"तुम अब असफल होते जा रहे हो मोहन सूरी!" दीवान की आवाज उसके कानों में पड़ रही थी--- "नाइट क्लब पर भी तुम्हारा आदमी मारा गया और यहां भी तुम्हारे आदमी को मन्नू मारकर भाग गया।"

"समझ में नहीं आता कि ये सब कैसे हो गया!" मोहन सूरी भिंचे स्वर में कह उठा।

"F.I.A. को काबिल लोग चाहिए।"

"सॉरी दीवान।" मोहन सूरी इस वक्त सच में बहुत परेशान था--- "मैं लीवनो, मन्नू के फ्लैट में पहुंचा तो अमन को मरे हुए पाया...।"

"मुझे हैरानी है कि मन्नू के सामने तुमने सिर्फ एक एजेंट भेजा, जबकि वो बेहद खतरनाक है। अब वक्त बर्बाद मत करो। लीवनो से क्रोशिया तक, हर रास्ते पर पहरा बिठा दो। वो लीवनो से बाहर जाने की कोशिश करेगा। हो सकता है देश से भी बाहर जाना चाहे। एयरपोर्ट, स्टेशन, हाईवे, हर जगह की निगरानी रखो। उसने अमन को क्यों मारा, ये बात हमारे सामने साफ नहीं है, लेकिन हम सोच सकते हैं कि नाइट क्लब में मन्नू ही माईक से मिला हो और उस वक्त वह सीधा क्रोशिया से आ रहा हो। मन्नू को पकड़ना बहुत जरूरी है।

"मैं अभी सारे इंतजाम करता हूं।"

"माईक पर तुम्हारे आदमी नजर रखे हुए हैं?" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"हां।"

"हो सकता है मन्नू, माईक से मिलने की कोशिश करे। अपने उन आदमियों को भी इस बारे में सतर्क कर दो।"

"मुझे सब काम करने दो, फोन बंद करो।" मोहन सूरी ने कहा और फोन बंद किया। उसके बाद वो एक के बाद एक फोन करने लगा। सुबह हो रही थी। दिन निकल रहा था। मोहन सूरी लीवनों में मौजूद था।

■■■

सुबह का उजाला फैलने के साथ ही मन्नू मार्शल के ठिकाने पर जा पहुंचा।

बाहर उसे दो आदमी मिले।

"क्या है, सुबह-सुबह किधर जा रहा है?"

"मार्शल से मिलना...।"

"चला जा। सर अभी अभी क्लब से लौटे हैं। ये उनके सोने का वक्त है। शाम को आना।"

"मेरा मिलना जरूरी है।" मन्नू ने बेचैनी से कहा।

"सुना नहीं, भाग जा।"

"मैं डॉलर लाया हूं, मार्शल को देने के लिए।" मन्नू ने हाथ में पकड़ा पैकेट थपथपाया--- "एक लाख डॉलर।"

"कितने?" वह अजीब-से स्वर में बोला।

"लाख डॉलर। इस लिफाफे में है।"

"सर को देने हैं?"

"हां।"

दोनों आदमियों ने एक-दूसरे को देखा।

"तू ले जा इसे सर के पास।" एक ने दूसरे से कहा।

"चल।" वो आगे बढ़ता बोला।

मन्नू उसके साथ चल पड़ा।

इस तरह मन्नू मास्टर के पास पहुंचा।

मार्शल सामान्य कद-काठी का, पांच फीट दो इंच का आदमी था। वो सच में अभी क्लब से लौटा था और कपड़े चेंज कर रहा था। वो इस वक्त ही नींद लेता था और फिर शाम को उठता था। इस वक्त मार्शल अंडरवियर में था।

मार्शल ने मन्नू को देखा और मुस्कुराया।

"तेरे को कहा था, जब भी आना डॉलर लेकर आना। मैं...।"

"डॉलर लाया हूं।" मन्नू ने जल्दी से कहा।

"कितने, सौ के पांच सौ?" मार्शल हंसा।

"एक लाख।"

मार्शल के माथे पर बल पड़े।

मन्नू ने उसी पल लिफाफा खोला और डॉलरों की गड्डियां टेबल पर निकाल कर रख दीं।

मार्शल के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे। वो आगे बढ़ा। डॉलरों को चेक किया।

"किधर से लाया तू इतनी बड़ी रकम?" मार्शल ने मन्नू को देखा।

"जुगाड़ किया है।"

"वो ही तो पूछ रहा हूं कि इतनी बड़ी रकम का किधर से जुगाड़ कर लिया?"

"बताना जरूरी तो नहीं?"

"बता- बता--- मैं भी तो सुनूं। चिंता मत कर किसी से कहूंगा नहीं। बोल...।"

"दो को गोली मारनी पड़ी। एक क्रोशिया में। दूसरे को इधर ही लीवनों में।"

"समझा। तो तू भी गोली चलाता है।"

"जैनी को मुझे दे दे मार्शल!"

"ले ले। मैंने उसका क्या करना है। तेरे पीछे पुलिस तो नहीं लगी?"

"नहीं। लेकिन अब लीवनो में रहना मेरे लिए खतरनाक है। जैनी के साथ मैं यहां से चले जाना चाहता हूं।"

"तो?" मार्शल उसे देखने लगा।

"दुकान और फ्लैट खरीदेगा सस्ते में। जो भी तू देना चाहे दे दे। जैनी कागज साइन कर देगी।"

"साइन की मार्शल को कोई जरूरत नहीं। तूने मुंह से कह दिया, सौदा हो गया। बोल क्या चाहिए दुकान और फ्लैट का?"

"जो तू ठीक समझे।"

"दस हजार डॉलर उठा ले।"

मन्नू ने दस हजार डॉलर की गड्डी उठा ली।

"हो गया सौदा?" मार्शल बोला।

"हां।"

"जैनी को समझा देना कि अब दुकान और फ्लैट के रास्ते में न आए।"

मन्नू ने सिर हिला दिया।

मार्शल ने होंठ सिकोड़कर मन्नू को देखा।

"मैं तो तेरे को यूं ही समझाता था, लेकिन तू करामाती बंदा निकला। एक लाख डॉलर ले आया, हैरानी है। और भी है क्या?"

"नहीं, पूरे लाख थे। अब जैनी को मुझे दे।"

मार्शल ने बाहर खड़े आदमी को बुलाकर कहा।

"21 नंबर में जैनी है। इसे ले जा और जैनी इसे दे दे।"

मन्नू इस आदमी के साथ वहां से बाहर निकल गया।

■■■

मन्नू को जैनी मिल गई।

उसका चेहरा उतरा हुआ था। वो घबराई हुई थी। अपनी को आजाद होते देखकर वह हैरान-परेशान हो गई थी।

दोनों एक-दूसरे के गले जा लगे।

"मन्नू!" जैनी रो पड़ी।

"मेरी जान!" मन्नू की आंखों में भी आंसू भर आए।

कई पलों तक वे एक-दूसरे से चिपके खड़े रहे।

"चल फुट यहां से।" उसे लाने वाला आदमी कह उठा।

दोनों वहां से बाहर खुली सड़क पर आ गए।

"अब तो तू जुआ नहीं खेलेगा?" जैनी भीगे स्वर में बोली।

"नहीं।" मन्नू ने कस कर जैनी का हाथ पकड़ लिया।

अगले ही पल जैनी ठिठकी और मन्नू को देखने लगी।

"तूने मुझे कैसे आजाद कराया?"

जवाब में मन्नू ने कुछ ज्यादा ही लंबी सांस ली।

"मार्शल एक लाख डॉलर मांग रहा था। मार्शल जो सोच लेता है वही करता है। वो मुझे छोड़ने पर तैयार कैसे हुआ?"

"मैंने उसे लाख डालर दिए हैं।" मन्नू ने आहत भाव से जैनी को देखा।

जैनी के चेहरे पर अविश्वास के भाव नाच उठे।

"तूने लाख डॉलर दिए।" जैनी का मुंह खुला-का-खुला रह गया--- "कहां से लाया तू?"

"सब गड़बड़ हो गया जैनी!"

"क्या मतलब?"

"मैं तेरे बिना रहने की सोच भी नहीं सकता जैनी!" मन्नू ने कहा--- "मुझे लाख डॉलर का इंतजाम करना पड़ा ।"

"क्या गड़बड़ की है तूने मन्नू!"

"मैंने नहीं की, लेकिन हो गई।"

"बोल तो।"

फिर मन्नू उसे सब कुछ बताता चला गया।

जैनी हक्की-बक्की सी उसकी बात सुनती रही।

वो चुप हो गया।

जैनी व्याकुल भाव से उसे देखती रही। बोली कुछ नहीं।

"मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था तेरे को मार्शल के हाथों से निकालने का। लाख डॉलर का इंतजाम मुझे करना ही था, परंतु मैंने ये नहीं सोचा था कि इस तरह सब कुछ खराब हो जाएगा।"

"ये तूने क्या कर दिया मन्नू?" जैनी के होंठों से निकला।

"तो कहां से लाता मार्शल को देने के लिए एक लाख डॉलर?"

"तू ने C.I.A. और जिन्न को छेड़ दिया। जिन्न के दो आदमियों को तूने मारा। वे तुझे नहीं छोड़ेंगे।"

"वैसे भी वे मुझे कौन-सा छोड़ने वाले थे। समझ में नहीं आता कि जिन्न को मेरी और माईक की मुलाकात का कैसे पता...।"

"वो 'जिन्न' है। खतरनाक संस्था है इंडिया की।"

"बेहद खतरनाक।"

"अब तो हम घर भी नहीं जा सकते।"

"घर और दुकान मैंने मार्शल को बेच दी है।"

"क्या?" जैनी हड़बड़ाई।

"हमें यहां से दूर भागने के लिए पैसा चाहिए था। मार्शल ने दस हजार डॉलर दिए हैं।"

"सिर्फ दस हजार डॉलर?" जैनी ने अजीब-से स्वर में कहा।

"हमारे लिए बहुत है, वरना यहां से भागने के लिए हमारे पास एक भी पैसा नहीं।"

"तूने सब कुछ पहले से तय कर रखा है।" जैनी बहुत चिंतित नजर आ रही थी।

"ये सब हमारे भले के लिए ही है।"

"यहां हमारी जिंदगी कितनी अच्छी चल रही थी। किसी की नजर लग गई है।" जैनी की आंखों में पुनः आंसू आ गए।

"यहां से निकल चलने की सोच। जिन्न के लोग हमको हर जगह तलाश करते फिर रहे होंगे। उन्होंने हमें ढूंढ लिया तो मार देंगे। मेरे ख्याल से वे जान चुके हैं कि मैं ड्यूक हैरी की हत्या के मामले को C.I.A. के सामने खोल रहा हूं। वे गुस्से में होंगे।"

"तूने गलत किया।"

"तो तेरे को कैसे छुड़ाता?"

जैनी मन्नू को देखती रही, फिर थके स्वर में बोली।

"हम जहां भी जाएंगे, वे हमें ढूंढ लेंगे।"

"फिर भी हमें पूरी कोशिश करनी है कि हम दूर निकल जाएं। हमारे पास दस हजार डॉलर हैं।"

"पासपोर्ट होता तो हम मनीला जा सकते।"

"पासपोर्ट है। ले आया हूं। तेरा भी है, लेकिन मलीना के बजाय हम इंडिया जाएं तो ज्यादा ठीक रहेगा।"

"इंडिया?" जैनी चौंकी।

"हां। जिन्न कभी सोच भी नहीं सकेगा कि उससे बचने के लिए हम इंडिया जा सकते हैं।"

"अमृतसर चलेंगे। वहां मेरे बाऊजी का बहुत बड़ा घर...।"

"वहां भी चलेंगे, लेकिन पहले मुंबई। वहां काम धंधे के बारे में कुछ सोचना है। उसके बाद अमृतसर चलेंगे।"

"लगता है विदेश में रहने का इतना ही दाना-पानी लिखा था।" जैनी की आंखें भर आईं--- "जैनी से वापस जगदीप कौर बन जाऊंगी मैं।"

मन्नू ने प्यार से जैनी का गाल थपथपाया और उसे अपने सीने से लगा लिया।

■■■

क्रोशिया के एयरपोर्ट पर मन्नू और जैनी F.I.A. के एजेंट की नजरों में आ गए थे, परंतु वहां भीड़ होने की वजह से एजेंट को मौका नहीं मिल पा रहा था कि वो उन दोनों को शूट कर सके। उसने मोहन सूरी को फोन किया।

"कहो।" मोहन सूरी की आवाज उसके कानों में पड़ी।

"मैं एयरपोर्ट पर हूं और मन्नू जैनी भी यहीं हैं। उन्होंने इंडिया की फ्लाइट में टिकटें बुक कराई हैं। दो घंटे बाद वो फ्लाइट मुंबई के लिए टेकऑफ करेगी।" उसने बताया।

"बेग!" मोहन सूरी का परेशानी भरा स्वर कानों में पड़ा--- "उन्हें किसी भी तरह खत्म कर दो।"

"पागल हो क्या! एयरपोर्ट पर टाइट सिक्योरिटी है। कदम-कदम पर पुलिस वाले हैं। उन्हें खत्म नहीं किया जा सकता।"

"उन्हें खत्म करना जरूरी है।"

"ये संभव नहीं।" बेग ने कहा--- "उन्हें शूट करने का मतलब है, मेरा पकड़ा जाना। जो कि ठीक नहीं होगा।"

"ठीक है। मैं तुम्हें कुछ देर बाद फोन करता हूं।"

■■■

मोहन सूरी तब लीवनो में था।

बेग से बात करने के बाद उसने इंडिया दीवान को फोन लगाया।

"कहो सूरी?" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"मन्नू और जैनी क्रोशिया एयरपोर्ट पर मुंबई के लिए फ्लाइट पकड़ रहे हैं।" मोहन सूरी ने बताया।

"मुंबई के लिए?"

"हां--- वे...।"

"आने दो। ये तो अच्छी बात है। वे हमारे कब्जे में आ रहे हैं।" दीवान के शब्द उसके कानों में पड़े।

"मुझे अफसोस है कि मैं उन्हें खत्म नहीं कर सका। उसने हमारे दो एजेंटों को मारा है।"

"अब वह हमसे बच नहीं सकते। उन्हें यहां खत्म कर दिया जाएगा।"

उसके बाद मोहन सूरी ने बेग से फोन पर बात बात की।

"क्या पोजीशन है?"

"वही। वो लाउंज में बैठे हैं और आधे घंटे तक वे भीतर चले जाएंगे।"

"उन पर नजर रखो, जब तक उनकी मुंबई के लिए फ्लाइट टेक ऑफ न कर जाए।"

"समझ गया।"

"उन्हें शक तो नहीं कि उन पर नजर रखी जा रही है।"

"कोई शक नहीं। वे निश्चिंत नजर आ रहे हैं। क्या मैं उनके साथ उसी फ्लाइट में इंडिया जाऊं?"

"नहीं, तुम अंत तक उन पर नजर रखो और फ्लाइट टेक ऑफ होते ही मुझे खबर कर दो।" कहने के साथ ही मोहन सूरी ने फोन बंद किया और फिर लीवनो में फैले अपने एजेंटों को मन्नू और जैनी की तलाश से हटाने लगा। उन्हें बताया जाने लगा कि वह दोनों क्रोशिया से इंडिया जाने के लिए एयरपोर्ट पर पहुंच चुके हैं।

ये काम यहीं छोड़ दिया जाए।

■■■

C.I.A. का ऑफिस।

न्यूयॉर्क।

उस वक्त शाम के सात बज रहे थे। चीफ टॉम लैरी ने हाल होने वाली मीटिंग से फुर्सत पाई और अपने केबिन में आ पहुंचा। वहां दो एजेंट बैठे उसका इंतजार कर रहे थे।

"सॉरी दोस्तों!" कुर्सी पर बैठता टॉम लैरी मुस्कुरा कर बोला--- "तुम दोनों को इंतजार करना पड़ा। मुझे बताओ कि उस केस में तुमसे...।"

तभी फोन बजा। दूसरी तरफ सूजी थी।

"कहो सूजी!" चीफ लैरी ने कहा।

"चीफ! क्रोशिया से कोई बात करना चाहता है। अपने बारे में वो 000 (ट्रिपल जीरो) बता रहा है।"

"लाइन दो।" चीफ लैरी ने फोन कहा। ट्रिपल जीरो डबल एजेंट था। जो कि 'जिन्न' के लिए काम करता था और क्रोशिया में था, परंतु वो C.I.A. को भी अपनी खबरें बेच कर पैसे कमाता था।

तुरंत ही ट्रिपल जीरो की आवाज चीफ के कानों में पड़ी।

"हैलो चीफ!"

"कहो।"

"मुझे पता चला है कि माइक क्रोशिया में है और वो मन्नू से मिलने के चक्कर में है।"

"होगा, मुझे खबर नहीं है।"

"उसे बताओ कि मन्नू और जैनी इस वक्त क्रोशिया एयरपोर्ट पर हैं और इंडिया जाने की तैयारी में हैं। इंडिया यानी कि मुंबई! जीन को उनके मुंबई जाने की खबर है और उन्हें मुंबई में जिन्न शट करेगा।"

"ये तो खबर माईक के काम की है?" चीफ ने सोच भरे स्वर में कहा।

"पक्का! एक रात पहले वो मन्नू से नाइट क्लब में मिला था और जिन्न के एक एजेंट को उनमें से किसी ने मारा था। मेरे ख्याल में उनकी मुलाकात तसल्लीबख्श नहीं रही होगी। माईक, मन्नू से फिर मिलना चाहता होगा।"

"खबर देने का शुक्रिया।"

"मेरे डॉलर?"

"मिल जाएंगे।" चीफ टॉम लैरी ने फोन बंद किया और माईक को फोन किया।

माईक से बात हुई।

"क्या तुम मन्नू और जैनी के बारे में खबर लेना पसंद करोगे माईक?" चीफ ने कहा।

"मन्नू के बारे में सुनना चाहूंगा।" माईक की आवाज कानों में पड़ी।

"मन्नू और और जैनी इस वक्त क्रोशिया एयरपोर्ट पर मुंबई जाने वाले प्लेन में सवार होने वाले हैं। अगर तुम जल्दी करो तो उस प्लेन में शायद सीट पा लो।" चीफ टॉम लैरी ने गंभीर स्वर में कहा।

"थैंक्यू चीफ!"

"कल रात तुमने जिन्न के एजेंट को मारा?"

"मैंने नहीं चीफ, मन्नू ने उसके सिर से नाल लगाकर ट्रेग दबाया था। F.I.A. के पास इस बात की खबर थी कि हम दोनों उसी नाइट क्लब में ड्यूक हैरी की हत्या के सिलसिले में मिलने वाले हैं।" माईक की आवाज कानों में पड़ी--- "फिर बात करूंगा।" इसके साथ ही माईक में उधर से फोन बंद कर दिया था।

■■■

प्लेन टेक ऑफ कर गया।

मन्नू और जैनी ने चैन की सांस ली।

"बच गए।" मन्नू ने मुस्कुराकर जैनी को देखा।

जैनी कुछ उदास-सी लग रही थी।

"क्या हुआ?" मन्नू ने प्यार से पूछा।

"लीवनो याद आ रहा है। वहां हमने बहुत अच्छा वक्त बिताया।"

"सच में वो अच्छी जगह थी। सब ठीक हो जाने पर हम फिर लीवनो जाएंगे।"

जैनी ने मन्नू को देखा उसके हाथ पर अपना हाथ रखा।

"मुंबई में हम क्या करेंगे?"

"कोई काम ढूंढ लेंगे। तुम उसकी फिक्र मत करो। सब ठीक हो जाएगा।"

"अगर जिन्न को पता चल गया कि हम मुंबई में हैं तो?"

मन्नू के चेहरे पर बेचैनी झलकी। वो बोला।

"बहम मत पालो। नहीं पता चलेगा। वे सोच भी नहीं सकते कि हम मुंबई में हो सकते हैं।"

मन्नू और जैनी भी नहीं सोच सकते थे कि उनसे चार सीट पीछे माईक बैठा हुआ है।

■■■

प्लेन के टेक ऑफ होते ही बेग ने मोहन सूरी को फोन किया।

"कहो।"

"प्लेन टेक ऑफ कर गया। मन्नू और जैनी उसी प्लेन में हैं। तुम्हारे लिए एक खबर और भी है।"

"क्या?"

"मैंने C.I.A. जासूस माईक को भी उस प्लेन में सवार होते देखा है।" बेग ने कहा।

"क्या?"मोहन सूरी की तेज आवाज कानों में पड़ी--- "तुमने पहले क्यों नहीं बताया?"

"क्या माईक का इस मामले से वास्ता है?"

"बहुत ज्यादा। मुझे अभी इंडिया बात करनी होगी।"

■■■

कपूर ने सिगरेट सुलगाईं और तभी भीतर प्रवेश करते दीवान को देखा।

दीवान के माथे पर बल नजर आ रहे थे।

"क्या हुआ?"

"बुरा हो रहा है। जिस प्लेन से मन्नू और जैनी आ रहे हैं, उसी में माईक भी है।" मोहन सूरी ने बताया अभी।

"क्या?" कपूर के माथे पर भी बल दिखने लगे--- "माईक उसी प्लेन में।"

"हां, हम नहीं चाहते थे कि वे मिलें, परंतु वे मिल गए तो माईक को और फिर अमेरिका को सब पता चल जाएगा।"

"तो व्व मन्नू ही है जो C.I.A. को 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में बताना चाहता है।"

"मोटी रकम ली होगी उसने।" दीवान बोला।

"मन्नू और जैनी को पहले ही खत्म कर देना चाहिए था, तब ये सब न होता।"

दीवान के होंठ भिंचे रहे।

"लेकिन मन्नू और जैनी इंडिया क्यों आ रहे हैं?" कुछ ठहरकर कपूर बोला।

"व्व देश छोड़ना उनके लिए मजबूरी बन गया था।" दीवान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "क्योंकि वे समझ चुके हैं कि C.I.A. उन्हें नहीं छोड़ेगी। मेरे ख्याल उन्होंने यये सोचा कि F.I.A. ये नहीं सोच पाएगी कि वे इंडिया वापस आ सकते हैं।"

"शायद, यही बात होगी। मैं माईक के बारे में सोच रहा हूं।" दीवान ने कपूर को देखा।

"माईक को खत्म कर देना चाहिए।"

"C.I.A. चुप नहीं बैठेगी उसकी मौत पर।"

"मन्नू और जैनी भी खत्म हो जाएंगे। राघव-तीरथ को तुली खत्म करने गया हुआ है। उसके बाद हम तुली को शूट कर देंगे। ऐसे में C.I.A. को कुछ भी पता नहीं चल पाएगा कि 'ऑपरेशन टू किल' को किसने अंजाम दिया होगा।"

"C.I.A. जानती है कि F.I.A. ने ये सब काम किया है यानी कि हमने...।"

"तो?"

"परंतु उसके पास सबूत नहीं हैं। माईक सबूतों को ढूंढ रहा है।"

"मेरी मानो तो माईक को भी खत्म कर देते हैं।"

"एकदम फैसला लेना ठीक नहीं होगा। क्या पता C.I.A. के लोग माईक पर भी नजर रख रहे हों। माईक को भी इस बात का खतरा होगा कि उसे भी खत्म किया जा सकता है।" दीवान ने कहा।

"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। F.I.A. के निशानेबाज माईक को चुपके से खत्म कर देंगे दीवान!"

"अभी मुझे सलाह मत दो। सोचने दो। वो फ्लाइट मुंबई कब पहुंचेगी?"

"दोपहर तीन बजे।" कपूर बोला--- "प्लेन में माईक और मन्नू घुट-घुटकर बातें करेंगे। मन्नू, उसे आराम से एक-एक बात बताएगा। माईक जब प्लेन से उतरेगा तो 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में सब कुछ जान चुका होगा। मेरे ख्याल से वह मन्नू और जैनी को एयरपोर्ट से सीधा अमेरिकन एंबेसी ले जाएगा। ऐसा हुआ तो फिर वे हमारे हाथ नहीं लग पाएंगे। उसके बाद माईक राघव और तीरथ को तलाश करेगा।" कहने के साथ ही कपूर ने फोन निकाला और तुली के नंबर मिलाने लगा।"

तुली से बात हो गई।

"काम खत्म किया?"

"अभी नहीं, लेकिन आज शायद राघव का काम हो जाए। मैं उसके बाहर आने के इंतजार में हूं।" तुली की आवाज कानों में पड़ी।

"मन्नू और जैनी मुंबई पहुंच रहे हैं।"

"ये कैसे हो सकता है कपूर?"

"उसी प्लेन में C.I.A. जासूस माईक भी है। यात्रा के दौरान मन्नू माइक को सब बता रहा होगा।"

"ये तो बहुत गलत हुआ। क्या वो मन्नू ही था जो माईक से नाइट क्लब में मिलने जा रहा था?"

"हालात के हिसाब से मन्नू ही था।"

"ये बात कह बताकर तुमने मेरा दिमाग खराब कर दिया है।"

"राघव और तीरथ को जल्दी खत्म करो। माईक मुंबई पहुंचकर उनकी तलाश करेगा।" कपूर ने कहकर फोन बंद किया और दीवान को देखता कह उठा--- "माईक, मन्नू और जैनी को संभालने के लिए हमें तुरंत अपने एजेंटों की मीटिंग बुलानी चाहिए।"

"बुलाओ।" दीवान गंभीर स्वर में बोला--- "हमें अपनी घेराबंदी तैयार करनी होगी।"

■■■

प्लेन को आसमान में पहुंचे दो घंटे हो चुके थे।

अब तक सभी यात्रियों की जरूरत पूरी करके एयर होस्टेज ने फुर्सत पा ली थी। एक एयर होस्टेज इस वक्त एक यात्री के पास जा रही थी, क्योंकि उसने अभी-अभी कॉल स्विच दबाया था।

विमान में पूरी तरह शांति थी।

तभी माईक अपनी जगह से उठा और मन्नू-जैनी की सीट की तरफ बढ़ने लगा।

मन्नू-जैनी ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था। उनकी आंखें बंद थीं। सिर पुश्त से टिके थे। दोनों के चेहरों पर बहुत हद तक सुकून के भाव थे। माईक ने पास पहुंचकर मन्नू के कंधे को छुआ।

मन्नू ने उसी पल आंखें खोलीं तो सामने माईक को खड़े पाया। दो पल तो वो न समझने वाले भाव में माईक को देखता रह गया। फिर उसके शरीर में चींटियां रेंगती चली गईं। जैनी का हाथ उसी पल छोड़ दिया।

जैनी ने आंखें खोलीं।

माईक मीठी मुस्कान के साथ मन्नू को देखे जा रहा था।

मन्नू हक्का-बक्का था। माईक के प्लेन में होने की कल्पना नहीं कर सकता था वो।

"कौन है ये?" जैनी ने मन्नू से पूछा।

"म...माईंक।"

"वो C.I.A. वाला।" जैनी घबरा उठी।

"हां।" मन्नू की निगाह एकटक माईक पर थी।

तभी माईक धीमे स्वर में बोला।

"मुझसे घबराने की कोई जरूरत नहीं। मैंने सोचा, तुम प्लेन में मिलना पसंद करोगे इसलिए आ गया। क्या तुम जैनी को मेरी सीट पर जाने को कहोगे? ताकि हम आराम से बैठकर बातें कर सकें।"

"जैनी यहीं रहेगी।" मन्नू के होंठ हिले--- "तुम सामने वाली सीट पर बैठ जाओ। वो खाली है।

माईक पास ही खाली सीट पर बैठ गया।

"ये यहां कैसे आ गया?" जैनी धीमे स्वर में बोली।

"पता नहीं।" मन्नू खुद परेशान हो गया था, माईक की मौजूदगी को लेकर।

"तुमने डॉलरों के बारे में तो पता लगा लिया होगा कि वो असली ही हैं।" माईक बोला--- "तुम मेरे डॉलर ले कर भाग रहे थे।"

"वो वहीं छूट गए।"

"मैं नहीं मानता।"

"सच मानो। जिन्न को पता लग गया कि मैं तुमसे मिलने की कोशिश में हूं। वे लोग मेरे पीछे पड़ गए, मुझे मारने के लिए। डॉलर वहीं रह गए और मुझे जान बचाते हुए भागना पड़ा।"

"तुम भागकर वहां जा रहे हो जहां F.I.A. का हैडक्वार्टर है।"

"F.I.A.?"

"जिन्न का नया नाम है। फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी।"

"ओह! मैं नहीं जानता था।" मन्नू विचलित स्वर में कह उठा।

"तुम्हें इंडिया नहीं जाना चाहिए था। मुझे फोन करते। मैं तुम दोनों के लिए अमेरिका जाने का इंतजाम कर देता।"

"फोन करने की फुर्सत नहीं मिली। मैं खतरे में था।"

"छोड़ो इन बातों को। अब हम काम की बातें करें?" माईक बोला।

"काम की बातें?"

"दस लाख डॉलर वाली बात। यहां हमारे पास वक्त है। फुर्सत है। बातों के बीच कोई समस्या भी नहीं आएगी।"

"मैं तुमसे कोई बात नहीं करना चाहता।" मन्नू ने शुष्क स्वर में कहा।

"क्यों?"

"तुमसे बात करके मैंने अपने को खतरे में डाल लिया है।" मन्नू ने मुंह फेर लिया।

"मैं तुम्हारे बुलावे पर अमेरिका से क्रोशिया आया हूं, ताकि ड्यूक हैरी की हत्या का सच जान सकूं। चीफ ने मुझे बताया था कि तुम भी हत्यारों में शामिल थे। क्या ये सच है। सीधी तरह बात करो मुझसे।" माईक ने कहा।

"कोई बात नहीं होगी।" मन्नू बोला।

"तुमने मुझसे दस लाख डॉलर लिए हैं--- वो...।"

"वो नकली थे। वहीं छूट गए। मैं खाली हूं।"

"कोई बात नहीं मैं तुम्हें अभी दस लाख डॉलर दे सकता हूं।" माईक बोला।

"अब--- प्लेन में?" मन्नू ने उसे देखा।

"प्लेन से उतरकर अमेरिकन एंबेसी से लेकर तुम्हें दे दूंगा, मुंबई में।"

तभी जैनी फुसफुसाकर कान में बोली।

"नहीं मन्नू। हमने इसे कुछ नहीं बताना है।"

मन्नू ने जैनी का हाथ थपथपाया और गर्दन घुमा कर माईक को देखा।

"सच बात तो ये है कि मैंने अपना प्रोग्राम बदल दिया है। तुम्हें कुछ भी बताना नहीं चाहता।"

"जैनी ने तुम्हारे कान में क्या कहा?" माईक बोला।

"मेरी बात तुमने सुन ली होगी। अब उठ कर अपनी सीट पर चले जाओ।" मन्नू ने उखड़े स्वर में कहा।

"अपनी बात से तुम पीछे हट रहे हो।"

"तो क्या कर लोगे तुम मेरा?" मन्नू धीमे स्वर में गुर्रा उठा।

"तुम...।" माईक ने सिर हिलाकर कहा--- "क्यों नहीं बताना चाहते मुझे...।"

"मैंने इरादा बदल दिया है।"

माईक दो पल उसे देखने के बाद कह उठा।

"ठीक है, अब मैं दूसरे ढंग से तुमसे बात करता हूं। तुम क्या समझते हो कि प्लेन में बैठकर तुम सुरक्षित हो गए। जिन्न से बच निकले हो? ऐसा सोचते हो तो गलत सोचते हो।"

"क्या मतलब?"

"मुझे अपने चीफ से पता चला कि तुम दोनों इंडिया जा रहे हो। जानते हो चीफ को तुम्हारे बारे में कैसे पता चला?"

"कैसे?"

"C.I.A. को F.I.A. के उस एजेंट ने बताया होगा, जोकि डबल एजेंट है यानी कि वो जिन्न का एजेंट है, परंतु डॉलरों की खातिर C.I.A. को खबरें बेचता है। क्रोशिया स्थित F.I.A. के दो आदमी C.I.A. को खबरें देते हैं।"

"तुम झूठ बोलते हो।"

"कसम से सच कह रहा हूं। मैं तुम्हें ये समझाना चाहता हूं कि जिन्न को भी पता है कि तुम इस प्लेन में सवार हो और मुंबई पहुंच रहे हो। इस भ्रम में मत रहो कि F.I.A. तुम्हारी स्थिति के बारे में नहीं जानती।"

"तुम मुझे डरा रहे हो।"

"मैं सच कह रहा हूं। अगर तुमने मेरा विश्वास न किया तो मुंबई एयरपोर्ट पर तुम्हें भुगतना पड़ेगा।"

मन्नू होंठ भींचे माईक को देखने लगा।

"ये बकवास करके हमारा मुंह खुलवाना चाहता है कि हम उसे...।"

"तुम चुप रहो।" माईक ने जैनी से कहा--- "मुझे इससे बात करने दो।"

"मैं तुमसे बात नहीं कर रही।" जैनी ने तीखे स्वर में माईक से कह।

मन्नू अभी तक माईक को देखे जा रहा था।

"मेरी बात का भरोसा करो।" माईक बोला--- "मैं सच कह रहा हूं, F.I.A. को पता है कि तुम इस प्लेन में हो।"

"तो?" माईक के होंठ खुले।

"तुम मेरा साथ दो, मैं तुम्हारा साथ दूंगा। तुम्हें अपना मुंह खोलने के दस लाख डॉलर मिल रहे हैं। मैं तुम दोनों को अमेरिका में सेटल करा दूंगा और मुंबई में भी बचा लूंगा। मेरे एक फोन पर एयरपोर्ट पर तुम दोनों की सुरक्षा के इंतजाम हो जाएंगे। F.I.A. तुम्हारे पास भी नहीं फटक सकेगी। मुझे अपना दोस्त समझो। ये तो स्पष्ट है कि F.I.A. तुम्हें नहीं छोड़ने वाली। वे तुम्हारे पीछे लग चुके हैं।"

मन्नू के होंठ भिंच गए।

"C.I.A. से हाथ मिला लेने में ही तुम्हारा भला है। मेरे से दोस्ती कर लो और सब बता दो।"

"कह लिया या अभी बाकी है।" मन्नू ने भिंचे स्वर में कहा।

"तुम्हें अब तक हालात को समझ जाना चाहिए--- "मैं तुम्हें...।"

"यहां से उठो और अपनी सीट पर चले जाओ, वरना मुझे एयर होस्टेज को कहना पड़ेगा कि तुम मुझे परेशान कर रहे हो।"

माईक ने गहरी सांस ली और मुस्कुरा पड़ा।

"मेरी बात को तुम हल्के से ले रहे हो।" माइक उठते हुए बोला--- "तुम मुंबई एयरपोर्ट पर अंजाम देख लेना अपना। इस बीच तुम्हें अक्ल आ जाए तो मेरे से बात कर लेना।" कहकर माईक चला गया।

"तुम इसकी बातों में मत फंसना मन्नू!" जैनी कह उठी--- "ये किसी भी तरह तुम्हारा मुंह खुलवाना चाहता है।"

"जानता हूं।" मन्नू के चेहरे पर गुस्से के भाव थे।

"ये हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा।" जैनी ने पुनः कहा।

"मुंबई एयरपोर्ट पर, कैसे भी हो, इससे पीछा छुड़ा लेंगे हम।" मन्नू ने दृढ़ता से कहा।

■■■

R.D.X.

राघव, धर्मा और एक्स्ट्रा आज फुर्सत में थे।

बीती शाम ही काम खत्म करके लौटे थे और रात-भर उन्होंने गहरी नींद ली थी। कई दिनों की चढ़ी थकावट उतारने की चेष्टा की। दिन में ग्यारह बजे वे उठे। एक्स्ट्रा ने कॉफी बनाई।

"किचन में सामान खत्म हुआ पड़ा है।" राघव कॉफी का घूंट भरते हुए कह उठा--- "जो बाहर जाएगा, लेकर आएगा। ब्रेड, मक्खन, केक, बिस्कुट, बर्गर, पिज्जा बियर। इसके अलावा कुछ याद आए तो वो भी लेता आए।"

"मैं आराम करने के मूड में हूं।" धर्मा बोला।

"मैं भी।" एक्स्ट्रा कह उठा।

"जाना कौन चाहता है।" राघव मुस्कुरा पड़ा--- "जिसे ज्यादा भूख लगेगी, वही बाहर जाएगा।"

कॉफी समाप्त हुई तो धर्मा कह उठा।

"मजा नहीं आया। मैं बढ़िया कॉफी बनाता हूं।"

"कॉफी भी खत्म होने जा रही है।" राघव कह उठा।

धर्मा किचन की तरफ बढ़ गया।

राघव ने सिगरेट सुलगाई।

"इस बार तो बहुत थक गए।" एक्स्ट्रा कर उठा।

"हां, एक बार तो मुझे महसूस होने लगा था जैसे हम काम पूरा नहीं कर पाएंगे, लेकिन सब ठीक रहा।"

एक्स्ट्रा कुछ कहने लगा कि उसका फोन बजने लगा।

"हैलो।" एक्स्ट्रा ने फौरन बात की।

"जगन बोलता हूं।" उधर से आवाज आई।

"बोल जगन।" राघव की नजरें एक्स्ट्रा पर जा पहुंची।

उधर धर्मा किचन के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ था।

"मैंने कई बार फोन किया, लेकिन तुमने बात नहीं की।"

"व्यस्त थे।"

"अब फुर्सत है?"

"तू बात कर।"

"मैं झगड़ा खत्म करना चाहता हूं।" जगन की आवाज कानों में पड़ी।

"तूने ही शुरू किया था। हमने तेरा काम जान पर खेलकर पूरा किया था। तूने कहा था कि तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम पूरा किया तो तीन करोड़ देगा। बोल हमने काम तेरी पसंद के हिसाब से पूरा किया या नहीं?" एक्स्ट्रा का स्वर शांत था।

"हां, बढ़िया काम किया।"

"तेरे को तीन करोड़ देना चाहिए था, परंतु तूने डेढ़ करोड़ भिजवा दिया। क्यों?"

"उसी के वास्ते तो मैंने कई बार फोन...।"

"अब बोल।"

"बाकी का डेढ़ करोड़ मैं देने को तैयार हूं।"

"पहले क्यों नहीं दिया?"

"जो बीत गया, उसे भूल जा। मॉर्डन रोड पर मेरा आदमी मिलेगा। कपिल सर्विस सेंटर के बाहर। उससे डेढ़ करोड़ ले लेना। कितने बजे, ये बता दो, अब बारह बज रहे हैं।"

एक्स्ट्रा के होंठ सिकुड़े। सामने बैठे राघव को देखा।

"दो बजे तक रहेगा।"

"ठीक है।"

बात खत्म हो गई।

एक्स्ट्रा ने फोन बंद करके राघव से कहा।

"जगन बाकी का डेढ़ करोड़ बहुत शराफत से हमारे हवाले करने को कह रहा है, जबकि वो इतना शरीफ है नहीं।"

"गड़बड़ करेगा जगन!" किचन के दरवाजे पर खड़े धर्मा ने कहा और पलटकर किचन में चला गया।

राघव ने कश लिया।

"हमें से एक पैसा लेने जाएगा, दूसरा पीछे से उस पर नजर रखेगा।" एक्स्ट्रा बोला।

"मैं पैसा लेने जाऊंगा।" राघव ने कहा।

"और मैं पीछे से राघव पर नजर रखूंगा।" कॉफी के प्याले थामें धर्मा भीतर प्रवेश करता कह उठा।

"वापसी पर मैं किचन और फ्रिज का सामान भी लेता आऊंगा।" राघव कॉफी का प्याला उठाता बोला।

एक्स्ट्रा ने कॉफी का प्याला उठाया और घूंट भरने के बाद प्याला थामें उठ खड़ा हुआ।

"घर कई दिनों से बंद रहा है। मैं इसकी साफ-सफाई करूंगा।" इसके साथ ही वो खिड़की पर पहुंचा और खिड़की खोली। कॉफी का घूंट भरते हुए बाहर नजर दौड़ाने लगा।

तीन महीने पहले ही ये फ्लैट उन्होंने लिया था। पहले वाला फ्लैट इंस्पेक्टर वानखेड़े की निगाहों में आ गया था इसलिए वो छोड़ना पड़ गया था। (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का राजा पॉकेट बुक्स से पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'डॉन का मंत्री'। )

ये चौथी मंजिल पर था और सामने की सड़क पर स्पष्ट नजर आ रही थी। वाहन आ-जा रहे थे। कॉफी का घूंट भरते एक्स्ट्रा की निगाह यूं ही उस कार पर जा टिकी, जो सड़क के उस पार, किनारे लगी खड़ी थी।

उस कार की ड्राइविंग सीट पर कोई नहीं था।

पीछे वाला शीशा आधे से कम खुला दिखा।

एक्स्ट्रा की निगाह वहां से हटकर इधर-उधर जाने लगी। उसके बाद पुनः नजरें कार पर गईं। कई सालों तक वो कार के पीछे वाले थोड़े से खुले शीशे को देखता रहा, फिर पलटा और वापस घूम गया।

धर्मा और राघव कॉफी के घूंट ले रहे थे। धर्मा कह रहा था उसे।

"हमें अब नहाना-धोना शुरू कर देना चाहिए। थके हुए हैं निकलने में भी वक्त लगेगा।"

"कॉफी खत्म करके उठता हूं।" राघव ने कहा।

"राघव!" एक्स्ट्रा खुली खिड़की की चौखट से टेक लगा कर कह उठा--- "सामने सड़क पार नीले रंग की कार खड़ी है। उसकी ड्राइविंग सीट पर कोई नजर नहीं आ रहा और पीछे का शीशा थोड़ा सा नीचे गिरा हुआ है। दूसरे कमरे की जरा सी खिड़की खोलकर दूरबीन से कार को चैक कर। वो कार जगन का जाल भी हो सकती है।"

राघव फौरन उठा और दूसरे कमरे की तरफ़ बढ़ गया।

"तू खिड़की से हट।" धर्मा तेज स्वर में बोला--- "तेरे को खतरा हो सकता है।"

एक्स्ट्रा वहीं खड़ा कॉफी का घूंट भरते बोला।

"अगर उस कार में कोई है तो उसकी निगाह मेरी तरफ ही रहेगी। दूसरे कमरे से देखते राघव को नहीं देख पाएगा। वो मेरा वहम भी हो सकता है, परंतु ऐसे वहम कभी-कभी बहुत खतरनाक इत्तेफाक बन जाते हैं।"

धर्मा ने गहरी सांस ली। बेचैनी से वो एक्स्ट्रा को देखता रहा।

तभी राघव ने वापस कमरे में कदम रखा। उसके हाथ में पावरफुल दूरबीन थमी थी।

"खिड़की से हट जा।" राघव दांत भींचे बोला--- "वो पीछे वाली खिड़की पर गन के साथ बैठा है।"

एक्स्ट्रा तुरंत खिड़की से हट गया।

खिड़की खुली रही।

तीनों की नजरें मिलीं।

"गन?" धर्मा की आंखें सिकुड़ गईं।

"हां।" राघव ने सिर हिलाया--- "पीछे वाली खिड़की का शीशा थोड़ा-सा नीचे है। शीशे के किनारे पर गन की नाल अटका रखी है, जिसका रुख इधर ही खिड़की की तरफ है।"

"और उसने मुझे शूट नहीं किया। उसके पास मौका था।" एक्स्ट्रा बोला।

"शायद वो मेरा या राघव का निशाना लेना चाहता होगा।" धर्मा बोला।

"कौन होगा वो?" एक्स्ट्रा के दांत भिंच गए।

"जगन ने इंतजाम कर रखा होगा हमें शूट करने का।" राघव ने एक्स्ट्रा को देखा।

"ऐसा होता तो वो मुझे शूट कर चुका होता।" एक्स्ट्रा ने कहा।

"जगन से बात करके देखता हूं।" धर्मा ने कहा--- "ये गंभीर बात है। हमें हर हाल में जानना है कि वो हरामी है कौन जो हमें मारना चाहता है।"

धर्मा ने जगन को फोन किया।

"कहो।" जगन की आवाज कानों में पड़ी।

"तूने क्या सोचा कि तू हमें खत्म कर देगा।" धर्मा गुर्रा उठा।

"क्या मतलब?"

"हमारे घर के बाहर तूने गनमैन छोड़ रखे हैं कि हम बाहर निकलें तो वो हमें शूट कर दें और पैसे देने को कह कर तू हमें घर से बाहर निकाल रहा है। तेरी इतनी हिम्मत हो गई कि तू हमें खत्म करने की सोचे।" धर्मा की आवाज में खतरनाक भाव आ गए थे।

जगन की तरफ से कोई आवाज नहीं आई।

"अब तू मरेगा मेरे हाथों से, तेरी मौत...।"

"धर्मा।" जगन ने टोका--- "मैंने ऐसा कोई इंतजाम नहीं किया।"

"झूठ बोलता है साले--- तेरी तो...।"

"मेरी बात सुन धर्मा।" जगन का शांत स्वर कानों में पड़ रहा था--- "इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं तुम लोगों को मारने की सोच भी नहीं सकता। ये कोई और मामला है। उससे निबटो। जब फुर्सत मिले तो पैसों के लिए मुझे फोन कर देना।"

"वो तेरे भेजे आदमी नहीं?"

"नहीं, जरा भी नहीं। कसम से। उन सालों को पकड़ के पूछ लेना। कोई मेरा नाम ले ले तो मेरा गला काट देना।"

धर्मा ने फोन बंद करके गहरी सांस ली।

"जगन कहता है कि ये सब उसने नहीं किया।"

"वो कार चली गई तो समझना जगन का ही आदमी था वो।" राघव ने कहा।

"कार में कितने हैं?" एक्स्ट्रा ने पूछा।

"पता नहीं। एक या दो हो सकते हैं, कार के भीतर ठीक से नजर नहीं आया।" राघव ने बताया।

"आधा घंटा और बीता।

कार वहीं खड़ी रही।

"वो जो भी है, जगन का भेजा नहीं है।" राघव ने कहा--- "जगन का होता तो हमारे फोन करने के बाद जगन उसे वापस बुला लेता।"

"तैयार होकर निकलो यहां से।" धर्मा कह उठा--- "हमें इस तरह बाहर निकलना है कि वो हमें देख लें, लेकिन उसे गोली चलाने का मौका न मिले। यहां पर हम कोई शोर-शराबा नहीं होने देना चाहते। उसे यहां से दूर ले जाना है। वो हमारे पीछे आएगा।"

"हो सकता है, और उसके साथी भी दाएं-बाएं हों।" एक्स्ट्रा ने कहा।

"हमें सतर्क रहना है।" राघव ने कहा--- "हम दो कारों का इस्तेमाल करेंगे। पहली कार में मैं निकलूंगा। मेरी कार के पीछे, तुम दोनों की कार होगी। वो जो लोग भी हैं। उन्हें घेरना है हमने...।"

■■■

वो तुली था।

पीछे वाली सीट पर टेलीस्कोप लगी गन के साथ मौजूद था सुबह से। R.D.X. के फ्लैट का नंबर उसके पास था। उसी से उसने जान लिया था कि उस फ्लैट की दो खिड़कियां बाहर की तरफ पड़ती है तो वो गन और कार के साथ, सड़क के किनारे टिक गया था। इस आशा से कि शायद वे लोग खिड़की खोलें। राघव खिड़की पर दिखे तो उसे वो यहीं से आसानी से शूट कर देगा।

लंबे इंतजार के बाद उसने एक खिड़की खुलती देखी।

परंतु खिड़की पर राघव नहीं था। वो एक्स्ट्रा था।

तुली समझ गया कि ये धर्मा या एक्स्ट्रा हो सकता है।

राघव के इंतजार में वो टेलीस्कोप पर आंख टिकाए रहा कि शायद वो भी खिड़की पर आ जाए।

तुली इंतजार करता रहा।

परंतु कुछ देर बाद उसने एक्स्ट्रा को खिड़कीसे हटते पाया। खिड़की खाली हो गई। वो राघव के नजर आने का इंतजार करता रहा, परंतु टेलीस्कोप में खिड़की खाली ही नजर आती रही। टेलिस्कोप के सहारे देखने पर जो खिड़की इतनी करीब नजर आ रही थी कि जैसे हाथ बढ़ाकर वो खिड़की को छू सकता हो।

इंतजार लंबा होता चला गया, परंतु राघव खिड़की पर नहीं दिखा। तभी आधा इंच टेलीस्कोप घुमाकर उसने दूसरी खिड़की को देखा।

उसी पल तुली के मस्तिष्क को झटका लगा। उसके होंठ सिकुड़ गए।

"दूसरी खिड़की का एक पल्ला, करीब तीन इंच खुला हुआ था। वो सुबह से दोनों खिड़कियों पर नजर रख रहा था और दावे के साथ कह सकता था कि वो खिड़की पहले पूरी बंद थी, लेकिन अब तीन इंच खुली हुई थी।

तुली ने गहरी सांस ली।

वो समझ गया कि उन्हें, उसकी मौजूदगी का एहसास हो गया है। वो सतर्क लोग हैं। दूसरी खिड़की के थोड़ा-सा खुले होने का मतलब है कि उसे वहां से देखा गया है, शायद दूरबीन से।

परंतु तुली को वहां से हटना गंवारा नहीं था।

ये एमरजेंसी थी।

राघव को फौरन खत्म करना जरूरी था।

माईक क्रोशिया से मुंबई के लिए उड़ चुका है। प्लेन में मन्नू और जैनी भी हैं। उनमें बात हो चुकी होगी और माईक राघव और तीरथ को ढूंढेगा। उससे पहले ही दोनों को खत्म कर देना जरूरी था।

माईक के हाथ कुछ नहीं लगना चाहिए।

तुली के लिए खतरा बढ़ गया था। जबकि वे लोग उसकी मौजूदगी का अहसास पा चुके हैं। वो R.D.X. हैं। तीनों खतरनाक हैं। तुली को उनके खतरनाक होने का पूरा अंदाजा था, यूं तो उसे इन तीनों का कोई डर नहीं था। वो खुद भी कम खतरनाक नहीं था, परंतु वक्त कम था और बिना शोर-शराबे के वो ये काम निपटा देना चाहता था। इसलिए इस काम में वो पूरी तरह सतर्कता बरत रहा था। उसे पूरा विश्वास था कि दो-तीन सेकेंड के लिए भी राघव दिखा तो उसे शूट कर देगा।

तुली का टेलीस्कोप पर आंख लगाए इंतजार किसी तपस्या से कम नहीं था।

वक्त बीतने लगा।

दोपहर का एक बज गया।

तुली शांत-स्थिर था।

वो जानता था कि इंतजार कितना भी लंबा हो सकता है, ऐसे मौकों पर उसे संयम बनाए रखना चाहिए।

साथ ही वो इस बारे में निश्चिंत होने लगा कि R.D.X. को उसकी मौजूदगी का एहसास नहीं हुआ है। वो खिड़की यूं ही खोली गई होगी। क्योंकि एक-डेढ़ घंटा बीत जाने पर उनकी तरफ से कोई हरकत नहीं हुई। उसकी मौजूदगी का उन्हें पता चला होता तो वे इतनी देर चुप न बैठते।

तभी तुली ने फ्लैटों के मुख्य गेट से एक कार बाहर निकलती देखी।

मात्र क्षण-भर के लिए ड्राइविंग सीट पर बैठे राघव की झलक मिली। वो कार में अकेला था।

तुली ने फुर्ती से गन का मुंह उसकी तरफ घुमाया।

लेकिन इतने ही वक्त में कार में बैठा राघव आगे निकल गया था।

"बच गया।" तुली बड़बड़ाया और गन को सीट पर रख कर फुर्ती से दरवाजा खोला और बाहर निकल कर आगे का दरवाजा खोलते हुए स्टेयरिंग सीट पर जा बैठा। कार स्टार्ट की और राघव की तरफ दौड़ा दी।

सड़क पर और वाहन भी थे।

तुली सावधानी से ड्राइव कर रहा था। वो राघव तक पहुंचने की कोशिश में था।

राघव की कार तीन-चार कारों के पार आगे थी।

तुली ने जेब में रखी रिवाल्वर निकालकर गोद में रख ली।

वो निश्चिंत था ये सोच कर कि अब राघव उसके हाथों से नहीं बच सकता। किसी भी वक्त उसे मौका मिल सकता है उसे शूट करने का। तभी तुली की निगाह बैक मिरर पर गई।

तुली की आंखें सिकुड़ी। उसने अपने एक कार के पीछे वाली कार में एक्स्ट्रा की झलक पा ली थी।

"तो ये बात है।" तुली बड़बड़ा उठा। उसके चेहरे पर सख्ती आ गई। R.D.X. मेरी मौजूदगी के बारे में जान चुके हैं और ये सब मुझे घेरने का प्लान था। कोई बात नहीं। मेरा शिकार मेरे सामने है। उसका काम तो कर ही दूंगा। धर्मा और एक्स्ट्रा की नजरों में नहीं आना चाहता था मैं। बात खुल ही गई है तो इन्हें भी शूट कर दूंगा।"

सड़क पर खामोशी से मौत का खेल जारी था।

तभी आगे लाल बत्ती होती दिखी।

कारें रुकने लगीं। तुली ने राघव की कार भी रुकते देखी। काम का वक्त आ गया था, परंतु पीछे वालों से भी सावधान रहना था। तुली ने भी कार रोकी और गोद में रखी रिवाल्वर थाम, दरवाजा खोलकर बाहर निकला और तेजी से राघव की कार की तरफ बढ़ा। चेहरे पर मौत के सर्द भाव थे। एक निगाह पीछे डाली तो धर्मा और एक्स्ट्रा को भी कार से निकलते देखा। वक्त कम था। पीछे आ रहे वे दोनों उसके लिए परेशानी पैदा कर सकते थे। उन दोनों को पीछे रोकने के लिए तुली ने रिवाल्वर पीछे करके गोली चला दी। जो कि किसी को नहीं लगी। परंतु धर्मा-एक्स्ट्रा के आगे बढ़ने की रफ्तार थमी। वे कारों की ओट में हो गए थे।

इधर तुली राघव की कार के पास पहुंचा।

उधर राघव ने फायर की आवाज सुनी तो उसी पल दरवाजा खोलकर बाहर निकला।

तुली सामने था।

दोनों की नजरें मिलीं।

"तुली!" राघव के होंठों से निकला।

गोली चलाते-चलाते तुली पल-भर के लिए उसके पुकारने पर अचकचा गया।

उसी क्षण राघव की ठोकर तुली के रिवॉल्वर वाले हाथ पर पड़ी।

रिवाल्वर तुली के हाथों से निकल गया।

तुली बे-हथियार हो गया। वो धर्मा-एक्स्ट्रा को नहीं भूला था। उनसे भी बचना था। तुली ने बिना वक्त गंवाए राघव के चेहरे पर जोरदार घूंसा लगाया और पलटकर वाहनों से भरी सड़क पार करता भाग खड़ा हुआ।

"एक्सट्रा!" तभी धर्मा की ऊंची आवाज सुनाई दी--- "छोड़ना मत। पकड़ उसे।"

राघव ने एक्स्ट्रा को सड़क पार करते हुए तुली के पीछे भागते देखा।

■■■

तुली हांफ रहा था। सांसों को सामान्य करने की चेष्टा में लगा था। एक्स्ट्रा से वो कठिनता से बच पाया था। इस वक्त वो एक जगह पार्क की हुई कारों के बीच, एक कार से टेक लगाए खड़ा था।

वो असफल हो गया था।

परंतु वो जानता था कि ऐसे काम कई बार ठीक मौके पर बिगड़ जाते हैं। वो जानता था कि अगली बार सफल हो जाएगा।

ऐसा होने को वो असफल होना नहीं मानता था।

राघव उसे पहचान गया था।

उसे तुली कहकर पुकारा था।

तो क्या उसकी याददाश्त मिटाई नहीं गई पूरी तरह। क्या उसे याद था सब?

अपनी हालत पर काबू आकर उसने फोन निकाला और डॉ. अकरम को फोन किया। बात हुई।

"डॉक्टर!" तुली बोला--- "तुमने आठ साल पहले दो लोगों की याददाश्त का थोड़ा-सा हिस्सा मिटाया था।"

"उनके नाम क्या थे?" डॉ. अकरम की आवाज कानों में पड़ी।

"राघव और तीरथ।"

"हां, याद आया। क्या कहना चाहते हो?"

"राघव ने मुझे पहचान लिया। मेरा नाम लेकर पुकारा मुझे। तुमने शायद अपना काम ठीक से नहीं किया था।"

"और क्या कहा राघव ने?"

"मैं नहीं जानता। उससे मेरी बात नहीं हो सकी।"

"कभी-कभी ऐसा हो जाता है। चेहरा या नाम याद रह जाता है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि और कुछ उसे याद नहीं होगा। चूंकि इस बात को आठ साल बीत चुके हैं तो हो सकता है जो यादें उसके मस्तिष्क में ही दबा दी गई थीं, वे बाहर निकलने का प्रयत्न कर रही हों। ऐसे में कभी-कभार थोड़ा-सा कुछ याद आ जाता है, लेकिन सब कुछ याद नहीं आ सकता।"

"क्या सच में सब कुछ याद नहीं आ सकता डॉक्टर?" तुली गंभीर था।

कुछ पल ठहर कर डॉ. अकरम की आवाज कानों में पड़ी।

"सब कुछ भी याद आ सकता है तुली! अगर उस इंसान की इच्छाशक्ति बहुत तेज हो तो...।"

तुली ने गहरी सांस ली। फोन काटकर उसने कपूर को फोन किया।

"काम हो गया?" कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

"होते-होते रह गया।"

"कैसे?"

तुली ने कम शब्दों में सारी बात बता कर कहा।

"मेरी कार वहां से उठवा लो। उसके भीतर गन भी है और मैं इस वक्त यहां हूं, यहां मुझे एक कार और रिवाल्वर चाहिए।" इसके साथ ही तुली ने बताया कि वो कहां है--- "अब मैं पहले तीरथ को शूट करूंगा। तब R.D.X. भी निश्चिंत हो जाएंगी कि मैं उनके पीछे नहीं हूं तो तब राघव का निशाना लूंगा।"

"तुम लेट हो रहे हो तुली, F.I.A. को ये काम जल्दी चाहिए।"

"जल्दी ही होगा।" तुली ने होंठ भींचकर कहा।

■■■

"मैं उसे पहचानता हूं। वो तुली था।" राघव कह रहा था--- "लेकिन वो कौन है, ये मुझे याद नहीं।"

"ये कैसे हो सकता है कि तुम्हें याद न रहे कि वो कौन है।" एक्स्ट्रा ने तेज स्वर में कहा।

"मुझे सच में उसके बारे में याद नहीं आ रहा।" राघव ने परेशान स्वर में कहा।

"तुम किसी को इस हद तक कैसे भूल सकते हो कि तुम्हें उसके नाम के अलावा कुछ भी याद न रहे।" धर्मा बोला--- "ये तो हैरानी से भी बढ़कर बात है। तुम्हें तुली के बारे में सब कुछ याद आ जाना चाहिए।"

"याद नहीं आ रहा।" राघव ने गहरी सांस लेकर कहा।

इस वक्त R.D.X. अपने फ्लैट पर मौजूद थे। दोपहर के साढ़े तीन बज रहे थे।

राघव ने परेशानी से भरी मुद्रा में सिगरेट सुलगाई।

एक्स्ट्रा टहलता हुआ सोच-भरे स्वर में कह उठा।

"वो तुली किसी शैतान से कम नहीं था। मेरे हाथ से बच निकलना संभव ही नहीं था। मुझे पूरा भरोसा था कि मैं उसे पकड़ लूंगा। एक बार तो सिर्फ पांच-सात कदम का फासला हममें रह गया था। मैं उसे पकड़ लेता, लेकिन वो तो जैसे शिकारी कुत्ते की तरह दौड़ रहा था। बहुत फुर्तीला था वो। ऐसे लोग खतरनाक होते हैं।"

"वो ये भी जानता है कि हम यहां रहते हैं।" धर्मा बोला।

"लेकिन उसका शिकार सिर्फ राघव है। वो राघव को शूट करना चाहता है।"

"धर्मा और एक्स्ट्रा ने एक-दूसरे को देखा।

"यानी वो राघव का दुश्मन है।" बोला एक्स्ट्रा--- "तुम ठीक कहते हो। वो राघव को मारना चाहता है। मुझे मारना होता तो वो तभी शूट कर सकता था, जब मैं खिड़की पर खड़ा था। उसे तुम्हारी भी परवाह नहीं। वो राघव के पीछे था। तब वो ये भी जानता था कि हम उसके पीछे आ रहे हैं, लेकिन वो डरा नहीं। राघव के पीछे ही रहा।"

"इस तरह तो पेशेवर हत्यारे ही काम करते हैं।" धर्मा ने कहा।

राघव ने सिगरेट ऐश ट्रे में मसली और दोनों हाथों से सिर थाम लिया। उसकी आंखें बंद थीं और चेहरे पर परेशानी की लकीरें थीं। दिमाग पर जोर देता वो याद करने की चेष्टा में लगा था।

"हम ये सोच सकते हैं कि किसी ने राघव की हत्या की सुपारी दी है।" धर्मा पुनः बोला।

"राघव ही क्यों, हम क्यों नहीं। एक साथ तो काम करते हैं हम।" एक्स्ट्रा ने उसे देखा।

धर्मा के पास कहने को कोई जवाब नहीं था।

राघव अभी तक उसी मुद्रा में बैठा था।

"वो राघव को मारने की फिर कोशिश करेगा।" एक्स्ट्रा ने दांत भींचकर कहा।

"हां, मुझे नहीं लगता कि वो हार मानेगा।"

"वो हाथ लग जाता तो सब ठीक हो जाता।" एक्स्ट्रा गुस्से से भरा था--- "इस बार वो नई तैयारी से काम करेगा। उसका लक्ष्य सिर्फ राघव है। हमें सतर्क रहना होगा कि वो किसी भी कीमत पर राघव को मारने में सफल न हो सके।"

"जब कोई किसी की जान लेने के लिए पीछे लग जाता है तो उसका कोई-न-कोई वार सफल होकर ही रहता है। तब देर तक खुद को नहीं बचाया जा सकता इसलिए जरूरी है कि हम उसे वार करने से पहले ढूंढ निकालें।"

"नहीं ढूंढ सकते। हम उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते।" एक्स्ट्रा ने इंकार में सिर हिलाया।

"यही तो समस्या है कि...।"

"तीरथ-मन्नू-जैनी-तुली।" राघव के होंठों से निकला।

दोनों की निगाह राघव पर जा टिकीं।

राघव की आंखें खुली थीं। उसने दोनों हाथों से सिर थाम रखा था।

"क्या कहा तुमने?" एक्स्ट्रा के होंठों से निकला।

"तीरथ-मन्नू-जैनी-तुली।" राघव के होंठ हिले--- "मुझे कुछ याद नहीं आ रहा। हम सब किसी काम से एक साथ ही थे।"

धर्मा और एक्स्ट्रा की नजरें मिलीं।

"तीरथ, मन्नू, जैनी, तुली।" धर्मा कह उठा--- "हमने आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसमें ये चारों नाम हों।"

"काम किया है।" राघव ने दृढ़ता-भरे स्वर में कहा--- "हम सब साथ थे।"

"धर्मा ठीक कहता है कि हमने इन चारों नामों से वास्ता रखता कोई काम नहीं...।"

"किया है। किया है।" राघव गुस्से से चीख उठा--- "किया है काम। काम न किया होता तो मुझे इनके नाम कैसे याद आते। मैं ये क्यों कहता कि इन सबके साथ मैंने काम किया है।"

"और वो काम तुम भूल रहे हो।"

"हां, वो याद नहीं आ रहा--- वो...।"

"सुनो राघव!" धर्मा ने गंभीर स्वर में कहा--- "शांति से सुनो, तुमने ये काम किया हो सकता है, लेकिन हमने नहीं। इन नामों से वास्ता रखता काम हमने कभी नहीं किया, ये तो मेरा दावा है।"

राघव ने सिर पर से दोनों हाथ हटाये और धर्मा को देखा। चेहरे पर अभी भी परेशानी की लकीरें थीं।

"क्या चाहते हो?" राघव ने पूछा।

"हम छः सालों से तीनों एक साथ हैं।" धर्मा बोला--- "छः सालों से हमने जो किया, एक साथ किया।"

"हां।"

"तो तेरा ये काम छः साल पहले का है।"

राघव की नजरें धर्मा पर ही रहीं।

"ये हो सकता है।" एक्स्ट्रा ने सिर हिलाया।

राघव ने होंठ भींच लिए।

"तुम दिमाग पर जोर मत दो। धीरे-धीरे शायद सब याद आ जाए।"

"तुली के बारे में सोचो, वो कौन है।"

"समझ में नहीं आता कि वो कौन है और मुझे क्यों मारना चाहता है।" राघव ने कहकर गहरी सांस ली--- "तीरथ, मन्नू, जैनी भी हैं। मुझे उनके चेहरों का भी हल्का-हल्का ध्यान आ रहा है।"

"तुम्हारा दिमाग उनके चेहरों को पहचान रहा है।" एक्स्ट्रा कह उठा।"

"कुछ-कुछ।"

"तो बताओ उनसे हम पहले कब मिले थे?"

"याद नहीं आ रहा।"

"साल, दो साल, तीन साल, चार साल पहले कभी हम इनसे मिले हों?"

"सोच रहा हूं, सब कुछ सोच रहा हूं, परंतु कुछ भी याद नहीं आ रहा। इस मामले में दिमाग की सोचों की चैन टूटी हुई है। आधा-अधूरा ही याद आ रहा है। इन नामों के अलावा, चेहरों के अलावा कुछ याद नहीं आ...।"

"मतलब कि अब तुम इन लोगों को देखोगे तो पहचान लोगे?" धर्मा ने पूछा।

"हां पहचान लूंगा। पक्का पहचान लूंगा।" राघव ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

"लेकिन मुझे नहीं लगता कि वो तुली अब आराम से बैठ जाएगा। वो फिर कोशिश करेगा। तुम जरा ये सोचो कि तुली तुम्हें क्यों मारना चाहता है, क्या तुम्हें ऐसी कोई बात याद नहीं आ रही कि हम इस मामले को समझ सकें?"

राघव ने इंकार में सिर हिला दिया।

एक्स्ट्रा के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी।

"वो तुम्हें मारना चाहता है। तुम घर से बाहर मत निकलना।" एक्स्ट्रा ने कहा--- "हमने उसका चेहरा देखा है। हम उसे ढूंढने की कोशिश करेंगे।"

राघव ने एक्स्ट्रा को देखा।

तभी धर्मा कह उठा।

"एक्स्ट्रा! हमारे यहां बैठने का कोई फायदा नहीं। चल, हम तुली को तलाश करने की चेष्टा करते हैं।"

"चल।"

"तुम बाहर मत निकलना राघव!"

राघव ने हौले से सिर हिला दिया।

धर्मा और एक्स्ट्रा बाहर निकल गए। राघव ने दरवाजा बंद किया और होंठ भींचे कमरे में टहलने लगा। देर तक सोचें समेटे टहलता रहा, फिर एकाएक ठिठका। जेब से रिवॉल्वर निकालकर मैगजीन चैक की, जोकि फुल थी। उसने रिवाल्वर को जेब में डाला और दरवाजा खोलकर फ्लैट से बाहर निकला और लॉक करके बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।

घर में बंद नहीं रहना चाहता था राघव। परेशान था। वो जानना चाहता था कि तुली कौन है और उसे क्यों मारना चाहता है। वो चाहता था कि तुली फिर उसके सामने आए और ये तभी होगा जब वो खुले में रहेगा।

■■■

तीरथ ने ड्रग्स के धंधे को छिपाने की कोशिश करते हुए लजीज खाना के नाम से रेस्टोरेंट खोल रखा था। यूं तो सारा काम रेस्टोरेंट में काम करने वाले ही संभालते थे। एक तरफ उसका अपना केबिन था, जो कि उसके बैठने का ठिकाना था। ड्रग्स रखने के लिए उसने पांच किलोमीटर दूर एक जगह बना रखी थी, वहां चार-पांच आदमी सारा काम संभालते थे। वो केबिन में बैठा फोन पर ही सब निबटाता और माल पहुंचाने और पेमेंट लेने को कह देता।

पुराना कीड़ा था वो ड्रग्स के धंधे का।

सब कुछ कुशलता से संभाल रखा था। पुलिस को हर हफ्ते नोट पहुंचा देता था।

इस वक्त शाम के पांच बज रहे थे। तीरथ रेस्टोरेंट के अपने केबिन में मौजूद था। इस वक्त रेस्टोरेंट में दो-तीन कस्टमर ही थे, जो खाना खा रहे थे। उसके केबिन का शीशा ऐसा था कि भीतर से बाहर का वो सब कुछ देख सकता था, परंतु बाहर वाले को शीशे के भीतर कुछ भी नजर नहीं आता था। इस तरह वो रेस्टोरेंट में आने-जाने वालों को देख लेता था।

तीरथ ने अभी-अभी सिगरेट सुलगाकर कश लिया था। उसकी नजर यूं ही रेस्टोरेंट के हॉल में फिर रही थी।

तभी तीरथ का मोबाइल बजा।

"हैलो!" कॉलिंग स्विच दबाते, फोन कान से लगाते वो कह उठा।

"सर।" दूसरी तरफ उसका अपना आदमी था--- "काम हो गया। माल दे आया और पेमेंट ले आया।"

"ठीक है, मैं शाम को आऊंगा।"

"धीरू साहब का फोन आया था। उसे माल चाहिए।"

"तुम्हें फोन किया उसने?"

"हां।"

"मुझे क्यों नहीं किया? उसकी तरफ पिछला पैसा निकलता है।" तीरथ बोला।

"उसे माल भेजूं कि नहीं?"

"अभी नहीं। उसका फोन फिर आने दो।" कहकर फोन बंद करके टेबल पर रखा। उसी पल उसकी निगाह रेस्टोरेंट के प्रवेश द्वार पर जा टिकी। वहां से अभी-अभी तुली ने भीतर प्रवेश किया था।

तीरथ तुली को देखता रहा। होंठ सिकुड़ गए उसके।

इसे कहीं देखा है!

कहां देखा है?

तीरथ तुली को देखता रहा और सोचता रहा।

उसके देखते-ही-देखते तुली ने एक टेबल संभाल ली थी।

■■■

पानी का जग और गिलास थामे वेटर तुली की टेबल पर पहुंचा।

'मीनू' कार्ड टेबल पर ही पड़ा था।

"क्या खाना पसंद करेंगे सर?" वेटर ने पूछा।

"कॉफी मिलेगी?"

"मिलेगी सर।"

"वही ले आओ।"

वेटर चला गया।

तुली की निगाह रेस्टोरेंट में मंडराने लगी।

वो तीरथ को तलाश कर रहा था और सोच भी नहीं सकता था कि तीरथ द्वारा देखा जा रहा है। उसकी निगाह उस केबिन की तरफ भी गई थी, जहां तीरथ बैठा था, परंतु केबिन के भीतर तो उसे कुछ दिखा नहीं।

मन-ही-मन तुली अपने से खार खाए बैठा था कि राघव के मामले में सफल नहीं हो सका।

तीरथ के मामले में सफल होकर वो अपने को शांत करना चाहता था, पर क्या पता तीरथ रेस्टोरेंट में न हो।

वेटर कॉफी ले आया। टेबल रखकर जान जाने लगा तो तुली ने टोका।

"सुनो।"

वेटर ने ठिठककर उसे देखा।

"ये रेस्टोरेंट तीरथ का है न?" तुली ने कहा।

"जी हां।"

"वो मेरा दोस्त है। क्या उससे मुलाकात हो सकती है?"

वेटर के चेहरे पर सोच के भाव उभरे। तीरथ का ऑर्डर था कि रेस्टोरेंट में आकर कोई उसके बारे में पूछे तो उसे न बताया जाए कि वो मौजूद है और उसे खबर कर दी जाए। ये सब तीरथ सावधानी के नाते करता था। ड्रग्स के धंधे में पड़ा था वो। उसके दुश्मन भी बहुत थे। वो नहीं चाहता था कि कोई रेस्टोरेंट में आए और उसे मार जाए।

"मुझे मालूम नहीं कि मालिक हैं कि नहीं। पता करता हूं।" वेटर बोला--- "अगर होंगे तो उन्हें खबर कर दूंगा।"

तुली के सिर हिलाने पर वेटर चला गया।

तुली सतर्क था। वेटर के जवाब से समझ चुका था कि तीरथ रेस्टोरेंट में है।

■■■

तीरथ रह-रहकर तुली को देख रहा था।

वेटर को कॉफी देते भी देखा। बात करते भी देखा।

इस बात का उसे पूरा विश्वास था कि इस आदमी को जानता है, परंतु याद नहीं आ रहा था कहां देखा है। तीरथ ने अपने बीते वक्त पर यादें दौड़ाईं कि शायद कुछ याद आ जाए, परंतु याद नहीं आया। इतना तो पक्का था इस व्यक्ति को ड्रग्स के धंधे में नहीं जानता। दोस्त भी नहीं है, फिर कौन---- नहीं समझ पाया वो।

तभी टेबल पर मौजूद इंटरकॉम बजा।

"कहो।" तीरथ ने रिसीवर उठाया।

"सर।" दूसरी तरफ वही वेटर था--- "वो सफेद कमीज वाला आदमी आपको पूछ रहा है।"

"क्या?"

"कहता है तीरथ उसका दोस्त है।"

"ऐसा कहा उसने?"

"हां जी। वो आपसे मिलना चाहता है।"

तीरथ ने रिसीवर रख दिया। उसके होंठ सिकुड़ चुके थे। तीरथ को पक्का पता था कि वो आदमी उसका दोस्त नहीं हो सकता। कोई दोस्त नहीं है ही नहीं। खास पहचान वाला होता तो उसे याद आ गया होता, लेकिन उसे लगता है कि उसे देखा है कहीं। जानता है और वो उसे अपना दोस्त कह रहा है तो जरूर कोई बात तो है, जो उसे याद नहीं आ रही इस वक्त।

तीरथ ने गहरी सांस ली और टेबल की ड्राज खोलकर रिवाल्वर निकाली और जेब में रख ली। उसे देखा वो अभी भी कॉफी के घूंट भर रहा था। तीरथ ने उससे मिलने का फैसला कर लिया था, परंतु सावधान था। ये बात भी उसके मन में थी कि ये उसका दुश्मन भी हो सकता है, जो उसकी जान लेना चाहता हो। ड्रग्स के धंधे में नोट बहुत थे तो दुश्मन भी बहुत थे उसके।

तीरथ ने इंटरकॉम का रिसीवर उठाया और एक बटन दबाकर कान से लगा दिया।

"हां।" उधर से आवाज आई।

"भानु से बात करा।"

"अभी लीजिए सर।"

भानु रेस्टोरेंट किचन का इंचार्ज था। सारा रेस्टोरेंट वो ही संभालता था। वो बहुत बढ़िया कुक था और लड़ाई-झगड़ा करने में भी माहिर था। बहुत जरूरत होने पर कभी-कभी वो भानु का थोड़ा-बहुत इस इस्तेमाल कर लेता था।

"कहिए सर?" भानु की आवाज कानों में पड़ी।

"भानु, हॉल में सफेद कमीज पहने एक आदमी कॉफी पी रहा है। मुझे लगता है कि मैं उसे जानता हूं, परंतु याद नहीं आ रहा। वो मुझे अपना दोस्त बता रहा है जबकि मेरा कोई दोस्त नहीं है। अब मैं उससे मिलने जा रहा हूं।"

"मैं समझ गया सर!" भानू की आवाज कानों में पड़ी--- "आप उससे मिलिए--- मैं वहीं रहकर नजर रखूंगा।"

तीरथ ने रिसीवर रखा और उठने के बाद केबिन का दरवाजा खोला और बाहर आकर तुली की तरफ बढ़ने लगा।

तभी तुली की निगाह भी उस पर पड़ गई।

दोनों की नजरें मिलीं।

तुली एकाएक सतर्क नजर आने लगा।

"हैलो तीरथ!" तुली मुस्कुरा कर कह उठा--- "तुम्हें देखकर खुशी हुई। बैठो।"

तीरथ थोड़ा-सा मुस्कुराया और तुली को देखते हुए बैठ गया।

"हम पहले कब मिले हैं?" तीरथ ने पूछा।

"तुम्हें याद नहीं?" तुली की मुस्कुराती पैनी निगाह उस पर थी।

"तभी तो पूछ रहा हूं।"

"तुम बहुत अच्छे निशानेबाज हो।" तुली कह उठा।

तीरथ के होंठ सिकुड़े। तुली को देखने लगा, फिर कह उठा।

"किसका निशाना लगाया मैंने। मुझे याद नहीं आ रहा।" तीरथ कह उठा।

"सोचो, शायद याद आ जाए।"

"याद नहीं, मुझे तो ये भी याद नहीं आ रहा कि मैंने तुम्हें पहले कब देखा था, लेकिन इतना याद आता है कि मैंने तुम्हें पहले देखा है।"

तुली मुस्कुरा कर उसे देखता रहा।

"क्या हुआ?" तीरथ के होंठों से निकला।

"मुझे यकीन था कि तुम याद नहीं कर पाओगे।"

"क्यों?"

"क्योंकि उस वक्त की तुम्हारी याददाश्त मिटा दी गई है। दबा दी गई है, तुम्हारे ही मस्तिष्क में। तुम्हें याद नहीं आएगा।"

"ये कैसे हो सकता है?" तीरथ अजीब-से लहजे में बोला।

'ये हो चुका है।"

तीरथ गहरी नजरों से तुली को देखने लगा।

"तुम्हारा नाम क्या है?"

"तुम मुझे तुली के नाम से जानते हो।"

"ये नाम मुझे याद नहीं, लेकिन मेरी याददाश्त क्यों मिटाई गई?" तीरथ भारी उलझन में था।

"यही एग्रीमेंट था। ये ही हममें तय हुआ था।" तुली निश्चिंत-सा कह उठा--- "एक खास आदमी की हत्या के लिए तुम्हें कई साल पहले बीस लाख रुपया दिया गया था, परंतु शर्त ये थी कि काम के बाद तुम्हारी, उस काम से वास्ता रखती याददाश्त मिटा दी जाएगी, ताकि उस काम के बारे में तुम किसी को बता न सको।"

"और मैंने वो काम किया?"

"हां, तभी तो कहा कि तुम बढ़िया निशानेबाज हो। तब एक को शूट करना था लेकिन उस वक्त मजबूरी में तुमने दो को शूट किया बिना चूके। तुम्हारा निशाना सटीक है। तुम काम के दौरान जरा भी नहीं घबराते।"

तीरथ याद करने की चेष्टा कर रहा था, परंतु कुछ भी याद नहीं आ रहा था।

"मैंने एक को बीस लाख में मारना था?" तीरथ बोला।

"हां।"

"लेकिन तुम कहते हो कि उस वक्त मुझे दो को मारना पड़ा फिर से बीस के हिसाब से तुमने चालीस लाख दिया होगा।"

"नहीं। वो एक सौदा था, बीस लाख का। तुम उस वक्त तुम बेशक बीस को मारते तब भी बीस लाख ही मिलता।"

"तुमने मुझे बीस लाख दे दिया था?"

"हां।"

"मुझे कुछ भी याद नहीं है। बहुत हैरानी है मुझे।"

तुली मुस्कुराता हुआ उसे देखता कह उठा।

"वो सीक्रेट है।"

"इस बात को कितना वक्त बीत चुका है?"

"आठ साल।"

"ओह!" तीरथ ने गहरी सांस ली--- "तो अब तुम मेरे पास क्यों आए हो? अब मैं दूसरों के लिए काम नहीं करता।"

"जानता हूं। तुम ड्रग्स के धंधे में बढ़िया नोट बना रहे हो।"

"मुझसे क्या चाहते हो?" तीरथ बोला--- "वैसे तुम जो कह रहे हो, उसका मुझे जरा भी विश्वास नहीं है।"

"क्योंकि तुम्हें कुछ भी याद नहीं।"

"जो भी समझो। तुम मुझसे क्यों मिलना चाहते थे?" तीरथ की निगाह तुली के चेहरे पर थी।

"तुम्हारे साथ काम में तीन लोग और भी थे। राघव-जैनी, मन्नू।"

"मुझे नहीं पता।" तीरथ ने सिर हिलाया--- "होंगे।"

"तुम सबको मारने का काम मुझे मिला है।" तुली कुटिलता भरे ढंग से मुस्कुराया।

"क्या?" तीरथ ठगा-सा रह गया।

"कुछ घंटे पहले राघव किस्मत से मेरे हाथों से बच निकला। उसका नंबर भी लगेगा, लेकिन अब तुम मरने जा रहे हो।"

तुली की आंखों में मौत के भाव चमक उठे थे।

तीरथ की फौरन इधर-उधर नजर घूमी।

पीछे वाली टेबल पर भानू आ बैठा था। उससे भी तीरथ की नजर मिली। तीन कदम के फासले पर पड़ी कुर्सी पर वो बैठा था। तीरथ ने सोचा कि शायद वो उनकी बातें सुन रहा होगा?"

"तुम मुझे मारने आए हो?" तीरथ का चेहरा कठोर होने लगा।

तीरथ की बांह हिलते देखकर तुली मौत भरे स्वर में कह उठा।

"रिवाल्वर मत निकालना। अपने दोनों हाथ टेबल पर रख दो। टेबल के नीचे, मेरे हाथ में रिवाल्वर है।"

तीरथ का हरकत करता हाथ ठिठका, फिर उसने दोनों हाथ टेबल पर रख दिए।

"तुम गलत कर रहे हो।" इस बार तीरथ ने जानबूझकर आवाज कुछ ऊंची रखी कि भानु सुन सके।

"तुम किस्मत वाले हो मैंने तुम्हें पहले बता दिया कि तुम मरने वाले हो, वरना तुली को चुपचाप काम करने की आदत है।"

"तुम मुझे गोली नहीं मार सकते।" तीरथ ये सब बातें भानू को सुनाने के लिए कह रहा था।

और भानू ने सुन भी लिया था। समझ भी लिया था।

ऐसे में भानू को और तो कुछ समझ में नहीं आया। वो पास पड़ी कुर्सी उठाकर कुर्सी को छाती से लगाए तुली पर झपट पड़ा। तीरथ ने देख लिया था कि भानू क्या कर रहा है।

तीरथ कुर्सी को आगे रखे तुली पर जा गिरा।

तभी तीरथ ने अपनी कुर्सी से फर्श पर छलांग लगा दी। उसी पल गोली का तेज धमाका हुआ, परंतु गोली किसी को नहीं लगी।

फायर के धमाके की आवाज सुनकर वहां बैठे लोग चौंके।

रेस्टोरेंट के कर्मचारियों का ध्यान भी इस तरफ हुआ।

तुली फर्श पर गिर चुका था। उसकी छाती पर कुर्सी थी और ऊपर भानू था। रिवाल्वर उसके हाथ से निकल गई थी। तीरथ के लिए अब कोई खतरा नहीं था।

परंतु ये उसका रेस्टोरेंट था।

यहां गोली चली थी। पुलिस को कोई भी खबर दे सकता था। जबकि तीरथ नहीं चाहता था कि यहां पुलिस आए। कोई दूसरी जगह होती तो अब तक वो तुली को शूट कर चुका होता, परंतु यहां वो गड़बड़ नहीं चाहता था।

क्या पता, इसके साथी भी बाहर हों।

मालूम नहीं, ये कौन था और उससे ऐसी बातें कर रहा था, जो कि उसे पता नहीं थीं, परंतु इतना तो पक्का था कि इस आदमी को उसने पहले भी अच्छी तरह देखा हुआ है।

तीरथ वक्त बर्बाद नहीं करना चाहता था। बाहर इसके साथी हुए तो वे भीतर आ सकते हैं।

"भानू!" तीरथ जल्दी से बोला--- "साले को ठोक-पीटकर बाहर फेंक देना।"

"तंदूर में डाल दूं हरामी को?" भानु गुर्राया।

"नहीं। ठोक-पीटकर बाहर फेंक दे। बाद में देखूंगा इसे।"

तब तक रेस्टोरेंट के और कर्मचारी भी आ गए थे।

वे भी तुली पर चढ़ गए।

एक ने उसकी रिवाल्वर उठाकर अपनी जेब में रख ली।

वो मिलकर तुली को पीटने लगे।

तुली का दिन ही खराब था आज का।

पांच-सात हाथ ही पड़े होंगे उसे कि उसने खुद को बचाया और भाग निकला वहां से।

■■■

तुली का खून खौल रहा था। क्या हो गया है उसे?

राघव भी बच निकला और अब तीरथ भी। पहले कभी ऐसा न हुआ था कि शिकार उसके सामने आया हो और बच निकला हो... तो अब क्या हो गया है। आज के दिन में वो दो बार चूक गया।

तुली एक बाजार की दुकान में बैठा चाय पी रहा था। अपने क्रोध पर काबू पाने की चेष्टा कर रहा था। गुस्से से वजह से सिर दर्द से फटा जा रहा था, तभी उसका फोन बजा। उसने मोबाइल की स्क्रीन पर नजर डाली।

कपूर का नम्बर वहां चमक रहा था।

तुली के होंठ भिंच गए।

उसने चाय के पैसे दिए और दुकान से बाहर आकर बाजार में आगे बढ़ने लगा।

"हैलो!" तुली ने अपने को शांत रखने की भरसक चेष्टा की।

"क्या कर रहे हो?" कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

"मैं फिर चूक गया।"

"दीवान ने बताया मुझे कि तुम राघव को...।"

"मैंने कहा है, मैं फिर चूक गया।" तुली शब्दों को चबाकर बोला--- "तीरथ भी मेरे हाथों से बच निकला।"

दो पल तो कपूर की आवाज नहीं आई।

तुली ने उस भीड़ वाली जगह में आगे बढ़ते हुए फोन कान से लगा रखा था। उसके चेहरे पर सख्ती थी।

कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

"तेरे को क्या हो गया है तुली?"

"मैं नहीं जानता।"

"क्या तू उन्हें मारना नहीं चाहता। तेरी नजरों में उन्हें मरना नहीं चाहिए क्या?"

"ये बात नहीं। काम, काम है और वो पूरा होना चाहिये।" तुली सख्त स्वर में बोला।

"तो तुम चूक क्यों गए?"

"ये सोचकर मैं खुद परेशान हूं।"

"वे दोनों और भी सतर्क हो गए होंगे।"

"लेकिन मैं उन्हें मार दूंगा।" तुली ने दृढ़ स्वर में कहा--- "मुझसे चूक हुई है, असफल नहीं हुआ मैं।"

"मेरे ख्याल में तेरे को इस काम में साथी चाहिए। अकेले ये काम करने में परेशानी आ रही होगी। बहुत जरूरत हो तो मैं कुछ को तेरे पास भेज देता हूं, जबकि मैं चाहता हूं कि ये काम तू अकेले ही करे।"

"मैं कर लूंगा। मुझे साथियों की जरूरत नहीं।" तुली को अपने पर गुस्सा आ रहा था।

"मन्नू भी बच निकला।" कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

"क्या मतलब?" तुली के होंठों से निकला--- "वो आज दोपहर को मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचने वाले...।"

"हां, वे पहुंचे, परंतु मन्नू को शायद पता था कि एयरपोर्ट पर उसे पकड़ लिया जाएगा। इसलिए वो भागने के लिए तैयार था और हमारे हाथों से निकल गया, परंतु जैनी हमें मिल गई।"

"और माईक?"

"उस पर नजर रखी गई। वो भी मन्नू के पीछे था। जब मन्नू उसके हाथ नहीं लगा तो वो अमेरिकन एंबेसी चला गया।"

"मन्नू का मुंबई पहुंचकर आजाद घूमना खतरनाक है।"

"F.I.A. हर जगह तलाश कर रही है। उसके मां-बाप के घर के बाहर नजर रखी जा रही है। वो ज्यादा देर हमसे छुप नहीं सकेगा। बहुत जल्दी हमारे लोग उसे खत्म कर देंगे। तुम अपना काम खत्म करो।"

"क्या मन्नू, राघव और तीरथ की मुलाकात हो सकती है?" तुली ने पूछा।

"नहीं हो सकती। वे तीनों ही नहीं जानते कि दूसरे लोग कहां रहते हैं। राघव और तीरथ को तो पता ही नहीं मन्नू के बारे में। उनकी याददाश्त मिटा दी गई है। मन्नू अवश्य सब कुछ जानता है परंतु वो दोनों के ठिकाने नहीं जानता।"

और तुली सोच रहा था कि उसने तीरथ को राघव और मन्नू के बारे में बता दिया है, परंतु नामों के सहारे वो उन दोनों तक नहीं पहुंच सकेगा।

तुली सोच भरे स्वर में कह उठा।

"मन्नू ने माई को सब कुछ बता दिया होगा इसलिए वो...।"

"तीनों को फौरन खत्म कर देना चाहिए।" कपूर की आवाज कानों में पड़ी--- "तीनों में से कोई बच नहीं सकेगा, परंतु जैनी से पूछताछ चल रही है। वो कहती है कि मन्नू ने माईक को कुछ नहीं बताया।"

"वो झूठ बोलती है।"

"पूछताछ चल रही है। तुम अपना काम पूरा करो, तब सब ठीक हो जाएगा।"

तुली ने फोन बंद करके जेब में डाला और भीड़ भरे बाजार में आगे बढ़ता रहा।

भिंचे होंठ। सोच में डूबा चेहरा।

■■■

मन्नू और जैनी प्लेन में।

घोषणा हो चुकी थी। प्लेन कुछ ही देर में लैंड कर जाने वाला था।

"तुम्हें याद है न, जो मैंने समझाया है।" मन्नू धीमे स्वर में जैनी से बोला।

जैनी ने सहमति से सिर हिलाया।

"एक बार फिर दोहरा देता हूं। प्लेन से उतरते ही हम अलग हो जाएंगे। हो सकता है कि माईक ठीक कह रहा हो कि जिन्न हमारी ताक में है। माईक से भी पीछा छुड़ाना है। हम दोनों एक साथ होंगे तो दुश्मनों को हम पर नजर रखने और हमें पकड़ने में आसानी होगी। 'जिन्न' कम-से-कम मुझे तो नहीं छोड़ने वाला, क्योंकि मैं उसके दो आदमी मार चुका हूं। हमें हर हाल में सबसे बचना है। इस क्रोशिया में एयरपोर्ट पर हम अलग भी हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में दोबारा मिलने के लिए हम दिन के बारह बजे गेटवे ऑफ इंडिया पर पहुंचेंगे। एक दिन न मिले तो अगले दिन पहुंचेंगे। चार दिन हमारी यही कोशिश रहेगी कि हम गेटवे ऑफ इंडिया पर दिन के बारह बजे मिलें। इन चार दिनों में हम नहीं मिले तो हम किसी छोटे से होटल या गेस्ट हाउस में रुककर, एक-दूसरे को तलाश करेंगे।"

"ठीक है, परंतु तुम्हारा घर भी तो है।"

"वहां जाना ठीक नहीं होगा। 'जिन्न' को सब खबर है।"

"हम ज्यादा खतरे में हैं मन्नू, उधर 'जिन्न' है तो इधर माईक है।" जैनी चिंतित स्वर में बोली--- "इंडिया आकर हमने गलती कर दी। हमें किसी दूसरे देश जाना चाहिए था।"

"ये गलती अब सुधारी नहीं जा सकती। जो सामने है उसे ही देखो। क्या पता 'जिन्न' के बारे में हम यूं ही चिंतित हो रहे हों। वो एयरपोर्ट पर हमारे इंतजार में हो ही नहीं।" मन्नू ने जैसे खुद को तसल्ली दी।

प्लेन मुंबई एयरपोर्ट के रनवे पर लैंड कर गया।

सीढ़ी लग गई। यात्री उतरने लगे।

सीटों से खड़े होने के साथ ही मन्नू और जैनी अलग हो गए।

तभी माईक मन्नू के पास आ पहुंचा।

"तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए।" माईक ने धीमे स्वर में कहा।

मन्नू ने मुंह फेर लिया।

"यकीन मानो F.I.A. तुम्हारे इंतजार में एयरपोर्ट पर है। वे तुम्हें शूट कर देंगे।" माईक ने पुनः कहा।

मन्नू ने फिर भी कुछ न कहा।

"आखिर मेरी समझ में नहीं आता कि तुम मेरे से दोस्ती क्यों नहीं कर रहे?"

"तुम जो जानना चाहते हो, वो मैं बताना नहीं चाहता।"

"आखिर क्यों, तुमने ही तो चीफ को फोन किया था।"

"तब मुझे एक लाख डॉलरों की सख्त जरूरत थी और वो मैं तुमसे ले चुका हूं।"

"लेकिन उसके बदले तुमने मुझे कुछ बताया नहीं।"

"मैं बेईमान हूं, इसलिए अपनी बात से हट गया। तुम यही समझो और मेरे से दूर हो जाओ, वरना मैं तुम्हारी शिकायत कर दूंगा कि तुम मुझे परेशान कर रहे हो।" मन्नू ने उखड़े स्वर में कहा।

"तुम मेरी बात को सच नहीं मान रहे कि F.I.A. वाले तुम्हारे लिए एयरपोर्ट पर हैं।"

"नहीं, सच मान रहा।"

"और जब तुम्हें मेरी बात का यकीन आएगा, तब मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूंगा।" माईक ने गंभीर स्वर में कहा--- "क्योंकि तब तक वो तुम्हें शूट कर चुके होंगे।"

"बकवास मत करो। ऐसा कुछ भी नहीं है।"

"ऐसा है।"

मन्नू विमान से बाहर निकला। सीढ़ियां उतरने लगा। रनवे पर बस खड़ी थी जोकि यात्रियों को एयरपोर्ट की इमारत तक ले जाने को तैयार थी। माईक मन्नू से बात करने का मौका ढूंढ रहा था, परंतु मन्नू उससे बचता बस में एक आदमी के साथ जा बैठा, तभी माईक को एक सीट पर जैनी बैठी दिखी तो वो उसके पास जा बैठा।

"मन्नू मेरी बात समझने की चेष्टा नहीं कर रहा कि तुम दोनों को एयरपोर्ट पर खतरा है।" माईक कह उठा।

"मैं भी तुम्हारी बात नहीं समझ पा रही हूं।" जैनी ने शुष्क स्वर में कहा।

"तुम दोनों बेवकूफ हो जो मेरी बात को गंभीरता से नहीं ले रहे।" माईक झल्ला उठा।

"तुम्हारी बात कोई नहीं सुनना चाहता। खामोश रहो।"

"अगर तुम लोग ड्यूक हैरी की हत्या के बारे में बताओ तो मैं रकम बढ़ा सकता हूं। अमेरिका की नागरिकता भी दिला दूंगा उसके बाद।"

"अपना मुंह मत थकाओ। हमें कुछ नहीं चाहिए।"

माईक को अपनी कोशिश सफल होती नहीं लगी।

बस द्वारा वे एयरपोर्ट की इमारत पर पहुंचे और भीतर जाकर वे चैकइन-क्यू पर लग गए।

तभी मन्नू को दो व्यक्ति अपनी तरफ बढ़ते दिखे। वो चौंका। जैनी को देखा, वो दूसरी लाइन में थी।

वो दोनों मन्नू के पास आ पहुंचे।

"आप हमारे साथ आइए।" एक ने शांत स्वर में मन्नू से कहा।

"क्यों?" मन्नू को खतरे का अहसास हो उठा।

तो उसने छोटा-सा कार्ड निकाल कर उसके सामने करते हुए कहा।

"इंडिया की गुप्त जासूसी संस्था F.I.A. ।"

"मैंने ये नाम नहीं सुना।"

"तो 'जिन्न' का नाम सुना होगा।" दूसरे का स्वर सख्त हो गया।

मन्नू ने दांतो से निचले होंठट को चबाया। दोनों को देखा। वो जानता था कि इनकी बात माननी पड़ेगी, वरना उसके साथ ये लोग जबरदस्ती भी कर सकते हैं।"

"क्या चाहते हो मुझसे?" मन्नू ने बेचैन स्वर में पूछा।

"कुछ सवालों के जवाब--- आओ...।" उसने आगे बढ़कर मन्नू की बांह पकड़ी और उसे एक तरफ ले जाने लगे।

तभी मन्नू की निगाह माईक पर पड़ी।

माईक के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कह रहा हो कि ये तो होना ही था। मेरी बात मानी होती तो न होता।

वो आदमी मन्नू की बाँह थामे आगे बढ़ रहा था। दूसरा उसके साथ में था। मन्नू का दिमाग तेजी से चल रहा था। वो इनके शिकंजे से निकलना चाहता था।

तभी वे सब बाथरूम के सामने से निकले। मन्नू फौरन ठिठका और कह उठा।

"एक मिनट बाथरुम जाना है मुझे।"

वे दोनों भी ठिठके। उसकी बाँह थामने वाला कठोर स्वर में कह उठा।

"चुपचाप हमारे साथ चलते रहो।"

"एक मिनट सिर्फ।" मन्नू ने मुंह लटकाकर कहा--- "जोरों का मामला है।"

"तुम बाहर रुको। मैं इसके साथ भीतर जाता हूं।" उसकी बांह थामने वाला अपने साथी से बोला।

उसने सिर हिला दिया।

वो मन्नू की बांह थामे दरवाजा धकेलते भीतर प्रवेश कर गया।

"मेरी बाजू तो छोड़ो। मैं भागा थोड़े न जा रहा हूं।" मन्नू ने कहा।

उसने बाजू छोड़ दी।

बाथरूम में उस वक्त कोई दूसरा न दिखा।

मन्नू पलटकर बाज की तरह उस पर झपट पड़ा। सब कुछ अचानक हुआ था। वो सोच भी नहीं सकता था कि इन हालात में मन्नू उसके साथ ऐसा कर सकता है।

मन्नू ने उसके सिर के बाल पकड़े और पीछे को धक्का देते दीवार के पास ले गया और जोरों से उसका सिर दीवार से दे मारा। उसके होंठों से कराह निकली और उसका शरीर लटकता चला गया।

मन्नू ने उसके सिर के बाल छोड़े तो वो नीचे जा गिरा।

मन्नू के दांत भिंच चुके थे। चेहरे पर खतरनाक भाव मंडरा रहे थे। वो जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगा। अपने कपड़े उतारकर वो उसके कपड़े पहन लेना चाहता था। अभी वो अंडरवियर में था कि तभी बाथरूम के भीतर के हिस्से की तरफ से नीली वर्दी पहने एक 'स्वीपर' आता दिखा। उसके हाथ में एक बाल्टी थमी थी।

वो मन्नू को देखते ही ठिठका। चेहरे पर हैरानी थी।

मन्नू ने उसे चुप रहने का इशारा किया और उतर चुकी पैंट से डॉलरों की गड्डी निकाली।

"ये लो।" मन्नू बीस डॉलर निकालकर उसे देता बोला--- "मुझे अपने कपड़े दो।"

"ये तुम क्या कर रहे हो? तुमने इसे मार दिया?" स्वीपर घबराकर बोला।

"बेहोश है।" मन्नू ने दस डॉलर और निकालकर दिए--- "तुम अपने कपड़े मुझे दो।"

"ये कम है।" वह अपने हाथ में पकड़े डॉलरों को देखता बोला।

मन्नू ने सौ डॉलर उसे दिए।

"जल्दी से कपड़े मुझे दे। तू मेरे पहन लेना।"

वो कपड़े उतारता बोला।

"ये क्या हो रहा है--- तुम क्या...?"

"ये बदमाश मुझे लूटना चाहता था।"

"तो मेरे कपड़े तुम क्यों पहन रहे...।"

"वो मेरी मर्जी। तेरे को मैं एक सौ तीस डॉलर दे चुका हूं। उसे लेते हुए तो तूने नहीं पूछा कि इतने ज्यादा क्यों दे रहा हूं।"

उसने अपनी नीली वर्दी उतारी।

मन्नू ने उसे पहन लिया। उसके सिर पर नीली ही टोपी थी। मन्नू ने टोपी उतारकर उसके सिर पर रखी और अपने हाथ में थमी बाल्टी खुद थाम ली, फिर कह उठा।

"चल। बाथरूम के पीछे वाले हिस्से में चला जा। जहां से आया है। दस मिनट बाद इधर आना।"

"अजीब हो।" बड़बड़ाता हुआ वो मन्नू के कपड़े उठाए पीछे की तरफ चला गया।

डॉलर मन्नू जेब में रख चुका था।

बेहोश पड़े व्यक्ति की जेब से उसने रिवाल्वर निकाली और कपड़ों में छिपा ली। सिर पर रखी कैप को थोड़ा-सा माथे पर झुका लिया और बाल्टी थामें दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

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