तीव्र झटके के साथ पोपा जमीन पर उतर चुका था। कुछ पलों बाद उसके इंजन की मध्यम-सी आवाज भी बंद हो गई। जहां पर पोपा उतरा था, वो जगह खुले मैदान की तरह थी। परंतु इस वक्त मैदान के आस-पास बहुत संख्या में लोग इकट्ठे हुए दिख रहे थे। उनके पास जानकारी थी कि पोपा पृथ्वी ग्रह से राजा देव को लेकर वापस लौट रहा है। मैदान के पास सैनिकों का जमघट लगा हुआ था। उनमें सेनापति मोमाथ भी था। सबकी निगाहें विशाल पोपा पर टिक चुकी थीं जो कि आकाश गंगा का लम्बा सफर तय करके लौटा था। हर कोई राजा देव को देखने के लिए बेताब था। उसी भीड़ में एक पच्चीस बरस का युवक खड़ा दिख रहा था। उसने साधारण पैंट-कमीज पहन रखी थी। काले बाल पीछे को जा रहे थे। रंग सांवला, परंतु चेहरा आकर्षक था। कोई भी उसकी हकीकत नहीं जानता था। वो डुमरा था। पवित्र शक्तियों का मालिक। कुछ वक्त पहले महापंडित ने अपने पिता डुमरा को नया शरीर बनाकर दिया तो पवित्र शक्तियों का सहारा लेकर, डुमरा ने बूढ़े शरीर का त्याग किया और नए जवान शरीर में आ गया था। वो ही डुमरा भीड़ का साधारण-सा हिस्सा बना, लोगों के साथ खड़ा था कि तभी पोपा का दरवाजा खुला और सीढ़ियां खुलती हुई नीचे जमीन से आ लगी।

अगले ही पल खुले दरवाजे पर देवराज चौहान और रानी ताशा दिखे।

दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था और उनकी नजरें वहां के नजारे पर फिर रही थीं।

“पहले सदूर ऐसा नहीं था।” देवराज चौहान के होंठों से निकला। उसकी नजरें लोगों पर, लोगों से पीछे दिख रही इमारतों पर थीं।

“ये आपका सदूर है देव। आप राजा हैं यहां के। मैंने किसी प्रकार इसे संभाले रखा।” रानी ताशा ने कहा।

“ये तो पृथ्वी जैसा ही लगता है।” देवराज चौहान हैरान था।

“पृथ्वी ग्रह तो सदूर से बहुत शानदार है। सदूर को भी हम वैसा ही बना लेंगे।” रानी ताशा बोली।

“आगे बढ़ो ताशा।” देवराज चौहान ने कहा।

रानी ताशा सीढ़ियां उतरने लगी। देवराज चौहान का हाथ थाम रखा था। उससे एक सीढ़ी पीछे देवराज चौहान था। रानी ताशा की आंखों में खुशी भरी चमक थी। देवराज चौहान जैसे सदूर को पहचानने की चेष्टा में लग रहा था। फिर पीछे बबूसा और सोमारा उतरते दिखे। उनके पीछे मोना चौधरी, नगीना, जगमोहन थे फिर धरा भी दिखी। जो बराबर मुस्करा रही थी। उसका निचला होंठ थोड़ा-सा टेढ़ा हुआ पड़ा था। होंठ टेढ़ा होते ही वो एकाएक खूबसूरत दिखने लगती थी। ऐसे में उसकी खतरनाक मुस्कान को भी पहचाना जा सकता था।

धरा की चाल में खास तरह की अकड़ थी। शरीर में तनाव था। जैसे वो शान से चलने की कोशिश में हो। सीढ़ियां उतरते धरा की निगाह दूर लोगों की भीड़ में उस तरफ उठ गई जिधर डुमरा खड़ा था। लगता था जैसे अभी-अभी उसकी ताकतों ने उसे डुमरा की मौजूदगी के बारे में अवगत कराया हो। धरा की आंखें सिकुड़ चुकी थीं और होंठों के बीच जहरीली मुस्कान नृत्य करने लगी थी।

वो सब सीढ़ियों से नीचे आ गए।

अब रानी ताशा के कर्मचारी और किलोरा सीढ़ियों से उतर रहे थे।

सेनापति मोमाथ रानी ताशा के पास आकर, आदर भरे स्वर में बोला।

“आपके ग्रह पर आपका स्वागत है रानी ताशा। मैं राजा देव से मिलना चाहता हूं।”

“ये राजा देव हैं और देव ये सेनापति मोमाथ है।”

इधर बबूसा की निगाह धरा पर थी। वो गम्भीर था। धरा भीड़ के उस हिस्से की तरफ बढ़ रही थी, जिधर डुमरा मौजूद था। बबूसा, धरा के पीछे जाना चाहता था, परंतु राजा देव के पास रहना भी जरूरी था, धरा ने कहा था कि उसके वहां से जाते ही देवराज चौहान के सिर पर से उसकी ताकतें हट जाएंगी और वो रानी ताशा को छोड़कर, नगीना का हाथ थाम लेगा। ऐसे में कई परेशानियां उठ जानी थीं। वह राजा देव को अकेला नहीं छोड़ सकता था। तभी बबूसा के मस्तिष्क को झटका लगा। वो हैरानी से सामने देखने लगा। वो सोमाथ ही था जो इधर चला आ रहा था। उसके चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी।

“वो, वो सोमाथ है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“सोमाथ और यहां?” नगीना के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला।

“मैंने कहा तो था कि सोमाथ से यहां मुलाकात होगी।” बबूसा कह उठा।

“वो तुमसे बदला लेगा बबूसा।” सोमारा व्याकुल स्वर में बोली।

बबूसा के होंठों में कसाव आ गया।

“भाभी तुम सतर्क रहना।” जगमोहन बोला-“वो तुम्हें भूला नहीं होगा।”

“पर सोमाथ को तो हमने आकाश गंगा में फेंक दिया था।” नगीना ने कहा।

“ये वो नहीं है। महापंडित ने सोमाथ जैसा एक और बना रखा था। जो जानकारी उस सोमाथ के पास थी, वही जानकारी महापंडित ने इस सोमाथ के मस्तिष्क में डाली है। महापंडित ने ऐसा ही कहा था। उसने ये भी कहा था कि ये सोमाथ कुछ अलग तरह का होगा।”

“अलग तरह का?”

बबूसा की निगाह सोमाथ पर टिक चुकी थी।

मुस्कराता हुआ सोमाथ करीब आता जा रहा था।

धरा भीड़ के पास पहुंची। सामने ही डुमरा खड़ा था।

दोनों की नजरें मिलीं।

धरा मुस्करा पड़ी। निचला होंठ टेढ़ा हो गया। थोड़ा और करीब पहुंची और फुंफकार भरे स्वर में बोली।

“मैं आ गई डुमरा।”

“तब मुझे नहीं पता था कि तू पांच सौ सालों के बाद भी आ जाएगी। ज्ञान होता तो और भी सख्त श्राप देता।”

“तेरी शक्तियों ने तुझे बताया नहीं या उन्हें ये बात पता न थी?” धरा हंस पड़ी कहर से।

“इतनी दूर की बात उन्हें की बात उन्हें मालूम नहीं थी।” डुमरा शांत स्वर में बोला।

“अब तो तू फंस गया डुमरा।”

जवाब में डुमरा मुस्कराकर धरा को देखने लगा।

“मेरी ताकतों ने और भी ज्यादा ताकत पा ली है। वो जागने को तड़प रही हैं और मैं तुमसे बदला लेकर रहूंगी।”

“तू जरा भी नहीं बदली खुंबरी।” डुमरा ने सिर हिलाकर कहा।

“खुंबरी को कोई हालात नहीं बदल सकते-तुम...”

“मेरी सलाह अभी भी वो ही है जो कभी पहले थी। ताकतों का साथ छोड़ दे, मैं तुझे सदूर की रानी बना दूंगा।”

“तेरी ये बात माननी होती तो पांच सौ साल पहले मान ली होती बेवकूफ इंसान। अपनी जान की परवाह कर। खुंबरी तुझे नहीं छोड़ेगी। पांच सौ साल तूने मेरी ताकतों से मुझे दूर रखा। सदूर से दूर रखा। मैंने बहुत दुख उठाया। अब इन सब बातों का हिसाब देने का वक्त आ गया है डुमरा और हिसाब तेरी जान से बराबर होगा। खुंबरी का मुकाबला करने के लिए अपने को तैयार कर ले। तू बुरा भुगतेगा।”

“मेरी शक्तियों ने मुझे पहले ही बता दिया था कि तू ऐसा कुछ ही कहेगी। फिर भी मैं तेरे से कहने आ गया कि बुरी ताकतों का साथ छोड़ दे। नहीं तो अपने सामने तू मुझे खड़ा पाएगी और इस बार पहले से भी कठोर श्राप दूंगा।” डुमरा का स्वर शांत और सामान्य था।

“उससे पहले ही मेरी ताकतें तुझे जला देंगी।” धरा ने दांत भींचकर कहा और भीड़ को चीरती आगे बढ़ गई।

डुमरा के चेहरे पर गम्भीरता आ गई थी।

तभी बबूसा भागते हुए डुमरा के पास पहुंचा और बोला।

“वो तुमसे बातें कर रही थी?”

“हां।” डुमरा ने गहरी निगाहों से बबूसा को देखा।

“क्या कह रही थी वो-मुझे बताओ उसने कहां जाने के लिए रास्ता पूछा?” बबूसा ने जल्दी से पूछा।

डुमरा कुछ पल बबूसा को देखता रहा फिर बोला।

“हम जल्दी मिलेंगे बबूसा।”

“बबूसा? तुम मेरा नाम कैसे जानते हो? कौन हो तुम?”

“महापंडित से पूछना, वो बता देगा।” कहने के साथ ही डुमरा पलटा और भीड़ को पार करता, गुम होता चला गया।

बबूसा उलझकर रह गया। परंतु ज्यादा न सोचा और पलटकर वापस आ पहुंचा। तब तक सोमाथ पास आ पहुंचा और बराबर मुस्करा रहा था। सोमाथ को पास आया पाकर, चंद पलों के लिए चुप्पी आ ठहरी।

“तुम तो बहुत बहादुर हो बबूसा।” सोमाथ ने हंसकर कहा-“अब तो तुमसे मुझे डर कर रहना होगा। तुमने तो मुझे अंतरिक्ष में फेंक दिया। खूब चाल चली, मैं समझ ही नहीं पाया।”

“ये बातें तुम्हें कैसे पता?” बबूसा के होंठों से निकला।

“मुझे कैसे न पता होंगी। मैं ही तो था वो।”

“नहीं, तुम्हें तो मैंने आकाशगंगा में फेंक दिया...”

“ठीक है। मान लेता हूं।” सोमाथ हंसा-“उस सोमाथ को तुमने आकाशगंगा में फेंक दिया था। परंतु मैं भी सोमाथ हूं और पूरी तरह उस जैसा ही हूं। परंतु मुझमें और उसमें फर्क रखा है महापंडित ने। महापंडित का कहना है कि वो सोमाथ दोस्त नहीं बन सकता था। दोस्तों की तरह बात नहीं कर सकता था। ऐसे में महापंडित ने मुझमें ये बातें डाली हैं।”

“वो तो मैं देख ही रहा हूं कि तुम मुस्करा भी रहे हो, हंस भी रहे हो।” बबूसा बोला।

“उस सोमाथ के मस्तिष्क की सारी जानकारी मेरे में मौजूद है। इसलिए हमें एक-दूसरे को जानने की जरूरत नहीं।” तभी सोमाथ की निगाह नगीना पर पड़ी तो हंसकर कह उठा-“तुम बहुत खतरनाक हो। किस तेजी से मुझे आकाश गंगा में धकेल दिया। तुम बच गई, वरना तुम भी आकाश गंगा में ही गिर गई होती।”

“तो अब तुम मुझसे उस बात का बदला लेने वाले हो।” नगीना ने सतर्क स्वर में कहा।

“नहीं। नहीं। मैं तो तुम सबका दोस्त हूं। मैं किसी को कुछ नहीं कहूंगा। मुझे रानी ताशा के साथ रहने को कहा है महापंडित ने। महापंडित ने भेजा कि मैं रानी ताशा के साथ रहूं।” सोमाथ बोला।

“मतलब कि तुम रानी ताशा का हुक्म मानोगे?”

“हां। परंतु अपनी समझ से भी मुझे काम लेने को कहा है महापंडित ने।” सोमाथ की नजरें घूमी और हर तरफ देखने के बाद बोला-“धरा कहां चली गई? क्या वो पोपा से बाहर नहीं आई अभी तक?”

“वो चली गई।” बबूसा बोला।

“कहां?”

“मैं नहीं जानता। उस तरफ गई है।”

“महापंडित का कहना है कि वो कुछ खास है। उस पर नजर रखूं। परंतु वो चली गई।”

“और क्या कहा महापंडित ने धरा के बारे में?”

“इतना ही कहा-धरा तो...”

तभी रानी ताशा की आवाज सुनाई दी।

“ओह देव। मेरे देव ये आपको क्या हो रहा है।”

सबकी निगाह चंद कदमों के फासले पर खड़े रानी ताशा देवराज चौहान और मोमाथ पर पड़ी। देवराज चौहान ने दोनों हाथों से इस तरह सिर पकड़ रखा था जैसे बहुत दर्द हो रहा हो।

सब उसकी तरफ लपके।

रानी ताशा ने देवराज चौहान को व्याकुलता से थाम रखा था।

“राजा देव।” बबूसा ने आगे बढ़कर देवराज चौहान को सम्भाला-“क्या हुआ आपको?”

उसी पल देवराज चौहान ठीक होने लगा।

चंद क्षणों में ही वो सामान्य दिखने लगा।

“क्या हुआ था राजा देव?” बबूसा ने पूछा।

“सिर में दर्द उठा था बबूसा।” कहते हुए देवराज चौहान ने रानी ताशा को देखा फिर नगीना को।

रानी ताशा से मिलने के बाद ये पहली बार थी जब देवराज चौहान ने नगीना को देखा था।

देवराज चौहान कुछ बदला-बदला-सा दिखा।

बबूसा एकाएक सतर्क हो गया।

तभी देवराज चौहान आगे बढ़ा और नगीना का हाथ थाम लिया।

“नगीना।” देवराज चौहान से कुछ कहते न बना।

नगीना की आंखों में बरबस ही आंसू चमक उठे।

जगमोहन और मोना चौधरी की गम्भीर निगाह देवराज चौहान पर थी।

“जाने क्या हो गया था मुझे जो मैं रानी ताशा के पास ही रहा। लगता है जैसे मैं गहरी बेहोशी में...”

“राजा देव। मेरे देव।” रानी ताशा तड़प उठी-“ये-ये आप क्या कर रहे हैं। आप तो मेरे हैं।”

देवराज चौहान की निगाह रानी ताशा की तरफ उठी।

रानी ताशा हैरान-सी देवराज चौहान को देख रही थी।

“मैं नगीना का हूं। नगीना मेरी पत्नी है। तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता जन्मों पुराना हो चुका है।”

“ये क्या कह रहे हो देव?” रानी ताशा हक्की-बक्की रह गई-“आप मेरे हैं। हम एक हैं और...”

“नहीं। मेरे लिए नगीना ही सब कुछ है। नगीना इस जन्म की मेरी पत्नी है। मुझ पर इसी का हक है। तुम जन्मों पुरानी बातें कह रही हो, जिनका आज कोई अर्थ नहीं, हमारे रिश्ते को लेकर।” देवराज चौहान गम्भीर था।

“पोपा में ली कसमे-वादे, वो सब झूठे थे क्या, जो सदूर पर पांव रखते ही आप बदल गए। मुझसे इस तरह का व्यवहार न करो देव, मैं तुम्हारी ताशा हूं। हमने साथ-साथ जिंदगी बितानी।”

“मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं तुम्हारे साथ सदूर पर क्यों आ...”

“आप सदूर के मालिक हैं देव-आप...”

“नहीं। मुझे सदूर नहीं चाहिए। मैं पृथ्वी पर साधारण जीवन जीकर खुश हूं।” देवराज चौहान ने नगीना का हाथ थाम रखा था। उसने जगमोहन को देखकर कहा-“तुमने मुझे सदूर पर आने से रोका क्यों नहीं?”

“ये आप कैसी बातें कर रहे हैं देव।” रानी ताशा की आंखों से आंसू बह निकले।

देवराज चौहान, जगमोहन को देखता रहा तो जगमोहन बोला।

“तब तुम जैसे अपने होश गंवा चुके थे। हमने तुम्हें रोका पर तुमने हमारी एक न सुनी।”

“हां। मुझे याद आ रहा है कि क्या हुआ था, परंतु मैं जैसे अपने काबू में नहीं था। जैसे...”

“मेरे साथ इस तरह का व्यवहार मत करो देव। जन्मों के इंतजार के बाद तो मैंने तुम्हें वापस पाया है। मेरे को अपने से जुदा न करो। मैं तुमसे दूर नहीं जाना चाहती देव।” रानी ताशा रो पड़ी।

“मुझे नहीं समझ आ रहा कि मैं तुम्हारे साथ क्यों था ताशा और क्यों मैंने सदूर तक, पोपा में यात्रा की। परंतु मेरा जीवन नगीना का है। मैं इस जन्म में नगीना का पति हूं। ये ठीक है कि कभी हम सदूर पर पति-पत्नी के रूप में इकट्ठे रहा करते थे, परंतु वो जन्मों पुरानी बातें हैं उसके बाद ये मेरा चौथा जन्म चल रहा है और इस जन्म में नगीना मेरी पत्नी है। मेरा तुम पर या तुम्हारा मुझ पर कोई हक नहीं अब...”

“और जो हमने प्यार किया देव, वो...”

“वो मैं स्वयं नहीं जानता कि ये सब कैसे हुआ। शायद मैं अपने होश में नहीं था या फिर...”

“इसका जवाब मेरे पास है राजा देव।” बबूसा कह उठा।

“क्या जवाब?” देवराज चौहान ने बबूसा को देखा।

“ये ही कि आप रानी ताशा के दीवाने क्यों रहे और क्यों सदूर पर पहुंचते ही आपमें बदलाव आ गया।”

“मुझे बताओ बबूसा, क्या बात है?”

“ये सब खुंबरी ने किया था।”

“खुंबरी। देवराज चौहान चौंका, चेहरे पर सोच के भाव उभरे-“वो खुंबरी, जिसे डुमरा ने श्राप...”

“वो ही खुंबरी। मैं जानता था कि आपको खुंबरी के बारे में याद होगा। डुमरा ने श्राप देकर खुंबरी को पांच सौ सालों के लिए सदूर से बाहर भेज दिया था और उसके पांच सौ साल पूरे होते ही, वो पोपा में बैठकर वापस आ गई।

“पोपा में बैठकर वापस आ गई?” देवराज चौहान के माथे पर बल दिखे।

“मैं धरा की बात कर रहा हूं राजा देव। वो खुंबरी का ही रूप है।”

सबकी निगाह फौरन घूमी धरा को देखने के लिए।

“धरा कहां है?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“वो चली गई।”

“कहां?”

“मैं नहीं जानता।” बबूसा गम्भीर दिखा-“परंतु सदूर पर उसका कोई ठिकाना है। गुप्त और रहस्यमय ठिकाना।”

“तुम खुंबरी के बारे में क्या बता रहे थे बबूसा?” देवराज चौहान ने पूछा।

“राजा देव। खुंबरी से मेरी बातें होती रहती थीं। उसने अपने बारे में सब कुछ बताया। अभी भी उसकी ताकतें उसके पास मौजूद थीं। वो ताकतें मुझे किसी से धरा की बातें कहने न देती थीं। जब मैं कहने लगता तो मेरे मुंह से कुछ और ही निकल जाता। ये सब धरा उर्फ खुंबरी की ताकतें ही करवातीं थीं मुझसे। हम खुंबरी की बुरी ताकतों के बारे में जो किस्से सुना करते थे वो सब सच है। मैंने खुद खुंबरी की ताकतों को महसूस किया और पहचाना। मैं सिर्फ सोमारा से ही सब बातें कह सुन सकता था। परंतु सोमारा भी किसी को धरा की हकीकत न बता पाती थी। खुंबरी की ताकतें रोक देती थीं।”

“डोबू जाति में मैंने मोना चौधरी और नगीना को धरा की हकीकत बतानी चाही तो नहीं बता सकी थी।” सोमारा ने कह-“तब मेरे मुंह से कुछ का कुछ ही निकलने लगा था।”

“परंतु खुंबरी का मुझसे क्या वास्ता?” देवराज चौहान ने उलझन भरे स्वर में कहा।

“धरा के रूप में खुंबरी सदूर ग्रह पर वापस आना चाहती थी। उसके पांच सौ सालों का श्राप पूरा हो रहा था। सदूर पर आने की तैयारी तो वो ढाई-तीन सौ सालों से कर रही थी।” बबूसा ने कहा-“सदूर पर आपके और रानी ताशा के अलग हो जाने की वजह खुंबरी की बुरी ताकतें ही थीं।”

“ये क्या कह रहे हो?” रानी ताशा हैरान हो उठी।

“मैं सच कह रहा हूं। ये सब बातें मुझे खुंबरी ने स्वयं बताई है। खुंबरी की ताकतें पांच सौ साल पूरे होने पर, खुंबरी के सदूर पर लौट आने के लिए रास्ता बना रही थीं। खुंबरी का शरीर तो सदूर पर था और उसकी ताकतें उसकी जान को पृथ्वी तक ले गई थीं और वहां नया जन्म कराया जाने लगा खुंबरी का। परंतु वापसी पर तो खुंबरी को शरीर के साथ होना था। इसलिए सशरीर खुंबरी को सदूर पर लाने के लिए, उसकी ताकतें रास्ता बनाने में लगी थीं। जब राजा देव ने पोपा तैयार कर लिया था तो तब तक आपके सम्बंध किले के सेनापति धोमरा के साथ हो गए थे। ये सब खुंबरी की ताकतें आपके सिर पर सवार होकर, आपसे करा रही थीं। जब राजा देव लौटे तो रास्ते में ही आपने धोमरा के साथ मिलकर राजा देव को बंदी बनाया और सदूर के बाहर फेंक दिया। ये आपने नहीं किया। खुंबरी की ताकतों ने आपसे करवाया था। खुंबरी ने स्वयं ये सब बातें मुझसे कहीं। उसके जन्मों बाद आप राजा देव की तलाश में, पोपा में बैठकर पृथ्वी ग्रह पर जा पहुंची, जबकि खुंबरी के श्राप के पांच सौ साल पूरे होने जा रहे थे। उधर खुंबरी की ताकतें उसे रास्ता दिखा रही थीं कि कैसे वो सदूर पर पहुंच सकती है। खुंबरी यानी कि धरा से मेरी मुलाकात हो गई। मैं अंजान था, परंतु धरा (खुंबरी) तो अपनी ताकतों के दिखाए रास्ते पर चल रही थी। फिर वो वक्त आया जब पृथ्वी पर आप और रानी ताशा का सामना हुआ। यहां पर खुंबरी की ताकतों ने आपके दिमाग पर काबू पाया और सिर पर बैठ गई।

“क्यों?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“खुंबरी ने मुझे बताया कि आपने रानी ताशा को स्वीकार नहीं करना था, क्योंकि नगीना इस जन्म में आपकी पत्नी है। आपने नगीना का साथ नहीं छोड़ना था। जबकि रानी ताशा हर हाल में आपको सदूर पर वापस ले जाना चाहती थीं। ऐसे में आपसे और रानी ताशा के बीच तगड़ा झगड़ा खड़ा हो जाता तो खुंबरी (धरा) कैसे सदूर पर पहुंच पाती। यही वजह थी कि खुंबरी की ताकतों ने आपके सिर पर बैठकर, आपके दिमाग को खुंबरी के हक में चलाया और आपको रानी ताशा का दीवाना बना दिया। ऐसा दीवाना कि आप सब कुछ भूल बैठे और सदूर पर चलने को तैयार हो गए। खुंबरी ने पोपा में ही मुझे बता दिया था कि सदूर पर पहुंचते ही उसकी ताकतें राजा देव के सिर से हट जाएंगी और वो रानी ताशा को छोड़कर, नगीना के पास चले जाएंगे।”

बबूसा की बातें सुनकर सब सन्न रह गए।

किसी से कुछ कहते न बना।

अलबत्ता रानी ताशा का खूबसूरत चेहरा सुलग उठा। उसकी नीली आंखे लाल-सी दिखने लगीं।

“ये खुंबरी कौन है?” नगीना ने पूछा।

“मैंने तो इसका नाम पहले कभी नहीं सुना।” जगमोहन कह उठा-“ये तो बहुत खतरनाक खेल खेल गई।”

बबूसा खुंबरी के बारे में बताने लगा।

पोपा में खुंबरी की कही बातें बताने लगा।

जिसे खुंबरी के बारे में नहीं पता था, उसे भी स्पष्ट रूप से खुंबरी के बारे में पता चल गया।

खुंबरी की हरकतों की वजह से हर कोई हैरान-परेशान था।

“इस तरह खुंबरी ने पोपा द्वारा सदूर तक पहुंचने का अपना रास्ता बना लिया और यहां आ पहुंची।” बबूसा ने अपनी बात समाप्त की।

जबकि रानी ताशा का चेहरा क्रोध में धधक रहा था।

बबूसा रानी ताशा की हालत देखकर तुरंत कह उठा।

“रानी ताशा। मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है परंतु आपको संयम से काम लेना होगा। मैंने जो कहा वो सच है। सब कुछ मुझे खुंबरी (धरा) ने ही बताया है। राजा देव इस जन्म में आपके दीवाने नहीं बन सके। राजा देव से जो कराया, खुंबरी की ताकतों ने ही कराया जैसे कभी खुंबरी की ताकतों ने आपसे, राजा देव को सदूर से बाहर फिंकवा दिया था पाइप में डालकर। ऐसे में आप बेहतर समझ सकती हैं कि पृथ्वी पर राजा देव का झुकाव आपकी तरफ क्यों और कैसे रहा। राजा देव अपनी पृथ्वी वाली पत्नी के ही है।”

“बात अब यहीं तक नहीं रही बबूसा।” रानी ताशा ने बेहद कठोर स्वर में कहा-“ये सवाल खत्म हो गया कि राजा देव अब मेरे है या नगीना के बात ये है कि खुंबरी की ताकतों ने, मेरे द्वारा राजा देव को ग्रह से बाहर फिंकवाया।”

“ऐसा ही हुआ था।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“खुंबरी ने स्वयं ये बात स्वीकारी?” रानी ताशा गुर्रा उठी।

“जी, रानी ताशा। खुंबरी ने स्वयं मुझसे ये बात कही।” बबूसा बेहद गम्भीर हो उठा।

“तो राजा देव को, मेरे से अलग करने वाली खुंबरी थी। खुंबरी को अपनी इस हरकत का अंजाम भुगतना होगा। अगर खुंबरी ने ऐसा न किया होता तो राजा देव के वियोग में जन्मों तक मुझे न तड़पना पड़ता। आज ये हालात न होते। अपने मतलब के लिए खुंबरी और उसकी ताकतें मेरे जीवन में जहर घोल गईं। इसका जवाब मैं खुंबरी से लेकर रहूंगी। वो...”

“रानी ताशा।” बबूसा बेचैनी से कह उठा-“खुंबरी के पास ताकतें हैं। आप उनका मुकाबला नहीं कर सकतीं।”

रानी ताशा कुछ कहती, उससे पहले ही देवराज चौहान कह उठा।

“इस मामले में मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूं। खुंबरी और उसकी ताकतों ने तुम्हारे और मेरे साथ उस जन्म में जो किया, बुरा किया। परंतु मैं बबूसा की बात से भी सहमत हूं कि खुंबरी और उसकी बुरी ताकतों का मुकाबला नहीं किया जा सकता। इस बारे में हमें महापंडित से बात करनी होगी। महापंडित के पिता डुमरा की सहायता लेना बहुत जरूरी हो गया है। वैसे भी खुंबरी सदूर की धरती पर वापस आ पहुंची है तो वो सबका चैन छीन लेगी। डुमरा को खुंबरी के वापस आ जाने की पूरी जानकारी होगी और डुमरा तक हमें महापंडित ही ले जा सकता है। बबूसा।”

“जी राजा देव।”

“क्या तुम्हें खुंबरी ने बताया कि सदूर पर पहुंचने के बाद वो कहां पर जाएगी?” देवराज चौहान ने पूछा।

“वो किसी गुप्त जगह जाने को कह रही थी, परंतु उसने उस जगह के बारे में बताया नहीं।” बबूसा ने कहा।

“हमें इसी वक्त महापंडित के पास चलना होगा। तुम भी साथ चलोगी ताशा?”

“जरूर मेरे देव।” रानी ताशा बेहद गुस्से में थी-“आप मेरे साथ हैं तो मुझे पूरा यकीन है कि हम खुंबरी को उसकी हरकत की कठोर-से-कठोर सजा देंगे। मुझे इतनी खुशी जरूर है कि आप सदूर पर आ गए। खुंबरी को सजा देने के बाद में आपको अपना भी बना लूंगी। मैं आपके बिना नहीं रह सकती।” रानी ताशा की आंखों में आंसू चमक उठे।

देवराज चौहान ने नगीना का हाथ थामे, नगीना पर निगाह मारकर कहा।

“कम-से-कम इस जन्म में तो तुम मुझे नहीं पा सकोगी। मेरा ये जन्म नगीना के नाम दर्ज हो चुका है।”

रानी ताशा देवराज चौहान को देखती रही। कहा कुछ नहीं।

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वो बहुत बड़ी तीन मंजिला इमारत थी। आबादी से कुछ हटकर बनी थी। उसकी चारदीवारी दूर तक फैली नजर आ रही थी। उस इमारत में खास बात ये थी कि वो गोलाई लिए हुए थी। उसके सामने के हिस्से पर बड़े-बड़े शीशे लगे हुए थे। बाहर से देखने पर भीतर कुछ भी नजर नहीं आता था। ये महापंडित का ठिकाना था। प्रवेश गेट पर जोबिना वाले दो आदमी मौजूद रहते थे। उन दो के अलावा वहां पहरे पर कोई नहीं था। महापंडित की इजाजत के बिना कोई भीतर नहीं आ सकता था। महापंडित अपने कामों में, इमारत के भीतर इतना व्यस्त रहता कि महीना-महीना बाहर नहीं निकल पाता था। इस वक्त महापंडित इमारत की तीसरी मंजिल के एक हॉल में मौजूद था और वहां देवराज चौहान, रानी ताशा, सोमाथ, सोमारा, बबूसा, जगमोहन, नगीना और मोना चौधरी मौजूद थे। अभी-अभी बबूसा सब कुछ महापंडित को बताकर हटा था और उसके बाद कुछ खामोशी-सी आ ठहरी थी। महापंडित देवराज चौहान से मिलकर बहुत खुश हुआ था। देवराज चौहान को भी महापंडित को गले से लगाकर खुशी हुई थी। उनकी बातें लम्बी चलती परंतु धरा का मामला बीच में आ गया था।

महापंडित ने गम्भीर स्वर में खामोशी तोड़ी और कहा।

“जितनी बातें मुझे बबूसा ने बताईं उससे आधी तो मैं वाकिफ था। मेरी मशीनें बता चुकी थीं। परंतु मशीनें ये नहीं बता पा रही थीं कि ये मामला खुंबरी से वास्ता रखता है। खुंबरी को तो मैं भूल ही चुका था। ढाई-तीन सौ साल पहले जब राजा देव को सदूर ग्रह के बाहर फेंका रानी ताशा ने तो मेरी मशीनों ने मुझे बताया था कि रानी ताशा निर्दोष है। क्यों निर्दोष है। ये बात मेरी मशीनें नहीं बता सकी थीं। तब से ही मैं उलझन में फंसा हुआ था कि आखिर ऐसी क्या बात है कि रानी ताशा, राजा देव को ग्रह से बाहर फेंकने के प्रति निर्दोष है। मशीनें गलत बात नहीं कह सकती थीं। इस बात का जवाब अब मुझे तीन सौ साल बाद मिला कि खुंबरी की ताकतों ने, रानी ताशा पर काबू पाकर, उसे माध्यम बनाकर रानी ताशा से, राजा देव को सदूर से बाहर फेंकने का काम कराया था। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि खुंबरी की ताकतें इन पांच सौ सालों में सदूर पर सक्रिय हैं।”

“कुछ ही ताकतें सक्रिय रहीं।” बबूसा बोला-“खुंबरी का कहना है कि उसकी अधिकतर ताकतें सो चुकी हैं उसके बिना।”

“खुंबरी की ताकतें खुंबरी के जरूरी कामों को करती रहीं। खुंबरी के वापस सदूर पर आने का रास्ता तैयार किया जाता रहा। महापंडित गम्भीर स्वर में बोला-“और आज खुंबरी पांच सौ साल बाद सदूर पर आ पहुंची है। इससे गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गई है।”

“महापंडित।” रानी ताशा क्रोध भरे स्वर में कह उठी-“कई जन्मों तक मैं अपने को कसूरवार समझती रही कि राजा देव को मैंने सदूर से बाहर फेंका है। मेरे को इस बात से बहुत तकलीफ होती रही कि मेरे सम्बंध सेनापति धोमरा के साथ हो गए थे। मैं अपने से ही ये सवाल पूछा करती थी कि ये सब मैंने कैसे कर दिया। परंतु मेरे पास कोई जवाब नहीं था। लेकिन आज मुझे जवाब मिल गया कि ये सब खुंबरी की ताकतों ने मेरे दिमाग पर काबू पाकर मेरे से ये सब कराया था। खुंबरी ने मुझे और राजा देव को अपने मतलब की खातिर अलग किया। ये बहुत गलत किया खुंबरी ने। हम दोनों तब कितना अच्छा जीवन जी रहे थे कि खुंबरी की ताकतों ने हमें बर्बाद कर दिया। ये बात जब से मैंने जानी है, मुझसे सहन नहीं हो रहा। मैं खुंबरी को कठोर-से-कठोर सजा देना चाहती हूँ। उसे मौत के रास्ते पर भेजना चाहती हूं। अब खुंबरी के लिए सिर्फ मौत की सजा ही है मेरे पास। मैं तो सपने में भी राजा देव से अलग नहीं हो सकती थी और खुंबरी ने ये काम हकीकत में कर दिखाया।”

“मैं इस काम में ताशा के साथ हूँ।” देवराज चौहान का स्वर भी सख्त था-“खुंबरी की ताकतों ने हमें जुदा करके बहुत गलत किया। अब ज्यादा तो कुछ नहीं हो सकता महापंडित, परंतु खुंबरी को सजा तो दी जा सकती है।”

“खुंबरी अकेली नहीं है।” महापंडित ने धीमे स्वर में कहा-“उसके साथ बुरी ताकतें हैं। उसका कुछ बिगाड़ पाना सम्भव नहीं। बल्कि वो आप लोगों को और भी तबाह कर देगी। जान ले लेगी आपकी।”

“इस बात का एहसास है, तभी तो तुम्हारे पास आए हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

“मैं इसमें कोई सहायता नहीं कर...”

“तुम हमें अपने पिता डुमरा तक पहुंचा सकते हो।” रानी ताशा ने कहा।

महापंडित एकाएक चुप हो गया।

“खुंबरी डुमरा से श्राप का बदला लेना चाहती है। वो डुमरा तक जरूर पहुंचेगी। डुमरा हमारी सहायता कर सकता है और इस बारे में शायद हम भी डुमरा की सहायता कर सकें। हमारा और डुमरा का मकसद, खुंबरी को खत्म करना ही है।” रानी ताशा पुनः बोली।

“तुमने हाल ही में अपने पिता डुमरा को नया शरीर दिया है।” बबूसा बोला।

“कुछ वक्त हो गया इस बात को।” महापंडित ने कहा-“पांच-छ: साल हो गए।”

“ये बात मुझे खुंबरी ने बताई। वो डुमरा के बारे में सब कुछ जानती है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“उसकी ताकतें उसे हर बात की खबर देती रहती हैं। वो बता रही थी कि अब उसकी ताकतों की ताकत और भी बढ़ गई है।”

महापंडित उठा और कमर पर हाथ बांधे टहलने लगा।

“हमें डुमरा के पास ले चलो महापंडित।” देवराज चौहान ने कहा।

“इसमें मेरे पिता को एतराज भी हो सकता है कि आप लोगों को मैं उनके पास क्यों लाया।” महापंडित बोला।

“हम डुमरा का साथ देंगे और खुंबरी को खत्म करने की चेष्टा करेंगे।”

“ये साधारण इंसानों की लड़ाई नहीं होगी राजा देव।” महापंडित गम्भीर स्वर में बोला-“इस लड़ाई में खुंबरी की बुरी ताकतें और पिता की शक्तियां आमने-सामने होंगी। इस लड़ाई में आप लोगों के लिए कोई जगह नहीं होगी।”

“इस बारे में हम डुमरा से बात करेंगे।” देवराज चौहान ने कहा।

“महापंडित।” रानी ताशा ने कठोर स्वर में कहा-“खुंबरी ने मेरे द्वारा राजा देव को ग्रह से बाहर फिंकवा दिया। मुझे और राजा देव को अलग कर दिया।” रानी ताशा की आंखों में आंसू चमक उठे-“हमारा हंसता-खेलता जीवन तबाह कर दिया। इसकी सजा तो हम खुंबरी को देंगे ही।”

“मैं आपके साथ हूं रानी ताशा। आपका हुक्म मेरे लिए सबसे पहले है। परंतु पिता इस बारे में क्या विचार रखते हैं ये मैं नहीं जानता। इस बारे में मैं मशीनों से पूछकर आता हूं तभी कुछ फैसला ले सकूँगा।”

महापंडित वहां से गया तो बबूसा कह उठा।

“अगर महापंडित हमें डुमरा के पास ले जाने को इंकार करता है तो हम स्वयं डुमरा को तलाश लेंगे।”

रानी ताशा के चेहरे पर कठोरता छाई हुई थी।

देवराज चौहान गम्भीर था उसने पास बैठी नगीना से कहा।

“मैं ताशा का साथ दूंगा कि हम खुंबरी को सजा दे सकें।”

“ये जरूरी भी है।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“उसने आपको और रानी ताशा को अलग कर दिया था अपने मतलब के लिए। उसे इस बात की सजा मिलनी ही चाहिए। मैं भी आपके साथ हूं।”

नगीना को देखते ही देवराज चौहान गम्भीर भाव से मुस्कराया।

“अगर तुम धरा की हकीकत मुझे पोपा में ही बता देते तो मैं उसे मार देता।” सोमाथ ने बबूसा से कहा।

“तब उसकी ताकतें मेरे पहरे पर थीं। किसी को कुछ बताने ही नहीं दे रही थीं।”

“तो तुम उसे मार सकते थे।”

“एक बार कोशिश की थी परंतु धरा की ताकतें बीच में आ गई और मेरे को पीछे पटक दिया। ताकतें धरा को पूरी तरह सुरक्षा दिए हुए थीं। अगर कुछ हो सकता तो मैंने कर दिया होता।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं उसका गला दबा देना चाहता था।”

“एक बार मेरे को इशारा करके तो देखा होता।” सोमाथ मुस्कराया-“परंतु तुम तो मेरे को मारने के रास्ते तलाश कर रहे थे।”

बबूसा ने कुछ नहीं कहा।

जगमोहन और मोना चौधरी खामोश थे। उन्हें इस बात की खुशी थी कि देवराज चौहान सीधे रास्ते पर आ गया है। इससे उन्हें जो मुख्य परेशानी थी, वो समाप्त हो गई थी।

“बबूसा।” सोमारा बोली-“हमने शादी करनी है।”

“मुझे याद है, परंतु पहले खुंबरी की समस्या हल कर लें। राजा देव और रानी ताशा उससे बदला लेना चाहते हैं।”

एक घंटे बाद महापंडित लौटा। उसके चेहरे पर गम्भीरता थी। आते ही वो कह उठा।

“मैं आप लोगों को पिता डुमरा के पास ले जाऊंगा। मशीनों ने हां कह दी है।”

“कहां पर है डुमरा?” बबूसा ने पूछा।

“पिता तक पहुंचने के लिए हमें लम्बा रास्ता तय करना होगा। वहां वाहन नहीं जा सकेंगे। घोड़ों का इस्तेमाल किया जाएगा।”

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शाम का वक्त हो रहा था। सूर्य सदूर के किनारे पर रहकर, तेज किरणें फेंक रहा था। कुछ ही देर में सूर्य नजर आना बंद होने वाला था। तीव्र गर्मी का एहसास हो रहा था।

धरा तेजी से पैदल ही उस सुनसान, वीरान जंगलों में आगे बढ़ी जा रही थी। जब से पोपा से निकली थी, तभी से उसके कदम उठे जा रहे थे, एक बार भी वो रुकी नहीं थी। पसीने से उसका बदन भीग रहा था। चेहरे पर भी पसीने की बूंदें लकीर बनकर ठोढ़ी तक आ रही थी। हथेली से रह-रहकर वो पसीने को साफ कर रही थी। जंगल में प्रवेश करने के बाद सूर्य की गर्मी से उसे राहत मिली थी। वो इस तरह आगे बढ़ रही थी जैसे उसे पता हो कि कहां जाना है। उसकी मंजिल कहां है। उसके शरीर पर जींस की पेंट और स्कीवी थी। उसकी आंखों में इस वक्त अनोखी ही चमक छाए हुए थी। पेड़ों के पत्ते मध्यम हवा के संग, एक-दूसरे से टकराते तड़-तड़ बज उठते थे। कभी-कभार किसी पक्षी की आवाज कानों में पड़ने लगती थी। मशीनी अंदाज में धरा के कदम उठे जा रहे थे।

फिर वो वक्त भी आया जब सूर्य गायब हो गया।

एकाएक शाम का अंधेरा छाने लगा (सदूर पर सूर्य ढलने के फौरन बाद ही अंधेरा छाने लगता था) धरा के कदमों की रफ्तार में कोई कमी नहीं आई थी। वह इस बात के प्रति आश्वस्त थी कि कोई भी उसके पीछे नहीं आ रहा। वो सदूर के ऐसे इलाके में आ चुकी थी जहां लोगों का आना-जाना होता ही नहीं था।

अंधेरा छा गया। परंतु धरा के कदम नहीं रुके। वो अंधेरे में भी इसी तरह आगे बढ़ती रही जैसे दिन के उजाले का वक्त हो और उसे सब कुछ स्पष्ट दिख रहा हो। जबकि ऐसे अंधेरे से भरे जंगल में आम आदमी के लिए दो कदम उठाना भी कठिन हो जाता। काफी देर बाद धरा जंगल में बने मामूली खंडहर के पास जा पहुंची। ठिठकी। वो साधारण-से दो कमरों का खंडहर था। उसकी छतें उड़ चुकी थीं। दीवारें पहाड़ी पत्थर को काटकर, बनाई गई ईंटों जैसे पत्थर से बनाई गई थीं। इस अंधेरे में वो खंडहर मात्र दीवारों के साए की तरह नजर आ रहा था। धरा कुछ देर वहीं पर चहल-कदमी करती रही। अगर रोशनी होती तो स्पष्ट दिख जाता कि धरा की आंखों में तीव्र चमक लहरा रही थी और रह-रहकर मुस्कान के साथ उसका निचला होंठ टेढ़ा हो जाता था।

तभी उस खंडहर में तीव्र रोशनी चमकी। जैसे कोई जलती मशाल सामने आ गई हो। फिर वो मशाल हिलती दिखी। मशाल की रोशनी में एक व्यक्ति दिखा, जिसने मशाल थामी हुई थी। वो खंडहर से बाहर आया।

धरा फौरन उसके पास पहुंचते कह उठी।

“दोलाम।”

“महान खुंबरी को दोलाम का नमस्कार।” मशाल थामे व्यक्ति ने कहा-“आपको सामने पाकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। विश्वास ही नहीं आ रहा कि महान खुंबरी वापस आ गई है। लेकिन मैं जानता हूं कि ये बात सच है। आपकी ताकतों ने मुझे संकेत दे दिया था कि आप यहां पहुंचने वाली हैं। श्राप के पांच सौ साल बहुत दुख से भरे रहे। मैं आपके दुख को समझ सकता हूं और खुशी से आपकी वापसी का स्वागत करता हूं।”

“तुम खुश हो दोलाम।” खुंबरी के स्वर में जिंदगी की चमक थी।

“बहुत, महान खुंबरी। आपकी ताकतों ने मेरा हरदम ख्याल रखा।”

दोलाम की आवाज उभरी।

“मेरा शरीर कैसा है?”

“एकदम सुरक्षित है। वैसा ही जैसा आप छोड़ गई थीं।”

“और मेरा सामान?”

“वो भी वैसे ही रखा है, जैसे आप रख गई थीं।” दोलाम ने कहा।

“भीतर चलो।”

“आओ महान खुंबरी।” दोलाम ने कहा और पलटकर खंडहर में प्रवेश कर गया।

खुंबरी यानी कि धरा उससे पीछे थी।

खंडहर के कमरे के कोने में एक गड्ढा-सा दिखा, जो कि वास्तव में नीचे जाने की सीढ़ियां थीं। सीढ़ियों का ढक्कन एक तरफ सरका हुआ था। मशाल का मध्यम-सा प्रकाश वहां फैला था। मशाल थामे दोलाम सीढ़ियां उतरता कह उठा।

“महान, खुंबरी, आप मेरे पीछे आइए। यहां सीढ़ियां...”

“मुझे सब याद है। तुम भीतर चलो। मैं तुम्हारे पीछे आ रही हूं।” धरा ने कहा।

जब धरा भी भीतर आ गई तो दोलाम ने पुनः ऊपर जाकर नीचे से हाथ बाहर निकाला और ढक्कन सीढ़ियों पर सरका दिया। उसके बाद दोनों मशाल के प्रकाश में सीढ़ियां उतरने लगे। सीढ़ियां मिट्टी की न होकर पक्की थीं। वो कम से कम पचास सीढ़ियां नीचे उतरे तो सामने चौड़ा रास्ता दिखने लगा, जहां मशालें रोशन थीं।

दोलाम ने हाथ में थाम रखी मशाल को दीवार में लगे स्टैंड में फंसा दिया।

धरा खुशी भरे अंदाज में ठहाका लगा उठी।

“मैं वापस आ गई दोलाम।” उसकी आवाज हर तरफ गूंजी।

“महान खुंबरी वापस आ गई है।” दोलाम ने आदर भरे स्वर में कहा।

“कितना अच्छा लग रहा है, पांच सौ बरस के बाद लौट के अपनी जगह पर आना।” धरा खुशी से पागल हो रही थी-“वो ही जगह। वो ही सब कुछ। डुमरा ने तो सोचा भी नहीं होगा कि वो ही वक्त, फिर लौट आएगा।”

“डुमरा को सजा देनी है महान खुंबरी।”

“जरूर सजा मिलेगी डुमरा को।” धरा गुरा उठी-“आओ दोलाम।”

खुंबरी और दोलाम उस रास्ते पर आगे बढ़ गए।

“तुम्हें अकेले रहने में तो बहुत कष्ट हुआ होगा।” धरा बोली। “आपके कष्ट से बहुत कम कष्ट हुआ। आपके कष्ट के आगे, मेरा कष्ट तो, कुछ भी नहीं है।”

“सब ठीक हो जाएगा। मैं आ गई हूं अब। इन पांच सौ सालों में कोई यहां आया तो नहीं?”

“नहीं। आपकी ताकतों ने रास्ते बंद कर रखे थे। कोई आ ही नहीं सकता था।”

वो रास्ता शानदार और सजा सजाया था। दीवारों पर रंग हुए पड़े थे। ये ही हाल छतों का था। गैलरी के बीचोंबीच, जहां वे चल रहे थे, कपड़ा बिछा हुआ था। सन्नाटे में उनके कदमों की आवाजें उभर रही थीं।

“सदूर अब पहले से अच्छा हो गया है।” धरा बोली।

“अब तो और भी अच्छा हो जाएगा। आप जो आ गई हैं। कब से सदूर आपका इंतजार कर रहा था।”

“मेरी भी बहुत इच्छा थी सदूर वापस लौटने की। डुमरा ने मेरे साथ बहुत गलत किया। आज मिला था डुमरा।” धरा ने जहरीले स्वर में कहा-“वो जानता था कि खुंबरी सदूर पर पहुंच रही है। उसे भी तो हर बात की खबर रहती है।”

“डुमरा ने कोई खास बात कही। क्या वो माफी मांग रहा था?” दोलाम ने चलते-चलते पूछा।

“वो चाहता है मैं नागाथ की दी ताकतों को छोड़ दूं।”

“कितने गलत विचार हैं डुमरा के। मैंने तो सोचा, माफी मांगी होगी।”

“डुमरा अपनी उसी अकड़ के साथ मिला था दोलाम। मैं नागाथ की दी ताकतों से अलग हो ही नहीं सकती। उन ताकतों के बिना खुंबरी का वजूद ही खत्म हो जाएगा। उन ताकतों में तो मेरी जान बसती है।” खुंबरी की आवाज में जहरीलापन था-“डुमरा को बहुत सख्त सजा दूंगी। ऐसी कि वो मौत पाना चाहेगा। परंतु उसकी मौत मेरे हाथ में होगी।”

“डुमरा तब तक आप पर वार नहीं कर सकता, जब तक पहला वार आप उस पर नहीं करतीं। क्योंकि उसने श्राप दिया था आपको और नियम के मुताबिक अब पहला वार वो नहीं कर सकता।” दोलाम ने जैसे याद दिलाया।

धरा हंस पड़ी।

“वो भुगतेगा।”

“महान खुंबरी।” दोलाम ने मुस्कराकर कहा-“अब आपके आ जाने के बाद मेरा दिल खूब लगेगा। पांच सौ साल हो गए मुझे किसी से बात किए। हमेशा अकेला चुपचाप पड़ा रहा। कभी-कभी अपने से ही बात कर लिया करता था।”

“खाने का इंतजाम करने तो बाहर जाते होगे।”

“आपकी ताकतें मेरे लिए खाने का इंतजाम कर देती थीं। जब भी खाना लेने, जाने के लिए ऊपर जाता तो खाना वहां रखा मिलता। इन पांच सौ सालों में मुझे किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं हुई।”

वो गैलरी एक छोटे-से हॉल में जा निकली। हॉल जैसे कमरे में बैठने के लिए कुर्सियां-टेबल थीं। वहां सजावट थी। दीवारों पर रंग-बिरंगी कारीगरी की हई थी। छत पर भी रंग किए हुए थे। धरा एक कुर्सी पर जा बैठी। उसके चेहरे पर थकान की अपेक्षा स्फूर्ति झलक रही थी। आंखों में भरपूर चमक थी। रह-रहकर वो मुस्करा उठती और निचला होंठ टेढ़ा दिखने लगता।

दोलाम वहां से एक अन्य रास्ते पर चला गया था।

‘कितना अच्छा लग रहा है वापस आकर।’ खुंबरी बड़बड़ा उठी-’डुमरा ने मेरा सारा आराम, सारा चैन छीन लिया था। मैंने तो डुमरा से कुछ भी नहीं कहा था। सदूर पर शान से शासन चला रही थी, फिर उसने मुझे क्यों छेड़ा। मेरी ताकतों को बुरा कहता है।’ धरा हंस पड़ी-’मेरी ताकतें तो कितनी अच्छी हैं। मेरा कितना ध्यान रखती हैं। वो मुझे सबसे प्यारी हैं।’

दोलाम एक ट्रे में दो गिलास रख पास पहुंचा और आदर भरे स्वर में बोला।

“महान खुंबरी। आपके लिए कारू लाया हूं। लम्बे सफर से आप थक गई होंगी। अगर कारू की इच्छा न हो तो दूसरे गिलास में फलों का रस है। हुक्म कीजिए, आपकी सेवा में क्या पेश करूं?”

“कारू दो। पांच सौ सालों से कारू का स्वाद नहीं चखा।” धरा मुस्कराकर बोली।

दोलाम ने एक गिलास उठाया और खुंबरी को थमा दिया।

खुंबरी ने घूंट भरा और चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे संतुष्टि मिल गई हो।

“पृथ्वी ग्रह पर कारू नहीं होती?” दोलाम ने पूछा।

“कारू जैसा पदार्थ होता है, परंतु वहां मुझे ये एहसास कभी नहीं हुआ कि मैं पृथ्वी की मालकिन हूं। इसलिए कारू पीने का मन ही नहीं किया कभी। यहां तो कारू की चाहत बढ़ जाती है। कारू के साथ-साथ, सदूर की रानी होने का नशा भी तो सिर पर चढ़ता है।” धरा मुस्कराई।

“मैं आपको जल्द ही रानी बने देखना चाहता हूं महान खुंबरी।”

“अभी नहीं। सबसे पहले डुमरा को सबक सिखाना है।” धरा ने कारू का बड़ा-सा घूंट भरा-“चेहरा कठोर हो गया था-मेरी ताकतें उसकी शक्तियों से कहीं ज्यादा बेहतर हैं, मैं डुमरा को ये दिखा देना चाहती हूं और उसका बुरा हाल कर देना चाहती हूं।”

“जिस दिन ये वक्त आएगा, उस दिन मैं जश्न मनाऊंगा।” दोलाम ने खुशी से कहा।

धरा ने एक ही सांस में कारू का गिलास खाली कर दिया।

“कारू और लाऊं?” खाली गिलास थामता दोलाम बोला।

“अभी नहीं।” धरा बोली-’पहले मैं नहाना चाहूंगी। उसके बाद मुझे ताकतों से मुलाकात करनी है और अपने शरीर को भी जिंदा करना है। बहुत काम है मेरे पास। मैं जल्दी से सब कुछ सामान्य कर लेना चाहती हूँ।” कारू के नशे में धरा के चेहरे पर शांत भाव दिखने लगे थे। उसका खुशी का उत्साह और बढ़ चुका था। चेहरे पर बार-बार मुस्कान छा जाती।

दोलाम ने उसके नहाने का इंतजाम किया।

वो छोटे से तालाब जैसी जगह थी भीतर जाकर। बिल्कुल साफ पानी था कमर तक। धरा ने कपड़े उतारे और तालाब में उतर गई। पानी में डूब जाने के बाद भी उसका संगमरमरी शरीर चमक रहा था। मशालों की वहां पर्याप्त रोशनी थी।

दोलाम तब तक वहां खड़ा रहा, जब तक वो नहाकर बाहर नहीं निकली।

उसके बाहर आते ही दोलाम एक गाऊन जैसा कपड़ा लिए आगे बढ़ा और धरा के गीले शरीर पर ही डाल दिया। धरा ने उस कपड़े को अपने शरीर से बांध लिया।

“मुझे बिना कपड़े के देखकर तुम्हें कुछ होता है दोलाम?” धरा ने सहज स्वर में पूछा।

“मुझे कुछ नहीं होता महान खुंबरी।”

धरा की निगाह दोलाम पर टिक गई।

“कुछ नहीं होता?”

“नहीं।” दोलाम ने शांत स्वर में कहा।

“तो क्या मेरा सौंदर्य फीका पड़ चुका है जो तुम्हें कुछ नहीं होता?” धरा का स्वर सामान्य था।

“ये बात नहीं।” दोलाम ने कहा-“मैं आपका आदर करता हूं। आप महान हैं। ऐसे में मैं आपके शरीर को देखकर कुछ सोच ही नहीं सकता। मैं आपका सेवक हूं। मेरे मन में आपके प्रति गलत बात नहीं आ सकती।”

“बबूसा कहता है कि प्यार बहुत जरूरी चीज है।”

“ये तो आपको पता होगा महान खुंबरी।”

“मैंने पृथ्वी पर भी किसी से प्यार नहीं किया। जब यहां थी तब भी प्यार नहीं किया जो बता सकूं प्यार जीने के लिए अहम है या नहीं?”

“आपकी ताकतों और सदूर के सामने प्यार कोई अहमियत नहीं रखता।”

“मतलब कि प्यार सच में बेकार की चीज है।”

“हां महान खुंबरी।”

धरा आगे बढ़ती कह उठी।

“मुझे कारू दो और उसके बाद खाने का इंतजाम कर दो। फिर मैं अपनी ताकतों से बात करूंगी।”

धरा एक कमरे में पहुंची और टेबल के पास जा रुकी।

टेबल पर कई तरह का सामान रखा था। उसमें ‘बटाका’ भी था। धरा ने बटाका को उठाया चूमा और वापस रख दिया। आंखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान थी फिर टेबल पर रखे अन्य सामान को देखने लगी।

दोलाम कारू का गिलास ले आया।

धरा ने घूंट भरा।

“खाना तैयार है महान खुंबरी।”

“इतनी जल्दी?” धरा ने दोलाम को मुस्कराकर देखा।

“ताकतों की माया है।” दोलाम ने कहा-“मैं खाने के कमरे में गया तो खाना तैयार पड़ा मिला बर्तनों में। आपकी ताकतें चाहती हैं कि आप जल्दी से खाना खाएं और उनके पास जाकर बातें करें।”

धरा ने एक ही सांस में हाथ में थाम रखे कारू के गिलास को खत्म कर दिया।

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कारू के नशे में धरा का चेहरा तप रहा था। आंखों में मदहोशी छाई झलक रही थी। शरीर पर वो ही गाऊन जैसा कपड़ा लिपटा पड़ा था। चाल में जरा भी लड़खड़ाहट नहीं थी। कई रास्तों को पार करके वो एक ऐसे कमरे में पहुंची जो न तो ज्यादा बड़ा था और न ही छोटा। कमरे की दीवारों पर सफेद रंग किया गया था। छत पर भी सफेद रंग था। कमरे में एक तरफ धातु की बनी दो मशीनें रखी थीं। अजीब-सी टेढ़ी और असमतल मशीनें। एक मशीन मात्र एक टांग के सहारे खड़ी थी। वो टांग जैसी धातु की मोटी रॉड, मशीन के ठीक बीचोंबीच थी और जमीन में धंसी हुई थी, जबकि दूसरी मशीन पांच टांगों पर खड़ी थी। मशीनों में कई लीवर और बटन लगे दिख रहे थे। कमरे में प्रवेश करते ही धरा कह उठी।

“खुंबरी आ गई मेरी ताकतों। खुंबरी वापस लौट आई है।” जवाब में कमरे में सन्नाटा रहा।

एक तरफ छोटा-सा चबूतरा बना हुआ था। उस पर कड़ाही के आकार का धातु का बना बर्तन रखा था। जो कि पूरी तरह साफ था। उसके भीतर कुछ भी नहीं था। धरा समझ गई कि दोलाम उस बर्तन को साफ करता रहता होगा। वो बर्तन के बीच में हाथ फेरकर कह उठी।

“मंत्रों वाला कटोरा खाली है तो ताकतों को ऊर्जा कहां से मिलेगी। मुझे सब कुछ सही करना होगा।”

उसी पल दोलाम ने भीतर प्रवेश किया तो धरा बोली।

“मशीनों में गंधक वाला पानी डालो दोलाम।”

दस मिनट लगाकर मशीनों के सूराख में दोलाम ने ऐसा पानी डाला, जिसमें से तीव्र स्मैल उठ रही थी। इस काम से फारिग होते ही वो कई कदम पीछे हटकर खड़ा हो गया।

धरा ने बारी-बारी दोनों मशीनों का एक बटन दबाया तो उनमें बे-आवाज सा कम्पन उठ खड़ा हो गया।

मशीनों पर हाथ रखने से उस कम्पन का एहसास हो रहा था। फिर मशीनों के कुछ लीवर खींचे, कुछ को दबाया। मशीन में से गड़-गड़ को आवाजें आने लगीं। कई पलों तक ये ही स्थिति रही फिर धरा ने दोनों मशीनों से निकलती महीन-सी तारों को आपस में बांधा तो तभी सामने की सफेद दीवार पर काली छाया के रूप में दृश्य से उभरने लगे।

धरा की आंखों में तीव्र चमक आ ठहरी।

उसी पल सफेद दीवार पर दो-तीन छाया उभरी और एक को जैसे बोलते पाया।

“तेरा स्वागत है खुंबरी। तेरे से आ जाने से हम सब बहुत खुश हैं।” आवाज बेहद कमजोर थी। वो मशीन से उभरी थी।

“ढोला।” धरा खुशी से चीख उठी-“तेरी आवाज सुनकर मुझे बहुत खुशी हो रही है।”

“हमें ऊर्जा दे खुंबरी। नहीं तो हमारा अंत हो जाएगा बिना ऊर्जा के हमने बहुत काम कर लिया। अब तो हमसे बोला भी नहीं जाता। एक-एक पल हम पर भारी पड़ रहा है।” ढोला का कमजोर स्वर फिर से सुनाई दिया।

“मैं अभी तुम सबके लिए ऊर्जा का प्रबंध करती हूं।” धरा जोश भरे स्वर में कह उठी-“मंत्रों वाला कटोरा अभी तैयार करती हूं। इसके अलावा और बता क्या करूं?”

“पहले इस काम को पूरा कर। हमें ऊर्जा चाहिए। हम सब कमजोर हो चुकी हैं।”

“ठीक है ढोला। उसके बाद तू ‘बटाका’ द्वारा मुझसे बात कर सकेगा?” धरा ने पूछा।

“हां। फिर तू बटाका का सफल इस्तेमाल कर सकेगी।”

धरा ने मशीनें बंद की और दोलाम से बोली।

“मुझे मंत्रों कटोरा तैयार करना है दोलाम। स्वच्छ पानी ला।”

दोलाम गया और अन्य बर्तन में पानी लेकर लौटा।

धरा ने उससे बर्तन लिया और पहले पड़े बर्तन को पानी से भर दिया। फिर उस भरे बर्तन के पास ही चबूतरे पर धरा बैठी और आंखें बंद करके होंठों-ही-होंठों में मंत्रों का उच्चारण करने लगी। उनका मध्यम-सा स्वर वहाँ गूंज रहा था। ये पता नहीं लग रहा था कि वो कैसे मंत्र बोल रही है।

दोलाम खड़ा रहा।

कई घंटों तक धरा इसी काम में व्यस्त रही।

दोलाम अपनी जगह पर खड़ा रहा। थकान का कोई चिन्ह उसके चेहरे पर नहीं था। बल्कि उसके चेहरे पर खुशी के भाव उभरे हुए थे, जैसे उसके पसंदीदा काम को अंजाम दिया जा रहा हो।

आखिरकार वो वक्त भी आया जब पानी से भाप जैसा धुआं उठने लगा। तब कहीं जाकर धरा के मंत्र उच्चारण की क्रिया रुकी और उसने आंखें खोलीं। चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। कई पलों तक वो भाप वाले पानी को देखती रही फिर खुशी से हंस पड़ी।

“मेरी ताकतों ऊर्जा हासिल करो और फिर से ताकतवर बन जाओ।” धरा कह उठी।

पानी से भाप उठती जा रही थी।

धरा चबूतरे से नीचे उतरी और दोलाम से कह उठी।

“मंत्रों वाला पानी सूखे नहीं। समय-समय पर इसमें पानी डालते रहना।”

“मुझे सब याद है महान खुंबरी। बिना ऊर्जा के ताकतें कमजोर हो रही थीं, इसी कारण वो मुझे भी ज्यादा ऊर्जा वाला जीवन नहीं दे पा रही थीं। ताकतों को ऊर्जा मिलते ही, मुझमें भी स्फूर्ति आ जाएगी।” दोलाम हंसकर कह उठा।

“ताकतें और तुम, मुझे सबसे प्यारे हो। मैं तुम सबको खुश रखने के लिए, अपने को भी दांव पर लगा दूंगी। इन पांच सौ कष्ट से भरे सालों में ताकतों ने मुझे बहुत सहारा दिया। पृथ्वी ग्रह पर मेरा भरपूर ख्याल रखा। अच्छी जगह हर बार मेरा जन्म कराया। मुझे तकलीफें नहीं आने दीं। मैं सदूर पहुंच सकूं, इसके लिए ताकतों ने कमजोर होते हुए भी भरपूर मेहनत की। तुम सबके बिना खुंबरी बेजान है।”

“आप सच में महान हैं खुंबरी।” दोलाम कह उठा।

“अब मैं अपना शरीर देखना चाहती हूं। उसे जीवन देना है।” धरा की आंखें चमक उठीं।

धरा सबसे पहले उस कमरे में गई जहां टेबल पर ‘बटाका’ रखा था।

बटाका उठाकर गले में डाला। बटाका के नग में इस समय खास चमक नहीं थी। धरा ने नग को छुआ और बोली।

“ढोला।”

“बोल खुंबरी।”

“ऊर्जा मिली?”

“मिल रही है, परंतु स्वस्थ होने में कुछ वक्त लगेगा।” धरा के कानों में ढोला की आवाज पड़ी।

“मुझे कोई जल्दी नहीं है। मैं तुम सबको स्वस्थ देखना चाहती हूं। ये बताओ अपने शरीर को कैसे जिंदा करूं?”

“तुम अपने शरीर के पास लेट जाना। बाकी क्रिया हम कर देंगे।”

“ठीक है।” कहकर धरा ने ‘बटाका’ (नग) छोड़ा और कमरे से बाहर निकलकर एक रास्ते पर बढ़ गई। धरा के चेहरे पर खुशी की लहरें दौड़ रही थीं। वो पूरी तरह उत्साह से भरी लग रही थी। रास्ते के बीच ही बाईं तरफ नीचे जाती सीढ़ियां आई तो धरा वो सीढ़ियां उतर गई। सोलह सीढ़ियां उतरने के बाद वो एक कमरे में जा पहुंची थी। कमरे की दीवारें रंग-बिरंगे रंगों से सजी थीं। बहुत शांत-सा माहौल लग रहा था यहां। दोलाम भी यहां मौजूद था परंतु ऐसा लग रहा था जैसे कोई और भी यहां हो। इस तरह का एहसास-सा होता था। उस कमरे में धातु के बने बक्से के अलावा और कुछ नहीं था। वो बक्सा आठ फुट लम्बा और तीन फुट चौड़ा था। उसके ऊपर धातु का ही ढक्कन था और उसका रंग भूरा था।

धरा की चमक भरी निगाह उस बक्से पर जा टिकी थी।

“खुंबरी का शरीर सामान्य हाल में है न दोलाम?” खुंबरी बोली।

“हां, महान खुंबरी।” दोलाम बोला-“आप स्वयं देख लें।” आगे बढ़कर दोलाम ने बक्से का ढक्कन उठा दिया।

पास पहुंचकर धरा ने भीतर झांका। उसके होंठ भिंच गए। आंखों की चमक बढ़ गई। बक्से के भीतर धरा के चेहरे वाली ही युवती पीठ के बल लेटी हुई थी। देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे अभी-अभी सोई हो। बंद आंखें। खूबसूरत होंठ। चौड़ा माथा। खूबसूरत नाक। वो धरा से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसके कंधे धरा से ज्यादा चौड़े थे और वो कुछ लम्बी भी लग रही थी। लेकिन चेहरा दोनों का एक जैसा था। परंतु उसके शरीर पर पड़े कपड़े सड़ चुके थे। नग्न जिस्म हर जगह से झांक रहा था। धरा ने झुककर खुंबरी के शरीर को छूकर देखा।

शरीर गर्म-सा लग रहा था। स्पष्ट था कि ताकतों ने खुंबरी का शरीर गर्म रखा हुआ है। धरा ने खुंबरी के शरीर को अच्छी तरह चेक किया। परंतु कहीं से भी शरीर खराब नहीं था। उरोज छोटे किंतु खूबसूरत थे। नाभि का हिस्सा बेहद आकर्षक लग रहा था सिर के बाल खूबसूरती से फैले हुए थे।

“तुमने अच्छी देखभाल की खुंबरी के शरीर की।”

“महान खुंबरी की सेवा करके मैं बहुत खुश हूं।” दोलाम बोला।

“खुंबरी के शरीर को बक्से निकालकर फर्श पर लिटाना है।” धरा ने कहा।

फिर एक तरफ से धरा ने बांहें थामी, दोलाम ने टांगें थामी और खुंबरी शरीर को उठाकर बक्से के भीतर से निकाला और पास ही फर्श पर लिटा दिया। उसके पास ही धरा लेट गई। आंखें बंद कर ली।

दोलाम खामोशी से खड़ा रहा परंतु उसके चेहरे पर चमक थी।

वक्त बीतने लगा। आधा घंटा बीत गया। पीन घंटा बीता।

एक घंटा बीत गया। धरा उसी मुद्रा में आंखें बंद किए घुबरी के शरीर के पास लेटी थी। दोलाम अपनी जगह से जरा भी नहीं हिला था।

एकाएक धरा के होठों से कराह निकली फिर कमरे में कोहरे जैसा धुआं दिखने लगा। जो कि धीरे-धीरे जाने कहां से कमरे में भरता जा रहा था। तभी वो कोहरा इकट्ठा हुआ और गोले के रूप में धरा और खुंबरी के शरीरों पर इस तरह फैल गया कि दोनों शरीर ही दिखने बंद हो गए। दोलाम को कोहरे रूपी गोला ही दिखता रहा।

पंद्रह मिनट बीते कि एकाएक वो कोहरा छंटने लगा।

दोलाम की आंखों में चमक बढ़ गई।

छंटते कोहरे के साथ ही, उसे खुंबरी बैठी मुद्रा में दिखी।

धीरे-धीरे कोहरा पूरी तरह छंट गया।

खंबरी बैठी हुई नजरें घुमा रही थी। उसकी आंखें, धरा से बड़ी थीं। वो धरा से ज्यादा खूबसूरत थी। फिर खुंबरी अपना शरीर देखने लगी। अच्छी तरह अपने शरीर को देखा।

दोलाम उसे देखता खुश हो रहा था। फिर प्रसन्न स्वर में कह उठा।

“महान खुंबरी का स्वागत है। दोबारा जीवन शुरू करने पर।”

“ओह दोलाम।” खुंबरी के होंठों से खतरनाक स्वर निकला-“तुमने मेरे शरीर का खूब ख्याल रखा।”

“महान खुंबरी, मैं सप्ताह में एक बार आपके पूरे शरीर को साफ करके, दवा लगाया करता था।” दोलाम खुशी से बोला।

“तभी तो मेरे शरीर को नुकसान नहीं हुआ।” खुंबरी बोली-“तुम्हें ईनाम मिलेगा दोलाम।” फिर खुंबरी ने पास लेटी धरा को देखा जिसकी आंखें अभी भी बंद थी। उससे बोली-“उठ जा धरा।”

धरा ने आंखें खोली और उठ बैठी। खुंबरी को देखा।

खुंबरी खड़ी हो गई। वस्त्र के नाम पर उसके शरीर पर कुछ नहीं था। खराब हो चुके कपड़े जो शरीर पर थे, वो उसने गिरा दिए थे। धरा उसे ध्यानपूर्वक देखने के बाद बोली।

“तू तो बिल्कुल मेरे जैसी है। पर तू ज्यादा लम्बी है। मेरे से ज्यादा खूबसूरत है। तेरे कंधे चौड़े हैं। तेरा शरीर भी मेरे से बहुत अच्छा है। हम दोनों एक जैसी है, पर हममें ये फर्क क्यों?”

“क्योंकि तू मेरा रूप है। खुंबरी मैं हूं। मेरे रूप में तू घरा है जो पृथ्वी पर जन्मी थी।” खुंबरी मुस्कराकर बोली।

धरा भी उठ खड़ी हुई।

“मुझे खुशी है कि जान तेरे में प्रवेश कर गई।”

“वो तो करनी ही थी। ताकतों ने ये काम किया।” खुंबरी ने बांहें उठाकर अंगड़ाई ली-“अब डुमरा को देखना है।”

“मिला था वो मुझसे। वो...”

“बेवकूफ, मुझे सब पता है। जो जानकारी तेरे पास है, वो स्वयं ही मेरे पास आ चुकी है। मतलब कि अब तक का वक्त तेरे को बताने की जरूरत नहीं। पृथ्वी की बातें, पोपा की बातें, सब कुछ मैं जान चुकी हूं। तेरे से ही जान लेकर, ताकतों ने मेरे शरीर में डाली हैं।” खुंबरी ने बाहें नीचे की-“चल मैं नहा लूं। वहीं पर बातें करते हैं। नहाने का पानी तैयार है दोलाम?”

खुंबरी और धरा उसी जगह पर पहुंचे जहां धरा नहाई थी। खुंबरी ने कुछ भी नहीं पहना था।

दोलाम उनके चार कदम पीछे था।

खुंबरी ने चैन-भरी निगाहों से पानी को देखा फिर गहरी सांस ली जैसे कुछ सूंघ रही हो।

“पानी में इत्र नहीं डाला दोलाम।”

“क्षमा महान खुंबरी। भूल गया।” कहकर दोलाम तुरंत चला गया।

खुंबरी पानी के किनारे टहलती कह उठी।

“डुमरा ने बहुत तकलीफ दी।”

“पांच सौ साल हमने किस तरह बिताए। तुम बिना जान के पड़ी रही और मैं पृथ्वी पर जन्म लेती भटकती रही। धरा के चेहरे पर क्रोध के भाव दिखने लगे। वो पांव पटककर बोली-“डुमरा से हम बदला लेकर ही रहेंगे।”

“मैंने सोच लिया है कि डुमरा को मौत देंगे।” खुंबरी का स्वर कठोर हो गया-“बहुत बुरी मौत।”

“ऐसा ही होगा खुंबरी।”

तभी दोलाम आया। उसके हाथ में इत्र की शीशी थी जो कि उसने पानी में उड़ेल दी।

खुंबरी पानी में उतरती कह उठी।

“आ, मेरे साथ नहा ले।”

“नहा ली, अभी दोबारा नहाने का मन नहीं है।” धरा पानी के बाहर टहलते कह उठी।

खुंबरी पानी में उतरी, पानी संग खेलने लगी।
दोलाम कुछ कदम दूर खड़ा था।

“ढोला को बुला।” खुंबरी पानी में नहाते कह उठी।

धरा ने बटाका (नग) थामा और पुकारा।

“ढोला।”

“हुक्म महान खुंबरी।” धरा के कानों में महीन-सी आवाज पड़ी।

“उससे बात कर।” धरा बोली।

अगले ही पल खुंबरी के कानों में कुछ ऊंची आवाज पड़ी।

“हुक्म महान खुंबरी।”

“डुमरा को खत्म करना है।” खुंबरी ने कहा।

“क्यों नहीं।” ढोला की आवाज उभरी-“अब डुमरा को जिंदा रहने का कोई हक नहीं। परंतु हमें कुछ वक्त चाहिए।”

“कैसा वक्त?”

“सब ताकतें ऊर्जा प्राप्त कर रही हैं। कुछ ताकतें तो ऊर्जा न मिलने से होश खो बैठी हैं। सब ठीक होने में एक दिन का वक्त तो लगेगा ही।”

“इतनी भी जल्दी नहीं है ढोला। ताकतों को ऊर्जा ले लेने दो।”

“गोमात तुमसे कुछ कहना चाहता है।”

“कहो गोमात।” खुंबरी कह उठी।

“महान खुंबरी की जय हो।” एक नई आवाज वहां उभरी-“पुनः जीवन में आने की, खुशी हुई।”

“तुम सब मेरे अंगों की तरह हो।”

तभी दोलाम एक थाल थामे पास आया थाल में पाउडर जैसा पदार्थ भर रखा था। खुंबरी पानी में किनारे तक उसके पास पहुंची और मुट्ठी भर पाउडर लेकर अपने सिर पर डाला और बालों पर हाथ फेरने लगी। देखते-ही-देखते बालों में ढेर सारी झाग बनती चली गई। दोलाम पीछे हटता चला गया। वातावरण में इत्र की खुशबू फैल चुकी थी।

“खुंबरी।” गोमात की आवाज उभरी-“डुमरा फंसा पड़ा है।”

“वो कैसे?”

“उसने श्राप दिया था और वो श्राप स्वीकार करके तुमने पूर्ण भी कर दिया। अब डुमरा तुम पर कोई ‘वार’ नहीं कर सकता। जब तक कि तुम उस पर पहला वार न करो। अगर तुम डुमरा पर वार नहीं करोगी तो वो तड़पता रहेगा।”

“स्पष्ट कहो।”

“मेरे ख्याल में तुम डुमरा का ख्याल छोड़ दो तो बेहतर होगा।”

“क्या कहा।” खुंबरी के चेहरे पर क्रोध उभरा-“तुम कहते हो कि मैं डुमरा से बदला न लूं।”
“तुम्हारे पास ताकतें है और डुमरा के पास शक्तियां। कोई भी कमजोर नहीं है। मुझे डर है कि कहीं फिर कुछ गलत न हो जाए।”

“तुम डर रहे हो गोमात।” खुंबरी गुर्रा पड़ी-“और मुझे भी कमजोर बनाना चाहते...”

“नहीं महान खुंबरी। मैं तो चाहता हूं कि तुम अपने कामों की तरफ ध्यान दो। डुमरा हमेशा ही तुम्हारे ‘वार’ का इंतजार करता रहेगा। वो तुम्हें मिटा देना चाहता है, परंतु तुम्हारी तरफ से पहला वार न होने की स्थिति में वो ठीक से जी भी नहीं पाएगा। ये सजा होगी डुमरा के लिए। डुमरा के लिए ये हार ही है कि तुम श्राप पूरा करके अपनी जगह पर फिर से स्थापित हो गई हो।”

“मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है।” खुंबरी गुस्से से कह उठी।

“क्या महान खुंबरी नाराज हो गई।”

“मैंने डुमरा से बदला लेना है। क्या तुम मेरे विचार से सहमत हो?”

“महान खुंबरी का हुक्म टालने की हिम्मत मुझमें नहीं है।” गोमात की आवाज आई-“मैंने तो सिर्फ सलाह दी थी। परंतु मेरी सलाह गलत थी।”

“पूरी तरह गलत।”

“जो हुक्म।”

“ऊर्जा लेने के बाद डुमरा पर हमला करने की तैयारी करो।” खुंबरी ने आदेश भरे स्वर में कहा।

“ऐसा ही होगा। आपके रहने के लिए किसी दूसरी जगह का इंतजाम कर दिया जाए।” गोमात ने पूछा।

“अभी नहीं। विचार करने के बाद इस बात का जवाब दूंगी।” तभी ढोला की आवाज उभरी।

“गोमात की बात से मैं भी सहमत नहीं हूं महान खुंबरी। डुमरा को सबक सिखाना जरूरी है। उसे मृत्यु देनी है।”

“जरूर देंगे ढोला। डुमरा इसी काबिल है।” खुंबरी ने नहाते हुए सख्त स्वर में कहा।

“हमारा ऊर्जा हासिल होने का कार्य पूर्ण होते ही, पूरी ताकत के साथ हम आपकी सेवा में हाजिर हो जाएंगे।”

धरा पानी के किनारे-किनारे टहल रही थी। एक शब्द भी बीच में न बोली थी।

“तब तक मैं इस बात पर विचार कर लूंगी कि डुमरा पर कैसा वार किया जाए।”

“मेरे ख्याल में डुमरा पर छोटा-सा वार करके, उसके लिए वार करने के दरवाजे खोल दिए जाएं और देखें कि वो कैसा वार करता है। वो किस तरह से लड़ाई पसंद करता है। तब हम उसी तरीके से उसकी जान लो।”

“इस बारे में बाद में बात करेंगे ढोला। पहले तुम सब ऊर्जा प्राप्त कर लो।”

“श्राप के बाद सदूर कई टुकड़ों में बंट गया था।” ढोला की आवाज पुनः आई-“क्या फिर से उन टुकड़ों को पास बुलाने का कार्य शुरू किया जाए? इस काम में काफी ज्यादा वक्त लग जाने की संभावना है।”

“और हमारे पास वक्त कम है।” खुंबरी कह उठी।

“सदूर की रानी बनने के प्रयास भी शुरू करने हैं।”

“सबसे जरूरी काम खुंबरी के लिए डुमरा है। डुमरा की मौत है।” खुंबरी दांत भींचे कह उठी।

“मैं समझ गया महान खुंबरी। ऊर्जा प्राप्त करते ही, मैं आपकी सेवा में फिर हाजिर होता हूं।”

उसके बाद ढोला की आवाज नहीं आई।

बातचीत खत्म हो गई थी।

धरा ठिठकी और खुंबरी से कह उठी।

“डुमरा के ठिकाने का पता लगाओ। उसे घेरो और खत्म कर दो।”

“ये इतना आसान नहीं होगा। डुमरा को भी पता है कि अब हम उसे छोड़ने वाले नहीं। ऐसे में वो सतर्क होगा और अपनी सुरक्षा के उपाय कर चुका होगा। डुमरा को चालाकी से मारना होगा।” खुंबरी ने कहा और पानी मैं डुबकी लगा दी।

जब खुंबरी ने पानी से सिर निकाला तो धरा बोली।

“इंसान जब ज्यादा सतर्क हो जाए तो उसे मारना और भी आसान हो जाता है। सतर्कता में वो कोई-न-कोई रास्ता भूल जाता है, जिस पर पहरा नहीं होता। मैं देखूंगी डुमरा को।”

“तू।” खुंबरी ने धरा को देखा।

“क्या मैं डुमरा को नहीं संभाल सकती?”

“क्यों नहीं संभाल सकती। तू मेरा ही रूप है। खुंबरी तो खुंबरी ही रहेगी, बेशक वो किसी भी रूप में हो।”

“मैं पता करूंगी कि डुमरा कहां है। उसके बाद उसका काम तमाम करूंगी।”

“जल्दी मत कर। ये काम आसान नहीं रहेगा। डुमरा के पास ढेर सारी शक्तियां हैं।”

“हमारे पास भी ताकतों की कमी नहीं और सबसे अच्छी बात तो हमारे हक में ये है कि जब तक हम वार नहीं करेंगे, तब तक श्राप के नियम के हिसाब से, डुमरा वार नहीं कर सकता। करेगा तो खुद-ब-खुद हो मर जाएगा। ऐसे में हम बहुत ही खास वक्त पर डुमरा पर पहला और आखिरी वार करेंगे कि वो बच न सके।”

खुंबरी ने धरा को देखा। कहा कुछ नहीं।

एकाएक धरा का चेहरा बेचैनी से भर उठा। वो बटाका थामती कह उठी।

“क्या है?”

“मैं खुंबरी से बात करना चाहती हूं।” धरा के कानों के पास महीन-सी आवाज उभरी।

“अमाली।” धरा के होंठों से निकला।

“हां, अमाली हूं मैं। खुंबरी की मुंह लगी।” अमाली कहकर हौले-से हंसी।

“कर ले बात।”

अगले ही पल अमाली की कुछ ऊंची आवाज उभरी।

“महान खुंबरी के मिजाज कैसे हैं?” स्वर में चंचलता थी।

“खुंबरी खुश है वापस जीवन में आकर।” खुंबरी नहाने के बाद किनारे पर आ पहुंची।

“बुरा हो डुमरा का जिसने मेरी खुंबरी को पांच सौ सालों तक कष्ट दिया। मैं तो उसकी गर्दन मरोड़ दूं।”

मुस्करा पड़ी खुंबरी। वो पानी से बाहर निकली। उसका एक-एक अंग पानी की बूंदों में लिपटा चमक रहा था। दोलाम तुरंत आगे बढ़ा और गाऊन जैसा कपड़ा उसके भीगे बदन पर दे दिया। खुंबरी ने कपड़ा अपने शरीर से लपेटा।

“एक बहुत ही विचित्र बात मैंने देखी। कुछ आभास-सा हुआ कि जिसके कारण मुझे आना पड़ा।” अमाली की आवाज गूंजी।

“कह दो।”

“तू प्यार पर तो विश्वास नहीं करती?”

“नहीं। प्यार-व्यार कुछ भी नहीं होता।” खुंबरी ने लापरवाही से कहा-“मुझे कभी भी ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती।”

“पर मुझे आभास हुआ है कि तेरे को प्यार होने वाला है महान खुंबरी।”

“क्या?” खुंबरी की आंखें सिकुड़ीं।

चंद कदमों के फासले पर खड़ा दोलाम मुस्करा पड़ा।

धरा ने आंखें नचाकर, खुंबरी को देखा।

“सच में खुंबरी।” अमाली का स्वर धरा के आस-पास से उभर रहा था-“तू प्यार करने वाली है।”

“बकवास। ऐसा कभी नहीं हो सकता।”

“प्यार भी तेरे को पृथ्वी के पुरुष से होने वाला है।”

“पृथ्वी का पुरुष?” खुंबरी के माथे पर बल दिखने लगे।

दोलाम के चेहरे पर नाराजगी उभर आई।

“तू उसके प्यार में पागल हो जाएगी। फिर...”

“तेरे को पता है खुंबरी ने आज तक किसी से प्यार नहीं किया। कोई मर्द खुंबरी को नहीं भाता। आज तक खुंबरी इन बातों से दूर रही है। मुझे किसी से प्यार नहीं होगा अमाली।” खुंबरी ने सख्त स्वर में कहा।

“देख लेना।” अमाली की हंसी उभरी-“तेरे को प्यार हो जाएगा।”

“खामख्वाह की बातें न कर।”

“तेरे रूप के तो हजारों दीवाने रहे हैं पर तूने किसी को न चाहा। अब ऐसा होने वाला है।”

“मुझे गुस्सा मत दिला। चली जा।”

उसके बाद अमाली की आवाज नहीं उभरी।

‘बेवकूफ।’ खुंबरी गुस्से से बड़बड़ा उठी-’मुझे प्यार होने वाला है।’

“महान खुंबरी।” दोलाम बोला-“अमाली की बात को आप हल्के में नहीं ले सकी। वो कहती है तो जरूर ऐसा होगा।”

“तू इस बात के प्रति खामोश रह।”

परंतु दोलाम कुछ नाराज-सा दिखा कि खुंबरी को किसी से प्यार होने वाला है।

“चल।” खुंबरी, धरा से बोली-“मैं कुछ आराम करूंगी। सोचूंगी।”

“खाना नहीं खाएगी?”

“नहीं।” खुंबरी ने इंकार में सिर हिलाया-“अमाली ने मन खराब कर दिया।”

“अमाली यूं ही तो ये बात नहीं कहने वाली।” धरा बोली-“कुछ तो होने वाला ही होगा।”

खुंबरी और धरा वहां से चल पड़ीं।

दोलाम पीछे रहा।

“मैं नहीं मानती।” खुंबरी बोली-“मैंने आज तक किसी से प्यार नहीं किया। मर्द मुझे कभी अच्छे नहीं लगे।”

“पर अब ऐसा होने वाला होगा।”

खुंबरी ने गहरी सांस ली।

“अब तू इस बात का इंतजार करेगी कि पृथ्वी का वो कौन-सा पुरुष है, जिससे तुझे प्यार होगा।”

उसी पल पीछे आता दोलाम कह उठा।

“महान खुंबरी को पृथ्वी के पुरुष से प्यार करने की क्या जरूरत है। सदूर पर पृथ्वी से भी खूबसूरत और अच्छे मर्द हैं। खुंबरी को प्यार करना होगा तो सदूर के पुरुष से करेगी।”

“तेरे को मना किया है न कि तू इस मामले में मत बोल।” धरा कह उठी।

दोलाम नाराजगी भरे अंदाज में चुप कर गया।

एकाएक चलते-चलते खुंबरी मुस्करा पड़ी। उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“देखूंगी कि अमाली की बात सच है या नहीं?”

धरा भी मुस्कराई तो उसका भी निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

वो नए रास्तों को पार करके एक शानदार कक्ष में पहुंचे। वहां बड़ा-सा बेड बिछा था। चादरें बिछी थीं। तकिए रखे थे। कमरे में किए गए रंगों की सजावट देखते ही बनती थी।

खुंबरी आगे बढ़ी और बेड पर जा बैठी। धरा दोलाम से बोली।

“तुम जाओ दोलाम। अब हम कुछ आराम करेंगी।”

“खोनम बना लाऊं?” दोलाम ने पूछा।

“कुछ नहीं तुम जाओ।”

दोलाम चला गया।

“ताकतें ऊर्जा प्राप्त कर लें। उसके बाद हमारी व्यस्तता बढ़ जाएगी।” खुंबरी ने कहा।

“डुमरा को मैं खत्म करने का प्रयास करूंगी।” धरा बोली।

“आसान मत समझ, डुमरा को।”

“मैं जानती हूं कि ये काम बहुत कठिन है।” धरा के होंठ भिंच गए।

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सदूर के शहर के इलाके के बीचोंबीच वो तीन मंजिला विशाल इमारत थी। इमारत के गेट पर तीन पहरेदार मौजूद थे। डुमरा दोपहिया वाहन पर वहां पहुंचा। वो ही वाहन चला रहा था। वाहन पर दो लोगों के बैठने का इंतजाम था परंतु डुमरा अकेला ही वाहन पर मौजूद था। पहरेदारों ने गेट खोल दिया। डुमरा वाहन को भीतर ले जाता चला गया। भीतर जाकर उसने वाहन रोका और उतरकर तेज कदमों से छोटे-से प्रवेश गेट की तरफ बढ़ गया। पास पहुंचकर दरवाजा धकेला और भीतर प्रवेश कर गया। भीतर लोग आते-जाते व्यस्त दिखे। वहां से भीतर की तरफ पांच रास्ते जाते दिखाई दे रहे थे। डुमरा एक लिफ्ट जैसी जगह पर खड़ा हुआ तो लिफ्ट खुद-ब-खुद ही ऊपर की तरफ जाने लगी। डुमरा के चेहरे पर सोच के भाव दिख रहे थे।

ऊपर पहुंचकर लिफ्ट रुकी तो डुमरा वहां से निकलकर एक राहदारी में बढ़ गया। नीचे की अपेक्षा यहां कम लोग ही नजर आ रहे थे। एक बंद का दरवाजे को खोलते हुए डुमरा ने भीतर प्रवेश किया तो दरवाजा बंद होता चला गया। डुमरा ने आगे बढ़ते हुए कमरे में निगाह मारी।

एक टेबल की गिर्द कुर्सियों पर चार लोग बैठे हुए थे। चारों ही शांत और गम्भीर दिख रहे थे। डुमरा टेबल के पास पहुंचकर ठिठका, परंतु बैठा नहीं। चारों की निगाहें डुमरा पर ही थीं।

“मैंने खुंबरी को देखा। वो मेरे पास आई, बात भी हुई।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैंने तो सोचा था कि पांच सौ सालों में वो बदल जाएगी, परंतु वो जरा भी नहीं बदली। उसके तेवर वैसे के वैसे ही हैं।”

“ओह।” एक ने सिर हिलाया।

“तुमने उससे क्या कहा?”

“मैंने उसे बुरी ताकतों का साथ छोड़ देने का कहा, परंतु वो मुझे खत्म करने को कहने लगी।” डुमरा बोला।

“उसने तुम्हें पहचान लिया था?”

“उसकी ताकतें उसका मार्गदर्शन कर रही हैं। वो उसे सीधा मेरे पास ले आईं।”

“खुंबरी की ताकतों को ऊर्जा नहीं मिली। ऐसे में वो पांच सौ सालों के बाद भी उसकी सहायता कैसे कर रही हैं।”

“मेरे ख्याल में इस वक्त के लिए ताकतों ने ऊर्जा किसी तरह बचा रखी होगी।” डुमरा ने कहा-“उसकी ताकतें अभी भी पूरी तरह उसके साथ हैं, बल्कि अब तो उसकी ताकतें और भी ताकतवर होती चली जाएंगी। अब उन्हें ऊर्जा मिलेगी तो वो एक नए जोश के साथ मैदान में आएंगी।”

“तो झगड़े के आसार बढ़ रहे हैं।”

“खुंबरी मेरे से बदला लेना चाहती है तो झगड़ा होगा ही।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“क्या मैं उन पर वार कर सकता हूं।”

“पहला वार तुम नहीं कर सकते। किया तो खत्म हो जाओगे। तुमने उसे श्राप दिया था। अब पहले वार का हक उसे है।”

“अभी उसकी ताकतों को ऊर्जा नहीं मिली होगी। पहला वार करने में फायदा है।”

“क्या तुम श्राप के नियम भूल गए डुमरा?”

“भूला नहीं हूं।”

“तो वार करने में पहल मत कर देना। इसका अंजाम तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।”

“खुंबरी कहां गई होगी?” दूसरे ने कहा।

“अपने उसी गुप्त ठिकाने पर गई होगी जहां उसका शरीर रखा है। डुमरा ने कहा-“उस जगह पर उसकी ताकतों ने अपना साया डाल रखा है। इसलिए आज तक उस जगह का पता नहीं चल सका, परंतु ये पता है कि वो पूर्व में कहीं है।”

“मैं कुछ और ही सोच रहा हूं।” एक ने कहा।

“क्या?”

“अगर खुंबरी तुम पर वार नहीं करती तो तब तुम्हारी स्थिति क्या होगी।”

डुमरा होंठ भींचकर रह गया।

“ये झगड़ा तभी शुरू होगा, जब वो पहला वार तुम पर करे, उसके बाद ही तुम उस पर वार कर सकते हो। श्राप पूरा कर लेने के बाद ये ही नियम काम करता है। हम ये सोच सकते हैं कि खुंबरी चालाकी से काम लेती है। वो जानती है कि अगर उसने तुम पर वार करने की शुरुआत नहीं की तो, तुम बेबस होकर रह जाओगे। वो सदूर की रानी बनेगी और अपनी बुरी ताकतों का भरपूर इस्तेमाल करेगी, लेकिन तुम उसके खिलाफ कुछ नहीं कर सकोगे। उसकी बुरी ताकतों को खत्म करने की तुम्हारी इच्छा, अधूरी ही रह जाएगी। तब तुम...”

“खुंबरी वार जरूर करेगी।” डुमरा ने कहा।

“न करे तो?”

“वो करेगी। उसके भीतर बदले की भावना प्रबल है। वो मुझसे मिली तो ये ही महसूस किया मैंने।” डुमरा ने कहा।

“बाद में उसे अक्ल आ जाए तो?”

“हो सकता है उसकी ताकतें ही उसे ऐसी सलाह दे दें कि वो डुमरा की तरफ देखे भी नहीं।”

डुमरा खामोश-सा उन्हें देखता रहा।

“अभी खुंबरी के पास वक्त है। वो काफी कुछ सोच सकती है।” तीसरे ने कहा।

“इसके लिए मुझे अपनी शक्तियों से बात करनी होगी।” डुमरा बोला-“तब कुछ पता चलेगा।”

“बेशक बात करो। परंतु पहला वार खुंबरी पर करने की गलती मत कर देना। हम तुम्हारे सलाहकार हैं। तुम्हें हमारी बात माननी चाहिए। तुमने पहले वार कर दिया तो तुम्हारे हक में बुरा होगा। श्राप के नियम के खिलाफ होगा।”

डुमरा ने कुछ नहीं कहा।

“क्या तुम सोचे बैठे हो कि पहला वार करोगे?”

“मैंने कोई फैसला नहीं लिया।” डुमरा ने कहा।

“मतलब कि सम्भव है कि तुम खुंबरी पर पहला वार कर सकते हो।” उसने डुमरा की आंखों में देखा।

डुमरा के चेहरे पर सख्ती छाई रही।

“इसका मतलब कर सकते हो। तुम्हारी खामोशी इसी तरह इशारा करती है।” वो पुनः बोला।

डुमरा के चेहरे पर उलझन थी।

“दोस्तों।” वो अपने तीन साथियों से कह उठा-“डुमरा श्राप के नियम के विरुद्ध कदम उठाने की सोच रहा है। ये अपने को तबाह कर लेगा। तब इसकी जगह हममें से कोई लेगा। ये फैसला हम बाद में कर लेंगे कि कौन इसकी जगह लेगा।”

“जरूरी तो नहीं कि डुमरा ऐसा करे।”

“पर मुझे लग रहा है, ये ऐसा ही करने की सोच रहा है। एक बार भी ये नहीं कहा कि ये पहला वार नहीं करेगा। हमने जो समझाना था समझा दिया। अगर ये जिद पर रहा तो इसकी जगह लेने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।”

“तुम बात बढ़ा रहे हो।” एक ने कहा-“शक्तियों की इजाजत के बिना डुमरा कोई कदम नहीं उठा सकता।”

“उठा सकता है। इसके हाथों में बहुत कुछ है।”

“डुमरा तुम बताते क्यों नहीं कि तुम्हारा इरादा क्या है।”

“मैं खुंबरी की बुरी ताकतों को खत्म करना चाहता हूं ताकि वो लोगों की जान न ले सकें। और दुख न दे सकें। इस बात से मुझे कोई एतराज नहीं कि वो सदूर की रानी बनती है या नहीं।” डुमरा बोला-“मैं सिर्फ उसकी ताकतों के पीछे हूं। पांच सौ साल पहले मुझसे एक भूल हो गई। खुंबरी को दो हजार वर्षों के लिए श्राप देता तो अच्छा रहता।”

“ऐसा किया क्यों नहीं?”

“तब मुझे पांच सौ साल बहुत लगे थे। मैंने सोचा था कि इतने से ही खुंबरी की अक्ल ठीक हो जाएगी।”

“तब तुमने हमसे सलाह लेने की जरूरत नहीं समझी थी। क्रोध में सीधे खुंबरी को घेर लिया।”

“वक्त कम था उस वक्त।” डुमरा ने कहा-“उसका ‘बटाका’ उसके शरीर से जुदा होकर गिर गया था। वो कारू के नशे में मदहोश हुई जश्न में नाच रही थी। अगर मैं उसे घेरने में देर लगाता तो शायद उसे ‘बटाका’ के गिर जाने का एहसास हो जाता और वो नीचे से बटाका उठा लेती तो ये मौका भी हाथ से निकल जाता। फिर भी मैं उसे पांच सौ साल तक सदूर से दूर रख सका। उसकी बुरी ताकतों को बेकार कर दिया। परंतु अब फिर वो ही हालात पैदा होने वाले हैं।”

“खुंबरी की जान पृथ्वी ग्रह पर चली गई थी। तो खुंबरी ने वहीं पर अपना साम्राज्य क्यों नहीं बना लिया।” दूसरे ने पूछा।

“खुंबरी की ताकतों का केंद्र सदूर पर है। ऐसे में पृथ्वी पर उसकी ताकतें ठीक से काम नहीं करेंगी। वैसे भी पृथ्वी ग्रह की ताकतें इन ताकतों को वहां ठहरने नहीं देंगी। ये सदूर पर ही बेहतर काम कर सकती है।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं आने वाले वक्त में तुम लोगों को बुलाऊंगा, क्योंकि मुझे कई बार तुम सबकी सलाह की जरूरत पड़ेगी।”

“पहला वार करने की गलती मत कर देना।”

डुमरा खामोश रहा।

चारों उठकर वहां से चले गए।

डुमरा काफी देर तक सोच भरी मुद्रा में कुर्सी की पुश्त थामे खड़ा रहा। चेहरे के भावों से ही स्पष्ट लग रहा था कि उसके मस्तिष्क में कई तरह के भाव बन-बिगड़ रहे हैं। फिर आगे बढ़ा और बाईं तरफ की दीवार के पास जाकर दीवार का एक हिस्सा दबाया तो दीवार खामोशी से एक तरफ सरकी। इतनी कि एक इंसान भीतर जा सके। डुमरा ने भीतर प्रवेश किया और दीवार का एक खास हिस्सा दबाया तो दीवार वापस अपनी जगह पर आ गई।

डुमरा जहां खड़ा था, वहां बेहद मध्यम-सा प्रकाश था। सामने पतला रास्ता जा रहा था। ऐसा रास्ता कि जिसमें एक वक्त में एक ही इंसान आगे जा सके। डुमरा उसी रास्ते पर आगे बढ़ने लगा। उसके कदमों का मध्यम-सा स्वर उठ रहा था। कभी-कभार उसके कंधे इधर-उधर की दीवार से टकरा जाते थे। आगे जाकर वो रास्ता दो रास्तों में तब्दील हो गया। डुमरा सीधे रास्ते पर ही आगे बढ़ता रहा और वो रास्ता एक दरवाजे पर जाकर खत्म हुआ। डुमरा ने हाथ बढ़ाकर दरवाजे को धकेला और भीतर प्रवेश कर गया।

चेहरे पर गम्भीर भाव छाए हुए थे।

कमरे में एक तरफ टेबल और दो कुर्सियां रखी थीं। सामने की दीवार पर एक चक्री लगी थी। जिसके बीच में मोटा-सा गोला था और उसके सात किनारे निकले, चक्री की शक्ल बना रहे थे। डुमरा उस चक्री के पास पहुंचा और हाथ से घुमाकर चक्री के गोले का कवच (ऊपरी खोल) उतारा तो बीच में कई रंगों की तारों का गुच्छा दिखा। दो तारें अलग हुई पड़ी थीं। डुमरा ने हाथ से उन तारों को जोड़ा और कवच वापस चढ़ाकर, हाथ से चक्री को बाईं तरफ घुमा दिया। चक्री बहुत तेज रफ्तार से घूमने लगी। डुमरा वापस पलटकर टेबल के पास पहुंचा और टेबल की टॉप पर अजीब-से कई अंक पहले से ही फिट थे। जो कि कुल सात थे और उसके ऊपर एक डायल लगा था। डायल के छेदों में से हर अंक स्पष्ट नजर आ रहा था।

डुमरा ने एक नजर दीवार की घूमती चक्री पर डाली फिर टेबल पर लगे डायल के एक अंक में दो उंगलियां डाल कर उसे भी घुमा दिया। डायल भी टेबल की टॉप पर तेजी से घूमने लगा।

मिनट भर का वक्त बीता।।

दीवार की चक्र और डायल एक साथ रुके। उसी पल शांत-सी एक आवाज चक्री से उभरी।

“डुमरा।”

“डुमरा तुम्हारा स्वागत करता है वजू।” डुमरा ने कहा।

“परेशानी में हो।” वजू की आवाज उभरी।

“तुम तो सब जानते हो।”

“सब नहीं, परंतु काफी कुछ जानता हूं। तुम खुंबरी पर वार करने की सोच रहे हो।”

“ये अच्छा मौका है। खुंबरी की ताकतों ने ऊर्जा नहीं प्राप्त की अभी तक। वो कमजोर है और...”

“खुंबरी का ठिकाना कहां है।” वजू की आवाज आई।

“नहीं जानता।”

“तो फिर वार कैसे करोगे?” वजू का स्वर गूंजा।

“तुम मुझे खुंबरी की जगह बताओगे।”

“ये नहीं हो सकता। सच तो ये है कि हम खुंबरी की जगह जानते ही नहीं। जानते होते तो बताते नहीं। श्राप के नियम के मुताबिक तुम तब तक खुंबरी पर वार नहीं कर सकते, जब तक कि वह पहला वार न कर दे। ये तुम्हारी भूल है कि तुम ये सोचते हो कि खुंबरी की ताकतें अभी कमजोर हैं। एक दिन में ही वो ताकतवर बन जाएंगी। तुम्हें जल्दी नहीं करनी चाहिए और खुंबरी के वार का इंतजार करना होगा।”

“अगर पहला वार मैं करना चाहूं तो?”

“तो पवित्र शक्तियों को तुम्हें खो देने का दुख होगा। श्राप का नियम भंग करने का आरोप तुम पर लगेगा और हमें ही तुम्हें सजा देनी होगी। तब हमसे रहम की उम्मीद भी मत रखना।”

“कोई रास्ता नहीं कि जिससे श्राप का नियम बदला जा सके?” डुमरा ने पूछा।

“नियम बदले नहीं जाते। खुंबरी ने पांच सौ बरस दूर रहकर श्राप का नियम अच्छी तरह पूरा किया है, ऐसे में तुम्हें भी नियम पर चलना होगा। नियम के मामले में हमारे लिए सब बराबर हैं। खुंबरी में सिर्फ इतनी ही बुराई है कि वो बुरी ताकतों के दम पर अपना साम्राज्य फैलाना चाहती है। अगर वो बुरी ताकतों का साथ छोड़ दे तो वो बुरी नहीं।”

“खुंबरी मुझ पर वार करेगी?”

“अवश्य। वो तुम पर वार करने की तीव्र इच्छा रखती है।” वजू का स्वर उभरा।

“मैं खुंबरी की बुरी ताकतों को खत्म करना चाहता हूं।”

“तुम उन्हें कम आंक रहे हो, जो ऐसा कह रहे हो। ये काम आसान नहीं होगा।”

“वजू। तुम अच्छी शक्तियों ने मेरे को चुन रखा है कि मैं बुरी ताकतों को हमेशा खत्म करता रहूं और लोगों को तकलीफ न होने दूं, परंतु इस बार तुम मेरी सहायता नहीं कर रहे।”

“हमसे ज्यादा सहायता नहीं मिल सकती।”

“क्यों?”

“क्योंकि तुमने खुंबरी को श्राप देने में, हमारी सहमति हासिल नहीं की थी।”

“लेकिन ये काम किया तो मैंने लोगों के भले के लिए था।”

“अवश्य। अब बहुत हद तक ये मामला तुम्हारा और खुंबरी का हो गया है। पवित्र शक्तियां हमेशा तुम्हारे साथ होंगी, परंतु जो करना है, तुमने ही सोच-समझकर करना है। हमसे ज्यादा सहायता नहीं मिलेगी।”

“ये तुम अपनी बात कह रहे हो, या सब शक्तियों की ये राय है।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“ये मेरी बात है।” वजू की आवाज आई।

“मुझे सबकी राय चाहिए।”

“इसके लिए तुम्हें सलूरा से बात करनी होगी।”

“तुम मेरे से इसलिए किनारा कर रहे हो कि श्राप देते समय मैंने तुमसे सलाह नहीं ली।”

“ये किनारा नहीं कहते। तुमने अपनी इच्छा से श्राप दिया तो ये मामला तुम्हारा बन गया। खुंबरी से अब तुमने ही मुकाबला करना है, जहां तक आसानी से सम्भव होगा, हम तुम्हें सहायता देते रहेंगे।”

“मुझे तुम लोगों की पूरी सहायता चाहिए। ये मामला सिर्फ मेरा मत बनाओ। बरी की ताकतें बहुत खतरनाक हैं।” डुमरा बोला।

“क्या तुम कमजोर हो?”

“नहीं।”

“तो फिर खुंबरी की ताकतों की चिंता क्यों करते हो?”

“मुझे व्याकुलता है कि ये मामला सिर्फ मुझे संभालना होगा।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“कम-से-कम खुंबरी के मामले में तुम्हें मेरा साथ नहीं मिलेगा।” वजू का शांत स्वर आया-“अगर खुंबरी तब तुम्हारे लिए घातक बन गई होती या शक्तियों को उससे खतरा होता तो तब तुम्हारे श्राप को मैं उचित समझता, परंतु अब...”

“वजू, तुम ये कहना चाहते हो कि मैंने श्राप देकर गलती की?” डुमरा का स्वर तेज हो गया।

“मेरा कहने का ये मतलब नहीं था।”

“पर तुम्हारा मतलब कुछ ऐसा ही है।”

“तुम सलूरा से बात करो। वो बड़ी शक्ति है। उसका फैसला ही सबसे बड़ा होगा और मैं भी मानूंगा।”

“मैंने श्राप देकर खुंबरी के पास मौजूद, नागाथ की बुरी ताकतों को खत्म करने की चेष्टा की थी। मैंने सोचा था कि पांच सौ सालों में खुंबरी ताकतों का रास्ता भूल जाएगी या ताकतें खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी। परंतु दोनों में से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पर मेरी चेष्टा तो पवित्र थी और अब वक्त आया तो तुम साथ देने से इंकार कर रहे हो।”

“मैं इंकार नहीं कर रहा। पर ये मामला सिर्फ तुम्हें ही संभालना है।”

“सिर्फ मुझे ही क्यों? हर काम की तरह शक्तियां क्यों नहीं संभालती इस मामले को? मुझे माध्यम ही बना रहने दो। लेकिन तुम तो मुझे जंग के मैदान के धकेल रहे हो। क्या ये मेरा काम है?” डुमरा ने नाराजगी भरे स्वर में कहा।

“श्राप तुमने अपनी इच्छा से दिया था। इसलिए खुंबरी की ताकतों का मुकाबला तुम्हें ही करना होगा, डुमरा।”

“ये बात गलत है। तुम मुझे मजबूर कर रहे हो कि मैं सलूरा से बात करूं।”

“वो ही तो मैं चाहता हूं कि तुम सलूरा से बात करो। सलूरा का हर हुक्म मुझे मान्य होगा। वो बड़ी शक्ति है। हो सकता है मेरा विचार गलत हो।” वजू के आने वाले स्वर में गम्भीरता थी-“परंतु सलूरा का विचार कभी भी गलत नहीं हो सकता।”

“तुमने आज से पहले मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया।” डुमरा गम्भीर दिखने लगा।

“हमारी भी सीमाएं है। तुम तो सीमा पार कर सकते हो, लेकिन हम नहीं कर सकते ऐसा। तुम हमारे प्रिय हो। हमारे लिए कीमती हो। सम्भव है सलूरा तुम्हारे लिए कोई बेहतर हल निकाल सके।” वजू की शांत सामान्य आवाज डुमरा के कानों में पड़ी-“हमारे व्यवहार को गलत मत समझो। हम गलत कर ही नहीं सकते। हम जैसी शक्तियां सिर्फ बेहतरी के लिए बनी हैं।”

“मुझे लगता है खुंबरी के सामने मुझे अकेला छोड़ा जा रहा है।” डुमरा बोला।

“हम तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकते।”

“ये ही तो कर रहे हो।”

“सलूरा से बात करो। वो जो कहेगा, हम सबको मंजूर होगा।
 

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दो घोड़ों वाली वो बग्गी बेहद तूफानी रफ्तार से उस जंगल के सुनसान रास्ते पर दौड़ रही थी। घोड़ों की टापों की आवाज किसी मशीन के चलने की आवाज जैसी थी जो लगातार कानों में पड़ रही थी। जंगल में तक कोई भी नजर नहीं आ रहा था। कभी पेड़ के झुंड होते तो कभी झाड़ियां दिखने लगतीं। बूढ़ा कोचवान उस बग्गी को दौड़ा रहा था। उसने पीले कपड़े का लबादा जैसा वस्त्र पहन रखा था। चेहरे पर दाढ़ी थी। पर वो चुस्त नजर आ रहा था।

बग्गी के भीतर डुमरा विचारपूर्ण मुद्रा में बैठा था। सफर शुरू हुए दो घंटे से ऊपर का वक्त हो चुका था। चूंकि सफर लम्बा और रास्ता खराब था, इसलिए वाहन पर सफर न करके, बग्गी का इस्तेमाल किया था डुमरा ने। सूर्य सदूर के कोने से अपनी किरणें फेंक रहा था। गर्मी और उमस भरा मौसम था। परंतु डुमरा अपने ही विचारों में डूबा हुआ था। उसके चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। वजू से बात करने के बाद वो सलूरा से मिलने चल पड़ा था। उसकी निगाहों में ये अहम मुद्दा था। खुंबरी के मामले में पवित्र शक्तियां उससे किनारा कर रही थीं। जबकि इस वक्त उसे सहारे की जरूरत थी। खुंबरी अपनी बुरी ताकतों के साथ उस पर वार करने वाली थी। वो सोचे बैठा था कि खुंबरी की बुरी ताकतों को समाप्त कर देगा, लेकिन उसकी शक्तियां साथ नहीं देंगी तो उसके लिए गम्भीर समस्या पैदा हो जाएगी। यूं तो उसकी समस्या हमेशा ही वजू हल कर देता था और सलूरा जैसी बड़ी शक्ति से उसका मिलना कम ही होता था। परंतु इस बार खुंबरी से टकराव की स्थिति में वजू ने सहायता करने से स्पष्ट इंकार कर दिया था, जो कि उसके लिए परेशानी की बात थी। खुंबरी की ताकतें अब जरूर ऊर्जा प्राप्त कर रही होंगी। कुछ ही घंटों में वो स्वस्थ हो जाएंगी और उस पर हमला करने का विचार करेंगी।

चार घंटे के सफर के बाद बग्गी जंगल में बने एक छोटे-से मकान के सामने जा रुकी। वो मकान पीले रंग का नया और चमकता लग रहा था जैसे कल ही बना हो। परंतु डुमरा जानता था कि ये मकान हमेशा ऐसा ही दिखता है। वो जब-जब भी यहां आया, मकान नया बना ही लगा।

डुमरा बग्गी से नीचे उतरा और गेट की तरफ बढ़ गया। गेट खुला हुआ था। मकान के आस-पास घना जंगल दिख रहा था। बेहद शांति का माहौल था। पेड़ों के पत्तों की तड़-तड़ कभी-कभार कानों में पड़ जाती थी।

डुमरा गेट से भीतर प्रवेश कर गया।

छोटा-सा बगीचा पार करके सामने मकान का दरवाजा दिखा, जो कि खुला हुआ था।

ये साधारण ड्राइंग रूम था। लेकिन वहां कोई नहीं था। डुमरा मकान में घूमने लगा कि एक तरफ से बर्तन खड़कने की आवाज आई। वो किचन जैसी जगह में जा पहुंचा। जहां एक बूढ़ा व्यक्ति बर्तनों को किचन की शैल्फ पर रख रहा था। उसके सिर के बाल पूरी तरह सफेद थे। बढ़ी हुई दाढ़ी भी सफेद थी। कमर से लाल रंग का कपड़ा बांध रखा था। वो नंगे पांव था। डुमरा को उसकी पीठ नजर आ रही थी। वो सलूरा ही था जो बिना पलटे कह उठा।

“मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। तुम्हारे लिए मैंने पहले ही दरवाजे खोल रखे थे।”

“हम लम्बे वक्त के बाद मिल रहे हैं सलूरा।” डुमरा मुस्कराकर बोला।

डुमरा को देखकर मुस्करा पड़ा।

“हां, पचास बरस पहले मिले थे हम। तुम आए ही नहीं कभी मिलने।” सलूरा ने कहा।

“जरूरत नहीं पड़ी। बिना वजह तुमसे मिलकर तुम्हारा वक्त खराब नहीं करना चाहता था।”

“मुझसे ज्यादा तुम्हारा वक्त कीमती है। तुम लोगों के भले के लिए काम करते हो। संसार से बुरी चीजों को दूर रखते हो। हर वक्त तुम्हें परेशानी ही परेशानी रहती है। भागते रहते हो तुम।”

“मैं कुछ भी भी नहीं सलूरा। ये सब उन पवित्र शक्तियों के दम पर ही मैं कर रहा हूँ जो मेरे इशारे पर चलती हैं।”

“पवित्र शक्तियां भी तो अच्छे इंसान का साथ देती हैं। तुम भले इंसान हो। आओ कमरे में चलते हैं। मैंने अभी-अभी खाना तैयार करके रखा है। मैं जानता था कि तुम आने वाले हो तो सोचा हम एक साथ खाना खाएंगे।”

दोनों मकान के भीतर के एक कमरे में पहुंचे तो वहां टेबल पर खाना लगा दिखा। दोनों कुर्सियों पर बैठ गए और खाना शुरू किया। कई पलों तक कोई कुछ न बोला।

“तुम चिंता में लग रहे हो।” सलूरा कह उठा।

डुमरा एकाएक मुस्कराकर सलूरा को देखने लगा और कहा।

“तुमसे कुछ भी छिपा नहीं रहता। मैं जानता हूं तुम मेरी चिंता की जानकारी रखते हो।”

“हां। जानकारी तो है मुझे।”

उसके बाद दोनों ने खामोशी से खाना खाया किचन में अपने-अपने बर्तन साफ करके रखे।

“खोनम बनाऊं सलूरा?” डुमरा ने पूछा।

“क्यों नहीं।” कहकर सलूरा किचन जैसी जगह से बाहर निकल गया।

खोनम के गिलास थामे डुमरा को सलूरा बगीचे में बैठा मिला। उसने सलूरा को खोनम का गिलास दिया और खुद उसके सामने जा बैठा। पेड़ों की छांव की वजह से वो धूप से बचे हुए थे। डुमरा ने खोनम का घूंट भरा।

“अब कहो डुमरा। अपनी समस्या कह दो।” सलूरा ने कहा।

“तुम जानते हो कि मैं किस वास्ते तुम्हारे पास आया हूं।” डुमरा बोला।

“तुम अपनी बात रखो।”

“खुंबरी मुझ पर अपनी ताकतों के साथ हमला करने वाली है। मुझे शक्तियों के साथ की जरूरत है। वजू का कहना है कि खुंबरी के मामले में शक्तियां मेरा साथ नहीं देंगी। ये जंग मुझे खुद ही लड़नी है।”

“डुमरा।” सलूरा ने मुस्कराकर कहा-“तुम हमारे बच्चे हो। हम बच्चों को कष्ट में नहीं देख सकते।”

“तो मुझे शक्तियों की पूरी सहायता मिलेगी?”

“वजू ने जो कहा है सही कहा है।”

“तो क्या मैं खुद को अकेला समझूं।”

“अकेला क्यों? तुम्हारे पास तो शक्तियां है। हमने तुम्हें दे रखी हैं।”

“शक्तियों के अलावा मुझे सबकी सहायता की जरूरत है। खुंबरी की ताकतें पुरानी हो चुकी हैं। इस बार वो ज्यादा ताकतवर होंगी। क्या मेरे पास जो शक्तियां हैं, वो खुंबरी की ताकतों का मुकाबला कर पाएंगी?”

“ये तो तुम पर निर्भर करता है कि तुम किस प्रकार लड़ते हो।”

“मुझे तुम सबकी सहायता क्यों नहीं मिल रही?”

“वजू ने तुम्हें बता दिया है।”

डुमरा सलूरा को गम्भीर निगाहों से देखता रहा।

“खुंबरी को श्राप देने से पहले तुम्हें हमारी सलाह जरूर ले लेनी चाहिए थी।” सलूरा बोला।

“क्या मैंने गलत कर दिया था?”

“इसे मैं गलत तो नहीं कहता। अगर गलत होता तो उसी वक्त तुमसे शक्तियां वापस ले ली जातीं। तुमने अपनी इच्छा से खुंबरी को श्राप दिया था। अब वो फिर वापस आ गई है तो तुम्हें ही सब संभालना होगा। तुमने जल्दबाजी में खुंबरी को श्राप दिया सोच-समझकर दिया होता तो आज वो कभी वापस नहीं आ पाती। आती तो ताकतें उसके पास न होतीं। इस बारे में शक्तियों के बीच लम्बी चर्चा हुई और इसी नतीजे पर पहुंचे कि कोई भी खुंबरी और तुम्हारे बीच नहीं आएगा। जो शक्तियां तुम्हें दे रखी है, उन्हीं से खुंबरी का मुकाबला करोगे तुम।”

“इसमें तो मेरी जान भी जा सकती है।”

“सब कुछ तुम पर निर्भर है।”

“खुंबरी से लड़ाई में मेरा स्वार्थ नहीं है। फिर मुझे अकेला छोड़ देना उचित होगा।”

“तुम्हें जवाब दे दिया गया है।”

“शायद मैं खुंबरी की ताकतों का मुकाबला न कर सकूं।” डुमरा गम्भीर स्वर में बोला।

“अपने में विश्वास रखो। तुम हम सब शक्तियों के चेहते हो। हमने तुम्हें शक्तियां दे रखी हैं। तुम ही सोचो कि उन्हें कैसे इस्तेमाल करना है कि खुंबरी की ताकतों पर विजय पा सको।”

“मेरा इरादा खुंबरी की ताकतों को समाप्त करने का है।”

“बेशक करो। तुम्हें पृथ्वी से आए लोगों की सहायता मिलेगी।”

“पृथ्वी से आए लोग?” डुमरा के होंठों से निकला।

“जो पोपा में बैठकर रानी ताशा के साथ आए हैं।”

“वो साधारण लोग मेरी क्या सहायता करेंगे।”

सलूरा मुस्करा पड़ा।

“उन्हें साधारण न समझो। वो माहिर लोग हैं। खुंबरी के मामले में वो तुम्हारी सहायता करेंगे। रानी ताशा खुंबरी से बदला लेने को उतावली हो रही हैं क्योंकि कभी खुंबरी की ताकतों ने उसे राजा देव से अलग किया था। राजा देव भी सदूर पर आ पहुंचे हैं। उनके साथ जगमोहन, नगीना, मोना चौधरी हैं। बबूसा है, सोमाथ नाम का वो नकली इंसान है, जिसे तुम्हारे बेटे (महापंडित) ने बनाया है। शक्तियां हमने तुम्हें दे रखी हैं। तुम खुंबरी की ताकतों का मुकाबला कर सकते हो।”

“मैं आपके इंकार को समझ रहा हूं सलूरा।”

“इन सबको तुम्हारा बेटा लेकर, तुम्हारे पास आ रहा है।”

“क्यों?”

“ये तो तुम उनसे मिलोगे तो पता चल जाएगा। वो सब अपने इरादों के पक्के और मजबूत हैं। समझदारी से उनका इस्तेमाल करो। खुंबरी की ताकतें लड़खड़ा भी सकती हैं। सब कुछ तुम पर है डुमरा कि तुम कैसे काम करते हो।”

“वो बेहतर ढंग से मेरे काम आएंगे?”

“तुम उनसे मिलो तो सही। अभी वापस चल दो। तुम्हारा बेटा सबके साथ उसी जगह पर पहुंचेगा। जहां से तुम आए हो। खुंबरी जिनके सहारे, वापस सदूर पर आ पहुंची है, वो ही उसके लिए मुसीबतें खड़ी कर देंगे। तुम आने वाले वक्त से अंजान हो। क्योंकि तुमने अभी तक अपने पास मौजूद ताकतों का इस्तेमाल नहीं किया। ये मत सोचो कि तुम अकेले हो। आगे बढ़ो और मुकाबला करने की सोचो। शक्तियां न तो तुम्हारा साथ देंगी न ही अड़चन डालेंगी। वापस जाओ डुमरा और तैयारी करो।”

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