हो सकता है।”

“अवश्य ऐसा होगा। मैं महाजन के बारे में सोच रही हूं।”

“हो सकता है, वो वास्तव में अपने काम में व्यस्त हो।”

“ऐसा है तो सुबह तक उसकी खबर अवश्य मिलेगी।”

“ललित परेरा के भाई, अविनाश परेरा के बारे में क्या पता चला?”

“उसके बारे में इतना ही कह सकती हूं कि वो अभी इस शक के दायरे में ही है कि वो वास्तव में ललित परेरा का भाई है या नहीं। इस बारे में छानबीन करने का वक्त नहीं मिला।”

“अब निगाह क्लब को चैक करोगी?”

“हां। निगाह क्लब के बारे में मालूम करके बताओ कि वहां क्या होता है।” मोना चौधरी ने कहा।

“महाजन के यहां ही हो?” पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।

“हां। सुबह के नाश्ते तक तो यहां हूं ही।”

“ठीक है। निगाह क्लब के बारे में सुबह फोन करूंगा।”

मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया।

चेहरे पर गम्भीरता, सोचों में महाजन था कि अभी तक उसकी कोई खबर क्यों नहीं मिली। वो तो विक्रम दहिया के बारे में मालूम करने की कोशिश में था वो कहां गया है और कब लौटेगा। ऐसे में अगर वो विक्रम दहिया के आदमियों के हाथों में पड़ गया है तो उसके साथ कुछ भी हो सकता है। सतीश ठाकुर का मामला खामखाह सिर पर सवार न होता तो, विक्रम दहिया का मामला उसने ही संभालना था।

☐☐☐

सुबह के नौ बज रहे थे।

माना चौधरी नाश्ता कर चुकी थी। अभी तक महाजन की कोई खबर न आने पर वो गम्भीर हो उठी थी। राधा उदास-सी लग रही थी।

उसने नाश्ता भी नहीं किया था।

“मोना चौधरी!” राधा उसके सामने बैठती हुई व्याकुल-सी कह उठी- “तुमने नीलू को ऐसा कौन-सा काम करने को कहा है कि न तो वो आया और न ही उसका कोई फोन । कहां है नीलू?”

मोना चौधरी जानती थी कि राधा को कुछ भी बताने का फायदा नहीं। समझ नहीं सकेगी।

“महाजन शहर से बाहर गया है। शायद उसे आने में एक-दो दिन लग जायें।” मीना चौधरी ने कहा।

“शहर से बाहर गया है।” राधा बोली- “ये बात नीलू ने तो मुझे बताई नहीं।”

“जरूरत नहीं समझी होगी।”

“एक-दो दिन में नीलू आ जायेगा?”

“फिक्र मत करो राधा!” मोना चौधरी शांत भाव में मुस्कराई- “आ जायेगा वो।”

तभी फोन की बेल बजी।

मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया। दूसरी तरफ पारसनाथ था।

“निगाह क्लब के बारे में क्या मालूम किया पारसनाथ?” मोना चौधरी ने कहा।

“मोना चौधरी।” पारसनाथ का सपाट स्वर कानों में पड़ा- “मेरे सामने इंस्पेक्टर मोदी बैठा है।”

“इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी?”

“हां। वो तुमसे बात करना चाहता है। पहले वो तुम्हारे फ्लैट पर गया। फिर तुम्हारी तलाश में मेरे पास आया है। वो सिर्फ तुमसे बात करना चाहता है।” पारसनाथ का ठोस स्वर कानों में पड़ा।

“वर्दी में है?” मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव थे।

“नहीं।”

“बात कराओ।” दूसरे ही पल मोना चौधरी के कानों में इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी की आवाज पड़ी।

“गुड मार्निंग मोना चौधरी।”

“मार्निंग। मेरा फ्लैट लॉक्ड था?” मोना चौधरी ने पूछा।

“हां”

“क्या बात करना चाहते हो?”

“तुम जानती हो।”

“मुंह से बोलो।”

“मैंने सतीश ठाकुर को तुम्हारा फोन नम्बर दिया था। तब मैं अपने गांव गया हुआ था। वहाँ उसने फोन किया था। रात को वापस लौटा तो मालूम हुआ कि सतीश ठाकुर को गोली मार दी गई और तब उसके साथ बहुत ही खूबसूरत लड़की थी। जिसने गोली मारने वाले को शूट कर दिया। मुझे पूरा भरोसा है कि सतीश के साथ तब तुम ही थीं?”

“मैं ही थी।”

“सतीश के घर गया तो वहां शोभा से मुलाकात हुई। उसने बताया कि तुम सतीश ठाकुर के असली हत्यारे को ढूंढ रही हो। पुलिस सतीश ठाकुर की हत्या के मामले को बिल्कुल नहीं समझ पाई। वो अभी तक उस लड़की की खोज़ में है। जो तब सतीश ठाकुर के साथ थी। मैं सतीश ठाकुर की हत्या के हालातों को ठीक से नहीं समझ पाया हूं। लेकिन उसने फोन पर मुझे बताया था कि वो किसी के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण बात जान गया है। लेकिन वो महत्वपूर्ण बात उसने फोन पर मुझे भी बताना ठीक नहीं समझा। तब मैंने उसे तुम्हारा फोन नम्बर देकर कहा था कि तुम मोना चौधरी को सब कुछ बताकर, उस पर भरोसा करके, उससे सहायता ले सकते हो। मैं एक-दो दिन में शहर में पहुंच जाऊंगा। अब आया तो?”

“फोन पर ये बातें नहीं हो सकतीं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं तुम्हारे पास आ जाता हूं। बताओ कहां हो तुम?”

“यहां, तुमसे मिलना ठीक नहीं। लंच में मुझे मिलो।”

“कहां?”

“बरार हाऊस । वहां हमारी मुलाकात लंच रूम में होगी। वर्दी में आने की गलती मत करना।”

“कितने बजे वहां मिलोगी?”

“डेढ़ बजे। रिसीवर पारसनाथ को दो।”

दूसरे ही पल पारसनाथ का स्वर कानों में पड़ा।

“कहो।”

“मोदी को चलता करो। उसके बाद मुझे फोन करना।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया।

राधा जो मोना चौधरी को देख-सुन दी थी। कह उठी।

“एक बात बताओ मोना चौधरी।”

“क्या?”

“तुम काम क्या करती हो। नीलू भी हर समय काम-काम करता  रहता है लेकिन काम क्या करता है, मुझे तो पता ही नहीं।” राधा ने भोलेपन से कहा- “कहीं दुकान खोल रखी है या टैक्सी चलाता है।”

मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभर आई।

“अभी ये बातें तुम्हारी समझ में नहीं आयेंगी। शहर के रंग-ढंग अच्छी तरह सीख लो। धीरे-धीरे तुम्हें खुद ही काम के बारे में समझ आने लगेगा कि हम क्या काम करते हैं।”

“ठीक है।” राधा ने बेहद शराफत से गर्दन हिला दी।

“तुम्हें शम्बूझा की बस्ती में अच्छा लगता था या यहां रहना अच्छा लगता है?”

“यहां। यहां मेरा नीलू है। मेरा नीलू जहां रहेगा, वहीं रहना मुझे अच्छा लगेगा।” राधा ने प्यार से कहा।

तभी फोन की बेल बजी। मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया।

पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।

“निगाह क्लब के बारे में मालूम किया है। इस क्लब को सावरकर नाम का कोई आदमी चलाता है और इस क्लब को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता।”

“वजह? मोना चौधरी ने पूछा।

“यहां, पुलिस को हफ्ता देकर जुआ तो होता ही है। साथ ही जिस्मफरोशी का धंधा भी चलता है। वहां आराम करने के लिए केबिन हैं। एक घंटे के हिसाब से किराये पर मिलते हैं। इसके अलावा हर तरह की ड्रग्स वहां से हासिल की जाती है। यानि की हर तरह का गलत काम वहां होता है। दिन में निगाह क्लब वीरान रहता है और शाम होते ही वहां जिन्दगी शुरू होती है, जो सुबह तक जिन्दा रहती है।”

“सावरकर के बारे में कोई खास बात?” मोना चौधरी ने पूछा।

“उसके बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की। इतना ही जानता हूं कि कभी उसने सड़क छाप बदमाश से अपनी जिन्दगी शुरू की थी और आज निगाह क्लब का मालिक है।”

“पारसनाथ!” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा- “ललित परेरा और सावरकर में, ये समानता है कि कभी दोनों कुछ भी नहीं थे और आज महंगे होटल-क्लबों के मालिक हैं।”

“हां। ये समानता है।” पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी- “क्या तुम निगाह क्लब जाओगी?”

“जाना पड़ेगा।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “ये जानने के लिए कि सतीश ठाकुर को वहां से क्या....।”

“मोना चौधरी। चार दिन बीत चुके हैं इस बात को।” पारसनाथ का सपाट स्वर कानों में पड़ा- “मेरे ख्याल में ये जान जाना सम्भव नहीं कि चार दिन पहले निगाह क्लब में सतीश ठाकुर ने क्या जाना। अगर क्लब वालों को मालूम हो गया कि तुम इस बारे में छानबीन कर रही हो तो खतरे में पड़ सकती हो।”

“ये खतरा तो उठाना ही पड़ेगा पारसनाथ।” कुछ पलों की चुप्पी के बाद पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।

“मेकअप करके जाना । वो लोग तुम्हें पहचानते हो सकते हैं।”

“मैं जानती हूं वो मुझे पहचानते हैं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “मेरी जान लेना चाहते हैं। मैं इस बात का ध्यान रखूंगी कि उनकी नजरों में न आने पाऊं।”

“सावरकर बहुत खतरनाक आदमी है।”

“मैं इस बात का भी ध्यान रखूगी।” कहते हुए मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।

“मेरी जरूरत पड़े तो फोन कर देना मोना चौधरी।”

“अच्छी बात है।”

☐☐☐

बरार हाऊस महंगे रैस्टोरैंट का नाम था। शहर में बहुत जाना-पहचाना नाम था ये। बहुत ही खूबसूरती से बनाया-सजाया गया था। और अच्छा लजीज खाना था वहां का। काफी बड़ी जगह में बना हुआ पार्किंग का बहुत अच्छा इन्तजाम था। कस्टमर को पसन्दीदा सर्विस दी जाती थी।

मोना चौधरी इस वक्त बरार हाऊस के लंच रूम में थी। जहां करीब चालीस छोटी-बड़ी टेबलें मौजूद थीं। आधी भरी पड़ी थी। दोपहर का डेढ़ बजने वाला था। वेटर आर्डर लेने आया था लेकिन मोना चौधरी ने उसे इन्तजार करने को कहा। मोदी कभी भी आ सकता था। मोना चौधरी इस वक्त चालीस बरस की, अमीर औरत के वेष में थी। सिल्क की कीमती साड़ी पहन रखी थी, जो कि राधा की थी। राधा से लेकर ही जेवरात पहने थे। मेकअप से आंखों के नीचे थोड़ी सी कालिमा बना ली थी और बालों में एक सफेद लट बना ली थी। सिर पर रखी विग के बाल लम्बे-खुले कमर तक झूल रहे थे। इस मेकअप में उसे पहचानना आसान नहीं था।

मोना चौधरी की निगाह इंस्पेक्टर मोदी पर जा टिकी, जिसने अभी-अभी लंच रूम में प्रवेश किया था। उसकी तलाश में वो नजरें इधर-उधर दौड़ा रहा था। जब उस पर निगाह पड़ी तो मोना चौधरी ने हौले से हाथ हिला दिया। शांत भाव से मोदी उसकी तरफ बढ़ने लगा। पास पहुंचा और कुर्सी सरकाकर बैठने के बाद मोना चौधरी को गहरी निगाहों से देखा।

“तुम्हें मेकअप में पाकर मुझे हैरानी हुई।” मोदी ने कहा।

“मामला समझोगे तो हैरानी दूर हो जायेगी।” मोना चौधरी स्वर शांत था।

“मैं तो तुम्हारी हसीन सूरत देखने की आशा कर रहा था।”

मोना चौधरी ने तीखी निगाहों से उसे देखा।

“गांव में तुम्हारी बीवी है। उसकी तरफ ध्यान दो।”

“वहीं ध्यान देकर तो आ रहा हूं।” मोदी ने गहरी सांस ली।

उसी पल वेटर ने पानी सर्व किया।

मोना चौधरी ने लंच का आर्डर दे दिया।

मोदी ने पानी का घूँट भरा और गिलास रखता हुआ बोला।

“सतीश ठाकुर के साथ क्या हुआ था?”

“सतीश ठाकुर में तुम्हारी क्या दिलचस्पी है?” मोना चौधरी ने पूछा।

“वो मेरी खास पहचान का था।” मोदी गम्भीर हो गया- “उसके मुझ पर उसका इस तरह मारा जाना मुझे अच्छा नहीं लगा। वो जिस भी मुसीबत में है, वहां से बच जाये। ये सोचकर ही उसे तुम्हारा नम्बर दिया था।”

“लेकिन वो नहीं बच सका।”

मोदी के चेहरे पर हल्की-सी सख्ती आ गई।

“पहले तो मुझे बताओ कि सतीश ऐसा क्या जान गया था जो कि…”

“मालूम नहीं।”

“क्या मतलब?” मोदी की आंखें सिकुड़ी- - “जब वो मरा, तब तुम्हारे साथ था और…”

“मेरे साथ अवश्य था। लेकिन कुछ बताने से पहले ही उसे शूट कर दिया गया। आधे मिनट से ज्यादा वो मेरे पास नहीं रहा।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “उसे शूट कर दिया गया।”

मोदी, कुछ पल मोना चौधरी को देखता रहा। कहा कुछ नहीं।

तभी वेटर लंच सर्व कर गया।

“लंच लो।” मोना चौधरी ने अपना ध्यान लंच की तरफ लगाते हुए कहा- “सच बात तो यह है कि सतीश ठाकुर के मरने-जीने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। सतीश ठाकुर के साथ उसका मामला भी खत्म हो गया था। लेकिन उसके बाद मेरी जान लेने की कोशिश की जाने लगी। वो ही लोग मेरी जान लेना चाहते थे जो सतीश ठाकुर को खत्म कर चुके थे। उन्हें शक था कि सतीश ठाकुर ने वह महत्वपूर्ण बात मुझे बता दी है। मेरे बारे में जानने के लिए उन्होंने मेरी गैरमौजूदगी में, मेरे फ्लैट की तलाशी ली और वहां रखा पैंतीस लाख ले गये। वो जान चुके हैं कि मैं कौन हूं। लेकिन इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। वो मुझे खत्म कर देना चाहते हैं। कई बार मुझ पर जानलेवा हमले उन्होंने किए। मेरी कार में बम लगाकर मुझे मारने की कोशिश की। में उनके बारे में कुछ नहीं जानती। जबकि वो लोग किसी वक्त मेरे सामने आकर मुझे गोली मार सकते हैं और मेरे पास उनकी कोई पहचान नहीं।”

“यानि कि तुम नहीं जानतीं कि कौन तुम्हारी जान लेना चाहता है?” मोदी ने भी खाना शुरू कर दिया।

“पहले जान गई थी। लेकिन अब वहीं की वहीं खड़ी हूं।”

“मैं समझा नहीं।”

“सतीश ठाकुर को मारने वाले, मुझ पर हमला करने वाले, धारा होटल के मालिक ललित परेरा के आदमी थे। परेरा के कहने पर ही ये सब हो रहा था। उसके बाद जैसे-तैसे करके मैं परेरा के पास पहुंची तो उसकी हत्या कर दी गई। जबकि मेरी जान लेने की कोशिश अभी भी की जा रही है।”

“ओह!” मोदी की आंखें सिकुड़ीं- “ललित परेरा को क्यों मारा?”

“मेरे पास इस बात का जवाब नहीं है। वही जाने, जिसने हत्या की है उसकी।”

मोदी, सोच भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखता रहा।

“ललित परेरा की हत्या होते ही, उसका भाई अविनाश परेरा आ गया। उसने धारा होटल का पूरा चार्ज संभाल लिया और सब काम वैसे ही चलते रहे, जैसे चल रहे थे। ललित परेरा की मौत के अफसोस में एक घंटा भी होटल का काम-काज नहीं रुका।” खाते हुए मोना चौधरी ने कहा- “ये बात अवश्य उलझन में डाल देने वाली है। जबकि ये बात कोई नहीं जानता था कि ललित परेरा का कोई भाई भी है।”

“तुम्हारा मतलब कि वो-वो नकली भाई हो सकता है।” मोदी के होंठों से निकला।

“हां। मैं कुछ ऐसा ही सोच रही हूं।”

“ये सम्भव नहीं।” मोदी फौरन बोला- “होटल का चार्ज लेने से पहले उसे, पुलिस के अलावा और भी कई लोगों को यकीन दिलाना पड़ा होगा कि वो सच ललित परेरा का भाई अविनाश परेरा है।”

“सब हो जाता है।” मोना चौधरी ने इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी की आंखों में देखा- “नोटों की गड्डयों के ढेर पुलिस को इस बात का यकीन दिला सकते हैं। दूसरों को भी वो समझा सकता है कि वो ही परेरा का असली भाई है।”

मोदी, होंठ सिकोड़े मोना चौधरी को देखने लगा।

“लंच लेते रहो।” मोना चौधरी ने कहा।

लंच में कुछ पलों की खामोशी रही।

“यूं तो ललित परेरा, धारा होटल का मालिक था। उसका अपना दबदबा था।” मोना चौधरी ने मोदी के चेहरे पर निगाह मारी- “लेकिन असल में वो किसी और के लिए काम करता था।”

“ये बात कैसे पता चली।”

“ललित परेरा ने खुद मुझे कहीं। मेरी जान लेने का आर्डर उसे ऊपर से मिला था। उसने कहा। और ऊपर शब्द का मतलब होता है कि वो किसी का आर्डर मानने पर बाध्य है।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा- “यानि कि ललित परेरा जिसके इशारे पर काम करता था, इस वक्त उसके इशारे पर ही, कुछ लोग मेरी हत्या कर देना चाहते हैं। अगर ऐसा न होता तो परेरा की मौत पर ही ये मामला खत्म हो जाता।”

“तुम्हारी बातों से तो लग रहा है कि ये मामला, बहुत उलझा हुआ है।” मोदी बोला।

“वास्तव में-मैं खुद इस मामले में उलझकर रह गई हूं। मेरी जान कौन लेना चाहता है। मैं नहीं जानती। उस तक पहुंचना चाहती हूं लेकिन कोई रास्ता नहीं मिल रहा।”

“अविनाश परेरा।” एकाएक मोदी बोला- “जो परेरा का भाई बनकर आया है। वो अवश्य इस बारे में कुछ जानता होगा। परेरा अगर किसी के लिए काम करता था तो, अविनाश परेरा भी करेगा।”

“ऐसा होना मामूली बात है।” मोना चौधरी ने कहा- “हो सकता है, अविनाश परेरा को, परेरा का भाई बनाकर भेजने वाला, वो ही हो, जिसके लिए ललित परेरा काम करता था। यही वजह रही हो कि उसने आसानी से धारा होटल का चार्ज ले लिया। उसका रास्ता, पुलिस या दूसरे लोगों को उसने संभाल लिया हो, कल रात मुझे शूट करने की कोशिश की गई। वो दो थे। एक मैंने शूट कर दिया। दूसरे पर रिवॉल्वर रख दी। पूछने पर उसने बताया कि वो अविनाश परेरा के कहने पर मुझे शूट करने जा रहे थे।”

“धारा होटल का मामला मैं मालूम करूंगा।” मोदी कह उठा।

“अविनाश परेरा के बारे में भी मालूम करना कि वो असली भाई है या नकली।”

“करूंगा। लेकिन तुम अब क्या कर रही हो?”

मोना चौधरी ने मोदी को निगाह क्लब के बारे में अभी बताना ठीक नहीं समझा। क्योंकि ये उसका अनुमान मात्र था कि सतीश ठाकुर को वहां से कोई महत्वपूर्ण बात पता चली है और वो निगाह क्लब में जाकर वहां की छानबीन करने की तैयारी में है।

“मेरे पास करने को कुछ नहीं है।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा- “जो लोग मुझे मारने के लिए मेरी तलाश कर रहे हैं। मैं उनसे बचती हुई, उस इन्सान के बारे में जानने की चेष्टा कर रही हूं जो इन सब बातों के पीछे है। शायद उसके बारे में कुछ मालूम हो सके।”

“अविनाश परेरा को टटोलने की कोशिश नहीं की?”

“वक्त नहीं मिल पाया। खुद को बचाने में व्यस्त रही।”

“उसके बारे में मैं मालूम कर लूंगा।” मोदी के स्वर में सख्ती सी आ गई।

“मुझे बताने लायक कोई बात लगे तो पारसनाथ को बता देना। मैं उससे फोन पर मालूम कर लूंगी।”

“सतीश ने अपनी इच्छा से एक दिन पहले वसीयत की थी। उसमें इस बात का खासतौर से जिक्र है कि अगर उसकी हत्या हो जाये तो जो उसके हत्यारे को कानून की गिरफ्त में फंसायेगा, उसे पच्चीस लाख दिया जाये।” कहते हुए मोदी ने गहरी सांस ली- “यानि कि उसे विश्वास था कि वो जिन्दा नहीं बचेगा। और ये विश्वास तभी हो सकता है, जब कि उसे मालूम हो कि उसके पीछे खतरनाक लोग हैं।”

“हां।” मोना चौधरी सोचों में थी।

“अगर तुमने सतीश ठाकुर के हत्यारे को फंसा दिया तो, पच्चीस लाख मिलेगा तुम्हें।”

“पच्चीस लाख में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं।”

“पैसा आये तो किसे बुरा लगता है।” मोदी ने मोना चौधरी को देखा।

“तुम मुद्दे से हट रहे हो।”

मोदी ने कुछ नहीं कहा।

मोना चौधरी ने लंच समाप्त किया।

“कोई और बात कहनी पूछनी हो तुम्हें?” मोना चौधरी नैपकिन से हाथ साफ करती हुई बोली।

“उठने की इतनी जल्दी मत करो। लंच का ‘बिल’ देना है तुमने।”

“वो तुम दे देना।”

“मैं थोड़ी सी तनख्वाह पाने वाला छोटा सा पुलिस इंस्पेक्टर।” मोदी ने कहना चाहा।

“तनख्वाह से ‘बिल’ मत देना।” मोना चौधरी उठती हुई बोली- “रिश्वत के पैसों में से दे देना। जो तुम लोगों से वसूलते रहते हो। जिन्हें संभालने में तुम कई बार परेशानी महसूस करते होगे।”

मोदी ने मोना चौधरी को देखा।

“अविनाश परेरा के बारे में मालूम करके, पारसनाथ को खबर देना। मैं सतीश ठाकुर के हत्यारे को तलाश करने की चेष्टा कर रही हूं।” इसके साथ ही मोना चौधरी पलटी और बाहर निकल गई।

☐☐☐

मोना चौधरी, सतीश ठाकुर के बंगले पर पहुंची।

शोभा वहां मौजूद थी।

“हैलो।” मोना चौधरी मुस्कराई- “लंच कर रही थी?”

“नहीं।” शोभा भी मुस्कराई- “लंच कभी-कभार ही करती हूं। जब नाश्ता हल्का लिया हो।”

“तुम्हें खाने में ध्यान रखना चाहिये। पेट में बच्चा है।”

“इस बात का ध्यान है मुझे। अगर तुमने लंच करना हो तो।”

“मैं ले चुकी हूं।”

दोनों ड्राईंग रूम में आमने-सामने बैठ चुकी थीं।

“तुम धारा क्लब में रिसैप्शनिस्ट थीं?”

“हां।”

“तुमने निगाह क्लब और सूर्या होटल के बारे में जिक्र किया था?” शोभा ने सहमति से सिर हिला दिया।

“मैं निगाह क्लब के बारे में जानकारी चाहती हूं।” मोना चौधरी

ने कहा- “तुम जानती हो कुछ?”

शोभा की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी। चेहरे पर सोच के भाव आ ठहरे।

“कैसी जानकारी?” कुछ पलों बाद वो बोली।

“निगाह क्लब के बारे में जो मालूम हो, वो बता दो।” मोना चौधरी गम्भीर थी।

“तुम्हें कोई खास जानकारी चाहिये तो वो पूछो।”

“मैं निगाह क्लब का पूरा हाल जानना चाहती हूं। सब बता दो।” मोना चौधरी ने कहा- “निगाह क्लब से धारा होटल फोन आते थे?

ललित परेरा का निगाह क्लब से किस हद तक गहरा रिश्ता था।”

“बहुत गहरा।” शोभा ने धीमे स्वर में कहा।

“स्पष्ट तौर पर बताओ।”

“सावरकर के ललित परेरा के लिए अक्सर फोन आते थे। बहुत लम्बी

बातचीत होती थी। एक-डेढ़ घंटा तक उनकी बातचीत चलती रहती थी। ललित परेरा भी, सावकरकर को इसी तरह लम्बे फोन करता रहता था।”

“उनकी बातचीत का क्या मुद्दा हो सकता था? कभी उनका फोन सुनने की कोशिश की?”

“नहीं। ऐसा कभी नहीं किया।”

“सावरकर, धारा होटल आता था?”

“हां। लेकिन कम। फोन पर उनकी अक्सर बातचीत होती रहती थी।”

“किसी दूसरे खास आदमी का फोन ललित परेरा को आता रहा हो?” मोना चौधरी ने पूछा।

“मेरी जानकारी में नहीं है।” शोभा ने कहा।

“निगाह क्लब के बारे में बताओ कि वहां क्या-क्या होता है?”

शोभा दो पलों के लिए अपने हाथों को देखने लगी। फिर बोली।

“वहां हर बुरा काम होता है। जिस भी गैरकानूनी चीज की जरूरत हो। वहां से हासिल की जा सकती है। सावरकर खतरनाक इन्सान है। अपना मतलब निकालने के लिए वो सब कुछ कर सकता है।”

“शायद तुम्हें न मालूम हो कि सतीश ठाकुर हत्या के पहले की रात निगाह क्लब में था। वो...”

“निगाह क्लब?” शोभा के होंठों से निकला- “लेकिन तुमने तो बताया था कि धारा होटल में...”

“धारा होटल में वो सिर्फ पन्द्रह-बीस दिन रहा। वहां वो, निगाह क्लब से आया था। और तब वो नर्वस सा था।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “यानि कि उसकी हत्या का वास्ता निगाह क्लब से हो सकता है। उसे जो भी मालूम हुआ, वो निगाह क्लब से मालूम।”

“लेकिन उसे तो ललित परेरा के आदमियों ने...”

“तुमने अभी तो बताया कि ललित परेरा का, सावरकर के साथ अच्छा तालमेल था। सावरकर के कहने पर परेरा ने अपने आदमी, सतीश ठाकुर के पीछे लगा दिए।” मोना चौधरी ने कहा।

“हो । यही हुआ होगा।”

“निगाह क्लब में तुम्हारी कोई पहचान का है?”

“किस काम के वास्ते?”

“वहां मेरी किसी भी तरह की थोड़ी-बहुत सहायता कर सके।”

“निगाह क्लब की होस्टेज है एक । रानी नाम है उसका। वो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती थी। आज भी कभी-कभार मुलाकात हो जाती है। मेरा नाम ले लेना। वो जो सहायता कर सकती होगी। कर देगी।”

☐☐☐

शाम के साढ़े आठ बजे मोना. चौधरी ने निगाह क्लब में प्रवेश किया। वही साड़ी। अधेड़ उम्र की औरत का मेकअप। अमीर खानदान की झलक मिल रही थी।

निगाह क्लब का प्रवेश हॉल बहुत बड़ा था। दाई तरफ स्टेज पर दो युवतियां थिरक रही थीं। स्टेज के एक कोने में बैठे म्यूजीशियन हल्का म्यूजिक वहां बिखेर रहे थे। मध्यम सा बजता ड्रम बहुत भला लग रहा था। वीचों बीच मौजूद टेबल-कुर्सियों पर लोग बैटे, युवतियों के डांस का मजा ले रहे थे। कोई कोल्ड ड्रिंक ले रहा था तो कोई ड्रिंक । क्लब के कर्मचारी और अन्य लोग व्यस्तता से आ-जा रहे थे। जैसे किसी के पास वक्त ही न हो।  मोना चौधरी ने एक ही निगाह में वहां के माहौल का जायजा लिया।

एक तरफ बार कम रिसैप्शन बना था। वहां भी लोग ऊंचे स्टूलों पर बैठे, हाथों में गिलास थामे, स्टेज पर होने वाले डांस को देख रहे थे। कुल मिलाकर शांत और मधुरमय माहौल था वहां का। ऐसे में कोई ये नहीं कह सकता था कि यहां हर गलत काम होता है, जो कि पूरी तरह गैरकानूनी है।

मोना चौधरी शांत भाव से चलती हुई, बार काऊंटर पर पहुंची।

“यस प्लीज?” काऊंटर के पीछे से युवती ने मुस्कराकर पूछा।

“मैं रानी से मिलना चाहती हूं।” मोना चौधरी ने कहा।

“रानी?”

“जी हां। वो इसी क्लब में काम करती है।”

“आप जानती हैं उसे?”

“जानती हूं। लेकिन देखा नहीं।”

उसने मोना चौधरी को गहरी निगाहों से देखा फिर कह उठी।

“इस क्लब में एक ही रानी काम करती है और वो मैं ही हूं।” उसने कहा।

“तुम?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।

“यस-अब कहिये क्या काम है मुझसे और आप कौन हैं?” रानी के चेहरे पर उलझन थी।

“शोभा को जानती हो?” मोना चौधरी का स्वर धीमा था।

“शोभा?”

“जो तुम्हारे साथ कॉलेज में पढ़ती थी और धारा होटल में। रिसैप्शनिस्ट....?”

“धारा होटल से नौकरी छोड़ चुकी है।” रानी कह उठी।

“हां। मैं उसी शोभा की बात कर रही हूं। उसने कहा था कि यहां पर तुम मेरे काम आ सकती हो।”

“कैसा काम?” रानी का स्वर भी धीमा हो गया।

“यहां पर बात नहीं हो सकती।”

रानी ने क्षणिक सोच के बाद कहा।

“आप बैठिये। मैं कुछ ही देर में आती हूं।”

मोना चौधरी वहां से हटी और एक खाली टेबल पर जा बैठी।

नज़रें स्टेज की तरफ गईं जहां अब दो नई युवतियां आ गई थीं। कम कपड़ों में, मध्यम म्यूजिक पर वो डांस कर रही थी।

तभी एक वेटर पास आया।

“एनी सर्विस मैडम?”

“अभी नहीं।” मोना चौधरी ने कहा।

वेटर चला गया।

कुछ ही देर में रानी पास आ पहुंची।

मोना चौधरी कुछ कहने लगी

तो रानी ने आंखों से उठने का इशारा किया। मोना चौधरी कुछ न कहकर, तुरन्त उठ गई।

रानी बाहरी दरवाजे की तरफ बढ़ी। मोना चौधरी उसके साथ चलने लगी।

“कहां जा रही हो?” मोना चौधरी ने पूछा।

“बाहर।” रानी ने धीमे स्वर में कहा- “मैं नहीं जानती तुम क्या बात करना चाहती हो। और क्लब के भीतर कहीं भी हमारी बातें सुनी जा सकती हैं।”

“कौन सुनेगा?”

“सावरकर साहब, या फिर कंट्रोल रूम में बैठे उनके आदमी।” मोना चौधरी कुछ नहीं बोली।

वो, रानी के साथ बाहर पार्किंग में आ गई।

“तो क्या कहा था तुम्हें शोभा ने?” एक कार से टेक लगाकर खड़ी होती हुई रानी बोली।

“यही कि मेरा नाम ले लेना। तुम्हारे बस में होगा तो तुम मेरा काम कर दोगी।” मोना चौधरी बोली।

“क्या काम है तुम्हें?”

“तुम्हारी ड्यूटी इसी हाल के बार काऊंटर पर रहती है?”

“कोई जरूरी नहीं। कभी यहां, कभी वहां ड्यूटी बदलती रहती है। तुम अपना काम बताओ।”

“यहां पर कभी-कभार सतीश ठाकुर नाम का व्यक्ति।”

“वही, जिससे शोभा शादी करने जा रही थी।” रानी ने टोका।

“मतलब कि तुम उसे जानती हो। मैं उसी की बात कर रही हूं।” मोना चौधरी कह उठी- “वो यहां आता था?”

“हां। सप्ताह में तीन दिन तो आता ही था।”

“याद है आखिरी बार कब आया?”

“मरने से एक दिन पहले, रात को मशीनों पर जुआ खेल रहा था। मैंने देखा था उसे।”

“मैं ये जानना चाहती हूं कि उस रात उसने क्लब में आकर क्या-क्या किया। किस-किससे मिला? कहां गया? ये सब बातें मालूम करके तुम मुझे बता सकती हो।” मोना चौधरी की निगाह रानी पर जा टिकी।

“तुम कौन हो?”

“सच कहूं या झूठ?”

“शोभा की तरफ से आई हो तो, सच ही कहना चाहिये। मुझ पर भरोसा करना चाहिये।”

“मेरा नाम मोना चौधरी है। सतीश ठाकुर को जब गोली मारी गई तो वो मेरे पास ही था। मुझे बहुत ही खास बात बताने वाला था, जो कि उसे इसी क्लब से मालूम हुई थी और उसी रात मालूम हुई थी। तभी से उसकी जान लेने की कोशिश शुरू हो गई और अगले दिन सुबह उसे शूट कर दिया गया। मैं ये जानना चाहती हूं कि सतीश ठाकुर इस क्लब से क्या खास बात जान गया था और किसने उसे मारा । क्योंकि जिसके इशारे पर सतीश ठाकुर को गोली मारी गई। वो मेरी भी जान ले लेना चाहता है।”

“अगर तुम्हारी बात सच मानी जाये तो इस मामले के पीछे क्लब का मालिक सावरकर हो सकता है।”

“मैं इस बात का पक्के तौर पर यकीन करना चाहती हूं।”

“मैं इसमें तुम्हारी ज्यादा सहायता नहीं कर सकती। मैं भी खतरे में पड़ सकती...”

“तो कितनी सहायता कर सकती हो?”

“कह नहीं सकती। क्लब में रहकर सावरकर के खिलाफ कुछ करना खतरनाक है।” रानी ने सोच भरे स्वर में कहा- “तुम नहीं जानती कि वो इन्सान कम और दरिन्दा ज्यादा है।”

मोना चौधरी की सोच भरी निगाह रानी के चेहरे पर टिकी रही।

क्लब के नियोन साईन की रोशनी में उनके चेहरे चमक रहे थे। रानी कुछ परेशान-सी नज़र आने लगी थी।

“शायद तुम सोच रही हो कि मैं किस तरह, सहायता करूं?” मोना चौधरी ने कहा।

“हां। वही बात है।” रानी ने धीमे गम्भीर स्वर में कहा- “एक तरफ सावरकर और उसका क्लब है। अगर उसे मालूम हो गया कि क्लब के मामले में मैं, किसी बात की छानबीन कर रही हूं तो वो मुझे छोड़ेगा नहीं।

इधर शोभा है। कालेज में एक बार उसने अपने ब्वाय फ्रेंड से इसलिए बिगाड़ ली थी कि मैं उसे चाहती थी, ताकि मैं उससे दोस्ती कर सकूँ और की भी। उसकी ये बात मैं आज तक कभी नहीं भूली।”

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।

चुप्पी लम्बी होने लगी तो मोना चौधरी बोली।

“सतीश ठाकुर क्लब में आकर, सबसे पहले क्या करता था?”

“दो पैग लेता था। उसका एक केबिन शाम के लिए हमेशा बुक रहता था। बेशक वो आये या न आये। उसी केबिन में वो पैग लेने के बाद, फिर वो खेलने जाता था। अपनी हत्या की पहली रात को वो क्लब में कहां-कहां गया। क्या किया, ये मालूम करने की मैं कोशिश करती हूं।”

“ठीक है।” मोना चौधरी ने फौरन कहा- “तब तक मुझे उस केबिन में बिठा दो। जिसमें सतीश ठाकुर बैठा करता था। जो उसके लिए, शाम को हमेशा बुक रहता था।”

“एक बात का ध्यान रखना कि किसी भी मामले में मेरा नाम न आये। मैं तुम्हारे लिए जो भी कर रही हूं, या करूंगी, वो सिर्फ अपनी सहेली शोभा के नाम पर कर रही हूं।”

“मेरा विश्वास करो। मेरे मामले में तुम्हारा नाम नहीं आयेगा।”

“ठीक है। मैं यहां से अकेली भीतर जाऊंगी।” रानी बोली- “कुछ देर बाद तुम भीतर आना और मालूम कर लेना कि केबिन किधर है। वहां तीन नम्बर में चली जाना। वो केबिन मैं अभी तुम्हार लिए बुक कर देती हूं। किराया भी जमा करा दूंगी।”

“तीन नम्बर केबिन में, सतीश ठाकुर बैठता था।”

“हां।”

“तुम कब मेरे पास आओगी?”

“सतीश ठाकुर के बारे में उस रात की जानकारी पाने की कोशिश करूंगी। केबिन में बैठकर ही मेरा इन्तजार करना। इधर-उधर ताक-झांक करने की चेष्टा मत करना । क्लब में लोगों की बातें सुनने का पूरा इन्तजाम

है। कई जगह गुप्त रूप से वीडियो कैमरे लगे हैं। जिनके बारे में क्लब का स्टाफ भी नहीं जानता। अगर क्लब वालों को तुम पर शक हुआ तो तुम्हें

पकड़ लेंगे। तुम्हारे बारे में अच्छी तरह जानकारी हासिल करेंगे। उनकी

नज़रों में अगर तुम ठीक निकलीं, तभी वो तुम्हें छोड़ेंगे। वरना-।”

“ये बात बताने का शुक्रिया।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“मुझसे ऐसी गलती या हरकत हो सकती थी।”

“तीन नम्बर केबिन में आ जाना। किस नाम से केबिन बुक करूं?”

“मिस मोना।”

रानी कार के पास से हटी और क्लब के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गई।

☐☐☐

रानी के भीतर प्रवेश करने के दस मिनट बाद मोना चौधरी ने भीतर प्रवेश किया। स्टेज पर दो युवतियां डांस कर रही थीं। पहले की अपेक्षा अब भीड़ बढ़ गई थी। मोना चौधरी पास से गुजरते वेटर से केबिन के बारे में पूछने वाली थी कि उसके कानों में धीमा सा स्वर पड़ा।

“गुड ईवनिंग।”

मोना चौधरी फौरन पलटी और दूसरे ही पल होंठ सिकुड़ गये।

“कैसा अजीब इत्तफाक है मिस मोना कि आज हमारी यहाँ मुलाकात हो गयी।”

“यस मिस्टर वर्मा।” मोना चौधरी के होंठों से निकला- “ये इत्तफाक कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं।”

“हां। लेकिन गलती तुम्हारी है। मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि मेकअप करने के साथ, आंखों में लैंस लगा लिया करो, ताकि मेरे जैसे, आंखों के दीवाने पारखी, आंखों से न पहचान सकें।” कहते हुए वर्मा छोटी-सी हंसी हंसा-”अगर तुमने मेरी बात मानी होती तो, मैं शायद तुम्हें न पहचान पाता।”

मोना चौधरी ने गुलशन वर्मा की आंखों में झांका फिर मुस्करा उठी।

“अब ध्यान रखूगी कि आंखों में लैंस भी लगाना है कि वर्मा साहब मुझे पहचान न सकें।”

“हां। मेरी बात अब तुम अच्छी तरह समझी हो। वैसे रंग-रूप बदलकर यहां क्या कर रही हो?”

“नये-नये रूप धारण करके घूमना मेरा शौक है।” मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा।

गुलशन वर्मा मुस्कराया।

“बहुत खतरनाक शौक है ये। सतीश ठाकुर भी शौकीन था।”

“किस बात का?”

“गोली खाकर मरने का।” वर्मा के होंठों पर मुस्कान थी।

“उसके शौक का मालूम था पहले से आपको?”

“नहीं। बाद में पता चला। वैसे कुछ मालूम हुआ कि सतीश ठाकुर को किसने मारा है?”

“मुझे क्या, किसी ने भी मारा हो।”

“मेरे ख्याल में तो तुम ये ही बात मालूम करने की कोशिश कर रही हो।”

“आपका ख्याल गलत है मिस्टर वर्मा।”

“हो सकता है। इन्सान की हर सोच तो ठीक होती नहीं। एक-एक पैग हो जाये।”

“अभी नहीं। मैं अकेला रहने के मूड में हूं।”

“तुम्हारे हसबैंड टूर से नहीं लौटे क्या?”

“नहीं। मुझे क्या परवाह पड़ी है। जितना देर से लौटे, मेरे लिए उतना ही अच्छा है। वो तो घर से भी बाहर नहीं निकलने देता। एक-एक मिनट का हिसाब रखता है। आधा पागल है वो।”

“जरूर होगा। देवास को जानती हो?”

“देवास?” मोना चौधरी की निगाह वर्मा पर जा टिकी। ललित परेरा ने देवास का जिक्र किया था कि वो ही उसके फ्लैट की तलाशी लेने गया था – “ कौन देवास?” मोना चौधरी ने यूँ ही पूछा।

“ललित परेरा के लिए काम करता था। खर्चा पानी ही निकाल पाता होगा। जब से ललित परेरा मरा है। उसके बाद तो वो तगड़े नोटों में खेल रहा है। धारा के जुआघर में मोटे-मोटे दांव भी लगाता है। अचानक ही मोटा माल आ गया है उसके पास । तगड़ा ही हाथ मारा है उसने।”

मोना चौधरी समझ गई कि देवास उसके फ्लैट से मिले पैंतीस लाख को उजाड़ रहा है। लेकिन ये वर्मा उससे ऐसी बात क्यों कर रहा है। मोना चौधरी के चेहरे पर सामान्य भाव रहे।

“जिसे मैं जानती नहीं। उसके बारे में बात करने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है मिस्टर वर्मा।”

“ये बात भी ठीक है।” वर्मा ने सिर हिलाया- “मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताओ।”

“मेरी सेवा के लिये क्लब का पूरा स्टाफ मौजूद है फिर आपको कष्ट क्यों है?” मोना चौधरी मुस्कराई- “केबिन्स किस तरफ है? शायद मैं रास्ता भूल रही हूं।”

“उधर। वो देखो। छः फीट की खूबसूरत गैलरी नज़र आ रही है। उस गैलरी में कहीं भी बिना मुड़े सीधी चली जाओ। गैलरी खत्म होते ही सामने दरवाजा होगा। खोलकर भीतर चली जाओ। वहां केबिन्स हैं। उधर क्या किसी को मिलने का वक्त दे रखा है?”

मोना चौधरी ने मुस्कराकर हाथ मिलाया।

“बाय मिस्टर वर्मा।”

“श्योर।” वर्मा मुस्कराया- “आंखों में लैंस नहीं लगाओगी तो अवश्य ही मुलाकात होगी।” इसके साथ ही गुलशन वर्मा की निगाह स्टेज पर डांस करती युवतियों पर जा टिकी।

मोना चौधरी उसी गैलरी की तरफ बढ़ गई।

वो दरवाजा धकेलकर मोना चौधरी भीतर प्रवेश हुई कि एकाएक ठिठक गई। वहां अंधेरा ही अंधेरा नजर आया। कुछ भी देखने को नहीं मिला। फिर आंखें धीरे-धीरे अंधेरे में देखने की अभ्यस्त होने लगीं। बहुत ही मध्यम प्रकाश वहां फैला हुआ था। नये आने वाले को, उस मध्यम प्रकाश में देखने का अभ्यस्त होने में वक्त लगता था।

तभी मोना चौधरी को अपने पास किसी के पहुंचने का एहसास हुआ।

“यस मैडम!” वो कोई युवती थी- “कोई केबिन बुक है आपके नाम से या किसी केबिन में जाना है आपने?”

“मिस मोना के नाम से कोई केबिन बुक होगा। मैंने बुकिंग कराई थी।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा।

“यस। आपके नाम पर तीन नम्बर केबिन बुक है। इस तरफ आइये।”

मोना चौधरी उसके साथ चल दी।

तीस-चालीस कदमों के बाद वो रुकी और मोना चौधरी के साथ एक केबिन का पर्दा उठाकर भीतर प्रवेश कर गई। वो छः फीट लम्बा और आठ फीट चौड़ा केबिन था। मध्यम सी रोशनी का बल्व वहां रोशन था। एक तरफ दीवार के साथ सटा ढाई फीट चौड़ा बैड था और बाकी जगह में दो कुर्सियां और छोटा सा टेबल पड़ा था। टेबल पर फूलदान और नैपकिन मौजूद थे।

“बैठिये मैडम।” युवती ने कहा।

“थैंक्स।” मोना चौधरी बैठ गई।

“किसी का इन्तजार है आपको तो उसका नाम बता दीजिये।” वो बोली।

“जो भी आकर मेरा नाम ले, उसे यहां ले आइयेगा।”

“ओ० के० । ड्रिंक लेना चाहेंगी?”

“यस। बढ़िया व्हिस्की का लार्ज पैग।”

“ओ० के०। जब भी आपको केबिन छोड़ना हो, इधर बेल है। स्विच दबा दीजियेगा। आपका ‘बिल’ तैयार होकर आप तक पहुंच जायेगा। ये तो आपको मालूम होगा ही कि घंटे के हिसाब से केबिन का ‘बिल’...”

“पैसे ही कोई परवाह नहीं।” मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा- “यहां इसी तरह कम रोशनी रहती है?”

“ऐसी बात नहीं। यहां हर एक घंटे बाद तीस मिनट के लिए तेज रोशनी फैल जाती है।” युवती ने शांत स्वर में कहा- “तीस मिनट के बाद फिर एक घंटे के लिए अंधेरा हो जाता है। वैसे दस मिनट के बाद यहां रोशनी होने वाली है। मेरे ख्याल में आपको अंधेरे से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये।”

“मेरा ब्याय फ्रेंड आने वाला है।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर कहा- “उसके बाद तो रोशनी से मुझे परेशानी होगी।”

“बहुत रोमांटिक है आप मैडम।” वो हौले से हंसी- “मैं आपके लिए पैग लाती हूं।” वो बाहर निकल गई।

उसके जाने के बाद मोना चौधरी ने केबिन में नज़र मारी। परन्तु महीन रोशनी होने की वजह वहां मौजूद चीजों के खाके ही नज़र आये।

सतीश ठाकुर के लिए ये केबिन हर शाम बुक रहता था। उस आखिरी

शाम भी वो अवश्य इसी केबिन में आया होगा। आदत के मुताबिक यहां दो पैग लिए होंगे। मन में इच्छा तो हुई कि युवती से सतीश ठाकुर के बारे में पूछताछ करे, परन्तु ऐसा करना खतरनाक हो सकता था। वो नज़रों में

आ सकती थी। शायद रानी कोई काम की बात उसे बता सके।

युवती पैग के साथ प्लेट में काजू सर्व कर गई।

मोना चौधरी ने दो घूँट ही भरे होंगे कि एकाएक वहां तीव्र प्रकाश फैल गया। इसके साथ ही केबिन्स में मौजूद लोगों की मध्यम-सी आवाजें गूंजने लगीं। मोना चौधरी ने काजू मुंह में डाला और आने वाली आवाजों से बे-परवाह, अपनी सोचों में ही व्यस्त रहने की कोशिश करने लगी। एकाएक उसका ध्यान महाजन पर गया कि क्या वो आ गया होगा? या उसका कोई मैसेज पारसनाथ तक पहुंचा होगा? मन ही मन उसने तय किया कि पहली फुर्सत मिलते ही पारसनाथ को फोन करके महाजन के बारे में पूछेगी। महाजन की तरफ से कोई न कोई खबर मिलनी जरूरी थी। क्योंकि वो विक्रम दहिया जैसे खतरनाक इन्सान की टोह में था। उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा में था। अगर दहिया या उसके आदमियों को उस पर कोई शक हो गया होगा तो....?

मोना चौधरी की निगाह ठीक सामने, कुर्सी के पास की दीवार

पर जाकर टिक गई। पूरी दीवार तेज रोशनी में चमक रही थी। लेकिन उस थोड़े से हिस्से को किसी चीज से कुरेदा गया था। कुछ इस तरह कि हर किसी की निगाह पर नहीं पड़ सकती थी। किसी चीज से कुरदकर कुछ बनाया गया था।

मोना चौधरी ने घूँट भरकर, गिलास टेबल पर रखा और उस कुर्सी से उठकर, दूसरी कुर्सी को दीवार के पास खींचा और उस पर बैठते हुए ध्यान से दीवार को देखने लगी।

देखती रही।

एक-दो-तीन....पांच मिनट बीत गये।

सिकुड़े होंठ। माथे पर हल्के से बल।

पांच मिनट में वो इस नतीजे पर पहुंची कि कार की चाबी या पैन जैसी चीज से दीवार की सफेदी को हल्का-हल्का कुरेदकर कुछ बनाया गया है और जो भी बनाया गया है, वो तीन हिस्सों में था। पहले एक चीज। फिर दूसरी और उसके नीचे तीसरी। पहली दो चीजों के आकार-प्रकार तो बहुत हद तक आपस में मिल रहे थे। लेकिन तीसरी चीज का आकार-प्रकार पहली दोनों चीजों से अलग था।

क्या बना है दीवार पर?

किसने बनाया है?

सतीश ठाकुर ने या किसी ने यूं ही वक्त बिताने की खातिर दीवार खराब की है।

मोना चौधरी के मस्तिष्क में सोचें तेजी से दौड़ रही थीं। इस तरह स्पष्ट तौर पर नहीं देखा जा सकता था कि दीवार पर क्या बना है। ये जाने बिना किसी नतीजे पर पहुंच पाना असम्भव था। लेकिन इस तरह कुरेदी दीवार पर क्या है। ये जानना बहुत जरूरी था, परन्तु देखे कैसे? मालूम कैसे हो?

मोना चौधरी ने दायें हाथ की तर्जनी उंगली उस जगह पर फेरी।

उंगली को दीवार का वो हिस्सा उभरा-जरा सा लगा, परन्तु समझ नहीं आई कि दीवार पर क्या बना है?

मोना चौधरी दिमाग पर जोर दे रही थी कि दीवार पर खींची हुई आड़ी-तिरछी लाईनों को कैसे स्पष्ट तौर पर पहचाने। इन लाईनों को समझना जरूरी था कि ये क्या है। दीवार पर ये लाईनें अगर सतीश ठाकुर ने खींची हैं और उसका कोई मतलब है तो शायद कोई काम की बात का पता चल सके। उलझी सी मोना चौधरी का यूं ही वक्त बीतता रहा। केबिन में बैठी रही। दीवार पर बनाई गई कुरेदी चीजों को कैसे समझना है, वो तय कर चुकी थी। रानी का इन्तजार था उसे।

इस बीच वो छोटा-सा दूसरा पैग ले चुकी थी।

करीब डेढ़ घंटे बाद रानी वहां पहुंची।

“बैठे-बैठे बोरियत हो गई होगी।” रानी बैठते हुए बोली।

“ऐसी बात नहीं। इस वक्त इस तरह बैठकर तुम्हारा इन्तजार करना भी, मेरे लिए काम है।” मोना चौधरी मुस्कराई- “अगर तुम कोई अच्छी खबर-जानकारी लाई तो, इन्तजार का मजा आ जायेगा।”

“मेरे ख्याल में तुम्हारे मजे आने वाले जानकारी तो नहीं मिली मुझे।” रानी ने गहरी सांस लेकर कहा- “अभी तक जो भी थोड़ा- बहुत मालूम हुआ है। वो बता देती हूं।”

“क्या?”

“सतीश ठाकुर अपनी हत्या के एक शाम पहले यहां आया था।”

रानी ने कहा- “उससे एक शाम पहले यहीं उसने जुआ खेला था तो पन्द्रह लाख से ज्यादा की रकम जीत गया था। लेकिन तब आधी रात से ज्यादा का वक्त हो गया था और जुआघर का कैश, क्लब के स्ट्रांग रूम में रख दिया था। कैशियर चाबी लेकर जा चुका था। उस रात कैशियर ने कहीं

काम जाना था। बीती रात का हिसाब अगले दिन सावरकर साहब को दिया जाता है। तो पन्द्रह लाख से ज्यादा की रकम का वो हकदार था। कैश न होने की वजह से उसकी पैमेंट नहीं हो सकी तो क्लब के कर्मचारी ने इस सिलसिले में उसकी मुलाकात सावरकर साहब से करवाई। सावरकर साहब ने सतीश ठाकुर से सारे टोकन ले लिए और कहा कि अगले दिन किसी भी वक्त आकर जीत के पैसे ले जाये। ऐसा हो जाता है। सतीश ठाकुर भी जानता था। सावरकर पर अविश्वास करने का तो कोई मतलव ही नहीं था। उस रात सतीश ठाकुर चला गया और अगले दिन शाम को आठ-नौ बजे ही फिर सतीश ठाकुर क्लब पहुंचा । रूटीन के मुताबिक वो इस केबिन में न आकर, सब से पहले सावरकर के आफिस में गया। ताकि बीती रात की लाखों की पैमेंट ले सके। तब सावरकर होटल में ही किसी काम में व्यस्त था, परन्तु दरवाजे पर मौजूद चपरासी को सतीश ठाकुर के बारे में कह रखा था कि वो आये तो उसे भीतर बिठा दे। चपरासी ने उसे भीतर बिठा दिया। तब पन्द्रह-बीस मिनट सतीश ठाकुर सावरकर के आफिस में रहा। सावरकर नहीं आया था। सतीश ठाकुर बाहर निकला और चपरासी से ये कहकर कि वो क्लब में ही है। कुछ देर में फिर आ जायेगा, इस केबिन में चला आया। यहां आकर उसने पैग लिए। घंटे से ज्यादा वक्त वो यहां बैठा रहा। जबकि आमतौर पर केबिन में वो सिर्फ पीने आता है। ज्यादा नहीं बैठता। उसके बाद यहां से वो मशीनों पर जुआ खेलने चला गया।”

रानी कहते-कहते ठिठकी। वो बेहद धीमे स्वर में कह रही थी। मोना चौधरी की निगाह उस पर थी।

“फिर?” मोना चौधरी के होंठ खुले।

“उसके बाद स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं मालूम हो पाया।” रानी ने सिर हिलाकर कहा- “टूटा-फूटा सुनने में आया कि जब वो जुआ खेल रहा था तो सावरकर साहब के एक आदमी ने वहां आकर उसे कहा कि कल की जीत का पैसा सावरकर साहब के पास से ले ले। वो इन्तजार कर रहे हैं। उन्होंने जाना है। हाथ में चल रही गेम को समाप्त करके, सतीश ठाकुर उसके साथ चला गया। इसके बाद सतीश ठाकुर की खबर अगले दिन शाम को जुआघर खुलने पर ही मिली कि सुबह किसी ने उसे गोली मार दी।”

मोना चौधरी ने सोच भरे अंदाज में हाथ बढ़ाकर गिलास उठाया और घूँट भरा।

“इसका मतलब कि पन्द्रह लाख जैसी रकम देने में सावरकर के मन में बे-ईमानी आ गई और।”

“नहीं। सावरकर बेशक कैसा भी आदमी सही। लेकिन धंधे में खरा है।” रानी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा- “पन्द्रह लाख तो क्या, पचास लाख की रकम की भी हेराफेरी नहीं करेगा। ऐसा करेगा तो उसके क्लब में पैर कौन रखेगा। सावरकर अपने धंधे में बेईमान नहीं है।”

“तो?”

“मैं नहीं जानती कि तो के आगे क्या है।” रानी ने गम्भीर स्वर में कहा- “कम से कम पैसे को लेकर सतीश ठाकुर और सावरकर में कोई बात नहीं हो सकती।”

“तुम्हारा क्या ख्याल है जब सतीश ठाकुर, सावरकर के पास पैसा लेने गया तो उनमें कोई बाते हुई होगी?”

रानी ने होंठ भींच लिए।

“बोलो।”

“शायद। कोई बात हुई हो सकती है।” रानी ने दबे स्वर में कहा- “क्योंकि अगले दिन दोपहर बाद सावरकर जब क्लब आया तो उसके सिर पर पट्टी बंधी थी। उसी दिन सतीश ठाकुर की हत्या हुई। मेरे ख्याल में रात को सावरकर के आफिस में उनका अवश्य किसी बात पर झगड़ा हुआ होगा और सतीश ठाकुर, सावरकर के सिर पर चोट मारकर भाग निकला और यही बात उसकी मौत का कारण बनी। ऐसा मेरा ख्याल है। हकीकत इस से हटकर भी हो सकती है।”

मोना चौधरी सोच भरी निगाहों से रानी को देखती रही।

“धारा होटल का मालिक ललित परेरा यहां आया करता था?”‘

मोना चौधरी ने पूछा।

“हां। सावरकर साहब की परेरा से अच्छी पटती थी।”

मोना चौधरी के मस्तिष्क में उलझन घर करती जा रही थी। सोचें पीछा नहीं छोड़ रही थीं।

“सावरकर इस वक्त कहां है?”

“अपने आफिस में।” रानी ने मोना चौधरी को देखा।

“उसका आफिस किधर पड़ता है?”

“क्या तुम इस मामले के बारे में उससे बात करना चाहती हो?” रानी कह उठी।

“नहीं। अपनी जानकारी की खातिर पूछ रही हूं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

रानी ने बता दिया कि सावरकर का आफिस क्लब में किस तरफ पड़ता है।

“कार्बन पेपर का इन्तजाम हो सकता है?” मोना चौधरी बोली।

“कार्बन पेपर?” रानी के होंठों से निकला- “बहुत मिल जायेगा।

लेकिन कार्बन पेपर की क्या जरूरत पड़ गई?”

“लेकर आओ।” मोना चौधरी की निगाह दीवार की तरफ गई- “फिर बताऊंगी।”

रानी सिर हिलाकर उठी और बाहर निकल गई।

मोना चौधरी की नज़रें पुनः दीवार पर कुरेदी जगह पर जा टिकीं।

तीसरे मिनट ही रानी कार्बन पेपर ले आई।

“मैं समझ नहीं पा रही हूं कि तुम कार्बन पेपर से करना क्या चाहती हो।” रानी ने कार्बन पेपर उसे देते हुए कहा।

“इस केबिन को सतीश ठाकुर, अक्सर शाम को इस्तेमाल करता था। वो जब भी इस क्लब में आता था तो यहां अवश्य बैठता था। अपनी हत्या से एक शाम पहले भी बैठा था।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा- “और ये देखो। यहां दीवार पर, किसी सख्त चीज से, या कार की चाबी से कुरेद कर कुछ लिखा-बनाया गया है। अगर ये काम सतीश ठाकुर ने किया है तो यूं ही नहीं किया होगा। चूंकि दीवार को कुरेदने में किसी तरह की स्याही का इस्तेमाल नहीं किया गया, इसलिए समझ नहीं आ रहा कि यहां पर क्या किया गया है।”

“तो?” रानी की निगाह दीवार पर गई। वहां दीवार पर मध्यम सी रेखाएं खींची नज़र आईं। जोकि सीधे-सीधे देखने में नज़र आ सकती थीं- “इस कार्बन से क्या होगा?”

“कार्बन को इस कुरेदी दीवार पर हौले-हौले रगडूंगी। जिससे कि दीवार की लाईनों पर कार्बन की स्याही रगड़ से अटक जायेगी और लाईनें स्पष्ट तौर पर समझ में आने लगेंगी।”

“ओह!” रानी ने गहरी सांस ली- “अब समझी।”

मोना चौधरी ने कार्बन को ठीक से पकड़ा और दीवार पर रखकर हौले-हौले रगड़ने लगी।

कुछ रगड़ने के बाद मोना चौधरी ने दीवार से कार्बन हटाकर देखा तो बहुत हद तक दीवार पर खिंची रेखाएं स्पष्ट होने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे किसी के चेहरे बनाये गये हों।

“ये तो ऐसा लगता है जैसे किसी के चेहरे के स्कैच हों।” रानी बोली। कुछ न कहकर मोना चौधरी ने कार्बन पुनः दीवार पर लगाया और  उसे रगड़ने लगी। ये काम वो बेहद धीमी गति से कर रही थी। कार्बन पर रखी उंगलियों को खास ढंग से हिला रही थी।

करीब दो मिनट बाद मोना चौधरी ने अपनी हरकत रोकी और दीवार पर से कार्बन हटाया।

दीवार का वो हिस्सा कार्बन स्याही की वजह से नीला हो गया था, परन्तु दीवार पर दो-दो इंच के दायरे में दो चेहरों के स्कैच बने थे जो कि अब बिल्कुल स्पष्ट नज़र आ रहे थे और उन चेहरों के स्कैच के नीचे छोटे-छोटे तीन ट्रक बनाये हुए थे।

दीवार पर इस तरह चेहरों के और ट्रकों के स्कैच बनाना, कलाकारी का नायाब नमूना था।

जब कार्बन हटाया तो, उन स्कैचों पर निगाह पड़ते ही मोना चौधरी हक्की-बक्की रह गई। उसकी आंखें फैलती चली गई थीं। किसी बुत की तरह वो तब तक बैठी रही, जब तक रानी की आवाज कानों में नहीं पड़ी। वरना इसी स्थिति में शायद वो अभी भी रहती।

“सावरकर। ये तो सावरकर के चेहरे का स्कैच है।”

मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़े रानी को देखा फिर स्कैचों पर नज़र टिक गई। तो जिस चेहरे को उसने कभी नहीं देखा था, वो सावरकर का चेहरा था। लेकिन दूसरा स्कैच। जो दूसरा चेहरा नज़र आ रहा था वो चेहरा? जिसने मोना चौधरी के मस्तिष्क में हलचल मचा दी थी।

सतीश ठाकुर ने बनाया  वो बख्तावर सिंह के चेहरे का स्कैच था।

बख्तावर सिंह।

पाकिस्तान की मिल्ट्री की खतरनाक शख्सियत।

पाकिस्तानी मिल्ट्री में बख्तावर सिंह क्या हैसियत रखता था। मोना चौधरी आज तक नहीं जान सकी थी, परन्तु इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थी कि कोई उसकी बात से इन्कार नहीं करता था। हर कोई उसके रुतबे के अधीन था। यहां तक कि पाकिस्तानी सरकार में भी उसकी दखलअंदाजी स्वीकार की जाती थी। बख्तावर सिंह से मोना चौधरी कई बार टकरा चुकी थी। कई बार बख्तार सिंह को तगड़ी शिकस्त दी थी और वो ये भी जानती थी कि बख्तावर सिंह उसे खत्म करने का कोई मौका नहीं चूकेगा।

और बखावर सिंह के चेहरे का स्कैच सामने दीवार पर बना था।

है क्या ये स्कैच?

सतीश ठाकुर ने बख्तावर सिंह को देखा था क्या?

बख्तावर सिंह और सावरकर का स्कैच एक साथ होने का मतलब है कि स्कैच बनाने वाले ने इन दोनों को अवश्य इकट्ठे देखा है।

तो क्या बख्तावर सिंह इस वक्त हिन्दुस्तान में मौजूद है?

मोना चौधरी की निगाह बराबर दीवार पर थी।

दोनों के चेहरों के स्वैचों के नीचे तीन ट्रकों के छोटे-छोटे स्कैच थे। ट्रकों के स्कैच का क्या मतलब है?

ट्रकों के स्कैच यूं ही नहीं बनाये गये होंगे। अवश्य कोई खास, बेहद खास वजह रही होगी।

सबसे पहले तो जानने की जरूरत थी कि क्या ये स्कैच सतीश ने बनाये हैं। जबकि ऐसे स्कैच तो कोई माहिर आर्टिस्ट ही बना सकता है, परन्तु सोचों में मस्तिष्क में बख्तावर सिंह ही घूम रहा था। यहां दीवार पर ऐसे स्कैच होने का मतलब है कि बख्तावर सिंह इस वक्त हिन्दुस्तान में हो सकता है।

लेकिन ये भी तो हो सकता है कि स्कैच किसी ने बहुत वक्त पहले बनाये हों?

मोना चौधरी ने रानी को देखा।

“दूसरे चेहरे का स्कैच किसका है?” रानी बोली- “मैंने इस चेहरे वाले आदमी को पहले कभी नहीं देखा?”

“तुम बता सकती हो कि ये स्कैच किसने बनाये हैं?” मोना चौधरी  ने पूछा।

“मुझे क्या मालूम।”

“सतीश ठाकुर आर्टिस्ट था?”

“मैं नहीं जानती।” रानी ने इन्कार में सिर हिलाया।

“तो इनमें से एक सावरकर के चेहरे का स्कैच है?” मोना चौधरी सोच भरे स्वर में बोली।

“हां। बाईं तरफ वाला।”

“इन दोनों के स्कैच दीवार पर एक साथ होने का मतलब है कि ये दोनों एक-दूसरे को जानते हैं?”

“ये बात तो स्पष्ट है।” रानी के होंठों से निकला।

मोना चौधरी की निगाह रानी पर जा टिकी।

“तुम्हारी सहेली शोभा इस वक्त कहां है, जानती हो?” मोना चौधरी गम्भीर थी।

“नही । धारा होटल से जब से उसने नौकरी छोड़ी है, तब से बात नहीं हुई। महीना भर हो गया। लेकिन मैं जानती हूं। वो कभी-कभी दो-दो महीने फोन नहीं करती।”

“शोभा इस वक्त सतीश ठाकुर के घर में ही है।” मोना चौधरी ने बताया।

“ओह!”

“उसके पेट में सतीश ठाकुर का बच्चा है और वो सतीश की वसीयत खुलने का इन्तजार कर रही है कि अपनी हत्या से एक दिन पहले की गई वसीयत में उसके नाम कुछ छोड़ा है या नहीं?”

“मेरे ख्याल में अवश्य छोड़ा होगा।”

“इस बात में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।” मोना चौधरी ने कहा और सतीश ठाकुर का फोन नम्बर बताकर बोली- “शोभा से फोन पर पूछो कि क्या सतीश ठाकुर को ड्राईंग बनानी आती थी? मैं यहीं बैठी हूं।”

“मैं अभी फोन पर शोभा से बात करती हूं।”

“अकेले में करना। कोई दूसरा नहीं जाने कि...”

“मैं समझती हूं।”

“तुम बार-बार मेरे पास आ रही हो। क्लब के स्टाफ वाले सोचेंगे नहीं कि तुम मेरे पास।”

“मैंने बता दिया है कि तुम मेरी आंटी हो और तुम्हारा सारा खर्चा मेरे खाते में डाला जाये। ऐसा इसलिए करना पड़ा कि कोई ये न सोचे कि मैं तुम्हारे पास बार-बार क्यों आ रही हूं।”

“समझदार हो।” कहते हुए मोना चौधरी ने सौ-सौ के कुछ नोट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाये- “ये रख लो। मैं नहीं चाहती कि मेरा खर्चा तुम दो। मेरा जितना काम कर रही हो। वो ही ज्यादा है।”

रानी ने बिना किसी एतराज के नोट ले लिए। बाहर निकल गई। टेबल पर रखा गिलास उठाकर मोना चौधरी ने घूँट भरा। नज़रें दीवार पर बने स्कैचों पर जा टिकीं।

अगर ये स्कैच सतीश ठाकुर ने अपनी हत्या की पहली रात बनाये हैं तो स्पष्ट था कि उसने इन दोनों को एक साथ देखा था। शायद उनके बीच की बातें भी सुनीं। और ये सब होना ही उसकी मौत की वजह बना। वास्तव में ऐसा था तो मामला बहुत खतरनाक था।

बखावर सिंह का हिन्दुस्तान में होना, किसी नई मुसीबत की तरफ इशारा करता था। बिना वजह बख्तावर सिंह कहीं भी आता-जाता नहीं था। अगर उस जैसा खतरनाक इन्सान खुद देशों की सीमा पार करके आया है तो यकीनन कोई बड़ा काम ही होगा।

रानी ने भीतर प्रवेश किया।

“शोभा कहती है कि सतीश ठाकुर कुछ साल पहले आर्टिस्ट हुआ करता था।” रानी बोली।

“आर्टिस्ट? कैसा आर्टिस्ट?”

“वो आर्ट वर्क करता था। कॉमिक्स बनाया करता था। फिर कॉमिक्स का काम बैठने लगा। प्रकाशकों को इसमें नुकसान होने लगा। उसे भी काम मिलना बंद हो गया। तो उसके बाद मौजूदा पैसों से उसने खिलौने बनाने वाली फैक्ट्री खोली और फैक्ट्री चल निकली। उसके बनाये खिलौने बाजार में अपनी पकड़ बनाते चले गये और कुछ ही सालों में वो बड़ी दौलत का मालिक बन गया।”

मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।

“क्या हुआ?” उसके चेहरे के भाव देखकर रानी ने पूछा।

“कुछ नहीं।” मोना चौधरी गहरी सांस लेकर मुस्कराई- “तुमने वास्तव में मेरा बहुत काम किया। शोभा को बताऊंगी मैं।”

रानी भी मुस्कराई।

“वैसे तो जरूरत नहीं पड़ेगी। फिर भी तुम्हारी जरूरत पड़ी तो बता दूंगी।” मोना चौधरी बोली।

“मतलब कि मैं जाऊं।” रानी मुस्करा पड़ी।

“धन्यवाद के साथ।” मोना चौधरी कहते हुए हौले से हंसी। रानी चली गई।

मोना चौधरी एकाएक गम्भीर हो गई। नज़रें पुनः दीवार पर नज़र आ रहे स्कैचों की तरफ उठीं।

अब इसमें दो राय नहीं थी कि अपनी हत्या से पहले की शाम, सतीश ठाकुर ने इसी क्लब में बख्तावर सिंह के साथ, क्लब के मालिक सावरकर को देखा। उनकी बातें सुनी। और उनकी बातों में ऐसा कुछ था कि जिसके कारण सतीश ठाकुर को अपनी जान गंवानी पड़ी। यानि कि बख्तावर सिंह इस वक्त इसी शहर में मौजूद था। उसका सावरकर के साथ तगड़ा वास्ता है और बख्तावर सिंह इस वक्त, इस क्लब में भी हो सकता है।

क्या करने आया है बख्तावर सिंह हिन्दुस्तान में?

इन सब सवालों का जवाब सावरकर के पास था और वो आसानी से उसे नहीं बतायेगा। यानि कि सावरकर के अन्दर से बातें निकालने के लिए, अब उसके गले के भीतर हाथ डालना जरूरी हो गया था। रानी बता चुकी थी कि क्लब में उसका आफिस किस तरफ है। मोना चौधरी उठ खड़ी हुई।

चेहरा सामान्य दिख रहा था। लेकिन आंखों में खतरनाक चमक लहरा रही थी। केबिन से बाहर निकलने से पहले मोना चौधरी ने दीवार पर नज़र आ रहे, चेहरों के स्कैचों को पूरी तरह विगाड़ दिया था कि कोई पहचान न सके। क्योंकि सावरकर के चेहरे का भी स्कैच था और उसके निकालने के बाद किसी ने देख लिया। बात सावरकर तक पहले ही पहुंच गई तो वो सतर्क हो सकता था।

☐☐☐

चूंकि मोना चौधरी अधेड़ उम्र की औरत के मेकअप में थी। इसलिए उसकी तरफ किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। रानी ने जिधर सावरकर का आफिस बताया था। मोना चौधरी लापरवाही से रास्ते तय करती उस तरफ जाने लगी। होटल के कर्मचारी रास्ते में मिले, परन्तु किसी ने उसे पूछने-रोकने की चेष्टा नहीं की।

दस मिनट में ही मोना चौधरी उस जगह पर पहुंच चुकी थी। जहां सावरकर का आफिस था। वो गैलरी के कोने में था और उसी गैलरी में होटल के स्टाफ के बड़े कर्मचारियों के आफिस भी थे। कुछ के बाहर तो चपरासी भी थे। सावरकर के आफिस के बाहर भी चपरासी बैठा था। चपरासी दिक्कत खड़ी कर सकता था।

वो अकेला नहीं था। अन्य तीन दरवाजों के बाहर भी चपरासी मौजूद थे और एक-दूसरे को देख सकते थे। ऐसे में उसके द्वारा की गई हरकत आसानी से उनकी नजर में आ सकती थी। मोना चौधरी इस सोच के साथ धीमी गति से आगे बढ़ रही थी कि चपरासी उसे सीधे-सीधे सावरकर से नहीं मिलने देगा। उसकी सावरकर के साथ कोई अप्वाई मैंट नहीं थी। चपरासी से कुछ इस तरह बात करनी पड़ेगी कि सावरकर से पूछे बिना सीधे-सीधे उसे अन्दर जाने....।

मीना चौधरी की सोचें थम गईं।

देखते ही देखते चपरासी उठा और उसकी तरफ बढ़ने लगा।

मोना चौधरी उसी ढंग से आगे बढ़ती रही।

तभी चपरासी उसकी बगल से निकलकर आगे बढ़ता चला गया। मौका अच्छा था। मोना चौधरी ने राहत भरी सांस ली। सावरकर के आफिस में आसानी से प्रवेश कर सकती थी। अगर सावरकर भीतर नहीं हुआ तो उसका इन्तजार करने में कोई दिक्कत नहीं थी।

मोना चौधरी बंद दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठकी। इधर-उधर देखने का मतलब था, गैलरी में मौजूद अन्य तीनों चपरासियों पर शक पैदा करना। अगर उनकी निगाह उस पर हुई तो? जो कि होगी ही। मोना चौधरी ने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश करती चली गई।

दरवाजा बंद हो गया।

सामान्य साईज का कमरा, किसी महल के कमरे की सजावट से कम नहीं था। सजावट में कीमती से कीमती समान इस्तेमाल किया गया था।

कमरे के बीचों-बीच बड़े साईज की टेबल और उसके गिर्द कुर्सियां थीं। एक तरफ तिजोरी रखी हुई थी। टेबल के पीछे, बड़ी- सी कुर्सी पर, जो बैठा, उसे देख रहा था, वो सावरकर ही था। मोना चौधरी ने आसानी से उसे पहचाना। क्योंकि केबिन में दीवार पर बने स्कैच का चेहरा उसी का था।

“हैलो।” मोना चौधरी मुस्कराकर टेबल के पास पहुंची।

“हैलो।” सावरकर ने शांत भाव में सिर हिलाया- “बैठो।”

मोना चौधरी बेहद सामान्य भाव से बैठ गई। जबकि उसे सावरकर से ऐसे स्वागत की आशा नहीं थी। उसने तो सोचा था कि सावरकर सख्ती से कहेगा कि वो इस तरह भीतर कैसे आ गई और।

“मैंने आपको पहचाना नहीं?” सावरकर ने पहले वाले स्वर में कहा। मोना चौधरी ने गहरी निगाहों से सावरकर को देखा। वो पचास बरस को छूने जा रहा था, परन्तु स्वस्थ व्यक्ति था। उसका चेहरा ही बता रहा था कि वो खेला-खाया चालाक व्यक्ति था।

“पहली मुलाकात के लिए पहचान बनाना जरूरी है।” मोना चौधरी मुस्कराई।

“मेरे पास कैसे आना हुआ?”

“सतीश ठाकुर ने तुम्हारे और बख्तावर सिंह के बारे में बताया था।” मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान थी।

मोना चौधरी जानती थी कि वो उसके शब्द सुनकर जोरों से चौंकेगा।

परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सावरकर का चेहरा वैसा ही रहा।

“मैं जानता हूं कि वो तुम्हें बता चुका है।” सावरकर ने फिर चेहरा हिलाया। आंखों में सख्ती आ गई थी।

“मतलब कि तुमने मुझे पहचान लिया?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“हां। मैंने तुम्हें बहुत अच्छी तरह पहचाना है।” सावरकर ने शब्दों को चबाकर कड़वे स्वर में कहा- “मैं ये भी जानता था कि तुम मेरे पास आ रही हो। तुम्हें मुझ तक पहुंचने में किसी तरह की परेशानी न हो, इसलिए मैंने चपरासी को तुम्हारा ये हुलिया बताकर कहा था कि तुम्हें आता देखे तो, अपनी जगह से हट जाये।”

“ओह!” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े- “मेरा हुलया तुम्हें कैसे पता चला। मैं तो मेकअप में हूं।”

सावरकर के चेहरे पर तीखे भाव आ गये।

“तुम रानी के साथ जब केबिन में थीं तो मैं तुम्हें यहीं बैठा, अच्छी तरह देख ही नहीं रहा था, बल्कि तुम्हारी हरकतों के साथ, तुम दोनों की बातें भी सुन रहा था। क्लब के किस हिस्से में क्या हो रहा है, ये जानने का मैंने पूरा इन्तजाम कर रखा है। जब मुझे खबर मिली कि रानी ने अपनी किसी मेहमान औरत के लिए केबिन बुक करवाया है और केबिन की पैमेंट अपने खाते में डालने को कहा तो मैंने एक निगाह तुम्हें देखने के लिए, गुप्त कैमरा तुम्हारे केबिन की तरफ कर दिया। दीवार पर बने अपने और बख्तावर सिंह के स्कैच को भी यहीं बैठे-बैठे स्क्रीन में देखा। तुम दोनों की बातें सुनीं।”

मोना चौधरी होंठ सिकोड़े, सावरकर को देखने लगी।

“यकीन नहीं आया मेरी बात का?”

“आ गया वैसे किस स्क्रीन पर ये सब देखा?”

“जिस दरवाजे से तुम भीतर आई हो। उसके ऊपर स्क्रीन लगी है और मेरे इस टेबल में कंट्रोल है, जिससे मैं क्लब में अपनी पसन्दीदा जगह का नजारा स्पष्ट तौर पर देख सकता हूं।”

मोना चौधरी ने गर्दन घुमाकर पीछे देखा। जिस दरवाजे से उसने भीतर प्रवेश किया था, उसके ऊपर और बड़ी सी स्क्रीन लगी स्पष्ट नज़र आ रही थी।

“पक्के इन्तजाम कर रखे हैं।” मोना चौधरी ने सावरकर को देखा।

“केबिन में तुमने रानी के साथ जो बातें कीं, उससे साफ जाहिर हो गया है कि सतीश ठाकुर तुम्हें कुछ नहीं बता सका और मारा गया। इस बात का यकीन होने पर हम तुम्हें कुछ नहीं कहते। तुम पर से अपने आदमी हटा लेते कि तुम्हारे जिन्दा रहने से हमें कोई नुकसान नहीं।” सावरकर ने मोना चौधरी की आंखों में झांका- “लेकिन केबिन में मेरे और बख्तावर सिंह के स्कैच देखकर तुम जो जानी, उससे तुम मौत के और भी करीब पहुंच गई हो। अगर तुम बख्तावर सिंह को न जानती होतीं तो तब भी मैं तुम्हें जिन्दा छोड़ देता । यानि कि तुम्हारा ये जाना जाना मेरे लिए नुकसानदेह है कि मेरा सम्बन्ध पाकिस्तानी बख्तावर सिंह के साथ है।”

“मतलब कि मेरी मौत पक्की हो गई।” मोना चौधरी मुस्कराई।

“मुस्कराओ मत।” सावरकर ने सर्द स्वर में कहा- “तुम वास्तव में मरने जा रही हो। परेरा को जब तुम्हारे बारे में पता चला तो वो तुम्हें डाइनामाईट की तरह खतरनाक बता रहा था। कहता था तुम्हें मैडम डाइनामाईट कहना ठीक होगा।”

“वो परेरा की अपनी समझ है कि उसने तुम्हें ऐसा कहा।” मोना चौधरी की निगाह सावरकर के चेहरे पर टिक गई थी- “तो सतीश ठाकुर की हत्या इसलिए की गई कि उसने तुम्हें और बख्तावर सिंह को एक साथ देख लिया था।”

“बात यहीं तक होती तो उसे न मारा जाता। उसे क्या मालूम कि बख्तावर सिंह कौन है। लेकिन उसने हमारी बातें भी सुन ली थीं। जिससे वो बख्तावर सिंह के बारे में भी जान गया था। इसके अलावा वो कुछ ऐसी बात भी जान गया था, जो उसे नहीं जाननी चाहिये थी।”

“सतीश ठाकुर ने बातें तब जानी होंगी, जब वो यहां तुम्हारे इन्तजार में केबिन में रहा था।” मोना चौधरी बोली।

“हां।” सावरकर का स्वर सख्त हो गया- “वो मेरे इन्तजार में यहां बैठा था और मैं क्लब में खास जगह पर बख्तावर सिंह के साथ गुप्त मीटिंग कर रहा था। उसे यहां बैठकर मेरे आने का इन्तजार करना चाहिये था। अगर बैठे-बैठे बोर हो गया था तो चला जाता। दोबारा आकर अपने पैसे ले जाता लेकिन ऐसा न करके वो यहीं पर ही अपना वक्त गुजारने के लिए छेड़छाड़ करने लगा और करते-करते उसने टेबल के नीचे रखे सिस्टम को चालू कर दिया जिससे क्लब के मनचाहे हिस्से पर नज़र रखी जा सकती है। सिस्टम में छेड़छाड़ करने से ये भी जान गया कि स्क्रीन पर आने वाले दृश्यों को कैसे बदला जाता है। उसने ऐसा किया और फिर स्क्रीन पर उसे मैं नज़र आया तो उसने शायद उत्सुकतावश, गुप्त कैमरे को मुझ पर ही फोकस कर दिया। तब मैं बख्तावर सिंह के साथ अपनी खास जगह पर, बहुत ही महत्वपूर्ण और खास मुद्दे पर बात कर रहा था।”

होंठ सिकोड़े मोना चौधरी ने हौले से सिर हिलाया।

“सतीश ठाकुर ने बातें भी सुनीं और बातों के दौरान बख्तावर सिंह का परिचय भी जान गया।”

“तो उन बातों को सुनना ही उसकी मौत की वजह बना।” मोना चौधरी कह उठी।

“हां। उसे जिन्दा छोड़ना खतरे से खाली नहीं था।”

“लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि सतीश ठाकुर ने तुम्हारे आफिस में आकर ये सब किया है। मैंने तो सुना है कि तुम्हारे आने से पहले ही, वो इस जगह से चला गया था।” मोना चौधरी ने कहा।

“हां। वो मेरी और बख्तावर की बातें सुनकर शायद घबरा गया था। चला गया। जब मैं आफिस में पहुंचा तो स्क्रीन पर वो ही कमरा फोकस हुआ नजर आया, जहां कुछ देर पहले मैं बख्तावर के साथ था। मैं तभी समझ गया कि किसी ने सब कुछ सुना-देखा है, जो मेरे और बख्तावर के बीच हुआ। चपरासी ने बताया कि सतीश ठाकुर आया था। मैंने कमरे की फिल्म रिवर्स की, ताकि ये जान सकूँ कि सतीश ठाकुर ने क्या देखा-सुना। तो मालूम हुआ उसने सब कुछ देखा-सुना है। उसके बारे में पता करवाया तो मालूम हुआ कि वो मशीन पर जुआ खेल रहा है। मैंने उसे बुलवाने के लिए अपना आदमी भेजा। सतीश ठाकुर को जिन्दा नहीं छोड़ा जा सकता था। सतीश मेरे पास आया। वो स्पष्ट तौर पर परेशानी में लगा रहा था।

उसकी निगाहों में बदलाव साफ-साफ नज़र आ रहा था। मैंने सीधे-सीधे उससे पूछा कि उसने स्क्रीन को मुझ पर फोकस क्यों किया? बातें क्यों सुनीं? वो माना कि उससे गलती हो गई है। उसके मानने से बात खत्म नहीं हो सकती थी। बात तो उसकी मौत से खत्म होनी थी। जब उसे लगा कि उसे जिन्दा नहीं छोड़ा जायेगा तो मेरे सिर पर चोट मारकर वो भाग निकला। लेकिन ज्यादा देर वो जिन्दा नहीं बचा रह सकता था। अगले ही दिन मेरे आदमियों ने उसे शूट कर दिया। जब वो तुमसे मिला।”

सावरकर के चुप होते ही वहां खामोशी छा गई।

मोना चौधरी के चेहरे पर सोचें दौड़ रही थीं।

“तुम्हारी वजह से हमें कुछ परेशानी हुई। क्योंकि तुमने हमारे आदमियों को मार दिया था और खुद बची हुई थीं। तब हम ये सोच रहे थे कि सतीश ठाकुर ने तुम्हें सब बात बता दी है। वो तो अब पता चला कि ऐसा कुछ नहीं था।”

“ललित परेरा तुम्हारे लिए काम करता था?” मोना चोधरी ने पूछा।

“नहीं। मैं और ललित परेरा किसी और के लिए काम करते हैं।” सावरकर ने उसे घूरा।

“किसके लिए?”

“ये बताने की मैं जरूरत नहीं समझता।”

“ललित परेरा की जान क्यों ली गई?”

“क्योंकि परेरा तुम्हारी निगाह में आ गया था। तब बख्तावर सिंह भी यही समझ रहा था कि सतीश ठाकुर ने तुम्हें सब बता दिया है। ऐसे में बलावर सिंह को लगा कि कहीं तुम ललित परेरा का मुंह खुलवाकर, बाकी की बात भी न जान लो। इसलिए बख्तावर सिंह के आदेश पर ललित रेग को तुरन्त खत्म कर दिया गया। बख्तावर सिंह की नजर में परेश, मजबूत इरादों वाला इन्सान नहीं था।”

“यानि कि।” मोना चौधरी सोच भरे स्वर में बोली- “सतीश ठाकुर को जो भी तुम्हारे और बख्तावर सिंह के मुंह से सुनने को मिला, वो बात अधूरी थी।”

“ऐसा ही समझ लो।”

“सतीश ठाकुर ने केविन में जो स्कैच बनाये थे, उसके नीचे तीन ट्रकों के स्कैच क्यों बनाये?”

सावरकर के होंठों पर जहरीली मुस्कान उभरी।

“बिना वजह तो उसने ट्रकों के स्कैच नहीं बनाये होंगे।”

“बेकार की बात मत करो। मैं ऐसी बातों के जवाब नहीं देता।” मोना चौधरी ने उसे घूरा।

“तुमने बहुत बातें बिना पूछे ही बता दी, जो नहीं बतानी चाहिये थीं। ऐसा क्यों किया?” मोना चौधरी बोली।

सावरकर के चेहरे पर मौत भरी मुस्कान फैलती चली गई।

“सुना है तुम मैडम डाइनामाईट हो। बख्तावर सिंह भी तुम्हें बहुत खतरनाक कहता है। लेकिन मेरी नज़रों में तुम गुड़िया हो।” सावरकर ने अपना कान मसलते हुए कहा- “दूसरे जाने क्यों तुम्हारी हवा बांध रहे हैं। खैर, मैंने तुम्हें सब कुछ इसलिए बताया कि ये तुम्हारा आखिरी वक्त है मोना चौधरी। तुम भरने जा रही हो। जो बता सकता था, वो बताकर मैंने तुम्हें ज्यादा से ज्यादा शान्ति पहुंचाई है कि मरने के बाद तुम्हारी आत्मा पर कोई बोझ न रहे। वो चैन से मुक्ति पा सके।”

“मतलब कि ये पक्का है कि तुम, मुझे खत्म करने जा रहे हो?”

“तुम मारोगे मुझे या तुम्हारे आदमी?”

“तुम्हारे यहां आने की खबर तो मुझे पहले ही हो गई थी। इसलिए इन्तजाम पहले ही कर लिया था।”

मोना चौधरी मुस्कराई।

“तुम्हें इस बात से डर लगना चाहिये कि तुम मरने जा रही हो।” सावरकर ने उसे घूरा।

“जरूर डरूंगी। वैसे अविनाश परेरा कौन है। ललित परेरा का भाई तो है नहीं कि...”

“ये भी जान लो।” कहते हुए सावरकर ने टेबल का ड्राअर खोल और साइलेंसर लगी रिवॉल्वर पकड़कर मोना चौधरी की तरफ कर दी। आंखों में खतरनाक भाव छा चुके थे। मोना चौधरी की नजरें उसके हाथ में दबे रिवॉल्वर पर गई फिर सावरकर को देखने लगीं- “बख्तावर सिंह बता रहा था कि तुम, उसके बारे में सब कुछ जानती हो। ऐसे में ये भी जानती होगी कि बजावर सिंह के हाथ पूरे हिन्दुस्तान में फैले हुए हैं। ये क्लब, जिसका मैं मालिक हूँ और वो होटल जिसका मालिक ललित परेश था। दरअसल ये दोनों जगह बजावर सिंह की हैं, परन्तु दिखावे के तौर पर हमारे नाम की है। हमें बख्तावर सिंह के इशारे पर चलना पड़ता है। इसकी दो वजहें हैं। एक तो ये कि बख्तावर सिंह को इन्कार करना अपनी मौत को बुलाना है। उसके इशारे पर मुझे फौरन शूट कर दिया जायेगा। दूसरे ये कि उसकी बात मानने, काम करने में हमारा फायदा है। होटल-क्लब की कमाई वो नहीं लेता। अपने कामों के लिए उसे कभी-कभार हमारी जरूरत पड़ती है। वो हम कर देते हैं। बख्तावर सिंह ने ललित परेरा को खत्म करवाया तो फौरन ही किसी के द्वारा उस होटल को संभाले जाना जरूरी था। ऐसा में किसी को अविनाश परेरा बनाकर, ललित परेरा के भाई के रूप में होटल भेज दिया। अभी तक कोई बात सुनने को नहीं मिली तो स्पष्ट है कि बख्तावर सिंह के आदमी ने खुद को ललित परेरा का भाई साबित कर दिया है। कुछ और पूछना हो तो।”

सावरकर अपनी बात पूरी नहीं कर सका।

कुर्सी पर बैठे ही बैठे मोना चौधरी उछली और टेबल से टकराती हुई, सावरकर पर जा गिरी। साथ ही सावरकर की, रिवॉल्वर वाली कलाई पकड़ ली। सावरकर को तीव्र झटका लगा और मोना चोधरी के साथ, कुर्सी लिए नीचे जा गिरा।

सावरकर को ज़रा भी आशा नहीं थी कि रिवॉल्वर के सामने मोना चौधरी ऐसा कुछ करेगी।

इतनी फुर्ती दिखाने में मोना चौधरी को इसलिए परेशानी हुई कि उसने साड़ी पहन रखी थी। फिर भी सब ठीक रहा। सावरकर के संभलने से पहले ही रिवॉल्वर उसके हाथ में आ गई थी। नीचे पड़ा सावरकर हक्की-बक्की निगाहों से उसे देख रहा था। साईलैंसर लगा रिवॉल्वर थामे मोना चौधरी खड़ी हो चुकी थी।

“अब समझे सावरकर कि मुझे मौत से डर क्यों नहीं लग रहा था?” रिवॉल्वर का रुख उसकी तरफ किए मोना चौधरी ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा- “और कहने वाले मुझे मैडम डाइनामाईट क्यों कहते सावरकर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“जिन्दगी चाहता है या मरना?” मोना चौधरी के होंठों से फुफकार निकली।

“मु--मुझे मत मारो।”

“बचना चाहता है तो बता, बख्तावर सिंह हिन्दुस्तान में क्या कर रहा है और कहां मिलेगा?”

सावरकर के होंठ हिलकर रह गये।

“बोल।”

“मैं-नहीं बताऊंगा। वो-वो बहुत खतरनाक इन्सान-।”

“मैं जानती थी कि तू नहीं बतायेगा।” मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी- “तू बताता तो, गलत ही बताता और तब भी मैं तुम्हें शूट ही करती। रिवॉल्वर पर साइलेंसर लगाकर अच्छा किया। अपनी मौत का पहले से ही तूने बढ़िया इन्तजाम कर रखा था।”

सावरकर ने फक्क चेहरे के साथ कुछ कहना चाहा।

तभी मोना चौधरी ने ट्रेगर दबाया।

गोली नीचे पड़े सावरकर के माथे में प्रवेश करके फर्श से जा टकराई। साईलैंसर लगा होने की वजह से फायर की आवाज चार कदम से ज्यादा दूर नहीं गई। सावरकर को अगली सांसें लेने का मौका नहीं मिला। वो गोली लगते ही मर गया था।

दांत भींचे मोना चौधरी ने रिवॉल्वर से साईलैंसर उतारकर एक तरफ फेंका और रिवॉल्वर साड़ी में छिपाकर साड़ी ठीक की फिर आगे बढ़कर दरवाजा खोला और तुरन्त ही बाहर निकलकर दरवाजा बंद कर दिया। पास ही स्टूल पर चपरासी मौजूद था, जो कि खड़ा हो गया।

“सावरकर साहव अभी पन्द्रह मिनट तक व्यस्त रहेंगे।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा- “उन्होंने कहा है कि कोई भीतर न आये। पन्द्रह मिनट बाद तुमने सावरकर साहब को कॉफी देनी है।”

“साहब ने ऐसा कहा?” चपरासी ने पूछा।

“यस।”

“थैंक्यू मैडम।”

मोना चौधरी आगे बढ़ गई।

जब वो प्रवेश द्वार के पास पहुंचने वाली थी कि रानी से मुलाकात हो गई।

“हैलो। कहां थीं तुम?” पास आते ही रानी ने पूछा।

“क्यों?”

“यूं ही। मैं केबिन में तुम्हें देखने गई थी। तुम वहां नहीं थीं।”

“मैं सावरकर के पास, उसके ऑफिस में थी।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

“क्या?” रानी ने हैरानी से उसे देखा- “तुम।”

“सावरकर ने कैबिन में होने वाली हमारी बातचीत सुन और देख ली थी।”

“ओह!” रानी का रंग उड़ गया- “ये तो बहुत गलत हुआ। सावरकर मुझे नहीं छोड़ेगा। वो।”

“तुम्हें फिक्र करने की कोई बात नहीं। मैंने सावरकर को गोली मार दी है। वो मर चुका है।” कहने के साथ ही मोना चौधरी बाहर निकलने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ गई।

रानी बुत की तरह खड़ी, फटी आंखों से मोना चौधरी को जाते देखती रही।

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मोना चौधरी जब महाजन के घर पहुंची तो आधी रात बीत चुकी थी। भीतर रोशनी हो रही थी। रात की खामोशी हर तरफ मौजूद थी। बेल बजाने पर भीतर से राधा की तेज आवाज कानों में पड़ी।

“नीलू के बच्चे! तेरे को छोडूंगी नहीं मैं। दो दिन से तू।” इसके साथ ही दरवाजा खुला और सामने मोना चौधरी को देखकर उसके शब्द मुंह में ही रह गये।

मोना चौधरी समझ गई कि महाजन की कोई खबर नहीं है। ये चिन्ता की बात थी।

राधा के चेहरे पर थकान ही थकान नजर आ रही थी। मोना चौधरी जानती थी कि ये थकान, महाजन के इन्तजार की है। उसके भीतर आने पर, राधा ने दरवाजा बंद किया।

“महाजन नहीं आया?” मोना चौधरी ने बैठते हुए पूछा।

“तुमने नीलू को कहां भेजा है मोना चौधरी?” राधा उसके पास बैठते हुए बोली- “ज्यादा देर के लिए नीलू ने जाना होता तो वो मुझे जरूर बताकर जाता।”

“मैं खुद ही समझ नहीं पा रही हूं कि महाजन कहां चला गया। अब तक तो उसे हर हाल में आ जाना चाहिये था। या फिर फोन करना चाहिये था।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मुझे बताओ तुमने उसे कहां भेजा है। मैं वहां जाकर देखती।”

“ये काम मैं भी कर सकती हूं। कल देखूगी महाजन को। कुछ खाने को है?”

“हां। आज भी नीलू के लिए पूरा खाना बना रखा है। वो तो आयेगा नहीं। तुम खा लो।” कहने के साथ ही राधा उठी और कमरे से बाहर निकल गई।

सोच में डूबी मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया और पारसनाथ को फोन किया। बात हुई।

“महाजन का कोई मैसेज?” मोना चौधरी ने पूछा।

“नहीं।” पारसनाथ का सपाट स्वर कानों में पड़ा- “अब तक महाजन की कोई खबर नहीं आई तो मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वो किसी मुसीबत में फंस गया है।”

“अब तो मुझे भी यही लग रहा है।” मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।

“विक्रम दहिया की जानकारी इकट्ठी करने में वो कहीं लापरवाही कर गया होगा और फंस गया होगा।”

“कल महाजन की तलाश करनी होगी।”

“तुम सावरकर के क्लब जाने वाली थीं?” एकाएक पारसनाथ का स्वर कानों में पड़ा।

“हां। वहां हो आई हूं। सावरकर मेरे हाथों से मारा गया है। तब वो मुझे मारने जा रहा था। लेकिन जो कुछ भी मालूम हुआ, वो खतरनाक बात की तरफ इशारा करता है।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा- “सतीश ठाकुर जो बात जान गया था, वो बख्तावर सिंह से वास्ता रखती है।”

“क्या?” पारसनाथ की उलझी-सी आवाज कानों में पड़ी- “बख्तावर सिंह?”

“हां। मैं बख्तावर सिंह की ही बात कर रही हूं। वो इस वक्त हिन्दुस्तान के इसी शहर में है और कुछ करने के फेर में होगा। यूं ही वो कहीं नहीं जाता।”

दो पल की खामोशी के बाद पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।

“मुझे बताओ, सावरकर के क्लब में क्या हुआ था?”

मोना चौधरी ने कम शब्दों में सब कुछ बताया।

“ये तो कोई बड़ा मामला लगता है। बख्तावर सिंह का कोई मामला छोटा नहीं होता।”

“हां। ये जानना बहुत जरूरी है कि बख्तावर सिंह क्या कर रहा है।” मोना चौधरी बोली- “उधर महाजन के बारे में मालूम करना है, वो कहां गुम हो गया? इन दोनों कामों के लिए मैं कम हूं।”

तभी राधा खाना ले आई और टेबल पर लगाने लगी।

“तुम बख्तावर सिंह को देखो, मालूम करने की कोशिश करो कि वो क्या कर रहा है। कहां है वो।” पारसनाथ का सपाट स्वर कानों में पड़ा- “मैं महाजन को तलाश करता हूं।”

“ठीक है।”

“शाम को इंस्पेक्टर मोदी का फोन आया था। वो तुमसे मिलना चाहता है। सुबह उसका फोन फिर आयेगा।”

“मोदी को ग्यारह बजे का, अपने यहां का वक्त दे देना। मैं आ जाऊंगी।” इसके साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रखा और राधा से बोली- “तुमने खाना खाया?”

“नहीं।” राधा ने थके स्वर में कहा- “नीलू के बिना खाने का मन नहीं करता।”

“पागलों वाली बातें मत करो। वो दस दिन नहीं आयेगा तो क्या तुम दस दिन खाना नहीं खाओगी। बैठो यहां और मेरे साथ खाना खाओ। नहीं तो मैं भी खाना नहीं खाऊंगी।”

न चाहते हुए भी राधा को, मोना चौधरी के साथ खाना, खाना पड़ा।

“नीलू कब आयेगा मोना चौधरी?”

“आ जायेगा। पहले ढंग से, पेट भरकर खाना खाओ।”

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