बात ही ऐसी थी कि रघुनाथ कांपकर रह गया । उसकी इतनी बड़ी जिंदगी में शायद ही ऐसी विचित्र और भयानक घटना घटी हो - जैसी अब उसके सामने थी । उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थी । एक ही पल में बाल कुछ इस प्रकार अस्त-व्यस्त हो गए कि ऐसा लगा मानो उसके किसी प्रिय का देहांत हो गया हो । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस गंभीर स्थिति में करे भी तो क्या...? रघुनाथ ऐसा आदमी न था, जो साधारण घटना से घबरा जाए अथवा उसमें सोचने-समझने की शक्ति न रहे, किंतु इस घटना ने वास्तव में उसके हाथ-पैर फुला दिए । उसकी समझ में नहीं आया कि आखिर आग के बेटों को उससे भला व्यक्तिगत रूप से क्या दुश्मनी हो सकती है?


- उसने अपने पीले पड़े हुए शुष्क अधरों पर जीभ फेरी, परेशानी की स्थिति में गालों पर हाथ फेरा और फिर उसकी आंखें उस लाल कागज पर जम गई जो उसे अभी कुछ समय पूर्व ही प्राप्त हुआ था । उसकी परेशानी का कारण यही कागज था । परेशानी की हालत में उसने माथा थाम लिया और फिर उन अक्षरों को पढ़ने लगा- जो टाइप किए हुए थे जैसे-जैसे वह उस कागज को पढ़ता गया-वैसे-वैसे उसकी आंखों से चिंता झांकने लगी- होंठों की शुष्कता में चार चांद लग गए, माथे पर पसीने की बूंदों में वृद्धि हो गई। हालांकि इस समय उसने वह कागज पांचवीं अथवा छठी बार पढ़ा था- किंतु न जाने क्यों वह कांपकर रह जाता । ।


रघुनाथ ने घड़ी देखी और फिर कुछ निश्चय करके फोन विजय से मिलाकर बोला-''हैलो! मैं रघुनाथ बोल रहा हूं।"


"कौन मेघनाथ? अरे भई कलियुग में मेघनाथ कहां से आ गया? " दूसरी ओर से विजय जानबूझकर शरारत कर रहा है-यह आभास पाकर रघुनाथ बुरी तरह से झुंझलाकर बोला- "विजय... मैं रघुनाथ बोल रहा हूं।"


"अरे भाई... बड़े विचित्र आदमी है आप | अभी-अभी आप कह रहे थे कि आप मेघनाथ हैं और अब अपने आपको वैद्यनाथ बता रहे हैं । भई, वैद्यनाथ नाम का मेरा कोई दोस्त नहीं है । "


- "विजय, प्लीज-गंभीर हो जाओ मेरी बात सुनो ।" इस समय रघुनाथ की विचित्र - सी स्थिति हो गई थी। उसे इस समय विजय का मजाक बहुत ही बुरा लगा था ।


-''अच्छा-प्यारे तुलाराशि बोल रहे हैं ।'' विजय चहककर बोला-' 'प्यारे तुलाराशि-क्या आज सुबह-सुबह झकझकी सुनने का मूड बन गया है? हम जानते थे रघु डार्लिंग कि एक-न- एक दिन तुम हमारी झकझकियों की महानता का महत्त्व समझोगे और वह तुम्हारी रातों की नींद छीन लेगी तभी तो आज सुबह-सुबह हमें फोन मारा है, लेकिन घबराओ नहीं प्यारे - हम तुम्हें निराश नहीं करेंगे । अतः तुम्हारी सेवा में एक महान और नवीन झकझकी पेश है ।"


इससे पूर्व कि रघुनाथ कुछ बोले, विजय ने संपूर्ण भाषण दे डाला । वह सांस लेने के लिए थमा और इससे पूर्व कि वह झकझकी की एक भी पंक्ति सुनाए- रघुनाथ शीघ्रता से बोला ।


- "विजय... मुझे आग के बेटों का पत्र मिला है।"


-" अवश्य मिला होगा प्यारे । हां तो हमारी यह महान झकझकी ये है ।" कहते हुए विजय ने झकझकी बाकायदा फिल्मी धुन पर गाकर सुनाई :


"राजेश खन्ना हंस रहे, डिम्पल के संग,


ये नजारे देखकर, अजूं रह गई दंग ।


अंजू रह गई दंग, तैश उसके बाप को आया,


इतना सुन लोग बोले, ये कैसा कलियुग आया ॥"


- "विजय, प्लीज, गंभीर हो जाओ, स्थिति बहुत गंभीर है।" रघुनाथ गिड़गिड़ाया ।


- "गंभीर तो आज तक हमारा बाप भी नहीं हुआ है।"


तुलाराशि ।" विजय उसी प्रकार बोला- "वैसे तुम सुनाओ, हमारे यार आग के बेटों का क्या संदेश है?" -


- "विजय, उन्होंने इस बार व्यक्तिगत रूप से मुझे धमकी दी है । पता नहीं उन्हें मुझसे क्या शत्रुता है? उन्होंने मुझे अब भयानक चैलेंज दिया है । "


-"अबे प्यारे तुलाराशि-बको भी क्या चैलेंज दिया है ?"


- "विजय, उन्होंने तुम्हारी भाभी का अपहरण करने की धमकी दी है ।"


-"क्या, रैना भाभी? " वास्तव में विजय चौक पड़ा ।


-"हां विजय! " रघुनाथ के लहजे में परेशानी स्पष्ट थी-''उन्होंने इस बार व्यक्तिगत रूप से मुझे चैलेंज दिया है । उनका कहना है कि ठीक दस बजे आकर वे रैना को ले जाएंगे।"


-"लेकिन प्यारेलाल, क्यों? तुमसे अथवा रैना भाभी से उन्हें भला क्या शत्रुता हो सकती है? "


- "मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है विजय तुम्हीं सोचो कि अब क्या किया जाए?"


-"खैर प्यारे-तुम वो पत्र सुनाओ, जिसमें वह धमकी दी गई है।"


रघुनाथ की आंखें फिर उस कागज पर जम गई-शुष्क होंठों पर जीभ फेरी और पत्र पढ़ना प्रारम्भ किया। विजय ध्यानपूर्वक सुन रहा था ।


'प्यारे रघुनाथ,


आप लोगों ने हमें, हमारे पहले अभियान में सहयोग दिया। सर्वप्रथम इसके लिए आप लोगों को धन्यवाद । हम आशा करते हैं कि आप लोग हमें हमारे जनकल्याण के प्रत्येक कार्य में इसी प्रकार सहयोग देते रहेंगे । अखिर तुम भी पुलिस के एक जिम्मेदार अधिकारी हो । अत: तुम भी जनकल्याण के पक्षपाती तो हो ही ।


हम जानते है कि अपनी बीवी रैना से बहुत अधिक प्यार करते हो और यह प्यार इतना बढ़ गया है कि तुम कभी-कभी रैना के प्यार में अपने कर्तव्यों को भी भूल जाते हो, जबकि जनकल्याणकारियों की दृष्टि में ये लेशमात्र भी ठीक नहीं है? किसी के व्यक्तिगत प्यार के लिए कोई अपने कर्तव्यों को भूल जाए, यह बात जनकल्याणकारियों की दृष्टि में तनिक भी उपयुक्त नहीं । अतः तुम अपना संपूर्ण ध्यान अपने कर्त्तव्य पर ही केंद्रित रख सको, इसलिए हम तुम्हारी पत्नी रैना को ठीक दस बजे लेने आ रहे हैं फिर रैना तुम्हें कभी नहीं मिलेगी ताकि तुम जीवनपर्यंत अपना पूरा ध्यान अपने कर्त्तव्यों पर केंद्रित कर सको और जन कल्याण के लिए जीते रहो ।


अच्छा अब ठीक दस बजे मुलाकात होगी । आशा है हमारी जनकल्याण की भावनाओं को समझोगे और हमारे कार्य में बाधा उत्पन्न करने के स्थान पर हमें, सहयोग प्रदान करोगे ।


आप ही के दोस्त, जनकल्याणकारी


- 'आग के बेटे ।'

-"ओह तो ये बात है प्यारे तुलाराशि ।" विजय बोला ।

- "विजय, देखो नौ बज चुके हैं उनके द्वारा दिए गए चैलेंज में सिर्फ एक घंटा शेष रह गया है। शीघ्रता से सोचो, क्या किया जाए?'' परेशान रघुनाथ बोला ।

- "सोचने की आवश्यकता है प्यारे तुलाराशि । साले लगता है तुम वास्तव में अब असली सरकारी सांड नहीं रहे हो । अत: आग के बेटे अच्छा ही कर रहे हैं । "

- "विजय... प्लीज, मजाक नहीं । "

-"खैर प्यारे-ये बताओ, तुम्हें ये पत्र मिला कैसे ?"

-"सुबह सोकर उठा ही था कि मैंने इसे अपनी मेज पर रखा पाया । यह मेज पर पेपरवेट से दबा रखा था।"

-"तो ठीक है प्यारेलाल - अब आग के बेटों की प्रतीक्षा करो ।" दूसरी ओर से विजय ने कहा और तुरंत ही फोन रख दिया

फोन रखने की आवाज रघुनाथ को ऐसी लगी जैसे किसी ने उसके सीने में हथौड़ा मार दिया हो। हाथ में रिसीवर लटकाए वह बुत-सा खड़ा रहा। वह जानता था कि मुसीबत में अपने भी पराए हो जाते हैं तभी तो विजय ने भी समय की गंभीरता को बिना समझे ही मजाक में उड़ा दिया। उसे लगा जैसे इस समय वह बिल्कुल अकेला हो । उसे लगा कि जैसे वह आग के बेटी को रोक न सकेगा। अभी वह रिसीवर हाथ में लिए विचारों में ही खोया हुआ था कि एकाएक चौक पड़ा ।

-"क्या बात है? आज आप सुबह-सुबह किसे फोन कर रहे हैं?"

"ऐं...!" रघुनाथ चौंक पड़ा । उसने सामने खड़ी रैना को देखा, जो हाथ में चाय लिए खड़ी थी । वह स्वयं को संभालता हुआ बोला- "किसी को नहीं... किसी को भी तो नहीं !" कहते हुए उसने तुरंत ही रिसीवर को रख दिया और मुस्कराने का असफल प्रयत्न किया । 

-"अरे...! रैना उसके हाथ में दबे आग के बेटों के पत्र की ओर संकेत करते हुए बोली- ये आपके हाथ में क्या है? अरे इसका रंग तो लाल है । क्या बात है...? आप परेशान भी है ?"

'कुछ नहीं, यूं ही जरा-लाओ तुम चाय दो ।" रघुनाथ ने बात को टालने का प्रयास किया ।

किंतु रैना की नजरों से छुप न सका, उसने चाय मेज पर रखी और रघुनाथ की ओर बढ़ती हुई बोली- "पता नहीं आप हर बात मुझसे क्यों छिपाते हैं? दिखाइए, क्या है ये ?"

- "कुछ नहीं, तुम्हारे मतलब की चीज नहीं है ये । लाओ चाय दो ।'" रघुनाथ पीछे हटता हुआ बोला ।

किंतु रैना भी भला इस प्रकार कहां मानने वाली थी । कुछ समय तक तो दोनों में छीना-झपटी होती रही, अंत में रैना पत्र लेने में कामयाब हो गई । रघुनाथ माथा पकड़कर पलंग पर बैठ गया ।

रैना ने पत्र पढ़ना आरम्भ किया । पढ़ते-पढ़ते उसकी विचित्र - सी हालत हो गई । उसका मुख पीला पड़ गया । उसकी आंखों में भय झांकने लगा । नजरें उठाकर उसने
सामने लगे घंटे को देखा-जो सवा नौ बजने का संकेत कर रहा था । रैना के माथे पर भी पसीने की बूंदों का साम्राज्य हो गया ।

कुछ सोचकर वह फोन की तरफ बढ़ी तथा नंबर रिंग करने लगी तो रघुनाथ बोला- "क्या करने जा रही हो... किसे फोन कर रही हो? "

-"ठाकुर साहब को!" गंभीरता के साथ रैना बोली ।

न जाने क्यों रघुनाथ चुप रह गया वह कुछ भी न बोला ।

इधर रैना ने ठाकुर साहब से संबंध स्थापित होने पर कहा"यस पिताजी... मैं रैना बोल रही हूं।"

-"अरे... रैना बेटी-आज सुबह-ही-सुबह कैसे ?"

-"पिताजी, आपके अपराधियों ने हमें भयानक चैलेंज दिया है । " रैना का स्वर भयभीत था ।

- "क्या मतलब? कैसे अपराधी, किसको चैलेंज?" ठाकुर साहब चौंके ।

-" आग के बेटों का चैलेंज- हमारे लिए ।" रैना ने फिर कहा और उसके बाद उसने समूचा पत्र फोन पर ठाकुर साहब को सुना दिया | सुनकर ठाकुर साहब भी स्तब्ध रह गए । उनकी समझ में नहीं आया कि ये आग के बेटे आखिर क्या है? इनका आखिर उद्देश्य क्या है? किंतु फिर भी वे स्वयं पर संयम पाकर बोले ।

- "घबराने की कोई बात नहीं है बेटी... इस बार आग के बेटे किसी भी कीमत पर अपने अभियान में सफल नहीं हो सकेंगे । इस बार भयानक ढंग से उनका सामना किया जाएगा । घबराओ मत । रघुनाथ कहां है...उसे फोन दो!'

तब-जबकि फोन पर रघुनाथ बोला तो ठाकुर साहब बोले-''रघुनाथ, बड़े शर्म की बात है कि तुम पुलिस के इतने बड़े अधिकारी होते हुए भी छोटी-सी परेशानी से घबरा गए । ध्यान रहे इस बार आग के बेटे किसी भी कीमत पर सफल नहीं हो सकते । इस बार टैंकों से उनका सामना किया जाएगा - ।"

-"ओके सर ! " रघुनाथ ने स्वयं को संयत किया और अलर्ट होकर कहा ।

उसके बाद...!

सिर्फ पंद्रह मिनट के अंदर-अंदर यह समाचार समस्त राजनगर में विद्युत-तरंगों की भांति प्रसारित हो गया । एक बार फिर समस्त राजनगर पर आतंक का साम्राज्य था । सुनते ही सबका रुख रघुनाथ की कोठी होता । आग के बेटी के साथ इस बार पुलिस का चैलेंज भी प्रसारित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि इस बार किसी भी कीमत पर आग के बेटे अपने अभियान में सफल नहीं होंगे। इस बार आग के बेटों का स्वागत मौत करेगी ।

अगले पंद्रह मिनटों में पांच टैंकों ने न सिर्फ रघुनाथ की कोठी को घेर लिया, बल्कि अन्य सड़कों पर भी तीन अन्य टैंक आग के बेटों का स्वागत करने हेतु तत्पर थे। सेना के जवान टॉमीगनों से लैस थे। राजनगर के सागरीय तट पर न सिर्फ अनेकों स्टीमरों का जाल था, बल्कि सागर के गर्भ में नेवी के विख्यात जहाजों द्वारा संचालित अनेकों पनडुब्बियों का सुदृढ जाल फैला हुआ था । ताकि आग के बेटों का अंत तक स्वागत किया जा सके । वास्तव में इस बार वे अपने प्रयासों में सफलता अर्जित न कर सकेंगे, क्योंकि वास्तव में इस बार उनका स्वागत मौत करेगी ।

घड़ी की सुइयां निरंतर बढ़ रही थी। लोग दस बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे । ऐसे समय में एक इंसान के मुख पर विचित्र-सी शरारतपूर्ण मुस्कान थी ।

उस रहस्यमय और विचित्र नकबपोश के आगमन पर कई परिवर्तन एक साथ हुए थे । वहां उपस्थित समस्त इंसान आदर के साथ झुक गए । समस्त हॉल का प्रकाश मानो सिमटकर बस उस विचित्र नकाबपोश के जिस्म में समाता चला जा रहा था । संपूर्ण हॉल में धुंध-सी छा गई । समस्त प्रकाश उस रहस्यमय नकाबपोश ने अपने अंदर जब्त कर लिया था ।

वह एक लंबा-चौड़ा और गोल हॉल था- जिसमें लगभग बीस खतरनाक किस्म के व्यक्ति खड़े थे । उपस्थित समस्त व्यक्तियों के जिस्म पर एक-से 'ग्रीन' व चुस्त लिबास थे । सबके सिरों पर लाल कैप थी । वे हॉल में अपने-अपने स्थानों पर शांत खड़े थे ।

हॉल के स्टेज पर वह विचित्र नकाबपोश प्रकट हुआ था । जिसके जिस्म पर कैसा लिबास है यह तो अधिक प्रकाश होने के कारण कुछ स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था, किंतु फिर भी उस नकाबपोश के नकाब के कुछ कण ऐसे थे जो सुनहरे थे, यानी उसके जिस्म पर सुनहरे लिबास के साथ एक सुनहरा नकाब भी था । एक नजर में वह इंसान न लगकर सिर्फ इंसानी आकृति ही प्रतीत होता था, क्योंकि उसका संपूर्ण जिस्म प्रकाश से जगमगा रहा था । उसके सारे जिस्म पर अनेकों बल्व लगे हुए थे । वे भिन्न-भिन्न रंगों के थे तथा जगमगा रहे थे । सिर्फ चेहरे वाला भाग अंधकार में विलुप्त था, किंतु नकाब पर किसी अत्यंत चमकीले पदार्थ से 'आग के बेटे' शब्द लिखा गया था। उसके संपूर्ण जिस्म पर बल्ब जगमगा रहे थे। उसके आगमन पर हॉल में उपस्थित सभी लोग आदर के साथ झुक गए । उन सभी के सीने पर वही आग के बेटे लिखा हुआ था ।

कुछ समय तक हॉल में मौत जैसा सन्नाटा छाया रहा। अचानक हॉल में विचित्र - सी भिनभिनाहट के साथ कुछ शब्द गूंजने लगे- ''आग के बेटे, आग की देवी को सलाम पहुंचाते हैं।'' ये शब्द उस रहस्यमय नकाबपोश के मुख से निकले थे, जिसके आगमन पर अन्य सभी 'आग के बेटे' एक बार फिर आदर के साथ झुक गए ।

उसके बाद रहस्यमय नकाबपोश की भिनभिनाहट फिर गूंजी "बेटा नंबर जर्फीला सेशन !"

"यस... महान आग के स्वामी ।" हॉल में उपस्थित एक इंसान आगे बढ़कर बोला- जिसको शायद जर्फीला सेशन' नंबर से संबोधित किया था ।

- "क्या तुमने राजनगर में उड़ता समाचार सुना?" आग के स्वामी की भिनभिनाहट ।

- "सब कुछ आश्चर्यजनक है -महान आग के स्वामी ।" जर्फीला सेशन बोला ।

- ''हम लोगों ने रघुनाथ के यहां ऐसा कोई भी पत्र नहीं भेजा, जिसकी चर्चा समस्त राजनगर में फैली हुई है। जिस समाचार के आधार पर भारतीय सेना का जाल बिछा हुआ है । वे शायद आग के बेटों से टकराना चाहते हैं, लेकिन हम आग के बेटे जनकल्याणकारी है । अत: व्यर्थ की मार-काट पसंद नहीं करते और वैसे भी वह धमकी हम लोगों ने नहीं दी है । अगर वास्तव में रैना के अपहरण का हमारा इरादा होता तो हम लोग वहां अवश्य जाते और सारे इंतजाम भला हमें क्या हानि पहुंचा सकते थे, किंतु जब यह धमकी हमने दी ही नहीं तो फिर हम व्यर्थ ही क्यों उनसे टकराए ?" आग के स्वामी के ये शब्द सारे हॉल में गूंजे ।

- "लेकिन महान स्वामी ।" जर्फीला सेशन आदर के साथ बोला- "ये बात तो हमारे लिए भी आश्चर्यजनक है कि हमारे नाम से ये धमकी आखिर दी किन लोगों ने है...? उनका उद्देश्य क्या है...? उन लोगों ने भी अपने-आपको आग के बेटे ही क्यों कहा?"

- "नंबर जर्फीला सेशन ।" आग का स्वामी अपनी विशेष आवाज में बोला-' 'यही तो एक गुत्थी हैं जिसको सुलझा, में तुम्हें अपने पांच साथियों के साथ साधारण कपड़ों में रघुनाथ की कोठी पर जाकर दस बजे देखना है कि आखिर ये धमकी किसने और किस उद्देश्य से दी है?

- "जैसी आज्ञा महान स्वामी- हम वहां जाते।" जर्फीला सेशन बोला ।

उसके बाद स्टेज से 'आग का स्वामी' विलुप्त हो गया । उसके जाते ही समस्त हॉल में प्रकाश जगमगा उठा । जर्फीला सेशन अपने साथियों का चुनाव करने लगा ।

यह दूसरी बात है कि विजय ने फोन पर रघुनाथ की बात को मजाक उड़ा दिया था, जबकि वास्तविकता यह थी कि विजय आग के बेटों का चैलेंज सुनकर चिंतित हो उठा । वास्तव में आग के बेटों द्वारा दिया गया ये चैलेंज बड़ा विचित्र था । विजय की समझ नहीं आ रहा था कि आग के बेटों को भला व्यक्तिगत रूप से रघुनाथ अथवा रैना से क्या शत्रुता हो सकती है? कुछ देर तक वह सोचता रहा ।

अभी वह बिस्तर में ही था कि रघुनाथ का फोन मिला । कुछ सोचकर वह उठा और अपने प्राइवेट रूम में पहुंचा तथा फोन पर नंबर रिंग करके पवन के रूप में भर्राए-से स्वर में बोला- ' हैलो मिस आशा ! "

-''यस चीफ! '' दूसरी ओर से आशा का एकदम सतर्क स्वर सुनाई दिया ।

- "शहर में उड़ता समाचार तुम तक पहुंच गया होगा।" विजय, पवन के भर्राए स्वर में बोला ।

-"यस सर.. रैना भाभी के अपहरण की धमकी वाला समाचार! "

-'यस! तुम तुरंत अन्य एजेंटों को भी आदेश दे दो-वे फौरन रघुनाथ की कोठी पर पहुंच जाएं। इस बार किसी भी कीमत पर आग के बेटे सफल नहीं होने चाहिए । "

-"ओके सर ।" दूसरी ओर से आशा के शब्द सुनते ही विजय ने-तुरंत संबंध-विच्छेद कर दिया । फिर कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा और पुन-नंबर रिंग किए- दूसरी ओर से उसके पिता ठाकुर साहब की आवाज गूंजीं ।

- "हैलो कौन है ?"

-"ठाकुर !" विजय पवन के-से भराए हुए स्वर में बोला- "शहर में दो घंटे के लिए कर्फ्यू लगा दो ।"

-''जैसी आज्ञा सर ।'' दूसरी ओर से पवन का भर्राया हुआ स्वर सुनकर ठाकुर साहब एकदम सतर्क हो गए। वे जानते थे कि भर्राई हुई ये आवाज सीक्रेट सर्विस के चीफ की होती है । उनके आदेश का पालन प्रत्येक कीमत पर किया जाता है क्योंकि सीक्रेट सर्विस भारत की सर्वोत्तम जासूसी संस्था है । पद की दृष्टि से पवन ठाकुर साहब से उच्च पदाधिकारी है । अत: प्रत्येक आदेश का पालन करना उनका कर्तव्य है, किंतु वह क्या जानते थे कि इसका वास्तविक अधिकारी उनका वही कुपुत्र है, जिसे उन्होंने आवारा, गुंडा, बदचलन जैसी अनेकों उपाधियों से सम्मानित करके घर से निकाल रखा है । वे क्या जानते थे अपने उसी बदचलन बेटे की वास्तविकता ।

विजय ने तुरंत संबंध-विच्छेद कर दिया । उसे पूर्ण विश्वास था कि अगले कुछ ही क्षणों में उसके आदेशानुसार कर्फ्यू लगा दिया जाएगा । वह शीघ्रता से तैयार होने लगा और अगले पांच मिनटों में उसकी कार तीव्र वेग से रघुनाथ की कोठी की ओर जा रही थी । वह लापरवाही से सीटी बजाता हुआ कार ड्राइव कर रहा था । इस समय उसने कोई मेकअप नहीं किया था । वह अपनी वास्तविक सूरत में छैला बना हुआ था ।

ठीक पांच मिनट पश्चात विजय रघुनाथ की कोठी पर था ।

तभी पुलिस जीपें कर्फ्यू की घोषणा करती हुई उधर आ निकली। लोगों की भीड़ छंटने लगी जो लोग नहीं गए उन्हें सख्ती के साथ सेना ने कंट्रोल किया ।

विजय ने अभी कोठी में कदम रखा ही था कि विकास दौड़ते हुए उसके निकट आया और लगभग चीखा- "नमस्ते झकझकिए अंकल ।" 1

- "नमस्ते प्यारे दिलजले । " विजय मुस्कराता हुआ बोला"ये क्या कबाड़ा फैला रखा है ?"

- " पता नहीं अंकल, कोई बता नहीं रहा कि बात क्या है? आप ही बताइए न अंकल? "

- "अबे ओ मियां दिलजले... तुम्हें, और न पता हो ? " विजय एक प्यार-भरा चपत विकास के प्यारे कपोल पर मारता हुआ बोला ।

तभी रघुनाथ उनके निकट आकर बोला- "विजय फोन पर तुमने मेरी बात को मजाक समझा था फिर अब...।"

- "ये समय-समय की बात है प्यारे तुलाराशि, तुम ये बताओ, भाभी कहां है?'' विजय आंख मारता हुआ बोला। 

तभी रघुनाथ ने विकास से कहा- "तुम अंदर जाओ विकास ।"

विकास महाशय मुंह लटकाए अंदर की ओर रेंगे । विकास के चले जाने के पश्चात रघुनाथ धीरे से विजय के कान में बोला- "विकास को इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है । वह बार-बार पूछ रहा है कि इस बार आग के बेटे यहां क्या करने आ रहे हैं? किंतु वास्तविकता उसे किसी ने नहीं बताई है । आखिर बच्चा ही तो है - रैना समझदार होकर इतना घबरा रही है तुम भी विकास से कुछ न कहना ।"

-"प्यारे तुलाराशि!" विजय मुस्कराता हुआ बोलावास्तविकता पूछो तो भगवान से जरा-सी भूल हो गई । इस साले विकास को भूल से तुम्हारा लड़का और हमारा भतीजा बना दिया । वास्तव में यह हमारा और तुम्हारा बाप है और रही-सही कसर उस साले लूमड़ ने पूरी कर दी। मैं देख रहा हूं कि तुम घबरा रहे हो, लेकिन दावे से यह कह सकता हूं विकास यह जानने के बाद भी नहीं घबराएगा क्योंकि उसका गुरु ही साला लूमड़ है।" -

- "लेकिन फिर भी विजय-विकास हमारे लिए तो बच्चा ही है" 

"खैर ठीक है । तुम ये बताओ भाभी कहां है?'

-"अंदर वाले कमरे में ।" रघुनाथ घड़ी देखता हुआ बोला, जिसमें दस बजने में पांच मिनट शेष थे। तभी रघुनाथ के दिमाग को तीव्र झटका लगा । विजय ने उसके चेहरे के भावों में परिवर्तन स्पष्ट देखा था और उस समय वह चौंके बिना न रहा सका, जब रघुनाथ का रिवॉल्वर एक झटके के साथ होल्स्टर से निकलकर उसके हाथ में आ गया और वह उसे विजय की ओर तानकर कड़े स्वर में गुर्राया ।

- "ठहरो, इसकी क्या गारंटी है कि तुम विजय हो?

अगले ही पल विजय के अधरों पर मुस्कान बिखर गई । अजीब-से लहजे में वह बोला ।

'इसकी क्या गारंटी है कि तुम हमारे प्यारे तुलाराशि हो?"

- "बको मत!" रघुनाथ सख्त स्वर में गुर्राया तथा विजय की आखों में झांका ।

- "इन बेकार की बातों में समय गंवाने के स्थान पर समय का सदुपयोग करोगे तो अधिक बुद्धिमानी होगी प्यारे तुलाराशि । वैसे मुझे खुशी हुई कि तुम काफी सतर्कता बरत रहे हो, किंतु ध्यान रखो, आग के बेटे किसी के मेकअप में नहीं, बल्कि आग की लपटों में लिपटे हुए होंगे।"

तत्पश्चात रघुनाथ ने पूरी तसल्ली कर ली कि सामने खड़ा व्यक्ति वास्तव में विजय के अतिरिक्त कोई नहीं है तो विजय को रैना का कमरा बता दिया । मुस्कराता हुआ विजय रैना के कमरे की ओर बढ़ गया । रैना का कमरा भीतर से बंद थाजिसमें रैना के साथ पांच सेना के जवान उपस्थित थे । उसने कमरा खुलवाया और अंदर प्रविष्ट हुआ । उसे देखते ही रैना उठी और बोली ।

-"विजय भैया...!" अभी रैना आगे कुछ कहने ही जा रही थी कि विजय बोला ।

- "अरे भाभी, हमारे होते हुए घबरा रही हो- अरे हम आ गए हैं ठाकुर के पूत । हम साले इन आग के बेटों को छठी का दूध याद दिला देंगे ।" विजय ने यह शब्द कुछ इस प्रकार सीना अकड़कर कहे थे कि पांचों मिलिट्री वालों के साथ स्वयं रैना भी बिना मुस्कराए न रह सकी थी ।

तभी कमरे में विकास प्रविष्ट हुआ और बोला- "हैलो अंकल -यहां पर क्या हो रहा है? अगर आप नहीं बताना चाहते तो मत बताइए - लेकिन अंकल, एक नई बनाई हुई दिलजली तो सुनिए ।"

- "विकास, तुम हमेशा शैतानी...!"

- -"ओफ्फो भाभी !" विजय बीच में ही बोला- "तुम्हें किस मूर्ख ने यह अधिकार दिया कि तुम चाचा-भतीजे के बीच में बोलो । क्यों मियां दिलजले- हम ठीक कह रहे हैं न ?" अंतिम शब्द विजय ने विकास की ओर देखकर कहे थे, किंतु इससे पूर्व कि विकास कुछ कहे, रैना बोली ।

- "तुम इस शैतान को सिर पर चढ़ाते जा रहे हो भैया ।"

- ''घबराओ नहीं भाभी- हमारा सिर भी बहुत ऊंचा है। वहां तक पहुंचने के लिए तो अभी दिलजले को बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे। हां तो मियां दिलजले, पेश करो अपनी दिलजली और जला दो हमारा दिल । ऐसा जलाना कि आग की लपटें निकलने लगें, किंतु धुआं नहीं ।" विजय विकास की ओर देखकर बोला ।

'हां तो अंकल -ये मैं अपना फर्ज समझता हूं कि बिना कर्ज के एक दिलजली अर्ज करू । हां तो मैं जो सुनाता हूं उसे ध्यान से सुनो, क्योंकि ये दिलजली सप्रेटा घी में तली हुई है।" 

विकास के कहने के ढंगपर विजय बिना मुस्कराए न रह सका । जबकि विकास इस बात से बेखबर अपनी दिलजली कुछ इस प्रकार सुना रहा था :

एक बार छिड़ गई जंग, चूहों और मच्छरों मे भारी,

आकाश कांप गया-धरती डगमगाई सारी ।

दोनों ही ओर थे, योद्धा एक-से-एक भारी, दुंदुभी बजी - युद्ध की हो गई तैयारी ।

चूहों में आतंक फैला, सेना घबराई सारी, क्योंकि मच्छरों में थे, बहादुर छाताधारी । इतना सब कुछ देख घबराए सब नर-नारी, चूहे थे बेचारे शाकाहारी, मच्छर मांसाहारी ।

मच्छरों ने शुरू कर दी, जोरदार बमबारी,

चूहों की सेना घबराई क्या करती घुड़सवारी | बच्चों में आतंक फैला, चिल्लाई चुहिया सारी,

एक-एक मरने लगे--- चूहे सब बारी-बारी ।

देखकर आया क्रोध, चूहे के सरदार को,

आगे बढ़कर ललकारा मच्छरों के बाप को ।

मच्छर बोले, ले आओ अपने हिमायती सांप को,

किंतु सरलता से नहीं छोड़ते, चूहे भी भी मैदान को ।

अणुबम डाला मच्छरों ने, सोचा वह बाजी ले गया,

लेकिन चूहों का सरदार बम को मुह में ले गया । ली हाजमे की गोली, बम को हजम कर गया,

देखकर करिश्मा, मच्छरों का सरदार बेहोश हो गया ।

फिर क्या था चूहे रुक गए जाते-जाते,

बम मुंह में लेकर गोली - सी हजम कर जाते ।

अगर नहीं भागते मच्छर तो वहीं मारे जाते,

रखे रह गए वहीं सब, उनके छाते-वाते ।

-"अबे ओ मियां दिलजले । अब अपनी बोलती पर
ढक्कन लगा लो । हम कुछ कह नहीं पा रहे हैं तो तुम अपनी दिलजली को राजकपूर की फिल्मों की भांति लम्बी करते जा रहे हो ।" विजय हाथ उठाकर बोला ।

अन्य सभी विकास की दिलजली पर मुस्करा उठे । रैना भी मुस्कराए बिना न रह सकी।