दुबई!
अगले दिन शाम के छ: बजे देवराज चौहान और जगमोहन दुबई चमचमाते एयरपोर्ट से बाहर निकले और टैक्सी में बैठकर वहां से चल दिए। ड्राइवर को बता दिया था कि ‘अलजीरा’ होटल जाना है जो कि कादिर खान रोड पर स्थित था। बाहर अभी भी धूप थी। टैक्सी के शीशे काले थे और धूप से उन्हें राहत मिल रही थी। दोनों क्लीन शेव्ड थे और पैंट-कमीज में थे।
सारी रात मार्शल के एजेंट उन्हें दुबई और पाकिस्तान स्थित एजेंटों की तस्वीरें दिखाते रहे। फोन नम्बर याद कराते रहे। हर जरूरी जानकारी देते रहे। उन्हें उन ठिकानों की भी तस्वीरें दिखाई जिन्हें इकबाल खान सूरी दुबई में इस्तेमाल करता था। हर छोटी-बड़ी जानकारी उन्हें दे दी गई। बाकी बातें अब दुबई स्थित एजेंटों पर निर्भर थी। असल रास्ता तो उन्होंने ही दिखाना था।
“सुना है दुबई की शामें बहुत शानदार होती हैं।” जगमोहन बोला।
“तुम कितनी बार दुबई आ चुके हो?” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
“बहुत बार।”
“तो अनाड़ियों की तरह बातें क्यों कर रहे हो दुबई के बारे में?”
“ड्राइवर को सुनाने के लिए।”
“वो हिन्दी नहीं समझने वाला।” देवराज चौहान ने बाहर देखते हुए कहा।
जबकि देवराज चौहान की इस बात पर ड्राइवर के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई। वो दुबई का स्थानीय व्यक्ति ही लग रहा था। सांवला पका, रंग । चौड़ी नाक । मोटी आंखें, सिर के बाल छोटे-छोटे।”
अभी टैक्सी तीन-चार किलोमीटर ही आगे गई होगी कि तभी पीछे से एक कार ने तेजी से उनकी टैक्सी को ओवरटेक किया फिर पीछे वाला शीशा खुला और एक हाथ बाहर निकला।
हाथ से खास इशारा किया गया।
उसके बाद हाथ भीतर आया और शीशा ऊपर चढ़ गया।
टैक्सी ड्राइवर शांति से टैक्सी ड्राइव करता रहा।
परंतु देवराज चौहान और जगमोहन ये देखकर चौंके।
“ये क्या था?” देवराज चौहान ने आंखें सिकोड़कर, उसकी भाषा में पूछा।
“आप मुझसे अपनी भाषा में बात कर सकते हैं।” ड्राइवर कह उठा।
“ओह, तुम हिन्दी समझते हो। ये आगे वाली कार ने क्या इशारा किया?”
“अपने पीछे आने को कहा।” टैक्सी ड्राइवर ने शांत स्वर में कहा।
“पीछे? क्या मतलब...।” जगमोहन चौंककर बोला।
“पीछे का मतलब पीछे होता है।” ड्राइवर ने कहा।
वो कार, सौ मीटर आगे सड़क पर जा रही थी।
“तुम्हें बताया था कि हमें अलजीरा होटल जाना...।”
“हम वहां नहीं जा रहे।” टैक्सी ड्राइवर ने शांत स्वर में कहा –“आप दोनों की मंजिल कहीं और है।”
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।
“आराम से बैठे रहिए। मैं मार्शल का एजेंट हूं और आगे वाली कार भी आपके दोस्त ही हैं।”
“परंतु यहां ऐसा कुछ होगा, मार्शल ने नहीं बताया...।” देवराज चौहान ने कहना चाहा।
“करना पड़ा। हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं था, परंतु सावधानी के नाते ये सब किया जा रहा है। दुबई में इकबाल खान सूरी के हाथ बहुत लम्बे हैं। एयरपोर्ट पर उसके आदमी नजर रखते हैं, खासतौर से इंडिया से आने वाले लोगों पर। ऐसे में अलजीरा में ठहरना आपके लिए ठीक नहीं। जब से इकबाल खान सूरी गायब हुआ है, तब से हम भी सतर्क हो गए हैं कि कहीं उन्हें हमारे बारे में खबर न मिल गई हो।”
“इकबाल खान सूरी तो...।”
“चुप रहिए।” ड्राइवर बोला –“मेरे ख्याल में एक कार हमारा पीछा कर रही है। पीछे मत देखिए।” कहने के साथ ही ड्राइवर ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाकर बात की –“कोई हमारे पीछे है एयरपोर्ट से ही।”
वो कुछ पल उधर से सुनता रहा फिर फोन बंद करके जेब में रखा । शीशे में पीछे आती कार देखी।
“हमें नहीं पता वो कार किसकी है।” ड्राइवर ने कहा –“मैं आप दोनों को एक जगह पर उतार दूंगा। बता दूंगा कि किस तरफ जाना है। उधर ही चले जाना। हमारा आदमी आपको मिल जाएगा। पहले हमारा प्लान दूसरा था परंतु अब पीछे आने वाली कार की वजह से हमें नया प्लान बनाना पड़ा।
“तुम किसके आदमी हो?” जगमोहन ने पूछा।
“बताया तो, मार्शल का...।”
“मेरा मतलब है यहां किसके अंडर काम करते हो। तुम्हारा कोई तो बड़ा होगा।”
“मिस्टर कमल चावला । हमें सारे निर्देश कमल चावला साहब से ही मिलते हैं।”
“वो कहां है?”
“सब ठीक रहा तो जल्दी ही मुलाकात हो जाएगी।” ड्राइवर ने कहा।
“क्या तुम लोग ज्यादा सावधानी नहीं बरत रहे?”
“ये जरूरी हो गया है।” ड्राइवर ने गम्भीर स्वर में कहा –“आप लोगों को पता ही होगा कि हम इकबाल खान सूरी के बहुत करीब पहुंच गए थे। एक-आध दिन में हमने मौका पाते ही उसकी हत्या कर देनी थी और ऐसे वक्त में उसका गायब हो जाना हमारी समझ में नहीं आ रहा। ऐसी स्थिति में उसने हम पर कोई हमला भी नहीं करवाया। हमारे जो दो एजेंट उसके करीब पहुंचे थे वो भी अभी तक सही-सलामत हैं। स्पष्ट तौर पर हम भ्रम की स्थिति में हैं कि असल बात क्या है। इकबाल खान कहां गायब हो गया अचानक...।”
“क्या पता उसने कहीं जाना ही हो।”
“ऐसा नहीं था। उसके पास पहुंच चुके हमारे एजेंट बताते हैं वो एक दस मंजिला होटल का सौदा कर रहा था और तीन दिन के बाद उसने उस सौदे को पक्का करना था। इसी काम में वो व्यस्त था कि अचानक ही वो गायब हो गया। जबकि अगले दिन हमारे एजेंट उसकी हत्या का प्लान बना चुके थे। परंतु वो कैसे गया, उसके जाने तक की भी कोई खबर नहीं लगी।”
“और कामनी?” देवराज चौहान ने पूछा।
“वो दुबई में थी। सबके सामने। वो गायब नहीं हुई। जबकि वो इकबाल खान सूरी के करीब ही रहती है हमेशा। एक महीना वो अकेली ही दुबई में दिखती रही फिर मुम्बई चली गई। कुछ दिन लगाकर कल ही वापस लौटी है।”
“कामनी, इकबाल खान से फोन पर बातें करती होगी।” देवराज चौहान ने कहा।
“जरूर करती होगी। परंतु उसे बातें करते किसी ने देखा-सुना।”
“वो मुम्बई क्यों गई?”
“मालूम नहीं।”
“जबसे इकबाल खान सूरी गायब हुआ है, उसके बाद से कामनी के व्यवहार में कोई बदलाव देखा गया?”
“नहीं। वो सामान्य दिखी हमेशा।”
“तुम लोगों के दो एजेंट इस वक्त कहां पर हैं, जो इकबाल के पास पहुंचकर उसकी हत्या करने वाले थे।”
क्षणिक खामोश रहकर ड्राइवर ने कहा।
“इससे ज्यादा बातें आप मुझसे मत पूछे। कमल चावला से ही बात करें तो बेहतर होगा। वो जगह आने वाली है जहां आपको उतरना है। सामान की आप चिंता न करें। वो आपको फौरन मिल जाएगा। आपको जहां उतारूंगा, वहां पर मैं दस मिनट खड़ा रहूंगा ताकि पीछे लगी कार को भ्रम में डाल सकूं। उसके बाद चला जाऊंगा। तब तक आप हमारे आदमियों के हाथों में पहुंच चुके होंगे।”
“इस पर भरोसा करना ठीक होगा?” जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा।
देवराज चौहान खामोश रहा। कुछ न बोला।
कुछ ही देर में ड्राइवर ने कार सड़क किनारे, एक गली के सामने रोककर कहा।
“आप दोनों सामने वाली गली में चले जाइए। वहां हमारे आदमी आपको पहचान जाएंगे।”
“हमारा सामान?” जगमोहन ने पूछा।
“आप दोनों ने जहां पहुंचना है, आपका सामान पहले ही वहां पहुंच जाएगा। निश्चिंत रहें।” वो बोला।
देवराज चौहान ने छिपी निगाहों से पीछे देखा।
सौ कदम पीछे एक काली कार आ कर रुकी थी। उसमें से बाहर के न निकला था।
दोनों कार से बाहर निकले। दरवाजे बंद किए।
जगमोहन गली की तरफ बढ़ने लगा कि देवराज चौहान ने कहा।
“रुको।”
जगमोहन ने ठिठककर देवराज चौहान को देखा।
“इस प्रकार का कोई प्रोग्राम नहीं था कि कोई एयरपोर्ट पर हमें मिलेगा।” देवराज चौहान ने कहा –“ये ठीक बंदा भी हो सकता है और इकबाल खान सूरी का आदमी भी हो सकता है। शायद हम पहचान लिए गए हों। पता नहीं, असल मामला क्या है, हमें इसकी बातों का जरा भी भरोसा नहीं करना चाहिए।”
जगमोहन सतर्क हुआ।
तभी ड्राइवर सिर आगे करके उनसे बोला।
“वक्त क्यों खराब कर रहे हो। यहां से जाते क्यों नहीं? गली में जाओ।”
“हमने गली में नहीं जाना है। वहां हमारे लिए इंतजाम किए हो सकते हैं।” देवराज चौहान ने पीछे वाली कार की तरफ देखते हुए कहा –“हमें यहां से भागना है। अलग-अलग हो जाना है। मार्शल के दिए यहां के एजेंटों के नम्बर तुम्हारे पास हैं, बाद में उन पर बात कर लेना। हमारे भागते ही ये लोग हमारे पीछे आएंगे। ये टैक्सी वाला भी और पीछे वाली कार भी है। कोशिश करना कि इनके हाथ न लगो। हमें नहीं पता कि कौन मार्शल का एजेंट है और कौन इकबाल खान सूरी का।”
“परंतु इकबाल खान सूरी को हमारी खबर कैसे लग सकती है। मार्शल का सारा काम खामोशी से...।”
“जो भी हो बात बाहर जा चुकी है तभी तो यहां दो कारें हैं एक ने टैक्सी वाला बनकर हमें रिसीव किया और दूसरी कार पीछे लग गई। अगर सब कुछ सामान्य होता तो ये सब न हो रहा होता।”
उसी पल टैक्सी ड्राइवर ने पुनः खीझ भरे स्वर में कहा।
“वक्त क्यों खराब कर रहे हो, तुम दोनों जल्दी से गली में जाओ।”
दोनों की निगाहें मिली और अगले ही पल दोनों सड़क के किनारे-किनारे भाग खड़े हुए।
ये देखकर टैक्सी ड्राइवर हक्का-बक्का रह गया।
उसी पल पीछे वाली कार स्टार्ट हुई और उन दोनों की तरफ बढ़ती चली गई। सड़क पर से वाहन तेजी से आ-जा रहे थे। देवराज चौहान ने एकाएक सीधा भागना छोड़कर सड़क पार की और उल्टी दिशा में भागने लगा। जबकि जगमोहन सड़क किनारे सीधा भागे जा रहा था। कुछ आगे सड़क का मोड़ था, वो उस मोड़ पर पहुंचकर अपनी दिशा बदलने की सोच रहा था कि तभी पीछे से आती काली कार उसके पास रुकी।
“भीतर आ जाओ।” ऊंची आवाज उसके कान में पड़ी।
दौड़ते हुए जगमोहन ने कार में देखा।
उस कार में दो आदमी थे। जो कि आगे वाली सीटों पर बैठे हुए थे वो दौड़ता रहा।
कार मध्यम-सी रफ्तार से उसके साथ चलने लगी।
“हम मार्शल के एजेंट हैं मिस्टर जगमोहन। जल्दी से कार में आ जाओ।”
इन शब्दों के साथ ही जगमोहन को खतरे का एहसास हुआ। वो टैक्सी ड्राइवर भी खुद को मार्शल का एजेंट कह रहा था। इतना तो उसे महसूस हो गया कि भारी गड़बड़ हो चुकी है।
दौड़ता जा रहा था जगमोहन।
कार उसके बराबर धीमी गति से चल रही थी।
“कार में आ जाओ मिस्टर जगमोहन। हमें कमला चावला ने भेजा है। हम एयरपोर्ट से तुम पर नजर रखते आ रहे हैं।”
जगमोहन चौराहे पर पहुंच गया। तभी उसकी निगाह पुलिस कार पर पड़ी जो चौराहे के पास आधी फुटपाथ पर चढ़ी खड़ी थी। जगमोहन पुलिस कार की तरफ दौड़ा। ये देखकर उस काली कार ने रफ्तार पकड़ी और सड़क पर सीधी दौड़ती चली गई।
जगमोहन पुलिस कार के पास पहुंचकर ठिठका और गहरी सांसें लेने लगा। जाती कार को उसने जाते देख लिया था। उसे इस तरह आते देखकर, कार के पास खड़ा पुलिस वाला बोला।
“क्या बात है?”
“कुछ लोग मुझे लूटने के लिए मेरे पीछे लग गए थे।” जगमोहन ने कहा।
पुलिस वाले की आंखें सिकुड़ी।
“यहां पर ऐसी घटनाएं नहीं होती।” वो बोला।
“लेकिन मेरे पीछे वो बदमाश...।”
“किस देश के रहने वाले हो?”
“हिन्दुस्तान का।”
“पासपोर्ट दिखाओ।”
पासपोर्ट जेब में ही था। जगमोहन ने फौरन पासपोर्ट निकालकर उसे दिया।
उसने पासपोर्ट देखा और वापस करते हुए कहा।
“जाओ यहां से, संभलकर रहो।”
जगमोहन ने पासपोर्ट जेब में रखा और आगे बढ़ गया। उसका ख्याल था कि पीछे लगी कार जा चुकी है, परंतु गलत ख्याल था, वो कार फिर वापस आ गई थी और दूर रहकर उस पर नजर रख रही थी।
☐☐☐
उन्हें इस तरह भागते पाकर टैक्सी ड्राइवर हक्का-बक्का रह गया था। अगले ही पल उसने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाकर बात की। बोला।
“उन दोनों को पता नहीं क्या हुआ, कार से निकलते ही, गली में जाने की अपेक्षा दूसरी तरफ भाग गए।”
“तुम पर शक हो गया होगा।” उधर से कहा गया।
“मैंने तो उनसे सही बात की थी। फिर...।”
“अब क्या स्थिति है?”
“पीछे आने वाली कार जगमोहन के पीछे गई है। देवराज चौहान सड़क पार करके दूसरी दिशा में...।”
“तुम कहां हो?”
“मैं वहीं पर हूं और...।”
“बेवकूफ देवराज चौहान के पीछे जाओ।” उधर से झल्लाकर कहा गया –“वो सड़क के दूसरी तरफ है।”
“हां।”
“फौरन किसी कट से कार वापस लो और उसे ढूंढ़ो। वो तुम्हारी नजरों से दूर हो गया तो तुम्हारी खैर नहीं।”
ड्राइवर ने तुरंत फोन बंद किया और कार दौड़ा दी।
☐☐☐
देवराज चौहान आधा घंटा सड़क किनारे और गलियों में घुसकर सड़क बदलता रहा। वो नहीं जानता था कि वो कहां है, परंतु अगर कोई उसके पीछे है तो उससे पीछा छुड़ा लेना चाहता था।
जब इसी प्रकार काफी देर बीत गई और पीछे लगा कोई न दिखा तो दिखाई पड़ने वाली कॉफी शॉप में जा घुसा। वहां सेल्फ सर्विस थी। उसने पेमेंट देकर कॉफी ली और एक टेबल पर जा बैठा था। रेस्टोरेंट में ज्यादा भीड़ नहीं थी। वो उस ड्राइवर को नहीं देख पाया था जो कि उस पर नजर रखे, दूर रहकर पैदल ही उसका पीछा करते कॉफी शॉप तक आ गया था और बाहर ही खड़ा रह कर उसने फोन पर किसी को देवराज चौहान के बारे में खबर दे दी। जवाब में जो निर्देश मिले, उन्हें सुनने के बाद उसने फोन बंद करके जेब में रखा और वहीं टहलने लगा।
☐☐☐
देवराज चौहान ने कॉफी समाप्त की। तब तक उसे वहां लगा फोन बूथ नजर आ गया था। वो फोन बूथ में गया और मार्शल के दिए फोन नम्बरों में से एक पर फोन किया। बात हो गई।
“मैं देवराज चौहान बोल रहा हूं।” देवराज चौहान ने कहा
“हिन्दुस्तान से आए हो?” उधर से पूछा गया।
“हां।”
“किसके साथ?”
“जगमोहन के।”
“होटल अलजीरा पहुंच गए तुम दोनों।”
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और कहा।
“तो तुम लोग हमारे अलजीरा पहुंचने की सोचे बैठे हो।”
“ये ही तो प्रोग्राम बताया गया हमें। हमारे दो एजेंट होटल अलजीरा तुम्हारे इंतजार में मौजूद हैं।”
“तुम्हारे एजेंट एयरपोर्ट पर थे?”
“नहीं। सावधानी के नाते हमने तुम्हें एयरपोर्ट पर रिसीव करना ठीक नहीं समझा। बात क्या है?”
“एयरपोर्ट पर हमें मार्शल के आदमियों ने रिसीव किया और…।”
“ओह नहीं, वो हमारे आदमी नहीं थे।” उधर से तेज स्वर में कहा गया।
“तुम लोगों ने गलती की। एयरपोर्ट से ही हम पर नजर रखनी चाहिए थी। हमें रिसीव करने वाले इकबाल खान सूरी के आदमी हो सकते हैं या कोई और ही मामला हो रहा है यहां।”
“वो इकबाल खान सूरी के आदमी ही रहे होंगे। ये तो बुरा हुआ।”
“जगमोहन का फोन आया?”
“जगमोहन? क्या वो तुम्हारे साथ नहीं है?” उधर से उलझन-भरे स्वर में पूछा गया।
देवराज चौहान को लगा कि जगमोहन कहीं मुसीबत में न पड़ गया हो।
“मैं होटल अलजीरा जा रहा...।”
“लेकिन अब तुम कहां हो। जगमोहन तुम्हारे साथ क्यों नहीं हैं। तुम लोगों के साथ क्या हुआ?”
“फोन पर बातें नहीं हो सकतीं। मैं अलजीरा होटल पहुंचकर ही तुमसे बात करूंगा। तुम्हारा नाम?”
“जैकी।”
“तुम्हारा बड़ा कमल चावला है?”
“हां।”
“तुम्हारे दुश्मनों के पास तुम सबकी खबरें हैं। मेरे खयाल में तुम सब खतरे में हो।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा— “तुम लोग क्या सोचते हो कि इकबाल खान सूरी को तुम सबकी खबर है कि नहीं?”
“अभी ये स्पष्ट नहीं हो सका। इस बात को लेकर हम उलझन में हैं कि...।”
“इकबाल खान के पास तुम लोगों की सब खबरें हैं।”
“नहीं, ये कैसे हो...।”
देवराज चौहान ने रिसीवर वापस रख दिया और फोन बूथ से निकलकर कॉफी शॉप के दरवाजे की तरफ बढ़ गया। दरवाजा खोलकर बाहर निकला कि ठिठक गया। सामने ही वो ही टैक्सी ड्राइवर खड़ा था।
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए उसे देखते ही वो मुस्कराया। आगे बढ़ा। देवराज चौहान के पास आ पहुंचा।
“आप तो भाग खड़े हुए।”
“कौन हो तुम?” देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला—”तुम मार्शल के एजेंट नहीं हो।”
“कैसे जाना?” वो शांत स्वर में बोला।
देवराज चौहान कठोर निगाहों से उसे देखता रहा।
“तुम तब से मेरे पीछे हो?” देवराज चौहान ने कहा।
उसने सहमति से सिर हिला दिया।
“किसके भेजे हो तुम?”
“आपको कुछ देर इसी कॉफी शॉप में रहना होगा। आपसे मिलने आ रहा है कोई।”
“कौन?”
“ये तो मुझे भी नहीं पता । परंतु मुझे कहा गया है कि कुछ देर आपको यहीं पर रोकू”
“कैसे रोकोगे?” देवराज चौहान की आवाज में सख्ती उभरी।
उसने जेब थपथपाई।
देवराज चौहान उसकी पैंट की जेब का उभार देखकर समझ गया कि वहां रिवॉल्वर है।
“तुम्हारे पास रिवॉल्वर नहीं हो सकती। क्योंकि अभी तुम प्लेन पर सफर करके आए हो। झगड़ा करने का क्या फायदा। कुछ देर रुक जाना ही ठीक है। अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हें बेहिचक शूट कर दूंगा।”
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता छाई रही। बोला।
“जगमोहन कहां है?”
“उसके पीछे हमारे ही आदमी हैं।” वो शांत स्वर में कह उठा।
”तुम लोग मार्शल के बारे में काफी कुछ जानते हो। कहां से मिली जानकारी?” देवराज चौहान ने पूछा।
“कॉफी शॉप के भीतर जाओ। अगले बीस मिनट तक बाहर मत निकलना।”
“उसके बाद तो जा सकता हूं।” व्यंग से बोला देवराज चौहान।
“नहीं। कोई तुमसे मिलने आ रहा है। पता नहीं अब तुम्हारा क्या होगा मेरा काम तो ऑर्डर की तामील करना है। लेकिन इतना तो कह ही सकता हूँ कि तुम्हारा दुबई का सफर बढ़िया नहीं रहने वाला।” कहते हुए उसका स्वर सख्त हो गया था।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और पलटकर वापस कॉफी शॉप में प्रवेश कर गया। सीधा भीतर मौजूद फोन बूथ में पहुंचा और वहां से जैकी को फोन किया। बात हुई।
“मुझे लगता है कि मुझे घेर लिया गया है। इस वक्त मैं कॉफी शॉप में हूँ।” देवराज चौहान ने फोन पर कहा।
“कॉफी शॉप किधर है?”
“मैं नहीं जानता।”
“वहां के लोगों से पूछो और मुझे बताओ।” उधर से जैकी ने तेज स्वर में कहा।
“मैं अभी तुम्हें फोन करता हूं।” कहकर देवराज चौहान ने रिसीवर रखा और फोन बूथ से बाहर निकला।
परंतु अगले ही पल ठिठक गया।
नजरें कॉफी शॉप के शीशे के दरवाजे पर जा टिकीं, जहां से कामनी भीतर प्रवेश कर रही थी। वो कमीज-सलवार पहने थी और बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसके साथ वो ही ड्राइवर था। देखते-ही-देखते ड्राइवर ने उसकी तरफ इशारा किया और फिर पलटकर बाहर निकलता चला गया।
देवराज चौहान एकटक कामनी को देख रहा था। कामनी ने उसे देखा,अगले ही पल उसने कामनी को चौंकते और संभलते देखा।
स्पष्ट था कि वो नहीं जानती थी कि यहां पर वो उसे देखेगी।
देवराज चौहान के सामने ये बात भी साफ हो गई थी कि दुबई पहुंचने पर उसके आस-पास इकबाल खान सूरी के ही आदमी थे। देवराज चौहान एकाएक सतर्क हो उठा था। स्पष्ट था कि कामनी यहां अकेले नहीं आई होगी। बाहर उसके आदमी मौजूद होंगे। कामनी अब उसकी तरफ बढ़ने लगी थी उसकी आंखों में सिकुड़न मौजूद थी।
देवराज चौहान की निगाह उस पर टिकी थी। शांत-सी मुस्कान होंठों पर आ गई थी।
“मुझे आशा नहीं थी कि हम इतनी जल्दी फिर मिलेंगे।” कामनी शांत स्वर में बोली—”कल मैं दुबई पहुंची हूँ और आज तुम दुबई में मुझे मिल गए। मुझे सच में हैरानी हो रही है। कहीं तुम मुझे प्यार तो नहीं करने लगे और मेरे लिए दुबई आ गए। आओ, हमें काफी बातें करनी हैं। वहां बैठकर बात करते हैं।” कामनी ने एक खाली टेबल को देखा।
“कॉफी लोगी?” देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान थी।
“जरूर।”
देवराज चौहान कॉफी के काउंटर की तरफ बढ़ गया।
कामनी खाली टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर आ बैठी।
देवराज चौहान का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। वो जानता था कि कामनी से ये मुलाकात सुख-भरी नहीं होने वाली। कामनी यहां खामखाह नहीं आई। बातें तो होंगी ही।
वो कॉफी के दो प्याले लिए टेबल पर पहुंचा। एक प्याला उसने कामनी के सामने रखा और दूसरा, खुद बैठते हुए अपने सामने किया और कामनी को देखा।
कामनी गम्भीर निगाहों से उसे देख रही थी। वो कह उठी।
“तुम्हें सुरेंद्र पाल कहूं या देवराज चौहान?”
“देवराज चौहान।”
“तो तब तुमने मुझे अपना गलत नाम बताया था जब सूरत में हम मिले कामनी बोली।
“कुछ भी कह लो। मैं देवराज चौहान हूँ।” देवराज चौहान मुस्कराया। कॉफी का घूंट भरा।
“मार्शल के लिए कब से काम करते हो?”
“मैं मार्शल के लिए काम नहीं...।”
“तुम मार्शल के एजेंट हो।” कामनी का स्वर सख्त हो गया—”सूरत में तुमने जानबूझ कर मेरे नजदीक आने की चेष्टा की। ये मार्शल का ही कोई प्लान था जबकि मैं सोचती रही कि मुझ पर हमला करने वाले बाबा रतनगढ़िया के आदमी...।”
“वो बाबा रतनगढ़िया के ही आदमी थे।” देवराज चौहान ने कहा।
“और तुम मार्शल के आदमी।”
“मैं मार्शल का एजेंट नहीं, डकैती मास्टर देवराज चौहान हूं।”
“डकैती मास्टर देवराज चौहान?” कामनी के माथे पर बल पड़े।
“हां।”
“डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम मैंने सुन रखा है, परंतु वो तुम नहीं हो सकते।”
“क्यों?”
“क्योंकि तुम मार्शल के एजेंट हो और सूरत में भी तुमने मुझ पर कोई चाल चलनी चाही, परंतु...।”
“मैं डकैती मास्टर देवराज चौहान हूं। सूरत में हमारी मुलाकात महज इत्तफाक थी। मैंने दो बार तुम्हारी जान बचाई।”
कामनी, देवराज चौहान को घूरने लगी।
“तुम जानते हो कि मैं कुछ घंटों में ही देवराज चौहान की तस्वीर हिन्दुस्तान से ई-मेल के जरिए यहां मंगा सकती हूं।”
“ऐसा जरूर करो। ताकि मेरी हकीकत जान सको।”
“तो तुम्हारा मतलब है कि तुम मार्शल के एजेंट नहीं...।”
“नहीं हूँ। इस काम के लिए उसने मुझे किराए पर लिया है।”
“इस काम के लिए?” कामनी ने शब्दों को चबाया।
“हां।”
“क्या काम?”
“इकबाल खान सूरी का पता लगाना।”
कामनी देवराज चौहान को घूरने लगी।
देवराज चौहान ने कॉफी का बूंट भरा।
“मार्शल के पास बेहतरीन एजेंट हैं। वो तुम्हें काम क्यों करने को कहे कामनी बोली।
“वो दो बार पहले भी मेरे से काम ले चुका है।”
“कल शाम तुमने मुझे मुम्बई एयरपोर्ट पर छोड़ा। आज तुम दुबई पहुंच चुके हो और कहते हो कि मार्शल ने तुम्हें इकबाल खान सूरी का पता लगाने भेजा है। कल शाम के बाद मार्शल से बात हो गई और आज तुम दुबई आ गए।”
“उसने इस काम के पैसे भी दे दिए हैं। पूरे पैसे।”
“बेशक काम हो या न हो।”
“इस बारे में मार्शल जाने । मुझे पैसे मिल चुके हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
“साथ में कौन आया है तुम्हारे?”
“जगमोहन। मेरा दोस्त। मेरा साथी।” देवराज चौहान की निगाह कामनी के चेहरे पर थी।
“मार्शल जानता था कि सूरत में तुम मेरे साथ हो?”
“हां।”
“समझी। तो मार्शल सोचता है कि हमारी पहचान का फायदा तुम्हें मिल जाएगा। मैं तुम्हें इकबाल खान सूरी का पता बता...।”
“इस बारे में मार्शल ने मुझे कुछ नहीं कहा।”
कामनी कठोर निगाहों से देवराज चौहान को देखती कह उठी।
“इकबाल खान सूरी का पता लगाकर मार्शल क्या करेगा?”
“तुम बेहतर जानती हो कि मार्शल क्या करेगा।”
“तुम बोलो।”
“वो इकबाल खान सूरी को खत्म करेगा।”
“ये काम भी तुम करोगे, है न?”
“नहीं । मेरा काम इकबाल खान सूरी का पता लगाते ही खत्म हो जाएगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“तुम मेरे भरोसे दुबई आए हो न कि मैं तुम्हें इकबाल खान सूरी – पता बता दूंगी।”
“मैंने ऐसा नहीं सोचा।
“दिमाग में तो होगा कि...।”
“नहीं। मैं इस तरह काम नहीं करता।” देवराज चौहान बोला- “इस तरह के सहारे लेना मेरी आदत नहीं है।”
“तुम बेवकूफ हो। क्यों यहां मरने आए हो। वापस हिन्दुस्तान चले जाओ।” बेहद सख्त स्वर में कहा कामनी ने—”मैं किसी से इस तरह बात नहीं करती। परंतु ये तुम हो, इसलिए आराम से बात कर रही हूं। वापस हिन्दुस्तान चले जाओ।”
“तुम मेरी बहुत चिंता कर रही...”
“मैंने कहा है, शाम की फ्लाईट से हिन्दुस्तान लौट जाओ। वरना, बे-मौत मरोगे।” कामनी धीमे स्वर में गुर्रा उठी।
“मार्शल के बारे में तुम्हें इतनी खबरें कहां से मिल जाती हैं?” देवराज चौहान बोला-”जैसे कि मेरे और जगमोहन के दुबई आने की खबर । तुम्हारा कोई आदमी मार्शल के लोगों में मौजूद है।”
कामनी कुछ पल उसे घूरती रही फिर बोली।
“हमारा कोई आदमी मार्शल के एजेंटों में मौजूद नहीं है। महीना भर पहले ही हमें मार्शल के बारे में पता लगा।”
“जब इकबाल खान सूरी अचानक गायब हो गया था।” देवराज चौहान बोला।
कामनी के होंठ भिंच गए। बोली।
“तुम काफी कुछ जानते हो।”
“ये मार्शल की दी जानकारी है।”
“मार्शल के दो एजेंट, मेरे आदमियों में किसी तरह शामिल हो गए थे और हमारा विश्वास जीतकर वो इकबाल खान से भी कुछ बार किसी-न-किसी काम के सिलसिले में मिल चुके थे। इकबाल खान की सुरक्षा के काम मैं देखती हूं। वो दोनों मेरी निगाहों में आ गए। मैंने C.C.T.V. कैमरे द्वारा संदिग्ध हालत में उन्हें बातें करते देखा। उन्हें पकड़ लिया गया और सख्ती करने पर उन्होंने इस बात को कबूला कि वो मार्शल के एजेंट हैं और उन्हें इकबाल खान सूरी की हत्या करने भेजा गया है।”
“परंतु वो तो अभी पकड़े नहीं गए।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
“बाहर उतनी ही खबर जाएगी, जितनी हम चाहते हैं। वो महीना-भर पहले ही पकड़े गए थे। उससे अगले दिन इकबाल खान सूरी गायब हुआ था।” कामनी ने शब्दों को चबाकर कहा।
“परंतु मार्शल के पास तो खबर है कि वो नहीं पकड़े गए।”
“बोला तो, जो मैं चाहूंगी वो ही बात बाहर जाएगी। हमने उन्हें पकड़ा। उनके मुंह से सब निकलवा लिया। परंतु उनके साथियों से हमने सम्पर्क भी नहीं टूटने दिया। वे दुबई स्थित अपने कांटेक्ट से बात करते रहे और तब रिवॉल्वर उनके सिर पर लगी होती। वो वो ही बातें कहते जो हम चाहते। इस तरह उन्हें अभी तक जिंदा रखा हुआ है।"
“ओह।”
“उन्होंने अपने कांटेक्ट से बातें की और हमें पता चला कि मार्शल इंडिया से दो लोगों को भेज रहा है जो इकबाल खान सूरी की तलाश करेंगे। उन दोनों के नाम देवराज चौहान और जगमोहन बताए गए।”
“सही है।”
“तुम सुरेंद्र पाल हो या देवराज चौहान?” कामनी ने चुभते स्वर में पूछा।
“देवराज चौहान नाम है मेरा।”
“सुरेंद्र पाल नहीं?”
“नहीं।”
“तो तुमने सूरत में मुझे गलत नाम क्यों बताया?"
“अजनबी लोगों को मैं अक्सर सुरेंद्र पाल ही नाम बताता हूं।” देवराज चौहान ने कहा ।
“तुम शाम की फ्लाईट से वापस चले जाओ।”
“नहीं। मैं इस तरह वापस जाने वाला नहीं।” देवराज चौहान ने उसकी आँखों में झाँका।
“तुम्हें चले जाना चाहिए। यहां रहे तो तुम्हारी जान भी जा सकती है। मार्शल के काम से ही हाथ खींच लो।”
“तुम्हें इकबाल खान सूरी बहुत प्यारा है?” देवराज चौहान बोला।
“बेकार के सवाल मत करो।”
“जवाब दो मेरी बात का कि तुम्हें इकबाल खान सूरी बहुत प्यारा है?
जबकि उसका कोई भविष्य नहीं है। हिन्दुस्तान की सरकार उसके पीछे पड़ी है। अब नहीं तो बाद में, वो मरेगा जरूर। कब तक वो जिंदा रह सकता है। ऐसे इंसान से तुम्हारा प्यार या वफादारी कब तक चल सकती है। तुम्हें रास्ता बदल लेना चाहिए।”
“तुम्हारा मतलब कि रास्ता बदलकर तुम्हें इकबाल खान के बारे में बता दूं।
“बुरा क्या है। उसके साथ रहकर तुम भी बदनाम होती जा रही हो।”
“मेरी बदनामी की फिक्र मत करो। वैसे मेरा खयाल ठीक निकला कि तुम सूरत की छोटी-सी पहचान को कैश कराना चाहते हो कि मैं तुम्हें इकबाल खान सूरी के बारे में बता दूं। परंतु ये बात अपने दिमाग में रख लो कि तुम कभी भी मुझसे कुछ नहीं जान पाओगे। मैं धोखेबाज नहीं हूं जो मुंह खोल दूं।
“मत बताओ। मैं दोबारा नहीं पूछूंगा।” देवराज चौहान मुस्कराया—”लेकिन सूरत की मुलाकात को कैश कराने मैं दुबई नहीं आया हूं। मुझे अपना काम करना आता है।”
“तो तुम दुबई से जाने वाले नहीं?”
“नहीं।”
“ठीक है। सौदा करते हैं।” कामनी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“सौदा?”
“तुम्हारा साथी जगमोहन इस वक्त मेरे आदमियों के कब्जे में है।” कामनी बोली।
देवराज चौहान चौंका।
“जगमोहन, तुम्हारे कब्जे में?”
“हां । जब मैं यहां पहुंची, बाहर थी तो मुझे फोन पर ये खबर मिली। बोलो, जगमोहन को मार दूं?”
“तुम ऐसा नहीं कर सकती।” देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया।
“मैं सब कुछ कर सकती हूं। चैक करना चाहते हो तो यहीं पर बैठे-बैठे तुम्हें जलवा दिखा देती हूं।” कामनी ने मोबाइल को अपनी छातियों के बीच में से निकाला—“जगमोहन को मारने का ऑर्डर दे दूं।”
“बहुत बुरी मौत मरोगी तुम, अगर तुमने ऐसा किया तो।” देवराज चौहान धीमे स्वर में गुर्राया।
“मैं तुम्हें भी अभी मरवा सकती हूं। बाहर मेरे आदमी मौजूद हैं।
देवराज चौहान के दांत भिंच गए। नजरें कामनी पर थीं।
“तुम आज शाम की फ्लाइट से जगमोहन के साथ वापस इंडिया जा रहे हो। समझ गए न।” कामनी का स्वर कठोर हो गया—“मेरे से रहम की आशा मत करना । जो मैं कहूं वो हो जाना चाहिए।”
देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक भाव उभरे।
कामनी ने मोबाइल से नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया।
“हां-मैं।” बात होते ही कामनी ने कहा और कैफे का पता बताकर बोली- “उसे कैफे से बाहर ले आओ।” कहने के साथ ही कामनी ने फोन बंद किया और वापस ब्रा में फंसाकर बोली-“ मैं किसी के साथ रियायत नहीं करती। मैं तो यहां मार्शल के एजेंट को समझाने आई थी कि इकबाल खान सूरी का खयाल छोड़ दे। वरना वे सब मारे जाएंगे। परंतु ये तुम निकले तुम्हारे साथ मैं नर्मी से पेश आ रही हूं क्योंकि हमारी पिछली मुलाकात ठीक रही थी। परंतु मेरी नर्मी का गलत मतलब मत लेना। आज शाम को वापस इंडिया चले जाना जगमोहन के साथ, वरना अंजाम के तुम जिम्मेवार होगे।”
“जगमोहन यहां लाया जा रहा है?” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में पूछा।
“हां”
“और वो दो एजेंट जो तुम्हारे पास हैं, उन्हें भी वापस कर दो।”
“उन पर मेरा हक है।” कामनी ने ठंडे स्वर में कहा-“आज शाम तक उन्हें खत्म कर दिया जाएगा।”
“ऐसा मत करना।”
“ये होकर रहेगा। हम भीतर घात करने वाले कमीने को कभी भी जिंदा नहीं छोड़ते। उन्होंने हमारा भरोसा जीता। हमारे आदमी बने और वो इकबाल खान सूरी की हत्या करने जा रहे थे कि सही मौके पर हमारे हाथ लग गए।”
“इकबाल खान सूरी कहां गायब हुआ है?”
कामनी ने उसकी आंखों में झांका।
“वो दुबई में ही कहीं छिपा है या पाकिस्तान जा पहुंचा है?” देवराज चौहान उसकी आंखों में झांक रहा था।
“इंडिया वापस जाने का इरादा नहीं लगता तुम्हारा?” कामनी ने गर्दन सीधी की।
देवराज चौहान चुप रहा। उसे देखता रहा।
“मैंने तुम्हें एक मौका दिया है दुबई से निकल जाने का । जगमोहन को जिंदा छोड़कर जा रही हूं। अगर तुमने ये मौका गंवा दिया तो पछताओगे। यहां मार्शल के गिनती के एजेंट हैं और सबके बारे में हम जान चुके हैं। समझ लो कि सब पर हमारी नजर है। वो कभी भी मारे जा सकते हैं। उनके ठिकानों पर हमारी नजर है। इकबाल खान सूरी की ताकत का ठीक से अंदाजा नहीं लगा रहे तुम। जितनी ताकत वो मुम्बई में आज भी रखता है, उससे कहीं ज्यादा ताकत वो दुबई में रखता है। ‘दुबई का आका’ उसे यूं ही नहीं कहते लोग। दुबई की सरकार से भी उसकी अच्छी बनती है। इकबाल खान सूरी के लिए, दुबई में तुम लोग मच्छर की तरह हो। ये रास्ता छोड़ दो और वापस इंडिया चले जाओ।” कठोर स्वर में कहने के साथ ही कामनी उठी और पलटकर दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
देवराज चौहान उसे गम्भीर निगाहों से तब तक देखता रहा जब तक दरवाजा खोलकर वो बाहर न निकल गई। ये कामनी का नया रूप उस सामने था। खतरनाक और शातिर औरत का रूप।
उसके बाहर निकलते ही देवराज चौहान उठा और फोन बूथ की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान ने फोन से जैकी से बात की।
“मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम सब लोग, मार्शल के सब एजेंट और तुम सबके ठिकाने इकबाल खान सूरी की निगाहों में हैं। वो हर एजेंट की, हर ठिकाने की निगरानी कर रहे...”
“ये कैसे हो सकता है।” जैकी की आवाज कानों में पड़ी—“उन्हें कैसे पता हमारे बारे में और हमारे ठिकाने के बारे...।”
“तुम्हारे वो दो एजेंट जो इकबाल खान सूरी की हत्या करने के लिए, इकबाल खान के करीब जा पहुंचे थे, वो पकड़े जा चुके हैं और बेशक वो तुमसे अभी भी बातें कर रहे हैं, परंतु रिवॉल्वर के साए में। वे वो ही बात करते हैं जो उनसे कहा जाता है वो वो ही पूछते हैं जो उन्हें समझाया जाता है। उन्हें मालूम है कि मैं और जगमोहन इंडिया से मार्शल के आदमी बनकर दुबई पहुंच रहे हैं?”
“मालूम है।”
“उसी वजह से ये बात इकबाल खान सूरी तक पहुंची और...”
“तुम्हें ये सब बातें कैसे मालूम हुईं?”
“अभी-अभी मेरी मुलाकात कामनी से होकर हटी है।”
“कामनी? तुम्हारा मतलब कि नसरीन शेख?” उधर से जैकी चौंके स्वर में कहा।
“वो ही।”
“तुमसे क्यों मिली वो?”
“वो मुझे पहले से ही जानती है। जो मैंने तुम्हें बताया, वो सब उसी ने बताया है और वो झूठ कहती नहीं लगी। तुम लोग अपने ठिकाने छोड़ दो। सावधानी से अपनी जगहें बदल लो। उसने सबको खत्म करने की धमकी दी है। वो ऐसा कर भी सकती है। मुझे तो ऐसा ही लगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“वो सच में खतरनाक है।”
“मुझे उसने शाम तक इंडिया वापस जाने को कहा है। जगमोहन उसकी कैद में पहुंच चुका है, परंतु उसे वो वापस मेरे हवाले करने जा रही है। तुम्हारे वो दो एजेंट जो उनके कब्जे में हैं और अब तक तुमसे बात करते रहे हैं,उनसे अब शायद बातें न हो सकें। क्योंकि कामनी ने मुझे सब कुछ बता दिया है और उन्हें वो शाम तक खत्म करने को कह रही थी।”
जैकी के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
“तुम लोग अपनी चिंता करो। मुझे कामनी के इरादे ठीक नहीं लगे।” देवराज चौहान ने कहा।
“अगर तुम्हारी बातें सच हैं तो ये मुसीबत वाली बात हो गई।”
“मैं फोन बंद करता...”
“तुमने कमल चावला से बात की?”
“नहीं। मैंने पहला नम्बर तुम्हारा ही मिलाया था। क्योंकि तुम दुबई एजेंटों को कंट्रोल करते हो।”
“और क्या पता लगा नसरीन शेख से?”
“जो पता लगा, बता दिया । इकबाल खान सूरी के बारे में कोई खबर है तुम्हारे पास?”
“नहीं। उसके बारे में कोई खबर नहीं है।”
“ठीक है। जो बातें मैंने कहीं हैं उन पर सोचो और अपने बचाव में जो कर सकते हो, कर लो।” कहकर देवराज चौहान ने रिसीवर रखा और बूथ से बाहर निकलकर शीशे के दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
दरवाजा धकेलकर बाहर निकला।
सामने वो ही टैक्सी ड्राइवर खड़ा दिखा।
देवराज चौहान उसके पास पहुंचता कह उठा।
“जगमोहन नहीं आया अभी तक?”
“हमारे आदमी उसे लेकर आ रहे हैं।” उसने कहा।
तब तक देवराज चौहान ने सब तरफ नजर मार ली थी। कामनी कहीं भी नहीं थी।
“कामनी गई?”
“मैडम के बारे में पूछ रहे हैं?” वो बोला।
“हां।”
“मैडम का यहां क्या काम?”
देवराज चौहान ने उस आदमी को गहरी निगाहों से देखा फिर कहा।
“काफी हाथ-पांव फैला रखे हैं इकबाल खान सूरी ने दुबई में?”
“वो तो ‘दुबई का आका’ है।” उसने मुस्कराकर कहा-”मुम्बई के बाद दुबई उसका दूसरा घर है।”
“और तीसरा घर पाकिस्तान।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
उसने देवराज चौहान को देखा और कह उठा।
“मेरे खयाल में मैडम जरूर तुम्हें कुछ समझा के गई होंगी...”
“हां। वापस इंडिया चले जाने को कहा।”
“तो तुम्हें चले जाना चाहिए। वरना जिंदा नहीं बचोगे।” उसने तीखे स्वर में कहा।
“इकबाल खान सूरी कहां है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“मैडम से क्यों नहीं पूछा।” उसका स्वर तीखा ही रहा।
“पूछा था। बताया नहीं उसने।”
तभी एक काली कार वहां आकर रुकी।
देवराज चौहान ने पहचान लिया कि ये वो ही काली कार है, जो एयरपोर्ट से उनके पीछे लगी थी।
“तब तुमने बताया नहीं कि पीछे आने वाली कार में भी तुम्हारे आदमी हैं।” देवराज चौहान बोला।
“तब क्या तुम्हें मुझ पर कोई शक हो गया था जो एकाएक भाग निकले।”
देवराज चौहान की नजर कार पर जा टिकी थी।
उस कार का पीछे का दरवाजा खुला और एक आदमी जगमोहन के साथ बाहर निकला। बाहर निकलते ही उस आदमी ने रिवॉल्वर जेब में रख ली थी। जाहिर था कि जगमोहन को रिवॉल्वर से दबा रखा था। जो ड्राइविंग सीट पर बैठा था वो बैठा ही रहा। देवराज चौहान ने उन दोनों के चेहरों की पहचान की। जगमोहन देवराज चौहान के पास आ पहुंचा था। उसने ड्राइवर को देखकर कड़वे स्वर में कहा।
“तो तुम भी यहां हो।”
जवाब में वो मुस्कराकर रह गया।
“क्या हो रहा है ये सब?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
“चलो यहां से।” देवराज चौहान ने कहा।
वे जाने लगे तो टैक्सी ड्राइवर कह उठा।
“मैडम की बात याद रखना और शाम तक दुबई छोड़ देना
देवराज चौहान, जगमोहन के साथ आगे बढ़ गया।
“ये किस मैडम की बात कर रहा...।”
“कामनी की।
“वो कहां है?”
“अभी मुझे मिली थी। उसके आदमी बराबर मेरे पीछे रहे...।”
“दुबई छोड़ने की क्या बात हो रही...।”
देवराज चौहान ने कामनी से हुई सारी बातचीत बता दी।
“ओह । वो इतनी जल्दी सामने आ जाएगी। हमने नहीं सोचा था।”
जगमोहन बोला।
देवराज चौहान खामोश रहा।
“इन बातों से तो लगता है कि वो इकबाल खान सूरी के बारे में तुम्हें बताने वाली नहीं कि वो कहां है।”
“मैंने इस बात की आशा भी कभी नहीं रखी।”
“अब हम कहां जा रहे हैं?
“अलजीरा होटल । मार्शल के एजेंटों के सब ठिकाने, सब एजेंट कामनी की नजरों में हैं। ये सारी जानकारी उन्हें उन दोनों एजेंटों से मिली, जो इकबाल खान सूरी की हत्या करने के लिए उसके पास जा पहुंचे थे।”
“जिन्हें आज शाम तक मार दिया जाएगा?”
“कामनी ने तो ऐसा ही कहा।”
“मुझे पूरा भरोसा है कि इकबाल खान सूरी के आदमी इस वक्त हम पर नजर जरूर रख रहे होंगे।”
“जरूर, ऐसा ही हो रहा होगा।”
तभी उन्हें टैक्सी मिल गई। वे अलजीरा होटल की तरफ चल पड़े।
“अब हम क्या करेंगे?” जगमोहन ने पूछा- “उनकी नजर हम पर है।”
“पहले ये देखना है कि कामनी क्या करती है। मार्शल के एजेंट उसकी नजरों में हैं और उसने मुझे धमकी दी है कि वो उन्हें खत्म कर सकती है। मुझे वो खतरनाक लगी।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
☐☐☐
अलजीरा की तीसरी मंजिल पर उन्हें कमरा मिला। मार्शल ने उन्हें यहीं टिकने के लिए कहा था। सामान के नाम पर उनके पास सिर्फ पासपोर्ट थे,जो कि जेबों में थे तो बचे रह गए थे। उनका सामान तो उसी टैक्सी से चला गया था। नहा-धोकर देवराज चौहान ने वो ही कपड़े पहन लिए। जगमोहन नहाने गया हुआ था। शाम के पांच बज गए थे। देवराज चौहान ने मन-ही-मन प्रोग्राम बनाया कि किसी मार्किट जाकर, सबसे पहले कुछ जोड़ी कपड़े खरीदेंगे तभी डोर बैल बज उठी।
देवराज चौहान की समझ में नहीं आया कि कौन हो सकता है। जबकि वेटर कुछ देर पहले ही गया था।
दरवाजे पर पहुंचकर देवराज चौहान ने पूछा।
“कौन?”
“मार्शल ने तुम्हारे लिए फोन भेजा है।” बाहर से धीमी आवाज आई।
देवराज चौहान ने दरवाजा खोला। सामने पच्चीस वर्ष का स्थानीय युवक खड़ा था। उसने हाथ में दबा मोबाइल देवराज चौहान को थमाया और पलटकर वापस चला गया। देवराज चौहान कुछ पल उसे जाते देखता रहा फिर दरवाजा बंद किया। हाथ में थमे फोन को देखा फिर आगे बढ़कर उसे टेबल पर रखा कि तभी वो बजने लगा।
“हैलो।” देवराज चौहान ने कॉलिंग स्विच दबाकर बात की।
“सुरेंद्र पाल कहूं या देवराज चौहान।” कामनी का शांत स्वर कानों में देवराज चौहान के होंठ भिंच गए। आंखें सिकुड़ीं।
“देवराज चौहान कहो।“ देवराज चौहान बोला
“फोन मार्शल ने नहीं, मैंने भेजा है कि तुमसे बात कर सकू।”
“तुम बताना चाहती हो कि मुझ पर तुम्हारी नजर है।“ देवराज चौहन बेहद शांत था।
“वो तो रहेगी ही, बेशक दुबई में तुम कहीं भी चले जाओ।”
“अब क्या चाहती हो?”
“फौरन एयरपोर्ट पहुंचो। मेरा आदमी वहां तुम्हें मुम्बई की दो टिकटें देगा। दो घंटों बाद ही फ्लाइट है। मैं तुम्हें यहां से निकल जाने का मौका दे रही हूं। इस मौके को छोड़ो मत। दुबई से निकल जाओ।”
“मेरा इरादा दुबई छोड़ने का नहीं है।”
“यहां रहे तो मरोगे।”
“मैं इस तरह वापस जाने के लिए दुबई नहीं आया। हमने सूरत में कुछ क्क्त साथ बिताया था क्या वो सब देखकर तुम्हें अभी तक इस बात का एहसास नहीं हुआ कि मैं भागने वालों में से नहीं हूं।” देवराज चौहान ने कहा।
“इसे भागना नहीं, समझदारी कहते हैं।”
“मेरे से ऐसी समझदारी की आशा मत रखो। तुम्हारा ऐसा बदला रूप देखकर मुझे हैरानी हो रही है।”
“ये ही मेरा असली रूप है देवराज चौहान । रूप तो मैंने सूरत में बदला था कि तुम मुझे कमजोर लड़की समझो और मेरे साथ रहो। वहां मैं जिस तरह तुमसे पेश आई, वो सब ड्रामा था कि तुम मेरे में उलझे रहो। मेरा वक्त बीत जाए और दुबई के लिए फ्लाइट पकड़ने का वक्त आ जाए और ऐसा ही हुआ। मैंने तुम्हें खूब उल्लू बनाया और तुम बने। इसलिए मेरा दुबई का रूप तुम्हें पसंद नहीं आएगा।
“मैंने वहां तुम्हें दो बार बचाया था।”
“तो यहां पर तुम बेशक मेरे काम न आओ, परंतु मेरे लिए परेशानी भी खड़ी मत करो। ये सब।”
“देवराज चौहान, तुम मार्शल के भेजे हो। इकबाल खान सूरी के लिए आए हो, जिसकी सुरक्षा मेरे जिम्मे है। मैं तुम्हें कभी भी इकबाल तक नहीं पहुंचने दूंगी। जरूरत पड़ी तो तुम्हारी जान भी लूंगी । ऐसा न हो, इसी वास्ते तुम्हें दुबई छोड़ने को कह रही हूं।”
“ये मेहरबानी क्यों?”
“क्योंकि सूरत में तुमने मेरी जान बचाई थी। इस खातिर तुम्हें मरने से बचा रही हूं।”
“मेहरबानी तो तुम्हारी तब होती जब तुम मुझे इकबाल खान सूरी का सही ठिकाना बता देती।”
“इतनी भी मेहरबान नहीं हूं कि खुद ही आग लगा दूं। तुम दोनों यहा से जा रहे हो या नहीं?”
तब तक जगमोहन भी नहाकर आ गया था।
“मैं तुम्हें जवाब दे चुका हूं, कहो तो एक राय दूं?”
“क्या?”
“तुम जो चाहती हो करो और मैंने जो करना है, वो मैं करूंगा।” देवराज चौहान का स्वर सख्त हो गया।
“ये राय तुम्हें बहुत महंगी भी पड़ सकती है।” उधर आने वाला कामनी का स्वर भी सख्त हो गया।
“तुम जो करना चाहो, करो।”
“तीन घंटों में तुम्हें दिखाई दे जाएगा कि मैं क्या कर सकती हूं।”
उधर से तीखे स्वर में कामनी ने कहा और फोन बंद कर दिया गया था।
देवराज चौहान ने मोबाइल टेबल पर रखा।
“ये फोन कहां से आया?” जगमोहन के चेहरे पर उलझन थी।
“कामनी का आदमी दे गया था।”
“क्या बोलती है वो?” जगमोहन के माथे पर बल थे।
“हमें एयरपोर्ट पहुंचने को कह रही है।” देवराज चौहान तीखे अंदाज में मुस्कराया।
“दिमाग खराब हो गया है उसका।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
“उसे हलके में मत लो। वो खतरनाक है और इकबाल खान सूरी की ताकत रखती है।
“उसकी बात छोड़ो। ये बताओ कि अब हमने क्या कदम उठाना है?”
“तीन घंटों का इंतजार करेंगे। उसने तीन घंटों में मुझे कुछ दिखाने को कहा है।” देवराज चौहान गम्भीर हो गया।
क्या?”
सामने आ जाएगा और उसकी बात खोखली नहीं है, ये उसकी आवाज से लगा।
तुम्हारा मतलब कि हम होटल से न निकलें?”
“ऐसे में बाहर निकलना समझदारी नहीं। हमें तीन घंटे यहीं पर रहकर इंतजार करना होगा।”
“क्या वो होटल के भीतर, हम पर हमला करा सकती है?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
“कह नहीं सकता।”
“बेशक हम होटल से बाहर न निकलें, परंतु तीन घंटे के लिए हमें ये कमरा खाली छोड़ देना चाहिए कि...।
“हम इसी कमरे में रहेंगे।” देवराज चौहान सख्त और दृढ़ स्वर में कह उठा।
“उसके आदमी यहां आ गए तो हम उसका मुकाबला भी नहीं कर सकेंगे। हमारे पास हथियार नहीं हैं।”
“हथियार मंगाए जा सकते हैं।” देवराज चौहान ने आगे बढ़कर फोन उठाया— “मैं जैकी को फोन कर देता हूं।”
जगमोहन गम्भीर-सा देवराज चौहान को देखता रहा। देवराज चौहान ने जैकी का नम्बर मिलाकर बात की। उधर जैकी से ही बात हुई।
“हमें रिवॉल्वर और फालतू राउंड चाहिए।” देवराज चौहान ने कहा।
“एक घंटे में ये सब सामान लेकर मेरा आदमी अलजीरा पहुंच जाएगा।”
उधर से जैकी ने कहा।
“तुम्हें कैसे पता कि हम अलजीरा में हैं।”
“मेरे दो आदमी तुम दोनों के लिए होटल अलजीरा के बाहर मौजूद हैं।
उन्होंने तुम दोनों के पहुंचने की खबर दी।”
“यहां पर हम ज्यादा देर नहीं रह सकते। कामनी की निगाह हम पर है वो निगरानी करवा रही है। जब तक हम कामनी की निगाहों से ओझल नहीं होते, जब तक हमें टिकने को सुरक्षित जगह नहीं मिलती, तब तक हम ठीक से काम नहीं कर पाएंगे।”
“सही कहा तुमने।” उधर से जैकी का गम्भीर स्वर आया—”मैं अभी कमल चावला से बात करता हूं।”
“कमल चावला है कहां?”
“मैं नहीं जानता। वो हमारा चीफ है पर इकबाल खान सूरी की खबर पाने के लिए फील्ड में रहता है। उससे फोन पर तुम बात क्यों नहीं करते?”
“करूंगा।” देवराज चौहान बोला—”तुम्हें जो सामान कहा है, वो भिजवा दो।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
“हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं दुबई के। इकबाल खान सूरी अपना साम्राज्य यहां भी फैला रखा है।” जगमोहन बोला।
देवराज चौहान सोफा चेयर पर जा बैठा।
“हमें इकबाल खान सूरी की बातें, जो मार्शल और उसके एजेंटों ने बताई थीं, उन पर गौर करना चाहिए और कोई ऐसी रणनीति तैयार करनी चाहिए कि इकबाल खान की गर्दन तक पहुंचा जा... ।
“हमने उसकी गर्दन नहीं पकड़नी।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा-“उसकी पक्की खबर आगे देनी है कि वो कहां पर है।”
“इकबाल खान के आदमी हम पर नजर रखे हुए हैं, ऐसे में हम क्या
कर सकेंगे। वो...।”
“अभी इंतजार करो। साढ़े पांच बजे हैं। देखें तो सही कि तीन घंटों में कामनी क्या रंग दिखाती है।” देवराज चौहान बोला।
☐☐☐
आठ बज गए थे।
देवराज चौहान और जगमोहन होटल के कमरे में ही थे। अभी तक वहां ऐसी-वैसी कोई बात नहीं हुई थी। न ही अभी तक जैकी का भेजा बंदा रिवॉल्वरें लेकर आया था, जो कि उसने एक घंटे में बंदे के पहुंच जाने की बात कही थी। देवराज चौहान ने जैकी को कई बार फोन किया । बेल जाती रही, परंतु कॉल रिसीव नहीं की गई।
देवराज चौहान के लिए हैरानी की बात थी कि जैकी कॉल रिसीव नहीं कर रहा था। उसने हर बार कॉल रिसीव की थी, परंतु अब उससे बात नहीं हो पा रही थी। देवराज चौहान ने कमल चावला को फोन किया।
फौरन ही उधर से आवाज कानों में पड़ी।
“हैलो।”
“कौन बोल रहा है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“क-कमल चावला।” उधर से थकी-सी आवाज आई।
“मैं देवराज चौहान हूं। तुम्हें मेरे बारे में पता होगा कि...।”
“सब पता है मैं...”
“जैकी मेरी कॉल रिसीव नहीं कर रहा। उसने किसी के हाथ रिवॉल्वरें भेजने को कहा...”
“ओह, शायद तुम्हें कोई खबर नहीं है।” उधर से कमल चावला ने एकाएक
“कैसी खबर?”
इकबाल खान सूरी की तरफ से हमारे एजेंटों पर हमला हुआ है। कोई काम में जा रहा था तो कोई अपने आफिस में था, कोई ठिकाने पर था तो कोई बाजार में खरीददारी कर रहा था। सब पर लगभग एक ही समय में हमला हुआ। हमारे बहुत-से एजेंट मारे गए। मेरे खयाल में सारे ही मारे गए। परंतु कोई पक्की खबर नहीं है। मैं भी बाल-बाल बचा। तब मैं कार से उतरकर अपने ठिकाने की तरफ जाने ही वाला था कि गोलियों की आवाजें सुनीं और वहीं रुक गया। इस तरह मैं बचा।”
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
“मैंने पहले ही जैकी से कह दिया था कि ऐसा हो सकता है। कामनी मुझे ऐसा करने की धमकी दी थी।”
“मालूम है। जैकी ने ये बात मुझे भी बताई थी, मैंने उसे सावधानी बरतने को कहा था। परंतु ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये सब इतनी जल्दी हो जाएगा। हम लोग गुप्त रूप से दुबई में जमे, अपना काम कर रहे थे। हमारी किसी को खबर नहीं...।”
“उन दो एजेंटों ने सब कुछ खोला जो इकबाल खान सूरी को मारने वाले थे और पकड़े गए।”
“जो भी हुआ, बहुत बुरा हुआ। इन हालातों में, मेरे खयाल में तुम्हें वापस चले जाना चाहिए। कम-से-कम मैं तो अब दुबई में रहकर काम नहीं कर सकता। वो लोग अब मुझे पहचानने लगे हैं। इस प्रकार मैं कोई काम नहीं कर...।”
“तुम कहां हो?”
“मैं सड़क के किनारे मौजूद पार्किंग में कार खड़ी किए, उसके भीतर मौजूद हूं। मेरे लिए ये खतरे का वक्त है।”
“मुझे ठीक से अपनी जगह बताओ। मैं तुम्हारे पास आता हूं।”
“खतरा मोल मत लो । मेरे बहुत एजेंट मारे जा चुके हैं। मार्शल का दुबई का खेल खत्म हो गया है। हम अब तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकते।बेहतर यही है कि तुम वापस चले...।”
“तुम मुझे बताओ कि कहां हो तुम?”
उधर से कमल चावला के गहरी सांस लेने की आवाज आई फिर वो बोला।
“इकबाल खान तुम पर भी नजर रख रहा होगा।”
“हां। ऐसा ही है।”
“तुम मेरे पास आओगे तो इससे मैं खतरे में पड़ जाऊंगा। वो मुझे मार सकते हैं।” कमल चावला की आवाज आई।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
“मैं तुम्हारे पास होटल अलजीरा में आता...”
“इस तरह भी तो तुम्हें खतरा हो सकता है।”
“इस तरह कम खतरा आएगा। मैं अपने हिसाब से तुम तक पहुंचूंगा। वैसे भी मुझे रात बिताने के लिए कोई जगह चाहिए। अपनी किसी जगह पर जाने की मैं हिम्मत नहीं कर सकता। मैं तुम्हारे पास आऊंगा।”
“कब?” देवराज चौहान ने पूछा-”कब तक पहुंचोगे। तुम्हें यहां आने के लिए बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी। इकबाल खान सूरी के आदमी होटल के भीतर या बाहर कहीं मौजूद हैं। वो संख्या में ज्यादा भी हो सकते हैं।”
“रात भर में कभी भी आ जाऊंगा। मेरी फिक्र मत करो। मैं सतर्क रहूंगा।”
देवराज चौहान ने फोन बंद किया।
जगमोहन टकटकी लगाए देवराज चौहान को देख रहा था। वो बोला।
“क्या हुआ?”
“कामनी ने मार्शल के एजेंटों पर हमला कर दिया है।” देवराज चौहान दांत भींचकर बोला—“काफी सारे मारे गए हैं। कमल चावला का कहना
है कि मार्शल का दुबई का नेटवर्क फिलहाल तो खत्म हो गया है।”
जगमोहन ठगा-सा बैठा रह गया। देवराज चौहान को देखता रहा।
“क्या हुआ?”
देवराज चौहान उसे देखकर भिंचे होंठों से बोला।
“म-मुझे तुम्हारी बात का विश्वास नहीं आ रहा कि मार्शल के आदमी...।”
“कमल चावला ने बताया है अभी। कामनी सच में...।”
तभी हाथ में पकड़ा मोबाइल बज उठा।
“हैलो।” देवराज चौहान ने बात की। आवाज में सख्ती उभरी हुई थी।
“तुमने क्या सोचा था कि मैं तुम पर हमला कराऊंगी।” कामनी का स्वर कानों में पड़ा-”तुम पर हमला कराने की अभी नौबत नहीं आई, अभी तो तुम्हें समझा रही हूं कि मैं तुम्हारे साथ क्या-क्या कर सकती हूं अगर तुम दुबई छोड़कर नहीं गए तो।”
“तुम बचोगी नहीं।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
“तो तुम्हें पता चल गया कि मैंने दुबई से मार्शल के एजेंटों को साफ कर दिया है। ये है मेरी ताकत का छोटा-सा नमूना। मुझे सूरत वाली कामनी समझने की भूल मत करना, मैं दुबई की नसरीन शेख हूं और मेरे इशारे पर कुछ भी हो सकता है। मार्शल के सत्रह एजेंट मारे गए। कुल बाईस एजेंट मेरी नजर में थे। बचे हुए पांच अपनी जान बचाने के लिए भागे फिर रहे होंगे।कम-से-कम वो अब मार्शल के लिए काम नहीं करने वाले, करेंगे तो दुबई से बाहर, कहीं और ही करेंगे। जिनके भरोसे तुम दुबई आए थे, वो तो रहे नहीं । समझदारी ये ही है कि तुम दुबई छोड़ दो। वरना मेरे एक इशारे पर तुम पर ऐसा हमला होगा कि मारे जाओगे। कामनी कभी भी कोई बात गलत नहीं कहती।
“तुम मुझे डराने की चेष्टा कर रही हो।” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
मैं तुम्हें हकीकत दिखा रही हूं।” कामनी का शांत स्वर कानों में पड़ा।
“तुमने अपना कर दिखाया अब मैं अपना करूंगा।” देवराज चौहान ने दांत पीसकर कहा-“मार्शल के एजेंटों को इस तरह मारकर तुमने बहुत बुरा किया है। इसका हिसाब तुम्हें देना होगा।”
“तुम कुछ नहीं कर सकोगे। उससे पहले ही मारे जाओगे देवराज चौहान मार्शल के कामों में कुछ नहीं रखा। तुम्हें उसका कोई काम हाथ में नहीं लेना चाहिए था। तुम भी कानून तोड़ने वाले हम भी कानून तोड़ने वाले, फिर...।”
“बहुत फर्क है तुम्हारे और मेरे में। मैं बेगुनाहों की जान नहीं लेता, जबकि तुम...।”
“दुबई से जा रहे हो या नहीं?”
“इकबाल खान सूरी मेरे हवाले कर...।”
“मतलब कि तुम मरना चाहते हो।” इस बार कामनी के स्वर में गुर्राहट आ गई—”चूंकि तुमने मेरी जान बचाई थी इसलिए मेरी कोशिश थी कि मैं तुम्हारी जान न लूं। समझाकर तुम्हें दुबई से बाहर भेज दूं परंतु मेरी बात तुम्हारी समझ में नहीं आई।”
“तुम मेरी चिंता करनी छोड़ दो। हम दोनों अब दुश्मन हैं, दोस्त नहीं।”
देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा—“मैं बहुत जल्द तुमसे मिलूंगा और इस बार हमारी मुलाकात यादगार रहेगी। सूरत में मैंने तुम्हें बचाया था अब मैं ही तुम्हारी जान लूंगा।”
“तुम मेरी ताकत को समझ नहीं रहे। तब समझोगे जब तुम्हारी जिंदगी का आखिरी वक्त तुम्हारे सामने होगा।”
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
धधक रहा था देवराज चौहान का चेहरा।
आंखों में मौत नाच रही थी। जगमोहन ने देवराज चौहान का ये हाल देखा तो संभल गया। कभी-कभी ही देवराज चौहान को गुस्सा आता था। भिंचे दांत। दरिंदगी थी चेहरे पर। जगमोहन को देखकर देवराज चौहान गुर्राया।
“हमें कामनी तक पहुंचना है।”
“लेकिन हम तो इकबाल खान सूरी के लिए...।”
“जहां वो है, वहीं इकबाल खान है।” खतरनाक स्वर में बोला देवराज चौहान—”वो इकबाल खान से दूर नहीं रहने वाली।”
“कमल चावला ने कब आना है हमारे पास?”
“रात में वो कभी भी आ सकता है।” गुस्से से भरा पड़ा था देवराज चौहान।
“कामनी और इकबाल खान के बारे में वो शायद बता सके कि, वो कहां मिल सकते हैं।” जगमोहन ने कहा।
☐☐☐
रात के तीन बज रहे थे कि होटल का दरवाजा धीमे से थपथपाया गया।
देवराज चौहान आंखें बंद करके लम्बे सोफे पर लेटा था। जगमोहन बेडरूम में था। होटल में इस वक्त शांति छाई हुई थी। देवराज चौहान ने फौरन आंखें खोल दीं। उसे लगा कि दरवाजा थपथपाया गया है। परंतु आवाज इतनी धीमी थी कि वो कुछ फैसला न कर पाया कि उसी वक्त फिर दरवाजा थपथपाया गया। बेहद धीमे से।
देवराज चौहान तुरंत उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। पास पहुंचकर कान दरवाजे से लगाया। बाहर पूरी शांति महसूस हुई। देवराज चौहान ने दरवाजे की चेन फंसाई दरवाजा खोलकर बाहर झांका। चेन फंसी होने के कारण, दरवाजा मात्र चार इंच ही खुल सका था। बाहर वेटर ट्राली लिए खड़ा था।
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं। इस वक्त बिना बुलाए वेटर के आने का क्या मतलब?
“देवराज चौहान?” वेटर बोला। आवाज जानी-पहचानी लगी।
देवराज चौहान ने हौले-से सिर हिलाया।
“मैं कमल चावला, जल्दी से दरवाजा खोलो, मुझे भीतर आने दो।” वो व्याकुलता से कह उठा।
देवराज चौहान चौंका। इसी आवाज के मालिक से तो उसने बात की थी। कमल चावला था ये।
देवराज चौहान ने फौरन लगी चेन हटा दी।
कमल चावला ट्राली धकेलते भीतर आ गया। देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया।
“वेटर बनकर आए हो?” देवराज चौहान पलटकर बोला।
“क्या करता। होटल के बाहर इकबाल सूरी के कई आदमी मौजूद हैं।”
“तो तुम कैसे आए?”
“किसी प्रकार उनकी निगाहों से बचकर होटल में आ गया फिर वेटर के कपड़ों का इंतजाम करके पहना और यहां आ गया।” कमल चावला ने गहरी सांस ली—“हम लोगों के लिए बाहर बहुत खतरे भरे पड़े हैं।”
तभी जगमोहन ने वहां कदम रखा।
“तुम जगमोहन हो।” उसे देखते ही कमल चावला कह उठा।
“कमल चावला?”
“हां।” कमल चावला परेशान स्वर में कह उठा–”बहुत बुरा हुआ हमारे साथ। तुम लोगों ने दुबई में क्या कदम रखा, इकबाल खान ने मार्शल के सारे एजेंटों को मार दिया। मैंने नहीं सोचा था कि ऐसा होगा।”
ये सब उन दोनों के मुंह खोलने के कारण हुआ, जो इकबाल खान सूरी की हत्या करने पहुंचे और फंस गए।” देवराज चौहान बोला।
“मुझे हैरानी है कि इकबाल खान को तुम दोनों के बारे में पता है, फिर भी तुम लोग सलामत हो।”
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
जगमोहन के चेहरे पर भी कठोरता नाच उठी।
“वो लोग बचने वाले नहीं।” जगमोहन बोला।
“मार्शल का सारा नेटवर्क बिखर गया है। खत्म हो गया है ऐसे में तुम लोग क्या करोगे?”
“जो करने आए हैं, वो ही करेंगे।”
“अकेले?”
“हम हर काम अकेले ही करते हैं।” जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।
“मुझे पता लगा कि तुम कामनी को पहले से जानते हो?” कमल चावला ने देवराज चौहान को देखा।
“थोड़ा-सा । परंतु उस पहचान का इस मामले से कोई मतलब नहीं।”
“मार्शल को ये पता है कि तुम कामनी को जानते...।”
“पता है।” देवराज चौहान ने कहा—“इन बातों को छोड़कर तुम कामनी
की बात करो। इकबाल खान सूरी की बात करो। उनके बारे में जो भी जानकारी है वो बताओ। जैकी ने बताया था कि तुम फील्ड में रहते हो।”
“हां । इकबाल खान सूरी की जानकारी पाने के लिए मैं –फिरता रहता था।”
“तो क्या पता लगाया तुमने?”
कमल चावला एकाएक परेशान और दुखी दिखने लगा।
“इकबाल खान ने मेरे कई एजेंटों को मार दिया।” उसका स्वर भर्रा उठा।
“तुम्हारे सत्रह लोग मारे गए हैं।”
“तुम्हें कैसे पता?”
“पता चल गया किसी तरह।” देवराज चौहान होंठ भींचकर बोला—”तुम मुझे इकबाल खान सूरी के बारे में जानकारी दो।”
कमल चावला सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा।
“यहां रहना, तुम लोगों के लिए भी खतरे से खाली नहीं है। इकबाल खान सूरी की नजरों में हो तुम लोग। कामनी बहुत ही खतरनाक है। मैं जानता हूं कि उसी के आदेश पर, मेरे एजेंटों को मारा गया है। वो तुम पर भी कभी हमला करा सकते हैं। मेरा एक एजेंट से सम्पर्क हुआ है, जो कि बच गया है। उसने बताया कि वो कहां छिपा हुआ है। वो जगह सुरक्षित है। मेरी मानो तो बेहतर ये ही होगा कि होटल से निकल चलो। इस वक्त अच्छा मौका है भाग निकल जाने का । जब तक हम सुरक्षित जगह नहीं पहुंच जाते, तब तक आराम से बातें नहीं कर सकते। क्या पता यहां इकबाल खान कब हमला करा दे।”
“इस बात की क्या गारंटी है कि हम यहां से सुरक्षित निकल जाएंगे?”
जगमोहन बोला।
“मैं जिस रास्ते से आया हूं वो सुरक्षित है। कुछ दूर मेरी कार खड़ी है। निकल चलो यहां से।” कमल चावला ने व्याकुल स्वर में कहा—“इस प्रकार हम इकबाल खान की निगाहों से बच जाएंगे। सबसे पहले उससे बचना जरूरी है।”
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
“ये ठीक कहता है। जब तक हम इकबाल खान की निगाहों में रहेंगे, तब तक कुछ नहीं कर सकेंगें खतरा बना रहेगा, वो अलग। हमें यहां से निकल चलना चाहिए अगर ये कमल चावला, हमें यहां से निकालकर ले जा सकता है तो।”
“भरोसा रखो। हम यहां से निकल जाएंगे।” कमल चावला ने कहा।
☐☐☐
कमल चावला, देवराज चौहान और जगमोहन को, अलजीरा होटल से सुरक्षित निकालकर ले गया था। अलजीरा से कुछ दूर उसकी कार खड़ी थी, उसमें बैठकर वे आधे घंटे का सफर करने के बाद एक मकान पर जा पहुंचे। इस दौरान देवराज चौहान और जगमोहन ने इस बात का ध्यान रखा कि कोई पीछे न आ रहा हो।
परंतु किसी ने उनका पीछा नहीं किया।
उस छोटे-से मकान में एक व्यक्ति मिला जिसका नाम करीम मियां था। वो पैंतीस वर्ष का, छोटे कद का, पतला और चुस्त व्यक्ति था। छोटी-सी दाढ़ी थी उसकी। कमल चावला ने बताया कि करीम मियां, दुबई स्थित उसका सबसे पुराना एजेंट था और वो इसलिए बचा रह गया कि हमले के वक्त वो रिश्तेदार की शादी में था। रात को ही लौटा तो हमले और अपने साथियों के मारे जाने का पता चला। करीम मियां के चेहरे पर दुख और गम्भीरता नजर आ रही थी।
इस वक्त सुबह के साढ़े चार बज रहे थे।
“करीम मियां।” कमल चावला ने कहा- “मैं नहीं चाहता कि हम पर और मुसीबतें आएं। मुसीबतों के बोझ से हम पहले ही दबे पड़े हैं। तुम बाहर खड़ी मेरी कार को कहीं दूर छोड़ आओ। इकबाल खान के लोग मेरी कार की पहचान कर सकते हैं।”
करीम मियां, कमल चावला की कार लेकर चला गया।
रात के जगे, वो तीनों ही थके पड़े थे।
“यहां हम सुरक्षित हैं और इकबाल खान, कामनी की निगाहों से दूर हैं।”
कमल चावला सिर हिलाकर व्याकुल स्वर में कह उठा- “उनकी निगाहों से बचना जरूरी था वरना हम भी दूसरों की तरह मारे जाते। इकबाल खान के पास पूरी ताकत है।”
“दुबई पुलिस उसे कुछ नहीं कहती?”
“नहीं कहती। दुबई सरकार से इकबाल खान के अच्छे सम्बंध हैं। सरकार के कई प्रोजेक्ट में इकबाल खान ने मोटा पैसा लगा रखा है। दुबई सरकार उससे खुश है। इकबाल खान तो जैसे दुबई का मालिक बना बैठा है।”
“तुम हमें इकबाल खान के ठिकानों के बारे में बताओ। मार्शल ने सब कुछ बताया था। लेकिन तुम भी बताओ।”
“अभी?” कमल चावला ने देवराज चौहान को देखा—“रात-भर के जगे पड़े हैं, कुछ नींद ले लें तो।”
“ये बातें अभी जरूरी हैं।”
कमल चावला ने सिर हिलाया और कह उठा।
“इकबाल खान के दुबई में कई ठिकाने हैं। सबके बारे में तो मैं भी अभी तक नहीं जान पाया। परंतु कुछ के बारे में मैं जानता हूं। एक ठिकाने पर तो काफी वक्त से कामनी टिकी हुई है, जबकि कामनी हमेशा इकबाल खान सूरी के करीब ही रहती है।”
“तुम्हारा मतलब कि उस ठिकाने पर इकबाल खान सूरी हो सकता है।
“सम्भव है, हो...।”
“ये वो ही ठिकाना है, जहां पर तुम्हारे एजेंट इकबाल खान सूरी को मारने वाले थे।”
“हां । वो ही ठिकाना है।”
“अभी तक तो ये ही खबर है कि तब इकबाल खान सूरी, वहां से गायब हो गया था।”
“देवराज चौहान, ये खबर भी हमें, उन्हीं दो एजेंटों ने दी थी, जिनके बारे में तुमने बताया कि वो पकड़े गए थे और उनकी निगरानी में हमें वो ही खबरें दे रहे थे, जो वो देना चाहते थे।” कमल चावला ने कहा।
“तुम्हारा मतलब कि इकबाल खान सूरी वहां हो सकता है।” देवराज चौहान बोला।
“कुछ भी हो सकता है। मेरा अपना सत्तर प्रतिशत खयाल है कि इकबाल खान सूरी वहां हो सकता है। कामनी वहीं है और वहां पर सख्त पहरा चौबीसों घंटे रहता है। वो एक रिहायशी इलाके का बंगला है, उस इलाके में दुबई के बड़े लोग रहते हैं, काफी बड़ी जगह में वो बंगला बना हुआ है। करीब तीन हजार गज जगह में। बारह फुट ऊंची चारदीवारी है, भीतर पंद्रह सौ गज में तीन मंजिला वो बंगला है। वैसे उसे छोटा-मोटा किला कहना ठीक होगा। सुरक्षा के जबर्दस्त इंतजाम हैं। किसी चिड़िया का भी भीतर चले जाना सम्भव नहीं है। कमला चावला ये कहकर चुप हुआ।
“तुम्हें वहां के इंतजाम का क्या पता है?”
“बहुत कुछ पता है। शायद सब ही। मेरे जो दो एजेंट, इकबाल खान के आदमी बनकर वहां पहुंच गए थे, वो वहां की सारी खबर मुझे देते रहते थे उन्होंने वहां के बारे में काफी कुछ बताया।”
“मुझे वहां के सुरक्षा इंतजामों के बारे में बताओ।” देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
“तुम क्या करने का इरादा रखते हो?”
“मैं वहां जाऊंगा।”
जगमोहन बेचैन हो उठा।
“वहां जाओगे? पागल हो, मारे जाओगे।” कमल चावला के होंठों से निकला।
“जो काम करने आया हूं वो तो पूरा करना ही...।” देवराज चौहान ने कहना चाहा।
“इकबाल खान सूरी के ठिकाने के भीतर जाने का हमारा क्या मतलब है।” जगमोहन उसी पल कह उठा—”हम इकबाल खान सूरी पर हाथ डालने नहीं आए। इकबाल खान कहां पर टिका हुआ है, जब हमें उस जगह के बारे में यकीन हो जाएगा तो उसकी खबर मार्शल को देकर हम इस काम से हट जाएंगे। इसके लिए हमें उस जगह पर नजर रखनी चाहिए। मान लो हम भीतर चले गए तो तब क्या होगा? झगड़ा होगा । इकबाल खान का वो मजबूत ठिकाना है, अगर वो वहां रहता है तो, वहां से वापस निकल आना आसान नहीं होगा।वैसे भी वहां जाकर कुछ किया तो क्या उसके बाद इकबाल खान सूरी वहीं टिका रहेगा। वो फौरन ठिकाना बदल लेगा। हम जो काम करने आए हैं,वो ही करेंगे। इकबाल खान के बारे में पक्का पता चलते ही मार्शल या उसके आदमियों को खबर कर देंगे। इसी के साथ हमारा काम खत्म हो जाएगा।”
“उससे पहले ही इकबाल खान हमें तलाश करके, हम पर वार कर देगा।” देवराज चौहान ने कहा- “हम उसका पता लगाते रहें और वो खामोश बैठा रहे। ऐसा नहीं होगा। हमने नहीं सोचा था कि दुबई पहुंचते ही हम इकबाल खान से घिर जाएंगे। ऐसा उन दोनों एजेंटों के पकड़े जाने और मुंह खोलने से हुआ। खुद को अगर इकबाल खान से बचाना है तो हमें अपने काम में तेजी लानी होगी। वरना जितना वक्त बीतेगा, हमारे लिए खतरा बढ़ेगा।”
कमल चावला दोनों को देख रहा था। सुन रहा था।
“लेकिन हम इकबाल खान के ठिकाने में गए तो, हमारे खत्म होने के साथ ही खतरा खत्म हो जाएगा। बिना सुने ही ये बात मैं जानता हूं कि इकबाल खान सूरी के ठिकाने पर सुरक्षा के जबर्दस्त इंतजाम होंगे।”
“इस तरह तो हम अपना काम पूरा नहीं कर सकेंगे।” देवराज चौहान बोला।
“क्यों?”
“हमें कैसे पता चलेगा कि इकबाल खान सूरी उस ठिकाने पर है या नहीं? सतर्कता के नाते वो बाहर भी नहीं निकलेगा। हम वहां ज्यादा देर नजर नहीं रख सकते। जल्दी ही उनकी नजरों में आ जाएंगे और वे हमें खत्म कर देंगे। ऐसे में नजर रखने से बेहतर है उस जगह के भीतर जाना। तभी कुछ हो...।”
“मान लो, हम भीतर जाते हैं।” जगमोहन बोला—“हमें इकबाल खान सूरी मिल जाता है तो हम क्या करेंगे?”
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर थी।
कमल चावला गम्भीर-सा दोनों को देख रहा था।
“हम उसे मार देंगे।” देवराज चौहान कह उठा।
“क्यों?”
“क्योंकि अगर वो जिंदा रहा तो हमें मार देगा। मार्शल की ये लड़ाई, हमारी व्यक्तिगत होती जा रही है। पहले हमने खामोशी से इकबाल खान का पता लगाना था, परंतु इकबाल खान या कामनी ने हालात ऐसे पैदा कर दिए हैं ताकि ये काम अब खामोशी से नहीं हो सकता। हमें खुलकर इकबाल खान सूरी के सामने जाना होगा।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
“लेकिन हमारा काम तो इकबाल खान का पता लगाकर मार्शल को बताना है। महीने-भर से वो गायब है, मार्शल के एजेंटों की निगाहों से दूर है। इसी कारण तो मार्शल ने हमें...।”
“जगमोहन।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “मार्शल का काम जरूरी है या अपनी जान बचाना जरूरी है?”
“जान बचाना जरूरी है।”
“तो वो ही मैं कर रहा हूं। इकबाल खान हाथ धोकर हमारे पीछे पड़ चुका है। उसे नहीं पसंद कि हम मार्शल के लिए उसे तलाश करें। ऐसे में इकबाल खान सूरी पर वार कर देना ही ठीक है।”
“परंतु हमारा सौदा तो मार्शल को, इकबाल खान की खबर देने तक का है।
“सौदे की तरफ ध्यान मत दो। हालातों को देखो, इकबाल खान खुलकर हमारे पीछे पड़ चुका है। हमें अपनी जान बचानी है और काम को किसी-न-किसी रूप में पूरा करना है।” देवराज चौहान गम्भीर था।
“हम काम को छोड़ भी सकते हैं।” जगमोहन बोला।
“मतलब कि सिर झुकाकर हम इंडिया पहुंचे और मार्शल को कहें कि हम काम पूरा नहीं कर सके।” बरबस ही देवराज चौहान के होंठों पर छोटी-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई—“तुम कहते हो तो मैं वापस चलने को तैयार हूं।”
“ये गलत होगा।” जगमोहन के होंठ भिंच गए।
“तो फिर काम ऐसे ही होगा, जैसे कि मैंने कहा...।”
“इकबाल खान सूरी के ठिकाने के भीतर घुसकर?”
“हां।”
“उसे मारकर?”
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया।
“फिर तो मुझे मार्शल से बात करनी पड़ेगी।” जगमोहन ने कहा
“क्यों?”
“सौदे की रकम बढ़ाने के लिए कहना पड़ेगा। हम उसका काम निबटाने जा रहे हैं।”
“जल्दबाजी मत करो। वहां हम भी निबट सकते हैं। इस वक्त मार्शल की नहीं, हमारी जान पर खतरा आ बना है। उसी खतरे से बचने के लिए हमें ये फैसला लेना पड़ रहा...।”
“लगे हाथ मार्शल से बात कर लेने में क्या हर्ज है। मैं कुछ और रकम तय कर लूंगा।”
“इन बातों को छोड़ो और काम की तरफ ध्यान दो।” देवराज चौहान का स्वर सख्त हो गया। उसने कमल चावला को देखा जिसके चेहरे पर गम्भीरता के भाव थे—“तुम हमें इकबाल खान के उस ठिकाने के सुरक्षा इंतजामों के बारे में बताओ।”
“हां-हां, मैं बताने को तैयार हूं।” कमल चावला फौरन कह उठा—”वहां पर कम-से-कम पंद्रह गनमैन हर वक्त पहरे पर रहते हैं। आगे-पीछे,दाएं-बाएं। चारदीवारी बारह फुट ऊंची है। दो गनमैन हमेशा बाहर के प्रवेश गेट पर खड़े रहते हैं। ऐसे में किसी के भीतर चले जाने का सवाल ही नहीं उठता...।”
“रात को क्या इंतजाम होता है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“ये ही इंतजाम होता है। रात में गनमैनों के पास पावर फुल टॉर्चे होती हैं। हर छः घंटे बाद गनमैन बदलते रहते हैं। गनमैन नीचे की मंजिल पर रहते हैं। ऊपर की दो मंजिलों पर उन्हें जाने की इजाजत नहीं है। ऊपर कामनी और इकबाल खान सूरी ही रहते हैं। इनके अलावा दो नौकर होते हैं। वो भी तब तक ही वहां रहते हैं, जब तक उनका काम होता है उसके बाद वो नीचे की मंजिल पर अपने कमरे में चले जाते हैं। नीचे का फ्लोर हर वक्त चहल-पहल से भरा रहता है क्योंकि वहां हर वक्त करीब चालीस के आसपास गनमैन होते हैं। जिनमें से पंद्रह ड्यूटी पर। वहां पर शायद ही कभी-कभार इकबाल खान सूरी या कामनी से मिलने कोई आता है। ऐसा होने पर मुलाकात पहली मंजिल पर होती है। परंतु ऐसा बहुत कम होता है। वो अपने काम मोबाइल फोन पर ही पूरे करते हैं।”
“इकबाल खान सूरी बाहर तो निकलता होगा?”
“निकलता है तो पता नहीं चलता। समझो दो गनमैन कार पर कहीं गए हैं तो देखने वाला नहीं समझ सकता कि उस कार में छिपा इकबाल खान सूरी भी हो सकता है। वो यकीनन इसी तरह छिपकर बाहर जाता होगा। परंतु महीना-भर पहले वहां पहुंच चुके मेरे दो एजेंटों ने पकड़े जाने से पहले बताया था कि रात को गनमैन लापरवाही कर जाते हैं। कम-से-कम आधे सो जाते हैं। इकबाल खान सूरी और कामनी को ये बात पता है, परंतु वो परवाह नहीं करते।शायद इस भरोसे कि हर वक्त वहां पर उनके ढेरों गनमैन रहते हैं कभी कोई गड़बड़ हुई तो वो संभाल लेंगे।उन एजेंटों का कहना था कि रात को पीछे की दीवार फलांगकर रेन वाटर पाइप के सहारे आसानी से छत पर पहुंचा जा सकता है। फिर वहां से सीढ़ियों के रास्ते नीचे आया जा सकता है। इस तरह गनमैनों को उनके भीतर चले जाने की जरा भी खबर नहीं लगेगी।”
“छत पर पहरा नहीं होता?” जगमोहन बोला।
“होता है। दो गनमैन छत पर होते हैं, परंतु उन्हें संभाला जा सकता है कहने के साथ ही कमल चावला ने दोनों पर निगाह मारी-”ये ही एक रास्ता है, जहां से आसानी से भीतर पहुंचा जा सकता है।”
“तुम्हें भरोसा है कि उन दोनों एजेंटों ने ये बात सही बताई थी?” देवराज चौहान ने पूछा।
“पूरा भरोसा है। क्योंकि तब वो पकड़े नहीं गए थे और गनमैनों के रूप में वहां ड्यूटी देते थे।” कमल चावला ने कहा।
“ठीक है। हम इसी रास्ते से उस जगह के भीतर पहुंचेगे।” देवराज चौहान बोला।
“तुम कितनी आसानी से ये बात कह रहे हो, जबकि वहां खतरा इतना ज्यादा है कि...” जगमोहन ने कहना चाहा।
“तुम मेरे साथ मत जाना।”
“क्या बात करते हो। मैं साथ में क्यों नहीं जाऊंगा।” जगमोहन ने झल्लाकर कहा।
“चावला।” देवराज चौहान बोला- -”हमें रिवॉल्वरें और गोलियों की जरूरत होगी।”
“इंतजाम हो जाएगा। कब जाना चाहते हो वहां?”
“रात को। तैयारी के लिए हमारे पास पूरा दिन पड़ा है।” देवराज चौहान बोला।
तभी करीम मियां वहां आ पहुंचा।
“कार ठिकाने लगा दी?” कमल चावला ने पूछा।
“दूर छोड़ आया हूं।”
“बढ़िया किया। अब हम नींद लेंगे। तब तक तुम खाने को कुछ बना लेना। जागेंगे तो भूख लग रही होगी।”
“इकबाल खान और कामनी के बारे में क्या सोचा है।” करीम मियां ने कहा- “हमारे लोग बहुत संख्या में मारे गए हैं।”
“इस बारे में मार्शल से बात करेंगे।” कमल चावला ने सिर हिलाया-“हम इस तरह हार नहीं मानेंगे। दो रिवॉल्वर और कुछ राउंड फालतू गोलियों का भी इंतजाम कर देना।”
“वो किस लिए?”
“देवराज चौहान और जगमोहन को चाहिए।” कमल चावला ने गम्भीर स्वर में कहा।
वे लोग सोने की तैयारी करने लगे कि देवराज चौहान के पास मौजूद मोबाइल बजने लगा।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा। होंठ सिकुड़ गए। कमल चावला ने भी उसे देखा।
“हैलो।” देवराज चौहान ने बात की।
अलजीरा से बच निकले देवराज चौहान।” कामनी का शांत स्वर कानों में पड़ा—“मेरे आदमी वहां पहुंचे अभी तो उन्हें कमरा खाली मिला। कैसे निकले, मेरे आदमी तुम्हें जाते हुए देख नहीं पाए।”
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
“कहां हो तुम?” कामनी की आवाज पुनः कानों में पड़ी- “अब मार्शल के एजेंट तो तुम्हारी सहायता करने की स्थिति में नहीं हैं। दुबई से जाने की सोच रहे हो, या किसी दूसरे होटल में जा छिपे हो।”
देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी उभरी रही।
“इकबाल खान सूरी तक पहुंच पाने का खयाल छोड़ दो। ये दुबई है यहां इकबाल खान की चलती है। तुम अभी तक बचे हुए हो तो ये तुम्हारी किस्मत है पर ज्यादा देर नहीं बच सकते। अगर तुम होटल अलजीरा में होते तो अब तक मेरे आदमियों ने तुम्हें मार दिया होता। तुम जहां भी हो कभी भी मेरे आदमी तुम तक पहुंच सकते हैं। हिन्दुस्तान के डकैती मास्टर की मौत दुबई में ही होगी । इकबाल खान सूरी तक पहुंचना नामुमकिन है।”
देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
“सिर्फ एयरपोर्ट ही ऐसी जगह है जहां तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। वापस इंडिया जाने के लिए सही-सलामत एयरपोर्ट पर पहुंच गए तो सलामत रह सकते हो। तुम्हें इकबाल खान सूरी के मामले में दखल नहीं देना चाहिए था।
उसके सामने तुम चींटी से भी छोटे हो। तुम्हारी हैसियत कुछ भी नहीं है तुम महज एक डकैती करने वाले हो।”
“मैं तुमसे जल्द ही मिलूंगा।” देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।
“मुझसे मिलोगे?” इधर से कामनी हंसी- “ख्वाब है ये तुम्हारा । मुझ तक मेरी मर्जी के बिना कोई भी नहीं पहुंच...।”
“बहुत जल्दी हमारी मुलाकात होगी।”
“मेरी मानो तो अभी भी इंडिया जा सकते हो। इकबाल खान सूरी तुम्हारे बस का नहीं है। कहां तुम और कहां इकबाल खान सूरी। मामला किसी भी तरफ से टक्कर का नहीं बैठता। बहुत बुरी मौत मरोगे तुम।”
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
“किसका फोन था?” जगमोहन ने समझते हुए भी पूछा।
“कामनी का।” देवराज चौहान गुर्रा उठा।
“ओह नसरीन शेख।” कमल चावला कह उठा- “ये बहुत ही खतरनाक...।
“ये कितनी भी खतरनाक क्यों न हो। आज रात कुछ फैसला तो हो ही जाएगा।” देवराज चौहान ने दरिंदगी से कहा।
☐☐☐
दुबई की काली रात में आसमान पर तारे चमक रहे थे। दिन का मौसम बेहद गर्म रहता था। परंतु शाम के बाद, रात में मौसम अच्छा हो जाता था।दुबई का समुद्र, बहती हवाओं को ठंडा कर देता। यूं भी दुबई की मिट्टी में रेत के कण थे जिसकी वजह से जमीन का ऊपरी हिस्सा जल्दी ठंडा हो जाता था। इस वक्त तेज ठंडी हवा चल रही थी।रात का एक बजने जा रहा था। देवराज चौहान ने जगमोहन को हाथ पर चढ़ाकर ऊपर किया तो वो दीवार की मुंडेर थामकर लटका और फिर ऊपर होते हुए दीवार पर लेट गया। उसकी निगाह दीवार के भीतर वाले हिस्से पर घूम रही थी, जो कि इकबाल खान सूरी के विशाल बंगले का, पीछे वाला हिस्सा था। काफी खुली जगह थी। दाएं और बाएं कोने में लाइटें ऑन थी और नीचे की मखमली घास बहुत साफ दिखाई दे रही थी। भीतर हर तरफ शांति थी। उन लाइटों की रोशनी दीवार के ऊपर तक नहीं आ पा रही थी। जगमोहन कई पलों तक नजरें दौड़ाता रहा।
एकाएक जगमोहन सतर्क-सा दीवार पर चिपककर लेट गया।
बाईं तरफ वाले कोने में रोशनी में कोई नजर आया था। उसने काले कपड़े पहने हुए थे और कंधे पर गन लटका रखी थी। जगमोहन समझ गया कि वो गनमैन है। चंद पल वो वहीं खड़ा रहा फिर बंगले के दूसरी तरफ चला गया। अब पीछे की तरफ कोई भी गनमैन नहीं था। जगमोहन बांह नीचे करके, चुटकी बजाकर देवराज चौहान को आने का इशारा किया और अगले ही पल दीवार के उस तरफ कूदते हुए जमीन पर लेट गया। देवराज चौहान ने दोनों बांहें ऊपर करके जम्प ली और दीवार की मुंडेर थामी फिर शरीर को खास अंदाज में झटका दिया और दीवार के ऊपर जा पहुंचा और अगले ही पल नीचे, जगमोहन के पास कूद गया।
दोनों दम साधे पास-पास लेटे थे।
“यहां तो कोई भी नहीं है।” जगमोहन फुसफुसाकर कह उठा-गनमैन उस तरफ दिखा था फिर चंद पल ठहरकर वापस उधर ही चला गया।” इस दौरान जगमोहन की निगाह हर तरफ घूम रही थी। देवराज चौहान भी पीछे की सारी जगह खाली देखकर उलझन में था।
“मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा जगमोहन।” देवराज चौहान धीमे स्वर में बोला।
“क्या मतलब?”
“इस तरफ किसी का भी न होना। इकबाल खान या कामनी इस तरह लापरवाह नहीं हो सकते।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“हम क्या किसी की चाल में फंसने तो नहीं जा रहे।” देवराज चौहान ने कहा।
“हम भला चाल में कैसे फंस सकते हैं । इकबाल खान या कामनी को क्या पता कि हम क्या करने वाले हैं।”
“परंतु पीछे की तरफ जरा भी पहरा न होना देखकर लगता है कि हमारे लिए रास्ता साफ किया गया हो।”
मैं तुम्हारी बात नहीं मानता।”
“आओ, वक्त खराब न करो।” कहते हुए देवराज चौहान उठा और बंगले की दीवार की तरफ दौड़ा।
जगमोहन ने भी ऐसा ही किया।
आठ पलों में ही दोनों बंगले की दीवार के साथ लगे खड़े थे। ये खतरे का समय था कोई भी इस तरफ आ सकता था। पास ही रेन वाटर पाइप बाजो कि ऊपर की तरफ जा रहा था। देवराज चौहान ने पाइप पकड़ा और फुर्ती से ऊपर चढ़ने लगा।जगमोहन ने भी देर न लगाई। वो भी देवराज चौहान पीछे ऊपर चढ़ता चला गया।
पहली मंजिल पार करके देवराज चौहान ने नीचे देखा तो थम-सा गया।
नीचे दो गनमैन टहलते दिखे।
वो ऊपर भी देख सकते थे। परंतु राहत की बात ये थी कि ऊपर अंधेरा था और वो सोच भी नहीं सकते थे कि कोई भीतर आकर रेन वाटर पाइप पर चढ़ सकता है। तभी तीसरा गनमैन भी वहां टहलता दिखने लगा।
ऐसे में देवराज चौहान और जगमोहन धीमे-धीमे चढ़ते तीसरी मंजिल की छत की दीवार तक जा पहुंचे।
देवराज चौहान ने हाथ आगे बढ़ाकर उछाल मारी और दीवार थाम ली फिर सिर ऊपर करके छत पर झांका । जगमोहन नीचे पाइप थामे चिपका रहा। सबसे नीचे खुली जगह में गनमैन टहल रहे थे। वो तीन थे।
छत में दो गनमैन दिखे। एक सामने की तरफ वाली दीवार से झांककर नीचे देख रहा था। दूसरा उससे कुछ कदमों की दूरी पर खड़ा दूसरी तरफ देख रहा था कि देवराज चौहान उसी पल उछलकर दीवार पर चढ़ा और बे-आवाज छत पर आया और दीवार के साथ दुबक कर बैठ गया। मिनट भर ही बीता होगा कि जगमोहन भी उसके पास बैठ गया। आकाश में तारे अवश्य थे, परंतु चंद्रमा कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे में वो छत पर इस प्रकार कुछ देर ही सुरक्षित रह सकते थे।
“दो ही हैं।” जगमोहन फुसफुसाया।
“कमल चावला ने भी दो होने की ही बात कही थी।”
“चलें, इन्हें निबटाया जाए।”
“अभी यहीं रहो। फासला ज्यादा है। छत काफी बड़ी है। वे हमें अपने तरफ आते देख भी सकते हैं।” देवराज चौहान ने धीमे से कहा।
☐☐☐
‘पंछी फंस गया जाल में।’ कामनी बड़बड़ा उठी।
कामनी उर्फ नसरीन शेख एक ऐसे कमरे में थी, जहां मध्यम रोशनी फैली थी। सामने आठ टी.वी. जैसी स्क्रीनें लगी थीं, जिस पर अलग-अलग दृश्य उभर रहे थे बंगले के बाहर के । इस वक्त एक स्क्रीन पर देवराज चौहान और जगमोहन नजर आ रहे थे जो कि बंगले की छत पर दुबके बैठे थे। अंधेरे की वजह से स्क्रीन पर वे मध्यम से दिखाई दे रहे थे। स्क्रीनों के नीचे कॉफी बड़ा स्विच बोर्ड नजर आ रहा था, जिनके पास दो आदमी बैठे थे और उनकी निगाह भी स्क्रीनों पर थी।
कामनी ने इस वक्त स्लैक्स और स्कीवी पहन रखी थी। उसके शरीर का पूरा कटाव स्पष्ट झलकता दिखाई दे रहा था। वो बेहद चुस्त लग रही थी और पैनी स्क्रीन पर नजर आते देवराज चौहान और जगमोहन पर थीं।
“छत वालों को खबर कर दो कि वो छत पर आ चुके हैं।” कामनी ने कहा।
दोनों आदमियों में से एक ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
“मोबाइल की रिंग टोन तो ये दोनों भी सुन लेंगे।” कामनी बोली।
“उन्होंने फोन वाईब्रशन पर कर रखा है। पहले ही उन्हें समझा दिया था।” वो व्यक्ति बोला।
फिर उसकी छत वाले से बात हो गई।
“कहो।” उसके कानों में आवाज पड़ी।
“वो छत पर आ पहुंचे हैं और दीवार के साथ लगे बैठे हैं।” उसने फोन पर कहा।
“समझ गया।”
“उनके शिकार बनो।” कहने के साथ ही उसने फोन बंद कर दिया।
कामनी के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच रही थी।
‘मेरी चाल कामयाब रही। यू आर ग्रेट कामनी।’ तेरा जवाब नहीं। वो पुनः बड़बड़ा उठी।
तभी वो आदमी बोला।
“हमारे दोनों आदमी अब टहलते हुए उनके पास पहुंचने का प्रयत्न कर रहे हैं।”
“नजरें स्क्रीन पर गड़ाए रखो।” कामनी ने कहा।
पांच मिनट बीते कि वो आदमी बोला।
“उन दोनों ने हमारे आदमियों को बेहोश कर दिया।”
“वैरी गुड।” कामनी बांह हिलाकर बोली- “अब वे क्या कर रहे हैं?”
“वे सीढ़ियों की तरफ बढ़ रहे हैं।”
“और वहां का दरवाजा बंद है।”
“यस मैडम।”
“अब उस आदमी को ऊपर भेजो, जो दरवाजा खोलेगा। उसे सब समझा रखा है न?”
“यस मैडम।” वो मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा।
बात हुई।
“वो छत पर पहुंच चुके हैं। अब तुम्हें जाकर दरवाजा खोलना है। जानते हो न कैसे?”
“कितनी बार बताओगे। सब पता है।” उधर से कहकर फोन बंद कर दिया गया।
कामनी की निगाह स्क्रीन पर थी जहां अंधेरे में, थोड़े बहुत देवराज चौहान और जगमोहन नजर आ रहे थे।
☐☐☐
“सीढ़ियों का दरवाजा तो बंद है।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“इस तरफ से बंद होगा।” पास आते देवराज चौहान ने कहा।
“नहीं, भीतर से बंद है।”
छत वाले दोनों गनमैन कुछ दूरी पर, छत पर बेहोश पड़े थे।
देवराज चौहान ने करीब आकर दरवाजा चैक किया वो लोहे का था और भीतर की तरफ से बंद था।
“सारी मेहनत खराब गई।” जगमोहन कह उठा- “हमें वापस लौटना होगा।”
“हम यहीं इंतजार करेंगे।” देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा- “सारी रात तो ये दरवाजा बंद रहेगा नहीं। कोई तो आएगा।”
जगमोहन ने पूरी छत पर निगाह मारी।
सन्नाटा था चारों तरफ।
“हमें रात भर भी इंतजार करना पड़ सकता है।” जगमोहन कह उठा-“अब जो भी दरवाजा खोलकर ऊपर आएगा, वो यहां के हालात देखकर समझ जाएगा कि गड़बड़ है। ये तो खतरे वाली बात हो... ।”
जगमोहन के शब्द अधूरे रहे गए।
भीतर से सीढ़ियां चढ़ने की आवाज आ रही थी।
कोई ऊपर आ रहा था। देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।वे फौरन दीवार की ओट में खड़े हो गए।
तभी भीतर से लोहे की कुंडी खोले जाने की आवाज आई।
देवराज चौहान के होंठ भिंचे थे। जगमोहन बेहद सतर्क था कि अब कुछ भी हो सकता था।
तभी दरवाजा खुला। कोई छत पर पहुंचा। चलने की आवाज आई।
“किधर हो दोस्तो।” आने वाले ने ऊंची आवाज में कहा-
“चाय बन गई है। जाकर ले लो।”
दीवार की ओट में खड़े देवराज चौहान और जगमोहन को वो नजर आया।
वो छत पर नजरें घुमा रहा था।
“किधर हो?” उसने पुनः आवाज लगाई। तभी उसकी निगाह छत पर बेहोश पड़े दोनों गार्डों पर पड़ गई थी। वो तुरंत उनकी तरफ बढ़ता कह उठा- “ये तो साले दारु पीकर लुढ़के पड़े हैं, ड्यूटी कर रहे हैं या पार्टी। आज तो इनकी खैर नहीं। मैडम इन्हें छोड़ने वाली नहीं । ड्यूटी के वक्त दारु...।”
उसी पल दीवार के साथ चिपका खड़ा देवराज चौहान तेजी से उसकी तरफ झपटा।
आहट सुनकर उसने घूमना चाहा।।
तभी देवराज चौहान का जोरदार हाथ उसकी गर्दन पर पड़ा।
“आह...।” उसके होंठों से कराह-सी निकली और घुटने मुड़ते चले गए। वो नीचे जा गिरा।
परंतु वो थोड़ा-थोड़ा हिल रहा था।
देवराज चौहान ने जूते की ठोकर उसकी कनपटी मारी तो वो पूरी तरह बेहोश हो गया।
तब तक जगमोहन पास आ पहुंचा था।
“आओ।” देवराज चौहान ने कहा और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाल ली।
देवराज चौहान को रिवॉल्वर की झलक मिली तो कह उठा।
“कोशिश करना कि तब तक गोली न चले जब तक हम इकबाल खान सूरी तक न पहुंच जाएं।”
“वो होगा भी...”
“देखते हैं।”
“कमल चावला के मुताबिक ऊपर की मंजिलों पर गनमैन नहीं आते परंतु रात के वक्त छत पर गनमैनों का पहरा होता होगा।”
“हो सकता है सीढ़ियों का रास्ता बाहर-बाहर से ही हो।” देवराज चौहान सीढ़ियां उतरता कह उठा।
जगमोहन भी सीढ़ियां उतरने लगा था।
जल्दी ही वे नीचे की मंजिल पर जा पहुंचे। वहां कम रोशनी का बल्ब जल रहा था। सीढ़ियां अभी और भी नीचे जाती दिखाई दे रही थीं। परंतु सामने एक दरवाजा भी नजर आ रहा था।
“ये सेकंड फ्लोर है। इकबाल खान यहां भी हो सकता है।” जगमोहन फुसफुसाया।
देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकाली और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
करीब जाकर देखा तो दरवाजा बंद था।
“बंद है?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
“हां। इसे बाद में देखेंगे, पहले नीचे का फ्लोर भी चैक कर लें।” देवराज चौहान ने कहा और आगे बढ़कर सीढ़ियां उतरने लगा। जगमोहन उसके पीछे था। जल्दी ही वे नीचे के फ्लोर पर पहुंचे। वहां भी, ऊपर की तरह कोई नहीं था। मध्यम-सी लाइट वहां भी जल रही थी।
देवराज चौहान ने वहां का दरवाजा चैक किया तो वो खुला मिला।
पहले देवराज चौहान, फिर जगमोहन, बे-आवाज, आहिस्ता से भीतर प्रवेश करते चले गए।
☐☐☐
भीतर बहुत बड़ा खुला हॉल था। मध्यम-सी पर्याप्त रोशनी वहां फैली थी। हॉल का फर्श शीशे की भांति चमक रहा था। बीच-बीच में मोटे गोल पिलर खड़े थे जिन पर छोटे-छोटे शीशों द्वारा शानदार ढंग से काम किया हुआ था और वे इस मध्यम रोशनी में, गजब ढंग से चमक रहे थे। इस काफी बड़े हॉल में सिर्फ लम्बा सोफा और दो सोफा चेयर के अलावा सेंटर टेबल पड़ी नजर आ रही थी। इसके अलावा उस हॉल में कोई सामान नहीं था।
दोनों की निगाह सावधानी से हर तरफ जा रही थी। हाथ में रिवॉल्वर दबे थे।
वहां कोई भी नहीं दिखा था।
दोनों सतर्कता से आगे बढ़ने लगे। कुछ दूर हॉल के भीतर की तरफ लगते दरवाजे दिखाई दे रहे थे जो कि बंद थे।
“यहां तो कोई भी नहीं है।” जगमोहन बोला।
“मुझे सिगरेट की स्मैल आ रही है।” देवराज चौहान ने कहा-”यहां कोई हमारे आने से पहले था।”
“हां, सिगरेट की स्मैल वातावरण में है। पहले मैंने ध्यान नहीं दिया।” जगमोहन बोला— “ये कैसी जगह है। शीशे की तरह चमकता खाली हाल है। सिर्फ सोफा पड़ा ही नजर आ रहा है।”
“हमें उन दरवाजों की तरफ जाना चाहिए।” देवराज चौहान ने दूर नजर आते दरवाजों को देखा।
वे लोग उस तरफ बढ़ गए।
परंतु सोफे के पास से निकलने लगे तो ठिठक गए।
सैंटर टेबल पर ऐश-ट्रे में सुलगती सिग्रेट रखी थी। मध्यम-सा धुआं उठ रहा था।
दोनों सतर्क हो गए।
“इकबाल खान सूरी यहां बैठा होगा। परंतु किसी के भीतर आने का एहसास पाकर खिसक गया होगा।” जगमोहन ने कहा।
देवराज चौहान की सख्त निगाह पुनः हर तरफ घूमी।
“कुछ गड़बड़ जरूर है जगमोहन।” देवराज चौहान होंठ भिंचे कह उठा--“हम कितनी आसानी से भीतर तक आ गए। जब हमने दीवार फलांगकर भीतर प्रवेश किया तो कोई पहरेदार नहीं था पीछे की तरफ। पाइप द्वारा हम छत पर पहुंचे तो वहां भी हमें कोई परेशानी नहीं आई और दोनों गनमैनों को बेहोश कर दिया। नीचे जाने के लिए दरवाजा बंद था तो वो भी अचानक खोल दिया गया और अब नीचे पहुंचे तो यहां भी हमें कोई नजर नहीं आ रहा...।”
“वहम है तुम्हारा । कोई गड़बड़ नहीं है। हमने यहां पहुंचने में मेहनत की
है।” जगमोहन बोला।
“उस दरवाजे की तरफ बढ़ो।” देवराज चौहान ने कहा- “कभी भी हमारा सामना । इकबाल खान सूरी से हो सकता है।”
ठीक उसी पल वो दरवाजा खुला और दो गनमैनों के साथ कामनी ने भीतर प्रवेश किया।
कामनी को देखते ही वे ठिठक गए।
“फंस गए।” जगमोहन की आवाज में खतरनाक भाव आ गए थे। देवराज चौहान की आंखों में दरिंदगी ने उछाल मारी।
“तुम्हारा स्वागत है देवराज चौहान।” कामनी ने शांत आवाज में कहा-”रिवॉल्वरें गिरा दो।”
देवराज चौहान और जगमोहन खड़े उसे देखते रहे।
“रिवॉल्वरें गिरा दो।”
“ये जानती है कि हम यहां हैं।” जगमोहन ने कहा- “तभी गनमैनों को साथ लेकर आई है।”
“यहां C.C.T.V. कैमरे लगे हैं। वहां से हमें जरूर देख लिया गया होगा।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।
“चुपके से इकबाल खान सूरी तक पहुंचने का इरादा तो बेकार गया। अब हम खतरे में हैं।”
देवराज चौहान कठोर निगाहों से दूर खड़ी कामनी को देखता रहा।
“रिवॉल्वर फेंक दो।” कामनी की आवाज कठोर हो गई—“वरना ये गोलियां चला देंगे।”
उसी पल गनमैनों की गनें उनकी तरफ उठ गईं।
देवराज चौहान ने होंठ भींचे रिवॉल्वर फेंक दी।
“हम बुरी तरह फंस गए हैं।” जगमोहन खतरनाक स्वर में कह उठा।
“रिवॉल्वर फेंको। तुम्हें रिवॉल्वर गिरानी ही पड़ेगी।” देवराज चौहान ने कहा- “हम खुले में हैं और वो गोलियां चला सकते हैं।”
जगमोहन ने रिवॉल्वर गिरा दी।
तभी एक गनमैन आगे बढ़ने लगा। वो पास आ पहुंचा। सावधानी से वो नीचे गिरी रिवॉल्वरें उठाकर, उसने गन की नाल जगमोहन की कमर पर लगा दी और कठोर स्वर में बोला।
“चलो।”
“कहां?” जगमोहन के दांत भिंच गए।
यहां से हिलो। सिर्फ तुम और तुम यहीं खड़े रहो।” आखिरी शब्द उसने देवराज चौहान से कहे।
जगमोहन उसके साथ चल पड़ा। गन कमर से लगी थी। वो उसे वापस दूसरे गनमैन के पास ले गया। अब दो गनें जगमोहन की तरफ थीं। जगमोहन ने पास खड़ी कामनी को देखा जो, देवराज चौहान को देख रही थी।
“तुम हो कामनी?” जगमोहन बोला।
“हां”
“तुम्हारी शादी हो गई?”
“नहीं।”
“मेरी भी नहीं हुई।”
“चिंता मत करो। अब तुम्हारी शादी हो जाएगी।”
“किससे?”
“मौत से।” कामनी फुफकारी और देवराज चौहान की तरफ बढ़ गई वो।
जगमोहन ने दोनों गनमैनों को देखा जो कि उसके प्रति सतर्क थे।
“क्या बात है?” एक गनमैन ने पूछा।
“कुछ नहीं।” जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।
“आराम से खड़े रहना । हमें पूरा ऑर्डर है मैडम का कि जरूरत पड़ने पर तुम्हें गोली मार दें।”
“इकबाल खान कहां है?”
“जुबान बंद रखो।” गनमैन गुर्रा उठा।
जगमोहन की निगाह कामनी और देवराज चौहान की तरफ उठ गई।
कामनी देवराज चौहान के पास पहुंच चुकी थी।
दांत भींचे देवराज चौहान कामनी को देख रहा था।
“तुमने क्या सोचा कि इस तरह इकबाल खान तक पहुंच जाओगे।” कामनी जहरीले स्वर में कह उठी।
देवराज चौहान उसे घूरता रहा।
“जब तक मैं जिंदा हूं तुम इकबाल खान सूरी की हवा भी नहीं पा सकते।”
कामनी की आवाज में खतरनाक भाव आने लगे थे—“ये सूरत जैसा मामूली मामला नहीं है देवराज चौहान । इकबाल खान सूरी से वास्ता रखता मामला है जिसके पीछे पूरे हिन्दुस्तान की पुलिस लगी है। तब भी इकबाल खान को कोई उसकी मर्जी के बिना देख भी नहीं सका। मार्शल ने क्या सोचा कि ये मामला इतना आसान है कि डकैती मास्टर देवराज चौहान इकबाल खान सूरी के ठिकाने का पता लगा लेगा।”
देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी के भाव सिमटने लगे।
“आज तक यहां कोई नहीं पहुंच सका, जहां तुम खड़े हो। परंतु तुम आ पहुंचे।
“अब महसूस हो रहा है कि सूरत में तुम्हें बचाना नहीं चाहिए था।” देवराज चौहान ने दांत पीसकर कहा।
“वो वक्त अब बहुत पीछे रह गया है।” कामनी कमर पर हाथ रखे देवराज चौहान को घूर रही थी—“मैंने तुम्हारे बारे में पता किया। तुम्हारी तस्वीर भी हिन्दुस्तान से ई-मेल के रास्ते मुझ तक पहुंच गई है। तुम तो बहुत शानदार डकैती मास्टर हो। ये मार्शल के चक्कर में कैसे फंस गए?”
देवराज चौहान की एकटक निगाह कामनी पर थी।
“तुम तो अब गए देवराज चौहान। यहां तक पहुंचकर जिंदा वापस लौट पाना नामुमकिन है। ये इकबाल खान सूरी की मौत की गुफा है, जहां पर तुम फंस चुके हो। मौत तुम्हारे भाग्य में लिखी जा चुकी है।”
देवराज चौहान ने नजरें उठाकर दूर खड़े दोनों गनमैनों को देखा जो जगमोहन को संभाले हुए थे।
“अपने हथियारबंद लोगों के सामने तुम किस तरह चौड़ी हो रही हो। सूरत में तो तुम्हारी आवाज नहीं निकलती थी।”
“वहां मेरी आवाज निकलती तो मेरा भेद खुल जाता और फिर तुम मुझे बचाते नहीं।”
“इंडिया क्या करने आई थी तुम?”
“इन बातों का क्या फायदा?”
“बता सकती हो तो बता दो। तुमने ही तो कहा है कि अब मैं मरने वाला हूँ ।
“बेशक ।” कामनी गुर्रा उठी—“तुम मरने वाले हो। इकबाल खान सूरी ने मुम्बई में हमले का खास प्लान बनाया है। साथ में दूसरे लोग भी शामिल हैं, जैसे कि पाकिस्तान की सरकार और वहां का एक आतंकवादी संगठन।हमले कहां-कहां होने हैं और कैसे होने हैं, इसका एक ब्लू प्रिंट तैयार करके,उसकी फिल्म बनाई गई। परंतु हम कोई खतरा नहीं लेना चाहते थे कि नेट के रास्ते उसे भेजें और वो पकड़ में आ जाए। इसलिए मुम्बई स्थित इकबाल खान के आदमियों को वो पहुंचाने गई थी।”
“तब मार्शल की निगाह तुम पर थी। तुम्हें देखा नहीं, किसी को कुछ देते?”
बेवकूफों की तरह मैं काम नहीं करती कि कोई मुझे ऐसा करते देखे। वैसे भी हमें इस बात का शक था कि मुम्बई पहुंचने पर मुझ पर नजर रखी जा सकती है। वो छोटी-सी माईक्रोफिल्म थी जो कि मैंने किसी से हाथ मिलाते, उसके हाथ में सरका दी।”
देवराज चौहान का चेहरा बेहद सख्त हो उठा।
हमला कब होना है मुम्बई पर?” देवराज चौहान ने पूछा।
इसमें अभी दो महीने का वक्त है, पर तुम अब मरने जा रहे...।”
उसी पल देवराज चौहान कामनी पर झपटा और जोरों का घूंसा उसके गाल पर मारा । कामनी के पांव उखड़ गए। वो धड़ाम से पीछे जा गिरी।
देवराज चौहान भी गिरा।
परंतु दोनों फुर्ती से खड़े हो गए।
कामनी के होंठों के कोने में खून छलक आया था। उसने हाथ से खून साफ किया और मौत भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी मचल रही थी।
“मैडम।” तभी दूर खड़े गनमैन ने ऊंची आवाज में कहा- “शूट कर दें इसे।”
“नहीं” कामनी गुर्रा पड़ी—“मरने से पहले ये देख ले कि कामनी में ताकत कितनी है। कोई भी बीच में नहीं आएगा। ये मामला मेरा और इसका है। मैं इसे अब अपने हाथों से मौत दूंगी।” कहने के साथ ही कामनी ने देवराज चौहान पर छलांग लगा दी।
देवराज चौहान सतर्क था। उसने बचने के लिए तुरंत अपनी जगह छोड़ दी।
लेकिन तब तक कामनी का वेग से आता शरीर उस तक पहुंच चुका था। उसके कंधे से कामनी का शरीर टकराया और देवराज चौहान फर्श पर लुढ़कता चला गया, जबकि कामनी हवा में ही करवट लेकर, पैरों के बल खड़ी हो गई थी।
देवराज चौहान संभला और तुरंत खड़ा हो गया। इतना तो समझ चुका था कि उसके सामने जबर्दस्त योद्धा है जो कि लड़ने की कला में माहिर है। बहुत सोच-समझकर उसे परास्त करना होगा।
कामनी के चेहरे पर मौत के भाव नजर आ रहे थे।
“अब तुम मेरे किसी भी वार पर अपनी जान गंवा सकते हो। तुम कुछ भी सही, पर लड़ने की कला में मेरे बराबर नहीं हो सकते।”
देवराज चौहान धीमे-धीमे कामनी की तरफ बढ़ने लगा।
कामनी दोनों बांहें फैलाए, थोड़ी-सी झुकी, उसे देखने लगी।
देवराज चौहान अभी चंद कदम ही आगे आया था कि एकाएक कामनी ने तेजी से खुद को फर्श पर गिराया और चिकनी मछली की तरह, देवराज चौहान की तरफ खिसकती चली गई।
ये सब इतना अचानक हुआ कि देवराज चौहान संभल न सका।
कामनी का शरीर उसकी टांगों से आ टकराया।
वो ‘धड़ाम’ से आगे को गिरा। दोनों बांहें आगे कर लेने से चेहरा फर्श से टकराने से बच गया। परंतु उसके संभलने से पहले ही कामनी उछलकर खड़ी हुई और खड़े होते देवराज चौहान की कमर में जोरदार ठोकर मारी।
देवराज चौहान के होंठों से चीख निकली और वो पुनः फर्श पर जा लुढ़का।
कामनी ने छलांग लगाई और सीधी उसकी छाती पर जा बैठी। इसके साथ ही खास अंदाज में दाएं हाथ की उंगली चाकू की तरह उसकी गर्दन पर रखते हुए कहा।
“चाकू की तरह ये उंगली तेरे गले में घुस जाएगी देवराज चौहान और
तू अब...।”
तभी देवराज चौहान से पूरी ताकत लगाकर कामनी को अपने ऊपर से उछाल दिया।
कामनी पास ही फर्श पर जा गिरी।
देवराज चौहान खड़ा हुआ और कामनी पर झपटने को हुआ कि तभी कामनी की टांग घूमी जो कि उसकी टांगों में जा फंसी। देवराज चौहान बुरी तरह लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा। परंतु उसने हाथ बढ़ाकर कामनी की पिंडली थाम ली और फुर्ती से खड़ा होकर कामनी को गोल-गोल घुमाने लगा। जब घुमाने की रफ्तार तेज हो गई तो उसने पिंडली छोड़ दी।
कामनी का शरीर हवा में लहराता दस कदम दूर फर्श से टकराने ही वाला था कि तभी कामनी ने दोनों बाहें फर्श पर टिकाई और खास अंदाज में शरीर को झटका दिया कि हवा में लहराकर, वो पैरों के बल खड़ी हो गई।
खतरनाक भाव थे कामनी के चेहरे पर। वो उसी पल हवा में उछली और तीर की भांति देवराज चौहान की तरफ आई कि देवराज चौहान ने झुकते हुए हाथ ऊपर करके उसके पांवों को थामा परंतु उसी पल कामनी ने अपनी टांगों को खास अंदाज में झटका दिया और उसकी पीठ पर ठोकर जमाते, चंद कदम दूर जा खड़ी हुई।
देवराज चौहान लड़खड़ाया फिर संभल गया।
दोनों एक-दूसर को मौत की-सी निगाहों से देखने लगे थे।
दोनों गनमैन और जगमोहन दूर खड़े ये मौत का तमाशा देख रहे थे।
जगमोहन बेचैन था। वो बार-बार गनमैनों को देख रहा था और उनसे छुटकारे का मौका तलाश कर रहा था। परंतु वे दोनों उसके प्रति सतर्क थे।
तभी कामनी किसी बूढ़ी औरत की भांति झुकी और तेजी से देवराज चौहान की तरफ दौड़ पड़ी।
ऐसा होते ही देवराज चौहान ने उस पर छलांग लगा दी।
दोनों के शरीर वेग से टकराए और नीचे जा गिरे। उसी पल कामनी रबड़ की गुड़िया की भांति उछलकर खड़ी हो गई। खड़े होते देवराज चौहान की सतर्क निगाह, कामनी पर थी
कोई इतनी देर तक मेरा मुकाबला नहीं कर सकता । तू हिम्मत वाला है देवराज चौहान।” कामनी गुर्रा उठी।
देवराज चौहान दांत भींचे कामनी को देखे जा रहा था। उसे इस बात का इंतजार था कि कामनी अब कौन-सा वार करती है। तभी कामनी अपनी जगह पर खड़ी फिरकी की भांति घूमी और अगले ही पल हवा में उड़ता वेग के साथ उसका शरीर देवराज चौहान की तरफ लपका और पांव की जबर्दस्त ठोकर देवराज चौहान के पेट में पड़ी। देवराज चौहान के होंठों से चीख निकली और नीचे गिरता, वो फर्श पर फिसलता चला गया। कामनी फर्श पर आ खड़ी हुई थी और देवराज चौहान की तरफ बढ़ने लगी।
देवराज चौहान ने दोनों हाथों से पेट पकड़ रखा था। चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। परंतु कामनी को करीब आते पाया तो उसे संभल जाना पड़ा। चेहरे और आंखों में दरिंदगी के भाव नाच रहे थे। कामनी अभी पांच कदम दूर थी कि देवराज चौहान उसकी तरफ दौड़ा और उछलकर कामनी से जा टकराया।
कामनी इस बार कुछ लापरवाह थी।
कामनी का शरीर जोरों से उछला और पीछे को गिरता चला गया। तब तक देवराज चौहान लुढ़कता हुआ उसके पास जा पहुंचा था। वो नीचे पड़ी कामनी पर काबू पा लेना चाहता था कि तभी कामनी ने अपनी दोनों टांगें उसकी गर्दन में फंसाकर झटका दिया तो देवराज चौहान फर्श पर लुढ़कता चला गया। इससे पहले कि संभल पाता, कामनी ने उसके लुढ़कते शरीर को संभाला और उसकी छाती पर बैठती दाएं हाथ की तर्जनी उंगली पुनः उसकी गर्दन पर रख दी।
“अब मैं तेरा दांव नहीं चलने दूंगी।” वो गुर्रा उठी।
जबकि देवराज चौहान उसे अपने ऊपर से हटाने के लिए अपने शरीर में ताकत इकट्ठी करने लगा।
“इकबाल खान सूरी चाहिए तो पाकिस्तान के इस्लामाबाद में पहुंच।”
कामनी दांत भींचे कह उठी—“वो वहां है। यहां तेरे को इकबाल खान सूरी नहीं मिलने वाला । मैं भी वहीं जा रही हूं। मां का दूध पिया है तो इकबाल खान सूरी को छू के दिखा। मेरे होते हुए तू उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता। तू कीड़ा है उसके सामने। मामूली-सा कीड़ा। उसके सामने तेरी कोई औकात नहीं है। मरने से पहले तेरे दिल में ये इच्छा न बाकी रह जाए कि अगर मौका मिलता तो तू इकबाल खान सूरी की जान ले सकता था, इसलिए तेरे को जीने का एक और मौका दे रही हूं ताकि तू इस्लामाबाद पहुंचकर अपनी एक कोशिश और कर सके । मैं तेरे को तेरे अंत तक पहुंचाकर, तुझे मौत दूंगी देवराज चौहान, लेकिन तेरे पास इस बात का भी पूरा मौका होगा कि तू वापस मुम्बई चला जाए।”
देवराज चौहान कामनी के सुलगते चेहरे को देखने लगा।
“इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
“हां । वो पाकिस्तान में है। मां का दूध पिया है तो पहुंच पाकिस्तान में। इकबाल खान सूरी की तरफ बढ़ के दिखा। ये खुली चुनौती है मेरी तरफ से। मर्द होगा तो पाकिस्तान जरूर पहुंचेगा और वहीं पर तेरी मौत होगी। कुत्ते की मौत । अब मैं तेरे को यहां से निकल जाने का मौका दे रही हूं। जैसे आया है वैसे ही निकल जा। रास्ता साफ मिलेगा तेरे को। मां का दूध पिया है तो पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर जरूर पहुंचेगा इकबाल खान सूरी के लिए और वहीं पर तू कुत्ते की मौत मरेगा।”
देवराज चौहान की एकटक निगाह कामनी के सुलगते चेहरे पर थी।
कामनी की दरिंदगी-भरी निगाह, उसकी आंखों पर थी।
कामनी ने एकाएक उसे छोड़ा और उस पर से हटकर खड़ी हो गई।
देवराज चौहान नीचे पड़ा कामनी को देखता रहा। माथे पर बल आ गए थे। एकाएक कामनी पलटी और अपने आदमियों से कह उठी।
“जाने दो इन्हें । जैसे आए हैं, वैसे खुद ही यहां से चले जाएंगे।” फिर पलटकर देवराज चौहान से बोली- “तूने सूरत में मेरी जान बचाई थी, अब मैंने तेरी जान बख्श दी। हिसाब बराबर हो गया। अब तेरा कोई एहसान नहीं रहा...।
देवराज चौहान खड़ा होते हुए बोला।
“तुमने मेरी जान कैसे बख्श दी। अभी तो बहुत कुछ होना बाकी था।” स्वर में कठोरता थी।
“तो ये बात है।” कामनी गुर्रा उठी।
“हां, अभी तो...”
“तेरे सारे अरमान पूरे करूंगी।” कामनी खतरनाक स्वर में कह उठी-“तूने भी अरमान पूरे कराने हो तो इस्लामाबाद आ जा।”
दोनों कई पलों तक एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे।
चेहरों पर दरिंदगी सिमटी रही।
एकाएक कामनी पलटी और उस दरवाजे की तरफ बढ़ गई, जहां से वो दोनों गनमैनों के साथ आई थी। देखते-ही-देखते वो उन दोनों गनमैनों के साथ वहां से बाहर निकल गई। दरवाजा बंद हो गया।
जगमोहन हक्का-बक्का सा रह गया।
अचानक कामनी ने जो करवट ली थी, उससे वो हैरान था। देवराज के पास जा पहुंचा।
देवराज चौहान के माथे पर बल दिखाई दे रहे थे। होंठ भिंचे हुए थे।
“ये क्या हुआ? हम इकबाल खान सूरी के ठिकाने पर हैं और वो हमें यूं छोड़कर चली गई। लड़ाई भी बीच में छोड़ दी।”
“यहां से निकलो।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
“वो हमें जाने देगी?”
“हां। उसी ने जाने को कहा है। जैसे आए हैं, वैसे ही जाना होगा। रास्ता साफ मिलेगा। कामनी ने कहा।”
“ये हो क्या रहा है?”
“आओ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान उस दरवाजे की तरफ बढ़ा,जिधर से वे आए थे।
“लेकिन हमारी रिवॉल्वरें तो वो ले गए।” उसके पीछे जगमोहन कह उठा- “और इकबाल खान सूरी को देख भी नहीं पाए। ऐसे में हमारे यहां आने का क्या फायदा हुआ....।”
“यहां से निकलने के बाद सोचेंगे कि हमने क्या किया और क्या हुआ।”
देवराज चौहान ने दरवाजा खोला। जगमोहन के साथ बाहर निकला कि ठिठक गया।
सामने ही तीस-पैंतीस साल का व्यक्ति पड़ा कराह रहा था। वो घायल था। उन्हें देखते ही वो डर-सा गया। कराहने की आवाज धीमी करने की कोशिश में लग गया।
“कौन हो तुम?” देवराज चौहान ने आगे बढ़कर झुकते हुए पूछा।
वो फौरन कुछ न कह सका।
“बोलो। डरो मत, हम यहां के लोग नहीं हैं। कौन हो तुम और तुम्हारी ये हालत क्यों हुई?”
“म-मैं कमल चावला हूं। ये लोग मुझे उठाकर...।”
“कमल चावला?” देवराज चौहान बुरी तरह चौंका- “तुम कमल चावला हो?”
उसने सहमति से सिर हिला दिया।
जगमोहन भी इस बात पर ठगा-सा रह गया था।
“कौन-से कमल चावला हो तुम?”
“क्या मतलब?” उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर पूछा।
“तुम-तुम मार्शल वाले कमल चावला।”
“वो ही हूं मैं । पर तुम कौन हो। क्या मार्शल को जानते हो?” वो कह उठा।
“मैं देवराज चौहान हूं।”
“देवराज चौहान?” वो चौंका–“तुम देवराज चौहान, हां-तुम्हारी सूरत पहचानी लग रही है। मार्शल ने नैट पर तुम्हारी तस्वीर...।”
“ये असली कमल चावला है तो वो कौन है जो हमें कमल चावला के रूप में अलजीरा होटल में मिला था।” जगमोहन बोला।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
“क्या कोई और भी कमल चावला है। कोई कमल चावला बनकर तुमसे मिला?” वो कह उठा।
“यहां से निकलो।” देवराज चौहान बोला- “कहीं हम नई मुसीबत में न फंस जाएं। तुम चल सकते हो?”
“ह-हां, चल लूंगा। मुझे क्या करना होगा।” वो खड़ा होने की कोशिश में कह उठा।
देवराज चौहान ने उसे सहारा देकर खड़ा किया।
उसकी आंखों से आंसू बह निकले। वो भर्राए स्वर में बोला।
“मुझे बहुत बुरी तरह टॉर्चर किया गया है। मैं—मैं शायद ठीक से चल न सकू।”
देवराज चौहान ने उसे कंधे पर लादा और सीढ़ियां चढ़ने लगा।
पीछे आता जगमोहन कह उठा।
“तुम कब से यहां पर हो?”
“चार दिन से।” देवराज चौहान के कंधे पर पड़े उसने हांफते हुए कहा।
“यहां तुमने इकबाल खान सूरी को देखा?”
“वो यहां नहीं है। पाकिस्तान में है। मैं धोखे में इनके हाथों में जा फंसा।”
कमल चावला कह रहा था- “मेरे दो एजेंट इकबाल खान सूरी के आदमियों में शामिल थे। वो पकड़े गए? परंतु हमें इस बात की खबर न मिली और रिवॉल्वरों के साए में उन्हें, हमसे बात करने को कहा जाता। इस तरह इन्हें नई खबरें मिलती रहीं हमारी। तभी उन्होंने मुझे फोन करके एक जगह पहुंचने को कहा कि इकबाल खान सूरी के बारे में खास खबर देनी है। मैं वहां पहुंचा तो, इन लोगों ने मेरा अपहरण कर लिया।”
“क्या किया अपहरण करके?”
“यातना देकर जानकारियां जानने की चेष्टा करते रहे। कुछ बातें बताईं
तो कुछ नहीं बताईं।”
“तुम बाहर फर्श पर कैसे पड़े थे?”
“दो आदमी मुझे वहां छोड़ गए थे।”
“कामनी ने तुम्हें हमारे हवाले कर दिया है।” देवराज चौहान कह–“वो चाहती है, हम तुम्हें ले जाएं। इसका मतलब तुम पहले इनकी कैद में पहुंच गए और हम बाद में दुबई पहुंचे।”
“जब मैं इनकी कैद में पहुंचा तो, तब तक तुम दोनों नहीं पहुंचे थे। कमल उठा चावला ने थके स्वर में कहा।
वे छत पर जा पहुंचे थे।
यहां कोई भी बेहोश आदमी मौजूद नहीं था। अब छत पर कोई पहरा नहीं था।
“यहां के लोग कहां गए?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“हम बहुत ही गहरी चाल में फंसकर यहां पहुंचे हैं। अब हमें बाहर जाने का रास्ता दिया जा रहा है। इससे पहले कि वो इरादा बदले, हमें यहां से निकल जाना चाहिए।” देवराज चौहान ने कहा।
“गहरी चाल? मैं समझा नहीं। कैसा रास्ता हमें दिया जा रहा... ।”
देवराज चौहान कमल चावला से बोला।
“हमने छत से बरसाती पाइप से नीचे जाना है परंतु तुम बुरे हाल में हो और नीचे नहीं उतर...।”
“मुझे यहां छोड़कर मत जाना।” कमल चावला जल्दी-से कह उठा।
“तुम्हें अपने साथ ही ले जा रहे हैं। तुम मुझे पीठ की तरफ से मजबूती से पकड़कर लटक जाओगे। तुम्हारा बोझ लिए मैं पाइप से नीचे उतरूंगा। जगमोहन पीछे की तरफ के हालात देखो।” देवराज चौहान बोला। जगमोहन फौरन छत की दीवार के पास पहुंचा। पीछे की तरफ कोई भी गनमैन नहीं दिखा। वहां मध्यम लाइट रोशन थी।
“सब ठीक है।” जगमोहन ने कहा।
तब तक कमल चावला कंधे से उतरकर, देवराज चौहान को पीछे से कसकर पकड़ चुका था।
“मुझे छोड़ा तो उसके तुम ही जिम्मेदार होगे।” देवराज चौहान ने कहा।
“नहीं छोडूंगा।” कमल चावला ने थके स्वर में कहा- “इन लोगों ने मेरी हालात बिगाड़कर रख दी है।”
देवराज चौहान दीवार पर चढ़ा फिर कमल चावला का बोझ संभाले किसी प्रकार नीचे होते हुए पाइप को थामा और नीचे उतरने लगा। कमल चावला
ने उसे कसकर पकड़े रखा। मिनट-भर में ही कमल चावला को लिए देवराज चौहान नीचे था। उसने ऊपर देखा। जगमोहन नीचे आ रहा था। कमल चावला को सहारा देते हुए देवराज चौहान पीछे दिखाई दे रही दीवार की तरफ बढ़ गया। वे दीवार के पास पहुंचे कि तब तक जगमोहन भी पास आ गया।
“इसे सहारा देकर दीवार पर चढ़ाओ।” देवराज चौहान ने कहा।
“यहां कोई आदमी नजर क्यों नहीं...।”
“क्या तुम उनके नजर आने का इंतजार कर रहे हो।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
दो मिनट में ही वो तीनों दीवार के उस पार पहुंच चुके थे। कार वहीं खड़ी थी, जहां वे छोड़कर आए थे। ये कार उन्हें पहले वाले कमल चावला ने दी थी। देवराज चौहान ने स्टेयरिंग सीट संभाली। जगमोहन बगल में बैठा। कमल चावला पीछे वाली सीट पर जा लुढ़का। कार तेजी से दौड़ पड़ी।
“चार दिन में उन लोगों ने मेरी बुरी हालत कर दी। चौबीस घंटों में जरा-सा कुछ खाने को देते थे कि मैं जिंदा रहूं ऊपर से उनका टॉर्चर करना। अपनी टांगों पर खड़ा रहने की हिम्मत नहीं बची।” कमल चावला टूटे स्वर में कह उठा।
“तुम जिंदा रहे, ये बहुत बड़ी बात है।” देवराज चौहान बोला-“बाहर की शायद तुम्हें खबर नहीं है।”
“कैसी खबर?”
“तुम्हारे बहुत-से एजेंटों को कल शाम मार दिया गया। वे सब पर नजर रखे...।”
“जानता हूं। कल रात कामनी ने मुझे बता दिया था। कमल चावला ने पुनः दुख-भरे स्वर में कहा।
“इकबाल खान सूरी ने मार्शल का दुबई का सारा नेटवर्क खत्म कर दिया।
दो-चार एजेंट बचे भी हैं तो वो कहीं छिपकर रह रहे होंगे।”
कमल चावला ने कुछ नहीं कहा।
“अब हम कहां जा रहे हैं?”
“वहीं। कमल चावला और करीम मियां के पास। जहां से निकले थे।”
“क्या मतलब? वो तो नकली कमल चावला।”
“क्या पता ये नकली हो। वैसे वो ही नकली कमल चावला है। हम कामनी की तगड़ी चाल के शिकार हुए।।
“कैसी चाल?”
“बताऊंगा। कुछ देर इंतजार करो।”
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