दरवाजे पर हुई हल्की-सी दस्तक ने सभी सीक्रेट एजेंट्स को इस तरह उछाल दिया, जैसे अचानक झोंपड़ी की जमीन गर्म तवे में बदल गई हो।
दस्तक पुनः उभरी।
विजय ने धड़कते दिल से अपने स्वर को नारी स्वर में बदलकर पूछा—"कौन है?"
जवाब में बाहर से मोन्टो की चीं-चीं सुनाई दी।
"अरे !" आशा के मुंह से निकला—"यह तो मोन्टो लगता है।"
ब्लैक ब्वॉय के दरवाजा खोलते ही धनुषटंकार अंदर आ गया—ब्लैक ब्वॉय ने दरवाजा बंद किया और उछलकर विजय के कंधे पर
सवार होते हुए रैना, रघुनाथ और उर्मिलादेवी के बेहोश जिस्मों को देखते ही मोन्टो का माथा ठनका।
उसने इशारे से इसका कारण पूछा।
"इस बारे में बाद में बात करेंगे।" अशरफ ने कहा—"पहले तुम यह बताओ कि डिक्की क्यों नहीं गए और विकास कहां है?"
मोन्टो ने फुर्ती से अपनी डायरी और पैन निकालकर लिखा—"रास्ते में गांव वालों से मुठभेड़ हो गई थी—उसमें विकास गुरु बुरी तरह जख्मी हो गए—इस वक्त वे गांव वालों की कैद में हैं—वे आप सब लोगों का पता पूछ रहे थे—फिलहाल एक झूठा पता बताकर उन्होंने अपनी जान बचा ली है, मगर जैसे ही गांव वालों को पता चलेगा कि गुरु ने उनसे झूठ बोला था तो वे उनके टुकड़े-टुकड़े कर देंगे, अतः हमारा सबसे पहला काम उन्हें गांव वालों की कैद से आजाद कराना होना चाहिए। गुरु के जख्मी होने के कारण मैं अकेला यह काम नहीं कर सकता था।"
लगभग सबने एक साथ उक्त मैटर पढ़ा। विजय ने पूछा—"क्या तुम्हें मालूम है कि विकास को उन्होंने कहां रखा है?"
मोन्टो ने 'हां' में गरदन हिलाई।
''मैं और झानझरोखे उसकी मदद के लिए जा रहे हैं काले लड़के।'' विजय ने कहा—"तुम होशियार रहना। ऐसी कोई हरकत न करना जिससे गांव वालों का ध्यान इस झोंपड़ी की तरफ आकर्षित हो, क्योंकि एक यही स्थान है जहां बैठकर हम अपना आगे का प्रोग्राम निर्धारित कर सकते हैं।"
"ओoकेo।"
"चलो मोन्टो।"
मगर!
इस बीच मोन्टो डायरी के एक अन्य पृष्ठ पर लिख चुका था—"ये तीनों बेहोश कैसे हो गए और ठाकुर दादा कहां हैं?"
"इस सबके बारे में हम तुम्हें रास्ते में बता देंगे।" पढ़ने के बाद विजय ने जवाब दिया—"गंवाने के लिए समय नहीं है, अगर हम लेट हो गए तो गांव वाले दिलजले की चटनी बनाकर चट कर जाएंगे।"
मोन्टो ने स्वीकृति में गरदन हिलाई।
विजय और अशरफ झोंपड़ी से बाहर निकल गए। मोन्टो विजय के कंधे पर था।
¶¶
अंधेरे का लाभ उठाकर वे बचते-बचते मोन्टो द्वारा बताए जा रहे रास्ते पर बढ़ते रहे और फिर एक मोटी जड़ वाले पेड़ की बैक में छुपकर मोन्टो ने जिस झोंपड़ी की तरफ इशारा किया, उसे झोंपड़ी सिर्फ इसलिए कहा जाएगा, क्योंकि छत झोंपडीनुमा थी, वास्तव में वह पूरा मकान था।
मजबूत लकड़ी की ऊंची चारदीवारी से घिरा मकान। रोशनदान से प्रकाश झांक रहा था और मोन्टो के इशारे से वे समझ गए कि उसने कमरे की स्थिति उसी रोशनदान से देखी थी।
चारदीवारी के मुख्य गेट पर तैनात दो बल्लमधारी ग्रामीणों पर दृष्टि स्थिर किए विजय ने पूछा— "तुम रोशनदान तक कैसे पुहंचे मियां?"
मोन्टो ने जेब से पेंसिल टॉर्च निकालकर अशरफ को दी।
उसका आशय समझकर विजय ऐसी पोजीशन में आ गया कि दूर से पेंसिल टॉर्च की बारीक प्रकाश रेखा किसी को नजर न
आए।
मोन्टो ने पैन और डायरी निकाली।
वे वृक्ष की जड़ में बैठे थे।
यानि सशस्त्र ग्रामीण उन्हें या पेंसिल टॉर्च के प्रकाश को देख नहीं सकते थे और अन्य किसी तरह किसी की उपस्थिति का आभास नहीं मिल रहा था, फिर भी उन्होंने एक छोटा-सा दायरा ऑन किया।
प्रकाश रेखा सीधी मोन्टो के हाथ में मौजूद डायरी पर पड़ी और एक पृष्ठ पर उसने तेजी से लिखा—"उस वक्त दरवाजे पर कोई नहीं था।"
"यानि ये सब इसलिए खड़े किए गए हैं कि अपना दिलजला भागने में कामयाब न हो सके?"
मोन्टो ने डायरी में लिखा—"यकीनन।"
"और क्या-क्या इंतजाम किए हैं इन्होंने?"
"रोशनदन पर लटके हुए जो कुछ मैंने सुना, उसके मुताबिक विकास गुरु को कुर्सी के साथ बांध दिया होगा—कमरे के अंदर उनके चारों तरफ सशस्त्र ग्रामीण पहरा दे रहे होंगे। उन्हें सख्त हिदायत है कि एक पल के लिए भी अपनी नजर विकास गुरु पर से न हटाएं।"
"कितने आदमी होंगे?"
"करीब दस।" उसने लिखा।
"ओह, सारा गांव ही पहरे पर है।" बड़बड़ाने के बाद विजय ने सवाल किया— "उन पर किस किस्म के हथियार हैं?"
"लाठी, बल्ल्म, भाले, कृपाण और खुखरी आदि।"
"बंदूक जैसी चीज?"
"नहीं।"
"टॉर्च ऑफ कर दो, प्यारे झानझरोखे।"
अशरफ ने मुंह से एक भी लफ्ज निकाले बिना हुक्म का पालन किया और लगभग उसी क्षण फुसफुसाते हुए विजय ने सवाल किया— "क्या किया जाए?"
"मतलब ?"
"सारे हालात तुम्हारे सामने हैं। गांडीव प्यारे बता चुके हैं कि दिलजले तक पहुंचने में किस किस्म की बाधाएं हैं। इन हालातों में क्या किया जाए?"
"इन बाधाओं से तो टकराना ही पड़ेगा।"
"जरूर टकराएंगे, मगर कैसे, जरा सिरे से प्लान बनाओ।"
"दोनों दरबानों को हम इस ढंग से बेहोश करके अंदर दाखिल हो सकते हैं कि जरा भी आवाज उत्पन्न न हो।"
"वैरी गुड, फिर?"
"कमरे का दरवाजा शायद अंदर से बंद होगा, जिसे हम खुलवा सकते हैं।"
"कैसे?"
"हमारे दस्तक देने पर अंदर से पूछा जाएगा 'कौन है'—जवाब में हमें किसी गांव वाले का नाम लेना पड़ेगा।"
"जैसे?"
"हम खुद को बनवारी कह सकते हैं। वही, जिसकी झोंपड़ी पर हमारा कब्जा है।"
"मानो वे नहीं खोलते?"
"अगर ऐसा हुआ तो कहेंगे कि हरिया ने एक बहुत जरूरी खबर भेजी है, जिसके बारे में उन लोगों का जानना जरूरी है। मेरे ख्याल से यह वाक्य उन्हें दरवाजा खोलने पर विवश कर देगा।"
"मानो दरवाजा खुल गया।"
"उसके बाद हम आसानी से उन्हें अपने रिवॉल्वर से कवर कर लेंगे, भले ही वे दस नहीं बीस हों—मोन्टो ने बताया ही है कि उनके पास कैसे हथियार हैं—हमारे रिवॉल्वर के सामने वे सब बेकार होंगे।"
"माना कि वे हमारी धौंस-पट्टी में आ गए—उनके डंडे-बरंगे भी कमरे के एक कोने में रखवा लिए—ये भी माना कि रिवॉल्वर के डर से वे चूं-चपाट नहीं कर पाएंगे—दिलजले को कुर्सी से मुक्त किया, हममें से किसी ने उसे कंधे पर भी लाद लिया—उस बीच दूसरा व्यक्ति उन्हें कवर किए रहा, मगर इसके बाद?"
"इसके बाद बचेगा ही क्या?" अशरफ बोला—"कमरे से निकलकर हम दरवाजा बाहर से बंद कर देंगे, उसके बाद फरार।"
"अजी हो लिए फरार!"
"क्या मतलब ?"
"तमंचों की नाल भले ही उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम रखे, परंतु हमारे कमरे के बाहर निकलते ही वे इस कदर शोर मचाएंगे कि सारा गांव गूंज उठेगा और उस हालत में दिलजले को लेकर बनवारी की झोंपड़ी में पहुंचना एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने से भी कहीं ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।"
"बात तो ठीक है।"
"आइसक्रीम (स्कीम) ऐसी होनी चाहिए प्यारे कि सारा काम उतती ही खामोशी से हो जितना दिलजले को कंधे पर लादकर कमरे से बाहर निकलने तक का हुआ है।"
"इसके लिए कमरे से निकलने से पहले उन दसों ग्रामीणों को इस हालत में पहुंचाना होगा कि वे हमारे कमरे से बाहर निकलने पर भी शोर न मचा सकें।"
"करेक्ट।" विजय ने पूछा— "तरकीब?"
"एक तरकीब तो ये है कि उन्हें बेहोश कर दिया जाए—और दूसरी ये कि कमरे से निकलने से पूर्व हम उन सबके मुंह में कपड़े ठूंसकर बांध दें।"
"मत भूलो प्यारे कि वे दस हैं। इतने कपड़े और रस्सियां हमें वहां नहीं मिलेंगी—मोन्टो मियां पर जो रेशम की डोरी थी, वह पहले ही बनवारी और उसके बीवी-बच्चों को बांधने के काम आ चुकी है।"
"तो बेहोश...।"
"ऐसा कोई जादू का डंडा हमारे पास नहीं है, जिसके घूमते ही कमरे में मौजूद दस व्यक्ति एकसाथ लंबलेट ही जाएं और कनपटी की विशिष्ट नस दबाने वाली तरकीब इसलिए घातक है कि इस बीच उनमें से किसी को भी हरकत करने का मौका मिल जाएगा—यदि किसी ने ऐसा कर दिया तो हममें से किसी को गोली चलानी पड़ेगी। गोली चलाने का अर्थ है, फिर वही धमा-चौकड़ी।"
"फिर क्या करें ?"
विजय के साथ-साथ मोन्टो भी सोच में डूब गया, जबकि अशरफ ने कहा—"वाकई हमें किसी ऐसी तरकीब की जरूरत है जिसके इस्तेमाल से बिना शोर-शराबा किए पूरा ऑपरेशन निबट सके, जबकि उक्त सारी प्रतिक्रिया में यदि कहीं भी हल्की-सी भी चूक हो गई तो शोर मच जाएगा।"
सोचता हुआ विजय एकाएक चुटकी बजा उठा।
"क्या हुआ?" अशरफ ने पूछा—"कुछ सूझा?"
विजय उन्हें अपने दिमाग में आई तरकीब समझाने लगा। अंत में मोन्टो ने पूछा—"तुम उस शीशी को तो पहचान सकते हो न जिसमें जिस्म से लोहे का जहर साफ करने की दवा थी?"
मोन्टो की गरदन 'हां' में हिल रही थी।
¶¶
वह दो कमरों वाली एक छोटी-सी झोंपड़ी थी जिसके मुख्य गेट पर अशरफ ने हल्की-सी दस्तक दी—कुछ देर प्रतीक्षा करने पर भी जब अंदर से जवाब न मिला तो अपेक्षाकृत तेज दस्तक दी गई।
"कौन है?" इस बार पूछा गया।
"मैं बनवारी हूं वैद्य चाचा।" विजय के मुंह से बनवारी की ही आवाज निकली थी—"दरवाजा खोलिए।"
घिसटते कदमों की आवाज दरवाजे तक आई।
दरवाजा खोलने के बाद वैद्य अभी कुछ समझ भी न पाया था कि विजय ने गोरिल्ले की तरह झपटकर अपना हाथ कुकर के ढक्कन की मानिन्द वैद्य के मुंह पर चिपका दिया।
वैद्य अभी गूं-गूं ही कर रहा था कि मोन्टो ने खुले चाकू का वार उसकी पीठ पर किया—मुंह पर यदि विजय का हाथ न होता तो उसके हलक से निकलने वाली चीख ने सारे गांव को गुंजा दिया होता।
वह दर्द से बिलबिलाकर रह गया।
उधर!
इन दोनों को अपने काम में लगा छोड़कर अशरफ लंबे-लंबे कदमों के साथ जिन्न की मानिन्द दूसरे कमरे की तरफ बढ़ा।
चौखट पर वैद्य की पत्नी टकराई।
अभी वह हक्की-बक्की ही थी कि अशरफ ने कनपटी पर विशेष कराटे का इस्तेमाल किया—परिणामस्वरूप वह लहराकर कटे वृक्ष की तरह गिरना ही चाहती थी कि अशरफ ने अपनी बांहें फैला दीं।
जिस वक्त वह वैद्य की पत्नी को आहिस्ता से जमीन पर लिटा रहा था, ठीक उसी वक्त मोन्टो ने दरवाजा अंदर से बंद करके सांकल चढ़ा दी।
सारा काम पलक झपकते ही जिस चुस्ती-फुर्ती, एक्शन और सिस्टेमेटिकल ढंग से हुआ, उससे जाहिर था कि दरवाजा खुलने के बाद तीनों के एक्शन पूर्वनिर्धारित थे—विजय की गिरफ्त में फंसा वैद्य अभी तक छटपटा रहा था, जबकि उसके नजदीक पहुंचते हुए अशरफ ने कहा— "इतना ज्यादा मचलने की जरूरत नहीं है वैद्य चाचा, चाकू इतनी जोर से नहीं मारा गया है कि घाव गहरा हो—दरअसल हमारा उद्देश्य जहर जिस्म में पहुंचाना था।"
वैद्य ने सुना जरूर, मगर कुछ समझा नहीं।
विजय का हाथ उसके मुंह पर ही रहा, जबकि इस बीच मोन्टो जाने कहां से वैद्य के कपड़े का दवाइयों वाला थैला उठा लाया। उसमें से दवाई की शीशियां निकालने लगा।
मोन्टो ने एक बड़ी शीशी अशरफ को दी।
अशरफ ने उसमें से लेप निकालकर वैद्य के जख्म पर लगाया और पट्टी बांधने तक विजय ने अपना हाथ एक पल के लिए भी उसके मुंह से नहीं हटाया था।
अब उसकी छटपटाहट और मुंह से निकलने वाली कराहें भी कम हो गई थीं। मगर उसका छोटा दिमाग यह नहीं समझ पा रहा था कि ये लोग स्वयं ही उसे जख्मी करने के तुरंत बाद मरहम-पट्टी क्यों करने लगे हैं?
मरहम-पट्टी पूरी होते ही अशरफ ने अपना रिवॉल्वर निकालकर वैद्य की कनपटी पर रखा तो धड़कता हुआ उस बूढ़े का दिल कुछ वैसी ही आवाज उत्पन्न करने लगा जैसे कोई ट्रेन नदी के पुल से गुजर रही हो।
उसे ज्यादा आतंकित करने की गरज से विजय ने अपने लहजे को खतरनाक बनाकर कहा— "अब मैं आपके श्रीमुख से अपना कर-कमल हटा रहा हूं, चचाजान, अगर आपने इस सहूलियत का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश की तो मेरा वह रिवॉल्वर वाला साथी इतना बदतमीज है कि पलक झपकते ही ट्रिगर दबा देगा और आप तो जानते हैं कि रिवॉल्वर की गोली अंदर होते ही दम बाहर हो जाता है।"
बूढ़े की आंखें बता रही थीं कि वह बुरी तरह आतंकित हो चुका था।
सो, विजय ने हाथ हटा लिया।
खुद को नियंत्रित करने में वैद्य को कुछ देर लगी, मगर नियंत्रित होते ही उसने पूछा— "आप लोग कौन हैं और मुझसे क्या चाहते हैं?"
"गुड—जो व्यक्ति इतनी जल्दी मतलब की बातों पर आ जाए, उसे गुड की कहा जाएगा।" विजय ने कहा—"जख्म तो आपका भर चुका है, मगर वैद्य होने के नाते आप जानते हैं कि जिस्म में लोहे का जहर फैल चुका है और जब तक आप अपनी बनाई हुई खास दवा नहीं खाएंगे, तब तक जहर साफ नहीं होगा।"
वैद्य चुपचाप उसे देखता रहा।
"दवा की वह शीशी कहां है मोन्टो मियां?"
मोन्टो ने छोटी शीशी वैद्य को दिखाई।
"ये शीशी आपको उस वक्त तक नहीं मिलेगी, जब तक कि आप हमारा एक छोटी-सा काम नहीं कर देते!"
"तुम शायद उसी के साथी हो जो गुमटी वालों की कैद में है?"
"करेक्ट ।"
"म...मुझसे क्या चाहते हो?"
"सबसे पहले यह कि जो कपड़े आपने पहन रखे हैं, ये न सिर्फ खून से सन गए हैं, बल्कि फट भी गए हैं। एकदम फटीचर नजर आ रहे हैं आप। अतः दूसरे कपड़े पहनकर हीरो बनिए।"
"म...मैं समझा नहीं।"
"समझना बाद में, यह करने का काम है।"
इस तरह!
उन तीनों शैतानों ने बूढ़े वैद्य को कपड़े पहनाए, इस ढंग से कि पीठ पर बना जख्म बिल्कुल नजर न आए। तब विजय ने पूछा— "अगर कोई व्यक्ति गोली लगने के कारण दर्द से छटपटा रहा हो और तुम्हें इलाज करने में बाधा उत्पन्न करे तो क्या करोगे?"
"सबसे पहले उसे बेहोश करना होगा।"
"कैसे ?"
"मेरे पास दवा है।"
"निकालकर दिखाओ!" विजय ने दवाओं का झोला उसके सामने रखते हुए कहा—"बचपन से ही हमारी इच्छा ऐसी करामाती दवा को देखने की रही है।"
वैद्य ने झोले में हाथ डाला।
जब हाथ बाहर निकला तो उसमें एक छोटी-सी शीशी थी और शीशी में थी होम्योपैथी जैसी नन्हीं-नन्हीं गोलियां। बोला—"यदि ये एक गोली किसी व्यक्ति के मुंह में डाल दी जाए तो वह पूरे एक घंटे तक बेहोश रहेगा।"
"मुंह में डालने के कितनी देर बाद बेहोश होगा?"
"तुरंत बाद—ज्यादा-से-ज्यादा आधा मिनट में।"
“वैरी गुड—कोई मरहम आदि भी तुम्हारे पास है?”
"किसलिए?"
"किसी भी लिए।"
"हां, है।" कहने के बाद उसने झोले से एक छोटी-सी डिबिया निकाली, उसके ढक्कन को खोला और विक्स जैसे मरहम की ओर इशारा करके बोला—"सिर में चाहे जैसा दर्द हो, मगर इसे सूंघने के बाद फौरन ठीक हो जाता है—चूंकि सांस के साथ यह सीधा जेहन की नसों से टकराता है।
"नहीं ।" विजय ने प्रतिवाद किया—"इसे सूंघने से आदमी बेहोश हो जाता है।"
"जी...जी?" वह चकरा गया।
"जी हां जनाब! आपको यही प्रचार करना है ।"
"मैं समझा नहीं ?"
"जब अभी तक आपको समझाया ही न गया हो तो समझेंगे क्या खाक?" बिना कौमा-विराम का इस्तेमाल किए विजय बोलता चला गया—"ये सारा पिटारा लेकर आप वहां जाएंगे जहां हमारा साथी कैद है।"
"क...क्यों?"
"क्योंकि आपके जिस्म में लोहे का जहर फैल रहा है.....और उससे छुटकारा पाने की दवा हमारे मोन्टो प्यारे की जेब में है।"
वैद्य ने धनुषटंकार की तरफ देखा।
दांतों में सिगार दबाए मोन्टो ने शाही अंदाज में छोटे-से कोट की बाहरी जेब थपथपाई—वैद्य तो बेचारा इस सूटेड-बूटेड बंदर को इंसानों की तरह काम करते देखकर पहले ही हैरान था, ऊपर से सिगार पीते देखा तो चौंक ही पड़ा।
चाहकर भी वह धनुषटंकार पर से अपनी आंखें नहीं हटा सका।
विजय ने वैद्य के चेहरे के आगे चुटकी बजाकर उसका ध्यान भंग किया और हलके से खंखारने के बाद बोला— "हां, तो हम यह फरमा रहे थे वैद्य चाचा कि आप अपना थैला लेकर वहां जाएंगे—दरवाजे पर पहरेदार के रूप में खड़े दो ग्रामीण, आपसे आने का सबब पूछेंगे—आप कहेंगे कि कैदी को कोई जरूरी दवा देने आए हैं, अगर वह दवा न दी गई तो कैदी के मर जाने का खतरा है।"
वैद्य चुप रहा।
विजय ने पूछा—"समझ रहे हो न?"
उसने स्वीकृति में गरदन हिलाई।
"वे हरिया ग्रुप के लौट आने से पहले यह हरगिज नहीं चाहेंगे कि कैदी मर जाए, अतः या तो तुम्हें अंदर जाने देंगे अथवा उनमें से कोई स्वयं अंदर छोड़कर आएगा—कमरे के अंदर कैदी को घेरे कम-से-कम दस ग्रामीण खड़े होंगे। कितने ग्रामीण खड़े होंगे?"
"दस ।"
"पहरे पर खड़ा ग्रामीण यदि तुम्हें साथ भी लेकर गया तो कमरे के अंदर छोड़कर अपनी ड्यूटी पर लौट आएगा—उधर तुम दसों ग्रामीणों से कहोगे कि यदि कैदी होश में रहा तो इसके मर जाने का खतरा है, क्योंकि होश में रहने पर 'ब्लड-सर्कुलेशन' इतना तेज होता है कि जहर को साफ करने वाला तुम्हारी दवा सही ढंग से काम नहीं करेगी।"
"यह गलत है।"
"निश्चय ही यह गलत है, मगर ये बात ग्रामीण नहीं समझ पाएंगे।" विजय ने कहा—"तुम कहोगे कि जहर को साफ करने वाली दवा को असरदार बनाने के लिए कैदी का 'ब्लड-सर्कुलेशन' कम करना जरूरी है और ब्लड-सर्कुलेशन कम करने के लिए उसे बेहोश करना।"
"क्या बकवास है?" वैद्य बड़बड़ाया—"बेहोश और होश में रहने वाले व्यक्ति के खून की रफ्तार में कोई फर्क नहीं होता।"
"वैद्य होने के नाते यह बात सिर्फ तुम जानते हो चचाजान, ग्रामीण नहीं अतः जो पट्टी तुम पढ़ाओगे, उस पर उन्हें यकीन करना पड़ेगा।"
"अच्छा, फिर?"
"फिर तुम ये डिबिया निकालोगे, कहोगे कि इस मरहम को सुंघाकर कैदी को बेहोश करने वाले हो, मगर उसके खुलते ही इतनी तीव्र गंध निकलेगी कि कैदी के साथ-साथ कमरे में मौजूद हर व्यक्ति बेहोश हो जाएगा।"
"क्या बकवास कर रहे हो?"
"तुम्हें वहां यही बकवास करनी है चचा मियां....और कहना है कि डिबिया से निकलने वाली बेहोशी की गंध से बचने का एकमात्र रास्ता ये गोलियां हैं, अतः कैदी के अलावा सबको एक-एक गोली खा लेनी चाहिए, ताकि उसके अलावा कोई बेहोश न हो।"
वैद्य अवाक् अवस्था में विजय को देखता रह गया।
जबकि विजय कहता चला गया—"उन्हें यकीन दिलाने के लिए शीशी में से निकालकर सबसे पहली गोली तुम खाओगे।"
"म...मैं?" वह हकला गया।
"इसमें तुम ऐसी ही नजर आने वाली कोई अलग गोली मिला लोगे। उसकी पहचान भी अलग रखोगे, ताकि वही खाओ—जबकि तुम्हें खाता देखकर वे इसमें से खुद एक-एक गोली खा लेंगे—इन्हें खाते ही वे सब एक घंटे के लिए लंबलेट हो जाएंगे। कमरे के अंदर होश में रहोगे तुम या कैदी।"
वैद्य की बूढ़ी आंखों में हर तरफ हैरत-ही-हैरत नजर आ रही थी। बोला—"त...तुम लोग शायद अपने साथी को वहां से निकाल ले जाने की योजना बना रहे हो?"
"अफसोस चचाजान कि ये सोलह आने सच बात तुम अब समझे हो।"
"म...मैं इस काम में तुम्हारी मदद हरगिज नहीं करूंगा।” कहते वक्त अचानक उसके चेहरे पर सख्ती और जिस्म में तनाव उत्पन्न हो गया।
"आपको यह जाने बिना ऐसी गैर जिम्मेदाराना बात मुंह से नहीं निकालनी चाहिए चचाजान कि जब तुम यह सबकुछ कर रहे होगे तो उस वक्त हम लोग क्या कर रहे होंगे।"
"क्या मतलब ?"
"तुम देख ही चुके हो कि अपने मोन्टो मियां के पास एक चाकू है। यदि तुमने हमारा काम करने में सोलह साल की कन्या की तरह नखरे दिखाए तो यह उसी चाकू से तुम्हारी पत्नी का क्रियाकर्म कर देगा।"
वैद्य के चेहरे पर करुणा और खौफ के भाव उभरे।
विजय कहता चला गया—"हम और प्यारे झानझरोखे तुम्हारे साथ चलेंगे। जिस वक्त तुम कमरे के अंदर अपना काम कर रहे होगे, उस वक्त हम चौकीदार बने दोनों ग्रामीणों को बेहोश करके उनकी जगह ले चुके होंगे—तुम कैदी को मुक्त करके हमारे पास लाओगे और फिर हम चारों को यहां आना है। जहर को साफ करने वाली दवा की शीशी तुम्हें दे दी जाएगी। अच्छी तरह सोच लो, यदि इस मामले में कहीं भी कोई गड़बड़ी हुई या हम लोग किसी लफड़े में फंसे तो न सिर्फ मोन्टो मियां का चाकू चल जाएगा, बल्कि दवा की वह शीशी भी तुम्हें कभी नहीं मिल सकेगी, अतः दोनों का बंटाधार।"
वैद्य के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी रो पड़ेगा।
¶¶
अंधेरे को चीरती हुई एक आवाज गूंजी—"कौन है?"
"मैं हूं, बेटा।"
"अरे!”
“क्या बताऊं बेटा, बुढ़ापे में मेरा दिमाग भी सठिया गया लगता है।" कहता हुआ वैद्य दोनों ग्रामीणों के नजदीक पहुंच गया, बोला—"अब देखो न, उस कैदी को एक जरूरी दवा देना भूल गया।"
"कैसी दवा ?"
"बेहोश करना है उसे।" वैद्य ने कहा—"होश में रहने पर इंसान के अंदर खून की रफ्तार इतनी तेज रहती है कि उसके जिस्म से लोहे का जहर खत्म करने वाली मेरी दवा बेअसर हो जाएगी।"
"तो क्या आदमी के बेहोश होने पर उसके खून की रफ्तार भी घट जाती है।"
"हां।"
"अरे! तो जल्दी करो चचा, कहीं वह कम्बख्त मर ही न जाए—हरिया कह रहा था कि जब तक इसके साथी नहीं मिल जाते, तब तक इसका जिंदा रहना जरूरी है।"
"तभी तो भागा-भागा आया हूं।"
उनके बीच से आगे बढ़ते हुए वैद्य ने पूछा—"क्या हरिया वगरैह अभी तक नहीं आए हैं?"
"नहीं, आते ही होंगे।"
बस!
पहरेदार बने दोनों ग्रामीणों और वैद्य के बीच इससे ज्यादा बातें न हुईं—अभी उनकी नजर अंदर जाते वैद्य की पीठ पर ही थी कि गोरिल्लों की तरह झपटकर विजय और अशरफ ने उन्हें दबोच लिया।
दोनों के हाथ अपने-अपने शिकारों के मुंह पर थे।
कुछ देर दोनों मुंह से गूं-गूं की आवाज निकली और फिर वह भी गुम।
दरअसल दोनों ने अपने काम को कुछ इस तरह अंजाम दिया था, जैसे एक ही स्विच से ऑन-ऑफ होने वाले बल्ब हों। दो मिनट बाद ही वे फारिग हो चुके थे—उनके शिकार बेहोश अवस्था में एक-दूसरे से दूर अंधेरे में पड़े थे।
¶¶
दरवाजा खोलने वाले युवक ने पूछा—"आपका आना कैसे हुआ, वैद्य चाचा?"
कुछ कहने से पहले वैद्य ने अच्छी तरह से कमरे का निरीक्षण किया—कुर्सी पर बंधे विकास के चारों तरफ खड़े ग्रामीण एक भीड़-सी लग रहे थे।
विकास सहित सभी की निगाहें उस पर स्थिर थीं, जब युवक ने दुबारा उनके आने का प्रयोजन पूछा तो वैद्य ने कहा— "पहले दरवाजा अंदर से बंद कर लो।"
"बात क्या है चचा?"
"दरवाजा तो बंद करो।" यह वाक्य वैद्य ने कुछ ऐसे प्रभावशाली अंदाज में कहा कि युवक को दरवाजा बंद करके सांकल चढ़ानी पड़ी।
"अगर तुम लोग आपे से बाहर होकर एकदम से शोर न मचाओ तो एक राज की बात कहूं।" वैद्य ने एक-एक को ध्यानपूर्वक देखते हुए कहा।
“हां, कहो।”
"पहले वादा करो कि मेरी पूरी बात सुने बिना कोई भी इतनी जोर से नहीं बोलेगा कि आवाज इस कमरे से बाहर निकल सके।"
"ठीक है, तुम बात बोलो!"
"मेरी और मेरी पत्नी की जान खतरे में है।"
"क...क्या?" एक साथ सबके मुंह से निकला।
"श...शी...शी...।" वैद्य ने अपने होंठों पर उंगली रखकर सबको चुप रहने के लिए कहा। उसके चेहरे पर डर और रहस्य के मिले-जुले भाव थे। बहुत धीमे स्वर में बोला—"कोई जोर से न बोले। मुझसे जिस किसी को भी जो सवाल पूछना है, फुसफुसाकर पूछे।"
सब अवाक्।
जैसे सांप सूंघ गया हो।
उनके नजदीक खड़े युवक ने फुसफुसाकर ही पूछा—"हुआ क्या है?"
"मेरी पत्नी इस कैदी के एक साथी की गिरफ्त में है। अगर उसे यह पता चल गया कि इस कमरे में मैं वह नहीं कर रहा हूं जिसके लिए मुझे यहां भेजा गया है तो वह मेरी पत्नी को मार देगा।"
"कहां हैं इसके साथी?"
"एक मेरे घर और दो पहरेदारों के रूप में बाहर खड़े हैं।"
"क...क्या?" मुंह से यह शब्द निकालते हुए उनमें से कई अपने हथियार संभालकर दरवाजे की तरफ लपकना चाहते थे कि वैद्य
जल्दी से आगे बढ़कर गिड़गिड़ा उठा—"न...नहीं—ये बेवकूफी मत करना, मैं और मेरी पत्नी बेमौत मारे जाएंगे।"
"क्या मतलब ?"
"पत्नी की हालत तो बता ही चुका हूं, मेरी हालत ये है कि हर क्षण लोहे का जहर जिस्म में फैलता जा रहा है—यदि समय रहते दवा न मिली तो जिंदा न बचूंगा.....और दवा उस बंदर के पास है।"
"बंदर?"
"हां, इस कैदी का साथी—मेरी पत्नी उसी के चंगुल में है।"
"वे तुमसे कहां टकरा गए?"
"बातों में गंवाने के लिए ज्यादा वक्त नहीं है। संक्षेप में सिर्फ इतना समझ लो कि उन्होंने मुझे मजबूर करके अपने इस साथी
को मुक्त कराने यहां भेजा है।"
एक युवक दांत भींचकर गुर्राया—"हम उन्हें उनके नापाक इरादों में हरगिज कामयाब नहीं होने देंगे।"
"मैं भी यही चाहता हूं, तभी तो वह न करके जो उन्होंने कहा था, तुम लोगों को सारी हकीकत बता रहा हूं।"
"उन लोगों ने तुम्हें यहां क्यों भेजा था?"
"तुम सबको बेहोश करके कैदी को यहां से निकालकर बाहर उनके सुपुर्द कर देने के लिए। लेकिन सुनो, यदि आपे से बाहर होकर कोई उलटा-सीधा कदम उठाओगे तो मैं और मेरी पत्नी तो मरेंगे ही, उन लोगों को पकड़ने का तुम्हारा ख्वाब भी सिर्फ ख्वाब ही बनकर रह जाएगा।"
"फिर?"
"दिमाग की लड़ाई में दुश्मन को दिमाग से ही मात दी जा सकती है। जिस तरह उन्होंने चाल चली है, उसी तरह हमें भी चलनी
चाहिए।"
"हम समझे नहीं।"
"तुम सब जमीन पर झूठ-झूठ की बेहोशी का नाटक करके लेट जाओ और कैदी को मैं वास्तव में बेहोश कर देता हूं।" वैद्य ने कहा—"ऐसी अवस्था में मैं बाहर खड़े उन दोनों से जाकर कहूंगा कि सब ग्रामीणों तो बेहोश कर दिया है, मगर उनका साथी पहले ही से बेहोश था। मैं बूढ़ा होने की वजह से उनके साथी को उठा नहीं सकता, अतः स्वयं जाकर उठा लाएं।"
"फिर ?"
"वे जैसे ही अपने साथी को खोलने कुर्सी के नजदीक पहुंचें तुम सब आसानी से उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लोगे—इसके बाद इसी तरह गुपचुप और अचानक मेरे घर में मौजूद बंदर पर हमला करना होगा, ताकि उसे मेरी पत्नी पर चाकू इस्तेमाल करने का मौका न मिले और दवा की शीशी भी उससे बरामद की जा सके।"
"अरे, वे सिर्फ दो ही तो हैं और हम इतने सारे।" एक जोशीला युवक गुर्राया—"इतनी लंबी चौड़ी योजना की जरूरत ही कहां है? बाहर निकलकर भी मारते-मारते हम उनका कचूमर निकाल देंगे।"
"न...नहीं—ये ठीक नहीं होगा।" वैद्य गिड़गिड़ा उठा—"इस तरह हम पति-पत्नी को कोई नहीं बचा सकेगा।"
युवक ने पुनः कुछ कहना चाहा था कि वैद्य के नजदीक खड़ा युवक हाथ उठाकर बोला—"हमें वही करना चाहिए जो वैद्य चाचा कह रहे है, क्योंकि ठीक यही रहेगा—एक बार इस कमरे में फंसने के बाद उन्हें भागने तक का मौका नहीं मिलेगा।"
इस पर सब सहमत हो गए।
और विकास!
बेचारा विकास!
मुंह बंधा होने के कारण सबकुछ सुनकर भी कुछ नहीं कर सकता था—वह उन्हें यूं घूर रहा था, जैसे एक-एक को कच्चा चबा जाएगा जबकि वैद्य ने कहा—"इसे बेहोश करने के लिए एक गोली खिलानी पड़ेगी और उसके लिए मुंह खोलना जरूरी है।"
"मुंह खुलते ही वह चीखकर अपने साथियों को सावधान कर सकता है।" दस में से एक ने शंका व्यक्त की।
"इस काम में हमें सावधानी बरतनी होगी।" वैद्य ने कहा—"उसकी तुम फिक्र मत करो चचा।" एक कद्दावर नौजवान कुर्सी की तरफ बढ़ता हुआ बोला—"मुंह से पट्टी और मुंह के अंदर ठुंसे कपड़े के निकलते ही मैं अपने हाथ से बिना चू-चपाट का मौका दिए इसका मुंह भींच लूंगा। बेहोश की गोली इसके मुंह में डालते वक्त अगर हल्की-सी आवाज इसके मुंह से निकल जाए तो मेरा नाम बदल देना।"
और!
उसने गलत नहीं कहा था।
पुरजोर प्रतिरोध के बावजूद विकास चाहकर भी मुंह से इतनी जोरदार आवाज न निकाल सका जो उस कमरे की सीमाओं को तोड़ने में सक्षम होती।
गोली जीभ से स्पर्श होते ही उसकी चेतना लुप्त होने लगी।
¶¶
"मैंने उन सबको बेहोश कर दिया है।"
विजय ने पूछा—"तो फिर अकेले क्यों आए हो—हमारा साथी कहां है?"
"वह पहले ही बेहोश था—ग्रामीणों के बताया कि शायद कमजोरी की वजह से बेहोश हो गया—मैं बूढ़ा होने की वजह से कंधे पर लादकर उसे नहीं ला सका—आप लोग अपने साथी को ला लकते हैं। अब वहां प्रतिरोध करने कि स्थिति में कोई नहीं है।"
"अगर वह पहले ही बेहोश था, तो ग्रामीणों को किस बहाने से बेहो...।"
विजय ने बड़ी तेजी से झपटकर अशरफ के मुंह पर हाथ रखा और उसे वाक्य पूरा करने मौका दिए बिना बोला—"ज्यादा बोलना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता झानझरोखे —ट्रेनिंग में हमें यही पाठ पढ़ाया जाता है कि आंख और कान के साथ-साथ दिमाग के भी सब खिड़की-दरवाजे खुले रहने चाहिए, मगर जुबान बंद—क्योंकि ये बहुत नुकसान पहुंचाती है।"
"अरे!" विजय की इस अजीब-सी हरकत पर वैद्य चकराया—"इसे कहने दो जो कहना चाहता है।"
"ये कुछ कहना नहीं चाहता चचा, दरअसल तुम तो जानते ही हो कि इसे मजाक करने की आदत है—ये भी नहीं देखता कि मजाक करने का टाइम है या नहीं—चलोस, जल्दी से अपने यार को ले जाएं—अगर हरिया एंड़ पार्टी लौट आई तो हमारा धनिया बना देगी। क्यों झानझरोखे?"
"हां।" हक्के-बक्के अशरफ के मुंह से निकला।
"तुम ही हमें रास्ता दिखाओ चचाजान।"
"चलो।"
वैद्य आगे, पीछे अशरफ और विजय।
दोनों के दाएं हाथ अपनी जेबों में पड़े रिवॉल्वरों पर थे—अशरफ समझ चुका था कि जो पॉइंट उसने पकड़ा था, उसे विजय भी पकड़ चुका है।
कमरे के भिड़े हुए दरवाजे को हल्का-सा धक्का मारकर स्वयं वैद्य ने खोला और दरवाजे के खुलते ही विजय और अशरफ ने अंदर का दृश्य देखा।
अजीब दृश्य था।
सभी बेहोश नजर आ रहे थे।
ग्रामीणों के हथियार उनके आसपास लुढ़के पड़े थे। विजय ने कहा— "वाह वैद्य चचा, तुमने तो वाकई कमाल कर दिया—एक सिरे से सब बेहोश।"
वैद्य मन-ही-मन मुस्कराया।
"अब अंदर तो चलो।" विजय ने कहा।
वैद्य के पीछे वे दोनों भी कमरे में दाखिल हुए और अंदर कदम रखते ही विजय, अशरफ की नजरें मिलीं—दोनों के रिवॉल्वर एक साथ बाहर निकले।
अशरफ ने थोड़ा हटकर पोजीशन ली।
वैद्य के कुछ समझने से पहले ही विजय गरजा—"इस तरह जमीन पर लंबलेट होकर स्वागत करने के लिए शुक्रिया साहेबानों! हम जानते हैं कि तुममें से कोई भी बेहोश नहीं है।”
सब ज्यों-के-त्यों पड़े रहे।
वैद्य बोला—"आप लोग क्या कर रहे हैं?" ये वास्तव में बेहोश हैं।"
"ज्यादा टांय-टांय मत करो वैद्य चचा वरना एक ही गोली में दम बाहर हो जाएगा—जमीन पर लंबे पड़े तुम लोगों ने भी सुन लिया होगा कि हमारे हाथ में रिवॉल्वर है—अगर किसी ने भी कोई गलत हरकत की या जमीन पर पड़े अपने हथियार की तरफ हाथ बढ़ाया तो जिस्म के परखच्चे उड़ा दिए जाएंगे—अब ये बेहोशी का नाटक बंद करके शरीफ बच्चों की तरह खड़े हो जाओ।"
विजय ने कहा—"हां, इस तरह—वो देखो वैद्य चचा, बाएं कोने में लेटे तुम्हारे गांव वाले को अक्ल आ रही है—वह आंख खोल चुका है।"
यह वाक्य कानों में पड़ते ही सबने एक साथ आंखें खोल दीं।
अशरफ गरजा—"सब खड़े हो जाएं। अगर एक ने भी हथियार की तरफ हाथ बढ़ाया तो वह बाकियों की मौत का भी जिम्मेदार होगा।"
वैद्य तो पहले ही भौंचक्का था।
ग्रामीण भी अवाक् रह गए।
काटो तो खून नहीं।
हरेक को एक नहीं, दो-दो रिवॉल्वरों के जबड़े अपने जिस्म पर तने नजर आ रहे थे। विजय बोला—"सुना नहीं, खड़े हो जाओ।"
मरते क्या न करते?
विजय और अशरफ ने नहीं, बल्कि रिवॉल्वरों ने उन्हें दीवार से पीठ टिकाकर एक पंक्ति में खड़े होने पर विवश कर दिया—उनके हाथ ऊपर कराने के बाद जब विजय को लगा कि स्थिति नियंत्रण में है तो बोला— "चालाकी तो तुमने बहुत दिखाई चचा, मगर कहानी जरा कमजोर गढ़ी—सोचने की बात यह है कि जब हमारा साथी पहले ही बेहोश था तो इन लोगों को किस बहाने से गोलियां खिलाकर बेहोश किया होगा—अपना झानझरोखे यह सवाल उठाकर बाहर ही सारा गुड़-गोबर किए दे रहा था—जरा सोचो प्यारे, अगर हम वैद्य चचा से वहीं हील-हुज्जत करने लगते तो इस कमरे में ये लोग इस तरह लंबलेट होकर हमारा स्वागत क्यों करते?"
वैद्य की इच्छा अपने बाल नोचने की हुई, जबकि ग्रामीणों के भभकते चेहरे विजय और अशरफ को साफ बता रहे थे कि यदि उन्हें जरा भी मौका मिले तो वे उन्हें चीर-फाड़कर डाल दें।
एक युवक गुर्राया—"मैंने पहले ही बाहर निकलकर इन पर हमला करने की सलाह दी थी, मगर इस वैद्य के बच्चे ने मरवा दिया—इस बेहोशी के नाटक के चक्कर में हमने कुत्तो का काम कितना आसान कर दिया।"
"खामोश!" अशरफ दहाड़ा—"आगे अगर एक भी लफ्ज मुंह से निकाला तो यहीं ढेर कर दूंगा।"
एक बार पुनः कमरे में तनावपूर्ण सन्नाटा छा गया।
"बेहोशी की गोलियों वाली शीशी निकालो चचा।"
वैद्य ने ऐसा ही किया।
अगला आदेश—"इस हथेली पर रखकर ढक्कन खोल दो।"
मजबूरी थी।
"हमारे पास दो किस्म की गोलियां हैं।" पंक्ति में खड़े ग्रमीणों को संबोधित करके विजय ने किसी मजमे वाले की तरह कहा— "एक किस्म की इन रिवॉल्वरों में, जो गोली अंदर जाकर दम बाहर कर देती है, दूसरी वैद्य की हथेली पर रखी शीशी में—उसे खाने से आदमी कुछ देर के लिए सिर्फ बेहोश होता है—अब ये आप लोगों पर निर्भर है कि इनमें से कौन-सी गोली खाना पसंद करेंगे?"
"हां, आंखों-ही-आंखों में एक-दूसरे से खूब सलाह-मशवरा कर लो कि किसे सिर्फ थोड़ा देर के लिए बेहोश होना है और किसे हमेशा के लिए उड़नछू।" विजय का यह वाक्य सुनकर कनखियों से एक-दूसरे की तरफ देख रहे ग्रामीण सकपका गए।
दो मिनट के लिए पुनः खामोशी छा गई।
"यह काम भी पूरे अनुशासन में होगा।" विजय ने कहा—"एक-एक करके आगे बढ़ो, शीशी से गोली उठाकर मुंह में रखो और अपनी जान बचा लो।"
"सबसे पहले तुम।" अशरफ ने पंक्ति के नजदीक वाले सिरे पर खड़े ग्रामीण से कहा।
वह हिचका।
"आगे बढ़ते हो या ट्रिगर दबाऊं?" विजय ने धमकाया।
ऐसा कौन है जिसे जान प्यारी न हो?
एक-एक करके वे आगे बढ़े और उनके आदेश का पालन करते चले गए।
दस मिनट बाद वे सभी जमीन पर बेहोश पड़े थे।
वैद्य का चेहरा पीला जर्द, काटो तो खून नहीं।
अशरफ को चुप रहने का इशारा करके विजय बेहोश पड़े ग्रामीणों की तरफ बढ़ा—उसने झुककर मुंह के बल पड़े उनमें से सबसे कद्दावर युवक का कॉलर पकड़ा और ऊपर उठाता हुआ बोला—"इन सब में तुम खुद को सबसे ज्यादा चालाक समझते हो मोटू प्यारे, तुम्हें फर्श पर गोली गिराते मैंने देख लिया था।"
कद्दावर युवक ने बिजली की-सी गति से पलटकर उस पर आक्रमण किया, मगर ऐसे ही किसी हमले के प्रति पहले से सतर्क विजय ने ना केवल खुद को बचा गया, बल्कि रिवॉल्वर का वार इतनी जोर से उसकी कनपटी पर किया कि मुंह से एक चीख निकालता हुआ वह ढेर हो गया।
अब विजय वैद्य की तरफ पलटा।
वैद्य की सिट्टी-पिट्टी गुम।
पहले तो विजय ने उसे कुछ ऐसे खूंखार अंदाज में घूरा कि वैद्य के नाखून से चोटी तक में मौत की सिहरन दौड़ गई और फिर एकाएक यूं मुस्करा उठा कि वैद्य भौंचक्का रह गया। जेब से एक दवा की शीशी निकालकर उसे देता हुआ विजय बोला—"पहले इसे खाकर अपने जिस्म में फैल रहे लोहे के जहर को साफ करो चचा और उसके बाद बेहोशी की गोली खाकर तुम भी लंबलेट हो जाओ।"
वैद्य चकित रह गया। दरअसल उसे अब इस बात की कोई उम्मीद बाकी न रही थी कि ये लोग उसे जीवित छोड़ देंगे—दवा की शीशी लेते वक्त उसकी आंखें छलछला गईं, बोला—"त...तुम मुझे जिंदा छोड़ रहे हो?"
"हम किसी गांव वाले को मारना नहीं चाहते—इसीलिए अपने साथी को मुक्त कराने के लिए तुम्हारी मदद ली—बिना खून-खराबा किए अपने साथी को बचा ले जाना ही हमारा उद्देश्य था।"
"म...मगर दवा की ये शीशी तुम्हारे पास...?"
"हमारा वह साथी, जिसे तुम बंदर कहते हो, इस वक्त तुम्हारे घर नहीं है, बल्कि सारे मामले की जानकारी पुलिस को देने डिक्की की तरफ जा रहा होगा—यह बात सिर्फ तुम्हें आतंकित करने के लिए कही गई थी कि वह चाकू ताने तुम्हारी पत्नी के बेहोश जिस्म के पास बैठा रहेगा।"
वैद्य के मुंह से बोल न फूटा, चुपचाप विजय को देखता भर रहा, जबकि विजय ने पूछा—"ऐसे क्या देख रहे हो चचा?"
"सोच रहा हूं कि तुम उतने बुरे तो नहीं लगते जितना मैं और सारा गुमटी गांव समझता है।"
"यह समझाने तो हम यहां आए हैं।" विजय ने कहा—"खैर, फिलहाल तुम इस दवा और गोली का सेवन करो, क्योंकि यदि हरिया एण्ड़ पार्टी लौट आई तो हम पर पिल पड़ेगी—उनकी नजर में हम अब भी उतने ही बुरे हैं जितने थे।"
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