अगले दिन सुबह वानखेड़े नहा-धोकर, ब्रेकफास्ट के बाद अपने केबिन में पहुंचा ही था कि कुछ पलों बाद सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर ने भीतर प्रवेश किया।
उसे देखते ही वानखेड़े के होंठ सिकुड़ गए।
खांडेकर सादे कपड़ों में था। उसकी हालत बता रही थी कि वो नहाया-धोया भी नहीं। यहां तक कि बालों में कंघी भी नहीं किया। लाल सुर्ख हो रही थीं उसकी आंखें। कठोर चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी। रह-रहकर वो पागलों की तरह मुट्ठियां भींच रहा था। दांत पीस रहा था।
"बैठो।" एक ही निगाह में वानखेड़े ने उसकी हालत देख ली--- "अभी तुम्हारी मानसिक स्थिति शायद ठीक नहीं है। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। कोई और होता तो उसका भी यही हाल होता। अभी तुम्हें यहां नहीं...।"
"मैं यहां पर अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने नहीं आया।" खांडेकर दांत पीसकर गुर्रा उठा।
वानखेड़े ने पुनः गहरी निगाहों से उसे देखा।
"बैठो, खांडेकर।"
खांडेकर गिरने वाले अंदाज में कुर्सी पर बैठा।
"मैं आपसे ये कहने आया हूं कि शायद भगवान के इशारे पर ही मैंने कमांडो की ट्रेनिंग ली थी। क्योंकि भगवान को मालूम था कि आने वाले वक्त में क्या होगा और मुझे पापियों को सजा देनी पड़ेगी।" खांडेकर पुनः गुर्रा उठा।
"क्या मतलब?" वानखेड़े की आंखें सिकुड़ी।
"मैं देवराज चौहान और उसके साथियों से अपनी पत्नी की मौत और बेइज्जती का बदला लूंगा। मैं विशेष कमांडो था। अकेले ही दस-दस छापामारों से मुकाबला करने का दम रखता हूं। कमांडो ग्रुप में मेरा नाम पहले नंबर पर था और मुझे वही काम करने को दिए जाते थे, वहीं मिशन मेरे हवाले होता था, जिस पर रवाना होने से पहले सिर पर कफन बांधना पड़ता था। ऐसे दस देवराज चौहान भी मेरे सामने आ जाएं तो वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। ये बात आपको उस कमांडो ग्रुप का लीडर बता सकता है, जिसमें मैं कभी था। देवराज चौहान की मौत मेरे ही हाथों लिखी है। गिरफ्तार होना देवराज चौहान की किस्मत में नहीं है। यह भविष्यवाणी मैं कर रहा हूं सर! अब उसकी मौत के दिन शुरू हो चुके हैं। जो-जो भी उसके साथ था, मैं उन सबको ढूंढ निकालूंगा। उनमें से कोई भी नहीं बचेगा। वो लोग अभी कमांडो खांडेकर का रूप नहीं जानते।" रंजीत खांडेकर का चेहरा धधक रहा था। आंखें सुर्ख होकर उबल रही थीं। गुस्से से उसके हाथ-पांव कांप रहे थे। यकीनन उसकी मानसिक स्थिति इस वक्त ठीक नहीं थी। अपनी पत्नी की मौत से वो अपने होशो-हवास खो चुका था।
वानखेड़े ने शांत भाव में, उसे देखते हुए सिर हिलाया।
"मुझे इस बात का पूरा अहसास है कि तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा।
"बुरा।" खांडेकर गुर्राया--- "मैं उजड़ गया हूं सर! बर्बाद हो गया हूं। मेरी पत्नी को...।" कहते-कहते हुए एकाएक खांडेकर फफक पड़ा।
वानखेड़े उसे देखता रहा। चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी।
खांडेकर का फफकना कुछ देर बाद कम हुआ। सारा चेहरा आंसुओं से भरा पड़ा था।
वानखेड़े उसकी मनोदशा समझ रहा था।
खांडेकर कुछ संभला तो वानखेड़े सहानुभूति से भरे स्वर में बोला।
"तुम्हारे घर पर क्या हुआ था? जब तुम गए तो देवराज चौहान और उसके साथी वहां थे? उन्होंने क्या-क्या किया? उनसे तुम्हारी क्या-क्या बातें हुईं? उसके बाद क्या हुआ? मैं सब कुछ जानना चाहता हूं। अगर सब्र के साथ बता सको तो बेहतर होगा।"
खांडेकर ने आंसुओं भरा चेहरा उठाकर वानखेड़े को देखा।
"अब इन बातों में रखा ही क्या है?" उसकी आवाज में थकान और दुख भरा हुआ था।
"तुम ठीक कहते हो। लेकिन इस केस की फाइल तो बनानी है मुझे। इसलिए ये सब जानना जरूरी है।"
"मैं उस वक्त भी उन पर कमांडो कार्यवाही पर कर सकता था लेकिन दो बातों ने मुझे रोके रखा। एक तो कमांडो कार्यवाही के लिए मैं तैयार नहीं था। मेरे पास सामान पूरा नहीं था। दूसरे, अपनी पत्नी की वजह से मैंने खुद को कमजोर महसूस किया कि कहीं पर मैं चूक गया तो मेरी पत्नी की जान चली जाएगी। वे उसे मार देंगे। वरना-वरना---।" कहते हुए खांडेकर ने दांत पीसे--- "गलती कर दी। उस वक्त मुझे अपनी कार्यवाही कर देनी चाहिए थी। मैं---।"
"तुम्हारे मन की हालत मैं समझ रहा हूं।" वानखेड़े ने उसे भावनाओं से बाहर निकालने की चेष्टा की--- "बताओ खांडेकर, तुम्हारे घर पर क्या हुआ था? उन्होंने क्या-क्या किया?"
खांडेकर ने सब कुछ बताया। बताते हुए उसका चेहरा अंगारा बनकर तपने लगा।
वानखेड़े ने खांडेकर का एक-एक शब्द ध्यान से सुना।
"और जब सुबह मैं घर आया तो---।" कहने के साथ ही खांडेकर पुनः फफक-फफक कर रो पड़ा।
वानखेड़े खामोश बैठा उसे देखता रहा।
खांडेकर कुछ हल्का हुआ तो रोना कुछ थमा। उसकी हालत पर वानखेड़े को दुख हो रहा था। लेकिन वह किसी भी हाल में, उसकी पत्नी को जिंदा उसके सामने पेश करके उसकी खुशियां नहीं लौटा सकता था। उसकी आंसुओं से भरी आंखें लाल हुई पड़ी थीं।
"खांडेकर!" वानखेड़े गम्भीर धीमे स्वर में बोला--- "तुमने अभी-अभी कहा कि देवराज चौहान तुम्हारे घर से, तुम्हारे सामने गया। उसके बाद तुम हैडक्वार्टर रवाना हो गए। उनके प्रोग्राम के मुताबिक देवराज चौहान का फोन आने पर जगमोहन ने घायल अंग्रेज सिंह को लेकर वहां से निकलना था। फिर जगमोहन का ठीक-ठाक होने पर फोन सुनकर अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली ने वहां से दौलत के साथ निकलना था। यही तुमने कहा।"
खांडेकर ने सहमति से सिर हिलाया।
"तुमने ही कहा कि देवराज चौहान वहां से तुम्हारे पहले निकला था कि वह तुम्हारी पत्नी और सुधाकर बल्ली के हत्याकांड के मामले में कैसे शामिल हो सकता है।"
खांडेकर के चेहरे पर खा जाने के भाव उभरे।
"क्यों, क्या वह वापस नहीं आ सकता। मैं तो हैडक्वार्टर आ पहुंचा था। पीछे से वो मेरे घर कितनी बार आया, कितनी बार गया और वहां क्या किया, मुझे कैसे मालूम---।"
"तुम ठीक कहते हो।" वानखेड़े ने सिगरेट सुलगाई--- "लेकिन तुम्हारी बातें सुनकर मेरी उन सोचों को ताकत मिली है, जो मेरे दिमाग में घूम रही हैं।"
"क्या मतलब?"
"खांडेकर!" वानखेड़े ने सोच भरे शांत स्वर में कहा--- "हम ये मानकर चलते हैं कि देवराज चौहान वहां से चला गया। उसके बाद उनके प्लान के मुताबिक देवराज चौहान का फोन आया तो जगमोहन और अंग्रेज सिंह वहां से निकल गए। और तब वहां बचे अंकल चौड़ा, सुधाकर बल्ली और तुम्हारी पत्नी।"
"ये आप क्या कह---।"
"सुन तो लो। खैर, तब वहां कोई आया और---। उसी ने वहां कांड किया और दौलत ले उड़ा।"
"कोई नहीं वो देवराज चौहान था। किसी को क्या मालूम कि वहां दौलत पड़ी है।" खांडेकर गुर्रा उठा।
वानखेड़े ने बेचैनी से कश लिया और बोला।
"खांडेकर! सालों से देवराज चौहान की फाइल मेरे पास है। मैं देवराज चौहान की आदत से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हूं। वह ऐसे काम नहीं करता। किसी औरत के साथ---।"
खांडेकर भड़क कर उठा खड़ा हुआ।
"देवराज चौहान और उसके साथियों ने मेरे घर पर मेरी पत्नी पर कब्जा किया और जाते वक्त वो मेरी पत्नी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर गए। ऐसे में कोई और मुजरिम कैसे हो सकता है!"
"ये काम देवराज चौहान ने नहीं किया। उसकी मौजूदगी में नहीं हुआ।"
खांडेकर ने सुर्ख निगाहों से वानखेड़े को देखा।
"आपके शब्द बता रहे हैं कि आप देवराज चौहान को बचा रहे हैं।"
"ऐसी बात नहीं। मैं...।"
"मुझे लगता है देवराज चौहान की तरफ से आपके पास नोटों से भरा सूटकेस, या ब्रीफकेस या फिर बैग पहुंचा दिया और मुंह से निकलने वाले शब्दों में उन्हीं नोटों की गर्मी भरी पड़ी है।"
"खांडेकर---।" वानखेड़े दांत भींचकर रह गया--- "तमीज से बात करो।"
खांडेकर दांत भींचकर जहरीले अंदाज में हंसा।
"मैंने कुछ गलत कह दिया क्या?"
वानखेड़े खांडेकर को घूरता रहा।
"कमांडो की ट्रेनिंग में सिर्फ निशाना लगाया जाता है। वहां रिश्वत का लेन देन नहीं होता। मैं देवराज चौहान और उसके साथियों को शूट करने जा रहा हूं। वो जहां भी होंगे, इस कमांडो की निगाह उन्हें ढूंढ लेगी।"
"खांडेकर, तुम किसी भी हालत में कानून को हाथ में नहीं लोगे।"
"मैं किसी तरह का कानून हाथ में नहीं ले रहा। मैं दो-तीन महीने की छुट्टियां ले रहा हूं और अपनी छुट्टियां कैसे बिताता हूं, इससे किसी को क्या मतलब। और इन छुट्टियों में अगर मैं उन अपराधियों को तलाश करके खत्म करता हूं जो खतरनाक घोषित किए जा चुके हैं, तो इसमें कानून को क्या एतराज हो सकता है। मैं उन्हें शूट करते वक्त सरकारी हथियारों का इस्तेमाल नहीं करूंगा। अगर-अगर किसी वजह से मुझे छुट्टी नहीं दी गई तो मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूंगा। लेकिन देवराज चौहान नहीं बचेगा। जब तक वो मेरे सामने निशाने पर नहीं आता, तब तक वो अपने चाचा के हाथों परेशान रहेगा। अब मैं उसे चैन से नहीं रहने दूंगा।" खांडेकर का चेहरा वैहशी हो उठा था।
"चाचा---।" वानखेड़े के होंठों से निकला।
"सांवरा चौहान। अब देखूंगा कि जो लोगों को इंसाफ दिलाता है ब्लू स्टार होटल के गोल कमरे में बैठकर वो अपने भतीजे देवराज चौहान को सजा देकर मेरे साथ भी इंसाफ करता है या अपने भतीजे को बचाता है। देवराज चौहान के एक तरफ सांवरा चौहान होगा और दूसरी तरफ कमांडो रंजीत खांडेकर। वो किसी भी हाल में बचा नहीं रह सकता। आज मुझे अपने कानून से ज्यादा, कमांडो रंजीत खांडेकर के निशाने पर विश्वास है। सांवरा चौहान पर विश्वास है। क्योंकि सब कुछ सामने होते हुए भी आप ये नहीं कह रहे कि मेरी पत्नी हत्या में, बलात्कार में देवराज चौहान का हाथ है।" धधकते स्वर में कहने के साथ ही खांडेकर तूफान की तरह बाहर निकलता चला गया।
दांत भींचे वानखेड़े कुर्सी पर बैठा रहा। चेहरे पर बेचैनी और चिंता दौड़ने लगी थी। फिर फौरन ही उसने इंटरकॉम का रिसीवर उठाया और संबंध बनाकर इंस्पेक्टर शाहिद से बात की।
"वानखेड़े, क्या रहा? केस में कहां तक पहुंचे?" उसकी आवाज सुनते ही शाहिद कह उठा।
"मैं देवराज चौहान की तलाश में निकल ने जा रहा हूं।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "अभी-अभी खांडेकर मेरे पास आया था। अपनी पत्नी की हत्या का जिम्मेदार वो देवराज चौहान को ठहरा रहा है और---।"
"ठीक ही तो कर रहा है खांडेकर।" इंस्पेक्टर शाहिद ने टोका।
"मैं तुमसे राय नहीं मांग रहा कि वो क्या ठीक-गलत कर रहा है। मेरी बात सुनो। खांडेकर मुझे कह कर गया है कि वो अपनी पत्नी के हत्यारों के रूप में देवराज चौहान और उसके साथियों को नहीं छोड़ेगा। इस काम के लिए वो छुट्टी लेगा और उसकी छुट्टी रोकी गई तो वो नौकरी से इस्तीफा देकर, ये काम करेगा।"
"खांडेकर की जगह मैं होता तो मैं भी शायद यही करता।" इंस्पेक्टर शाहिद का तीखा स्वर कानों में पड़ा--- "उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करके उसकी जान ली गई और तुम देवराज चौहान को अपराधी मानने को तैयार नहीं। पुलिस वाला पुलिस वाले का साथ नहीं दे रहा। कितनी अजीब बात है वानखेड़े।"
"मैं तुमसे कोई काम कहने वाला था।" वानखेड़े के दांत भिंच गए।
"कहो...।"
"किसी समझदार और काबिल आदमी को खांडेकर के पीछे लगा दो। वह खांडेकर की पल-पल की हरकत की खबर तुम्हें देता रहे और मैं फोन करके, तुमसे खांडेकर की हरकतों की खबर लेता रहूंगा।" वानखेड़े ने कहा।
"अच्छी बात है। खांडेकर पर नजर रखने का इंतजाम मैं अभी कर देता हूं।" इंस्पेक्टर शाहिद का स्वर आया।
"खांडेकर पांच मिनट पहले मेरे केबिन से निकला है।" कहकर वानखेड़े ने रिसीवर रखा और केबिन से बाहर निकलकर आगे बढ़ता चला गया। देवराज चौहान को कहां तलाश करें? यही सोच रहा था वो।
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सिगरेट के कश लेता देवराज चौहान गंभीर सोच में डूबा था। वहां जगमोहन और सोहनलाल मौजूद थे। सोहनलाल खांडेकर और वानखेड़े से वास्ता रखती खबरों को, जैसे-तैसे ला रहा था। इसके लिए कई बार सोहनलाल को पैसा भी खर्चना पड़ा। जगमोहन दिन में दो बार अंग्रेज सिंह के पास जाकर, उसके खाने-पीने का इंतजाम और दवा दारू दे आता था, वो अभी भी सोहनलाल के कमरे में था।
सोहनलाल की इस बात के बाद वहां गहरी खामोशी छा गई थी।
देवराज चौहान ने उस रात के हादसे और बाद में लाई सोहनलाल की खबरों को सामने रखकर इसी नतीजे पर पहुंचा था कि, इस मामले का अपराधी उसे ही माना जाएगा और उसके पास अपनी सफाई देने के लिए कुछ भी नहीं है। कोई गवाह नहीं है, जो कह सके कि उसने ये काम नहीं किया।
वहां छाई चुप्पी को सोहनलाल ने तोड़ा।
"देवराज चौहान! मामला गंभीर हो गया है।इस मामले में हर कोई तुम पर उंगलियां उठाये तो शायद गलत नहीं होगा। बहुत बुरा दाग तुम पर लगने जा रहा है।" सोहनलाल बेचैन और गुस्से में था।
देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा।
"तुम अच्छी तरह जानते हो कि खांडेकर की पत्नी के साथ जो कुछ हुआ था फिर अंकल चौड़ा या सुधाकर बल्ली के साथ जो हुआ उन सब बातों से मैं सिरे से अंजान हूं।"
"माना। ठीक है। ये बात तुम जानते हो। मैं जानता हूं। जगमोहन जानता है या अंग्रेज सिंह जानता है। लेकिन खांडेकर नहीं जानता। पुलिस नहीं जानती और उन्हें समझाने के लिए तुम्हारे पास कोई शब्द नहीं हैं।"
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
जगमोहन ने कठोर निगाहों से सोहनलाल को देखा।
"सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर हम लोगों को मारने निकल पड़ा है?" जगमोहन ने पूछा।
"हां। मालूम हुआ है, आज सुबह ही उसने लंबी छुट्टी ली है। हम सबको अपनी बीवी का बलात्कारी और हत्यारे मानकर हमसे बदला लेना चाहता है। खास बात तो यह है कि खांडेकर कभी कमांडो ग्रुप में हुआ करता था। खतरनाक माना जाता था और कई बड़े कारनामों को अंजाम देकर वाहवाही लूट चुका है। उसे सामान्य पुलिस वाला नहीं समझना चाहिए। और खांडेकर तुम दोनों और अंग्रेज सिंह को तलाश करके, शूट करने का प्रयत्न करेगा।" सोहनलाल ने कहा।
जगमोहन कुछ नहीं कह सका।
"जो भी हुआ गलत ही हुआ।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "सुधाकर बल्ली की लाश न मिलती तो हम यही सोचते कि वो ही करोड़ों रुपए लेकर भाग गया है। उसने ही ये किया है। लेकिन उसकी लाश मिलने पर इस बात का पूरा विश्वास हो गया कि कोई बाहरी व्यक्ति इस मामलों में था। जिसकी हमें शुरू से ही खबर नहीं थी और वो बाहरी व्यक्ति सुधाकर बल्ली का साथी था।
"सुधाकर बल्ली का साथी?" जगमोहन के होंठों से निकला।
"हां।"
"ये तुम कैसे कह सकते हो---?"
"क्योंकि सुधाकर बल्ली की लाश खांडेकर के घर से कुछ दूर मिली। सुधाकर बल्ली के साथ ही उस बाहरी व्यक्ति ने तब वहां प्रवेश किया जब सुधाकर बल्ली और अंकल चौड़ा दौलत के साथ मौजूद थे। या तो सुधाकर बल्ली ने बाहरी व्यक्ति को किसी तरह खबर दी होगी कि वो अब भीतर आ सकता है या भीतर कम लोग देखकर, वो भीतर आया। आते ही उसने अंकल चौड़ा को चाकू से खत्म किया। फिर उसने सुधाकर बल्ली या अकेले ही रजनी खांडेकर के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या की। उसके बाद नोटों से भरे थैले, सुधाकर बल्ली के साथ अपने साथ लाए वाहन पर लादकर वहां से निकला। अब उसने सुधाकर बल्ली से पीछा छुड़ाना था। क्योंकि सुधाकर बल्ली के अलावा और दूसरा उसकी असलियत नहीं जानता था। ऐसे में कुछ दूर जाकर उसने सुधाकर बल्ली की भी हत्या करके, उससे पीछा छुड़ा लिया। अब तक के सारे हालातों पर गौर किया जाए तो हमारे सामने यही बात बनती है। इस मामले के भीतरी हालातों से जितने हम वाकिफ हैं, उतनी पुलिस भी वाकिफ नहीं।"
"और पुलिस को वाकिफ कराया भी नहीं जा सकता।" जगमोहन ने सिर हिलाया।
"कराया जा सकता है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "वानखेड़े से बात की जा सकती है। वो जुदा बात है कि वानखेड़े बात को माने या न माने---?"
"वानखेड़े से बात करने की क्या जरूरत है।" सोहनलाल बोला।
"है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "मेरे गैरकानूनी कामों की फाइल उसके पास है और मैं नहीं चाहता कि वानखेड़े ऐसा घिनौना जुर्म फाइल में मेरे नाम चढ़ा दे, जो मैंने नहीं किया।"
जगमोहन ने दांत पीसकर कहा।
"सुधाकर बल्ली का साथी कौन हो सकता है?"
"जल्दी ही मालूम हो जाएगा।" देवराज चौहान की आवाज में सख्ती आने लगी--- "इन रुपयों को लूटने की बात सुधाकर बल्ली ने ही हमारे सामने रखी थी और सुधाकर बल्ली जगनलाल के द्वारा हमसे मिला था। ऐसे में सोचा जा सकता है कि सुधाकर बल्ली का साथी जगनलाल भी हो सकता है या फिर कोई ऐसा आदमी, जो पागलपन या सुधाकर बल्ली से किसी तरह अंजाने में सारी बात जान गया हो और सुधाकर बल्ली को किसी तरह लालच देकर, खामोशी से हमारे मामले में शामिल हो गया हो। या फिर सुधाकर बल्ली ने ही किसी को साथ मिलाकर, सारा पैसा ले उड़ने की गुप्त योजना बनाई हो। इन सब बातों की तह तक पहुंचना जरूरी है। असल में क्या हुआ, हमें हर हाल में इस हकीकत को जानना है।"
"ये मामला तो खामख्वाह लंबा खिंच गया।" सोहनलाल बोला।
"और उस पांच करोड़ वाले पार्टनर को भी चैक करना है, जिसने मुझे बंगले के पर नोटों के आने की खबर दी थी। वह भी चुपके से इस मामले में शामिल हो सकता है। क्योंकि वो जानता था कि उस रात हम वहां नोटों पर हाथ डालने जा रहे हैं।" देवराज चौहान का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।
"लेकिन यहां से बाहर निकलना ठीक नहीं। पुलिस हमारी तलाश में दौड़ रही है। उधर खांडेकर हमें शूट करने के लिए हमारी तलाश में लग गया होगा।" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा--- "खतरा हमारे सिर पर रहा तो हम अपनी भागदौड़ कैसे कायम रख सकते हैं।"
"आराम से बैठे रहना भी तो संभव नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "हमें कोई पहचाने नहीं और हम अपना काम जारी रखें, इसके लिए मेकअप करके ही बाहर जाना होगा।"
जगमोहन होंठ भींचकर रह गया।
"अंग्रेज सिंह की तबीयत कैसी है?" जगमोहन ने पूछा।
"पहले से बहुत बेहतर है। आधे से ज्यादा जख्म भर चुका है। तीन-चार दिन में पूरा ठीक हो जाएगा।"
देवराज चौहान ने सोहनलाल से कहा।
"सोहनलाल, तुम अंग्रेज सिंह के पास ही रहोगे। उसकी देखभाल करोगे।"
सोहनलाल ने सिर हिलाया।
"तुम बंगले पर ही रहना।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"मैं तुम्हारे साथ जाऊंगा।" जगमोहन कह उठा।
"मैं पांच करोड़ वाले पार्टनर से बात करने जा रहा हूं।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "जब जगनलाल से मिलने जाऊंगा, तो तब बेशक तुम साथ चलना।"
■■■
होटल ब्लू स्टार।
होटल की आठवीं मंजिल के ठीक ऊपर, मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था और ये शब्द रात का अंधेरा फैलने के साथ-साथ जगमगा उठते थे। साथ ही लाल-पीले मिक्स रंग का सूर्य बना था, जो कि ब्लू स्टार के मोनो के रूप में जाना जाता था।
यह वही ब्लू स्टार होटल था जो कभी शहर भर में आतंक से भी बड़ा माना जाता था। जहां कभी अंडरवर्ल्ड के बड़े सांवरा चौहान का ठिकाना होता था। फिर मोती लाल यादव के हवाले, अंडरवर्ल्ड सारी बादशाहत करके सांवरा चौहान खामोशी और एकांत से जिंदगी बिताने लगा था। परन्तु किसी कारणवश सांवरा चौहान को अपने एकांतवास से बाहर आकर मोती लाल यादव से अपनी ही बादशाहत को कठिनता से वापस हासिल करके ब्लूस्टार पर सांवरा चौहान ने अपना परचम लहरा कर अपना नाम पुनः ब्लू स्टार के साथ दर्ज किया। परन्तु इस बार सांवरा चौहान अंडरवर्ल्ड का बादशाह बनकर नहीं, बल्कि नेक-नीयत वाला इंसान बनकर सबके सामने आया। गरीबों की सहायता और दुखिये का दर्द समझने वाला सांवरा चौहान। वो मासूमों का मसीहा बनकर उभरने लगा, जिन्हें कानून इंसाफ नहीं दिला पाता था, क्योंकि पैसे वाले सारे सबूत और हर अपने खिलाफ की चीज को दबाकर बच जाते थे। सांवरा चौहान उन्हें अपने ढंग से इंसाफ दिलाने लगा। सांवरा चौहान के बारे में जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'अंडरवर्ल्ड' एवं 'गैंगवार'।
ब्लू स्टार का छठी मंजिल पर स्थित वो गोल कमरा, जहां कभी अंडरवर्ल्ड के खतरनाक से खतरनाक फैसले होते थे। जहां सांवरा चौहान के चंद खास आदमियों के अलावा कोई प्रवेश नहीं पा सकता था, आज वहां कोई भी मुसीबत का मारा आसानी से पहुंचकर अपने ऊपर हुए अत्याचार के बारे में और अपराधी को सजा देने के लिए सांवरा चौहान से बात कर सकता था। किसी के आने का कोई वक्त नहीं था। कोई भी कभी भी आ सकता था। रूद्रपाल तिहाड़ आने वाले की बात सुनता, उसके बाद सांवरा चौहान से बात करा दी जाती।
आज सांवरा चौहान अंडरवर्ल्ड के मामलों में दखल नहीं देता था। उसकी आंख शहर भर के हर हादसे पर होती। पल-पल की खबर उसके पास पहुंचती रहती। परन्तु खुद आगे बढ़कर किसी की बांह थामना उसे रोकना, उसका काम नहीं था। वह सिर्फ उसी मामले में किसी की सहायता करता, जो उसके पास सहायता मांगने आता। और सांवरा चौहान सहायता भी उसी की करता जिसे वास्तव में सहायता की जरूरत होती।
यूं तो ब्लू स्टार पुनः संभालने के पश्चात सांवरा चौहान ने सब गैर-कानूनी काम बंद कर दिए थे। परन्तु आदमियों के खर्चे-पानी के लिए, सिर्फ इतने ही गैरकानूनी काम चालू कर रखे थे कि उसके आदमियों को समय पर पैसा मिलता रहे। पुलिस उसके चंद गैरकानूनी कामों से वाकिफ थी। परन्तु पुलिस इतने में ही संतुष्ट थी कि सांवरा चौहान जैसा इंसान खामोशी से बैठा है। अगर इसे छेड़ा गया तो फिर पुलिस पर भी भारी पड़ेगा। उनकी रातों की नींद हराम हो जाएगी।
शहर के बीचोंबीच स्थित ब्लू स्टार की अपनी कमाई भी थी।
सांवरा चौहान के पास पचास के करीब आदमी थे। जो कि बाखूबी काम को अंजाम देने का हौसला रखते थे। खतरनाक से खतरनाक आदमी सांवरा चौहान की गुल्लक में मौजूद था। अपनी बीत रही जिंदगी से सांवरा चौहान संतुष्ट था। शांत था। वो अपने आदमियों का पूरा ध्यान रखता था। उनकी जाती तकलीफों में शामिल होता था और उसके आदमी सांवरा चौहान के लिए जान तक देने को तैयार रहते थे।
यूं तो देखने पर ब्लू स्टार के भीतर और बाहर का माहौल हमेशा सामान्य नजर आता था, परन्तु चौबीसों घंटे वहां सतर्कता से पहरा दिया जाता था कि सांवरा चौहान का कोई दुश्मन किसी बात का पुराना बदला लेने के लिए हमला न बोल दे।
इस वक्त दिन के बारह बज रहे थे।
ब्लू स्टार का काम हर रोज की तरह सामान्य ढंग से हो रहा था। आधे से ज्यादा होटल भरा हुआ था। कुछ लोग लाउंज में बैठे थे। कोई सीढ़ियों की तरफ बढ़ रहा था तो कोई लिफ्ट की तरफ। रिसेप्शन डैस्क के पीछे तीन खूबसूरती युवतियां फुर्ती के साथ, अपने कस्टमर को अटेंड कर रही थीं। काउंटर पर पांच-छः फोन मौजूद थे, जो रह-रहकर बज रहे थे।
होटल के कर्मचारी किसी का सामान बाहर से ला रहे थे तो किसी का ले जा रहे थे। होटल का स्टाफ अपने कामों में व्यस्त आ-जा रहा था।
मध्यम-सा शोर था वहां, जो कि चुभ नहीं रहा था।
तभी प्रवेश द्वार पर सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर नजर आया। वही सादे कपड़े। परन्तु चेहरे पर गुस्सा और आंखों में क्रोध की लाली। उसकी हालत बता रही थी कि वो अपने पर काबू किए हुए है। भीतर प्रवेश करते ही वो तेजी से आगे बढ़ता चला गया। अपनी ही धुन में था वो। करीब से गुजरते लोगों में से किसी में उसकी दिलचस्पी नहीं थी।
रिसेप्शन और लाउंज को पार करके खांडेकर पास की गैलरी में मुड़ा। वहां कई दरवाजे नजर आए और एक दरवाजे के पास स्टूल पर काला सूट पहने एक व्यक्ति आराम से बैठा था और उसे देखते ही सतर्क-सा खड़ा हो गया।
दरवाजे पर पीतल के अक्षरों में मैनेजर लिखा था।
खांडेकर उस दरवाजे के पास आकर ठिठका। हाथ बढ़ाकर दरवाजा खोलना चाहा।
तभी सूट वाले व्यक्ति ने उसकी बांह पकड़ी।
"कौन हो तुम? किससे मिलना है?" स्वर शांत था।
"रूद्रपाल तिहाड़ अंदर है?" खांडेकर ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
"हां। लेकिन तुम?"
खांडेकर ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही उसे एक तरफ धकेला और दरवाजा खोलते हुए भीतर प्रवेश कर गया। दो कदम भी न उठा पाया होगा कि उसके पीछे वही सूट वाला मौजूद था और पीठ में रिवाल्वर लग चुकी थी।
खांडेकर सामने की टेबल की तरफ बढ़ा।
टेबल पर कुछ पेपर्स और दो फाइलें मौजूद थीं। उसके पास कुर्सी पर रूद्रपाल तिहाड़ मौजूद था। सांवरा चौहान का राइट हैंड, खतरनाक आदमी। दरवाजा खुलने पर उसने नजरें उठाकर देखा, तो उसी पल उसके होंठ सिकुड़े। चेहरे पर हैरानी उभरी और गायब हो गई। निगाहें खांडेकर के सुलगते चेहरे पर ठहर गईं।
"मैंने इसे रोकने की चेष्टा की तो---।" सूट वाले आदमी ने कहना चाहा।
रूद्रपाल तिहाड़ ने हाथ से उसे जाने का इशारा किया तो रिवाल्वर जेब में डालते हुए वह पलटकर बाहर निकल गया। दरवाजा पहले की तरह बंद हो गया।
रूद्रपाल तिहाड़ और खांडेकर की निगाहें मिलीं।
"पहचानते हो मुझे?" खांडेकर एक-एक शब्द चबाकर कह उठा।
रूद्रपाल तिहाड़ ने सामने मौजूद फाइल को एक तरफ सरकाया। पुश्त से पीठ लगाता कह उठा।
"सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर! चार साल से इसी पोस्ट पर हो। परन्तु अब तुम्हारे कारनामों को देखकर कभी भी तुम्हें इंस्पेक्टर बनाया जा सकता था। इससे पहले तुम स्पेशल कमांडो दस्ते में थे। जो कि खास सरकारी दस्ता था और तुमने जान पर खेलकर कई बहादुरी से भरे कारनामों को अंजाम दिया। बतौर कमांडो तुम्हें बहुत कम फील्ड में आने का मौका मिल पाता था। जबकि तुम फील्ड में रहना पसंद करते हो। इसलिए तुमने सब-इंस्पेक्टर बनने के लिए परीक्षा दी और पास हो गए, सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर।"
खांडेकर के चेहरे पर तीखे भाव उभरे।
"बहुत गहरी खबर रखते हो मेरे बारे में।" खांडेकर ने शब्दों को चबाया।
"पुलिस वालों से वास्ता रखती खबरें तो अक्सर हमारे पास से मिल सकती हैं, जैसे कि शहर भर के अपराधियों की खबरें हमारे पास से मिल सकती हैं।" रूद्रपाल तिहाड़ ने शांत स्वर में कहा--- "जनता की सेवा करने के लिए अंदर-बाहर की सारी खबरें मेरे दिमाग की सुर्खियों में रहती हैं।"
खांडेकर ने कुर्सी खींची और बैठते हुए बोला।
"फिर तो मेरे यहां आने की वजह भी मालूम होगी।" स्वर चुभता हुआ था।
रूद्रपाल तिहाड़ के चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए।
"तुम्हारी पत्नी के साथ जो हुआ, उसका वास्तव में मुझे अफसोस है।"
खांडेकर का चेहरा दहक उठा।
"मैं।" खांडेकर के होंठों से गुर्राहट निकली--- "सांवरा चौहान से मिलना चाहता हूं।अभी---।"
"हम।" रूद्रपाल तिहाड़ ने शांत स्वर में कहते हुए खांडेकर की आंखों में झांका--- "सांवरा चौहान को सर कहते हैं। इस बात का ध्यान रखो तो ज्यादा बेहतर होगा।"
"रुद्रपाल तिहाड़!" खांडेकर दांत पीस उठा--- "तुम्हारी बीवी के साथ बलात्कार नहीं हुआ। तुम्हारी बीवी की हत्या नहीं हुई। तुम्हारा घर बसने से पहले नहीं उजड़ा। अगर ये सब तुम्हारे साथ हुआ होता तो मैं देखता कि जितने होशो-हवास मैंने कायम कर रखे हैं, उतने भी तुम कैसे रख पाते! फालतू की बातों में न उलझाकर, मुझे सांवरा चौहान से मिलवाओ। समझे तुम---?"
रुद्रपाल तिहाड़ कई पलों तक खांडेकर को देखता रहा।
"उठो।" रुद्रपाल तिहाड़ कुर्सी छोड़ता हुआ उठा।
गुस्से में सुलगता खांडेकर उठा।
दोनों काम से बाहर निकले और लाउंज पार करते आगे बढ़ गए। स्टाफ का कोई आदमी सामने आता तो तिहाड़ को 'विश' करता।
मिनट भर बाद ही लाउंज के कोने में पहुंचकर रूद्रपाल तिहाड़ एक लिफ्ट के पास पहुंचकर रुका। जिस पर बड़े अक्षरों में प्राइवेट लिखा था। वहां दो काले सूट वाले मौजूद थे।
तिहाड़ ने दोनों को देखा।
"इन साहब को, 'सर' के कमरे में पहुंचा दो---।"
"जी---।"
■■■
सांवरा चौहान।
होटल की पांचवी मंजिल पर मौजूद अपने बेडरूम की खिड़की से, दूर-दूर तक नजर आ रहा मुंबई का नजारा देख रहा था। बदन पर सिल्क का गाउन था और उंगलियों में फंसी सिगरेट। दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज पर भी वो नहीं घूमा। कालीन पर अपने पास आते कदमों की आहट कानों में पड़ी तो बिना घूमे ही सांवरा चौहान की आवाज वहां गूंजी।
"आओ तिहाड़---।"
कदमों की आहट पास आकर थम गई।
"सर!' आने वाला रूद्रपाल तिहाड़ ही था--- "सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर आपसे मिलने आया है।"
दो पल की चुप्पी के पश्चात सांवरा चौहान का स्वर उसके कानों में पड़ा।
"अपनी बीवी के साथ हुए बलात्कार और हत्या के सिलसिले में आया होगा।"
"मैंने पूछने की जरूरत इसलिए नहीं समझी कि वो यकीनन इसी सिलसिले में आपसे मिलने आया है।"
सांवरा चौहान पलटा और रुद्रपाल तिहाड़ को देखने लगा।
साठ वर्षीय स्वस्थ शरीर और सपाट-शांत चेहरे का मालिक, सांवरा चौहान छः फीट कद। चौड़ा सीना। सिर के बाल आधे काले। चेहरा इस कदर प्रभावशाली कि सामने वाला व्यक्ति खुद को दबा-दबा-सा महसूस करे। लेकिन उसकी आंखें बता रही थीं कि अब उसे जिंदगी में किसी चीज की ख्वाहिश बाकी नहीं रही। अपनी हर चाहत को वो पा चुका है। और अपनी बीत रही जिंदगी से वो संतुष्ट था।
"उस कमरे में पहुंचा दो।" सांवरा चौहान की आवाज बेहद शांत थी।
"वो वहां पहुंच चुका है सर---।" रूद्रपाल तिहाड़ के होंठ हिले।
■■■
छठी मंजिल पर स्थित विशाल गोल कमरा, जहां गैरकानूनी इतिहास के जाने कितने सफेद-काले पन्ने लिखे गए थे। बीचो-बीच स्थित चंद्राकार टेबल। जिसके उस पार ऊंची पुश्त वाली मूविंग चेयर मौजूद थी और इस तरफ दस कुर्सियां मौजूद थीं।
कमरे में प्रवेश द्वार पर भीतर की तरफ एक काले कोट वाला सतर्क खड़ा शांत भाव से सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर को देख रहा था, जो कभी कुर्सी पर बैठता तो कभी गुस्से से टहलने लगता। भिंचे होंठ। आंखों में प्रतिशोध के भाव। जैसे सब कुछ खाक कर देना चाहता हो।
न तो वो काले सूट वाले से कुछ बोला था और न ही वो खांडेकर से बोला था।
पन्द्रह मिनट इसी तरह बीत गए।
फिर उसी प्रवेश द्वार से पहले रूद्रपाल तिहाड़ और फिर सांवरा चौहान ने भीतर प्रवेश किया। सांवरा चौहान अभी तक सिल्क के नाईट गाउन में था। अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ते सांवरा चौहान ने खांडेकर को बेहद शांत निगाहों से देखा।
सांवरा चौहान को देखते ही खांडेकर ठिठक गया। चेहरे पर कठोरता ही कठोरता थी।
रूद्रपाल तिहाड़ टेबल के पास ही सतर्क-सा खड़ा हो गया।
सांवरा चौहान कुर्सी पर बैठा। टेबल का ड्राअर खोलकर पैकेट निकाला और सिगरेट सुलगाई। रूद्रपाल तिहाड़ ने वहां मौजूद काले सूट वाले को जाने का इशारा किया तो वो चला गया।
सांवरा चौहान ने पुनः खांडेकर से कहा।
"जो भी कहना है, सर से कहो।"
खांडेकर ने दांत भींचकर तिहाड़ को देखा फिर सांवरा चौहान को।
"मैं ऐसी कोई बात नहीं कहना चाहता, जिसे आप नहीं जानते सांवरा चौहान।" खांडेकर तीखे स्वर में बोला।
"तुम्हें समझाया था कि 'सर' कहकर बात---।" रूद्रपाल तिहाड़ ने कठोर स्वर में कहना चाहा कि सांवरा चौहान ने हाथ उठाकर उसे चुप रहने को कहा। नजरें खांडेकर के धड़कते चेहरे पर थीं।
"मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।" सांवरा चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "बात अपने नाम से शुरू करो।"
खांडेकर बेहद गुस्से में था। परन्तु इस बात का एहसास था उसे कि वो सांवरा चौहान जैसी हस्ती के सामने मौजूद है। और...उसे संभलकर बात करनी है।
"मैं सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर हूं।" खांडेकर ने एक-एक शब्द चबाकर कहा--- "परसों रात मेरी पत्नी के साथ बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। महीना पहले मेरा उससे ब्याह हुआ था। वो देखने में ही नहीं, दिल की भी बहुत खूबसूरत थी और ये काम आपके भतीजे देवराज चौहान ने किया है। सबको आप इंसाफ दिलाते हैं। मैं भी आपके पास इंसाफ के लिए आया हूं सांवरा चौहान। देखना है मुझे कि इस बार कैसा इंसाफ करते हैं आप, क्योंकि मुजरिम आपका भतीजा देवराज चौहान है।"
सांवरा चौहान ने कश लिया। चेहरा पहले की ही तरह शांत रहा।
"किसी के कह देने से कोई अपराधी नहीं हो जाता। सब बातें सिलसिलेवार बताओ। उसके बाद ही इस बात का फैसला हो सकेगा कि तुम्हारी बात को सच माना जाए या नहीं।"
खांडेकर के होंठ भिंच गए।
उसके बाद खांडेकर ने एक-एक बात सांवरा चौहान के आगे दोहराई। सुनने के बाद सांवरा चौहान आंखें बंद किए कुर्सी की पुश्त से सिर टिकाए कश लेता रहा।
खांडेकर के खामोश होने पर सांवरा चौहान ने आंखें खोलीं। सिगरेट ऐश-ट्रे में मसली। फिर खांडेकर को देखा। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे सामान्य विषय पर बात कर रहे हों।
"तुम पुलिस वाले हो और पुलिस वाले अपने साथी के साथ हुए बुरे को अपने साथ बुरा हुआ मानते हैं। इस वक्त पूरा पुलिस डिपार्टमेंट तुम्हारे साथ है। मैं इस मामले में आना ठीक नहीं समझता।"
"इसलिए कि इसमें आपका भतीजा शामिल है सांवरा चौहान---।" खांडेकर सुलगे स्वर में बोला।
"नहीं, बल्कि इसलिए कि ये मामला सीधा पुलिस से ताल्लुक रखता है और पुलिस को इस मामले में मेरा दखल देना बुरा लग सकता है। पुलिस से बिना वजह झगड़ा मोल लेने की मेरी इच्छा नहीं है।"
"इन शब्दों की आड़ में आप इस मामले से पीछे हट रहे हो। इसलिए कि अपने भतीजे को सजा देने में आपके हाथ कंपेंगे और---।"
तभी रूद्रपाल तिहाड़ ने करीब आकर खांडेकर का कंधा थपथपाया।
खांडेकर ने सुर्ख चेहरे से उसे देखा।
"बात करने का रंग-ढंग ठीक करो। मत भूलो कि इस वक्त तुम कहां और किसके सामने खड़े हो।" तिहाड़ का स्वर इस हद तक कठोर था कि खांडेकर ने फौरन खुद को संभाला।
कुछ पलों की चुप्पी के बाद खांडेकर भिंचे स्वर में कह उठा।
"मुझे अपने ही डिपार्टमेंट की तरफ से सहयोग नहीं मिल रहा।"
"बोलते रहो।"
"इंस्पेक्टर वानखेड़े, इस केस का इंचार्ज है।" खांडेकर का चेहरा सुलग उठा--- "उसके पास देवराज चौहान की फाइल है। देवराज चौहान से वास्ता रखते मामले इंस्पेक्टर वानखेड़े ही देखता है। देवराज चौहान को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी डिपार्टमेंट ने उसे दे रखी है। सब कुछ सामने है। एक-एक बात आईने की तरह साफ है कि मेरी पत्नी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या देवराज चौहान और उसके साथियों ने की है। ऐसी कोई वजह अभी तक सामने नहीं आई कि ये लगे कि ये काम किसी और का भी हो सकता है। लेकिन वानखेडे का कहना है कि ये काम देवराज चौहान या उसके साथियों ने नहीं किया। कहने की जरूरत नहीं कि उसकी तरफ से मोटी रकम इंस्पेक्टर वानखेड़े के पास पहुंच चुकी है। यही वजह है कि कोई वजह न होते हुए भी देवराज चौहान और उसके साथियों को निर्दोष कह रहा है। स्पष्ट है कि वो देवराज चौहान को इस मामले में अपराधी नहीं ठहराएगा। मुझे इंसाफ नहीं मिलेगा। मैं खुद पुलिस वाला हूं और पुलिस वालों की कार्यशैली को अच्छी तरह जानता हूं। वानखेड़े को अगर देवराज चौहान और उसके साथियों के खिलाफ कोई सबूत भी मिलेगा तो वो उसे नष्ट कर देगा। ये सब जानते हुए, मैं आपके पास आया हूं सांवरा चौहान कि आप मुझे इंसाफ दिलाएं। देवराज चौहान और उसके साथियों को उनके किए की सजा दें। अगर मुझे एक प्रतिशत भी आशा रही होती कि डिपार्टमेंट से मुझे इंसाफ मिलेगा, तो मैं ये मामला लेकर आपके पास नहीं आता।"
सांवरा चौहान रंजीत खांडेकर के तपते चेहरे को देखता रहा। फिर रूद्रपाल तिहाड़ को देखा।
"तिहाड़---?"
"जी---?"
"देवराज को कितनी देर में यहां ला सकते हो?" सांवरा चौहान का स्वर शांत था।
रूद्रपाल तिहाड़ बेहद सतर्क नजर आने लगा।
"अगर वो अपनी जगह मौजूद है तो एक घंटे में यहां होगा।" तिहाड़ ने संभले स्वर में कहा।
"देवराज को यहां लेकर आओ।" सांवरा चौहान खड़े होते हुए बोला--- "अगर वो वहां मौजूद न हो तो भेजे हुए आदमियों से कह देना कि उनकी वापसी का इंतजार करें। मैं उसे यहां देखना चाहता हूं।"
खांडेकर की आंखों में हिंसक चमक उजागर हो उठी।
"जी---।" सिर हिलाने के साथ तिहाड़ ने खांडेकर से कहा--- "आओ। जब तक देवराज चौहान नहीं आता, तब तक तुम हमारे रेस्टरूम में रहोगे---?"
तिहाड़ खांडेकर को लेकर गोल कमरे से बाहर निकल गया।
सांवरा चौहान, चेहरे पर सोच के भाव लिए, कमर पर हाथ बांधे टहलने लगा।
■■■
देवराज चौहान ने ठीक-ठाक से नजर आने वाले रेस्टोरेंट में प्रवेश किया और थोड़ा-सा रास्ता पार करके रेस्टोरेंट के हॉल में पहुंचा। जहां कुर्सियां-टेबल मौजूद थे। वहां कई लोग बैठे खाने-पीने में व्यस्त थे। हर तरफ घूमती निगाह उस पर जा टिकी, जो कोने की टेबल पर अकेला बैठा था। देवराज चौहान उसी तरफ बढ़ गया। इस वक्त वो मेकअप में था।
चेहरे पर दाढ़ी-मूछें। सिर पर विग डाल रखी थी। जिसके लंबे बाल गर्दन तक जा रहे थे। कपड़े भी ढीले-ढाले पहन रखे थे। मस्तमौला जैसा आदमी लग रहा था वो।
देवराज चौहान टेबल के पास पहुंचकर ठिठका फिर कुर्सी पर बैठ गया। वहां पहले से ही बैठे आदमी ने उसे देखा और निगाहें फेर लीं। देवराज चौहान को तसल्ली हुई कि उसने उसे पहचाना नहीं। यानी कि इस हुलिए में वो पुलिस से अपना बचाव कर सकता है।
"वेद---।"
अपना नाम सुनते ही उस व्यक्ति ने चौंककर उसे देखा।
"मैं तुमसे ही बात कर रहा हूं।" देवराज चौहान का स्वर धीमा था।
"ओह, तुम--- देवराज चौहान---।" उसके होंठों से निकला--- "इस हुलिए में---।"
"हां वेद सिंह, पुलिस से बचने के लिए मुझे अपना हुलिया बदलना पड़ा।"
"खैर। अच्छा हुआ तुम आ गए। मैं कल भी आधा दिन यहां बैठा तुम्हारा इंतजार करता रहा और आज भी तुम्हारे लिए यहीं बैठा था। कभी मेरा मन कहता था कि तुम नहीं आओगे परन्तु फिर सोचने लगता कि देवराज चौहान धोखेबाजी नहीं करेगा। मेरा पांच करोड़ अवश्य देगा।" वेद सिंह के स्वर में खुशी के भाव थे--- "मेरा पांच करोड़ लाए हो ना?"
देवराज चौहान ने कठोर निगाहों से उसे देखा।
"मैं पांच करोड़ देने नहीं। पैंतालीस करोड़ लेने आया हूं।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
"क्या मतलब?" वेद सिंह की आंखे सिकुड़ी।
"तुम खुद को ज्यादा चालाक समझते हो। इधर पांच करोड़ की हिस्सेदारी गांठ ली और उधर हम पर नजर रखते रहे। मेरे एक साथी को भी अपने साथ मिला लिया। पांच करोड़ ले उड़े। वो तो अच्छा हुआ कि तुम उसे मरा समझकर छोड़ गए। जबकि वो जिंदा था और मरने से पहले उसके मुंह से तुम्हारा ही नाम वेद सिंह निकला था। मुझसे चालाकी करके तुमने अच्छा नहीं किया। जो भी हुआ उस पर मिट्टी डालो और अपना पांच करोड़ रखकर पैंतालीस करोड़ चुपचाप मेरे हवाले कर दो। वरना...।"
वेद सिंह अजीब-सी निगाहों से देवराज चौहान को देखने लगा।
देवराज चौहान की निगाह वेद सिंह पर ही थी।
"लगता है तुम्हें जान प्यारी नहीं।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा--- "रुपया वापस देने का तुम्हारा इरादा नहीं लगता।"
एकाएक वेद सिंह लंबी-लंबी सांसें लेने लगा।
"तुम क्या कह रहे हो? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा?" उसके होंठों से निकला।
"मैं ये कह रहा हूं बहुत चालाकी कर ली। पैंतालीस करोड़ मेरे हवाले करो।"
"मुझे अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा कि तुम क्या कह रहे हो।" वेद सिंह के चेहरे पर हैरानी के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे--- "तुम कह रहे हो, मैं तुम पर नजर रखने लगा। मैंने तुम्हारे साथी को अपने साथ मिला लिया। मैंने वो पचास करोड़ ले लिए। ये सब क्या कह रहे हो? सुनकर भी समझ में नहीं आ रहा कि तुम क्या कह रहे हो?"
"तो तुम ये कहना चाहते हो कि तुमने ये सब नहीं किया, जो मैंने कहा है।"
"मैं यही कहने जा रहा था। लेकिन पहले तुम्हारी बातों को बर्दाश्त तो कर लूं, जो सिरे से ही मेरी समझ से बाहर हैं।" वेद सिंह परेशान-सा नजर आने लगा--- "मैं तो उस रात की शाम को ही अपने घर जाकर बैठ गया था। फिर जो भी हुआ, उससे मेरा कोई मतलब नहीं। मैं तो अपने पांच करोड़ के इंतजार में कल भी यहां था और आज भी यही हूं। यहीं पर तुमने मिलने को कहा था। अब तुम पांच करोड़ देने की अपेक्षा, मुझे गुनहगार बनाकर, पैंतालीस करोड़ मुझसे मांग रहे हो।"
उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो सच बोल रहा है।
देवराज चौहान ने मन-ही-मन गहरी सांस ली।
"तो तुम ये कहना चाहते हो कि तुम्हें कुछ भी नहीं मालूम कि जब हम पचास करोड़ वहां से लेकर निकले तो हमारे साथ क्या हुआ?" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
"मैंने ये कब कहा। तुम लोगों के बारे में थोड़ी-बहुत खबरें तो मुझे मिल ही रहीं---।"
"जब हम वहां से निकले तो पुलिस ने पहले ही घेरा डाल रखा था।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- "पुलिस को यह भी मालूम था कि भीतर मैं क्या करने गया हूं। ये बात किसने बताई पुलिस को?"
वेद सिंह होंठ भींचकर खामोश हो गया।
देवराज चौहान की नजरें वेद सिंह पर ही रहीं।
"ये बात पुलिस को उस हरामजादे, सुलेखचंद ने बताई होगी।" वेद सिंह के दांत भिंच गए--- "मैं भी सोच रहा था कि पुलिस कैसे पीछे पड़ी। लेकिन तुम्हारी बात सुनकर, कि पुलिस को मालूम था भीतर देवराज चौहान है और क्या कर रहा है, स्पष्ट हो गया कि ये सुलेखचंद का कारनामा है।"
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
"सुलेखचंद कौन?"
"मेरा साला।" वेद सिंह की आवाज में गुस्सा था--- "मेरा खाना-पीना अक्सर उसके साथ ही होता है और उस रात पीने के दौरान मैंने उसको सब कुछ बता दिया था। सुनकर वो बोला, पांच करोड़ में से दो करोड़ उसका। परन्तु मैंने सख्ती से मना कर दिया। कहा, एक पैसा भी उसे नहीं दूंगा। किसी भी कीमत पर नहीं दूंगा। इसी पर तू-तू मैं-मैं हो गई। सच पूछो तो गाली-गलौच भी हो गई। उसने तब कहा कि वो पुलिस को खबर कर देगा। उसे पांच करोड़ नहीं लेने देगा। चूंकि सारी बातें पी-पिलाकर हुई थी, इसलिए मैंने उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन तुम्हारी बात सुनने के बाद यही लगता है कि पुलिस का पीछे पड़ना, सुलेखचंद की ही हरकत है। सच में, वरना पुलिस को कैसे मालूम हो सकता है कि देवराज चौहान, वहां से पचास करोड़ की रकम पर हाथ डालकर निकलेगा। मैं जिंदा नहीं छोडूंगा सुलेखचंद को। मैं---।"
"वेद---!" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "मैं सुलेख चंद से मिलना चाहता हूं।"
"उसकी तुम फिक्र मत करो।" वेद सिंह खतरनाक स्वर में कह उठा--- "उसका तो अब मैं हाल करूंगा कि...।"
"मैं सुलेखचंद से मिलना चाहता हूं।"
वेद सिंह ने देवराज चौहान को देखा।
"क्या मुझ पर विश्वास नहीं है कि मैं उसकी ऐसा हालत कर दूंगा कि वो जीने के काबिल नहीं रहेगा?"
"ये बात नहीं है।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर था--- "बल्कि ये सब मामला तुम ही संभालना। मैं तो सिर्फ उसके मुंह से ये जानना चाहता हूं कि वास्तव में उसी ने पुलिस को खबर दी थी। तुम जो कह रहे हो, यह तुम्हारा अनुमान है और इस मामले में मैं सच को छूकर ही, हर बात की तसल्ली करूंगा।"
वेद सिंह उठ खड़ा हुआ।
"आओ। सुलेखचंद के पास चलते हैं।"
देवराज चौहान उठा। दोनों रेस्टोरेंट के बाहर आ गए।
"उधर मेरी कार खड़ी है।" देवराज चौहान बोला।
दोनों कार की तरफ बढ़े।
"पचास करोड़ तो सलामत है। सुना है पुलिस को पैसा नहीं मिला।" वेद सिंह बोला।
"पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा और मेरे हाथ भी कुछ नहीं।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या मतलब?"
"कोई और ही शुरू से हमारी हरकतों पर नजर रख रहा था। जिसकी खबर मुझे नहीं हो पाई। उसने शायद मेरे साथी सुधाकर बल्ली को साथ में ला रखा था। ऐसा ख्याल है मेरा। और ठीक वक्त पर इस मामले में आकर, पचास करोड़ लेकर चलता बना। यहां तक कि सुधाकर बल्ली को भी खत्म कर दिया, क्योंकि एकमात्र सुधाकर बल्ली ही फंसने पर भविष्य में उसकी पहचान कर सकता था। यानी कि वह कौन है, अब उसके बारे में कोई नहीं जानता।"
"ओह!" वेद सिंह के होंठ भिंच गए--- "ये सारा झंझट सुलेखचंद की वजह से ही पैदा हुआ। वो पुलिस को खबर नहीं करता तो, ऐसा कुछ भी नहीं होना था। हरामजादा।"
कार के पास पहुंचकर देवराज चौहान ने स्टेयरिंग सीट संभाली और वेद सिंह उसकी बगल में बैठ गया तो देवराज चौहान ने कहा आगे बढ़ाई।
"सुलेखचंद करता क्या है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"वर्ली में गैराज है। नंबरी हरामी है। जाने कैसे मैंने उसकी बहन से शादी कर ली। लेकिन मेरे हाथों से अब नहीं बचेगा।" वेद सिंह गुर्राया।
देवराज चौहान ने कार को वर्ली की तरफ बढ़ा दिया।
"मैंने सुना है, पुलिस से बचने के लिए तुम लोगों ने जिस घर में पनाह ली वो पुलिस वाले का ही घर था?" वेद सिंह ने देवराज चौहान को देखा।
"हां।"
"और वहां से निकलते वक्त तुम लोगों ने पुलिस वाले की बीवी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी। इसी कारण पुलिस सख्ती से तुम्हारी तलाश कर रही है।"
देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"गुस्सा क्यों होते हो।" वेद सिंह जल्दी से बोला--- "जो सुना, वो ही तुमसे कहा है।"
"जिसके पास वो पचास करोड़ है, उसी ने पुलिस वाले की बीवी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या की है। मेरे ख्याल में ये काम उसने इसलिए किया है कि, मैं पुलिस से बचने के चक्कर में उलझ जाऊं और उसे तलाश करने की सोच भी न सकूं।" देवराज चौहान का स्वर खतरनाक हो उठा था।
वेद सिंह ने व्याकुलता से सिर हिलाया।
"जो भी हो, पचास करोड़ तो गया हाथ से, जिसके लिए तगड़ी भागदौड़ की गई थी।"
"मुझे अब पचास करोड़ की नहीं, उसकी जरूरत है जिसने पुलिस वाले की बीवी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या की। ऐसे बुरे इल्जाम को अपने सिर पर लेकर मैं चैन की सांस नहीं ले सकता।"
"लेकिन उसे तलाश कैसे करोगे। उसके बारे में तो तुम कुछ जानते ही नहीं।" वेद सिंह कह उठा।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।
कार तेजी से दौड़ी जा रही थी।
■■■
वेद सिंह के कहने पर, देवराज चौहान ने एक गैराज के सामने कार रोकी।
गैराज के बड़े से, खुले, चौड़े गेट से भीतर का सारा हाल नजर आ रहा था।
पांच-सात लड़के दो कारों को ठीक करने में व्यस्त थे। एक तरफ कुछ ऊंचे से प्लेटफार्म पर कार की धुलाई हो रही थी। दूसरी तरफ शीशे का केबिन बना था।
"तुम भीतर चलोगे या सुलेखचंद को यहीं बुला---?"
"भीतर चलूंगा।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने दरवाजा खोला और कार से बाहर आ गया।
वेद सिंह के साथ उसने गैराज में प्रवेश किया। कार ठीक करने वाले ने वेद सिंह के साथ दुआ-सलाम की तो पूछने पर पता चला सुलेखचंद केबिन में है।
दोनों केबिन में पहुंचे।
टेबल के पीछे कुर्सी पर बैठा पचास वर्षीय सुलेखचंद उन्हें देख चुका था। उसकी खास निगाह देवराज चौहान पर थी फिर उसने वेद सिंह को देखा। वेद सिंह के चेहरे के भावों को देखते ही वो समझ गया कि कोई बात है जरूर।
"क्या हुआ वेद?"
"साले, कुत्ते।" वेद गुर्राया--- और आगे बढ़कर उसने सुलेखचंद की गर्दन थाम ली--- "बता, उस रात तूने ही पुलिस को फोन किया था कि देवराज चौहान कहां पचास करोड़ पर हाथ मारने जा रहा है? सच बता वरना---।"
"मेरी गर्दन तो छोड़।" सुलेखचंद ने अपनी गर्दन से उसका हाथ हटाना चाहा।
"ले छोड़ी।" कहने के साथ ही वेद सिंह ने जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा तो सुलेखचंद कुर्सी सहित नीचे जा गिरा।
वेद सिंह ने जेब से रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली। गुस्से में इस वक्त वो कुछ भी करने को तैयार था। रिवाल्वर का रुख, सुलेखचंद की तरफ था।
यह देखकर सुलेखचंद के होश उड़ गए।
"बोल कुत्ते।" वेद सिंह गुर्राया--- "मेरे से दगाबाजी करता है। मैं तुझे---।"
"गलती हो गई वेद। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई।" सुलेखचंद एकाएक गिड़गिड़ा उठा।
"कैसी गलती? क्या भूल?" वेद सिंह ने दांत किटकिटाये।
"तब-तब मैं नशे में था। तेरे से जब तू-तड़ाक हुई तो नशे की झोंक में मैंने फोन करके पुलिस को वो सब बता दिया जो-जो तूने मेरे को बताया था। मैं पागल हो गया था। बाद में जब नशा उतरा तो अपनी हरकत पर मुझे बहुत पछतावा हुआ। लेकिन तब मैं कर भी क्या सकता था। मेरे से जो गलत काम होना था, वो तो हो ही चुका था।" सुलेखचंद का चेहरा फक्क था--- "मुझे माफ कर दो। मैं सच्चे दिल से तेरे से माफी मांग रहा हूं। मैं पागल हूं गया था। मैं-मैं---।"
दांत भींचे वेद सिंह ने देवराज चौहान को देखा।
"सुना तुमने।" कहने के साथ ही रिवाल्वर देवराज चौहान की तरफ उछाल दी। देवराज चौहान ने रिवाल्वर पकड़ ली। वेद सिंह कह रहा था--- "इसकी वजह से सारी गड़बड़ हुई। मैं चाहता हूं तुम इसे शूट कर दो।"
देवराज चौहान होंठ भींचे पास आया और शब्दों को चबाकर बोला--- "मेरी नजरों में गलती तुम्हारी है कि तुमने मुंह खोला। गोली तुम्हें मारनी चाहिए।"
वेद सिंह सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया
"लेकिन ये गलती तुमसे अंजाने में हुई है। इसलिए मैं तुम्हें जिंदा छोड़कर जा रहा हूं।" सख्त स्वर में कहते हुए देवराज चौहान ने रिवाल्वर वेद सिंह को थमा दी--- "तुम इसके साथ क्या करते हो? अब ये तुम्हारा मामला है। मेरा नहीं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान पलटा और केबिन का दरवाजा धकेलते हुए बाहर निकलता चला गया।
■■■
देवराज चौहान बंगले के खुले गेट से कार भीतर ले जाता चला गया। दूसरे ही पल पोर्च में निगाह पड़ी तो चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे। होंठ सिकुड़े।
पोर्च में खड़ी कार की नंबर प्लेट पर उसकी निगाह पड़ चुकी थी। नंबरों के साथ प्लेट पर दाईं तरफ कोने में लाल-पीले रंगों से छोटा-सा चमकता सूरज बना था। जो कि होटल ब्लू स्टार का मोनो था।
देवराज चौहान ने कार को उसके पीछे ले जाकर रोक दिया। वो समझ नहीं पा रहा था कि चाचा सांवरा चौहान के आदमी उसके बंगले पर क्या कर रहे हैं। ये तो वो जानता था कि चाचा खुद तो आने से रहे। मामला क्या है। ऐसा क्या हो गया कि ब्लू स्टार की कार को यहां आना पड़ा।
इंजन बंद करके देवराज चौहान कार से निकला और दरवाजे की तरफ बढ़ा।
भीतर प्रवेश करते ही ठिठका।
जगमोहन लापरवाही से सोफे पर अधलेटा था। वहां काले सूट वाले तीन आदमियों के अलावा रूद्रपाल तिहाड़ खुद मौजूद था। बारी-बारी देवराज चौहान ने सबको देखा।
"क्या बात है?" देवराज चौहान ने जगमोहन से पूछा।
"मालूम नहीं।" जगमोहन सीधा होते हुए बोला--- "आते ही सिर पर सवार हो गए और तुम्हारे बारे में पूछने लगे। तुम्हारे चाचा के यहां से आए हैं। मैंने चाय पिलानी चाही तो वो भी मना कर दी।"
देवराज चौहान की निगाह रूद्रपाल तिहाड़ की तरफ उठी।
"कहो।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"सांवरा चौहान ने तुम्हारे लिए बुलावा भेजा है।" रूद्रपाल तिहाड़ ने कहा--- "वैसे मेरे आने की जरूरत नहीं थी। चूंकि तुम उनके भतीजे हो, इसलिए मैं खुद तुम्हें लेने आया हूं।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।
"वजह?"
"मैं तुम्हें लेने आया हूं देवराज चौहान। इसके अलावा और कोई बात नहीं करूंगा। कोई जवाब नहीं दूंगा। और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम साथ चलने में कोई एतराज नहीं उठाओगे।"
कश लेने के बाद देवराज चौहान मुस्कुराया।
"चाचा का बुलावा है। इंकार का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।"
जगमोहन फौरन उठ खड़ा हुआ।
"मैं भी साथ चलूंगा।" जगमोहन ने कहा।
रुद्रपाल तिहाड़ ने टोका।
"बुलावा देवराज चौहान के लिए है।"
"जगमोहन मेरे साथ ही चलेगा।" देवराज चौहान ने तिहाड़ को देखा।
रूद्रपाल तिहाड़ ने फिर कुछ नहीं कहा।
■■■
सांवरा चौहान ब्लू स्टार की छठी मंजिल स्थित उसी गोल कमरे में पहुंचा। वो नहा-धोकर कपड़े बदल चुका था। शरीर पर आधी बांह की सफेद कमीज थी जो कि ब्राउन पैंट के बाहर ही झूल रही थी। सिर के बाल छोटे-छोटे पीछे की तरफ संवार रखे थे। शांत चेहरा। देखने में वो राह चलता बिल्कुल सामान्य इंसान लग रहा था। कुछ पल पूर्व ही वो गोल कमरे में पहुंचा था। यह खबर मिलने पर कि देवराज चौहान वहां मौजूद है। दोनों की निगाहें मिलीं।
"नमस्कार चाचा।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"चाचा मेरा भी नमस्कार।" जगमोहन कह उठा।
दोनों को देखते ही सांवरा चौहान ने आहिस्ता से सिर हिलाया और अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ा। अभी वो कुर्सी पर बैठा ही था कि तिहाड़ खांडेकर को लेकर वहां पहुंचा।
खांडेकर की निगाह जब देवराज चौहान पर पड़ी तो जैसे वो पागल हो उठा।
"कमीने। कुत्ते। हरामजादे तूने मेरी पत्नी को मार डाला। उसके साथ बलात्कार किया। मुझे तबाह कर दिया तूने।" चेहरे पर वहशी भाव समेटे वो देवराज चौहान पर झपटा।
तभी रूद्रपाल तिहाड़ फुर्ती के साथ सामने आया और खांडेकर को रोकते हुए वेग के साथ घूंसा उसके चेहरे पर दे मारा। खांडेकर हल्की-सी चीख के साथ दो-तीन कदम लड़खड़ाकर पीछे हो गया। इसके साथ ही उसने गुर्राकर तिहाड़ को देखा, जिसके चेहरे पर सख्ती नाच रही थी।
"बहुत गर्मी है तेरे खून में।" सांवरा चौहान का स्वर गूंजा।
खांडेकर की निगाह सांवरा चौहान की तरफ उठी।
सांवरा चौहान कठोर निगाहों से खांडेकर को देख रहा था।
"वक्त से पहले मरना तुम्हें कैसा लगेगा।" सांवरा चौहान पूर्ववतः स्वर में कह उठा--- "तुम जैसे होश खो देने वाले लोग ही, बे-मौत मरते हैं।"
खांडेकर संभला। चेहरे पर छाई दरिंदगी के भाव को समेटने की चेष्टा की।
"यह--- यह, देवराज चौहान ने मेरी पत्नी की हत्या की है। उसने पहले उससे बलात्कार किया। साथ में ये जगमोहन भी मौजूद था और---और और एक अंग्रेज सिंह नाम का व्यक्ति और था।" खांडेकर अपने स्वर पर काबू पाने की भरपूर चेष्टा कर रहा था--- "मैं-मैं अपनी पत्नी के हत्यारों को सामने देखकर, खुद पर काबू नहीं रख पाया, इसलिए अपने होश खो बैठा।"
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं।
"तो ये वजह है तुम्हें यहां बुलाने की।" जगमोहन बोला।
देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर सांवरा चौहान को देखा।
"देवराज।" सांवरा चौहान का स्वर शांत था--- "सुना तुमने ये पुलिस वाला क्या कह रहा है?"
"हां सुना---।"
"मैं सामने वाले को अपने बचाव का एक मौका अवश्य देता हूं कि अगर वो सफाई दे सकता है तो बेशक दे। मेरे दिमाग में ये भर सके कि उस पर गलत इल्जाम लगाया जा रहा है।" कहने के साथ ही सांवरा चौहान ने सिगरेट निकालकर सुलगाई--- "तुमने बलात्कार जैसा काम क्यों किया?"
खांडेकर सुलगती निगाहों से देवराज चौहान को देखे जा रहा था।
सांवरा चौहान के शब्द सुनकर देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता उभरी।
"चाचा! तुमने देखा है मुझे बलात्कार करते हुए?" देवराज चौहान बेहद तीखे स्वर में बोला।
"ये पुलिस वाला कहता है।"
"तो फिर इसने देखा होगा।" देवराज चौहान पूर्ववतः लहजे में कह उठा।
"ये मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ?"
"तुम्हारा सवाल ही गलत है चाचा।" देवराज चौहान ने तीखे लहजे में कहा--- "तुम सीधे-सीधे मुझ पर इल्जाम लगा रहे हो। जबकि तुम्हें पूछना चाहिए था कि मैंने ये काम किया है या नहीं?"
सांवरा चौहान कई पलों तक देवराज चौहान को देखता रहा।
जगमोहन ने बेचैनी से पहलू बदला।
तिहाड़ सतर्क खड़ा था।
गुस्से में पगलाया खांडेकर टेबल के पास ही खड़ा था।
"इस पुलिस वाले ने तुम लोगों पर क्या-क्या इल्जाम लगाए हैं। जानते हो या जानना चाहते हो?" सांवरा चौहान बोला।
"जानता हूं।"
"क्या ये गलत कहता है?" सांवरा चौहान ने देवराज चौहान की आंखों में झांका।
"मैं इससे बात करना चाहता हूं और चाहता हूं तुम उन बातों पर गौर करो।" देवराज चौहान बोला।
सांवरा चौहान ने सहमति से सिर हिलाकर, हामी भरी।
देवराज चौहान ने रंजीत खांडेकर के गुस्से से भरे चेहरे पर निगाह मारी।
"पागल दरोगा की तरह जवाब मत देना।" देवराज चौहान ने खांडेकर से कहा--- "तुम्हारे मुंह से निकला एक भी गलत शब्द, चाचा को बता सकता है कि इस मामले में मेरा कोई हाथ नहीं।"
खांडेकर ने होंठ भींच लिए।
सांवरा चौहान की निगाह जैसे एक ही बार में दोनों पर थी।
"उस रात मैं तुम्हारे सामने ही घर से निकला था।" देवराज चौहान बोला--- "और हम क्या करने जा रहे हैं, कैसे वहां से निकलेंगे, ये योजना तुम्हारे सामने ही बनी थी। मैंने जाने के बाद वापस नहीं लौटना था, सिर्फ फोन करना था, जिसे सुनकर जगमोहन ने अंग्रेज सिंह के साथ वहां से निकलना था।"
"जो तय हुआ था। वो बदला भी जा सकता है।" खांडेकर दांत भींचकर कह उठा--- "तुम्हारे जाने के बाद मैं भी निकल गया था, और किसी वजह के तहत तब तुम्हारा वापस आ जाना आम बात है।"
"मैं वापस नहीं आया। मैं---।"
"देवराज चौहान बातों से खुद को सच्चा मत बनाओ।" खांडेकर तीखे स्वर में बोला--- "मेरी पत्नी उस वक्त तुम लोगों के रहमोंकरम पर थी। अगर तुम वापस नहीं आए तो ये काम जगमोहन ने किया है। और ऐसा काम जगमोहन तुम्हारे इशारे के बिना नहीं कर सकता। फिर---।"
"आगे---।" जगमोहन भड़ककर उठ खड़ा हुआ--- "जुबान संभालकर बात कर। वरना---।"
"बीच में मत बोलो---।" तिहाड़ ने सख्त स्वर में टोका।
गुस्से से भरा जगमोहन वापस कुर्सी पर बैठ गया।
"मेरे जाने के बाद एक घंटे बाद जगमोहन घायल अंग्रेज सिंह को लेकर वहां से निकल गया था।" देवराज चौहान ने कहा--- "उसके बाद वहां अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली रह गए थे। तब वहां क्या हुआ कैसे हुआ? मुझे कोई खबर नहीं। पचास करोड़ कौन ले गया, मालूम नहीं। जहां तक मेरा ख्याल है, कोई ऐसा आदमी था जो शुरू से ही हम पर नजर रख रहा था और मौका देखकर अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली को मारकर वो दौलत ले उड़ा। मेरे ख्याल में उसने सुधाकर बल्ली को अपने साथ मिला रखा था, तभी तो सुधाकर बल्ली की लाश तुम्हारे घर से एक-दो किलोमीटर दूर मिली। यानी कि जिसने ये काम किया है, उस तक पहुंच पाना लगभग असंभव है, क्योंकि उसे सिर्फ सुधाकर बल्ली जानता था, दूसरा कोई नहीं।"
"ये बातें कहकर तुम खुद को बेगुनाह साबित नहीं कर सकते। मैं कहता हूं तुम मेरे घर से, मेरे सामने गए। तुम जानते थे कि मैं तुम्हारे जाने के बाद वहां से चला जाऊंगा। और मेरे जाने के बाद तुम वापस आ गए। अपनी नई योजना को अंजाम देने। पचास करोड़ में से तुमने अपने साथियों को हिस्सा देना था और तुम्हारा मन नहीं था देने का। तुमने अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली की हत्या करके अपने दो हिस्सेदार काम कर लिए। परन्तु तुम्हारे कर्मों की गवाह मेरी पत्नी रजनी थी। तब तुम्हें लगा कि इसका जिंदा रहना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। ऐसे में तुमने जगमोहन के साथ मिलकर मेरी पत्नी से बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी। मामले को सुलझाने के लिए सुधाकर बल्ली की लाश को वहां से दूर ले जाकर डाल दिया, ताकि कोई समझ न सके कि हकीकत में क्या हुआ।" खांडेकर पागलों की तरह कह जा रहा था।
"ऐसा है तो मैंने तीसरे साथी अंग्रेज सिंह को जिंदा क्यों छोड़ दिया? जबकि वो घायल था और उसकी जान लेना, मेरे लिए सबसे आसान था। इस वक्त मैं उसका इलाज क्यों करवा रहा हूं।"
"इस सवाल का जवाब तुम ही बेहतर दे सकते हो। हो सकता है अंग्रेज सिंह को न मारने के पीछे, वजह उसकी बहन या बीवी हो, जो तुम्हारा बिस्तर गर्म करती हो।" खांडेकर गुर्रा उठा।
देवराज चौहान के दांत भिंच गए। आंखों में दरिंदगी उभरी। परन्तु सांवरा चौहान की मौजूदगी की वजह से उसने तुरन्त अपने पर काबू पाया।
"बहुत ज्यादा बोल रहा है ये।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा--- "पुलिसिया भाषा का इस्तेमाल कर रहा है।"
देवराज चौहान का सख्त चेहरा सांवरा चौहान की तरफ घूमा।
"मुझ पर गलत इल्जाम लगाया जा रहा है। मैंने या मेरे साथियों में से किसी ने भी ये काम नहीं किया है।" देवराज चौहान एक-एक शब्द पर जोर देकर, सख्त स्वर में कह उठा।
"झूठ बोलता है ये।" खांडेकर तेज स्वर में कह उठा--- "इसने और इसके साथियों ने ही मेरी पत्नी से बलात्कार के बाद उसकी हत्या की है। सांवरा चौहान, सुनने में आया है कि जो भी अपनी फरियाद आपके पास लेकर आता है, आप उसे पूरा इंसाफ देते हैं। अगर मुझे इंसाफ देने-दिलाने में चाचा-भतीजा का रिश्ता आड़े आ रहा है तो स्पष्ट कह दीजिए। मैं---।"
"खामोश रहो।" रूद्रपाल तिहाड़ ने दांत भींचकर कहा।
सांवरा चौहान ने खांडेकर को देखा।
"तुम मेरे पास इसलिए आए हो कि देवराज या इसके साथियों ने तुम्हारी पत्नी की हत्या की है। और मैं इन्हें वो सजा दूं, जिसके हकदार ये हैं।" सांवरा चौहान बोला।
"हां।"
"अगर ये काम इन्होंने किया है तो इन्हें हर हाल में सजा मिलेगी। बल्कि देवराज चौहान को और भी सख्त सजा मिलेगी, क्योंकि मेरा भतीजा होकर इसने ऐसा गिरा हुआ काम किया है। लेकिन पहले ये सब बातें साबित होने दो। अब तुम बीच में नहीं बोलोगे।" सांवरा चौहान के शब्दों में चेतावनी थी।
खांडेकर ने होंठ भींच लिये।
सांवरा चौहान ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।
"ये बात पहले से तय थी कि पैसा हाथ लगने पर इस पुलिस वाले के घर छिपना है?" सांवरा चौहान ने पूछा।
"नहीं। ये सब इत्तेफाक से हुआ।" देवराज चौहान बोला--- "अचानक पुलिस हमारे पीछे लग गई। जगमोहन कार चला रहा था। पुलिस से बचने के लिए हम कॉलोनी की एक अंधेरी गली में पहुंचे और जगमोहन ने कार खांडेकर के मकान के पिछवाड़े ही रोकी थी और मैंने ही ये सुझाव दिया था कि दौलत के साथ इस मकान की दीवार फांदकर भीतर प्रवेश करके घरवालों पर कब्जा करके, पुलिस से बचेंगे।"
"मतलब कि इस पुलिस वाले के घर पहुंचना महज इत्तेफाक ही था।" सांवरा चौहान ने दोनों को देखा।
"हां।"
"इसकी पत्नी तुम लोगों के कब्जे में थी?"
"हां।"
"इसने अपनी पत्नी को बचाने के लिए, अपने साथी पुलिस वालों को धोखा देकर तुम लोगों को वहां से सुरक्षित निकल जाने में मदद की?" सांवरा चौहान का स्वर शांत था।
"हां।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
"जब इसकी पत्नी के साथ बलात्कार हुआ, हत्या हुई तो वो तुम लोगों के लिए कब्जे में थी?"
"हां। लेकिन तब वहां मैं, जगमोहन और अंग्रेज सिंह मौजूद नहीं---।"
"देवराज! तुम्हारी इस बात को कोई नहीं मानेगा। तुम कहते हो तुम वहां नहीं थे। मैं कहता हूं तुम वहां थे। साबित कर सकते हो तो करो कि तुम लोग वहां तब नहीं थे।" सांवरा चौहान का स्वर भावहीन था। धीमा था और ठंडा था।
देवराज चौहान ने होंठ भींच लिए।
"तुम कुछ भी कहो, पुलिस भी इसी नतीजे पर पहुंचेगी कि ये काम तुमने और तुम्हारे साथियों ने किया है।"
देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।
"और तुम कहते हो कि ये काम तुमने और तुम्हारे साथियों ने नहीं किया है। सिर्फ शब्दों के दम पर तुम खुद को निर्दोष साबित नहीं कर सकते। सच्चाई क्या है, इस तक मुझे खुद पहुंचना होगा।" सांवरा चौहान ने सिर हिलाया।
देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"चाचा! तुम अच्छी तरह जानते हो कि ऐसा काम मैं नहीं कर सकता।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
सांवरा चौहान के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान उभरी।
"क्यों, तुम ये काम क्यों नहीं कर सकते? कोई खास कारण बता सकते हो?"
देवराज चौहान का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
"ये पुलिस वाले की बीवी से बलात्कार और हत्या का मामला है। तुम लाख मेकअप करके अपना चेहरा छुपा लो। लेकिन पुलिस से नहीं बच सकते। इस पुलिस वाले की जगह तुम खुद को रखो और सोचो कि किसने यह सब किया है। जो इसके दिमाग में है, वही तुम्हारे दिमाग में आएगा देवराज।"
देवराज चौहान जानता था कि सांवरा चौहान ठीक कह रहा है। हर तरफ से शक भरी उंगलियां इसकी तरफ ही उठ रही थीं और अपनी सफाई देने के लिए उसके पास कुछ नहीं था।
"तिहाड़!"
"जी!"
"अपने आदमियों को इस मामले की छानबीन पर लगा दो।" सांवरा चौहान का स्वर शांत, चट्टान की तरह सपाट था--- "और अगर छानबीन के बाद देवराज के खिलाफ सबूत मिलें तो मुझसे पूछने की जरूरत नहीं। इसे गोलियों से भूनने के बाद ही मुझे खबर करना।"
"जी!" मैं अभी इस काम पर अपने हाथ में लगा देता हूं।" तिहाड़ ने फौरन कहा।
देवराज चौहान का चेहरा गुस्से से धधककर काला-लाल पड़ने लगा।
"चाचा! मेरे मामले की छानबीन कोई और करे, ये मुझे कभी भी पसंद नहीं आएगा।" देवराज चौहान गुर्राया।
सांवरा चौहान ने देवराज चौहान की आंखों में झांका।
"क्या कहना चाहते हो?"
"ये मेरा मामला है। हालातों से मैं ज्यादा वाकिफ हूं। मैं खुद ही देखूंगा कि ये काम किसने किया है।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर दृढ़ता भरे स्वर में कहा।
"अगर तुम मालूम न कर सके तो?"
"मैं मालूम कर लूंगा।" देवराज चौहान के शब्द दहक रहे थे।
तभी खांडेकर तेज स्वर में बोला।
"ये बचकर भाग निकलने का बहाना ढूंढ रहा है। ये खुद ही हत्यारा-बलात्कारी है। ऐसे में भला ये किसको तलाश करेगा। हवा में हाथ-पैर मारकर सबको बेवकूफ बनाएगा।"
सांवरा चौहान की निगाह देवराज चौहान पर थी।
"अगर तुम खुद इस मामले को देखना चाहते हो तो मुझे कोई एतराज नहीं। लेकिन मेरे आदमी हर वक्त तुम पर नजर रखेंगे। लेकिन तुम्हारे मामले में दखल नहीं देंगे।"
"मुझे कोई एतराज नहीं।" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।
"कितना वक्त चाहिए तुम्हें, इस मामले को स्पष्ट करने के लिए?"
"वक्त तुम खुद ही तय कर लो।"
"एक महीना बहुत है?" सांवरा चौहान का स्वर सपाट था।
"बहुत है।" देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया।
"अगर महीने में तुम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके तो?" सांवरा चौहान देवराज चौहान को देख रहा था।
देवराज चौहान ने प्रश्न भरी निगाहों से सांवरा चौहान को देखा।
"तो तुम्हें गुनेहगार मानते हुए मेरे आदमी तुम्हें शूट कर देंगे।" सांवरा चौहान एकाएक दो-मुंहा सांप लगने लगा।
"मंजूर है।" देवराज चौहान हिंसक-सा नजर आने लगा।
"बेहतर होगा कि तुम अपने तौर पर इस मामले को मत संभालो। सब कुछ मेरे आदमियों पर छोड़ दो। वो बहुत काबिल हैं। इस पर भी वो मामले की तह तक न पहुंच सके तो उस स्थिति में तुम बचे रह सकते हो।"
"सलाह का शुक्रिया चाचा। लेकिन अपने मामले को मैं ही देखूंगा।"
सांवरा चौहान कुर्सी पर सीधा होकर बैठ गया।
"ठीक है।" सांवरा चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "तुम जा सकते हो।"
देवराज चौहान उठा। जगमोहन उठा। सांवरा चौहान और रुद्रपाल तिहाड़ पर निगाह मारने के पश्चात उन्होंने खांडेकर को देखा। खांडेकर के चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्हें इस तरह जाने दिया जाना, उसे जरा भी पसंद नहीं आया। परन्तु वो सांवरा चौहान के मामले में दखल नहीं दे सकता था।
देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकल गये।
सांवरा चौहान ने खांडेकर को देखा।
"ठीक एक महीने बाद यहां आ जाना। इंसाफ तुम्हारे सामने होगा। तिहाड़, इसे बाहर पहुंचा दो।"
रूद्रपाल तिहाड़, खांडेकर को लेकर वहां से चला गया।
तीसरे मिनट ही वापस लौटा। चेहरे पर गंभीरता के भाव थे।
"सर! मेरे ख्याल से देवराज चौहान ने जो कहा है। वो सच है। वो पुलिस वाले की पत्नी के साथ हुए बलात्कार और हत्या के बारे में कुछ नहीं जानता।" रुद्रपाल तिहाड़ ने कहा।
सांवरा चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
"मैं जानता हूं।" सांवरा चौहान गंभीर था--- "लेकिन सब बातों को सामने रखते हुए हालात ऐसे हो गए हैं कि देवराज को ये बात साबित करनी पड़ेगी कि इस काम में उसका और उसके साथियों का हाथ नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि जिसने भी ये सब किया है, उसे ढूंढ निकाला जाए। अब ये देवराज चौहान के ऊपर है कि वो उस आदमी को ढूंढ पाता है या नहीं। तुम अपने दो खास आदमियों को सबकुछ समझाकर देवराज चौहान के पीछे लगा दो। देवराज चौहान पर कैसे नजर रखनी है, ये सब तुम्हें संभालना है। मुझे रिपोर्ट मिलती रहे कि देवराज चौहान कब कहां, क्या कर रहा है।"
"जी!" मैं अभी इंतजाम करता हूं।" कहने के साथ ही रूद्रपाल तिहाड़ बाहर निकल गया।
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन ब्लू स्टार होटल की पार्किंग में खड़ी अपनी कार के पास पहुंचे। दोनों के चेहरों पर गुस्से और उखड़ेपन से भरे तीखे भाव थे। जगमोहन ने ड्राइविंग सीट संभाल ली। उसके बगल में बैठते हुए देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"चाचा के बीच में आ जाने से मामला और भी गंभीर हो गया है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "खांडेकर का इसमें कोई कसूर नहीं। उसके साथ जो हुआ वास्तव में बुरा हुआ। हम हर तरफ से शक के दायरे में आ रहे हैं और हमारे पास कोई सबूत नहीं कि हम ये साबित कर सके कि खांडेकर की पत्नी के साथ जो कुछ भी हुआ, उसमें हमारा कोई हाथ नहीं।"
जगमोहन ने होंठ भींचकर देवराज चौहान को देखा।
"मेरे ख्याल में तुम्हारे मामले में चाचा और भी सख्ती से काम लेगा। ताकि कोई ये न कहे कि भतीजे का मामला आया तो उसे सजा देने से पीछे हट गया।"
"हां। मैं जानता हूं जब तक ये मामला नहीं सुलझता, चाचा का रवैया मेरे प्रति सख्त रहेगा। मुझे हर हाल में साबित करना होगा कि हम निर्दोष हैं।" देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
जगमोहन ने कार स्टार्ट की।
"कहां चलना है?"
"जगनलाल के पास चलो।"
जगमोहन ने पार्किंग से कार निकाली और सड़क पर ले आया।
"उस पांच करोड़ वाले हिस्सेदार से मिले?"
"हां।" देवराज चौहान ने वेद सिंह से वास्ता रखती सारी बात बताई।
सुनकर जगमोहन कलप उठा।
"अगर वेद सिंह ने अपने साले के सामने मुंह न खोला होता तो सब ठीक रहता। न पुलिस पीछे लगती और न ही छिपने के लिए खांडेकर के घर में घुसते और गलत इल्जाम हमारे सिर पर न आता।"
"लकीर को पीटने की जरूरत नहीं। हमें आगे देखना है कि क्या किया जाए। मुझे पूरा विश्वास है कि सुधाकर बल्ली उस आदमी के साथ शुरू मिला हुआ था, जिसने यह सब किया और बाद में उसने सुधाकर बल्ली को भी खत्म कर दिया। तभी तो उसकी लाश, खांडेकर के घर से एक-दो किलोमीटर दूर मिली। देवराज चौहान के स्वर में सोच के भाव थे--- "हमें उन लोगों को तलाश करके टटोलना होगा, जो सुधाकर बल्ली के करीबी रहे हैं। वो जो कोई भी होगा, उन्हीं में से कोई होगा। हमें उस इंसान को पहचानना है।"
जगमोहन के दांत भिंच गए।
"हम उसे पहचान लेंगे।" जगमोहन के स्वर में दृढ़ता थी।
दो पल कार में चुप्पी रही।
"जगनलाल, सुधाकर बल्ली के जानकारों को जानता होगा?" जगमोहन ने पूछा।
"कह नहीं सकता।"
जगमोहन की निगाह बार-बार बैक मिरर की तरफ उठ रही थी।
"एक टैक्सी हमारे पीछे है।" आखिरकार जगमोहन कह उठा।
देवराज चौहान ने पीछे नहीं देखा, बल्कि जगमोहन पर निगाह मारी।
"पक्का?"
"हां।" जगमोहन ने पक्के स्वर में कहा--- "होटल से ही हमारा पीछा हो रहा है।चाचा के आदमी---।"
"नहीं। पीछा करने वाले चाचा के आदमी नहीं हो सकते। उन्हें छिपकर पीछा करने की जरूरत नहीं है। और वो इस तरह हमारे पीछे होंगे कि शायद ही हमें उनके आस-पास होने का एहसास हो सके।"
"तो?"
"मेरे ख्याल में पीछा करने वाला रंजीत खांडेकर है।" देवराज चौहान बोला।
"खांडेकर---।" जगमोहन के होंठ भिंच गए--- "साले की अक्ल अभी ठिकाने...।"
"नहीं। खांडेकर को कुछ नहीं कहना। खांडेकर को कुछ कहना, हमारे हक में बहुत बुरा होगा। पुलिस और चाचा को पूरा विश्वास हो जाएगा कि उसकी पत्नी के साथ हमने ही बुरा किया है।"
"लेकिन ये कमीना हमारा पीछा क्यों कर रहा है?"
"तुम बोल रहे हो कि सोहनलाल खबर लाया था कि खांडेकर अपनी पत्नी की हत्या का बदला हमें शूट करके लेना चाहता है। दूसरी तरफ उसने चाचा को मेरे सामने खड़ा कर दिया है। खांडेकर पागल हुआ पड़ा है। उसकी मानसिक स्थिति ऐसी नहीं कि उसे समझाया जा सके।" देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा--- "या तो वो इस वक्त हम पर गोली चलाएगा। या फिर हमारा ठिकाना देखने के लिए हमारा पीछा कर रहा है कि सोच-समझकर हम पर हमला कर सके। सोहनलाल ने बताया था कि खांडेकर खतरनाक कमांडो रह चुका है। इससे हमें बचकर रहना होगा।"
"तुम्हारा मतलब है कि इसके वारों से हम अपना बचाव करें। लेकिन उसे कुछ न कहें।"
"हां। हमें पूरी कोशिश करनी है कि खांडेकर को जरा भी न छेड़ा जाए। वो जुदा बात है कि जब पानी ही सिर से उठ जाए तो अपनी जान बचाने के लिए सब कुछ करना पड़ता है। वो पुलिस वाला बनकर हमारे पीछे नहीं है। बल्कि, अपनी पत्नी की मौत का बदला लेने के लिए हमारे पीछे है। बहुत जरूरत पड़ने पर ही इसे निशाना बनाना होगा।"
"अब क्या करें?"
"कार को सड़क के किनारे रोक दो।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
जगमोहन ने कार को सड़क के किनारे करके रोका।
कुछ पीछे टैक्सी भी सड़क के किनारे रुक गई थी।
"सावधान रहना।" देवराज चौहान ने कहा और कार से बाहर निकलकर एकटक पीछे मौजूद टैक्सी को देखने लगा। वो टैक्सी वालों को इस बात का अहसास दिला देना चाहता था कि उसे पीछा होने का एहसास हो चुका है। जबकि उसे पूरा विश्वास था कि वो खांडेकर ही है।
रिवाल्वर को देवराज चौहान ने हथेली में इस तरह छिपा लिया था कि आसानी से कोई देख न सके।
दो मिनट इसी तरह बीत गए।
फिर वो टैक्सी हिली और सड़क का किनारा छोड़कर बीच में आते हुए आगे बढ़ी। देवराज चौहान सतर्क हो गया। रिवॉल्वर के ट्रिगर पर उंगली टिक गई।
टैक्सी सड़क पर से उसकी कार के पास से निकली।
पीछे वाली सीट पर खांडेकर मौजूद था। उसकी सुर्ख आंखें देवराज चौहान से मिलीं। टैक्सी आगे बढ़ती चली गई। यकीनन खांडेकर समझ गया था कि उन्हें पीछा किए जाने का पता चल गया है। ऐसे में अब पीछा करने का कोई फायदा नहीं। सबसे बड़ी परेशानी उसे यह हो रही थी कि सर्विस रिवाल्वर इस वक्त उसके पास नहीं था, वरना वह दोनों को शूट करने की भरपूर चेष्टा करता।
देवराज चौहान तब तक जाती टैक्सी को देखता रहा, जब तक कि वो नजर आती रही। फिर कार में वापस बैठता हुआ देवराज चौहान बोला।
"रास्ता बदल लो। हो सकता है वो आगे कहीं छिपकर हमारा इंतजार कर रहा हो, पीछा करने के लिए।"
"खांडेकर ही था?" जगमोहन ने कार आगे बढ़ाते हुए पूछा।
"हां।" देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया।
"खांडेकर हमारे लिए परेशानी पैदा कर सकता है। चाचा से बात करने के बाद तो इसे हमारी तरफ देखना भी नहीं चाहिए। चाचा से कहकर खांडेकर को पीछे आने से रोका जा सकता है।" जगमोहन बोला।
"कोई जरूरत नहीं। खांडेकर अपनी तरफ से जो कोशिश करना चाहता ,है उसे कर लेने दो। चाचा को बीच में डालने की जरूरत नहीं। उसने मजबूर किया तो उसे मैं अपने हाथों से शूट करूंगा।" देवराज चौहान की आवाज में दरिंदगी के भाव नाचने लगे थे।
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भरे-पूरे बाजार में एक मकान से दो बड़ी दुकानें निकाली गई थीं। एक को रेस्टोरेंट बना दिया था और दूसरी दुकान बेकरी की थी। इनका मालिक जगनलाल था।
चंद खास लोग ही जानते थे कि जगनलाल का असली धंधा चोरी के माल को कौड़ी के भाव खरीदकर, बढ़े दामों में आगे बेचने का था। वो चोरी का माल बेशक सोने का हो या पुरानी कोई मूर्ति कहीं से चुराई गई हो। छोटे और बड़े हर तरह के सौदे करता था जगनलाल।
देवराज चौहान और जगमोहन जब उसके यहां पहुंचे तो शाम के छः बज रहे थे। वो बेकरी वाली दुकान के पीछे, छोटे से केबिन में बैठा था। केबिन की दीवार में शीशा लगा होने के कारण, दुकान से होते हुए, बाहर तक का नजारा वो बाखूबी देख सकता था।
देवराज चौहान और जगमोहन को देखकर जगनलाल कुछ हैरान-सा हुआ।
"तुम---!" जगनलाल ने दोनों पर निगाह मारी।
"हमें देखकर इतना हैरान क्यों हो गए?" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
"इतना तो नहीं, परन्तु थोड़ा-सा हैरान जरूर हुआ हूं कि तुम लोगों के आने की मेरे पास कोई खबर नहीं थी। बैठो-बैठो।" कहने के साथ ही जगनलाल ने देवराज चौहान के मेकअप से भरे चेहरे पर निगाह मारी--- "मुंबई की पुलिस तुम्हें ढूंढने के लिए भागी फिर रही है। तुम लोगों ने तो लफड़ा खड़ा कर दिया।"
देवराज चौहान और जगमोहन बैठे। देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"बलात्कार करने की क्या जरूरत थी। इससे तो हत्या का मामला और भी संगीन हो जाता है। वो भी पुलिस वाले की बीवी के साथ।"
देवराज चौहान ने जगनलाल को घूरा।
"तुमने हमें ये काम करते देखा?"
"न---नहीं तो।"
"फिर कहा, कैसे?"
"सुनने में आया है।" जगनलाल ने फौरन खुद को संभाला।
"सुनी-सुनाई बातों में आओगे तो अपने धंधे के साथ-साथ खुद को भी बंद करवा लोगे।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा--- "हमने तो सुना है, ये काम जगनलाल ने किया है। गवाह भी है पुलिस के पास।"
"मैंने!" जगनलाल हड़बड़ाया--- "माँ कसम, मैंने तो उस तरफ मुंह भी नहीं किया। मैं भला कैसे?"
"ये तुम जानो। हमने तो सुना है, इस काम के पीछे तुम्हारा हाथ है।" जगमोहन ने पूर्ववतः लहजे में कहा।
जगमोहन टुकुर-टुकुर दोनों को देखने लगा।
"सुधाकर बल्ली से तुम्हारा क्या वास्ता है जगनलाल?" देवराज चौहान ने कश लिया।
"कोई वास्ता नहीं।" जगनलाल जल्दी से बोला।
"उसे, तुमने मेरे सामने पेश किया था। फिर वास्ता कैसे नहीं?" देवराज चौहान ने तीखे स्वर में कहा।
"मेरा मतलब है कि जाती तौर पर उसे मैं नहीं जानता। सुखदेव ने फोन पर मुझसे कहा कि कोई उसकी पहचान वाला है। उसके पास पचास करोड़ लूटने की योजना है, परन्तु योजना को अंजाम देने का दम उसमें नहीं है। इसके बाद मैंने इस बारे में तुमसे बात की। तुम सुधाकर बल्ली की बात सुनने को राजी हो गए तो, तुम दोनों को मैंने यहीं पर मिलवा दिया। उसके बाद तुम लोगों ने क्या किया? कैसे किया? मुझे कोई खबर नहीं। जो मालूम हुआ, अधिकतर अखबारों से ही मालूम हुआ और अब तुम लोग उसको पूछने के लिए यहां आ गए---।"
दो पल की खामोशी के पश्चात देवराज चौहान बोला।
"तो सुधाकर बल्ली से तुम्हारा सीधे-सीधे कोई वास्ता नहीं?"
"नहीं।" वो सुखदेव के माध्यम से मेरे पास आया था।"
"सुखदेव कौन है?"
"वर्ली में एंटीक शॉप है उसकी। मेरी तरह के ही काम करता है। कभी कोई मोटी डील हाथ लग जाती है तो उसे हम हिस्सेदारी में कर लेते हैं।" जगनलाल ने बताया।
"सुखदेव के पास चलो।" देवराज चौहान खड़ा होते हुए बोला।
"लेकिन बात क्या है?"
"सुनते रहना, मालूम हो जाएगा।" जगमोहन भी खड़ा हो गया।
"मामला ज्यादा गड़बड़ है?" जगनलाल ने दोनों के चेहरों को देखा।
"हां।"
जगनलाल गहरी सांस लेकर उठ खड़ा हुआ।
"मैं तो लपेटे में नहीं आऊंगा?"
"अगर तुम्हारा सुधाकर बल्ली से इतना ही वास्ता है तो तुम्हारे लिए सब ठीक रहेगा।" जगमोहन ने कहा।
"मैंने तो सुना है, सुधाकर बल्ली मारा गया है।"
"हां। सही सुना है।"
"तो फिर उसके बारे में पूछताछ---?"
"चलो यहां से।" देवराज चौहान ने उसे देखा--- "वक्त बर्बाद मत करो। वो शुरू से ही हमसे खेल खेल रहा था और खेल खेल भी गया। लेकिन सिवाय मौत के कुछ भी हासिल न कर पाया और हमारे लिए मुसीबतें खड़ा कर गया।"
जगनलाल ठीक से कुछ समझ न पा रहा था, परन्तु इतना समझ गया था कि इस वक्त ज्यादा पूछना ठीक नहीं।
सुखदेव पचास-बावन बरस का पतला-सा व्यक्ति था। उसके हुलिए में कोई खास जिक्र करने वाली बात नहीं थी। परन्तु उसकी आंखें इस बात की चुगली कर देती थीं कि वो खेला-खाया आदमी है। शाम के वक्त उसका एंटीक शोरूम लाइटों से चमक रहा था। एक सेल्सगर्ल और दो अन्य व्यक्ति कुछ ग्राहकों से उलझे हुए थे। वो खुद कैश काउंटर पर बैठे ये देख रहा था कौन-सा ग्राहक पटने को है और कौन-सा वक्त खराब कर रहा है।
तभी उसकी निगाह शोरूम के भीतर प्रवेश करते जगनलाल पर पड़ी। साथ में दो और को देखा, तो यही सोचा कि कोई मोटा सौदा होने जा रहा है। उनके पास पहुंचते ही सुखदेव खुलकर मुस्कुराया।
"आओ जगनलाल।" जबकि उसकी निगाह देवराज चौहान और जगमोहन पर थी।
"पीछे वाले कमरे में आओ?"
"हां-हां चलो---?" सुखदेव को जैसे विश्वास हो गया कि कोई मोटा सौदा होने जा रहा है।
जगनलाल, देवराज चौहान और जगमोहन को लिए आगे बढ़ गया। सुखदेव तुरन्त पीछे;पीछे।
वो चारों शोरूम के कोने में बने कमरे में प्रवेश कर गए।
वहां टेबल थी। कुर्सियां थीं। वे चारों बैठे।
"कहो जगनलाल, क्या सौदा है?"
जगनलाल ने गंभीर स्वर में कहा।
"तुम इन दोनों को नहीं जानते। लेकिन नाम अवश्य सुना होगा। ये देवराज चौहान है और ये जगमोहन।" जगनलाल ने सीधे-सीधे कहा--- "मेरे खास हैं। ये तो तुम जानते ही हो---।"
सुखदेव ने चौंककर दोनों को देखा।
"देवराज चौहान---!"
"हां। तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं। जो भी बोलना हो, वो साफ और सच बोलना। वरना मेरी कोई गारंटी नहीं।"
सुखदेव ने बेचैनी से पहलू बदला।
"मैंने तो सुना है, इन्होंने पुलिस वाले की पत्नी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी। साथ ही सुधाकर बल्ली और एक अन्य साथी को शूट करके, पचास करोड़ की दौलत ले उड़े। अखबारों में यही लिखा है।" सुखदेव के होंठों से निकला।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
जगमोहन के चेहरे पर कड़वाहट उभरी।
"तुमने सुन लिया। अखबारों में पढ़ लिया। अच्छा किया।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा--- "अब हमारी भी सुनो और सुनकर ठीक-ठीक जवाब देना। इस बात का ध्यान रखना कि हम यहां सफाई देने नहीं, कुछ पूछने आए हैं।"
सुखदेव ने व्याकुलता से दोनों को देखा।
"ठीक जवाब देना। कोई चालाकी नहीं।" जगनलाल ने जैसे उसे पुनः याद दिलाया।
सुखदेव ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर, सहमति से सिर हिलाया।
"सुधाकर बल्ली को तुमने जगनलाल के पास भेजा था?" देवराज चौहान ने पूछा।
"हां। जगनलाल ने उसे तुमसे मिलाया।"
"जगनलाल की ही वजह से, मैंने सुधाकर बल्ली के बारे में खास पूछताछ नहीं की। लेकिन अब सुधाकर बल्ली के बारे में जानने की जरूरत पड़ गई है। इसीलिए जगनलाल, हमें तुम्हारे पास लाया है।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
"लेकिन वो तो मारा गया। अब उसके---।"
"तुम कुछ नहीं पूछोगे। ये बाद की बातें हैं। जो सवाल मैं करूं, वो बोलना।"
सुखदेव ने पहलू बदला।
"सुधाकर बल्ली के बारे में जो भी जानते हो, वो बताओ।"
"सुधाकर बल्ली इंजीनियर था। बड़ी-बड़ी सरकारी और प्राइवेट इमारतों में बिजली के ठेके लेता था। लेकिन घटिया माल लगाने की वजह से वो बर्बाद हो गया। और इन दिनों बेकार था। बस यही जानता हूं।" सुखदेव ने कहा।
"बस, यही जानते हो?" देवराज चौहान ने उसके शब्द दोहराये।
"हां।"
"वो कहां रहता था?"
"मैं नहीं जानता।"
"उसका परिवार?"
"मालूम नहीं, उसका कोई परिवार भी था या नहीं।" सुखदेव ने दोनों हाथों को आपस में रगड़ा।
देवराज चौहान ने तीखी निगाहों से सुखदेव को घूरा।
जगनलाल के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
जगमोहन के चेहरे पर व्यंग्य के भाव नाच उठे।
"इसका मतलब तुम सुधाकर बल्ली के बारे में सिरे से ही कुछ नहीं जानते?" देवराज चौहान बोला।
"हां।"
"वो तुम्हारे लिए पूरी तरह अंजान था?"
सुखदेव ने व्याकुलता से सिर हिलाया।
"सुखदेव!" जगनलाल उलझन भरे स्वर में कह उठा--- "जानता है तू क्या कह रहा है?"
"हां।" सुखदेव ने परेशानी से भरी सांस ली।
"लेकिन तूने तो कहा था कि सुधाकर बल्ली को तू अच्छी तरह जानता है। खास है वो तेरा। तेरी यही बात सुनकर मैंने देवराज चौहान से अपने यहां उसकी मीटिंग अरेंज करवाई। और अब तू कहता है कि तू उसके बारे में कुछ नहीं जानता।"
सुखदेव ने बेचैन निगाहों से जगनलाल को देखा।
"वो मदन का खास यार था---।"
"मदन, मदन मेहता। वो साला नंबरी हरामी।" जगनलाल के होंठों से निकला।
"हां। मदन के साथ अक्सर मेरे पास आया करता था। मदन, सुधाकर बल्ली के सामने ही धंधे की सारी बात कर लेता था। उससे कोई पर्दा नहीं करता था। ऐसे में वो मदन का खास ही हुआ।"
"तो?"
"मदन ने ही उसके बारे में मेरे से बात की थी कि हो सके तो उसे, किसी बढ़िया आदमी से मिलवा दूं। ऐसे में मैंने तेरे से बात की और इस तरह सुधाकर बल्ली की मुलाकात देवराज चौहान से हो गई।"
"लेकिन तेरे को बताना तो चाहिए था कि सुधाकर बल्ली, मदन मेहता जैसे हरामी बंदे का दोस्त है। ऐसे में मैं कम-से-कम देवराज चौहान को तो कह सकता था कि अपने तौर पर इसे ठोक-बजाकर देख ले। मदन मेहता का कोई यार, शरीर तो होने से रहा।" जगनलाल तेज स्वर में बोला।
"लेकिन उसने किया क्या? सुधाकर बल्ली तो मारा गया।" सुखदेव उलझन में और परेशानी में था।
जगनलाल ने बेचैनी से देवराज चौहान को देखा।
"ये बात जगनलाल तेरे को बाद में बता देगा।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा--- "ये बताओ कि मदन मेहता कहां मिलेगा? मैं जल्दी से जल्दी उससे मिलना चाहता हूं।"
"अब उससे मिलना कठिन है।"
"क्यों?"
"कल शाम के बाद वो मेरे पास आया था।" सुखदेव ने गंभीर स्वर में कहा--- "कुछ जल्दी में था और कुछ परेशान भी। उसने साफ तौर पर तो मुझे कुछ नहीं बताया, लेकिन वो जल्दी-से-जल्दी मुंबई छोड़कर चला जाना चाहता था। वजह नहीं बताई, क्यों? परन्तु उसकी परेशानी और घबराहट बता रही थी कि कोई भारी गड़बड़ कर बैठा है।"
तीनों की नजरें सुखदेव पर थीं।
"मतलब कि तुम नहीं जान पाए कि मदन मेहता ने क्या किया है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं।" मैंने पूछा था लेकिन बात को टाल गया। उसने ये अवश्य कहा कि अगर सिर पर आई मुसीबत से निकल गया तो जिंदगी भर उसे पैसे की कमी नहीं रहेगी।" सुखदेव ने कहा।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
"वो तुम्हारे पास क्यों आया था?"
"पन्द्रह दिन पहले उसने मेरे साथ बिजनेस डील की थी। मैंने उसे चार लाख रुपया देना था और उसे कह रखा था कि रुपया बांधकर रखा है वो कभी भी आकर ले सकता है। इसी रुपए को लेने आया था। वरना हो सकता है मुझे, उसके मुंबई छोड़ने की खबर भी न मिलती। वो कार पर उसी वक्त ही गोवा रवाना हो रहा था।"
"गोवा?"
"हां। उसने यही कहा था कि गोवा पहुंच गया तो फिर शायद आसानी से बच सके। दरअसल मदन, गोवा की ही पैदाइश है। वहां उसकी पहुंच है। गोवा उसका घर है वहां उसके पचासों हिमायती हैं।" सुखदेव ने बताया।
"मदन, करता क्या है?"
सुखदेव ने जगनलाल को देखा।
जगनलाल कह उठा।
"मदन जैसा मक्कार आदमी, हर काम करने को तैयार रहता है, जिसमें उसे पैसा मिल सके। वह सिर्फ पैसे का पुजारी है, जिसके लिए वह कुछ भी कर देता था। वह चोरी, हत्या, डकैती, लूटमार कुछ भी कर देता था। उसका कोई दीन-ईमान नहीं है। पैसा मिलता हो तो वो अपनी माँ को भी बेच दे। उससे घटिया आदमी मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा। बुरे-से-बुरे आदमी देखे हैं लेकिन, उस जैसा नहीं। बिना हथियार के तो वो निकलता ही नहीं कि, जाने कब क्या करना पड़ जाए। वो हमेशा रिवाल्वर और चाकू के साथ रहता है। हौसले वाला आदमी है। इसमें कोई शक नहीं। कई हत्याएं कर चुका है, लेकिन पुलिस को उसकी हवा तक भी नहीं। जब भी खतरे में घिरता है तो गोवा पहुंचकर सुरक्षित हो जाता है, फिर ठीक-ठाक होने पर ही वहां से निकलता है।"
देवराज चौहान की आंखों में मौत से भरे सर्द भाव आकर ठहर गए।
"बहुत खतरनाक हुआ मदन मेहता।" जगमोहन बोला।
"हां।" जगनलाल ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन हमारा धंधा ही ऐसा है कि हर तरह के लोगों से वास्ता पड़ता है या फिर यूं कह लो कि हमारे धंधे में नब्बे प्रतिशत बुरे लोग ही होते हैं।"
देवराज चौहान ने जगनलाल और सुखदेव को देखा।
"गोवा में मदन मेहता कहां मिलेगा?"
जगन लाल और सुखदेव की नजरें मिलीं।
"उसके किसी खास ठिकाने की हमें जानकारी नहीं है।" सुखदेव ने सोच भरे स्वर में कहा--- "हमें सिर्फ इतना मालूम है कि वो गोवा में रहता है। वो हमारे पास आता है और हमारे काम का सामान देकर, कीमत लेकर चला जाता है। उसका पता पूछने कि हमने कभी जरूरत ही महसूस नहीं की।"
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
"मदन मेहता जैसे आदमी को कोशिश करके गोवा में तलाश किया जा सकता है?" जगमोहन बोला।
"हां। कोशिश करके गोवा में ढूंढा जा सकता---।"
तभी सुखदेव ने देवराज चौहान की बात काटी।
"एक मिनट।" वो उठा और वहां मौजूद लोहे की छोटी-सी अलमारी को खोला।नोटों की कुछ गड्डियों की झलक मिली। एक खाने से उसने डायरी निकालकर अलमारी बंद की और वापस कुर्सी पर बैठते हुए डायरी के पन्ने पलटने लगा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
आधे मिनट में ही सुखदेव एक पन्ने पर रुका।
"ये गोवा का फोन नंबर है जो मदन ने ही एक बार मुझे दिया था। ताकि कहीं से कोई खास मूर्ति चोरी करवानी हो और मोटी रकम का मामला हो तो उसे फोन करके अपना नाम बता दूं। मैसेज उस तक पहुंच जाएगा। और वो मुझसे बात कर लेगा।"
"मैसेज पहुंच जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "मतलब कि ये नंबर उसका अपना नहीं---?"
"नहीं।" देवराज चौहान ने डायरी पर लिखे उस नंबर को देखा और याद कर लिया।
सुखदेव ने जगनलाल को देखा।
"बात क्या है जगनलाल? मदन ने क्या गड़बड़ कर दी है?" सुखदेव ने पूछा।
"ये बातें बाद में करते रहना।" देवराज चौहान डायरी उसकी तरफ सरकाते हुए बोला--- "वैसे तो ये पक्का है कि मदन का फोन हाल-फिलहाल तुम्हें नहीं आएगा। अगर आ जाए तो उसे मत बता देना कि मैं उसे ढूंढ रहा हूं।"
"मैं उसे कुछ नहीं बताऊंगा।"
देवराज चौहान और जगमोहन, जगनलाल को वहीं छोड़कर वहां से बाहर निकल गये।
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