"थैंक्यू ।" उसने कहा, अपनी बरसाती की जेबों में हाथ घुसेडे, विक्रम पर पैनी खोजपूर्ण निगाह डाली और पलटकर चली गई ।
विक्रम ने, बिना कोई जल्दबाजी जाहिर किए, सैडविच उठा लिया । उसने उसी स्थान पर दांत गड़ाए जहां युवती ने काटा था । ब्रेड स्लाइस और आमलेट के अलावा प्लास्टिक के कैपसूल का स्पर्श भी उसे अपने मुंह में महसूस हुआ । उसने फौरन शेष सैंडविच वापस प्लेट में रख दी ।
सब कुछ पलक झपकने जितनी देर में ही हो गया था ।
विक्रम ने, कैपसूल अपने मुंह में एक साइड में ही रोक कर, सैंडविच का काटा हुआ बड़ा-सा टुकड़ा चबाकर उसने कॉफी की सहायता से कण्ठ से नीचे उतारा । फिर जेब से रूमाल निकालकर अपना मुंह पोंछा । इस प्रयास में कैपसूल रूमाल में उगला और फिर अपनी पैंट की टिकिट पॉकेट में एहतियात से रख लिया ।
रूमाल वापस जेब में रखकर वह अपनी बची हुई कॉफी धीरे-धीरे सिप करने लगा ।
अगर यह मजाक था तो खूबसूरत मजाक था । वह सोच रहा था । और अगर ऐसा नहीं था तो वह इतने भारी बखेड़े में फंस चुका था जिससे निकल पाना लगभग नामुमकिन था ।
चमनलाल और इकबाल खड़े हो चुके थे ।
वे जानते थे कि विक्रम के पास बत्तीस कैलीवर की रिवॉल्वर थी । हालांकि इस बात से भी अनजान वे नहीं थे कि वो रिवॉल्वर आफताब आलम और उसके आदमियों के लिए थी । लेकिन वे विक्रम को कोई मौका देना नहीं चाहते थे । इसलिए उनके हाथ अपने सर्विस रिवॉल्वरों पर रखे थे । यह भी विक्रम का पुराने वक्तों का ही लिहाज था । वरना उसे जबरन लाकर बाहर खड़ी पुलिस कार में लाद लिया गया होता ।
चमनलाल का संकेत पाकर विक्रम ने अपनी कॉफी खत्म की और खड़ा हो गया ।
ठीक तभी, रेस्टोरेंट के बाहर दो फायरों की आवाज गूंज गई ।
एक गोली रेस्टोरेंट की खिड़की से टकराई ।
खिड़की के कांच के टुकड़े अन्दर कई मेजों और फर्श पर बिखर गए ।
औरतें चीख पड़ी ।
अजीब-सी भगदड़ मच गई ।
कुछ लोग गिरते-पड़ते से दरवाजे की ओर दौड़े । बाकी जिनमें इतना भी साहस नहीं था, या तो वहीं बैठे-बैठे चीखते रहे-या फिर मेजों के नीचे छुप गए ।
चमनलाल और इकबाल अपनी-अपनी सर्विस रिवॉल्वर हाथ में लिए दरवाजे की ओर भागे ।
तभी, बाहर एक साथ कई फायरों की आवाजें गूंजीं ।
तब तक चमनलाल और इकबाल दरवाजे पर जा पहुंचे थे । उन्होंने भड़ाक से दरवाजा खोला और बाहर दौड़ गए ।
विक्रम ने, खुले दरवाजे से, युवती को फुटपाथ पर एक कार की आड़ में नीचे गिरते देखा । उसके हाथ में थमी गन से, फायर हो रहे थे । लेकिन जिस चीज पर फायर हो रहे थे, वह विक्रम को दिखायी नहीं दे रही थी ।
बाहर रात के अन्धेरे में हो रही फायरिंग ने पूरी तरह साबित कर दिया कि युवती यानी किरण वर्मा ने कतई झूठ नहीं बोला था । साथ ही यह इस बात का भी पक्का सबूत था कि उसकी वजह से विक्रम भारी बखेड़े में फंस चुका था । जिससे निकलना बेहद जरूरी था ।
विक्रम के सामने एक ही चारा था ।
मौका चूकना बेवकूफी थी ।
अफरा-तफरी और भगदड़ का फायदा उठाकर वह भीड़ के बीच से आड़ लेता हुआ भागा । बाकी लोग आतंक की वजह से इधर-उधर दौड़ रहे थे जबकि वह उस तरफ भाग रहा था जहां से उसके विचारानुसार रेस्टोरेंट से सुरक्षित बाहर जाया जा सकता था ।
वह पैंट्री की ओर जाने वाले दरवाजे पर पहुंचा ।
दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुआ । बाहर जाने वाले रास्ते की तलाश में निगाहें दौड़ायीं । तो कमरे के दूसरे सिरे पर एक अन्य दरवाजा उसे दिखाई दे ही गया ।
फिर उसने उस दरवाजे की, जिससे वह कमरे में दाखिल हुआ था, बगल में बनी खिड़की की ओर पलटकर डाइनिंग-हॉल की ओर देखा तो हैरानी से बस देखता ही रह गया ।
मामूली शक्ल-सूरत, मामूली कद-बुत और मामूली लिबास वाला एक आदमी, जिसे सम्भवतया भगदड़ के दौरान ही विक्रम ने डाइनिंग-हॉल में आते देखा था, उस मेज के पास खड़ा था जिस पर वह और किरण बैठे रहे थे । वह युवती की प्लेट में बची जूठन को टटोल रहा था ।
इस काम से फारिग होकर उसने उस तरफ देखा जहां विक्रम बैठा था । फिर उसने बड़े ही ध्यानपूर्वक चारों ओर निगाहें दौडाईं । अन्त में वह लोगों की उस भीड़ में शामिल हो गया जो मेन किचन के दरवाजों की तरफ जा रही थी ।
विक्रम उस आदमी की मिजाजपुर्सी करना चाहता था । लेकिन वह उस तरफ नहीं आ रहा था और वापस डाइनिंग-हॉल में जाने का रिस्क विक्रम नहीं ले सकता था । न ही इस बात का इंतजार कर सकता था कि उसे ढूंढ़ता हुआ वह आदमी वहां आ पहुंचे ।
उसने किरण वर्मा के बारे में सोचा । वह जितनी खूबसूरत थी उससे कहीं ज्यादा हौसलामंद थी । उसने जो किया, उसकी जितनी भी तारीफ की जाए, कम थी ।
वह जानती थी कि बाहर मौत उसका इंतजार कर रही थी । फिर भी उसने खुद को मौत के मुंह में झोंक दिया ।
और यह सब उसने किया-एक कैपसूल की खातिर ।
विक्रम ने जेब से कैपसूल निकालकर पहली दफा उसे देखा । वो पारदर्शी प्लास्टिक का बना था । उसमें सफेद पाउडर जैसी कोई चीज भरी थी । जोकि देखने में दवाई नजर आती थी । लेकिन वो दवाई नहीं थी । इसकी पहली वजह थी कैपसूल का साइज । वो कोई एक इंच लम्बा और चौथाई इंच व्यास वाला था । दूसरे, प्लास्टिक की भीतरी सतह पर धुंधला-सा एक बिंदू नजर आ रहा था । जहां, अन्दर छुपी माइक्रोफिल्म का सिरा कैपसूल को छू रहा था ।
उसने मुस्कराते हुए कैपसूल वापस जेब में रखा और दरवाजे की ओर बढ़ गया ।
वो दरवाजा गलियारे में खुलता था जिसे छत में लगा एक बल्ब रोशन कर रहा था ।
वह गलियारे में चल दिया ।
बाहर जाने वाले दरवाजे के पास एक लाइट स्विच था । विक्रम ने उसे ऑफ कर दिया ताकि रोशनी में बाहर निकलता दिखाई न दे सके ।
वह दरवाजा खोलकर बाहर निकला ।
उसने अपनी ओर से हर मुमकिन एहतियात बरती थी । उसकी वह एहतियात लगभग कामयाब भी हो गई ।
लेकिन, सिर्फ लगभग ।
पूरी तरह नहीं ।
उसे केवल इतना महसूस हुआ कि उसकी खोपड़ी पर किसी कठोर वस्तु से प्रहार किया गया था । अपना बचाव करना तो दूर रहा वह खुद को सम्भाल भी नहीं पाया ।
वह त्यौराकर नीचे जा गिरा ।
उसकी चेतना लुप्त होने लगी थी ।
बेहोश होने से पहले सिर्फ एक ही बात उसके दिमाग में थी-वह निकल भागने की अपनी योजना में कामयाब नहीं हो सका था ।
******
होश में आने के बाद विक्रम के दिमाग में सबसे पहला सवाल उभरा ।
उस वक्त वह कहां था ?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए उसने आंखें नहीं खोली । उसने यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि वह किस हालत में था । चुपचाप उसी तरह बना रह कर उसने अपनी याददाश्त पर जोर डालते हुए, बेहोश होने से पहले की घटनाओं के बारे में सोचने की कोशिश की ।
धीरे-धीरे उसे सब याद आने लगा ।
सहसा, अपनी कलाइयों और टखनों पर रस्सी का मजबूत कसाव महसूस करके उसे तेज झटका-सा लगा ।
उसने अपनी आंखें थोड़ी-सी खोलीं । और अपनी हालत पर गौर किया ।
वह एक कुर्सी पर बैठा था । उसके टखने कुर्सी को टांगों के साथ बंधे थे और कलाइयां बाजुओं के साथ । उसका मुंह खुला था । सिर बेजान-सा आगे की ओर लटक रहा था ।
कुछ देर तक उसी स्थिति में रहकर अपने पैरों को ताकता हुआ विक्रम सोचता रहा । फिर पुन: आंखें बंद कर ली ।
अचानक उसे अपने पीछे उभरता नारी स्वर सुनाई दिया ।
"तुम बेवकूफ हो, जीवन ! मैं पूछती हूं, इसे यहां क्यों ले आए ?"
"तुम नहीं जानतीं ?" नर्वस से पुरुष स्वर में पूछा गया ।
"नहीं ।"
"यह तो जानती हो, आफताब आलम ने मुझे रेस्टोरेंट के पिछले दरवाजे को वाच करते रहने के लिए कहा था । क्योंकि उसे यकीन था, यह चालाकी जरूर करेगा । और इसने वाकई चालाकी की भी ।"
"यह सब तो ठीक है । लेकिन आफताब आलम इसे यहां नहीं लाना चाहता था । वे लोग इसे कहीं और ले जाने वाले थे । तुमने इसे यहां लाकर बड़ी भारी गलती की है ।"
"यह सब तुम सिर्फ इसलिए कह रही हो । क्योंकि असलियत नहीं जानती ।"
"कौन-सी असलियत ?"
"वही, जो रेस्टोरेंट में गुजरी थी । सुनोगी तो छक्के छूट जाएंगे ।"
"मुझे कुछ नहीं सुनना ।"
"तुम्हें सुनना होगा । क्योंकि इसके यहां आने का ताल्लुक वहां हुई मारामारी से ही है । दरअसल रेस्टोरेंट के अन्दर तो यह अकेला ही था मगर बाहर इसके साथी मौजूद थे-दो आदमी और एक लड़की । उन्होंने फायरिंग शुरू की तो हमारे कांती और मोती समझ गए कि वे लोग इसके ही साथी थे । लिहाजा उन्होंने भी जवाब में गोलियां चलाईं । लेकिन तभी रेस्टोरेंट में मौजूद दोनों पुलिस अफसर बाहर आ गए और फिर सब गड़बड़ हो गया । खुलेआम, शहरी इलाके में, खूब गोली-बारी और खूनखराबा हुआ ।"
"मुझे इन बातों से कोई मतलब नहीं है ।" नारी स्वर में जिद थी-"बेहतर होगा, तुम इसे कहीं और ले जाओ ।"
"नहीं, लीना ! मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि आफताब आलम को अब इसकी पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि इस आदमी की वजह से पहले परवेज आलम और अब जहूर आलम, मोती और कांती मारे जा चुके हैं । आफताब आलम ने खुद अपने हाथ से इसकी तिक्का-बोटी करनी है । और मैं इसके जैसा अन्जाम अपना नहीं होने देना चाहता, इसलिए यहां से नहीं ले जाऊंगा । क्योकि उस सूरत में, इसे आफताब आलम की पहुंच से दूर करने वाला भी, इसी के जितना गुनहगार समझा जाएगा ।"
"सुनो, जीवन ! अक्ल से काम लो और समझने की कोशिश करो । इन हालात में पुलिस ने पहले आफताब आलम के ठिकानों की ही तलाशी लेनी है । इसका सीधासा मतलब है, पुलिस सबसे पहले यहीं आएगी । तब इसे यहां पाकर वे लोग क्या सोचेंगे ? मत भूलो कि आफताब आलम के क्रिया-कलापों पर भी पुलिस की कड़ी नजर है । पुलिस को उसकी गरदन नापने के लिए किसी बहाने की तलाश है और इसकी मौजूदगी से बढ़िया बहाना उनके लिए और क्या हो सकता है ? इसकी मौजूदगी का मतलब है-इसे अगुवा करके यहां लाया गया है । अगुवा यानी किडनेपिंग जोकि अपने-आपमें एक संगीन जुर्म है । रेस्टोरेंट के बाहर हुई शूटिंग की वारदात से तो, कोई तगड़ी एलीबी पेश करके, वह खुद को बचा सकता है । मगर किडनेपिंग से नहीं बचा पाएगा । उसका पुलंदा बंध जाएगा ।"
विक्रम ने उस दिशा में जिधर से जीवन नामक आदमी की आवाज आ रही थी, कुर्सी खिसकाई जाने की आहट सुनी । फिर बराबर पैरों की आहटें सुनाई देने लगीं ।
जीवन उठकर कमरे में चहलकदमी करता प्रतीत हुआ ।
वह आफताब आलम के गिरोह के लिए काम करता था । इस लिहाज से वह बदमाश तो था मगर ज्यादा बड़े या महत्त्वपूर्ण काम उससे नहीं लिए जाते थे । शहर के पूर्वी भाग के एक इलाके में 'ड्रग पैडलिंग' ही उसकी आमदनी का जरिया था । ड्रग्स में भी वह मुख्यतः हेरोइन का धन्धा करता था । इसमें दिलचस्प बात थी-वह खुद भी हेरोइन एडिक्ट था । इस तरह वह स्वयं ही अपना सबसे अच्छा कस्टमर भी था । यानी उसकी कमाई का अधिकांश भाग उसकी अपनी लत की भेंट ही चढ़ जाता था ।
इन तमाम बातों की जानकारी विक्रम को भी थी ।
उसे जीवन का स्वर सुनाई दिया ।
"तो फिर मैं अब क्या करूं ?"
"पहले कार लेकर आओ ।" लीना ने कहा ।
"फिर ?"
"हम इसे ले जाकर स्टोर के पिछले हिस्से में लॉक कर देंगे । वहां से न तो यह निकल सकेगा और न ही पुलिस वहां पहुंच पाएगी । इस तरह वही जगह इसके लिए सबसे ज्यादा मुनासिब है । और हम यहीं लौटकर आफताब आलम के संदेश का इंतजार करेंगे ।"
"ठीक है ।" जीवन ने कहा ।" उसके कहने के ढंग से जाहिर था, लीना द्वारा किए गए उस फैसले से वह इसलिए खुश था क्योंकि उसे अपना दिमाग उस बारे में खपाना नहीं पड़ा था ।
असलियत यह थी, सोच-विचार करके किसी सही नतीजे पर पहुंचने लायक काबलियत उसमें थी ही नहीं ।
वह विक्रम के पास पहुंचा । बाल पकड़ कर झटके के साथ उसका सिर ऊपर उठाया ।
विक्रम, आंखें बंद किए, बेहोश होने का ही अभिनय करता रहा ।
"नाटक मत करो !" जीवन गुर्राया बोला-"मैं जानता हूं, तुम होश में हो । आंखें खोलो, विक्रम !" और एक तगड़ा हाथ उसके चेहरे पर जमा दिया ।
विक्रम मन-ही-मन ताव खाकर रह गया । लेकिन उसकी स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ा । उसने पूर्ववत् बेहोशी का अभिनय करना जारी रखा ।"ठीक है ।" जीवन ने कहा ।" उसके कहने के ढंग से जाहिर था, लीना द्वारा किए गए उस फैसले से वह इसलिए खुश था क्योंकि उसे अपना दिमाग उस बारे में खपाना नहीं पड़ा था ।
असलियत यह थी, सोच-विचार करके किसी सही नतीजे पर पहुंचने लायक काबलियत उसमें थी ही नहीं ।
वह विक्रम के पास पहुंचा । बाल पकड़ कर झटके के साथ उसका सिर ऊपर उठाया ।
विक्रम, आंखें बंद किए, बेहोश होने का ही अभिनय करता रहा ।
"नाटक मत करो !" जीवन गुर्राया बोला-"मैं जानता हूं, तुम होश में हो । आंखें खोलो, विक्रम !" और एक तगड़ा हाथ उसके चेहरे पर जमा दिया ।
विक्रम मन-ही-मन ताव खाकर रह गया । लेकिन उसकी स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ा । उसने पूर्ववत् बेहोशी का अभिनय करना जारी रखा ।
"नाटक छोड़ो, विक्रम !" जीवन पुनः गुर्राया और एक और हाथ जमा दिया ।
विक्रम ने फिर भी न तो आंखें खोलीं और न ही अन्य कोई हरकत होने दी जिससे जाहिर हो कि वह होश में था ।
"क्यों इसकी जान लेने पर तुले हो, जीवन ?" लीना ने कहा-"बेहतर होगा इसे फिलहाल इसके हाल पर ही छोड़ दो । तुम पहले ही इसके सिर पर तगड़ा वार कर चुके हो ।"
"वो मैंने ठीक किया था । अगर ऐसा नहीं करता तो इसने मौका पाते ही मुझे शूट कर डालना था । इसके पास रिवॉल्वर थी । गनीमत थी कि यह बेहोश हो गया और मैंने इसकी रिवॉल्वर निकाल ली ।"
"जानती हूं ।" लीना ने कहा । उसके लहजे में बोरियत थी ।
"लेकिन तुम यह नहीं जानती कि इसके पास हेरोइन का एक कैपसूल भी था ।"
"क्या ?" लीना ने पूछा । उसके स्वर में हैरानगी के साथ-साथ दिलचस्पी भी थी ।"
"इसके पास हेरोइन का एक कैपसूल था ।" जीवन ने पुनः कहा ।
"कमाल है ! मैं आज पहली बार सुन रही हूं कि यह भी फिक्स लेता है । अब से पहले तक, मेरी जानकारी के मुताबिक, यह सिगरेट और शराब जैसी मामूली चीजों का सेवन भी नहीं करता है ।"
"यह सब मैं नहीं जानता । मुझे सिर्फ इतना मालूम है इसकी पैंट की टिकिट पॉकेट में एक हेरोइन का कैपसूल मिला था ।"
"अब मैं सब कुछ समझ गई ।"
"क्या मतलब ?"
"दरअसल यह हमेशा ही अजीब किस्म का आदमी रहा है । पुलिस की नौकरी के दौरान भी और बाद में भी । लेकिन अब इसकी वजह समझ में आ गई ।" लीना ने कहा, "तुम उस कैपसूल से फिक्स बनाकर इसे दे दो तभी इसे होश आएगा ।"
"नहीं, मुझे अफसोस है कि ऐसा नहीं कर पाऊंगा ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि आजकल मुझे अपने लिए भी सप्लाई ठीक से नहीं मिल रही है । पता नहीं उसके पास भी 'माल' आ रहा है या नहीं । वो कैपसूल मेरे काम आएगा ।"
जीवन ने विक्रम का सिर जोर से नीचे झटककर उसके बाल छोड़ दिए ।
बेहोशी का अभिनय जारी रखते विक्रम ने अपना सिर तो उसी तरह नीचे लटका रहने दिया । मगर मन-ही-मन वह बुरी तरह कलप रहा था ।
सत्यानाश !
अब पूरी तरह कबाड़ा हो चुका था !
रेस्टोरेंट में जिस कैपसूल की वजह से बखेड़ा शुरू हुआ । विक्रम सोच रहा था-और जो तमाम फसाद की जड़ था । वही एक हेरोइन एडिक्ट के कब्जे में पहुंच चुका था ।
मौजूदा हालात मे इससे ज्यादा गलत और कुछ नहीं हो सकता था ।
अपनी विवशता पर मन-ही-मन कुढ़ते विक्रम ने सोचने की कोशिश की कि इस मामले में क्या किया जा सकता था ? कुछ किया भी जा सकता था या नहीं ?
प्रत्यक्षतः उसका मुकाबला एक हेरोइन एडिक्ट बदमाश और आफताब आलम की एक रखैल से था । लेकिन उसका सबसे बड़ा माइनस प्वाइंट, उसके हाथ-पैर बंधे होना था । अगर ऐसा नहीं होता तो उनसे निपटने का कोई तरीका निकाल सकता था । जबकि वर्तमान स्थिति में पहले बंधन मुक्त होना आवश्यक था ।
क्या वह बंधनमुक्त हो सकता था ?
इससे ज्यादा कुछ विक्रम नहीं सोच सका । क्योंकि तभी जीवन ने किसी कठोर वस्तु से उसकी खोपड़ी के पृष्ठभाग पर वार कर दिया था ।
आंखें बन्द होने के बावजूद, पल भर के लिए, उसे अनगिनत रंग-बिरंगे सितारे झिलमिलाते नजर आए । फिर गहन अंधकार और फिर उसकी चेतना जवाब दे गई ।
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