डेंगू का कहर

शरीर तप रहा था, सिर मारे दर्द के फटा जा रहा था और आंखों में जैसे कोई कील चुभोई जा रही हो। ऐसे हालात में कोई सोता कैसे रह सकता था।
विराट राणा उठकर बैठ गया।
सामने दीवार पर लगे वॉल क्लॉक पर निगाह गयी तो पाया अभी बस पांच बजे थे। यानि मुश्किल से डेढ़ घंटे की नींद ही ले पाया था वह। तेज बुखार का एहसास हुआ तो वह उठकर वार्डरोब तक गया और भीतर से थर्मामीटर निकाल लाया।
आगे ये देखकर हैरान रह गया कि शरीर का टैम्परेचर एक सौ पांच डिग्री पहुंचा हुआ था। उस बात पर यकीन करने का उसका मन नहीं हुआ। थर्मामीटर को जोर जोर से झटककर उसने पारे को नीचे पहुंचाया और एक बार फिर उसे अपने बगल में दबा लिया।
मगर थर्मामीटर था कि अपने जिद से हटने को तैयार ही नहीं हुआ, लिहाजा उसे यकीन करना पड़ा कि फीवर सच में था, ना कि उसे कोई वहम हो रहा था।
आखिरकार उसने डॉक्टर को बुलाने का फैसला किया।
अनुज तनेजा को जो कि उसका फेमिली डॉक्टर तो था ही, साथ ही दोनों के बीच गहरे दोस्ताना ताल्लुकात भी थे।
कई बार बेल जाने के बाद दूसरी तरफ से कॉल रिसीव कर ली गयी।
“गुड मार्निंग अनुज।”
“वेरी गुड मॉर्निंग, मुझे याद नहीं आ रहा कि पहले कभी इतनी सुबह तुमने मुझे कॉल किया हो - कहकर उसने पूछा - सब ठीक तो है विराट?”
“तुम्हारे लिए एक गुड न्यूज है।”
“ओह तो विराट राणा आखिरकार बीमार पड़ ही गया।”
“है तो कुछ ऐसा ही, पारा एक सौ पांच पहुंच रहा है, आकर फटाफट मुझे ठीक करो, क्योंकि एक बहुत ही ज्यादा सेंसेटिव केस पर काम कर रहा हूं, छुट्टी नहीं मार सकता।”
“पंद्रह मिनट।”
“आई विल वेट।”
कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
तत्पश्चात उठकर किचन में पहुंचा और कॉफी तैयार करने में जुट गया। चाहता तो उस काम के लिए घर की मेड को भी जगा सकता था, जो कि चौबीसों घंटे वहीं हुआ करती थी। मगर रात को क्योंकि वह विराट के बाद सोने के लिए गयी थी, इसलिए कच्ची नींद से जगाना ठीक नहीं समझा।
दो मिनट में कॉफी तैयार कर के वह ड्राईंगरूम में आ बैठा।
सिर और आंखों का दर्द ज्यों का त्यों बरकरार था। उसने एक सिगरेट सुलगाया और कॉफी की चुस्कियों के साथ निकोटीन का नाश्ता करना शुरू कर दिया।
दोनों के अजीबो गरीब कांबीनेशन ने उसकी तकलीफ खत्म तो नहीं कर दी, मगर पहले से बेहतर फील करने लगा। फिर अचानक ही उसे बुरी तरह सर्दी महसूस होने लगी, बदन कांपने लगा, दांत बज उठे। वह उठकर वापिस बेडरूम में पहुंचा और कंबल के नीचे घुस गया।
थोड़ी देर बाद गार्ड के साथ चलता डॉक्टर अनुज तनेजा वहां पहुंच गया। गार्ड ने विराट को उसके आगमन की सूचना दी फिर उसके कहने पर कमरे से निकलकर गेट की तरफ बढ़ गया।
“तुम तो बहुत बुरी हालत में हो यार।” डॉक्टर उसका माथा छूता हुआ बोला।
“पता नहीं क्या मुसीबत है अनुज, जबकि रात दो ढाई बजे तक तो एकदम नार्मल था। फीवर तो लगता है अभी कुछ देर पहले ही चढ़ा है।”
अनुज ने विराट के बगल में बैठकर कुछ देर उसका मुआयना किया फिर बोला, “फीवर के अलावा कोई और प्रॉब्लम?”
“आंखों में दर्द है, सिर में भी।”
“वह तो खैर बुखार की ही देन होगा - कहकर उसने पूछा - नाश्ता तो क्या किया होगा अभी?”
“कॉफी के साथ एक सिगरेट ली थी।”
“बढ़िया किया, टैंपरेचर डाउन करने का इससे बढ़िया कोई रास्ता हो ही नहीं सकता, है न?”
“तंज मत कसो यार, कोई गोली वोली दो ताकि इस बिन बुलाई मुसीबत से पीछा छूट सके। एक बड़े केस पर काम शुरू किया है, जिसे बीमारी के चलते अधूरा नहीं छोड़ सकता।”
“मुझे तो लगता है छोड़ना पड़ेगा।”
“क्यों?”
“डेंगू या मलेरिया हुआ हो सकता है। मैं ब्लड सैंपल ले लेता हूं, जिसकी रिपोर्ट आठ बजे तक हासिल हो जायेगी। डेंगू नहीं निकला तो बेशक तुम काम पर जा सकते हो।”
“ठीक है करो जो करना है।”
तत्पश्चात डॉक्टर ने दो अलग अलग ब्लड सैंपल लिए, फिर पैरासीटामल का एक टैबलेट थमाता हुआ बोला, “अभी के लिए बस इतना ही, लेकिन ब्रेकफास्ट किये बिना मत खाना।”
विराट ने सहमति में सिर हिला दिया।
डॉक्टर चला गया।
यह विराट राणा का बैडलक ही माना जाना चाहिए कि अगले दो घंटों में उसकी हालत बद से बद्तर होती चली गयी, और लैब रिपोर्ट ने तो जैसे कहर ही ढा दिया।
डेंगू का पता लगते ही डॉक्टर अनुज ने एक एंबुलेंस भेजकर उसे फौरन अपने नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया। उसे इस बात पर भी खासा हैरानी हो रही थी कि तीन से चार घंटों में ही विराट की प्लेटलेट्स नॉर्मल से बीस फीसदी नीचे जा चुकी थीं।
आगे शाम चार बजते बजते उसकी हालत इतनी बद हो गयी कि अपने पैरों पर उठकर खड़े होने की भी ताकत शेष नहीं रह गयी। यहां तक कि आंखें भी बामुश्किल खोल पा रहा था। जो यूं चढ़ी हुई थीं कि अगर विराट अस्पताल में नहीं होता तो देखने वाला यही सोचता कि वह शख्स गहरे नशे में था।
उसी शाम सात बजे सुलभ जोशी उससे मिलने अस्पताल पहुंचा। विराट ने लेटे ही लेटे उसने कुछ निर्देश दिये और उस काम पर डंटे रहने को बोल दिया जिसकी शुरूआत बीते रोज उन दोनों ने मिलकर की थी।
ये अलग बात थी विराट के बिना सुलभ जोशी कटी पतंग था जो हवा में दिशाहीन होकर विचरने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। उस दौरान उसने राहुल के सातों दोस्तों को बारी बारी से फोन कर के मिलने के लिए वक्त हासिल करने की कोशिश की, मगर मुलाकात के लिए तैयार कोई एक भी नहीं हुआ।
सीधे सीधे इंकार भले ही नहीं किया गया, मगर उनके बहाने ऐसे थे जो साफ साफ बनावटी जान पड़ते थे, और जोशी के वश का नहीं था कि उनपर या उनकी फेमिली पर कोई दबाव बनाकर उन सातों को इंटेरोगेशन रूम तक पहुंचा पाता।
उधर अस्पताल में एडमिट विराट राणा की हालत अगले दिन पहले से कहीं ज्यादा बिगड़ गयी। वार्ड से उसे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया, जहां डॉक्टर तनेजा सारे काम छोड़कर उसकी तीमारदारी में जुट गया, मगर मर्ज था कि उसके काबू में आकर राजी नहीं था।
आगे के चौबीस घंटे यूं ही गुजर गये।
फिर उसकी लगातार बिगड़ती हालत एकदम से स्थिर हो उठी। यानि तब तक जितनी खराब हो चुकी थी, उससे ज्यादा खराब होना रुक गया।
तब जाकर डॉक्टर ने चैन की सांस ली, वरना तो वह विराट को अपने नर्सिंग होम से निकालकर अपोलो शिफ्ट करने के बारे में सोचने भी लगा था।
अगले रोज विराट को आईसीयू से निकालकर वापिस एक प्राईवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया। जहां डॉक्टर तनेजा ने दो नर्सों की बारह बारह घंटे की ड्यूटी लगा दी।
पांचवें दिन उसकी हालत में खासा सुधार दिखाई दिया। वह बहुत तेजी के साथ रिकवर कर रहा था। थोड़ा बहुत चल फिर करने के लायक भी हो गया, अलबत्ता वीकनेस बहुत ज्यादा महसूस हो रही थी, खड़ा होता तो जल्दी ही चक्कर आने लगते थे।
और छठे दिन जब उसने खुद को बेहतर हालत में पाया तो अनुज से बोला कि वह उसका डिस्चार्ज तैयार कर दे। जिसने ये कहकर मना कर दिया कि अभी कम से कम दो दिनों तक उसका अस्पताल में रहना जरूरी था, क्योंकि प्लेटलेट्स नार्मल से नीचे थीं और हीमोग्लोबीन भी ग्यारह पहुंचा हुआ था।
तब बड़ी मुश्किल से वह डॉक्टर की बात मानने को राजी हुआ।
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