बंधु शेरपा ने अपने हाथ में पकड़े व्हिस्की के गिलास में घूंट भरा और माला को देखा जो एक तरफ सहमी-सी नीचे खड़ी थी और गोरखा पहरेदारों की तरह उसके पास मौजूद था। जगमोहन कमरे के फर्श पर बेड से टेक लगाए, बैठा था। विजय और पदम सिंह दीवार से टेक लगाए खड़े थे। जगमोहन के होंठों के एक कोने से खून चमक रहा था ।
बंधु वहां पड़ी कुर्सी पर जा बैठा। दूसरा घूंट भरा। नजरे जगमोहन पर थी । फिरे नजरें हटाई और माला को खा जाने वाली निगाहों से देखा। कमरे में खामोशी ठहरी हुई थी । एकाएक बंधु माला के पास जा पहुंचा । अगले ही पल उसका हाथ हिला और 'तड़ांक' की आवाज के साथ उसके गाल पर जा पड़ा ।
माला चीखकर, लड़खड़ा-सी गई ।
जगमोहन तड़पकर, उठा कि तभी पदम सिंह ने रिवॉल्वर निकाल कर कहा ।
'बहुत गर्मी है तेरे खून में । बैठ जा नही तो मरेगा ।"
"तेरे को भी देखते हैं अभी ।" विजय खतरनाक स्वर में कह उठा ।
बंधु ने इस बीच एक बार भी पलट कर जगमोहन को नहीं देखा था ।
"हरामजादी, मेरे पीछे से तू इस तरह गुलछर्रे उड़ाती...।"
"तू कमीना है बंधु ।" माला की आंखों से आंसू बह निकले ।
"मुझे कमीना कहती है और खुद मौज करती फिरती है ।" बंधु गुर्राया--- "कहती है जगमोहन से प्यार करती है। प्यार...हंसी आती है तेरी नादानी पर । तू भोली है, नादान है । इसलिए तुझे फंसा लिया और तू प्यार-प्यार करने लगी ।
"हम शादी करने वाले हैं मेरे कमीने भाई ।"
"तेरी शादी मैं कैलाश से फिक्स कर आया...।"
"तू पागल हो गया है बंधु ।" माला चीख उठी--- "वो भी तेरी तरह हथियारों और ड्रग्स का धंधा करता है। मेरा हाथ ऐसे खराब आदमी के हाथ देगा । होश में आ । मैं तेरी बहन हूं ।"
"मैं खराब आदमी हूं ।"
"हां ।" माला गुस्से से कह उठी ।
बंधु शेरपा हंसने लगा ।
"मैं खराब आदमी-ठीक है-खराब ही सही । लेकिन तेरी शादी कैलाश से ही...।"
"वो शादीशुदा है ।" माला ने पांव पटकते हुए कहा ।
"उसने अपनी बीवी छोड़ रखी है ।"
"वो भी तेरी ही तरह कमीना है ।" माला की आंखों से आंसू बह रहे थे।
"बीवी छोड़ने से कोई कमीना नहीं हो जाता बहन ।" बंधु ने व्यंग भरे स्वर में कहा--- "मेरे से ज्यादा भला, तेरा और कोई नहीं चाहेगा। मैं भाई हूं तेरा । तेरे को किसके हवाले करना है, मैं ही जानता हूं ये ।"
"मैं जगमोहन से शादी करूंगी । बेशक आज ही शादी कराके मुझे घर से निकाल दे ।" माला कह उठी ।
"जगमोहन ।" बंधु शेरपा कहते हुए पलटा और जगमोहन को देखने लगा ।
जगमोहन की निगाह बंधु पर ही थी ।
"तुम माला पर हाथ उठाकर बहुत बुरा कर रहे हो ।" जगमोहन कह उठा ।
बंधु गुस्से से आगे बढ़ा और नीचे बैठे जगमोहन की कमर में ठोकर मारी ।
जगमोहन कराह उठा ।
"उसे क्यों मारता है ।" माला चीख उठी ।
"क्या प्यार है ।" बंधु ने हाथ में थमे गिलास से घूंट भरा--- "एक को मारो तो दर्द दूसरे को होता है ।"
"भगवान ने तेरे को मेरा भाई बना कर बहुत बड़ी गलती कर दी।" माला गुस्से से बोली--- "वो भी पछता रहा होगा ।"
"गोरखा ।" बंधु ने गर्दन घुमा कर माला को देखा--- "इसे यहां से ले जा ।"
"मैं यहीं रहूंगी । मुझे तुम्हारा भरोसा नहीं कि...।"
बंधु ने गोरखा को आंख का इशारा किया ।
गोरखा ने माला की बांह पकड़ी और खींचते हुए उसे दरवाजे की तरफ ले जाने लगा ।
माला ने अपने को छुड़ाया और गुस्से से बंधु पर झपट पड़ी ।
"तू कमीना-कुत्ता है । खबरदार जो जगमोहन को हाथ भी लगाया ।"
माला के आ टकराने से हाथ में थमे गिलास से व्हिस्की छलक गई ।
"कुत्तिया कहीं की ।" बंधु गुर्रा उठा ।
तभी गोरखा ने पास पहुंचकर माला को चांटा मारा और वहां से पकड़ कर उसे खींचते हुए बाहर ले जाने लगा । जगमोहन दिल पर पत्थर रखे, दांत भींचे सब देखता रहा। पदम सिंह ने उस पर रिवॉल्वर तान रखी थी ।
गोरखा, माला को बाहर लेता चला गया ।
माला के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती रहीं ।
बंधु ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद किया और गिलास में से बची-खुची व्हिस्की गले में उतारी और गिलास को एक तरफ रख कर सिग्रेट सुलगाई और कश लेकर जगमोहन से बोला।
"तू बोल बेटे । कौन है तू ?"
"बंधु--- मैं और माला एक-दूसरे से...।"
"ये सड़ी बातें छोड़ ।" बंधु ने मुंह बनाया--- "तू है कौन ? जाना-पहचाना क्यों लगता है ?"
जगमोहन ने कठोर निगाहों से बंधु को देखा ।
"जगमोहन नाम है तेरा । ठीक--- करता क्या है तू ?"
"ब्लू स्टार कसीनो में नौकरी करता हूं ।"
"कैसी नौकरी ?"
"सिक्योरिटी में हूं ।"
"कब से नौकरी कर रहा है ?"
"कुछ ही दिन से ।"
बंधु शेरपा की आंखें सिकुड़ी ।
"कुछ ही दिन से तू माला को जानता है । कुछ ही दिन से तू कसीनो में नौकरी करने लगा है । काठमांडू में पहले क्या करता था ?"
"कुछ दिन पहले ही मैं हिन्दुस्तान से काठमांडू पहुंचा हूं ।"
बंधु शेरपा जगमोहन को घूरने लगा ।
"तू तो कोई बड़ा हरामजादा लगता है ।" बंधु कह उठा ।
"ऐसा क्यों लगता है तेरे को ?" जगमोहन ने पूछा ।
"कुछ दिन पहले तो हिन्दुस्तान से काठमांडू आया और तेरे को ब्लू स्टार कसीनो में नौकरी मिल गई । जबकि ब्लू स्टार कसीनो के बारे में हर कोई बात जानता है कि वहां किसी नए आदमी को सीधे-सीधे नौकरी नहीं मिलती ।"
"ये बात तो मैं भी जानता हूं ।" विजय कह उठा ।
"सुना ।"
"बाज बहादुर जो कि वहां का मैनेजर है, अंजाने में उस पर मेरा एहसान हो गया था तो उसने मुझे नौकरी दे दी ।"
"तेरी जिंदगी का घटनाक्रम शक से भरा है । खासतौर से कुछ दिनों का घटनाक्रम । मेरी बहन से तू कहां मिला ?"
"मछंदर नाथ मंदिर में ।"
"मेरी बहन के साथ तूने अब तक क्या-क्या किया ?" बंधू ने कड़वे स्वर में पूछा ।
जगमोहन ने दांत भींचकर उसे घूरा ।
"शरमा मत, बता दे । मुझे पता तो चले कि...।"
"ये बातें करते तुझे शर्म नहीं आती ?" जगमोहन ने गुस्से से कहा ।
"शर्म कैसी, सीधा-सा सवाल है । ये ही सब कुछ होता...।"
तभी दूर कहीं से माला की चीखने की आवाज आई ।
जगमोहन माला की चीख सुनते ही परेशान हो उठा ।
"ये तुम लोग माला के साथ क्या कर रहे हो ?"
"वो मेरी बहन है । उसके साथ कुछ नहीं होने वाला । मचल रही होगी, गोरखा ने हाथ जमा दिया होगा तो...।"
"बंधू ।" पदम सिंह कह उठा--- "मुझे पक्का भरोसा है कि इससे पहले देखा है ।"
"लगता तो मुझे भी है ।" बंधु ने होंठ सिकोड़े और अपना गिलास उठा कर बोतल की तरफ बढ़ गया--- "हम जैसे लोग उसी को पहचानते है जो नम्बरी हरामी होता है ।" उसने गिलास में व्हिस्की डाली। पानी मिलाया। घूंट भरा और गिलास को वहीं रखकर जगमोहन के पास आ गया--- "हिन्दुस्तान में तू क्या करता था ?"
जगमोहन के होंठ भींच गए ।
"शरमा मत। बता दे, तेरा धंधा क्या है । हिन्दुस्तान की पुलिस ने तेरे को वहां से भगाया या खुद ही भाग आया। इस बात में कोई तो राज है जो तेरे को आते ही ब्लू स्टार कसीनो में नौकरी मिल गई । मैनेजर पर किए एहसान वगैरह को मैं नहीं मानता । कह दे अब कि हिन्दुस्तान में तूने किस चीज की दुकान खोल रखी थी ?"
"वहां भी मैं होटल में नौकरी करता था ।"
"तो सच नहीं बताएगा ।" बंधु ने उसे मौत-सी निगाहों से देखा--- "तेरी किस्मत खराब थी जो पूरे काठमांडू में तेरे को मेरी ही बहन पसंद आई । उसने तेरे को बताया नहीं कि मैं क्या करता हूं ?"
"नही ।"
"तो सुन लो। पाकिस्तान और चीन से हथियार चोरी-छिपे लाकर नेपाल और हिन्दुस्तान में बेचता हूं । इसी तरह ड्रग्स को बेचने का काम भी करता हूं और आजकल जाली नोट पाकिस्तान से छपकर आते हैं, जो कि हिन्दुस्तान से भी बढ़िया छपे होते हैं । उन नोटों को काठमांडू में लेता हूं और हिन्दुस्तान भेज देता हूं । कभी वो ठिकाने पर पहुंच जाते हैं तो कभी हिन्दुस्तान की पुलिस पकड़ लेती है नोटों को। ये खेल तो चलता ही रहता है अपने को बढ़िया कमीशन मिल जाती है। ये तो हुई मेरी कहानी और अब तू अपनी कहानी बता, बहुत देर लगा रहा है बताने को कि तेरे को देखा हुआ क्यों लगता है। मुझे भी लगता है और पदम सिंह को भी लगता है। खोल दे, जो राज दिल में है ।"
जगमोहन ने कलाई पर बंधी घड़ी देखी । शाम को चार बज गए थे ।
"ये तो घड़ी भी पहनता है ।" बंधु शेरपा ने व्यंग्य से कहा ।
"मुझे जाने दो । मैंने ड्यूटी पर कसीनो पहुंचना है ।" जगमोहन बोला ।
बंधु शेरपा घुटनों के बल उसके पास बैठा और उसे घूरता हुआ कह उठा ।
"तेरे को मेरे से जरा भी डर नहीं लग रहा। कोई दूसरा होता तो अब तक उसकी बज गई होती । कौन है तू ?"
जगमोहन ने गहरी सांस लेकर मुंह घुमा लिया ।
"घिसा हुआ लगता है ।" विजय ने कहा--- "मार भी आसानी से हजम कर गया ।"
"मैं वो फाइल देखूं ?" पदम सिंह बोला ।
"फाइल ?" बंधू उठ खड़ा हुआ--- "उस फाइल में तो पहुंचे हुओं की तस्वीरें लगा रखी है हमने । ये मुझे इतना पहुंचा नहीं लगता।"
पदम सिंह एक तरफ खड़ी लकड़ी की अलमारी की तरफ बढ़ गया ।
बंधू ने टेबल के पास पहुंच कर अपना गिलास उठाया और घूंट भर कर बोला ।
"विजय । ये आसानी से अपने बारे में बताने वाला नहीं लगता । इसका मुंह खुलवाने का इंतजाम कर । अपने बारे में बताने से पहले इसे मरना नहीं चाहिए। इसकी मौत ही इसे यहां खींच लाई है। डाल दे डंडा साले में ।" गुर्रा उठा बंधू ।
विजय के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच उठी । वो आगे बढ़ा और जगमोहन के पास पहुंचा ।
जगमोहन विजय को देख रहा था ।
"किसी के मुंह से से कुछ निकलवाना हो तो उससे सिर्फ मैं ही बात करता हूं । ये काम मैं ही कर सकता हूं । बंधु के बस का नहीं है । वो सिर्फ ऑर्डर दे सकता है, पर किसी का मुंह नहीं खुलवा सकता ।" विजय दरिंदगी से कह उठा--- "अब आएगा मजा। खेल तेरे और मेरे बीच होगा । कोई बीच में नहीं आएगा। तेरी तो...।"
जगमोहन बंधु की तरफ देखते कह उठा ।
"तुम सच में पागलों जैसी बातें कर रहे हो। मैं तुम्हारी बहन का हाथ मांगने आया..।"
"गलत। गलत बात। तुम हाथ मांगने नहीं आए। तुम पालक-पनीर और कोफ्ते खा रहे थे । मेरी प्यारी बहन तुम्हें प्यार से ये सब खिला रही थी और ऊपर से मैं आ गया। क्या पहले भी इसी तरह यहां आते रहे हो ?"
पदम सिंह अलमारी के पास खड़ा, मोटी सी फाइल थाम उस के पन्ने पलट रहा था ।
"मैंने कहा न, तीन दिन पहले ही माला से मिला और...।"
"इतनी जल्दी बात पालक-पनीर और कोफ़्तों तक नहीं पहुंच सकती ।" वक्त लगता...।"
"पांच दिन पहले तुम्हें तो मैं हिन्दुस्तान से आया...।"
"तुम्हारी जिंदगी तो बहुत तेज रफ्तार से चल रही है । पांच दिन पहले तुम हिन्दुस्तान से काठमांडू आते हो। ब्लू स्टार कसीनो में किसी नए आदमी को नौकरी नहीं मिलती, परंतु तुम्हें मिल गई । मैं तुम्हारी एहसान वाली बात को नहीं मानता । फिर तुम्हारी मुलाकात माला से मछंदर नाथ मंदिर में हो जाती है और तीसरे ही दिन पालक-पनीर और कोफ्ते खिलाने माला तुम्हें यहां ले आती है। मैं नहीं मानता। इतनी जल्दी ये सब नहीं होता। तुम और माला एक-दूसरे को पुराना जानते हो मुझसे झूठ कह रहे हो। सबसे बड़ी बात तो ये है कि तुम्हारा चेहरा मुझे पहचाना क्यों लग रहा है। यही है खटकने वाली बात कि जिसने मुझे तुम्हारे बारे में जानने को मजबूर कर दिया । किसी शरीफ आदमी को तो मैं पहचान ही नहीं सकता। क्योंकि मेरा धंधा भी ऐसा है । तुम गड़बड़ आदमी हो । तुम...।"
"ऐसा कुछ नहीं है, मैं बस माला को चाहता...।"
"तो तुम अपने बारे में कुछ नहीं बताने वाले ।" बंधु दांत भींचकर बोला--- "विजय तुम अपना शुरू करो। इसे तब तक जिंदा रखना, जब तक कि ये अपने बारे में असलियत ना बता दे। हरामी का ऐसा हाल करो कि...।"
तभी विजय की ठोकर, जगमोहन के चेहरे पर पड़ी ।
जगमोहन तेज चीख के साथ फर्श पर लुढ़कता चला गया । गाल भीतर से कट गया । दांत खून से रंग गए । अगले ही पल जोरदार ठोकर जगमोहन के कूल्हों पर पड़ी । जगमोहन पुनः चीखा ।
"अब तुम मेरे हवाले हो ।" विजय हंसकर कह उठा--- "पांच मिनट में तुम सब कुछ...।"
"ठहरो ।" एकाएक पदम सिंह की आवाज आई ।
बंधु और विजय ने पदम सिंह को देखा ।
जगमोहन फर्श पर पड़ा, कराह रहा था । मुंह से खून भरा था उसने फर्श पर फेंका ।
पदम सिंह अलमारी के पास फाइल खोले खड़ा था । गम्भीर था और बार-बार फाइल से हटकर उसकी निगाह जगमोहन पर जा रही थी। फिर बंधु शेरपा ने देखते हुए कह उठा ।
"ये ठीक कहता है कि ये जगमोहन है। परंतु ये हिन्दुस्तान के जाने-माने डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी है । देवराज चौहान का ये खास है और दोनों मुम्बई में इकट्ठे ही रहते हैं ।" पदम सिंह की नजरें फाइल पर टिकी थी ।
■■■
बादलों की गर्जना सुनाई दी तभी और आसमानी बिजली के कड़कने की ऐसी आवाज आई कि दिल दहल गए । कई पलों तक कमरे में शांति छाई रही फिर विजय कह उठा ।
"जबरदस्त बरसात आने वाली है ।" वो आगे बढ़ा और खिड़की का पर्दा हटाकर बाहर देखने लगा ।
बंधु ने एक ही सांस में गिलास खाली किया और पदम सिंह के पास पहुंच कर बोला ।
"दिखा मुझे ।" और बंधु फाइल लेकर खुद देखने लगा ।
कई पलों तक उसकी निगाह फाइल पर रही, फिर कह उठा।
"ये तो बढ़िया आइटम है । डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी है और नेपाल में है, माला के साथ प्यार करने का दम भर रहा है । इन बातों ने तो मुझे हैरान कर दिया ।" बंधु फाइल थामे जगमोहन की तरफ बढ़ा ।
जगमोहन अब तक फर्श पर बैठ चुका था । चेहरा कुछ सूजा-सूजा-सा लग रहा था ।
"कैसे मिजाज हैं जगमोहन साहब ।" पास पहुंचकर बंधु ने मुस्कुरा कर कहा--- "हमसे शरमाने की क्या जरूरत थी । सीधे-सीधे नहीं कह सकते थे कि तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथी जगमोहन हो । हमसे क्या पर्दा ।"
जगमोहन ने उखड़ी निगाहों से बंधु को देखा ।
"ये देखो ।" बंधु उसके पास बैठ गया और फाइल का खुला पेज जिसके सामने किया। जहां उसकी और देवराज चौहान की अखबार कटिंग चिपकी हुई थी । तस्वीरें भी साथ थी । बहुत पुरानी खबर की तस्वीरें थी ये।--- "ये तुम्हारी और देवराज चौहान की तस्वीर हैं । अंडरवर्ल्ड के हर बड़े की तस्वीर हम अखबार से काटकर अपनी फाइल में चिपका लेते हैं। क्या करें धंधा ही ऐसा है । पता नहीं कब किस से वास्ता पड़ जाए । किसी को पहचानना पड़ जाए, जैसे कि अब तुम हमारे सामने आ गए । ड्रग्स, हथियार और नकली नोटों का धंधा जो ठहरा । पता नहीं कब किस से संबंध बन जाएं। ये तुम्हारी तस्वीर है न ?"
फाइल पर नजर मारने के बाद जगमोहन ने सिर हिला दिया ।
"और ये देवराज चौहान ?"
जगमोहन ने पुनः सिर हिलाया ।
"वाह ।" बंधु फाइल थामे उठा और हंसता हुआ पदम सिंह की तरह बढ़ा--- "ये तो कमाल हो गया ।" उसने फाइल पदम सिंह को दी तो पदम सिंह ने फाइल को वापस अलमारी में रखा और उसे बंद कर दिया ।
विजय खिड़की के पास से हटता बोला ।
"ठंड बढ़ रही है पर अभी बरसात शुरू नहीं हुई ।"
बंधु ने सिगरेट सुलगाई और कुर्सी पर बैठकर जगमोहन को देखने लगा । चेहरे पर सोच थी ।
पदम सिंह की अलमारी के पास खड़ा, जगमोहन को ही देख रहा था ।
"पदम ।" बंधु बोला--- "मेरे सामने कुर्सी रख और जगमोहन को यहां बिठा ।"
पदम सिंह, जगमोहन के पास पहुंचा ।
जगमोहन ने लम्बी सांस ली और खुद ही उठ गया । पदम सिंह ने बंधु के पास कुर्सी रखी तो जगमोहन उस पर जा बैठा। मुस्कुरा कर बंधु ने उसे देखा और कह उठा ।
"खामखाह तूने मार खाई । अपने बारे में पहले बता देता ।"
"मैं माला से प्यार करता हूं ।" जगमोहन बोला--- "उससे शादी करना चाहता हूं ।"
"पदम इसे एक गिलास बना कर दे। कुछ तबीयत सुधरेगी ।"
पदम सिंह ने गिलास तैयार किया और जगमोहन को थमा दिया।
"मैं नहीं पीता ।" जगमोहन हाथ में थमे गिलास को देखता कह उठा ।
"नहीं पीता। डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी होकर कहता है शराब नहीं पीता ।" बंधु हैरानी से बोला ।
"आमतौर पर नहीं पीता ।"
"पी ले, दवा है ये इस वक्त तेरे लिए । तबीयत सुधरेगी ।" बंधु ने कश लिया ।
"मैं माला की बात कर...।"
"चिंता मत कर, अब हमने बातें ही करनी है ।" बंधु ने मुस्कुरा कर उसे देखा--- "तुझे जाने की जल्दी तो नहीं है ।"
जगमोहन ने अपना चेहरा टटोलने के बाद कहा ।
"अब कोई जल्दी नहीं है ।"
"गिलास चढ़ा ले ।"
जगमोहन ने दो घूंट एक साथ भरे ।
तभी बरसात की मोटी बूंदों की टप-टप गिरने की आवाजें आने लगी ।
"बरसात शुरू हो गई । ये रुकने वाली नहीं ।" विजय खिड़की के पास पहुंचा और बाहर देखने लगा ।
पदम सिंह छाती पर हाथ बांधे आराम से खड़ा था ।
"माला को यहां बुलाऊं ?" बंधु कड़वी मुस्कान के साथ बोला ।
"हां ।" जगमोहन ने फौरन कहा ।
"गिलास खाली कर । माला को बुलाता हूं ।"
जगमोहन ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया ।
"पदम । माला को लेकर आ ।"
पदम सिंह कमरे से बाहर निकल गया ।
बंधु की निगाह जगमोहन के चेहरे पर टिकी थी। वो कुछ सोचता दिख रहा । सिगरेट के कश लेने लगता। जगमोहन ने दो बार बेचैनी से कुर्सी पर पहलू बदला । फिर एकाएक बंधु खुलकर मुस्कुराया और बोला ।
"ये तो कमाल हो गया ।"
"क्या कमाल हो गया ?" जगमोहन बोला ।
"तुमसे मुलाकात होने की बात कर रहा हूं, ऐसा होना कमाल से कम नहीं है ।" बंधु ने सिर हिलाया ।
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा ।
"हैरानी है कि तुम माला से कैसे मिल गए ? कब मिले थे माला से पहली बार ?"
"बताया तो है...।"
"तीन दिन पहले ?" बंधु बोला ।
"हां ।"
"मछंदर नाथ मंदिर में ।"
"हां ।"
तीन दिनों में तुम दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया इतना कि शादी करने की सोच बैठे ।"
जगमोहन ने होंठ भींच लिए । फिर बोला ।
"मैं माला से शादी करूं, तुम्हें ऐतराज है इस पर ?"
"सोचना पड़ेगा ।" बंधु का चेहरा शांत दिखा । "पहले माला को तो पता चल लेने दो, कि तुम क्या हो ।"
तभी दरवाजा खुला और पदम सिंह ने भीतर प्रवेश किया । पीछे माला और गोरखा थे ।
"जगमोहन ।" माला व्याकुल-सी जगमोहन की तरफ लपकी--- "तुम ठीक हो--- तुम...।" वो पास पहुंचकर जगमोहन के चेहरे को देखकर ठिठक-सी गई, फिर गुस्से से बंधु की तरफ पलट कर कहा--- "तुम निहायत ही कमीने इंसान हो। क्यों मारा जगमोहन को ?"
बंधु हंसा ।
"तुम पागलों की तरह व्यवहार करते हो ।" माला चीखी--- "तभी मैं तुम्हें पसंद नहीं करती। तुम गंदे हो। जगमोहन ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो तुमने इसका बुरा हाल कर दिया।" माला की आंखों में आंसू चमक उठे ।
बंधु पुनः हंसा, जगमोहन को देखकर ।
"उठो ।" माला, जगमोहन की बांह पकड़कर बोली--- "हम दूसरे कमरे में चलते...।"
"ये बाहर नहीं जाएगा ।" बंधु बोला ।
"क्यों ?" माला ने गुस्से से बंधु को देखा ।
"मैंने इसके साथ बहुत बातें करनी है । इसकी ठुकाई के बदले ही, इसके साथ रियायत बरती जा रही है और तुम दोनों को मिलने दिया। जानती हो मेरी बहन कि इसकी असलियत क्या है । ये तो मेरा भी गुरु है ।"
"जगमोहन है ये ।"
"तुम इसके बारे में जानती भी क्या हो जो...।"
"मैं इससे प्यार करती हूं । शादी करेंगे हम । और कुछ भी नहीं जानना मुझे ।" माला ने गुस्से से कहा ।
जगमोहन ने प्यार भरी निगाहों से माला को देखा ।
"और तुम ।" माला, विजय को देख कर कह उठी--- "तुमने मारा न जगमोहन को ।"
विजय खिड़की के पास खड़ा बाहर होती बरसात को देख रहा था । उसे देख कर ऐसा लगता था जैसे कमरे में होने वाली किसी बात से उसका वास्ता ही ना हो । बाहर मूसलाधार बरसात हो रही थी । रह-रहकर बादल गर्ज रहे थे और बिजली कड़क रही थी । बिजली कड़कने की आवाज दिल दहलाकर रख देती थी ।
"आज तो जरूर कहीं बिजली गिरेगी ।" बाहर देखता विजय कह उठा ।
"कमीना कहीं का ।" माला ने ये शब्द विजय से कहे थे ।
बंधु ने सिगरेट का आखरी कश लिया और उसे नीचे फेंका जूते से मसल दिया ।
"हम यहां नहीं रहेंगे । दूसरे कमरे में चलो जग...।"
"माला ! मैं तुम्हारे भाई से शादी की बात कर रहा हूं ।" जगमोहन ने कहा ।
माला ने बंधु को देखा ।
"तो तुम दोनों शादी करना चाहते हो ।" बंधु हंसा--- "जानती हो ये कौन है । मेरी बहन, ये जगमोहन है । हिन्दुस्तान के जाने-माने डकैती मास्टर देवराज चौहान का प्यारा-सा साथी । मैं तो इसके सामने बच्चा हूं ।"
"ये जैसा भी है मुझे पसंद है ।"
"पसंद है ?"
"हां । माला दृढ़ स्वर में कह उठी ।
"क्या प्यार है तुम दोनों का । मजा आ गया । लेकिन तेरी पसंद कुछ नहीं चलेगी । मुझे भी तो ये पसंद आना चाहिए ।"
"शादी हमने करनी है तुझे क्या ।"
"मैं किसी गलत आदमी के हाथों में अपनी प्यारी बहन का हाथ नहीं दे सकता । मैंने कैलाश को तेरे लिए पसंद किया...।"
"वो ठीक आदमी है ?" माला गुस्से से बोली ।
"मैं कैलाश को पसंद करता हूं । वो मेरे काम आता रहता है । मैं तो उसे...।"
"कान खोल कर सुन ले बंधु, मैं जगमोहन से ही शादी करूंगी । तू माने या ना माने मैं...।"
"ऐसा मत कह ।" बंधु का स्वर कड़वा हो गया--- "वरना मैं अभी इसे खत्म कर दूंगा ।"
माला के चेहरे पर भय नाच उठा ।
"नहीं ।" माला ने जगमोहन का हाथ पकड़ लिया--- "तुम ऐसा नहीं कर सकते ।"
"तू अच्छी तरह जानती है कि मैं सब कुछ कर सकता हूं । बंधु को कोई नहीं रोक सकता ।"
माला सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गई । आंखों में डर भरा दिख रहा था ।
"गोरखा । इसे यहां से ले जा । अब जरा जगमोहन से बातें हो जाएं ।" बंधु कड़वे स्वर में बोला ।
"चल ।" गोरखा, माला की तरफ बढ़ा ।
"मैं नहीं जाऊंगी । तेरे को जो बातें करनी है, मेरे सामने कर ।" माला बोल उठी ।
"तेरी जरूरत नहीं है यहां...।"
"तेरे को जो बातें करनी है, कर मैं यहीं रहूंगी ।" माला जिद भरे स्वर में कह उठी ।
तभी बंधु फुर्ती से उठा और जोरदार चांटा माला के गाल पर मारा ।
माला चीख उठी । जगमोहन की बांह छूट गई ।
जगमोहन तेजी से उठ खड़ा हुआ और बंधु के सामने आ गया ।
"तुम माला को कुछ नहीं कहोगे ।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा ।
तभी पदम सिंह ने रिवॉल्वर निकाल कर कहा ।
"कुर्सी पर बैठ जा । नहीं तो मरेगा अभी का अभी ।"
बंधु ने व्यंग भरी निगाहों से जगमोहन को देखा, फिर हंस कर बोला ।
"ये भाई-बहन का मामला है । मेरे घर में तेरे को दखल देने की जरूरत नहीं ।"
"मैं और माला शादी करने वाले हैं ।" जगमोहन दृढ़ स्वर में कह उठा ।
"किसने कहा ?"
"मैंने और माला ने कहा ।"
"मुझे न तो तेरी परवाह है और ना ही माला की ।" बंधु गुर्रा उठा--- "अपनी औकात से बाहर मत जा । वरना गोली मारकर नीचे घाटी में फेंक दूंगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तू कहां गया ?"
जगमोहन, बंधु को घूरता रहा ।
गोरखा, माला का हाथ पकड़े बोला ।
"चलती है या धक्का देकर ले जाऊं ?
"नहीं जाऊंगी । मैं जगमोहन के पास...।"
"चल तू ।" गोरखा ने उसकी बांह पकड़े झटका दिया ।
माला चीख उठी ।
जगमोहन ने बेबस निगाहों से गोरखा को देखा ।
"बंधु ।" माला की आंखें भर आई--- "भगवान के लिए जगमोहन को मारना मत ।"
"नहीं मारूंगा ।" बंधु हंसा--- "इसकी ठुकाई तो तब हुई थी, जब ये अपने बारे में नहीं बता रहा था ।"
गोरखा, माला को खींचता बाहर लेता चला गया ।
पदम सिंह ने रिवॉल्वर जेब में रखी और दरवाजा बंद कर दिया फिर खिड़की के पास खड़े विजय के पास पहुंचा जो बाहर होती बरसात को देखने में मस्त था । पदम सिंह को पास आया देकर विजय कह उठा ।
"बरसात रुकने वाली नहीं । तेरा क्या ख्याल है रात भर चलेगी ये ?"
पदम सिंह उसके पास से हट बंधु-जगमोहन को देखता एक तरफ जा खड़ा हुआ ।
"बैठ जा, खड़ा क्यों है ।" बंधु मुस्कुराकर जगमोहन को देखता कह उठा ।
जगमोहन बैठा और बंधु को घूरता रहा ।
"कुछ कहता है ?" बंधु ने पूछा ।
"तेरा व्यवहार ठीक नहीं है । बहुत गलत ढंग से तू मुझसे पेश आ रहा है ।"
"क्या करूं । खातिरदारी करुं तेरी।। व्हिस्की तेरे को पिला दी । पालक-पनीर और कोफ्ते से रोटी खानी है तो...।"
"अब मेरा यहां कोई काम नहीं है ।" जगमोहन बोला ।
"जाना चाहता है ?"
"मुझे चले जाना चाहिए । परंतु माला की बात करनी है तुझसे।" जगमोहन ने अपना घायल चेहरा टटोलते हुए कहा ।
"लेकिन उससे पहले मैंने तेरे से बात करनी है ।"
"क्या ?"
बंधु सोच भरी निगाहों से जगमोहन को देखने लगा ।
जगमोहन भी उसे देखता रहा ।
"दर्द तो नहीं हो रहा ठुकाई की वजह से ।" बंधु ने पूछा ।
"काम की बात कर ।" जगमोहन गम्भीर और उखड़ा हुआ था ।
बंधु उठा और उसने दो गिलास तैयार किए । एक जगमोहन की तरफ बढ़ाया ।
"ले ।"
"नहीं चाहिए ।"
"ले ले । सर्दी बढ़ रही है । बरसात भी जोरों पर है । व्हिस्की तेरे घायल चेहरे को आराम देगी । शाम के छः बज रहे हैं । रात में तगड़ी सर्दी पड़ने वाली है । व्हिस्की के बिना तो बुरा हाल हो जाएगा, ले ले ।"
जगमोहन ने एक गिलास थाम लिया ।
अपना गिलास थाम बंधु कुर्सी पर जा बैठा । घूंट भरा । जगमोहन को देखा ।
"देवराज चौहान कहां है ?" बंधु ने पूछा ।
"मुम्बई में ।"
"वो भी काठमांडू आएगा ?"
"कल परसो में आ जाएगा ।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा ।
"वो क्यों आ रहा है ?"
"मेरी और माला की शादी के लिए ।"
"शादी के लिए ? जब मैं शादी के लिए तैयार नहीं हो तो वो आकर क्या करेगा ?" बंधु मुस्कुराया ।
"ये सोचकर देवराज चौहान को आने को कहा कि माला का भाई शादी को तैयार हो जाएगा ।"
बंधु ने जगमोहन की आंखों में झांकते, मुस्कुराकर कहा ।
"अब वो बात बोल तो सही है ।"
"क्या सही है ?" जगमोहन बोला ।
"तू ब्लू स्टार कसीनो में सिक्योरिटी की नौकरी क्यों कर रहा है ?" बंधु कह उठा
जगमोहन में घूंट भरा और शांत स्वर में कहा ।
"इस बात से तुम्हें कोई मतलब नहीं ।"
"क्यों नहीं मतलब ? ये तो मेरे काम की बात है ।" बंधु हंसा--- "बता, नौकरी के पीछे क्या राज है ?"
"कुछ नहीं है ।"
"ब्लू स्टार कसीनो को लूटने जा रहे हो ?"
"नहीं ।"
"गलत मत कह । देवराज चौहान का खास साथी, नेपाल के काठमांडू में, कसीनो में सिक्योरिटी की नौकरी करे तो इसके दो मतलब ही निकलते हैं । पहला ये कि तुम लोग कसीनो लूटने का प्रोग्राम बना रहे हो । दूसरा मतलब ये कि इस बात से इंकार करते हो तो बात सरासर गलत है । कोई भी तुम्हारी बात को नहीं मानेगा ।"
"कसीनो लूटने के बारे में सोचा भी नहीं ।
"नहीं ?"
"नहीं । गलत मत सोचो । ऐसा कुछ भी नहीं है ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"तुम्हारी बात का कौन भरोसा करेगा कि...।"
"तुम्हें मेरी बात का भरोसा करना चाहिए ।"
"क्रिसमस और न्यू ईयर पर तो कसीनो के स्ट्रांग रूम में पचास-साठ करोड़ की दौलत हो जाती है हर रात । शायद ज्यादा भी हो? ब्लूस्टार कसीनो काठमांडू का माना हुआ जुआघर है । दिसम्बर के आखिरी सप्ताह वहां पर बहुत अमीर लोग जुआ खेलने आते हैं । ऐसे ही वक्त में डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी यानी कि तुम वहां सिक्योरिटी की नौकरी पर लगे दिखे तो कोई बेवकूफ भी ये समझ लेगा कि तुम लोग कसीनो को लूटने का प्रोग्राम बना चुके हो। अब बेशक तुम लाख इंकार करो मैं तो मानने वाला नहीं । तुम्हें ये बात मान लेनी चाहिए कि मेरा कहना सही है । आपस में शर्म कैसी ?" बंधु की निगाह जगमोहन पर थी ।
"तुमने गलत सोचा है । हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे ।" जगमोहन ने कहा--- "मैं माला की बात...।"
"जो बात मैं तुमसे कर रहा हूं उस पर ध्यान दो । सच बात को तुम मेरे सामने कबूल करो कि...।"
"अपनी बकवास बंद करो ।" जगमोहन ने होंठ भींच कर कहा--- "हम कसीनो नहीं लूट...।"
तभी बंधु फुर्ती से कुर्सी से उठकर आगे को झपटा और जोरदार घूंसा जगमोहन के चेहरे पर पड़ा ।
जगमोहन कराह के साथ, झनझना उठा, कुर्सी सहित गिरते-गिरते बचा। संभलते ही हाथ में थमा व्हिस्की का गिलास बंधु के चेहरे पर दे मारा ।
जिसे कि बंधु फुर्ती से बचा गया और एक साथ दो घूंसे जगमोहन के पेट में मारे ।
जगमोहन के होंठ से चीख निकली और वो कुर्सी सहित नीचे जा लुढ़का ।
पदम सिंह ने रिवॉल्वर निकाल कर हाथ में ले ली ।
बंधु क्रूरता भरी निगाहों से जगमोहन को घूरने लगा ।
जगमोहन पेट पकड़े धीमे-धीमे कराह रहा था ।
"ये बरसात तो नहीं रुकेगी ।" विजय खिड़की के बाहर देखता कह उठा ।
"पदम ।" बंधु बोला--- "उसे खड़ा करके कुर्सी पर बिठा।" कहने के साथ ही बंधु ने हाथ में थमा गिलास खाली कर दिया ।
पदम सिंह रिवॉल्वर थामे आगे बढ़ा और जगमोहन से बोला ।
"उठ जा। मर नहीं गया तू। खड़ा हो ।"
जगमोहन खड़ा हुआ । चेहरे पर पीड़ा के भाव थे ।
"कुर्सी पर बैठ जा ।" पदम सिंह ने हाथ में दबी रिवॉल्वर हिलाई।
जगमोहन ने बंधु को देख कर कहा ।
"तुम लोग बहुत गलत कर रहे हो ।"
"झूठ बोलेगा तो तेरी इसी तरह सेवा होगी ।" बंधु कहर से बोला।
"मैंने सच बोला है ।" जगमोहन झल्लाकर बोला--- "हम कसीनो में डकैती करने नहीं जा रहे । कुछ काम है हमें वहां ।"
"क्या ?" बंधु बोला ।
"वो मैं तुम्हें नहीं बता सकता ।"
"कुछ होगा तो बताएगा ।" बंधु हंसा ।
जगमोहन होंठ भींचकर रह गया ।
"कुर्सी पर बैठ जा ।" पदम सिंह ने कठोर स्वर में कहते, उसे धक्का दिया ।
जगमोहन कुर्सी पर जा बैठा ।
बंधु ने सिगरेट सुलगाई । वो जगमोहन को घूरे जा रहा था ।
"मैं माला की शादी कैलाश के साथ करूंगा ।" बंधु कह उठा ।
"नहीं ।" जगमोहन के होठों से निकला--- "तुम ऐसा नहीं कर सकते ।"
"मैं ऐसा ही करूंगा। वो मेरी बहन है और उसकी शादी मैं जिससे भी करूं । तुम मुझे नहीं रोक सकते ।"
"ये गलत होगा--- तुम...।"
"अगर तुम चाहते हो कि माला की शादी मैं कैलाश से ना करूं तो मुझे मेरे सवालों का जवाब सही-सही चाहिए ।"
"सही जवाब तो दे रहा...।"
"बकवास मत करो ।" बंधु ने तीखे लहजे में कहा--- "देवराज चौहान ब्लू स्टार कसीनो लूटने जा रहा है और तुम ये बात मुझसे छुपा रहे हो। ऐसा न होता तो तुम कसीनो में नौकरी क्यों करते । देवराज चौहान काठमांडू ना आ रहा होता ।"
"मैं सच कह रहा हूं हम कसीनो को नहीं लूट रहे ।"
बंधु ने कश लिया और कुर्सी पर आ बैठा ।
जगमोहन ने बंधु को आहत-भरी निगाहों से देखा ।
"तो तुम सच में कसीनो नहीं लूट रहे ?"
"नहीं । हमने ऐसा कुछ भी नहीं सोचा ।" जगमोहन ने उसे विश्वास में लाने वाले भाव से कहा ।
"तो तुम ये भी नहीं बताना चाहते कि कसीनो में तुम लोगों को क्या काम है ।"
"उससे तुम्हें क्या मतलब ?"
बंधु ने कश लिया और कुछ चुप रहकर सोच भरे लहजे में कहा उठा ।
"मैं बहुत तंग आ चुका हूं अपने धंधे से। हथियारों की स्मगलिंग। ड्रग्स की खेप आना और उसे जगह-जगह पहुंचाना। नकली नोटों का महीने भर में दो बार पाकिस्तान आना और उन्हें हिन्दुस्तान भेजना । बहुत खतरा है इसमें । पुलिस के हाथों मैं कभी भी पकड़ सकता हूं । परंतु नोटों की खातिर काम करना पड़ता है । मेरे पास मोटे नोट आ जाएं तो मैं आसानी से अपनी जिंदगी बिताऊं । भागा-भागा क्यों फिरुं । अगर तुम मेरे लिए कसीनो में डकैती करो तो मेरी जिंदगी बन जाए । आराम से बैठकर...।"
जगमोहन ने चौंककर बंधु को देखा ।
"तुम्हारे लिए कसीनो में डकैती ?" जगमोहन के होंठों से निकला ।
"विचार अच्छा है, न ?" बंधु मुस्कुराया--- "मामूली काम है तुम लोगों के लिए ।"
"पागल हो गए हो क्या ?"
"इसमें पागल होने जैसी क्या बात है । पचास-साठ करोड़ के पाने की सोचना पागलपन नहीं है ।" बंधु ने सिर हिलाया ।
"लेकिन मैं ये काम तुम्हारे लिए क्यों करूंगा ?"
"माला से शादी नहीं करनी ?" बंधु हंसा ।
"क्या ?" जगमोहन अपना सारा दर्द भूल कर बंधु को देखने लगा ।
"सोच लो । जल्दी नहीं है ।" बंधु ने कहा--- "अगर तुम माला को सच्चा प्यार करते हो। उसे पाना चाहते हो तो मेरे कहने पर ये मामूली-सी डकैती तुम जरूर करोगे । नहीं तो मैं उसकी शादी कैलाश से करा दूंगा ।"
जगमोहन हक्का-बक्का-सा बंधु को देखे जा रहा था ।
"तुम सच में पागल हो गए हो ।" जगमोहन ने गहरी सांस ली ।
बंधु हंसा फिर पदम सिंह को देखकर बोला ।
"माला को बुला ले। ताकि माला के साथ विचार-विमर्श कर ले।" स्वर में व्यंग था--- "इन्हें कुछ देर के लिए अकेला छोड़ देना । मैं दूसरे कमरे में जा रहा हूं । इसे समझा देना कि माला के साथ कोई गड़बड़ ना करे ।" दरवाजे की तरफ बढ़ता बंधु विजय से कह उठा--- "आ विजय । हम दूसरे कमरे में जा रहे हैं ।"
विजय खिड़की से हटता कह उठा ।
"आज तो बरसात कहर बरपा के रहेगी ।"
बंधु और विजय बाहर निकल गए ।
पदम सिंह में जगमोहन को घूरा और बाहर निकल गया ।
जगमोहन कुर्सी पर बैठा था । दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था ।
आधा मिनट भी नहीं बीता कि माला ने बहदवाशी की हालत में भीतर प्रवेश किया ।
"तुम ठीक हो जगमोहन ।" माला दौड़ती हुई पास आ पहुंची--- "तुम्हें मारा तो नहीं बंधु ने ।" माला की आंखों में आंसू चमके ।
जगमोहन कुर्सी से उठा । माला का हाथ थामा ।
"राक्षस ने तुम्हारे चेहरे का क्या हाल कर दिया है ।" माला रो पड़ी--- "मैं जानती हूं बंधु बहुत बुरा है । मैं उसे कभी भी पसंद नहीं करती । पर वो मेरा भाई है, उसके साथ रहना पड़ता है । मां-बाप जिंदा होते तो मेरी ये हालत ना होती कभी ।"
"रोना नहीं माला ।" जगमोहन ने तड़प कर कहा और माला को अपने सीने से लगा लिया--- "रोना नहीं ।"
"मुझे यहां से ले चलो जगमोहन ।" माला आंसुओं भरे चेहरे से कह उठी--- "नहीं तो मैं मर जाऊंगी । अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकूंगी । एक तुम्हीं तो हो कि जिस पर मैंने भरोसा किया है, जिंदगी तुम्हारे हवाले करने की सोच रही हूं और...।"
"सब ठीक हो जाएगा ।" जगमोहन को माला की करीबी पाकर सुकून मिल रहा था। उसने माला के आंसू पोछें । फिर एक तरफ लगे बेड पर जा बैठा । बाहर हो रही बरसात की आवाजें स्पष्ट आ रही थी ।
"बैठ जाओ माला ।" जगमोहन ने पास के बेड को थपथपाया ।
"तुमने बंधु से बात की शादी के लिए ?" माला पास बैठती कह उठी ।
जगमोहन चुप रहा ।
"तो बंधु नहीं माना...।" माला कह उठी ।
"माला तुम मेरे साथ यहां से निकल चलो । एक बार हम दोनों यहां से निकल गए तो...।"
"मेरा भाई बहुत खतरनाक है ।" माला कह उठी--- "वो कुछ ही घंटों में हमें ढूंढ लेगा और फिर जिंदा नहीं छोड़ेगा । मैं जानती हूं वो कई लोगों की जानें ले चुका है । वो राक्षस से कम नहीं है ।"
जगमोहन ने माला के भोले-भोले आंसुओं से भीगे चेहरे को देखा ।
"तो हम क्या करें माला ?"
"तुम ही कहो जगमोहन कि हम क्या करें ?" माला का स्वर भर्रा उठा ।
जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी ।
"तुम्हें बंधु ने ये तो बता दिया कि असल में मैं कौन हूं ।"
"किसी डकैती करने वाले के साथी ही । पर मुझे इसकी परवाह नहीं है । मुझे तुम पसंद हो । मैं तुमसे ही शादी करूंगी ।" माला उसका हाथ पकड़कर कह उठी--- "तुम बहुत अच्छे हो । हम दोनों खुश रहेंगे । है न जगमोहन ।"
"तुम्हारा भाई चाहता है कि मैं कसीनो में उसके लिए डकैती करूं । तभी वो हमें शादी करने देगा ।"
"कसीनो में डकैती करो ।" माला के होठों से निकला--- "मैं समझी नहीं ?" माला उसे देखने लगी ।
"दिसम्बर के आखिरी सप्ताह कसीनो में अमीर लोग दूर-दूर से जुआ खेलने आते हैं और जुआ घर के स्ट्रांग रूम में पचास-साथ करोड़ों की रकम इकठ्ठी हो जाती है । तुम्हारा भाई चाहता है कि उस पैसे को लूट कर उसके हवाले कर दूं ।" जगमोहन बोला ।
"ऐसा मत करना ।" माला के होंठों से निकला ।
"ऐसा करूंगा तो वो तुम्हारी शादी मेरे साथ करेगा ।"
"ऐसा मत करना जगमोहन ।" माला रो पड़ी--- "उस राक्षस की कोई बात मत मानना । वो बुरा है । वो...।"
"समझा करो माला । शायद इस काम को किए बिना तुम्हें पा न सकूं । इसलिए...।"
"कोई बात नहीं । हम अलग-अलग रह लेंगे ।" माला की आंखों से आंसू बह रहे थे--- "जो हमारी किस्मत में लिखा है, वो ही...।"
"तो तुम्हारा क्या होगा ?" जगमोहन तड़प उठा ।
"मैं कैलाश से शादी कर लूंगी ।" रोते हुए माला ने कहा--- "हमारा मिलना नहीं लिखा है इस जन्म में तो...।"
"नहीं माला नहीं, तुम्हारी शादी मेरे साथ ही होगी । मैं तुम्हें इस माहौल में नहीं छोड़ सकता ।"
"पर कैसे होगा ये सब, वो राक्षस तो...।"
"मैंने सोच लिया है ।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला--- "तुम्हारे भाई के लिए मैं कसीनो में डकैती करूंगा ।"
"नहीं जगमोहन नहीं, इस तरह तुम मुसीबत में फंस...।"
"मुझे कुछ नहीं होगा । ये सब करना मेरे लिए मामूली काम है । एक डकैती ही तो करनी है, उसके बाद मैं तुम्हें हमेशा के लिए पा लूंगा । तुम्हें तुम्हारे भाई की बुरी दुनिया से दूर ले जाऊंगा ।" जगमोहन ने पुनः उसके आंसू पोछें ।
"मेरा दिल नहीं मानता जगमोहन । मेरे कारण तुम मुसीबत में पड़ रहे...।"
"ये ही एक रास्ता है हमारे मिलने का । वो जैसा भी है तुम्हारा भाई है। अगर बात किसी और इंसान की होती तो अब तक सब कुछ सुलझ गया होता। परंतु मैं तुम्हारे भाई को कोई तकलीफ नहीं देना। चाहता तुम्हारे भाई के हाथ-पांव तोड़कर तुम्हें हासिल करना मुझे अच्छा नहीं लगेगा। मैं सारा मामला प्यार से निपटा लेना चाहता हूं। एक डकैती ही तो है जो उसके लिए करनी है । तुम्हें पा लेने का एक अच्छा सौदा है। सब ठीक हो जाएगा ।"
"एक बार मुझे यहां से निकाल ले जाओ जगमोहन । दोबारा मैं कभी पलट कर भी काठमांडू की तरफ नहीं देखूंगी ।" कहने के साथ ही माला जगमोहन के गले लग गई । जगमोहन ने उसे बांहों में भींच लिया ।
"मैं सब ठीक कर दूंगा ।"
माला उससे अलग होती कह उठी ।
"मैं तुम्हारे लिए खाना बनाती हूं तुमने कुछ खाया नहीं...।"
"अभी नहीं ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "अभी तुम्हारे भाई से कुछ बातें करनी है ।"
"उस कमीने इंसान से दूर रहो जगमोहन, वो...।"
"तुम किसी बात की फिक्र मत करो । तुम्हें पाने के लिए, अभी उससे बातचीत जरूरी है । जाओ, उसे बुलाओ ।"
"उसे रहने दो । तुम मेरे साथ बातें करो । तुम्हारा मुंह सूजा हुआ है और...।"
"मैं ठीक हूं । तुम अपने भाई को मेरे पास भेजो । तुम भी यहीं रहना इसी कमरे में ।"
■■■
माला बेड पर बेचैन-सी बैठी थी ।
जगमोहन उसी कुर्सी पर बैठा था और सामने कुर्सी पर बंधु मौजूद, उसे देख रहा था। पदम सिंह एक तरफ खड़ा था और विजय उसी खिड़की के पास खड़ा बाहर होती बरसात को देख रहा था । बिजली कड़कने की आवाजें रह-रहकर आ रही थी । कभी तो आसमान में बिजली की आड़ी-तिरछी लकीर, चांदी की तरह चमकते नजर आ जाती थी । गोरखा उस टेबल पर बैठा था, जहां व्हिस्की की बोतल पड़ी थी ।
"आज तो ये बरसात जान लेकर रहेगी ।" बाहर देखता विजय कह उठा ।
"कहो ।" बंधु जगमोहन से बोला ।
"तुम जो करने को कह रहे हो, वो आसान काम नहीं है ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"मतलब कि तुम डकैती करने को तैयार हो ।" बंधु के चेहरे पर मुस्कान उभरी ।
"सिर्फ माला को पाने के लिए । तुम उसकी शादी मेरे से करोगे।" जगमोहन बोला ।
बंधु ने सिर हिलाकर माला को देखकर पूछा ।
"इसी से शादी करना चाहती है तू ?"
"हां ।" माला व्याकुल स्वर में कह उठी ।
"ठीक है ।" बंधु ने सिर हिलाया--- "अगर तू मेरे लिए डकैती करता है तो माला की शादी तेरे से करूंगा ।"
"मैंने कहा है ये काम आसान नहीं रहेगा ।"
"तुम्हारे मुंह से ये शब्द अच्छे नहीं लगते । तुम तो डकैतियों मैं माहिर हो ।"
"कोई भी डकैती आसान नहीं होती ।"
"देवराज चौहान आ रहा है न ?" बंधु ने पूछा ।
"हां ।"
"तो फिर क्या चिंता है । मामूली काम है उसके लिए--- वो...।"
"मैं उसे इस काम में नहीं लेना चाहता ।" जगमोहन ने कहा ।
"क्यों ?" बंधु के माथे पर बाल उभरे ।
"देवराज चौहान यहां किसी और काम के लिए काठमांडू आ रहा है । उसके लिए वो काम करना बहुत जरूरी है । मैं भी इस वक्त जो ब्लू स्टार कसीनो में कर रहा था, वो उसी काम का हिस्सा है, पर मैं तुम्हारे लिए डकैती करने को तैयार हूं । उस काम को देवराज चौहान देख लेगा ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "वो काम करना, देवराज चौहान के लिए बहुत जरूरी है ।"
"पदम । दो गिलास तैयार कर । एक मेरे लिए, दूसरा जगमोहन के...।"
"मैं नहीं लूंगा ।" जगमोहन बोला ।
"ले ले सर्दी बहुत...।"
"नहीं लूंगा ।" जगमोहन ने स्पष्ट कहा--- "मुझे पीने की आदत नहीं है ।"
"फिर तो अपना मैं खुद ही बना लेता हूं ।" कहते हुए बंधु उठा और टेबल की तरफ बढ़ गया ।
माला बेचैन-सी जगमोहन को देखे जा रही थी। चेहरे पर घबराहट थी। जगमोहन भी माला को देख लेता था। उसे तसल्ली देता था कि सब ठीक हो जाएगा । बंधु अपना गिलास तैयार करके, उसे थाम कुर्सी पर आ बैठा ।
"ऐसे तो मजा नहीं आएगा ।" बंधु ने कहा और घूंट भरा ।
"क्या मजा नहीं आएगा ?" जगमोहन बोला ।
"ये ही कि देवराज चौहान ये डकैती ना करे । उसका इस मामले में आना सफलता की गारंटी है ।"
"ये तो कोई बात नहीं बनी। मैं आसानी से कसीनो में डकैती कर लूंगा ।"
"सोच लो ।"
"मामूली काम है मेरे लिए ।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा ।
बंधु ने माला पर नजर मारी फिर मुस्कुरा कर जगमोहन से बोला।
"सफल होने की स्थिति में ही तुम्हारी शादी माला से होगी, नहीं तो नहीं ।"
"मैं समझता हूं इस बात को ।"
"बेहतर होगा कि तुम देवराज चौहान से कहो कि वो इस डकैती को संभाले ।" बंधु की निगाह उस पर थी ।
"इस बात की तुम चिंता क्यों करते हो । चिंता तो मुझे करनी चाहिए कि माला हाथ से निकल जाएगी ।" जगमोहन बोला ।
"मुझे भी चिंता है ।" बंधु हंसा--- "मेरे हाथ से पचास-साठ करोड़ की दौलत निकल जाएगी। माला का क्या है, उसकी शादी तो हो ही जाएगी । तुम्हारे साथ नहीं तो कैलाश के साथ ही...।"
"मैं कैलाश से शादी नहीं करूंगी ।" माला गुस्से से कह उठी ।
बंधु, माला को देखकर हंसा ।
जगमोहन कठोर निगाहों से, बंधु को देखने लगा ।
"तुम उसे कुछ मत कहो ।" जगमोहन बोला--- "जो बात करनी है मुझसे करो ।"
"तड़प क्यों रहे हो ।" बंधु मुस्कुराकर जगमोहन से बोला--- "वो मेरी बहन है। जब तक शादी नहीं होगी माला की, तब तक वो मेरे ही इशारे पर चलेगी। उसमें इतनी हिम्मत कहां कि मेरे से इंकार कर सके।"
"तीखी बातें करना बंद करो ।" जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा--- "मैं तुम्हारे लिए डकैती करने को तैयार हूं । ऐसे में तुम्हें ठीक तरह पेश आना चाहिए । तुम मामला बिगाड़ दोगे, इस तरह की बातें करके ।"
"तो तुम अपने दम पर कसीनो में डकैती कर लोगे ।" बंधु ने सिर हिलाया ।
"मामूली काम है मेरे लिए । परंतु ये इतना आसान भी नहीं है, जितना कि तुम सोचते हो ।"
"मैं क्या सोचता हूं, तुम्हें क्या पता ?"
"तुम ये ही सोचते हो कि मैं जाऊंगा और पैसे वहां से उठाकर तुम्हारे हवाले कर दूंगा। परंतु ऐसा कुछ नहीं है। वहां पर तगड़ी सिक्योरिटी है। सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हैं। मैंने कसीनो का स्ट्रांग रूम देखा नहीं है, परंतु सुना है कि वो काफी मजबूत है उसके पास फटक पाना भी आसान नहीं ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"अभी तो तुम कह रहे थे कि डकैती करना मामूली काम है तुम्हारे लिए ।"
जगमोहन ने पदम सिंह, गोरखा और विजय पर निगाह मार कर कहा ।
"तुम चारों को भी मेरे साथ इस काम में लगना होगा ।"
"लग जाएंगे ।" बंधु ने हंसकर कहा--- "कैसे करोगे ये काम ?"
"सवाल मत करो। जो मैं कहता हूं वो सुनो और समझो ।" जगमोहन ने कहा--- "जब तक हमें कसीनो के भीतर से मजबूत सहायता नहीं मिलेगी, तब तक कसीनो के स्ट्रांग रूम को नहीं लूटा जा सकता । ये बहुत जरूरी बात है ।"
"मजबूत सहायता से तुम्हारा मतलब ?"
"जिसकी कसीनो में पूरी तरह चलती हो ।" जगमोहन ने बंधु को देखते हुए कहा ।
"ऐसा कौन है वहां ?"
"कसीनो का मैनेजर बाज बहादुर...।"
"उसे उठा लाते हैं ।" बंधु बोला--- "मामूली काम है ये और...।"
"उसे उठाने से कुछ नहीं होगा । उसके सामने ऐसे हालात पैदा करने होंगे कि वो हमारी सहायता करे।"
"ये कैसे होगा ?"
"जबकि बाज बहादुर अपने फर्ज के प्रति पक्का इंसान है । ये बात वो आसानी से मानने वाला नहीं ।"
बंधु ने घूंट भरा और गिलास को कुर्सी के पास ही नीचे रखकर सिगरेट सुलगा ली ।
"तुम मुझे ये बताओ कि हम क्या करें ?" बंधु ने पूछा ।
"पता करो कि बाज बहादुर के परिवार में कौन-कौन है ?"
"तुम्हें नहीं पता ?"
"मुझे कैसे पता । वो कसीनो का मैनेजर है । उसके घर-बार से मुझे क्या मतलब ?"
"ठीक है, कल तेरे को ये बात पता करके बता देंगे ।"
जगमोहन चुप रहा ।
"तूने क्या सोचा कि तेरी प्लानिंग क्या है । काम कैसे होगा ?" बाज बहादुर बोला ।
"वो भी पता चल जाएगा ।" जगमोहन ने सोच-भरे स्वर में बोला।
"तेरे को पता है कि क्लब का स्ट्रांग रूम किधर है ?"
"पता है ।"
"तो फिर चिंता क्या, फिर तो...।"
"काम ऐसे हो कि हम जिंदा बच जाएं । काम ऐसे हो कि किसी की जान ना जाए ।"
"जान ना जाए ।" बंधु हंसा--- "हमें क्या अगर कोई मरता है ।"
"क्यों मरें । डकैती हम कर रहे हैं । पैसा हमें मिलेगा । ऐसे में फिजूल में किसी की जान क्यों जाए ।"
"बहुत चिंता है तुम्हें लोगों की जान की ।" बंधु ने मुंह बनाया ।
"ये उसूल है कि पैसा इस तरह कमाओ कि किसी की जान ना जाए । दौलत खून से रंगी ना हो ।"
"मुझे तो दौलत चाहिए । ये काम कैसे होगा, तू बताएगा । तू जो कहेगा हम करेंगे । सफलता, असफलता तेरे सिर पर ।"
"बाज बहादुर पर काबू पाना आसान नहीं है ।" जगमोहन ने बेचैनी से कहा ।
"ये तू सोच ।" बंधु मुस्कुराया--- "तू मुझे कसीनो की दौलत लूट कर देगा तो माला से शादी हो सकेगी। नहीं तो नहीं ।"
जगमोहन ने माला को देखा ।
माला बुझी-सी, परेशान नजरों से उसे देख रही थी ।
"मेरी मान तो देवराज चौहान को इस काम में ले ले ।" बंधु बोला।
"नहीं । उसके पास इससे भी जरूरी काम है ।" जगमोहन ने कहा ।
बाहर अभी तो बरसात हो रही थी । बादलों की गर्ज सुनाई पड़ रही थी ।
"रहने दे जगमोहन ।" माला कह उठी--- "तुम ये काम मत करो।"
बंधु ने कहर भरी निगाहों से माला को देखा ।
"किस्मत में हुआ तो हम वैसे ही मिल जाएंगे । तुम इस कमीने के लिए डकैती मत...।"
बंधु कुर्सी से उठा और दांत पीसते हुए माला पर झपटा ।
"उसे कुछ मत कहो। मैं तुम्हारे लिए डकैती करूंगा ।" जगमोहन जल्दी-से कह उठा ।
'तड़ाक' तब तक बंधु का जोरदार चांटा माला के गाल पर पड़ चुका था । आवाज सबने सुनी ।
माला चीखकर बेड पर जा लुढ़की ।
जगमोहन जल्दी-से उठा कि तभी पदम सिंह की रिवॉल्वर उसके कमर से आ लगी ।
जगमोहन ने दांत भींचकर पदम सिंह को देखा ।
"बैठ जा । वो भाई-बहन का मामला है । बैठ...।"
"रिवॉल्वर पीछे रख ।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "तुम मुझे गोली नहीं मार सकते । मैं मर गया तो तुम लोगों के लिए डकैती कौन करेगा ।"
पदम सिंह ने कड़वी निगाहों से उसे घूरा ।
"हरामजादी, जुबान बंद कर ।" बंधु माला पर गुर्रा उठा--- "तेरी शादी की तैयारियां ही चल रही हैं ये ।"
"तुम कमीने हो। राक्षस हो।" माला की आंखों में आंसू भर आए।
"पर तेरा भाई हूं ।" बंधु कहर से हंसा--- "मेरे इशारे पर चलेगी तू। अब फालतू में जुबान मत खोलना ।"
जगमोहन कठोर निगाहों से बंधु को घूर रहा था ।
वहां से हटकर बंधु पास आया तो जगमोहन बोला ।
"माला को कुछ मत कहो। मैं तुम्हारे लिए डकैती कर रहा हूं न।"
"वो बेवकूफ है और भाई होने के नाते उसे समझाना मेरा फर्ज है ।" बंधु मुस्कुरा कर बोला ।
"मैं चाहता हूं कि तुम माला को कुछ मत कहो ।" जगमोहन ने गुस्से से कहा ।
बंधु ने जगमोहन को घूरा और उसकी छाती पर उंगली ठोकते बोला ।
"तुम सिर्फ ये सोचो कि कसीनो को कैसे लूटना है । माला की देखभाल करना मेरा काम है ।"
जगमोहन ने कठिनता से अपने गुस्से पर काबू पाया ।
"कल मैं तुम्हें बाज बहादुर के परिवार के बारे में पता करके बता दूंगा ।" बंधु ने कहा--- "अच्छा यही होगा किकुछ दिन तुम माला के बारे में न सोचकर, ये सोचो कि कसीनो का पैसा कैसे हासिल करना है। माला के साथ शादी करने का ये ही एक रास्ता है तुम्हारे पास। कसीनो का पैसा मेरे सामने होगा तो तुम माला से शादी कर सकोगे ।"
"तुम तो कमीने से भी ज्यादा गिर गए हो ।" माला गीली आंखों से देखती, गुस्से से बोली ।
"मेरी भोली बहन ।" बंधु हंसा--- "आधा घंटा जगमोहन के पास रह ले फिर इसे खाना बना कर खिलाना । वैसे ही जैसे दोपहर में खिला रही थी। पालक-पनीर और कोफ्ते की सब्जी । बेचारा ठीक से खाना भी नहीं खा सका होगा । एक बात तुम दोनों मत भूलना कि कमरे का दरवाजा बंद नहीं होगा। मैंने बातें करने के लिए तुम दोनों को आधा घंटा दिया है, कुछ और करने के लिए नहीं । और तुम ।" बंधु ने जगमोहन से कहा--- "माला की तरफ नहीं, डकैती की तरफ ध्यान दो ।"
"मुझे अपना काम करना आता है ।" जगमोहन कठोर स्वर में कह उठा ।
"ये अब मेरी रिवॉल्वर से भी नहीं डरता ।" पदमसिंह बोला ।
"नहीं डरता। कोई बात नहीं । ये धीरे-धीरे हमारा साथी बनता जा रहा है कसीनो में डकैती में ।" बंधु मुस्कुरा रहा था--- "फिर मेरी बहन तो मेरे पास ही है । ये कहीं पर भी टेढ़ा चले तो माला की टांग तोड़ देना ।"
"तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे ।" जगमोहन भड़क उठा ।
"तुम सीधे रहोगे तो मैं ऐसा कुछ क्यों करने लगा ।" बंधु हंसा ।
उसके बाद चारों कमरे से बाहर निकल गए । दरवाजा खुला रहा ।
जगमोहन और माला की नजरें मिली । माला एकाएक फफक उठी, वो उठी और जगमोहन से जा लिपटी । जगमोहन ने उसे बाहों में भर लिया । चेहरे पर दुख आ ठहरा ।
"मुझे नहीं मालूम था कि हमारे साथ ये सब होने वाला है ।" माला सुबकते हुए कह उठी ।
"मैं सब ठीक कर लूंगा । तुम हौसला रखो । तुम कुछ मत कहा करो। तुम्हारी बात पर तुम्हारा भाई भड़क जाता है ।"
"तुम पर आई तकलीफ मेरे से देखी नहीं जाती जगमोहन। मैं तुम्हें न ही मिलती तो अच्छा...।"
"ऐसा मत कहो । मैं तो खुश हूं कि मैंने अपने प्यार को ढूंढ निकाला । तुम मेरी दुनिया हो ।" जगमोहन, माला को सीने से लगाकर सब कुछ भूल गया था। अब उसकी सोचों में सिर्फ माला ही थी ।
■■■
अगले दिन ग्यारह बजे जगमोहन की आंख खुली। वो उठ बैठा। तभी उसकी निगाह कुर्सी पर बैठे विजय पर पड़ी। उसने आंखें बंद कर रखी थी। जगमोहन ने गहरी सांस ली। विजय ने आंखें खोली। उसे देखा।
"माला कहां है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"कमाल है ।" विजय कमीनेपन से मुस्कुराया--- "सोये उठते ही माला याद आ गई ।"
"मुझे चाय-कॉफी चाहिए ।"
तभी माला ने भीतर प्रवेश किया ।
"ओह, उठ गए जगमोहन ।" माला ने कहा और पास आ बैठी । जगमोहन का हाथ पकड़ लिया ।
जगमोहन मुस्कुराया ।
"रात नींद कैसी आई ?"
"अच्छी ।" जगमोहन ने प्यार से कहा ।
"तुम्हारा चेहरा अभी भी सूजा हुआ है ।" माला उसके चेहरे को देखते बोली ।
"ठीक हो जाएगा ।"
"इसे चाय-कॉफी बना दे ।" विजय ने कहा--- "नहीं तो सूख जाएगा बेचारा ।"
"मैं अभी बना कर लाती हूं ।" कहने के साथ ही माला उठी और बाहर निकल गई ।
जगमोहन ने विजय को देखकर कहा ।
"तुम मेरी पहरेदारी कर रहे हो ?"
"टाइम बता रहा हूं ।" विजय मुस्कुराया--- "रात तो बरसात ही होती रही। जरा भी नहीं रुकी । कमाल हो गया। आज बहुत ठंड है बाहर। टोपी पहनकर ही बाहर निकलना नहीं तो बुरा हाल हो जाएगा ।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा और तकिए से टेक लगा ली ।
"बंधु ने बताया कि तुम हमारे लिए डकैती करने वाले हो। कल शाम मैं बाहर हो रही बरसात को ही देखता रहा, बातें नहीं सुन सका । माला को पाने के लिए तुम डकैती कर रहे हो--- है न ?"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा ।
"माला अच्छी है । उसका भाई उससे बिल्कुल उल्टा है । तुम्हारा चुनाव अच्छा है ।"
जगमोहन चुप रहा ।
"तुम्हारा क्या ख्याल है डकैती हो जाएगी ?"
"हां ।"
"सुना है न्यू ईयर की रात कसीनो के स्ट्रांग रूम में पचास-साठ करोड़ इकट्ठा हो जाता है ।"
"पता नहीं ।"
"तुम्हें पता करना चाहिए । ऐसा ना हो कि वहां सिर्फ दो करोड़ ही मिले । कुछ प्लान सोचा है तुमने ?"
"पूरी तरह नहीं ।" जगमोहन बोला ।
"तुम्हें सोच लेना चाहिए कि सब कुछ कैसे करना है । मैं चाहता हूं तुम ये काम पूरा कर दो ।"
"ये तो न्यू ईयर की रात को ही पूरा होगा ।"
"आज बीस तारीख है । पूरे ग्यारह दिन बाकी हैं ।" विजय ने सिर हिलाकर कहा--- "तुम्हें मालूम है अगर तुम कामयाब हो गए तो मुझे करोड़ मिलेंगे । ये बड़ी रकम है मेरे लिए । मैं कोई बिजनेस कर लूंगा ।"
"बिजनेस करना आता है तुम्हें ?" एकाएक जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा ।
"सीख जाऊंगा । सीखने से ही सब कुछ आता है । कभी मैंने गोली चलाना भी सीखा था । बहुत आसान...।"
"बंधु कहां है ?"
"कोई नहीं है इधर । बंधु, पदम सिंह, गोरखा कसीनो के मैनेजर के घर-बार का पता लगाने गए हैं ।"
"कब गए ?" जगमोहन ने पूछा ।
"घंटा-भर हो गया ।"
तभी माला कप में उसके लिए कॉफी ले आई ।
जगमोहन ने प्याला थामा और घूंट भरा । माला उसके पास ही बैठ गई और प्यारी नजरों से उसे देखने लगी । जगमोहन की बांह पर अपना हाथ रख दिया था ।
तभी विजय कह उठा ।
"बंधु ठीक कहता है कि तीन दिन में ही तुम दोनों का प्यार, इतना ज्यादा परवान कैसे चढ़ गया ।"
माला ने गुस्से भरी निगाहों से विजय को देखा ।
"तुम जाओ यहां से ।" माला कह उठी ।
"मुझे इसकी पहरेदारी करनी है । बंधु ने कहा है ।"
"हम छत फाड़कर नहीं जाएंगे ।" माला ने खा जाने वाली नजरों से उसे देखा--- "हमें कुछ बातें करनी है ।"
"बातें ।" विजय कमीने अंदाज में दांत फाड़ कर हंसा--- "लैला मजनू की बातें । मेरे सामने कर लो । मैं भी सीख जाऊंगा ।"
जगमोहन कॉफी का घूंट भरकर शांत अंदाज में कह उठा ।
"मैं तुम लोगों को माला की वजह से बर्दाश्त कर रहा हूं वरना तुम लोग तो मेरे लिए चंद मिनटों का खेल हो ।" स्वर में कठोरता आ गई--- "कोई तमाशा खड़ा करने से पहले सोच लो कि मैंने इंकार किया तो डकैती नहीं होगी ।"
"फिर माला तुम्हें कैसे मिलेगी ।" विजय हंसा ।
"वो भी मिल जाएगी ।" जगमोहन के दांत भिंच गए ।
विजय ने जगमोहन को देखा, फिर कुर्सी से उठता हुआ बोला ।
"मैं कोई पंगा खड़ा नहीं करना चाहता इस मौके पर। बाहर जा रहा हूं। दरवाजा बंद मत करना। बातें जल्दी खत्म करना। माला को पाना है शादी करनी है इससे तो सब कुछ भूल कर डकैती के बारे में सोचो। तभी कुछ बात बनेगी ।"
"सलाह मत दो ।" जगमोहन ने उसे घूरा--- "काम मैंने करना है तुमने नहीं ।"
"जो भी करो। पर ये डकैती हो जानी चाहिए। मैं बिजनेस करना चाहता हूं ।" विजय बाहर निकल गया ।
उसके जाते ही माला धीमे से कह उठी ।
"मैंने कुछ सोचा है जगमोहन । मेरी बात मानोगे ।"
"क्या ?"
"कल तो मैंने तुम्हें मना कर दिया था, परंतु आज कहती हूं । भाग जाते हैं यहां से । तुम्हारे हिन्दुस्तान चले जाएंगे और...।"
"भागने की कोई जरूरत नहीं ।" जगमोहन ने मुस्कुराकर प्यार से कहा--- "तुम्हें पाने के लिए मुझे छोटा-सा काम करने को तो कहा जा रहा है । कोई बड़ा काम भी होता तो वो भी मैं करता । अब मैं कसीनो का पैसा लूटने को तैयार हूं ।"
"बंधु बहुत कमीना है। उसका कोई भरोसा नहीं कि बाद में वो हमारी शादी से पीछे हट जाए ।"
"ऐसा नहीं होगा ।"
"वो कुछ भी कर सकता है जगमोहन । उस राक्षस से किसी भी तरह की उम्मीद मत रखो वो...।"
"माला ।" जगमोहन ने कॉफी का आखिरी घूंट भरकर प्याला एक तरफ रख दिया--- "ये पहली और आखरी बार है कि तुम्हारे भाई की बात मान रहा हूं सारा मामला आराम से निबट जाए । परंतु ऐसा दोबारा नहीं होगा। अगर तुम्हारा भाई बाद में अपनी बात से पीछे हटा तो मैं सख्ती पर उतर आऊंगा ।"
"मान लो जगमोहन, भाग चलते हैं ।"
"तुम किसी बात की फिक्र मत करो। तुम्हारा भाई मेरे लिए समस्या नहीं है। सिर्फ तुम्हारी खातिर मैं उसे सहन कर रहा हूं।"
माला ने जगमोहन का हाथ पकड़ लिया ।
"वादा करो कि अगर बाद में बंधु ने कोई पंगा खड़ा किया तो हम यहां से भाग जाएंगे ।" माला भीगे स्वर में बोली ।
"वादा ।" जगमोहन ने मुस्कुरा कर कहा ।
"कभी-कभी मुझे जाने क्यों डर लगता है कि हम कभी मिल नहीं पाएंगे ।"
"हम अब कभी जुदा नहीं होंगे ।" जगमोहन ने उसका गाल थपथपाकर कहा ।
माला की आंखें डबडबा उठी ।
"मेरे कारण तुम किस बुरे भंवर में फंस गए ।" माला की आंखों से आंसू बह निकले ।
"अपने जगमोहन पर भरोसा रख। हम अपना घर बसाएंगे माला। प्यारा सा घर।" जगमोहन ने मुस्कुरा कर कहा--- "ये सब थोड़े- से वक्त की बात है । कुछ ही दिनों में ये वक्त भी निकल जाएगा। मैं दो-तीन घंटों में जाऊंगा ।"
"कहां ?"
"अपने कमरे पर । वहां से कपड़े पहनकर कसीनो जाना है । कल नहीं पहुंच सका अपनी ड्यूटी पर ।"
"मुझे यहां छोड़कर मत जाओ जगमोहन । बंधु से मुझे डर लगता है ।" माला तड़प कर कह उठी ।
"मैं बात करूंगा उससे । अब वो तुम्हें कुछ नहीं कहेगा ।" जगमोहन ने कहा ।
"पर वो तो है नहीं, बाहर गया है ।" माला ने कहा
"आ जाएगा। अपने भाई की तरफ से निश्चिंत रहो। अब वो तुम्हें कुछ नहीं कहेगा । उसे अपनी बहन की जिंदगी से कोई मतलब नहीं है। उसे तो सिर्फ पैसे चाहिए। कसीनो में डकैती चाहिए ।"
"तुम--- तुम फिर कब आओगे ?"
"कल । मैं हर रोज आऊंगा तुमसे मिलने । तुम्हें देखे बिना मुझे चैन नहीं मिलता ।"
"मेरा भी ये ही हाल है जगमोहन ।" माला की आंखों से आंसू बह निकले--- "मुझे जाने क्या हो गया है ।"
■■■
जगमोहन नहा-धोकर तैयार हुआ। वो ही कपड़े उसने पहन लिए। सर्दी आज कड़ाके की थी। बाहर कोहरा भी छाया हुआ था। उसने शीशे में अपना चेहरा देखा, दाईं तरफ के गाल पर हल्की-सी सूजन बाकी थी । गाल भी कुछ भारी-भारी-सा लग रहा था और कभी-कभार दर्द भरी टीस उठ जाती थी । जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता उभरी हुई थी ।
माला किचन में थी और उसके लिए खाना बना रही थी । दोपहर का एक बज गया था ।
विजय जगमोहन के पास पहुंचकर बोला ।
"बन-ठन के कहां जाने की तैयारी है ?"
"मुझे जाना है ।"
"नहीं जा सकते । मेरा काम तुम पर नजर रखने का है । जब तक बंधु नहीं आता तुम यहीं रहोगे । उसके बाद वो जाने ।"
"मेरा जाना जरूरी है । मैं कल भी कसीनो की ड्यूटी पर नहीं पहुंचा । वो मुझे नौकरी से निकाल देंगे तो डकैती कैसे होगी ?"
विजय ने सोच-भरी निगाहों से जगमोहन को देखा ।
"मेरा जाना बहुत जरूरी है ।" जगमोहन बोला ।
"बंधु के आने तक तुम यहीं रहोगे ।" विजय ने सिर हिलाते कहा।
"तुम्हारा दिमाग खराब...।"
"मैं अपनी ड्यूटी कर रहा हूं । मुझे बंधु की बात हर हाल में माननी है, नहीं तो वो मुझे डकैती के पैसे में से पांच करोड़ नहीं देगा ।"
"अगर मुझे यहीं पर बैठाए रखोगे तो डकैती कैसे होगी ?" जगमोहन झल्ला उठा ।
विजय ने कुछ नहीं कहा ।
"बंधु कब लौटेगा ?" जगमोहन ने पूछा ।
"मुझे क्या पता । लेकिन उससे मोबाइल पर बात हो जाएगी ।" विजय ने सोच-भरे स्वर में कहा ।
"तो बात करो ।"
"जल्दी क्या है। तुम खाना खाओ। माला दिलो-जान से तुम्हारी सेवा पर लगी है । इतना ख्याल तो उसने कभी अपने भाई का भी नहीं रखा ।" कहकर विजय कमीने ढंग से हंसा--- "हो सकता है तुम्हारी सेवा-सत्कार के दौरान ही बंधु लौट आए ।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा ।
उसके बाद उसने खाना खाया । माला ने इतनी सर्दी में उसे गर्म-गर्म रोटियां उतार कर दीं। आज उसने मेथी-आलू की सब्जी और चावल-कढ़ी बनाए थे। वो खाना खाकर जगमोहन को असीम शांति मिली थी ।
"खाना कैसा लगा ?" माला ने पास आकर प्यार से पूछा ।
"बहुत अच्छा । लगता है जैसे वर्षो बाद अच्छा खाना खाया हो।" जगमोहन ने माला का हाथ पकड़ा ।
माला के चेहरे पर शर्म-सी दौड़ गई ।
"शादी के बाद तुम्हें इससे भी बढ़िया खाना खिलाऊंगी । बहुत सेवा करूंगी तुम्हारी ।"
"तुम कितनी अच्छी हो माला ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"तुम भी तो अच्छे हो ।"
"तुम्हें पाने के बदले एक छोटी-सी डकैती करने जैसा काम...कोई बुरा सौदा नहीं है ।"
"मैं ।" माला एकाएक भड़क उठी--- "चाहती हूं बंधु की टांग टूट जाए । वो पहाड़ से नीचे गिर जाए । घर ही वापस ना लौटे ।"
"तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होगा । सब ठीक हो जाएगा । गुस्सा मत करो । बंधु हमारी जिंदगी में फिर कभी नहीं आएगा ।
"भगवान करे ऐसा ही हो ।" माला ने लम्बी सांस ली ।
"तुम भी खाना खा लो ।"
"बना लिया है । तुम्हारे पास बैठकर ही खाऊंगी । तुमसे दूर जाने को दिल नहीं करता जगमोहन ।"
तभी विजय वहां आ पहुंचा ।
"किसके पहाड़ से गिरने की बात हो रही है ।" विजय बोला--- "मैंने सुना अभी ।"
"तो तुम हमारी बातें सुन रहे हो ।" माला गुस्से से कह उठी ।
"कान में पड़ गई टांग टूटने और पहाड़ से गिरने की बात ।" विजय बेशर्मी से हंसा ।
माला खा जाने वाले निगाहों से उसे देखने लगी ।
"मुझे भी खाने को कुछ दे दो । सुबह से कुछ खाया नही ।" विजय ने कहा ।
"किचन से ले लो ।" माला ने नफरत भरे स्वर में कहा ।
विजय किचन की तरफ बढ़ा तो जगमोहन बोला ।
"बंधु को फोन करो ।"
"कितने बजे की ड्यूटी है तुम्हारी कसीनो में ?" विजय ने ठिठककर पूछा ।
"पांच बजे की ।"
"वक्त है अभी। पेट भर लूं। उसके बाद बंधु को फोन करूंगा।" कहते हुए विजय किचन की तरफ बढ़ गया ।
जगमोहन ने माला का हाथ पकड़ लिया ।
"कल आओगे न ?" माल ने भीगे स्वर में पूछा ।
"जरूर आऊंगा ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"अब तुम्हारे बिना दिल नहीं लगेगा।" माला बोली--- "मैं तो चाहती हूं कि भाग जाते हैं ।"
"तुम्हें मुझ पर भरोसा है ?"
"पूरी तरह। अपने से भी ज्यादा ।"
"तो कुछ सब कुछ मेरे पर छोड़ दो । सब कुछ इस तरह ठीक हो जाएगा, जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो ।"
"बंधु के बारे में सोच कर मैं घबरा जाती हूं । वो कभी भी, कुछ भी कर सकता है जगमोहन ।"
तभी विजय थाल थाम किचन से बाहर निकलता हंस कर कह उठा ।
"मेथी-आलू और कढ़ी तूने बहुत अच्छी बनाई है । ऐसी पहले तो कभी नहीं बनाई ।"
जगमोहन और माला ने उसे देखा, पर कहा कुछ नहीं ।
कुछ दूर कुर्सी पर बैठकर वो खाना खाने लगा ।
उसी पल बाहर कार रुकने की आवाज आई ।
"शायद बंधु आ गया लगता है ।" माला के होंठों से निकला और वो जगमोहन के पास से उठ गई ।
"आ गया ।" खाना खाते विजय बोला ।
"फिर देखते-ही-देखते बंधु गोरखा और पदम सिंह ने भीतर प्रवेश किया । बंधु ने पल भर के लिए ठिठककर कमरे का माहौल देखा, फिर आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठा और सिगरेट सुलगा ली ।
जगमोहन की निगाह बंधु पर थी ।
"सब ठीक है ।" खाना खाते विजय बोला--- "खाना बढ़िया बना है।"
बंधु ने जगमोहन को देखते हुए कहा ।
"कसीनो के मैनेजर बाज बहादुर के परिवार के बारे में मालूम करने गया था ।"
"क्या पता किया ?"
"उसके दो बेटे हैं। एक इक्कीस साल का है और दिल्ली के किसी हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है। दूसरा सत्रह साल का है और इधर ही, काठमांडू में स्कूल में पढ़ता है।" बंधु ने कश लेते हुए कहा--- "वो सुबह साढ़े सात बजे स्कूल जाता है । स्कूल उसके घर से ज्यादा दूर नहीं है, दस मिनट का पैदल का रास्ता है । वो पैदल ही जाता है । आठ बजे उसका स्कूल लगता है और दो बजे स्कूल की छुट्टी होती है । उसके बाद वो पैदल ही घर लौटता है ।"
"तुम जगमोहन को इन कामों में क्यों घसीट रहे हो ?" माला गुस्से से कह उठी।
"चुपकर हरामजादी, नहीं तो गर्दन तोड़ दूंगा ।" बंधु, माला को देखकर गुर्रा उठा ।
"तुम बीच में मत बोलो माला ।" जगमोहन ने कहा--- "इन बातों में तुम्हें नहीं बोलना चाहिए ।"
बेबस-सी माला ने होंठ भींच लिए ।
"तुम्हें उसके बेटे को उठा लाना होगा ।" जगमोहन ने कहा ।
"मैं करूं ये काम ?" बंधु ने जगमोहन को देखा ।
"तुम्हें ही करना पड़ेगा । मैंने पहले ही कह दिया है कि तुम लोगों के साथ के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता । कसीनो में डकैती करनी है तो तुम दोनों लोगों को मेरा साथ देना होगा। जो मैं कहूं वो करते जाओ ।"
"ठीक है, बाज बहादुर के बेटे को उठा लेंगे । उसके बाद क्या होगा ?"
"मैं बताता रहूंगा । तुम ये काम करो । उधर बाज बहादुर के पास मैं रहूंगा और ताजा हालातों की जानकारी मिलती रहेगी । उसी को सामने रखकर मैं आगे का कोई प्लान बनाऊंगा ।"
"उसके बेटे को उठा लिया तो वो हमारी मुट्ठी में होगा ।"
"ये इतना आसान नहीं है। बाज बहादुर इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। ये काम तभी हो सकता है, जब वो हार को महसूस करने लगे। ये तभी होगा जब उसे अपने बेटे की कोई खबर नहीं मिलेगी। तुमने उसके बेटे को उठाकर यहां पर लाकर रख लेना है और खुद भी यहीं रहना। बिना जरूरत के बाहर निकलने की जरूरत नहीं। इस बात की पूरी कोशिश करना कि कोई तुम लोगों को पहचान ना सके, उसके बेटे को उठाते हुए ।" जगमोहन ने कहा ।
"ये कैसे होगा ।" बंधु बोला--- "कोई तो हमें देखेगा ही ।"
"चेहरे ढक लेना। बंदर के मुंह वाली टोपियां इस मौसम में बाजारों में मिलते हैं। उससे अपना चेहरा इस तरह ढांप सकते हो कि सिर्फ आंखें ही खुली रहेंगी। इस काम को करते हुए, ऐसे कपड़े पहनना जो तुम लोगों ने पहले ना पहने हों और जिन्हें बाद में भी नहीं पहनना है। पुलिस कपड़ों से भी पहचान लेती है।"
"ये ठीक कहता है ।" पदम सिंह बोला ।
"बाद में वो कपड़े खाई में फेंक देना या किसी सुनसान जगह पर उन्हें जला देना ।"
"ठीक है ।" बंधु ने सिर हिलाया ।
"ये काम करके मुझे खबर कर देना। कब ये होगा काम ?" जगमोहन ने पूछा ।
"कल करेंगे। परंतु तुम कहां जा रहे हो ?"
"मैं वापस कसीनो में अपनी ड्यूटी पर जाऊंगा। मैं उधर नहीं रहूंगा तो काम कैसे होगा ।"
"तो तुम कोई चालाकी करने की कोशिश में हो ।" बंधु खतरनाक स्वर में कह उठा ।
"जगमोहन कोई चालाकी नहीं कर रहा ।" माला जल्दी से कह उठी ।
"मैं तुम्हारे साथ पूरा सहयोग कर रहा हूं बंधु ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "कसीनो में डकैती करनी है तो मुझे वहीं रहना होगा। ठंडे दिमाग से सोचो कि हमें ये भी पता चलते रहना चाहिए कि बेटे के गायब हो जाने के बाद बाज बहादुर क्या-क्या कोशिशें कर रहा है उसे तलाशने की । हमारे पास हर बात की खबर होनी चाहिए। तभी तो मैं अगला कदम सोच सकूंगा ।"
बंधु की कहर-भरी निगाह माला पर जा टिकी ।
ये महसूस करके माला सहम-सी उठी ।
कश लेते हुए बंधु कह उठा और माला की तरफ बढ़ने लगा ।
ये महसूस करते ही जगमोहन फौरन उठा और माला के सामने आ खड़ा हुआ ।
बंधु ठिठका और जगमोहन को घूरने लगा ।
"तुम माला को हाथ भी नहीं लगाओगे । डकैती करने की ये मेरी पहली शर्त है ।" जगमोहन कह उठा ।
"चिंता मत करो। वो मेरी बहन है। जब शादी हो जाएगी तो...।"
"तुम माला पर हाथ नहीं उठाओगे ।" जगमोहन दांत भींचे कह उठा ।
बंधु हंसा ।
"ठीक है। मैं उससे कुछ नहीं कहूंगा। अब तुम सामने से हट जाओ ।"
जगमोहन हट गया ।
बंधु कहर-भरे अंदाज में माला के सामने आ रुका ।
जगमोहन पास ही खड़ा था ।
माला का चेहरा भय से सफेद पड़ गया था ।
"क्यों मेरी बहन। तुम दोनों ने चाल चलने की तो नही सोची ।" बंधु ने दरिंदगी-भरे स्वर में पूछा ।
"न-न-हीं...।" माला के होंठों से कम्पन भरा स्वर निकला ।
"ये तुम्हारी टांग टूट जाने पर खाई में गिर जाने एक बात कह रही थी ।" विजय बोला--- "मैंने सुना था ।"
"मेरी बहन है। ऐसा क्यों नहीं कहेगी।" बंधु कड़वे स्वर में बोला और पीछे हट गया ।
जगमोहन ने चैन की सांस ली ।
माला रह-रहकर सूखे होंठों पर जीभ फेर रही थी ।
"मेरे जाने के बाद भी तुम माला से कुछ नहीं कहोगे ।" जगमोहन बोला ।
"अगर तुम दोनों मिलकर कोई चाल नहीं चल रहे । मुझे धोखा नहीं दोगे तो मैं इसे कुछ नहीं कहूंगा ।" बंधु ने कहा--- "गोरखा।"
"हां ।" गोरखा बोला ।
"तू हर वक्त माला पर नजर रखेगा और अगर ये यहां से भागने की चेष्टा करे तो इसकी टांगे तोड़ देना ।"
जगमोहन ने माला को देखा ।
माला का चेहरा फक्क था ।
"इसे एक कमरे में बंद करके, बाहर से दरवाजा बंद कर देना ।"
"ठीक है ।"
"तुम ऐसा नहीं कर सकते ।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा--- "आखिर ये तुम्हारी बहन है ।"
बंधु ने कहर-भरी निगाहों से जगमोहन को देखते हुए कहा ।
"तू भी कान खोल कर सुन ले। मेरे से कोई चालाकी करने की कोशिश मत करना। ज्यादा सयाना बना तो पहले माला की गर्दन काटूंगा और फिर तेरी। बंधु से पंगा लेने की सोचना भी मत । समझा क्या ?"
"वहम मत करो । मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूं ।"
"फिर तो तू भी वहम मत कर । माला पूरी तरह सुरक्षित रहेगी।"
"जगमोहन ।" माला रो पड़ी--- "मुझे अपने साथ ले चलो । मैं यहां नहीं रहना चाहती ।"
जगमोहन ने होंठ भींच लिए ।
"मेरी बहन ।" बंधु गुर्राया--- "तू मेरे पास बहुत ही स्वागत से रहेगी । और मुझे भी इस बात की तसल्ली रहेगी कि तेरा होने वाला पति कोई शरारत करने की सोचेगा भी नहीं । वरना तुझे तो बहुत बुरी मौत मारूंगा ।"
माला सुबक रही थी ।
"गौरखा, ले जा उसे और कमरे में बंद कर दे ।"
गोरखा पास आया और माला की कलाई पकड़ कर खींचता बोला ।
"चल ।"
"जगमोहन ।" माला फफक उठी ।
"होंठ भींचे जगमोहन वहीं खड़ा, माला को देखता रहा ।
गोरखा, माला को वहां से ले गया ।
"तुम माला पर हाथ नहीं उठाओगे ।" जगमोहन कठोर स्वर में बोला ।
"नहीं उठाऊंगा। वो कमरे में बंद रहेगी और उसे तब बाहर निकाला जाएगा, जब तुम आओगे यहां ।" बंधु हंसा ।
"माला ने आलू-मेथी और कढ़ी-चावल बहुत बढ़िया बनाए है ।" विजय बोला--- "तुम खा कर देखना बंधु ।"
"मैं कल आऊंगा ।"
"आ जाना ।" बंधु ने लापरवाही से कहा ।
"मैनेजर के बेटे को तुम कब उठाओगे ?"
"कल सुबह स्कूल जाते समय या उसके आते समय ।"
बंधु और जगमोहन कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे ।
"तुम ये काम कर लोगे न ?" बंधु ने उसकी आंखों में झांका ।
"पूरी तरह।" जगमोहन बोला--- "अगर तुमने माला को लेकर, कोई नया पंगा खड़ा किया तो ।"
"माला की फिक्र मत करो। अपनी बहन को तो मैं बहुत प्यार से रखता हूं । तुम ये भी पता करने की कोशिश करना कि कसीनो में किस रात सबसे ज्यादा पैसा होगा। हमें वो ही रात चुननी होगी, पैसा उड़ाने के लिए और मुझे ये भी जानना है कि वहां पर ज्यादा-से-ज्यादा कितना पैसा होता है। सब बातें बताना मुझे ।"
जगमोहन ने सिर हिलाया ।
"कोई चालाकी की तो मैं माला की जान ले लूंगा । ये मत भूलना।" बंधु कड़वे स्वर में कहते हुए हंसा ।
"मैं तुम्हारे लिए ये काम, माला को पाने के लिए कर रहा हूं। इस बात को हमेशा अपने दिमाग में रखो तो तुम्हें शांति मिलेगी।"
"अपना फोन नम्बर मुझे दे दे, मेरा ले ले । हममें रिश्ता बनने जा रहा है । बातचीत तो होती रहेगी ।" बंधु दांत भींचे उसे घूरता कह उठा--- "मुझे तुम पर भरोसा नहीं है तुम सच में मेरे लिए डकैती करने जा रहे हो ।"
"तुम्हारे लिए मैं कुछ नहीं कर रहा। जो भी कर रहा हूं, माला को पाने के लिए कर रहा हूं ।"
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