आधी रात के बाद का वक्त हो रहा था ।
हर तरफ खामोशी और सन्नाटा व्याप्त था । कभी-कभार दूर किसी वाहन के हॉर्न की आवाज गूँज उठती थी । नहीं तो हर तरफ खामोशी थी ।
वही कॉलोनी, जहाँ रहस्यमय जीव पहले आया था । कॉलोनी की कच्ची सड़कों पर अब वह मस्ती भरे ढंग में बढ़ रहा था । कोई भी नजर नहीं आ रहा था । अधिकतर मकानों की लाइटें बन्द थीं । कुछ की जल रही थीं ।
रहस्यमय जीव कमला और जगदीश के मकान पर जाकर रुका और गेट खोलकर भीतर प्रवेश करते हुए सामने के दरवाजे पर हौले से हाथ मारा तो दरवाजा हिलने की ऊँची आवाज उभरी ।
इसके साथ ही भीतर से आहट उभरी । लाइट जली ।
“कमला ! देख तो कौन है !” जगदीश की आवाज थी ।
“देख रही हूँ ।” कमला का उखड़ा स्वर कानों में पड़ा, “वैसे होगा भी कौन । आपका छोटा भाई होगा । पीकर आ गया होगा । अपने घर इसलिए नहीं गया कि उसे पिये देखकर उसकी बीवी दरवाजा नहीं खोलेगी ।”
“इसकी पीने की आदत जाने वाली नहीं । छत पर सुला देना उसे ।”
रहस्यमय जीव की इकलौती आँख माथे के बीचोबीच ठहरी, एकटक दरवाजे को देख रही थी ।
तभी दरवाजा खुला । कमला का चेहरा नजर आया ।
कमला की निगाह रहस्यमय जीव पर गई तो दो पलों के लिए स्तब्ध रह गई । दूसरे ही क्षण उसका मुँह चीखने के लिए खुला कि रहस्यमय जीव ने उसे हौले से धक्का दिया तो वह पीछे जा गिरी । चीखना भूल गई ।
रहस्यमय जीव ने भीतर प्रवेश किया । दरवाजा बन्द कर लिया ।
नीचे पड़ी कमला फटी-फटी आँखों से उसे देखे जा रही थी ।
रहस्यमय जीव ने मुस्कराकर कमला को देखा, फिर उसके पास ही नीचे बैठ गया और अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाकर हैलो के अंदाज में हिलाया ।
कमला ने खुद पर काबू पाया । उसे सामान्य पाकर वह कुछ राहत में आई । वह धीरे-धीरे सीधी होकर बैठ गई । चेहरा कई रंगो के भावों में रंगा हुआ था । फिर उसने अपना हाथ रहस्यमय जीव के हाथ में दे दिया ।
रहस्यमय जीव ने उसका हाथ हिलाया और छोड़ दिया ।
“कौन है कमला ?” दूसरे कमरे से जगदीश की आवाज आई ।
कमला के होंठ हिले, परन्तु शब्द बाहर नहीं निकले ।
रहस्यमय जीव उसे देखता मुस्कुरा रहा था ।
“जवाब क्यों नहीं देती ? कौन है ?”
“जल्लाद !” कमला का मुँह खुला और तेज स्वर में ये शब्द निकला ।
दिन का उजाला फैल चुका था ।
रहस्यमय जीव फर्श पर ही मासूम बच्चों की तरह सोया पड़ा था ।
जगदीश और कमला हद से ज्यादा परेशान लग रहे थे । वे दूसरे कमरे में थे ।
“मुझे तो समझ नहीं आता क्या करूँ ?” कमला दबे स्वर में कह उठी ।
“मैंने तो सोचा था, चला गया । अब नहीं आएगा ।” जगदीश अपने गुस्से और घबराहट पर काबू पाता बोला ।
“जगदीश !” कमला ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी, “टेलीविजन में इसे जल्लाद का सम्बोधन दिया गया है । जनता के लिए इसे भारी खतरा बताया गया है । ये... ये हमें मार देगा ।”
जगदीश होंठों पर जीभ फेरकर रह गया ।
“तुम कुछ करते क्यों नहीं ?” कमला पुनः बोली ।
“क्या करूँ ?”
“ये हमें मार देगा ।”
“शायद नहीं !” जगदीश के होंठों से निकला ।
“क्या मतलब ?”
“हमें नहीं मारेगा । ये हमें दोस्त समझता है । हमसे हाथ मिलाता है ।” जगदीश ने दरवाजे के पार देखा, जिधर रहस्यमय जीव था ।
कमला के चेहरे पर गुस्से और घबराहट के भाव और गहरे हो गए ।
“पागल तो नहीं हो गए तुम ।”
“साफ़-साफ़ कहो ।”
“तुम उसे दोस्त कह रहे हो । वो पागल है । टीवी पर खबरें नहीं सुनी तुमने रात को ?”
“सुनी हैं । मुझे मालूम है वो जल्लाद है ।” जगदीश ने गम्भीर परेशान स्वर में कहा, “लेकिन सारी दिल्ली से भागकर वो हमारे पास ही क्यों आता है ? इसलिए कि वो हम पर विश्वास करता है । हमसे हाथ मिलाता है । हमारा खाना खाता है और निश्चिन्त होकर सो जाता है ।”
“सच में तुम पागल हो गए हो ।”
“मैं ठीक हूँ । पागल नहीं हुआ । तुम जो कहना चाहती हो, वो भी समझ रहा हूँ । इसकी तरफदारी नहीं कर रहा ।”
“मैं इससे पीछा छुड़ाना चाहती हूँ ।”
“तुम ही बताओ कि कैसे इससे पीछा छुड़ाऊँ ? टीवी में बताया था कि ये बहुत ताकतवर है ।”
“पुलिस को खबर करो ।” कमला दाँत भींचकर बोली ।
“पुलिस ?”
“हाँ ! निकालो इस मुसीबत को यहाँ से । इसकी मौजूदगी में मुझे नींद भी नहीं आएगी ।”
जगदीश के दाँत भिंच गये । आगे बढ़कर उसने दरवाजे से दूसरे कमरे में झाँका ।
रहस्यमय जीव फर्श पर गहरी नींद में डूबा हुआ था ।
“क्या देख रहे हो ?”
“सोच रहा हूँ ।” जगदीश होंठ भींचें दबे स्वर में बोला ।
“क्या ?”
“पुलिस ने इसकी खबर देने वालों के लिए इनाम देने की घोषणा की है या नहीं !”
“क्या बेवकूफी वाली बात कर रहे ।”
“अक्ल से काम लो कमला !” जगदीश कह उठा, ''इससे पीछा छुड़ाते हुए मोटी रकम भी मिल जाये तो अच्छा रहेगा । हम पुलिस को खबर कर सकते है कि ये यहाँ पर है ।”
“और अगर पुलिस ने इनाम न रखा हो तो ?”
“तो दो-चार दिन इन्तजार कर लेंगे । मुझे पूरा विश्वास है कि इसकी खबर देने वाले के लिये पुलिस जल्दी ही कोई इनाम घोषित करेगी ।” जगदीश दबे स्वर में कह उठा ।
कमला के चेहरे पर सोच के भाव थे ।
“तुम ठीक कहते हो ।” अखिरकार कमला ने कहा, ' मालूम करो कि क्या पुलिस ने कोई इनाम रखा है ?”
“अभी बाहर जाता हूँ । ये उठे तो इसे खाना खिला देना । खाना तैयार कर लो । इससे दोस्ताना व्यवहार करो । पैसा कमाने का मौका मिला है हमें । मैं इस मौके को हाथ से नहीं जाने दूँगा ।”
“बात मत करो । बाहर जाकर मालूम करो कि क्या पुलिस ने रहस्यमय जीव को लेकर कोई इनाम रखा है ?”
“तुम संभलकर रहना । मैं जल्दी वापस आता हूँ ।”
तीन घंटे बाद जगदीश वापस लौटा ।
रहस्यमय जीव अभी भी गहरी नींद में था ।
कमला उसके लिए खाना बनाकर तैयार बैठी थी ।
“आ गये ।” कमला उसे देखते ही बोली, ''पुलिस ने इसके बारे में बताने वाले पर कोई इनाम रखा है ?”
“रखा तो है । लेकिन रकम खास नहीं है ।”
“कितना इनाम है ?”
“पचास हजार रुपये, जो भी रहस्यमय जीव के बारे में पक्की खबर देगा । अखबार में छपा है ये ।”
“सिर्फ पचास हजार ?” कमला ने गहरी साँस ली ।
“हाँ ! मैंने तो सोचा था कि बड़ी रकम होगी ।”
दोनों में कुछ पलों तक चुप्पी रही ।
“कुछ न होने से तो पचास हजार ही अच्छा है ।” जगदीश ने कहा ।
“जल्दी मत करो जगदीश !”
“जल्दी ! क्या मतलब ?”
“दो-तीन दिन और बीत लेने दो ।” कमला ने सोच भरे स्वर में कहा, “पुलिस इनाम बढ़ा देगी ।”
जगदीश की आँखें सिकुड़ीं । फिर कह उठा ।
“रात ये एक रेस्टोरेंट में छः लोगों को मारकर आया है ।”
“छः ?”
“हाँ ! अखबार में खबर है । एक रेस्टोरेंट में ये घुस गया और छः लोगों को बुरी मौत मार दिया ।”
“हमारे लिए तो ये अच्छी खबर है ।” कमला होंठ भींचें कह उठी ।
“क्या मतलब ?”
“एक बार फिर से इसी तरह लोगों को मारकर, बच आता है तो पुलिस इनाम बढ़ा देगी ।”
“ओह ! ठीक कहा ।”
“हमें इसके बाहर जाने का इंतजार करना चाहिए । शायद ये आज रात बाहर जाकर फिर लोगों को मारे । ऐसा हुआ तो कल सुबह के अखबार में, इसके बारे में पक्की खबर देने वाले के लिए मोटे इनाम की घोषणा हो सकती है ।”
“और अगर ये कांड करके हमारे पास न आया । कहीं और चला गया तो ?”
“फिक्र मत करो जगदीश ! ये यहीं वापस आएगा । मैं इसे इतना खिलाऊँगी-पिलाऊँगी कि ये यहीं पर वापस लौटेगा ।” कमला के स्वर में विश्वास के भाव कूट-कूट कर भरे हुए थे ।
☐☐☐
मोना चौधरी की आँख सुबह दस बजे खुलीं ।
आँख खुलते ही मोना चौधरी ने गहरी साँस ली । रात की सारी घटनाएँ उसकी आँखों के सामने घूमती चली गईं । बाल-बाल बची थी वह । वह रेस्टोरेंट में बैठी डिनर ले रही थी कि उसके शरीर की गंध के दम पर रहस्यमय जीव रेस्टोरेंट के भीतर आ गया था । अगर उसके सामने पड़ जाती तो जाने क्या हो जाता ।
वक्त रहते वहाँ से बाहर आ गई ।
उसके शरीर की गंध के दम पर ही वह कार तक पहुँचा था । कार में उसके शरीर की गंध मौजूद थी । उसके वहाँ न मौजूद होने की वजह से उसने कार को तोड़-फोड़ दिया था । रेस्टोरेंट से दूर-दूर तक भागती चली गई थी । फिर टैक्सी स्टैंड से टैक्सी लेकर, फ्लैट पर आ पहुँची थी । रात के डेढ़-दो बज गए थे तब । उसके बाद नींद आने में वक्त लगा ।
उसकी कार बेकार हो चुकी थी ।
मोना चौधरी बेड से उतरी और महाजन को फोन मिलाया ।
“हैलो !” राधा की आवाज मोना चौधरी को सुनने को मिली ।
“कैसी हो राधा ?”
“मोना चौधरी ?” राधा कह उठी, “कैसी हो मोना चौधरी ?”
“अच्छी हूँ ।”
“आ जाओ मोना चौधरी । आज कोफ्ते बना रही हूँ । मजेदार लंच रहेगा ।”
“फिर कभी खाऊँगी । महाजन है ?”
“हाँ ! आज कोफ्ते खाने आ जाती तो... ।”
“फिर कभी । महाजन से बात करा दो ।”
दूसरे ही पल महाजन की आवाज कानों में पड़ी ।
“कहो बेबी !”
“रहस्यमय जीव के बारे में सुना कुछ ?”
“खास कुछ नहीं सुनने को मिला । कल के अखबार में उसके बारे में पक्की खबर देने वाले को पचास हजार रुपये इनाम रखा गया है । मालूम नहीं वो कहाँ छिप जाता है । हैरानी है इस बात ।”
“उसके बारे में कोई खबर नहीं मिली ?”
“नो बेबी ! मैंने कुछ आदमियों को खर्चा-पानी देकर, रहस्यमय जीव की खबर पाने के बारे में लगा रखा है । वो... ।”
“उन आदमियों ने कुछ बताया तुम्हें ?”
“नहीं ! अभी तक तो कोई खास खबर नहीं मिली ।”
“तो फिर वो ठीक से तुम्हारा काम नहीं कर रहे । तुम कब से घर पर हो ?” मोना चौधरी बोली ।
“रात नौ बजे घर आ गया था ।”
मोना चौधरी ने रात रेस्टोरेंट में घटी घटना बताई ।
महाजन की तरफ से आवाज नहीं आई ।
“महाजन !”
“हाँ, बेबी !” महाजन के भारी साँस लेने का स्वर सुनाई दिया, “किस्मत से तुम बच गई । उसके सामने पड़ गई होती तो बुरा होता ।”
“मुझे कार की जरूरत है ।”
“दो घण्टे में पहुँचा दूँगा ।”
मोना चौधरी के कानों में राधा की आवाज पड़ी । वह महाजन से कह रही थी कि कोफ्ते खाये बिना वह उसे बाहर नहीं जाने देगी । मोना चौधरी के होंठों पर शांत-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई ।
“मालूम करो कि रहस्यमय जीव कहाँ छिप जाता है । उसने यकीनन कोई ठिकाना बना रखा है ।”
“ठीक है, बेबी ! मैं अपनी कोशिशों को और भी तेज करता हूँ ।”
“कार पहुँचाना भूलना मत ।”
“दो घण्टे में कार पहुँच जायेगी ।”
मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया ।
नहा-धोकर मोना चौधरी नाश्ता करके हटी थी कि कॉलबेल बजी ।
महाजन आया होगा । इस सोच के साथ ही मोना चौधरी ने दरवाजा खोला तो सामने पारसनाथ को पाया ।
“तुम ?” कहने के साथ ही मोना चौधरी एक तरफ हटी ।
“किसी और का इंतजार था ?” पारसनाथ ने भीतर प्रवेश किया ।
“महाजन आने वाला था ।” मोना चौधरी ने दरवाजा बन्द कर दिया ।
पारसनाथ आगे बढ़कर सोफा चेयर पर बैठा और सिगरेट सुलगा ली ।
“रात रेस्टोरेंट से रहस्यमय जीव से कैसे बच निकलीं ?” पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा ।
“तुम्हें कैसे मालूम ?” मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं ।
“सुबह खबर मिली थी कि वो विचित्र जीव उस रेस्टोरेंट में गया था । मैं हैरान था कि वो रेस्टोरेंट के भीतर क्या करने चला गया !” पारसनाथ ने कश लिया, “वहाँ पहुँचकर पार्किंग में खड़ी तुम्हारी कार देखने को मिली ।”
मोना चौधरी गहरी साँस लेकर रह गई ।
“तब इस नतीजे पर पहुँचा कि रात तुम रेस्टोरेंट में थीं । तुम्हारे शरीर की गंध पाकर वो पहुँचा । पहले पार्किंग में खड़ी कार के पास फिर तुम्हारी तलाश में रेस्टोरेंट के भीतर । वहाँ कुछ को उसने बहुत बुरे ढंग से मारा । तुम्हारी लाश उनमें नहीं थी ।” पारसनाथ के होंठों पर छोटी मुस्कान उभरी, “मैं समझ गया कि तुम बच निकली हो ।”
मोना चौधरी आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठी ।
“तुमने जो कहा, ठीक कहा । रात मैं उसके सामने पड़ने से बच गई ।” मोना चौधरी ने सिर हिलाकर कहा, “तब मुझे ये डर अवश्य लग रहा था कि मेरे शरीर की गंध का पीछा करते हुए वो फ्लैट तक आ पहुँचेगा । लेकिन वो अभी तक नहीं पहुँचा तो जाहिर है कि रेस्टोरेंट में लोगों के शरीर की स्मेल में वो मेरे शरीर की गंध नहीं पा सका ।”
“फिर गंध के मामले में भटक गया ।” पारसनाथ के होंठों से निकला ।
“हाँ !” मोना चौधरी ने पुनः सिर हिलाया ।
दोनों में कुछ पल चुप्पी रही ।
“मैंने और मेरे कुछ आदमियों ने मालूम करने की कोशिश की कि विचित्र जीव कहाँ गया ।”
“मालूम हुआ ?”
“वो जब पुलिस वालों की हत्या करके वहाँ से भागा तो एक खास जगह के बाद में उसकी कोई खबर नहीं मिली और रात को उसी दिशा में कुछ आगे तक उसे देखा गया फिर किसी को नजर नहीं आया ।”
मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं ।
“मतलब कि दोनों बार एक ही दिशा में गया वो ।”
“हाँ ! इस बार उसे उसी दिशा में कुछ आगे तक देखा गया ।” पारसनाथ की निगाह मोना चौधरी पर थी ।
“वहाँ उसके बारे में मालूम किया कि... ।”
“मेरे आदमी वहीं पर, उसकी कोई खबर पाने की कोशिश में घूम रहे हैं । उधर पुलिस वाले भी हैं ।”
“पुलिस वाले ?” मोना चौधरी की निगाह पारसनाथ पर जा टिकी ।
“हाँ !” पारसनाथ ने कश लिया, “पुलिस को तो सबसे पहले उसकी तलाश है । दो घण्टे पहले मोदी को भी मैंने वहाँ देखा । वो उस जीव को तलाश करने के लिए उतावला हुआ पड़ा है ।”
मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के गहरे भाव छाये रहे ।
“अगर उसे तलाश कर भी लिया तो हम उसका क्या करेंगे ?” पारसनाथ का स्वर गंभीर था ।
उसके इन शब्दों पर मोना चौधरी के होंठ भिंच गए ।
“खत्म करना है उसे ?” पारसनाथ ने पूछा ।
“नहीं !” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
“कैद करना है उसे ?”
मोना चौधरी का सिर इंकार में हिला ।
“फिर क्या करना है उसका पता-ठिकाना जानकर ?”
मोना चौधरी के होंठ भिंचे रहे ।
पारसनाथ, मोना चौधरी की आँखों में देखता कह उठा ।
“वो तुम्हारी जान के पीछे है, मोना चौधरी ! वो तुम्हें मारने के लिए दिल्ली आया है ।”
“हाँ !” मोना चौधरी के होंठ भिंचे रहे ।
“तो फिर उसे खत्म कर देना चाहिए, ताकि वो तुम्हें मार न सके । अगर वो शक्तिशाली है । उसे खत्म करना आसान नहीं है तो इसके लिए कोई रास्ता सोचा जा सकता है, वरना वो तुम्हें खत्म कर देगा ।”
“मालूम नहीं क्यों, उसे मारने को मन नहीं करता ।” मोना चौधरी के भिंचे होंठों से निकला ।
पारसनाथ कुछ कहने लगा कि कॉलबेल बजी ।
पारसनाथ ने उठकर दरवाजा खोला तो महाजन ने भीतर प्रवेश किया ।
“बेबी ! कार अपार्टमेंट की पार्किंग में खड़ी है ।” इसके साथ ही उसने कार का नम्बर बताया ।
“महाजन !” पारसनाथ ने कहा, “विचित्र जीव मोना चौधरी को मारने के लिए दिल्ली में भटक रहा है । ऐसे में विचित्र जीव को खत्म कर दिया जाये तो मोना चौधरी पर से खतरा हमेशा के लिए हट जायेगा ।”
“ठीक बात कही तुमने ।” महाजन कह उठा ।
“लेकिन मोना चौधरी कहती है कि उसे खत्म करने को मन नहीं करता ।” पारसनाथ का स्वर सख्त हो गया ।
“दिमाग खराब हो गया है बेबी का ।” महाजन ने मोना चौधरी को देखा, “उसे मार देना ही ठीक है ।”
“मुझे मालूम हुआ है कि वो किस दिशा की तरफ हो सकता है । पुलिस भी उसे उधर ही ढूँढ़ रही है ।”
“किधर ?” महाजन के होंठों से निकला ।
पारसनाथ ने बताया ।
“देर किस बात की !” महाजन बोला, “चलते हैं उधर ।”
“उसे खत्म कैसे करेंगे ?”
पारसनाथ के इन शब्दों पर वहाँ चुप्पी-सी छा गई ।
तभी होंठ भींचें मोना चौधरी अपनी जगह से हिली और बेडरूम में चली गई । दूसरे ही मिनट वापस लौटी तो हाथ में पीले रंग की छोटी-सी रिवॉल्वर थी, जिसकी नली पाँच इंच लम्बी थी ।
“ये कैसी रिवॉल्वर है ?” पारसनाथ ने अपने खुरदुरे चेहरे पर हाथ फेरा ।
“इस रिवॉल्वर से गोलियाँ नहीं, जहर भरे इंजेक्शन निकलने हैं ।” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था ।
“क्या मतलब ?” महाजन के होंठ सिकुड़े, “जहर भरे इंजेक्शन ?”
“इस रिवॉल्वर में गोलियाँ डालने वाला चैम्बर नहीं है । ये पीछे से नहीं खुलती । इसकी नाल को नीचे की तरफ दबाकर नाल का मुँह नीचे कर दिया जाता है । इस तरह ।” मोना चौधरी ने करके दिखाया, “अब नाल का पीछे वाला हिस्सा स्पष्ट दिखाई दे रहा है । इसी नाल में पीछे से जहर का इंजेक्शन डालकर, नाल को हाथ से ऊपर की तरफ उठाकर, इसे पहले वाली स्थिति में ला दिया जाता है । इस तरह ।” मोना चौधरी ने नाल को ऊपर किया, “ट्रिगर दबाने से नाल से इंजेक्शन निकलता है निशाने पर लगकर, भीतर भरा जहर शरीर में उतार देता है ।”
“इंजेक्शन कहाँ है ?”
मोना चौधरी ने जेब से दो इंच लम्बी और आधा इंच चौड़ी गोली के जैसी कोई चीज़ निकाली, जिसका पीछे का हिस्सा ठोस लोहे का था । आगे का ठोस प्लास्टिक का । प्लास्टिक के हिस्से में कोई काला तरल पदार्थ भरा था ।
“इसके भीतर क्या है ?”
“जहर ।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा, “किसी इंसान के शरीर में प्रवेश कर जाये तो वो दो मिनट से ज्यादा जिन्दा नहीं रहेगा ।”
महाजन ने वह इंजेक्शन अपने हाथ में लेकर देखा ।
उसके आगे वाले हिस्से पर एक इंच लम्बी सुई लगी थी ।
“जहर निकलेगा कैसे ?” महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।
“ट्रिगर दबाने पर लीवर इसके ठोस लोहे वाले हिस्से पर वेग के साथ लगेगा । इंजेक्शन बहुत ही रफ्तार के साथ निशाने की तरफ जायेगा और शरीर में धँस जायेगा । सुई शरीर के भीतर होगी । तब इसके रुकते ही लोहे का टुकड़ा, तेजी से इंजेक्शन के भीतर सरकेगा । जिसकी वजह से ये काला जहर आगे को होगा और जिस्म में धँसी सुई के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जायेगा ।”
“ये इंजेक्शन एक ही है ।”
जवाब में मोना चौधरी ने जेब में हाथ डाला और मुट्ठी भर के वैसे इंजेक्शन निकाले ।
“बहुत हैं ।” महाजन के दाँत भिंच गए, “अब वो बच नहीं सकेगा । ऐसी एक रिवॉल्वर मुझे भी दे दो ।”
“ये एक ही है ।” मोना चौधरी ने इंजेक्शन वापस जेब में डालते हुए कहा ।
“कोई बात नहीं ! एक से ही काम चल जायेगा ।” महाजन के होंठों से खतरनाक स्वर निकला ।
पारसनाथ का चेहरा कठोर हो चुका था ।
“उधर चलते हैं, जिधर रहस्यमय जीव के होने का शक है ।” महाजन ने कहा ।
“चलो ।” पारसनाथ के होंठ हिले ।
तभी फोन की घण्टी बजी ।
“हैलो !” मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया ।
“मोना चौधरी !” राधा का स्वर कानों में पड़ा, “नीलू है वहाँ ?”
“हाँ !” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
“उसे कहो कोफ्ते बन गए हैं ।”
मोना चौधरी ने गहरी साँस लेकर रिसीवर महाजन की तरफ बढ़ाया ।
“बात करो । राधा है । कहती है कोफ्ते बन गए हैं ।”
“उसे कह दो, मैं नहीं आ पाऊँगा ।” महाजन ने अनमने मन से कहा ।
“राधा !” मोना चौधरी रिसीवर कान से लगाकर बोली, “महाजन... ।”
“सुन लिया है मैंने ।” राधा का गुस्से से भरा स्वर मोना चौधरी के कानों में पड़ा, “नीलू से कह दो कि सारे कोफ्ते मैं खा लूँगी । उसे तरी भी नहीं दूँगी । आये तो घर में । बेड से न बाँध दिया तो मेरा नाम राधा नहीं !” इसके साथ ही दूसरी तरफ से राधा ने रिसीवर रख दिया था ।
मोना चौधरी ने रिसीवर रखा और महाजन को देखा ।
“मुझे मत बताना कि राधा ने क्या कहा ।” महाजन जल्दी से बोला, “वरना मेरा सारा दिन खराब बीतेगा ।”
☐☐☐
श्याम बाबू तैयार होने के पश्चात घर से निकलने ही वाला था कि बाहर राहुल आर्य की कार रुकते देखी फिर कार से निकलकर राहुल आर्य को इधर ही आते पाया ।
“अभी आ रहे हो ?” उसके पास पहुँचते ही श्याम बाबू ने कहा ।
“हाँ ! कोटेश्वर बीच से सीधा आ रहा हूँ । आप कहीं जा रहे हैं ?” राहुल आर्य बोला ।
“शहर के खास हिस्से में रहस्यमय जीव पहुँचने के बाद गायब हो जाता है । एक बार पहले भी उसी दिशा की तरफ पहुँचकर गायब हुआ था ।” श्याम बाबू बोला, “शंकर-सोनी-मोती वहीं पर, रहस्यमय जीव की कोई खबर पाने में भागदौड़ कर रहे हैं । मैं उधर ही जा रहा हूँ । तुम कोई खास काम की खबर लाये हो ?”
“मैं भी साथ चलता हूँ ।” राहुल आर्य बोला, “रास्ते में बताऊँगा ।”
दिन के ग्यारह बज रहे थे ।
तेज धूप फैली थी । अब पसीना-सा महसूस होने लगा था । सोनी, शंकर और मोती, श्याम बाबू और राहुल आर्य के पास मौजूद थे । तीनों अलग-अलग जगहों पर फैले हुए थे । श्याम बाबू और राहुल आर्य ने उन्हें तलाश करके इकट्ठा किया था ।
राहुल आर्य, रास्ते में श्याम बाबू को कोटेश्वर बीच में हुई रहस्यमय जीव के बारे में सारी घटनाएँ बता चुका था । श्याम बाबू ने राहुल आर्य की एक-एक बात को गंभीरता से सुना था । हालातों को पूरी तरह समझा था ।
“तुम कब आये ?” सोनी उसे देखते ही बोली ।
“अभी ।” राहुल आर्य ने कहा, “श्याम बाबू के साथ सीधा यहाँ पहुँचा हूँ ।”
श्याम बाबू ने सिगरेट सुलगाकर कहा ।
“तुम लोग बताओ, रहस्यमय जीव के बारे में मालूम हुआ कि वो इस दिशा में किस तरफ आया है ?”
“अभी तक तो खास कुछ मालूम नहीं ।”
“यहाँ खड़े रहना ठीक नहीं ।” मोती बोला, “पुलिस भी रहस्यमय जीव की तलाश में इधर-उधर घूम रही है । हमें पुलिस की नजरों में नहीं आना है । किसी ठीक जगह बैठकर बातें करते हैं ।”
मोती ने ठीक कहा था । पाँचों वहाँ से हट गए ।
कुछ दूरी पर चाय की दुकान पर बैठे वे आपस में बात कर रहे थे । इस वक्त चाय की दुकान खाली थी । कोई भी ग्राहक वहाँ नहीं बैठा था । दुकान का मालिक कई कदम दूर अपनी कुर्सी पर बैठा था । नौकर चाय बना रहा था ।
“अब बोलो ।” श्याम बाबू की नजरें तीनों पर गई, “विचित्र जीव की कोई खबर ?”
“कोई खबर नहीं !” मोती बोला, “कुछ पहले सरकारी कॉलोनी है । वहाँ फ़्लैट ही फ़्लैट बने हैं । पुलिस वाले अपने ढंग से पता कर रहे हैं कि रहस्यमय जीव वहाँ तो नहीं छिपा और हम अपने ढंग से मालूम करते रहे । लेकिन हम इस नतीजे पर पहुँचे कि रहस्यमय जीव उस सरकारी कॉलोनी में कहीं नहीं छिपा है ।”
“वो इधर ही कहीं गायब हुआ है । पहले भी वो इसी दिशा की तरफ गायब... ।”
“लेकिन यहाँ-कहाँ हो सकता है ?” राहुल आर्य ने पूछा ।
“यही तो समझ नहीं आ रहा ।”
“इधर आगे की तरफ एक नई कॉलोनी बन रही है । पहले वहाँ खेत थे । अब प्लाट काट दिये गए हैं । इक्का-दुक्का मकान वहाँ बने हैं । अधिकतर सारी जगह खाली है । पुलिस भी वहाँ पता कर आई है, हम भी पूछताछ कर आये हैं, परन्तु विचित्र जीव के कहीं भी होने की खबर नहीं मिल रही ।”
“इसका मतलब वो जहाँ छिपा है, उस जगह की खबर या उसके बारे में किसी को पता नहीं ।” श्याम बाबू ने सोच भरे स्वर में कहा ।
“मैं भी यही सोच रही थी ।” सोनी कह उठी, “वो किसी खास जगह पर छिपा हुआ है ।”
“वो जहाँ भी छिपा है, हमें उसे ढूँढ़ निकालना है ।” मोती कह उठा ।
नौकर चाय के गिलास उनके सामने टेबल पर रख गया ।
शंकर ने चाय का गिलास उठाकर घूँट भरा फिर राहुल आर्य से बोला ।
“तुम रहस्यमय जीव के बारे में कोटेश्वर बीच से क्या खबर लाये ? जाने का कुछ फायदा हुआ ?”
“हाँ ! कई बातें सुनने को मिलीं । बीच के पास एक गाँव है । वहाँ के लोगों को और पुलिस को उसके बारे में काफी कुछ पता है ।” राहुल आर्य कह उठा, “मोटे तौर पर इतना जान लो कि रहस्यमय जीव बहुत शक्तिशाली है ।”
“ये खबर लाये हो इतनी दूर जाकर ।” मोती की आँखें सिकुड़ीं ।
“सुनते रहो । उस पर गोली का असर नहीं होता । गोलियाँ लगने के बाद भी वो सामान्य ढंग से चलता-फिरता रहता है । उस पर हाथ डालना आसान नहीं !” राहुल आर्य ने बारी-बारी सबको देखा, “वो लोगों को बहुत ही वीभत्स तरीके से मारता है कि लाशें देखकर... ।”
“वैसी लाशें हम यहाँ भी देख चुके हैं ।” सोनी कह उठी ।
“उसमें वास्तव में दम है ।” शंकर गंभीर स्वर में बोला, “पुलिस वालों के बीच में रहकर उसने दो पुलिस वालों को मारा । लेकिन उसे कोई पकड़ नहीं सका । कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका ।”
“कोटेश्वर बीच पर पुलिस वालों ने एक बार उस जीव को जकड़कर बेहोश कर दिया था ।”
“कैसे ?”
“उसे जाल में फँसा कर ।” राहुल आर्य बताने लगा कि कैसे उसे जाल में फँसाया गया ।
सबने बहुत ध्यान से उसकी बात सुनी ।
“ये अच्छा आइडिया है ।” सोनी कह उठी, “उसे जाल में फँसाया जा सकता है ।”
“जाल खास तरह का होना चाहिए, जिसे कि वो तोड़ न सके ।” मोती बोला, “उसे जाल में फँसाया जा सकता है ।”
“आसान काम नहीं होगा उसे जाल में फँसाना ।” शंकर ने गंभीर स्वर में कहा ।
“ठीक कहते हो । बहुत बड़ा खतरा है उसे जाल में फाँसने में ।”
“हम रहस्यमय जीव को जाल में फँसा सकते हैं ।” राहुल आर्य अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा, “मैं वहाँ से सब मालूम करके आया हूँ कि कैसे उस पर काबू पाया जा सकता है ।”
सबकी निगाह राहुल आर्य पर जा टिकी ।
“राहुल की बात से मैं सहमत हूँ ।” श्याम बाबू ने सोच भरे स्वर में कहा ।
“अगर हम उसे न फँसा सके तो हमारी जान खतरे में पड़ सकती है ।” मोती कह उठा ।
“उसे पकड़ना बहुत जरूरी है ।” शंकर ने शब्दों पर जोर देकर कहा, “पचास करोड़ का है वो हमारे लिए ।”
“शंकर ठीक कहता है ।” सोनी कह उठी, “इस काम को हमें हर हाल में पूरा करना है ।”
कुछ पलों के लिए वे एक-दूसरे को देखने लगे ।
“दिक्कत तो हर काम में आती है ।” श्याम बाबू ने गंभीर स्वर में कहा, “इरादा पक्का हो तो काम हो जाता है ।”
“हमें दो बातों की जरूरत है ।” राहुल आर्य ने कहा, “सबसे पहले तो हमें एक मजबूत बढ़िया जाल की जरूरत है, जिसे तोड़ा न जा सके । जो काफी बड़ा हो । विचित्र जीव को आसानी से उसमें फँसा सके ।”
“दूसरी क्या बात है ?”
“ये जानना कि वो विचित्र जीव कहाँ पर है ? इससे पहले कि वो पुलिस के हाथ लगे, हमें उसका ठिकाना मालूम हो जाना चाहिए ।” राहुल आर्य ने कहा, “दोनों काम हमें जल्द-से-जल्द पूरे करने हैं ।”
“जाल कहाँ से बनवाया जाये ?” शंकर बोला ।
“ये काम मैं कर लूँगी । जाल तैयार करवाना मेरा काम रहा ।” सोनी कह उठी ।
“मालूम है, कैसा जाल चाहिए ?” राहुल आर्य ने उसे देखा ।
“मालूम है ।” सोनी ने उसे देखा, “फिर भी तुम बता दो ।”
राहुल आर्य ने सोनी को बताया ।
“सोनी जाल तैयार करवाती है ।” श्याम बाबू ने कहा, “और हम रहस्यमय जीव का ठौर-ठिकाना मालूम करते हैं ।”
“राबर्ट से भी बात कर लेना कि उसे डिलीवरी कहाँ चाहिए रहस्यमय जीव की ?” शंकर ने उसे देखा ।
“विचित्र जीव की खबर मिल जाये ।” श्याम बाबू ने सिर हिलाया, “तब राबर्ट से बात करूँगा ।”
☐☐☐
“रहस्यमय जीव को रात को इधर ही जाते देखा गया है ।” पारसनाथ ने कहा ।
पारसनाथ के साथ मोना चौधरी और महाजन कार से निकलकर पैदल ही आगे बढ़ने लगे थे । सामने सरकारी फ्लैटों वाली कॉलोनी दिखाई दे रही थी । पुलिस वाले इधर-उधर आते-जाते दिखाई दे रहे थे ।
“वो इन सरकारी फ्लैटों में नहीं छिप सकता ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“ठीक कहती हो बेबी ! फ्लैटों में होता तो कब का शोर पड़ चुका होता ।” पारसनाथ ने कहा ।
“शोर न भी पड़ा होता तो भी अब तक वो पुलिस को मिल ही जाता । उसकी कोई खबर ही नहीं मिलती ।” मोना चौधरी हर तरफ नजर घुमाती कह उठी, “पुलिस वालों को देखकर यही लगता है कि अभी उसकी कोई खबर नहीं मिली ।”
तभी एक तरफ से एक आदमी आता दिखा ।
उसे देखते ही पारसनाथ ठिठका । मोना चौधरी और महाजन भी ठिठक गए ।
वह पास आकर रुका । पारसनाथ को देखकर उसने हौले से सिर हिलाया ।
“कोई खबर ?” पारसनाथ ने पूछा ।
“नहीं !” उस व्यक्ति ने कहा, “अभी तक रहस्यमय जीव की कोई खबर नहीं मिली ।”
“बाकी लोग कहाँ हैं ?”
“इधर-उधर ही फैले हैं । उस जीव को ढूँढ़ रहे हैं ।”
“ये पक्का है कि वो इधर ही आया है ?”
“जी हाँ ! रात को कई लोगों ने उसे इसी इलाके में देखा है ।”
“देखा है तो फिर कहाँ गया ?”
“ये तो पता नहीं ! लोगों का कहना है कि वो अँधेरे की वजह से उनकी निगाहों में ओझल हो गया ।” उसने कहा, “कल रात को उधर बारात आई थी । शादी थी । उनमें से कुछ लोगों ने उसे देखा था ।”
महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकालकर घूँट भरा ।
इधर-उधर देखता पारसनाथ सिगरेट सुलगाने लगा ।
“उस तरफ आगे क्या है ?” मोना चौधरी ने पूछा ।
“पहले उस तरफ खेत होते थे ।” वह व्यक्ति बोला, “अब खेतों की जमीन को कॉलोनी का रुप देकर प्लाट काटे गए हैं । अभी भी वहाँ प्लाट बिकाऊ हैं । कुछ बिके भी हैं । चंद मकान बने हैं । कोई यहाँ तो कोई वहाँ ।”
“वो उधर भी हो सकता है ।” महाजन के होंठों से निकला ।
“उधर नहीं है ।” उस व्यक्ति ने कहा, “मैं कार पर उधर ही हर जगह घूम रहा हूँ । वहाँ उसके छिपने की कोई जगह नहीं है । वहाँ होता तो नजर आ ही जाता । पुलिस भी उधर हो आई है । जो चंद घर बने हैं, वहाँ भी पुलिस ने पूछा है ।”
“नहीं मिला ?” महाजन ने होंठ सिकोड़े ।
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“वहाँ वो छिप सकता है ।” मोना चौधरी धीमे स्वर में कह उठी, “उस खुली जगह ।”
तभी सामने नजर आ रही सड़क पर से गुजरती पुलिस कार एकाएक रुकी । तीनों की नजरें उधर गई । पुलिस कार में से देखते-ही-देखते इंस्पेक्टर मोदी निकला और उनकी तरफ बढ़ा ।
“बेबी ! मोदी ।” महाजन कह उठा ।
मोना चौधरी की सिकुड़ी निगाह करीब आते मोदी पर जा टिकी ।
पारसनाथ अपना हाथ खुरदुरे चेहरे पर फेरते हुए अपने आदमी से बोला ।
“तुम खिसक लो ।”
वह व्यक्ति फौरन उनसे दूर होता चला गया ।
पास पहुँचते ही मोदी कह उठा ।
“तुम कहाँ हो मोना चौधरी ! मैं रात भी तुम्हारे पास आया था और अब भी वहीं तुम्हें देखने गया था । फ्लैट बन्द मिला ।”
“ऐसा क्या काम पड़ गया ?” मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं ।
मोदी ने पारसनाथ को गहरी निगाहों से देखा ।
“तुम पारसनाथ हो ।”
“हो भी तो तुम्हें क्या ?” महाजन ने घूँट भरा, “अपने मतलब की बात करो ।”
मोना चौधरी की नजरें मोदी पर थीं ।
“कोटेश्वर बीच पर तुमने रहस्यमय जीव पर काबू पाया था ।”
मोना चौधरी के दाँत भिंच गए ।
“वही जीव अब दिल्ली में आ पहुँचा है । यहाँ पर दहशत... ।”
“तुम्हें किसने कहा कि कोटेश्वर बीच पर मैं... ?” मोना चौधरी ने कहना चाहा ।
“दुलानी ने । इंस्पेक्टर दुलानी ने बताया सब कुछ मुझे कि... ।”
“दुलानी ?” महाजन के होंठों से तीखा स्वर निकला, “वो हरामी । वो कहाँ मिला तुम्हें ?”
मोदी की नजरें महाजन पर गईं ।
“कब मिला था वो तुम्हें ?”
“एक-दो दिन से वो दिल्ली में ही है ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “रहस्यमय जीव को पकड़ने का काम मेरे ही हवाले है । दिल्ली में उसका आतंक बढ़ता ही जा रहा है ।”
“मैं साले दुलानी को छोड़ूँगा नहीं । उसका सिर तोड़ दूँगा ।”
“रहस्यमय जीव का कुछ पता चला ?” मोना चौधरी ने पूछा ।
“नहीं !” मोदी ने सिर हिलाया, “ये दूसरी बार है कि वो इसी दिशा की तरफ, यहीं करीब से वो लापता हो गया ।”
“मुझसे क्यों मिलना चाहते थे तुम ?”
“तुम रहस्यमय जीव को नजदीक से जानती हो । मेरी सहायता कर सकती हो कि... ।”
“जितना मैं उसके बारे में जानती हूँ, उतना ही दुलानी जानता है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।
“दुलानी का कहना है कि तुम उसे ज्यादा जानती हो । जो किया, तुमने ही किया । वो दर्शक बना रहा ।”
“वो कमीना है कहाँ ? मैं उसे... ।”
“आओ । दुलानी के पास ले चलता हूँ ।” मोदी बोला, “उससे मिल लेना । मैं तुम दोनों से कुछ बात भी कर लूँगा ।”
“चलो ! उसकी गलती की वजह से रहस्यमय जीव आजाद घूम रहा है ।” महाजन ने तीखे स्वर में कहा ।
मोना चौधरी अपनी जगह पर खड़ी रही ।
“चलें बेबी ?” महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी की निगाह मोदी पर थी ।
“तुम कोई चालाकी तो नहीं करना चाहते, हमें साथ ले जाकर ?” मोना चौधरी शांत स्वर में बोली ।
“चालाकी ?”
“मुझे गिरफ्तार करने की... ।”
“नहीं, मोना चौधरी !” मोदी गम्भीर स्वर में कह उठा, “मैं तुम्हें कभी भी गिरफ्तार नहीं कर पाऊँगा । तुम कभी कमिश्नर साहब के खास काम आई थीं । मैं भी तब कमिश्नर साहब के साथ ही था । मैं तुम्हारे खिलाफ कभी नहीं जा सकता ।”
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।
“पूरे विश्वास के साथ, मेरे साथ चल सकती हो ।”
“दुलानी है कहाँ ?” महाजन ने पूछा ।
“मेरे घर पर है । कुछ देर पहले मेरे साथ ही था । वो कुछ आराम करना चाहता था । कुछ घण्टे में आने को कहकर चला गया ।”
महाजन ने सवालियाँ नजरों से मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी गंभीर नजर आ रही थी । उसने महाजन को देखा फिर जेब से पीले रंग की रिवॉल्वर और इंजेक्शन रूपी गोलियाँ निकालकर पारसनाथ की तरफ बढ़ाई ।
“तुम यहीं आसपास ही रहना । शायद इनकी जरूरत पड़ जाये ।”
पारसनाथ ने रिवॉल्वर और इंजेक्शन रूपी गोलियाँ लेकर जेब में डाल लीं ।
“ये कैसी रिवॉल्वर है ?” मोदी कह उठा ।
“तुम अपने काम से मतलब रखो ।” महाजन ने कहा, “बोलो, किधर चलना है ?”
मोदी ने महाजन को खा जाने वाली नजरों से देखा ।
“तीखा बोलना छोड़ दें ।” मोदी शब्दों को चबाकर बोला, “पहले भी तेरे को कई बार समझाया है ।”
“नाराज क्यों होता है ! मैं तीखा नहीं, मीठा बोल रहा था । तेरे को समझने में गलती हुई है ।” महाजन मुस्कराकर बोला ।
☐☐☐
दुलानी के दरवाजा खोलते ही महाजन उस पर झपट पड़ा ।
“कमीने ! तेरे को कितना समझाया था कि रहस्यमय जीव से छेड़छाड़ मत करना । अगर अब की बार वो बिगड़ गया तो फिर उसे संभालना कठिन होगा । लेकिन तू नहीं माना । तूने अपनी कर ही डाली । देख लिया नतीजा । दिल्ली तक आ गया हो । अब यहाँ लाशें बिछानी शुरू कर दीं । तुम... ।”
“मैंने कुछ नहीं किया महाजन !” दुलानी घबराहट भरे स्वर में कह उठा ।
तब तक दुलानी कुर्सी से टकराकर, लड़खड़ाते हुए नीचे जा गिरा था ।
महाजन उस पर सवार था ।
“तूने कुछ नहीं किया तो क्या उसका दिमाग खराब हो गया था जो हमारे वहाँ से आते ही उसने पुलिस वालों को मारना शुरू कर दिया । उसके बाद बे-कसूर लोगों की जानें लेने... ।”
“ये सब, सब-इंस्पेक्टर तिवारी की वजह से हुआ ।”
मोना चौधरी और इंस्पेक्टर मोदी भी कमरे में आ चुके थे ।
महाजन ने गुस्से से भरी निगाहों से दुलानी को देखा ।
“सब-इंस्पेक्टर तिवारी, जिसने रहस्यमय जीव को पकड़ने के लिए जाल तैयार करवाया था ।”
“क्या किया उसने ?”
“उसने... उसने रहस्यमय जीव पर गोली चलानी चाही । उसे मारना चाहा था तो... ।”
“बस-बस ।” महाजन गुर्राया, “सब गलती तुम पुलिस वालों की ही है । वो यूँ ही किसी को नहीं मारता ।”
“तिवारी की हरकत में मेरी रजामन्दी नहीं थी । मैं उसे मना करता रहा, लेकिन... ।”
“तू उसका ऑफिसर था तब ।”
“वो मेरी नहीं मान रहा था । उसने अपनी की ।”
“ये कैसे सम्भव है ? तब वहाँ सैकड़ों पुलिस वाले... ।”
“दुलानी ठीक कह रहा है ।” मोदी कह उठा, “सब-इंस्पेक्टर तिवारी ने अपनी की । वो उसी वक्त मारा गया था । इस बात के कई पुलिस वाले गवाह हैं । उसके बाद वो रहस्यमय जीव सब की जान लेने लगा और... ।”
“नतीजा सामने है ।” मोना चौधरी सख्त स्वर में कह उठी ।
“मैं खुद नहीं समझ पाया था कि क्या हो गया ।” दुलानी नीचे पड़े कह उठा, “मैं... ।”
“वो गौरी के यहाँ कैसे पहुँच गया ?” मोना चौधरी ने उसी लहजे में बोला ।
महाजन उस पर से हट गया था । हरीश दुलानी गहरी साँस लेते, उठते हुए कह उठा ।
“तब जो भी हुआ, उस पर मैं हक्का-बक्का रह गया था । सब-इंस्पेक्टर तिवारी की वजह से सब कुछ खत्म हो गया । तुम्हारी सारी मेहनत बेकार गई । वो रहस्यमय जीव फिर से जल्लाद बनकर हत्याएँ करने लगा । उसके फौरन बाद ही वो गाँव में दिखाई दिया । फिर सीधा गौरी के घर । वो शायद तुम दोनों को तलाश कर रहा था । तुम लोग नहीं मिले । गौरी मिली तो उसने गौरी को मार दिया । इसके बाद वो अगले दिन भी दिखाई दिया । फिर किसी को नहीं दिखा । जाने कहाँ चला गया । उसके बाद जयपुर में होने की खबर मिली फिर बीस दिन बाद दिल्ली में । जो भी हुआ, उसमें मेरा कोई कसूर नहीं था ।”
मोना चौधरी की नजरें महाजन पर थीं ।
“हमारे आने के बाद तुम थोड़े से मामले को नहीं संभाल सके ।” महाजन ने खा जाने वाले स्वर में कहा ।
दुलानी उलझन-परेशानी में फँसा हाथ हिलाकर रह गया ।
“मोना चौधरी !” मोदी गंभीर स्वर में बोला, “पीछे की बातें छोड़कर हमें आगे के बारे में सोचना चाहिए । वो जीव दिल्ली की जनता के लिए खतरा बन चुका है । उसे कैसे पकड़ा या खत्म किया जाये ?”
“वो तुम्हारी जिम्मेदारी है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।
“इस मामले में तुम मेरी सहायता कर... ।”
“मैं खुद को खतरे में नहीं डालना चाहती ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।
“हैरानी की बात है कि तुम खतरे से डरने लगीं !” मोदी की आवाज में गंभीरता आ गई ।
“डर नहीं रही । सावधान हूँ । मैं उस रहस्यमय जीव के मुकाबले पर नहीं ठहर सकती मोदी !”
“तुमने कौन-सा उसका मुकाबला करना है ।”
“मुकाबला करना भी पड़ सकता है । खासतौर से ऐसी स्थिति में जब कि वो मेरे लिए ही दिल्ली आया है ।”
“तुम्हारे लिए ?” मोदी के होंठों से निकला ।
दुलानी चौंका ।
महाजन के चेहरे पर गंभीरता आ ठहरी थी । ।
“हाँ ! वो मेरी हत्या करने के लिए दिल्ली तक आ पहुँचा है ।” मोना चौधरी के होंठ भिंच गए ।
“ये तुम क्या कह रही हो मोना चौधरी ?” मोदी के होंठों से निकला ।
“तुम तो कब की दिल्ली पहुँच चुकी हो ।” हरीश दुलानी ने अजीब से स्वर में कहा, “वो तुम्हारे बाद में, करीब महीना भर बाद में दिल्ली में आया है । वो इतना समझदार नहीं है कि तुम्हारे बारे में पूछताछ करके, सही रास्ता तय करके दिल्ली आ पहुँचे । ये इत्तफाक ही है कि वो दिल्ली में... ।”
“वो मेरे पीछे ही दिल्ली में आया है ।” मोना चौधरी की आवाज में पक्कापन आ ठहरा था ।
दुलानी अजीब-सी निगाहों से मोना चौधरी को देखने लगा ।
“मोदी !” महाजन कह उठा, “बोतल पड़ी है ? खत्म हो गई मेरी ।”
मोदी ने महाजन को देखा, फिर दूसरे कमरे में चला गया । वापस आया तो हाथ में बोतल थी ।
बोतल उसने महाजन को थमाई और मोना चौधरी से कह उठा ।
“मैं तुम्हारी बात नहीं समझ पा रहा कि वो दिल्ली कैसे आया और तुम्हारे लिए क्यों आया है ?”
मोना चौधरी ने सोच और गंभीर निगाहों से मोदी और दुलानी को देखा ।
महाजन आगे बढ़ा और सोफा चेयर पर बैठते हुए बोतल से घूँट भरा ।
मोना चौधरी कह उठी ।
“कोटेश्वर बीच पर मैं उस रहस्यमय जीव के बहुत करीब रही । वो मेरे जिस्म की गंध को बहुत अच्छी तरह पहचानता है । उसकी सूँघने की शक्ति, दूसरों के शरीर की गंध को पहचानने की शक्ति बहुत तेज है । यही वजह है कि वो सीधा गौरी के घर जा पहुँचा । जहाँ मैं महाजन के साथ ठहरी हुई थी । मेरे शरीर के गंध के दम पर ही वो वहाँ पहुँचा था । इसी तरह जिस-जिस रास्ते से गुजरकर मैं दिल्ली तक पहुँची, वो उसी रास्ते से होता हुआ दिल्ली आया है ।”
“तुम्हारा कहना है कि वो तुम्हारे पीछे आया है ।” दुलानी बोला ।
“हाँ !”
“क्यों ?”
“मुझे खत्म करने ।” मोना चौधरी शब्दों पर जोर देकर कह उठी, “क्योंकि पहले मैंने इसे ठीक किया । कठिनता से उसे इस बात का एहसास दिलाया कि उसे जो गोली लगी, वो गलती से लगी । कोई भी उसका दुश्मन नहीं है । इसके बाद उसे तुम्हारे हवाले करके मैं दिल्ली आ गई ।”
“परन्तु सब-इंस्पेक्टर तिवारी ने उसे धोखे से खत्म करना चाहा । ऐसे में उसने कई पुलिस वालों को मार दिया । कई गोलियाँ उसके जिस्म में जा धँसी । तुम देख ही चुके हो दुलानी कि जब तक उसके जिस्म में गोली धँसी रहती है, उसे दर्द का एहसास होता रहता है । वो गुस्से और दर्द में फँसा, दूसरों को बुरी मौत मारता है । उसे वहाँ गोलियाँ लगीं तो उसके मन में मेरे प्रति नफरत आ गई । क्योंकि उसे मैं ही तुम्हारे हवाले करके गई थी । तब वो मेरी ही जान लेने के लिए गाँव में गौरी के घर पहुँचा । मैं तो नहीं मिली परन्तु गुस्से में उसने गौरी को मार दिया । उसके बाद उसका वहाँ पर दिखना बन्द हो गया । वो कहाँ गया ? किसी को पता नहीं चल सका ।”
दुलानी ने गंभीरता से सिर हिलाया ।
“हाँ ! उसके अचानक गायब होने से हम परेशान हो गए थे ।” दुलानी ने कहा ।
“तब तुम लोग सोच भी नहीं सकते थे कि वो मेरे शरीर की गंध का पीछा करते हुए दिल्ली की तरफ बढ़ रहा है ।”
“हाँ ! ये बात नहीं सोच सकते थे ।” दुलानी कह उठा, “परन्तु दिल्ली तक पहुँचने में उसने पच्चीस-तीस दिन लगा दिए ।”
“उसे देर इसलिए लगी कि वो गंध को महसूस करते हुए आगे बढ़ रहा था । रास्ते में जहाँ-जहाँ बड़े शहर पड़े होंगे, वहाँ वो भटका भी होगा । गंध का एहसास उससे दूर भी हुआ होगा ।”
मोदी और दुलानी की निगाह मोना चौधरी पर थीं ।
“अगर तुम्हारी ये बात मान ली जाये कि वो तुम्हारे शरीर की गंध के दम पर दिल्ली पहुँचा है कि तुम्हें खत्म कर सके तो दिल्ली में प्रवेश करने के बाद वो तुम तक क्यों नहीं पहुँचा ?” मोदी ने सोच भरे स्वर में कहा ।
“दिल्ली में लोगों की भीड़ बहुत है । थोड़ी-सी जगह में ही लाखों शरीरों की गंध फैली होती है । ऐसे में वो शरीर की गंध का एहसास पाने में असफल रहने लगा । मेरे शरीर की गंध पाने में वो पीछे हट गया । भटक गया । मुझ तक नहीं पहुँच सका ।”
महाजन ने घूँट भरा ।
मोदी और दुलानी की नजरें मिलीं ।
“इसकी बातें तुम्हारी समझ में आ रही हैं ?” मोदी बोला ।
“मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा ।” दुलानी वास्तव में परेशान दिखने लगा था ।
मोदी की नजरें मोना चौधरी पर जा टिकीं ।
“तुम्हें किसी ने कहा है कि तुम लोग बेबी की बात पर विश्वास करो ।” महाजन बोला ।
मोदी ने महाजन को देखा । चेहरे पर सोच के भाव थे ।
“तुम जानती हो कि रहस्यमय जीव तुम्हें मारने के लिए दिल्ली तक आ पहुँचा है तो तुम्हें दिल्ली से निकल जाना चाहिए ।” दुलानी बोला, “यहाँ रहकर क्यों खुद को खतरे में... ।”
“मैंने दिल्ली से जाने का सोचा नहीं !” मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली ।
“तुम्हें लगता है कि तुम विचित्र जीव से मुकाबला कर लोगी ?” मोदी कह उठा ।
“मैंने पहले भी कहा है कि मैं रहस्यमय जीव का मुकाबला नहीं कर सकती । उसे जीत नहीं सकती । वो सच में बहुत ताकत रखता है ।” मोना चौधरी ने गहरी साँस ली, “रात मैं उससे कठिनता से बची हूँ ।”
“रात ?”
“हाँ ! तब मैं रेस्टोरेंट में डिनर ले रही थी कि लोगों द्वारा उसके रेस्टोरेंट में प्रवेश करने की खबर मिली । मैं समझ गई कि जिस रास्ते से होकर मैं रेस्टोरेंट पहुँची हूँ, उसी किसी रास्ते पर से वो रहस्यमय जीव गुजर रहा होगा कि मेरे शरीर की गंध का एहसास पा लिया और उसी गंध का पीछा करते हुए वो रेस्टोरेंट तक आ पहुँचा ।”
“ओह !” मोदी की आँखें सिकुड़ी, “तुम कैसे बचीं ?”
“मुझे पहले ही पता चल गया था कि वो रेस्टोरेंट में आ पहुँचा है । मैं भाग निकली । लोगों की बहुत भीड़ होने के कारण वो पुनः मेरे शरीर की गंध को नहीं पा सका । रात के बाद वो मुझ तक नहीं पहुँचा ।”
“रेस्टोरेंट की घटना के बाद तो उसे उस रास्ते पर देखा गया था, जहाँ उसकी तलाश हो रही है ।” मोदी ने कहा ।
“रेस्टोरेंट की पार्किंग में एक कार बुरे हाल मिली होगी ?” मोना चौधरी ने पूछा ।
“हाँ !”
“वो मेरी ही कार थी । पहले वो उस कार तक पहुँचा होगा गंध के सहारे । कार में भी मेरे शरीर की गंध थी । उसके भीतर मुझे न पाकर, उसने गुस्से में मेरी कार तोड़ी फिर गंध के दम पर ही वो इस एहसास को पा गया कि मैं रेस्टोरेंट के भीतर हूँ ।”
“लेकिन तुम बच निकली ।”
मोना चौधरी गहरी साँस लेकर रह गई ।
“सच में तुम बहुत अजीब-सी बातें कर रही हो । कोई सुनेगा तो विश्वास नहीं करेगा ।”
“अविश्वास वाली बात तो ये भी है कि वो जीव हमारी दुनिया का नहीं और कोई भी नहीं समझ पा रहा कि वो आया कहाँ से है ।” मोना चौधरी ने मोदी को देखा, “क्या तुमने जानने की कोशिश की कि वो जीव क्या है ?”
“इस तरफ सोचने का वक्त ही नहीं मिल पाया ।” मोदी बोला, “पुलिस वाले ये काम फुर्सत में करते हैं । उसके बारे में खोजबीन करने में लगूँ तो वो जाने तब तक कितने बेगुनाहों की जान ले लेगा ।”
“गुजरात पुलिस उसके बारे में मालूम करने की चेष्टा कर रही है कि वो कहाँ से बीच पर आया ।” दुलानी कह उठा ।
महाजन घूँट भरकर कह उठा ।
“इन बातों को छोड़ो और ये देखो कि अब क्या करना है ?”
मोदी की नजरें, मोना चौधरी पर जा टिकीं ।
“तुम बताओ कि क्या करें ? कैसे उस पर काबू पाएँ ?”
मोना चौधरी ने सोच भरी निगाहों से दोनों को देखा ।
“बता दो बेबी !” कहने के साथ ही महाजन ने घूँट भरा, “उसकी गर्दन कैसे पकड़नी है ।”
“उस पर काबू नहीं पाया जा सकता ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“लेकिन तुमने उसे पकड़ लिया था । जाल में फँसाकर उसे बन्दी बना लिया था ।” मोदी कह उठा ।
“एक बार ऐसा हो गया तो जरूरी नहीं कि दोबारा भी ऐसा हो ।” मोना चौधरी के स्वर में गंभीरता थी, “कोटेश्वर बीच के पास खुली जगह थी । सूनसान जगह थी । उधर लोगों का आना-जाना नहीं था । ऐसे में वो भी निश्चिन्त रहता था कि कोई खतरा नहीं है । तभी वो जाल में फँस गया । यहाँ तो हर तरफ लोग ही लोग हैं । ऐसे माहौल में वो सावधान रहता होगा । जाल में उसे फँसाना मजाक नहीं है । वो लाशों के ढेर बिछा देगा ।”
“तुम हिम्मत कम करने वाली बातें कर रही हो ।” मोदी होंठ भींचकर बोला ।
“बेबी !” महाजन कड़वे स्वर में कह उठा, “तुम इन्हें कहो कि जाल की भी जरूरत नहीं ! जहाँ वो दिखाई दे, उसे गर्दन से पकड़ लो । वो पालतू कुत्ते की तरह साथ चलेगा । ये सुनना इन्हें अच्छा लगेगा । सही बात पसंद नहीं आएगी ।”
“तुम खामोश रहो ।” मोदी ने गुस्से से भरी निगाहों से महाजन को देखा ।
“सच कहता हूँ, इसलिए ।” महाजन ने भी उसे घूरा ।
तभी दुलानी गंभीर स्वर में बोला ।
“मोना चौधरी ! उसे पकड़ना बहुत जरूरी है । वो यूँ ही लाशें बिछाता रहेगा । तुम ही सलाह दो कि... ।”
“उसे पकड़ा नहीं जा सकता ।” मोना चौधरी बोली, “तुम उसे अच्छी तरह जानते हो कि वो किस हद तक खतरनाक है ।”
महाजन ने घूँट भरा और दुलानी-मोदी पर नजर मारी ।
“उसे पकड़ने की अपेक्षा खत्म करने की सोचो ।”
“खत्म ?” मोदी ने महाजन को देखा, “उस पर तो गोली असर नहीं करती !”
“गोली नहीं करती तो तोप का गोला इस्तेमाल करो । वो बच नहीं सकेगा ।” महाजन गंभीर हो गया, “सोचने पर पुलिस उसे खत्म करने के दसियों रास्ते निकाल सकती है । पहले उसके साथ कोटेश्वर बीच पर सामना हुआ था । वहाँ ज्यादा इंतजाम नहीं थे । ये तो दिल्ली है । यहाँ इंतजामों की क्या कमी है ।”
मोदी और दुलानी की नजरें मिलीं ।
“तुम ठीक कहते हो ।” मोदी ने महाजन को देखते हुए दरिंदगी भरे स्वर में कहा, “उसे खत्म करने के बारे में सोचना होगा ।”
“मैं तुम्हारी राय से सहमत नहीं हूँ ।” दुलानी ने स्पष्ट शब्दों में टोका, “वो इतनी आसान चीज़ नहीं है कि तुम उसे फाँसने या खत्म करने के बारे में इस तरह कह दो । खत्म करते हुए वो घायल होकर बच गया तो गुस्से में जाने कितनी लाशें बिछा देगा । वो अपने दुश्मनों को कभी नहीं भूलता और उस स्थिति में सबको अपना दुश्मन समझेगा ।”
“दुलानी ठीक कहता है ।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली, “वो किसी भी तरफ से कमजोर जीव नहीं है ।”
“तुम लोग तो उसे हौवा बनाने पर लगे हो ।”
“सच तुम्हें कैसा भी लगे, हमें इससे कोई मतलब नहीं !” महाजन ने मोदी को देखा, “हमने तुम्हें हर तरह की स्थिति से वाकिफ करा दिया है । जो ठीक समझो करो ।”
दाँत भींचें दुलानी कभी महाजन को देखता तो कभी मोना चौधरी को ।
“खतरा तो बहुत है ।” दुलानी, मोदी से बोला, “लेकिन उसे जिन्दा पकड़ा जाये तो उसी में पुलिस की जीत होगी । तब कई सवालों के जवाब के साथ ये भी मालूम हो सकेगा कि वो कौन है ? कहाँ से आया है ?”
“ये बात पहले समझ में नहीं आई थी । जब उसे दोस्त बनाकर तुम्हारे हवाले किया था ।” महाजन ने उसे घूरा ।
“बेवकूफ था तब मैं ।” दुलानी गहरी साँस लेकर कह उठा ।
“कैसे पकड़ा जाये उसे ?” मोदी ने दुलानी से पूछा ।
“जाल से ही । जाल में वो एक बार फँस गया तो फिर बचेगा नहीं !” दुलानी ने मोदी को देखा ।
“मोना चौधरी का कहना है कि इसमें खतरा है ।”
“खतरा तो उसे दूर से देखने पर भी है कि वो इधर को न लपक आये ।” दुलानी ने मोदी से कहा ।
“जो मन में आये करो ।” महाजन बोला, “कुछ तो करो । बातें करके कुछ नहीं होने वाला ।”
कुछ पलों के लिए वहाँ चुप्पी छा गई ।
मोना चौधरी दोनों को देखकर कह उठी ।
“तुम दोनों जैसा भी करना चाहते हो, करो । पुलिस डिपार्टमेंट है तुम्हारे साथ । शायद उस पर काबू पा सको । मैं अपनी तरफ से कोशिश कर रही हूँ । शायद उसे खत्म करने में कामयाब हो सकूँ ।”
“कैसी कोशिश कर रही हो तुम ।”
दोनों की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।
महाजन ने घूँट भरा ।
“खास तरह की रिवॉल्वर से उसे जहर भरा इंजेक्शन मारा जायेगा । तेज जहर है वो । ऐसी स्थिति में वो खत्म भी हो सकता है ।”
“जहर भरा इंजेक्शन ? उस पीली रिवॉल्वर से ?” मोदी के होंठों से निकला ।
“हाँ ! जो मैंने तुम्हारे सामने पारसनाथ को दी थी । अगर वो रहस्यमय जीव नजर आ गया तो पारसनाथ उसे छोड़ेगा नहीं !”
“अच्छी बात है ।” दुलानी बोला, “तुम अपनी कोशिश करो । हम अपनी कोशिश करते हैं ।”
“हम जाल से उसे पकड़ने जा रहे हैं ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “तुम इस काम में हमारा साथ दोगी ।”
“मेरी कोई जरूरत नहीं । उसे जब पकड़ा था तो दुलानी वहाँ था । इसने देखा ही था कि कैसे उसे पकड़ा गया था ।”
क्षणिक खामोशी के पश्चात मोदी ने गंभीर स्वर में कहा ।
“अगर हम उसे पकड़ लें तो क्या उसके शरीर में धँसी गोलियाँ निकालें ? ये ठीक रहेगा ?”
“बहुत ठीक रहेगा ।” मोना चौधरी कह उठी, “उसे दर्द से राहत मिलेगी । दर्द की वजह से ही वो गुस्से में पागल हो उठता है । दर्द से राहत पाकर शायद वो नर्म पड़ जाये ।”
“शायद... ।”
“मैंने देखा था । जब ये सब तुमने कोटेश्वर बीच पर किया था ।” गहरी साँस ली दुलानी ने । दो पलों के लिए आँखें बन्द कीं, फिर आँखें खोलकर मोना चौधरी को देखा, “बहुत बड़ा खतरा उठाकर तुमने हिम्मत का काम किया था ।”
“वैसी हिम्मत अब तुम लोग भी दिखाना ।” महाजन ने कहा ।
“मोना चौधरी !” मोदी बोला, “तुम जहर से उसे मारने का ख्याल कुछ देर के लिए छोड़ दो । हम उसे पकड़ने की कोशिश... ।”
“तुम्हारी ये बात नहीं मान सकती मोदी !” मोना चौधरी कह उठी, “वो मुझे खत्म कर देना चाहता है । मैं जानती हूँ कि उसका मुकाबला नहीं कर सकती । ऐसे में उसे खत्म करना ही ठीक है । वरना उसे मौका मिला तो वो मुझे खत्म कर देगा ।”
मोदी होंठ भींचकर रह गया ।
“मोदी !” दुलानी कह उठा, “उसे पकड़ने के लिए ख़ास तरह का जाल तैयार करवाना पड़ेगा । ये काम जल्दी करवाना है हमें । उधर पुलिस वालों को देखो कि वो फुर्ती के साथ उस जीव को ढूँढ़ रहे हैं या नहीं ?”
मोदी ने दुलानी को देखा और हौले से सिर हिलाने लगा ।
“चलें, बेबी ! देखें, पारसनाथ ने कुछ किया है या नहीं ?”
“जरूरत पड़ने पर तुम कहाँ मिलोगी ?” मोदी, मोना चौधरी से कह उठा ।
“हमारी मंजिल एक ही है मोदी ।” मोना चौधरी ने सर्द स्वर में कहा, “कभी भी मुलाकात हो जायेगी ।”
महाजन उठा और दोनों बाहर निकल गए ।
मोदी और दुलानी की नजरें मिलीं ।
“आसान नहीं है उसे जाल में कैद करना ।” दुलानी ने गंभीरता से कहा ।
“मोना चौधरी उसे जाल में फँसा सकती है तो मैं भी उसे जाल में फँसा सकता हूँ ।” मोदी ने दाँत भींचकर कहा, “तुम ये बताओ कि मोना चौधरी ने कैसा जाल बनवाया था ?”
दुलानी जाल के बारे में बताने लगा ।
☐☐☐
रात के दस बज रहे थे ।
श्याम बाबू ने अभी पास के रेस्टोरेंट से खाना मँगवाया था और खाना शुरू करने की तैयारी कर रहा था कि कॉलबेल बजी । श्याम बाबू ने सावधानी से दरवाजा खोला तो बाहर सोनी को खड़े पाया ।
“तुम ।”
सोनी भीतर आ गई । श्याम बाबू ने दरवाजा बन्द किया ।
“यहाँ से निकल रही थी तो सोचा देखूँ, तुम अभी वापस आये हो या नहीं !” मुस्कराकर सोनी ने कहा और कुर्सी पर बैठ गई । उसने दिन वाली स्कर्ट और टॉप पहनी थी । श्याम बाबू उसे सिर से पाँव तक देखने लगा ।
“क्या देख रहे हो ?” सोनी मुस्कुरा उठी, “अभी दिल नहीं भरा ?”
“तुम तो हर बार नई लगने वाली चीज़ हो । दिल कहाँ भरेगा ।” श्याम बाबू मुस्कुरा उठा ।
“लगता है खाना खाने का इरादा नहीं है ।” सोनी अदा के साथ कह उठी ।
“खाना बाद में । पहले तुम्हें... ।”
“सब्र नहीं है ।”
तब तक श्याम बाबू उसके पास आ पहुँचा । उसने बाँहे पकड़कर सोनी को उठाया । सोनी उसके साथ सट गई ।
“तुम जब हाथ लगाते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है श्याम बाबू !”
“मैं भी अब तुमसे दूर नहीं रह पाऊँगा । जीव को पकड़कर राबर्ट के हवाले कर दें । ये आखिरी काम है । उसके बाद हम दूर जाकर शादी करेंगे और चैन से बाकी की जिंदगी बिताएँगे ।”
“तब कितना अच्छा लगेगा श्याम बाबू !” सोनी ने उसे भींच लिया, “जैसा जाल तुमने कहा था, वैसा बनवा लाई हूँ ।”
“कहाँ है ?”
“बाहर कार में रखा है ।”
श्याम बाबू ने उसका टॉप उतारा और उसे उठाकर बेड पर जा लिटाया ।
“पहले ये काम । उसके बाद खाना ।” श्याम बाबू उस पर बिछता हुआ कह उठा, “फिर वहाँ चलेंगे जहाँ शंकर, मोती और राहुल आर्य उस जीव की तलाश कर रहे हैं ।”
☐☐☐
रात के ग्यारह बज रहे थे ।
घर में पैना सन्नाटा छाया हुआ था । जगदीश और कमला रह-रहकर एक-दूसरे को देख रहे थे ।
रहस्यमय जीव दस बजे ही खाना खाने के बाद दूसरे कमरे में फर्श पर गहरी नींद में जा डूबा था । दोनों का ख्याल था कि वह खाना खाने के बाद बीती रात की तरह बाहर जायेगा और पाँच-सात को मार आएगा, जिससे पुलिस उसके बारे में इनाम और बढ़ा देगी, परन्तु उसे नींद लेते पाकर दोनों को मायूसी हुई ।
“ये तो नींद लेने लगा ।” कमला कह उठी ।
“मेरा तो ख्याल था कि ये बाहर जाकर कुछ को मारेगा । इस पर इनाम बढ़ जायेगा ।” जगदीश ने होंठ भींचकर कहा ।
“अब क्या करें ?”
“मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा ।” जगदीश झल्लाया-सा लग रहा था ।
रह-रह कर दोनों दरवाजे से दूसरे कमरे में झाँक लेते जहाँ रहस्यमय जीव नींद में था ।
“हो सकता है आधी रात को नींद से उठकर बाहर चला जाये ।” कमला बोली ।
“मुझे क्या पता ?”
“इसे नींद से उठा दूँ ।” कमला ने जगदीश को देखा ।
“क्यों ?”
“जागने के बाद शायद ये बाहर चला जाये ।”
“ऐसा मत करना । नींद से उठाने पर इसे गुस्सा भी आ सकता है ।”
“तो ?”
“इंतजार करो । देखो, ये क्या करता है ।”
वह पूरी रात सोया रहा ।
जगदीश और कमला ठीक से न तो नींद ले पाये और न सो पाये । उनका पूरा ध्यान रहस्यमय जीव पर था कि वह नींद से उठेगा और बाहर की तरफ चल देगा ।
परन्तु ऐसा हुआ नहीं ।
वह सुबह छः बजे उठा । दोनों ने मुस्कराकर हैलो किया । जबकि दोनों भीतर ही भीतर जले-भुने हुए थे ।
कमला अपने लिए और जीव के लिए कुछ खाने के वास्ते बनाने के लिए किचन में चली गई ।
कुछ देर बाद जगदीश भी किचन में कमला के पास आ पहुँचा ।
“इसका क्या भरोसा !” कमला सोच भरे स्वर में कह उठी, “ये दस दिन भी बाहर न निकले । मैं इसे खिला-खिलाकर थक जाऊँगी ।”
“तुम ठीक कहती हो ।” जगदीश ने धीमे स्वर में कहा ।
“तुम कुछ करो ।”
“क्या करूँ मैं ?”
“पचास हजार रुपये का इनाम है । वही ले लो ।” कमला ने गहरी साँस लेकर कहा ।
“पचास हजार कम हैं ।”
“मुझे तो डर है कि कहीं पचास हजार भी हाथ से न निकल जाएँ ।”
जगदीश और कमला की नजरें मिलीं ।
“सोच लो ।”
“सोच लिया है । पचास ही आने दो ।”
“ठीक है । मैं अभी जाकर पुलिस को खबर करता हूँ । कल पुलिस उधर सरकारी कॉलोनी के फ्लैटों में इसकी तलाश में रात तक मंडरा रही थी ।” जगदीश ने कहा, “मैं उन्हें खबर करता हूँ ।”
“उन्हें यही कहना कि ये सुबह ही हमारे घर में घुसा है ।” कमला बोली, “अगर पुलिस को पता चल गया कि ये पहले से ही हमारे घर पर है तो पुलिस हमें पकड़कर बन्द कर देगी कि हमने पहले उसे क्यों नहीं बताया ।”
“ठीक कहती हो । पुलिस को मैं यही कहूँगा कि ये सुबह ही हमारे घर में आ घुसा और मैं मौका पाकर उन्हें खबर करने आ गया ।”
“इनाम की बात कर लेना । बोल देना, पूरे पचास हजार ही मिलने चाहिए और पहले ही बोल देती हूँ कि इन पैसों को इधर-उधर खर्च नहीं करना है । बड़ी वाली फ्रिज और सोफा लाना है, जैसी मेरी बहन के घर है ।”
“ठीक है । ले आएँगे ।”
“जाओ अब । खड़े-खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो ।”
जगदीश सिर हिलाकर किचन से बाहर निकल गया ।
☐☐☐
सुबह के आठ बज रहे थे ।
सड़क के किनारे पर छोटे से रेस्टोरेंट के बाहर पड़ी कुर्सियों पर अभी-अभी श्याम बाबू, शंकर और सोनी आकर बैठे थे । रात भर के थके-जागे, अब नाश्ता करने की सोच रहे थे । रात भर रहस्यमय जीव की तलाश करते रहे थे । पुलिस भी जगह-जगह फैली थी । ऐसे में उन्हें सावधानी से काम लेना पड़ रहा था ।
राहुल आर्य और मोती कुछ दूरी पर थे । सरकारी कॉलोनी की तरफ ।
रात किसी को वक्त और ठीक जगह मिली तो एक-दो घण्टे की नींद ले ली, दिल की तसल्ली के लिए, वरना आँखें नींद से भरी हुई थीं । शरीर भी सुस्त-सा हो रहा था ।
“मुझे तो लगता है, हम यहाँ वक्त बर्बाद कर रहे हैं ।” श्याम बाबू कह उठा ।
“तुम्हारा मतलब कि वो जीव इधर नहीं है ।” शंकर ने शांत स्वर में कहा ।
“हाँ ! अगर होता तो अब तक कहीं से उसकी खबर तो मिलती ।”
“पुलिस वाले बेवकूफ नहीं हैं जो कल से इधर ही जमे हुए हैं ।” सोनी ने दोनों को देखा ।
श्याम बाबू ने गर्दन घुमाकर दूर नजर आ रहे पुलिस वालों को देखा ।
“उसकी खबर देने वाले को पुलिस ने पचास हजार रुपये इनाम देने को कहा है ।”
“पचास हजार कम हैं ।” श्याम बाबू गर्दन घुमाकर शंकर को देखता कह उठा, “उस जीव के लिए लाखों में इनाम होना चाहिए ।”
“लाखों में ?” शंकर के होंठ सिकुड़े ।
“हाँ ! क्योंकि एक तो वो जनता के लिए खतरनाक है । दूसरे वो अजीबो-गरीब है । वो कीमती जीव है । वो पुलिस के हाथ नहीं आ रहा । जाने कहाँ छिप जाता है । वो पुलिस वालों को भी मार चुका है और उस पर सिर्फ पचास हजार का इनाम ।”
“ठीक कह रहे हो । दो-चार लाख का इनाम तो उस पर होना ही चाहिए, जो उसके बारे में खबर दे ।”
“हम पुलिस से पहले उस रहस्यमय जीव को तलाश कर लेना चाहते हैं ।” श्याम बाबू ने शंकर और सोनी को देखा, “ऐसे में अगर कोई हमें उसके बारे में खबर दे दे कि वो कहाँ है तो पाँच-सात लाख हम ही दे दें ।”
उनसे चार कदमों की दूरी पर एक कुर्सी पर जगदीश मौजूद था । बिना नाश्ते के ही वह घर से निकल आया था । दो किलोमीटर पैदल चलकर यहाँ तक पहुँचा था । दूर पुलिस वालों को देखकर उसने चैन की साँस ली कि उन्हें खबर देकर पचास हजार का अब हकदार बन जायेगा । परन्तु पुलिस से बात करने से पहले वह पेट में कुछ डाल लेना चाहता था, वरना बाद में खाने-पीने का वक्त शायद रात तक भी न मिलता । इसी कारण वह यहाँ आ बैठा था । वेटर को नाश्ते के लिए कह दिया था ।
इन लोगों की बातें वह सुन रहा था ।
परन्तु जब पाँच लाख का जिक्र आया तो उसके कान खड़े हुए । फौरन गर्दन घुमाकर उन तीनो को देखा ।
वेटर उन तीनों के पास ऑर्डर लेने आ पहुँचा । सोनी ने नाश्ते के लिए कहा ।
वेटर के जाने के बाद शंकर ने गहरी साँस लेकर कहा ।
“हम अपने इनाम की घोषणा खुले रूप से नहीं कर सकते ।”
“ठीक कहते हो ।” श्याम बाबू बोला, “पुलिस हमारे पीछे पड़ जायेगी ।”
“राहुल और मोती वहाँ क्या कर रहे हैं ?” सोनी ने दूसरी तरफ देखते हुए कहा ।
“उसी जीव के बारे में कोई खबर पाने की कोशिश में हैं ।”
तभी जगदीश कुर्सी से उठा और उनके पास आ पहुँचा ।
“आप लोगों को एतराज न हो तो मैं यहाँ बैठ जाऊँ ।” जगदीश के स्वर में हल्की-सी घबराहट थी ।
जगदीश को देखने के बाद श्याम बाबू और शंकर की नजरें मिलीं ।
“तुम कहीं और बैठ सकते हो । पहले वहाँ बैठे थे ।” सोनी कह उठी ।
“मैं आप लोगों की बातें सुनकर यहाँ आ गया । आप उस जीव के बारे में बात कर रहे थे जो... ।”
“तो ? उसके बारे में तो इधर हर कोई बात करता... ।” शंकर ने कहना चाहा ।
“मैंने उसे सुबह ही देखा है ।” जगदीश ने धीमे स्वर में कहा । तीनों चौंके ।
“किसे ?” श्याम बाबू के होंठों से निकला, “रहस्यमय जीव को देखा है ।”
“हाँ ! मैं उसी की बात कर रहा हूँ । बैठ जाऊँ या खड़े-खड़े ही बात करूँ ?”
“बैठो-बैठो ।”
जगदीश तुरन्त कुर्सी पर बैठ गया ।
“तुमने सच में उसे देखा है ?” सोनी व्याकुल सी भींचें स्वर में कह उठी ।
“हाँ !”
“कहाँ ?”
तभी वेटर सब के नाश्ते ले आया ।
जगदीश का नाश्ता भी वहीं रख गया ।
“कहाँ देखा है ?” वेटर के जाते ही शंकर ने होंठ सिकोड़े पूछा ।
“अखबार और टीवी से पता चला कि उसकी खबर देने वाले को पुलिस इनाम देगी तो मैं पुलिस को... ।”
“इनाम तुम्हें हम देंगे ।” सोनी बोली, “तुम हमें बताओ । कहाँ है वो रहस्यमय जीव ?”
जगदीश ने श्याम बाबू, शंकर और सोनी को बेचैन निगाहों से देखा ।
“आप लोगों को उस जीव की क्यों जरूरत है ?”
“तुम अपने इनाम की तरफ ध्यान दो ।” श्याम बाबू बोला, “कहाँ देखा है उसे ?”
“मैं अपने इनाम की तरफ ही ध्यान दे रहा हूँ । मैंने अभी सुना कि आप लोग पाँच लाख इनाम देने की बात कर रहे थे । तभी तो मैं वहाँ से उठकर यहाँ आ गया ।” जगदीश की नजरें बारी-बारी तीनों पर गई ।
तीनों की नजरें मिलीं फिर जगदीश के चेहरे पर आकर ठहर गई ।
“अच्छी बात है । तुम्हें पाँच लाख ही इनाम देंगे । बताओ वो कहाँ है ।”
“जब आप इनाम के पाँच लाख दे देंगे, तब बता दूँगा । ऐसी बातों में उधार नहीं चलता ।” जगदीश का स्वर तीखा हो गया ।
श्याम बाबू के होंठ भिंच गए ।
शंकर और सोनी ने उखड़ी नजरों से जगदीश को देखा ।
“नाश्ता कीजिये ।” जगदीश नाश्ता शुरू करते हुए बोला, “मैं यहाँ नाश्ते के लिए ही रुका था । सोचा पुलिस तो मुझे अपने साथ ही रखेगी, जब तक वहाँ जाकर उस जीव को पकड़ नहीं लेती । क्या मालूम तब तक खाने को भी न मिले ।”
तीनों जगदीश को नाश्ता करते देखने लगे ।
जगदीश भी बार-बार उन्हें देखते हुए सोच रहा था कि क्या ये वास्तव में उसे पाँच लाख देंगे ?
“सच कहते हो कि तुम जानते हो वो जीव कहाँ है ?” श्याम बाबू अपने शब्दों पर जोर देकर बोला ।
“अभी देख लेना, जब मैं पुलिस को वहाँ लेकर जाऊँगा । भला पुलिस से झूठ बोलने की मेरी हिम्मत कहाँ !”
तीनों की निगाहें मिलीं । किसी ने भी नाश्ता शुरू नहीं किया था ।
जगदीश अवश्य नाश्ता कर रहा था ।
“उस जीव के बारे में बताने की एवज में क्या चाहते हो ?”
“मुझे तो बिना चाहे ही आप लोग पाँच लाख दे रहे हैं । मैं लालची नहीं कि ज्यादा माँगू ।”
“तुम पुलिस के पास जा रहे थे । पुलिस ने तुम्हें पचास का तीस ही हाथ पर रखना था । बाकी अपनी जेब में रख लेना था ।” सोनी धीमे स्वर में कह उठी, “हम तुम्हें पूरा लाख देंगे और... ।”
“मैं तो पाँच लाख सुनकर यहाँ आया था ।” जगदीश गंभीर स्वर में बोला, “कम नहीं चलेगा । पाँच लाख न मिला तो पुलिस से पचास ही ले लूँगा । अखबार में तस्वीर भी छपेगी मेरी ।” जबकि मन-ही-मन वह खुश था कि ये लोग लाख रुपया दे रहे हैं । इन्हें इस जीव की खास ही जरूरत होगी । इनसे दस-बीस ज्यादा लिया जा सकता है । वह जानता था कि बार-बार पाँच लाख कहेगा तो ये लोग लाख से ज्यादा कुछ नहीं देंगे, “पुलिस को भी कह दूँगा कि सारा पैसा एडवांस में चाहिए ।”
शंकर ने होंठ भींचकर श्याम बाबू को देखा ।
“क्या करना है ?” शंकर के होंठों से निकला ।
“श्याम बाबू की आँखों में चमक आ ठहरी थी ।
सोनी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“अगर ये वास्तव में हमें रहस्यमय जीव तक पहुँचाने जा रहा है तो पाँच लाख देने में हर्ज ही क्या है ।”
ये सुनते ही जगदीश का दिल रफ़्तार के साथ धड़कने लगा । ये लोग उसे पाँच लाख देने की बात कर रहे हैं, जबकि वह तो यूँ ही उनकी बात सुनकर पाँच लाख-पाँच लाख कर रहा था । उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
शंकर होंठ भींचें सोचने लगा ।
सोनी ने तीखी निगाहों से जगदीश को देखा ।
“हम तुम्हें इस तरह पाँच लाख नहीं दे सकते ।” सोनी का स्वर सख्त था ।
“क्या मतलब ?”
“पहले तुम हमें यकीन दिलाओ कि तुम पाँच लाख के हकदार हो ।”
“क... कैसे यकीन दिलाऊँ ?” जगदीश ने पुनः सूखे होंठों पर जीभ फेरी । पहलू बदला । नाश्ता तो वह भूल ही चुका था ।
तभी श्याम बाबू ने शंकर से कहा ।
“मोती और राहुल को बुला लाओ । वो भी सब देख-सुनकर अपनी राय दे देंगे ।”
शंकर सिर हिलाकर उठा और उधर बढ़ गया जिधर वे दोनों थे ।
“ये तुम सोचो कि कैसे यकीन दिलाओगे । पाँच लाख तुम्हें लेना है, मैंने नहीं !” सोनी ने उसे घूरा ।
“पाँच लाख लेने के बाद, मैं तुम सबको वहाँ ले चलूँगा, जहाँ वो जीव है ।” जगदीश ने बेचैनी से कहा ।
“क्या मालूम, तुम हमें जहाँ ले जाओ, वहाँ तुम्हारे साथी छिपे हों । वो हमें मार दें और... ।”
“मैं बदमाश नहीं हूँ ।”
“किसी के चेहरे पर तो नहीं लिखा होता ।”
जगदीश आहत भाव से सोनी को देखने लगा ।
श्याम बाबू ने उनकी बातों में दखल नहीं दिया ।
उनके बीच की खामोशी लम्बी होने लगी ।
तभी शंकर, मोती और राहुल आर्य को लेकर वहाँ आ पहुँचा ।
रास्ते में उन्हें बता चुका था कि मामला क्या है । वहाँ पहुँचकर वे कुर्सियों पर बैठे और जगदीश को गहरी निगाहों से देखा ।
जगदीश के चेहरे पर घबराहट-सी आ ठहरी ।
“क्या नाम है तेरा ?” मोती ने पूछा ।
“जगदीश ।” उसने जल्दी से कहा ।
“कहाँ रहता है ?”
“तेरे को क्या ?” जगदीश संभला, “ये बात नहीं बता सकता ।”
“तेरी गर्दन पकड़कर भी पूछ सकता... ।”
“गलती में मत रहना ।” जगदीश ने गर्दन घुमाकर दूर निगाह मारी, फिर मोती को देखा, “पुलिस ज्यादा दूर नहीं है । मैं दो-चार बार चीखा तो पुलिस की नजरें इधर देखने लगेंगी । डंडेबाजी नहीं चलेगी ।”
मोती दाँत भींचकर रह गया ।
“मैं यूँ ही पाँच लाख के चक्कर में रह गया । मुझे पचास हजार ही ठीक हैं । तुम लोग ठीक नहीं लग रहे ।”
“नाराज क्यों होते हो ।” राहुल आर्य कह उठा, “इसकी बातों का बुरा मत मानो । ये तो आधा पागल है ।”
मोती ने उखड़ी निगाहों से राहुल आर्य को देखा ।
“बात ये है कि हम तुम पर यूँ ही विश्वास करके पाँच लाख तुम्हें नहीं दे सकते । तुम हमें समझो कि... ।”
“मैं सब कुछ समझ रहा हूँ ।” जगदीश कह उठा, “लेकिन तुम लोग भी समझो कि मैं पाँच लाख लेकर भाग नहीं जाऊँगा । तुम लोगों के साथ ही रहूँगा । सबको वहाँ ले आऊँगा, जहाँ वो जीव मौजूद है । मैं धोखेबाज नहीं हूँ ।”
जगदीश की बात पर वे एक-दूसरे को देखने लगे ।
“ये ठीक ही तो कहता है ।” श्याम बाबू ने कहा, “ये हमारे साथ-साथ ही रहेगा । पाँच लाख ही तो पहले माँग रहा है । दे देते हैं । पाँच लाख लेकर तब तक हमसे अलग नहीं होगा, जब तक हमें जीव तक नहीं ले जाता । क्यों जगदीश साहब, मैंने ठीक कहा ?”
“हाँ-हाँ ! यही तो मैं कह रहा हूँ ।” जगदीश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर फौरन सिर हिलाया, “लेकिन तुम लोगों को भी ईमानदारी के साथ चलना है । कहीं बाद में मुझसे पैसा छीन लो और... ।”
“ऐसा नहीं होगा ।” श्याम बाबू ने कहा, “ऐसी बुरी बात तुम्हें नहीं सोचनी चाहिए ।”
पाँच लाख जैसी बड़ी रकम आती पाकर जगदीश व्याकुल-सा नजर आने लगा ।
“मैं ज्यादा देर तुम लोगों के साथ नहीं रह सकता । अपने घर भी पहुँचना है मुझे ।”
श्याम बाबू ने चारों पर निगाह मारी ।
“पाँच लाख कौन लाएगा ?”
“मेरे घर पर है ।” शंकर ने कहा, “मैं लेकर आता हूँ ।”
“किसी को साथ ले जाओ । जल्दी आना ।”
राहुल आर्य उठ खड़ा हुआ ।
“मैं शंकर के साथ जाता हूँ ।”
☐☐☐
0 Comments