महाजन ने टेबल पर पड़ी व्हिस्की की बोतल उठाकर होंठों से लगाई और दो तगड़े घूंट गले में उतारने के बाद बोतल टेबल पर रखी और सिगरेट सुलगाई।


पारसनाथ शांत-गंभीर मुद्रा में मोना चौधरी को देख रहा था। मोना चौधरी अभी-अभी फकीर बाबा से वास्ता रखती बात बता कर हटी थी।


"इस बात को तो हम लोग पहले से ही जानते हैं कि फकीर बाबा जो कोई भी है अद्भुत शक्तियों का मालिक है। पहले जब देवराज चौहान से तुम्हारा टकराव हुआ था तो उसकी ताकत का थोड़ा सा नमूना देखा था। " महाजन

बोला।


"हां।" मोना चौधरी ने सिर हिलाया-"पहले भी उसने मुझे चक्त रहते बता दिया था कि देवराज चौहान से मेरा टकराव होने चाला है और हुआ और अब फिर बता दिया कि देवराज चौहान से मेरा सामना होने वाला है। मुझे यकीन है कि फकीर बाबा सच कह रहा है।" 


तभी पारसनाथ कह उठा । 


"मोना चौधरी। " पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा। आवाज में गंभीरता थी— "देवराज चौहान के साथ हुए झगड़े के दौरान मैंने उसे एक-दो बार ही देखा था। मुझे वह सच्चा इंसान लगा था। हर जगह उसने यही कोशिश की थी कि तुम्हारा और देवराज चौहान का झगड़ा रुक जाए। मेरे ख्याल में वो जो कहता है, सच ही कहता है। उसकी तीन जन्मों वाली बात भी सच है कि। 


मोना का चेहरा कठोर हो गया।


"पारसनाथ। मैं सिर्फ इस जन्म की बात करना चाहती हूं। ऐसी किसी बात का क्या फायदा, जो पहले सुनी देखी न गई हो। हुआ होगा तीन जन्म पहले कुछ वो उस जन्म के साथ ही खत्म हो गया। बात तो इस जन्म की है। इस वक्त जो हालात सामने हैं। हमें सिर्फ उसके बारे में ही सोचना चाहिए। देवराज चौहान बहुत जल्द हमारे सामने पड़ने वाला है और मैं चाहती हूं इस बार तैयारी ऐसी हो कि वो बच न सके।"


पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा। "देवराज चौहान को इतने आसान तरीके से मत लो। " पारसनाथ बोला।


"क्या मतलब ?"




"तुम बहुत कुछ हो तो, वह भी बहुत कुछ है।उसे खत्म करना इतना आसान होता तो, जब पहले उससे टकराव हुआ था, तभी उसका किस्सा खत्म हो जाता। वो डकैती मास्टर है। मास्टर माइन्ड है। लड़ाका भी है। वो एक सतर्क इंसान है। ऐसे लोग सिर्फ अपनी गलती से फंसते हैं, इन पर काबू नहीं पाया जा सकता।"


मोना चौधरी के दांत भिंच गए।


"लेकिन मैंने देवराज चौहान को हर हाल में खत्म करना है

पारसनाथ।" मोना चौधरी गुर्रा उठी


"मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं मोना चौधरी " पारसनाथ ने गंभीर स्वर में कहा-"जब भी मेरी जरूरत पड़े खबर कर देना।" 


महाजन ने बोतल उठाकर घूंट भरा।


"बेबी।"


मोना चौधरी ने उसे देखा। 


“पारसनाथ ठीक कहता है। देवराज चौहान से टक्कर लेना खेल नहीं। समझो कि देवराज चौहान की और तुम्हारी कांटे की टक्कर रहेगी। जैसा कि पहले हुआ था। कुछ पता नहीं ऊंट किस करवट बैठे। 


"ऊंट किसी भी करवट बैठे। "मोना चौधरी ने कठोर स्वर में कहा-"लेकिन यह टक्कर होगी जरूर हार मुझे पसंद नहीं और देवराज चौहान का सिर मैं अपने सामने नीचे हुआ देखना चाहती है। एक बार तो वो बच गया। लेकिन इस बार नहीं बच सकेगा। मैंने आज तक हर मामले को समेटकर ही दम लिया है। सिर्फ देवराज चौहान का ही मामला रहा कि उसके मेरे बीच फैसला नहीं हो सका और वो फैसला अब होगा। फकीर बाबा का कहना है कि पन्द्रह दिन में देवराज चौहान मेरे सामने होगा।


महाजन ने पारसनाथ को देखा फिर नजरें मोना चौधरी के सुर्ख चेहरे पर टिका दी।


पारसनाथ ने सिगरेट सुलगाई और उठकर ड्राईंग रूम में टहलने लगा। 


"बेबी। " महाजन गंभीर था- "तुम ये झगड़ा छोड़ क्यों नहीं देती?"


"क्या मतलब?"


"भूल जाओ कि देवराज चौहान भी कोई है। वैसे ही अपना काम करती रहो, जैसे।"


"बस महाजन वो बात ही कहो, जो नहीं हो सकती।" मोना चौधरी ने कठोर निगाहों से उसे देखा।


"तुम चाहो तो कैसे ये बात नहीं हो सकती।"


"देवराज चौहान के मामले में मैं पीछे नहीं हटूंगी।"मोना चौधरी की सख्त आवाज में दृढ़ता थी।


"बेबी। देवराज चौहान भी तुम्हारी ही तरह खतरनाक है और अक्सर देखा गया है कि बादशाहों की लड़ाई में प्यादे ही पिटते हैं। " महाजन ने गंभीर स्वर में कहा-"जरा सोचो, देवराज चौहान के साथ तुम्हारे झगड़े में में या पारसनाथ मारा गया तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा।"


मोना चौधरी की निगाह महाजन पर जा टिकी।


"तुम ये बात कहकर मुझे कमजोर बनाना चाहते हो। " 


"कुछ भी कहूँ, मैं जानता हूँ कि तुम कमजोर नहीं बन सकती।" महाजन ने पूर्ववतः लहजे में कहा "मैं तो तुम्हें यह कह रहा था कि देवराज चौहान से मुकाबला खतरनाक रहेगा और ये झगड़ा कोई एक दिन में खत्म नहीं होने वाला है। शुरू हुआ तो जाने कहां तक पहुंचेगा। क्यों पारसनाथ तुम ही कहो, मैं क्या गलत कह रहा हूँ।"


पारसनाथ ठिठका। दोनों पर निगाह मारी।


"मैं तुम दोनों की बातों के बीच नहीं आना चाहता। " पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहा--"लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि जो झगड़ा सकता टल सकता हो उसे टाल देना चाहिए।"। 


महाजन ने मुस्करा कर मोना चौधरी को देखा


"सुना बेबी - क्या बोला पारसनाथ।" 


मोना चौधरी का चेहरा कड़वी मुस्कान से भर उठा।


"चिन्ता मत करो। झगड़ने के लिए मैं देवराज चौहान के घर नहीं जा रही। फकीर बाबा ने कहा है कि आने वाले पन्द्रह दिन में हमारा टकराव होगा तो हर हाल में होगा। मैं कहीं भी चली जाऊं, देवराज चौहान कहीं भी चला जाए लेकिन फकीर बाबा के कहे वक्त के बीच ही रास्ते पर होंगे। "


"बहुत विश्वास है फकीर बाबा की कही बात पर-।"


"तो फिर इस झगड़े को छोड़कर, देवराज चौहान से दोस्ती करके, फकीर बाबा को उनके गुरुवर के श्राप से मुक्त क्यों नहीं कर देती। इस बारे में भी वो झूठ नहीं बोलता बोलता है तो कहो। "


"मेरे ख्याल में फकीर बाबा झूठ नहीं बोलता।" मोना चौधरी गंभीर हो उठी।


"तो फिर उसकी बात मानकर, उसे मुक्ति दिलाओ। वो जाने कितने बरसों से अपने पुराने बूढ़े जिस्म को ढोता फिर रहा है। ऐसे में उसके लिए, तुम्हारे मन में कोई तो दयाभाव होना चाहिए।" 


"मैं फकीर बाबा के लिए सब कुछ करने को तैयार हूं। " मोना चौधरी ने महाजन को देखा- "लेकिन जहां देवराज चौहान का सवाल आता है, मैं उसके सामने पीछे हटने वाली नहीं। " 


"देवराज चौहान को लेकर तुम्हारे मन में जिद्द आ चुकी है कि- " 


"ऐसा ही समझ लो।" मोना चौधरी का चेहरा पुनः सख्त होने लगा— "जब तक देवराज चौहान के साथ हार-जीत का फैसला नहीं हो जाता, तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा।" 


महाजन ने गहरी सांस लेकर पारसनाथ को देखा।


"बेबी, नहीं मानती पारसनाथ "


"मैं तो पहले ही जानता था कि तुम गलत कोशिश कर रहे हो। " पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा "मोना चौधरी पागल नहीं है कि देवराज चौहान को सामने से गुजरते देखकर उस पर झपट पड़ेगी या उसका गला पकड़ लेगी। झगड़ा तभी होगा, जब दोनों किसी वजह के तहत आमने-सामने पड़ेंगे और जब ऐसा हो तो झगड़े की आधी जिम्मेवार मोना चौधरी और आधा जिम्मेदार देवराज चौहान होगा। सारी गलती किसी एक पर नहीं थोपी जा सकती। अब आने वक्त ही बताएगा कि क्या होता है।"


मैं भी जानता हूं कि झगड़ा ऐसे ही शुरू होता है।" महाजन अटककर बोला- "मेरा तो कहने का मतलब था कि जब ऐसा हो तो, तब कोशिश की जाए कि झगड़ा न हो।" 


"ये सम्भव नहीं।" पारसनाथ ने सिर हिलाया। "


क्यों?" 


"जिस तरह मोना चौधरी के मन में कसक है कि पहले टकराव में देवराज चौहान के साथ फैसला नहीं हो सका हार जीत का, उसी तरह देवराज चौहान के मन में भी ये बात होगी और उस मौके पर न तो देवराज चौहान समझेगा और न ही मोना चौधरी "पारसनाथ का स्वर सपाट ही था।


महाजन ने गहरी सांस लेकर बोतल उठाई और दो तगड़े घूंट भरे। "ठीक बोलता है तू।" महाजन ने बोतल रखते हुए सिर हिलाया। "


"महाजन- ।" मोना चौधरी शांत स्वर में बोली-"मैं जबर्दस्ती किसी को अपने साथ नहीं रखना चाहती। 


"क्या बोलती है बेबी। मेरी बात का मतलब कुछ और है और तुम-।" 


तभी फोन की वैल बज उठी। 


मोना चौधरी खड़ी हुई। आगे बढ़कर रिसीवर उठाया। बात की। 


"पारसनाथ।" मोना चौधरी बोली- "कोई तुमसे बात करना चाहता है। " 


आगे बढ़कर पारसनाथ ने रिसीवर ले लिया। "हैलो। हां...ठीक है..बाद में बताता हूं। कहने के साथ ही पारसनाथ ने रिसीवर रख दिया। 


"तुम बोलकर आए थे कि यहां आ रहे हो?"  महाजन ने पूछा।


"हाँ।"- पारसनाथ बोला- "रेस्टोरेंट से फोन था।" पारसनाथ ने कहने के बाद मोना चौधरी को देखा- "मुम्बई से काम के वास्ते कोई बंदा आया है। तुम्हारे लिए काम है अगर करना चाहो।"


"कैसा काम ?" मोना चौधरी ने उसे देखा।


"शंकर भाई का नाम तो सुना होगा। मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहचाना नाम है।"


महाजन कह उठा। "वो ही शंकर भाई तो नहीं जो आजकल मुंबई अंडरवर्ल्ड में दमखम रखने लगा है। सिक्का चलने लगा है उसका । " 


पारसनाथ ने सहमति में सिर हिलाया।


मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं। 


"काम बोलो पारसनाथ।" मोना चौधरी बोली।


"उसके पास एक फाइल है। पार्टी कहती है कि तुम्हें बता दिया जाएगा कि शंकर भाई ने मुम्बई में वो फाइल कहाँ रखी है। तुम्हें जाकर उस फाइल को लाना है। बदले में एक करोड़ रुपया मिलेगा। " पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।


"एक करोड़ मामूली से काम के लिए-" महाजन के होंठों से निकला |


मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।


"क्या है, उस फाइल में ?"


"मैं नहीं जानता। इस बारे में चाहो तो पार्टी से बात कर सकती हो। वो मुंबई से आई है। अभी वो मेरे रेस्टोरेंट में मौजूद मेरे फोन का इंतजार कर रही है। मैं फोन पर उसे रुकने के लिए बोल देता हूं।


मोना चौधरी ने महाजन को देखा।


"हां, कह दो बेबी एक फाइल, एक करोड़ फायदा ही फायदा"- महाजन कह उठा । 


"वो फाइल शंकर भाई के यहां से लानी है।" पारसनाथ ने जैसे उसे खतरे से आगाह कराया।


"तुम भी अजीब बात करते हो पारसनाथ।" महाजन ने मुंह बनाया – “शंकर भाई कोई भगवान तो है नहीं। निपट लेंगे उससे । मैं हूँ, बेबी है। जरूरत पड़ी तो तुम्हें भी इस मामले में ।"


"दस मिनट रुको पारसनाथ। चेंज करके मैं तुम्हारे साथ चलती हूं।" मोना चौधरी कह उठी।


*****

वो पैंतालीस बरस की उम्र का होगा। शरीर पर सादी सी कमीज, वैसी ही पैंट और जूते भी कोई खास बढ़िया नहीं थे। शेव कर रखी.. थी। तेल लगे बालों में कंधा फिरा हुआ था। छोटी सी, होंठों के कोनों तक जाती मूंछे थीं उसकी।


नाम क्या था उसका, पक्का नहीं मालूम। लेकिन मुंबई में उसके 'जानने वाले 'बंगाली' कहकर ही उसे पुकारते थे। गोल सा चेहरा। छोटी आंखें। गोल सा ही नाक था। वह सामान्य सा दिखने वाला इंसान था। उसे देखकर कहा जा सकता था कि वो जिंदगी भर जूते घिसता रहा है, परंतु उसे मन-माफिक सफलता नहीं मिल पाई है। पारसनाथ उसे रेस्टोरेंट के ऊपर अपनी रहने की जगह में ले गया। वहां उसे ड्राइंगरूम में बिठाया और उसे सिर से पांव तक देखा।


"कौन हो तुम?"


"बंगाली कहते हैं मुझे। " उसने शांत स्वर में कहा।


"नाम बोल। " पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा । 


"यही नाम है मेरा। मुम्बई में इसी से मुझे सब जानते हैं। " उसकी आवाज धीमी थी।


"राज सिंह ने मुझे फोन किया मुंबई से। उसे कैसे जानता है?"


"धंधे की वजह से। उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा कि, मैं जो काम चाहता हूं वो तुम मोना चौधरी से करवा सकते हो। मोना चौधरी तक तुम्हारी पहुंच है।"


बंगाली शांत स्वर में बोला।


"ये काम करके तू शंकर भाई जैसे खतरनाक इंसान से दुश्मनी मोल ले लेगा। वो जान जाएगा कि ये काम किसी ने भी किया हो। लेकिन करवाया तूने है। हमारे धंधे में बातें छिपती नहीं। "


"बंगाली ऐसी बातों की परवाह नहीं करता। क्योंकि मैं जो काम करता हूं, अंजाम पहले ही सोच लेता हूं।"


फारसनाथ ने उसे गहरी निगाहों से देखा। तभी उसकी निगाह दरवाजे पर पड़ी। जहां मोना चौधरी और महाजन खड़े थे। उसे देखते पाकर दोनों ने भीतर कदम रखा।


बंगाली की सतर्क निगाह भी उन पर जा टिकी।


"ये...।" पारसनाथ ने कहना चाहा।


"मैंने सब कुछ सुन लिया है। "मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा और आगे बढ़कर कुर्सी पर आ बैठी। महाजन भी बैठा।


"ये...।" बंगाली ने पारसनाथ को देखा-"ये मोना चौधरी ?" 


"हां। " पारसनाथ का स्वर सपाट था-"जो बात करनी है, कर लो।"


बंगाली अब संभला सा नजर आने लगा।


मोना चौधरी और महाजन की निगाह बंगाली पर थी।


“शंकर भाई को तो तुमने सुना ही होगा, जो मुंबई अंडरवल में नाम कमाए बैठा है।" बंगाली बोला- "उसी से वास्ता रखता काम है। अगर करना चाहो तो। "


मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगा ली।


“काम बोल-। " 


"उसके पास एक फाइल है। वो मैं तेरे को बताऊंगा कि कहां है। पूरा समझा दूंगा कि कैसे उस फाइल को पाया जा सकता है। वो फाइल मेरे को चाहिए। तेरे को एक करोड़ मिलेगा।" 


"रकम भी तुमने तय कर ली कि कितना देना है?" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा। 


"हां, तय करी मैंने। सामने वाले को देखकर स्कम बोली जाती है। कोई यूं ही होता तो एक लाख बोलता। उससे और ज्यादा दम वाला होता तो, कुछ लाख और बढ़--।"


"किसी और से ये काम करा लो। पांच-दस लाख में हो जाएगा। पैसा बरबाद मत करो।"


"नहीं। " बंगाली के चेहरे पर पक्के भाव आ गए—"ये काम तुम ही करोगी। क्योंकि मैं हर हाल में उस फाइल को पाना चाहता हूं और शंकर भाई के यहाँ से कोई चीज निकाल लाना आसान काम नहीं। लेकिन ये काम तुम आसानी से कर सकती हो। साथ में एक और दिक्कत है। 


“वो भी बोल—।"


"हम दो थे जो इस फाइल को पाना चाहते हैं। मैं और मेरा दोस्त कर्मपाल सिंह। लेकिन उसका और मेरा मन मुटाव हो गया। हम अलग हो गए। वो अपने तरीके से फाईल पाने की कोशिश करेगा। और मैं चाहता हूं ये काम तुम जल्द से जल्द कर दो और फाइल मेरे हवाले कर दो। " 


"हो सकता है, तुम्हारा दोस्त उस फाइल का ख्याल छोड़ दे। क्योंकि वो शंकर भाई के पास है। "


"नहीं। वो फाइल पाने की पक्की कोशिश करेगा। मैं जानता उसे। मुंबई में ही कोशिश में लगा होगा।"


"क्या है उस फाइल में?" मोना चौधरी ने पूछा। "ये नहीं बताऊंगा और इस काम में ये बताना जरूरी भी नहीं है। " बंगाली ने कहा।


मोना चौधरी ने कश लिया। "सो इस काम का तुम पूरा एक करोड़ रुपया दोगे ?"


"हाँ।"


"अपने बारे में बताओ।" मोना चौधरी बोली।


"बंगाली कहते हैं मुझे। उसी समन्दर की मछ्ली हूं, जिस समन्दर की तुम गगरमच्छ हो। वैसे मुम्बई में अपनी चलती है। इसके अलावा बताने को और कुछ नहीं है। कोई खास बात पूछनी हो तो बता दो।" बंगाली का स्वर सामान्य था।


"मैं काम शुरू करने से पहले कीमत ले लेती हूँ। जबकि तुम्हें शायद काम के बाद कीमत देने की आदत है "


"ये बात किसने बोली तेरे को मोना चौधरी ?"


"बोली किसी ने नहीं ये बात तुम्हारी हालत से जाहिर हो रही है।" मोना चौधरी का स्वर शांत था।


बंगाली मुस्कराया।


"शंकर भाई के यहां से फाइल ला दोगी?"


"हाँ।"


बंगाली ने पारसनाथ को देखा। 


"फोन किधर है पारसनाथ भाई। करोड़ यहीं मंगवा देता हूँ। मुम्बई से पूरा इंतजाम करके आया हूं।"


"यो, उधर रखा है फोन -।"


बंगाली उठा और फोन की तरफ बढ़ गया। रिसीवर उठाया। लाइन मिलाई। बात की।


"ओ कलबा। बंगाली बोलता है। सुना तूने...हां, वो कोने में खोखा' रखा है। जरा उसे से आना। संभाल के लाना। मालूम है कहां लाना है...हाँ हाँ वहीं, जहां मैं तेरे को समझा के आया था कि कहां जा रहा हूं। वां पे आ के पारसनाथ को पूछना " कहने के साथ ही बंगाली ने रिसीवर रखा और वापस कुर्सी पर आ बैठा।


महाजन अजीब सी निगाहों से बंगाली को देख रहा था। क्योंकि उसकी हालत से लग रहा था कि वो लाख से ऊपर की पहुंच वाला नहीं और खोके (करोड़) की बात ऐसे की फोन पर, जैसे ये सब रोज का लेना देना हो।


बंगाली ने मोना चौधरी को देखा।


"फाइल के बारे में बोलूं. शंकर भाई ने कहां रखी है। वहां के सारे रास्ते बता देता हूं। जो भी जानना चाहोगी वो बता दूंगा। काम कैसे करना है, अंत में ये फैसला तुम कर लेना" बंगाली ने कहा। 


"बेशक बता सकते हो। लेकिन काम की शुरुआत करोड़ पूरा आ जाने पर ही होगी। " मोना चौधरी बोली।




"वो आ रहा है। उसकी फिक्र मत करो। " बंगाली सिर हिलाकर बोला- "लेकिन एक वायदा तुम्हें करना होगा। जो 'खोखा' देता है, उसे भी तसल्ली चाहिए।


"बता।"


"मेरे को तसल्ली चाहिए कि वो फाइल मेरे को मिलेगी। " बंगाली बोला। 


"मेरे को मिली तो, तेरे को भी मिल जाएगी।"


"उस फाइल का तू इस्तेमाल नहीं करेगी। वो मेरी अमानत रहेगी। " 


"मैंने अपने काम की कीमत ले ली है। इसलिए मुझे इस बात से कोई वास्ता नहीं कि उस फाइल में क्या है। मैं जानती हूं कि उसे पाने के लिए तू करोड़ दे रहा है तो उसमें तेरे को करोड़ों का फायदा होगा लेकिन अगर उस फाइल में देश के खिलाफ कुछ है तो...।" 


"नहीं....नहीं देश की किसी भी बात का, उस फाइल से वास्ता नहीं। 


"ऐसे में वो फाइल मेरे हाथ में आते ही, तेरे को मिलेगी"


"ठीक है। विश्वास किया तेरी बात का। एक बात और बता दें।" मोना चौधरी ने उसे देखा।


"जरूरी तो नहीं कि काम पूरा हो। कभी-कभी नहीं भी होता तो मेरे "खोके" का क्या होगा, जो तेरे को मिलने जा रहा है। " बंगाली ने मोना चौधरी को देखा। 


"अगर काम मेंरी वजह से मेरी गलती से पूरा नहीं हुआ तो तेरे करोड़ की पूरी रकम वापस मिलेगी। अगर तेरी गलती से काम बिगड़ा तो तेरे को कुछ नहीं मिलेगा।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।


"मेरे से गलती कैसे होगी ?" 


"जैसे कि तेरी दी गलत खबर की वजह से काम रह गया या फिर ऐसी ही कोई बात। "  


"मैं तो तेरे को काम बोलकर पीछे हट जाऊंगा। जो बताऊंगा। ठीक बोलूंगा मेरे से गलती नहीं होगी। "


"ऐसा है तो तेरे पर अच्छे बुरे की जिम्मेवारी नहीं आएगी।" मोना चौधरी ने कश लिया।


महाजन ने पारसनाथ को देखा। "इतना भी कमीनापन अच्छा नहीं होता।" महाजन बोला। 


"क्या मतलब?" पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं। "कब से बैठा हूं। बोतल तो दे दे यार ।


पारसनाथ बिना कुछ कहे दूसरे कमरे में चला गया और उलटे पांव ही वापस लौटा, हाथ में विदेशी व्हिस्की की बोतल थी, जो उसने महाजन की तरफ उछाल दी।


महाजन ने बोतल को लपका। उसे देखा।


“ये तो स्मगल व्हिस्की है। पुलिस ने कभी छापा मारा तो बिना लायसेंस के विदेशी व्हिस्की रखने के जुर्म में सीधा अंदर जाएगा। वैसे, ऐसी दो-चार और पड़ी हैं बोतलें ?"


"तेरे को मिल जाएंगी। "- पारसनाथ ने आगे बढ़ते हुए सपाट स्वर में कहा और इंटरकॉम के पास पहुंच कर रिसीवर उठाया और तीन कॉफी लाने को कहा।


महाजन तब तक बोतल खोलकर, तीन बड़े घूंट गले में उतार चुका था।


बंगाली ने अजीब सी निगाहों से महाजन को देखा। "ऐसे पीते हैं। " बंगाली के होंठों से निकला।


महाजन ने अजीब सी निगाहों से बोतल को फिर बंगाली को देखा।


"तूने मेरे को बोला—।"


"हां। 


"क्या?"


‘‘ऐसे पीते हैं?" बंगाली ने पुनः वही शब्द दोहराए। 


"तो कैसे पीते हैं?'' महाजन ने एक घूंट और भरा। 


"गिलास ले। उसमें डाल। बीच में कुछ मिला उसके बाद आराम से पी।"


"मेरे मुल्क में ऐसे ही पीते हैं। " 


"तुम्हारे मुल्क में?"


"कौन देश है तुम्हारा?" 


"भाई मेरे, मैं, शरीर के मुल्क की बात कर रहा हूं। शरीर का मुल्क पेट है।" महाजन ने पेट थपथपाकर कहा- "एक बात तो बता बंगाली भाई। "


"क्या?"


“व्हिस्की को गिलास में डालो। बर्फ डालो। कुछ मिलाओ। फिर चाट-चाटकर पिओ। ऐसा करके व्हिस्की को बेवकूफ बनाया जा रहा है या खुद को"


"मैं समझा नहीं।" बंगाली की आंखें सिकुड़ी।


"भाई मेरे। सारा कुछ गोल मोल होकर जाना तो पेट में ही है। फिर इतना लंबा चौड़ा ड्रामा करने की जरूरत क्या है। बोतल को मुंह लगाओ माल अंदर। न गिलास न मिलाने के लिए कुछ, न चियर्स करने की जरूरत। इसलिए मेरे मुल्क में ऐसे ही पीते हैं। तेरे और मेरे में फर्क है। मेरा मुल्क व्हिस्की प्रूफ है। तेरा मुल्क अभी तक वाटर प्रूफ से आगे नहीं बढ़ा। "


बंगाली मुस्कराया। "ठीक समझा तू। मेरा मुल्क इतना तगड़ा नहीं है। " बंगाली ने अपने पेट पर हाथ फेरा ।


"तो तगड़ा बना उसको । मुल्क की हिफाजत होगी तो बाकी सब ठीक रहेगा।" कहने के साथ ही महाजन ने बोतल से तगड़ा घूंट भरा।


बंगाली अभी भी उसे देख रहा था।


“दिन में भी शुरू हो जाते हो?" बंगाली पुनः मुस्कराया । 


"बंगाली भाई। मेरे मुल्क की बातें तेरे को समझ में नहीं आने वाली क्यों अपना सिर खपाता है। मेरे मुल्क में हर बात नए अंदाज में होती है। तू अपनी बात कर फाइल की। शंकर भाई की। खोके की। "


तभी वेटर ने वहां कदम रखा। ट्रे में रखे कॉफी के प्याले वहां रखकर चला गया।


"तेरा वो अभी आया नहीं, खोके वाला। करोड़ वाला। "


"रास्ते में होगा। " बंगाली ने विश्वास भरे स्वर में कहा। 


"अब ये तेरे मुल्क की बातें हैं कि वो रास्ते में होगा। बोल, मैंने पूछा क्या कि तेरे को कैसे पता कि वो तेरे रास्ते में होगा। बोल, तू वो फाइल के बारे में बोलने वाला था।" कहने के साथ ही महाजन ने काफी का प्याला उठाकर बंगाली को थमा दिया "ये घूंट-घूंट बनकर तेरे मुल्क में जाएगी। साथ में फाइल के बारे में भी बोलता जा।"


"अभी नहीं। " मोना चौधरी ने टोका-"जब तक करोड़ सामने नहीं आएगा, फाइल के बारे में बात करना बेकार होगा। जो भी बात होगी, करोड़ सामने आने के बाद ही होगी।"


"मैंने बोला, 'खोका' चल पड़ा है। रास्ते में है। "बंगाली ने मोना चौधरी को देखा।


"रास्ते में करोड़ को किसी ने लूट लिया या कार का एक्सीडेंट हो जाने की वजह से पुलिस की निगाहों में आ गया तो करोड़ यहां कैसे पहुंचेगा। जबकि तेरी बातें हम तक पहुंच चुकी होंगी और बात बाहर निकल जाए तो पराई हो जाती है। फिर किसी बात की गारंटी नहीं होती। समझे बात। "


बंगाली ने सहमति में सिर हिलाया।


"ठीक बोलती है तू। अभी 'खोका' आएगा। फिर बात कर

लेंगे। "


मोना चौधरी ने कॉफी का प्याला उठाया और घूंट भरने लगी।


***