लंच दीवान पुरुषोत्तम दास की तरफ से उसके क्लब में था।


लंच के बाद मनोहर और उसका मेजबान डायनिंग हाल से निकले और लाउन्ज में बैठे। दोनों ने लम्बे-लम्बे सिगार सुलगा लिये और बड़े इत्मीनान से कश लगाने लगे ।


मनोहर लाल उस वक्त भी फुल कर्नल की यूनीफार्म में था। क्लब में मौजूद अन्य मेम्बर और वहां के वेटर वगैरह उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व का पर्याप्त रोब खा चुके थे ।


" आज के पेपर में प्रोविजन स्टोर वाला केस पढ़ा, दीवान साहब ?” - मनोहर बड़े सहज भाव से बोला ।


"पढा ।" - वकील बोला ।


"क्या ख्याल है आपका उस बारे में ?"


"आप बताइये आपका क्या ख्याल है ?"


"मेरे ख्याल से तो लड़की जो कह रही है, सच कह रही । वह आदमी... क्या नाम था उसका ?”


"जगतपाल ।"


“हां जगतपाल । वह तो सूरत से ही कोई चोर-उचक्का मालूम होता है।"


"अगर वह ऐसा आदमी है तो उसने लड़की को इज्जत हतक के दावे की धमकी क्यों दी ? "


" पुलिस का ध्यान अपनी ओर से बंटाने के लिये और अपने आपको शरीफ और इज्जतदार आदमी साबित करने के लिये ।"


"हूं।"


“वैसे उसका लड़की पर खफा होना जायज भी है । अगर वह कोई पेशेवर अपराधी है तो उसका पुलिस के फेर में आ जाना उसके पेशे के लिए नुकसानदेय हो सकता है । और उस लड़की के चौकन्नेपन की वजह से वह पुलिस के फेर में आया है ।"


"लेकिन जगतपाल जरायमपेशा आदमी है भी तो इस बार तो उसके खिलाफ कोई केस नहीं बनता न । उसके खिलाफ केस की तो तभी टांग टूट गई थी जब राजनारायण ने यह कह दिया था कि उसकी शाप नहीं लुटी थी, जगतपाल ने उसकी शाप में कदम तक नहीं रखा था । कर्नल साहब, केस नहीं बनता ।”


“आप एक बार यह मानकर चलिए कि दोनों बदमाश हैं..."


"दोनों कौन ?"


“एक जगतपाल और दूसरा राजनारायण । आप एक बार यह मानकर चलिए कि वे दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं और फिर कहिये कि केस बनता है या नहीं ?"


"लेकिन..."


"दीवान साहब, एक बात आप भूल गये मालूम होते हैं कि मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी चलाता हूं। मैं उड़ते पंछी के पर पहचानने का तजुर्बा रखता हूं। क्या मैं किसी गुण्डे बदमाश को उसकी सूरत देख कर नहीं पहचान सकता ?"


"लेकिन राजनारायण एक ज्वेलर है जो ज्वेल शाप... '


"अपने गैरकानूनी धन्धों को कवर करने के लिए चलाता है। दीवान साहब, उसका अपनी शाप से माल लुटा होने से इंकार करना अपने आप में इस बात का सबूत है कि वह एक फैंस है जो चोरी का माल खरीदता और बेचता है। उसका जो माल लुटा है वह जरूर चोरी का रहा होगा, इसीलिए वह इस बात से मुकर गया है कि उसका माल लुटा है । फिर आप तो इस शहर के रहने वाले हैं, जरा खुद ही सोचिए, एजरा स्ट्रीट ज्वेल शाप चलाने लायक इलाका है ? ज्वेलरी जैसा कीमती आइटम खरीदने वाला ग्राहक क्या एजरा स्ट्रीट में ही आएगा ?"


" आपकी बात में दम है, कर्नल साहब ।”


“राजनारायण खुद ही नहीं चाहता होगा कि उसकी शाप पर ग्राहकों की भीड़ लगे । इसीलिए उसने अपनी शाप एजरा स्ट्रीट में खोली है ताकि वह इत्मीनान से चोरी के हीरे जवाहरात को काट कर नई सूरत दे सके और सोने को पिघला कर जेवरात का हुलिया बदल सके । इस आदमी जगतपाल को जरूर मालूम होगा कि राजनारायण का असली धन्धा क्या था । शायद उसने कभी खुद भी चोरी का माल राजनारायण को बेचा हो । वह जानता होगा कि माल लुट जाने पर राजनारायण शिकायत नहीं कर सकता था और अपनी जात बिरादरी के लोगों की वजह से ही उसे इनसाइड इन्फर्मेशन थी कि उसके पास हीरे जवाहरात का कोई बड़ा स्टाक आया था।"


“आप कैसे कह सकते है कि लुटने वाला माल हीरे जवाहरात ही थे । "


"क्योंकि लड़की ने जगतपाल के हाथ में रिवाल्वर के अलावा और कुछ नहीं देखा था । अगर जगतपाल ने कोई गहने वगैरह लूटे होते तो उसके हाथ में कोई बैग, ब्रीफकेस, झोला वगैरह जरूर होता और वह लड़की को जरूर दिखाई दिया होता । हीरे जवाहरात बहुत कम जगह घेरते हैं और बहुत ढेर सारे बहुत छोटी सी पोटली में समा सकते हैं ।"


“आई सी । आगे ?"


“आगे क्या ? क्या अभी तक सारा माजरा दिन की तरह आपके सामने स्पष्ट नहीं हो गया ?”


"लेकिन जब पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था, उस वक्त उसके पास से न तो रिवाल्वर बरामद हुई थी और न ही कोई हीरे जवाहरात । ऐसा क्यों कर हुआ ?"


"वह कोई बड़ी बात नहीं" - मनोहर आगे को झुक कर तनिक धीमे स्वर में बोला "देखिए ऐन डकैती के समय एजरा स्ट्रीट में पुलिस की गाड़ी प्रकट हो जाने की वजह से उसके मन में यह दहशत तो बैठ गई थी कि पुलिस उसी को पकड़ने आ रही थी । इसलिए वहां से भागने के स्थान पर वह लड़की के प्रोविजन स्टोर में घुस गया था । मेरा ख्याल है कि लड़की जिस वक्त पुलिस को टेलीफोन करने में मशगूल थी, उस वक्त जगतपाल ने रिवाल्वर और हीरे दोनों चीजें वहीं स्टोर में ही कहीं छुपा दी होंगी ।"


" और लड़की को पता नहीं लगा होगा ?"


"जी हां । टेलीफोन जरूर स्टोर के या तो किसी दूर-दराज कोने में होगा और या किसी अगल-बगल के कमरे में होगा।"


"ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ? "


"यह तो सीधी सी बात है। लड़की ने जगतपाल के बारे में पुलिस को फोन जगतपाल के सामने तो किया नहीं होगा। अगर ऐसा हुआ होता तो इस बात की उसको खबर लगती। फिर क्या वह फोन हो चुकने के बाद भी वहां टिका रहता ? लड़की के फोन करने और पुलिस के वहां पहुंचने के वक्फे में भी उसका वहीं मौजूद होना यही साबित करता है कि उसको फोन की खबर नहीं हुई थी । ऐसा तभी हो सकता है जब फोन किसी अगल-बगल के कमरे में या स्टोर के किसी दूर-दराज कोने में लगा हुआ हो।"


“यू आर राइट ।"


“अब मेरी धारणा यह है कि जिस वक्त लड़की पुलिस को फोन करने में मशगूल थी, उसी वक्त जगतपाल ने हीरों को और अपनी रिवाल्वर को स्टोर में ही किसी ऐसी जगह छुपा दिया था जहां से वह दोनों चीजें पुलिस का बखेड़ा खत्म होने के बाद दोबारा वापिस हासिल कर सकता था।"


"लेकिन वह तो अभी भी पुलिस की हिरासत में है। "


"ऐग्जैक्टली । इसी वजह से इस बात की पूरी सम्भवाना है कि हीरे और रिवाल्वर अभी भी स्टोर में कहीं हैं |"


"लेकिन कहां ?" - इस बार वकील के स्वर में अनायास ही उत्तेजना का समावेश हो गया ।


"स्टोर में डिब्बा बन्द वस्तुओं की भरमार है" - मनोहर लापरवाही से बोला - "किसी भी डिब्बे में हीरे छुपाये जा सकते हैं ।”


"लेकिन ऐसे डिब्बे सीलबन्द होते हैं । "


"सील क्या खोली नहीं जा सकती ?"


"लेकिन...."


"जरा अखबार मंगवाओ।"


वकील ने एक वेटर को बुलाया और उसे उस रोज का अखबार लाने का आदेश दिया ।


वेटर डेली एक्सप्रेस की एक प्रति ले आया ।


मनोहर ने अखबार को वहां से खोला जहां प्रोविजन स्टोर में खिंची गिरिजा और जगतपाल की तस्वीर छपी थी । वह कई क्षण तस्वीर को बड़ी गौर से देखने का अभिनय करता रहा और फिर वकील की तरफ झुकता हुआ बोला - "दीवान साहब, इस तस्वीर की पृष्ठभूमि में जो डिब्बों का पिरामिड दिखाई दे रहा है, जरा इसे मुलाहजा फरमाइये।”


वकील ने जेब ने अपना निगाह का चश्मा निकाला और नाक पर चढाकर तस्वीर देखने लगा ।


"सबसे पहले तो यही देखिए" - मनोहर बोला - "कि इन डिब्बों के पास ही केन ओपनर पड़ा हैं ।


"देख रहा हूं।" - वकील बोला ।


"अब डिब्बों के पिरामिड पर गौर फरमाइये । तमाम डिब्बों मे मटर का केवल एक ही डिब्बा हैं जिसके लेबल का रूख सामने की तरफ नहीं है । "


"इसका क्या मतलब हुआ ?"


"इसका मतलब क्या मुझे खाका खींचकर समझाना पड़ेगा, वकील साहब ? प्रोविजन स्टोर वाले ऐसा पिरामिड हमेशा प्राडक्ट को स्पेशल डिस्पले देने के लिए बनाते हैं और इसलिए इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि प्राडक्ट के लेबल का रुख सामने की तरफ हो । अब जब कि सारे डिब्बों के लेबलों का रुख सामने की तरफ है तो पिरामिड का यह वाहिद डिब्बा ऐसा क्यों है जिसका रुख घूमा हआ है ? क्या इसका यह मतलब नहीं कि इसे किसी और ने हैंडल किया है और इतनी हड़बड़ी में हैंडल किया है कि उसने ध्यान नहीं दिया कि उसे वापिस रखते समय और डिब्बों की तरह उस डिब्बे के लेबल का मुंह सामने की तरफ नहीं रहा था । वकील साहब, डिब्बों के इस पिरामिड में यह डिब्बा आपको काला चोर नहीं मालूम हो रहा ?"


वकील ने उत्तर नहीं दिया लेकिन उसकी आंखों में एकाएक जो एक नई चमक पैदा हो गई थी, वह मनोहर से छुपी न रही । उसने सन्तुष्टि से सिर हिलाया । मछली चारा निगल गई थी ।


‘और” - मनोहर ने तपते लोहे पर चोट की - "जमीन पर पड़े इन आटे चावल वगैरह के बोरों को देखिए । क्या इनमें से किसी में वक्ती तौर पर रिवाल्वर नहीं छुपाई जा सकती ?"


“छुपाई तो जा सकती है लेकिन" - वकील बोला "वह वहां छुपी तो नहीं रह सकती ।" -


"क्यों नहीं छुपी रह सकती । आपकी जानकारी के लिए अखबार में ही छपा है कि लड़की वह स्टोर बेचना चाहती है। इससे साफ जाहिर होता है कि वहां दुकानदारी कोई खास नहीं चल रही । ऐसे माहौल में एक या दो दिन तो रिवाल्वर या हीरे अपने-अपने गुप्त स्थानों पर बखूबी छुपे पड़े रह सकते हैं । उस दौरान जगतपाल अपने छूटने की उम्मीद कर ही रहा होगा । देख लेना वह वहां जाता ही होगा। अगर आज उसको पुलिस ने न छोड़ा तो जरूर जरूर उसका कोई सहयोगी वहां पहुंच जाएगा और किसी न किसी बहाने से वे दोनों चीजें अपने अधिकार में कर लेगा । "


"कर्नल साहब" - एकाएक वकील बड़े उतावले स्वर में बोला - "मुझे एकाएक बड़ा जरूरी काम याद आ गया है। अगर आप बुरा न मानें तो मैं आप से रुख्सत लूं।"


"हां, हां। क्यों नहीं | जरूर । मैं खुद अपने होटल में जाने की सोच रहा था । "


वकील उठ खड़ा हुआ |


"दीवान साहब" - मनोहर बोला- "इस लड़की का केस अगर आप के हाथ में आ जाये तो आपकी जय-जयकार हो जायेगी । आप यह समझ लीजिए कि केस तो शुरू होने से पहले ही खत्म हो जायेगा ।"


"वह तो है लेकिन मैं तो उस लड़की के पास नहीं जा सकता न । यूं क्लायनट हासिल करना एक गलत काम होगा । यह बात पेशे की ईमानदारी के खिलाफ होगी ।"


"अरे, आप यह सोच कर स्टोर में क्यों जाते हैं कि आप क्लायन्ट हासिल करने जा रहे हैं । आप एक ग्राहक के तौर पर स्टोर में जाइये। लेकिन जाइये अपना वकीलों वाला कोट पहन कर । क्या पता लड़की खुद ही आपसे इस बारे में कोई बात करे । अगर उस पर मान हानि का मुकदमा हुआ तो वकील की जरूरत तो आखिर उसे होगी ही । "


" मैं सोचूंगा इस बारे में। फिलहाल तो मैं किसी और निहायत जरूरी काम से जा रहा हूं।"


"शौक से जाइये ।”


"आप बुरा तो नहीं मानेंगे कि मैं..."


"अजी नहीं, कतई नहीं । "


वकील उससे हाथ मिला कर वहां से विदा हो गया ।


वह बहुत जब्त करके वहां से चल कर गया | मनोहर को पूरा भरोसा था कि अगर वह वहां न होता तो वृद्ध वकील दौड़ता हुआ टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंचता ।


वहीं से मनोहर ने रिवरव्यू होटल में शबनम को फोन किया।


‘मिसेज पूर्णिमा सरीन’ अपने कमरे में ही थी, उसके लाइन पर आते ही वह धीरे से बोला- "हमारा बकरा अभी-अभी किसी जरूरी काम का बहाना करके यहां से गया है, लेकिन उसका जरूरी काम यही है कि उसने गोली की तरह सीधे एजरा स्ट्रीट पहुंचना है।"


"वैरी गुड ।" - शबनम की आवाज आई।


" अब तुम्हारी बारी है ।"


"मैं भी चली । मैं तो तैयार बैठी तुम्हारे फोन का ही इन्तजार कर रही थी । वह गोली की तरह गया है तो मैं गोले की तरह जाती हूं।"


“काम होशियारी से करना । "


“तुम चिन्ता मत करो, डैडी ।”


"गुड गर्ल ।”


मनोहर ने धीरे से रिसीवर रख दिया ।