स्वयं विजय हतप्रभ रह गया। वह जान गया कि वास्तव में टुम्बकटू को 'छलावा अपराधी' ठीक ही कहा जाता है। वास्तव में उसने छलावे से भी कहीं अधिक फुर्ती का परिचय दिया था। उसके जहन में एकदम आया कि यह टुम्बकटू अत्यधिक भयानक है!


इससे पूर्व कि ठाकुर साहब स्वयं खड़े हों अथवा टुम्बकदू कुछ करे, विजय ने तुरंत ब्लैक ब्वॉय व अन्य सीक्रेट एजेंटों को गुप्त संकेत किया और अगले ही पल टुम्बकदू सीक्रेट सर्विस के जासूसों के रिवॉल्वरों के साए में था। उसके चारों ओर विजय, अशरफ, ब्लैक ब्वॉय, विक्रम, नाहर और आशा इत्यादि खड़े थे। विजय आगे बढ्कर अपने ही अंदाज में बोला--- "बहुत हो चुका प्यारे टुम्बकटू! अब अगर तुमने कोई भी गलत हरकत करने की चेष्टा की तो तुम्हारे चारों ओर तने हुए रिवॉल्वर तुम्हें खुदागंज पहुंचा देंगे।"


"बिल्कुल ठीक!" टुम्बकटू अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराता हुआ मस्ती में बोला- "पिता की यह स्थिति देखकर बेटे का खून खौलना स्वाभाविक है । "


"बेटा टुम्बकटू !" विजय भी अपने नाम का बस एक ही विजय था-----''जब चारों ओर से गोलियां चलती हैं तो इंसान का खुदागंज पहुंचना भी स्वाभाविक है।"


"लेकिन टुम्बकटू का नहीं।" टुम्बकटू पर किसी भी बात का लेशमात्र भी तो प्रभाव न पड़ रहा था, ऐसा लगता था मानो उसे रिवॉल्वरों की कोई चिंता ही न हो। अभी वह मस्ती में कुछ कहने जा रहा था कि !


अचानक!


विकास... यानी उस खतरनाक लड़के का भयानक दुस्साहस!


मौत से भयानक शातिर की भांति विकास ने चमत्कृत कर देने वाले ढंग से हवा में जंप लगाई और इससे पहले कि कोई भी कुछ समझ सके--- हवा में ठीक जिन्न की भांति लहराता हुआ वह लड़का टुम्बकटू के गन्ने की भांति खड़े जिस्म पर आ गिरा।


टुम्बकटू शायद सब ओर से सतर्क था, किंतु इस बालक से उसे ऐसी खौफनाक हरकत की आशा कदापि न थी। तभी तो वह भयानक छलावे जैसा विचित्र अपराधी हल्की-सी मात खा गया था।


परंतु अगले ही पल बाजी फिर टुम्बकटू ही के हाथ में थी।


हुआ यूं कि जैसे ही वायु में लहराता हुआ विकास टुम्बकटू के मरियल -----से जिस्म पर गिरा ----- उस समय विकास को ऐसा लगा मानो वह किसी सख्त पत्थर पर आ गिरा है। परंतु विकास भी लाखों में एक था। वह लेशमात्र भी नहीं घबराया, बल्कि उसने तुरंत संभलकर टुम्बकटू के पतले जिस्म को अपनी टांगों के बीच में फंसाना चाहा, परंतु तब तक भयानक छलावा अपराधी टुम्बकटू अपनी हरकत दिखा गया था।


इससे पूर्व कि विकास अपने इरादों में सफल हो सके, अचानक टुम्बकटू की पतली-पतली दाएं हाथ की दस उंगलियों ने एक हल्की चपत विकास के सिर पर मारी तथा साथ ही साधारण तरीके से मुस्कराकर बोला।


" बच्चों को बड़ों के बीच में शरारत शोभा नहीं देती।"


टुम्बकटू ने अपनी ओर से तो यह चपत काफी धीमे से मारी थी, किन्तु इसका क्या किया जाए कि विकास को यह चपत ऐसी लगी, जैसे किसी ने कसकर लोहे का हथौड़ा उसके सिर पर मारा हो। परिणामस्वरूप उसके नेत्रों के आगे लाल-पीले तारे नृत्य करने लगे और अगले ही पल सब कुछ अंधकार में बदल गया। विकास ने बहुत चाहा कि वह स्वयं को संभाल सके, परंतु वह असफल रहा। एक ही चपत में उसके नेत्रों के आगे का अंधकार काजल की भांति अत्यधिक गाढ़ा हो गया और फिर बिना कोई विशेष हरकत किए वह लहराकर फर्श पर गिरा।


विकास अचेत हो गया था।


टुम्बकटू आश्चर्य के साथ फर्श पर पड़े विकास को घूरता हुआ मुस्कराकर विजय की ओर संबोधित होकर बोला ।


-----"अब तुम्हीं बताओ विजय, क्या बच्चों को बड़ों के बीच में आना चाहिए?''


विजय स्वयं चकराकर रह गया । विजय का तो जीवन ही ऐसा था कि उसने एक-से-एक भयानक, खूंखार और खौफनाक. अपराधी देखे थे। परंतु अब जो नमूना उसके सामने खड़ा था। यानी टुम्बकटू जैसा विचित्र अपराधी उसने अपने समूचे जीवन में ----- आज से पूर्व कभी नहीं देखा था।


यह व्यक्ति एकदम विचित्र था।


उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह टुम्बकटू को जोकर समझे, सनकी कहे अथवा भयानक अपराधियों की श्रेणी में ले! उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सिंगही और जैक्सन जैसे महान अपराधी भी इस जोकरनुमा हंसमुख और भयानक अपराधी टुम्बकटू को पराजित न कर सकेंगे। इस ओर से मस्तिष्क हटाकर वह तुरंत टुम्बकटू से संबोधित होकर अपनी आदतानुसार उसका नाम बिगाड़कर बोला ।


-----"बेटा टुम्बकटू... लगता है तुम भी खलीफा हो ।"


"क्यों, क्या अभी से हार मान गए?" टुम्बकटू मुस्कराता हुआ बोला।


"तुम खलीफा हो तो हम खलीफा के बाप हैं बेटे टुम्बकटू।" विजय मुस्कराकर सतर्क दृष्टि से बोला-----"हमने आज तक हार नहीं मानी।"


'और टुम्बकटू के लिए तुम मच्छर से अधिक महत्त्व नहीं रखते।" टुम्बकटू उसी प्रकार मस्ती में मुस्कराता हुआ बोला। उसके चेहरे पर उपस्थित भावों में कोई भी चिह ऐसा न था, जिससे प्रतीत हो कि वह रिवॉल्वरों के साए में है।


" प्यारे टुम्बकटू !" विजय मुस्कराते हुए बोला- "पहले हम अमन- शांति से काम करते हैं----- लेकिन जब उससे काम नहीं चलता तो हिंसा भी जानते हैं।"


-"प्यारे झकझकिए !" इस बार टुम्बकटू ने भी विजय के लिए नया ही संबोधन निकाला ----- "वास्तव में पागल तुम भी कम नहीं हो ----- अगर बुद्धिमान हो तो अमन-शांति जैसे शब्दों को भूल जाओ और सिर्फ हिंसा का दामन थाम लो। सच पूछो तो मुझे अमन और शांति जरा भी पसंद नहीं है, मैं तो हिंसा का पुजारी हूं।"


" तो प्यारे, इसका मतलब तुम बातों के भूत नहीं हो?"


----- "शायद लातों का भी नहीं।" टुम्बकटू उसी प्रकार मुस्कराकर बोला।


"तो फिर प्यारे, तैयार हो जाओ।" विजय ध्यान से स्थिति का निरीक्षण करता हुआ बोला। उसने देख लिया था कि जहां टुम्बकटू खड़ा है-----वहां अन्य कोई नहीं है --- सिर्फ विकास है-----जो फर्श पर अचेत स्थिति में पड़ा है। अब वह टुम्बकटू से टकराने का निश्चय कर चुका था।


सब लोग सिमटकर हॉल में कोनों में धंस गए थे।


ठाकुर साहब आश्चर्य से आंखें फाड़े अपने नालायक पुत्र की कारगुजारी देख रहे थे।


"तैयार तो मैं हूं ही प्यारे झकझकिए !' टुम्बकटू बिना


प्रभावित हुए बोला-----"वैसे मैं तुम्हें यह बता दूं कि मैं यहां से किसी भी एक व्यक्ति को ले जाऊंगा।"


"फायर!" विजय टुम्बकटू की बात पर कोई विशेष ध्यान न देकर जोर से चीखा।


सीक्रेट सर्विस के सभी सदस्य बुद्धिमान व फुर्तीले थे।


विजय का आदेश मिलते ही सब फर्श पर लेट गए और ।


----- 'धायं धायं धायं!'


अनेक फायरों की ध्वनि से हॉल थर्रा उठा।


सभी लेट इसलिए गए थे कि कहीं एक-दूसरे की गोलियों के ही शिकार न हो जाएं, और सभी ने फायर टुम्बकटू के सिर पर किए थे, जिससे गोली खाली जाने की स्थिति में किसी अन्य व्यक्ति को न लग सके और सभी मेहमानों के ऊपर से निकलकर दीवारों में धंसे ।


वास्तव में परिणाम देखकर सबकी आंखें आश्चर्य से फैलती चली गई। सभी की आंखों में महान आश्चर्य का सागर ठहाके लगा रहा था।


किसी को भी टुम्बकटू वहां नजर न आया, जहां होना चाहिए था!


सभी गोलियां वायु में लहराती हुई इधर-उधर की दीवारों में धंस गई।


विजय स्वयं हैरत के साथ उस रिक्त स्थान को घूर रहा था ----- जहां टुम्बकटु को होना चाहिए था। विजय को लगा कि वास्तव में टुम्बकटू इंसान नहीं छलावा है। संगआर्ट से केवल एक रिवॉल्वर की गोली से बचा जा सकता था, परंतु इस प्रकार अनेकों गोलियों से बचने वाला इंसान नहीं हो सकता।


और सबसे आश्चर्य की बात तो ये थी कि टुम्बकटू हॉल में कहीं भी नजर नहीं आ रहा था। विजय अपने सामने उसकी तलाश कर ही रहा था कि सहसा वह बुरी तरह चौंक पड़ा।