दोलाम के कदम तेजी से उठ रहे थे। चेहरे पर दृढ़ता नजर आ रही थी। अपने ही कदमों की आवाजें उसके कानों में पड़ रही थी। उसके हाव-भाव में क्रोध और तनाव स्पष्ट झलक रहा था। कई रास्तों को पार करने के बाद वो कमरे में प्रवेश कर गया। ये वो ही कमरा था जहां मंत्रों वाले पानी का कटोरा रखा था।

दोलाम की निगाह उस कटोरे पर पड़ी।

पास पहुंचकर वो ठिठक गया और भरे कटोरे के पानी को देखने लगा।

लम्बे पलों तक वो खामोशी से खड़ा रहा फिर दायां हाथ उठाया और उंगलियां पूरी खोल लीं। अपने हाथ को देखा फिर हाथ को कटोरे में डाल दिया।

शांति छाई रही।

कुछ भी नहीं हुआ।

चंद पल ऐसे ही बीत जाने पर दोलाम के शरीर में बेचैनी की लहर दौड़ी।

“ठोरा।” दोलाम के होंठों से निकला।

“कह।” ठोरा का शांत स्वर उभरा-“मैं तेरे को ही देख रहा हूं।”

दोलाम ने चैन की सांस ली और बोला।

“मैं तेरे पास अपनी समस्या लेकर आया हूं।”

“बोल।”

“महान खुंबरी ने ताकतों से ये जरूर कहा होगा कि वे दोलाम को खत्म कर दें।”

“तू क्या ये जानने आया है कि खुंबरी ताकतों से क्या बात करती है।” ठोरा की आवाज आई।

“नहीं।”

“तो सिर्फ अपनी बात कह। तेरे को हम कबका अपने परिवार में शामिल कर चुके हैं और परिवार के लोगों की बात एक-दूसरे को नहीं बताई जाती। तेरी बात तेरे से और खुंबरी की बात खुंबरी से।” ठोरा का स्वर शांत था।

“ये बात आज मुझे पहली बार पता चली कि मुझे परिवार में शामिल कर लिया गया है।” दोलाम एकाएक मुस्कराया।

“तू परिवार का सदस्य बन चुका है दोलाम।”

“मेहरबानी ठोरा। इससे तो मेरा ओहदा बहुत ज्यादा बढ़ गया। मैं बहुत खुश हो गया।”

“अपनी समस्या बता।”

“खुंबरी ने मेरा बहुत दिल दुखाया है ठोरा।”

“तू खुंबरी की शिकायत करने आया है?”

“मैं अपनी बात कहने आया हूं। खुंबरी ने मेरा हक मुझे नहीं दिया। वो मेरा हाथ थामने को तैयार नहीं है। उसे दोलाम से ज्यादा जगमोहन प्यारा है। मुझे वो अपना शरीर नहीं सौंपना चाहती। मैं इतना बुरा हूं कि खुंबरी मुझे छोड़कर जगमोहन का हाथ थाम ले? अभी तुमने बताया कि मुझे परिवार में शामिल कर लिया गया है। तो परिवार के सदस्य के साथ कोई ऐसा व्यवहार करता है। ये तो गलत बात है। पिछली बार जब तुमसे बात की थी कि तुमने भी कहा था कि खुंबरी के शरीर पर मेरा हक बनता है। इस बारे में मैं खुंबरी से बात करूं। पर बात करने का कोई फायदा नहीं हुआ।

“ये तो तुम्हारे लिए तकलीफदेह बात है।” ठोरा की आवाज आई।

“तभी तो मैं तुम्हारे पास आया कि मुझे मेरा हक नहीं मिल रहा।”

“ये खुंबरी का व्यक्तिगत मामला है। ताकतें इन बातों में दखल नहीं दे सकतीं।”

“तो मुझे न्याय नहीं मिलेगा।”

“इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता।”

“मैंने आज तक नि:स्वार्थ सेवा की है ठोरा और मुझे खुंबरी ने ये इनाम दिया।”

“इसका जवाब तो तुम्हें खुंबरी ही दे सकती है।” ठोरा की आवाज सुनाई दी।

दोलाम के चेहरे पर गुस्सा नाच उठा।

“खुंबरी को मेरी जरा भी परवाह नहीं है।” दोलाम ने कहा।

“तू खुंबरी के रूप को अपना बना सकता है।”

“मैंने जिस शरीर की पांच सौ सालों तक देखरेख की, मुझे वो ही शरीर चाहिए। मैंने तो सोचा था कि खुंबरी, पृथ्वी के उस इंसान को त्यागकर मेरा हाथ थाम लेगी। हम दोनों एक होकर रहेंगे। आने वाले वक्त में खुंबरी सदूर की रानी बनेगी और मैं राजा बनूंगा। खुंबरी बच्चे पैदा करेगी मेरे और मैं सदूर चलाऊंगा । कितना खुश होगा हमारा जीवन, परंतु खुंबरी ने मेरे सपनों पर अपने जहर की चादर बिछा दी। मेरा दिल तोड़ दिया।” दोलाम के चेहरे पर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था-“इतनी सेवा के बाद मैं अपनी इतनी बेइज्जती नहीं करा सकता। पृथ्वी के इंसान की खातिर खुंबरी ने परिवार के सदस्य का ख्याल नहीं रखा। ये कद्र की खुंबरी ने मेरी सेवा की।”

“इन व्यक्तिगत बातों से ताकतों को कोई मतलब नहीं है।”

“ठोरा। मैं खुंबरी को भी शरीर के मजे नहीं लेने दूंगा।” दोलाम गुर्रा उठा।

“स्पष्ट कहो।”

“मैं परिवार का सदस्य बन चुका हूँ न?”

“हाँ।”

“तो मेरे हक अब और भी बढ़ गए हैं। मात्र सेवक नहीं रहा मैं। खुंबरी ने मेरी परवाह नहीं की तो मैं भी उसकी परवाह नहीं करूंगा। मैं खुंबरी की जान ले लूँगा?”

“ये गलत होगा। खुंबरी हम ताकतों की मालिक है। वो हमारा ध्यान...”

“मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि खुंबरी की मौत के बाद मैं ताकतों का मालिक बनूंगा और खुंबरी से अच्छा काम करूंगा। क्या कभी मेरी सेवा में कोई कमी रही ठोरा?”

“नहीं।”

“मैं तुम ताकतों का मालिक बनूंगा तो बहुत अच्छा रहेगा सबके लिए-मैं...”

“तू खुंबरी की जान ले। ये बात मुझे पसंद नहीं।”

“तुमने अभी कहा कि ये मेरा और खुंबरी का व्यक्तिगत मामला है। ताकतें बीच में नहीं आएंगी।”

“इसका ये मतलब भी नहीं कि तू खुंबरी की जान ले ले।”

“तो फिर मुझे मेरा हक दिला। खुंबरी दिला। मैं उसका शरीर पाना चाहता हूं।”

“ताकतें खुंबरी को ऐसा हुक्म नहीं दे सकतीं।”

“दोलाम को हुक्म दे सकती हैं कि वो खुंबरी को न मारे।”

“खुंबरी हमारी मालिक है।”

“आने वाले वक्त में मैं मालिक बनने जा रहा हूं ताकतों का।”

“तुम्हारी बातें मुझे अच्छी नहीं लग रहीं।”

“एक बात बता ठोरा। अगर मैं खुंबरी की जान ले लेता हूं। तो ताकतें मेरे साथ क्या करेंगी?”

ठोरा की आवाज नहीं आई।

“जवाब दे ठोरा?”

“मैं नहीं जानता कि तब क्या स्थिति होगी।”

“परंतु मैं जानता हूं।” दोलाम का चेहरा सुर्ख हो रहा था-“ खुंबरी की जान चली गई तो उस स्थिति में ताकतों को कोई मालिक तो चाहिए और मेरे से अच्छा ताकतों का मालिक कौन हो सकता है। दोलाम तो खुंबरी से भी बढ़िया ताकतों की सेवा करता है। दोलाम ही तो सब काम संभालता है। खुंबरी तो कहने भर को ताकतों की मालिक है।”

“जो भी हो, मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूं कि तुम खुंबरी की जान लो।”

“ये मेरा फैसला है।”

“तुम क्रोध में गलत फैसला ले रहे हो। खुंबरी के रूप धरा का हाथ थाम लो।”

“मुझे असली खुंबरी का शरीर चाहिए।”

“ये तुम्हारी जिद है।”

“खुंबरी की भी तो जिद है कि उसे जगमोहन से प्यार है, मेरे से नहीं। वो परिवार के सदस्य को इस तरह नकार दे, ये बात तो और भी गलत है। जितना मैं खुंबरी को प्यार करता, उतना कोई भी नहीं कर सकता। मैं चाहता हूं कि तुम खुंबरी को समझाकर राह पर लाओ कि वो सिर्फ मेरे बच्चे पैदा करे।”

“इस बारे में ताकतें खुंबरी से बात करने का हक नहीं रखतीं।”

“ठीक है, ठोरा। अब मैं बहुत जल्दी ताकतों का मालिक बन जाऊंगा।” दोलाम ने भरपूर क्रोध में कहा और कटोरे से हाथ बाहर निकालकर पलटा और बाहर निकलता चला गया।

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दोलाम ने ठोरा से बात करने जाते वक्त, बबूसा से कह दिया था कि वो पहले की तरह उसके पीछे न आए। बबूसा ने भी शराफत दिखाई और दोलाम के पीछे नहीं गया। वहीं खाने की टेबल की कुर्सी पर बैठकर सारे हालातों के बारे में गौर करने लगा कि तभी धरा वहां आ पहुंची।

बबूसा ने गर्दन घुमाकर उसे देखा और मुस्कराया।

धरा भी मुस्कुराई और वहीं कुर्सी पर बैठ गई।

“तुम बहुत अच्छे हो बबूसा।” धरा ने दोस्ताना स्वर में कहा।

“जानता हूं।”

“क्या?”

“यही कि मैं बहुत अच्छा हूं।” बबूसा ने दांत दिखाए।

“तुमने पृथ्वी ग्रह पर मेरी बहुत सहायता की थी।” धरा बोली।

“अगर मुझे तुम्हारी असलियत पता होती तो मैं कभी भी तुम्हारी सहायता नहीं करता।”

“वो वक्त तो निकल गया।” धरा ने कहा।

बबूसा सिर हिलाकर रह गया।

“दोलाम कहां है?” धरा ने पूछा।

“दोलाम?” बबूसा ने यूं ही इधर-उधर गर्दन घुमाकर कहा-“पता नहीं, मैंने तो देखा नहीं। अपने कमरे में होगा।”

“तुम कैद से निकल आए। पर तुम्हारे साथी अभी भी कैद में हैं।” धरा ने कहा।

“वो भी आजाद हो जाएंगे।”

“जरूर आजाद हो जाते, अगर वो इंसानों के पहरे में होते। पर वो ताकतों के पहरे में हैं। आजाद नहीं हो सकते।”

“उन्हें कैद में क्यों रखा हुआ है?”

“खुंबरी विचार कर रही है कि उन्हें मार दिया जाए। ताकतें खून देखकर खुश होती हैं।”

“मार दिया जाए?” बबूसा की आंखें सिकुड़ी।

“हां।”

“जगमोहन को पता है ये बात?”

“जगमोहन का इन बातों से कोई मतलब नहीं। वो तो खुंबरी के साथ बहुत खुश है।”

बबूसा के चेहरे पर कठोरता नाच उठी।

“तुम्हें ऐसा कुछ करना चाहिए कि उन लोगों की जान बच जाए।”

“मैं क्या कर सकता हूं जिससे उनकी जान बचे।” बबूसा ने धरा को देखा।

“तुम्हारी सोमारा भी मारी जाएगी।”

“मैं सोमारा को कुछ नहीं होने दूंगा।”

“डुमरा की बातों में आकर तुमने सबने गलती की। अब कोई नहीं बचेगा।”

“डुमरा कहां है?”

“जंगल में भटक रहा है, खुंबरी का ठिकाना तलाश कर रहा है बेवकूफ। वो भी मारा जाएगा। आज ओहारा उस पर घातक वार करने वाला है। उस वार को वो सह नहीं पाएगा।”

“डुमरा के पास शक्तियां हैं, वो...”

“ओहारा के वार से शक्तियां भी भाग खड़ी होंगी। डुमरा ने जंगल में अपने आस-पास शक्तियों की सुरक्षित जगह चादर फैला रखी है कि उस पर वार हो तो, उसे नुकसान न पहुंचे। लेकिन ओहारा ने सब देख-समझकर ही अपने वार की तैयारी की है। डुमरा के मरने के बाद तुम सबकी भी जान ले लेगी।”

“क्या कोई रास्ता है कि मैं अपने को और अन्यों को बचा सकूँ? बबूसा ने गम्भीर स्वर में पूछा।

धरा ने बबूसा के चेहरे पर निगाह मार कर कहा।

“एक रास्ता तो है, पर सोचती हूं कि तुम्हें बताऊं या न बताऊं? तुमने पृथ्वी पर मेरी सहायता की थी। इसलिए मैं तुम्हारे काम आना चाहती हूं ताकि तुम्हारा एहसान उतर जाए।”

“बताओ क्या रास्ता है कि...”

“मेरी बात मानोगे तो अपने साथ-साथ दूसरों की जान भी बचा लोगे।”

“जल्दी बताओ कि मैं क्या करूं?” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“जानते हो दोलाम ने क्या किया।” धरा ने सहज स्वर में कहा-“मामूली-सा सेवक है वो और खुंबरी के बारे में सोचता है कि वो उसे प्यार करेगी। उसने खुंबरी के सामने पेश रखी कि जगमोहन को छोड़कर, उसके साथ जीवन बिताए।”

“अच्छा।” बबूसा ने कहा जबकि मन में सवाल उठा कि धरा ये सब उसे क्यों बता रही है।

“वो खुंबरी के साथ जीवन बिताने को कहता है।”

“दोलाम ऐसा कैसे कह सकता है।” बबूसा बोला।

“उसने खुंबरी से आज ही कहा। कहता है कि उसने पांच सौ सालों तक खुंबरी के शरीर की देखभाल की। शरीर को खराब नहीं होने दिया। इसका इनाम उसे, खुंबरी का शरीर मिलना चाहिए।”

“बहुत हिम्मत दिखाई दोलाम ने।”

“मामूली-सा सेवक, खुंबरी को पाने के सपने देखता है।” धरा का स्वर तीखा हो गया-“इस बात को लेकर खुंबरी का मन दोलाम से बहुत खराब हो गया है। वो दोलाम को अब देखना भी नहीं चाहती।”

“तो दोलाम को यहां से जाने को कह दो।”

“ऐसा नहीं किया जा सकता। जो ताकतों के साथ जुड़ जाता है, वो मरकर ही अलग हो सकता है।”

“तो ये बात है। तब भी क्या चिंता।” बबूसा ने सामान्य स्वर में कहा-“ताकतों से कह दो। वो दोलाम को मार देंगी।”

“ये भी सम्भव नहीं। दोलाम ने लम्बे समय तक ताकतों की सेवा की है। वो उसकी जान नहीं लेंगीं।”

“फिर तो समस्या हो गई। परंतु इन बातों से मेरा तो कोई वास्ता नहीं। तुम मुझे बता रही...”

“वो ही बात कर रही हूं बबूसा। इस तरह मैं तुम्हारे काम आ सकती हूं और तुम अपने साथियों को छुड़ाकर यहां से जा सकते हो।”

“मैं समझा नहीं।”

“तुम बहुत ताकतवर हो। युद्ध कला में तुम्हारा जवाब नहीं। मैंने अपनी आंखों से तुम्हारी युद्ध कला देखी है। (विस्तार से जानने के लिए पढ़े ‘बबूसा’) तुम्हारे लिए मामूली-सा काम है दोलाम को पलक झपकते ही खत्म कर देना।”

“मैं?? बबूसा थोड़ा हैरान हुआ-“मैं दोलाम की जान लूं।”

“यूं तो ये काम तुम खुंबरी के लिए करोगे। परंतु इस तरह मैं तुम्हारी सहायता करना चाहती हूं। खुंबरी का वादा है कि अगर तुमने दोलाम की जान ले ली तो वो तुम्हारे साथ, तुम्हारे सब साथियों को आजाद कर देगी। वैसे खुंबरी सोचे बैठी है कि वो देवराज चौहान, रानी ताशा, नगीना, मोना चौधरी, सोमारा को मार देगी। लेकिन तुम चाहो तो उन्हें बचाकर यहां से ले जा सकते हो। तुम तो पलक झपकते ही दोलाम की गर्दन तोड़ सकते हो।”

बबूसा की निगाह धरा पर थी। चेहरे पर सोचें दौड़ रही थीं।

धरा सामान्य भाव से बबूसा को देख रही थी।

“मैं तुम्हें बहुत अच्छा मौका दे रही हूं कि तुम सबको बचाकर यहां से ले जा सको।” धरा बोली।

“तुम्हारी बात ने मुझे घोर उलझन में डाल दिया है।” बबूसा बोला।

“उलझन कैसी? सीधी-सी तो बात है दोलाम की जान लो और अपने साथियों को ले जाओ।”

“तुम ये काम मुझे क्यों कह...”

“मैं तुम्हारी सहायता...”

“खुंबरी खुद जबर्दस्त योद्धा है। ये काम तो वो खुद भी कर सकती है।”

“खुंबरी कहती है कि उसकी शान के लिए, ये छोटी बात है कि वो दोलाम के खून से अपने हाथ लाल करे। तब मैंने ही कहा कि दोलाम को तो बबूसा मार देगा। तब खुंबरी ने कहा कि बबूसा ऐसा करता है तो वो उसके साथियों को आजाद कर देगी। ये बात होते ही मैं सीधा तुम्हारे पास आ गई।” धरा ने कहा।

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता थी। वो बोला।

“मुझे तुम्हारी बात जंच नहीं रही।”

“क्यों?”

“जगमोहन भी तो दोलाम की जान ले सकता है। वो क्यों नहीं करता ये काम?”

“जगमोहन तो कर ही देगा ये काम। तब तुम अपने साथियों को कैसे बचाओगे। मैं तुम्हें शानदार मौका दिलवा रही हूं। तुम समझ नहीं रहे और उल्टी-सीधी बातें कर रहे हो।” धरा ने नाराजगी वाले अंदाज में कहा।

“मुझे सोचने का वक्त दो।”

“इसमें सोचना कैसा...”

“सोचने दो मुझे। कुछ वक्त के बाद मेरे पास आना।” बबूसा ने कहा-“मैंने सोचना है कि क्या दोलाम को मारना मेरे लिए ठीक होगा। ये काम मुझे करना चाहिए कि नहीं।”

“सोच लो कि अपने साथियों को बचाने का एकमात्र ये ही रास्ता तुम्हारे पास है।” धरा उठी और कहकर चली गई।

बबूसा के चेहरे पर शांत मुस्कान उभर आई।

qqq

दोलाम वहां से सीधा वहां पहुंचा जहां देवराज चौहान, रानी ताशा, नगीना, मोना चौधरी और सोमारा कैद थे। दोलाम के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी। आंखें जैसे सुलग रही हों। कदम जैसे जमीन को धंसा देने का इरादा रखते हों। उसे इस बात का कोई अफसोस नहीं था कि खुंबरी ने उसका हाथ नहीं थामा। वो सोच रहा था अच्छा ही हुआ जो खुंबरी ने हाँ नहीं की। अब वो इसी बात की आड़ लेकर की खुंबरी जान ले सकता था और ताकतों का मालिक वो स्वयं बन सकता था। ये ही उसकी इच्छा थी। ये ही वो चाहता था। खुंबरी की जान लेने पर ताकतें उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी। क्योंकि ताकतों को अपना मालिक चाहिए, तभी तो उनका अस्तित्व सलामत रह पाएगा। ताकतें उसे अपना मालिक स्वीकार कर लेंगी। ऐसा होने से कोई नहीं रोक सकता। दोलाम इस बारे में निश्चिंत था।

उस कमरे में प्रवेश करते ही दोलाम ठिठका। नजरें घूमने लगीं।

कमरे में वे सब मौजूद थे और लगभग करीब-करीब ही बैठे हुए थे। उनकी निगाह दोलाम पर जा टिकी थी। दोलाम एकाएक मुस्कराया और आगे बढ़ता कह उठा।

“रानी ताशा। मैं तुमसे बात करने आया हूं।”

रानी ताशा फौरन उठ खड़ी हुई।

“क्या बात है?” रानी ताशा संदिग्ध लहजे में कह उठी।

“मैंने कहा था न कि मैं तुमसे मिलने फिर आऊंगा।” दोलाम के होंठों पर मुस्कान थी।

रानी ताशा ने गहरी निगाहों से दोलाम को देखा।

“जगमोहन कैसा है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“बहुत अच्छा है। खुंबरी के साथ खुश है।” दोलाम ने देवराज चौहान को देखा।

“और बबूसा?” सोमारा ने पूछा।

“मजे में है।” कहने के बाद दोलाम ने रानी ताशा को देखा-“मैं तुमसे एकांत में बात करना चाहता हूं।”

“ऐसी क्या बात है जो...”

“उस तरफ आओ।” दोलाम ने कहा और पलटकर कई कदम दूर, कमरे के कोने में चला गया।

रानी ताशा उठी और दोलाम के पास जा पहुंची।

“तुम खुंबरी की मौत चाहती हो?” दोलाम शांत स्वर में बोला।

“हाँ।”

“मैं तुम्हें खुश करने जा रहा हूं। क्योंकि मैं खुंबरी को बहुत जल्दी मारने वाला हूं।”

रानी ताशा ने आंखें सिकोड़कर दोलाम को देखा।

“यकीन नहीं आ रहा?” दोलाम बोला।

“सच में। तुम खुंबरी की जान लोगे। ये बात यकीन करने वाली नहीं है।”

“मैं ऐसा करने का इरादा बना चुका हूं।”

“तुम्हारा खुंबरी ने क्या बिगाड़ा है?”

“खुंबरी, जगमोहन से प्यार करने लगी है, जबकि उसके शरीर का हकदार मैं था। मैंने खुंबरी से अपना हक मांगा परंतु उसे मेरी परवाह नहीं है। जगमोहन का भूत उस पर छाया हुआ है। वो मेरी परवाह नहीं करती।”

रानी ताशा के चेहरे पर कठोरता दिखने लगी।

“मैंने तुमसे पहले भी कहा था कि मैं खुंबरी को मार दूंगा। (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा और सोमाथ’) खुंबरी ने मेरा दिल दुखाया है, जगमोहन का हाथ थामकर। मैं सेवक ही सही, पर मेरे अहम को चोट पहुंचाई है उसने जगमोहन को पसंद करके। तुम भी तो उसकी मौत चाहती हो।”

“मैं अपने हाथों से खुंबरी को मारना चाहती हूं।” रानी ताशा गुर्रा उठी।

“मैं खुंबरी को मार दूंगा। खुंबरी को तुम दुश्मन मानती हो और अब वो मेरी भी दुश्मन है। इस काम बबूसा मेरा साथ दे रहा है। पता है तुम्हें, खुंबरी को मारने के बाद, मैं ताकतों का मालिक बन जाऊंगा...”

“उससे मुझे कोई मतलब नहीं।”

“पर मुझे मतलब है। मैं ताकतों का मालिक बन जाऊंगा।” दोलाम ने गम्भीर और सख्त स्वर में कहा-“ खुंबरी मर चुकी होगी। उसके बाद में मेरा लक्ष्य सदूर का राजा बनना होगा।”

“सदूर का राजा?”

“ताकतें मुझे आसानी से सदूर का राजा बना देंगी। डुमरा को मार देने खुंबरी के बाद ने भी सदूर की रानी बनने का लक्ष्य रखा हुआ है, परंतु अब वो सफर मैं तय करूंगा। मैं तुम्हारे लिए खुंबरी को मारने जा रहा हूं तो तुमसे भी अपने लिए कुछ चाहता हूं। वैसे तुम बचने वाले नहीं। तुम सबको खत्म करने का इरादा रखती है।”

“तुम चाहते क्या हो?”

“मैंने सदूर का राजा बनना है। तुम स्वयं अपने किले को मेरे हवाले करोगी।”

“मतलब कि मैं तुम्हें राजा बना दूं और खुद पीछे हट जाऊं।” रानी ताशा का स्वर सख्त हो गया।

“मैं खुंबरी को मार रहा हूं। तुम सब लोगों को बचा रहा हूं। इस बात का फायदा मैं चाहता हूं।”

“मैं तुम्हें राजा बना दूं।” रानी ताशा की निगाह दोलाम के चमकते चेहरे पर थी।

“बदले में मैं खुंबरी की जान लूंगा और तुम सबको आजाद कर दूंगा।” दोलाम मुस्कराया।

“तुम्हारी ताकतें तुम्हें राजा बना सकती हैं तो फिर मेरी सहमति की क्या जरूरत है।”

“ताकतों के काम करने का तरीका अलग होता है। वो बहुत लोगों की जानें लेंगी। शायद तुम्हें भी मार दें। मैं बिना वजह का खून-खराबा नहीं चाहता, क्योंकि मैं सदूर पर लम्बे वक्त तक राज्य करना चाहता हूं । अच्छा हूँ राजा बनना चाहता हूं और सदूर के लोगों का दिल जीतना चाहता हूं। मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता कि डुमरा मेरा दुश्मन बने।”

“तो डुमरा से डरते हो?”

“नहीं। ताकतें मेरे साथ होंगी तो डुमरा से डरना कैसा। मैं तो बस झगड़ा नहीं चाहता। आराम से जीवन बिताना चाहता हूं। अगर तुम मेरा साथ देती हो तो मैं तुम्हारा किला भी तुम्हें ही रहने को दे दूंगा। खुद नया किला बनवा लूँगा।”

“ये जरूर है कि तुम सदूर का राजा बनोगे?” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“ये तो होकर ही रहेगा।”

रानी ताशा की निगाह दोलाम के चेहरे पर टिकी रही।

दोलाम इस वक्त बेहद शांत लग रहा था।

“तो तुम को मार दोगे?”

“पक्का। उसके बाद तुम सबको भी आजाद कर दूंगा।”

“खुंबरी की जान लोगे तो जगमोहन तुम्हारा दुश्मन बन जाएगा।” रानी ताशा बोली।

“मैं उसे भी मार दूंगा।”

“उसे नहीं मारना है।”

“क्यों?”

“जगमोहन राजा देव का खास है। जगमोहन की मौत पर राजा देव को दुख होगा।”

“जगमोहन खास है तो वो क्यों नहीं खुंबरी की जान ले लेता?” दोलाम ने चुभते स्वर में कहा।

“वो खुंबरी के प्यार में पड़ चुका है।”

जवाब में दोलाम मुस्कराकर रह गया।

“एक शर्त पर मैं तुम्हें खुशी से सदूर का राज्य दे सकती हूं।” रानी ताशा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“वो क्या?”

“खुंबरी की जान मैं लूंगी।”

“तुम?” दोलाम चौंका।

“हां।” रानी ताशा के दांत भिंच गए-“ खुंबरी मेरी दुश्मन है। उसने मुझे राजा देव से अलग किया था। खुंबरी को मैं मार सकी तो अपनी सारी तकलीफें भूल जाऊंगी। खुंबरी को मारने का मौका मुझे दो तो मैं सदूर का राज्य तुम्हें सौंप दूंगी।”

“ये सम्भव नहीं है रानी ताशा।” दोलाम बेचैन हुआ-“तुम भला कैसे की जान ले सकोगी?”

“तुम मेरे लिए मौका तैयार करोगे।”

“ये असम्भव-सा कार्य है।” दोलाम परेशान हो उठा-“तुम्हें खुंबरी की मौत से मतलब होना चाहिए। मैं उसे मार दूंगा। इन बातों में क्यों आती हो कि तुम खुंबरी की जान लो।”

“मुझे शांति मिलेगी।” रानी ताशा ने कठोर स्वर में कहा-“ खुंबरी को मारने का मौका मुझे दो और सदूर का राज्य ले लो।”

“ये कठिन से भी कठिन काम...”

“तुम सदूर का राजा, बिना झगड़े के बनना चाहते हो?”

“हाँ।”

“तो इसका एक ही रास्ता है, जो मैंने तुम्हें बताया है।” रानी ताशा ने दो टूक स्वर में कहा।

दोलाम के माथे पर बल नजर आ रहे थे।

उनके बीच छाई खामोशी लम्बी होने लगी कि दोलाम बोला।

“इसमें तुम्हारी जान को भी खतरा हो सकता है। खुंबरी जबर्दस्त योद्धा है।”

“मेरी परवाह मत करो। मुझे अपनी जान प्यारी नहीं। खुंबरी की अपने हाथों, मौत प्यारी है।”

“ठीक है।” दोलाम ने फैसला ले लिया-“तुम खुंबरी को मार सको, इसके लिए मैं कोई मौका तैयार करूंगा।”

“वादा करते हो।”

“दोलाम के शब्द वादे से ज्यादा हैं।” दोलाम दृढ़ स्वर में बोला।

“यहां पर ताकतों का पहरा है, मैं यहां से बाहर नहीं निकल सकती।” रानी ताशा ने कहा।

“किसी को यहां से बाहर ले जाना मेरे लिए मामूली बात है।”

“कैसे?”

“मैं किसी का हाथ पकड़कर उसे बाहर ले जाऊं तो ताकतें नहीं रोकेंगी।” दोलाम बोला।

“ओह।” रानी ताशा सिर हिला उठी।

“अब ये बात हममें तय हो गई कि मैं तुम्हें मौका दूंगा कि तुम खुंबरी को खत्म कर सको और तुम सबको मैं आजाद कर दूंगा। बदले में तुम सदूर का राज्य खुशी से मेरे हवाले कर दोगी।” दोलाम गम्भीर था।

“ये मेरा वादा है।”

दोलाम मुस्कराया।

“अब मैं चलता हूँ।” वो बोला।

“मौका तैयार करने में कितना वक्त लगाआगे?”

“मेरी कोशिश होगी कि मैं जल्दी ही मौका तैयार करके तुम्हारे सामने पेश करूं।”

रानी ताशा ने तनाव भरे अंदाज में गहरी सांस ली।

दोलाम दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

तभी देवराज चौहान ने पूछा।

“डुमरा कहां है?”

“बाहर जंगल में।” दोलाम ने जवाब दिया।

“और सोमाथ?”

“वो भी जंगल में ही है।” कहने के साथ ही दोलाम बाहर निकलता चला गया।

रानी ताशा वापस अपनी जगह पर जा बैठी।

“वो तुमसे क्या कह रहा था?” मोना चौधरी ने पूछा।

रानी ताशा ने सब कुछ बता दिया।

“तुम खुंबरी को मारोगी?” नगीना के माथे पर बल दिखने लगे।

“मैं उसे मार दूंगी।” रानी ताशा गुर्रा उठी।

“ऐसा करके तुम खुद को खतरे में डाल रही हो।” देवराज चौहान ने कहा-“ये काम दोलाम को ही करने दो।”

“नहीं। मैं ही खुंबरी की जान लूंगी। इससे मुझे चैन मिलेगा।” रानी ताशा ने दृढ़ स्वर में कहा।

“खुंबरी को कम मत समझना।” सोमारा बोली-“वो बहुत खतरनाक है।”

“मैं खुंबरी को जीत लूंगी। उसे मार दूंगी।”

नगीना ने देवराज चौहान से कहा।

“रानी ताशा का फैसला मुझे ठीक नहीं लग रहा।”

“तुम।” मोना चौधरी ने रानी ताशा से कहा-“ये काम मत करो। मुझे मौका दो। मैं खुंबरी की जान ले लूंगी।”

“तुम मेरा मुकाबला नहीं कर सकतीं तो खुंबरी का मुकाबला क्या कर पाओगी। (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा खतरे में’) एक बार खुंबरी मेरे सामने पड़ जाए तो वो जिंदा नहीं बचेगी।” कहते हुए रानी ताशा का चेहरा दहक उठा था। आंखों में नफरत के भाव दिखने लगे थे।

qqq

दोलाम वापस आ पहुंचा। चेहरा शांत दिख रहा था। आंखों में कठोरता थी। उसने खाने के कमरे में टेबल की कुर्सी पर बबूसा को बैठे देखा तो वहीं रुक गया।

बबूसा ने उसे देखा और कह उठा।

“बहुत देर लगा दी। तुम तो ठोरा से बात करने गए थे। लगता है बातें लम्बी हो गईं।”

दोलाम जैसे बहुत कुछ कहना चाहता हो, पर होंठ नहीं खुले।

बबूसा उठा और दोलाम के पास आ पहुंचा।

“मुझे तुमसे बात करनी है।” बबूसा ने धीमे स्वर में कहा।

“करो।”

“यहां नहीं। इधर खुंबरी और धरा कभी भी आ सकती हैं।”

“बात क्या है?” दोलाम की आंखें सिकुड़ी।

“खास बात है।”

“मेरे साथ आओ।” कहकर दोलाम मुड़ा और एक रास्ते पर बढ़ गया।

बबूसा उसके पीछे हो गया।

कई रास्तों को पार करने के बाद दोनों एक खाली कमरे में पहुंचे। कमरा खाली था और ऐसा लगता था जैसे वहां की साफ-सफाई न होती हो। दोलाम ने बबूसा को देखा।

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

“धरा कुछ देर पहले मेरे पास आई थी।” बबूसा ने कहा-“वो चाहती है कि मैं तुम्हें मार दूं।”

“ओह।” दोलाम के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे-“धरा ने तुम्हें कहा कि मुझे मार दो।”

“हाँ।”

“इसका मतलब ताकतों ने मेरी जान लेने से स्पष्ट मना कर दिया है। तभी वो तुम्हारे पास आई।”

“तुम्हें सतर्क रहना होगा।”

“तुमने क्या जवाब दिया?”

“मैंने हां नहीं की, जबकि धरा का कहना था कि खुंबरी सब कैदियों को मारने की सोच रही है। अगर मैं तुम्हें मार देता हूं तो सबको आजाद कर दिया जाएगा। जान नहीं ली जाएगी। मुझे अपने साथियों की जान प्यारी है, परंतु मैं तुम्हें कैसे मार सकता हूं। तुम भी तो मेरे दोस्त हो। हम मिलकर खुंबरी की जान लेने वाले हैं। मैं यहां पर खुंबरी की जान लेने आया हूं, उसका साथ देने नहीं।” बबूसा गम्भीर दिख रहा था-“मैंने धरा की बात सुनी, पर चुप रहा।”

दोलाम मुस्करा पड़ा।

“मेरे साथ चाल मत खेलना बबूसा।”

“क्या मतलब?”

“कहीं सच में तुम मेरी जान न ले लो।”

“नहीं दोलाम। ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकता। मैंने तुम्हें दोस्त कहा है। हम मिलकर खुंबरी को मारने वाले हैं।”

दोलाम के चेहरे पर सोच के भार उभरे।

“तुम्हें मुझ पर भरोसा है न?” बबूसा बोला-“नहीं भरोसा तो हम अलग भी हो सकते हैं।”

“तुम पर भरोसा है और हमें अलग होने की जरूरत नहीं है। सब ठीक चल रहा है।”

“मैं कभी भी तुम्हारा बुरा नहीं सोच सकता। मेरा मकसद सिर्फ खुंबरी की जान लेना है। ठोरा से तुम्हारी बात हुई?”

“हां। पर ठोरा ने स्पष्ट कहा कि ये मेरा और खुंबरी का व्यक्तिगत मामला है। इसमें ताकतों के दखल देने की गुंजाईश नहीं है। ताकतों ने खुंबरी को इंकार किया मेरी जान लेने को, तो वो मेरा साथ भी नहीं दे सकतीं।”

“ओह।”

“मैंने ठोरा से कह दिया कि मैं खुंबरी को मार दूंगा और ताकतों का मालिक बनूंगा। ठोरा मेरी बात से सहमत नहीं हुआ पर मुझे रोक भी नहीं सकता। शायद उसे ज्यादा परवाह इसलिए नहीं है कि खुंबरी के बाद ताकतों का मालिक मैं बन जाऊंगा। ताकतों को उनका मालिक चाहिए और मेरे से अच्छा मालिक तो खुंबरी भी नहीं रही होगी।” दोलाम का स्वर कठोर था।

“क्या इतना आसान होगा खुंबरी की जान लेना?” बबूसा ने दोलाम को देखा।

दोलाम की निगाह भी बबूसा की तरफ उठी।

“मैं।” दोलाम ने सिर हिलाकर कहा-“रानी ताशा से भी मिलकर आ रहा हूं।”

“रानी ताशा से?” बबूसा के होंठों से निकला-“तुम वहां गए थे?”

“मैं बहुत कुछ सोच रहा हूं। रानी ताशा से बात करना जरूरी था। मैं बिना खून-खराबे के सदूर का राजा बनना चाहता हूं। वो ही बात की रानी ताशा से। रानी ताशा सदूर मेरे हवाले करने को तैयार है अगर मैं खुंबरी को मारने का मौका उसे देता हूं। मैंने रानी ताशा की बात मान ली।” दोलाम ने शांत स्वर में कहा।

“क्या?” बबूसा के होंठों से निकला-“रानी ताशा, खुंबरी की जान लेगी। ऐसा कैसे हो सकता है।”

“इसके लिए मैं मौका तैयार करके रानी ताशा को दूंगा क्योंकि रानी ताशा ने सदूर मेरे हवाले करने का वादा किया है।”

“दोलाम। ये काम इतना आसान नहीं रहेगा।”

“जानता हूं, परंतु रानी ताशा मेरी इच्छा पूरी कर रही है तो मुझे भी उसकी इच्छा पूरी करनी है।”

“तुमने कहा नहीं कि बबूसा के साथ मिलकर तुम खुंबरी को मार दोगे।”

“कहा। परंतु खुंबरी को मारने की ख्वाहिश वो खुद रखती हैं।”

“इससे रानी ताशा को भी खतरा हो सकता है।”

“मेरे ख्याल में, मैं रानी ताशा को जो मौका दूंगा, वो उस मौके का फायदा उठाकर, खुंबरी की जान ले लेगी।”

“ये तो खतरनाक है रानी ताशा के लिए। खुंबरी स्वयं बेहतरीन योद्धा है।”

“रानी ताशा भी कम नहीं।” दोलाम गम्भीर था।

“मैं रानी ताशा से इस बारे में बात करूंगा कि वो ऐसा ख्याल छोड़ दे। खुंबरी को हम ही मार देंगे।”

“कोई फायदा नहीं होगा। रानी ताशा इस बारे में दृढ़ इरादा कर चुकी है।”

“राजा देव से इस बारे में बात हुई?”

“मैंने रानी ताशा से अलग से बात की थी।”

“इस तरह तो तुम रानी ताशा को खतरे में डाल रहे हो।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

“मैं नहीं डाल रहा। ये रानी ताशा की इच्छा है।”

“पर रानी ताशा तो वहां ताकतों के पहरे में है। वो वहां से बाहर कैसे निकल सकती है।”

“ये मेरे लिए कोई समस्या नहीं। मैं जिसे चाहूं वहां से बाहर निकाल सकता हूं।” दोलाम बोला।

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

“और कुछ कहना है तुम्हें?” दोलाम बोला।

“तुमने तो रानी ताशा का इरादा बताकर मुझे परेशान कर दिया।”

“पर मैं ये क्या परेशान नहीं हुआ कि धरा ने तुम्हें कहा कि तुम मुझे मार दो।” दोलाम मुस्कराया।

“धरा अपनी कोशिश जारी रखते हुए वो मुझे फिर ऐसा करने को कहेगी।”

“बेशक। तब तुमने ये ही कहना है कि अच्छा मौका मिलते ही तुम दोलाम को खत्म कर दोगे।”

“मेरे ख्याल में इंकार कर देना ही ठीक होगा...”

“तुम इंकार कर दोगे तो फिर इस काम के लिए खुंबरी स्वयं या जगमोहन के द्वारा मुझे मार देने की कोशिश करेगी। इसलिए बेहतर ये ही है तुम धरा को उलझाकर थोड़ा समय बिता लो। तब तक मैं खुंबरी को मारने के लिए, रानी ताशा के लिए कोई मौका तैयार कर लूंगा। हम जल्दी ही सफल हो जाएंगे।”

बबूसा बेचैनी भरे अंदाज में सिर हिलाकर बोला।

“तुम रानी ताशा को मौका दोगे खुंबरी को मारने का। क्या ये बात ताकतों को पसंद आएगी?”

“ताकतों को अपने मालिक से मतलब है। खुंबरी अब है, बाद में ताकतों का मालिक मैं बनूंगा।”

“तुम ताकतों के दम पर भी तो सदूर का राजा बन सकते हो फिर...”

“उस स्थिति में सदूर में खून-खराबा होगा। डुमरा मेरी जान के पीछे पड़ जाएगा। नई लड़ाई छिड़ जाएगी। जबकि मैं चैन से जीवन बिताना चाहता हूं और डुमरा से कोई दुश्मनी नहीं लेना चाहता। ये तभी हो सकता है कि मैं आम लोगों पर ताकतों का इस्तेमाल न करूं। मैं खुंबरी की तरह झगड़े वाला जीवन नहीं बिताना चाहता, इसलिए रानी ताशा से मुझे स्पष्ट बात करनी पड़ी।”

“जो भी हो। तुम सावधान रहना। खुंबरी की तरफ से तुम्हें खतरा बढ़ गया है।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा।

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जगमोहन बेड पर लेटा था। धरा कुर्सी पर बैठी थी और खुंबरी पीठ पर दोनों हाथ बांधे मध्यम-से अंदाज में चहलकदमी कर रही थी। कमरे में चुप्पी से भरा माहौल था।

“तेरा क्या ख्याल है कि बबूसा, दोलाम की जान लेने को मानेगा?” खुंबरी ने ठिठककर धरा को देखा।

“कह नहीं सकती। उसने कुछ भी स्पष्ट-सा जवाब नहीं दिया।” धरा बोली।

“उसने दिलचस्पी ली तुम्हारी बात में?”

“हां। बहुत ध्यान से मेरी बात सुनी। अब जरूर मेरी बात पर सोच रहा होगा।”

“अगर बबूसा, दोलाम की जान ले ले तो सारी समस्याएं ही समाप्त हो जाएंगी।”

“मैं दोबारा बात करूंगी, बबूसा से।”

“मुझे नहीं लगता कि बबूसा इस बात को मानेगा।” जगमोहन कह उठा।

“क्यों?” धरा ने पूछा।

“मैं जितना बबूसा को जान पाया हूं वो किसी की बात नहीं सुनता। अपने मन की करता है। फिर दोलाम से उसे शिकायत भी तो नहीं। उसे तो खुंबरी से शिकायत है कि इसने राजा देव और रानी ताशा को अलग क्यों किया था।”

“तो तुम्हारा ख्याल है कि बबूसा मेरी बात नहीं मानेगा।”

“हो सकता है मान भी जाए। पर मेरा दिल इंकार करता है कि वो मानेगा।”

“बबूसा से फिर बात करूंगी। हम उसके साथियों को आजाद कर देंगे अगर वो दोलाम को मार देता है तो।”

“जगमोहन, तुम क्यों नहीं बबूसा से इस बारे में बात करते?” खुंबरी कह उठी।

“मैं?” जगमोहन ने खुंबरी को देखा।

“हाँ, तुम बात करो तो ठीक होगा। तुम बबूसा को बेहतर समझा सकते हो। तुम भी चाहते हो कि तुम्हारे सब साथी आजाद हो जाएं। बबूसा की भी ये ही इच्छा होगी।” खुंबरी ने सोच भरे स्वर में कहा-“अगर जल्दी कुछ न किया गया तो आने वाले वक्त में हमारे लिए ज्यादा बड़ी परेशानियां खड़ी कर देगा।”

“ठीक है। मैं दोलाम से बात करूंगा।” जगमोहन बोला-“मुझे हैरानी है कि इस मामले में तुम्हारी ताकतें खामोश हैं।”

“वो इस बात को मेरा और दोलाम का व्यक्तिगत मामला बताती हैं वो बीच में नहीं आएंगी। दोलाम को ताकतों ने अपने परिवार में शामिल कर लिया है। मुझे भी इस बात की खबर न लगी। अगर दोलाम अब तक मात्र सेवक ही रहा होता तो ताकतों ने उसे तभी मार देना था जब पहली बार मैंने ताकतों से दोलाम की शिकायत की थी।”

“जैसे भी हो हम दोलाम को रास्ते से हटा देंगे।” धरा दृढ़ स्वर में कह उठी।

“अभी तक ओहारा की तरफ से कोई खबर नहीं आई। उसने डुमरा पर वार करना था।” खुंबरी ने कहा।

“वार कर दिया होता तो हमें खबर मिल गई होती।”

“ओहारा इतनी देर क्यों लगा रहा है?” कहने के साथ ‘बटाका’ थामकर ओहारा को पुकारा-ओहारा।”

“हुक्म महान खुंबरी।” अगले ही पल ओहारा की आवाज कानों में पड़ी।

“डुमरा मारा गया?”

“अभी नहीं। इस वक्त मैं डुमरा को जंगल में घेर रहा हूं। उसने अपने आसपास सुरक्षा के रूप में शक्तियों की चादर फैला रखी है। मैं उस चादर के हटने का इंतजार कर रहा...”

“क्या पता वो शक्तियों की चादर हटाए ही नहीं?” खुंबरी कह उठी।

“वो जरूर हटाएगा। क्योंकि मेरी ताकतों ने मुझे बता दिया है कि जल्दी डुमरा को सोमाथ मिलने वाला है। सोमाथ के मिलने पर वो अपने आस-पास फैली सुरक्षात्मक शक्तियों का घेरा हटा देगा।”

“सोमाथ वो ही है जो नकली इंसान है।”

“मैं उसी की बात कर रहा हूं।”

“उससे सतर्क रहना। उस पर ताकतों का प्रभाव नहीं पड़ता।”

“मैं जानता हूं महान खुंबरी।”

खुंबरी ने ‘बटाका’ छोड़ा और धरा से बोली।

“चल आ, बाहर खुली हवा में घूमने चलते हैं। यहां मन उदास हो रहा है।”

धरा सिर हिलाकर कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

“तुम भी साथ चलो जगमोहन।” खुंबरी ने कहा।

“मेरा मन नहीं है बाहर जाने को।” जगमोहन ने बेड पर लेटे-लेटे कहा।

“देवराज चौहान के बारे में सोच रहे हो।” खुंबरी के स्वर में प्यार था।

“मैं सब कुछ सोच रहा हूं, जिस तरफ विचार चले जाते हैं, उधर के ही बारे में सोचने लगता हूं। तुम दोनों जाओ बाहर, अगर मेरा मन हुआ तो मैं बाद में आ जाऊंगा।” जगमोहन बोला।

“चल, हम चलें।” खुंबरी धरा से कह उठी-“पेड़ों की छांव और ठंडी हवा मुझे बहुत भली लगती है।”

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सूर्य सदूर ग्रह के कोने में ही हरदम नजर आता था। सदूर बेहद मध्यम रफ्तार से घूमता रहता और सूर्य सदूर के कोने में ही दिन भर स्थापित रहता। सोलह घंटे का दिन बिताकर प्लेट की तरह फैले सदूर का एंगल कुछ इस तरह हो जाता कि सूर्य की रोशनी सदूर के नीचे वाले हिस्से में पड़ने लगती, जहां मात्र जमीन और पत्थरों का हिस्सा था। इस दौरान सदूर घूमता रहता और सोलह घंटे की रात बिताकर सदूर ग्रह जब सूर्य के एंगल में सामने आता तो दिन निकल आता था। ऐसे में सूर्य सोलह घंटे तक सदूर के किनारे-किनारे ही दिखता और पुन: वैसे ही डूब जाता था। रात हो जाती। इसी प्रकार सदूर ग्रह पर सदियों से दिन-रात होते चले आ रहे थे।

इस वक्त दोपहर जैसा वक्त हो रहा था। सूर्य की तीखी धूप फैली थी और गर्मी का ज्यादा एहसास हो रहा था। सामान्य जगहों पर तो हवा महसूस नहीं हो रही थी परंतु जंगल में मध्यम-सी बहती हवा साफ तौर पर महसूस हो रही थी। पेड़ों के पत्ते हिल रहे थे। हवा का रुख तेज होता तो पत्ते आपस में टकराकर आवाज करने लगते। अन्य जगहों की अपेक्षा जंगल में गर्मी कम थी। राहत थी। परंतु गर्मी से राहत उसे ही थी जो पेड़ों की छाया में बैठकर आराम से हवा का मजा ले। डुमरा के लिए तो ये गर्मी काफी ज्यादा थी।

डुमरा के कंधे पर सामान का थैला लटका हुआ था। वो जंगल में तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था। नजरें हर तरफ जा रही थीं। शरीर पसीने से भरा हुआ था। चेहरे पर पसीने की लकीरें बहती नजर आ रही थीं। कभी रास्ते में पेड़ों की छाया आ जाती तो कभी धूप। हालांकि जंगल घना था। परंतु खाली जगह भी थी। अभी तक डुमरा को ऐसी कोई जगह न दिखाई दी थी, जो कि खुंबरी का ठिकाना लगे। थकान डुमरा पर हावी थी परंतु वो रुकना नहीं चाहता था। उसे देवराज चौहान, रानी ताशा, नगीना, मोना चौधरी, बबूसा और सोमारा की भी चिंता थी जो कि खुंबरी की कैद में पहुंच चुके थे। उसके करीब मौजूद शक्ति (तोखा) उसे हर सम्भव खबर दे रही थी। डुमरा को इस बात का पूरा एहसास था कि खुंबरी उस पर घातक हमला करवा सकती है। पहले भी खुंबरी की भेजी ताकतों ने उस पर हमले करवाए थे (पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा और सोमाथ’) परंतु उसके पास मौजूद शक्तियों ने उन हमलों को विफल कर दिया था। सम्भव है इस बार की तरफ से होने वाला हमला बड़ा हो। ये ही वजह थी कि उसने अपने आसपास शक्तियों का घेरा बिछा लिया था कि धोखे से होने वाले हमले से बच सके। डुमरा ने मन-ही-मन सोच लिया था कि खुंबरी से निबटे बिना इस जंगल से वापस नहीं जाएगा। बेशक कितना भी वक्त लग जाए।

“डुमरा।” तोखा की मध्यम-सी आवाज कानों में पड़ी-“तू थक गया है। आराम कर ले।” '

“आराम करके क्या करूंगा।” डुमरा कदम उठाते कह उठा-“खुंबरी की तलाश करनी है।”

“थकान के वक्त में सामने पड़ गई तो तू क्या कर पाएगा?”

“तब मेरी थकान खत्म हो जाएगी। पर क्या खुंबरी मुझे मिलेगी?” डुमरा ने पूछा।

“ये मैं नहीं बता सकता।”

“काम की बात तू कभी भी नहीं बता पाता।”

“ऐसा मत कह। मैंने तेरे को बहुत काम की बातें बताईं हैं। एक और बताता हूं।”

“क्या?”

“बबूसा, खुंबरी के ठिकाने में मजे से रह रहा है। वो कैद में नहीं है।”

“क्या मतलब?”

“जगमोहन ने उसे कैद से आजाद करा लिया है खुंबरी से कहकर। बबूसा खुंबरी के ठिकाने पर आजादी से घूम रहा है।”

“ओह।” डुमरा एकाएक ठिठक गया-“फिर तो मेरा काम आसान हो जाएगा।”

“कैसे?”

“बबूसा खुंबरी के ठिकाने पर आजाद है तो वो आसानी से खुंबरी की जान ले सकता है।”

“ऐसा कर पाएगा बबूसा?”

“वो बहुत ताकतवर और हिम्मती है। वो आसानी से खुंबरी की जान ले सकता है।

“खुंबरी के ठिकाने पर खुंबरी की जान लेने का मतलब है, बबूसा ऐसा करके खुद भी नहीं बचेगा।”

“बबूसा खुंबरी को मारने में अपनी जान की परवाह नहीं करेगा।” डुमरा ने कहा-“मेरा बेटा महापंडित बबूसा के मरते ही उसका जन्म फिर से करा देगा। तुम देखना बबूसा खुंबरी को जरूर मारेगा।”

“बबूसा बेवकूफ हुआ तो ऐसा जरूर करेगा।”

“क्या मतलब तोखा?”

“बबूसा ने खुंबरी को मारा तो खुंबरी के साथी बबूसा के साथ-साथ सबको मार देंगे डुमरा।”

डुमरा ने गहरी सांस ली और पेड़ की छांव में थैला उतारकर नीचे रखा और खुद भी नीचे बैठकर अपना पसीना चेहरे से साफ करने लगा। कुछ रुककर बोला।

“तुम ठीक कहते हो। बबूसा ने कुछ किया तो खुंबरी के लोग सबको मार देंगे।”

“इस बात से बबूसा भी अंजान नहीं होगा।” तोखा की धीमी आवाज कानों में पड़ी।

“इसका मतलब शक्तियां खुंबरी के ठिकाने में झांक आई हैं।” डुमरा ने कहा।

“हां। ऐसा करने में सफलता होकाक नाम की शक्ति को ही मिली है।”

“तो एक ही शक्ति खुंबरी की जगह में प्रवेश कर सकी है।”

“वो भी कठिनता से। खुंबरी के ठिकाने के बाहर ताकतों के साए फैले हैं। परंतु होकाक को उन सायों में से एक छिद्र नजर आ गया। वहीं से होकाक ने रास्ता बना लिया और खुंबरी के ठिकाने में प्रवेश कर गया। अब तक होकाक दो बार भीतर आ-जा चुका है। होकाक ने सबसे पहले ये खबर वजू को दी तो वजू ने कहा कि ये बात डुमरा के काम की है। उसे बताओ, तो होकाक तुम तक पहुंचने की कोशिश करने लगा तब उसे किसी ने बताया कि तोखा डुमरा की सेवा में, डुमरा के साथ है, तो होकाक ने मुझे ढूंढ़कर मुझे ये बात बताई।”

“फिर तो होकाक खुंबरी के ठिकाने की कई बातें बताएगा।”

“अभी तो उसने ये ही बताया है कि बबूसा, खुंबरी के ठिकाने पर आजादी से घूम रहा है। जगमोहन खुंबरी के साथ मजे में है और बाकी सब एक जगह ताकतों के पहरे में कैद हैं।”

“इस वक्त होकाक कहां है?”

“खुंबरी के ठिकाने पर ही होगा और कहां होगा।”

“इस तरह बबूसा आजाद होकर चैन से रहने वाला।” डुमरा बोला-“वो जरूर कुछ कर रहा होगा।”

“अभी तक तो होकाक ने उसके कुछ करने की खबर नहीं दी।”

“वो जरूर कुछ कर रहा होगा।”

“अभी तो ऐसा कुछ नहीं बताया।”

“क्या वो खुंबरी का ठिकाना नहीं बता सकता कि वो कहां पर है?”

“ये नहीं बता सकता। होकाक का कहना है कि उसको बस एक छिद्र नजर आता है, जिसके भीतर जाने पर वो खुंबरी के ठिकाने के भीतर पहुँच जाता है।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी।

“होकाक नाम की वो शक्ति इस तरफ कैसे आ गई?” डुमरा ने पूछा।

“मेरे ख्याल में किसी बड़ी शक्ति ने उसे खुंबरी का ठिकाना खोजने और तुम्हारी सहायता करने का काम दिया होगा।”

“बड़ी शक्तियों ने तो मेरी सहायता करने से इंकार कर दिया था।”

“बेशक इंकार कर दिया हो, पर उन्हें डुमरा की चिंता तो है ही।”

“होकाक नाम की शक्ति के बारे में पहले कभी नहीं सुना। ये कहां से आई है?”

“मैं नहीं जानता।”

“खुंबरी के ठिकाने में प्रवेश कर जाने वाली शक्ति मामूली नहीं हो सकती। वो जरूर...”

कहते-कहते ठिठक गया डुमरा।

कुछ दूर पेड़ों के पीछे से उसे किसी के जाने का एहसास हुआ था।

कहीं ये उसका भ्रम तो नहीं?

“क्या हुआ?” तोखा की आवाज कानों में पड़ी।

“मुझे लगा उस तरफ कोई है-ओह-सच में उधर कोई है।” कहते हुए डुमरा तुरंत उठ खड़ा हुआ।

“वो कहीं ताकतों की कोई चाल न हो।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी।

डुमरा ने थैला उठाकर कंधे पर लादा और उसी तरफ तेजी से बढ़ते हुए कह उठा।

“ताकतें मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। मैंने अपने आसपास सुरक्षा वाली शक्तियां फैला रखी है।”

“बड़ी ताकतें किसी प्रकार शक्तियों का सुरक्षा घेरा तोड़ भी सकती हैं।” तोखा की मध्यम आवाज कानों में पड़ी।

“ताकतों ने ऐसी कोशिश की तो मुझे पहले पता चल जाएगा। अचानक मुझ पर हमला नहीं कर सकतीं।” तोखा से बातें करते वक्त भी डुमरा की निगाह उसी तरफ थीं, जिधर कोई नजर आया था।

वो दो बार पेड़ों के पीछे और भी नजर आ चुका था। वो अन्य दिशा में बढ़ा जा रहा था।

डुमरा के कदम तेजी से उठ रहे थे। दौड़ने के अंदाज में।

जल्दी ही डुमरा उस दिशा के काफी करीब पहुंच गया। अन्य दिशा में बढ़ते उस इंसान के चेहरे को पहचाना तो कुछ चौंका। चेहरे पर हल्की-सी उलझन सिमट आई थी।

वो सोमाथ था।

“तोखा। वो सोमाथ लग रहा है।” डुमरा ने कहा।

“मैंने देख लिया है उसे। अभी पता करता हूं कि वो सच में सोमाथ या ताकतों की कोई चाल है।”

डुमरा के कदम पहले की ही तरह उठ रहे थे।

लम्बे पलों के बाद तोखा की मध्यम-सी आवाज डुमरा के कानों में पड़ी।

“वो सोमाथ ही है। नकली इंसान है। मैंने उसके शरीर की भीतर लगी मशीन को देख लिया है।”

“सोमाथ...” अगले ही पल डुमरा ने ऊंची आवाज में पुकारा।

तीसरी पुकार पर सोमाथ को ठिठकते और इधर-उधर देखते देखा।

तभी डुमरा ने सोमाथ को, पेड़ों के बीच में से अपनी तरफ देखते देखा।

डुमरा ने हाथ उठाकर इशारा किया तो सोमाथ इसी तरफ आना शुरू हो गया। डुमरा ने कंधे से बैग उतारकर पेड़ की छाया में रखा और खुद भी बैठ गया। उस दिशा में देखा तो सोमाथ आता दिखा।

फिर सोमाथ पास आ पहुंचा।

डुमरा सोमाथ को देखकर मुस्कराया।

“ओह डुमरा। तुम्हें देखकर बहुत खुशी हुई।” सोमाथ मुस्कराकर कह उठा-“यहाँ तो कोई दिख ही नहीं रहा था।” कहने के साथ ही सोमाथ और आगे बढ़ा कि उसके पैर कहीं अटककर रुक गए।

सोमाथ ने नीचे देखा तो वहां कुछ भी नहीं था।

सोमाथ ने पुन: कदम बढाने चाहे परंतु सफल नहीं हो सका। उसने डुमरा को देखकर कहा।

“ये क्या?”

“पवित्र शक्तियों का सुरक्षा कवच फैला है। कुछ भी मेरे करीब नहीं आ सकता।”

“तो क्या मुझे तुमसे दूर ही बैठना पड़ेगा।”

डुमरा ने गले में लटक रहा पवित्र शक्तियों वाला लॉकेट पकड़ा और होंठों-ही-होंठों में कुछ बुदबुदाया।

उसी पल सोमाथ को लगा जैसे पांवों में आने वाली रुकावट समाप्त हो गई हो। वो आगे बढ़ा और डुमरा के पास पहुंचकर नीचे बैठ गया फिर आसपास देखता कह उठा।

“यहां खुंबरी की ताकतें बहुत चालाकी से खेल, खेल रही हैं।”

“सोमारा तुम्हारे साथ थी परंतु तुम उसे नहीं बचा सके।” डुमरा ने कहा।

“क्या करता। मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या होने जा रहा है।”

“तुम खुंबरी का ठिकाना भी नहीं ढूंढ सके।”

“दिखा ही नहीं। मैं तो तब से ही जंगल में भटकता फिर रहा हूं। तुम भी वो जगह नहीं ढूंढ सके।”

“नहीं। मुझे ऐसा कुछ नहीं दिखा कि मैं सोचूं वो जगह खुंबरी का ठिकाना होगी।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“सबके सब खुंबरी की कैद में पहुंच गए हैं। हम दोनों इसलिए बचे रह गए कि मेरे साथ पवित्र शक्तियां होने की वजह से अभी तक वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ हो सके और तुम पर ताकतों की ताकत नहीं चल सकती। तुम मशीनी इंसान हो।”

“उन सबको खुंबरी ने मार तो नहीं दिया?”

“वो जिंदा हैं।”

“कैसे पता?”

“शक्तियों ने मुझे खबर दी है कि खुंबरी ने सबको कैद कर रखा है। ये भी पता चला है कि जगमोहन और खुंबरी में प्यार हो गया है। जगमोहन खुंबरी के साथ मजे में रह रहा है।” डुमरा ने बताया।

“ओह। तो जगमोहन और खुंबरी में प्यार हो गया है। ये प्यार क्या होता है डुमरा?”

डुमरा ने सोमाथ को देखकर कहा।

“ये इंसानों में हो जाता है। परंतु तुम्हें इस बात की समझ नहीं आएगी।”

“मैं भी तो इंसान हूं।”

“देखने में। तुम्हारे भीतर मशीनरी है। जो कि तुम्हें जिंदा रखे हुए है।”

“हां। मैं तो बैटरी से चलता हूं और इंसानों से बेहतर भी हूं कि मुझे भूख नहीं लगती। प्यास नहीं लगती। मैं थकता नहीं। परंतु मेरी अपनी समस्या है। मेरे भीतर लगी बैटरी जब खत्म हो जाएगी तो मैं बे-जान हो जाऊंगा।”

“तुम्हारी बैटरी कब खत्म होगी?”

“अभी तो चलेगी। यहां आते समय मैं नई बैटरी लगाकर आया था। अब हमें खुंबरी की जगह तलाश...”

“बबूसा भी खुंबरी के ठिकाने पर आजाद घूम रहा है। जगमोहन के कहने पर उसे कैद से निकाला गया होगा।”

सोमाथ, डुमरा को देखने लगा।

“बबूसा खुंबरी के ठिकाने पर आजाद है?” सोमाथ कह उठा-“ये भी तुम्हें पता है।”

“शक्तियों ने मुझे इस बात की जानकारी दी है।” डुमरा ने कहा।

सोमाथ के चेहरे पर सोच के भाव दिखने लगे। बोला...

“फिर तो कोई समस्या नहीं आनी चाहिए। बबूसा, खुंबरी को मार देगा।”

“वो शायद ऐसा न करे। बबूसा ने ऐसा किया तो खुंबरी के साथी उन सबकी ही जान ले लेंगे।”

“पर बबूसा खामोश नहीं बैठेगा। उसने तो मुझे भी पोपा (अंतरिक्षयान) से आकाशगंगा में फेंक दिया था। वो बहादुर है।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा और सोमाथ’)।

“बबूसा के लिए ये इतना आसान नहीं होगा कि...”

“जगमोहन, खुंबरी से प्यार करने लगा है। वो तो खुंबरी की जान नहीं लेगा।”

“ऐसा होना ही था। शक्तियों ने पहले ही इशारा दे दिया था कि पृथ्वी ग्रह से आए किसी इंसान को खुंबरी से प्यार होने वाला है। लेकिन इन हालातों में जगमोहन भी चैन से नहीं रहेगा, क्योंकि उसके साथी कैद में...”

“डुमरा।” तभी तोखा की मध्यम-सी आवाज, डुमरा के कानों में पड़ी।

“हां।”

“होकाक नई खबर लाया है। सीधे उससे बात करेगा या मैं ही तुझे कह दूं?”

“होकाक से ही बात करा।” डुमरा कह उठा।

“मैं अभी उसे अपनी जगह देता हूं।” तोखा के शब्द कानों में पड़े।

सोमाथ के माथे पर बल दिखने लगे। उसने पूछा।

“तुम किससे बात कर रहे हो?”

“शक्तियों से।”

“वो तुम्हारे पास हैं?”

“मेरे पास हमेशा शक्तियां रहती हैं।”

“फिर तो तुम अपने को अकेले महसूस नहीं के करते...”

उसी पल डुमरा के कानों में मध्यम-सी एक नई आवाज पड़ी।

“डुमरा।”

“होकाक हो तुम?”

“हां। मैं तीन बार खुंबरी के ठिकाने पर हो आया हूं। खुंबरी को पास से देखा हैं।” होकाक की आवाज पुन: कानों में पड़ी।

“तुम्हें इस काम पर किसने लगाया है?”

“वजू ने।”

“वजू तो कहता था कि इस मामले में मेरी सहायता नहीं करेगा।” डुमरा ने कहा।

“वजू ये भी कहता है कि डुमरा का ख्याल हम नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा।”

“बता, क्या बताने आया है?”

“खुंबरी के ठिकाने की स्थिति बहुत ही विचित्र हो गई है। खुंबरी बहुत परेशान हो रही है। पृथ्वी से आई उसकी छाया (धरा) भी इन हालातों में घिर चुकी है। जगमोहन और बबूसा भी इस स्थिति में उलझ गए हैं।”

“क्या हो रहा है वहां?”

“खुंबरी का पुराना सेवक है दोलाम...”

“देखा हुआ है मैंने उसे।” डुमरा ने कहा।

“दोलाम को ये बात अच्छी नहीं लगी कि खुंबरी, जगमोहन का हाथ थाम ले। ऐसे में उसने खुंबरी से, उसका शरीर मांग लिया कि वो जगमोहन को छोड़कर उसका हाथ थाम ले।”

“दिलचस्प।” डुमरा मुस्कराया-“फिर क्या हुआ?”

“खुंबरी दोलाम की हिम्मत पर हैरान रह गई। ऐसे में खुंबरी ने ताकतों को हुक्म दिया कि वो दोलाम को खत्म कर दें। परंतु ताकतों ने कहा कि दोलाम को बहुत पहले से ही परिवार में शामिल कर लिया गया है। वे उसे नहीं मार सकतीं। मतलब कि खुंबरी का हुक्म मानने से इंकार कर दिया। खुंबरी ने स्पष्ट तौर पर दोलाम से कह दिया कि जगमोहन को नहीं छोड़ सकती।”

“तुम तो मजेदार बातें बता रहे हो होकाक।”

“दोलाम भी कम नहीं है। खुंबरी का व्यवहार देखकर उसने ताकतों का मालिक बनने का फैसला कर लिया। बबूसा, दोलाम का साथ दे रहा है, जबकि धरा इस बात की कोशिश में है कि बबूसा, दोलाम को मार दे। परंतु बबूसा चाहता है कि खुंबरी की जान ली जाए, क्योंकि उसने कभी रानी ताशा और राजा देव को जुदा किया था। जगमोहन भी खुंबरी और धरा की बातों में हिस्सा लेने लगा है और चाहता है, दोलाम मारा जाए।”

“ये सब हालात तो वास्तव में विचित्र हैं।” डुमरा ने सिर हिलाकर कहा-“तो वहां पर कोई नियम काम नहीं कर रहा।”

“नहीं, कोई नियम नहीं। खामोश-सी लड़ाई जारी है। दोलाम, खुंबरी को मारना चाहता है और खुंबरी दोलाम की जान ले लेना चाहती है। इस बारे में ताकतें दखल नहीं दे रहीं। ताकतों को पता है कि दोनों में से जो भी बचेगा, वो ताकतों का मालिक बनेगा और उन्हें नुकसान नहीं होगा।”

“इसका मतलब सम्भव है खुंबरी, दोलाम के हाथों मारी जाए।”

“कुछ भी हो सकता है डुमरा।”

“जो लोग कैद हैं, उनकी क्या स्थिति है?”

“वो कैद में हैं। लेकिन उन्हें खतरा कम है। दोलाम उन्हें आजाद करने का ख्याल रखता है। वो रानी ताशा से इस बात का सौदा कर आया है कि वो रानी ताशा को मौका देगा कि वो स्वयं खुंबरी को मार सके और रानी ताशा बदले में डुमरा को सदूर का राज्य दे देगी।” होकाक के शब्द कान में पड़ रहे थे।

“खुंबरी के ठिकाने पर जो भी हो रहा है, अच्छा हो रहा है हमारे हित में।” डुमरा ने कहा।

“बुरा भी हो सकता है। वहां के हालात अनिश्चित से हैं। पता नहीं, वहां कब क्या हो जाए।”

“क्या तुम्हें अंदाजा है कि खुंबरी का ठिकाना जंगल में किस दिशा में है?”

“ये बात मुझे नहीं पता। घने जंगल में मुझे एक छिद्र-सा दिखता है, जब मैं उसमें प्रवेश करके आगे जाता हूं तो खुंबरी के ठिकाने के भीतर पहुंच जाता हूं। उस जगह पर ताकतों ने अपने साए फैला रखे हैं। इसलिए ये मालूम करना सम्भव नहीं कि वो जगह जंगल में कहां पर है।”

“खुंबरी के कितने साथी हैं वहां?”

“दोलाम के अलावा तीसरा कोई नहीं है।”

“अन्य सब को कहां कैद कर रखा है?”

“एक खुले कमरे में। वो कमरे से बाहर नहीं निकल सकते। वहां ताकतों का पहरा है।”

“मुझे वहां पहुंचना हो तो, कैसे मैं...”

“इस बारे में मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।”

“इसका मतलब खुंबरी के साथ-साथ अब दोलाम की भी जान लेनी होगी। खुंबरी को मारकर वो ताकतों का मालिक बनने की ख्वाहिश रखता है। जो भी ताकतों का मालिक बनेगा, वो साधारण लोगों को कष्ट देगा। ताकतें अपना जो भी काम करेंगी, बुरे रास्ते पर चलकर ही करेंगी। मैं चाहता हूं ताकतों का मालिक कोई भी न रहे।”

“मुझे तो लगता है दोलाम या खुंबरी में से अब एक ही जिंदा रहेगा।”

“तेरी बातें काम की हैं परंतु मुझे कोई रास्ता नहीं मिला खुंबरी तक पहुंचने का।”

“आने वाले वक्त में रास्ते के बारे में कुछ पता चला तो जरूर बताऊंगा।” होकाक के शब्द कानों में पड़े-“एक बात और बता दूं कि खुंबरी और उसका रूप, दोनों ठिकाने से बाहर, खुले जंगल में घूमने निकली हैं।”

“ये बताने का क्या फायदा। इतने बड़े जंगल में वो जगह जाने कहां होगी। घने जंगल हैं। दूर तक दिखता भी नहीं है। कुछ और पता चले तो बता जाना। अब तू जा।”

होकाक की आवाज नहीं आई।

पास बैठा। सोमाथ डुमरा को देख रहा था।

तभी डुमरा के कानों में तोखा की आवाज पड़ी।

“होकाक खुंबरी के ठिकाने का हाल बता गया है।”

“मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि वहां पर कैसा वक्त आने वाला है।” डुमरा ने कहा।

“खुंबरी या दोलाम में से एक मरेगा।”

“अगर दोलाम खुंबरी को मार दे तो हालात बेहतर हो सकते हैं।” डुमरा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“वो कैसे?”

“दोलाम खुंबरी को मारता है तो जगमोहन दोलाम की जान ले लेगा, क्योंकि वो खुंबरी से प्यार करने लगा है।”

“शायद ऐसा ही हो जाए। अगर खुंबरी दोलाम की जान लेने में सफल हो जाती है तो?”

“तब हमारे लिए हालात बेहतर नहीं होंगे। स्थिति वैसी की वैसी ही रहेगी। दोलाम और खुंबरी में फूट पड़ जाने से हमें तभी फायदा हो सकता है कि दोलाम, खुंबरी को मारे।” डुमरा के चेहरे पर सोच के भाव दिखने लगे-“रानी ताशा ने दोलाम के साथ सौदा करके ठीक नहीं किया। अगर रानी ताशा, खुंबरी को मारने में सफल हो जाती है तो ताकतें क्रोध में अन्यों की जान ले सकती हैं।”

“ऐसा नहीं होगा डुमरा। दोलाम है न, उन्हें बचाने वाला।” तोखा का स्वर कानों में पड़ा।

“होकाक ही बताएगा कि वहां पर अब क्या हालात बनते हैं।” डुमरा ने तोखा से बात करने के बाद सोमाथ को के ठिकाने के ताजा हालात बताए तो सोमाथ बोला।

“मेरे ख्याल में हमें इंतजार करके ये देखना चाहिए कि आगे क्या होता है।”

“इंतजार नहीं, हमें खुंबरी की तलाश अपने तौर पर जारी रखनी है।” डुमरा ने कहा और थैले से खाना निकालकर बाहर रखा। उसे खोलने लगा सोमाथ मुस्कराकर कह उठा।

“इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है कि उसे हर थोड़ी देर बाद कुछ खाना पड़ता है।”

“इससे इंसान व्यस्त रहता है कि उसे खाने का इंतजाम करना है। अगर ऐसा न होता तो इंसान के पास करने को कुछ भी नहीं होता और व्यर्थ में लड़ाई-झगड़े खड़े होते। इंसान शैतान बन जाता।”

“तुम इस बात को बेहतर जानते होंगे।”

डुमरा खाना खाने लगा।

“डुमरा।” तभी तो तोखा की आवाज कानों में पड़ी-“मुझे महक आने लगी है।”

“किस बात की?” डुमरा ने फौरन आसपास देखा।

“पास में कोई आ रहा...”

तोखा की आवाज एकाएक बंद हो गई।

डुमरा को एकाएक सामने चोली-घाघरा में दोती खड़ी दिखने लगी।

शायद तोखा इसी तरफ इशारा करने जा रहा था।

डुमरा ने दोती को देखकर गहरी सांस ली और खाना खाने लगा।

सोमाथ ने भी दोती को देखा तो तुरंत उठकर दोती की तरफ बढ़ा।

“कोई फायदा नहीं।” डुमरा बोला-“ये छाया भर है। शरीर साथ नहीं लाई।”

पास पहुंचकर सोमाथ ने दोती को पकड़ना चाहा कि उसका हाथ दोती को पार करता चला गया।

दोती खिलखिला उठी।

“तुम जैसा कृत्रिम इंसान मैंने पहले कभी नहीं देखा।” दोती

बोली।

“तुम बहुत चालबाज हो।” सोमाथ तीखे स्वर में बोला-“तुमने सोमारा को...”

“याद है तुझे। मैंने तो सोचा था तेरा मशीनी दिमाग भूल गया होगा।”

डुमरा की निगाह खाना खाते हुए भी दोती पर ही थी।

“तू अपने शरीर के साथ क्यों नहीं सामने आती?”

“ताकि तू मुझे पकड़ ले।”

“डरती हो।”

“औरतजात हूं, डर तो लगता ही है। वैसे भी बिना शरीर के मैं पलक झपकते ही कहीं भी चली जाती हूं। शरीर लेकर चलूं तो उसे संभालने का काम भी बहुत होता है। कहीं जाने में बहुत देर लग जाती है।” दोती मुस्कराई।

“मुझे तेरे मुंह लगना पसंद नहीं।” सोमाथ ने कहा और वापस जा बैठा-“हमारे पास क्यों आई है?”

“मैं तो तुम लोगों की राह आसान करना चाहती हूं। खुंबरी के बारे में बताना चाहती हूं कि वो कहां पर है। पर तुम लोग तो मेरी बात मानते नहीं। यकीन करो खुंबरी ने मुझे भी बहुत परेशान कर रखा...”

“खुंबरी को बुला ला।” सोमाथ मुस्कराया-“तुम्हारा फैसला करा देते हैं।”

“तुम मेरा मजाक उड़ा रहे हो।” दोती मुंह लटकाकर बोली।

“मैं गम्भीर हूं।”

“मुझे समझ नहीं आता कि कृत्रिम इंसान इतने अच्छे ढंग से कैसे बात कर लेता है।”

“महापंडित ने बनाया है मुझे।”

“जानती हूं। वो डुमरा का ही तो बेटा है।”

डुमरा आराम से खाना खा रहा था।

“जब तक तुम लोग मुझे सच्चा नहीं मानोगे, तब तक मेरी समस्या का समाधान नहीं होगा।” दोती ने कहा।

“मैंने तुझे कभी भी झूठा नहीं माना।” सोमाथ ने कहा-“सोमारा कहां पर है?”

“तुम जानते नहीं, अगर मैं सोमारा को न ले जाती तो खुंबरी मुझे मार देती। वो बहुत क्रूर है।”

“मुझे भी वहां ले चल।” सोमाथ बोला।

“तुझे लाने को तो खुंबरी ने कहा नहीं फिर कैसे ले जाऊं तुझे। मैं तो खुंबरी से बहुत तंग आ गई हूं। उससे पीछा भी तो नहीं छुड़ा सकती। एक बार जो उसके चंगुल में फंस गया तो निकल नहीं सकता।”

तभी तोखा की आवाज डुमरा के कानों में पड़ी।

“यहां कोई और भी है। मुझे गंध आ रही है।”

डुमरा ने नजरें घुमाकर जंगल में हर तरफ देखा।

“कोई भी नहीं दिखा।”

“कोई नहीं है तोखा।” डुमरा ने कहा।

“मुझे स्पष्ट तौर पर गंध मिल रही है।”

सोमाथ ने दोती से कहा।

“तू तो मुझे फंसी नजर नहीं आती। खुश दिख रही है।”

“क्यां बताऊं तेरे को। तू कृत्रिम इंसान है। समझ नहीं सकता।”

“मैं सब समझ रहा हूं। तू कहती जा।”

तोखा की आवाज पुन: डुमरा के कानों में पड़ी।

“यहां कोई और भी मौजूद है। मुझे गंध यूं ही नहीं आ रही।”

“होता तो नजर जरूर आता।” खाना खाते, नजरें घुमाता डुमरा सतर्क अंदाज में कह उठा।

डुमरा को धीमे स्वर में बातें करते देखकर दोती बोली।

“अपनी शक्तियों से बातें कर रहा है डुमरा।”

“तेरे साथ कौन है?”

“कोई भी तो नहीं।”

“मेरी शक्ति ने मुझे बताया है कि यहां तेरे अलावा भी कोई है।”

“मैं तो अकेली आई...”

तभी चंद कदमों के फासले पर मोरगा दिखने लगी। (मोरगा को आप पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा और सोमाथ’ में पढ़ चुके हैं) सबकी नजरें मोरगा की तरफ उठी।

मोरगा चमकीले चोली-घाघरा में थी।

“मोरगा तू?” दोती कह उठी।

“तू ठीक कह रही है कि खुंबरी के चंगुल से बचने का कोई रास्ता नहीं।” मोरगा ने गहरी सांस लेकर कहा।

“तू भी मोरगा?”

“हां दोती। मैं भी खुंबरी से बहुत तंग आ चुकी हूं पर ये लोग हमारी सहायता करने वाले नहीं। इन्हें लगता है कि हम खुंबरी के हक में काम करते हैं। क्या करें, करना पड़ता है। नहीं तो वो हमें मिटा देगी।” मोरगा ने मुंह लटकाए अंदाज में कहा-“डुमरा चाहे तो हमें खुंबरी से बचा सकता है, लेकिन ये क्यों बचाएगा।”

डुमरा खाना खाते मुस्करा पड़ा।

“हम मुसीबत में हैं और ये देख कैसे मुस्करा रहा है।” मोरगा ने मुंह बनाकर कहा।

“अपने का भला इंसान कहता है।” दोती बोली।

“ओहारा नहीं आया दोबारा?” डुमरा बोला।

“तेरे को ओहारा की याद है।”

“जब उसने मुझ पर हमला किया था तो तू भी साथ थी।” (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ‘बबूसा और सोमाथ’)।

“तूने तो डुमरा तब खूब मुकाबला किया ओहारा का। भगा दिया उसे।” दोती मुस्कराई।

“मेरा मजाक उड़ा रही है या शाबाशी दे रही है?”

“तेरी बहादुरी की तारीफ कर रही हूं। ओहारा को परेशान होकर भागना पड़ा था।” दोती ने हंसकर कहा-“लेकिन हर बार भी तो ऐसा नहीं होता। ओहारा तेरे को कहकर गया था कि अबकी बार तुझे नहीं छोडूंगा।”

“वो आया नहीं?”

“मुझे क्या पता।” दोती ने मोरगा से कहा-“तेरे को खबर है ओहारा की?”

“बड़ी ताकतें अपने बारे में खबर ही नहीं देती। मैंने तो कई दिन से ओहारा को नहीं देखा।”

“वो तो डुमरा के डर से कहीं छिपकर बैठ गया होगा।”

सोमाथ ने डुमरा से कहा।

“ये दोनों कैसी अजीब बातें कर रही हैं।”

“सामने वाले को उलझाने में उस्ताद हैं ये।” डुमरा बोला-“ये कोई मतलब निकालने आई हैं।”

“कैसा मतलब?”

“ये बताएंगी नहीं।”

तभी तोखा का बेचैन स्वर डुमरा के कानों में पड़ा।

“डुमरा। मैं बहुत तीव्र गंध का एहसास पा रहा हूं। ऐसी तीव्र गंध कम ही महसूस होती है।”

“तो क्या कोई बड़ी ताकत आ गई है। हमें घेर रही है।” डुमरा ने खाना खाना छोड़ दिया।

“ये मुझे नहीं पता। पर इस बार गंध बहुत तीव्र है। कुछ होने वाला है।” तोखा के स्वर में परेशानी थी।

डुमरा ने दोती और मोरगा को देखा।

दोती मुस्कराकर डुमरा को देखने लगी थी।

मोरगा दोनों हाथ कमर पर रखे खड़ी थी।

“सोमाथ।” डुमरा बोला-“कुछ बुरा होने वाला है। मेरे ख्याल से ताकतें हमला करने वाली हैं।”

सोमाथ तुरंत उठ खड़ा हुआ।

डुमरा भी खड़ा हो गया।

“ओहारा हमला करने आ रहा है।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में दोती और मोरगा को देखा।

जवाब में दोती खिलखिला उठी।

“पिछली बार ओहारा को भागना पड़ा था।” मोरगा ने सख्त स्वर में कहा-“लेकिन इस बार तो तेरे को भागने का भी मौका नहीं मिलेगा। ओहारा ने कभी हारना नहीं सीखा।”

“ओहारा हमला करने आ रहा है सोमाथ। पर तुझे चिंता करने की जरूरत नहीं। ताकतों या शक्तियों का असर तुझ जैसे कृत्रिम इंसान पर नहीं होता। तू चाहे तो उन्हें नुकसान पहुंचा सकता...”

“सोमाथ फुर्ती से चंद कदमों पर खड़ी मोरगा पर झपट पड़ा।

लेकिन मोरगा को न पकड़ सका। वो मोरगा की मानवीय आकृति को पार करता रुककर पलटा।

डुमरा ने गले में पडा लॉकेट थाम लिया था। नजरें हर तरफ जा रही थीं।

“गंध और भी तेज हो गई है।” तोखा की बेचैन आवाज कानों में पड़ी।

“कुछ होने वाला है।” डुमरा के माथे पर बल नजर आने लगे।

मोरगा खिलखिलाकर हंस पड़ी।

दोती के चेहरे पर जहरीली मुस्कान ठहरी हुई थी।

“ओहारा हमला करने आ रहा है न?” डुमरा ने मोरगा और दोती को देखा। माथे पर बल नजर आने लगे थे।

“वो आ गया है।” दोती हंसकर बोली।

डुमरा के होंठ भिंचे। नजरें आसपास घूमीं।

“ये झूठ बोल रही है।” सोमाथ कह उठा-“यहाँ कोई भी नजर नहीं जा...”

तभी ओहारा दिखने लगा। उसके दिखने से पहले बिजली की तरह चमकती काली लकीर दिखी थी, फिर वहीं खड़ा ओहारा दिखने लगा। वो चमकीले कपड़े पहने था, चेहरा शांत दिख रहा था। हाथ में काले रंग के मोतियों का गुच्छा जैसा थाम रखा था। एक पल के लिए वक्त ठहर गया।

डुमरा ने ओहारा को देखा।

मोरगा और दोती एकाएक ज्यादा खुश नजर आने लगी थीं।

“ये कौन है?” सोमाथ ने डुमरा से पूछा।

“ओहारा। खुंबरी का सिपाही। इसने मुझ पर पहले भी घातक हमला किया था। (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा और सोमाथ’) अब ये फिर मुझ पर हमला करने आया है।”

“ये मेरे सामने कमजोर है।” सोमाथ कहते हुए ओहारा की तरफ बढ़ा-“इसे मैं अभी खत्म कर देता हूं।”

“कोई फायदा नहीं होगा।” पीछे से डुमरा का स्वर कानों में पड़ा।

सोमाथ, ओहारा के पास पहुंचता जा रहा था।

ओहारा के चेहरे पर मुस्कान दिखाई देने लगी।

“वहीं ठहर जा कृत्रिम इंसान।” ओहारा दबंग स्वर में कह उठा।

“तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।” सोमाथ ने कहा और पास पहुंचते ही ओहारा का गला पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया।

परंतु सोमाथ का हाथ, ओहारा के गले से पार हो गया।

चंद पल के लिए ओहारा का गला खंडित-सा हुआ कि फिर पहले जैसा हो गया।

सोमाथ ने गुस्से से उसके सिर पर मारा।

सिर का हिस्सा दो पलों के लिए खंडित-सा होता दिखा, फिर सामान्य हो गया।

ओहारा मुस्कराता हुआ सोमाथ को देख रहा था।

“तो तुम अपना अक्स लाए हो। शरीर के साथ नहीं आए।” सोमाथ ने सिर हिलाकर कहा।

“दुश्मनों के बीच शरीर लाने की जरूरत ही क्या थी।” ओहारा ने मुस्कराते स्वर में कहा-“मतलब तो काम होने से है। जो काम मैं करने आया हूं वो शरीर लाए बिना भी पूर्ण हो जाएगा।”

“तुम डरपोक हो जो बिना शरीर के यहां आ गए।”

“डरपोक नहीं। व्यस्त हूँ। बहुत काम हैं मेरे पास करने को। अपने छाया-रूप के साथ मैं पलों में कहीं भी पहुंच सकता हूं। जैसे यहां आ पहुंचा। लेकिन एक बात मैं जरूर कहूंगा कि महापंडित ने तुम्हारा निर्माण बहुत ही बढिया ढंग से किया है। तुम कहीं से भी कृत्रिम नहीं लगते।”

“पर मैं तुम्हारे लिए समस्या हूं।” सोमाथ मुस्कराकर बोला।

“कैसे?”

“तुम्हारी ताकतें मुझ पर असर नहीं करेंगी।”

“ये बात ठीक है, परंतु तुम हमारे लिए समस्या नहीं हो। तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।”

“मौका मिला तो मैं ही ताकतों के लिए मुसीबत खड़ी करूंगा।”

“ऐसा मौका तुम्हारे सामने नहीं आएगा कृत्रिम इंसान।”

सोमाथ पलटकर डुमरा के पास पहुंचा।

“ये अपने शरीर के साथ आया होता तो मैं इसे सलामत नहीं छोड़ता।” सोमाथ ने कहा।

देर से डुमरा की निगाह, ओहारा पर थी।

दोती और मोरगा मुस्कान भरे चेहरे के साथ खड़ी थीं।

“क्या करेगा ओहारा अब?” डुमरा बोला-“मुझ पर वार करेगा?”

“तुम पर वार कर चुका हूं डुमरा।”

“पर मैं तो सलामत खड़ा हूं।”

“अभी सब कुछ सामने आ जाने वाला है।” ओहारा ने गहरी मुस्कान के साथ कहा-“पिछली बार तूने खुद को मेरे वारों से बचा लिया था। पर वो कोई बहादुरी नहीं थी। इस बार मैं सोच-समझकर हुअ पर वार कर रहा हूं। तेरा अंतिम समय आ गया है। आज तू अपने को बचा नहीं सकेगा। ओहारा हमेशा सफल रहता है।”

डुमरा ने गले में पड़ा शक्तियों वाला लॉकेट थाम रखा था। उसकी निगाह फिर आस-पास गई। परंतु कुछ भी नहीं दिखा तो नजरें पुन: ओहारा पर जा ठहरीं।

“तू मुझ पर वार कर चुका है।” डुमरा बोला।

“बेशक।”

“ऐसा कैसा वार है कि तू वार से पहले सामने आ गया और वार मुझ तक नहीं पहुंचा।”

“वो पहुंच रहा है।” ओहारा ने मुस्कराकर विश्वास भरे स्वर में कहा।

डुमरा कुछ बेचैन दिखा।

“ये ऐसे ही बोल रहा है।” सोमाथ कह उठा।

“ये ऐसे नहीं बोल रहा।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“मुझे पूरा विश्वास है कि ये सच कह रहा है।”

“तो इसका वार कहां है?”

“मेरे ख्याल में कभी भी कुछ भी हो सकता है। तू मेरे पास से दूर जा।”

“क्या मतलब डुमरा?”

“ओहारा का वार मेरे पास पहुंचने ही वाला होगा, न जाने वो कैसा वार है। कहीं तुझे नुकसान न हो जाए।”

“मैं किसी भी बात से नहीं डरता। महापंडित ने मेरा निर्माण करते समय,ये बात मुझमें डाल दी थी कि...”

“मेरे पास से दूर चला जा सोमाथ।”

“क्यों?”

“तू सलामत रहेगा तो मेरी सहायता कर सकेगा।”

“तुमने ही तो कहा था कि ताकतों के वार मुझ पर नहीं चल सकते। फिर मुझे क्या डर?”

“फिर भी, तेरा मेरे पास से दूर हट जाना ही...”

तभी तूफान से उभरने की आवाज छन-छन करती कानों में पड़ी।

सिर के ऊपर से पेड़ों के पत्तों की जोरदार आवाजें आई थीं जैसे कोई चीज आ टकराई हो।

डुमरा और सोमाथ ने तुरंत ऊपर देखा।

कप के आकार का पिंजरा दिखा।

जैसे उल्टा हुआ पड़ा कप नीचे गिर रहा हो। वो पंद्रह फुट के व्यास के घेरे में तेजी से नीचे आया। उसके नीचे वाले हिस्से में एक-एक मीटर लम्बे सरियों जैसी चीज लगी थी। वो पिंजरा पेडों के पत्तों और छोटी-मोटी टहनियों को काटता हुआ ठीक उनके सिरों के ऊपर आया और उन्हें अपने घेरे में लेता, सीधा जमीन में जा फंसा। किनारे पर नजर आते लम्बे सरियों जैसे टुकड़े पूरे के पूरे जमीन में धंस गए थे।

डुमरा और सोमाथ उस पिंजरे के भीतर फंस गए थे।

पिंजरा जमीन में जैसे फिक्स हो गया था।

पिंजरा नीचे से फैलावट लिए था और उसकी शेष ऊपर से ऊनी टोपी की तरह थी।

दोनों आराम से उसके भीतर खड़े हो सकते थे। लेट सकते थे इतनी-सी ही जगह थी वहां।

दोती खिलाखिलाकर हंस पड़ी।

“अब तो फंस गए डुमरा।”

“यहां से बचो तो जाने।” मोरगा भी हंसी।

ओहारा के चेहरे पर शांत मुस्कान थी।

सोमाथ ने फौरन पिंजरे की सलाखें पकड़कर उसे हिलाने की चेष्टा की।

परंतु वो टस से मस न हुआ।

सोमाथ ने पुन: जोर लगाया। कई तरह से जोर लगाया। कुछ भी फायदा होता न दिखा।

डुमरा शांत खड़ा पिंजरे पर नजरें घुमा रहा था।

“डुमरा। पिंजरे से बचने के लिए तुम्हारी शक्तियां क्या कर सकती हैं मेरे से तो ये हिल नहीं रहा।” सोमाथ बोला।

“शक्तियां सब कुछ देख रही हैं। वो जरूर कुछ करेंगी।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“वो इस पिंजरे से हमें निकाल लेंगी?” सोमाथ अभी भी पिंजरे पर अपनी ताकत लगा रहा था।

तभी तोखा की आवाज डुमरा के कानों में पड़ी।

“एक बात समझ में नहीं आई डुमरा।”

“क्या?”

“ओहारा तुम्हें इस पिंजरे में कैद करके क्या करना चाहता है। ये तो कोई वार न हुआ।

“मैं भी ये ही सोच रहा हूं कि ये कैसा वार है। मुझे कैद में रखकर ओहारा का क्या मतलब निकलता है।”

“मुझे तो लगता है, बात कुछ और है।”

“क्या बात?”

“ये ही तो पता नहीं। पर ओहारा की कोई चाल छिपी है इस वार के पीछे।” तोखा का स्वर कानों में पड़ा।

“मैं ओहारा से बात करता हूं।” डुमरा ने कहा।

सोमाथ सलाखों को झटके देता बोला।

“महापंडित ने मुझमें बहुत ताकत डाली थी जन्म के समय। लगता है इस पिंजरे के सामने मेरी ताकत कम है।”

डुमरा ने पिंजरे में से, कुछ दूर नजर आते ओहारा को देखा।

“कैद में कैसा लग रहा है डुमरा।” ओहारा हंसकर बोला।

“ताकतों को ऐसा घटिया वार शोभा नहीं देता। मेरे से ताकतें इतना डर गईं कि मुझे कैद कर लिया।”

“अभी पूरा वार हुआ ही कहां है डुमरा।” ओहारा ने हंसकर कहा।

डुमरा की आंखें सिकुड़ी।

“वार तो अभी अधूरा है। आगे देख क्या होता है।”

“मेरा भी ये ही ख्याल था कि ये पूर्ण वार नहीं हो सकता।”

“खुंबरी का हुक्म है कि तुम्हारी जान ले ली जाए। अब तुम मरने वाले हो डुमरा।”

“मैं तुम्हारा पूर्ण वार देखना चाहता हूं।” डुमरा बोला।

“लो देखो।” कहने के साथ ही ओहारा ने हाथ में दबे काले रंग के मोतियों के गुच्छे को हवा में उछाला और नीचे आने पर पुन: थाम लिया-“मेरे वार का दूसरा और अंतिम चरण पूरा होना शुरू हो गया है डुमरा।”

उसी पल पिंजरे में जोरदार कम्पन हुआ।

सोमाथ ने पिंजरे की सलाखें पकड़कर पिंजरे को उखाड़ फेंकना चाहा। पूरा जोर लगाया। परंतु कोई फायदा न हुआ। पिंजरे में कम्पन जारी रहा और अगले ही पल पिंजरे का सिकुड़ना शुरू हो गया। इस तरह जैसे कोई उसे मुट्ठी में लेकर दबाता जा रहा हो। जमीन में धंसा पिंजरा एकाएक टाइट होने लगा। मोटी सलाखों वाला पिंजरा जैसे जादू के जोर पर सिकुड़ता जा रहा हो। बेहद धीमी रफ्तार से। इसके साथ ही पिंजरे में जोरदार कम्पन जारी हो चुका था। पहली बार सोमाथ के माथे पर बल उभरे।

डुमरा गम्भीर हो उठा।

“डुमरा।” तोखा की आवाज डुमरा के कानों में पड़ी-“इस तरह सिकुड़ता रहा पिंजरा तो इसमें पिसकर तुम्हारी जान चली जाएगी। अभी तक बड़ी शक्तियों ने कुछ किया क्यों नहीं?”

“शक्तियों से कुछ हो सका तो वो जरूर करेंगी।” डुमरा ने शांत स्वर में कहा-“वो मेरे को इतनी आसानी से मरने नहीं देंगी। ताकतें मेरी जान लेने में कभी सफल नहीं हो सकेंगी। ऐसा हुआ तो ये शक्तियों की हार होगी।”

“बड़ी शक्तियां वजू और सलूरा तो तुम्हारी सहायता करने से पीछे हट चुकी हैं।”

“ये उनका मात्र दिखावा है। होकाक को किसने भेजा का ठिकाना तलाश करने को?”

“वजू ने।”

“इसका मतलब बड़ी शक्तियां मुझ पर नजर रख रही हैं। वो मेरे हालातों से अंजान नहीं हैं।”

“तुम्हारी मौत की सोचकर मुझे डर लग रहा है। मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं। तुमसे प्यार है मुझे।”

“अभी मैं जिंदा हूं तोखा।”

“पर मौत तेरी तरफ बढ़ रही है।”

उसी पल सोमाथ ने डुमरा से कहा।

“इस मुसीबत से बचने का मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा।”

“हिम्मत मत छोड़ना।”

“मैंने डरना नहीं सीखा। डर जैसा मेरे भीतर कुछ है ही नहीं।” सोमाथ ने मुस्कराकर कहा-“मुझे कभी मौका मिला तो मैं इस ओहारा को बुरी मौत दूंगा।”

पिंजरे का घेरा हर पल के साथ सिकुड़ता जा रहा था।

“डुमरा। कैसा लगा मेरा वार?” कुछ दूर खड़े ओहारा ने हंसकर कहा।

“बहुत अच्छा।” डुमरा मुस्कुराया-“क्या इस वार से मैं मर जाऊंगा?”

“तेरी मौत का नजारा मैं देखकर ही जाऊंगा।”

“ये अब बचने वाला नहीं ओहारा।” दोती ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

“रात हम इसकी मौत का जश्न कारू (शराब) के साथ मनाएंगे।” ओहारा ने हंसकर कहा।

“ओहारा कभी मुझे भी तो मौका दो कि कारू तुम्हें पिला सकूं। तुम तो हमेशा दोती के हाथ से ही कारू पीते हो।”

“आज तुम दोनों मुझे कारू पिलाना।” ओहारा ने कहा।

“ओहारा। ये मुझे पसंद नहीं कि मोरगा तुम्हें कारू पिलाए। कारू तुम्हें मैं ही पिलाऊंगी।”

“ओहारा ने कहा है तो रात में मैं भी इसे कारू पिलाऊंगी।” मोरगा ने तुरंत कहा।

“बात कारू पिलाने की नहीं है। ओहारा उसी के हाथ से कारू पीता है, जिसके साथ रात को सोना चाहता है। बात तो ये है कि ओहारा के साथ रात को कौन सोएगा।” दोती ने नाराजगी से कहा।

‘आज तक तो तू ही सोती आई है अब मुझे भी मौका मिलना...”

“मैं ओहारा की बेहतरीन सेविका हूँ तभी ओहारा मुझे प्यार करता है। रात तो मेरी ही होगी मोरगा।”

“ये बात तू ओहारा से क्यों नहीं पूछ लेती?”

“मुझे क्या जरूरत है पूछने की। ओहारा मुझे ही पसंद करता है।” दोती ने मुंह बनाकर कहा।

“इसका फैसला तो रात को ही होगा।”

पिंजरा काफी सिकुड़ आया था।

सोमाथ बेचैन दिख रहा था कि वो कुछ कर नहीं पा रहा।

“डुमरा।” तोखा की व्याकुल आवाज कानों में पड़ी-“मुझे तो तेरी मौत का खतरा दिख रहा है।”

डुमरा चुप रहा।

“तू अपनी सहायक शक्तियों से बात क्यों नहीं करता?” तोखा ने पुन: कहा।

“शक्तियां यकीनन सब देख रही हैं। वो मेरे बचाव के लिए जरूर कुछ करेंगी।” डुमरा बोला।

“ये तेरा वहम भी हो सकता है। तू सहायक शक्तियों से बात कर।”

पर डुमरा खामोश रहा। उसने किसी से बात नहीं की।

पिंजरे का सिकुड़ना जारी था।

अब तक पिंजरा आधा सिकुड़ चुका था। ज्यादा वक्त नहीं बचा था। फासले पर खड़े ओहारा, दोती और मोरगा की चमक भरी निगाह सिकुड़ते पिंजरे पर थी।

“सहायक शक्तियों से बात कर डुमरा।” तोखा ने पुन: कहा।

“वो स्वयं ही मेरे लिए कुछ करेंगी।”

“ये भ्रम है तेरा। जब तक तू उनसे सहायता के लिए नहीं कहेगा, आगे क्यों आएंगी?”

“वो नर्मदिल हैं। वो जरूर सामने आएंगी। पहले भी कई बार शक्तियां आ चुकी हैं सहायता करने को।”

“परंतु तू क्यों नहीं, उन्हें सहायता के लिए पुकारता?”

“शक्तियां सब देख रही हैं। वो सब कुछ जानती हैं।” डुमरा ने कहा।

“इस बार बात दूसरी है वजू और सलूरा तेरा साथ देने से इंकार कर चुके हैं।”

“वो दिखावा कर रहे हैं। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।”

“डुमरा-तुम...”

“तू परेशान क्यों होता है तोखा?”

“तेरी मौत मेरे को बहुत दुख देगी। ज्यादा वक्त नहीं बचा। पिंजरे की सलाखें तेरे को पीसकर तेरी जान ले लेंगी।”

डुमरा की नजरें पिंजरे की सलाखों पर गईं जो कांपती-थरथराती सिकुड़ती जा रही थीं।

“हम बच नहीं सकते डुमरा।” सोमाथ ने पूछा।

“तेरे को भी मौत का डर सताने लगा।” डुमरा ने मुस्कराकर सोमाथ को देखा।

“मेरी मौत तो हो ही नहीं सकती। मैं तो मशीनी हूं। मशीन खराब हो गई तो महापंडित फिर से मेरा निर्माण कर देगा। मैं तो आजाद होने के बारे में सोच रहा हूं। इन सलाखों पर मेरा जोर नहीं चल रहा।”

“चलेगा भी नहीं।”

“क्या मतलब?”

“ये सब ताकतों का खेल है। ताकतों की तरफ से वार है ये मेरे लिए। ताकतों ने इस पिंजरे का निर्माण किया है। इस पर जोर नहीं चल सकता। ताकतों का मुकाबला सिर्फ शक्तियां ही कर सकती हैं।”

“तेरे पास तो शक्तियां हैं डुमरा। उन्हें आजमा।”

“शक्तियां अपना काम जरूर करेंगी।”

“पर तूने तो अपनी शक्तियों को बुलाया भी नहीं।”

“ये जिद है मेरी।”

“मैं समझा नहीं।”

“बड़ी शक्तियां वजू और सलूरा मेरे से इस बात को लेकर नाराज हैं कि पांच सौ साल पहले मैंने जब खुंबरी को श्राप दिया तो तब उनसे राय क्यों नहीं ली? (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ‘बबूसा का चक्रव्यूह’) अपनी मर्जी क्यों की। अब खुंबरी पांच सौ सालों के बाद श्राप पूर्ण करके वापस सदूर पर लौटी तो वजू और सलूरा ने खुंबरी से टकराव की स्थिति में मेरा साथ देने से इंकार कर दिया। परंतु उन्हें पल-पल की खबर है। मैं भी देखता हूँ कि वो मुझे बचाती हैं कि नहीं।”

“देखने-देखने में तुम्हारी जान चली जाएगी।”

“शक्तियां डुमरा को खोना पसंद नहीं करेंगी।” डुमरा ने कहा।

“तुम्हारा मतलब कि वो तुम्हें जरूर बचाने आएंगी।”

“हाँ।”

“मेरा तो कहना है कि जो शक्तियां तुम्हारे पास हैं उन्हें इस्तेमाल करो।” सोमाथ ने कहा।

तभी ओहारा की आवाज कानों में पड़ी। वो कह रहा था।

“मैंने तो सोचा था कि तुम खुद को बचाने की कोशिश में शक्तियों की लाईन लगा दोगे यहां।”

“ये तुम्हारा मामूली वार है।” डुमरा ने कहा-“इससे बचने के लिए मुझे शक्तियों की जरूरत नहीं।”

“ये मामूली वार नहीं है। तुम्हारी शक्तियां भी तुम्हें नहीं बचा सकती इस वार से।”

जवाब में डुमरा ने मुस्कराकर ओहारा को देखा।

उसी पल तोखा की आवाज कानों में पड़ी।

“डुमरा। कोई संदेश आया है। मैं कुछ ही देर में वापस लौटता हूं।”

अगले ही क्षण डुमरा को अपने कंधे पर से भार हल्का होता महसूस हुआ।

“मैंने बहुत सोच-समझकर इस वार को तैयार किया है। अब तुम मरने जा रहे हो। सिकुड़ता हुआ पिंजरा तुम्हे अपने भींच लेगा और तड़प-तड़पकर तुम अपनी जान गंवा दोगे।” ओहारा ने हंसते हुए कहा।

“तुम ये क्यों सोचते हो कि शक्तियां मेरी जान जाने देंगी।”

“तुम्हारी कोई भी शक्ति मेरे इस वार का मुकाबला नहीं कर सकती।”

डुमरा ने सिर हिलाया। कहा कुछ नहीं।

“ओहारा।” मोरगा कह उठी-“रात को डुमरा की मौत का जश्न पक्का होगा न?”

“जरूर होगा मोरगा।”

“जश्न में कारू तुम्हें मैं ही पिलाऊंगी।”

“जरूर पिलाना मोरगा। आज मैं डुमरा की मौत की खुशी में जी भर कर पीऊंगा।”

“तुम्हें कारू मैं पिलाऊंगी ओहारा। मैं तुम्हारी सबसे अच्छी सेविका हूं।” दोती कह उठी।

“मैं भी तो सेवा करती हूं।” मोरगा बोली।

“तुम दोनों मुझे कारू पिलाना।” ओहारा डुमरा पर नजरें टिकाए था।

“और रात को तुम्हारे साथ सोएगा कौन?” बोली दोती।

“इसका फैसला डुमरा की मौत के बाद कर लेना।” ओहारा ने कहा।

पिंजरा अब और भी तंग हो चुका था। अब बांहें सीधा करने पर हाथ सलाखों से टकराने लगे थे।

सोमाथ ने सलाखों को थामकर भरपूर जोर पुन: लगाया।

लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

“डुमरा।” सोमाथ बोला-“मुझे अब तुम्हारी चिंता होने लगी है।”

“पर मुझे कोई चिंता नहीं है।” डुमरा का स्वर शांत था।

पिंजरे के नीचे के सरिए जो जमीन में धंसे पड़े थे। पिंजरे के तंग होने की वजह से वहां से जमीन कट रही थी और गहरी लकीरें जमीन पर दिख रही थीं।

“वक्त कम रह गया है।” सोमाथ बोला।

“इतना वक्त शक्तियों के लिए बहुत ज्यादा है।”

“पर तुम तो खामोश खड़े हो। शक्तियां तो मुझे नजर ही नहीं आ रही।”

डुमरा ने सोमाथ को देखा और मुस्कराकर रह गया।

“तुम बिना वजह मुस्करा रहे हो।”

तभी डुमरा को अपने कंधे पर किसी के आ बैठने का एहसास हुआ।

तोखा वापस आ पहुंचा था।

“डुमरा। सलूरा का संदेश लेकर आया हूं।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी-“सलूरा कहता है कि उसने तेरे गले में पड़े पवित्र शक्तियों वाले लॉकेट में अपनी शक्ति डाल दी है। उस शक्ति के सहारे तू ओहारा के इस वार का मुकाबला कर सकता है।”

“तो मेरा ख्याल ठीक निकला। बड़ी शक्तियों को मेरी चिंता है। दिखावे के लिए वो मुझे कुछ भी कहें।” डुमरा मुस्कराया-“तो अब ये बता तोखा कि सलूरा की शक्ति को मैं कैसे इस्तेमाल करूं?”

“सलूरा कहता है कि लॉकेट को पिंजरे से छुआ दे।”

डुमरा ने पहले से ही पवित्र शक्तियों वाले लॉकेट को मुट्ठी में थाम रखा था।

पिंजरा अब पहले से इतना तंग हो चुका था कि कुछ ही देर में सलाखें उनके शरीरों को टच कर जानी थी। वक्त ज्यादा न बचा था। सोमाथ ने होंठ सिकोड़े सलाखें दोनों हाथों से थाम रखी थीं। उसका अंदाज ऐसा था जैसे वो सलाखों को हटा देने का मौका तलाश कर रहा हो।

“सलाखों से हाथ हटा ले सोमाथ।” डुमरा बोला।

“क्यों?” कहते हुए सोमाथ सलाखों को छोड़कर, डुमरा को देखने लगा।

“बड़ी शक्तियों ने मेरे लिए सहायता भेजी है।”

“कब? मैंने तो कुछ नहीं देखा।”

जबकि दोनों पास-पास तंग होते पिंजरे में खड़े थे।

डुमरा लॉकेट थामे थोड़ा-सा आगे बढ़ा और उसे पिंजरे की सलाख से छुआ दिया।

उसी पल पिंजरे की सलाखों में होता कम्पन थम गया।

चंद क्षणों के लिए जैसे सब कुछ थम गया हो।

डुमरा ने कुछ फासले पर खड़े ओहारा को चौंकते देखा तो समझ गया कि उसका वार सफल रहा है।

तभी पिंजरे की सलाखें एकाएक टूट-टूटकर नीचे गिरने लगी।

“ये क्या किया तुमने?” सोमाथ के होंठों से निकला।

“सलूरा की शक्ति असर दिखा रही है। वो बड़ी शक्ति है।” डुमरा मुस्कराया-“बड़ी शक्तियां मेरे से इतनी भी नाराज नहीं है कि जान जाने के स्थिति में मेरी सहायता को आगे न आएं।”

देखते-ही-देखते पिंजरा टूट-टूटकर अलग हो गया।

दोनों पिंजरे के घेरे से बाहर निकल आए।

डुमरा ने ओहारा को देखा तो मन-ही-मन चौंका कि ओहारा जरा भी नाराज नहीं दिखा। जबकि उसे तो अपना वार खाली जाते देखकर क्रोध में मर जाना चाहिए था।

तभी तोखा की आवाज डुमरा के कानों में पड़ी।

“डुमरा होशियार। खतरा अभी टला नहीं है।”

“क्या मतलब?”

“सलूरा ने मुझे आगाह किया था कि ओहारा पूरी तैयारी के साथ वारों की कड़ी तैयार करके आया है। इस तरह कि एक बार खाली जाए तो दूसरा वार खुद-ब-खुद ही शुरू हो जाए फिर तीसरा...”

“ये सलूरा ने कहा।”

“हाँ।”

“ओहारा का अगला वार क्या है?”

“ये तो मुझे नहीं पता। परंतु सलूरा ने कहा है कि अभी जमीन में गड्ढा होगा। उसमें बैठ जाना।”

“गड्ढा?”

“मुझे सलूरा ने ऐसा ही कहा।”

“गड्ढे का ओहारा के वार से क्या मतलब?”

“मैं नहीं जानता। जो उसने कहा, वो मैंने तुमसे कह दिया। सलूरा की बात को गम्भीरता से लेना।”

“सलूरा जैसी बड़ी शक्ति की बात में अवश्य गम्भीरता से लूंगा।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“ये पिंजरा एकाएक टूट-फूट गया।” सोमाथ बोला-“ये शक्तियों का कमाल है।”

“हाँ।”

“मेरी ताकत ने काम नहीं किया और शक्तियों ने पलक झपकते ही ये काम कर डाला।”

डुमरा ने ओहारा को देखा।

ओहारा एकटक डुमरा को देख रहा था।

“तुझे बहुत खुशी हो रही होगी कि तूने मेरा वार बेकार कर दिया।” ओहारा मुस्कराकर कह उठा।

“ज्यादा खुशी भी नहीं हो रही।” डुमरा बोला-“क्योंकि अब मुझे तेरे अगले वार का इंतजार है। तूने वारों की कड़ी तैयारी कर रखी है मेरी जान लेने के लिए।”

“तो तेरे को पता चल गया डुमरा। तेरी जान लेना ही मेरा लक्ष्य है। खुंबरी को जवाब देना है मैंने कि मैंने डुमरा की जान ले ली। तेरा बच जाना मुमकिन नहीं।” ओहारा ने हंसकर कहा-“मेरे वारों से बचकर दिखा।”

“ये इसी तरह बचता रहा तो शाम को इसकी मौत का जश्न कैसे होगा?” मोरगा कह उठी।

“बेशक ये मर जाए। पर जश्न न ही हो तो अच्छा है।” दोती ने गहरी सांस ली।

“क्यों?” मोरगा ने तीखी निगाहों से उसे देखा।

“कम-से-कम तू तो ओहारा को कारू नहीं पिला सकेगी और रात ओहारा के साथ सोने का तेरा सपना भी पूरा नहीं होगा।”

“देखना।” मोरगा ने तीखे स्वर में कहा-“जश्न तो आज होगा ही।”

“पर तू ओहारा को कारू नहीं पिला सकेगी। मैं ओहारा के कान भर दूंगी।” दोती ने गर्दन हिलाकर कहा।

“बहुत नीच विचार हैं तेरे।”

“नीच विचार तो तेरे हैं जो मुझे पीछे करके तू ओहारा को कारू पिलाने की सोच रही है।”

“ओहारा से पूछ, वो मेरे को पसंद करने लगा है।”

“ऐसा तो ओहारा ने कुछ भी नहीं कहा।”

“तेरे को समझ नहीं आएगी। पर मैंने ओहारा के चेहरे से ये बात पहचान ली है।” मोरगा ने कहा।

दोती अजीब-से अंदाज में मुस्कुराकर बोली।

“दोती नाम है मेरा। मेरे रास्ते में आएगी तो तेरा पत्ता साफ कर दूंगी। संभल जा।”

डुमरा की निगाह ओहारा पर टिकी थी।

ओहारा व्यंग्य भरी निगाहों से उसे देख रहा था।

डुमरा ने आसपास देखा। सब ठीक नजर आया।

“सोमाथ।” डुमरा गम्भीर स्वर में कह उठा-“तू मेरे पास से दूर खड़ा हो जा।”

“क्यों?”

“ओहारा का अगला वार कभी भी हो सकता है। तेरा, मेरे पास रहना ठीक नहीं।”

“मैं किसी बात से डरता नहीं।”

“बात डरने की नहीं, समझदारी की है। तू मुसीबत से दूर रहेगा तो मेरी सहायता कर सकेगा।”

“तेरे को मेरी सहायता की जरूरत पड़ेगी?”

“पड़ भी सकती है।”

सोमाथ के चेहरे पर क्षणिक सोच के भाव उभरे फिर कह उठा।

“अच्छी बात है, मैं तुमसे दूर जाकर खड़ा हो जाता हूं।” कहकर सोमाथ, डुमरा से पीछे हट गया।

डुमरा की निगाह पुन: हर तरफ गई।

सब ठीक नजर आया उसे।

“ओहारा के अगले वार के लिए तैयार रह डुमरा।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी।

“मैं तैयार हूं।” डुमरा ने शक्तियों वाले लॉकेट को पकड़ रखा था।

“मामूली वार नहीं होगा ओहारा की तरफ से। ओहारा शैतान है। इस बार तैयारी से सामने आया है।”

“वजू और सलूरा ओहारा को मुंहतोड़ जवाब देंगे।”

“मुझे लगता है बड़ी शक्तियों को तुम्हारी चिंता है। तभी तो सलूरा तेरी सहायता को आगे आ गया।”

“बड़ी शक्तियां नर्मदिल हैं। दिखावे को वो नाराज जरूर हो जाती हैं, परंतु वो जानती हैं कि डुमरा लोगों को भला करता है, ऐसे में वो मुझे मुसीबत से जरूर बचाती रहेंगी। मुझे उन पर पूरा भरोसा है।”

“अब मुझे भी है।”

“होकाक ने कोई नई खबर दी?”

“उसके बाद वो वापस नहीं लौटा। खुंबरी के ठिकाने का हाल देख रहा होगा। वहां की घटनाएं भी तो दिलचस्पी से कम नहीं हैं। दोलाम, खुंबरी को पाना चाहता है, जबकि जगमोहन से प्यार करने लगी है। क्रोध में दोलाम का दुश्मन बन गया है, उधर खुंबरी दोलाम को जान से मार देना चाहती है। वो बबूसा से भी कह चुकी है कि दोलाम को मार दे तो उसके सब साथियों को आजाद कर दिया जाएगा। खुंबरी के ठिकाने का माहौल तनाव से भर चुका है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। हो सकता है दोलाम, खुंबरी की जान ले ले।”

“दोलाम ऐसा नहीं करेगा। दोलाम और रानी ताशा में एक सौदा हुआ है। भूल गए।”

“याद है।”

“दोलाम रानी ताशा को मौका देगा कि वो अपने हाथों से खुंबरी को मार सके। ऐसा हो जाने पर रानी ताशा अपनी खुशी से सदूर के राजा की कुर्सी दोलाम के हवाले कर देगी।” डुमरा ने कहा।

“दोलाम सब कुछ बिना झगड़े के निबटाना चाहता है। राजा बनने की कोशिश में लोगों पर जुल्म ढा कर वो तुमसे दुश्मनी नहीं लेना चाहता। वो जानता है कि जनता को तंग किया तो तुम उसका जीना मुहाल कर दोगे। ताकतों का मालिक बनकर भी वो ताकतों का इस्तेमाल नहीं करना चाहता।”

“पर मैं उसे तब भी चैन से नहीं रहने दूंगा।”

“क्या मतलब?”

“मैं उसे तब तक सदूर का राजा नहीं बनने दूंगा, जब तक वो ताकतों को आजाद नहीं कर देता। ताकतें साथ होने पर ताकतें चुप नहीं बैठने वालीं। वो दोलाम को मजबूर करेंगी कि उनका इस्तेमाल करैं और दोलाम को ऐसा करना पड़ेगा। इसलिए मैं दोलाम को सदूर का राजा तब बनने दूंगा जब वो ताकतों को आजाद कर देगा।”

“हो सकता है दोलाम तुम्हारी ये बात न माने।”

“वो नहीं मानेगा तो राजा नहीं बन पाएगा। मैं उसके लिए समस्या खड़ी करता रहूंगा। पर अभी इस मुद्दे पर बातें करना बेकार है क्योंकि ये भी सम्भव है कि खुंबरी ही रानी ताशा या दोलाम को मार दे। इस वक्त खुंबरी के ठिकाने पर हालात बुरे हैं।” डुमरा बोला।

“बबूसा भी वहां है। वो भी कुछ कर सकता है। चुप नहीं बैठने वाला वो।”

तभी डुमरा सतर्क हुआ।

उसने ओहारा को काले मोतियों के गुच्छे को हवा में उछालते और थामता देखा।

डुमरा जानता था कि उसका ऐसा करना, ताकतों को कुछ इशारा करना है।

“कुछ होने जा रहा है तोखा।” डुमरा के होंठों से निकला।

“कैसे पता...?”

“ओहारा ने हाथों में पकड़े मोतियों की माला को हवा में...।” डुमरा के शब्द अधूरे रह गए।

उसी पल डुमरा के पांवों के नीचे जमीन कांपती-सी महसूस हुई।

डुमरा चौंका। नीचे देखा तो जमीन को भुरभुरी होकर नीचे धंसते देखा। वो जमीन का थोड़ा-सा हिस्सा था जो भुरभुरा कर नीचे को धंस रहा था। आठ-दस फुट फौड़ा इतना ही लम्बा।

जमीन धीमे-धीमे धंस रही थी।

डुमरा लड़खड़ा उठा।

“डुमरा। सलूरा ने ये ही कहा था कि ऐसा होगा। उसने गड्ढे में बैठ जाने को कहा था।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी।

धंसती जमीन के साथ डुमरा नीचे होता जा रहा था।

“कैसा वार करेगा ओहारा जो मुझे ऐसी सुरक्षा दी जा रही है।” डुमरा ने कहा।

“क्या मालूम। परंतु बड़ी शक्तियों को खतरे की आहट पहले ही मिल जाती है। परंतु वो किसी को कुछ बताती नहीं।”

डुमरा को गड्ढे में धंसते पाकर सोमाथ की आंखें सिकुड़ी।

“ये क्या हो रहा है डुमरा?” सोमाथ ऊंचे स्वर में बोला।

“सब ठीक है। फिक्र मत करो।”

ओहारा होंठ भिंचे ये सब देख रहा था।

दोती फौरन ओहारा के पास पहुंचकर बोली।

“डुमरा जमीन में धंस रहा है। उसकी शक्तियां उसकी सहायता कर रही हैं। वो मरेगा नहीं।”

“डुमरा बच नहीं सकता।” ओहारा होंठ बोला।

“वो जमीन में धंस गया तो बच जाएगा।”

“डुमरा अब नहीं बचने वाला दोती। क्या तेरे को मेरी ताकत पर शक है।”

“कैसी बातें कर रहा है ओहारा। तेरी ताकतों को मुझसे ज्यादा और कौन जानता है, परंतु डुमरा...”

उसी पल मोरगा पास आती बोली।

“तुम डुमरा पर कैसा वार करने जा रहे हो ओहारा।”

“अभी देख लेना। वार हो चुका है।” ओहारा के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी।

“डुमरा जमीन में क्यों धंस रहा है?”

“वार से बचने के लिए।” दोती बोली।

“तू जानती है कैसा वार होने वाला है?”

“सब जानती हूं। मैंने ही तो ओहारा के साथ मिलकर वारों की कड़ी तैयार की है।” दोती ने कहा।

“तो मुझे वार के बारे में बता?”

“तू तो रात ओहारा को कारू पिलाने की सोच रही है। मैं तुझे वार के बारे में क्यों बताऊं?”

“जलती है तू मुझसे।”

“मैं तेरी परवाह नहीं करती मोरगा। देखना मैं रात को जश्न ही नहीं होने दूंगी।”

“तू ओहारा को नहीं रोक सकती...”

“रोक दूंगी। ओहारा मेरी बात जरूर मानता है।”

“पर अब ओहारा मुझे पसंद करने लगा है। तभी तो मेरे हाथ से रात के जश्न में कारू पिएगा। उसके बाद मेरे साथ ही सोएगा।” मोरगा ने मुंह बनाकर कहा...”मैं तेरे से ज्यादा सुंदर और जवान हूं।”

“सुंदर और जवान होने से कुछ नहीं होता। औरत में औरतपन भी होना चाहिए और मुझे पता है सोते हुए ओहारा को क्या-क्या चाहिए।”

“वो तो एक-दो बार में मुझे भी पता चल जाएगा।”

“सपने मत देख। ओहारा सिर्फ मुझे पसंद करता...”

गड्ढा पांच फुट नीचे जाकर थम गया।

डुमरा आधा गड्ढे में और आधा बाहर नजर आ रहा था। गड्ढा करीब दस फुट लम्बा चौड़ा था।

“इसमें बैठ जा डुमरा।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी।

“लेकिन ये सब क्या हो...”

तभी तड़-तड़ की अजीब-सी आवाज उभरी।

“नीचे बैठ डुमरा। सिर पर कुछ है।” तोखा कानों के पास चिल्लाया।

तोखा के शब्द पूरे होने से पहले ही डुमरा ने खुद को नीचे गिरा लिया था और उस गड्ढे में लेटता चला गया। उसके बाद उसे ये देखने का भी मौका नहीं मिला कि कैसा वार उस पर हुआ है। धप्प की आवाज उभरी। जमीन जैसे जोरों से कांप उठी और उसके बाद अंधकार छा गया। कुछ भी नहीं दिखा उसे।

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