देवराज चौहान डालचन्द के साथ शहर की सीमा पर फार्मों के बाग में पहुंचा। वहां काफी सारे फार्म बने हुए थे। अमीर लोगों की आरामगाह। जब भी मौज-मस्ती का मूड होता तो यहां पर आ जाते।
उन्हीं फार्मों के बीच, छोटा-सा फार्म देवराज चौहान ने महीनों पहले ही किराये पर लिया था। डालचन्द के साथ वह उसी फार्म पर पहुंचा।
फार्म दो हजार गज में था। बाउण्ड्री की जगह पर छः फीट की ऊंची कांटेदार तारें थीं। तारों के साथ-साथ सफेदे के पेड़ काफी ऊंचाई तक जा रहे थे। प्रवेश द्वार की जगह लकड़ी का बारह फीट लम्बा चौड़ा और ऊंचा फाटक लगा हुआ था। फाटक से कच्चा रास्ता फार्म पर बनी कॉटेज पर जाता था, जो कि फार्म के ठीक बीचों-बीच बनी हुई थी। वह चार कमरों की कॉटेज थी। एक कमरा आम कमरों से ढाई गुना आकार का था।
देवराज चौहान ने कार को कॉटेज के समीप रोका और नीचे उतरा। डालचन्द भी बाहर आ गया। उसने एक-एक चीज को ध्यान से देखा।
“यहां लाना है कार को?" डालचन्द ने पूछा।
“हां, आओ।” देवराज चौहान कॉटेज के गिर्द घूमता हुआ पिछली तरफ आ गया।
कॉटेज के पीछे फूंस का छोटा-सा कमरा बना रखा था। ऊपर छत पर भी फूंस था। एक तरफ का हिस्सा बिल्कुल खाली छोड़ रखा था।
“इस खाली हिस्से से तुम कार को भीतर लाओगे। बाद में इस जगह भी फूंस की लटकती दीवार बन जायेगी, जिसे हटाकर भीतर प्रवेश किया जा सकेगा।"
डालचन्द ने सिर हिलाया, आसपास देखा।
“यहां पर कोई बाहर का आदमी तो नहीं आ सकता?" डालचन्द ने पूछा।
“नहीं। निन्यानवे प्रतिशत तो नहीं आ सकता। डकैती के बाद यहां लगातार पहरा दिया जायेगा।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर आसपास निगाहें दौड़ाते हुए कहा--- "इतनी बड़ी डकैती और मोटे माल के बाद कोई गड़बड़ हो, यह बात किसी को अच्छी नहीं लगेगी।"
डालचन्द ने सहमति से सिर हिलाया।
"लेकिन यहां पर रहेंगे कब तक?"
"कम-से-कम एक महीना। इस बीच आराम से माल का बंटवारा किया जायेगा। तब तक पुलिस की सरगर्मियां कम हो जायेंगी। उसके बाद सब अपने हिस्से का माल लेकर अपने-अपने रास्ते पर चल पड़ेंगे। जिसे पुलिस के जाल में फंसना होगा, वह माल को जल्दी उड़ाना शुरू कर देगा। जिसे बचना होगा, वह साल भर इंतजार करेगा।"
डालचन्द ने पुनः सिर हिलाया।
“एक बात तो बताओ ?"
देवराज चौहान ने उसे देखा।
“साढ़े नौ करोड़ की डकैती होगी। मुझे सिर्फ पचास हजार मिलेगा ?"
"जब मैंने तुम्हें एक करोड़ कहा था तो तब तुमने काम करने को मना कर दिया था?”
“त....ब....तब मैंने समझा तुम खामखाह मुझे कहीं फंसाने जा रहे हो।"
देवराज चौहान हंसा।
"अब क्या समझ रहे हो तुम?"
“अब तो सब मामला समझ में आ गया है। मेरे लिए कोई खास दिक्कत नहीं।”
“चिन्ता मत करो।” देवराज चौहान ने उसके कन्धे पर हाथ रखा---"तुम्हें एक करोड़ ही मिलेगा। सवाल यह नहीं कि तुम डकैती में हिस्सा नहीं लोगे, सवाल यह है कि डकैती के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम तुमने ही करना है। मेरे साथ जो काम करता है....बराबर का हिस्सेदार ही बनता है। धोखेबाजी मेरी फितरत में शामिल नहीं।"
डालचन्द ने प्रशंसा भरी निगाहों से उसे देखा।
“एक बात कान खोलकर सुन लो मुझे दगाबाजों से सख्त नफरत है। डकैती के दौरान किसी तरह की कोई हेरा-फेरी करने की कोशिश मत करना। वरना---।"
"क्या कहते हो।" डालचन्द उसकी बात काटकर हड़बड़ा के कह उठा--- "भगवान का नाम लो-- मैं भला उल्टा सीधा काम क्यों करने लगा?"
"समझाना मेरा फर्ज था।"
"तुमने मेरे सिवाय किसी को यह जगह क्यों नहीं दिखाई?" डालचन्द ने एकाएक कहा।
"तुम्हें दिखाना तो मजबूरी थी, पहली तारीख को कार ड्राइव करके यहां लानी है। किसी और को बताना ठीक नहीं। साढ़े नौ करोड़ रुपया कैश करीब एक महीना भर यहां रहना है, अगर किसी के मन में बेइमानी आ गई तो वह पहले ही अपने आदमी यहां लाकर छिपा सकता है। तब साढ़े नौ करोड़ कैश ही नहीं हम लोगों की जान भी खतरे में पड़ सकती है।"
"लेकिन पैसा आ जाने के दौरान भी तो वह लोग बाहर निकलेंगे?"
"नहीं निकलेंगे। यहां पर एक बार आ जाने के बाद महीना भर यहां से बाहर नहीं निकला जा सकेगा।” देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कह उठा।
"अगर कोई बाहर जाना चाहे। इस कैद को मंजूर ना करे तो?"
"तो---।" देवराज चौहान का चेहरा पल भर के लिए दरिन्दगी से भर उठा, किन्तु फिर तुरन्त ही सामान्य हो गया--- “उसे मार कर उसकी लाश फार्म के किसी हिस्से में दबा दी जायेगी। हम सबको साथ मिलकर ही चलना होगा। जो लाइन से हटकर चलेगा, वह मरेगा। क्योंकि मैं किसी भी हालत में इस बार दौलत को हाथ से नहीं निकलने दूंगा।"
"इस बार ?"
"तुम नहीं समझोगे इस बार का क्या मतलब है!" देवराज चौहान एकाएक मुस्कुराया--- "तुम कल सुबह वजीर चन्द प्लेस से लेकर यहां तक जो भी रास्ता आता है, उसे देखो, अच्छी तरह पहचानो। डकैती के बाद हालात कैसे होते हैं, जाने किस रास्ते से भागना पड़े, मैं नहीं चाहता कि तुम रास्ता भटक जाओ और पुलिस के जाल में फंसो ।"
"ठीक कह रहे हो तुम। वजीर चन्द प्लेस से जो-जो रास्ता यहां तक आता है, उन्हें मैं दो ही दिन में अच्छी तरह पहचान लूंगा।"
"कॉटेज को भीतर से देखोगे?"
"देख लेते हैं।"
देवराज चौहान ने कॉटेज के सामने वाले हिस्से की तरफ जाकर जेब से चाबी निकालकर लॉक खोला और दोनों भीतर प्रवेश कर गये ।
डालचन्द ने अच्छी तरह सारी कॉटेज देखी।
फिर दोनों वापसी के लिए रवाना हो गये।
"तुम्हारी आंखें क्यों सूजी हुई हैं।" कार ड्राइव करते हुए देवराज चौहान ने पूछा।
"कुछ मत पूछो।" डालचन्द ने गहरी सांस ली--- "कल एक राक्षस पीछे पड़ गया था।”
"मैं समझा नहीं!"
"राजाराम को जानते हो ना, तीन महीने पहले मैंने उसका माल कहीं पहुंचाया था।"
"तो?"
"कल रात उसके आदमी मुझे लेने आ गये। राजाराम ने बुलाया था, माल को दो घंटे में राजगढ़ पहुंचाना था, जबकि रास्ता तीन घन्टे का था। मरता क्या न करता! गले में राजाराम जैसे इंसान की घंटी बंधी थी, काम करना पड़ा। सारी रात इसी भाग-दौड़ में रहा। सुबह घर जाकर सोया।"
"ओह!" देवराज ने सिर हिलाया--- "बहरहाल दो-चार दिनों के लिये सारे काम बन्द कर दो। मैं नहीं चाहता कि उल्टा-सीधा काम करते हुए पुलिस वालों के हत्थे चढ़ जाओ। इससे हमें परेशानी होगी। वैसे भी मोटे माल की तरफ देखो। छोटे काम करते रहने का मतलब है कि एक न एक दिन फंसना ।"
डालचन्द गहरी सांस लेकर रह गया।
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खूबचन्द की खोपड़ी खूब हिल-डुल गयी थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि डालचन्द किस फेर में है। उस समय वह डालचन्द के घर पर नजर रख रहा था, जब राजाराम का आदमी बसन्त और बाद में भीमराव लेने आया था। डालचन्द उनसे सिर्फ बीस गज की दूरी पर दीवार की ओट में खड़ा था तब!
भीमराव जब उसे कार में लेकर गया तो खूबचन्द ने उसका टैक्सी से पीछा किया। तब उसने राजाराम का अड्डा देखा।
राजाराम के अड्डे को वह नहीं जानता था, कुछ देर नजर रखने और अपनी समझदारी के बलबूते पर पूछताछ करने पर उस मालूम हो गया कि यह मशहूर गैंगस्टर राजाराम का अड्डा है।
तब खूबचन्द की खोपड़ी को करंट लगा था।
वह समझ नहीं पाया था कि डालचन्द एक तरफ तो देवराज चौहान, नीना पाटेकर और मंगल पांडे जैसे खतरनाक लोगों के साथ डकैती की योजना में घुसा हुआ है और इधर राजाराम से सम्बन्ध बनाये हुए है। उसके बाद डालचन्द जब भीमराव और दो आदमियों के साथ कार में राजाराम के अड्डे पर से रवाना हुआ तो खूबचंद वहीं खड़ा रहा। क्योंकि तब उसके पास उसके पीछे जाने की सवारी मौजूद नहीं थी। टैक्सी स्टैण्ड दूर था। वह खड़ा हुआ, तूफानी गति से जाती कार को देखता रहा।
घर आकर सोचने लगा तो नींद नहीं आई। दिमाग में यही घूमता रहा कि डालचन्द किस फेर में है। वह क्या करना चाहता है। लाख सिर घुमाने के बाद भी जब कुछ समझ न पाया तो व्हिस्की के दो तगड़े पैग चढ़ाकर बैड पर जा लेटा। थोड़ी-बहुत बेचैनी के बाद नींद आ गई।
अगले दिन दस बजे उठा, तब भी वह रात वाली बात ही सोच रहा था। नहा-धोकर तैयार हुआ। शामली द्वारा बनाया गया नाश्ता भी रखा रह गया। वह जल्द-से-जल्द डालचन्द की निगरानी पर पहुंचना चाहता था। रास्ते में ही थोड़ा नाश्ता किया और डालचन्द के घर के आगे जा टिका।
सारा दिन धूप में ही सूखता रहा।
शाम को जाकर कहीं डालचन्द नजर आया। तैयार होकर घर से निकला। खूबचंद उसके पीछे चल पड़ा। दोनों टैक्सी पर आगे पीछे देवराज चौहान के ठिकाने पर पहुंचे। वह अपनी छिपने वाली जगह पर जा पहुंचा।
उसके बाद खूबचंद ने मंगल पांडे, उस्मान अली तथा नीना पाटेकर को वहां प्रवेश करते देखा। उसका मन तो किया कि मकान के करीब जाकर किसी खिड़की से कान लगाकर भीतर की बात सुने, परन्तु अपनी इस इच्छा को दबाकर रह गया। भीतर एक से एक दरिन्दे मौजूद थे। अगर पकड़ा गया तो उसकी लाश का भी पता नहीं चलेगा कि वह कहां गई।
पौन घंटे बाद ही सब बाहर निकले और अपने-अपने रास्तों पर बढ़ गये, परन्तु डालचन्द बाहर नहीं निकला। खूबचन्द को डालचन्द, के बाहर आने का इन्तजार था। क्योंकि वह जानना चाहता था कि क्या आज भी वह राजाराम के पास जाता है या नहीं। अगर जाता है तो सीधा मतलब है कि डालचन्द किसी तगड़े फेर में है।
पन्द्रह मिनट बाद डालचन्द निकला। साथ में देवराज चौहान भी था। दोनों बाहर खड़ी कार में बैठे और वहां से रवाना हो गये। खूबचन्द दौड़ा और मोड़ पर बने टैक्सी स्टैण्ड पर से टैक्सी लेकर कार के पीछे चल दिया। जब फार्म वाला इलाका आया तो उसने अपनी टैक्सी को पहले ही रुकवा लिया, यह सोचकर कि खुला इलाका है, उन लोगों की निगाह में टैक्सी आ सकती है।
इस तरह खूबचन्द ने उनका फार्म वाला अड्डा भी देख लिया।
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अगला दिन सब का सामान्य ढंग से बीता। उन्तीस तारीख थी।
मंगल पांडे मोटे नटियाल के बार में पड़ा शराब पीता रहा और आराम करता रहा। वह जानता था कि कल सुबह भाग-दौड़ी वाला खतरनाक काम करना है।
उस्मान अली अपने घर से बिल्कुल भी नहीं निकला, सिर्फ रात को निकला और खाना पैक करवा कर घर पर ले आया।
नीना पाटेकर रेस्टोरेन्ट के ऊपर घर में बन्द रही। उसे डकैती सफल हो जाने को पूरी सम्भावना थी। वह भी पूरी तरह इस हक में थी कि कल बैंक से निकल जाने वाले साढ़े पांच करोड़ बैंक में रहे तो परसों डकैती में साढ़े नौ करोड़ का हाथ मारा जा सकता है। साढ़े पांच करोड़ कल न निकले, इसके लिए मन-ही-मन उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह पैसा रुकवाकर ही रहेगी।
डालचन्द सुबह-सुबह ही घर से निकल गया था और वजीर चन्द्र प्लेस पहुंचकर उसने टैक्सी किराये पर ली और दिन भर नये-नये रास्तों से वजीर चन्द प्लेस से फार्म तक आता-जाता रहा। रास्तों की पहचान करता रहा।
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इकत्तीस तारीख को सुबह आठ बजे सब देवराज चौहान के ठिकाने पर पहुंचे।
आने वालों में डालचन्द नहीं था।
देवराज चौहान ने सब पर निगाह मारी।
"सब लोग पूरी तरह तैयार होकर आये हैं।" देवराज ने कहा--- "आज तुम लोगों ने अपनी समझदारी और तेज तर्रारी का सबूत देना है।"
सब की गम्भीर दृष्टि देवराज चौहान पर जा टिकी
"डालचन्द नहीं आया?" एकाएक नीना पाटेकर बोल पड़ी।
देवराज चौहान ने उसे सख्त निगाहों से देखा।
"तुम्हारा डालचन्द से क्या मतलब?"
"कोई मतलब नहीं।"
"तो फिर अपने काम से मतलब रखो।" देवराज चौहान तीखे स्वर में कह उठा।
नीना पाटेकर को कहते ही अपनी गलती का अहसास हुआ कि वह यहां पर डालचन्द के बारे में पूछने नहीं, बल्कि जिस काम के लिए आई है, उसे उसकी तरफ ध्यान देना चाहिए। आज फिर उसने मंगल पांडे की निगाहों को अपने शरीर पर चुभते पाया। परन्तु वह खामोश रही, इस बारे में कुछ नहीं बोली। कुछ देर बाद उन सबने खतरनाक काम को अन्जाम देना था। और ऐसे मौके पर वह झगड़ा वगैरह करके माहौल को खराब नहीं करना चाहती थी।
देवराज चौहान ने पुनः कहना शुरू किया---
"आज हमें बेशक अपनी जान पर क्यों न खेलना पड़े, लेकिन साढ़े पांच करोड़ कैश से भरी वैन को बैंक से नहीं निकलने देना। साढ़े पांच करोड़ को हर हाल में बैंक में ही पड़े रहने देना है। ताकि कल जब हम बैंक में डकैती करें तो इस साढ़े पांच करोड़ को मिलाकर पूरा साढ़े नौ करोड़ रुपया हमारे हाथ लगे। अगर तुम लोग सावधानी और समझदारी से चले तो हम अपनी योजना में आसानी से कामयाब हो सकते हैं और कल साढ़े नौ करोड़ के मालिक बन सकते हैं। आज हमें मुलखराज एण्ड कम्पनी वाले साढ़े पांच करोड़ रुपये को बैंक से निकलने से कैसे रोकना है, यह मैं अब बताता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने सबको योजना बताई। दस मिनट तक वह इस बारे में उन्हें समझाता रहा।
सब ने देवराज चौहान के कहे एक-एक शब्द को ध्यान से सुना।
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"बमों वाला थैला लाओ।"
जगमोहन बमों वाला थैला ले आया।
"इसमें बारह बम हैं। तीन-तीन तुम चारों ले लो। यह इतने बड़े बम नहीं है कि जेब में या शरीर के कपड़ों में न छुपाये जा सकें।" देवराज ने कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा। साढ़े आठ बजे थे--- "हमारे पास आधा घंटा है। तब तक एक-एक कप चाय पी ली जाये। नौ बजे हम यहां से कार में एक साथ निकलेंगे। चालीस मिनट का रास्ता है वजीर बन्द प्लेस का। नौ चालीस पर हम बैंक के सामने होंगे। मैं तुम लोगों को बैंक से पहले ही उतार दूंगा। पैदल ही तुम लोग बैंक की तरफ बढ़ोगे। और काम खत्म करने के बाद हम लोगों की मुलाकात शाम को इसी जगह छः बजे होगी। ताकि अगले दिन यानी कि कल पहली तारीख को होने वाली डकैती की योजना पर बातचीत की जा सके। जगमोहन, बिना देर किये जल्दी से चाय बना लाओ।"
जगमोहन किचन की तरफ बढ़ गया।
तभी मंगल पांडे बोला---
"मुझे रिवाल्वर चाहिए। आज जरूरत पड़ सकती है। डालचन्द तो आया नहीं।"
"डालचन्द नौ बजे ही बैंक की निगरानी पर पहुंच चुका है।" देवराज चौहान ने पांडे को देखकर कहा--- "वहीं तुम्हें रिवाल्वर मिल जायेगी।"
"वहां पर मैं डालचन्द को कहां ढूंढता फिरूंगा---।"
मंगल पांडे की बात सही थी।
"तुम लोगों में किस के पास रिवाल्वर नहीं है?" देवराज चौहान ने सबको देखा।
"मेरे पास नहीं है।" उस्मान अली बोला।
"तुम्हारे पास है?" देवराज चौहान ने नीना पाटेकर को देखा।
"हां।" पाटेकर ने सिर हिलाया।
देवराज चौहान उठा और दूसरे कमरे में चला गया। चंद ही पलों में वापस आया तो हाथों में दो भरी रिवाल्वरें थीं। एक उस्मान अली को दे दी और दूसरी मंगल पांडे को देकर कुर्सी पर बैठ गया।
जगमोहन चाय ले आया। सब ने चाय पी। उसके बाद जगमोहन, उस्मान अली, मंगल पांडे और नीना पाटेकर ने तीन-तीन बम लेकर अपनी जेब में डाल लिए। अब वह सब चलने को तैयार थे।
फिर सब बाहर निकले। देवराज चौहान ने दरवाजे पर ताला लगाया और कार में बैठकर सब वहां से वजीर चन्द प्लेस की तरफ रवाना हो गये। तभी उस्मान अली बोला---
"डालचन्द बैंक पर नौ बजे क्यों पहुंचा?"
"यह देखने के लिए हमारे वहां पहुंचने तक वहां का और आसपास का माहौल रोजमर्रा की भांति है या कुछ ठीक नहीं है। साढ़े पांच करोड़ की रकम बड़ी है। सुरक्षा के लिये तगड़े इन्तजाम भी हो सकते हैं, जो हमेशा नहीं होते होंगे।" देवराज चौहान ने जवाब दिया और सिगरेट सुलगा ली।
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दस मिनट बाद लाल बत्ती पर कार फंस गई। चौराहे पर दो कारों की टक्कर हो गयी थी। जिसके कारण सड़क पर वाहनों का जमघट होता जा रहा था। अचानक आई इस मुसीबत को देखकर सब हड़बड़ा उठे।
देवराज चौहान ने घड़ी देखी, सवा नौ बज रहे थे।
"साला ट्रैफिक भी अभी जाम होना था!"
"गलती की, हमें साढ़े आठ बजे ही निकल चलना चाहिए था।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा--- "ट्रैफिक जाम न होता तो देर न होती।"
"ज्यादा देर चक्का जाम रहा तो वक्त पर हमारा पहुंचना कठिन हो जायेगा।" दांत पीसकर नाना पाटेकर बोली।
"मेरे ख्याल में हमें कार छोड़ कर चौराहे के आगे टैक्सी पकड़ लेनी चाहिए।" उस्मान अली बोला--- “ऐसा करके हम समय पर वहां पहुंच जायेंगे।"
“तुम्हारा क्या ख्याल है?" जगमोहन देवराज चौहान से बोला ।
"कोई फायदा नहीं। सुबह का समय है, कोई खाली टैक्सी भी नहीं मिलेगी। और क्या मालूम चौराहे के आस-पास टैक्सी स्टैण्ड भी है या नहीं।" देवराज चौहान ने अपनी बेचैनी को दबाकर कहा--- "शांति से बैठो। सुबह का समय है, आफिस टाइम है। ट्रैफिक ज्यादा देर जाम नहीं रहेगा।"
"ज्यादा देर हो गयी तो?" उस्मान अली व्याकुलता से बोला।
"जिस बात का हल हमारे पास नहीं है, उसके बारे में सोचना बेमानी है। अब कुछ भी नहीं हो सकता। रास्ता खुलने का इंतजार करो।" देवराज चौहान ने आसपास जमे हुए ट्रैफिक पर निगाहें डाल कर कहा।
सब भीतर-ही-भीतर क्रोध में धधकते कार में बैठे रहे। जाम ट्रैफिक को इस तरह देख रहे थे कि आंखों ही आंखों में उसे भस्म कर देंगे।
लगभग बीस मिनट बाद जाम ट्रैफिक का रास्ता खुला, तब तक चौराहे के आसपास इतना ज्यादा ट्रैफिक इकट्ठा हो चुका था कि उन्हें वहां से निकलने में दस मिनट लग गये।
"हमें बीस मिनट देर हो गई है।" मंगल पांडे गुर्रा उठा ।
देवराज चौहान ने कार तुफानी गति से दौड़ा दी।
सब के दिल धड़क रहे थे अब क्या होगा? कहीं बैंक वालों ने नोटों को वैन में लादना तो शुरू नहीं कर दिया? क्योंकि ऐसे काम बैंक खुलते ही शुरू हो जाते हैं।
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दस बजकर पन्द्रह मिनट पर वह लोग वजीर चंद प्लेस पहुंचे।
देवराज चौहान ने कार को बैंक से पहले ही रोका।
"तुम लोग दायें-बायें फैल जाओ।" देवराज चौहान जल्दी से बोला--- "मैं डालचन्द से मिलकर लाइन क्लीयर का पूछता हूं। फिर इशारा करूंगा काम शुरू करने का।"
देवराज चौहान के कहने की देर थी कि नीना पाटेकर, मंगल पांडे, उस्मान अली और जगमोहन कार से निकल वजीर प्लेस के पीछे वाले हिस्से में मौजूद हिन्दुस्तान बैंक के अहाते में फैल गये।
देवराज चौहान सड़क के किनारे कार खड़ी करके नीचे उतरा और टहलता हुआ आगे बढ़ा। उसकी निगाहें डालचन्द को खोज रही थीं। वह जल्द-से-जल्द डालचन्द से बात करना चाहता था। कुछ ही क्षणों में उसे डालचन्द नजर आया, जो बैंक की दीवार से सटकर खड़ा सिगरेट पी रहा था। देवराज चौहान को देखकर वह सम्भला।
देवराज चौहान उसके समीप पहुंचा।
"तुम लोग बहुत देर से पहुंचे। मैं तो सोच रहा था नहीं आओगे।" धीमे से डालचन्द बोला।
"ट्रैफिक में फंस गये थे।"
"अब कोई फायदा नहीं।"
"क्या मतलब?"
"बैंक अहाते में खड़ी वैन देख रहे हो?"
देवराज चौहान ने बैंक अहाते में खड़ी बैंक वैन की तरफ निगाह मारी। मैटाडोर वैन के साइज से जरा-सी बड़ी थी।
"तुम्हारा कथित पांच करोड़ उसमें पहुंच गया है।"
"क्या?” देवराज चौहान चौंका।
"हां। दस बजने में पांच मिनट पर ही बैंक वालों ने अपना काम शुरू कर दिया था। उस बैंक वैन में चार मोटे बोरे समान थैले और दो काले रंग बड़े-बड़े ट्रंक वैन में रखे गये हैं। अपनी आंखों से सब कुछ देखा है। बीच में एक बार सू-सू गया था। फिर वापिस आकर जम गया था।"
देवराज चोहान ने दांत पीसकर वैन को देखा। वैन के करीब गनों सहित दो पुलिस वाले खड़े थे। जो सतर्क से खड़े थे।
"वैन जायेगी तो यह दोनों पुलिस वाले ड्राईवर की बगल बैठेंगे।" डालचन्द गहरी सांस लेकर कहा--- “अब कोई चांस नहीं है। साढ़े पांच करोड़ वैन में पहुंच गया है। अब बमों को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। बम वैन पड़ेंगे तो वैन में रखे नोट जलकर राख हो जायेंगे और अगर वैन पर बम नहीं फेंका गया तो चाहे कितनी भी तबाही क्यों न मचे, यह लोग वैन को लेकर ही जायेंगे। यानी कि अब किसी सूरत में वैन में मौजूद रुपया बैंक के भीतर नहीं पहुंचाया सकता। मतलब साफ है कि हमें डकैती में सिर्फ चार करोड़ रुपया हासिल होगा।”
देवराज चौहान के जबड़े सख्ती से भिंचे हुये थे। निगाहें वैन पर।
“वैन के भीतर चार बड़े बैग और बड़े-बड़े ट्रंक हैं।"
"हां।"
“और तो कुछ नहीं?”
“और क्या होगा?”
“वैन का दरवाजा भीतर से बन्द है या खुला हुआ?"
"मेरे सामने तो बाहर से बन्द किया। इस बात पर मैंने ध्यान भी नहीं दिया।"
देवराज चौहान कई पलों तक वैन को घूरता रहा।
"वैन ड्राईवर कहां है?"
"बैंक में गया है। एण्ट्री करने गया होगा कि वह वैन ले जा रहा है।"
“आओ मेरे साथ---।"
देवराज चौहान, डालचन्द के साथ बैंक के अहाते से बाहर निकला--साथ ही खास ढंग से इशारा करता आया था। उसके इस इशारे के कारण नीना पाटेकर, जगमोहन, मंगल पांडे और उस्मान अली उनके पीछे-पीछे बाहर आ पहुंचे।
"क्या हुआ?” नीना पाटेकर ने पूछा।
"हम लेट हो गये। साढ़े पांच करोड़ बैंक अहाते में खड़ी बैंक वैन में लादा जा चुका है। कुछ ही मिनटों में वैन रवाना होने वाली है।"
"दिल तो चाहता है शहर के ट्रेफिक को आग लगा दूं।" मंगल पांडे गुर्राया ।
"वैन को तबाह कर देते हैं कि यहां से जा ही न सके।" जगमोहन बोला।
"नहीं।" मंगल पांडे ने फौरन कहा--- "एक भी बम वैन पर पड़ गया तो वैन का ऐसा भट्टा बैठेगा कि पूरे तो नहीं, आधे नोट बेकार हो जायेंगे। जल जायेंगे।"
"पांडे ठीक कह रहा है।" देवराज चौहान ने कहा--- "अब बैंक वैन में पहुंच चुके नोटों को वापस बैंक में पहुंचाना आसान नहीं है। हम चाहते थे कि नोट बैंक से बाहर ही न निकलें। ताकि कल हम इकट्ठे ही साढ़े नौ करोड़ पर हाथ मार सकते।"
"तो अब क्या किया जाये?" नीना पाटेकर बोली।
सब के चेहरों पर लुटे-पुटे भाव उभरे पड़े थे।
"एक रास्ता है।"
"क्या?" सब के होठों से निकला।
"इस वैन को बिना देरी किये हमें उड़ा लेना होगा।"
"क्या?" सब चौंके।
"इसमें साढ़े पांच करोड़ रुपया है---।" देवराज चौहान बोला--- “इसलिये।"
"और कल की डकैती?" उस्मान अली के होठों से निकला।
"वह भी होगी।" देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "मैं हर हाल में साढ़े नौ करोड़ रुपया इकट्ठा अपनी आंखों के सामने देखना चाहता हूं। मैं किसी भी कीमत पर इस वैन को उड़ाना चाहता हूं।"
सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। तो कभी बैंक वैन को देखते।
"तुम लोग खामोश क्यों हो? यह सोचने का वक्त नहीं है।" देवराज चौहान बोला।
"मुझे तुम्हारा आइडिया पसन्द आया।" नीना पाटेकर बोली।
"इससे बेहतर रास्ता और कोई हो ही नहीं सकता।" मंगल पांडे बोला।
“लेकिन वैन को उड़ायेंगे कैसे?" उस्मान अली बोला।
"सामने वैन खड़ी है। हमारी जेबों में बम है।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला--- "बमों के दम पर हम दहशत फैलाकर वैन को उड़ा ले जा सकते हैं। वैन के पास-पास सिर्फ दो पुलिस वाले हैं। उन्हें भगाने के लिए बमों की आवाज ही काफी है। "
"जगमोहन ठीक कहता है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- “दो बम बैंक के करीब, दो बैंक के अहाते में, दो बैंक के बाहर और दो वैन को जब हम लेकर भागें तो, तब फेंके जायें। दहशत फैलाने के लिये इतना ही काफी रहेगा। सबका ध्यान फटते बमों और अपनी जान बचाने की तरफ होगा। तब किसी को वैन देखने का ध्यान ही नहीं होगा।"
सबने सहमति में सिर हिलाया।
“लेकिन वैन को लेकर जाएगा कौन?”
"डालचन्द।"
डालचन्द जोर से चौंका।
"मैं?"
"हां, तुम।" देवराज चौहान ने उसके कंधे पर हाथ रखा--- “जब बम फेंके जायेंगे तो इसी आपा-धापी में तुम वैन उड़ाकर उसी जगह ले जाओगे, जो जगह कल शाम तुमने देखी थी।"
डालचन्द ने झटके के साथ, देवराज चौहान का हाथ अपने कन्धे से हटाया।
“मैं.... मैं यह काम नहीं करूंगा।" डालचन्द तीव्र स्वर में बोला।
“धीरे बोल।" पांडे ने दांत पीसे--- "इस समय तू अपनी मां के घर में नहीं बैठा।"
“डालचन्द, तुम रेसर हो। वैन को तेजी से भगाकर कम समय में ठिकाने पर पहुंचा सकते हो। और अब कम समय ही लेना हमारे लिये....।"
“देवराज चौहान!" डालचन्द गहरी सांस लेता हुआ कह उठा--- "मैं किसी भी कीमत पर बलि का बकरा नहीं बनूंगा। मुझे खामखाह मरना पसन्द नहीं।"
"बलि का बकरा---।"
"और नहीं तो क्या? बमों के धमाकों के बीच मुझे बैंक वैन को उड़ा ले जाना होगा। ऐसी बैंक वैन जिसे मीलों दूरी से ही पहचाना जा सकता है। उसे लेकर मुझे भीड़ भरी सड़कों पर भगाना होगा। जबकि दो मिनट में पूरे शहर में पुलिस वालों को वायरलैस पर खबर मिल जानी है कि कोई साढ़े पांच करोड़ से भरी बैंक वैन को ले उड़ा है। वैन के यहां से चलते ही तीसरे मिनट शहर की तमाम पुलिस ने वैन की तलाश में लग जाना है। और बीच रास्ते में कहीं भी पुलिस मुझे गोलियों से छलनी कर देगी। इस वैन को हाथ लगाकर मैं बलि का बकरा बनना नहीं चाहता। अगर तुम में से किसी को इस मामले में ज्यादा खुरक है तो वह वैन को खुद दौड़ा ले। मैं नहीं चलाऊंगा।"
सबने गंभीर निगाहों से एक-दूसरे को देखा। डालचन्द गलत नहीं कह रहा था। वैन के यहां से चलते ही शहर भर के सारे पुलिस स्टेशनों और गश्ती गाड़ियों को वायरलैस पर खबर मिल जायेगी। हर किसी ने सड़क पर आकर वैन को तलाश करने लग जाना है। यहां से फार्म का रास्ता आधे घन्टे का था और आधे घन्टे में ऐसे माहौल में करीब दस बार तो पुलिस से टकराव होना जरूरी था। और टकराव भयंकर भी हो सकता था---
"तुमने बिल्कुल ठीक कहा डालचन्द ।” नीना पाटेकर बोली--- "लेकिन ऐसे मौके को छोड़ा भी नहीं जा सकता। वैन मैं ले जाऊंगी। मैं ड्राइव करूंगी।"
"तुम?" उस्मान अली चौंका।
"हां। साढ़े पांच करोड़ की रकम को छोड़ देना मेरा मन गंवारा नहीं करता। जान गई तो भगवान की मर्जी-- बच गई तो फिर दौलत की कमी नहीं।"
सब नीना पाटेकर को देखने लगे।
"नहीं, वैन तुम नहीं-- डालचन्द ड्राइव करेगा।"
"बोला ना---।" देवराज चौहान की बात काटकर डालचन्द दांत भींचकर बोला--- "मैं किसी भी कीमत पर बलि का बकरा नहीं बनूंगा। प्राइवेट गाड़ी होती तो जुदा बात थी। साढ़े पांच करोड़ के नोटों से भरी सरकारी गाड़ी को सड़कों पर ले भागना। हरगिज नहीं। अभी मैं मरना नहीं चाहता। मुझे अपनी बीमार मां का इलाज कराना है। जवान बहन की शादी करनी है। मुझे कुछ हो गया तो--- उनके लिये ही तो मैं बैंक डकैती में शामिल हुआ हूँ--- वरना मेरा क्या है! जैसे-तैसे अपना पेट भर लेता।”
"तुम ठीक कह रहे हो।" देवराज चौहान जल्दी से बोला--- "हम किसी भी हालत में नहीं चाहते कि तुम्हें कुछ हो। डालचन्द, अपने दिमाग से यह निकाल दो कि हम सब तुम्हें बलि का बकरा बना रहे हैं। वैन में मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।"
"तुम!"
“हाँ। वैन में मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। रास्ते में आने वाले खतरे से निबटने की पूरी कोशिश करूंगा कि तुम्हारी मौत बाद में हो और मेरी पहले! तुम्हारे साथ मैं भी बलि का बकरा बनूंगा।"
"देवराज चौहान, यह सब करना खुद को मौत के मुंह में---।"
"मैं जानता हूं। मुझे समझाओ मत। जब मौत न आई हो तो मौत का भी मुंह बन्द हो जाता है। इंसान कैसे बच गया, वह जान ही नहीं पाता। हौसला रखो तुम।"
“मैं वैन में चलूंगी।” नीना पाटेकर बोल पड़ी।
देवराज चौहान ने सख्त निगाहों से उसे देखा।
"जब तक मैं न कहूं, इस मामले में कोई खामखाह न बोले।"
नीना पाटेकर ने पुनः कुछ भी नहीं कहा।
“जगमोहन, यहां पर आठ बम इस्तेमाल होंगे। बाकी बचे चार। दो तुम अपनी जेब में रखो और दो मुझे दो। तुम कार में वैनन के पीछे आओगे। अगर रास्ते में कोई बड़ा खतरा आता है तो बमों के दम पर तुम उस खतरे को दूर करोगे।”
लोगों की निगाहों से छिपाकर, दो बम उन लोगों से लेकर अपने कपड़ों के हवाले किये। दो जगमोहन ने अपनी जेब में सुरक्षित कर लिए।
"तुम लोग वैन को लेकर जाओगे कहां?" मंगल पांडे अचकचा गया।
“हमारे पास ठिकाना है।"
“वह ठिकाना हमें भी तो मालूम हो।"
देवराज चौहान ने मंगल पांडे की आंखों में झांका।
“क्यों मालूम होना चाहिए तुम्हें?"
मंगल पांडे ने कुछ कहना चाहा, फिर खामोश हो गया।
"अब काम शुरू करो....।" नीना पाटेकर बोली--- "सब बेचैन और व्याकुलता के सागर में गोते लगा रहे हैं। जिसे ठिकाने के बारे में जानना होगा, वह मुझसे पूछेगा।"
"अगर यह लोग वैन उड़ा ले गये और हमें धोखा दिया तो?" मंगल पांडे धीमें स्वर में गुर्रा उठा--- "तो तुम दोगी मुझे हिस्सा ?"
“तब तो मैं तेरे को ऐसा हिस्सा दूंगी कि तू पैदा होने पर पछतायेगा।" नीना पाटेकर दरिन्दगी से भरे स्वर में गुर्रा उठी।
"पांडे!" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- “अपने गन्दे ख्यालों को अपने दिमाग में ही ठूंस कर रख। वक्त नहीं है, वरना तुझे अच्छी तरह जवाब देता।"
“लेकिन इसके बाद हमें मिलेंगे कहां?” उस्मान अली बोला।
"शाम को मेरे ठिकाने पर ।" देवराज चौहान ने कहा--- “अब तुम लोग फैल जाओ और....और जिस तरह मैंने बमों को फेंकने के लिए कहा है वैसे ही करो।"
“तुम मुझे मरवा कर ही रहोगे।" डालचन्द ने कातर भाव से देवराज चौहान को देखा।
उसकी बात पर ध्यान न देकर देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा---
“तुम जाकर सड़क के किनारे मौजूद कार में बैठो। वैन के चलते ही सावधानी से पीछे लग जाना। लापरवाही नहीं होनी चाहिए।"
जगमोहन ने सिर हिलाया और पलट कर कार की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान के इशारे पर अन्य भी वहां से हट गये।
“आओ।” देवराज चौहान ने डालचन्द को देखा--- “जल्दी ही वैन की तरफ बढ़ो। वैन का ड्राईवर कभी भी आ सकता है।"
उसी पल वैन का ड्राईवर बैंक से बाहर निकला। उसके साथ बैंक का कोई कर्मचारी भी था। दोनों बातें करते हुए वैन की तरफ बढ़ रहे थे।
“डालचन्द, उनके आने से पहले ही हमें वैन में बैठना है। जल्दी!"
देवराज चौहान और डालचन्द तेजी से वैन की तरफ दौड़े।
■■■
अगले ही पल वहां बम के तेज धमाके गूंज उठे। धुआं, धूल का गुब्बार, ढहती हुई दीवार। पल भर में ही वहाँ भूकम्प जैसा माहौल बन गया।
वैन का ड्राइवर चीखा ! साथ में आया बैंक कर्मचारी भी ।
“हजारी लाल!" बैंक कर्मचारी चीखकर बोला--- "मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है। तुम वैन को अपने कब्जे में ले लो--- मैं भीतर जाकर खबर करता हूं।"
"जी साहब---।" हजारी लाल ने जेब से सरकारी रिवाल्वर निकाली और वैन की तरफ भागा।
तभी अहाते की दीवार पर बम पड़ा। दीवार के परखच्चे उड़ गये। कई छोटे-छोटे टुकड़े हजारी लाल के जिस्म से टकराये। हजारी लाल के होठों से कराह निकल गई, परन्तु उसने वैन की तरफ बढ़ना न छोड़ा।
बमों के धमाके रह-रह कर गूंज रहे थे।
देवराज चौहान और डालचन्द उन धमाकों से बचते हुए वैन तक पहुंचे थे। ज्योंही डालचन्द वैन का ड्राइविंग डोर खोलकर बैठने लगा, उसी समय हजारी लाल उसके सिर पर आ पहुंचा और बदहवासी में चीखा---
“अबे, क्या करता है--- वैन से परे हट।” कहकर उसने डालचन्द की बांह थामी।
चारों तरफ धूल-ही-धूल का आलम था। कठिनता से एक-दूसरे का चेहरा देखा जा रहा था।
वह लोग अपने हिसाब से बम के धमाके किये जा रहे थे।
ड्राईवर हजारी लाल ने जब डालचन्द की बांह पकड़ी तो डालचन्द सकपका गया।
"अबे छोड़! यह कोई मुझे पकड़ने का टाइम है! हट जा पीछे!"
"मैं तुम्हें वैन नहीं ले जाने दूंगा।" हजारी लाल ने कसकर उसकी बांह थाम ली और हाथ में पकड़ा रिवाल्वर उसके सामने कर दिया।
रिवाल्वर अपनी ओर तना पाकर डालचन्द सिटपिटा गया।
“साले, रिवाल्वर पीछे कर।" डालचन्द गला फाड़कर चिल्लाया।
“तू वैन से पीछे हो जा, मैं रिवाल्वर पीछे कर लूंगा!" जितना डालचंन्द घबराया हुआ था, उतना ही ड्राईवर हजारी लाल घबराया हुआ था--- "मैं तुझे नहीं मारूंगा। छोड़ दूंगा। भाग जा यहां से।" हजारी लाल चीखे जा रहा था--- "अपनी जिन्दगी की सर्विस में मैंने कभी गोली नहीं चलायी, कभी ऐसा हादसा नहीं आया। तू मुझे मजबूर मत कर कि मुझे गोली चलानी पड़े। भाग जा यहां से?"
समय कम था और यह भूत पीछा नहीं छोड़ रहा था।
बमों के धमाके जारी थे।
"तू अपनी जान का दुश्मन क्यों बना है?" डालचन्द चीखा--- "देखा नहीं--- बमों के फटते ही वैन के पास मौजूद दोनों पुलिस वाले कहीं जा छिपे हैं। वह समझदार हैं।"
"मैं भी बहुत समझदार हूं। तू अपनी बता--- गोली मारूं?"
"वैन में बैठकर क्या करेगा, आसपास मेरे साथी हैं। वह एक बम वैन पर मारेंगे तो वैन के साथ-साथ तू भी मरेगा।"
"मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। यह वैन आर्म्स प्रूफ है। एक बार भीतर बैठकर इसकी खिड़कियां-शीशे बन्द कर लिये तो यह सुरक्षित हो जायेगी। मेरा अहसान मान कि मैं तुझे मार नहीं रहा। किसी की जान लेने को मन नहीं करता।"
डालचन्द समझ गया कि यह आदमी उसका वक्त बरबाद कर रहा है। एक-एक पल कीमती था। और यह आराम से बातों में लगा है। पल भर में ही न जाने उस में कहां से हिम्मत आ गई। धुंए के गुबार फैले ही थे। जहां नहीं फैले थे, वहां धूल उड़ रही थी। डालचन्द ने जेब में हाथ डाला, मंगल पांडे वाली रिवाल्वर जेब से निकाल ली और उसकी नाल ड्राइवर हजारी लाल की तरफ करके ट्रेगर दबा दिया। आखिरी पल में हजारी लाल को अहसास हुआ कि क्या होने जा रहा है?
हजारी लाल कुछ भी नहीं कर सका और गोली उसकी छाती में लगी। वह उछला और पीठ के बल नीचे जा गिरा।
डालचन्द ने रिवाल्वर जेब में डाली और अगले ही पल वह ड्राइविंग सीट पर जा बैठा था। देवराज चौहान तब तक दूसरी तरफ जा बैठा था।
"दरवाजे-खिड़कियां बंद कर लो वैन की, यह आर्म्स प्रूफ बुलेट प्रूफ है। हमें कुछ नहीं होगा।"
"तुम्हें किसने बताया कि यह आर्म्स प्रूफ है?"
"वैन के ड्राईवर ने।" कहने के साथ ही डालचन्द ने वैन स्टार्ट कर दी और गोली की रफ्तार से उसे दौड़ा दी।
आसपास छिपे पुलिस वालों ने वैन को अपनी जगह से हिलते पाकर वैन पर गोलियां दागीं। वैन की विण्ड स्क्रीन पर गोलियां लगीं और गायब हो गयीं।
"आर्म्स प्रूफ वैन का होना हमारे लिये बहुत फायदेमंद है।" देवराज चौहान दांत भीचकर बोला--- "इससे हमारे लिए पचास प्रतिशत खतरा कम हो गया है। रास्ते में मिलने वाले पुलिस वालों का मुकाबला करने में आसानी होगी।"
डालचन्द ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। वैन को हवा की रफ्तार से भगाये जा रहा था। रास्ते में कई जगह एक्सीडेंट होते-होते बचा। देवराज चौहान रिवाल्वर थामें खामोश बैठा था। वह जानता था कि डालचन्द की ड्राइविंग इसी तरह खतरनाक होगी। उसने डालचन्द पर निगाह मारी, जो होठों पर होंठ जमाये बैठा था।
"अब तक पुलिस वालों को खबर मिल गई होगी।" डालचन्द बोला।
"हां। पुलिस वालों के पास वायरलैस सैट खड़क रहे होंगे। तुम सिर्फ ड्राइविंग पर ध्यान दो। और किसी बात की फिक्र मत करो।"
"ड्राइविंग पर ध्यान तो मैं आंखें बंद करके भी दे सकता हूं।" डालचन्द एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "यह तो मेरे बायें हाथ का खेल है! लेकिन एक गड़बड़ हो गई।"
“क्या?"
"मेरे हाथों खून हो गया इस वैन के ड्राईवर का। पुलिस मुझे पकड़ सकती है।"
"बेवकूफी वाली बात मत करो।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- "इन कामों में कभी-कभी ऐसा भी करना पड़ता है।"
"रास्ते में पुलिस के हाथ लग गये तो वह रिवाल्वर मुझसे बरामद कर सकती है।"
“अपनी रिवाल्वर मुझे दो और तुम मेरी रख लो। भगवान न करे ऐसा वक्त आ भी गया तो पुलिस तुम पर ड्राईवर के कत्ल का इल्जाम नहीं लगा पायेगी, क्योंकि जिस रिवाल्वर की गोली से ड्राईवर मारा गया है, वह तो मेरे पास से बरामद होगा।"
डालचन्द ने बिना कुछ कहे रिवाल्वर बदली और अपनी जेब में डालते हुए खतरनाक अन्दाज में मोड़ काटा।
"अभी तक पुलिस की कोई गाड़ी नहीं मिली।" डालचन्द बोला।
"चिन्ता मत करो। बहुत जल्दी तुम्हारी यह तमन्ना पूरी होगी। पुलिस वाले शहर के हर खास रास्तों की नाकाबन्दी कर रहे होंगे। तुझे उनके ऐसे दर्शन होंगे कि जिन्दगी भर याद रखेगा।" देवराज चौहान ने कटु स्वर में कहा।
चंद पलों की खामोशी के बाद डालचन्द बोला---
"मैंने बहुत बुरा किया।"
"क्या?"
"उस ड्राईवर को मारकर। वह बहुत शरीफ आदमी था। उसने मेरी बांह पकड़ रखी थी, उसकी रिवाल्वर मेरी तरफ थी। वह गोली भी चला सकता था, परन्तु नहीं चलाई। कहता था उसने कभी गोली नहीं चलाई। इसलिए अब भी नहीं चलाना चाहता। वह मुझे भगा रहा था कि मैं वहां से चला जाऊं। वह मुझे छोड़ रहा था। लेकिन मैंने उसे गोली मार दी।"
"तुम उसे शूट न करते तो आखिरकार उसने तुम्हें शूट कर देना था।"
डालचन्द ने सहमति से सिर हिलाया।
“भूल जा सब बातों को। तूने निर्दोष की हत्या नहीं कि, बल्कि ऐसे इंसान को गोली मारी है जिसने रिवाल्वर पकड़ रखी थी और कभी भी वह तेरे को गोली मार सकता था। उसे मारकर तूने अपनी जान बचाई है।"
"कुछ भी हो उसे मारने का दुख मुझे हमेशा रहेगा। वह शरीफ आदमी था।" डालचन्द ने गहरी सांस लेकर गर्दन हिलाई।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। डालचन्द तूफानी गति से वैन को भगाये जा रहा था।
“कार में तुम्हारा साथी जगमोहन आ रहा होगा?" डालचन्द बोला।
"हां।"
"वैन की रफ्तार को वह पकड़ लेगा?"
“कह नहीं सकता। तुम सामान्य गति से डबल स्पीड पर, बल्कि उससे भी ज्यादा तेजी से चला रहे हो। बहरहाल वह पीछे ही होगा।"
डालचन्द सिर हिलाकर रह गया। तभी सामने लाल बत्ती आ गई। डालचन्द के होंठ भिंच गये। लाल बत्ती के पास दो कारें बराबर खड़ी थीं।
"साले मरेंगे!" डालचन्द एकाएक क्रूर स्वर में बड़बड़ा उठा, फिर देवराज चौहान से बोला--- “सम्भल कर! टक्कर लगेगी।"
देवराज चौहान ने डोर हैंडिल को कसकर पकड़ लिया।
अगले ही पल बैंक वैन दोनों कारों से पीछे से टकराई। दोनों कारों को जबरदस्त झटका लगा। एक आगे जाकर रुकी। दूसरी बाईं तरफ घूमती हुई फुटपाथ से जा टकराई। डालचन्द वैन को आगे भगाता चला गया।
चौराहे पर खड़े ट्रेफिक पुलिस वालों ने अपनी मोटर साइकिल संभाली और वैन के पीछे लगा दी। परन्तु वैन की गति देखकर मन-ही-मन पुलिसवाला सोचने लगा कि क्या वैन को वह पकड़ भी पायेगा या नहीं।
■■■
पुलिस सायरनों की आवाज कुछ इस प्रकार से गूंज रही थी कि ऐसा महसूस हो रहा था दिमाग की नसें फट जायेंगी। वह करीब छः गाड़ियां थीं जो सड़क के बीचो-बीच घेराबन्दी करके खड़ी थीं।
बैंक वैन किन-किन रास्तों को पार करती हुई सड़क पर आगे बढ़ रही थी, यह खबर उनको बराबर मिल रही थी और उसी के आधार पर उन छः पुलिस वैनों ने सड़क को घेर लिया था। उन्हें विश्वास था कि कुछ ही पलों में वैन इसी सड़क से गुजरेगी। और यहां करीब पचास पुलिस वाले गनों सहित पोजीशन लिए हुए और आती बैंक वैन को पकड़ लेने का दृढ़ निश्चय किए हुए थे।
उन्हें वायरलैस पर खबर मिल चुकी थी कि किस प्रकार लुटेरे बैंक वैन को ले हैं और उसमें साढ़े पांच करोड़ के नोट हैं।
तभी जीप में वायरलैस पर बैठा कांस्टेबल जीप से गर्दन बाहर निकालकर गला फाड़कर जोर से चीखा---
“सर, अभी-अभी मैसेज मिला है कि वैन इधर ही आ रही है।"
उसकी बातें सुनते ही वहां मौजूद दो में से एक इंस्पेक्टर चिल्लाया।
"वैन इसी तरफ आ रही है--- और हमने हर हाल में वैन को रोककर उस पर कब्जा करना है। वह लोग जिन्दा हाथ न लगते तो गोलियों से भून दो।"
सारे पुलिस वाले एलर्ट हो गये। पोजीशन उन्होंने पहले ही ले रखी थी।
कुछ क्षणों उपरान्त दूर उन्हें वैन आती दिखाई दी---
"सावधान वैन आ रही है।" पुलिस इंस्पेक्टर चिल्लाया।
वैन गोली की रफ्तार से पास आती जा रही थी। कुछ करीब पहुंची तो उसके वैन होने की स्पष्ट झलक मिली।
"यह वही बैंक वैन है।” इंस्पेक्टर चिल्लाया--- “जाने न पाये । पहले रोको। पकड़ो। बेबस करो। जब कुछ न हो सके तो उड़ा दो सबको।"
वैन तेजी से पास आई। ब्रेकों की चरमराहट गूंजी। वैन रुक गयी। पुलिस वैनों ने रास्ता कुछ इस प्रकार बंद कर रखा था कि निकलना कठिन ही था। वैन रुकते ही पुलिस वालों ने वैन को घेर लिया।
"अब क्या किया जाये?" वैन के भीतर बैठा डालचन्द गहरी सांस लेकर बोला--- “इन लोगों ने हमें घेर लिया।"
“तुमने कहा था वैन आर्म्स प्रूफ है।" देवराज चौहान बोला।
"हां।"
"फिर चिंता की कोई बात नहीं। इन लोगों को यह बात मालूम नहीं होगी कि वैन पर गोली असर नहीं करेगी। मालूम होते ही इनके हौसले पस्त हो जायेंगे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने वैन का शीशा इतना नीचा किया कि उसमें से रिवाल्वर की नाल बाहर निकाल सके। फिर उसमें से रिवाल्वर की नाल बाहर निकाल कर फायर कर दिया।
गोली एक पुलिस वाले के कंधे पर लगी।
“तुम लोग चारों तरफ से घिर चुके हो।" इंस्पेक्टर क्रोध भरे स्वर में बोला--- "मैं पहली बार और आखिरी बार वार्निंग देता हूं-- हाथ उठाकर वैन से बाहर आ जाओ ।"
दोनों में से कोई भी बाहर न निकला तो इंस्पेक्टर गला फाड़कर चिल्लाया---
“फायर!”
अगले ही पल वहां गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठी। जब गोलियां वैन के शीशे से टकरा कर फिसलती देखीं तो वास्तव में उनके हौसले पस्त हो गये। वे समझ गए कि वैन के शीशे बुलेट प्रूफ हैं।
"वैन यहां से निकालो डालचन्द ।"
"सामने पुलिस जीपों और कारों को जोड़कर सड़क बंद कर रखी है।" डालचन्द विचार भरे स्वर से कह उठा--- "अगर मैंने इन्हें टक्कर मारकर पीछे करना शुरू किया तो हो सकता है वैन के इंजन में कोई खराबी आ सकती है। वैनन का रास्ता बनाने के लिए पुलिस कारों को कई बार टक्कर मारनी पड़ेगी।"
"फिर ।" देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।
"तुम बमों का इस्तेमाल करो।”
"एक बम भी किसी कार पर पड़ गया तो सारी की सारी गाड़ियां धूं-धूं जलने लगेंगी। फिर इस वैन का निकलना कठिन हो जायेगा।" देवराज चौहान ने कहा।
डालचन्द ने होंठ भींच लिए।
"तो फिर वैन से मार टक्कर-- जो होगा देखा जायेगा।"
देवराज ने सिर हिला दिया।
डालचन्द ने वैन आगे बढ़ाई तो पुलिस वालों की....गोलियों की बाढ़ पुनः आई--- जो कि उनका कुछ न बिगाड़ सकी।
“मैं कहता हूं, रुक जाओ।" पुलिस इंस्पेक्टर की चेतावनी से भरी खोखली आवाज उनके कानों में पड़ी-- जबकि वह जानता था कि बुलेट प्रूफ वैन होने के कारण उसे रोक पाना सम्भव नहीं। वैन रफ्तार के साथ सड़क के बीच खड़ी पुलिस गाड़ी से जा टकराई।
चार बार वैन से जोरदार टक्करें मारने के पश्चात रास्ता खुला। पीछे से पुलिस वाले गोलियां बरसाते ही चले गए--- परन्तु उनका बिगड़ा कुछ नहीं। अलबत्ता वैन की बाडी में असंख्य गोलियों के छेद हो चुके थे। पुलिस गाड़ियों को हटाने के चक्कर में वैन का अगला सिरा बुरी तरह पिचक गया था। भगवान का शुक्र था कि वैन के इंजन में कोई गड़बड़ी नहीं आई थी।
इससे पहले कि कोई पुलिस कार वैन का पीछा करती.... वैन आंधी की रफ्तार से उनकी नजरों से ओझल होती चली गई।
■■■
रास्ते में दो जगह और भी पुलिस से टकराव हुआ। परन्तु वह बचकर निकल गए। अलवत्ता वैन की दशा और भी खराब हो गई। डालचन्द कई सड़कों से वैन को दौड़ाता हुआ फार्मों के इलाके में आ पहुंचा।
“जल्दी करो डालचन्द--- यह जगह हमारे लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है। अगर किसी ने बैंक वैन को देख लिया तो देर-सवेर पुलिस भी आ जायेगी।"
डालचन्द तेजी से वैन को भगाये जा रहा था। जब वैन फार्म के बाहरी गेट पर पहुंची तो देवराज चौहान ने कहा---
"ठहरो! फाटक मत तोड़ना। मैं अभी खोलता हूं।"
डालचन्द ने फाटक के पास वैन रोकी। देवराज वैन से नीचे उतरा और फाटक खोल दिया। फिर वैन के भीतर जाते ही वह बोला---
"तुम वैन को भीतर ले जाओ। मैं फाटक बंद करके अभी आता हूं।"
डालचन्द वैन को आगे बढ़ा ले गया।
देवराज चौहान ने लकड़ी का फाटक बन्द किया और आसपास निगाह मारी। उसे कोई भी नजर नहीं आया....तेज धूप निकली हुई थी। वह पलटा और कॉटेज की तरफ बढ़ गया।
■■■
डालचन्द ने कॉटेज के पीछे बने फूंस के बड़े से कमरे में बैंक वैन को घुसेड़कर रोक दिया।
इंजन बंद करके नीचे उतरने लगा कि....एकाएक उसका जिस्म स्थिर हो गया। वह सांस लेना भूल गया। कई क्षणों तक वह लकवे के मरीज की भांति सीट पर बैठा रह गया।
वैन के पिछले हिस्से में किसी के खांसने की हल्की-सी आवाज उठी थी।
डालचन्द ने धड़कते दिल से गरदन घुमाकर पीछे देखा... डिब्बा टाइप वैन बन्द थी।
उसकी पीठ पीछे छोटी-सी खिड़की थी। उसने उसे खोलने की चेष्टा की तो वह नहीं खुली। वह समझ गया कि उसे भीतर से खोला जा सकता है।
वैन के भीतर कोई था ?
डालचन्द काफी देर तक स्थिर मुद्रा में बैठा रहा। फिर उसका जिस्म हिला और पुश्त पर बनी छोटी-सी खिड़की थपथपा कर बोला---
“भीतर कौन है?"
परन्तु भीतर से कोई जवाब नहीं आया।
वह कांपती टांगों से नीचे उतरा और वैन की बाडी से टेक लगाकर गहरी सांसें लेने लगा।
वैन के भीतर से भी वह आहट लेने का प्रयास कर रहा था, परन्तु भीतर से किसी प्रकार की कोई आहट नहीं आई। लेकिन उसे सौ प्रतिशत विश्वास था कि भीतर कोई है जरूर।
तभी देवराज चौहान वहां आ पहुंचा।
"तुमने ड्राइविंग बहुत अच्छी की। अगर कोई और होता तो वैन को यहां तक न पहुंचा पाता। मुझे खुशी है कि मैंने सही आदमी का चुनाव किया है।" उसने डालचन्द की पीठ थपथपाई।
डालचन्द ने गहरी-गहरी सांसें लेते हुए देवराज चौहान को देखा।
"वैन में कोई है।"
डालचन्द के शब्द सुनकर देवराज चौहान चौंका।
"यह क्या कह रहे हो ?"
"वैन में कोई है..... मैंने खांसी की आवाज सुनी है।"
देवराज चौहान ने डिब्बाबन्द वैन को चारों ओर घूमकर देखा। फिर पीछे की तरफ खुलने वाले दरवाजे को खोलने की चेष्टा की।
दरवाजा भीतर से बन्द था।
"अन्दर कौन है?" उसने दरवाजा थपथपाया।
जवाब में भीतर से कोई आवाज नहीं आई।
तब तक डालचन्द भी देवराज चौहान के करीब आ चुका था।
“तुम तो वहां वैन पर निगाह रखे हुए थे।" देवराज चौहान ने उसे देखा।
डालचन्द ने सहमति में सिर हिलाया।
"फिर कोई भीतर हो और बोले न-- यह कैसे हो सकता है?"
"मैंने कहा न।" डालचन्द आतंक भरे स्वर में चीख उठा---
“वैन में कोई है जरूर। मैंने खांसी की आवाज सुनी है। तुम मेरी बात का विश्वास क्यों नहीं कर रहे हो?"
देवराज चौहान ने उसकी बदतर हो रही हालत को देखा।
"अगर वैन में कोई है भी तो इसमें इतना घबराने की क्या बात है?"
डालचन्द ने उल्टी हथेली से चेहरे पर बहते पसीने को साफ किया और वैन पर निगाह मारकर देवराज चौहान को देखा।
“याद है.... मैंने तुमसे कहा था कि बीच में एक बार मैं सू-सू करने गया था।"
"तो?"
"मेरे जाने से पहले वैन के पास गनों सहित दो गार्ड खड़े थे...बैंक के गार्ड। और जब सू-सू करके वापस आया तो वे फिर मुझे नहीं दिखे...।"
"तुम्हारा मतलब है कि भीतर गनों को लिए वे दोनों गार्ड हैं?"
"हो सकते हैं।"
देवराज चौहान वैन को देखता ही रह गया।
"यह बहुत ही खतरनाक बात थी कि वैन बन्द करके दो गार्ड भीतर बैठे थे। उनके हाथों में गनें थीं। अगर वह किसी तरह से वैन का दरवाजा खोल भी लें तो दरवाजा खुलते ही भीतर मौजूद दोनों गार्डों की गनों से निकलने वाली गोलियां उनके जिस्मों को उधेड़कर रख देंगी। देवराज चौहान ने चैन की सांस ली कि अच्छा हुआ वक्त रहते यह बात उन्हें मालूम हो गई....वरना अवश्य ही अनर्थ हो जाता।
तभी उन्हें कार के इंजन की आवाज सुनाई दी।
देवराज चौहान ने जेब से रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली और कॉटेज के साथ घूमकर साइड में पहुंचा तो देखा कि आने वाली कार अपनी ही थी। उसे जगमोहन चला रहा था।
देवराज चौहान वापस वैन के पास आ गया।
"कौन है?" पूछा डालचन्द ने।
“जगमोहन ।” देवराज चौहान ने कहा।
दोनों खामोशी से खड़े तीखी निगाहों से वैन को घूरते रहे।
कुछ ही क्षण में जगमोहन भी वहां आ पहुंचा।
“क्या बात है?" जगमोहन के चेहरे पर प्रसन्नता थी कि साढ़े पांच करोड़ के नोटों से भरी वैन उनके काबू में पहुंच चुकी है--- "तुम लोग किस सोच में हो? वैन तो अब यहां सुरक्षित पहुंच चुकी है। रही मेरी बात, तो मैं वैन को पकड़ नहीं पाया--- क्योंकि वैन की रफ्तार बहुत तेज थी।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।
“जगमोहन! वैन के भीतर कोई है। डालचन्द का ख्याल है। कि गनों को थामे दो गार्ड भीतर हैं। और हम लोगों के लिए ये बात बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकती है। "
“क्या?" जगमोहन चौंका--- “भीतर गनों के साथ दो गार्ड?”
“हां.... ये बैंक के सिक्योरिटी गार्ड होंगे....जो बैंक की मोटी-मोटी रकमों के साथ उनकी हिफाजत के लिए जाते होंगे। ऐसे गार्ड खतरनाक होते हैं....उनका निशाना पक्का होता है--- और ऐसे मौकों पर मारने-मरने पर उतारू हो जाते हैं।"
“लेकिन यह तो डिब्बाबन्द वैन है.... सांस लेने के लिए उन्हें फ्रेश हवा कहां से मिल रही होगी?" जगमोहन ने कहा ।
"मैंने इस बात पर विचार किया है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "मेरे ख्याल में वैन के नीचे से हवा जाने का प्रबन्ध अवश्य होगा। खैर यह बात तो हम बाद में भी जान लेंगे। बिना हवा के तो वे लोग भीतर रहने से रहे। तुम भीतर जाकर बैठने के लिए कुर्सियां तो ले आओ....हमें यहीं बैठना पड़ेगा। क्या मालूम वह कब दरवाजा खोलकर बाहर निकलें और हम पर गोलियां दागने लगें। वैन के दरवाजे पर ऐसी कोई सिटकनी भी नहीं... जिसे हम बाहर से बन्द कर सकें।"
“इनसे बात नहीं की?”
“कोशिश तो की थी...परन्तु भीतर से कोई बोला नहीं।"
“बोलेगा!” जगमोहन ने घूरकर वैन पर एक निगाह मारी--- "बिना रोटी-पानी के कब तक वे इस प्रकार से भीतर बैठे रहेंगे? जल्दी बोलेंगे यह लोग ।" कहने के साथ ही जगमोहन पलटा और कॉटेज की ओर बढ़ गया।
डालचन्द के चेहरे पर बेचैनी और व्याकुलता छाई हुई थी।
“मुझे उस ड्राईवर की याद आ रही है जिसे मैंने गोली मारी थी।" वह धीमें स्वर में कह उठा--- "वह बहुत ही शरीफ इंसान था... मुझे उसको मारना नहीं चाहिए था।"
“ताकि वह तुझको मार देता।" देवराज चौहान ने क्रोध भरे स्वर में कहा।
डालचन्द कंधों को झटका देकर रह गया।
■■■
कुछ ही क्षण बाद देवराज चौहान, डालचन्द और जगमोहन वैन के पिछले हिस्से की तरफ कुर्सियां बिछाये बैठे थे।
देवराज चौहान ने गोद में रिवाल्वर रखी हुई थी। इस बात के प्रति वह लोग बहुत सजग थे कि अगर भीतर मौजूद गार्ड वैन का दरवाजा खोलते हैं तो उन्हें इस बात का पहले ही आभास हो जाये।
गर्मी जोरों की पड़ रही थी। पसीना बह रहा था चेहरों पर।
"जगमोहन! इस फूंसे वाले कमरे के बाहरी तरफ भी छप्पर की दीवार खड़ी कर दो। मैं नहीं चाहता कि पास आने पर भी किसी की निगाह इस वैन पर पड़े।"
"कॉटेज में पड़ा है छप्पर। आ डालचन्द, इस फूस वाले कमरे की चौथी दीवार भी खड़ी कर दें... फिर यह वैन अच्छी तरह से ढक जायेगी ।"
आधे घण्टे की मेहनत करके उन दोनों ने फूंस वाली चौथी दीवार को बांधकर खड़ा कर दिया।
अब फूंस वाले कमरे में पूरी तरह छाया थी। कहीं-कहीं से रोशनी छनकर आ रही थी।
सबने एक-दूसरे को देखा।
फिर देवराज चौहान बैठा और हाथ में पकड़ी रिवाल्वर की नाल से वैन की बाडी को ठकठका कर बोला---
"तुम लोग मेरी आवाज सुन रहे हो?"
कोई जवाब नहीं।
उसने पुनः वैन की चादर ठकठकाई ।
कोई जवाब नहीं।
"तुम लोगों की खामोशी ज्यादा समय तक नहीं चल सकती। अभी तो हम तुम्हें बोलने के लिए कह रहे हैं--- पर बाद में तुम हमें बोलने के लिए कहोगे। बिना रोटी-पानी के कब तक भीतर रह सकोगे? भूख और प्यास से तड़प कर अपने आप बाहर निकलोगे।"
चंद क्षणोपरान्त भीतर से आवाज आई---
"तुम हमारी फिक्र मत करो....ऐसे मौकों के बारे में सोचकर ही सरकार की तरफ से हमें वैन में रखा हुआ खाना-पानी मिलता है... जो कुछ दिन चल सके। रकम जितनी ज्यादा हो.... खाना-पानी भी उतना ही ज्यादा होता है।"
"क्या मतलब?"
"मतलब ये कि हमारे पास खाना-पानी का मुकम्मल इन्तजाम है।"
“कब तक चलेगा?”
"कुछ दिन तो चलेगा ही।"
"उसके बाद क्या करोगे?"
"बाद की बात बाद में देखेंगे...अभी तो काम चल रहा है।"
"सांस लेने के लिए तुम लोगों को हवा कहां से मिल रही?"
"वैन के नीचे बने छेदों में से। छेद इतने छोटे हैं कि सिर्फ हवा ही आ सकती है.....रिवाल्वर की गोली नहीं आ सकती।"
भीतर से आने वाले भारी स्वर ने समझाने वाले भाव में कहा।
"तुम लोग कितने हो?"
"दो हैं।" इस बार दूसरी आवाज आई--- "तुम सब के लिए काफी हैं। तुम लोगों ने ड्राईवर हजारी लाल का खून किया है...वह मेरा जीजा था। इतना याद रखना कि.... हम किसी भी कीमत पर तुम सभी को जिन्दा नहीं छोड़ सकते। मरोगे तुम सब।"
"तुम बच जाओगे?"
“हमारा क्या है....हम तो पहले ही फंसे पड़े हैं। इस समय हम अपने बचने की तो सोच ही नहीं रहे....सिर्फ ये सोच रहे हैं कि तुम लोगों को कैसे मारा जाए।" स्वर में दृढ़ता थी ।
"बेवकूफ हो तुम लोग!" देवराज चौहान के होठों से गुर्राहट निकली--- "तुम लोग हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। वैन का दरवाजा खोलोगे तो मरोगे....नहीं खोलोगे तो भी मरोगे। इस वक्त तुम्हें अपनी जान बचाने के लिए सोचना चाहिए।"
भीतर से कोई जवाब नहीं आया।
"मेरी बात मानोगे तो बच सकते हो।"
"तुम्हारी बात?" भीतर से पुनः आवाज आई--- “तुम यही कहोगे कि हम वैन का दरवाजा खोल कर अगर हाथ उठाये बाहर आ जाएं तो तुम लोग हमें छोड़ दोगे। और इस माल में से हमें थोड़ा दाना भी दे दोगे।"
"समझदार हो तुम लोग। मैं बिल्कुल यही कहना चाहता था।"
"हमें बेवकूफ मत समझो....हमें तुम जैसे लोगों से निपटना खूब आता है। हम इस दौलत के रखवाले हैं। हिस्सेदार नहीं।"
"बहुत वफादार हो अपनी नौकरी के।"
“गलत समझ रहे हो तुम....अपनी जान के आगे किसी चीज का महत्व नहीं होता। वफादारी भी तब तक ही होती है, जब तक जान बचने का चांस हो। हमें वैन में पड़ी दौलत की परवाह नहीं....इस समय हमने अपनी जान बचानी है।"
"तो हमारे साथ मिल जाओ।"
"नहीं...तुम लोगों के साथ सौदा नहीं किया जा सकता... दरिन्दे हो तुम लोग। हजारी लाल को मारने वाले, इंसान हो ही नहीं सकते।"
"सोच लो। हमारी बात न मानकर तुम लोग मौत को बुलावा दे रहे हो।"
"अपनी खैर मनाओ तुम। हम तो आराम से बैठे हैं।"
देवराज चौहान ने होंठ भींच लिए। वह लोग दृढ़ इरादा किए बैठे थे और किसी भी कीमत पर दरवाजा खोलने को तैयार नहीं थे।
"एक बात और सुन लो....हमारे पास वायरलैस सेट हैं। उसे हम चालू करने जा रहे हैं। अभी तक हमने तुम लोगों के तीन नाम सुने हैं। जगमोहन, डालचन्द और देवराज चौहान। यह तीनों नाम हम पुलिस को बताने जा रहे हैं। देखते हैं तुम कब तक बचते हो!"
"तुम जो भी कर लो, लेकिन बच नहीं सकोगे। अगर तुम्हारे पास वायरलैस सेट है तो पुलिस वालों ने तुमसे सम्पर्क क्यों नहीं बनाया?"
“जरूर बनाया होगा। लेकिन बनता कैसे....हमने सेट की तारें निकाल दी ताकि तुम लोगों की बातचीत हम सुन सकें। अगर हम ऐसा न करते तो तुम लोगों के नाम हमें कैसे मालूम होते ।"
तभी देवराज की निगाह डालचन्द पर पड़ी जो घबराहट और आतंकजदा बैठा था....उसका चेहरा फक्क पड़ा था।
■■■
“तुम्हें क्या हुआ है?" देवराज चौहान ने पूछा।
डालचन्द ने थूक निगला....फिर उसने सूखे स्वर में कहा ---
“वह हम लोगों के नाम पुलिस को बता देंगे।" उसके स्वर में घबराहट थी।
“तो क्या हुआ ?”
"कहा न मैं पकड़ा जाऊंगा।"
“बेवकूफ मत बनो!” देवराज चौहान आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा--- “तुम्हें कुछ नहीं होगा। क्योंकि इस शहर में पचासों डालचन्द होंगे।"
“मुझे तो डर लग रहा है।" वह वास्तव में घबराया हुआ था।
“डरो मत। हम भी तो तुम्हारे साथ हैं।" जगमोहन ने उसका कंधा थपथपाया--- "इन कामों में ऐसी बातें तो हो ही जाती हैं।"
"लेकिन मैंने यह काम पहले किया ही कब है....मेरी तो पहली बार है।"
"डालचन्द!" देवराज चौहान ने धीमें स्वर में कहा--- "तुमने बैंक रॉबरी में हिस्सा लिया है.....एक खून भी कर चुके हो.... पुलिस की निगाहों में हमारे बराबर के मुजरिम हो। यूं हिम्मत हारने से काम नहीं चलेगा। अपने अन्दर हौसला इकट्ठा करो।"
डालचन्द अपने सूखे होठों पर जीभ फेरकर रह गया था।
वैन के भीतर से उन्हें वायरलैस सेट के चालू होने की आवाज आने लगीं।
जगमोहन ने देवराज चौहान की ओर देखा।
"अब क्या होगा?"
"होगा क्या.... रिवाल्वरें सम्भाले वैन के बाहर बैठे रहो। जब भी वैन का दरवाजा खुले...इससे पहले कि वे तुम्हें शूट करें...तुम उन्हें शूट कर दो।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- “गार्डों की बातों से स्पष्ट होता है कि....वह लोग हमारी बात नहीं मानेंगे। गोली की भाषा ही उनकी समझ में आएगी।"
जगमोहन सिर हिलाकर रह गया।
डालचन्द दिखने में तो ठीक था, लेकिन भीतर से वह घबराया हुआ था।
"तुम दोनों यहां ड्यूटी दोगे....शाम को डालचन्द को फ्री कर देना। ठिकाने पर सबने इकट्ठे होना है.... वहां इस मुद्दे पर बात की जायेगी।"
"लेकिन मुझे आराम भी तो चाहिए। नहीं तो रात में मैं ड्यूटी नहीं दे पाऊंगा।"
"तुम दिन की ड्यूटी सावधानी से दो.... रात की फिक्र मत करो। रात को तुम्हारी जगह कोई और लगेगा....।" देवराज चौहान ने कहा।
"और कौन?"
"अभी तो मालूम नहीं....यह तो रात को ही पता चलेगा।"
"कल का क्या प्रोग्राम है?"
"कैसा प्रोग्राम?"
"बैंक डकैती का.... अब तो उसकी जरूरत नहीं रह गई।" जगमोहन ने सिर हिलाते हुए देवराज चौहान से पूछा।
"क्यों नहीं जरूरत रह गई....। जिस डकैती का प्लान मैंने बनाया था, वह तो वैसे का वैसा ही पड़ा है। हालात हमारे हिसाब से उल्टे चले इसलिए वैन को उठा लाना पड़ा। डकैती होगी और कल ही होगी...मैं साढ़े नौ करोड़ रुपये को इकट्ठे देखना चाहता हूं....।"
जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।
"मेरे ख्याल से हमें कल का इरादा छोड़ देना चाहिए। साढ़े पांच करोड़ कम नहीं होता। हमारे हिस्से में इसमें से बहुत आ पाएगा।"
"नहीं। साढ़े नौ करोड़ इकट्ठा होने के पश्चात् ही....हिस्से होंगे। हमारा निशाना बैंक डकैती था और वह अभी पूरा नहीं हुआ।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
“तो क्या कल फिर मुझे शामिल होना पड़ेगा?" डालचन्द हड़बड़ा उठा ।
“डकैती में थोड़े न शामिल होना है तुम्हें। तुम तो दूर खड़े रहोगे। हम डकैती करके लायेंगे। तुम्हें सिर्फ ड्राइविंग के दम पर माल यहां तक लाना है।"
डालचन्द सूखे होठों पर जीभ फेरकर रह गया।
■■■
मंगल पांडे जब मोटे नटियाल के बार में पहुंचा....तो बेचैनी से घिरा हुआ था। रह-रहकर उसकी आंखों के सामने बैंक वैन घूम जाती जो साढ़े पांच करोड़ के नोटों से लदी थी और जिसे उसके देखते-ही-देखते देवराज चौहान और डालचन्द ले गये थे।
पांडे सीधा बार काउन्टर पर पहुंचा। काउण्टर मैन ने दूर से ही देखकर उसके लिए पैग बना दिया था। पांडे ने एक ही सांस में पैग खाली किया।
तभी मोटा नटियाल उसके पास आया।
“कैसी कट रही है?” नटियाल ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा।
“ठीक ही है।" मंगल पांडे ने वहां बैठे, पीने में व्यस्त लोगों पर निगाह मारी।
“आज क्या हुआ--- तूने कहीं जाना था ।"
पांडे कुछ न बोला। आवेश से उसका दिल जोरों से धड़क रहा था कि उन लोगों ने साढ़े पांच करोड़ के नोटों से भरी वैन लूट ली है। साढ़े पांच करोड़! पांडे को तो यकीन ही नहीं आ रहा था....क्योंकि आज तक उसने लाख-दो लाख के ही हाथ मारे थे।
"आ जरा।" नटियाल उसके चेहरे को देखकर बोला--- "पीछे वाले कमरे में आ।”
"क्यों?"
"बात करनी है।"
“ठहर जा। पी तो लेने दे।"
नटियाल के इशारे पर बारमैन ने पटियाला पैग बनाकर उसके सामने रख दिया....पांडे ने गिलास उठाकर घूंट भरा।
"इसे साथ ही ले आ! कमरे में पीते रहना और जरूरत महसूस होगी तो मैं खुद तुझे लाकर दे दूंगा। चल पीछे वाले कमरे में।"
मोटा नटियाल और मंगल पांडे पीछे वाले कमरे में पहुंचे।
“आज क्या हुआ, कामयाब हुआ या नाकामयाब?"
मंगल पांडे ने घूंट भरा। बोला कुछ नहीं।
“कुछ तो मुंह से फूट...।" नटियाल व्यग्रता से बोला।
"कामयाब ।" पांडे ने सिर हिलाया।
“आज तुम लोगों ने कोशिश करनी थी.....कि साढ़े पांच करोड़ बैंक से बाहर न निकले। इसका मतलब बमों ने वहां इतनी दहशत फैला दी कि साढ़े पांच करोड़ बाहर नहीं निकला---।"
मंगल पांडे ने अजीब-सी निगाहों से नटियाल को देखा।
“हम लोग वहां पहुंचने में लेट हो गये थे। तब तक नोट वैन में लद चुके थे।"
"तो?"
"हमने वैन उड़ा ली।"
मोटा नटियाल कुर्सी पर बैठे-बैठे लड़खड़ाया.....। आंखें हैरानी से फैलकर चौड़ी होती चली गईं....फिर उसने जल्दी से पलकें झपकीं और बोला---
“तुम्हारा, तुम्हारा मतलब कि तुमने साढ़े पांच करोड़ के नोटों से भरी वैन उड़ा ली ?"
मंगल पांडे ने सहमति से सिर हिलाया।
नटियाल अविश्वास भरी कनखियों से उसे देखता रह गया।
“विश्वास नहीं आता।"
“तुम्हें जरूरत ही क्या है विश्वास करने की? अपना काम करो।"
“बाई गॉड! साढ़े पांच करोड़ की वैन उड़ा ली!" नटियाल बड़बड़ाया---- "कितना बड़ा हाथ मारा है तूने। मदों वाला हाथ! अब कल तो कुछ नहीं होगा....। मतलब कि बैंक डकैती ।"
"कह नहीं सकता। देवराज चौहान ही बताएगा इस बारे में।"
"एक बात कहूं।"
"क्या?"
"अगर वह कल बैंक डकैती करें तो तू मत करना.... । साढ़े पांच करोड़ में से ही अपना हिस्सा लेकर साइड हो जा। क्यों खामखाह की रिस्क लेता है।”
मंगल पांडे सोच में डूब गया।
"इसमें सोचने की क्या बात है?" नटियाल ने उसकी बांह हिलाई है।
नटियाल को देखकर मंगल पांडे ने गिलास में से घूंट भरा---
“बहुत ज्यादा बात सोचने की है। मैंने कल की डकैती में शामिल होने के लिए मना किया तो, वह... लोग मुझे कायर समझेंगे। वैसे भी ऐसा करना मेरे उसूल के खिलाफ है नटियाल ।"
“भाड़ में गया उसूल ! अरे तू यह सोच कि अगर कल की डकैती में तू मारा गया तो तब क्या होगा? गया ना सब कुछ अपने हाथों से-- माल भी और जान भी....। मेरी राय कभी भी गलत नहीं होती। साढ़े पांच करोड़ कम नहीं होते। तेरे पल्ले तगड़ा हिस्सा आयेगा।”
“सोचूंगा.... । अभी तो इस बारे में कुछ नहीं कह सकता।"
नटियाल ने सिगरेट सुलगाकर पूछा।
"वैन कहां है। साढ़े पांच करोड़ के नोटों से भरी वैन तुम कहां छिपाकर आये हो । सुरक्षित जगह है न वह? कहीं ऐसा तो नहीं वैन पुलिस के हाथों में पड़ जाये?"
मंगल पांडे ने होंठ भींच लिये।
“चुप क्यों है? बोलता क्यों नहीं?"
“मुझे नहीं पता वैन कहां है!"
मोटे नटियाल की कुर्सी जोरों से हिली।
“शादी करके आया है और कहता है बीवी का पता नहीं वह कहां है! तू पागल तो नहीं हो गया।"
“मैं सही कह रहा हूं कि मैं नहीं जानता.... वैन कहां है!"
“ऐसा कैसे हो सकता है, हो ही नहीं सकता।" नटियाल ने टेबिल पर घूंसा मारा।
मंगल पांडे ने नटियाल को सारा किस्सा सुनाया।
सुनकर नटियाल ने मुंडी को कई बार ऊपर-नीचे किया।
"तो देवराज चौहान ने माल रखने का गुप्त ठिकाना किसी को नहीं बताया। सबसे छिपाकर रखा....। तू भी नहीं जानता। उसका खास साथी जगमोहन है या फिर डालचन्द। डालचन्द इसलिए जानता है कि बैंक डकैती के बाद, माल को उसी ने ठिकाने पर लाना था।"
"हां।"
“तूने सोचा है--- अगर देवराज चौहान गद्दारी कर गया तो तेरे हाथ कुछ भी नहीं आएगा। तेरे क्या किसी के हाथ में भी कुछ नहीं आयेगा।"
"इसी बात को लेकर तो मुझे झुंझलाहट हो रही हैं। लेकिन मैं भी क्या करता। जब कोई नहीं बोला इस बात के खिलाफ--- तो मेरा बोलना भी ठीक नहीं था। जरा-सा बोलने की कोशिश की तो वह साली कुतिया बीच में बोल पड़ी थी।"
“कौन....नीना पाटेकर?"
“हां। उस हरामजादी के कपड़े तो फुर्सत में उतारूंगा ! ऐसे कि याद करेगी।”
“अभी कुछ मत करना। पहले डकैती वाला मामला खत्म हो लेने दो।" नटियाल ने हाथ उठाकर कहा--- “पहले काम की बात सोच। वैसे मैंने देवराज चौहान के बीसियों किस्से सुने हैं, लेकिन किसी भी किस्से में यह नहीं सुना कि दौलत के लिए उसने अपने साथियों को धोखा दिया हो-- बल्कि मैंने तो सुना है.... उसे धोखे से सख्त नफरत है।"
“अब मुझे क्या मालूम ! मैं तो इतना जानता हूं, हम सबने मिलकर बैंक वैन रॉबरी की....और साढ़े पांच करोड़ के नोट से भरी वैन इस समय देवराज चौहान के कब्जे में है--- कहां है, नहीं मालूम।" मंगल पांडे दांत पीस कर कह उठा।
"हौसला रख। बात-बात पर चीं-चीं करना छोड़ दे। तू अकेला नहीं। इस मामले में वह उस्मान अली, नीना पाटेकर भी हैं।" कहकर नटियाल ने गहरी सांस खींची--- "बैंक वैन रॉबरी को बहुत आसान रही। काश, इसमें मैं भी होता तो हिस्सा मिलता है। है न?"
“होता तब न ।" पांडे ने हाथ में पकड़े गिलास को एक ही सांस में समाप्त करके टेबिल पर रख दिया--- “इतना आसान नहीं था काम जितना तू सोच रहा है। बैंक वैन रॉबरी की योजना भी दो मिनट में देवराज चौहान ने बनाई। कोई और होता तो शायद देखता ही रह जाता। कुछ न सोच पाता। इस मामले में तो देवराज चौहान को मानना पड़ेगा।"
“ऐसे ही थोड़े उसने क्राइम वर्ल्ड में नाम कमाया है। यूं ही तो पुलिस फाइल में वह वांटेड नहीं है। कमाल का आदमी है, तभी सभी उसके पीछे हैं।" मोटे नटियाल ने पहलू बदलकर कहा--- “अब तूने देवराज चौहान से कहां मिलना है?”
"शाम को उसके ठिकाने पर। वहीं पर उसने सबको आने को कहा था।"
"ठीक है, शाम को जाना। वह जरूर आएगा। हेरा-फेरी वाला आदमी नहीं है वह।” नटियाल सिर हिलाकर कह उठा, उसके स्वर में विश्वास का पुट था।
पांडे जाने लगा तो नटियाल बोला---
"आराम कर, जाता कहां है? दोपहर होने वाली है, खाना मंगवाता हूं।"
“आराम ही करने जा रहा हूं....।"
"कहां? शामली के पास?"
"हां।"
“तू उसका पीछा नहीं छोड़ता।"
"वह है ही ऐसी। अच्छी लड़की है शामली। इस धन्धे में न होती तो उसके लिए और भी अच्छा होता।"
मंगल पांडे कमरे से बाहर निकल गया।
■■■
खूबचन्द समुद्र की सतह पर बिखरे पानी की तरह शांत था, परन्तु भीतर से वह ज्वालामुखी की भांति उबाल खा रहा था....दिल जोरों से धड़क रहा था। किसी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। आंखें कहीं भी टिक न पा रही थीं।
खूबचन्द ने डालचन्द को निशाना बना रखा था.... । मंगल पांडे की निगरानी वह कम करने की ही कोशिश करता था। उसे डर था कि अगर पांडे की निगाह में आ गया तो पांडे मार-मारकर उसमें भुस भर देगा।
इसी कारण उसकी निगाह डालचन्द पर थी....।
मामला अभी तक उसकी समझ में आया था....उससे वह इतना तो समझ गया था कि एकबारगी पांडे के न मौजूद होने से काम चल सकता है देवराज चौहान का--- परन्तु डालचन्द के बिना नहीं। क्योंकि डालचन्द ने अपनी फास्ट और खतरनाक ड्राइविंग के दम पर माल को ठिकाने पर ले जाना था।
खूबचन्द आज सुबह ही डालचन्द की निगरानी के लिए उसके घर के सामने जा डटा था। साढ़े आठ बजे डालचन्द तैयार होकर घर से बाहर निकला और टैक्सी लेकर वजीर चन्द प्लेस जा पहुंचा। तब सवा नौ बज गये थे।
खूबचन्द उसके पीछे था। उसने देखा कि डालचन्द वजीरचन्द प्लेस के सामने जेबों में हाथ डाले मंडराये जा रहा है। उसकी निगाह बार-बार ग्राउण्ड प्लेस पर नजर आ रहे हिन्दुस्तान बैंक की तरफ उठ रही थी।
खूबचन्द के मस्तिष्क को झटका लगा। तो क्या यह लोग इस बैंक में डकैती करने का ख्याल बनाये बैठे हैं? डालचन्द यहां अकेला क्यों आया? बाकी के साथी कहां हैं? यह यहां घूमता हुआ क्या कर रहा है?
फिर नौ पचास पर बैंक खुला।
बैंक कर्मचारी आते जा रहे थे।
डालचन्द बैंक के अहाते में प्रवेश करके....एक तरफ खड़ा हो गया। खूबचन्द देख रहा था कि डालचन्द अब कुछ बेचैन होने लगा है। बार-बार उसकी निगाह कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ उठ रही थी। यानी कि इसके बाकी साथी भी आने वाले हैं....! इस विचार के साथ ही खूबचन्द कुछ और ओट में हो गया।
फिर बैंक वैन वहां पहुंची। बैंक के मुख्य द्वार के करीब इस तरह खड़ी हो गई कि उसका पिछला दरवाजा बैंक के मुख्य द्वार की तरफ खुले। पांच मिनट के पश्चात ही बैंक के कर्मचारी बड़े-बड़े भरे हुए थैले वैन में डालने लगे और साथ ही बड़े साइज के काले रंग के ट्रंक भी भीतर रखे गये।
खूबचन्द ने डालचन्द को देखा। डालचन्द के चेहरे के भावों को देखकर वह समझ गया कि डालचन्द मन-ही-मन तड़पे जा रहा है। उसकी निगाह वैन पर ही थी। फिर डालचन्द वहां से हटकर एक तरफ गया, तो खूबचन्द उसके पीछे था। उसने डालचन्द को एक जगह सू-सू करते देखा तो उसने भी धार मार ली।
डालचन्द पुनः अपनी जगह पर आकर जम गया ।
खूबचन्द भी अपनी जगह पर आकर उस पर निगाह रखने लगा।
फिर उसने देवराज चौहान, जगमोहन, नीना पाटेकर, मंगल पांडे और उस्मान अली को वहां पहुंचते देखा, जो पलों में ही दायें-बायें बिखर गये थे।
खूबचन्द समझ गया कि अब कुछ होने वाला है।
बहरहाल, उसने सब कुछ देखा, जो वहां घटा था। वह एकमात्र ऐसा इन्सान था कि वहां होने वाली हर घटना का चश्मदीद गवाह था।
फिर उसने बमों के धमाकों के बीच डालचन्द को देखा, जिसने वैन ड्राईवर को गोली मारी और वैन ले उड़ा। उसके साथ में देवराज भी था।
सारी घटनायें समाप्त हो जाने के बाद सकते की-सी हालत में खूबचन्द अपने घर पर लौटा और दो जमा दो का हिसाब बिठाने लगा।
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घर आकर खूबचन्द ने विचारों में फंसे खुद ही चाय बनाई। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। वह काबू में नहीं था, परन्तु खुद पर किसी प्रकार काबू रखे हुए था।
चाय के घूंट भरते हुए उसने हिसाब जोड़ा।
इस बीच शामली उससे कोई बात करने आई, परन्तु डालचन्द विचारों में इस कदर गुम था कि वह उसे कोई जवाब नहीं दे पाया। सोचने के पश्चात् चाय समाप्त करके वह उठा और सीधा दोबारा वजीरचन्द प्लेस जा पहुंचा था।
वहां पर चारों तरफ पुलिस ही पुलिस बिखरी हुई थी। बमों के कारण तबाही का अच्छा-खासा नजारा वहां पर मौजूद था पूछताछ करने पर खूबचन्द को मालूम हुआ कि जिस बैंक वैन को लुटेरे ले उड़े हैं, उसमें साढ़े पांच करोड़ रुपये नकद था।
यह सुनते ही खूबचन्द का दिल खूब जोर से उछला।
साढ़े पांच करोड़ नकद! खूबचन्द सीधा घर पहुंचा और चाय बनाकर पीने लगा। लंच का समय हो रहा था, परन्तु उसकी भूख गायब थी। वह साढ़े पांच करोड़ से भरी बैंक वैन की ही सोचे जा रहा था। कहां होगी इस समय वैन ?
अगले ही पल उसके बदन में सिरहन दौड़ती चली गई। चाय का गिलास कसकर उसने हथेली में जमा लिया। वह लोग बैन को उसी फार्म पर ले गए होंगे, जहां पर कल दिन में देवराज चौहान और डालचन्द गए थे। यकीनन देवराज चौहान, डालचन्द को वह फार्म दिखाने ले गया होगा कि बैंक वैन को लेकर उसे कहां पहुंचना है।
खूबचन्द का दिल जोरों से धड़कने लगा। अपने इस विचार के बारे में उसे दो राय नहीं लगीं। यकीनन साढ़े पांच करोड़ के नोटों से भरी बैंक वैन उसी फार्म में इस वक्त पहुंच चुकी होगी। अब क्या किया जाए? खूबचन्द का दिमाग खूबी के साथ दौड़ने लगा। इतनी जल्दी वह लोग वैन को खोलकर बंटवारा नहीं कर सकते थे। इस काम में वक्त लगेगा ही, वैसे भी दो-चार दिन उनका वहां छिपे रहना ही ठीक था। इस बात को वह लोग भी समझते होंगे।
यानी कि कोई जल्दी नहीं। दो दिन में वह आराम से सोच सकता है कि उसे क्या करना है? और मन-ही-मन उसने फैसला किया कि आज रात वह फार्म पर जाकर अपनी इस बात की तसल्ली करेगा कि उड़ाई गई बैंक वैन वहां पर है भी या नहीं?
वह इस फैसले से निकला ही था कि मंगल पांडे वहां आ पहुंचा। मंगल पांडे को इस वक्त आया देखकर वह मन-ही-मन हैरान अवश्य हुआ, परन्तु अपनी हैरानी को उसने फौरन दबा लिया और शांत भाव से पांडे को देखा।
आज मंगल पांडे उसे देखकर मुस्कुराया ।
■■■
"कैसे हो खूबचन्द ?" मंगल पांडे हौले से हंसकर बोला।
"ठीक हूं।" खूबचन्द ने शांत स्वर में कहा।
मंगल पांडे ने उसके हाथ में पकड़े चाय के खाली गिलास पर निगाह मारी।
"क्या बात है, आजकल चाय से काम चला रहे हो?" मंगल पांडे पुनः हंसा।
"रोकड़ा नहीं है।" खूबचन्द ने सिर हिलाकर कहा।
"खाली जेब है तो शामली से ले लेता। शामली के पास तो बोतलें होंगी।"
"वो उसने अपने काम के लिए रखी हुई हैं। देती नहीं है।"
"तुम भी भाई-बहन अजीब हो।" पांडे ने हंसकर जेब से सौ का नोट निकाला और उसे थमा दिया--- "जा, जाकर ऐश कर।"
खूबचन्द ने सिर हिलाकर, नोट को थामा और बोला---
"पांडे, तू मेरी बात का बुरा क्यों मान जाता है?"
"कौन-सी बात?"
"वो तेरे को उस दिन मैंने नटियाल के बारे में कही थी तो तू...।"
"वह...!" मंगल ने सिर हिलाया, फिर बोला--- “देख, तू मेरे और शामली के बीच में मत आ। मैं यहां उसका ग्राहक बनकर नहीं आता, उसका दोस्त बनकर.... ।”
"लेकिन तू फ़सादी आदमी है। कभी बड़ा फसाद कर दिया तो, सब जानते हैं... तू शामली के पास आता-जाता है। तब पुलिस शामली और मुझे ही तंग करेगी।"
"कुछ नहीं होगा। क्यों फिक्र करता है तू?” मंगल पांडे ने उसका कन्धा थपथपाया और भीतर प्रवेश कर गया।
खूबचन्द ने हाथ में थमा सौ का नोट देखा तो चेहरे पर जहरीली मुस्कान थिरक उठी। होंठ बड़बड़ाहट भरी चले गये।
“पांडे, कल तक की बात और थी। सौ का नोट मुझे बड़ा लगता था, लेकिन अब वह नोट मुझे बहुत छोटा लगने लगा है। साढ़े पांच करोड़ कैश सामने हो तो सौ का नोट चिड़ी की बीट लगेगा ही। अब तो मेरी नजर साढ़े पांच करोड़ पर है---।" खूबचन्द की आंखों में एकाएक खतरनाक चमक उभर आई थी।
■■■
मंगल पांडे ने व्हिस्की का तगड़ा घूंट भरा और शामली की कमर में हाथ डालकर उसे अपने करीब खींच लिया। शामली खिलखिलाकर हंसी ।
“क्या बात है, आज बहुत मूड में हो।"
“ऐसे ही।" पांडे ने शामली को कसकर जकड़ लिया।
“कोई तो बात है....।”
"हां!” पांडे ने शामली के गाल को थपथपाया--- "अगर मैं कहूं.... धन्धा छोड़ दे तो, छोड़ेगी?"
“यह बात कितनी बार पूछेगा तू?"
"एक बार और बता दे।"
"तू कहने वाला बन, धन्धा तो क्या तेरे लिए जान भी दे दूंगी।"
पांडे ने शामली को कसकर भींच लिया।
"शामली, तू मुझे बहुत अच्छी लगती है।"
"जानती हूं।"
"क्या?"
"यही कि मैं तुझे बहुत अच्छी लगती हूं।" शामली ने उसकी आँखों में झांका--- “बात क्या है, तू आज जैसी बातें कर रहा है, वैसी शायद ही की हों। पैसे और चाहिए क्या?"
"नहीं नहीं।" पांडे ने हंसकर व्हिस्की का घूंट भरा--- “अब जरूरत नहीं पैसे की। अब मुझे कभी भी कमी नहीं रहेगी पैसे की। सब कुछ ठीक हो गया है।"
"क्यों? चिराग हाथ लग गया है क्या?"
“एक बात कहूं।"
"क्या ?"
"किसी से कहेगी तो नहीं?"
"मैं क्यूं कहने लगी, बात तो बता न !”
“मैंने आज सुबह साढ़े पांच करोड़ रुपया लूटा है।" पांडे धीमे स्वर में बोला ।
शामली फौरन उससे अलग हो गई और हैरानी से उसे देखने लगी।
“पागल तो नहीं हो गया तू....!"
“क्यों?”
"जानता है, साढ़े पांच करोड़ कितना होता है?" पांडे ने गम्भीर स्वर में कहा---
“हम लोग छः थे और रुपया साढ़े पांच करोड़ लूटा है--- यानी कि लगभग एक करोड़ मेरे पल्ले आएंगा।”
“इतना पैसा....।" शामली ने दिल पर हाथ रख लिया।
“तुझे इसलिए बताया कि तू मुझे अच्छी लगती है और मुझे विश्वास है कि यह बात किसी को भी नहीं बताएगी।" मंगल पांडे ने एक ही सांस में सारी व्हिस्की समाप्त करके गिलास शामली के हाथ में थमा दिया।
शामली को अपने आप पर काबू नहीं था, पांडे की बात सुनकर उसे यकीन नहीं आ रहा था, लेकिन न यकीन करने की कोई बात वजह नहीं थी।
"अब कहां रखकर आया है माल?"
"गुप्त ठिकाने पर है। अभी माल का बंटवारा होना बाकी है।"
"इतने पैसे का तू क्या करेगा?"
"अभी, अभी तो यह कम है। कल देखना, माल और बढ़ जाएगा।"
"क्यों--- कल क्या होगा?"
"असल काम तो कल ही होना है। आज तो अचानक ही यह सब हो गया। कल बैंक को लूटना है। चार करोड़ वहां से हाथ लगेगा। मोटे माल का मालिक बन जाऊंगा मैं।"
शामली ठगी-सी उसे देखते रह गई।
"किन लोगों के साथ लगा हुआ है आजकल तू?"
"यह रहने दे। नहीं बता सकता।"
"क्यों?"
"तेरे को उनके बारे में बताना दगाबाजी होगी। जितना बताना था, बता दिया। गिलास में और डालकर ला। आज साला नशा ही नहीं चढ़ रहा है।" पांडे मुंह बनाकर बोला।
शामली गिलास में और व्हिस्की भर लाई।
पांडे ने गिलास लेकर, तगड़ा घूंट भरा।
“एक बात बोलू मंगल.... ।"
“दो बोल.... ।”
"कल बैंक में डाका मत डालना....।"
"क्यों....?" पांडे ने होंठ बनाकर उसे देखा ।
"देख, ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता। अगर कल तुझे डकेती में कुछ हो गया तो आज का करोड़ भी तेरे हाथ से जायेगा ना?"
मंगल पांडे की गर्दन हिलकर रह गई।
“यह एक करोड़ कम नहीं है। इससे तू शराफत का बढ़िया धंधा भी कर ले तो आधा करोड़ बच सकता है। मानता है ना?"
मंगल विचारपूर्ण निगाहों से शामली को देखे जा रहा था।
"मैंने तुझे कभी गलत सलाह नहीं दी। और इस वक्त मुझसे बढ़िया सलाह तुझे और कोई देगा भी नहीं। अपने बुरे कामों के इरादे पर यहीं पर बिन्दी डाल दे।" शामली ने गम्भीर स्वर में कहा--- "ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता।”
मंगल ने कुछ नहीं कहा, वह गहरी सोच में डूब गया।
शामली उसका चेहरा निहारती रही। बोली कुछ नहीं।
बाहर कान सटाये खूबचन्द सुन रहा था।
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बार में पहुंचते ही मंगल ने मोटे नटियाल की बांह थामी और खींचकर कोने में ले गया। दोनों ने कुर्सियां सम्भाल लीं।
“तू ठीक कहता था....।"
"क्या ?"
“यही कि जितना हाथ लग गया, बहुत है। कल की डकैती का लालच न करूं।”
मोटे नटियाल ने हैरानी से उसे देखा।
“बहुत देर के बाद तेरी समझ में मेरी बात आई।"
“आई तो सही। अब बता मैं क्या करूं?"
"करना क्या है? देवराज चौहान को शाम को मना कर देना कि तू बैंक डकैती नहीं करेगा।"
“बात नहीं बनेगी। ऐन मौके पर मना करना गलत होगा। वह मेरे हाथ-पांव तोड़कर मुझे किसी गन्दे नाले में फेंक देगा। वहां से दो दिन बाद मेरी लाश ही बरामद होगी।"
"तो फिर तू चाहता क्या है?"
"कोई ऐसा रास्ता बता कि कल की डकैती से साफ बचकर निकल जाऊं।"
नटियाल विचारपूर्ण निगाहों से उसे देखने लगा।
"मुझे क्या देखता है? रास्ता बता।"
“वही तो सोच रहा हूं.... ।" नटियाल ने सिगरेट सुलगा कर कश लिया।
मंगल ने भी सिगरेट सुलगाई और वहां बैठे लोगों को देखने लगा।
एकाएक नटियाल बोला---
“तेरी टांग टूट जाए तो, यह लोग फिर तुझे क्या कहेंगे?"
"अरे बेवकूफ !” मंगल झल्ला कर बोला--- “टांग टूट गई तो मामला कैसे जायेगा? क्या मालूम उन लोगों ने वैन कहां छिपा रखी है। मेरा एकदम फिट रहना जरूरी है।"
“शाम की मीटिंग में तू जाता है। और कल सुबह तू डकैती के समय नहीं पहुंचता तो क्या होगा? डकैती रुक जाएगी क्या?" नटियाल बोला।
"नहीं। डकैती नहीं रुकने वाली देवराज चौहान इस मामले को सम्भाल रहा है।"
"फिर ठीक है सुबह तू डकैती पर जाएगा। तेरी टैक्सी का एक्सीडेंट हो जाएगा। तू झगड़ा कर बैठेगा, बात बढ़ेगी, पुलिस आएगी। तुझे पुलिस स्टेशन ले जाएगी, जहां पर झगड़ा करने के जुर्म में तुझे माफीनामा और फाइन देना पड़ेगा। इन सब बातों से निपटते-निपटते तुझे आधा दिन बीत जाएगा। समझा! तू साफ बचकर निकल जाएगा। तेरे पास इस बात का पुख्ता सूबत होगा कि तू पुलिस के चक्कर में फंस गया था। इसलिए डकैती में नहीं पहुंच सका।"
“गुड आइडिया। लेकिन यह सब होगा कैसे ?"
"चिन्ता मत कर, मैं सारे इंतजाम कर दूंगा। अब आराम कर तू।"
"सारा इंतजाम हो जाएगा ना?"
“हां। पक्का हो जाएगा।"
"ठीक है।" मंगल ने सिर हिलाया--- “अब खाना मंगवा, जोरों की भूख लगी है।"
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बैंक वैन रॉबरी की खबर सारे शहर की पुलिस तक पहुंच चुकी थी। ऐसी घटनाएं चूंकि शहर में आम होती रहती हैं, इसलिए इस बात को इतना बड़ा नहीं माना जा रहा था। परन्तु सारे शहर की पुलिस पूरी तरह चौकस थी और पुलिस डिपार्टमेंट को पूरा विश्वास था कि देर-सवेर में वैन सहित लुटेर पकड़े जाएंगे।
सारे शहर में रेड अलर्ट कर दिया गया था।
वैन की तलाश में बख्तरबन्द गाड़ियों तक की तलाशी ली जा रही थी कि कहीं वैन को बख्तरबन्द गाड़ी में छिपाकर तो नहीं ले जाया जा रहा!
बहरहाल, पूरे शहर में भूकम्प जैसी स्थिति थी ।
तभी वैन में मौजूद गार्डों ने वायरलैस सैट के जरिए पुलिस हैडक्वार्टर से सम्बन्ध बनाया। पुलिस कमिश्नर दौड़ा-दौड़ा आया बात करने के लिए। गार्ड इससे ज्यादा कुछ नहीं बता सके कि यह डकैती करने वालों में से देवराज चौहान, जगमोहन और डालचन्द नाम के व्यक्ति है। लाख पूछने पर भी इस समय वह कहां हैं, किस दिशा में हैं, गार्ड इस बारे में कुछ नहीं बता सके।
और जब देवराज चौहान का नाम वैन रॉबरी में आया तो पूरा पुलिस डिपार्टमेंट हिल उठा। जिसे वह आम बदमाशों की कार्यवाही समझ कर रूटीन में काम कर रहे थे, वह देवराज चौहान जैसे खतरनाक इंसान का काम था।
पुलिस वालों की काम करने की रफ्तार में एकाएक तीव्रता आ गई।
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इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े।
दिन के बारह बज रहे थे और वानखेड़े गहरी नींद में सोया पड़ा था। कमर तक जिस्म नंगा था। नीचे पैंट पहन रखी थी। जूते उतारे हुए थे, परन्तु जुराबें पैरों में मौजूद थीं। सोने की अजीब मुद्रा थी।
तभी फोन की बंटी बजी और बजती ही रही।
वानखेड़े की नींद टूटी और वैसे ही पड़ा रहा, यह सोचकर कि फोन की घंटी बजनी अभी बंद हो जायेगी, परन्तु वह बन्द नहीं हुई। वानखेड़े ने करवट लेकर फोन को घूरा, फोन बजे जा रहा था।
वानखेड़े सीधा होकर बैठा और हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठा लिया।
"अगर फोन की घंटी पसंद न हो तो सोने से पहले रिसीवर नीचे रख दिया करो, ताकि घन्टी न बजे.....। अब यह मत कहना कि तुम गहरी नींद में थे और फोन की घन्टी सुनी ही नहीं.... ! जब सुनी तो फौरन रिसीवर उठा लिया।"
दूसरी तरफ वानखेड़े के आफिसर कमिश्नर रामकुमार थे।
पल भर के लिए वानखेड़े सकपका उठा।
"नो सर मैं....मैं वास्तव में गहरी नींद में सो रहा था।"
"नींद में!" कमिश्नर साहब का चुभता स्वर उसके कानों में पड़ा--- "टाइम क्या हुआ है?"
"बारह।" वानखेड़े ने वॉल क्लाक पर निगाह मारी।
"यह सोने का समय है?"
"सर, जब तक नींद आती रहे, वह सोने का ही समय होता है।" वानखेड़े सिर खुजाकर बोला--- "आपने सुना ही होगा, जब आंख खुले तब सवेरा।"
"मिस्टर वानखेड़े!" कमिश्नर साहब की आवाज में सख्ती आ गई थी--- "यह क्यों नहीं कहते....कि रात भर किसी लड़की के साथ थे और दिन निकलने पर अपने फ्लैट पर पहुंच कर सोये हो। मेरी एक बात याद रखना... यह लड़कियां तुम्हें किसी दिन ले डूबेंगी...। तब तुम्हें अपने बड़े चीफ की बात याद आयेगी कि बूढ़ा ठीक कहता था।"
वानखेड़े खामोश रहा, कहता भी तो क्या?
"तुम्हारे फ्लैट से ऑफिस तक का रास्ता कितनी देर का है?"
"बीस मिनट का सर ।"
"मैं तुम्हें पन्द्रह मिनट ऊपर देता हूं....अब से ठीक पैंतीस मिनट के बाद तुम्हें अपने सामने देखना चाहता हूं। हरीअप।" इसके साथ ही कमिश्नर साहब ने लाइन काट दी।
वानखेड़े ने रिसीवर रखा और उछलकर खड़ा हो गया ।
मस्तिष्क में खतरे की घंटी बज उठी। कमिश्नर साहब ने जिस लहजे में उसे बुलाया था, उससे जाहिर था कि बेहद खास मामला है और उसी के मतलब का है।
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चालीसवें मिनट वानखेड़े पुलिस हैडक्वार्टर में कमिश्नर साहब राम कुमार के सामने बैठा था। कमिश्नर साहब ने अपने बूढ़े चेहरे पर, फिर सफेद बालों पर हाथ फेर कर सिगार सुलगाया। वानखेड़े को कमिश्नर साहब के अंदाज पर विश्वास हो गया कि मामला गंभीर है।
“आज सुबह सवा दस बजे वजीर चन्द प्लेस में मौजूद हिन्दुस्तान बैंक के अहाते से बैंक वैन को उड़ा लिया गया है। उसमें साढ़े पांच करोड़ रुपया था।"
“यस सर....! ऐसी घटनायें.... तो शहर में आये दिन हो रही हैं।”
“यानी कि मेरी बात से इस केस में तुम्हारी दिलचस्पी नहीं जागी?"
वानखेड़े समझ गया कि कमिश्नर साहब अब और भी कुछ कहने जा रहे हैं।
"यह काम तुम्हारे पुराने वाकिफकार ने किया है।"
"किसने?" वानखेड़े चौंका।
"तुम्हारा पुराना वाकिफकार एक ही है, जिसे तुम जेल की सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा सके।" कहते हुए कमिश्नर साहब ने वानखेड़े की आंखों में झांका।
वानखेड़े की आंखें सिकुड़ गई फिर अगले ही पल वह चौंका---
"देवराज चौहान?"
"हां। देवराज चौहान।" कमिश्नर साहब ने सिगौर का कश लिया--- "मैं तुम्हें सारी घटना सिलसिलेवार बताता हूं, जो अभी तक मुझे मालूम हुई है। वैन बैंक के अहाते में नोटों के साथ तैयार खड़ी थी, वहां से रवाना ही होने वाली थी। ड्राइवर हजारी वैन की तरफ बढ़ रहा था कि तभी पावरफुल बम फेंके जाने लगे। कुछ इस तरह कि, सब वैन से दूर हो जायें। वैन के करीब खड़े दोनों पुलिस वाले जान बचाकर फौरन साइड में हो गये। लुटेरों ने वैन संभाल ली, चारों तरफ आतंक का माहौल था, सबको अपनी जान की पड़ी थी। ड्राईवर हजारी वैन के पास जा पहुंचा.... तो लुटेरों ने उसे गोली मार दी। और वैन लेकर फरार हो गये । तुरन्त ही सारे शहर की पुलिस को सतर्क कर दिया गया। सड़कें सील कर दी गई। परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ तो दो बातें लुटेरों के फेवर में गई..... एक तो यह कि बैंक वैन आर्म्स प्रूफ थी। उस पर बारूद या गोलियों का कोई असर नहीं होता था। मोटी रकमों को ले जाने के लिए बैंक वालों ने खास तौर से वैन को ऐसा बनवाया था।"
“और दूसरी बात?” वानखेड़े ने पूछा।
“दूसरी बात यह कि वैन को चलाने वाला बहुत एक्सपर्ट था। वह बहुत ही खतरनाक ढंग से वैन को ले गया। इतनी तेज कि पुलिस वाले तक वैन की हवा न पा सके। देखने वालों का कहना है कि उन्होंने पहले इतनी खतरनाक ड्राइविंग नहीं देखी।"
वानखेड़े ने गम्भीरता से सिर हिलाया ।
"अगर वैन का ड्राईवर एक्सपर्ट न होता....तो कहीं न कहीं वैन को घेरा जा सकता था । अन्त तक पीछा किया जा सकता था। परन्तु ऐसा नहीं हो सका। एक जगह वैन को घेरा भी गया तो वह लोग आर्म्ड प्रूफ होने के कारण वैन को आसानी से वहां से निकालकर ले गये।"
वानखेड़े सिर्फ सिर हिलाकर रह गया।
"जिस वैन को लुटेरे ले भागे, उस बन्द वैन में साढ़े पांच करोड़ की कैश रकम के साथ दो गार्ड भी हैं। जिनके पास खतरनाक गनें और वायरलैस सैट हैं। गार्डों ने बाहर वालों की बातें सुनी और वायरलेस सैट पर पुलिस वालों को बताया कि उन्हें तीन लोगों के नाम मालूम हो गये हैं जिन्होंने बैंक को लूटा है। वह तीन हैं--- देवराज चौहान और उसका साथी जगमोहन। तीसरा डालचन्द नाम का कोई आदमी है।"
वानखेड़े की आंखों में चमक उभर आई। होंठ भिंच गए।
"कुछ और सर?"
"और तुम जानो। पुलित वालों से बात करो। वजीर चन्द प्लेस जाकर जानकारी हासिल करो। या जो भी करना चाहते हो, करो। आगे का काम तुम्हारी मर्जी से होगा।"
वानखेड़े उठ खड़ा हुआ।
“ध्यान से, वह देवराज चौहान है।" कमिश्नर साहब ने चेतावनी भरे अंदाज में कहा।
"कोई बात नहीं सर।" वानखेड़े कड़वे स्वर में कह उठा--- "मैं भी वानखेड़े हूं। देखना तो यह है कि देवराज चौहान कब तक मुझसे बचता रहेगा।"
■■■
वानखेड़े सीधा पुलिस हैडक्वार्टर के कंट्रोल रूम में पहुंचा। कंट्रोल रूम के ऑफिसर को अपना कार्ड दिखाया, फिर बोला---
“बैंक वैन में मौजूद गार्डों का फिर कोई मैसेज आया?"
"नो इंस्पेक्टर वानखेड़े। बस एक ही बार उन्होंने हमसे सम्पर्क बनाया था।" ऑफिसर बोला।
“मैं उन गार्डों से बात करना चाहता हूं। वायरलेस सेट पर उनसे सम्पर्क बना दीजिए।” वानखेड़े ने सिगरेट सुलगाई और कंट्रोल रूम में मौजूद दसियों सैटों पर बैठे आदमियों को तेजी से काम करते हुए बोला। सैटों से निकलने वाली आवाजों का शोर वहां मचा हुआ था।
“सॉरी इंस्पेक्टर वानखेड़े। यह अब सम्भव नहीं। उन दोनों गार्डो ने मुझसे और कमिश्नर साहब से खुलकर बात की है और कहा है कि वह खुद ही जरूरत पड़ने पर सम्पर्क बनायेंगे। हमसे सम्पर्क बनाने की चेष्टा न करें। वैसे भी उन्होंने सेट का तार निकाल रखा है।"
"ऐसा क्यों?" वानखेड़े ने होंठ सिकोड़ कर उसको देखा।
“वह कहते हैं कि वह वैन के बाहर होने वाली बातें सुनना चाहते हैं। ताकि लुटेरों के मुंह से ऐसी बात सुनाई दे जाए जो हम लोगों के लिए फायदेमंद हो....। जैसे कि उन्होंने हमें देवराज चौहान, जगमोहन और डालचन्द के नाम बताये। उनका कहना है कि बैंक वैन रॉबरी में और भी लोग हैं। क्योंकि जब लुटेरे वैन लेकर भागे तो वो भीतर थे। और जिस तरह आसपास चारों तरफ से बम फेंके गये, उससे साफ जाहिर है कि दो-चार उनके साथी और भी हैं। और वह भी देर-सवेर में वैन के पास आने ही वाले होंगे। तब उनके बीच होने वाली बातों का फायदा उठाया जा सकता है।"
वानखेड़े ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया ।
“वे अभी तक वैन में बन्द हैं?"
"जी हां।”
“वह लोग वैन को कहां ले गये, कुछ बताया उन्होंने?" वानखेड़े ने पूछा ।
“इस बारे में वह लोग कुछ नहीं बता सके....। क्योंकि वह डिब्बाबंद वैन है। भीतर हवा जाने का रास्ता भी वैन के फर्श पर बने छोटे-छोटे छेदों में से है। भीतर बैठ कर वह बाहर का नजारा बिल्कुल नहीं देख सकते।"
वानखेड़े ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
"गार्डों ने वैन का दरवाजा भीतर से बन्द कर रखा है?"
"जी हां। जब तक वह नहीं चाहेंगे, तब तक वैन का दरवाजा नहीं खुल सकेगा?"
“और वह दोनों गार्ड बिना खाये-पिये कब तक वैन में सलामत रह सकते हैं।”
"उनके पास तीन दिन का पैक खाना है....और पीने के लिये पर्याप्त पानी है। यह सब कुछ इन्हीं हालातों को मद्देनजर रखकर किया गया था कि कभी लुटेरे वैन को इस प्रकार भी ले जायें तो गार्ड भीतर से दरवाजा बन्द करके बैठे रहें। खाने-पीने की उन्हें कमी न हो । तब तक पुलिस वैन को तलाश कर ही लेगी।”
“इसका मतलब तीन दिन का खाना और दो दिन के बाद यानी कि अभी पांच दिन तो वह किसी भी हालत में वैन का दरवाजा नहीं खोलेंगे।"
ऑफिसर सिर हिलाकर रह गया।
"मेरा, वैन में मौजूद गार्डों से बात करना बहुत जरूरी है।"
"मैं पहले भी कह चुका हूं मिस्टर वानखेड़े कि हम चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकते। क्योंकि उन लोगों ने सेट की तारें निकाल रखी हैं। उनसे सम्बन्ध नहीं बनाया जा सकता।"
"इस केस का इंचार्ज किसे बनाया है?"
"मुझे तो मालूम नहीं क्योंकि वैन लूटने के बाद मैं यहां पर बहुत व्यस्त हूं। आप चाहें तो कमिश्नर साहब से मिल लीजिये जिनके अण्डर यह केस है, वह रूम नम्बर 24 में हैं।"
"थैंक्यू ऑफिसर !” वानखेड़े पलटा और बाहर निकल गया।
■■■
पुलिस कमिश्नर श्यामलाल बाली।
इंस्पेक्टर वानखेड़े ने दरवाजे पर लगी तख्ती देखी, फिर ऊपर लगा चौबीस नम्बर देखा। बाहर बैठे चपरासी को अपना कार्ड थमाया तो चपरासी भीतर चला गया। फिर उल्टे ही पांव वापस लौट आया।
"जाईये सर। साहब आपका इंतजार कर रहे हैं।" चपरासी बाहर आते ही बोला।
वानखेड़े ने भीतर प्रवेश किया।
"वैलकम इंस्पेक्टर वानखेड़े। आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई।" कमिश्नर बाली ने उठकर वानखेड़े से हाथ मिलाया तो वानखेड़े मुस्कुराकर बोला---
“थैंक्यू सर। काफी देर के पश्चात् हम मिल रहे हैं।"
“बैठो बैठो।”
वानखेड़े बैठ गया और टेबल पर पड़ा अपना कार्ड उठा कर जेब में डाला।
“अगर मैं गलती नहीं कर रहा तो इंस्पेक्टर वानखेड़े तुम, बैंक वैन के सिलसिले में आये हो। जिसे देवराज चौहान और उसके साथियों ने उड़ा लिया है।"
"आपका ख्याल बिल्कुल सही है कमिश्नर साहब। कमिश्नर साहब ने यह केस मुझे सौंपा है--- क्योंकि इसमें देवराज चौहान इन्वाल्व है। मैं इस केस के सम्बन्ध में आपसे पूछने आया हूं कि पुलिस ने क्या इन्क्वायरी की और किस नतीजे पर पहुंची।"
"अभी तक हम लोग किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके। वजीर चन्द प्लेस में टाइम बमों के कारण लोग अभी दहशत में हैं और कुछ ठीक से बता नहीं पाये। अगर वैन में मौजूद गार्ड देवराज चौहान के बारे में न बताते तो हम विल्कुल ही अन्धेरे में हाथ-पांव मार रहे होते। और शहर के जिन अपराधियों पर ऐसी हरकत का शक होता, उन्हें गिरफ्तार करके उनसे पूछताछ कर रहे होते। लेकिन शुक्र है कि इस जहमत से बच गये।"
"फिर भी कुछ तो इन्क्वायरी की होगी आप लोगों ने?"
"यही मालूम हुआ कि बम फेंकने वाले दो को देखा गया है। और उनका हुलिया भी देखने वाले ठीक से नहीं बता पा रहे हैं। वैसे तमाम पुलिस वैन की तलाश में जुटी हुई है। शहर भर में रेड अलर्ट कर रखा है। रेडियो टी.वी. में वैन के बारे में खबर दी जा चुकी है--इस प्रकार की वैन को किसी ने देखा हो तो फौरन नजदीकी थाने में इत्तला करे।"
वानखेड़े समझ गया कि पुलिस के पास बताने को कुछ भी नहीं है।
"इस केस को कौन डील कर रहा है?"
“इंस्पेक्टर राजन शर्मा।"
“थैंक्यू सर। अब मैं चलता हूं।" वानखेड़े उठ खड़ा हुआ।
"मैं जानता हूं हमसे तुम्हें कोई जानकारी नहीं मिल सकी। क्योंकि अभी तो पुलिस हरकत में आई है....। शाम तक ही कोई नतीजा सामने आने की आशा है।"
"कोई बात नहीं कमिश्नर साहब। मैं शाम को आपसे सम्पर्क स्थापित करूंगा।" इजाजत लेकर वानखेड़े बाहर निकल गया।"
■■■
वानखेड़े वजीर चंद प्लेस पहुंचा।
वहां पर बमों ने अच्छी खासी तबाही मचा दी थी। हिन्दुस्तान बैंक के बाहरी मुख्यद्वार के पास की दीवार उड़ी थी। अहाते की दीवारों का मलबा चारों तरफ फैला हुआ था। अहाते में बमों ने दो बड़े-बड़े गड्ढे बना दिए थे। वजीर चन्द प्लेस के बाहर भी बमों ने अपने निशान छोड़ रखे थे।
वहां की हालत देखते ही वानखेड़े समझ गया कि इस्तेमाल किया जाने वाला बम पावरफुल था ।
इस समय वहां चार पुलिस वाले पहरे पर तैनात थे।
वानखेड़े ने भरपूर निगाहों से आसपास देखा, फिर सड़क पार करके चाय के खोखे की तरफ बढ़ गया, चाय वाला चाय बनाने में व्यस्त था। दो-तीन ग्राहक चाय पीने में व्यस्त थे और थोड़ी देर पहले मची बैंक में तबाही पर ही बात कर रहे थे कि लुटेरे साढ़े पांच करोड़ जैसी बड़ी रकम ले उड़े हैं।
वानखेड़े ने अपना कार्ड निकालकर चाय वाले को दिखाया।
"मैं पुलिस ऑफिसर हूं--- और तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं।"
"क्या पूछना चाहते हैं आप.... ।"
"सामने बैंक के बाहर दिन में जो कुछ घटा, जो तुमने देखा, उसके बारे में विस्तार से मुझे बताओ।" वानखेड़े अपना कार्ड जेब में रखते हुए बोला।
चाय वाले ने दो पल सोचा, फिर बोला---
"साहब, मैं तो सुबह छः बजे ही अपनी दुकान खोल लेता हूं। अब मुझे क्या पता कि आज यह सब होना था। जब मैं चाय बनाकर ग्राहक को थमाने जा रहा था कि...बमों की आवाज सुनकर मेरे हाथ से चाय, का गिलास गिर गया। नजर उठाकर सामने देखा तो केवल इतना ही देख पाया कि एक तरफ बम का धुआं फैल रहा है और दो आदमी वैन की तरफ भाग रहे हैं। फिर दूसरा बम पड़ा तो धुआं और फैल गया। उसके बाद और कुछ नहीं जान सका। क्योंकि तब तक तो बम पर बम गिरने शुरू हो गए थे बहुत तेज धमाके थे। ऐसा लगता था जैसे कानों के परदे फट जाएंगे। लोग चीख मार-मार कर भागने लगे थे....। चारों तरफ मौत का आलम सा पैदा हो गया था।"
वानखेड़े ने सिगरेट सुलगा कर एक गहरा कश लिया।
“बम फेंकने वाले कितने आदमी थे?”
"मैं क्या जानूं साहब....।"
“तुमने किसी को देखा?"
इस प्रश्न पर चाय वाले ने बेचैनी से वानखेड़े को देखा।
वानखेड़े फौरन सावधान हो गया। उसने चाय वाले के कन्धे पर हाथ रखा और उनकी बातों को सुन रहे ग्राहकों से उसे दूर ले गया।
"अब बताओ, किसको देखा ?"
"साहब, यह बहुत खतरे वाली बात होती है। आज मैं बता दूंगा कि मैंने देखा तो कल वह आकर मुझे गोली मार देगी कि मैंने उसके बारे में क्यों किसी को बताया था?"
"देगी!" वानखेड़े चौंका--- "लड़की थी वह?"
चाय वाला खामोश रहा।
"देखो, मैं वर्दी वाला पुलिस वाला नहीं हूं। बिना वर्दी वाला हूं। हम लोग कभी किसी को नहीं बताते कि कौन सी बात हमें किसने बताई है। तुम्हें किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं होगा। बेहिचक मुझे बता दो.... जो देखा है तुमने !"
"साहब, ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं।" वह परेशान सा हो उठा ।
"मेरी बात का विश्वास करो, बात बाहर नहीं जायेगी। तुम्हारा नाम कहीं नहीं आयेगा।" वानखेड़े ने उसे यकीन दिलाया।
"पक्की बात न साहब?"
"बिल्कुल पक्की ।"
"साहब, वह लड़की थी। बहुत ही खूबसूरत ऐसी कि देखने वाला देखता ही रह जाए। उसने कमीज और पैंट पहन रखी थी-- एक हाथ में रिवाल्वर थाम रखा था और दूसरे में बम। मैं उसे यहीं से देख रहा था। मेरे देखते ही उसने हाथ में पकड़ा बम फेंका और बम जोरदार धमाके के साथ फट गया। वह वैन लूटने से पहले की बात थी-- बम को फेंककर भागते-भागते उसने सड़क पार की और बिल्कुल मेरे करीब से निकलकर सामने की गली में प्रवेश कर गई।”
वानखेड़े की आंखें सिकुड़ गयीं।
“इस लड़की की कोई खास निशानी?"
"निशानी क्या साहब? वह लड़की थी, बस!" चाय वाले ने कहा।
"मेरा मतलब ऐसी कोई बात....जिससे मैं देखते ही उसे पहचान सकूं।"
“नहीं साहब, ऐसी कोई भी बात नहीं। अगर थी भी तो मैं नहीं देख पाया।"
“उसे दोबारा देखने पर पहचान लोगे?” वानखेड़े ने पूछा ।
“पहचान ?” उसने आंखें फाड़ी--- “साहब, अपनी बीवी को तो मैं एक बार भूल सकता हूँ....लेकिन उसे नहीं। जो कुछ करके वह भागी थी, वह सब देख कर तो वह मुझे भूतनी सी लग रही थी---और भूतनी को भला कोई भूल सकता है।"
यह वानखेड़े के लिए नई बात थी कि बैंक वैन रॉबरी में एक लड़की भी शामिल थी। अगर देवराज चौहान ने किसी लड़की को अपनी योजना में शामिल किया है तो जाहिर है वह खतरनाक ही नहीं नाम वाली भी होगी। राह चलती को तो वह अपनी इस खतरनाक योजना में शामिल करने से रहा।
"उस लड़की की उम्र कितनी थी?"
"पच्चीस-तीस वर्ष के आस-पास की ही रही होगी साहब!"
"लम्बाई?”
"आम लड़कियों से कुछ ज्यादा थी। अगर वह बम फेंकने वाला काम न करती साहब तो उसकी खूबसूरती को तो मैं और भी ध्यान से देखता। लेकिन वह तो ऐसा काम करके भागी थी कि मेरे होश उड़ गए।" चाय वाले ने गहरी सांस ली।
"तुमने यह बात पुलिस को बताई ?”
“आप भी कमाल करते हैं साहब! अगर मैंने यह बात पुलिस को बताई होती तो मैं आपको यहां मिलता? उन्होंने मुझे थाने में ले जा बिठाना था। मेरा चाय का धन्धा बंद कर देना था। आप पुलिस वालों को भी यह मत बताइएगा साहब...कि यह बात आपको मैंने बताई थी।”
“तुम इसकी चिन्ता मत करो, तुम्हारी कोई भी बात बाहर नहीं जायेगी।”
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वानखेड़े सीधा पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा।
उसके मस्तिष्क में खूबसूरती की मालकिन....पच्चीस तीस वर्ष के मध्य की युवती घूम रही थी। बम फैंकने जैसा खतरनाक काम उसने किया था, उससे जाहिर था कि यह काम किसी पुराने रंगरूट ने किया है। नए बन्दे के बस का यह काम नहीं।
वह सीधा रिकार्ड रूम में पहुंचा।
रिकार्ड रूम का इंचार्ज रमेश साहनी उसे देखकर मुस्कुराया ।
“कहिए वानखेड़े साहब। आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए?"
“साहनी! मुझे रिकार्ड रूम में मौजूद पच्चीस तीस वर्ष के बीच की खूबसूरत युवतियों की तस्वीरें चाहिए। जो कि हर तरह का खतरनाक काम करने में माहिर हों।" वानखेड़े ने कहा।
"किसी केस में हाथ डाल दिया है क्या?"
"हां। जल्दी से युवतियों से सम्बन्धित फाइलें निकालो। हम दोनों मिलकर तलाश करते हैं।"
रमेश ने करीब तीस चालीस फाइलें मेज पर ढेर कर दीं जो औरतों के अपराधों से ताल्लुक रखती थीं।
पौन घण्टे बाद दोनों ने मिलकर ऐसी फाइलें निकाल ली जिन पर पच्चीस तीस बरस की युवतियों की तस्वीरें लगी थीं। और हर युवती खूबसूरती की मालकिन थी।
ऐसी आठ फाइलें थीं।
वानखेड़े ने आठों फाइलें उठाकर बांध लीं।
"वानखेड़े साहब, ये फाइलें आप कहां उठाकर ले जा रहे हैं?"
"कुछ काम है। निशानदेही करवानी है। फाइलों पर लगी तस्वीरें किसी को दिखानी हैं।"
“लेकिन रिकार्डरूम की कोई भी फाइल यहां से बाहर जाए, इस बात की मुझे इजाजत नहीं है।" साहनी हड़बड़ा कर बोला--- "आप जिसे दिखाना चाहते हैं, उसे यहां ले आईए ।"
“ये फाइलें मैं ले जा रहा हूं साहनी, मेरी जिम्मेदारी है।"
"जिम्मेदारी।” साहनी ने उसकी बांह पकड़ ली--- "अगर कमिश्नर साहब को पता चल गया कि मैंने फाइलें बाहर जाने दी हैं तो मेरी नौकरी पर बन जायेगी और तब आपकी किसी भी तरह की जिम्मेदारी मेरे काम नहीं आयेगी वानखेड़े साहब! क्योंकि मैंने अपनी ड्यूटी को पूरा नहीं किया।"
"तुम कमिश्नर साहब से कह देना कि फाइलें मैं जबरदस्ती ले जा रहा हूं।"
वानखेड़े ने सख्त स्वर में कहा और फाइलों सहित वह बाहर चला गया।
■■■
वानखेड़े ने चाय वाले को फाइलों पर लगी हुई तस्वीरें दिखाई।
चाय वाले ने एक फाइल पर लगी तस्वीर को फौरन पहचान लिया।
“साहब! यही थी वह भूतनी जिसने बम फेंके थे।"
वह नीना पाटेकर की तस्वीर थी।
और वानखेड़े अच्छी तरह से जानता था कि नीना पाटेकर खतरनाक गैंगस्टर थी कभी। परन्तु साल भर पहले इसका गैंग खत्म हो गया था। साल भर से यह कहीं अण्डरग्राउण्ड हुई पड़ी है। साल भर से इसने कानून विरोधी कोई हरकत नहीं की। सुनने में आया कि कोई नीना पाटेकर की जमा-पूंजी को उड़ा ले गया है... और यह जी जान से उसे तलाश कर रही है। अब सामने आई देवराज चौहान की साथी बनकर।
"ध्यान से देखो हो सकता है पहचानने में कोई चूक हो रही हो। आराम से देखो कोई जल्दी नहीं....।" वानखेड़े ने कहा।
"साहब, मैंने आपसे पहले ही कहा था कि अपनी बीवी को तो भूल सकता हूँ... परन्तु इसे नहीं। यह दो सौ प्रतिशत वही है जिसने सुबह मेरी आंखों के सामने बम फेंका और मुझसे पांच फीट की दूरी से भागते हुए निकली थी।"
चाय वाले ने दृढ़ विश्वास के साथ अपने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।
अब शक की कोई गुन्जाइश नहीं थी।
■■■
वानखेड़े फाइलों सहित वापस पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा और एक केबिन का दरवाजा खोलकर अन्दर प्रवेश कर गया।
यह केबिन उसके असिस्टेंट सुधीर चावला का था, जो कि कुर्सी पर बैठा था और टांगें टेबल पर रखे गहरी नींद में था।
उसके भीतर आने का सुधीर को जरा भी पता न चला।
वानखेड़े के माथे पर बल पड़ गये।
"सुधीर!"
वानखेड़े के पुकारने पर सुधीर चावला हड़बड़ाकर सीधा हो गया।
"य-यस सर!”
“तुम सोने आते हो या ड्यूटी करने? अगर नींद आ रही हो तो घर जाओ। यहां आकर सोने की जरूरत नहीं। ऑफिस इज ऑफिस।"
"स-सॉरी सर! रात को मैं ठीक से सो नहीं पाया था। घर में सिर्फ साली थी। बीवी किसी जरूरी काम से अपनी सहेली के यहां गई थी।" सुधीर ने हड़बड़ाकर कहा।
"तो साली तुम्हें क्या कहती थी कि तुम सो मत जाना?"
"सर दरअसल---।"
"शटअप!" वानखेड़े की समझ में सारा मामला आ गया--- "अपनी नींद भगाओ और जो काम मैं कह रहा हूं उसे सुनो! आज सुबह वजीर चन्द प्लेस के अहाते से साढ़े पांच करोड़ के नोटों से भरी वैन उड़ा ली गई। इस काम में बमों का इस्तेमाल किया गया। वैन में दो गार्ड बन्द हैं और उन्होंने वायरलैस सेट पर खबर दी है कि वैन रॉबरी करने वाले देवराज चौहान, जगमोहन और डालचन्द नाम के आदमी हैं। मैंने पता लगाया कि बम फेंकने वालों में नीना पाटेकर भी थी।"
"नीना पाटेकर! वह खतरनाक छोकरी ?" सुधीर चौंककर सीधा हो गया।
"हां....फाइल पर लगी उसकी तस्वीर को अच्छी तरह से देख लो।"
"पाटेकर का चेहरा मैं जानता हूं सर। इसके केस पर मैं पहले भी काम कर चुका हूं।"
"लेकिन अब ये देवराज चौहान जैसे गैंगस्टर के साथ मिल चुकी है।"
"देवराज चौहान तो एक बार पहले ही आपके हाथों से बच गया था।"
"कब तक बचता रहेगा! तुम उसकी और पाटेकर की तलाश में जुट जाओ।"
"ओ०के० सर।"
फिर वानखेड़े ने रिकार्ड रूम में जाकर फाइलें साहनी को सौंप दीं और तेजी से कमिश्नर साहब के ऑफिस की ओर बढ़ गया।
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