धमकी

बिलासपुरा के पुलिस स्टेशन का नज़ारा, किसी वीरान भूतिया खण्डहर जैसा था। पुलिस स्टेशन की खिड़कियों पर जाले लटक रहे थे, दीवारें टूटी-फूटी थी और बेजान दरवाज़े जिनसे पेंट उखड़ रहा था, किसी तरह अपनी जगह टिके हुए थे। साफ़-सफ़ाई तो न जाने कितने दिनों से नहीं हुई थी, इसलिए धूल की एक मोटी-सी परत ने पूरे स्टेशन पर कब्ज़ा कर रखा था। ऋचा को पहले तो शक हुआ कि कहीं वो किसी ग़लत जगह तो नहीं पहुँच गयी। फिर उसने वहाँ लगा बोर्ड पढ़कर तसल्ली कर ली जिस पर 'पुलिस-चौकी' शब्द के कुछ अक्षर अब भी डट कर खड़े थे। थाने के बाहर एक कॉन्सटेबल बैठा ऊँघ रहा था। ऋचा उसकी तरफ चल दी।

“सर,” ऋचा ने कॉन्स्टेबल को आवाज़ दी।

ऊँघता हुआ कॉंन्स्टेबल हड़बड़ाकर उठा और उसने ऋचा को सलामी दी। ये देखकर ऋचा को हँसी आ गयी पर उसने तुरंत अपनी हँसी को काबू में कर लिया।

“आप कौन हैं, मैडम?” कॉन्स्टेबल ने ऋचा को शक की निगाह से घूरते हुए पूछा। थाने में शिकायत दर्ज कराने तो कोई आता नहीं था। इसलिए उसे शक हुआ की ऋचा कोई खुफिया अफसर तो नहीं, जो सादे लिबास में थाने में चल रही गतिविधियों का निरीक्षण करने आयी हो।

“जी, मुझे इंस्पेक्टर साहब से मिलना है।” ऋचा ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया।

“इंस्पेक्टर साहब से मिलने आयी हैं,” कॉन्स्टेबल खुद से बोला, “तब तो, ये ज़रूर कोई ख़ुफ़िया अफसर ही होंगी।”

“आप ने कुछ कहा, सर?”

“आप मुझे सर मत कहिये, मैडम,” कॉन्स्टेबल ने हाथ जोड़ लिए, “इंस्पेक्टर साहब अंदर हैं।”

“जी, शुक्रिया।” कहकर ऋचा थाने के अंदर चली आयी।

अंदर एक अफसर पुलिस की वर्दी पहने, अपनी मेज़ पर टाँगें फैलाकर बैठा अख़बार पढ़ रहा था। ऋचा को उसका ऐसा अशिष्ट व्यवहार देखकर बहुत बुरा लगा। पर उसने केवल अपने काम से मतलब रखना ही ठीक समझा।

“एक्सक्यूज़ मी, सर,” ऋचा ने उसके पास जाकर कहा।

“क्या है?” अफसर ने ज़रा खीजते हुए अखबार को मेज़ पर पटक दिया।

“मुझे आपसे कुछ जानकारी चाहिए थी।” ऋचा ने जब देखा कि इंस्पेक्टर ने एक स्त्री को सामने खड़ा देखकर भी, अपनी शर्ट के बटन बंद करने की मर्यादा नहीं दिखाई तो उसने ही अपनी नज़रें झुका ली।

“ये कोई इन्क्वायरी सेन्टर नहीं है कि कोई भी यूँ मुँह उठाकर चला आये।” इंस्पेक्टर ने बड़ी उद्दण्डता से कहा, “ये पुलिस स्टेशन है।”

“मैं...” गुस्सा ऋचा को भी आ रहा था पर फिर उसने अपनी भावनाओं को काबू में किया और कहा, “यहाँ, एक हत्याकांड के बारे में ही जानने आयी हूँ।”

“अब आप को क्या ज़रूरत आ पड़ी किसी हत्याकांड की तहकीकात करने की?” इंस्पेक्टर के शब्दों में अहंकार झलक रहा था, “फ़िर, हम किस बात की तनख्वाह लेते हैं? ये हमारा काम है, हम पर छोड़ दीजिये।”

“जी, आप ग़लत समझ रहे हैं।” ऋचा से बैठने के लिए कहने की मर्यादा भी उस इंस्पेक्टर ने नहीं दिखाई। पर फिर भी ऋचा ने शांति से काम लिया और पास रखी कुर्सी पर बैठकर अपनी बात नम्रता से कहने लगी, “मेरा नाम ऋचा गुप्ता हैं। मैं दिल्ली से आयी हूँ और शास्त्री विला में रह रही हूँ। मुझे कुछ दिनों पहले ही पता चला है कि करीब एक साल पहले, उस घर में एक बच्चे की मौत हुई थी। और आप ही ने उस केस की तहकीकात की थी। मुझे बस, उस हादसे के बारे में कुछ बातें जाननी थी।”

“देखिये, मैडम,” इंस्पेक्टर भड़क गया और अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। उसे जब ये एहसास हुआ कि ऋचा, चिराग के बारे में पूछ रही है तो उसके तो तेवर ही बदल गए, “ये सब बड़ी गोपनीय बातें हैं। और, हम हर ऐरे-गैरे को इसकी जानकारी नहीं दे सकते। बेहतर यही है कि आप यहाँ से चली जाएं, नहीं तो कह देता हूँ, बहुत बुरा होगा।”

“ठीक है।” ऋचा के लिए अब अपने आप पर काबू करना असंभव था और उसने उस घमंडी इंस्पेक्टर को चुनौती दे डाली, “मैं जा रही हूँ। पर देख लीजिये, अब से ठीक पंद्रह मिनट बाद आप ही खुद मुझे अंदर बुलाएँगे और पूरी जानकारी भी देंगे।”

“अरे जा, जा,” इंस्पेक्टर आग-बबूला हो गया, “बहुत देखे हैं तेरे जैसे। हम तेरी धमकियों से डरने वाले नहीं हैं।”

ऋचा पाँव पटकते हुए बाहर आयी और मन ही मन उस इंस्पेक्टर पर गालियों की मूसलाधार बौछार कर दी। जब उसका गुस्सा ठंडा हुआ तो उसने अपने बैग से अपना मोबाइल फ़ोन निकाला और नंबर डायल करने लगी।

“तुमने तो हमें फ़ोन करना ही बंद कर दिया।” फ़ोन के लगते ही ऋचा को शिकायत सुननी पड़ी।

“क्या पापा,” ऋचा पल भर में अपनी सारी तकलीफें भूलकर मुस्कुरायी, “कल रात को ही तो फ़ोन किया था मैंने।”

“आज सुबह क्यों नहीं किया?”

“वो सब छोड़िये, पापा,” ऋचा अपनी घड़ी देखते हुए बोली। उसके लिए समय की उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी, “मैं थोड़ी मुश्किल में हूँ और मुझे आपसे थोड़ी मदद चाहिए।”

“अब मुझे समझ आ गया कि तुम मुझे बिलकुल भगवान जैसा ही मानती हो।” गुप्ता जी ज़रा व्यंग्यात्मक लहज़े में बोले।

“पापा, हर बेटी अपने पिता को भगवान के समान ही मानती है।” ऋचा को अपने पिता की बात थोड़ी अजीब लगी, “इसमें कौन सी नयी बात है?”

“भगवान को लोग अक्सर तभी याद करते हैं, जब वो किसी मुश्किल में फंसे हो और उन्हें मदद की ज़रूरत हो।” गुप्ता जी मन ही मन मुस्काए और बोले, “ठीक वैसे ही, जैसे कि अभी तुमने मुझे याद किया है।”

“मेरे पूज्य पिताश्री,” ऋचा को गुप्ता जी की बात जब समझ में आयी तो उसे हंसी आ गयी। वो मुस्कुराते हुए बोली, “आप ये अच्छी तरह जानते हैं कि मैं भगवान से पहले और उनसे कहीं अधिक आपका नाम लेती हूँ। अब आप दया करके मेरी मदद करेंगे?”

“हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हुए, बालिके।” गुप्ता जी ज़रा नाटकीय अंदाज़ में बोले, “बोलो, हम तुम्हें क्या वरदान दें?”

“पापा, काम दरअसल आपके दोस्त डी. सी. पी. मिश्रा अंकल से है।”

“अरे, काहे का दोस्त,” गुप्ता जी चिढ़ गए, “मजबूरी है हमारी, जो उस जैसे प्राणी से दोस्ती रखनी पड़ती है। एक बात तुम्हें बता देते हैं, इन पुलिसवालों की न दोस्ती अच्छी है, न दुश्मनी। दूर रहना इन ज़ालिमों से।”

“ये मज़ाक का वक़्त नहीं है, पापा।” ऋचा ने फिर से अपनी घड़ी देखी तो उसके माथे पर शिकन पड़ी।

“अच्छा ये बताओ, तुम्हारा इन पुलिस वालों से क्या लेना-देना है?” गुप्ता जी ने ज़रा प्यार से अपनी बेटी को फटकार लगायी, “दो दिन हुए नहीं तुम्हें घर से निकले और पुलिस केस में फँस गयी क्या?”

ऋचा ने सारी घटना का विस्तृत विवरण अपने पिता को केवल दो मिनट के अंदर संक्षेप में दे दिया।

“ठीक है।” उस घमंडी इंस्पेक्टर को मज़ा चखाने के लिए गुप्ता जी ने अपनी कमर कस ली, “अब तुम देखो मैं क्या करता हूँ।”

“पापा, सुनिए...”

गुप्ता जी ने ऋचा की बात सुने बिना ही फ़ोन रख दिया। ऋचा को मालूम था कि उसके पिता जब जोश में आते हैं तो सुई की जगह तलवार चला देते हैं। अब उसे डर था कि कहीं गुप्ता जी डी.सी.पी. की जगह किसी मंत्री को फ़ोन कर, इस इंस्पेक्टर का तबादला न करवा दें। फिर तो बाज़ी उसके हाथ से निकल जाएगी और वो चिराग की हत्या का सच कभी नहीं जान पायेगी।

“ओह! पापा,” ऋचा अपना सर पकड़े दीवार से सटकर खड़ी हो गयी।

* * *

“मैडम जी, आपको इंस्पेक्टर साहब बुला रहे हैं।”

मुश्किल से दस मिनट बीते होंगे कि कॉन्स्टेबल, ऋचा की ओर दौड़ता हुआ चला आया।

“देखा, मैंने कहा था न।” उस इंस्पेक्टर का घमंड चूर होते देख, ऋचा ऐसे मुस्काई जैसे उसने विश्वयुद्ध जीत लिया हो।

वो कॉन्स्टेबल के साथ थाने के अंदर गयी तो उसने देखा कि उसके प्रति इंस्पेक्टर का रवैया तो पूरी तरह से बदल चुका था। उसे आते देख, इंस्पेक्टर अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और उसने हाथ जोड़कर ऋचा का स्वागत किया। अब तो उसने अपनी शर्ट के बटन भी बंद कर लिए थे।

“आइये मैडम, बैठिये।” इंस्पेक्टर ने बड़ी विनम्र मुस्कान के साथ कहा, “कुछ लेंगी आप? चाय, कॉफ़ी या कोल्डड्रिंक, क्या मँगवाऊं आपके लिए?”

ऋचा को ये देखकर हैरानी हुई कि उस बद्तमीज़ इंस्पेक्टर को, लोगों के साथ ऐसा शिष्ट व्यवहार करना भी आता है।

“अरे, राणा,” इंस्पेक्टर ने कांस्टेबल को आवाज़ दी, “बड़ी गर्मी है आज। मैडम के लिए एक ठंडी कोल्ड ड्रिंक ले आओ।”

“जी नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए।” ऋचा ने ज़रा अकड़ कर कहा।

“मेरी बातों का बुरा मत मानिये, मैडम,” इंस्पेक्टर ने अपने कान पकड़े, “आपको पहले ही बता देना चाहिए था न कि आपको मिश्रा साहब ने भेजा है। चलिए कोई बात नहीं, कहा-सुना माफ़ कर दीजिये। बताइये, हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? आप कुछ जानकारी हासिल करने आयी थी न, पूछिए क्या जानना है आपको?”

ऋचा को समझ आ गया था कि इंस्पेक्टर अब उसके चरणों का दास बन चुका है। इसलिए, अब वो जो चाहे फरमाइश कर सकती थी और इंस्पेक्टर को उसकी हर मांग पूरी करनी ही होगी।

“मुझे चिराग हत्याकांड की केस फाइल देखनी है।” ऋचा ने रौब जमाया।

“केस फाइल?” इंस्पेक्टर का गला सूख गया, “लेकिन...मैडम, वो मैं आपको कैसे दे सकता हूँ?”

“ठीक है,” ऋचा ने अपना मोबाइल फ़ोन बैग से निकाला, “मैं मिश्रा अंकल से ही मांग लेती हूँ।”

“अरे! आप कष्ट क्यों करती है?” इंस्पेक्टर अपने काँपते हाथों को किसी तरह जोड़कर बोला, “वो फाइल मैं अभी मंगवा देता हूँ। अरे, राणा, दौड़कर जाओ और फाइल ले आओ।”

“जी सर,” राणा ने अपने, भीगी बिल्ली बने बैठे, अफसर को सलामी ठोकी और भागते हुए फाइल लेने चला गया।

राणा के जाने के बाद, ऋचा आराम से अपनी कुर्सी पर बैठ गयी और इंस्पेक्टर को सर से पाँव तक घूरती रही। इंस्पेक्टर बड़ी दीनता से उसके सामने हाथ जोड़कर खड़ा रहा।

* * *

ऋचा अपने लैपटॉप के सामने बिलकुल स्तब्ध होकर बैठी थी। आधी रात का समय था और चारों तरफ सन्नाटा था। ऋचा समझ नहीं पा रही थी कि वो क्या लिखे? उसे चिराग हत्याकांड की केस फाइल देखकर पता चल चुका था कि केस की तहकीकात ठीक से नहीं हुई है। पुलिस ने मामले की छानबीन सिर्फ नाम-मात्र के लिए ही की थी। न तो हत्या से जुड़े तथ्यों की पूरी जांच हुई है, न सबूतों को अच्छी तरह से परखा गया था। यहाँ तक की सारे गवाहों के बयान भी ठीक तरह से दर्ज नहीं किये गए थे। और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी हत्या से जुड़े तत्वों को उजागर करने में असमर्थ थी। जाँच-पड़ताल जिस तरीके से हुई थी उससे साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि पुलिस को इस केस की तफ़्तीश बंद करने की बड़ी जल्दी थी। अपराधी को पकड़ने की कोशिश तो क्या ख़ाक हुई होगी।

“लेकिन ऐसा क्यों?” ऋचा सोच में पड़ गयी, “क्या चिराग के माँ-बाप ने अपने बेटे को न्याय दिलाने की कोशिश नहीं की?”

अचानक, ऋचा की आँखों के सामने अनाया का डरा हुआ चेहरा आ गया।

“अनाया जी, इतना क्यों डर रही थी? उन्हें किस से डर लग रहा था?” ऋचा ने लैपटॉप बंद कर दिया क्योंकि आज उसके लिए लिख पाना असंभव था, “कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें पता है कि उनके बेटे का ख़ूनी कौन है और वो कुछ नहीं कर पा रही है?”

ऋचा बेचैन हो गयी। उस कमरे में उसका दम घुटने लगा। उसे खुली हवा की ज़रूरत थी। रात बहुत हो चुकी थी इसलिए वो घर से बाहर भी तो नहीं जा सकती थी। उसने अपने कमरे की खिड़कियाँ खोल देना ही उचित समझा। ऋचा जैसे ही अपनी कुर्सी से उठकर खिड़कियों की ओर बढ़ी, उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी।

“इतनी रात को कौन हो सकता है?” ऋचा ने फौरन मोबाइल फ़ोन को मेज़ से उठा लिया पर उसने देखा की कॉल करने वाले का नंबर नहीं दिख रहा था।

फ़ोन की घंटियाँ लगातार बजती रही पर ऋचा फ़ोन को हाथ में लिए बस सोचती ही रही। वो फैसला नहीं कर पा रही थी कि बात करे या नहीं। जिसने अपना फ़ोन नंबर छुपा रखा है, जाने उसका मक़सद नेक होगा या नहीं? अंत में उसे लगा फ़ोन पर चाहे जो भी है, ऋचा को उसकी बात सुन ही लेनी चाहिए। शायद, चिराग का केस सुलझाने में कोई मदद ही मिल जाये।

“क्यों अपनी मौत को न्यौता दे रही हो, मिस ऋचा गुप्ता?” फ़ोन से एक मर्द की आवाज़ बिजली की तरह कड़की और ऋचा के कानों में कौंध गयी, “सुना है, दिल्ली तक पहुँच है तुम्हारी। लेकिन एक बात तुम भूल रही हो, बिलासपुरा से दिल्ली तक की दूरी छह घंटे की हैं। मुझे तुम तक पहुँचने में छह मिनट नहीं लगेंगें। यहाँ तुम बिल्कुल अकेली हो। ऐसा न हो कि दिल्ली से मदद आते-आते बहुत देर हो जाए और तब तक तुम...”

फ़ोन पर ठहाकों की आवाज़ गूंज उठी।

“कौ...कौन हो, तुम?” ऋचा की आवाज़ कांप रही थी, साथ ही उसके हाथ में पकड़ा हुआ फ़ोन भी।

“जिन बातों से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं, दूर रहो उनसे। अगर फिर कभी गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश की न तो मुर्दों के साथ ही गाड़ दूंगा, तुम्हें भी।”

अगले पल, कॉल कट गया। ऋचा अब भी कांप रही थी। उसके पैर लड़खड़ाने लगे थे और वो पलंग पर जाकर बैठ गयी। उसने पानी पिया और खुद को शांत करने का प्रयास किया। लेकिन फ़ोन पर सुनी वो कड़क आवाज़ तो उसका पीछा ही नहीं छोड़ रही थी। वो शब्द अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे। सच ही कह रहा था वो, ऋचा यहाँ बिल्कुल अकेली है। उसके साथ कुछ भी हो सकता था।

“गलती की मैंने,” ऋचा ने अपना हाथ अपने दिल पर रखा, जो बहुत तेज़ी से धड़क रहा था, “पापा से कह कर अपनी सुरक्षा का इंतज़ाम भी पहले से ही कर लेना चाहिए था, “लेकिन, मैंने कब सोचा था कि बात इतनी बढ़ जाएगी?”

ऋचा पलंग पर लेट गयी और सर से पाँव तक खुद को कम्बल से ढक लिया जैसे कि वो उसका सुरक्षा कवच हो। उसे शाम की पार्टी याद आ गई। अब उसे अनाया के डर की वजह समझ में आ गई। अब उसे समझ आया कि चिराग के केस की छानबीन ठीक तरह से क्यों नहीं हुई और क्यों उसे जल्दी बंद कर दिया गया।

“अपराधी बहुत शातिर है।” ऋचा ने सोचा, “उसकी पहुँच भी बहुत ऊपर तक हैं। वो मुझ पर नज़र रखे हुए हैं। मुझे बहुत सोच-समझ कर आगे बढ़ना होगा। लेकिन चाहे जो भी हो जाये, अब मैं पीछे हटने वाली नहीं हूँ। मैं, चिराग को न्याय दिला कर ही रहूंगी।”

रात के दो बज चुके थे। ऋचा ने कमरे की बत्तियाँ बुझाने के लिए हाथ बढ़ाया। पर फिर कुछ पल सोचने के बाद, उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया और बत्तियों को ऑन ही छोड़ दिया। उसने अपना सर कम्बल से ढँक लिया और आँखें बंद कर ली।

* * *

ऋचा ने जब आँखें खोली तो पूरा घर अँधेरे में डूबा हुआ था। ऋचा को याद आया कि उसने तो सोते समय अपने कमरे की बत्तियाँ बंद नहीं की थी। फिर, ये अँधेरा कैसे हो गया? तभी हॉल में रोशनी हो गयी और वहाँ से कुछ धीमी-सी आवाज़ें आने लगी। ऋचा ने हाथ बढ़ाकर लाइट के स्विच को टटोला। कई बार कोशिश करने पर भी बत्तियां जली नहीं। आखिर हारकर, ऋचा पलंग से उतरी और अँधेरे में रास्ता टटोलते हुए किसी तरह हॉल की तरफ चल पड़ी। वहाँ उसने जो देखा, उससे पल भर में ही ऋचा की नसों में दौड़ता हुआ खून बर्फ की तरह जम गया। हॉल में चिराग बैठा खेल रहा था। ऋचा समझ गयी कि वो उससे कुछ कहना चाहता है।

“चिराग!” ऋचा दौड़ती हुई आयी और उसके पास बैठ गयी, “मुझे बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ था? मैं तुम्हारी मदद करूँगी।”

लेकिन चिराग ने न उसकी तरफ देखा, न ही उसकी बात का जवाब दिया। वो खेल में ही लगा रहा जैसे ऋचा वहाँ मौजूद थी ही नहीं।

“मुझसे बात करो, चिराग।” ऋचा ने ज़ोर देकर कहा, “मुझे सिर्फ तुम ही सच्चाई बता सकते हो।”

चिराग पर ऋचा की बात का कोई असर नहीं हुआ और वो खेल में मग्न रहा जैसे उस तक ऋचा की आवाज़ तो पहुँच ही नहीं रही थी।

“देखो, चिराग...” इससे पहले कि ऋचा अपनी बात पूरी कर पाती, दरवाज़े की घंटी बजी।

“इस समय कौन हो सकता है?” ऋचा ने दरवाज़े की ओर देखते हुए सोचा।

लेकिन जब उसकी नज़र चिराग पर पड़ी तो उसे ये देखकर हैरानी हुई कि जो चिराग उसकी आवाज़ नहीं सुन पा रहा था, वो दरवाज़े की घंटी की आवाज़ सुनकर चौंक गया था। वो खेलना छोड़कर टकटकी बाँधे दरवाज़े की तरफ ही देख रहा था।

“ज़रा देखो चिराग, कौन आया है?” रसोईघर से किसी औरत की आवाज़ आयी।

ऋचा ने उस आवाज़ को झट से पहचान लिया क्योंकि वो इस आवाज़ को पहले भी सुन चुकी थी। वो अनाया की आवाज़ थी। अपनी माँ के कहने पर चिराग ने जाकर दरवाज़ा खोला। दरवाज़े पर एक आदमी खड़ा था जो देखने में तो काफ़ी खूबसूरत था मगर उसकी आँखों में एक अजीब-सी शैतानी चमक थी जो किसी का भी दिल दहला देती। जब चिराग की मासूम आँखें, उस आदमी की खूंखार आँखों से मिली तो चिराग के चेहरे पर डर और घृणा दोनों एक साथ उभर आये।

“कौन आया है, चिराग?” पूछते हुए अनाया भी हॉल में आ गयी।

“अरमान अंकल हैं।” चिराग ने दरवाज़े से पीछे हटते हुए कहा।

“तुमसे कितनी बार कहा है, इन्हें पापा कहा करो।” अनाया ने चिराग को समझाया।

“ये मेरे पापा नहीं हैं।” चिराग ने सर उठाकर अनाया को देखा तो उसकी आँखों में अरमान के लिए नफ़रत साफ़ नज़र आ रही थी।

“ऐसा नहीं कहते,” अनाया ने चिराग को टोका।

“इसे तो मैं सबक सिखाता हूँ।” अरमान आगे बढ़ा और उसने छड़ी उठा ली, “वर्ना लोग कहेंगे अरमान सक्सेना ने अपने सौतेले बेटे की परवरिश ठीक से नहीं की।”

“जाने दो, अरमान,” अनाया ने अरमान का हाथ पकड़कर उसे रोकना चाहा, “बच्चा है।”

“लातों के भूत बातों से नहीं मानते, अनाया।” अरमान ने अपना हाथ छुड़ा लिया और चिराग की तरफ लपका।

चिराग एक कोने में दुबक कर खड़ा था। अरमान को अपनी और आते देख, उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढँक लिया और उसकी चीखों से पूरा घर गूँज उठा।

ऋचा हड़बड़ा कर अपने बिस्तर से उठी और उसने अपने चारों ओर देखा। वो अपने कमरे में ही थी और कमरे की बत्तियाँ अब भी जल रही थी। ऋचा ने एक गहरी सांस ली और कम्बल ओढ़कर फिर से लेट गयी।

“कितना भयानक सपना था!” ऋचा अपने आप से बोली।

ऋचा ने फिर से सोने की कोशिश की पर उसे नींद न आयी। थोड़ी देर पहले, सपने में जो कुछ उसने देखा, वो सब बार-बार उसकी आँखों के सामने घूमने लगा। जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया, ऋचा को ऐसा लगने लगा कि ये सिर्फ एक ख्वाब नहीं था। उसने जो देखा, उसका हक़ीक़त से कोई वास्ता ज़रूर है। हो सकता है, ऐसी कोई घटना सच मुच इस घर में घटी हो।

“तो इसका मतलब, चिराग अरमान सक्सेना का सौतेला बेटा था।” ऋचा को लगा उसे एक अहम कड़ी मिल गयी है।

अब तो ऋचा को नींद आने का सवाल ही नहीं उठता था। वो उठकर पलंग पर बैठ गयी और उसने जो कुछ सपने में देखा और सुना, उसके बारे में बारीकी से सोचने लगी। सोचते-सोचते, उसका ध्यान उस बात पर गया जिस पर उसने अब तक ग़ौर नहीं किया था। ऋचा ने अनाया की पार्टी में अरमान सक्सेना को नहीं देखा था। न ही ऋचा की अरमान से कभी बात हुई थी, लेकिन फिर भी वो उसकी आवाज़ को पहचानती थी। उसे पूरा यकीन था कि अरमान सक्सेना की आवाज़ वो कहीं पहले भी सुन चुकी है।

“लेकिन कहाँ?” ऋचा ने अपने दिमाग पर ज़ोर लगाकर सोचा, “कहाँ सुनी है ये आवाज़, मैंने?”

ऋचा पलंग से उठी और कमरे में चहलकदमी करने लगी। लेकिन उसका मन इतना अशांत था की उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था। उसका मन हुआ कि वो अपने पापा से बात कर ले। शायद, ऐसा करने से उसे थोड़ा सुकून मिले।

ये सोचकर ऋचा ने मेज़ पर पड़े अपने मोबाइल फ़ोन को उठा लिया। लेकिन फिर उसकी नज़र दीवार पर लगी घड़ी पर पड़ी। रात के तीन बज चुके थे। इस समय पापा को नींद से जगाना ऋचा को ठीक न लगा और उसने फोन वापस मेज़ पर रख दिया। फ़ोन रखकर जैसे ही वो मुड़ी, उसे एकाएक सब याद आ गया।

“फ़ोन!” ऋचा ने फिर से अपना फ़ोन उठा लिया, “अरमान सक्सेना की आवाज़ मैंने फ़ोन पर सुनी थी। हाँ! मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि वो अरमान की ही आवाज़ थी। उसी ने थोड़ी देर पहले मुझे फ़ोन पर धमकी दी थी।”

उस आवाज़ का राज़ खुलते ही ऋचा का चेहरा ख़ुशी से रोशन हो गया। पर अगले ही पल, वो फिर से सोच में पड़ गयी।

“लेकिन अरमान ने ऐसा क्यों किया? वो क्यों नहीं चाहते कि चिराग के क़ातिल को सज़ा मिले?” सोच में डूबी ऋचा पलंग पर बैठ गयी, “कहीं ऐसा तो नहीं कि अरमान ने ही चिराग को...?”

बाहर अँधेरा और भी गहरा हो गया था। ऋचा को लगा वो रहस्यों के घिनौने जाल में फँसती ही चली जा रही है।

* * *

ऋचा का बिस्तर से उठने का मन ही नहीं था। आज पूरे दिन वो अपने बिस्तर पर, बस यूँ ही पड़ी रही थी। चिराग की हत्या से जुड़े गहरे राज़ एक-एक कर उभर रहे थे और ऋचा के मन को झंझोड़ रहे थे। एक बात ऋचा को साफ़ समझ आ गयी थी। अरमान सक्सेना बहुत खतरनाक मुजरिम है। उसका सामना अकेले करना अक्लमंदी नहीं थी। अगर चिराग के गुनहगार को सज़ा दिलानी है तो ऋचा को किसी न किसी की मदद ज़रूर लेनी होगी।

“लेकिन मैं किस के पास मदद माँगने जाऊँ?” कमरे की छत पर नज़र गड़ाये ऋचा सोचने लगी, “क्या पापा को मैं पूरी बात बता दूँ? अब तक तो मैंने उन्हें यही बताया है कि मुझे मेरे उपन्यास के सिलसिले में पुलिस से कुछ बातें जाननी है।”

ऋचा का मन हुआ कि वो अभी अपने पापा को फ़ोन करे और अपने दिल पर रखा बोझ उतार दे। लेकिन, फिर कुछ सोच कर वो रुक गयी।

“नहीं, पापा को बताना ठीक न होगा।” ऋचा ने सोचा, “वो परेशान हो जायेंगे। वो यही कहेंगे कि किसी अनजान बच्चे को न्याय दिलाने के लिए तुम्हें अपनी जान जोखिम में डालने की क्या ज़रूरत है? उन्हें पता चला कि यहाँ मेरी जान को खतरा है, तो वो मुझे वापस दिल्ली ले जायेंगे और घर में ही नज़रबन्द कर देंगे। नहीं, ऐसे तो बात बिगड़ जाएगी।” ऋचा ने कमरे की दीवार पर लगी घड़ी को देखा। शाम के चार बज चुके थे।

राधा की माँ की तबीयत खराब थी और उसे अपनी माँ को अस्पताल ले जाना था। इसलिए, राधा अपना काम जल्दी ख़त्म कर, घर चली गयी थी। उसके जाने के बाद, ऋचा घर में बिल्कुल अकेली रह गयी थी। अब तो उसे दिन में भी घर में अकेले रहने से डर लग रहा था।

ऋचा उठी और उसने खिड़की से झाँक कर मंजू के घर की ओर देखा। बाहर लॉन में बच्चे खेल रहे थे।

“मंजू दीदी, स्कूल से वापस आ गयी होंगी।” खिड़की के पास खड़ी ऋचा खुद से बोली।

ऋचा का मन हुआ कि वो मंजू के पास जाए और अपना मन हल्का कर ले। मगर फिर उसे लगा, ऐसा करना ठीक न होगा।

“मंजू दीदी की, अनाया जी से अच्छी दोस्ती है। उन्हें पता चला तो वो ज़रूर अनाया जी को सब कुछ बता देंगी और फिर मेरी मुश्किल और बढ़ जाएगी।”

ऋचा मंजू के घर की तरफ देखते हुए कुछ पल यही सोचती रही कि वहाँ जाए या न जाए।

“लेकिन, मेरा यहाँ अकेले रहना भी तो ठीक नहीं है।” ये ख़याल मन में आते ही ऋचा फौरन बाहर निकली और घर पर ताला लगाकर तेज़ी से मंजू के घर की तरफ चल पड़ी, “जब तक राधा वापस नहीं आ जाती, मैं मंजू दीदी के साथ रहूंगी पर उन्हें चिराग की हत्या के बारे में कुछ नहीं बताऊँगी।”

* * *

ऋचा जैसे ही मंजू के घर के पास पहुंची, उसे उनके घर से दो मर्दों के बातें करने की आवाज़ सुनाई दी। ऋचा दबे पाँव आगे बढ़ी और उसने घर के अंदर झाँक कर देखा। बैठक में मेजर विराट वर्मा के साथ कोई और भी था, और वे दोनों ठहाके लगाकर हँस रहे थे। मंजू कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, शायद किचन में हो। ऋचा समझ गयी कि मंजू के घर कोई मेहमान आया है। उसे इस समय अंदर जाना ठीक न लगा और वो वापस जाने को मुड़ी। लेकिन अपने घर की तरफ देखते ही डर के एहसास ने ऋचा के कदम रोक लिए। उसने मंजू के घर रहने में ही अपनी भलाई समझी और उस तरफ तेज़ी से चल पड़ी।

“विराट भैया,” ऋचा ने घर के बाहर खड़े होकर आवाज़ दी, “मंजू दीदी, घर पर हैं क्या?”

“अरे! ऋचा तुम?” विराट ऋचा को देखकर मुस्कुराया, “अंदर आओ, न। मंजू किचन में कॉफ़ी बना रही हैं। तुम भी आ जाओ, आज शाम की कॉफ़ी हम सब साथ मिलकर पियेंगे।”

विराट के बुलाने पर ऋचा अंदर आ गयी। मंजू के घर आया मेहमान उसकी तरफ पींठ कर के सोफे पर बैठा था। ऋचा ने भी उस आदमी पर ध्यान नहीं दिया।

“मैं, मंजू दीदी से मिलकर आती हूँ।” कहकर ऋचा किचन की ओर जाने को मुड़ी।

“ऋचा!”

विराट के साथ बैठे व्यक्ति ने ऋचा का नाम लेकर पुकारा तो ऋचा के कदम खुद-ब-खुद ठहर गए। सिर्फ इतना ही नहीं, ऋचा ने उसकी आवाज़ को भी पहचान लिया। उस परिचित आवाज़ को सुनकर, ऋचा की साँसें पल भर के लिए थम-सी गयी।

“कार्तिक!”

ऋचा ने मुड़कर देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ कि कार्तिक रामनाथन, सच मुच उसके सामने बैठा है। उसका चेहरा तो वैसे भी, हर समय ऋचा की आँखों के सामने घूमता ही रहता था। इसलिए, सच और मिथ्या में फर्क करने में ऋचा को थोड़ा समय लगा।

“तुम यहाँ कैसे?” ऋचा और कार्तिक ने एक साथ, एक-दूसरे से पूछा।

“तुम दोनों एक-दूसरे को जानते हो?” किचन से कॉफ़ी की ट्रे हाथों में लिए आती मंजू ने पूछा।

“हाँ, दीदी,” ऋचा, कार्तिक को देखते ही अपनी सारी परेशानियाँ भूल कर खिलखिलाकर मुस्कुरायी, “दिल्ली में हम दोनों, एक ही ऑफिस में काम करते हैं।”

“तुम तो नॉवेल लिखने के लिए बॉस से छुट्टी लेकर गायब हो गयी थी, न?” कार्तिक की ख़ुशी से झिलमिलाती आँखें, ऋचा के चेहरे से हटने को तैयार ही न थी, “मुझे लगा लंदन या पेरिस गयी होगी।”

“जब अपने देश में ही इतनी खूबसूरत जगह हो तो फिर कहीं और जाने की ज़रूरत ही क्या है?” ऋचा का ध्यान पास खड़ी मंजू पर गया जो उस जवान जोड़े को शक की नज़र से देख रही थी। मंजू को कुछ और समझने का मौका न मिले इसलिए ऋचा, कार्तिक से दूर एक कोने में जा बैठी और बोली, “मेरा घर यहाँ पास में ही हैं। तुम ये बताओ, तुम यहाँ कैसे?”

“मेरे फादर पहले आर्मी में थे और मेजर विराट के बहुत अच्छे दोस्त थे।” कार्तिक तो विराट और मंजू को भूल ही गया था। उसे ऋचा के अलावा कोई और नज़र ही नहीं आ रहा था, “रिटायरमेंट के बाद, दोनों परिवारों का मिलना-जुलना थोड़ा कम हो गया। जब मुझे दिल्ली में जॉब मिली तो मैंने सोचा विराट से मिल लिया जाये। दिल्ली यहाँ से छह घंटे की दूरी पर ही तो है। और, मैं आज सुबह यहाँ आ गया।”

कार्तिक के बात करने के तरीके की ख़ासियत ये थी कि वो अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग ज़्यादा करता था। खासकर ऐसे शब्द, जिनका अनुवाद वो हिंदी में नहीं कर पाता था।

“चलो, फिर कॉफ़ी पी लेते हैं।” विराट ने सबके हाथों में कॉफ़ी का मग देते हुए कहा।

“दिल्ली यहाँ से छह घण्टे की दूरी पर है।”

ऋचा के मन में सोये हुए डर को कार्तिक की इस बात ने फिर से जगा दिया। कार्तिक के शब्दों ने उसे अरमान की धमकी की याद दिला दी। ऋचा के चेहरे का रंग उतर गया और वो कॉफी का मग हाथ में लिए सुन्न होकर बैठी रही। विराट और मंजू, कार्तिक से बातें करने में मग्न हो गए। पर उनसे बातें करते समय भी, कार्तिक की नज़र बार-बार ऋचा की ओर पलट जाती थी। ऋचा को यूँ सबसे दूर चुप-चाप बैठे देख, कार्तिक समझ गया कि ऋचा ज़रूर किसी परेशानी में है।

“क्या हुआ, ऋचा?” कार्तिक से जब रहा न गया और उसने पूछ डाला।

कार्तिक की आवाज़ बहुत नर्म थी, उसकी आँखों में प्यार की गर्माहट भी थी। ऋचा का मन हुआ कि उसे सब बता दे, लेकिन मंजू के सामने वो उसे कुछ नहीं बता सकती थी। तभी ऋचा को ऐसा लगा कि शायद भगवान ने कार्तिक को उसकी मदद के लिए ही ठीक इस वक़्त यहाँ भेजा है। अगर वो कहे तो कार्तिक, चिराग के हत्यारे को दुनिया के सामने लाने में उसका साथ ज़रूर देगा। लेकिन पहले, उसे किसी बहाने से, यहाँ से बाहर ले जाना होगा।

“वो क्या है न,” ऋचा ने चोरी से एक झलक मंजू को देखा और फिर कहा, “बॉस का मेल आया था कल। उन्होंने ऑफिस का कुछ काम दिया है मुझे करने को। पर उसमें कुछ बातें ऐसी हैं, जो मुझे समझ नहीं आ रही। क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो, कार्तिक?”

“हाँ, हाँ, क्यों नहीं?” कार्तिक झट से खड़ा हो गया जैसे वो भी इसी मौके की ताक में था।

“अच्छा दीदी, तो अब हम चलते हैं।” ऋचा ने नज़रें झुका कर कहा ताकि उसे मंजू की आँखों में न देखना पड़े।

मंजू अब भी दोनों को घूरे जा रही थी। ऋचा अच्छी तरह से समझ गयी थी कि मंजू के खुराफ़ाती दिमाग में क्या चल रहा होगा। ऋचा तेज़ी से कदम बढ़ाती हुई अपने घर की ओर चल पड़ी। कार्तिक भी उसके पीछे चल दिया। रास्ते में दोनों ने एक-दूसरे से कोई बात नहीं की हालाँकि दोनों को एक-दूसरे से बहुत कुछ कहना-सुनना था।

* * *

“आओ कार्तिक, बैठो।” ऋचा ने अपने घर का दरवाज़ा खोला और कार्तिक से कहा। इतना कहकर ऋचा एकदम चुप हो गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो कार्तिक को क्या बताये, कहाँ से शुरू करें?

कार्तिक तो पहले ही समझ गया था कि ऋचा किसी परेशानी में है। इसलिए, उसने यही ठीक समझा कि ऋचा को थोड़ा वक़्त दिया जाये ताकि वो खुद को संभाल सके। ऋचा के कहने पर कार्तिक सोफे पर बैठ गया और थोड़ी देर इधर-उधर देखता रहा।

“क्या बात है, ऋचा?” जब ऋचा, काफी देर तक कुछ न बोली तो कार्तिक ने पूछा।

“कार्तिक, मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूँ।” ऋचा ने अपना लैपटॉप कार्तिक की तरफ बढ़ा दिया।

“ये क्या है?”

“मेरे उपन्यास की कहानी।” ऋचा लैपटॉप को देखते हुए बोली, “मैं तुमसे जो कहने वाली हूँ, उसे समझने के लिए तुम्हारा इस कहानी को पढ़ना बहुत ज़रूरी हैं।

“ओके,” कार्तिक बड़े उत्साह के साथ ऋचा की लिखी कहानी पढ़ने लगा।

कार्तिक मन-ही-मन ख़ुशी से पागल हुआ जा रहा था। ऋचा ने अपनी कहानी प्रकाशित करने से पहले उसे दिखाई, इससे साफ़ ज़ाहिर होता था कि ऋचा के मन में उसने एक खास जगह बना ली थी। जब कार्तिक कहानी पढ़ रहा था, तब ऋचा ख़यालों में खोयी चुप-चाप बैठी रही।

“बहुत अच्छी कहानी है, ऋचा।” कार्तिक ने ऋचा के हुनर की तारीफ़, केवल उसे खुश करने के लिए नहीं की थी। बल्कि वो सच-मुच, ऋचा की प्रतिभा से प्रभावित था।

“ये कहानी नहीं है, कार्तिक।” ऋचा ने नज़रें झुका ली क्योंकि वो कार्तिक की आँखों में अविश्वास नहीं देख सकती थी, “ये सब बिलकुल सच है। यहाँ आने के बाद मैंने जो कुछ देखा, सुना और महसूस किया वो सब इस कहानी में लिख दिया है।”

“तुम्हारा मतलब है कि तुमने...,” कार्तिक अपने शब्दों का चयन बहुत सोच-समझकर कर रहा था क्योंकि वो ऋचा की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था, “उस बच्चे को...आई मीन.... उसकी आत्मा को देखा है?”

“हाँ, कार्तिक,” ऋचा ने बेझिझक नज़रें उठाकर कार्तिक की आँखों में देखा ताकि वो कार्तिक को विश्वास दिला सके कि वो सच बोल रही है, “सिर्फ उसे ही नहीं, उसके साथ इस घर में जो भी हुआ, वो सब भी मैं देख सकती हूँ। उसके दुःख-दर्द, उसकी अनकही बातें, सब कुछ महसूस कर सकती हूँ।”

“फाइन,” कार्तिक के लिए ऋचा की बात पर पूरी तरह से विश्वास कर पाना तो बहुत कठिन था। लेकिन फिर भी, उसे इस बात का विश्वास हो चला था कि ऋचा झूठ नहीं बोल रही है, “इस मामले में, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ?”

“मुझे चिराग के हत्यारे को कानून के हवाले करना है, इस काम में तुम्हें मेरी मदद करनी होगी।” ऋचा ने बड़ी उम्मीद के साथ कार्तिक को देखा, “उसने मुझे धमकी दी है कि अगर मैंने उसे बेनक़ाब करने कोशिश की तो वो मुझे मार डालेगा। अब मैं ये लड़ाई अकेले नहीं लड़ सकती, कार्तिक! मुझे तुम्हारा साथ चाहिए।”

कार्तिक नहीं जानता था कि आत्मा वाली बात में कितनी सच्चाई है। लेकिन अगर, ऋचा को किसी से खतरा है तो वो अपनी जान देकर भी ऋचा की हिफाज़त करने के लिए तैयार था।

“मैं तुम्हारे साथ हूँ, ऋचा।”

कार्तिक ने ऋचा की आँखों में देखते हुए वादा किया, “लेकिन, तुम्हारा यहाँ अकेले रहना ठीक नहीं है। तुम कुछ दिन, विराट के घर क्यों नहीं रहने चली जाती?”

“नहीं, ये नहीं हो सकता।”

“मगर, क्यों?”

“पहली बात, ये है कि उनका परिवार बड़ा है और घर छोटा।” ऋचा ने सर झुका लिया, “मैं उन्हें तकलीफ नहीं देना चाहती। दूसरी अड़चन ये है कि वहाँ रहने पर मुझे उन्हें सारी बातें बतानी होंगी। जब तक हमारे हाथ कोई पक्का सबूत नहीं लग जाता, तब तक मैं इस बात को राज़ ही रखना चाहती हूँ।”

“तो फिर, मैं तुम्हारे यहाँ आ जाता हूँ।” कार्तिक ने एक गहरी साँस ली और अपना फैसला सुनाया।

“लेकिन कार्तिक, तुम...यहाँ?” ऋचा ने हिचकिचाते हुए कार्तिक को देखा, “लोग क्या कहेंगे?”

“अपने बरामदे में तो शरण दे सकती हो, न?” ऋचा की बात का मतलब समझ में आया तो कार्तिक मुँह दबाकर हँसने लगा, “मैं वहीं अपना डेरा जमा लूंगा।”

“कार्तिक, मैं जानती हूँ कि मेरी वजह से तुम्हें बहुत तकलीफ हो रही है।” ऋचा को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी इसलिए उसने अपनी नज़रें झुका ली, “हो सके तो माफ़ कर देना।”

“तकलीफ कैसी?” कार्तिक की मुस्कुराती निगाहें, ऋचा के शर्म से लाल गालों की नर्माहट को, बिना छुए महसूस करने लगी, “बल्कि, मुझे तो तुम्हें थैंक्स कहना चाहिए।”

“भला, वो क्यों?” ऋचा हैरान हो गयी।

“मैं तो बचपन से ही डिटेक्टिव बनना चाहता था। तुमने मेरी वो इच्छा पूरी कर दी।” कार्तिक के मन में कोई गिला न था।

ऋचा को कार्तिक के भोलेपन पर हँसी आ गयी।

अपनी ऋचा को हँसते देख, कार्तिक को जिस ख़ुशी का एहसास होता था, उसे शब्दों में बयां करना असंभव था।

* * *

“अच्छा, कोई बात नहीं।” हॉल में बैठी ऋचा, किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी, “तुम मेरी चिंता मत करो। मैं सब संभाल लूँगी। ठीक है, मैं फोन रखती हूँ।”

“किस से बातें कर रही थी?” कार्तिक उसके पास आकर बैठ गया और पूछा, “तुम्हारे पापा का फ़ोन था क्या?”

“नहीं,” ऋचा ने फ़ोन मेज़ पर रखने के बहाने अपनी नज़रें झुका ली। वो कार्तिक की उन नशीली आँखों में नहीं देखना चाहती थी, जिनमें कोई अलौकिक जादू था, “मेरे घर एक लड़की काम करती थी, राधा। उसका फ़ोन था। कह रही थी कि उसकी माँ बीमार है, इसलिए वो अगले एक हफ्ते तक काम पर नहीं आ सकती।”

इतना कहकर ऋचा चुप हो गयी और अपनी नज़रें लैपटॉप की तरफ कर ली। उसे आजकल कार्तिक से ज़्यादा बातें करते हुए भी डर लगता था कि कहीं बातों-बातों में वो दिल की बात न कह जाये। हमेशा की तरह, अब वो कार्तिक से दूरी भी तो नहीं बनाकर रख सकती थी। कार्तिक के साथ रहना अब उसकी मजबूरी बन गयी थी। शायद इसे पूरी तरह से मजबूरी कहना भी ग़लत होगा क्योंकि कुछ हद तक ये ऋचा की चाहत भी तो थी।

“लिख रही हो?” ऋचा को लैपटॉप के सामने ध्यान-मग्न होकर बैठे देख, कार्तिक ने पूछा।

“इरादा तो कुछ ऐसा ही है।”

ऋचा की इच्छा तो बहुत हुई कि वो नज़र उठाकर कार्तिक की उन मदिर आँखों में देखे, पर वो जानती थी कि ये कितना खतरनाक हो सकता है। कार्तिक से अगर नज़र मिलाई तो ऋचा उसकी तरफ बस खींचती ही चली जाएगी।

“मैं तुम्हारे लिए कॉफ़ी बना देता हूँ।” कार्तिक खड़ा हो गया और किचन की ओर जाने लगा।

“नहीं, मैं बना देती हूँ।” ऋचा भी उसके पीछे चल पड़ी।

“तुम यहाँ बैठकर लिखो।” कार्तिक की आँखें, ऋचा की खामोश आँखों की गहरायी में उतरकर, उनमें कोई अनकहा जवाब ढूंढने की कोशिश करने लगी, “मैं दो मिनट में हम दोनों के लिए गरमा-गरम कॉफ़ी बना देता हूँ।”

“ठीक है।” ऋचा ने फौरन नज़रें झुका ली।

कार्तिक किचन के अंदर चला गया और ऋचा वापस सोफे पर जाकर बैठ गयी। उसने लैपटॉप पर आगे की कहानी टाइप करना शुरू कर दिया।

'अब ये बात शीशे की तरह साफ़ हो गयी थी कि चिराग की हत्या उसके सौतेले पिता ने ही की थी। चिराग, हर वक़्त उनकीं आँखों में काटें की तरह खटकता रहता था। उन्होंने सोचा इस काटें को अपने रास्ते से हमेशा के लिए निकाल फेंकना ही बेहतर होगा। लेकिन चिराग को न्याय दिलाना अब भी बहुत मुश्किल काम था। कानून तो पुख़्ता सबूतों पर ही यकीन करता हैं। मगर ये लड़ाई ए…’

ऋचा ने आगे के कुछ शब्द टाइप किए पर वे शब्द स्क्रीन पर दिखाई ही नहीं दे रहे थे, “अरे! ये क्या हो रहा है?” ऋचा ने टाइप करना बंद कर दिया, “कहीं कीबोर्ड फिर से ख़राब तो नहीं हो गया। अभी कुछ दिन पहले ही तो लैपटॉप की सर्विसिंग कराई थी।”

ऋचा ने कीबोर्ड से अपनी अंगुलियाँ हटा ली। उसके हाथ हटाते ही, अब तक उसने जो कुछ टाइप किया था, सब ग़ायब हो गया।

“हे! ईश्वर,” ऋचा को अपने लैपटॉप पर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि उसने ऋचा को उस समय दगा दे दिया जब वो अपनी कहानी का एक अहम भाग लिख रही थी, “इसे भी अभी खराब होना था।”

लेकिन, ऋचा ने भी ठान ली थी कि आज कहानी में ही सही, वो अरमान सक्सेना को कातिल साबित करके ही रहेगी। उसने फिर से वो सब टाइप किया। लेकिन, उसके टाइप करने की ही देर थी कि वो सब फिर से डिलीट हो गया। और केवल इतना ही नहीं इस बार लैपटॉप पर अपने आप, नए शब्द टाइप होने लगे। ऋचा ने उन शब्दों को डिलीट करने की कोशिश की। पर लाख कोशिशों के बाद भी, वे शब्द तो टाइप होते ही जा रहे थे। तब ऋचा ने लैपटॉप को स्विच ऑफ करना चाहा। पर कई बार कोशिश करने के बाद भी, लैपटॉप बंद ही नहीं हो रहा था। स्क्रीन पर शब्द, लगातार उभरकर आने लगे जैसे कोई अदृश्य हाथ उन्हें टाइप कर रहा हो।

ऋचा ये देखकर डर गयी, “कार्तिक...” ऋचा चिल्लाई।

“क्या हुआ, ऋचा?” ऋचा की चीख सुनकर कार्तिक किचन से दौड़ा चला आया।

ऋचा कार्तिक की बाँहों में समा गयी और उसके सीने में अपना मुँह छुपा लिया।

“क्या बात है?” कार्तिक ने कांपती हुई ऋचा के पीठ पर हाथ फेरकर उसे शांत करने की कोशिश की, “तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?”

ऋचा ने धीरे से एक उँगली अपने लैपटॉप की तरफ कर दी।

कार्तिक ने देखा उसमें अपने आप कुछ टाइप हो रहा था। कुछ क्षण बाद, शब्दों का यूँ रहस्यात्मक तरीके से, स्क्रीन पर उभरकर आना बंद हो गया।

“बस, इतनी-सी बात पर तुम डर गयी।” कार्तिक मुस्कुराया, “लैपटॉप में कुछ खराबी होगी। ऐसा हो जाता है, कभी-कभी। कल ठीक करवा लेना और फिर लिखना।”

कार्तिक ने लैपटॉप को स्विच ऑफ किया तो वो फौरन बंद हो गया। ये देखकर ऋचा दंग रह गयी क्योंकि जब उसने बंद किया था तब लैपटॉप तो बंद ही नहीं हो रहा था।

“अब, तुम जाकर सो जाओ।” कार्तिक को ऋचा की आँखों में अब भी डर साफ नज़र आ रहा था, “बाकी, कल लिख लेना।”

“ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है?” ऋचा की पथराई हुईं आँखें अब भी लैपटॉप पर ही थी।

“अरे यार! अगर लैपटॉप ख़राब हो गया तो उसमें इतना अपसेट होने की क्या बात है?” कार्तिक ने ऋचा को सोफे पर बिठाते हुए कहा, “ठीक हो जायेगा। अगर नहीं हुआ, तो नया ले लेंगे। बस, और क्या?”

“वो बात नहीं है।” ऋचा गुमसुम थी।

“तो फिर?”

“क्यों भगवान ने मुझे इतना बेबस और लाचार बनाया है?” कहते हुए ऋचा की आँखें भर आयी, “क्यों इतनी बदकिस्मती मेरी ही नियति में लिख दी है, ईश्वर ने?”

“मैं तुम्हारी परेशानी को समझ सकता हूँ, ऋचा।” कार्तिक भी ऋचा के पास बैठ गया, “तुम चिराग को न्याय दिलाना चाहती हो और जो कि बहुत मुश्किल है। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम दोनों मिल कर कोशिश करेंगे।”

“बात सिर्फ चिराग की नहीं है।”

“क्या बात है, ऋचा?”

“मेरी किस्मत ने मेरे साथ न्याय कभी नहीं किया।” ऋचा ने नज़रें झुकाई तो उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े, “चार साल की थी, जब मैंने अपनी माँ को खो दिया। तब से बस यही कोशिश कर रही हूँ कि जिस पिता ने अपना जीवन मेरे नाम कर दिया, उनके सामने खुद को एक अच्छी बेटी साबित कर सकूँ। और अपनी इस कोशिश में, मैं खुद को तो भूल ही गयी हूँ। मेरी इच्छाएं, मेरे जज़्बात, यहाँ तक कि मेरा अस्तित्व, सब कुछ मिटा दिया है मैंने। बचपन से लेकर आज तक, पापा की ख़ुशी के लिए मैंने अपने आप को तिल-तिल कर के मारा है। लेकिन अब ऐसा लगता है कि अगर ये सिलसिला जारी रहा तो मैं जीते जी मर जाऊँगी।” दो पल की ख़ामोशी के बाद ऋचा फिर से बोली, “अब मैं तुमसे प्यार करती हूँ, कार्तिक। आज तक मैं तुमसे दूर इस लिए रही हूँ, क्योंकि मैं जानती थी कि पापा हमारे रिश्ते को कभी कुबूल नहीं करेंगे।” इतना कहकर, ऋचा फूट-फूटकर रोने लगी। उसके मन में छुपी दुखों की नदी, आज अपने बांध तोड़कर, ऋचा की आँखों से बह निकली थी। और भावनाओं के इस बेलगाम बहाव में, कार्तिक के लिए उसके दिल मे छुपा प्यार भी ज़ाहिर हो गया था।

कार्तिक खुश था कि ऋचा के दिल का राज़, आखिरकार उसकी ज़ुबान पर आ ही गया। वैसे, वो जानता तो हमेशा से ही था कि भले ही इकरार न करे, मगर ऋचा भी उससे प्यार करती है।

“सच्चे प्यार में कोई शर्त नहीं होती, ऋचा।” कार्तिक ने हाथ बढ़ाकर ऋचा के आंसू पोंछे, “हाँ, मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ। लेकिन तुम्हें हासिल करने की ज़िद्द नहीं रखता, मैं। आज अगर तुम अपने प्यार का इज़हार नहीं करती तो भी, मैं इसी तरह जीवन भर तुम्हें प्यार करता रहता।”

“मैं कितनी अभागी हूँ, कार्तिक,” ऋचा कार्तिक के गले से लग गयी। अब उसके लिये जज़्बातों के सैलाब में बहने से खुद को रोकना संभव नहीं था, “मुझे तुम्हारे जैसे इंसान का प्यार मिला, लेकिन फिर भी मैं उसे स्वीकार नहीं कर पा रही हूँ।”

“ऋचा, क्या तुम नहीं जानती,” कार्तिक ने प्यार से उसके गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, “सच्चे प्यार में इतनी ताकत होती है कि वो मौत को भी हरा दे। अगर हमारा प्यार सच्चा है तो मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन तुम्हारे पापा भी हमारे प्यार को समझ सकेंगे और हमारे रिश्ते को स्वीकार कर लेंगे।”

“सच?” ऋचा ने आँसू भरी आँखों से कार्तिक को देखा।

“बिलकुल सच।” कार्तिक ने ऋचा का चेहरा अपने हाथों में लेकर कहा, “रात बहुत हो चुकी है। अब तुम जाकर सो जाओ, गुड नाईट।”

“गुड नाईट।”

ऋचा की आँखें कार्तिक के आँखों के सागर की अथाह गहरायी में समा गयी। अब उसे उन आँखों से पर्दा करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। कार्तिक बरामदे की तरफ चल पड़ा जहाँ उसने अपनी चारपाई लगा रखी थी। उसके जाते ही ऋचा ने दरवाज़ा बंद कर लिया और अपने कमरे में चली गयी।

* * *

ऋचा की पलकें अब भी नींद के बोझ से दबी जा रही थी। रात को देर से सोने की वजह से उसे सुबह उठने का मन ही नहीं कर रहा था। बड़ी मुश्किल से नींद टूटी तो उसकी नज़र घड़ी पर पड़ी।

“हे भगवान!” ऋचा झट से उठकर पलंग पर बैठ गयी, “आठ बज गए और मैंने अभी तक कार्तिक को सुबह की चाय तक नहीं दी। वो क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में?”

ऋचा जल्दी से पलंग से नीचे उतरी और अपने कमरे से लगे बाथरूम की ओर भागी। वो जल्दी से तैयार हुई और दौड़ते हुए किचन में गयी। किचन के दरवाज़े पर वो कार्तिक से जा टकराई।

“अरे! तुम यहाँ?” कार्तिक को किचन में देखकर ऋचा हैरान हो गयी।

“गुड मॉर्निंग, मैडम।” कार्तिक ने बड़े अदब से ऋचा के आगे सर झुकाया और कहा, “आपकी कॉफ़ी बस दो मिनट में तैयार हो जाएगी।”

“तुम क्यों तकलीफ करते हो, कार्तिक?” ऋचा ने आगे बढ़ते हुए कहा, “मैं बना देती हूँ। तुम तो मेरे मेहमान हो।”

“ओह! नो मैडम,” कार्तिक ने ज़ोर से सर हिलाया, “कॉफ़ी बनाना एक कला है जिसमें हम माहिर हैं। हम चेन्नई वालों की कॉफी का मुक़ाबला, तुम दिल्लीवाले तो कर ही नहीं सकते। इसलिए, ये काम तुम मुझ पर छोड़ दो। मैं ब्रेकफास्ट बना देता हूँ, तब तक तुम आराम से बैठकर अपनी कहानी लिख सकती हो।”

“लेकिन, कार्तिक...”

“नो, लेकिन, वेकिन, अगर, मगर, किन्तु, परन्तु, प्लीज़।” कार्तिक ने हाथ के इशारे से ऋचा को जाने के लिए कहा।

ऋचा ने मुस्कुराकर अपनी हार स्वीकार की और हॉल में जाकर बैठ गयी। उसका लैपटॉप वहीं मेज़ पर रखा हुआ था। उसे देखकर ऋचा ने एक ठंडी आह भरी। वो तंग आ गयी थी अपने इस लैपटॉप से, जो हर दो दिन बाद ख़राब हो जाता है।

“अब फिर से सब कुछ टाइप करना पड़ेगा।” ऋचा ने मुँह बनाया और लेपटॉप ऑन किया।

ऋचा ने लैपटॉप पर वो पेज खोला, जहाँ कल रात कहानी अधूरी छूट गई थी। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र उस पेज पर पड़ी, ऋचा एकदम स्तब्ध हो गयी। कुछ मिनटों तक वो, सम्मोहित-सी होकर उस पेज को देखती ही रह गयी। उसके आस-पास की दुनिया आँखों से ओझल ही हो गयी थी। फिर उसे अचानक होश आया और डर के मारे उसकी साँसें फूल गयी।

“कार्तिक...” उसने ज़ोर से आवाज़ लगायी।

“क्या हुआ, ऋचा?” कार्तिक उसकी पुकार सुनकर किचन से दौड़ा चला आया।

“कार्तिक, तुमने मेरी कहानी पढ़ी थी न कल?” ऋचा ने हाँफते हुए पूछा, “तुम्हें पता है न, कल रात मैं उसके आगे एक अक्षर भी नहीं लिख पायी? मेरा लैपटॉप कल सारी रात, यहाँ हॉल में ही पड़ा था।”

“हाँ, पर तुम ये सब क्यों पूछ रही हो? तुम्हारा तो चेहरा ही पीला पड़ गया है।” कार्तिक को ऋचा में, अचानक आये बदलाव का कारण समझ नहीं आ रहा था, “क्या हुआ है, ऋचा?”

“देखो, कार्तिक,” ऋचा ने उंगली से लैपटॉप की ओर इशारा किया, “आगे की कहानी लिखी हुई है।”

“क्या?” कार्तिक की हैरान आँखें, ऋचा की सहमी हुई आँखों से टकराई।

ऋचा ने धीरे से सर हिला दिया तो कार्तिक ने स्क्रीन की तरफ देखा। ऋचा ने जहाँ कहानी अधूरी छोड़ी थी, उसके आगे लिखे शब्दों को वो दोनों ध्यान से पढ़ने लगे।

* * * 

 ‘चिराग आज स्कूल नहीं जा पाया। उसे कल रात से ही पेट में दर्द था। रात को उसे देखने डॉक्टर आये थे और उसे कुछ दवाइयाँ दे गए। लेकिन अगले दिन दोपहर तक उसकी तबीयत काफी बेहतर हो चली थी। अपने कमरे में अकेले बैठे-बैठे, वो ऊब गया था। वो अपने बिस्तर से उठा और बरामदे में जाकर बैठ गया।

बरामदे में ठंडी हवा चल रही थी और पेड़ों पर कूकती कोयल के गीतों की मिठास, फ़िज़ाओं में घुलने लगी थी। चिराग का मन हुआ कि वो आम के पेड़ों पर बैठी कोयल को देखे और वो लॉन की तरफ चल पड़ा। उसने दो कदम ही आगे बढ़ायें होंगे कि उसे घर के अंदर से कुछ तेज़ आवाज़ें सुनाई दी। चिराग वापस घर की तरफ ही लौट गया।

ये आवाज़ें अनाया के कमरे से आ रही थी। कमरा अंदर से बंद था। अनाया और अरमान, ऊँची आवाज़ में एक-दूसरे से कुछ कह रहे थे। चिराग को कुछ ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था, इसलिए वो उस कमरे की तरफ दबे पाँव गया और दरवाज़े के बाहर साँस रोक कर खड़ा हो गया। वो दरवाज़े पर कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगा।

“हाँ, मान लिया मैं जल्लाद हूँ,” अरमान ज़ोर से चिल्लाया, “लेकिन, तुम भी कोई सती-सावित्री नहीं हो।”

“क्या मतलब है, तुम्हारा?” अनाया ने गुस्से से तिलमिलाते हुए पूछा।

“अगर मैं गुनहगार हूँ न, तो तुम भी उस जुर्म में बराबर की हिस्सेदार हो।” अरमान किसी पागल कुत्ते की तरह भौंका, “अब मेरा मुँह मत खुलवाओ, नहीं तो तुम्हारी सारी काली करतूतों का ब्यौरा दे डालूंगा।”

“सच कहते हो, तुम,” अनाया का आक्रोश अब ठंडा पड़ चुका था। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “मैं पापी हूँ। लेकिन, अब मैं एक पल और इस पाप का बोझ अपनी आत्मा पर लेकर नहीं जी सकती। मुझे मर जाने दो।”

बाहर खड़े चिराग ने मेज़ की दराज खुलने की आवाज़ सुनी।

“ये क्या कर रही हो, तुम?” अरमान फिर चिल्लाया, “बन्दूक फ़ेंक दो, अनाया।”

बन्दूक की बात सुनते ही चिराग डर गया और उसके मुँह से चीख निकल पड़ी।

“कौन है वहाँ?” अनाया ने चीखने की आवाज़ सुनी तो वो फौरन दरवाज़े की ओर दौड़ी।

चिराग इतना डर गया था कि वो बजाय वहाँ से भागने के, अपनी जगह पर ही खड़ा रहा। हाथ में बन्दूक लिए अनाया ने दरवाज़ा खोला तो उसने चिराग को अपने सामने खड़ा पाया।

“इसने सब सुन लिया है, अनाया।” अरमान भी उसके पीछे चला आया और बोला, “इसे मार डालो, नहीं तो ये हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा।”

“अरमान!” बन्दूक थामे अनाया के हाथ कांपने लगे।

“ये हमारा राज़ जान गया है, अनाया।” अरमान ने अनाया को उकसाया, “अगर इसने सब कुछ उगल दिया तो पता है न हमारे साथ क्या होगा।”

अनाया के हाथ बिलकुल ठन्डे पड़ चुके थे। वो बन्दूक पकडे ऐसे खड़ी थी जैसे वो पत्थर की मूरत बन गयी हो। चिराग ठीक उसकी बन्दूक के निशाने पर था।

“हमारे पास अब और कोई रास्ता नहीं है, अनाया। अब इसकी मौत ही हमें एक नई ज़िन्दगी दे सकती है।” अरमान ज़ोर से चीखा, “इसे गोली मार दो, अनाया।”

अनाया की बन्दूक से गोली चली और उसके चेहरे को चिराग के खून के छींटों ने रंग दिया।’

* * *

“ऋचा, अगर ये तुम ने नहीं लिखा तो फिर किसने...,” कार्तिक के लिए अपनी आँखों पर विश्वास करना मुश्किल हो गया था, “ये सब क्या हो रहा है?”

“क्यों? कैसे? इन सब सवालों का जवाब नहीं है मेरे पास।” ऋचा अब भी कहानी के एक-एक शब्द को गौर से देख रही थी। शायद, वो खुद भी जवाब की तलाश में थी, “जब से मैं यहाँ आई हूँ, मेरे साथ ऐसी बहुत सारी अजीब-सी बातें हो रहीं हैं। पर एक बात मैं दावे के साथ कह सकती हूँ और वो ये है कि जो कुछ भी तुमने अभी पढ़ा, वो सब सच है।”

“ये तुम कैसे कह सकती हो?”

“क्योंकि, ये मेरे साथ पहले भी हो चुका है।” ऋचा ने नज़रें उठाकर कार्तिक की उन आँखों में देखा, जिनका अब खुद पर से विश्वास उठ चुका था, “मैंने अपने कथानायक का नाम 'ईशान' रखा था पर वो ठीक इसी तरह, अपने आप ही, 'चिराग' में बदल गया। बाद में मुझे पता चला कि उस नाम का एक लड़का सच-मुच इस घर में कभी रहा करता था। उस घटना के कुछ दिनों बाद, मैंने फिर चिराग को अपने बरामदे में देखा। उसकी छाती पर एक ऐसा ज़ख्म था जैसे किसी ने उसे गोली मार दी हो। मैंने मंजू दीदी से इस बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि चिराग की मौत गोली लगने की वजह से ही हुई थी। ये कहानी मैं नहीं लिख रही हूँ, कार्तिक, बल्कि मुझसे कोई और लिखवा रहा है। शायद, चिराग की आत्मा हमारे आस-पास ही कहीं है। हम उसे देख नहीं सकते पर वो हमें देख भी रहा है और हमारी बातों को सुन भी रहा है। वो किसी न किसी तरह अपनी आप-बीती हमें बता रहा है, ताकि हम उसे न्याय दिला सके।”

“मतलब तुम ये कहना चाहती हो कि हमारी सोच गलत थी।” कार्तिक की उन हसीन, काली आँखों में अब सच को जानने की जिज्ञासा थी, “चिराग की हत्या उसके सौतेले पिता ने नहीं बल्कि उसकी अपनी माँ ने ही की थी।”

“हाँ,” ऋचा, खिड़की से बाहर झाँककर उस जंगल को देखने लगी, जहाँ चिराग की लाश मिली थी, “पर सवाल ये है कि ऐसा क्या हुआ था कि अनाया को खुद अपने हाथों से, अपने बेटे की जान लेनी पड़ी?”

“अगर कहानी की मानें,” कार्तिक ने लैपटॉप की ओर देखा और कहा, “तो चिराग उन दोनों का कोई राज़ जान गया था। कोई ऐसा राज़, जो अगर बाहर आ जाता तो शायद उन दोनों को अपनी जान से हाथ धो बैठना पड़ता। इसलिए, उन्होंने चिराग को ही मार डाला ताकि उनका राज़, हमेशा राज़ ही रहे।”

“ऐसा क्या राज़ हो सकता है?”

“वो राज़ है, एक ऐसा जुर्म, जो उन दोनों ने साथ मिलकर किया था।” कार्तिक की आँखों में एक ऐसी चमक थी जो जितनी विचित्र थी, उतनी ही रहस्यमयी भी।

घने जंगल में लक्ष्यहीन होकर भटकती ऋचा की आँखें एक झटके से वापस कार्तिक की ओर मुड़ गयी जैसे मानो पूछ रहीं हो, “ तुम्हें कैसे मालूम?”

“ये मैं नहीं कह रहा, तुम्हारी कहानी कह रही है।” कार्तिक ने फौरन उसकी आँखों के इशारे को समझ लिया और अपनी उँगली को लैपटॉप के स्क्रीन पर रखकर कहा, “यहाँ, कहानी के इस भाग में अरमान, अनाया से कहता है कि अगर मैं गुनहगार हूँ न, तो तुम भी उस जुर्म में बराबर की हिस्सेदार हो।”

“तुम्हें क्या लगता है, कार्तिक?” ऋचा की आँखों को स्क्रीन पर लिखे उन शब्दों के अलावा और कुछ दिख ही नहीं रहा था, “क्या किया होगा इन दोनों ने?”

“ये पता करने के लिए हमें इनके पास्ट से जुडी सारी इन्फॉर्मेशन कलेक्ट करनी होगी।” कार्तिक को अपना नया 'मिशन इम्पॉसिबल' मिल गया था और इस बात का उत्साह उसकी आँखों में साफ़ झलक रहा था, “क्या तुमने आस-पास के लोगों से अरमान और अनाया के बारे में कुछ पता किया है, ऋचा?”

“हाँ,” ऋचा के चेहरे का रंग पल भर में खिल उठा जैसे अचनाक से उसे कुछ याद आ गया हो, “मंजू दीदी, एक बार मुझे अनाया की बर्थडे पार्टी पर ले गयी थी। वहीं मैं, पहली बार अनाया से मिली थी। जब मुझे पता चला कि वो ही चिराग की माँ हैं तो मैंने उनके बारे में मंजू दीदी से पूरी जानकारी हासिल करने की कोशिश की। लेकिन, मंजू दीदी भी उनके बारे में बहुत ज़्यादा नहीं जानतीं। चिराग की हत्या से लगभग छह महीने पहले, मंजू दीदी अपने परिवार के साथ यहाँ रहने आयी थी। जल्दी ही, उन दोनों परिवारों में अच्छी दोस्ती हो गयी। मंजू दीदी ने बताया की अनाया सुसनेज की रहने वाली है और अपने पिता की इकलौती संतान है। उसके पिता, एक ज़माने में बहुत रईस व्यापारी थे। एक बार उन्हें व्यापार में बहुत बड़ा घाटा हो गया, जिसकी वजह से उन्हें अपनी मिलें बंद करनी पड़ी। अब वे सुसनेज के अपने पुराने बंगले में अकेले रहते हैं।”

“और, अरमान के बारे में कुछ बताया उन्होंने तुम्हें?”

“नहीं,” ऋचा ने नज़रें झुका ली, “उस दिन, अरमान पार्टी में नहीं आ सके। वो कहीं बाहर गए हुए थे। इसलिए, मैंने उनके बारे कुछ नहीं पूछा। अब पूछने जाऊँगी तो मंजु दीदी लाख सवाल पूछेंगी। और इतना ही नहीं, ये बात अनाया के कानों में भी ड़ाल देंगी कि मैं उन दोनों के बारे में हर किसी से पूछ ताछ कर रही हूँ। अब तो उनके बारे में पता करने की कोई और तरकीब निकालनी होगी।”

“ठीक कहा, तुमने,” कार्तिक के दिमाग में कई सारी योजनाएं जन्म ले रही थी, “अब हमें अपना पैंतरा बदलकर, दुश्मन पर वार करना होगा। जुर्म के इस जाल में उतरने के लिए तैयार हो जाओ, ऋचा।”