छठा बयान
आज न जाने क्या बात है कि हमें उन महाशयजी की बहुत याद आ रही है, जिनके विषय में हम पहले भाग में लिख आये हैं। हमने आपसे वादा किया था कि संतति के दूसरे भाग में हम उन महाशयजी का नाम आप लोगों को अवश्य ही बताएंगे। हमने आपको चुनौती दी थी कि आप स्वयं उन महाशयजी का नाम पता लगाएं । आप ठीक समझे हैं या नहीं, यह जानने के लिए आप यह बयान पढ़िए - अपने इस बयान में हम अपने महाशयजी का नाम खोलने जा रहे हैं। आपको याद है कि ये महाशय उमादत्त की कैद से भागे हैं और उमादत्त के खास ऐयार विक्रमसिंह के घर पहुंचते हैं— वहां से ये विक्रमसिंह की लड़की और पत्नी को गठरी में बांधकर चलते हैं। जंगल में बनी एक कुटी के निकट जाकर कुएं के अन्दर पहले गठरी फेंक देते हैं तथा उसके बाद स्वयं भी कूद पड़ते हैं। उस समय हम कुएं के अन्दर का दृश्य अंधेरे के कारण नहीं देख पाए थे। मगर आज हमें यही महाशयजी जंगल में एक तरफ को जाते हुए नजर आ रहे हैं । इस समय उनके सारे जिस्म पर काला लिबास है। केवल चेहरे पर नकाब नहीं है। हमने और आपने इन्हें चन्दारानी और कुन्ती की गठरी सहित एक कुएं में कूदते देखा था । उस कुएं में क्योंकि अंधेरा था, इसलिए न तो हम देख सके कि उन्होंने उस कुएं में जाने के बाद क्या किया और न ही यह बता सकते हैं कि ये महाशयजी उस समय क्यों और कैसे नजर आ रहे हैं। कुएं में कूदने से इस समय तक का हाल हम तभी लिख सकेंगे जब हमें किसी जरिए से पता लगेगा । इस समय तो हम केवल यही कह सकते हैं कि हमारे महाशयजी बहुत तेज चाल से जंगल में एक ओर को चले जा रहे हैं। कदाचित उन्हें किसी निश्चित स्थान पर जाने की जल्दी है । जिन पाठकों को इनके कुएं में कूदने का हाल याद न रहा हो तो वे पहले भाग से नया शुरू होने वाला बयान पढ़ें।
कुछ आगे जाकर महाशयजी जंगल में दाईं ओर मुड़ जाते हैं। कोई पांच कोस का रास्ता तय करने के बाद उन्हें सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई पड़ता है। कुछ पास आने पर हमारे महाशयजी पहचान लेते हैं कि वही उनका शागिर्द गंगाशरण है। गंगाशरण उन्हें आता देख उन्हीं की ओर बढ़ता है और पास आकर कहता है—
"गुरुजी प्रणाम !” यह कहकर वह महाशयजी के चरण स्पर्श करता है।
—“यहां क्या कर रहे हो, गंगाशरण ?" महाशयजी ने पूछा ।
–“बालादवी के लिए निकला था गुरुजी ।" गंगाशरण ने जवाब दिया ।
- "क्या खाक बालादवी कर रहे हो ?" महाशयजी क्रोधित होकर बोले – “मैंने तुम्हें इतनी ऐयारी सिखाई, किन्तु सब बेकार हो गई । क्या तुम बता सकते हो कि हम इतने दिन से कहां थे और इस समय कहां से आ रहे हैं ?"
— "क्या बात कर रहे हो गुरुजी ?" गंगाशरण बोला – “आप आज ही तो मुझसे मिले हैं। "
- "तभी तो हम कहते हैं गंगाशरण कि तुम हमारे नाम को बया लगा दोगे।" महाशयजी बोले – "तुमसे मिलने वाले हम नहीं, बल्कि उमादत्त का खास ऐयार विक्रमसिंह है। वह आजकल हमारे यानी बख्तावरसिंह के भेष में घूमता है। हम तो काफी दिन से उमादत्त की कैद में थे। विक्रमसिंह तुम सबको धोखा दे रहा है और तुम हमारे नाम पर कलंक लगा रहे हो । "
-"ये आप क्या कह रहे हैं ?" गंगाशरण एकदम चौंका।
"ठीक कहते हैं हम ।" बख्तावरसिंह ( महाशय) बोला— “आओ हमारे साथ — कहीं वह हमारे लड़के गुलबदनसिंह को अपने जाल में न फंसा ले।" यह कहकर बख्तावर आगे बढ़ गया। आश्चर्य में डुवा गंगाशरण उसके साथ था। कुछ ही देर बाद वे एक छोटी-सी बस्ती में पहुंच गए। वे उस कच्चे मकान पर पहुंचे, जिसके दालान में तीन दासियां बैठी हैं। इस मकान के विषय में हम पहले भाग के ५२ नं. पेज पर लिख आए हैं। बख्तावरसिंह को आता देख तीनों दासियां आश्चर्य से खड़ी हो जाती हैं ।
– “आप — आप तो अभी गुलबदन को लेकर अन्दर गए थे ?” उनमें से एक लौंडी आश्चर्य से बोली ।
— "हम नहीं — वह दुश्मन का ऐयार विक्रमसिंह है।” बख्तावरसिंह ने झल्लाकर कहा और पांच सिपाही तथा तीन दासियों को साथ लेकर चेहरे पर नकाब डाला और उस कमरे में चला गया, जहां बख्तावरसिंह बना विक्रमसिंह का रहस्य खोलता है। यह घटना आप पहले भाग के पृष्ठ ५१ पर पढ़ सकते हैं। फिर भी यहां हम लिख दें कि विक्रमसिंह बख्तावर को चंद्रप्रभा और रामरतन नाम के दो आदमियों से डरना चाहता है, मगर इस बार वह डराना नहीं, बल्कि बटुए से एक कागज निकालकर विक्रमसिंह को पढ़ाया । उसे पढ़ते ही विक्रम बेहोश होकर गिर गया।
अब हम पाठकों को उससे आगे का किस्सा सुनाते हैं।
—"मूर्ख – चला था बख्तावरसिंह को धमकाने ।” बख्तावरसिंह उसके बेहोश होने पर बोला । गुलबदन सहित सभी दृश्य को आश्चर्य के साथ देख रहे थे। बेहोश होने के साथ ही विक्रमसिंह के हाथ से वह कागज छूट गया था, जिसे पढ़कर उसकी यह दशा हुई। कमरे में मौजूद हर आदमी की जिज्ञासा उस कागज को पढ़ने की थी। सब यही जानना चाहते थे कि ऐसा उस कागज में क्या लिखा है कि विक्रमसिंह बेहोश हो गया । "
“पिताजी !" गुलबदन अपना संयम तोड़कर बोला – "इस कागज में ऐसा क्या लिखा है ?"
- "इस कागज को यहीं पढ़कर तुम सबको सुनाओगेबख्तावरसिंह ने कहा—“इसे होश में लाया जाए !" गुलबदन ने तुरन्त पिता की आज्ञा का पालन किया और विक्रमसिंह को लखलखा सुंघाकर होश में लाया गया । जंब वह खड़ा हो गया तो बख्तावरसिंह बोला— "क्यों... इतने से ही घबराकर बेहोश हो गए... तुमने तो मेरी लड़की और जंवाई को न जाने कब से गिरफ्तार कर रखा है। " -“अभी रामरतन और चंद्रप्रभा जीती हैं बख्तावरसिंह।" विक्रम बोला — "तुम चाहो तो मैं सचमुच उन्हें बचाकर ला सकता हूं।" -“अब तो तेरा बाप भी लाएगा विक्रमसिंह, लेकिन ये बातें बाद में होंगी।" बख्तावर सख्त स्वर में बोला – "यहां पर मौजूद सभी लोग उस कागज को पढ़ने के लिए उत्सुक हैं, जिसे पढ़कर तुम इस हालत तक पहुॅचे हो—जरा एक बार वह कागज पढ़कर सुना दो।" आदेश का पालन करते हुए विक्रमसिंह ने कागज पढ़कर सुनाया...
लिखा था
प्राणनाथ विक्रमसिंह,
वैसे तो आप लिखाई पहचान रहे होंगे, किन्तु फिर भी लिख दूं कि यह पत्र मैं तुम्हारी पत्नी चंदा लिख रही हूं। लिख क्या रही हूं, बल्कि यह पत्र बख्तावरसिंह नामक एक आदमी मुझसे जबरदस्ती लिखवा रहा है। यह तो हमें अब पता लगा है कि इस आदमी का नाम बख्तावरसिंह है। पहले-पहल यह हमारे घर रूपलाल के भेष में आया था। मुझे और मुन्नी को धोखा देकर यहां ले आया। इसने हमें बेहोश कर दिया था, अतः हम नहीं जानते कि इस समय हम कहां हैं — आंख खुली तो हमने खुद को यहां कैदखाने में पाया और अब यह मुझसे पत्र लिखवा रहा है। मेरे बराबर में ही कुंती बैठी है। हम दोनों ही इस समय इसके कब्जे में हैं। जो यह कहे, आप कर दें, वर्ना यह खतरनाक आदमी हमें जिन्दा नहीं छोड़ेगा, वैसे अभी तक इसने हमें कोई कष्ट नहीं दिया है।
तुम्हारी धर्मपत्नी
— चंदारानी ।
—“और अगर तुम मेरे कहे अनुसार चलोगे तो मैं तुम्हारी पत्नी और लड़की को किसी प्रकार का कष्ट दूंगा भी नहीं।" पत्र समाप्त होते ही बख्तावर ने विक्रमसिंह से गुर्राते हुए कहा— "और ये भी यकीन रखना कि अगर तुमने जरा भी चालाकी करने की कोशिश की तो किसी भी कीमत पर मैं चंदा और कुंती को जीवित नहीं छोडूंगा । तुम्हारे राजा उमादत्त ने मेरी लड़की चंद्रप्रभा और दामाद रामरतन को कैद कर रखा है। यह तो मैं पता नहीं लगा सका कि वे लोग कहां कैद हैं—किन्तु मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हें उस कैदखाने का पता अवश्य मालूम होगा। तुम्हें मेरी सोची हुई योजना पर काम करना होगा और तुम्हारी जरा-सी भी चालाकी चंदा और कुंती की जान ले लेगी ।”
-"नहीं... नहीं...ऐसा मत कहो बख्तावर" विक्रमसिंह एकदम बोला — "मैं तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं करूंगा। सच बात तो ये है कि बिल्कुल नहीं जानता। बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि कोई भी ऐयार नहीं। उमादत्त ने चंद्रप्रभा और रामरतन को कहां कैद कर रखा है, यह के जानता । तुम तो जानते हो कि उमादत्त का दीवान मेघराजसिंह एक छोटे-से तिलिस्म का दारोगा है। मेरे ख्याल से उमादत्त ने तुम्हारी लड़की और जंवाई को मेघराज की देखरेख में उसी तिलिस्म में कैद कर रखा है। तुम अच्छी तरह जानते हो कि उमादत्त और मेघराज के अतिरिक्त अन्य कोई तीसरा आदमी ऐसा नहीं है, जो उस तिलिस्म का रास्ता जानता हो अथवा उसके रहस्यों से वाकिफ हो। उन दोनों में से ही कोई प्रभा और रामरतन का पता बता सकता है । "
- "झूठ बोलने से पहले ये याद रखो विक्रमसिंह कि चंदा और कुंती की जान मेरे हाथ में है।" बख्तावर गुर्राया—“तुम अपने मुंह से कह चुके हो कि चंद्रप्रभा और रामरतन कहां हैं, ये तुम जानते हो और हमें उनसे मिला भी सकते हो ।”
– “वह तो मैं केवल तुम्हें डराने के लिए कहा करता था।" विक्रम बोला—“वर्ना मैं चंदा की कसम खाकर कहता हूं कि मैं उनका पता नहीं जानता।"
– "फिर तुम यह बात विश्वास से कैसे कहते हो कि वे दोनों अभी जीते हैं ?" बख्तावरसिंह ने कहा – “ये भी तो हो सकता है कि मेघराज ने उन्हें मार दिया हो ? और अभी तक यह बात उसने राजा उमादत्त से छुपाकर रखी हो ?"
“ऐसा नहीं हो सकता बख्तावर ।" विक्रम ने जवाब दिया— “यह मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मेघराज उमादत्त का साला है। मेघराज की बहन कंचन तीन साल पहले मर गई है। अथवा यूं कहना चाहिए कि किसी ने उसकी हत्या कर दी है। उमादत्त के ऐयार बराबर कंचन के हत्यारे का पता लगाने के लिए घूमते रहते हैं। सबसे मुख्य बात ये है कि मेघराज उमादत्त का राज्य हड़पना चाहता है। यह भनक अभी तक उमादत्त के कानों तक नहीं पड़ी है। मगर उमादत्ता का राज्य हड़पने में मेघराज को केवल एक दिक्कत हो रही है, कलमदान नामक कोई वस्तु है, जिसका रहस्य तुम्हारी लड़की चंद्रप्रभा और जंवाई रामरतन जानते हैं। उमादत्त का राज्य हड़पने से पहले मेघराज वह कलमदान हासिल कर लेना आवश्यक समझता है। इतना ख्याल है कि कलमदान को हासिल किए बिना मेघराज शासन नहीं कर सकता। जैसा कि मैं बता चुका हूं... कि यह कलमदान कहां है, यह रहस्य केवल चंद्रप्रभा और रामरतन जानते हैं। मेघराज उनसे कलमदान का रहस्य पूछना चाहता है, मगर वे दोनों बताते नहीं हैं। तुम सोच सकते हो कि जब तक मेघराज उनसे कलमदान का रहस्य पता नहीं लगा लेगा, तक वह उन्हें नहीं मार सकता। यह भी निश्चित है कि अभी तक उन्होंने कलमदान के बारे में मेघराज को कुछ बताया नहीं है । "
– "तुम यह सब किस प्रकार जानते हो ?" बख्तावर ने प्रश्न किया।
-" चार दिन पहले की ही तो बात है कि राजा उमादत्त ने मुझे तलब किया। मुझे ये आदेश मिला कि मैं स्वयं जाकर मेघराज को लेकर आऊं। जिस समय मैं मेघराज के घर पहुंचा तो अभी बाहर ही था कि देखा—मेघराज अपने कमरे में बैठा हुआ पिशाचनाथ से कुछ बातें कर रहा था। मैंने छुपकर उनकी बातें सुनीं और उन्हीं बातों से मुझे ये सब बातें पता लगीं।"
-"क्या तुम बता सकते हो कि कलमदान में ऐसा कौन-सा रहस्य है जो मेघराज उमादत्त का राज्य हड़पने से पहले उसे प्राप्त कर लेना बहुत आवश्यक समझता है ?" बख्तावरसिंह ने प्रश्न किया ।
– “यह तो मुझे पता नहीं लग सका, किन्तु वे बातें मैं तुम्हें बता सकता हूं, जो छुपकर मैंने सुनी थीं। पिशाचनाथ और मेघराज की बातों : से कई नए रहस्य मेरे सामने खुले भी थे और कई विचित्र बातें मेरे सामने आई थीं।"
-"हम सुनने के लिए तैयार हैं—–— तुम बताओ।" बख्तावरसिंह ने कहा ।
सातवां बयान
हम जानते हैं कि इतना कथानक पढ़ जाने के पश्चात् भी पाठक अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि मुख्य कथानक क्या है ? कौन किसका दुश्मन और दोस्त है ? कौन किसका ऐयार है, यह सब बखेड़ा किस बात पर बना हुआ है ? हम जानते हैं कि जब तक पाठक यह सब न जानें, उनका दिमाग उलझन में ही रहेगा, अतः अब जरा ध्यान से पढ़िए – हम धीरे-धीरे करके एक-एक रहस्य स्पष्ट करते जा रहे हैं ।
विक्रमसिंह ने मेघराज और पिशाच के बीच की जो बातें सुनी हैं, उनसे काफी कुछ पाठकों की समझ में आएगा – अतः विक्रमसिंह की ही जुबानी हम वह सब पाठकों को भी सुनाते हैं जो विक्रमसिंह, बख्तावरसिंह इत्यादि को बता रहा है।
उस समय मैं मेघराज के कमरे के बाहर ही था, जब मैंने मेघराज की आवाज कमरे के अन्दर से आती सुनी—
–'देखो पिशाचनाथ, ये तो मैं नहीं जानता कि तुम मुझे अपना दोस्त मानते हो या नहीं मानते, लेकिन मैं तुम्हें ये विश्वास दिला सकता हूं कि मैं तुम्हें सच्चे दिल से अपना दोस्त मानता हूं । इस समय हम दोनों मुसीबत में है। अगर हम दोनों मिलकर काम करें तो दोनों ही अपनीअपनी पुसीबत से छुटकारा पा सकते हैं। तुमने और मैंने बहुत से पाप-कर्म किए हैं। तुम जो भी कुछ कर रहे हो, अपने अपमान का बदला लेने के लिए कर रहे हो और मैं जो कुछ कर रहा हूं, उपादत्त का राज्य लेने के लिए कर रहा हूं।'
मेघराज का यह वाक्य सुनकर मैं चौंका और मेरी दिलचस्पी उनकी बातों के प्रति बढ़ गई। अतः मैं कमरे के बाहर ही खड़ा होकर उनकी बातें सुनने लगा। मेघराज की बात के जवाब में पिशाच की आवाज आई—
—'तुम यकीन मानो या न मानो मेघराज, लेकिन मैं तुम्हें हमेशा से अपना दोस्त समझता हूं। तुम जानते हो कि मैंने जितने भी पाप-कर्म किए हैं, उन सबका रहस्य वह टमाटर वाला जानता है। जबकि मैं ये भी नहीं जानता कि वह टमाटर वाला है कौन। केवल इतना ही जानता हूं कि वह अपना नाम शैतानसिंह बताता है। उसका मुझे टमाटर दिखाने का मतलब है कि वह मुझे जब चाहे समाप्त कर सकता है। मैं तुमसे केवल इतना ही चाहता हूं कि उस टमाटर वाले को खोजने में तुम मेरी कुछ मदद करो।'
-'लेकिन तुमने आज तक यह नहीं बताया कि आखिर तुम एक छोटे-से टमाटर से डरते क्यों हो ?'
-'तुम नहीं जानते मेघराज, उस टमाटर में ही तो मेरी जान पड़ी है।' पिशाच ठण्डी सांस भरकर बोला-'अगर वह टमाटर मेरे हाथ लग जाए तो दुनिया की कोई भी शक्ति पिशाच से नहीं जीत सकती। साथ ही ये बात भी है कि मैं अपने मुंह से उस टमाटर का रहस्य किसी को बताकर भला अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी किस प्रकार मार सकता हूं ? हां, उसके मिल जाने पर मैं तुम्हें उसका रहस्य बता सकता हूं ।'
— 'लेकिन तुम्हें मुझसे किस बात का डर है ?" मेघराज ने कहा- 'मुझे तो तुम अपना दोस्त मानते हो ?'
'तुमने भी तो आज तक अपने कलमदान का रहस्य मुझे नहीं बताया ?' जवाब में पिशाच बोला- 'क्या मैं तुम्हारा दोस्त नहीं हूं ?"
'खैर ।' मेघराज बात को सम्भालने की चेष्टा करता हुआ बोला- हम दोनों को चाहिए कि मैं तुम्हारे रहस्य को जानने की कोशिश न करूं और तुम मेरे रहस्य को हम दोनों को विश्वास करके एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। तुम मेरे साथ मिलकर मेरी मदद करो — यानी उस कलमदान को प्राप्त करने में मेरी मदद करो, उसके बाद हम दोनों मिलकर उस टमाटर वाले को खोज निकालेंगे।' -
- 'ठीक है ।' पिशाच स्वीकार करता हुआ बोला – 'तो तुम ये बताओ कि इस समय तुम उस कलमदान के विषय में क्या बता सकते हो?"
- "ये समझ लो कि जिन आदमियों के हाथ में वह कलमदान है, से मेरी कैद में हैं।' मेघराज ने कहा- 'मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अभी तक उस कलमदान का रहस्य केवल दो ही व्यक्ति जानते हैं... और वे दोनों चंद्रप्रभा और रामरतन हैं।'
'क्या वे ही... बख्तावरसिंह की लड़की और जंवाई ?' पिशाच ने कहा।
- 'हां... तुम जानते हो कि बख्तावरसिंह आज से दो साल पहले हमारा ही साथी-यानी राजा उमादत्त का ऐयार था। क्योंकि राजा उमादत्त का दारोगा होने के साथ-साथ मैं उनका साला भी हूं इसलिए वे सबसे अधिक मेरी बात मानते हैं। तीन साल पहले न जाने किस कमीने ने मेरी बहन कंचन की हत्या कर दी, उसके बाद उमादत्त मेरी बात के सामने बख्तावरसिंह की बात को अधिक महत्व देने लगे। धीरे-धीरे मेरी स्थिति बख्तावरसिंह लेता जा रहा था। मुझे यह बात बड़ी बुरी लगी और मैंने ऐसा षड्यंत्र रचा कि उमादत्त की नजरों से बख्तावर को गिरा दिया, साथ ही उसे राज्य से निकलवा दिया । और फिर उमादत्त ने उसे अपने ऐयार के पद से वंचित कर दिया ।'
—'क्या तुम मुझे षड्यंत्र नहीं बताओगे जो तुमने बख्तावरसिंह के विरुद्ध रचा था ?' पिशाच ने कहा ।
-'ये तो तुम जानते ही हो कि उमादत्त और गौरवसिंह की बहुत पुरानी दुश्मनी है।' मेघराज ने बताया- 'हालांकि इस समय गौरव किसी राज्य का राजा नहीं है —– किन्तु फिर भी वह उमादत्त से कम शक्तिशाली नहीं है। उसका ख्याल है कि अगर किसी प्रकार गौरव उसके कब्जे में - आ जाए तो वह सारे झंझटों से मुक्त हो जाए। उन दिनों बख्तावरसिंह उमादत्त का सबसे अधिक समझदार एवं विश्वसनीय ऐयार था, अतः यह कठिन काम उमादत्त ने बख्तावरसिंह को ही सौंपा और बख्तावरसिंह को फंसाने के लिए मेरे पास एक अत्यन्त ही उपयुक्त अवसर था । बख्तावरसिंह को क्या मालूम था कि दिल ही दिल में मेरे अन्दर उसके प्रति कालिख है ? उमादत्त का साला और दारोगा होने के कारण वह मेरी इज्जत करता था । उसे स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी कि मैं उसके साथ बहुत बड़ी ऐयारी खेलने जा रहा हूं। जब वह मेरे पास राय लेने आया तो मैंने कहा – 'गौरवसिंह आसानी से तो तुम्हारे हाथ आ नहीं सकता।' इस पर बख्तावरसिंह ने कहा – 'तभी तो मैं आपके पास आया हूं...मुझे कोई ऐसी तरकीब बताइए, जिससे मैं गौरवसिंह को फंसा सकूं ।'
— 'तुम एक काम करो।' मैंने उसे राय दी– 'तुम कालागढ़ के जंगल में जाओ... वहां अक्सर गौरवसिंह आया करता है। तुम उससे दुश्मन की तरह नहीं, बल्कि दोस्त की तरह मिलो... तुम उससे कहो कि तुम राजा उमादत्त से अन्दर-ही-अन्दर जलते हो और उसका राज्य हड़पना चाहते हो... इस काम में मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है। वह खुद उमादत्त का दुश्मन है... इसके लिए वह एकदम तैयार हो जाएगा और उसका विश्वास प्राप्त करके तुम किसी भी प्रकार उसे उमादत्त के महल में ला सकते हो। हम अपनी योजना के अनुसार महल में दाखिल होते ही गौरव को गिरफ्तार कर लेंगे और उमादत्त के सामने ले जाएंगे। इसके बाद उमादत्त जाने और उसका काम ।'
— 'मेरी यह योजना बख्तावर को जम गई। मेघराज पिशाच को अपना षड्यंत्र बताता हुआ बोला— 'बख्तावरसिंह के जाते ही मैं अपने एक सैनिक को सबकुछ समझाकर राजा उमादत्त से जाकर बोला तो आपने बख्तावर को गौरव वाला काम सौंपा है ?'
—'क्यों... ... क्या इस काम के लिए हमारे पास बख्तावर से अच्छा कोई ऐयार है ?' उमादत्त ने मुझसे मुस्कराते हुए पूछा ।
—'आप असलियत सुनेंगे तो चौंक पड़ेंगे।' मैंने कहा – 'हमारी रियासत में बख्तावरसिंह से बड़ा कोई गद्दार नहीं है ।'
–'क्या बकते हो, मेघराज ?' उमादत्त मुझ पर भड़क पड़े— 'बख्तावरसिंह और गद्दार !'
—'जी हां ।' मैंने कहा – 'वास्तविकता ये है कि वह आपका राज्य हड़पना चाहता है वह गौरवसिंह से मिलकर आपके खिलाफ कार्यवाही कर रहा है। आपको दिखाने के लिए यह यहां गौरवसिंह को पकड़कर लाएगा। यह काम वह केवल आपको खुश करने के लिए करेगा, वास्तविकता ये है कि वह गौरवसिंह से मिला हुआ होगा और वह यहां नकली गौरवसिंह को लाएगा ।'
–'ये हम नहीं मान सकते !' एकदम बिगड़कर बोले उमादत्त — 'बख्तावर हमारे साथ इतना बड़ा धोखा नहीं कर सकता ।' -
—' और मैं क्या आपसे व्यर्थ ही झूठ बोल सकता हूं ?' मैंने कहा – 'आज अगर मेरी बहन नहीं है तो भी आखिर आप हैं तो मेरे जीजा ही... ना जाने किस दुष्ट ने मेरी बहन की हत्या कर दी है ? मैं इसे आपका नहीं अपना राज्य समझता हूं और मैं ये कभी सहन नहीं कर सकता कि कोई नीच ऐयार आपको धोखा देकर इस राज्य को हड़पना चाहे। आपकी आंखें खोल देना मैं अपना फर्ज समझता हूं ।'
- - 'लेकिन तुम्हें यह सब बातें कैसे पता लगीं ?’ उमादत्त ने पूछा ।
–'यह जो सिपाही आपके सामने खड़ा है, यह हमारा खास वफादार सिपाही है।” मैंने कहा – 'राज्य पर कब्जा करने के लिए बख्तावर हमारी सेना में से अन्दर ही अन्दर आदमी तोड़कर अपनी सेना बना रहा है, ताकि जब वह आपके मुकाबले पर खड़ा हो तो उसे किसी प्रकार की कठिनाई न हो । हमारे वफादार सिपाही ने उसका भी विश्वास प्राप्त कर लिया है और गौरव के बारे में वह अपनी सारी योजना इसे बता गया है।'
–'क्या यह सच है ?' उमादत्त ने उस सिपाही से पूछा जिसे मैं सबकुछ समझाकर अपने साथ ले गया था।
–'जी हां !' उसने सबकुछ मेरे बताए अनुसार ही कहा – 'ये सच है...बख्तावरसिंह गुपचुप फौज के आदमियों को तोड़कर अपनी ओर मिला रहा है। मुझे उसने पूरी सेना का नायक बनाया है। उसका इरादा शीघ्र ही आपके खिलाफ बगावत करने का है। वह गौरव के बारे में आपको क्या धोखा देने जा रहा है, यह सब भी वह मुझे आज बता गया है । आपको धोखा देने के लिए उसने पूरी योजना तैयार कर रखी है।'
– 'बख्तावरसिंह ने तुमसे क्या कहा ?' उमादत्त ने पूछा।
–' उसने कहा कि वह अपने ही एक आदमी को गौरव बनाकर पूछा। गिरफ्तार करेगा और आपको खुश करने के लिए उसे आपके पास लाएगा, जिससे आप ये धोखा खा जाएंगे कि वह गौरवसिंह है और आप उस पर और भी अधिक विश्वास करने लगेंगे। उसने बताया कि हमारे आदमी को गौरव जानकर निश्चय ही उमादत्त कैदखाने में डाल देंगे । इससे एक काम यह भी सिद्ध होगा कि आपके कैदखाने में जितने भी कैदी हैं, वह उन सबको आपके खिलाफ भड़काकर अपने में मिला लेगा और बाद में स्वयं बख़्तावर ही सबको कैदखाने से निकाल लेगा ।'
यह सब सुनकर अवाक् से रह गए उमादत्त, बोले—–—'नहीं—हमें विश्वास नहीं होता–बख्तावर हमारे खिलाफ इतना गहरा षड्यंत्र नहीं रच सकता ।'
-'अगर आपको विश्वास नहीं है तो आप शांत होकर उस दिन की प्रतीक्षा करें जिस दिन बख्तावर गौरवसिंह को गिरफ्तार करके आपके पास लाए। जब वह गिरफ्तार करके आपके और हमारे सामने लाएगा तो हम गौरवसिंह की जांच करेंगे—–— अगर वह नकली हुआ तो बात स्पष्ट हो जाएगी, अगर वह असली गौरवसिंह को गिरफ्तार कर लाया तो इसका मतलब हम झूठे हैं। बख्तावरसिंह आपका वफादार सिपाही है।'
उमादत्त ने इस बात को स्वीकार कर लिया। अगले दिन मैंने अपने एक खास आदमी पर गौरव का मेकअप किया। यह आदमी उमादत्त के राज्य से बाहर का था और कोई नहीं जानता था कि उसका मुझसे कुछ सम्बन्ध है। उसे किस दिन किस समय क्या करना या कहना है यह सब मैंने बता दिया था। मैं भी अपने द्वारा बनाए गए गौरव के साथ कालागढ़ गया था। किन्तु सामने नहीं आया था – बल्कि एक स्थान पर छुपा हुआ था। मेरे द्वारा बनाया गया गौरव योजना के अनुसार जान-बूझकर बख्तावरसिंह के सामने पड़ा।'
— 'तुम !' बख्तावरसिंह को देखते ही उसने म्यान से तलवार खींचने का अभिनय किया- 'तुम्हें शायद उमादत्त ने भेजा है ?'
— - 'ऐसी बात नहीं है।' बख्तावरसिंह मेरी ही बताई हुई योजना पर चल रहा था — 'मुझे उमादत्त ने जरूर भेजा है, किन्तु में यहां तुमसे दुश्मनी करने नहीं बल्कि दोस्ती करके तुमसे कुछ मदद मांगने आया हूं। मैं तो खुद उमादत्त का दुश्मन हूं।'
- 'क्या मतलब...?' मेरा बनाया हुआ गौरवसिंह बोला ।
- 'मतलब ये कि उमादत्त ने धोखे से मेरी ही लड़की और दामाद को गिरफ्तार कर लिया है ।' ये सारे शब्द मैंने ही बख्तावरसिंह को बताए थे – 'उमादत्त समझता है कि मुझे उसकी बदमाशी मालूम नहीं है, जबकि मैं सब जानता हूं। परन्तु मैंने भी उमादत्त पर यह प्रकट नहीं होने दिया है कि मुझे सबकुछ मालूम है ।'
–'लेकिन उसने तुम्हारी लड़की और दामाद को कैद क्यों किया है ?' गौरवसिंह बना हुआ मेरा आदमी बोला ।
—'क्योंकि वह नीच, पापी और अय्याश राजा मेरी लड़की को अपनी पत्नी बनाना चाहता है।' बख्तावरसिंह ने वही बहाना बनाया, जो मैंने उसे बताया था ।
-' तो अब तुम क्या चाहते हो ?" नकली गौरवसिंह ने कहा ।
— 'मैं आपकी मदद चाहता हूं।' बख्तावर बोला – “आप भी उमादत्त के दुश्मन हैं और मैं भी उसका दुश्मन हूं। मैं उसका तख्ता पलटकर वहां का राजा बनना चाहता हूं- -मगर मैं अकेला इतना बड़ा काम नहीं कर सकता। अगर आपकी मदद मिल जाए तो मैं अवश्य ही सफल हो सकता हूं।'
अगर उस समय बख्तावरसिंह के सामने खड़ा हुआ गौरव असली होता तो कभी बख्तावर की बात पर विश्वास न करता । किन्तु वह गौरव भी मेरा बनाया हुआ था और उसे मैंने सबकुछ समझा रखा था अतः वह बोला— 'लेकिन मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं ?' - – 'उमादत्त ने मुझे तुम्हें गिरफ्तार करने का काम सौंपा है।' बख्तावर ने कहा – 'मेरी योजना ये है कि मैं तुम्हें गिरफ्तार करके वहां ले जाऊं और उमादत्त तुम्हें निश्चय ही उस कैदखाने में डालेगा जिसमें मेरी बेटी और दामाद हैं। तुम उन्हें निकाल सकते हो और वहां के अन्य कैदियों को भड़काकर वहां बगावत कर सकते हो। मैं तुम्हें उमादत्त पास इस प्रकार ले जाऊंगा–मानो तुम बेहोश हो, जबकि वास्तव में तुम होश में होगे।'
मैं दावे से कह सकता हूं कि अगर यह सब बातें बख्तावर असली गौरव से कहता तो वह कदापि बख्तावर की चाल में नहीं फंस सकता था । मगर वह गौरव भी मेरा बनाया हुआ था और उससे मैंने कहा था कि तुम्हें बख्तावर के साथ उमादत्त के महल में जाना है।
मेरी योजना पूरी तरह सफल हुई और उस समय उमादत्त का दरबार लगा हुआ था जब बख्तावर अपने आपको होशियार समझता हुआ मेरे बनाए हुए गौरव को असली गौरव समझकर दरबार में लाया। मैं उस समय उमादत्त के समीप ही खड़ा था। उसके दरबार में आते ही मैंने उमादत्त की ओर देखा ।
-'बख्तावर को गिरफ्तार कर लिया जाए।' उमादत्त ने एकदम सिपाहियों को आदेश दिया था। बख्तावर कुछ समझ भी नहीं पाया और झपटकर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। सिपाहियों के बन्धन में मचलता हुआ वह चीखा — 'इसका क्या मतलब हुआ ?' -
-'अभी मालूम हो जाएगा। उमादत्त ने कठोर स्वर में कहा- 'मेघराज जरा गौरव को देखो कि वह असली है या नकली !' जब दरबार में यह रहस्य खुला कि गौरव नकली है, तो बख्तावरसिंह भौचक्का रह गया। वह एकदम चीख पड़ा— 'नहीं नहीं यह धोखा है। मेरे खिलाफ किसी की साजिश है। मैं नहीं जानता था कि यह गौरव नकली है । '
–'बको मत, बख्तावर !' उमादत्त क्रोध में बोले – 'तुम्हारी नमकहरामी से हम वाकिफ हो चुके हैं। अपने ही आदमी को गौरव बनाकर हमें धोखा देना चाहते थे। तुम ये भूल गए बख्तावर कि ऐयार सिर्फ ऐयार होता है... वह किसी राजा का विश्वासपात्र तो बन सकता है – किन्तु राजा नहीं बन सकता। तुम सोचते थे कि तुम अपनी ऐयारी के सहारे तख्ता पलट दोगे। ये सोचने से पहले तुमने ये नहीं सोचा कि अगर ऐयार तख्ता पलटने लगे तो हर राज्य के सम्राट ऐयार ही होंगे। ऐयारों का काम होता है कि जिस राजा के वे नौकर हैं, उसकी सलामती के लिए काम करें ।
- और तुम... जिसे कि हम अपने राज्य का सबसे बड़ा ऐयार समझते थे, ऐयारी के नाम पर कलंक निकले। हमारे ही राज्य में रहकर तुमने आस्तीन का सांप बनने की कोशिश की।'
— 'मैं बिल्कुल नहीं समझ रहा हूं राजा साहब कि आप क्या कह रहे हैं ?' बख्तावरसिंह बोला— "आप मेघराजजी से पूछ सकते हैं कि मैंने आपके साथ धोखा नहीं किया। जो आप कह रहे हैं, मैं वह सबसे कहकर गया था। मैं गौरवसिंह को गिरफ्तार करके लाया हूं—मगर यह सब कहना गौरव को फंसाने के लिए एक चाल थी। मेरी बात की सच्चाई आप मेघराजजी से पूछ सकते हैं।"
मगर मैंने भी भरे दरबार में बख्तावरसिंह को झूठा बना दिया। जब उस आदमी को होश में लाया गया जो गौरव बना हुआ था तो उसने भी योजना के अनुसार बख्तावर के खिलाफ जवाब दिया।
उसने कहा- 'ये सच है कि बख्तावर राजा साहब ( उमादत्त) का तख्ता पलटना चाहता था। मैं उसी का साथी हूं, उसने मुझे अपनी योजना के अनुसार गौरव बनाया था ।' इत्यादि ।
मेरी साजिश कुछ इस प्रकार कामयाब हुई थी कि उमादत्त की नजरों में हर तरह से बख्तावर को गद्दार साबित कर दिया था। बख्तावर ने चीख-चीखकर काफी समझाने की कोशिश की, परन्तु उमादत्त ने उसकी एक न सुनी और अगर सुननी भी चाही तो मैंने बख्तावरसिंह की बात काट दी। बख्तावरसिंह समझ गया कि उसके खिलाफ यह सारी साजिश मेरे द्वारा रचित है, किन्तु अब मुझे उसके समझ लेने से क्या डर था।
राजा साहब उस पर क्रुद्ध हो उठे और अन्त में उन्होंने कहा — 'बख्तावरसिंह ! अगर ऐसी गद्दारी किसी और ने की होती तो हम या तो उसे सजाए-मौत देते अथवा जिन्दगी भर अपनी कैद में सड़ा-सड़ाकर मार डालते - परन्तु तुम क्योंकि हमारी सेना के सबसे बड़े ऐयार हो – अतः हम तुम्हें यही हुक्म देते हैं कि अपने परिवार के साथ तुम चौबीस घण्टे के अन्दर हमारे राज्य की सीमा से कहीं बाहर चले जाओ। चौबीस घण्टे के बाद अगर तुम अथवा तुम्हारे परिवार का कोई भी आदमी हमारे राज्य में नजर आ गया तो उसे कोल्हू में पिलवा दिया जाएगा।'
बख्तावरसिंह ने उमादत्त की आज्ञा का पालन किया ।
मैं खुश था, क्योंकि मेरा दुश्मन अब राज्य से बाहर जा चुका था । कुछ दिन तक मैं अपनी तैयारियों में लगा रहा । अब मैं ऐसा जाल बिछा रहा था कि किसी प्रकार उमादत्त की गद्दी पर कब्जा कर सकूं अन्दर-ही-अन्दर उमादत्त की सेना के अधिकांश सैनिक और ऐयार मैंने अपने पक्ष में कर लिए थे। मैंने निश्चय किया था कि उमादत्त को गिरफ्तार करके तिलिस्म में डाल दूंगा । जिस तिलिस्म का मैं दारोगा हूं, उसके बारे में मेरे जितना कोई नहीं जानता । एक-आध बार मैं उमादत्त को उस तिलिस्म में घुमाकर लाया हूं, परन्तु उमादत्त भी तिलिस्म के केवल एक-चौथाई भाग से ही परिचित है ।
वह शुक्ल पक्ष की रात थी, जब सारी तैयारियां पूरी करने के बाद मैं अर्द्धरात्रि के समय अपने कमरे में आया। सुबह को बगावत हो जानी थी— यानी सुबह के लिए मैं सारा प्रबन्ध कर चुका था।
बिस्तर पर पड़ा-पड़ा मैं यह सोचकर गद्गद हो रहा था कि कुल का सूर्य निकलने के साथ ही मैं वहां का सम्राट बन जाऊंगा। मेरे कमरे में लटकी सुन्दर कन्दील जल रही थी, जिसका पर्याप्त प्रकाश कमरे में फैला हुआ था। मैं व्यग्रता से रात समाप्त होने का प्रतीक्षक था । एकाएक किसी खटके की आवाज से मेरी विचार शृंखला टूट गई। मैंने चौंककर देखा—एक आदमी मेरे कमरे की खुली हुई खिड़की से कूदकर अन्दर आ गया। उस समय मैं उसकी सूरत नहीं देख सका, क्योंकि उसके चेहरे पर नकाब था । उसे देखते ही मैंने झपटकर अपनी म्यान से तलवार खींच ली और फिर बिस्तर से उछलकर उसे ललकारता हुआ बोला – 'कौन हो तुम — रात के इस समय यहां क्या कर रहे हो?'
-'मौका तलवारबाजी का नहीं है, मेघराज ।' वह आदमी बोला— 'मैं कुछ खास बातें तुमसे करने आया हूं। तुम शायद मेरी सूरत देखने के लिए मचल रहे हो —लो, तुम मुझे देख सकते हो !'
यह कहते हुए नकाबपोश ने अपनी नकाब उतार दी । ये देखकर मैं दंग रह गया कि वह रामरतन था । बख्तावरसिंह का जंवाई रामरतन । एक क्षण तो उसे देखकर मैं स्तब्ध-सा रह गया, परन्तु फिर बोला – 'तुम, तुम यहां कैसे आ गए ? तुम्हें तो बख्तावरसिंह के साथ-साथ राजा साहब ने देश निकाले का हुक्म दिया था ?'
– 'तुम्हें यह समझाने आया हूं मेघराज कि तुम जो कल सुबह राजा बनने का ख्वाब देख रहे हो, उसे भूल जाओ ।'
'क्यों—– तुम क्या कर लोगे मेरा ?' मैंने गरजकर पूछा – तुम तो राजा साहब की नजरों में पहले ही अपराधी हो । तुम्हारी एक नहीं सुनी जाएगी। सेना का अधिकतर भाग मेरे साथ है – अगर उमादत्त को पता भी लग जाए तो भी वह मेरा कुछ नहीं कर सकता ।'
– 'तुम शायद खूनी घाटी की वह घटना भूल गए हो।' रामरतन मुस्कराकर बोला—‘उस कलमदान को याद करो मेघराज जो तुमने खूनी घाटी में ही छोड़ दिया था । अगर मैं उस कलमदान का रहस्य खोलू दूं तो राज्य के वे सैनिक जो इस समय तुम्हारे साथ मिलकर राजा उमादत्त के साथ गद्दारी करने के लिए तैयार हुए हैं—–—तुम्हें ही कच्चा चबा जाएंगे। इस कलमदान का रहस्य खुलते ही तुम्हारे साथ एक भी आदमी साथ देने के लिए न रहेगा और साथ ही तुम्हें सब मिलकर मार डालेंगे । फिर तुम्हारे राजा बनने के ख्वाबों का तो बिल्कुल पता भी नहीं चलेगा ।'
कलमदान के बारे में सुनते ही मैं बुरी तरह से घबरा गया, जैसे ही रामरतन ने खूनी घाटी का नाम लिया था — तो फिर मेरी समझ में सबकुछ ही आ गया था —— मगर फिर भी मैंने स्वयं पर संयम रखकर रामरतन से पूछा – 'तुम्हें वह कलमदान कहां से मिला ?' –'खूनी घाटी से ही ।' रामरनत ने कहा।
“और तुम उसका रहस्य कैसे जानते हो ?" मैंने उससे अगला प्रश्न किया ।
– अब क्या तुम ये समझते हो कि मैं तुम्हारे सब सवालों का जवाब देता चला जाऊंगा ?' रामरतन अकड़कर बोला— 'मैं तुम्हारे सामने उस कलमदान का जिक्र कर रहा हूं—इसी से स्पष्ट है कि मैं कलमदान के सभी रहस्यों से वाकिफ हूं और यह भी चेतावनी देता हूं कि अगर तुमने कल उमादत्त के खिलाफ कोई भी कदम उठाने की कोशिश की तो मैं उस कलमदान का रहस्य खोल दूंगा । '
-'क्या तुम वह कलमदान किसी कीमत पर मुझे लौटा नहीं सकते ? ' मैंने उससे पूछा ।
-'लौटा सकता हूं !' रामरतन ने कहा – 'केवल एक सूरत है, जिससे मैं तुझे वह कलमदान लौटा सकता हूं और वह ये कि पहले मैं अपनी तलवार से तेरा धड़ उड़ा सकूं। तुझसे मुझे बहुत बड़ा बदला लेना है। तूने मेरे ससुर को एक गहरी साजिश में फंसाकर न केवल राजा उमादत्त की नजरों में गिरा दिया— बल्कि उन्हें राज्य से बेइज्जत करके निकलवा दिया। जो इल्जाम तूने उन पर लगाया था, वह नीच कर्म तू खुद करने जा रहा है — मगर मैं तुझे कभी सफल नहीं होने दूंगा – जब भी तू ऐसा करेगा, वह कलमदान तेरी मौत बन जाएगा ।' मैं अगर इसी समय तुझे गिरफ्तार करके तुझसे कलमदान —1
-'लेकिन हासिल कर लूं तो मेरे अलावा तुम किसी और को कैसे दिखा सकोगे ?'
-'मैं इतना मूर्खराज नहीं हूं मेघराज ।' रामरतन जहरीली मुस्कान के साथ बोला— 'मैं यहां तुम्हारे पास कलमदान लेकर नहीं आया हूं – बल्कि कलमदान मेरी पत्नी चंद्रप्रभा के पास है। अगर तुमने मुझे गिरफ्तार करने की कोशिश की तो कुछ ही देर बाद कलमदान उमादत्त के पास होगा।'
मैं उसके इस वाक्य से समझ गया कि चंद्रप्रभा भी महल के अन्दर ही कहीं उपस्थित है। यह मैं जान चुका था कि कलमदान उनके पास है और यह भी स्पष्ट था कि मेरी उनसे दुश्मनी है। इस दुश्मनी का बदला लेने के लिए वे कलमदान का प्रयोग जरूर करेंगे और अगर उसका रहस्य प्रकट हो गया तो या तो मैं राज्य की जनता द्वारा ही मार दिया जाऊंगा अथवा आत्महत्या के अतिरिक्त कोई दूसरा चारा न रहेगा । यही सोचकर मैंने हिम्मत से काम लिया, और तत्क्षण ताली बजा दी । रामरतन को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया। मैंने फौरन सैनिकों को आदेश दे दिया कि कहीं भी महल के अन्दर कोई संदिग्ध आदमी मिले तो तुरन्त गिरफ्तार कर लिया जाए । मेरे सैनिक एकदम क्रियाशील हो उठे और महल के अन्दर से नकाब डाले एक आदमी और पकड़ा गया, जो बख्तावरसिंह की लड़की चंद्रप्रभा थी ।
मगर उस समय मेरे होश उड़ गए – जब उन दोनों की लाख तलाशी लेने पर भी मुझे कलमदान नहीं मिला। अब कलमदान के कारण मुझे अगले दिन बगावत करने का इरादा स्थगित कर देना पड़ा। मैंने उनसे कलमदान के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा – 'हम जानते थे कि यह वक्त भी आ सकता है। हम कलमदान नहीं लाए - - बल्कि एक ऐसे आदमी को सौंप आए हैं, जो केवल कलमदान को दरबार में उसी समय पेश करेगा, जब तुम उमादत्त का तख्ता पलटकर स्वयं राजा बनोगे ।'
मैंने उनसे उस आदमी का पता पूछा- जिसके पास कलमदान है तो उन्होंने जवाब नहीं दिया। मेरा एक इरादा तो यह बना कि बिना उमादत्त को बताए ही उन दोनों को कैद कर लूं – परन्तु उनकी गिरफ्तारी की सूचना उमादत्त के कानों तक पहुंच चुकी थी।
अगले दिन उन्हें दरबार में पेश करके मैंने कहा – 'ये दोनों आज रात मेरी हत्या करने महल में आए थे ।' मैं इस बात से डर रहा था कि कहीं वे उमादत्त के सामने कलमदान की बात न करें – किन्तु आश्चर्य की बात ये है कि वे दोनों दरबार में चुपचाप अपराधी की भांति गरदन झुकाए खड़े रहे। उमादत्त ने उन्हें कैद कर लेने की आज्ञा दी । उसी दिन से मैंने उन्हें तिलिस्म के एक ऐसे स्थान में कैद कर रखा है जिसके बारे में राजा उमादत्त भी नहीं जानते ।
उसी दिन से मैं बराबर उनसे कलमदान का पता पूछ रहा हूं। मैं अपने हर हथियार का प्रयोग कर चुका हूं, मगर सफल नहीं हुआ। आज तक उनका यही कहना है कि किसी भी कीमत पर वे मुझे कलमदान का पता नहीं बताएंगे और वह आदमी कलमदान दरबार में उसी दिन पेश करेगा, जिस दिन मैं पहली बार राजा की गद्दी पर बैठूंगा। अतः जब तक मेरे हाथ वह कलमदान नहीं लग जाता तब तक मैं राजा नहीं बन सकता और न ही चंद्रप्रभा और रामरतन को समाप्त कर सकता हूं—क्योंकि कलमदान का पता बताने वाले वे दो ही मोहरे हैं। उन्हें मैं अपने हाथों से उस समय तक कैसे खत्म कर सकता हूं, जब तक. कलमदान मेरे हाथ न लग जाए ।
पिशाचनाथ मेघराज की सब बातों को ध्यान से सुनता रहा था और मैं (विक्रमसिंह) उन सब बातों को सुनकर आश्चर्य में डूब गया था। मेघराज की बात समाप्त होने के बाद कुछ क्षण तक सन्नाटा रहा और फिर पिशाच बोला— 'इसका मतलब कलमदान का पता किसी तरह चंद्रप्रभा अथवा रामरतन से पूछना है ?'
–'मैं तो अपनी हर कोशिश करके थक गया हूं।' मेघराज बोला— 'मगर वे बताते ही नहीं । '
—'तरकीब तो मेरे दिमाग में आ चुकी है मेघराज ।' पिशाच बोला – “किन्तु मैं ये सोच रहा हूं कि जब वे दोनों कलमदान का सारा रहस्य जानते थे तो वे दरबार में उमादत्त के सामने चुप क्यों रहे ? सारा रहस्य उन्होंने उसी समय भरे दरबार में खोल क्यों नहीं दिया ?"
–“मेरे दिमाग में भी यह प्रश्न आया था । " मेघराज बोले – “परन्तु फिर मैंने स्वयं ही जवाब भी सोच लिया और वह ये कि जो रहस्य उस कलमदान में छुपा हुआ है— अगर वे उसे यूं ही बताते तो उनकी बात में कोई दम नहीं था । वे अपनी बात को उसी स्थिति में सिद्ध कर सकते हैं जबकि वह कलमदान उन पर हो — और फिर रहस्य ही कुछ ऐसा है कि कलमदान के अभाव में वह बात बेदम है और उस समय उनके पास कलमदान था ही नहीं।"
—" हो सकता है कि तुम्हारी बात ठीक हो । " पिशाचनाथ ने कहा – “मगर मेरे दिमाग में एक सम्भावना और है। वह यह कि वास्तव में उनके पास वह कलमदान है ही नहीं बल्कि उन्हें कहीं से वैसे ही कलमदान के बारे में पता लगा हो और तुम्हें डराने और खुद को बचाने के लिए वे कहते हैं कि कलमदान वे अपने किसी जानकार को सौंप आए हैं। "
– “अगर ऐसा होता तो वह आदमी जिसके पास बकौल उनके कलमदान होगा—तुम्हें यह धमकी देने अवश्य आता कि या तो तुम चंद्रप्रभा और रामरतन को छोड़ दो अन्यथा मैं कलमदान का रहस्य खोल दूंगा।"
"तुम्हारा यह अनुमान ठीक भी हो सकता है, पिशाचनाथ और गलत भी ।" मेघराज ने कहा – “सम्भाव है कि जिसके पास वह कलमदान हो उसे इन लोगों ने यही आदेश दिया हो कि कलमदान उसी दिन सामने लाएं – जबकि मेघराज यानी मैं राजा बन जाऊं।" "
- -"वह कलमदान किसी के पास है अथवा नहीं इस बात की परीक्षा के लिए एक ही उपाय है कि । " पिशाच ने कहा – “तुम बगावत करके राजा बन जाओ, अगर वह किसी के पास हुआ— तो फिर सामने आ ही जाएगा अन्यथा तुम राजा तो बन ही जाओगे । ”
-“नहीं... नहीं पिशाच !" एकदम घबराकर कह उठा मेघराज — “तुम नहीं जानते कि वह कलमदान मेरी मौत है। जब तक मैं उसे प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक मैं बगावत करने का स्वप्न भी नहीं देख सकता । तुम केवल कोई ऐसा उपाय सोचो, जिसके जरिए हम कलमदान प्राप्त कर सकें । "
—‘‘तरकीब तो मैं सोच चुका हूं।" पिशाच ने कहा – “सुनो !” और फिर इसके बाद कुछ देर तक पिशाच धीरे-धीरे मेघराज के कान में कुछ कहता रहा। उसने मेघराज के कान में क्या कहा मैं सुन नहीं सका निश्चय ही पिशाच ने कलमदान प्राप्त करने की तरकीब मेघराज को बताई थी—क्योंकि जैसे ही पिशाच ने उसके कान से मुंह हटाया तो मेघराज एकदम खुश होकर उछल पड़ा । बोला— “भई वाह पिशाच, क्या तरकीब सोची है तुमने ! वास्तव में तुम्हारे दिमाग को मानना पड़ेगा। इस तरकीब से तो हमें कलमदान का एकदम पता लग जाएगा । " इसके बाद मेघराज खुशी से नाचने लगा —यानी पिशाच ने उसे कोई ऐसी तरकीब बता दी हो, जिसके कार्यान्वित होने पर हर हालत में कलमदान का पता लग जाएगा।"
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