दोनों बोतलें खत्म हो चुकी थीं। उन्हें इस वक्‍त जरा भी सर्दी नहीं लग रही थी। रात का जाने कौन-सा वक्‍त चल रहा था। बरसात थम चुकी थी परंतु बादलों की गर्जना यदा-कदा सुनाई दे जाती थी। राजीव के खर्राटे गूंज रहे थे। पुनीत भी सो चुका था। संदीप भी एक तरफ लुढ़का पड़ा था कि एकाएक वो उठ बैठे जैसे भूली बात याद आ गई हो। वो तगड़े नशे में था। कुछ पल तो बैठा झूमता रहा। फिर उधर सरकने लगा जिधर मोनी सो रही थी। वो मोनी के पास जा पहुंचा। हाथ से उसे हिलाता नशे से भरे धीमे स्वर में पुकारा।

“मोनी।”

“हूं-हां।” मोनी की आवाज नींद से भरी थी।

“सो गई?”

“हां-क्या बात...”

“मुझे सर्दी लग रही है। कम्बल की जरूरत है।”

“आ जाओ।” मोनी ने कहा-“कम्बल में घुस जाओ।”

“ओह थैंक्यू मोनी। थैंक्यू।” नशे से भरे स्वर में कहता संदीप किसी तरह कम्बल में घुस गया और मोनी के शरीर से सट गया-“आह-तुम कितनी गर्म हो मोनी, तुम कितनी अच्छी हो।” संदीप के हाथ मोनी के शरीर पर पहुंच गए।

“ये क्या कर रहे हो?”

“मुझे सर्दी लग रही है और गर्मी के एहसास को ढूंढ़ रहा हूं। तुम मेरी सर्दी भगाओ, मैं तुम्हारी सर्दी दूर कर दूंगा।” संदीप के हाथ तेजी से चलने लगे-“आह, मोनी तुम तो कमाल की हो। बाई गॉड तुम तो मुझे पागल कर दोगी।”

उसी पल मोनी ने अपनी बांह संदीप के शरीर पर डाली और उसे अपने से भींच लिया।

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रात जैसे-तैसे वे सोये, जब तक नशा कायम रहा, सोते रहे, नशा उतरा, सर्दी का एहसास हुआ तो वे उठ बैठे, सबसे खास बात तो ये रही कि पुनीत और राजीव ने उठने पर, संदीप को अपने पास ही सोया पाया था। मोनी अपनी जगह पर कम्बल ओढ़े गहरी नींद में थी। खोह के रास्ते से, बाहर मध्यम-सा उजाला भीतर आ रहा था कि दिन निकल आया है। दिन निकला पाकर उन्होंने राहत की सांस ली, परंतु ठंड से वे ठिठुर रहे थे।

“व्हिस्की ने इतनी सर्दी में रात निकाल दी।” पुनीत बोला-“नहीं तो बुरा हाल हो जाता।”

“बरसात रुक चुकी है।”

“अब हम वापस जा सकते हैं।” पुनीत बोला।

“तीनों बहनों का क्या हाल हो रहा होगा कि हम वापस लौटे नहीं। वो क्या-क्या सोच रही होंगी कि...”

“सब ठीक हो जाएगा।” पुनीत मुस्कराया-“कम-से-कम अब वे फिर दोबारा सूमा गांव नहीं आने वाली।”

“हमें जल्दी निकल चलना चाहिए।”

“सर्दी से मेरी हालत खराब हो रही है।” पुनीत बोला।

“संदीप को देखा, कैसे घोड़े बेच कर सो रहा है।”

तभी संदीप ने आंखें खोलते हुए कहा।

“घोड़े बेचकर नहीं, सर्दी बेचकर सो रहा हूं।”

“सर्दी बेचकर, क्या मतलब?” राजीव उलझन में पड़ा।

“रात पीने से सर्दी भाग गई। बहुत मजा आया रात पीने के बाद।” संदीप मुस्कराया।

“पीने के बाद मजा आया। मैं समझा नहीं।”

“तुम्हें समझने की जरूरत भी क्या है।” संदीप ने कहा-“फिर भी बता देता हूं कि रात हर तरफ यहां अंधेरा था। ऐसे अंधेरे से भरी जगह पर रात मैंने पहली रात बिताई। पहलीं बार पी, पहली बार मुझे असली गर्मी का एहसास हुआ। मजा आ गया।”

“तुझे सर्दी नहीं लग रही?” पुनीत बोला।

“सर्दी, कैसी सर्दी, मेरे अंदर तो कुदरती गर्मी भर चुकी है। काश हर रात ऐसी होती।” संदीप ने आह भरी।

“यहां से चलने की सोचो। मोनी को जगाओ।” राजीव बोला।

“सोने दो बेचारी को...” संदीप ने छः कदम दूर कम्बल में लिपटी मोनी को देखा।

“तुम्हें जोगना के पास पहुंचने की जल्दी नहीं है कि उसका क्या हाल हो रहा होगा।” राजीव ने कहा।

“तुम्हें मेरी पत्नी की चिंता क्यों होने लगी?” संदीप ने मुंह बनाया।

“जोगना से मेरा मतलब, तीनों बहनों से है।”

“अब वापस ही चलना है।” संदीप ने मोनी को देखा-“पर ये रात मेरी जिंदगी की खास रात बन गई है। इस रात को कभी भूल नहीं सकूंगा। दिल से लगाकर रखूंगा।”

“ऐसी खास रात तो नहीं है ये।”

“बहुत खास रात थी। हम खराब मौसम की वजह से फंस गए। पहाड़ी खोह में रहकर रात बिताई। दो बोतलें हमने खाली कीं और...और...क्या रात थी। जो मेरे दिल पर बीती, मैं ही जानता हूं। तुम लोग तो बेवकूफ हो।”

“पागल हो गया है ये।” पुनीत कह उठा-“मोनी को उठा राजीव!”

राजीव उठा और मोनी की तरफ बढ़ गया।

“हाथ मत लगाना उसे।” संदीप कह उठा-“आवाज लगाकर जगाना।”

“तेरे को क्या तकलीफ है अगर हाथ से हिलाऊं?” राजीव चिढ़कर बोला।

“पराई औरतों को नहीं छूना चाहिए। आगे तू समझदार है ही।” राजीव ने मोनी को कंधे से हिलाकर उठाया।

मोनी गहरी नींद में थी कि हिलाने पर फौरन उठ बैठी।

“क्या है?” मोनी के होंठों से निकला।

“दिन निकल आया है।” राजीव ने कहा।

“ओह!” मोनी की निगाह उस रास्ते पर गई, जहां से रस्सा लटक रहा था। वहां से रोशनी भीतर आ रही थी।

“अब हमें वापस चल देना चाहिए।” राजीव ने कहा।

“मैं बाहर जाकर देखती हूं कि मौसम कैसा है।” मोनी ने कहते हुए कम्बल हटाया और खड़ा होते संदीप को देखा।

आंखें मिलीं कि संदीप मुस्कराया।

मोनी भी रहस्य भरे अंदाज में मुस्करा पड़ी।

संदीप का चेहरा खिल उठा।

राजीव ने दोनों की मुस्कान देखी तो उसकी आंखें की सिकुड़ी।

मोनी आगे बढ़ गई थी और गड्ढे के मुंह से लटकते रस्से को पकड़कर, ऊपर जाने लगी।

“वो तेरे को देखकर मुस्करा क्‍यों रही थी?” राजीव ने संदीप से पूछा।

“तू जल रहा है कि मोनी तेरे को देखकर क्यों नहीं मुस्कराई?” संदीप मुस्कराया।

“वो ही तो बात है कि वो मेरे को और पुनीत को देखकर क्‍यों नहीं मुस्कराई। तेरे को ही देखकर क्यों मुस्कराई?”

“मैं तुम दोनों से बढ़िया दिखता हूं, वो मेरे से प्रभावित हो गईं होगी।” संदीप हंसा।

राजीव ने कुछ नहीं कहा और मोनी की तरफ देखा।

मोनी वहां से बाहर निकल चुकी थी। वो नहीं दिखी।

“उसकी मुस्कान में ऐसा कुछ था जैसे वो तुम्हें कुछ कह रही हो।” राजीव पुनः बोला।

“वो मुझे धन्यवाद दे रही होगी कि रात मैंने उसे सर्दी नहीं लगने दी। मैंने उसे कम्बल दिया था।” संदीप ने कहा।

राजीव ने कुछ नहीं कहा।

“हमारी स्की और पोल बाहर ही है। संदीप बोला-“कल पुनीत को तलाश करते हमने स्की को जूतों से निकाल दिया था और अंधेरा हो जाने की वजह से, वो वहीं रह गए।”

“वो बाहर ही होंगे। मिल जाएंगे।” राजीव ने कहा।

तभी मोनी रस्सा थामे नीचे आती दिखी। वो नीचे आ गई। बोली।

“अभी हमारा निकलना ठीक नहीं। बाहर धुंध और कोहरा बहुत है। आठ-दस फुट से ज्यादा दूर नहीं दिख रहा।”

“हम धीरे चलेंगे।” पुनीत ने कहा-“कुछ तो रास्ता तय होगा।”

“परंतु मैं रास्तों को कैसे पहचान पाऊंगी, जब मुझे ही सामने कुछ नहीं दिखेगा।” मोनी ने कहा।

पुनीत सिर हिलाकर रह गया।

“मौसम कब तक साफ होगा?” राजीव ने पूछा।

“यहां के मौसम का कुछ पता नहीं चलता।” मोनी ने संदीप पर निगाह मारी-“पहाड़ी मौसम में कभी भी, कुछ भी हो जाता है।”

संदीप मुस्कराया।

राजीव ने संदीप को देखा फिर मोनी को।

“कुछ इंतजार कर लेते हैं।” पुनीत ने कहा।

मोनी अपनी जगह पर जा बैठी और कम्बल ओढ़ते हुए कहा।

“बाहर कड़ाके की ठंड है।”

“ऐसे मौसम में चाय मिल जाती तो मजा आ जाता।” पुनीत कह उठा।

संदीप उठा और मोनी के पास जा बैठा।

दोनों की आंखें मिलीं। अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराए।

“तू कैसी है मोनी?” संदीप ने प्यार से पूछा।

मोनी के चेहरे पर शर्म की लाली उभरी।

“ठीक है न?”

“तुम बहुत शरारती हो।” मोनी दबे स्वर में बोली-“रात तुमने क्या किया?”

“तुम्हारी भी तो सहमति थी उसमें।”

मोनी उसी अंदाज में मुस्कराती रही।

“अच्छा लगा था?”

“हां। पहली बार ऐसा हुआ मेरे साथ।” मोनी ने दबे स्वर में कहा।

“ओह सच मोनी। मुझे भी बहुत अच्छा लगा। इस रात को मैं कभी नहीं भूलूंगा।”

मोनी शर्म भरी मुस्कान के साथ संदीप को देखती कह उठी।

“इन लोगों को तो कुछ पता नहीं चला?”

“नहीं, नहीं। इन्हें कुछ भी पता नहीं है। ये हम दोनों की बात है।” संदीप ने जल्दी-से कहा।

“अब मैं शादी कर लूंगी।”

“शादी? किससे?”

“जिससे भी मेरे मां-बाप कहेंगे। मुझे नहीं पता था कि शादी के बाद इतना अच्छा लगता है।”

“तुम शादी कर लोगी।” संदीप परेशान हुआ-“मैं तो सोच रहा था कि आने वाले साल फिर तुमसे मिलूंगा।”

मोनी उसी मीठी मुस्कान के साथ संदीप को देखती रही।

“तुम शादी करो या न करो। अगले साल मुझसे मिलोगी न?”

“शादी कर ली तो फिर कैसे मिल सकूंगी।”

“मैंने भी तो शादी कर रखी है, लेकिन मैं तुमसे-तुमसे, रात

को...”

तभी पीछे से राजीव की आवाज आई।

“ऐसी घुट-घुट के क्या बातें हो रही हैं, हमें भी तो पता चले।”

“मैं तुमसे फिर बात करूंगा मोनी।” संदीप ने कहा और उठकर राजीव-पुनीत के पास आ बैठा-“मैं मोनी से बाहर के मौसम का हाल पूछ रहा था। सच में बाहर का मौसम बहुत खराब है। अभी हमारा चलना ठीक नहीं होगा।”

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दिन के साढ़े ग्यारह बजे थे, जब उनका वापसी का सफर शुरू हुआ।

परंतु मौसम तब भी साफ नहीं था। कोहरा हर तरफ फैला, ठहरा हुआ था।

हवा नहीं चल रही थी। हवा चल रही होती तो वो कोहरे को अपने साथ उड़ा ले जाती, लेकिन गुम-सा मौसम था। कल हुई मूसलाधार बरसात का असर अभी भी दिख रहा था। बर्फ गीली थी। ऐसे में स्कीइंग करने में फिसलने का खतरा था। उन्हें सावधानी से स्कीइंग करनी पड़ रही थी। कोहरे की वजह से चालीस-पचास फुट के आगे देख पाना सम्भव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या तो मोनी को, रास्ता पहचानने-समझने में आ रही थी। थकान और कड़कती सर्दी की वजह से उनके शरीर ढीले पड़ रहे थे और ठिठुर रहे थे। कम-से-कम इस वक्‍त तो वो मन-ही-मन स्कीइंग करने से तौबा कर रहे थे और वे जल्द-से-जल्द होटल पहुंचकर गर्म कमरे में, रजाई में दुबक जाना चाहते थे। आगे मोनी स्कीइंग करती जा रही थी कुछ पीछे वे तीनों थे। उनकी रफ्तार धीमी थी।

“मेरा तो शरीर कांप रहा है।” राजीव कह उठा।

“ठंड तो मुझे भी लग रही है, परंतु होटल पहुंचना जरूरी है।” पुनीत ने कहा-“सुधा रात भर सोई नहीं होगी।”

“तुम लोग तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे मुझे ठंड न लग रही हो और जोगना की परवाह न हो।” संदीप ने कहा-“जोगना जानती है कि ऐसे मौसम में मुझे सर्दी बहुत लगती है। वो मेरी बहुत चिंता कर रही होगी।”

कहने के साथ ही संदीप ने स्की पोल के सहारे अपनी रफ्तार तेज की और मोनी के पास जा पहुंचा-“हैलो मोनी।” वो प्यार से बोला।

मोनी ने मुस्कराकर उसे देखा।

“मुझे रात की बहुत याद आ रही है। सच में तुम बहुत अच्छी हो।” संदीप ने मुस्कराकर कहा।

“तुम भी तो बहुत अच्छे हो।”

“संदीप कहो न।”

“संदीप।” मोनी ने प्यार से कहा।

“कितना अच्छा लगता है जब तुम मेरा नाम लेती हो। वो तुमने सच कहा था कि रात पहली बार तुमने...”

“झूठ क्यों कहूंगी।”

“बहुत अच्छा लगा?” संदीप सपनों में गुम होता कह उठा।

“हां, बहुत अच्छा!” मोनी के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई।

“मैं-मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं मोनी।”

“क्या?”

“अभी तुम शादी करने में जल्दबाजी मत करो। हो सकता है मेरी-तुम्हारी ही शादी हो जाए।”

“तुम्हारी शादी तो हो चुकी है।”

“हो तो चुकी है पर क्या पता जोगना को कोई गम्भीर बीमारी लग जाए और वो न रहे। वो पहाड़ से भी गिर सकती हैं दिल्ली में एक्सीडेंट भी हो सकता है, कुछ भी हो सकता है। मेरी मानो तो साल भर का इंतजार कर लो। मुझे पूरा भरोसा है कि साल भर में जोगना को ऐसा कुछ अवश्य हो जाएगा कि हम दोनों शादी कर सकें।” संदीप ने सोच भरे स्वर में कहा।

“क्या तुम अपनी पत्नी को, मेरे लिए, मारने की सोच रहे हो?” मोनी ने तेज स्वर में कहा।

“ये तुम क्या कह रही हो। मैंने ये बात कब कही?”

“परन्तु तुम्हारी बात से तो मुझे ऐसा ही लगता है।”

“गलत मत कहो मोनी। ऐसी बुरी बात मैं सोच भी नहीं सकता। मैं तो सोच रहा हूं कि तुम मुझे प्यार करने लगी हो। मैं तुम्हें पसंद कर रहा हूं तो ऐसे में भगवान भी हमारी सहायता करेगा, हमारे मिलने में।”

“भगवान ने तुम्हारी पत्नी का भी तो ख्याल रखना है। वो हमें क्यों मिलने देगा। फिर तुम कैसे कह सकते हो कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है। तुम तो शादीशुदा हो। ठीक है, रात को जो हुआ, वो मुझे अच्छा लगा। उसी के कारण, मेरे मन में ये विचार आया है कि मैं शादी कर लूंगी। तुम अपनी पत्नी के साथ खुश रहो, मैं अपने घर खुश...”

“पर मोनी में तुम्हारे साथ खुश रहूंगा।”

“तुम्हारी पत्नी है।”

“साल भर का इंतजार करो, शायद जोगना को कोई गम्भीर बीमारी हो जाए और...”

“तुम।” मोनी ने गम्भीर निगाहों से संदीप को देखा-“अपने मन में अपनी पत्नी के लिए गलत विचार रखते हो, ये मुझे पसंद नहीं।”

“मुझे समझने की कोशिश करो मोनी मैं तुम्हें पाना चाहता हूं। तुम मेरे दिल में उतर चुकी...”

इस वक्‍त वे ऊंचे पहाड़ों के बीच में से निकल रहे थे। दोनों तरफ पहाड़ थे। बीच में बर्फ से भरा रास्ता था। आगे कोहरा था। उनकी गति मध्यम थी कि तभी मोनी ने स्की पोल के सहारे खुद को फिसलने से रोक लिया।

संदीप भी रुकता चला गया।

“तुम रुक क्यों गईं?”

मोनी आस-पास देखती। गम्भीर स्वर में कह उठी।

“मुझे लगता है, गहरे कोहरे की वजह से हम रास्ता भटक गए हैं।”

“क्या?” संदीप चिंता में पड़ गया।

तब तक राजीव और पुनीत भी पास आ पहुंचे।

“रुके क्यों?” पुनीत ने पूछा।

“मोनी को लगता है कि हम रास्ता भटक गए हैं।” संदीप बोला-“कोहरा बहुत फैला है।”

“रास्ते का पता नहीं चल रहा?” राजीव ने मोनी को देखा।

“शायद हम गलत जा रहे हैं।” मोनी गम्भीर थी-“जब हम आए थे तो पहाड़ों के बीच इस तरह का रास्ता नहीं था।”

“क्या पता दिशा सही हो, रास्ता हमने दूसरा पकड़ लिया हो।” पुनीत ने कहा।

“ये हो सकता है।” संदीप ने कहा-“आगे जाकर देखते हैं।”

मोनी ने सोच भरे अंदाज में सिर हिला दिया।

“आओ चलें।”

वे पुनः आगे बढ़ने लगे।

“मौसम बहुत ठंडा हो रहा है।” राजीव बोला।

“बुरे हाल हो रहे हैं।” पुनीत ने कहा।

‘मुझे तो सर्दी नहीं लग रही।’ संदीप बड़बड़ाया और मुस्कराकर आगे जाती मोनी को देखा-’मोनी सच में कमाल की लड़की है। गर्मी से भरी हुई, इससे मेरी शादी हो जाए तो मुझे कभी भी सर्दी न लगे।’

“तुम क्या कह रहे हो?” दो कदम पीछे राजीव ने पूछा।

“कुछ नहीं।”

“तो क्या तुम्हें बड़बड़ाने की बीमारी पड़ गई है बूढ़ों की तरह।” राजीव ने मुंह बनाया-“एक बात तो बता दो।”

“क्या?”

“सोए उठने पर मोनी खासतौर से तुम्हें ही देखकर क्यों मुस्कराई थी?”

“तुम्हें धोखा हुआ है, वो मुझे देखकर नहीं मुस्कराई थी।”

“मुस्कराई थी। सुबह तुमने ये बात मानी थी।”

“अच्छा।” संदीप ने भोलेपन से कहा-“मोनी से पूछकर बताऊंगा कि वो क्यों मुस्कराई थी।”

“बात को गोल कर रहा...” राजीव अपनी बात पूरी न कर सका।

मोनी उसी पल रुक गई थी।

वे सब भी रुके।

अगले ही पल उन्होंने जो देखा, वो उन्हें हैरान कर देने के लिए काफी था।

सामने, पचास कदम दूर बहुत बड़ा-सा कुछ दिखा। कोहरे ने उस चीज को घेर रखा था। नीचे जमीन पर धातु के बड़े-बड़े डंडों से, स्टैंड जैसा कुछ था, जिस पर वो चीज टिकी हुई थी। वो ऊंची चीज थी। करीब पच्चीस-तीस फुट ऊंची, गुब्बारे की तरह फुली और फैली हुई। स्टील कलर, हल्के नीले रंग जैसी चीज थी वो।

पाठकों को बता दें कि वो पोपा (अंतरिक्ष यान) है।

“ये क्या है?” मोनी का हैरानी से मुंह खुला रह गया।

“बाई गॉड मोनी, ये तो हवाई जहाज जैसा दिखता है।” संदीप बोल पड़ा।

“पास जाकर देखते हैं।” पुनीत ने कहा और आगे बढ़ा। परंतु उसी पल थम गया।

उसे सामने से किसी की आवाज आती सुनाई दी।

“यहां लोग भी हैं?” पुनीत के मस्तिष्क में कौंधा।

“यहां लोग भी हैं।” राजीव कह उठा।

“मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है।” पुनीत बोला उसकी आंखें अभी भी पोपा पर टिकी थीं। ये पोपा का पीछे वाला हिस्सा था और कोहरे में लिपटा पोपा, आधा-अधूरा ही नजर आ रहा था। अभी इन्होंने पूरा आकार-प्रकार नहीं देखा था।

“इंस्पेक्टर साहब।” संदीप बोला-“अपना ज्यादा दिमाग मत दौड़ाओ, सब ठीक है। यहां कोई सरकारी काम चल रहा होगा।”

“बेकार की बात मत करो। ये बर्फ की वीरान जगह है। यहां हवाई जहाज जैसी बड़ी-सी चीज खड़ी होने का क्या मतलब है। ऐसी जगह पर लोगों का होना, क्या मतलब रखता...”

“एक मिनट।” मोनी उसी पल कह उठी-“य-यहां-इस तरफ डोबू जाति रहती है कहीं।”

“डोबू जाति?” पुनीत ने उसे देखा।

“पुरानी जातियों में से एक डोबू जाति है। मैंने उन्हें कभी देखा तो नहीं, परंतु सुना है कि इस तरफ डोबू जाति के लोग रहते हैं और वो खतरनाक योद्धा हैं। वो लोगों से दूर, अलग-थलग रहते हैं।” मोनी ने बताया।

“तुम्हारा मतलब कि ये डोबू जाति के लोग हो सकते हैं।” संदीप बोला।

“पता नहीं, अचानक ये बात मेरे दिमाग में आई तो मैंने बता दी।”

“ऐसी डोबू जाति के पास ये हवाई जहाज जैसी चीज नहीं हो सकती।” पुनीत ने कहा।

“मुझे तो ये कुछ और ही लगता है।” पोपा को घूरता संदीप कह उठा।

“और क्या?” राजीव बोला।

“पता नहीं, क्या?”

चारों पोपा को देखकर हैरानी में थे कि बर्फ के ऐसे वीराने में, ऐसी चीज क्‍यों मौजूद है।

“हमें आगे जाकर देखना चाहिए।” पुनीत कह उठा।

“वहां लोग हैं।” राजीव बोला-“कहीं हमें खतरा न आ जाए किसी प्रकार का।”

“खतरा कैसा।” संदीप ने कहा-“हम रास्ता भटक गए और इस तरफ आ गए। पता तो चले कि यहां क्‍या हो रहा है, चल पुनीत।”

वो चारों स्की पर सरकते आगे बढ़ने लगे। पोपा के पास पहुंचे। पुनीत ने उचककर पोपा की बॉडी को हाथ लगाया। संदीप ने भी ऐसा किया। मोनी की निगाह आगे की तरफ थी, वहां उसने कोहरे में किसी की टांगें देखी थीं। राजीव के चेहरे पर परेशानी दिखाई दे रही थी। वो उलझन भरी नजरों से पोपा को देखता कह उठा।

“ये हवाई जहाज नहीं हो सकता। ये तो गोल सी, बहुत बड़ी चीज है। अजीब-सी, ऐसा कुछ मैंने पहले कभी नहीं देखा।”

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किलोरा।

पोपा पर मौजूद रहकर सब कामों को ठीक से संभाले हुए था। उसके हवाले कई काम थे। पोपा का ध्यान रखना। अपने आदमियों को काम बांटते रहना। डोबू जाति पर हो चुके कंट्रोल को सलामत रखना। रानी ताशा से यंत्र पर बात करना और रानी ताशा कुछ कहती है तो वो ही काम करना। जरूरत पड़ने पर महापंडित को रानी ताशा का मैसेज देना और उससे जवाब लेकर, रानी ताशा को बताना।

किलोरा हर समय सतर्क रहता था और अपनी जिम्मेवारियां पूरी तरह निभा रहा था। उसके पंद्रह आदमी पहाड़ों के भीतर डोबू जाति के बीच मौजूद थे और सब कुछ संभाले हुए थे। अगोमा जो कि डोबू जाति का ही था, परंतु रानी ताशा के लोगों का पूरा साथ दे रहा था लेकिन ये लोग नहीं जानते थे कि अगोमा सोलाम और बबूसा से भी तारों वाले कमरे में, बातें करता रहता है, जो कि डोबू जाति को रानी ताशा के अधिकार से मुक्त करा लेना चाहते थे। बबूसा से तो कई दिन से अगोमा की बात नहीं हुई थी परंतु सोलाम यंत्र पर दिन में एक बार अगोमा से अवश्य बात कर लेता था। डोबू जाति के सारे हथियार उसी दिन से एक कमरे में बंद कर रखे थे, जब रानी ताशा ने डोबू जाति के खास लोगों की जोबिना से हत्या करवा दी थी और डोबू जाति को अपने अधिकार में ले लिया था। हथियारों वाले कमरे के बाहर हर वक्‍त दो आदमी जोबिना के साथ पहरा देते थे। डोबू जाति वालों को स्पष्ट तौर पर कह रखा था कि कोई भी उस कमरे की तरफ न जाए, वरना मार दिया जाएगा। हथियारों के बिना डोबू जाति के योद्धा बेकार थे। अगर कुछ लोग, मन-ही-मन रानी ताशा के लोगों पर उबाल खा रहे थे तो वो हथियार न होने की वजह से चुप थे। डोबू जाति के लोगों के लिए अगोमा के निर्देशन में काम होता था। दिन निकलते ही डोबू जाति के शिकारी लोग, दो दलों में शिकार के लिए निकल जाते थे और शाम ढलने तक शिकारों के साथ जंगलों से वापस लौट आते थे। इसी प्रकार अगोमा कुछ लोगों को दूर-दराज ऐसी जगहों पर भेजता, जहां से वो खाने का सामान लेकर आ जाते। जब से रानी ताशा ने डोबू जाति पर अपना कब्जा किया था, तब से होम्बी (जादूगरनी)

अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थी। अगोमा एक-दो बार उससे मिलने गया था परंतु होम्बी ने बात नहीं की और इशारे से कहा कि उसे चुप रहने दे। होम्बी के बूढ़े और झुर्रियों भरे चेहरे पर गम्भीरता टपक रही थी। आंखों में चमक दिखाई देती थी। वो तब से चुप और शांत थी।

डोबू जाति और अपने आदमियों पर किलोरा पूरी तरह नजर रखे हुए था। वो बहुत कम पोपा से बाहर आता था। अपना सारा वक्‍त वो पोपा में व्यस्त रहकर ही बिताता था और ज्यादातर उस कमरे में बैठा रहता, जहां छोटी-बड़ी स्क्रीनें लगी थीं और वहां से पोपा के बाहर के दृश्य देख सकता था। हर तरफ नजर रख सकता था। डोबू जाति के लोग उसे पहाड़ के बाहर दिख जाते थे। अपने लोग भी यदा-कदा नजर आ जाते थे। कुछ साथी हर वक्‍त पोपा में रहते, जो कि आराम करते, या नींद लेते थे। जब डोबू जाति में मौजूद उसके लोग थक जाते तो वो आराम करने आते और ये बाहर जाकर उनकी जगह ले लेते।

किलोरा इस वक्‍त स्क्रीनों वाले कमरे में मौजूद था। पांच स्क्रीनें थीं सामने, सब रोशन थीं और पोपा के बाहर का हर तरफ का दृश्य उन पर नजर आ रहा था।

आज मौसम खराब था। बीती शाम तेज बरसात होती रही थी। जिसकी वजह से सर्दी भी बढ़ गई थी और आज दिन निकलने पर कोहरा ही हर तरफ दिखा था।

स्क्रीनों पर भी अधिकतर कोहरा ही दिख रहा था। ठहरा हुआ कोहरा। जो कि बेहद धीमी गति से जरा-जरा करके आगे सरक रहा था। सर्दी काफी बढ़ चुकी थी। तभी उसका साथी, एक गिलास में खोनम लिए भीतर आया।

“खोनम लो किलोरा।”

किलोरा ने मुस्कराकर खोनम का गिलास थामते हुए कहा।

“मैं खोनम की जरूरत महसूस कर रहा था। सब ठीक चल रहा है न।”

“सब ठीक है आज का मौसम खराब है, सर्दी और कोहरा बहुत बढ़ गया हैं।” वो बोला।

“हम्बस।” किलोरा ने खोनम का घूंट भर कर उसे देखा-“सदूर पर ऐसा मौसम नहीं होता।”

“हां। वहां बहुत कम सर्दी होती है। कोहरा तो शायद मैंने कभी नहीं देखा।”

“पृथ्वी ग्रह काफी अच्छा है।”

“हाँ हमने पृथ्वी ग्रह देखा ही नहीं है। जब से आए हैं, यहीं पर रुके हुए हैं।”

“रानी ताशा। सोमारा, सोमाथ और हमारे तीन साथी पृथ्वी ग्रह की जगहों पर गए हैं। वो बताएंगे कि पृथ्वी कैसी है।”

“अब तो रानी ताशा वापस आ रही है। राजा देव उन्हें मिल गए हैं।” हम्बस ने मुस्कराकर कहा।

“हां। कितनी खुशी की बात है कि राजा देव मिल गए और वो सदूर पर जाने को तैयार हैं।” किलोरा भी मुस्कराया-“मैंने कभी राजा देव को नहीं देखा। बहुत इच्छा है उन्हें देखने की।”

“मैंने भी राजा देव को नहीं देखा है। उनके आ पहुंचने का मुझे बेसब्री से इंतजार है।”

“वो सब यहां से कुछ दूर टाकलिंग ला पहुंच चुके हैं। वहां से आने में तीन-चार दिन का वक्‍त लगता है।” किलोरा ने खोनम का घूंट भरते हुए कहा-“उनके साथ राजा देव के साथी भी हैं।”

“साथी?”

“हां, जो पृथ्वी पर उनके साथी हैं। उनके बारे में मुझे ज्यादा नहीं पता। रानी ताशा ने इतना ही कहा था।”

“क्या राजा देव के साथी भी हमारे साथ सदूर पर जाएंगे?”

“मुझे पता नहीं।”

“और बबूसा?”

“वो भी आ रहा है।”

“रानी ताशा ने बबूसा को विद्रोह की सजा नहीं दी क्या?”

कुछ चुप रहकर किलोरा बोला।

“रानी ताशा ने बबूसा के साथ आने की बात मुझसे कही थी। उसे सजा क्‍यों नहीं दी, मैं नहीं जानता। रानी ताशा ने मुझे ये भी कहा था कि राजा देव को सदूर ग्रह के जन्म की बातें याद आ गई हैं। ऐसे में राजा देव को बबूसा भी याद आया होगा और बबूसा तब राजा देव का सबसे खास व्यक्ति होता था। ऐसे में राजा देव उसे कोई तकलीफ नहीं होने देंगे।”

“तुमने सही कहा।” हम्बस ने सिर हिलाया-“राजा देव ने बबूसा को सजा से बचा लिया होगा।”

“मुझे खुशी है कि अब हम वापस सदूर पर जाएंगे। रानी ताशा अब यहां रुकना नहीं चाहेंगी।” किलोरा बोला।

“तो डोबू जाति का क्‍या होगा?”

“रानी ताशा का कहना है कि डोबू जाति का ये ठिकाना, हमारे लिए सुरक्षित जगह है कि हम सदूर से आकर यहां टिक सकें और पोपा भी किसी की निगाह में नहीं आता, पहाड़ों के भीतर छिप जाता है। हम पोपा पर पृथ्वी पर आया करेंगे और डोबू जाति के ठिकाने को इस्तेमाल करते रहेंगे। शायद यहां हमें कुछ आदमियों को छोड़कर जाना पड़े।”

“मैं तो वापस सदूर पर जाऊंगा।” हम्बस ने कहा।

“ये फैसला तो रानी ताशा ही करेगी कि यहां कौन रहेगा। मेरे ख्याल में रानी ताशा तुम्हें यहां रहने को जरूर कहेगी।”

“मुझे क्यों?”

“क्योंकि तुम जिम्मेवार इंसान हो और यहां सब कुछ संभाले रख सकते...”

“वो देखो।” हम्बस के होंठों से निकला-“बीच वाली स्क्रीन पर।”

किलोरा की निगाह घूमी और बीच वाली स्क्रीन पर टिक गई।

“वहां मुझे बाहरी लोग दिखे हैं।” हम्बस ने कहा।

“बाहरी लोग?”

“मुझे दिखे हैं, उसके साथ ही कोहरा सामने आ...वो रहे।”

बीच वाली स्क्रीन पर कोहरे के भीतर से पुनीत और संदीप निकलते दिखे, जो कि रुक गए थे। फिर देखते-ही-देखते राजीव और मोनी उनके पास आ पहुंचे थे। वो बातें कर रहे थे।

“ये तो बाहरी लोग हैं।” किलोरा के माथे पर बल पड़े-“यहां कैसे आ गए?”

“इनकी संख्या चार है या ये ज्यादा हैं।” हम्बस ने तेज स्वर में कहा।

“देखते रहो।” कहने के साथ ही किलोरा ने एक यंत्र उठाया और पहाड़ के भीतर बिजली की तारों वाले कमरे से अगोमा से सम्पर्क बनाया-तुरंत ही बात हो गई। उधर से अगोमा का स्वर आया।

“कौन बात कर रहा है?”

“अगोमा, मैं किलोरा बोला रहा हूं। मैं चार ऐसे लोगों को देख रहा हूं जो कि हम में से नहीं है।”

“ओह।” अगोमा की आवाज आईं।

“कौन हैं ये?”

“ये लोग घूमने-फिरने वाले होंगे। बर्फ पर घूमने आते हैं। कभी-कभार कोई इस तरफ भी आ जाता है।”

“तो ऐसे लोगों का क्या किया जाता है?”

“मार देते हैं ऐसे लोगों को।”

“उन्हें मार देना ही ठीक होगा।” किलोरा का स्वर कठोर हो गया-“इन्होंने हमारा पोपा देख लिया है। ये पृथ्वी के लोगों को पोपा के बारे में बता देंगे तो पृथ्वी के लोग यहां आ पहुंचेंगें। इन्हें मार दो अगोमा।”

“हमारे हथियार तो कमरे में बंद कर रखे हैं।”

किलोरा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर कहा।

“ठीक है। इन लोगों को हम मार देते हैं।” किलोरा ने सम्पर्क खत्म किया और हम्बस से बोला-“तुम जोबिना लेकर जाओ और इन सब को खत्म कर दो। साथ में दो और लोगों को ले लेना।”

“वो आगे बढ़कर फिर रुक गए हैं। ये पोपा के पीछे की तरफ है और हाथ लगाकर पोपा को देख रहे हैं।” हम्बस ने गम्भीर स्वर में कहा-“मेरे ख्याल में समझने की चेष्टा कर रहे होंगे कि ये क्या चीज है।”

“उन्हें खत्म करो हम्बस।” किलोरा ने सख्त स्वर में कहा।

“अगर पूछताछ करनी हो तो पकड़ लेता हूं।” हम्बस बोला।

“कोई पूछताछ नहीं करनी। ये यहां से निकल गए तो हमारे लिए खतरा बन सकते हैं। मार दो इन्हें।”

हम्बस तुरंत बाहर निकल गया।

किलोरा की निगाह पुनः स्क्रीन पर जा टिकी। वो गम्भीर नजर आ रहा था।

बाहरी लोगों का यहां आना खतरनाक था। ये वापस जाकर लोगों को पोपा की मौजूदगी के बारे में बता सकते थे। तब पोपा को देखने के लिए पृथ्वी के लोगों का यहां आना शुरू हो जाएगा, जो कि उनके लिए ठीक नहीं होगा। किलोरा ने खोनम का घूंट भरा। नजरें चारों पर टिकी थीं।

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“तुम ठीक कहते हो। ये हवाई जहाज ही है। कुछ और ही है।” पुनीत कह उठा।

संदीप ने पलटकर मोनी से पूछा।

“ये क्या है?”

“मुझे-क्या पता।” मोनी के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला।

“क्या ये तुमने पहले कभी नहीं देखा?”

“नहीं। मैं तो खुद हैरान हूं कि ये क्या चीज है इतनी बड़ी सी...” मोनी ने कहा।

“हमें पता करना होगा ये क्‍या है।” पुनीत बोला।

“उधर कोई है।” मोनी बोली-“मैंने कोहरे में किसी की टांगों को देखा था।”

“उस तरफ चलते हैं।” संदीप कह उठा।

“पर वहां हमें खतरा भी हो सकता है। जाने कौन लोग हैं यहां।” राजीव ने कहा।

पुनीत ने मोनी से कहा।

“तुम यहां डोबू जाति के होने के बारे में बता रही थी?”

“अंदाजा है मेरा। मैंने सुन रखा है कि यहां, इन्हीं बर्फ के पहाड़ों में कहीं पर डोबू जाति रहती है। परंतु यहां डोबू जाति के लोग नहीं हो सकते। ये चीज डोबू जाति के पास नहीं हो सकती। वो तो कहीं, पहाड़ों के भीतर रहते हैं-सुना है।”

“आओ।” पुनीत ने कहा और दोनों हाथों में दबे सकी पोल को बर्फ पर, मारते स्की के सहारे फिसलता आगे बढ़ा।

बाकी सब भी उसके साथ हो गए।

चंद पलों में ही वो आगे जा पहुंचे और ठिठक गए।

चारों के चेहरों पर हैरानी आ ठहरी।

सामने डोबू जाति के कई लोग आते-जाते दिखाई दे रहे थे। वो भी इन्हें देखकर थम से गए थे। पोपा अब और भी स्पष्ट हो चुका था। उसकी बनावट उनके सामने थी।

“ये तो कोई उड़ने वाली चीज लगती है।” पुनीत के होंठों से निकला।

“उड़ने वाली?” राजीव बोला-“पर ये प्लेन नहीं है। बर्फ पर प्लेन का क्‍या काम?”

“बाई गॉड।” संदीप आंखें फैलाए बोला-“ये तो बहुत बड़ी है, मोनी, देखा तुमने।”

“मैं तो हैरान हो रही हूं ये सब देखकर।” मोनी कह उठी।

तभी पुनीत ने चिल्लाकर कुछ दूर खड़े डोबू जाति के लोगों से कहा।

“यहां आओ-मेरे पास।”

वो लोग वहीं खड़े रहे। कुछ कहा भी नहीं।

“हमें इनके पास जाना होगा।” कहते हुए पुनीत ने आगे बढ़ना चाहा कि तभी पहाड़ के भीतर से अगोमा बाहर आ पहुंचा।

“ये तो डोबू जाति ही है।” मोनी के होंठों से निकला-“ये पहाड़ों के भीतर रहते हैं।”

अगोमा को उन्होंने अपनी तरफ बढ़ते पाया। अगोमा ने इतनी सर्दी में भी कमीज-पैंट पहन रखी थी और पांवों में पुरानी-सी हवाई चप्पल थी। वो बर्फ पर चलता उनके करीब आ पहुंचा।

“कौन हो तुम लोग?” अगोमा ने सख्त स्वर में पूछा।

“मैं इंस्पेक्टर पुनीत हूं।” पुनीत ने कहा-“तुम लोग डोबू जाति वाले हो?”

“हां, परन्तु...”

“ये क्या है?” पुनीत ने पास खड़े पोपा (अंतरिक्ष यान) की तरफ देखा।

“ये पोपा है।” अगोमा ने कठोर स्वर में कहा-“हम लोग बाहरी लोगों का यहां आना पसंद नहीं करते और उन्हें मार देते हैं। तुम लोग अब बचोगे नहीं, मेरे लोगों के पास हथियार होते तो अब तक तुम लोग...”

“बकवास मत करो। मैं पुलिस वाला हूं।”

तभी उन सबकी निगाह पोपा की तरफ उठ गई। उन्हें हैरानी का झटका लगा, क्योंकि उनके देखते-ही-देखते पोपा का हिस्सा खुला और सीढ़ी के रूप में नीचे आता, जमीन से आ टिका।

“ये क्या?” संदीप हक्का-बक्का कह उठा।

“ये आखिर है क्या चीज?”

“मेरे ख्याल में ये आसमान से आने वाली कोई चीज है।” मोनी अजीब से स्वर में बोली।

“आसमान से आने वाली?” राजीव ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी-“तुम्हारा मतलब कि अंतरिक्ष यान? नहीं मैं नहीं मान सकता। कोई अंतरिक्ष यान कहां से आएगा और यहां क्‍यों उतरेगा?”

“अंदर से लोग बाहर आ रहे हैं।” संदीप के होंठों से निकला।

तभी हम्बस और दो अन्य लोग भीतर से निकलकर सीढ़ियों पर आ पहुंचे। तीनों के हाथों से जोबिना थमी थी। ये देखकर अगोमा उल्टे पांव ही पीछे को हटता चला गया। उन तीनों के जिस्म पर चमकीले वस्त्र नजर आ रहे थे।

“ये-ये लोग कौन हैं?”

“डोबू जाति के तो नहीं हैं।” मोनी जल्दी से बोली-“डोबू जाति के लोग तो इस जैसे होते हैं।”

“कहीं ये सच में अंतरिक्ष यान तो नहीं?” पुनीत कह उठा।

हम्बस और दोनों लोग सीढ़ियों से नीचे आ गए।

“इन्हें मार दें अगोमा?” हम्बस ने होंठ भींचकर पूछा।

“हां, नहीं तो ये पोपा के बारे में सबको बता देंगे। वैसे भी जो बाहरी लोग यहां आते हैं, हम उन्हें मार देते हैं।” अगोमा ने कहा।

उनकी बात चारों ने सुनी।

पुनीत उसी पल चिल्लाकर बोला।

“मैं पुलिस वाला हूं। तुम मुझे नहीं मार सकते। ये सब क्‍या है, यहां क्या हो रहा है?”

तभी हम्बस ने जोबिना वाला हाथ सीधा किया और ‘टक’ से बटन दबा दिया।

एक चमक-सी निकली और सीधे पुनीत की छाती से जा टकराई।

दो पल तो पुनीत स्थिर-सा खड़ा रह गया और अगले ही पल चीख उठा। दोनों हाथों में थमे स्की पोल दूर जा गिरे। उसने अपनी छाती पकड़ ली। अगले ही क्षण छाती पर काला-सा धब्बा प्रकट होने लगा। पुनीत को कोई दर्द नहीं हो रहा था। उसका सीना सुराख की भांति नजर आने लगा। फिर वो नीचे जा गिरा। देखते-ही-देखते उसका शरीर राख होने लगा।

संदीप, राजीव और मोनी फटी-फटी आंखों से ये नजारा देख रहे थे।

पुनीत का तड़पना-हिलना रुक चुका था। उसकी आंखें फट चुकी थीं। उसका शरीर राख होता जा रहा था और यहां तक कि जूतों में फंसी स्की भी राख हो गई। हड़्डियां भी राख हो गईं। अब वहां मामूली-सी राख ही पड़ी दिखी। अगोमा उस राख को देखते सोच रहा था कि इन लोगों ने ओमारू और अन्य लोगों को भी इसी प्रकार राख किया था। उसके दिल में नफरत थी रानी ताशा और उसके लोगों के लिए।

“पुनीत...” संदीप पागलों की तरह चीख उठा।

जहां पुनीत था अब वहां पर पड़ी थोड़ी-सी राख को सब देख रहे थे।

राजीव गुस्से से कांप उठा और हम्बस को देखकर चीखा।

“ये तुमने क्या किया।”

“दुश्मनों के साथ हम ये ही व्यवहार करते हैं।” हम्बस दांत भींचे, सख्त स्वर में बोला।

“हम-हम दुश्मन नहीं हैं, हम तो...”

“यहां आने वाले बाहरी लोग हमारे दुश्मन ही हैं।” कहने के साथ ही हम्बस ने हाथ ऊपर उठाया जोबिना वाला।

“नहीं।” संदीप चीखा।

उसी पल हम्बस के हाथ में थमी जोबिना से चमक निकली और राजीव के शरीर से जा टकराई।

राजीव खौफ से चीख उठा।

“मोनी।” संदीप फौरन पलटता हुआ चीखा-“भागो।”

मोनी तो पहले ही दहशत में डूब चुकी थी। वो तेजी से पलटी और बदहवासों की तरह स्की पोल बर्फ की जमीन पर मारती, स्की के सहारे फिसलती चली गई।

संदीप भी तब तक तेजी से आगे बढ़ चुका था।

हम्बस और उसके दोनों साथियों ने जोबिना से निशाना लिया उनका।

परंतु किस्मत उनके साथ थी और वो बच गए। तभी वो फैले कोहरे में गुम हो गए।

“वो बच गए हम्बस।” हम्बस के साथी ने कहा।

“हमें उनके पीछे जाना होगा।” हम्बस चीखा।

“लेकिन उन्होंने पांवों में कुछ पहन रखा है (स्की) वो बर्फ पर बहुत तेजी से गए हैं।”

उन्हें खत्म करना बहुत जरूरी है।”

राजीव नीचे गिर चुका था और उसका शरीर राख होता जा रहा था।

वो मर चुका था।

तभी पोपा की सीढ़ियों पर किलोरा दिखा।

“तुम लोग उन्हें मार नहीं सके।” सीढ़ियां उतरते किलोरा ने नाराजगी से कहा।

“वो बच नहीं सकते किलोरा।”

“वे बर्फ पर तेजी से फिसलते गए हैं। उन्हें पकड़ना आसान नहीं।” फिर किलोरा ने अगोमा को देखा-“तुम कुछ करो अगोमा।”

“डोबू जाति के योद्धा उन्हें पकड़ सकते हैं। ढूंढ़ लेंगे। वो ज्यादा दूर नहीं जा सकेंगे।”

“तो जल्दी करो-सोच क्या रहे हो?”

“योद्धाओं को उनके हथियार चाहिए होंगे। हथियारों के बिना वो काम नहीं कर सकेंगे।” अगोमा ने कहा।

“चलो भीतर।” किलोरा पहाड़ के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ता कह उठा-“मैं तुम्हें हथियार दिलाता हूँ।”

अगोमा उसके साथ चलता कह उठा।

“अगर मेरे योद्धाओं के पास हथियार होते तो अब तक वो जिंदा नहीं होते।”

“अपने योद्धाओं से कहना कि वो जिंदा न छोड़ें उन दोनों को। परंतु ये कैसे पता चलेगा कि वो किस तरफ गए हैं।”

“मेरे तीस योद्धा हथियारों के साथ बर्फ की हर दिशा में जाएंगे। उन्हें ढूंढ़ लेंगे।”

दोनों पहाड़ के भीतर प्रवेश कर चुके थे और भीतर के रास्तों पर तेजी से जा रहे थे। इन सब रास्तों और सारी जगहों को आप पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा’ में पढ़ चुके हैं।

“तीस लोग जाएंगे उनके पीछे, फिर तो तुम्हें ज्यादा हथियार चाहिए होंगे। ठीक है, परंतु वो तो बर्फ पर तेजी से फिसल रहे थे। कोहरा भी फैला हुआ है। ऐसे में तुम्हारे योद्धा उन्हें कैसे पकड़ेंगे।” किलोरा ने तेज-तेज कदम उठाते हुए कहा।

“वो जानते हैं कि उन्हें कैसे काम करना है।” अगोमा बोला-“योद्धा बर्फ पर भी ऐसे चलते हैं, जैसे सूखी जमीन पर हों। इन बातों के लिए वो बहुत अनुभवी हैं। उनके पास हथियार हों तो, फिर वो कभी हारते नहीं। काम पूरा करके लौटते हैं।”

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मोनी और संदीप के चेहरे जर्द पड़े हुए थे। दिल तेज रफ्तार से धड़क रहे थे। मौत आंखों के सामने नाच रही थी। वे बर्फ पर स्कीइंग करते रफ्तार से, आगे को जाते जा रहे थे। हर तरफ कोहरा फैला था। एक-एक पल में उन्हें इस बात की आशंका हो रही थी कि पीछे से वे लोग आएंगे और उस अजीब-से हथियार से उन्हें मार देंगे। पुनीत-राजीव के साथ जो हुआ था उस पर उन्हें यकीन नहीं आ रहा था। कैसे वे देखते ही देखते राख में बदल गए थे। हड़िडयां तक नहीं दिखीं, वे भी राख हो गईं।

‘हे भगवान।’ संदीप दहशत से बड़बड़ा उठा-’ये क्‍या हो रहा है।’

कोहरे में रास्ता देखना कठिन हो रहा था। तब भी संदीप, तेजी से मोनी के आगे जा रहा था। मौत का डर सिर पर सवार था। पुनीत और राजीव का जो हाल हुआ था देखा था, उस पर उन्हें विश्वास ही नहीं आ रहा था। संदीप काफी आगे निकलकर कोहरे में गुम होने जा रहा था तो मोनी ने अपनी रफ्तार बढ़ाते, संदीप को आवाज लगाई।

“जल्दी आओ मोनी।” संदीप कुछ धीमा हुआ।

मोनी पास आ पहुंची। दोनों एक साथ आगे बढ़ने लगे।

“इतनी तेज स्कीइंग मत करो।” मोनी ने परेशान स्वर में कहा।

“वो लोग हमारे पीछे भी हो सकते...”

“बेवकूफ। आगे धुंध है। रास्ता नजर नहीं आ रहा। किसी खाई में गिर जाओगे।” मोनी ने गुस्से से कहा।

बात संदीप की समझ में आई।

“अब वो हमें ढूंढ नहीं सकते।” मोनी ने कहा।

“क्यों?” संदीप ने सूखे स्वर में कहा।

“हर तरफ कोहरा फैला है। हम उन्हें नजर नहीं आ सकते।” मोनी बोली।

ये बात भी संदीप को जंची।

“मुझे विश्वास नहीं आ रहा मोनी।” संदीप भय भरे स्वर में बोला-“राजीव और पुनीत सच में जान गंवा बैठे हैं क्या?”

“तुमने उन्हें मरते हुए देखा है।”

संदीप की आंखें भर आईं।

“बहुत बुरा हुआ। मैं बेबी और सुधा को क्‍या जवाब दूँगा कि...” संदीप का गला भर उठा।

“ये उनकी पत्नियां हैं?” मोनी ने पूछा।

“हां। कल तुमने दोनों को देखा तो था।”

“वो जाने क्या चीज थी जिसने उन्होंने दोनों को राख बना डाला।”

“बहुत खतरनाक हथियार होगा वो।”

“वो बड़ा-सा हवाई जहाज जैसा क्‍या था जिसमें से वो लोग निकल कर आए थे?”

“मैं कुछ भी नहीं समझ पाया।” संदीप भर्राए गले से बोला-“सब कुछ सपना लग रहा है जैसे पुनीत और राजीव अभी पास आ पहुंचेंगे। वो दोनों सच में मर गए मोनी?”

मोनी ने थके अंदाज में संदीप पर निगाह मारी।

मध्यम गति से वे दोनों कोहरे को चीरते बर्फ पर आगे बढ़े जा रहे थे।

“बोलो मोनी।” संदीप चीखा-“कहो कि वो दोनों जिंदा हैं-वो...”

“अपने पर काबू रखो संदीप।” मोनी गम्भीर स्वर में बोली-“वो लोग हमें जरूर ढूंढ़ रहे होंगे।”

“वो डोबू जाति वाले थे?”

“मेरे ख्याल में हां।”

“और वो बड़ा-सा हवाई जहाज जैसा, उसमें से निकलने वाले लोग कौन थे?”

“जितना तुम जानते हो, उतना ही मैं जानती हूं।” मोनी की आवाज में डर समाया हुआ था।

स्कीइंग करते-करते संदीप फफककर रो पड़ा।

मोनी के होंठ भिंच गए।

“तुम तो बहुत हिम्मत वाले हो।” मोनी बोली-“अभी हमने ‘सूमा’ तक वापस पहुंचना हैं। अपने को संभालो।”

“वो मेरे भाइयों की तरह थे।” संदीप रोते हुए बोला-“ये बात तुम नहीं समझ सकोगी।”

“तुम ये सोचो कि हम मौके पर भाग निकले और बच गए।” मोनी ने कहा-“उन दोनों की मौत को मैं भी सहन नहीं कर पा रही हूं। लेकिन इस वक्त हमें अपने बारे में सोचना है। शायद वो पीछे आ रहे हों।’

“हम रफ्तार से स्कीइंग करते...”

“कोहरे की वजह से रास्ता साफ नहीं दिख रहा, ऐसा न हो कि हम किसी पहाड़ से नीचे गिर जाएं। खाई में...”

“हम सूमा गांव की तरफ ही जा रहे हैं?” संदीप ने पूछा।

“मैं नहीं जानती।” मोनी ने पीछे निगाह मारते हुए कहा-“हम रास्ता भटक चुके हैं, पता नहीं किस दिशा में जा रहे हैं। अगर कोहरा नहीं होता तो हमें दिशा का, रास्ते का पता रहता। डोबू जाति से हम जब भागे तो पता नहीं किस तरफ को निकल आए हैं। बस ऐसे ही चलते रहो। इस तरह हम उन लोगों से अपने को बचा लेंगे।”

“ये सब क्या हो गया मोनी।” संदीप पुनः रो पड़ा।

“ऐसा मत करो संदीप। अभी हमने रास्ता भटकने की मुसीबतें झेलनी हैं। हम तो...”

“पुनीत-ऽ-ऽ-ऽ...।” संदीप चीख उठा-“राजीव, तुम कहां हो?”

इसके साथ ही उसका आगे बढ़ना रुक गया। वो दोनों हाथों से चेहरा ढांपे फफक-फफककर रो पड़ा।

मोनी रुकी और उसके करीब आ गई। संदीप का हाल देखकर उसकी आंखों में भी आंसू आ गए।

“संदीप।” मोनी ने उसकी बांह थामी।

“ये क्या हो गया मोनी। मुझे भरोसा नहीं होता कि राजीव और पुनीत मर गए हैं।” रोते हुए संदीप ने कहा।

“वो हमारी आंखों के सामने मरे हैं।” मोनी ने आंसुओं भरे स्वर में कहा-“मुझे बहुत दुख हो रहा है उनके मरने का।”

“गलती हमारी थी। हमें इतनी दूर बर्फ के पहाड़ों पर नहीं आना चाहिए था।” संदीप ने आंसुओं भरा चेहरा उठाकर मोनी को देखा-“तुमने हमें रोका भी था, परंतु हमने तुम्हारी बात नहीं मानी। अब मैं सुधा और बेबी से क्या कहूंगा कि राजीव और पुनीत को क्‍या हो गया। मैं उनका सामना कैसे कर पाऊंगा। उन दोनों की मौत के बारे में सुनकर जाने वो क्‍या कर बैठें। भगवान तूने मुझे कैसी हालत में पहुंचा दिया। मैं जीवन भर राजीव-पुनीत की याद में तड़पता रहूंगा। मैं...”

“संदीप होश में आओ।” मोनी ने रोते हुए उसकी बांह पकड़कर जोरों से हिलाया-“अभी हमें ‘सूमा’ तक जाना है।”

संदीप का चेहरा आंसुओं से पूरी तरह भीग चुका था। वो बच्चों की तरह रो रहा था। हड्डियों को कंपा देने वाली सर्दी थी परंतु उन्हें इस सर्दी का एहसास ही न हो रहा था।

“अपने को संभालो।” मोनी ने भर्राए स्वर में कहा।

संदीप ने बांह से आंसुओं भरा चेहरा साफ करने की कोशिश की।

“हमें आगे बढ़ना चाहिए। यहां रुकना ठीक नहीं। वो लोग हमें ढूंढ़ते यहां भी आ सकते हैं।” मोनी ने बेचैनी से कहा।

“लेकिन वो हमें मारना क्‍यों चाहते हैं? हमने उनका क्या बिगाड़ा जो उन्होंने राजीव, पुनीत को मार डाला।”

“यहां से चलो।” मोनी पीछे कोहरे में देखती कह उठी-“वक्त बरबाद मत करो।”

संदीप ने भारी मन से पुनः स्कीइंग शुरू कर दी।

दोनों आगे बढ़ने लगे।

“अगर तुम इस तरह हिम्मत छोड़ दोगे तो मेरा क्या होगा।” मोनी बोली-“तुम्हें तो मुझे हौसला देना चाहिए कि...”

“मैं थक गया हूं मोनी।” संदीप की आवाज में तड़प थी-“राजीव और पुनीत के बिना मैं खुद को...”

“वो मर गए हैं। हम भी खतरे में हैं। वो खतरनाक लोग हैं कि किस आसानी से उन्होंने, उन दोनों को मार दिया।”

संदीप ने होंठ भींच लिए स्कीइंग करता वो मोनी के साथ आगे बढ़ा जा रहा था। रह-रहकर उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। सर्द हवाओं ने उसकी नाक लाल कर रखी थी। परन्तु उसे किसी बात की होश नहीं थी। ख्यालों में सिर्फ राजीव-पुनीत, बेबी और सुधा ही नाच रहे थे। कैसा अनर्थ हो गया है। ये ही सोचे जा रहा था।

जबकि मोनी भय में घिरी रास्तों को पहचानने-समझने का यत्न कर रही थी। कोहरे ने दुश्मनों से उन्हें बचा रखा था तो वो उनका रास्ता भटकाने में भी सहायक हो रहा था। मोनी की निगाह दूर-दूर तक नहीं जा सकती थी कोहरे के कारण और वो रास्ता नहीं समझ सकती थी। संदीप अपने पर काबू रखे हुए था। वो जानता था कि अगर उसने हिम्मत छोड़ दी तो वो ‘सूमा’ तक कैसे पहुंचेंगे? कहीं उन हत्यारों से उनका सामना फिर न हो जाए। उनका ख्याल आते ही जिस्म में मौत से भरी सिहरन दौड़ जाती थी। जाने वो कैसा हथियार था जिससे उन्होंने पुनीत और राजीव की जान ली थी। ऐसा हथियार तो कभी सुना भी नहीं था।

मोनी ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्‍त देखा।

दोपहर का डेढ़ बज रहा था।

“संदीप।” मोनी ने कहा।

“हां।” संदीप ने भर्राए स्वर में कहा।

“तुम भी रास्तों को पहचानने की कोशिश करो।” मोनी बोली।

“मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा। मैं अपने होश में नहीं हूं।” संदीप की आंखों से पुनः आंसू बह निकले।

मोनी उसकी हालत पर रुक गई।

संदीप भी रुका। पास आकर मोनी उससे सट गई।

“मेरे प्यारे संदीप।” मोनी की आंखों में आंसू चमके-“तुम्हें मेरे लिए अपने को संभाले रखना होगा।”

“मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा।” संदीप ने आंसुओं भरे चेहरे से मोनी को अलग कर दिया।

“जब तक हम सूमा गांव तक नहीं पहुंच जाते, तब तक तो अपने को संभाले रहों।”

“संभाला हुआ है।” संदीप ने अनमने मन से कहा।

दोनों पुनः आगे बढ़ने लगे।

मोनी की निगाह हर पल रास्तों को पहचानने के प्रयत्न में लगी थी।

वक्‍त आगे सरका दोपहर के तीन बज गए। वे आगे बढ़ते ही जा रहे थे।

मोनी के चेहरे पर चिंता दिखने लगी। परंतु एकाएक ही तेज हवाओं ने चलना शुरू कर दिया था। वहां फैला-ठहरा कोहरा, हवा के संग खिसकने लगा।

धीरे-धीरे हवाओं में तेजी आने लगी। कोहरा बिखरकर गायब होने लगा।

अगले आधे घंटे में कोहरा काफी हद तक साफ हो गया। वहां से दूर-दूर के पहाड़ स्पष्ट दिखने लगे। मोनी काफी दूर दिखाई दे रहे, एक पहाड़ की नुकीली चोटी को देखकर खुशी से चीख उठी।

“संदीप हमें रास्ता मिल गया। रास्ता मिल गया।”

“कहां?”

“वो देखो, नुकीली चोटी वाला पहाड़। आते समय हम उस पहाड़ के करीब से निकले थे। चलो हमें उस पहाड़ तक पहुंचना होगा। वहीं से मैं सही रास्ते को पकड़ सकूंगी। आते समय हम एक-डेढ़ घंटे बाद उस पहाड़ तक पहुंचे थे।” मोनी बहुत खुश हो रही थी-“इसका मतलब हम अंधेरा होने से पहले ही सूमा तक पहुंच जाएंगे-आओ।”

दोनों बीस मिनट की स्कीइंग करके, नुकीली चोटी वाले पहाड़ के नीचे पहुंचे और वहां से मोनी ने फौरन रास्ता पहचान लिया। उसने बताया कि सूमा गांव उस तरफ है। उधर चलना है। संदीप को कुछ समझ नहीं आ रहा था परंतु वो मोनी के संग चल पड़ा। दोनों तेजी से स्कीइंग करने लगे। संदीप के जेहन में पुनीत और राजीव घूम रहे थे। जब आए थे तो वो दोनों भी साथ थे, लेकिन अब उनके साथ नहीं थे। इस बात का खालीपन उसे झिंझोड़ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे शरीर में जान ही न बची हो। बार-बार रोने का दिल कर रहा था। रह-रहकर आंखों से आंसू निकल रहे थे। उसके साथ वो ही मोनी थी जो उसे बहुत अच्छी लग रही थी परंतु अब मोनी उसके दिलोदिमाग से निकल चुकी थी। मन अच्छा हो तो सब कुछ अच्छा लगता है। मन खराब हो तो अच्छी चीज भी बुरी लगती हैं। ये ही हाल संदीप का था। वह जैसे बेजान-सा स्कीइंग कर रहा हो। सोचों में ऐसा खोया था कि दो-तीन बार वो मोनी से काफी पीछे रह गया था। एक बार तो मोनी को संदीप के लिए वापस आना पड़ा था।

“हम आधे-पौने घंटे में सूमा पहुंच जाएंगे संदीप।” मोनी राहत भरे स्वर में कह उठी।

“आधे-पौने घंटे में?” संदीप बड़बड़ाया-“तो मैं बेबी और सुधा से क्या कहूंगा। राजीव और पुनीत कहां हैं। वो दोनों तो मेरे साथ गए थे। बेबी और सुधा भी तो ये ही कहेंगी कि वो तुम्हारे साथ गए थे तो तुम्हारे साथ क्यों नहीं लौटे?” संदीप का सुधा और बेबी के साथ जोगना का चेहरा भी दिखा, तीनों रो रही थीं, तड़प रही थीं।

संदीप उसीं पल बर्फ में बढ़ता रुक गया।

मोनी ने उसे रुकते देखा तो तुरंत उसके करीब पहुंची।

“मैं सब समझ रही हूं।” मोनी ने दुख भरे गम्भीर स्वर में कहा-“तुम राजीव-पुनीत की पत्नियों का सामना करने में घबरा रहें हो। सच में किसी की मौत की खबर देनी हो तो बुरा हाल हो जाता है। ऐसे वक्‍त में खुद को अकेले मत समझो। मैं तुम्हारे साथ हूं।”

“वो दोनों मेरे भाइयों से भी बढ़कर थे।” संदीप की आंखों से आंसू निकल गए।

“मालूम है मुझे। मैंने तुम तीनों को एक साथ देखा है।” मोनी की आंखें भर आईं-“हिम्मत से काम लो। चलो, आने वाले वक्‍त का सामना तो करना ही है। जो हुआ वो हमें हिला देने के लिए काफी था। मैं उस दृश्य को कभी नहीं भूल सकूंगी कि कैसे वो मिनट भर में राख में बदल गए। परंतु हम वहां से जिंदा लौट आए, क्या ये कम है। इस सच्चाई को हम दोनों ही समझ सकते हैं।”

संदीप ने गीली आंखों को साफ किया।

“हिम्मत रखो।” मोनी ने गम्भीर भाव में उसका हाथ थपथपाया-“खबर देते वक्‍त मैं तुम्हारे साथ रहूंगी।”

दोनों फिर आगे बढ़ने लगे। संदीप का मन भारी हो रहा था। उसका मन सूमा तक जाने का नहीं कर रहा था। बेबी, सुधा और जोगना के चेहरे दिखाई दे रहे थे। कहां वो मौज-मस्ती के लिए आए थे और जान गंवा दी। आधा घंटा और बीत गया तो मोनी ने ऊंचे स्वर में कहा।

“हम सूमा के करीब आ पहुंचे हैं संदीप।” मोनी के चेहरे पर गम्भीरता थी।

संदीप ने सामने बर्फ के पहाड़ को निहारा।

“इस पहाड़ के पार होते ही सामने सूमा गांव और होटल दिखने लगेगा।”

मोनी ने पुनः कहा।

संदीप कुछ न बोला।

दोनों स्कीइंग करते आगे बढ़ते जा रहे थे। पंद्रह मिनट में उस पहाड़ की साइड से वे निकले कि सामने काफी दूरी पर सूमा गांव और वो होटल दिखने लगा।

“हम पहुंच गए।” मोनी के चेहरे पर भीगी मुस्कान उभरी-“उन लोगों से हमने अपनी जान बचा ली।”

संदीप वहीं ठिठककर दूर दिखाई दे रहे होटल को देखने लगा। पुनीत और राजीव साथ में होते तो इस समय सब खुशी से चीख रहे होते कि वे वापस आ गए। परंतु अब संदीप को वापस लौटना भी भारी पड़ रहा था। मोनी उसके पास आकर रुकी।

दोनों ने एक दूसरे को देखा।

‘शूं’ करता हवा में कुछ आया, जिसकी रफ्तार बहुत तेज थी। जिसे देख पाना आसान नहीं था। संदीप मोनी को देख रहा था कि एकाएक उसने उसका चेहरा उड़कर चार फुट दूर गिरते देखा। वो नहीं समझ पाया कि क्या हुआ है। मोनी का शरीर उसके सामने खड़ा था, परंतु चेहरा तीन कदमों के फासले पर जा गिरा था। दो पल बीते कि उसकी आंखें फैलने लगीं। अब उसको समझ में आया कि मोनी की गर्दन कट चुकी है। ये-ये कैसे हुआ?

तभी उसने मोनी के शरीर को नीचे गिरते देखा।

संदीप स्तब्ध रह गया। आंखें फैलकर चौड़ी होती गईं। उसी पल उसने कांपकर आसपास देखा तो पंद्रह कदम के फासले पर बर्फ में एक व्यक्ति खड़ा देखा। उसे देखते ही संदीप के जिस्म में सिरहन दौड़ती चली गई वो डोबू जाति के लोगों जैसा लग रहा था। उसके हाथ में लोहे की कुछ भारी चौकोर पत्ती थी और उसके देखते ही देखते उसने लोहे की पत्ती वाला हाथ ऊपर किया और एक खास अंदाज में हाथ को झटका दिया। पत्ती उसके हाथ से निकलकर, घूमती हुईं न दिखाई देने वाले अंदाज में संदीप की तरफ लपकी। संदीप बुत की तरह खड़ा रहा। कुछ समझ नहीं सका। एकाएक उसके कानों में ‘शूं’ की आवाज पड़ी और अगले ही पल उसकी गर्दन कटकर दूर जा गिरी।

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तीन-चार दिन के लम्बे सफर के बाद वे सब डोबू जाति के ठिकाने पर आ पहुंचे। उस वक्‍त दोपहर के बारह बज रहे थे जब वे वहां पहुंचे। पोपा (अंतरिक्ष यान) को देखकर, देवराज चौहान बच्चों की तरह खुश हो गया।

“ये ही पोपा था जो मैंने सदूर पर बनाया था। मुझे सब याद है ताशा। मैंने और जम्बरा ने कई लोगों के साथ मिलकर, साल भर से ज्यादा का वक्‍त लगाकर बनाया था। रातों को भी हम आराम नहीं करते थे। सबने बहुत मेहनत की थी पोपा बनाने में।”

“ये आपकी ही मेहनत का फल है देव।” ताशा, देवराज चौहान की बांह पकड़कर प्यार से कह उठी-“आपने अगर पोपा न बनाया होता तो मैं पृथ्वी ग्रह पर आकर आपको कैसे ढूंढ़ पाती।”

“पोपा को सामने देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।”

“क्यों न होगी राजा देव।” रानी ताशा मुस्कराकर बोली-“अब हम पोपा में बैठकर वापस सदूर जाएंगे।”

“हां ताशा। मैंने पोपा बनाया तो जरूर था परंतु उसकी सैर की हो, ये याद नहीं आ रहा।”

“सैर अब करेंगे देव। आओ हम पोपा में चलते हैं। पोपा को भीतर से देखकर पुरानी यादें ताजा कर लो देव।”

देवराज चौहान की नजरें पास के पहाड़ के भीतर जाते रास्ते पर गई।

वहां डोबू जाति के कई लोग खड़े उन्हें ही देख रहे थे। रानी ताशा के कुछ लोगों ने उन्हें देखा तो पास आकर आदर भरे ढंग से सिर झुकाया।

“ये हमारे ही साथी हैं देव। सदूर से आए हैं।”

देवराज चौहान ने उन्हें देखकर सिर हिलाया।

“ये राजा देव हैं। सदूर के राजा। हम इनके लिए ही पृथ्वी ग्रह पर आए थे।” रानीं ताशा ने उनसे कहा।

“आपसे मिलकर बहुत खुशी हुईं राजा देव।”

“आपके बारे में बहुत सुना।” दूसरे ने कहा-“परंतु देखने का सौभाग्य अब प्राप्त हुआ है।”

“अब राजा देव हमारे साथ ही रहेंगे।” रानी ताशा बोली-“हमारे साथ ही सदूर पर चलेंगे।”

“हमारे लिए इससे बड़ी खुशी क्या होगी।”

“किलोरा कहां है?”

“पोपा के भीतर।”

“किलोरा कौन है?” देवराज चौहान ने रानी ताशा से पूछा।

“पोपा को और अन्य कामों को संभालने वाला, मेरे मुख्य कर्मचारी का नाम किलोरा है।” फिर रानी ताशा ने सामने खड़े अपने दोनों साथियों से कहा-“पोपा का दरवाजा खुलवाओ। हम भीतर जाएंगे। लम्बे सफर से थक चुके हैं।” इसके बाद रानी ताशा ने गर्दन घुमाकर बाकी सब पर निगाह मारी।

जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी और धरा हैरानी से पोपा को देख रहे थे। वो हैरान थे ये सोचकर कि उनके सामने अंतरिक्ष यान खड़ा है। धरा इस वक्‍त बिल्कुल सामान्य दिख रहीं थी।

सोमाथ एक तरफ शांत खड़ा था।

बबूसा और सोमारा पास-पास खड़े थे।

“तुम लोग डोबू जाति के ठिकाने पर, पहाड़ों के भीतर रहोगे।” रानी ताशा ने सबसे कहा।

“यहां से सदूर की तरफ चलना कब है रानी ताशा?” सोमाथ ने पूछा।

“जल्दी ही। लेकिन इस वक्‍त हम आराम करना चाहते हैं।” रानी ताशा मुस्कराई-“क्यों देव?”

“हां।” देवराज चौहान ने प्यार भरी निगाहों से रानी ताशा को देखा-“हम एकांत में लम्बे पल बिताएंगे।”

“रानी ताशा।” सोमाथ सामान्य स्वर में बोला-“मुझे बबूसा पर भरोसा नहीं।”

“क्या कहना चाहते हो सोमाथ?”

“मुझे शक है कि बबूसा हमारे खिलाफ कुछ करने की सोच रहा है।” सोमाथ बोला।

रानी ताशा ने बबूसा को देखा।

बबूसा मुस्करा पड़ा, परंतु सोमारा तीखे स्वर में बोली।

“सोमाथ के ही के विचार बहुत ही गलत हैं। बबूसा के मन में ऐसा कुछ भी नहीं है।”

“सही कह रहीं हो सोमारा?” रानी ताशा बोली।

“हां। क्या सोमारा पर भरोसा नहीं?”

“भरोसा है।” रानी ताशा ने सिर हिलाते, सोमाथ से कहा-“सब ठीक है सोमाथ।”

“पर मुझे ठीक नहीं लग रहा।” सोमाथ बोला।

रानी ताशा, सोमाथ को देखने लगी।

“अभी में बबूसा पर नजर नहीं रख सकता। पोपा में जाकर मैंने अपनी बैटरी को आराम देना है।” सोमाथ ने कहा।

“बबूसा कुछ नहीं करेगा। सोमारा ने मुझे इस बात का विश्वास दिलाया है।” रानी ताशा ने कहा-“तुम हमारे साथ पोपा में चलो। यहां सब ठीक है। सोमारा मुझसे गलत बात नहीं कहेगी।”

“सोमारा, बबूसा का साथ देने को तैयार है। ये बात मैंने सोमारा के हाव-भाव से पहचानी हैं।”

“सोमाथ!” बबूसा मुस्कराकर बोला-“तुम्हें मेरा दोस्त बन जाना चाहिए।”

“हम कभी भी दोस्त नहीं बन सकते बबूसा। क्योंकि मैं रानी ताशा के पक्ष में काम करता हूं और तुम राजा देव के। हमारे विचारों में जमीन-आसमान का अंतर है। मैं तुम्हारे इरादों को भांपने की कोशिश कर रहा हूं।”

“बेशक राजा देव मेरे लिए पहले हैं और रानी ताशा बाद में, परंतु रानी ताशा की भी मुझे चिंता रहती है।”

“उतनी ही चिंता, जितनी कि मुझे है?” सोमाथ बोला।

“ये बात मैं तुमसे भी कह सकता हूं कि क्या तुम रानी ताशा के बराबर, राजा देव की चिंता करते हो?”

“नहीं।”

“ये ही बात मेरे साथ है कि राजा देव मेरे लिए पहले हैं।”

“परंतु मेरा ये कहना सच है कि तुम खामोश नहीं बैठोगे। तुम्हारा कुछ करने का इरादा है।”

सोमारा ने रानी ताशा से नाराजगी से कहा।

“सोमाथ को चुप रहने को कहो ताशा।”

“तुम मेरे साथ पोपा के भीतर चलो सोमाथ। हम वहां बात करेंगे।”

सोमाथ चुप रहा।

“रानी ताशा। मैं भी तो पोपा के भीतर आ सकता हूं।”

“अभी नहीं। अभी तुम डोबू जाति के साथ रहो। जब सदूर के चलेंगे तो तब तुम आना।”

“जो हुक्म। परंतु मैं राजा देव से जानना चाहता हूं कि पोपा के भीतर आने का मुझे हक है या नहीं?”

“पूरा हक है बबूसा।” देवराज चौहान ने कहा-“तुम जब भी चाह पोपा में आ जाना। कोई तुम्हें रोकेगा नहीं।”

“ओह देव। आपके आगे तो मेरा हुक्म बेकार हो जाता है।” रानी ताशा मुंह फूलाकर बोली।

“अब सब कुछ मेरे हवाले कर दो ताशा। तुम्हें किसी भी तरह का कष्ट उठाने की जरूरत नहीं है।” देवराज चौहान प्यार से कह उठा-“मेरे बिना, तुमने सदूर को अच्छे तरीके से संभाला होगा, लेकिन अब मेरे काम, मुझे करने दो।”

तभी पोपा का दरवाजा खुला और सीढ़ियां नीचे को खुलती, जमीन पर आ टिकी। दरवाजे पर मुस्कराता हुआ किलोरा दिखा जो कि ऊंचे स्वर में कह उठा।

“रानी ताशा और राजा देव का पोपा में स्वागत है ।”

“वो किलोरा है, जिसके बारे में मैंने तुम्हें बताया था देव।” रानी ताशा कह उठी।

देवराज चौहान ने किलोरा को देखकर हाथ हिलाया।

किलोरा वहीं खड़ा, थोड़ा-सा झुका।

“आओ देव, हम पोपा में चलते हैं।”

रानी ताशा और देवराज चौहान सीढ़ियां चढ़ने लगे।

धरा की आंखों में एकाएक चमक उभरी। उसका नीचे का होंठ खास अंदाज में टेढ़ा हुआ। नजरें पोपा के प्रवेश द्वार पर थीं। अगले ही पल वो सामान्य दिखने लगी और धीमे से बड़बड़ा उठी।

‘हौसला रख खुंबरी। तू भी पोपा में बैठेगी। सदूर पर वापस जाएगी, एक बार फिर वहां तेरा साम्राज्य फैलेगा। पांच सौ साल पूरे होने वाले हैं। उसके बाद तेरी ताकतें फिर से जिंदा हो जाएंगी। तेरी मेहनत सफल होगी, जो तू सदूर पर वापस जाने के लिए कर रही है।’

सोमाथ की निगाह, बबूसा पर गई।

बबूसा, सोमाथ को ही देख रहा था और नजरें मिलते ही मुस्करा पड़ा।

सोमाथ के चेहरे पर शांत भाव थे । बबूसा, सोमाथ के पास पहुंच गया।

“तेरा शक सही है सोमाथ कि मैं कुछ करने की सोच रहा हूं।” बबूसा मुस्करा रहा था।

“मेरे हाथों मरेगा तू।”

“राजा देव मेरे साथ हैं। तू मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता अब।”

“इस भूल में मत रहना। रानी ताशा के लिए तो मैं राजा देव को भी मार सकता हूं।” सोमाथ बोला।

“तेरे ये शब्द रानी ताशा को पसंद नहीं आएंगे। देखा ही है तूने कि वो राजा देव को कितना प्यार करती है।”

“मेरे होते तू अपने इरादों में सफल नहीं हो सकेगा।” सोमाथ ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा।

“मेरा इरादा क्या है-पता है तुझे?”

“नहीं जानता।”

“मैं तुझे खत्म कर देना चाहता हूं।”

सोमाथ पहली बार मुस्कुराया।

“अगर तेरा ये इरादा है तो फिर मुझे कोई चिंता नहीं।” सोमाथ कह उठा।

“वो ही तो मैं कह रहा हूं कि चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि मैं तुझे खत्म नहीं कर सकूंगा।”

“तू जल्दी मेरे हाथों से मरेगा।” सोमाथ ने कहा और पोपा में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ गया।

बबूसा उसे देखता रहा फिर बड़बड़ा उठा।

“बबूसा ने कभी हारना नहीं सीखा सोमाथ। मुझे अपना काम पूरा करना आता है।”

सोमारा पास आते कह उठी।

“क्या बातें हो रही थीं?”

“मैंने सोमाथ से कहा कि मैं उसे खत्म करने की सोच रहा हूं।” बबूसा ने सोमारा को देखा।

“ये कहकर तूने सोमाथ को सतर्क कर...”

“बल्कि वो निश्चिंत हो गया होगा कि मैं उसे नहीं मार सकूंगा। परंतु इस जन्म में मेरी ताकत और मेरा दिमाग राजा देव जैसा है। महापंडित ने ये काम अच्छा किया मेरे साथ। सोमाथ को खत्म करने की कोई युक्ति सोचनी पड़ेगी। सोमाथ को मारे बिना मैं आगे कुछ नहीं कर सकूंगा। महापंडित को सोमाथ के निर्माण करने की सजा राजा देव से जरूर दिलवाऊंगा। महापंडित भी बेईमान होकर रानी ताशा के साथ मिला हुआ है, तभी तो अभी तक राजा देव को, रानी ताशा के दिए धोखे के बारे में याद नहीं आया।”

“भैया (महापंडित) की बात छोड़ो, यहां की सोचो। मुझे तो चिंता हो रही है ।”

“किस बात की?”

“रानी ताशा अब सदूर पर जाने की तैयारी करेगी। एक बार हम सब पोपा में बैठ गए और पोपा चल पड़ा तो फिर कुछ नहीं हो सकेगा।”

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी।

“अपने बबूसा पर भरोसा रख सोमारा। कोई-न-कोई रास्ता जरूर दिखेगा हमें।”

“पोपा सबको लेकर उड़ गया तो?”

बबूसा ने सोमारा को देखा और फिर जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी की तरफ बढ़ गया।

“ये है डोबू जाति की जगह।” बबूसा पास पहुंचते हुए कह उठा।

“इन पहाड़ों के भीतर?” मोना चौधरी बोली ।

“हां। ये पहाड़ भीतर से खोखले कर रखे हैं। एक-दूसरे के साथ जुड़े पहाड़ों की श्रृंखला दूर तक जा रही है। हम डोबू जाति वालों ने अपनी जरूरत के मुताबिक पहाड़ों को भीतर से खोखला करके रहने और कड़कती सर्दी से बचने की जगह बना ली। पहाड़ों को खोखला करने का काम जाने कब हुआ होगा, करने वालों का पूरा जीवन इस काम में लग गया होगा, परंतु ये सब मेरी आंखों के सामने नहीं हुआ। मैंने जब यहां होश संभाला तो ये जगह ऐसी ही देखी मैंने।” बबूसा ने कहा-“आओ तुम लोगों को ये सारी जगह दिखाता हूं। इस वक्‍त यहां रानी ताशा का कब्जा है। उसके आदमी ही डोबू जाति पर अधिकार पाए हुए हैं। परंतु अब मैंने रानी ताशा और राजा देव से बात कर ली है। वे यहां से जाते वक्‍त डोबू जाति को आजाद करते जाएंगे और मैंने अब डोबू जाति को समझना है कि वो किसी को अपना दोस्त न बनाएं। आओ यहां क्यों खड़े हों। भीतर चलो मेरे साथ। यहां तुम लोगों को कोई तकलीफ नहीं होगी।”

“बबूसा।” धरा घबराए से स्वर में कह उठी-“वे मुझे मार देंगे।”

“तुम नाहक ही डर रही हो धरा।” बबूसा कह उठा-“वो देखो।”

बबूसा ने पहाड़ के भीतर जाने वाले रास्ते पर निगाह मारी-“डोबू जाति के कई लोग खड़े इधर ही देख रहे हैं। परंतु किसी ने तुम्हें कुछ नहीं कहा।”

धरा ने बबूसा की कलाई पकड़ते हुए कहा।

“मुझे डर लग रहा...”

तभी सोमारा धरा का हाथ पीछे करती कह उठी।

“बबूसा को छू मत।”

लेकिन धरा का ध्यान, बबूसा पर था।

“मेरे होते तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा।” बबूसा ने समझाने वाले स्वर में कहा-“यहां पर रानी ताशा का अधिकार है और डोबू जाति के योद्धाओं के पास हथियार भी नहीं हैं। तुम बेखौफ होकर यहां रहोगी। डर लगे तो तब कहना। डोबू जाति वाले इस बात से बहुत खुश होंगे कि बबूसा लौट आया है। वो जानते हैं कि मैं तुम्हें बचाता रहा हूं। तुम यहां सुरक्षित हो।”

धरा ने भोलेपन से सिर हिला दिया।

“आओ, भीतर आकर डोबू जाति देखो।” बबूसा ने सब पर निगाह मारी।

“बबूसा।” जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा-“तुम्हें जल्दी से कुछ करना होगा।”

उसी पल धरा ने मुंह फेर लिया और निचला होंठ टेढ़ा हुआ, चेहरे पर जहरीली मुस्कान नृत्य कर उठी। उसकी चमकती निगाह पोपा की सीढ़ियों पर जा टिकी। तभी सीढ़ियां जमीन से उठीं और फोल्ड होती वापस दरवाजे के रूप में पोपा से जा सटीं और वहां के दरवाजे की जगह दिखनी बंद हो गईं।

“जल्दी ही हम कुछ करेंगे।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“वक्त कम है बबूसा।” मोना चौधरी गम्भीर थी-“रानी ताशा अब कभी भी सदूर ग्रह की तरफ जाने को कह सकती है।”

“ये चिंता मुझे भी है।”

सोमारा भी पास आ पहुंची थी।

“तुम सोमाथ के होते कुछ नहीं कर सकते।” नगीना कह उठी।

“सही कहा। मैं हर पल सोमाथ के बारे में ही सोचता रहता हूं।” बबूसा ने सिर हिलाया-“परंतु इतनी जल्दी भी रानी ताशा वापस जाने वाली नहीं। मुझे डोबू जाति से मिल लेने दो।”

धरा शांत-सी खड़ी बातें सुन रही थी।

फिर वे सब पहाड़ के प्रवेश रास्ते की तरफ बढ़ गए। बबूसा सबसे आगे था। वो प्रवेश रास्ते पर खड़े डोबू जाति के लागों को देख रहा था। जमीन पर बर्फ की सफेदी बिखरी नजर आ रही थी। बहुत ठंडा मौसम था। जरा-जरा ठंडी हवा चल रही थी। आसमान में काले-सफेद बादलों के झुंड सरकते दिखाई दे रहे थे।

बबूसा सबको देखते पहाड़ के भीतर प्रवेश करने वाले रास्ते पर रुककर मुस्कराया।

“कैसे हो तुम लोग?” बबूसा ने पूछा।

“तुम लौट आए बबूसा?” एक ने खुशी भरे स्वर में कहा।

“हां, मैं तुम लोगों से ज्यादा दूर भी तो नहीं रह सकता।” बबूसा ने मुस्कराकर कहा।

“रानी ताशा ने हम पर कब्जा कर लिया है। वो तो हमारी दोस्त बनकर आई थी।” दूसरे ने कहा।

“फिक्र मत करो। सब ठीक हो जाएगा।” बबूसा ने सिर हिलाकर कहा-“ये लोग मेरे दोस्त हैं।” बबूसा ने सबकी तरफ इशारा किया-“सबका ध्यान रखना। तुम सब लोग मेरे पीछे आओ।”

बबूसा के साथ वे सब लोग पहाड़ के भीतर प्रवेश करते चले गए। (डोबू जाति की इस जगह के बारे में वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास-’बबूसा’, ‘बबूसा और राजा देव’ में आप डोबू जाति की हर चीज को पढ़-देख चुके हैं।)

संदीप, और मोनी को मारने के लिए डोबू जाति को योद्धाओं को जो हथियार दिए गए थे, वो अब उनसे वापस लेकर उसी कमरे में रख दिए गए हैं। ऐसे में योद्धाओं के पास हथियार नहीं हैं, परंतु अगोमा को इशारे पर दो योद्धाओं ने दो-तीन हथियार अपने पास छिपाकर रख लिए हैं। इस बात से रानी ताशा के आदमी अंजान हैं। अगोमा ने ऐसा इसलिए किया कि शायद उन्हें हथियारों की जरूरत पड़ जाए। बबूसा उत्साह भरी चाल से पहाड़ के भीतर के रास्तों को पार करता जा रहा था। परंतु मन कुछ बोझिल भी था कि अब यहां ओमारू नहीं है। बोबला नहीं है। डोबू जाति के खास-खास लोगों को रानी ताशा के इशारे पर खत्म जो कर दिया गया था। ओमारू को तो स्वयं रानी ताशा की मौजूदगी में जोबिना से राख किया गया था। रास्ते में डोबू जाति के लोग खुशी से, चिल्लाकर भी बबूसा से मिल रहे थे, उसे पुकार रहे थे और रानी ताशा की शिकायत कर रहे थे कि उसने सरदार ओमारू को मार दिया है। बाकी महत्त्वपूर्ण लोगों को भी मार दिया था। बबूसा उन्हें हौसला देते जा रहा था कि अब वो आ गया है सब ठीक हो गया है। रानी ताशा उन्हें आजाद करने वाली है। साथ ही बबूसा उन्हें कहता जा रहा था कि ये सब उसके दोस्त हैं और इनका ध्यान रखा जाए। बबूसा को आया पाकर डोबू जाति के लोग खुश थे। वे बबूसा को बहुत बड़ी राहत के तौर पर ले रहे थे। वे सब तारों वाले कमरे में पहुंचे।

अगोमा वहां काम में व्यस्त दिखा । वहां स्क्रीन हर तरफ लगी थी और इस वक्‍त एक ही स्क्रीन रोशन थी। आहट पाकर अगोमा ने सिर घुमाया तो बबूसा को सामने पाकर हैरानी से खड़ा रह गया। कुछ कहते न बना फिर उसकी आंखों में खुशी से पानी छलक उठा। होंठ कांपे। बबूसा को देखता रहा।

बबूसा मुस्करा पड़ा।

“तुम ठीक हो अगोमा?” बबूसा ने आगे बढ़कर, अगोमा का कंधा थपथपाया।

“तुम सच में आ गए बबूसा?” अगोमा के होंठों से थरथराता स्वर निकला।

“हां अगोमा, मैं आ गया।” बबूसा ने भारी मन से कहा।

“रानी ताशा ने ओमारू को, बोबला को, सबको मार...”

“जानता हूं। सोलाम ने मुझे बताया था।”

“ये सब क्या हो गया बबूसा?”

बबूसा पलटा और वहां खड़े डोबू जाति के लोगों से बोला।

“मेरे इन दोस्तों को ले जाओ और रहने की बढ़िया जगह दो। खाने को दो।” फिर बबूसा ने जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी और धरा से कहा-“तुम लोग इनके साथ जाओ। मैं कुछ देर बाद आता हूं।”

वो सब डोबू जाति के लोगों के साथ चले गए।

अब बिजली वाले कमरे में बबूसा और अगोमा अकेले मौजूद थे।

“तुम कैसे अचानक आ पहुंचे बबूसा?” अगोमा ने पूछा।

“मेरे साथ रानी ताशा और राजा देव भी आए हैं।”

“रानी ताशा आ गई क्‍या?” अगोमा के होंठों सें निकला-“राजा देव मिल गए उसे?”

“हां। रानी ताशा जिस काम के लिए आई थी पृथ्वी पर, उनका वो काम पूरा हो चुका है।” बबूसा ने बताया।

“परंतु रानी ताशा ने हमारे खास लोगों की जान लेकर, हम पर अधिकार क्यों जमा लिया?”

“रानी ताशा का इरादा इस जगह को, पृथ्वी पर अपने ग्रह पर ठिकाना बनाने का था। परंतु अब सब ठीक है। मैंने रानी ताशा से बात कर ली है। वो हमारी जाति को पहलें की तरह आजाद कर देने वाली है।”

“सच बबूसा?”

“हां।” बबूसा गम्भीर दिखा-“रानी ताशा पोपा में बैठकर वापस जाने वाली है।”

“ओह, परंतु उसने कहा था कि जाते वक्‍त वो अपने लोग यहां छोड़ जाएगी और डोबू जाति उसके अधिकार में रहेगी।”

“अब ऐसा कुछ नहीं है।” बबूसा ने कहा-“रानी ताशा के साथ सब पोपा में बैठकर चले जाएंगे।”

“वो दिन हमारे लिए खुशी का होगा।”

“परंतु मुझे परेशानी है अगोमा।” बबूसा के होंठ भिंच गए।

“क्या?”

बबूसा ने राजा देव (देवराज चौहान) से वास्ता रखती सारी बातें बताई।

सुनकर अगोमा गम्भीर हो गया।

“तो अब तुम क्‍या करना चाहते हो?” अगोमा कह उठा।

जब तक सोमाथ सलामत है, तब तक मैं राजा देव को, रानी ताशा से अलग नहीं कर सकता। राजा देव, रानी ताशा के साथ रहेंगे तो व्यस्त रहेंगे और उन्हें सदूर के जन्म की बाकी बातें याद नहीं आने वाली।”

“लेकिन तुम तो बता रहे हो कि सोमाथ पर काबू पाना आसान काम नहीं है।”

“ऐसा ही है। परंतु कुछ तो करना ही पड़ेगा।” बबूसा बोला-“हम लोगों के हथियार रानी ताशा के कब्जे में हैं?”

“हां। एक कमरे में सारे हथियार रखे हैं और दो लोग वहां हर समय पहरा देते रहते हैं।” इसके साथ ही अगोमा ने धीमे स्वर में कहा-“कल यहां बाहरी लोग आ पहुंचे थे। उन्होंने पोपा देख लिया था। उनमें से दो, एक लड़का और एक लड़की बचकर भाग निकले तो उन्हें खत्म करने के लिए हमें हथियार दिए गए थे। अब उन्हें वापस कर दिया गया है परंतु मेरे कहने पर दो-तीन हथियार हमारे लोगों ने छिपाकर रख लिए हैं।”

बबूसा के चेहरे पर सोच के भाव आ ठहरे।

“उन हथियारों को किसी पर इस्तेमाल कराना हो तो बता दो।” अगोमा ने कहा।

“मैं सोच के बताऊंगा।”

अगोमा ने सिर हिलाया।

“सोलाम की कोई खबर है?” बबूसा ने पूछा।

“वो मेरे सम्पर्क में है। मेरे यंत्र पर वो अक्सर बात करता रहता है उसे तुम्हारे आने का इंतजार था। सोलाम कहता है कि तुमने उसे तैयार रहने को कहा था कि डोबू जाति को रानी ताशा के हाथों से आजाद कराना है। वो मुम्बई में बिखरे योद्धाओं के साथ यहां से कुछ दूर सामने वाले पहाड़ के पार डेरा जमाए हुए हैं। वो लोग वहां पर हथियार बना रहे हैं कि वक्‍त आने पर...”

“अब उसकी जरूरत नहीं रही। हालात बदल गए हैं। रानी ताशा, राजा देव की बात मानकर डोबू जाति को आजाद कर देने को तैयार है। बेहतर होगा कि तुम सोलाम को वापस बुला लो।”

“यहां?”

“हां।”

“शायद वो मेरे कहने पर यहां न आए । अच्छा होगा कि तुम ही सोलाम से बात करो।”

“तुम सम्पर्क बनाओ, मैं बात करता हूं।”

अगोमा ने आगे बढ़कर लकड़ी के काउंटर पर रखा यंत्र उठाया और उसके बटनों से छेड़छाड़ करने लगा कि तभी रानी ताशा के एक आदमी ने भीतर प्रवेश किया और ठिठक कर बोला।

“तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?”

“तुमसे मतलब?” बबूसा ने उसे घूरा।

“इस कमरे में अगोमा के अलावा किसी और का आना मना है।” वो सख्त स्वर में बोला-“बाहर निकलो यहां से।”

“मुझे नहीं जानते?” बबूसा ने उसे घूरा।

“तुम कुछ देर पहले रानी ताशा और राजा देव के साथ यहां आए हो।”

“मतलब कि मुझे नहीं जानते।” बबूसा उसके पास जा पहुंचा-“मैं बबूसा हूं ।”

“बबूसा?” वो चौंका।

“क्या जानते हो मेरे बारे में?”

“य-यहीं कि तुम-तुम सदूर के हो। हममें से हो।” उसके होंठों से निकला।

“मैं सदूर का जरूर हूं पर इस डोबू जाति का भी हूं। यहां अब तुम लोगों की ज्यादा नहीं चलेगी। मैं आ गया हूं। मेरे कामों में दखल देने की कोशिश मत करना। जरूरत समझो तो रानी ताशा से ये बात कह दो।”

उसने सिर हिला दिया।

“जाओ।”

वो चला गया।

अगोमा मुस्कराकर कह उठा।

“ये तुम ही कर सकते हो। तुमने जिस ढंग से इससे बात की इस तरह हम बात करेंगे तो ये हमें राख बना देंगे।”

“अब ऐसा नहीं होगा।” बबूसा सख्त स्वर में बोला-“मैं आ गया हूं।”

“तुम्हारे आने पर मुझे बहुत सहारा मिला है।”

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

अगोमा ने यंत्र पर सम्पर्क बनाकर बबूसा को देते कहा।

“सोलाम से बात कर लो।”

बबूसा ने अगोमा से यंत्र लेकर बात की।

“सोलाम।”

“तुम ठिकाने पर पहुंच गए बबूसा?” यंत्र में से सोलाम को बारीक आवाज उभरी-“ये कैसे हो गया?”

“हम सब ही आ गए हैं । रानी ताशा, राजा देव, धरा और राजा देव के तीन साथियों के अलावा सोमारा भी...”

“ये तो अच्छा हुआ कि तुम वहां हो। हम यहां तैयारी कर रहे हैं। हमले के लिए, तुम जब कहोगे, हम तभी...”

“ऐसा कुछ नहीं होगा अब। डोबू जाति को रानी ताशा छोड़ने जा रही है। तुम यहीं आ जाओ।”

“ये क्या कह रहे हो?”

“मैंने सही कहा है। रानी ताशा पोपा में बैठकर, वापस सदूर जाने वाली है।”

“मुझे विश्वास नहीं होता।”

“रानी ताशा और राजा देव से इस बारे में बात हो गई है। उनके जाते ही डोबू जाति आजाद होगी, पहले की तरह।”

“मुझे तो इसमें रानी ताशा की कोई चाल लगती है।” यंत्र से सोलाम की आवाज उभरी।

“इस बात के बीच राजा देव भी हैं, इसलिए रानी ताशा कोई चालाकी नहीं कर सकती।”

सोलाम की आवाज नहीं आई।

“सोलाम।” बबूसा ने पुकारा यंत्र पर।

“सुन रहा हूं परंतु तुम्हारी बात पर शंकित हूं कि रानी ताशा इतनी आसानी से कैसे पीछे हट रही है।”

“सब ठीक है। शक मत करो। मैं चाहता हूं कि तुम यहां पर पहुंच जाओ। मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ सकती है।”

“मेरी जरूरत, वो कैसे?”

बबूसा ने यंत्र द्वारा सोलाम को यहां के हालात बताए।

“मैं चाहता हूं कि राजा देव को सदूर के जन्म की सब बातें याद आ जाए। परंतु जब तक वो, रानी ताशा के संग है, तब तक उन्हें यादों को छू लेने की फुर्सत नहीं मिलेगी। दोनों को तभी अलग किया जा सकता है, जब सोमाथ न रहे।”

“जैसा कि तुम बता रहे हो कि सोमाथ बेहद ताकतवर है, तो उसका मुकाबला कैसे किया जा सकता है।”

“इसी बात के बारे में तो सोचना है। इससे पहले कि सदूर पर चलने की तैयारी हो जाए, हमें कुछ करना होगा। राजादेव रानी ताशा के दीवाने हो रहे हैं। उनसे किसी तरह की सहायता की उम्मीद रखना बेकार है।” बबूसा ने यंत्र पर कहा।

“ठीक है। मैं सबको लेकर आता हूं। क्या हथियारों पर अभी भी उनका कब्जा है?”

“हां। कम-से-कम रानी ताशा वक्‍त से पहले डोबू जाति के योद्धाओं को हथियार देने को तैयार नहीं होगी।”

“हमने यहां कुछ हथियार बना लिए हैं।”

“उन्हें छिपाकर साथ ले आना।”

“ठीक है, रात तक हम ठिकाने पर पहुंच जाएंगे।” उधर से सोलाम ने कहा।

बबूसा ने यंत्र अगोमा को दे दिए।

“मैं अपनी जाति के ठिकाने पर एक नजर डालकर देखूंगा कि यहां क्या-क्या बदलाव हुए हैं।”

“सब कुछ पहले जैसा ही है। फर्क सिर्फ ये है कि हमारे लोगों पर रानी ताशा के आदमी नजर रखते हैं।”

“जादूगरनी (होम्बी) कैसी है?”

“जादूगरनी रानी ताशा के आने के बाद कभी भी अपनी जगह से बाहर नहीं निकली। वो वहीं पर रहती है और किसी से नहीं मिलती। मैं जाता हूं उसके पास तो वो चुप रहती है। बोलती नहीं।”

“जादूगरनी ने कभी कोई खास बात कही हो?”

“मैंने उसे लम्ब वक्‍त से बोलते नहीं देखा।” अगोमा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं जादूगरनी से मिलूंगा। मेरा उससे मिलना बहुत जरूरी है। मुझे उसकी सहायता की जरूरत है।”

“शायद वो बात न करे।”

“मैं उसके पास जाऊंगा।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“मुझे बताओ कि मैं क्या करूं?”

“रात तक सोलाम आ जाएगा । उसके बाद ही कोई रणनीति बनाएंगे। मैं भी सोचना चाहता हूं इस बारे में। तुम भी सोचो कि सोमाथ को कैसे खत्म किया जा सकता है। हमारी राह की रुकावट वो ही है।” कहकर बबूसा बाहर निकला और आगे बढ़ गया। रास्ते में डोबू जाति के लोग बबूसा से खुशी से मिलते रहे और बबूसा भी उनसे दिल से मिला।

कुछ देर बाद बबूसा उस कमरे तक जा पहुंचा जहां हथियार रखे थे और दो लोग पहरे पर थे।

“मुझे जानते हो?” बबूसा ने उन दोनों से पूछा।

“कौन हो तुम?” एक ने पूछा।

“बबूसा।” बबूसा मुस्कराया-“मेरा नाम सुना है पहले कभी?”

दोनों कुछ सतर्क होते दिखे।

“तुम हममें से ही हो।” वो पुनः कह उठा।

“सही कहा।” बबूसा मुस्कराया-“मैं कुछ देर पहले ही यहां पहुंचा हूं।”

“रानी ताशा भी वापस आ गई है।” दूसरा बोला।

“हाँ। साथ में राजा देव भी हैं। रानी ताशा, राजा देव को पाकर खुश है। तुम दोनों डोबू जाति के हथियारों की रखवाली कर रहे हो।”

दोनों ने सहमति से सिर हिला दिया।

“मैं भीतर जाकर हथियारों को देखना चाहता हूं। हटो सामने से।” बबूसा बोला।

दोनों ने एक-दूसरे को देखा और एक कह उठा।

“तुम हममें से ही हो। भीतर जा सकते हो।” इसके साथ ही वो एक तरफ हट गया।

बबूसा आगे बढ़ा तो दूसरा कह उठा।

“तुम्हारे साथ रहूंगा। क्योंकि भीतर जाने की इजाजत किसी को नहीं है।”

“बेशक-मेरे साथ ही रहो।”

बबूसा के साथ वो पहरेदार भी भीतर प्रवेश कर आया। भीतर अंधेरा था। बबूसा के कहने पर उसने दीवार में पहले से फंसी मशाल जलाई। वो कमरा क्या काफी लम्बा-चौड़ा रास्ता था, आगे से बंद था। बबूसा यहां के जर्रे-जर्रे से वाकिफ था। उस जगह पर डोबू जाति के हथियारों का ढेर लगा हुआ था। लोहे की पत्तियों, खंजरों, तलवारों जैसे पतले लम्बे हथियार। और भी कई तरह के हथियार थे। जो हजारों दुश्मनों की जान लेने को तैयार थे...परंतु इस वक्‍त बेजान पड़े थे।

“इन हथियारों की पहरेदारी क्‍यों कर रहे हो?” बबूसा ने पूछा।

“ताकि ये डोबू जाति के लोगों के हाथों में न जाएं।”

“इससे क्या फर्क होता है कि...”

“रानी ताशा ने डोबू जाति पर अपना कब्जा कर रखा है। हथियार उनके हाथों में पड़े तो, वो हमें मार सकते हैं ।”

बबूसा ने मशाल बुझा दी। दोनों बाहर आ गए।

“तुम दोनों जोबिना वाले हो?” बबूसा ने पूछा।

“हां।”

“जोबिना दिखाओ।” बबूसा मुस्कराया-“मैंने लम्बे समय से जोबिना को नहीं देखा।”

उसने सतर्क अंदाज में जेब से जोबिना निकालकर दिखाई।

बबूसा कई पलों तक जोबिना को देखता रहा फिर बोला।

“आज से तीस साल पहले जोबिना का रूप दूसरा होता था।”

“जम्बरा ने इसका नया रूप निकाला है।” उसने जोबिना जेब में रख लीं।

“क्या मुझे जोबिना दे सकते हो?”

“इसके लिए हमें रानी ताशा का हुक्म चाहिए।” वो बोला।

बबूसा ने कुछ नहीं कहा और आगे बढ़ गया।

वो मूर्ति वाले हॉल में पहुंचा। वहां काफी लोग बैठे हुए थे। कुछ अपने काम में व्यस्त आ-जा रहे थे। हर कोई बबूसा को देखकर खुश था और उससे बात करना चाहता था।

“मुझे भी आप लोगों से मिलकर खुशी हो रही है।” बबूसा ने उनसे कहा-“मैं सबसे बातें करूंगा, परंतु पहले यहां का हाल जान लूं।”

“अब तो तुम नहीं जाओगे बबूसा?”

“पता नहीं।” कहकर बबूसा आगे बढ़ गया।

बबूसा ठिकाने के उस हिस्से में पहुंचा जहां खाना बनाया जाता था।

वहां कुछ आदमी और औरतें रात के खाने को तैयारी कर रहे थे। बबूसा उन्हें पहचानकर मुस्कराया।

“कैसे हो तुम लोग?” बबूसा ने पूछा।

“हम ठीक हैं। तुम्हें फिर से यहां देखकर बहुत खुशी हो रही है।” एक औरत ने कहा-“रानी ताशा ने हमारी आजादी खत्म कर दी है।”

“सब ठीक होने वाला है। रानी ताशा यहां से जाने वाली है।”

“पता चला है कि वो अपने आदमी यहां छोड़कर जाएगी।” एक आदमी ने चिंतित स्वर में कहा।

“ऐसा कुछ नहीं होगा। सब यहां से चले जाएंगे। रानी ताशा और राजा देव से मेरी बात हो गई है ।”

“राजा देव मिल गए रानी ताशा को?”

“हां।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“यहां हथियार क्यों नहीं बनाए जा रहे। वो जगह खाली पड़ी है। आग की भट्टियां बंद हैं। क्या इस काम के लिए भी रानी ताशा ने मना किया है?”

“हां। रानी ताशा हमारे योद्धाओं को हथियार भी नहीं दे रही।”

“सब ठीक होने वाला है।” बबूसा ने कहा और पलटकर वापस चल पड़ा। उसको निगाह हर तरफ घूम रही थी। चेहरे पर गम्भीरता और चिंता के भाव दिखाई दे रहे थे।

दो घंटे तक बबूसा ठिकाने पर ही घूमता, देखता रहा। उसके बाद उस जगह पर पहुंचा जहां धरा, जगमोहन, मोना चौधरी, नगीना और सोमारा थे।

वो सब फर्श जैसी जगह पर कपड़ा बिछाए बैठे थे। धरा लेटी हुई थी। उन्होंने ऊपर भी गर्म कपड़ा ओढ़ रखा था। पास में खाने के कुछ बर्तन पड़े थे। मशाल की मध्यम रोशनी वहां फैली थी।

बबूसा उनके पास आकर बैठ गया।

“कुछ सोचा बबूसा?” जगमोहन ने पूछा।

“सोच लिया जाएगा। रात को सोलाम आ रहा है।” बबूसा ने कहा।

“सोलाम कौन?”

“धरा जानती है उसे। वो डोबू जाति का ही योद्धा है और मेरे साथ है। अगोमा भी मेरे साथ है। रात को हम लोग सोचेंगे कि सोमाथ से कैसे निबटा जा सकता है।” बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।

“हमारे पास वक्‍त कम है।” नगीना बोली।

“जानता हूं। हम जल्दी ही कुछ करेंगे।”

“यहां के लोगों के पास हथियार भी नहीं हैं। खाली हाथ सोमाथ का मुकाबला कैसे कर...”

“कुछ हथियार हैं। उन्हें छिपाकर रख गया है परंतु वो रानी ताशा के लोगों के लिए नाकाफी है। मैं इस कोशिश में हूं कि मुझे जोबिना मिल जाए। जोबिना के हाथ में आ आने से, हम अपना सोचा पूरा कर देंगे।”

“यहां के लोगों के पास जोबिना है?” मोना चौधरी ने पूछा।

“यहां के लोग?” बबूसा ने मोना चौधरी को देखा।

“रानी ताशा के आदमी, यहां-वहां फैले दिख रहे हैं, उनके पास जोबिना होगी?” मोना चौधरी बोली।

“हां। हथियारों वाले कमरे के बाहर खड़े दोनों आदमियों के पास जोबिना है। मैंने देखा है।”

“तुमने अभी देखी?”

“हां।”

“तो उस पर अपना अधिकार क्‍यों नहीं पाया?”

“जोबिना सिर्फ उन्हें ही दी जाती है जो बेहद सतर्क और फुर्तीले होते हैं। उनसे जोबिना नहीं छीनी जा सकती। ऐसी कोशिश करते ही वो जोबिना का इस्तेमाल सामने वाले पर करके उसे राख बना देंगे।” बबूसा ने कहा।

“हम काफी लोग हैं।” मोना चौधरी ने कहा-“एक साथ उन पर झपट कर...”

“ऐसा सोचना भी मत। वो तुम लोगों से ज्यादा फुर्ती दिखा देंगे। जोबिना का इस्तेमाल करने में सिर्फ एक पल का वक्‍त लगता है। तुम लोग राख हो जाओगे। ये काम आसान होता तो मैं कर चुका होता।”

“तुम्हारा मतलब रानी ताशा के किसी आदमी से भी हम जोबिना नहीं छीन सकते?” नगीना बोली ।

“शायद नहीं। जोबिना वाले आदमी बेहद खास होते हैं। सदूर पर हर किसी को जोबिना नहीं दी जाती। जो कड़े इम्तिहान से निकलने में कामयाब होता है जोबिना सिर्फ उसे ही दी जाती है।” बबूसा ने बताया।

“हमारे पास वक्‍त कम है बबूसा। जल्दी ही कुछ न किया गया तो मुसीबतें बढ़ जाएंगी। रानी ताशा कभी भी अंतरिक्षयान ने उड़ान भर ली तो फिर हम कुछ नहीं कर सकेंगे।”

बबूसा के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच उठी।

“बबूसा ने कभी हारना नहीं सीखा मैं रानी ताशा की मर्जी नहीं चलने दूंगा।”

“जो करना है जल्दी करो।” जगमोहन ने बेचैनी से कहा।

बबूसा सिर हिलाकर उठा और बाहर निकल गया।

“बबूसा कुछ करने के लिए कोई रास्ता तलाश रहा है।” मोना चौधरी ने कहा।

“हम खतरनाक हालातों में फंस चुके हैं।” नगीना ने कहा-“बबूसा रानी ताशा और देवराज चौहान को अलग करना चाहता है, परंतु रानी ताशा देवराज चौहान का साथ किसी कीमत पर नहीं छोड़ेगी। सबसे बड़ी अड़चन सोमाथ है जो कि इन हालातों को भांप रहा है और उसके होते ये काम आसान नहीं। सोमाथ को खत्म करना असम्भव-सी बात है, जबकि अन्य लोगों के पास जोबिना जैसा खतरनाक हथियार है। हम लोगों द्वारा गड़बड़ करते ही, जोबिना का इस्तेमाल हम पर कर दिया जाएगा।”

“तो हम क्या करें ऐसे वक्‍त में?” जगमोहन बोला।

“कम-से-कम हम तो कुछ भी नहीं कर सकते। जो करेगा, बबूसा करेगा, परंतु उसके लिए भी राह आसान नहीं है।”

“देवराज चौहान अगर जरा भी हमारा साथ देता तो हम बहुत कुछ कर सकते थे।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।

“देवराज चौहान को सदूर ग्रह के जन्म का काफी कुछ याद आ चुका है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“सदूर के जन्म की यादें उस पर भारी पड़ रही हैं। हमारा ख्याल भी उसे नहीं आ रहा। वो रानी ताशा का दीवाना हुआ पड़ा है, जैसे उस पर किसी ने जादू कर रखा हो। हमारे सामने ही रानी ताशा को प्यार करने लगता है। देवराज चौहान से हम कोई आशा नहीं रख सकते कि वो हमारी सहायता करेगा या हमारे बारे में सोचेगा। अब उसे पृथ्वी नहीं, सदूर ग्रह अच्छा लगने लगा है। ताशा उसकी जिंदगी बन गईं है। हमारे साथ उसका व्यवहार ऐसा है जैसे हम दूध में पड़ी मक्खी हों।”

“बबूसा कहता है कि देवराज चौहान को, सदूर ग्रह के पहले के जन्म की कुछ यादें, याद आनी बाकी हैं। अगर वो सब कुछ याद आ गया तो वो रानी ताशा को कड़ी सजा देगा।” नगीना ने कहा।

“ये वक्‍त जाने कब आएगा भाभी।” जगमोहन ने झुंझलाकर कहा-“आने वाले वक्‍त में मुसीबतें कहीं बढ़ न जाएं।”

उनके पास ही करवट लेकर लेटी धरा एकाएक जहरीले अंदाज में मुस्करा पड़ी। उसका नीचे का होंठ टेढ़ा-सा हो गया। आंखों में चमक आ गई। कुछ पल वो इसी मुद्रा में रही फिर बड़बड़ा उठी।

‘अब मैं सदूर पर वापस जाऊंगी। पांच सौ साल पूरे होने में कुछ ही दिन बचे हैं, मेरी ताकतें मेरा इंतजार कर रही है सदूर पर।’

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