प्रिया से मिलने से पहले कबीर की फैंटसियों ने एक लम्बा स़फर तय किया था। भारत के छोटे से शहर वड़ोदरा की कस्बाई कल्पनाओं से लेकर लंदन के महानगरीय ख़्वाबों तक। कबीर पंद्रह साल का था, जब उसके माता-पिता लंदन आए थे। पंद्रह साल की उम्र वह उम्र होती है, जब किसी बच्चे के हार्मोन्स उसकी अक्ल हाइजैक करने लगते हैं। ऐसी उम्र में उसके पूरे अस्तित्व को हाइजैक कर वड़ोदरा से उठाकर लंदन ले आया गया था। दुनिया के नक़्शे में लंदन के मुकाबले शायद वड़ोदरा के लिए कोई जगह न हो, मगर कबीर के मन के नक़्शे में सि़र्फ और सि़र्फ वड़ोदरा ही खिंचा हुआ था। वड़ोदरा के मोहल्ले, सड़कें, गली, बाग़, मैदान, सब कुछ उस ऩक्शे में गहरी छाप बनाए हुए थे, और साथ ही छाप बनाये हुई थी वड़ोदरा की ज़िन्दगी; जो लंदन की ज़िन्दगी से उतनी ही दूर थी, जितनी कि वड़ोदरा शहर की लंदन से दूरी। उस समय दुनिया वैसी ग्लोबल विलेज नहीं बनी थी, जैसी कि आज बन चुकी है। वह वक्त था, जो कि शुरूआत थी दुनिया के ग्लोबल विलेज और कबीर के ग्लोबल सिटी़जन बनने की; और जिस तरह किसी भी दूसरे मुल्क की सिटि़जनशिप लेना एक बड़े जद्दोजहद का काम होता है; कबीर के लिए ग्लोबल सिटि़जन बनना उतना ही मुश्किल भरा काम था। इस काम में उसकी मदद कर, उसकी मुश्किलें जिसने सबसे अधिक बढ़ाई थीं, वह था समीर। समीर, कबीर का ममेरा भाई है; उम्र में उससे दो साल बड़ा है, कद में एक इंच लम्बा है, और हर बड़े भाई की तरह अनुभव में ख़ुद को उसका बाप समझता है।

‘‘हे डूड, दिस इ़ज लंदन। इफ यू वांट टू सर्वाइव इन एनी टीन ग्रुप हियर, देन नेवर एक्ट लाइक ए फ्रेशी, अंडरस्टैंड?’’ कबीर के लंदन पहुँचते ही समीर ने उसे सलाह दे डाली। समीर की पैदाइश लंदन की है। समीर भले ही लंदन के नक़्शे को बहुत अच्छी तरह न जानता रहा हो, मगर वह लंदन की ज़िन्दगी को बहुत अच्छे से जानता था।

‘‘ये फ्रेशी क्या होता है?’’ उस वक्त तो अंग्रे़जी भाषा पर कबीर की पकड़ भी कम़जोर थी, उस पर वहाँ के स्लैंग; वे तो उसकी सबसे बड़ी कम़जोरी बनने वाले थे।

‘‘फ्रेशी इ़ज समवन लाइक भारत सरकार।’’ समीर ने तिरिस्कार पूर्ण भावभंगिमा बनाई।

‘‘गवर्नमेंट ऑ़फ इंडिया?’’

‘‘नो; दैट कॉर्नर शॉप ओनर डिकहेड; सेवेंटी वन में आया था ढाका से, और अभी तक बाँग्लाफ्रेशी है। सी, हाउ ही ऑलवे़ज स्मेल्स ऑ़फ फिश।’’ हालाँकि ‘फिश एंड चिप्स’ ब्रिटेन की नेशनल डिश रहा है, जिसकी जगह अब इंडियन करी ने ले ली है मगर, ‘स्मेल ऑ़फ फिश’ और ‘करी मंचर’ जैसे फ्रेज़ वहाँ देसी और फ्रेशी लोगों का म़जाक उड़ाने के लिए ही इस्तेमाल किए जाते हैं।

खैर, इस तरह कबीर का परिचय भारत सरकार से हुआ था। कबीर के घर से चार मकान दूर डेलीनीड्स की दुकान चलाने वाले बाबू मोशाय भारत सरकार।

‘‘कोबीर य्होर नेम इज एक्षीलेंट। हामारा इंडिया का बोहूत बॉरा शेंट हुआ था कोबीर।’’ कबीर के लिए ‘भारत सरकार’ का एक्सेंट समझना, लंदन के लोकल एक्सेंट को समझने से आसान नहीं था।

‘‘थैंक्स अंकल!’’ कबीर ने किसी तरह उसकी बात का अंदा़ज लगाते हुए कहा।

‘‘डोंट कॉल मी आंकेल, कॉल मी शॉरकार।’’

‘‘ओके, सरकार अंकल।’’

‘शॉरकार।’

‘‘कहाँ की सरकार है? एक्स्पायर्ड सामान बेचता है और वह भी महँगा।’’ समीर वाकई कोकोनट है। कोकोनट, यानी बाहर से ब्राउन और भीतर से वाइट। चाहे वह ख़ुद इंग्लिश की जगह हिंगलिश बोले, चाहे वह किंगफिशर बियर के साथ विंडलू चिकन गटक कर रातभर बैड विंड से परेशान रहे, या चाहे वह आलू-चाट खाते हुए देसी लड़कियों से इलू-इलू चैट करे; मगर यदि आप लोकल स्लैंग नहीं समझते हैं, लोकल एक्सेंट में बात नहीं करते हैं, तो समीर के लिए आप फ्रेशी हैं। चाहे वह ख़ुद अपने हाथों से तंदूरी चिकन की टाँग मरोड़े, मगर यदि आप खाना खाने में छुरी-काँटे का इस्तेमाल नहीं जानते हैं, तो आप फ्रेशी हैं। समीर की परिभाषा में कबीर ‘पूरी तरह फ्रेशी’ था।

वह स्कूल में कबीर का पहला दिन था। ब्रिटेन के स्कूलों में ख़ास बात यह है कि वहाँ पीठ पर भारी बस्ता लादना नहीं पड़ता; हाँ, कभी-कभी स्पोर्ट्स किट या पीई किट ले जानी होती है, मगर वह भी भारतीय बस्ते जितनी भारी नहीं होती। उस दिन कबीर की पीठ पर कोई बोझ नहीं था, मगर उसके दिमाग पर ढेर सारा बोझ था। ब्लैक शू़ज, ग्रे पतलून, वाइट शर्ट, ब्लू ब्ले़जर और रेड टाई में वैसे तो वह ख़ुद को का़फी अच्छा महसूस कर रहा था, मगर मन में एक घबराहट भी थी कि टीचर्स कैसे होंगे? साथी कैसे होंगे? स्कूल कैसा होगा? ब्रिटेन में स्कूलों में सुबह प्रार्थना नहीं होती, राष्ट्रगान नहीं गाया जाता; बस सीधे क्लासरूम में। शायद वहाँ लोग प्रार्थनाओं में यकीन नहीं रखते। ब्रिटेन में ही सबसे पहले सेकुलरिज्म शब्द ईजाद हुआ था, जिसने धर्म को सामाजिक जीवन से अलग कर व्यक्तिगत जीवन में समेटने की क़वायद शुरू की थी। वहीं पेरिस में बैठकर कार्ल माक्र्स ने धर्म को अ़फीम कहा था। अब तो ब्रिटेन में चर्च जाने वाले ईसाई गिनती के ही हैं, और उनके घरों में प्रार्थना तो शायद ही होती हो। राष्ट्रीय प्रतीकों का भी तकरीबन यही हाल है। ब्रिटेन के राष्ट्रीय-ध्वज यानी यूनियन जैक के डोरमैट और कच्छे बनते हैं।

पहला पीरियड एथिक्स का था; टीचर थीं मिसे़ज बर्डी। कबीर ने क्रो, कॉक और पीकॉक जैसे सरनेम ज़रूर सुन रखे थे, मगर बर्डी सरनेम पहली बार ही सुना था। मिसे़ज बर्डी ऊँचे कद, स्लिम फिगर और गोरे रंग की लगभग तीस साल की महिला थीं। उनकी हाइट कबीर से आधा फुट अधिक थी, और उनकी स्कर्ट की लम्बाई उसकी पतलून की लम्बाई की आधी थी। उनकी टाँगों जितनी लम्बी, खुली और गोरी टाँगें कबीर ने उसके पहले सि़र्फ फिल्मों या टीवी में ही देखी थीं। पूरे पीरियड, कबीर का ध्यान उनकी लम्बी टाँगों पर ही लगा रहा। मिसे़ज बर्डी का अंग्रे़जी एक्सेंट उसे ज़रा भी समझ नहीं आया, मगर उस पीरियड के बाद के ब्रेक में बर्डी नाम का रहस्य ज़रूर समझ आ गया।

‘‘आई एम कूल।’’ सिर पर लाल रंग की दस्तार बाँधे एक सिख लड़के ने कबीर की ओर हाथ बढ़ाया।

‘‘मी टू।’’ कबीर ने झिझकते हुए हाथ बढ़ाया।

‘‘ओह नो! माइ नेम इ़ज कूल... कुलविंदर; पीपल कॉल मी कूल।’’ कूल ने कबीर का हाथ मजबूती से थामकर हिलाया। पहली मुलाकात में ही उसने कबीर को अपने पंजाबी जोश का अहसास करा दिया।

‘‘ओह! आई एम कबीर।’’ कबीर ने कूल के हाथों से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा। संकोची सा कबीर, ऐसी गर्मजोशी का आदी नहीं था।

‘‘न्यू हियर?’’ कूल ने पूछा।

‘‘यस, फ्रॉम इंडिया।’’

‘‘बी केयरफुल मेट, नए स्टूडेंट्स को यहाँ बहुत बुली करते हैं।’’

‘‘आई नो।’’ कबीर ने ब्रिटेन के स्कूलों में नए छात्रों को बुली किए जाने के बारे में समीर से का़फी कुछ सुन रखा था।

‘‘यू नो नथिंग।’’ कूल की आँखों में शरारत थी या धमकी, कबीर कुछ ठीक से समझ नहीं पाया।

‘‘यू लाइक मिसे़ज बिरदी? नाइस लेग्स, हुह।’’ कूल ने एक बार फिर शरारत से अपनी आँखें मटकाईं।

‘‘यू मीन मिसे़ज बर्डी?’’ एथिक्स की टीचर के लिए ही इस तरह का शरारती सवाल कबीर को कुछ पसंद नहीं आया, मगर फिर उसे ध्यान आया कि पूरे पीरियड में उसका ख़ुद का ध्यान मिसे़ज बर्डी की लंबी खूबसूरत टाँगों पर ही टिका हुआ था। इस बात से उसे थोड़ी ग्लानि भी हुई, और यह शंका भी, कि कूल को भी इस बात का अहसास होगा।

‘‘नो नो, बिरदी; वो जर्मन हैं, उनकी शादी एक इंडियन से हुई है, मिस्टर बिदरी से।’’

‘‘ओह, फिर सब उनको मिसे़ज बर्डी क्यों कहते हैं?’’

‘‘हाउ इ़ज बिरदी स्पेल्ड? बी आई आर डी आई, बर्डी; गॉट इट?’’

‘‘ओह! ओके।’’ कबीर ने मुस्कुराकर सिर हिलाया।

दो पीरियड बाद लंच का समय हुआ। कबीर, कूल के साथ अपना लंच बॉक्स लिए लंच रूम पहुँचा।

‘‘आर यू सैंडविच?’’ डिनरलेडी ने कबीर के हाथ में लंच बॉक्स देखकर पूछा।

‘सैंडविच? आई ऍम ए बॉय, नॉट सैंडविच।’ कबीर ने ख़ुद से कहा।

‘‘कबीर, कम दिस साइड।’’ कूल ने उसे बुलाया, ‘‘जो स्टूडेंट्स घर से लंच बॉक्स लेकर आते हैं, उन्हें यहाँ सैंडविच कहते हैं; और जो स्कूल में बना खाना खाते हैं, उन्हें डिनर।’’

अजीब लोग हैं ये अंग्रे़ज भी; ज़रूर बोलने में इन लोगों की ज़ुबान दुखती होगी, तभी तो कम से कम शब्दों में काम चलाते हैं।

कूल ने अपना लंच बॉक्स खोला। उसमें ब्राउन ब्रेड का बना ची़ज एंड टोमेटो सैंडविच था, साथ में एक केला और सेब। हाउ बोरिंग! कबीर ने सोचा। क्या कूल हर रो़ज यही खाता है? इस देश में लोगों को खाने का शऊर नहीं है। मगर कूल तो इंडियन है, वह क्यों यह बोरिंग खाना खाता है। कबीर ने अपना लंच बॉक्स खोला। अहा! बटाटा वड़ा, थेपला और आम का अचार... इसे कहते हैं खाना। कबीर को अपनी माँ पर फ़ख्र महसूस हुआ। कितना टेस्टी खाना बनाती है माँ; और एक कूल की माँ... क्या उसे पराठा या पूड़ी बनाना भी नहीं आता।

‘‘स्मेल्स सो नाइस, व्हाट इ़ज इट?’’ पास बैठे एक गोरे अंग्रे़ज लड़के हैरी ने पूछा।

‘‘बटाटा वड़ा।’’ कबीर ने गर्व से कहा।

‘‘वाओ! बटाटा वरा। कबीर इ़ज नॉट सैंडविच, ही इ़ज बटाटा वरा।’’ हैरी ने हँसते हुए कहा। अंग्रे़ज होने के नाते वह ‘ड़’ का उच्चारण ‘र’ करता था।

‘‘नो नॉट बटाटा वरा, बटाटा वड़ा।’’ कूल ने वड़ा पर ज़ोर देकर कहा। उसके बटाटा वड़ा कहने के अंदा़ज पर पास बैठे सारे छात्र भी हँसने लगे। कबीर को बड़ी शर्म आई। बड़ी मुश्किल से उससे एक थेपला खाया गया।

उस दिन के बाद से कबीर के लंच बॉक्स में कभी बटाटा वड़ा नहीं आया, मगर उसका नाम हमेशा के लिए बटाटा वड़ा पड़ गया।

‘‘डू यू नो दैट गर्ल?’’ अगले दिन प्लेटाइम में एक लम्बी, स्लिम और गोरी लड़की की ओर इशारा करते हुए कूल ने कबीर से पूछा। लड़की ने सिर पर रंग-बिरंगा डि़जाइनर स्का़र्फ बाँधा हुआ था, जिससे कबीर ने अंदा़ज लगाया कि वह कोई मुस्लिम लड़की होगी।

‘‘नो, हू इ़ज शी?’’

‘‘शी इ़ज बट्ट।’’

‘‘बट्ट? यू मीन बैकसाइड?’’ कबीर को लगा कि वह कूल की कोई शरारत थी।

‘‘हर फॅमिली नेम इ़ज बट्ट, हर फॅमिली इ़ज फ्रॉम कश्मीर।’’

‘‘ओह! आई सी।’’

कश्मीर के ज़िक्र पर कबीर को भारत सरकार की दुकान पर काम करने वाले लड़के बिस्मिल का ध्यान आया। कितने फ़ख्र से उसने कहा था कि वह आ़जाद कश्मीर से है। हुँह, आ़जाद कश्मीर... इट्स पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर।

‘‘दोस्ती करोगे उससे?’’ कूल ने आँखें मटकाकर पूछा।

वह आम कश्मीरी लड़कियों से भी ज़्यादा सुन्दर थी। ख़ासतौर पर उसके कश्मीरी सेब जैसे गुलाबी लाल गाल तो बहुत ही खूबसूरत थे।

‘‘व्हाट्स हर फर्स्ट नेम?’’ कबीर ने उत्सुकता से पूछा।

‘लिकमा।’

‘‘लिकमा? ये कैसा नाम हुआ?’’ कबीर को वह नाम बड़ा अजीब सा लगा।

‘‘इट्स एन अरेबिक वर्ड, इट मीन्स विज़्डम।’’

‘‘हम्म! ब्यूटीफुल नेम।’’

‘‘गो... टेल हर, दैट यू लाइक हर नेम।’’ कूल ने लड़की की ओर इशारा किया।

‘अभी?’

‘‘हाँ, लड़कियों को अपनी तारी़फ सुनना पसंद होता है। यू टेल हर, यू लाइक हर नेम, शी विल लाइक इट।’’

कबीर को का़फी घबराहट हुई। जिस लड़की को दूर से देखकर ही उसका दिल धड़क रहा था, उसके पास जाकर क्या हाल होगा। मगर उसके गुलाबी लाल गाल कबीर को लुभा रहे थे। उस वक्त उसे लगा कि उन गालों के लिए वह उससे दोस्ती तो क्या, पाकिस्तान से दुश्मनी भी कर सकता है। हिम्मत करके किसी हिन्दुस्तानी सिपाही की तरह कबीर उसकी ओर बढ़ा। सिर उठा के, कंधे थोड़े चौड़े करके, अपनी घबराहट को काबू करने की कोशिश करते हुए।

‘हाय!’ कबीर ने लड़की के सामने पहुँचकर बड़ी मुश्किल से कहा। एक छोटा सा हाय भी उसे एक पूरे पैराग्राफ जितना लम्बा लग रहा था।

‘हाय!’ लड़की ने बड़ी सहजता से मुस्कुराकर कहा। कबीर को उसकी स्माइल बहुत प्यारी लगी। वह एक लड़की थी। एक अजनबी लड़के से बात करते हुए घबराहट उसे होनी चाहिए थी, मगर वह बिल्कुल नॉर्मल थी, और कबीर एक लड़का होते हुए भी घबरा रहा था। कबीर का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। किसी तरह अपनी धड़कनों को सँभालते हुए उसने कहा, ‘‘आई लाइक योर नेम, लिकमा!’’

‘व्हाट?’ लड़की ने चौंकते हुए पूछा।

‘‘लिकमा बट्ट।’’

तड़ाक। कबीर के बाएँ गाल पर एक ज़ोर का थप्पड़ पड़ा। उसे पता नहीं था कि कोई ना़जुक सी लड़की इतनी ज़ोर का थप्पड़ मार सकती है। कबीर का गाल उस लड़की के गाल से भी अधिक लाल हो गया; कुछ तो थप्पड़ की वजह से, और कुछ किसी लड़की से थप्पड़ खाने के अपमान की वजह से। कबीर को कुछ समझ नहीं आया कि आ़िखर उस लड़की ने उसे थप्पड़ क्यों मारा। उसने ऐसा क्या कह दिया; उसके नाम की तारी़फ ही तो की थी... और कूल का कहना था कि लड़कियों को तारी़फ पसंद होती ह