अगले दिन सुबह पाँच बजे सुधाकर के फोन की घंटीबजी। उसने ऊँघते हुए फोन उठाया। रात को देर हो जाने की वजह से वह अंधेरी पुलिस स्टेशन में ही सो गया था। कामोठे पुलिस स्टेशन से कॉल थी।

कामोठे ब्रिज क्रॉस करने के बाद मुंबई-पुणे हाइवे पर, जहाँ से तलोजा नदी नीचे से गुजरती थी, एक लाश मिली थी जिसका हुलिया बुरी तरह से बिगड़ा हुआ था। वो लाश ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ के लापता ड्राइवर राकेश की हो सकती थी।

सुधाकर शिंदे ने तुरंत सोमू को उस लाश की पहचान के लिए अपने साथ लिया और बोलेरो में सवार होकर कामोठे ब्रिज पहुँचा। उसके साथ मिलिंद राणे और हवलदार विशंभर भी थे। सोमू की लगाम विशंभर के हाथ में थी।

कामोठे पुलिस स्टेशन का इंचार्ज जीवन पाटिल पहले ही वहाँ पर पहुँचा हुआ था। ब्रिज से नीचे उतरकर उसने देखा कि तलोजा नदी के पास काफी जगह झाड़ झंखाड़ों से भरी हुई थी। वहीं पर एक गड्ढे के किनारे पर एक कपड़े से ढकी हुई एक लाश पड़ी हुई थी। सुधाकर ने चरणजीत वालिया को शिनाख्त के लिए वहाँ पर आने को फोन कर दिया था।

सुधाकर ने उस डेड बॉडी के चेहरे पर से कपड़ा हटाया। उसका चेहरा कुत्तों के नोचने की वजह से बिगड़ा हुआ था। सोमू उसे लगातार न देख सका। उसने अपना चेहरा उस तरफ से घुमा लिया। मिलिंद राणे के फोन में चरणजीत वालिया की भेजी हुई राकेश की फोटो थी, उससे लाश का चेहरा बिगड़ा होने की वजह से उस लाश को पहचानने में कोई मदद नहीं मिली।

“कैसा है पाटिल? कब बरामद हुई ये बॉडी?” सुधाकर ने जीवन पाटिल से पूछा।

“सुबह कुछ मजदूर यहाँ से गुजरे थे तो आवारा कुत्तों के बीच मची हुई छीना-झपटी की वजह से उनका ध्यान इधर चला गया। उन्होंने गश्त पर निकले हुए हमारे आदमियों को इस बारे में बताया। इसके बाद उन लोगों ने इस लाश को गड्ढे से बाहर निकाला।” जीवन पाटिल ने अब तक के घटना-क्रम के बारे में बताया।

“इसकी हालत देख कर तो ये लगता है कि इसे मरे हुए चौबीस घंटे से ज्यादा हो गए हैं।” मिलिंद राणे लाश की तरफ देखता हुआ बोला।

“लाश की अकड़ने की हालत तो यही बता रही है। कई घंटे पानी में पड़े रहने की वजह से इस आदमी की खाल पीली पड़ने के साथ ढीली भी पड़ गयी है। मरने की वजह भी साफ नज़र आ रही है। मारने वाले ने गला रेत दिया है इसका। साँस लेने की नली खुली हुई साफ दिखाई दे रही है।” सुधाकर लाश का मुआयना करता हुआ बोला।

तभी चरणजीत वालिया वहाँ पर अपनी स्विफ्ट से पहुँचा। घटनास्थल ब्रिज से दूर होने के कारण वहाँ पर पहुँचते-पहुँचते उसकी साँस बुरी तरह फूल चुकी थी। सुबह-सुबह किसी लाश का सामना होने की बात सुन कर वह पहले ही थर्राया हुआ था। उसके पास पहुँचते ही सुधाकर उसे डेड बॉडी के पास ले गया। कपड़ों और शरीर के डील डौल से चरणजीत ने इस बात की तस्दीक़ की कि वह लाश उसके ड्राइवर राकेश की ही थी।

उसका इस तरह से मारा जाना सिग्मा ट्रैवल की टूरिस्ट बस के उसके हाथ से निकल जाने की गवाही दे रहा था; लेकिन बस तो अंधेरी पुलिस के कब्जे में थी। उसे चलाने वाला ड्राइवर सोमू भी पकड़ा गया था। सोमू राकेश को ना जानने की दुहाई दे रहा था। जिसको वो जानता था, उसका स्केच वो बनवा चुका था। इस बात की तसदीक़ होना बाकी थी कि ऐसा कोई शख़्स इस दुनिया में था भी कि नहीं या शायद सोमू ने उस आदमी के वजूद को पुलिस को गुमराह करने के लिए खड़ा कर लिया हो और पुलिस को उसमें उलझा रहा था। सबसे बड़ी बात जो सुधाकर को चिंता में डाल रही थी कि वो यह कि वे लोग कहाँ थे, जो उस बस में सवार थे।

जीवन पाटिल ने लाश का पंचनामा कर उसे पोस्ट मोर्टम के लिए ‘पनवेल जनरल हॉस्पिटल’ में भेज दिया। राकेश के मरने के बाद अब उस आदमी की तलाश निहायत जरूरी थी जिसने सोमू को वकोला रोड़ पर रेसीडेंसी होटल के सामने बस सौंपी थी। इस वक्त सुधाकर और मिलिंद राणे सादे कपड़ों में थे। सुधाकर के दिमाग में जो आगे की योजना थी, उसके लिए उनका वर्दी में न होना बहुत कारगर सिद्ध हो सकता था। वो लोग जीवन पाटिल के विदा होने के बाद अपनी बोलेरो के पास पहुँचे।

“अब आगे क्या?” मिलिंद ने सुधाकर से पूछा।

“अब उसे ढूँढते हैं जिस आदमी ने सोमू को सिग्मा की बस सौंपी थी।” सुधाकर ने जवाब दिया और एक नज़र सोमू पर डाली।

“कैसे और कहाँ?” मिलिंद का सवाल आया।

“ऐसा है, मैं सोमू को लेकर इसके जोगेश्वरी वाले टैक्सी स्टैंड पर जाता हूँ। उस नमूने को ढूँढता हूँ जिसने सोमू को बस चलाने के लिए दिहाड़ी पर लगवाया था। तुम तुर्भे विस्टा टेक वर्ल्ड के ऑफिस में जाओ। तुम्हारे मोबाइल में उस स्केच की फोटो तो है ही, अगर जरूरत पड़े तो प्रिंट करवा लेना। वहाँ जाकर पूछताछ करो कि राकेश को वहाँ आखिरी बार कब और किसके साथ देखा गया था।” सुधाकर ने आगे की रूपरेखा बतायी।

“आप वहाँ अकेले विशंभर के साथ? देख लीजिये। अगर आपको उस आदमी के पीछे जाना पड़ गया तो कहीं ये सोमू भी हाथ से न निकल जाये।”

“ऐसा कैसे होगा राणे साब। मैं इसको बेल्ट से पकड़ के रखेगा, पूरा चौकस।” विशंभर ने अपनी जिम्मेवारी को महसूस करते हुए कहा।

“राणे ठीक कहता है, विशंभर। मैं अगर ड्राइवर के साथ जाऊँगा तो तुम बिल्कुल अकेले रह जाओगे। एहतियातन हमें एक ही जगह जाना चाहिए। वालिया साहब, आप हमारे साथ चलेंगे।”

चरणजीत वालिया सकपकाया।

“मैं वहाँ क्या करूँगा? वहाँ तो आप लोगों का काम है।” वो हड़बड़ा कर बोला।

“सोमू के बयान के अनुसार उसे जोगेश्वरी टैक्सी स्टैंड से उसके जान पहचान के एक ड्राइवर, जिसका नाम वो राहुल तात्या कर के बताता है, ने सिग्मा ट्रेवेल की बस उसके हवाले की थी। मैं वहाँ जाकर उस ड्राइवर के घोड़े के बारे में पूछताछ करना चाहता हूँ। सोमू को इसलिए साथ ले जा रहा हूँ ताकि मौके पर ही शिनाख्त हो सके। तुम्हारी स्विफ्ट में विशंभर के साथ सोमू होगा जिससे वह इसमें बैठ कर टैक्सी स्टैंड वालों को आसानी से पहचान सके। ऐसा भी हो सकता है कि तुम भी उसे जानते हो।”

इसके बाद वालिया और सुधाकर की गाड़ियाँ जोगेश्वरी की तरफ दौड़ पड़ी।

सोमू ने जिस टैक्सी स्टैंड का हवाला दिया था वो ‘प्रतीक्षा नगर’ के इलाके में पड़ता था। वहाँ पर स्पेयर पार्ट्स और मैकेनिकल वर्क्स के लिए कई दुकानें एक ही इलाके में खुल जाने के कारण उस इलाके में दस से पंद्रह टैक्सी ऑपरेटरों ने अपने ऑफिस खोल लिए थे जिसके कारण वह एरिया लोकल टैक्सी स्टैंड के नाम से जाना जाने लगा था।

सुबह-सुबह ट्रैफिक कम होने के बावजूद वहाँ पर पहुँचने में उन्हें एक घंटे से ऊपर का समय लग गया। अभी टैक्सी स्टैंड की दुकानों पर कोई ज्यादा चहल-पहल नहीं थी। राहुल तात्या का जो हूलिया सोमू ने पुलिस को बताया था, उसके अनुसार मिलिंद ने उसके बारे में टैक्सी स्टैंड में पूछताछ करनी शुरू की।

वालिया की कार में बैठे सोमू को वहाँ आने जाने वाले ड्राइवरों पर नज़र रखने के लिए ताकीद कर सुधाकर ने उस टैक्सी स्टैंड में ऑफिस सी लगने वाली कई दुकानों का रुख किया। वहाँ पर पूछताछ करने के बाद ये पता लगा कि वो पिछले कई दिनों से टैक्सी स्टैंड पर नहीं आया था।

पूछताछ करते हुए मिलिंद वहाँ पर मौजूद एक चाय की दुकान में बैठ गया और उसके मालिक को दो कप चाय बनाने के लिए बोला। उसने पहले ही देख लिया था कि सुधाकर उसकी तरफ ही आ रहा था। दोनों वहाँ बैठकर चाय पीने लगे। एक चौदह पंद्रह साल का लड़का वहाँ चाय सर्व कर रहा था। सुधाकर और मिलिंद की आँखों ही आँखों में बात हुई। मिलिंद उस छोटे से लड़के बात करने लगा।

“अहोछोटू चाय मस्त आहे।” (अरे छोटू चाय मस्त है।)

“आपल्याला ते आवडले?” (पसंद आयी आपको ?)

“होय, मला ते खूप आवडले। आपण बनविले आहे।(हाँ बहुत पसंद आयी। तूने बनाई है क्या) अहो छोटू, हा राहुल तात्या अजून आला नाही? (अरे छोटू ये राहुल तात्या आया नहीं अभी तक?)

“नाही सर, तीन दिवसांपासून इथे पाहिलेला नाही” (नहीं साहब, तीन दिन से यहाँ पर नहीं देखा।)

चाय ख़त्म होने के बाद सुधाकर उठकर पेमेंट करने लगा। इसी बीच दुकान का मालिक छोटू को मिलिंद से बात करते देख घुड़कने लगा।

“हे हरामी, बोलतच राहील की काही काम करेल।” (ओ हरामी, बात ही करता रहेगा या कोई काम भी करेगा।)

“क्यों सुबह-सुबह बच्चे को घुड़क रहे हो। लो, दो चाय हमारी और चार चाय उधर सामने स्विफ्ट खड़ी है, वहाँ पहुँचा दो।” सुधाकर बोला।

“हो साहेब, आपको पता नहीं है...साहेब। जब देखो ग्राहकों के साथ मगज़मारी करता रहता है।”

“मगज़मारी नहीं करता है, वो आदमी उससे कुछ पूछता है, जो मैं अभी तुमसे पूछता है। राहुल तात्या नाम का ड्राइवर मिलता है इधर अभी?”

“राहुल तात्या! मेरे को ध्यान नहीं आता, साहेब। पण आप इधर किस वास्ते पूछताछ करता है, साहेब।” दुकानदार सकपकाता हुआ बोला।

“करना पड़ता है। यही तो काम है अपना। तुम्हारा दिमाग में राहुल तात्या इधर नहीं आता तो मैं तुमको ले के चले ऐसी जगह जिधर तुम्हारे दिमाग में वो जल्दी आए।” सुधाकर ने कहा।

“किधर? साहब!” वो एकदम से हड़बड़ाया।

“पुलिस स्टेशन, और किधर। उधर में लोगों का दिमाग बड़ी तेजी से काम करता है। तुम भी ट्राइ करोगे।”

“नहीं, आप हैं कौन? मैं समझा नहीं?” दुकानदार ने असमंजस में पड़ते हुए पूछा।

“मैं इंस्पेक्टर शिंदे। पुलिस स्टेशन में तेरे को टूरिस्ट गाइड लेकर जाएगा। तेरे छोकरे को राहुल तात्या के बारे में मालूम होता, पर तेरे को याद नहीं। अब मुझे उसका पता चाहिए, जल्दी बता या किसी ऐसे आदमी का नाम बता, जिसे उसका पता मालूम हो। समझा?”

“हो साहेब। आप पहले बता देता कि आप वर्दी वाला साहेब है। मैं पहले ही बता देता।” दुकानदार खींसे निपोरता हुआ बोला।

फिर उसने उस जगह का पता बताया जहाँ पर राहुल तात्या पाया जाता था। तब तक मिलिंद भी उनके पास आ चुका था। दोनों दुकान से निकलकर कार के पास आए। तब तक उन लोगों के लिए भी चाय आ चुकी थी।

“विशंभर, तुम लोग सोमू को लेकर वापस पुलिस स्टेशन पहुँचो। वालिया साहब तुम्हें वहाँ छोड़ देंगे। मैं और राणे एक बार उस पते पर जाकर आते हैं।” सुधाकर बोला।

सोमू को बीच में लेकर विशंभर और बोलेरो का ड्राइवर पीछे की सीट पर बैठ गए और वालिया की स्विफ्ट अंधेरी पुलिस स्टेशन की तरफ दौड़ पड़ी।

मिलिंद राणे और सुधाकर जब दुकानदार के बताए पते पर पहुँचे तो राहुल तात्या के घर पर ताला लटका हुआ था।

जब उन्होंने आस-पड़ोस के लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि राहुल तात्या तीन दिन पहले अपने घर वापस सहारनपुर लौटने की बात कह कर चला गया था। सुधाकर ने अपने मोबाइल से उस आदमी का स्केच दिखा कर पूछताछ की तो उन लोगों ने बताया कि उस फोटो वाले आदमी का राहुल के घर पिछले एक महीने से काफी आना-जाना था।

सुधाकर ने बेबसी और गुस्से से अपने हाथ मसले। सिग्मा ट्रेवल्स के ड्राइवर राकेश की मौत में जरूर इस राहुल तात्या का ही हाथ होना चाहिए था। पर था कहाँ ये हरामी!

दोपहर के बारह बजने वाले थे तो वे लोग फिर वापस अंधेरी पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़े।

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दिल्ली

जिस वक्त मुंबई में सुधाकर राहुल तात्या की तलाश में जोगेश्वरी में घूम रहा था, उसी वक्त दिल्ली में संसद मार्ग पर एक इमारत में तीन लोग इकट्ठे हुए। ये वो लोग थे जो पूरे देश की नब्ज पर अपनी पकड़ रखते थे। पूरे भारत में हो रही घटनाओं पर इनकी नज़र रहती थी। किस घटना का भारत-वर्ष के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ने वाला था, इस बात के लिए इन लोगों की आँखें और कान हमेशा खुले रहते थे।

इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ़ राजीव जयराम अपनी गाड़ी से उतरे और बड़े तेज कदमों से लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। कॉन्फ्रेंस रूम में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अभिजीत देवल और प्रधानमंत्री के राजनैतिक सलाहकार गोविंद श्रीवास्तव उनका इंतजार कर रहे थे।

अभिजीत देवल के शांत चेहरे के पीछे क्या मनोभाव दिमाग में चल रहे थे, यह दुनिया की कोई ताकत नहीं बता सकती थी। जिस शख़्स की जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा भारत के हितों की रक्षा के लिए दूसरे देशों में अपनी जिंदगी को दाँव पर लगा कर संघर्ष करते बीता हो और जो आदमी अपने देश के लिए बड़े से बड़े दाँव को हँसते हुए खेल गया हो, ऐसे आदमी के चेहरे पर जब किसी के इंतजार की परछाई दौड़ रही हो तो इसका मतलब मामला गंभीर था।

जब राजीव जयराम कॉन्फ्रेंस हॉल में दाखिल हुए तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अभिजीत देवल ने अपनी घड़ी की तरफ देखा।

“सॉरी देवल साहब। आपको मेरा इंतजार करना पड़ा।” राजीव जयराम ने खेद भरे स्वर में कहा।

“आपके इंतजार को तो हम सहन कर लेंगे पर शर्त ये है कि आपके पास अब वो सारी जानकारी होनी चाहिए जिसकी मुझे तलाश है।” अभिजीत देवल की आवाज में एक प्रश्न चिन्ह झलक रहा था।

“उसी वजह से मुझे देर हुई है। आपके काम की सारी इंटेल की जानकारी लेते-लेते मुझे टाइम लग गया।” जयराम ने कहा।

“जो खबर आपने मुझे बतायी है, क्या वह सच है?” गोविंद श्रीवास्तव ने पहलू बदलते हुए पूछा।

“वह खबर सही है तभी तो हम लोग यहाँ पर मौजूद हैं। ये मामला अपने भीतर कई पहलू समेटे हुए है। यह हमारी नाकामी तो है ही लेकिन आने वाले समय में इसकी वजह से भारत की राजनीति क्या करवट लेगी, इस चीज का हमें कोई अंदाजा नहीं है।” अभिजीत देवल की आवाज में एक उलझन थी।

“लेकिन हमारे इंटेलिजेंस नेटवर्क की इतनी बड़ी नाकामी! मैं तो सोच भी नहीं सकता।” गोविंद श्रीवास्तव बड़ी हैरानी से बोला।

“इसी बात के लिए तो यह मीटिंग बुलाई गयी है। मुझे उम्मीद है कि इस कमरे के बाहर सिर्फ़ पीएम महोदय और गृहमंत्री जी को छोड़कर इस बात की जानकारी किसी को नहीं है।” अभिजीत देवल ने सवालिया लहजे में उन दोनों से पूछा।

“आप लोग निश्चिंत रहिए। इस बात की किसी को अभी कोई खबर नहीं है।” राजीव जयराम ने कहा।

“आप को भी इस बात की दाद देनी पड़ेगी कि हमारी इंटेलिजेंस को पता तक नहीं चला और ये वारदात हो गयी। जिसका खामियाजा हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जगहँसाईं के तौर पर भुगतना पड़ेगा।” गोविन्द श्रीवास्तव की आवाज का नश्तर राजीव जयराम को साफ-साफ चुभता हुआ महसूस हुआ।

“अब मैं इस बात की सफ़ाई नहीं देना चाहता। हम हर राजनेता और उसके परिवार के हर सदस्य के ऊपर अपने जासूस और पुलिस नहीं छोड़ सकते। हम पब्लिक और समाज को होने वाले व्यापक रूप से बड़े खतरों की तरफ ध्यान रखते हैं, किसी एक आदमी की तरफ नहीं। ये आपको पता ही है। इस देश में महज दो कांस्टेबल किसी मंत्री के घर के बाहर मिल जाने पर सरकार गिर सकती है तो आप सोचिए कि हमारे आदमी अगर कहीं पर पहुँचेंगे तो क्या होगा!” राजीव जयराम का सधा हुआ पैना स्वर कॉन्फ्रेंस रूम में गूँजा।

अब बारी गोविंद श्रीवास्तव के तिलमिलाने की थी।

“छोड़ो जयराम। हम यहाँ बीते हुए कल के पोलिटिकल अफेयर्स पर बातचीत और बहस करने के लिए इकट्ठा नहीं हुए हैं। हमारे यहाँ होने का कारण एक ईमेल है जो गृह मंत्रालय की साइट पर आया है जिसे एक आतंकवादी संगठन द्वारा भेजे जाने का अंदेशा है। उस ईमेल में यह दावा किया गया कि हमारे देश के एक नेता योगराज पासी का बेटा नीलेश पासी उन लोगों के कब्जे में है।” अभिजीत देवल ने मुद्दे की बात रखते हुए कहा।

गोविंद श्रीवास्तव सकपकाया। उसे अंदेशा नहीं था कि उसे वहाँ क्यों बुलाया गया है। जब ये बात उसे अभी पता चली तो उसे आभास हुआ कि प्रधानमंत्री के राजनैतिक सलाहकार के रूप में उसकी क्या भूमिका थी और आगे क्या होने वाली थी। वो यहाँ आने के बाद पहली बार मीटिंग में सतर्क हो कर बैठा।

“सिर्फ़ नीलेश पासी ही उनके कब्जे में नहीं है। उनका दावा है कि उसके समेत विस्टा टेक्नोलॉजी के पंद्रह आदमी उनके कब्जे में हैं जो मुंबई से किडनैप किए गए हैं।” अभिजीत देवल ने अपनी बात पूरी की।

“हैरानी की बात ये है कि मुंबई की पुलिस इस दौरान क्या कर रही थी?” गोविंद श्रीवास्तव के मुँह से बेसाख्ता निकल गया।

“पुलिस नेताओं की रैलियों में पब्लिक को संभाल रही थी, वीआईपी लोगों की बॉडी को गार्ड कर रही थी, ट्रैफिक को संभाल रही थी, नेताओं के रोड़ शो में पब्लिक के धक्के खा रही थी, पत्थरबाजों के सामने बेबस खड़ी थी क्योंकि...” राजीव जयराम ने फिर अपना मोर्चा खोल दिया।

“अब बस भी करो तुम दोनों। ये सब बातें हम सब लोग जानते हैं। तुम दोनों के बीच दोबारा मैं यह बहस नहीं सुनना चाहता। जयराम, वह मेल मुझे दिखाओ। उन लोगों ने कोई डिमांड तो की होगी?” अभिजीत देवल ने बीच में टोकते हुए कहा।

राजीव जयराम ने अपने लैपटॉप पर वो कथित ईमेल अभिजीत देवल को दिखाया। ईमेल का मजमून गोविंद श्रीवास्तव ने भी पढ़ा। उसके चेहरे पर भी चिंता की गहन लकीरें दिखाई देने लगी थी।

“इस मेल में कितनी सच्चाई है, जयराम?” अभिजीत देवल ने पूछा।

“इसके सोर्स से तो ये फेक नहीं लगता है। मैंने अपने इंटेलिजेंस सोर्स से पता करवा लिया है। ये लड़का नीलेश पासी विस्टा टेक्नोलॉजी में एक ऊँचे ओहदे पर काम करता है। ये और इसकी टीम अब गायब है।” राजीव जयराम ने बताया।

“गायब है! ऐसा कैसे हो सकता है। पुलिस...” गोविंद श्रीवास्तव ने फिर मुँह खोला।

“पुलिस झक मार रही थी यार। तुम यहाँ इसलिए बुलाये गए हो कि यहाँ तुम कोई समाधान बताओगे या तुम अपना ये पुलिस का रोना रोते रहोगे। पहले पूरी बात तो सुन लो। आगे बहुत कुछ है तुम्हारे लिए करने को और फिर पीएम को बताना तुम क्या कर रहे थे।” अभिजीत देवल ने बुरी तरह झल्लाते हुए कहा। “और दोबारा तुम्हारा ये डायलॉग मुझे सुनाई न दे... प्लीज।”

गोविंद श्रीवास्तव अब वास्तव में गंभीर हो गया। राजीव जयराम ने बताया कि मुंबई में क्या हुआ था।

“तुम्हारे हिसाब से तो पुलिस को कल पता चला है कि ये लोग गायब हैं। उनकी कंपनी को भी इस बात का पता नहीं चला। उनके परिवार वालों को भी इस बारे में नहीं पता। कमाल है! और हमारे पास आज सुबह एक आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-जन्नत से ईमेल आती है कि वो लोग उसके कब्जे में हैं। मुंबई पुलिस अभी अँधेरे में ही हाथ पाँव मार रही है और ये मामला यहाँ तक पहुँच गया। राजीव, तुम कहते हो कि ये पूरी टीम गायब है। क्या ये कन्फ़र्म न्यूज़ है?” अभिजीत देवल ने सवालिया नजरों से राजीव जयराम की तरफ देखा।

“हमारी इंटेलिजेंस की रिपोर्ट तो यही कहती है कि वे लोग लापता हैं।” जयराम ने सहमति में अपना सिर हिलाते हुए कहा।

“लेकिन ये लश्कर के लोग आखिर चाहते क्या हैं? आप दोनों में से कोई बताएगा मुझे?” गोविंद श्रीवास्तव ने बेसब्री से पूछा।

“वो चाहते हैं कि हम कादिर मुस्तफा को रिहा करें।” अभिजीत देवल ने गोविंद श्रीवास्तव को बताया। “और बाकी लोगों की रिहाई की एवज में एक हजार करोड़ रुपए उनके बताए अकाउंट में ट्रांसफर करें। इस काम के लिए उन्होंने हमें तीन दिन का समय दिया है।”

“कादिर मुस्तफा! वो दुर्दांत हत्यारा जिसके हाथ सैकड़ों लोगों के खून से रंगे हैं। जिसने अपने आतंकवादियों से हमला करवा कर कश्मीर में बार्डर सिक्योरिटी फोर्स के जवानों से भरी बस को आरडीएक्स से भरी हुई जीप से टक्कर मरवा कर उड़ा दिया था। उस संगीन हमले में कोई भी जवान जिंदा नहीं बचा था। वही कादिर मुस्तफा जो कश्मीर के नौजवानों को बरगला कर अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए जिंदा बारूद के तौर पर तैयार होने के लिए सरहद पार भेजता है।” गोविंद श्रीवास्तव ने एक साँस में अपनी बात ख़त्म की।

“हाँ, वही कमबख्त। जिसे पकड़ने के लिए हमारी फौज के छह जवान शहीद हो गए। वो भी सिर्फ़ इसलिए ताकि वो जिंदा पकड़ा जा सके। बड़ी गलत सोच है हमारी। उसे उसी दिन ख़त्म कर देना चाहिए था। अब ये नया खेल। हमारा पड़ोसी अपनी चालाकियों और बदनीयती से बाज नहीं आएगा। ना जाने कब तक इसका खामियाजा हमें भुगतना होगा।” राजीव राजराम ने हाथ पटकते हुए कहा।

“और साथ में फिरौती भी चाहिए अब की बार। जयराम, तीन दिन का समय हमारे पास है। क्या ख्याल है? क्या करोगे तुम इस बार?” अभिजीत देवल ने पूछा।

“ख्याल की तो आप जाने। इस बात का निर्णय आप लोगों ने लेना है। मेरे ख्याल से इस बाजी को हम लोग पलट सकते हैं। थोड़ा सा समय अगर हमें और मिल जाये तो बेहतर होगा।” राजीव जयराम बोला।

“मुंबई के कमिश्नर धनंजय रॉय को ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस में जॉइन करवाओ। अगर तुम्हारे दिमाग में कोई प्लान है तो तुम अपने प्लान के बारे में भी मुझे अपडेट करो।” अभिजीत देवल ने कहा।

राजीव जयराम ने सहमति में सिर हिलाया। उसने अपने पीए को बुलाकर जरूरी निर्देश दिये। वह खुद भी अपने मोबाइल फोन पर उलझ गया।

“मेरे ख्याल से हमें विस्टा टेक्नोलॉजी के चेयरमैन विश्वरूप रूंगटा को भी इस मीटिंग में कॉल करना चाहिए।” गोविंद श्रीवास्तव ने सलाह दी।

“हमने उन्हें इन्फॉर्मेशन दे दी है। विश्वरूप रूंगटा के साथ योगराज पासी को भी यहाँ मीटिंग के लिए बुलाया है। फिलहाल हमें इस घटना के बारे में आगे का ब्लू प्रिंट तैयार करना है। ये काम उन लोगों की मौजूदगी में नहीं हो सकता इसीलिए हम उन्हें अलग से ब्रीफ़ करेंगे।” अभिजीत देवल ने गोविंद को बताया।

“मेरा क्या रोल है इस सारे मामले में। मुझे... ” गोविंद ने बात को अधूरा छोड़ दिया।

“तुम्हारा रोल भी आएगा जब इस मामले में राजनैतिक दाँव-पेंच शुरू होंगे तब पीएम ऑफिस को तुम्हारी जरूरत पड़ेगी। तब तक तुम हमारे साथ रहोगे ताकि भविष्य में होने वाली किसी भी पॉलिटिकल उथल-पुथल को भाँप सको।” अभिजीत देवल बोले।

“मुंबई के पुलिस कमिश्नर अब ऑनलाइन हैं और हम उनसे बात कर सकते हैं।” राजीव जयराम अपना फोन मेज पर रख कर दोबारा कुर्सी पर बैठते हुए बोला।

थोड़ी देर के बाद मुंबई पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय दीवार पर लगी स्क्रीन पर साफ नज़र आ रहे थे। भारत के आला अफसर अभिजीत देवल के साथ यूँ आनन-फानन में हो रही मीटिंग की उत्कंठा उनके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी।

राजीव जयराम ने देवल के इशारे पर धनंजय रॉय को लश्कर-ए-जन्नत से मिले ई-मेल के बारे में बताया। धनंजय रॉय को रात में हुई डिविज़्नल एसीपी आलोक देसाई और एसपीआई सुधाकर शिंदे के साथ हुई मुलाकात पूरी तरह याद थी। यह मसला यूँ उसकी जिंदगी का अहमतरीन और सबसे उलझा हुआ मामला बन जाएगा यह उसने सपने में भी नहीं सोचा था।

“मिस्टर धनंजय रॉय, क्या आपके पास विस्टा टेक्नोलॉजी के गायब आदमियों की कोई रिपोर्ट है।” अभिजीत देवल ने पूछा।

धनंजय रॉय ने सिग्मा टूरिस्ट की बस की बरामदगी, सोनू की गिरफ्तारी और सुधाकर शिंदे की राहुल तात्या के बारे में हुई तहक़ीक़ात के बारे में बताया।

“हम्म, मिस्टर रॉय उस मेल के मुताबिक हमें तीन दिन का समय मिला है। आपकी बातों से हमें ये एहसास हो चुका है कि ये ‘होक्स’ यानी शरारतपूर्ण झूठी कॉल तो बिल्कुल नहीं है। इसलिए अब आप अपनी पूरी फोर्स के साथ नीलेश पासी का पता लगाने में जुट जाएँ। आपको इंटेलिजेंस सपोर्ट के लिए मैं अपने सबसे काबिल ऑफिसर को आपके पास भेज रहा हूँ, जो आपकी फोर्स के साथ कॉर्डिनेट करेगा। मुझे नीलेश पासी और विस्टा का हरेक आदमी हर हाल में जिंदा चाहिए। मैं आपसे एक घंटे बाद फिर मिलता हूँ तब तक मुझे आपका ग्राउंड वर्क का प्लान तैयार मिलना चाहिए।”

इतना कहकर अभिजीत देवल ने धनंजय रॉय के साथ संबंध विच्छेद कर दिया।

“अभी लश्कर-ए-जन्नत ने हमसे ईमेल से कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की है। जाहिर है वो लोग अगली बार कॉल भी करेंगे। हमारी तरफ से उन लोगों से निगोशियेशन के लिए सबसे बेहतर आदमी सिलेक्ट करो जो उनसे ज्यादा से ज्यादा वक्त चुरा सके।” अभिजीत देवल ने जयराम से कहा।

“ऐसा एक आदमी है मेरी निगाह में। शाहिद रिज़्वी। उसे हमने इंटरपोल के एक प्रोग्राम के तहत ट्रेन किया है और इस मामले में उससे बेहतर कोई नहीं।” राजीव जयराम ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया।

“आपने एक इंटेलिजेंस ऑफिसर को मुंबई भेजने के लिए कहा है। उसके लिए आपने किसे चुना है।” गोविंद श्रीवास्तव ने पूछा।

“श्रीकांत मेनन। वो आदमी इस केस में बेस्ट चॉयस है और उसके साथ आईटी सेल से भी सपोर्ट भेज दो ताकि वो आसानी से यहाँ के स्टाफ़ के संपर्क में भी रहे। हम ठीक एक घंटे बाद फिर यहाँ पर मिलते हैं।” अभिजीत देवल यह कहकर मीटिंग ख़त्म होने का संकेत दिया।

“ओके। आइ विल सेंड देयर नैना दलवी। वो इंटेल और टेक सपोर्ट, दोनों में माहिर है। मैं अभी दोनों को मुंबई के लिए रवाना करता हूँ।” वो यह कहकर अपने फोन पर उलझ गया।

इसके बाद वह मीटिंग ख़त्म हो गयी।