बाइक से स्टूडियो की ओर जाते समय ऋषभ कोर्ट के सामने से गुजरा तो उसे जेल की गाड़ी से दो पुलिस वाले सौरभ को उतारते दिखाई दिए।
जाहिर था कि उसे सुनवाई के लिए लाया गया होगा।
कुछ सोचकर ऋषभ बाइक कोर्ट के अंदर ही ले गया।
उसने बाइक पार्किंग में खड़ी की और कोर्ट के गलियारे की ओर बढ़ा, जहां सौरभ एक बेंच पर बैठा हुआ था। उसके हाथों में हथकड़ी लगी हुई थी। उस वक्त उसके साथ एक ही पुलिसवाला दिख रहा था। दूसरा शायद कहीं चला गया था।
ऋषभ उनकी ओर बढ़ ही रहा था कि तभी उसे सामने से इंस्पैक्टर प्रधान आता दिखा, जो सौरभ के पास ही जा रहा था।
ऋषभ के कदम ठिठक गए।
प्रधान ने सौरभ के पास आकर उसके पास खड़े पुलिसवाले को कुछ निर्देश दिए, जिस पर पुलिस वाले ने आदेश का पालन करने की मुद्रा में सिर हिला दिया।
ऋषभ उनके पास पहुंचा।
"आपकी इजाजत हो तो मैं इससे कुछ बात कर सकता हूं?"-उसने सौरभ की ओर इशारा करके इंस्पैक्टर प्रधान से पूछा।
प्रधान ने ऋषभ की ओर देखा, फिर सहमति में सिर हिला दिया।
फिर वो खुद उनसे थोड़ी दूर हट गया। जैसे उन्हें प्राइवेसी देना चाहता हो।
जो पुलिस वाला पहले से सौरभ के पास खड़ा था, उसके चेहरे पर तो जैसे उनकी बातें सुनने में कोई दिलचस्पी थी ही नहीं।
सौरभ का चेहरा देखकर ऋषभ को बरबस ही उस पर तरस आने लगा।
उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। आंखों के गिर्द काले घेरे जैसे पढ़े हुए थे। ऐसा लग रहा था, जैसे इन कुछ दिनों में ही उसकी उम्र दस साल बढ़ गई हो।
वो कहीं से भी वो सौरभ नहीं लग रहा था, जिसे पलक जैसी लड़की के साथ घूमते देखकर लोगों को लगता था कि वे बने ही एक-दूसरे के लिए थे।
सौरभ खाली-खाली निगाहों से उसे देख रहा था।
''कैसे हो?’’-ऋषभ ने खोखला-सा सवाल किया।
''देख तो रहे हो।’’-सौरभ नेे कहा। उसकी आवाज भी उसी की तरह खोखली लग रही थी।
''जिस रात प्रताप का खून हुआ, तुम सनशाइन अपार्टमेंट्स में क्या करने गए थे?’’
"मैं वहां नहीं गया था।"
ऋषभ को अपने अंदर गुस्से की लहर उठती हुई महसूस हुई।
वो उसके मुंह पर उससे झूठ बोल रहा था।
ऐसे शख्स को बचाने के लिए पलक हर तरह की असुराई पर उतरी हुई थी।
"मैंने अपनी आंखों से तुम्हें बिल्डिंग के पिछले गेट से निकलते हुए देखा था।"-वो अपने आप को जब्त करते हुए बोला।
''वो मेरे जैसा दिखने वाला कोई और शख्स होगा।’’-सौरभ ने कहा-''जिसे तुमने मुझे समझ लिया होगा।’’
''मुझे कम दिखाई देने जैसी कोई समस्या नहीं है। मैंने तुम्हें साफ-साफ बिल्डिंग से बाहर निकलते देखा था। और तुम्हारी फोटो भी खींची थी। वो तो पलक की कृपा से वो फोटो गायब हो गईं, वरना...।’’
''वरना क्या? वो फोटो पुलिस को देकर तुम मुझे फांसी पर चढ़वा देते?’’
ऋषभ खामोश हो गया।
''मुझे तुम्हें फांसी पर चढ़वाने का कोई शौक नहीं है।’’-फिर ऋषभ शुष्क स्वर में बोला-''लेकिन जिस शख्स को तुमने जान से मारने की धमकी दी थी, उसका खून होने के बाद तुम्हें घटनास्थल के पास देखने वाला शख्स मैं हूं। संयोग से मैंने तुम्हारी फोटो भी खींच ली थी। तो जो सच है, वो पुलिस को बताना तो मेरा फर्ज बनता है।’’
''चाहे तुम्हारे फर्ज के चक्कर में किसी निर्दोष को हत्या के झूठे आरोप में जेल ही क्यों न हो जाए?’’
''इसकी जांच करना पुलिस का काम है। तुम्हारा काम है पुलिस को सब कुछ सच सच बताना। पुलिस को असली कातिल का पता लगाना चाहिए। तुम्हें अपनी निर्दोषिता साबित करने के लिए पुलिस को सब सही-सही बताना चाहिए। तुम तो उल्टे झूठ बोल रहे हो। पुलिस से ही नहीं, मुझसे भी, मेरे मुंह पर ही झूठ बोल रहे हो। अपने साथ-साथ पलक को भी फंसा रहे हो। उसकी भी जिंदगी बर्बाद कर रहे हो।’’
''पलक को नुकसान पहुंचाने की मैं सपने में भी नहीं सोच सकता।’’
''अगर तुम कातिल हो तो वो तुम्हारा साथ दे रही है। अगर तुम कातिल नहीं भी हो, तब भी वो तुम्हें बचाने के चक्कर में सबूतों से छेड़छाड़ कर रही है, जो उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। ये उसकी जिंदगी बर्बाद करना ही हुआ।’’
''मैंने पलक से इस मामले से दूर रहने के लिए कहा है।’’
''तो ये जो वो मेरे रूम पर आकर मुझसे फोटुएं चोरी करके ले गई थी, मेरे कैमरे का मेमोरी कार्ड भी गायब कर दिया, वो सब क्या वो अपने मन से कर रही है?’’
''तुम्हें लगता है पलक से ये सब करने के लिए मैंने कहा है?’’
''तो फिर तुम उसे रोकते क्यों नहीं? क्यों गलतबयानी करके मामले को उलझा रहे हो? पुलिस को सब सच-सच क्यों नहीं बता देते?’’
''मैंने सब सच ही बताया है। और पलक को मैं यहां बैठे-बैठे नहीं रोक सकता। अगर वो ऐसा कुछ भी कर रही है, जिसमें उसे नुकसान हो सकता है तो मैं उसे किसी हालत में नहीं करने दूंगा। अपने किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिए तो किसी भी हालत में नहीं। वो मेरे लिए क्या है, ये तुम नहीं समझ पाओगे।’’
'पलक मेरे लिए भी वही है।’-ऋषभ ने मन-ही-मन कहा।
''ठीक है।’’-फिर वो गहरी सांस लेकर बोला-''जब तुमने सच छिपाने की कसम ही खा रखी है, जब पुलिस तुमसे सच नहीं उगलवा पा रही है, तो मैं कैसे उगलवा सकता हूं़? पलक जो कर रही है, उसे भी रोकना मेरे बस से बाहर की बात है। लेकिन एक बात तो तय है। वो इसी तरह प्रताप के कत्ल के सबूतों से छेड़छाड़ करती रही, उन्हें गायब करने की कोशिश करती रही, तो वो दिन दूर नहीं, जब वो भी तुम्हारी तरह सलाखों के पीछे नजर आएगी।’’
उसने कुछ नहीं कहा। वो खाली-खाली आंखों से शून्य में ताकता रहा।
"शायद तुमसे बात करने का कोई फायदा नहीं है।"-ऋषभ ने कहा-"मुझे यहां आना ही नहीं चाहिए था।"
कहकर वो जाने के लिए पलटने को हुआ।
"सुनो।"-सौरभ ने कहा।
"बोलो।"-वो रूक गया।
''मैं पलक को नहीं रोक सकता।’’-सौरभ ने व्याकुल स्वर में कहा-''लेकिन तुम रोक सकते हो।’’
''मैं?’’
''हां। तुम। मैं जेल में हूं। तुम बाहर हो। मेरी बात पलक नहीं सुन रही है। उसके जो मन में आ रहा है, कर रही है। लेकिन तुम उसे समझा सकते हो। वैसे भी तुम उसे मुझसे भी काफी पहले से जानते हो।’’
''जानता हूं लेकिन वो मेरी भी नहीं सुन रही है। पलक को रोकने का एक ही तरीका है।’’
''क्या?’’
''तुम पुलिस को सब सच-सच बता दो कि उस रात क्या हुआ था।’’
वो और भी ज्यादा बेचैन दिखाई देने लगा।
''बस?’’-ऋषभ ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा-''इतना ही जोश था? अंदर बैठे-बैठे मुझे फरमान सुना दो कि मैं पलक को रोकूं। और जब खुद कुछ करने की बारी आए तो कन्नी काट लो। मुझे तो लगता है तुम ये सब ड्रामा कर रहे हो।’’
''ड्रामा?’’
''हां। पलक के हितचिंतक बनके दिखाने का। जबकि हकीकत ये है कि तुम्हें उसकी कोई परवाह नहीं है। होती तो तुम अब तक पुलिस को सब सच बता चुके होते। भले ही तुम्हें फांसी पर ही क्यों न चढऩा पड़ता। लेकिन तुम तो आराम से इस बात का इंतजार कर रहे हो कि पलक तुम्हें बचाने के लिए उल्टे-सीधे स्टंट करते हुए खुद भी जेल चली जाए।’’
''मैं ऐसा कभी नहीं चाहता।’’
''यही भजते रहो।’’
उनसे थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया प्रधान वापस उनकी ओर आता दिखाई दिया। ऋषभ ने उसे उनकी बातचीत के लिए दिए गए वक्त के खत्म होने का संकेत माना-वैसे भी सौरभ से बातचीत का कोई फायदा नहीं निकल रहा था-और पार्किंग में खड़ी अपनी बाइक की ओर बढ़ गया।
ऋषभ स्टूडियो में अपने रूम में बैठा बीते घटनाक्रम पर विचार कर रहा था।
पलक का इस तरह से उससे मुंह फेर लेना, कत्ल की वारदात और फिर उसमें सौरभ की संदिग्ध भूमिका, ये सब चीजें हैरान कर देने वाली थीं।
और सबसे ज्यादा हैरान करने वाला था पलक का व्यवहार, जो कल तक उसकी अच्छी दोस्त थी, ऋषभ को उम्मीद थी कि जल्द ही वो उससे अपने दिल की बात कहने की हिम्मत भी जुटा लेगा।
लेकिन दिल की बात कह पाने से पहले ही मामला खटाई में पड़ गया।
"तुम पुलिस स्टेशन क्यों गए थे?"
आवाज किसी हथौड़े की तरह उसकी चेतना से टकराई। उसने चौंककर दरवाजे की ओर देखा।
दरवाजे पर विनीत खड़ा था, जो गम्भीर भाव से उसकी ओर देख रहा था।
"बैठो"-ऋषभ ने कुर्सी की ओर इशारा किया-तो बताऊं।
वो उसकी ओर देखते हुए ही कुर्सी पर आकर बैठ गया।
ऋषभ ने उसे सब कुछ बता डाला।
विनीत भौंचक्का-सा उसका चेहरा देखता रह गया।
"क्या हुआ?"-ऋषभ ने पूछा।
"तुम इतने बड़े लफड़े में फंस गए और मुझे कुछ बताया तक नहीं?"
"कौन-सा लफड़ा?"
"यही। तुमने सौरभ को सनशाइन अपार्टमेंट्स से निकलते देखा था। उसकी फोटो भी ली थी।"
"अरे, कुछ गड़बड़ नहीं होती। ये पलक के कारण सब कुछ अजीब हो गया है।"
"मैं बात करता हूं पलक से।"
"रहने दो तुम।"
"क्यों? मैं क्यों बात नहीं कर सकता उससे? तुम तो उसे प्रपोज भी नहीं कर पा रहे हो। मैं उससे बात करूंगा और उससे कहूंगा कि मेरा भाई तुमसे प्यार करता है...।"
"नहीं चाहिए तुम्हारी मदद। तुमने एक भी शब्द सुना, जो मैंने कहा? प्यार-व्यार तो दूर की बात है, यहां पर तो पलक ही मुझे फंसाने पर तुली हुई है। मुझे दुश्मन की नजर से देख रही है। क्योंकि मैं उसके कहने पर सौरभ के लिए झूठ बोलने के लिए तैयार नहीं हूं।"
"मैं तो उसे ऐसी नहीं समझता था।"
"वैसे भी मुझे अपनी लव स्टोरी में ऐसे आदमी से मदद नहीं चाहिए, जिसने खुद अरेंज मैरिज की है।"
"बकवास मत करो। तुझे क्या मालूम मेरे और वर्षा की लव स्टोरी के बारे में। हमारी लव मैरिज है लव मैरिज। पेड़ों के पीछे न जाने कितने गाने गाए हैं हम दोनों ने।"
"भाभी ने ही गाए होंगें। तुम्हारे गाने पर तो पेड़ मुरझा गए होंगें।"
"फिजूल बकवास मत कर। मेरी आवाज इतनी भी बुरी नहीं है। मुझे रात दिन...।"-वो तरन्नुम में बोला-"नहीं और काम...कभी तेरी याद...कभी तेरा नाम...।"
"बस कर भाई। कानों से खून निकलने लगेगा मेरे। जा बाहर जा, कोई फोटो खिंचवाने आया होगा।"
बाहर सचमुच आहट सुनाई पड़ी थी। विनीत आंखों से ही उस पर अंगारे बरसाते हुए बाहर वाले रूम की ओर चला गया।
ऋषभ ने लैपटॉप के टचपैड पर उंगली फिराकर कर्सर को कल की डेट वाले फोल्डर पर रखा और क्लिक कर दिया।
फोल्डर खाली था।
ऋषभ को अब अफसोस हो रहा था कि उसने आलस क्यों किया था? फोटो उसी समय कम्प्यूटर में सेव क्यों नहीं कर लिए थे, जब निरंजन ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था।
अगर उसने फोटो सेव किए होते, तो उसके पास अब भी सबूत होता।
तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी। उसने उठकर दरवाजा खोला तो बाहर निरंजन को पाया।
"क्या हो रहा है ये सब?"-वो अंदर आते हुए बोला।
"यही तो मुझे भी नहीं समझ आ रहा है।"-ऋषभ सोफे पर पसरते हुए बोला। निरंजन भी उसके सामने ही बैठ गया।
"पुलिस स्टेशन में तुम और पलक क्या गुल खिलाकर आ रहे हो?"-उसने कहा।
ऋषभ ने बताया।
''पलक ने ऐसा किया तेरे साथ?’’-निरंजन ने हैरानी से कहा।
''हां।’’-ऋषभ ने कहा-''मुझे खुद भी यकीन नहीं आ रहा है कि वो मेरे साथ ऐसा कर सकती है।’’
''कमाल है।’’-निरंजन बुदबुदाया-''ऐसी लड़की लगती तो नहीं वो।’’
''अब मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? इंस्पैक्टर के सामने तो मेरा तमाशा बन गया।’’
''तू टेंशन मत ले। इंस्पैक्टर प्रधान बस दिखने में कड़क है। अच्छा इंसान है वो।’’
"तुम कैसे आए?"
''ये बताने के लिए कि पुलिस तुम पर शक कर रही है।’’
''मुझ पर?’’-ऋषभ ने हैरानी से कहा।
"हां। तुम्हें पुलिस का फोन नहीं आया?"
"नहीं।"
"आने वाला होगा। मुझे अपने सूत्रों से पता चला है कि सौरभ के सनशाइन अपार्टमेंट्स में अपनी मौजूदगी से लगातार इनकार करने के बाद अब पुलिस हत्या के आरोपी के तौर दूसरे कैंडिडेट्स को भी टटोल रही है।"
"मैं कैसे कैेंडीडेट बन गया?"
''तुम्हारे पास भी प्रताप का कत्ल करने की ठोस वजह है।’’
''क्या बकवास है? मैं तो उस रात उसके फ्लैट के आसपास भी नहीं फटका था।’’
''फटके थे। और ये गाते हुए खुद पुलिस के पास पहुंचे भी थे। कि तुम बिल्डिंग की पार्किंग में ही मौजूद थे।’’
''वो तो मैं पलक के बुलावे पर वहां गया था।’’
''किसी के भी बुलावे पर गए हो। लेकिन बिल्डिंग के पास मौजूद थे। तुम खुद बताओ। जिस पिछले गेट से सौरभ को बाहर निकलता देखने की बात तुमने पुलिस को बताई थी-जिसे बरायमेहरबानी पलक के तुम साबित भी नहीं कर पाए थे और झूठेे साबित होकर रह गए थे-उसी दरवाजे से अंदर जाकर चौथी मंजिल तक जाना और फिर वापस लौट आना कोई बहुत मुश्किल या बहुत समय लगने वाला काम है?’’
ऋषभ ने कुछ नहीं कहा।
''अगर तुम्हारे पास वे फोटो होते, जिनमें सौरभ को तुमने दरवाजे से बाहर निकलते देखा था, तो तुम पुलिस के सामने अपनी बात बहुत आसानी से साबित कर सकते थे। लेकिन तुम झूठे साबित होकर रह गए। इससे अब पुलिस को तुम पर भी शक होना कोई बड़ी बात नहीं है।’’
''ये पलक ने किस मुसीबत में फंसवा दिया।’’
''पुलिस अब तक मर्डर वैपन भी बरामद नहीं कर पाई है। कातिल हाथ में होते हुए भी-क्योंकि पुलिस को सौरभ के ही खूनी होने का पूरा भरोसा है-केस हल न कर पाने को लेकर इंस्पैक्टर प्रधान बुरी तरह खीझा हुआ है। कहां तो वो सोच रहा था कि 24 घंटे में केस हल करके अखबारों की सुर्खियां बटोरने में कामयाब हो जाएगा। और कहां सौरभ मानने के लिए भी तैयार नहीं है कि वो घटना के वक्त अपार्टमेंट के आसपास भी मौजूद था।’’
''वो मौजूद तो था। मैं भले ही साबित नहीं कर पाया। लेकिन मैंने उसे बिल्डिंग से बाहर आते हुए देखा था।’’
''शायद इसीलिए इंस्पैक्टर प्रधान ने तुम्हें तलब किया है। मेरे ख्याल से वो तुमसे और पलक से और गहराई से पूछताछ करेगा और कोशिश करेगा कि किसी तरह तुम्हारी बात सच साबित हो जाए। अगर ऐसा हो जाता है तो सौरभ के खिलाफ केस मजबूत हो जाएगा।’’
''अरे यार। मैं सौरभ के खिलाफ कोई केस मजबूत नहीं करना चाहता। मैंने जो देखा था, बस वो पुलिस को बताना चाहता था। और बता चुका हूं।’’
''पलक ने रायता फैला दिया न। पुलिस का बुलावा तुम्हें किसी भी वक्त आता होगा। मेरे ख्याल से वो लोग पलक को भी बुलवाएंगें। उस समय पलक भले ही पुलिस की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब हो गई हो लेकिन बार-बार ऐसा नहीं कर पाएगी।’’
''उसका कोई भरोसा नहीं। खासतौर पर आज सुबह उसने जो स्टंट किया है, उसके बाद तो बिल्कुल भी नहीं।’’
''तू ज्यादा ही भावुक हो रहा है।’’
''मैं पलक से बात करता हूं।’’-ऋषभ ने कहा-''उसने पहले मुझे मेमोरी कार्ड देने से मना कर दिया था। लेकिन ये भी कहा था कि अगर सौरभ की जगह मैं और मेरी जगह सौरभ होता, तब भी वो मेरे लिए भी वही सब करती, जो सौरभ के लिए कर रही है। अब मैं फंस रहा हूं तो वो मेमोरी कार्ड जरूर दे देगी।’’
''क्यों नहीं? और पुलिस के सामने अपना बयान भी बदल देगी। बयान बदलकर झूठी साबित हो जाएगी। फिर तुम्हारी तरह वो भी पुलिस की नजरों में सस्पैक्ट बन जाएगी। क्योंकि अब झूठा बयान देने वाली वो होगी। और तुम्हारी तरह घटनास्थल के पास भी वो मौजूद थी।’’
''तो क्या करूं?’’
''सोचने दो।’’-निरंजन ने कहा।
कुछ पल उनके बीच खामोशी रही।
''अगर असली कातिल पकड़ा जाता है’’-फिर निरंजन ने कहा-''तो ये सब समस्या ही सुलट जाएगी।’’
''असली कातिल कैसे पकड़ा जाएगा? उसे पकडऩा तो पुलिस का काम है। और पुलिस तो गलत लोगों पर शक कर रही है।’’
''गलत लोग?’’
''मैं। सौरभ। पलक।’’
''तुम्हें लगता है सौरभ कातिल नहीं हो सकता?’’
''मुझे तो वो सीधा-सादा इंसान लगता है। मैंने उसे गेट से निकलते देखा था, ये बात भी मैं पुलिस को इसलिए बताना चाहता था, जिससे सच्चाई सामने आ जाए। उसका बुरा नहीं चाहता मैं। इसके अलावा पलक को भी उस पर पूरा भरोसा है। अगर पलक को लगता है कि वो कातिल नहीं है तो मुझे इस बात का और भी ज्यादा विश्वास है कि ये खून सौरभ ने नहीं किया।’’
''फिर रह गई पलक।’’
''पलक पर शक करने की तो सोचा भी नहीं जा सकता।’’
''क्यों? वो तुम्हारे घर में, तुम्हारी नाक के नीचे से तुम्हारे कैमरे से मेमोरी कार्ड चोरी कर लेगी, ये सोच सकते थे तुम?’’
''वो अलग बात थी।’’
''हो सकता है ये खून भी अलग बात हो। हम कुछ भी नहीं तो जानते। प्रताप का खून किसने किया। क्यों किया। हो सकता है कि हत्या का कारण कुछ ऐसा रहा हो कि पलक जैसी लड़की को भी मजबूर हो जाना पड़ा हो।’’
''बस करो।’’
''मेरे बस करने से क्या हो जाएगा? पुलिस बस करे, तब है।’’
''पुलिस को पलक पर शक नहीं है।’’
''लेकिन सौरभ के बाद पुलिस की नजरों में दो प्रमुख सस्पैक्ट तुम दोनों ही हो। अभी सौरभ पुलिस के शिकंजे में है। इसलिए वो खामोश है। शेर के मुंह में एक शिकार दबा होता है तो वो दूसरे की ओर ध्यान नहीं देता। वो शिकार छिनते ही शेर की नजर दूसरे शिकारों पर जाएगी ही जाएगी।’’
''यार, तुम तो डरा रहे हो।’’
''डरा नहीं रहा हूं। तुम्हें सावधान करने की कोशिश कर रहा हूं।’’
''मैं हो गया सावधान। अब पुलिस के मुझ पर और पलक पर शक करने के अलावा कोई और बात करो।’’
निरंजन ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और उसकी गैलरी ओपन की।
''ये देखो’’-उसने मोबाइल पर घटनास्थल की तस्वीरों में से एक तस्वीर ओपन करके ऋषभ को दिखाते हुए कहा-''इस तस्वीर में तुम्हें क्या दिख रहा है?’’
ऋषभ ने ध्यानपूर्वक तस्वीर को देखा।
प्रताप की लाश फर्श पर पड़ी थी। उसकी पथराई आंखें छत को घूर रहीं थीं। सीने में गोली का सुराख था, जिसके आसपास शर्ट खून से लाल थी। लाश के नीचे से भी खून का छोटा-सा तालाब बन गया दिख रहा था।
''कमरे में किसी तरह की भागादौड़ी, छीनाझपटी वगैरह के निशान नहीं थे।’’-निरंजन ने कहा-''लाश की स्थिति से लगता था कि प्रताप ने अपने बचाव की कोई कोशिश भी नहीं की। गोली सीने पर, सामने से मारी गई है, इसलिए पुलिस का अनुमान है कि हत्यारा जो कोई भी था, प्रताप का जानने वाला था।’’
''वो तो हम सब हैं। सौरभ। मैं। पलक।’’
''एक मिनट।’’-निरंजन ने सोच में डूबे स्वर में कहा-''पलक उस वक्त वहां क्या कर रही थी?’’
''वो अपनी किसी सहेली से मिलने गई थी। टैक्सी ढूंढने में दिक्कत होती। वैसे भी मैं अखबार के ऑफिस से लौटते समय उस रास्ते से होकर आ सकता था। इसलिए उसने मुझे कॉल करके बुलाया।’’
''जिस तरह वो तुम्हें फोन करके बुला सकती थी, मोबाइल से टैक्सी भी बुला सकती थी।’’
''शायद उसका मन नहीं होगा पैसे खर्च करने का। वैसे भी मैं उसे इस तरह कई बार पिकअप-ड्रॉप कर चुका हूं। उसे पता है कि कोई एकदम ही जरूरी काम न हो, तो मैं उसके बुलाने पर जरूर आऊंगा।’’
ऋषभ का फोन बजा।
''पुलिस का होगा।’’-निरंजन ने कहा।
उसका अंदाजा सही था।
ऋषभ पुलिस स्टेशन में इंस्पैक्टर प्रधान के ऑफिस में उसके सामने बैठा हुआ था।
उसके बगल में ही एक कुर्सी छोड़कर अगली कुर्सी पर पलक बैठी हुई थी। ऋषभ जब वहां आया था तो वो पहले से वहां मौजूद थी।
प्रधान ने बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि तभी एक कांस्टेबल ने अंदर कदम रखा।
''सर’’-वो इंस्पैक्टर से बोला-''विधायक जी के ऑफिस से कोई आपसे मिलने आए हैं।’’
प्रधान ने असंतुष्ट भाव से उसकी ओर देखा, फिर उठते हुए ऋषभ और पलक से बोला-''तुम दोनों यहीं रूको। मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा।’’
कहकर वो रूम से बाहर निकल गया।
वहां अब ऋषभ और पलक अकेले थे।
कुछ पलों तक उनके बीच खामोशी छाई रही।
फिर ऋषभ ने ही पहल की-''तुम सनशाइन अपार्टमेंट्स में किससे मिलने गई थी?’’
''क्यों?’’-पलक ने उसकी ओर देखा-''इंस्पैक्टर जब तक नहीं आते, तब तक मुझे तुम्हारे साथ पूछताछ की रिहर्सल करनी पड़ेगी?’’
''ऐसे ही पूछ रहा हूं।’’
वो एक पल के लिए खामोश रही, फिर बोली-''अपनी एक सहेली से।’’
''क्या नाम है उस सहेली का?’’
''कीर्ति।’’
''कौन-सी मंजिल पर रहती है?’’
''छठवीं मंजिल पर।’’
''सनशाइन अपार्टमेंट्स की इमारत ही पांच मंजिला है।’’
''छठवीं मंजिल कीर्ति के लिए स्पेशल बनाई गई है। खाली आंखों से दिखती भी नहीं। उस तक सीढ़ी या लिफ्ट से जाया भी नहीं जा सकता। ग्राउंड फ्लोर पर एक खम्भा है, जिसमें दौड़ते हुए टकराना पड़ता है, जिसके बाद आदमी छठवीं मंजिल पर नमूदार होता है।’’
''कमाल है। तुमने जैसा बर्ताव मेरे साथ किया, उससे बिगडऩा मुझे तुम पर चाहिए। और यहां उल्टे तुम मुझ पर बिगड़ रही हो।’’
''बिगड़ूं नहीं तो और क्या करूं? आज दिन में दूसरी बार पुलिस स्टेशन में हूं। जिसे बेस्ट फ्रेंड समझती थी, उससे एक छोटा-सा काम करने के लिए कहा तो उसने साफ इनकार कर दिया। सौरभ जेल में है। उसके छुटने के कोई आसार नहीं दिख रहे। तुम्हें अंदाजा भी है मेरे ऊपर क्या गुजर रही है?’’
''अब तक नहीं था। पर तुमने इतना सब बताया तो अब थोड़ा-थोड़ा अंदाजा होने लगा है।’’
तभी प्रधान ने वापस कमरे में प्रवेश किया।
दोनों खामोश हो गए।
प्रधान ने गहरी निगाहों से पलक को देखा।
''आप से ही शुरू करते हैं’’-उसने पूछा-''उस रात आप प्रताप से मिलने सनशाइन अपार्टमेंट्स में उसके फ्लैट में गई थीं, जिस रात उसका खून हुआ था?’’
पलक ने सहमति में सिर हिलाया।
ऋषभ की आंखों में अविश्वास के भाव उभरे।
अभी वो उससे बोलकर हटी थी कि वो सनशाइन अपार्टमेंट्स में अपनी किसी सहेली से मिलने गई थी, उस रात भी पूछने पर उसने ऋषभ को यही बताया था।
और अभी उसके मुंह पर ही इंस्पैक्टर से कुछ और कह रही थी।
''बोलकर जवाब दीजिए।’’-प्रधान ने कहा।
''मैं प्रताप के फ्लैट पर गई थी।’’
''आप उसे कैसे जानती थीं?’’
''सौरभ के माध्यम से।’’
''मतलब?’’
''वो पहले सौरभ का रूम पार्टनर था। कुछ दिन पहले से ही सौरभ उसका फ्लैट छोड़कर दूसरे मकान में रहने लगा था। जब सौरभ और प्रताप एक ही फ्लैट में रहते थे, मैं दो-तीन बार सौरभ से मिलने गई थी। वहीं पर मेरी मुलाकात प्रताप से हुई।’’
''वो कैसा आदमी था?’’
''मुझे तो ठीक-ठाक ही लगता था। ज्यादा बात नहीं करता था। अपने काम से काम रखता था।’’
''उस रात आप प्रताप से मिलने क्यों गईं थीं? वो भी जब सौरभ पहले ही फ्लैट छोड़कर जा चुुका था।’’
पलक हिचकिचाई, फिर बोली-''सौरभ के कारण ही मिलने गई थी।’’
''वो कैसे?’’
''सौरभ कुछ दिनों से परेशान चल रहा था। वो कुछ छिपा रहा था। मेरे बार बार पूछने पर भी नहीं बताता था कि बात क्या है? मुझे लगा प्रताप शायद इस बारे में बता सके।’’
''तो आप उससे ये पूछने गईं थीं कि सौरभ परेशान क्यों रहता है?’’
''हां।’’
''आप उसी रात प्रताप से मिलने कैसे पहुंच गईं, जिस रात उसका खून हो गया?’’
''इंस्पैक्टर साहब, मुझे क्या कोई सपना आना था कि उसका खून हो जाएगा? हमारी मुलाकात बेहद संक्षिप्त थी। मुश्किल से दो-चार मिनट। मैंने तो उसके फ्लैट के अंदर कदम भी नहीं रखा। जबकि उसने अंदर आने के लिए कहा भी था। लेकिन मैंने ही जल्दी में होने का बहाना बनाकर अंदर आने से मना कर दिया। हमने दरवाजे पर ही बात की। उसके बाद वो वापस फ्लैट में। और मैं अपने रास्ते पर।’’
''इतनी दूर से उससे मिलने गईं थीं और उसके कहने पर भी फ्लैट के अंदर नहीं गईं?’’
''मैं प्रताप को जानती तो थी लेकिन इतनी ज्यादा भी कोई जान-पहचान नहीं थी। सौरभ का मामला नहीं होता तो मैं शायद उससे मिलने भी न जाती। मुझे पता था कि वो फ्लैट पर अकेला ही रहता था। इसीलिए अकेले उसके फ्लैट के अंदर जाने का मन नहीं किया।’’
''ये तो आपने ठीक किया। अकेली लड़की को इस तरह किसी अजनबी के साथ एकांत में जाना भी नहीं चाहिए। अच्छा, जब आपको उससे सिर्फ इतना पूछना था कि सौरभ परेशान क्यों है तो ये बात तो आप उससे फोन पर भी पूछ सकती थीं न?’’
''मेरे पास उसका नंबर नहीं था।’’
''ओह।’’
''मैं उस रास्ते से घर जा ही रही थी। तो मैंने सोचा दो मिनट उससे पूछती चलूं।’’
''पता चला?’’
''जी?’’
''परेशानी। सौरभ को क्या परेशानी थी पता चला?’’
उसने इनकार में सिर हिलाया।
''यानि आपका काम नहीं हुआ।’’
''जी।’’
''आप एग्जैक्ट टाइम बता सकतीं हैं, जब आपने प्रताप से बात की?’’
''मैंने बिल्डिंग में प्रवेश करते समय मोबाइल पर टाइम देखा था। नौ बजकर बावन मिनट हो रहे थे। ऊपर जाने में दो-चार मिनट लगे होंगें। लिफ्ट से ऊपर गई थी।’’
''यानि मान लेते हैं नौ बजकर पचपन मिनट पर आप उससे मिलीं।’’
''इतना ही समय हुआ होगा।’’
''आपने कितनी देर बात की।’’
''करीब दो-चार मिनट। मैंने बस सौरभ के बारे में पूछा, जिस पर उसने सौरभ के परेशान होने के कारण को लेकर अनभिज्ञता जताई। फिर मैं उसका धन्यवाद अदा करके तुरंत ही वापस लौट गई।’’
''लेकिन आपने तो कहा था कि आपने ऋषभ को फोन करके पिक करने के लिए वहां बुलाया था। जब आपकी प्रताप से मुलाकात इतनी संक्षिप्त थी तो आपने ऋषभ को फोन किस वक्त किया?’’
''ऋषभ को मैंने अपार्टमेंट्स के सामने उतरते समय ही फोन करके बुला लिया था। मुझे पता था कि उसे आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। हमारे अखबार का ऑफिस वहां से ज्यादा दूर नहीं है।’’
''यानि आप करीब दस बजे बिल्डिंग से रूख्सत हुईं।’’
''हां।’’
''और उस वक्त तक प्रताप जिंदा था।’’
''जी।’’
''चलिए आपके बयान से एक बात तो और पता चली। प्रताप के कत्ल के समय का दायरा और सिमट गया। दस बजे करीब तक आपने उसे जिंदा देखा था। और दस बजकर बीस मिनट के करीब मिसेज माधवन ने उसकी लाश बरामद की। यानि कत्ल इस बीस मिनट के अंदर ही हुआ।’’
''हां।’’
''और अगर कातिल सौरभ ही है’’-ऋषभ ने कहा-''तो समय का ये दायरा और भी सिमट जाता है। क्योंकि नीचे पार्किंग में मैंने उसे दस बजकर पन्द्रह मिनट पर बिल्डिंग के गेट से बाहर निकलते देखा था। करीब पांच मिनट सौरभ को दूसरी मंजिल से नीचे उतरने में लगे होंगें। यानि दस मिनट के अंतराल में ही प्रताप का खून हुआ था। पलक के प्रताप को आखिरी बार जिंदा देखे जाने से लेकर सौरभ के बिल्डिंग के पिछले गेट से बाहर निकलने के बीच।’’
पलक ने आग बरसाती नजरों से ऋषभ को देखा।
''आपके पास कोई सबूत नहीं है’’-प्रधान ने ऋषभ से कहा-''कि आपने उसे बिल्डिंग से बाहर निकलते देखा था।’’
''मुझे साबित करना भी नहीं है, इंस्पैक्टर साहब।’’-ऋषभ ने कहा-''लेकिन जो हकीकत है, वो हकीकत है। हां, ये अलग बात है कि कुछ बेहद शातिर किस्म के लोग वक्ती तौर पर सच पर झूठ का पर्दा डालने में कामयाब हो गए हैं लेकिन वे भूल रहे हैं कि...।"-उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
''क्या भूल रहे हैं?’’
''जो चुप रहेगी जुबानेखंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का।’’
''शायरी में मैं कमजोर हूं। जरा समझा कर बताएंगें आप क्या कहना चाहते हैं?’’
''यही कि खून सर चढ़कर बोलता है। चाहे सच पर लाख पर्दा डालने की कोशिश की जाए, कातिल पकड़ा ही जाएगा।’’
''आपकी भी प्रताप से दुश्मनी थी। आप घटनास्थल के पास ही मौजूद भी थे। ये आप खुद कबूल कर चुके हैं।’’
''अब भी कबूल कर रहा हूं। लेकिन मैं पार्किंग में ही मौजूद रहा था। मुझे तो प्रताप के कत्ल की भनक तक नहीं लगी। मुझे तो इस बात की भनक भी नहीं लगी कि जिसने मुझे पिकअप करने के लिए वहां बुलाया है’’-उसने पलक की ओर देखा-''वो वहां प्रताप से मिलने गई थी। मेरे पूछने पर तब भी, और अभी डेढ़ मिनट पहले भी मेरे मुंह पर मुझसे झूठ बोल चुकी है कि ये वहां अपनी किसी सहेली से मिलने गई थी।’’
प्रधान ने पलक की ओर देखा।
''पता नहीं तुम किस बारे में बात कर रहे हो।’’-पलक ने निर्विकार भाव से कहा।
''लगता है ये डायलॉग रट लिया है। अपनी हर करतूत पर बात करने से बचने के लिए यही बोल देती हो।’’
''आपने इनसे झूठ क्यों बोला?’’-प्रधान ने पलक से पूछा।
''मैंने इनसे कोई झूठ नहीं बोला। पता नहीं ये किस बारे में बात कर रहे हैं।’’
''इंस्पैक्टर साहब को तो बख्श दो।’’-ऋषभ ने कहा।
प्रधान कुछ देर तक पलक को देखता रहा, फिर उसने ऋषभ से पूछा-''पता चला है कि मृतक ने आप पर कोई केस किया हुआ था?’’
''वो पुरानी बात है।’’
''फिर भी? केस किस बाबत था?’’
''जमीन की बाबत था। और मुझ पर नहीं किया था। मेरे भाई पर किया था। हमारा एक फोटो स्टूडियो है। वो जिस जमीन पर है, वो पापा ने प्रताप के पिता से खरीदी थी। लेकिन बाद में प्रताप के पिता ने केस कर दिया था कि वो जमीन उसकी है और हम उस पर अवैध रूप से कब्जा जमाए हुए हैं। असल में वो पापा से और रकम ऐंठना चाहता था। जहां तक मुझे पता है, पापा ने उसे कुछ रूपये दिए भी थे। लेकिन वो और फैलने लगा, और पैसे मांगने लगा, तो पापा ने फूटी कौड़ी देने से मना कर दिया और जमीन के लिए कानूनी लड़ाई का रास्ता चुना।’’
''केस कौन जीता?’’
''हम ही जीते। जमीन के रिकॉर्ड में गड़बड़ी करके प्रताप का पिता हमें परेशान करना चाहता था। अवैध उगाही करना चाहता था। उसकी मृत्यु के बाद उनकी ओर से प्रताप केस लड़ रहा था। लेकिन वो कुछ साबित नहंी कर पाया। हमारे पास जमीन के लीगल डॉक्यूमेंट्स हैं।’’
''पिछली रात को ही आप बार में प्रताप से मिले थे।’’
''लेकिन वहां मेरा झगड़ा प्रताप के साथ नहीं हुआ था। सौरभ के साथ हुआ था।’’
''आपके और प्रताप के बीच कोई बातचीत हुई थी?’’
''थोड़ी-बहुत। वैसे मुख्यत: वो निरंजन से ही बात कर रहा था। निरंजन से उसने कुछ पैसे भी उधार लिए थे।’’
''पैसों की काफी तंगी में चल रहा था वो। अपनी बहन रूपाली को भी बताया था उसने। वो उसे मदद के रूप में कुछ रूपए देने ही उसके फ्लैट में गई थी, जब वहां उसने अपने भाई की लाश देखी।’’
''पता नहीं ऐसे गरीबी से जूझ रहे आदमी को गोली किसने मार दी।’’
''सौरभ ने नहीं मारी।’’-पलक ने कहा-''वो निर्दोष हैं इंस्पैक्टर साहब। आप उसे छोड़ दीजिए।’’
''आप तीनों में से सबसे ज्यादा शक के दायरे में वही है।’’-इंस्पैक्टर ने पलक पर नजर मारते हुए कहा-''उसे छोड़ेंगें तो हमें आप में से किसी को धरना पड़ेगा। बोलिए, मंजूर है?’’
''हां।’’
पलक ने ऐसे दृढ़ता से कहा कि एक बार को तो प्रधान भी उसका चेहरा देखता रह गया।
''क्या बकवास कर रही हो?’’-ऋषभ ने तीखे स्वर में कहा।
''मुझे गिरफ्तार कर लीजिए।’’-पलक निर्विकार भाव से बोली-''लेकिन उसे जाने दीजिए। वो खूनी नहीं हो सकता।’’
''आप खूनी हैं? कबूल कर रहीं हैं?’’
''नहीं। लेकिन आप ही ने तो कहा कि...।’’
''मैंने यूं ही कह दिया था। बात पकड़कर लटक मत जाइए। हां, खून का इल्जाम अपने सर लेकर अंदर जाने को तैयार हैं तो वैसा बताइए। तब मैं हत्या के अपराध की आपकी लिखित स्वीकरोक्ति के आधार पर आपके अजीज सौरभ को छोड़ सकता हूं।’’
ऋषभ मन ही मन इस आशंका से ग्रस्त हो उठा कि कहीं पलक उसके लिए भी न तैयार हो जाए।
वैसे भी पिछले कुछ घंटों में उसने सौरभ के प्रति जो दीवानापन जाहिर किया था, उसे देखते हुए तो वो जो न कर गुजरती, वो कम था।
''नहीं।’’-कुछ पल की खामोशी के बाद पलक के मुंह से निकला तो ऋषभ ने राहत की एक मील लंबी सांस ली-''मैं खूनी नहीं हूं। लेकिन सौरभ भी खूनी नहीं है।’’
''तो खूनी कौन है? जब हम असली खूनी को गिरफ्तार कर लेंगें, तब सौरभ को छोड देंगें।’’
''तब तक एक निर्दोष इंसान को हत्या के झूठे इल्जाम में जेल में रखेंगें?’’
''इतना भी निर्दोष नहीं है वो। कई लोगों के सामने प्रताप को जान से मारने की धमकी दी थी उसने। उसी बिना पर हमने उसे गिरफ्तार किया है। अब आप लोग यहां से जाइए। जरूरत पड़ी तो फिर तलब करूंगा।’’
दोनों वहां से रूख्सत हुए।
ऋषभ ने बाइक पलक के घर के बाहर रोकी।
वो उतरकर उससे बिना कुछ बोले दरवाजे की ओर बढ़ गई।
ऋषभ ने बाइक साइड से लगाई और वो भी उसके पीछे दरवाजे पर आ पहुंचा।
पलक के परिवार में बस वो और उसके पिता ही उस घर में रहते थे। पलक की मां बहुत पहले गुजर चुकी थी। एक छोटी बहन थी, जो ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रही थी।
दरवाजा खोलने के बाद पलक ने ऋषभ की ओर देखा, फिर अंदर प्रवेश कर गई। ऋषभ भी उसके पीछे ही कमरे में आ गया।
''तुम्हें क्या हुआ है?’’-ऋषभ ने सीधे सवाल किया।
''क्या?’’-उसने पलटकर ऋषभ को देखा।
''तुम सौरभ के लिए जो कर रही हो, उस पर मेरे एतराजों को तो एक बार दरकिनार ही कर दो-जो कि तुम मेरे बिना कहे ही कर रही हो-लेकिन तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो?’’
''पता नहीं तुम किस बारे में बात कर रहे हो।’’
''तुम्हें खूब पता है कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं। पुलिस देर-सवेर इस बात की तह तक पहुंच ही जाएगी कि जिस रात प्रताप का खून हुआ था, सौरभ घटनास्थल के आसपास ही मंडरा रहा था। उसके बाद तुम क्या करोगी?’’
''मैं कभी ये साबित नहंी होने दूंगी कि उस रात प्रताप के फ्लैट पर या उस बिल्डिंग के आसपास था।’’
''अच्छा? और ऐसा कैसे करोगी तुम?’’
''मैं कहूंगी कि सौरभ उस रात मेरे साथ था।’’
''तुम्हारे साथ?’’
''हां।’’
वो कुछ पल तक पलक का चेहरा देखता रह गया।
''तुम्हारे साथ कहां था? यहां? तुम्हारे कमरे में? तुम्हारे पापा की जानकारी के बिना? क्योंकि मुझे नहीं लगता कि वो भी सौरभ के पीछे उतने ही पागल होंगें, जितनी कि तुम पागल होकर दिखा रही हो। और पुलिस को ये बयान दे देंगें कि प्रताप के कत्ल के समय सौरभ-जिसे वो शायद ज्यादा जानते भी नहीं होंगें-पूरी रात उनकी जवान बेटी के साथ था। तुम्हारे घर के किसी पड़ोसी ने भी उस रात तुम्हें सौरभ के साथ यहां आते-जाते नहीं देखा होगा। या उसके लिए भी मुझे कहोगी कि मैं पुलिस के सामने बयान दूं कि मैंने तुम दोनों को साथ देखा था?’’
''तुम छोटी-सी मदद करने से तो मना कर चुके हो। और क्या साथ दोगे मेरा? मैं पुलिस से कहूंगी कि सौरभ अपने ही घर पर था। लेकिन मैं वहीं पर पूरे समय उसके साथ थी। वो कातिल नहीं हो सकता क्योंकि वो रात भर मेरे साथ था।’’
''तुम्हें इस बात की बड़ी गारंटी है कि वो कातिल नहीं है।’’
''हां। है।’’
''इस अंधे विश्वास का कोई कारण?’’
''मैं उसे जानती हूं। पहली बात वो कत्ल नहीं कर सकता। दूसरी बात, वो मुझसे झूठ नहीं बोल सकता। अगर उसने खून किया होता तो वो मेरे सामने कबूल कर लेता।’’
''उसे बचाने के लिए तुम अब तक जो करती आ रही हो, वही क्या कम है, जो अब ये गवाही देने के लिए तैयार हो रही हो कि तुम रात भर एक अकेले आदमी के साथ, उसके घर पर थीं। शायद तुम भूल रही हो। तुम एक बड़े अखबार में काम करती हो। उस अखबार में, इस शहर में तुम्हारा कुछ रूतबा है। कुछ इज्जत है। सौरभ के भले के लिए-जो कि शायद इतना सब करने के बाद भी नहीं होने वाला-तुम अपनी इज्जत सरेबाजार उछालने के लिए तैयार हो?’’
''तुमने ऐसा कोई बेवकूफी भरा, बेहूदा कदम उठाया तो तुम्हारे घरवालों पर, तुम्हारे पापा पर क्या गुजरेगी, इसका अंदाजा है तुम्हें?’’
''मैं ऐसा कदम उठाना नहीं चाहती लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं बचा तो मुझे उठाना पड़ेगा।’’
''क्यों उठाना पड़ेगा? कौन तुम्हारे सिर पर गन रखकर तुमसे ये सारे धतकरम करवा रहा है?’’
''कोई नहीं करवा रहा है। मेरी ही मजबूरी है। मेरे पास और कोई चारा नहीं है।’’
''कोई मजबूरी नहीं है। तुम जबर्दस्ती की मजबूरी बना रही हो।’’
''तुम्हारे लिए ये कहना आसान है। तुम्हें सौरभ के साथ क्या होता है, इससे कोई मतलब नहीं है।’’
''सौरभ मेरा खसम नहीं है। और फिलहाल तुम्हारा भी नहीं है। इसलिए फिर कहता हूं। होश में आ जाओ। ये सब टेढ़ी चालें चलना छोड़ दो। पता नहीं तुम पर कैसा भूत सवार हो गया है। खुद भी पुलिस को सब सच-सच बताओ और अपने सौरभ को भी यही समझाओ कि वो भी पुलिस को सब कुछ सच-सच बताए। वो पुलिस को ये बताने के लिए तैयार नहीं है कि उस रात वो वहां पर मौजूद था और मौजूद था तो वहां क्या करने गया था? तुमने अलग नशे कर रखे हैं। वो सच बोलने के लिए तैयार नहीं है और तुम नए-नए झूठों की इमारत खड़ी करने में मशगूल हो।’’
''तो मैं कर रही हूं न। इसमें तुम्हारा तो कोई नुकसान नहीं है।’’
''पता नहीं इस सौरभ ने तुम पर क्या जादू कर दिया है? उसकी चार दिन की यारी के आगे तुम मेरी बात सुनने तक के लिए तैयार नहीं हो।’’
''मैं कुछ देर अकेले रहना चाहती हूं।’’
''जरूर। सौरभ के लिए और कौन-कौन से नए झूठ बोलने हैं, प्रताप के मर्डर की इन्वेस्टिगेशन कर रही पुलिस की आंखों में और किन-किन तरीकों से धूल झोंकनी है, ये सब सोचने के लिए एकांत तो चाहिए ही होगा। मेरे साथ सिर मारने से ये सब आइडियाज थोड़े ही आ जाएंगें तुम्हारे दिमाग में। वो भी तब, जब मैं तुम्हें बार-बार इस चक्कर में अपना गला फंसाने से मना कर रहा हूं।’’
''मना कर रहे हो। मेरी मदद नहीं कर रहे।’’
''तुम सौरभ के प्रति अपने अगाध प्रेम का प्रदर्शन करती रहीं। मैंने कुछ नहीं कहा। तुमने मुझसे सौरभ के लिए पुलिस के सामने झूठा बयान देने के लिए कहा। मैंने विनम्रता से मना किया और तुम्हारे भले की ही सलाह दी। बल्कि उसमें सौरभ का भी भला था। लेकिन तुमने उसे मानने से इनकार कर दिया। और सौरभ की मदद करने के लिए-जो कि लांग रन में उसकी मदद नहीं बल्कि उसके लिए मुसीबत ही साबित होगा-मेरे साथ ऐसा धोखा करने पर उतर आईं? फोटो बदल दिए? चिप गायब कर दी? क्या सौरभ के तुम्हारी जिंदगी में आने के बाद तुम्हारी नजरों में मेरी कोई अहमियत नहीं बची। और मुझे तो छोड़ो, उस सौरभ के लिए तुम अपने परिवार, अपने पिता की इज्जत भी नीलाम करने पर उतारू हो। तुमने हर हद पार कर दी है।’’
उसने व्याकुल भाव से ऋषभ की ओर देखा।
''ऐसा कुछ नहीं है।’’-फिर वो बोली।
''तो कैसा है?’’
''मैं सौरभ से प्यार करती हूं।’’
ऋषभ को लगा जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला सीसा उड़ेल दिया हो।
न चाहते हुए भी उसने आंखें बंद कर लीं।
वैसे तो वो सौरभ और पलक के बीच बढ़ती नजदीकियां कुछ समय से देख ही रहा था। प्रताप के कत्ल के बाद से भी वो जो कुछ भी सौरभ के लिए कर रही थी, वो भी इस बात को जाहिर करता था कि वो सौरभ के बारे में क्या सोचती थी।
लेकिन उसके मुंह से स्पष्ट रूप से ये बात सुनना ऋषभ के लिए बेहद कष्टदायक था।
लेकिन उसने तुरंत ही आंखें खोल लीं।
फिर जो नजारा उसे दिखाई दिया, उसने उसे अंदर तक हिला दिया।
पलक दोनों हाथ में चेहरा छिपा कर फफक-फफक कर रो रही थी।
''पलक।’’-वो लपककर उसके पास पहुंचा और उसके बगल में बैठकर उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया-''क्या हुआ?’’
''मैं उसके साथ ये सब होते हुए नहीं देख सकती, ऋषभ।’’-उसने रोते हुए कहा-''वो खूनी नहीं है। मैं अपने सौरभ को जानती हूं। वो चींटी भी नहीं मार सकता। आदमी का खून करना तो दूर की बात है। उसकी प्रताप के साथ ऐसी कोई दुश्मनी नहीं थी। मैं उसे झूठे इल्जाम में जेल जाते हुए नहीं देख सकती।’’
''लेकिन...मैंने उसे बिल्डिंग से निकलते हुए देखा था।’’
''बिल्डिंग में चाहे वो किसी भी काम के लिए गया हो, लेकिन वो खूनी नहीं है। वो खूनी नहीं है, ऋषभ। मेरी मदद करो। प्लीज। उसे छुड़ाने में मेरी हैल्प करो। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं।’’-उसने सचमुच हाथ जोड़ लिए-''अगर तुम मेरे लिए कुछ कर सकते हो तो प्लीज, मुझे एक भीख दे दो। उसे बचा लो।’’
ऋषभ का एक हाथ उसक ी पीठ की ओर से होते हुए उसके कंधे पर था। दूसरे हाथ से उसने उसके जुड़े हुए हाथों को पकड़ लिया।
ऋषभ ने कुछ कहा नहीं।
अचानक बहुत सारी उलझनें दूर हो गईं थीं।
ऋषभ को पता था कि अब उसे क्या करना है?
अगले दिन सुबह।
ऋषभ निरंजन के घर पहुंचा।
''तुम?’’-निरंजन उसे देखकर बोला-''इतनी सुबह-सुबह?’’
''हां।’’-ऋषभ ने सोफे पर पसरते हुए कहा-''तुमसे कुछ जरूरी बात करनी थी।’’
''करो। वैसे’’-निरंजन उसके सामने बैठकर उसके चेहरे को गौर से देखते हुए बोला-''आज तुममें एक अलग ही जोश लग रहा है।’’
''वो सब छोड़ो। ये बताओ, प्रताप के मर्डर केस में पुलिस की इन्वेस्टिगेशन कैसी जा रही है?’’
''कैसी जा रही है क्या मतलब? कातिल को तो पुलिस ने पहले ही पकड़ रखा है? और अब काहे की इन्वेस्टिगेशन? और सबसे बड़ी, ये सवाल तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो?’’
''सौरभ कातिल नहीं है।’’
''अच्छा? तुम्हें कैसे पता?’’
''क्योंकि पलक को पता है।’’
''उसे कैसे पता?’’
''उसे आकाश से भविष्यवाणी हुई थी। अरे यार, ये सब फिजूल की बातें करना बंद करो और ये बताओ कि असली कातिल तक पहुंचने में पुलिस ने कोई प्रोग्रेस की है? और ये मैं तुमसे क्यों पूछ रहा हूं वाला फिजूल की सवाल मत करना। तुमसे इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि पुलिस स्टेशन में होने वाले सारे केसेज की खबर तुम्हें रहती है। ये तो हत्या का ताजातरीन मामला है। इसकी तो शायद ही कोई डिटेल हो, जो तुमसे छिपी हो।’’
''मैं बताऊंगा। लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे बताना होगा कि तुम्हारी अचानक असली कातिल के पकड़े जाने में ये जो दिलचस्पी जगी है, उसका कारण क्या है?’’
''सौरभ को छुड़ाना है तो असली कातिल का पता लगाना जरूरी है। सौरभ को छुड़ाना इसलिए जरूरी है क्योंकि पलक अपने-आप को उसके पीछे आग में झोंके दे रही है।’’
''तुम पलक से अपने दिल की बात कहने तक की हिम्मत तो जुटा नहीं पाए। अब उस आदमी को बचाने के लिए जासूस बनने के लिए तैयार हो, जो तुम्हारे और पलक के बीच सबसे बड़ी रूकावट बन सकता है।’’
ऋषभ ने कुछ नहीं कहा।
''पुलिस सौरभ को ही कातिल मानकर चल रही है।’’-फिर निरंजन ने गहरी सांस लेते हुए कहा-''खासतौर पर कत्ल की घटना की पिछली रात ही बार में सौरभ ने कई लोगों के सामने-जिनमें तुम और मैं भी शामिल थे-प्रताप को जान से मारने की धमकी दी थी, उसकी वजह से।’’
''खून कितने समय हुआ होगा? पुलिस को एग्जैक्ट टाइम पता चला?’’
''साढ़े नौ बजे चौकीदार ने प्रताप को मेनगेट से बिल्डिंग में प्रवेश करते देखा था। उसके बाद दस बजकर बीस मिनट पर लाश बरामद हो गई। अब इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं है कि कत्ल इसी वक्फे में हुआ।’’
''किसी ने गोली की आवाज नहीं सुनी?’’
''कातिल ने साइलेंसर युक्त हथियार का इस्तेमाल किया होगा। वरना सर्दियों में तो आवाज दूर तक सुनाई देती है।’’
''कातिल ने साइलेंसर युक्त हथियार का इस्तेमाल तो किया, लेकिन उसे ये कैसे पता था कि उसे कोई देखेगा नहीं?’’
निरंजन ने उसकी ओर देखा।
''भाई, ठण्ड के दिन चल रहे हैं। 8-9 बजे के बाद लोग घरों में कैद होने लगते हैं। उस मंजिल पर गिनती के फ्लैट हैंं। बड़े शहरों में वैसे भी लोग घरों के दरवाजे बंद रखते हैं। ऐसा संयोग हो जरूर सकता था कि ऐन उसी वक्त कोई कातिल को देख लेता, जब वो प्रताप को शूट करने के बाद फ्लैट लॉक करके जा रहा था। लेकिन हुआ नहीं। जो कि कातिल की खुशकिस्मती थी।’’
''हां। शायद खुशकिस्मती ही थी।’’
''लेकिन उसकी इस खुशकिस्मती ने ज्यादा देर तक उसका साथ नहीं दिया।’’
''मतलब?’’
''बिल्डिंग के पिछले गेट से सौरभ को निकलते हुए देख तो लिया तुमने।’’
''तुम तो ऐसे कह रहे हो, जैसे सौरभ ही कातिल हो।’’
''इस वक्त तो प्राइम सस्पैक्ट वही है। जब तक उसकी बेगुनाही साबित नहीं हो जाती, कोई और स्ट्रांग कैंडिडेट हत्या का इल्जाम मढऩे के लिए नहीं मिल जाता, तब तक तो लोग उसे ही कातिल समझेंगें न?’’
''लोगों को समझने दो। कम-से-कम हमें तो उसे कातिल नहीं समझना चाहिए।’’
''क्यों?’’
''मुझे लगता है उसने प्रताप का खून नहीं किया।’’
''लगता है?’’-प्रताप ने उसकी बात दोहराई-''भैया, मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन में लगता है से काम नहीं चलता। पुलिस ने सौरभ को इसलिए गिरफ्तार नहीं किया क्योंकि उसे लगता है कि वो कातिल है। इंस्पैक्टर प्रधान सौरभ को कोर्ट में ले जाकर खड़ा करके जज से ये नहीं कहेगा कि-मीलार्ड, मुझे लगता है कि ये आदमी प्रताप का कातिल है। वो सबूत दिखाएगा। वो जज को बताएगा कि सौरभ ने हत्या की पिछली रात को ही एक बार में कई लोगों के सामने प्रताप को जान से मारने की धमकी दी थी। उसे बिल्डिंग के पिछले दरवाजे से चोरी-छिपे बाहर निकलते देखा गया। वो चोरी-छिपे बाहर क्यों निकल रहा था? इतना ही नहीं, वो बिल्डिंग में आया भी चोरी-छिपे ही था। पिछले दरवाजे से। उसने अपनी बाइक वहीं खड़ी कर रखी थी। वो भी झाडिय़ों में छिपाकर। जब वो दो दिन पहले ही प्रताप का फ्लैट छोड़ चुका था, तो वहां क्या करने आया था? और जो भी करने आया था, पुलिस को बता क्यों नहीं रहा?’’
''पुलिस को तो वे सीधे ये ही कह रहा है कि वो उस रात सनशाइन अपार्टमेंट्स गया ही नहीं था।’’
''यही तो मैं कह रहा हूं। वो पुलिस से झूठ बोल रहा है। तुम्हें झूठा साबित कर रहा है। सोचो, फ्लैट में प्रताप को मारने के बाद गैलरी में बाहर निकलते हुए उसे किसी ने नहीं देखा, जो कि कोई बड़ी बात नहीं थी। वो एक छोटा-सा क्लोज्ड एरिया था, जिसमें ठंड के दिनों में सारे फ्लैट्स के दरवाजे बंद ही रहते हैं। तो कोई उसे आते या जाते समय देख लेता, इसके चांस कम ही थे। वहां पर तो किस्मत ने उसका साथ दिया भी। इसके अलावा बाहर भी उसने अपनी बाइक झाडिय़ों की आड़ में खड़ी की थी। क्यों? क्योंकि वो वहां आया ही प्रताप का खून करने के इरादे से था। सब कुछ उसके प्लान के हिसाब से हुआ। जो उसके प्लान के हिसाब से नहीं हुआ, वो ये था कि तुमने उसे बिल्डिंग के पिछले गेट से निकलते देख लिया। लेकिन यहां पर पलक उसका साथ देने के लिए तैयार हो गई। उसने पहले तुमसे बयान बदलने के लिए कहा। तुम उस पर राजी नहीं हुए तो उसने फोटुएं ही गायब कर दीं। तुम्हारे कैमरे का मेमोरी कार्ड तक गायब कर दिया। अब तुम चाहे पलक को कुछ भी कहो, लेकिन अब तुम साबित नहीं कर सकते कि तुमने सौरभ को बिल्डिंग के पिछले गेट से बाहर निकलते देखा था। और वो इसका फायदा उठा रहा है अपने-आप को सच्चा साबित करने में। कि नौ बजकर पन्द्रह मिनट पर तुमने उसे वहां देखा ही नहीं था।’’
कुछ पल उनके बीच खामोशी रही।
''मैंने पलक को आज तक किसी गलत का साथ देते नहीं देखा’’-फिर ऋषभ ने कहा-''वो हमेशा इंस्टीक्टिवली सही होती है। लोगों को समझ जाती है। पहचान जाती है। गलत लोगों को देखकर सतर्क हो जाती है। अच्छे लोगों को पसंद करती है। उनके साथ रहती है। उनकी मदद करती है। वो सौरभ का साथ दे रही है इसलिए मेरे लिए यकीन करना मुश्किल है कि सौरभ ने प्रताप का कत्ल किया हो सकता है।’’
''ये खूब कही। ऐसा कौन-सा स्कैनर फिट है पलक की आंखों में? भईया, तुम उससे प्यार करते हो, तो तुम्हें तो उसकी हर बात अच्छी लगेगी ही। इसका मतलब ये नहीं है कि पलक हमेशा सही ही हो। अगर वो इतनी ही सही है तो जरा ये बताओ कि उसने तुम्हारे साथ जो किया, वो क्या सही था? फोटुएं बदल देना? कैमरे का कार्ड चुरा लेना?’’
ऋषभ खामोश रहा।
''वैसे सौरभ मुझे भी ऐसा इंसान नहीं लगता।’’-कुछ देर की खामोशी के बाद निरंजन ने कहा-''लेकिन ये लगने-न लगने वाली बात ही नहीं है। सौरभ खुद अपने गले में फंदा कस रहा है। जिस फंदे को लेकर उसे ये चिंता होनी चाहिए कि कैसे उससे गर्दन बाहर निकाले, उसकी गांठ पकड़कर उसे अपने गले में और भी कसता जा रहा है। लगातार पुलिस से झूठ बोल रहा है। ऐसे में लोग तो उस पर शक करेंगें ही। और पुलिस के पास तो उस पर शक करने का ठोस आधार भी है।’’
''अगर पलक इस मामले में इन्वॉल्व नहीं होती’’-ऋषभ ने कहा-''तो शायद हम इस मुद्दे पर इतनी लंबी चर्चा कर भी नहीं रहे होते।’’
''चर्चा तो हम तब भी कर रहे होते’’-निरंजन हंसा।
उसकी बात सुनकर ऋषभ को भी हंसी आ गई।
जब वे लोग ऐसे केसों पर लंबी-लंबी चर्चा करते थे, जिनसे उनका दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं होता था-सिवाय इसके कि पुलिस फोटोग्राफर होने के कारण निरंजन ने घटनास्थल की या केस से जुड़ी तस्वीरें खींचीं होती थीं या कभी-कभी तो उतना भी नहीं।
तो उस केस से तो वे सीधे तौर पर जुड़े हुए थे।
"तुम भी तो लाश की तस्वीरें खींचने गए थे।"-ऋषभ ने कहा-"पुलिस इन्वेस्टिगेशन में तुमने कोई बात नोट नहीं की?"
''एक कमलकांत करके बंदा है। दूसरी मंजिल पर ही रहता है।’’-निरंजन ने कहा।
''तो उसके बारे में क्या?’’
''मुझे वो शेडी कैरेक्टर लगता है। प्रधान जब उससे पूछताछ कर रहा था, उस वक्त तो वो बहुत रौब से, बहुत जेंटलमैन बनकर बात कर रहा था। लेकिन मुझे न जाने क्यों बंदे से गड़बड़ की बू आ रही थी।’’
''तुम्हें आई? इंस्पैक्टर को नहीं आई?’’
''क्या पता इंस्पैक्टर को आई या न आई? थोड़ी-बहुत आई भी होगी तो वो शायद बाद में चली गई होगी। दरअसल ये बंदा बिल्डिंग में नया आया है। इसे उस मंजिल पर फ्लैट लिए हुए महीना भर भी नहीं हुआ। बताता है कि विदेश में काम करता है। यहां किसी पर्सनल काम से आया हुआ है। लेकिन उसके वीजा-पासपोर्ट वगैरह चौकस हैं। कंपनी भी सचमुच है। उसके कागजात चैक करने के बाद शायद प्रधान ने उसे सस्पैक्ट्स की लिस्ट से खारिज कर दिया। दूसरी मंजिल पर रहने वाले ज्यादातर लोगों ने घटना को लेकर अनभिज्ञता जाहिर की। उन्हीं में वो बंदा भी शामिल था। लेकिन बाकी लोग फैमिली वाले हैं। ये अकेला रहता है।’’
''तुम्हें कैसे पता?’’
''पूछताछ के दौरान उसने खुद बताया।’’
''ठीक है। मैं इस आदमी से मिलकर देखता हूं। शायद कुछ काम की बात पता चले।’’
''तुम पूछताछ करोगे?’’-निरंजन ने आंखें सिकोड़ कर उसे देखा-''किसी ने पूछ लिया कि पूछताछ क्यों कर रहे हो, तो क्या कहोगे?’’
''कहूंगा अखबार में काम करता हूं। प्रताप वाले केस की न्यूज कवर कर रहा हूं। और क्या कहूंगा? अखबार से मिला अस्थाई प्रेस कार्ड किस दिन काम आएगा?’’-ऋषभ ने उसे अपना प्रेस कार्ड दिखाया।
''वाह। पत्रकार बन गए? बधाई हो।’’
"जोशी ने खुश होकर दिया है। प्रोग्राम की तस्वीरें उसे कुछ ज्यादा ही पसंद आ गईं।"
"यार, जिस लड़की को माशूका बनाना चाहते हो, उसके बाप का नाम ऐसे तो मत लो।"
"तो कैसे लूं? जोशी नाम में क्या बुराई है?"
"ऐसा लगता है जैसे हथौड़ा मार रहे हो। अरे थोड़ा सम्मान के साथ नाम लो उनका।"
"ससुर जी कहूं?"
"ससुर जी नहीं तो कम से कम अंकल जी तो कह ही हो सकते हो।"
"अब लव गुरू बनना छोड़ो। तुमने बताया था कि पुलिस की साइबर एक्सपर्ट टीम में तुम्हारी अच्छी जान-पहचान है?’’
''हां भई। पुलिस फोटोग्राफर हूं। साइबर एक्सपर्ट मेरा दोस्त है।’’
''एक काम करवा सकते हो?’’
''कैसा काम?’’
''इस कमलकांत का बायोडाटा निकलवाओ।’’
''ठीक है। मैं पता करवाता हूं।’’
''मैं जेल में सौरभ से मिलता हूं। देखते हैं आखिर ये जो चक्कर चल रहा है, इसकी धुरी कहां पर है?’’
निरंजन से मिलने के बाद ऋषभ न्यूज वन के ऑफिस पहुंचा।
वहां उसने ऑफिस की पार्किंग में पलक से मुलाकात की।
पलक के ऑफिस में इसलिए नहीं क्योंकि उसके पिता का ऑफिस उससे सटा हुआ ही था। वे ऋषभ को अपनी बेटी के पास अड्डा जमाए देखते तो पूछताछ कर सकते थे।
''देखो’’-ऋषभ ने कहा-''अब मैं तुम्हारी-और तुम्हारे कारण सौरभ की भी-मदद करने के लिए राजी हो गया हूं। तो अब तुम्हें भी एक काम करना होगा।’’
''कैसा काम?’’
''मेरी मदद करनी होगी।’’
''कैसी मदद? मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं।’’
''हां वो तो पता ही है। तुम्हारा कुछ भी करने के लिए तैयार होना ही तो इस बात की जड़ है कि मुझे उस शख्स के बचाव के लिए मैदान में उतरना पड़ रहा है, जिसने मेरा बरसों पुराना, 30 हजार का कीमती कैमरा तोड़ दिया था।’’
''नशे में आदमी को होश नहीं रहता।’’
''हद है यार। मतलब हद ही है। ऐसी प्रेम दीवानी, बिरहा की मारी मैंने अपनी सारी जिंदगी में कभी नहीं देखी। जिंदगी में तो क्या फिल्मों में भी नहीं देखी।’’
''क्या बक रहे हो?’’
''मेरे मुंह से सौरभ का नाम भी नहीं निकला और तुम उसे डिफेंड भी करने लगीं।’’
उसने कुछ कहा नहीं। लेकिन उसके चेहरे पर दिख रही लाली बहुत कुछ कह गई।
''खैर छोड़ो’’-ऋषभ ने गहरी सांस लेते हुए कहा, उसकी दिली तमन्ना थी कि पलक के चेहरे पर वो लाली उसके जिक्र पर आती, जो कि अब पूरी होती नहीं दिख रही थी-''मैं कह रहा था कि अगर तुम चाहती हो कि मैं और निरंजन तुम्हारी मदद करें-ये हम दोनों का जॉइंट वेंचर है क्योंकि डिटेक्टिवगीरी के लेक्चर मैं उसी से सुनता हूं-तो तुम्हें सब सच-सच बताना पड़ेगा।’’
''ठीक है।’’
''तुमने उस रात बिल्डिंग के पिछले गेट की फोटो ली थीं?’’-ऋषभ ने कहा।
उसने सिर झुका लिया।
''हां’’-वो बोली।
''कोई ईयररिंग नहीं गिरा था। ईयररिंग गिरने का बहाना था।’’
वो कुछ नहीं बोली।
''लेकिन तुम्हें पहले से कैसे पता था कि प्रताप का खून हो गया है? या सौरभ इस तरह के चक्कर में फंसने वाला है? जो तुम उसके लिए बैकअप तैयार कर रहीं थीं?’’
''सौरभ पिछले कई दिनों से परेशान चल रहा था। मुझे लगा...मुझे लगा उसने कुछ गलत कर दिया है। पूछने पर कुछ बताता नहीं था। बहुत कुरेदने पर इशारों में जरूर कुछ कहता था कि उससे कुछ ऐसा गलत हो गया है, जिसकी वो भरपाई नहीं कर सकता। लेकिन क्या हुआ है, ये नहीं बताता था।’’
''तुम्हें भी नहीं बताता था? अपनी सबसे बड़ी खैरख्वाह को?’’
''कस लो तंज।’’
''अच्छा अच्छा। आगे।’’
''मुझे बहुत घबराहट होने लगी थी। इसीलिए मैं उस रात प्रताप के फ्लैट पर उससे पूछने गई। इस उम्मीद में कि सौरभ इतने दिनों तक उसका फ्लैट पार्टनर बनकर रहा है तो कुछ तो जानता होगा। लेकिन उसने भी कुछ भी पता होने से इनकार कर दिया। उससे मिलने के बाद मैं नीचे पार्किंग में पहुंची तो वहां सौरभ को बिल्डिंग के पिछले दरवाजे से निकलते हुए देखा। और तुम उसकी फोटो खींच रहे थे। मेरे पूछने पर तुमने सौरभ को देखे होने की बात भी छिपा ली। उससे मुझे और भी डर लगा। मुझे ये भी पता था कि पिछली रात को ही बार में तुम्हारा और सौरभ का झगड़ा हुआ था। उसने तुम्हारा कैमरा भी तोड़ दिया था। मुझे लगा कि तुमने सौरभ को कुछ गलत करते देख लिया है और उसकी फोटो खींच ली है, जिसे तुम बाद में उसके खिलाफ इस्तेमाल करने वाले हो। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि मैं क्या करूं? फिर मैंने ईयररिंग खोने का बहाना बनाकर वापस पार्किंग में जाकर वहीं खड़े होकर-जहां तुम खड़े थे-बिल्डिंग के पिछले गेट की फोटुएं खींच लीं। हालांकि उस वक्त मुझे सपने में भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि वो एक मर्डर केस का मामला होने वाला था। अगले दिन अखबार में प्रताप के मर्डर के बारे में पढ़कर मेरा दिल बैठ गया। सौरभ को भी पुलिस ने पकड़ लिया था। मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। सिवाय दो रास्तों के। या तो किसी तरह से तुम्हें सौरभ को वहां न देखे होने का बयान देने के लिए मनाऊं। या फिर...या फिर...।’’
''या फिर फोटो ही गायब कर दूं। और मेमोरी कार्ड भी खा जाऊं।’’
वो कुछ नहीं बोली।
''वैसे काम तो तुमने बहुत अच्छा किया। मेरा बस चलता तो तुम्हें इस शानदार एण्डेवर के लिए सौ-सौ तोपों की सलामी दिलवा देता। लेकिन क्या करूं? मेरी बाइक चलती है। एक बार तो पुलिस स्टेशन में लिफाफे में हीरोइन की फोटो देखकर मेरा भी दिमाग घूम गया था। उसके बाद पहेली समझ भी आई तो जो उसका हल था, उस पर यकीन करना मुश्किल था।’’
''आई एम सॉरी।’’
''अंग्रेजों ने इन तीन शब्दों का आविष्कार करके दूसरों की भावनाओं को अपने पैरों तले कुचलने की खुली छूट दे डाली है लोगों को।’’
''और कितना जलील करोगे?’’
''तुम तो बुरा मान गईं। अच्छा ये सब छोड़ो। मुझे सौरभ से मिलना है।’’
''मैं इंतजाम करवाती हूं।’’
''नहीं। इंतजाम मैं खुद करवा लूंगा। लेकिन कोर्ट में मैं उससे मिल चुका हूं। वो मेरी बातों का सीधी तरह जवाब नहीं दे रहा था। अगर वो ही खुलकर बात नहीं करेगा तो हम लोग कुछ नहीं कर पाएंगें। इसलिए जरूरी है कि वो सब सच-सच बताए। तुम किसी तरह उसे राजी करने की कोशिश करो, जिससे मैं कल जब उससे मिलने जाऊं तो जो कुछ भी उससे पूछूं, उसका वो सही-सही जवाब दे।’’
''ठीक है।’’-उसने सहमति में सिर हिलाया-''मैं उस तक संदेश पहुंचवा दूंगीं।’’
''कैसे पहुंचाओगी?’’
''भूल रहे हो। प्रैस में हूं। मैं कोई न कोई रास्ता निकाल लूंगीं।’’
''गुड। उम्मीद है कल सौरभ से मुलाकात होने पर कुछ बातों का पता चलेगा, जिनसे पर्दा हटना बहुत जरूरी है।’’
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