'बैंक संस्थान' की इमारत के बाहर पोर्च में उनकी गाड़ी खड़ी थी—बाहर निकलकर वे गाड़ी में पहुंचे, अलफांसे ड्राइविंग सीट पर बैठा था और इर्विन उसकी बगल में—पोर्च से गाड़ी निकालकर अलफांसे ने अभी सड़क पर डाली ही थी कि इर्विन ने बड़े प्यार से पुकारा—

"आशू।"
जाने कहां खोए अलफांसे ने हुंकार-सी भरी—"हूं।"
"न...नहीं तो।" अलफांसे एकदम चौंक पड़ा—"क...क्यों?"
"तो फिर तुम्हें कैसे मालूम पड़ गया कि इमारत के अन्दर डैडी का ऑफिस किधर है, दरवाजा पार करने के बाद तुम्हें किसी गाइड़ की जरूरत नहीं पड़ी, सीधे ऑफिस में पहुंच गए?"
अलफांसे के दिमाग में एक विस्फोट-सा हुआ।
हाथ-पैर सुन्न-से पड़ गए और एक ही पल में पसीने की ढ़ेर सारी नन्ही-नन्ही बूंदें उसके चेहरे पर उभर आईं—निश्चय ही वह एक बहुत बड़ी गलती कर चुका था, ऐसी गलती जो सिर्फ उसकी लापरवाही की वजह से ही हो गई थी, परन्तु वह अलफांसे ही क्या जो अपने आतंरिक भावों को चेहरे पर उभरने से न रोक सके—उसने एक ठहाका लगाया, बोला—"तुम भी कमाल की बात करती हो इर्वि, क्या तुमने नहीं देखा था कि एक गार्ड़ ने मुझे इशारे से बता दिया था कि डैड किधर बैठते हैं?"
"म...मैंने तो नहीं देखा।"
"बस, इसीलिए तो चक्कर खा गईं।"
इस प्रकार की दो-चार बातें मिलाकर और इस विषय को हंसी में उड़ाकर उसने इर्विन को तो संतुष्ट कर दिया, परन्तु उसके दिलो-दिमाग के मुख्य समस्या इर्विन नहीं, खुद गार्डनर और वे पांच गार्ड़स थे, जिनकी ड्यूटी दरवाजे पर रहती थी।
वह यह सोचकर परेशान था कि जो बात इर्विन के दिमाग में आई थी वही बात यदि उन पांचों में से किसी गार्ड़ के या स्वयं गार्डनर के दिमाग में आई होगी तो?
इर्विन की तरह वह किसी को संतुष्ट नहीं कर सकेगा।
अलफांसे को यह मानना पड़ा कि हल्की-सी लापरवाही की वजह से वह एक बड़ी भूल कर चुका था।
फिर भी, जो हो चुका था, अलफांसे उसे वापस नहीं ला सकता था, हां—मन-ही-मन उसने यह निश्चय जरूर किया कि अब वह प्रत्येक पल सजग रहेगा, एक पल के लिए भी लापरवाह नहीं होगा, ऐसी भूलें लापरवाही में ही होती हैं और जिस मिशन पर वह काम कर रहा हैं, हल्की-सी भूल भी उस मिशन को छिन्न—भिन्न कर सकती है।
बाहर जाने का वह प्रोग्राम उसने मर्लिन के रूप में बॉण्ड क पहचानने के बाद बनाया था।
इसी तरह के विचारों में खोया वह गाड़ी को कोठी में ले गया।
अगले पांच मिनट के बाद कोठी के अन्दर उन दोनों के किसी हिल स्टेशन पर जाने की तैयारी हो रही थी—इस तैयारी में दूसरे नौकरों के साथ मर्लिन भी जुटा हुआ था।
मर्लिन की नजर से दृष्टि बचाकर अलफांसे कई बार उसे ध्यान से देख चुका था और अब तो यह लिखना चाहिए कि अलफांसे किसी से भी मर्लिन के बॉण्ड होने की शर्त लगा सकता था।
उसने मर्लिन के चेहरे पर अपने बाहर जाने की प्रतिक्रिया—स्वरूप उत्पन्न होने वाले भावों को पढ़ने की कोशिश की थी, परन्तु उसे उसके चेहरे पर कोई विशेष भाव नजर नहीं आया था।
आता भी कैसे, आखिर उसका नाम भी जेम्स बॉण्ड था।
बाहर जाने का प्रोग्राम अलफांसे ने बॉण्ड की वजह से ही बनाया था, यह सोचकर कि उनके चार-पांच दिन के लिए बाहर जाने की बात सुनकर बॉण्ड बोर-सा होगा—सोचेगा कि यदि अलफांसे कोहिनूर के चक्कर में होता तो पांच दिन इस तरह बर्बाद ने करता—यह प्रोग्राम उसने बॉण्ड के दिमाम में यह बात बैठाने के लिए बनाया था कि अब अलफांसे साधारण इंसान और अच्छा पति बनकर अपनी जिंदगी जी रहा हैं।
मगर कैफियत यह थी कि एक बाथरूम में खड़े मर्लिन के मुंह से बॉण्ड की आवाज निकल रही थी, एक छोटे-से ट्रांसमीटर पर वह बार-बार कर रहा था—"हैलो...हैलो, मिस्टर एम!"
"यस!" दूसरी तरफ से एम की आवाज उभरी।
"जीरो-जीरो सेवन रिपोर्टिंग सर, ओवर!"
“रिपोर्ट दो बॉण्ड।”
"आज सुबह अलफांसे ने अचानक ही इर्विन को साथ लेकर किसी हिल स्टेशन पर जाने का प्रोग्राम बना लिया है, मुझे लगता है कि यह प्रोग्राम बनावटी है—अलफांसे किसी खास मकसद से कहीं जाना चाहता है—अतः आप इसके पीछे कुछ जासूस लगा दें जो उसके पल—पल की रिपोर्ट मुझे देते रहें।"
"वह कब जा रहा है?"
"तैयारियां जारी है, मेरे ख्याल से एक घंटे के अन्दर वह निकल जाएगा।"
"किस हिल स्टेशन पर जा रहा है?"
"यह मुझे अभी तक पता नहीं लग सका है।"
"ठीक है, मैं तो सीक्रेट एजेंटो को उसकी निगरानी के लिए नियुक्त कर देता हूं और हां, अभी तक तुम किस नतीजे पर पहुंचे, क्या तुम्हें लगता है कि वह कोहिनूर के चक्कर में है?"
"अभी मैं कोई भी धारणा व्यक्त करने में असमर्थ हूं।"
"ऐसा क्यों?"
"कल रात और आज सुबह से उस पर बराबर नजर रखे हुए हूं, किन्तु उसने कोई भी ऐसी हरकत नहीं की, जिसमें मुझे लगे कि वह कोहिनूर के चक्कर में है, परन्तु इर्विन और उसकी नोक—झोंक से मुझे पता लगा है कि वह कल शाम अपनी गाड़ी टेम्स की पार्किंग में खड़ी करके गायब हुआ था, यही रहस्यमय घटना है।"
"ओह! उसे तुम पर कोई शक तो नहीं हुआ?"
"फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता।"
¶¶
टेम्स के तल में पहुंचने के बाद अशरफ ने खुद को पत्थर के साथ जकड़कर आराम किया था और फिर तल से करीब एक गज ऊपर रहकर तल के समानांतर ही वह बहाव के विपरीत तैरा, कुछ देर की कोशिश के बाद वह उस स्थान पर पहुंच गया, जहां उसके चारों साथी पहले से ही मौजूद थे।
पांचों के जिस्म पर गोताखोरी के लिबास थे, पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंड़र और आंखों पर तैराकी चश्में—उन चश्मों के माध्यम से वे अपने आस-पास की स्थिति को बिल्कुल साफ देख सकते थे।
वे लोग जहां एकत्रित हुए थे वह वही स्थान था, जहां विजय ने फास्फोरस से निशान लगाया था। निशान अभी तक उसी तरह चमक रहा था।
नदी की इस दीवार के सहारे एक मोटी और मजबूत रस्सी के सिरे पर बंधी वह ड्रिल मशीन लटक रही थी और उसके साथ ही लटक रही थी, पंद्रह सौ चौबीस वोल्ट की एक बैटरी—ड्रिल मशीन और बैटरी चारों तरफ से एक वाटर प्रूफ कागज में पैक थी, मशीन और बैटरी बहाव के साथ धीरे-धीरे हिल रही थी।
मशीन और बैटरी उन्होंने पिछली रात के अंधेरे में ही रस्सी से बांधकर एक स्थान पर लटका दी थी—इस वक्त वे एक विशाल अपनी फूली सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास करने लगा।
दस मिनट बाद अचानक ही विजय ने दाएं हाथ को मुट्ठी की शक्ल देकर अंगूठा ऊपर उठाया और जवाब में उन चारों ने भी तुरंत ऐसा की किया।
यह शायद काम शुरु करने का संकेत था, क्योंकि अगले ही पल विकास ने रस्सी का वह सिरा पकड़ लिया, जिसमें मशीन और बैटरी बंधी थी, फिर वह नदी की दीवार के सहारे बंधी इस रस्सी पर चढ़ता चला गया।
पंद्रह मिनट की लगातार कोशिश के बाद विकास उस स्थान पर पहुंच गया, जहां इस रस्सी का दूसरा सिरा था, यह सिरा दीवार में गड़ी तीन विशालकाय कीलों पर बंधा हुआ था—और जहां ये कीलें गड़ी हुई थीं, वहां से पानी की सतह लटका वह इस सिरे को कीलों पर से खोलने में जुट गया।
कामयाब तो वह हो गया—मगर इस काम में उसे दस मिनट लग गए थे।
उधर नीचे, नदी के तल में वे चारों पहले ही तैयार खड़े थे—रस्सी के ढीली होते ही उन्होंने मशीन और बैटरी को संभाल लिया और बहुत ही आहिस्ता से उसे तल पर रखा—ऊपर रस्सी का कील से सम्पर्क टूटते ही विकास के जिस्म को एक झटका-सा लगा, परन्तु रस्सी के इस सिरे को उसने छोड़ा नहीं, बल्कि मजबूती से पकड़े रहा।
आशा और अशरफ ने  ड्रिल मशीन को तल पर रखा। उसे बहाव के साथ बहने से रोकने के लिए उन्हें काफी ताकत लगानी पड़ रही थी।
विजय और विक्रम के हाथ में रस्सी थी, जिसे वे लगातार खींच रहे थे और पानी के बहाव के विपरीत रस्सी को खींचने में उन्हें काफी ताकत लगानी पड़ रही थी।
दस मिनट में उन्होने पूरी रस्सी खींच ली।
रस्सी के अंतिम सिरे के साथ ही विकास भी उनके नजदीक आ गया था, और फिर इन पांचों ने मिलकर ड्रिल मशीन को उठाकर विशाल पत्थार की जड़ में रखा।
अब पत्थर के साए में मशीन और बैटरी आराम से रखे थे।
विजय ने अपने गोताखोरी के लिबास की जेब से मोटे-मोटे तार करने लगे—बैटरी के दोनों प्लगों के करीब उन्होंने दो छोटे-छोटे छेद किए, तारों के नंगे सिरों का सम्बन्ध उन प्लंगो से किया, फिर उन्हीं तारों सभी की आंखें चमकने लगीं।
दो मिनट तक मशीन चलती रही और फिर विजय के इशारे पर अशरफ के बैटरी ऑफ करते ही बंद हो गई थी।
इस बीच अपनी जेब से चाकू निकालकर विकास उस लंबी रस्सी के चार बराबर टुकड़े कर चुका था और वे चारों टुकड़े मशीन की चारों टांगों में बांध दिए गए।
पांचों ने मिलकर मशीन को उठाया और उस स्थान पर ले गए जहां क्रॉस का निशान था—तेज बहाव के कारण अपना काम करने में उन्हें न केवल आवश्यकता से दुगनी—तिगुनी शक्ति लगानी पड़ रही थी, बल्कि समय भी ज्यादा लग रहा था।
मशीन में लगे ड्रिल की नोक को ठीक क्रॉस पर रखा गया था।
मशीन उन्होंने तल पर टिका दी—चार व्यक्ति उसे वहीं पकड़े खड़े रहे—विजय मशीन की एक टांग में बंधा सिरा दाईं तरफ ले गया, जेब से एक विशालकाय कील तथा भारी हथौड़ा निकाला, कील दीवार में गाड़ी और फिर रस्सी का यह सिरा उसने उसे कील में बांध दिया।
इस प्रकार मशीन के चारों पैरों से सम्बन्धित रस्सी के सिरे चार भिन्न दिशाओं में बांधे गए—अब बहाव के साथ मशीन के बहने का कोई डर नहीं था।
अतः चारों ने मशीन छोड़ दी।
बहाव की वजह से अभी-भी मशीन थोड़ी हिल रही थी।
विजय ने तल में पड़े ढेर सारे छोटे-छोटे पत्थर चुनकर मशीन की टांग के चारों तरफ रखने शुरु कर दिए—उसके साथियों ने भी यही क्रम जारी किया तो कुछ देर बाद मशीन के चारों पैर छोटे-छोटे पत्थरों से घिरे हुए थे।
अब बहाव के प्रभाव से मशीन में हल्का-सा भी कम्पन्न नहीं था।
मशीन को वहीं छोड़कर वे विशाल पत्थर की जड़ में चले आए, बैटरी यहीं रखी थी—दोनों तारों की मदद से बैटरी और मशीन का सम्बन्ध स्थापित था।
विजय के इशारे पर आशा ने बैटरी स्टार्ट कर दीं।
पानी में घुर्र...घुर्र...की हल्की आवाज गूंजने लगी, मशीन चालू हो गई—ड्रिल घूमने लगा और अब वह घूमता हुआ ड्रिल दीवार में धंसने लगा।
दीवार से मिट्टी निकलकर बहाव के साथ बहने लगी।
पानी गंदला होने लगा।
बैटरी के समीप, पत्थर की जड़ में बैठे पांचों अपनी कारिस्तानी के परिणाम को देखने लगे—विद्युत गति से घूमता हुआ ड्रिल दीवार में धंसता चला जा रहा था।
एक घंटे तक बिना किसी विघ्न के मशीन चलती रही।
फिर अचानक ही मशीन के चलने से उत्पन्न होने वाली आवाज में परिवर्तन-सा आ गया, इस परिवर्तन को महसूस करके सभी ने प्रश्नवाचक नजरों से विजय की तरफ देखा।
विजय ने हाथ बढ़ाकर बैटरी ऑफ कर दी।
मशीन बंद हो गई।
फिर वह तैरता हुआ मशीन के समीप पहुंचा, वाटरप्रूफ कागज के ऊपर से ही उसने एक बटन ऑफ किया—ड्रिल एक झटके के साथ दीवार से निकलकर मशीन में समा गया।
अब विजय को दीवार में एक फुट व्यास का 'भट्ट' स्पष्ट नजर आया, जिसमें ड्रिल के निकलते ही पानी भर गया था, विजय ने उस भट्ट में हाथ ड़ाला—कोहनी तक उसकी कलाई भट्ट के अन्दर चली गई।
भट्ट के अन्दर वाले सिरे में विजय को किसी पत्थर का अहसास हुआ।
स्पष्ट था कि ड्रिल के रास्ते में वह पत्थर आ गया था, इसीलिए मशीन में चलने से उत्पन्न होने वाली आवाज में परिवर्तन आया था।
काफी मेहनत के बाद विजय ने उस पत्थर को निकाल लिया।
बटन ऑन करते ही ड्रिल पुनः झटके से भट्ट में घुस गया, उसके घुसती ही सारा पानी भट्ट से बाहर निकल आया—उधर, विजय ने वहीं से इशारा किया, इधर विकास ने बैटरी स्टार्ट कर दी—मशीन पुनः चलने लगी और ड्रिल अपना काम करने लगा।
अब मशीन से उत्पन्न होने वाली आवाज सामान्य थी।
¶¶
अलफांसे और इर्विन को हिल स्टेशन पर गए आज चौथा दिन था—मर्लिन के रूम में जेम्स बॉण्ड अभी तक मिस्टर गार्डनर की कोठी में ही मौजूद था, परन्तु अब उसे लगने लगा था कि इस कोठी में रहकर वह अपना समय बर्बाद करने के अलावा कुछ नहीं कर रहा था।
कारण थीं वे रिपोर्टस जो अलफांसे को वाच करने वाले जासूस भेज रहे थे।
कहना पड़ेगा कि कम-से-कम बॉण्ड के लिए वे रिपोर्टस एकदम नीरस और निराशाजनक थीं—प्रत्येक रिपोर्ट में वे यही कहते थे कि वे यहां घूमने गए, वहां गए—यहां खाना खाया, वहां बीयर पी आदि—रिपोर्ट में एक भी प्वॉंइंट ऐसा नहीं होता था जिसके आधार पर बॉण्ड की इस धारणा को बल मिल पाता कि अलफांसे कोहिनूर के चक्कर में था।
जासूसों की रिपोर्ट के मुताबिक अलफांसे पांच मिनट के लिए भी इर्विन से अलग नहीं होता हैं—बॉण्ड ने बार-बार पूछा कि कहीं अलफांसे को खुद पर नजर रखी जाने का आभास तो नहीं हो गया हैं—हर बार यही रिपोर्ट आई कि ऐसा नहीं हैं।
वह इर्विन के साथ अपनी ही दुनिया में मस्त था।
इतना ज्यादा कि वह इर्विन से नजर हटाकर अपने इर्द-गिर्द देखता तक नहीं था।
ट्रांसमीटर पर मिलने वाली इन्हीं रिपोर्टस ने बॉण्ड को विचलित-सा कर दिया था, यह सोचने के लिए वह बाध्य हो गया था कि कहीं वह अलफांसे पर शक करके अपना समय व्यर्थ ही तो नहीं गंवा रहा था?
कहीं ऐसा तो नहीं था कि उसका ध्यान अलफांसे पर केंद्रित करके विजय आदि अपने ही किसी चक्कर में लगे हों—सोचते-सोचते उसे अपना यही विचार ज्यादा उचित लगने लगा—पक्ष में तर्क भी मिलने लगे।
जैसे यह कि विजय-विकास के बारे में कोई सूचना भी नहीं आई थी। पिछले एक हफ्ते से उनकी कोई गतिविधि ही नजर नहीं आ रही थी।
क्या वे अपना मिशन बीच में ही छोड़कर भारत लौट गए थे?
बॉण्ड अच्छी तह जानता था कि कम-से-कम विजय-विकास ऐसी चीज नहीं है, फिर—क्या वे किसी बिल में छुपे शांत बैठे हैं—क्या इस हफ्ते में उन्होंने कुछ नहीं किया?
बॉण्ड यह भी नहीं मान सकता था।
वह जानता था कि न तो विजय ही एक हफ्ते तक शांत बैठने वाला है औ न ही विकास—एक बार को बॉण्ड यह मान सकता था कि विजय शांत बैठ सकता है, क्योंकि वह तर्कबुध्दि से सोचने और नीति से काम निकालने वाला जासूस था, परन्तु वह जानता था कि विकास इन सब बातों को नहीं मानता—यदि उसे जिद चढ़ जाए तो फिर वह विजय की भी एक नहीं सुनेगा और बॉण्ड हर्गिज यह नहीं मान सकता था कि वो एक हफ्ते तक शांत बैठ सकता था।
निश्चय ही वह शैतान अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए कुछ-न-कुछ कर रहा होगा।
मगर क्या?
कोई ऐसी घटना भी नहीं घटी थी, जिससे उनकी किसी गतिविधि का कोई आभास मिले।
यही सब सोचते-सोचते बॉण्ड के सिर में दर्द होने लगा, वह यह निश्चय नहीं कर सका कि वहां रहकर अलफांसे को वाच करे या बाहर निकलकर उस खतरनाक टुकड़ी की खोज करे?
उसे लग रहा था कि यदि अलफांसे कोहिनूर के चक्कर में होता तो इन महत्वपूर्ण दिनों को इस तरह हिल स्टेशन पर बर्बाद न कर रहा होता।
उसका दिमाग कुंद-सा हो गया।
उसने सोचा कि यदि सारे हालात पर वह फ्रेश दिमाग से सोचे तो शायद किसी निष्कर्ष पर पहुंच सके—फ्रेश होने के लिए उसे गोताखोर क्लब का स्मरण हो आया—उसने महसूस किया कि यदि वह जी भरकर गोताखोरी करे तो दिमाग फ्रेश हो जाएगा, परन्तु गोताखोरी के लिए पहले उसे वहां से अपनी कोठी जाना पड़ता, वहां अपने उस मर्लिन वाले रूप को त्यागकर और बॉण्ड बनकर क्लब जाना पड़ता—क्योंकि वह उसी रूप में क्लब का सदस्य था।
अन्त: उसने कल्ब चलाने का निश्चय किया।
¶¶
नदी के गर्भ में सुरंग बनाने का जो काम चल रहा था, वह चौंथे दिन भी बिना किसी विघ्न-बाधा के समाप्त हो गया। वे तीन फीट व्यास की तीन गज गहरी एक गली-सी बना चुके थे और इस गली में हमेशा पानी भरा रहता था।
कल से सुरंग के काम में नया मोड़ आना था।
प्रतिदिन की तरह एक-एक करके वे नदी से निकलने लगे—सबसे पहले अशरफ निकला था और टेम्स से बाहर आते ही वह एक केबिन में घुस गया—गोताखोरी के लिए जो पोशाक उसे आज मिली थी, उसकी पीठ पर पांच लिखा था।
यानि वह पोशाक नंबर पांच थी।
केबिन में जाकर उसने खुद को पोशाक, सिलेंड़र और गोताखोरी के चश्में आदि से मुक्त किया, दस मिनट बाद वह केबिन से निकलकर काउंटर की तरफ बढ़ा—प्रतिदिन की प्रक्रिया होने की वजह से अब वह इस सारी कार्यवाही का अभ्यस्त हो चुका था।
अब उसे यह लिबास और सिलेंड़र काउंटर क्लर्क के रजिस्टर में एण्ट्री करवाकर जमा कराने थे।
शायद लिखने की आवश्यकता नहीं है कि उसका चेहरा इस वक्त एक अंग्रेज युवक के फेसमास्क के पीछे छुपा हुआ था—इस चेहरे पर गुलाबी रंग की झुकी हुई मूंछें और फ्रेंचकट दाढ़ी थी—उसकी नाक के दोनों नथुनों में दो छोटे-छोटे स्प्रिंग लगे थे, जिससे नाक कुछ फूली-सी नजर आती थी—आंखों का रंग गहरा नीला था।
गर्ज यह कि एक नजर में अशरफ को पहचाना नहीं जा सकता था।
परन्तु लिबास जमा कराने के बाद वह जैसे ही मुड़ा, वैसे ही उसके पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई—न चाहते हुए भी ठिठक-सा गया वह—टांगे कांप उठी थीं।
उसकी दृष्टि जेम्स बॉण्ड पर पड़ी थी और अन्जाने में वहीं चिपककर रह गई।
अशरफ हक्का—बक्का रह गया, अपने स्थान पर किसी स्टैचू के समान खड़ा रह गया था वह—कई पल तक किंकर्तव्यविमूढ़-सा बॉण्ड को देखता रहा।
उधर, अपने स्थान पर ठिठककर बॉण्ड भी उसे देख रहा था।
एकाएक ही अशरफ को ख्याल आया कि वह यह क्या बेवकूफी कर रहा था, अतः एक झटके से उसने अपना कदम आगे बढ़ा दिया—बॉण्ड पर से नजर हटाई और आगे बढ़ गया।
उस वक्त उसने सांस रोक लीं, जिस क्षण उसे बॉण्ड के समीप से गुजरना पड़ा।
वह गुजर गया—सुरक्षित।
जेम्स बॉण्ड ने उसे रोका नहीं था।
मगर अशरफ को अब भी ऐसा लग रहा था जैसे बॉण्ड वहीं, उसी स्थान पर खड़ा अभी—भी उसी को घूर रहा हो, अपनी पीठ पर बॉण्ड की दृष्टि—चुभन उसे महसूस हो रही थी और यह चुभन किसी सुई की-सी चुभन के समान थी।
अन्जाने ही में उसकी चाल तेज हो गई।
बुरी तरह धक-धक करता हुआ दिल उसकी पीठ पर मानो हथौड़े की शक्ल में चोट कर रहा था—जी चाह रहा था कि वह भागे—बड़ी तेजी से भागता चला जाए वहां से।
मगर तभी उसके कान में विवेक ने कहा—'ऐसा करने बेवकूफी होगी।'
फिर भी, गैलरी के एक मोड़ पर मुड़ने के बाद वह स्वयं पर संयम न रख सका और सचमुच भागने के-से अंदाज में गैलरी को पार करने लगा-सामने ही क्लब का मुख्य गेट था।
बाहर निकलने के लिए वह जल्दी से उस तरफ लपका।
और मुख्य गेट पर पहुंचने के बाद वह एक बार घूमकर अपने पीछे देखने का लोभ संवरण न कर सका और उस वक्त तो उसके
जिस्म के सभी मसामों ने एक साथ ढ़ेर सारा पसीना उगल दिया जब उसने बॉण्ड को अपने पीछे लपकते देखा।
अशरफ के तिरपन कांप गए।
अब उसे इस बात में कोई शक नहीं रह गया था कि बॉण्ड उसे पहचान गया था और यह सच्चाई है कि दिल में यह विचार उठने के बाद अशरफ ने क्लब के मुख्य गेट से बाहर जम्प लगा दी तथा इस बार वास्तव में किसी धावक की तरह दौड़ने लगा।
वह रेत पर दौड़ रहा था, सड़क अभी दूर थी।
दाईं तरफ, पास ही पार्किंग थी, बहुत-सी कारें खड़ी थीं।
अशरफ को लगा कि बॉण्ड के मुख्य गेट पर पहुंचने तक वह कार तक नहीं पहुंच सकेगा—ऐसा महसूस करते ही उसने तेजी से पार्किंग की तरफ दौड़ना शुरु कर दिया।
शीघ्र ही वह एक नीले रंग की कार के पीछे समा गया।
कार की बॉड़ी से पीठ टिकाकर निढ़ाल-सा वह अपनी उखड़ी हुई सांसों को काबू में करने का प्रयास करने लगा, जानता था कि अभी वह खतरे से बाहर नहीं था—अतः उसने झांककर क्लब के मुख्य गेट की तरफ देखा।
वहां उसे जेम्स बॉण्ड नजर आया।
बॉण्ड की सांस फूली हुई थी और वह बहुत ध्यान से उचक—उचककर अपने चारों तरफ और विशेष रूपी से सड़क की तरफ देख रहा था।
कार के पीछे से झांककर देखता हुआ अशरफ खुदा से दुआ कर रहा था कि बॉण्ड का ध्यान इस तरफ न जाए, एकाएक ही बॉण्ड ने एक व्यक्ति को रोका।
अशरफ ने बॉण्ड को उससे बात करते देखा।
उसे लगा कि बॉण्ड उससे पूछ रहा है—"क्या तुमने किसी आदमी को भागते देखा है?"
"हां!" अशरफ ने उस व्यक्ति की गर्दन कुछ ऐसे ही अंदाज में हिलते देखी।
फिर अशरफ को लगा कि जैसे बॉण्ड ने पूछा हो—"भागकर वह किधर गया था?"
"इधर!" अशरफ को ऐसा ही लगा जैसे उस व्यक्ति ने यह कहा हो, क्योंकि वह साफ देख रहा था—वह व्यक्ति इस नीली कार की तरफ ही इशारा करके कुछ कह रहा था।
बॉण्ड भी इसी तरफ देखने लगा।
अशरफ रोमांचित हो उठा, उसके सारे शरीर में चींटिंया-सी रेंगने लगीं—अब उसे लगा कि जेम्स बॉण्ड आसानी से उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं था।
बॉण्ड अभी तक पार्किंग की तरफ ही देख रहा था!
फिर, उस वक्त तो अशरफ को अपनी मौत ठीक सिर पर मंड़राती नजर आई, जब उसने बॉण्ड को उस व्यक्ति से विदा लेकर पार्किंग की तरफ बढ़ते देखा—कई क्षण तो अशरफ की समझ नहीं आया कि वह क्या करे और जब उसने रेंगकर कार के नीचे समा जाने का निश्चय किया तो एक अधेड़ उम्र की अंग्रेज महिला की चीख सुनकर उछल पड़ा!
उधर महिला को चीखती देखकर बॉण्ड भी चौंका था।
महिला को अपने बिल्कुल नजदीक देखकर अशरफ हड़बड़ा गया।
आतंकित-सी महिला उसे इस अवस्था चीख पड़ी—"हू आर यू?"
और अशरफ एक क्षण भी गंवाए बिना किसी स्प्रिंगदार बबुए की तरह उछला, कोई अन्य रास्ता न देखकर वह जेब से पहले ही रिवॉल्वर निकाल चुका था—वही रिवॉल्वर उनसे महिला की कनपटी पर रख दिया और यह देखकर उस तरफ लपकता जेम्स बॉण्ड ठिठक गया।
अशरफ पागलों की तरह चीख पड़ा—"स्टॉप बॉण्ड—स्टॉप, अदरवाइज आई विल किल हर!"
बॉण्ड के चेहरे पर बेशुमार उत्तेजना नाच रही थी।
"हैंड्स अप—आई से हैंड्स अप!" अशरफ पुनः चिल्लाया।
दांत पीसते हुए बॉण्ड ने अपने हाथ ऊपर कर लिए।
अशरफ ने फिर चेतावनी दी—"अगर तुमने कोई भी हरकत की तो मैं इसे गोली मार दूंगा।"
"मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं।" बॉण्ड गुर्राया।
अशरफ जानता था कि मौत उसके ठीक सिर पर मंड़रा रही थी, जितनी ज्यादा देर वह यहां रुकेगा, खतरा उतना ही बढ़ जाएगा—राहगीर रुककर यह तमाशा देखने लगे थे—अशरफ ने अधेड़ महिला की उंगली में फंसी चाबी का गुच्छा देख लिया था।
महिला की सिट्टी-पिट्टी गुम थी, काटो तो खून नहीं।
आंखों में खौफ लिए वह बॉण्ड की तरफ इस उम्मीद में देख रही थी कि शायद वह कुछ मदद करे, परन्तु बेचारा बॉण्ड—बहुत कुछ करना चाहकर भी वह कुछ नहीं कर पा रहा था, कानून उसे अशरफ को पकड़ने के लिए किसी बेगुनाह की बलि देने की इजाजत नहीं देता था।
वह कुछ भी नहीं कर सका और महिला अशरफ के प्रत्येक आदेश का पालन करने के लिए बाध्य थी। वह नीले रंग की कार उसी की थी—अशरफ के आदेश पर उसने लॉक खोला।
महिला को कवर किए कार में समाते वक्त अशरफ ने चेतावनी दी—"अगर तुमने मेरा पीछा करने की कोशिश की तो मैं इस महिला को गोली मार दूंगा, तुम जानते हो बॉण्ड कि कार ड्राइव करनी मुझे भी आती हैं।"
नीली कार स्टार्ट होकर आगे बढ़ गई।
कार ड्राइव महिला नहीं बल्कि कनपटी पर रखा अशरफ का रिवॉल्वर कर रहा था।
नीली कार के आगे बढ़ते ही बॉण्ड आंधी की तरह पार्किंग में खड़ी अपनी कार की तरफ लपका और अगले ही पल उसकी कार नीली कार का पीछा कर रही थी—उसके चेहरे पर बहुत ही सख्त भाव थे, कोट की जेब से रिवॉल्वर निकालकर उनसे अपने बराबर में सीट पर रख लिया।
यदि वह चाहता कि अपनी कार को महिला की गाड़ी से आगे निकालकर उसका रास्ता अवरुध्द कर ले तो यह उसके बाएं हाथ का काम था, किन्तु ऐसा वह करना नहीं चाहता था, क्योंकि जानता था कि इस अवस्था में अशरफ सचमुच ही उस महिला को मार डालेगा।
सही बात यह थी कि बॉण्ड निर्णय नहीं कर पा रहा था कि उसे क्या करना है इसलिए केवल उस नीली कार का पीछा किए चला जा रहा था—देखते-ही-देखते दोनों गाड़ियां लंदन शहर से बाहर निकल आईं—अब सड़क के दोनों तरफ खेत थे।
अचानक ही बॉण्ड ने नीली कार का अगला दरवाजा खुलते देखा और अगले ही पल खुले दरवाजे से एक मानवाकृति निकलकर हवा में लहराई तथा बॉण्ड के कुछ समझने से पहले ही ईख के खेत में जा गिरी—मानवाकृति के जिस्म पर वही कपड़े थे, जो उसने अशरफ के जिस्म पर देखे थे और बॉण्ड के दिमाग में बड़ी तेजी से यह ख्याल कौंध गया कि अशरफ ईख में कूदा था।
उसने पूरी ताकत से ब्रेक लगाए।
चरमराहट के साथ गाड़ी रुक गई।
वह ईख से कुछ आगे निकल आया था, रिवॉल्वर संभाले उसने दरवाजा खोलकर बाहर जम्प लगाई।
नीली कार सड़क पर लड़खड़ाने के बाद अब सीधी चलने लगी थी।
बॉण्ड उस तरफ से ध्यान हटाकर ईख की तरफ दौड़ा।
नजदीक पहुंचकर वह ठिठका।
उसे याद आया कि अशरफ के पास रिवॉल्वर थी, उस वक्त वह उसे नजर नहीं आ रही थी, जबकि मुमकिन था कि ईख में छुपा अशरफ उसे देख रहा हो।
निश्चय ही वह रिवॉल्वर उसी की तरफ ताने होगा।
यही सब सोचकर बॉण्ड अत्यन्त सतर्क हो गया, पूरी तरह सजग—किसी भी खतरे का मुकाबला करने और यहां तक गोली से बचने के लिए उसने खुद क तैयार कर लिया।
रिवॉल्वर हाथ में लिए वह भी ईख में घुस गया।
दस मिनट बात जब उसने अपनी खोज के परिणामस्वरूप मानवकृति को पाया तो दांत पीसकर रह गया, गन्नो के बीच अधेड़ महिला का बेहोश जिस्म पड़ा था।
उसने तन पर अशरफ के कपड़े थे।
¶¶
जेम्स बॉण्ड के चेहरे पर बहुत ही सख्त और गंभीर भाव थे। बुरी तरह से तमतमाता हुआ-सा वह गोताखोर क्लब के काउंटर की तरफ बढ़ रहा था, तेज और लंबे-लंबे कदमों के साथ।
"आओ मिस्टर बॉण्ड, तुम इतने उत्तेजित क्यों हो?" काउंटर क्लर्क ने उसका स्वागत किया।
समीप पहुंचकर बॉण्ड ने काउंटर पर बहुत जोर से मुक्का मारा। यह मुक्का उसी झुंझलाहट का प्रतीक था, उस झुंझलाहट का, जो असफलता के कारण उसे स्वयं पर आ रही थी।
फिर एकाएक उसने महसूस किया कि वह खुद को संभाल नहीं पा रहा था। काउंटर क्लर्क जैसा साधारण व्यक्ति यदि यह भांप जाए कि बॉण्ड किस मानसिक स्थिति में था तो इसे बॉण्ड की अयोग्यता ही कहा जाएगा, यही सोचकर उसने खुद को संभाला।
दिमाग को तनावमुक्त किया और अब वह सामान्य नजर आ रहा था।
काउंटर क्लर्क बोला—"क्या मैं तुमसे पूछ सकता हूं बॉण्ड?"
"क्या पूछना चाहते हो?" बॉण्ड ने सामान्य स्वर में ही प्रश्न किया था।
"यही कि तुम मिस्टर वान के पीछे क्यों भागे थे?"
"व...वान! क्या तुम उसे जानते हो?" बॉण्ड ने उत्सुक होकर पूछा।
"हां, क्यों नहीं—रजिस्टर में उसके साइन भी हैं एड्रेस भी।"
"क्या उसने गोताखोरी की पोशाक ली थी?"
"हां, उसे ही तो जमा करवाकर वह लौट रहा था।"
"ओह, मैं उसकी एंट्री देखना चाहता हूं।"
"श्योर।" कहने के साथ ही काउंटर क्लर्क ने रजिस्टर खोल दिया—बॉण्ड स्वयं भी रजिस्टर पर झुक गया और उसने केवल दो मिनट में यह देख लिया कि वान के नाम से अशरफ ने सुबह साढ़े नौ बजे गोताखोरी का लिबास लिया था और शाम पांच बजे जमा किया।
रजिस्टर में मौजूद वान के नाम से हुए साइन में छिपी राइटिंग को वह देखते ही पहचान गया। अशरफ की राइटिंग को वह पहचानता था और यह समझने में भी उसे देर नहीं लगी कि एड्रेस वाले कॉलम में भरा एड्रेस नितांत काल्पनिक था।
मगर यह सवाल बॉण्ड के दिमाग में अटककर रह गया कि साढ़े नौ बजे से पांच बजे तक के लंबे समय में अशरफ ने लिबास का क्या किया था, इतने लंबे समय तक शायद कोई भी व्यक्ति गोताखोरी नहीं करता हैं।
"क्या यह व्यक्ति आज पहली बार ही गोताखोरी करने आया था?" बॉण्ड ने प्रश्न किया।
"जी नहीं, मिस्टर वान पिछले चार-पांच दिन से लगातार आ रहे हैं।"
"क...क्या-चार—पांच दिन से?" बॉण्ड चौंक पड़ा था।
"हां।"
"क्या वह रोज इसी तरह की गोताखोसी करता है, यानि सुबह साढ़े नौ बजे से शाम पांच बजे तक?”
“जही हां, इस बात को महसूस करके तो मैं खुद भी हैरान हूं—पिछले पांच साल से मैं इसी काउंटर पर हूं—मैंने कभी नहीं देखा कि किसी ने एक-दो घंटे से ज्यादा देर के लिए पोशाक ली हो—किसी ने ज्यादा समय लगाया तो तीन या चार घंटे लग गए, मगर पिछले चार-पांच दिन से मैं देख रहा हूं कि मिस्टर वान के अलावा ऐसे चार व्यक्ति और हैं, जो सुबह पोशाक लेते और शाम को जमा करते हैं।"
"च...चार व्यक्ति!" इस बार तो बॉण्ड उछल ही पड़ा।
"आप चौंक क्यों रहे हैं?"
"क्या उन चार व्यक्तियों में से कोई लड़की भी है?"
"जी हां, उसका नाम मिस रुबिया है।"
"ओह!" जेम्स बॉण्ड के जेहन में विस्फोट-सा हुआ और फिर उसने क्लर्क से कुछ कहे बिना अधीरतापूर्वक रजिस्टर खोल लिया—पांच मिनट में ही उसने वे पांचों नाम तलाश कर लिए जो सुबह पोशाक लेकर शाम को जमा कर रहे थे।
राइटिंग उन्हीं चारों की थी।
अब बॉण्ड को इसमें कोई शक नहीं रह गया कि वे अशरफ, विक्रम, विजय, विकास और आशा थे।
किन्तु यह सच है कि इस हकीकत को जानने के बाद उसकी बुध्दि कुछ और उलट गई थी।
स्पष्ट था कि खतरनाक टुकड़ी पिछले चार दिन से लगातार सारे-सारे दिन टेम्स में गोताखोरी करती रही थे, मगर क्यों—इतनी देर तक गोताखोरी करते रहने का क्या अर्थ था?"
इसी सवाल का जवाब बॉण्ड की समझ में नहीं आ रहा था।
उसे गहरे विचारों में डूबता देखकर काउंटर क्लर्क बोला—"क्या सोचने लगे, मिस्टर बॉण्ड?"
"क्या तुमने कभी सोचा कि ये पांचों इतनी देर तक गोताखोरी क्यों करते हैं?"
"जरूर सोचा, लेकिन कभी किसी परिणाम पर नहीं पहुंच सका।"
"क्या तुमने कभी इनमें से किसी से इस बारे में पूछा?"
"इच्छा तो कई बार हुई थी, परन्तु पूछ नहीं सका, क्योंकि पोशाक घंटो के हिसाब से किराए पर दी जाती हैं और वे पूरा पेमेंट करते थे—उनमें यह प्रश्न करने का मेरा कोई वैधानिक अधिकार नहीं बनता था, वैसे भी हमारे नियमों में इस किस्म की कोई पाबंदी नहीं हैं कि ज्यादा-से-ज्यादा कितने घंटे में ग्राहक को पोशाक लौटानी होगी।"
बॉण्ड चुप रह गया।
काउंटर क्लर्क ने कहा—"तुमने यह नहीं बताया कि वान आदि के बारे में तुम यह सब सवाल किसलिए पूछ रहे हो—क्या वे कोई अपराधी हैं?"
"हां!" बॉण्ड ने बड़ा संक्षिप्त-सा उत्तर दिया।
"क्या किया है उन्होंने, कोई हत्या या कोई बैंक रॉबरी?"
"तुम यह सब सोचकर अपना दिमाग खराब मत करो!" एकाएक ही बॉण्ड का लहजा सर्द हो गया—"और देखो, जो बातें इस वक्त मेरे और तुम्हारे बीच हुई हैं, उनका जिक्र तुम किसी से भी नहीं करोगे, रात को अपनी पत्नी से भी नहीं—अगर तुमने ऐसा किया तो तुम्हें मुजरिमों की मदद करने के आरोप में जेल भेज दिया जाएगा और फिर सारी जिंदगी वहीं सड़ते रहोगे!"
कांप गया क्लर्क, पसीने-पसीने हो गया वह, बोला—"भ...भला मैंने उनकी क्या मदद की है, बॉण्ड—म...मैं तो जानता तक नहीं।"
मैं जानता हूं कि तुमने उनकी कोई मदद नहीं की है।"
"फ...फिर तुम?"
"यदि तुमने इन बातों का जिक्र किसी से किया तो यही समझा जाएगा।"
"म...मुझसे तुमने कोई भी बात की ही कहां है?"
"वैरी गुड!" बॉण्ड ने उसका कंधा थपथपाते हुए कहा—"वे कल भी आएंगे, तुम पिछले चार दिन की तरह उन्हें पोशाक दे दोगे—चुपचाप—उनकी तरफ विशेष नजरों से देखोगे तक नहीं, उस वक्त मैं उस पीछे वाली कोठी में छुपा सब कुछ देख रहा होऊंगा—मेरे संकेत के बिना तुम कुछ भी नहीं करोगे।"
बेचारा काउंटर क्लर्क सोच रहा था—जाने मैं किस मुसीबत में फंस गया हूं?
¶¶
उस समय रात के दस बजे थे, जब अलफांसे और इर्विन अपनी यात्रा खत्म करके चौथे दिन ही वापस लौट आए, ढेर सारे नौकरों और स्वयं गार्डनर ने उसका स्वागत किया।
एकाएक ही उसने पूछ लिया—"क्या बात है, डैड? सब नजर आ रहे हैं, परन्तु आपका वह नया नौकर नजर नहीं आ रहा, क्या नाम था उसका, हां मर्लिन!"
"वह आज ही छुट्टी पर अपने गांव गया है, बेटे।"
यूं ही मजाक में कहा अलफांसे ने—"छुट्टी पर गया है या हमेशा के लिए छुट्टी कर गया?"
"न...नहीं भई, दो दिन की छुट्टी पर गया है।"
इसके बाद काफी देर तक ढेर सारी औपचारिक बातें होती रहीं, मिस्टर गार्डनर टूर के बारे में पूछते रहे—अलफांसे और इर्विन चटखारे ले—लेकर बताते रहे। पौने बारह के करीब महफिल टूटी।
गुडनाइट कहकर मिस्टर गार्डनर अपने कमरे में चले गए—अलफांसे और इर्विन भी अपने बेड़रूम में आ गए—अलफांसे की आंखों में दूर-दूर तक नींद का नामो निशान नहीं था।
होता भी कैसे, उस रात उसे एक खास काम करना था।
उस वक्त पूरे दो बजे थे, जब अलफांसे आहिस्ता से उठा, उसके जिस्म पर नाइट सूट था। उसने पैरो में स्लीपर डाले और हैंगर से गाउन उतारकर जिस्म पर डाल दिया।
गाउन की लंबी जेब उसने बाहर ही से टटोली।
किसी वस्तु विशेष को जेब में पाकर वह संतुष्ट हुआ और एक अंतिम दृष्टि सोई हुई इर्विन पर डाली, उसकी नाक से सीटी बज रही थी—धीमे-धीमे गूंजने वाले खर्राटे गवाह थे इस बात के कि वह गहरी निद्रा में लीन थी।
अलफांसे दबे पांव दरवाजे तक पहुंचा, बिना किसी किस्म की आहट उत्पन्न किए चटकनी खोली तथा चोर की तरह बाहर निकल गया।
गैलरी में अभेध खामोशी थी।
वह मिस्टर गार्डनर के कमरे के समीप पहुंच गया, पहले की-होल से झांककर उसने अन्दर का दृश्य देखा—ऩाइट बल्ब की मध्दिम रोशनी में बेड़ पर सोए मिस्टर गार्डनर स्पष्ट चमक रहे थे।
संतुष्ट होने के बाद अलफांसे ने जेब से चाबी निकाली, लॉक खोला और फिर कमरे में प्रविष्ट होने के बाद उसने लॉक अन्दर से भी बंद कर दिया।
चाबी जेब से रखने के साथ ही उसने एक रुमाल तथा दूसरी जेब से एक छोटी-सी शीशी निकल ली थी, बेड़ के समीप पहुंचकर उसने शीशी में से दो बूंदे रुमाल पर टपकाईं।
शीशी बंद करके जेब में रखी।
रुमाल को वह गार्डनर की नाक के समीप ले गया, बस—रुमाल को नाक के समीप ही ले गया था वह, उसे नाक पर रखा नहीं।
दो मिनट तक यही स्थिति रखी।
फिर रुमाल जेब में रख लिया—अब रुमाल के स्थान पर उसके हाथ में एक नकली छिपकली नजर आ रही थी, बिल्कुल असली दिखने वाली नकली छिपकली।
वह बेड़ के सिरहाने फर्श के साथ जड़ी तिजोरीनुमा सेफ की तरफ बढ़ा, अपने जिस्म को सेफ की बैक साइड़ में कर लिया उसने और छिपकली को वहीं से उछालकर गार्डनर के ठीक चेहरे पर फेंका।
छिपकली उसके माथे और नाक से टकराने के बाद छाती पर गिर गई, किन्तु गार्डनर के जिस्म में हल्की-सी भी हरकत नहीं हुई और यह देखकर सेफ के पीछे छुपे अलफांसे की आंखों में सफलतामयी चमक स्पष्ट उभर आई।
अब वह निर्विघ्न वापस बेड़ के समीप आया, सबसे पहले नकली छिपकली उठाकर उसने जेब में रखी, उसके बाद ध्यान से उस रिस्टवाच को देखने लगा जो गार्डनर के बाएं हाथ में मौजूद थी।
अब अपने गाउन की जेब से उसने दूसरी रिस्टवाच निकाली।
बहुत ही बारीक नजर से दोनों की तुलना करने लगा—दोनों घडिया बिल्कुल सेम थीं, एक ही मॉड़ल, एक ही कंपनी से निर्मित।
अलफांसे ने बड़े आराम से चेन खोलकर गार्डनर की कलाई से घड़ी उतार ली—फिर वहीं फर्श पर बैठकर उसने गार्डनर की रिस्टवाच से उसकी चेन अलग की और उस रिस्टवॉच में लगा दी, जो वह अपने साथ लाया था।
चेनरहित गार्डनर की रिस्टवॉच उसने अपनी जेब में डाली और चेन समेत दूसरी रिस्टवॉच बेहोश गार्डनर की कलाई में बांध दी।
इतना काम करने के बाद उसका ध्यान गार्डनर के गले में पड़े ताबीज की तरफ गया—बिना एक क्षण भी हिचके उसने डोरी समेत ताबीज गार्डनर के गले से निकल लिया फिर उसने ताबीज को खोलकर देखा।
उसमें हेयर पिन जैसी कोई वस्तु थी—पिछला सिरा एक ही था, जबकि अगला सिरा दो बारीक भागों में विभक्त हो गया था, ठीक सर्प की जीभ से समान।
पिछले सिरे पर रबर की एक छोटी-सी डॉट थी।
अलफांसे जानता था कि वही उस अंतिम हॉल की चाबी थी, जिसमें दुनिया का सबसे नायाब और कीमती हीरा रखा था।
अलफांसे जेब से साबुन के दो छोटे—छोटे प्लेन टुकड़े निकाले तथा उस विचित्र चाबी का अक्स उन पर ले लिया—चाबी को ताबीज में पूर्ववत् रखने के बाद उसने ताबीज वापस गार्डनर के गले में डाल दिया।
अलफांसे की आंखें बुरी तरह चमक रही थीं, वजह शायद उसे अपने आज रात के मिशन में सफलता मिलना ही था—पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद इस कमरे से बाहर निकलने के लिए वह दरवाजे की तरफ बढ़ा, परन्तु सुर्ख रंग की उस आंख को नहीं देख सका, जिसने की-होल के माध्यम से उसकी एक-एक हरकत देखी थी और उसे दरवाजे की तरफ बढ़ता देखते ही किसी भूत की तरह की-होल से गायब हो गई।
¶¶
"जब मुझे बॉण्ड को चकमा देने की कोई और तरकीब नहीं सूझी तो अपने कपड़े उतारे, ड्राइविंग सीट पर खुद बैठा और रिवॉल्वर की नोक पर उस अधेड़ महिला को उसके कपड़े उतारने और अपने कपड़े पहनने का हुक्म दिया।"
"और तुम्हारा हुक्म मान लिया?"
"छि...छि...छि—तुम तो साले पूरे दस नंबरी निकले झानझरोखे!" विजय ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा—"लानत हैं, तुमने सारा ब्रह्मचर्य खूंटी पर टांग दिया।"
"इसमें ब्रह्मचर्य पर आंच कहां से आ गई?"
"लो, सुना दिलजले—इस साले ने आवरणहीन नारी का अवलोकन किया है और कहता है कि ब्रह्मचर्य पर कोई आंच नहीं आई—अब तुम आंच की बात करते हो, उस कार में तो साला ब्रह्मचर्य पूरी तरह जलकर राख हो गया होगा—बस, रहने दो—हमें आगे नहीं सुनना, वरना गड़गड़ाकर आसमान गिर पड़ेगा—धरती फट जाएगी—तुम साले अपने साथ हमें भी ले डूबोगे।"
विजय की इस बकवास पर सभी मुस्करा उठे।
विकास ने पूछा—"हां तो अंकल, उसके बाद क्या हुआ?"
"जब उसने मेरे कपड़े पहन लिए तब मैंने अचानक ही कनपटी पर रिवॉल्वर के दस्ते का वार करके उसे बेहोश कर दिया और फिर मौका देखकर उसके बेहोश जिस्म को ईख के खेत में उछाल दिया।"
"पीछे आ रहे बॉण्ड ने समझा कि गाड़ी से आप कूदे हैं, अतः उसने ईख के समीप ही गाड़ी रोक ली और जब तक से हकीकत का पता लगा होगा तब तक आप न केवल वहां से बहुत दूर निकल चुके होंगे, बल्कि वह कार भी आपने कहीं छोड़ दी होगी।"
"हां।"
आशा ने पूछा—"जब तुमने उसके बेहोश जिस्म को कार से बाहर फेंका होगा उस वक्त स्टेयरिंग पर कोई भी नहीं रहा होगा, उन क्षणों में कोई भयानक एक्सीडेण्ट भी हो सकता था?"
"पूरी संभावना थी, मगर यह खतरा उठाने के लिए मैं विवश था।"
“विजय बोला—“और तुमने खतरा उठा लिया प्यारे!”
“हां।”
“कितने वजय का खतरा रहा होगा यह?”
"क...क्या मतलब?" अशरफ बौखला-सा गया।
विजय ने अजीब-से अंदाज में हाथ नचाते हुए कहा—"कमाल हैं मियां, वजन का भी मतलब नहीं जानते तुम—भई वजन यानि वेट—एक किलो, दो किलो—तीन—चार कितने किलो का खतरा रहा होगा वह, जिसे तुमने उठा लिया?"
दांत पीस उठा अशरफ, गुर्राया—"काम की बातों के बीच तुम्हारी बकवास मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती, विजय!"
"यह बात मैंने इसलिए कही है मेरी जान कि अब हम सबको उस खतरे में कई गुना ज्यादा वजनी खतरा उठाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।"
"क्या मतलब?"
"मतलब यह कि तुम्हारी बेवकूफी ने सारा गुड गोबर कर दिया है।"
"क्या कहना चाहते हो?"
"इस बात के प्रति मैंने तुम सबको पहले ही सतर्क कर दिया था कि क्लब में बॉण्ड आता है और किसी भी समय उससे आमना-सामना हो सकता है—फिर तुम उसे देखते ही इतने नर्वस क्यों हो गए—यदि तुम नर्वस न होते, खुद पर नियंत्रण रखते तो मुमकिन था कि वह तुम पर ध्यान ही न देता और ध्यान न देने की सूरत में वह तुम्हें पहचानता भी नहीं और यदि नहीं पहचानता तो यह सारा लफड़ा ही नहीं होता।"
"इस बात को मैं स्वीकार करता हूं विजय की मुझसे गलती हुई है, सचमुच मैं नर्वस हो गया था और खुद पर काबू न रख सका, मगर यह सच है कि खुद को नियंत्रित करने का मुझे अवसर ही नहीं मिला था, स्थिति ही ऐसी थी कि यदि उसमे मेरे स्थान पर हममें से कोई भी फंसा होता तो यही होता—मैं लिबास जमा करने के बाद जैसे ही घूमा, बॉण्ड मेरे सामने था—बहुत ही नजदीक, इतना ज्यादा कि मेरे होश उड़ गए—उसके देखने का अंदाज ही कुछ ऐसा था कि जैसे वह मुझे पहचान गया हो बस—घबराहट में जो हो गया वह यही काम था।"
"मगर प्यारे, तुमने हम सबके लिए मुसीबत के बीज बो दिए है।"
विकास ने पूछा—"ऐसा आप किस आधार पर कह रहे हैं गुरू?"
"उसका नाम बॉण्ड है, हम पहले ही कह चुके हैं कि वह लिफाफा देखकर मजमून भांप जाने वाली चीज है—इस घटना के बाद उसने और जमा करने की एंट्री होती है—उसे ऐसे पूरे पांच नाम मिले होंगे जो पिछले चार दिन से सुबह को लिबास लेते और शाम को जमा करते हैं, वह हम सबकी राइटिंग भी अच्छी तरह पहचानता है, अतः निश्चय ही वह समझ गया होगा कि पिछले चार दिन से हम पांचो सारे-सारे दिन गोताखोरी करते रहे हैं!"
"ओह!" अशरफ के होंठ गोल हो गए।
चिन्ता की लकीरें सभी के चेहरों पर उभर आई थीं।
विजय ने आगे कहा—"बॉण्ड इतना बेवकूफ नहीं हैं कि यह सोचकर संतोष कर ले कि हम सारे-सारे दिन टेम्स में सिर्फ गोताखोरी करते रहे हैं—वह जरूर सोचेगा कि चार दिन तक लगातार हमने सारे-सारे दिन टेम्स में क्या किया है?"
"क्या उसकी सोचें सुरंग तक पहुंच जाएंगी?" आशा का स्वर कांप रहा था।
विक्रम जल्दी से बोल पड़ा—"मेरा ख्याल तो है कि नहीं।"
विजय क होंठो पर बड़ी ही फीकी-सी मुस्कान उभर आई, जिसे देखकर विक्रम थोड़ा झेंप-सा गया, बोला—"तुम मुस्करा क्यों रहे हो, इस बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?"
"यह अपने पक्ष में सोचने की आदत छोड़ दो, प्यारे विक्रमादित्य। इस वक्त हम अपराधी हैं और अपराधी को पॉजिटिव नहीं, हमेशा निगेटिव ढंग से सोचना चाहिए, तभी उसकी उम्र बढ़ सकती है।"
"आपका क्या ख्याल है, गुरू?" विकास ने पूछा—"क्या उनका दिमाग सुरंग तक पहुंच जाएगा?"
"हालांकि सुरंग तक बॉण्ड का दिमाग पहुंचना मुश्किल है, मगर असंभव नहीं कहा जा सकता और यदि कुछ देर के लिए अपने विक्रमादित्य की बात मान भी ली तो उससे खतरे का वजन घटेगा नहीं।"
"मैं समझा नहीं।"
"बॉण्ड बराबर हमारे इतने लंबे समय तक टेम्स में रहने के कारण को तलाश करता रहेगा और इसके लिए वह जाल बिछाएगा।"
"कैसा जाल?"
"कल जब हम प्रतिदिन की तरह कल्ब के काउंटर से लिबास लेंगे तो कही छुपा वह हमें देख रहा होगा और फिर टेम्स में पानी के अन्दर वह हमारा पीछा करेगा—उसी सवाल की तलाश में जिसका कि उसे जवाब नहीं मिल रहा है।"
बात सभी को जमी, इसलिए चुप रह गए—चेहरों पर चिंता की लकीरें बिल्कुल स्पष्ट उभर आईं, काफी देर तक सवालिया नजरों से वे एक-दूसरे को देखते रहे। फिर विकास बोला—"कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते हैं गुरू कि कल हम टेम्स में जाकर सुरंग को आगे बढ़ाने का काम नहीं कर सकेंगे?"
"तुम्हारे बच्चे जिए प्यारे, हम यही कहना चाहते थे।"
"म...मगर यह स्थिति तो परसो भी रहेगी।" अशरफ बोला।
विजय ने बड़े आराम से कहा—"जी हां।"
"इसका मतलब तो यह हुआ कि बॉण्ड के डर से अब हम कभी भी क्लब से गोताखोरी की पोशाक नहीं ले सकेंगे, बिना गोताखोरी की
पोशाक के टेम्स के तल में जाना नामुमकिन है और जब हम तल तक पहुंचेंगे ही नहीं तो सुरंग के आगे बनने का काम ठप्प और जब सुरंग ही नहीं बनेगी तो कोहिनूर को प्राप्त करने के बात हमें दिमाग से निकाल देनी चाहिए।"
"काफी समझदार हो गए हो, प्यारे दिलजले, मूंग की दाल तो तुम्हें बहुत दिन से मिली नहीं है, फिर यह भीमसेनी काजल तुमने किस चीज में मिलाकर खाया?"
विजय की बकवास पर कोई ध्यान न देते हुए विकास ने कहा—"यह तो कोई बात नहीं हुई, गुरू। क्या जेम्स बॉण्ड के ड़र से हम कोहिनूर को हासिल करने के अपने लक्ष्य को ही छोड़ देंगे?"
"यह बात तुमसे किस चिड़ीमार ने कही?"
"तो फिर आपकी बातों का क्या मतलब है?"
"यह कि अब हमें बिना क्लब की मदद के टेम्स का काम करने की तरकीब लड़ानी चाहिए।"
आशा बोली—"गोताखोरी की पोशाक और विशेष रूप से ऑक्सीजन सिलेंड़र का इंतजाम करना क्या तुम मजाक समझते हो?"
"हां।" विजय ने एक झटके से कहा, कुछ ऐसे अंदाज में कि वे चारों कई पल तक सिर्फ उसका चेहरा देखते रह गए, बोल कुछ नहीं सके—वे यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि विजय मजाक कर रहा था या सचमुच उसके दिमाग में कोई स्कीम थी, जब कोई कुछ समझ नहीं सका तो विकास ने पूछा—"वह कैसे?"
"तुम सब भूल रहे हो कि इस अभियान में हमारा एक साथी और है, साथी भी ऐसा, ऐसा जिसे हम त्रिकालदर्शी कह सकते है, वह सब कुछ सुनता और देखता है।"
"कहीं आपका इशारा उस ब्लैकमेलर की तरफ तो नहीं है?"
"जो पूरी ड्रिल मशीन का इंतजाम कर सकता हैं, वह भला हमारे लिए पोशाक और ऑक्सीजन सिलेंड़र का इंताजाम नहीं करेगा?"
"बिल्कुल करूंगा जनाब, सिर के बल करूंगा!" वहां गूंजने वाली ब्लैकमेलर की आवाज सुनकर वे सभी चौंक पड़े।
विजय सहित वे सब एक झटके से खड़े हो गए।
सबकी नजरें उसी पर थीं, उस पर जो मोमबत्ती के प्रकाश में सिर्फ एक काले साए के रूप में नजर आता था, जाने क्यों विकास को उससे चिढ़-सी हो गई थी—उसे सामने देखते ही जाने क्यों उसकी नसों में दौडता हुआ खून उबलने लगता था।
विजय ने कहा—"देखो प्यारों, मानोगे न कि हमारा यार त्रिकालदर्शी है—हमें संकट में देखते ही प्रकट हो गया—क्यों मियां, तुम हमारी मदद करोगे न?"
"जरूर हुजूर, लेकिन...।"
"लेकिन क्या?"
"अगर आपको मेरी एक शर्त मंजूर होगी तो।"
"वह भी बोल दो।"
"मेरा हिस्सा एक से बढ़कर दो परसेंट हो जाएगा।"
उसके इस वाक्य के बाद जैसे सबको सांप सूंघ गया, विकास का दिल चाहा कि वह विजय गुरू से किया गया वादा तोड़कर उछले और इस ब्लैकमेलर की गर्दन दबा दे, अपनी इस प्रबल आकांक्षा पर काबू रखने में उसे जबरदस्त मानसिक श्रम करना पड़ा था।
जबकि विजय ने कहा—"यह तो हमारे साथ नाइंसाफी है, काले मियां।"
"वह कैसे, सरकार?"
"तुमसे जरा-सा काम कह रहे हैं, तुमने अपना हिस्सा ही दुगना कर दिया?"
"आप इसे जरा-सा काम कह रहे है, बंदापरवर—मैं ही जानता हूं कि इसे करने के लिए हमें कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे, यकीन नहीं है तो आप खुद करके देख लीजिए—यदि आप कर सकें तो बहुत अच्छी बात हैं, मैं एक परसेंट का ही भागीदार रहूंगा।"
"तुम जानते हो प्यारे कि यह काम भी हम कर तो सकते है, लेकिन समय लगेगा और समय हमारे पास है नहीं।"
"तभी तो जनाब से हिस्सा दुगना करने की गुजारिश कर रहा हूं।"
"मजबूरी है प्यारे, दो परसेंट ही सही—कब तक प्रबंध कर दोगे?"
बड़े प्यार से कहा उसने—"कल शाम तक ले लीजिए, जनाब।"
जाने क्यों विकास को उस ब्लैकमेलर के सामने विजय गुरू का इतना बौना होना बिल्कुल अच्छा नहीं लग राह था, यदि उसका बस चलता तो उस ब्लैकमेलर को कच्चा चबा जाता।
¶¶
उस वक्त राते के करीब दस बजे थे और जेम्स बॉण्ड अपने बेडरूम मे, बेड़ पर अधलेटी अवस्था में पड़ा कमरे की छत को घूर रहा था—उसके चेहरे पर चिंता और हल्की-सी झुंझलाहट के भाव थे—आंखों में नींद का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था।
एकाएक ही अंगूठी रुपी ट्रांसमीटर स्पार्क करने लगा। यह वही ट्रांसमीटर था, जिस पर अलफांसे के पीछे लगे जासूस उसे रिपोर्ट देते थे—उसने ट्रांसमीटर ऑन करके बात की तो रिपोर्ट मिली की अलफांसे और इर्विन लंदन लौट आए थे।
यह जासूस लंदन से ही बोल रहा था।
अलफांसे और इर्विन का लौट आना बॉण्ड को आकर्षित न कर सका, क्योंकि इस वक्त उसका दिमाग पूर्णतया विकास और उसके साथियों पर केंद्रित था।
जाने क्या सोचकर उसने रिपोर्ट देने वाले जासूस को अपनी कोठी पर ही बुला लिया।
पौने ग्यारह बजे तक वह गोरा-चिट्ठा और मजबूत कद-काठी का युवक बॉण्ड के सामने सोफे पर कुछ ऐसे अंदाज में बैठा था, जैसे बॉण्ड के किसी आदेश की प्रतीक्षा कर रहा हो—ब्रिटिश सीक्रेट सर्विस में वह बॉण्ड का जूनियर जासूस था।
काफी देर की खामोशी के बाद उसने पूछा—"क्या मैं जान सकता हूं सर कि आप क्या सोच रहे हैं?"
दरअसल बॉण्ड ने उसे इसीलिए बुलाया था, क्योंकि वह चाहता था कि सारे हालात पर किसी के सामने बैठकर डिस्कस करे—उसे लग रहा था कि जिस गुत्थी को वह सुलझा नहीं पा रहा हैं शायद डिस्कस करने से खुद ही सुलझ जाए।
उस जूनियर जासूस का नाम जॉन था, करीब दो घंटे तक वह जॉन के साथ डिस्कस करता रहा, मकसद सिर्फ यह पता लगाना था कि कोई व्यक्ति सुबह से शाम तक टेम्स में गोताखोरी क्यों करेगा? किन्तु बॉण्ड अब भी किसी आशाजनक निर्णय पर न पहुंच सका।
¶¶
दोपहर का समय।
जेम्स बॉण्ड के जिस्म पर गोताखोरी का लिबास था—पीठ पर गैस सिलेंड़र—नाक और मुंह पर सांस लेने के लिए ऑक्सीजन मास्क, आंखों पर चश्मा लगाए वह टेम्स के स्वच्छ और तेज बहाव वाले पानी में इधर—उधर फिर रहा था।
वह इस वक्त एक खूबसूरत मछली जैसा लग रहा था, किन्तु ऐसी मछली, जिसकी पानी से ऑक्सीजन प्राप्त करने की क्षमता समाप्त हो गई हो, तड़पता-छटपटाता-सा फिर रहा था वह।
गोताखोरी कर रहे एक-एक व्यक्ति को उसने ध्यान से देखा था, किन्तु किसी इच्छित व्यक्ति को न पाकर निराश ही हुआ था—अब वह तेजी से टेम्स के गर्भ की तरफ बढ़ने लगा।
सुबह के वक्त क्लब के चारों तरफ बिछाया गया उसका जाल खाली हो रहा था—उसके पांच शिकारों में से कोई एक भी नहीं फंस सका।
पोशाक लेने वाले एक-एक व्यक्ति को उसके ध्यान से देखा था, किन्तु कोई लाभ नहीं निकला। ग्यारह बजे तक इंतजार करने के बाद उसने गोताखोरी के लिए स्वयं एक सेट लिया और टेम्स में कूद पड़ा।
यहां भी उसे अभी तक निराशा ही हाथ लगी थी।
बॉण्ड टेम्स के तल में पहुंच गया, वहां पड़े बड़े-छोटे पत्थरों के बीच वह तैरता रहा—कभी बहाव के साथ तो कभी बहाव के विपरीत।
वह कुछ तलाश कर रहा था।
कोई ऐसी वस्तु जिससे वह विजय आदि की गोताखोरी का सम्बन्ध कोहिनूर से जोड़ सके और मजे की बात यह थी कि यह उसे खुद नहीं मालूम था कि वह तलाश क्या कर रहा था? ऐसी क्या वस्तु हो सकती थी, जिसका सम्बन्ध कोहिनूर से जुड़ सके।
अपने चारों तरफ बॉण्ड को पानी में घुली निराशा—ही—निराशा नजर आ रही थी।
¶¶
रात बहुत अंधेरी थी, इसलिए दस बजे ही काफी गहरा गई मालूम पड़ती थी।
विशेष रूप से टेम्स के आस-पास सन्नाटा छा गया था—पानी के बहने से उत्पन्न होने वाली 'कल—कल' की आवाज जो दिन में बहुत ही अच्छी और कर्णप्रिय लगती थी, इस वक्त भयानक और डरावनी-सी मालूम पड़ रही थी।
दूर-दूर तक कोई प्राणी नजर नहीं आ रहा था, मगर...।
जरा ठहरिए!
शायद ऊपर मैं कुछ गलत लिख गया हूं।
स्पष्ट भले ही न चमक रहे हो, परन्तु जांच व्यक्ति काले साए के रूप में जरूर देखे जा सकते थे, हां उनके अलावा दूर—दूर तक वास्तव में कोई नहीं था।
पूरी खामोशी के साथ वे टेम्स के किनारे पर पहुंचे।
जहां वे खड़े थे यदि वहां से पीछे की तरफ एक सीधी रेखा खींची जाए तो वह रेखा 'बैंक संस्थान' नामक इमारत के मुख्य गेट पर जाकर समाप्त होगी।
उनके जिस्मों पर गैस सिलेंड़र्स समेत गोताखोरी का पूरा लिबास था।
उनमें से एक ने जेब से लंबी एवं मजबूत रस्सी निकाली—फिर उस रस्सी का सिरा अपनी पीठ और पेट पर बैल्ट के समान बांधने के बाद दूसरा सिरा अपने बराबर में खड़े साथी को देता हुआ बोला—"लो प्यारे झानझरोखे!"
अशरफ ने अपने पेट और कमर पर रस्सी को एक बार लपेटा तथा सिरा अपने बराबर में खड़ी आशा को पकड़ा दिया।
इस प्रकार, आशा और विक्रम को अपने में लपेटने के बाद रस्सी का अंतिम सिरा विकास के पेट पर बंधा।
अब वे पांच एक ही रस्सी से सम्बन्धित थे।
यह प्रबंध शायद उन्होंने टेम्स के गर्भ में छाए अंधेरे और पानी के तेज बहाव से बचने के लिए किया था—इस प्रकार बहाव या अंधेरे के कारण उनके एक-दूसरे से बिछुड़ जाने का ड़र नहीं था।
अब पांचों ने एक साथ नाक और मुंह पर ऑक्सीजन मॉस्क फिक्स किए, आंखों पर चश्मे लगाए तथा फिर उन्होंने टेम्स में जम्प लगा दी—उनके कूदने से उत्पन्न होने वाली आवाज रात की खामोशी में दूर-दूर तक गूंजती चली गई थी, किन्तु उस पर ध्यान देने वाला कोई नहीं था।
वे पांचो एक साथ तैरते हुए टेम्स के तल की तरफ बढ़ रहे थे।
गोताखोरी की जो कैप्स उन्होंने पहन रखी थीं, उन पर वाटर-प्रूफ सर्चलाइट फिक्स थीं, जिन्हें उन्होंने टेम्स के गर्भ में पहुंचते ही ऑन कर दिया।
अब, तीव्र रोशनी पानी को चीरती हुई, उनके आगे-आगे चल रही थी।
पानी के अन्दर, गहरे सन्नाटे के बीच अपने आस-पास के भाग को रोशन करते हुए वे पांच साए बड़े रहस्यमय प्रतीत हो रहे थे।
करीब एक घंटे बाद वे उसी विशाल पत्थर की जड़ में पहुंचे, जिसने नीचे सबसे पहले दिन उन्होंने बैटरी रखकर ड्रिल मशीन चालू की थी।
यहां कुछ देर बैठकर उन्होंने अपनी थकान दूर की।
उस तरफ, जहां उन्होंने पहले दिन ड्रिल मशीन फिक्स करके सुरंग बनाने का काम शुरु किया था, उस वक्त कुछ भी नजर नहीं आ रहा था—वहां पानी-ही-पानी था, बल्कि कहना यह चाहिए कि यह पहचान तक नहीं हो रही थी कि ड्रिल मशीन उन्होंने वहां रखी थी।
कुछ देर सुस्ताने के बाद में उठे—फिर उसी तरफ तैरे और पंक्ति में सबसे आगे विजय था, वह दीवार टटोलने लगा—शीघ्र ही उसके सिर पर फिक्स सर्चलाइट का प्रकाश एक गोल दहाने पर पड़ा।
वही उनके द्वारा तैयार की जा रही सुरंग का मुंह था।
तीन फुट व्यास का गोल मुंह।
विजय इस मुंह के अन्दर दाखिल हो गया और अब उसके अन्दर तैरने लगा—रस्सी में बंधे उसके साथी भी पीछे-ही-पीछे आ रहे थे—सुरंग में लबालब पानी भरा हुआ था, किन्तु उसमें तैरने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी।
सुरंग में पानी केवल  भरा हुआ था, बहाव का तो वहां मतलब ही कुछ नहीं था—हां, नदी के पानी की अपेक्षा सुरंग के अन्दर का पानी बहुत गंदा जरूर था।
सुरंग करीब बाहर फीट लंबी थी, यानि अभी तक वे सुरंग को सीधी बारह फीट बना पाए थे—जहां सुरंग बंद थी, वहीं उनके ड्रिल मशीन और बैटरी मौजूद थी।
अब, सुरंग के अन्दर ही वे अपना-अपना काम करने में जुट गए।
पानी गंदा होने की वजह से उनकी कैप की टॉर्चों से निकली रोशनी काफी मध्दिम-सी नजर आ रही थी, किन्तु वे अपने—अपने काम में इस तरह व्यस्त थे, जैसे पहले ही से अच्छी तरह निर्धारित करके आए हों कि गुफा में पहुंचने के बाद किसे क्या काम करना था?
अंत में स्थिति यह आ गई कि विजय, विकास, अशरफ और और विक्रम ने ड्रिल मशीन को उठाकर उल्टा कर लिया, उसका ड्रिल उन्होंने सुरंग की छत से सटा दिया।
बैटरी सुरंग की जमीर पर रखी थी।
उसके समीप बैठी थी आशा।
बैटरी उन्हीं दो तारों के जरिए ड्रिल मशीन से सम्बन्धित थी। वे चारों अपने घुटनों पर बैठे हुए थे और हाथों पर ड्रिल मशीन को संभाले थे—अभी वे बैलेंस बना रहे थे।
बैंलेंस बनाने के बाद वे स्थिर हो गए।
उनका स्थिर होना ही जैसे आशा के लिए संकेत था।
उसने बैटरी को ऑन करने वाला स्विच दबा दिया और इसके साथ ही उन चारों के हाथों पर सधी हुई ड्रिल मशीन चालू हो गई।
सुरंग की छत में स्पर्श हुआ—ड्रिल तेजी से घूमने लगा।
ड्रिल के आसपास के पानी में मंथन शुर हो गया और साथ ही सुरंग की छत की गीली मिट्टी को काटता हुआ ड्रिल एक फुट व्यास का भट्ट बनाने लगा।
पानी में घुलती हुई मिट्टी पांचों पर गिरने लगी।
पानी बहुत ज्यादा गंदला हो गया।
ड्रिल बड़ी तेजी से घूमता हुआ, मिट्टी को अपने चारों तरफ उछालता सुरंग की छत में धंसता चला जा रहा था, इस प्रकार सुरंग अब जमीन के गर्भ ऊपर की तरफ बढ़ रही थी।
¶¶
"तुमने बहुत अच्छे समय पर कोठी से बॉण्ड के चले जाने की सूचना दी, हैम्ब्रीग!" एक फाइव स्टार होटल के केबिन में बैठा अलफांसे अपने सामने बैठे हैंम्ब्रीग से कह रहा था—"फोन पर तुम्हारी सूचना मिलने के बाद ही मैंने लंदन लौट आने की योजना बना ली और उसी रात दस बजे यहां पहुंच गया।"
हैंम्ब्रीग ने पूछा—"उस रात पहुंचने का कोई लाभ भी निकला मास्टर या नहीं?"
"सारा काम ही मैं उस रात कर सका हूं।" अलफांसे ने दबे स्वर में बताया—"उसी रात मैंने गार्डनर की रिस्टवॉच बदल दी और उस अंतिम स्थान की चाबी का अक्स लिया।"
"व...वैरी गुड मास्टर!" हैम्ब्रीग की आंखें चमकने लगीं।
"अब तो सब चाबियों के अक्स के आधार पर चाबियां बन रही हैं!"
"तब तो कोई बात ही नहीं रह गई, मास्टर। आपकी योजना कामयाब हैं।"
अलफांसे धीमे से मुस्कराया, बोला—"अभी संपूर्ण योजना को सफल नहीं कहा जा सकता, हैंम्ब्रीग—हां, मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए मैं आधे से कुछ ज्यादा ही रास्ता तय कर चुका हूं और इसमें शक नहीं कि यह सफलता मुझे तुम्हारी मदद की वजह से मिली है।"
"ऐसा मत कहिए मास्टर, मुझे तो फख्र हैं कि आपके कुछ काम आ रहा हूं।"
"अगर आगे भी तुम मेरी इसी होशियारी और खामोशी के साथ मदद करते रहे तो हमें कामयाबी जरूर मिलेगी।"
"मैं आपके हुक्म पर सिर तक कलम कराने को तैयार हूं, मास्टर!"
"कोहिनूर के पृष्ठ भाग में एक ऐसा ट्रांसमीटर लगा हें जो किसी भी व्यक्ति के हाथ की उष्मा से ही ऑन हो जाएगा, उसका सम्बन्ध पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे उस उपग्रह से है, जो चौबीस घंटे कंट्रोल रूम में कोहिनूर से सम्बन्धित सूचनाएं रिले करता हैं—हमें ऐसा प्रबंध करना है कि जब हम कोहिनूर को उठाएं तो उपग्रह कंट्रोल को कोई सूचना रिले न करे!"
"मैं समझता हूं, मास्टर!"
"गुड! मैं आज रात इमारत का पिछला दरवाजा खुला रखूंगा—तुम्हें ठीक एक बजे अन्दर आना है और सीधे गार्डनर के कमरे के नजदीक जाना हैं—गैलरी में खड़े होकर की-होल से तुम्हें गार्डनर के कमरे के अन्दर का दृश्य देखते रहना हैं—उस वक्त मैं पूरी तैयारियां के साथ गार्डनर के बेड़ के नीचे ही छुपा होऊंगा!"
हैम्ब्रीग ध्यान से सुन रहा था।
"यह तय नहीं है कि गार्डनर किस दिन कंट्रोल रूम में जाएगा, मगर यह तय है कि वह जिस दिन भी जाएगा रात के दो बजे जाएगा, अतः तुम तीन बजे तक बराबर की-होल से कमरे की स्थिति देखते रहोगे—यदि गार्डनर नहीं जाता है तो मैं तीन बजे बेड़ के नीचे से निकल जाऊंगा—बस तुम्हारी ड्यूटी खत्म यानि तुम इमारत से बाहर जा सकते हो।"
"और जिस रात गार्डनर कंट्रोल रूम जाए?"
"की-होल से तुम देख ही रहे होगें, यह भी देख लोगे कि उसके साथ मैं भी कंट्रोल रूम में गया हूं या नहीं—जिस दिन मैं उसके पीछे जाऊं उसी दिन तुम्हें काम करना हैं।"
"क्या?"
"तुम खामोशी से सब कुछ देखते रहोगे, गार्डनर लगभग तीस मिनट में कंट्रोल रूम का चक्कर काटकर वापस अपने बेड़रूम में आ जाएगा और रास्ते बंद करके सो जाएगा, उस वक्त मैं कंट्रोल रूम में ही होऊंगा और तुम्हारा मुख्य काम मुझे कंट्रोल रूम से बाहर निकालना यानि सारे दरवाजे खोलना है।"
"यह काम मुझे कितने बजे करना होगा?"
"सुबह के पांच बजे, टीo वीo को गड़बड़ करने में मुझे दो-ढाईं घंटे तो लग ही जाएंगे।"
"ठीक है, मास्टर!"
"दरवाजे खोलने से पहले तुम्हें गार्डनर को बेहोश करना होगा, ठीक उसी ढंग से जैसै मैंने रिस्टवाच बदलने और ताबीज में छुपी चाबी का अक्स लेने के लिए किया था, ताकि सुबह को जब वह उठे तो यही समझे कि नींद से जागा है।"
"आप फिक्र न करें, मास्टर!"
"दरवाजा खोलने के लिए आवश्यक सेफ और फोन के नंबर तो तुम्हें मालूम ही हैं?"
"जी हां।"
"ओ○के○ हैम्ब्रीज, अब मैं चलता हूं।" अलफांसे उठकर खड़ा हो गया—"आज रात, ठीक एक बजे मुलाकात होगी।"
¶¶
रात के ठीक एक बजे!
गार्डनर की कोठी का पिछला दरवाजा आहिस्ता से खुला, एक मानवाकृति ने अन्दर कदम रखा—चुस्त और काले लिबास वाली एक अन्य आकृति ने उसका स्वागत किया।
आने वाली आकृति उसे इस लिबास में देखकर फुसफुसाई—"आप तो बिल्कुल तैयार है, मास्टर?"
"हां, दरवाजा अन्दर से बंद कर दो।"
हैम्ब्रीग ने अलफांसे के इस आदेश का पालन किया—फिर वे दोनों कदम-से-कदम मिलाकर इमारत के अंदरूनी भाग की तरफ बढ़ गए—जब वे गैलरी में बिखरे मध्दिम प्रकाश के बीच से गुजर रहे थे तब हमने देखा कि उस वक्त अलफांसे के जिस्म पर जो लिबास था वह बड़ा ही विचित्र था, ऐसा कि जैसा हमने पहले कभी नहीं देखा था।
एड़ी से चोटी तक केवल एक ही लिबास।
लिबास कपड़े का नहीं बल्कि काले रंग की लचकदार रबर का बना हुआ था, उस लिबास के एक सिरे ने सिर पर कैप का रूप लिया हुआ था तो दूसरे ने पैरों में जूते का।
वही लिबास हाथों के दस्ताने भी बना हुआ था।
तात्पर्य यह कि इस लिबास ने अलफांसे के चेहरे के अलावा शेष जिस्म के नाखून का तक को ढक रखा था, इस लिबास को स्वयं हैम्ब्रीग भी हैरत से देख रहा था।
गैलरी से गुजरते हुए अलफांसे ने धीरे से पूछा—"क्या देख रहे हो, हैम्ब्रीग?"
"क्या यही वह लिबास है मास्टर, जिसका आपने जिक्र किया था?"
"हां, मगर क्यों?"
"समझ में नहीं आता कि इसमें ऐसी क्या खास बात हैं, आपने कहा था कि इसे पहनकर कोई भी व्यक्ति सपाट दीवार पर चढ़ सकता है, किसी कमरे की छत के पृष्ठ भाग पर बड़े आराम से छिपकली की तरह घूम सकता है!"
"हां।"
"म...मगर कैसे, ऐसी क्या विशेषता हैं इसमें?"
अलफांसे ने अपने हाथ उसके सामने फैला दिए, हाथ उसी लिबास के साथ जुड़े हुए दस्तानों के अन्दर थे, बोला—"देखो, छूकर देखो
हैंम्ब्रीग!"
हैम्ब्रीग ने उसकी हथेली और उंगलियों के ऊपर चढ़ा रबर छूकर देखा और बोला—"अरे! यहां से तो रबर मुलायम नहीं मास्टर, लोहे की तरह सख्त है।"
"यह लिबास पतली-पतली दो रबर की झिल्लीयों से बनाया गया है, उन दो झिल्लीयों के बीच शक्तिशाली मैंगनेट की पत्ती है।"
"च...चुंबक की पत्ती?"
"हां, इस पत्ती में इतनी शक्तिशाली चुंबकीय शक्ति हैं कि अपने से एक फुट दूर मौजूद लोहे को आकर्षित करती है।"
"म...मगर लोहे को आकर्षित करने से क्या होता है?"
"आधुनिक इमारतों की दीवारों में मजबूती के लिए आजकल लोहे का प्रयोग खूब होता है, ईंट और सीमेंट के बीच लोग लोहा लगवाते हैं, इस हाथ को यदि मैं ऐसी किसी भी दीवार पर रख दूं, तो यह वही चिपक जाएगा, हटेगा तब, जब मैं काफी ताकत लगाने के बाद इसे हटाऊंगा और यह तो तुम जानते ही हो कि लैंटर तो टिका ही लोहे पर रहता है!"
"यानि यह चुंबक ईंट और सीमेंट के बीच मौजूद लोहे को भी आकर्षित करता है?"
"बेशक!"
"क...कमाल हैं, मास्टर ! आप भी क्या आइड़िया निकालकर लाए हैं।"
"अब तुम चुप रहो, वह सामने वाला कमरा गार्डनर का ही है।"
हैम्ब्रीग के मन में शायद कुछ और भी पूछने या कहने की ललक थी, परन्तु उसे उसने अपने मास्टर के आदेश की भेंट चढ़ा दिया—वे गार्डनर के कमरे के नजदीक पहुंचे।
की-होल के माध्यम से अलफांसे ने अन्दर का दृश्य देखा, फिर सीधा खड़ा होता हुआ फुसफुसाया—"वह सो रहा है, मैं अन्दर जाता हूं।"
"ओ○के○ मास्टर।"
अलफांसे ने जेब से चाबी निकालकर धीरे से लॉक खोला और फिर अन्दर समा गया, चाबी उसने हैम्ब्रीग को ही दे दी थी, जिससे उसने दरवाजा बंद करके पुनः लॉक लगा दिया—जब उसने की-होल से कमरे के अन्दर झांका तो अलफांसे धीरे से रेंगता हुआ गार्डनर के बेड़ के नीचे समा रहा था।
इसके बाद, तीन बजे तक यही स्थिति रही।
तीन पांच पर अलफांसे बेड़ के नीचे से निकला और दरवाजे की तरफ बढ़ा, इधर गैलरी में खड़े हैम्ब्रीग ने की-होल के माध्यम से उसे देख लिया था, अतः जेब से चाबी निकालकर लॉक खोल दिया।
बिना किसी प्रकार की आहट उत्पन्न किए अलफांसे गैलरी में आ गया।
पिछले दरवाजे से हैम्ब्रीग को विदा करते हुए अलफांसे ने कहा—"आज की रात तो बेकार गई हैंम्ब्रीग, कल ट्राई करेंगे!"
"गुड नाइट मास्टर!" कहने के बाद हैंम्ब्रीग विदा हो गया।
और—न केवल इसी रात बल्कि अगली तीन रात तक भी यही प्रक्रिया दुहराई जाती रही—एक बजे हैम्ब्रीज आता, अलफांसे गार्डनर के बेड़ के नीचे छुपता, मगर गार्डनर मीठी नींद सोता रहता, तीन बजे अलफांसे उसके कमरे से बाहर निकल जाता।
सवा तीन बजे के करीब हैम्ब्रीग अलफांसे को पुनः गुड नाइट कहकर चला जाता—इस प्रतिरात की अलाभप्रद प्रक्रिया से वे बोर—से होने लगे थे, जबकि उसके होंठो पर मुस्कान होती थी, जिसकी आंखें उनकी हरकत की प्रतिरात देखती थीं।
उन आंखों को न तो कभी अलफांसे ही देख सका, न ही हैम्ब्रीग!
¶¶
पांचवी रात दो बजे के लगभग।
प्रतिरात की तरह आज भी अलफांसे गार्डनर के बेड़ के नीचे छुपा था और गैलरी में खड़ा हैम्ब्रीग की-होल से अनमनाया-सा कमरे के दृश्य को देख रहा था।
अचानक ही बेड़ पर पड़े गार्डनर ने एक जम्हाई ली, फिर—बिस्तर पर लेटे-ही-लेटे एक अंगड़ाई—हैम्ब्रीग की आंखों में चमक-सी उत्पन्न हो गई।
और उस वक्त उसकी खुशी का ठिकाना ही न रहा, जब मिस्टर गार्डनर उठकर अपने बिस्तर पर बैठ गए, रिस्टवाच में उन्होंने समय देखा और फिर बेड़ के नीचे उतर आए।
पैरों में स्लीपर डाले, जिस्म पर गाउन!
अब वे सिराहने मौजूद सेफ की तरफ बढ़े।
कुछ ही देर बाद गार्डनर ने सेफ खोल ली।
अब वे सेफ के अन्दर रखे लाल रंग के टेलीफोन का रिसीवर उठाकर नंबर डायल कर रहे थे।
सात नंबर डायल करने के बाद उन्होंने रिसीवर वापस क्रेड़िल पर रख दिया।
हालांकि इस क्रिया के करने से तुरंत ही प्रत्यक्ष में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई थी, परन्तु हैम्ब्रीग जानता था कि नंबर डायल करने के बाद रिसीवर क्रेड़िल पर रखते ही इस कमरे के अटैच्ड़ बाथरूम का टायलदार फर्श अपने स्थान से हट गया होगा।
गार्डनर सेफ को यथास्थिति में छोड़कर बाथरूम की तरफ बढ़ गया और फिर वह हैम्ब्रीग की दृष्टिसीमा में न रहा था—हां, उसी क्षण उसने फुर्ती के साथ पलंग के नीचे से अलफांसे को रेंगकर निकलते देखा।
गजब की फुर्ती से अलफांसे पलंग पर खड़ा हो गया था।
एक बार उसने की-होल की तरफ देखकर अंगूठा 'डन' के अंदाज में दिखाया और बाथरूम की तरफ लपका, हैम्ब्राग की आंखें खुशी के कारण बुरी तरह चमक रही थी।
¶¶
अलफांसे ने बाथरूम के दरवाजे की दरार से कान लगा दिया। बहुत ही ध्यान से वह बाथरूम के अन्दर से उभरने वाली आहट को सुनने का प्रयास कर रहा था।
इस वक्त एक-एक क्षण बहुत कीमती था।
यदि एक क्षण पहले वह बाथरूम में पहुंच जाता तो मिस्टर गार्डनर उसे देख सकते थे और यदि एक क्षण का विलंब हो जाता तो रास्ता बंद हो सकता था।
उसी ठीक उस क्षण बाथरूम के अन्दर पहुंचाना था जिस क्षण मिस्टर गार्डनर लोहे की सीढ़ी के बीच वाले डंडे पर हों और आहट सुनने का बाद उसने ऐसा ही किया।
बाथरूम में अंधेरा था।
रास्ता अभी खुला हुआ था, अलफांसे ने काफी फुर्ती के साथ हटे हुए रास्ते में पैर लटकाए।
लोहे की सीढ़ी ने उसके पैरो को खुद ही खींच लिया।
अलफांसे का सारा जिस्म अन्दर समा गया।
वहां घुप्प अंधेरा था, गार्डनर के टटोल-टटोलकर सीढ़िया तय करने से आवाज उत्पन्न हो रही थी।
अलफांसे ने पूरी सतर्कता के साथ इस अंधेरी कोठरी की छत यानि बाथरूम के फर्श के पृष्ठ भाग पर अपने हाथ टिकाए, धीरे से रेंगा और फिर उसका सारा शरीर ही छत में चिपक गया, ठीक किसी छिपकली के समान कोठरी की छत पर चिपका हुआ था वह।
फिर एक झटके से अंधेरी कोठरी में प्रकाश भर गया।
ऐसा तब हुआ था जब सीढ़ियां तय करते हुए मिस्टर गार्डनर ने सीढ़ी के अंतिम डंडे पर पैर रखा, बल्ब रोशनी होने के साथ ही बाथरूम का टायलदार फर्श अपनी जगह सरक आया।
रास्ता बंद हो चुका था।
वह एक छोटी-सी कोठरी थी, कोठरी की छत और फर्श के बीच भी दूरी काफी ज्यादा यानि बीस फीट के करीब थी, छत पर चिपके अलफांसे ने देखा कि गार्डनर को देखते ही कोठरी में मौजूद सशस्त्र गार्ड़ ने जोरदार सैल्यूट मारा था।
गार्डनर ने हुक्म दिया—"रास्ता खोलो!"
गार्ड ने जेब से एक तीन टांगों वाला प्लग निकालकर स्विच में फिक्स कर दिया, उसके ऐसा करते ही कोठरी की बाईं दीवार किसी शटर की तरह जमीन में धंस गई।
अब सामने थी—दूर तक चली गई पांच फीट चौड़ी गैलरी—दोनों तरफ दीवारों में सटे गार्ड़ बिल्कुल सवाधान की मुद्रा में खड़े थे, पूरी तरह मुस्तैद—गर्दन तक नहीं हिल रही थी उनकी, गैलरी की छत में लगे बल्बों के कारण वहां भरपूर प्रकाश था।
गार्डनर इन गार्ड़स के बीच से गुजरता हुआ आगे बढ़ने लगा।
उधर ऊपर, यानि गैलरी की छत से चिपका अलफांसे भी ठीक किसी छिपकली के समान ही अपनी यात्रा तय करने लगा—उस वक्त वह जबरदस्त खतरे से भरा, बड़ा ही रोमांचकारी खेल खेल रहा था, इतने सारे गार्ड्स में से यदि किसी की भी दृष्टि उस पर पड़ जाए तो?
मौत निश्चित थी।
परन्तु गार्ड्स में से किसी की दृष्टि पड़ने की संभावना बहुत कम थी, क्योंकि वे किसी लाठी की तरह बिल्कुल सीधे और अनुशासित खड़े थे, जब उनकी गर्दनें तक न हिल रही थीं तो भला ऊपर, गैलरी की छत की तरफ क्या देखते और फिर—उन बेचारों ने तो कभी स्वप्न में भी न सोचा होगा कि कोई इंसान छत पर छिपकली के समान भी चल सकता हैं।
नीचे गार्डनर रास्ता तय करता रहा और ऊपर अलफांसे।
हालांकि अलफांसे काफी तेजी से रेंगने की चेष्टा कर रहा था, परन्तु गार्डनर के बराबर तेज चाल तो उसकी हो ही नहीं सकती थी
जैसे, आहट न हो—परछाई ने पड़े।
कोई सैनिक ऊपर न देख ले।
वैसे भी, एक स्थान पर चिपके हुए हाथ को वहां से हटाकर आगे, दूसरे स्थान पर चिपकाने में उसे काफी ताकत लगानी पड़ती थी, क्योंकि यह काम वह लोहे और चुंबक के आकर्षक के विरुध्द करता था।
खैर, वह सुरक्षित गैलरी के बाएं मोड़ पर मुड़ गया।
उस मोड़ पर एक कम्प्यूटर रखा था, अलफांसे जानता था कि इस कम्प्यूटर के सामने से गुजरने का मतलब कंट्रोल रूम की एक टी○वी○ स्क्रीन पर अपना नाम रिले कर देना था।
मगर अलफांसे को कम्पयूटर की परवाह नहीं थी।
यह सोचकर अलफांसे के होठों पर मुस्कान खेल गई कि इन लोगों ने यह बात स्वप्न में भी नहीं सोची होगी कि कोई व्यक्ति इस कम्प्यूटर के समाने से गुजरे बिना भी कंट्रोल रूम तक पहुंच सकता हैं।
मिस्टर गार्डनर कम्पयूटर के सामने से काफी पहले ही गुजर चुके थे।
वह मानव छिपकली बड़े आराम से कम्प्यूटर के ऊपर से गुजर गई।
बेचारे सशस्त्र गार्ड़ गैलरी में ऐसे मुस्तैद खड़े थे जैसे अपनी बीच से वे किसी वांछित व्यक्ति को गुजरने ही नहीं देंगे और इसमें कोई शक भी नहीं था—अपने बीच से वे किसी को भी गुजरने देने वाले नहीं थे।
हां, ऊपर का ठेका तो नहीं लिया था उन्होंने!
अलफांसे तेजी से परन्तु सतर्कता के साथ रेंगता चला गया, शीघ्र ही उसने एक फर्लांग की दूरी तय कर ली और अब वह इस्पात की उस दीवार के समीप पहुंच गया, जिससे यह गुफा वहां बंद हो गई प्रतीत होती थी।
वह जानता था कि उस दीवार के पार कंट्रोल रूम था।
वह यह भी जानता था कि उस वक्त मिस्टर गार्डनर इसी दीवार के दूसरी तरफ होंगे, दीवार के हटने तक कंट्रोल रूम में प्रविष्ट होने के लिए अलफांसे के सामने दीवार हटने तक का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था और वह जानता था कि वह दीवार अब तभी हटेगी जब गार्डनर कंट्रोल रूम से बाहर आएगा।
अलफांसे का बहुत ज्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी।
पांच मिनट बाद ही हल्की-सी गड़गड़ाहट के साथ इस्पात की वह दीवार कोठरी की दीवार की तरह जमीन में समा गई।
मिस्टर गार्डनर कंट्रोल रूम से बाहर निकले।
अलफांसे तेजी से रेंगकर उस स्थान के पार गया जहां कुछ ही देर बाद इस्पात की दीवार को आकर पुनः फिक्स हो जाना था, अतः कहना चाहिए कि अब वह कंट्रोल रूम की छत पर चिपका हुआ था।
कंट्रोल रूम में मौजूद पांच व्यक्तियों में से एक को उसने बटन ऑफ करते देखा, यह बटन ऑफ होते ही हल्की गड़गड़ाहट के साथ इस्पात की दीवार पुनः अपने स्थान पर फिक्स हो गई।
अब, अलफांसे को उन पांच में से किसी से खुद को देख लिए जाने का पूरा खतरा था, क्योंकि वे गैलरी में खड़े गार्ड्स की तरह सावधान मुद्रा में नहीं थे।
वह जिस स्थान पर था, सहमी हुई छिपकली के समान वहीं चिपका रहा।
हालांकि इस बात के लिए वह तैयार होकर आया था कि किसी के द्वारा देख लिए जाने पर क्या करना था, परन्तु वह स्थिति बड़ी भयावह थी, उसका मकसद तो उपग्रह से सम्बन्धित टी○वी○ सैट में छोटी-सी तकनीकी गड़बड़ करके खामोशी के साथ वहां से निकल जाना था।
कंट्रोल रूम काफी बड़ा था, हॉल जैसा।
वहां मौजूद पांच में-से चार व्यक्ति कुर्सियों पर बैठे थे और एक उन चारों के सामने रखी चारों स्क्रीनों को बारी-बारी से देख रहा था, अलफांसे समझ गया कि यह पांचवा व्यक्ति ही उन स्क्रीनों की जानकारी रखने वाला इंजीनियर था।
हॉल के एक कोने में सिंगल बेड़ पड़ा था, जैसे किसी के लेटने के लिए हो और वही बेड़ अलफांसे के प्राण सुखाए दे रहा था—वह जानता था कि यदि इस बेड़ पर कोई लेट गया तो उसकी सीधी नजर छत पर पड़ेगी और--बंदाधार!
इसी वजह से अलफांसे जल्दी-से-जल्दी छत छोड़कर कंट्रोल रूम के किसी कोने में छुप जाना चाहता था, एक सेफ के पीछे छुपने के लिए उसे उचित जगह भी नजर आ गई थी, परन्तु वहां तक पहुंचना आसान नहीं था।
अतः वह ध्यान से स्क्रीन को देखने लगा।
एक स्क्रीन पर पृथ्वी की परिक्रमा करता हुआ छोटा-सा उपग्रह बिल्कुल साफ नजर आ रहा था, मछली के आकार का उपग्रह था वह—कई अंतरिक्ष पिंड़ भी नजर आ रहे थे।
कम्प्यूटर से सम्बन्धित स्क्रीन बिल्कुल खाली थी।
अलार्म खामोश पड़ा था और सिग्नल देने वाली स्क्रीन पर लगातार टिंग-टिंग की आवाज के साथ हरे रंग की बिजली-सी कौंध रही थी। बस—उसे इसी सैट में गड़बड़ करनी थी—सिर्फ इतनी कि यह हरी बिजली लाल बिजली में न बदले और टिंग-टिंग के स्थान पर पिंग-पिंग की आवाज न निकलने लगे।
खतरे से निपटने के लिए उसने चुस्त लिबास की जेब में हाथ डाला और जब हाथ बाहर निकला तो उसमें एक साइलेंसरयुक्त रिवॉल्वर था—चुंबकीय शक्ति के कारण रिवॉल्वर निकालने में भी उसे काफी श्रम करना पड़ा था।
अब उसने धीरे-धीरे रेंगना शुरु कर दिया।
लक्ष्य वह कोना ता जिधर वह सेफ रखी थी।
अलार्म के सामने बैठे व्यक्ति ने कहा—"तुम लेटो, यार रिचर्ड!"
"सोच रहा हूं कि एक बार सभी सैटो को चैक कर लूं!"
"तुम्हें भी यार, बीमारी है काम करने की।" उपग्रह से सम्बन्धित स्क्रीन के सामने बैठे व्यक्ति ने कहा—"सेटो को भला क्या हुआ है,
ठीक-ठाक तो चल रहे हैं।"
"भई, रिचर्ड़ के मजे हैं।" कम्प्यूटर वाली स्क्रीन के सामने बैठे व्यक्ति ने पहले का समर्थन किया—"साला ड्यूटी टाइम में भी बिस्तर पर आराम से सोता है, एक हम हैं कि इस कुर्सी से हिल तक नहीं सकते!"
रिचर्ड हंस पड़ा, बोला—"तुम भी इंजीनियरिंग पास कर लेते, मजे में रहते।"
सभी हंस पड़े।
कम्प्यूटर से सम्बन्धित स्क्रीन पर गार्डनर का नाम उभरा।
"लो।" सामने बैठे व्यक्ति ने कहा—"बॉस कम्प्यूटर के सामने से गुजर गए हैं।"
"यार, यह बॉस भी अजीब आदमी है, चाहे जिस रात उठकर यहां चला आता हैं—बेकार ही अपनी नींद खराब करता है—चारों तरफ इतनी सुरक्षा हैं, कंट्रोल रूम में भला क्या गड़बड़ हो सकती है?"
"कुछ लोग पैदा ही हमेशा परेशान रहने के लिए होते हैं।” रिचर्ड ने कहा—“मैं तो सोता हूं, यदि कोई परेशानी हो तो जगा देना।”
कहने के बाद जब वह बेड़ की तरफ बढ़ा तो छत पर चिपके अलफांसे के प्राण खुश्क हो गए।
उनमें से एक ने मजाक में कहा—"कुछ लोग पैदा ही सोने के लिए होते हैं।"
"और कुछ लोग चिढ़ने के लिए।" रिचर्ड़ ने तुरन्त कहा।
बाकी चारों ठहाका लगाकर हंस पड़े और हंसता हुआ रिचर्ड़ बेड़ के समीप पहुंच गया—अलफांसे की सांसे तक रुक गईं।
अपना संपूर्ण जिस्म सुन्न-सा पड़ता महसूस हुआ उसे।
रिचर्ड़ धम्म से बेड़ पर गिर पड़ा।
अलफांसे को लगा कि बस अगले ही पल गड़बड़ हो जाएगी—दांत स्वयं ही भिंच गए उसके, रिवॉल्वर पर अन्जाने में ही पकड़ सख्त होती चली गई।
परन्तु रिचर्ड़ ने लेटते ही आंखें बंद कर ली थीं।
अलफांसे ने भगवान का शुक्रिया अदा किया ही था कि...!
"रिचर्ड़!" उनमें से एक ने पुकारा।
आंखें बंद ही रिचर्ड़ ने पूछा—"क्या है?"
"जरा देखना, मेरी स्क्रीन पर लाइट कुछ कम महसूस हो रही है।"
रिचर्ड़ ने आंखें खोल दीं।
और—कयामत का क्षण आ गया, वही हो गया जिसका ड़र काफी पहले से था।
आंखें खुलते ही रिचर्ड़ की नजर अलफांसे पर पड़ी, एक इंसान को छत पर चिपका देखकर उसकी आंखों में हैरत के भाव उभर आए और वह पागलों की तरह चीखा—"अरे, कौन हो तुम?"
बाकी चारों ने भी एक झटके से छत की तरफ देखा।
एक साथ चारो के कण्ठ से चीखें निकल गईं।
हड़बड़ा-से गए वे, रिचर्ड़ बेड़ से उछलकर खड़ा हो गया।
अलफांसे समझ चुका था कि अब स्थिति उसके काबू से बाहर हो गई थी, अलार्म वाली कुर्सी के सामने बैठा व्यक्ति तेजी से उछलकर अलार्म की तरफ लपका, मगर...।
पिट अलफांसे के हाथ में दबे रिवॉल्वर से शोला निकला, गोली शिकार के सिर में धंस गई—वह लहराकर गिरा—रिचर्ड़ सहित बाकी चारों चीखे, परन्तु अब अलफांसे के रिवॉल्वर ने लगातार तीन शोले उगले।
रिचर्ड के तीनो साथी लहराकर फर्श पर गिरे।
बचा हुआ रिचर्ड़ बुरी तरह आतंकित हो गया, वह उस स्विच की तरफ दौड़ा जिससे इस कंट्रोल रूम और गैलरी के बीच इस्पाती दीवार हटनी थी।
"ठहरो रिचर्ड़, वरना मैं तुम्हें भी गोली मार दूंगा।" अलफांसे गुर्राया।
रिचर्ड़ जहा-का-तहां ठिठक गया।
"कोशिश करने के बावजूद भी तुम उस स्विच तक नहीं पहुंच पाओगे, क्योंकि स्विच अभी दूर है और मुझे ट्रेगर दबाने में एक पल भी नहीं लगेगा।"
रिचर्ड़ की आंखों में मौत का खौफ उभर आया, चेहरा ऐसा हो गया जैसे वर्षो से बीमार हो—हतप्रभ, आतंकित और घबराया-सा वह छत के साथ चिपके उस मौत के दूत को देख रहा था, जिसने एक मिनट से कुछ पहले ही उसके चार साथियों को खत्म कर दिया।
अब उसी रिवॉल्वर का रुख उसके सीने की तरफ था।
"हाथ ऊपर उठा लो।" अलफांसे ने अगला आदेश दिया।
पालन करने के अलावा रिचर्ड के पास कोई चारा नहीं था, सो हाथ ऊपर उठा दिए उसने—टांगे कांप रही थीं, कुछ ऐसे अंदाज में जैसे ज्यादा देर तक उसका बोझ नहीं संभाल सकेंगी।
छत पर चिपके अलफांसे ने अपने पैर सिकोड़े, दोनों पैर जोर से छत में मारे और अगले ही पल हवा में एक कलाबाजी खाने के बाद वह रिवॉल्वर ताने रिचर्ड़ के सामने खड़ा था।
"अ...आप—आप तो बॉस के दामाद अलफांसे हैं न?" चकित रिचर्ड़ ने मुंह से निकल गया।
"ठीक पहचाना तुमने, मैं अलफांसे हूं—अंतर्राष्ट्रीय मुजरिम।"
रिचर्ड़ की जीभ तालू से चिपककर रह गई, अलफांसे के उपरोक्त वाक्य से ही वह समझ चुका था कि वह यहां किस मकसद से आया था, अलफांसे ने उसे एक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा।
वह बैठ गया।
"यदि तुमने मेरे सवालों का सही जवाब दिया हैं चुपचाप वह करते चले गए जो मैं चाहता हूं तो वादा रहा कि तुम्हें जिंदा छोड़ दूंगा और यदि तुमने झूठ बोला या आनाकानी की तो तुम्हारी साथियों की तरह इस कंट्रोल रूम के फर्श पर तुम्हारी भी लाश पड़ी होगी।"
रिचर्ड़ की दृष्टि बरबस ही अपने उन साथियों की लाशों की तरफ उठ गई, जो मुश्किल से दो मिनट पहले उसके साथ हंस—बोल रहे थे, ठहाके लगा रहे थे—रिचर्ड़ का हलक सूखता चला गया।
अलफांसे ने कहा—"म्यूजियम के ठीक नीचे कोहीनूर रखा है, म्यूजियम के हॉल में इस कोहिनूर का मात्र प्रतिबिम्ब नजर आता हैं जिसे देखने वाले कोहिनूर समझते हैं, जहां असली कोहिनूर रखा हैं, वहां के लिए टेम्स किनारे पर बनी 'बैंक संस्थान' नामक इमारत से रास्ता जाता हैं, बल्कि कहना चाहिए कि इस इमारत के उस इस्पाती हॉल से, जिससे गार्डनर का ऑफिस है, है न?"
"ज...जी हां!" रिचर्ड़ के कुछ इस तरह कहा जैसे गले में कुछ फंस गया हो।
"यह सब मैंने तुम्हें इसलिए बताया है, ताकि समझ जाओ कि मुझे सब कुछ मालूम है और मुझसे झूठ बोलने की भूल न करो।" उस वक्त अलफांसे का लहजा बहुत ही सख्त था—"कोहिनूर के पृष्ठ भाग में एक ऐसा ट्रांसमीटर लगा हैं, जो किसी इंसान के हाथ की ऊष्मा से ही ऑन हो जाएगा, इस ट्रांसमीटर का सम्बन्ध इस स्क्रीन पर नजर आने वाले उपग्रह से है—उधर कोई व्यक्ति कोहिनूर को हाथ लगाएगा, इधर उपग्रह इस कंट्रोल रूम से सूचना रिले कर देगा।"
"ज...जी हां।"
"कैसे, यानि उपग्रह का सूचना देने का अंदाज।"
"उ...उस स्क्रीन पर जिस पर आपको रह-रहकर हरे रंग की बिजली चमकती नजर आ रही है और जिससे निकलने वाली टिंग-टिंग की आवाज आप सुन रहे हैं, उस चमकने वाली बिजली का रंग लाल हो जाएगा और पिंग-पिंग की आवज गूंजने लगेगी।"
"वैरी गुड!" अलफांसे ने कहा।
यह सवाल उसने रिचर्ड़ से यह भांपने के लिए किया था कि उसके आंतक से घिरकर सच बोलता भी है या नहीं, वैसे उसे उपग्रह के सूचना देने का अंदाज पहले ही ज्ञात था, अब उसे घूरते हुए अलफांसे ने आगे कहा—"मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि जब कोहिनूर को कोई हाथ लगाए तो उसकी सूचना इस कंट्रोल रूम में रिले न हो।"
"य...यह भला कैसे हो सकता है?"
"हाथ लगाते ही कोहिनूर में लगा ट्रांसमीटर ऑन होगा, सूचना उपग्रह पर पहुंचेगी और उपग्रह भी इस सूचना को कंट्रोल रूम के लिए रिले करेगा, परन्तु स्क्रीन पर न तो लाल बिजली ही चमकेगी और न ही आवाज बदलेगी—स्क्रीन पर पूर्व की भांति हरी बिजली ही चमकती रहेगी।"
"जब उपग्रह सूचना देगा तो स्क्रीन पर लाल बिजली तो चमकेगी ही।"
"क्यों चमकेगी?"
"टी○वी○ सिस्टम ही ऐसा बनाया गया है।"
"उस सिस्टम को खत्म कर देना है।"
रिचर्ड देखता रह गया उसे, अलफांसे का मतलब समझने के बाद बोलने तक का हौसला नहीं कर पाया वह।
"बोलते क्यों नहीं?" अलफांसे गुर्राया।
"म...मैं क्या बोलू?" वह मिमिया उठा।
"यह मत समझना कि यह इंजीनियरिंग से सम्बन्धित जानकारी मुझे नहीं हैं, यदि तुम मुझे न देखते तो मैं जिस तरह खामोशी के साथ यहां पहुंचा हूं उसी खामोशी के साथ सैट में यह तकनीकी गड़बड़ करके यहां से निकल जाने के लिए आया था, तुममें से किसी को कुछ पता भी नहीं लगता, परन्तु तुम्हारे देखने नें मेरी सारी योजना चौपट कर दी और इसीलिए मुझे इन्हें मारना पड़ा।"
एक बार फिर रिचर्ड़ की दृष्टि लाशों की तरफ उठ गई।
"अब सैट में वह तकनीकी गड़बड़ तुम अपने हाथ से करोगे।"
"म...मगर इससे क्या लाभ होगा—वे मुझसे या किसी अन्य इंजीनियर से पुनः उस तकनीकी को दुरुस्त करा लेंगे।"
"भले ही करा लें, इस बीच मेरा काम हो चुका होगा!"
"म...मगर इसकी क्या गारंटी है कि तुम मुझे जिंदा छोड़ दोगे?"
"उठकर सैट के पास चलो।" अलफांसे ने उसकी बात पर ध्यान दिए बिना आदेश किया।
बेचारा रिचर्ड़!
क्या करता?
जिंदगी सबको प्यारी होती है और उसे तो कुछ ज्यादा ही जिसने कुछ ही देर पहले अपने हंसते-खेलते दोस्तों को तड़प-तड़पकर मरते देखा हो।
वे टीo वीo सैट के पीछे पहुंच गए—रिचर्ड़ ने ढक्कन खोला—मशीन सामने थी, अलफांसे उन सैंकड़ों पुर्जों में से एक बड़े ध्यान से देखने लगा, रिचर्ड़ ने एक वॉल्व की तरफ संकेत करके कहा—"इस वॉल्व की वजह से लाल बिजली चमकेगी।"
वॉल्व के निचले सिरे से रांग के टांके से एक वायर सम्बन्धित था, अलफांसे ने उस वायर पर नजर दौड़ाई—अन्य पुर्जों और वायर्स के बीच से होता हुआ वह एक अन्य वॉल्व के ऊपरी सिरे से रांग के टांके से जुड़ा था।
अलफांसे ने उसी वॉल्व की तरफ संकेत करके पूछा—"यह वॉल्व क्या करता है?"
"पिंग-पिंग की आवाज इसी वॉल्व की वजह से निकलेगी।"
"गुड—यानि यदि यह दोनो वॉल्व फ्यूज कर दिए जाएं तो स्क्रीन पर न लाल बिजली चमकेगी और न ही पिंग-पिंग की आवाज निकलेगी?"
"जी!"
"वैरी गुड!" कहने के साथ ही अलफांसे ने अपने लिबास के अन्दर से एक प्लास्टिक का छोटा-सा थैला निकाला, उस थैले में टीo वीo सैट के फ्यूज वॉल्व, फुंकी हुई डोरियां और दूसरे बेकार हो गए पुर्जे थे, उस सामान को रिचर्ड़ के सामने फैलाकर वह बोला—"वह दोनों वॉल्व निकाल लो और इनमें से वैसे ही नजर आने वाले दो वॉल्व सैट में लगा दो।"
रिचर्ड़ अपने काम में जुट गया, रिवॉल्वर की नाल जो सिर पर रखी थी।
वॉल्व बदलने में उसे पैंतालीस मिनट लगे।
जब वह फ्यूज वॉल्व लगाने के बाद उन दोनों वॉल्वो को जोड़ने वाले वायर को उनसे जोड़ने की तैयारी कर रहा था, तब अलफांसे ने कहा—"ठहरो, वह नहीं—ये वायर लगाओ!"
रिचर्ड़ ने वह वायर अपने हाथ में ले लिया, जिसे अलफांसे ने उसकी तरफ बढ़ा रखा था, देखने में यह ठीक वैसा ही वायर था, जैसा सैट में लगा हुआ था, रिचर्ड़ ने कहा—"इस वायर में क्या, खास बात है?"
"इन बेकार की बातों पर तुम ध्यान मत दो, सिर्फ वह करो—जो कहा जा रहा है!"
रिचर्ड ने रांग के टांके से वही वायर दोनों वॉल्वों के बीच लगा दिया—अलफांसे ने अपने अन्य सामान के साथ सैट से निकले वॉल्व और वायर भी थैले में डाल दिए।
थैला उसने पुनः लिबास के अन्दर रख लिया।
रिचर्ड ने टीo वीo का ढक्कन लगा दिया।
अलफांसे घूमकर सैट के सामने पहुंचा—स्क्रीन पर सामान्य अंदाज में रह-रहकर हरे रंग की बिजली चमक रही थी और वहां टिंग-टिंग की आवाज गूंज रही थी।
अलफांसे के होंठों पर मुस्कान फैल गईं।
उसने रिस्टवॉच में समय देखा, साढ़े तीन बज रहे थे—सक्रीन के मुताबिक दो घंटे बाद हैम्ब्रीग ने रास्ता खोलना था, अतः कोठरी वाली दीवार तक जाने के लिए उसके पास डेढ़ घंटा था, अब उसने रिचर्ड़ से कहा—"रिचर्ड़, क्या तुम्हारी समझ में अब भी नहीं आया कि मैंने टीo वीo के अन्दर वह वायर चेंज क्यों कराया है?"
"नहीं।"
"वह वायर फुंका हुआ है, यानि उसमें से करेंट पास नहीं होगा।"
रिचर्ड के होंठो पर अनायास ही ऐसी मुस्कान उभर आई, जैसे अलफांसे ने कोई बचकानी बात कही हो, बोला—"जब वॉल्व ही फ्यूज है तो करेंट बनेगा ही नहीं और जब करेंट बनेगा ही नहीं तो उसके पास होने का सवाल कहां से उठेगा, फुंके हुए के स्थान पर यदि ठीक वायर लगा रहता तो क्या फर्क पड़ना था?"
"बहुत फर्क पड़ना था रिचर्ड़!"
"मैं समझा नहीं?"
"ये जो लाशें यहां पड़ी हैं, इन्हें देखकर कोई भी समझ सकता हैं कि यहां कोई आया था।" अलफांसे ने बड़ी ही गहरी मुस्कान के साथ कहा—"और देखने वाले यह अनुमान भी लगा लेंगे कि आने वाला किस मकसद के आया होगा, अतः सैट की जांच-पड़ताल की जाएगी, दोनों फ्यूज वॉल्व थोड़ी-सी जांच के बाद सामने आ जाएंगे, क्योंकि कि ये फ्यूज वॉल्व लगाने का मकसद क्या हैं और उनके स्थान पर पुनः सही वॉल्व लगा दिए जाएंगे—बस काम खत्म—वायर की तरफ किसी का ध्यान तक ही जाएगा. क्योंकि बाहर से देखने पर पता नहीं लगता कि अन्दर से वायर फुंका हुआ है या नहीं—उस स्थिति में जब कोहिनूर को हाथ लगाए जाने पर उपग्रह सूचना भेजेगा तो दोनों वॉल्व अपना काम करेंगे परन्तु करेंट पास नहीं होगा, नतीजा ठनठन गोपाल।"
"ल...लेकिन किसी इंजीनियर को वायर पर भी तो शक हो सकता है?"
"नहीं होगा, क्योंकि उसे सिर्फ वॉल्व ही फ्यूज दिखेंगे—तुम्हारी तरह वह भी सोचेगा कि फ्यूज लगाने के बाद भला किसी को सैट में गड़बड़ करने के लिए वायर से छेड़खानी करने की क्या जरूरत हैं?"
रिचर्ड को मानना पड़ा कि वह यह आदमी बहुत दूर तक की सोच रहा है।
"हकीकत सिर्फ तुम जानते हो और किसी को बताने के लिए तुम भी जिंदा नहीं रहोगे।"
"क....क्या मतलब?" रिचर्ड़ एकदम इस तरह उछल पड़ा जैसे बिच्छू ड़ंक मार दिया हो।
बड़ी क्रूर मुस्कान के साथ अलफांसे ने कहा—"मैंने वही कहा हे जो तुमने सुना है।"
रिचर्ड के चेहरे पर नाचता हुआ मौत का साया बिल्कुल स्पष्ट नजर आया, हाथ उठाकर उसने चीखना चाहा, परन्तु बेरहम अलफांसे के रिवॉल्वर से निकली गोली उसके खुले हुए मुंह के रास्ते से हलक में घुसी तथा उसकी रूह को साथ लिए सिर के पिछले भाग से बाहर निकल गई।
नश्वर शरीर कटे वृक्ष-सा गिरा।
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