गुरुवार : 21 मई

अगली सुबह जीतसिंह को गाइलो से सम्पर्क का इन्तजार था जब कि उसके मोबाइल की घण्टी बजी।
उसने स्क्रीन पर निगाह डाली तो पाया काल शेखर नवलानी की थी।
‘‘सलाम बोलता है, साहब ।’’—वो सादर बोला।
‘‘कहाँ हो?’’
‘‘कालबा देवी ।’’
‘‘कोबरा के आफिस में आ सकते हो?’’
‘‘हाँ, साहब। जरूर ।’’
‘‘ऑफिस मालूम है या भूल गये?’’
‘‘मालूम। नौरीन हाउस, दूसरा माला, यशवन्त चौक, काला घोड़ा, फोर्ट ।’’
‘‘ठीक। मैं घनेकर के दफ्तर में हूँ। कोई टोके तो उसका नाम लेना। मेरा नाम लेना ।’’
‘‘आता है, साहब ।’’
बीस मिनट में वो अपने मुकाम पर पहँुच गया।
शेखर नवलानी कोबरा इनवैस्टिगेशन एण्ड सिक्योरिटी सर्विसिज के पार्टनर आदिनाथ घनेकर के आफिस में मौजूद था। घनेकर उस घड़ी वहाँ मौजूद नहीं था। नवलानी एक विजिटर्स चेयर पर बैठा सिग्रेट के कश लगा रहा था।
जीतसिंह ने अदब से अभिवादन किया।
नवलानी ने सिग्रेट का आखिरी कश लगा कर उसे ऐश ट्रे में झोंका और बोला—‘‘तुम्हारे ही केस के सिलसिले में घनेकर से बहुत कुछ डिसकस करना था, सोचा ये काम रूबरू बेहतर होगा, इसलिये यहाँ आया ।’’
‘‘आप मेरे वास्ते बहुत जहमत कर रयेला है, साहब। मैं इस अहसान का बदला तो कैसे भी नहीं चुका सकता, पण आप की फीस बराबर भरूँगा। थोड़ा टेम लगेगा पण दूध से धोकर दूँगा ।’’
‘‘अरे, फीस की बात किसने की?’’
‘‘मैंने की न, साहब!’’
‘‘अभी छोड़ो वो किस्सा और सुनो जो मैं कहता हूँ ।’’
‘‘बोलो, साहब ।’’
‘‘दौड़ धूप के कामों के लिये मेरी यहाँ कोबरा में सैटिंग हो गयी है। गायब गवाहों की तलाश में घनेकर ने आश्वासन दिया है कि अपने सब से काबिल इनवैस्टिगेटर लगायेगा और मीरा किशनानी के पीछे अपने खास आदमी कदम को लगायेगा ।’’
‘‘बढ़िया। साहब, स्टोर के मैनेजर तिवारी की बाबत एकाध बात मेरे को मालूम पड़ी है, शायद आप के किसी काम आये ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘जब रहता था तो परेल की रेलवे कालोनी के एक क्वार्टर में किराये का कमरा ले कर रहता था पण मालूम पड़ा कि मंगलवार सुबह सवेरे उधर से नक्की किया, किधर गया किसी को नहीं मालूम ।’’
नवलानी ने तिवारी का भूतपूर्व पता सामने पड़ी एक नोट शीट पर नोट किया।
‘‘साहब, सोमवार शाम को उसे डिसमिस किया गया था, ये बात स्टोर के मुलाजिमों को कल सुबह मालूम पड़ी थी जब कि सेठजी की मौत के बाद पहली बार स्टोर खुला था और उस बात ने हर किसी को हैरान किया था क्योंकि किसी को कभी कोई इशारा तक नहीं मिला था कि वो भीड़ू यूँ एकाएक नौकरी छोड़ के जा सकता था। नये मालिकों ने तसदीक की थी कि तिवारी इस्तीफा देकर बलिया चला गया था जहाँ का कि वो असल में था। अभी मेरे को ये बोलना माँगता है साहब, कि तिवारी जैसा पुराना मुलाजिम यूं एकाएक नौकरी छोड़ के नहीं जा सकता। बोले तो नौकरी एकाएक छोड़ सकता है पण जा नहीं सकता क्योंकि बकाया तनख्वाह का हिसाब होने का, प्रॉविडेंट फंड का, ग्रेच्युइटी का चैक मिलने का। फिर पुराने सीनियर मुलाजिम के रिटायर होने पर स्टाफ पार्टी देता है, वो फेयरवैल करके जो बोलते हैं, वो सब होता है ।’’
‘‘ठीक। ठीक। लेकिन कहना क्या चाहते हो?’’
‘‘साहब, ये तो पक्की कि किसी न किसी तरीके से तिवारी को खड़े पैर जबरन खिसकाया गया है पण मेरे को नहीं लगता कि खिसकाने वालों का कोई भीड़ू परछार्इं बन के उसके साथ लगा रह सकता है। अभी बोले तो मेरे मगज में यहीच आता है कि वो अभी मुम्बई में ही है ।’’
‘‘कहाँ है, कैसे पता लगे?’’
‘‘साहब, कोई तो तरीका होगा!’’
‘‘हाँ, कोई तो तरीका होगा ।’’
‘‘मेरे पास उसका मोबाइल नम्बर है पण वो नहीं बोलता। जवाब मिलता है ये नम्बर मौजूद नहीं है ।’’
‘‘उसको हुक्म हुआ होगा न कि वो अपने नोन मोबाइल नम्बर से किनारा करे!’’
जीतसिंह खामोश रहा।
‘‘उस आदमी को अगर प्रैशर बनाकर आउट किया गया है तो वो ज्यादा देर मुम्बई में टिका नहीं रह सकता क्योंकि यूँ आदमी इत्तफाक से कहीं दिखाई दे जाता है, किसी वाकिफ से टकरा जाता है, यूँ उसके गायब रहने के प्रोजेक्ट में फच्चर पड़ सकता है। मुम्बई छोड़ के जाना तो उसे बराबर पड़ेगा। बलिया का लम्बा सफर है जो कि जाहिर है वो रेल से ही करेगा। मैं घनेकर को बोलूँगा कि वो रेलवे स्टेशन पर वाच का इन्तजाम करे और ये भी पता करे कि उधर के किसी नजदीकी बड़े स्टेशन का क्या किसी देवकी नन्दन तिवारी नामक के शख्स ने रिजर्वेशन करवाया ।’’
‘‘बढ़िया, साहब ।’’
‘‘अभी सुनो मैंने तुम्हें क्यों बुलाया!’’
‘‘सुनता है, साहब ।’’
‘‘सेठ जी की दस साल पहले की वसीयत की कापी मैंने सब-रजिस्ट्रार के आफिस से निकलवा ली है ।’’
‘‘बोले तो बहुत फास्ट वर्क किया, साहब!’’
‘‘तुम्हारी इस टिप ने वर्क को फास्ट किया कि सेठ जी ने वसीयत दस साल पहले की थी ।’’
‘‘लखानी साहब ऐसा बोला ।’’
‘‘वसीयत पर बतौर गवाह लखानी के साइन थे इसलिये उसे याद था कि वो कब हुई थी। दूसरे साइन वसीयत ड्राफ्ट करने वाले और उसे रजिस्टर कराने की प्रासेस फालो करने वाले दिलीप नलवाडे नामक के वकील के थे। उसके साइन के नीचे उसके आफिस के पते वाली स्टैम्प लगी है। पता माटुंगा का है लेकिन मैंने मालूम किया है कि अब वो वहाँ नहीं पाया जाता ।’’
‘‘दस साल में तरक्की कर ली होगी, कहीं कोई फैंसी आफिस ले लिया होगा ।’’
‘‘हो सकता है। वो वकील है, अभी भी मुम्बई में ही प्रैक्टिस करता है तो मैं बड़ी आसानी से उसका मौजूदा पता मालूम कर लूँगा। बहरहाल अभी तरक्की कर ली तो कर ली, दस साल पहले वो लल्लू वकील था ।’’
‘‘ऐसा?’’
‘‘ये है उस वसीयत की जेरोक्स कापी’’—नवलानी ने नोट पैड के नीचे से एक फूलस्केप कागज निकाल कर उसे दिखाया।
‘‘साहब, आप बोलो न क्या है इसमें!’’
‘‘इसमें वही कुछ है जो किसी फैमिली हैड से, घर के किसी जिम्मेदार शख्स से एकपैक्टिड होता है। अपने सारे आश्रितों को बराबर हिस्सा। चार बैनीफिशियेरी—बीवी, दो बेटे और बेटी। जिस बात की वजह से मैंने वसीयत ड्राफ्ट करने वाले वकील को लल्लू कहा, वो ये है कि वसीयत में दर्ज हैं कि वसीयतकर्ता की तमाम चल और अचल सम्पत्ति को उसके बीवी, बड़े बेटे, छोटे बेटे और बेटी के बीच बराबर तकसीम किया जाये ।’’
‘‘क्या वान्दा है! जब सेठ जी के दो ही बेटे, एक ही बेटी, एक ही...’’
जीतसिंह खामोश हो गया।
‘‘लगता है अक्ल ने कुछ काम किया!’’—नवलानी मुस्कराया—‘‘तुम्हारी जुबान में बोलूं तो बोले तो मगज में कुछ आया!’’
‘‘बीवी में लोचा?’’
‘‘खास। बड़ा। इसलिये पड़ा कि सेठ जी ने फिर शादी कर ली—अगर कर ली तो ।’’
‘‘आप यही मान के चलिये कि कर ली ।’’
‘‘ओके। ये वसीयत—रजिस्टर्ड विल—सेठ जी की बीवी को उन की जायदाद के एक चौथाई हिस्से का वारिस करार देती है। अगर सेठ जी विधुर की नार्मल लाइफ जीते मर गये होते तो वसीयत में कोई प्राब्लम नहीं थी लेकिन शादी ने जो प्राब्लम—जो एबनार्मलिटी—खड़ी कर दी वो ये है कि सेठ जी की रीमैरिज की रू में अब उन की एक चौथाई जायदाद की वारिस सुष्मिता है क्योंकि वो सेठ जी की बीवी है ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘वसीयत ज्यादा समझदारी से, ज्यादा काबिलियत से बनाई गयी होती तो चारों वारिसों का नाम से जिक्र होता। तो वसीयत में दर्ज होता कि वसीयतकर्ता की तमाम चल और अचल सम्पत्ति को उनके बड़े बेटे आलोक, छोटे बेटे अशोक, इकलौती बेटी शोभा और धर्मपत्नी कमला, विमला, रमला, जो भी नाम हो के बीच बराबर तकसीम किया जाये। इस वसीयत में बीवी का नाम दर्ज न होना नयी बीवी को आटोमैटिकली उन का वारिस बना देता है। मेरे खयाल से यही वो बात है जो मरने वाले की औलाद को तड़पा रही है। इसी वजह से उनकी दुहाई है, जिद है, दृढ़ निश्चय है कि सुष्मिता बीवी नहीं, लिव-इन पार्टनर थी। इसी वजह से उन्होंने शादी के सबूत या नष्ट कर दिये हैं या गायब कर दिये हैं। पुलिस उन की मुहाफिज बनी हुई है इसलिये वो शेर हैं। जानते हैं करप्ट पुलिस की मदद से जुल्म चल जायेगा ।’’
‘‘सेठजी ने शायद बाद में कोई नयी वसीयत की हो!’’
‘‘बाद में कब?’’
‘‘छ: साल पहले बीवी की मौत के बाद ।’’
‘‘ये खयाल मेरे को भी आया था लेकिन ऐसी किसी वसीयत का सब-रजिस्ट्रार के ऑफिस में कोई रिकार्ड नहीं है ।’’
‘‘वसीयत रजिस्टर नहीं कराई गयी होगी!’’
‘‘तो वो नल एण्ड वायड करार दी जायेगी ।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘अप्रमाणित, व्यर्थ, निरर्थक मानी जायेगी ।’’
‘‘भले ही वो ऐन ठीक से की गयी हो और उस पर दो गवाहियाँ भी पड़ी हुई हों?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘ऐसा क्यों?’’
‘‘क्योंकि रजिस्टर्ड विल को कैंसल करने के लिये—पंजीकृत वसीयत को निरस्त्र करने के लिये—रजिस्टर्ड विल ही दरकार होती है। वसीयत जरूर ही रजिस्टर कराई जाये, ऐसा कोई नियम नहीं है—अनरजिस्टर्ड विल भी वैलिड डाकूमेंट होता है—लेकिन विल अगर रजिस्टर्ड है तो उसको रजिस्टर्ड विल ही कैंसल कर सकती है ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘हालिया शादी के बाद की गयी सेठ जी की कोई नयी वसीयत बरामद होती है तो वो इसलिये नल एण्ड वायड मानी जायेगी कि वो रजिस्टर्ड नहीं थी और रजिस्टर्ड विल उपलब्ध थी ।’’
‘‘कोई नयी वसीयत की होगी सेठ जी ने?’’
‘‘हो सकता है की हो और उसे रजिस्टर कराने का उन का इरादा भी हो लेकिन उनके ऐसा कर पाने से पहले ही उन की चल चल हो गयी ।’’
‘‘साहब, ऐसी कोई वसीयत भले ही कानूनन बेकार हो लेकिन अगर है और अगर बरामद हो जाये तो कई घुंडियाँ खोल देगी, कई राजों पर से पर्दे उठा देगी ।’’
‘‘मसलन?’’
‘‘मसलन शायद नई वसीयत में सेठ जी ने सुष्मिता को अपना वारिस करार दिया हो!’’
‘‘तो क्या हुआ? औलाद को दस साल पहले वाली वसीयत की खबर जरूर होगी—खुद वसीयतकर्ता ने बताये ही होगी, आखिर वो तीनों उसकी औलाद थे—और कानून का इतना ज्ञान तो उन लोगों को भी होगा कि नयी विल अगर अनरजिस्टर्ड थी तो उसकी उतनी भी कीमत नहीं थी जितनी कि उस कागज की थी जिस पर वो दर्ज थी ।’’
‘‘नई वसीयत में किसी को विरसे से बेदखल किया गया हो?’’
‘‘यूँ वो बेदखल हो तो न जाता!’’
‘‘उसे नहीं मालूम होगा कि नयी वसीयत अभी रजिस्टर नहीं हुई थी ।’’
‘‘और अब तुम कहोगे ऐसा हो पाने को रोकने के लिये उस ‘किसी’ ने सेठ जी की सुपारी लगा दी!’’
‘‘साहब, हो तो सकता है न!’’
‘‘औलाद ने बाप के खून से हाथ रंगे!’’
‘‘हो तो सकता है न! भले ही न हुआ हो, हो तो सकता है न!’’
‘‘अगर ऐसा कुछ हुआ होगा तो उस ‘किसी’ ने उसको विरसे से बेदखल करती वसीयत को सलामत छोड़ा होगा! उसका वजूद न मिटा दिया होगा!’’
‘‘उस वकील का भी जिसने वो वसीयत ड्राफ्ट की होगी! गवाहों का भी!’’
‘‘सेठ जी कोई अनपढ़ या नादान आदमी नहीं थे। पिछली वसीयत से क्यू लेकर नयी वसीयत को खुद भी ड्राफ्ट कर सकते थे और गवाही कराने की अभी नौबत नहीं आयी होगी ।’’
‘‘रजिस्टर कराने के लिये तो फिर भी वकील की जरूरत होगी?’’
‘‘ऐसे वकील रजिस्ट्रार के आफिस के बाहर मारे-मारे फिरते हैं, एक को आवाज दो सौ आते हैं, और वही दूसरे गवाह का भी इन्तजाम कर देते हैं। रजिस्ट्रार के आफिस के बाहर ऐसे कारोबार का, ऐसे कारोबार के दलालों का खुल्ला दरबार है ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘फिर भी बहस के लिये मान लें कि कोई नयी वसीयत किसी वकील ने ही ड्राफ्ट की, दूसरी गवाही किसी वाकिफ ने ही डाली तो भी जिन लोगों ने शादी के गवाहों के मँुह बन्द कर दिये, उन्हें गवाही के लिये अवेलेबल न छोड़ा, वो वैसा ही इन्तजाम नयी वसीयत में शरीक दो जनों का नहीं कर सकते?’’
‘‘कर सकते है। जिसके हाथ में ताकत हो वो क्या नहीं कर सकता!’’
‘‘सो देयर ।’’
‘‘उन लोगों के हाथ में तो डबल ताकत है—दौलत की भी और पुलिस की भी ।’’
‘‘बिल्कुल!’’
‘‘साहब, ये वसीयत की कापी है, असल को रजिस्ट्रार के दफ्तर से गायब कराया जा सकता है?’’
‘‘जीतसिंह, रजिस्ट्रार के दफ्तर में भी कापी ही होती है। असल तो वसीयतकर्ता के पास होती है जो रजिस्ट्रेशन के बाद, सब-रजिस्ट्रार की एनडोर्समेंट के बाद उसे वापिस मिल जाती है ।’’
‘‘कापी को रजिस्ट्रार के दफ्तर से गायब कराया जा सकता है?’’
‘‘मैं तो नहीं समझता कि कराया जा सकता है—क्योंकि आज कल तो रिकार्ड कम्प्यूट्राइज्ड भी हो गया है—फिर भी कोई करिश्मा हो जाये तो उस का वजूद साबित करने के लिये ये कापी है न!’’
‘‘साहब, सम्भाल के रखने का ।’’
नवलानी हँसा।
‘‘मैं’’—फिर बोला—‘‘एक कापी तुम्हें भी देता हूँ ।’’
‘‘कोर्ट से मंगवायेंगे?’’
‘‘अरे, नहीं, भई। कापी से कापी हो जाती है। जेरोक्स मशीन यहीं है, मैं कापी बनवाता हूँ ।’’
‘‘जरूरत नहीं, साहब। आपके पास होना, मेरे पास होना, एकीच बात ।’’
‘‘मर्जी तुम्हारी ।’’
‘‘अभी मैं जाये, साहब?’’
‘‘एकाध छोटी मोटी बात और सुन के जाओ ।’’
‘‘सुनता है, साहब ।’’
‘‘तुलसी चैम्बर्स में चंगुलानी साहब वाले फ्लोर पर उनका रामास्वामी नाम का एक मद्रासी पड़ोसी है जो कि मंत्रालय में किसी बड़ी पोस्ट पर है और जो चंगुलानी साहब की जिन्दगी में—मुझे मालूम था—उनका अच्छा दोस्त था। इसी वजह से कल शाम में इस रामास्वामी साहब से मिलने गया था। बेचारा दोस्त की मौत पर दिल से बहुत अफसोस करता था, इसी वजह से उससे बातचीत के दौरान चंगुलानी साहब से ताल्लुक रखती कई बातों का—जैसे उन की आदतों का, उनके मिजाज का, उनकी पसन्द नापसन्द का—जिक्र अपने आप ही उठा। ऐसी बातों में एक बात ये भी थी कि चंगुलानी साहब कितने जिम्मेदार और दूरदर्शी आदमी थे। उनके बाल बच्चे शायद ही कभी उन से मिलने आते थे फिर भी उन्होंने सबको अपने फ्लैट के मेन डोर की चाबी दी हुई थी ।’’
‘‘काहे को?’’
‘‘अकेले रहते थे न! शादी से पहले अक्सर तफरीह के लिये, सैर सपाटे के लिये निकल जाते थे। कहते थे उन की गैरहाजिरी में कोई उधर पहँुचे तो वो नहीं चाहते थे कि उसे फ्लैट को ताला लगा मिलता और किसी को होटल में जा कर ठहरना पड़ता ।’’
‘‘साहब, मोबाइल के जमाने में कौन कहीं ऐसे पहँुचता है!’’
‘‘ठीक। ठीक। लेकिन उन की कोई सोच होगी जो ये कहती होगी कि उन की औलाद के पास उनके फ्लैट की एक-एक चाबी होने में कोई हर्ज नहीं था ।’’
‘‘औलाद बोले तो दो इंगलैण्ड वाले लड़के और एक कोलकाता वाली लड़की?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘दामाद को चाबी नहीं?’’
‘‘चाबी बेटी के पास होना या दामाद के पास होना एक ही बात थी, भई ।’’
‘‘सॉरी! ऐसे कोई आता था?’’
‘‘रामास्वामी कहता है बेटे तो कभी नहीं आये थे लेकिन दामाद आता रहता था ।’’
‘‘आता रहता था! अक्सर?’’
‘‘ऐसा ही मालूम पड़ा है। उसका हौजियरी का जो बिजनेस है, मालूम पड़ा है कि, उसके सिलसिले में वो हर महीने मुम्बई आता है। कभी कभार महीने में दो बार भी ।’’
‘‘और आकर चंगुलानी साहब के फ्लैट का दरवाजा खोलता है और उनकी गैरहाजिरी में वहाँ रहता है!’’
‘‘जाहिर है। इसीलिये तो चाबी मुहैया कराई गयी है ।’’
‘‘साहब, ये बात तो मेरे को कुछ और ही सुझा रही है!’’
‘‘क्या?’’
‘‘ये कहना तो गलत हुआ न कि वो फैंसी छुरी जो कत्ल में काम आई, उस तक पहँुच खाली सुष्मिता की थी। जब चाबियाँ यूँ मिठाई की माफिक बँटी हुई थी तो वो छुरी—जिसको कार्विंग नाइफ बोलते हैं—तो कोई भी काबू कर सकता था!’’
‘‘अब ये न कहना जिसको सुपारी दी, उसको बतौर आलायकत्ल मुहैया करा सकता था ।’’
‘‘मैं जरूर कहेगा, साहब। इससे मेरी ये सोच मजबूत होती है बरोबर कि कोई घर का भीड़ू ही सेठ जी के मर्डर का सुपारी लगाया हो सकता है। अभी बोले तो खास तौर से दामाद ।’’
‘‘वो खास तौर से क्यों?’’
‘‘क्योंकि कभी भी इधर होता है। ससुरे की मौत की खबर सुनकर रोती धोती बीवी के साथ इतवार को इधर पहँुचा। क्या पता वो पहले भी इधर था—सेठ जी का लाइफ में भी इधर था—जा के आया ।’’
‘‘हूँ ।’’
‘‘साहब, पक्की करो न!’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘साहब, पैसे वाला भीड़ू प्लेन पर आता जाता होयेंगा। रिकार्ड से पता चलेंगा न कि कब-कब आया गया!’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘विलायती छोकरों का भी!’’
‘‘अच्छा भई, करते है इस बाबत कुछ ।’’
‘‘मेहरबानी होगी साहब। बोले तो अभी मैं जाये?’’
‘‘हाँ। लेकिन एक काम करना ।’’
‘‘बोलो, साहब!’’
‘‘सुष्मिता से बात करना। नयी वसीयत की शायद उसे कोई खबर हो, कोई भनक हो ।’’
‘‘ऐसा?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘ठीक है। करता है बात। अभी जाता है, साहब ।’’
नवलानी ने सहमति में सिर हिलाया।
जीतसिंह वापिस विट्ठलवाडी लौटा।
गाइलो उसे उसके फ्लैट वाली इमारत के सामने अपनी टैक्सी में बैठा मिला।
‘‘कब आया?’’—जीतसिंह ने पूछा।
‘‘बस अभी’’—गाइलो बोला—‘‘पाँच मिनट पहले ।’’
‘‘चल, ऊपर चलते हैं ।’’
‘‘नहीं’’—गाइलो ने हाथ बढ़ाकर पैसेंजर साइड का दरवाजा खोला—‘‘इधरीच बैठ ।’’
टैक्सी का घेरा काट के जीतसिंह पैसेंजर साइड में पहँुचा और टैक्सी में गाइलो के पहलू में बैठ गया।
‘‘क्या बात है?’’—उसने पूछा—‘‘शक्ल से फिकर करता जान पड़ता है!’’
‘‘है न! वो कैमरा सिस्टम साला है उधर बरोबर ।’’
‘‘देखा! है न!’’
‘‘मेरे मगज में कचरा। साला पहले क्यों न नोटिस में आया!’’
‘‘अभी आया न!’’
‘‘अभी तो आया बरोबर ।’’
‘‘वो क्लर्क सैट हुआ?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘फिर काहे को फिकर करता है?’’
‘‘जीते, वो मलयाली क्लर्क चेराट सैट तो हुआ आखिर पण वो साला क्लोज्ड सर्कट टीवी सिस्टम उधर न होता तो मैं ज्यास्ती कम्फर्टेबल फील करता ।’’
‘‘आखिर सैट हुआ, बोला। लगता है प्राब्लम करके हुआ ।’’
‘‘नहीं, पिराब्लम करके तो नहीं, पण साला चक्कर देता था, इम्पार्टेंट भीड़ू बन के बताता था। मेरे को बोला बहुत बिजी। बोला मिडनाइट पर ड्यूटी आफ होने का, तब तक वेट करने का और बाहर मिलने का ।’’
‘‘तू आधी रात तक वहाँ रुका?’’
‘‘क्या करता! सुनता थाइच नहीं ।’’
‘‘आखिर काम करने को तैयार हुआ?’’
‘‘वो तो हुआ पण बहुत मँुह फाड़ा। साला फिफ्टी माँगता था, फिर फार्टी पर आया। बहुत मुश्किल से, बहुत झिकी झिकी का बाद ट्वेन्टी फाइव पर सैटल किया ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘आज मार्निंग में ट्वेल्व एण्ड हाफ उसे पहँुचा के आया। अभी एटीन एण्ड ए हाफ उसे बाद में और देने का ।’’
‘‘साढ़े अट्ठरा हजार है तेरे पास?’’
‘‘नहीं है न! इस वास्ते महालक्ष्मी वाले मनीलैंडर के पास फिर गया ।’’
‘‘क्या करने?’’
‘‘पूछता है क्या करने!’’
‘‘और कर्जा लेने?’’
‘‘हाँ। पण साला नक्की बोला। बोला एक डील एकीच बार। पहला टेम ही फिफ्टी माँगता तो देता। सिक्स्टी माँगता तो देता। अभी जब तक पहला डील क्लोज नहीं होता, नवां लोन एब्सोल्यूट नो नो ।’’
‘‘तो?’’
‘‘जीते, टैन थाउ तेरे को देने का ।’’
‘‘ठीक है ।’’
‘‘मेरे को ऐसा बोलना नहीं माँगता था पण साला वो कैमरा वाला बात ने मेरा बजट बिगाड़ दिया ।’’
‘‘वान्दा नहीं। मैं लाता है टैन थाउ ।’’
‘‘अभी नहीं माँगता, जीते, अभी नहीं माँगता। रात को साथ ले के चलना ।’’
‘‘ठीक है ।’’
‘‘रात नाइन ओक्लाक पर मेरे को इधरीच, अपने फिलेट पर, मिलना। कुछ खास तैयारी भी करने का, इस वास्ते टेम लगेगा ।’’
‘‘क्या खास तैयारी?’’
‘‘बोलेगा। अभी जाता है ।’’
सहमति से सिर हिलाते जीतसिंह ने टैक्सी का अपनी ओर का दरवाजा खोला।
‘‘नाइन ओक्लाक पर लौट के आता है ।’’
‘‘ठीक है ।’’
दस बजने में अभी दो मिनट बाकी थे जब कि गाइलो की टैक्सी जौहरी बाजार में प्रीमियर वाल्ट सर्विस की इमारत के सामने जा कर रुकी।
जीतसिंह टैक्सी के पैसेंजर के तौर पर उसकी पिछली सीट पर मौजूद था। वो उस घड़ी सिख के बहुरूप में था जो कि गाइलो का आइडिया था और उसी ने बहुरूप के लिये जरूरी साजोसामान का इन्तजाम किया था। उसके पहलू में सीट पर एक ब्रीफकेस पड़ा था जिस में उस की विलक्षण कारीगरी की टूल किट थी।
वाल्ट सर्विस के प्रवेश द्वार पर तैनात वर्दीधारी सिक्योरिटी गार्ड ने ब्रीफकेस थामे रौबदार सरदार साहब को टैक्सी से बाहर निकलते देखा तो उसने सहज ही उन्हें कोई सम्पन्न बिजनेसमैन समझ लिया अलबत्ता ये देखकर उसे तनिक हैरानी जरूर हुई कि टैक्सी का ड्राईवर टैक्सी में बैठ कर पैसेंजर की वापिसी का इन्तजार करने की जगह उसके साथ चला आ रहा था।
गाइलो और जीतसिंह प्रवेश द्वार लांघ कर भीतर हाल में दाखिल हुए जिसके एक बाजू से नीचे वाल्ट को जाती सीढ़ियाँ थीं। सीढ़ियों के दहाने पर भी एक गार्ड मौजूद था जिसने सरदार जी का अभिवादन किया और सीढ़ियों के दहाने का दरवाजा खोला।
दोनों नीचे वाल्ट में पहँुचे।
काली पतलून सफेद कमीज पहने, काली टाई लगाये उम्र में कोई पैंतीस साल का एक व्यक्ति पिछवाड़े की एक मेज के पीछे से उठ कर उनकी तरफ बढ़ा। वो क्लीनशेव्ड था, जैल से चमकाये उसके बाल घने थे और रंग गोरा था।
‘‘यही है हमारा भीड़ू ।’’—गाइलो दबे स्वर में बोला।
‘‘मुरली चेराट ।’’—जीतसिंह भी वैसे ही बोला।
‘‘हाँ ।’’
‘‘गोरा मलयाली ।’’
‘‘होते हैं ।’’
चेराट करीब पहँुचा, उसने एक अर्थपूर्ण निगाह वाल क्लाक पर डाली, जो कि ऐन दस बजा रही थी, और मशीनी अन्दाज से मुस्कुराया।
गाइलो ने अपने लॉकर की चाबी निकाल कर उसे दिखाई।
‘‘ओह, यस ।’’—चेराट बोला।
उसने गाइलो का लॉकर खुलवाया।
‘‘कैमरा बन्द है?’’—गाइलो ने परे घड़ी वाली दीवार पर छत के करीब लगे कैमरे की ओर इशारा करते पूछा।
‘‘हाँ ।’’—चेराट बोला—‘‘तुम्हारे आने से जरा पहले बन्द किया न!’’
‘‘कैसे किया?’’
‘‘कनैक्शन का एक वायर निकाला ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘बाद में जोड़ देने का ।’’
‘‘कैसे मालूम कि बन्द है?’’
‘‘चालू होता तो रोटेट करता दिखाई देता ।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘ये बाजू से वो बाजू, वो बाजू से ये बाजू घूमता दिखाई देता ।’’
‘‘हूँ ।’’
‘‘और पक्की करना है तो मानीटर ऊपर है। चलो, दिखाता है ।’’
‘‘नहीं माँगता। अभी ये पक्की कर कि टैन मिनट्स इधर कोई डिस्टर्बेंस नहीं, कोई इंट्रप्शन नहीं ।’’
‘‘श्योर! और मैं भी नहीं ।’’—वो तनिक हँसा—‘‘ओके?’’
‘‘हाँ। थैंक्यू बोलता है ।’’
‘‘मेरा बैलेंस...’’
‘‘दे के जायेंगा। परवाह इल्ले। नो?’’
‘‘यस ।’’
वो वहाँ से चला गया।
ऊपर सीढ़ियों के दहाने का दरवाजा चेराट के पीछे बन्द होते ही गाइलो ने लॉकर में अपनी चॉबी फिर फिराई और फिर फुर्ती से लॉकरों के कैबिनेट्स की उस कतार में दाखिल हुआ जिसमें लॉकर नम्बर 243 और 244 थे।
‘‘शुरू कर, जीते ।’’—गाइलो सस्पेंसभरे स्वर में बोला—‘‘टेम खोटी नहीं करने का ।’’
जीतसिंह ने जवाब न दिया, वो पहले ही ब्रीफकेस खोलकर उसमें से अपने औजारों की किट निकाल रहा था। पलक झपकते वो अपने काम में जुट भी गया हुआ था।
लॉकर में डबल लाॅकिंग सिस्टम होता था जो खुलता दो चाबियों से था, जिन में से एक कस्टमर के पास और दूसरी—मास्टर की—मैनेजमेंट के पास होती थी, लेकिन बन्द कस्टमर की अकेली चाबी से हो जाता था। जीतसिंह अपने हुनर का कितना बड़ा उस्ताद था, उसका सबूत ये था कि उसने आठ मिनट में लॉकर 243 को खोल दिया और अपने औजार समेटने लगा।
‘‘खुल गया?’’—सस्पेंस से अधमरा हुआ जा रहा गाइलो बड़ी मुश्किल से बोल पाया।
जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया।
काँपते हाथों से गाइलों ने लॉकर का ढक्कन बाहर को खींचा। ढक्कन खींचते ही खुल गया तो उसकी सूरत पर ऐसे भाव आये जैसे उसे हार्ट अटैक होने वाला हो। थर-थर काँपते हुए उसने भीतर हाथ डाल कर वहाँ मौजूद ब्रीफकेस बाहर निकाला।
‘‘वजनी है ।’’—वो फुसफुसाया।
‘‘खाली नहीं होगा’’—जीतसिंह शान्ति से बोला—‘‘तो और कैसा होगा!’’
‘‘लाक्ड है ।’’
‘‘बाद में खोलेंगे। अभी निकल ले ।’’
‘‘जीते, मेरे को सस्पेंस। बाद में मालूम पड़ा कि साला वजन ही ढोया तो...’’
‘‘वान्दा नहीं ।’’
‘‘है वान्दा। ये ब्रीफकेस इधरीच छोड़ने का। इसी वास्ते मैं दूसरा साथ लाया ।’’
‘‘दूसरा इधर छोड़। दोनों देखने में एक ही जैसे हैं ।’’
‘‘पण...’’
‘‘कहना मान, गाइलो। टेम खोटी न कर ।’’
तीव्र अनिच्छा का प्रदर्शन करते गाइलो ने अपने वाला ब्रीफकेस लॉकर में डाला तो जीतसिंह ने लॉकर को बदस्तूर बन्द कर दिया। खोलने के मुकाबले में ताला बन्द करना चुटकियों का काम निकला।
जीतसिंह ने अपना डाक्टरों के विजिट बैग जैसा पर उससे कदरन छोटा टूल किट वाला बैग सम्भाला, लॉकर वाला ब्रीफकेस गाइलों को थमाया और दोनों वहाँ से निकल पड़े। वो सीढ़ियों के दहाने पर पहँुचे तो दरवाजा पहले ही खुल गया।
खोलने वाला खुद चेराट था।
एक गुप्त निगाह गार्ड पर डालते उसने उंगली और अंगूठे से सिक्का उछालने का इशारा किया।
‘‘बाहर!’’—गाइलो धीरे से केवल एक शब्द बोला।
चेराट ने सहमति में सिर हिलाया और फिर उनसे आगे बाहर को बढ़ा।
वो टैक्सी के करीब पहँुचे तो गाइलो ने चेराट को एक लम्बा लिफाफा थमाया।
चेराट की भवें उठीं।
‘‘एटीन एण्ड ए हाफ ।’’—गाइलो बोला—‘‘एटीन लाल वाला गान्धी, एक पीले वाला ।’’
चेराट लिफाफा खोलने लगा।
‘‘ढक्कन!’’—गाइलो फुँफकारा—‘‘गार्ड देखता है ।’’
चेराट ठिठका, फिर एक बार हौले से सहमति में सिर हिलाते उसने लिफाफे को दोहरा करके पैंट की जेब के हवाले किया और फिर बिना उन की तरफ निगाह डाले धूमा और लम्बे डग भरता वापिस वाल्ट की इमारत में दाखिल हो गया।
‘‘बिरीफकेस डिकी में रखे?’’—पीछे गाइलो बोला।
‘‘अगर मैं पैसेंज हूँ ।’’—जीतसिंह बोला—‘‘तो पैंसेजर के ब्रीफकेस का डिकी में क्या काम! ये साला लगेज है? सूटकेस है? ट्रंक है?’’
‘‘ओह! सॉरी ।’’
‘‘टूल किट को रख ।’’
‘‘अभी ।’’
उसने टूल किट डिकी में बन्द की, फिर दोनों पहले की तरह टैक्सी में आगे पीछे बैठे।
ड्राईवर और पैसेंजर।
जीतसिंह ने ब्रीफकेस को अपने पहलू में रख लिया।
‘‘जीते!’’—इंजन स्टार्ट करता गाइलो बोला।
‘‘बोल!’’
‘‘मेरे को सस्पेंस!’’
‘‘काहे का?’’
‘‘बिरीफकेस में क्या है?’’
‘‘मेरे को भी है। इधर से निकल के कहीं ठिकाने लग, फिर खोलते हैं, देखते हैं ।’’
‘‘पण...’’
‘‘अरे, दस मिनट की बात है। अभी निकल ले ।’’
‘‘अच्छा ।’’
गाइलो ने टैक्सी को गियर में डाला, फिर उसे यू टर्न देने लगा। टैक्सी घूम गयी तो उसने उसे वापिस उस रास्ते पर डाला जिधर से कि वो आये थे।
रात की उस घड़ी बाजार में मामूली हलचल थी और वाहनों की आवाजाही भी बहुत कम थी।
गाइलो ने गियर बदला और टैक्सी की रफ्तार बढ़ाई।
तभी पीछे से एक तेजरफ्तार जीप आयी, उसने टैक्सी को ओवरटेक किया और फिर एकाएक वो घूम कर यूँ टैक्सी के सामने खड़ी हुई कि टैक्सी जीप से टकराने से बाल-बाल बची।
ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूँज उठा।
जीतसिंह अपनी जगह से उछल कर पैसेंजर सीट की बैक से टकराया, ब्रीफकेस सीट से नीचे जाकर गिरा।
गाइलो के मँुह से भद्दी गाली निकलने ही वाली थी कि उस को दिखाई पड़ा कि जीप पुलिस की थी। उसको एक हवलदार चला रहा था जिस के बाजू में पैसेंजर सीट पर एक तीन सितारों वाला इन्स्पेक्टर बैठा हुआ था। उसकी वर्दी की बैल्ट के होल्स्टर में मौजूद गन गाइलो को साफ दिखाई दी। खुली जीप के स्टियिंरग पर बैठे हवलदार ने भी तब तक स्टियिंरग छोड़ दिया हुआ था और अब उसके हाथ में रायफल दिखाई दे रही थी।
‘जीसस!’—गले में पड़े क्रॉस को छूता गाइलो होंठों में बुदबुदाया—‘जीसस!’
इन्स्पेक्टर जीप पर से उतरा और एक डण्डा हिलाता टैक्सी के पास पहँुचा। उसने डण्डे का एक प्रहार खामखाह टैक्सी के बोनट पर किया और कड़क कर बोला—‘‘बाहर निकलने का ।’’
‘‘पण, बाप’’—गाइलो याचनापूर्ण स्वर में बोला—‘‘पैसेंजर ढोता है। उसका तो खयाल...’’
‘‘पैसेंजर को भी बाहर निकलने का ।’’
‘‘पण काहे? हुआ क्या है? अपुन किया क्या है?’’
‘‘जुबान लड़ाता है!’’—इन्स्पेक्टर का खाली हाथ होल्स्टर में रखी पिस्तौल की मूठ पर पड़ा।
‘‘अरे नहीं, बाप, मैं तो खाली पूछता है...’’
‘‘बाहर निकल के पूछ ।’’
इन्स्पेक्टर को और अपनी किस्मत को कोसता गाइलो टैक्सी से बाहर निकला।
एकाएक आई उस मुसीबत से जीतसिंह भौंचक्का था लेकिन उम्मीद कर रहा था कि कोई छोटी-मोटी चैंकिग थी तो तभी खत्म हो जाने वाली थी।
‘‘लाइसेंस दिखा ।’’—इन्स्पेक्टर पूर्ववत सख्त लहजे से बोला।
गाइलो ने दिखाया।
‘‘आरसी दिखा। इन्श्योरेस दिखा ।’’
गाइलो ने वो कागजात पेश किये।
‘‘ये फोटोकापी है ।’’
‘‘ओरीजिनल घर पर रखेला है न सेफ कर के!’’
‘‘ओरीजिनल साथ रखने का ।’’
‘‘मिस्टेक हुआ, बाप, आगे ऐसीच करेगा ।’’
‘‘हूँ ।’’
‘‘पण, बाप, अभी बोलो तो, हुआ क्या है? क्या चैक करता है? क्या किया मैं?’’
‘‘हमें गुमनाम टिप मिली है इधर कोई टैरेरिस्ट बम फोड़ना माँगता है ।’’
‘‘जीसस!’’
‘‘सब व्हीकल्स चैक करने का ।’’—उसने टैक्सी में पीछे झाँका एक सरसरी निगाह ‘पैसेंजर’ पर डाली, फिर बोला—‘‘किधर से आता है? किधर जाता है?’’
‘‘प्रीमियर वाल्ट सर्विस से आता है, विट्ठलवाडी जाता है ।’’
‘‘ब्रीफकेस में क्या है?’’
‘‘बाप, पैसेंजर का है, पैसेंजर को मालूम होयेंगा ।’’
‘‘हूँ। सरदार साहब, आप जरा बाहर आइये ।’’
‘‘क्यों?’’—जीतसिंह लहजे में रौब पैदा करने का भरसक प्रयत्न करता बोला, आखिर वो पैसेंजर था जिसे परेशान किया जा रहा था—‘‘क्या बात है?’’
‘‘ब्रीफकेस के साथ ।’’
‘‘लेकिन बात क्या है?’’
इन्स्पेक्टर ने डण्डा बगल में दबाया और पिस्तौल निकाल कर हाथ में ले ली।
‘‘आप बाहर आते है कि नहीं!’’—फिर हिंसक भाव से बोला।
देवा!
ब्रीफकेस सम्भाले जीतसिंह बाहर निकला और दो कदम आगे बढ़ कर इन्स्पेक्टर के करीब पहँुचा।
‘‘ब्रीफकेस में क्या है?’’—इन्स्पेक्टर बोला।
‘‘कागजात हैं ।’’—जीतसिंह बोला—‘‘कुछ निजी सामान है ।’’
‘‘बम है ।’’
‘‘क्या!’’
‘‘जो कि इधर कहीं प्लांट करने का ।’’
‘‘क्या बात करते हैं, जनाब! मैं क्या...’’
‘‘ब्रीफकेस हुड पर रखो ।’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘रखो!’’
जीतसिंह ने आदेश का पालन किया।
‘‘खोलो!’’
‘‘जनाब, इसमें....’’
‘‘खोलो!’’
‘‘आप सुनिये तो सही!’’
‘‘सुनूँगा। पहले खोलो ।’’
कैसे खोलता!
जीतसिंह ने जेबों में चाबी खोजने कर अभिनय किया।
‘‘चाबी नहीं है ।’’—फिर बोला।
‘‘क्यों नहीं है?’’—इन्स्पेक्टर आँखें निकालता बोला।
‘‘कहीं गिर गयी ।’’
‘‘कहाँ गिर गयी?’’
‘‘क्या पता! लेकिन जनाब, इस में...’’
‘‘थाने चलना होगा ।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘उधर चैक होगा ब्रीफकेस। जीप में बैठो। दोनों ।’’
‘‘लेकिन, जनाब...’’
‘‘या ब्रीफकेस खोल के दिखाने का या थाने चलने का। बहस नहीं मांगता मैं। थाना करीब ही है। ब्रीफकेस में आब्जेक्शनेबल कुछ नहीं तो पाँच मिनट में फारिग। चलो ।’’
जीतसिंह का दिल डूबने लगा। थाने में क्या छुपा रहता कि वो नकली सरदार था—अभी तक उसकी वो पोल नहीं खुली थी, यही करिश्मा था—ब्रीफकेस तो फंसवाता ही फंसवाता।
क्या किस्मत पाई थी! असल काम तो निर्विघ्न हो गया था, अब खामखाह का पंगा गले पड़ गया था।
‘‘चलो ।’’
‘‘बाप’’—गाइलो गिड़गिड़ाया—‘‘मैं टैक्सी पर जीप के पीछे आता है न!’’
‘‘टैक्सी इधरीच छोड़ ।’’
‘‘पण, बाप...’’
‘‘बोले तो तू ही टैरेरिस्ट! गनपत! शूट कर साले को!’’
हवलदार ने रायफल सीधी की।
‘‘चलता है, बाप’’—गाइलो आतंकित भाव से बोला—‘‘चलता है। अभी का अभी चलता है ।’’
उसने टैक्सी को लॉक किया, फिर वो और जीतसिंह जीप में सवार हो गये।
इन्स्पेक्टर भी हवलदार के बाजू में अपनी जगह पर बैठा।
हैरानी थी कि उसने ब्रीफकेस को अपने कब्जे में लेने की कोई कोशिश नहीं की थी।
पुलिसियों की वर्दी पर लगी नेम प्लेट्स के मुताबिक इन्स्पेक्टर का नाम गोविन्दराव आप्टे था और उसके हवलदार का नाम गनपतराव टिंगरे था।
जीप आगे बढ़ी।
‘‘बाप’’—एकाएक गाइलो बोला—‘‘ये तो थाने का रास्ता नहीं! थाना तो उधर पीछू...’’
‘‘मालूम! मालूम!—इन्स्पेक्टर बिना गर्दन घुमाये बोला—‘‘उधर एक टैम्पो पलट गया है। जाम लगा है। इस वास्ते आगे से घूम कर जाने का ।’’
‘‘ओह!’’
जीप दौड़ती रही।
पीछे बैठे जीतसिंह और गाइलो की अंजाम से खौफ खाई निगाहें कई बार मिलीं और भटकीं। दोनों ही जानते थे कि उस घड़ी वो पूरी तरह से बेबस थे।
जो होना था उसके इन्तजार के अलावा उन के पास कोई चारा नहीं था।
बाजार से निकल कर जीप एक खुले इलाके से गुजरती सड़क पर दौड़ने लगी। वो सड़क आगे से गोल घूम गयी तो गाइलो को लगा कि इन्स्पेक्टर ठीक ही कह रहा था कि वो घेरा काट कर थाने जा रहे थे।
उसके मन को उस अनजानी आशंका से निजात मिली जो नाहक उसके जेहन पर दस्तक दे रही थी।
जीप की रफ्तार एकाएक घटने लगी।
फिर वो एक मेहराबदार खुले आयरन गेट से भीतर दाखिल हुई जिसके आगे एक बहुत बड़ा नीमअन्धेरा कम्पाउन्ड था। उस कम्पाउन्ड के भीतरी सिरे पर एक एकमंजिला इमारत थी जिस के सामने के लम्बे गलियारे में रौशनी थी।
हवलदार ने जीप इमारत तक ले जाने की जगह एक पेड़ के नीचे रोकी।
गाइलो ने देखा कि वहाँ आजू बाजू और भी वाहन खड़े थे।
लेकिन ये बात जीतसिंह ने ही नोट की कि वे जब्ती वाले वाहन थे जिन में से कई तो इतने अरसे से वहाँ खड़े थे कि चलने के काबिल ही नहीं रहे थे। वो जानता था कि पकड़ कर लाये गये ऐसे वाहनों में चोरी के काबिल जो भी चीज होती थी—जैसे बैटरी, टायर, स्टेपनी—वो पुलिसवाले बेच खाते थे।
‘‘ब्रीफकेस ले के जा’’—इन्स्पेक्टर अपने हवलदार से सम्बोधित हुआ—‘‘और इस को गोला बारूद के लिये लैब से चैक करा के ला। सेफ हो तो वापिस लौट के आने का ताकि मैं इन को रिलीज करे। कोई खास बरामदी हो तो उधर इन की गिरफ्तारी के वास्ते बोलना ।’’
सहमति में सिर हिलाता हवलदार जीप से उतरा, उसने जीतसिंह से ब्रीफकेस ले लिया और वाहनों की कतार के बाजू से बढ़ता अन्धेरे में कहीं गायब हो गया।
‘मैंने तुम्हारा लिहाज किया ।’’—पीछे इन्स्पेक्टर बोला—‘‘जो इधर ही ठहरा। आगे लेकर जाता तो एसएचओ पहले तुम्हें बन्द करता और फिर आगे की कार्यवाही करता। फिर ब्रीफकेस से कुछ बरामद न भी होता तो रात इधरीच कटती। थाने में जो एक बार बन्द हो जाये, उसको निकलने के लिये गुलदस्ता देना पड़ता है, भले ही बेगुनाह हो। मालूम?’’
‘‘मालूम, बाप ।’’—गाइलो बोला।
वो और जीतसिंह दोनों ही जानते थे कि गुलदस्ते का मतलब रिश्वत होता था।
‘‘पण, बाप’’—गाइलो आगे बढ़ा—‘‘जब लिहाज किया तो और करना था न!’’
‘‘और क्या करना था?’’
‘‘हमेरे को भी गुलदस्ता का वास्ते बोलना था!’’
‘‘साला, श्याना! अरे, तेरा पैसेंजर ब्रीफकेस खोल के दिखाता तो वो नौबत आती न! क्या!’’
‘‘बरोबर बोला, बाप ।’’
दस मिनट गुजर गये।
‘‘पता नहीं कहाँ मर गया, साला गनपत!’—इन्स्पेक्टर बड़बड़ाया, फिर जीप से उतरता बोला—‘‘देखता है ।’’
फिर जो रास्ता हवलदार ने पकड़ा था, उसने भी उसी पर कदम डाला और कुछ क्षण बाद निगाहों से ओझल हो गया।
‘‘गाइलो!’’—पीछे जीतसिंह एकाएक बोला।
‘‘हाँ?’’—गाइलो अनमने स्वर में बोला।
‘‘वो दोनों पुलिस वाले हमें जीप में छोड़ के चले गये!’’
‘‘तो?’’
‘‘हम सस्पैक्ट! ब्रीफकेस में कोई गोला बारूद तो हम टैरेरिस्ट!’’
‘‘असल में तो बिरीफकेस में साला गोला बारूद से ज्यास्ती डेंजर माल होयेंगा ।’’
‘‘यही कहना चाहता था मैं। फिर भी वो इन्स्पेक्टर हमें यहाँ अकेला छोड़ के चल दिया! अभी हम इधर से नक्की करें तो हमें कौन रोकेगा?’’
‘‘कोई नहीं ।’’—फिर गाइलो के लहजे में घबराहट का पुट आया—‘‘मतलब क्या हुआ इसका?’’
‘‘अभी और सुन ।’’
‘‘और क्या?’’
‘‘उन पुलिस वालों ने हम को घेर कर थामा क्योंकि उन्हें गुमनाम टिप मिला कि इधर कोई टैरेरिस्ट वारदात करना माँगता था और वो लोग सब वहीकल्स चैक करता था!’’
‘‘बरोबर ।’’
‘‘ऐसी चैकिंग दो भीड़ू करते हैं? हम सच में टैरेरिस्ट होते तो वो खाली दो भीड़ू हैंडल करना क्या प्राब्लम होता?’’
गाइलो के नेत्र फैले।
‘‘दैट्स करैक्ट!’’—फिर उत्तेजित भाव से बोला—‘‘दैट्स एब्सोल्यूटली करैक्ट साला। पुलिस को टैरेरिस्ट्स का टिप मिले तो उसको डील करने का वास्ते साला पूरा गारद पहँुचता है पुलिस का। अभी खाली दो भीड़ू पहँुचा। साला मगज में जाला जो इतना सिम्पल बात पहले खोपड़ी में न घुसा ।’’
‘‘फिर चैकिंग कैसी? हम हथियारबन्द हो सकते थे पण साला कोई जामातलाशी नहीं, टैक्सी में झाँका तक नहीं, डिकी तक खोलने को न बोला। साला अक्खा फोकस ब्रीफकेस पर। नहीं?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘और बोले तो साला कैसा लल्लू पुलिस इन्स्पेक्टर जो भांप न सका कि मैं नकली सरदार जब कि मैं ऐन उसके सामने खड़ेला था। क्यों न भांप सका?’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘क्योंकि ऐसी कोई जरूरत ही नहीं थी। मैं क्या था, उसको इससे कोई मतलब ही नहीं था क्योंकि—फिर बोलता हैं—उसका फोकस तो ब्रीफकेस पर। हम साला कोई हो!’’
‘‘अरे, जीते, मतलब क्या हुआ इसका?’’
‘‘सोच ।’’
‘‘तू बोल ।’’
‘‘कोई हमें टोपी पहना गया ।’’
‘‘क्या बात करता है! ये पुलिस की जीप...’’
‘‘कैसे मालूम? खाली इस वास्ते कि इस पर पुलिस लिखा है?’’
‘‘अरे, थाने में खड़ेली है ।’’
‘‘थाने के सामने के यार्ड में कबाड़ में खड़ेली है। थाने तक तो पहँुची ही नहीं!’’
‘‘वो इन्स्पेक्टर बोला न क्यों न पहँुची!’’
‘‘हमारा लिहाज किया!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘काहे को? हमारा सगेवाला था?’’
‘‘नहीं पण...’’
‘‘लिहाज करना था तो ब्रीफकेस का ताला मामूली होता है, उधर जौहरी बाजार में ही उसे जबरन खोलता तो कनफर्म हो जाता उसमें बम नहीं था, हम टैरेरिस्ट नहीं थे ।’’
‘‘पण माल! रोकड़ा!’’
‘‘होता तो गुलदस्ता कबूल करता, वो अपनी राह लगता, हम अपनी राह लगते ।’’
‘‘अरे, मतलब क्या हुआ?’’
‘‘तेरे को मालूम ।’’
‘‘मालूम! फिर भी तू बोल! मेरा तो खयाल से दिल हिलता है ।’’
‘‘मतलब वही जो मैं बोल चुका। कोई हमें टोपी पहना गया ।’’
‘‘जीसस! अरे तू पहले क्यों नहीं बोला?’’
‘‘पहले कब? इन्स्पेक्टर के सामने? या और पहले जब हवलदार ब्रीफकेस के साथ इधर से गया?’’
गाइलो खामोश रहा।
‘‘नतीजा मालूम! दोनों इधरीच मरे पड़े होते ।’’
‘‘शूट कर देता?’’
‘‘बरोबर ।’’
‘‘थाने में?’’
‘‘थाना दूर है। गोली की आवाज उधर पहले तो पहँुचती नहीं, पहँुचती तो यही लगता उधर कि रोड पर कोई ट्रक बैकफायर किया ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘और सौ बातों की एक बात कि पहले ये मेरे को सूझा ही नहीं। तभी सूझा जब इन्स्पेक्टर हमें जीप में बैठा छोड़ के चल दिया ।’’
‘‘जीसस! अभी हमेरे को क्या करने का?’’
‘‘तू बोल ।’’
‘‘निकल चलते हैं ।’’
‘‘उसके लिये तो हम आजाद हैं पण पहले मेरे को कुछ करने का ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘थाने में जाने का ।’’
‘‘क्या! माथा फिरेला है?’’
‘‘तेरे को लोचा तो मैं जाता है ।’’
‘‘पण काहे?’’
‘‘देखना ।’’
जीतसिंह ने दाढ़ी मूँछ और पगड़ी फिफ्टी उतार कर परे झाड़ियों में फेंक दी और चेहरे को रूमाल से रगड़ का पोंछा। फिर वो जीप से उतरा और दृढ़ कदमों से आगे थाने की ओर बढ़ा।
गाइलो कुछ क्षण हिचकिचाया फिर लपक कर उसके साथ हो लिया।
नीमअन्धेरे में चलते वो थाने की इमारत पर पहँुचे।
वहाँ एक कमरे पर ड्यूटी आफीसर का बोर्ड लगा हुआ था।
वो भीतर दाखिल हुए तो उन्हें एक टेबल के पीछे एक ऊँधता सा सब-इन्स्पेक्टर बैठा मिला।
उन की आमद पर वो सजग हुआ, उसने उन की तरफ देखा।
जीतसिंह ने उसका अभिवादन किया और अदब से बोला—‘‘इन्स्पेक्टर आप्टे से मिलना है?’’
‘‘कौन?’’—सब-इन्स्पेक्टर के माथे पर बल पड़े।
‘‘इन्स्पेक्टर गोविन्दराव आप्टे ।’’
‘‘इस नाम के कोई इन्स्पेक्टर इधर नहीं हैं ।’’
‘‘साहब, हवलदार गनपतराव टिंगरे तो होयेंगा! वो भी मिलेगा तो चलेगा ।’’
‘‘मैं ये नाम कभी नहीं सुना ।’’
‘‘साहब, वो एक ब्रीफकेस इधर लैब से चैक कराने आया था कोई पन्द्रह मिनट पहले कि उसमें कोई गोला बारूद नहीं था ।’’
‘‘बेवड़ा है क्या? ऐसी लैब थानों में नहीं होती। ऐसी चैकिंग पुलिस की फोरेंसिक सार्इंस लैबोरेट्री में होती है जो कि फोर्ट में है ।’’
‘‘साहब, इन्स्पेक्टर आप्टे और हवलदार टिंगरे हम को अभी पन्द्रह मिनट पहले पुलिस जीप में बिठा के इधर लाया...’’
‘‘पुलिस जीप में बोला?’’
‘‘हाँ साहब!’’
‘‘किधर है जीप?’’
‘‘बाहर यार्ड में खड़ेली है। स्क्रैप कारों के बाजू में। पेड़ के नीचे उधर...’’
‘‘अभी खामोश रहने का ।’’
जीतसिंह ने होंठ भींच लिये।
सब-इन्स्पेक्टर ने एक सिपाही को बुलाया।
‘‘इनके साथ जा’’—वो बोला—‘‘और देख के आ कौन सी जीप यार्ड में खड़ी है जो कि इन को यहाँ लाई है!’’
‘‘चलो ।’’—सिपाही बोला—‘‘दिखाओ ।’’
दोनों सिपाही के साथ बाहर निकले।
और आगे स्क्रैप कारों के बाजू के पेड़ के पास पहँुचे।
जीप वहाँ नहीं थी।
‘‘किधर है?’’—सिपाही बोला—‘‘किधर है जीप?’’
‘‘इधर ही थी ।’’—जीतसिंह के मँुह से निकला।
‘‘अभी इधर थी ।’’—गाइलो पुरजोर लहजे से बोला।
‘‘किधर गयी?’’
दोनों के मँुह से बोल न फूटा।
‘‘हवा में उड़ गयी? या जमीन में घुस गयी?’’
‘‘अभी क्या बोलेगा!’’—गाइलो दयनीय स्वर में बोला।
‘‘बोलेगा नहीं, करेगा ।’’
‘‘क-क्या?’’
‘‘मँुह खोल!’’
कलपते हुए गाइलो ने आदेश का पालन किया।
सिपाही ने उसका मँुह सूँधा।
वही ट्रीटमेन्ट जबरन उसने जीतसिंह को भी दिया।
‘‘पियेला तो नहीं है ।’’—सिपाही बड़बड़ाया—‘‘फिर भी साला बेवड़ा का माफिक हाँकता है। बोम मारता है ।’’
‘‘जीप इधर थी ।’’—जीतसिंह आवेश से बोला—‘‘अभी थोड़ी देर पहले...’’
‘‘थोबड़ा बन्द। सालो, शुक्र मनाओ अभी एसएचओ साहब इधर नहीं है वर्ना दुम ठोकने को बोलता। अभी निकल लो ।’’
‘‘जाता है। अभी का अभी जाता है। पण, यार, सच्ची करके बोलो, इधर कोई इन्स्पेक्टर गोविन्दराव आप्टे नहीं है?’’
‘‘अरे, इधर थाने में दो ही इन्स्पेक्टर है। एक पाटिल साहब एसएचओ है और दूसरा महुरकर साहब एएसएचओ है। बस!’’
‘‘और हवलदार गनपतराव टिंगरे?’’
‘‘नहीं है। साला कभी नाम भी नहीं सुना ।’’
‘‘इधर’’—गाइलो हिम्मत करके बोला—‘‘गोला बारूद टैस्ट करने का लैब नहीं है?’’
‘‘नहीं है। थाने में लैब का क्या काम!’’
‘‘ठीक। जाता है, बाप ।’’
भारी कदमों से वो दोनों कम्पाउन्ड से बाहर की ओर बढ़े।
आधे रास्ते में जीतसिंह ठिठका।
‘‘क्या है?’’—गाइलो भुनभुनाया।
जीतसिंह ने पीछे थाने की इमारत की तरफ निगाह दौड़ाई तो सिपाही उसे कहीं दिखाई न दिया। जरूर वो थाने में वापिस पहँुच भी चुका था।
‘‘वो पगड़ी, दाढ़ी वगैरह’’—जीतसिंह बोला—‘‘मेरे को माँगता है ।’’
‘‘काहे कू?’’
‘‘शायद कभी जरूरत पड़े ।’’
‘‘ऐसा?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘तू बाहर सड़क पर पहँुच, मैं लाता है ।’’
‘‘ढूँढ़ लेगा?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘झाड़ियों में...’’
‘‘हाँ बोला न मैं!’’
‘‘सॉरी। जा ।’’
दोनों विपरीत दिशाओं में आगे बढ़े।
जीतसिंह सड़क पर पहँुचा, एक बाजू खड़े होकर उसने एक सिग्रेट सुलगाया और बेमन से उसके छोटे-छोटे कश लगाता प्रतीक्षा करने लगा।
पाँच मिनट में गाइलो उसके करीब पहँुचा।
जीतसिंह ने प्रश्नसूचक निगाह उस पर डाली।
गाइलो ने सहमति में सिर हिलाया और उसे पिचकाई हुई पगड़ी दिखाई जिस के भीतर दाढ़ी मूँछ फिफ्टी थी।
जीतसिंह ने सिग्रेट का आखिरी कश लगा के उसे परे फेंक दिया।
‘‘इतना एफर्ट किया साला ।’’—गाइलो गमगीन लहजे से बोला—‘‘साला सब ऐन फिट, ऐन चौकस हुआ। फिर भी इन हैण्ड साला कुछ भी नहीं है। साला ये भी नहीं मालूम कि इन हैण्ड होता तो क्या होता! साला मालूम ही नहीं कि बिरीफकेस में क्या था!’’
‘‘जिधर टैक्सी खड़ेली है’’—जीतसिंह बोला—‘‘उधर का रास्ता मालूम?’’
‘‘मालूम। यही है रास्ता। चल अब। और चलते रहने का ।’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘साला वंस इन ए लाइफ टाइम चानस मिला तो साला लक ही कचरा कर गया ।’’
‘‘टोटल नहीं ।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘रिवेंज माँगता था न! मिला न रिवेंज! उनके उधर के स्पैशल सिस्टम को हिट करना माँगना था न! किया न हिट! उनके सैट अप को हाइजैक करना माँगता था न! किया न हाइजैक!’’
‘‘वो तो तू बरोबर बोला पण, जीते, इतने एफर्ट का फल जब मिल ही गया था तो उसे चखने का चानस यूँ तो हाथ से नहीं निकल जाना चाहिये था!’’
‘‘अभी निकल गया तो क्या करने का! सिवाय रोने के। मातम मनाने के!’’
गाइलो ने उत्तर न दिया।
कुछ क्षण खामोश वो दोनों चले।
‘‘मेरा साला लॉकर था उधर ।’’—फिर गाइलो यूँ बोला जैसे बड़बड़ा रहा हो—‘‘खामखाह था, क्योंकि वाल्ट का सिस्टम स्टडी करने का वास्ते उधर असैस बनाने का था। साला टेम पर मगज में न आया कि उसका ब्यूटीफुल यूज पासिबल था ।’’
‘‘क्या कह रहा है?’’
‘‘साला बिरीफकेस का माल उस लॉकर में टिरांसफर करने का था। क्या वान्दा था?’’
‘‘कोई नहीं ।’’
‘‘बाद में कभी भी निकालते, इकट्टा निकालने की जगह थोड़ा-थोड़ा निकालते...’’
‘‘हाथ क्या आया, ये तो हमें मालूम ही नहीं है!’’
‘‘तब मालूम होता न!’’
जीतसिंह खामोश रहा।
‘‘तब साला नकली पुलिस वाला लोग का हाथ में भी झुनझुना आता ।’’
‘‘अब क्या फायदा इन बातों का? कैसे भी पड़ी, बाजी उलटी पड़ गयी तो अब क्या करने का?’’
‘‘कुछ तो करने का!’’
‘‘क्या? लगता है अभी कुछ और आ गया मगज में!’’
‘‘ऐसीच है ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘जीते, आई रिपीट, वो पुलिस वाले नकली थे। पुलिस वाले थेइच नहीं, खाली पुलिस की वर्दी पहने थे! कोई सी जीप थाम के उसके आगे पुलिस लिख लिया और गश्त पर निकले पुलिस वाले हो गये ।’’
‘‘ये भी कोई कहने की बात है! ये बात तो अब सौ टांक क्लियर है ।’’
‘‘थाने क्यों ले गये?’’
‘‘चलती सड़क थी। उधर लफड़ा हो सकता था। होता तो असली पुलिस वाले पहँुच सकते थे। उन को मालूम था थाने के सामने का कम्पाउन्ड बहुत बड़ा था, उधर फाटक पर या यार्ड में रात के टेम कोई नहीं होता था। इस वास्ते उधर ला के आराम से, इतमीनान से हमें टोपी पहनाई ।’’
‘‘थे कौन?’’
‘‘क्या मालूम?’’
‘‘मुरली चेराट को मालूम ।’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘वाल्ट के मलियाली क्लर्क मुरली चेराट को मालूम बरोबर। वही लाउजी, टू बिट सन आफ बिच हमारे उधर से नक्की करते ही किसी को साउण्ड आफ किया, वर्ना वैसे पुलिस बने वो दोनों भीड़ू ऐन मौके पर मेरा टैक्सी को इन्टरसेप्ट करने का वास्ते उधर पहँुच गये!’’
‘‘पहले ये अक्ल कहाँ थी?’’
‘‘साला सक्सेस ने हिला दिया न! मगज पर नशे का माफिक हावी हो गया साला सक्सेस। तेरे साथ भी तो ऐसीच हुआ। नहीं?’’
‘‘हाँ। ठीक बोला तू। अभी मगज वापिस ठिकाने है दोनों का। अभी बोल क्या बोलता है?’’
‘‘चेराट को मालूम, बरोबर मालूम, कौन भीड़ू लोग हमेरा हाथ लगा माल हाइजैक किया। वो बारह बजे छुट्टी करता है। जीते, उसको थामने का और बाई फोर्स निकलवाने का कि वो दोनों भीड़ू कौन थे जिनको वो हमेरी बाबत बोला, खबरदार किया ।’’
‘‘किया उसने?’’
‘‘बरोबर! वो साला फुल करप्ट। जब रोकड़ा ले के मेरा काम किया तो बड़ा रोकड़ा ले के किसी दूसरा पार्टी का बड़ा काम काहे नहीं किया होगा!’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘उसको थामने का बरोबर। और फोर्सिबली उन दो भीड़ू लोगों का उससे टोटल इन्फो निकलवाने का। अभी हाँ बोल ।’’
‘‘गाइलो’’—जीता धीरे से बोला—‘‘रोकड़े की मेरी जरूरत तेरी जरूरत से कहीं बड़ी है इस वास्ते मेरी तो हाँ ही हाँ है ।’’
‘‘बढ़िया ।’’
जीतसिंह और गाइलो जौहरी बाजार में वाल्ट की इमारत से थोड़ा परे सड़क पार खामोशी से टैक्सी में बैठे थे और बारह बजने का—मुरली चेराट की ड्यूटी आफ होने का—इन्तजार कर रहे थे।
दोनों खामोश थे, संजीदा थे, अपने-अपने खयालों में खोये हुए थे।
पगड़ी वगैरह गाइलो ने टैक्सी के ग्लव कम्पार्टमेंट में बन्द कर दी थी।
‘‘हम बड़ी साजिश का शिकार हुए हैं ।’’—एकाएक जीतसिंह बोला।
गाइलो ने सप्रयास सिर उठाया और जीतसिंह की ओर देखा।
‘‘एक बड़ी साजिश के तहत, गाइलो, तू शुरू से किसी के निशाने पर था जिसने कि मेरे तक पहँुच बनाने के लिय तुझे बाकायदा स्कीम बना कर इस्तेमाल किया ।’’
‘‘क्या बात करता है!’’
‘‘वाल्ट वाला, आजू बाजू के दो लाकरों वाला जो सैट अप लूट लिये जाने की अपनी खुन्नस में तूने भांपा—या जो तू समझता है कि तूने भांपा—वो पहले से किसी की जानकारी में था और कोई पहले से उस पर घात लगाये था, खाली उसको कोई एक्सपर्ट वाल्टबस्टर नहीं मिल रहा था जो कि मैं था। वो बहुत बार मेरे को फोन लगाया, अपना आइडिया सरकाया पण मैं हर बार नक्की बोला तो मेरे से अपना काम निकलवाने की उसे नयी तरकीब सूझी। उसे पहले से मालूम था—या मालूम कर लिया—कि मैं तेरा जिगरी था और फिर तेरे को फाँसने का अपना कारोबार चालू कर दिया ।’’
‘‘कम्माल है! पण कौन किया ऐसा?’’
‘‘नाम नहीं मालूम पण मेरे को पक्की कि मैं उसकी सूरत से वाकिफ हूँ ।’’
‘‘बोले तो!’’
‘‘गाइलो, तेरे फेवरेट बेवड़े के अड्डे पर किसी ने तेरे को वाल्ट का सैट अप अपनी स्कीम के तहत बाकायदा परोसा, बार में वो जानबूझ कर तेरे करीब बैठता रहा और वाल्ट के सैट अप के बारे में कहने को अपने किसी जोड़ीदार से बतियाता रहा लेकिन असल में हर बात तेरे कानों में डालने के लिए कहता रहा ।’’
‘‘जीसस!’’
‘‘तू ने कभी उस भीड़ू की शक्ल देखी?’’
‘‘न!’’
‘‘क्यों भला?’’
‘‘क्योंकि....आई वैल रिमेम्बर...मेरी तरफ पीठ कर के बैठा होता था। बोले तो आलवेज ।’’
‘‘शक्ल न देखी, आवाज सुनी?’’
‘‘वो तो बरोबर सुनी। तभी तो वाल्ट के सैट अप के बारे में इतना कुछ काबू में आया ।’’
‘‘अपने आप न आया, इन्तजाम किया गया कि तेरे काबू में आये, बाकायदा तेरे को सरकाया गया ।’’
‘‘बोले तो फीड किया गया?’’
‘‘हाँ। अभी तू आवाज की बोल। कैसी थी?’’
‘‘आवाज थी। बोले तो मेल वायस ।’’
‘‘आवाज से मेरा मतलब है लहजा कैसा था?’’
‘‘बोले तो डायलेक्ट!’’
‘‘हाँ, शायद वही ।’’
वो सोचने लगा।
‘‘वो भीड़ू इधर की—खास मुम्बईया—जुबान बोलता था?’’
‘‘नक्को ।’’
‘‘यूपी की जुबान बोलता था ।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘जो उत्तर प्रदेश के मुसलिम मैजोरिटी वाले इलाकों में बोली जाती है। बोले तो उर्दू या उर्दू जैसी!’’
‘‘ऐग्जैक्टली!’’—गाइलो तमक कर बोला—‘‘जीते, उसके डायलेक्ट में हर बार मेरे को कुछ खटकता तो था पण स्ट्राइक नहीं करता था कि क्या खटकता था! अभी स्ट्राइक किया बरोबर। यू आर राइट देयर, वो भीड़ू उर्दू का माकिफ बोलता था ।’’
‘‘जो भीड़ू बार-बार फोन करके मेरे को वाल्ट खोलने का आइडिया सरकाता था, वो भी ऐसीच लहजे में बात करता था...जैसे कि उर्दू बोल रहा हो ।’’
‘‘तो? इतने से तेरे को साला सूरत मालूम पड़ गया?’’
‘‘सिर्फ इतने से नहीं। अभी सुन। सुन और कुछ याद कर ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘वो हवलदार—गनपतराव टिंगरे के फर्जी नाम वाला—जो उस फर्जी इन्स्पेक्टर के साथ था, वो पहले यहाँ बाजार में और बाद में थाने के यार्ड में क्या मँुह से एक अक्खर भी बोला था?’’
गाइलो सोचने लगा।
‘‘नहीं बोला था ।’’—जीतसिंह पुरजोर लहजे से बोला—‘‘इन्स्पेक्टर उससे बात करता था, या कोई आर्डर देता था, तो खाली मुंडी हिलाता था ।’’
‘‘ओ, गॉड! जीते, बरोबर बोला तू ।’’
‘‘क्योंकि मँुह खोलता, बोलता, तो मैं उसे लहजे से पहचान जाता, आवाज से पहचान जाता। गाइलो, तू भी। नहीं?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘उसकी वर्दी पर नेम प्लेट ही मराठा नाम की लगी हुई थी, मराठा वो था ही नहीं। मँुह खोलता तो तभी ये बात भी हमारे नोटिस में आयी होती ।’’
‘‘ठीक!’’
‘‘इसी वजह से उन के सारे आपरेशन की कमान दूसरे भीड़ू के हाथ में थी जो कि मराठा भी था और मुम्बईया जुबान भी बोलता था ।’’
‘‘मास्टरमाइन्ड वो नहीं था?’’
‘‘नहीं था। इस बात पर मैं कोई शर्त हारने को तैयार है कि मास्टरमाइन्ड, सारे सब फसाद की जड़, सारे आपरेशन का कर्ता धर्ता वो दूसरा भीड़ू था जो हवलदार बना हुआ था ।’’
‘‘पण था कौन?’’
‘‘मालूम पड़ेगा न! मुरली चेराट कुछ बका तो मालूम पड़ेगा न!’’
‘‘बकेगा। साला जिन्दा रहना माँगता होयेंगा तो बकेगा बरोबर ।’’
‘‘गाइलो, इतना खूँखार मिजाज तेरा पहले तो नहीं था!’’
‘‘मार खा के बना न, जो पहले उस मवाली बड़ा बटाटा ने मेरी खोली में लगाई, फिर उससे बड़े मवाली इन्स्पेक्टर गोविलकर ने तारदेव थाने में लगायी ।’’
जीतसिंह हँसा।
‘‘अभी और बोल। और बता कैसे मैं बकरा बना?’’
‘‘टेम पास करने को!’’
‘‘यहीच समझ के बोल ।’’
‘‘तो शुरू से सुन। वो पनवेल वाली जुए की फड़ कोरा ड्रामा था जो खास तेरे लिये स्टेज किया गया था। वो फड़ खास तेरे लिये सजाई गयी थी ।’’
‘‘क्या बात करता है! मेरे को फड़ की खबर किधर थी! मेरे को तो डिकोस्टा ले के गया था!’’
‘‘वो जुए का शौकीन था न! दस मिनट ही सही, पण उधर फड़ में शामिल हुआ था न!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘उसको फड़ की बाबत जानकारी—तेरी जुबान में—फीड की गयी जो कि उसने आगे तेरे को सरकाई। बोले तो किसी बुरी, गलत, नीयत से न सरकाई, रूटीन के तौर पर फ्रेंड को सरकाई। ठीक?’’
‘‘जीते, वो आइडिया मैं इस वास्ते कैच किया क्योंकि मैं बड़ा रोकड़ा कमाया जिस का हाफ मैं जुए की फड़ में एडवेंचर के तौर पर, थ्रिल के तौर पर, लूज करना, वेस्ट करना अफोर्ड कर सकता था। मेरा पास वैसा कोई रोकड़ा होता ही नहीं तो वो फीडिंग कैसे कामयाब होती?’’
‘‘तो रोकड़ा तेरे को किसी तरह से मुहैया कराया जाता ।’’
‘‘कैसे?’’
‘‘कैसे भी। बोले तो किधर तेरे को—किधर भी, तेरे टैक्सी स्टैण्ड पर, तेरे फेवरेट बेवड़े के अड्डे पर, किधर भी कहीं—एक बटुवा पड़ा मिलता जो हजार के नोटों से ठूँसा होता तो तू क्या करता? जाके थाने जमा करा के आता?’’
‘‘काहे कू! मैं साला अक्खा ईडियट! रोकड़ा मेरे को पड़ा मिला तो सेंट फ्रांसिस इस्पेशल करके मेरे वास्ते भेजा ।’’
‘‘बहरहाल यूँ बड़ी रकम तेरे हाथ लगती तो तू खुशी से वैसीच उछल रहा होता जैसे बारह दिन टूरिस्ट टैक्सी चला कर पच्चीस हजार खड़े करने पर उछल रहा था। नहीं?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘तब फड़ का आइडिया कैच करता बरोबर—जैसे कि किया?’’
‘‘आगे बोल!’’
‘‘तू कहता है कि वहाँ फड़ में तीन पत्ती में तेरे को खूब पत्ता पड़ा, तू इस वास्ते जीता। अभी याद कर के बोल, हर राउन्ड तू बड़ा पत्ता पड़ा होने की वजह से ही जीता था?’’
वो सोचने लगा, फिर मशीनी अन्दाज में इन्कार में सिर हिलाने लगा।
‘‘नहीं’’—वो बोला—‘‘सैवरल हैण्ड्स मैं इस वास्ते जीता कि सब साला सूनर ऑर लेटर पैक कर गया ।’’
‘‘क्योंकि सब को ऐसी ही हिदायत थी ।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘कि तेरे को जितवाना था ।’’
‘‘जीसस!’’
‘‘तू उधर से जीत का माल ले के नक्की किया तो दो भीड़ू लोग वो रोकड़ा—चार लाख रुपया—रास्ते में तेरे से छीन लिया। तू समझता है कि तू बहुत दिमाग वाला था, उस वक्त की इमरजेंसी में भी बहुत चौकन्ना था इस वास्ते तूने बावजूद हैट और नकाब फड़ के आर्गेनाइजर मंगेश गाबले को पहचान लिया लेकिन मैं साला शर्त लगा के बोलता है कि उस भीड़ू ने खास कर के मौका दिया तेरे को कि तू उसको पहचान लेता ।’’
‘‘क्या बात करता है!’’
‘‘वो गन दायें हाथ में थामता तो जैसे गन की मूठ पर उंगलियाँ लिपटी होती हैं, उस पोजीशन में तेरे को उसकी बीच की उंगली पूरी दिखाई ही न दी होती जिसका कि तू कहता है कि एक पोर गायब था ।’’—जीते ने दायें हाथ को गन की शक्ल देकर गाइलो की तरफ ताना—‘‘तो गोल घूमी हुई तीन उंगलियाँ मूठ थामे हथेली की ओट में होतीं। फिर न तेरे को एक उंगली के कटे पोर की खबर लगती और न ये मालूम पड़ता कि वो लैफ्टी था। दूसरे, अगर उसने ये दोनों बातें तेरे से छुपा कर रखनी होतीं तो तेरे पर गन उसके जोड़ीदार ने तानी होती ।’’
‘‘बाई गॉड, यू आर राइट ।’’
‘‘अभी कहने का मतलब ये है कि उस भीड़ू में दो बातें थीं जो कि उसकी शिनाख्त में मददगार साबित होतीं और वो दोनों जानबूझ कर तेरे नोटिस में लाई गयीं थीं ताकि अपने नुकसान से तड़पा तू उसकी फिराक में लगता तो तेरे पर उसकी दूसरी स्पैशलिटी—बिचौलिये वाली—भी उजागर हो जाती। वाल्ट के जरिये माल और रोकड़े के एक्सचेंज वाला सिस्टम बेवड़े के अड्डे पर धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा कर के तेरे को पहले से ही सरकाया जा रहा था। जो बातें तू समझता था तुझे इत्तफाक से सुनायी दे गयीं थी, वो तेरे कान में यूँ समझ कि कुप्पी लगा के डाली गयी थीं वर्ना खुद सोच ये कैसे मुमकिन हो सकता था कि जब भी तू अपने फेवरेट बेवड़े के अड्डे पर जाये, जाकर ऐसी ही जगह पर बैठे जहाँ बाजू में दो भीड़ू वाल्ट वाले उस सिस्टम की यूँ बातें कर रहे हों जैसे उस सिस्टम को फोड़ने की कोई स्कीम फिट कर रहे हों ।’’
‘‘सौ टांक बरोबर बोला तू, जीते!’’
‘‘ये पक्की है कि वाल्ट के उस सिस्टम से वो लोग पूरा-पूरा वाकिफ थे, ये भी पक्की है कि वहाँ के खास लॉकरों का माल उनके निशाने पर था लेकिन उनकी प्राब्लम ये थी कि उन के पास वाल्टबस्टर नहीं था, उन्होंने इस काम के लिये मेरे को काबू में करना चाहा तो मैं काबू में न आया। हर बार मैंने बोला नहीं माँगता था। मेरे जैसा फिट काम कर दिखाने वाले किसी दूसरे से वो वाकिफ नहीं थे। होते भी तो कोई गारन्टी नहीं थी कि वो मेरे जैसी फुर्ती से उस काम को अन्जाम दे पाता। बोले तो कोई दूसरा तिजोरीतोड़ लॉकर तो खोल लेता पण आधा घन्टा लगा देता, पौना घन्टा लगा देता, पूरा घन्टा लगा देता तो क्या फायदा होता?’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘वो जानते थे उनके मनमाफिक उनका काम एकीच भीड़ू कर सकता था और वो था बद्रीनाथ तालातोड़! वाल्टबस्टर! इस वास्ते मेरे तक पहँुचने के लिये उन्होंने तुझे जरिया बनाया। एक नपी तुली स्कीम पर काम करके पहले उन्होंने धीरे-धीरे वाल्ट की जानकारी तेरे को सरकाई, फिर तेरे पर हाथ डाल के तेरे को बदला लेने के लिये भड़काया। तूने जिद पकड़ ली कि उन के वाल्ट वाले सिस्टम को हिट कर के तूने मंगेश गाबले से बदला लेना था। उनके सिस्टम को हिट करके उसको हमेशा के लिये कण्डम बनाना था ताकि गाबले का बिचौलिये वाला खास रोल ही फिनिश हो जाता। अपने इस मिशन के तहत तू मेरे पास पहुँचा, मैंने शुरुआती ना-नुक्कर के बाद तेरे साथ काम करना मन्जूर किया, और फिर कामयाब हो के दिखाया। यूँ मेरी जो सर्विस उन्हें किसी कीमत पर हासिल नहीं हो पा रही थी, वो खामखाह हासिल हो गयी। अभी तूने देखा ही कि कैसे चोरों को मोर पड़े। वाल्ट को हिट करने की जहमत किये बिना माल फिर भी उन्हीं के हत्थे चढ़ा। गाइलो, तेरे बदले की खातिर मैंने तेरा काम न किया, अपना काम न किया, उन का काम किया। तेरे को साला कभी खयाल तक न आया कि तू जो कुछ भी कर रहा था, अनजाने में किसी दूसरे के हाथों की कठपुतली बना कर रहा था। अब बोल, क्या कहता है?’’
‘‘अभी क्या बोलेगा! सिवाय इसके कि गाइलो साला अक्खा ईडियट! टॉप के ढक्कन को कोई अवार्ड मिलता हो तो फस्र्ट क्लेमेंट साला मैं ।’’
जीतसिंह हँसा।
‘‘पण वान्दा नहीं। अब अक्कल आया न! अभी सब सैट करता है। अभी सब...जीते, वो आ रहा है ।’’
जीतसिंह की निगाह वाल्ट वाली इमारत के मेनडोर की तरफ उठी जहाँ चेराट अपने ही जैसी यूनीफार्म पहने एक हमउम्र नौजवान से बात कर रहा था। वो नौजवान जरूर वो शख्स था जिसने अगली शिफ्ट में चेराट की जगह ड्यूटी करनी थी।
‘‘ये धारावी में’’—गाइलो धीरे से बोला—‘‘मुकन्द नगर में रहता है और मोटरसाइकल पर अप एण्ड डाउन करता है। घर पहँुचने का वास्ते जो रूट लेता है, मेरे को मालूम। अभी बाजार से निकल चलते हैं, आगे जाके थामेंगे ।’’
जीतसिंह ने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया।
गाइलो ने टैक्सी आगे बढ़ाई और बाजार से बाहर निकल कर मोड़ से थोड़ा आगे रोकी। उसने हैडलाइट्स आफ कर दीं लेकिन इंजन चालू रखा, फिर रियर व्यू मिरर पर निगाह टिका दी।
पैसेंजर सीट पर बैठे जीतसिंह ने टैक्सी के भीतर का रियर व्यू मिरर यूँ एडजस्ट कर लिया कि उसमें से वो भी पीछे सड़क पर निगाह रख पाता।
दो मिनट खामोशी से गुजरे।
फिर दोनों रियर व्यू मिरर्स में मोटरसाइकल की हैडलाइट्स चमकीं।
तत्काल गाइलो ने टैक्सी को गियर में डाला और क्लच का पैडल दबाये प्रतीक्षा करने लगा। ज्यों ही मोटरसाइकल करीब पहँुची उसने क्लच छोड़ कर एक्सीलेटर का पैडल दबाया और स्टियिंरग को एकाएक दायें काटा।
मोटरसाइकल की ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूँजा। चेराट की मोटरसाइकल को रोक लेने की भरपूर कोशिशों के बावजूद मोटरसाइकल टैक्सी से टकराई और वाहन और सवार दोनों सड़क पर लुढ़क गये।
‘‘ब्लडी ईडियट!’’—चेराट चिल्लाया—‘‘साला टैक्सी चलाता है या रोड पर सर्कस करता है...’’
दोनों टैक्सी से बाहर निकले। गाइलो सड़क पर गिरे पड़े चेराट के सिर पर जा खड़ा हुआ।
‘‘स्टैण्ड अप!’’—वो हिंसक भाव से बोला।
चेराट की उसकी सूरत पर निगाह पड़ी तो जैसे उसे साँप सूँघ गया। उसने व्याकुल भाव से उसके बाजू में खड़े जीतसिंह को देखा।
‘‘सुनता नहीं है साला घौंचू!’’—गाइलो फुँफकारा—‘‘उठ के खड़ा हो ।’’
बड़े यत्न से चेराट उठ के खड़ा हुआ।
‘‘पास आ ।’’
पास आने की जगह वो दो कदम पीछे हट गया।
‘‘ओके! साला मैं आता है ।’’
‘‘नो! नो!’’—चेराट बद्हवास लहजे से बोला—‘‘मेरे पास न आना। डोंट कम क्लोज टु मी। डोंट टच मी...’’
‘‘क्या बोला? ब्लडी डिसआनेस्ट रासकल! फोड देंगा साला ।’’
‘‘यू....यू विल बी सॉरी!’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘पछताओगे ।’’
‘‘साला हूल देता है! ये जो मेरा बाजू में खड़ेला है, साला मालूम कौन है?’’
‘‘क-कौन है?’’
‘‘शूटर है। अन्डरगिराउन्ड के बड़े गैंग का। पण अपुन का फिरेंड....’’
‘‘स-सरदार कहाँ गया?’’
‘‘साला क्विज प्रोग्राम करता है! ये अभी एक बुलेट तेरे मगज में डालेगा तो तू किधर और ही क्विज प्रोग्राम करता होयेंगा। साला धोखा दिया हमेरे कू। हमेरे पीठफेरते ही किसी को फोन लगा दिया। अभी बोल हमेरे खिलाफ किस से सैट था? किसको फोन लगाया? बोल, नहीं तो...’’
दाँत किटकिटाते गाइलो ने कदम आगे बढ़ाया।
‘‘खबरदार!’’—वो आतंकित भाव से चिल्लाया—‘‘मेरे पास न आना। मैं फिर बोलता हूँ, पछताओगे ।’’
‘‘साले काकरोच! हम पछतायेंगे या तू पछतायेगा?’’
‘‘तुम पछताओगे। मेरे को मालूम तुमने—तुमने और तुम्हारे साथी सरदार ने—पीछे वाल्ट में क्या किया था!’’
गाइलो थमक कर खड़ा हुआ, उसने घूर कर चेराट की तरफ देखा।
‘‘मेरे को सब मालूम। आई स्वियर, मेरे को सब मालूम ।’’
गाइलो ने जीतसिंह की तरफ देखा।
‘‘बोम मारता है ।’’—जीतसिंह सख्ती से बोला—‘‘ब्लफ खेलता है ।’’
‘‘नो ब्लफ!’’—चेराट बोला—‘‘इट्स गॉड्स ट्रुथ दैट आई नो ऐवरीथिंग। उधर किसी दूसरी पार्टी का लॉकर खोला। उस सरदार ने बाई फोर्स लॉकर 243 खोला...’’
जीतसिंह और गाइलो दोनों मँुह बाये उसे देखने लगे।
‘‘पुलिस को मालूम पड़ेगा तो अन्दर। अन्डरवल्र्ड बॉस को मालूम पड़ेगा तो ऊपर ।’’
‘‘अन्डरवल्र्ड बॉस कौन?’’—जीतसिंह बोला।
‘‘मेरे को नहीं मालूम। बट आई एम श्योर, वो दोनों एडजायिंनग लॉकर—243 और 244—कोई गैंग मेनटेन करता है जिसके माल पर हाथ डालना खुद अपना डैथ वारन्ट साइन करना है ।’’
‘‘हमारे पीछे फोन किस को किया? क्यों किया? किसने सब बोला तेरे को?’’
‘‘अरे, पहले ये बोल’’—गाइलो कलपता सा बोला—‘‘जो बोलता है जानता है, वो कैसे जानता है? साला कैसे जान सकता था! तू उधर किधर था! अभी बोल नहीं तो मुंडी मरोड़ता है ।’’
गाइलो मुट्ठियाँ भींचे उसकी तरफ बढ़ा।
‘‘बोलता हूँ ।’’—चेराट विक्षिप्तों की तरह बोला—‘‘बोलता हूँ ।’’
‘‘मैं सुनता है ।’’
‘‘कैमरा चालू था ।’’
‘‘कैमरा! कौन सा कैमरा?’’
‘‘क्लोज्ड सर्कट टीवी का कैमरा जो वाल्ट की छत के करीब लगा था ।’’
‘‘वो कैमरा! वो तो तू बोला कि बन्द था, बोला चालू होता तो ये बाजू से वो बाजू, वो बाजू से ये बाजू घूमता होता!’’
‘‘उसकी रोटेशन आफ की जा सकती है, उसको किसी भी पोजीशन में रोक के रखा जा सकता है ।’’
‘‘तू तो पक्की किया था वो बन्द था! साला बोलता था ऊपर मानीटर पर ले जा के दिखाता था कि बन्द था!’’
चेराट खामोश रहा, बेचैनी से उसने अपने सूखे होंठों पर जुबानफेरी।
‘‘ब्लडी सन आफ ए बिच! धोखा किया हमेरे साथ! जिस काम का ट्वेन्टी फाइव थाउजेंट रोकड़ा चार्ज किया, उसको साला किया ही नहीं। हमेरे को अश्योर किया कैमरा बन्द पण चालू रखा। साला मानीटर पर बैठ कर सब वाच किया ।’’
‘‘जब कैमरा चालू था’’—असहाय भाव से गर्दन हिलाता जीतसिंह बोला—‘‘तो जो मानीटर पर वाच किया, वो रिकार्ड भी हुआ होगा!’’
चेराट खामोश रहा, उसने बेचैनी से पहलू बदला।
‘‘अरे, बोलता काहे नहीं?’’—गाइलो कलपता सा बोला—‘‘जवाब काहे नहीं देता?’’
‘‘वाल्ट के सर्वेलेंस सिस्टम में कुछ नहीं है’’—चेराट धीरे से बोला—‘‘उधर के सिस्टम से वो टेन मिनट्स का पीरियड मैंने इरेज कर दिया था ।’’
‘‘जब इरेज कर दिया’’—गाइलो फिर भड़का—‘‘तो हूल किस बात की देता है, साले हरामी?’’
‘‘जो टैन मिनट्स की रिकार्डिंग मैंने इरेज की थी, मेरे पास...मेरे पास...उसकी...सीडी है ।’’
‘‘क्या! यू लाउजी स्काउन्ड्रल! तू साला सब वाच ही न किया, उसका रिकार्ड भी बना लिया अपना वास्ते!’’
‘‘मेरी मजबूरी थी ।’’
‘‘क्या? ऊँचा बोल। मुनमुन नहीं कहने का। ऊँचा बोल ।’’
‘‘मेरी मजबूरी थी ।’’
‘‘क्या? क्या मजबूरी थी?’’
‘‘तुम्हारे लिये जो कुछ मैंने किया था...पैसा लेकर...वो पहले मैंने कभी नहीं किया था। मैं...मैं फैमिलीमैन...मेरे पर फाइनांशल प्रेशर...आलवेज...तुम ने मेरे को एक्स्ट्रा इंकम का एक चांस आफर किया, लालच में आके मैंने उसको पकड़ लिया। लेकिन मेरे को हर घड़ी का अन्देशा था कि मेरी पोल खुल सकती थी। तुम को उधर टैन मिनट्स का एक्सक्लूसिव, अन-इन्ट्रप्टिड टाइम माँगता था, उस टाइम में वाल्ट का कैमरा ऑफ माँगता था, इन बातों से मेरे को डेफीनिट था तुम लोग उस टाइम में कोई खतरनाक, फसादी, पंगे वाला, इललीगल काम करना माँगता था। फिर जब दूसरी पार्टी मेरे को कान्टैक्ट किया, उन्हीं टैन मिनट्स का हिंट ड्रॉप किया, रोकड़े की मेरी बिग डिमाण्ड बेहिचक कबूल कर ली, तुम लोगों की माफिक कोई बारगेन तक न किया और कबूल कर ली, तो मेरे को और भी डेफीनिट हो गया कि जो मैं सोचता था, वो एब्सोल्यूटली करैक्ट था। अब क्यों कि मामला अन्डरवल्र्ड बॉसिस का था इसलिये मेरे को गारन्टी थी कि बाद में बहुत हिल डुल होने वाली थी। यानी बाद में बहुत जगह से बहुत एक्सटेंसिव पूछताछ होती। तब मेरे पर भी प्रेशर बन सकता था। उस प्रेशर को काउन्टर करने के लिये, अपनी सेफ्टी के लिये, मैंने वो सीडी बनाई। अभी तुम लोग प्रेशर बनाता है...वो सीडी तुम्हारे प्रेशर से मेरे को सेव करेगी न!’’
‘‘कैसे? कैसे करेगी?’’
‘‘वो सीडी सेफ हैण्ड्स में है...’’
‘‘पहँुचा भी दी!’’
‘‘...मेरी इंस्ट्रक्शंस के साथ कि अगर मेरे को कुछ हो जाये तो वाल्ट में वो वारदात करने वालों की शिनाख्त के लिये उसकी एक कापी पुलिस को सौंप दी जाये और दूसरी जब भी नौबत आये उस अन्डरवल्र्ड बॉस को पहँुचा दी जाये जो लॉकर 243 और 244 का ओनर है और जिसका उधर वो सैट अप फंक्शन करता है ।’’
‘‘तेरे को सैट अप का भी मालूम?’’
‘‘जब वाल्ट की नौकरी है तो देर सबेर मालूम होना ही होता है ।’’
‘‘मालूम होना नहीं होता, साला मालूम करना पड़ता है। साला किसी काम आ सकने वाला इन्फो निकालना पड़ता है, वाच रखना पड़ता है। साला श्याना!’’
उसने जोर से थूक निगली।
‘‘सीडी किधर है?’’
वो परे देखने लगा।
गाइलो के हाथ में एक लम्बा पेचकस प्रकट हुआ।
‘‘अभी का अभी बोलने का सीडी किधर है’’—वो कहरबरपा लहजे से बोला—‘‘वर्ना पेट फाड़ता है ।’’
उसने मजबूती से होंठ भींचे।
‘‘इसकी तलाशी ले ।’’—एकाएक जीतसिंह बोला।
गाइलो ने उस काम को अन्जाम दिया।
जामातलाशी में उसने मोटरसाइकल और उसके साथ लटके कैनवस के एक बैग को भी शामिल किया।
कुछ बरामद न हुआ।
साढ़े अट्ठारह हजार रुपये के नोटों वाला लिफाफा भी नहीं।
‘‘रोकड़े वाला लिफाफा किधर है?’’—गाइलो ने उसे गिरहबान पकड़ कर झिंझोड़ा।
‘‘जिधर सीडी है ।’’—चेराट धीरे से बोला।
‘‘दोनों किधर हैं?’’
‘‘नहीं बताऊँगा। जो करना है, कर लो ।’’
‘‘मार के भागे भूत भागते हैं ।’’—जीतसिंह बोला।
‘‘मेरे को मालूम ।’’
‘‘तू बहुत दिलेर है! शेर है। तेरे को मार का कोई डर नहीं!’’
‘‘मैं चूहा है। इसी वास्ते कुछ इन्तजाम किया ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘वाल्ट से निकलने से पहले वाइफ को फोन किया था थर्टी मिनट्स में घर पहँुचता था, लेट होयेगा तो फोन लगायेगा। मैं न पहँुचा, फोन न पहँुचा, तो वाइफ वहां फोन लगायेगी जहाँ सीडी है ।’’
‘‘फिर! फिर क्या होगा?’’
‘‘आल हैल विल ब्रेक लूज!’’
‘‘बोले तो!’’
‘‘कयामत आ जायेगा। तुम लोगों के लिये ।’’
जीतसिंह खामोश हो गया।
‘‘बोले तो?’’—गाइलो चिन्तित भाव से बोला।
जीतसिंह ने असहाय भाव से कन्धे उचकाये।
‘‘साले श्याने!’’—गाइलो चेराट से सम्बोधित हुआ—‘‘धोखेबाज श्याने! इतना तो बोल हमारी खबर किस को की?’’
उसने जवाब न दिया।
‘‘मामूली बात है ।’’—जीतसिंह संजीदगी से बोला—‘‘इतने से तेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला। पण संवर सकता है ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘हम तेरी करतूत यहीं भूल जायेंगे। जो कुछ तूने हमारे खिलाफ किया, जो धोखा तू ने हमें दिया, हम उसको फिर कभी याद नहीं करेंगे। फिर कभी तेरे पीछे भी नहीं पड़ेंगे ।’’
‘‘ऐसा?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘वादा करते हो?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘वादे पर खरे न उतरे तो?’’
‘‘तो सीडी है न तेरे पास! जो हथियार अभी हमेरे खिलाफ इतनी कामयाबी से आजमाया, उसे फिर अजमाना। कौन रोकेगा?’’
उसने उस बात पर विचार किया।
‘‘फैसला जल्दी करने का ।’’—गाइलो उतावले स्वर में बोला—‘‘साला अक्खा नाइट इधर ही खोटी नहीं करने का ।’’
‘‘ओके ।’’—वो बोला।
‘‘ओके तो बोल, हमारे वाल्ट से नक्की करते ही हमारी खबर किस को दी?’’
‘‘मालूम नहीं ।’’
‘‘वाट!’’
‘‘आनेस्ट बोलता हूँ नहीं मालूम ।’’
‘‘तो क्या मालूम है?’’
‘‘एक फोन नम्बर ।’’
‘‘हमारे पीठफेरते ही हमारी बाबत जिस पर तूने फोन लगाया?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘नम्बर बोल ।’’
वो हिचकिचाया।
‘‘अगर इतना भी नहीं बोलने का तो जो डील अभी मेरा फिरेंड आफर किया, वो साला आफ....’’
उसने दस अंको का एक नम्बर बोला।
जिसे कि जीतसिंह ने अपने मोबाइल पर दर्ज कर लिया।
‘‘उस से कितना क्लैक्ट किया?’’—गाइलो बोला।
‘‘क्या?’’—चेराट बोला।
‘‘अरे, रोकड़ा’’—गाइलो झल्लाया—‘‘और क्या!’’
‘‘फिफ्टी ।’’
‘‘वाट! हमारा बाबत साला एक काल लगाने का?’’
‘‘ये भी तो कनफर्म करने का था कि उन दो स्पेशल, आजू बाजू के लॉकरों में से एक तुम लोगों ने खोल लिया था!’’
‘‘ओह ।’’
‘‘इसके लिये वाल्ट का सर्वेलेंस कैमरा चालू रहना जरूरी था। और किसी तरीके से मैं वाच नहीं कर सकता था कि तुम लोग वाल्ट में क्या कर रहे थे, जो करना चाहते थे उसमें कामयाब हुये थे या नहीं। तुमने आसानी से मेरी बात मान ली कि कैमरा ऑफ था, उस बात के पीछे और बारीकी से पड़ते तो सोचो मेरे लिये कितनी मुश्किल होती!’’
‘‘इस वास्ते बड़ी फीस? फिफ्टी थाउ?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘मिल चुके?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘अरे, तब तो उस भीड़ू की थोबड़ा देखा?’’
‘‘नहीं। रकम कूरियर से पहँुची।...और डील, सब बातचीत, फोन पर सैट हुआ ।’’
‘‘ऐसा बातचीत कितना टेम हुआ?’’
‘‘तीन चार बार ।’’
‘‘कभी भी उस भीड़ू के नाम का जिक्र कोई नहीं?’’
‘‘न ।’’
‘‘पूछा होता!’’
‘‘पूछा। उसने बात को हँस के उड़ा दिया ।’’
‘‘हूँ ।’’
गाइलो ने जीतसिंह की तरफ देखा।
‘‘कोई और बात’’—जीतसिंह सहज भाव से बोला—‘‘जिससे तेरे को खाँसी, जुकाम या सिरदर्द पेटदर्द का खतरा न हो लेकिन हमारे काम की हो?’’
चेराट ने इन्कार में सिर हिलाया।
‘‘जो मोबाइल नम्बर दिया, उनमें कोई लोचा, कोई पेच है तो बोल ।’’
‘‘नहीं है। मैं ने इसी मोबाइल पर काल लगाई थी और जब आती थी, इसी मोबाइल से आती थी ।’’
‘‘बीवी बोला अभी। बच्चे भी हैं?’’
‘‘अभी नहीं ।’’
‘‘कोई आने वाला है?’’
‘‘अभी नहीं ।’’
‘‘अभी जो डील हुआ, उसको याद रखना। भूल न जाना। जिस काम का हमारे से रोकड़ा लिया, दूसरी पार्टी से रोकड़ा लिया, वो काम अब खत्म है। आगे कहीं से भी, किधर से भी उसका कोई जिक्र नहीं उठने वाला। आगे खाली ये होगा कि दो स्पैशल कर के लॉकरों से इधर जो सिलसिला चलता था वो अब बन्द हो जायेगा। आगे कोई मवाली, कोई भाई, कोई अन्डरवल्र्ड बॉस कुछ करेगा, किसी के पीछे पड़ेगा, तो उसका तेरे से या तेरे वाल्ट से कोई रिश्ता वास्ता नहीं होगा। इस वास्ते उस सीडी का भी कोई रोल खत्म है जो कि तेरे पास है। कुछ टेम अपनी चिल्लाकी की, होशियारी की यादगार के तौर पर रखने का है तो वान्दा नहीं पण अगर तूने उसका कोई गलत इस्तेमाल किया, उसको लेकर कोई नयी चिल्लाकी तेरे मगज में आयी तो उस पर एक्ट करने से पहले दस बार सोचना, सौ बार सोचना। तेरी नयी चिल्लाकी हमारे लिये प्राब्लम खड़ी करेगी, इस वास्ते उसकी खबर हमें लग के रहेगी। फिर मैं आयेगा धारावी और आगे मुकन्द नगर। तब खुशी से आज का माफिक अकड़ के दिखाना, सीडी की हूल देकर ब्लैकमेल कर के दिखाना ।’’
‘‘तु...तुम...क-क्या करोगे?’’
‘‘देखना! तू बोल डील आफ तो मैं अभी करता है ।’’
‘‘नहीं, नहीं ।’’
‘‘अभी करेगा मैं तो, भीड़ू, तेरा वाइफ बच जायेगा। क्या बोला मैं?’’
चेराट के शरीर में सिहरन दौड़ती दोनों ने साफ महसूस की।
‘‘सोचना मैं क्या बोला। अभी बाइक उठा और निकल ले। सोचना, भीड़ू, और सोचते जाना। घर पहँुच कर बीवी से भी मशवरा करना। शायद वो कोई अच्छी सलाह दे। शायद क्या, मेरी को पक्की कि देगी अच्छी सलाह। विधवा कौन होना माँगता है! वो भी साला केरल से इतना दूर मुम्बई में। क्या!’’
उस का शरीर फिर काँपा।
‘‘निकल ले ।’’
बड़ी मुश्किल से उसने मोटरसाइकल उठा कर सीधी की, और भी ज्यादा मुश्किल से वो उसे किक मार के स्टार्ट कर पाया और फिर उस पर सवार हो कर वो वहाँ से रुखसत हुआ।
‘‘बहुत टॉप का लैक्चर दिया, साला ।’’—पीछे गाइलो बोला—‘‘साला अक्खा हिल गया। बॉडी में कंपकंपी का लहर रन करता साला क्लियर मालूम पड़ता था ।’’
जीतसिंह खामोश रहा।
‘‘यहीच ट्रीटमेंट पहले क्यों न दिया, जब कि वो हमेरे को हूल देता था?’’
‘‘तब सीडी से हासिल ताकत का उसे बड़ा गुमान था। जो मैं अब बोला उसका तब असर नहीं होने वाला था। तब वो और भड़कता, और भाव खाता, सीडी की और ताकत बताता ।’’
‘‘मैं बोले तो सीडी साला ब्लफ। वन हण्ड्रड पर्सेंट ।’’
‘‘नहीं। वाल्ट में उसने हमारे भरोसे का नाजायज फायदा उठाया। इसी वास्ते कैमरे को लेकर वो हमें चक्कर देने में कामयाब हो गया कि वो चालू नहीं था। असल में कैमरा बराबर चालू था क्योंकि उसके बिना उसे मालूम नहीं हो सकता था कि नीचे वाल्ट में क्या हो रहा था। उसको मालूम था हमने स्पैशल करके वाल्ट खोल लिया था और उसमें से सूटकेस निकाल के काबू में किया था। ये सब उसे न मालूम होता तो दूसरी पार्टी को हमारी बाबत फोन करने का कोई मतलब ही नहीं था। वाल्ट में हमारी कामयाबी की खबर ही कीमती थी—पचास हजार की थी—इसलिये कैमरा बराबर आन था और सिस्टम सब रिकार्ड भी कर रहा था। अगर उसने दस मिनट की रिकार्डिंग मिटा दी होने की बात झूठ नहीं कही तो फिर ये भी सच है कि वो रिकार्डिंग मिटाने से पहले उसने उसकी सीडी बना ली थी ।’’
‘‘ठीक! अब ये सीडी की तलवार फार ऐवर हमेरे सिर पर झूलने का?’’
‘‘अभी तो ऐसीच है। आगे देखेंगे, सोचेंगे इस बारे में ।’’
‘‘जीते, मेरे को इस साले चेराट से हमारे हाईजैकर्स के बारे में कुछ मालूम पड़ने की बहुत उम्मीद थी। पण साला टेम ही खोटी किया। साला हरामी धमकी में आने की जगह धमका कर गया ।’’
‘‘टेम खराब हो तो ऐसा ही होता है। पण दिल छोटा नहीं करने का। अभी भी हम काफी कुछ कर सकते हैं ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘बोलूँगा। अभी चल। नक्की कर ।’’