मोना चौधरी वापस कार में आ बैठी। चेहरे पर गम्भीरता थी।
“आंटी! सीमा आंटी ने बताया मम्मी कहां होगी? कौन ले गया उन्हें?”
“अंशुल!” मोना चौधरी सोचों में थी- “तुम्हारी आंटी मिली नहीं...।”
“आंटी घर पर नहीं थी?”
“नहीं।”
“तो आपको इतनी देर कहां लग गई?” अंशुल ने मोना चौधरी को देखा।
“तुम्हारी आंटी का इंतजार कर रही थी कि शायद वो आ जाये।” मोना चौधरी ने अंशुल को बताना ठीक नहीं समझा कि सीमा को कोई उठाकर ले गये हैं। इससे वो डर भी सकता था।
मोना चौधरी ने कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी।
“अब हम कहां जा रहे हैं आंटी?”
“तुम्हारी रंजना आंटी के यहां...।” मोना चौधरी ने उसके चेहरे पर निगाह मारी।
“रंजना आंटी? आप जानती हैं रंजना आंटी को?”
“थोड़ा-बहुत। तुमने रंजना आंटी के बारे में पहले क्यों नहीं बताया?”
“ध्यान नहीं रहा। रंजना आंटी तो बहुत कम मम्मी के पास आती थी। इसलिये भूल गया।”
“तुम रंजना आंटी के घर गये हुए हो?”
“एक बार गया था। बहुत दिन हो गये। उनके घर का रास्ता मुझे नहीं आता।” अंशुल ने इंकार में सिर हिलाया।
“मेरे पास उसके घर का पता है।”
“तो क्या मम्मी वहां होगी? रंजना आंटी के घर?”
“मालूम नहीं। वहां जाकर देखते हैं।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।
शाम के साढ़े चार बजने जा रहे थे।
मोना चौधरी का मस्तिष्क दीपा और सीमा के अपहरण में उलझा हुआ था।
“अंशुल! जो तुम्हारी मम्मी को उठा ले गया, वो अकेला था या दो आदमी थे?” मोना चौधरी ने पूछा।
“वो अकेला था। आंटी...।”
यानी कि सीमा और दीपा को उठाने वाले अलग-अलग लोग थे, परन्तु ये महज संयोग नहीं हो सकता कि एक ही दिन दो सहेलियों को अलग-अलग जगह से कोई उठा ले। कोई वजह थी उन दोनों के अपहरण के पीछे। रंजना ने माना भी था कि शायद वो जानती है कि दीपा और सीमा को क्यों उठाया गया? किसने उठाया है? इस बारे में भी उसे थोड़ी-बहुत खबर होगी।
एक और अजीब-सी बात थी कि कुछ साल पहले अंशुल का पिता कहीं गायब हो गया। दीपा के ढूंढने पर भी नहीं मिला और वो वापस भी नहीं लौटा!
मोना चौधरी सारे हालातों पर गौर कर रही थी लेकिन हालातों की जानकारी न होने के कारण ठीक से सब बातों को सोच-समझ नहीं पा रही थी। रंजना से मिलकर ही कुछ पता लगेगा।
“अंशुल!”
“हां आंटी...।”
“तुम्हारे पापा क्या करते थे?”
“ये तो मुझे नहीं मालूम। लेकिन आंटी, वो कुछ काम अवश्य करते थे। जब पापा गुम हो गये तो फिर मम्मी ने नौकरी करनी शुरू की थी। पहले मम्मी नौकरी नहीं करती थी।” अंशुल ने भोलेपन से कहा।
“घर में तुम्हारी मम्मी से कौन-कौन मिलने आता था?”
“कोई नहीं।” अंशुल ने सिर हिलाया- “सीमा आंटी आती थी और बहुत कम रंजना आंटी...।”
“कोई आदमी मिलने आता था?”
“नहीं आंटी। कभी नहीं...।”
“तुम्हारे कोई रिश्तेदार...?”
“मम्मी बताती है कि हमारे रिश्तेदार तो बहुत हैं। लेकिन मम्मी-पापा ने घरवालों की मर्जी के बिना शादी की तो सबने मम्मी-पापा से बोलना बंद कर दिया।” अंशुल के स्वर में अफसोस के भाव आ गये।
मोना चौधरी सिर हिलाकर रह गई।
☐☐☐
रंजना की उम्र दीपा और सीमा के लगभग बराबर ही थी। वो शादीशुदा थी। इस वक्त उसका पति काम पर गया हुआ था। उसका घर भी अच्छा था। जरूरत की हर चीज वहां थी। उसकी सासू मां भी उनके साथ ही रहती थी। रंजना के दोनों बच्चे उस वक्त खेल रहे थे और टी.वी. देख रहे थे।
अंशुल के साथ होने की वजह से वो मोना चौधरी को फौरन पहचान गई। उसने अंशुल को प्यार किया। अंशुल उसके दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा। सासू मां से रंजना ने, मोना चौधरी का परिचय अपनी पुरानी सहेली कहकर कराया और मोना चौधरी को अपने बेडरूम में ले गई।
रंजना गम्भीर और चिन्तित लग रही थी।
“दीपा और सीमा के बीच में मोना चौधरी का नाम पहली बार सुन रही हूं। तुम्हारा जिक्र मेरे सामने कभी नहीं हुआ।” रंजना ने शांत स्वर में कहा। उसका चेहरा बता रहा था कि वो कहीं और सोच रही है।
“लेकिन मेरे सामने तुम्हारा जिक्र कई बार हुआ है।” मोना चौधरी ने जानबूझकर झूठ बोला कि उन दोनों के अपहरण के बारे में वो जो भी जानती हो, सच बता दे, ताकि अंशुल की मां को तलाशने में आसानी हो।
रंजना किसी सोच में डूब गई।
“मुझे बताओ रंजना!” मोना चौधरी ने कहा- “दीपा और सीमा का अपहरण क्यों हुआ? किसने किया?”
रंजना की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी।
“तुम्हें नहीं मालूम...?”
“नहीं। मैं तो खुद परेशान हूं कि ये सब क्या हो रहा है।”
मोना चौधरी ने कहा- “लेकिन एक बात बार-बार मेरे जेहन में आ रही है कि दोनों के अपहरण का कारण एक ही है। वरना एक ही दिन में दोनों का अपहरण नहीं होता। दोनों अपहरण करने वालों के पास रिवॉल्वरें थी।”
“तुम्हें कैसे मालूम कि दीपा का अपहरण करने वालों के पास रिवॉल्वरें थी? वो अपहरण तो तुम्हारे सामने नहीं हुआ।”
“ये बात मुझे अंशुल ने बताई थी।”
रंजना सिर हिलाकर रह गई।
“बताओ रंजना! आखिर बात क्या है?” उसे बार-बार चुप होते देखकर मोना चौधरी ने कहा।
“मैं समझ नहीं पा रही कि तुम्हें क्या बताऊं या क्या नहीं...?” रंजना उलझन में नजर आने लगी थी।
“क्या मतलब?”
“बहुत ही गुप्त बात है। यहां तक कि ये बात मेरे पति भी नहीं जानते।” उसने धीमे स्वर में कहा।
“तुम्हारे पति भी नहीं जानते!” मोना चौधरी चौंकी- “मैं समझी नहीं...!”
रंजना ने होंठ भींच लिया। मोना चौधरी को देखती रही वो।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ती चली गई।
“इसका मतलब जो भी असल बात है, उससे तुम्हारा, दीपा का और सीमा का वास्ता है सिर्फ...।”
रंजना ने हौले से सहमति से सिर हिला दिया।
“और उन दोनों का अपहरण हो गया है।” मोना चौधरी शब्दों पर जोर देकर कह उठी।
रंजना कुछ नहीं बोली।
“अगर मेरी सोच सही है तो फिर दीपा और सीमा की तरह तुम्हारा भी अपहरण हो सकता है।”
“हां...।” रंजना का स्वर कांपा...। चेहरा सफेद-सा पड़ गया- “वो लोग मुझे भी उठा ले जायेंगे।”
“कौन लोग?”
रंजना के होंठ हिले, परन्तु शब्द नहीं निकल सका।
“बोलो रंजना। खामोश क्यों हो गईं? बताओ मुझे क्या मामला है? कौन लोग हैं वो?”
“वो बहुत खतरनाक हैं। वो...वो...।” रंजना कांप कर रह गई।
“मैं सब ठीक कर दूंगी। तुम कुछ बताओ तो सही...।” मोना चौधरी ने सब्र के साथ कहा।
रंजना ने आंखें बंद कर ली।
रंजना बुदबुदा उठी- “उसने ठीक कहा था कि हमें रुक जाना चाहिये था। लेकिन हमने उसकी बात को झूठ मानकर, उसके कहे की परवाह नहीं की...।”
मोना चौधरी ने उसकी बुदबुदाहट स्पष्ट सुनी, परन्तु चुप रही कि रंजना शायद कुछ और बोले।
तभी रंजना ने आंखें खोली। वो बुझी-बुझी-सी लग रही थी।
“तुम किसकी बात कर रही थी? किसने तुम लोगों को रुकने के लिये कहा था? क्या किया तुम लोगों ने...?”
रंजना, सूनी-सूनी नजरों से उसे देखती रही, बोली कुछ नहीं।
“तुम कुछ कहती क्यों नहीं?”
“वो बहुत खतरनाक और अदम्य शक्तियों का मालिक है। कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता।”
“लेकिन वो है कौन, तुम बताओ मुझे...?”
“तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ रही।” रंजना खीझ भरे स्वर में कह उठी- “बात ही कुछ ऐसी है कि मैं बताना चाहकर भी, कुछ नहीं बता पा रही हूं। मैं...मैं...।”
“समझने की कोशिश करो रंजना। अगर तुम नहीं बताओगी तो दीपा और सीमा को कैसे बचाया जा सकेगा!”
“अब उन्हें कोई नहीं बचा सकता।” रंजना का स्वर बेजान-सा हो रहा था- “मैं भी नहीं बच सकूँगी। तुम...तुम अगर कुछ जानना चाहती हो तो अजय सिंह या प्रेम कुमार से बात कर लो।”
“अजय सिंह या प्रेम कुमार...!” मोना चौधरी ने उसे देखा- “ये कौन हैं?”
“ये हमारे दोस्त थे। अब तो न के बराबर ही मिलना होता है। तब...तब ये दोनों भी हमारे साथ थे...।”
“कब साथ थे?”
रंजना ने मोना चौधरी को देखा। आंखों में खौफ भरने लगा था।
“मुझसे कुछ मत पूछो। तुम जाओ यहां से। मुझे सबसे ज्यादा चिन्ता इस बात की हो रही है कि वो मुझे भी ले जायेंगे। उसके बाद मेरे बच्चों को कौन संभालेगा!”
मोना चौधरी कई पलों तक, सोच भरी निगाहों से उसे देखती रही। इतना तो समझ गई थी कि रंजना हद से ज्यादा घबराई हुई है। दबाव डालने का कोई फायदा नहीं होगा। ठीक से बता नहीं पायेगी।
“अजय सिंह और प्रेम कुमार का पता बता दो...।” मोना चौधरी कह उठी।
रंजना ने दोनों का पता बता दिया।
मोना चौधरी उठी तो रंजना सूखे होंठों पर जीभ फेरते कह उठी।
“मैं-मैं तुम्हें बताना चाहती हूं लेकिन उस बात को होंठों पर लाने की हिम्मत नहीं हो रही...।”
“कोई बात नहीं...।” मोना चौधरी उसके घबराहट भरे चेहरे को देखते हुए बोली- “मैं अजय सिंह या प्रेम कुमार से मालूम कर लूंगी।”
उसके बाद मोना चौधरी ने रंजना से विदा ली और अंशुल को लेकर बाहर आ गई।
मोना चौधरी के चेहरे पर गहरी सोच के भाव नाच रहे थे।
यकीनन कोई खास ही बात थी जो किसी ने दीपा और सीमा को उठा लिया। ये खबर सुनकर रंजना बहुत ज्यादा घबरा गई थी कि उसे भी, उन दोनों की तरह उठा लेंगे वो लोग।
अब ये बात तो स्पष्ट हो गई थी कि दीपा, सीमा, रंजना, अजय सिंह और प्रेम कुमार ने मिलकर ऐसा कुछ किया था जो किसी को पसन्द नहीं आया और अब बदले की कार्यवाही में, वो जो भी है, ये सब कर रहा है। रंजना के कहे मुताबिक वो खतरनाक है। ताकतों का मालिक है।
“आंटी!” अंशुल कह उठा- “पता चला मम्मी कहां है?”
“अभी मालूम नहीं हुआ।” मोना चौधरी गम्भीर थी।
“कब मालूम होगा आंटी? सुबह मैंने स्कूल भी जाना है। मुझे मम्मी तैयार नहीं करेगी तो मैं स्कूल कैसे जाऊंगा। मेरा बैग भी मम्मी ही तैयार करती है। नहीं तो मैं कॉपी घर ही भूल जाता हूं।” अंशुल ने भोलेपन से कहा।
“तुम्हारी मम्मी जल्दी ही मिल जायेगी!” इसके अलावा मोना चौधरी कहती भी क्या।
दोनों कार में बैठे। कार आगे बढ़ गई।
शाम के छः बजने जा रहे थे।
☐☐☐
चालीस मिनट बाद मोना चौधरी अजय सिंह के घर पहुंच गई। जो कि गली के भीतर था।
“अंशुल!” मोना चौधरी ने कहा- “तुम कार में बैठो, मैं अभी आती हूँ...।”
“ठीक है आंटी। मैं कार से बाहर नहीं निकलूंगा।” कहकर अंशुल ने खुद ही सिर हिला दिया।
मोना चौधरी गली में प्रवेश कर गई।
अभी दिन की रोशनी बाकी थी। अजय सिंह का मकान आसानी से मिल गया। मोना चौधरी गेट खोलकर भीतर प्रवेश कर गई और डोर बेल दबाई। भीतर बेल बजने की आवाज सुनाई दी।
मुनासिब वक्त बीत जाने पर भी दरवाजा नहीं खुला।
मोना चौधरी ने पुनः बेल बजाई।
लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
शायद घर में कोई नहीं होगा। इस सोच के साथ ही मोना चौधरी ने यूं ही दरवाजे को धकेला तो वो खुलता चला गया। मोना चौधरी की आंखें तुरन्त सिकुड़ी। सतर्क-सी मोना चौधरी ने भीतर प्रवेश किया। ये कमरा ड्राइंगरूम था। मोना चौधरी की निगाह हर तरफ घूमी, परन्तु वहां कोई भी नजर नहीं आया।
मोना चौधरी को कुछ ठीक नहीं लग रहा था।
दरवाजा खुला था। डोर बेल बजने पर भी भीतर से कोई नहीं आया। कोई तो घर में होना चाहिये।
“हैलो...!” मोना चौधरी कुछ ऊंचे स्वर में बोली- “कोई है?”
आधे मिनट के इन्तजार के बाद भी कोई जवाब न मिला।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये। सतर्क-सी वो आगे बढ़ी और ड्राइंगरूम पार करके मकान के अन्य कमरों को देखने लगी। दो ओर बेडरूम थे। एक बेडरूम के भीतर का नजारा देखते ही ठिठक गई।
बेड पर एक औरत बेहोश पड़ी हुई थी। उसके माथे पर खून लगा था। पास में दो बच्चे लेटे हुए थे।
मोना चौधरी फौरन आगे बढ़ी। पहले उसने औरत को चेक किया। उसका ख्याल ठीक था कि वो बेहोश है। बच्चे भी बेहोश थे। मालूम नहीं बच्चों को कैसे बेहोश किया गया था। मोना चौधरी ने उसके माथे के जख्म को चेक किया। वो ज्यादा गहरा नहीं था और उन्हें बेहोश हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी।
मोना चौधरी बाथरूम से पानी भर लाई और औरत के चेहरे पर छींटे मारने लगी। करीब पांच मिनट की कोशिश के पश्चात औरत को होश आने लगा। पूरी तरह होश आते ही वो उठ बैठी।
“वो कहां है?” उसके होंठों से घबराया-सा स्वर निकला।
“कौन...?”
“मेरे पति अजय सिंह...।”
“मैं अभी आई हूं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “तुम्हें और बच्चों को बेहोश देखा, तो तुम्हें होश में ले आई...।”
औरत का ध्यान फौरन अपने बच्चों की तरफ गया।
“मेरे बच्चे...।”
“फिक्र मत करो। मैं देख चुकी हूं। ये सिर्फ बेहोश हैं। कुछ देर बाद इन्हें होश आ जायेगा।”
“तुमने मेरे पति को नहीं देखा?”
“नहीं। क्या हुआ था तुम्हारे पति के साथ?”
“मैं तो अभी भी नहीं समझ पा रही हूं कि क्या हुआ था?” औरत चिन्ता में नजर आने लगी- “हम लोग घर में बैठे थे कि जाने कैसे दरवाजे खोलकर, दो आदमी घर में आ गये। वो मेरे पति को जबर्दस्ती साथ चलने को कहने लगे। उन्होंने कहीं जाने से इंकार किया तो एक ने रिवॉल्वर निकाल ली। मैं उन्हें बचाने के लिये बीच में आई तो रिवॉल्वर की चोट मेरे माथे पर मारकर, मुझे बेहोश कर दिया। उसके बाद क्या हुआ, मैं नहीं जानती। होश आया तो तुम मेरे सामने थीं। शायद वो मेरे पति को ले गये हैं।”
मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
“तुम कौन हो?” एकाएक औरत ने पूछा।
“मेरा नाम मोना चौधरी है। मुझे रंजना ने भेजा है। जानती हो रंजना को?”
“ज्यादा नहीं। एक बार मिली थी। कॉलेज में कभी वो मेरे पति के साथ पढ़ा करती थी...।” औरत के चेहरे की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी- “मेरे पति को कुछ हो न जाये। न जाने वो कौन लोग थे जो...।”
“मैं तुम्हें दो आदमियों का हुलिया बताती हूं। कहीं, तुम्हारे पति को ले जाने वाले ये ही तो नहीं थे...?” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने उन दोनों बदमाशों का हुलिया बताया जो सीमा का अपहरण करके ले गये थे।
“हां।” हुलिया सुनते ही औरत के होंठों से निकला- “यही थे, जिन्होंने मेरे पति का अपहरण किया। तुम जानती हो इन्हें...?”
“इनके बारे में मैं सिर्फ इतना ही जानती हूं कि इन्होंने आज मेरे सामने सीमा का अपहरण किया है।”
“क्या! सीमा का अपहरण हो गया। मेरे पति का भी, लेकिन...।”
एकाएक मोना चौधरी चौंकी।
“मैं तुमसे बाद में मिलूंगी।”
“लेकिन...।” उसने कहना चाहा।
“मैं बाद में आऊंगी।” कहने के साथ ही मोना चौधरी पलटी और तेजी के साथ बाहर निकलती चली गई।
अजय सिंह का अपहरण हो गया तो प्रेम कुमार भी सुरक्षित नहीं होगा। जल्दी ही उसके भी अपहरण की कोशिश की जायेगी। अब उसकी बारी हो सकती है। उसके पास पहुंचना जरूरी था।
मोना चौधरी गली के बाहर खड़ी कार में बैठी और कार तेजी से आगे बढ़ा दी।
“आंटी, मम्मी मिल गई क्या?”
“अभी नहीं...।”
“आपने तो कहा था कि जल्दी ढूंढ़ लेंगी मम्मी को। अब तो रात भी होने वाली है।”
“ढूंढ रही हूं...।” मौना चौधरी कार की रफ्तार तेज कर चुकी थी।
“आपको पता है मम्मी कहां हैं?”
“नहीं।”
“तो फिर आंटी आप कैसे ढूंढ लेंगी मम्मी को?” अंशुल मोना चौधरी का चेहरा देखने लगा।
मोना चौधरी समझ नहीं पाई कि अंशुल के सवाल का क्या जवाब दे।
“जब तुम्हारी मम्मी मिल जायेगी, तब बताऊंगी कि कैसे ढूंढा तुम्हारी मम्मी को।”
“ठीक है।” अंशुल ने सहमति से सिर हिला दिया।
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