देवराज चौहान ने कार रोकी और बाहर निकल कर सामने खड़ी जगमोहन की कार के पास जा पहुँचा। चाबी अभी तक कार में लटक रही थी। कुछ पल देवराज चौहान होंठ भींचे कार को देखता रहा, फिर दरवाजा खोला और सिर को भीतर करके कार के भीतर नजरें दौड़ाने लगा कि जगमोहन की गुमशुदगी के बारे में कोई नई बात पता चल सके।

कार के भीतर, सीटों के नीचे हर जगह पर देवराज चौहान की नजर गई। परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं दिखा कि जिससे जगमोहन की गुमशुदगी पर प्रकाश पड़ता। कोई नई बात पता चलती।
देवराज चौहान अभी कार के भीतर ही झुका हुआ था कि तभी एक कार आई और कार के खुले दरवाजे से जा लगी। दरवाजे का सत्यानाश हो गया था। और उससे टकराने वाली कार रुक चुकी थी। देखते ही देखते कार के दरवाजे खुले और पाँच-छः आदमी भीतर से निकले और देवराज चौहान पर झपट पड़े। देवराज चौहान को कुछ समझने का मौका नहीं मिला।
"गलती तेरी थी जो तूने कार का दरवाजा खुला रखा।" एक कह उठा।
"मारो साले को!"
वे कहने के दौरान एक-दो हाथ भी जमाए जा रहे थे।
पाँच-सात और आ गये।
उन्होंने भी एक-एक दो-दो हाथ ठोके।
देवराज चौहान समझ नहीं पाया कि अचानक ये क्या हो गया है उसके साथ।
फिर सबके हाथ रुके।
सबने घेर रखा था देवराज चौहान को।
"दोबारा नजर आया तो छोड़ेंगे नहीं...।"
"सीधा हो जा साले...।"
फिर जिस तरह से आये थे, उसी तरह अपने रास्ते पर चलते बने।
देवराज चौहान हैरान-परेशान सा खड़ा रह गया था वहाँ।
◆◆◆
"देखा तुमने!" मलिक गम्भीर स्वर में बोला--- "ये सब मेरे ही आदमी थे, जो देवराज चौहान पर नजर रखे हुए हैं।"
"ये तुम्हारा शक्ति परीक्षण था?" जगमोहन ने चुभते स्वर में कहा।
"कुछ भी समझ लो। देवराज चौहान मेरे हाथों से दूर नहीं है। मैं जब भी चाहूँ... उसे शूट कर सकता हूँ।"
"ये बात तुम उदाहरण के साथ मुझे पहले भी बता चुके हो।" जगमोहन होंठ भींचकर बोला।
"ये गम्भीर मामला है। अब तक तुम्हें इस बात का एहसास हो गया होगा।"
जगमोहन, मलिक को देखता रहा।
"अब तक तुम बचाते रहे देवराज चौहान को। वरना वो कब का मर चुका होता। मैंने तुम्हारा कहना माना और उसे शूट नहीं किया।"
"इसके लिये मैं तुम्हें पहले ही शुक्रिया कह चुका हूँ।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "आखिर तुम चाहते क्या हो?"
"मेरे आदमी अब भी देवराज चौहान पर नजर रखे हुए हैं। वो कहीं गये नहीं हैं। जाने का दिखावा उन्होंने अवश्य किया।"
"जानता हूँ।" कहकर जगमोहन ने नजरें घुमाईं तो देवराज चौहान को अभी भी कार के पास ही खड़े पाया।
जगमोहन का दिल कर रहा था जैसे उड़कर देवराज चौहान के पास पहुँच जाये। परन्तु ये ख्याल सिर्फ ख्याल ही बनकर रह गया। फिलहाल तो यहाँ से आजाद होने की उसे कोई आशा नहीं थी।
"मल्होत्रा!" मलिक गम्भीर स्वर में बोला--- "चलो अब...।"
मल्होत्रा ने वैन स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी।
मलिक ने सिग्रेट सुलगाई।
"हम कहाँ जा रहे हैं?" जगमोहन ने पूछा।
"सुदेश! इसकी आँखों पर काली पट्टी चढ़ा दे।"
सुदेश ने रिवाल्वर एक तरफ रखी और जेब से दो इंच चौड़ी इलास्टिक में फंसी काली पट्टी निकाली और आँखों पर चढ़ा दी। अब जगमोहन को दिखाई देना बंद हो गया था।
"कितनी देर का सफर है?" जगमोहन ने पूछा।
"एक घण्टा।"
"मेरे हाथ खोल दो।"
"खामोश रहो।"
"बंधे हाथों से बैठने में मुझे परेशानी हो रही है।"
"मैंने तुम्हारे कहने पर देवराज चौहान को शूट नहीं किया। वरना मौके बहुत थे मेरे पास। तुम गवाह हो ही इस बारे में। वैसे मेरा एक फोन देवराज चौहान को मौत की नींद सुला सकता है।" मलिक का स्वर गम्भीर था।
"मैंने तुमसे क्या गलत कह दिया जो तुम्हें ये कहना पड़ा?" जगमोहन बोला।
"खामोश हो जाओ। कुछ देर बाद तुम्हें बोलने का पूरा मौका मिलेगा।" मलिक ने कहा।
◆◆◆
सवा घण्टे बाद सफर खत्म हुआ।
उसकी बाँह पकड़कर, कार से उतारने के बाद ले जाया गया। एक कमरे में पहुँचाकर जगमोहन की आँखों की पट्टी हटा दी गई।
पट्टी हटने के बाद जगमोहन ने कमरे का नजारा किया। सुदेश पास में खड़ा था। उसका हाथ जेब में था।
"मलिक कहाँ है?"
"तुम इसी कमरे में रहोगे।" सुदेश कठोर स्वर में बोला--- "बाहर निकलने की कोशिश बेकार होगी। मलिक साहब ने कहा है कि तुम्हें अच्छी तरह से बता दूँ कि अगर तुम फरार हुए तो उसी वक्त देवराज चौहान को शूट कर दिया जायेगा।"
जगमोहन ने मन-ही-मन गहरी साँस ली।
"घटिया लोग हो तुम सब...।" जगमोहन बोला।
"हम बहुत ही घटिया हैं। ये बात हमेशा अपने दिमाग में रखना।" सुदेश कठोर स्वर में बोला।
"ये कौन सी जगह है?"
"तुमने कैसे सोच लिया कि मैं बता दूँगा?"
"मैं मलिक से मिलना चाहता हूँ।"
"मलिक साहब जब ठीक समझेंगे, आ जायेंगे। यहाँ पर तुम कोई गलती मत कर देना।" कहने के साथ ही सुदेश बाहर चला गया।
जगमोहन कमरे में खड़ा नजरें दौड़ाता रहा।
आराम करने के लिए कमरे में बेड था। बैठने के लिए कुर्सियाँ थीं।
लेकिन जगमोहन जानता था कि वह फंस चुका है। चाहकर भी भाग नहीं सकता। क्योंकि उसे पहले ही सतर्क कर दिया गया था कि वो भागा तो, उधर देवराज चौहान को शूट कर दिया जायेगा।
जगमोहन ने गहरी साँस ली और कुर्सी पर जा बैठा। हालातों के बारे में सोचने लगा।
सब कुछ ठीक चल रहा था, फिर अचानक ही ये सब क्या हो गया?
एकाएक ही सबकुछ बदल गया था।
देवराज चौहान उसके लिए बहुत ज्यादा परेशान हो रहा होगा।
◆◆◆
देवराज चौहान हैरान-परेशान सा, जगमोहन की कार के पास से हटा और अपनी कार की तरफ बढ़ गया। अचानक इकट्ठा होने वाले लोगों ने उस पर हाथ जरूर बरसाये थे, परन्तु हल्के ढंग से उसे पीटा गया था। अब तक तो उस ठुकाई का एहसास भी मिट चुका था। परन्तु जो हुआ, उस पर अवश्य हैरान था। जाने क्यों कभी-कभी उसे लगता कि किसी उद्देश्य के तहत उसकी ठुकाई की गई। परन्तु ये सब उसका ख्याल था।
देवराज चौहान अपनी कार में बैठा और कार दौड़ा दी।
जगमोहन के बारे में चिन्तित हो रहा था वो।
कहाँ होगा जगमोहन?
देवराज चौहान ने पुनः फोन निकाल कर जगमोहन का नम्बर मिलाया।
लेकिन कानों में स्विच ऑफ होने के ही शब्द पड़े।
एक ही चिन्ता थी देवराज चौहान को कि जगमोहन जहाँ भी हो, सही-सलामत हो। उसे कुछ हो न गया हो। किन्हीं लोगों ने उसे नुकसान न पहुँचा दिया हो।
देवराज चौहान कुर्ला पहुँचा। वहाँ के छोटे से ठाकर होटल को ढूंढने में कुछ वक्त लगा। वो होटल भी बाजार में दुकानों के बीच फंसा पड़ा, छोटा-सा होटल था। उसके स्टोर जैसे रिसेप्शन पर जाकर प्रतापी, शेख के बारे में पूछा तो उसे बताया गया कि वे लोग पहली मंजिल के 12 नम्बर कमरे में हैं।
देवराज चौहान सीढ़ियां चढ़कर 12 नम्बर कमरे में पहुँचा।
टिड्डा ने दरवाजा खोला, देवराज चौहान को सामने पाकर खुश हुआ वो। देवराज चौहान के भीतर आने पर उसने दरवाजा बंद किया तो सामने बैठा प्रतापी कह उठा---
"तुमने हमें होटल बदलने को क्यों कहा?"
"उसे चैन से बैठने तो दे। चाय-कॉफी मँगवा...।" शेख बोला।
पव्वे ने कमरे से बाहर मुँह निकालकर ऊँचे स्वर में कहा---
"सुनना।"
"हाँ...।" स्टोर जैसे रिसेप्शन में बैठे व्यक्ति की आवाज आई।
"चार-पाँच कॉफी भेज... फटाफट...।"
"भेजता हूँ...।"
पव्वे ने सिर भीतर किया और दरवाजा बंद करके पलटा और लकड़ी की पुरानी कुर्सी पर आ बैठा।
देवराज चौहान बैठ चुका था और उसने सिग्रेट सुलगा ली थी।
"कुछ तो बता देवराज चौहान।" टिड्डा बोला--- "सब ठीक तो है--- हुआ क्या?"
"हमारे कल के काम से वास्ता रखती सब बातें ठीक हैं।" देवराज चौहान ने कहा--- "समस्या जगमोहन की है। जगमोहन जब होटल से बाहर गया तो उसे बाहर खड़ी अपनी कार लेकर निकल जाना चाहिए था। परन्तु उसकी कार बाहर ही खड़ी मिली, जबकि चाबी उसमें लगी हुई थी और जब मैंने जगमोहन के मोबाइल पर फोन किया तो एक बार बेल होने के पश्चात्, फोन का स्विच ऑफ कर दिया गया। उसके बाद मैंने जितनी बार भी जगमोहन को फोन किया, मोबाइल का स्विच ऑफ ही आता रहा।"
"और जगमोहन का फोन तुम्हें नहीं आया?" प्रतापी ने पूछा।
"अब तक तो नहीं...।"
"उसने तुमसे दो घण्टे बाद किसी बंगले पर मिलने को कहा था?" टिड्डा बोला।
"वहाँ नहीं मिला वो...।"
"तुम क्या सोचते हो कि इस वक्त जगमोहन कहाँ होगा?" शेख ने पूछा।
"इन हालातों में वो खुद नहीं जा सकता।" देवराज चौहान ने कहा--- "क्योंकि वो जानता है कि कल हम डकैती करने जा रहे हैं।"
"फिर तो स्पष्ट है कि वो किसी खतरे में फंस गया है।" पव्वा गम्भीर स्वर में बोला।
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता आ ठहरी। कश लिया उसने।
"सोचने वाली बात है कि होटल के उस कमरे से निकलकर, बाहर खड़ी कार तक पहुँचने के बीच, किस तरह वो किसी मुसीबत में पड़ गया?" शेख बोला--- "तुमने वहाँ आसपास किसी से पूछा कि यहाँ कुछ हुआ तो नहीं?"
"पूछा। एक सफेद मारुति वैन की ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति से पूछा। वो वैन पहले से ही वहाँ खड़ी थी। उस व्यक्ति ने बताया कि उस कार वाला, कार के भीतर बैठा, फिर बाहर निकलकर, टैक्सी पकड़कर चला गया।"
"फिर तो कार खराब होगी उसकी।" प्रतापी ने कहा।
"कार ठीक है। मैंने तब चलाकर देखी थी। एक-दो मिनट बाद देखा तो वो वैन जा चुकी थी।" देवराज चौहान की निगाह उन चारों पर जा रही थी--- "मुझे वो वैन वाला झूठ बोलता लगा।"
"झूठ क्यों बोलेगा?"
"वो भी उन लोगों में से एक हो सकता है, जो जगमोहन के लिए मुसीबत बने।"
"वैन में और कौन था तब?" टिड्डा ने पूछा।
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
"पता नहीं। मैं भीतर देख नहीं पाया। शायद वैन पर काले शीशे चढ़े हुए थे। वैसे भी मेरा पूरा ध्यान जगमोहन को तलाश करने की तरफ था। मुझे उस वैन पर कोई शक भी नहीं था कि भीतर देखने की चेष्टा करता।"
"यानि कि तब से जगमोहन की कोई खबर नहीं?" पव्वा कह उठा।
"नहीं।"
"तुमने कहाँ ढूंढा उसे?"
"कहीं भी नहीं। वो कहीं नहीं जा सकता। उसे जबर्दस्ती ले जाया गया है। सोचता हूँ कि मेरा ख्याल गलत हो और अभी जगमोहन का फोन आ जाये। लेकिन अब शाम के छः बज रहे हैं। फोन आना होता तो आ जाता...।"
कुछ पल वहाँ खामोशी रही।
"अब तुम क्या करोगे?"
"मुझे तुम लोगों की भी चिन्ता है। पन्द्रह दिन से इस काम के लिये तुम सबने दिन-रात एक कर रखा है। इस काम को छोड़ा भी नहीं जा सकता। कल एक बजे तक हम इस काम से फुर्सत पा लेंगे। उसके बाद जगमोहन को तलाश करूँगा।" देवराज चौहान ने गम्भीर-कठोर स्वर में कहा--- "वो पक्का कहीं फंस गया है।"
"तुम्हारा कोई दुश्मन?" पव्वा बोला।
"कोई नहीं--- कई दुश्मन हैं। गिनती नहीं है। जाने कितने लोग होंगे जिनके मन में मेरे लिए दुश्मनी होगी और मुझे पता भी नहीं। कोई भी मुझे या जगमोहन को नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर सकता है। ऐसे दुश्मन को पहचान पाना सम्भव नहीं।"
"फिर तो समस्या वाली बात खड़ी हो गई...।" प्रतापी ने कहा।
देवराज चौहान ने कश लिया।
"देवराज चौहान।" शेख कह उठा--- "कल काम के बाद मैं भी तुम्हारे साथ जगमोहन को तलाश करूँगा।"
"मैं भी...।" टिड्डा बोला।
"हम चारों तुम्हारे साथ होंगे। जगमोहन जहाँ भी होगा, उसे ढूंढ निकालेंगे।" पव्वा कह उठा।
"तब तक जगमोहन ठीक हो...।" प्रतापी ने चिन्तित स्वर में कहा।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।
"जगमोहन का गायब होना, ऐसे मौके पर हुआ है कि हम फौरन कुछ नहीं कर सकते।" टिड्डा ने देवराज चौहान को देखा--- "क्या तुम्हें किसी पर शक है तो बताओ। रात-रात में हम काफी कुछ कर सकते हैं।"
"मुझे किसी पर शक नहीं है। मैं नहीं कह सकता कि जगमोहन से गड़बड़ करने वाला कौन होगा।"
"अभी पूरी रात बाकी है और कल दोपहर तक समय हमारे पास है।" शेख ने कहा--- "हो सकता है कि सब ठीक हो और किसी कारण से जगमोहन को अपना फोन बंद करना पड़ा हो। कोई वजह होगी कि उसने फोन भी नहीं किया। शायद रात में या सुबह तक उसका फोन आ जाये। सब ठीक ही हो।"
"ऐसा हुआ तो इससे अच्छी बात क्या होगी?" पव्वे ने कहा।
"अब तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?" पव्वे ने पूछा।
"मैं तुम लोगों के साथ यहीं रहूँगा और सुबह हम बैंक वैन पर हाथ डालेंगे।" देवराज चौहान गम्भीर स्वर में कह उठा--- "उसके बाद मैं जगमोहन की तलाश शुरू करूँगा।"
"हम भी...। हम चारों तुम्हारे साथ हैं।"
देवराज चौहान ने कश लेकर सिग्रेट ऐश ट्रे में डाली और फोन निकालकर नम्बर मिलाया। अगले चंद पलों में वो सोहनलाल से बात कर रहा था।
"कैसे हो सोहनलाल?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।
"एकदम बढ़िया।"
"नानिया कैसी है?"
"वो भी मजे में। हम दोनों में खूब पट रही है।" उधर से सोहनलाल ने हँस कर कहा।
"कल तुमसे कुछ काम है।" देवराज चौहान बोला।
"क्या?"
"बैंक के, पाँच स्टील के बंद, लॉक हुए बक्सों को हाथों-हाथ खोलना होगा।"
"तो किसी काम पर हो?"
"हाँ। तुम तैयार रहना। मैं अपना काम निपटते ही तुम्हें फोन कर दूँगा।"
"ठीक है। काम का वक्त क्या है?"
"ग्यारह से एक के बीच का।"
"मैं तैयार मिलूँगा।"
देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रख लिया।
तभी पव्वा कह उठा---
"शाम हो चुकी है। बोतल का इंतजाम करो।"
"मैं लाऊँ क्या?" प्रतापी ने कहा।
"दो बोतल लाना।" टिड्डा बोला।
"पाँच लोग हैं तो दो बोतल लग ही जायेंगी...।" शेख मुस्कुरा पड़ा।
"मुझे इस काम में शामिल मत करो।" देवराज चौहान बोला।
"तुम नहीं लेते क्या?"
"इस तरह मैं नहीं लेता और अब पीने का मेरा मन नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा।
"ठीक है तुम मत पीना। इच्छा हो तो एक पैग लेकर हमारा साथ दे देना।"
"एक बात याद रखो कि कल हमने काम करना है।" देवराज चौहान ने चारों पर नजर दौड़ाते हुए कहा--- "ज्यादा नहीं पीनी है। एक ही बोतल लाओ और पीने के बाद आवाज कमरे से बाहर नहीं जानी चाहिए।"
"तुम्हारी बात का हम ध्यान रखेंगे।"
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।
प्रतापी बोतल लेने के लिए बाहर निकल गया।
"जगमोहन का नम्बर फिर मिलाओ।" पव्वा बोला--- "शायद लग जाये।"
देवराज चौहान ने मोबाइल निकालकर, जगमोहन का नम्बर मिलाया।
परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। स्विच ऑफ होने के शब्द कानों में पड़ते रहे।
◆◆◆
शाम के आठ बज रहे थे।
बाहर अँधेरा फैल चुका था।
इस दौरान सुदेश दो बार जगमोहन को चाय और साथ में खाने का सामान दे गया था। हर बार जगमोहन, मलिक से मिलने को कहता तो सुदेश का यही जवाब होता कि वो जब ठीक समझेगा, आ जायेगा।
सवा आठ बजे मलिक कमरे में, जगमोहन के पास आया था।
"मुझे इतनी देर तुमने बिठा क्यों रखा है।" जगमोहन बोला--- "बात क्यों नहीं की?"
"मैं भी तुमसे बात करना चाहता था, परन्तु व्यस्त था।" मलिक बैठते हुए गम्भीर स्वर में बोला।
"अब बोलो, क्या चाहते हो?"
सुदेश कमरे में ही सतर्क अन्दाज में खड़ा था।
"देवराज चौहान कल बैंक वैन डकैती करने जा रहा है।"
"तुम्हें कैसे पता?" जगमोहन चौंका।
"बेकार के सवाल मत करो। उसने अपने साथ इस डकैती में चार लोग शामिल किए हैं। टिड्डा, शेख, प्रतापी और पव्वा।"
"बहुत जानकारी है तुम्हें।" जगमोहन के माथे पर बल दिखे--- "बसन्त को जानते हो तुम?"
"जानता हूँ। बसन्त वो ही व्यक्ति है, जिसने देवराज चौहान को इन चारों का इन्तजाम करके दिया है।"
"तो तुमने हम पर नजर रखी?"
"हाँ...।"
"कब से नजर रख रहे हो हम पर?"
"इस बात का जवाब नहीं दूँगा।"
"तुम हो कौन?"
"मेरे से सवाल मत पूछो। पहले तो वो बात करो, जो मैं कर रहा हूँ।"
"तुमने अभी तक कोई बात नहीं कही।"
"अब करूँगा।"
जगमोहन की निगाह, मलिक पर जा टिकी।
"क्या तुम अपने बारे में कुछ बताओगे?" जगमोहन ने पूछा।
"बताऊँगा, लेकिन काम हो जाने के बाद...।"
"कैसा काम?"
मलिक ने सिग्रेट सुलगाई।
तभी मल्होत्रा ने कमरे में प्रवेश किया।
जगमोहन ने उसे देखा।
मल्होत्रा पास आकर कुर्सी पर बैठ गया।
"तो देवराज चौहान कल बैंक वैन डकैती करने जा रहा है।" मलिक शांत स्वर में बोला।
"तुम्हारी नजर 60 करोड़ की दौलत पर है?" जगमोहन ने पूछा।
"नहीं...।"
"इतने शरीफ तो नहीं लगते तुम।"
"इतने शरीफ ही हैं हम...।" मलिक ने कहा--- "अभी भी हमारे आदमी देवराज चौहान पर नजर रख रहे हैं। मेरा एक फोन देवराज चौहान की जान ले सकता है। ये बात तुम हर वक्त याद रखना।"
"जो बात तुम पहले कह चुके हो, वो बार-बार मत कहो...।"
"जरूरी है कहना। ताकि तुम ये बात, बातों के दौरान याद रखो।"
"याद रहेगी मुझे...।"
मलिक ने कश लिया।
"हम चाहें तो देवराज चौहान को शूट कर सकते हैं। उसे जेल में पहुँचा सकते हैं। उसकी डकैती असफल करा सकते हैं। यानि कि जो भी चाहे कर सकते हैं। परन्तु अभी तक तो ऐसा कुछ भी करने का हमारा इरादा नहीं है।" मलिक बोला--- "क्योंकि तुम वो करोगे, जो हम चाहते हैं।"
जगमोहन, मलिक को देखता रहा।
"कल जब देवराज चौहान बैंक-वैन ले भागेगा तो तुम उस वैन को लेकर हमारे हवाले करोगे।"
जगमोहन बुरी तरह चौंका।
"ये क्या कह रहे हो?" जगमोहन के होंठों से निकला।
"तुमने सही सुना है।"
"मैं...मैं ऐसा क्यों करूँगा?"
"देवराज चौहान की जिन्दगी बचाने के लिए। अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो हम उसी वक्त देवराज चौहान को शूट कर देंगे।"
"तुम पागल हो।" जगमोहन तेज स्वर में बोला--- "वो लोग वैन लूटकर भाग रहे होंगे। तब वो वैन मेरे हवाले क्यों करेंगे?"
"क्योंकि वो सब तुम्हें जानते हैं। तुम आसानी से उनसे वैन ले सकते...।"
"नहीं, तब वो मुझे वैन नहीं देंगे। 60 करोड़ से भरी वैन को मुझे क्यों ले जाने देंगे?"
"ये तुम सोचो,देवराज चौहान को बचाना है तो तुम्हें ये काम करना होगा?" मलिक गम्भीर स्वर में कह उठा।
जगमोहन के होंठ भिंच चुके थे।
वे एक-दूसरे को देखते रहे।
मल्होत्रा की निगाह भी जगमोहन पर थी। वो अभी तक चुप था।
सुदेश सावधानी से खड़ा था।
"तुमने अभी कहा कि 60 करोड़ में तुम्हारी कोई दिलचस्पी नहीं।" जगमोहन शब्दों को चबाकर कह उठा।
"अब भी कहता हूँ।"
"फिर वैन तुम्हें क्यों चाहिये?"
"उसमें नोटों के अलावा भी कुछ है, वो मुझे चाहिये।" मलिक गम्भीर स्वर में बोला।
"क्या है?"
"ये तुम्हारे जानने लायक बात नहीं है, तुम अपना मतलब नोटों तक ही रखो।"
"कुछ और भी कीमती चीज है उसमें?"
"जो हमें चाहिए, वो तुम्हारे लिए कबाड़ है।"
"तो बताने में क्या हर्ज है?"
"कोई हर्ज नहीं, लेकिन मैं बताना नहीं चाहता।"
जगमोहन का दिमाग तेजी से काम कर रहा था इस वक्त।
"तुम्हारे पास तो बहुत आदमी हैं।" जगमोहन बोला।
"तो?"
"तुम्हें सब पता है कि कल देवराज चौहान और उन चारों ने बैंक वैन डकैती करनी है। तुम आसानी से वैन को छीन सकते हो।"
इस तरह से तो हम भी डकैती करने के भागीदार बन जायेंगे।"
जगमोहन उसे देखता रहा।
"हम उनसे वैन छीनेंगे। वो इस बात के लिए तैयार नहीं होंगे। दोनों तरफ गोलियाँ चलेंगी। उनके आदमी भी मरेंगे और हमारे आदमी भी मरेंगे। जबकि इस काम में मैं शोर-शराबा नहीं चाहता। तभी तो तुम्हें चुना है। तुम उन्हीं के साथी हो और एक दिन पहले अचानक गायब हो गये। वो तुम्हें देखेंगे तो भागती वैन को जरूर रोकेंगे। तब तुम कोई चालबाजी करके उनसे आसानी से वैन हथिया कर खिसक सकते हो।" मलिक का स्वर गम्भीर था।
"मैं ऐसा नहीं करूँगा।"
"तो हम देवराज चौहान को कल होने वाली डकैती से पहले ही शूट कर देंगे।" मल्होत्रा बोला--- "अगर तुम्हें लगता है कि मेरी बात झूठी है तो उसे तुम्हारे सामने शूट करेंगे। वो कुर्ला के ठाकर होटल में है, उन चारों के साथ। सुबह जब वो डकैती के लिए होटल छोड़ेगा तो हम उसे शूट कर देंगे।"
जगमोहन के होंठ भिंच गये।
"ये काम तो तेरे को करना ही पड़ेगा।" मल्होत्रा ने चुभते स्वर में कहा--- "नहीं तो देवराज चौहान मरा ही मरा।"
"माना कि मैंने तुम्हारी बात मानकर वैन हासिल की और तुम्हारे हवाले कर दी। उसके बाद क्या होगा?"
"हम वैन से अपने काम की चीज निकाल लेंगे। उसके बाद वैन तुम्हारे हवाले कर देंगे।"
"60 करोड़ के नोटों के साथ?"
"हाँ। नोटों को हम हाथ भी नहीं लगाएंगे। ये वादा है हमारा।"
"तुम्हारे काम की चीज वैन में कहाँ पर होगी?"
"वैन में पाँच स्टील के बॉक्स रखे जायेंगे। हर बॉक्स में 12-12 करोड़ रुपया मौजूद होगा और उस पर बैंक का ताला लगा होगा। उन पाँच बक्सों में से किसी एक में हमारे काम की चीज भी मौजूद होगी।"
"तुम उन बक्सों को खोलोगे कैसे?"
"हमने ताले-तिजोरी खोलने वाले को चुन रखा है। उस पर नजर रखी जा रही है। अगले दो-तीन घण्टों में मैं उससे बात करूँगा। वो इन तालों को आसानी से खोल देगा।" मलिक ने कहा।
"वो ना खोल सका तो?"
"वो खोल देगा। तुम अपनी फिक्र करो।" मल्होत्रा ने कहा--- "जो हमने कहा है, वो तुम करने को तैयार हो?"
"तो तुम लोगों को नोट नहीं चाहिए। कुछ और ही चाहिए। जो वहाँ रखा होगा और हमारे लिए कबाड़ जैसा होगा।"
"हाँ...।"
"ठीक है, मेरा फोन मुझे वापस दो...।" जगमोहन बोला।
"फोन?"
"मोबाइल फोन, मेरा...।"
"क्यों?"
"मैं देवराज चौहान से बात करता हूँ। बिना किसी झंझट के ये काम हो जायेगा।"
"तुम जो करना चाहते हो, उस पर हमने भी सोचा है।"
"क्या करना चाहता हूँ मैं?"
"तुम सारी बात देवराज चौहान को बता कर, उन बक्सों में नोटों के अलावा और जो भी होगा, देवराज चौहान वो हमें देगा।"
"हाँ...।"
"लेकिन हम ऐसा नहीं चाहते।" मलिक ने इन्कार में सिर हिलाया।
"तो कैसा चाहते हो?"
"हम उन बक्सों को अपने कब्जे में लेकर, उन्हें खुलवाकर, उसमें से अपने काम की चीज ले लेना चाहते हैं और इस दौरान हमें खामखाह के लोग न देखें। देवराज चौहान भी नहीं...।"
"क्यों? मैंने तो देखा है तुम लोगों को।"
"मजबूरी थी, हमें तुम्हारे सामने आना पड़ा। जबकि हम अपनी पहचान नहीं कराना चाहते।"
"तुम हो कौन?"
"ये नहीं जान पाओगे तुम।"
"ठीक है।" जगमोहन ने सिर हिलाया--- "लेकिन तुम मेरी कोई बात नहीं मान रहे। मैंने बहुत अच्छा रास्ता दिखाया है कि अगर तुम लोग नोट नहीं चाहते तो मैं देवराज चौहान से बात करता हूँ। वो आसानी से मान जायेगा और वैन को किसी सुनसान जगह पर, जिसे कि हम तय करेंगे, रुकवा लेगा। तुम उसके भीतर मौजूद बक्सों के ताले खुलवा कर देख लेना कि किस में तुम्हारे काम की चीज है, वो लेकर चले जाना।"
"तब तक देवराज चौहान और बाकी चारों हमें अच्छी तरह देख लेंगे।"
"इससे क्या फर्क पड़ता है?"
"ये तो हम ही जानते हैं कि हमें क्या फर्क पड़ेगा। तुम काम को हमारे ढंग से करोगे मिस्टर जगमोहन।"
जगमोहन के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी।
"खामखाह का क्यों ड्रामा कर रहे हो। सीधी तरह क्यों नहीं कहते कि तुम्हारी नजर 60 करोड़ पर है?"
"तुम गलत सोच रहे हो।"
"मुझे बेवकूफ मत बनाओ।"
"विश्वास करो। हमने तुमसे जो कहा है, वो सच है।"
"मैं तो विश्वास करने से रहा।" जगमोहन तीखे स्वर में बोला--- "मुझसे चालाकी मत करो।"
"तुम हमारी बात सच मानो...हम...।"
"मलिक!" मल्होत्रा ने कठोर स्वर में टोका--- "हम बेशक वो साठ करोड़ ही क्यों न लेना चाहें। इससे क्या मतलब? इसे तो देवराज चौहान की जिन्दगी से मतलब होना चाहिए। हमारी बात मानेगा तो, देवराज चौहान जिन्दा बचेगा।"
मलिक उठ खड़ा हुआ।
मल्होत्रा भी उठा।
"सुन लिया तुमने?" मलिक गम्भीर स्वर में बोला--- "देवराज चौहान तभी बचेगा। जब तुम हमारी बात मानोगे। मैं फिर कहूँगा कि हमें 60 करोड़ नहीं चाहिए। हमें उनमें से किसी बक्से में पड़ी अपने काम की चीज चाहिए...।"
"तो कल सुबह तुम अपनी आँखों से देवराज चौहान की लाश गिरती देखना। उसके बाद एक गोली तुम्हारे सिर में भी डाल देंगे। मैं भी देखता हूँ कि तुम हमारी बात क्यों नहीं मानते।" मल्होत्रा ने कठोर स्वर में कहा।
जगमोहन के दाँत भिंच गये।
"रात पड़ी है सोचने के लिये।" मलिक ने कहा--- "सोच लो। सुबह आठ बजे तुमसे एक बार बात करने जरूर आऊँगा। मैं फिर कहता हूँ कि ये मजाक नहीं है। गम्भीर मामला है। हमारी किसी बात को यूँ ही मत समझ लेना। जो कह रहे हैं, वो करेंगे भी। यहाँ से भागे तो तभी हम देवराज चौहान को शूट करने के ऑर्डर दे देंगे और दस मिनट में उसे मार दिया जायेगा।"
उसके बाद मलिक और मल्होत्रा बाहर निकल गये।
होंठ भींचे जगमोहन कुर्सी पर बैठा रहा।
सुदेश कमरे में ही मौजूद रहा।
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