हॉल में सब ही मौजूद थे।
सब खा रहे थे। कोई चावल तो कोई रोटी-सब्जी। उनके हाथों में खाने की प्लेटें थमी थीं। नगीना पल भर के लिये ठिठकी। हर किसी पर उसकी नज़रें फिरने लगीं।
“खाना खा लो नगीना।” राधा उसे देखते ही कह उठी-“महल के किचन में बहुत सामान गर्मागर्म बना पड़ा है। कोने वाले हलवाई के समोसे भी मिल जाते तो कितना मजा आता।”
नगीना की नज़रें राधा पर ठहरीं।
“सामान गर्म बना हुआ था?” नगीना के होंठों से निकला।
“हां-।”
सरजू और दया एक तरफ बैठे जल्दी-जल्दी खाना खा रहे थे। वास्तव में हर कोई भूखा था। उन्हें तो विश्वास नहीं आ रहा था कि खाना मिल गया है।
“हैरानी की बात है।” नगीना की उलझन भरी निगाह हर तरफ फिरने लगी-“शैतान के अवतार के महल की किचन में गर्म खाना बना पड़ा था और खाना भी रोटी-सब्जी और चावल। जबकि वो ऐसी चीजें नहीं खाता होगा।”
“ये बातें पेट भरने के बाद सोचनी चाहिये।” महाजन ने खाते हुए कहा।
नगीना ने मोना चौधरी को देखा।
मोना चौधरी एक तरफ स्टूल पर बैठी थी। वो खा नहीं रही थी।
“खाना खा लो भाभी।” जगमोहन ने नगीना से कहा।
“तुम क्यों नहीं खा रही मोना चौधरी?” नगीना ने पूछा।
“तुम्हारी ही तरह मुझे भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा कि शैतान के अवतार के महल की किचन में खाने का ऐसा सामान तैयार कैसे पड़ा है? वो भी इस तरह तैयार कि जैसे अभी बनाया गया हो?” मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी-“जबकि शैतान का अवतार मांसाहारी खाना ही खाता होगा।”
“लेकिन तुम खा क्यों नहीं रही?” नगीना ने कहा-“क्या तुम्हें भूख नहीं है?”
“भूख है। लेकिन मैं इस सवाल में उलझी हूं कि ये खाना कहां से...?”
“मोना चौधरी!” भामा परी शांत स्वर में कह उठी-“मैंने अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके खाने का इन्तजाम किया है।”
“क्या मतलब?”
सबकी निगाहें भामा परी की तरफ उठीं।
“मेरी पवित्र शक्तियां किसी का भला करने में पीछे नहीं हटतीं। मेरी शक्ति ने मुझे पहले ही इस बात का एहसास दिला दिया था कि तुम सब को खाने की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में मैंने पहले ही सब इन्तजाम कर लिया था। जब खाने की बात का जिक्र किया गया, तब तक मैंने अपनी शक्ति द्वारा महल के किचन में खाने का सामान तैयार कर दिया था।”
“ओह-!” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
“भाभी तुम भी खा लो। बहुत सामान बना पड़ा है।” जगमोहन ने पुनः कहा।
“खा लयो बहना। तम अपणो खाओ। बोत सामान हौवे वां ये। लस्सी का तो मटको भरो पड़ो हौवे। मक्खनो का गोला डालोकर। अंम तो आजो से भामा परी के हाथों में किचन का कंट्रोल दे दयो भायो।”
तभी मोना चौधरी की निगाह, नगीना के हाथ में रखे मखमली कपड़े में लिपटी बाल पर गई।
“तुम्हारे हाथ में क्या है नगीना?”
“तुम्हारे लिये है ये मोना चौधरी-।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्या?”
“गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल-।”
नगीना के ये शब्द किसी विस्फोट से कम नहीं थे।
सब चिंहुक पड़े।
हैरानी से भरी नजरें नगीना पर जा टिकीं।
उनका खाना खाना रुक चुका था।
“क्या?” मोना चौधरी के होंठों से निकला-“क्या कहा?”
“मेरे हाथ में गुरुवर की शक्तियों से भरी वो बाल है, जिसे शैतान तलाश कर रहा है।”
“दीदी का भेजा फिरेला होएला।” रुस्तम राव के होंठों से निकला।
“म्हारे को तो बहना पागल हो गयो दिखो।”
“शायद-।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा-“देवराज चौहान की मौत ने इनके दिमाग पर असर डाला है।”
राधा बिना रुके खाने में व्यस्त थी।
दया और सरजू ने भी अब खाना शुरू कर दिया था।
“बेकार की बातें मत करो।” नगीना का स्वर शांत था-“मेरे
हाथ में गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है। जिसे कि गुरुवर ने
यज्ञ में व्यस्त होने से पहले यहां छिपाया था, ताकि शैतान की दुनिया के वासी सोच भी न सकें कि बाल यहां हो सकती है। इत्तेफाक ही समझो की ये बाल मेरे हाथ लग गई।”
हर कोई हक्का-बक्का सा खड़ा था।
“तुम्हें कैसे पता चला भाभी कि ये गुरुवर की शक्तियों से भरी से बाल है?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“इन बातों को बाद में भी पूछा जा सकता है।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“पहले हमें इस बाल के बारे में सोचना चाहिये।”
“बाल पर कपड़ा क्यों ढांप रखा है।” मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब-से भाव थे।
“मैंने नहीं लपेटा।” बोली नगीना-“ये गुरुवर की शक्ति से भरा कपड़ा है। कोई भी शैतानी ताकत इस कपड़े को पार करके बाल को नहीं देख सकती। ऐसे में ये बाल शैतान से सुरक्षित रहेगी।”
“तुमने बाल को देखा है?” खाते-खाते राधा ने पूछा।
“नहीं-।”
“तो फिर तुम कैसे ये बात कह सकती हो?” सोहनलाल ने कहा-“बाल तुमने अभी तक देखी नहीं। ऊपर लिपटे कपड़े की खासियत तुम्हें कैसे मालूम हो सकती है?”
“ज्यादा सवालों में न पड़ो। बेहतर होगा कि अपने हालातों को सुधारने की चेष्टा करो।” नगीना के होंठ हिले-“गुरुवर की शक्तियों से भरी इस बाल में मौजूद शक्ति का इस्तेमाल हम शैतान के खिलाफ कर सकते हैं।”
पल भर के लिये वहां गहरी खामोशी छा गई।
हर कोई एक-दूसरे का चेहरा देखने लगा।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।
“बहना!” बांकेलाल राठौर ने गम्भीर स्वर में कहा-“कपड़ा हटायो के, बालो का थोबड़ा तो दिखाओ ज़रो-।”
“इस तरह बाल को नहीं देखा जा सकता।” नगीना गम्भीर
स्वर में कह उठी-“मैंने अभी तक बाल को नहीं देखा। कोई भी इस तरह बाल को नहीं देख सकता। सबसे पहले मोना चौधरी ही बाल को देखेगी।”
“ये कैसे हो सकता है!” जगमोहन के माथे पर बल उभरे-“तुमने अभी तक बाल को नहीं देखा तो ये कैसे कह सकती हो कि ये गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है? फिर इसे मोना चौधरी ही पहले क्यों देखेगी?”
“इसका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा नीलू-।” राधा खाते-खाते पुनः कह उठी।
नगीना के चेहरे पर जहान भर की गम्भीरता नजर आ रही थी।
“मैंने पहले ही कहा है, बात की तह तक पहुंचने की अपेक्षा शैतान से मुकाबला करने की सोचो, गुरुवर की शक्तियों के दम पर मुझे कैसे ये बातें मालूम हुईं, किसने बताईं, इसका जवाब अभी नहीं मिल पायेगा। जो मैं कहती हूं, वो ही करो। उसी में हम सब की भलाई है।” नगीना ने शब्दों पर जोर देकर कहा।
कोई कुछ न कह सका।
“गुरुवर की शक्तियां तुम सब के लिये बेकार हो जायेंगी अगर कपड़ा हटने पर बाल को तुम लोगों ने पहले देखा। ग्रहों के अनुसार मोना चौधरी का ही बाल को देखना शुभ रहेगा। उसके बाद बाकी लोग बाल को देख सकते हैं। अगर किसी और ने पहले बाल को देख लिया तो गुरुवर की शक्तियां तुम लोगों के काम नहीं आयेंगी।”
“अजीब-सी बात कह रही हैं आप।” महाजन बोला-“ये बात कैसे कह सकती हो कि...।”
“मैंने पहले ही कहा है कि कोई भी सवाल मत करो। वक्त आने पर हर सवाल का जवाब मिल जायेगा।”
वे सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
मोना चौधरी के होंठों में अजीब-सा खिंचाव छाया हुआ था।
“ये बातें तुम्हें कोई बता रहा है नगीना।” मोना चौधरी बोली-“अगर तुम सच हो तो...!”
“मैं सच हूं-।”
“कौन है तुम्हारे पास, जो तुम्हें ये सब बातें बता रहा है?”
“मैं बार-बार कह रही हूं कि इस बात का जवाब नहीं दूंगी। जब वक्त आयेगा, तब ही ये जवाब मिलेगा।”
सोहनलाल ने खाने की प्लेट एक तरफ रखी और गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।
महाजन ने घूंट मारा।
“यो मामलो तो उलझ गयो लगो हो छोरे...।”
“बाप-!” रुस्तम राव गम्भीर स्वर में कह उठा-“बीच में बड़ी बात फंसेला। पक्का।”
खामोशी लम्बी होने लगी तो मोना चौधरी ने नगीना से कहा।
“अब तुम क्या करना चाहती हो?”
“मैं कपड़ा हटाउंगी तो गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को सबसे पहले सिर्फ तुम देखोगी। अगर गलती से भी किसी ने पहले बाल की झलक पा ली तो आने वाला वक्त बहुत अशुभ होगा।” नगीना ने सामान्य स्वर में कहा।
“तो बाल इसी तरह मुझे दो। मैं महल के किसी अन्य कमरे में जाकर बाल को देख...।”
“नहीं।” नगीना कह उठी-“ग्रहों के हिसाब से शक्तियों से भरी बाल से कपड़ा मुझे ही हटाना है। जो जैसे लिखा गया है, सब कुछ वैसा ही होना चाहिये। सब से कहो, अपनी आंखें बंद कर लें और तब तक न खोलें जब तक इन्हें कहा न जाये। अगर किसी ने उत्सुकता की वजह से वक्त से पहले बाल पर नज़र डालने की चेष्टा की तो सब कुछ बेकार हो जायेगा।”
माथे पर बलों की लाइनें समेटे मोना चौधरी ने सब को देखा।
“सुना तुम लोगो ने-।” मोना चौधरी ने ऊंचे स्वर में कहा।
कुछ ने सिर हिलाया।
“जब तक आंखें खोलने को न कहा जाये, तब तक कोई आंखें न खोले। अगर ये वास्तव में गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है और नगीना की बातें सच हैं तो मुसीबतें हमसे दूर होने वाली हैं।”
सब चुप रहे।
“आंखें बंद करो।”
“छोरे! अंम तो अंखियों को मूंदे हो।”
तभी सोहनलाल ने ऊंचे स्वर में कहा।
“अच्छी बात तो यह होगी कि इनकी तरफ पीठ करके हम आंखें बंद कर लें।”
“हां।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा-“ऐसा करना ठीक रहेगा।”
फिर सबने मोना चौधरी और नगीना की तरफ पीठ की और आंखें बंद कर ली।
नगीना और मोना चौधरी की नज़रें मिलीं।
भामा परी और मिट्टी के बुत वाली युवती ने भी इस तरफ पीठ कर ली थी।
“मैं भी आंखें बंद करूंगी और तब बाल से कपड़ा हटाऊंगी।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं बाल को देख सकती हूं-?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
“हां-।” नगीना ने सिर हिलाया-“तुम्हारी निगाह मेरी हथेली की तरफ रहनी चाहिये।”
मोना चौधरी की नज़रें नगीना पर ही रहीं।
“बाल को देखने के बाद क्या होगा?” मोना चौधरी बोली-“मैं कैसे गुरुवर की शक्तियों को...।”
“इसका जवाब मेरे पास नहीं है मोना चौधरी।” नगीना ने सपाट स्वर में कहा-“लेकिन इस बात का जवाब तुम्हें मिलेगा अवश्य। लेकिन कैसे-ये मैं नहीं जानती।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
“बाल को देखो। नज़रें मेरे हाथ पर। मैं कपड़ा हटाने जा रही हूं-।”
मोना चौधरी की नज़रें नगीना की हथेली पर जा टिकीं। जहां मखमल के कपड़े में लिपटी बाल जैसी चीज का आकार महसूस हो रहा था।
नगीना ने अपना दूसरा हाथ मखमल के कपड़े पर रखा, कपड़ा हटाने के लिये।
तभी नगीना की निगाह उसी पल खिड़की की तरफ गई।
खिड़की से धुंध जैसी कोई चीज भीतर आने लगी थी।
मोना चौधरी ने भी उधर देखा।
“खिड़की से धुंध आ रही है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला-“काला महल दूसरे आसमान में प्रवेश कर चुका है।”
“मतलब कि दो आसमानों का रास्ता तय हो गया।” महाजन के होंठों से निकला।
“छोरे-!” बांकेलाल राठौर कह उठा-“दूसरो आसमानो पार होने लगो हो। बचो तीसरो। फिर चौथे परो, शैतान के पास पहुंचो।”
“बाप! आपुन शैतान को खत्म करेला।”
धुंध अब भीतर फैलने लगी थी। अजीब-सी ठण्डक का एहसास होने लगा था।
“आसमान की धुंध भीतर फैल रही है।” मोना चौधरी होंठ भींचे ऊंचे स्वर में कह उठी-“सब अपनी जगह पर बैठे रहें। पहले की तरह पन्द्रह-बीस मिनट में धुंध साफ हो जायेगी। काला महल आसमान को पार कर जायेगा।”
“जो जैसे बैठा है, वैसे ही बैठा रहे।” पारसनाथ का ऊंचा स्वर खुरदरापन लिए हुए था।
राधा जल्दी-जल्दी खाना खाने लगी थी।
मोना चौधरी ने नगीना को देखा। नगीना के चेहरे पर कठोरता आ गई थी। उसका दूसरा हाथ बाल पर इस तरह जम गया था कि कोई वाल छीनना भी चाहे तो आसानी से न छीन सके।
अब तक धुंध इस हद तक भीतर भर आई थी कि एक-दूसरे को देख पाना कठिन होने लगा।
☐☐☐
करीब एक घंटा होने को आया, जब धुंध छंटने लगी।
ये बहुत लम्बा वक्त था। थकान सी महसूस होने लगी थी उन्हें।
कम होते-होते धुंध महल से बिल्कुल ही हट गई। स्पष्ट था कि काला महल दूसरा आसमान पार करके, तीसरे आसमान की तरफ बढ़ने लगा था।
“इस बार काला महल ने बहुत देर लगा दी आसमान पार करने में।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ये बड़ा आसमान होगा।” जगमोहन ने कहा।
“हम शैतान के करीब पहुंचते जा रहे हैं।” महाजन बोला।
“आपुन उसे जिन्दा नेई छोड़ेला।”
“हम शैतान का मुकाबला नहीं कर सकते।”
“देवराज चौहान की लाश देखो के म्हारी तो खोपड़ी ही फिरो हो।” कहते हुए बांकेलाल राठौर की निगाह कुछ दूरी पर मौजूद कालीन पर पड़ी, देवराज चौहान की सिर कटी लाश पर जा टिकी।
“अब शैतान का क्या डर-।” राधा की खाने की प्लेट खाली हो चुकी थी-“गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल हमारे पास है। नीलू बहुत बहादुर है। शैतान को खत्म कर देगा।”
तभी मिट्टी के वाली युवती कह उठी।
“शैतान का मुकाबला कर पाना आसान नहीं है।”
“तुम लोग बातें ही करते रहोगे।” सरजू गुस्से और विवशता से कहा उठा-“कुछ करोगे नहीं।”
“तू कर ले ना।” राधा सरजू को देखकर, हाथ नचाकर कह उठी-“इसे बना दो सेनापति।”
“सेनापति क्या करेगा, जब हथियार ही नहीं है।” सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा।
नगीना अभी भी बाल को दबाये खड़ी थी।
मोना चौधरी कह उठी।
“सब खामोश हो जाओ और पहले की तरह पीठ करके, आंखें बंद कर लो।”
“मुंडी फेर लयो छोरे-।”
उसके बाद सबने पहले की तरह पीठ करके आंखें बंद कर ली।
नगीना और मोना चौधरी की नज़रें मिलीं।
“बाल को देखो।” कहते हुए नगीना ने बाल के ऊपर रखा हाथ हटा लिया।
मोना चौधरी की निगाह नगीना की हथेली पर पड़ी बाल पर जा टिकी। और ऊंचे स्वर में बोली।
“कोई भी इस तरफ पलट कर मत देखे। आंखें बंद रखो।”
मोना चौधरी के देखते ही देखते नगीना उस गोल चीज पर लिपटा मखमल का सुर्ख कपड़ा हटाने लगी।
मोना चौधरी एक टक नगीना के हाथ की हरकत को देखे जा रही थी।
गहरा सन्नाटा छा चुका था वहां।
कपड़ा पूरा हटते ही मोना चौधरी की आंखें ज़रा सी चौंधियाई फिर सामान्य हो गईं। नगीना की हथेली मीडियम से साईज की बाल पर पड़ी थी, जो कि ट्यूब लाईट की तरह दूधिया सी, मध्यम-सी रोशनी फेंक रही थी, परन्तु वो रोशनी एक फीट से ज्यादा दूर नहीं जा रही थी। मोना चौधरी बाल को स्पष्ट देख रही थी। आंखों में उलझन और अविश्वास के भाव थे। परन्तु चेहरे पर उत्सुकता नाच रही थी।
कई पल ऐसे ही बीत गये।
“क्या देख रही हो मोना चौधरी?” नगीना के होंठ हिले।
“ये-ये गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“हां-।”
“लेकिन तुमने तो अभी तक बाल को देखा नहीं।”
“तुमने देख लिया?” नगीना शांत थी।
“हां-।”
नगीना की नज़रें हिलीं और हथेली पर पड़ी बाल पर जा टिकीं।
“नगीना बेटी-।” पेशीराम के शब्दों की सरसराहट नगीना के मस्तिष्क में रेंगी।
“हां-।” नगीना के होंठ हिले।
“अब मैं तुम्हारे मस्तिष्क को आजाद कर रहा हूं। यहां तक बाल से वास्ता रखती बात सावधानी से करनी थी। सब ठीक रहा।” पेशीराम के शब्द नगीना को महसूस हो रहे थे।
“तुम जा रहे हो बाबा?”
“नहीं। मेरी आत्मा तुम्हारे भीतर ही है। तुम्हारे रूप में मैं साथ हूं। वक्त-वक्त पर तुम्हें मेरी मौजूदगी का एहसास होता रहेगा। अब तुम्हारा मस्तिष्क तुम्हारा ही है बेटी।”
“इस-इस बाल का क्या करूं? मैं...।”
“अब जो होगा, होता चला जायेगा। तुम्हारे सामने ही होगा।”
इन शब्दों के साथ ही नगीना को अपने मस्तिष्क में झटका-सा महसूस हुआ। फिर सब कुछ सामान्य हो गया। नगीना खुद को हल्का-सा महसूस करने लगी।
तब तक मोना चौधरी करीब आ पहुंची थी।
“तुम किससे बातें कर रही थीं?” मोना चौधरी ने पूछा।
“मैं-?” नगीना ने मोना चौधरी को देखा।
“हां। तुम अभी बाल को देखते हुए धीमे से स्वर में बात कर रही थीं। तुम्हारे होंठ हिल रहे थे।”
नगीना और मोना चौधरी की नज़रें मिलीं।
“मैं-।” नगीना अपने पर काबू पाते कह उठी-“भगवान का नाम ले रही थी।”
मोना चौधरी ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला कि चुप रह गई। फिर धीमे स्वर में बोली।
“पूछने का कोई फायदा नहीं। क्योंकि असल बात कम से कम तुम अभी नहीं बताओगी।”
नगीना खामोश रही।
“बाल मुझे दिखाओ।”
नगीना ने बाल वाली हथेली आगे बढ़ाई।
मोना चौधरी ने उसकी हथेली से बाल उठाकर माथा झुकाया फिर बाल को देखने लगी।
“इसके भीतर गुरुवर की शक्तियां हैं।” मोना चौधरी कह उठी-“लेकिन हमें नहीं मालूम उसका इस्तेमाल कैसे करना है।”
नगीना ने सबको देखते हुए ऊंचे स्वर में कहा।
“सब आंखें खोल लो। बेशक इस तरफ देख सकते हो।”
सबकी आंखें खुलने लगीं। वे पलटने लगे। मोना चौधरी के हाथ में थमी बाल देखकर सब हक्के-बक्के हो रहे थे। उन्हें विश्वास नहीं आ रहा था कि वास्तव में यही गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है।
“ये है गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“हां।” जगमोहन ने सिर हिलाया।
“फिर तो हम शैतान को कच्चा चबा जायेंगे।” राधा दांत भींचकर कह उठी।
“म्हारे दांत कछो कमजोर हो गयो। अंम तो कच्चो न चबा सको। थोड़ा सा भूनो के खायो हो।”
“देखा नीलू। ये हमेशा मेरी बात के बीच में बोलता है।”
“बाप-!” रुस्तम राव धीमे स्वर में बोला-“क्यों टांग अड़ाईला। बेकार में मुंह काला होएला।”
बांकेलाल राठौर दायां हाथ गाल पर फेरने लगा। जैसे कालापन उतार रहा हो।”
“गुरुवर की शक्तियां बाल के भीतर हैं?” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“पेशीराम ने हमें यही बताया था।” मोना चौधरी बोली।
“लेकिन गुरुवर की शक्तियों का इस्तेमाल हम कैसे करेंगे?” पारसनाथ ने कहा-“हमें नहीं मालूम कि...।”
“भामा परी!” मोना चौधरी ने कहा-“तुम बता सकती हो कि बाल में मौजूद शक्तियों को हम कैसे...।”
“मुझे इस बारे में ज़रा भी ज्ञान नहीं।”
जगमोहन ने मिट्टी के बुत वाली युवती से पूछा।
“तुम्हें मालूम है?”
“नहीं।” उसने गम्भीरता से इन्कार में सिर हिलाया।
“ये तो परेशानी वाली बात होएला कि...।”
तभी नगीना के दायें हाथ को हल्का सा झटका लगा। उसके हाथ में पकड़ा कपड़ा एकाएक सबको हवा में लहराता नज़र आया। ये देखकर उनकी आंखें हैरानी से भर गईं। तभी वो मखमली सुर्ख कपड़ा, मोना चौधरी के हाथ में मौजूद बाल पर गिरा और दूसरे ही पल वो बाल के साथ लिपटता, बाल को अपने में लपेटे हवा में लहराने लगा।
मोना चौधरी हक्की-बक्की रह गई। कभी अपनी हथेली को देखती तो कभी हवा में लहराती बाल को।
“ये क्या हुआ?” सोहनलाल के होंठों से निकला।
“नीलू!” राधा कह उठी-“तू तो बहादुर है। पकड़ तो बाल को। घबरा मत मैं तेरे साथ हूं।”
महाजन आंखें सिकोड़े बाल को देख रहा था।
“छोरे! म्हारी खोपड़ी तो ईब बेकार होती जावे-।”
“बाप, आपुन का भेजा भी पैंचर होईला...।”
तभी मोना चौधरी के दांत भिंचे। अगले ही पल वो बाल थामने के लिये बाज की तरह झपटी।
परन्तु बाल तीव्रता से दूर हो गई।
मोना चौधरी बुरी तरह लड़खड़ाई। कठिनता से उसने खुद को संभाला।
बाल सुर्ख मखमली कपड़े में लिपटी कुछ दूरी पर हवा में स्थिर हो चुकी थी।
जगमोहन पास था। अभी बाल हवा में स्थिर ही हुई थी कि अच्छा मौका पाकर जगमोहन उसी पल बाल पर झपट पड़ा। एक हाथ का अन्तर रहा था बाल तक पहुंचने में कि, तभी बाल दूर पहुंच गई।
जगमोहन जोरों से लड़खड़ाया। नीचे गिरा फिर तुरन्त ही उठ खड़ा हुआ।
“इस बाल को नहीं पकड़ा जा सकता।” पारसनाथ के होंठों से भिंचा सा स्वर निकला।
“यो गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल हौवे-।”
“नीलू बहुत बहादुर है। क्यों नीलू?” राधा ने उसे देखा-“जाकर बाल को पकड़ ले-।”
महाजन ने होंठ भींचकर राधा को देखा।
“मैंने कुछ गलत कह दिया क्या?” राधा हड़बड़ाकर बोली।
“छोरे!” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।
“बाप-।”
“यो तो अपणो आदमी का बिस्तरो गोल करियो, सबो के सामने उसो को बहादुरो बताई के-।”
“लुटिया डुबोके ही दम लेईला बाप-। बच्ची होईला-।”
“अपणो को देख छोरे। तंम तो उसो का बच्चो दिखो हो।”
“बाप आपुन तो पक्का सब का बच्चा होईला।”
हर किसी की उलझन भरी नज़रें हवा में मौजूद बाल पर टिकीं।
“बाबा-।” नगीना के होंठ हिले। होंठों में बुदबुदाहट थी।
“इस बाल के बारे में पूछना चाहती हो।” पेशीराम की फुसफुसाहट उसे अपने दिमाग से टकराती महसूस हुई।
“हां बाबा-।”
“ये गुरुवर की असीम शक्तियों से भरी बाल है। इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।”
“ओह-!”
तभी महाजन बोला।
“बेबी, ये सब क्या हो रहा है?”
मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“ये अगर गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है तो हमसे दूर क्यों जा रही है?” जगमोहन ने अजीब-से स्वर में कहा।
“मैं नहीं जानती कि ये क्या हो रहा है।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी-“नगीना के हाथ से कपड़े का निकलना। कपड़े का बाल पर झपटना और हमसे दूर हो जाना। हमारे हाथ में न आना।”
“म्याऊं-।”
उसी पल ये आवाज वातावरण में गूंजी।
सब बुरी तरह चौंके।
उनकी नज़रें इधर-उधर फिरने लगीं।
“ये तो बिल्ली की आवाज है।” भामा परी कह उठी।
“बिल्ली यहां कैसे?”
“यहीं कहीं होगी।” जगमोहन के होंठ भिंच गये।
जबकि मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ चुकी थीं।
होंठ भिंच गये थे।
चेहरे पर अविश्वास से भरे हैरानी के भाव साफ तौर पर नज़र आ रहे थे।
“नीलू! नीलू! तुमने बिल्ली की आवाज सुनी-।”
“म्याऊँ-।”
बिल्ली की आवाज पुनः गूंजी।
आवाज ऐसी थी कि हर तरफ से आती महसूस हो रही थी।
“आवाज किस तरफ से आ रही है?” पारसनाथ के होंठों से निकला।
“इधर से।” सोहनलाल ने एक दिशा की तरफ देखा।
“म्हारे को तो लागो इधरो से आवाजो आयो हो।”
“मैं देखती हूं बिल्ली कहां छिपी है।” कहने के साथ ही राधा बिल्ली की तलाश में लग गई।
पारसनाथ और सोहनलाल भी बिल्ली की तलाश में इधर-उधर देखने लगे।
“बाबा-।” नगीना के होंठ हिले।
“मैं जानता हूं तुम बिल्ली की आवाज के बारे में पूछना चाहती हो। लेकिन अभी कुछ मत पूछो।”
नगीना खामोश हो गई।
मोना चौधरी की सिकुड़ी, चमक भरी आंखें हवा में मखमल के सुर्ख कपड़े में लिपटी बाल पर टिक चुकी थीं। जिस्म में अजीब-सा तनाव भर चुका था।
“म्याऊं-।”
पुनः आवाज गूंजी।
“मैं तुम्हें पहचान चुकी हूं।” मोना चौधरी के होंठों से निकला-“तुम मेरी ही बिल्ली हो।”
“म्याऊं-।” आवाज पुनः गूंजी।
मोना चौधरी के शब्दों पर एकाएक वहां सन्नाटा छा गया।
“तुम यहां क्या कर रही हो?” मोना चौधरी माथे पर बल डाले कह उठी-“गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल के पास कैसे आ गई।”
तभी सबने देखा।
हवा में लहराती बाल वो ऊपर से मखमली सुर्ख कपड़ा जुदा हुआ और हवा में लहराने लगा। बाल अब स्पष्ट रूप से, मध्यम-सा दूधिया प्रकाश फैलाती नज़र आने लगी।
“ये क्या हो रहा है?” जगमोहन के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला।
“नीलू...!” राधा कह उठी-“तेरे को डर तो नहीं लग रहा?”
“म्हारे से पूछ। म्हारे को डर लागे हो।” बांकेलाल राठौर ने गम्भीर स्वर में कहा। नज़र हवा में लहराती बाल और कपड़े पर थी।
तभी सबके मस्तिष्कों को तीज झटका लगा।
मखमल का सुर्ख कपड़ा एकाएक स्याह बिल्ली के रूप में बदल गया था। छोटी सी सेहतमंद बिल्ली। उसकी चमकती आँखें जैसे मस्तिष्क को भेद सो रही थीं। उसकी मूंछों के बाल होंठों से इधर-उधर निकले उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा रहे थे। हैरत की बात तो ये थी कि वो हवा में ही मौजूद रही। इस तरह खड़ी-बैठी नज़र आ रही थी जैसे वो जमीन पर मौजूद हो। अपनी चमक भरी आंखें उसने मोना चौधरी पर टिका रखी थीं। इस बिल्ली के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास “ताज के दावेदार एवं कौन लेगा ताज”।
मोना चौधरी हक्की-बक्की निगाहों से काली बिल्ली को देखे जा रही थी।
वो दूधिया बाल बिल्ली के करीब ही हवा में हौले-हौले लहरा रही थी।
“म्याऊं-।” तभी बिल्ली ने पूरा मुंह खोला। बोली। अपनी जगह से थोड़ी सी हिली और आसपास देखने लगी।
बिल्ली की निगाह सब पर जा रही थी।
मोना चौधरी की आंखों में हैरानी नाच रही थी।
“मिन्नो-।” बिल्ली के होंठों से युवती का मधुर स्वर गूंजा-“हमारी फिर मुलाकात हो गई।”
“तुम?” मोना चौधरी को करंट जैसा महसूस हुआ-“तुम कब से बोलने लगीं?”
“जब से गुरुवर ने मेरे भीतर बोलने की शक्ति डाली।” बिल्ली ने पहले वाले स्वर में कहा।
“गुरुवर ने?” मोना चौधरी के होंठ हिले।
“ये कैसे हो सकता है?” महाजन के होंठों से निकला।
“असम्भव।” पारसनाथ होंठ भींचे कह उठा।
“छोरे! बिल्ली तो तगड़ी लगो हो।”
“आपुन पहचानेला। ये मोना चौधरी की बिल्ली होईला, पहले जन्म में।”
काली बिल्ली ने महाजन और पारसनाथ को देखा।
“नील सिंह! परसू...।” काली बिल्ली के होंठ हिलते सबने देखे-“गुरुवर की पवित्र शक्तियों का कोई अंत नहीं। वो चाहे तो क्या नहीं हो सकता। मुझे आवाज देना तो उनके लिए मामूली बात है।”
जगमोहन, सोहनलाल की तरफ खिसका।
“बिल्ली को पहचान रहा है सोहनलाल?” जगमोहन ने दबे स्वर में कहा।
“शायद। पक्का याद नहीं आ रहा।”
“लेकिन अब मुझे याद आ रहा है। ये पहले जन्म में मोना चौधरी की बिल्ली थी।”
“ओह! तो अब ये यहां कैसे?” सोहनलाल बोला-“कपड़े से बिल्ली कैसे बन गई?”
“मैं नहीं जानता। जो हो रहा है, तुम्हारे सामने ही है।”
मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे हुए थे।
“ये सब कैसे हुआ?” मोना चौधरी ने कहा-“मुझे बताओ।”
“मिन्नो!” काली बिल्ली के होंठ हिले-“तू तो पहले जन्म में मर गई थी। तब मेरे पास किसी का सहारा नहीं बचा। यूं ही इधर-उधर भटकती मैं गुरुवर के आश्रम के बाहर जाकर बैठ गई। दो दिन बाद ही गुरुवर भीतर से आये और मुझे भीतर ले गये। मैं उनके आश्रम में रहने लगी। जाने कितना वक्त बीत गया। मेरा शरीर वैसे ही रहा। मैं बूढ़ी नहीं हुई। फिर एक बार गुरुवर ने मुझे बोलने की शक्ति दी और मेरे से बात की। कहा, तुम देवा और पहले जन्म के साथियों के साथ वापस पूर्व जन्म में प्रवेश करने आ रही हो। क्योंकि तुमने और देवा ने दालूबाबा के तिलस्म को तोड़ना है। हाकिम को भी तुम लोग खत्म करोगे, जो कि शैतान के इशारे पर शैतानियत फैला रहा है। नगरी का समय चक्र इसके बाद फिर से आरम्भ हो जायेगा। लेकिन धरती से आने वाले तुम सब तिलस्म और नगरी के रास्ते भूल चुके हो। आधा-अधूरा ही तुम्हें याद आयेगा। ऐसे में मुझे तुम लोगों की सहायता करनी होगी। गुरुवर की आज्ञा को मैं कैसे इन्कार करती। मैं तैयार हो गई। तुम लोगों को पता होगा कि जब तुम लोग नगरी में आये। दालूबाबा और हाकिम से टकराये तो मैं हर जरूरत के वक्त, रास्ता दिखाने के लिये तुम्हारे साथ थी।”
काली बिल्ली को देखते मोना चौधरी ने सहमति से सिर हिला दिया।
“मेरे से बात करने के बाद गुरुवर ने बात करने की शक्ति वापस ले ली। मैंने तुम लोगों की सहायता की। दालूबाबा और हाकिम को तुम लोगों ने खत्म कर दिया। नगरी का समय चक्र पुनः आरम्भ हो गया। तुम लोग चले गये। तब मैं फिर गुरुवर की सेवा में पहुंच गई। गुरुवर ने मेरे कामों से खुश होकर मुझे आवाज दे दी। मैं बोलने लगी। इसके साथ ही गुरुवर मुझे अपनी शिक्षा देने लगे। तब मैंने गुरुवर से कहा कि मुझे युवती का रूप दे दें, तो गुरुवर ने कहा अभी वक्त नहीं आया है। मैं शिक्षा ग्रहण करती रहूं। दोबारा जब मिन्नो से मुलाकात होगी और मैं ग्रहण की गई विद्या के अनुसार अपना काम सफलता से पूर्ण कर लूंगी तो गुरुवर मुझे पूर्ण युवती का रूप दे देंगे।”
“ओह-!” मोना चौधरी के होंठ हिले।
“और अब फिर हमारा सामना हो गया मिन्नो। मैं बहुत बड़ी जिम्मेवारी के तौर पर तुम्हारे सामने मौजूद हूं।” काली बिल्ली कह रही थी-“गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल की सुरक्षा करना मेरी जिम्मेवारी है। गुरुवर की इजाजत मेरे पास है और मेरी इजाजत के बिना कोई भी बाल में मौजूद शक्तियों को छू नहीं सकता। मेरी मर्जी के बिना ऐसा हुआ तो उसे मुझसे मुकाबला करना होगा।”
काली बिल्ली के खामोश होते ही वहां चुप्पी छा गई।
“तो तुममें इतनी शक्ति आ चुकी है कि दूसरों का मुकाबला कर सको।” मोना चौधरी बोली।
“हां।” काली बिल्ली का मुंह खुला-“मुझे गुरुवर ने विद्या दी है। विद्या ग्रहण करने में मैंने बहुत मेहनत की है।”
मोना चौधरी गम्भीर थी।
“ईब तम का चाहो हो?” बांकेलाल राठौर कह उठा।
“भंवर सिंह।” काली बिल्ली ने उसे देखा-“मैं कुछ नहीं चाहती। तुम बताओ कि तुम क्या चाहते हो?”
काली बिल्ली के इन शब्दों के साथ ही वहां चुप्पी छा गई।
“मैं तुम्हें क्या कह कर पुकारूं?”
“मैं बिल्ली हूं। गुरुवर जब मुझे युवती का रूप देंगे, तब भी मैं बिल्ली ही रहूंगी। यही मेरा नाम रहेगा।” वो बोली।
“बिल्ली?”
“हां।”
“तुम तो मेरी बिल्ली हो।”
“नहीं मिन्नो। कभी मैं तुम्हारी बिल्ली थी। तुम्हारा हुक्म मानना मेरा धर्म था।” काली बिल्ली कह रही थी-“परन्तु अब मेरी जगह गुरुवर के चरणों में है। गुरुवर की शक्ति का छोटा-सा अंश बन चुकी हूं। गुरुवर ही मेरे लिये सब कुछ हैं। उनका देश
ही मेरा धर्म-कर्म और जीवन है।”
“बाप-।” रुस्तम राव कह उठा-“ये तो बोत मतलबी बात कहेला।”
“नहीं त्रिवेणी।” काली बिल्ली ने उसे देखा-“गलत मत कहो। पहले मेरे कर्म और थे। अब मेरे कर्म दूसरे हैं। जब तक मिन्नो थी। मैं मिन्नो की थी। मिन्नो के बाद मैंने गुरुवर की सेवा ले ली। मिन्नो के साथ अब सिर्फ मेरी यादें हैं पहले की। मेरी सेवा और मेरे कर्म गुरुवर को सेवा में जा चुके हैं।”
सब काली बिल्ली को देख रहे थे।
अजीब सी खामोशी वहां मौजूद थी।
“कपड़े के रूप में तुम बाल के ऊपर थीं-?”
“हाँ। रूप बदलकर में बाल की रक्षा के लिये साथ हूं-। बोलो मिन्नो तुम क्या चाहती हो?”
“क्या तुम्हें मालूम नहीं?” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर कहा।
“मैं सब जानती हूं। लेकिन तुम्हारे मुंह से सुनना जरूरी है। तभी मैं कुछ कह सकूँगी।”
क्षणिक खामोशी के बाद मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“हम शैतान के जाल में फंस गये हैं और ये काला महल हमें शैतान के पास चार आसमान ऊपर ले जा रहा है।”
“सुना। आगे कहो।”
मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“देवराज चौहान मर चुका है।” मोना चौधरी के होंठों से मध्यम-सी गुर्राहट निकली।
“हां-।” काली बिल्ली का स्वर बेहद शांत था-“देवा के मरने का वक्त आ चुका था। उसने मरना ही था।”
“तेरे को पहले से पता था?” जगमोहन एकाएक चीख उठा।
“हां। गुरुवर ने बता दिया था।” बिल्ली ने जगमोहन को देखा।
“गुरुवर भी जानते थे?” जगमोहन का चेहरा सुर्ख होने लगा।
“गुरुवर से कुछ भी छिपा नहीं। यज्ञ आरम्भ करने से पहले, सब बातें उन्होंने मेरे साथ की थीं।”
“ऐसा है तो गुरुवर देवराज चौहान की मौत को रोक सकते थे।” जगमोहन ने दांत भींचकर कहा।
“गुरुवर क्या नहीं कर सकते जग्गू-।” बिल्ली ने उसी स्वर में कहा-“लेकिन गुरुवर को पसन्द नहीं कि वो सृष्टि की रचना में किसी तरह की बाधा डाले। भगवान की बनी दीवार में गुरुवर तभी छेद करते हैं, जब वो बहुत जरूरी समझें।”
“मतलब कि गुरुवर की निगाहों में देवराज चौहान की जिन्दगी की कोई अहमियत नहीं थी। वो जानते थे कि देवराज चौहान की मौत होने वाली है। इस पर भी उन्होंने देवराज चौहान को बचाया नहीं-।” जगमोहन का चेहरा धधक उठा।
“जग्गू-।” बिल्ली का मुंह मुस्कराने के ढंग में फैल गया-“गुरुवर क्यों बचाते देवा को-।”
“देवा, गुरुवर का खास शिष्य था। गुरुवर, देवा को बहुत मानते
थे।” जगमोहन सुलग रहा था-“इस नाते उसे बचा सकते...।”
“नहीं जग्गू-।” बिल्ली का सिर इन्कार में हिला-“देवा इस जन्म में गुरुवर का शिष्य नहीं है। तीन जन्म पहले शिष्य था। ये जुदा बात है कि गुरुवर देवा की इज्जत आज भी करते हैं। तीन जन्म पहले की बात होती तो गुरुवर देवा को अवश्य बचाते। तुम्हें कुछ भी याद नहीं। गुरुवर ने देवा को पहले जन्म में अपनी शक्ति से बचाया भी था।”
“इस जन्म में नहीं बचाया-?”
“नहीं। अब बचाना गुरुवर की जिम्मेवारी नहीं थी।”
“तो देवराज चौहान से गुरुवर ने इस जन्म में काम क्यों लिए?” गुस्से से जगमोहन की मुट्ठियां भिंच गईं।
“कैसे काम?”
“देवराज चौहान से तिलस्म तुड़वाया था नगरी में बुलाकर दालूबाबा और हाकिम से टक्कर ली। नगरी का समय चक्र रोक रखा था दालूबाबा ने। देवराज चौहान ने मोना चौधरी के साथ मिलकर सब कुछ ठीक किया।”
“इनमें से कोई भी काम तुमने गुरुवर के लिये नहीं किया।”
“क्या मतलब?”
“पहले जन्म में जो काम तुम लोग अधूरे छोड़ गये थे। इस जन्म में वो काम पूरे कर रहे हो। ये काम तुम लोगों को करने ही हैं। इसीलिये तो वापस आये हो। हमसे मिलते हो। तुम्हारे जीवन-मृत्यु का चक्र तब तक पूरा नहीं होगा, जब तक अपने ही फैलाये कामों को तुम समेट नहीं लेते।” काली बिल्ली का मुंह खुल-बंद हो रहा था-“पहले तुम लोग तिलस्म में आये। वो तिलस्म किसने बनाया? मिन्नो ने कई जगह तिलस्म देवा के नाम से बांधा। ऐसे में मिन्नो के साथ देवा का नगरी में आना जरूरी था। दालूबाबा को मिन्नो ने सिर पर चढ़ाया। जिसका फायदा दालूबाबा ने अंत में खूब उठाया और मिन्नो की मौत के बाद तिलस्म का मालिक बन गया। हाकिम को देवा और मिन्नो ने क्यों मारा? गुरुवर का बेटा था हाकिम और देवा के बराबर का होशियार शिष्य था। हाकिम की दोस्ती, पेशीराम के बेटे कालूराम और द्रोणा से थी और तीनों की शरारतें बढ़ती जा रही थीं। इसी बीच एक बार हाकिम और देवा में झगड़ा हो गया। दोनों में झगड़ा बढ़ता चला गया। नौबत खून-खराबे तक आ गई। गुरुवर सब कुछ देख रहे थे। एक बार उन्होंने सबके सामने हाकिम पर नाराजगी दिखाई और उसे सुधर जाने की चेतावनी देकर आश्रम की सफाई पर दस दिन के लिये लगा दिया।”
ये बातें सबके लिये नई थीं।
हर किसी की निगाह काली बिल्ली पर टिकी थी।
“हाकिम ने सबके सामने अपना बहुत ज्यादा अपमान महसूस किया। वो इतना क्रोधित हआ कि अपने पिता यानि कि गुरुवर
के इस आदेश का पालन नहीं किया आश्रम साफ करने का। अगले दिन गुरुवर ने हाकिम को बुलाकर फिर डांटा और आश्रम साफ करने को कहा। गुस्से में भरे हाकिम ने इस सजा को मानने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। गुरुवर ने हाकिम को पिता के नाते, गुरु होने के नाते बहुत समझाया, परन्तु जब नहीं माना तो गुरुवर ने हाकिम को हमेशा-हमेशा के लिये नगरी से दूर चले जाने को कहा। गुस्से में धधक रहा हाकिम फौरन नगरी छोड़कर चला गया।”
काली बिल्ली खामोश हुई।
सब की अजीब-सी, चुप्पी से भरी नज़रें काली बिल्ली पर थीं।
“जानता है जग्गू, हाकिम कहां गया?”
“कहां?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“शैतान की सेवा में चला गया हाकिम-।” काली बिल्ली के होंठों से निकला।
मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।
नगीना के चेहरे पर बेहद शांत भरा नज़र आ रहे थे।
“शैतान तो गुरुवर का दुश्मन है बिल्ली-।” राधा कह उठी।
“हां। शैतान और गुरुवर में हमेशा भारी दुश्मनी रही है। जब भी किसी को मौका मिलता है, वो दूसरे को नुकसान पहुंचा देता है। हाकिम को अपने पिता-अपने गुरुवर से नफरत हो गई। उस पर क्रोध के सितारे सवार थे। अपने अच्छे-बुरे का ज्ञान उसे नहीं रहा। हाकिम नगरी से बहुत दूर चला गया था। शैतान सब कुछ देख रहा था। उसने उचित मौका पाकर हाकिम से हमदर्दी दिखाई और उसे अपनी सेवा में ले लिया। हाकिम ने शैतानी विद्या ली। वो दिमाग का बहुत तेज था। बहुत कम वक्त में हाकिम शैतानी विद्या का विद्वान बन गया। बड़ी-बड़ी शैतानी शक्तियों का मालिक बन गया। स्वयं शैतान भी, हाकिम की इज्जत करने लगा। हाकिम ने अपनी दुनिया अलग ही बसा ली थी। शैतान को जब भी हाकिम की सेवा की जरूरत होती, उसे बुला लेता। हाकिम की शैतानी हरकतें अपने पिता, गुरुवर
के खिलाफ जाने लगीं। वो नगरी वालों को तंग करने लगा। गुरुवर सब देख-महसूस कर रहे थे, परन्तु उन्होंने अपनी विद्या का इस्तेमाल कभी भी हाकिम के खिलाफ नहीं किया।”
“इसलिये कि हाकिम उनका बेटा था।” मिट्टी के बुत वाली युवती कह उठी।
बिल्ली का मुंह खुला और इस तरह फैला कि जैसे मुस्करा रही हो।
“गुरुवर के लिये अपने और पराये में कोई फर्क नहीं है। वो सिर्फ कमों के हिसाब से ही सामने वाले को देखते हैं।”
“तो फिर गुरुवर हाकिम के खिलाफ क्यों नहीं उठे?” पारसनाथ बोला।
“क्योंकि हाकिम का मामला देवा का था। गुरुवर का नहीं। देवा की वजह से ही सारे कारण पैदा हुए और हाकिम शैतान की सेवा में चला गया था। ऐसे में हाकिम को देवा ही सजा दे सकता था और उस जन्म में देवा, मिन्नो के साथ लड़ते हुए मारा गया था। इसलिये हाकिम को टोकने वाला कोई नहीं था। उसकी शैतानियत बढ़ती चली गई। नगरी वाले परेशान होकर गुरुवर के पास जाते कि शैतान से उन्हें मुक्ति मिल सके। गुरुवर हमेशा खामोश रहे। जवाब में शिकायत करने वालों को कुछ भी नहीं कहा। कई नगरी वालों ने यहां तक कहा कि हाकिम गुरुवर का बेटा है। इसलिये गुरुवर उसे सजा नहीं दे रहे। गुरुवर सब कुछ सुनते रहे, परन्तु खामोश रहे। उसके बाद देवा दोबारा जन्म लेकर नगरी में पहुंचा और हाकिम को उसके कर्मों की सजा देकर, नगरी वालों को उसके खौफ से मुक्त कराया।” हाकिम दालूबाबा और तिलस्म के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास (1) जीत का ताज, (2) ताज के दावेदार, (3) कौन लेगा ताज।
हर कोई हवा में आराम से बैठ काली बिल्ली को देख रहा था।
दूधिया बाल बिल्ली के करीब ही हवा में हौले-हौले हिलती मौजूद थी।
“ये सब बताने के पीछे जग्गू सिर्फ यही बात है कि मैं तुम्हें बताना चाहती हूं कि गुरुवर ने कभी भी देवा को अपने काम के लिये इस्तेमाल नहीं किया। तुम लोग वही काम आज कर रहे हो। जो पहले जन्म में अधूरे छोड़ गये थे। उन कामों पर तुम लोगों का ही नाम लिखा है। उन्हें तुम ही पूरा करोगे। अगर इस जन्म में भी काम अधूरे रह जाते हैं तो दोबारा जन्म लेकर फिर बाकी के कामों को पूरा करोगे।”
“ऐसे तो और भी कई काम हो सकते हैं।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“हां।”
“लेकिन देवराज चौहान तो मर गया। अब उसके कामों को कौन पूरा करेगा?”
“इस बात का जवाब तो गुरुवर ही दे सकते हैं।” बिल्ली ने कहा।
“गुरुवर के पास पहले इतनी शक्तियां नहीं थीं।” महाजन ने कहा।
“तुम्हें ये बात याद है नील सिंह-?” बिल्ली ने महाजन को देखा।
“याद तो ऐसा कुछ नहीं। यही एक-दो बातें जेहन में हैं।” महाजन ने दांतों से होंठ काटते हुए कहा।
“तुम ठीक कहते हो।” बिल्ली कह उठी-“गुरुवर के पास पहले शक्तियां थीं, परन्तु इस हद तक बड़ी-बड़ी शक्तियां नहीं थीं। कठोर तपस्या और यज्ञ करके उन्होंने शक्तियां हासिल की। गुरुवर का काम है दुनिया से पाप को हटाना। लोगों से अच्छा काम कराना। इसी रास्ते पर वो आगे बढ़ रहे हैं। गुरुवर किस-किस शक्ति के मालिक हैं इस बारे में कोई भी नहीं जानता। गुरुवर ने सिर्फ उन्हें ही पवित्र शक्तियों की विद्या सिखाई है, जिन पर उन्हें भरोसा है। ऐसे बहुत कम लोग हैं। पेशीराम है। मिन्नो के पिता मुद्रानाथ के नाम इसमें आगे हैं। तब मिन्नो को भी गुरुवर ने कई शक्तियों की विद्या दी थी। देवा बहुत व्यस्त रहता था अपने कामों में। इसलिये शक्तियों की विद्या गुरुवर से ज्यादा न पा सका।”
“ये यूं ही बोले जा रही है। सोहनलाल कह उठा-“अपने कहे को साबित करने का इसके पास कोई सबूत नहीं है।”
“गुलचंद।” बिल्ली ने उसे देखा-“मेरा एक-एक शब्द सच है।”
सोहनलाल आंखें सिकोड़े बिल्ली को देखता रहा।
“गुरुवर ने तुम्हें भी विद्या सिखाई।” मोना चौधरी बोली-“उन्होंने तुम्हें शक्तियों का ज्ञान दिया?”
“हां-।” काली बिल्ली ने मोना चौधरी को देखा।
“गुरुवर ने तुम में क्या देखा जो तुम्हें विद्या सिखा दी-?”
“मैं नहीं जानती कि गुरुवर ने मुझे अपनी सेवा में क्यों लिया।” काली बिल्ली ने गम्भीर स्वर में कहा-“एक बार ये सवाल मैंने गुरुवर से पूछा था, परन्तु जवाब देने की अपेक्षा वो सिर्फ मुस्करा कर रह गये। दोबारा ये बात पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। इस बारे में मैं सोचती हूं तो सिर्फ एक ही बात सामने आती है।”
“क्या?”
“तुम गुरुवर की खास शिष्या थीं। मैं, हमेशा तुम्हारे साथ रही। शायद इसलिये गुरुवर ने मुझे पास आने दिया।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा। बिल्ली को देखती रही।
पैनी खामोशी वहां फैलने लगी।
नजरें सबकी बिल्ली पर और उस दूधिया बाल पर थीं।
चुप्पी लम्बी होने लगी।
“तो अब तुम भरा हुक्म नहीं, गुरुवर का हुक्म मानोगी।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा।
“हां।”
“मेरे क्या काम आ सकती हो?”
“मेरे से जो हो सकेगा। वो अवश्य करूंगी?”
“गुरुवर की तुम्हें आज्ञा है या अपनी मर्जी से काम करोगी?”
“तुम अपने काम की तरफ ध्यान दो मिन्नो। बीच की बातों को जानने की चेष्टा न करो।”
मोना चौधरी के माथे पर बल उभरे। फिर गायब हो गये।
“गुरुवर की शक्तियां कुछ वक्त के लिये मेरे हवाले कर दो।” मोना चौधरी ने बिल्ली की चमक भरी आंखों में देखा।
“ये सम्भव नहीं है मिन्नो।”
“क्यों?”
“गुरुवर ने अपनी शक्तियों की रक्षा करने के लिये मुझे बाल की पहरेदारी पर छोड़ा है।” बिल्ली ने सिर हिलाकर कहा-“ऐसे में मैं किसी को भी शक्तियों से छेड़छाड़ नहीं करने दूंगी।”
“मुझे गुरुवर की शक्तियों की जरूरत...।”
“शैतान से टकराना है मिन्नो?” काली बिल्ली की आवाज में गम्भीरता आ गई।
मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“तुम बहुत ज्यादा बोल रही हो बिल्ली। मत भूलो कभी तुम मेरे कदमों में रहती थीं।” मोना चौधरी का स्वर सख्त था।
“मैं स्वीकार करती हूं कि कभी मैं तुम्हारे कदमों में रहती थी। तुम्हारे इशारों पर काम करती थी। मैं तुम पर ही निर्भर थी। तुम मेरा और मैं तुम्हारा भला चाहती थी।” बिल्ली ने सामान्य स्वर में कहा-“परन्तु वो जन्म तुमने पूर्ण कर लिया। तुम्हारी मृत्यु हो गई। उसके बाद मैं गुरुवर की सेवा में चली गई। तुम्हारा अधिकार खत्म हो गया।”
मोना चौधरी बिल्ली को घूरने लगी।
“तुम्हें जो काम करना है मुझे कहो। मैं तुम्हारी हर सम्भव सहायता करूंगी।”
“तुम नहीं करोगी?”
“मेरे से नहीं हो सकेगा तो इन्कार कर दूंगी। झूठ नहीं बोलूंगी।”
“मैं महसूस कर सकती हूं कि गुरुवर की शक्तियों में कितनी ताकत है। उस ताकत से मैं जो काम करना चाहती हूं, उसे शायद तुम नहीं करोगी।”
“काम बताओ मिन्नो।”
“गुरुवर की शक्तियों के दम पर मैं दो काम करना चाहती हूं-।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर सख्त स्वर में कहा-“पहला काम ये है कि मैं देवराज चौहान को जिन्दा करना चाहती हूं-।”
मोना चौधरी के शब्दों ने सबको स्तब्ध कर दिया।
“क्या कहेला है बाप?” रुस्तम राव के होंठों से निकला।
“देवराज चौहान जिन्दा हो सकता है।” जगमोहन का स्वर कांप उठा।
नगीना की आंखों में आंसू चमक उठे।
“रो रही हो बेटी?” नगीना के मस्तिष्क में पेशीराम की फुसफुसाहट पड़ी।
“बाबा-!” नगीना होंठों ही होंठों में थरथराते स्वर में बड़बड़ा उठी-“वो जिन्दा हो सकते हैं?”
“मैं नहीं जानता कि आने वाले वक्त में क्या होगा। मैं नहीं देख पा रहा।” पेशीराम के शब्द नगीना के मस्तिष्क से टकरा रहे थे-“मेरी शक्तियां, गुरुवर की शक्तियों को पार करके नहीं देख सकतीं। मेरे आगे भविष्य में झांकने से पहले ही पर्दा सा आ जाता है। अंधेरे के अलावा मुझे कुछ नहीं दिखाई दे रहा।”
“होश में आओ बेबी।” महाजन के होंठों से हक्का-बक्का सा स्वर निकला-“ये तुम क्या कह रही हो?”
काली बिल्ली मोना चौधरी को देख रही थी। मोना चौधरी, काली बिल्ली को। दोनों के बीच कुछ वक्त चुप्पी से बीत गया।
“तुमने सुना नहीं बिल्ली।” मोना चौधरी पहले जैसे स्वर में बोली-“मैं देवराज चौहान को जिन्दा देखना चाहती हूं-।”
“क्यों?” काली बिल्ली के होंठ हिले।
“शैतान को खत्म करने के लिये मुझे देवराज चौहान के साथ की सख्त जरूरत है।”
“तुम अकेले ये काम क्यों नहीं करतीं?”
“मैं नहीं जानती कि तुम्हें क्या जवाब दूं। लेकिन मेरा मन कह रहा है कि देवराज चौहान के बिना ये काम नहीं हो सकेगा।”
काली बिल्ली ने कुछ नहीं कहा।
“तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा?”
“सुना मिन्नो।”
“तो जवाब दो।”
“मेरा जवाब तुम्हें पसन्द नहीं आयेगा।” काली बिल्ली के स्वर में गम्भीरता आ गई।
“तुम जो कहना चाहती हो कहो-।” बोलते हुए मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“तुम शैतान से मुकाबला करना चाहती हो और शैतान से मुकाबला नहीं किया जा सकता।” काली बिल्ली का स्वर गम्भीर हो गया-“ऐसा हो सकता होता तो शैतान कब का मिट चुका होता।”
“तुम झूठ कहती हो।” मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी।
“मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगी। मैं सच कह रही हूं। शैतान से मुकाबला नहीं किया जा सकता। शैतान की शैतानियत से दुनिया कांपती है। वो अमर है। शैतान को खत्म करने का वहम मन मत पालो मिन्नो।”
मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“तुम जानबूझ कर ये बात कहकर, मेरी सहायता नहीं करना चाहतीं। मेरी हिम्मत कम करना चाहती हो।”
“मैं तुम्हें गलत राह पर नहीं डाल सकती मिन्नो। मैं तुम्हारा भला चाहती हूं।”
“क्या भला चाह रही हो इस वक्त तुम?” मोना चौधरी गुर्रा उठी।
“भले के तौर पर ही समझा रही हूं कि शैतान को मारा नहीं जा सकता। गलत रास्ते में पड़कर अपने वक्त को बरबाद मत करो। वो सोचो, वो करो जो काम हो सके।” काली बिल्ली का स्वर गम्भीर था।
“तुम मुझे सलाह देने की कोशिश मत करो।” मोना चौधरी गुस्से से चीख उठी।
“तुम्हारी पुरानी आदत है मिन्नो। बहुत जल्दी तुम्हें गुस्सा आ जाता है।”
मोना चौधरी ने क्रोध से मुट्ठियां भींच लीं।
“तुम मुझे बातों में उलझाकर, बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो।”
“अच्छी बात है मिन्नो।” बिल्ली ने शांत स्वर में कहा-“मैं तुम्हें नहीं समझाऊंगी।”
“मैं जो बात कर रही हूं, मुझे सिर्फ उसी का जवाब दो।” मोना चौधरी के शब्द और चेहरा धधक रहा था-“देवराज चौहान को
जिन्दा करना है। इन्कार मत करना। मैं जानती हूं कि गुरुवर की शक्तियों में इतनी शक्ति है कि देवराज चौहान के शरीर में पहले की तरह जान डाली जा सके और इस वक्त उन शक्तियों की मालकिन तुम हो। ये काम करना तुम्हारे लिये बड़ी बात नहीं है।”
मोना चौधरी के शब्दों के साथ ही वहां पैना सन्नाटा छा गया।
हर कोई अवाक-बेचैन सा एक-दूसरे को देखने लगा।
नगीना की आंखों में आंसू चमक उठे।
हवा में बैठी काली बिल्ली के शरीर में हरकत हुई और वो जैसे उठ खड़ी हुई। फिर वो कभी एक तरफ जाती तो कभी दूसरी तरफ। उसकी मुद्रा टहलने जैसी थी। वो बेचैन-परेशान सी लग रही थी। उसका इस तरह हवा में टहलना सब को रोमांचित-सा कर रहा था।
शक्तियों से भरी वो दूधिया बाल उसके साथ-साथ ही हवा में थी।
“अब क्या हुआ?” मोना चौधरी काली बिल्ली को देखते, खा जाने वाले स्वर में कह उठी।
बिल्ली ठिठकी और गर्दन घुमाकर मोना चौधरी को देखने लगी।
“देवराज चौहान को जीवित कर पाना असम्भव है।” काली बिल्ली ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं जानती थी।” मोना चौधरी दांत किटकिटाकर कह उठी-“तुम यही कहोगी। तुम...।”
“तुम कैसे जानती थीं?” बिल्ली ने टोका।
“इसलिये जानती थी कि तुम मेरा कोई भी काम नहीं करना चाहतीं। तुम बातों में मुझे बेवकूफ बना रही हो।”
“ऐसी बात नहीं है।”
“ऐसी ही बात है। तुम नहीं चाहतीं कि देवराज चौहान जिन्दा हो। वो मेरा साथ दे और शैतान का हम मुकाबला कर सके।”
“मैं कभी भी तुम्हारा बुरा नहीं चाह सकती।” बिल्ली कह उठी-“मुझ पर अविश्वास मत करो।”
“तुमने अभी तक ऐसी कोई बात नहीं की कि तुम पर विश्वास
कर सकूँ।” मोना चौधरी ने हाथों की मुट्ठियां भींचते हुए कहा-“बातों-बातों में मैं चुप नहीं करने वाली। तुम मुझे बेवकूफ बनाने की चेष्टा मत करो-।”
“तुम मुझ पर विश्वास नहीं कर रहीं-।”
“तुमने ऐसी बात ही क्या की है जो तुम पर भरोसा करूं। तुम झूठ कहती हो कि देवराज चौहान जिन्दा नहीं हो सकता।”
“मैं समझ नहीं पा रही कि तुम देवा को क्यों जिन्दा...?”
“बिल्ली-!” गुर्रा उठी मोना चौधरी-“तुम कहती हो कि शैतान
का मुकाबला नहीं किया जा सकता। लेकिन मेरा कहना है कि देवराज चौहान मेरे साथ हो तो, हम दोनों हर काम को अंजाम दे सकते हैं।”
“ये वहम तुम में किसने डाल दिया?”
“वहम कहो या कुछ भी कहो। पेशीराम ने बताया था कि देवराज चौहान और मैं, जो भी काम मिलकर करेंगे, वो अवश्य पूरा होगा। पेशीराम की कही बात कभी भी झूठ नहीं निकली।” मोना चौधरी ने दृढ़ स्वर में कहा-“इसलिये मैं देवराज चौहान को जिन्दा करने की बात कर रही हूं। उसके बिना मैं खुद को बहुत कमजोर पा रही हूं।”
“पेशीराम ने तुमसे गलत नहीं कहा।” बिल्ली बोली-“लेकिन ये बात शैतान के सामने लागू नहीं होती। मिन्नो शैतान तो वो हस्ती है, जिसे मार पाना भगवान के बस में भी नहीं है। वो तो...।”
“बातों में उलझाओ मत। मैं जो बात कर रही हूं, वो ही बात कर। देवराज चौहान को जिन्दा...।”
“मिन्नो-!” बिल्ली गम्भीर स्वर में बात काटकर कह उठी। सब उसके हिलते मुंह को देख रहे थे-“जिसकी मौत शैतान के इशारे पर, शैतान के हथियार से होती है, उसकी आत्मा पर शैतान का अधिकार हो जाता है। देवा की मौत शैतानी चक्र से हुई और उसकी आत्मा शैतान की सेवा में पहुंच चुकी है। शैतान की बंधक बन चुकी है देवा की आत्मा।”
“तुम देवराज चौहान की आत्मा को शैतान की कैद से निकाल कर ला सकती हो।”
तभी जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा।
“ये कुछ नहीं करेगी। गुरुवर ने इसमें बोलने की शक्ति डाल दी तो क्या हुआ, है तो ये बिल्ली ही। ये क्यों चाहेगी कि देवराज चौहान जिन्दा हो। देवराज चौहान अगर देवा होता, पहले जन्म का होता। नगरी का होता तो ये अवश्य देवराज चौहान को जिन्दा करने में दिलचस्पी दिखाती। इसे क्या पड़ी है जो...।”
“गलत बात जग्गू। तू मुझे खामख्वाह ही बदनाम कर रहा है।” बिल्ली मुस्करा उठी।
“मैं सच कह रहा हूं। तू मोना चौधरी की बिल्ली थी। यही तुम्हें खिलाती-पिलाती, तुम्हारा ध्यान रखती। तेरी हर जरूरत को पूरा करती और आज तू कैसे बात कर रही है मोना चौधरी से।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
“ऐसी बातें कहकर मुझे उछाल मत जग्गू-।”
“मैं सच बात कह रहा हूं-।” जगमोहन ने पहले वाले स्वर में कहा।
“इसे पहली बातों की, पहले रिश्ते की ज़रा भी शर्म नहीं रही।” महाजन बोला।
“जरूरत क्या है शर्म करने की।” सोहनलाल कह उठा।
“म्याऊं-म्याऊं बोलो हो तम और बातो कूत्तो से भी बुरा करो हो।” बांकेलाल राठौर कह उठा-“अपणी नेई तो म्हारी इज्जत का ख्याल कर लयो। इत्ते लोग कहो हो। कछो तो ढंग से बात करो हो। छोरे-!”
“बाप-।”
“समझायो इसो को-।”
“आपुन जानवरों से बात नेई करेला बाप।”
काली बिल्ली का जबड़ा मुस्कान के रूप में फैल गया।
“त्रिवेणी!” बिल्ली का मुंह हिला-“तू पहले भी सबसे छोटा था और बातों में बड़ों के कान काटता था और इस जन्म में भी तेरी वो ही आदत रही। बदला नहीं तू-।”
“छोरे-!”
“बाप-!”
“तम तो कहो हो कि तम जानवरो से बात न करो हो। पर यो तो म्हारे को थारी पुरानो रिश्तेदार लागो हो।”
“मोना चौधरी की रिश्तेदार होईला बाप-।”
“तो का थारी पड़ोसन लागो हो।”
“आपुन को खबर नेई होईला बाप। तुम आपुन के घर में आईला तब क्या पड़ोस में झांकेला क्या?”
“यो छोरो तो म्हारी मूंछ ही...।”
तभी मोना चौधरी दांत भींचे बोली।
“मैं देवराज चौहान को जिन्दा देखना चाहती हूं। मुझे बताओ कि ये कैसे हो सकता है?”
सब कुछ देखती नगीना बड़बड़ा उठी।
“बाबा-!”
“कहो बेटी-!”
“देवराज चौहान जिन्दा हो सकते हैं?”
“मैं पहले ही कह चुका हूं कि यहां पर, मुझसे भविष्य के पार नहीं देखा जा सकता।” पेशीराम के शब्द कानों से टकराये।
“बिल्ली कहती है उनकी आत्मा शैतान की कैद में पहुंच चुकी है। आत्मा के बिना कोई कैसे जीवित हो सकता है। इनकी तो
गर्दन भी कटी हुई है।” नगीना की बुदबुदाहट में तड़प थी-“मोना चौधरी पागलों वाली बात कर रही...।”
“पहले इसकी बातों को सुनो बिल्ली कुछ कह रही है।”
नगीना ने सामने देखा।
“मिन्नो!” काली बिल्ली ने गम्भीर स्वर में कहा-“अगर तुम देवा की आत्मा को ले आओ तो, गुरुवर की शक्तियां देवा को जिन्दा कर देंगी। तब देवा को जिन्दा करने में कोई परेशानी नहीं होगी।”
“मैं लाऊंगी देवराज चौहान की आत्मा को-।” मोना चौधरी दांत भींचकर गुर्रा उठी।
“असम्भव है।” बिल्ली ने इन्कार में सिर हिलाया-“देवा की आत्मा शैतान के पास है।”
“मैं शैतान के पास से ले आऊंगी। लेकिन इसके लिये मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत है।”
“मेरी सहायता?” बिल्ली की नज़रें मोना चौधरी पर टिक गई।
“हां। मैं शैतान की धरती पर सीधे-सीधे जाकर देवराज चौहान की आत्मा को नहीं ला सकती। वो कहां है। कैसा माहौल होगा वहां। तुम्हारी सहायता के बिना ये काम पूरा नहीं होगा। गुरुवर की किसी शक्ति को मेरे साथ करना ही होगा। तब ही शायद इस काम को मैं पूर्ण कर सकूँ।”
“हां।” बिल्ली ने कहा-“ऐसी सहायता की तुम्हें आवश्यकता पड़ेगी।”
मोना चौधरी उसे देखती रही।
सबकी नजरें काली बिल्ली पर ही थीं।
हवा में मौजूद बिल्ली जैसे पुनः उठी और इधर-उधर चहल-कदमी करने लगी। गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल उसके साथ-साथ थी। मात्र डेढ़ फीट का फासला था उनके बीच। हवा में मध्यम गति से बाल उसके इर्द-गिर्द ही रही। ये सब देखना बेहद अजीब-सा लग रहा था उन्हें, परन्तु अब वे अभ्यस्त होने लगे थे। बिल्ली ठिठकी। कईयों पर उसकी निगाह गई। फिर मोना चौधरी को देखा।
“शैतान और उसके चेले, कभी भी किसी को अपनी धरती के उस हिस्से में नहीं पहुंचने देंगे, जहां उन्होंने आत्माओं को रखा हुआ है और जरूरत पड़ने पर आत्माओं को शरीर देकर उसमें जान डाल देते हैं।” काली बिल्ली एक-एक शब्द पर जोर देकर
कह रही थी-“लेकिन मैं तुम्हें ऐसी शक्ति दे दूंगी कि तुम अदृश्य
होकर वहां पहुंच सकती हो। देवा की आत्मा को ला सकती हो, परन्तु शैतान के पास भी ऐसी शक्तियां हैं कि वो अदृश्य चीजों को देख लेती हैं। ऐसे में तुम खतरे में फंस जाओगी मिन्नो।”
“इतने खतरे का मुकाबला मैं कर लूंगी।” मोना चौधरी दृढ़ता से बोली-“कोई हथियार मुझे दे देना।”
“तुम्हें हथियार देने का अधिकार मेरे पास नहीं है।” बिल्ली ने कहा।
“क्यों?”
“ये बात गुरुवर ही जानें। मैं शक्तियों से तुम लोगों की सहायता कर सकती हूं। हथियार नहीं दे सकती।”
“कोई फिक्र नेई होईला बाप। आपुन के पास मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार होईला।” रुस्तम राव कह उठा।
मोना चौधरी की निगाह रुस्तम राव के हाथ में पकड़ी तलवार की तरफ उठी।
सबने तलवार को देखा।
“बिल्ली-!” मोना चौधरी ने उसे देखा-“ये तलवार शैतान की धरती पर काम करेगी?”
“अवश्य। मुद्रानाथ, यानि कि तुम्हारे पहले जन्म के बापू की पवित्र शक्तियों से भरी तलवार है जो सिर्फ शैतानों के लिये ही घातक है। तुम इस तलवार से अपनी हिम्मत के मुताबिक काम ले सकती हो।” बिल्ली ने कहा।
“तो ये काम कैसे होगा बिल्ली। शैतान की धरती अभी कितनी दूर है?”
“आधे से ज्यादा रास्ता पार हो चुका है।” बिल्ली कह उठी-“अब छोटे-छोटे दो आसमान हैं। उन्हें पार करते ही तुम सब खुद को शैतान की धरती पर पाओगे। काला महल वहां जाकर रुक जायेगा।”
होंठ भींचे मोना चौधरी सिर हिलाकर रह गई।
दूसरों के चेहरों पर गम्भीरता और परेशानी थी।
“वहां हम क्या करेंगे?” मोना चौधरी ने पूछा।
“शैतान की धरती पर पहुंचते ही मैं तुम्हें अदृश्य कर दूंगी और उस दिशा का रास्ता बता दूंगी, जहां शैतान ने अपनी शक्ति के दम पर आत्माओं को कैद कर रखा है। उसके बाद देवा की आत्मा को लाना तुम्हारा काम है।” बिल्ली ने कहा।
मोना चौधरी के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी।
“मैं भी मोना चौधरी के साथ जाऊंगा।” एकाएक जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।
सबकी नजरें जगमोहन की तरफ उठीं।
“आपुन भी साथ होएला बाप-।”
“अदृश्य होने की शक्ति मैं सिर्फ एक को दे सकती हूं। इससे ज्यादा की इजाजत नहीं है मुझे।” बिल्ली बोली।
“मेरे साथ जाने में तुम्हें क्या एतराज है?” जगमोहन सख्त स्वर में कह उठा।
“मुझे कोई एतराज नहीं।” बिल्ली का चेहरा मुस्कराहट वाले भाव में खुला-“बेशक तुम सब लोग देवा की आत्मा लेने साथ चलो। मैं कौन होती हूं एतराज करने वाली। लेकिन अदृश्य मैं एक को ही कर सकूँगी।”
वहां खामोशी उभर आई।
“लेकिन ये बात भी साथ ही कहूंगी कि जो अदृश्य होगा, उसके बारे में मैं विश्वास के साथ नहीं कह सकती कि वो देवराज चौहान की आत्मा को शैतान के कब्जे से निकाल लायेगा। अदृश्य चीजों को देखने की शक्ति भी वहां मौजूद होगी। जो अदृश्य होकर जायेगा, वो शैतान के जाल में फंस कर अपनी जान गंवा सकता है।” बिल्ली ने कहा।
“नीलू! फिर तो मोना चौधरी के साथ जो जायेगा वो तो डायरेक्ट ही मारा जायेगा।” राधा कह उठी।
काली बिल्ली टुकर-टुकर, बारी-बारी सबको देख रही थी।
कुछ लम्बी चुप्पी के पश्चात मोना चौधरी दृढ़ता भरे शब्दों में कह उठी।
“बिल्ली! शैतान के आसमान पर पहुंचने पर तुम मुझे अदृश्य कर देना। मैं जाऊंगी देवराज चौहान की आत्मा लेने।”
कोई कुछ नहीं बोला।
“नगीना बेटी-।” पेशीराम की फुसफुसाहट नगीना के कानों में पड़ी।
“कहो बाबा-।” नगीना के होंठ हिले।
“मिन्नो, देवा की आत्मा को नहीं ला सकेगी। अपनी जान गंवा बैठेगी।” पेशीराम की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।
“नहीं बाबा-।” नगीना के होंठों से निकला। उसका शरीर कांप-सा उठा-“ऐसा मत होने देना।”
“सितारों का खेल है। ऐसा होकर ही रहेगा।”
“नहीं।” नगीना का स्वर एकाएक ऊंचा हो गया-“मोना चौधरी को बचा लो। उसे मरने मत देना।”
सबकी नज़रें नगीना की तरफ उठीं।
हर कोई उलझन भरी नज़रों से नगीना को देखने लगा था।
“होनी को तभी टाला जा सकता है, जब मिन्नो वहां न जाये।”
“मैं उसे मना कर देती हूं। वो नहीं जायेगी। कोई दूसरा चला जायेगा।” नगीना के होंठ हिल रहे थे।
“जो भी जायेगा, वो ही मरेगा।” कानों में पड़ने वाली पेशीराम की फुसफुसाहट में गम्भीरता थी-“इस काम के लिये तुम्हारे अलावा सबके सितारे फीके हैं। तुम जाओगी तो शायद काम हो सकता है।”
“ठीक-ठीक है बाबा।” नगीना का स्वर अब धीमा हो गया था-“मैं-मैं ही जाऊंगी उनकी आत्मा लेने।”
“तुम्हारे आधे सितारे तुम्हारे खिलाफ हैं। कोई भरोसा नहीं कि तुम काम पूरा करके लौट ही आओ।”
“कोई बात नहीं बाबा। अपने पति के लिये मेरा जीवन काम आ जाये तो मुझसे ज्यादा खुशनसीब कौन होगा।”
पेशीराम की आवाज नहीं आई।
“बाबा!”
“अब मुझसे नहीं, दूसरों से बात करो, अपने जाने के बारे में।” पेशीराम के शब्द नगीना के मस्तिष्क में पड़े-“लेकिन मेरे बारे में किसी को कुछ मत बताना, वरना अनर्थ हो जायेगा। बिल्ली मेरी आत्मा की मौजूदगी को कभी पसन्द नहीं करेगी।”
“ऐसा क्यों बाबा?”
“हमारी दुनिया पवित्र ही सही लेकिन हर कोई आगे बढ़ना चाहता है। बिल्ली सारा काम अपने दम पर करके गुरुवर का आशीर्वाद पा लेना चाहती है। मेरे बारे में मालूम होगा तो वो यही सोचेगी कि मेरी सहायता की वजह से ये काम होने जा रहा है तुम इन बातों में न पड़ो बेटी। अपने काम की तरफ ध्यान दो। ये सब हमारी विद्या की भीतरी बातें हैं।”
नगीना ने मोना चौधरी को देखा फिर निगाहें बिल्ली पर जा टिकीं।
“बहना-!” बांकेलाल राठौर के चेहरे पर उलझन थी-“तुम किससो बातो करो हो?”
नगीना ने कुछ नहीं कहा। वो बिल्ली को देख रही थी।
बिल्ली की नज़रें नगीना की आंखों में थीं।
“आप किससे बात कर रही थीं-?” पारसनाथ के होंठों से सपाट-सा स्वर निकला।
“देवराज चौहान की आत्मा से बात करेला दीदी-।”
मोना चौधरी के होंठ भिंचे हुए थे। नज़रें नगीना पर थीं।
“तुम क्या कह रही थीं मोना चौधरी को बचा लो।” मोना चौधरी बोली-“क्या बात है नगीना?”
लेकिन नगीना की नज़रें बिल्ली पर से न हटीं।
अजीब-सी चुप्पी उभर आई थी वहां।
“तुम।” एकाएक नगीना की नज़रें मोना चौधरी की तरफ गईं-“शैतान के कब्जे से मेरे पति की आत्मा को लेने नहीं जाओगी।”
“क्या?” मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“ये क्या कह रही हो भाभी?”
“शैतान तो तुम्हें खा जायेगा।” राधा कह उठी-“तभी तो मैं नहीं जा रही। मोना चौधरी को ही जाने दे। वो निपट लेगी।”
“तुम जाओगी भाभी?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“हां।” नगीना के दांत भिंच गये थे।
“तुम नहीं भाभी।” जगमोहन कह उठा-“अगर मोना चौधरी के जाने पर तुम्हें एतराज है तो मैं चला जाता हूं। कोई और चला जाता है। तुम्हारा जाना ठीक नहीं रहेगा।”
नगीना ने जगमोहन को देखा।
“क्यों? मेरा जाना ठीक क्यों नहीं रहेगा?”
जगमोहन ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला कि होंठ भींच लिए।
“शायद तुम्हें मेरी काबिलीयत पर भरोसा नहीं है।” नगीना शब्दों को चबाकर बोली-“भूल गये मंगोलिया की बातें। ये भी भूल गये कि मैं जोधा सिंह की बेटी हूं। वो जोधा सिंह, जिससे मंगोलिया का हर लड़ाका थर्राता था। जोधा सिंह से सीखते थे मंगोलिया के लड़ाके कि हथियार कैसे पकड़ा जाता है। मैं उसकी बेटी ही नहीं, शिष्या भी हूं जगमोहन।”
“जानता हूं।” जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा-“मुझे तुम पर पूरा भरोसा है भाभी।”
काली बिल्ली एक टक नगीना को देखे जा रही थी।
“मेरे जाने पर तुम्हें क्या एतराज है नगीना?” मोना चौधरी कह उठी।
“तुम-।” नगीना ने मोना चौधरी को देखते हुए दृढ़ता भरे स्वर में कहा-“नहीं जाओगी।”
“लेकिन क्यों?”
“देवराज चौहान की आत्मा लेने गई तो लौट नहीं पाओगी। तुम्हारे सितारों पर मौत की छाया है।”
“मौत की छाया?”
“हां।” नगीना शब्दों पर जोर देते कह रही थी-“इस वक्त यहां पर किसी के भी ग्रह ऐसे नहीं हैं कि वो देवराज चौहान की आत्मा को ला सके। जो जायेगा, वो कभी भी वापस नहीं लौट पायेगा।”
वहां तीखा सन्नाटा छा गया।
“तुम्हें कुछ नहीं होगा।” राधा कह उठी।
“नहीं। मेरे ग्रह इस काम के लिये ठीक हैं।”
“ये बात किसने कही तुम्हें?”
राधा के इस सवाल पर होंठ भींच लिए नगीना ने।
“जवाब नहीं दोगी नगीना कि ये बात तुम्हें कैसे पता चली?” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“अभी इस बारे में कुछ नहीं बता सकती। लेकिन विश्वास करो मैं सच कह...।”
“मुझे यकीन है कि तुम सच कह रही हो।” मोना चौधरी बोली।
“ये झूठी भी हो सकती है बेबी! देवराज चौहान की आत्मा लेने के लिये ये खुद जाना चाहती है। तभी ऐसा कह रही है।”
महाजन के माथे पर बल नज़र आ रहे थे-“इनकी बात पर विश्वास करना ठीक नहीं।”
“भाभी झूठ नहीं कह सकती। वजह है। तभी ये बात भाभी ने कही है।” जगमोहन कह उठा।
“वजह है तो फिर बताई क्यों नहीं जा रही-?” पारसनाथ बोला।
कई सवालिया नज़रें नगीना पर थीं।
नगीना ने होंठ भींच लिए।
“नगीना जो कह रही है वो सच है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी-“मुझे नगीना के जाने पर कोई एतराज नहीं।”
“सोच लो मोना चौधरी।” राधा कह उठी-“ये मुसीबतों का मुकाबला कर लेगी?”
“जिस तरह नगीना ने मायावी चील का मुकाबला किया था। उसे देखने के बाद ये शक मन में नहीं आना चाहिये।” मोना चौधरी ने राधा को देखकर कहा। मायावी चील के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।
कोई कुछ नहीं बोला।
जगमोहन बेचैन-सा नज़र आने लगा था।
सोहनलाल के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था।
“सोचो लयो बहना।” बांकेलाल राठौर व्याकुल-सा कह उठा-“वां खतरो बोत होवे।”
“बांके राईट कहेला है दीदी।” रुस्तम राव बेचैन था।
“मैं ही जाऊंगी देवराज चौहान की आत्मा को शैतान से लेने।” नगीना की आवाज में दरिन्दगी भर आई थी।
मोना चौधरी ने काली बिल्ली को देखा।
“नगीना ही जायेगी देवराज चौहान की आत्मा लेने। तुम अदृश्य करके भेजना और जो समझना हो समझा देना।”
नगीना ने काली बिल्ली को देखा।
इसे दोनों की नज़रें मिली।
“कौन है तुम्हारे साथ?” बिल्ली का मुंह हिला।
“मेरे साथ?” नगीना के होंठों से निकला।
“हां।”
“मैं अकेली हूं।”
“झूठ मत बोलो।” काली बिल्ली का स्वर तेज हो गया-“मैं तुम्हारी आत्मा के पीछे छिपी, किसी और आत्मा को देख रही हूं। किसकी है वो आत्मा जो तुमसे बात कर रही है? कौन तुम्हें सब कुछ बता रहा है?”
नगीना ने होंठ भींच लिए।
“जवाब दो।”
“मैं नहीं बता सकती।” नगीना के स्वर में दृढ़ता थी।
“तुम्हें बताना होगा।”
“नहीं। मुझे आदेश नहीं है कुछ भी बताने का।”
“कौन दे रहा है तुम्हें आदेश?” बिल्ली का स्वर गुस्से से भर उठा।
“यही तो तुम्हें या किसी को भी बता नहीं सकती।” नगीना के होंठों से निकला।
“म्याऊं...।” बिल्ली के होंठों से निकला। ये शायद उसका गुस्से से भरा अंदाज था।
दिलो-दिमाग को चुभने वाली खामोशी छा गई थी।
“अगर तुम मुझे नहीं बताओगी तो मैं अदृश्य होने की शक्ति तुम्हारे हवाले नहीं करूंगी।” बिल्ली तेज स्वर में कह उठी।
“ऐसा करके तुम गलत काम करोगी।” मोना चौधरी कह उठी।
“क्यों?” बिल्ली का स्वर तीखा हो गया।
“देवराज चौहान की आत्मा लेने मैं जाऊं या नगीना, तुम्हें एतराज क्यों?”
“मुझे कोई एतराज नहीं।” बिल्ली का स्वर पहले जैसा ही था-“मैं तो सिर्फ ये जानना चाहती हूं कि इसके शरीर में मौजूद दूसरी आत्मा कौन सी है? वो आत्मा इसके साथ क्यों है? इसे क्या बता रही है?”
“क्या तुम जानती हो कि मोना चौधरी, देवराज चौहान की आत्मा लेने जायेगी तो बच नहीं सकेगी।” नगीना बोली।
“जानती हूं।” बिल्ली का मुंह हिला।
“तो तुमने ये बात मोना चौधरी के बताई क्यों नहीं?”
“ऐसी कोई बात कहने का मुझे गुरुवर से आदेश नहीं मिला है।” बिल्ली ने उसी लहजे में कहा।
“यानि कि मोना चौधरी जाती तो मर जाती और देवराज चौहान भी जिन्दा न होता।” मिट्टी के बुत वाली युवती कह उठी।
“इनकी बातों से तो यही लग रहा है कि ऐसा ही होना था।” सोहनलाल कड़वे स्वर में कह उठा।
“नीलू! तू उस बिल्ली को पकड़ तो जरा-।”
“क्यों?” महाजन गम्भीर था।
“मैं इसका गला दबाऊंगा। ये हमारी मोना चौधरी की मौत का इन्तजाम करने जा रही थी। छोडूंगी नहीं इसको। तू इसे पकड़ ले।”
“छोरे! यो तो गलो दबायो। म्हारो गलो तो अभी सलामत हीवो।”
“बाप! लफड़ा पैदा होईला। दिल्ली और नगीना अडेला।”
“तबी अंम देवराज चौहान की आत्मो लेने जाओ। जो बीचो में आयो, सबो को वड दयो।”
नगीना और काली बिल्ली अभी तक एक दूसरे की आंखों में झांक रहे थे।
“मोना चौधरी को रोक कर मैंने उसकी जान बचाई है।”
“मुझे नहीं लगता कि तुम देवा की आत्मा वापस ला सकोगी तुम मर भी सकती हो। अभी भी वक्त है। इस काम से पीछे हट जाओ।” काली बिल्ली का स्वर तीखा था।
“मेरे वापस आने के आधे चांस हैं। मोना चौधरी तो वापस आ ही नहीं सकती थी।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
बिल्ली कई पलों तक नगीना को देखती रही फिर आसमान की तरफ मुंह करके बोली।
“म्याऊं...।”
हर कोई यही सोच रहा था कि अब बिल्ली क्या कहेगी।
“ये मरजानी बिल्ली तो मोना चौधरी की जान के पीछे ही पड़ गई है।” राधा कह उठी-“सुना नीलू, नगीना को जाने की रोक रही है। मोना चौधरी को भेजने को तैयार है, जबकि जानती है कि मोना चौधरी कभी भी वापस नहीं लौट पायेगी।”
“मिन्नो की जान जाने से ज्यादा और क्या होगा।” बिल्ली सामान्य स्वर में कह उठी।
“क्या?” राधा का चेहरा गुस्से से भर उठा-“जान जाने के बाद रहता ही क्या है जो तू...।”
“आत्मा।” बिल्ली के मुंह से निकला-“आत्मा मिन्नो के शरीर से जुदा हो जायेगी। फिर कहीं और जन्म लेगी। अगले जन्म में फिर देवा से मुलाकात होगी। झगड़ा होगा। पेशीराम फिर दोनों में दोस्ती कराने की चेष्टा करेगा। क्योंकि वो श्राप से मुक्ति पाना चाहता है। तब मैं नहीं जानती कि क्या होगा। लेकिन मैं मन से चाहती हूं कि पेशीराम को कभी भी श्राप से मुक्ति न मिले। मिले तो, तब जब वो थककर टूट चुका हो।”
सब अजीब-सी नज़रों से एक-दूसरे को देखने लगे।
“तुम्हारी क्या दुश्मनी है पेशीराम से।” जगमोहन कह उठा।
“म्हारे को लागे, फकीर बाबो, इसो की जायदाद अपणो नाम कर लयो।”
“पेशीराम से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है।” बिल्ली की आवाज में तीखापन आ गया-“लेकिन पेशीराम ने जो किया वो अभी भी मेरी आंखों के सामने है। इधर की आग उधर लगाता रहा। झूठ पर सच का लेप लगाकर, ये दोनों तरफ के लोगों में झगड़े करवाता था। एक-दो बार तो मैंने गुस्से में पेशीराम पर छलांग भी लगा दी थी। पंजों से उसकी बांह का मांस भी नोच लिया था। क्योंकि मैं जानती थी कि वो झूठ कहकर भड़का रहा है। इस बात का गुस्सा अभी तक मेरे भीतर है। इसलिये मैंने कहा कि अभी पेशीराम को और तड़पने दो।”
“तुम क्या सोचेला बाप। आपुन क्या तेरी बातों में आईला?” रुस्तम राव ने कहा।
बिल्ली ने मोना चौधरी को देखा।
“तेरे को याद है मिन्नो?” बिल्ली ने पूछा।
“कुछ-कुछ-।” मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।
“गलती तुम्हारी भी थी, परन्तु कम थी।” बिल्ली कहे जा रही थी-“तुम पेशीराम की बातों में आ गई। उसके बाद जब तुम नगरी की बड़ी बनी तो दालूबाबा अपनी बातों की आड़ में तुम्हें भड़काता रहा। दालू को तो उसके कर्मों की सजा तुमने और देवा ने दे दी। परन्तु पेशीराम को गुरुवर ने श्राप देकर बांध दिया। क्योंकि गुरुवर कई बार पेशीराम को टोक चुके थे कि वो अपनी हरकतें छोड़ दे। वो नहीं माना। फिर जब नगरी में तबाही मची तो गुरुवर ने पेशीराम को श्राप दे दिया कि देवा और मिन्नो फिर जन्म लेंगे। उसके बाद फिर जन्म लेंगे दुश्मनों के रूप में बार-बार वो जन्म लेते रहेंगे। तू तभी श्राप से मुक्ति पा सकता है, जब देवा और मिन्नो में दोस्ती करा देगा। जब तक पेशीराम तुममें और देवा में दोस्ती नहीं करायेगा तब तक उसकी मुक्ति नहीं होगी। श्राप की वजह से जन्मों-जन्मों तक भटकता रहेगा। देवा-मिन्नो में दोस्ती कराकर ही श्राप से मुक्ति पाकर अपना शरीर त्याग सकता है। नया जीवन-नया शरीर पा सकता है। पेशीराम जर्जर हुए शरीर से मुक्ति पाना चाहता है। लेकिन श्राप से मुक्ति पाये बिना ऐसा हो पाना सम्भव नहीं।”
बिल्ली की चुप्पी के साथ ही वहां खामोशी छा गई।
“पेशीराम बहुत परेशान रहता है गुरुवर से मिले श्राप को लेकर। वो बहुत सजा पा चुका है।” मोना चौधरी बोली।
“ये तुम कह सकती हो। लेकिन मेरी निगाहों में अभी उसकी सजा बहुत बाक़ी है।”
“गुरुवर ने ऐसा कहा?”
“नहीं। गुरुवर ऐसी बातें नहीं करते। मेरा मन चाहता है कि पेशीराम अभी और भटके।” बिल्ली के स्वर में क्रोध आ गया।
“तेरे कहने से क्या होता है।” मोना चौधरी तीखे स्वर में कह उठी-“मैं देवा के साथ दोस्ती कर सकती हूं। कौन रोकेगा मुझे?”
“कोई नहीं रोकेगा।” बिल्ली मुस्कराई-“लेकिन देवा तो मर गया। दोस्ती कैसे करोगी?”
मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।
“मैं उनकी आत्मा को ले आऊंगी। देवराज चौहान जिन्दा हो जायेंगे।” नगीना कह उठी।
बिल्ली ने नगीना को देखा। उसका मुंह खुला और इस तरह फैल गया, जैसे मुस्करा रही हो।
तभी नगीना के मस्तिष्क को हल्का-सा झटका लगा। उसी पल उसके हाथ-पांव उसके नियंत्रण से बाहर हो गये।
वो समझ गई कि फकीर बाबा ने उसके मस्तिष्क पर अधिकार पा लिया है।
“क्यों मुस्करा रही हो तुम?” नगीना के होंठों से निकला।
“मेरे मुस्कराने पर किसी को क्या परेशानी है।” बिल्ली ने उसी लहजे में कहा।
“बिल्ली-।” नगीना के होंठों से क्रोध से भरा स्वर निकला-“तू अपनी औकात से बाहर जा रही है।”
बिल्ली की आंखें नगीना पर जा टिकीं।
“तू मेरी औकात जानती है नगीना?”
“हां।” नगीना के चेहरे पर गुस्से के भाव थे-“मैं तेरी औकात जानती हूं। तू अपने काम से मतलब न रखकर बड़ी-बड़ी बातें कर रही है। तेरे को पेशीराम और गुरुवर की बातों में दखल नहीं देना चाहिये।”
“मुझे गुरुवर ने कभी इस बात के लिये नहीं रोका।”
“तो अब रोक देंगे। अभी तू पेशीराम के पांवों की धूल भी नहीं है। बहुत विद्याएं सीखनी हैं तेरे को। तब...।”
“तू है कौन?” बिल्ली ने एकाएक कहा।
“नगीना।”
“नहीं। तू नगीना नहीं।” बिल्ली तेज स्वर में कह उठी-“तू वही आत्मा है, जो नगीना के शरीर में मौजूद है। कौन है तू। बता, अपने बारे में बता। क्यों तूने नगीना पर अधिकार जमा रखा है? क्यों उसे परेशान...?”
“पागल हो गई है तू-।” नगीना के होंठों से निकला-“मैं नगीना हूं, देवराज चौहान की पत्नी-।”
“तो तू नगीना है।” बिल्ली ने खतरनाक स्वर में कहा।
“हां, अकल की अंधी-।” नगीना ने दांत पीस कर कहा।
“तो फिर तेरे जैसी साधारण मनुष्य को कैसे मालूम कि गुरुवर ने मुझे किस बात की इजाजत दे रखी है और किस बात की नहीं? तेरे को मेरी औकात की सीमा कैसे मालूम?”
हर कोई दम साधे उनकी बातें सुन रहा था।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।
“तेरे सवाल का जवाब, तेरे ही चेहरे पर लिखा है।” नगीना भड़क कर कह उठी-“तू बिल्ली है। जानवर है। इन्सान की बराबरी तू नहीं कर सकती। बेशक तू विद्या हासिल कर रही है। लेकिन जब तक तू मनुष्य के रूप में नहीं आयेगी, तब तक बराबरी की बात तू नहीं कर सकती।”
“बहुत कुछ जानती है तू...।” बिल्ली कड़वे स्वर में कह उठी।
“अपने काम से मतलब रख। इस वक्त तेरे को जो काम करना
चाहिये। वो कर-।”
“तू कौन होती है मेरे को ऐसी बातें कहने वाली।”
“तेरे को रास्ता दिखा रही हूं। भटक मत। अपना काम कर-।”
बिल्ली ने सिर उठाकर पूरा मुंह खोला।
“म्याऊं...।”
हर कोई अजीब-सी स्थिति में फंसा बिल्ली और नगीना को देख रहा था।
जगमोहन के चेहरे पर उलझन का जाल बिछ चुका था। वो जानता था नगीना भाभी, ऐसे वक्त में, बिल्ली से इस तरह बात नहीं कर सकती। वो समझ नहीं पा रहा था कि ये बातचीत क्या हो रही है।
“तू नगीना नहीं है। पूरा विश्वास हो चुका है मुझे।” बिल्ली कह उठी-“नगीना के शरीर में मौजूद कोई आत्मा है। पर अपने बारे में बता नहीं रही।”
“तेरे में शक्ति है तो जान ले मेरे बारे में-।” नगीना शांत स्वर में कह उठी।
“मेरे में अभी ये शक्ति नहीं-।”
“तभी तो कहा था मैंने कि अपनी औकात में रह। कम बोल और काम कर-।”
बिल्ली चमक भरी निगाहों से नगीना को देखने लगी।
तभी मोना चौधरी कह उठी।
“तुम दोनों बातों में वक्त क्यों खराब कर रहे हो।”
मोना चौधरी के शब्दों पर दोनों की बातचीत का सिलसिला टूटा।
बिल्ली ने मोना चौधरी को देखा। उसकी चमक भरी निगाहों में सोच के भाव उभरे हुए थे।
“क्या तुम, नगीना को देवराज चौहान की आत्मा लेने के वास्ते, अदृश्य करके भेजने को तैयार हो?” मोना चौधरी बोली।
“न चाहूं, तब भी मुझे ये काम करना पड़ेगा। जो सहायता मेरी हद में है, वो मैं अवश्य करूंगी।”
“तो फिर देर क्यों लगा रही है?”
“ये काम अभी नहीं होगा मिन्नो।” बिल्ली ने कहा-“शैतान के आसमान पर पहुंचने पर ही शुरू होगा।”
“वो कैसे?”
“जब वक्त आयेगा, मालूम हो जायेगा।”
“शैतान के आसमान पर कब तक पहुंचेंगे?” पारसनाथ ने सपाट स्वर में पूछा।
“शैतान का आसमान अब ज्यादा दूर नहीं रहा।” बिल्ली गम्भीर स्वर में कह उठी-“दो आसमान पार ये काला महल रुकेगा। कुछ ही देर में ये महल, तीसरा आसमान पार करने वाला है और उसके बाद शैतान का आसमान, तुम्हारी दुनिया के हिसाब से छः घंटे बाद आयेगा। वहां पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं बचा।”
सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
आंखों में सवाल था।
शैतान की धरती पर, शैतान के आसमान पर क्या होगा?
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