प्रमोद कमर्शियल स्ट्रीट पहुंचा ।
वहां मार्शल हाउस नामक एक खूबसूरत इमारत की तीसरी मन्जिल पर उसका शानदार फ्लैट था ।
घन्टी की आवाज पर यांग टो ने दरवाजा खोला ।
यांग टो प्रमोद का पुराना नौकर था । प्रमोद के चीन में गुजारे सात सालों में यांग टो सदा उसके साथ रहा था । बाद में हांगकांग, भारत और अमेरिका में भी उसने प्रमोद का साथ नहीं छोड़ा था । प्रमोद की नजरों में यांग टो की हैसियत एक नौकर की नहीं, एक दुर्लभ मित्र की थी । यांग टो पिछले दस सालों में एक मां की तरह प्रमोद की देखभाल कर रहा था । प्रमोद जब कन्सन्ट्रेशन की कला सीखने के लिए दुर्गम पथों पर स्थापित चीनी मठों के धक्के खाता फिरा था, यांग टो ने तब भी उसका साथ नहीं छोड़ा था । चीन में न जाने कितनी बार उसने प्रमोद की जीवन रक्षा की थी । अमेरिका में I ओबेराय बहनों के भाई युगल ओबेराय की जीवन रक्षा के लिए भी वह हत्या का इल्जाम अपने सिर लेने के लिए तैयार हो गया था ।
यांग टो प्रमोद के जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुका था, उसके बिना तो वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता था । यांग टो को यह कभी भी बताने की जरूरत नहीं पड़ती थी कि प्रमोद को किस समय क्या चाहिए था, उसे क्या पसन्द था और उसे किस वस्तु से घृणा थी । एक मशीन की तरह वह प्रमोद की हर जरूरत पूरी किये जाता था । यांग टो अपने लम्बे चोगे जैसे चीनी परिधान की पीठ की ओर दस इन्च लम्बा छुरा छुपाये रहता था जो आवश्यकता पड़ने पर पलक झपकते ही उसके हाथ में आ जाता था । उसकी पीठ पीछे बंधा वह छूरा न जाने कितनी बार प्रमोद की जीवन रक्षा के लिए हवा में लहरा चुका था ।
प्रमोद भीतर दाखिल हुआ। तीन साल बाद वह उस फ्लैट में कदम रख रहा था लेकिन उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अभी थोड़ी देर पहले वहां से गया था । यांग टो ने उसे पहले से ही सजा-संवार कर रखा हुआ था ।
"सामान ठीक से आ गया - यांग टो ?" - प्रमोद ने पूछा
"यस सावी ।" - यांग टो बोला ।
“यांग टो।" - प्रमोद एक सोफे पर बैठ गया "जोगेन्द्रपाल पुलिस की पकड़ से निकलकर फरार हो गया है ।”
"मैंने अखबार में पढ़ा था । "
“जब से जोगेन्द्र गायब है, सुषमा ओबेराय भी तभी से गायब है। सुषमा कहां है, यह उसकी बहन तक को भी मालूम नहीं है । "
यांग टो चुप रहा ।
"सुषमा को अब तक मेरे आगमन की खबर लग गई होगी। मुझे उम्मीद है कि वह मुझसे सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश करेगी । इसलिए अपनी आंखें और कान खुले रखना ।"
"यस, सावी ।"
"शायद सुषमा टेलीफोन द्वारा सम्पर्क स्थापित करे या शायद वह अखबार में कोई सन्देश छपवाये । "
“आज का अखबार आपके सामने रखा है । "
" "थैंक्यू ।”
"और सावंत की मौत से सम्बन्धित खबर जिस-जिस तारीख को प्रकाशित हुई थी, उन सब तारीखों के अखबार भी मैंने जमा कर लिए हैं । "
प्रमोद ने हैरानी से उसकी ओर देखा ।
"कहां हैं ?"
यांग टो ने अखबारों का एक पुलन्दा लाकर उसके सामने रख दिया ।
"पुरानी तारीखों के इतने अखबार इकट्ठे करने में तो बहुत दिक्कत हुई होगी, यांग टो ?”
“नो सावी । मामूली काम था ।”
"ठीक है । मैं इन्हें देखता हूं।"
यांग टो चुपचाप वहां से चला गया ।
प्रमोद ने अखबार पढने आरम्भ कर दिए । उनमें हरि प्रकाश सावंत के कत्ल, उसके इल्जाम में जोगेन्द्रपाल की गिरफ्तारी, उसके मुकद्दमे, उसकी फांसी की सजा और फिर उसके बड़े नाटकीय ढंग से फरार हो जाने का सम्पूर्ण विवरण छपा था ।
अखबार में छपी रिपोर्टों के अनुसार हत्या वाले दिन जोगेन्द्रपाल हरि प्रकाश सावंत से मिलने गया था । जोगेन्द्र के अदालत में दिए अपने बयान के अनुसार वह सावंत के ही बुलावे पर उसके घर गया था । जब वह वहां पहुंचा था तो उसने सावंत को बड़ा परेशानहाल पाया था । वह भारी पस्ती की हालत में था और शायद भयभीत भी था । जाहिर था कि सावंत जोगेन्द्र को कोई विशेष बात बताना चाहता था । लेकिन जोगेन्द्र को टेलीफोन करने और उसके वहां पहुंचने के बीच में उसने अपना इरादा बदल दिया था ।
सावंत से कुछ इधर-उधर की बातों के बाद जोगेन्द्र ने वार्तालाप का रुख उस पूंजी की ओर मोड़ने की कोशिश की थी जो सावंत ने सुषमा के लिए किसी धन्धे में लगाई थी । ऐसा उसने यह सोचकर किया था कि शायद सावंत जो विशेष बात उसे बताना चाहता था, वह इसी से सम्बन्धित हो ।
बहरहाल सावंत ने इतना ही कहा था कि उसने सुषमा का पैसा एक ऐसे धन्धे में लगाया था जो उसे बहुत निराश कर रहा था । लेकिन फिर भी उसने ऐसा इन्तजाम किया था कि सुषमा को अपनी रकम मिल जाए या अगर वह चाहे तो और इन्तजार कर ले और शायद वह धन्धा चमक उठे जिसमें कि उसका पैसा लगा हुआ था ।
लेकिन जिस बात ने जोगेन्द्र को फंसाया था, जो बात झूठी साबित हुई थी और जिस बात की वजह से उसे फांसी की सजा हुई थी वह यह थी कि वह अपने कथनानुसार, पहली बार सावंत के घर जाने के बाद दोबारा वहां लौटकर नहीं आया था ।
अदालत में यह प्रकट हुआ था कि जोगेन्द्र पहली बार शाम पांच बजे के करीब सावंत के घर गया था और पांच बीस तक वहां ठहरा था । पुलिस का कहना था कि जोगेन्द्र छ: बजे के करीब फिर सावंत के घर गया था, लेकिन जोगेन्द्र ने अदालत में कसम खाकर कहा था कि उसने ऐसा नहीं किया था । लेकिन सावंत के एक पड़ोसी का बयान था कि उसने छः बजे के करीब जोगेन्द्र को सावंत के घर के सामने के दरवाजे से बड़ी तेजी से बाहर निकलते देखा था । वह लगभग भाग रहा था । बाहर जाकर वह फौरन अपनी कार में सवार हुआ था और वहां से भाग निकला था ।
गवाह को जोगेन्द्र की शिनाख्त के बारे में जरा भी सन्देह नहीं था । एक और गवाह ने, जो कि जोगेन्द्र को बरसों से जानता था, जोगेन्द्र को छः बजे के करीब सावंत के घर के समीप की एक सड़क पर अपनी कार में बैठे जाते देखा था । लेकिन जोगेन्द्र ने फिर भी पहले यही कहा था कि वह पांच बीस के बाद सावंत के घर के पास भी नहीं फटका था लेकिन जब उसे दो चश्मदीद गवाहों की गवाहियां सुनाकर जिच कर दिया गया तो जोगेन्द्र अपना आपा खो बैठा । उसने एकाएक क्रोध से चिल्लाते हुए कहा कि वह उस सवाल का जवाब देने से इन्कार करता है क्योंकि उसका जवाब उसके खिलाफ जा सकता था । उसके वह रुख अख्तियार कर लेने के बाद तो जैसे मुकदमा खत्म ही हो गया। सैशन जज ने बेहिचक उसे फांसी की सजा सुना दी।
छः पच्चीस पर सावंत की लाश तब बरामद हुई थी जब सावंत का नौकर अमरनाथ घर वापस लौटा था ।
पुलिस सर्जन ने पोस्टमार्टम के बाद दावे के साथ बयान दिया था कि हत्या पांच और साढे पांच के बीच हुई थी ।
अमरनाथ साढे तीन बजे अपने किसी निजी काम से घर से बाहर गया था और छ: पच्चीस पर वापिस लौटा था । किचन में उसे एक ऐसा दृश्य दिखाई दिया था जो उसे बड़ा असाधारण लगा था । गैस के चूल्हे पर पानी की केतली चढी हुई थी जो बुरी तरह उबल रही थी । केतली का पानी पता नहीं कब से उबल रहा था कि भीतर केवल एक-डेढ इंच पानी दिखाई दे रहा था । बाकी का सारा पानी भाप बनकर उड़ चुका मालूम होता था । अरमनाथ ने समझा था कि शायद उसकी गैरहाजिरी में सावंत को चाय की जरूरत पड़ गई थी । वह फौरन सावंत के कमरे में पहुंचा था। उसने सावंत को फर्श पर मरा पड़ा पाया था और फौरन पुलिस को टेलीफोन कर दिया था ।
पांच मिनट में पुलिस वहां पहुंच गई थी। केतली में पानी उस वक्त भी उबल रहा था । तब पुलिस को किचन में से ही एक नई बात की जानकारी हुई थी कि किचन में रखा बिजली का ओवन भी चालू था और तन्दूर की तरह तप रहा था । उन्होंने ओवन का दरवाजा खोला तो भीतर से एक घड़ी बरामद हुई । घड़ी का पिछला ढक्कन खुला हुआ था और उसमें पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदें दिखाई दे रही थीं । घड़ी पांच बजकर छब्बीस मिनट पर रुकी हुई थी ।
तफ्तीश से मालूम हुआ कि वह घड़ी सावंत की थी ।
पुलिस का खयाल था किसी प्रकार घड़ी में पानी घुस गया था और सावंत ने पानी सुखाने की नीयत से उसे खोलकर ओवन में रख दिया था और ओवन चालू कर दिया था । जब वह घड़ी को ओवन में रखकर अपने कमरे में लौटा था तभी उसका कत्ल हो गया था ।
लेकिन पुलिस के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि आखिर घड़ी में पानी कैसे गया ? और स्टोव पर पानी की केतली क्यों चढ़ी थी ? पुलिस ने इसे महत्वहीन बातें कहकर नजरअन्दाज कर दिया था ।
सारे केस का अध्ययन करने के बाद प्रमोद ने अनुभव किया कि जोगेन्द्र का वास्तविक अपराध से सम्बन्ध जोड़ने वाले सबूत बड़े कमजोर थे। जोगेन्द्र का अदालत में बाद में अख्तियार किया रवैया और अपने दोबारा घटना स्थल पर जाने वाली बात को छुपा कर रखने की नीयत ही उसको सजा दिलवाने की वजह बने थे ।
सरकारी वकील द्वारा प्रस्तुत थ्योरी यह थी कि जोगेन्द्र जब पहली बार सावंत के यहां गया था, तभी उसने सावंत का कत्ल कर दिया था लेकिन वहां से लौट जाने के बाद उसे मालूम हुआ था कि वह कोई ऐसी चीज घटना स्थल पर भूल आया था जो उसे फंसवा सकती थी और उसी चीज को वहां से हासिल करने के लिए जोगेन्द्र वापिस सावंत के फ्लैट पर गया था । बात तर्कसंगत तो थी लेकिन उसको सिद्ध करने के लिए सरकारी वकील के पास कोई सबूत नहीं था ।
प्रमोद ने यह भी अनुभव किया कि हाई कोर्ट में से जोगेन्द्र के बरी हो जाने की काफी सम्भावना थी । उसे कोई अच्छा वकील दरकार था जो कि जोगेन्द्र के झूठ बोलने की अच्छी सफाई पेश कर सकता था कि जोगेन्द्र इसी बात से भयभीत होकर झूठ बोल बैठा था कि कहीं उसका सच बोलना उसे सावंत के कत्ल के इलजाम में न फंसवा दे। उस समय उसे झूठ बोलने में अपना ज्यादा कल्याण दिखाई दे रहा था । वास्तव में जोगेन्द्र दो बार सावंत के घर पर गया था । वहां उसने सावंत की लाश पड़ी पाई थी । वह घबरा गया था और उल्टे पांव वहां से भाग खड़ा हुआ था । अपने आपको किसी झमेले से दूर रखने की नीयत से ही उसने उस बारे में अपनी जुबान बन्द रखी थी। एक बार उस बारे में झूठ पकड़ा जाने के बाद वह उसी झूठ पर अड़ा रहने की नादानी कर बैठा । ऐसी हरकत की किसी आतंकित आदमी से सदा ही अपेक्षा की जा सकती थी ।
सबसे बड़ी बात यह थी कि जोगेन्द्र सरकमस्टांशल एवीडेंस और अदालत में अपने धृष्ट और आपत्तिजनक व्यवहार के कारण ही सजा पा गया था । उसके खिलाफ ऐसा कोई चश्मदीद गवाह उपलब्ध नहीं था जिसने उसे कत्ल करते देखा हो । अगर वह पुलिस की गिरफ्त से भाग निकलने की गलत हरकत न करता तो उसकी हाई कोर्ट से बरी हो जाने की पर्याप्त सम्भावना थी । और फिर पुलिस ने लोअर कोर्ट में केस प्रस्तुत करते समय उबलती हुई केतली और ओवन में पड़ी भीगी घड़ी को एकदम नजरअन्दाज कर दिया था जब कि उन दोनों ही बातों का कोई भारी महत्व हो सकता था । आखिर सावंत ने चूल्हे पर केतली क्यों चढाई ? क्या घर में कोई मेहमान आया था जिसके लिए वह चाय बना रहा था ? अगर ऐसा था तो वह मेहमान कौन था ? और फिर घड़ी के भीतर पानी कैसे चला गया था ? दोनों बातें बहुत दिलचस्प थीं और हाई कोर्ट में इनके महत्व की काफी दुहाई दी जा सकती थी ।
जोगेन्द्र के भाग निकलने को निश्चय ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की संज्ञा दी जा सकती थी। और फिर जिस रिवॉल्वर की गोली से सावंत की जान गई थी, वह घटनास्थल से बरामद नहीं हुई थी ।
सरकारी वकील निर्विवाद रूप से यह सिद्ध नहीं कर पाया था कि जिस रिवॉल्वर से सावंत की हत्या हुई थी, वह जोगेन्द्र की थी । हत्या एक 38 कैलीबर की रिवॉल्वर से हुई थी । जोगेन्द्र ने अदालत में स्वीकार किया था कि उसके पास एक 38 कैलीबर की रिवॉल्वर थी लेकिन वह उसे अदालत में पेश नहीं कर पाया था । उसके कथनानुसार रिवॉल्वर उसके फ्लैट से कहीं गायब हो गई थी। रिवॉल्वर कब से गायब थी, यह उसे मालूम नहीं था क्योंकि एक मुद्दत से उसने उस रिवॉल्वर की ओर झांका भी नहीं था ।
तभी फ्लैट के किसी अन्य कमरे में बजती टेलीफोन की घंटी की आवाज प्रमोद के कानों में पड़ी । फिर उसे काल का जवाब देते यांग टो की मद्धम सी आवाज सुनाई दी । कुछ क्षण बाद यांग टो प्रमोद के पास पहुंचा और बोला - "कोई जीवन गुप्ता नाम का आदमी आपसे बात करना चाहता है । कहता है बड़ी महत्वपूर्ण बात है। मैंने उसे कह दिया है कि पता नहीं आप घर पर हैं या नहीं हैं ? आप घर पर हैं ?"
"मैं घर पर हूं, यांग टो।" - प्रमोद अपने स्थान से उठता हुआ बोला ।
प्रमोद उस कमरे में पहुंचा जिसमें टेलीफोन लगा हुआ था । उसने रिसीवर उठाकर कान से लगाया और बोला"हल्लो, गुप्ता ! क्या चाहते हो ?"
उत्तर में तुरन्त जीवन गुप्ता की व्यग्रता से भरी आवाज आई - “प्रमोद, मैं तुमसे फौरन मिलना चाहता हूं और तुम्हें एक बड़ी महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूं । किसी वजह से मैं तुम्हारे फ्लैट पर नहीं आ सकता । क्या तुम ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के गोदाम में आ सकते हो ?"
"वहां क्यों ?"
"लेकिन..."
"क्योंकि मैं यहां तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं । और फिर मैं तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूं।"
"बात बहुत ही महत्वपूर्ण है, प्रमोद, बहुत ही महत्वपूर्ण|"
“मैं आता हूं ।" - प्रमोद बोला- "गोदाम का पता बताओ।"
जीवन गुप्ता ने उसे पता बता दिया ।
"मैं फौरन आ रहा हूं।" - प्रमोद बोला और उसने सम्बन्धविच्छेद कर दिया ।
यांग टो की आंखों में समर्थन का भाव नहीं था । शायद वह इतनी रात गए प्रमोद के किसी अनजानी जगह जाने के हक में नहीं था । उसने चुपचाप प्रमोद का ओवरकोट और हैट निकाला और उसे प्रमोद को थमा दिया ।
गली में आकर ही प्रमोद को अनुभव हुआ कि ओवर कोट की जेब में पड़ी जिस चीज को वह सिगरेटकेस समझ रहा था, वह वास्तव में एक खिलौना जैसी खूबसूरत आटोमेटिक रिवॉल्वर थी ।
***
प्रमोद ओवरकोट का कालर ऊपर उठाए तेज कदमों से कमर्शियल स्ट्रीट में आगे बढ़ रहा था। उसे किसी टैक्सी की तलाश थी और वह उसके मोड़ से ही उपलब्ध होने की अपेक्षा कर रहा था ।
तभी उसे अनुभव हुआ कि एक कार उसके पीछे आ रही थी । प्रमोद ने पहले समझा कि वह कोई टैक्सी थी । वह ठिठका, घूमा लेकिन उसे अपने पीछे कुछ भी दिखाई नहीं दिया ।
वह फिर आगे बढ़ने लगा ।
तभी एक ऐसी कार जिसकी हैडलाइट्स नहीं जल रही थीं, उसकी बगल में आकर रुकी। कार का उसकी ओर का दरवाजा खुला और कोई भारी आवाज से बोला- "आओ ।"
प्रमोद ठिठका । उसने कार की ओर निगाह दौड़ाई । वह एक टू सीटर कार थी । अन्धेरा होने के कारण ड्राइविंग सीट पर बैठी आकृति की सूरत उसे नहीं दिखाई दे रही थी।"
"ओहो, खरगोश ।" - आवाज आई - " अब आओ भी "
"सुषी !" - प्रमोद के मुंह से निकला । वह लपक कर कार में सवार हो गया ।
सुषमा ने तुरन्त कार आगे बढा दी ।
वातावरण में धुंध छाई हुई थी जिसकी वजह से विंडस्क्रीन इतनी धुंधला गई थी कि सुषमा ने वाइपर चालू किए हुए थे।
"ओह, माई गाड !" - सुषमा बोली- "मैं कब से तुम्हारा इन्तजार कर रही थी। ठण्ड में बैठे-बैठे मेरी कुल्फी जमी जा रही थी ?"
"तुम इसी कार में बैठी - बैठी मेरा इन्तजार कर रही थीं?"
" और क्या ?"
"तुम्हारा मुकद्दर ही अच्छा है जो तुम बच गई । वर्ना तुम्हारी टू सीटर कार ही पुलिस का ध्यान तुम्हारी ओर आकर्षित करने के लिए काफी थी ।"
सुषमा ने कार को सुनसान सड़क पर मोड़ा और थोड़ा आगे बढाकर रेक दिया ।
“कार क्यों रोक दी ?" - प्रमोद ने पूछा ।
"मैं कार चलाते-चलाते बात नहीं कर सकती। मुझे तुमसे कितनी ही बाते करनी हैं । "
"लेकिन मैं किसी से मिलने जा रहा था । मेरा तुरन्त कहीं पहुंचना बहुत जरूरी है । "
“मेरी बात से ज्यादा जरूरी नहीं हो सकता, खरगोश|"
उसने स्टियरिंग से अपने हाथ हटा लिए । वह प्रमोद की ओर घूमी। एकाएक उसने अपनी बाहें प्रमोद के गले में डाल दीं और उसके साथ लिपट गई ।
प्रमोद ने झिझकते हुए उसे अपने आलिंगन में ले लिया। सुषमा का गाल प्रमोद के गाल से चिपक गया। प्रमोद को एक विचित्र प्रकार की आर्द्रता का आभास हुआ। उसने हाथ बढाकर सुषमा के एक कपोल को आंखे के नीचे छुआ ।
"तुम रो रही हो ।" - वह सकपका कर बोला ।
सुषमा ने एक सुबकी भरी ।
“अब चुप हो जाओ। आंसू पोंछो और बताओ क्या बात है ?"
"तुम भाग क्यों गए थे ?"
"मुझे विश्वास है यह पूछने के लिए तुम इतनी ठण्ड में मेरा इन्तजार नहीं कर रही थीं । "
"लेकिन..."
" आंसू पोंछो और..."
"तुम नहीं पोंछ सकते मेरे आंसू ?" - वह रुआंसे स्वर में बोली ।
प्रमोद ने जेब से रुमाल निकाल कर उसके आंसू पोंछे, सांत्वनापूर्ण ढंग से उसकी पीठ थपथपाई और उसे अपने से अलग कर दिया ।
"सुषी, तुम्हें इतना खतरा लेने की क्या सूझी ?"
"क्या ?"
"मैं पूछ रहा हूं तुमने जोगेन्द्र को पुलिस की पकड़ से क्यों छुड़वाया ?"
सुषमा कई क्षण चुप रही और फिर बोली- "किसी तरतीब से सवाल करो, खरगोश । "
" तो कहां से शुरू करू ?"
" शुरू से शुरू करो । वहां से शुरू करो जब तुम मुझसे शादी करने के खयाल से ही घबरा कर अमेरिका भाग गए थे ।"
"वह मजबूरी थी । तुम जानती हो मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता था । तुम्हें शायद मैं समझा लेता लेकिन कविता भी जिद करने लगी थी कि मैं तुमसे शादी कर लूं । "
"इसलिए तुम भाग खड़े हुए ?"
"हां ।”
" और मुझे बताकर भी नहीं गए कि तुम कहां जा रहे थे ?"
"उसकी वजह थी । मुझे भय था कि कहीं तुम मेरे पीछे वहां भी न पहुंच जाओ।"
"लेकिन दीदी को मालूम था कि तुम कहां थे ? तुमने दीदी को बताया था ?"
प्रमोद चुप रहा ।
“क्योंकि तुम दीदी से मुहब्बत करते हो, मुझसे नहीं है।"
"सुषी, मुझे तुमसे कविता से ज्यादा मुहब्बत है लेकिन एक बड़े भाई की तरह ।"
"ओह, डैम ।" - सुषमा दांत भींचकर बोली- “डैम, डैम, डैम । पता नहीं यह फिल्मी बड़ा भाई बनने का जनून क्यों सवार है तुम पर !"
"और फिर अब ये बात करने से फायदा क्या ? वर्तमान स्थिति तो यह है कि तुम जोगेन्द्रपाल से मुहब्बत करती हो।"
सुषमा चुप रही ।
“और अब तुमने जोगेन्द्रपाल को भगवा कर एक ऐसी हरकत कर डाली है जो तुम्हारी उच्छृंखल प्रवृत्तियों का एकदम सही प्रतिपादन करती है ।"
सुषमा ने एक बार फिर उठाकर उसकी ओर देखा और फिर परे सड़क पर देखने लगी ।
"मैंने जोगेन्द्रपाल के केस से सम्बन्धित अखबारों में छपा सारा विवरण पढा है। सुषी, उसके खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं है । वह अदालत में झूठ बोलकर और अपने भारी आपत्तिजनक व्यवहार की वजह से ही सजा पा गया है। वास्तव में पुलिस उसके खिलाफ एक भी ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाई है । उसे सावंत के घर दूसरी बार जाने के बारे में झूठ नहीं बोलना चाहिए था ।”
"शायद वह सच ही बोल रहा हो । शायद वह दूसरी बार वहां गया ही न हो ।"
“उसके खिलाफ दो चश्मदीद गवाह हैं।"
"क्या गवाहों से शिनाख्त में गलती नहीं होती ?"
"होती है लेकिन इस बार नहीं हुई मालूम होती ।”
"ओके । ओके ।" - वह क्रोधित स्वर से बोली- "तुम्हें कहीं जाने की जल्दी है । कहां जाना है तुम्हें ? मैं छोड़ आती हूं।"
"सुषी, पहले मुझे यह बताओ कि जोगेन्द्र कहां है ?" "क्यों ?"
"ताकि मैं खुद उसे समझा सकूं कि पुलिस के सामने समर्पण कर देने में ही उसका कल्याण है ।"
“वह समर्पण करेगा तो फांसी पर चढ जाएगा । इसे तुम उसका कल्याण कहते हो ? पुलिस के हाथों में दोबारा पड़ने से तो वह मर जाना ज्यादा पसन्द करेगा । वह किसी जेल की काल कोठरी में ले जाकर बन्द कर दिया जाए, और फिर वहां से निकाल कर फांसी पर चढा दिया जाए इससे यही अच्छा है वह पुलिस मुठभेड़ में पुलिस की गोली का शिकार होकर मरे । इस प्रकार वह दो-चार को मारकर तो मरेगा।”
"और कुछ ?" तुम क्या करोगी? तुमने अपने बारे में भी सोचा
"मुझे अपनी परवाह नहीं । कभी थी, अब नहीं है । " "लेकिन..."
"तुम जोगेन्द्र की बात कर रहे थे।"
"हां । देखो, कोई कानून तोड़कर कानून से इन्साफ की मांग नहीं कर सकता । जोगेन्द्र ने जो रुख अपनाया है, वह आत्महत्या करने जैसा है। मैं फिर कहता हूं उसके खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं है। हाईकोर्ट में पुलिस द्वारा प्रस्तुत केस की धज्जियां उड़ाई जा सकती हैं और यह तभी सम्भव हो सकता है जब जोगेन्द्र कानून का पालन करे, वह तुरन्त समर्पण कर दे और हाईकोर्ट में केस लड़े। वह खुद किसी पुलिस स्टेशन पर जाकर अपने आपको पेश कर दे। फिर मैं पूरी कोशिश करूंगा कि हाईकोर्ट से उसे इन्साफ हासिल हो । मैं उसके हक में कुछ नए सबूत तलाश करने की भी कोशिश करूंगा।"
"वह हर्गिज समर्पण नहीं करेगा ।"
"और समर्पण भी बड़ी होशियारी से करना होगा । कहीं ऐसा न हो कि वह तो समर्पण करने के नाते पुलिस स्टेशन आ रहा हो और पुलिस यह दावा करे कि उन्होंने अपनी होशियारी और चतुराई दिखाकर एक फरार मुजरिम को गिरफ्तार किया है । इसलिए पुलिस स्टेशन जाने से भी अच्छा यह होगा कि यह पुलिस के किसी वरिष्ठ अधिकारी के दफ्तर में या किसी जिम्मेदार अखबार के दफ्तर में चला जाए और वहां आत्मसमर्पण करे ।"
"लेकिन वह ऐसा हरगिज नहीं करेगा। वह लड़ते हुए मर जाना ही पसन्द करेगा ।"
“सुषी, अगर तुम वाकई उस लड़के से मुहब्बत करती हो तो उसकी बेहतरी के लिए, और अपनी बेहतरी के लिए तुम्हें उसको मजबूर करना होगा कि वह आत्मसमर्पण करे।"
"छोड़ो इन बातों को । तुम्हें पहुंचना कहां है ?”
"मैं चला जाऊंगा । यहीं कहीं से टैक्सी मिल जाएगी मुझे।"
"नहीं, मैं छोड़ आती हूं।"
उसने कार चालू की और उसे गियर में डाल दिया ।
“बोलो, कहां चलना है ?"
प्रमोद ने उसे ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के गोदाम का पता बता दिया ।
सुषमा ने भड़ाक से ब्रेक के पैडल पर पांव मारा । गाड़ी फिर रुक गई ।
"इस हरकत का मतलब ?" - वह उसे घूरती हुई बोली
"कैसी हरकत ? कैसा मतलब ? मैंने तो तुम्हें सिर्फ उस जगह का पता बताया है जहां मैं जाना चाहता हूं।"
"क्या तुम मुझसे चूहे- बिल्ली का खेल खेल रहे हो ? या तुमने कन्सन्ट्रेशन के अलावा चीन में कोई ऐसी कला भी सीखी है जिसके द्वारा तुम यह भी जान सकते हो किसी के मन में क्या है ?"
"समझ में नहीं आता मैंने ऐसा क्या कह दिया है जिसे सुनकर तुम हत्थे से उखड़ी जा रही हो । मैंने तो तुम्हें सिर्फ ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के गोदाम का पता बताया है । यह पता अभी थोड़ी देर पहले फोन पर मुझे जीवन गुप्ता ने बताया था और मैं इस पते पर उसी से मिलने जा रहा हूं।"
"जीवन गुप्ता इस वक्त वहां होगा ?"
“जरूर होगा । वर्ना वह मुझे वहां बुलाता क्यों ?"
सुषमा ने ब्रेक के पैडल से पांव हटाया और एक्सीलेटर का पैडल पूरी शक्ति से दबाया । कार तोप से छूटे गोले की तरह सामने भागी ।
“अरे... अरे ! क्या एक्सीडेन्ट करना चाहती हो ?" - प्रमोद बौखलाकर बोला ।
"नहीं !" - सुषमा बोली- "एक ज्यादा बड़े एक्सीडेन्ट को बचाना चाहती हूं।"
"मतलब ?"
"मतलब यह कि जोगेन्द्रपाल ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के गोदाम में ही छुपा हुआ है । अब तुम्हीं सोचो कि अगर जीवन गुप्ता वहां पहुंच गया तो क्या होगा ?"
"ओह !"
"उसने तुम्हें फोन कहां से किया था ? गोदाम से या कहीं और से ?"
“मालूम नहीं। मैंने पूछा नहीं था । उसने तो मुझे केवल इतना कहा था कि मैं गोदाम में उससे मिलूं।"
"शायद उसने फोन कहीं और से किया हो और वह खुद भी टेलीफोन करने के बाद ही गोदाम के लिए रवाना हुआ हो ।"
"हो सकता है । "
"अगर उसका वहां जोगेन्द्र से आमना-सामना हो गया तो..."
- उसने वाक्य पूरा नहीं किया । अगले ही क्षण उसकी शक्तिशाली इन्जन वाली ट सीटर कार सौ किलोमीटर की रफ्तार से सड़क पर भागी जा रही थी ।
***
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