रात के नौ बज रहे थे ।

देवराज चौहान ने व्हिस्की का गिलास खाली करके टेबल पर रखा कि शर्मा वहाँ आकर बोला ।

“खाना आ गया है सर । बाद में खाएँगे या अभी लगा दूँ ?”

“ले आओ ।” देवराज चौहान ने शर्मा को देखा ।

“लाया सर ।” कहकर शर्मा किचन में चला गया ।

देवराज चौहान का चेहरा बेहद शांत था ।

दस मिनट में शर्मा ने उसके सामने टेबल पर खाना लगा दिया । खाने की महक भूख बढ़ा देने वाली थी । देवराज चौहान ने खाने पर नजर मारी फिर शर्मा से बोला ।

“बैठ जाओ शर्मा ।”

शर्मा पास ही कुर्सी पर बैठ गया ।

“तुम्हारा परिवार है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“जी सर । दो बेटियाँ हैं स्कूल में पढ़ती हैं ।” शर्मा ने मुस्कुराकर कहा ।

“ये खाना तुम खाओ ।”

देवराज चौहान के शब्द शर्मा के लिए किसी विस्फोट से कम न थे ।

शर्मा चिहुँककर खड़ा हो गया ।

“क्या सर ?” उसके होंठों से निकला ।

“मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा कि तुम इतने हैरान-परेशान हो जाओ ।” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

“प...पर सर, म...मैं तो घर जाकर खाना खाऊँगा । मेरी पत्नी मेरे साथ ही खाना खाती है ।” शर्मा घबराये स्वर में कह उठा ।

“खाना खाओ !” देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया ।

“न... नहीं सर !” शर्मा बेचैन, परेशान सा कह उठा ।

“हैरानी है कि तुम मेरे साथ खाना नहीं खा सकते ।” देवराज चौहान उसी लहजे में बोला ।

“न... नहीं सर ! म... मैं ये खाना नहीं खाऊँगा ।” शर्मा घबरा गया था ।

“क्यों ?”

शर्मा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और देवराज चौहान को देखने लगा । देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर, शर्मा की तरफ कर दी ।

शर्मा काँप उठा ।

“तुम खाना नहीं खाओगे तो मैं तुम्हें गोली मार दूँगा ।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा ।

“अ... आप ऐसा नहीं कर सकते । भला खाना न खाने की वजह से आप मुझे गोली क्यों मारेंगे ?”

“मैं सब कुछ कर सकता हूँ, ये बात अभी तुम नहीं जानते । बैठ जाओ ।”

“न... नहीं सर, मैं घर जाऊँगा ।”

“बैठो !” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।

शर्मा काँपती टाँगो से वापस बैठ गया ।

“ये खाना तुम क्यों नहीं खा रहे, ये बात मैं जानता हूँ ।”

“क... क्या जानते हैं ?”

“ये ही तो मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ ।” देवराज चौहान की आवाज में कठोरता थी ।

“म... मुझे अभी भूख नहीं ।”

“शर्मा !” देवराज चौहान खतरनाक स्वर में कह उठा, “बड़ा खान अब मुझे हर हाल में मार देना चाहेगा ।”

शर्मा की निगाह देवराज चौहान पर थी । वह घबराया सा था ।

“और आज बड़ा खान के पास मौका है मुझे खाने में जहर देने का ।”

“य... ये आप क्या कह रहे हैं सर ?”

“मैं जानता हूँ तुम बड़ा खान के लिए काम करते हो ।”

“न... नहीं सर !” शर्मा के होंठों से निकला ।

“नहीं करते ?”

“न... नहीं सर !”

“तो बड़ा खान ने मुझे फोन पर झूठ कहा ?”

“क्या कहा ?”

“कि शर्मा उसका आदमी है ।”

“बड़ा खान ऐसा नहीं कह सकता । वह भला आपको ऐसा क्यों कहेगा ?”

“इसलिए कि बड़ा खान से मेरी दोस्ती हो गई है । मैं उसके कहने पर जब्बार को जेल से बाहर निकालने जा रहा हूँ ।”

“क्या ?” शर्मा हैरान हो उठा ।

“वह मुझे करोड़ों रुपया दे रहा है इस काम के । उसने ही मुझे बताया कि शर्मा अपना ही आदमी है ।”

“आप झूठ कह रहे हैं ।”

“क्यों ?”

“अगर बड़ा खान से दोस्ती हो गई होती तो... ।” शर्मा ने होंठ भिंच लिए ।

“अपने शब्द पूरे करो ।” देवराज चौहान बोला ।

“तो आप इस तरह रिवॉल्वर निकालकर मेरी तरफ न तानते ।”

देवराज चौहान के चेहरे पर कुटिलता भरी मुस्कान नाच उठी ।

“कम से कम तुमने ये तो स्वीकार किया कि तुम बड़ा खान के लिए काम करते हो ।”

शर्मा होंठ भींचे देवराज चौहान को देखता रहा ।

“अब ये भी बता दो कि तुम खाना क्यों नहीं खाना चाहते ?”

शर्मा चुप ।

“मैं बता देता हूँ । बड़ा खान के कहने पर तुमने खाने में जहर डाला है आज ।”

शर्मा के होंठ अभी भी भींचे रहे ।

“हाँ बोलो !”

“हाँ !” शर्मा के स्वर में दृढ़ता के भाव थे ।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर वापस रख ली और मुस्कुराकर बोला ।

“मुझसे घबराने की जरूरत नहीं । क्योंकि मैं इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं हूँ ।”

“क्या ?” शर्मा ने आँखें सिकोड़कर देवराज चौहान को देखा ।

“हैरान हो गए ?”

“तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं हो ?”

“नहीं !” देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया, “मैं नहीं हूँ पुलिस वाला ।”

“तुम्हारी वर्दी... तुम्हारा कार्ड और... ।”

“सब नकली हैं । मैं देवराज चौहान हूँ । डकैती मास्टर देवराज चौहान ।”

“विश्वास नहीं होता, तुम मुझे बेवकूफ बना... ।”

देवराज चौहान ने होंठों पर लगी मूँछें उतार दीं ।

शर्मा अचकचाकर उसे देखने लगा ।

“तुमने कभी देवराज चौहान की तस्वीर देखी है ?” देवराज चौहान ने होंठों पर मूँछें पुनः चिपका लीं ।

“न... नहीं ।”

“देखी होती तो मुझे अब तक पहचान लिया होता ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

शर्मा देवराज चौहान को देखता रहा, फिर बोला- “तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के नाम पर क्या कर रहे हो । यादव खुद कहाँ पर है ?”

“आओ बाहर चलते हैं ।” देवराज चौहान उठते हुए बोला, “डिनर भी करेंगे और बातें भी हो जाएँगी । बड़ा खान भी मेरी असलियत नहीं जानता लेकिन तुम जान चुके हो कि मैं देवराज चौहान... ।”

“तुमने मुझे क्यों बताया ?”

“बाहर चलो, बातें भी हो जाएँगी ।”

दोनों बाहर निकलकर पुलिस कार में बैठे । शर्मा ने कार आगे बढ़ा दी ।

“मुझे अभी तक ये जानकर हैरानी हो रही है कि तुम इंस्पेक्टर यादव न होकर देवराज चौहान, डकैती मास्टर हो ।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।

“तुमने सच बात कही है ?” शर्मा पुनः बोला ।

“मैं झूठ क्यों कहूँगा ?”

“इंस्पेक्टर यादव कहाँ है ?”

“उसे मैंने कहीं रखा हुआ है ।”

“तुमने ऐसा क्यों किया ? आखिर तुम करना क्या चाहते हो, इंस्पेक्टर यादव बनकर ?”

“मुझे खबर मिली थी कि इंस्पेक्टर सूरजभान यादव, जब्बार जैसे खतरनाक मुजरिम की रखवाली करने जम्मू जा रहा है । यादव का ये जम्मू का पहला दौरा था । उसे वहाँ कोई नहीं जानता । उधर पता चला कि बड़ा खान जब्बार को जेल से निकालना चाहता है तो मुझे लगा कि इस मामले से मैं मोटा पैसा कमा सकता हूँ ।”

“परन्तु तुम तो डकैतियाँ डालते हो । इस काम में कैसे आ गए ?”

“मैं सभी काम कर लेता हूँ । नोट मिलने चाहिए ।”

शर्मा कुछ बेचैन दिख रहा था ।

“तुम कबसे बड़ा खान के लिए काम कर रहे हो ?”

“जब से जब्बार जेल में आया । वह मुझे अच्छे पैसे देता है ।”

“और आज उसके कहने पर तुमने मेरे खाने में जहर डाल दिया ।”

“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया । खाना ही बड़ा खान के आदमी दे गए थे । मैं जानता था कि आज खाने में जहर है ।”

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

शर्मा सामान्य रफ्तार से कार सड़क पर चला रहा था ।

“इधर मोड़ लो ।” देवराज चौहान ने आगे आ रहे चौराहे को देखकर कहा ।

“इधर तो सुनसान सड़क है ।”

“कोई बात नहीं । हममें आराम से बातें हो जाएँगी ।”

शर्मा ने उस तरफ ही कार ले ली और बोला ।

“तुम कहते हो तुम इस मामले में पैसे कमाने आए हो । ऐसा है तो तुमने बड़ा खान की तीस करोड़ की बात... ।”

“मेरे हिसाब से तीस करोड़ कम था ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“कम था ?” कार चलाते शर्मा ने देवराज चौहान पर नजर डाली ।

“कम से कम 50 तो होना चाहिए ।”

“तुमने 50 के बारे में बात की, बड़ा खान से ?”

“मैं क्यों करूँ, वह खुद रकम बढ़ाएगा ।”

“तुम्हें मालूम था कि बड़ा खान तुम्हें खाने में जहर दे सकता है ?”

“हाँ ! आज इस बात का एहसास हुआ कि बड़ा खान अब मुझे मारना चाहेगा और मेरा ख्याल ठीक निकला ।”

“सच बात तो ये है कि मुझे तुम्हारी किसी बात पर यकीन नहीं हो रहा ।”

“क्यों ?”

“मुझे इस पर भी भरोसा नहीं कि तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो ।”

“मैं हूँ ।”

“खैर, अब तुमने सब बता दिया है तो इस बारे में बड़ा खान से बात करूँगा । वह तुम्हें 50 करोड़ दे देगा ।”

“तुम सच में मेरे बड़े काम आ रहे हो ।”

“अगर तुम देवराज चौहान हो तो ये तुम्हारी हिम्मत है कि तुम पुलिस वालों के बीच घूम रहे हो । कभी भी तुम्हें कोई पहचान सकता है । इस तरह मूंछें लगाकर तुम खुद को बचा नहीं सकते ।”

“मुझे पुलिस की वर्दी बचा रही है ।” देवराज चौहान ने कहा, “कोई पुलिस वाला ये बात सोच भी नहीं सकता कि वर्दी में डकैती मास्टर देवराज चौहान उनके बीच भी बैठ सकता है ।

“विश्वास के लायक ये बात ही नहीं है ।”

“तुम ठीक कहते हो ।”

“कार रोको जरा ।” एकाएक देवराज चौहान बोला ।

“क्यों ?”

“मुझे यहीं तक आना था । अब यहाँ से वापस जाना है । बहुत काम निबटाने हैं ।”

शर्मा ने कार रोकी ।

ये सुनसान इलाका था । यहाँ सर्दी सी महसूस हो रही थी । कार के शीशे खुले थे ।

परन्तु देवराज चौहान ये देखकर चौंका कि शर्मा के हाथ में रिवॉल्वर दबी थी । उसके चेहरे पर कठोरता थी ।

“ये क्या शर्मा ?”

“तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आये । क्या चाहते हो ?” शर्मा ने सतर्क स्वर में कहा ।

“मैं तुम्हें यहाँ लेकर आया । ये क्या कहते हो । हम दोनों यहाँ आये हैं । मुझे यहाँ किसी से मिलना है ।”

“किससे ?”

“बड़ा खान किसी को भेज रहा है, उससे मैंने बात करनी है ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“ये नहीं हो सकता ।” शर्मा सख्त स्वर में बोला, “ऐसा होता तो बड़ा खान तुम्हारे लिए जहर वाला खाना न भिजवाता ।”

“तो तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं ?”

“नहीं !”

“रिवॉल्वर हाथ में ही रखो और देखते रहो कि अभी मुझसे मिलने यहाँ बड़ा खान का भेजा आदमी आएगा ।”

“मैं जानता हूँ कि कोई नहीं आएगा ।”

“देखते रहो ।”

शर्मा संदिग्ध नजरों से देवराज चौहान को देखता रहा । 

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया ।

“तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ही हो । जानबूझकर खुद को देवराज चौहान कह रहे हो ।”

“मैं देवराज चौहान नहीं हूँ ।”

“ऐसी बातें करके तुम मुझे पागल बना रहे हो । मैं तुम्हारी बातों में नहीं फँसने वाला ।”

“तुम मेरी सच बात को मानने से इंकार कर रहे हो और झूठ को सच मान रहे... ।”

“चुप हो जाओ । तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव हो और मुझे अपनी बातों में उलझा रहे... ।”

“शर्मा, मैं तुम्हें एक सच और बताना चाहता हूँ !” देवराज चौहान बोला ।

“क्या ?”

“मैंने तुमसे खाने से लेकर अब तक जो भी बातें कीं, वह सब बकवास थीं और एक ही बात सच है कि मैं डकैती मास्टर देवराज चौहान हूँ । इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं हूँ ।”

शर्मा दाँत भींचे देवराज चौहान को देखने लगा ।

“तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं आया ?”

“भाड़ में जाओ तुम । तुम्हारी बातें मुझे पागल कर रही हैं । मैं तुम्हें गोली मारने जा रहा.... ।”

उसी पल देवराज चौहान ने बाज की तरह झपट्टा मारा और उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई पकड़कर दूसरी तरफ घुमा दी । उसी पल फायर की तेज आवाज हुई ।

गोली सामने का शीशा तोड़ती निकल गई ।

शर्मा ने रिवॉल्वर वाला हाथ आजाद कराने की चेष्टा की ।

परन्तु देवराज चौहान ने कई बार उसका रिवॉल्वर वाला हाथ, कलाई पकड़े स्टेयरिंग पर मारा और शर्मा के हाथ से रिवॉल्वर छिटककर नीचे, जूतों के पास जा गिरी । इसी के साथ देवराज चौहान ने दूसरे हाथ का घूँसा जोरों से उसके चेहरे पर मारा । शर्मा का सिर कार से टकराया । वह चीखा ।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर उसकी कमर से लगा दी । ऐसा होते ही शर्मा थम सा गया ।

देवराज चौहान की आँखों में खतरनाक चमक लहरा रही थी ।

दोनों की नजरें मिलीं ।

“अब सुन शर्मा, मैं डकैती मास्टर देवराज चौहान ही हूँ । इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं ।”

शर्मा ठगा सा बैठा उसे देखता रहा ।

“तेरे को मुझ पर शक हुआ कि मैं तेरे साथ कुछ करने वाला हूँ तो तुझे उसी वक्त ही मुझे शूट कर देना चाहिए था । परन्तु तू तो बातों में लग गया । तूने वक्त का सही इस्तेमाल नहीं किया ।”

देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कह रहा था- “तूने बड़ा खान का साथ देकर जिस्म पर पहनी खाकी से गद्दारी की है ।”

शर्मा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । नजर देवराज चौहान पर थी । कमर में रिवॉल्वर लगी थी ।

“मैंने हालातों की मजबूरी में फँसकर खाकी पहनी तो मुझे खाकी की आड़ में गर्व महसूस हुआ । तब मुझे एहसास हुआ कि ये वर्दी वास्तव में खास है कि पुलिस वाले इसे पहनकर, फर्ज की राह पर चलते हुए खुद को कुर्बान कर देते हैं । लेकिन एक तू भी है जिसने खाकी की सही कीमत नहीं समझी और वर्दी पहनकर बड़ा खान की सेवा करने लगा ।”

“तुम डकैती मास्टर हो ।” शर्मा हिम्मत करके बोला, “तुम्हारे मुँह से ये बातें अच्छी नहीं लगतीं ।”

“लेकिन इस वक्त मैंने वह खाकी पहनी हुई है जिसे पहनकर मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ । जब से मैंने इसे पहना है, कोई गलत काम नहीं किया । जो भी कर रहा हूँ, कानून के हक में कर रहा... ।”

“बकवास मत करो । तुम कोई तगड़े फ्रॉड हो ।”

“और तुम खाकी के गद्दार हो ।” देवराज चौहान के स्वर में दरिंदगी के भाव आ गए, “मैं तुम्हें शूट करने के लिए, तुम्हें इस एकांत में लाया । शायद तुम्हें अपनी मौत का विश्वास नहीं आ... ।”

“मुझे मारकर तुम्हें क्या... ।” शर्मा के शब्द अधूरे रह गए ।

कार में एक के बाद एक तीन गोलियों की आवाज गूँजी । वहाँ बारूद की स्मैल फैल गई थी ।

तीनों गोलियाँ शर्मा की कमर में जा धँसी थीं । वह वहीं सीट पर तड़पकर पसर गया था । देवराज चौहान ने उसकी कमर से रिवॉल्वर हटाई और कार की डोम लाइटें जलाईं । रौशनी में शर्मा का चेहरा दिखा । वह मर चुका था । आँखें फटी पड़ी थीं । देवराज चौहान ने ‘डोम’ लाईट जलते रहने दी । वह कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला और दरवाजा बन्द करके रिवॉल्वर जेब में रखी और पैदल ही वापस चल पड़ा । कार में शर्मा स्टेयरिंग सीट पर मरा पड़ा था । भीतर की लाईट जल रही थी । शर्मा को शूट करके देवराज चौहान को लग रहा था कि उसने अच्छा काम कर दिया है ।

तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा ।

“हैलो ।” देवराज चौहान ने बात की ।

“मैं राठी ।” उधर से राठी की आवाज कानों में पड़ी ।

“बोलो ।”

“अगर तुम मेरे पास आ जाओ तो मैं तुम्हें काम का आदमी दिला सकता हूँ ।”

“ठीक है । क्या तुम मेरे लिए कार भेज सकते हो । मैं इस वक्त ऐसी जगह पर हूँ जहाँ सवारी के लिए कुछ भी नहीं है ।”

“भेजता हूँ । बताओ तुम कहाँ पर हो ?”

☐☐☐

देवराज चौहान जब राठी के पास पहुँचा तो रात के बारह बज रहे थे । राठी की भेजी कार ही उसे लेकर आई थी ।

“माफ करना तुम्हें इस वक्त तकलीफ दी ।” राठी उससे हाथ मिलाता कह उठा, “आओ तुम्हें तीन आदमी दिखाता हूँ । उसमें से जो भी काम का लगे चुन लेना । वह मेरे से पंद्रह लाख रुपये एडवांस लेगा, परन्तु तुम जैसा कहोगे, वह वैसा ही करेगा । कुछ हद तक मैंने उन्हें समझा दिया है कि उन्हें क्या करना पड़ेगा ।”

“कहाँ हैं वह लोग ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“उधर, कमरे में आओ ।”

देवराज चौहान राठी के साथ कमरे में पहुँचा ।

वहाँ जब्बार मलिक की उम्र के तीन लोग मौजूद थे । वैसी ही सेहत, वैसा ही कद ।

“ये ठीक रहेगा ।” तीनों को देखते ही देवराज चौहान ने एक की तरफ इशारा किया । उसका चेहरा जब्बार जैसा लग रहा था ।

“ये तुम्हें कब-कहाँ चाहिए ?”

“दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर की वर्दी में इसे कल सुबह दस बजे मेरे पास भेज देना । सीने पर इंस्पेक्टर राजपाल सिंह की नेम प्लेट लगी होनी चाहिए । बाकी सब कुछ इसे कल मैं समझा दूँगा ।”

देवराज चौहान ने कहा और पता बताया जहाँ वह रह रहा था ।

“कल काम करना है ?”

“परसों । परन्तु कल से ये मेरे साथ ही रहेगा ।”

“ठीक है ।”

देवराज चौहान ने राठी से कहा ।

“कल तुम्हें पंद्रह लाख भी मिल जायेंगे । जो उसे दोगे ।”

“उनकी जरूरत नहीं । वह मैं... ।”

“तुमने मेरा काम कर दिया है । ये ही बहुत है । खर्चा मुझे करने दो ।”

☐☐☐

अगले दिन दस बजे दिल्ली पुलिस की वर्दी पहने इंस्पेक्टर राजपाल सिंह फ्लैट पर पहुँचा ।

देवराज चौहान ने उसे तसल्ली भरी नजरों से देखकर कहा ।

“ठीक है । खाकी वर्दी में तुम पक्के पुलिस वाले लग रहे हो । नाम क्या है तुम्हारा ?”

“भूपेंद्र कालिया ।”

“जब तक मेरे साथ हो, तब तक के लिए भूपेंद्र कालिया को भूल जाओ और इंस्पेक्टर राजपाल सिंह बन जाओ ।”

“ठीक है ।”

“पंद्रह लाख मिल गए तुम्हें ?”

“हाँ ।”

“काम के बारे में क्या जानते हो ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“इतना ही कि तुम मुझे जेल में ले जाओगे । वहाँ कोई कैदी, मेरी वर्दी पहनकर वापस तुम्हारे साथ चला जायेगा और देखने वाले ये ही समझेंगे कि मैं तुम्हारे साथ आया था और मैं ही वापस जा रहा हूँ । जबकि मैं कैदी के कपड़ों में उसकी कोठरी में होऊँगा ।”

“बिल्कुल ठीक । परन्तु जल्दी ही ये बात खुल जायेगी । तुम फँस जाओगे ।”

“मैं खुद को बचाने के लिए कोई कहानी तैयार कर लूँगा । एक-दो सालों में इस मामले से बच निकलूँगा । उसी दौरान राठी साहब मेरे लिए वकील का खर्चा भी देंगे ।” भूपेंद्र कालिया ने कहा ।

“राठी को कबसे जानते हो ?”

“12 सालों से मैं उनके लिए काम कर रहा हूँ ।”

देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया ।

“लेकिन एक बात मुझे समझ नहीं आई ।” भूपेंद्र कालिया ने कहा ।

“क्या ?”

“आप पुलिस वाले होकर किसी को इस तरह जेल से फरार करवा रहे हैं, इससे आप पकड़े जायेंगे ।”

“मैं पुलिस वाला नहीं हूँ ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“ओह !”

“और मैं कोई भी काम गलत नहीं कर रहा । कानून के फायदे के लिए उस कैदी को जेल से निकाल रहा हूँ ।”

उसने कुछ नहीं कहा ।

उसके बाद देवराज चौहान वर्दी पहनकर तैयार हुआ ।

ग्यारह बज गए थे ।

देवराज चौहान ने ए.सी.पी. संजय कौल के मोबाइल पर फोन किया ।

“हैलो !” कौल की आवाज कानों में पड़ी ।

“गुड मॉर्निंग सर !” देवराज चौहान ने कहा ।

“ओह, सूरजभान ! कैसे हो ?”

“बहुत अच्छा हूँ सर !”

“जब्बार के बारे में कोई सफलता मिली ?” उधर से ए.सी.पी. कौल ने पूछा ।

“कोशिश चल रही है सर । मेरे ख्याल में वह दो-तीन दिन में रास्ते पर आ जायेगा ।”

“मुझे बहुत अजीब लगेगा यदि तुमने बातों में फँसाकर उससे जानकारी ले ली । जबकि हमने उसका मुँह खुलवाने के लिए बहुत मेहनत की । परन्तु हम हार गए ।”

“मैं उसका मुँह खुलवा लूँगा सर ।”

“अच्छी बात है !”

“मैंने सब-इंस्पेक्टर शर्मा के लिए फोन किया था कि आज वह मेरे पास नहीं आया । उसके मोबाइल पर फोन किया तो बेल जा रही है, परन्तु उसने कॉल पिक नहीं की ।”

“हैरानी है ! शर्मा तो जिम्मेदार व्यक्ति है । मैं किसी और को भिजवाता... ।”

“जरूरत नहीं सर ! मुझे जेल में जब्बार से मिलने जाना है । शर्मा से बात हो जाये तो उसे वहीं भेज दीजिये ।”

“ठीक है इंस्पेक्टर !”

देवराज चौहान ने मोबाइल जेब में रखकर भूपेंद्र कालिया से कहा ।

“हमें अब चलना चाहिए । जेल में जाने से पहले मैं किसी बाजार में जाना चाहता हूँ ।”

“मैं आपको ले चलता हूँ ।” भूपेंद्र कालिया ने कहा ।

दोनों फ्लैट से बाहर निकले । देवराज चौहान ने फ्लैट को लॉक करते हुए कहा ।

“हमें टैक्सी लेनी होगी । मेरे पास गाड़ी का इंतजाम नहीं है । तुम कैसे आये थे ?”

“ऑटो पर ।”

दोनों आगे बढ़ गए ।

वे पुलिस की वर्दी में थे । परन्तु दोनों का ही पुलिस डिपार्टमेंट से कोई वास्ता नहीं था । उन्हें टैक्सी मिल गई थी । पहले वे बाजार गए । देवराज चौहान ने आधा घण्टा लगाकर बाजार से कुछ सामान खरीदा और भूपेंद्र कालिया के साथ उसी टैक्सी में, जम्मू सेंट्रल जेल की तरफ चल पड़ा ।

“असल काम हमें कल करना है ।” देवराज चौहान ने भूपेंद्र कालिया से कहा, “परन्तु आज तुम्हारा मेरे साथ जाना जरूरी है ।”

इसलिए कि जेल वाले कल भी देखें तो कोई शक वाली बात न सोचें । तुम्हारा आना रूटीन में लें ।”

“पुलिस की वर्दी पहनकर जेल में जाना । मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है ।” भूपेंद्र कालिया ने कहा ।

“बेफिक्र रहो ! सब ठीक रहेगा । चेहरे को शांत रखो और पुलिस वालों की तरह चाल-ढाल अपना लो । खुद में विश्वास रखोगे तो बड़े से बड़ा काम भी कर लोगे ।” देवराज चौहान ने कहा, “मैं हर रोज जेल जा रहा हूँ । मुझे कोई समस्या नहीं आई और तुम दिल्ली से आये इंस्पेक्टर राजपाल सिंह हो ।”

“मेरे पास कोई आई कार्ड तो है नहीं ।”

“मैं तुम्हारा आई कार्ड हूँ । चिंता मत करो ।”

☐☐☐

देवराज चौहान भूपेंद्र सिंह कालिया के साथ जेल पहुँचा । भूपेंद्र कालिया को इस बात का फायदा मिला कि वह देवराज चौहान के साथ है । जेल के बाहरी गेट पर खड़े सिपाहियों ने भूपेंद्र कालिया को टोका तो देवराज चौहान ने कहा कि इंस्पेक्टर साहब मेरे साथ हैं । उन्हें भीतर जाने दिया गया । देवराज चौहान ने हाथ में एक लिफाफा थाम रखा था । उसमें बाजार से की गई खरीददारी का सामान था । वे दोनों जेलर के कमरे में पहुँचे । जेलर सुधीर लाल वहाँ मौजूद नहीं था । उसके ऑफिस के बाहर स्टूल पर एक सिपाही बैठा था । उससे जेलर को बुलाने को कहकर, दोनों भीतर जा बैठे ।

“अजीब सा लग रहा है मुझे और कुछ डर भी लग रहा है ।” भूपेंद्र कालिया ने कहा ।

जवाब में देवराज चौहान मुस्कुराकर रह गया ।

दस मिनट बाद वहाँ कबीर अली आया ।

“नमस्कार इंस्पेक्टर साहब !” कबीर अली मुस्कुराकर बोला, “जेलर साहब अभी आ रहे हैं । कुछ कैदियों में झगड़ा हो गया था । इसी मामले को निबटा रहे हैं । उन्होंने मुझे भेजा है यहाँ । चाय मंगवाऊँ आपके लिए ?”

“नहीं ! अभी नहीं !”

कबीर अली भूपेंद्र कालिया को देखकर कह उठा- “इन इंस्पेक्टर साहब को पहले कभी नहीं देखा ।”

“दिल्ली से आज सुबह ही आये हैं । इंस्पेक्टर राजपाल सिंह ।”

“ओह !” कबीर अली ने भूपेंद्र कालिया को सैल्यूट मारा ।

भूपेंद्र कालिया मुस्कुराया ।

“ये आज से मेरे साथ ही काम करेंगे ।”

“ये तो अच्छी बात है सर ! वैसे जब्बार ने अभी तक मुँह नहीं खोला क्या ?”

“ये सवाल दो दिन बाद पूछना ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“आज इंस्पेक्टर शर्मा साथ नहीं आये ?” कबीर अली ने पुनः पूछा ।

“वह किसी काम में व्यस्त हैं, कुछ देर बाद आयेंगे ।”

पंद्रह मिनट बाद जेलर आ गया ।

वह भूपेंद्र कालिया से मिला । देवराज चौहान ने परिचय करा दिया था । उसके बाद देवराज चौहान, जब्बार की कोठरी की चाबी लेकर, भूपेंद्र कालिया के साथ बाहर निकला ।

“आज चाय लाऊँ सर ?” कबीर ने पूछा ।

“हाँ ! आज तीन लाना ।” देवराज चौहान ने आगे बढ़ते हुए कहा ।

कबीर अली चला गया ।

“यहाँ फँस गए तो बचने का रास्ता भी नहीं म” भूपेंद्र कालिया धीमे स्वर में बोला ।

“मैं रोज आ रहा हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा, “परन्तु फँसा नहीं ।”

“हैरानी है कि तुम फंसे नहीं ।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा । दोनों आगे बढ़ते रहे ।

दस मिनट में कई रास्तों को पार करने के बाद वे जब्बार की कोठरी पर पहुँचे ।

“यहाँ तो तगड़ा पहरा है ।” भूपेंद्र कालिया वहाँ फैले गनमैनों को देखते हुए धीमे स्वर में कहा ।

“तुम पुलिस वाले हो और अपने को यहाँ वैसे ही दिखाओ ।” देवराज चौहान ने कहा ।

भूपेंद्र कालिया सम्भल गया । कोठरी पर पहुँचकर देवराज चौहान ने चाबी निकालकर दरवाजा खोला ।

जब्बार तब सलाखों वाले गेट पर आ पहुँचा था ।

“कैसे हो जब्बार ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“ठीक हूँ !” जब्बार की निगाह भूपेंद्र कालिया पर थी ।

दरवाजा खोला गया ।

“हटो हमें भीतर आना है ।”

जब्बार पीछे हटा ।

देवराज चौहान और भूपेंद्र कालिया ने भीतर प्रवेश किया ।

देवराज चौहान तुरन्त एक तरफ हो गया कि बाहर फैले गनमैन उसे न देख सकें । जल्दी से उसने लिफाफे से कुछ सामान निकाला और जब्बार के सीमेंट वाले चबूतरे पर रख दिया ।

“ये क्या ?” जब्बार के होंठों से निकला ।

“बाहर आओ । बातें बाहर होंगी । हम ज्यादा देर भीतर रहे तो गनमैनों को अटपटा लगेगा ।”

देवराज चौहान और भूपेंद्र कालिया बाहर निकल आये ।

जब्बार मलिक भी कोठरी से बाहर निकला । देवराज चौहान ने अभी भी पहले की तरह लिफाफा थाम रखा था ।

“वहाँ से कुर्सियाँ ले आओ । तीन कुर्सियाँ ।”

जब्बार गाय की तरह उसी स्टोर की तरफ बढ़ गया ।

कुछ ही पलों में वे तीनों कुर्सियों पर बैठे थे ।

“ये... ?” जब्बार ने भूपेंद्र कालिया को देखा और चुप कर गया ।

“ये मेरे साथ ही है ।”

“क्या साथ है ?” जब्बार ने देवराज चौहान से पूछा ।

“चिंता मत करो । ये असली पुलिस वाला नहीं है । नकली है । मैं तुम्हें जेल से फरार करवाने की तैयारी कर रहा हूँ ।”

“ओह !” जब्बार ने पहलू बदला, “कैसे होगा ये सब कुछ ?”

“मैंने जो सामान तुम्हारी कोठरी में रखा है, वह शेव का सामान है । कैंची भी है । तुम कल सुबह नौ बजे कोठरी में छिपे तौर पर शेव करना शुरू कर दोगे । दाढ़ी-मूंछें सब साफ करनी हैं । उस सामान में छोटा सा गोल शीशा भी है । कैंची से तुमने अपने सिर के बाल काटकर छोटे कर लेने हैं । ये सब करने के बाद तुम्हें कोठरी के गेट पर नहीं आना है । यहाँ पहरा दे रहे गनमैन तुम्हें देख सकते है । ग्यारह बजे तक हम आ जायेंगे । आज की तरह हम तुम्हारी कोठरी के भीतर ही आयेंगे । परन्तु कल पाँच मिनट हम भीतर रुकेंगे । उन पाँच मिनटों में तुमने इसके जिस्म पर पड़ी इंस्पेक्टर की वर्दी पहन लेनी है और ये तुम्हारे कपड़े पहन लेगा । तुम दोनों की कद-काठी और चेहरे की बनावट काफी मिलती है । जब तुम पुलिस की वर्दी पहनकर बाहर निकलोगे तो इस बदलाव को समझ पाना किसी के लिए आसान नहीं रहेगा । आज की तरह हम तीनों कल भी यहाँ बैठेंगे । उसके बाद जायेंगे । तुम मेरे साथ इंस्पेक्टर की वर्दी में बाहर जा रहे होगे और ये तुम्हारे कपड़ों में, जब्बार के रूप में कोठरी में होगा ।”

“ये बिना दाढ़ी-मूँछों के होगा तो.... ।” जब्बार ने कहना चाहा ।

“ये दाढ़ी-मूँछों में होगा । तुम जैसी दाढ़ी-मूँछें बनाने का ऑर्डर मैंने कल ही दे दिया था किसी को । आज शाम को मुझे तुम जैसी दाढ़ी मिल जायेगी जिसे कि ये लगा लेगा ।” देवराज चौहान बोला ।

“सुनने में ये कितना आसान लग रहा है ।” जब्बार ने विचलित स्वर में कहा ।

“कल कोई खामख्वाह की मुसीबत न आई तो करने में भी आसान होगा ।”

“इस तरह तो तुम फँस जाओगे इंस्पेक्टर !” जब्बार मलिक बोला, “मेरे जाने के बाद इसका भेद खुलने की देर है कि तुम... ।”

“मेरी फिक्र मत करो ।” देवराज चौहान मुस्कुराया, “अपने को बचाना मुझे आता है ।”

जब्बार मलिक पहलू बदलकर बोला ।

“मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा हूँ इंस्पेक्टर !”

“क्या नहीं समझे तुम ?”

“ये काम तुम बड़ा खान से पैसा लेकर करते तो मुझे कोई परेशानी नहीं होती परन्तु... ।”

“मेरा मुफ्त में तुम्हें जेल से निकालना, तुम्हें परेशान कर रहा है ।”

“हाँ !”

“तो मत निकलो । जेल में ही रहो ।”

जब्बार कुछ पल देवराज चौहान को देखता रहा फिर कह उठा- “तुम आखिर ये सब क्यों कर रहे हो ?”

“मेरा मन कहता है कि तुम्हें जेल से निकाल दूँ तो मैं तुम्हें.... ।”

“ये बात नहीं है । बात कुछ और भी है ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

तभी कबीर अली चाय दे गया । तीनों चाय पीने लगे । परन्तु जब्बार मलिक के माथे पर लकीरें नजर आ रही थीं ।

“बताओ, तुम मुझे जेल से क्यों निकाल रहे हो ?”

“अगर तुम इसी सवाल में उलझे रहोगे तो कल जेल से नहीं निकल पाओगे ।”

जब्बार ने कुछ नहीं कहा । चाय का घूँट भरा ।

“तुम यहाँ से बाहर नहीं जाना चाहते तो... ?”

“कितनी बार कहूँ कि मैं जेल से निकल जाना चाहता हूँ ।” जब्बार कह उठा ।

“तो अपना पूरा ध्यान जेल से निकलने पर लगा दो । खामख्वाह का कोई दूसरा सवाल न करो ।”

तभी देवराज चौहान का मोबाइल बज उठा ।

“बड़ा खान का फोन होगा ।” जब्बार के होंठों से निकला ।

देवराज चौहान ने फोन पर बात की । बड़ा खान का ही फोन था ।

“तुम हर बार बहुत मौके पर फोन करते हो । खासतौर से तब जब मैं जब्बार से बात कर.... ।”

“सूरजभान मेरे आदमी तुम पर नजर रख रहे हैं । वह मुझे बता देते हैं कि तुम जेल में गए और जेल के भीतर मौजूद मेरे आदमी बता देते हैं कि अब तुम जब्बार से मुलाकात कर रहे हो ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“तो अपने लम्बे हाथों का भरपूर फायदा उठा रहे हो ।” देवराज चौहान का स्वर शांत था ।

“शर्मा कहाँ है ?”

“तुम मुझ पर नजर रखवा रहे हो । तुम्हें पता होगा कि वह कहाँ है ।”

“रात जब तुम शर्मा के साथ फ्लैट से निकले तो मेरे आदमी कार न स्टार्ट होने की वजह से, तुम्हारे पीछे नहीं जा सके थे ।”

“अफसोस हुआ । रात तुम्हारा भेजा खाना बहुत स्वादिष्ट था ।” देवराज चौहान ने तीखे स्वर में कहा ।

“तुम्हें कैसे पता कि उसमें जहर था ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“ये बात तुम कैसे कह सकते हो कि मुझे ये बात पता चल गई थी ?”

“क्योंकि तुम अभी तक जिन्दा हो । जहर के बारे में शर्मा ने बताया तुम्हें ?”

“नहीं !”

“शर्मा है कहाँ ?”

“देर-सवेर में तुम्हें उसके बारे में खबर मिल जायेगी ।” देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला ।

“तो तुमने उसे मार दिया ।”

“वह तुम्हारे लिए काम करता था और मेरे लिए जहर भरा खाना लाया था ।”

“तुम सच में खतरनाक हो ।”

“तुम्हारे लिए और उन लोगों के लिए जो तुम्हारे लिए काम करते हैं । तुमने दो बार कोशिश कर ली मुझे मारने की । एक बार दिल्ली में और दूसरी बार रात जम्मू में । परन्तु मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सके ।”

“मुझे तुम्हारे बारे में दोबारा से सोचना पड़ेगा । तुम वास्तव में शातिर हो ।”

“तुम बचने वाले नहीं ।”

“जब्बार से मेरी बात कराओ ।”

“किसी कीमत पर नहीं । मैंने कल ही मना कर दिया था कि अब बात नहीं कराऊँगा ।”

जब्बार की निगाह देवराज चौहान पर थी । जबकि भूपेंद्र कालिया इस बातचीत को कुछ खास नहीं समझ पा रहा था ।

“तुम्हारे और जब्बार के बीच क्या चल रहा है ?” कानों में पड़ने वाला बड़ा खान का स्वर शांत था ।

“मैं बहुत जल्द जब्बार को जेल से बाहर निकालने जा रहा हूँ । इससे तुम समझ सकते हो कि हालात कैसे हैं ।”

“तुम कहना चाहते हो कि जब्बार ने मेरे बारे में सब कुछ बता दिया है ।”

“तुम सोच भी नहीं सकते वहाँ तक, जहाँ तक उसने मुझे बताया है । तुम तो अब गए बड़ा खान ।”

बड़ा खान की आवाज नहीं आई । 

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव कच्ची गोलियाँ नहीं खेलता बड़ा खान । एनकाउंटर स्पेशलिस्ट मुझे यूँ नहीं कहा जाता । तुम जैसे लोगों तक पहुँचकर, शूट करना ही मेरा काम.... ।”

उधर से बड़ा खान ने फोन बन्द कर दिया था । देवराज चौहान ने मुस्कुराकर होंठ सिकोड़े और मोबाइल जेब में रख लिया । जब्बार मलिक माथे पर बल डाले देवराज चौहान को देख रहा था ।

“क्या हुआ ?” देवराज चौहान हौले से हँसा ।

“तुम आखिर क्या खेल खेल रहे हो ?”

“तुम्हारे लिए तो खेल सस्ता ही है । कल तुम जेल से बाहर निकलने जा रहे हो ।”

“तुम्हारी बातों से स्पष्ट जाहिर है कि तुम बड़ा खान से कह रहे हो कि मैंने तुम्हें उसके बारे में सब बता दिया है ।”

“तुम्हें इससे क्या फर्क पड़ता है ।”

“पर तुम इतनी गलत बात बड़ा खान से क्यों कर रहे हो ?” जब्बार नाराजगी से बोला ।

“बड़ा खान तुम पर ज्यादा भरोसा करता है या मुझ पर ?”

“तुम पर वह भरोसा क्यों करेगा ?” जब्बार बोला ।

“ठीक कहा । तुम उसके आदमी हो । वह तुम पर ही भरोसा करेगा । जब यहाँ से बाहर निकलो और बड़ा खान से मिलो तो उसे बता देना । मैंने झूठ कहा था उससे । बात खत्म । देवराज चौहान ने सरल स्वर में कहा ।

“परन्तु तुम बड़ा खान से ऐसा क्यों कह रहे हो ?”

“मुझे वह पसन्द नहीं । मैं अपनी बातों से उसे परेशान कर देना चाहता हूँ ।”

“ये बात नहीं ।”

“तो ?”

“तुम कुछ कर रहे हो । मुझे मुफ्त में जेल से निकाल रहे हो । बड़ा खान से कह रहे हो कि मैंने तुम्हें उसके बारे में सब बता दिया है । इन सब बातों के पीछे कुछ तो है ही ।” जब्बार ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।

देवराज चौहान ने चाय का गिलास नीचे रखा और सिगरेट सुलगा ली ।

“तुम मुझे यूँ ही बाहर नहीं निकाल रहे कोई बात तो है ही ।”

“अगर तुम जेल से नहीं निकलना चाहते तो न सही ।”

जब्बार देवराज चौहान को घूरने लगा ।

“ये बात सच है कि मुझे बड़ा खान पसन्द नहीं ।” देवराज चौहान ने कहा, “तुम जो करते हो, बड़ा खान के इशारे पर ही करते हो । बड़ा खान आतंक फैलाने के ठेके लेता है और तुम जैसे लोगों के द्वारा काम को अंजाम देता है ।”

“कश्मीर को आजाद करवाना है हमने ।” जब्बार गुर्रा उठा । 

“बकवास मत करो । कश्मीर आजाद है और तुम जैसे लोग अपना आतंक का बिजनेस जमाये बैठे हो ।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा, “अब तुमने मेरे सामने कश्मीर का जिक्र किया तो मैं तुम्हें जेल से नहीं निकालूँगा ।”

जब्बार ने होंठ भींच लिए ।

“मैं इस वक्त तुमसे इसलिए बात कर रहा हूँ कि यहाँ के पहरेदारों को लगे कि मैं पूछताछ कर रहा हूँ तुमसे । वरना तुम्हारे पास बैठने का मेरा मन जरा भी नहीं है । मैं तुम्हें भी खास पसन्द नहीं करता । बड़ा खान को तो जरा भी नहीं करता ।”

“तो तुम मुझे खास पसन्द नहीं करते ।”

“क्योंकि तुमने आज तक बहुत मासूमों को मारा है ।”

“तो मुझे जेल से क्यों निकालने जा रहे हो ?”

“ये तुम्हारी इच्छा पर है कि तुम निकलना चाहते हो या नहीं । जबरदस्ती नहीं है कि.... ।”

“जरूर इसके पीछे कोई वजह है ।”

“वजह है ।” देवराज चौहान बोला ।

“क्या ?”

“वह वजह जानना तुम्हारे लिए जरूरी नहीं है । तुम्हारे लिए जरूरी है जेल से निकल जाना ।”

जब्बार ने होंठ भींच लिए ।

तभी भूपेंद्र कालिया कह उठा- “अगर ये जेल से नहीं निकलना चाहता तो तुम इसे निकालने पर क्यों लगे हो ?”

“अब मैं भी इस बारे में ही सोचने लगा हूँ ।” देवराज चौहान कड़वे स्वर में बोला ।

“मैं जेल से निकलना चाहता हूँ ।” जब्बार मलिक सख्त स्वर में कह उठा ।

“तो फिर फालतू की बातें क्यों करते हो ?” देवराज चौहान बोला ।

“क्या तुम सच में मुझे जेल से निकाल दोगे ?” जब्बार ने पूछा ।

“जेल से फरारी की योजना तुम्हें बता चुका हूँ ।”

“तुम्हारी योजना बहुत सीधी-साधी है । मुझे शक है कि ये सफल होगी ।” जब्बार ने अपनी शंका जाहिर की ।

“ये सीधी-साधी योजना नहीं है । इस पर मैं मेहनत कर रहा हूँ । तभी तो ये नकली इंस्पेक्टर इस वक्त मेरे साथ बैठा है । इसकी कद-काठी तुम्हारी तरह ही है । मैं रोज-रोज जो तुमसे जेल में मिलने आ रहा हूँ, ये उसी योजना का एक हिस्सा है । ये योजना इतनी आसान नहीं है, जितनी कि तुम समझ रहे हो । मैं मेहनत कर रहा हूँ इस पर । मेरी योजना में कोई कमी नहीं है । अगर तुम्हारी किस्मत ही खराब हुई तो फिर मैं कुछ नहीं कर सकता ।”

“तु… तुम क्या किसी के कहने पर मुझे बाहर निकाल रहे हो यहाँ से ?”

“नहीं ! ये मेरी मर्जी है ।”

“मेरे ख्याल में तुम मुझे जेल से बाहर निकालोगे और पहले से ही तैयार तुम्हारे आदमी मेरा पीछा करने लगेंगे । ये जानने के लिए कि कब मैं बड़ा खान के पास पहुँचता हूँ । ये सब कुछ तुम बड़ा खान तक पहुँचने के लिए कर रहे हो ।”

“ये बकवास तुम पहले भी कर चुके हो । परन्तु ऐसा कुछ नहीं है । कल तुम जेल से बाहर निकल आओ, ये बात पहले मेरे और तुम्हारे बीच थी । अब ये तीसरा आदमी भी जानता है, बस । हम तीनों ही इस बात के राजदार हैं । जेल से बाहर निकलने के बाद कोई तुम्हारे पीछे नहीं होगा । तुम पूरी तरह आजाद होओगे ।”

जब्बार गहरी साँस लेकर रह गया । चेहरे पर अविश्वास के भाव थे । 

“कल वैसा ही करना जैसा मैंने कहा है । सुबह नौ बजे अपने सिर के बाल काटना शुरू कर देना । बहुत बड़े हैं ये । फिर शेव बनाना । इसकी तरह क्लीन शेव्ड हो जाना । हम जब आए तो तुम इसी हाल में तैयार मिलो । तुम दोनों को सिर्फ पाँच मिनट मिलेंगे, एक-दूसरे के कपड़े पहनने को । इससे ज्यादा देर हम कोठरी में नहीं रह सकते । शेव करने और सिर के बाल काटने के बाद तुम कोठरी के दरवाजे तक नहीं आओगे । गनमैन तुम्हारा बदला हुलिया देख लेंगे तो सारा प्लान फेल हो जायेगा । उसके बाद रोज की तरह हम बाहर कुर्सियों पर बैठेंगे । कबीर चाय लाएगा । एक-डेढ़ घण्टा बैठने के बाद हम यहाँ से चल.... ।”

“तुम्हारा मतलब पुलिस की वर्दी पहनने के बाद मैं घण्टा भर यहाँ बैठूँगा ?” जब्बार के होंठों से निकला ।

“हाँ !”

“और कबीर तब चाय भी लाएगा ?”

“हाँ !”

“कबीर मुझे आसानी से पहचान सकता... ।”

“वहम में मत पड़ो । तुमने पुलिस टोपी सिर पर डाल रखी होगी । कैप को माथे पर थोड़ा और झुका लेना । मैं उसे यहाँ ज्यादा देर नहीं रुकने दूँगा आज की तरह । तुम जूते बाँधने के लिए झुक जाना ।”

लेकिन वह इसे भी तो देखेगा ।” जब्बार ने भूपेंद्र कालिया की तरफ इशारा किया, “ये ठीक है कि तब इसके चेहरे पर दाढ़ी-मूँछें होंगी । परन्तु वह फौरन समझ सकता है कि ये जब्बार नहीं है । गनमैनों से बचा जा सकता है कि वह कुछ दूर रहते हैं, परन्तु कबीर अली तो... ।”

“बात तो इसकी सही है ।” भूपेंद्र कालिया कह उठा ।

“तो कल चाय नहीं मंगवाई जायेगी ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“ये ठीक रहेगा ।” भूपेंद्र कालिया ने सिर हिला दिया ।

☐☐☐

जेलर को चाबी देने के बाद देवराज चौहान और भूपेंद्र कालिया जेल से बाहर आये ।

“जब्बार को इस तरह बाहर निकालने की कोशिश करके तुम रिस्क वाला काम कर रहे हो ।” भूपेंद्र कालिया बोला ।

“जानता हूँ ।”

“तुम्हारी जगह मैं होता तो ये काम कभी न करता । वह खतरनाक आतंकवादी है ।”

देवराज चौहान खामोश रहा ।

दोनों टैक्सी लेने के लिए सड़क पर आ पहुँचे ।

देवराज चौहान का मोबाइल बजने लगा ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान !” ए.सी.पी. संजय कौल की व्याकुल आवाज कानों में पड़ी, “बहुत ही बुरी खबर है । शर्मा का किसी ने मर्डर कर दिया है ।”

“ओह ! ये आप क्या कह रहे हैं ?” देवराज चौहान ने ढेर सारी हैरानी-परेशानी जाहिर की, “ये कैसे हो... ।”

“मेरे ख्याल में बड़ा खान ने उसे मारा है । वह तुम्हारे साथ ड्यूटी दे रहा था और तुम जब्बार पर लगे हो ।”

“ये हो सकता है ।” देवराज चौहान ने आतुरता दिखाते हुए कहा, “सब-इंस्पेक्टर शर्मा की लाश कहाँ है ?”

“वह हमें एक वीरान सड़क पर पुलिस कार में मिली है । वहाँ से निकलने वाले लोगों ने पुलिस को खबर दी ।” इसके साथ ही इंस्पेक्टर संजय कौल ने बताया कि लाश कार में पड़ी है ।

“मैं अभी वहाँ पहुँचता हूँ सर । ये तो बहुत बुरा हुआ ।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया ।

“क्या हुआ ?”

“किसी पुलिस वाले की लाश मिली है । मुझे वहाँ जाना होगा ।” देवराज चौहान ने चाबी निकालकर भूपेंद्र कालिया को दी, “ये फ्लैट की चाबी है । तुम वहाँ जाओ, मैं फुर्सत पाकर वहीं आऊँगा । फ्लैट से बाहर मत निकलना । खाने-पीने का सामान फ्रिज में पड़ा है । ये वर्दी उतारकर दूसरे कपड़े पहन लेना । कल काम करना है, वर्दी खराब नहीं होनी चाहिए ।”

☐☐☐

अगले चार घण्टे देवराज चौहान वहीं पर पुलिस वालों के पास रहा, जहाँ पुलिस कार के भीतर शर्मा का शव मिला था । ए.सी.पी. कौल भी वहाँ था । कार्यवाही हो चुकी थी । फिंगरप्रिंट कार से उठाये जा चुके थे । शर्मा की रिवॉल्वर पाँवों के पास पायदान पर पड़ी मिली होने से पुलिस वालों का अनुमान था कि मरने से पूर्व शर्मा ने खुद को बचाने के लिए रिवॉल्वर का इस्तेमाल करने की चेष्टा की, परन्तु सफल नहीं हो पाया था ।

ए.सी.पी. कौल देवराज चौहान के पास आया ।

“शर्मा रात तुम्हारे पास से कब गया ?”

“साढ़े नौ के करीब ।”

“मेरा ख्याल है कि उसके बाहर निकलते ही बड़ा खान के आदमियों ने उसे घेर लिया और यहाँ लाकर हत्या कर दी ।”

“हत्या करने के लिए शर्मा को यहाँ लाने की क्या जरूरत थी । वह वहीं उसे मार.... ।”

“उन लोगों ने शर्मा से पूछताछ की होगी ।” कौल ने गम्भीर स्वर में कहा, “शर्मा इन दिनों तुम्हारे साथ ड्यूटी पर था । शायद बड़ा खान के आदमी जब्बार के बारे में जानना चाहते होंगे कि कहीं उसने मुँह तो नहीं खोला । सूरजभान ये तुम्हारे लिए चेतावनी है, बड़ा खान तुम्हें भी अपना निशाना बना सकता है ।”

“मैं सतर्क रहूँगा सर !” देवराज चौहान ने कहा ।

“शर्मा के मरने का मुझे बहुत दुःख है ।” कहकर कौल अन्य पुलिस वालों के साथ व्यस्त हो गया ।

देवराज चौहान का फोन बजा ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।

“पहले कत्ल करते हो और फिर उसी कत्ल की तफ्तीश करते हो ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“तुम अच्छी तरह जानते हो बड़ा खान कि मैंने शर्मा को क्यों मारा ।” देवराज चौहान का स्वर धीमा था ।

“तुम्हें मुझसे डरना चाहिए ।”

“मैं डरने वाला नहीं ।”

“तुम्हें शक कैसे हुआ कि रात के खाने में जहर है ?” उधर से बड़ा खान ने पूछा ।

“मैं अपराधियों की सोचों से वाकिफ हूँ कि वह कब क्या करते हैं । फिर बड़ा खान जैसे डरपोक अपराधी के विचारों को जान लेना मेरे लिए मामूली बात है ।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा ।

“तुम मुझे डरपोक कहकर, मेरा संयम नहीं तोड़ सकते । क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं डरपोक नहीं हूँ ।”

“तुम डरपोक हो । क्योंकि खुद छिपे रहते हो और अपने आदमियों से काम करवाते हो ।”

“दौलत वाला इंसान ऐसे ही अपराध करता है ।” उधर से बड़ा खान ने हँसकर कहा, “मैं जब्बार के बारे में जानना चाहता हूँ कि उसके साथ तुम्हारी क्या खिचड़ी पक रही है ?”

देवराज चौहान के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी ।

“जब्बार मलिक तुम्हारी तरह बेवकूफ नहीं है । वह समझदार है और हालातों को बखूबी समझता है ।”

“क्या-क्या बताया उसने तुम्हें ?”

“सब कुछ । मेरे आदमी कभी भी तुम तक पहुँच सकते हैं । तुम कभी भी पकड़े या मारे जा सकते हो ।”

कुछ लम्बी खामोशी के बाद बड़ा खान की आवाज आई ।

“ये नामुमकिन है ।”

“क्यों ?”

“मुझ तक कोई नहीं पहुँच सकता । मुझ जैसा सुरक्षित दूसरा कोई नहीं ।”

“मैंने आज तक जिन-जिन के एनकाउंटर किये हैं वे सब भी ऐसा ही सोचते थे । परन्तु मारे गए । मेरे आदमी... ।”

“तुम अपने किन आदमियों की बात कर.... ।”

“पुलिस वाले ।” देवराज चौहान ने फौरन कहा, “अभी तक तुम ये ही समझ रहे हो कि मैं अकेला दिल्ली से आया हूँ । परन्तु गुप्त तौर पर मेरे साथ ग्यारह लोग भी हैं । मैं जब भी किसी काम पर निकलता हूँ तो इसी तरह निकलता हूँ । वह ग्यारह के ग्यारह अचूक निशानेबाज हैं । चालाक और फुर्तीले हैं । जब्बार मुझे जो बता रहा है, उसी के आधार पर मैं उन्हें आदेश देकर, उनसे काम ले रहा हूँ । वह कभी भी तुम तक पहुँच सकते हैं ।”

“बकवास ।” उधर से बड़ा खान एकाएक गुर्रा उठा ।

“मेरी सही बात को तुम बकवास कह... ।”

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।” उधर से बड़ा खान ने शब्दों को चबाकर कहा, “मैं जहाँ पर हूँ, वहाँ मेरी मर्जी के बिना सिर्फ हवा ही पहुँच सकती है और ये जगह जब्बार नहीं जानता ।”

देवराज चौहान हँस पड़ा फिर बोला ।

“मैं तुम्हें ऐसी बात बताता हूँ, जो कि तुम नहीं जानते ।”

“क्या ?”

“जब्बार मलिक तुम्हारी जासूसी किया करता था । जब्बार ने ही कही ये बात । तुम सोच भी नहीं सकते कि वह तुम्हारे बारे में क्या-क्या जानता है । सच में जब्बार का दिमाग बहुत तेज है ।”

“तुम ये सब बातें मुझे क्यों बता रहे हो ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“क्योंकि मैं तुम्हारी परवाह नहीं करता । तुम मरने वाले हो । दिल्ली से मुझे जब्बार मलिक के लिए नहीं, तुम्हारे लिए भेजा गया है कि तुम्हें खत्म कर दूँ और मैं अपना काम पूरा करने के काफी नजदीक हूँ । मैंने आज तक जिन लोगों का शिकार किया है, वे कभी समझ ही नहीं पाये कि मैं कब और कैसे उन तक पहुँच गया ।”

“तुम इन बातों से मुझे कमजोर नहीं बना सकते ।”

“दो दिन में जब्बार जेल से बाहर होगा । उसने वादे के मुताबिक तुम्हारे बारे में सब बता.... ।”

“मुझे तुम्हारी किसी बात पर यकीन नहीं आ रहा ।”

“दो दिन बाद जब्बार से मिल लेना । वैसे आज रात तुम मेरा क्या करने वाले हो ?”

“क्या मतलब ?”

“कल तुमने मुझे खाने में जहर देने की चेष्टा की, आज रात मुझे मारने के लिए क्या करोगे ?”

“मैं जवाब देने की जरूरत नहीं समझता ।”

“पुलिस का ख्याल है कि बड़ा खान ने शर्मा को मारा है ।”

“मानता हूँ । पुलिस के ख्याल से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । लेकिन एक बात तो तय है कि तुम मौत के करीब पहुँच चुके हो । बड़ा खान से पंगा लेकर तुमने भारी मुसीबत मोल ले ली है ।”

“अब तुम कहोगे कि मैं जम्मू से भाग जाऊँ ।”

“कहीं भी जाओ, परन्तु बच नहीं सकते । लेकिन तुमने मुझे उलझा दिया है । जब्बार को पुलिस या कानून इस तरह जेल से बाहर नहीं निकाल सकती और तुम कहते हो कि वह दो दिन में जेल से बाहर होगा ।”

“यकीनन ।”

“ये सम्भव नहीं ।”

“देख लेना ।”

“कानून इस तरह किसी को आजाद नहीं कर... ।”

“इसका जवाब तुम्हें दो दिन में मिल जायेगा ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया ।

पुलिस वाले अपनी कार्यवाही के अंतिम चरण पर पहुँच चुके थे । कौल से विदा लेकर देवराज चौहान एक पुलिस वाले की मोटर साईकिल पर जा बैठा जो कि वहाँ से जा रहा था ।

भीड़-भाड़ वाले इलाके में पहुँचकर देवराज चौहान ने मोटरसाइकिल छोड़ी और ऑटो में सवार होकर उस बाजार में पहुँचा जहाँ उसे शर्मा लाया था । वह सतर्क था कि बड़ा खान के आदमी उस पर हमला न कर दें । फिर देवराज चौहान उस दुकान पर पहुँचा जहाँ उसने दाढ़ी-मूँछों और विग को तैयार करने को कहा था ।

उसका सामान तैयार था ।

सब कुछ वैसा ही था जैसा उसने बनाने को कहा था । उसके बाद देवराज चौहान फ्लैट पर पहुँचा । भूपेंद्र कालिया फ्लैट पर ही था । देवराज चौहान ने उसे विग, दाढ़ी-मूँछें लगाकर देखीं । सब ठीक था । दूर से देखने पर जब्बार जैसा ही लग रहा था वह ।

“ये ठीक है ।” देवराज चौहान ने कहा, “उतार लो । हमारी तैयारी ठीक हो रही है ।”

“तुम्हें भरोसा है कि कल तुम जब्बार को जेल से निकाल लोगे ?” भूपेंद्र कालिया ने पूछा ।

“आसमान से कोई मुसीबत न गिरी तो मैं पक्का उसे जेल से बाहर ले आऊँगा ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“पहले मैं नहीं जानता था कि ये मामला बड़ा खान से जुड़ा है ।” भूपेंद्र कालिया बोला ।

“तुम्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । क्योंकि तुम इस मामले से कोई वास्ता नहीं रखते ।”

“शाम हो रही है, कुछ देर बाद मैं पीना चाहूँगा । बोतल ले आऊँ ?” उसने कहा ।

“रोज पीते हो ?” देवराज चौहान ने उसे देखा ।

“कभी-कभी । आज इसलिए पी रहा हूँ कि कल से पुलिस के चक्कर में फँस जाना है ।” भूपेंद्र कालिया हँसा ।

“आधी बोतल पड़ी है, पी लेना । खाना बनाना जानते हो ?”

“कुछ-कुछ ।”

“तो आज रात का खाना जैसा-तैसा भी हो, तैयार कर लेना । हमारे बाहर जाने में खतरा है । कल जब्बार को जेल से बाहर लाना है और मैं आज रात कोई रिस्क नहीं लेना चाहता ।”

“तुम्हें डर है कि बड़ा खान तुम्हारे साथ कुछ कर सकता है ।”

“वह कुछ भी कर सकता है । वह छिपकर कोई भी वार कर सकता है और मेरा खेल तो तब शुरू होगा जब जब्बार जेल से बाहर आ जायेगा ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“कैसा खेल ?”

तभी देवराज चौहान का फोन बजा ।

दूसरी तरफ ए.सी.पी. कौल था ।

“मैं एक हवलदार भेज रहा हूँ । वह तुम्हारी जरूरतें पूरी करेगा और खाना भी दे जायेगा ।”

“मुझे कुछ नहीं चाहिए । आप मेरी चिंता न करें । मैं खाना ले आया हूँ ।” देवराज चौहान नहीं चाहता था कि शर्मा की तरह अब कोई और भेड़ की खाल में, भेड़िया उसके पास आ पहुँचे, “मुझे जरूरत पड़ी तो मैं आपको फोन करूँगा । मेरे पास किसी को न भेजें ।”

“जैसी तुम्हारी इच्छा ।” उधर से कौल ने कहा ।

“मेरी चिंता करने का शुक्रिया ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया ।

☐☐☐

आज काम का दिन था ।

जब्बार मलिक को जेल से बाहर निकालना था ।

दिन के दस बज रहे थे । देवराज चौहान और भूपेंद्र कालिया तैयार थे । दोनों ने पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी पहन रखी थी । नाश्ते में उन्होंने ब्रेड से काम चला लिया था ।

“तुम्हें कोई घबराहट तो नहीं हो रही ?” देवराज चौहान ने भूपेंद्र कालिया से पूछा ।

“मेरी फिक्र मत करो । मैं ठीक हूँ ।” भूपेंद्र कालिया ने शांत स्वर में कहा ।

“तो चलते हैं यहाँ से ।”

दोनों फ्लैट से बाहर निकले । फ्लैट लॉक किया ।

ऑटो में वे जम्मू की सेंट्रल जेल पहुँचे । रोज की तरह जेल के भीतर पहुँचने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई ।

जेलर के ऑफिस में पहुँचे ।

जेलर अपनी कुर्सी पर मौजूद था और एक फाइल खोले उसे देख रहा था ।

“आओ सूरजभान !” जेलर उन्हें देखते ही मुस्कुराया, “कैसे हो इंस्पेक्टर राजपाल ?”

“वैल सर !”

मुलाकात की रस्म के बाद देवराज चौहान ने कहा ।

“जब्बार की कोठरी की चाबी चाहिए सर !”

जेलर ने अपनी कुर्सी छोड़ी और पीछे पड़ी तिजोरी खोलकर चाबी निकालकर कहा ।

“मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ सूरजभान । जब्बार से मिले मुझे तीन दिन हो गए हैं ।”

देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । उसे अपनी योजना फेल होती दिखी ।

“आप साथ चलें तो मुझे खुशी होगी ।” देवराज चौहान मुस्कुराकर कह उठा, “लेकिन मेरी राय है कि आप आज साथ न चलें ।”

“क्यों ?” जेलर ने देवराज चौहान को देखा ।

“मेरी कुछ खास बात चल रही है जब्बार से । हो सकता है वह आज बड़ा खान के बारे में मुँह खोल दे । परन्तु आपके साथ होने से मेरी सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है । मैं जब्बार को कठिनता से रास्ते पर ला रहा हूँ ।”

“हूं !” पास पहुँचकर जेलर ने चाबी देवराज चौहान को थमाई, “ऐसा है तो मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा ।”

“वैसे आपको साथ ले जाकर मुझे खुशी होती ।”

“और मुझे खुशी होगी अगर तुम जब्बार का मुँह खुलवा सके ।” जेलर ने कहा ।

देवराज चौहान भूपेंद्र कालिया के साथ जेलर के ऑफिस से बाहर निकला ।

“मैं तो घबरा ही गया था, जब जेलर ने साथ चलने को कहा ।” भूपेंद्र कालिया बोला ।

“ऐसी बातों को ही आसमानी मुसीबत कहते हैं ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

दोनों कुछ ही आगे बढ़े थे कि सामने से कबीर अली आता दिखा ।

“वह आ रहा है ।” भूपेंद्र कालिया धीमे स्वर में बोला ।

कबीर अली पास आते ही कह उठा ।

“सर !” साथ ही उसने सैल्यूट दिया, “मैं चाय लेकर वहाँ पहुँचता हूँ ।”

“आज नहीं ।” देवराज चौहान ने कहा, “मुझे जल्दी वापस जाना है ।”

“कुछ और चाहिए तो कह दीजिये सर !”

“अभी तो कुछ भी नहीं । दोपहर बाद मैं फिर आऊँगा, तब चाय लूँगा ।”

“जी सर !”

देवराज चौहान और भूपेंद्र कालिया आगे बढ़ गए ।

“तुम सफल हो जाओगे ?” भूपेंद्र कालिया ने पूछा ।

“आशा तो है ।”

“मैंने तो फँसना ही फँसना है । तुम असफल रहे तो तुम भी फँस जाओगे ।”

दोनों आगे बढ़ते रहे । देवराज चौहान को अब जेल में पहरा देने वाले पहचानने लगे थे । रोज की तरह दस मिनट में ही वे जब्बार मलिक की कोठरी पर जा पहुँचे । रोज की तरह छः गनमैन पहरे पर इधर-उधर फैले हुए थे ।

सलाखों के पास जब्बार मलिक नहीं दिख रहा था ।

देवराज चौहान ने चाबी लगाकर ताला खोला ।

“कौन है ?” भीतर से जब्बार की आवाज आई ।

“मैं हूँ ।” देवराज चौहान बोला ।

“आ जाओ ।”

देवराज चौहान ने चार बार चाबी घुमाने के बाद दरवाजे को धकेला तो खुलता चला गया ।

देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया । साथ ही भूपेंद्र कालिया ने भीतर प्रवेश किया ।

सीमेंट के चबूतरे के पास जब्बार मलिक मौजूद था ।

क्लीन शेव्ड । सिर के बाल उसने खुद ही काटकर छोटे-छोटे कर लिए थे । नहाया हुआ था वह । गम्भीर आँखों से उसने देवराज चौहान और भूपेंद्र कालिया को देखा । जिस्म पर सिर्फ पुराना सा अंडरवियर था ।

“मैं सच में आज निकल जाऊँगा बाहर ?” जब्बार की आवाज में अविश्वास के भाव थे ।

“आशा तो है ।” देवराज चौहान ने कहा और भूपेंद्र कालिया से बोला, “तुम जब्बार की तरफ जाओ और बाहर वालों को न दिखो । अपनी वर्दी उतारकर इसे दो और चबूतरे पर पड़े जब्बार के जेल के कपड़े पहनो ।”

भूपेंद्र कालिया आगे बढ़ा और फुर्ती से जिस्म पर पड़ी वर्दी उतारने लगा । देवराज चौहान कोठरी के दरवाजे के सामने खड़ा हो गया ताकि बाहर वाले गनमैन उसे न देख सके । जब्बार मलिक फुर्ती से भूपेंद्र कालिया की उतारी वर्दी पहन रहा था, और भूपेंद्र उसके जेल के कपड़े पहन रहा था ।

ये सारा काम दो मिनट में ही पूरा हो गया ।

“कैप पहनो जब्बार ।”

जब्बार मलिक ने वर्दी के साथ की पुलिस टोपी पहनी ।

“भूपेंद्र इसकी कैप ठीक करो और थोड़ी सी माथे पर झुका दो ।”

भूपेंद्र कालिया ने ऐसा ही किया ।

“अब वर्दी की जेबों से दाढ़ी-मूँछें-विग निकालो और पहन लो ।”

भूपेंद्र कालिया ने दाढ़ी-मूँछें-विग निकाली और उसे लगाने लगा ।

“जब्बार !”देवराज चौहान बोला, “इसकी दाढ़ी-मूँछ-विग ठीक से सैट कर दो ।”

जब्बार ने ऐसा ही किया ।

अगले दो मिनटों में भूपेंद्र कालिया, जब्बार के रूप में आ चुका था ।

कुल चार मिनटों में वे एक-दूसरे के रूप में आ चुके थे ।

“चाल में थोड़ी अकड़ रखो जब्बार । अब तुम कैदी नहीं पुलिस वाले हो ।” देवराज चौहान बोला ।

सब ठीक हो गया था ।

“चलो बाहर ।” देवराज चौहान खुले दरवाजे की तरफ बढ़ा, “जब्बार तुम मेरे पीछे रहो ।”

जब्बार मलिक ने ऐसा ही किया । वह देवराज चौहान के पीछे कोठरी से बाहर आया । ये जुदा बात थी कि उसका दिल जोरों से धड़क रहा था । उसे इस बात का डर था कि शायद वह फरार न हो पाये ।

भूपेंद्र कालिया तीसरे नम्बर पर कोठरी से बाहर निकला ।

“वह स्टोर है, वहाँ से तीन कुर्सियाँ उठा लाओ ।”

भूपेंद्र कालिया कैदियों के कपड़ों में दाढ़ी-मूँछ और बड़े बालों में उसी स्टोर जैसे कमरे की तरफ बढ़ गया । फौरन ही तीन कुर्सियाँ उठा लाया । तीनों कल की तरह कुर्सियों पर बैठ गए ।

“हमें यहाँ से निकल जाना चाहिए था ।” जब्बार धड़कते दिल से कह उठा । उसका स्वर बेहद धीमा था ।

“चुप रहो !”

“कबीर चाय लाएगा आज ?” जब्बार ने पुनः पूछा ।

“नहीं !” देवराज चौहान बोला, “तुम पुलिस वाले की तरह बैठो ।”

जब्बार संभलकर बैठ गया ।

देवराज चौहान ने भूपेंद्र कालिया से कहा- “हमारे जाने के बाद तुम फँस जाओगे ।”

“हाँ । लेकिन साल-डेढ़ साल में मैं खुद को बचा लूँगा । राठी मेरे लिए वकील करेगा ।”

“ये खतरा तुमने पंद्रह लाख के लिए उठाया ?”

“हाँ । मेरी पत्नी के ऑपरेशन के लिए पैसे चाहिए थे । इतनी बड़ी रकम तभी मिल सकती है जब मैं कुछ कर के दिखाऊँ ।” भूपेंद्र कालिया ने गम्भीर स्वर में कहा, “राठी मेरी पत्नी का इलाज करायेगा । इलाज में पैसा कम पड़ा तो वह अपने पास से देगा ।”

“राठी क्या काम करता है ?”

“तुमने उससे पूछा नहीं ?”

“मैं अपने कामों में इतना व्यस्त था कि पूछ नहीं पाया ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“वह ड्रग्स का काम करता है । अफगानिस्तान से उसके आदमी ड्रग्स लाते हैं और हजारों की ड्रग्स को वह इंटरनेशनल मार्केट में करोड़ों में बेचता है । यूँ वह मोटर पार्ट्स का धंधा करता है दिखावे के लिए ।” भूपेंद्र कालिया ने बताया ।

“तुम्हें भरोसा है कि राठी अपनी बात पर खरा उतरेगा और तुम्हारी पत्नी का इलाज करायेगा ।”

“मुझे पूरा भरोसा है उस पर । वह मेरे लिए वकील का भी इंतजाम करायेगा ।”

देवराज चौहान ने सिर हिलाया और सिगरेट सुलगा ली ।

“आखिर हम यहाँ बैठे कर क्या रहे हैं ?” जब्बार बेचैनी भरे स्वर में कह उठा ।

“चुप रहो । सब्र के साथ बैठो । अभी हमें कम से कम आधा घण्टा यूँ ही बैठना है । हम रोज ही इस तरह बैठते हैं ।”

“मैं यहाँ से भाग जाना चाहता हूँ ।”

“तुम्हारी जल्दबाजी तुम्हें फँसा देगी ।” भूपेंद्र कालिया कह उठा ।

जब्बार खामोश हो गया ।

“मैंने तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं पूछा ।” भूपेंद्र कालिया ने कहा ।

“मेरे बारे में तुम कुछ न ही जानो तो अच्छा है । क्योंकि अब तुम पुलिस के पास फँसने जा रहे हो ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“ठीक कहते हो ।” भूपेंद्र कालिया ने गहरी साँस ली, “मैं अब फँस जाऊँगा ।”

“पुलिस तुम्हें जब्बार का साथी समझेगी क्योंकि तुमने इसे फरार करवाने में सहायता की ।”

“मैंने सिर्फ इंस्पेक्टर सूरजभान यादव की सहायता की । पुलिस वाले ने कानून के नाम पर कुछ देर के लिए मेरे से सहायता मांगी थी । इंस्पेक्टर यादव ने मुझसे कहा था कि खतरनाक कैदी को दूसरी जगह ट्रांसफर करना है । परन्तु उसके साथी उसे छुड़ा लेने के लिए तैयार हैं । तुम खामोशी से जब्बार को जेल से निकालकर दूसरी जगह पुलिस कस्टडी में पहुँचा देना चाहते थे । इसलिए तुमने मुझे नकली पुलिस वाला बनाकर जब्बार को बाहर निकाला और कहा कि कुछ घण्टों बाद वापस आकर मैं तुम्हें बाहर निकाल दूँगा । इस काम के बदले हर रोज के तुमने मुझे पाँच हजार रूपये दिये ।” भूपेंद्र कालिया ने बेहद शांत स्वर में कहा ।

“तो तुमने पुलिस को सुनाने के लिए कहानी तैयार कर ली ?”

“हाँ । ऐसा ही कुछ मुझे पुलिस को कहना पड़ेगा । वह कुछ भी कहे मुझे अदालत में भी अपनी बात पर अड़े रहना होगा । इससे पहले मेरे नाम पर कोई जुर्म दर्ज नहीं हुआ । मैं कानून से बच निकलूँगा ।” भूपेंद्र कालिया मुस्कुराया ।

“तुम हिम्मत वाले हो । राठी ने मुझे अच्छा बन्दा दिया ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“राठी मेरी पत्नी का इलाज करायेगा । उसका ध्यान रखेगा ।”

“ये राठी कौन है ?” जब्बार मलिक कह उठा ।

“तुम इन बातों में दखल मत दो ।” देवराज चौहान बोला, “ये बातें तुम्हारे काम की नहीं हैं ।”

“यहाँ से कब निकलोगे ?” व्याकुलता से कहा जब्बार मलिक ने ।

यही वह वक्त था कि देवराज चौहान का मोबाइल बजने लगा ।

“बड़ा खान का फोन होगा ।” जब्बार के होंठों से निकला, “मेरी बात कराओगे उससे ?”

देवराज चौहान मुस्कुराया और मीठे स्वर में बोला ।

“जल्दी क्या है । अब तुमने बाहर जाकर उससे बात करनी है । मिलना है । जो योजना तुम लोगों ने बना रखी है । उस पर काम करना है ।”

“कम से कम उसे ये तो बता दो कि मैं आज जेल से बाहर निकलने वाला हूँ ।”

“जेल से निकलकर तुम ही बताना उसे कि जेल से बाहर आ गए हो ।”

देवराज चौहान ने बात की । दूसरी तरफ बड़ा खान ही था ।

“आज बहुत देर लगा दी कॉल रिसीव करने में ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“जब्बार के साथ बातचीत में व्यस्त हूँ । वह तुम्हारे बारे में अहम जानकारियाँ दे रहा है ।” देवराज चौहान बोला ।

“तुम ये बात-बात पर मुझे क्यों बताते हो कि वह तुम्हें मेरे बारे में बता रहा है ।”

“तुम भी तो उत्सुक हो ये जानने के लिए कि मैं क्या कर रहा हूँ । जब्बार मुझे क्या-क्या बता रहा है ।” देवराज चौहान मुस्कुराकर कह उठा, “मैंने गलत तो नहीं कहा बड़ा खान । वरना तुम मुझे बार-बार फोन क्यों करते ।”

“ठीक कहते हो ।” बड़ा खान का शांत स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा, “परन्तु तुम मुझे ये नहीं बताते कि जब्बार ने तुम्हें क्या बताया । जबकि तुम्हें ये भी बताना चाहिए ।”

“ये बताकर मैं अपना खेल नहीं खराब करना चाहता ।”

जब्बार मलिक गम्भीर नजरों से देवराज चौहान को देख रहा था ।

“खेल ?”

“तुम्हारे एनकाउंटर का खेल । तुम्हारी मौत का खेल ।”

“भूल जाओ कि तुम मुझे मार दोगे । तुम मुझे कभी देख भी नहीं पाओगे ।”

“जब्बार की दी जानकारी के दम पर, मैं तुम्हारे सिर में गोली मारूँगा ।”

“तुम्हारी बातों से मेरा दिमाग खराब नहीं होगा । तुमने कहा कि तुम्हारे आदमी मुझ तक पहुँचने वाले हैं ।”

“तो क्या गलत कहा ?”

“अभी तक तो पहुँचे नहीं ।”

“अपनी मौत का खेल देखने के लिए उतावले हो रहे हो ।”

“मुझे तो लग रहा है कि तुम खामख्वाह की बकवासबाजी कर रहे हो । मुझे परेशान करना चाहते हो ।”

“तुम ये ही समझते रहो । मुझे कोई एतराज नहीं ।”

“जब्बार इस वक्त तुम्हारे सामने बैठा है । मैं जानता हूँ ।” बड़ा खान ने उधर से कहा ।

“मैंने कब इंकार किया ।”

“मेरी बात कराओ जब्बार से ।”

“नहीं ।”

“जब्बार की दी जानकारी तुम अपने तक रखो तो तीस करोड़ तुम्हारा । जहाँ कहो वहाँ पहुँचा देता हूँ ।”

“मैं रिश्वत नहीं लेता ।”

“पैंतीस करोड़ ले लो ।”

“बेकार कोशिश कर रहे हो । मैं रिश्वत नहीं लेता । वैसे भी जब्बार के साथ मेरा जो समझौता हुआ... ।”

“बकवास मत करो । उस समझौते में कोई दम नहीं है । जो तुमने बताया । तुम पुलिस वाले हो और जब्बार को जेल से नहीं निकाल सकते । कानून से बंधे हो तुम । जबकि तुमने कहा है कि तुम जब्बार को जेल से निकाल दोगे ।”

“सच कहा है ।”

“तुम्हारी बात मानने लायक है ही नहीं ।”

“बहुत जल्दी जब्बार आजाद होगा और तुम समझ जाओगे कि मेरे समझौते में दम है ।”

“तुम पागल हो । मैं तुम्हें 35 करोड़ दे रहा... ।”

देवराज चौहान ने फोन बन्द करके जेब में रख दिया । जब्बार सिकुड़ी आँखों से देवराज चौहान को देख रहा था ।

भूपेंद्र कालिया शांत सा बैठा था ।

“तुम बताते क्यों नहीं कि आखिर तुम किस फेर में हो ?” जब्बार मलिक धीमे स्वर में कह उठा ।

“मैं तुम्हें जेल से आजाद करा देने के फेर में हूँ ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“बड़ा खान से पैसे लिए बिना । विश्वास नहीं होता । जबकि वे तुम्हें तीस करोड़ देने को... ।”

“रकम बढ़ गई है । अब पैंतीस करोड़ हो गई है ।”

जब्बार ने गहरी साँस लेकर कहा ।

“फिर भी तुम मुफ्त में मुझे जेल से निकाल रहे हो ।”

“इसे तुम मेरी दरियादिली भी समझ सकते हो ।” देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान थी ।

जब्बार मलिक होंठ भींचकर रह गया ।

“तुम्हें एक बात कह देना चाहता हूँ कि तुम्हारी वर्दी के साथ जो होलेस्टर है, उसमें नकली रिवॉल्वर है ।” भूपेंद्र कालिया ने कहा ।

जब्बार मलिक चुप रहा । वह बेचैन दिख रहा था ।

“अब हमें चलना चाहिए ।” देवराज चौहान बोला ।

तीनों की नजरें मिलीं ।

“तुम अपना ध्यान रखना भूपेंद्र । मुझे तुम्हारी चिंता रहेगी ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“मैं सब संभाल लूँगा ।”

देवराज चौहान उठते हुए बोला ।

“कुर्सियाँ वापस उस स्टोर में रखो ।”

जब्बार मलिक भी उठा । उसका दिल पुनः तेजी से धड़कने लगा था ।

भूपेंद्र कालिया कुर्सी उठाये स्टोर की तरफ बढ़ गया था ।

“तुम गनमैनों की तरफ पीठ कर लो और तनकर रहो ।”

जब्बार मलिक ने ऐसे ही किया । भूपेंद्र कालिया कुर्सी रखकर आया और अपनी कोठरी की तरफ बढ़ गया ।

देवराज चौहान उसके पीछे चल पड़ा । भूपेंद्र कालिया कोठरी में प्रवेश कर गया ।

देवराज चौहान ने कोठरी का सलाखों वाला दरवाजा बन्द किया और उसमें लगी चाबी को चार बार घुमाया तो दरवाजा लॉक हो गया । भूपेंद्र कालिया सलाखों के पास आ खड़ा हुआ था ।

“कैसा लग रहा है ?” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“पूछो मत । इस वक्त मैं सच में खुद को कैदी समझ रहा हूँ ।” भूपेंद्र कालिया बोला ।

“चलता हूँ ।” चाबी थामे देवराज चौहान पलटा और इंस्पेक्टर की वर्दी में खड़े जब्बार मलिक के पास पहुँचा ।

जब्बार मलिक ने व्याकुल नजरों से उसे देखा ।

“चिंता मत करो ।” देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा, “मेरे साथ पुलिस वालों की तरह चलो । किसी को तुम्हारी चाल पर शक न हो । नब्बे प्रतिशत इस बात के चान्सेज हैं कि हम यहाँ से निकल जायेंगे । आओ ।” कहकर देवराज चौहान आगे बढ़ा तो जब्बार मलिक पुलिस वाले के अंदाज में उसके साथ चल पड़ा ।

सब गनमैन अपनी-अपनी जगह पर खड़े थे । वे सब कुछ देख रहे थे । परन्तु कुछ भी उन्हें नया नहीं लगा था । ये दोनों पुलिस वाले कल भी आये थे और आज भी आये । जब्बार से मिलकर वापस चल पड़े थे । जब्बार उनके सामने ही कोठरी में गया था ।

जब्बार की अदला-बदली हो गई है, ये बात तो वह सोच भी नहीं सकते थे ।

उनकी नजरों के सामने सब ठीक-ठाक चल रहा था । जेल के भीतरी रास्तों को पार करते वे आगे बढ़ते जा रहे थे । रास्ते में उन्होंने कोई बात करने की चेष्टा नहीं की थी ।

दस मिनट में ही वे जेलर के कमरे के करीब जा पहुँचे थे ।

जब्बार मलिक की टाँगे काँप रही थीं । वह मन ही मन घबरा रहा था । वह जानता था कि जेल से बाहर निकलने वाला दरवाजा अब दूर नहीं था और मन में एक ही सवाल था कि क्या वह जेल से फरार हो जायेगा या पकड़ा जायेगा ? 

तभी देवराज चौहान को कबीर अली दिखा । वह जेलर के ऑफिस से बाहर निकला था । उसने कुछ फाइलें उठा रखी थीं । सामने देवराज चौहान पड़ गया । जब्बार मलिक उससे एक कदम पीछे था । देवराज चौहान ने उसकी उठाई फाइलों पर चाबी रखते हुए कहा ।

“ये याद से जेलर साहब को दे देना ।”

जब्बार मलिक देखे जाने के डर से रुका नहीं । आगे निकल गया ।

“आप शाम को आयेंगे सर ?” कबीर अली ने सरसरी तौर पर पूछा ।

“हाँ !” कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ता चला गया ।

दस कदम आगे खड़ा जब्बार मलिक, उसे आता पाकर पुनः चल पड़ा । डर की वजह से उसका गला सूख रहा था । टाँगें जैसे सम्भल न पा रही थीं । उसे लग रहा था कि जैसे चलते हुए वह ठीक से पांव नहीं रख पा रहा है । परन्तु ऐसा कुछ नहीं था । जेल से फरारी की वजह से वह घबराया हुआ था ।

देवराज चौहान उसके फक्क चेहरे को देखा तो कह उठा- “अपने को सम्भालो । तुम तो बहुत हिम्मत वाले हो । बेगुनाहों की जान लेने जैसा घटिया काम तुम जैसे हिम्मती लोग ही करते हैं ।”

जब्बार मलिक ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । सामने ही जेल से बाहर निकलने का फाटक था । जिसके नीचे लगा छोटा सा दरवाजा खुला हुआ था । वहाँ पर पुलिस वाले मौजूद थे ।

“अब हम बाहर निकलने जा रहे हैं ।” देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा ।

जब्बार मलिक ही जानता था कि इस वक्त उसकी क्या हालत है । वे दोनों बिना किसी परेशानी के बाहर आ गए । जब्बार मलिक पसीना-पसीना हो उठा था ।

“रुको मत । आगे बढ़ते रहो । हमें ऑटो... ।”

तभी सामने सड़क से जाता ऑटो दिखा । देवराज चौहान ने हाथ हिलाया तो ऑटो रुक गया ।

“वक्त हमारा साथ दे रहा है ।” देवराज चौहान ने कहा ।

अगले दो मिनटों में देवराज चौहान और जब्बार मलिक ऑटो में बैठे जा रहे थे ।

पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी ने जब्बार मलिक की बहुत सहायता की थी । जब्बार मलिक के होश अभी तक गुम थे । उसे यकीन नहीं आ रहा था कि वह जेल से बाहर आ गया है । परन्तु खतरा अभी टला नहीं था । भीतर किसी भी वक्त ये पता चल सकता था कि कोठरी में जब्बार की जगह कोई और है और जब्बार मलिक फरार हो चुका है । यहाँ से ज्यादा से ज्यादा दूर हो जाना ही बेहतर था ।

जिन पुलिस की वर्दियों ने उन्हें जेल से निकालने में सहायता की थी, उन्हें अब जल्द से जल्द बदल लेना जरूरी था । वरना ये वर्दियाँ उनके लिए मुसीबत खड़ी कर सकती थीं ।

देवराज चौहान ने जब्बार के चेहरे पर निगाह मारी । जब्बार मलिक का चेहरा अभी तक धुंआ-धुंआ हो रहा था ।

देवराज चौहान ने जब्बार मलिक का कंधा थपथपाया- “तुम इतनी प्यार-मोहब्बत मुझे क्यों दिखा रहे हो ?” बेचैन सा जब्बार मलिक कह उठा ।

“बकरा जब कटने वाला हो तो उस पर ज्यादा प्यार उमड़ आता है ।”-देवराज चौहान बोला ।

“बकरा ?” जब्बार मलिक के माथे पर बल पड़े, “तुम्हारा मतलब मैं बकरा ?”

“हाँ, एक तुम ही तो हो मेरे पास ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“कौन काटेगा मुझे ?”

“ये तो वक्त बताएगा ।”

“तुम बताओ ।”

“वक्त बताये तो ज्यादा बेहतर होगा । मेरे बताने से तुम्हें विश्वास नहीं होगा ।”

“तुम पहेलियाँ बुझा रहे... ।”

“तुमने खाकी की ताकत देख ली कि किस आसानी से तुम जेल से बाहर आ गए । अब यही खाकी तुम्हें फँसा भी सकती है । जेल में बात खुलने की देर है कि तुम फरार हो गए हो तो पुलिस वाले, खाकी वालों को ही ढूंढेंगे । इस वर्दी से जल्दी छुटकारा पा... ।”

“तुम्हारी योजना जितनी आसान थी, उतनी आसानी से मैं जेल से बाहर आ गया ।”

“कुछ भी आसान नहीं था । तुमने जो देखा सिर्फ उतनी ही योजना नहीं थी । मैं इस पर पहले से काम कर रहा था । किसी की भी जरा सी गलती की वजह से योजना ताश के पत्तों की तरह ढेर हो सकती थी । परन्तु सब ठीक होता चला गया ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“तुम मेरे कटने की बात कर रहे थे ।”

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“कौन काटेगा मुझे ?” जब्बार मलिक ने गम्भीर स्वर में कहा ।

देवराज चौहान ने ऑटो वाले को रुकने को कहा । सड़क के किनारे ऑटो रुका । देवराज चौहान ने उसे सौ का नोट दिया और जब्बार मलिक के साथ आगे बढ़ गया । ।

“अब हमें अलग हो जाना चाहिए ।” देवराज चौहान ने सामने गली की तरफ बढ़ते हुए कहा, “वक्त आने पर पुलिस दो खाकी वर्दी वालों को ढूंढेगी । हमारा अब साथ रहना ठीक नहीं ।”

जब्बार मलिक ने सतर्कता भरी निगाहों से आसपास देखा । परन्तु ऐसा कोई नहीं दिखा, जो उन पर नजर रख रहा हो ।

देवराज चौहान उसकी नजरों का मतलब समझकर कह उठा ।

“मैंने तुम्हें जुबान दी थी कि कोई तुम्हारे पीछे नहीं होगा । वह जुबान अभी तक कायम है ।”

जब्बार मलिक ने गहरी नजरों से देवराज चौहान को देखा ।

“क्या देख रहे हो ?”

“तुमने आखिर मुझे जेल से निकाला क्यों ?”

“बेकार का सवाल है ये ।”

“तुम मेरे साथ कोई चाल चल रहे हो ।”

“मैं तुम्हारे साथ चाल चल चुका हूँ । तुम मेरी चाल में फँस चुके हो जब्बार मलिक ।”

“कैसी चाल ?”

“जल्दी ही तुम्हें पता चल जायेगा ।” देवराज चौहान ने गली में ठिठककर, जेब से रिवॉल्वर निकालकर उसे दी, “ये रख लो । तुम्हें अब कभी भी इसकी जरूरत पड़ सकती है ।”

“मुझे जरूरत नहीं । आधे घण्टे में मैं हथियार हासिल कर लूँगा ।”/जब्बार बोला ।

“और अगर आधे घण्टे से पहले तुम्हें हथियार की जरूरत पड़ गई तो ?”

“इतनी जल्दी पुलिस मुझे नहीं पकड़... ।”

“पुलिस की बात कौन कर रहा है ।” देवराज चौहान ने उसे रिवॉल्वर थमाई और पाँच सौ के कुछ नोट निकालकर भी उसे जबरदस्ती दिए, “हथियार और पैसा इन दोनों चीजों की जरूरत पड़ेगी तुम्हें ।”

“पता नहीं तुम कैसे पुलिस वाले हो । मैं तुम्हें समझ नहीं पाया ।” जब्बार मलिक बोला ।

“बकरों के साथ मैं ऐसे ही पेश आता हूँ ।” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

जब्बार मलिक ने गहरी साँस ली फिर कह उठा- “इंस्पेक्टर सूरजभान यादव । मैं तुम्हें हमेशा याद रखूँगा । तुम जैसे भी हो, आखिर तुमने मुझे जेल से बाहर निकाला है ।”

“मैं जानता हूँ तुम मुझे कभी नहीं भूलोगे ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने जेब से एक कागज निकाला और उसे देता कह उठा, “इसमें मेरा मोबाइल नम्बर लिखा है । मेरा नम्बर याद कर लो और कागज फाड़ देना । बहुत जल्द तुम बहुत बड़ी मुसीबत में फँसने वाले हो । जब मुसीबत में गहरे फँस जाओ और निकलने का रास्ता न मिले तो मुझे फोन करना । मैं तब तुम्हें मुसीबत से निकालने की कोशिश करूँगा । उस हाल में मुझे अपना दोस्त समझना ।”

जब्बार मलिक की आँखें सिकुड़ी ।

“मैं मुसीबत में फँसने वाला हूँ ?” जब्बार मलिक के होंठों से निकला ।

देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया ।

“कैसी मुसीबत की बात कर रहे... ।”

“आने वाला वक्त तुम्हें सब समझा देगा ।”

“आखिर तुम मेरे साथ क्या खेल खेल रहे हो । बताते क्यों नहीं ?” जब्बार मलिक गुर्रा उठा ।

“अब हमें अलग हो जाना... ।”

उसी पल जब्बार मलिक ने देवराज चौहान की छाती पर रिवॉल्वर रख दी ।

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

“इस बार रिवॉल्वर हाथ में आते ही मैंने सबसे पहले इसका वजन महसूस किया था इंस्पेक्टर । ये सच में भरी हुई है ।” जब्बार गुर्राया ।

“मैंने लोडेड रिवॉल्वर ही तुम्हें दी है ।”

“इसकी पहली गोली मैं तुम्हें मार सकता हूँ, अगर तुमने मुझे न बताया कि तुम किस चक्कर में हो ।”

“नहीं बताऊँगा !”

“गोली चलाऊँ ?” जब्बार मलिक ने दाँत किटकिटाये ।

“चला दे ।”

दो पलों के लिए उनके बीच सन्नाटा आ ठहरा । जब्बार मलिक का चेहरा धधक रहा था जबकि देवराज चौहान चेहरे पर शांत मुस्कान समेटे उसे देख रहा था ।

“तुम मजाक समझ रहे हो इंस्पेक्टर, लेकिन मैं सच में गोली चला... ।”

“तुम मुझ पर गोली नहीं चला सकते ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, “मैंने तुम्हें जेल से निकाला है । वरना तुम कभी भी जेल से आजाद नहीं हो सकते थे । वहीं एड़ियाँ रगड़-रगड़कर मर जाते ।”

दाँत किटकिटाकर जब्बार मलिक ने उसकी छाती से रिवॉल्वर हटाई और कह उठा ।

“भाड़ में जा ।” इसके साथ ही पलटकर रिवॉल्वर और नोट जेब में डालकर गली में बढ़ता चला गया ।

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर सिगरेट सुलगाई । उसे जाते देखा फिर गली की दूसरी तरफ बढ़ गया । होंठों पर लगी मूंछें उतारकर एक तरफ उछाल दीं ।

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