एक भुतहा साइकिल

न दिनों मैं पूर्वी उत्तरप्रदेश के एक जिले शाहगंज से लगभग पाँच मील दूर बसे एक गाँव में रह रहा था और मेरे पास आवागमन का एकमात्र साधन एक साइकिल थी। हालाँकि मैं किसी भी किसान से सहायता माँग कर उसकी बैलगाड़ी पर शाहगंज जा सकता था, लेकिन खराब रास्ते और अपने अनाड़ीपन के कारण मुझे साइकिल की सवारी तेज़ लगती थी। मैं लगभग हर दिन शाहगंज जाता, अपनी चिट्ठियाँ लेता, अखबार खरीदता, चाय के अनगिनत कप पीता और स्थानीय व्यापारियों से गप्पें लड़ाता। शाम के लगभग छह बजे मैं एक निर्जन, सुनसान जंगल के रास्ते से गाँव की ओर लौटता। जाड़े के महीनों में छह बजते ही अँधेरा हो जाता और मुझे साइकिल पर एक लालटेन रखकर चलना होता था।

एक शाम जब मैं गाँव की ओर जाने वाले रास्ते में आधा रास्ता तय कर चुका था तो अचानक बीच रास्ते पर खड़े एक छोटे लड़के को देखकर रुक गया। उस पहर में जंगल छोटे बच्चों के लिए सही जगह नहीं था—भेड़िये और लकड़बग्घे इस जिले में आम थे। मैं साइकिल से नीचे उतरा और लड़के के पास पहुँचा, लेकिन उसने मुझ पर कोई खास ध्यान नहीं दिया।

“तुम यहाँ अकेले क्या कर रहे हो?” मैंने कहा।

“मैं इन्तज़ार कर रहा हूँ,” उसने बिना मेरी ओर देखे कहा।

“किसका इन्तज़ार कर रहे हो? अपने माता-पिता का?”

“नहीं, मैं अपनी बहन का इन्तज़ार कर रहा हूँ।”

“अच्छा, मैंने उसे रास्ते में नहीं देखा,” मैंने कहा। “वह शायद आगे होगी। अच्छा होगा तुम मेरे साथ चलो, वह तुम्हें रास्ते में मिल जायेगी।”

लड़के ने सिर हिलाया और चुपचाप साइकिल के आगे वाले डंडे पर बैठ गया। मैं कभी भी उसके नैन-नक्श याद नहीं कर पाया। एक तो अँधेरा था, साथ ही उसने अपना चेहरा आगे की ओर कर रखा था।

हवा हमारे विपरीत थी और साइकिल चलाते हुए मैं ठंड से काँप रहा था, लेकिन उस लड़के पर ठंड का कोई असर नहीं था। हम बहुत दूर नहीं गये थे, जब मेरे लैम्प की रोशनी एक और बच्चे पर पड़ी जो सड़क के किनारे खड़ा था। इस बार यह एक लड़की थी। वह लड़के से थोड़ी बड़ी थी और उसके बाल हवा में बिखरे थे, जिससे उसका चेहरा लगभग छुपा हुआ था।

“यह रही तुम्हारी बहन,” मैंने कहा। “इसे अपने साथ ले चलते हैं।”

लड़की ने मेरी मुस्कान का कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया, और लड़के की ओर देखकर भी उसने बस गम्भीरता से सिर हिलाया। लेकिन वह मेरी साइकिल के पीछे कैरियर पर बैठ गयी और मुझे साइकिल चलाने के लिए कहा। मेरे आत्मीय सवालों के उत्तर वे हाँ-न में दे रहे थे और मुझे महसूस हुआ कि वे अजनबियों से सावधान थे। कोई बात नहीं, गाँव पहुँच कर मैं इन्हें मुखिया के हवाले कर दूँगा और वह इनके माता-पिता का पता लगा लेंगे।

सड़क बिलकुल समतल थी, लेकिन मुझे लगा कि मैं किसी पहाड़ी पर साइकिल चला रहा था। और फिर मैंने ध्यान दिया कि लड़के का सिर मेरे चेहरे के बहुत करीब है, और लड़की की साँसें बहुत ही तेज़ और भारी हैं, जैसे कि वह खुद साइकिल चला रही हो। ठंडी हवा के बाद भी मैं बहुत गर्मी और घुटन महसूस कर रहा था।

“मुझे लगता है हमें थोड़ा रुक जाना चाहिए,” मैंने सुझाव दिया।

“नहीं,” लड़का और लड़की दोनों एक साथ चिल्लाये, “रुको नहीं!”

मैं इतना चकित था कि बिना कोई बहस किये मैं साइकिल चलाता रहा, और तभी जब मैं उनकी माँग को अनदेखा कर रुकने की सोच रहा था, मैंने साइकिल के हैंडल पर टिके लड़के के हाथ की ओर ध्यान दिया। उसके हाथ लम्बे हो गये थे, काले और बालों से भरे।

मेरे हाथ काँपे और साइकिल रास्ते पर डगमगा गयी।

“ध्यान रखो!” बच्चे एक साथ चिल्लाये। “देखो, तुम कहाँ जा रहे हो!”

उनका स्वर अब धमकी भरा था और उसमें बच्चों वाली कोई बात नहीं थी। मैंने कनखियों से अपने कन्धे के ऊपर देखा और मेरा सबसे भयानक डर साकार हो आया। लड़की का चेहरा विशाल और फूला हुआ था। उसके पैर, काले और बालों से भरे ज़मीन पर घिसट रहे थे।

“रुको,” भयानक बच्चों ने आदेश दिया। “नदी के पास रुको!”

लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, मेरी साइकिल के आगे का चक्का एक पत्थर से टकराया और साइकिल मुझे नीचे गिराते हुए मेरे ऊपर गिर पड़ी। जब मैं धूल से लथपथ था, मैंने किसी कड़ी चीज़ का आघात अपने सिर के पीछे महसूस किया, जैसे कोई खुर हो और मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया।

जब मुझे होश आया, मैंने देखा कि चाँद आसमान में निकल चुका था और उसका प्रतिबिम्ब नदी के पानी पर चमक रहा था। दोनों बच्चे कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। मैं उठा और अपने कपड़ों से धूल झाड़ने लगा। तभी मैंने पानी उलीचने और छपछपाहट की आवाज़ सुनी और ऊपर देखा। दो छोटी काली भैंसें कीचड़ सनी चाँदनी में चमकते पानी में खड़ी मुझे घूर रही थीं।