शाम के पाँच बज रहे थे ।

इंस्पेक्टर हरीश दुलानी बीस हथियारबंद पुलिस वालों के साथ उस बंजर खाली जगह पर बहुत आगे निकल आये थे । वह गीली मिट्टी वाली जगह बहुत पीछे रह गई थी । सब पुलिस वालों ने उन पाँवों के निशानों को देखा था और हर कोई अपने-अपने तौर पर उन निशानों के बारे में विचार व्यक्त कर रहा था ।

हरीश दुलानी को तलाश थी ऐसी जगह की जहाँ इधर आया वह हत्यारा छिप सकता है । उसने पुलिस वालों को भी ये बात बता दी थी । सब ऐसी ही किसी जगह को ढूँढ़ रहे थे, परन्तु दूर-दूर तक बंजर और पथरीली जमीन नजर आ रही थी । कहीं-कहीं सूखा-सा खड़ा पेड़ नजर आ जाता था ।

घण्टों तक वह भटकते रहे ।

परन्तु कोई फायदा होता नजर नहीं आया ।

एक इंस्पेक्टर, दुलानी के पास पहुँचा ।

“सर ! ज्यादा देर नहीं बची अँधेरा होने में ।” उसने कहा, “हमारे पास रौशनी का भी कोई इंतजाम नहीं । काफी आगे आ चुके हैं हम । कहें तो वापस चलें ? कल दिन में आकर इस जगह को फिर देख सकते हैं ।”

दिन ढलता पाकर दुलानी भी वापस जाने के बारे में ही सोच रहा था ।

“मुझे कोई एतराज नहीं वापस चलने में ।” दुलानी बोला ।

“यहाँ की जमीन ऐसी है कि इधर हम जीप भी नहीं ला सकते । कहीं कीचड़ है, कहीं जमीन ठीक है, तो कहीं दलदली जगह है । मालूम नहीं कहाँ पर जीप जमीन में धँस जाये । भूमि सर्वेक्षण वालों ने भूकम्प के बाद अभी इधर की जमीन का मुआयना नहीं किया है सर ।”

“वापिस चलते हैं ।” हरीश दुलानी ने गंभीर निगाहों से हर तरफ देखते हुए कहा, “दोबारा आएँगे ।”

फिर वे सब वापस चलने की तैयारी करने लगे ।

वापसी पर दुलानी चलते-चलते पुलिस फोटोग्राफर की बगल में पहुँचा ।

“तुम्हारा क्या ख्याल है ?” दुलानी ने उससे कहा, “वो यहाँ छिपा हो सकता है ?”

“मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा ।” पुलिस फोटोग्राफर ने गहरी साँस लेकर कहा, “सबसे पहले तो उस शख्सियत का हुलिया ही समझ में नहीं आ रहा । अजीब-सा हुलिया बताया गया है, जो कि गले से नीचे नहीं उतरता ।”

“यही तो मैं देखना चाहता हूँ कि ऐसे हुलिये वाला कोई है भी या नहीं ?”

“कैसे देखेंगे ?” पुलिस फोटोग्राफर ने उसे देखा ।

“तुम्हारा नाम भूल गया मैं, तुम... ।”

“प्रताप साहू मेरा नाम है ।”

“तो प्रताप साहू, मैं रात को फिर इधर आना चाहता हूँ ।” दुलानी ने धीमे स्वर में कहा ।

“रात को ?”

“हाँ !” हरीश दुलानी गंभीर था, “वो जो कोई भी है, उसने कल रात अँधेरा होने पर ही हमला... ।”

“लेकिन इस बात का क्या यकीन कि हत्यारा इधर ही आया है ।” प्रताप साहू ने कहा, “और हत्यारा वही है, जिसके पाँवों के निशान गीली मिट्टी पर बने हैं । ये सब तो अंदाजे हैं कि... ।”

“वक्त आने पर अंदाजे ही हकीकत में बदलते हैं ।”

प्रताप साहू ने दुलानी के चेहरे पर निगाह मारी ।

“पुलिस वाले रात भर अन्य जगहों पर ग्रुप्स में गश्त करेंगे । मैं इधर देखूँगा । तुम आओगे मेरे साथ ?”

“मैं ?”

“हाँ ! कोई जबरदस्ती नहीं है । मन नहीं है तो न सही ।” हरीश दुलानी बोला, “तुम्हें इसलिए साथ रखना चाहता हूँ कि अगर वो रात को नजर आये तो तुम उसकी तस्वीर उतार सको ।”

“आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे वो अवश्य दिखेगा ।”

“मालूम नहीं !”

वे सब वापसी के लिए आगे बढ़ते जा रहे थे ।

कुछ देर बाद प्रताप साहू ने कहा ।

“रात को मैं आपके साथ इधर आऊँगा ।”

“किसी गलतफहमी में मत रहना ।” दुलानी ने गम्भीर स्वर में कहा, “वो शख्सियत खतरा बनकर भी सामने आ सकती है ।”

“मैं समझता हूँ । लेकिन खतरा हम दोनों के लिए ही होगा । अकेले के लिए तो नहीं होगा ।”

कुछ देर बाद प्रताप साहू ने कहा ।

“रात कब इधर आएँगे ?”

“डिनर के बाद, पुलिस वालों की गश्त की ड्यूटियाँ लगाकर, हम इस तरफ के लिए चल देंगे ।” दुलानी बोला ।

☐☐☐

दोपहर का गया महाजन, शाम को छः बजे वापस लौटा ।

गौरी के घर का दूसरा कमरा साफ़ हो चुका था । घर में पड़ी पुरानी-सी चादरें साफ़ कर बिछा दी गई थीं । गुजारा करने के लिए इन हालातों में कमरा बुरा नहीं था । मोना चौधरी चादर पर नीचे दिवार से टेक लगाये बैठी थी । एक औरत उसे चाय का प्याला दे गई थी और बता गई थी कि रात का खाना तैयार किया जा रहा है । इस बीच मोना चौधरी, गौरी से बातें कर आई थी । वह अब कुछ सम्भली हुई थी ।

भीतर प्रवेश करते ही महाजन, मोना चौधरी के पास नीचे चादर पर जा बैठा ।

“देर लगा दी ।” मोना चौधरी बोली ।

“हाँ ! पूछताछ करने में वक्त लग गया ।” महाजन ने गहरी साँस लेकर कहा । वह सोचो में डूबा लग रहा था, “पास के लोगों में से तो किसी ने नहीं देखा उस रहस्यमय जीव को । न ही उसके बारे में सुना ।”

मोना चौधरी की निगाह महाजन पर टिक गई ।

“लेकिन सड़क पर डेरा लगाये पुलिस वालों को उस रहस्यमय जीव के बारे में मालूम हो गया ।”

“कैसे मालूम हुआ ?” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

“जीप में सवार नौ युवक-युवतियों में से एक युवक-युवती बच गए थे । उन्होंने उस रहस्यमय जीव को देखा था और दोनों डरकर जान बचाने की खातिर कहीं छिप गए थे । पुलिस ने उन्हें ढूँढ़ निकाला । उनसे ही पुलिस को रहस्यमय जीव के बारे में मालूम हुआ ।” महाजन ने बताया ।

“पुलिस ने इस बारे में क्या किया ?”

“इन हत्याओं का केस इंस्पेक्टर हरीश दुलानी के पास है । वो इत्तेफाक से सुबह ऐसी दिशा में निकल गया था, जहाँ उसने पाँवों के निशानों को देखा । जो कि गीली मिट्टी पर थे । उसके बाद युवक-युवती से उस रहस्यमय जीव के बारे में सुना तो जैसे उसे लगा वो गीली मिट्टी पर पाँवों के निशान उसी के हैं । लंच के बाद वो पुलिस पार्टी लेकर उसी दिशा की तरफ गया है, जिधर रहस्यमय जीव गया, हरीश दुलानी की सोचों के मुताबिक । मैं नहीं समझता कि वो रहस्यमय जीव को ढूँढ़ पाएँगे ।”

“क्यों ?”

“वो जीव खुले में तो रहेगा नहीं कि कोई उसे देख ले । आज तक किसी ने उसे नहीं देखा तो स्पष्ट है कि वो किसी खास जगह पर छिप कर रह रहा है ।” महाजन ने सोच भरे स्वर में कहा ।

“ठीक कहा ।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया, “तुमने किससे पूछताछ की ?”

“सड़क पर डेरा जमाये पुलिस वालों में से एक पुलिस वाले से यारी गाँठ ली थी । तीन-चार पैग उसे पिलाये और अपने काम की बात जान ली ।” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा ।

“मतलब कि अब उस रहस्यमय जीव के बारे में सब को जानकारी हो जायेगी ।” मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।

“वो तो होगा ही ।” महाजन चादर पर अधलेटा-सा होता हुआ बोला, “पुलिस कभी भी इन बातों की खबर अखबार वालों को दे सकती है । अखबार वालों के लिए रहस्यमय जीव की खबर सनसनी से भरी होगी ।”

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली । चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे ।

“तुम्हें मालूम है इंस्पेक्टर हरीश दुलानी, पुलिस पार्टी लेकर किस तरफ गया है । उस रहस्यमय जीव के किधर होने का उसे शक है ?”

“मालूम किया है ।”

मोना चौधरी उठी और कमरे में टहलने लगी ।

कुछ पलों बाद ठिठकी ।

“महाजन !” मोना चौधरी कह उठी, “इंस्पेक्टर दुलानी ने वहाँ जाकर क्या किया, ये मालूम करना है । यानी कि वो किस नतीजे पर पहुँचा उस रहस्यमय जीव के बारे में । कोई नई बात उसे मालूम हुई हो ?”

“मेरे ख्याल में दुलानी को पुलिस पार्टी के साथ अँधेरा होने तक लौट आना चाहिए । अँधेरे में वहाँ रहकर वो किसी तरह का खतरा नहीं लेना चाहेगा । रहस्यमय जीव उनमें से किसी की जान ले सकता है ।” महाजन बोला ।

“और अँधेरा होने में ज्यादा देर नहीं है ।” मोना चौधरी की निगाह दरवाजे के बाहर गई ।

“मैं उधर होकर आता हूँ बेबी ।” महाजन उठ खड़ा हुआ ।

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।

“वैसे तुम क्या सोच रही हो कि हमें कुछ करना है ।” महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।

“कुछ नहीं करना । रात को टहलने के लिए उस तरफ जायेंगे, जिधर दुलानी पार्टी को लेकर गया है ।”

महाजन ने होंठ सिकोड़कर मोना चौधरी को देखा ।

“लेकिन बेबी तुमने तो कहा था कि हम इस मामले में दखल नहीं देंगे ।”

“हम दखल कहाँ दे रहे हैं ।” मोना चौधरी की नजरें महाजन पर जा टिकीं ।

“ये दखल देना ही तो है मामले में । हमें भला रात को उस तरफ जाने की क्या जरूरत ।”

“मैंने पहले ही कहा है कि हम टहलने जायेंगे रात को उस तरफ । कुछ करना नहीं है ।”

“उस तरफ जाना ही कुछ करने जैसा है बेबी ।”

“कुछ भी समझ लो ।” मोना चौधरी गहरी साँस लेकर बोली ।

“मेरे ख्याल में तो हमें इस मामले से दूर रहना चाहिए । वो बहुत ही ताकतवर रहस्यमय जीव है और... ।”

“हम इस मामले से दूर ही हैं ।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा, “रहस्यमय जीव देखने के लिए यहाँ रुके हैं और ये देखने के लिए रुके हैं कि पुलिस उस पर कैसे काबू पाती है ?”

महाजन ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा, फिर गंभीर स्वर में कह उठा ।

“तुम्हारी मर्जी बेबी !” इसके साथ ही वह कमरे से बाहर निकल गया ।

कुछ ही देर में अँधेरा फैलने वाला था ।

मोना चौधरी कमरे में सोच भरे अंदाज में टहलने लगी कि गौरी ने भीतर प्रवेश किया ।

“अब कैसी हो गौरी ?” मोना चौधरी ने उसे देखते ही पूछा ।

“ठीक हूँ मेमसाहब ! अब तो ऐसे ही रहना है ।” गौरी ने धीमे स्वर में कहा, “अँधेरा हो रहा है । बत्ती जलाने आई हूँ ।” कहने के साथ ही वह कमरे के कोन में पहुँची । वहाँ लालटेन रखी हुई थी ।

मोना चौधरी अपनी ही सोचों में गुम थी ।

लालटेन से कमरे में देखने लायक पर्याप्त रौशनी फ़ैल गई ।

“खाना तैयार है मेमसाहब ! कब ले आऊँ ? हम गाँव वाले तो अँधेरा फैलते ही खा लेते हैं ।” गौरी ने कहा ।

“मेरा दोस्त जब आएगा तब खाना ले आना । उसे आने में ज्यादा देर नहीं है ।”

गौरी बाहर चली गई ।

☐☐☐

डेढ़ घण्टे बाद महाजन लौटा । तब तक गहरा अँधेरा छा चुका था ।

“बेबी !” महाजन आते ही बोला, “इंस्पेक्टर हरीश दुलानी बीस पुलिस वालों को लेकर उस तरफ गया था । लेकिन अब वापस लौट आया है । उसके हाथ कुछ नहीं लगा रहस्यमय जीव के बारे में । लेकिन दुलानी हिम्मत नहीं हारा । उसका इरादा है कि पुलिस पार्टियाँ रात को ग्रुप्स में आसपास के इलाकों की छानबीन करेंगी । क्योंकि कल रात में ही उस रहस्यमय जीव ने हमला किया है । दुलानी का ख्याल है कि वो शायद रात के अँधेरे में फिर नजर आये । हाँ और इंस्पेक्टर दुलानी का रात का अपना प्रोग्राम है कि वो उस तरफ जायेगा जिधर वो दिन में पुलिस वालों के साथ होकर आया है । ये सोचकर कि शायद वो रहस्यमय जीव रात को दिखाई दे जाये ।”

“ये दुलानी हिम्मत वाला लगता है । वरना कोई पुलिस वाला ऐसा खतरा न उठाये । अकेला जायेगा वो ?”

“साथ में पुलिस फोटोग्राफर होगा ।” कहने के साथ ही महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकाली, “पुलिस वाले को तीन गुना ज्यादा नोट देकर बोतल खरीदी है ।” कहने के साथ ही महाजन ने घूँट भरा ।

कुछ सोच के बाद मोना चौधरी ने पूछा ।

“इंस्पेक्टर दुलानी का क्या ख्याल है उस रहस्यमय जीव के बारे में ?”

“दुलानी भी कुछ तय नहीं कर पा रहा है । किसी फैसले पर पहुँचने से पहले वो उसे देखना चाहता है, जिसके बारे में जीप वाले युवक-युवती ने बताया है । इस मामले में दुलानी भी कुछ उलझा-उलझा है ।” महाजन का स्वर गंभीर था, “दुलानी नाम का पुलिस वाला हिम्मत हारने वालों में से नहीं लगता ।”

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।

“क्या हुआ ?” महाजन ने पूछा ।

“रात को मैं उस तरफ जाने की सोच रही थी ।” मोना चौधरी ने कहा, “लेकिन तुम्हारे कहे मुताबिक पुलिस वाला दुलानी भी उस तरफ जायेगा । मैं नहीं चाहती कि हमारा पुलिस वालों से सामना हो ।”

“जो कि हो सकता है ।”

“हाँ ।”

महाजन सोच भरे अंदाज में होंठ भींचकर रह गया ।

“कुछ मालूम है इंस्पेक्टर दुलानी उस तरफ कब जायेगा ?”

“नौ-दस बजे रात को । शायद डिनर के बाद ।”

“मतलब कि रात दो-तीन बजे तक दुलानी वापस लौट आएगा ।” मोना चौधरी ने उसे देखा ।

“हो सकता है ।”

“हम आधी रात के बाद यहाँ से उस तरफ चलेंगे । उस पुलिस वाले से सामना नहीं होगा हमारा ।” मोना चौधरी बोली ।

“हो भी सकता है ।”

“अपनी तरफ से यही कोशिश करेंगे कि सामना न हो ।”

महाजन ने गंभीर निगाहों से मोना चौधरी को देखा, फिर धीमे स्वर में कह उठा ।

“बेबी ! मेरे ख्याल में अगर हम कल दिन में या रात को वहाँ जाएँ तो ।”

“आज रात जाने में क्या फर्क पड़ता है ?” मोना चौधरी के होंठों पर शांत-सी मुस्कान उभरी, “पुलिस वाले से बचकर रहने की कोशिश करेंगे ।”

महाजन समझ गया कि मोना चौधरी आज रात जाने का पक्का फैसला कर चुकी है ।

“खाना तैयार है । नहा-धोकर खा लेते हैं । गौरी और उसकी पड़ोसनों को आराम करने की छुट्टी मिल जाये ।”

महाजन सिर हिलाकर रह गया ।

☐☐☐

हरीश दुलानी परेशान था । थका हुआ था । साथ में पुलिस फोटोग्राफर प्रताप साहू था । उसने गले में तैयारी की स्थिति में कैमरा लटका रखा था कि जरूरत पड़ने पर तुरन्त तस्वीर उतारी जा सके । दोनों के हाथों में पॉवरफुल टार्च थीं । जिनकी रौशनी दूर-दूर तक जाकर, वहाँ की जगह को दिन की तरह उजाले में बदल देती थीं ।

सुबह के चार बज रहे थे ।

वे रात को ग्यारह बजे ही इस तरफ आ गए थे और सावधानी से हर तरफ रौशनी फेंकते आगे बढ़ते रहे थे । वे काफी दूर निकल आये थे, परन्तु वह शख्सियत कहीं भी नहीं दिखी, जिसके बारे में दीपक-रजनी ने बताया था ।

“दुलानी साहब !” थक-हारकर प्रताप साहू कह उठा, “मेरे ख्याल में आपकी सोचें गलत हैं ।”

“सोचें ? किस बारे में ?” दुलानी ने अँधेरे में उसे देखा ।

“उस शख्सियत के बारे में, जिसे ढूँढ़ते हुए हम इधर आये हैं ।” प्रताप साहू ने कहा, “वो निशान जो मिट्टी पर हैं, वो किसी भी चीज़ से बने हो सकते हैं । कभी-कभी तो ऐसे निशान गीली मिट्टी के खुद ही नीचे बैठ जाने पर बन जाते हैं । हमें जिसकी तलाश है, जिसने लाशें बिछाई हैं, वो इधर कहीं नहीं रहता । वैसे भी दिन में हमने ये सारी जगहें देखी और अब रात को भी देख लीं । यहाँ ऐसी जगह नहीं है कि कोई इधर रह सके, छिप सके ।”

हरीश दुलानी मुस्कुरा पड़ा ।

“तुझ में और मुझमें बहुत फर्क है प्रताप साहू !” दुलानी ने कहा, “तुम्हारा काम तस्वीरें खींचना है । तस्वीर ली और चले गए । जबकि मेरा काम संयम के साथ, सोच-विचार करके आगे बढ़ना है । मेरे काम ने मुझे ये नहीं सिखाया कि किसी भी कदम पर जल्दबाजी करना शुरू कर दूँ । मेरे काम ने मुझे ये सिखाया है कि जो भी शक मन में आये उसके बारे में पूरी तरह छानबीन करो । अंत तक भी हिम्मत और संयम से काम लो ।”

“तो आप हिम्मत और संयम से काम ले रहे हैं ।”

“हाँ !” दुलानी के स्वर में गंभीरता आ गई, “तुम ठीक कहते हो कि यहाँ कोई छिपने की जगह नहीं है । ऐसे में कोई यहाँ कैसे हमारी निगाहों से दूर रह सकता है । कोई होता तो नजर आ जाता । तुम मिट्टी के ऊपर नजर आने वाले निशानों को अब सच नहीं मान रहे ।”

“तो क्या वे कदमों के निशान सच हैं ?”

“हाँ ! पक्का सच हैं । एक के बाद एक कदम की छाप है मिट्टी पर । जो कि गीली मिट्टी के अंत तक गई है और छाप मात्र संयोग नहीं है । किसी के कदमों के निशान हैं । तुम कहते हो कि यहाँ किसी के छिपने की जगह दूर-दूर तक नजर नहीं आती । ठीक कहते हो, तभी तो मैं भारी तौर पर उलझन में हूँ कि छिपने की जगह न होने पर भी कोई कहाँ छिप गया । हमें दिखाई क्यों नहीं दे रहा, जबकि वो हत्यारी शख्सियत इस तरफ आई है ।”

बातों के दौरान दोनों आगे बढ़ रहे थे । टार्चों की रोशनियाँ हर तरफ आगे बढ़ रही थी ।

“ठीक है ! मान ली आपकी बात ।” प्रताप साहू ने शांत स्वर में सिर हिलाया, “लेकिन आप सिर्फ गीली मिट्टी पर बनी पाँवों की छाप के सहारे चल रहे हैं । आपके कहने पर मान लेता हूँ कि वो हत्यारी शख्सियत के पाँवों के ही निशान हैं । वो इधर आकर गीली मिट्टी को पार कर गई, परन्तु बाद में उसने आगे बढ़ने की दिशा बदल ली हो और अब वो यहाँ से दूर, कहीं और ही मौजूद हो ।”

कुछ पलों की खामोशी के बाद दुलानी ने कहा ।

“ऐसा भी हो सकता है ।”

“मतलब कि हम यहाँ पर अपना वक्त-चैन और नींद खराब कर रहे हैं ।” प्रताप साहू ने कहा ।

“ऐसा नहीं है ।”

“क्या मतलब ?”

“अगर वो हत्यारी शख्सियत इस तरफ आई है और उसने अपना रास्ता बदला है तो इस बात के निशान हमें मिलने चाहिए कि वो रास्ता बदलकर किस तरफ गई है । ऐसा कुछ हुआ है तो... ।”

“दुलानी साहब !” प्रताप साहू बात काटकर कह उठा, “आप अंदाजे और सोचों के सहारे आगे बढ़ रहे हैं । मैं फोटोग्राफर हूँ । ये मेरे काम का हिस्सा नहीं है । मैंने तो सोचा था कि दो-तीन घण्टों में हम वापस आ जायेंगे । लेकिन सारी रात खराब हो गई । मुझे नींद आ रही है । मैं वापस जाना चाहता हूँ । आप चाहें तो कैमरा रख लीजिये कि वो शख्सियत नजर आये तो उसकी तस्वीर ले सकें ।”

हरीश दुलानी के चेहरे पर मुस्कान उभरी ।

“बहुत जल्दी हिम्मत हार गए ।”

“मैं पुलिस वाला नहीं हूँ । पुलिस डिपार्टमेंट का फोटोग्राफर हूँ । मेरा काम अपराधियों को पकड़ना नहीं बल्कि हादसों की तस्वीरें खींचना है । मुझे आशा है कि आप मेरी बात का बुरा नहीं मानेंगे ।” प्रताप साहू ने गंभीर स्वर में कहा ।

“वापस जाना चाहते हो ?”

“जी ! मेरे ख्याल में यहाँ हमें कुछ हासिल नहीं होगा । मैं थक चुका हूँ और गहरी नींद लेना चाहता हूँ ।”

हरीश दुलानी ठिठका । प्रताप साहू भी ।

“मैं तुम्हें अकेले जाने की इजाजत नहीं दे सकता ।” दुलानी ने कहा, “रास्ते में खतरे में भी पड़ सकते हो ।”

“उस खतरनाक शख्सियत की वजह से ।” प्रताप साहू बोला ।

“हाँ !”

“आप मेरी फिक्र मत कीजिये । मैं ठीक-ठाक वापस चला जाऊँगा ।”

“मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ ।” दुलानी बोला ।

“वापिस ।”

“हाँ !” हरीश दुलानी के स्वर में सोच के भाव आ गए, “एक-दो घण्टे आराम करके, नाश्ते के बाद फिर इधर आऊँगा ।”

प्रताप साहू ने दुलानी के चेहरे पर निगाह मारी और फिर सिर हिलाकर कह उठा ।

“आपकी मर्जी ।”

दोनों वापस चल पड़े । वे इस बारे में सावधान थे कि वह खतरनाक शख्सियत उनके सामने न पड़ जाये । हमला न कर दे । टार्चों की रौशनी में उनकी वापसी शुरू हो गई ।

करीब एक घण्टा इधर-उधर की बातें करते हुए वे वापस बढ़ते रहे । तभी दुलानी चौंका । सामने काफी दूर उन्हें मध्यम-सी रौशनी चमकती महसूस हुई । जो कि टार्च की ही रौशनी थी ।

“साहू ! टार्च बन्द कर दो ।” दुलानी जल्दी से बोला और अपनी टार्च की रौशनी बन्द कर दी ।

प्रताप साहू ने भी तुरन्त टार्च का स्विच ऑफ़ किया और बोला ।

“क्या हुआ ?”

“उस तरफ कोई है । मैंने रौशनी चमकती देखी है ।” दुलानी ने भिंचे दाँतो से कहा ।

“रौशनी ?”

“शायद टार्च की हो ।”

“रौशनी तो वो टार्च की ही होगी ।” भिंचे स्वर में हरीश दुलानी ने कहा, “लेकिन वो कौन हो सकता है ?”

“शायद वही खतरनाक शख्सियत, जिसे हम ढूँढ़ रहे हैं और... ।”

“आओ ।” दुलानी के स्वर में सख्ती आ गई, “उस तरफ चलते हैं । सावधान रहना । टार्च की रोशनी ऑन मत करना । अगर वही शख्सियत हुई तो उसकी तस्वीर लेने में देर मत करना ।”

दोनों उस दिशा की तरफ दबे पाँव तेजी से बढ़ने लगे जिधर रौशनी चमकती देखी गई थी । हरीश दुलानी ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली थी । अँधेरे में भी उसकी आँखों में दृढ़ता भरी चमक उभरी नजर आ रही थी ।

“अगर वो खतरनाक शख्सियत हुई तो उसकी तस्वीर खींचने में खतरा हो सकता है ।” साहू ने कहा ।

“कैसा खतरा ?”

“फ्लैश लाइट चमकते ही उसे हमारी मौजूदगी का एहसास हो जायेगा और वो शख्सियत हमारी जान ले सकती ।”

“ये खतरा तो उठाना ही पड़ेगा ।” दुलानी एक-एक शब्द चबाकर कह उठा, “सुनो साहू, तुम उसकी तस्वीर लेकर वापस भाग जाना और जल्द-से-जल्द दूर होने की कोशिश करना । मैं उसे उलझा लूँगा । मेरे पास रिवॉल्वर है । कोशिश करूँगा कि जैसे भी हो, उस पर काबू पा लूँ ।”

“लेकिन तस्वीर लेने की खास वजह ?”

“उस दीपक और रजनी ने उस शख्सियत का जो हुलिया बताया था, वो मेरे गले से नीचे नहीं उतर रहा । सच बात तो ये है कि जो भी ये बातें सुनेगा, वो मानेगा ही नहीं कि ऐसी कोई शख्सियत धरती पर है भी । ऐसे में अगर ऐसा कुछ है तो उसकी तस्वीर लेकर इस सच को साबित करना हमारा फर्ज बन जाता है ।” दुलानी ने गंभीर सख्त स्वर में कहा ।

“दुलानी साहब, एक बात मेरे दिमाग में आई है ।”

“क्या ?”

“ऐसा तो नहीं कि जैसा हुलिया हमें बताया गया है, वो किसी ने मेकअप करके लोगों के दिलों में डर बिठाने के लिए किया हो । मैं पहले भी ऐसे दो-चार केसों के बारे में सुन चुका हूँ कि मेकअप करके... ।”

“मैं तुम्हारी बात को इंकार नहीं करूँगा ।” हरीश दुलानी ने बात काटकर कहा, “बहरहाल जो भी सच-झूठ है, उसे जानने के लिए, उसे पहचानने के लिए हम भागदौड़ कर रहे हैं । मुझे विश्वास है कि इस मामले की तह तक हम जल्दी ही... ।”

“वो देखिये, उधर रौशनी चमकी थी ।” साहू के होंठों से निकला ।

“सतर्क रहो !” दुलानी दबे स्वर में कह उठा, “वो जो कोई भी है, उसने टार्च जला रखी है । अब देखो, रौशनी बराबर नजर आ रही है । रात के ऐसे वक्त में कोई टार्च जलाकर, ऐसी वीरान-सूनसान जगह पर क्या कर रहा है ?”

“ये वही खतरनाक शख्सियत है । आप मेरी बात का विश्वास कीजिये ।”

“सतर्कता से इसी तरह आगे बढ़ते रहो । हम उसके पास पहुँचने जा रहे हैं ।” दुलानी ने भींचें स्वर में कहा ।

कुछ आगे जाकर वे दोनों जमीन पर लेटकर आगे बढ़ने लगे । वह खुली जगह थी । छिपने की कहीं पर ओट नहीं थी । रेंगते हुए वे आगे बढ़ने लगे । दुलानी के हाथ में रिवॉल्वर थी । साहू ने कैमरा संभाल रखा था ।

“साहू !” कुछ आगे सरकने पर दुलानी फुसफुसाया ।

“हाँ !”

“यहाँ से तस्वीर ले सकते हो ? साफ़ आएगी तस्वीर ?”

“तस्वीर तो बिल्कुल साफ़ आ जायेगी । तीस फुट दूर है वो ।” साहू ने कहा, “लेकिन मैं आपसे फिर कहता हूँ कि फ्लैश लाइट की रौशनी से उसका ध्यान हमारी तरफ होगा । फिर खतरा हमारे सिर पर । अँधेरा होने की वजह से हम समझ नहीं पा रहे कि वो कौन है । वो वही खतरनाक शख्सियत भी तो हो सकती है।”

“तुम तस्वीर लो उसकी ।” दुलानी सख्त स्वर में कह उठा, “अगर वही खतरनाक शख्सियत हुई तो फ्लैश की रौशनी में हम उसे स्पष्ट पहचान लेंगे । तब तुम कैमरे के साथ वापिस भाग जाना । मैं उसे तुम्हारे पीछे नहीं आने दूँगा ।”

“लेकिन आपके लिए खतरा... ।”

“मैं सब संभाल लूँगा । तुम्हें जो कहा है, वो करो ।” दुलानी के स्वर में आदेश के भाव आ गए थे ।

इन शब्दों के पूरा होते ही प्रताप साहू फौरन उठा, कैमरा संभाला और उसकी तस्वीर खींच ली ।

फ्लैश लाइट चमकी ।

इसके साथ ही साहू पलटकर भागने को हुआ कि ठिठक गया ।

हरीश दुलानी की नजरें भी उसी तरफ थीं ।

दोनों ने फ्लैश लाइट की रौशनी में स्पष्ट देखा कि वह सामान्य व्यक्ति था, जो कि रौशनी चमकने के साथ ही इस तरफ देखने लगा था । रिवॉल्वर थामे हरीश दुलानी उठ खड़ा हुआ ।

☐☐☐

वह महाजन था, साहू ने जिसकी तस्वीर ली थी ।

मोना चौधरी, महाजन से कुछ दूर रिवॉल्वर थामे अँधेरे में महाजन पर और आसपास निगाहें रखे आगे बढ़ रही थी । दोनों इसलिए फासला रखकर अलग-अलग थे कि अगर रहस्यमय जीव की तरफ से खतरा एक पर आये तो दूसरा उसे बचा सके । महाजन टार्च का इस्तेमाल कर रहा था लेकिन मोना चौधरी अँधेरे में ही आगे बढ़ रही थी ।

फ्लैश लाइट चमकते ही महाजन ठिठका । उसके होंठ भिंच गए । आँखें सिकुड़ीं । फौरन गर्दन उस तरफ घूमी । तो उसने दो को अँधेरे में खड़ा देखा । उसका हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर पहुँच गया ।

उधर दूर मोना चौधरी की नजरें भी इस तरफ ठहर गईं ।

तभी उधर से टार्च की तीव्र रौशनी हुई और रौशनी में महाजन स्पष्ट दिखाई देने लगा ।

रौशनी की वजह से आँखें चुंधियाती-सी महसूस हुई महाजन को ।

“कौन हो तुम ?” महाजन के कानों में सख्त-पुलिसिया लहजे वाला स्वर पड़ा ।

“तुम कौन हो ?”

“मैं पुलिस हूँ । इंस्पेक्टर हरीश दुलानी । अपने बारे में बताओ । मेरे हाथ में रिवॉल्वर है और तुम्हें शूट भी कर सकता हूँ ।”

“बिना वजह गोली मार दोगे ?” महाजन ने ऊँचे स्वर में कहा ।

“अगर तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया और भागने की चेष्टा की तो बेशक गोली मार दूँगा ।” दुलानी का सख्त स्वर कानों में पड़ रहा था, “अपने बारे में बताओ । कौन हो तुम ?”

“मेरा नाम नीलू महाजन है ।”

“यहाँ क्या कर रहे हो ?”

“तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?” महाजन ने उखड़े स्वर में ऊँची आवाज में पूछा ।

दुलानी रिवॉल्वर थामे उस तरफ बढ़ा तो साहू भी सावधानी से साथ हो गया ।

उन्हें पास आता पाकर महाजन सतर्क हो गया ।

“तुम पुलिस के सवालों का जवाब देने की अपेक्षा सवाल कर रहे हो । अपने दिमाग को ठीक रखो ।” हरीश दुलानी ने कड़वे स्वर में कहा, “अगर मैं तुम्हें शूट कर दूँ तो मुझसे कोई नहीं पूछेगा इस बारे में । मैं कह सकता हूँ कि रात के अंधेरे मैंने तुम्हें वही खतरनाक शख्सियत समझकर शूट कर दिया क्योंकि तुम मुझ पर हमला करने जा रहे थे । तुम मुझे भी दूसरों की तरह बुरी मौत मार देना चाहते थे । लेकिन तुम्हें शूट करने के बाद मैंने पाया कि तुम कोई बदमाश हो और मुझे लूटने के लिए मुझ पर हमला कर रहे थे । गवाह के तौर पर पुलिस डिपार्टमेंट का ये आदमी मेरे साथ है ।”

“तुम्हारी बातों से लगता है कि बहुत कमीने हो ।”

“अगर मुझे कमीना बना नहीं देखना चाहते तो मेरी बात का जवाब दो । इतनी रात को टार्च लेकर, रात के इस वीरान अँधेरे में क्या कर रहे हो ? याद रखना, मैं तुम पर आसानी से विश्वास नहीं करूँगा । बोलो ।”

दुलानी और साहू पास आते जा रहे थे और फिर आठ-दस कदम पर वे रुक गए ।

“अपना हाथ जेब से दूर रखो ।”

महाजन ने हाथ जेब से दूर कर लिया ।

“जवाब दे रहे हो मेरी बात का ?” दुलानी का स्वर फिर कानों में पड़ा ।

“जवाब में कुछ भी नहीं है ।” महाजन ने अपनी टार्च की रौशनी उन दोनों पर डाली, “दिन में इधर आया था तो मेरी घड़ी गिर गई थी । ध्यान आया तो टार्च लेकर उसे ढूँढ़ने... ।”

“घड़ी !” दुलानी के होंठों से जहर भरा स्वर निकला ।

“हाँ ! सोने की चेन वाली ।”

“घड़ी के डायल पर हीरे भी लगे होंगे ।”

“हाँ, चार हीरे भी लगे थे !”

“चल बेटा, मेरे साथ चल ! वो घड़ी दूसरे पुलिस वाले के पास है । आ, दिला देता... ।”

“सच !” महाजन ने अपनी आवाज में खुशी भर ली । इसके साथ ही वह देख चुका था कि दुलानी और उसके साथी के कुछ पीछे कोई आता महसूस हुआ था । वह उसे मोना चौधरी ही लगी थी ।

“तेरी घड़ी बहुत हिफाजत से रखी है।”

“लेकिन अब उसे मैं नहीं ले सकता ।”

“क्यों ?” दुलानी ने खा जाने वाले स्वर में कहा, “अभी तो तू रात के अँधेरे में ऐसी वीरान जगह पर टार्च लेकर उसे ढूँढ़ रहा था और अब तू उसे लेने से मना कर रहा है ।”

“हाँ ! ठीक कहा तुमने ।” महाजन का स्वर सामान्य था, “पिछले साल ही मुझे ज्योतिषी ने कहा था कि बेटा कोई चीज़ किसी के हाथ से मत लेना । बेशक वो तुम्हारा अपना ही माल हो ।”

“बहुत सयाना ज्योतिषी है वो तो । मेरे को भी उससे मिला दे ।” रिवॉल्वर संभाले दुलानी ने खा जाने वाले स्वर में कहा ।

“अब तुम उससे नहीं मिल सकते ।”

“क्यों ?” दुलानी की आवाज वैसी ही थी, “उसकी फीस बहुत ज्यादा है क्या ?”

“ये बात नहीं !” महाजन ने देखा, मोना चौधरी दबे पाँव उनके पीछे पहुँचती जा रही थी, “मेरे को ये बात बताने के बाद उसने प्राण त्याग दिए । बहुत पहुँचा हुआ था वो । मेरे को बोल के मरा कि उसकी साँसें पूरी हो गई हैं और जियेगा तो वो उधार की साँसें होंगी । अगले जन्म की साँसों में से साँसें काट ली जायेगी ।”

“मेरे को तो तू बहुत पहुँचा हुआ लग रहा है ।” हरीश दुलानी दाँत किटकिटाकर कह उठा, “अपने दोनों हाथ ऊपर कर ले । खुद को इस वक्त पुलिस की कस्टडी में समझ और... ।”

ठीक इसी वक्त हरीश दुलानी ने अपनी कमर में लगती सख्त-सी चीज़ को महसूस किया ।

दुलानी ने पलटना चाहा ।

“हिलना मत ।” मोना चौधरी का तीखा स्वर कानों में पड़ा, “मेरे हाथ में रिवॉल्वर है ।”

महाजन ने तुरन्त रिवॉल्वर निकाली और आगे बढ़ा ।

प्रताप साहू, मोना चौधरी की तरफ पलट चुका था ।

“मुझे मत देखो ।” मोना चौधरी ने उसी लहजे में कहा, “सामने देखो, वरना गोली मार दूँगी ।”

साहू तुरन्त वापस पलट गया ।

“कौन हो तुम ?” हरीश दुलानी ने सख्त लहजे में कहा, “मैं पुलिस वाला हूँ और तुम पुलिस वाले पर... ।”

“खामोश रहो । अभी बात करते हैं ।”

महाजन पास पहुँचा और शांत भाव में कह उठा ।

“दुलानी साहब ! कष्ट न हो तो रिवॉल्वर मुझे दे दीजिये ।”

“ये पुलिस रिवॉल्वर है और... ।”

“है तो रिवॉल्वर ही ।” कहकर महाजन ने दुलानी के हाथ से रिवॉल्वर ले ली, “आप बेशक मेरी घड़ी वापस न करें, लेकिन मैं आपकी रिवॉल्वर आपको वापस देने की पूरी कोशिश करूँगा ।”

“बकवास मत करो । तुम्हारी कोई घड़ी नहीं खोई । तुम लोग यहाँ कोई गड़बड़ कर रहे हो । कितने हो तुम लोग ?”

“इस बारे में 'बेबी' से बात करना ।”

“बेबी ?”

“जो तुम्हारे पीछे खड़ी है ।”

“मुझे यकीन होने लगा है कि वो तुम लोग ही हो जो मासूम लोगों को बुरी मौत दे रहे हो और... ।”

“ये बातें चाय-पार्टी के दौरान करेंगे ।” महाजन, दुलानी की रिवॉल्वर अपनी जेब में डालता हुआ कह उठा ।

“इनकी तलाशी लो । कोई और हथियार तो नहीं इनके पास ?” दुलानी की पीठ पर रिवॉल्वर लगाये खड़ी मोना चौधरी बोली ।

महाजन ने सावधानी से दोनों की तलाशी ली ।

परन्तु उनके पास कोई हथियार नहीं था । महाजन ने जब लाइन क्लियर का इशारा दिया तो मोना चौधरी ने दुलानी की कमर से रिवॉल्वर हटाकर वापस कपड़ों में डाल ली ।

हरीश दुलानी फौरन पलटा और कठोर निगाहों से अंधेरे में मोना चौधरी को घूरने लगा ।

“तुम कौन हो ?” महाजन ने प्रताप साहू से पूछा ।

“पुलिस फोटोग्राफर हूँ ।” साहू ने अँधेरे में महाजन को पहचानने की कोशिश की ।

“तभी हथियार नहीं है तुम्हारे पास ।” महाजन मुँह बनाकर बोला, “तो तुमने मेरी तस्वीर ली ?”

“हाँ, मैं... ।” उसने कहना चाहा ।

महाजन ने उसके कैमरे को पकड़ा और कैमरा खोलते हुए बोला ।

“कैमरे में पड़ी कोई महत्वपूर्ण तस्वीर तो नहीं है ?”

“नहीं ! नई फ़िल्म है । पहली तस्वीर तुम्हारी ही ली थी ।”

महाजन ने कैमरे में पड़ी फ़िल्म निकालकर उसे खोलकर बेकार कर दिया ।

“कैमरा बन्द कर लो अपना । कोई शरारत मत करना । हम शरीफ लोग हैं लेकिन इतने भी नहीं कि एक थप्पड़ खाकर दूसरा गाल आगे कर दें ।” महाजन की आवाज में कठोरता थी ।

“तुम लोगों की शराफत मैं पहचान चुका हूँ ।” साहू संभले स्वर में बोला, “मैं कोई शरारत नहीं करूँगा ।”

“इतनी रात को यहाँ क्या... ?”

“जो भी बात करनी है इंस्पेक्टर साहब से करो । किसी भी तरह के सवाल-जवाब से मेरा कोई मतलब नहीं !”

महाजन की निगाह हरीश दुलानी पर गई ।

“कौन हो तुम लोग ?” हरीश दुलानी ने कठोर पुलिसिया स्वर में, मोना चौधरी को घूरते हुए पूछा ।

“हमारी पहचान जानने से ज्यादा जरूरी ये जानना है कि रात के इस वक्त सूनसान जगह पर हम क्या कर रहे हैं ? कहो तो बताऊँ । मन न हो तो बताने की मुझे भी ज्यादा जरूरत नहीं... ।”

“बताओ ।”

“जो तुम यहाँ कर रहे हो । वही हम कर रहे हैं ।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा ।

“हम यहाँ क्या कर रहे हैं ?”

“तुम दोनों उसे ढूँढ़ रहे हो जिसने मासूम लोगों को बेदर्दी से मारा-फाड़ा है ।”

हरीश दुलानी चौंका ।

प्रताप साहू की आँखें सिकुड़ीं ।

“तुम्हें कैसे मालूम कि हम यहाँ ये काम कर रहे हैं ?” दुलानी अपने पर काबू पाते कह उठा ।

“मालूम है । बता दिया । तुमसे टकराव न हो, इसलिए हम बहुत देर से इस तरफ आये कि तुम वापस चले गए होगे । लेकिन मुलाकात हो गई, परन्तु तुमसे मुलाकात करके मुझे परेशानी नहीं हुई ।” मोना चौधरी ने पूर्ववत स्वर में कहा ।

कुछ सोचने के बाद इंस्पेक्टर हरीश दुलानी शक भरे स्वर में कह उठा ।

“तुम दोनों ने मुझे भारी तौर पर उलझन में डाल दिया है । मैं यहाँ पर अपनी ड्यूटी, अपने फर्ज को अंजाम दे रहा हूँ । लेकिन तुम लोग उस हत्यारे को क्यों ढूँढ़ रहे हो ? ये बात मेरी समझ से बाहर है ।”

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।

“ये भी तो हो सकता है कि वो हत्यारे तुम दोनों ही हो और... ।”

“होने को तो हम तुम्हारे हत्यारे भी बन जाते, अगर उन मासूमों को हमने मारा होता ।” मोना चौधरी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी, “लेकिन हत्यारे और लाशों से हमारा दूर-दूर तक भी वास्ता नहीं ! अगर इस वक्त मेरे सामने कोई और होता तो मैं ढंग से बात करती । लेकिन तुमसे बात करने का कोई फायदा नहीं !”

“क्यों ?”

“क्योंकि पुलिस वाले सीधी बात को सीधी तरह समझ नहीं पाते ।” मोना चौधरी के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था ।

“और जब हमें विश्वास हो जाये कि सामने वाला हमारी बात नहीं समझेगा तो हम उसके हाथ-पाँव तोड़कर एक तरफ डाल देते हैं ।” महाजन ने अँधेरे ने इंस्पेक्टर हरीश दुलानी को घूरा ।

“मुझे धमकी दे रहे हो ।” दुलानी के दाँत भिंच गए ।

“धमकी तो इसे तब कहो, जब हमने बात तुम्हें समझाई हो और तुम्हारी समझ में न आई हो ।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा, “तुमने तो अभी हमारी बात सुननी है ।”

“वो तो मैं बाद में भी सुन लूँगा ।” दुलानी के होंठ भिंच गए ।

“बाद में ?” मोना चौधरी के माथे पर बल पड़े ।

“हाँ ! तुम दोनों को गिरफ्तार करने के बाद ।” कहने के साथ ही दुलानी ने मोना चौधरी पर झपट्टा मारा और वेग के साथ मोना चौधरी के शरीर से जा टकराया ।

मोना चौधरी लड़खड़ाई । संभली ।

तब तक दुलानी ने उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई थाम ली थी ।

महाजन अपनी जगह पर आराम से खड़ा था । साहू हड़बड़ा-सा उठा था, ये सब देखकर ।

“इसी रिवॉल्वर के दम पर तुम समझ रही थी कि मेरे पर काबू पा लोगी ।” दुलानी ने सख्त स्वर में कहा ।

“और मेरी कलाई पकड़कर तुमने सोच लिया कि तुमने मुझ पर काबू पा लिया ।” मोना चौधरी तीखे स्वर में बोली ।

“मैं अभी तुम्हारे हाथ से रिवॉल्वर... ।”

“पाँच कदमों के फासले पर मेरा साथी खड़ा है । उसके पास दो रिवॉल्वर हैं । तुम्हारी भी, उसकी अपनी भी । लेकिन उसने रिवॉल्वर का इस्तेमाल नहीं किया । जानते हो क्यों ?”

“क्यों ?”

“क्योंकि उसकी नजरों में तुम्हारी ये हरकत बेवकूफी से भरी है । वो जानता है तुम अपनी नहीं कर पाओगे ।”

तभी दुलानी ने कलाई छोड़ते हुए मोना चौधरी के हाथ पर झपट्टा मारा, परन्तु सख्ती से पकड़ी रिवॉल्वर मोना चौधरी के हाथ से न निकली । हाथ रिवॉल्वर पर जम चुका था उसका ।

“रिवॉल्वर छोड़ दो ।” दुलानी ने दाँत भींचकर कहा, “तुम कौन हो मैं नहीं जानता, लेकिन इतना जरूर समझाना चाहूँगा कि पुलिस वालों का रास्ता नहीं रोकते । रिवॉल्वर छोड़ दो ।”

तभी मोना चौधरी ने दूसरा हाथ उठाया और उसके कन्धे पर मारा ।

दुलानी के होंठों से हल्की कराह निकली । रिवॉल्वर पर पकड़ जरा-सी कमजोर हुई तो मोना चौधरी ने झटका देकर अपना हाथ छुड़ाया और नाल हरीश दुलानी की छाती पर रख दी ।

दुलानी के कन्धे में हल्का-सा दर्द था ।

“चलाऊँ गोली ?”

“मैं जानता हूँ तुम गोली नहीं चलाओगी ।” दुलानी अपने पर काबू पाता कह उठा ।

“क्यों ?”

“ऐसा कुछ करना होता तो तुम लोग पहले ही कर देते ।”

“पीछे हटो ।” मोना चौधरी की आवाज में कठोरता आ गई थी ।

हरीश दुलानी गहरी साँस लेकर कुछ कदम पीछे हट गया ।

“अगर तुम पुलिस वाले न होते तो तुम्हारी हरकत का अच्छा जवाब देती ।” मोना चौधरी उसी लहजे में बोली, “अब सीधे रहना ।”

“तुम जैसे लोग जब पुलिस वालों के हत्थे चढ़ते हैं तो... ।”

“जब चढ़ेंगे, तब ।”

“कौन हो तुम लोग ? क्या नाम हैं तुम्हारे और... ।”

“नाम और हमारे बारे में जानने की चेष्टा न करो । इससे कोई फायदा नहीं होगा ।” मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देकर गंभीर स्वर में कह उठी, “चाहो तो काम की बात कर सकते हो ।”

“कैसी काम की बात ?”

“तुम्हारे बारे में यही सुना है कि तुम समझदार और हिम्मती पुलिस वाले हो । इसलिए तुमसे ये बात कर रही हूँ । अगर तुम्हारी समझदारी पर विश्वास न होता तो तुमसे बात भी न करती ।” मोना चौधरी ने अँधेरे में उसे देखा ।

“कैसी बात ?” दुलानी की आँखें सिकुड़ चुकी थीं, “बात करो ।”

कुछ पलों की चुप्पी के बाद मोना चौधरी बोली ।

“तुम उसे ढूँढ़ रहे हो, जिसने हत्याएँ की हैं । जो... ।”

“पहली बात तो ये है कि मुझे खुद पक्का यकीन नहीं है कि इस तरफ मैं उसी को ढूँढ़ रहा हूँ जो हत्यारा है ।” दुलानी कह उठा, “मैं तो यूँ ही कोशिश करके हत्यारे तक पहुँचने की चेष्टा कर रहा हूँ ।”

“दुलानी साहब !” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “हम सबसे पहले तो ये जानना चाहते हैं कि उस युवक-युवती ने जिसका हुलिया आपको बताया, उस पर आपको यकीन है कि वो सही कह रहे हैं ?”

“पूरा यकीन नहीं है ।” दुलानी बोला, “मुझे विश्वास नहीं आ रहा कि ऐसी भी कोई शख्सियत हो सकती है ।”

“अगर मैं कहूँ कि ऐसी कोई शख्शियत है तो ?”

हरीश दुलानी की आँखें सिकुड़ीं ।

“दुलानी साहब !” साहू कह उठा, “इसकी बात का मतलब समझे ?”

“तुम्हारा मतलब कि तुमने उस शख्शियत को देखा है ।” दुलानी के होंठों से निकला ।

“देखा तो नहीं !” मोना चौधरी बोली, “लेकिन उसके बारे में किसी और से भी सुन चुकी हूँ । बताने वाले ने उसे न सिर्फ देखा, बल्कि उसे निर्ममता से हत्याएँ करते भी देखा ।”

“कौन है वो, जो... ।”

“इस बात को छोड़ो कि कौन है वो । काम की बात तो ये है कि... ।”

“तुम किसकी बात कर रही हो, उन्होंने किसकी हत्याएँ होते देखा ?” एकाएक दुलानी बोला ।

“बीच के उस पार, सरकारी गनमैनों की ।”

ये शब्द दुलानी के लिए विस्फोट जैसे थे ।

“क्या ? “ दुलानी चिहुँक पड़ा, “वो... वो उन गनमैनों की हत्याएँ हुए आज तीसरा दिन है ।”

“हाँ !”

“तुम... तुम लोगों को मालूम था ?”

“हाँ !”

“ये भी मालूम था कि उस शख्सियत ने ही उन गनमैनों को बर्बरतापूर्ण मारा है ।”

“सब मालूम था ?”

“तो पुलिस को क्यों नहीं... !”

“क्या बताते पुलिस को ।” मोना चौधरी बात काटकर कह उठी, “पुलिस कभी भी उस रहस्यमय जीव की हकीकत पर विश्वास नहीं करती । जैसे कि अब तुम भी पूरी तरह विश्वास नहीं कर रहे हो ।”

हरीश दुलानी के होंठों से कुछ नहीं निकला ।

“अब तुमसे इसलिए बात की कि हमारा आमना-सामना हो गया और तुम उस रहस्यमय जीव के बारे में युवक-युवती से सुन चुके हो । ऐसे में तुम्हें मेरी कही बात पर अब विश्वास आ सकता है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।

“जब उन गनमैनों को मारा गया तो तुम... तुम लोग वहाँ थे ?” दुलानी ने पूछा ।

“नहीं ! बाद में पहुँचे थे ।” महाजन बोला, “वहाँ पिचकी-टूटी-फूटी कार देखी तुमने ?”

“हाँ !” दुलानी ने महाजन को देखा ।

“वो हमारी थी ।” महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकालकर घूँट भरा, “हम कार पर वहाँ पहुँचे । चट्टानों के दूसरी तरफ से घूमकर गनमैनों की लाशों के पास पहुँचे और इत्तेफाक से वो रहस्यमय जीव दूसरी तरफ से होता हुआ कार तक पहुँचा । हमारा आमना-सामना भी नहीं हो पाया । वो हमें देख नहीं पाया और हमारी कार का बुरा हाल करके चला गया । ये हमें आँखों देखे गवाह से मालूम हुआ कि कार को उसने किस आसानी से तोड़-फोड़ दिया । हमें तभी उस रहस्यमय जीव के बारे में मालूम हो गया था किसी के मुँह से सुनकर ।”

हरीश दुलानी गहरी साँस लेकर रह गया ।

“तुम्हें विश्वास आया कि ऐसी अजीब-सी शख्सियत भी हो सकती है ?” प्रताप साहू ने कहा ।

“पहले तो नहीं आया ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा, “लेकिन लाशों की हालत के बारे में और बुरे हाल हुई पड़ी कार के बारे में सोचकर विश्वास आने लग गया था; और कल जब सड़क पर जीप के पास पड़ी बिशना की लाश देखी तो पक्के से पक्का विश्वास आ गया कि वो रहस्यमय जीव वास्तव में सच है ।”

“अगर सच है तो उसे पहले कभी क्यों नहीं देखा गया ?' दुलानी कह उठा ।

“इस बात का जवाब हमारे पास नहीं है ।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया ।

हरीश दुलानी ने बारी-बारी मोना चौधरी और महाजन को देखा ।

“तुम लोगों ने बिशना का नाम लिया । इसका मतलब उसे जानते हो । कैसे जानते हो ?” दुलानी बोला, “रहस्यमय जीव का खतरा सिर पर होने पर भी तुम दोनों रात के इस वक्त यहाँ हो । मौत से क्यों नहीं डर रहे ? वो रहस्यमय जीव कभी भी आ सकता है । इस मामले से तुम लोगों का क्या वास्ता है ? तुम दोनों की बातें जाहिर कर रही हैं कि इस मामले में तुम लोगों की दिलचस्पी है । लेकिन क्यों है ? मैं समझ नहीं पा रहा ।”

“समझोगे तब, जब हम बतायेंगे ।” महाजन ने कहा ।

“बताओ ।” हरीश दुलानी कह उठा ।

“बता देंगे दुलानी ।” मोना चौधरी अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठी, “लेकिन उसके बाद तुम्हें बहुत ही सोच-समझकर कदम उठाने की जरूरत है । गलत कदम उठा लिया तो तुम्हें नुकसान ही हासिल होगा ।”

“क्या मतलब ?”

“बात शुरू करने-सुनने से पहले ये जान लो कि मेरा नाम मोना चौधरी है ।”

“मोना चौधरी ?” दुलानी कह उठा । उसकी आवाज में उलझन थी ।

मोना चौधरी कुछ नहीं बोली । पल भर के लिए सन्नाटा-सा उभर आया ।

“तुम बेशक मोना चौधरी हो । नाम में क्या ओह... ! तुम… तुम वो इश्तिहारि मोना चौधरी हो ।” हरीश दुलानी का चेहरा हैरानी से भर उठा, “तुम वही हो ।”

“हाँ !”

“ओह !”

“दुलानी साहब !” प्रताप साहू हड़बड़ाकर कह उठा, “मोना चौधरी तो बहुत खतरनाक… ।”

“चुप कर ।” महाजन ने मुँह बनाया, “तेरा बेबी से झगड़ा करने का इरादा है ।”

“बेबी ?”

“ये जो तेरे सामने खड़ी है ।”

“न… नहीं ! मैं… मैं क्यों झगड़ा करूँगा ।” साहू ने जल्दी से कहा ।

“फिर बेबी तेरे लिए खतरनाक नहीं है ।”

ये जानकर कि सामने मोना चौधरी खड़ी है, दुलानी की हालत उखड़ गई थी । बहुत कोशिशों के बाद उसने अपनी हालत ठीक की, परन्तु अभी भी पूरा ठीक नहीं हो सका था ।

“अब तुम मुझे गिरफ्तार करने की सोचोगे ?” मोना चौधरी बोली ।

“नहीं ! मैंने ऐसा कुछ नहीं सोचा ।”

“आगे भी मत सोचना । हासिल तो कुछ नहीं होगा ।” मोना चौधरी का स्वर बेहद शांत था, “लेकिन नुकसान अवश्य हो जायेगा । बेशक वो जान का नुकसान हो । इसे भी समझा देना दुलानी ।”

हरीश दुलानी ने अँधेरे में सिर हिला दिया ।

“अभी भी दिलचस्पी बाकी है मेरे से बात करने में ?” मोना चौधरी ने पूछा ।

“हाँ ! रहस्यमय जीव के बारे में मैं किसी से भी बात करने को तैयार हूँ ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “मेरी-तुम्हारी ऐसी दुश्मनी नहीं कि मैं तुम्हें गिरफ्तार करने की सोचूँ । कानूनन तुम मुजरिम हो । लेकिन मेरे सामने ऐसे हालात नहीं हैं कि तुम्हें गिरफ्तार करने की फौरन मुझे जरूरत हो ।”

“फौरन भी नहीं ! बाद में भी नहीं !” महाजन शब्दों को चबाकर बोला, “समझे ।”

“बाद की बात की मैं गारन्टी नहीं लेता । वक्त और हालात को देखकर ही काम करूँगा ।”

“ठीक कहते हो ।” महाजन पूर्ववत स्वर में कह उठा, “हम भी वक्त और हालात के मुताबिक ही सामने वाले की गर्दन तोड़ते हैं ।”

☐☐☐

दिन का उजाला फैलना शुरू हुआ ।

मोना चौधरी, महाजन, हरीश दुलानी और प्रताप साहू खुली जगह में जमीन पर ही बैठे थे ।

मोना चौधरी ने दुलानी को स्पष्ट तौर पर बताया कि वह यहाँ किसी के कहने पर उस ड्रग्स को लूट ले जाने का प्रोग्राम बनाकर आई थी, जिसे सरकार तबाह करने वाली थी । परन्तु ड्रग्स का बुरा इस्तेमाल, तबाह होने वाले लोगों के बारे में सोचकर ड्रग्स लूटने का इरादा छोड़ दिया । साथ ही विनोद और सोनिया से मुलाकात और उनकी कही सारी बातें, फिर होटल में बिशना का मिलना, उसके बाद वापसी और वापसी पर जीप सवार युवक-युवतियों की उसी तरह विक्षिप्त लाशों का मिलना फिर बिशना की लाश ।

सब कुछ बताया मोना चौधरी ने ।

दुलानी और साहू गंभीरता से मोना चौधरी की बात सुनते रहे । दोनों इस बात को महसूस कर रहे थे कि उनके सामने मोना चौधरी बैठी है और उन्हें संभलकर बात करनी है ।

“जब बिशना की लाश देखी ।” मोना चौधरी ने धीमे-गम्भीर स्वर में कहा, “तो जाने क्यों उस रहस्यमय जीव को देखने और ये जानने की इच्छा उठी कि पुलिस वाले उस पर कैसे काबू पाते हैं ?

फिर मालूम हुआ कि तुम दिन में इस तरफ आये हो और तुम्हें उस रहस्यमय जीव के बारे में कोई सुराग मिला है तो हम इधर आ गए । हमारी यही कोशिश थी कि तुमसे सामना न हो । लेकिन हो गया ।”

हरीश दुलानी की गंभीर निगाह मोना चौधरी पर थी ।

महाजन ने घूँट भरा ।

“ये सब बताकर तुम क्या चाहती हो ?” दुलानी बोला, “मैं इस बात को नहीं समझा ।”

“पहले की बातें और मेरी बातें सुनकर तुम्हें इतना तो महसूस हो गया होगा कि रहस्यमय जीव कोई मजाक नहीं है कि उस पर काबू पाना आसान हो । उसे गिरफ्त में लेना बेहद कठिन काम है । अभी तक के हालातों से यही महसूस किया है ।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर दिया, “क्या कहते हो ?”

“तुम ठीक कह रही हो । वो जो भी है, बहुत शक्तिशाली है । उस पर काबू पाना आसान नहीं !” दुलानी ने धीमे स्वर में कहा ।

“अगर तुम चाहो तो इस काम में तुम्हारा साथ दे सकती हूँ ।”

“तुम ?” दुलानी के होंठों से निकला ।

साहू की निगाह भी मोना चौधरी पर जा टिकी । रात भर के जगे होने के कारण उनकी आँखें नींद से भारी हो रही थीं । चेहरों पर थकान थी ।

“मैं जबरदस्ती वाली बात नहीं कर रही । अगर तुम्हें मेरी बात ठीक लगे तो ।”

“तुम्हें साथ लेने में मुझे क्या फायदा होगा ?”

“मैं नहीं जानती ।” मोना चौधरी ने कहा, “लेकिन तुम्हें नुकसान नहीं होगा । हम मिलकर उस पर काबू… ।”

“मेरे पास पुलिस फ़ोर्स है ।” दुलानी ने सिर हिलाकर कहा, “मुझे आदमियों की कमी नहीं है । वो रहस्यमय जीव अवश्य ताकतवर है । लेकिन किसी भी हाल में पुलिस फ़ोर्स का मुकाबला नहीं कर सकता ।”

“बेबी !” महाजन के होंठों पर शांत-सी मुस्कान उभरी, “इंस्पेक्टर साहब तो कुछ ज्यादा ही समझदार निकले ।”

दुलानी ने तीखी निगाहों से महाजन को देखा ।

“क्या गलत कह दिया मैंने ?” दुलानी शब्दों को चबाकर बोला, “तुम लोगों को साथ लेने से पहले मुझे मालूम होना चाहिए कि मैं तुम लोगों को इस काम में साथ क्यों रखूँ । मेरी क्या खास सहायता कर सकते हो ?”

“दुलानी साहब !” महाजन ने व्यंग्य से कहा, “जो काम कुल्हाड़ी नहीं कर सकती, कभी-कभी वही काम सुई कर देती है । जंग में कोई भी हथियार छोटा नहीं होता । हथियार सिर्फ हथियार ही होता है । कभी-कभी इंसान जंग के मैदान में दो इंच फल का चाकू यूँ ही जेब में रख लेता है और वक्त आने पर वो तोप से भी बड़ा काम कर जाता है ।”

दुलानी कुछ नहीं बोला । महाजन को देखता रहा ।

“बात तो इसकी जँच रही है ।” प्रताप साहू ने गहरी साँस लेकर कहा, “कौन कब, काम आ जाये, कुछ नहीं मालूम ।”

हरीश दुलानी की निगाह मोना चौधरी की तरफ उठी ।

“तुम इस काम में, उस रहस्यमय जीव में क्यों दिलचस्पी ले रहे हो ? ये तुम्हारा रास्ता नहीं है ।” दुलानी बोला ।

“मेरे क्या-क्या रास्ते हैं इंस्पेक्टर हरीश दुलानी !” मोना चौधरी लापरवाही से कह उठी, “ये तुम नहीं समझ सकोगे । रही बात इस काम में दिलचस्पी की, तो मैं उस रहस्यमय जीव को देखना चाहती हूँ । ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा । दूसरी बात ये समझ लो कि बिशना को मारना मुझे पसंद नहीं आया ।”

हरीश दुलानी उलझन में फँसा नजर आया ।

महाजन और प्रताप साहू खामोश थे ।

“मैं कोई जबरदस्ती नहीं करना चाहती ।” कहते हुए मोना चौधरी उठ खड़ी हुई, “मुझे बता सकते हो, वो गीली मिट्टी किस तरफ है, जहाँ उस रहस्यमय जीव के पाँवों के निशान देखे गए हैं ? मैंने वो जगह नहीं देखी ।”

“देख लो । उस तरफ है वो जगह ।” सोचों में डूबा दुलानी कहते हुए खड़ा हो गया ।

आधे घण्टे बाद वे चारों गीली मिट्टी के पास पहुँचे । उस पर निशान अभी भी पहले जैसे स्पष्ट नजर आ रहे थे । मोना चौधरी और महाजन आगे बढ़कर उन निशानों को ध्यानपूर्वक देखने लगे ।

“पैरों के निशान तो हमारी समझ में आ चुके हैं ।” दुलानी ने चंद कदमों की दूरी पर खड़े कहा, “लेकिन पैरों की पाँवों की उँगलियों के आगे जमीन पर किस चीज़ के निशान हैं, ये समझ नहीं पाये ।”

मोना चौधरी और महाजन ने उन निशानों को देखा ।

“दुलानी साहब !” मोना चौधरी एकाएक कह उठी, “ये पाँवों की उँगलियों के नाखूनों के निशान हैं ।”

“नाखूनों के निशान ?” दुलानी के होंठों से निकला ।

साहू के माथे पर बल नजर आये ।

“हाँ ! हमें उस रहस्यमय जीव के बारे में जब बताया गया तो उसके नाखूनों के बारे भी बताया गया था कि उनके हाथ-पाँवों के निशान बड़े हुए टेड़े-मेड़े ढंग के आगे को इधर-उधर जा रहे थे । ये पाँवों के नाखूनों के निशान हैं, जो कि पाँव वाली जमीन पर रखने पर, नाखून भी जमीन में धँसे हैं ।”

“ओह !”

महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।

“बेबी !” महाजन का स्वर गंभीर था, “अब तुम इस मामले से दूर न रहकर, दखल देने लग गई हो ।”

महाजन की बात का जवाब न देकर मोना चौधरी ने आगे जाते निशानों को देखा

फिर दूर तक नजर मारी । हर तरफ वीरानी ही दिखी । सूर्य अभी नहीं निकला था ।

“वो रहस्यमय जीव आगे किस तरफ गया है ?” मोना चौधरी ने दुलानी को देखा ।

“मालूम नहीं ! हम आगे तक गए उसे देखने, लेकिन उसका कोई निशान नहीं मिला । न ही ऐसी कोई जगह नजर आई जहाँ वो छिप सकता हो । कुछ समझ में नहीं आता ।” दुलानी ने गहरी साँस ली ।

उसके कानों में कुछ आवाज-सी पड़ीं ।

वे सतर्क नजर आने लगे । हाथों में रिवॉल्वर आ गई । आवाजें पास आती जा रही थीं । ये आवाजें बात करने की थी । यानी कि कोई बात करते हुए इस तरफ आ रहे थे ।

पुलिस वालों को आता पाकर हरीश दुलानी की आँखें सिकुड़ीं ।

“सर !” पुलिस वाले पास आकर ठिठके । एक बोला, “हमारा यही ख्याल था कि आप इन्हीं निशानों के पास ही कहीं मिलेंगे ।”

“तुम लोग यहाँ... ?” दुलानी ने पूछना चाहा ।

“सर !” दूसरे पुलिस वालों ने कहा, “बहुत बुरी खबर है । वैसी ही दो लाशें गाँव में एक मकान के बाहर पायी गई हैं । उन्हें आधी रात के बाद ही मारा गया ।”

“वैसी ही दो लाशें !” दुलानी के होंठों से निकला ।

“यस सर ! जैसी जीप के पास और बिशना नाम के उस वेटर की मिली थी ।”

पल भर के लिए सन्नाटा-सा छा गया ।

हरीश दुलानी के दाँत भिंच गए ।

मोना चौधरी और महाजन की गम्भीर नजरें मिलीं ।

“ये तो बहुत बुरा हुआ ।” प्रताप साहू कह उठा, “हम रात भर यहाँ भटकते रहे और गाँव में ये सब हो गया ।”

“हमें जल्दी ही गाँव में पहुँचना है ।” हरीश दुलानी के होंठों से कठोर स्वर निकला ।

दुलानी, साहू के साथ दो कदम आगे बढ़ा, ठिठका पलटकर मोना चौधरी को देखा ।

मोना चौधरी और महाजन की निगाहें, हरीश दुलानी पर ही थीं ।

“तुम दोनों भी मेरे साथ आ सकते हो ।” दुलानी की आवाज में गुस्सा और गंभीरता थी ।

☐☐☐

वह गाँव का कच्चा-सा मकान था । जिसके बाहर रात को खुली हवा में चारपाईयाँ डालकर, रोजमर्रा की तरह बाप और बेटा सोते थे । लेकिन दिन निकलते ही गाँव के लोगों ने उनकी विक्षिप्त हुई लाशें पड़ी देखी । लाशों की हालत ऐसी थी की देखने वाले का दिल दहल जाता । एक चारपाई टूटी पड़ी थी ।

इस हादसे के बाद तो गाँव के जर्रे-जर्रे में दहशत का तूफान उठ खड़ा हुआ था । पूरा गाँव ही घटनास्थल पर जमा था । आँखों में डर और व्याकुलता थी ।

फौरन ही सड़क पर डेरा जमाये पुलिस के पास खबर पहुँची तो पुलिस वहाँ आ पहुँची थी ।

अब रहस्यमय जीव से गाँव भी सुरक्षित नहीं रहा था । गाँव के लोगों पर रहस्यमय जीव का ये पहला हमला था ।

शुरुआत हो चुकी थी ।

मोना चौधरी, महाजन, हरीश दुलानी और प्रताप साहू वहाँ पहुँचे । हर तरफ पुलिस की वर्दियाँ-ही-वर्दियाँ नजर आ रही थीं । साहू ने लाशों की तस्वीरें लेनी शुरू कर दी थी ।

पुलिस वालों ने अपना काम शुरू कर दिया था ।

गाँव वालों से पूछताछ का कोई नतीजा नहीं निकला । किसी ने उस रहस्यमय जीव को नहीं देखा । एक बुजुर्ग ने बताया कि वह रात के ढाई बजे इसी रास्ते से निकलकर अपने खेतों पर गया था । तब तक सब ठीक था । बाप-बेटा गहरी नींद में डूबे हुए थे ।

स्पष्ट था कि आधी रात के बाद ही इस भयानक हादसे की शुरुआत हुई थी । वह रहस्यमय जीव जाने कहाँ से आया और लाशें बिछाकर चला गया । कोई भी शोर-शराबा नहीं हुआ ।

रहस्यमय जीव के पाँवों के निशान भी नहीं मिले ।

छानबीन के लिए उनके पास कुछ नहीं था । मामला जहाँ था, वहीं का वहीं था ।

हरीश दुलानी ने एक इंस्पेक्टर को बुलाकर कहा ।

“ये गाँव अब उस रहस्यमय जीव से सुरक्षित नहीं रहा । यहाँ एक हमला हुआ है तो दूसरा भी हो सकता है ।” दुलानी बेहद चिंतित नजर आ रहा था, “गाँव वालों को अच्छी तरह समझा देना कि रात के अँधेरे में किसी भी हालत में बाहर न निकलें । दिन में भी सावधान रहें । अब रात को गाँव में पुलिस वालों का पहरा रहेगा । पुलिस वालों को भी सतर्क कर देना कि रहस्यमय जीव उन पर हमला न कर दें ।”

“जी !”

“अगर पुलिस फ़ोर्स की जरूरत समझो तो मँगवा लेना ।”

“ठीक है सर !” उसने मोना चौधरी और महाजन पर नजर मारी, “वो युवक-युवती कौन हैं ?”

“मेरे मेहमान हैं । तुमसे जो कहा गया है । वो करो ।”

“जी !”

“इस हादसे के बाद गाँव वाले खुद को सुरक्षित नहीं समझेंगे ।” दुलानी ने सोच भरे गम्भीर स्वर में कहा, “उनका हौसला कायम रखना पुलिस वालों का काम है । गाँव वाले हिम्मत छोड़ देंगे तो हम भी कमजोर पड़ जायेंगे ।”

“मैं समझता हूँ सर !”

“पंचनामा करके लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज देना । गाँव की हर उस जगह की निशानदेही कर लो, जहाँ हर वक्त पुलिस वालों का पहरा होना आवश्यक है । इसके अलावा पुलिस वाले गाँव के भीतर भी पहरा देते रहेंगे ।”

“जी ! लेकिन उस रहस्यमय जीव का कैसे सामना कर पाएँगे । वो बहुत क्रूर और ताकतवर... ।”

“उसका मुकाबला हमें ही करना है ।” दुलानी ने दाँत भींचकर कहा, “बेशक उसे गोलियों से भूनो या टाँगें तोड़ो । जो भी हो जैसे भी हो । इस दहशत को हमने हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करना है । अगर हम ही ये सोचने लगे तो दूसरों का क्या होगा ।”

☐☐☐

“वो रहस्यमय जीव कहीं भी, कभी भी हमला कर सकता है । ये बात गाँव में हुए हमले से स्पष्ट हो गई । पहले उसने यहाँ से पाँच-छः किलोमीटर दूर बीच की साइड में सूनसान किनारों पर गनमैनों की हत्या की । फिर सड़क पर जाती जीप में मौजूद युवक-युवतियों को निर्ममता से मारा । चूँकि पुलिस वाले रात भर घूम रहे थे । गश्त लगा रहे थे, ऐसे में वो खामोशी से गाँव पहुँचा और खुले में सोये बाप-बेटे को नोच-खसोटकर मार दिया ।”

इंस्पेक्टर हरीश दुलानी, मोना चौधरी, महाजन और दो अन्य पुलिस वाले सड़क के किनारे मौजूद अपने डेरे में बैठे थे । दूर-दूर तक खुली जगह नजर आ रही थी । पेड़ की छाया उन पर पड़ रही थी । सब गंभीर और व्याकुल थे । अजीब-से हालातों में वे खुद को घिरा पा रहे थे ।

“ये बात भी स्पष्ट हो गई कि रहस्यमय जीव रात के अँधेरे में ही अपने शिकार पर हमला करता है ।” दुलानी ने पुनः कहा ।

“नहीं ! ऐसी बात नहीं है ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“क्या मतलब ?”

“वो रात के अँधेरे में नहीं, दिन में धूप में भी हमला करता है ।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर दिया, “ड्रग्स की पहरेदारी पर मौजूद पाँचों गनमैनों पर उसने दोपहर को हमला किया, जब वो लंच लेने जा रहे थे ।”

दुलानी के होंठ भिंच गए ।

“हमें ये सोचकर चलना चाहिए कि वो रहस्यमय जीव मौके को कभी नहीं चूकता । वक्त कोई भी हो । किसी भी समय वो शिकार कर लेता है । शिकार सामने होना चाहिए ।” मोना चौधरी गंभीर थी ।

“हाँ ! हालातों पर गौर करते हुए, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ ।”

“लेकिन मिस्टर दुलानी, एक बात तुमने नोट नहीं की ।”

“क्या ?”

“रहस्यमय जीव भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर रहना पसंद करता है ।” मोना चौधरी बोली ।

“ये कैसे कह सकती हो ?”

“सोचो उसने कहाँ-कहाँ हमला किया ।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर दिया, “पहली बार रहस्यमय जीव ने ऐसी वीरान जगह पर हमला किया, जहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था । वहाँ विनोद और सोनिया नाम के युवक-युवती थे परन्तु रहस्य जीव को उनकी मौजूदगी का आभास नहीं हो पाया । वरना वो भी मारे जाते । रहस्यमय जीव की नजर में वहाँ सिर्फ पाँच व्यक्ति थे । गनमैन थे । उन्हें उसने मार दिया । दूसरी बार शाम के अँधेरे में सड़क पर उसने जीप पर हमला किया । तब आसपास कोई भी नहीं था । जीप में मौजूद सात युवक-युवतियों की जान लेने में वो सफल हो गया, जबकि दो किसी तरह जान बचाकर भाग निकले । इसके साथ ही उसके कुछ देर बाद उसने बिशना नाम के वेटर पर हमला किया जो सूनसान सड़क पर अकेला जा रहा था । फिर रात के अँधेरे में वो चुपके से गाँव में आया और खुले में चारपाईयों पर सोये बाप-बेटों पर हमला करके चीर-फाड़ दिया । इन सब बातों को ध्यान से देखा जाये तो रहस्यमय जीव की ये आदत देखकर जाहिर हो जाता है कि वो भीड़भाड़ पर हमला न करके चंद लोगों पर हमला करता है । बीच पर दिन-रात लोग मौजूद रहते हैं लेकिन वहाँ उसने कभी हमला नहीं किया ।”

“इस तरफ तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया था ।” हरीश दुलानी के होंठों से निकला ।

महाजन ने बोतल से घूँट भरा ।

बाकी दोनों पुलिस वालों की निगाहें मोना चौधरी पर ही थीं ।

मोना चौधरी का गंभीर चेहरा सख्त हुआ पड़ा था ।

“एक बात मुझे समझ नहीं आ रही ।” मोना चौधरी ने पुनः कहा, “यहाँ मैं उलझन में घिर जाती हूँ ।”

“वो क्या बेबी ?”

“रहस्यमय जीव अचानक तो कहीं से प्रकट हुआ नहीं !” मोना चौधरी ने बारी-बारी सबको देखा, “वो पहले भी कहीं रह रहा होगा । सवाल ये पैदा होते है कि उसने पहले ये सब क्यों नहीं किया ? अचानक ही वो इस तरह लोगों को क्यों मारने लगा ? और अब अपने काम में वो तेजी दिखाता जा रहा है । ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को मारने लग गया है ।”

कोई कुछ नहीं बोला ।

महाजन ने पुनः घूँट भरा ।

दुलानी ने बेचैनी से पहलू बदला ।

“जब तक हम उस रहस्यमय जीव को नहीं देख लेते । उसे समझ नहीं लेते ।” पास बैठे पुलिस वाले ने कहा, “तब तक शायद हमें इस बात का जवाब नहीं मिलेगा कि ये सब वो क्यों कर रहा है और ये काम उसने पहले क्यों नहीं किया ?”

“मेरा भी यही ख्याल है ।” महाजन बोला ।

“एक बात और ।” मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठी, “मैं सबका ध्यान ऐसी बातों की तरफ कर रही हूँ जिस तरफ अभी सोचा नहीं गया । रहस्यमय जीव का जो हुलिया हमारे सामने आया है, वो ऐसा हुलिया है कि अगर कोई देख ले तो उसे जिंदगी भर भूला नहीं जा सकता, परन्तु अभी तक उसे सिर्फ चार लोगों ने देखा है । गनमैनों की हत्या के समय विनोद और सोनिया नाम की युवती ने देखा । उधर जीप में सवार, बचने वाले दीपक और रजनी ने देखा । इसके अलावा किसी ने अभी तक उस रहस्यमय जीव को नहीं देखा ।”

“राइट बेबी ! लेकिन वो दीपक और रजनी कहाँ हैं ?” महाजन कह उठा ।

“यहाँ से भेज दिये गए है ।” एक पुलिस वाले ने कहा, “उनकी जरूरत नहीं थी ।”

मोना चौधरी ने पुनः कहा ।

“किसी को वो कभी दिखाई नहीं दिया तो इसका ये मतलब है कि वो किसी ऐसी वीरान और सूनसान जगह पर मौजूद है कि लोग वहाँ तक नहीं पहुँच पाते । जैसे कि गीली मिट्टी पर मिले वो निशान । उस जगह के आगे मीलों फैला ऐसा बंजर इलाका है कि कोई भी उधर नहीं जाता ।

“वो वहाँ छिपा नहीं हो सकता ।” दुलानी के होंठों से निकला ।

“क्यों ?”

“क्योंकि वहाँ कहीं भी छिपने की जगह नहीं है । हर तरफ खुली-मैदानी जगह है । कोई भी ओट नहीं ! मैंने वो जगह दूर-दूर तक छान ली है ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “अगर हम ये मानें कि वो रहस्यमय जीव उसी तरफ कहीं है तो रात को हमें नजर नहीं आता । क्योंकि उसने गाँव में जाकर दो की हत्या की थी । ऐसे में उसका आने-जाने का रास्ता तो वो ही होता ।”

“ये जरूरी नहीं !”

“वो कैसे ?”

“रहस्यमय जीव का कार्यक्षेत्र कई किलोमीटर तक फैला हुआ है । वो उधर गनमैनों की हत्या भी करता है और इधर गाँव में रात को नींद में डूबे लोगों की जान भी लेता है ।” मोना चौधरी ने कहा, “ऐसे में हम सोच सकते हैं कि जहाँ वो रहता है, वहाँ तक आने-जाने के लिए उसके पास कई रास्ते हैं ।”

हरीश दुलानी ने गहरी साँस लेकर आँखें बन्द करके कुर्सी की पुश्त से सिर टिका लिया ।

“तुम्हारी बात ठीक हो सकती है ।” पुलिस वाले ने कहा ।

“इस बात से ये भी जाहिर होता है कि वो सोच-समझकर काम लेता है ।” दूसरे पुलिस वाले ने कहा, “उसका मस्तिष्क ठीक ढंग से काम करता है और अपना अच्छा-बुरा वो जानता है, महसूस करता है ।”

“ये हो सकता है ।” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा ।

“हो सकता है वो बोलता भी हो ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “बात भी करता हो ।”

दुलानी आँखें खोलकर मोना चौधरी को देखने लगा ।

“किसी ने उसे बोलते देखा ?” दुलानी कह उठा ।

“ऐसा कुछ भी सुनने को नहीं मिला ।” मोना चौधरी बोली, “उसका दिमाग ठीक से काम करता है । तभी तो वो सोच-समझकर लोगों की जाने ले रहा है । ऐसे में हो सकता है, वो बोलता, बातचीत भी करता हो । क्योंकि अभी तक हम ये नहीं समझ पाये कि वो इंसान है या जानवर ।”

सबकी नजरें मोना चौधरी के गंभीर चेहरे पर थीं ।

“सबसे पहले हमें दो बातें जानने की कोशिश करनी है ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“कैसी बातें ?” पुलिस वाले के होंठ हिले ।

“पहली बात तो ये कि वो लोगों को क्यों मारता है ? जबकि पहले उसने ऐसा नहीं किया ।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा, “दूसरी बात तो ये कि वो कहाँ रहता है, कहाँ से आता है और कहाँ चला जाता है ?”

कई पलों के लिए वहाँ चुप्पी छा गई ।

हरीश दुलानी ने सोच भरी आवाज में खामोशी तोड़ी ।

“अगर तुम्हारी बातों को ठीक माना जाये तो वो रहस्यमय जीव अब गाँव पर हमला नहीं करेगा । क्योंकि वहाँ अब चौबीस घण्टे पुलिस रहेगी ।”

“शायद ऐसा ही हो ।”

“इस गाँव में पुलिस बेकार में ही फैली रहेगी ।” दुलानी ने मोना चौधरी को देखा ।

“वहाँ से पुलिस हटाने की गलती मत करना ।” महाजन कह उठा, “पुलिस हटाई तो वो रहस्यमय जीव फिर गाँव के किसी मासूम व्यक्ति की जान ले लेगा । यानी कि गाँव के लिए पुलिस वाले तब तक वहाँ पैक हो गए जब तक रहस्यमय जीव पकड़ा या मारा नहीं जाता । लेकिन इससे खतरा कम नहीं होगा दुलानी ।”

“क्या मतलब ?” हरीश दुलानी की नजरें महाजन पर जा टिकीं ।

महाजन ने घूँट भरा और गंभीर स्वर में कह उठा ।

“रहस्यमय जीव ने किसी का शिकार तो करना ही है । अगर उसे गाँव में किसी पर हमला करने का मौका नहीं मिलेगा तो वो यहाँ से दूर किसी को शिकार बनाने की चेष्टा करेगा ।”

हरीश दुलानी के दाँत भिंच गए ।

“इसका मतलब और पुलिस बुलानी पड़ेगी, ताकि भारी पैमाने पर हर तरफ गश्त जारी रहे । रहस्यमय जीव को ऐसा मौका न मिले कि वो किसी की जान ले सके ।” दुलानी बोला ।

“पुलिस के हर गश्ती दल में कम-से-कम बारह पुलिस वाले, दो गाड़ियों में होने चाहिए ।” मोना चौधरी कह उठी, “ताकि रहस्यमय जीव को एहसास हो कि ज्यादा लोग हैं । ऐसे में वो हमला शायद न करे ।' इसके साथ ही मोना चौधरी खड़ी हुई, “हम चलते हैं दुलानी । गाँव में उसी बिशना के घर पर हम रुके हैं । कुछ आराम करके आ जायेंगे । तुम भी आराम कर लो । ये मामला ऐसा है कि बहुत सोच-समझकर इस पर आगे बढ़ना होगा ।”

महाजन भी उठ खड़ा हुआ ।

“यहाँ आराम कर लो । हर चीज़ का इंतजाम है ।” दुलानी ने कहना चाहा ।

“बिशना की पत्नी, गौरी हमारा इंतजार कर रही होगी । हम वहाँ ठीक हैं ।”

“देखना जरा ।” महाजन बोला, “यहाँ कहीं व्हिस्की की बोतल पड़ी होगी । मेरे पास खत्म हो रही है ।”

पुलिस वाले ने महाजन को बोतल लाकर दे दी ।

शाम तक आने को कहकर मोना चौधरी और महाजन गाँव की तरफ बढ़ गए ।

“ये मामला इतना सीधा नहीं लग रहा बेबी !” महाजन बोला ।

“सीधा ?” मोना चौधरी बेहद गंभीर थी, “मेरे ख्याल में आने वाला वक्त सब के लिए बेहद खतरनाक होगा ।”

महाजन के होंठ सिकुड़े, मोना चौधरी उलझन भरे, कठोर चेहरे को देखने लगा ।

☐☐☐