अगले रोज के दैनिक समाचार पत्रों में हीरा ईरानी और उसकी मेड दोनों के कत्ल की खबर एक साथ मुख्य पृष्ठ पर छपी । अखबार में रूबी के कत्ल के सन्दर्भ में मेरी गिरफ्तारी का तो जिक्र था लेकिन मेरी रिहाई का जिक्र नहीं था । आधी रात को हुई मेरी रिहाई की खबर या तो अखबारों तक पहुंची ही नहीं थी, या इतनी लेट पहुंची थी कि वो उस रोज के अंक में छपने के लिये नहीं जा सकी थी ।
पुलिस के एक प्रवक्ता द्वारा - जोकि ए सी पी शैलेश तलवार के अलावा और कौन हो सकता था ! -मुझे रूबी गोमेज की हत्या का प्राइम सस्पैक्ट बताया गया था और इस बात को अखबार वालों ने, जाहिर था कि इसलिये भी खून उछाला था क्योंकि शायद उन्हें खबर नहीं थी कि मैं रिहा किया जा चुका था । खबर थी तो बावजूद मेरी रिहाई के प्राइम सस्पेक्ट मैं ही था ।
अखबार में मेरी रिवाल्वर की अलग से तस्वीर छपी थी और इस बात पर खास जोर दिया गया था कि जब ए सी पी तलवार मौकायेवारदात पर पहुंचा था, उस घड़ी मैं ताजी मरी रूबी गोमेज के सिरहाने खड़ा था और मेरे हाथ में वो धुंआ उगलती रिवाल्वर थी ।
अखबार में दोनों कत्ल परस्पर सम्बंधित बताये गये थे और इस बात की सम्भावना खास तौर से व्यक्त की गयी थी कि शायद लोकल प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर कोहली का एक नहीं बल्कि दोनों में ही हाथ था ।
अखबार में यूं मेरा नाम आना मेरे लिये चिन्ता का विषय था । यूं मेरे समाजी रुतबे और मेरे धन्धे, दोनों पर आंच आ सकती थी । यूं मेरा धन्धा तो बन्द ही हो सकता था, शहूर के बड़े लोग जो अभी मेरे से बगलगीर हो के मिलते थे और मुझे गोद में बिठा कर मेरे साथ चियर्स बोलते थे, मेरे से यूं परहेज करना शुरू कर सकते थे जैसे मुझे छूत की बीमारी हो ! अब मेरे धंधे और रुतबे का गहरा नुकसान होने से एक ही तरीके से बच सकता था कि हत्यारा जल्द से जल्द गिरफ्तार हो जाता । पुलिस को इस काम की भले ही कोई जल्दी न होती लेकिन अब मुझे बहुत जल्दी थी ।
सुबह सबसे पहले मैं पंजाबी बाग पहुंचा, जहां कि एलैगजेंडर की कोठी थी, और जाती तौर से अपनी रिहाई के लिये उसका शुक्रगुजार होकर आया ।
वैसा ही सम्पर्क साधने की कोशिश मैंने डाक्टर प्रदीप कोठारी से भी की लेकिन ग्रेटर कैलाश में मान सरोवर अपार्टमैट्स में डॉक्टर कोठारी न तो मुझे अपने ग्राउंड फ्लोर पर स्थित क्लीनिक में मिला और न ही उसकी बारहवीं मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट में मिला ।
उसकी सुर्मई आंखों वाली खूबसूरत नौजवान बीवी पायल कोठारी को भी नहीं मालूम था कि डाक्टर सुबह सवेरे कहीं चला गया था !
मैं अपने आफिस में पहुंचा ।
रजनी को मैंने बड़ी तल्लीनता से उस रोज का अखबार पढ़ते पाया । उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा ।
“आप !” - फिर उसके मुंह से निकला ।
“और क्या मेरा भूत ?” - मैं बोला ।
“पेपर में तो आपकी गिरफ्तारी की खबर छपी है !”
“आन्धी तूफान” - मैं शान से बोला - “कहीं गिरफ्तार करके रखे जाते हैं !”
“कमाल है । मैं तो आपका खाना लेकर तिहाड़ जेल पहुंचने वाली थी ।”
“रास्ता मालूम है तिहाड़ जेल का ?”
“मालूम तो नहीं है, लेकिन मालूम कर लेती । आखिर डिटेक्टिव की सैक्रेट्री हूं ।”
“लानत !”
“बल्कि अब मैं रास्ता पहले से मालूम करके रखूंगी और देख भी आऊंगी कि वहां ऐन्ट्री का क्या प्रोसीजर है ।”
“वो किसलिये ?”
“अब तो आना जाना लगा ही रहा करेगा वहां । आपकी ही वजह से ।”
“अच्छी वैलविशर है मेरी !”
“अखबार पढ़कर एक बात की हैरानी हुई, सर ।”
“किस बात की ?”
“इसी बात की कि अब पिस्तौल तमंचों के इस्तेमाल के बिना आप की बहनजियां आप के काबू में नहीं आती । और जो काबू में न आये उस को शूट कर देने में भी आप को कोई गुरेज नहीं ।”
“जब ये बात जान ही गयी है” - मैं दांत पीसता हुआ बोला - “तो तू भी सावधान रहना ।”
“क्या मतलब ?”
“तू भी तो मेरे काबू में नहीं आती । तुझे भी अब मैं रिवाल्वर दिखा के ही काबू करूंगा ।”
“कैसे करेंगे ? रिवाल्वर तो आप की पुलिस के कब्जे में है । फोटो छपी है अखबार में ।”
“मैं अभी जाके नयी रिवाल्वर खरीद के लाऊंगा और लौटते ही तेरे पर तानूंगा ।”
“रिवाल्वर से आपका कोई मतलब हल नहीं होने वाला । अलबत्ता तोप से मैं बहुत डरती हूं । आपके लिये तो तोप खरीद लाना भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी ।”
“नहीं है बड़ी बात । मैं तोप ही लाऊंगा ।”
“जेब में रख के लाइयेगा यहां ऊपर चौथी मंजिल तक वर्ना कोई देख लेगा ।”
“लानत ! लानत !”
भुनभुनाता हुआ मैं अपने आफिस में जा बैठा ।
कितनी ही देर मैं सिगरेट के कश लगाता, कुर्सी पर बेचैनी से पहलू बदलता पिछली रात की घटनाओं के बारे में सोचता रहा ।
एक बात तो निश्चित थी ।
रूबी का कत्ल ऐन इसी वजह से हुआ या कि कातिल को अंदेशा था कि हीरा के निजी कागजात, डायरी, चिट्ठियां वगैरह पढ़के या किसी और तरीके से रूबी कातिल के नाम से वाकिफ हो गयी थी और वो अपनी जानकारी आगे पुलिस को या मुझे ट्रांसफर करने पर आमादा थी ।
ए सी पी तलवार को तो कल मैंने वो बात यूं ही कह दी थी लेकिन इस लिहाज से तो सच में ही मेरे कत्ल की कोशिश हो सकती थी ।
आइन्दा दिनों में बेहद सावधान रहना मेरे तिये निहायत जरूरी था ।
अगला मसला ये था कि मुझे हीरा के सिर्फ चार चाहने वालों की खबर थी जबकि ऐसे शख्स और भी कई हो सकते थे ।
लेकिन उनका पता कैसे चलता ?
पता चलाने का एक लम्बा, दुरुह तरीका ये था कि मैं उन तमाम पार्टियों की याद अपने जेहन में ताजा करता जिनमें हीरा और मैं दोनों - अलग अलग जाकर या एक साथ जाकर - मौजूद थे ।
यूं मैं हीरा में दिलचस्पी लेने वालों की उसके इर्द-गिर्द मंडराने वाले भंवरों की एक लिस्ट बना सकता था और फिर उनकी पड़ताल कर सकता था ।
लेकिन सबको ये मालूम नहीं हो सकता था कि वो डायरी रखती थी । ये बात उन्हीं को मालूम हो सकती थी जो उसके बहुत भीतरी दायरे में पैठ चुके थे ।
ऐसे तो चार ही जने थे मेरी निगाह में ।
कौशिक, पचौरी, अस्थाना और बैक्टर ।
लेकिन और हो सकते थे ।
एक तो अपना स्टाक ब्रोकर नरेन्द्र कुमार ही हो सकता था जो औरतों का रसिया था और जिसने अपनी एक पार्टी में हीरा को खास तौर से इनवाइट किया था ।
मैं झुंझलाने लगा ।
ऐसी लिस्ट तो शैतान की आंत से भी लम्बी हो सकती थी ।
मैं तो उससे हफ्ते दस दिन में एक बार मिलता था । बीच के दिनों में क्या पता वो कितने जनों को एन्टरटेन करती थी !
मैंने अपने सिर को झटक कर उन ख्यालात को जेहन से बाहर निकाला और टेलीफोन का रिसीवर उठाकर एक्सटेंशन का बटन दबाया ।
“यस, सर ।” - मुझे रजनी की आवाज आयी ।
“एक मिनट यहां आ” - मैं बोला - “तुझे एक बात सुनानी है ।”
“फोन पर ही सुना दीजिये ।”
“क्यों ? मेहन्दी लगी है तेरे पांव में ?”
“नहीं ।”
“तो फिर इधर आ के मर ।”
“अच्छा ।”
मैंने फोन रख दिया ।
उसने मेरे कक्ष में कदम रखा ।
“इधर आ ।” - मैंने आदेश दिया ।
बिना हुज्जत किये वो मेज का घेरा काट के मेरे करीब आ गयी जिसकी कि मुझे सख्त हैरानी हुई ।
मैंने अपलक उसकी तरफ देखा ।
“आप” - वो यूं बोली जैसे मुझे याद दिला रही हो - “कोई खास बात सुनाने वाले थे !”
“हां । हां । वो क्या है कि दो तीन दिन पहले मैं एक पार्टी में गया था जहां मुझे एक फ्रांसीसी बाला मिली थी । उसने वहां मुझे एक ऐसी तरकीब सिखाई थी जिसके इस्तेमाल से किसी को हाथ लगाये बिना, उसको छुये भी बिना, उसे किस किया जा सकता था ।”
“क्या !”
“मैं सच कह रहा हूं । बड़ी कारआमद तरकीब है वो ।”
“आपने सीख ली ?”
“हां । मैं अभी यही तेरे सामने उसकी निहायत कामयाब डिमांस्ट्रेशन भी पेश कर सकता हूं । तू हामी भर, मैं अभी तेरी उंगली भी छुये बिना तुझे किस कर लूंगा ।”
“ऐसा कहीं मुमकिन है ?”
“बिल्कुल मुमकिन है ।”
“आप मेरी उंगली भी नहीं छुयेंगे, मेरे करीब भी नहीं फटकेंगे, लेकिन मुझे किस कर लेंगे ?”
“बिल्कुल । लगी सौ सौ की शर्त ।”
“लगी ।” - वो जोश से बोली ।
मैं उठकर खड़ा हो गया और बोला - “देख, मैं तेरे से दो फुट दूर हूं । ठीक ?”
“ठीक ।”
“मेरे दोनों हाथ मेरी पीठ पीछे हैं । ठीक ?”
“ठीक ।”
“अब आंखें बन्द कर ।”
“वो किस लिये ?”
“जरूरी है । क्योंकि ये दीद का नहीं, अहसास का जादू है ।”
“ठीक है ।” - उसने आंखें बन्द कर लीं ।
तत्काल मैं उसके करीब पहुंचा और मैंने उसे अपनी बांहों में भर कर उसके होंठों पर, गालों पर तड़ातड़ तीन चार चुम्बन जड़ दिये ।
उसने तत्काल आंखें खोलीं, धकेल कर मुझे परे किया और गुस्से में बोली - “ये...ये क्या...”
“च..च..च । - मैं खेदपूर्ण स्वर में बोला - “तरकीब भूल गयी मुझे । शर्त हार गया मैं । ये ले सौ रुपये ।”
नोट लेने की जगह वो बाहर को चल दी ।
“कहां जा रही है ?” - मै सशंक भाव से बोला ।
“मुहं धोने ।” - वो बोली ।
“क्यों ? मुंह को क्या हुआ है ?”
“अभी थूक नहीं लगा दी आपने ?”
“तौबा ! तौबा !”
वो वहां से बाहर निकल गयी ।
मैं वापिस कुर्सी पर ढेर हो गया ।
तभी फोन की घन्टी बजी ।
कुछ क्षण मैं रजनी द्वारा फोन उठाये जाने की प्रतीक्षा करता रहा, फिर मैंने फोन खुद ही उठा लिया । वो तो शायद सच में ही मुंह धोने चली गयी थी ।
“हल्लो ।” - मैं माउथपीस में बोला ।
“यादव बोल रहा हूं ।” - आवाज आयी ।
“नमस्ते ।” - मैं बोला ।
“नमस्ते । कल मिले मदान से ?”
“हां, मिला ।”
“क्या कहता है ?”
“वही जो तुम चाहते हो । पहले तो तुम्हारी दुश्वारी सुन कर वो बहुत भड़का अपनी आदत के मुताबिक । कहने लगा अच्छी हुई साले के साथ । लेकिन बाद में मान गया । यादव, वो कभी ये बात जुबान पर नहीं लायेगा कि उसने तुम्हें रिश...”
“बस, बस ।”
“कहने का मतलब ये है कि मदान की तरफ से तुम बिल्कुल निश्चिन्त हो जाओ ।”
“ये तो बड़ी अच्छी खबर दी तुमने सवेरे-सवेरे । कोहली, मैं दिल से तुम्हारा शुक्रगुजार हूं ।”
“बोल कहां से रहे हो ?”
“हैडक्वार्टर से । अपने ऑफिस से ।”
“क्या कर रहे हो ?”
“मक्खियां मार रहा हूं ।”
“एक काम मेरा ही कर दो ।”
“क्या ?”
“जरा चुपचाप पता करो कि हीरा और रूबी के कत्ल के सिलसिले में तुम्हारा ए सी पी क्या कर रहा है, तुम्हारा मुहकमा क्या कर रहा है, तुम्हारे फिंगरप्रिंट्स, बैलेस्टिक्स एक्सपर्ट वगैरह क्या कर रहे हैं ? दोनों लाशों के पोस्टमार्टम की क्या रिपोर्ट है, वगैरह ?”
“ठीक है । दोपहर को फोन करना ।”
“अच्छा ।”
मैंने फोन रखा ही था कि घन्टी फिर बज उठी ।
मैंने फोन उठाया । लाइन पर अस्थाना था ।
“क्या हो रहा है ?” - वो बोला ।
“कुछ नहीं ।” - मैंने जवाब दिया ।
“जरा यहां आ सकते हो ?”
“अभी ?”
“और क्या अगले हफ्ते !”
“आता हूं ।”
मैंने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रखा और उठ खड़ा हुआ ।
अस्थाना का आफिस नेहरू प्लेस में ही था जहां कि मैं मजे से टहलता हुआ पांच मिनट में पहुंच सकता था ।
मैंने अपने कक्ष से बाहर कदम रखा ।
रजनी रिसैप्शन डैस्क पर मौजूद थी । उसकी मेरे से निगाह मिली तो उसके चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव आये ।
“नाराज हो गयी ?” - मैं मीठे स्वर में बोला ।
“धोखा दिया आपने मुझे ।” - वो भुनभुनाई - “छुप के वार किया ।”
“सॉरी ।”
“मैं इस्तीफा दे रही हूं ।”
“अरे, भगवान के लिये ऐसा न करना । इतनी बड़ी सजा नहीं भुगती जाएगी मेरे से । कोई और सजा दे ले ।”
वो खामोश रही ।
“तू तो...तू तो कलर टी वी के एंटीना से भी ज्यादा सैन्सिटिव निकली ।”
“मैं एन्टीना हूं !” - वो आंखें निकाल कर बोली - “सीधा, लम्बा, पतला बांस हूं !”
“नहीं तू तो....तू तो... अब मैं बताऊंगा कि तू क्या है तो तू फिर नाराज हो जायेगी । खैर जाने दे । अब तू मेरा कहना मान । जो हुआ उसे भूल जा ।”
“क्या हुआ ?”
“यानी कि भूल भी गयी ? शाबाश !”
“आप कहीं जा रहे हैं ?”
“हां ।”
“कब लौटेंगे ?”
“पता नहीं । क्यों पूछ रही है ?”
“मुझे दो घन्टे की छुट्टी चाहिये ।”
“क्यों ?”
“मुझे हाथ पांव हाड़ मांस मज्जा सुसज्जा क्लीनिक जाना है ।”
“क्या !”
“ब्यूटी पार्लर । ब्यूटी पार्लर जाना है मुझे ।”
“क्या ! तेरी ब्यूटी को भी पार्लर की जरूरत है ?”
“बातें न बनाइये ।”
“ठीक है, जा । जहां जी चाहे जा ।”
“उसके लिये जरूरी है कि आप मेरी गैरहाजिरी में दफ्तर में बैठें ।”
“क्यों ?”
“कोई क्लायंट आ सकता है । आपको तो काम धन्धे की फिक्र है नहीं, मुझे तो है ।”
“तुझे क्यों है ?”
“आप चार पैसे कमायेंगे तो मेरी तनख्वाह भर पाएंगे न !”
“लानत ! हर वक्त तनख्वाह का रोना रोती रहती है । आज तक कभी ऐसा हुआ है कि किसी पहली को मैंने तुझे तनख्वाह न दी हो ?”
“हुआ ती नहीं लेकिन अन्देशा तो रहता ही है न ?”
“साल दो साल की तनख्वाह एडवांस ले ले ।”
“असल बात बीच में ही रह गयी ।”
“मैं करीब ही जा रहा हूं । लौट के आता हूं । फिर चली जाना ।”
“धन्यवाद ।”
मैं ऑफिस से बाहर निकला और अस्थाना के ऑफिस की ओर रवाना हुआ ।
अस्थाना बिल्डिंग कान्ट्रैक्टर था और महाबेइमान था । एक बार किसी ने मुझे उस की कंस्ट्रक्शन कम्पनी के कार्यकलापों की पड़ताल करने के लिये रिटेन किया था तो वो मेरे पर बहुत आग बबूला हुआ था और उसने मुझे अपने गुण्डों से पिएटवा देने की यहां तक कि जान से मरवा देने की भी धमकी दी थी । लेकिन तब जल्दी ही अस्थाना ने वो मामला खुद ही रफादफा कर लिया था और यूं मेरा भी अपने आप उससे पीछा छूट गया था ।
आज भी मेरे उससे कोई बहुत मधुर सम्बन्ध नहीं थे, अलबत्ता किसी न किसी बहाने गाहे बगाहे मुलाकात होती रहती थी ।
वो स्विस घड़ियों की स्मगलिंग का धन्धा भी करता था, ये बात मैंने हीरा की जुबानी ही सुनी थी ।
उसका उस वक्त का बुलावा, मुझे यकीन था कि, इसी वजह से या कि वो भी हीरा की फैन क्लब का चार्टर्ड मैम्बर था ।
उसकी रिसैप्शनिस्ट और सैक्रेट्री के व्यवधान पार करके मैं उसके एयरकंडीशंड आफिस में पहुंचा जहां कि वो एक विशाल टेबल के पीछे अपनी एग्जीक्युटिव चेयर पर यूं बैठा हुआ था जैसे लेटा हुआ हो ।
ऐसा ही आरामतलब आदमी था वो जो टिक के खड़े होने की सुविंधा हो तो चलता नहीं था, बैठने की सुविधा हो तो खड़ा नहीं होता था और लेटने की सुविधा हो तो बैठता नहीं था । बिजनेसमैन इतना पक्का था कि फुल टकला था लेकिन बाल उगाने वाला तेल वो खरीदता था जिसके साथ कंघी फ्री आती हो । हीरा की फैन क्लब का वही इकलौता मैम्बर था जिसने मिस्ट्रेस के साथ-साथ मेड पर भी हाथ साफ करने की कोशिश की थी अलबत्ता कामयाब नहीं हुआ था ।
मुझे आया देखकर वो जबरन मुस्कराया । हाथ मिलाने के लिये उसको कुर्सी पर सीधा हो के बैठना पड़ता इसलिये उसने हाथ हिला कर ही काम चला लिया ।
उस घड़ी वो एक सफेद रंग का डबल ब्रैस्ट वाला सूट पहने हुए था और बिल्कुल फिल्मी विलेन लग रहा था ।
“बैठ कोहली ।” - वो गम्भीरता से बोला ।
मैं उसके सामने एक कुर्सी पर ढेर हो गया ।
“बोल, क्या खिदमत करूं मैं तेरी ?”
“खिदमत करने तो मैं आया हूं ।”
“ठीक है, तू ही कर ।”
मैं हड़बड़ाया ।
“हीरा की डायरी कहां है ?” - वो सख्ती से बोला ।
‘कैसी डायरी ?” - मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला ।
“तू जानता है कैसी डायरी !”
“तुम्हें कैसे मालूम है कि वो कोई डायरी रखती थी ?”
“पचौरी ने बताया ।”
“ओह ! लगता है तुम सब लोग आपस में पहले ही नोट्स एक्सचेंज कर चुके हो ।”
“हां । और इसीलिये मुझे मालूम है कि हीरा के ब्लैकमेल रैकेट में तू उसका पार्टनर था ।”
“बिल्कुल झूठ ।” - मैं आवेशपूर्ण स्वर में बोला ।
“बिल्कुल सच ।” - वो शान्ति से बोला ।
“अगर ऐसी कोई डायरी हीरा के पास थी तो उसके बाकी, कागजात के साथ उसे वही शख्स ले गया होगा जिसने कि उसका कत्ल किया था ।”
“जो कि तू है ।”
“अस्थाना, ये तुम नहीं, तुम्हारा पेंदा बोल रहा है । मुंह बोलता तो अक्ल की बात निकलती ।”
“शट अप ।”
“क्या शट अप ! अरे, अगर मैं हीरा का पार्टनर होता तो क्या मैं सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को हलाल करता ! मैं तो अपनी जान से ज्यादा उसकी जान की हिफाजत करता ।”
“कोई जरूरी नहीं । तू महाहरामी आदमी है । पार्टनरशिप से तेरा मन उकता गया होगा । तू मालिक बनने का ख्वाहिशमन्द हो उठा होगा । ब्लैकमेल का सिलसिला स्थापित तो हीरा ने कर ही लिया हुआ था । अब उसे आगे चलाये रखने के लिये तुझे हीरा की मदद की जरूरत नहीं थी । जरूरत थी तो उस हथियार की - उस डायरी की, उन कागजात की - जिन्हें हीरा कैश कर रही थी ।”
“ये सब बकवास है । कातिल उन्हीं लोगों में से कोई है जिन्हें वो ब्लैकमेल कर रही थी । उन लोगों में से एक तुम भी हो ।”
“तू भी हो सकता है ।”
“फिर लगे बहकने । एक सांस में मुझे उसका पार्टनर बताते हो और दूसरी सांस में ही मुझे उसका शिकार बताने लग जाते हो । दोनों बातें कैसे हो सकती हैं ?”
“हो सकती हैं । जब वास्ता महाबदमाश कोहली से हो तो हो सकती हैं । कैसे हो सकती हैं, नहीं मालूम लेकिन हो सकती हैं ।”
“अस्थाना, मैं पंजाबी हूं और पंजाबियों के शब्दकोश में दुनिया की हर जुबान से ज्यादा गालियां हैं । तुम ने ये गाली गलौज की भाषा फौरन बन्द न की तो फिर मैं शुरू हो जाऊंगा और तुम्हारी ऐसी मां की बहन की करके दिखाऊंगा कि तुम्हारा सारा दफ्तर यहां इकट्ठा हो जायेगा ।”
“साले !” - वो कहरभरे स्वर में बोला - “तेरी ये मजाल !”
“हां, हरामजादे ।” - उसके स्वर से मैच करते स्वर में मैं बोला - “मेरी ये मजाल !”
वो तिलमिलाया, तड़पा, उसने यूं कई बार पहलू बदला जैसे कुर्सी एकाएक तपने लगी हो, यहां तक कि सीधा होके भी बैठा जो कि उसके लिये भगीरथ प्रयत्न का काम था लेकिन मेरे लिये दोबारा गाली उसके मुंह से न निकली ।
“अस्थाना ।” - मैं धीमे किन्तु पूर्ववत् सख्त स्वर में बोला - “पुलिस की तवज्जो अभी ब्लैकमेलिंग वाले एंगल की तरफ नहीं गयी है । अभी पुलिस को तुम्हारी या तुम्हारे जैसे तुम्हारे जोड़ीदारों की खबर नहीं हुई है । अगर तुम्हें इतनी ही गारन्टी है कि हीरा का कत्ल मैंने किया है और उसके चोरी गये कागजात मेरे पास हैं तो तुम क्यों नहीं पुलिस को इस बात की इत्तला देते ? ऐसा तुम अपना नाम बीच में लाये बिना भी कर सकते हो । तुम पुलिस को एक गुमनाम टेलीफोन काल करके भी इस असलियत से वाकिफ करा सकते हो कि मैं और हीरा मिलकर ब्लैकमेल रैकेट चला रहे थे और मैंने ही हीरा का कत्ल किया था ।”
“बेवकूफ बनाता है ! पुलिस ने तुझे पकड़ लिया तो वो तेरे से ब्लैकमेल के शिकारों के नाम नहीं उगलवा लेंगे ! मुझे अपनी आ बैल मुझे मार वाली हालत करने की सलाह दे रहा है ! मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं । हम चारों में से कोई भी इतना बेफकूफ नहीं है ।”
“बढिया । तुम्हें बधाई मैं दे देता हूं । अपने जोड़ीदारों तक मेरी बधाई तुम पहुंचा देना । अब बोलो, असल में क्यों बुलाया था मुझे यहां ?”
“बोल तो चुका । और कैसे बोलूं ? कोहली मुझे डायरी चाहिये । मुझे हीरा के चोरी गये तमाम कागजात चाहियें ।”
“मेरे पास नहीं हैं ।”
“तो किसके पास हैं ?”
“कातिल के पास । जो कि तुम भी हो सकते हो ।”
“फिर बहकने लगा । अरे, अगर वो कागजात मेरे पास होते तो मैं उन्हें तेरे से मांग रहा होता ?”
“ये तुम्हारी कारोबारी अक्ल से उपजी तुम्हारी खास पैतरेबाजी हो सकती है । यूं तुम ये स्थापित करने की कोशिश कर रहे हो सकते हो कि कातिल तुम नहीं, कागजात के चोर तुम नहीं ।”
“बकवास ।”
“अपने जोड़ीदारों में से किसी से पूछकर देख लो । कातिल उनमें से भी कोई हो सकता है ।”
“कोई जरुरत नहीं । कोहली, मेरा दावा है कि वो कागजात तेरे पास हैं । तूने कत्ल भले ही न किया हो लेकिन वो कागजात तूने ही चुराए हैं । परसों रात तू फार्म हाउस पर हीरा के साथ था । सिर्फ तेरे पास ढेर सारा वक्त था उस कागजात को वहां से तलाश करके उन पर काबिज होने का ।”
“अस्थाना !” - मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला - “तुम्हें कैसे मालूम है कि परसों रात मैं फार्म हाउस पर था ?”
“है मालूम किसी तरीके से । तू कह ये बात झूठ है ।”
“पचौरी ने बताया ? या कौशिक ने ?”
“काले चोर ने बताया ।”
“या सिर्फ अंदाजा ही लगा रहे हो ? तुक्का ही मार रहे हो ?”
“मैं कुछ भी कर रहा हूं । तू कह कि ये बात झूठ है ।”
“कागजात मेरे पास नहीं हैं ।”
“नहीं हैं तो तुझे मालूम है कि वो कहां हैं, किसके पास हैं । कोहली, हीरा का कत्ल तूने भला ही न किया हो लेकिन परसों रात उसके साथ फार्म हाउस पर तू शर्तिया था । कत्ल या तो तेरे सामने हुआ था और या तेरी आसपास ही कहीं मौजूदगी के दौरान हुआ था । कागजात अगर कातिल ने चुराए हैं तो तुझे कातिल की खबर है, खुद तूने चुराए हैं तो बात ही क्या है ! मेरा दावा ये है कि हर हाल में कागजात तेरी पहुंच में हैं ।”
“तुम्हारा दावा बेबुनियाद है ।”
“तेरे कहने से हो गया वो बेबुनियाद ।”
“और किसके कहने से होगा ? कागजात की खोज खबर के बारे में तुम्हारी तमाम रिसर्च मेरे पर ही केन्द्रित है तो मेरी हां न से ही तो इसका फैसला होगा !”
“तेरे इन्कार से भी मेरा विश्वास नहीं हिलने वाला ।”
“फिर पूछने का क्या फायदा ?”
“तेरी ही भलाई के लिये पूछा । देख, तू उन कागजात की फिरौती की कोई फीस चाहता है तो साफ बोल ।”
“फीस चाहने से मुझे कोई परहेज नहीं....”
“बढिया ! अब नाम ले उस रकम का जो तेरी औकात है ।”
“लेकिन अफसोस की बात ये है कि कागजात मेरे पास नहीं हैं ।”
“क्यों नहीं हैं ? चोरों को मोर पड़ गये ?”
“कागजात कभी थे ही नहीं मेरे पास । होते तो इस चोर को मोर न पड़ पाते ।”
“तू झूठ बोल रहा है । तू अपन भाव बढ़ाने के लिये झूठ बोल रहा है ।”
मैंने लापरवाही से कन्धे झटकाये ।
“तू मुझे सख्ती का तरीका अख्तियार करने के लिये मजबूर कर रहा है ।”
“क्या सख्ती का तरीका अख्तियार करोगे तुम ? उठकर अपनी तोंद से मुझे धक्का दोगे या बकरे की तरह अपनी टकली खोपड़ी से मेरे पर वार करोगे ?”
“अभी हंस ले । खिल्ली भी उड़ा ले मेरी लेकिन बहुत जल्दी तू जार जार रो रहा होगा और रहम की भीख मांग रहा होगा, ये मेरा वादा है तेरे से । अब जाके जान बना । कोई दण्ड वण्ड पेल । बादाम वादाम खा । और खुदा से दुआ मांग कि जब जान जाती लगे तो सच में ही न चली जाये ।”
“तुम्हारा” - मैं उठता हुआ बोला - “धमकी देने का स्टाइल मुझे पसन्द आया ।”
“मेरा स्टाइल अभी तूने देखा कहां है ! वो तो तू अभी देखेगा ।”
“मैं उस वक्त का इन्तजार करूंगा ।”
“तेरे इन्तजार की घड़ियां तेरी उम्मीद से जल्दी खत्म होंगी, सुधीर कोहली ।”
***
मैं गोल माकेट पहुंचा ।
आर्म एण्ड अम्युनीशन डीलर अमोलक राम ने वो गोली एक लिफाफे में रख कर मुझे वापिस लौटा दी और बताया कि वो पैंतालीस कैलीबर की कोल्ट ब्रांड की रिवाल्वर से चली गोली थी ।
मैंने अमोलक राम का धन्यवाद किया और वहां सें रुख्सत हुआ ।
मेरी कार कनाट प्लेस पहुंची तो उसे नेहरू प्लेस की दिशा में दौड़ाने के स्थान पर मैंने आई टी ओ जाने के लिये उसे बाराखम्बा रोड पर मोड़ दिया ।
दोपहर होने को थी और पुलिस हैडक्वार्टर वहां से करीब था इसलिये मैंने यादव से वहां जाकर मिलने का फैसला किया ।
यादव हैडक्वार्टर में सादे कपड़ों में अपने कमरे में मौजूद था लेकिन उसने मेरे से वहां बात न की । वो मुझे अपने साथ नीचे सड़क पर ले आया ।
“अभी कुछ रुटीन बातों की ही खबर लग सकी है ।” - वो बोला - “वो ऐसी बातें हैं जो प्रैसरूम से वैसे ही कोई भी मालूम कर सकता है ।”
“मसलन क्या ?” - मैं बोला ।
“मसलन दोनों लाशों का पोस्टमार्टम हो गया है और उनके जिस्म से लगी गोलियां निकाल कर पुलिस को सौंप दी गयी हैं । दोनों गोलियां दो जुदा हथियारों से चलाई गयी थी । उन में से एक तो तुम्हारी खुद की ही रिवाल्वर थी । अलबत्ता अब इस बात की भी तसदीक बैलेस्टिक एक्सपर्ट के जरिये हो गयी है कि रूबी को लगी गोली मौकायेवारदात से बरामद हुई तुम्हारी ही रिवाल्वर से चली थी जो कि अड़तीस कैलीबर की थी । जो गोली हीरा की छाती से निकाली गयी है, उसकी बाबत अभी मुझे इतना ही मालूम हुआ कि वो तुम्हारी वाली रिवाल्वर से नहीं चली थी । बैलेस्टिक एक्सपर्ट अब तक ये स्थापित कर चुका होगा कि वो गोली कितने कैलीबर की थी और किस किस्म की रिवाल्वर से चली थी लेकिन ये बात अभी मैं नहीं निकलवा पाया हूं अलबत्ता कोशिश पूरी कर रहा हूं ।”
“गुड ।”
“फार्म हाउस पर हीरा के निजी सामान की पड़ताल के दौरान वहां से हीरा के हैदराबाद रहते घर वालों का पता बरामद हुआ है । पुलिस ने एक्सप्रैस टेलीग्राम के जरिये उस पते पर हीरा के कत्ल की खबर भिजवायी है ताकि कोई वहां से दिल्ली आ कर लाश का क्लेम कर सके और उसके अंतिम संस्कार का इन्तजाम कर सके ।”
“आई सी ।”
“रूबी की एक बड़ी बहन आगरे से यहां पहुंची है ।” - यादव आगे बढ़ा - “निक्सी गोमेज नाम है उसका । रूबी का फ्लैट क्योंकि पुलिस ने अभी फरदर इन्वेस्टिगेशन के लिये सील किया हुआ है इसलिये वो दरियागंज के प्रकाश होटल में पुलिस के खर्चे पर ठहरी हुई है । अभी ए सी पी तलवार भी उसके होटल में उसके पास ही मौजूद है इसलिये अगर उधर का रुख करने की मंशा हो तो पहले इस बात की तसदीक कर लेना कि वो वहां से रुख्सत हो गया हुआ था और पीछे निक्सी की निगरानी के लिये कोई पुलिस वाला नहीं छोड़ गया था ।”
“ठीक ।”
“मुझे तुम्हारी कल की गिरफ्तारी की तो अखबार से ही खबर लगी थी लेकिन रिहाई कैसे हुई थी, ये यहां आके पता लगा था । तलवार यूं तुम्हारी रिहाई से बहुत खफा है और जी जान से तुम्हारे खिलाफ कोई ऐसा सबूत जुटाने की कोशिश कर रहा है जिसकी बिना पर वो तुम्हें फिर गिरफ्तार कर सके । इस बार सबूत - असली या फर्जी - ऐसा हो सकता है कि तुम्हारे हिमायती भी तुम्हें नहीं छुड़ा सकेंगे ।”
“फर्जी भी !”
“कोई बड़ी बात नहीं ।”
“एक ए सी पी रैंक का अफसर ऐसा करेगा ?”
“हो सकता है न करे लेकिन मेरी नेक राय तुम्हें ये ही है कि सावधान रहना ।”
“किसी फर्जी सबूत या फर्जी केस के खिलाफ मैं क्या सावधान रह सकता हूं ?”
“ये भी ठीक है ।”
“वैसे तलवार है ऐसी नीयत का आदमी ?”
“भई, आखिरकार है तो वो पुलिसिया ही ।”
“तुम ये सब इसलिये तो नहीं कह रहे हो क्योंकि वो तुम्हारे खिलाफ है ।”
यादव ने आहत भाव से मेरी तरफ देखा ।
“सॉरी !” - मैं तत्काल बोला - “और ?”
“हीरा के कत्ल के सन्दर्भ में तलवार को हीरा का ऐश्वर्यशाली रहन सहन खटका है, ये बात तो अखबार में भी छपी है । अपने प्रैस को दिए बयान में उसने ये सम्भावना व्यक्त की थी कि हीरा को वो कमाई वेश्यावृति से थी लेकिन मेरा खुद का ख्याल ये है कि वेश्यावृति से सिर्फ एक साल में उस शानोशौकत के लायक पैसा नहीं कमाया जा सकता जिससे कि हीरा जिन्दगी बसर करती बतायी जाती थी ।”
“तुम्हारा क्या ख्याल है ?”
“मेरा दावा तो एक्सटॉर्शन पर है । मेरे ख्याल से तो वो अपने क्लायंट्स से अपनी जिस्मी सेवाओं की फीस ही नहीं हासिल कर रही थी, उन्हें ब्लैकमेल भी कर रही थी । तलवार की जगह अगर मैं होता तो सब से पहले मैं उन्हीं लोगों की लिस्ट बनाता जो हीरा के बहुत करीबी थे, पिछले एक साल से निरन्तर उसके सम्पर्क में थे और इतने पैसे वाले थे कि हीरा जैसी औरत द्वारा ब्लैकमेल किये जाने पर भी उन का दौलत का घड़ा लबरेज ही रहने वाला था ।”
“क्या पता तलवार भी काम कर रहा हो इसी लाइन पर !”
“आगे करे, सो करे, अभी तो नहीं कर रहा ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“भई, मैं भी यहां कोई मुंशी, चपरासी या हवलदार नहीं, तीन फूलों वाला इन्स्पेक्टर होता हूं । ए सी पी इन्स्पेक्टर से एक सीढी ही तो ऊपर होता है । मेरे भी भेदिये हैं उसके कैम्प में ।”
“ओह !”
“और बोलो ।”
“एक बात बताओ । पुलिस के पास फायर आर्म्स की रजिस्ट्रेशन का रिकार्ड होता है । क्या तुम उस रिकार्ड में से ये जानकारी निकलवा सकते हो कि दिल्ली शहर में पैंतालीस कैलीबर कोल्ट रिवाल्वर रखने का लाइसेंस किन किन सज्जनों के पास है ?”
उसने घूरकर मुझे देखा ।
मैंने अपलक उससे निगाह मिलायी ।
“क्या मतलब, है भई ?” - वो बोला ।
“कुछ नहीं ।” - मैं बड़ी मासूमियत से बोला - “यूं ही जरा ये जानकारी चाहिये थी । सोचा, शायद तुम्हारे से हासिल हो जाये ।”
“असल बात नहीं बतायेगा ?”
“यही है असल बात कि...”
“सुधीर कोहली, कत्ल के केस में पुलिस से कोई जानकारी छुपाकर रखना भी अपराध होता है ।”
“मैं क्या छुपा रहा हूं ?”
“वो तुझे मालूम हो । तू कुछ नहीं छुपा रहा तो बड़ी खुशी की बात है । छुपा रहा है, तो मैं नहीं जानना चाहता कि क्या छुपा रहा है । लेकिन जो जानकारी तू चाहता है, उसके जेरेसाया मैं ये चेतावनी फिर दोहराना चाहता हूं कि आइन्दा दिनों में तलवार से सावधान रहने में ही तेरी भलाई है ।”
“जानकारी हासिल तो हो जायेगी ?”
“कोशिश करूंगा । अगर ये कंप्यूटर वाला काम हुआ तो जल्दी हो जायेगा । रजिस्टर वाला मामला हुआ तो टाइम लगेगा ।”
“ठीक है ।”
“और बोल ।”
“बस । शुकिया ।”
“शाम को फोन करना ।”
“जरूर ।”
***
मैं नेहरू प्लेस अपने आफिस वापिस लौटा ।
तब ठीक एक बजा था ।
“अब जा अपने वो मज्जा सुसज्जा क्लीनिक ।” - मैं रजनी से बोला - “मैं बैठा हूं आफिस में ।”
“दो बजे जाऊंगी ।” - वो बड़े इत्मीनान से बोली ।
“क्यों ? अब क्यों नहीं जाती ?”
“ये मेरा लंच आवर है ।”
“ओहो । यानी कि अपने एम्पलायर का टाइम खराब करेगी, अपना टाइम खराब नहीं करेगी ?”
वो हंसी ।
“रजनी, जितनी कमबख्त मैं तुझे समझता था, तू तो उससे भी ज्यादा कमबख्त है ।”
वो फिर हंसी और बोली - “वो क्या है कि मेरी एक सहेली यहां आने वाली है । दो बजे । मैं उसके साथ जाऊंगी ।”
“सहेली या सहेला ?”
“सहेली ।”
“वो भी तेरे ही जैसे ही खूबसूरत है ।”
“है । लेकिन उसका हसबैंड जूडो में ब्लैक बैल्ट है ।”
“हसबैंड !”
“हां ।”
“फिर वो लड़की थोड़े ही हुई ! फिर तो वो भरजाई जी हुई, आंटी जी हुई । माता जी हुई ।”
“वो इतनी बड़ी नहीं ।”
“शादीशुदा लड़की किसी भी उम्र की हो भरजाई जी आंटी जी, माता जी ही होती है ।”
“जैसे भरजाईजियों, आंटीजियों और माताजियों से आपको परहेज है । जैसे आपकी बहनजियों में ऐसी कोई नहीं ?”
“रजनी !” - मैं आहत भाव से बोला - “दिस इज हिट बिलो दि बैल्ट ।”
वो सिर झुकाकर हंसी ।
मैं भुनभुनाता हुआ अपने केबिन में आ बैठा ।
ऐसी ही थी वो मेरी महाकम्बखत सैक्रैट्री ! हमेशा मुझे लाजवाब कर देती थी ।
रजनी पांच बजे लौटी ।
“क्या कराया ब्यूटी पार्लर में ?” - मैं बोला - “जैसी गयी थी, वैसी ही लौटी है ।”
“वैक्सिंग करायी है” -वो शान से बोली - “थ्रेडिंग कराई है, बाल सैट कराये हैं ।”
“नाहक पैसे बरबाद किये । कोई फर्क नहीं पड़ा ।”
“आप के कहने से क्या होता है !”
“और किस के कहने से होता है ?”
“उन के जो ब्यूटी पार्लर से यहां तक के रास्ते में मरे पड़े हैं ।”
“सब मर गये ? कोई नहीं बचा ?”
“एक दो की सांस अभी चल रहा थी लेकिन हालत नाजुक थी ।”
“चल-चल । अब ज्यादा अपने मुंह मियां मिट्ठू न बन ।”
वो निचला होंठ दबा कर हंसी ।
उसे यूं ही हंसता छोड़कर मैं ऑफिस से रुख्सत हुआ ।
मैं दरियागंज पहुंचा । एक पी सी ओ से मैंने प्रकाश होटल का नम्बर डायल किया । लाइन लगी तो मैं कर्कश स्वर से बोला - “पुलिस हैडक्वार्टर से बोल रहे हैं । आगरे से आयी निक्सी गोमेज से बात कराइये ।”
“यस सर ।” - कोई तत्पर स्वर में बोला ।
तत्काल लाइन लगी ।
“यस ।” - मुझे आवाज आई - “निक्सी हेयर ।”
“पुलिस हैडक्वार्टर से बोल रहे हैं ।” - मैं पूर्ववत कर्कश स्वर में बोला - “आपके पास हमारे ए सी पी तलवार साहब आये हुए हैं । जरा बात कराइये ।”
“वो तो चले गये ।”
“कब गये ?”
“अभी कोई पन्द्रह मिनट पहले ।”
“लौट के आयेंगे ?”
“ऐसा बोले तो नहीं वो !”
“आप अभी वहीं हैं ? कहीं जा तो नहीं रही ?”
“नहीं ।”
“ठीक है । हम फिर फोन करेंगे ।”
मैने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया और प्रकाश होटल पहुंचा ।
“आगरे से आयी निक्सी गोमेज कौन से कमरे में हैं ?” -मैंने रिसैप्शन पर पूछा ।
“दो सौ पांच में ।” - रिसैप्शनिस्ट युवती बोली ।
“मैं उन से मिलना चाहता हूं ।”
“आप का शुभ नाम ?” - वो रिसीवर उठाती हुई बोली ।
“कोहली ।”
उसने एक नम्बर डायल किया, फोन पर मेरा नाम लिया, यस मैडम कहा और रिसीवर वापिस रखती हुई बोली - “तशरीफ रखिये, वो यहीं आ रही हैं ।”
मैं रिसैप्शन पर रिसैप्शन डैस्क से बहुत परे एक पाम के गमले की ओट में एक सोफे पर जा बैठा । उस घड़ी वहां मेरे अलावा और कोई नहीं था ।
दो मिनट बाद ब्लाउज और स्कर्ट पहले पक युवती रिसैप्शन पर पहुंची ।
रिसैप्शनिस्ट ने मेरी तरफ इशारा कर दिया ।
वो लम्बे डग भरती मेरे करीब पहुंची और बोली - “हल्लो ! आई एम निक्सी गोमेज ।”
मैंने उठकर उसका अभिवादन किया और बोला - “मुझे सुधीर कोहली कहते हैं ।”
तत्काल उसके चेहरे के भाव बदले । उसने तीखी निगाह से मेरी तरफ देखा ।
“मेरे नाम से वाकिफ मालूम होती हैं आप !” - मैं बोला - “जब कि अभी आप ने दिल्ली में कदम ही रखा है !”
“वाट डु यू वांट ?”
“आप से चन्द बातें करना चाहता हूं ।”
“किस बाबत ?”
“आप की बहन रूबी के कत्ल की बाबत ।”
“आप रूबी को जानते थे ?”
“खूब अच्छी तरह से । उसकी एम्पलायर मेरी फास्ट फ्रेंड थी ।”
“क्या बात करना चाहते हैं आप रूबी की बाबत ?”
“आप बिराजें तो बताऊं ।”
“मैं बहुत थकी हुई हूं । सफर से भी और पुलिस की क्रास क्वेश्चनिंग से भी । इसलिये...”
“मैं आपका बहुत कम वक्त लूंगा । आई प्रामिस ।”
वो मेरे सामने बैठ गयी तो मैं भी वापिस उस सोफे पर बैठ गया जिस पर से मैं उठा था ।”
मैंने सरसरी निगाह उस युवती पर डाली जो कि उम्र में रूबी से पांच-छ: साल बड़ी लग रही थी और जो खूबसूरती के मामले में रूबी के सामने कहीं नहीं ठहरती थी । दूसरा फर्क उसमें ये था कि वो रूबी की तरह गोवानी लहजे में इंगलिश मिली हिन्दोस्तानी नहीं बोलती थी । वो तो बिल्कुल साफ और संतुलित हिन्दोस्तानी बोलती थी ।
“पुलिस ने आप को बहुत हलकान किया मालूम होता है ।” - उसका मस्का मारने की नौबत से मैं बड़े सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला ।
“मतलब की बात पर आइये, मिस्टर कोहली ।” -वो शुष्क स्वर में बोली ।
“ठीक है । मतलब की बात पर ही आता हूं । मैडम, कल शाम मैं रूबी के फ्लैट पर उससे मिला था । मैं वहां उस घड़ी पहुंचा जब, बकौल रूबी, वो आप को चिट्ठी लिख रही थी । मेरे वहां पहुंच जाने से उसके उस काम में विघ्न आ गया था । उसको उस चिट्ठी को मुकम्मल करके पोस्ट करने की जल्दी थी, ऐसा उसने खुद कहा था । मेरा सवाल ये है मैडम कि क्या ऐसी कोई चिट्ठी आप को मिली थी ?”
“मिली थी ।”
“इतनी जल्दी कैसे मिल गयी ? कल शाम को लिखी चिट्ठी...”
“रूबी ने मुझे कूरियर से भेजी थी । आज सुबह पांच बजे वो मुझे मिल भी गयी थी ।”
“क्या लिखा था उसमें ?”
“आप को बताना जरूरी है ?”
“जरूरी तो नहीं हैं लेकिन अगर उसमें कोई खास, कोई गोपनीय बात न हो तो...”
“कोई खास, कोई गोपनीय बात नहीं थी उसमें । वो एक आम चिट्ठी थी जैसी कि छोटी बहनें बड़ी बहनों को आम लिखती हैं ।”
“उसमें ऐसा कुछ नहीं था जिससे ये इशारा मिलता हो कि वो किसी बात से खौफजदा थी या उसे अपने पर कोई विपत्ति आने का अन्देशा था ?”
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं था ।”
“आप रूबी की बड़ी बहन थीं । वो आपको अपने यहां के रहन-सहन की बाबत खबर करती रहा करती थी ?”
“हां ।”
“कभी यहां उसके साथ कोई ऊंच नीच हो जाती थी तो वो आप को खबर करती थी ?”
“करती थी ।”
“फिर भी उसने अपनी कल की चिट्ठी में ये नहीं लिखा कि उसके सिर पर जान का खतरा मंडरा रहा था ?”
“उसे ऐसा कोई खतरा अपने सिर मंडराता नहीं लगा होगा ।”
“उसका अपनी एम्पलायर हीरा ईरानी से बड़ा लगाव था । दोनों में मालिक नौकर जैसा नहीं बहनों जैसा रिश्ता स्थापित था । जो आम चिट्ठी उसने आप को लिखी थी, उसे आप आम तो न मानती अगर उसमें हीरा के कत्ल का जिक्र होता ! कत्ल कोई रोज-रोज होने वाला वाकया तो नहीं होता !”
“उसमें हीरा ईरानी के कत्ल का जिक्र था ।” - वो यूं बोली जैसे भारी दबाव में वो बात कबूल कर रही हो ।
“फिर भी आपने चिट्ठी को आम बताया ?”
“मेरा मतलब ये था कि उसमें रूबी ने खुद अपनी बाबत कोई खास बात नहीं लिखी थी ।”
“हैरानी है ।”
“क्यों ? क्यों हैरानी है ?”
“मैडम, मेरा दावा है कि आपकी बहन ऐसा कुछ जानती थी जिस की वजह से हीरा के कातिल के लिये उसका कत्ल कर देना भी जरूरी हो गया था । पहले वो इस बाबत मेरे से - एक प्राइवेट डिटेक्टिव से - बात नहीं करना चाहती थी लेकिन बाद में उस का ख्याल बदल गया था और उसने खास मेरे प्लैट पर फोन कर के मुझे अपने यहां आने के लिये कहा था लेकिन अफसोस की बात है कि मेरे वहां पहुंचने से पहले ही उसका कत्ल हो चुका था । मेरा ख्याल ये है कि उसे कातिल के बारे में कुछ मालूम था या कोई ऐसा जरिया मालूम था जिससे कि कातिल के बारे में कुछ जाना जा सकता था । जैसी व्यग्रता वो कल आपको चिट्ठी लिखने में दिखा रही थी, वो एक मामूली, घरेलू, दुनियादारी वाली चिट्ठी लिखने में नहीं दिखाई जाती, मैडम ।”
“आप क्या कहना चाहते हैं ?”
“यही कि उस चिट्ठी में कातिल की तरफ कोई इशारा रहा हो सकता है । लेकिन अपनी बेध्यानी में आप की तवज्जो उसकी तरफ नहीं गयी होगी । अगर आप वो चिट्ठी मुझे दिखायें तो...”
“वो एक पर्सनल लैटर है ।”
“जब पर्सन ही न रहा तो लैटर में पर्सनल क्या रह गया !”
“वो...वो लैटर मेरे पास नहीं है ।”
“तो किसके पास है ?”
“पुलिस के पास ।”
“ओह ! लेकिन याद तो होगा ही आपको कि उसमें क्या लिखा था । अब अगर आप अपनी याददाश्त पर जोर डालें और उस चिट्ठी की इबारत को अक्षरश: दोहरा सकें तो..”
“आई विल डू नो सच थिंग ।”
“क्यों ?”
“मैं अपनी बहन के कत्ल की बाबत आप से कोई बात नहीं करना चाहती ।”
“लेकिन क्यों ?”
“पुलिस ने मेरे को ऐसा बोला है ।”
“कैसा बोला है ? क्या बोला है ?”
“यही कि इस बाबत मैं आप से कोई बात न करूं ।”
“खास मेरे से ? प्राईवेट डिटेक्टिव सुधीर कोहली से ?”
“हां ।”
“इसीलिये आप मेरे नाम से वाकिफ हैं क्योंकि पुलिस ने आप को मेरे बारे में वार्न किया है ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“वजह मुझे नहीं मालूम । लेकिन अपनी बहन के कत्ल की तफ्तीश करते पुलिस के उच्चाधिकारी की राय पर चलना मेरा फर्ज है ।”
“मुझे अफसोस है कि पुलिस ने मेरा ऐसा गलत इम्प्रेशन आप पर बिठाया, लेकिन मैं आप की प्राब्लम समझता हूं । यू हैव टु कोआपरेट विद लोकल पुलिस ।”
“ऐग्जैक्टली ।”
“लेकिन फिर भी मेरे बारे में अगर आपका इम्प्रैशन बदल जाये तो मेरे से सम्पर्क कीजियेगा । ये मेरा एक विजिटिंग कार्ड रख लीजिये । काम आयेगा ।”
उसने कार्ड थामने का उपक्रम न किया ।
“पुलिस का कहना है” - वो बोली - “कि तुम्हीं ने मेरी बहन का कत्ल किया है ।”
“ये पुलिस का कहना है या ए सी पी तलवार का कहना है ?”
“क्या फर्क हुआ ?”
“ए सी पी तलवार की व्यक्तिगत दिलचस्पी है इस बात में कि आप अपनी बहन के माध्यम से अगर कुछ जानती हैं तो मुझे न बताएं । अगर ए सी पी साहब से पहले मैं कातिल को तलाश करने में कामयाब हो गया तो उनकी हेठी हो जायेगी ।”
“आप ये कहना चाहते हैं कि आप कातिल नहीं हैं ?”
“अक्ल से काम लीजिये, मैडम । कातिलों को क्या यूं छुट्टा घूमने दिया जाता है ! मैं कातिल होता तो इतनी आजादी से आप के सामने बैठा होता ?”
वो सोच में पड़ गयी ।
“किसी पर कातिल होने का शक करने में और उसे कातिल साबित करके दिखाने में जमीन आसमान का फर्क होता है, मैडम ।”
“आप पर शक तो है न पुलिस को कातिल होने का ?”
“वो तो है ।”
“ऐसा शक बेबुनियाद तो नहीं होता !”
“बुनियाद भी है ।” - मुझे कबूल करना पड़ा - “पुलिस ने आप को बताया ही होगा कि आप की बहन का कत्ल मेरी रिवाल्वर से हुआ था और जब ए सी पी मौकायेवारदात पर पहुंचा था तब उसने मुझे रिवाल्वर हाथ में थामे आप की बहन की लाश के सिरहाने खड़ा पाया था ।”
“सो देयर यू आर ।”
“लेकिन अगर मैं कातिल होता” - मेरे स्वर में एकाएक आवेश का पुट आ गया - “तो क्या मैं आप के करीब भी फटकता ? हकीकत ये है कि असली कातिल की तलाश ही मुझे आपके पास लायी है ।”
“आप तलाश कर लेंगे असली कातिल को ?”
“मालूम नहीं, लेकिन अपनी तरफ से कोई कोशिश उठा नहीं रखूंगा ।”
“आप की वजह से मेरी बहन के कातिल को उस के कुकर्म की सजा मिली तो मैं दिल से आप की शुक्रगुजार होऊंगी ।”
“वो तो आप होंगी लेकिन जब तक मेरी तरफ से आपका रवैया तब्दील नहीं होगा तब तक ऐसा कैसे मुमकिन होगा ?”
“अगर रवैया तब्दील हुआ” - उसने मेरा विजिटिंग कार्ड धीरे से मेरे हाथ से निकाल लिया - “तो मैं जरूर आप से कान्टैक्ट करूंगी । नाओ गुड नाइट ।”
मै उठ खड़ा हुआ ।
***
होटल से निकल कर मैं घंटा मस्जिद की ओर बढ़ा जहां कि मैं अपनी कार खड़ी करके आया था ।
रूबी की बहन से मेरी मुलाकात का वो नतीजा तो नहीं निकला था जिसकी उम्मीद में कि मैं वहां आया था लेकिन ये एक बात फिर भी स्थापित हो गयी थी कि अपनी चिट्ठी में रूबी ने मेरे खिलाफ कुछ नहीं लिखा था । निक्सी का मेरी तरफ बेरुखी का रवैया सिर्फ इसलिये था क्योंकि पुलिस ने उसे मेरे खिलाफ बड़ी उलटी पट्टी पढ़ा दी थी । अगर रूबी ने उसे ये लिखा होता कि मैं सुधीर कोहली, उसकी एम्पलायर का - हीरा ईरानी का - कातिल हो सकता था तो निक्सी मेरे से बात करना तो दूर, मुझे अपने पास भी न फटकने देती । मैं फिर भी जिद करता तो वो पुलिस को फोन कर देने की धमकी देने लगती । बाद में उसका खास नरम पड़ जाना भी इसी बात की तरफ इशारा था कि निक्सी मेरे साथ पेश आने के मामले में महज पुलिस का कहना मान रही थी ।
इसी उधेड़ बुन में मैं पार्किंग में कई कारों के बीच खड़ी अपनी कार के करीब पहुंचा ।
तब तक अन्धेरा हो चुका था जो कि रात में दूर भी नहीं होने वाला था क्योकि उस सड़क पर स्ट्रीट लाइट्स की व्यवस्था नहीं थी ।
मैंने अपनी कार को चाबी लगाकर खोला और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ।
तभी एक ठण्डी सी चीज मेरी गर्दन के साथ आ लगी ।
“कोई हरकत न हो, छोकरे ।” - कोई दबे स्वर में बोला - “तेरी गुद्दी पर पिस्तौल की नाल है ।”
“मुझे जैसे सांप सूंघ गया । व्याकुल भाव से मैंने पीछे मुड़कर देखने की कोशिश की लेकिन तत्काल नाल जोर से मेरी गर्दन में गड़ी ।
“खबरदार !”
गर्दन घुमाने का ख्याल छोड़कर मैंने रियर व्यू मिरर पर निगाह डाली । मुझे पिछली सीट पर दो व्यक्तियों की मौजूदगी का अहसास हुआ लेकिन उनकी सूरतें मुझे न दिखाई दीं ।
“कार चालू कर ।” - मुझे आदेश मिला - “और शान्ति वन के पहलू से पौन्टून के पुल की ओर चल ।”
आदेश पालन करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था ।
मैंने कार को पार्किंग से निकाला और उसे निर्दिष्ट रास्ते पर डाल दिया ।
“अस्थाना के आदमी हो ?” - मैं बोला ।
“थोबड़ा बन्द ।” - कोई गुर्राया ।
मैं चुपचाप गाड़ी चलाने लगा ।
वो एक पुरानी फिएट थी जिसका कोई बन्द दरवाजा बिना चाबी से खोल लेना कोई ज्यादा कारीगरी की बात नहीं थी । इस लिहाज से मुझे सावधान रहना चाहिए था लेकिन मेरे से चूक हो गयी थी । अस्थाना इतनी जल्दी मेरे पीछे अपने गुण्डे लगा देगा, इसकी मुझे सपने में भी उम्मीद नहीं थी ।
पौन्टून के रास्ते पर अन्धेरा था लेकिन वो उजाड़ नहीं था । फिर वो मुझे उधर क्यों लाये थे ?
जल्दी ही मुझे अपने सवाल का जवाब मिल गया ।
मुझे आगे पौन्टून का पुल अभी दिखना शुरू ही हुआ था कि आदेश मिला - “दायें कच्चे में उतार ।”
“हिचकोले खाती कार सड़क से काफी परे निकल आयी तो मुझे नया आदेश मिला - “रोक ।”
मैंने कार रोकी ।
“बाहर निकल ।”
मैं कार से बाहर निकला । मैंने इर्द-गर्द निगाह दौड़ाई तो मेरा मुंह सूखने लगा ।
क्या माकूल जगह थी कत्ल के लिये !
और लाश ठिकाने लगाने के लिये ।
जमना वहां से सिर्फ दस हाथ दूर बह रही थी ।
कार का मेरी ओर का पिछला दरवाजा खुला ।
मैंने हवा में छलांग लगाई और एक दोलत्ती की तरह अपने दोनों पैरों की सामूहिक ठोकर दरवाजे पर जमाई । दरवाजा किसी के मुंह से टकराया । किसी की टांग मुझे दरवाजे और कार की बाडी में अटकी दिखाई दी ।
कोई जोर से चिल्लाया ।
मैं सड़क की ओर सरपट भागा ।
तभी मुझे सड़क की दिशा से एक एम्बैसेडर कार अपनी तरफ आती दिखाई दी । कार की कोई बत्ती नहीं जल रही थी इसलिये मैं उसे बड़ी कठिनाई से देख पाया था ।
उस कार की हाई बीम एकाएक आन हुई ।
मेरी आंखें चौंधिया गयी ।
लाइट लगभग फौरन ही बन्द हो गयी ।
मैं कार के रास्ते से परे हट कर उसके बाजू में आगे भागा ।
अपने पीछे अन्धेरे में मुझे रेत में धप्प-धप्प पड़ते कदमों की आवाज आ रही थी ।
सामनी कार ने एकाएक मेरी दिशा में झोल खायी और फिर मेरी तरफ दौड़ी जैसे मुझे रौंदती हुई गुजर जाना चाहती हो ।
जैसे क्या, यकीनन उस कार चालक का यही इरादा था ।
मैं कार की चपेट में आने से न बच पाया । मैं कार से टकराया, मेरा शरीर हवा में उछला, एक भड़ाक की आवाज से कार के बोनट पर आकर गिरा और फिर मेरी चेतना लुप्त हो गयी ।
***
जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आपको अपनी कार की पिछली सीट पर पाया । कार की डोम लाइट जल रही थी और उसी की वजह से मैं पहचान पाया कि मैं अपनी ही कार में था ।
लेकिन अकेला नहीं ।
तत्काल मुझे अपने इर्द गिर्द उन मवालियों की मौजूदगी का अहसास हुआ । मैंने व्याकुल भाव से दायें बायें निगाह दौडाई तो पाया कि एक जना आगे ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ था और पीछे घूमकर मेरी तरफ देख रहा था, दूसरा कार से बाहर उसके एक पिछले खुले दरवाजे से लग कर खडा था और एक तीसरा और करीब ही खड़ी एक काली एम्बैसेडर के पहलू का सहारा लिये खड़ा सिग्रेट के कश लगा रहा या ।
“जाग गया है, उस्ताद जी ।” - ड्राइविंग सीट वाला बोला ।
“इसे बाहर निकाल” - सिग्रेट वाला, जिसे कि उस्ताद जी के नाम से सम्बोधित किया गया था अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “और इसे इसके पैरों पर खड़ा कर ।”
तत्काल उसके आदेश का पालन हुआ । पलक झपकते मैं उस्ताद के सामने खड़ा हवा में बांस की तरह झूल रहा था और अपने दोनों हाथों से अपने शरीर के विभिन्न अंग टटोलता किसी टूट फूट का जायजा लेने की कोशिश कर रहा था ।
“दोनों इसकी कार में बैठो” – उस्ताद बोला – “और कार को सड़क की तरफ जरा आगे ले जाओ ।”
दो मिनट में मेरी कार वहां से दूर पहुंच गयी और मैं उस्ताद के सामने अकेला खड़ा रह गया ।
तब मैंने नोट किया कि उस्ताद लम्बा ओवरकोट पहने था और सिर पर हैट यूं लगाये था कि उसका सामना कोना उसके चेहरे पर उसकी नाक तक झुका हुआ था ।
“डरता है ?” – मैं बोला ।
“किसे कह रहा है, भई ?” – उस्ताद हड़बड़ा कर बोला ।
“और कौन है यहां ?”
“मैं और तेरे जैसे चूहे से डरूंगा ?”
“डर ही रहा है । तभी तो थोबड़ा छुपाये है ।”
“बहुत सयाना है ।”
“ये हैट कोट वाली सावधानियां तेरे किसी काम नहीं आने वाली, खलीफा । तेरी पहचान के लिये तो इतनी जानकारी ही काफी है कि तू अस्थाना का आदमी है ।”
“किसने कहा ?”
“मैंने कहा । अब तू भी कह ।”
“डायरी की बात कर, कोहली, कहां है डायरी ?”
“तेरे इस सवाल ने ही मेरी शिनाख्त की तसदीक कर दी है ।”
“मैंने कह तो दिया कि तू बहुत सयाना आदमी है । अब क्या लिख के दूं ?”
“डायरी की बाबत मैंने जो कुछ कहना था, अस्थाना से आज सुबह कह दिया था । और मैंने कुछ नहीं कहना ।”
“मेरे से तो और कुछ क्या, और काफी कुछ कहना पड़ेगा बच्चे । इसीलिये तो तू यहां है । अब बोल क्या कहता है डायरी के बारे में ?”
“कुछ नहीं ।”
“डायरी तेरे पास है । हीरा के यहां से चोरी गये तमाम कागजात तेरे पास है । तेरा इन्कार मेरे सामने नहीं चलने वाला ।”
“क्यों नहीं चलने वाला ?”
“क्योंकि इन्कार को हामी में तब्दील कराना मुझे आता है ।”
“कोशिश कर ले फिर ।”
“तू मूर्ख है । तुझे उन कागजात की मुंह मांगी कीमत मिल सकती है ।”
“खलीफा, अभी तक तूने एक भी बात ऐसी नहीं कही है जो कि अस्थाना मुझे पहले ही नहीं कह चुका । मेरा जवाब तेरे लिये भी वही है जो अस्थाना के लिये था । वो कागजात मेरे पास नहीं हैं । होते भी तो मैं उन्हें अस्थाना को न सौंपता । किसी कीमत पर न सौंपता ।”
“क्यों ?”
“मेरी मर्जी ।”
“तेरी मर्जी मेरे आगे नहीं चलने वाली ।”
“तू क्या करेगा ?”
“मैं अभी बताता हूं ।”
उसने अपने ओवरकोट की जेब में हाथ डाला । हाथ जब उसने बाहर निकाला तो उसमें एक लम्बी नाल वाली रिवाल्वर थी । उसका हाथ अभी ठीक से मेरी तरफ तना भी नहीं था कि मैंने अपनी दायीं टांग हवा में चलायी । मेरे जूते की ठोकर उसके रिवाल्वर वाले हाथ से टकराई तो रिवाल्वर उसके हाथ से निकल कर हवा में उछल गयी । इससे पहले कि वो ठोकर से ही संभल पाता, मैंने एक जुस्त हवा में लगाई और अब नीचे आती रिवाल्वर को हवा में लपक लिया । मैंने तत्काल हवा में एक फायर किया ।
गोली की आवाज़ ने ही उस्ताद के तमाम कस बल निकाल दिये । वो सहमा सा मुझे देखने लगा । मैंने खाली हाथ उसकी खोपड़ी पर जमाया तो हैट उछल कर परे जा गिरा । मैंने गौर से उसकी अब दिखाई देने लगी सूरत का मुआयना किया लेकिन वो मेरी कोई पहचानी हुई सूरत न निकली ।
“नाम बोल ।” – मैं हिंसक भाव से बोला ।
“रघुबीर !” – वो दबे स्वर में बोला ।
“हैरानी है कि अस्थाना को तेरे से कोई उम्मीदें हुई । तू तो उससे भी ज्यादा पिलपिला निकला ।”
वो खामोश रहा ।
“अपनी कटलरी के नाम बोल ।”
“कट... कट... कटलरी !”
“चमचे । चमचों के नाम बोल ।”
“लम्बे का इब्राहीम । दूसरे का कलीराम ।”
“दोनों को आवाज दे के यहां बुला । नाम ले के पुकार ।”
उसने ऐसा ही किया ।
क्रुछ क्षण बाद दोनों प्रेतों की तरह अन्धेरे में चलते हुए हमारे करीब पहुंचे । मेरे हाथ मे रिवाल्वर देख कर उनके नेत्र फैल गये ।
“खबरदार !” – रिवाल्वर उनकी तरफ लहराता हुआ मैं चेतावनीभरे स्वर में बोला ।
वो होंठों पर जुबान फेरते खामोश खड़े रहे ।
“मेरी कार की चाबी कहां है ?”
“कार में ही ।” - लम्बा - इब्राहीम - बोला – इग्नीशन में ।”
“औंधे मुंह जमीन पर लेट जाओ । तीनों ।”
किसी की हुक्मउदूली की मजाल न हुई ।
मैंने एम्बैसेडर की खुली खिड़की में से भीतर हाथ डाल कर इग्नीशन में से चाबियों का गुच्छा निकाल लिया और उसे उनसे दूर हवा में उछाल दिया । फिर मैं अपनी कार की ओर लपका । मैं जानता था कि उस घडी वो सकते की हालत में थे लेकिन उस हालत से वो किसी भी क्षण उबर सकते थे और बावजूद मेरे पास रिवाल्वर की मौजूदगी के वे मेरे पर झपट सकते थे । इसलिये फौरन वहां से खिसक जाने में ही मुझे अपना कल्याण दिखाई दे रहा था ।
अपनी फियेट के करीब पहुंच कर मैं उसमें सवार हुआ और फिर आननफानन मैंने कार वहां से भगा दी ।
दिल्ली गेट के भीड़भरे चौराहे पर पहुंच कर ही मेरी जान में जान आयी ।
वहां टेलीफोन एक्सचेंज के करीब पहुंच कर मैंने कार रोकी और उस्ताद से छीनी रिवाल्वर का मुआयना किया । मैंने पाया कि रिवाल्वर पर से उसका सीरियल नम्बर रेती से घिस कर मिटा दिया गया था ।
यानी कि अब वो रिवाल्वर मेरे लिये बेकार का बोझ थी ।
एक्सचेंज के पहलू में लगे पब्लिक टेलीफोन्स की कतार में से एक से मैंने अस्थाना के ऑफिस में फोन किया ।
तत्काल उत्तर मिला । फोन खुद अस्थाना ने उठाया ।
“हल्लो ।” – वो सावधान स्वर में बोला ।
“अपने दादाओं से” – मैं कड़े स्वर में बोला – “रिपोर्ट की इन्तजार में दफ्तर खोले बैठा है, साले ।”
“क... कौन ?”
“जैसे तुझे पता नहीं ।”
“क... कोहली ?”
“हां ।”
“वो... वो कहां गये ?”
“तीनों मर गये । तीनों की लाशें कल जमना से बरामद होंगी ।”
“तू झूठ बोल रहा है ।”
“झूठ तो झूठ ही सही ।”
“कोहली, तेरी खैर नहीं ।”
“यानी कि अभी फिर कोशिश करेगा ? इस बार ज्यादा कड़क दादे मेरे पीछे लगायेगा ?”
“तू क्यों चिपका हुआ है डायरी से ? तू क्यों...?”
“अबे, अक्ल के दुश्मन, मैं तुझे कैसे विश्वास दिलाऊं कि डायरी मेरे पास नहीं है ?”
“कोहली, डायरी या तेरे पास है या तू जानता है कि वो कहां है ।”
“इतने दावे से कैसे कह रहा है ये बात ?”
“परसों रात हीरा से मेरी बात हुई थी । उसने मुझे खुद बताया था कि उससे मिलने के लिये तू उसके फार्म हाउस पर पहुंचने वाला था ।”
“ओह । तो ये बात तुझे कौशिक या पचौरी से पता नहीं लगी ? खुद हीरा ने बतायी ?”
“उसने मुझे कही था” – वो कहता रहा – “कि आधी रात को तो तू वहां पहुंचने ही वाला था इसलिये मैं उससे अगले रोज दोबारा बात करूं । लेकिन अगले रोज सुबह तक उसका कत्ल हो चुका था । कोहली, उस रात तू और सिर्फ तू उसके साथ था । इसलिये तूने ही उसका कत्ल किया था और तूने ही उसके कागजात चुराये थे ये काम तेरे अलावा किसी और का हो ही नहीं सकता ।”
“हीरा ने यही तो कहा था कि मैं फार्म हाउस पर आने वाला था ! आने वाला था !”
“तो ?”
“मैं वहां जाने वाला था लेकिन गया नहीं था । ऐन वक्त पर मुझे एक ऐसा काम आन पड़ा था कि मैं वहां नहीं जा सका था ।”
“तू झूठ बोलता है । कोहली, हीरा उस रात मेरे से मिलने को बहुत उतावली थी । अगर तू वहां न पहुंचा होता तो उसने यकीनन मेरे से मिलने की कोशिश की होती ।”
“आधी रात को ?”
“फोन तो उसने शर्तिया किया होता । उसने मुझे कहा था कि अगर तू वहां जल्दी पहुंच गया और जल्दी रुख्सत हो गया तो वो मुझे फोन करेगी इसलिये मैं घर पर फोन के करीब रहूं । कोहली, मैं सारी रात फोन के सिरहाने बैठा रहा था लेकिन उसका फोन नही आया था । यही इस बात का काफी सबूत है कि उस रात तू वहां पहुंचा था ।”
“इतनी” – मैं अपेक्षाकृत नम्र स्वर में बोला – “उतावली क्यों थी वो तुमसे मिलने को ?”
“वो...वो...उसे कुछ रुपयों की जरूरत थी ।”
“कुछ रुपयों की ।” – मैं व्यंगपूर्ण स्वर में बोला ।
“उधार ।”
“उधार ?” – मेरे स्वर में व्यंग्य का पुट दोबाला हो गया ।
“मत मान ।”
“यानी कि जो चीज वो तुम्हारे से छीन सकती थी, जबरन वसूल कर सकती थी, वो तुम से उधार मांग रही थी ?”
“तू वो किस्सा छोड़ । तू असल मुद्दे पर आ । असल मुद्दा ये है कि कम से कम मेरे सामने तेरा ये झूठ नहीं चलने वाला कि बावजूद अपनी अपॉइंटमेंट के परसों रात तू हीरा के फार्म पर उससे मिलने नहीं गया था । कोहली, तूने हीरा का कत्ल किया या नहीं किया, मुझे इससे कुछ लेना देना नहीं । मेरी बला से तू रोज एक कत्ल कर लेकिन कागजात तेरे ही पास हैं ओर मैं उन्हें तेरे से निकलवा के रहूंगा ।”
“यानी कि अपनी पिट चुकी चाल फिर दोहराओगे ?”
“यही समझ ले ।”
“मैं पुलिस में रपट लिखवाऊंगा ।”
“तू कुछ साबित नहीं कर सकेगा ।” – एकाएक वो सांप की तरह फुंफकारा – “एक बात याद रख ले प्राइवेट डिटेक्टिव के बच्चे । तेरे पुलिस के पास जाने से मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला लेकिन अगर मैं पुलिस के पास गया तो तेरा पलस्तर उधड़ जायेगा । पुलिस को पता लगने की देर है कि कत्ल की रात को तू हीरा के साथ था, फिर कानून के लम्बे हाथ होंगे और तेरी गर्दन होगी ।”
फिर उसने लाइन काट दी ।
मैंने भी रिसीवर हुक पर टांगा और टेलीफोन बूथ से बाहर निकल आया ।
हालात मेरे लिये चिन्ताजनक थे । चार मे से तीन आदमियों को मालूम था कि कल की रात को मैं हीरा के साथ था । उनमें से किसी के भी पुलिस के सामने मुंह फाड़ने से मेरी दुक्की पिट सकती थी । उन लोगों को मेरे खिलाफ ऐसा कोई कदम उठाने से अगर कोई बात रोके हुए थी तो वो यही थी कि खुद उनके ढोल में बहुत पोल थी, मौजूदा हालात में वो लोग भी हीरा के साथ अपना नाम जुड़ना अफोर्ड नहीं कर सकते थे ।
बहरहाल एक बात तो निश्चित थी : सुधीर कोहली की फेमस लक कम से कम इस बार उसका साथ नहीं दे रही थी ।
***
सुबह मैं निर्धारित समय पर अपने आफिस पहुंचा ।
हमेशा की तरह रजनी मेरे से पहले वहां मौजूद थी ।
मेरी कनपटी के गूमड़ पर और दायीं आंख के नीचे की तीखी खरोंच पर उसकी निगाह तत्काल पड़ी ।
“क्या हुआ ?” – वो बोली – “किसी बहन जी का पति ऊपर से आ गया ?”
उत्तर देने के स्थान पर रिसैप्शन लांघ कर मैं अपने कक्ष में घुस गया ।
तत्काल मेरे पीछे-पीछे वो वहां पहुंची ।
“क्या हुआ ?” - इस बार वो संजीदगी से बोली ।
“पता तो है तुझे ।” - मैं भुनभुनाया - “किसी बहन जी का पति ऊपर से आ गया ।”
“असल में क्या हुआ ?”
“सांड ने सींग मार दिया ।”
“और असल में क्या हुआ ?”
“गुण्डों ने पिटाई कर दी ।”
“आप ने करा ली ।”
“वो तीन थे ।”
“तो क्या हुआ ? आपके आगे तो न तीन की बिसात है और न तेरह की । आप तो...”
“रजनी, भगवान के लिये एक मिनट संजीदा होकर मेरी बात सुन ।”
तत्काल उसके मिजाज में तब्दीली आयी । वो मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठ गयी और बोली – “सुनाइये ।”
“कल तूने दो घन्टे के लिये ब्यूटी पार्लर जाना था तो तूने जिद की थी कि तेरी गैरहाजिरी में मैं दफ्तर में बैठूं क्योंकि मैं दफ्तर में बैठकर किसी क्लायन्ट को अटैन्ड करूंगा तो तभी तो चार पैसे कमा पाऊंगा और तेरी तनख्वाह भर पाऊंगा ।”
“वो तो” – वो संकोचपूर्ण स्वर में बोली – “मैंने यूं ही मजाक में...”
“लेकिन साथ ही उससे पहले सुबह तू मेरी कल्पना तिहाड़ जेल में भी कर रही थी जहां कि मेरी कुशल क्षेम पूछने तुझे अक्सर जाना पड़ सकता था । अब तू मुझे ये बता कि जब दफ्तर से मेरी चन्द घन्टों की गैरहाजिरी से तेरी तनख्वाह खतरे में पड़ सकती है तो मैं सच ही तिहाड़ में बन्द कर दिया जाता तो तू क्या करती ?”
“सर, मैंने कहा न कि वो मैंने यूं ही मजाक में...”
“तूने वो सब मजाक में कहा था लेकिन मैं मजाक नहीं कर रहा । मै संजीदा हूं । मेरा सवाल ये है कि अगर सच में ही मेरे साथ ऐसा कुछ वाकया हो जाये तो तू उसी दिन से ही नई नौकरी की तलाश में जुट जायेगी ?”
“नहीं ।”
“लेकिन जब तनख्वाह नहीं मिलेगी तो क्या करेगी ?”
“वो मैं तब सोचूंगी जब ऐसी नौबत आयेगी ।”
“लेकिन नौकरी छोड़ के नहीं चली जायेगी ?”
“नहीं । आप की दुश्वारी की घड़ी में नहीं । आगे पीछे की कह नही सकती ।”
“जानकर खुशी हुई । अब अगला सवाल । अपनी दुश्वारी की घड़ी मे मैं तेरे से कोई ऐसा काम करने को कहूं जिसके लिये तू यहां नहीं रखी गयी तो तू करेगी ?”
“करूंगी ।” - वो निस्संकोच बोली ।
“जीती रह ।”
“आपकी दुश्वारी का उन दो हत्याओं से कोई रिश्ता है जिन की खबर कल के अखबार में छपी थी ?”
“हां । और बदकिस्मती से पुलिस का एक उच्चाधिकारी मुझे हत्यारा साबित करने पर तुला हुआ है । मुझे अपने बचाव का एक ही रास्ता दिखाई देता है कि पुलिस के हाथ मेरी गर्दन तक पहुंचने से पहले मेरे हाथ असली कातिल की गर्दन तक पहुंच जायें ।”
“आपने कत्ल नहीं किया ?”
“पागल हुई है !”
“तो क्यों आपको कातिल समझा जा रहा है ।”
“बताता हूं ।”
मैंने संक्षेप में उसे सारी कहानी सुना दी ।
“ओह ।” – वो बोली – “सर आप जो कहेंगे मैं करूंगी ।”
मैंने एक कागज पर रूबी गोमेज का नाम, उसके घर का पता, और फोन नम्बर लिखा और कागज उसे थमाता हुआ बोला - “मैं चाहता हूं कि तू इस पते पर पहुंच कर आसपड़ोस से रूबी के बारे में पूछताछ कर । तू लड़की है, खूबसूरत लड़की है, मेरे मुकाबले में तेरे से लोग ज्यादा खुल कर बात करेंगे ।”
“मेरे से वैसे सवाल करने की वजह नहीं पूछी जायेगी ?”
“कह देना कि तू फ्रीलांस जर्नलिस्ट है और बम्बई के किसी पर्चे के लिये उस केस की रिपोर्ट तैयार कर रही है ।”
“ठीक है । पूछना क्या है मैंने ?”
“एक तो ये ही कि क्या किसी ने गोली चलने की आवाज सुनी थी ।”
“ये सब कुछ तो पुलिस ने भी पूछा होगा ?”
“जरूर पूछा होगा । उन्हें जवाब भी मिले होंगे । लेकिन मैं पुलिस को तो ऐसी जानकारी अपने से शेयर करने को नहीं कह सकता न । उनकी मंशा वो जानकारी पब्लिक से शेयर करने की होती तो उन्होंने प्रैस को कोई बयान जारी किया होता । बहरहाल मेरा कहना ये है कि इस बाबत तेरी पूछताछ पुलिस से भी ज्यादा कामयाब साबित हो सकती है ।”
“ठीक है । और ?”
“और ये पूछना कि वहां उसका रहन-सहन कैसा था, उससे किस किस्म के लोग मिलने आते थे, कोई खास मुलाकाती रहा हो जो कि अडोस पड़ोस में किसी की निगाह में हो और जो पिछले चन्द दिनों में अक्सर वहां आता देखा गया हो ! समझ गयी ?”
“हां ।”
“कर लेगी ये काम ?”
“हां । कब जाऊं ?”
“अभी । लेकिन जाने से पहले हरीश पाण्डेय को फोन कर जा । उसे कह कि मेरे पास उसके लिये काम है, वो फौरन मेरे से आ कर मिले ।”
वो सहमति में सिर हिलाती हुई उठ खड़ी हुई ।
एक घन्टे में हरीश पाण्डेय मेरे पास पहुंचा ।
वो एक पचास साल का हट्टा-कट्टा तन्दुरुस्त, रिटायर्ड फौजी था जो मुद्रासंकट से सदा परेशान रहता था । यही वजह थी कि आजकल वो एक शराब के स्मगलर के पास काम कर रहा था । उस काम में उसके पास काफी वक्त खाली रहता था और खाली वक्त को पैसे में तब्दील करने का मौका छोड़ना वो हराम समझता था ।
भाग दौड़ के काम करने के लिये मेरा वो पसन्दीदा लैगमैन था ।
उसकी एक और खूबी ये भी थी कि उसके पास लाइसेंसशुदा रिवाल्वर थी ।
“चौखटे को क्या हुआ ?” - आते ही उसने सवाल किया ।
“बाथरूम में पांव फिसल गया था ।” - मैं बोला ।
“कमाल है । यानी कि आधुनिक रहन-सहन में नहाने जैसे काम में भी जान का जोखम है !”
मैंने उसकी बात की ओर ध्यान न दिया । उसके वहां पहुंचने से पहले ही मैंने एक लिस्ट तैयार करके रखी हुई थी जिसमे हीरा की फैन क्लब के चारों सदस्यों के नाम, पते वगैरह दर्ज थे ।
“इनमे से तीन दिल्ली शहर के ही हैं ।” – मैं उसे लिस्ट थमाता हुआ बोला – “लेकिन एक – अम्बरीश कौशिक – बाहर से दिल्ली आता है इसलिये उसका पता होटल का है । ये चारों टॉप के हरामी हैं ।”
“तेरे से भी बड़े ?”
“मेरे से बड़े तो क्या खाकर होंगे ! अलबत्ता फर्क उन्नीस बीस का ही है ।”
“तू बीस है ?”
“अस्थाना के बारे में नहीं कहता । वो तो साला इक्कीस मालूम पड़ रहा है ।”
पाण्डेय हंसा ।
“पाण्डेय, इन चारों की फुल पड़ताल करनी है तुमने । खास तौर से इस बात की कि परसों शाम को और उससे पहले की रात को ये लोग कहां थे, किसके साथ थे, क्या कर रहे थे ?”
“ठीक है ।”
“जो कुछ जानकारी हाथ लगती जाये, उसको हाथ के हाथ ही मेरे तक पहुंचाना है । इकट्ठी रिपोर्ट की फिराक में मत पड़ना ।”
“बेहतर ।”
“अब शुरू हो जाओ ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया लेकिन उठने का उपक्रम न किया ।
“अब क्या है ?” - वो बोला ।
“तुझे नहीं पता ?”- वो सहज भाव से बोला ।
“ओह !” - मेरे मुंह से निकला, फिर मैंने उसे हजार रुपये के नोट थमाये और बोला – “आन एकाउन्ट !”
“आन एकाउन्ट ।” - वो बोला और उठ खड़ा हुआ ।
***
मैं पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
यादव अपने कमरे में तो नहीं था लेकिन मामूली तलाश के बाद वो मुझे मिल गया ।
“आज लंच मेरे साथ ।” - मैं बोला ।
उसने इन्कार में सिर हिलाया ।
“क्यों ?” - मैं बोला - “क्या हुआ ?”
“दो बजे मेरी तलवार के सामने पेशी है । मुझे यहीं मौजूद रहने का हुक्म हुआ है ।”
“लेकिन अभी तो पौना एक ही बजा है । तब तक तो हम लौट भी आयेंगे ।”
“वो मुझे जल्दी भी बुला सकता है । अपने मौजूदा हालात में मैं उसे खामखाह खफा नहीं करना चाहता ।”
“ओह !”
“तुम कैसे आये ?”
“तुम्हीं से चन्द बातें करने आया था ।”
“कैन्टीन में चलके बैठते हैं ।”
“पहले मेरे साथ बाहर चलो । मेरी कार में एक ऐसी चीज है जिस के साथ यहां भीतर दाखिल होने का हौसला मैं नहीं कर सकता था ।”
“क्या है ऐसी चीज ?”
“चलो, दिखाता हूं ।”
वो मेरे साथ हो लिया । पार्किग में खड़ी अपनी फियेट के पास पहुंच कर मैंने उसका पिछला दरवाजा खोला और भीतर दाखिल हुआ । मेरे कहने पर वो भी कार में मेरे पहलू में आ बैठा ।
मैंने लम्बी नाल वाली रिवाल्वर उसे पेश की जो मैंने पिछली रात उस्ताद से झपटी थी और उससे संबन्धित कहानी उसे सुनायी ।
“रिपोर्ट दर्ज करवाई ?” - मैं खामोश हुआ तो वो बोला ।
“नहीं ।” - मैं बोला ।
“क्यों ?”
“वजह मैं एक पुलिसिये को नहीं बता सकता ।”
“इस वक्त तुम एक पुलिसिये के पास आये हो ?”
“नहीं ।”
“तो फिर ?”
“ठीक है, बताता हूं । लेकिन एक वादा करो कोई बात मेरे खिलाफ इस्तेमाल नहीं करोगे और किसी बात की भनक अपने ए सी पी को नहीं लगने दोगे ।”
“कबूल ।”
मैंने उसे पिछली रात की कहानी सुनायी । उस कहानी के सन्दर्भ में मुझे अस्थाना का नाम लेना पड़ा । अस्थाना का नाम लिया तो कागजात का नाम लेना पड़ा । यूं ही ऐसे कड़ी से कड़ी मिलती चली गयी कि न चाहते हुए भी मैंने यादव के सामने सब कुछ उगल दिया ।
सिवाय दो बातों के ।
एक यह कि हीरा की हत्या की रात को मैं उसके साथ मौजूद था और कत्ल मेरी वहां मौजूदगी के दौरान हुआ था ।
दूसरे यह कि मैंने हीरा की मेज के दराजों में से उसकी डायरी और अन्य कागजात चुराये थे ।
कागजात की बाबत मैंने ये कहानी बनायी कि हीरा ने वो कागजात, जिन्हें पुलिस हत्या के बाद चोरी गये समझ रही थी, मुझे स्वेच्छा से सौंपे थे । हत्या से एक रोज पहले सेफ स्टडी के लिए ।
मैं खामोश हुआ तो वो भौंचक्का सा मेरा मुंह देखने लगा ।
“तुमने कागजात को पढ़ा था ?” - फिर वो बोला ।
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“फुरसत नहीं लगी थी । बकौल हीरा, वो कागजात काफी अरसा मेरे पास रहने वाले थे इसलिये मुझे उनको पढ़ने की कोई जल्दी नहीं थी, अलबत्ता सरसरी तौर पर उनका मुआयना मैंने जरूर किया था और मेरे ख्याल से सबसे ज्यादा शामत लाने वाली आइटम जो उस में थी, वो एक डायरी थी जो हीरा ने खुद अपने हैण्डराइटिग में लिखी थी ।”
“अब तुम कहते हो कि वो कागजात चोरी चले गये है ?”
“हां ।”
“कागजात सच में ही हीरा ने ही तुम्हें सौंपे थे ?”
“हां ।”
“तुम्हीं ने तो कत्ल नहीं किया था उसका ? उन कागजात की खातिर !”
“यादव, ऐसा होता तो तुम्हारे सामने, किसी के भी सामने, उन कागजात का नाम भी लाता मैं अपनी जुबान पर ?”
“तलवार को ये बात पता चल गयी तो वो हरगिज हरगिज भी यकीन नहीं करेगा कि मरने वाली ने वो कागजात अपनी मर्जी से, अपनी जिन्दगी में तुम्हें सौंपे थे ।”- उसने एक क्षण घूर कर मुझे देखा और फिर बोला – “कोहली, तेरी खैर नहीं ।”
“मुझे भी यही चिन्ता सता रही है ।” - मैं बोला - “तभी तो मैं चाहता हूं कि असली कातिल जल्दी से जल्दी पकड़ा जाये । तभी तो मैं इस नाशुक्रे काम को अंजाम देने के लिये मारा-मारा फिर रहा हूं जिसमें मेरा कोई क्लायन्ट नहीं, जिसमें मेरे लिये कोई फीस नहीं ।”
“तू चाहता क्या है ?”
“पहले तो इस रिवाल्वर की बाबत ही बताओ । इस पर से सीरियल नम्बर घिस कर मिटा दिया गया है लेकिन मैंने सुना है कि पुलिस के पास कोई ऐसा खास आला होता है जिससे घिसा हुआ नम्बर भी पढ़ा जा सकता है ।”
“ऐसा आला तो माइक्रोस्कोप ही होता है । कभी-कभी ऐसा होता है कि नंगी आंखों से देखने से तो लगता है कि नम्बर घिसने से मिट गया लेकिन असल में वो माइक्रोस्कोप द्वारा पढ़ा जा पाता है । दूसरे कुछ कैमीकल होते हैं जिनको बड़ी सावधानी से जब नम्बर पर लगाया जाता है तो कभी-कभी नम्बर हल्का सा, धुंधला सा, फिर दिखने लगता है ।”
“तुम इस रिवाल्वर का ऐसा कोई एग्जामिनेशन करवा सकते हो ?”
“उससे तुम्हारे हाथ क्या आयेगा ?”
“अगर रिवाल्वर अस्थाना के नाम रजिस्टर्ड निकली तो उसके खिलाफ मेरे हाथ मजबूत होंगे ।”
“ऐसी रिवाल्वरें अमूमन चोरी की होती हैं । नम्बर उजागर हो भी गया तो ये चोरी गयी रिवाल्वर ही निकलेगी और इसकी चोरी की रिपोर्ट भी पुलिस में दर्ज होगी ।”
“वो सब बाद की बातें हैं । पहले पहला काम तो हो । तुम बताओ कि तुम ये काम करवा सकते हो या नहीं ।”
“मैं कोशिश करूंगा ।”
“शुक्रिया ।”
“जिन तीन जनों ने तुम पर हमला किया था, उनमें से कोई तुम्हारा पहचाना हुआ था ?”
“नहीं ।”
“दोबारा देखो तो किसी को पहचान लोगे ?”
“तीनों को पहचान लूंगा ।”
“फिर तो हुलिया ठीक से याद होगा ।”
“याद है ।”
“सुनाओ ।”
मैंने बारीकी से तीनों का हुलिया बयान किया ।
“उस्ताद ने अपना नाम रघुबीर” - मैं बोला - “लम्बे का इब्राहीम और दूसरे का कलीराम बताया था । लेकिन नाम फर्जी हो सकते हैं ।”
“मैं पूछताछ करूंगा” - वो बोला - “इन तीनों में से कोई एक भी नोन बैड कैरेक्टर या हिस्ट्रीशीटर हुआ तो उस एक के जरिये तीनों की ही शिनाख्त हो जायेगी । नाम यही निकले तो काम और भी आसान होगा ।”
“बढ़िया ।”
“चेहरे की पच्चीकारी उन्होंने ही की ?”
“हां ।”
“वैसे मेरी राय अभी भी यही है कि तुम्हें दरियागंज थाने में रिपोर्ट लिखानी चाहिये । ऐसा तुम अभी भी कर सकते हो ।”
“छोड़ो । फिलहाल उस बाबत खामोश रहने में ही मुझे अपना हित दिखाई देता है ।”
“कहीं तुम किसी फिल्मी हरकत की फिराक में तो नहीं हो ? उन्हें तलाश करके खुद बदला लेना चाहते होवो !”
“मेरी ऐसी नीयत होती तो मैं कल ही उन तीनों को शूट न कर देता जबकि वो मेरे काबू में थे ?”
“या शायद तुम उन से कुबुलवाना चाहते हो कि वो अस्थाना के आदमी थे ?”
“वो बिना कुबुलवाये खुद ही ये बात मान रहे थे । खुद अस्थाना ने इस बात से इन्कार नहीं किया था ।”
“तो फिर उनकी बाबत जानकारी मिल जाने से भी तुम्हें क्या हासिल होगा ?”
“मुझे अन्देशा ये है कि अस्थाना के हड़काये वो फिर मेरे पर वार कर सकते हैं । लेकिन अगर उनकी जन्म कुंडली मुझे मालूम होगी तो उनकी ऐसी हिम्मत नहीं होगी । कल वो इस बात से आश्वस्त थे कि मैं उन तक नहीं पहुंच सकता था । उन्हें पता लग गया कि मैं उन्हें जानता-पहचानता हूं तो उनकी भरपूर कोशिश मेरे से छुप के रहने की होगी ।”
“ऊपर पहुंचाने की क्यों नहीं होगी ?”
“क्योंकि उनकी मेरे से कोई जाती अदावत नहीं । क्योंकि जब तक अस्थाना कागजात के मामले में मेरी तरफ से पूरी तरह नाउम्मीद नहीं हो जाता तब तक उसकी दिलचस्पी भी मेरी सलामती में ही होगी ।”
“मुझे तुम्हारी इन दलीलों से इत्तफाक नहीं ।”
“तुम छोड़ो ये किस्सा । यादव साहब, ऐसे बखेड़े भुगतने की मुझे आदत है । और फिर खौफ खाने से मेरा धन्धा नहीं चल सकता ।”
“तुम्हारी माया तुम जानो । अब एक बात मुझे बताओ ।”
“क्या ?”
“महकमे में इस बात की बड़ी चर्चा है कि परसों रात जब रूबी के फ्लैट पर तुम्हें गिरफ्तार किया गया था तो तुम ने इस बात की सख्त जिद की थी और जिद मनवाई थी कि वहां गवाहों के सामने पहले तुम्हारी जामातलाशी ली जाये और तुम्हारे पास से बरामद सामान की लिस्ट बना कर उस लिस्ट की एक सर्टिफाइड कॉपी तुम्हें दी जाये । इस स्टण्ट की वजह ?”
“ये बात तुम्हारे ए सी पी ने भी पूछी थी ।” - मैं हंसता हुआ बोला ।”
“पूछी होगी । तू मुझे बता ।”
“देखो, मेरा अन्दाजा ये है कि रूबी का कत्ल साइलेंसर लगी रिवाल्वर से किया गया था । उसका कत्ल परसों रात नौ बजे के आसपास हुआ था और उसका फ्लैट घनी रिहायशी आबादी में है । अगल बगल के घर तो ऐसे हैं कि उनकी दूसरी मंजिल रूबी के ही फ्लैट का हिस्सा मालूम होती है और हर घर खूब बसा हुआ है ! ऐसे मे अगर रूबी को आम रिवाल्वर से शूट किया गया होता तो सारे मुहल्ले की तवज्जो उसकी तरफ गयी होती जब कि असल में उसके साथ गुजरे इतने बड़े हादसे की किसी को खबर भी नहीं लगी थी ।”
“हूं ।”
“मेरी और तलवार की मौजूदगी में रूबी का मकान मालिक वहां पहुंचा था लेकिन वो भी वहां अपने किराये का तकाजा करने आया था जो कि रूबी ने उस महीने अदा नहीं किया था, न कि गोली की आवाज सुनकर । जब गोली की आवाज इमारत में ही कहीं नहीं सुनी गयी थी तो आसपास तो क्या सुनी जाती ! इसी से साबित होता है कि हत्यारे ने चोरी गयी मेरी रिवाल्वर से गोली उसकी नाल पर साइलेंसर चढ़ा कर चलायी थी ।”
“आगे बढ़ो ।” - यादव बेसब्रेपन से बोला ।
“तुम्हारा ए सी पी जब वहां एकाएक आन धमका था तो मर्डर वैपन को, मेरी खुद की रिवाल्वर को, मेरे हाथ में देखकर वो कूद कर इस नतीजे पर पहुंच गया था कि कत्ल मैंने किया था । तहकीकात के बाद देर सवेर उसे ये तो पता लग ही जाना था कि कत्ल साइलेंसर लगी रिवाल्वर से हुआ था । तब वो मेरे पर ये इलजाम लगा सकता था कि साइलेंसर मैंने तब रास्ते में कहीं फेंक दिया था जबकि मैं गिरफ्तार करके पुलिस हैडक्वार्टर ले आया जा रहा था ।”
“ऐसा कैसे हो सकता था ?”
“नहीं हो सकता था । लेकिन वो दावा कर सकता था कि ऐसा हुआ था । मुझे हत्यारा साबित करने की उसकी जिद उससे ये कहलवा सकती थी । नाजायज, बेमानी, बेसिर पैर की बातें कहना और उन पर अड़ कर दिखाना तो पुलिस का स्थापित स्टाइल आफ फंक्शनिंग है ।”
उसका सिर सहमति में हिला ।
“हत्यारा अगर मैं होता और उसने सच में ही मुझे रंगे हाथों पकड़ा होता, जैसा कि वो कह रहा था, तो साइलेंसर मेरे पास होना चाहिये था क्योंकि जब मुझे रिवाल्वर से पीछा छुड़ाने का वक्त नहीं मिला था तो साइलेंसर से पीछा छुड़ाने का वक्त कब को मिल गया होता ?”
“ठीक ।” - वो प्रभावित स्वर में बोला ।
“इसी वजह से मैंने जिद की थी कि मेरी उसी घड़ी मुकम्मल जामा तलाशी ली जाये । साइलेंसर का मेरे पास से बरामद न होना ही इस बात का सबूत था कि रूबी का कातिल मैं नहीं था ।”
“इतनी सी बात हमारे ए सी पी साहब को नहीं सूझी ?”
“तब न सूझी क्योंकि तब उन्हें साइलेंसर वाली बात नहीं सूझी थी । अब तक तो माशाअल्ला सूझ ही चुकी होगी । तहकीकात से वो जान ही चुके होंगे कि गोली चलने की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी और ऐसा तभी मुमकिन हो सकता था जबकि गोली साइलेंसर लगी रिवाल्वर से चलायी गयी हो ।”
“तुम्हें भी इसी वजह से सूझी की क्योंकि गोली चलने के बाद वहां भीड़ इकट्ठी नहीं हुई थी ?”
“हां ।”
“सिर्फ इस वजह से ।”
“हां ।”
हकीकतन एक वजह और भी थी जो कि मैं यादव को नहीं बता सकता था ।
मुझे यकीन था कि हीरा को भी साइलेंसर लगी रिवाल्वर से ही शूट किया गया था । बाथरूम में मैंने जो कमजोर पटाखा छूटने जैसी आवाज दो बार सुनी थी, वो साइलेंसर लगी रिवाल्वर से निकली गोली की ही थी । वो आवाज मैं सिर्फ इसलिये सुन पाया था क्योंकि फार्म का वो बंगला शहर के शोरो गुल से एकदम दूर एक निहायत शान्त इलाके में था और वक्त सुबह के पांच बजे का था जबकि आबादी में भी सन्नाटा ही होता है । ये तो निश्चित था कि एक ही शख्स हीरा और उसकी मेड रूबी दोनों का हत्यारा था इसलिये दोनों बार उसके द्वारा एक ही कार्यप्रणाली बरती जाना-यानी कि साइलेंसर का इस्तेमाल-स्वाभाविक था ।
यादव उस घड़ी मेरा मांजाया बनकर दिखा रहा था लेकिन ये बात उसके सामने कबूलते मेरा कलेजा लरज रहा था कि हीरा के कत्ल के वक्त भी मैं मौकायेवारदात पर मौजूद था । एक इत्तफाक उसे हज्म हो गया था, दो शायद न होते ।
“हां ।” - प्रत्यक्षत: मैं बोला – “सिर्फ इसी वजह से ।”
“तुम कहते हो कि रूबी ने तुम्हें खास फोन करके अपने यहां बुलाया था ?”
“हां । वो मुझे कोई खास बात बताना चाहती थी । पहले वो मुझे कुछ बताने को राजी नहीं हुई थी लेकिन कहती थी कि बाद में उसका इरादा बदल गया था ।” - मैं एक क्षण ठिठका और बोला - “मेरा ख्याल यह है कि उसका इरादा-विरादा कुछ नहीं बदला था, उसका ऐसा कोई इरादा था ही नहीं । मेरे ख्याल से मुझे फोन काल हत्यारे ने उससे जबरन करायी थी । वो मेरी रिवाल्वर से उसे शूट करने वाला था इसलिये जाहिर है कि वो पहले से ही उस कत्ल का इलजाम मेरे सिर थोपने की तैयारी किये बैठा था । उसे पता था कि मैं दस मिनट में वहां पहुंच जाने वाला था इसलिये जरूर मेरे आने से पांच मिनट पहले ही उसने रूबी को शूट किया होगा और वहीं से एक गुमनाम फोन काल पुलिस को भी कर दी होगी ।”
“पुलिस को फोन काल रूबी के ही फोन से की गयी थी, ये स्थापित हो चुका है । रूबी का फोन पुलिस के नम्बर 100 पर हैल्ड अप पाया गया था ।”
“बहरहाल हत्यारा अपने मिशन में कामयाब रहा था । मैं बाकायदा उसके जाल में जा फंसा था । अलबत्ता ए सी पी के अकेले वहां पहुंच जाने की कल्पना उसने भी न की होगी । पट्ठा बहुत ही खुशकिस्मत था जो तलवार वहां तब पहुंचा जबकि वो रूबी का खून कर के हटा था ।”
“खुशकिस्मत हत्यारा नहीं, तलवार था । तलवार ऐन उस घड़ी वहां पहुंचा होता तो रूबी की बगल में वो भी मरा पड़ा होता ।”
“ये भी ठीक है ।”
यादव एक क्षण खामोश रहा और फिर बोला - “रूबी तुम्हें कुछ बताना चाहती थी या नहीं, ये जुदा बात है लेकिन तुम्हारे ख्याल से बताने लायक जानती थी वो कुछ ?”
“जानती हो तो सकती थी । कोई बड़ी बात नहीं कि उसका कत्ल इसी वजह से हुआ हो क्योंकि वो कुछ-या बहुत कुछ-जानती थी । वो हीरा के असल कारोबार से वाकिफ थी ।”
“प्रास्टीच्यूशन ?”
“ब्लैकमेल ।”
“यानी कि हत्यारे को अन्देशा था कि ब्लैकमेल के मामले में वो हीरा के जाल से निकल कर रूबी के जाल में जा फंसेगा ।”
“ये नहीं तो अपने नाम के एक्सपोजर का खतरा तो उसे रूबी से यकीनन था ।”
“हूं । पिछली रात जो तुम्हारे पर हमला हुआ था, अगर वो सच में ही अस्थाना के इशारे पर हुआ था तो इससे ये साबित नहीं होता कि वो कातिल नहीं ? अगर उसी ने कत्ल किये होते और उसी ने तुम्हारे फ्लैट से हीरा वाले कागजात चुराये होते तो फिर उन्ही कागजात के लिये तुम्हारे पीछे गुण्डे लगाने की उसे क्या जरूरत थी ?”
“ये उसकी चाल हो सकती है । जो इस बाबत तुमने सोचा है, वही सोचने की अपेक्षा वो मेरे से कर रहा हो सकता है । ये चालाकी भरा तरीका उसने ये जाहिर करने के लिये सोचा हो सकता है कि वो बेगुनाह है ।”
“वो समझता है कि अगर वो अभी भी कागजात का रोना रोता रहेगा तो तुम सहज ही ये धारणा बना लोगे कि कातिल कम से कम वो नहीं हो सकता ?”
“बिल्कुल ।”
“उसे खबर कैसे लगी होगी कि कागजात तुम्हारे पास थे ?”
“या तो उसने कत्ल से पहले” - मैंने फिर झूठ का सहारा लिया - “ये बात हीरा से ही कुबुलवा ली होगी या फिर वो अन्दाजन मेरे यहां पहुंच गया होगा ।”
“जब डायरी उसके हाथ लग चुकी है और डायरी लिखने वाली मर चुकी है तो वो निश्चिंत होकर टिक के क्यों नहीं बैठ जाता ?”
“क्योंकि उसके पास इस बात की तसदीक का कोई जरिया नहीं कि जो कागजात उसने मेरे फ्लैट से चुराये थे वो मुकम्मल कागजात थे । उसे अंदेशा भी सता रहा हो सकता है कि शायद कागजात के कुछ खास हिस्सों की-जैसे जो उससे ताल्लुक रखते हों-कोई फोटोकापियां बनवा कर हीरा ने कहीं और छुपा ली हों ।”
“यूं तो उसे ये अन्देशा भी हो सकता है कि उसकी तमाम पोलपट्टी उन कागजात के जरिये तुम जान भी चुके थे ?”
“हो सकता है ।”
“फिर सिर्फ कागजात की बाबत तसल्ली कर लेने से ही उसका क्या बनेगा ? फिर तो उसे हीरा और रूबी की तरह तुम्हारी भी जुबान हमेशा के लिये बन्द करने की जरूरत महसूस हो रही होगी ?”
“हां । कागजात चुराते वक्त जब उसने मेरी रिवाल्वर भी चुरायी थी तो कोई बड़ी बात नहीं कि उसने तभी रूबी के कत्ल में मुझे फंसाने की योजना बना ली हो ।”
“कोहली, तेरी सच में ही खैर नहीं ।”
मैं खोखली हंसी हंसा ।
“फिर तो तेरा ये सोचना भी गलत है कि अगर तुझे उसके पिछली रात वाले गुण्डों की शिनाख्त हो जायेगी तो वो ही तेरे करीब फटकने से कतरायेंगे । जब बात कत्ल पर जाकर खत्म होनी है तो फिर शिनाख्त होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है ? मुरदे कहीं बोलते हैं ? तू कब्र से उठके खड़ा होके बतायेगा कि तुझे किसने मारा ?”
मैंने चिन्तित भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“फिर जो शख्स दिल्ली शहर में तीन गुण्डे सांठ सकता है, वो तीन और नहीं सांठ सकता ? तीस और नहीं सांठ सकता ?”
“अब और ज्यादा मत डराओ मुझे । मैं पहले ही बहुत डरा हुआ हूं ।”
“तू बात को मजाक में ले रहा है ।”
“नहीं ।”
“कोहली तू सच में ही मौत के रूबरू है ।”
“मुझे मालूम है । मौत तो मुझे चौतरफा दिखाई दे रही है ।”
“चौतरफा ?”
“अस्थाना जैसे तीन और भी तो हैं । वो चार तो वो हैं जिन की मुझे वाकफियत है । ऐसे और भी कई हो सकते हैं ।”
“इस बार तो कैड़ा नप गया तू ।”
“देखा जायेगा ।” - मैं लापरवाही से बोला – “अब बोलो मेरे काम की कोई खबर है तुम्हारे पास ?”
“अभी नहीं है । शाम को बात करना ।”
“ठीक है ।”
फिर वो कार में से बाहर निकल गया ।
मैं आफिस वापिस लौटा तो मैंने पाया कि रजनी मेरे से पहले वहां मौजूद थी ।
“लौट भी आयी इतनी जल्दी ?” - मैं हैरानी से बोला ।
“अभी आयी हूं ।” - वो बोली ।
“लगता है कुछ पल्ले नहीं पड़ा । तभी जल्दी लौट आयी ।”
“सब पल्ले पड़ा । इसलिये जल्दी लौट आयी ।”
“अच्छा ! क्या जाना ?”
“ये जाना कि जो पता आपने मुझे दिया था, उस पर रूबी गोमेज अकेली रहती थी । वो कोई खास मिलनसार लड़की नहीं मानी जाती थी क्योंकि अड़ोस-पड़ोस में उसका न तो किसी के यहां आना जाना था और न किसी से कोई खास मेल मुलाकात थी । कभी-कभार कोई मर्द बच्चा वहां उससे मिलने आ जाता था लेकिन ऐसा कोई नहीं था जिसे स्टेडी ब्वॉय फ्रेंड का दर्जा हासिल हो । रात को अक्सर लेट घर आती थी । कई बार नहीं भी आती थी । गोली चलने की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी । इमारत में रहने वाले और लोगों में से किसी को न तो वहां आपके आगमन की खबर लगी थी और न ए सी पी तलवार के । कोई अप्रिय घटना वहां घटित हो गयी थी, ये अड़ोस-पड़ोस में लोगों को तभी पता चला था जबकि पुलिस वाले धड़-धड़ करते वहां पहुंचे थे । अलबत्ता रूबी के मकान मालिक को आप की और ए सी पी की वहां मौजूदगी की खबर पुलिस के आने से पहले इत्तफाक से तब लग गयी थी जब कि वो अपना किराया वसूलने की नीयत से ऊपर रूबी के प्लैट पर पहुंचा था । लाश पोस्टमार्टम के बाद पुलिस वालों ने उसकी बहन निक्सी गोमेज को सौंप दी थी जिस की देखरेख में उसको करीबी कब्रिस्तान में दफनाया भी जा चुका है । रूबी के फ्लैट पर पुलिस वालों का कब्जा नहीं है और उसकी चाबी निक्सी गोमेज को सौंप दी गयी है । निक्सी प्रकाश होटल से चैक आउट कर गयी है लेकिन वो लाजपतनगर अपनी बहन के आवास पर नहीं पहुंची है । वो आगरा वापिस चली गयी हो सकती है लेकिन इस बात की तसदीक मैं नहीं कर पायी । दिस इज रजनी शर्मा रिपोर्टिग फ्राम दि रिसैप्शन डैस्क आफ यूनीवर्सल इनवैस्टिगेशंस, नेहरू प्लेस, नई दिल्ली वन वन जीरो जीरो टू फोर, हैडिड बाई सुपर सिल्यूथ सुधीर कोहली । फर्स्ट इन फील्ड आफ वन । सैटिसफैक्ट्री सर्विस गारन्टीड । सनडे क्लोज्ड ।”
मैं भौंचक्का सा उसका मुंह देखने लगा ।
वो बड़ी शान से मुस्करायी ।
“तूने तो कमाल कर दिया ।” - मैं प्रशंसात्मक स्वर में बोला - “जी चाहता है कि तुझे कलेजे से लगा के शाबाशी दूं ।”
“आपने ऐसी कोशिश भी की तो...”
उसने डैस्क पर से पीतल का भारी फूलदान उठा लिया और उसे मेरी तरफ तानते हुए आंखें तरेरीं ।
“अच्छा, कल जो मैं शर्त हारा था, उसके सौ रुपये तो ले ले ।”
“आपने इस वाहियात बात का दोबारा जिक्र भी किया तो...”
उसने फिर फूलदान मेरी तरफ ताना, फिर आंखें तरेरी ।
मैंने अपने कक्ष में पनाह पायी ।
***
साढ़े चार बजे हरीश पाण्डेय वापिस लौटा ।
“मैंने अपना काम अस्थाना से शुरू किया था ।” - वो मेरे सामने एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला - “अभी नेहरू प्लेस में ही था इसलिये सोचा जो दरयाफ्त किया है, उसकी तुम्हें खबर करता जाऊं ।”
“अच्छा सोचा । बोलो ।”
“सुनो । इस अस्थाना का सारा जहूरा अपनी बीवी की वजह से है जो कि अपने मायके की मजबूत पीठ की वजह से बहुत रईस औरत है । अस्थाना के ठेकेदारी के काम में जो शुरुआती सरमाया लगा था, उसका मेजर शेयर उसे बीवी ने ही मुहैया कराया था । पहले उसने इस धन्धे से अच्छा पैसा कमाया था लेकिन फिर उसकी बदनीयत की वजह से धन्धा चौपट होने लगा था । लोगों के पैसे खा गया, जो इमारतें बनायी वो ढहने लगीं, जिससे जो वादा किया वो पूरा नहीं किया । नतीजतन आज की तारीख में उस पर दर्जन भर सरकारी, गैरसरकारी मुकदमे हैं जिसकी वजह से यही गनीमत है कि वो जेल में नहीं है और जिनकी वजह से उसकी माली हालत बहुत डावांडोल है । इसी वजह से उसके नावें पत्ते की लगाम अब बीवी के हाथ में है । जो प्रापर्टी वगैरह है वो पहले से ही बीवी के नाम है ।”
“तुम यह कहना चाहते हो कि रुपये पैसे के मामलों में वो आजकल अपनी बीवी का मोहताज है ?”
“मोहताज क्या, उसके रहमोकरम पर है ।”
“हूं ।”
इसका मतलब ये था कि अस्थाना का घड़ियों की स्मगलिंग का धन्धा भी उन दिनों उसे कोई खास आसरा नहीं दे पा रहा था ।
अस्थाना उन दिनों रुपये पैसे से इतना मोहताज था तो वो एक गम्भीर बात थी ।
यानी कि हीरा की ब्लैकमेल की मांगों को वो तभी पूरा कर सकता था जबकि वो अपनी बीवी को इस बाबत बताता जो कि वो नहीं कर सकता था ।
“बीवी कैसी है ?” - प्रत्यक्षतः मैं बोला ।
“बख्तरबन्द टैंक ।” - वो बोला – “सबसे बड़े वाला ।”
“अस्थाना दबता है उससे ?”
“दबेगा कैसे नही । नहीं दबेगा तो सड़क पर होगा । दौलत का बहुत वजनी हथौड़ा है बीवी के हाथ में ।”
“ऐसी बीवी को अपने खाविन्द के किसी नौजवान लड़की से अफेयर की खबर लग जाये तो खाविन्द की दुक्की तो पिटे ही पिटे ।”
“और बीवियों का मुझे नहीं पता । अस्थाना की बीवी को ऐसा कुछ पता चल जाने पर तो प्रलय ही आयेगी ।”
“आई सी । और ?”
“मालूम हुआ है कि बीवी बहुत कच्ची नींद सोने की आदी है इसलिये ये मुश्किल ही है कि मियां रात को चुपचाप खिसक गया हो, कोई करतूत करके लौट भी आया हो और बीवी को खबर न लगी हो ।”
“मतलब क्या हुआ इसका ?” - मैं उतावले स्वर में बोला - “बीवी को कत्ल की रात की अस्थाना की घर से गैरहाजिरी की खबर है और वो इस बारे में खामोश है या वो निकला ही नहीं घर से ?”
“कहना मुहाल है ।”
“फिर क्या फायदा हुआ ?”
“एक बात और भी मालूम हुई है अस्थाना की बाबत । वो ताश का बड़ा रसिया है और बहुत बार उसका दोस्तों के साथ रमी का आल नाइट सैशन चलता है । ऐसा कभी उसके घर होता है तो कभी फड़ के किसी मेम्बर दोस्त के घर । अगर कत्ल वाली रात को ऐसी फड़ जमी थी तो वो वहां से खिसक कर कत्ल कर आया हो सकता है । उसने जरूर ऐसा कोई इन्तजाम किया होगा कि अगर उसकी कोई तफ्तीश हो तो यही पता लगे कि वो सारी रात जुए की फड़ में मौजूद रहा था ।”
“उस रात अगर फड़ जमी होगी तो कहां जमी होगी ?”
“अभी पता नहीं ।”
“तुम कहते हो कि वो उसके घर पर भी जमी हो सकती है !”
“हां लेकिन उसका घर कुछ इस स्टाइल से बना हुआ है कि पड़ोसियों को उसकी वहां आवाजाही की खबर नहीं लगती ।”
“अगर फड़ घर में लगी होगी तो उसकी बीवी को मालूम होगा ?”
“होगा लेकिन ये नहीं मालूम होगा कि वो हर घड़ी फड़ में मौजूद था या नहीं ।”
“पाण्डेय, मुझे फड़ के उसके घर में लगी होने की ज्यादा संभावनायें लगती हैं । वहां उसकी बीवी समझती कि वो फड़ में बैठा था और अगर वो वहां न होता तो उसके जुआरी साथी समझते कि वो बीवी के पास गया था ।”
“ऐसा सोचने की कोई वजह ?”
“उस रात उसे एक टेलीफोन कॉल का इन्तजार था जिसकी वजह से वो कहता है कि वो सारी रात फोन के सिरहाने बैठा रहा था । किसी काल के इन्तजार में फोन के सिरहाने बैठा रहना बहुत कठिन काम है, लेकिन काल के इन्तजार में फोन सिरहाने रख कर दोस्तों के साथ रमी खेलते रहना कोई मुश्किल काम नहीं ।”
“मैं समझ गया तुम्हारी बात । इस ऐंगल को मैं जरा ज्यादा गौर से चैक करूंगा ।”
“और ?”
“कौशिक होटल में रहता है ।”
“तो ?”
“चुपचाप कहीं जाके आ जाना सबसे ज्यादा आसान काम तो होटल में रहते शख्स के लिये ही हो सकता है ।”
“मुझे मालूम है । लेकिन अंदाजों से मेरा काम चल सकता होता तो मैं तुम्हें तलब न करता । उस रात या अगली सुबह सवेरे वो होटल में था या नहीं था, इस बात की तसदीक करके दिखाओ तो जानूं ।”
“ठीक है ।” - वो बोला और फिर उठ खड़ा हुआ ।
***
पौने पांच बजे मैंने यादव को फोन किया ।
“मैं कोहली बोल रहा हूं ।” - मैं बोला - “तुमने कहा था कि शाम को...”
“ऑफिस से बोल रहे हो ?”
“हां । वो क्या है कि...”
“मुझे आवाज नहीं आ रही ।”
“मैंने कहा कि...”
“क्या ?”
“मैं कह रहा था कि...”
“लाइन खराब मालूम पड़ती है । मुझे तुम्हारी आवाज साफ नहीं सुनायी दे रही...”
“मुझे तो साफ सुनायी दे रही है ।”
“पड़ोस में कोई और फोन नहीं है ?”
“बगल के आफिस में है ।”
“नम्बर बोलो ।”
मैंने बोला ।
“मैं वहां रिंग करता हूं ।”
तत्काल सम्बन्धविच्छेद हो गया ।
उलझन में पड़ा मैं बगल के ऑफिस में पहुंचा ।
बगल का, ऑफिस एक वकील का था जो मेरा पुराना परिचित था । कभी उस वकील की सैकेट्री ऊषा नागपाल मेरी जान हुआ करती थी लेकिन हत्यारी निकली थी और अपनी करतूतों की तलाफी के तौर पर आत्महत्या करके मर गयी थी ।
मैंने वहां दफ्तर में कदम रखा ही था कि रिसैप्शनिस्ट ने सख्त हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए हाथ में थमा रिसीवर मेरी तरफ बढ़ा दिया ।
“आप का फोन है ।” - वो बोली ।
मैंने सहमति में सिर हिलाते हुए रिसीवर उसके हाथ से ले लिया ।
“हल्लो ।” - मैं माउथपीस में बोला ।
“यादव बोल रहा हूं ।” - आवाज आयी ।
“क्या माजरा है, भई ? मेरी लाइन तो ठीक थी ।”
“कोहली, तेरी निगरानी हो रही है ।”
“क्या !”
“ए.सी.पी. तलवार तेरी निगरानी करवा रहा है । मैंने सोचा कहीं उसने तेरी लाइन भी न टेप करायी हुई हो इसीलिये वो सब नाटक किया । इस वक्त मैं खुद भी एक पब्लिक टेलीफोन से बोल रहा हूं ।”
“ओह !”
“मुझे इत्तफाक से ही ये बात मालूम पड़ गयी है । अब ये पता नहीं कि तेरी निगरानी अभी शुरू हुई है या ये सिलसिला पहले से चल रहा है ।”
“आई सी ।”
“और बावजूद तेरी तमाम सिफारिशों के तेरी आजादी बहुत वक्ती साबित हो सकती है । तेरी रिवाल्वर रूबी के फ्लैट में मर्डर वैपन बनके कैसे पहुंच गयी, इसकी कोई करारी सफाई सोच ले वर्ना तू फिर गिरफ्तार होगा ।”
“क्या करारी सफाई सोच लूं ? हकीकत तो वही है जो तुम्हें बता चुका हूं । मेरा रिवाल्वर तो मेरे फ्लैट से कागजात चुराते वक्त कातिल ने.....”
“मुझे तेरी बात पर विश्वास है | लेकिन मेरे विश्वास करने से कुछ नहीं बनता | विश्वास तो केस के इनवैस्टिगेटिंग आफिसर को आना जरुरी है जो कि तलवार है |”
“हूं । और ?”
“और हीरा के जिस्म से जो गोली निकली गई थी, वो पैंतालीस कैलिबर की कोल्ट रिवाल्वर से चली मालूम पड़ी है । लेकिन तुझे तो ये बात मालूम ही है ।”
“क्या ?”
“तभी तो दिल्ली शहर के पैंतालीस कैलिबर की कोल्ट रिवाल्वर होल्डरों की लिस्ट चाहिये तुझे ।”
“उसका कोई इन्तजाम हुआ ?”
“अभी नहीं लेकिन कोशिश जारी है । मैंने पहले ही कहा था कि ये वक्त खाने वाला काम साबित हो सकता है ।”
“और ?”
“और तेरे हमलावरों की शिनाख्त हो गई है । तीनों नोन क्रिमिनल्स है, तीनों ने तुझे अपने असली नाम ही बताये थे और तीनों इस वक्त दिल्ली से गायब मालूम होते है । अलबता उनके घरों के पते मैं तुझे लिखवा देता हूं, नोट कर ले ।”
रिसैप्शनिस्ट से कागज कलम लेकर मैंने पते नोट किए । दो पते चान्दनी महल के थे और एक जमना पार के सीलमपुर इलाके का था ।
“और” - यादव आगे बढ़ा - “लम्बी नाल वाली रिवाल्वर से कोई जानकारी हासिल होने की उम्मीद छोड़ दे । उस पर से उसका सीरियल नम्बर नहीं पढ़ा जा सका है ।”
“यानी कि ये तो सौ फीसदी डैड एण्ड ही साबित हुआ । हथियार पहचाना न जा सका और मालिकान जो पहचाने जा सके, वो गायब हैं ।”
“हां ।”
“और ?”
“और तलवार अब ऐसे लोगों का पता लगवाने की कोशिश कर रहा है जिनका हीरा से अमूमन मिलना-जुलना होता था और जो उसके ग्राहक हो सकते थे ।”
“क्या हाथ लगा उसके ?”
“अभी तो कुछ नहीं । आगे का पता नहीं । मैं अब फोन बंद कर रहा हूं, तू अपनी निगरानी के मामले में खबरदार रहना ।”
“जरुर । राय का, मदद का शुक्रिया ।”
मैंने रिसीवर क्रेडल पर वापिस रखा, वकील की रिसैप्शनिस्ट का भी शुक्रिया अदा किया और वापिस अपने आफिस में लौटा ।
“रजनी” मैं अपने कक्ष की तरफ बढ़ता हुआ बोला - “भीतर आ । जरुरी बात है ।”
मेरे पीछे पीछे ही वो मेरे कक्ष में पहुंची ।
“एक समस्या आन खड़ी हुई है ।” – मैं बोला – “मुझे अभी – अभी एक बड़े भरोसे के सोर्स से मालूम हुआ है कि पुलिस वाले मेरी निगरानी कर रहे हैं ।”
“तो क्या हुआ ?” – वो बड़ी मासूमियत से बोली ।
“अभी कुछ नहीं हुआ लेकिन आगे हो सकता है । वो क्या है कि मेरा इरादा आज रात चोरों की तरह अस्थाना के दफ्तर में घुसने का था । मेरी ये मंशा अब तभी पूरी हो सकती है जब कि तू मेरी मदद करे ।”
“मैं क्या मदद करूं ?”
“तू अगर आज देर रात तक यहां दफ्तर में ठहरना कबूल करे तो हम निगरानी करने वाले के लिए ऐसा ड्रामा स्टेज कर सकते हैं जैसे हम किसी बड़े जरुरी काम में मशगूल हैं । हम यहां दफ्तर की सारी की सारी बत्तियां जला के बैठेंगे ताकि ये लगे कि हम यहीं है ।”
“निगरानी क्या इमारत के बाहर से ही होगी ? कोई ऊपर इस फ्लोर पर भी तो आ सकता है ।”
“उसका एक इन्तजाम मैंने सोचा है । मैं अभी टेपरिकार्डर पर हमारी फाइलों में पहले से मौजूद कोई रिपोर्ट पढ़-पढ़ कर रिकार्ड कर लूंगा । बीच-बीच में मैं जानबूझ कर ब्रेक देता जाऊंगा । फिर वक्त आने पर मैं यहां से चुपचाप खिसक जाऊंगा और तू टेप रिकार्डर चालू करके बैठ जाना । जहां बीच में ब्रेक आये वहां कुछ फिकरे तुम बोल देना । यूं अगर कोई बाहर दरवाजे से कान लगाकर सुनेगा तो यही समझेगा कि मैं भीतर अपनी सैक्रेट्री को कोई लम्बी डिक्टेशन दे रहा था ।”
“टेप खत्म हो जाने पर आप लौट आयेंगे ?”
“हां । थोड़ी देर भी हो गई तो तुम टेप को रिवर्स करके फिर चालू कर लेना । आखिर तुमने सच में ही तो डिक्टेशन लेनी नहीं है । बाहर खड़े होकर सुनने वाले ने ये नोट नहीं करना कि भीतर क्या बोला जा रहा है, उसने तो महज इस बात की तसदीक करनी होगी कि हम दोनों - खास तौर से मैं - भीतर मौजूद है और ये तसदीक तो मेरी आवाज सुनने भर से हो जायेगी ।”
“वैरी गुड ।”
“अब प्राब्लम तेरे देर रात तक यहां रुकने की है । मेरी खातिर अगर तू घर अपने माता-पिता को खबर कर दे कि तू ....”
“दोनों हरिद्वार गए हुए हैं । परसों लौटेंगे ।”
“अच्छा ! कब गए ?”
“कल ।”
“यानि कि कल सारी रात तू घर में अकेली थी !”
“सर । या तो मसखरी झाड़ लीजिये, या संजीदा बातें कर लीजिये ।”
“सॉरी । इसका मतलब ये हुआ कि तू यहां रुक सकती है ।”
“हां ।”
“रुकेगी ?”
“हां ।”
“तो मैं रिकार्डिंग तैयार करता हूं ।”
“कीजिये लेकिन पहले एक शर्त मेरी भी सुन लीजिये ।”
“क्या ?”
“आप कोई बेहूदा हरकत नहीं करेंगे ।”
“कैसी बेहूदा हरकत ?”
“आप को मालूम है । यूं अनजान बन के दिखायेंगे तो मैं अभी घर जा रही हूं क्योंकि छुट्टी का वक्त हो भी चुका है ।”
“अरे नहीं । ऐसा न करना । मुझे तेरी हर शर्त मंजूर है ।”
“ठीक है फिर ।”
“अब” - नौ बजे मैं रजनी से बोला - “एक चक्कर बाहर का लगाकर आ ।”
सहमति में सिर हिलाती हुई वो वहां से रुख्सत हुई ।
टायलेट उस इमारत के हर फ्लोर के कोने में था जहां जाने के बहाने रजनी बाहर का हाल चाल जांचकर आ सकती थी । जो ड्रामा हम वहां स्टेज कर रहे थे और जो आगे टेपरिकार्डर के सहारे जारी रहने वाला था उसके दौरान दो बार हमें साफ ऐसा अहसास हुआ था कि कोई उस फ्लोर पर मेरे आफिस के बन्द दरवाजे तक पहुंचा था और कई क्षण वहां ठिठका रहा था ।
उसकी गैरहाजिरी में मैंने अपनी जेबों का सामान चौकस किया और टेपरिकार्डर को फिर से चैक करके तसल्ली की कि उसमें टेप चलाये जाने के लिए सही पोजीशन पर तैयार था ।
थोड़ी देर बाद रजनी वापिस लौटी ।
“बाहर कोई नहीं है ।” - वो बोली ।
“तो मैं चला ।” - मैं उठता हुआ बोला ।
“जल्दी आना ।” - वो व्यग्र भाव से बोली ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और आफिस से बाहर कदम रखा । बाहर से मैंने लिफ्ट पर सवार होने की जगह सीढियों का रास्ता पकड़ा और पहली मंजिल पर पंहुचा । वहां एक रेस्टोरेंट था जो रात दस साढ़े दस बजे तक खुलता था और जिसका एक रास्ता पिछवाड़े की तरफ भी था । उस रेस्टोरेंट से गुजर कर मैं पिछवाड़े की तरफ से इमारत से बाहर निकल गया और अस्थाना के आफिस वाली इमारत की ओर बढ़ा ।
रास्ते में मैं पूरी तरह से चौकन्ना था । मुझे यकीन था कि अब अगर कोई मेरे पीछे लगा हुआ था तो वो मेरे से छुपा नहीं रह सकता था ।
निर्विघ्न मैं अस्थाना के आफिस वाली इमारत तक पहुच गया । वहां एक व्यवधान उस इमारत का चौकीदार था जिससे निगाह बचाकर भीतर दाखिल होने मैं मेरे पांच कीमती मिनट जाया हुए ।
दबे पांव सीढियां चढ़ता मैं तीसरी मंजिल पर पहुंचा ।
वहां तमाम आफिस बंद थे और लम्बे गलियारे के मध्य में सिर्फ एक बल्ब जल रहा था जिसकी रोशनी अस्थाना के आफिस के दरवाजे तक तो मुश्किल से ही पहुंच रही थी ।
मैं आफिस के दरवाजे पर पहुंचा और फिर अपनी मास्टर की उसके ताले में ट्राई करने लगा ।
दो मिनट में ताला खुल गया ।
हौले से दरवाजा खोलकर मैं भीतर दाखिल हुआ । मैंने अपने पीछे द्वार बन्द किया और जेब से एक नन्हीं सी टार्च निकल ली ।
अपनी तलाश की शुरुआत मैंने अस्थाना के निजी कक्ष से की ।
मैंने बारी-बारी वहां की हर चीज टटोलनी शुरू की ।
वहां कागजात का बाहुल्य था और उन में से हीरा वाले कागजात की शिनाख्त करना बड़े सब्र का काम था ।
कागजात तो वहां से बरामद न हुए लेकिन फाइलिंग कैबिनेट में एक कारआमद चीज बरामद हुई ।
पैंतालीस कैलिबर की कोल्ट रिवाल्वर ।
क्या वही वो रिवाल्वर थी जिससे हीरा का कत्ल हुआ था ? अगर ऐसा था तो....
“कौन है भीतर ?”
मेरा सांस सूखने लगा ।
जरुर वो चौकीदार की आवाज थी ।
मैंने टार्च बन्द की और लपक कर दरवाजे की ओट में हो गया ।
दरवाजा धीरे-धीरे खुलने लगा । फिर खुले दरवाजे से चौकीदार ने भीतर कदम रखा और फिर उसके हाथ में थमी शक्तिशाली टार्च के प्रकाश से आफिस नहा गया ।
वो चौकीदार ही था ।
मेरे पास और कोई चारा नहीं था ।
हाथ में थमी रिवाल्वर का भरपूर वार मैंने उसकी खोपड़ी पर किया ।
चौकीदार के मुंह से एक घुटी सी चीख निकली, टार्च उसके हाथ से निकलकर फर्श पर जा कर गिरी, फिर उसके घुटने मुड़ने लगे ।
मैं सरपट वहां से भागा ।
मैं निर्विघ्न वापिस अपने आफिस पहुंच गया ।
“क्या हुआ ?” – मुझे बद्हवास देखकर रजनी सशंक स्वर में बोली ।
“बताता हूं ।” - मैं कांपते हाथों से एक सिग्रेट सुलगता हुआ बोला - “पहले तू बता, यहां तो सब खैरियत रही न ?”
“हां ।”
“मेरे पीछे कोई पुलिसिया पंहुचा था इस फ्लोर पर ?”
“मेरे ख्याल से पंहुचा था लेकिन टेपरिकार्डर से धोखा खा गया था । वो जल्दी ही इस आश्वासन के साथ यहां से चला गया था कि आप भीतर थे ।”
“गुड ।”
“आपके साथ कैसी गुजरी ?”
मैंने बताया और कोल्ट रिवाल्वर उसे दिखायी ।
“अगर” - वो बोली - “ये मर्डर वैपन है तो आपको इसे वहां से उठाके नहीं लाना चाहिये था ?”
“अब मैं क्या करता ?” - मैं भुनभुनाया - “हालात ही ऐसे पैदा हो गए थे । चौकीदार को पता नहीं कैसे भनक लग गयी थी कि अस्थाना के आफिस के भीतर कोई था । उस पर वार करने के बाद मैं रिवाल्वर वहीं फैंक आता तो अस्थाना जरुर ये दावा करता की मैं - चोर - रिवाल्वर वहां छोडकर गया था । चोर की आमद का चौकीदार की सूरत में उसके पास गवाह भी होता ।”
“आप इसे चुपचाप ऐन वहीं, फाइलिंग कैबिनेट में ही, वापिस रखके आ सकते थे जहां से कि आपने इसे बरामद किया था ।”
“तो भी अस्थाना दावा कर सकता था कि चोर ने रिवाल्वर वहां प्लांट की थी । चौकीदार न आया होता तो मैं जरुर यही करता ।”
“हूं ।”
“चोर की आमद की खबर तो उसे लगनी ही है । तब सावधानी के तौर पर वो रिवाल्वर को वहां से गायब भी कर सकता था ।”
“रिवाल्वर को सिर्फ वहां से हटा देने से वो उसकी मिल्कियत से कैसे मुकर सकता है ?”
“रजनी, मैंने अभी नोट किया है कि इस रिवाल्वर पर सीरियल नम्बर नहीं है । ये नहीं कि सीरियल नम्बर घिसके मिटा दिया गया है । सीरियल नम्बर है ही नहीं इस पर ।”
“ऐसा भी होता है ?”
“होता होगा किसी तरीके से । विदेशी माल है न । जरुर ये रिवाल्वर फैक्ट्री में से ही तब चोरी की गयी थी जबकि इस पर सीरियल नम्बर पड़ना अभी बाकी था । ऐसी रिवाल्वर का हमारे यहां पुलिस के लाइसेंसिंग विभाग में रजिस्ट्रेशन तो हो नहीं सकता इसलिये जाहिर है की अस्थाना इसे गैरकानूनी तौर पर अपने पास रखे था । ये रिवाल्वर अपने मुकाम से स्वभाविक तौर पर बरामद होती तो अस्थाना कत्ल के अलावा उसके पोजेशन के लिये भी जवाबदेय होता । उस चौकीदार के बच्चे ने ऊपर से आकर सब गुड़ गोबर कर दिया । अब इसे अस्थाना का माल साबित करने का मेरे पास कोई तरीका नहीं ?”
“ये मर्डर वैपन है ?”
“हो सकता है । होने की सम्भावना है लेकिन जुबानी जमा खर्च से क्या बनता है ! निर्विवाद रूप से तो बैलेस्टिक एक्सपर्ट ही स्थापित कर सकता है कि ये मर्डर वैपन है या नहीं ।”
“ओह ।”
“अगर ये मर्डर वैपन नहीं है तो फिर तो बात ही खत्म है, तो इसे वापिस अस्थाना के सिर थोपने की कोई तरकीब सोचनी होगी ।”
“जो कि आप सोच ही लेंगे । आखिर इतने बड़े जासूस हैं आप ।”
“घिस रही है मुझे ?” - मैं आंखें निकालता बोला ।
वो होंठ दबाकर हंसी ।
तभी एकाएक फोन की घन्टी बजी ।
मैंने चिहुंक कर फोन की दिशा में देखा । रजनी ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया तो मैंने उसे रोका और रिसीवर स्वयं उठाया ।
“हल्लो ।” - मैं सशंक भाव से बोला ।
“पाण्डेय बोल रहा हूं ।” - आवाज आयी - “तुम्हारे फ्लैट पर फोन किया था । कोई जवाब न मिला तो सोचा यहां ट्राई करूं ।”
“कैसे फोन किया ?”
“अस्थाना की बाबत एक बहुत जरूरी बात मालूम हुई है । सोचा तुम फौरन उससे वाकिफ होना पसन्द करोगे ।”
“क्या जरूरी बात मालूम हुई है ?”
“अस्थाना की बीवी अपना बर्थडे बहुत धूमधाम से मनाती है । उसके बर्थडे पर उनके यहां बहुत बड़ी गैदरिंग होती है और बर्थडे पार्टी सारी रात चलती है । मुहावरे के तौर पर सारी रात नहीं चलती, सच में ही सारी रात चलती है ।”
“ये जरूरी बात है !” - मैं भन्नाया - “वो अपना जन्मदिन मनाये या मरन दिन, मुझे...”
“सुनो तो ।”
“सुन रहा हूं ।”
“छ: दिसम्बर सोमवार को उसका जन्मदिन था ।”
““तो ?”
“नहीं समझे ?”
“नहीं ।”
“हीरा का कत्ल कब हुआ था ?”
“परसों मंगलवार को । सुबह सवेरे । ओह ! ओह !”
“अब समझा ?”
“तुम ये कहना चाहते हो कि अस्थाना सोमवार की सारी रात यानी कि मंगलवार की सुबह तक अपनी बीवी की बर्थडे पार्टी में मशगूल था ?”
“न सिर्फ मशगूल था, एक मिनट के लिये भी कोठी से बाहर नहीं निकला था । कई गवाह हैं इस बात के । पार्टी का आखिरी मेहमान उसकी कोठी से सुबह साढ़े छ: बजे रुख्सत हुआ था और उसको भी टाटा बाई-बाई करके वहां से रुख्सत करने वाला शख्स खुद अस्थाना था ।”
“पक्की बात ?” - मैं निराशापूर्ण स्वर में बोला ।
“बिल्कुल पक्की बात ।”
“ठीक है । शुक्रिया ।”
“मैंने धीरे से फोन वापिस क्रेडल पर रख दिया ।
“क्या हुआ ?” - रजनी बोली ।
“अस्थाना के खिलाफ मेरा सारा केस धराशायी हो गया ।” - मैं बोला - “उसके पास तो हीरा के कत्ल के वक्त की सिक्केबन्द एलिबाई है ।”
“कैसे ?”
मैंने उसे अस्थाना की बीवी की बर्थडे पार्टी के बारे में बताया ।
“ओह !” – वो एक क्षण खामोश रही और फिर बोली – “मैंने सुना है कि कत्ल करवाना भी उतना ही बड़ा जुर्म होता है जितना कि कत्ल खुद करना ।”
“तो ?”
“अस्थाना साधनसम्पन्न व्यक्ति है । वो जब आपके पीछे भाड़े के गुण्डे लगवा सकता था तो क्या कत्ल करने के लिये भाड़े का कातिल नहीं तलाश कर सकता था ?”
“कर सकता था । हो सकता है उसने ऐसा ही किया हो लेकिन कत्ल अगर किसी भाड़े के कातिल ने किया था तो ये रिवाल्वर मर्डर वैपन नहीं हो सकता । अव्वल तो ये ही मुमकिन नहीं कि कातिल को कत्ल के लिये हथियार अस्थाना मुहैया कराता, ऐसा उसने किया भी होता तो वो हथियार वापिस क्यों कबूल करता और उसे अपने पास सहेजे रह कर अपनी आ बैल मुझे मार जैसी हालत, क्यों करता ?”
“आप बताइये ?”
उसको जवाब देने की जगह मैंने बड़े उतावले भाव से अपने पहले सिग्रेट से नया सिग्रेट सुलगा लिया ।
तभी फोन की घन्टी फिर बजी ।
मैंने रिसीवर उठाकर कान से लगाया और बोला - “हल्लो !”
कोई उत्तर न मिला ।
“हल्लो ।” - मैं फिर बोला ।
एकाएक लाइन कट गयी ।
मैंने फोन को वापिस क्रेडल पर पटक दिया ।
“कौन था ?” - रजनी उत्सुक भाव से बोली ।
“पता नहीं ।” - मैं बोला - “कोई बोला ही नहीं । कहीं मेरी निगरानी करते पुलिसियों ने फोन न किया हो !”
“यानी कि आप की आवाज सुनकर ही उन्हें तसल्ली हो गयी होगी कि आप यहां मौजूद हैं !”
“जाहिर है । तभी तो बिना बोले ही लाइन काट दी ।”
“फिर तो बहुत अच्छा हुआ कि ऐसा फोन आपकी गैरहाजिरी में न आया ।”
“वो तो है ।”
“वो चौकीदार ।” - रजनी धीरे से बोली - “हमेशा तो बेहोश नहीं रहने वाला ।”
“क्या मतलब ?” - मैं उलझनपूर्ण भाव से उसकी तरफ देखता हुआ बोला ।
“अब तक क्या पुलिस को उस वारदात की खबर वो कर नहीं चुका होगा ?”
“तो क्या हुआ ? उसने मेरी सूरत तो देखी नहीं थी । देखी भी होती तो उसे क्या पता मैं कौन था ! ऊपर से खुद पुलिस वाले जो कि मेरी निगरानी के लिये तैनात हैं - मेरे जामिन हैं कि वारदात के वक्त के आसपास मैं यहां अपने आफिस में बैठा अपनी सेक्रेट्री को डिक्टेशन दे रहा था ।”
“फिर भी किसी जायज या नाजायज वजह से अगर पुलिस यहां आ गयी और उन्होंने यहां से ये रिवाल्वर बरामद कर ली तो आप इसकी अपने पास मौजूदगी की बाबत कोई सजता सा जवाब दे पायेंगे !”
“ओह ! रजनी, तू तो बहुत सयानी है ।”
“आप को फौरन इस रिवाल्वर से पीछा छुड़ाना चाहिये ।”
“मैं इसे यहां कहां छुपाऊं ?”
“आप इसे आफिस में कहीं छुपाने की फिराक में हैं ?”
“नहीं, ये तो ठीक नहीं होगा । मैं... मैं इसे अपनी कार में छुपाता हूं । मेरी कार में एक स्पेयर टायर और टयूब पड़ी है । मैं टायर में से टयूब निकाल कर टयूब फाड़ के उसमें रिवाल्वर धकेल कर टयूब वापिस टायर में डाल दूंगा । फिर जब मेरा दांव लगेगा मैं इसको वहां से निकाल कर इसकी ये जांच करवाने की कोशिश करूंगा कि ये मर्डर वैपन है या नहीं ।”
“अगर ये मर्डर वैपन न निकला तो ?”
“तो मैं इसका पार्सल बना कर इसे वापिस अस्थाना के पास भिजवा दूंगा । आ चलें ।”
हमने दफ्तर की बत्तियां बन्द कीं, उसे ताला लगाया और नीचे पहुंचे । पार्किंग में जाकर हम कार में सवार हुए तो मैं बोला – “खाने का क्या करेगी ?”
“घर जाके बनाऊंगी ।” – वो बोली ।
“अगर ऐतराज न हो तो आज खाना मेरे साथ हो जाये ।”
“कहां ?”
“कहीं भी । किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में ।”
“मैं तीन शर्तों पर आपके साथ रेस्टोरेंट में खाना मंजूर कर सकती हूं ।”
“शर्तें ! ठीक है, बोल ।”
“नम्बर एक, वहां अन्धेरा न हो । नम्बर दो, वो रेस्टोरेंट बार भी न हो । नम्बर तीन, बिल मैं चुकाऊंगी ।”
“क्या !”
“बिल मैं चुकाऊगी ।”
“अरी कमबख्त, जहां मैं तुझे ले जाना चाहता हूं, वहां का बिल हर वक्त तनख्वाह का रोना रोने वाला कोई शख्स नहीं चुका सकता ।”
“तो ऐसी जगह चलिये जहां का बिल हर वक्त तनख्वाह का रोना रोने वाला शख्स चुका सकता हो ।”
“लेकिन तू बिल चुकाना क्यों चाहती है ?”
“क्योंकि मैं चाहती हूं कि आज आप मेरे मेहमान बनें ।”
“लेकिन क्यों ?”
“मेरी इच्छा ।”
“अच्छी बात है ।”
मैंने कार को पार्किंग में से निकालकर आगे बढ़ाया । कार के मेन रोड तक पहुंचने तक मुझे ऐसा न लगा कि कोई मेरे पीछे था लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि मेरा पीछा छोड़ दिया गया था । वो लोग इस मामले में बहुत तजुर्बेकार और मेरी अपेक्षा से ज्यादा चालाक हो सकते थे ।
रजनी लोधी कालोनी रहती थी । इसलिये डिनर के लिये मैंने उसके करीब की जगह एम्बैसेडर होटल चुना ।
मैंने कार को जब एम्बैसेडर की पार्किग में खड़ा किया तो मुझें अपने पीछे कोई वाहन वहां दाखिल होता दिखाई न दिया ।
हम दोनों कार से निकले ।
“सामने निगाह रखना ।” - मैं बोला - “कोई हमारी तरफ आता या दूर से हमें ताड़ता लगे तो बताना ।”
उसने सहमति मे सिर हिलाया ।
मैंने कार के पीछे जाकर डिक्की को चाबी लगायी और उसका ढक्कन उठाया । भीतर पड़े टायर ट्यूब में रिवाल्वर छुपाने में मुझे कुल जमा दो मिनट लगे । फिर रजनी के साथ मैं भीतर होटल के चायनीज रेस्टोरेंट में पहुंचा । रजनी से राय करके मैंने वेटर को आर्डर दिया और फिर बोला - “मैं एक मिनट टायलेट होकर आता हूं ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
मैं वहां से उठा और सीधा बार में पहुंचा । मैं एक बार स्टूल पर बैठ गया और उतावले भाव से बोला – “पीटर स्काट । डबल ।”
बार मैन ने मेरे सामने विस्की का गिलास रखा तो मैं उसे गटागट पी गया ।
“वन मोर ।” - मैं बोला ।
उसको नया पैग बनाता छोड़कर मैं होटल के मुख्यद्वार पर पहुंचा । वहां से मैंने दायें-बायें बाहर झांका तो मुझे कैसा भी कोई आदमी वहां न दिखाई दिया । शायद ये सोचके कि होटल में खाना खाकर तो मैं अब सोने के लिये घर ही जाता, उन्होने मेरा पीछा छोड़ दिया था ।
मैं वापिस बार में पहुंचा । मेरा नया पैग काउन्टर पर मेरा इन्तजार कर रहा था । मैंने उसे भी हलक में उंडेला और बोला - “बिल ।”
“बिल इज पेड, सर ।” - बारमैन अदब से बोला ।
“क्या !”
“अभी एक मैडम यहां आयी थीं, वो पेमेन्ट कर गयीं ।”
“सत्यानाश !”
“साथ में आप के लिये मैसेज भी छोड के गयी हैं ।”
“क्या ?”
“सूप ठण्डा हो रहा है ।”
“ओह !”
मैं रेस्टोरेंट में वापिस रजनी के पास पहुंचा ।
“सॉरी ।” - मैं बोला
“किस बात के लिये ?” - उसने बनावटी हैरानी जाहिर की ।
“तुझे मालूम है किस बात के लिये । लेकिन क्या करूं ! छुटती नहीं है काफिर मुंह की लगी हुई ।”
“मेरी एक शर्त ये भी थी कि जहां हम खाना खाने जायें, वहां बार न हो ।”
“तूने कहा था कि हम जिस रेस्टोरेंट में खाना खाने जायें, वो बार न हो । ये रेस्टोरेंट तो बार नहीं हैं ।”
“जाने दीजिये अब । सूप लीजिये । ठण्डा हो रहा है ।”
मैं खामोशी से सूप पीने लगा ।
“एक बात बताइये ।” – भोजन के दौरान वो बोली– “रिवाल्वर तो, जाहिर है कि, इतफाक से आपके हाथ लगी, असल में आपको अस्थाना के आफिस में किस चीज की तलाश थी ?”
“हीरा के कागजात की ।” - मैं बोला - “लेकिन वो वहां कहीं नहीं थे ।”
“क्या पता उसने वो कागजात हाथ आते आते ही नष्ट कर दिये हों !”
“अक्ल वाला काम तो ये ही है । अगर उसे ये जानने की उत्सुकता रही होगी की कागजात में औरों के बारे में क्या था, मेरे बारे में कुछ था या नहीं तो हो सकता है कि वो उन्हें रखे रहा हो । बहरहाल कागजात उसके दफ्तर में तो नहीं थे ।”
“उसके घर पर होंगे ।”
“जैसी कर्कशा उसकी बीवी है, उस लिहाज से ये बात नहीं जंचती कि अपनी पोल-पट्टी वो अपने घर लेके गया हो जहां कि वो कागजात उसकी बीवी के हत्थे भी चढ़ सकते थे ।”
“या शायद कागजात उसके पास कभी रहे ही न हों ।”
“अब जब कि हीरा की हत्या के वक्त की उसके पास एलीबाई है तो ये भी हो सकता है ।”
“यानी कि अब आपका ये विश्वास डांवाडोल हो रहा है कि सब किया धरा अस्थाना का है ।”
“जो बातें खुल के सामने आ रही हैं उनकी वजह से तो हो रहा है लेकिन मुमकिन है कि वो मेरी उम्मीद से ज्यादा चालाक हो और उसने ऐसी कोई सूरत निकाल ती हो जिससे ये भरम भी बना रहे कि वो कातिल नहीं हो सकता था लेकिन फिर भी कत्ल उसी ने किया हो ।”
“खुद ?”
“हां । ये भाड़े के कातिल वाली बात अब मुझे कमजोर लग रही है । रजनी, जरा सोच । वो हीरा का कत्ल क्यों करना चाहता था ? क्योंकि हीरा उसे ब्लैकमेल कर रही थी । अब अगर वो किसी किराये के कातिल से हीरा का कत्ल करवाता तो ये तो आसमान से गिरकर खजूर में अटकने वाली बात होती ।”
“क्यों ?”
“क्यों ! अरे, ये भी तो हो सकता था कि वो किराये का कातिल हीरा का कत्ल करने के बाद वो कागजात अपने कब्जे में करता और फिर हीरा की तरह खुद सब को ब्लैकमेल की धमकियां जारी करने
लगता । ऊपर से किराये का कातिल उम्र भर अस्थाना का राजदां रहता कि उसने हीरा का कत्ल करवाया था ।”
“उसको एतबार होगा कि ये बात उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती थी । आखिर उसने आपका भी कत्ल करवाने की कोशिश की थी ।”
“अब मैं ठण्डे दिमाग से सोचता हूं तो मुझे लगता है कि ऐसा कुछ नहीं था । जो तीन दादे उसने मेरे पीछे लगाये थे, जरुर उन का मकसद मुझे धमकाना ही था, धमका कर मेरे से कागजात हासिल करना ही था । मेरे कत्ल से दरअसल, अस्थाना का कोई मकसद तब तक हल नहीं होता था जब तक कि मैं कागजात की बाबत सब कुछ सच-सच न बकता । कागजात के बारे में बिना कुछ कहे मैं मर जाता तो बाद में कागजात कहीं और से सिर उठा सकते सकते थे और पहले से ज्यादा बड़ी विपत्ति बन के सामने आ सकते थे ।”
“आप तो अस्थाना को चौतरफा बरी किये दे रहे है ।”
“वैसे तो मेरा कलेजा फटता है ऐसा करते लेकिन हकीकत तो हकीकत ही है । लगता है मैं अस्थाना के कुछ ज्यादा ही गले पड़ रहा था ।”
“अब अस्थाना का गला छोड़ेंगे तो किस का गला थामेंगे ?”
“अभी कुछ कह नहीं सकता । काफी कुछ पाण्डेय की पड़ताल पर निर्भर करता है ।”
फिर बाकी सारा समय खामोशी से खाना खाते गुजारा ।
आखिरकार जब बिल आया तो मैंने रजनी से हाथ जोड़ कर गुजारिश करने में कसर न छोड़ी कि वो बिल मुझे देने दे लेकिन वो न मानी ।
“अगली बार आप दे दीजियेगा ।” - वो बिल चुका कर उठती हुई बोली - “हिसाब बराबर हो जायेगा ।”
“यानी कि अगली बार होगी ?”
“हो सकती है ।”
हम बाहर आ कर कार में सवार हुए । मैंने कार को उसके घर की ओर दौड़ा दिया ।
अब मुझे परवाह नहीं थी कि कोई मेरा पीछा कर रहा था या नहीं । अब तो, जबकि रजनी को ड्राप करने के बाद मेरा आखिरी पड़ाव मेरा अपना घर ही था, मेरे पीछे लगे लोग अपना टाइम ही बरबाद करते ।
रास्ते में मैंने एक सिग्रेट सुलगा लिया और मंथर गति से गाड़ी चलाता हुआ पचौरी की बाबत सोचने लगा ।
चाण्डाल चौकड़ी में से वो ही एक इकलौता शख्स था जो हीरा के कत्ल के बाद से मुझे अभी तक नहीं मिला था ।
“क्या सोच रहे हैं ?” – रजनी बोली ।
“सोच नहीं रहा” - मैं अनमने भाव से बोला - “जो ताबूत मेरे पास है और जो अस्थाना को फिट नहीं आ रहा उसके लिये कोई और मुर्दा ट्राई कर रहा था ।”
“कौन ?”
“प्रभात पचौरी । वो भी अस्थाना की ही तरह हीरा की फैन क्लब का चार्टर्ड मेम्बर था । चारों में से यही एक शख्स है जो शादीशुदा नहीं है । इसका मानसी माथुर नाम की एक बहुत बड़े बाप की बेटी से अफेयर है और पचौरी उससे शादी करने के लिये मरा जा रहा है । मानसी के घर वालों की नाक सोसायटी में इतनी ऊंची है कि उनको खबर लग गयी कि उनके भावी दामाद का अफेयर एक कालगर्ल से था वो पचौरी से यूं बिदकेंगे जैसे एकाएक वो एड्स का शिकार हो गया हो । पचौरी ऐसा होने देना अफोर्ड नहीं कर सकता । उसने खुद मुझे बताया था कि हीरा ने उसे साफ धमकी दी थी कि अगर पचौरी ने उसकी मांग कबूल न की तो वो खुद मानसी के घर जाकर उसे और उसके मां बाप को पचौरी से अपने ताल्लुकात की मुकम्मल दास्तान, बमय सबूत, सुना कर आयेगी ।”“ये तो कत्ल का तगड़ा उद्देश्य है ।”
“हां ।” - मैं कार को रजनी के घर वाले ब्लाक में मोड़ता हुआ बोला – “हीरा से पीछा छूटे बिना पचौरी की मानसी से शादी नहीं हो सकती थी । और हीरा थी कि...”
एकाएक रजनी के मुंह से घुटी हुई सिसकारी निकली । उसने कस कर मेरी बांह पकड़ ली ।
“क्या हुआ ?” - मैं हड़बड़ा कर बोला ।
“गाड़ी रोकिये । फौरन । यहीं ।”
मैंने जोर से कार को ब्रेक लगायी ।
“हुआ क्या ?” – मैंने फिर पूछा ।
“मेरे घर की बत्तियां जल रही हैं ।” – वो आतंकित भाव से बोली – “मेरे माता पिता लौट आये मालूम होते हैं ।”
“लेकिन वो तो परसों लौटने वाले थे !”
“पता नहीं कैसे जल्दी लौट आये ।” – वो रुंआसे स्वर में बोली – “अब मेरा क्या होगा ?”
“क्यों ? तुझे क्या हुआ है ?”
“पूछते हैं क्या हुआ है ? आधी रात होने को है । इतनी रात गये वो मुझे घर लौटता देखेंगे तो वो क्या सोचेंगे मेरे बारे में ? यही न कि उनकी गैरहाजिरी में मैं ...”
“तू घबरा नहीं ।” – मैंने उसे पुचकारा – “मैं तेरे साथ चलता हूं । मैं तेरे माता पिता को समझा दूंगा ।”
“आपके साथ होने से तो वो और भी गलत सोचेंगे ...”
“नहीं सोचेंगे । अब तू इतना गिरा पड़ा न समझ मुझे । अब हौसला रख और चल मेरे साथ ।”
वो कार से निकली और मन-मन के कदम रखती मेरे साथ आगे बढ़ी ।
उसका फ्लैट पहली मंजिल पर था । सीढ़ियों के रास्ते हम ऊपर पहुंचे तो वहां और ही नजारा मिला ।
दो कमरों के उस फ्लैट का उस घड़ी ये हाल था जैसे भयानक आंधी तूफान ने अपना मुकम्मल जोर वहीं आजमाया हो । हर तरफ अस्त-व्यस्तता का बोलबाला था जो ये जाहिर करता था कि वहां की बड़ी जल्दी में, बड़ी बेरहमी से तलाशी ली गयी थी ।
“लगता है ।” – मैं धीरे से बोला – “तलाशी का ये आलम हमारे आने से कुछ क्षण पहले तक भी जारी था । कोई बड़ी बात नहीं कि मेरी कार के ब्लाक में दाखिल होने पर ही तलाशी लेने वाला – या वाले – यहां से भागा हो । इसी वजह से वो तमाम दरवाजे खुले और बत्तियां जलती छोड़ गया ।”
“लेकिन ।” – रजनी बोली – “इतनी रात गये, बत्तियां जला कर यूं सरेआम तलाशी ...”
“उसे मालूम होगा कि तू कहां थी और तेरे माता पिता कहां थे । उसे मालूम होगा कि एकाएक ऊपर से वहां कोई नहीं आ जाने वाला था ।”
“हम आये तो हैं ।”
“उसे तेरे और भी लेट घर लौटने की उम्मीद होगी ।”
“लेकिन मेरे घर की तलाशी क्यों ?”
“क्योंकि तू मेरी सैक्रेट्री है । मेरे फ्लैट और आफिस के अलावा किसी को ये जगह भी सूझी होगी जहां कि मैं कुछ छुपा सकता था ।”
“कुछ क्या ?”
“इस वक्त तो मुझे हीरा के कागजात ही सूझ रहे हैं ।”
“वो तो आपके पास से पहले ही चोरी जा चुके हैं ।”
“हां । लेकिन यहां घुसे चोर को इस बात की खबर नहीं होंगी न ।”
“अगर ये बात थी तो ऐसी तलाशी पहले आप के घर की और आफिस की होनी चाहिये थी ?”
“घर की क्या पता हुई हो । ग्रेटर कैलाश पहुंचने पर हो सकता है कि मुझे ऐसा ही नजारा अपने भी घर पर देखने को मिले और क्या पता चोर इस घड़ी आफिस ही खंगाल रहा हो ।”
“अब क्या होगा ?”
“अब सब से पहले तो पुलिस को ही फोन करना होगा ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
मैंने पुलिस को फोन किया ।
“यहां की खबर ।” - रजनी बोली - “आपके उस ए सी पी तक भी पहुंचेगी जो कत्ल के दोनों केसों की तफ्तीश कर रहा है ?”
“पहुंच सकती है ।” – मैं बोला – “मेरी यहां मौजूदगी की वजह से पहुंच सकती है ।”
“तब वो आप पर ये शक नहीं करेगा कि आप उससे काफी कुछ छुपाते रहे हैं ? यहां की तलाशी का सीधा मतलब यही नहीं लगायेगा कि यहां आप ही का कोई माल मैंने छुपाकर रखा हुआ था । क्योंकि आपके ख्याल से किसी को इस मामले में मेरे घर का ख्याल नहीं आ सकता था ?”
“वो ये ही सोचेगा । अगर यहां से कुछ चोरी नहीं गया है तो बिल्कुल यही सोचेगा । तू जरा झटपट अपना कीमती सामान चैक तो कर ।”
उसने किया ।
“सब कुछ चाक चौबन्द है ।” – वो बोली ।
“फिर तो हो गया काम ।” – मैं बोला – “अब तो वो मेरे पर ये भी इल्जाम लगा सकता है कि मैं झूठ बोल रहा था कि मेरी रिवाल्वर मेरे फ्लैट से एक डेढ महीना पहले चोरी गयी हो सकती थी । अब तो वो ये दावा करेगा कि जरूर हाल ही में मेरे फ्लैट का भी किसी ने ये ही हाल किया था और तभी रिवाल्वर चुरायी थी जो कि सच भी है । यानी कि रूबी की लाश के पहलू में अपनी रिवाल्वर पड़ी देखने से पहले ही मुझे मालूम था कि वो चोरी जा चुकी थी ।”
“यानी कि जो हत्यारा है, वही चोर है । यहां वाला भी और आपके फ्लैट में घुसने वाला भी ?”
“हालात का इशारा तो इसी तरफ है ।”
“और तलाश उसे हीरा के कागजात की थी ?”
“और किस चीज की होगी ? और तो किसी कीमती चीज का दख्ल है ही नहीं इस केस में ।”
“उसने ये कैसे सोच लिया कि कागजात आपके अधिकार में थे ?”
“इसका एक जवाब अब मुझे सूझ रहा है । मुझे लगता है कि हीरा के कत्ल के फौरन बाद ही हत्यारा - जैसा कि मैं पहले समझ रहा था - फार्म हाउस से कूच नहीं कर गया था । बाथरूम में मेरी मौजूदगी का अहसास होने पर वो बंगले से जरूर खिसक गया था । लेकिन आसपास ही छुप गया था । जरूर उसने मुझे वहां से कूच करते देखा होगा और यूं मुझे पहचाना भी होगा । मेरे वहां से चले जाने के बाद वो दोबारा बंगले में दाखिले हुआ होगा और उसने हीरा के कागजात की तलाश शुरू की होगी । ये बात यूं भी साबित
होती है कि मैंने हीरा की मेज के दराजों का ताला हीरा के एक हेयर पिन की मदद से खोला या जबकि पुलिस ने ताले के छेद के इर्द गिर्द ऐसी खरोंचे बनी हुई पायी थी जैसे उसे किसी तीखे औजार से जबरन खोला गया हो । जाहिर है कि ताला खोलने के लिये वो तीखा औजार मेरे वहां से चले जाने के बाद हत्यारे ने इस्तेमाल किया था और यूं कागजात के मामले में मेज के तीनों दराजों में झाडू फिरा पाया था । तभी वो समझ गया था कि कागजात मैं ले गया था जो कि पहला मौका हाथ आते ही उसने मेरे फ्लैट में घुस कर बरामद कर लिये थे । उन कागजात के हाथ आये बिना उसका काम मुकम्मल जो नहीं होता था ।”
“उसका मुकम्मल काम हीरा का कत्ल और कागजात हथिया कर उन्हें नष्ट करना था ?”
“बिल्कुल ।”
“दोनों काम कर तो लिये उसने ! फिर भी अभी टिक कर क्यों नहीं बैठता वो ?”
“यही बात तो समझ में नहीं आ रही ।”
तभी पुलिस वहां पहुंची ।
“क्या हुआ ?” - एक सब-इन्स्पेक्टर ने सवाल किया ।
मैंने बताया ।
“फ्लैट आपका है ?”
“नहीं ।” - मैं बोला - “इनका है ।”
“और आप ?”
मैंने उसे अपना परिचय दिया और अपना एक विजिटिंग कार्ड भी पेश किया ।
मेरा प्ररिचय प्राप्त करते ही उसके नेत्र फैले ।
“मैं एक मिनट में आया ।” - वो बोला और फिर लम्बे डग भरता वहां से बाहर निकल गया ।
मैं समझ गया कि वो तलवार को फोन करने गया था ।
पांच मिनट में वो वापिस लौटा ।
“चोरी क्या गया है ?” - उसने सवाल किया ।
“कुछ नहीं ।” - जवाब रजनी ने दिया ।
“आपने चैक किया है ?”
“सरसरी तौर पर चैक किया है ।”
“आपको किस पर शक है ? किसी की निशानदेही करना चाहती हैं आप इस मामले में ?”
“नहीं ।”
वो यूं ही हम से उल्टे सीधे सवाल तब तक पूछता रहा जब तक कि ए सी पी तलवार वहां न पहुंच गया ।
उसने हालात का मुआयना किया, सब-इंस्पेक्टर को एक ओर ले जाकर उससे चन्द सवाल किये और फिर मेरे करीब पहुंचा ।
“ये कोई मामूली चोरी की वारदात नहीं, मिस्टर प्राइवेट डिटेक्टिव ।” - वो बोला - “न ही ये किसी मामूली चोर का कारनामा है । यहां जो कुछ हुआ है, उसका सीधा सम्बन्ध हीरा और रूबी के कत्ल से है, तुम्हारी रिवाल्वर से है और खुद तुमसे है । यहां की तलाशी कत्ल की उन दो वारदातों की ही एक्सटेंशन है और ये सिलसिला किसी न किसी रूप में अभी आगे चलेगा और यकीन जानो, तुम्हें अच्छी तरह से लपेटेगा ।”
“उस लपेटे से बचने के लिये” – मैं बोला – “मैं क्या कर सकता हूं ?”
“बहुत कुछ कर सकते हो तुम । मसलन तुम सच बोल सकते हो, तुम पुलिस से जो कुछ अब तक छुपाते चले आ रहे हो, उसे अब बयान कर सकते हो ।”
“मैं कुछ नहीं छुपा रहा ।”
“चलो, न सही । तुम्हारी पुलिस से सहयोग करने की नीयत हो तो मैं एक राय दूं ?”
“दीजिये । पुलिस से सहयोग की मेरी पूरी-पूरी नीयत है ।”
“तुम कहते हो कि पिछले तेरह महीनों से तुम हीरा को जानते थे । मेरी राय ये है कि हीरा से अपने ताल्लुकात को एक बार पूरे का पूरा अपने जेहन में उतारो, और पिछले कुछ महीनों में आयी उसके व्यवहार में कोई तब्दीली, उसके रवैये में आयी कोई खूबी या खामी को याद करने की कोशिश करो । उसने किसी से कोई खतरा महसूस किया हो ! किसी से अपनी किसी अदावत का जिक्र किया हो ! या किसी में कोई खास ही दिलचस्पी दिखाई हो !” – वो एक क्षण ठिठका उसने घूरकर मुझे देखा और फिर बोला – “परसों सुबह मैंने तुमसे एक सवाल किया था कि तुम्हें हीरा के अपने जैसे कितने मेल फ्रेंड्स की वाकफियत थी । तुमने किसी की भी वाकफियत होने से इन्कार किया था । उस सवाल का जवाब मैं अभी भी चाहता हूं । मौजूदा हालात को मद्देनजर रखते हुए तुम्हारी भी दिलचस्पी होनी चाहिये उस सवाल का कोई मुनासिब जवाब मुझे सुझाने में ।”
“है तो सही ।”
“गुड । तो अब कोई नाम याद आया ?”
“नहीं ।”
“पुलिस से ऐसा रवैया अख्तियार करने का नतीजा जानते हो ?”
“जो नतीजा होगा, मैं भुगत लूंगा ।”
“ये भी भुगत लेंगी ?” – वो रजनी की ओर इशारा करता हुआ बोला ।
मेरे मुंह से बोल न फूटा ।
“जब चोर यहां घुसा था, तब ये घर पर नहीं थी । होतीं तो जानते हो क्या होता ? तो इसी बिखरे सामान में कहीं इनकी लाश भी पड़ी होती ।”
रजनी के मुंह से एक घुटी हुई सिसकारी निकली ।
“आप हमें डराने की कोशिश न करें ।” – मैं दिलेरी से बोला – “मुझे जो कुछ मालूम था, वो मैंने बता दिया । आगे कुछ याद आयेगा तो वो भी बता दूंगा ।”
“याद करोगे तो बताओगे न ! तुम्हारी याद करने की नियत होगी तो याद करोगे न !”
“आपकी भी कुछ करने की नीयत होगी तो करेंगे न !”
“क्या मतलब ?”
“तीन दिन में दो कत्ल हो गये । दोनों अभी तक अनसुलझे हैं । जब कि उनकी तफ्तीश आप सरीखा युवा, होनहार उच्चाधिकारी कर रहा है ।”
वो तिलमिलाया । कुछ क्षण वो खा जाने वाली निगाहों से मुझे घूरता रहा, फिर धीरे-धीरे उसने अपने पर काबू पा लिया ।
“पुलिस के पास कोई जादू का डण्डा नहीं होता ।” - वो बड़े सब्र से बोला - “जिसे घुमाया और मन चाहा नतीजा हासिल कर लिया ।”
मैं खामोश रहा । उस घड़ी उसे और भड़काना ठीक जो नहीं था ।
“आप कहती हैं ।” – फिर वो रजनी से सम्बोधित हुआ – “कि यहां से कुछ चोरी नहीं गया है ।”
“कोई कीमती चीज चोरी नहीं गयी है ।” – रजनी बोली ।
“कोई ऐसी चीज चोरी गयी हो सकती है जिसे आप मामूली मानती हों लेकिन चोर के लिये जो बेशकीमती हो !”
“ऐसी क्या चीज हो सकती है ?”
“उस चीज के बारे में क्या ख्याल है जो मिस्टर कोहली ने आपके घर में छुपा के रखने के लिये सौपी थी ?”
“ऐसी कोई चीज नहीं है । इन्होंने मुझे कुछ नहीं सौंपा !”
“तो फिर यहां की ऐसी तलाशी क्यों हुई ?”
“ये तो चोर ही बेहतर बता सकता है कि उसे यहां किस चीज की तलाश थी ।”
“इतना तो आप भी बता सकती हैं कि उसकी तलाश कामयाब हुई है या नहीं ।”
“अब क्या फर्क पड़ता है !”
“फर्क पड़ता है । उसकी तलाश कामयाब नहीं हुई तो वो यहां फिर आ सकता है ।”
रजनी ने व्याकुल भाव से मेरी तरफ देखा ।
“वो अपना वक्त ही जाया करेगा ।” - मैं बोला - “मैंने रजनी को यहां छुपा कर रखने के लिये कुछ नहीं सौंपा ।”
उसने मेरी बात की तरफ ध्यान न दिया । वो फिर रजनी से मुखातिब हुआ – “आप यहां अकेली रहती हैं ?”
“नहीं ।” - रजनी बोली - “मेरे माता पिता साथ रहते हैं । लेकिन वो हरिद्वार गये हुए हैं । दो दिन में लौटेंगे ।”
“मेरी राय में आप उन्हें फौरन वापिस बुला लीजिये ।”
“ठीक है ।”
तलवार मेरी तरफ घूमा, वो कुछ क्षण अपलक मुझे देखता रहा और फिर बोला – “चोट कैसे लगी ?”
“सीढ़ियों से फिसल गया था ।” – मैं अपनी कनपटी का गूमड़ और आंख के नीचे की खरोंच सहलाता हुआ बोला ।
“ध्यान से सीढ़ियां उतरा करो, भई ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
उसके बाद तलवार वहां से विदा हो गया ।
और थोड़ी देर बाद अपना फिंगरप्रिंटस वगैरह उठाने का ड्रामा मुकम्मल करके बाकी पुलिसिये भी विदा हो गये ।
तब मैंने और रजनी ने फ्लैट का बिखरा सामान उठाकर ठिकाने लगाने का काम शुरू किया जिससे कि हम आधे घन्टे में फारिग हुए ।
“तलवार की एक बात तो मुझे भी जचं रही है ।” – फिर मैं चिन्तित भाव से बोला – “तुझे यहां अकेला नहीं होना चाहिये ।”
“मैं कल सुबह सवेरे ही पापा मम्मी को एक्सप्रैस टेलीग्राम दे दूंगी ।” – वो बोली – “वो दोपहर तक वापिस पहुंच भी जायेंगे ।”
“लेकिन आज की रात...”
“अब कुछ नहीं होता । जैसे बिजली एक ही बार दो जगह नहीं गिरती” – वो हंसती हुई बोली – “वैसे ही चोर भी एक ही घर में दो बार नहीं आता ।”
“आम चोर नहीं आता होगा । लेकिन यहां आया चोर आम चोर नहीं था । यहां आये चोर की तलाश कामयाब नहीं हुई थी । जैसा कि तलवार ने कहा था कि चोर यहां फिर...”
“अब नहीं आता वो फिर । हर जगह की तलाशी तो वो ले कर गया है । अब आयेगा तो और कौन सी नयी जगह टटोलेगा ?”
“मैं आश्वस्त नहीं ।”
“हो ही जाइये आश्वस्त ।” – वो तत्काल संजीदा हुई । – “क्योकि अगर आपका ये ख्याल है कि मैं आपको यहां रूकने के लिये कहूंगी तो ये ख्याल जेहन से निकाल दीजिये ।”
“अरी, कमबख्त ! मैं तो तेरी भलाई के लिये ऐसा सोच रहा था ।”
“आप मेरी फिक्र न करें ।”
“ठीक है फिर । जाता हूं मैं । और भगवान करे चोर वापिस जरूर लौटे और इस बार तेरे घर के सामान की जगह यहां तेरे हाथ पांव हड्ड गोड्डे हाड़ मास मज्जा छितरा कर जाये ।”
वो हंसी ।
“हंसती है !”
“हां, हंसती हूं । आप बातें ही ऐसी करते हैं ।”
“मैं जाता हूं । सुबह तक जिन्दा बच जाये तो दफ्तर आ जाना । गुड नाइट ।”
“गुड नाइट ।”
***
रात के सन्नाटे में मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा ।
निक्सी गोमेज मुझे अपने फ्लैट के दरवाजे के सामने सीढ़ियों पर बैठी मिली ।
“आप !” - मैं सख्त हैरानी से बोला – “यहां !”
“मैंने कहा था” – वो उठती हुई बोली – “कि आपकी तरफ से मेरा रवैया अगर तब्दील हुआ तो मैं आपसे कान्टैक्ट करूंगी ।”
“लेकिन इस वक्त !”
“अगर आप मेरे आने से खुश नहीं हैं तो मैं वापिस चली जाती हूं ।”
“नहीं नहीं । ऐसी बात नहीं । मैं तो आपकी असुविधा के लिहाज से सोच रहा था । कब से हैं आप यहां ?”
“एक घन्टे से ऊपर तो हो ही गया होगा ।”
“कमाल है ! आप पहले टेलीफोन कर लेती ।”
“मैंने किया था । लेकिन घन्टी ही बजती रही थी, जवाब नहीं मिला था । मैंने सोचा फोन खराब होगा । सो मैं यहां चली आयी । सोचा था इतनी रात गये तो आप घर ही होंगे । लेकिन आप तो नाइट आउटिंग के शौकीन निकले ।”
“मैं तफरीहन घर से बाहर नहीं था ।” – मैं ताला खोलता हुआ बोला – “मेरा कारोबार ही ऐसा है कि कई बार तो मैं सारी-सारी रात घर नहीं लौट पाता ।”
“फिर तो मैं खुशकिस्मत हूं कि कम से कम आज रात ऐसा नहीं हुआ ।”
“तशरीफ लाइये ।”
वो मेरे पीछे–पीछे फ्लैट में दाखिल हुई । मैंने ड्राइंगरूम की बत्तियां आन की ।
“मैन ?” – एकाएक वो बोला – “युअर फेस !”
“हैड ऐन एक्सीडेंट ।” – मैं लापरवाही से बोला ।
“यू शुड बी मोर केयरफुल ।”
“आई विल । आई विल । बिराजिये ।”
वो एक सोफे पर बैठ गयी ।
“आप कुछ पियेंगी ?” – मैं बोला ।
वो एक क्षण खामोश रही और फिर संकोचपूर्ण स्वर में बोली – “आई विल कनसिडर ए लिटल ब्रान्डी विद वाटर इफ यू हैव इट ।”
“श्योर । आई हैव कोनियाक ।”
“वन्डरफुल ।”
“वन ब्रांडी कमिंग अप राइट अवे , मैडम ।”
“थैंक्यू ! वो क्या है कि बाहर मैं ठण्ड में बैठी रही न इसलिये...”“आई अन्डरस्टैण्ड ।”
मैं किचन में गया और ब्रान्डी एण्ड वाटर के दो जाम बना कर उनके साथ वापिस लौटा ।
“थैंक्यू ।”– वो गिलास थामती हुई बोली ।
“तो ।” – मैं बोला – “मेरी तरफ से आपका रवैया तब्दील हुआ है ?”
“हां ।”
“ऐसा कैसे हुआ ?”
“पुलिस से नाउम्मीदी की वजह से हुआ । वो मेरी बहन के कातिल की तलाश के सिलसिले में अभी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाये हैं । अब तो मुझे आप से ज्यादा उम्मीदें लग रही हैं । मुझे मालूम हुआ है कि आप तो दिल्ली के बड़े मशहूर प्राइवेट डिटेक्टिव हैं । मुझे यकीन है कि आप पुलिस से पहले, बहुत पहले, मेरी बहन के कातिल को तलाश कर लेंगे ।”
“ये मेरे लिये फख्र की बात है कि आप ऐसा सोचती हैं । पहले तो आपका मेरे से पेश आने का अन्दाज ऐसा था जैसे आप मुझे ही अपनी बहन का कातिल समझती हो ।”
“आई एम सॉरी । सर, आई वाज हैल्पलैस । वो पुलिस वाले ऐसे ही आईडियाज मेरे माइंड में इम्पलांट करते थे । आई एम सॉरी ।”
“यू नीड नाट बी । आई अन्डरस्टैंड ।”
“वैसे हैं तो नहीं न आप मेरी बहन के कातिल ?”
“मैडम । अगर होता तो ये बात मैं अपनी जुबान से कबूल करता ! खुद आप का दिल इस बाबत गवाही दे रहा होता तो आपका हौसला होता इतनी रात गये मेरे सामने यूं बैठे होने का ?”
“यू आर राइट । आई एम सॉरी आल ओवर अगेन ।”
“यू नीड नाट बी । आई सैड आलरेडी ।” - मैंने थोड़ी सी ब्रान्डी चुसकी और फिर बोला - “जब मैं आपसे होटल में मिला था तो आप मेरे खिलाफ थीं क्योंकि पुलिस ने आपको ऐसी पट्टी पढ़ाई हुई थी कि आपने मेरे से सहयोग नहीं करना था । तब आप मेरे किसी भी सवाल का जवाब दे के राजी नहीं थी । अब जबकि पुलिस से आप का भरम टूट गया है तो मैं आपसे चन्द सवाल फिर करना चाहता हूं । आज जवाब देंगी ?”
“जरुर ।”
“आनेस्टली ?”
“यस ।”
“आप अब प्रकाश होटल में नहीं हैं ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“उधर का बिल पुलिस देने को बोला था । उनका मतलब मेरे से हल हो गया तो उन्होंने वो कर्टसी विदड्रा कर ली ।”
“अब आप कहां हैं ?”
“अपनी बहन के फ्लैट में ।”
“वहां कब तक रहने का इरादा है ?”
“तब तक जब तक कि रूबी का कातिल पकड़ा नहीं जाता ।”
“रूबी के अन्तिम संस्कार के बाद से आपकी पुलिस से भेंट हुई ?”
“नहीं ।”
“रूबी से आखिरी बार आप कब मिली थीं ?”
“कोई एक महीना पहले । जबकि वो मेरे पास आगरा आयी थी ।”
“तब उसका मिजाज कैसा था ? ऐसा लगता था जैसे वो किसी बात से परेशान हो या किसी व्यक्तिविशेष से आतंकित हो ?”
“नहीं । ऐसा तो बिल्कुल नहीं लगता था । वो तो मेरे पास वैसे ही आयी थी जैसे हमेशा आती थी ।”
“खूब हंसती खेलती ?”
“मिस्टर कोहली, खिलन्दड़ापन रूबी के मिजाज में नहीं था । वो आदतन बहुत रिजर्व रहने वाली थी । आप उसको जानते थे तो ये बात आपको मालूम होनी चाहिये थी ।”
“मालूम है । लेकिन आप तो उसकी बहन है । आप के साथ तो...”
“उसका व्यवहार सब के साथ एक समान था । रिजर्व्ड । कोल्ड ।”
“बहरहाल उसके व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं थी ? जैसा व्यवहार उसका हमेशा होता था, वैसा ही पिछले महीने तक था जब वो आगरे जाकर आप से मिली थी ?”
“हां ।”
“लेकिन अगर कोई बात होती – गैरमामूली, दिमाग पर बोझ बनने वाली, फिक्र में डालने वाली – तो वो आपको बताती ?”
“हां । जरुर । आखिर मैं उसकी बड़ी बहन थी ।”
“इस लिहाज से तो उसके मिजाज में कोई फर्क उसके बिना बताये भी आपकी जानकारी में आ सकता था ?”
“हां । आ सकता था ।”
“ऐसा कुछ नोट करने पर आप उससे उसकी वजह पूछती तो क्या वो आपको बताती ?”
“हां ।”
“लेकिन हकीकतन न आपने जुदा कुछ नोट किया, न रूबी ने बताया ?”
“हां ।”
“कभी अपनी एम्पलायर हीरा ईरानी की कोई बात करती थी वो आप से ? उसकी शख्सियत के बारे में, उसकी आदतों के बारे में, पसन्द-नापसन्द के बारे में, उसके जेरेसाया अपनी एम्पलायमेंट के बारे में ?”
“नहीं, खास कुछ नहीं । सिवाय इसके कि हीरा उससे बड़ी अच्छी तरह पेश आती थी और वो अपनी उस एम्प्लायमेंट से खुश थी ।”
“हीरा का कामकाज - मेरा मतलब है, आय का साधन - क्या बताती थी वो ?”
“यही कि वो सिल्वर मून में कैब्रे डान्सर थी ।”
“आपने कभी सवाल नहीं किया था कि एक कैब्रे डांसर आप की बहन जैसी एक्सपैन्सिव मेड कैसे अफोर्ड कर सकती थी ?”
“जब मुझे हीरा की शानोशौकत की खबर लगी थी तो किया था । तब रूबी ने बड़े संकोच से मुझे बताया था कि... कि...”
“वो काल गर्ल थी ?”
“विद कलायन्टेल लिमिटिड टु सलेक्ट फियु ।”
“आल दि सेम शी वाज ए काल गर्ल । आपकी बहन ने आपको साफ ऐसा कहा था ?”
“हां !”
“उस लिहाज से आपको रूबी की एम्पलायमेंट से एतराज नहीं था ? वो खूबसूरत थी, नौजवान थी, महत्वाकांक्षी थी, हीरा की शानो-शौकत का रोब खाती थी । वो हीरा के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश कर सकती थी ।”
“मिस्टर कोहली, इट नैवर अकर्ड तू मी । ऐसा कुछ कभी नहीं सूझा था मुझे ।”
“सूझा नहीं था या आप अपनी दिवंगत बहन का इमेज बनाये रखने के लिए अब ऐसी कोई बात जुबान पर नहीं लाना चाहती ?”
“सूझा नहीं था ।”
“खैर । रूबी ने आप से कभी किसी डायरी का, किन्ही चिट्ठियों का, किन्ही कागजात का कोई जिक्र किया था ?”
“नहीं ।”
“मतलब ये हुआ कि वो हीरा की बाबत आप से कुछ ज्यादा बात नहीं करती थी ?”
“हां ।”
“न ही आप ज्यादा सवाल करती थीं ?”
“सवाल तो कभी कभार करना पड़ ही जाता था – आखिर मैं उसकी बड़ी बहन थी – लेकिन कभी कुरेदती नहीं थी मैं उसे । इसकी एक वजह ये भी थी कि वो एक बालिग, खुदमुख्तार लड़की थी, मेरे ज्यादा कुरेदने पर वो मेरे किसी सवाल का जवाब देने से दो टूक इन्कार कर सकती थी ।”
“इसका तो ये मतलब हुआ कि आपकी सगी बहन होने के बावजूद वो आप से उतना नहीं खुली हुई थी जितना कि सगी बहनें आपस में खुली होती हैं ?”
“करैक्ट । मैंने कहा न कि वो बड़ी रिजर्व्ड नेचर की लड़की थी ।”
“अब जबकि पुलिस ने उसके फ्लैट की चाबी आपको सौंप दी है तो आपने वहां मौजूद साजोसामान का कोई जायजा तो लिया होगा ?”
“हां ।”
“क्या पाया आपने वहां ?”
“खास कुछ नहीं । पोशाकों और घरेलू समान के अलावा सिर्फ कुछ पुरानी चिट्ठियां, पुराने बिलों की कापियां, बैंक की चेक बुक, पास बुक वगैरह....”
“बैंक में काफी रकम थी ?”
“न । सात आठ हजार रुपए थे बस ।”
“हैरानी की बात नहीं ये ?”
“वो क्या है, मिस्टर कोहली, दरअसल अपनी मालकिन की देखादेखी उसने खुद अपना रहन-सहन भी बहुत खर्चीला बना लिया हुआ था । ड्रेसेज पर, ज्वेलरी पर, आउटिंग्स पर वो बहुत ज्यादा खर्चा कर देती थी । फिर गोवा में हमारे पेरेंट्स को भी वह गाहे-बगाहे पैसा भेजती रहती थी । इसलिए वो ज्यादा कुछ बचा नहीं पाती थी ।”
“कोई बॉय फ्रेंड ?”
“स्टेडी कोई नहीं । तफरीहन कभी-कभार वो किसी पसंद के लड़के के साथ डेट पर चली जाती थी । लेकिन स्टेडी कोई नहीं था । वो खुद कहती थी कि उसे किसी से मुहब्बत नहीं हुई थी ।”
“यानि कि सिवाय आपके उसका खास करीबी कोई नहीं था ?”
“यही समझ लीजिये ।”
“कोई ऐसी बात जो आपने पुलिस को बताई हो लेकिन मुझे न बतायी हो ?”
“ऐसी कोई बात नहीं । कम से कम अब ऐसी कोई बात नहीं ।”
“आपके ख्याल से रूबी का कत्ल क्यों हुआ ? कोई वजह सूझती है आपको ?”
“नहीं । आप बताइये ।”
“मेरे ख्याल से तो ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि आपकी बहन हीरा की कुछ ज्यादा ही राजदां बन गयी थी । वो या तो हीरा के निजी कागजात चुपचाप पढ़ती रहती थी या कातिल समझता था कि वो ऐसा करती थी । लिहाजा जिस वजह से हीरा का कत्ल हुआ, ऐन उसी वजह से रूबी का कत्ल हुआ ।
“मुंह बंद करने के लिए ?”
“हां । अब हमें ये मालूम हो जाये कि उन दोनों के मुंह खोलने का फौरी खतरा किस को था तो कातिल की शिनाख्त हो सकती है । इसी वजह से मैं आपसे पूछ रहा था कि क्या आपकी बहन ने कभी आपको ऐसा इशारा किया था कि वो हीरा की कोई जाती पोल-पट्टी जानती थी ! या हीरा का करीबी कौन सा शख्स था जिसे अपना कोई पर्दाफाश हो जाने की दहशत थी ।”
उसने तत्काल जवाब न दिया । मैंने उसे न कुरेदा । उसकी सूरत से दिखाई दे रहा था कि अपने दिमाग पर बहुत गहरा जोर देकर वो कुछ याद करने की कोशिश कर रही थी ।
“मिस्टर कोहली । “ – आखिरकार वो बोली – “इस शख्स का नाम तो उसने मेरे सामने कभी नहीं लिया था लेकिन एक बात आपकी सच है वो हीरा के कागज तो पढ़ती थी ।”
“ऐसा कैसे कह सकती हैं आप ?”
“एक बार जब मैंने उससे सवाल किया था कि हीरा उसे इतनी मोटी तनख्वाह क्यों देती थे और तनख्वाह के अलावा भी उसे इतनी अतिरिक्त सुख-सुविधाएं फ्री क्यों मुहैया कराती थी तो उसने बड़े अभिमान के साथ कहां था कि अच्छा ही था कि करती थी वर्ना ऐसे काम कराये भी जा सकते थे ।”
“ऐसा उसने कहा था ?”
“हां ।”
“आपने पूछा नहीं था कि कराये कैसे जा सकते थे ऐसे काम ?”
“पूछा था लेकिन उसने जवाब को टाल दिया था ।”
“ये तो साफ ब्लैकमेल की तरफ इशारा हुआ । यानि कि हीरा स्वेच्छा से उसकी खास खिदमत न करती रहती तो वो ऐसा जबरन करवा लेती ।”
“तब तो मैंने इस बाबत नहीं सोचा था लेकिन मौजूदा हालात से तो ये ही लगता है कि ऐसा ही कुछ इरादा था ।”
“हैरानी है ।”
वो खामोश रही ।
“ब्लैकमेल एक गंभीर अपराध है ।”
“जरूरी नहीं”- वो जल्दी से बोली – “कि उसका ऐसा इरादा रहा हो ।”
“ऐसा आप इसलिए कह रही हैं क्योंकि अपनी दिवंगत बहन की हिमायत करना, उसके चरित्र पर कोई लांछन आने से रोकना आप अपना इखलाकी फर्ज मानती हैं ।”
वो फिर खामोश हो गयी ।
“रूबी का ब्लैकमेल का इरादा भले ही न रहा हो लेकिन हीरा के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए जो हथियार अनायास ही उसके हाथ लग गया था, उसकी ताकत वो बखूबी पहचानती थी ।” – मैं एक क्षण को ठिठका और फिर बोला – “इस वक्त हीरा और रूबी इस दुनिया में नहीं हैं – भगवान दोनों को जन्नतनशीन करे – लेकिन अगर रूबी मर गयी होती और हीरा जिंदा होती तो सारी कहानी कुछ और ही होती ।”
निक्सी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“अब जरा उस चिट्ठी पर आइये” – मैं बोला – “जो अपनी मौत से पहले रूबी ने आपको लिखी थी और जो आपको आगरे में मिली थी । मैडम, क्या उसमें वाकई खास कोई बात नहीं थी ? वाकई ऐसा कोई इशारा नहीं था कि रूबी को अपने सिर पर जान का खतरा मंडराता दिखाई दे रहा था ? वाकई किसी ऐसे शख्स का नहीं था जो कि उस खतरे की वजह हो सकता था ?”
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं था उसमें । सिवाय इसके कि उसमें उसकी एम्प्लायर के कत्ल का जिक्र था, उसमें कोई खास बात नहीं थी ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“फिर भी पुलिस ने आपको उस चिट्ठी का जिक्र किसी से करने से माना किया ? चिट्ठी भी कब्जा ली ?”
“किया तो ऐसा ही उन्होने ।”
“चिट्ठी अभी भी पुलिस के पास है ?”
“हां ।”
“आप मांगिए वापिस ।”
“मांगने से दे देंगे वो ?”
“अगर चिट्ठी वाकई मामूली है तो दे ही देनी चाहिए । फिर भी न दें तो फोटोकोपी मांगिएगा । बल्कि ये कहिएगा कि वो फोटो कापी रखें और चिट्ठी आपको दें । कहिएगा कि वो आपकी दिवंगत बहन की आपको लिखी आखिरी चिट्ठी है इसलिए आपको उस चिट्ठी से सेंटीमेंटल अटेचमेंट है ।”
“ठीक है । मैं कल कोशिश करूंगी ।”
“चिट्ठी या फोटोकापी दोनों में से कोई भी चीज आपको हासिल हो जाये तो मुझे फौरन खबर कीजिएगा । न जाने क्यों मेरा दिल गवाही देता है कि उस चिट्ठी में कोई न कोई ऐसी बात जरूर छुपी हुई है जो कि कातिल कि तरफ उंगली ...”
तभी एकाएक फोन की घंटी बजने लगी ।
मैं तत्काल खामोश हो गया, मैंने हड्बड़ाकर वाल क्लाक पर निगाह डाली और फिर बैडरूम में जाकर फोन रिसीव किया ।
“कोहली !” – आवाज आई ।
“हां” – मैं सशंक स्वर में बोला – कौन ?”
“जो कहा जाये उसे गौर से सुन क्योंकि कोई बात दोहराई नहीं जाएगी । अभी अपनी कार पर सवार होकर खेलगांव के पिछवाड़े में जो जंगल है, उसके रास्ते पर पहुंच जहां चौबुर्जे के करीब तुझे एक नीली कौंटेसा दिखाई देगी । बाकी बातें फिर होंगी । अगर अपनी सैक्रेट्री को जिंदा देखना चाहता है तो डायरी लेकर जहां कहा है वहां फौरन पहुंच ।”
संबंध-विच्छेद हो गया ।
मेरे छक्के छूट गए ।
ऐन वही हुआ था जिसके बारे में ए सी पी तलवार ने भी इशारा दिया था और जिसका मुझे भी अंदेशा था ।
मैंने रिसीवर क्रेडल पर फटका और लगभग दौड़ता हुआ ड्राइंगरूम में पहुंचा ।
“मैडम” - मैं बदहवास भाव से बोला - “मुझे अफसोस है कि आपको फौरन यहां से रुखसत होना पड़ेगा । एक इमरजेंसी आ गयी है जिस वजह से मुझे फौरन कहीं पहुंचना है । सो मैडम, प्लीज ...”
उसने अपना गिलास खाली किया और सहमति में सिर हिलाती हुई उठ खड़ी हुई । तब इससे पहले कि वो औपचारिकतावश कुछ बोलती, मैंने उसको बांह से पकड़ा और जबरदस्ती फ्लैट से बाहर छोड़ के आया ।
“सॉरी । सॉरी ।” - मैं हांफता हुआ बोला – “बातरतीब माफी फिर मांगूंगा । कल । कल ।”
मैंने उसके पीछे दरवाजा बंद कर लिया ।
अस्थाना का दूसरा वार इतनी जल्दी होगा, इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी – इस तरीके से होगा, इसकी तो कतई उम्मीद नहीं थी ।
मैंने अपनी राइटिंग टेबल में से एक पुरानी डायरी बरामद की जिसमें कि मैं अपने संतुष्ट क्लायंट्स की केस हिस्ट्री लिखा करता था । मैंने उस डायरी को एक मजबूत लिफाफे में बंद किया और लिफाफे का मुंह सेलोटेप चिपका कर अच्छी तरह से बंद कर दिया ।
फ्लैट को ताला लगाकर उस लिफाफे के साथ मैं नीचे पहुंचा, अपनी कार में सवार हुआ और मैंने कार को निर्देशित स्थान की ओर दौड़ाया ।
रास्ते में मैं इस बाबत बहुत चौकन्ना था कि कोई मेरा पीछा कर रहा था या नहीं, लेकिन सुनसान रास्तों पर मुझे अपने पीछे कोई न दिखाई दिया । अस्थाना का कोई दादा तो मेरे पीछे था ही नहीं, तलवार के पुलिसिये भी वाकई छुट्टी कर गए हुए था ।
मैं खेलगांव के पिछवाड़े के जंगल के दहाने पर पहुंचा । मैं कुछ क्षण कोई आहट लेने की कोशिश करता रहा लेकिन मुझे कोई आहट न मिली । मैंने कार को फिर गियर में डाला और उसे धीरे से आगे बढ़ाया । थोड़ा आगे आने पर मैंने सीधे चौबुर्जे के रास्ते पर जाने के स्थान पर कार को दायें मोड़ दिया । आगे घने पेड़ों की छांव में मैंने उसे रोका और पीछे डिकी में पड़े टायर ट्यूब में से अस्थाना वाली रिवाल्वर बरामद की । मैंने रिवाल्वर वाला हाथ अपने कोट की जेब में डाल लिया और गाड़ी वहीं छोड़ कर दबे पांव वापिस लौटा ।
राहदारी पर चलने के स्थान पर पेड़ों के झुरमुट से होता हुआ मैं आगे चौबुर्जे की दिशा में बढ़ा । रास्ते में रिवाल्वर निकाल कर मैंने अपने हाथ में ले ली ।
थोड़ी देर बाद चांद की रोशनी में मुझे आगे चौबुर्जा दिखाई देने लगा ।
फिर उसके करीब खड़ी कोंटेसा भी मुझे दिखाई दी । उसके सब शीशे उठे हुए थे और बत्तियां बुझी हुई थीं । शीशे काले थे इसलिए इस बात का कतई आभास नहीं मिल रहा था कि भीतर कोई था या नहीं ।
चौबुर्जा एक खुले मैदान में था इसलिए कार तक पहुंचने के लिए पेड़ों की ओट छोड़ना जरूरी था जो कि खतरनाक काम साबित हो सकता था । मुझे फोन करने वाला मेरे वहां तक कार पर पहुंचने की अपेक्षा कर रहा था, वो मुझे पैदल कार की ओर बढ़ता पाता तो मुझे पहचाने बिना भी आशंकित हो उठता । फिर या तो वो मेरे पर आक्रमण कर देता या कार वहां से भागकर के ले जाता ।
मैं चुपचाप कार के करीब पहुंचने की कोई तरकीब सोचने लगा ।
तभी मैंने अपनी गर्दन पर ठंडे लोहे का स्पर्श महसूस किया और फिर कोई मेरे कान में बोला – “हिलना नहीं ।”
मेरे सारे शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी । वो मेरे से भी होशियार निकला था जो यूं प्रेत की तरह मेरे सिर पर पहुंच गया था ।”
“कंधे पर से रिवाल्वर मुझे पकड़ा ।” – आदेश मिला ।
तब वो आवाज मैंने साफ पहचानी ।
वो पिछली रात वाले खलीफा रघुवीर कि आवाज थी ।
मेरे वाली रिवाल्वर उसके हाथ में पहुंच गयी तो मैं उसकी तरफ घूमा ।
वो रघुवीर ही था ।
“फोन पर तो” – मैं बोला – “मैंने तेरी आवाज न पहचानी, रघुवीर खलीफा ।”
“होशियारी दिखाने से बाज नहीं आया न ?” – वो दांत पीसता हुआ बोला ।
“काम तो न आई होशियारी ।”
“डायरी कहां है ?”
“अकेला दिखाई दे रहा है । कटलरी कहां है ?”
“डायरी – कहां – है ?”
“मेरे पास है ।”
“निकाल ।”
“ऐसे कैसे निकालूं ? पहले बता मेरी सैक्रेट्री कहां है ?”
“तू डायरी दिखा मेरे को । मैं तुझे तेरी सैक्रेट्री दिखाता हूं ।”
मैंने जेब से डायरी वाला लिफाफा निकाल कर उसे दिखाया ।
“कार की तरफ चल ।”
मैंने आदेश का पालन किया ।
हम दोनों कार के करीब पहुंचे तो उसने कार का पिछला दरवाजा खोल कर मुझे भीतर झांकने का अवसर दिया ।
भीतर पिछली सीट पर मुझे रजनी की परछाई सी दिखाई दी । उसके हाथ उसकी पीठ पीछे बंधे हुए थे और मुंह पर रुमाल बंधा हुआ था । उसने आतंकित भाव से मेरी तरफ देखा ।
तभी रघुवीर ने पांव की ठोकर से दरवाजा बंद कर दिया ।
“हो गयी तसल्ली !” – वो बोला ।
“तेरा बाप कहां है ?” – मैं बोला ।
“बकवास बंद ।”
“अस्थाना का खास ही आदमी मालूम होता है तू जो ...”
“कार में बैठ । स्टियरिंग के पीछे ।”
“क्यों ?”
“यूं ही जुबानदराजी करता रहेगा तो मैं अभी तेरी आंखों के सामने तेरी छोकरी को शूट कर दूंगा ।”
मैं तत्काल कार का दरवाजा खोलकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ।
कार का सामने से घेरा काट कर वो पारली तरफ पहुंचा और मेरे पहलू में पैसेंजर सीट पर आ बैठा ।
तब कार की चाबी उसने मुझे दी ।
“चल ।”
“किधर ?” – मैं इग्नीशन में चाबी लगता हुआ बोला ।
“अभी तो जंगल से बाहर निकल । आगे बताता हूं ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
“और” - वो अपनी रिवाल्वर की नाल मेरी पसलियों में चुभोता हुआ बोला - “कोई होशियारी दिखाने की कोशिश न करना । तेरी एक होशियारी मैंने माफ कर दी है, दूसरी नहीं करूंगा ।”
“खलीफा । तेरे जोड़ीदार तेरे साथ क्यों नहीं हैं ?”
“बकवास न कर । गाड़ी चला ।”
मैंने गाड़ी को होले से गियर में डाल कर आगे बढ़ाया ।
तभी एकाएक मेरे जेहन में जैसे बिजली सी कौंधी ।
तत्काल मेरी समझ में आने लगा कि रघुवीर अकेला क्यों था ।
अस्थाना का रघुवीर की उस करतूत से कुछ लेना-देना नहीं था । उसे तो शायद खबर भी नहीं थी कि उसने मेरे खिलाफ रजनी को हथियार बनाया था । अगवा रघुवीर का खुद का आइडिया था और इस संदर्भ में वो जो कुछ भी कर रहा था, अपनी जिम्मेदारी पर अपने फायदे के लिए कर रहा था ।
यानि कि अस्थाना ने जिसे अपना राजदां बनाया था, वही उसे धोखा देने पर आमादा था ।
“तू गलती कर रहा है, खलीफा ।” – मैं बोला – “ब्लैकमेल तेरे काबू में आने वाला खेल नहीं । डायरी को काबू में कर भी लेगा तो अस्थाना को काबू नहीं कर सकेगा । वो तेरे जैसे छत्तीस खलीफाओं पर भारी पड़ने वाला महाखलीफा है । तेरी कोई बिसात नहीं उसके आगे ।”
“क्या बक रहा है !” – वो मुंह बिगाड़ कर बोला – “मुझे तेरी कोई बात नहीं समझ में आ रही है । तू जो जुबानदराजी करना, बॉस से करना ।”
“किसे उल्लू बना रहा है । खलीफा, इस घड़ी तू ही बॉस है । इस घड़ी जो कुछ भी तू कर रहा है, किसी और के लिए नहीं, खुद अपने लिए कर रहा है ।”
“गाड़ी चला, गाड़ी ।”
“वो तो मैं चला ही रहा हूं । देख, अक्ल की बात सुन । डायरी तो मैं तुझे दे ही दूंगा लेकिन तेरे अकेले से कुछ नहीं होने वाला । तुझे ऐसे कामों का कोई तजुर्बा नहीं लेकिन मुझे है । एक और एक ग्यारह होते हैं, खलीफा । हम दोनों मिल के काम करें तो हम अस्थाना की दुक्की पीट देंगे । और फिर तेरी निगाह में एक अस्थाना ही है जब कि मेरी निगाह में अस्थाना जैसे कई हैं ।”
“मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा, भई । तूने जो कहना है अस्थाना को कहना ।”
“तू मुझे अस्थाना के पास ले जा रहा है ?”
“यही समझ ले ।”
“समझ लेने से सब कुछ थोड़े ही हो जाता है । उस ऊपर वाले की भी तो मर्जी होती है जो कि सब से ऊपर होती है । अभी स्टियरिंग के पीछे बैठे-बैठे तेरा हार्टफेल हो जाये तो तू मुझे क्या ले जाएगा अस्थाना के सामने । अभी” - मेरी निगाह रियरव्यू मिरर में से रजनी से मिली - “कार के आगे से बिल्ली रास्ता काट जाये, मुझे एकाएक ब्रेक लगानी पड़ जाये तो हम दोनों विंडस्क्रीन तोड़ते हुए कार से बाहर जाकर गिरेंगे ।”
मैंने रियरव्यू मिरर में से देखा कि पिछली सीट पर लुड़की पड़ी रजनी एकाएक सीधी हुई थी और संभल कर बैठ गयी थी ।
“पता नहीं क्या बक रहा है तू ।” - वो फिर मेरी पसलियों में रिवाल्वर की नाल चुभोता हुआ बोला – “तुझे कथा करने का शौक है तो कर ले लेकिन गाड़ी ध्यान से चला । कोई बेजा हरकत की तो गोली ।”
तभी मुझे आगे सड़क पर एक ट्रक दिखाई दिया ।
“अब मुझे क्या पता तुझे मेरी कौन सी हरकत बेजा लगेगी ।”
वो खामोश रहा ।
“आगे ट्रक है, खलीफा । इसके पीछे ही लगा रहूं या इसे ओवेरटेक करूं ?”
“ओवेरटेक कर ।”
मैंने कार की रफ्तार बढाई । ट्रक को ओवेरटेक करने की कोशिश में कार सत्तर की स्पीड पर पहुंच गयी । मैंने एक्सिलेटर पर दबाव फिर भी बनाए रखा ।
अब आगे सड़क खाली थी और ट्रक बहुत पीछे रह गया था । अब रिवाल्वर की नाल भी मेरी पसलियों में नहीं चुभ रही थी ।
आगे मुझे बाबाएं मुड़ती एक पतली सी सड़क दिखाई दी ।
मैंने रियरव्यू मिरर में से आंखों-आंखों में रजनी को इशारा किया ।
रजनी का सिर सहमति में हिला ।
पतली सड़क के करीब पहुंचते ही मैं कार को एकाएक इतनी तेजी से उस पर मोड़ा कि कार के दायीं ओर के दोनों पहिये उठ गए । फिर मैं पूरी शक्ति से कार को ब्रेक लगाई और अपना जिस्म ड्राइविंग सीट की पीठ और पंजों के बीच अकडा लिया ।
कार एक बिजली के खंबे से टकराई, उसकी विंडस्क्रीन चूर-चूर हो गयी, रघुवीर के कंधों के बीच रजनी ने किसी मेंढ़े की तरह सिर झुका कर वार किया, रघुवीर का शरीर गेंद की तरह मेरे पहलू से उछला और चटकी हुई विंडस्क्रीन को तोड़ता हुआ सिर के बल उसके आर-पार निकल गया ।
“शाबाश ।” – मैं हर्षनाद किया ।
गाड़ी रुकी ।
तब सबसे पहले मैंने रघुवीर के हाथ से छिटककर नीचे जा गिरी रिवाल्वर उठाई और उसकी जेब से निकालकर अस्थाना वाली कोल्ट रिवाल्वर को अपने काबू में किया ।
फिर मैंने रजनी को बंधनमुक्त किया ।
“तू ठीक है न ?” – मैं बोला ।
“हां ।” – वो हांफती हुई बोली – “आप ?”
“मैं भी ठीक हूं । रजनी, तूने तो कमाल कर दिया । बहुत ही पर्फेक्ट टाइमिंग से कमीने को टक्कर मारी ।”
वो खामोश रही । फिर वो रक्त संचार व्यवस्थित करने के लिए अपने हाथ पांव मसलने लगी ।
मैंने आधे गाड़ी के भीतर आधे टूटे शीशे के पार बोनट पर पड़े रघुवीर के अचेत शरीर को वापिस गाड़ी के भीतर पहुंचाया ।
“मर गया ?” – रजनी व्यग्र भाव से बोली ।
“नहीं ।” – मैं बोला – “बेहोश है । ज्यादा जख्मी नहीं है । जल्दी होश में आ जाएगा । तू चलने की तैयारी कर । इसके होश में आने से पहले हमें पुलिस में रिपोर्ट करनी होगी ।”
“पुलिस ! पुलिस !” – वो घबरा कर बोली – “किस बात की ?”
“तेरे अगवा की और किस बात की ?”
“नहीं, नहीं । ऐसा मत करना ।”
“क्यों ?”
“बोला न नहीं । मुझे कुछ हुआ थोड़े ही है ? पुलिस में रिपोर्ट से मेरी बहुत बदनामी होगी । मेरी मां को इस बात की खबर लगी तो उसका तो हार्टफेल ही हो जाएगा । नहीं, नहीं । कोई रिपोर्ट-विपोर्ट नहीं करनी ।”
“यूं तो इस कमीने को इसकी करतूत की सजा नहीं मिलेगी ।”
“आप समझते क्यों नहीं । इसकी सजा मेरी सजा बन जाएगी ।”
“अच्छी बात है ।”
“आप अब मुझे जल्दी से घर पहुंचाइए ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया, फिर मैंने उसकी रिवाल्वर में से - जो कि कोई लोकल माल मालूम होता था - गोलियां निकाल कर परे झाड़ियों में उछाल दी और रिवाल्वर पर से फिंगरप्रिंट को पोंछ कर उसे कार के भीतर डाल दिया ।
मेरी कार तक पहुंचने के लिए हमें पैदल चलना पड़ा ।
इतनी रात गए उजाड़ सड़कों पर चलते हम किसी नयी वारदात के शिकार न भी होते तो गश्ती पुलिस की गिरफ्त में आ सकते थे जोकि मेरे पास मौजूद कोल्ट रिवाल्वर की वजह से ठीक न होता । लेकिन सौभाग्यवश हम निर्विध्न मेरी कार तक पहुंच गए ।
वहां उस घड़ी मुकम्मल सन्नाटा था । दूर-दूर तक कहीं परिंदा भी पर नहीं मार रहा था ।
एक काम जो अस्थाना के ऑफिस से रिवाल्वर की बरामदी के बाद से ही मेरे जेहन में था, उसको अंजाम देने के लिए वो बड़ा मुफीद मौका था ।
मैंने अस्थाना वाली कोल्ट रिवाल्वर में से एक गोली एक पेड़ के तने में दागी और फिर वो गोली मैंने एक पेचकस की सहायता से तने में से खोद निकाली ।
रिवाल्वर को मैंने वापिस डिकी में पड़े टायर ट्यूब में दफन कर दिया ।
रजनी अपलक सब कुछ देखती रही लेकिन उसने उस बाबत कोई सवाल न किया ।
फिर हम कार में सवार हुए और मैंने कार को लोधी कालोनी की तरफ दौड़ा दिया ।
“देखा !” – आखिरकार मैं बोला – “वही हुआ जिसका मुझे अन्देशा था !”
“आप भी तो” – वो भुनभुनाई – “बढ़ बढ़ के भगवान से दुआ मांग रहे थे कि चोर वापिस जरूर लौटे और इस बार मेरे घर के सामान की जगह मेरे पीछे पड़े ।”
“यानी कि मेरी दुआ कबूल हुई !”
“और नहीं तो क्या ?”
“दुआ करने से दुआ कबूल हो जाती है ?”
“बिल्कुल हो जाती है ।”
“जैसे मैं ये दुआ मांगू कि रजनी शर्मा सुबह होने से पहले मिसेज सुधीर कोहली बन जाये तो कबूल हो जायेगी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि एक टाइम मे एक ही काम होता है । या दुआ कबूल होती है या सजा तजवीज होती है ।”
“क्या मतलब ?”
“आपकी दुआ मेरे लिये सजा होगी, ये क्या भगवान से छुपा हुआ है ?”
“मैं इतना गया बीता हूं ?”
“अब मैं अपनी जुबानी क्या कहूं ?”
“कह ले । कह ले । कहने से कौन-सी पुलिस पकड़ कर ले जायेगी तुझे !”
वो हंसी ।
“अब ये तो बता कि हुआ क्या था ? मैं तुझे इतना सावधान करके आया था, फिर भी तेरे घर में घुसकर वो कमीना तेरे पर काबिज होने में कैसे कामयाब हो गया ?”
“वो... वो पुलिस की वर्दी पहने था । मैं समझी थी कि पुलिस वापिस लौटी थी । इसीलिये धोखा खा गयी और उसके लिये दरवाजा खोल बैठी । कमीना बाज की तरह झपटा मेरे पर ।”
“अकेला था ?”
“हां ।”
“मुझे तो वो पुलिस की वर्दी में नहीं मिला था !”
“वो तो उसने मेरी मुश्कें कसने के बाद ही उतार दी थी । वो वर्दी अभी भी उसकी कार की पिछली सीट पर पड़ी थी ।”
“ओह !”
“वो चाहता क्या था ?”
“डायरी ही चाहता था ।”
“जो कि आपके पास थी नहीं ।”
“हां । भगवान का शुक है कि कार के साथ मेरी चाल चल गयी वर्ना कम्बख्त पता नहीं हमें कहां ले जाता ओर क्या दुर्गत करता हमारी ।”
वो खामोश रही ।
“रजनी, एक बात सच-सच बता ।” – एकाएक मैं बोला – “तेरी ये जिद क्यों थी के होटल का बिल तू चुकायेगी ?”
“छोड़िये वो किस्सा !” – वो बोली ।
“रजनी, प्लीज । तू मेरा ये सस्पैंस दूर कर । सोच-सोच के मेरा भेजा भन्नाया जा रहा है ।”
“जवाब आप को पसन्द नहीं आयेगा ।”
“तू फिर भी दे ।”
“ठीक है । सुनिये । मैंने आपको बहुत बार ये कहते सुना है कि खाने-पीने में बहनजियों पर खर्च हुए पैसे को आप कभी पैसे की बरबादी नहीं मानते क्योंकि सब कुछ बमय ब्याज वसूल हो जाता है । मैं नहीं चाहती थी कि पहले आप खाने-पीने का बिल चुकाते और फिर इसकी वसूली की जुगत भिड़ाने लगते ।”
“तौबा !”
“आपकी जानकारी के लिये मेरे दिल का रास्ता मेरे पेट से होकर नहीं गुजरता ।”
“बड़ी गहरी मार कर रही है, रजनी ।”
“मैंने पहले ही कहा था कि मेरा जवाब आपको पसन्द नहीं आयेगा ।”
“गोया आज ये मसल मेरे पर ही सच हो गयी कि बद भला बदनाम बुरा !”
उसने उत्तर न दिया ।
मैंने कार को लोधी कालोनी ले जाकर उसके घर के सामने रोका ।
“अब क्या इरादा है ?” – मैं बोला – “इस बार फौजी वर्दी का रोब खा के दरवाजा खोलेगी ?”
“आप क्यों डरा रहे हैं मुझे ?” – वो बोली ।
“मैं तुझे डरा नहीं रहा, मैं ये कहने की कोशिश कर रहा हूं कि कम से कम आज की रात तेरा अकेले रहना ठीक नहीं । अब या तो मुझे अपने घर में रहने दे या मेरे घर पर चल ।”
“आप...आप यहीं ठहर जाइये ।”
“ये की न अक्ल की बात !”
“लेकिन मर्यादा से ।”
“डाल दी न खीर में मक्खी !”
“आइये ।”
मैं खामोशी से उसके साथ हो लिया ।
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