8 सितम्बर, शनिवार

पिछली रात को रणवीर और उसके साथी लगभग एक बजे के करीब पुरुषोत्तम गोयल के घर से फारिग हुए । वह लाश, जो पुरुषोत्तम गोयल के लिए अनजान निकली थी, वह बाकी अड़ोस-पड़ोस के लोगों के लिए अनजान नहीं निकली ।

मरने वाले की पहचान कुछ पड़ोसियों ने संजय बंसल के रूप में की । उसकी जेब से निकले बैंक के एटीएम कार्ड्स और पुरुषोत्तम के घर के नीचे वाले गोदाम में काम करने वाले कारिंदों ने भी इस बात की तसदीक की कि मरने वाला संजय बंसल ही था । वह अनिकेत का दोस्त था । उसका आना-जाना उस मकान में तकरीबन लगा रहता था । वहाँ मौजूद लोग इससे ज्यादा उसके बारे में नहीं बता पाए । संजय बंसल की लाश को तुरंत पोस्टमार्टम के लिए पहुँचा दिया गया और प्राथमिकता के आधार पर उसका आज सुबह पोस्टमार्टम होना लाजिमी था, क्योंकि लाश बुरी तरह से सड़ने की अवस्था में पहुँच चुकी थी ।

अगले दिन सुबह नौ बजे इंस्पेक्टर रणवीर अपने ऑफिस में बैठा हुआ अपने स्टाफ के सामने रूबरू हो रहा था । रोशन वर्मा, रणवीर के सामने वाली कुर्सी पर बैठा हुआ था । कदम सिंह, अनिल, कृष्ण व अन्य स्टाफ उसके सामने खड़े हुए थे । रणवीर ने धीर-गंभीर आवाज में बोलना शुरू किया ।

“हमारे पुलिस स्टेशन की हद में पिछले तीन-चार दिनों में दो लाशों का मिलना और बेहद हौलनाक वारदातों का घटित हो जाना हमारे पुलिस स्टेशन की रेपुटेशन के लिए अच्छा नहीं हैं । इस मामले को लेकर एसपी ऑफिस में आज ही मेरी पेशी लग जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।”

सब चुपचाप सुन रहे थे और मामले की गंभीरता को समझ रहे थे । रणवीर ने अपनी भावी योजना के साथ सभी लोगों को समझाना शुरू किया कि वह उनसे क्या चाहता था ।

“कदम ! तुम अभी हॉस्पिटल रवाना हो जाओ । अपने साथ में किसी सिपाही को ले जाओ । वहाँ पर तुम पोस्टमार्टम की रिपोर्ट तैयार होने तक रुको और डॉक्टर नवनीत को तुम दिखाई दोगे तो काम जल्दी हो जाएगा ।”

“अनिल ! जो गौरव कालिया के शोरूम और दूसरी सीसीटीवी फुटेज हैं, उन्हें सभी को तुम जल्द-से-जल्द खंगालो । उसमें गौरव कालिया के पास किन लोगों का आना-जाना है, उनके क्लोज-अप निकालकर उसके बाप सुरेंद्र कालिया या उसके भाई को बुलाकर उनके बारे में यहाँ पर पूछताछ करो और उन लोगों के पते-ठिकाने नोट करो ।”

“कृष्ण ! गौरव कालिया के दो मोबाइल नंबर हैं । तुम उन दोनों कंपनियों के ऑफिस पर जाकर उसका कॉल रिकॉर्ड और उसकी लोकेशन का पता लगाओ । ये भी पता लगाओ कि आखिरी वक़्त में उसका किससे संपर्क हुआ था ।”

“जी जनाब !” कृष्ण बोला ।

इंस्पेक्टर रणवीर से आदेश पाकर उसके सभी मातहत अपने-अपने टारगेट के लिए रवाना होने के लिए ऑफिस से बाहर निकल गए ।

“बाहर ड्राइवर को तैयार होने के लिए कहो ! हम लोग पुरुषोत्तम गोयल के घर एक बार फिर से चल रहे हैं ।” रणवीर, रोशन वर्मा की ओर देखते हुए निर्णायक स्वर में बोला ।

कुछ समय बाद इंस्पेक्टर रणवीर, रोशन वर्मा के साथ पुरुषोत्तम गोयल के मकान पर पहुँच गया । मकान में ग्राउंड फ्लोर पर उसने रिफाइंड ऑयल का गोदाम बनाया हुआ था । जहाँ पर सामान की लोडिंग व अनलोडिंग का काम लगातार चलता रहता था । उस समय भी वहाँ मिनी फोर-व्हीलर पर रिफाइंड ऑयल के कनस्तरों की लोडिंग की जा रही थी ।

रणवीर ने वहाँ काम करने वाले कामगारों के मुखिया को बुलाया । लल्लन नाम का आदमी उनके पास आकर सकुचाते हुए खड़ा हो गया । उसके साथ काम करने वाले और ‘छोटा हाथी’ का ड्राइवर और उसका हेल्पर भी वहीं पास आकर खड़े हो गए ।

“क्यों भई ! तुम लोग सुबह कितने बजे यहाँ पर अपना काम शुरू कर देते हो ?”

“सुबह सात से आठ बजे के बीच में हम लोग यहाँ आ जाते हैं, साब ! साथ में दोउ आदमी और रहता है हमारे साथ लोडिंग करवाने के वास्ते ।”

“तुम लोग कब तक करते हो ये काम ?”

“साब, जब तक सारा आडर लोड नहीं हो जाता, तब तक मैं इंहा ही रहता हूँ और बाकी की लेबर भी इंहा मेरे साथ ही रहती है । जब हमारा इंहा लोडिंग का काम ख़तम हो जाता है तो दोपहर के बारह बजे के करीब हम सब लोग फैक्ट्री में चले जाते हैं, साब !” 

“और शाम को यहाँ पर कौन-कौन रहता है ?”

“शाम को फैक्ट्री से सामान लोड करके हम ही इंहा गोदाम में रखवाते हैं, साब !”

“ये ऑइल के टिन फैक्टरी से सीधा तुम लोग आगे क्यों नहीं भेजते ? तुम यहाँ ये सब क्यों लाते हो ?”

“ज्यादा बड़ा आर्डर तो सीधा कैंटर में लोड होता है साहब ! इंहा तो मालिक लोकल मार्केट के लिए सामान रखते हैं ? जैसे-जैसे और जितना आडर आता है, वह हम यहाँ से ही पहुँचा देते है ।”

“कल तुम कितने बजे यहाँ आए थे, दोपहर वाली पारी में ?”

“कल तो हम इंहा कोई साढ़े चार-पौने पाँच बजे आई गए रहे और फिर सात बजे तक सारा सामान अनलोडिंग किया । फिर सेठ जी पुरुषोत्तम साब अपने आस-पड़ोस के लोगों के साथ आये ओर ऊपर का दरवाजा खुलवाए रहे ।”

“तू तो हर रोज यहाँ आता है, लल्लन ! तेरे को और तेरे साथियों को पता नहीं चला कि ऊपर वाली मंजिल पर क्या कांड हो गया ?”

इंस्पेक्टर रणवीर के अप्रत्याशित सवाल से लल्लन घबरा गया । थोड़ा डर का पुट उसकी आवाज में जो पहले से ही था वह अब और भी ज्यादा बढ़ गया ।

“साब ! पिछले दो दिन से फैक्ट्री से ही सप्लाई ज्यादा रही तो मालिक ने वहीं से सारी लोडिंग के लिए हमें रोके रखा । इसीलिए हम यहाँ आए नहीं, मालिक ! हमें नहीं पता ऊपर के बारे में, का हुआ और का नहीं हुआ ।” घिघियाता हुआ-सा लल्लन बोला ।

“जो आदमी मर गया है, वह संजय बंसल... वो कौन था । जानता है उसे ?” वर्मा ने आँखें लल्लन पर टिकाते हुए पूछा ।

“हमको नहीं मालूम साब ! नीकू बाबा के पास आते रहे, बस इत्ता ही मालूम है, साहब !”

“नीकू ! कौन अनिकेत ?” रणवीर सवाल पूछते से लहजे में बोला, “और किसी आदमी के बारे में बता सकते हो, जिसका यहाँ आना-जाना ज्यादा हो ?”

“जी साब ! उनका सभी यार-दोस्त इसी नाम से बुलाय रहे तो हमें इस नाम का पता है ।” लल्लन हामी भरता झिझकता-सा बोला, “और खावे-पीवे की खातिर कई बार हमसे भी समान मँगवाय रहे नीकू बाबा, तो इसीलिये संजय बाबू को हम जानते हैं नाम से । वहाँ ऊपर कई बार देखा था हमने उनको कमरे में ।”

“ठीक है । वर्मा जी, इसका बयान नोट करवाओ और इसकी आई-डी वगैरा नोट करके इसके दस्तखत या अंगूठा लगवाओ ! मैं ऊपर मौका-ए-वारदात पर जा रहा हूँ ।” कहकर रणवीर ऊपर घटनास्थल की तरफ चल पड़ा ।

सीढ़ियों पर चढ़ते हुए बारीकी से मुआयना करता हुआ वह तीसरी मंजिल तक पहुँचा । सीढ़ियों पर कुछ जगह दीवार वाली साइड पर कुछ भूरे रंग के रगड़ के निशान थे । ये निशान जहाँ सीढ़ियाँ मुड़ रही थी, वहाँ पर कुछ ज्यादा बने हुए थे । रणवीर जब तक ऊपर पहुँचा, तब तक उसके साथ आए सिपाही दरवाजा खोल चुके थे । रोशन वर्मा भी तब तक वहाँ आ गया और वह फिर दोनों घर के अंदर घुसे । वहाँ सफाई अभी नहीं हो पाई थी और मौत की गंध अब भी वहाँ हवा में तैर रही थी ।

ड्राइंगरूम में मेज पर अब खाने-पीने का सामान व गिलास नहीं था । सोफों पर गद्दियों और सोफा कवर की हालात इशारा कर रहे थे कि चार से पाँच जने वहाँ हुई मौज मस्ती में शामिल रहे होंगे । 

“क्या कारण रहा होगा, जो यहाँ पर खाते-पीते हुए और मौज-मस्ती करते हुए वह जवान लड़के इतने हौलनाक वाकये के चक्कर में फँस गए, रोशन ?”

“आजकल के लड़कों के मिजाज और शौक का कुछ नहीं पता जनाब ! इस बात का कुछ नहीं पता कि कब, क्या फितूर इनके दिमाग में आ जाए ।”

“सही कहा । इस नई पौध का और इसकी सोच का अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है । यहाँ एक कमरे में लाश मिली और दूसरे में सिर्फ खून । अगर एक आदमी जो मरा है, वह संजय बंसल है, तो यहाँ का मालिक, मेरा मतलब किरायेदार, नीकू यानी अनिकेत कहाँ है ? या तो वही खूनी है या अगर वह भी मर चुका है तो फिर उसकी लाश कहाँ है और इनको मारने वाला, इसका मतलब वह इन्हीं में से ही कोई था । यानी इस महफ़िल में मौजूद कोई तीसरा या चौथा आदमी !”

वे दोनों ड्राइंगरूम से पीछे की तरफ के बने हुए कमरे में पहुँचे, जहाँ उन्हें संजय बंसल की लाश मिली थी । रणवीर ने कमरे में खोजती नजरों के साथ कदम रखा । वहाँ पर जूतों के निशान जगह-जगह बन गए थे । दरवाजे की एंट्री के पास एक लंबी फिसलन का निशान था । रणवीर को ध्यान आया कि कल जब कॉन्स्टेबल कृष्ण ने कमरे में कदम रखा था तो वह फिसल गया था । उन्हें भी चलते हुए बड़ी एहतियात से काम लेना पड़ रहा था । रणवीर उस जगह झुककर बैठ गया, जहाँ कॉन्स्टेबल कृष्ण फिसलते-फिसलते बचा था । रोशन भी रुमाल नाक पर रखे हुए रणवीर का अनुसरण करते हुए फर्श का मुआयना करने लगा ।

“कुछ समझे, वर्मा जी ? क्या इतनी फिसलन खून में हो सकती है ?”

“फिसलन तो कहीं भी हो सकती है जनाब ! नीयत फिसल सकती है, जुबान फिसल सकती है और जवानी भी फिसल जाती है, पर खून फिसल सकता है, ऐसा कहीं सुना तो नहीं ।”

“ये आपको क्या शायरी का दौरा पड़ गया इस माहौल में वर्मा जी !”

“अगर थोड़ी देर और यहाँ रहे तो कोई-न-कोई दौरा पड़ा ही समझो । मेरी तो साँस बंद होने को हो रही है ।”

“तो खिड़कियों को खोल दो वर्मा जी !”

रोशन वर्मा ने खिड़कियाँ खोल दी तो वहाँ मौजूद लोगों की जान में जान आई । रोशनी आने के बाद रणवीर फर्श की तरफ थोड़ा और ध्यान देकर देख रहा था । एक बात जो उसके ध्यान में आई वह यह कि जहाँ लाश मिली थी, उसके चारों ओर के एरिया में फर्श पर नमी का एहसास हो रहा था । साथ-ही-साथ जहाँ कृष्ण का पैर फिसला उस जगह पर निशान बता रहा था कि वहाँ पर जरूर कुछ चिकनाई वाला तरल पदार्थ बिखरा हुआ होगा । पर कमाल की बात यह थी कि यही आभास पूरे फर्श पर समान रूप से था । संजय बंसल को दो गोलियाँ मारी गई थी और हालात बता रहे थे कि पॉइंट ब्लेंक से ये काम अंजाम दिया गया था । 

“वर्मा जी, ये संजय साढ़े पाँच फुट का हट्टा-कट्टा नौजवान था ! यूँ ही चुपचाप बैठे-बैठे गोली खा सकता है क्या ?”

“यही तो हैरानी की बात है जनाब ! और मेरे खयाल से यहाँ जमी महफ़िल में से ही अगर कोई एक आदमी कातिल है तो उन लोगों में आपस में कोई संघर्ष भी हुआ होगा ।” 

“हम्म ! दूसरे कमरे में भी इतना ही भयानक मंजर है । पर वह खून किसका है ? अगर वहाँ कोई दूसरी हत्या हुई है तो वह लाश कहाँ गई ? जब एक लाश यहाँ छोड़ी गई तो दूसरी यहाँ से क्यों ले जाई गई ? वह भी यहीं पड़ी रहती तो किसी का क्या बिगड़ना था ?”

“हम्म । जनाब वह पुलिस पर बोझ नहीं डालना चाहता होगा । सोचा होगा दो लाश हमारे लिए ज्यादा हो जायेंगी । हा हा... ।” रोशन समेत सभी लोग हँसे ।

“क्या वर्मा, यहाँ भी मजाक ! चलो, दूसरे कमरे में चलते हैं ।” कहकर रणवीर दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ा । बराबर वाले कमरे में दीवान उसी तरीके से पड़ा था, जस का तस, जैसा कल उन्होंने देखा था । गद्दे में धँसी गोलियाँ कल अनिल ने बरामद कर फॉरेंसिक जाँच के लिए भेज दी गई थी ।

“अलमारी खोलकर देखो, वर्मा जी ! शायद अनिकेत के बारे में कुछ पता चल जाए ।”

“जी सर !” कहकर रोशन वर्मा अलमारी की छानबीन में जुट गया ।

रणवीर तब तक कमरे से बाहर निकलकर मकान की सबसे ऊपर वाली छत यानी चौथी मंजिल पर पहुँच गया । छत पर से गली का पूरा जायजा लिया जा सकता था । गली के मुहाने पर दोनों साइड में दुकानें थीं और यह गली फिर बाजार में मिल जाती थी । मकान की पीछे की साइड वाले मकान की छत पुरुषोत्तम के मकान के साथ मिलती थी । उस मकान के बीच की दीवार क्रॉस करके रणवीर जब वहाँ पहुँचा तो उसने देखा कि लोहे की सीढ़ियाँ नीचे उतर रही थीं । दूसरी मंजिल तक ही ये सीढ़ियाँ जाती थीं । साइड के मकानों में कुछ मकानों की सीढ़ियाँ भी ओपन थीं और पिछली गली में जाकर खुलती थीं । इसका मतलब यह था कि इस तरफ से कोई चाहे तो बड़े आराम से पुरुषोत्तम की सबसे ऊपर वाली छत पर पहुँच सकता था । या यूँ कहें कि आराम से अपना काम करके निकल भी सकता था ।

रणवीर वापिस नीचे पहुँचा जहाँ असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर रोशन वर्मा अलमारी की खोजबीन में लगा हुआ था ।

“कुछ हाथ लगा वर्मा जी ?”

“ये एक डायरी हाथ लगी है जिसमें कुछ पैसों का और जमीन के लेन-देन का जिक्र लगता है ।”

रणवीर कालीरमण डायरी को लेकर बड़े ध्यान से पन्ने उलट-पलटकर देखने लगा । डायरी में प्रेम नगर के नक्शे, खरीद फरोख्त किये गए कुछ प्लाट के नम्बर और साथ में कुछ लोगों के नाम बार-बार आ रहे थे, जिसमें संजय बंसल, अनिकेत के नाम के साथ एक और नाम का जिक्र बार-बार आ रहा था । वह नाम था रोहित गेरा का और दिलचस्प बात ये थी कि इस डायरी का स्वामी गौरव कालिया था, जिसकी जली हुई लाश वीरू के ढाबे के पास खेतों में मिली थी । रणवीर की आँखें एक चमक के साथ सिकुड़ गईं और होंठ मद्धम-मद्धम सीटी बजाने लगे ।

गोल चक्कर से पुरुषोत्तम गोयल के मकान 32/11 से फारिग होकर इंस्पेक्टर रणवीर सीधा सरकारी हॉस्पिटल में डॉक्टर नवनीत कंसल के पास पहुँचा । डॉक्टर नवनीत अपने बदमजा काम से फारिग होकर अपने ऑफिस में बैठा सिगरेट के कश लगा रहा था । मानो मौत की परछाई को धुएँ में उड़ाकर साफ कर देना चाहता हो ।

“मे आई कम इन, डॉक्टर ?” रणवीर ने दरवाजा खटखटाने की औपचारिकता के साथ ही दरवाजा खोलते हुए पूछा ।

“ऑफकोर्स, इंस्पेक्टर ! जब आप आ ही गए हैं तो पूरा ही आ जाइए मिस्टर रणवीर ! मौत, हवा और पुलिस को आने-जाने से भला कौन रोक सका है !”

“आज तो बड़े मूड में लग रहे हो, डॉक्टर साहब !”

“भई, सुबह-सुबह आपके भेजे हुए उस दिलजले से मुलाकात करके अपना मूड अच्छा तो बनाना ही पड़ेगा ! सिगरेट लोगे ? चलो छोड़ो, सेहत के लिए अच्छी नहीं होती ।” कहते हुए डॉक्टर नवनीत ने अपनी वाली सिगरेट भी ऐशट्रे में डाल दी ।

“आपका भी जवाब नहीं, डॉक्टर नवनीत ।” रणवीर हँसते हुए बोला ।

“अब क्या करें इंस्पेक्टर साहब ! अगर ऐब न होंगे तो हम खुदा बन जाएँगे । जो मैं कर रहा था, वह मेरी शैली है और मैंने जो तुम्हें सलाह दी, वह जीवन है और मैं हूँ डॉक्टर । सो इट्स ए बैलेंस बिटवीन ऑल ऑफ थ्री । जीवन शैली, यू नो ! हा हा हा ।” डॉक्टर नवनीत ने जोर का ठहाका लगाया । रणवीर ने भी उसका साथ दिया ।

डॉक्टर नवनीत ने बैल बजाकर अपने अटेंडेंट को काफी लाने के लिए कहा ।

“तुम लोगे ना ?” डॉक्टर ने रणवीर से पूछा तो उसने सहमति में सिर हिला दिया ।

“अब अपने दिलजले का हाल पूछ सकते हैं आप । अभी उनके पास से ही आ रहा हूँ ।”

“आप भी डॉक्टर साहब ! ऐसे बात कर रहे हैं जैसे किसी बहुत बड़ी शख्सियत के साथ मुलाकात करके आ रहे हैं ।”

“इंस्पेक्टर साहब, अब शख्सियत तो वह है ही ! हम जिस्मानी हैं और वह अब रूहानी हो गए, फर्क बस इतना-सा है ।”

“संजय बंसल ने जिस्मानी से रूहानी बनने का सफर कैसे तय किया, डॉक्टर साहब ?”

“तो मरने वाला संजय बंसल था !” डॉक्टर नवनीत ने थोड़ा सीरियस होते हुए कहा ।

“हाँ, डॉक्टर साहब !” रणवीर ने कहा और फिर सविस्तार पुरुषोत्तम गोयल के मकान का सारा मंजर डॉक्टर नवनीत के सामने बयान कर दिया, “उसकी मौत का कारण क्या रहा, डॉक्टर साहब ? उसे जलने के बाद गोली मारी गई या गोली मारकर जलाया ?”

“बड़े हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं, इंस्पेक्टर रणवीर !” डॉक्टर नवनीत धीर-गंभीर होते हुए इंस्पेक्टर से मुखातिब हुआ । तब तक सब-इंस्पेक्टर रोशन वर्मा भी कमरे में आ गया था । तभी अटेंडेंट तीन कप कॉफी सर्व कर गया ।

“विक्टिम को दो गोलियाँ मारी गई हैं, जिसमें से एक उसके हार्ट वेंट्रिकल को पार कर गई है और दूसरे उसके राइट लिवर लोब के ऊपरी भाग और राइट लंग को डैमेज करती हुई निकली है ।”

“गोली तो उसे शायद पॉइन्ट ब्लेंक ही मारी गई होगी ?”

“दुरुस्त फरमाया आपने । बिल्कुल जिस्म से सटाकर गोली मारी गई है । गन-शॉट रेसिडुअल टेस्ट बारूद के कणों की पुष्टि करता है, पर शायद लाश अपने ऑरिजिनल पॉइंट से डिस्टर्ब की गई है । इसलिए जख्मों पर इतना ज्यादा पार्टिकल नहीं लगा हुआ था  ।”

“लाश तो मुँह के बल पड़ी हुई थी फर्श पर । बेड पर खून बिखरा हुआ था । इसका मतलब बेड से लाश को जमीन पर गिराया गया था । पर जब जलाना ही था तो बेड पर जलाने में क्या दिक्कत थी ?” रोशन वर्मा हैरानी से इंस्पेक्टर रणवीर की ओर देखता हुआ बोला ।

“संजय बंसल को मारकर बेड पर कातिल ने नहीं जलाया ! क्यों नहीं जलाया ? जबकि सहूलियत उसे थी ऐसा करने की । उसे ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी ? एक ही कारण हो सकता है कि वह आग जलाना तो चाहता था पर यह नहीं चाहता था कि लोगों को इसका पता चले । ये भी उसका मकसद हो सकता था और बेड पर लाश अगर जलती तो सारा कमरा आग की लपेट में आ जाता, जो कातिल बिल्कुल नहीं चाहता था । यानी हमें लाश कब मिले, ये कातिल ने पहले ही हिसाब लगा रखा था ।” रणवीर बड़बड़ाते हुए बोला ।

“हम्म ! लगता तो ऐसा ही है । क्या पता क्या करना चाहता था वह सिक मैन !” डॉक्टर नवनीत ने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा ।

“डॉक्टर साहब ! उसके शरीर पर जलने के निशान क्या बयान करते हैं ?” रणवीर ने पूछा ।

“तुम क्या कहते हो ?” डॉक्टर नवनीत ने आजमाने वाले अंदाज में रणवीर से उल्टा सवाल किया ।

“मेरे खयाल से तो संजय इस दुनिया को अलविदा कह चुका था जब वह जला ।” रणवीर ने आश्वस्त लहजे में कहा ।

“कोई वजह ऐसा कहने की इंस्पेक्टर ?”

“हमें तो लिफाफा देखकर मजमून पढ़ना होता है, डॉक्टर साहब ! आपको मिलने वाली सलाहियतें और सहूलियतें हमें कहाँ मिलती हैं । उसकी लाश की पोजिशन देखकर अंदाजा लगाया मैंने । अगर जलने वाला व्यक्ति होश में हो तो वह बचने के लिए पूरी कोशिश करेगा और बाहर जाने की कोशिश करेगा । संजय की लाश बेड के पास ही पड़ी मिली और वह भी इस ढंग से की सिर्फ पीठ वाला और जो मुँह का हिस्सा फर्श की दूसरी तरफ था, वही जल पाए ।”

“तुम सही हो रणवीर ! ये तो सबको साफ दिखाई दे रहा है कि उसकी मौत का पहला कारण तो यही है कि उसे पॉइंट ब्लेंक शूट किया गया है । उसकी वजह से एक्सेसिव ब्लीडिंग हुई है । पर जब उसे शूट किया गया तो मुझे लगता नहीं कि वह अपने होश में होगा । अगर वह जिंदा होता और होश में होता तो उसके फेफड़ों में धुएँ के कण होते ।” डॉक्टर नवनीत ने रणवीर को बताने के अंदाज में कहा ।

“वो तो डॉक्टर साहब वहाँ पर मौजूद शराब की बोतलों से ही पता चल रहा था । टुन्न होगा स्सा... !” रोशन वर्मा अपनी झोंक में बोला ।

“शराब की वजह से नहीं, मिस्टर रोशन वर्मा ! वह शर्तिया ‘म्याऊँ-म्याऊँ’ की वजह से होश खो बैठा होगा ।” डॉक्टर नवनीत रहस्योद्घाटन करते हुए बोला ।

“म्याऊँ !” रोशन हैरानी से बोला ।

“शायद आप एक ड्रग्स की बाबत बात कर रहे हो डॉक्टर साहब !” रणवीर शान्त स्वर में बोला ।

“हाँ, इंस्पेक्टर ! संजय बंसल के विसरा (फेफड़ों से नीचे के अंग) में मेफेड्रोन नामक ड्रग्स की हैवी डोज़ के प्रमाण मिले हैं, जिससे आदमी काफी लम्बे समय तक बेहोशी की गिरफ्त में रह सकता है ।”

“हाँ । इसकी कम्पोजीशन ‘एस्केटसी’ जैसी होती है । ये ड्रग हमारे लिए नया सिर दर्द और सोसायटी के लिए नया नासूर बनकर उभरी है । गुरुग्राम में पिछले दिनों इसके कई सप्लायर हमने पकड़े थे । कई होटल्स में रातों को रेव पार्टी में इसका धड़ल्ले से प्रयोग होने लगा है ।”

“आजकल लौंडे-लपाडों की रात-बिरात की पार्टियों में बड़ी मशहूर हो गई है ये आइटम । सस्ती मिल जाती है ।” वर्मा ने मानो अपनी हाजिरी दर्ज कराते हुए कहा ।

“आपको इसका ड्रग टेस्ट का, इस संजय बंसल के केस में, कैसे ध्यान आया, डॉक्टर साहब ?”

“उसके बॉडी पेरिफेरल्स नीले पड़ने स्टार्ट हो गए थे । खासतौर पर इयर लोब । मुझे इस बात पर थोड़ा शक हुआ । डेथ टाइम डिसाइड करने के लिए डाइजेस्टेड फ़ूड एनालिसिस तो मैंने करना ही था । उसके साथ में स्लाइवा स्वाब (saliva swab) टेस्ट करने पर एमकेट यानी म्याऊँ-म्याऊँ की कन्फर्मेशन भी हो गई । मैंने सोचा, हो सकता है शायद तुम्हें इससे कुछ मदद मिले ।”

“डॉक्टर साहब, संजय बंसल के यहाँ से हमें एक डायरी मिली है, जिसमें गौरव कालिया का भी जिक्र है ! उसकी मौत भी जलकर हुई है, उसके विसरल टेस्ट... ।”

“ओह ! उसके लिए तो आपको मुझे समय देना होगा इंस्पेक्टर ! कोशिश करके शाम तक इसका भी रिजल्ट तुम्हे बता दूँगा ।”

“और संजय की डेथ टाइमिंग के बारे में डॉक्टर साहब ?” रोशन वर्मा ने पूछा ।

उसके जवाब में डॉक्टर नवनीत ने जो बताया, उससे रणवीर के दिमाग में घंटियाँ बजने लगीं । रोशन वर्मा की भी आँखें खुलती चली गईं । 

संजय बंसल की जिस्मानी रुखसती इस दुनिया से जिस वक्त हुई थी, ठीक उसी वक्त गौरव कालिया भी इस जहान को अलविदा कह रहा था । यानी अब से लगभग साढ़े तीन दिन पहले चार सितंबर की रात को ।