नसीमा को देखते ही युवराज पाटिल शांत भाव से मुस्कुराया।

नसीमा ने मुस्कुराकर सिर हिलाया।

"कल दिन भर आराम किया?" पाटिल ने सामान्य स्वर में कहा।

"जी पाटिल साहब।" नसीमा भी सामान्य थी--- "कुछ थकान सी महसूस हो रही थी...।"

"बैठो। बैठो। अब कैसी हो?"

"बिल्कुल फ्रेश हूं...।" नसीमा कुर्सी पर बैठते हुए बोली--- "कल आप बता रहे थे कि अपनी दौलत ले जाने का दिन तय कर लिया है।"

"हां। कल यहां से दौलत ले जाएंगे।" युवराज पाटिल ने सिर हिलाते हुए कहा और टेबल पर पैकेट में से सिगरेट निकाल ली--- "मैंने पूरी योजना बना ली है कि कैसे क्या करना है। देवराज चौहान के लिए भी गुंजाइश बना ली है कि उसने तुम्हारी जान और मेरा माल बचाकर जो एहसान किया है, वो एहसान भी उतार दें।"

"ये आपने बहुत अच्छा किया पाटिल साहब...।" नसीमा मुस्कुराई।

युवराज पाटिल ने सिग्रेट सुलगा ली।

"मैं तुम्हें सारी योजना समझा देती हूं। उसी के मुताबिक काम करना है।" युवराज पाटिल बोला।

"ठाकुर और वजीर शाह भी पास होते तो...।"

"उन्हें कल समझा दिया था। तुम्हें बताना बाकी है।"

नसीमा सिर हिलाकर रह गई।

युवराज पाटिल ने दो बार कश लिए। खामोशी रही। फिर कह उठा।

"कल ग्यारह-बारह बजे, यहां से तीन मीडियम साइज की बंद वैन एक-के-बाद-एक, बाहर निकलेंगी। पहली वैन को वजीर शाह चलाएगा। बीच वाली वैन को ठाकुर--- और पीछे वाली वैन को तुम ड्राइव कर रही होंगी।"

युवराज पाटील के रुकने पर, नसीमा ने सिर हिलाया।

"वजीर शाह, जिस वैन को चला रहा होगा, उसमें हीरे-जेवरातों से भरी तिजोरी मौजूद होगी। जो कि कुछ बड़ी तिजोरी है। उसमें अरबों के हीरे-जेवरात मौजूद होंगे-- और बीच वाली वैन जिसे कि ठाकुर ड्राइव कर रहा होगा, उसमें देवराज चौहान के लिए पचास करोड़ नकद रुपया मौजूद होगा। जिस वैन को तुम चला रही होंगी, उसमें कुछ भी नहीं होगा। वो खाली होगी।"

नसीमा की नजरें युवराज पाटिल पर टिकी थीं।

"तुमने देवराज चौहान को खबर देनी है कि बीच वाली वैन में मेरी दौलत जा रही है। आगे-पीछे चलने वाली वैनें तो मात्र बीच वाली वैन को सुरक्षा देने के लिए हैं। ऐसे में देवराज चौहान बीच वाली वैन पर हाथ डालेगा और पचास करोड़ उसके हाथ लग जाएगा। अरबों के हीरे-जेवरातो को कोई खतरा नहीं होगा।"

"आपकी योजना सही है।" नसीमा फौरन कह उठी।

युवराज पाटिल ने कश लिया।

"लेकिन आप तो अपनी सारी दौलत एक ही बार में ले जाने की बात कह रहे थे।" नसीमा बोली।

"हां। सोचा तो कुछ ऐसा ही था। अगर देवराज चौहान का मामला बीच में न आया होता तो मैं ऐसा ही करता। अपनी सारी दौलत को एक साथ खुले में नहीं लाना चाहता। इसलिए अब सोचा है कि दो-तीन फेरे लगाकर दौलत को अपने दूसरे ठिकाने पर पहुंचाऊं। ऐसा करना ही ठीक रहेगा।"

"वैसे एक और सुरक्षित रास्ता है पाटिल साहब...।" नसीमा बोली।

"क्या?"

"ये कि अगर आपको लगता है आपकी दौलत खतरे में पड़ सकती है तो आप पहले देवराज चौहान के लिए पचास करोड़ इसी तरह खुले में ले जाकर उसके हवाले कर देते हैं, उसके बाद आप अपनी दौलत...।"

"सोच बुरी नहीं है नसीमा।" युवराज पाटिल बीच में ही बात काटकर कह उठा--- "लेकिन मैं समझता हूं कि तिजोरी में भेजे जाने वाले हीरे-जेवरातों को कोई खतरा नहीं है। देवराज चौहान कभी भी नहीं सोच सकेगा कि सबसे आगे वाली वैन में अरबों की दौलत हो सकती है। वो यही सोचेगा कि बीच वाली वैन में ही दौलत होगी। और तुम भी उसे बीच वाली वैन के बारे में बताओगी, जिसमें उसके लिए पचास करोड़ रखा होगा।"

"ये भी आपने ठीक कहा पाटिल साहब...।" नसीमा बोली--- "लेकिन दौलत को ले जाना कहां है?"

"तुम तीनों वैन लेकर यहां से चलोगे। किस तरफ जाना है ठाकुर--- वजीर शाह को बता दिया है। उनसे पूछ लेना। उसी रास्ते पर आगे कहीं मैं मिलूंगा। तब आगे का रास्ता बताऊंगा।" युवराज पाटिल ने कहा।

नसीमा ने सिर हिलाया।

युवराज पाटिल कुछ कहने लगा कि वजीर शाह ने भीतर प्रवेश किया।

दोनों ने उसे देखा।

पास आकर उसने नसीमा पर नजर मारी फिर युवराज पाटिल को देखकर कह उठा।

"पाटिल साहब! घोरपड़े अब हमारे आदमियों से दादागिरी करने लगा है। वो मानने वाला नहीं।"

"कहते रहो।"

"कुर्ला और जुहू में हमारे आदमी हफ्ता वसूली करते हैं। हर महीने वहां से करोड़ों से ऊपर की वसूली होती है, परंतु घोरपड़े वहां अपने पैर जमाने पर लगा है। हमारे आदमियों से उसके आदमियों ने झगड़ा किया और दो को मार दिया। आज सुबह भी झगड़ा हुआ और वसूली करने वाला हमारा एक आदमी मारा गया। बाकियों को भागना पड़ा।"

"ये तो गलत हुआ।" युवराज पाटिल के होंठ भिंच गए--- "इस बारे में तुमने क्या किया?"

"आज सुबह फोन पर घोरपड़े को समझाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं मान रहा। उसे खत्म करना पड़ेगा।"

युवराज पाटिल की नजरें वजीर शाह पर टिकी रहीं।

"घोरपड़े कुर्ला के जिस मकान में है, वो जगह हमारे आदमियों ने खामोशी से घेर रखी है। इस मामले को लेकर मेरा आदमी फोन पर है। वो घोरपड़े को खत्म करने का आदेश चाहते हैं।"

"तो इसमें परेशानी क्या है। भून डालो साले को।"

"आधा किलोमीटर की दूरी पर पुलिस स्टेशन है।" वजीर शाह ने बताया।

"यही दिक्कत है।"

वजीर शाह ने सिर हिलाया।

"अपने आदमियों से कहो, जैसे भी हो घोरपड़े को भून दो और पास पड़ने वाले पुलिस स्टेशन में फोन कर दो कि फायरिंग की आवाज सुनकर कोई भी पुलिस वाला उस तरफ न जाए। जब गोलियां चली बंद हो जाएं तो उसके पन्द्रह मिनट बाद ही पुलिस वहां पहुंचे। बाकी मैं संभाल लूंगा।"

"जी। कांताराम की फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई है।" वजीर शाह बोला।

"तो...?"

"फिल्म में लगा हमारा बीस करोड़ वापस देने के काबिल नहीं रहा। ये बात कांताराम ने स्पष्ट तौर पर कह दी है। वो कहता है मैं फुटपाथ पर आ गया हूं। उसका क्या करना है?"

"कांताराम की जान लेने का कोई फायदा नहीं। इससे हमारा बीस करोड़ वापस नहीं आ जाएगा। बिजनेस में नफा-घाटा तो चलता ही रहता है। उसे कहो हिम्मत मत हारे। एक और बढ़िया फिल्म बनाए। पैसा हम देंगे। कहानी और फिल्म के हीरो-हीरोइन का चुनाव हम करेंगे। उससे मीटिंग तय कर लेना। वो काबिल फिल्म मेकर है। इस बार बढ़िया फिल्म बनाएगा। हमारे सारे पैसों की वापसी हो जाएगी।"

वजीर शाह ने सहमति से सिर हिलाया।

"जाओ। फोन पर घोरपड़े का इंतजाम करने का आदेश दो।"

वजीर शाह बाहर निकल गया।

युवराज पाटिल ने कश लेकर सिगरेट एशट्रे में डाली। नसीमा को देखा।

"कल के बारे में कुछ और पूछना है तुम्हें...।"

"नहीं।" नसीमा बोली--- "आपने जो कहा, ठीक कहा।"

"एक बात और सुन लो कि आज के बाद अंदर की बात किसी भी हालत में बाहर वाले को नहीं बतानी। ऐसी बेवकूफी वाली हरकत फिर कभी मत करना। जैसी कि देवराज चौहान को ये बताकर कि...।"

"मैं महसूस कर चुकी हूं कि मुझसे गलती हुई है, देवराज चौहान को आपकी दौलत के बारे में बताकर। भविष्य में ऐसी कोई गलती मुझसे नहीं होगी।" नसीमा ने गंभीर स्वर में कहा।

"गुड।"

नसीमा उठ खड़ी हुई।

■■■

नसीमा वहां से निकलकर सीधे वजीर शाह के पास पहुंची। अपने कमरे में मौजूद वजीर शाह बेहद व्यस्त नजर आ रहा था। नसीमा को देखकर मुस्कुराया।

"आओ। पाटिल साहब से मीटिंग चल रही थी।"

"हां।" नसीमा के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था--- "कल का प्रोग्राम पक्का है ना?"

"कैसा प्रोग्राम?" वजीर शाह ने नसीमा को देखा।

"पाटिल साहब की दौलत ले जाने का और देवराज चौहान के पास पचास करोड़ पहुंचाने का।"

"हां।" वजीर शाह ने सिर हिलाया--- "पाटिल साहब ने बता दिया होगा तुम्हें...।"

"अभी बताया है।" नसीमा की नजरें वजीर शाह पर थी--- "ये नहीं बताया कि कहां ले जाना है वैनों को?"

"नहीं।" वजीर शाह अपने काम में व्यस्त होता हुआ बोला--- "वो रास्ते में मिलेंगे।"

"कोई और खास बात...?"

तभी टेबल पर पड़े फोन की बेल बजने लगी।

"नहीं। कोई खास बात नहीं।" कहते हुए वजीर शाह ने रिसीवर उठाया और बात करने लगा।

नसीमा ने चुभती निगाहों से वजीर शाह को देखा फिर पलटकर बाहर निकल गई।

■■■

नसीमा अपने कमरे में टेबल के पीछे कुर्सी पर, टांगे फैलाये बैठी थी। चेहरा भावहीन परंतु सख्त सा हुआ पड़ा था। आंखों में सोचों के भाव उभरे पड़े थे। वो जानती थी आज यहां बैठने का उसका आखिरी दिन है। कल क्या होना है, जैसे युवराज पाटिल ने तय कर रखा था। वैसे ही उसने भी तय कर रखा था। और होता क्या है यह तो भगवान के ऊपर ही निर्भर था। उसकी और युवराज पाटिल की सोचों की लड़ाई जारी थी।

आहट पाकर नसीमा ने सिर हिलाया तो ठाकुर को भीतर प्रवेश करते पाया।

ठाकुर के चेहरे पर गंभीरता थी।

दोनों की नजरें मिलीं। पास आकर ठाकुर धीमे स्वर में बोला।

"मैंने तो सोचा था तुम रात ही मुंबई छोड़कर कहीं दूर चली जाओगी।"

"मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है।" नसीमा की आवाज भी धीमी थी।

ठाकुर की आंखों में व्याकुलता नजर आने लगी।

"मैं समझा नहीं।"

नसीमा खामोश रही।

"तुम क्या करना चाहती हो नसीमा?" ठाकुर कुछ परेशान हो उठा।

"मैं नहीं जानती...।"

"तुम कल मारी जाओगी। पाटिल का आदेश मुझे और वजीर शाह को हर हाल में मानना ही पड़ेगा। चली जाओ यहां से।"

"तुम जैसा सच्चा हमदर्द पाकर मुझे खुशी हुई। वजीर शाह ने मुझे ऐसा कोई इशारा नहीं दिया कि जिससे लगे मेरी जान खतरे में है। वो मेरा सच्चा हमदर्द-दोस्त नहीं है।" नसीमा का स्वर भावहीन और कठोर था--- "ये बात मैं पहले नहीं जान पाई थी...।"

"मैंने रात ही तुम्हें ये बात इसलिए बताई कि वक्त रहते तुम मुंबई से कहीं दूर खिसक जाओ। लेकिन तुम...।"

"ठाकुर...।" नसीमा की आवाज धीमी ही थी--- "अगर पाटिल मेरी जान लेना चाहता है तो मुझे कोई एतराज नहीं। मैं हमेशा उसकी वफादार रही हूं और इसी वफादारी में अपनी जान गंवाना भी पसंद करूंगी।"

"क्या मतलब?" ठाकुर के माथे पर बल नजर आने लगे।

"मैं कल आऊंगी। पाटिल के कहे मुताबिक तुम लोगों के साथ वैन लेकर निकलूंगी।" नसीमा ने ठाकुर को देखा--- "मैं अपना फर्ज पूरा करूंगी और तुम दोनों पाटिल की बात मानकर अपना फर्ज पूरा करना।"

"पागल हो। क्या कह रही हो तुम! तुम्हें तो...।"

"प्लीज ठाकुर। और बात मत करो। किसी ने सुन लिया तो तुम मुसीबत में फंस जाओगे।" नसीमा ने कहा।

ठाकुर, अजीब सी निगाहों से नसीमा को देखता रहा।

नसीमा ने एकाएक मुस्कुराकर ठाकुर से कहा।

"लगता है तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं आ रहा कि...।"

"तुम...तुम कुछ करोगी। मैं समझ गया। तुम कुछ करने की सोच बैठी हो।" ठाकुर दबे स्वर में कह उठा।

"ऐसा कुछ नहीं है।" नसीमा ने गहरी सांस लेकर मुंह फेर लिया।

"ऐसा ही सब कुछ है। मैं तुम्हें बहुत अच्छी तरह जानता हूं। ये मालूम होने पर भी कि, तुम्हें खत्म करने की तैयारी हो चुकी है तुम निश्चिंत बैठी हो। ये बात तुम्हारी आदतों से मेल नहीं खाती।"

नसीमा ने ठाकुर को देखा। कहा कुछ नहीं।

तभी फोन बजने लगा। नसीमा ने रिसीवर उठाया।

"हैलो...!"

"नसीमा!" आवाज कानों में पड़ी।

"हां। तुम...?"

"बाटला। स्मैक के छः बोरे मेरे पास अभी-अभी पहुंचे हैं। डिलीवरी ले लो...।"

"होल्ड करो।" नसीमा ने माउथपीस पर हथेली रखी और ठाकुर से बोली--- "बाटला है। स्मैक के छः बोरे उसके पास पहुंच चुके हैं। वो डिलीवरी देना चाहता है। किसी को उसके पास माल भेजने के लिए भेज दो।"

"लाओ। मैं बात करता हूं।"

"बाटला!" नसीमा माउथपीस से हाथ हटाकर बोली--- "ठाकुर से बात करो।"

ठाकुर ने रिसीवर लेकर बाटला से कहा।

"कुछ आदमी भेज रहा हूं। माल उनके हवाले कर देना।"

"पहचान के आदमियों को ही माल दूंगा।" बाटला की आवाज कानों में पड़ी।

"अच्छी बात है। पहचान वाले आदमी को ही भेजूंगा।"

"मेरी पेमेंट...?"

"दो-चार दिन में पहुंच जाएगी।" कहकर ठाकुर ने रिसीवर रख दिया।

नसीमा की नजरें ठाकुर पर ही थीं।

"तुम समझदार हो।" ठाकुर ने धीमें किंतु गंभीर स्वर में कहा--- "कल जो करोगी। सोच समझकर ही करोगी।"

नसीमा ने कुछ नहीं कहा।

ठाकुर पलट कर बाहर निकल गया।

नसीमा ने फौरन रिसीवर उठाया और नंबर मिलाकर बात की।

"युवराज पाटिल को तगड़ी चोट देना चाहते हो राम दा।" उधर से रिसीवर उठाते ही नसीमा ने बेहद धीमी आवाज में कहा।

"कौन हो तुम?"

"जो मैं कह रही हूं, सिर्फ उस बात पर गौर करो। स्मैक के छः बोरे। हिसाब लगाओ अरबों रुपए की स्मैक है। अगर तुम्हें मिल जाए तो अपने गैंग को और भी मजबूत कर सकते हो। हथियार खरीद सकते हो। आदमियों की फौज अपने गैंग में शामिल कर सकते हो। पाटिल से खुलकर टक्कर लेने के लिए इन सब चीजों की तुम्हें बहुत जरूरत है। आखिर तुमने अंडरवर्ल्ड का बड़ा बनना है राम दा। बोलो हां या ना?" नसीमा का स्वर बहुत धीमा था।

"बताओ।" राम दा की आवाज कानों में पड़ी--- "कहां है स्मैक के छः बोरे?"

"बाटला को जानते हो?"

"हां।"

"उसके पास है। पाटिल के आदमी बाटला से बोरे लेने जा रहे हैं। उनके पहुंचने से पहले काम कर जाओ।" कहने के साथ ही नसीमा ने रिसीवर रख दिया। आंखों में सख्ती भरी हुई थी।

■■■

शाम चार बजे देवराज चौहान का फोन आया।

"मैं तुमसे मिलना चाहती हूं...।" देवराज चौहान की आवाज सुनते ही नसीमा ने बेहद धीमे स्वर में कहा।

"फोन पर बात नहीं हो सकती...।"

"कुछ और भी बात करनी है।"

"कल कुछ हो रहा है?" देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।

"कल बहुत कुछ हो रहा है। कहां मिल रहे हो?"

"मराठा मंदिर के बाहर...।"

"जो बात मैं तुमसे करना चाहती हूं, वो वहां नहीं हो पाएगी।" नसीमा धीमे स्वर में कह उठी।

लाईन पर कुछ पल चुप्पी रही।

"मराठा मंदिर के बाहर ही मिलो। वहां जगमोहन आएगा। वो तुम्हें मेरे पास ले आएगा।"

"मैं जगमोहन को नहीं पहचानती...।"

"वो तुम्हें पहचान लेगा। एक घंटे बाद वहां पहुंच जाना...।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया था।

नसीमा ने रिसीवर रखा। चेहरे पर सोचें नाच रही थीं।

तभी ठाकुर भीतर आया। वो गंभीर नजर आ रहा था।

नसीमा ने उसे देखा।

"राम दा के आदमियों ने बाटला को खत्म कर दिया और स्मैक के छः बोरे भी वो ले गए।"

"ओह! बहुत बुरा हुआ।" जबकि नसीमा के चेहरे पर जरा भी अफसोस नहीं था--- "कैसे हुआ ये सब?"

ठाकुर की गहरी नजरें, नसीमा पर थीं।

"कुछ खास नहीं है मेरे पास बताने को। जब राम दा के आदमी बाटला को और उसके दो आदमियों को शूट करके स्मैक के छः बोरे ले गए तो उसके दस मिनट बाद हमारे आदमी वहां पहुंचे थे।"

"बहुत बड़ा हाथ मार लिया राम दा ने...।" नसीमा शांत थी।

"बाटला बहुत सतर्क रहने वाला इंसान था। वो अपने काम में कभी भी लापरवाही इस्तेमाल नहीं करता था। उसका काम करने का ढंग ऐसा था कि किसी को उसकी हरकतों का पता नहीं चल सकता था।" ठाकुर उसे देख रहा था।

"हां। बाटला लापरवाह इंसान नहीं था।" नसीमा ने हौले से सिर हिलाया।

"उसकी तरफ से स्मैक की खबर लीक होकर इतनी जल्दी राम दा तक नहीं पहुंच सकती।" ठाकुर पूर्ववतः स्वर में कह रहा था--- "मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी तरफ से ही खबर लीक होकर राम दा तक पहुंची है।"

"कोई बड़ी बात नहीं कि ऐसा ही हुआ हो।" नसीमा का स्वर भावहीन था।

"यहां पर, बाटला के पास स्मैक होने की खबर तुम्हें थी या मुझे थी...।" ठाकुर का स्वर वैसा ही था।

"कहीं तुमने ही तो फोन पर राम दा को इस बारे में खबर नहीं दी?" नसीमा ने उसे देखा

"पाटिल साहब को बहुत जल्दी मालूम हो जाएगा कि किसने राम दा को फोन पर बाटला के पास स्मैक होने की खबर दी।"

"कल तक की बात है।" नसीमा अजीब ढंग में मुस्कुरा पड़ी--- "मुझे क्या फर्क पड़ेगा।"

ठाकुर गंभीर निगाहों से नसीमा को देखता रहा।

"तुम बहुत खतरनाक खेल खेल रही हो नसीमा।"

"तुम अच्छी तरह जानते हो ठाकुर कि इस खेल की शुरुआत पाटिल ने की है। मैंने नहीं...।"

"दोनों के स्वर धीमे थे।

"मुझे लगता है पाटिल की योजना तुम्हें बताकर, मैंने गलती कर दी है नसीमा।" ठाकुर ने गंभीर स्वर में कहा।

"ऐसा मत कहो ठाकुर! तुम्हें तो मेरा भला किया है। ज्यादा वक्त नहीं बचा। कल से तो हमने अलग-अलग हो जाना है।"

ठाकुर देर तक नसीमा को देखता रहा फिर कह उठा।

"आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?"

"मालूम नहीं।" कहने के साथ ही नसीमा ने मुंह फेर लिया।

ठाकुर ने कुछ नहीं कहा और खामोशी से पलट कर बाहर निकल गया।

■■■

देवराज चौहान के बताए हुलिए के मुताबिक जगमोहन ने फौरन नसीमा को पहचान लिया जो कि मराठा मंदिर की टिकट विंडो के पास खड़ी थी और नसीमा ने उसे आवाज से पहचाना कि इसी ने अपना नाम जगमोहन बता कर फोन पर बात की थी।

दोनों कार में बैठे। जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी।

"देवराज चौहान कहां है?" नसीमा ने पूछा।

"वहीं चल रहे हैं।" जगमोहन ने कहा।

"हम पहली बार मिल रहे हैं। तुम्हारा नाम बहुत सुना है।"

"वैसे हम पहले बात कर चुके हैं फोन पर। तो कल का मामला पक्का है। प्रोग्राम बदला नहीं।"

"हां।"

"युवराज पाटिल के पास तो बहुत बड़ी दौलत होगी।" जगमोहन ने उसके चेहरे पर नजर मारी।

"हां।" नसीमा सोचों में डूबी हुई थी।

उसे चुप-चुप सा पाकर जगमोहन ने भी ज्यादा बात नहीं की।

बीस मिनट बाद ही जगमोहन ने एक रेस्टोरेंट के पार्किंग में कार रोक दी। इस दौरान इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि कोई पीछा तो नहीं कर रहा। लेकिन कोई पीछे नहीं था।

"यहां-कहां?" रेस्टोरेंट के पार्किंग में कार रुकते पाकर नसीमा ने उसे देखा।

"रेस्टोरेंट में केबिन है। तीन नंबर केबिन में इस वक्त देवराज चौहान तुम्हारा इंतजार कर रहा है।"

"तुम?" नसीमा ने कहना चाहा।

"बड़ों की बातों के बीच बच्चों का कोई काम नहीं है। मैं तो माल गिनने और तौलने का काम करता हूं।"

नसीमा मुस्कुराई।

"माल संभालना भी बच्चों का काम नहीं होता।"

"तब मैं बड़ा बन जाता हूं।" जगमोहन ने मुस्कुराकर कहा और इंजन बंद कर दिया।

नसीमा ने कार का दरवाजा खोला। बाहर निकली।

"तुम यहीं रहोगे?"

"हां...। और तुम्हें रेस्टोरेंट के भीतर तीन नंबर केबिन में जाना है।" जगमोहन बोला

नसीमा रेस्टोरेंट के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गई।

जब नसीमा भीतर प्रवेश कर गई तो कार से निकलकर जगमोहन ने सतर्कता भरी निगाह हर तरफ मारी। सब ठीक ही लगा। तभी एक तरफ से निकलकर सोहनलाल पास आ पहुंचा।

"ये थी नसीमा?" सोहनलाल ने पूछा।

"हां।"

"किसी ने पीछा तो नहीं किया?"

"नहीं। लेकिन हमें सावधान रहने की जरूरत है। ये सब-कुछ नसीमा की कोई चालबाजी भी हो सकती है।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा--- "वैसे भी ये युवराज पाटिल जैसे इंसान से वास्ता रखता मामला है।"

"नसीमा ने रास्ते में कुछ बताया कि---।" सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।

"मैंने उससे ज्यादा बात नहीं की। वो उलझी हुई थी। बात करने के मूड में नहीं थी।

■■■

नसीमा ने केबिन का छोटा सा पर्दा उठाया तो सामने ही देवराज चौहान को बैठे पाया। छोटी सी जगह थी ये। दो कुर्सियों के बीच छोटा सा टेबल मौजूद था।

"हैलो!" नसीमा ने मुस्कुरा कर कहा और आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठी।--- "दोबारा मिलकर खुशी हुई।"

देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया

"युवराज पाटिल कल मुझे खत्म कर देगा।"

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

"क्या मतलब?"

"जाने कैसे उसे मालूम हो गया कि मैंने तुम्हें उसकी दौलत के बारे में बता दिया है कि तुम अपनी दौलत कहीं और ले जा रहे हो।" नसीमा गंभीर स्वर में कह उठी--- "अपना प्रोग्राम तो उसने आगे-पीछे नहीं किया। लेकिन जब तुम दौलत वाली वैन पर हाथ डालोगे तो साथ में मौजूद उसके आदमी मुझे शूट कर देंगे।"

"और ये बात तुम्हें मालूम हो गई...।" देवराज चौहान की निगाहें उस पर थी।

"हां। मालूम हो गया सब कुछ...।" नसीमा ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा--- "पाटिल को ये बात पसंद नहीं आई कि उसकी दौलत के बारे में मैंने देवराज चौहान जैसी शख्सियत को बता दिया है।"

"तुम जो भी कहना-बताना चाहती हो, एक ही बार में सिलसिलेवार बताओ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "बीच-बीच की बातें बताने का कोई फायदा नहीं...।"

नसीमा ने युवराज पाटिल की योजना देवराज चौहान को बता दी।

"ठाकुर ने मुझे बताया कि हीरे-जेवरातों से भरी वैन सबसे पीछे होगी। पाटिल ने उसे ऐसा ही कहा। जबकि पाटिल ने मुझे कहा कि हीरे-जेवरातों से भरी वैन सबसे आगे होगी। जिसे वजीर सिंह चला रहा है। और तुम्हें यही बताऊं कि हीरे-जेवरातों वाली वैन बीच वाली है।"

"इन सब बातों में मुझे सिर्फ एक बात ही समझ नहीं आ रही कि युवराज पाटिल को कैसे मालूम हो गया कि तुमने मुझे उसकी दौलत के बारे में बताया है और मैं उसकी दौलत पर हाथ डालूंगा। और तुम मुझे बता रही हो कि किस वैन में दौलत होगी। हमारी फोन पर बात होती है।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा--- "सारी बातें युवराज पाटिल जान जाए, ये सिर्फ इत्तेफाक नहीं हो सकता।"

नसीमा के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी।

उनके बीच चुप्पी छाई रही।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।

"मेरा बॉयफ्रेंड है।" नसीमा धीमे स्वर में कह उठी--- "उस पर विश्वास करके, मैंने सब बातें उसे बता दीं। उसने धोखेबाजी की मुझसे और पाटिल को सब-कुछ बता दिया। उसके बाद पाटिल मेरे साथ आराम से पेश आया और मुझसे कहा कि आज के बाद ऐसी बातें बाहर किसी से न कहूँ। साथ ही उसने कहा कि तुम्हारी बात रखने के लिए देवराज चौहान को ऐसी वैन के बारे में बता देंगे, जिसमें कुछ नहीं होगा या फिर थोड़ा-बहुत पैसा होगा। मुझे ये कहने के बाद पाटिल ने ठाकुर और वजीर शाह के साथ योजना बना ली कि जब देवराज चौहान रास्ते में वैन पर हाथ डालेगा। उस वक्त उन दोनों में से कोई भी, जिसे मौका लगे। मुझे शूट कर देगा।"

"ये बात तुम्हें ठाकुर ने बताई...।" देवराज चौहान सोचों में घिरा था।

"हां।"

"ठाकुर ने ये बात बताकर खतरा क्यों लिया? पाटिल को मालूम हो गया तो...।"

"मेरी जान ली जाए। ठाकुर इस हक में नहीं है। उसे पाटिल का फैसला पसंद नहीं आया, परंतु पाटिल की बात को इंकार भी नहीं कर सकता। इसी नाराजगी के तहत उसने बीच की बात बता कर मुझे सतर्क कर दिया।"

देवराज चौहान ने सोच में डूबे कश लिया।

नसीमा के चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी।

"तुम्हारी इन बातों से कई उलझने पैदा हो गई हैं।" देवराज चौहान ने कहा।

नसीमा उसे देखती रही।

"युवराज पाटिल चाहता तो तुम्हें बताए बिना, खामोशी से अपनी दौलत को जहां भी पहुंचाना होता, पहुंचा देता कि तुम मुझे न बता सको। लेकिन उसने अपना प्रोग्राम नहीं बदला।" देवराज चौहान बोला।

"तुम ठीक कहते हो। सब कुछ जानते हुए भी पाटिल ने अपना प्रोग्राम नहीं बदला।"

देवराज चौहान ने नसीमा की आंखों में झांका।

"हो सकता है पाटिल खतरनाक खेल खेल रहा हो।" देवराज चौहान ने कहा।

"क्या मतलब?"

"जब तीनों वैनें वहां से चलेंगी तो उन वैनों को तुम्हारे सामने बंद किया जाएगा?" देवराज चौहान ने पूछा।

"नहीं मीडियम साईज की बख्तरबंद वैनें, हमारे हवाले कर दी जाएंगी।" नसीमा ने बताया।

"यानि कि उनके भीतर असल में क्या है तुम लोगों को भी नहीं मालूम होगा?"

"नहीं।"

"हो सकता है बंद वैनों में युवराज पाटिल ने अपने शूटर्स बिठा रखे हों कि वैन ले जाने के बाद जब उसे खोला जाए तो भीतर बैठे शूटर्स मुझे और मेरे साथियों को खत्म कर दें।"

नसीमा चौंकी। उसकी आंखें सिकुड़ गईं।

"हो सकता है।" नसीमा व्याकुल-सी कह उठी--- "पाटिल को सोच ले। जो कर दे, वो ही कम है। उससे हर तरह की आशा की जा सकती है। वो कब क्या सोच ले, कुछ पता नहीं।"

"ये भी हो सकता है, वो तीनों वैनें खाली हों। बीच में कुछ हो ही नहीं।"

नसीमा ने होंठ भींचे सिर हिला दिया।

"ये भी हो सकता है कि पाटिल के कहे मुताबिक हीरे-जेवरातों से भरी तिजोरी मौजूद हो और तुम्हारे द्वारा वो मुझसे ऐसी वैन पर हाथ डलवाना चाहता हो जो खाली हो।"

"मैंने कहा तो, कुछ भी हो सकता है।" नसीमा बेचैन हो उठी थी।

"ये भी हो सकता है कि तुम तीनों की जानकारी में आए बिना उसके आदमी कुछ फासला रख कर पीछे हों कि जब मैं वैनों पर हाथ डालूं तो वो मुझे खत्म करने की कोशिश करें।"

नसीमा कुछ नहीं बोली।

"सबसे बड़ा एक सवाल और पैदा होता है कि जब ठाकुर ने तुम्हें बताया कि पाटिल ने तुम्हें खत्म करने का सोच लिया है तो तुम्हें उसी वक्त मुंबई से दूर भाग जाना चाहिए था, परंतु तुमने ऐसा नहीं किया। बल्कि आज पाटिल से मुलाकात की और इस वक्त मेरे सामने बैठी हो।"

"ये जो तुमने कहा। बेकार की बात है।" नसीमा कह उठी।

"क्यों?"

"मैंने पाटिल के लिए जाने कितनी बार अपनी जिंदगी खतरे में डाली। ये बात वो भी अच्छी तरह जानता है। अगर मेरे से कोई गलती हो गई है तो आराम से बात करके मुझे वार्निंग दे सकता था।" नसीमा की आवाज में नफरत के भाव आ गए--- "मुझे अभी तक हैरानी है कि उसने मुझे शूट करने का पूरा इंतजाम कर लिया। अगर ठाकुर मुझे ना बताता तो मैं धोखे में मारी जाती। ऐसे में मैंने मन ही मन खुद को पक्का कर लिया कि युवराज पाटिल को ऐसा झटका दूंगी जब तक जिंदा रहेगा, मेरी सूरत को याद रखेगा। हरामजादा है वो। कमीना है। अपने नीचे काम करने वालों को सिर्फ कठपुतली समझता है। मैंने उसके साथ वफादारी की और मेरे से धोखेबाजी की उसने।"

देवराज चौहान नसीमा के सुलगते चेहरे को देखता रहा।

"आज एक झटका तो मैंने पाटिल को दे ही दिया है।" नसीमा के दांत भिंचे हुए थे।

"कैसे?"

"समंदर के रास्ते अरबों की उसकी स्मैक आई थी। जिसकी पेमेंट वो पहले ही दे चुका था। बाटला नाम के आदमी के हवाले काम था कि स्मैक के छः बोरे, लाने वालों से ले और हम तक पहुंचा दे। इसके बदले बाटला को तगड़ी रकम मिलती थी। बाटला ने स्मैक पहुंच जाने की खबर मुझे दी कि मैं अपने आदमी भेजकर उन छः बोरो को उसके यहां से उठवा लूं। तो मैंने ये खबर राम दा को दे दी, जो कि अंडरवर्ल्ड में अपना रुतबा रखता है और पाटिल से तगड़ी खार खाता है। राम दा के आदमी बाटला के यहां गए। बाटला और उसके दो आदमियों को शूट करके, स्मैक के बोरे ले गए। ये राम दा की बहुत बड़ी जीत है। स्मैक की रकम से वो हथियार खरीदेगा। आदमी खरीदेगा और उनका इस्तेमाल पाटिल पर ही करेगा।"

"ये कब की बात है?"

"आज दिन की।"

देवराज चौहान, नसीमा को देखते हुए सोचों में रहा।

तभी पर्दा हटाकर वेटर ने भीतर प्रवेश किया।

"आर्डर सर...!"

"दो कोल्ड ड्रिंक...।"

वेटर चला गया।

"राम दा का नंबर क्या है?"

नसीमा ने बेहिचक राम दा का फोन नंबर बता दिया।

वहां कुछ देर खामोशी रही।

"अब तुम क्या करोगे?"

"हालात उलझ कर, खतरनाक स्थिति पैदा कर रहे हैं। इस मामले में कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं आ रहा। इतना अवश्य मालूम हो रहा है कि युवराज पाटिल कोई खतरनाक खेल खेल रहा है।"

"तुम कहीं इस मामले से पीछे हटने की तो नहीं सोच रहे?" नसीमा के होंठों से निकला।

"हो सकता है। कोई बड़ी बात नहीं कि मैं पीछे भी हट जाऊं...।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

नसीमा ने होंठ भींच लिया।

"तुम खुद ही बताओ कि जो भी तुमने बताया है। इन हालातों में मुझे क्या करना चाहिए?" देवराज चौहान बोला।

"मैं तुम्हें कोई सलाह नहीं दे सकती...।" नसीमा गंभीर और व्याकुल थी।

"क्यों?"

"मैं अब महसूस कर रही हूं कि ये मामला वास्तव में खतरनाक हो चुका है। युवराज पाटिल कोई भी कैसी भी चाल चल सकता है। तुम जो पूछोगे, वो बता सकती हूं। लेकिन इस बारे में कोई सलाह नहीं दे सकती।"

"और कुछ कहना चाहती हो तुम?"

"ये कि अगर इस मामले में बड़ी दौलत हाथ लगे तो उसका दो प्रतिशत मुझे दे दोगे तो बहुत मेहरबानी होगी। मेरी जिंदगी आराम से कट जाएगी। मेरे पास और भी दौलत है। मेरे लिए सब ठीक रहेगा, परंतु यहां तो हालात ही ऐसे हुए नजर आ रहे हैं कि...।" नसीमा आगे कुछ न कह सकी।

वेटर आया और दो कोल्ड ड्रिंक रखकर चला गया।

"पाटिल अपनी दौलत कहां रखता है?"

"मैं नहीं जानती...।"

"कोई अंदाजा?"

"नहीं...।" नसीमा ने इंकार में सिर हिलाया।

"ठाकुर या वजीर शाह में से किसी को तोड़ा जा सकता है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"नहीं।" नसीमा ने पुनः इंकार में सिर हिलाया--- "इस तरह की कोई भी कोशिश सिरे से ही बेकार रहेगी।"

देवराज चौहान के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।

"क्या हुआ?"

"कुछ नहीं।"

"क्या सोचा कि कल क्या करोगे?" नसीमा के होंठ हिले। आंखों में बेचैनी थी।

"अभी कुछ नहीं सोचा इस बारे में अभी अपने साथियों से बात करूंगा। तुमसे किस फोन पर बात हो सकेगी?"

"मैं अपने फ्लैट पर जा रही हूं। दूसरे वाले फोन नंबर पर मुझसे बात हो सकेगी।" नसीमा ने जल्दी से कहा--- "लेकिन तुमने कुछ तो सोचा होगा कि इस मामले में, इन हालातों में क्या किया जा सकता है?"

देवराज चौहान ने जेब से सौ का नोट निकालकर कोल्ड ड्रिंक के नीचे दबाया और उठ खड़ा हुआ।

कुर्सी पर बैठी नसीमा की निगाह देवराज चौहान पर थी।

"रात को तुमसे बात करूंगा।" कहने के साथ ही देवराज चौहान पर्दा हटाकर केबिन से बाहर निकल गया।

■■■

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल बंगले पर मौजूद थे। शाम के सात बज रहे थे। उनके बीच चुप्पी गहराई हुई थी। नसीमा के साथ हुई बातचीत, देवराज चौहान ने जगमोहन और सोहनलाल को बताई थी।

देवराज चौहान की बात सुनकर सोहनलाल कह उठा।

"हम तो इस मामले को जितना आसान समझ रहे थे, ये तो उतना ही टेढ़ा हो गया।ज़

"अब तो इस बात की भी गारंटी नहीं कि युवराज पाटिल उन वैनों में अपना माल भेजता है या खाली वैनें ही भिजवाकर ड्रामा करेगा।" जगमोहन ने कहा--- "हो सकता है नसीमा के साथ-साथ, वो हमें भी साफ कर देना चाहता हो जब हम वैनों पर हाथ डालें। हद से ज्यादा मामला उलझ गया ये तो...।"

सोचों में डूबे देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

"मेरे ख्याल में तो इस मामले से अब हमें पीछे हट जाना चाहिए।" सोहनलाल कह उठा--- "युवराज पाटिल ने कल क्या करना है, कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ये बात भी स्पष्ट नहीं है कि वैनों में माल होगा कि नहीं। ऐसे में बेकार में खतरा उठाना ठीक नहीं होगा।"

देवराज चौहान फिर भी कुछ नहीं बोला।

"तुम क्या चाहते हो?" सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।

"सब कुछ सुनने के बाद तो यही लग रहा है कि कल हमें कुछ नहीं करना है।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा--- "जब दौलत के बारे में ही स्पष्ट नहीं कि वैनों में होगी या नहीं, तो ऐसे में कुछ करने का क्या फायदा। मेरे ख्याल में तो पाटिल ने गड़बड़ वाले मौके के लिए यकीनन कोई पुख्ता इंतजाम कर रखा होगा।"

तभी देवराज चौहान कह उठा।

"इन सब बातों में सबसे खास बात ये है कि पाटिल को कैसे मालूम हुआ कि नसीमा ने मुझे ये बातें कहीं हैं और मैं नसीमा को फोन करता हूं...।"

"नसीमा ने बताया तो कि उसके बॉयफ्रेंड ने...।" जगमोहन ने कहना चाहा।

"नहीं।" देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया--- "नसीमा इस बात पर झूठ बोल गई है। मुझे पूरा विश्वास है कि नसीमा की किसी गलती की वजह से पाटिल को सब-कुछ मालूम हुआ। इसके अलावा नसीमा ने जो भी कहा है, वो सच है। बाकी बातें झूठी नहीं हैं।"

सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।

"लेकिन अब करना क्या है?" जगमोहन ने पूछा।

"ये देखना है कि इन हालातों में युवराज पाटिल क्या खेल खेलता है।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।

"तो क्या कल पाटिल की वैनों पर हाथ डालोगे?" सोहनलाल की नजरें देवराज चौहान पर जा टिकीं।

"हां।"

"लेकिन इस काम में खामख्वाह का खतरा है।" जगमोहन के होंठों से निकला--- "इस वक्त सारी बाजी पाटिल के हाथों में है। वो जानता है कि कल हम वैनों पर हाथ डाल सकते हैं। हम कामयाब न हों, इसके लिए उसने कोई ना कोई पक्का इंतजाम कर रखा होगा। ये एकतरफा खेल है जिसकी डोर हर स्थिति में पाटिल के हाथ में रहेगी और नुकसान होगा तो सिर्फ हमारा।"

"अगर वैन हम ले भी उड़ें तो क्या मालूम भीतर उसके शूटर हों। जो कि वैन खोलते ही हम पर गोलियां चलाना शुरू कर दें। कोई फायदा नहीं है इस काम में।" सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट का कश लेकर कहा।

"मैं जानता हूं कल युवराज पाटिल किसी तगड़ी चालबाजी का इस्तेमाल करेगा।" देवराज चौहान ने जगमोहन और सोहनलाल को देखा--- "ऐसे में हम भी चालबाजी का ही इस्तेमाल करेंगे।"

"इस काम में कोई भी चालबाजी नहीं चल सकती...।" जगमोहन ने इंकार में सिर हिलाया।

"जो मैं सोच रहा हूं वो हो सकता है।" कहते हुए देवराज चौहान ने सिर हिलाया।

"क्या...?" सोहनलाल के होंठों से निकला।

"कल हम इस काम में राम दा का इस्तेमाल करेंगे।" देवराज चौहान बोला।

"वो गैंगस्टर...?" सोहनलाल के होंठों से निकला।

"लेकिन...।" जगमोहन ने बेचैनी से पहलू बदला--- "राम दा जैसा बंदा हमारे लिए काम क्यों करेगा?"

"नसीमा की बात भूल गए कि आज उसने राम दा को स्मैक के छः बोरों की खबर दी कि वो पूरे बाटला के पास मौजूद है। जल्दी करे तो उन बोरों को पा सकता है। और राम दा बाटला के पास मौजूद, पाटिल के स्मैक के छः बोरों को ले गया। ये बात हमारे काम आ सकती है। राम दा को हम अपने मामले के लिए तैयार कर सकते हैं।"

"वो कैसे?"

देवराज चौहान ने बताया।

"हां।" जगमोहन मुस्कुरा पड़ा--- "इस तरह हम राम दा को अपने काम में इस्तेमाल कर सकते हैं।"

"ऐसे में पाटिल कोई भी चाल चले। कल कैसे भी सुरक्षा के इंतजाम कर लो। उसका कोई भी प्रहार सीधे-सीधे हम पर नहीं होगा। वैनों में कुछ हुआ तो हमें मिल जाएगा। नहीं हुआ तो भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।"

"ये बात बढ़िया रही...।" सोहनलाल ने कहा।

"लेकिन तब नसीमा भी एक वैन चला रही होगी।" जगमोहन बोला--- "उसे नुकसान हो सकता है।"

"उसे कुछ नहीं होगा।" देवराज चौहान उठते हुए बोला--- "मैं राम दा से बात करता हूं।"

फोन के पास पहुंचकर नसीमा का बताया राम दा का नंबर देवराज चौहान ने मिलाया।

"हैलो।" बेल बजते ही रिसीवर उठाया गया। सख्त-सी आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी।

"मुझे खुशी हुई कि तुम्हारे आदमियों ने फुर्ती दिखाकर, बाटला के यहां अपना काम कर दिया। देर हो जाती तो इतना मोटा माल हाथ नहीं लगता।" देवराज चौहान ने फौरन कहा।

"कौन हो तुम?" इस बार आने वाले स्वर में सतर्कता आ गई थी।

"राम दा नहीं हो क्या तुम?"

"हूं। इस नंबर पर सिर्फ मैं ही रिसीवर उठाता हूं। लेकिन तुम कौन हो? मैं तुम्हें नहीं जानता?"

"स्मैक के छः बोरे बाटला के यहां...।"

"ये खबर देने वाली आवाज दूसरी थी। औरत की थी और तुम...।"

"बेवकूफ।" देवराज चौहान ने उसकी बात काटकर कहा--- "वो मेरी ही साथी है।"

"ओह!" राम दा का स्वर कानों में पड़ा--- "कौन हो तुम लोग? पाटिल से तुम्हारी क्या दुश्मनी है जो...?"

"अपने काम से मतलब रखो राम दा। ऐसे मोटे-मोटे फायदे तुम्हें अब बार-बार होते रहेंगे।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। तुम पाटिल से ज्यादा ताकतवर बन जाओगे।"

"उस दिन मुझे बहुत खुशी होगी।" राम दा की आवाज कानों में पड़ी--- "तुमसे कब मुलाकात होगी?"

"जब वक्त आएगा। मुलाकात भी हो जाएगी।" देवराज चौहान ने कहा--- "मेरा एक काम फंसा है। करोगे?"

"एक क्या, दस काम करूंगा। कहो तो...।"

"पाटिल के खिलाफ है मेरा काम।"

"फिर तो करने में और भी मजा आएगा।" राम दा के स्वर में खतरनाक भाव उभर आए थे--- "काम बोलो।"

"युवराज पाटिल का वो ठिकाना जानते हो जहां वो होता है।"

"मैं सब कुछ जानता हूं। तुम काम बोलो।"

"उस ठिकाने से कल एक-के-बाद-एक तीन मीडियम साईज की बख्तरबंद वैनें निकलेंगी। वक्त तुम्हें कल ही बता दिया जाएगा। पाटिल को मालूम है कि कोई उन वैनों पर हाथ डालने की कोशिश करेगा। ऐसे में ये भी हो सकता है कि वैनों की सुरक्षा का उसने तगड़ा इंतजाम कर रखा हो। जाहिरी तौर पर वैनों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। ठाकुर, वजीर शाह और नसीमा उन वैनों को चला रहे होंगे।"

"आगे बोलो।"

"उन वैनों पर कब्जा जमाना है। कोई भी मुसीबत आती है तो उसका मुकाबला तुम्हें ही करना है। सब इंतजाम करके चलना है तुमने। उस वक्त सिर पर आने वाली हर मुसीबत के बारे में सोच कर चलना है। ये काम हर हाल में पूरा होना चाहिए।" कहते हुए देवराज चौहान ने अपनी आवाज में सख्ती भर ली थी।

"फिक्र मत करो। मेरे आदमियों को काम पूरा करके लौटने की आदत है। आगे बोलो।"

"ठाकुर और वजीर शाह पर फौरन काबू पाना है कि वो कोई हरकत ना कर सकें। उन्हें जान से नहीं मारना है। उसके बाद तीनों वैनों और नसीमा को लेकर कहां पहुंचना है। ये बात भी कल सुबह बता दूंगा।"

राम दा की तरफ से कोई आवाज नहीं आई।

"चुप क्यों हो गए? काम होगा या नहीं?"

"काम तो मामूली है। कोई परेशानी नहीं। लेकिन तुम्हारी एक बात पसंद नहीं आई...।"

"क्या...?"

"ठाकुर और वजीर शाह को जिंदा छोड़ने वाली बात। उन दोनों को खत्म करने का कल मेरे आदमियों को बढ़िया मौका मिल रहा है। उनकी मौत हरामजादे पाटिल के लिए तगड़ी चोट साबित होगी और...।"

"ये काम तुम अपने लिए नहीं, मेरे लिए कर रहे हो। और मेरा काम करते हुए उन दोनों को जान से नहीं मारना है। छोड़ देना है। हो सकता है, इसमें मेरा कोई मतलब हो।" देवराज चौहान ने अपनी आवाज में सख्ती भर ली थी--- "उसके बाद तुम कभी भी दोनों को मार सकते हो। मुझे कोई एतराज नहीं...।"

"ठीक है। तुम्हारा काम तुम्हारे ढंग से ही सही...।"

"तुम्हारे आदमी मेरी बताई जगह पर वैनों को लेकर आएंगे और उनके खुलने तक वहीं रहेंगे। हो सकता है वैनों के भीतर पाटिल ने अपने शूटर्स बिठा रखे हों। ऐसा हुआ तो उन्हें खत्म कर देना है।"

"समझा। और कुछ?"

"वैनों के भीतर कुछ भी हो। उससे तुम्हारे आदमियों को कोई मतलब नहीं होगा। उनमें दौलत भी हो सकती है। कुछ और भी हो सकता है। खाली भी हो सकती है।"

"मानी तुम्हारी बात...।" एक मोबाइल फोन का नंबर नोट कर लो।" राम दा की आवाज कानों में पड़ी।

"क्यों?"

"ये मोबाइल फोन उसके पास होगा जो कल इस मामले को संभालेगा।" तुमने उसे मोबाइल पर दो बातें बतानी हैं। एक तो यह कि कितने बजे वो वैन पाटिल के उस ठिकाने से बाहर निकलेंगी। दूसरे ये बताना है कि तीनों वैनों और नसीमा को लेकर उसने कहां पहुंचना है।"

"नम्बर बोलो...।"

राम दा ने मोबाइल फोन का नंबर बताया।

"ठीक है। इस काम में बढ़िया आदमी लगाना...।"

"उसकी तुम फिक्र मत करो।" राम दा की आवाज कानों में पड़ी--- "तुम्हारा नाम क्या है?"

"जब मुलाकात होगी, नाम भी जान जाओगे।" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा--- "अब कल मैं मोबाइल फोन पर तुम्हारे आदमी से बात करूंगा।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया।

तभी सोहनलाल का मुस्कुराता स्वर कानों में पड़ा।

"ये बढ़िया रहा। पाटिल कल कैसी भी चालबाजी करे। हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। राम दा के आदमी सब संभाल लेंगे। पाटिल सोच भी नहीं सकेगा कि राम दा जैसे गैंगस्टर के आदमी, इस मामले में आ रहे हैं।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और गंभीर स्वर में कहा।

"वैसे तो इस मामले को मैं ही निपटाता। लेकिन डोर के दोनों सिरे पाटिल के हाथ में हैं। वो कोई तगड़ी चालबाजी कल करेगा। साथ ही नसीमा की जान को भी खतरा है। कुल मिलाकर इस मामले में ऐसे हालात बन गए हैं कि या तो हम पीछे हट जाएं या पाटिल की चालाकी का जवाब चालाकी से दें। और राम दा का इस्तेमाल करके चालाकी का जवाब चालाकी से ही पाटिल को दिया जाएगा।"

"मतलब कि तीनों वैनें खाली हों या भरी, हमें मिल जाएंगी।" जगमोहन ने गहरी सांस ली।

"हां। हमें वैनों के पास फटकने की भी जरूरत नहीं। नसीमा की जान भी नहीं जाएगी।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा फिर नसीमा का फोन नंबर मिलाने लगा।

नम्बर लगा। नसीमा से बात हुई।

"क्या फैसला किया तुमने?" नसीमा का व्याकुल स्वर उसके कानों में पड़ा--- "कल करोगे कुछ...?"

"हां। कल काम होगा।"

"कैसे?" पाटिल ने कई तरह के इंतजाम...।"

"ज्यादा सवाल मत पूछो। काम हो जाएगा। तुम्हें बचा लिया जाएगा। तुम बिल्कुल निश्चिंत रहना।" देवराज चौहान ने कहा--- "ये बताओ कि वो वैनें कब वहां से निकलेंगी?"

"पक्का तो नहीं मालूम। ये तो कल ही मालूम हो पाएगा।" नसीमा का सोच भरा स्वर आया।

"तो मुझे कैसे मालूम होगा?"

"कल वहीं फोन कर लेना।"

"पहला फोन कितने बजे करूं?"

"साढ़े दस बजे।"

"ठीक है।" देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया।

तभी जगमोहन कह उठा।

"इस काम में हमारे लायक तो करने को कुछ भी नहीं है।"

"अभी तक तो कुछ नहीं है।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "आगे देखते हैं क्या होता है।"

■■■

अगले दिन।

सुबह के नौ बजे।

युवराज पाटिल ने टेबल पार कुर्सियों पर बैठे ठाकुर, वजीर शाह और नसीमा को देखा।

"मैं रास्ते में तुम लोगों से कहीं भी मिल लूंगा। वहां से वैनों को गुप्त ठिकाने पर ले जाएंगे।"

"ठीक है पाटिल साहब...।" ठाकुर ने शांत भाव में कहा।

युवराज पाटिल ने नसीमा को देखा।

"देवराज चौहान से बात हुई?"

"जी। कल उसका फोन आया था। मैंने उसे यही कहा कि तीन वैनें यहां से निकलेंगी। आगे और पीछे वाली वैनें खाली होंगी। बीच वाली वैन में पाटिल साहब की दौलत होगी।" नसीमा ने मुस्कुराकर सामान्य स्वर में कहा।

"ठीक कहा।" कहते हुए युवराज पाटिल ने ठाकुर और वजीर शाह को देखा--- "जब देवराज चौहान रास्ते में कहीं, बीच वाली वैन पर हाथ डाले तो अपने को बचाकर उसका मुकाबला करना है और वैन उसे ले जाने देना है।"

दोनों ने सहमति से सिर हिलाया।

"इसके अलावा तब और क्या करना है। वो भी बता चुका हूं। सब काम सावधानी से पूरा होना चाहिए।"

"पूरा हो जाएगा।" ठाकुर ने सामान्य स्वर में कहा।

नसीमा समझ गई कि पाटिल के ये शब्द उसे शूट करने वाली बात, उन दोनों को याद दिला रहे हैं।

"किसी को कुछ और पूछना है?" युवराज पाटिल ने तीनों पर निगाह मारी।

"देवराज चौहान पूछ रहा था कि तीनों वैनें कितने बजे यहां से निकलेंगी।" नसीमा बोली--- "साढ़े दस बजे उसका फोन आएगा।"

"वैन तैयार हो रही है।" युवराज पाटिल ने नसीमा को देखकर सिर हिलाया--- "ग्यारह बजे के आसपास यहां से रवानागी होगी।"

नसीमा ने सिर हिला दिया।

"अब तुम लोग अपना काम कर लो। 10:45 पर मेरे पास आ जाना।"

तीनों उठे और वहां से बाहर निकल गए।

उनके जाने के बाद युवराज पाटिल टेबल पर मौजूद इंटरकॉम का स्विच दबाकर बोला।

"कर्मा...!"

"जी...।"

"मेरे पास आओ।" कहने के पश्चात युवराज पाटिल ने स्विच से उंगली हटाई और सिग्रेट सुलगा ली। उसके कठोरता भरे चेहरे पर सोचें उभरी पड़ी थीं।

मिनट भर बाद ही चालीस बरस के व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया। उसके हाव-भाव में चुस्ती भरी पड़ी थी। चेहरा सामान्य था। परंतु आंखों में खतरनाक भाव ठहरे हुए थे।

"जी पाटिल साहब...।"

"बैठो।"

वो बैठ गया

युवराज पाटिल ने कश लेकर उसे देखा।

"कर्मा!" युवराज पाटिल के होंठों पर मुस्कान उभरी--- "तुम बरसों से मेरे लिए काम कर रहे हो। मेरे विश्वास पर हमेशा खरे उतरे हो। मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं...।"

"ज...जी...।" कर्मा एकाएक सतर्क नजर आने लगा।

"मैं तुम्हें अपने खास आदमियों में शामिल करना चाहता हूं। युवराज पाटिल के चेहरे पर मुस्कान कायम थी।

"ज...जी...।"

"लेकिन मैं तीन से ज्यादा अपने खास आदमी नहीं रखना चाहता। ऐसे में तुम मेरे खास कैसे बनोगे?"

कर्मा की सतर्क निगाहें युवराज पाटिल के चेहरे पर जा टिकीं।

"तुम्हारा निशाना वैसा ही है या कमजोर पड़ गया है?" युवराज पाटिल खुलकर मुस्कुराया।

"मेरा निशाना पहले की तरह अचूक है पाटिल साहब! रुकने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।" कर्मा बोला।

युवराज पाटिल ने कश लेते हुए सिर हिलाया। फिर कह उठा।

"ग्यारह बजे यहां से तीन वैनें निकलेंगी। इन वैनों को ठाकुर, वजीर शाह और नसीमा चला रहे होंगे। बीच रास्ते में कुछ लोग वैनों को लूटने की चेष्टा करेंगे। तुम...।"

"क्या?" कर्मा के होंठों से निकला।

"सुनते रहो। इन बातों में, सिर्फ अपने काम की बात सुनो। कोई सवाल नहीं। कोई वैनों को लूटता है या नहीं। इस बात से तुम्हारा कोई मतलब नहीं। तुम्हें सिर्फ अपना काम करना है तब। खामोशी से वैनों का तुमने यहीं से पीछा शुरू कर देना है। और उस वक्त चुपके से तुमने नसीमा को शूट करना है।"

"समझ गया।" कर्मा ने सिर हिलाया।

कुछ पल वहां चुप्पी रही।

"तुमने पूछा नहीं कि नसीमा को क्यों शूट किया जा रहा है?" एकाएक युवराज पाटिल ने कहा।

"आपने सवाल करने को मना कर दिया था...।" कर्मा ने कहा।

युवराज पाटिल मुस्कुरा पड़ा।

"मैं तुम्हें बता देता हूं।" युवराज पाटिल के चेहरे पर मुस्कान के साथ कठोरता थी--- "नसीमा हमारी पर्सनल बातें देवराज चौहान को बता रही है। देवराज चौहान का नाम तो तुमने सुना ही होगा।"

"जी हां। वो रॉबरी मास्टर है।"

"वही देवराज चौहान।" युवराज पाटिल ने सिर हिलाया--- "देवराज चौहान भी हमें तगड़ा झटका दे सकता है। कल ही की बात है राम दा के आदमी, बाटला को खत्म करके, कई अरब रुपयों की हमारी स्मैक ले गए। आज तक हमारी कोई बात लीक नहीं हुई। कल राम दा को कैसे वक्त पर मालूम हो गया कि बाटला के पास हमारी स्मैक पहुंच गई है और हमारे आदमी उसे लेने जा रहे हैं।"

"आपका मतलब कि नसीमा ने ये बात...।"

"छोड़ो। ये सोचना मेरा काम है। तुमने नसीमा को शूट करना है। जाओ। ग्यारह बजे यहां से निकलने के लिए तैयार रहना। किसी को मालूम न हो कि तुम वैनों के पीछे हो।"

"जी...।" कर्मा खड़े होते हुए बोला--- "नसीमा को तो यहां भी खत्म किया जा सकता है।"

"ऐसा करना गलत हो जाएगा।" युवराज पाटिल ने सिर हिलाया--- "नसीमा हमारी खास है। ऐसे में उसे शूट किया गया तो किस-किस को बताया जाएगा कि नसीमा को क्यों शूट किया। कोई असल बात समझ पाएगा तो कोई नहीं समझेगा। मैं नहीं चाहता कि नसीमा की मौत को लेकर मेरे आदमियों के मन मैले हों। ऐसे में उसे इस तरह मारा जा रहा है कि लगे किसी बाहरी लोगों ने ये सब किया है।"

"समझ गया।"

"जाओ।"

कर्मा बाहर निकल गया।

■■■

नसीमा अपने कमरे में थी।

वजीर शाह, ठाकुर के पास पहुंचा।

"ठाकुर!" वजीर शाह गंभीर स्वर में कह उठा--- "आज नसीमा को शूट करना है।"

ठाकुर हौले से सिर हिलाकर रह गया।

"मुझे अच्छा नहीं लग रहा कि नसीमा को गोली मारी जाए।"

"पाटिल साहब से कह दे जाकर...।" ठाकुर का स्वर भावहीन था।

"नहीं कह सकता। नसीमा को खत्म करना, पाटिल साहब का फैसला है।" वजीर शाह ने लंबी सांस ली।

ठाकुर कुछ नहीं बोला।

"हम किसी तरह नसीमा को बचा नहीं सकते?"

"पाटिल साहब के हुक्म के खिलाफ चलकर, नसीमा को बचाने की कोशिश कर सकते हो।"

"मेरा ये मतलब नहीं था। पाटिल साहब के खिलाफ चलने की तो मैं सोच भी नहीं सकता।" वजीर शाह ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा--- "एक बात मुझे समझ नहीं आ रही।"

"क्या?"

"पाटिल साहब चाहते तो देवराज चौहान से बचकर भी निकला जा सकता था। उससे उलझे बिना भी काम हो सकता था। नसीमा को कह देते कि वो इस बारे में देवराज चौहान को कुछ न बताए तो देवराज चौहान ने खुद-ब-खुद ही इस मामले से बाहर जाना था। ऐसे में मामला लंबा क्यों किया गया?"

"नसीमा को मारने के लिए।"

"क्या मतलब?"

"अगर सीधे-सीधे नसीमा को मारा जाता तो हमारे आदमियों को नसीमा की मौत पसंद नहीं आती। पाटिल साहब के पास कोई ठोस वजह नहीं है कि उसे सुनकर हमारे आदमी कहते कि नसीमा की जान लेने का कारण सही था। ऐसे में जो नसीमा को ज्यादा पसंद करते हैं, उनके मन में विद्रोह की भावना आ सकती है। वो खामोशी से पाटिल साहब के खिलाफ काम करना शुरू कर देंगे। या फिर मन से काम नहीं करेंगे। ऐसी कई बातें उठ सकती हैं। इसलिए देवराज चौहान को इस मामले से दूर नहीं किया गया। देवराज चौहान वैन पर हाथ डाले और उस दौरान हम नसीमा को शूट कर दें, ताकि हर कोई यही समझे कि नसीमा को बाहरी लोगों ने मारा है।"

"ओह!" वजीर शाह के होंठ सिकुड़ गए--- "इतनी मामूली सी बात मैं नहीं समझ पाया।"

ठाकुर ने कुछ नहीं कहा।

"नसीमा को शूट करने में हमारा निशाना चूक भी सकता है।" वजीर शाह बोला--- "तब क्या होगा?"

"चिंता मत करो। इस बात से पाटिल साहब अंजान नहीं होंगे।" ठाकुर ने उसे देखा--- "उन्होंने दूसरा भी कोई इंतजाम कर रखा होगा कि नसीमा किसी भी हाल में बच ना पाए।"

सोचों में डूबे वजीर शाह सिर हिलाकर रह गया।

"एक बात और अपने दिमाग में बिठा लो।"

"क्या?"

"हमारी भी जान जा सकती है। देवराज चौहान या उसके किसी साथी की गोली से।" ठाकुर ने गंभीर स्वर में कहा--- "जब वो वैन पर हाथ डाले तो ज्यादा अड़ना नहीं है।"

"इस बात का मैं खास ध्यान रखूंगा।"

■■■

साढ़े दस बजे देवराज चौहान का फोन आया। नसीमा ने बात की।

"वैनें कब बाहर निकलेंगी।" देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।

"ग्यारह बजे।" नसीमा के स्वर में व्याकुलता थी।

"वैनों के रंग और नंबर क्या हैं?"

"मैं नहीं जानती।" नसीमा ने जल्दी से कहा--- "एक के बाद एक तीन वैनें बाहर निकलें तो समझ जाना।"

"ठीक है।"

"मैं ये सोच कर परेशान हूं कि क्या तुम सब संभाल---।" नसीमा ने कहना चाहा।

लेकिन दूसरी तरफ से देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया था।

■■■

आगे वाली वैन को वजीर शाह चला रहा था। बीच वाली वैन को ठाकुर और तीसरी वैन को नसीमा ड्राइव कर रही थी।

एक के बाद एक तीनों वैनें उस बड़ी बिल्डिंग के गेट से बाहर निकलीं और सड़क पर पहुंच गईं। उस गेट से रोजाना वैनें-कारें निकलती रहती थीं। इसलिए आज भी वैनों का वहां से बाहर निकलना नजर पड़ने वालों के लिए सामान्य सी बात थी। बहुत कम ही लोग ही जानते थे कि ये जगह अंडरवर्ल्ड किंग युवराज पाटिल की है।

सड़क पर वैनों की रफ्तार चालीस-पैंतालीस से ज्यादा की नहीं थी।

वजीर शाह और ठाकुर के चेहरों पर गंभीरता ठहरी हुई थी। उनकी सतर्क निगाहे हर तरफ फिर रही थीं। वो जानते थे कि अब देवराज चौहान से रास्ते में कहीं भी टकराव हो सकता है।

जबकि नसीमा बेचैन ही नहीं परेशान भी थी। कभी-कभी तो उसकी परेशानी चेहरे पर से स्पष्ट झलकने लगती थी। वो नहीं जानती थी कि वैनों में क्या है। युवराज पाटिल के शूटर भी वैनों में हो सकते हैं। पाटिल ने ठाकुर और वजीर शाह से कह रखा है कि जब भी देवराज चौहान वैन पर हाथ डाले तो देवराज चौहान पर ध्यान ना देना, सबसे पहले उसे शूट करना है। नसीमा ने खुद को भी बचाना था और देवराज चौहान को भी सफल कराना था।

लेकिन इस वक्त नसीमा को महसूस हो चुका था कि वो वास्तव में खतरनाक खेल खेल रही है। कभी भी उसकी जान जा सकती है। नसीर की बात मानकर उसे पंजाब चले जाना चाहिए था।

परंतु अब वो सब मौके हाथ से निकल चुके थे।

वक्त पीछे रह गया था जब वो तसल्ली भरे ढंग से खुद को बचा सकती थी। अब तो सब कुछ देवराज चौहान पर ही निर्भर था कि वो कैसे वैन पर हाथ डालता है और कैसे उसे बचाता है। नसीमा इस वक्त पैंट और शर्ट में थी। सिर पर छोटी सी कैप डाल रखी थी। लंबे बाल कैप में फंसे पड़े थे। पैंट की जेब में लोडेड रिवॉल्वर मौजूद थी। मन ही मन वो तय कर चुकी थी कि ठाकुर या वजीर शाह ने जब भी उसे शूट करने की चेष्टा की तो वो, उससे पहले ही उन्हें शूट कर देगी।

वैन ड्राइव करते हुए नसीमा की निगाहें भी इधर-उधर फिर रही थीं।

नसीमा की निगाहों में युवराज पाटिल का पागलपन ही था जोकि उसकी जान लेने की सोच बैठा था। वो ऐसा न करता तो सब ठीक ही रहता था। अब उसे आने वाले वक्त का इंतजार था कि देवराज चौहान कैसे अपना काम करता है और वो वक्त कभी भी आ सकता था।

इस वक्त तीनो वैनें ऐसे रास्ते पर थीं, जहां अन्य सड़कों की अपेक्षा कम वाहन थे। कुछ वाहन आगे थे तो कुछ पीछे भी आ रहे थे। उसी वक्त पीछे आ रही एक कार की स्पीड एकाएक ही तेज हुई और वैनों को ओवरटेक करती हुई, आगे वाली वैन के सामने तिरछी होकर रुक गई।

वजीर सिंह ने फौरन ब्रेक मारे।

पीछे वाली दोनों वैने भी रुकीं। उसके पीछे के अन्य वाहन भी।

उस कार के चारों दरवाजे खुले। देखते ही देखते रिवाल्वर और गन थामें सात व्यक्ति तेजी से बाहर निकले। चार पीछे वाली वैनों की तरफ भागे। बाकी के तीनों ने वजीर शाह वाली वैन के दोनों दरवाजे खोले और आनन-फानन वजीर शाह को बाहर खींच लिया और एक ने पीछे से रिवाल्वर का दस्ता उसके सिर पर जोर से मारा। कुछ भी समझने का मौका नहीं मिला उसे और वो बेहोश होता चला गया।

ऐसा ही ठाकुर के साथ हुआ।

दोनों को उन्होंने बेदर्दी से खींचकर सड़क के किनारे डाल दिया।

नसीमा को एक ने खींचकर वैन से उतारा।

'चल।" उसने कठोर स्वर में कहा--- "अपनी खैर चाहती है तो चुपचाप कार में बैठ जा।

नसीमा भी पूरी तरह मामले को नहीं समझ पा रही थी। इन लोगों में न तो देवराज चौहान था और न ही जगमोहन। ठाकुर और वजीर शाह को बेहोश होते उसने देख लिया था।

"चलेगी या मारूं गोली।" उसने भींचकर कहा।

नसीमा बिना कुछ कहे कार की तरफ बढ़ गई। उसे लग रहा था कि जैसे देवराज चौहान के पहले ही किसी और ने वैन पर हाथ डाल दिया है। चंद कदम उठाने के बाद जाने क्या सोचकर, शायद यूं ही उसने गर्दन घुमाकर पीछे देखा तो उसी पल उसकी आंखें फैल गईं।

पीछे से पीछे वाली कार के बाहर कर्मा खड़ा नजर आया जो हाथ में रिवाल्वर थामें उसे निशाना बनाने जा रहा था। उसी पल नसीमा ने खुद को सड़क पर गिरा लिया।

तेज धमाके के साथ सुलगती गोली उसके ऊपर से निकल गई। नीचे गिरने में दो पलों की भी देर हो जाती तो उसने जिंदा नहीं बचना था। नीचे गिरते ही दांत भींचे नसीमा ने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाला और कर्मा की तरफ नाल करके ट्रिगर दबाती चली गई।

फायरों के तेज धमाके गूंजे।

दो गोलियां कर्मा को लगीं। तीन खाली गईं।

चेहरे पर दरिंदगी समेटे नसीमा उठ खड़ी हुई। कर्मा को नीचे गिरते उसने देख लिया था। वो समझ चुकी थी कि युवराज पाटिल  ने कर्मा को भी पीछे लगा दिया था कि अगर वो बच जाए तो कर्मा उसे शूट कर दे।

नसीमा को कार की तरफ ले जाने वाला व्यक्ति रिवाल्वर थामें हक्का-बक्का खड़ा था।

पीछे खड़े अन्य वाहनों में लोग दुबके पड़े थे।

"ये क्या किया तुमने?" उस व्यक्ति के होंठों से निकला।

"वो मुझे मारने जा रहा था।" नसीमा ने दांत भींचकर कहा और नीचे पड़े कर्मा के पास जा पहुंची। वो मर चुका था। एक गोली उसकी छाती में लगी थी।

"कार में चल। जल्दी---।" कहते हुए उसने नसीमा के हाथ से रिवाल्वर ले ली।

नसीमा कार में जा बैठी।

ठाकुर और वजीर शाह सड़क किनारे बेहोश पड़े थे।

कार में अब चार आदमी थे। पांचवी वो। बाकी तीन, तीनों वैनों की ड्राइविंग सीट पर बैठ चुके थे। कार आगे बढ़ी तो तीनों वैनें भी आगे बढ़ गईं।

जब वैनें निगाहों से ओझल हो ग8 तो पीछे उनके वाहनों में से लोग बाहर निकलने लगे। उनके चेहरे पर घबराहट स्पष्ट नजर आ रही थी।

उधर नसीमा ने उन लोगों से कुछ भी नहीं पूछा था। ठाकुर, वजीर शाह को बेहोश करके वहीं छोड़ना और उसे साथ ले जाने से स्पष्ट था कि ये काम देवराज चौहान के लिए हो रहा है। उसने पीछे आती तीनों वैनों को देखा। कितनी आसानी से ये काम हो गया था। वो यूं ही परेशान हो रही थी। फिर उसका ध्यान कर्मा की तरफ चला गया कि युवराज पाटिल ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी, उसे मारने के वास्ते।

■■■

आधे घंटे के बाद वो कार और उसके पीछे-पीछे तीनों वैन, सुनसान सड़क से नीचे, कच्चे में उतर कर आगे बढ़ गईं। कुछ आगे जाकर रास्ता और खराब होने लगा। वहां लम्बे सफेदे के पेड़ों का झुंड था। जिनके पास एक कार पहले से ही मौजूद थी। वहां देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल मौजूद थे।

देवराज चौहान को देखते ही नसीमा के चेहरे पर राहत के भाव आए।

कार के दरवाजे खुले और नसीमा को लेकर वे देवराज चौहान के पास पहुंचे।

"अच्छा काम किया।" नसीमा को देखते ही देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "ठाकुर और वजीर शाह---?"

"उन्हें बेहोश करके सड़क के किनारे डाल दिया था।" एक ने कहा।

"जिंदा हैं वो?"

"हां। मरेंगे नहीं।"

देवराज चौहान ने वहां रुक चुकी वैनों पर निगाह मारी।

"इन वैनों को खोलो। लेकिन सावधानी से। भीतर पाटिल ने शूटर्स भी बिठाए हो सकते हैं।" देवराज चौहान बोला।

"अगर भीतर कोई है तो निपट लेंगे।" एक ने खतरनाक स्वर में कहा।

वैन ड्राइव करने वाले भी वहां आ गए थे।

"लेकिन वैनों को खोलेंगे कैसे?" अन्य व्यक्ति ने कहा--- "सब बंद हैं।"

सोहनलाल कुछ कहने लगा तो देवराज चौहान ने उसे खामोश रहने को इशारा किया।

"इस गन से।" तीसरे ने हाथ में पकड़ी गन की तरफ इशारा करके सख्त स्वर में कहा।

"गन तो मेरे पास भी है।"

"उसके बाद वे सातों वैन की तरफ बढ़ गए।

वैन के लॉक वाले हिस्से पर गन लगाकर उसने गन को चालू कर दिया। आधे मिनट में ही वैन लॉक के चिथड़े उड़ गए। सब ने हाथों में हथियार थाम लिए।

एक ने दूसरे को इशारा किया।

तो वह व्यक्ति दरवाजे को फुर्ती के साथ खोलते हुए पीछे हट गया। बाकी के छः फायरिंग करने के लिए तैयार खड़े थे। लेकिन भीतर कोई आदमी न होकर चार फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी तिजोरी थी। जो कि वैन को वैन की दीवार के साथ सटाकर खड़ी की गई थी। वो गिरे नहीं। इसके लिए उसे लकड़ी के दो टेबलों का सहारा दे रखा था। इसके अलावा भीतर कुछ भी नहीं था।

"इसमें तिजोरी है। कोई आदमी नहीं।" एक ने देवराज चौहान को देखकर कहा।

"बाकी की दोनों वैनें चैक करो।"

वो सब दूसरी वैन की तरफ बढ़ गए।

नसीमा कुछ कहने लगी तो देवराज चौहान ने टोका।

"अभी कुछ मत कहो।"

नसीमा चुप हो गई।

"जगमोहन!" देवराज चौहान बोला--- "तुम कार पर सोहनलाल के साथ जाओ और कहीं से भी टैम्पू ले आओ। तिजोरी पाटिल वाली वैन पर ले जाना ठीक नहीं होगा।"

"तिजोरी का साईज देख लूं।"

जगमोहन और सोहनलाल ने आगे बढ़कर वैन में मौजूद तिजोरी को देखा।

"टैम्पो में आ जाएगी।" सोहनलाल ने कहा।

"इसमें कितना माल भरा पड़ा होगा?" जगमोहन कह उठा।

"पहले टैम्पो का इंतजाम कर।" सोहनलाल ने मुंह बनाया--- "पाटिल हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठा होगा।"

जगमोहन और सोहनलाल कार पर वहां से चले गए।

उन सातों ने बाकी की दोनों वैनों को भी चैक कर लिया।

वो दोनों वैनें खाली थीं।

"अब क्या करना है।" वो पास पहुंचे।

"उस तिजोरी को देखो। वो भारी है या हल्की?" देवराज चौहान ने कहा।

दो व्यक्ति वैन के भीतर गए। तिजोरी के साथ सटा रखी लकड़ी की टेबलों को उन्होंने बाहर फेंका और तिजोरी को चैक करने के बाद एक ने कहा।

"ये तो अपनी जगह से हिल ही नहीं रही। बहुत भारी है।"

"तो फिर कुछ देर तुम लोगों को रुकना होगा। मेरा आदमी टैम्पो लेने गया है।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला--- "तिजोरी को वैन से निकाल कर टैम्पो में रखना है।"

उन्होंने इस बात पर कोई एतराज नहीं उठाया।

आधे घंटे में ही जगमोहन कार पर वहां पहुंचा। पीछे-पीछे सोहनलाल टैम्पो चलाते आ गया। उसके बाद उन सातों ने उस भारी तिजोरी को खिसकाकर टैम्पो में पहुंचाया। टैम्पो में तिरपाल पड़ी थी। जिसे कि तिजोरी के ऊपर दे दिया गया। देवराज चौहान ने उन लोगों से कहा।

"अब तुम लोग जा सकते हो। पीछे पलट कर देखने की जरूरत नहीं है।"

जवाब में वो मुस्कुराए और अपनी कार की तरफ बढ़ गए। देखते ही देखते वे सब कार में बैठे। कार स्टार्ट हुई और वहां से चली गई।

"सोहनलाल! टैम्पो को बंगले पर ले जाओ। हम पीछे-पीछे आ रहे हैं।" देवराज चौहान बोला।

सोहनलाल बिना कुछ कहे टैम्पो की ड्राइविंग सीट पर बैठा। उसे स्टार्ट किया--- और वापस मोड़ते हुए टैम्पो को सड़क की तरफ लेता चला गया।

नसीमा को लिए देवराज चौहान और जगमोहन कार में बैठे। जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी। तभी नसीमा खुशी भरे स्वर में कह उठी।

"देवराज चौहान तुमने बहुत अच्छे ढंग से इन आदमियों से काम लिया। मिनटों में ही इन्होंने सारा काम---।"

"मैंने इन लोगों से कोई काम नहीं लिया। जो काम किया है, इन्होंने खुद ही किया है।" देवराज चौहान ने कहने के पश्चात सिगरेट सुलगाई--- "ये मेरे नहीं राम दा जैसे गैंगस्टर के आदमी हैं।"

"राम दा!" नसीमा के होंठों से निकला--- "तुम जानते हो उसे?"

"छोड़ो इन बातों को। तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं आई?"

"नहीं।" नसीमा ने गहरी सांस ली--- "पाटिल ने मुझे मारने का पक्का इंतजाम कर रखा था, अगर ठाकुर और वजीर शाह के निशानों से किसी तरह बच भी जाऊं तो कर्मा मुझे मार दे। वो पीछे था।"

"कर्मा?"

"पाटिल का बढ़िया निशानेबाज था। वो मेरा निशाना ले लेता। अगर मैंने वक्त रहते उसे देख न लिया होता। खुद को कठिनता से बचाया और उसे शूट कर दिया मैंने।" नसीमा ने कहा।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

"ये बहुत ही अच्छा हुआ कि पाटिल ने वैन में वास्तव में तिजोरी ही भेजी है।" नसीमा एकाएक मुस्कुरा कर कह उठी--- "उसे इस बात का भरोसा रहा होगा कि तुम मेरी दी खबर के मुताबिक बीच वाली वैन पर हाथ डालोगे।"

"तिजोरी में है क्या?" जगमोहन ने जल्दी से पूछा।

"हीरे-जेवरात। जवाहरात। कम से कम पच्चीस-तीस अरब का माल है। ज्यादा भी हो सकता है।" कहते हुए नसीमा हौले से हंसी--- "हम सफल रहे।"

"तुमने तिजोरी में पड़े हीरे-जवाहरातों को देखा है?"

"नहीं। लेकिन पाटिल ने बताया था कि तिजोरी में क्या है।" नसीमा ने कहा।

"पाटिल तुम्हें गलत भी कह सकता है।" जगमोहन बोला।

"अगर उसने गलत कहा है तो, तब तिजोरी को इतना भारी नहीं होना था।"

"हो सकता है उसने तिजोरी में ईंट-पत्थर या लोहे का कबाड़ भर दिया हो।"

"अगर पाटिल को ऐसा करना होता तो वो तिजोरी को वैन में भेजता ही क्यों। तीनों वैनें खाली ही वहां से बाहर भेजता। अपनी तिजोरी बेकार करने की क्या जरूरत थी।" नसीमा ने जवाब दिया।

जगमोहन ने फिर कुछ नहीं कहा। नजरें आगे जाते टैम्पो पर टिका दीं।

कश लेता देवराज चौहान बाहर देख रहा था।

"तुम खुश नहीं हो देवराज चौहान।" नसीमा बोली--- "अरबों की दौलत हमारे हाथ लग गई है। तिजोरी में से जो भी मिले, उसका दो प्रतिशत मुझे दे देना। मेरी सारी जिंदगी अच्छी बीत जाएगी।"

"दो प्रतिशत तुम्हें मिल जाएगा।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "एक बात मुझे हजम नहीं हो रही।"

"क्या?"

"युवराज पाटिल बेवकूफ नहीं है कि अरबों की दौलत बिना किसी सुरक्षा के खुली सड़क पर ले आए।"

"पाटिल ऐसा ही करता है।" नसीमा कह उठी--- "उसका कहना है कि ज्यादा सुरक्षा दूसरे लोगों का ध्यान आकर्षित करती है। बड़ी-बड़ी रकमें वो अकेले आदमी के हाथ भेज---।"

"मैं नहीं मानता।" देवराज चौहान के स्वर में दृढ़ता थी।

"तुम्हें मान लेना चाहिए कि शायद नसीमा ठीक कह रही है।" जगमोहन कह उठा--- "क्योंकि तिजोरी हमारे पास है और पाटिल का कोई आदमी हमारे आगे-पीछे नहीं है।"

"मैं नहीं मान सकता।" देवराज चौहान के स्वर में भरी दृढ़ता में कोई कमी नहीं आई थी। आंखों में सोच के भाव गहरे होते जा रहे थे।

■■■

ठाकुर और वजीर शाह के सिर पर बैंडेज हुई पड़ी थी, जहां रिवाल्वरों के दस्ते की चोटें पड़ी थीं। होश आने पर उन्होंने पुलिस को पास पाया था। लोगों ने पुलिस को फोन कर दिया था। पुलिस वाले पहले उन्हें डॉक्टर के पास ले गए थे उसके बाद उन्हें उनके ठिकाने के बाहर छोड़ा था। उन्होंने ठाकुर और वजीर शाह से कुछ भी नहीं पूछा था। उन्हें वो पहचानते थे। पूछताछ करके वे कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते थे। जब वे ठिकाने के बाहर उतरे तो सब-इंस्पेक्टर ने मुस्कुराकर कहा---।

"मैं नहीं जानता कि आप दोनों को इस हाल में पहुंचाने वाले कौन थे। लेकिन वो जो भी थे, शरीफ थे। वरना मुझे तो हैरानी हो रही है कि उन लोगों ने आप दोनों को जिंदा क्यों छोड़ दिया? उनके पास बहुत अच्छा मौका था

वजीर शाह मुस्कुराकर रह गया।

"इस बात की भी हैरानी है कि वो लोग नसीमा को अपने साथ ले गए और नसीमा भी बिना किसी एतराज के उनके साथ चली गई। वहां मौजूद लोगों ने जो देखा, वो मैंने मालूम किया है।"

नसीमा का ध्यान आते ही वजीर शाह के चेहरे पर उभरी मुस्कान हट गई।

"इससे भी बड़ी हैरानी, इस बात की हो रही है कि पाटिल साहब के खास निशानेबाज ने नसीमा को खत्म करना चाहा। किस्मत से नसीमा ने खुद को बचा लिया और कर्मा को शूट कर दिया। इन बातों में कई बातें ऐसी हैं कि जो मेरी उत्सुकता बढ़ा रही है। लेकिन अपनी उत्सुकता की शांति के लिए आप लोगों से कुछ पूछ भी नहीं सकता।" सब-इंस्पेक्टर के चेहरे पर मुस्कान थी।

"इन बातों में तुम्हारे काम का कुछ भी नहीं है।" ठाकुर ने शांत स्वर में कहा

"मालूम है मुझे। ये तुम लोगों के जाती मामले हैं।" सब-इंस्पेक्टर ने सिर हिलाया--- "लेकिन कानून की भी थोड़ी-बहुत परवाह कर लिया करो। हमें भी ऊपर जवाब देना पड़ता है।"

"ऊपर वालों से पाटिल साहब बात कर लेंगे।" वजीर शाह बोला--- "तुम क्यों परेशान हो रहे हो?"

"मैं परेशान नहीं हो रहा। सरसरी तौर पर यूं ही बात कर रहा था।" सब-इंस्पेक्टर ने कहा--- "कर्मा की लाश का क्या करना है? दो पुलिस वाले लाश को एंबुलेंस में रखे सड़क के किनारे खड़े हैं।"

"कर्मा की लाश को खामोशी से उसके घर पहुंचा दो। हम उसके घर फोन कर देते हैं।" ठाकुर बोला।

सब-इंस्पेक्टर ने उसे देखा फिर सिर हिलाकर ड्राइवर से बोला।

"चलो।"

पुलिस की जिप्सी वहां से आगे बढ़ गई।

ठाकुर और वजीर शाह की नजरें मिलीं।

"पाटिल साहब से क्या कहना है?" वजीर शाह ने कहा

"जो हुआ, वो ही कहना है।" ठाकुर गंभीर था।

"मालूम नहीं वैन में क्या था। ऊपर से नसीमा भी बच गई। पाटिल को गुस्सा---।"

"जो हुआ, उसमें हम कुछ नहीं कर सकते थे। वो सब आदमी तूफान की तरह आए थे। हमें सोचने तक का मौका नहीं मिला।" ठाकुर की आवाज में सख्ती आ गई--- "पाटिल साहब को मालूम था कि रास्ते में देवराज चौहान ने कुछ करना है तो, साथ में कुछ और आदमी भेजने चाहिए थे।"

"वो आदमी जो भी थे।" वजीर शाह ने गहरी सांस ली--- "बहुत अच्छे ढंग से काम किया। वो...।"

"तुमने पहचाना नहीं उनको?" ठाकुर ने कहा।

"नहीं।" वजीर शाह की निगाह ठाकुर पर जा टिकी।

"उनमें से दो को मैं पहचानता हूं। वो राम दा के आदमी थे।" ठाकुर के दांत भिंच गए

"राम दा?" वजीर शाह के होंठों से निकला--- "लेकिन हमें तो देवराज चौहान ने रोकना---।"

"ये काम उन्होंने देवराज चौहान के लिए ही किया है। नसीमा का साथ ले जाना यही साबित करता है।"

"देखना।" वजीर शाह दांत किटकिटा उठा--- "राम दा जल्दी ही हमारे हाथों मरेगा। बहुत पर निकल आए हैं उसके। कल स्मैक के छः बोरे लूट लिए। बाटला और उसके दो आदमियों को मार दिया।"

ठाकुर कुछ नहीं बोला।

"लेकिन राम दा के आदमियों ने हमें क्यों जिंदा छोड़ दिया। बहुत बढ़िया मौका था हमें खत्म करने का।" एकाएक वजीर शाह के होंठों से निकला--- "हम दोनों को खत्म करके राम दा फायदे में रहता।"

"मालूम नहीं।" ठाकुर ने सपाट स्वर में कहा। जबकि वो जानता था कि नसीमा ने कहा होगा कि उन दोनों को नहीं खत्म करना है। वरना उन्हें जिंदा छोड़े जाने की और कोई वजह नहीं हो सकती।

"आओ भीतर चलें।" वजीर शाह बोला।

"हां...। पहले कर्मा के घर फोन करके उसकी पत्नी से बात करते हैं कि उसकी लाश देखकर शोर न डाले। चुपचाप काम निपटा दे। कल बीस लाख उसके घर पहुंच जाएगा।" ठाकुर ने शांत स्वर में कहा--- "उसके बाद पाटिल साहब के पास चलेंगे। ये भी हो सकता है पाटिल साहब को सब कुछ मालूम हो गया हो।"

दोनों भीतर प्रवेश कर गए।

■■■

युवराज पाटिल ने सुलगती निगाहों से ठाकुर और वजीर शाह को देखा।

"क्या बताने आए हो मुझे कि उन लोगों ने तुम्हारा सिर फाड़ दिया। या फिर देवराज चौहान वैनों में ले गया। या नसीमा को तुम लोग शूट नहीं कर सके और नसीमा ने कर्मा को गोली मार दी।" युवराज पाटिल का स्वर गुस्से से भरा था।

"हमें नहीं मालूम था कि पीछे कर्मा भी है।" वजीर शाह ने कहा।

"मालूम होता तो भी तुम क्या कर लेते?" पाटिल ने खा जाने वाले स्वर में कहा।

"पाटिल साहब!" ठाकुर बोला--- "आपने ही तो कहा था कि देवराज चौहान जब वैन ले जाने की कोशिश करे तो उस वक्त टकराव की स्थिति पैदा नहीं करनी है। उसे वैन ले जाने देना।"

"एक वैन।" बीच वाली, तीनो वैनें नहीं कि...।"

"उन लोगों ने बहुत फुर्ती से काम लिया। हमें समझने का मौका ही नहीं मिला कि क्या हो रहा है।" वजीर शाह ने गंभीर स्वर में कहा--- "वो लोग खून-खराबे पर उतारू थे। उनका मुकाबला करते तो वो कुछ भी कर सकते थे।"

"मतलब कि खुद को बचाकर, सब-कुछ लुटाकर लौट आए और सोचते हो बहुत बड़ा काम कर लिया।"

"उन लोगों में देवराज चौहान नहीं था।" ठाकुर का स्वर गंभीर था।

"तो?" युवराज पाटिल की आंखें सिकुड़ी।

"उनमें से दो को मैंने पहचाना था। वो राम दा के आदमी थे।"

"राम दा के आदमी...?" युवराज पाटिल के होंठों से निकला।

ठाकुर और वजीर शाह, युवराज पाटिल का उलझन भरा चेहरा देखते रहे।

"तुम्हारा मतलब कि राम दा ने ये सब किया है।" युवराज पाटिल कह उठा।

"नहीं।" ठाकुर ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मेरे ख्याल में देवराज चौहान ने इस काम में राम दा को इस्तेमाल किया है।"

"ये बात तुम कैसे कह सकते हो?"

"मैं...।" ठाकुर ने सिर हिलाकर गंभीर स्वर में कहा--- "ये भी कह सकता हूं कि नसीमा जान चुकी थी कि हम उसे, आपके कहने पर शूट करने वाले हैं। तभी तो उन लोगों ने हमें बेहोश करके सड़क के किनारे फेंक दिया और वे नसीमा को ले गए। नसीमा देवराज चौहान को यहां की एक-एक बात बताती रही है। तभी तो वो लोग बीच वाली वैन न ले जाकर, तीनों वैनें ले गए कि जाने किस में दौलत हो।"

"नसीमा को कैसे मालूम हुआ कि मेरे कहने पर तुम लोग उसे शूट करने वाले हो। ये बात हम तीनों के अलावा कोई नहीं जानता था। फिर नसीमा कैसे जान गई...?" युवराज पाटिल के होंठ भिंच गए।

ठाकुर और वजीर शाह खामोश रहे।

एकाएक युवराज पाटिल कह उठा।

"ये बात पक्की है कि तुम लोगों पर हमला करने वाले राम दा के आदमी थे?"

"हां।" ठाकुर बोला--- "राम दा के उन दो आदमियों को पहचानने में मैं धोखा नहीं खा सकता।"

"एक बार फिर सोच लो ठाकुर...।"

"इसमें सोचने की कोई बात है ही नहीं पाटिल साहब...।"

"है। सोचने की बात है। सारी सोचें शुरू से ही तुम्हारे जवाब से होती हैं।" युवराज पाटिल दांत भींचकर कह उठा--- "अगर वो लोग राम दा के आदमी थे तो सवाल ये उठता है कि उन्होंने तुम दोनों को जिंदा क्यों छोड़ दिया?"

ठाकुर और वजीर शाह की नजरें युवराज पाटिल के सुलगते चेहरे पर जा टिकीं।

"तुम दोनों को शूट कर देने से राम दा को बहुत फायदा होता। मेरे कई काम रुक जाते। कई तरह का नुकसान होता। मेरी ताकत कम हो जाती बोलो--- उन लोगों ने तुम दोनों को जिंदा क्यों छोड़ दिया?" युवराज पाटिल की सुलगती निगाह दोनों पर थी।

"हमें जिंदा छोड़कर राम दा कोई खास खेल खेल रहा हो।" वजीर शाह बोला।

"ऐसा करके राम दा कोई खेल नहीं खेल सकता। ठाकुर...।"

"जी...।"

"एक बार फिर सोचो। वो राम दा के आदमी थे?" युवराज पाटिल की आंखों में खूंखारता के भाव आ ठहरे थे।

"मैंने पहले भी कहा है कि राम दा के आदमियों को पहचानने में मुझसे कोई गलती नहीं हुई।" ठाकुर ने कहा।

"फिर तो इस बात का सीधे-सीधे एक ही मतलब निकलता है।" पाटिल भी नाग की तरह फुंफकार उठा।

"कैसा मतलब?"

"तुम दोनों में से किसी एक ने गद्दारी की है।" युवराज पाटिल गुर्रा उठा।

"गद्दारी?" ठाकुर के होंठों से निकला।

"आप गलत इल्जाम हम पर लगा रहे हैं पाटिल साहब।" वजीर शाह कह उठा।

"ठीक कह रहा हूं मैं। दांत भींचे वराज पाटिल एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "तुम दोनों में से किसी एक ने नसीमा को यह बताया कि, मैं उसे खत्म करवाने जा रहा हूं। नसीमा वक्त रहते सतर्क हो गई। ये सारी बात उसने देवराज चौहान को बताई। नसीमा ने ये भी अवश्य देवराज चौहान को बताया होगा कि जाने किस वैन में दौलत हो। इसी कारण वो लोग एक नहीं तीनों वैन ले गए। कल नसीमा ने मुझे पहली चोट दी, राम दा को ये बताकर कि बाटला के पास स्मैक के छः बोरे मौजूद हैं। राम दा के आदमी बाटला को मारकर स्मैक के छः बोरे ले गए। इसके बदले राम दा ने आज अपने आदमी भेजकर देवराज चौहान और नसीमा की सहायता की। नसीमा उनके साथ चली गई और तुम लोगों को उन्होंने नसीमा के कहने पर छोड़ा। ये बात उनमें पहले ही तय थी कि तुम दोनों को कुछ नहीं कहना है क्योंकि तुम दोनों में से कोई एक नसीमा का हितैषी बनकर उसे बता चुका था कि मैंने, उसे शूट करने का ऑर्डर दे दिया है। तब, जब देवराज चौहान सड़क पर जाती वैन पर हाथ डालेगा।"

"हम में से एक क्यों, दोनों ही ये गद्दारी क्यों नहीं कर सकते?" ठाकुर की आवाज में चुभन आ गई।

युवराज पाटिल ने खा जाने वाली निगाहों से ठाकुर को घूरा।

"मुझे तो राम दा अपनी चाल में कामयाब होता नजर आ रहा है।" ठाकुर का स्वर सख्त हो गया।

"क्या मतलब?" पाटिल शब्दों को चबाकर बोला।

"मेरे ख्याल में हमें जिंदा छोड़ने के पीछे राम दा ने यही खेल खेला है कि आप सोचें कि उसने हमें जिंदा क्यों छोड़ दिया। आप हम पर शक करें। फिर हम में फूट पड़े।"

"मैं भी यही कहने वाला था।" वजीर शाह कह उठा--- "राम दा पागल नहीं जो यूं ही हमें जिंदा छोड़ दे। हमें छोड़ने की आड़ में वो खतरनाक खेल खेल रहा है और आप उसकी चाल के शिकार होते जा रहे हैं। वरना हम पर गद्दारी का इल्जाम आप किसी भी कीमत पर नहीं लगा सकते थे।"

युवराज पाटिल बारी-बारी दोनों को देखता रहा। धीरे-धीरे तनाव-गुस्सा कम होने लगा उसका। कुछ ही क्षणों में उसने अपनी बिगड़ी हालत पर काबू पा लिया।

"शायद तुम दोनों ठीक कह रहे हो।" युववराज पाटिल की आवाज अब काबू में थी--- "ऐसा हो सकता है। मैं ही गुस्से में बात को ठीक तरह से नहीं समझ सका।"

"एक बात और भी हो सकती है।" वजीर शाह बोला--- "कि इस मामले में देवराज चौहान न होकर सिर्फ राम दा ही हो। अगर नसीमा ने राम दा को स्मैक के बाटला के पास होने की खबर दी है तो बदले में नसीमा ने आज राम दा के आदमियों का इस्तेमाल किया हो।"

"बात फिर वहीं आ जाती है कि नसीमा मुझसे गद्दारी क्यों करेगी? मेरे खिलाफ क्यों चलेगी? वो तभी ऐसा काम करेगी, जब उसे मालूम हो कि मैं उसे खत्म करने जा रहा हूं और ये बात उसे तुम दोनों में से कोई एक ही बता सकता है।"

ठाकुर और वजीर शाह की निगाहें मिलीं।

"खैर...।" युववराज पाटिल ने लापरवाही से कहा--- "इस बारे में हम बाद में बात करेंगे। राम दा से मिलना चाहूं तो मुलाकात हो सकती है? क्या ख्याल है? तुम लोगों का?"

"इन हालातों में तो राम दा कभी भी आपसे नहीं मिलेगा। वो यही सोचेगा कि मुलाकात की आड़ में आप कोई चाल चल रहे हैं।" ठाकुर ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा--- "सामान्य हालातों में शायद मुलाकात हो जाती...।"

युवराज पाटिल ने टेबल पर पड़े पैकेट से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली और उठकर टहलने लगा।

"आज तक ये भी नहीं मालूम हो सका कि राम दा जिस फोन पर होता है, वो फोन कहां लगा है?"

"पाटिल साहब, राम दा सतर्क रहने वाला बंदा है। अगर उस तक पहुंचा जा सकता तो कब का पहुंच गए होते।"

पाटिल ने वजीर शाह को देखते हुए हौले से सिर हिलाया। वो टहलता रहा।

"राम दा से कोई खास बात करनी है क्या?" ठाकुर बोला।

युवराज पाटिल सिर हिलाते हुए ठिठका और गम्भीर स्वर में कह उठा।

"उन तीनों वैनों में से एक तिजोरी थी। जिसमें हीरे-जेवरात और जवाहरात भरे पड़े हैं। अधिकतर बेशकीमती हैं और उनकी कीमत पचास अरब रुपये  से भी ज्यादा है।"

"ओह...!" ठाकुर के होंठों से निकला--- "लेकिन राम दा इतनी बड़ी दौलत वापस नहीं देगा।"

"समझदार हुआ तो मेरे कहे मुताबिक सौदा कर लेगा।" युवराज पाटिल खतरनाक स्वर में कह उठा।

"क्या मतलब?"

"तिजोरी में पॉवरफुल बम फिट है। अगर उसे बिना चाबी के खोला गया तो बम विस्फोट हो जाएगा। तिजोरी के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। आधे से ज्यादा हीरे-जवाहरात आग में झुलस कर खराब हो जाएंगे। ऐसे में तिजोरी के पास मौजूद कोई भी आदमी नहीं बचेगा। वो बम इतना पॉवरफुल है कि वो जगह भी तबाह हो जाएगी।"

"ओह...!" वजीर शाह का मुंह खुला का खुला रह गया।

"मैंने पचास अरब रुपये के हीरे-जेवरात यूँ ही तिजोरी में रखकर खुली सड़क पर नहीं भेजे थे। वो तिजोरी ही अपने आप पुख्ता सुरक्षा लिए हुए है कि अगर कोई उसे ले जाए तो वो बच न सके।" युवराज पाटिल की आवाज में खतरनाक भाव आ गए--- "उस तिजोरी में फिट पावरफुल बम में वास्ता रखता, रिमोट है मेरे पास। जिससे उस बम को कंट्रोल किया जा सकता है। रिमोट का स्विच दबाने से बम का कनेक्शन तिजोरी में लगे स्विच से अलग हो जाएगा और तिजोरी खोलने पर बम नहीं फटेगा।"

"वो रिमोट हिफाजत से...?"

"वो रिमोट ऐसी जगह रखा हुआ है, जहां परिंदा तो क्या हवा भी नहीं जा सकती। मेरे फार्म हाउस बंगले के स्ट्रांग रूम में वो रिमोट रखा है।" युवराज पाटिल जहरीले स्वर में कह उठा--- "वो तिजोरी जिसके भी पास है, वापस मेरे हवाले करनी ही होगी। वरना उसके खुलते ही, वो लोग बे-मौत मारे जाएंगे। ऐसे में मेरी पचास अरब जैसी बड़ी दौलत का नुकसान अवश्य होगा। लेकिन तब मैं अपना नुकसान नहीं बचा सकता। धीरे-धीरे उस नुकसान को मुझे भूलना ही होगा। सच बात तो ये है कि असल खेल अब शुरू हुआ है। देखते हैं, बाजी का रुख किस तरफ पलटता है।"

"आपकी बात को झूठा मानकर, उन लोगों ने तिजोरी खोल ली तो?" वजीर शाह कह उठा।

"ये उनकी और मेरी किस्मत।" पाटिल खतरनाक ढंग से मुस्कुरा पड़ा--- "उस स्थिति में मेरा नुकसान दौलत का होगा। लेकिन उन लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। तिजोरी में लगा पावरफुल बम किसी पर रहम नहीं करेगा।"

"तब तो आपको फौरन राम दा से बात करनी...।"

"हां। करूंगा बात। तिजोरी का लॉक सिस्टम भी ऐसा है कि, वो आसानी से नहीं खुलेगा।" युवराज पाटिल ने कश लेकर आगे बढ़ते हुए टेबल पर एशट्रे में सिग्रेट डाल दी--- "मेरा ये कभी भी खत्म न होता। नसीमा भी नहीं बचती। तिजोरी भी हमारे पास ही रहती। अगर नसीमा को मेरी योजना का पता नहीं चलता कि उसे खत्म किया जा रहा है। ये जानने के बाद नसीमा सतर्क हो गई और अपना काम कर गुजरी...।"

"मुझे तो अभी तक हैरानी है कि नसीमा को ये बात कैसे मालूम हुई...?" वजीर शाह कह उठा।

"हैरानी तो मुझे भी है। खैर जाओ तुम लोग आज का दिन आराम कर लो। मैं राम दा से बात करता हूं।"

ठाकुर और वजीर शाह दरवाजे की तरफ बढ़ गए।

"नसीमा के पास मोबाइल फोन है या उसके ऑफिस में ही पड़ा है।" एकाएक युवराज पाटिल ने पूछा।

"शायद हो।" ठाकुर बोला--- "मोबाइल फोन का इस्तेमाल वो कम ही करती है।"

युवराज पाटिल ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया।

दोनों बाहर निकल गए। दरवाजा बंद हो गया।

युवराज पाटिल दांत भींचे कई पलों तक दरवाजे को देखता रहा। फिर बड़बड़ा उठा। 1

"नसीमा कभी भी मेरे खिलाफ काम नहीं कर सकती। ऐसा वो उसी हालात में करेगी, जब उसे मालूम हो जाए कि मैं उसे खत्म कराने जा रहा हूं। और ये बात तुम दोनों में से किसी एक ने ही नसीमा को बताई है।"

चेहरे पर सख्ती समेटे युवराज पाटिल कई पलों तक टहलता रहा। आंखों में कई तरह की सोचों के भाव आ-जा रहे थे। फिर अपनी कुर्सी पर बैठा और रिसीवर उठाकर राम दा का नंबर मिलाने लगा।

दूसरी तरफ से रिसीवर राम दा ने ही उठाया था।

बात हुई।

"राम दा...!" युवराज पाटिल का स्वर शांत था।

पलों की खामोशी के बाद राम दा का स्वर पाटिल के कानों में पड़ा।

"पाटिल...!"

"हां।"

"आज तीसरी बार हम बात कर रहे हैं।" राम दा की आवाज में मुस्कुराहट के भाव आ गए थे--- "वैसे मुझे तुम्हारा फोन आने पर कोई हैरानी नहीं हुई। मैंने हैरान होना कब का छोड़ दिया है।"

"बातें बहुत करने लगे हो।" युवराज पाटिल की आवाज में किसी तरह का भाव नहीं था।

"ऐसे ही। तुम तो जानते ही हो कि मैं इसी तरह बात करता हूं।" राम दा का स्वर कानों में पड़ा--- "कोई खास बात न हो तो रिसीवर रख दूं। मेरा जरूरी फोन आने वाला है।"

युवराज पाटिल की आंखों में सख्ती-सी आ ठहरी।

"बाटला और उसके दो आदमियों को शूट करके कल, तुम्हारे आदमियों ने स्मैक के छः बोरे लूट लिए। तुम अच्छी तरह जानते हो कि बाटला मेरे लिए काम करता था।" पाटिल ने अपने स्वर पर काबू पा रखा था।

"बच्चों जैसी बातें कर रहे हो पाटिल। अब क्या मैं तुम्हें गिनती सुनाऊं कि तुमने कहां-कहां मेरा नुकसान किया? तुम्हारे आदमियों ने कब-कब मेरे कितने आदमी मारे?" राम दा के स्वर में लापरवाही थी--- "ये सब होना-करना तो हमारे धंधे का हिस्सा है। कोई नई बात है तो बताओ।"

"मैं जानता हूं मेरे ही किसी आदमी ने तुम्हें इस बात के बारे मैं खबर दी...।"

"भेदी घर में होता है।" राम दा के हंसने की आवाज आई--- "बाहर नहीं रहता वो।"

"किसने खबर दी? वो आवाज आदमी की थी या औरत की?"

"तुमने कैसे सोच लिया कि तुम्हारे इस सवाल का जवाब दूंगा?"

पाटिल के चेहरे पर सख्ती उभर आई।

"तुम्हारे आदमियों ने आज मेरी तीनों वैनों पर हाथ डाला।"

"हां।"

"ठाकुर और वजीर शाह को क्यों जिंदा छोड़ दिया? बहुत बढ़िया मौका था, उन्हें खत्म करने का।"

"मौका तो बढ़िया था। लेकिन जिसने ये काम करवाया वो नहीं चाहता था कि उन्हें खत्म किया जाए। इसलिए ये काम मैंने फिर किसी वक्त के लिए छोड़ दिया। सिर में ज्यादा चोट आई ठाकुर और वजीर शाह के...।"

युवराज पाटिल का चेहरा और भी कठोर हो गया।

"आज जो काम तुमने किया, वो किसी के कहने पर किया?" पाटिल शब्दों को चबाकर कह उठा।

"हां। मेरी बात पर तुम्हें विश्वास नहीं आ रहा क्या?" राम दा के हंसने की आवाज आई।

"नसीमा के कहने पर ये काम किया?"

"नसीमा? नहीं। मेरे इस काम में नसीमा कहीं भी फिट नहीं होती...।"

"तो फिर तुम्हारे आदमी नसीमा को साथ क्यों ले गए?"

"जिसने मुझसे काम करवाया। उसने ऐसा ही करने को कहा था। यूँ समझो, कि ये काम मेरा नहीं। करवाने वाले का था।"

"सच कहो राम दा।"

"मुझे झूठ बोलने या सफाई देने की जरूरत नहीं है। मानो या ना मानो, ये तुम पर है।"

"कौन है वो जिसने तुमसे ये काम करवाया?"

"मैं नहीं जानता उसे।"

"ये बात तो पक्का तुम झूठ बोल रहे...।"

"पाटिल! मैं तुमसे डरता नहीं हूं जो झूठ बोलूं। न ही तुम्हारा नौकर हूं।" राम दा के स्वर में खतरनाक भाव आ गए--- "इसलिए बार-बार झूठ शब्द का इस्तेमाल न करो।"

"उससे बात कैसे हुई?"

"फोन पर। सौदा तय हुआ। काम कर दिया उसका।" कहकर राम दा के हंसने का स्वर कानों में पड़ा।

"नाम तो मालूम होगा उसका...?"

"नहीं। उसने बताया नहीं। मैंने जोर नहीं दिया।" राम दा का स्वर कानों में पड़ा--- "क्या बात है? बहुत पूछताछ कर रहे हो। कोई तगड़ी चोट पड़ गई है जो बैठा नहीं जा रहा।"

"एक वैन में तिजोरी थी...।" युवराज पाटिल ने शब्दों को चबाकर कहा।

"हां। मेरे आदमियों ने बताया था। बहुत भारी थी वो। उन्होंने ही उस तिजोरी को वैन से निकाल कर टैम्पो पर लादा था। फिर वो वापस चले आए।" राम दा ने लापरवाही भरे स्वर में कहा--- "माल था उसमें क्या?"

"इसका मतलब जिसने तुमसे ये काम करवाया, उसे तुम्हारे आदमियों ने देखा था।" पाटिल शब्दों को चबाकर बोला।

"हां।"

"उसका हुलिया क्या था?"

"मैं बेकार की बातें नहीं पूछता अपने आदमियों से...।"

"राम दा!" युवराज पाटिल का स्वर बेहद कठोर हो गया--- "उस तिजोरी में पचास अरब से ज्यादा के हीरे-जवाहरात भरे पड़े हैं। इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि वो तिजोरी इस वक्त किसके पास है।"

राम दा के हंसने की आवाज आई।

"मतलब कि तगड़ी चोट पड़ गई...।"

"ये हंसने की बात नहीं...।"

"तो चौराहे पर बैठकर अफसोस सम्मेलन करूं। तुम्हें गेस्ट बनाऊं।" राम दा का स्वर कड़वा हो गया--- "मुझे तुमसे कोई हमदर्दी नहीं है पाटिल। मेरी तरफ से कल के मरते, अभी मर जाओ।"

युवराज पाटिल के कठोर चेहरे पर मुस्कान उभर आई।

"मैंने तुम्हारी हमदर्दी पाने के लिए फोन नहीं किया।"

"अगर तुमने किसी तरह की सहायता पाने की खातिर फोन...।"

"ये बात भी नहीं है।"

"तो?"

"तुम लोगों के भले के लिए फोन किया है। जिसके पास तिजोरी है, उसके भले के लिए फोन किया है। ये बताने के लिए फोन किया है कि तिजोरी में पचास अरब की दौलत के रूप में हीरे-जवाहरात भरे पड़े हैं। लेकिन साथ ही उसमें मौत भी बंद है, तिजोरी ले जाने वाले के लिए...।"

"क्यों? तिजोरी खुलते ही नाग डस लेगा क्या?" राम दा के हंसने की आवाज आई।

"कुछ ऐसी ही बात है।" युवराज पाटिल का स्वर कड़वा हो गया।

"क्या मतलब?"

"तिजोरी में बम फिट है। बम का कनेक्शन तिजोरी के दरवाजे के साथ स्विच से है। उस स्विच को रिमोट से कंट्रोल करना पड़ता है। रिमोट से बम का स्विच ऑफ करके तिजोरी खोली जाए तो सब ठीक रहता है। अगर सीधे-सीधे तिजोरी खोली जाए तो तिजोरी में फिट शक्तिशाली बम फट जाएगा। उस स्थिति में न तो हीरे-जवाहरात रहेंगे और न ही तिजोरी खोलने वाले। सब-कुछ खत्म हो जाएगा। समझे?"

"समझने की कोशिश कर रहा हूं।" राम दा का शांत स्वर कानों में पड़ा।

"चाहो तो सौदा कर सकते हो।"

"सौदा?"

"तिजोरी मेरे हवाले कर दो। बदले में दस अरब नकद ले लो। वरना मेरे तो पचास गए। तुम्हारे दस भी चले जाएंगे। खामख्वाह दोनों का नुकसान होगा। बोलो क्या कहते हो?" पाटिल का स्वर भी सामान्य था।

"कहूं?"

"हां।"

"तो सच बात तो ये है कि तिजोरी मेरे पास नहीं है। और जिसके पास है उसका नाम-पता-फोन नंबर भी मेरे पास नहीं है। वरना इस बारे में उसे सावधान कर देता।" राम दा की आवाज में ठहराव था--- "इस सारे काम में मेरा सिर्फ इतना ही काम था, जितना कि मैं कर चुका हूं।"

"सोच लो राम दा...।"

"मुझे सोचने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ये मेरा मामला नहीं है।"

"नसीमा कहां है?"

"नसीमा और तिजोरी उसी के पास हैं, जिसके लिए मैंने ये काम किया।" कहने के साथ ही राम दा ने लाइन काट दी।

युवराज पाटिल ने रिसीवर रख दिया। चेहरे पर सोच के भाव उभरे हुए थे। होंठ भिंचे हुए। पचास अरब के हीरे-जवाहरातों का मामला था उसके सामने। नसीमा के बच निकलने का मामला था। और उसका नाम जानने का मामला था, जिसने नसीमा को पहले ही सतर्क कर दिया था वो, उसे खत्म करने की तैयारी कर चुका है।

■■■

युवराज पाटिल के पास से जाने के बाद ठाकुर सबसे पहले उस कमरे में पहुंचा जिस कमरे को नसीमा इस्तेमाल किया करती थी। वहां उसने नसीमा के मोबाइल फोन को ढूंढा। हर जगह देख ली, परंतु मोबाइल फोन नहीं मिला। ठाकुर समझ गया कि मोबाइल फोन नसीमा के पास ही है।

ठाकुर उस कमरे में पहुंचा, जहां वो बैठकर काम करता था। सिर पर रिवाल्वर के दस्ते की चोट अवश्य लगी थी, परंतु ऐसी कोई तकलीफ नहीं थी कि वो काम न कर सके। अभी कई काम करने को बाकी थे। कुर्सी पर बैठकर उसने आंखें बंद कर लीं। वो जानता था कि पाटिल उस पर और वजीर शाह पर शक कर रहा है कि किसी एक ने नसीमा को पहले से ही सतर्क कर दिया है।

पाटिल पूरी कोशिश करेगा ये जानने की कि वो कौन है?

परंतु ठाकुर निश्चिंत था कि पाटिल नहीं जान पाएगा। क्योंकि ये बात उसके और नसीमा के बीच में थी और नसीमा किसी भी कीमत पर उसका नाम मुंह से नहीं निकालेगी।

तभी वजीर शाह ने भीतर प्रवेश किया।

"काम पर लग गए।" वजीर शाह कुर्सी पर बैठता हुआ बोला--- "आराम का मूड नहीं है क्या?"

"ऐसी कोई तबीयत खराब नहीं कि आराम की जरूरत महसूस हो।"

"मुझे भी ऐसा ही लग रहा था कि काम करना चाहिए।"

"एक बात समझ नहीं आ रही...।" ठाकुर ने उसे देखा।

"क्या?"

"पाटिल साहब का कहना है कि हम दोनों में से किसी ने नसीमा को पहले ही सतर्क कर दिया था। तभी नसीमा अपना खेल खेल गई।" ठाकुर के स्वर में ठहराव था--- "और मैंने नसीमा से ऐसी कोई बात नहीं की...।"

वजीर शाह ने ठाकुर की आंखों में झांका।

"सच बात तो ये है ठाकुर कि मैं भी तुमसे यही बात करने आया था।" वजीर शाह ने गंभीर स्वर में कहा।

"मैं समझा नहीं...।" जबकि ठाकुर सब समझ रहा था।

"मैंने भी इस बारे में नसीमा से बात नहीं की। तुम कह रहे हो, तुमने भी नहीं की। इसका मतलब पाटिल साहब यूं ही हम दोनों पर शक कर रहे हैं।" वजीर शाह ने सोच भरे स्वर में कहा--- "नसीमा अपनी आंखें खुली रखती थी। हो सकता है उसे किसी और रास्ते से ये बात मालूम हो गई हो। या ऐसा कुछ महसूस कर लिया हो।"

"मतलब कि तुमने नसीमा को कुछ नहीं बताया?" ठाकुर ने जानबूझकर पूछा।

"नहीं।"

"तो फिर तुम्हारी ये बात सही है कि नसीमा को महसूस हो गया होगा कि कोई गड़बड़ हो रही है।"

वजीर शाह सिर हिलाकर रह गया।

"वैसे...।" ठाकुर बोला--- "पाटिल साहब की ये ज्यादती है कि उन्होंने सीधे-सीधे हम पर गद्दारी का इल्जाम लगा दिया।"

"हां। उनका ऐसा कहना मुझे भी अच्छा नहीं लगा।" वजीर शाह ने कहा।

"नसीमा की मौत का फैसला करते हुए एक बार हमसे बात करनी चाहिए थी पाटिल साहब को।" ठाकुर की नजरें एकटक वजीर शाह के चेहरे पर टिकी हुई थीं।

"हां। हमसे बात की होती तो शायद हम यही कहते कि नसीमा को एक बार वार्निंग दी जाए कि किसी भी हालत में भीतर की बात दोबारा बाहर ना करे। तो ये सब होना ही नहीं था, जो हुआ।"

"नसीमा बच्ची नहीं है कि भीतर की बात बाहर कहती फिरे। देवराज चौहान को लेकर नसीमा ने जो कहा वो अंजाने में ही उससे हो गया था और पाटिल साहब ने यूं ही बात को ज्यादा गंभीरता से ले लिया।" ठाकुर बोला।

"तुम्हारा क्या ख्याल है, पाटिल साहब नसीमा का क्या करेंगे?"

"करेंगे क्या?" ठाकुर ने लापरवाही से कहा--- "नसीमा के पीछे अपने शूटर्स छोड़ देंगे। जो देर-सवेर से नसीमा को तलाश करके उसे शूट कर देंगे। वो शायद बच न सके।"

"बच जाएगी।" वजीर शाह बोला।

"कैसे?"

"नसीमा जानती है पाटिल साहब के काम करने का ढंग। उसने अपने बचाव का रास्ता तलाश कर लिया होगा या फिर कर लेगी। नसीमा अब शूटर्स के हाथ नहीं लगने वाली...।"

"देखते हैं क्या होता है। वैसे इस काम में नसीमा के साथ कौन हो सकता है। राम दा या देवराज चौहान?"

"देवराज चौहान...।" वजीर शाह बोला--- "उसने राम दा से अपना काम कैसे निकलवाया, ये मैं नहीं जानता।"

"तिजोरी में पचास अरब से ज्यादा के हीरे-जवाहरात थे...।" ठाकुर ने कहा।

"जो भी हो, ये नुकसान पाटिल साहब की गलती से हुआ है। जब मालूम था कि देवराज चौहान ने रास्ते में वैन पर हाथ डालना है तो उन्हें तिजोरी नहीं भेजनी चाहिए थी।" वजीर शाह ने उसे देखा।

"अपने पर ज्यादा विश्वास करने का यही नतीजा होता है।"

"पाटिल साहब गुस्से में हैं। दो-चार दिन संभलकर...।"

तभी इंटरकॉम का बजर बजा। ठाकुर ने रिसीवर उठाया तो युवराज पाटिल की आवाज कानों में पड़ी।

"नसीमा के यार के बारे में जानते हो?"

"जी। नसीर नाम है उसका और...।"

"उस पर आदमी लगवा दो। नसीमा उससे मिलने आ सकती है या वो नसीमा के पास जा सकता है।"

"जी।"

"ये काम जल्दी होना चाहिए।" उधर से रिसीवर रख दिया गया।

ठाकुर ने भी रिसीवर रखा।

"वही नसीर, जो नसीमा का बॉयफ्रेंड है।" वजीर शाह कह उठा।

"हां।"

"क्या हुआ उसे?"

"पाटिल उस पर आदमी लगाने को कह रहा है कि शायद नसीमा और नसीर आपस में मिलने की कोशिश करें।"

"नसीमा ऐसी बेवकूफी कभी नहीं करेगी।"

"वो तो मैं जानता हूं लेकिन नसीर पर नजर रखवानी होगी।" ठाकुर ने गहरी सांस लेकर कहा--- "मालूम नहीं, जबसे पाटिल साहब ने गद्दार कहा है, तब से काम करने का मन नहीं हो रहा।"

"ये शब्द तो मुझे भी चुभा है। खैर छोड़ो। काम की तरफ ध्यान दो। नसीर पर आदमी लगवा दो।" कहने के साथ ही वजीर शाह उठ खड़ा हुआ। दोनों की नजरें मिलीं।

वजीर शाह बाहर निकल गया।

■■■